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के.

स ाथ
डॉ. जीत सह
Minister of State (Independent Charge) of the Ministry of Earth Sciences,

Minister of State (Independent Charge) of Science & amp; Technology,

Minister of State in the Prime Minister’s Office,

Minister of State in the Ministry of Personnel, Public Grievance

को सम पत
ा कथन
भा रत अंत र यगु म वेश कर गया है।
अंत र ने हमारा बहुत काम आसान िकया है। अंत र क तकनीक ने
हमारे जीवन क बहुत सारी मु कल का समाधान िकया है। अंत र पहले
भी हमारी सारी सम याओं का समाधान कर रहा था। मोबाइल और
इंटरनेट उसी के अंश ह। ‘चं यान’ ने उसी अंत र के त एक नई
जाग कता पैदा क है। ‘चं यान’ म यु तकनीक भारत को एक नए वग
म रखने क को शश है। ISRO ने गुणव ा के नए मापदंड थािपत िकए ह
और चं यान उसका िह सा है। अंत र म सफलता भारत क अब तक क
सबसे बड़ी वै ािनक सफलता है। इसने िव ान, अथ यव था और
राजनी तकरण के िब कुल नए आयाम खोल िदए ह।
अंत र
अथ यव था या द ु यव था
राजनी त या सहयोग
संभावना या यु े
भिव य या वलंत सम या
अंत र िव ान के येक पहलू को आसान भाषा म समझाने के लए
यह एक यास है। इस यास का उ े य आम पाठक को आसान भाषा म
अंत र िव ान क बारीिकय क पूरी जानकारी देना है, जससे िक उनके
अंदर अंत र को लेकर न सफ नई ज ासा का भाव पैदा हो, ब क
उनक जो भी नई ज ासाएँ जा त् हुई ह, उनके उ र भी िमल जाएँ और
साथ-ही-साथ वह यह भी समझ सक िक अंत र हमारे लए िकतना
उपयोगी और मह वपूण है और भिव य म िकतना अ धक मह वपूण हो
सकता है।
अंत र हमारी क पना को एक नया पंख तो दे ही रहा है, साथ ही हम
असं य नई सूचनाएँ भी दे रहा है। उन सूचनाओं के उपयोग करने क िव ध
भी बता रहा है और हमारे भिव य को एक नई आशा से भगोने का काम भी
कर रहा है। जैसे िक कहा जा रहा है िक आनेवाले भिव य म डाटा ही
अथ यव था के लए ई ंधन का काम करेगा। यह डाटा अब कहाँ से आता
है? इन सारी चीज को समझाने का काम इस पु तक म िकया गया है।
पु तक म 14 अ याय ह, जसम अंत र के बारे म सारी जानकारी दी
गई है। जैसे अंत र या है? वहाँ का वातावरण कैसा है? शू य
ँ ो े ो
गु वाकषण म या सम याएँ हो सकती ह? अंत र के खगोलीय पड क
ग त और उनके गु वाकषण बल का या असर होता है? सैटेलाइट या है
और यह कैसे काम करती है? कैसे राॅकेट अंत र म आगे बढ़ते ह? हमारे
चं यान क या टे नोलॉजी थी? हमारे चं यान को य इतना समय
लगा? िव म (Lander) को कहाँ सम या हुई और य इससे संपक टू ट
गया? अगर चं मा पर हम उतर गए होते तो हमारा या तबा होता और
अभी या है? अंत र कैसे हमारी अथ यव था और हमारी मारक मता
को भी िनधा रत करेगा? अंत र से संबं धत मु े या ह? कचर का या
समाधान है? और भिव य का अंत र कैसा होगा? ऐसे बहुत सारे , जो
िकसी के भी मन म आएँ , यहाँ उन सभी बात को िव तार से समझाया गया
है। इन सभी चीज को बहुत आसान भाषा म बताया गया है। इस पु तक म
च का भी भरपूर उपयोग िकया गया है, जसम पाठक को अंत र क
बारीिकयाँ समझाने का यास िकया गया है, जससे िक पाठक इस पु तक
म िनिहत गंभीर जानका रय को आनंिदत प म हण कर पाएँ ।
यह पु तक नवीन साम रक मु पर पु तक क पहली ंखला है। दसू री
पु तक भूराजनी त पर होगी। इस पु तक का प र कृत सं करण हर िनयत
मौके पर आता रहेगा तथा उसम िनत नई सूचनाएँ व नए अ याय भी जुड़ते
रहगे।
यह मेरी 43व पु तक है, और हमेशा क तरह एक नए िवषय पर। यह
पु तक मेरी भौ तक शा क श ा और उसक समझ का सार, िवशेषकर
उस भाग का, जसम मुझे ारंभ से ही अ धक च रही है—खगोल िव ान
(Astrophysics)।

इस पु तक को पूरा करने म सबसे बड़ी सम या समय के बंधन क थी,


य िक चं यान से जिनत खुमार बहुत िदन तक नह रहता; और दस ू री
सम या इसके भाषा के सरलीकरण क थी। सौभा य से मेरी संग त कुछ
इस तरह क बनी िक सरल भाषा लखने क कला अ जत कर ली और
इसम मु य योगदान हमारे िम ी मनोज मलयिनल, ी राजीव क यप,
ी राजकमल चौधरी का रहा है।
हम सब उनके आभारी ह।
अ◌ालोचनाओं का तीर चलानेवाली डॉ. सुिमता मुखज हमेशा ही
कारगर रहती ह। इन सभी लोग ने इस पु तक को सामा य यि य के
यो य बनाने म अपना योगदान िदया।
माननीय संचार मं ी ी देवू सह चौहान का िवशेष आभार है, ज ह ने
इस पु तक को इतना ो सािहत िकया।
इस पु तक को पढ़ने के उपरांत आपका जीवन अंत र मय हो, यही


हमारी तम ा रहेगी।
—के. स ाथ
अनु म
ा कथन

1. अंत र या है?
2. अंत र िव ान म ाचीन भारत का योगदान
3. अंत र क या ा और यान
4. चाँद, चं माएँ और चं यान
5. अंत र कैसे हमारा जीवन सुखमय करता है?
6. भारतीय अंत र अनुसंधान काय म
7. भारत क अंत र म उपल धयाँ
8. भारत क अंत र नी त
9. अंत र म ह थयार
10. अंत र के खतरे
11. अंत र से संबं धत मु े
12. अंत र : एक नई दिु नया, एक नई अथ य था, एक नया ह थयार,
एक नया भिव य
13. अंत र का नवीन साम रक व प
14. भिव य क अंत र रणनी त और राजनी त
अ याय 1
अंत र या है?
अ भी पूरे िव म ‘अंत र ’ श द क गूँज हो रही है। यह श द इस लए
भी मह वपूण हो गया है, य िक इस वष अपोलो िमशन के 50 साल पूरे हुए,
जब मनु य पहली बार चं मा पर उतरा था। यह इस लए और भी मह वपूण
हो गया है, य िक अभी कुछ लोग ने अंत र म नया-नया कदम रखा है।

ांड : जहाँ तक ( ान) क सीमा है, वह है ांड; जहाँ तक क पना क सीमा है, वह है
ांड; जहाँ तक खुराफात क सीमा है, वह भी है ांड। हाँ, ांड तार , िनहा रकाओं, धूमकेतु,
ह और लैक होल का जमघट है। यह अनंत है। यह शांत है, यह नीरव है, यह ई र है, यही सच है।

यह इस लए भी मह वपूण होता जा रहा है, य िक भारत अब इस


त पधा म शािमल हो गया है। यह इस कारण भी मह वपूण हो गया है िक
भारत ने ए-सेट को अंत र म सफलतापूवक ेिपत िकया है। िवक सत
देश क पाँत से िब कुल एक बाहर का देश होकर भी भारत ने अंत र
िव ान क बनी-बनाई मा यताओं के िवपरीत, बहुत कम लागत और कम
यय म अंत र का नया काय म शु कर िदया। भारत ने अंत र को
कॉलोनाइज करने क बात शु कर दी तो अंत र श द क मह ा बढ़ती
गई।
‘अंत र ’ श द और अंत र क ‘संक पना’ हमेशा से ही मह वपूण रही
है, य िक इस संक पना के िबना अंत र के बारे म जानकारी िमलना
किठन हो जाता है। यह संक पना ही होती है, जससे िक अंत र के बारे म
समझ, ज ासा और खोज काय को बढ़ावा िमलता है।
अंत र क शु आत कहाँ से होती है?
दिु नया भर के कई वै ािनक भी यह बताने म किठनाई महसूस करते ह
िक वा तव म अंत र क शु आत कहाँ से होती है? नासा के अनुसार,
े ँ े
जमीन से ऊपर जहाँ दबाव 1 पाउं ड त वायर फ ट से कम यानी
0.00048 बार से कम हो जाए, वहाँ से अंत र क शु आत होती है। इतना
कम दबाव पृ वी के लगभग 88 िकलोमीटर ऊपर होता है। जबिक एक
एयरोनॉिटकल इंजीिनयर थयोडोर वॉन कारमेन ने एक नया आँ कड़ा पेश
िकया। उनके अनुसार, जमीन से 100 िकलोमीटर ऊपर अंत र क
शु आत हो जाती है। 100 िकलोमीटर क इस सीमा का मह व यह होता है
िक 100 िकलोमीटर से ऊपर िकसी अंत र यान या व तु को पृ वी पर
िगरने से बचने और अंत र म बने रहने के लए क ीय वेग (Orbital
Velocity) क ज रत होती है। यानी पृ वी का गु व बल उसे वह बाँधकर
रखता है और वह इतनी तेज ग त से चलता है िक उसका पथ पृ वी के
गोल आकार के समानांतर हो जाता है और उसक ग त पृ वी क ग त के
अनु प हो जाती है। बाद म कारमेन क इस प रभाषा को वीकार िकया
गया। जमीन से 100 िकलोमीटर ऊपर एक का पिनक ‘कारमेन रेखा’ को
माना गया, जसके ऊपर अंत र को वीकार िकया गया।
यिद हम देख तो पृ वी का वायम ु ड
ं ल का िवभाजन ोभमंडल
(टोपो फ यर) (तल से 12 िकलोमीटर ऊपर), समतापमंडल
( टेटो फ यर) (50 िकलोमीटर ऊपर), म यमंडल (िमजो फ यर) (80
िकलोमीटर ऊपर), तापमंडल (थम फ यर) (700 िकलोमीटर ऊपर),
बिहमडल (ए जो फ यर) (10,000 िकलोमीटर ऊपर) म िकया गया है।
अब सवाल उठता है िक पृ वी के हजार िकलोमीटर िव तृत वायमु ड
ं लम
100 िकलोमीटर क बाहरी अंत र क सीमा को य वीकार िकया गया?
इसका सबसे बड़ा कारण है िक 100 िकलोमीटर से नीचे िकसी भी हवाई
जहाज या यान पर हवा का एक बल लगता है। एयरोडायनिमक ढंग से
तैयार िकसी भी उड़नेवाली व तु का करीब 98 तशत भार हवा वहन
करने म स म होती है, जबिक इससे ऊपर हवा क परत इतनी कमजोर
और हलक होती है िक ऐसा वायु ग त का भाव वहाँ नह िमल पाता है।

ं ल से अंत र क ओर। हम जैसे-जैसे ऊपर क ओर जाएँ गे, वैसे-वैसे आसमान


वायुमड
नीले से काला होता जाएगा और वायुमड
ं ल अंत र म िवलीन हो जाएगा।

अंत र के बारे म 10 सबसे बड़े िमथक


े े ो े ै
1. हम एक ए टॉयड बे ट से होकर या ा नह कर सकते : यह सही है िक
हमारे सौरमंडल के ह के बीच खरब ए टॉयड ह, लेिकन उनसे होकर
या ा क जा सकती है, य िक वह एक-दस ू रे से बहुत दरू ह। नासा ने
खुद कहा है िक इनके एक-दस
ू रे से टकराने क संभावना एक अरब म एक
ही होती है। इन ए टॉयड के बीच एक अरब घन िकलोमीटर तक का
खाली थान रहता है। नासा ने अब तक इन टॉयड बे ट से होकर 11
ोब िमशन भेजे ह, जनम आज तक एक खर च भी नह लगी है।
2. बुध ह सूय के सबसे नजदीक होने के कारण सबसे गरम ह है : जबिक
वा तिवकता यह है िक सूय से िकसी ह क दरू ी का उसके तापमान पर
बहुत कम असर पड़ता है। बुध ह सूय के सबसे नजदीक और सबसे
छोटा ह है। यह सूय से केवल 57 िम लयन िकलोमीटर दरू है। िदन के
समय बुध का तापमान 427 ड ी से सयस तक पहुँच जाता है। बुध का
एक िदन पृ वी के 58 िदन के बराबर होता है। इस ह पर रात म
तापमान-173 ड ी से सयस तक िगर जाता है।
वीनस यानी शु ह सूय से बुध क तुलना म 3 गुना अ धक दरू ी पर है।
लेिकन इसके वायमु ड
ं ल पर काबन डाइऑ साइड और नाइटोजन क
अ धकता है। इसके कारण इसका तापमान बहुत यादा होता है और यह
लगातार 462 ड ी से सयस बना रहता है।
3. सूरज आग का एक बड़ा गोला है : आग एक रासायिनक अ भि या है,
जसम ताप, ई ंधन और ऑ सीजन क ज रत होती है। यह रासायिनक
त व सूरज पर मौजूद नह है। िपछले चार अरब साल से यादा समय से
सूरज इस सौरमंडल को परमाणु संलयन के मा यम से ताप और काश
दे रहा है। सूरज के कोर का उ दबाव और तापमान हाइडोजन
परमाणुओ ं को एक साथ संल यत करके ही लयम म बदल देता है। यह
ऊजा पूरे सौरमंडल म ताप और काश के प म िवक रत होकर फैलती
है। सूरज पर हर सेकंड 700 िम लयन टन हाइडोजन ही लयम म बदलता
रहता है। पृ वी पर सबसे यादा आग का तापमान 3,038 ड ी
से सयस होता है, जबिक सूरज के कोर का तापमान 50 िम लयन ड ी
सटी ेड होता है।
4. िबना िकसी सुर ा के अंत र के िनवात म मानव जम जाएगा : जबिक
वा तिवकता यह है िक अंत र का तापमान जमाव बद ु से बहुत नीचे है।
अंत र म तापमान 2.7 के वन है, जो िक -270.45 ड ी से सयस
होता है। इसके बावजूद आप यहाँ पर सीधे जमने के बजाय वा तव म
अ धक गरम होते ह, य िक अंत र के िनवात म शरीर के ताप को
फैलाने के लए कोई मा यम नह होता। इस लए यहाँ पर जमने के लए
ठंड जैसी कोई बात असंभव है। ‘आम टांग सीमा’ के अनुसार, कम
वायमु ड
ं लीय दबाव पर मानव शरीर म वतमान पानी 37 ड ी से सयस
े ै ँ े
पर ही उबलने लगता है। इसका अथ यह हुआ िक वहाँ पर मानव के
शरीर के भीतर सभी व पदाथ, जैसे—पानी, आँ सू और फेफड़ के
सलाइवा उबलने लगगे और भाप बनने लगगे। 1966 म नासा के एक
वयंसेवक जम ला लांग एक श ण चबर म दघ ु टना के कारण
दबावरिहत होने के केवल 15 सेकंड म ही बेहोश हो गए थे। अं तम चीज,
जो उ ह ने महसूस क थी, वह यह िक उनक जीभ म नीचे पानी उबल
रहा था।
5. चं मा का एक अँधेरा िह सा है : जबिक वा तिवकता यह है िक चं मा
का अँधेरा प सूय का काश नह पड़ने के कारण, अँधेरा नह है। पृ वी
के साथ चं मा क टाइडल लॉ कग के कारण घूणन के समय उसका एक
ही प हमेशा पृ वी के सामने रहता है और वही पृ वी से िदखाई देता है।
इस िह से को 1959 तक नह देखा जा सका था। इस लए इसक
जानकारी न होने के कारण इसे ‘चाँद का अँधेरा िह सा’ कहा जाता था।
1959 म सोिवयत संघ के लूना-3 पेस ोब ने चं मा के चार ओर
प र मा क और इसके दोन िह स म सूय का काश ा िकया।
इससे सािबत हुआ िक चं मा के दोन िह से समान प से सूरज का
काश ा करते ह।
6. धूमकेतु क पूँछ होती है य िक वह अंत र म तेजी से घूमते ह : जबिक
वा तिवकता यह है िक धूमकेतु क पूँछ उनक ग त के कारण नह ,
ब क उनक िदशा के कारण होती है। जब धूमकेतु सूरज से दरू जाते ह
तो इनक पूँछ नह होती या बहुत छोटी होती है, लेिकन जब ये सूरज क
ओर आते ह, तो सूरज क गरमी से िपघलकर इनके भीतर क गैस और
छोटे-छोटे टु कड़े इनसे िवपरीत िदशा म जाने लगते ह। जससे इनक एक
पूँछ जैसी बन जाती है। धूमकेतु क सामा यत: दो तरह क पूँछ होती है।
पहली तो गैस से बनी होती है और दस ू री छोटे-छोटे धूल कण और ठोस
टु कड़ से िमलकर बनती है। एक धूमकेतु क पूँछ उसके मु य पड से
सैकड़ -हजार िकलोमीटर दरू तक होती है।
7. पृ वी गोल है : जबिक वा तव म पृ वी एक तरह से अंडाकार है। पृ वी
क अपने अ पर तेज घूणन ग त के कारण पैदा बल के कारण पृ वी क
िवषुवत रेखा थोड़ी यादा है। इसका आकार वैश क एक गद के जैसा
हो गया है। इसके कारण पृ वी क भूम य रेखा का यास ुव क तुलना
म 43 िकलोमीटर यादा है। पृ वी के उभरे हुए भूम य रेखा के समीप
होने के कारण इ वाडोर का माउं ट चबरा जो पवत, जो सबसे ऊँचे पवत
एवरे ट से 2,500 फ ट छोटा है, पृ वी के क से पृ वी क सतह पर
थत सबसे दरू का थान बन जाता है।
8. लैक होल शंकु के आकार के िनवात होते ह : वा तव म ‘ लैक होल’

ो ो े ो ै
ठोस पदाथ होते ह, जनका गु वाकषण बल इतना यादा होता है िक
वह चार तरफ से चीज को अपने अंदर ख चते ह। िकसी भी व तु का
गु वाकषण बल उतना ही होता है, जतना उसका यमान उसे
अनुम त देता है। इस लए अगर हमारे सूय के यमान के बराबर िकसी
लैक होल को उसक जगह रख िदया जाए तो यह पूरा सौरमंडल उसी
गु वाकषण बल के साथ समान दरू ी पर उस लैक होल क प र मा भी
करता रहेगा।
9. अंत र म िबना पेस सूट के मानव शरीर फट जाएगा : जबिक वा तव
म ऐसा होगा नह । यह सही है िक िबना पेस सूट के अंत र म जाने पर
शरीर के फेफड़े, िदल और िदमाग पर घातक भाव पड़ेगा। कम दबाव के
कारण मानव के शरीर का पानी उसके शरीर के तापमान पर ही भाप म
बदलने लगेगा। इसके कारण मानव का शरीर फूलकर दोगुने आकार का
हो जाएगा। इस सूजन के बावजूद हमारी िह याँ, वचा और शरीर के अंग
बने रहगे, जो हमारे शरीर को फटने से बचाए रखगे।
10. शू य गु वाकषण बल का अ त व है : यह एक अशु धारणा है िक
अंत र म शू य गु वाकषण होता है और अंत र या ी उसके कारण
ही तैरते ह। जबिक वा तव म अंत र म शू य गु वाकषण नह , ब क
सू म गु वाकषण होता है। अंतररा ीय अंत र टेशन पृ वी से 320
िकलोमीटर क ऊँचाई पर पृ वी क प र मा कर रहा है। यह माइ ो
ैिवटी क अव था म है।
ांड को जािनए
अंत र अनंत है और जहाँ तक हमारे ान क सीमा होती है, वह है—
ांड। ांड के िवषय म हमारी सोच म समय के साथ भारी बदलाव आए
ह। मानव के इ तहास म एक समय ऐसा भी था, जब पृ वी को पूरे ांड
का क माना जाता था। बाद म सूय को ांड का क माना जाने लगा।
आधुिनक खोज से सािबत हो गया िक सूय भी केवल एक सामा य तारा है,
जो आकाशगंगा का एक अंग है। इसके बाद मनु य आकाशगंगा को ही
ांड समझने लगा। बाद म हुई खोज से यह ात हुआ िक ऐसी अनेक
आकाशगंगाएँ ह, जो ांड को बनाती ह। इस तरह ांड के बारे म हमारी
जानकारी लगातार बदलती गई, बढ़ती गई है। अब सबसे नया िवचार यह
सामने आया है िक हम जस ांड को समझने का यास कर रहे ह, वैसे
एक नह , ब क कई ांड ह। इन सबके ारा एक िवशाल महा ांड
(Super Universe) का िनमाण हुआ है। इस तरह कहा जा सकता है िक
ांड सभी संभािवत जानने यो य त व का पूरा योग है। ांड का जब
बड़े पैमाने पर अ ययन हो—वह अंत र िव ान (Cosmology/Space
Science) कहलाता है।

े ो
ांड के कुछ रोचक रह य
जब भी हम आकाशगंगा के अरब -खरब तार को देखते ह तो अपने आप
को बहुत छोटा महसूस करते ह। लेिकन हम भी इ ह तार क धूल और
बादल से बने हुए इनसान ह, जो इस ांड क 500 अरब आकाशगंगाओं
म से िकसी एक आकाशगंगा म रहते ह। हमारी आकाशगंगा म 100 अरब से
भी यादा तारे ह। इ ह 100 अरब तार म से हमारा एक अपना तारा है,
जसका नाम हमने ‘सूय’ रखा है। इसी सूय का च र लगा रहा एक छोटा
सा ह पृ वी है। जहाँ 7.80 अरब मानव पी इनसान इस पर राज करते ह।
जो आजकल यहाँ परमाणु यु जैसी बात िकया करते ह, जैसे पृ वी ही
उनसे है, वे पृ वी से नह ह! आइए, आपको ांड के कुछ रोचक रह य
के बारे म जानकारी देते ह—
1. ांड म सबकुछ ग तशील है, यानी सबकुछ चल रहा है। हमारी पृ वी
1,600 िकलोमीटर तघंटे क र तार से घूम रही है और पृ वी सूय का
च र 1 लाख, 8 हजार तघंटे क तेज र तार से लगा रही है। सूय भी
7 लाख िकमी. तघंटे क तेज र तार से हमारी आकाशगंगा, ‘िम क
वे’ (Milky Way) का च र लगा रहा है। हमारी आकाशगंगा भी ांड म
25 लाख िकमी./घंटे क तेज र तार से घूम रही है।
2. एक रपोट के मुतािबक, आज से करीब 3 अरब साल बाद हमारी
आकाशगंगा िकसी और आकाशगंगा से टकराकर न हो जाएगी और
तब शायद इसे देखने के लए हमारे इनसान क स यता न रहे! सूय
हमारी पृ वी से 13 लाख गुना अ धक बड़ा है, लेिकन ांड म सूय से
भी कई गुना बड़े तारे मौजूद ह। सूय सबसे छोटा तारा है।
3. कै लफो नया इं टी यट ू ऑफ टे नोलॉजी के वै ािनक ने ांड म
पानी का एक तैरता हुआ सबसे बड़ा महासागर खोजा है। यह पृ वी पर
मौजूद पानी से 140 खरब गुना अ धक है। लेिकन द:ु ख क बात यह है
िक िवशाल जल का भंडार हमारी पृ वी से 12 अरब काश वष दरू है
और भाप के प म कोलेसल लैक होल के समीप मौजूद है। हमारी
पृ वी से 700 िम लयन काश वष दरू ‘ ेट हाइट’ नामक ांड म एक
ऐसी जगह है, जो पूरी तरह से खाली है। 33 अरब काश वष दरू म
फैली इस जगह पर दरू -दरू तक कुछ भी मौजूद नह है।
4. अमे रका और ांस के खगोल वै ािनक ने अंत र म ‘55 क ीन’
नाम का एक ऐसा ह खोजा है, जो पूरा-का-पूरा हीरे से बना हुआ है।
इस ह का आकार हमारी पृ वी से 3 गुना अ धक ऊँचा है।
5. हमारे सौरमंडल का सबसे ऊँचा पवत ओलंपस मो स मंगल ह पर
थत है, जो माउं ट एवरे ट से कई गुना अ धक बड़ा है।

े े े े े
6. चं मा पर अंत र याि य के ारा रखे हुए कदम के िनशान आनेवाले
10 अरब साल तक नह िमटगे। चं मा पर वातावरण नह है, जसक
वजह से वहाँ हवा, पानी, बा रश कुछ भी नह है। लेिकन अंत र से
िगरनेवाले सू म प के मेट स और उ काओं क वजह से ये िनशान
धीरे-धीरे समा हो जाएँ गे।
7. अंत र क गंध िकसी गरम धातु या िकसी जले हुए मांस क तरह है। यँू
तो अंत र म िकसी तरह का कोई भी वातावरण नह है, लेिकन िफर भी
अंत र याि य ने इस तरह क गंध का अनुभव िकया है।
8. अंतररा ीय अंत र क दिु नया क सबसे क मती चीज म से एक है,
जसक क मत 150 िब लयन अमे रक डॉलर के बराबर है।
9. एं डोमेडा आकाशगंगा, नंगी आँ ख से देखी जानेवाली सबसे दरू थत
आकाशगंगा है। यह पृ वी से 23 लाख, 9 हजार काश वष दरू है और
इसम लगभग 300 खरब तारे ह। इसका यास 1 लाख, 80 हजार
काश वष है।
10. हम रात को आकाश म लाख तारे देखते ह। लेिकन वे तारे उस जगह
नह होते, ब क कह और होते ह। हम तो उनके ारा छोड़ा गया कई
लाख काश वष पहले का काश िदखाई देता है।
11. चं मा हर वष पृ वी से लगभग 3.8 सटीमीटर दरू जा रहा है। कुछ
लाख साल बाद यह पृ वी क प र मा करना बंद कर देगा और पृ वी
के केवल एक ही छोर म चाँद िदखाई देगा। तब पृ वी के दस
ू रे छोर म
रहनेवाले लोग चाँद को शायद नह देख पाएँ गे।
यह ांड वा तव म िकतना बड़ा है! ांड को मापना बहुत किठन है,
य िक इसक सीमा के बारे म िकसी को कुछ पता नह है। अभी तो ांड
के िव तार के बारे म जतना पता है, उसी को मापने के लए बहुत यादा
किठनाई का सामना करना पड़ता है।
बाहरी अंत र को कैसे मापते ह?
अंत र एवं बा अंत र (Outer Space) श द का योग अकसर एक-
दस
ू रे के पयाय के प म िकया जाता है, परंतु उनम बेहद सू म अंतर है।
अंत र का मतलब संपूण ांड से है, जसम पृ वी भी शािमल है। दसू री
ओर बा अंत र का मतलब पृ वी को छोड़कर शेष संपूण ांड से है।
बा अंत र क शु आत वहाँ से मानी जाती है, जहाँ पृ वी का वायम ु डं ल
ख म होता है और जहाँ से यह सभी िदशाओं म फैलता है।
बा अंत र का िव तार बहुत अ धक है और इसे मापने के लए हमारी
साधारण नापने क इकाइयाँ बहुत छोटी सािबत ह गी, इस लए इ ह मापने

े ो औ ो ो
के लए दो बड़ी इकाइय काश वष और खगोलीय इकाई का उपयोग
िकया जाता है।
काश वष
काश वष वह दरू ी है, जो काश 2,99,792.5 िकमी. त सेकंड क
ग त से एक वष क अव ध म तय करता है। इस लए यह 3,00,000 x 365
िदन x 60 िमनट x 60 सेकंड=94.6 अरब िकमी. क दरू ी के बराबर है।
इतनी िवशाल इकाई का योग अरब िकमी. क दरू ी पर थत आकाशीय
पड क दरू ी को मापने म िकया जाता है, य िक उनके मापने के लए
िकमी. या मील जैसी इकाइयाँ बेहद छोटी िदखाई देती ह।
खगोलीय इकाई (Astronomical Unit, A.U.)
एक खगोलीय इकाई वह दरू ी है, जो सूय और पृ वी के बीच औसत प
से पाई जाती है। सौरमंडल के भीतर क द ू रय को इसी इकाई (A.U.) से तय
िकया जाता है। इस दरू ी को काश लगभग 8.3 िमनट म तय करता है।
मापने क ि से एक खगोलीय इकाई 1,495,97,870 िकमी. के बराबर
होती है। सूय और लूटो ह के म य क दरू ी औसत प से 39 खगोलीय
इकाई है। अंत र के मापन क ि से एक काश वष म लगभग 60,000
खगोलीय इकाइयाँ होती ह।
ांड आकाशगंगाओं, िनहा रकाओं, मंदािकनी, तार और उनके िविवध
कार को स म लत करता है। यहाँ तक ही हमारे ान क सीमा है।
लोग के मन म सबसे यादा उठनेवाला सवाल यह है िक आ खर ांड
कैसे बना? ांड क उ प के बारे म मु य प से तीन स ांत च लत
ह।
ांड कैसे बना?
या आपको पता है िक तार का रंग बताता है िक ांड फैल रहा है,
सकुड़ रहा है या थर है?
डॉ लर रेड श ट स ांत ांड क उ प जानने का आधार
(Doppler Red Shift Effect)
िकसी ि म से गुजरने पर काश रंग क एक प ी का िनमाण करता है,
जसे ‘ पे टम’ (Spectrum) कहते ह। इस पे टम म बगनी (Violet), नीला
(Indigo), आसमानी (Blue), हरा (Green), पीला (Yellow), नारंगी (Orange)
एवं लाल (Red) रंग पाए जाते ह। बगनी का तरंगदै य (Wave length) सबसे
छोटा और लाल का सबसे लंबा होता है।

े े े े
िकसी तारे या आकाशगंगा क ग त िकसी े क (Observer) ारा देखे
जानेवाले उसके काश पर िनभर करती है। यिद वह तारा े क क ओर
आ रहा हो, तो इससे िमलनेवाला काश पे टम के नीले िकनारे क ओर
थानांत रत होगा। यिद वह तारा या आकाशगंगा े क से दरू जा रहा हो,
तो उसका काश पे टम के लाल िकनारे क ओर थानांत रत होगा।
इसी काशीय घटना को ‘डॉ लर भाव’ या ‘अ भर िव थापन’
(Doppler Effect or Red Shift) कहते ह।

आकाशगंगाओं का डॉ लर थानांतरण िदखाता है िक ांड वतमान म


तेज िव तार क अव था म है, य िक अंत र क यादातर दरू वाली
व तुएँ ती से ती तर ग त के साथ दरू जाती हुई िदखाई पड़ती ह। ये
व तुएँ एक िन त दरू ी के बाद काश क ग त से दरू गामी होने लगती ह
और अनंत अ भर िव थापन (Infinite Red Shift) के भाव म आ जाती ह,
तब वे लगभग अ य हो जाती ह।

डॉ लर भाव : अगर एक काशवान व तु हमसे दरू जा रही हो तो वह लाल नजर आएगी और अगर
वह नजदीक आ रही हो तो नीली िदखाई देगी। यह मा यता और स ांत
ही ांड को समझने का कारण बना।

महािव फोट का स ांत (Big Bang Theory)


‘महािव फोट स ांत’ के अनुसार, कई अरब वष पहले पूरे ांड के
पदाथ एक अ यंत सघन अव था (Very Dense State) और इतने उ
तापमान एवं दबाव क अव था म थे िक उनम परमाणुओ ं का िनमाण संभव
नह था। इसके बाद उस सघन पड म एक महािव फोट हुआ, जसने उस
सघन पदाथ को असं य टु कड़ म तोड़ िदया। उसके िवखं डत टु कड़े
अ य धक तेज ग त (हजार िकलोमीटर त सेकंड) के साथ अंत र म
िबखर गए। िव फोट के तुरत ं बाद ही उनके ठंडे होने क ि या शु हो
गई, जसने परमाणिवक कण को िमलाकर हलके त व के परमाणुओ ं के
िनमाण के लए उपयु ि या बनाई। ये परमाणु गैस के बादल के प म
संघिनत (Condensed) हो गए और अंतत: आकाशगंगाओं के तं के अलग-

े ो ँ
अलग पड (Individual Bodies) के प म एकि त हो गए। आकाशगंगाएँ
एक-दसू रे से दरू होती जा रही ह। वे जतनी ही दरू ह, उतनी ही तेज ग त से
आगे बढ़ रही ह।

िबग बग स ांत : अगर कोई व तु हमसे दरू जा रही है तो लाल िदखेगी


और अगर नजदीक आ रही है तो नीली िदखेगी।

थर अव था का स ांत (Steady State Theory)


महािव फोट स ांत शु आती पदाथ समूह म कण क उ प को
समझाने म सफल नह हो पाता है। अत: एक नए स ांत को सामने लाया
गया, जो अ भर िव थापन (Red Shift) को तो मानता है, लेिकन यह एक
ऐसे ांड क अवधारणा पेश करता है, जसका न कोई आरंभ है और न
ही कोई अंत। इसे ‘ थर अव था स ांत’ कहा गया। यह स ांत मानता
है िक ांड के भीतर क दशाएँ हमेशा वतमान जैसी ही रही ह और हमेशा
ऐसी ही रहगी। जैसे ही ांड का िव तार होता है, आकाशगंगाओं के बीच
खाली जगह म परमाणु कण के िमलने से नए पदाथ का िनमाण होता है।
ारंभ म हाइडोजन के प म इनका िनमाण होता है। इसके बनने क दर
लगभग उतनी ही होती है, जतनी िक पुराने पदाथ के सा रत होने क दर
होती है। दस ू रे श द म, जैसे ही पुरानी आकाशगंगाएँ एक-दस
ू रे से दरू होती
जाती ह, उनके बीच बनी खाली जगह म नई आकाशगंगा बनने लगती ह।
इस लए ांड म पदाथ का समान घन व हमेशा बना रहता है।
फैलाव और सकुड़न का ांड स ांत (Oscillating Universe
Theory)
इस स ांत के अनुसार, ांड बारी-बारी से फैलता और सकुड़ता है,
जसक अव ध दस अरब वष होती है। महािव फोट के बाद ांड का
फैलाव शु हो जाता है। लेिकन उनम गु वाकषण बल भी पाया जाता है,
जो सभी पदाथ को अपनी उ प के मूल थान पर वापस लाने के लए
ज मेदार होता है। इस स ांत के अनुसार, आज से लगभग 12 अरब वष
पहले एक महािव फोट हुआ था और तब से यह ांड िनरंतर फैल रहा है।
परंतु अगले 20 अरब वष के बाद इसका फैलते रहना संभव नह होगा,

ै ो ो े े
य िक गु वाकषण बल फैलाव को रोक देगा। इसके बाद पूरा पदाथ
सकुड़ना या वयं पर ही व त होना शु हो जाएगा। इस ि या को
‘अंत: फोट’ (Implosion) कहा जाता है। इस ि या म सभी ांडीय
पदाथ अ य धक तेज ग त के साथ वापस लौटते ह, जससे सम त पदाथ
म भारी संकुचन (Contraction) होता है और वह एक अ यंत सघन यमान
(Dense Mass) म बदल जाता है। इसका तापमान एवं दबाव इतना अ धक
होता है िक चार ओर उनके अवयव परमाणु (Element Atom) भी अपने
परमाणु कण म बँट जाते ह। इसी यमान से अगला महािव फोट होगा,
जससे िफर आकाशगंगाओं का िनमाण होगा। इस कार फैलाव एवं
संकुचन का नया दौर शु होगा। फैलाव एवं संकुचन का एक च लगभग
100 अरब वष का होता है।
ांड के बनने और िवकास संबध ं ी सभी तीन स ांत अ भर
िव थापन (Red shift) नामक मह वपूण खगोलीय घटना को पूरी तरह सही
मानते ह। इस अ भर िव थापन को समझने के लए काश एवं रंग क
कुछ िवशेषताओं को समझना ज री है।
आकाशगंगाएँ (Galaxies)—तार क नदी

