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वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 1 साधारणम ्

अध्याय 1 शा्त्रसंग्रिः

श्लोक (1)- धमाार्ाकामेभ्यो नमः।।

अर्ा- मै धमम, अर्म और काम को नमस्कार करने के बाद में इस ग्रंर् की शरु
ु आत करता हं ।

भारतीय सभ्यता, संस्कृतत और साहहत्य का यह बहुत पुराना चलन रहा है कक ग्रंर् की


शुरुआत, बीच और अंत में मंगलाचरण ककया जाता है। इसके बाद आचायम वात्सायन ने ग्रंर्
की शुरुआत करते हुए अर्म, धमम और काम की वंदना की है । हदए गए पहले सत्र में ककसी दे वी
या दे वता की वंदना मंगलाचरण द्वारा न करके, ग्रंर् में प्रततपाद्य ववषय- धमम, अर्म और काम
की वंदना को महत्व हदया है । इसको साफ करते हुए आचायम वात्साययन नें खुद कहा है कक
काम, धमम और अर्म तीनों ही ववषय अलग-अलग है कफर भी आपस में जुडे हुए है । भगवान
शशव सारे तत्वों को जानने वाले हैं। वह प्रणाम करने योग्य है। उनको प्रणाम करके ही
मंगलाचरण की श्रेष्ठता पाई जा सकती है।

जजस प्रकार से चार वणम (जातत) ब्राह्मण, शुद्र, क्षत्रत्रय और वेश्य होते हैं उसी प्रकार से चार
आश्रम भी होते हैं- धमम, अर्म, मोक्ष और काम। धमम सबके शलए इसशलए जरूरी होता है क्योंकक
इसके बगैर मोक्ष की प्राजतत संभव नहीं है। अर्म इसशलए जरूरी होता है क्योंकक अर्ोपाजमन के
त्रबना जीवन नहीं चल सकता है । दसरे जीव प्रकृतत पर तनभमर रहकर प्राकृततक रूप से अपना
जीवन चला सकते हैं लेककन मनुष्य ऐसा नहीं कर सकता है क्योंकक वह दसरे जीवों से
बुद्धधमान होता है। वह सामाजजक प्राणी है और समाज के तनयमों में बंधकर चलता है और
चलना पसंद करता है। समाज के तनयम है कक मनुष्य गह
ृ स्र् जीवन में प्रवेश करता है तो
सामाजजक, धाशममक तनयमों में बंधा होना जरूरी समझता है और जब वह सामाजजक-धाशममक
तनयमों में बंधा होता है तो उसे काम-ववषयक ज्ञान को भी तनयमबद्ध रूप से अपनाना जरूरी
हो जाता है। यही कारण है कक मनुष्य ककसी खास मौसम में ही संभोग का सुख नहीं भोगता
बजकक हर हदन वह इस किया का आनंद उठाना चाहता है।

इसी ध्येय को सामने रखते हुए आचायम वात्स्यायन ने काम के सत्रों की रचना की है । इन
सत्रों में काम के तनयम बताए गए है । इन तनयमों का पालन करके मनुष्य संभोग सख ु को
और भी ज्यादा लंबे समय तक चलने वाला और आनंदमय बना सकता है।

आचायम वात्स्यायन ने कामसत्र की शरु


ु आत करते हुए पहले ही सत्र में धमम को महत्व हदया है
तर्ा धमम, अर्म और काम को नमस्कार ककया है।

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