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से अनंत जीव-समुदाय इसी में फंसा हुआ है । इस तरह के सभी अज्ञान के मल में दसरे के

प्रतत आकषमण और दसरों को अपने से अलग ही जानना चाहहए।

इसशलए सात्रबत होता है कक काम और आकषमण की इच्छा ही ववश्व वासना कहलाती है।
अववद्या, आकषमण आहद सभी वासनाओं के मल में काम मौजद है । इसी प्रकार से वेदों, पुराणों
में भी कायम को आहददे व कहा गया है।

काम शरु
ु आत में पैदा हुआ। वपतर, दे वता या व्यजक्त उसकी बराबरी न कर सके।

शैव धमम में परे संसार के मल में शशव और शजक्त का संयोग माना जाता है।

यही नहीं शैव मत के अंतगमत आध्याजत्मक पक्ष में आहद वासना परु
ु ष और प्रकृतत के
संबंध में प्रकाशशत है तर्ा वही भौततक पक्ष में स्त्री और पुरुष के संभोग में पररणत है।

परी दतु नया को शशव पुराण और शजक्तमान से पैदा हुआ शैव तर्ा शाक्त समझता है।
पुरुष और स्त्री के द्वारा पैदा हुआ यह जगत स्त्री पुंसात्मक ही है । ब्रह्म शशव होता है तर्ा
माया शशव होती है । पुरुष को परम ईशान माना जाता है और स्त्री को प्रकृतत परमेश्वरी।
जगत के सारे पुरुष परमेश्वर है और स्त्री परमेश्वरी है ।

इन दोनों का शमर्ुनात्मक संबंध ही मल वासना है तर्ा इसी को आकषमण और काम


कहा जाता है।

इसके अलावा शशवपरु ाण में 8 से लेकर 12 प्रकरण तक काम के ववषय में जो बताया
गया है उसमे काम को मैर्न
ु ाववषयक काम के अर्म में ही प्रयोग ककया गया है । उनके अनस
ु ार
यह मानना ककतना सच है कक ववश्वाशमत्र, सुखदे व, श्रंग
ृ ी जैसे ऋवष और श्रीराम जैसे साक्षात
ईश्वर के अवतार भी काम के जाल में फंसे हुए है ।

शशव पुराण की धमम संहहता और वात्सायायन के कामसत्र में शलखा है कक संककप के


मल में ववषय आसजक्त ही बनी रहती है।

काम को मन का आधार माना जाता है जो बच्चे के कोमल हृदय में सबसे पहले
सपंहदत होता है। इसको वही जान सकता है जो सच्चाई को दे खने की इच्छा रखता है।

श्लोक (5)- प्रजापततहिं प्रजाः सष्ृ टवा तासां स््र्तततनबंधनं त्रत्रवगा्य साधनमध्यायानां
शतसि्त्रेणाग्रे प्रोवाच।।

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