एं डोमेडा आकाशगंगा क खूबसूरती। हमारे पास क सबसे िनकट क आकाशगंगा।

आकाशगंगा तार , गैस एवं धूल का िवशाल समूह है, जो गु व बल से


एकि त रहते ह। उनका आकार इतना बड़ा होता है िक अकसर उ ह
‘ ीपीय ांड’ भी कहा जाता है। अंत र म ऐसी अनेक आकाशगंगाएँ
िबखरी पड़ी ह, परंतु उनम से अनेक आकाशगंगाएँ समूह म भी पाई जाती
ह।
एं डोमेडा आकाशगंगा दरू से चं मा के बराबर लगती है। लेिकन त य यह है िक इसम खरब चं माएँ
ह गे। अगर आसमान साफ रहे तो आप इसे नंगी आँ ख से भी देख सकते ह।

ांड के फैलते हुए पदाथ सबसे पहले टू टकर िबखर गए और िफर


अंत र म गैसीय पदाथ के अरब ीप बन गए। ये गैसीय ीप या आ
आकाशगंगाएँ (Protogalaxies) अपनी-अपनी घूणन ग त के साथ घूमने लग ।
वे ीप, जनक घूणन ग त बहुत कम थी, वे लगभग गोलाकार आकार के हो
गए, जबिक अ य अपनी घूणन ग त के िहसाब से अलग-अलग लंबाईवाली
दीघवृ ाकार आकृ तय के बन गए। उ ेखनीय है िक इन अ धकांश गैसीय
ीप म इतनी अ धक घूणन ग त थी िक उनक आकृ त चौरस होकर
त तरीनुमा (Disc) हो गई, जनसे कुछ स पल भुजाएँ भी िनकल आई ं।
आकाशगंगा क त तरीनुमा आकृ त के क का िनमाण असं य आ
तार के आकाशगंगा के क के चार ओर घूणन से हुआ, जबिक इसक
स पल भुजाएँ उ िवल यत, धूलकण यु गैस क धाराओं से बनी ह। ये
धूल और गैस आकाशगंगा के सामा य घूणन के घेरे म आ गई ं और स पल
आकार म मोड़ दी गई ं। इसी कारणवश आकाशगंगाएँ िव भ आकार और
आकृ तय म पाई जाती ह।
संरचना के अनुसार, आकाशगंगाओं को तीन े णय म बाँटा जाता है—
• स पलाकार,
• दीघवृ ाकार, और
• अिनयिमत आकार।
स पलाकार आकाशगंगाएँ (Spiral Galaxies)
स पलाकार आकाशगंगाएँ चौरस, त तरीनुमा आकार क होती ह, जनम
एक क ीय ना भक होता है और उसके चार ओर कई स पलाकार भुजाएँ
होती ह। ये भुजाएँ अंतर-तारक य पदाथ और तेज उ ी यव
ु ा तार से यु
होती ह। दो भुजाओंवाली स पल आकाशगंगाएँ सबसे यादा पाई जाती ह,
लेिकन एक भुजावाली या कभी-कभी तीन भुजाओंवाली आकाशगंगाएँ भी
पाई गई ह।

ँ ै औ ो ो
स पल आकाशगंगाएँ गैस और धूलकण क अ धकतावाली होती ह, जो
उसक भुजाओं के साथ बादल म बँटी रहती ह। ये आकाशगंगाओं के उदय
के दौरान अ धकता से पाई जाती ह और वहाँ पाए जानेवाले सबसे तेज
उ ी तारे लाल दानव के समान िदखती ह। इनम क से दरू ौढ़ तार का
लगभग समान प से अ ीय समिमत (Axially Symmetric) िवतरण भी पाया
जाता है। परंतु इसके अ धकांश घटक तार के अंदर के धुँधलेपन के कारण
यह तं स पल भुजाओं क तुलना म कम प होता है, अथात् इन स पल
आकाशगंगाओं के क म आ तारे पाए जाते ह, जबिक इनक भुजाएँ उ
िवल यत, धूलकण यु गैस क धाराओं से बनी हुई ह, जो आकाशगंगाओं
के सामा य घूणन के घेरे म आ ग◌इं और स पल आकार म मोड़ दी गई ं।
‘द ु धमेखला’ (मंदािकनी) और ‘एं डोमेडा’ ऐसी ही स पल आकाशगंगाओं
के उदाहरण ह। स पल आकाशगंगा का एक िव श कार ‘दंड
स पलाकार’ (Barred Spiral) आकाशगंगा है, जसम क ीय ना भक के
समान एक क ीय दंड (Central Bar) पाया जाता है।

आकाशगंगा : आकाशगंगाएँ िविवध कार क होती ह। हमारी आकाशगंगा स पल है। इसका एक


ना भक होता है। इसक एक पूँछ भी होती है और
यह अपने म य म उभार लये रहता है।

दीघवृ ाकार आकाशगंगाएँ (Elliptical Galaxies)


दीघवृ ाकार आकाशगंगाएँ गोलाभीय तं होती ह, जनक कोई प
सुप रभािषत आं त रक संरचना नह होती है। उनम कोई स पल भुजा नह
होती। वे गोलाभीय, दीघवृ ाकार या त तरीनुमा हो सकती ह। इन
आकाशगंगाओं म अंतर-तारक य पदाथ कम मा ा म उप थत या
अनुप थत होते ह। उनम मौजूद तारे मु य प से वृ या अपने
उि कासीय म म काफ िवक सत होते ह। अ धकांश दीघवृ ाकार
आकाशगंगाओं म उ संक ण, िवशेषकर क के िनकट पाया जाता है। अब
तक ात आकाशगंगाओं म से लगभग 17 तशत भाग दीघवृ ाकार
कार का है।
अिनयिमताकार आकाशगंगाएँ (Irregular Galaxies)
अिनयिमताकार आकाशगंगाओं का कोई सुिन त आकार या संरचना
ो े े
नह होती। वे अ य धक िविवधतापूण िदखाई पड़ती ह। परंतु वे सभी
आकार म औसत से छोटी होती ह और उनम बड़ी मा ा म अंतर-तारक य
पदाथ मौजूद रहते ह।
एसओ (SO) आकाशगंगा
खगोल वै ािनक ने आकाशगंगाओं के एक नए वग क पहचान क है,
जसे वे ‘एसओ आकाशगंगा’ कहते ह। इन आकाशगंगाओं म एक क ीय
ना भक और एक त तरी का अ◌ारं भक भाग मौजूद होता है। लेिकन उनम
कोई स पल संरचना नह पाई जाती। उनम थत तारे धानत: वृ होते ह
और उनम गैस क बहुत कम मा ा िदखती है। कभी-कभी गहरे धूल मेघ
उनक त तरी म िदखाई पड़ जाते ह।
मसूराकार आकाशगंगा (Lenticular Galaxy)
ये ऐसी आकाशगंगा ह, जनक आकृ त काफ हद तक उभयो ल लस
(Biconvex Lens) के समान होती है।

सि य आकाशगंगाएँ (Active Galaxies)


सि य आकाशगंगाएँ वे आकाशगंगाएँ ह, जो सामा यत: िकसी अ त
संहत् क ीय ोत से भारी मा ा म ऊजा का उ सजन करती ह। एक अ य
पृथक् संवग तारक फोट आकाशगंगा (Starburst Galaxy) है, जो उन
आकाशगंगाओं के लए यु होता है, जनम गहन तारक य िनमाण के
फल व प उ अवर दीि क उ प होती है।
वामन आकाशगंगाएँ (Dwarf Galaxies)
ऐसी आकाशगंगाएँ , जो अपने लघु आकार या बहुत िन न धरातलीय
चमक, या दोन के कारण ही असामा य प से धुँधली िदखाई पड़ती ह, वे
‘वामन आकाशगंगा’ कहलाती ह। चूँिक आकाशगंगाएँ दानवाकार
दीघवृ ाकार से लेकर लघु आकार तक क िनरंतर परासवाले आकार म
िदखाई पड़ती ह, अत: औसत आकारीय आकाशगंगा और वामन
आकाशगंगा के म य क िवभाजक रेखा काफ हद तक का पिनक ही है।
आकाशगंगाओं का रंग
आकाशगंगाओं का रंग उनक आयु के अनुसार होता है, य िक आयु ही
उनके काश के लए सबसे यादा उ रदायी कारक होता है। सामा यत:
दीघवृ ाकार और एसओ आकाशगंगाएँ सबसे लाल रंग क होती ह।
अिनयिमताकार आकाशगंगाएँ भी यव
ु ा तार क अ धकता के कारण लाल
होती ह। स पलाकार और अिनयिमत आकार क आकाशगंगाएँ औसत प

े औ ओ ओ
से समान आकार क , दीघवृ ाकार और एसओ आकाशगंगाओं क तुलना
म अ धक चमक ली होती ह।

दो मंदािकिनयाँ आपस म टकराने के िनकट। ऐसे म जब दो मंदािकिनयाँ टकराती ह,


तो एक मंदािकनी दसू रे को िनगल जाएगी।

मंदािकनी (The Milky Way)


मंदािकनी या द ु धमेखला हमारी अपनी आकाशगंगा है। इस आकाशगंगा
क एक िवशेषता यह है िक इसम पाई जानेवाली एक अ यंत चमक ली पेटी
है, जो इससे होकर लगभग पूरे वृ को बनाती है। मंदािकनी ‘द लोकल
ुप’ नामक 24 आकाशगंगाओं के एक समूह का िह सा है। पृ वी से
मंदािकनी को देखने पर इसम काश क नदी के समान एक चमकती पेटी
आकाश म िदखाई पड़ती है। यह करोड़ तार से िन मत हुई है।
द ु धमेखला का ना भक सूय से लगभग 32,000 काश वष दरू है। यह
गैस क एक घूणनशील त तरी के समान िदखाई पड़ती है। इस घूणन
करती त तरी म यापक ग तिव धयाँ चलती रहती ह। ऐसी ग तिव धय का
एक मह वपूण क आकाशगंगा के क के िनकट पाया जाता है। यहाँ
लगातार नए तार का ज म होता रहता है। यह े पहले से ही पूरी तरह
िवक सत तार से भरा पड़ा है। यहाँ तार का घन व लगभग 1 िम लयन तारे
त घन त सेकंड (3.26 काश वष) पाया जाता है।
तारे (Stars)
तार क उ प (Stellar Birth)
तारे आकाशगंगाओं के गैस एवं धूलकण के िवशाल बादल के गु वीय
संकुचन से पैदा होते ह। तार का िनमाण करनेवाले बादल सामा य अंतर-
तारक गैस क तुलना म हजार गुना घने होते ह। उनका घन व 1,000
हाइडोजन परमाणु त घन सटीमीटर तक होता है। ऐसे अनेक तारे
बनानेवाले मेघ हमारी अपनी आकाशगंगा म भी िदखाई पड़ते ह।
िकसी तारे क आयु अरब वष होती है। इनके जीवन का ारंभ गैसीय
पदाथ के संघनन के साथ होता है। संघनन क ि या के ारंभ के साथ ही
एकल परमाणु गु वाकषण बल के ारा क क ओर बढ़ते जाते ह। क म
पहुँचते ही उनम ग त आ जाती है। क ीय भाग म उनके िगरने क ग त के

ो ो ओ ो
अनु प ही उनक ऊजा बढ़ती जाती ह, जो हाइडोजन परमाणुओ ं को गरम
करने लगता है। यह ि या लगभग 1 करोड़ ड ी सटी ेड तक चलती है।
इस तापमान पर तार म हाइडोजन परमाणिवक ग तिव धय के मा यम से
जलना शु हो जाता है।
तारे म होनेवाली ना भक य ति या को ‘ना भक य संलयन’ (Nuclear
Fusion) कहा जाता है, जो सभी तार म िनरंतर चलती रहती है। हलके
परमाणु संल यत होकर भारी परमाणुओ ं के प म पुनगिठत होते जाते ह।
अत: लगभग 1 करोड़ ड ी सटी ेड पर हाइडोजन परमाणु संल यत होकर
ही लयम बनाते ह। जब िकसी तारे का सम त हाइडोजन ही लयम म बदल
जाता है, तो वह तारा सकुड़ना शु कर देता है और उसका तापमान
बढ़ता जाता है। जैसे ही तापमान 10 करोड़ ड ी सटी ेड तक पहुँचता है,
अ धक जिटल परमाणिवक ि याएँ होने लगती ह। ही लयम के तीन ना भक
िमलकर एक काबन ना भक का िनमाण करते ह। काबन का एक ना भक
ही लयम के एक ना भक के साथ िमलकर ऑ सीजन बनाता है। जैसे-जैसे
तारा सकुड़ता है, उसका तापमान बढ़ता जाता है और उसके 2,000 से
4,000 िम लयन ड ी सटी ेड तक पहुँचते ही अ यंत जिटल परमाणिवक
संलयन क ि या होने लगती है। काबन और ऑ सीजन िमलकर लोहा,
मै ी शयम, स लकॉन और अ य भारी त व बनाने लगते ह।
सूय के समान तारे (Stars like Sun)
ऐसे तारे, जो सूय के समान होते ह और आ तारा अव था के संकुचन
से उ प हुए ह, वे मु य अनु म म लगभग 1010 वष तक रहते ह। इस
समय म इन तार के ना भक म ोटॉन- ोटॉन ंखला अ भि या से
हाइडोजन के ही लयम म प रवतन से ऊजा का उ पादन होता है और यह
ि या तब तक चलती है, जब तक क ीय हाइडोजन आपू त ख म न हो
जाए। इसके बाद िकसी सहारे के अभाव म ोड तब तक व त होता जाता
है, जब तक िक िन य ही लयम ोड के चार ओर के आवरण म
हाइडोजन के जलने के लए पया उ तापमान हा सल न हो जाए।
आवरण के दहन से तारे का बाहरी कवच फैलकर ठंडा होने लगता है।
फल व प तारा मु य अनु म से बाहर होकर एक लाल दानव तारा बन
जाता है। ोड का और अ धक संकुचन तापमान बढ़ाकर उसे 108 के वन
तक पहुँचा देता है। इस तापमान पर तारा अपने ही लयम ोड को तहरे
अ फा म (Triple Alpha Process) से काबन म बदल देता है। ही लयम
दहन के अचानक शु होने से, जसे ‘ही लयम क ध’ (Helium Flash) कहते
ह, इस िन न यमान तारे का संतुलन िबगड़ सकता है। तहरी अ फा
ति या से हाइडोजन संलयन क तुलना म कम ऊजा पैदा होती है और
शी ही तारे म कोई परमाणिवक ऊजा ोत शेष नह रह जाता है।
त प ात् सकंु चन होने से ही लयम आवरण जलने लगता है। वह तारा पुन:
ै े े े
एक लाल दानव बन जाता है, जसके वायमु ड
ं ल के बहुत यादा िव तार के
कारण उसक चमक म उतार-चढ़ाव और दोलन होने लगता है। अंतत:
उसका वायम
ु ड
ं ल तारे के सघन ोड से िवपरीत िदशा म अथात् बाहर क
ओर सफ कुछ िकलोमीटर त सेकंड क ग त से वािहत होने लगता है।
जसके कारण हीय िनहा रका का िनमाण हो जाता है। तारे का व त
हुआ ोड एक ेत वामन तारे म बदल जाता है, जो कई िम लयन वष तक
अंत र म ऊ मा िविक रत करता रहता है।
सूय के दन
ू े से अ धक यमानवाले तारे
सूय के आकार के दन ू े से भी अ धक यमानवाले तारे काबन च के
मा यम से हाइडोजन को ही लयम म प रव तत करते रहते ह, जससे
उनका ोड पूण संवहनीय बन जाता है। इसके कारण वह सौर यमान के
समान आकारवाले तार क तुलना म कम सघनतावाला होता है। कुछ ही
िम लयन वष म उनका हाइडोजन ख म हो जाता है, तब धीमे-धीमे
ही लयम का जलना शु हो जाता है। इस लए ोड अिवकृत रहता है और
उसम कोई अ थरता नह पैदा होती। अपने ही लयम का उपभोग कर लेने
के प ात् इस बड़े तारे म उ थै तक ऊजा क मौजूदगी उसे और
संकु चत कराती है। फल व प तहरे अ फा म से काबन जलकर
ऑ सीजन, िनयॉन और मै ी शयम म बदल जाता है। यिद तारा पया प
से बड़ा हो, तो वह अपने अंतरतम म लोहे जैसे त व का भी िनमाण कर
सकता है। परंतु लोहा, ना भक य संलयन ि याओं के चरम पर होता है
और िकसी िवशाल तारे का और अ धक संकुचन सफ िव वंसा मक
घटनाओं से ही संभव होता है। ऐसा होने पर ‘सुपरनोवा िव फोट’ होता है,
जसके कारण तारे का ोड एक यूटॉन तारे या ‘कृ ण िववर’ (Black Holes)
म बदल जाता है।
तारे क मृ यु (Death of a Star)
िकसी तारे का सम त हाइडोजन जब भारी परमाणुओ,ं जैसे ही लयम म
बदल जाता है, तो उसका घन व कई गुना बढ़ जाता है और वह अपनी मृ यु
के िनकट पहुँच चुका होता है। ऐसे मरणास तारे म भी ांड का
सवा धक सघन पदाथ मौजूद होता है। वतमान स ांत के अनुसार, िकसी
तारे क अं तम प रण त उनके यमान के अनु प इन तीन म से कोई एक
होती है—
• ेत वामन (White Dwarfs)
• यट
ू ॉन तारा या प सर (Neutron Stars or Pulsars), तथा
• कृ ण िववर (Black Holes)।

े े े े
े वामन (White Dwarfs) : यिद िकसी तारे का यमान हमारे सूय के

यमान के बराबर या उससे कम है, तो वह ेत वामन म बदल जाएगा और
अंतत: एक कृ ण वामन (Black Dwarf) के प म समा हो जाएगा। ये ेत
वामन सूय के यास के 1 तशत से भी कम, अथात् पृ वी से बड़े नह
होते (पृ वी क ि या लगभग 6,000 िकमी.), तथा इनके परमाणिवक
ना भक के पदाथ का घन व 108 ाम त घन सेमी. तक पहुँच जाता है
अथात् इसका 1 च मच पदाथ 1 टन के बराबर होता है। ेत वामन म,
गु वाकषण के अ यंत उ संकुचन बल को तेजी से ग तशील इले टॉन
से बना दबाव ही संतु लत करता है। ेत वामन को उनक धुँधली दीि
और उ धरातलीय तापमान से पहचाना जाता है। ेत श द कुछ हद तक
म क थ त पैदा करता है। वा तव म, ये तारे ेत, पीले और लाल रंग
क एक ेणी द शत करते ह, जससे वे शीतल ेत िदखते ह। ये ेत
वामन लाख वष तक ताप एवं काश उ स जत करते रहते ह। ये धीरे-धीरे
शीतल होने लगते ह और अंतत: एक कृ ण वामन म बदल जाते ह, जो न तो
ऊ मा और न ही काश उ स जत करते ह। अंत म, ये राख के ढेर म बदल
जाते ह।
े वामन तारे का यमान ‘चं शेखर सीमा’ (लगभग 1.4 सौर

यमान) से कम होता है और वह गु वीय व तीकरण का शकार होता
है। इसका यास सूय के यास का मा 1 तशत होता है, और उनका
िनरपे प रमाण (Magnitude) प रसर +10 से +15 के बीच होने के कारण वे
बहुत धुँधले होते ह।
‘ ेत वामन’ िकसी िन न यमानवाले तारे के उि कास क अं तम
अव था होती है। ऐसे तार के जनक तारे 8 सौर यमान तक के
आकारवाले होते ह, जनके यमान का 90 तशत तक का हीय
िनहा रका के प म य हो जाता है। उनके ोड के अ धकांश पदाथ घटने
क अव था म होते ह, अत: वह तारा तब तक संकु चत होता है, जब तक
िक उसका गु व बल उसके इले टॉन के ासीय दबाव (Degeneracy
Pressure) से संतु लत होता रहे और जब तक िक उसका घन व बढ़कर
107 से 1011 िक. ा. त घन मीटर न हो जाए। ा सत पदाथ के िव श
यवहार के कारण, अ धकांश िवशाल ेत वामन व त होकर यन ू तम
यास एवं उ तम घन ववाले हो जाते ह। ‘चं शेखर सीमा’ से अ धक
यमानवाले तारे इतने बड़े होते ह िक उनको सँभालना किठन होता है
और वे व त होकर यूटॉन तारे या लैक होल म बदल जाते ह।
जब सूय क सारी ऊजा समा हो जाएगी अथात् उसका सारा ई ंधन समा हो जाएगा तो वह इतना
फूल जाएगा िक वह हमारे अपने पृ वी के िनकट आ जाएगा और हम उसे छू भी सकते ह (अगर ऐसा
कभी भी हो तो)। हाँ, ऐसी नौबत कभी नह आएगी, य िक तब तक पृ वी पूरी तरह वा पीकृत हो
जाएगी।

ेत वामन से िनकलनेवाला काश आं त रक परमाणिवक ि याओं से


पैदा नह होता, ब क यह एक पतले गैसीय वायम
ु ड
ं ल म पैदा होता है, जो
धीमी ग त से तारे क ऊ मा को अंत र म भेजता रहता है। ेत वामन
तार का सबसे अ छा ात उदाहरण ‘ स रयस बी’ (Sirius B) है।
यूटॉन तारा या प सर (Neutron Stars or Pulsars) : यिद कोई तारा सूय
से बड़ा हो, लेिकन उसके दनू े से अ धक बड़ा नह हो, तो वह यूटॅान तारा
या प सर म बदल जाता है और िफर मृ यु को ा हो जाता है। ये यूटॉन
नामक ना भक य कण से बने होते ह। ऐसे यूटॉन तार म परमाणिवक
ना भक के पदाथ का घन व लगभग 1014 ाम त घन सेमी. होता है।
ऐसे तारे के एक च मच पदाथ का वजन 1 अरब टन तक होता है। यानी
इसका घन व ेत वामन के घन व से एक अरब गुना अ धक होता है।
एक बड़े तारे का एक यूटॉन तारे के प म खा मा कुछ सेकंड म ही हो
जाता है। उसके िव वंस से पैदा तरंग, जो उसके आं त रक भाग से आती ह,
वे तारे क बाहरी परत क गैस को अंत र म िबखेर देती ह। यह िकसी
िव फोट के समान ही िदखाई पड़ता है और गु वाकषणीय ऊजा के कारण
तापमान कई िम लयन ड ी तक बढ़ जाता है। परंतु तारे का बाहरी ोड,
जो लगभग 1 िकमी. मोटा होता है, अ भािवत रहता है और िपघलता नह
है। यह अ यंत ठोस और कठोर रवेदार पदाथवाला होता है, जो इ पात से
1015 गुना अ धक कड़ा होता है। आं त रक भाग म, यूटॉन एक अध तरल
यान ( चप चपे) पदाथ का िनमाण कर लेते ह।
यूटॉन तारे : एक ऐसा मृत ाय तारा, जो सफ यूटॉन से बना है। इसका गु व बल
बहुत ही अ धक होता है और इसके ऊपर से अगर आप एक च मच उठाएँ गे
तो उसका वजन हजार टन से कम नह होगा, अगर आप छह फ ट के ह
तो यहाँ पर आपका कद 1 िममी. से भी कम होगा।

गणनाओं से पता चलता है िक यूटॉन तारे के समान घन ववाली िकसी


व तु म अ य धक गु वाकषण शि भी होगी, जो पृ वी के गु वाकषण
से 100 अरब गुना अ धक होगी। यह गु वाकषण शि इतनी शि शाली
होगी िक िकसी यूटॉन तारे के धरातल पर िन मत पवत भी 1 इंच से
अ धक ऊँचा नह हो पाएगा। मनु य अपने जीवन भर म अ जत ऊजा खच
करके भी उस 1 इंच ऊँचे पवत पर चढ़ पाने म समथ नह होगा। ऐसा
अनुमान िकया जाता है िक हमारी आकाशगंगा म 10 करोड़ से भी अ धक
तारे जलकर यूटॉन तार म बदल चुके ह।
वासस तथा प सस (Quasars & Pulsars)
वासस वे तारावत् (Quasi-stellar) रे डयो ोत ह, जो 4 से 10 अरब
काश वष क दरू ी पर थत ह। कुछ वासस को दरू बीन क सहायता से
भी देखा गया है, य िक ये काश उ स जत करते ह। अब यह है िक
अपे ाकृत इतने छोटे पड से इतनी ऊजा कैसे उ स जत क जाती है िक
अ यंत दरू होने पर भी वह चमक ला िदखाई पड़ता है? अ याधुिनक शोध
से पता चला है िक वासस वा तव म एक ऐसी आकाशगंगा के म य भाग
ह, जनका ान हम नह है। वासस के क म कृ ण िववर (Black Hole)
होने क भी संभावना है।
खगोलिव इस बात पर सहमत ह िक प सर ती ग त से घूणन करते
यूटॉन तारे ह। इनके िवषय म सबसे पहले 1961 म कि ज म ि िटश
खगोलशा य ने जानकारी हा सल क । वे इस ि से िव श ह िक वे
एक िन त आवृ म रे डयो तरंग भेजते ह। 1969 म लगभग 3 दजन
प सर क थ त पता चल गई। 1968 म ै ब नेबुला म अव थत प सर
एनपी 0532 क खोज एक मह वपूण घटना थी। यह प सर रे डयो तरंग
को 0.033 सेकंड म भेजता था। ऐसा माना जाता है िक यह प सर 1054
ई. के सुपरनोवा िव फोट का अव श है। इसी िव फोट से ै ब नेबुला का
िनमाण हुआ था।

ै े े
ै ब नेबुला प सर (NP 0532) एक वष म 2,500 पर 1 भाग क दर से मंद
हो रहा है। यानी यह अपनी ऊजा का योग करते हुए धीमे-धीमे न हो रहा
है। साथ ही, यह सूय क तुलना म 10,000 गुना यादा िविकरण भी
छोड़ता है। NP 0532 िकसी ाचीन सुपरनोवा से संबं धत एकमा प सर
नह है। PSR 0833-45, जसक खोज 1968 म आ टे लयाई
खगोलशा य ने क थी, हर 0.089 सेकंड पर पंिदत (Pulsed) होता है।
यह वेला नेबुला म थत है, जसे हजार साल पूव एक अ ात सुपरनोवा
िव फोट के अवशेष के प म देखा जाता है। वेला प सर के पंदन क दर
धीरे-धीरे लंबी होती जा रही है, जो अ य प सर के ल ण के समान ही है,
जो अिनयिमत होता रहता है। अत: प सर को समय का हरी समझना
उ चत नह होगा, य िक इनके पंदन क दर समय के सापे थर नह
है।
नोवा एवं सुपरनोवा (Nova and Supernova)
ये ऐसे तारे ह, जनक चमक अचानक 10 से 20 गुना तक बढ़ जाती है
और िफर धीरे-धीरे सामा य चमक तक म म हो जाते ह। इन दोन कार
म अंतर बहुत प नह है। दोन म अंतर कार का नह , ब क मा ा
( ड ी) का है। चमक म अचानक वृ इसम आं शक या पूण िव फोट के
साथ होती है। नोवा म सफ बाहरी परत म िव फोट होता है, जबिक
सुपरनोवा म संपूण तारे म ही िव फोट हो जाता है। अत: सुपरनोवा क
तुलना म नोवा क घटना अ धक घिटत होती है। खगोल वै ािनक का मत
है िक जब िकसी तारे का पूणतया िव फोट होता है तो इससे िनकली लपट
क यो त थम 30 िदन तक इतनी अ धक होती है िक वह लगभग
1,000 िम लयन सूय के बराबर होती है।

सुपरनोवा : जब एक सुपरनोवा का िव फोट होता है तो उसके परख े उड़ जाते ह। उससे इतनी


तेज रोशनी िनकलती है िक इस रोशनी को िदन के उजाले म सूय क उप थ त म भी देखा जा
सकता है। जब कभी िदन म तारे नजर आएँ तो समझ ली जए, कुछ गड़बड़ है।

यूटॉन तारे के एक च मच पदाथ का वजन?


यूटॉन तारे बहुत यादा गु वाकषण बलवाले तारे होते ह। जो भी
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यूटॉन तारे के गु वाकषण के दायरे म आता है, उसी के भीतर खचकर
न हो जाता है। यूटॉन तारे के एक च मच पदाथ का वजन एक अरब से
लेकर 6 अरब टन तक होता है। यिद हम केवल एक च मच यूटॉन तारे को
पृ वी पर लाएँ तो या होगा?
यूटॉन तारे तब बनते ह, जब हमारे सूय से 4 गुना बड़े िकसी तारे म
िव फोट होता है, जसे ‘सुपरनोवा’ कहते ह। इससे उसक बाहरी परत
अंत र म उड़ जाती है और केवल घनीभूत ोड ही बचता है। जो बहुत ही
घना और भारी होता है। िकसी एक शहर के आकार के बराबर यट ू ॉन तारे
का यमान सूय से 1.4 गुना यादा हो सकता है। यह सही है िक कोई भी
यट ू ॉन तारा हमारी पृ वी पर वेश नह कर सकता। हमारे सबसे नजदीक
का यूटॉन तारा, जसका नाम ‘कलवेरा’ है पृ वी से 670 काश वष क
दरू ी पर है। सबसे तेज अंत र यान से भी आपको वहाँ पहुँचने म 11
िम लयन साल लगगे। अगर आप िकसी तरह वहाँ पहुँचने म सफल ह गे तो
आपके पेस शप के सभी कं यट ू र काम नह करगे, य िक यहाँ पर
गु वाकषण बल पृ वी से 10 लाख गुना अ धक होगा। अगर आप इसक
सतह पर पहुँचगे तो वहाँ का एक िम लयन ड ी से सयस का तापमान
आपको सीधे भाप बना देगा। आपके अंत र यान का कोई भाग अगर भाप
म नह बदलेगा तो यट ू ॉन तारे के अ य धक गु वाकषण के कारण टु कड़े-
टु कड़े हो जाएगा। इन सबके बावजूद भी अगर आप कलवेरा का एक च मच
मेटे रयल ले आए तो पृ वी पर या होगा? अगर पृ वी पर सूय एक च मच
लाया जाए तो वह केवल 2 िकलो ाम का होगा, जबिक िकसी यूटॉन तारे
का एक च मच पदाथ एक अरब से लेकर 6 अरब टन तक होगा। सबसे
पहले तो आप उसे उठा ही नह सकते।
लेिकन केवल यही इसक सबसे खराब बात नह है। यट ू ॉन टोर क
गु वाकषण शि बहुत अ धक होती है, इस लए ोटॉन और इले टॉन को
एक साथ संल यत कर देता है और केवल यट ू ॉन को अपने बाहरी आवरण
पर छोड़ता है। 10 िमनट बाद यूटॉन तारा ोटॉन और यूटॉन म िवखं डत
होने लगता है और उससे इतनी ऊजा िनकलेगी, जतनी सूय दो या तीन
सेकंड म पैदा करता है। यूटॉन तारे हमसे बहुत-बहुत दरू ह। अगर कोई
यटू ॉन तारा हमारे समीप आ जाए तो त काल िकसी अंत र यान म
बैठकर अपने सौरमंडल से बाहर िकसी दस ू रे ह क ओर भाग जाना सबसे
अ छा उपाय है।
गामा रे ब ट (Gama Ray Burst) के पृ वी पर िगरने से या होगा?
ांड क सबसे चमक ली चीज सुपरनोवा नह , ब क गामा रे ब ट है।
ये 100 गुना यादा चमक ली होती ह और केवल कुछ िमनट इनका जीवन
होता है। लेिकन 1 सेकंड के लए भी अगर ये पृ वी पर िगर तो मानव
ो े े ै े ो ै ो
जीवन को ख म करने के लए काफ है। गामा रे ब ट तब होता है, जब दो
यूटॉन तारे एक साथ जुड़ते ह या कोई तारा सुपरनोवा बनता है। यह गामा
रे ब ट य-सीमा से बाहर होता है, इस लए हम इसे देख नह सकते।
लेिकन हम इसके भाव को महसूस कर सकते ह। गामा रे ब ट पृ वी पर
काफ तबाही मचा चुक ह। लेिकन यह काफ पहले 650 िम लयन साल
पहले हो चुका है, ज ह ने डायनासोर का अ त व पृ वी पर से ख म कर
िदया था।
अगर आज पृ वी पर गामा रे ब ट होगा तो या यहाँ का जीवन ख म हो
सकता है? अगर हमारी पृ वी से 3000 काश वष दरू गामा रे ब ट होगा तो
उससे कोई िवशेष नुकसान नह होगा। उसके ला ट होने के 1 िमनट के
भीतर ही उसके रे डएशन को पृ वी अवशोिषत कर लेगी। लेिकन सबसे
यादा नुकसान हमारी सैटेलाइट को होगा। थोड़े समय बाद खराब
सैटेलाइट को सुधार लया जाएगा। लेिकन यिद कोई गामा रे ब ट केवल
500 काश वष दरू हो तो िफर उससे खेल पूरी तरह बदल जाएगा। उससे
जो रे डएशन पैदा होगा, वह हमारी पृ वी क ओजोन लेयर को तबाह कर
देगा। हमारे पौध क सभी जा तयाँ करीब-करीब ख म हो जाएँ गी।

गामा रे ब ट अथात् गामा िकरण का आ मण। जब एक यूटॉन तारे पर कोई टकराने क घटना
होती है या िफर एक लैक होल से टकराने क घटना होती है, तब उससे गामा िकरण िनकलती ह। ये
गामा िकरण पूरी पृ वी को नहला सकती ह। अगर पृ वी गामा िकरण से नहा जाती है और इससे दो
िमनट भी भािवत होती है तो पृ वी पर जीवन नह रह सकता।

पृ वी पर ऑ सीजन क कमी हो जाएगी और जानवर पर भी इसका


बहुत खराब भाव पड़ेगा और उनको घुटन महसूस होगी। मानव
ऑ सीजन मा क के उपयोग से जदा रह सकता है। लेिकन यह बहुत लंबे
समय तक हमारा साथ नह दे सकता। अगर पृ वी के समीप ही गामा रे
ब ट होगा तो उसका भाव िकसी ए टॉयड के पृ वी पर टकराने जैसा ही
होगा। सबसे पहले यह हमारे वायम
ु ड
ं ल को तबाह कर देगा। िबना वायम
ु ड
ं ल
के हम अ टा वाॅयलेट िकरण से बच नह सकगे और जल जाएँ गे। सही है
िक हमारी सैटेलाइट गामा रे ब ट को तुरतं पकड़ लगी, लेिकन हम कुछ
कर नह सकते। गामा रे ओजोन लेयर से रासायिनक अ भि या करके पूरी
पृ वी पर फोटोकेिमकल मॉग या धुध ं बना देगी और कॉ मक िकरण के
े े
कारण हर जगह रे डएशन बहुत यादा बढ़ जाएगा, जससे बहुत यादा
जीव-िवनाश होगा। सबसे अ छी बात यह है िक एक अरब साल तक ऐसा
होने क कोई संभावना नह है, तब तक हो सकता है िक हम पृ वी को इस
खतरे से बचाने का कोई उपाय खोज ल!
लैक होल (Black Hole)
वैसे संकु चत तारे, जो अ य हो जाते ह, उ ह ‘ लैक होल’ कहा जाता
है। इनक गु वीय शि इतनी अ धक होती है िक इनसे काश भी बाहर
नह िनकल सकता। लैक होल अ य ह, य िक ये पूरे काश को
अवशोिषत कर लेते ह। इनक गु वीय ताकत इतनी यादा होती है िक
एक छोटे से े म इनम एक बड़ा यमान समािहत रहता है। यिद पृ वी
को संकु चत कर लैक होल बनाया जाए तो इसका आकार एक गोली के
जैसा हो जाएगा। हमारी आकाशगंगा म कई लैक होल ह।
लैक होल का िनमाण िवघिटत तारे के ोड म िनिहत यमान पर
िनभर करता है। वैसे ोड ही लैक होल म प रव तत होते ह, जनका
यमान सूय के यमान के तीन गुने से अ धक होता है। अ धकांश
िवघिटत तार का ोड यूटॉन तारे म बदल जाता है, य िक इनके ोड
का यमान सूय के यमान के तीन गुना से कम होता है। यिद तारा सूय
से कई गुना बड़ा हो, तो वह अंत म लैक होल म बदल जाता है।

एक लैक होल का गु व इतना शि शाली होता है िक उससे काश भी बाहर नह िनकल पाता।
इस च म एक लैक होल अपने आसपास के दो तार को मार रहा है, एक तरह से उनका खून पी
रहा है और अंतत: ये तारे मरकर इसी लैक होल म िवलीन हो जाएँ गे।

