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वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में-1-1
वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में-1-1
भाग 1 साधारणम ्
अध्याय 1 शा्त्रसंग्रिः
अर्ा- मै धमम, अर्म और काम को नमस्कार करने के बाद में इस ग्रंर् की शरु
ु आत करता हं ।
जजस प्रकार से चार वणम (जातत) ब्राह्मण, शुद्र, क्षत्रत्रय और वेश्य होते हैं उसी प्रकार से चार
आश्रम भी होते हैं- धमम, अर्म, मोक्ष और काम। धमम सबके शलए इसशलए जरूरी होता है क्योंकक
इसके बगैर मोक्ष की प्राजतत संभव नहीं है। अर्म इसशलए जरूरी होता है क्योंकक अर्ोपाजमन के
त्रबना जीवन नहीं चल सकता है । दसरे जीव प्रकृतत पर तनभमर रहकर प्राकृततक रूप से अपना
जीवन चला सकते हैं लेककन मनुष्य ऐसा नहीं कर सकता है क्योंकक वह दसरे जीवों से
बुद्धधमान होता है। वह सामाजजक प्राणी है और समाज के तनयमों में बंधकर चलता है और
चलना पसंद करता है। समाज के तनयम है कक मनुष्य गह
ृ स्र् जीवन में प्रवेश करता है तो
सामाजजक, धाशममक तनयमों में बंधा होना जरूरी समझता है और जब वह सामाजजक-धाशममक
तनयमों में बंधा होता है तो उसे काम-ववषयक ज्ञान को भी तनयमबद्ध रूप से अपनाना जरूरी
हो जाता है। यही कारण है कक मनुष्य ककसी खास मौसम में ही संभोग का सुख नहीं भोगता
बजकक हर हदन वह इस किया का आनंद उठाना चाहता है।
इसी ध्येय को सामने रखते हुए आचायम वात्स्यायन ने काम के सत्रों की रचना की है । इन
सत्रों में काम के तनयम बताए गए है । इन तनयमों का पालन करके मनुष्य संभोग सख ु को
और भी ज्यादा लंबे समय तक चलने वाला और आनंदमय बना सकता है।