िकसी पड का संकुचन इतना अ धक हो जाए िक उसका पलायन वेग


काश क ग त से अ धक हो जाए, तो वह लैक होल म बदल जाता है।
एक संकु चत होता हुआ पड लैक होल म तब बदल जाता है, जब इसक
ि या इसके ‘ ाजचाइ ड ि या’ (Schwarzschild Radius) से अ धक
संकु चत हो जाती है और काश भी इनसे बाहर नह िनकल पाता है। इस
सीमा के बाद भी गु व बल पड को और अ धक संकु चत करता है। वह
धरातल, जसक ि या का ां तक मान (Critical Value), जो घटना मक
सं तर (Event Horizon) कहलाती है, उस सीमा का सूचक होता है, जसके
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अंदर ही सम त सूचनाएँ समािहत हो जाती ह। िफर भी, गणनाओं से संकेत
िमलता है िक इस घटना मक सं तर के भीतर थान और समय अ य धक
िव िपत हो जाता है। उस सकुड़ते पड के संकुचलन से एक असीिमत
सघन िवल ण लैक होल के क का िनमाण हो जाता है।
लैक होल के िनमाण के लए सबसे यादा उपयु मूल पड वे
िवशालकाय तारे होते ह, जनका िव फोट सुपरनोवा के प म हो जाता है
और उसके बाद उनका शेष बचा ोड भी हमारे सूय के तीन गुना यमान
से भी अ धक बड़ा होता है। एक बार बनने के बाद लैक होल को केवल
उनक उ गु वाकषणीय शि से ही पहचाना जा सकता है। इन लैक
होल को कुछ िकलोमीटर क दरू ी से भी पहचान करना बहुत किठन है,
परंतु यिद ये लैक होल िकसी िनकट यु मतारक तं के सद य ह , तो
उनक खोज क संभावनाएँ बढ़ जाती ह। यिद िकसी यु मतारक तं के
अवयव काफ िनकट ह , तो ाथिमक तारे और उसके अ धक सुसंहत
साथी तारे के बीच यापक थानांतरण होता रहता है। इस कार के
थानांतरण के माण ‘ स स ए स-1’ (Cygnus X-1) म पाए गए ह। ‘ स स
ए स-1’ एक गरम एवं गहन आकाशगंगीय ए स िकरण ोत है, जो िकसी
तारक य यमानवाले लैक होल के अ त व को िदखाने के लए सव म
े णीय माण माना जाता है।

लैक होल क या या

अ तिवशाल यमानवाले लैक होल, जो 106 से 109 सौर यमान


तक होते ह, वे संभवत: आकाशगंगाओं के क म अव थत होते ह। वे ही
‘ वासार घटना’ को और अ य सि य आकाशगंगाओं क घटनाओं को
ज म देते ह। यिद एक िवशाल लैक होल का िनमाण संभव हो और वह
अपने चार ओर से पया मा ा म गैस या तार को अ भगृहीत कर लेता है,
तो इन आगंतुक पदाथ क अव श - यमान ऊजा, िविकरण या ऊजायु
कण म प रव तत हो जाती है।
इन अ तिवशाल लैक होल के सवथा उलटे ‘छोटे लैक होल’ (Mini
Black Holes) होते ह, जो सफ 1011 िकलो ाम वजनवाले और 10-10
मीटर ि यावाले होते ह। इनका िनमाण महािव फोट (Big Bang) के बाद

ओ ो े
अ य धक िव ु ध दशाओं म हुआ होगा। ये लघु कृ ण िववर इतना गहन
थानीयकृत गु वाकषण े का िनमाण करते ह िक उनका ती ण
िविकरण ांड के जीवनकाल म ही उनम िव फोट करा देता है। उनके
िव फोट से िनकली प रणामी गामा िकरण एवं सू म तरंग को ढू ँ ढ़ा जा
सकता है, परंतु अभी तक वे नह पाई गई ह।
अगर आप िकसी लैक होल म िगरगे तो या होगा?
लैक होल के बारे म आप या जानते ह? अगर आप िकसी लैक होल म
िगर जाएँ तो या होगा? मान ली जए, आप अंत र म कह जा रहे ह और
लैक होल से होकर गुजरना पड़े तो या होगा? या वहाँ जदा जीिवत
रहने क कोई संभावना है? या वहाँ से बाहर िनकलने का कोई रा ता है?
या लैक होल िकसी अलग ांड के लए शॉटकट है?
लैक होल न तो लैक है और न ही कोई होल है। यह कोई खाली जगह
नह है। अगर कोई बड़ा तारा व त होता है तो केवल उसका एक छोटा सा
कोर िह सा ही बचता है। अगर कोर हमारे सूय से 3 गुना अ धक भारी होता
है तो उसका गु वाकषण चार ओर से चीज को अपनी ओर ख चता है।
यह ऐसा सघन पड होता है, जसम बहुत कम े म बहुत यादा यमान
समािहत हो जाता है। हमारे सूय का गु वाकषण बल पृ वी से 28 गुना
यादा है। यानी िक अगर आप सूय पर ह तो पृ वी से आपका वजन 28
गुना अ धक होगा। आप क पना क रए िक केवल 24 िकलोमीटर के यास
म चार सूय के बराबर यमान हो तो उसका गु वाकषण बल िकतना
यादा होगा! लैक होल का गु वाकषण इतना अ धक होता है िक उससे
काश भी बाहर नह िनकल पाता। हम उसे देख तो नह सकते, लेिकन हम
गामा रे ब ट के मा यम से उनका पता अव य लगा सकते ह। इन ब ट क
खोज टीफन हॉ कस ने क थी। इस लए उनके नाम पर इसे ‘हॉ कस
रे डएशन’ कहा जाता है। हॉ कस वयं यह मानते थे िक लैक होल दस ू रे
ांड के लए एक माग है।
िकसी लैक होल म िगरने पर या कोई और यव था संभव है? हर
लैक होल म एक इवट होराइजन नाम का बद ु होता है, जहाँ गु वाकषण
बल इतना यादा होता है िक वहाँ से आप िफर बाहर नह िनकल सकते।
इसे ‘नह वापसी का बद’ु कहा जाता है। इसके पहले के बद ु से आप देख
सकते ह िक तारे इसके चार ओर बहुत तेजी से च र लगाते ह। जैसे-जैसे
आप लैक होल क तरफ बढ़ते जाएँ गे, इसक ग त और तेज होती जाएगी।
इसका कारण अ य धक गु वाकषण बल होता है।
सबसे आम लैक होल टेलर ह। उनका िव तार 9 मील है और वे 20
सूरज के वजन के बराबर ह। िकसी भी लैक होल क इवट होराइजन म
िगरने के बाद आप उसी म जम जाएँ गे और उसी का िह सा बन जाएँ गे और
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कभी बाहर नह िनकल पाएँ गे। इसका कारण है िक लैक होल म समय और
थान थम जाता है और बाहर अंत र आगे बढ़ता रहता है। इस लए आप
िपछले समय म वापस नह लौट सकते। लैक होल इस लए सभी चीज को
अपने अंदर अवशोिषत कर लेते ह, जसम आपका शरीर भी है और यह
कहना मु कल होगा िक इसम आपके शरीर के अवशेष कहाँ ह?
कैसे खोजा गया लैक होल?
‘िम क वे’ (Milky Way) हमारी गैले सी है। इस गैले सी के एक छोटे से
िह से म एक छोटे से ह म हम मनु य रहते ह। हम मनु य आकार म भले
ही छोटे ह, लेिकन हमारी क पना, हमारी सोच और हमारे हौसले ‘िम क
वे’ से भी बड़े ह। हमने भी हौसले, सोच और क पना शि क बदौलत
आज ांड को इतना जाना है और लगातार इसे और खँगालने म लगे हुए
ह। या आपके िदमाग म कभी खयाल आया है िक आ खर यह ांड
इतना िव च य है? इस ांड को सही से जानने के लए आप केवल
अपनी आँ ख पर िव ास नह कर सकते, य िक यहाँ हमेशा जो आँ ख से
िदखता है, वही सच नह होता। इस ांड म कई ऐसी चीज ह, जो आपक
आँ ख देख भी नह सकत , लेिकन वह वा तव म होती ह। इन अ य चीज
म से ही एक है, लैक होल, जो खुद से काश को भी बाहर आने नह देता।
इस वजह से हम उसे देख नह सकते। लगभग सभी आकाशगंगाओं के क
म एक बहुत भारी लैक होल होता है। हमारी गैले सी के क म भी ऐसा ही
एक लैक होल है, जसका नाम है—‘सेगेटे रयस ए टार’। लेिकन या
आप जानते ह िक िबना देखे कैसे इस लैक होल को खोजा गया था?
1920 के दशक म हमारे पास बहुत बड़े-बड़े ऑ टकल टेली कोप
मौजूद थे। इनके सहारे हमने न केवल अपनी आकाशगंगा, ब क दस ू री
आकाशगंगाओं को भी देखा था। केवल आ◌ॅ टकल टेली कोप होने से
हम उस समय केवल उ ह चीज को देख सकते थे, जनको हमारी आँ ख
देख सकती थ । हमारी आँ ख केवल य काश (Visible Light) को ही देख
पाती ह, जो िक इले टो मै ेिटक पे टम का बस एक छोटा सा िह सा है।
अगर कोई ऐसी चीज, जो रोशनी को पराव तत ही न करे, तो वह हमारे लए
अ य हो जाएगा। कुछ ऐसा ही होता है लैक होल, जो रोशनी को
पराव तत होने ही नह देता है। जो काश एक बार इसके अंदर समा जाता
है, वह दोबारा बाहर ही नह आ सकता। यानी हम िकसी ऑ टकल
टेली कोप क मदद से एक लैक होल को देख ही नह सकते। लेिकन
आज हमारे पास इसके लए दस ू रा उपाय भी है—‘रे डयो टेली कोप’।
इले टो मै ेिटक रे डएशन अलग-अलग वसी और तरंगदै य (Wave
length) के होते ह। इनके तरंगदै य के आकार के अनुसार इ ह अलग-अलग
वग म बाँटा गया है। जतनी छोटी वेवलथ, उतनी ही यादा ऊजा और

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जतनी बड़ी तरंगदै य, उतना ही कम ऊजा। छोटे से बड़े के म म इनको
सात भाग म बाँटा गया है—गामा िकरण, ए स-रे, पराबगनी (अ टा
वाॅयलेट) िकरण, य िकरण, अवर (इं ारेड) िकरण, माइ ो वेव और
रे डयो तरंग।
1930 के दशक म अमे रका के एक रे डयो इंजीिनयर काल ज क ,
जनको ‘फादर ऑफ रे डयो ए टोनाॅमी’ भी कहा जाता है, ने एक रे डयो
टेली कोप बनाया था, जसका यास 100 फ ट था और इसे एक 20 फ ट
ऊँचे टड पर लगाया गया था, जसे चार िदशाओं म घुमाया जा सकता
था। ज क बेल टेलीफोन लेबारेटी म काम करते थे। उ ह ने जो रे डयो
एं टीना बनाया, वह 20.5 मेगाह ज वसीवाले रे डयो वे स को पकड़
सकता था।
कुछ महीन तक इससे स ल को रसीव करने के बाद उ ह ने इससे
रकॉडड स ल को तीन भाग म बाँटा। नजदीक तूफान से आनेवाले
स ल, दरू के तूफान से आनेवाले स ल और तीसरा एक अजीब सा
धुँधला िह सा, जो कहाँ से आ रहा था, इसका उ ह पता ही नह चल पा
रहा था। इस बात ने उ ह सोच म डाल िदया और अब वो उसके ोत को
ढू ँ ढ़ने म लग गए। पहले तो उ ह लगा िक ये स ल सूरज से आ रहे ह,
य िक ये स ल उसी िदशा से आ रहे थे। बाद म उ ह ने देखा िक इन
स ल का ोत सूरज क अव थ त से भी आगे घूम रहा है। इस लए ये
स ल सूरज से नह , कह और से आ रहे थे। उ ह ने इस स ल काे नाम
िदया—‘द टार वायज’। चूँिक ज क एक खगोलिव नह थे, इस कारण
उनक खोज म यादा लोग ने िदलच पी नह िदखाई। लेिकन उ ह ने
जन स ल क खोज क थी, वे हमारी आकाशगंगा के क से आ रही थ ।
वह एक बहुत बड़ी खोज थी, लेिकन उस व पर िकसी ने इस पर खास
यान नह िदया।
जैसे-जैसे रे डयो ए टोनाॅमी को उ त बनाया गया, ांड को देखने का
हमारा नज रया बदलता गया। जहाँ से ज क को अजीब िक म के स ल
िमल रहे थे, वहाँ से एक बहुत अ धक जिटल रे डयो ोत िमला। वहाँ से
बहुत ताकतवर रे डयो स ल िनकल रहे थे। उसका नाम रखा गया
—‘सेगेटे रयस ए’। इसके बाद कई रे डयो टेली कोप को एक साथ
जोड़कर ‘रे डयो इंटरिफनािमना’ को बनाया गया। इसम कई रे डयो
टेली कोप एक साथ िमलकर एक बड़े टेली कोप जैसे काम करते ह। इसके
ज रए हम रे डयो तरंग म आनेवाले छोटे-से-छोटे प रवतन को माप सकते
ह।
1970 के दशक म खगोल वै ािनक ूस बै लक और रॉबट ाउन ने
‘नेशनल रे डयो ए टोनॉमी ऑ जवटरी के बेसलाइन इंटरफेयरोमीटर’ के
ज रए लगातार ‘सैगेटे रयस ए’ क लोकेशन पर नजर रखी। अंत म 13
ो े ँ ै औ
फरवरी, 1974 को उ ह ने वहाँ एक बहुत ही कॉ पै ट और बहुत ही
चमक ली चीज क खोज क । यह जो भी चीज थी, बहुत तेज रे डयो तरंग
छोड़ रही थी और बहुत ही ताकतवर थी। इसी से खोज हुई िम क वे के
क म बसे सुपरमै सव लैक होल क , जसको ‘सेगेटे रयस ए’ टार नाम
िदया गया। लेिकन अभी भी वै ािनक ने इस खोज क पुि नह क थी।
दरअसल, वो इस बात पर िन त नह थे िक वह असल म एक लैक होल
है, या बस वै ािनक का एक अनुमान था!
लेिकन कहानी तो अभी शु हुई थी। 16 अ ू बर, 2002 म एक जमन
ए टो िफ ज स ट रेन हेड गजर ने अपनी अंतररा ीय टीम के साथ
िमलकर ‘सेगेटे रयस ए’ टार के पास मौजूद एक तारे ‘एस2’ के मोशन क
रपोट पेश क । उनके आँ कड़ ने बताया िक इसके पास ही सतार का एक
झुडं भी है, जो वहाँ िकसी एक चीज के बहुत तेजी से च र काट रहे ह। इस
चीज का वजन बहुत ही यादा करीब 40 लाख सूय के वजन के बराबर है,
लेिकन वो चीज आकार म महज 44 लाख िकलोमीटर क थी। यानी इतना
बड़ा िक आसानी से सूरज और बुध ह के खाली जगह म समा जाए। इतना
भारी ठोस गु वाकषणवाला पदाथ और कुछ नह , ब क एक बहुत भारी
लैक होल ही हो सकता था। शु आत म तो खगोलशा ी ये मानते थे िक
यह व तु िम क वे के क म थत है। लेिकन बाद म उ ह पता चला िक
यह व तु िम क वे के क म नह , ब क यही उसका क है। यह बहुत
भारी लैक होल है, जसके चार ओर पूरा िम क वे च र लगाता है।
लेिकन हमने अभी तक सीधे िकसी लैक होल को नह देखा था। लेिकन
10 अ ैल, 2019 को वै ािनक ने लैक होल क पहली वा तिवक तसवीर
को जारी िकया। जसम पहली बार गैले सी ‘एम87’ के क म बसे लैक
होल क छाया को साफ-साफ देखा गया। इस तसवीर को भी िवशालकाय
रे डयो इंटरफेरोमीटर से लया गया था, जसका नाम ‘द इवट होराइजन
टेली कोप’ रखा गया था। ज द ही इसके ज रए अपनी आकाशगंगा के क
स बसे ‘सेगेटे रयस ए’ टार क तसवीर ली जाएगी।

लैक होल क तसवीर : एक अ भुत उपल ध, अि तीय च , अिव मरणीय पल! लैक होल का
एक अ यंत दल
ु भ च , जो सफ 2019 म लया गया। यह च लेना भी अपने आप म एक नायाब
अनुभव रहा है और यह तकनीक द ता को िदखाता है।

न और रा शयाँ (Star Groups)


े ओ े ो
पृ वी के चार ओर लगभग 27 ऐसे तारा समूह ह, जो रात म आकाश म
िदखाई पड़ते ह। पृ वी क प र मा करते समय चं मा िकसी-न-िकसी
न या तारा समूह के सामने से गुजरता है, जससे उस िदन वह न
िदखाई नह देता। तिदन चं मा एक न पार कर लेता है। इन न के
नाम ह—अ नी, भरणी, कृ तका, रोिहणी, मृग सरा, आ ा, पुनवसु, पु य,
मेघा, आ ेषा, वा त, िवशाखा, अनुराधा, ये ा, मूल, पूव , ह त, च ा,
आषाढ़, वण, घिन ा, शि भषा, पूवाभा , उ राभा पद, रेवती,
फा गुनी, उ री फा गुनी। पृ वी इनम से येक न को लगभग 14
िदन म पार कर लेती है, इस लए न क अव ध 14 िदन होती है।
पृ वी सूय क प र मा करते समय अनेक न समूह (तारा समूह-
रा श) से होकर गुजरती है। इनके आकार अलग-अलग ह। मनु य ने अपनी
क पना के िहसाब से इनके अलग-अलग नाम रखे ह। मछली और िब छू के
समान िदखनेवाले न समूह को मश:—मीन व वृ क कहते ह। भारत
म इ ह ‘रा शयाँ’ कहते ह। इनक सं या 12 है। इनके नाम—मेष, वृष,
िमथुन, कक, सह, क या, तुला, वृ क, धनु, मकर, कंु भ और मीन ह। हर
रा श को पार करने म पृ वी को 1 महीना लगता है। तारा समूह अपनी जगह
बदलते रहते ह। पृ वी अपनी क ा पर घूमते समय अपने अ को सदैव
ुव तारे (Pole Star) क ओर रखती है। ुव तारा सदैव एक ही थान पर
िदखाई पड़ता है। इस तारे के पास के तारे भी लगभग उसी थान पर
िदखाई देते ह। ुव तारे को ‘स ष न समूह’ (Great Bear) से
सुिवधापूवक पहचाना जा सकता है। इस न समूह के बीटा व अ फा
तार को िमलाते हुए ख ची जानेवाली रेखा ुव तारे के पास से गुजरती है।
तार का समूह

इस ांड म िकतने सौरमंडल ह?


हमारी आकाशगंगा म िकतने सौरमंडल ह, इसका उ र कोई नह
जानता। कई साल तक भारतीय खगोलिवद और अब कुछ वै ािनक ने
हमारे अपने सौरमंडल का अ ययन िकया। लेिकन िपछले कुछ साल तक
मनु य को कोई दसू रा सौरमंडल नह पता था।
यह आ यजनक लग सकता है, य िक अकेले हमारी िम क वे
आकाशगंगा म सूय लगभग 200 अरब तार (या शायद अ धक) म से एक
है। उन सभी अ य तार के साथ ही वै ािनक ने अ य सौर णा लय का
अ ययन य नह िकया है? कम-से-कम यह जानने के लए िक हमारी
आकाशगंगा म िकतने तारे ह, इसका अ ययन िकया जा सकता था।
बहरहाल, इसका कारण यह है िक अ य सतार के आसपास के ह को
खोजना वा तव म किठन है। जस सूय क क ा म ह प र मा करते ह, वे
केवल उसी का काश पराव तत करके चमकते ह। ह बहुत यादा काश
पराव तत भी नह करते ह। तारे अपने गु वाकषण िनयं णवाले िकसी भी
ह के साथ इतनी दरू ह िक एक तारे के पास एक ह का पता लगाना एक
सचलाइट से मील दरू एक म छर को देखने जैसा है।
1990 के दशक के म य म खगोलिवद को अ य सतार के आसपास
ह के पु ता सबूत िमले। सभी मामल म उ ह ने ह को उनक तसवीर
लेकर नह खोजा, ब क जनक वे प र मा करते ह, उन तार पर उनके
आ यजनक हलके खचाव का पता लगाकर उ ह खोजा गया। य िप तारा
ह को अपनी गु वाकषण पकड़ म कसकर पकड़ लेता है, लेिकन ह भी
तारे पर एक गु वाकषण खचाव लगाता है, और यही खगोलिवद का
उपाय है। एक-दस
ू रे क क ा के पूरा होते ही ह तारे के चार ओर घूमता
े ै
हुआ िदखाई देता है।
अब तक, खगोलिवद ने 500 से अ धक सौरमंडल पाए ह और हर साल
नए क खोज कर रहे ह। वै ािनक का अनुमान है िक हमारी आकाशगंगा
िम क वे म द सय अरब सौरमंडल हो सकते ह, शायद 100 अरब भी ह
तो कोई आ य नह होना चािहए। सौर णाली ओ रयन आम म थत है,
जो िम क वे के क से 26,000 काश वष क दरू ी पर थत है। ांड म
200 अरब से 2 खरब आकाशगंगाओं के होने का अनुमान है।
इन अनुमान क सटीकता और हमारे समान अ य सौरमंडल कैसे ह, यह
देखना अभी बाक है। हमारे अलावा िकसी दस
ू रे सौरमंडल के बारे म पता
चले कुछ साल ही हुए ह और अभी भी उसका अ ययन करना बेहद
मु कल है।
हमारा अपना सौरमंडल
सौरमंडल (Solar System)
हमारे सौरमंडल क उ प लगभग 4.56 अरब वष पहले घूणन करते
गैस व धूल कण के एक बादल से हुई। मंदािकनी नामक आकाशगंगा क
एक भुजा पर उसके क से लगभग 32,000 काशवष क दरू ी पर हमारा
सूय थत है। सूय के साथ अनेक आकाशीय पड भी पाए जाते ह, जो सूय
के चार ओर प र मा करते रहते ह। इनम ह, उन ह के उप ह, अनेक
ु ह तथा धूमकेतु शािमल ह। सूय तथा सूय के चार ओर प र मा
करनेवाले ये सभी पड सौरमंडल कहलाते ह।
सौरमंडल के इन सद य म से सफ सूय म ही अपना काश है और
उससे िनकलते काश से ही दस ू रे ह, उप ह, धूमकेतु आिद का शत
होते ह। पूरे सौरमंडल का िव तार लगभग 12 अरब िकमी. के यास े पर
है।
सौरमंडल के कुल यमान का लगभग 99.8 तशत सूय म है। सूय के
यमान के लगभग 98 तशत भाग का िनमाण हाइडोजन एवं ही लयम से
हुआ है।
20व सदी के म य म मानव क अंत र अ ययन म िवशेष अ भ च
जा त् हुई, जसे शीतयु ने और भी बढ़ावा िदया। सोिवयत संघ तथा
संयु रा य अमे रका ने बाहरी अंत र म अनेक अ भयान िकए। सोिवयत
संघ ने 4 अ ू बर, 1957 को थम मानव रिहत कृि म उप ह
‘ पुतिनक-1’ को सफलतापूवक ेिपत करके एक नए यगु क शु आत
क । त प ात् ऐसे अनेक उप ह ेिपत िकए गए, ज ह ने ांडीय पड
के अ धक प च उपल ध कराए।
सौय तं के ह

पुन: अ ैल 1961 म सोिवयत संघ ने थम अंत र या ी यरू ी गाग रन


को पृ वी क क ा म भेजने म सफलता हा सल क । इसके समानांतर
अमे रक अंत र अ भयान भी जारी रहा और जुलाई 1969 म अमे रक
अंत र या ी नील आम टांग के प म मानव के थम कदम चं मा क
पृ वी पर पड़े। इसके बाद से ऐसे अ भयान क झड़ी लग गई। यरू ोपीय देश
ि टेन, ांस, जापान तथा भारत ने भी अपने अंत र काय म म नए
आयाम जोड़े। इन अ भयान से न केवल सौरमंडल और ांड के िवषय म
हमारी जानकारी का दायरा बढ़ा, ब क पृ वीवा सय के लए सूचना,
संचार और सारण के नए आयाम भी खुले। वतमान सूचना ां त के पीछे
अंत र िव ान क ही भूिमका रही है।

सौय तं और उसके सभी ह। लूटो का िफर से वागत है।

सूय (The Sun)


सूय त गैस का एक अ यंत गरम गोला है, जो सौरमंडल के क म
थत है। इसम सौरमंडल का 99 तशत यमान समािहत है। यानी सभी
ह के कुल यमान से सूय का यमान लगभग 740 गुना है। सूय अपनी
आकाशगंगा के क का एक च र पूरा करने म लगभग 25 करोड़ साल
लगाता है। सूय के ोड म होनेवाले परमाणिवक संलयन से हाइडोजन गैस

ै े ै ो ै े
ही लयम म बदलती रहती है, जससे असीम ऊजा पैदा होती है, जससे
उसके ोड का तापमान 1.4 करोड़ ड ी से सयस तक हो जाता है।
परमाणु संलयन अ भि या म हाइडोजन के चार ना भक (चार ोटॉन)
संल यत होकर एक ही लयम ना भक (दो ोटॉन और दो यूटॉन) बनाते ह।
ही लयम ना भक का यमान उन चार हाइडोजन ना भक के कुल
यमान से लगभग 0.7 तशत कम होता है। यमान का यह घटा भाग
गामा िविकरण (Gamma-Radiation) के प म ऊजा म बदल जाता है। यह
अतर यमान (m) आइं टीन के ऊजा समीकरण, E = mc2 के अनु प
ऊजा म बदलता है, जहाँ E ऊजा और C काश क ग त (3,00,000 िकमी.
त सेकंड) को बताता है। चूँिक c2 एक अ यंत िवशाल सं या है, अत:
यमान क बहुत छोटी मा ा भी चंड ऊजा को पैदा करती है। ऊजा क
कुछ मा ा ही लयम ना भक को बाँधने के लए उपयोग हो जाती है। ोड म
उ प यह ऊजा िविकरण और संवहन से बाहर क ओर चलकर सूय के
य धरातल ‘फोटो फयर’ तक पहुँच जाती है। सूय का धरातलीय
तापमान 5,726° स. है। सौरमंडल क लगभग संपूण ऊजा सूय से ही ा
होती है। सूय से िव भ प म िनरंतर ऊजा िनकलती रहती है, जैसे—
य काश, अ य अवर , पराबगनी, ए स िकरण, गामा िकरण,
कॉ मक िकरण, रे डयो तरंग और ला मा (Plasma)।

सूय : इसी से सारी पृ वी चलती है, सूय नह तो कुछ भी नह और


िव म एकमा थान पर सूय क पूजा ‘छठ पूजा’ है।
पयावरणीय प से इससे बेहतर और कोई पूजा नह ।

सूय का य धरातल ‘फोटो फयर’ (Photosphere) कहलाता है। यह


भाग सूय के ोड क तुलना म काफ ठंडा है। इसके धरातल पर िदखाई
पड़नेवाले अपे ाकृत शीतल ध ब को ‘सूय कलंक’ (Sun Spots) और
अपे ाकृत गरम ध ब को ‘फैकुली’ (Faculae) कहते ह। फोटो फयर के
ऊपर ोमो फयर पाया जाता है जसम आयनीकृत हाइडोजन और
ही लयम परमाणु 4,000° से 40,000°K तक तापमान पर उप थत होते ह।
इस भाग के बाहर सूय के वायम
ु ड
ं ल का बाहरी भाग कोरोना (Corona) मौजूद
है, जो अ य धक गरम (1 से 2 िम लयन ड ी के वन) और अ य धक
िवरलीकृत गैस क उप थ तवाला े है। यह अंत र म कई िम लयन
िकलोमीटर तक िव तृत है। सौर लपट फोटो फयर से पैदा होकर कोरोना

ो औ े े
म िव हो जाती ह और इ ह के कारण पृ वी के वायम ु ड
ं ल म ुवीय
काश (Auroras) िदखते ह। सौर कोरोना से िनकलकर अंतर हीय मा यम
म वेश करनेवाले अ जत आवे शत कण , मु यत: ोटॉन एवं इले टाॅन के
वाह को ही ‘सौर पवन’ कहते ह। इन आवे शत कोरोना गैस क तापीय
ऊजा इतनी यादा होती है िक सूय का गु वाकषणीय े इनको एक
सुिन त थर वायम ु ड
ं ल म सुर त नह रख पाता। अत: इन आवे शत
कण का अंतर हीय े म िनरंतर, लगभग वृ ाकार आकार म वाह
होता रहता है। इसके साथ ही अ य धक िवरल ला मा वाहक यमान
और कोणीय संवेग का भी सूय से वाह होता है।

सूय अपनी सतह पर हाइडोजन को जलाकर उसे ही लयम म प रव तत करता है।


सूय क सतह पर बहुत तूफान उठते ह और उसक लपट आसमान म
कई लाख िकलोमीटर तक उठती ह।

सौर पवन : सूय िनरंतर अपने धरातल से सभी िदशाओं म हाइडोजन या


उसके ना भक ( ोटॉन) का उ सजन करता रहता है। कभी-कभी यह
उ सजन बहुत अ धक होता है और तब ये सूय के धरातल पर व लत
और धधकती लहर के प म िदखाई पड़ते ह।
ये लहर सूय के वायम
ु ड
ं ल म कई िकलोमीटर लंबी लपट के प म
िनकलती ह, ज ह ‘सौर लपट’ (Solar Flares) कहते ह। ये सौर लपट
अ यंत आकषक िदखाई पड़ती ह, जो आयनीकृत गैस के बादल के प म
पृ वी के आकार से 20 गुना से भी अ धक लंबी होती ह और 100 िकमी.
त सेकंड क ग त से सूय के वायमु ड
ं ल के बाहरी भाग, कोरोना म पैदा
होती ह।
1958 म अमे रक भौ तकिव , यू जन नॉरमन पाकर ने इन बिहगामी
ोटॉन धाराओं को ‘सौर पवन’ (Solar Wind) क सं ा दी। हाल के उप ह
आधा रत शोध से ात हुआ है िक ये सौर पवन ला मा अथात् आयिनत
गैस से िन मत हुए ह, जनम मु यत: हाइडोजन और ही लयम ही ह तथा
ोटॉन और इले टाॅन क लगभग बराबर सं या है। सूय के धरातल से
बाहर क ओर इनका वाह सुपरसोिनक ग त से अथात् लगभग संपूण
सौरमंडल म (लगभग 40 खगोलीय इकाई क दरू ी तक) सा रत हो जाता
ै े े े े े

है। इनके भाव से पृ वी के चुंबक मंडल (पृ वी के धरातल से 64000
िकमी. ऊपर) म िवकृ त आ जाती है।
‘सूय कलंक’ (Sun Spots)
सूय का धरातल सदैव प रवतनशील रहता है। इस पर ती चमक ले
और गहरे या धुँधले थल िदखते ह। चमक ले ध ब को ‘ लेज’ (Plages)
और गहरे रंग के ध ब को ‘सूय कलंक’ कहा जाता है। ये ध बे तेजी से
बनते और ख म होते रहते ह। सौर ध बे गहरे रंग के िदखाई पड़ते ह,
य िक वे सूय के धरातल क तुलना म शीतल (लगभग 1,500° स.) होते
ह। अ ैल 1974 म सबसे बड़ा सौर ध बा िदखाई पड़ा था, जो लगभग
18,130 िम लयन वग िकमी. (सूय के कुल धरातलीय े फल का 0.7
तशत) े पर िव तृत था। इन सौर ध ब क आयु भी भ - भ होती
है, जो कुछ घंट से लेकर कई स ाह तक हो सकती है।
सौर ध ब का यारह वष य च अपने सौर अ धकतम क ओर पहुँच
रहा है, जसम यापक सौर ध बे और सौर लहर पैदा होती ह। सौर ध बे
सूय के क णकायु फोटो फयर पर िदखाई पड़नेवाले गहरे रंग के ध बे ह,
जो एक छोटे दाने या क णका से लेकर हजार िम लयन वग िकमी. े म
िव तृत जिटल संरचनाओंवाले होते ह। ये सौर ध बे थानीयकृत गहन
चुंबक य े के क होते ह। जनके िवषय म माना जाता है िक वे
संवहनीय े (Convective Zone) से िनकलनेवाली गरम गैस क धाराओं को
फोटो फयर तक पहुँचने से पूव रोककर बंद कर लेते ह। अ ा (Umbra) म,
जहाँ चुंबक य े बलतम (0.2-0.4 टे ला) होता है, संवहन लगभग
पूणतया अव हो जाता है। जबिक पेन ा (Penumbra) म, जहाँ चुंबक य
े अ धक ै तज होता है, वहाँ पदाथ का बिह: कोि क (Radial) वाह
होता है। अत: पेन ा क तुलना म अ ा अ धक शीतल होता है, और
फल व प, अपने चार ओर क क णकाओं से भी शीतल होता है। उनके
तापमान मश:—4,000°, 5,600° एवं 6,000° के वन तक होते ह। इन
सौर ध ब क सं या लगभग 11 वष क औसत अव ध म घटती-बढ़ती है,
जसे ‘सौर ध ब का च ’ कहते ह, जसके दौरान सभी समूह के
सूय च ीय अ ांश (Heliographic Latitude) म अनु पी प रवतन होता है।
सूय का पे टम गामा िकरण से लेकर रे डयो तरंगदै य तक िव तृत होता
है। इसक ती ता म भी िव तृत परास होता है।
सौरमंडल के ह
ह सूय क प र मा करनेवाले गोलाकार पड ह, जनम अपना काश
नह होता। सूय के सौरमंडल म वतमान म नौ ह ह (बुध, शु , पृ वी,
मंगल, बृह प त, शिन, अ ण, व ण एवं लूटो)।

ो ो ँ ै
इन ह को दो वग म बाँटा जा सकता है—
1. चार च ानी आं त रक ह—बुध, शु , पृ वी और मंगल।
2. चार गैसीय बाहरी ह—बृह प त, शिन, अ ण और व ण तथा अब
लूटो भी।
इन आं त रक तथा बाहरी ह के बीच (अथात् मंगल और बृह प त के
बीच) िहकाएँ या ु ह (Asteroids) पाए जाते ह।
व ण ह क क ा के आगे एक िवशाल देश िव तृत है, जसम ह के
कार के छोटे, ठंडे पदाथ (जैसे लूटो) िबखरे पड़े ह और यहाँ अनेक
धूमकेतु भी पाए जाते ह।
आं त रक ह (Inner Planet)
बुध, शु , पृ वी एवं मंगल ह के अनेक ल ण म समानता है। वे
अपे ाकृत छोटे आकार के ह, उनम च ानी ट, आवरण और एक लौह-
संप ोड (Core) पाया जाता है तथा उनक उप ह क सं या या तो
बहुत कम या अनुप थत है।
ये सभी आं त रक ह समान िदशा म सूय क प र मा करते ह तथा
उनक प र मा पथ का तल भी लगभग समान है। उनक क ा हलक दीघ
वृ ाकार (Light Elliptical) है। लेिकन गहराई से देखने पर पता चलता है िक
उनक अपनी-अपनी िव श ताएँ ह, जो एक-दस ू रे से अलग ह।
बुध (Mercury)
सूय से सबसे नजदीक थत ह बुध पर कोई वायम ु ड
ं ल नह है और
इसके धरातल का तापमान बहुत ऊँचा होने के साथ-साथ अ य धक
उतार-चढ़ाव भी दरशाता है। िदन म इसका तापमान 420 ड ी सटी ेड
तक और रात म -180 ड ी सटी ेड तक हो जाता है।
बुध का गु वाकषण े बहुत कमजोर है, जसके कारण ही इस पर
वायमु ड
ं ल नह पाया जाता। इसके धरातल के चार ओर सो डयम और
ही लयम जैसी गैस क एक बहुत पतली परत पाई जाती है।
वायम ं ल का अभाव होने के कारण इस पर उ का एवं धूमकेतुओ ं के
ु ड
अपे ाकृत अ धक आघात होते रहे ह, जसके कारण इसके धरातल पर
अनेक ग े (Crater) बन गए ह।
सूय से नजदीक थत होने के कारण इस ह को नंगी आँ ख से देखना
किठन है। बुध सबसे छोटा ह है। यह 58 िदन, 16 घंटे म अपने अ के
चार ओर एक घूणन पूरा कर लेता है, जबिक इसे सूय क एक प र मा

े े
करने म 88 िदन लग जाते ह।
शु (Venus)
आकार, यमान और घन व के लहाज से यह पृ वी के काफ समान
है, इस लए इसे ‘पृ वी का जुड़वाँ ह’ भी कहते ह। इस ह के चार ओर
घने बादल वाला काबन डाइऑ साइड यु वायम ु ड
ं ल पाया जाता है।
इस लए इसे ‘आवरणयु ह’ (Veiled Planet) भी कहते ह। घनी काबन
डाइऑ साइड ऊ मा के अवशोषण म सहायक होती है। इसके कारण शु
अ यंत गरम ह बन जाता है, जसका तापमान 500 ड ी सटी ेड तक
पहुँच जाता है। इस लए शु सौरमंडल का सवा धक गरम ह है।
शु के चार ओर बादल का घेरा इसे बहुत परावतक बना देता है,
जसके कारण यह सवा धक चमक ला ह है। यह सूय दय और सूया त के
समय िदखाई पड़ता है, इस लए इसे सुबह या शाम का तारा भी कहते ह।
शु क घूणन ग त धीमी है। इस लए यह 243 िदन म एक घूणन पूरा करता
है। उ ेखनीय है िक शु अ य ह के िवपरीत िदशा म, पूव से प म क
ओर घूणन करता है। इसे सूय क एक प र मा करने म 223 िदन का समय
लगता है।
पृ वी : नीला ह (Earth : The Blue Planet)
आं त रक ह म सबसे बड़ा ह पृ वी ही एकमा ह है, जस पर जीवन
संभव हुआ है। यहाँ क अनुकूल दशाएँ , जैसे—जल क अ धकता,
ऑ सीजन क भारी मा ा म मौजूदगी, तापमान के यादा उतार-चढ़ाव को
रोकने के लए वायम ु ड
ं ल क उप थ त आिद ऐसे कारक ह, जो पृ वी पर
जीवन को संभव बनाते ह। इस अनोखे ह को ‘जल ह’ (Water Planet) या
‘नीला ह’ (Blue Planet) भी कहते ह। पृ वी का एक उप ह चं मा है।
मंगल : लाल ह (Mars : Red Planet)
लौह संप लाल िम ी के कारण मंगल ह ला लमायु काश के साथ
रात म चमकता है। अत: इसे ‘लाल ह’ भी कहते ह। मंगल के कुछ ल ण
पृ वी के समान ह, जैसे—अ का झुकाव, अ के चार ओर घूणन म लगा
समय, समान मौसम-च आिद।
मंगल एक ठंडा ह है, जसके ुवीय देश पर पानी और काबन
डाइऑ साइड क बफ जमी हुई है। यह ह एक पतले वायमु ड
ं ल से घरा
हुआ है, जसम मु य प से काबन डाइऑ साइड पाई जाती है।
मंगल ह : हमारे लायक, हमारी तरह! इस पर हमारी पैनी नजर है।
चं मा के बाद अब इसी क बारी है।

मंगल ह क सतह

मंगल के धरातल पर रेिग तान, ऊँचे पहाड़, गहरे ग ,े िवशाल खाइयाँ


और िवशालकाय वालामुखी पाए जाते ह। मंगल क अपने अ के चार
ओर घूणन अव ध 24 घंटे, 37 िमनट है तथा यह सूय के चार ओर एक
च र पूरा करने म 667 िदन का समय लेता है। मंगल पर जीवन को संभव
बनानेवाले सभी आव यक त व क मौजूदगी िमलती ह। लेिकन अब तक
यहाँ जीवन के माण नह िमले ह।
सौरमंडल के बाहरी ह (Outer Planets of the Solar System)
ु ह (Asteroids) क पेटी के बाद के चार ह ‘गैसीय या िहम ह’
(Gaseous or Icy Planet) कहलाते ह। य िप ये आं त रक ह से बहुत अलग
ह, िफर भी उनम कुछ समानताएँ भी ह। इन सभी ह म छोटे च ानी ोड
ह और वे मु यत: हाइडोजन एवं ही लयम से बने ह। उन पर गैसीय और
ाय: तूफानी वायम ु ड
ं ल ह, जो मु यत: हाइडोजन एवं ही लयम से बने ह।
इन ह को घेरे हुए वलय तं पाए जाते ह, जो धूल और बफ से बने ह। ये
हीय पदाथ के िवखं डत अव श ह, जो इन ह के शि शाली

े े े े
गु वाकषण के कारण इनके िनकट आ गए थे। इन बाहरी ह के चार
ओर बड़ी सं या म उप ह घूमते रहते ह।
बृह प त (Jupiter)—ऐसा ह, जो तारा बनते-बनते रह गया

बृह प त ह : सौय तं का सबसे बड़ा ह। इसका घन व इतना कम है िक


अगर यह पृ वी पर होता तो सागर म तैर सकता था।

बृह प त ह 1,280 िकमी. मोटे वायमु ड


ं ल से घरा हुआ है। इस ह म
मु यत: िमथेन और अमोिनया के साथ हाइडोजन व ही लयम पाए जाते ह।
बृह प त सौरमंडल म अपने अ के चार ओर सबसे तेज घूणन करनेवाला
ह है, जो सफ 10 घंटे म एक च र पूरा कर लेता है। तेज घूणन के कारण
इस ह पर तेज पवन पैदा होती ह, जो बादल के ऊपर रंगीन पेिटयाँ और
देश बनाती ह।
यहाँ गैस के तूफान घड़ी क सुइय के िवपरीत िदशा म लगभग 400
िकमी. त घंटे क र तार से घूणन ग त करते ह। यहाँ ‘िवशाल लाल
ध बा’ (The Great Red Spot) िदखलाई पड़ता है।
इसके वायम ु ड
ं ल के ऊपर उप थत मोटे बादल क परत सूय के काश
को पराव तत कर देती है, जसके कारण यह पृ वी से रात म तेज काश के
साथ चमकता हुआ िदखाई पड़ता है। पृ वी, जो अपने क ीय तल पर लंब
से 23.5° के कोण पर झुक हुई है, उसके िवपरीत, बृह प त एक लगभग
सीधा ह है, जो सफ 3.1° ही झुका हुआ है। बृह प त के उप ह क
सं या 16 है, जनम मु य ह—गैनीमीड, कै ल ट, यूरोपा आिद।
शिन (Saturn)—बेिमसाल खूबसूरती
शिन ह : इसका हण और इसका भाव कैसा भी हो, लेिकन इतना सुंदर ह कोई और है ही नह ।
इसके वलय (Ring) दे खए, िकतने रंग के साथ इसक सुंदरता बढ़ा देता है, अ त
ु नजारा है यह!
यह वलय धीरे-धीरे ीण हो रहे ह, समा हो रहे ह। कम-से-कम इ ह एक बार जाकर देख तो
ली जए!

य िप यह दस ू रा सबसे बड़ा ह है, परंतु इसका यमान इतना अ धक


फैला हुआ है िक यह सौरमंडल का सबसे कम घन ववाला ह बन गया है।
इसका औसत घन व जल से भी कम है। शिन को चार ओर से घेरे हुए
अ यंत आकषक वलय (Rings) पाए जाते ह, जो बफ और बफ से ढके हुए
धूल कण से बने ह। ऐसा माना जाता है िक वे ह के मलबे ही ह, जो ह के
िनमाण के दौरान ही अ त व म आए, परंतु वे शिन के पड म समािहत नह
हो सके और उसक भूम य रेखा के चार ओर च र लगाने लगे। ऐसे
हजार वलय शिन को घेरे हुए पाए जाते ह, और वे अ य बड़े ह क तुलना
म सबसे चमकदार और सबसे जिटल ह।
शिन अपने अ के चार ओर 10 घंटे, 41 िमनट म एक च र पूरा करता
है और इसे सूय क एक प र मा पूरी करने म 29 वष, 167.25 िदन का
समय लगता है।
शिन का चं मा टाइटन य है खास
सन् 1980 म वायेजर-1 सैटन यानी शिन ह के करीब से गुजरा था।
इसने हम शिन ह तथा इसके र स क तसवीर भेज और इसी के साथ
भेजी शिन ह के सबसे बड़े चाँद क तसवीर, जसका नाम था—टाइटन।
एक ऐसा चाँद, जसके पास एक मोटा वायम ु ड
ं ल था। यह एक ऐसा चाँद है,
जसने एक ही बार म वै ािनक का िदल जीत लया और उ ह ने तय िकया
िक हम शिन ह के ऊपर दोबारा जाना ही चािहए। लेिकन यह कोई आसान
िमशन नह था। इस लए नासा, यूरोिपयन पेस एजसी और इटै लयन
पेस एजसी ने साथ म िमलकर शिन ह पर जाने के िमशन को तय िकया।
यह एक िमशन था, जसम पहली बार शिन ह क क ा म जाकर
जानकारी जुटाई जानी थी। यह िमशन करीब 20 साल तक चलनेवाला था।
सबसे बड़ी बात यह थी िक हम एक-दस ू रे ह के चं मा पर उतरनेवाले थे।
इससे पहले भी हमने ऐसा िकया था, इस लए हमारे लए उतना किठन तो

े े े ँ
नह था, लेिकन यह बड़ी बात थी िक हम िकसी दस ू रे ह के चाँद पर
उतरने जा रहे थे, जसके अंदर कुछ भी हो सकता था! जो गहरे बादल से
ढका हुआ था। इस चाँद के अंदर था या? इस चाँद म ऐसी या बात है,
जो पृ वी के बाद यहाँ पर जीवन के होने क आशंका जताई जाती है?
टाइटन, जो आकार म बुध और लूटो ह से बड़ा है और पृ वी और
वीनस के बाद यह पर ठोस पृ वी और मोटा वायम ु ड
ं ल है, यिद यह शिन
का एक चं मा न होकर वतं प से सूय के चार ओर च र काटता तो
हम इसे एक ह ही कहते। इस खास चाँद का एक खास नाम भी है—‘ ह
के जैसा चाँद’। बृह प त के चं मा गैनीमेड के बाद टाइटन ही हमारे
सौरमंडल का सबसे बड़ा चाँद है।
यह हमारी पृ वी के चाँद से 50 तशत यादा बड़ा है। इसका यास
5,149 िकलोमीटर है और हमारे चाँद से 80 तशत यादा भारी भी है।
टाइटन क तसवीर िमलने के बाद से ही वै ािनक वहाँ जाने के लए
उ सुक हो गए और 15 अ ू बर, 1997 को ‘क सनी वेगस ं ’ अंत र यान
को लॉ िकया गया। ‘क सनी’ का सफर बेहद लंबा था और सात वष का
सफर सही ढंग से तय करके 1 जुलाई, 2004 को यह शिन क क ा म
पहुँचा। इससे पहले भी शिन ह पर तीन िमशन पायिनयर-11, वायजर-1
और वायजर-2 भेजे जा चुके थे। इस लए हमारे पास शिन के बारे म कुछ
आँ कड़े थे। परंतु इन तीन िमशन म शिन ह को ‘ ाई बाय’ िकया गया
था। क सनी ने पहली बार शिन ह के बारे म िव तृत जानकारी दी। क सनी
से भेजी तसवीर ने हम शिन का एकदम नया प िदखाया और पहली बार
हमने इतनी बारीक से उसे देखा। इसके साथ एक और यान था, जो
टाइटन पर उतरनेवाला था। यह एक लडर था, जसका नाम था—वेगस ं ।
इसे एक डच भौ तक शा ी ‘ि टयांस वेगस
ं ’ के नाम पर रखा गया था।
ि टयांस वेगसं ने ही पहली बार 1655 म शिन के चाँद टाइटन क खोज
क थी। परंतु उस समय यह नह मालूम था िक इस चाँद के भीतर बहुत
घना वायम ु ड
ं ल भी है। इसे पहली बार वायजर िमशन के दौरान देखा गया
था। परंतु उस दौरान वै ािनक उसके अंदर नह देख पाए थे। इसी को
जानने के लए क सनी वेगस ं को टाइटन के पास भेजा गया था। क सनी
यान नासा का बनाया हुआ रोबोिटक पेस ोब था और उसम लगा लडर
यानी वेगसं यूरोपीय पेस एजसी ारा बनाया गया था। क सनी वेगस ं 2004
के अंत म शिन क क ा म पहुँच गया और 24 िदसंबर, 2004 को वेगस ं को
क सनी से अलग कर िदया गया था।
क सनी ने शिन ह के बारे म च भेजने शु िकए। इनके मा यम से हम
केवल शिन का धुँधला वायम ु ड
ं ल ही िदखाई दे रहा था। क सनी के रेडार
कैमरा ने जब इस धुँधले वायम ु ड
ं ल के नीचे देखने का यास िकया तो
उसके नीचे गहरे और हलके रंग के ध बे िदखाई िदए, जो िदखने म समु
औ ै े े े
और महा ीप जैसे लग रहे थे।
जब वेगस
ं ने टाइटन के वायम ु ड
ं ल म वेश िकया तो इसने अपने िमशन
कंटोल सटर यानी यूरोिपयन पेस एजसी को लगातार तसवीर भेजनी शु
क । टाइटन के कम यमान के कारण इसका गु वाकषण बल कम है,
जसके कारण इसका वायम ु ड
ं ल काफ ऊँचाई, करीब 975 िकलाेमीटर तक
फैला है। वेगस
ं क भेजी तसवीर म छोटे-छोटे पवत के साथ ही निदय के
समान पैटन भी देखने को िमले। ठीक जैसा िक पृ वी म देखने को िमलता
है। यह बहुत ही अजीब बात है, य िक सूरज से करीब 1.4 अरब
िकलोमीटर दरू यहाँ का तापमान -179 ड ी से सयस है। वहाँ ऐसी तरल
निदयाँ और सागर कैसे मुमिकन हो सकते थे? टाइटन का मोटा वायम ु डं ल
98.4 तशत नाइटोजन, 1.4 तशत मीथेन और 0.1 तशत हाइडोजन
गैस से बना है। यानी पृ वी के बाद केवल टाइटन के पास ही दस ू रा
नाइटोजन समृ वायम ु ड
ं ल है।
लेिकन वै ािनक के िदमाग म यही सवाल चल रहा था िक ये तरल
निदयाँ िकससे बनी ह? य िक इतने कम तापमान पर पानी का तरल
अव था म रहना नामुमिकन है! इसका जवाब टाइटन के वायमु ड
ं ल म छपा
हुआ था। जहाँ नाइटोजन के बाद सबसे यादा मीथेन पाई जाती है।
योगशाला म देखा गया िक मीथेन के हाइडोकाबस इतने कम तापमान म
तरल अव था म रहते ह। यानी टाइटन क तरल निदयाँ मीथेन से बनी ह।
टाइटन िब कुल पृ वी के जैसा लगता है, जहाँ निदयाँ, पहाड़ और समु
ह, परंतु यह सब होने के बावजूद यह पृ वी से िब कुल अलग है। यह पूरी
तरह अलग दिु नया है और उसक बनावट और रचना िब कुल अलग है।
टाइटन क जमीन बफ ली हाइडोकाबन तथा पानी से बनी है। टाइटन के
इतने कम तापमान म पानी च ान क तरह और मीथेन तरल पानी क तरह
यवहार करती है।
वेगस
ं ने वहाँ पर उतरने के कुछ सेकंड बाद तक और भी तसवीर भेज ।
मंगल के बाद टाइटन ही वह सबसे दरू का पड है, जस पर मानव िन मत
कोई व तु उतरी है। टाइटन क इस दिु नया म बा रश भी होती है, वो भी
तरल मीथेन क । टाइटन एक ऐसी दिु नया है, जो हमारे ई ंधन क निदय से
बनी है। ये मानव स यता क सिदय के ई ंधन क खपत को पूरा कर सकती
है। शायद टाइटन के इन मीथेन के सागर म कोई जीवन पनप रहा होगा,
जो पृ वी के जीवन से पूरी तरह अलग होगा! टाइटन ऐसी दिु नया है, जहाँ
ऑगिनक कंपाउं स क भरमार है और जीवन क संभावनाएँ हो सकती ह।
हमारे लए यह पूरी तरह से अलग जा त होगी। टाइटन के बारे म
जानकारी हा सल करने के लए वै ािनक को करीब 7 साल तक धैय
रखना पड़ा, तब कह जाकर उनको सफलता ा हुई।
टाइटन : शिन का सबसे बड़ा ह। शायद एकमा ऐसा
गृह जस पर जीवन होने के आसार ह।

क सनी ने शिन के कई रह य से परदा उठाया


शिन ह सूरज से हमारे सौरमंडल का छठा ह और बृह प त के बाद
दस
ू रा सबसे बड़ा गैसीय ह है। शिन के लए अब तक कुल 4 िमशन िकए
जा चुके ह। पायिनयर-11, वायजर-1, वायजर-2 और क सनी। इन चार म
से केवल एक िमशन क सनी म ही शिन क क ा म यान भेजा गया था।
इसी के ज रए शिन ह को काफ करीब से एकदम बारीक से देखा गया
था। क सनी िमशन के दौरान शिन ह के 2 अजीबोगरीब चं माओं टाइटन
और इंसुले स क भी जानकारी जुटाई गई थी। शिन ह हमारे सौरमंडल
का एक खास ह है, एक ह, जसके पास एक मोटा और चौड़ा गैस रग है।
हमारे ह के अ य गैस जाॅइटं जैसे—िपटर, यूरन
े स और नेप यून के पास
भी गैस रग ह, लेिकन शिन ह को छोड़कर बाक सभी गैसीय ह के पास
काफ पतले और धुँधले वलय (Ring) है। लेिकन शिन के वलय काफ मोटे
ह, जनको हम पृ वी से टेली कोप क मदद से साफ-साफ देख सकते ह।
शिन को हम रात म नंगी आँ ख से भी देख सकते ह। इस लए शिन क
खोज ाचीन काल म ही कर ली गई थी। हम कई ाचीन लेख म शिन ह
का अ त व िमलता है। ाचीन बेिबलोन, रोमन और यहाँ तक िक ाचीन
भारतीय इ तहास म तो िन त ही शिन ह के उ ेख िमलते ह। ाचीन
भारतीय यो तषशा म भी हम शिन का उ ेख िमलता है। हद ू
यो तषशा म नव ह का उ ेख िमलता है। हद ू िमथक के अनुसार शिन
याय के देवता ह, जो लोग के पाप और पु य के आधार पर याय करते ह।
15व से 19व शता दी के म य जब टेली कोप का िवकास हो रहा था,
तभी शिन ह को थोड़े अ छे तरीके से देखा गया। नंगी आँ ख से शिन ह
एक बद ु के जैसा ही िदखता है। गैली लयो ने 1610 म पहली बार शिन के
वलय को टेली कोप से देखा। उससे पहले उनके बारे म कोई नह जानता
था। सभी यही समझते थे िक ये शिन के दोन िकनार पर मौजूद दो चं मा
ह। टेली कोप के िवकास के बाद शिन के वलय को साफ-साफ देखना
शु िकया गया। इससे पता चला िक शिन के पास भी चं मा ह।
े औ
इसके बाद आधुिनक अंत र िव ान का िवकास हुआ। नासा और
यूरोपीय पेस एजसी ने शिन पर कई िमशन भेजे। पायिनयर-11,
वायजर-1, वायजर-2 म शिन को केवल ‘ ाई बाय’ िकया गया था, जससे
कोई खास नई जानकारी हम नह िमली।
1997 को क सनी वेगस
ं को लॉ िकया गया। इसे नासा ने यूरोपीय पेस
एजसी के साथ म िमलकर बनाया था। क सनी ने 13 साल तक शिन क
प र मा क ।
क सनी से भेजी गई जानकारी से शिन के बारे म कई नए खुलासे हुए,
ज ह ने वै ािनक के होश उड़ा िदए। 1 जुलाई, 2004 को क सनी शिन ह
क क ा म पहुँचा। शिन ह हमारी पृ वी से करीब 1.2 अरब िकलोमीटर
दरू है। यह दरू ी पृ वी से बृह प त क दरू ी का लगभग दोगुना है। पृ वी से
बृह प त क दरू ी लगभग 58 करोड़ िकलोमीटर है। शिन क क ा म पहुँचते
ही क सनी का पहला िमशन था, इसके वलय क तसवीर भेजना। इसके
वलय 7 भाग म बँटे हुए ह, यानी—ए, बी, सी, डी, एफ, जी और सबसे
बाहरी रग ई है। शिन के ये वलय बने ह पानी के जमे हुए छोटे-छोटे पड
और च ान के टु कड़ से। ये जमी हुई बफ सूरज क रोशनी को काफ
यादा पराव तत करती है, इस लए वलय इतने चमक ले तीत होते ह।
येक वलय के बीच थोड़ी-थोड़ी खाली जगह है और इसी के कारण हम
इन भाग को अलग-अलग देख पाते ह। क सनी के ज रए इनको पहली बार
एकदम बारीक से देखा जा रहा था। शिन ह के पास कुल 62 ात चं मा
ह, जनम से 53 का नामकरण िकया गया है। इसके साथ ही इसक क ा म
ऐसे पड भी देखे गए ह, जनको चं मा का दरजा नह िदया जा सकता।
शिन का सबसे बड़ा चाँद टाइटन, जो उसक क ा के सभी पड का,
जसम उसके वलय भी शािमल ह, उसका 90 तशत से भी अ धक भार
रखता है। यानी टाइटन शिन क क ा म मौजूद बाक सारी पड क तुलना
म काफ यादा भारी-भरकम है।
शिन के वलय क सबसे बड़ी िवशेषता इनका चपटा होना है। शिन के
वलय बफ और च ान के छोटे-छोटे टु कड़ से बने ह। ये सभी येक
टु कड़े एक चं मा के समान ही शिन ह का च र लगाते ह। इसी वजह से ये
उसके िवषुवत के चार ओर घूमते ह। लेिकन शिन ह के इन वलय क
रचना कैसे हुई थी, यह सवाल थोड़ा िववादा पद है, य िक कई वै ािनक
इसके बारे म अलग-अलग राय देते ह, परंतु क सनी िमशन के ारा हम यह
पता चला िक ये वलय शिन क तुलना म काफ नए ह।
क सनी से िमले आँ कड़ ने एक बहुत बड़ा खुलासा िकया था, जसने
सभी को च का िदया था। क सनी ने हम यह िदखाया िक शिन ह के वलय
बहुत तेजी से ख म हो रहे ह। य िक शिन ह के ये वलय बफ के टु कड़ से
बने ह, इस लए सूरज से आनेवाली अ टा वाॅयलेट िकरण और
े ो े े े े
मेिटयोराइ स से टकराने के कारण ये पा टक स जाॅएं स वाटर मॉ ल यूल
म बदल रहे ह, जो शिन ह के चुंबक मंडल (मै ेटो फ यर) के ज रए उसके
वायम ु ड
ं ल म लगातार बरस रही है। इस बा रश को ‘ र स रेन’ कहा जाता
है। जब पहली बार इसको नासा के वायजर िमशन के दौरान देखा गया था,
तब वै ािनक ने अनुमान लगाया था िक आनेवाले 30 करोड़ साल म ये
पूरी तरह से ख म हो जाएँ गे। लेिकन क सनी के आँ कड़ से पता लगा िक
यह हमारे अनुमान से कह यादा तेज हो रही है और ये महज 10 करोड़
साल म ख म हो जाएँ गे। इसके बाद शिन भी पृ वी के समान िबना वलय के
हो जाएगा। ऐसा होने पर यह बहुत अजीब िदखेगा। लेिकन 10 करोड़ साल
भी काफ लंबा समय होता है।
जब क सनी शिन ह के उ री ुव के पास गया तो उसे एक ष कोणीय
आँ धी िदखी, जो बहुत अजीब था। इसे पहली बार वायजर-1 के ज रए देखा
गया था और यह तब से अब तक िब कुल वैसा ही बना हुआ था। वै ािनक
मानते ह िक यह एक थायी तूफान है। शिन के द ण ह ुव म भी ऐसा
ही एक थायी तूफान है, जो देखने म अजीब तो नह है, लेिकन आकार म
बहुत ही बड़ा है। यह इतना बड़ा है िक इसके अंदर पूरी पृ वी समा सकती
है। शिन का अ धकांश िह सा तो गैस से ही बना है। इसका वायम ु ड
ं ल
96.3 तशत हाइडोजन और 3.25 तशत ही लयम से बना है। बाक का
िह सा अमोिनया, ए सटलीन, इथेन, ोपेन, फा पीन और मीथेन गैस से
बना है।
शिन आकार म इतना बड़ा है िक इसके अंदर 764 पृ वी समा सकती ह।
लेिकन मजे क बात तो यह है िक इसका औसत घन व पृ वी के मुकाबले
8 गुना कम है। इसका घन व पानी से भी कम है। यानी इसका मतलब है िक
अगर इस ह को एक िवशालकाय समु म डाल िदया जाए तो यह पानी के
ऊपर तैरने लगेगा। शिन ह क एक और रोचक बात यह है िक यह पूरी
तरह गोल नह है, ब क यह ुव पर चपटा है। इसका कारण है िक अपने
आकार क तुलना म शिन काफ हलका है और यह बहुत तेजी से अपनी
क ा म घूमता है। अपनी तेज ग त के कारण यह अपने िवषुवत पर यादा
चौड़ा और दोन ुव पर यादा पतला है। इतने तेज घूणन के कारण इसके
िवषुवत पर ुव के मुकाबले बहुत तेज आँ धयाँ चलती ह। यहाँ करीब
1,800 िकलोमीटर तघंटे क र तार से आँ धी चलती है। यह बृह प त
ह म चलनेवाली आँ धी से भी काफ यादा तेज है। इस बात ने वै ािनक
को च का िदया था। आ खर ऐसा कैसे हो रहा था? बृह प त के मुकाबले
शिन ह सूरज से लगभग दोगुनी दरू ी पर है, जसके कारण यहाँ सूरज क
रोशनी बहुत कम पहुँचती है। बृह प त पर सूरज क तेज रोशनी ही तूफान
को चलाती है। बृह प त और शिन दोन क बनावट लगभग समान है, तो
शिन ह पर बृह प त से भी तेज तूफान कैसे चलते ह?

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इसका जवाब क सनी म ऑलगे इं ारेड कैमरे क मदद से िमला। इसके
ज रए जब शिन के अंदर देखा गया, जो उसके अंदर से िनकलनेवाली गरमी,
उस पर पड़नेवाली सूरज क गरमी से दोगुनी थी। यही गरमी इसके ऊपरी
वातावरण म इतनी तेज आँ धय का कारण बन रही थी। शिन ह के पास
भी एक तरल ोड है, जो उसके चुंबक मंडल (मै ेटो फ यर) का कारण
बनता है। परंतु शिन ह का चुंबक व (मै ेिटक फ ड) बृह प त क तुलना
म बहुत ही छोटा है और पृ वी के चुंबक व से थोड़ा कमजोर भी है।
शिन ह क सबसे अजीब चीज है, इसक भीतरी बनावट, जो बृह प त
क भीतरी बनावट के समान है। शिन के आं त रक िह से म तापमान
11,700 ड ी से सयस तक जा सकता है। यह सूरज क सतह के
तापमान से दाेगुना है। सूरज से 1.4 अरब िकलोमीटर दरू थत शिन का
औसत तापमान -178 ड ी से सयस है, वह इसके अंद नी भाग का
तापमान इतना यादा हो, तो क पना क जा सकती है िक इसके भीतर का
दबाव िकतना यादा होगा, जो इस गरमी को पैदा कर रहा है? क सनी
िमशन के ज रए शिन ह के बारे म काफ कुछ जाना गया। हम यह भी पता
चला िक बृह प त क तरह शिन के पास भी कोई ठोस सतह नह है, जहाँ
लड कर सक। शिन ह बहुत तेज चलनेवाली आँ धय का ह है, जहाँ
इनसान का रह पाना नामुमिकन है। क सनी ने शिन ह के अ ययन म
करीब 20 साल तक अपना सहयोग िदया और िफर 15 सतंबर, 2017 को
क सनी पेस ा ट को शिन ह के अंदर िगरा िदया गया। क सनी को शिन
ह क क ा म भी छोड़ा जा सकता था, लेिकन वै ािनक मानते ह िक शिन
के चाँद टाइटन म जीवन पनप सकता है। क सनी म लगा, बैटरी
लूटोिनयम 238 से बना था, जस रे डयोए टव आइसोटोप का
अधजीवन बहुत यादा है। कोई भी नह चाहता था िक टाइटन पर पनप
सकनेवाले जीवन को िकसी तरह क हािन पहुँचे। इसी कारण क सनी को
शिन ह के अंदर िगरा िदया गया, जहाँ यह शिन के वातावरण म जलकर
उसी का एक िह सा बन गया।

क सनी िमशन
अ ण (Uranus)
अ ण या यूरने स सौरमंडल का एकमा ऐसा ह है, जो अपने पा
(Sideward) पर थत है, यानी इसका अ अपनी लंबवत् थ त से 98° के
कोण पर झुका हुआ है। इसके कारण अ ण अपने पा पर घूमता है और
एक घूणन पूरा करने म 17 घंटे का समय लेता है। अ ण का सूय क
प र मा करने म लगनेवाला समय 84 वष, 3.65 िदन है।
अ ण के इस गहरे अ ीय झुकाव के कारण इसके ुव 42 वष तक
अँधेरे म रहते ह तथा अगले 42 वष तक सूय के काश म रहते ह। शु के
समान ही अ ण भी अपने अ पर पूव से प म क ओर घूणन करता है।
यह सौरमंडल के सबसे ठंडे ह म से एक है, जसका औसत तापमान
-223° स. तक हो जाता है। यह मु यत: हाइडोजन से बना है तथा इस पर
बंजर जमीन और जमे हुए मीथेन के बादल िदखाई पड़ते ह। अ ण हरे रंग
का िदखाई पड़ता है।
व ण (Neptune)
व ण ह काफ हद तक अ ण के समान ही है। मीथेन गैस क वायम
ु ड
ं ल
म उप थ त के कारण यह ह भी हरे रंग का िदखाई पड़ता है। इसका
वायम
ु ड
ं ल मु यत: हाइडोकाबन यौिगक से बना हुआ है।
व ण सूय से जतनी ऊजा ा करता है, उसक 2.3 गुनी ऊजा वह
उ स जत कर देता है। इसके वायम
ु ड
ं ल म अ यंत ती तूफान चलते ह।
लूटो का सौरमंडल म वागत है
लूटो (Pluto) एक ह था, िफर नह रहा, िफर वापस ह बना
24 अग त, 2006 को लूटो ने अपना सात दशक पुराना सौरमंडल के
नौव और सबसे बाहरी ह का दरजा खो िदया। यह फैसला िव क सव
खगोलीय सं था अंतररा ीय खगोलीय संघ (International Astronomical
Union, IAU) के एक स मेलन म िकया गया।

लूटो क थ त को लेकर अनेक खगोलशा ी कई वष से िववाद कर


रहे थे। उनका कहना था िक इसका बहुत छोटा आकार और अ य धक
क ीय क ा (Eccentric Orbit) इसे अ य ह से काफ अलग सािबत करती
है। वे सूय से इस नौव पड को ह होने क यो यता से वं चत मानते थे।
पहले वै ािनक समझते थे िक लूटो का आकार पृ वी के बराबर है। वष
तक ऐसा माना जाता रहा, य िक ने यून (Neptune) के बाहर िवशाल
देश, यूपर पेटी म यही एकमा पड था, जसके बारे म जानकारी थी।
1978 म लूटो के एक उप ह का पता चला, जसे ‘चेरोन’ नाम िदया
े ो
गया। बाद म हबल दरू बीन से दो अ य उप ह का भी पता चला, ज ह
जून, 2006 म ‘िन स’ और ‘हाइडा’ नाम िदए गए।
1990 के दशक म शि शाली दरू बीन से पता चला िक लूटो के
िनकटवत े म उसके समान अनेक पड मौजूद ह। े ण से यह भी पता
चला िक लूटो क क ा अ त दीघ (Oblong) है, जसके कारण यह
सौरमंडल के मु य तल से काफ बाहर चला जाता है। इसके कारण
खगोलशा य म उसके ह के दरजे पर िववाद शु हो गए और अंतत:
लूटो क क ा क अ तदीघता, जो ने यन ू क क ा का भी अ त मण
करती है, के कारण इसका ह का दरजा ख म कर िदया गया था। परंतु अब
िफर से लूटो को ह के दरजे म वापस ले लया गया है।
चं माएँ
चं मा यिद पृ वी के करीब आ जाए तो या होगा?
हमारी पृ वी का गु वाकषण बल यानी ेिवटेशनल पुल इतना यादा है
िक यह हमारे पास मौजूद चं मा क सतह पर एक छोटा सा उभार भी पैदा
कर सकता है। पृ वी और चं मा के बीच मौजूद गु वाकषण इतना
भावशाली है िक यह दोन ही खगोलीय पड म खचाव शु कर सकता
है, जसक वजह से एक िन त बद ु (Particular Position) पर इन दोन के
ही आकार म अंतर देखा जा सकता है। पृ वी पर यह खचाव या फैलाव
आमतौर पर आपको टाइड यानी समु म पैदा होनेवाले वार-भाटे के प
म देखने को िमलते ह, जहाँ समु का तर घटता और बढ़ता हुआ नजर
आता है। हमारे चं मा पर भी पृ वी ारा तनाव पैदा होता है, जसे अकसर
‘लूनार बॉडी टाइड’ कहा जाता है। जसे आमतौर पर चं मा क सतह क
वजह से देख पाना बेहद मु कल होता है। हमारी पृ वी और चं मा का
आकार इतना बड़ा है िक इस गु वाकषण तनाव को देख पाना और मापना
काफ चुनौती भरा होता है। िनयिमत दरू ी पर होने क वजह से हमारी पृ वी
पर चं मा ारा वार िनयंि त तरीके से पैदा होते ह, जसक वजह से
उसम मौजूद जीव-जंतुओ ं का जीवन संतु लत रहता है। अगर हमारे
सौरमंडल से अचानक चं मा गायब हो जाए तो ये वार बहुत कम मा ा म
आएँ गे, जो कई समु ी जीव को ख म भी कर सकता है। और अगर चं मा
क दरू ी काफ कम हो जाए तो समु म िवशाल लहर भी उठने लगगी।
हम सभी जानते ह िक हमारे पृ वी के घूणन और सूय क वजह से हमारी
पृ वी पर मौसम बदलते रहते ह। पर यान देनेवाली बात यह है िक हमारी
जलवायु यानी मौसम काफ हद तक हमारे चं मा क वजह से ही थर
बना रहता है। वै ािनक क मान तो चं मा नह होने क वजह से हमारा
िदन केवल 8 से 12 घंटे ही लंबा होगा। इससे एक च र पूरा करने म
1,000 िदन लगगे। नासा क सैटेलाइट के ज रए वै ािनक ने पता लगाया
था िक पृ वी का गु वाकषण बल चं मा क सतह पर 20 इंच का उभार
भी पैदा कर सकता है। इससे यह प होता है िक हमारे चं मा और हमारी
पृ वी के बीच गु वाकषण बल बहुत बड़ी भूिमका अदा करता है। हमारे
चं मा क औसत दरू ी 3,84,400 िकलोमीटर है और पृ वी के चार तरफ
इसक क ा अंडाकार है। इसम कोई शक नह है िक ांड म होनेवाली
िकसी भी घटना क वजह से इसक क ा कभी भी अ थर हो सकती है
और बदल सकती है। ऐसा भी संभव है िक यह खुद हमारी तरफ यानी
पृ वी क ओर ही आने लगे! आ खर या होगा, अगर िकसी भी तरह क
ेिवटेशन अ थरता क वजह से हमारा चं मा पृ वी क ओर बढ़ने लगे?
आ खर या ह गे इसके भाव और कैसी होगी हमारी पृ वी?
खगोलिव ानी आकाश म मौजूद िकसी पड के आकार को मापने के
लए एं गुलर डायामीटर का इ तेमाल करते ह। इसका मतलब यह है िक
हमारी आँ ख से उस व तु के िवपरीत बद ु िकतना कोण बना रहे ह? जहाँ
हमारा चं मा मौजूद है, वहाँ से इसका एं गुलर डायामीटर 0.5 ड ी है, जो
काफ कम है। जैसे-जैसे हमारा चं मा हमारी ओर बढ़ने लगेगा, वैसे ही
इसका आकार भी बढ़ने लगेगा। लगभग 400 िकलोमीटर क दरू ी पर ही
इसका एं गुलर डायामीटर 100 ड ी पहुँच जाएगा, जो लगभग आधे से
यादा आसमान को ही ढक लेगा। काफ लंबे समय तक हम अपना सूय भी
देखने को नह िमलेगा। इसका नजारा अजीब और बेहद डरावना नजर
आएगा। वैसे तो हमारे चं मा को पृ वी का एक च र लगाने म लगभग 27
िदन लगते ह, परंतु यिद चं मा से पृ वी क दरू ी 400 िकलोमीटर क होगी
तो एक च र लगाने म मा 90 िमनट का ही समय लगेगा। संभावना है िक
‘टाइडल लॉ कग’ (Tidal Locking) क वजह से हम तब भी चं मा का सफ
सामनेवाला िह सा ही नजर आएगा। बस फक इतना होगा, यह बहुत
िवशाल और साफ-साफ नजर आएगा।
टाइडल लाॅ कग कंडीशन तब होती है, जब िकसी आ◌ॅ ब टग व तु क
घूणन अव ध (Rotation Period) और ऑ बटल पी रयड (Orbital Period)
समान होते ह, जसक वजह से उसका सफ सामने का ही िह सा नजर
आता है। जैसा िक हमारे चं मा के साथ होता है। चं मा के हमारे पास आने
क वजह से हमारी पृ वी क घूणन अव ध भी बढ़ चुक होगी, यानी पृ वी
का एक िदन अब 24 घंटे से कम का होगा। फुल मून या पूण चं क चमक
सूय से लगभग 4 लाख गुना कम होती है, जसका असर हमारी आँ ख पर
नह पड़ता। िकसी भी लाइट क चमक उसक दरू ी पर िनभर करती है, तो
पास आने क वजह से चं मा क चमक बेहद यादा बढ़ चुक होगी। महज
1,000 िकलोमीटर क दरू ी पर ही चं मा क चमक लगभग 18 लाख गुना
यादा बढ़ चुक होगी। इससे आप इतना अंदाजा तो लगा ही सकते ह िक
आपक आँ ख का या हाल होगा? और हमारे वायम ु ड
ं ल क भी या


थ त होगी?
िकसी भी व तु ारा लगाया जानेवाला गु वाकषण बल उसके भार और
दरू ी पर िनभर करता है। जतना यादा भार और जतनी कम दरू ी, उतना
ही यादा गु वाकषण बल होता है। हमारी पृ वी चं मा से 80 गुना यादा
भारी है। इसका मतलब है िक अगर आप पृ वी और चं मा के बीच म ह गे
तो आप पर लगनेवाला पृ वी का गु वाकषण बल चं मा के मुकाबले 80
गुना यादा होगा। जैसा िक गु वाकषण बल दरू ी के वग पर िनभर करता
है, यानी दरू ी म थोड़ा सा बदलाव भी इसे काफ हद तक कम कर सकता
है। अभी अगर आप पृ वी पर खड़े ह गे तो इसका क आपसे लगभग
6,400 िकलोमीटर नीचे होगा और चं मा का क आपसे 3,80,000
िकलोमीटर ऊपर होगा। ऐसे म अगर आप पृ वी और चं मा क
ेिवटेशनल फोस का अनुपात करगे तो आपको पता चलेगा िक पृ वी से
लगनेवाला बल चं मा के मुकाबले 3500 गुना यादा होगा और इनके
यमान (Mass) को भी शािमल िकया जाए तो आप पर पृ वी ारा
लगनेवाला गु वाकषण बल चं मा के मुकाबले 3 लाख गुना यादा होगा।
यही वजह है िक दरू होने के कारण चं मा का गु वाकषण बल आपको
महसूस नह होता, य िक पृ वी के मुकाबले इसका बल केवल 0.0003
तशत है।
जब चं मा पृ वी के पास आने लगेगा तो आपको पृ वी के गु वाकषण
बल म कमी महसूस होगी। चं मा से लगनेवाला गु वाकषण बल आपको
अ धक महसूस होगा। मा 400 िकलोमीटर क दरू ी पर चं मा के होने से
उसका गु वाकषण बल पृ वी के गु वाकषण बल का 1/10 होगा। इसके
कारण पृ वी पर चीज का वजन पहले के मुकाबले 0.1 तशत कम हो
चुका होगा। इतनी सी कमी भी काफ गंभीर भाव डाल सकती है। आम
जीवन पर तो इसका असर पड़ेगा ही, साथ ही पयावरण भी द ु भािवत
ह गे। चं मा के करीब आने क वजह से उसक टाइडल फोस, वार क
ऊँचाई करीब 1 लाख गुना बढ़ चुक होगी। यानी अब कई िकलोमीटर लंबी
समु ी लहर भी उठ सकती ह। इसका असर पृ वी के भीतर मौजूद पदाथ
पर भी पड़ेगा। वह वालामुखी, जो सु पड़े ह, उनके ऊपर क पपड़ी टू ट
सकती है और लावा सतह पर आ सकता है। यानी पृ वी का िवनाश होना
तय है।
लेिकन चं मा का या होगा? सेले टयल मेकैिन म (Celestial
Mechanism) म एक पद (Term) होता है, ‘रॉश लिमट’ जो अकसर हर
अंत र ीय व तु पर लागू होती है। यह वह दरू ी होती है, जसके बाद से
िकसी व तु पर लगनेवाली दसू री व तु क टाइडल फोस इतनी यादा बढ़
जाती है िक वह उसके वयं के गु वाकषण बल से भी यादा हो जाती है।
इसके बाद उस व तु पर खचाव क मा ा इतनी बढ़ जाती है िक वह उसे
ै औ े ौ ै
तहस-नहस कर डालती है। पृ वी और चं मा के बीच मौजूद रॉश लिमट है
लगभग 18 हजार िकलोमीटर। यानी चं मा पृ वी से 18 हजार िकलोमीटर
से कम क दरू ी पर आने के बाद न हो जाएगा। ऐसा कोई माण नह िमला
है, जो इस बात को सही स कर सके। हो सकता है िक भिव य म हम
ऐसा देखने को भी न िमले! लेिकन चं मा का असली प जानना हमारे
लए बेहद ज री है, य िक शु आती दौर म चं मा तो पृ वी के पास ही
था।
या होगा अगर चं मा पृ वी पर िगर जाए?
अगर चं मा पृ वी के बहुत पास आने लगे और उससे टकरा जाए तो
या होगा? या पृ वी उस ट र के बाद बच पाएगी? या यह ट र हो भी
पाएगी? या पृ वी के गु वाकषण म आकर चाँद टु कड़े-टु कड़े हो जाएगा?
चं मा क गु वाकषण शि से पृ वी पर वार आते ह। यह वार कई
समु ी जीव के जनन और वृ के लए बहुत उपयोगी होते ह। चं मा का
गु वाकषण पृ वी को उसक धुरी पर घूमने म भी मदद करता है, जसके
कारण पृ वी पर मौसम कुल िमलाकर थर बना रहता है। सं ेप म, चाँद
पृ वी को जीव के रहने लायक बनाने म मददगार रहता है। तो या होगा,
अगर यह चं मा बहुत तेजी से पृ वी क तरफ आने लगे? जैसे ही चं मा
पृ वी क तरफ आगे आता जाएगा और रॉश लिमट को पार करेगा, तो
टु कड़े-टु कड़े हो जाएगा।
चं मा के सारे टु कड़े 37,000 िकलोमीटर के यास म पृ वी के िवषुवत
रेखा के चार ओर एक रग बना लगे, जो पृ वी को शिन के बाद दस ू रा ऐसा
ह बना दगे, जसके चार ओर ऐसे रग ह। चं मा के हजार टु कड़े टॉयड
क श म पृ वी पर िगरगे और इसके शहर को तहस-नहस कर दगे। जैसे
ही चं मा पृ वी क तरफ बढ़ेगा, पृ वी पर वार क ऊँचाई तेजी से बढ़ने
लगेगी। रॉश लिमट पर पहुँचने से पहले ही पृ वी पर 76 मीटर ऊँचे वार
आएँ गे, जो सुनामी से भी यादा भयावह ह गे। चं मा के नजदीक आते ही
पृ वी क घूणन ग त बढ़ जाएगी और िदन छोटे होने लगगे, जससे इसका
वै क तापमान िगरने लगेगा। लेिकन मौजूदा हालात म ऐसा होने क कोई
आशंका नह िदखती, य िक चं मा पृ वी से हर साल 4 सटीमीटर दरू
होता जा रहा है।
सौरमंडल म अ य पड
ु ह या अवांतर ह (Asteroids or Planetoids)
इ ह ‘लघु ह’ (Minor Planets) भी कहा जाता है। वे च ानी काया (Body)
वाली रचनाएँ ह, जो आं त रक एवं बाहरी ह के बीच एक पेटी म अथात्
मंगल और बृह प त क क ाओं के बीच सूय के चार ओर प र मा करते
े े े े े
रहते ह। कुछ पहचाने गए ु ह के नाम ह—सेरस
े , वरहा, हाइिपया,
य ोसाइन आिद।

उ काएँ कैसे िदखते ह? अगर आपके घर के ऊपर ऐसा एक उ का िगर जाए तो रातोरात आपक
लॉटरी िनकल गई सम झए! कम-से-कम एक करोड़ इसक क मत होगी।

धूमकेतु (Comets)
धूमकेतु का अं ेजी अनुवाद ‘कॉमेट’ है, जो लैिटन भाषा के श द टेला
कॉमेट से पैदा हुआ है, जसका अथ बालयु तारा है। ये धूमकेतु बफ, जमी
हुई गैस और शैल कण के जमाव से बने ह, जो सौरमंडल के ज म के समय
अव श पदाथ के प म रह गए ह।

धूमकेतु : संभवत: एक िदन हम सब धूमकेतुओ ं को खोजगे, पृ वी को पानी देने के लए।

धूमकेतु क रचना म एक शीष या ना भक होता है, जसका यास एक


िम लयन िकलोमीटर तक हो सकता है। इस ना भक के चार ओर धुँधले
बादल होते ह, ज ह ‘कोमा’ (Coma) कहते ह। कोमा का यास 1.6
िम लयन िकमी. तक हो सकता है। धूमकेतुओ ं म एक पु छ भी होती है, जो
एक िम लयन िकमी. तक लंबी हो सकती है। यह पु छ सदैव सूय के
िवपरीत िदशा म होती है। धूमकेतुओ ं का अपना काश नह होता, ब क
इसके धूलकण से पराव तत होनेवाला सूय काश ही इसे ती चमक
दान करता है।
उ का और उ का पड (Meteor and Meteorite)
उ का पड : इ ह ने जतना हमारी पृ वी को बनाने म साथ िदया,
उतना ही यह पृ वी को िव वंस करने म भी दगे।

उ का छोटे आकार क व तुएँ होती ह, जो अवांतर ह (Eternal Planets)


एवं धूमकेतुओ ं के अवशेष एवं िवखं डत पदाथ होते ह। अ धकांश उ का,
जो बहुत छोटे आकार के होते ह, वे पृ वी के वायम
ु ड
ं ल म वेश करते ही
जल उठते ह। वे ही उ का कहलाते ह, परंतु उनम से कुछ बड़े आकारवाले
उ का धरातल तक आ पहुँचते ह। उ ह ही उ का पड (Meteorites) कहा
जाता है।

उ कापात होने के पहले उ काएँ जल जाते ह।

ये उ का अ यंत ती ग त से अंत र से होकर गुजरते ह। जब वे पृ वी


के वायमु ड
ं ल म वेश करते ह तो तेज घषण के कारण जल उठते ह और
रात म काश क एक चमकदार रेखा के प म ग तशील िदखाई पड़ते ह,
अत: उ ह ‘ग तशील तारे’ (Shooting Star) भी कहते ह।

अ याय 2
अंत र िव ान म ाचीन भारत का योगदान
आ ज तक हुई सभी महान् वै ािनक खोज का ेय प मी देश को
िदया जाता है। भारत म इ ह बात को पा य-पु तक के ज रए पढ़ाया
जाता है, उनके अंदर डाल िदया जाता है। टेलीिवजन और िफ म भी इसके
बारे म ही िनरंतर जानकारी देती रहती ह िक प मी देश ने ही अंत र पर
काम िकया है। यह बहुत द:ु खद है िक हमारे ाचीन िव ान और तकनीक
श ा क अकसर अनदेखी क जाती है। प मी जगत् का ान और श ण
यादा बेहतर ढंग से द तावेज म उपल ध है। लेिकन इसका यह अथ नह
है िक सबसे पहले प मी देश म ही अंत र क संक पनाओं को खोजा
गया था। ऐसी 10 बात का उ ेख िकया जा सकता है, जो यह स करती
ह िक भारत का अंत र िव ान िकतना उ त था! जबिक कूल म उनके
बारे म कोई श ा नह दी जाती है।
यूनानी लोग को िमला भारतीय क खोज का ेय
यह बड़ा िवडंबनापूण है िक इन सभी खोज का ेय ीक या यूनानी लोग
को िदया जाता है, जबिक वा तव म वे महान् भारतीय िव ान् आयभट क
खोज ह। आयभट ने सबसे पहले यह स िकया िक पृ वी अपनी धुरी पर
घूमती है। आयभट ने ही सबसे पहले पाई का मान 3.1416 बताया था।
उ ह ने गणना करके बताया िक पृ वी क प र ध करीब 39,736
िकलोमीटर है। आज के वै ािनक पृ वी क प र ध को 40,075 िकलोमीटर
बताते ह। यह िदखाता है िक आयभट क गणना वा तव म िकतनी सटीक
है! अंत र के बारे म ाचीन भारत का योगदान इतना अ धक है िक
वतमान भारत का योगदान उसक तुलना म बहुत ही तु छ लगता है।
ाचीन भारत के ग णत अकसर अपने ग णतीय ान का उपयोग
खगोलीय घटनाओं क सटीक भिव यवाणी के लए करते थे। इसम सबसे
मह वपूण आयभट थे, जनक पु तक है—‘आयभटीय’। इसम त कालीन
खगोलीय ान के अनेक स ांत का वणन िकया गया है। उ ह ने सबसे
पहले बताया िक पृ वी गोल है, अपने अ पर घूणन करती है और सूय के
चार ओर एक क ा म ग त करती है। उ ह ने सूय हण और चं हण के
बारे म भी बताया, जसम उनके िदन क सं या और पृ वी और चं मा के
बीच क दरू ी क गणना भी शािमल है।
आयभट के ंथ

े े
आयभट के लखे तीन ंथ आज भी उपल ध ह—‘दशगी तका’,
‘आयभटीय’ और ‘तं क जानकारी’।
जानकार के अनुसार, उ ह ने और एक ंथ लखा था—‘आयभट
स ांत’। इस समय उसके केवल 34 ोक ही उपल ध ह। उनके इस ंथ
का सातव शतक म यापक उपयोग होता था। लेिकन इतना उपयोगी ंथ
कैसे लु हो गया, इस िवषय म कोई िन त जानकारी नह िमलती है।
उ ह ने ‘आयभटीय’ नामक मह वपूण यो तष ंथ लखा, जसम
वगमूल, घनमूल, समानांतर ेणी तथा कई कार के समीकरण का वणन
है। उ ह ने अपने ‘आयभटीय’ नामक ंथ म कुल 3 पृ म समा सकनेवाले
33 ोक म ग णत िवषयक स ांत और 5 पृ म 75 ोक म खगोल-
िव ान िवषयक स ांत तथा इसके लए यं का भी वणन िकया है।
‘आयभटीय’ आधुिनक समय म भी अ त व म है। ‘आयभटीय’ के
ग णतीय भाग म अंकग णत, बीजग णत, सरल ि कोणिम त और गोलीय
ि कोणिम त शािमल ह। इसम सतत भ (Continued Fractions), ि घात
समीकरण (Quadratic Equations), घात ंखला के योग (Sums of Power
Series) और याओं क एक ता लका (Table of Sines) शािमल ह।

‘आय स ांत’, खगोलीय गणनाओं पर एक काय है, जो अब लु हो


चुका है, इसक जानकारी हम आयभट के समकालीन वराहिमिहर के
लेखन से ा होती है। साथ-ही-साथ, बाद के ग णत और िट पणीकार
के ारा भी िमलती है, जनम गु और भा कर शािमल ह।
आयभटीय
आयभट के काय के िववरण सफ ‘आयभटीय’ से ही ात ह।
‘आयभटीय’ नाम बाद के िट पणीकार ने िदया है। आयभट ने वयं इसे
नाम नह िदया होगा! यह उ ेख उनके श य भा कर थम ने ‘अ मकतं
या अ माका’ के लेख म िकया है। इसे कभी-कभी आय-शत-अ (यानी
आयभट के 108)—जो िक उनके पाठ म छं द क सं या है, के नाम से भी
जाना जाता है। यह सू सािह य के समान बहुत ही सं शैली म लखा
गया है। यहाँ हर पंि एक जिटल णाली को याद करने के लए मदद
करती है। इस कार अथ क या या िट पणीकार क वजह से है। समूचे
ंथ म 108 छं द ह, साथ ही प रचया मक 13 इसके अलावा ह, इस पूरे ंथ
को िन न चार पद अथवा अ याय म िवभा जत िकया गया है—
1. गी तकपाद (13 छं द) : समय क बड़ी इकाइयाँ—क प, म वंतर, यगु ,
जो ारं भक ंथ से अलग एक ांड िव ान तुत करते ह, जैसे िक
लगध का वेदांग यो तष, (पहली सदी ईसवी पूव। इनम जीवाओं
(साइन) क ता लका या भी शािमल है, जो एक एकल छं द म तुत है।

े ौ े े
एक महायगु के दौरान ह के प र मण के लए 4.22 िम लयन वष क
सं या दी गई है।
2. ग णतपाद (33 छं द) : इसम े िम त ( े यवहार), ग णत और
यािम तक ग त, शंकु/छायाएँ (शंकु-छाया), सरल, ि घात, यगु पत और
अिन त समीकरण (कु क) का समावेश है।
3. कालि यापाद (25 छं द) : इसम समय क िव भ इकाइयाँ और िकसी
िदए गए िदन के लए ह क थ त का िनधारण करने क िव ध है।
अ धक मास क गणना के िवषय म (अ धकमास), य- त थयाँ। स ाह
के िदन के नाम के साथ, एक सात िदन का स ाह तुत करते ह।
4. गोलपाद (50 छं द) : इसम आकाशीय े के यािम तक/ि कोणिमतीय
पहलू, ां तवृ , आकाशीय भूम य रेखा, आसं थ, पृ वी के आकार,
िदन और रात के कारण, तज पर रा शच ीय संकेत का बढ़ना आिद
क िवशेषताएँ दी गई ह।
वेद का ान
आज दिु नया म सबसे पहले सौरमंडल क प रक पना का ेय
‘कोपरिनकस’ को िदया जाता है। जबिक ऋ वेद म यह उ ेख िकया गया है
िक सूय क ीय थ त म है और अ य सभी ह उसक प र मा करते ह।
ऋ वेद म कहा गया है िक सूय अपनी धुरी पर चार तरफ घूमता है, जबिक
पृ वी और अ य ह उसके चार ओर आकषण शि के कारण घूमते ह,
य िक सूय उनसे बहुत बड़ा है। यह सभी इस तरह से यव थत ह िक
एक-दस ू रे से कभी टकराते नह ह।
काश क ग त क खोज
14व सदी के एक वैिदक िव ान् यान ने एक बार कहा था, “म सूय को
आदर से नमन करता हूँ, जो 2202 योजन को आधा िनिमष म तय करता
है।” एक योजन 9 मील का होता है और एक िनिमष 16/75 सेकंड का होता
है। इस तरह 2,202 योजन x 9 मील x 75/8 िनिमष = 1,85,794 मील
त सेकंड या 2,99,000 िकलोमीटर त सेकंड होता है। यह
आ यजनक प से वै ािनक ढंग से स 3,00,000 िकलोमीटर त
सेकंड क गणना के बराबर है। यह माना जा सकता है िक इसका भी ोत
ऋ वेद ही है।
पृ वी क क ा क गणना (700 ईसा)
भारतीय खगोलशा ीय ंथ ‘सूय स ांत’ 700 ईसा पूव से 600 ईसवी
के बीच लखा गया था। इसम कहा गया है िक पृ वी सूय क क ा म 365.2
563627 िदन म एक प र मा पूरी करती है। यह आधुिनक गणना से
े े ै
सािबत समय 365.256363004 से 1.4 सेकंड अ धक है। यह 1,000 वष
पहले दिु नया भर म क गई सभी गणनाओं म सबसे सटीक है।
पृ वी और सूय के बीच क दरू ी क सही गणना
‘हनुमान चालीसा’ म पृ वी और सूय के बीच क दरू ी को सही ढंग से
आँ का गया है—
जुग (यगु ) सह जोजन (योजन) पर भानु,
ली यो तािह मधुर फल जानू।
इन पंि य को उस मौके के लए कहा गया है, जब हनुमान ने सूय को
एक फल समझकर िनगल लया था। लेिकन यिद इन पंि य क वै ािनक
ढंग से या या क जाए तो इसम सूय से पृ वी क दरू ी क गणना सही ढंग
से क गई है—
1 यगु = 12,000 साल
एक सह यगु = 1,20,00,000 साल
एक योजन = 8 मील
अब अगर पहले तीन श द यगु , सह , योजन को देखा जाए तो यह
12,000 x 1,20,00,000 x 8 = 9,60,00,000 मील या 15,36,00,000
िकलोमीटर के बराबर होती है। यह दरू ी पृ वी से सूय क वतमान म
मा णत 15,20,00,000 िकलोमीटर क दरू ी से केवल 1 तशत क ुिट
िदखाता है।
वेद म हण का कारण
वेद ने हण से डरने के बजाय उसक या या क
जब पूरी दिु नया म हण के लगने पर डर और उससे जुड़े अनेक
अंधिव ास फैले हुए थे, वेद ने उसक वै ािनक या या क । इससे यह
स होता है िक वे जानते थे िक चं मा का अपना वयं का काश नह है।
ऋ वेद 5.40.5 सू
“हे सूय, जब चं मा को उपहार म देनेवाले आपके काश को पृ वी वयं
ही रोकती है तो अचानक छानेवाले अँधेरे से पृ वी भयभीत हो जाती है।”
ाचीन भारतीय ने एक वष क लंबाई को मापने के लए 4 तरीक —
न , सवाना, चं और सौर का इ तेमाल िकया। सौर, उ ण-किटबंधीय
रा शय पर आधा रत एक िव ध थी, जो ऋतुओ ं को प रभािषत करती है।
यह छह ऋतुओ ं के संबध ं म िवषुव, सं ां त, अयनांत और महीने क
ो े ै ै ौ
अवधारणा को पेश करती है। अिव सनीय लग सकता है, सौर यव था म
एक वष क लंबाई ठीक 365 िदन, 6 घंटे, 12 िमनट और 30 सेकंड होती
है।
यूरोप से तुलना
कोपरिनकस (1473-1543 ई.) के पहले तक यूरोप म टालमी और
बाइबल का पूरी तरह से गलत ांड स ांत च लत था। जबिक पाँचव
शता दी म ही भारतीय खगोलशा य ने जान लया था िक पृ वी गोल है
और अपनी धुरी पर घूमती है। ाचीन भारत के कई वै ािनक ने अंत र
के अनेक बुिनयादी स ांत का तपादन िकया था। इनम पृ वी के सूय के
चार ओर प र मा करने क अवधारणा, चं हण और सूय हण,
गु वाकषण बल तथा ह क ग त क गणना आिद शािमल ह।
गु काल क खोज
गु काल म िव मािद य ि तीय ने उ ैन को धरती क कालगणना का
क बनाया था। यहाँ के यो त लग को इस लए महाकाल कहा जाता है,
य िक यह ठीक कक रेखा के ऊपर थत है। उ ैन को ‘मानक समय’
का क बनाकर भारतीय खगोलिवद ने पूरे देश म कई वेधशालाएँ बनाई थ
और ऐसे तंभ खड़े िकए थे, जससे सूय, चं और न क ग त पर नजर
रखी जा सके।
खगोल िव ान म महान् योगदान देनेवाले भारतीय
आयभट : महान् भारतीय खगोल वै ािनक आयभट का ज म 476 ई. म
पटना म हुआ था। आयभट ने नालंदा िव िव ालय से श ा हा सल क
थी। सव थम आयभट ने ही सै ां तक प से यह स िकया था िक
पृ वी गोल है। धरती क प र ध अनुमानत: 24,835 मील है। पृ वी अपनी
धुरी पर घूमती है, जसके कारण रात और िदन होते ह। इसी तरह अ य ह
भी अपनी धुरी पर घूमते ह, जनके कारण सूय और चं हण होते ह।
उ ह ने बताया िक चं मा म अपना काश नह है, वह सूय के काश से
चमकता है।
आयभट के सूय और चं मा के हण के स ांत और ‘सूय स ांत’
िवशेष प से मह वपूण ह। आयभट ारा िन त िकया ‘वषमान’ ‘टॉलमी’
क तुलना म अ धक वै ािनक है। आयभट के यास ारा ही खगोल
िव ान को ग णत से अलग िकया जा सका।
बीजग णत म भी सबसे पुराना ंथ आयभट का है। आयभट ने दशमलव
णाली का िवकास िकया। उ ह ने सबसे पहले ‘पाई’ (Pie) क क मत
िन त क और उ ह ने ही सबसे पहले ‘साइन’ (Sine) के ‘को क’ िदए।

े ो े े े े
ग णत के जिटल को सरलता से हल करने के लए उ ह ने ही
समीकरण का आिव कार िकया, जो पूरे िव म यात हुआ। एक के बाद
यारह शू य जैसी सं याओं को बोलने के लए उ ह ने नई प त का
आिव कार िकया। बीजग णत म उ ह ने कई संशोधन, संवधन िकए और
ग णत यो तष का ‘आय स ांत’ च लत िकया।
आयभट ने ‘आयभट स ांत’ नामक ंथ क रचना क । इस ंथ म
रेखाग णत, वगमूल, घनमूल जैसी ग णत क कई बात के अलावा
खगोलशा क गणनाएँ और अंत र से संबं धत बात का भी समावेश है।
आज भी ‘ हद ू पंचांग’ तैयार करने म इस ंथ क मदद ली जाती है।
आयभट ने सूय से िविवध ह क दरू ी के बारे म बताया है। वह आजकल
के माप से िमलता-जुलता है। आज पृ वी से सूय क दरू ी लगभग 15 करोड़
िकलोमीटर मानी जाती है। इसे ‘AU’ (Astronomical Unit) कहा जाता है।
वराहिमिहर : गु काल के एक अ य महान् खगोल वै ािनक और
आयभट के श य वराहिमिहर इ तहास म पहले यि थे, ज ह ने बताया
िक सभी व तुओ ं का पृ वी क ओर आक षत होना िकसी अ ात बल के
कारण होता है। सिदय बाद ‘ यूटन’ ने इस अ ात बल को ‘गु वाकषण
बल’ नाम िदया।
वराहिमिहर का ज म ईसवी 499 म उ ैन के समीप किपथा गाँव म हुआ
था। वराहिमिहर ने यो तष शा का ान ा िकया था। उनक मृ यु
ईसवी सन् 587 म हुई थी।
गु : भारतीय खगोल िव ान म गु का भी काफ मह वपूण
योगदान है। इनका कायकाल सातव शता दी से माना जाता है। वे खगोल
िव ान संबधं ी गणनाओं म संभवत: बीजग णत का योग करनेवाले भारत
के सबसे पहले महान् ग णत थे। इ ह ने िव भ ह क ग त और थ त,
उनके उदय और अ त तथा सूय हण क गणना करने क िव धय का
वणन िकया है। गु का ह का ान ‘ य वेध’ (अवलोकन) पर
आधा रत था। इनका मानना था िक जब कभी गणना और वेध म अंतर
पड़ने लगे तो वेध के ारा गणना शु कर लेनी चािहए।
भा कराचाय : गु के बाद खगोल िव ान म भा कराचाय का िव श
योगदान है। इनका समय बारहव शता दी था। खगोलिव के प म
भा कराचाय अपनी ‘ता का लक ग त’ क अवधारणा के लए स ह।
इससे खगोल वै ािनक को ह क ग त का सही ान ा करने म मदद
िमलती है। भा कर ने एक तो गोले क सतह और उसके घनफल को
िनकालने के स ांत को तपािदत िकया था। बाद म इसे जमन
यो त वद ‘केपलर के िनयम’ के नाम से दिु नया म जाना गया।

ो ो ो
खगोलशा म भारतीय योगदान को मा यता य नह िमली?
खगोलशा म जतना भी िवकास हुआ है, जन जानका रय और
सूचनाओं ने खगोल िव ान का आधार बनाया है, उसम भारतीय लोग को
उनक खोज का ेय नह िदया जाता है। खगोलशा म वराहिमिहर और
आयभट का जतना भी काम है, उन सभी को यूनानी भूगोलवे ाओं और
खगोलिवद या िव के िकसी अ य िह से म डाल िदया गया है। यह सोचने
म अजीब लग सकता है, लेिकन इसका कारण भारतीय इ तहास खुद रहा
है। भारतीय इ तहास संगिठत नह रहा है। यह इस लए था, य िक
भारतीय इ तहास को िव भ ोत से लया गया था। ऐसा नह था िक
भारत नाम का कोई देश हमेशा से रहा है, जसका इ तहास िकसी एक
यि ने लखा!
भारत के सभी िह स क अलग-अलग ांतीय पहचान थी। सभी करीब-
करीब अलग-अलग रा थे। सभी क अलग-अलग अ मता थी और अगर
उनका इ तहास लखा भी गया तो सभी का अलग-अलग इ तहास लखा
गया। साथ-ही-साथ यह भी मह वपूण रहा है िक भारत म लखने क उतनी
परंपरा नह थी। भारत म वा य परंपरा अ धक थी। साथ-ही-साथ यहाँ के
लोग कहानी कहने, कहानी गढ़ने म अ धक िव ास रखते थे। इस कारण से
जतनी भी ान क बात आगे बढ़ , वे केवल कहानी, किवता के प म
आगे बढ़ती रह और ल खत प म आगे नह बढ़ । अगर भारत म िकसी
का ल खत इ तहास है, तो वह क मीर का और वह भी केवल
‘राजतरंिगणी’ के कारण रहा है। कमोबेश 1200 ई. तक भारत ऐसा ही रहा।
जब भारत म यह सब हो रहा था, तभी 1200 ईसवी से भारत म मुस लम
आ मण शु हुए। मुस लम आ मण उतनी िवक सत स यता से संबं धत
नह थे, जतनी भारत क थी। अगर उनक स यता थी भी तो बहुत बबर
थी। उनका मु य काय आ मण और लूटपाट करना था। उनक स यता
बहुत िपछड़ी हुई थी। जब उ ह ने देखा िक भारत म ान-िव ान, सं कृ त
बहुत आगे है तो उ ह ने इससे संबं धत सभी थान को तोड़ना शु कर
िदया। उनसे जुड़े लोग को मारना और भवन को जलाना शु कर िदया।
यह िकसी भी तरह तकसंगत नह है िक जो लोग ान के चार- सार म
लगे थे, उनक ह या क जाए! उस समय ान के एक मह वपूण शोध क
नालंदा िव िव ालय को जला िदया गया। उसक पु तक और
पु तकालय को आग लगा दी गई और वहाँ अ ययन कर रहे लोग क
ह या कर दी गई। यह िकसी भी तरह से उ चत नह था। एक तरह से वे
ान के द ु मन क तरह यवहार कर रहे थे। इसक वजह से भारत के ान
क परंपरा आगे नह बढ़ पाई। जो भी ान भारत के लोग ने बाँटा और उसे
साझा करने क को शश क है, उससे संबं धत पांडु लिप या द तावेज जला
िदए गए या बरबाद कर िदए गए। यह काल जब तक चला, तब तक मुगल
ो े ो
सा ा य थािपत हो गया। मुसलमान ने अपनी अ मता को द शत
करने के लए भारतीय सं कृ त, ान इ यािद को भरसक दफना िदया।
इसके बाद ि िटश शासन भारत म पहुँच गया। ि िटश शासन को इस
बात का अंदाजा नह था िक भारत क स यता, सं कृ त और ान-िव ान
इतना उ त होगा! इससे उनके मन म ई या, ेष और घृणा क भावना पैदा
हुई। उनको इस बात से बहुत आ य हुआ िक भारत हर े म बहुत यादा
िवक सत और समृ है। मैकाले ने खुद यह बयान िदया था िक “मने पूरे
भारत का मण िकया है, लेिकन िकसी को भी िनधन, अनपढ़ और िनर र
नह देखा। यहाँ समृ भरी पड़ी है।”
ि िटश शासन का सबसे बड़ा उ े य भारत को उपिनवेश बनाना था।
इस लए सबसे पहले उ ह ने भारत को आ थक उपिनवेश बनाया। इसका
अथ यह िक उ ह ने भारत के संसाधन का दोहन करके अपने यहाँ भेजा।
आ थक उपिनवेश बनाने के बाद उ ह ने भारत को मान सक प से गुलाम
बनाने क को शश क और बना भी िदया। मान सक गुलामी का अथ होता
है िक भारतीय भी वैसे ही सोच, जैसे ि िटश शासक उ ह सोचने के लए
े रत करते ह। उ ह ने भारतीय के मन म बहुत द तापूवक यह िवचार
डाल िदया िक ि िटश हर तरह से उनसे े ह। जैसे िक गोरा रंग े और
साँवला रंग े नह है। इसके लए उ ह ने पूरे भारतीय समाज को हेय ि
से देखना शु िकया। उ ह ने भारतीय को भी मजबूर कर िदया िक वे वयं
भी अपने आप को हेय ि से देख।
इसी घृणा के कारण उ ह ने भारतीय के उ वल अतीत के बारे म िवशेष
जानकारी उनके बीच नह फैलने दी। उ ह ने सही जानकारी को भी रोका
और इससे भारतीय के मन म यह नज रया फैला िक हम लायक नह ह
और हमसे पूरी दिु नया े है। जब यह सब चल रहा था, उस समय ि टेन
के लोग बाजारीकरण म अपनी द ता बढ़ा रहे थे। धारणा बंधन
(Perception Management) म उ ह ने बहुत बड़ी महारत हा सल कर रखी
थी। उनके इस यास म सभी प मी देश एकजुट हो गए थे, य िक उनको
लगता था िक जब तक पूरब के देश अपने बारे म जानकारी ा कर, तब
तक उनको दबाकर रखना उ चत है। इस लए उ ह ने हमेशा भारतीय को
उन सभी बात से दरू रखा, जन पर भारतीय गव कर सकते थे।
वतं ता के बाद कां ेस स ा म आई और उसक नी त भी भारतीय
अ मता, खासकर हद ू िवरासत के त उपे ापूण थी। यह नी त
जानबूझकर अपनाई गई थी या अनजाने म लागू क गई थी, इसके िवषय म
वाद-िववाद हो सकता है। कां ेस के आरं भक िदन म श ा मं ी
मुसलमान को ही बनाया गया, जैसे िक पहले श ा मं ी अबुल कलाम
आजाद और बाद म नू ल हसन। इन सभी ने योजनाब ढंग से हद ू
अ मता से संबं धत भारतीय इ तहास क गाथाओं को दबाने का काम
िकया।
उ ह ने ाचीन हद ू भारत, वा तिवक भारत क बहुत सी सूचनाएँ
िनकाल द , उनक अवहेलना क और उनका तर कार भी िकया। उ ह ने
यह सुिन त िकया िक ऐसी सूचनाएँ , जनसे भारतीय गौरवा वत महसूस
कर, उनका िकसी भी पा यपु तक म उ ेख नह हो। उनको पा यपु तक
से पूरी तरह बाहर कर िदया गया। इसका सबसे बड़ा माण यह है िक भारत
क सबसे भ य धरोहर हंपी िवजयनगर रा य क राजधानी रही है। वहाँ
िकल से लेकर मंिदर के एक बड़ी ंखला है। लेिकन पूरी दिु नया म
ताजमहल को ही भारत क धरोहर के प म चा रत कर िदया गया। िद ी
म उ ह ने लोदी काल का मिहमामंडन िकया, जबिक उनका शासन मु कल
से 30-40 साल ही था।
कां ेस क नी त थी िक भारत के लोग अपने इ तहास को लेकर कभी भी
गौरवा वत महसूस न कर सक, खासकर हद ू हमेशा हीनभावना म सत
रह। यह नी त लगभग 60-70 साल तक लगातार चलती रही। कां ेस के
कुछ धानमंि य , जैसे—लालबहादरु शा ी, नर स हा राव ने इससे
िनपटने क को शश क , लेिकन बहुत हद तक सफल नह हो पाए।
लालबहादरु शा ी, नर स हा राव, अटल िबहारी वाजपेयी, नर मोदी क
सरकार रा वादी सरकार ह, जनका भारतीयता के त झुकाव रहा। इनके
लए रा पहले है, रा का ान, ग रमा और जनसे रा ेरणा ले सकता
है, वह सबसे पहले है। इ ह ने यह देखने का यास िकया िक भारत क जो
वा तिवक धरोहर ह, वे य आज अछूती रह गई ह? य उनके बारे म
कोई बात नह करता। अब उ ह ने भारतीय इ तहास को उजागर करना
शु कर िदया है। इस यास से अब वे सारी बात मालूम होनी शु हो गई
ह, जो पहले छपी हुई थ । तभी हम यह मालूम चलना शु हो गया है िक
हमारी ग रमा कैसी थी, हम कैसे थे? यह ज री नह है िक हम आज भी
वैसे ही ह , लेिकन इसक कमी से हमारे नज रए म कुछ तो फक पड़ा ही
होगा। नज रए म फक यह पड़ा िक हम लोग ने खुद को हीन समझना शु
कर िदया। यह सही है िक भारतीय के बारे म िवदे शय का जो नज रया है,
उसे बनाने म भारतीय लोग खुद ही उ रदायी रहे ह। लेिकन यह सच है िक
हमारा खगोलशा , हमारी धरोहर कभी ऐसी थ , जैसी िक िव म िकसी के
पास नह थ । िव के साथ ही भारतीय के ारा भी इसक अवहेलना क
गई।
भारतीय कभी भी बेईमान, अ मतािवहीन, अस य, अभ और वाथ ,
चापलूस नह थे। जस समृ को भारतीय ने देखा है, उसे संभवत: अब
िव म कभी भी नह देखा जाएगा। जस ान क गंगा से वह गुजरे ह, वह
आज भी िव ान, अ या म, दशन और मान सकता को रोशन कर रहा है
और अगर नह भी कर रहा है तो भारत के आज के नाग रक उ रदायी ह।

अ याय 3
अंत र क या ा और यान
अं त र बहुत ही खतरनाक जगह है, यहाँ कभी भी कुछ भी हो सकता
है। िफर भी हम इनसान पागल क तरह इस जगह, इस थान पर फतह
हा सल करने क वािहश रखते ह। हमने अपनी सीमाओं को लाँघकर कई
बार खतर से भरे इस अंत र म खतरनाक िमशन पूरे िकए ह, जनम
काफ बार हम सफलता िमली है, तो कई बार हमने मुँह क खाई है। इसके
लए हमने अंत र म कई मशीन , उपकरण , यान , जानवर और इनसान
को भी खोया है। आज हम दोबारा चाँद पर जाने क सोच रहे ह, मंगल पर
िमशन आयो जत कर रहे ह और पृ वी से सैकड़ िकलोमीटर दरू
इंटरनेशनल पेस टेशन म हर व कोई 6 लोग क जनसं या भी हमेशा
मौजूद रहती है। यह सब मुमिकन हो पाया है, अपनी जान जो खम म
डालकर अंत र म सबसे पहले जानेवाले कुछ वॉलंिटयस क वजह से
और इसका सबसे अ धक ेय यारे जानवर को जाता है।
अंत र क या ा सबसे पहले जानवर ने क
यह ऐसा दौर था, जब इनसान अंत र म जाने के लए बेताब थे। इसके
लए उसने इनसान को भेजने से पहले जानवर को भेजकर परी ण िकया।
इस िमशन का मकसद यह जानना था िक या बाहरी अंत र (Outer
Space) म कोई इनसान जदा रह सकता है या नह ? इसके लए सी
वै ािनक ने मॉ को क सड़क से एक 3 साल क ‘लाइका’ नाम क
कु तया को उठाया और उसे श त करके अंत र म भेजा। इससे पहले
कुछ क ट और ‘अ बट’ नाम के एक बंदर को भी अंत र म भेजा गया
था, लेिकन उनक या ा केवल पृ वी क सब-ऑ बटल सीमा तक ही
सीिमत थी।
3 नवंबर, 1957 को लाइका को पुतिनक-2 नाम के रॉकेट म बैठाया
गया। लाइका को या मालूम था िक वह िकस योग का िह सा बनने जा
रही है? पुतिनक-2 यान म ऑ सीजन जेनरेटर, कॉबन ए जॉवर, खाना
और वह हर चीज थी, जो एक कु े को एक ह ते तक जदा रखने के लए
चािहए थी। यान सफलतापूवक लॉ िकया गया, लेिकन तकनीक खराबी
क वजह से उसका एक िह सा अलग नह हो पाया। इस वजह से इसके
अंदर का तापमान इतना बढ़ गया िक लाइका उसे सह नह पाई। वह गरमी
से लगातार जूझती रही और आ खर म बढ़ते तापमान ने लाइका क जान
ले ली। लाइका क मौत के बाद लगभग साढ़े 5 महीन तक वह यान पृ वी
े औ ै े े
के च र लगाता रहा और अंत म 14 अ ैल, 1958 के िदन यान पृ वी के
वायम ु ड
ं ल म दा खल होते ही लाइका के साथ जलकर खाक हो गया। उसके
बाद पूरे िव के लोग ने लाइका के त संवेदना जताई। स क सरकार
ने लाइका को स मान देते हुए उसक तमा बनवाई। कहा जाता है िक 60
के दशक म स ने 57 कु को योग के लए अंत र म भेजा था। इनम
कई मारे गए तो कुछ वापस भी आए थे और जो वापस आए थे, उ ह दोबारा
पेस म भेजा गया था। िव क आलोचना से बचने के लए स ने अपने
सारे िमशन जािहर नह िकए थे।

पुतिनक-2 रॉकेट म बैठी लाइका। लाइका पहली जंतु थी,


जसे अंत र म भेजा गया।

लाइका के जैसी ही एक और कहानी है—हाम चपजी क । 60 के दशक


म अमे रका िकसी भी मामले म स से पीछे नह रहना चाहता था। इस लए
उसने भी अपने कई अंत र िमशन आयो जत िकए। कैम न म जनमे हाम
चपजी को कुछ लोग ने उसक माँ से छीनकर िमयामी के एक चिड़याघर
म बेच िदया था।

हाम चपजी भी उछल-कूदकर अंत र म चला गया। हाम अब अमर हो गया है।
अंत र यान म बैठे हाम चपजी। भारत के अरबप तय को अंत र म जाना नसीब नह है और यह
साहब अंत र हो आए।

उसके बाद उस चपजी को वहाँ से अमे रक वायस ु ेना ने खरीद लया


और 1959 म इसे हैलोमैन एयरबेस पर लाया गया, जहाँ हाम जैसे कई सारे
और चपजी थे। यहाँ इन बंदर पर मनोिव ान म इवान पावलो ारा
िवक सत क गई मनोवै ािनक तकनीक और ा सकल कंडीश नग पर
आधा रत योग िकए जाते थे।
हाम इन योग म सबसे अ छा करने लगा था और इस लए वै ािनक ने
इसे बड़े िमशन के लए तैयार िकया। यह िमशन अंत र म जाने का था
और िमशन का मकसद यह जानना था िक बाहरी अंत र म पृ वीवासी
ाणी अपनी दैिनक ग तिव धयाँ कर सकते ह या नह ?
इस िमशन म हाम को ‘पिनशमट एं ड रवाड’ क टे नक का उपयोग कर
पेस सूट पहनना, ा ट म रहना और ॉ ट म जदा बचे रहने क हर
तरक ब सखाई गई। हाम ने भी बड़ी श त से हर वह चीज सीखी और क ,
जो उसक टे नग का िह सा थी।
31 जनवरी, 1961 को हाम को अंत र म भेजा गया। बाहरी अंत र म
थोड़ी देर रहने के बाद हाम के यान का कै सूल अलग होकर पृ वी क ओर
मुड़ा और अंटाकिटक महासागर म उसक ै श ल डग (Crash Landing) हुई।
हाम िफर भी जीिवत था। उसे केवल थोड़ी सी चोट लगी थी। हाम अब
स हो गया। बाद म जब हाम िकसी काम का नह रहा, तो वायस ु ेना ने
उसे वा शगटन के एक चिड़याघर को दे िदया। वहाँ उसे एक पजरे म रखा
गया और करीब 17 साल के बाद उसक मौत हो गई।
अब मनु य क बारी थी
अंत र यान म बैठे यूरी गाग रन क तसवीर। यूरी गाग रन पहले अंत र या ी बने।
अगर लाइका और हाम अंत र नह गए होते तो यूरी का जाना मु कल था।

क ट, चूहे, कु े और चपजी को अंत र म भेजने के बाद अब इनसान


को भेजने क बारी थी। सोिवयत स ने जब अंत र या ी बनने के
श ण के लए आवेदन माँगे तो 3 हजार से यादा आवेदन आए, जनम
से यूरी गाग रन भी एक थे। गाग रन के साथ केवल 20 लोग को चुना गया।
अंत म यूरी गाग रन का चयन हुआ। इस चुनाव के लए उनके छोटे कद ने
भी अहम भूिमका अदा क । अपने छोटे कद के कारण गाग रन कै सूल म
आसानी से िफट हो जाते थे।

चं मा पर कदम रखते हुए नील आम टांग। दे खए चाँद पर अमे रक वज।

12 अ ैल, 1961 को बैकानूर कॉ मोडोम से थानीय समय के अनुसार


सुबह के 6 बजकर 7 िमनट और मॉ को के समय के अनुसार, सुबह के 9
बजकर 7 िमनट का समय इ तहास म दज हो गया, य िक पहली बार
िकसी इनसान ने अपनी सीमाओं से परे, अंत र म जाने का साहस िकया
था।
े े ँ े
उड़ान के 10 िमनट बाद वह पृ वी के ऊपरी वायम ु ड
ं ल म पहुँच गए थे।
उसके बाद पृ वी का एक च र लगाने के बाद 9 बजकर 57 िमनट पर तय
काय म के अनुसार गाग रन के कै सूल को पृ वी पर वापस लौटने का
आदेश िदया गया। वापसी को याद करते हुए गाग रन ने बताया िक यान का
बाहरी र ा कवच बहुत ही तेजी से तप रहा था और वडो से म उसक आग
क लपट को देख सकता था, जो पूरे यान को घेरे हुई थी। लेिकन मेरे या ी
कै सूल का तापमान करीब 20 ड ी से सयस था।
गाग रन रातोरात टार बन गए थे और उनको कई सारे पुर कार से
नवाजा गया। अंत र म जानेवाले वे दिु नया के सबसे पहले इनसान बने।
इस घटना के बाद कई सारे लोग अंत र म गए और इनसान ने चाँद पर
कदम रखा।
चं मा पर नील आम टांग के कदम रखने के साथ ही अंत र म एक
और उपल ध िमल गई, जो सफ िकसी देश क नह , ब क पूरी मानवता
के लए थी।
आज हम उस दौर म ह िक हम मंगल पर कॉलोनी शु करने क सोच रहे
ह।
यह सब लाइका, गाग रन और आम टांग जैसे कभी न भुलाए जानेवाले
पृ वीवा सय के कारण ही मुमिकन हो सका है।
अंत र म जाने के थान
अंत र खाली थान है, अनंत है और इस अनंतता क कोई सीमा नह
है, तो कह भी, िकसी भी थान पर न तो कोई व तु भेजी जा सकती है, न
मनु य।
कहाँ जाना है?
अंत र म जाना अब किठन काय नह रहा। हाँ, यह पता होना चािहए िक
खुद जाना है या िकसी व तु (उप ह) को भेजना है?
अगर मनु य को भेजना है तो िकसी ह या उप ह क सतह होगी या िफर
अंतररा ीय पेस टेशन (ISS) और कोई व तु (उप ह) को भेजना होगा तो
उसे कह पर लटकाना होगा।
अंत र म उप ह को लटकाया जा सकता है। जहाँ ये उप ह लटकते
हुए पृ वी क प र मा करते ह, उ ह ‘क ा’ (Orbit) कहा जाता है। क ा
क संक पना यह होती है िक यहाँ भेजी गई व तुओ ं का वेग इतना रहता है,
और इतना रखा जाता है िक वे पृ वी के गोलाकार के हमेशा समानांतर
रहते ह। यिद िकसी व तु को इतने वेग से फका जाए िक वह पृ वी के गोल
आकार के समानांतर चलने लगे तो वह िगरेगी ही नह । अंत र म आना-
औ ँ औ े
जाना और वहाँ क या ा और वापसी से जुड़ी कुछ बात ह, ज ह समझना
ज री है। जैसे, जाना कहाँ है, यान या मॉ ूल म, िकस तकनीक से जाना
है—रॉकेट, इ यािद।

अंत र क तीन क ाएँ —LEO, MEO और GEO

योजन और उ े य क ि से ऐसे कुछ िनयत थान ह, ज ह ‘क ा’


कहा जाता है।

क ाएँ (Orbits)
क ाएँ वे थान ह, जहाँ उप ह को रखा जाता है और वे पृ वी क
प र मा करते ह। उप ह क ज रत के आधार पर क ाएँ कई तरह क हो
सकती ह। एक वायय ु ान को एक ेपव (Trajectory) पर रखने के लए
एक आवेग (Impulse) क ज रत होती है, जसम यह पथ िबना िकसी ई ंधन
क ज रत के आव धक ग त (Periodic Motion) म वेश करता है। ऐसे पथ
और ऊँचाई ( ेपव ) क पहचान करने के लए यूटन के ग त के िनयम
काम आते ह। ऐसे ेपव म िवमान एक समान ग त को बनाए रखता है।
इस ेपव का पथ एक वृ (Circle), दीघवृ ाकार परवलय (Ellipse
Parabola) या अ तपरवलय (Hyperbola) होने क संभावना होती है। एक
ेपव , जो एक बंद माग (Closed Loop) होता है, उसे क ा कहा जाता है।
एक क ा म पृ वी के सबसे िनकट के बद ु को पे रजी (Perigee) कहा जाता
है और सबसे दरू वाले को एपोजी (Apogee) कहा जाता है। झुकाव को क ीय
समतल और िवषुवत तल के बीच के कोण के प म प रभािषत िकया गया
है।
पृ वी क करीबी क ा (Near Earth Orbit)

े ँ ै
पृ वी क करीबी क ा पृ वी क सतह से 400 िकमी. क ऊँचाई पर है।
NEO म आरओआरएसएस, आयभट जैसे ायोिगक उप ह पृ वी क
प र मा करते ह। इन उप ह का जीवनकाल कम होता है, य िक उ ह
पृ वी के गु वाकषण खचाव को दरू करने के लए अ धक ई ंधन का
उपयोग करना पड़ता है।
पृ वी क िनचली क ा (Low Earth Orbit)
यह पृ वी क सभी क ाओं तक पहुँचवाली और लोकि य है। ये
यादातर रमोट स सग उप ह के लए उपयोग होती ह। इस समय करीब
800 उप ह िनचली क ा म थािपत ह। इनम सबसे स इंटरनेशनल
पेस टेशन और संचार उप ह का इरी डयम नेटवक है। दिु नया के पहले
उप ह पुतिनक को ‘लो अथ ऑ बट’ म ही थािपत िकया गया था।
िनचली क ा पृ वी से 160 िकमी. क ऊँचाई से लेकर 2000 िकमी. तक
है। 160 िकमी. से नीचे िबना कृि म ट के क ीय वेग नह हा सल िकया
जा सकता है। एलईओ का क ीय वेग 7.5 िकमी./सेकंड (27,000 िकमी./
घंटा) है। ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ यह मान घटता जाता है। उप ह क
तुलना मक प से कम ऊँचाई इसे बनानेवाल और शौिकया लोग को
वैक पक लाभ देती है। इस क ा के उप ह 90-120 िमनट म पृ वी का
एक च र लगा लेते ह।
िनचली क ा ऑ बट का उपयोग संचार और इमे जग सैटेलाइट के लए
होता है। कम ऊँचाई के कारण इनसे स ल लेने और देने म अथ टेशन
और सैटेलाइट का कम समय और ऊजा लगती है। इसके साथ ही इमे जग
सैटेलाइट बड़ा और साफ च ख च सकती है।
बहरहाल, इस क ा तक पहुँच क आसानी के कारण इसने अंत र म
कचरा बढ़ाने म बहुत यादा योगदान िदया है। वा तव म इंटरनेशनल पेस
टेशन को अंत र के कचरे से बचाने के लए कई परत के कवच का
उपयोग करना पड़ता है।
म यम पृ वी क ा (Medium Earth Orbit)
म यम पृ वी क ा को म यवत गोलाकार क ा भी कहते ह। लो अथ
ऑ बट और भू- थै तक क ा के बीच का पूरा े म यम पृ वी क ा कहा
जाता है। यह पृ वी से 200 िकमी. ऊपर से शु होकर 35,786 िकमी. के
ठीक नीचे तक थत है। इस क ा के उप ह 2 से 24 घंटे म पृ वी का एक
च र पूरा करते ह।
यह क ा ुवीय इलाक म संचार और यातायात सुिवधा उपल ध कराने
म बहुत उपयोगी होते ह। इस क ा के उप ह 12 घंटे म पृ वी क प र मा
े े े
पूरी कर लेते ह। म य पृ वी क ा के यादातर उप ह संचार, यातायात
और गु वाकषण रिहत वातावरण म वै ािनक योग क सुिवधा उपल ध
कराते ह।
भू-तु यका लक क ा (Geosynchronous Orbit)
भू-तु यका लक या भू- थर क ा पृ वी के चार ओर एक प र मा
अव ध (लगभग 23 घंटे 56 िमनट और 4 सेकंड) के साथ पृ वी क घूणन
अव ध या घूमने क दर से मेल खाती है। इसका अथ है िक पृ वी क सतह
पर एक े क के लए भू- थर क ा म एक व तु एक िदन क अव ध के
बाद आकाश म िब कुल उसी थ त म लौटती है। अंत र म कोई व तु
इस क ा म पृ वी के ऊपर एक िव श देशांतर पर रहती है, य िप यह
उ र या द ण म खसक सकती है।
भू- थर या भू- थै तक क ा (Geostationary Orbit)
भू- थर क ा का एक िवशेष मामला जयो टेशनरी ऑ बट है, जो शू य
झुकाव पर एक गोलाकार जयो स ोनस ऑ बट है (जो सीधे भूम य रेखा
से ऊपर है)। भू- थै तक क ा म एक उप ह थर िदखाई देता है और
हमेशा आकाश म एक ही बद ु पर पयवे क को िदखता है।
भू- थै तक उप ह को पृ वी क घूणन ग त क िदशा म ही ेिपत
िकया जाता है। भू- थै तक उप ह के मामले म पृ वी का गु वाकषण बल
घूणन ग त के लए आव यक वरण (Acceleration) दान करने के लए
पया है। जब यह एक िन त ऊँचाई पर पहुँच जाता है तो पृ वी क ग त
के एकदम समान हो जाता है। जब उप ह एक िव श ऊँचाई पर क ा म
होता है, तो यह पृ वी के घूणन से िब कुल मेल खाएगा। यह थान पृ वी
क उ पृ वी क ा म लगभग 36,000 िकमी. ऊपर है। (भू- थर क ा क
ऊँचाई 35,786 िकमी.) चूँिक जयो टेशनरी उप ह पृ वी के घूणन का
हमेशा उसी बद ु पर अनुसरण करता है, इस लए पृ वी पर एक पयवे क
उसे लगातार ‘देख’ सकता है। इस क ा के उप ह पृ वी क प र मा
करने म 24 घंटे लगाते ह।
अंत र म पृ वी क प र मा करते हुए भू- थर क ा (Geostationary Orbit)

ुवीय उप ह क ा (Polar and Sun Synchronous Orbit)

संचार उप ह को अकसर भू- थै तक क ाओं म या भू- थै तक के


करीब क क ाओं म रखा जाता है, तािक उनके साथ संचार करनेवाले
उप ह एं टीना क थ त म बदलाव न करना पड़े। इनको आकाश म जहाँ
उप ह िदखाई देता है, वहाँ िन त थान पर थायी प से जमा िदया जा
सकता है।

ुवीय क ा, पृ वी क िनचली क ा और भू- थै तक क ा।

एक सूय तु यका लक क ा येक िदन करीब-करीब समान समय पर पृ वी के


िवषुवत को पार करती है (और रात को भी)। यह क ा िनरंतर वै ािनक पयवे ण
को सुिवधाजनक बनाती है, य िक सूय और पृ वी क सतह का कोण
िनरंतर तुलना मक प से थर बना रहता है।
एक सूय समका लक क ा या ुवीय क ा ुव पर उ र-द ण म झुका
होता है। इस क ा का एक च र पूरा करने के लए उप ह को लगभग डेढ़
घंटे का समय लगता है। चूँिक उप ह के नीचे पृ वी भी घूमती है, इस लए
24 घंटे म पृ वी क पूरी सतह उप ह के सामने से गुजर जाती है। यह 24
घंटे म पृ वी के 2 च र लगाता है। 24 घंटे क अव ध म ुवीय क ा म
प र मा करनेवाले उप ह पृ वी के अ धकांश भाग को दो बार देखगे—िदन
म एक बार और अँधेरे म एक बार। लगभग सभी उप ह, जो एक ुवीय
क ा म ह, कम ऊँचाई पर ह।

IRS-1 A ुवीय क ा म एक सूय समका लक उप ह है। यह एक िदन म पृ वी के


14 च र लगाता है। िवषुवत रेखा के 2872 िकमी. ऊपर हर अगले च र पर इसक क ा पृ वी क
सतह के प म क ओर 25.79° देशांतर िव थािपत हो जाती है।

जब िकसी उप ह म सूय समका लक क ा होती है, तो इसका मतलब है


िक इसम झुकाव और ऊँचाई के मा यम से लगातार सूय क िकरण एक
िवशेष िनयत कोण बनाए रहती ह। सूय तु यका लक क ाओं के लए, यह
एक ही थानीय सौर समय म पृ वी क सतह पर िकसी भी बद ु से गुजरता
है।
इस तरह एक सूय समका लक क ा म, जसका अथ है िक जब भी और
जहाँ भी उप ह भूम य रेखा को पार करता है, तो जमीन पर थानीय सौर
समय हमेशा समान होता है।
एक सूय तु यका लक क ा भूम य रेखा के येक िदन (और रात)
लगभग एक ही थानीय समय पर पार करती है। यह क ा सूय और पृ वी
क सतह के बीच के कोण के साथ लगातार वै ािनक िनरी ण को
अपे ाकृत थर बनाए रखने म सहायक होती है। िव ान के लए सूय
समका लक क ा आव यक है, य िक यह पृ वी क सतह पर जतना

ो े े े ो ो ै ँ ो
संभव हो सके, सूय के काश के कोण को बनाए रखता है, हालाँिक कोण
एक मौसम से दस ू रे मौसम म बदल जाएगा। इस संग त का अथ है िक
वै ािनक छाया और काश म अ य धक प रवतन क चता िकए िबना कई
वष म एक ही मौसम से छिवय क तुलना कर सकते ह; य िक ऐसे
बदलाव से प रवतन का म पैदा हो सकता है। इस तरह इस क ा के
उप ह अकसर फसल , जंगल और यहाँ तक िक वै क सुर ा क
िनगरानी जैसे अनु योग के लए उपयोग िकए जाते ह। सूय तु यका लक
क ा के िबना समय के साथ हो रहे बदलाव को मापना बहुत मु कल
होगा। जलवायु प रवतन का अ ययन करने के लए जस तरह क सुसंगत
जानकारी क ज रत होती है, उसे एक करना किठन होगा।
एक उप ह को सूय तु यका लक क ा म रहने के लए जस माग से
या ा करनी होती है, उसे Swathe कहा जाता है। चूँिक वायम
ु ड
ं ल के खचाव
तथा सूय और चं मा से गु वाकषण के प रवतन से उप ह क क ा म
बदलाव होता है, इस लए उप ह को सूय तु यका लक क ा म बनाए रखने
के लए िनयिमत समायोजन िकया जाता है।
ऊँची पृ वी क ा (High Earth Orbit)
भू- थै तक क ा से ऊपर कोई भी क ा ‘ऊँची पृ वी क ा’ कही जाती
है। ऊँची पृ वी क ा 35,786 िकमी. से ऊपर होती है। इसक िवशेषताएँ
एक बड़ी अंडाकार क ा के समान होती ह। अपनी क ा क एपोजी के
कारण एक बड़ी अंडाकार क ा को ऊँची पृ वी क ा माना जा सकता है।
इस क ा के उप ह का उपयोग हमारी पृ वी के चुंबक य े और दस ू री
अंत र ीय ग तिव धय के अ ययन के लए िकया जाता है। ऊँची पृ वी
क ा के उप ह पर दस ू री क ाओं क तुलना म वायम
ु डं लीय खचाव का
कम असर पड़ता है।
अंत र म रॉकेट कैसे छोड़ा जाता है?
अंत र म सभी थान पर व तुओ ं (Object) को थािपत नह िकया
जाता और न लटकाया जाता है। इनके लए कुछ िवशेष क ाएँ होती ह और
अगर मनु य जाता है तो वह इंटरनेशनल पेस टेशन (ISS) पर जाता है
और अगर उप ह भेजे जाते ह तो वह या तो LEO, NEO, HEO या भू- थै तक
क ा म भेजे जाते ह। इन क ाओं म भेजे जाने क कुछ िव ध,
टे नोलॉजी, कुछ ि याएँ या कुछ तरीके होते ह।
एक राॅकेट के उड़ान का म।

अंत र म कुछ भी भेजे जाने के लए एक लाॅ र (Launcher) होता है।


लॉ पैड (Launch Pad) वा तव म एक बहुत ठोस संरचना होती है। यह बहुत
यादा तापमान सहने म स म इ पात और कं ीट से बनता है। इसी
लाॅ र के ऊपर रॉकेट रखा जाता है। िफर इस पर से रॉकेट के सहारे िकसी
यान को या सैटेलाइट को अंत र म भेजा जा सकता है। अगर मनु य को
भेजना है तो एक ही यान क ज रत होगी और अगर एक उप ह (Satellite)
को भेजना है तो रॉकेट क नाक यानी बू टर काम आती है। इस पूरी िव ध
म एक लाॅ र होता है। इसी लॉ पैड के ऊपर रॉकेट को खड़ा िकया जाता
है, जो या तो यान को लेकर या उप ह मशीन को लेकर अंत र म, चं मा
पर, ISS पर या क ा म ले जाता है। रॉकेट वा तिवक प म इंजन होता है,
जो सामान, यं , या ी को ढोने का काम करता है। या लॉ करना है,
इसके िहसाब से अलग-अलग तरह के रॉकेट होते ह और अलग-अलग
तरीके से इ ह छोड़ा भी जाता है।
रॉकेट के ऊपरी भाग म, जसे ‘नोज कोन’ कहते ह, उसम सैटेलाइट या
या ी भी रहते ह। अमे रका ने इस काय के लए एक यान बनाया था, जसे
STS (Space Transportation System) कहते ह। इन सभी को ले जाकर रॉकेट
ऐसे थान पर छोड़ देता है, जहाँ से गु व बहुत ही कम हो जाता है। रॉकेट
के ऊपर क ओर जाने म उसम लगे बू टर उसक मदद करते ह। जैसे ही
बू टर का ई ंधन ख म हो जाता है, वह मु य टंक से अलग होकर नीचे िगर
जाते ह। मु य टंक अपने लोड को ऊपर क ओर ले जाता है और जहाँ
गु व और भी कम हो जाता है और खुद भी उप ह को एक थान पर
छोड़कर नीचे क ओर िगर जाता है।
अब इस ऊँचाई पर सफ उप ह बचे रह जाते ह, इंजन या रॉकेट नह ।
इन उप ह म भी बू टर लगे रहते ह, जससे िक इ ह ऊपर-नीचे, उ र-
द ण खसकाया जा सके। अब यान को उसके गंत य थान पर बहुत ही
े ै े े
सावधानी से थािपत कर िदया जाता है, जससे िक यह पृ वी से स ल
ा कर सके और स ल भी दे पाए। बाद के समय म ये सैटेलाइट पुराने
होकर खराब हो जाएँ गे और िफर इ ह न कर िदया जाएगा या नीचे सुर त
थान पर िगरा िदया जाएगा। अगर यह अंत र यान हुआ, जैसे अमे रका
का STS या कोलंिबया, उसे नीचे उतार लया जाएगा। उतरने के म म ये
यान तापमंडल से गुजरते ह और इनम आग लग जाती है। लेिकन यह यान
या कै सूल ( जसे सोिवयत संघ इ तेमाल करता है) आग से न नह होते,
य िक इनका बाहरी आवरण ऊ मारोधी टाइल से बना होता है।
कोलंिबया जैसे यान का िनचला िह सा पूरी तरह से ऐसे ही त व (Ceramic
Tiles या Carbon Composite) से बना था। यह वायम
ु ड
ं ल को पार करके नीचे
क ओर आता है और वायय ु ान क तरह उड़ते हुए जमीन के रनवे पर उतर
जाता है, जबिक कै सूल पैराशूट के सहारे नीचे िगरते ह और उनम से
अंत र याि य को िनकाल लया जाता है।
अंत र या ा या अंत र म आने-जाने क ि या के बहुत सारे अवयव
ह, त व ह और तैया रयाँ ह, जो इसको अंजाम देती ह।
सबसे पहले िकसी यान या उप ह को भेजने के लए एक लॉ पैड क
ज रत होती है। भारत म यह थान ीह रकोटा म है। सामा यत: ऐसे
सभी अंत र क और लॉ पैड महा ीप के पूव िकनार पर होते ह,
य िक पृ वी के घूणन के अनु प होने के कारण रॉकेट को यादा ट
िमलता है। ये लॉ पैड बहुत ही उ त धातु क बनी एक संरचना होती है,
जो रॉकेट को ऊ वाधर (Vertical) प म लॉ क िदशा म िटकाए रहती है।
इस लॉच पैड का आधार बहुत ही ऊ मा अवरोधक और शि शाली होता
है, जससे िक वह ेपण क गगनभेदी गजना और असीम ट को झेल
सके। इसक ऊँचाई रॉकेट क ऊँचाई से भी यादा होती है और इसके
पंखनुमा भाग रॉकेट को पकड़ने के काम आते ह।
ेपण ौ ोिगक (Launch Technology)
ेपण ौ ोिगक का मु य अवयव रॉकेट और Propulsion ( णोदन)
तकनीक होती है।
रॉकेट व तुत: इंजन होता है, जो ई ंधन को जलाकर बहुत ही अ धक
ट (Thrust) पैदा करता है। एक रॉकेट को उस रॉकेट के वजन के िहसाब
से 4 गुना अ धक ई ंधन क ज रत होती है। यिद रॉकेट िव भ चरण म
बना हो तो उसम 4-5 ई ंधन टक और बू टर लगे ह गे। अ धकांश अंत र
ेपण वाहन बहुचरणीय तरह के होते ह, जसम एक साथ तीन या चार
रॉकेट और बू टर शािमल होते ह।
रॉकेट के सभी भाग का दशन।

कई रॉकेट णा लय से संचा लत वाहन ऊ वाधर अनु म म जोड़े जाते


ह। सबसे पहले िनचला या पहला चरण व लत होता है और िफर रॉकेट
को वेग से बढ़ाता है। जब उसका ई ंधन ख म हो जाता है तो उस बद ु पर
पहला चरण रॉकेट से अलग होकर उसको हलका कर देता है। इसके बाद
दस
ू रा चरण व लत होकर रॉकेट को आगे बढ़ाता है।
रॉकेट का उपयोग अंत र यान को ग त देने के लए िकया जाता है,
य िक रॉकेट एकमा कार का इंजन है, जो पृ वी के वायम
ु ड
ं ल और
अंत र के िनवात (Vacuum) दोन म काम करने म स म है। रॉकेट ही
एकमा णोदन णाली (Propulsion System) भी ह, जो अंत र म भारी
पेलोड को उठाने के लए आव यक जबरद त शि को पैदा कर सकती है।
अंत र उड़ान म इ तेमाल होनेवाले रॉकेट जब फाय रग पैड पर खड़ा
होता है तो उसम ऊपर से नीचे तक िन न ल खत भाग होते ह—
1. नोज कोन (Nose Cone) (इंजीिनयर इसे पेलोड कहते ह)।
2. साधन अनुभाग (Instrument Section) (मागदशन अनुभाग)।
3. ई ंधन टक अनुभाग।
4. रॉकेट इंजन।
नोज कोन म अनुसंधान रॉकेट के मामले म वै ािनक उपकरण के पैकेज
शािमल होते ह। यह एक मानवयु अंत र कै सूल भी हो सकता है, जसे
पृ वी या चं मा के चार ओर क ा म जाना है।
गाइडस से शन म ऐसे उपकरण होते ह, जो रॉकेट क उड़ान को
े औ े औ े े े
िनद शत करते ह और िनयंि त करते ह और रॉकेट क उड़ान के बारे म
जानकारी जमीन तक पहुँचाते ह।
यूल टक से शन एक रॉकेट का सबसे बड़ा िह सा होता है। इस खंड म
एक टक ई ंधन रखता है और दस ू रा टक ऑ सीडाइजर रहता है, जो ई ंधन
के साथ रासायिनक ति या करके उसे जलाता है। अ धकांश तरल ई ंधन
रॉकेट म ई ंधन या तो अ कोहल या अ टा रफाइंड (Ultra Refined)
केरोसीन का तेल है और ऑ सीकारक तरल ऑ सीजन है। कुछ ई ंधन
और ऑ सीडाइजर को संयोजन म उपयोग िकए जाने पर व लत करने
क ज रत नह होती है, य िक वे संपक म आते ही जलना शु कर देते
ह। इ ह हाइपरबो लक ोपेलट (Hyperbolic Propellant) के प म जाना
जाता है। ई ंधन के तौर पर अ समेिटक डाइिमथाइल हाइडोजन (ADMH)
और ऑ सीडाइजर के प म नाइिटक ए सड का उपयोग सबसे अ धक
च लत है।
चं यान को छोड़ने के लए जस GSLVMK-3 का उपयोग िकया गया,
उसने हाइडोजन और ही लयम जैसे वलनशील ई ंधन का उपयोग िकया।
ADMH और तरल हाइडोजन को -253 ड ी सटी ेड पर रखा जाता है और
इस तापमान पर काय करने के लए ायोजेिनक इंजन का योग िकया
जाता है।
हाइडोजन और ऑ सीजन से यु ई ंधन का उपयोग अब ऊपरी चरण
के रॉकेट के लए िकया जाता है। इन रॉकेट को तरल ई ंधन रॉकेट माना
जाता है और इनम ई ंधन के लए तरल हाइडोजन ऑ सीजन का उपयोग
िकया जाता है।
नवंबर 2022 म िनजी उ म Skyroot ने िव म Launch िकया। यह रॉकेट
पूरी तरह काबन फाइबर का बना हुआ है और ई ं ◌ान के प म Liquified
Natural Gas (LNG) और Liquid Oxygen आ सीजन का उपयोग िकया गया।

ई ंधन टक अनुभाग के नीचे रॉकेट इंजन लगे होते ह, जसम रॉकेट मोटर
और पंप, टबाइन जैसे कई सहायक उपकरण शािमल ह। रॉकेट मोटर म दो
मूल भाग होते ह। एक दहन क , जहाँ ई ंधन और ऑ सीडाइजर एक साथ
आते ह और जलाए जाते ह। दस ू रा िनकास नोजल है, जसे इस तरह से
आकार िदया गया है िक दहन िव फोट उ तम संभव वेग के साथ िनकलता
है।
अ धकांश अंत र यान अंत र म िव श िमशन को पूरा करने के लए
डजाइन िकए जाते ह। इस कारण से उपयोग के लए कई अलग-अलग
कार और आकार के होते ह। इनम छोटे, मानव रिहत पृ वी उप ह से
लेकर बड़े, अ य धक जिटल यान ह, जो चालक दल के कई सद य को ले
जाने म स म ह।
जीएसएलवी एमके III ौ ोिगक
जीएसएलवी एमके III के िनचले चरण क रचना पीएसएलवी और
जीएसएलवी क स क जा चुक ौ ोिगिकय से क गई है। हालाँिक,
ायोजेिनक तीसरा चरण यानी C25 ौ ोिगक के उन त व का उपयोग
करता है, जो जीएसएलवी एमके II के ायोजेिनक ऊपरी चरण (CUS) से
भ ह। CUS एक चरणब दहन च का योग करता है। दस ू री ओर, C25
एक गैस जनरेटर च का योग करता है। गैस जनरेटर च म कम िव श
आवेग (4 तशत के म का) होता है, लेिकन यह इतना जिटल नह होता
और परी ण म कुछ हद तक लचीलेपन को संभव बनाता है।
यान का ायोजेिनक चरण जहाँ पृ वी क 600 िकमी. क ऊँचाई पर
थत िनचली क ाओं तक भारी पेलोड को ले जाना संभव बनाता है, वह
इसम जीसैट ंखला के चार टन वग के उप ह को जयो स ोनस टांसफर
क ाओं म ले जाने क भी मता होती है।
पृ वी से 605 िकमी. क ऊँचाई पर पहुँचकर जीएसएलवी एमके III ने
ि टेन के 5,200 िकलो ाम के 36 उप ह को एक-एक कर िन त क ा म
लॉ िकया। उप ह को िनधा रत क ा म लॉ करने के साथ ही यह
ेपण सफलतापूवक समा हुआ।
मह व
इस कार, इसरो क वा ण यक शाखा यू पेस इं डया ने िवदेशी मु ा
अ जत करने क िदशा म पहला कदम सफलतापूवक बढ़ा िदया है। इसरो
जहाँ एक तरफ घरेलू आव यकताओं को पूरा करने के लए काम कर रहा
है, वह दसू री तरफ उसने यावसा यक प से िवदेशी मु ा अ जत करने
का माग भी खोल िदया है। इसी म म, ‘ यू पेस इं डया’ और अंत र
िवभाग ने ि टेन क कंपनी ‘वनवेब’ के साथ 36 उप ह को नगी म लॉ
करने का समझौता िकया था। यह ेपण सफल रहा।
इस यान म पहला चरण ठोस ोपेलट ोड, साथ ही चार व यूथ ोपोलट टाप स,
दस
ू रे तरल चरण म PSLV जैसी थ त और तीसरे चरण म ायोजेिनक थ त होती है।

भारी उप ह को लॉ करने क भारत क मता के साथ अनेक


मह वपूण यावसा यक लाभ जुड़े ह। ये भारत को अरब -खरब डॉलर के
वै क उप ह ेपण बाजार का एक मह वपूण िकरदार बना देगा, जससे
भारत कम लागत म भारी उप ह लॉ करनेवाला एक िव सनीय भागीदार
बन जाएगा। इससे इसरो के लए अ त र आय अ जत करना संभव होगा।
चूँिक उप ह ेपण बाजार म आनेवाला समय भारी संचार उप ह का
होगा, इस लए, जस कार भारत ने अपने पीएसएलवी म महारत ा क
है, उसी कार उसके सामने ेपण यान के इस े म स ा करने
का ो साहन है। भारी लॉ र क मता का लाभ भिव य म भारत को
अपने मानव अंत र काय म म भी िमलेगा। यही नह , बढ़ी हुई े पण
मता से भारत अंत र क गहराई म अपनी खोज को अ धक गंभीरता के
साथ आगे बढ़ा सकेगा।
इन सारी बात को यान म रखते हुए यह कहना होगा िक एमके III को
अपनी मता को बढ़ाना ही होगा। भले ही, भारत म यह उ तम पेलोड
मता का दावा कर सकता है, लेिकन दिु नया के मानक म यह म यम भार
ले जानेवाला रॉकेट ही है। उदाहरण के लए, पृ वी क िनचली क ा तक
एमके III जहाँ 8,000 िकलो ाम ले जा सकता है, वह पेसए स के
फा कन-9 क मता 23,000 िकलो ाम क है।
रॉकेट णोदन के मूल त व (Fundamentals of Rocket
Propulsion)
े े े ो ो े ो ो
सबसे आम कार के रॉकेट रासायिनक णोदक को जलाते ह, जो ठोस
या तरल हो सकते ह। ोपेलट का दहन गरम गैस को पैदा करता है, ज ह
जेट के मा यम से रॉकेट के पीछे नोजल (Nozzle) से िनकाला जाता है।
अ य कार के रॉकेट हाइि ड स टम (जैसे ठोस ोपेलट ोड म जलाए
जानेवाले तरल णोदक) और एयर टब रॉकेट का उपयोग करते ह, जो
दहन ि या के दौरान थोड़ी हवा का उपयोग करते ह।
जो रॉकेट इंजन अंत र यान को ेिपत करते ह, वे दो मु य कार के
होते ह—ठोस णोदक रॉकेट, जो रसायन का उपयोग करते ह, जो बा द
के समान जलते ह, और तरल णोदक रॉकेट, जो अलग-अलग टक म
रखे गए तरल ई ंधन और ऑ सीडाइजर का उपयोग करते ह।
ठोस णोदक के लाभ
1. तेजी से जलता है और अ धक ट पैदा करता है, इस लए इसे ेपण
वाहन के पहले चरण म इ तेमाल िकया जाता है।
2. यह संचयन करने म आसान होता है।
3. लंबे समय तक शै फ जीवन के प म यह कम-से-कम सं ारक है।
4. ेपण वाहन को ग तशीलता दान करता है, जसे लोड िकया जा
सकता है।

एक राॅकेट का डजाइन और उसके णोदक।

ठोस णोदक के नुकसान


1. बंद करने और शु करने के लए आसान नह है।


2. प रवहन के लए भारी।
3. त यिू नट आयतन कम ट उ प करता है।
4. कभी-कभी िव फोटक भी हो सकते ह।
तरल णोदक के लाभ
1. त यूिनट आयतन अ धक ट पैदा करता है।
2. अ धक ठोस होने से कम जगह घेरता है।
3. अ धक आसानी से इंजन को बंद और शु िकया जा सकता है।
तरल णोदक के नुकसान
1. अ धक सं ारक और टोर करने म मु कल।
2. ठोस ई ंधन क तुलना म अ धक महँगा।
3. प रवहन म किठनाई।
हाइि ड रॉकेट
एक हाइि ड रॉकेट म ई ंधन ठोस होता है, अकसर एक ला टक होता है
और ऑ सीडाइजर एक तरल होता है, या तो तरल ऑ सीजन होता है या
कभी-कभी नाइिटक ए सड होता है। तरल को ई ंधन के ऊपर एक
दबाववाले कंटेनर म ले जाया जाता है, जो एक क ीय छे द से बाहर क ओर
जलता है। यह णाली तरल पदाथ के फायद के साथ ठोस (आसान
हड लग) के फायद को जोड़ती है, जसम जलने क दर को िनयंि त
करना, या तरल के वाह को पूरी तरह से रोकना शािमल है।
येक ई ंधन टक अपने साथ बू टर लेकर चलते ह, जो िक जलने के
बाद िगर जाते ह और या तो न हो जाते ह या उ ह संर त कर लया
जाता है।
रॉकेट बू टर से फैलता है जहरीला दषू ण
िकसी भी लॉ होनेवाले रॉकेट म चार बू टर होते ह, जो रॉकेट के लॉ
होने के 127 सेकंड बाद जल जाते ह। ये ल वड ोपेलट बू टर होते ह,
जो हाइपर ए कोह लक डाई नाइटोजन टेटा साइड और डाई िमथाइल
हाइडोजन का उपयोग ई ंधन के प म करते ह। जब ये बू टर नीचे िगरते ह
तो आसपास के लोग के लए बहुत खतरनाक होते ह, य िक इनसे बहुत
ही जहरीली गैस िनकलती ह। अगर िकसी भी रॉकेट से नारंगी रंग का धुआँ
िनकलता है, तो साफ है िक उसम नाइटोजन क अ धकतावाला हाइपर
ए कोह लक ई ंधन इ तेमाल िकया गया है। इस ई ंधन का उपयोग इस लए
िकया जाता है, य िक अंत र म भी इनसे बहुत यादा ताकत पैदा होती
ै े े े ौ ँ ो ै े

है। चीन म रॉकेट ेपण के दौरान दघ
ु टनाएँ होना आम है। इससे बहुत
यादा जहरीला पदाथ आसपास दषू ण फैलाने के लए िगरता है।
चीन के कई लॉ पैड उसके भीतरी इलाक म थत ह, जससे वहाँ
दषू ण को ज दी ख म होने म भी कोई मदद नह िमलती है। इनम से कई
लॉ ग पैड स क सीमा के करीब ह, य िक जब स और चीन के
संबध ं बहुत अ छे थे तो स उसको रॉकेट ौ ोिगक म मदद कर रहा था।
स क सीमा के करीब ये सारे थान उनके लए बहुत सुिवधाजनक थे।
सोिवयत संघ से चीन के मनमुटाव के बाद वे अपने रॉकेट लॉ ग थल
को दरू के पहाड़ी इलाक क तरफ ले गए, जससे मानव आबादी पर
उनका भाव न पड़े। दिु नया म केवल अब चीन ही ऐसा देश है, जो अपने
बू टर को िगराने के लए जमीन का उपयोग करता है। िन य ही पहले स
भी ऐसा ही करता था, जसके सोयज ु रॉकेट के बू टर जमीन पर िगरते थे
और मजेदार बात थी िक उनको रसाइिकल करने का उ ोग भी काफ
बड़ा था।
ये बू टर एक तरह के ई ंधन टक होते ह, जो अंत र से खाली होने के
बाद िगरते ह। िफर भी इनके िगरने का असर उतना हो सकता है, जैसे िक
कोई हवाई जहाज सीधे जमीन पर िगर जाए! अंत र से िगरने के बाद भी
कई मामल म इनका आकार करीब-करीब बरकरार रहता है और इनक
धातु को बहुत नुकसान भी नह होता है।
अमे रका, यूरोप और भारत अपने राॅकेट को समु के ऊपर लॉ करते
ह और उनके बू टर समु म िगरते ह। अभी तक केवल पेसए स का
रॉकेट ही है, जो वापस सुर त उतरा है। अमे रका के ए रयन फाइव
सॉ लड ोपेलट बू टर रॉकेट को ही िफर से उपयोग के लए डजाइन
िकया गया था और इसे समु म िगराकर िनकाला गया था, लेिकन इसका
कभी दोबारा उपयोग नह िकया गया।
चीन का अंत र टेशन तयांगयांग-1 िबना िनयं ण के अंत र म घूम
रहा था। कोई भी इसके सही जगह पर िगरने का अंदाजा नह लगा पा रहा
था। खराब अंत र उपकरण को िगराने का सबसे पसंदीदा थान द णी
शांत महासागर है। यहाँ से कोई भी जमीन करीब-करीब 500 िकलोमीटर
दरू है। यहाँ कोई भी ीप नह है। इस जगह पर करीब ढाई सौ अंत र
उपकरण िगराए गए ह, जसका मलबा यहाँ समु म पड़ा है। यहाँ पर
अंत र उपकरण के बहुत कम टु कड़ को िनकाला जा सका है, य िक
पृ वी के वायमु ड ं ल म वेश करते समय ये जलकर टू ट जाते ह और बहुत
हद तक न हो जाते ह। अब तक क सबसे बड़ी खोज अपोलो-12 िमशन
के रॉकेट के इंजन को समु से िनकालना है। इसे जेफ बेजोस क कंपनी ने
खोजा है। ये अब तक के बनाए गए सबसे बड़े रॉकेट इंजन थे। इनको
14,000 फ ट नीचे समु म खोजा गया था। अब तक पेसए स का केवल
े े ै े
फा कन-9 रॉकेट ही सुर त नीचे उतरकर आया है। अब हम कह सकते ह
िक रॉकेट भी सुर त ढंग से उड़कर वापस आ सकते ह।
पृ वी पर कैसे वापस आता है अंत र यान?
अंत र म भेजे जानेवाले रॉकेट दो तरह के होते ह। उप ह को ले
जानेवाले रॉकेट वापस लौटकर नह आते ह। इनका काम उप ह को
अंत र म पहुँचाने के बाद ख म हो जाता है। ये अंत र म अलग होकर
टु कड़े-टु कड़े हो जाते ह और कुछ को जमीन पर वापस बुला लया जाता है।
दसू री तरह के रॉकेट अंत र यान को अंत र म ले जाते ह और
अंत र म उसको पहुँचाने के बाद उससे अलग होकर न हो जाते ह।
इसके आगे अंत र या ी ही अंत र यान (Space Transportation System)
जैसे कोलंिबया को संचा लत करते ह। अपने शोध का समय पूरा करने के
बाद वे अपने यान के साथ वापस पृ वी के वायम
ु ड
ं ल म लौटते ह।
इन अंत र यान को पृ वी के वायम ु ड
ं ल म वेश करने पर ऊ णमंडल
(Thermosphere) को पार करना पड़ता है। वायमु ड
ं ल क यह तह, जसका
नाम ‘ऊ णमंडल’ है, इसका तापमान 1,200 ड ी सटी ेड तक होता है।
जब यान इस सतह से गुजरता है तो संपीड़न के कारण इसके अणुओ ं का
तापमान 3000-4000 ड ी सटी ेड तक बढ़ जाता है और यान आग क
लपट से घर जाता है। इससे इनके जलने का खतरा पैदा हो जाता है।
इससे बचाव के लए अंत र यान के चार तरफ आग से अ भािवत
रहनेवाले पदाथ (Ceramic Tiles) क एक अवरोधक परत लगाई जाती है।
पृ वी पर वापस आते समय यान पृ वी के समानांतर से थोड़ा ऊपर उठा
हुआ रहता है, य िक इसे बहुत यादा हवा के दबाव का सामना करना
पड़ता है। पृ वी के वायमु ड
ं ल म काफ नीचे आने के बाद अंत र यान
पृ वी के समानांतर हो जाता है और िकसी हवाई जहाज के समान रनवे पर
उतर जाता है।
रॉकेट क खतरनाक आवाज को कैसे कम िकया जाता है?
पेसए स कंपनी का फा कन हैवी रॉकेट 5.5 िम लयन पाउं ड का ट
पैदा करता है। इतना ट पैदा करनेवाले रॉकेट से बहुत यादा विन
ऊजा पैदा होती है, जो रॉकेट के लए और साथ ही आसपास क इमारत
के लए बहुत नुकसानदायक होती है। नासा के अनुसार, फा कन हैवी से
220 डेसीबल विन पैदा होती है। अगर आप ेपण के समय इंजन के
करीब ह तो यह केवल आपके कान के परदे ही नह खराब करेगी, ब क
इससे आपक मौत भी हो जाएगी। पहले पेस शटल क उड़ान एसटीएस-1
के समय उसके इंजन से िनकलनेवाले शोर ने शटल क कुछ थम टाइ स
को भी नुकसान पहुँचा िदया था। नासा ने अंत र यान को होनेवाले

ो े े ो े े
नुकसान को बचाने हेतु विन को दबाने के लए एक अलग तरह क
यव था बनाई। नासा ने इसके लए लॉ क जगह के पास बड़े-बड़े वाटर
टावर बना िदए। ये बड़े-बड़े टावर केवल 40 सेकंड के भीतर ही लॉ पैड
पर 10 लाख िम लयन पाउं ड पानी छोड़ते थे। जब विन ऊजा पानी के
संपक म आती है तो उसके बबल विन ऊजा को सोख लेते ह, जससे
विन ऊजा ताप ऊजा म बदल जाती है। इतना यादा पानी छोड़ने के
अलावा नासा पानी के बैग का भी उपयोग करती है। ये बैग शॉकवेब (Shock
Wave) को अवशोिषत कर लेते ह। ये नायलॉन के बड़े-बड़े बैग होते ह,
जसम हर बैग 1 फ ट लंबा और 1 फ ट चौड़ा होता है और इनको एक साथ
जोड़ िदया जाता है। इन दो यव थाओं क मदद से नासा रॉकेट छोड़ने के
समय पैदा होनेवाली विन ऊजा को 195 डे सबल से घटाकर 142
डे सबल के तर पर लाने म सफल होता है। यह एक जेट िवमान के उड़ने
पर पैदा होनेवाली आवाज के बराबर है। इतनी अ धक मा ा म पानी छोड़ने
से विन ऊजा अवशोिषत होती है, आसपास क इमारत सुर त रहती ह
और साथ ही रॉकेट क सुर ा होती है। इसके अलावा यह पानी लॉ पैड
पर लगनेवाले िकसी भी आग को रोकने म बहुत यादा मददगार होता है।
आज भी नासा इसी से िमलती-जुलती पानी छोड़ने क यव था का
उपयोग करता है।
दसू री तरफ सी लोग ने इस सम या से िनपटने के लए दस ू रा उपाय
िनकाला, य िक उनके कजािक तान के लॉ ग थल बैकानूर म तापमान
शू य से -40 ड ी सटी ेड नीचे तक चला जाता है। जहाँ पर पानी तुरत

जम जाएगा और यह यव था उपयोगी स नह होगी। सी लोग ने
इसका साधारण समाधान िनकाला और रॉकेट को एक लंबी े म टच के
ऊपर रखा, जससे आग और विन उसके नीचे से िनकल जाती है और
रॉकेट को कोई नुकसान नह पहुँचता। इस तरह रॉकेट साइंस म सबसे
जिटल सम याओं का हल बहुत ही साधारण ढंग से िनकाल लया गया।
यह बड़ा रोचक है िक सबसे जिटल सम याओं का समाधान िकतनी
आसान इंजीिनय रग म िनकाला जा सकता है।
अंत र म ले जानेवाले उप ह, यान और या ी
अब तक दो पहलुओ ं पर यहाँ यान िदया गया। अंत र म िकस थान
पर कुछ व तु और उप ह रखे जाते ह या छोड़े जाते ह और वह कौन सी
तकनीक है, जसके सहारे इ ह छोड़ा जा सके? इन थान पर रॉकेट या तो
उप ह लेकर जाते ह या िफर STS (Space Transportation System)।
अंत र यान (Space Transportation System—STS)
अंत र यान आमतौर पर रॉकेट, अंत र यान और संबं धत णा लय
के संपूण संयोजन को कहा जाता है, जो अंत र म एक िमशन को पूरा
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करने के लए ज री है। अ धकांश अंत र वाहन दो बुिनयादी वग , ेपण
यान (Launch Vehicle) और अंत र यान (Spacecraft) से बने होते ह। ेपण
यान म एक या एक से अ धक रॉकेट होते ह, जनका उपयोग अंत र यान
को पृ वी क सतह से क ा म पहुँचाने के लए िकया जाता है।
यिद अंत र यान पृ वी के चार ओर क ा म जाता है, तो यह एक
कृि म उप ह बन जाता है, चाहे वह मानव सिहत हो या मानव रिहत। यिद
अंत र यान को चं मा, शु या मंगल जैसे खगोलीय पड के बारे म सूचना
ा करने के लए अंत र म दरू तक भेजा जाता है तो इसे अंत र
अनुसंधान यान (Space Probe) कहा जाता है।

अंत र यान (Space Transportation System—STS)

ये पुन: उपयोगी रॉकेट लाॅ र यान होते ह, जनको पृ वी क क ा म


जाने-आने के लए डजाइन िकया गया होता है। ये पृ वी क क ा म या ी
और सामान ले जाते ह। ये पृ वी पर िवमान क तरह उतरनेवाले पहले
अंत र यान ह। औपचा रक प से इनको ‘ पेस टांसपोटशन स टम’
कहा जाता है। सबसे पहले अमे रका क अंत र एजसी नासा ने इनको
बनाया था। इसक पहली सफल उड़ान 12 अ ैल, 1981 को हुई थी।
एसटीएस म मु यत: तीन िह से होते ह—
• पंखवाले ऑ बटर, जो या ी और सामान दोन ले जाते ह।
• ऑ बटर के तीन मु य रॉकेट इंजन के लए तरल हाइडोजन ई ंधन और
तरल ऑ सीजन ऑ सीडाइजर से भरा एक बाहरी टक होता है।
ो ो ो े ै े
• एक जोड़ा बड़ा ठोस ोपेलट, टैप ऑन बू टर रॉकेट।
एसटीएस सैटेलाइट और ोब को अंत र म ले जा सकता है। यह
अंत र याि य को सैटेलाइट क मर मत के लए भी क ा म ले जा
सकता है। इससे भी यादा पेस शटल ऑ बटर क तरह काम करता है
और एक अंत र योगशाला क तरह काम कर सकता है। कुछ िन त
िमशन म यह एक िवशेष शोध सुिवधा ले जाता है, जसे ‘ पेस लैब’ कहा
जाता है, जसम िविवध कार क वै ािनक रसच क जा सकती ह।
‘कोलंिबया’ दघ
ु टना के कारण

कोलंिबया दघु टना के च : ेपण के थोड़े समय के


उपरांत ही इसके टु कड़े-टु कड़े हो गए थे।

‘कोलंिबया’ जैसे शटल क सुर ा उसक तापीय सुर ा यव था पर


िनभर करती थी। यह सुर ा यव था Carbon Composite या Ceramic Tiles
उसको शटल ऑ बटर को बचाने के लए लगाया जाता है, य िक
तापमंडल का तापमान इ पात को गलाने के लए काफ होता है। कोलंिबया
क नाक और आगे के पंख का िह सा बहुत मजबूत काबन का बना हुआ
था। शटल के अ धकांश िह से 24,300 सरेिमक टाइ स से ढके हुए थे।
इनक मोटाई अलग-अलग थी। रॉकेट ेपण के समय क गरमी और िफर
पृ वी के वायम
ु ड
ं ल म वेश करने के समय पैदा गरमी से टाइल फैलती और
सकुड़ती ह। इन टाइल म गंभीर नुकसान का मतलब घातक खतरा होता
है।
16 जनवरी को शटल के लॉ के कुछ सेकंड के भीतर ही कोलंिबया के
बाहरी ई ंधन टक से टू टकर इंसुलेशन का एक बड़ा टु कड़ा पंख क
तापरोधी टाइल पर िगरा और एक को तोड़ िदया। ये टाइल पृ वी पर पुन:
वापसी म 4,000 ड ी सटी ेड तक के तापमान से यान को सुर त रखने
का काम करती ह।
इस इंसुलेशन ने कोलंिबया के 15 मं जल ई ंधन टक के एक उस े को
नुकसान पहुँचाया, जो िक शटल से जुड़ता है। इस टु कड़े को े पण क
िफ म म भी देखा गया था, जसे िक हर लॉ पर िनयिमत प से शूट
िकया जाता है। ई ंधन टक से जो इंसुलेशन का टु कड़ा िगरा, वह एक या

ो ो
अ धक टाइल को त त कर सकता था। जब कोलंिबया शटल म आग
लगी, तो उससे पहले ही उसके बाएँ िह से खासकर के बाएँ पिहए के बीच
क खाली जगह का तापमान बहुत यादा बढ़ गया था। कोलंिबया शटल म
आग इसी गरमी के कारण लगी और जसम क पना चावला का देहावसान
हो गया।
उप ह या होता है?
यह एक कृि म उप ह, एक मानव िन मत उपकरण है, जसे कुछ
िनधा रत ग तिव धय के समूह को करने के लए तैयार िकया जाता है। इसे
पृ वी या िकसी अ य ह के चार ओर एक क ा म तैनात िकया जाता है।
उप ह के उ े य के आधार पर इसे संचार उप ह, मौसम उप ह, नेिवगेशन
उप ह, पृ वी अवलोकन उप ह, वै ािनक उप ह, सै य उप ह आिद के
प म बाँटा जा सकता है—
उप ह के कार
1. खगोलीय उप ह (Astronomical Satellite)
2. जैव उप ह (Bio Satellite)
3. संचार उप ह (Communication Satellite)
4. पृ वी िनगरानी उप ह (Earth Monitoring Satellite)
5. नेिवगेशन उप ह (Navigation Satellite)
6. मारक उप ह (Killer Satellite), जैसे-ए-सैट
7. या ी अंत र यान (Crewed Spacecraft)
8. छोटे उप ह (Miniaturized, Micro Satellite)
9. टोही उप ह (Reconnaissance Satellite)
10. रकवरी उप ह (Recovery Satellite)
11. अंत र टेशन (Space Station), जैसे-ISS
12. मौसम उप ह (Weather Satellite), जैसे-मेटसैट
13. टीथर उप ह (Teather Satellite)
14. रमोट स सग उप ह (Remote Sensing Satellite)
संचार उप ह यव था (Communication Satellite System)
अगर आप इस पु तक को पढ़ रहे ह तो इसम क यिु नकेशन सैटेलाइट

ो ै े े ै ो
का उपयोग हुआ है, अगर आपने इसे ऑनलाइन खरीदा है, तो
क यिु नकेशन सैटेलाइट का उपयोग हुआ, अगर आप ऑनलाइन कोई भी
काम करते ह, मोबाइल का उपयोग करते ह, अपने िटकट बुक कराते ह,
टेलीिवजन देखते ह, गाड़ी म बैठकर िकसी थान पर जीपीएस लगाकर
जाते ह, सभी प र थ तय म आप क यिु नकेशन सैटेलाइट का उपयोग
करते ह। जब कोई मौसम क भिव यवाणी करता है, जब कोई घर पर
टी.वी. देख रहा होता है, तो वह क यिु नकेशन सैटेलाइट का उपयोग करता
है। उप ह के िबना जीवन नह है, अगर यह उप ह बंद हो जाएँ तो जीवन
ठप हो जाएगा।
इतना ही नह , सुदरू संवेदन उप ह यह बताते ह िक हवा म िकतनी धूल
है, िकतना पानी है, जमीन के नीचे िकतना पानी है, समु म मछ लयाँ कहाँ
पाई जाएँ गी, फसल कैसी है, इसम रोग तो नह लगा, खिनज कहाँ िमलगे
और कहाँ िमलेगा पेटोल, यह सब रमोट स सग उप ह बताते ह।
अंत र के इन उप ह क बदौलत हमारा जीवन पृ वी पर सुखमय हो
पाता है। दो मु य कार के उप ह क ंखला भारत म इनसैट और
आईआरएस ंखला के प म जानी जाती है।
संचार उप ह (Communication Satellite)
क यिु नकेशन सैटेलाइट पृ वी से स ल लेते ह, िफर उसक शि को
कई गुणा बढ़ाकर िफर से पृ वी पर वापस भेज देते ह। इन स ल को
पृ वी के डश एं टीना रसीव करते ह और िफर वही ॉडका ट करते ह या
फैला देते ह।
इं डयन नेशनल सैटेलाइट (INSAT) यव था 1983 म थािपत क गई
थी। ए शया- शांत े म यह सबसे बड़ी घरेलू संचार सैटेलाइट यव था
है, जसम 9 चालू उप ह इनसैट-3ए, इनसैट-3सी, इनसैट-3ई, इनसैट-4ए,
इनसैट-4बी, इनसैट-4सीआर, जीसैट-8, जीसैट-10 और जीसैट-12 ह।

इनसैट और उसके सौय पैनल।

इनसैट यव था का संपूण सम वय बंधन ‘इनसैट सम वय सिम त’ के


हाथ म है।

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‘इं डयन नेशनल सैटेलाइट स टम’ (इनसैट) एक बहुउ ेशीय संचालन
सैटेलाइट यव था है। घरेलू दरू संचार, मौसम संबधं ी पयवे ण और
आँ कड़े, टेलीिवजन और रे डयो सारण सीधे सैटेलाइट से उपल ध कराए
जाते ह। टेलीिवजन काय म का िवतरण इसी पर िनभर है। यह यव था
अंत र िवभाग, संचार िवभाग, भारतीय मौसम िवभाग, ऑल इं डया रे डयो
और दरू दशन क संयु प रयोजना है।
इनसैट-1बी को सफलतापूवक क ा म थािपत करने के साथ ही 1983
म इनसैट यव था थािपत क गई। इनसैट1डी को 1991 म लॉ िकया
गया। दस
ू री पीढ़ी के दो मुख उप ह इनसैट-2ए और इनसैट-2बी देश को
मह वपूण सेवाएँ उपल ध करा रहे ह। इनसे दस
ू री ंखला के उप ह अ धक
उ त ह और उनक मता इनसैट-1 सैटेलाइट क मता से डेढ़ गुना
यादा है।
संचार उप ह के पेलोड (Payload)—टांसप डर
टांसप डर या ह?
टांसप डर को संचार उप ह म उपयोग िकया जाता है। टांसप डर
इले टॉिनक उपकरण ह, जो जमीन (अप लक) से संकेत क बीम को
हा सल करते ह और उ ह ए लीफाई (Amplify) करते ह (एक अरब गुना
बढ़ाते ह)। इसके बाद एक अलग, कम आवृ पर संकेत बीम को वापस
जमीन पर (डाउन लक) भेजते ह।
संचार उप ह के पेलोड और टांसप डर
सी-बड टांसप डर : इसका उपयोग दरू संचार सगनल को सं ेिषत करने
और देश के भीतर और बाहर भारी मा ा म उ ग त का डाटा सं ेिषत
करने के लए िकया जाता है, जससे िक देश म और िवदेश म टेली टग
और कं यटू र नेटव कग म सुधार हो। यह 12,000 टेलीफोन चैनल को एक
साथ संचा लत कर सकता है। यह हा सल स ल क वसी म बदलाव
और उनक मा ा बढ़ाता है।

ामीण टेले ाफ नेटवक आधा रत अंत र यान जसे उ र-पूव े म


पाइलट ोजे ट के प म काया वयन िकया गया।

INSAT-2C क मोबाइल अंत र सेवा

अपर ए सटडेड सी-बड टांसप डर (UXC) : साधारण सी-बड क तुलना


म यह यादा िव तृत बड कवरेज देता है।
लोअर ए सपडेड सी-बड टांसप डर (LXC) : साधारण सी-बड क तुलना
म यह सँकरी बड कवरेज देता है।
एस-बड टांसप डर : इसका उपयोग टेलीिवजन और रे डयो सारण म
होता है।
KU-बड टांसप डर : सी-बड क तुलना म इसक मता दोगुनी होती है।
उ आवृ का केय-ू बड िबजनेस नेटव कग और इंटरनेट स वस ोवाइडर
और सैटेलाइट यूज इक ा करने के लए उपयोग िकया जाता है। DTH को
यही सेवा देता है।
Charge Coupled Device Camera (CCD) : इसका रेजो यूशन 1
िकलोमीटर होता है। सीसीडी कैमरे के उ रेजो यूशन बेहतर िनगरानी,
बादल क ग तिव ध और हवा क सटीक ग त और िदशा क जानकारी देते
ह।
यह सी-बड और एस-बड
Mobile Satellite Service Transponder (MSS) :
टांसप डर सुिवधा का संयु प है। समु म जहाज , वायय
ु ान और
जमीन पर वाहन को संचार सुिवधा उपल ध कराता है।
यह मौसम क भिव यवाणी
Very High Resolution Radiometer (VHRR) :
के े म उपयोग िकया जाता है, य िक यह बादल के च , हवा क ग त
और ऊपरी वायमु ड
ं ल, समु तल का तापमान, वातावरण म आ ता आिद
क जानकारी हर 3 घंटे म देता है। इसका रजो यश
ू न 2 िकलोमीटर होता
है।
मूल प से यह एक कैन िमरर के साथ टेली कोप है, जो य और
इं ारेड वेवलथ से च ख च सकता है। VHRR 24 घंटे लगातार हर आधा
घंटे पर मौसमी थ तय का िव ेषण उपल ध कराता है, जसम समु क

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सतह के साइ ोन और बादल के तापमान भी शािमल होते ह।
भू- थै तक उप ह को क ा म कैसे रखा जाता है?
संचार उप ह को रॉकेटचा लत लॉ वाहन या बू टर के मा यम से
क ा म रखा जाता है। अ धकांश संचार उप ह भू- थै तक क ा म थत
होते ह, जसम उप ह भूम य रेखा के ऊपर लगभग 36,000 िकमी.
(22,300 मील) क ऊँचाई पर पृ वी के चार ओर एक तय प र मा पथ
पर घूमते रहते ह। अंत र िमशन का सबसे जिटल िह सा ेपण है। इसम
30 िमनट का समय और 100 तशत प रचालन द ता क ज रत होती
है। इस अव ध को ‘लॉ वडो’ (Launch Window) कहा जाता है।
भू- थै तक उप ह को क ा म रखे जाने के िव भ चरण होते ह। पहला
रॉकेट चरण, जसे ‘बू ट चरण’ के प म जाना जाता है, उप ह को
वायमु ड
ं ल से बाहर िनकालता है और इसे काफ वेग देता है। जब इसके
ई ंधन का चरण ख म हो जाता है तो यह उप ह से अलग होकर पृ वी पर
िगरकर न हो जाता है।
इसके बाद दस
ू रा चरण शु िकया जाता है, जो उप ह को 150 और 300
िकमी. (100 और 200 मील) क ऊँचाई पर एक गोलाकार पृ वी क
िनचली क ा म रखता है। दस ू रे चरण के बाद उप ह कुछ समय के लए
इस ‘पा कग’ क ा म रहता है।
उपयु समय म अगला चरण शु िकया जाता है, जसको पे रजी चरण
(Perigee Stage) के प म जाना जाता है। पे रजी िकक (Perigee Kick) उप ह
को एक अंडाकार ‘ थानांतरण’ (Transfer) क ा म पहुँचा देता है। जसम
पे रजी (पृ वी का िनकटतम बद)ु पृ वी क कम ऊँचाई पर है और एपोजी
(पृ वी से दरू का ये बद)ु भू- थै तक ऊँचाई पर है। जब उप ह थानांतरण
क ा म रहता है, तो परी ण िकए जाते ह, और उप ह क एपोजी मोटर को
चलाने के लए तैयार िकया जाता है, जसे आमतौर पर उप ह म बनाया
जाता है।
उप ह क ाएँ

ो ो ो ै े
टांसफर ऑ बट म एपोजी मोटर को चालू िकया जाता है, जससे उप ह
को भूम य रेखा के ऊपर एक गोलाकार क ा म पहुँचा िदया जाता है। तब
एं टीना और सौर पैनल को खोला जाता है और उप ह को उसक अं तम
भौ तक यव था म रख िदया जाता है।
सुदरू संवेदन उप ह (Remote Sensing Satellite)
रमोट स सग या है?
अंत र से पृ वी को देखने और महसूस करने के तरीके को आमतौर पर
‘ रमोट स सग’ कहा जाता है। इस उ े य के लए उपयोग िकए जानेवाले
उप ह को ‘ रमोट स सग उप ह’ के प म जाना जाता है। इन उप ह
को आमतौर पर 800-1,000 िकमी. क ऊँचाई पर सूय तु यकारी ुवीय
क ा (Sun Synchronous Polar Orbit) म रखा जाता है। इसे ‘ ुवीय क ा’
कहा जाता है, य िक यह उ र-द ण िदशा म पृ वी के दोन ुवीय े
के ऊपर से गुजरती है। इसे ‘सूय तु य’ कहा जाता है, य िक यह क ा
सूय क ग त और उसके कोण के साथ सामंज य बनाए रखती है। जब सूय
पूव तज के ऊपर समान ऊँचाई पर होता है, तो यह पृ वी के सूय-
काश क ओर एक िव श थान से गुजरता है। इस तरह क क ा के
साथ उप ह हर 16-22 िदन म थानीय समयानुसार लगभग 10.00 बजे
पृ वी पर उसी थान से गुजरता है।
सुदरू संवेदन उप ह एक िव श सूय कोण का सहारा लेता है और उसक
तसवीर बनती ह, जस पर अलग-अलग त प म रंग होते ह। यही रंग
भरी तसवीर, जो उसके तापमान क तसवीर होती है। िफर उससे भी
मह वपूण उसके तापमान और रंग को महसूस करते ह। इसी तापमान और
रंग क स सग इस व तु को जानने का आधार बनती है। इस तरह एक
तसवीर अ य तसवीर से उसक तुलना करती है। इसी तरह यह या या
करता है िक नीचे या है!
‘ रमोट स सग’ श द का शा दक अथ है—दरू से देखने और इक ा
करनेवाला डाटा। रमोट स सग के लए साधारण फोटो ाफ भी उपयु है।
लेिकन अ धक िव श श द म, सुदरू संवेदन पृ वी पर िव भ व तुओ ं से
पराव तत, िबखरे हुए या िवक ण होते हुए यमान (Visible), अवर
(Infrared), पराबगनी (Ultraviolet) और माइ ोवेव (Microwave) तरंग दै य म
िव ुत् चुंबक य िविकरण (Electromagnetic Radiation) क रकॉ डग और
िव ेषण के संदभ म योग िकया जाता है।
सरल श द म कहा जाए तो यह कुछ ऐसे काम करता है, पृ वी क हर
एक व तु का अपना तापमान होता है, अपना उ सजन रंग होता है, जो
उसक पहचान होती है। यह ठीक उसी तरह है, जैसे हमारे शरीर का
ो ै े े औ े ो
तापमान होता है। आम के प े का तापमान और रंग इमली से अलग होगा,
ेनाइट च ान का तापमान और रंग अ य च ान से अलग होगा। चावल
क फसल का रंग और तापमान गेहूँ से अलग होगा, गीली िम ी का रंग और
तापमान सूखी िम ी से अलग होगा। इसी तरह भूिमगत जल क
गहराईवाली सतह, खिनज भरी च ान क सतह, नगरीय िनमाण म यु
साम ी, पानी का रंग, मछ लय के रहने का थान, सतही दषू ण, रोग लगी
फसल, हरी फसल, बफ भरी सतह और उस सतह पर िकसी यि क
उप थ त, इन सभी का रंग और तापमान अलग होता है। सुदरू संवेदन
उप ह इतनी ऊँचाई से उनसे िनकलनेवाली तापमान क तरंग और रंग
को पहचान लेते ह। अपने टांसप डर और पेलोड के उपकरण ारा उप ह
महसूस कर लेता है िक नीचे कौन सा खिनज, कौन सी फसल है, पानी
िकतना नीचे या ऊपर है और िकतने आतंकवादी घूम रहे ह?
वतमान म उप ह आधा रत रमोट स सग म, ‘म टी पे टल इमे जग’
का उपयोग िकया जाता है। यानी एक से अ धक रंग म पृ वी क सतह क
एक साथ इमे जग क जाती है। िदखनेवाली और अ य दोन ही तरंगदै य
का उपयोग सामा य कैमरे से छूटनेवाली बहुत अ धक अ य जानकारी
को तसवीर के मा यम से बाहर लाने के लए िकया जाता है। दरू थ संवेदी
उप ह म उपयोग िकए जानेवाले म टी पे टल कैमरे आमतौर पर िव भ
रंग के िफ टर का उपयोग करते हुए एक ही समय पर एक ही े के चार
से छह फोटो ाफ लेते ह। िफ टर का उपयोग िव भ च ान , िम ी,
वन प त और पानी क उन अ य िवशेषताओं को अलग ढंग से सामने
लाता है, जो दस
ू रे ढंग से संभव नह है। ऐसा इस लए है, य िक जब सूरज
क रोशनी उन पर पड़ती है तो उनम से हर एक अलग तरंगदै य के काश
को पराव तत करता है। दो या दो से यादा अलग-अलग च को िमलाकर
आमतौर पर अं तम च बनाया जाता है।
च को रकॉड करने के लए फोटो ािफक िफ म का उपयोग
करनेवाले साधारण कैमर के िवपरीत स सग उप ह पर लगनेवाले
म टी पे टल कैमरे च को हा सल करने के लए चाज-यु मत उपकरण
(Charge-Coupled Devices) या सीसीडी के प म ात ठोस अव था
इले टॉिनक डटे टर का उपयोग करते ह। सीसीडी न केवल िफ म क
तुलना म अ धक संवेदनशील है, ब क इसका एक फायदा यह भी है िक वे
पृ वी के टेशन पर सारण के लए च को सीधे इले टॉिनक संकेत म
बदल सकते ह।
जमीन पर संकेत ा होने के बाद उ ह डकोड िकया जाता है तथा काले
और सफेद या रंगीन च म बदल िदया जाता है। म टी पे टल पेस
फोटो ाफ का एक अनूठा फायदा यह है िक आसान िव ेषण के लए
कं यूटर ारा च को ‘कलर कोडेड’ या रंगीन िकया जा सकता है।
े ो े े
उदाहरण के लए, डाटा का उपयोग खेती के तहत फसल का िव तृत
न शा तैयार करने के लए िकया जा सकता है। यह लाल रंग म कपास,
पीले रंग म गेहूँ और नीले रंग म परती भूिम म िदखा सकता है। पानी के
उपयोग का आकलन करने के लए जल संसाधन को भी इसके समान
रंगीन िदखाया जा सकता है। जमीनी टेशन के अलावा उप ह भी च
को बाद म पुन: हा सल करने के लए वी डयो टेप पर रकॉड करता है।
हालाँिक, म टी पे टल कैमरे के च से भूिम के बारे म पूरी जानकारी
बाहर नह िनकलती है, य िक बादल अकसर एक साफ च म बाधा
डालते ह। कुछ िवशेष कार के ऑन-बोड रडार इमे जग स टम आसानी
से बादल को भेदने म स म ह। उनका उपयोग इस सम या को हल करता
है।
सुदरू संवेदन उप ह म भारत म एक पूरी ंखला ही है, IRS (Indian
Remote Sensing) Satellite, IRS-I, IRS-II, IRS-III, IRS-IV, IRS-V, और इसी ंखला
म ह—लडसैट, (LANDSAT) OCEANSAT, CARTOSAT, इ यािद। METSAT
एकमा ऐसा सैटेलाइट है जसके सारे पेलोड रमोट स सगवाले सैटेलाइट
के ह, परंतु यह भू- थै तक क ा म है।
िन कष
जैसा िक हमने शु म कहा था िक अंत र हमारे जीवन को सुिवधा
दान करता है, जीवन सरल करता है, सम याओं का समाधान करता है,
सुर ा दान करता है और आ मण भी करता है।
अंतररा ीय अंत र टेशन
उप ह और अंत र यान के अलावा ISS अंतररा ीय पेस टेशन एक
ऐसा पड़ाव है, जो िब कुल अनूठा, अ तु और रोमां चत कर देनेवाला है।
यह एक क ा म भी है और एक यान है, जो थायी भी है।
1. आईएसएस को बनाने म सोलह देश शािमल थे : संयु रा य अमे रका,
स, कनाडा, जापान, बे जयम, ाजील, डेनमाक, ांस, जमनी,
इटली, नीदरलड, नॉव, पेन, वीडन, व जरलड और यूनाइटेड
कगडम।
2. आईएसएस (ISS) 5 मील त सेकंड क ग त से या ा करता है। इसका
मतलब है िक टेशन हर 90 िमनट म एक बार पूरे ह का च र लगाता
है।
3. लगभग 357.6 फ ट (या 109 मीटर) क लंबाईवाला इंटरनेशनल पेस
टेशन (ISS) अंत र याि य को काफ जगह देता है।
4. सैकड़ मुख और छोटे घटक से बना ISS अंत र म अब तक क
े ै
सबसे बड़ी मानवयु व तु है। आईएसएस का pressurized volume
32,333 यूिबक फ ट है, जो बोइंग 747 के समान है। यह सी अंत र
टेशन मीर से चार गुना बड़ा है और अमे रक टेशन ‘ काईलैब’ से
पाँच गुना बड़ा है।
5. आईएसएस अब तक बनी सबसे महँगी व तु है। आईएसएस क लागत
120 अरब डॉलर से अ धक आँ क गई है।
6. पूरे टेशन पर केवल दो बाथ म ह। चालक दल और योगशाला के
जानवर दोन के मू को टेशन क पेयजल आपू त म वापस िफ टर
िकया जाता है। इस लए कम-से-कम अंत र या ी कभी यासे नह रहते
ह।
7. आप अंत र म ह, इसका मतलब यह नह है िक आपके कं यूटर पर
वायरस नह आ सकते। आईएसएस पर 52 कं यूटर एक से अ धक बार
वायरस से सं िमत हुए ह। पहले एक वायरस था, जसे
W32.Gammima.AG के नाम से जाना जाता था, जसे पृ वी पर ऑनलाइन
वी डयो गेम से पासवड चोरी करके फैलाया गया था। नासा के लए यह
एक बड़ी बात नह थी, हालाँिक उसने वायरस को ‘उप व’ कहकर
ति या दी।
8. आईएसएस अंत र यातायात का एक वा तिवक क है। अलग-अलग
अंतररा ीय अंत र यान वहाँ कते ह। इसम ो ेस एम-21एम काग
अंत र यान भी शािमल होते ह, जो छह महीने का भोजन, ई ंधन और
आपू त पहुँचाने का काय करते ह।
9. आईएसएस संभवत: उन एकमा थान म से एक है, जहाँ आप वा तव
म अंत र को सूँघ सकते ह। एक पूव आईएसएस अंत र या ी ने वणन
िकया है िक कैसे ‘धातु-आयनीकरण- कार क गंध’ उस े म होती है,
जहाँ टेशन और अ य कनेवाले अंत र यान के बीच दबाव बराबर
होता है।
10. वतमान म आईएसएस चाँद और शु के बाद रात के समय आकाश म
तीसरी सबसे चमक ली व तु है। ईगल-आइड टारगेजस इसे तब ही
देख सकते ह, जब वे काफ करीब से देखते ह। यह एक तेज ग तवाले
हवाई जहाज क तरह िदखता है। यिद आप इसे नह खोज सकते ह, तो
नासा के पास पॉट द टेशन क एक सेवा है, जो आपको मैसेज देगी िक
कब और कहाँ से आपके थान के ऊपर से टेशन गुजरेगा!
11. हालाँिक आईएसएस को 2024 म क ा से हटाने क योजना है। टेशन
का सबसे पुराना मॉ ूल अमे रक -िव पोिषत और सी-िन मत घटक
है, जसे ‘जरीया’ कहा जाता है। इसे पहली बार 1998 म लॉ िकया

औ ै ै
गया था और यह 2028 तक काय कर सकता है। (जैसा िक द यूिनटी,
पहला पूरी तरह से अमे रक आईएसएस घटक, जसे उस वष ही लॉ
िकया गया था)। एक बार जब आईएसएस ख म हो जाएगा तो सय ने
अपने बचे हुए मॉ ूल को अपने नए टेशन, ओपीएसके (या ऑ बटल
पायलट असबली एं ड ए सपे रमट कॉ ले स) म जोड़ने क योजना
बनाई है।
12. मानव शरीर शू य गु वाकषण वातावरण म मांसपे शय और ह ी के
यमान को खोता है, इस लए आईएसएस म सवार सभी अंत र या ी
सामा य पृ वी आधा रत शारी रक वा य को बनाए रखने के लए िदन
म कम-से-कम दो घंटे यायाम करते ह।
13. आईएसएस पर िव ुत् णा लय म 8 मील तार शािमल है। यह
यय
ू ॉक शहर के सटल पाक क संपूण प र ध से अ धक लंबा है।
14. अंत र या ी आईएसएस पर एक िदन म तीन बार भोजन खाते ह,
लेिकन जब वे भोजन के लए आते ह, तो वे बैठते नह ह। खाने क जगह
के आसपास कोई कुर सयाँ नह ह। बैठने के बजाय अंत र या ी बस
खुद को थर करते ह और तैरते ह। रात का खाना अपने मुँह म लाते
समय डनर बहुत धीमा और सावधानी से करना पड़ता है, तािक यह
गलती से पूरे टेशन पर न तैर जाए। इसके अलावा, वे केवल टहलकर
रेि जरेटर पर जाकर एक नैक नह ले सकते। सभी भोजन ड बाबंद,
िनज लत या पैक िकए होते ह, इस लए इसे रेि जरेटर क ज रत नह
होती।
15. आईएसएस म ऑ सीजन ‘इले टो ल सस’ नामक एक ि या से
आता है, जसम टेशन के सौर पैनल से पैदा िव ुत् वाह का उपयोग
करके पानी के अणुओ ं को हाइडोजन और ऑ सीजन गैस म िवभा जत
िकया जाता है।
अंत र म रकॉड
आईएसएस के कई उ ेखनीय मील के प थर ह :
एक अमे रक के अंत र म लगातार सबसे यादा िदन : ये 340 िदन ह,
जब कॉट केली ने 2015-16 म अंतररा ीय अंत र टेशन ( सी
कॉ मोनॉट िमखाइल को नएं को के साथ) म एक साल के िमशन म भाग
लया। अंत र एज सय ने अंत र याि य पर योग का एक यापक
समूह िकया, जसम केली और उनके पूव अंत र या ी ि न माक के साथ
‘ि न अ ययन’ शािमल था। नासा ने अ धक लंबी अव ध के िमशन म
च य क है, हालाँिक अभी तक िकसी भी ऐसे िमशन क घोषणा नह
क गई है।
े े ै
एक मिहला ारा सबसे लंबा वास : अमे रक अंत र या ी पैगी
हटसन के 2016-17 के दौरान अंत र टेशन पर सवार होकर 289 िदन
िबताए थे।
एक मिहला ारा अंत र म िबताया गया सबसे यादा समय : यह पैगी
हटसन के ही नाम है, जसने आईएसएस पर अंत र म 665 िदन िबताए
ह।
एक बार म अंत र म अ धकांश मिहलाएँ : यह अ ैल 2010 म हुआ था,
जब दो अंत र यान िमशन क मिहलाएँ आईएसएस म िमली थ । इसम
टेसी कै डवेल डायसन ( ज ह ने एक लंबी अव ध के िमशन के लए सोयज

अंत र यान पर उड़ान भरी थी) और नासा क अंत र या ी टेफनी
िव सन और डोरोथी मेटकाफ- लडनबगर और जापान क नाओमी
यामाजाक शािमल थ , जो अपने सं एसटीएस-133 िमशन पर अंत र
यान ड कवरी पर सवार होकर पहुँची थ ।
सबसे बड़ा अंत र या ी जुटाव : 2009 म नासा के STS-127 शटल
िमशन के दौरान 13 लोग, एं डेवर म सवार हुए। (इसे बाद के िमशन के
दौरान कुछ समय के लए जोड़ा गया।)
सबसे लंबा अकेला पेसवॉक : 2001 म आईएसएस िनमाण िमशन के
लए STS-102 के दौरान 8 घंटे और 56 िमनट। नासा के अंत र या ी जम
वॉस और सुसान हे स ने भाग लया।
सबसे लंबा सी पेसवॉक : आईएसएस एं टीना क मर मत के लए
अ भयान 54 के दौरान 8 घंटे और 13 िमनट। सी अंत र या ी
अले जडर िमसुरिकन और एं टोन का लेरोव ने भाग लया।
अंतररा ीय अंत र टेशन (ISS) अंत र म मानविन मत अब तक क
सबसे भारी व तु है। जािहर तौर पर इसके लए कई लॉ िकए गए ह गे।
क ा म थािपत करने के लए कम-से-कम 50 लॉ तो हुए ही ह गे। इतनी
ऊँचाई पर अंतररा ीय अंत र टेशन क क ा को छोटे इंजनवाले रॉकेट,
बू टर और सौर पैनल क एक ंखला से थर बनाए रखा जाता है।
इसका कारण यह है िक क ा म सदैव य क थ त बनी रहती है। उतनी
ऊँचाई पर वायु तरोध न होने के कारण क ीय य जारी रहता है। इसके
कारण, पेस टेशन हर साल 100 मीटर नीचे िगरता है। लहाजा, इसे िफर
से ऊपर ले जाने क ज रत होती है। यह री-बू ट सी आपू त यान क
सहायता से िकया जाता है। वह , छोटे इंजनवाले इन सभी रॉकेट को
िनयंि त करने क भी आव यकता होती है और यह काम स के हाथ म
होता है।
इस समय, दो िववाद ह, ज ह ने इसे घेर लया है। एक यह है िक इसे

े े े े
साल 2031 तक चरणब तरीके से समा िकया जाएगा। इसके बाद इसे
नीचे िगरने िदया जाएगा।
दसू रा, कुछ समय पहले स ने अंत र समुदाय को धमक दी थी िक वो
आईएसएस को िगरने के लए छोड़ देगा। इसका कारण काफ हद तक
यू े न िववाद के म ेनजर स और अमे रका के बीच संबध
ं म आई खटास
है।
अगर स ने जो कहा, वो िकया तो या होगा? सी पेस टेशन
सोयजु ISS से अलग हो जाएगा। यह तो एक बात हुई। दस
ू रा, ऐसी थ त म
िगरते व पूरा अंत र यान कई टु कड़ म बँट सकता है। अब यह बता द
िक यह अंत र टेशन स त और ठोस टाइटेिनयम, केवलर हाई ेड
टील जैसी िटकाऊ चीज से बना है। हालाँिक, उ गुणव ावाली साम ी
से बना होने के बावजूद, ये थम फ यर म उ प होनेवाली भीषण गरमी का
सामना नह कर सकता।
अब, दिु नया के सामने दो िवक प ह। पहला िवक प यह है िक ISS को
जैसे है वैसे िगरने िदया जाए! अगर ISS धरती पर िगरता है तो यह एक ग ा
बना देगा। यह ग ा 400 मीटर से अ धक गहरा हो सकता है और यह
लगभग 100 िकलोमीटर के यास जतना चौड़ा हो सकता है। यह बहुत
जबरद त मा ा म दबाव बना सकता है। इससे एक छोटा भूकंप भी पैदा हो
सकता है और कई लोग के मारे जाने क आशंका भी है।
इस लए इसे इस तरह से िगरने देना बु मानी क बात नह है। तो िफर
होगा या? होगा ये िक यह छोटे-छोटे टु कड़ म टू ट जाएगा। बेहद छोटे-छोटे
टु कड़े अंत र म समा हो जाएँ गे, लेिकन बड़े टु कड़े नीचे िगरने लगगे। ISS
के िगरने क इस थ त को पूरी तरह से िनयंि त िकया जा सकता है। इसे
पूरी तरह से मैनेज िकया जा सकता है। और अगर इसे िगरने िदया भी जाता
है, तो इसे शांत महासागर े म वहाँ िगराया जा सकता है, जसे हम
‘अंत र सम पता’ कहते ह। शांत महासागर म ऐसे कई थान ह, जहाँ
ऐसी चीज को पड़ा रहने िदया जा सकता है।
हालाँिक, इसे िगरने देने और उसके भाव को कम करने के लए एक
यु ा यास जैसी तैयारी क आव यकता है। इस कार के अ यास म कई
साल लग सकते ह।
हम बस यही चाहते ह िक ISS, अमे रका और स के बीच तनातनी के
कारण न िगरे! यिद इसे िगराना ही है तो इसके लए ऐसी योजना बनाई
जानी चािहए, जससे िक जस उ े य से इसे अंत र म भेजा गया था,
उसका लाभ िमल सके।

अ याय 4
चाँद, चं माएँ और चं यान
ह मारी पृ वी का एक उप ह है—चं मा और लगभग सभी ह के अलग-
अलग उप ह ह। कुछ ह के तो 50 के करीब उप ह ह। ये सभी उप ह
अपने-अपने ह के चं माएँ ह। इस लए चं मा और चं माएँ श द का अलग-
अलग योग होता है। हमारे सौरमंडल म अनेक चं माएँ ह।
चं माओं को ‘ ाकृ तक उप ह’ कहा जाता है। वे कई आकार और
कार के होते ह। आमतौर पर वे ठोस होते ह और कुछ म वायम
ु ड
ं ल भी
होता है। अ धकांश ह के चं मा संभवतया ारं भक सौरमंडल म चार
ओर घूमनेवाली गैस और धूल क ड क (Disc) से बने ह।
हमारे सौरमंडल के सबसे अ त
ु चं मा
हमारे सौरमंडल म सैकड़ चं मा ह। यहाँ तक िक कुछ ु ह के छोटे
चं मा पाए गए ह। खोज के एक साल तक िकसी चं मा को अनं तम चाँद
माना जाता है। जब उनक खोज क बाद म भी पुि हो जाती है, तो उ ह
एक उ चत नाम दे िदया जाता है।
आं त रक सौरमंडल के थलीय (च ानी) ह म से न तो बुध और न ही
शु का कोई भी चं मा है। पृ वी के पास एक चं मा है और मंगल के दो
छोटे चं मा ह। बाहरी सौरमंडल म गैस से बने बृह प त और शिन तथा बफ
से बने अ ण और व ण के दजन चं मा ह। जैसे ही ये ह ारं भक
सौरमंडल म बने, वे अपने बड़े गु वाकषण े के कारण छोटी व तुओ ं
को पकड़ने म स म हो गए।
चं माओं को कैसे अपने नाम िमलते ह?
हमारे सौरमंडल म अ धकांश चं माओं को िव भ कार क सं कृ तय
से पौरा णक पा का नाम िदया गया है। उदाहरण के लए—शिन पर खोजे
गए सबसे नए चं मा का नाम नाॅव के एक देवता ‘बगलमीर’ के नाम पर रखा
गया है। शे सपीयर के पा के नाम ‘अ ण’ क क ा म अमर हो गए ह।
चं माओं को अनं तम पदनाम िदए गए ह। जैसे िक—2009 म शिन पर
खोजे गए पहले उप ह को S/2009S1 नाम िदया गया। जब खोज क पुि हो
जाती है तो अंतररा ीय खगोलीय संघ एक आ धका रक नाम को मंजूरी
देता है।

ौ े
आं त रक सौर णाली के चं मा
पृ वी का चं मा शायद तब बना, जब मंगल ह के आकार का एक बड़ा
पड लगभग तरल अव था म रही पृ वी से टकराया। यह हमारे ह से बहुत
सारी साम ी को क ा म ले गया। ारं भक पृ वी के मलबे और
टकरानेवाली व तु से िमलकर लगभग 4.5 अरब साल पहले चं मा बना
(चं मा से एक क गई च ान क सबसे पुरानी आय)ु । सबसे मजेदार बात
यह है िक चं मा का यह व प उन सभी थान म अप रवतनीय रहा है,
जहाँ सूय क रोशनी अभी तक नह पहुँची है, जैसे द णी ुव का
छायावाला भाग।
ऐसा सोचा जाता है िक चूँिक चं मा पृ वी का ही िह सा था, इस लए इस
पर पाई जानेवाली च ान पृ वी क तरह क ही होगी। इन च ान ने खुद म
पृ वी क उ प और सौरमंडल क उ प के राज को छपाकर रखा
होगा। सौरमंडल क उ प के रह य से परदा उठने पर मानवता क
जानकारी और अ धक सटीक हो जाएगी।
आमतौर पर चं मा श द पृ वी के चं मा क तरह एक गोलाकार व तु को
यान म लाता है। मंगल के फोबोस और डीमोस, दो अलग-अलग चं मा ह।
दोन के पास लगभग गोलाकार क ाएँ ह और वे ह क भूम य रेखा के
समीप च र लगाते ह। वे ढेलेदार और गहरे ह। फोबोस धीरे-धीरे मंगल के
करीब आ रहा है और 40 या 50 िम लयन वष म ह से टकरा सकता है या
मंगल ह का गु वाकषण फोबोस के टु कड़े-टु कड़े कर सकता है, जससे
मंगल के चार ओर एक पतला वलय (Ring) बन सकता है। ठीक उसी तरह
जैसे शिन के वलय ह।
बड़े ह के चं मा
बृह प त के चं माओं म सौरमंडल म सबसे बड़ा गेनीमेड, एक महासागर
चं मा, यरू ोपा और एक वालामुखी चं मा, एलओ शािमल ह। बृह प त के
कई बाहरी चं माओं म अ य धक अंडाकार क ाएँ और िवपरीत प र मा
( ह के घूणन के िवपरीत) होती ह। शिन, अ ण और व ण म भी कुछ
अिनयिमत चं माएँ ह, जो अपने संबं धत ह से बहुत दरू ह।
शिन के दो महासागर चं माएँ ह—ए सेलेडस और टाइटन। दोन म
उपसतह महासागर ह और टाइटन म मीथेन क झील क सतहवाले समु
भी ह। सौरमंडल म दसू रा सबसे बड़ा चाँद टाइटन एकमा ऐसा चं मा है,
जसम एक घना वायम ु डं ल भी है।
बफ से बने ह म अ ण के आं त रक चं मा लगभग आधे पानी क बफ
और आधे च ान के प म िदखाई देते ह। ‘िमरांडा’ सबसे असामा य है,
इसक कटी हुई आकृ त बड़े च ानी िनकाय के भाव के िनशान िदखाती
है।
व ण का चं मा टाइटन, लूटो जतना बड़ा है और व ण के घूमने क
िदशा क िवपरीत िदशा क ओर प र मा करता है।
ह और ु ह के चं माएँ
ह/ ु ह मा य अनं त योग
चं माएँ म
Mercury (बुध) 0 0 0
Venus (शु ) 0 0 0
Earth (पृ वी) 1 0 1
Mars (मंगल) 2 0 2
Jupiter (बृह प त) 53 26 79
Saturn (शिन) 53 9 62
Uranus (अ ण) 27 0 27

Neptune (व ण) 14 0 14
Dwarf Planets ( ु ह)
Pluto ( लूटो) 5 0 5
(ए रस)
Eris 1 0 1
Haumea ( िू मया) 2 0 2
Makemake 0 1 1
(मेकमेक)
Ceres (सेरस
े ) 0 0 0
Total (योग) 158 36 194
*

हमारा चं मा
चं मा क उ प उस समय हुई, जब पृ वी अभी भी तरल अव था म
थी और तभी एक मंगल ह जतना बड़ा ह पृ वी से आकर टकरा गया।
इसके फल व प पृ वी का एक भाग छटककर दरू चला गया और पृ वी
के गु वाकषण क िगर त म घूमने लगा। सबसे रोचक बात यह है िक
चं मा के अपने घूणन अ पर घूमने क दर और पृ वी के चार ओर घूमने
क दर ऐसी है िक चं मा का केवल एक ही िह सा पृ वी पर िदखता है, और
एक ही िह सा सूय के काश से भी काशमान होता है।
सूय से जो िकरण उ स जत होती ह, उन सौर हवाओं म ही लयम-3 क
अ छी मा ा होती है। यह उ स जत ही लयम-3 वायमु ड
ं लिवहीन चं मा क
सतह ारा अवशोिषत हो जाता है, य िक चं मा पर कोई वायम ु ड
ं ल नह
है, इस लए चं मा पर बनी च ान और चं मा क िम ी म या ही लयम-3
मानव के लए एक नायाब संसाधन स हो सकता है। अगर ना भक य
संलयन म ही लयम-3 का उपयोग कर सक तो मानवता क ऊजा
आव यकताओं के लए ही लयम-3 क मा ा और इसका चं मा क सतह
पर होना वरदान सािबत होगा। ही लयम-3+ ही लयम-3 असीिमत मा ा म
ऊजा पैदा कर सकता है और वह भी िबना दषू ण फैलाए!
य िप चं मा क सतह स ांतत: पृ वी जैसी होगी, िफर भी पृ वी से
बहुत भ होनी चािहए।
चं मा क सतह पर बहुत सारे ग े पाए जाते ह और ये ग े उ कापात से
बनते ह। जब उ काओं ने चं मा से टकराकर उसक सतह पर ग ा कर
िदया तो वायम
ु ड
ं ल के नह होने से ये संरचनाएँ वैसी ही रह गई ं।
िव भ आकार के उ का पड के समय-समय पर चं मा क सतह पर
िगरने से बहुत छोटे-छोटे से लेकर िवशाल े टर बने ह। पहले के वै ािनक
ने यह समझा िक चं मा क सतह पर उप थत गाढ़े ध बे वहाँ के सागर ह,
इस लए उ ह ने इसे ‘सागर’ (Mare) कहा, जसे बहुवचन म ‘मा रया’
(Maria) कहते ह। े टर ऐसे ग े क तरह होते ह और इनके बाहरी भाग म
एक उभरा िह सा होता है, जसे ‘ रम’ कहते ह। े टर बताते ह िक चं मा
ओ े ैऔ े े े
क सतह उ काओं से िकतनी भािवत हुई है और इनके टकराने से या
होता है? इन े टर के अलग-अलग नाम िदए गए ह।
पृ वी से देखने पर चाँद के कुछ ध बे वही बड़े-बड़े े टर ह। इन बड़े-बड़े
े टर के नाम ह जैसे—एइटकेन बे सन (Aitken Basin), जसका यास
2,500 िक.मी. और गहराई 12 िकमी. है। एक दस ू रे बे सन ोसेलेरम
(Procellarum) का यास 3,200 िकमी. है। चं यान-2 के िव म लडर को दो
े टर मं जनस-सी और समपे लयस-एन के बीचवाले मैदान म लगभग
70° द णी अ ांश पर उतरना था।

चं मा क सतह पर े टर (ग े) ही े टर ह। इन े टर का िनमाण उ काओं के


टकराने से हुआ है। इन उ काओं ने पृ वी पर भी ऐसे े टर का िनमाण िकया,
ं ल है, जसने इन े टर को िमटा िदया। चं मा
परंतु पृ वी पर वायुमड
ं लिवहीन है और इस कारण े टर वैसे ही रह गए।
वायुमड

• एलबेटेि यस (Albategnius)
• ए र टाकस (Aristarchus)
• ए र टोटेलेस (Aristoteles)


• बेली (Bally)
• े िवयस (Clavius)
• कोपेिमकस (Copemicus)
• ा माउरो (Fra Mauro)
• ह बो ट (Humboldt)
• जान सेन (Janssen)
• लॉं ेनस (Langrenus)
• ल गोमो टनस (Longomontanus)
• मैिगनस (Maginus)
• मे सयस (Metius)
• मोरेटस (Moretus)
• पेटािवयस (Petavius)
• िपकाड (Picard)
• िप ोलोमीनी (Piccolomini)
• िपटैटस (Pitatus)

पृ वी क सतह पर भी ऐसे उ कापात हुए ह और पृ वी पर भी ऐसे बहुत


े टर हुआ करते थे, परंतु पृ वी का अपना वायम
ु ड
ं ल भी था और इस
कारण सतह पर उप थत थलाकृ तयाँ िमट गई ं। लेिकन चं मा पर कोई
वायम ु ड
ं ल नह था और इस कारण वहाँ पर उप थत सभी थलाकृ तयाँ
वैसी ही ह, जैसी वो अरब साल पहले थ ।
यह िन त प से कहा नह जा सकता िक चं मा पर भूकंप आते ह और
इस पर वालामुखी ि या भी होती है! पृ वी पर इन ि याओं ने पृ वी को
पूरी तरह पांत रत कर िदया है और चं मा अप रव तत रह गया। स र के
ो ो े े े े
दशक म अपोलो अ भयान ारा चं मा से लाई गई च ान के िव ेषण से
ात हुआ िक चं मा क आयु भी पृ वी क तरह लगभग 4.5 अरब वष है।
चं मा के अ धकांश िह से क संरचना हमारी पृ वी क बा मटल क
तरह है।
अब तक के िव भ चं अ भयान से ात हुआ है िक चं मा क सतह
क भू-आकृ तय क रचना निदय , िहमनद , वायु तथा समु जैसे
बा जात भू-वै ािनक कारक से न होकर िवगत भू-वै ािनक यगु क
िववतिनक घटनाओं तथा वालामुखी िव फोट से हुई है।
चं मा पर पृ वी के समान वायम
ु ड
ं ल का कवच नह होने के कारण
िव भ आकार के उ का पड के चं मा क सतह पर टकराने से बनी
िव भ थलाकृ तय (टोपो ाफ ) तथा भू-आकृ तय (लडफॉ स) के
िवकास को अंत र ीय अप य ( पेस वेद रग) का एक अ त ु उदाहरण
माना जाता है।
चं मा क सतह
चं मा क च ान कुछ सामा य च ान से बनी ह, जो पृ वी पर भी पाई
जाती ह, जैसे—ओलीवाइन (Olivine), पाइरॉ सीन (Pyroxene) और
फे सपार (Feldspar), ले जयो स (Plagioclase) और एं ासाइट
(Anthracite)। चं मा क सतह पर मृत वालामुखी े टर और लावा वाह
पाए जाते ह, जो िकसी भी अंत र देखने का शौक रखनेवाले लोग को
आसानी से िदख जाएँ गे।
चं मा क ऊपरी सतह के बारे म सबसे अ धक त य वै ािनक ने
एकि त िकए ह। इसक ऊपरी तह, इसक पपड़ी है और यह ऑ सीजन
(Oxygen), स लकॉन (Silicon), मै ी शयम (Magnesium), लोहा (Iron),
कै शयम (Calcium) और ए यिु मिनयम (Aluminium) से बनी है।
चं मा के िदन और रात
चं मा अपनी धुरी पर एक च र पूरा करने म 29.5 पृ वी िदवस का
समय लगाता है। यह उस समय के करीब-करीब बराबर है, जब वह अपनी
क ा म पृ वी का एक च र पूरा करता है। लेिकन अपनी धुरी पर एक
च र पूरा करने म लगाया गया 29.5 पृ वी िदवस के बराबर के समय के
कारण इसका यादातर िह सा इसक आधी अव ध यानी 14 पृ वी िदवस
के बराबर हमेशा सूय के काश के सामने रहता है। इस तरह चं मा पर िदन
और रात पृ वी के 14 िदन और रात के बराबर होते ह।
चं मा पर उसके िदन म बहुत यादा तापमान और रात म बहुत कम
तापमान होता है। चं मा क भूम य रेखा पर िदन का तापमान 120 ड ी

े ँ ैऔ े
से सयस तक पहुँच जाता है और रात म यह करीब -130 ड ी से सयस
हो जाता है। ‘िव म’ जहाँ लड करनेवाला था, वहाँ का तापमान रात म
-180 ड ी से सयस होता है। यह अंटाकिटका से भी बहुत यादा नीचे
तापमान होगा। इस तापमान पर अ धकांश ससर और कैमरे काम करना बंद
कर देते ह।
मानव क चं मा तक क या ा
चं मा पर अ भयान के 60 साल
हर चं मा अ भयान से हमने ांड के बारे म थोड़ा यादा जाना है।
सोिवयत संघ और अमे रका के बीच अंत र होड़ के चरम िदन म 1959 म
सी अंत र यान ‘लूना-2’ को जानबूझकर चं मा क सतह पर टकराया
गया। यह मानव ारा बनाई गई पहली व तु थी, जो िकसी दस ू रे खगोलीय
पड तक पहुँची थी। इसने आ खरी खोज के मोरचे को खोल िदया।
सोिवयत संघ के लूना-2 (आ धका रक प से ि तीय सोिवयत कॉ मक
रॉकेट) के बाद से मानव ने चं मा पर कई अ भयान भेजे ह, जसम सबसे
नया भारत का चं यान-2 है। लडर िव म से संपक करने के कई असफल
यास के बावजूद कम-से-कम हम इतना तो जानते ही ह िक यह उस
उजाड़ जगह पर पड़े हुए कई उपकरण म शािमल हो चुका है।

1959 म सोिवयत संघ म िन मत लूना-2 चं मा क सतह से टकरा गई और


इस तरह यह पहली मानव िन मत व तु हुई, जो चं मा पर पहुँच पाई।

सोिवयत संघ का लूना-2 िमशन, जो िक चं मा पर पहुँचने का उसका


छठा यास था, अपने साथ पाँच कार के उपकरण ले गया था, जससे
वहाँ िव भ माप और परी ण करता। वह सोिवयत संघ का छोटा झंडा
और उसका रा य तीक च भी लेकर चं मा पर गया था। उस समय
अंत र क दौड़ म सोिवयत संघ क अनेक उपल धय म से लूना-2 क
सफलता भी शािमल थी।
ो े े
पुतिनक-1 को अंत र म भेजी जानेवाली पहली मानव िन मत व तु
बनाने के केवल 2 साल के भीतर ही सोिवयत संघ ने ‘लाइका’ नामक
कु तया को अंत र म भेजकर (1957) उसे अंत र क या ा करनेवाला
पहला जानवर बना िदया। सोिवयत संघ क इन सफलताओं ने उसे
अंत र के े म अमे रका से िन त प से े स िकया। शीतयु के
म य म स ने यूरी गाग रन को अंत र म भेजकर (1961) और एक
मिहला वेलटीना तेरे कोवा को भेजकर (1963) इस सफलता को और आगे
बढ़ाया।

लाइका अंत र म जानेवाली पहली जानवर बनी।

िपछले छह दशक म मानव ने 80 चं मा अ भयान िकए ह और वहाँ पर


अपनी कई व तुएँ छोड़ दी ह। इनम अंत र यान, कई वै ािनक उपकरण,
कैमरा और दसू रे साजो-सामान, मैगजीन, झंडे और यहाँ तक िक 96 बैग
मानव कचरा भी शािमल ह। कुल िमलाकर मानव ने चं मा पर 1.8 लाख
िकलो ाम वजन क चीज छोड़ी ह। नासा इन चीज क सफाई के अ भयान
पर िवचार कर रहा है। कम-से-कम वह जाँच करना चाहता है िक इतने लंबे
समय तक जीवाणुओ ं पर चं मा के वातावरण का या असर हुआ है?
लूना-2 िमशन को 60 साल पूरे हो चुके ह और चं मा पर पहुँचने के मानव
के काय को भी कम नह आँ का जा सकता। हर रोवर, लडर और ोब ने हम
अपने खगोलीय पड़ो सय और जस ांड म हम रहते ह, उसके बारे म
कुछ यादा ही जानकारी दी है। अगर भिव य म मनु य दस ू रे ह पर जाने
म सफल होते ह, तो भी ान के माग क ये उपल धयाँ हम भिव य म
िनरंतर राह िदखाती रहगी।
अमे रका के सैटन 5 राॅकेट से 1969 म अपोलो-11 िमशन के या ी
अंत र म गए। 363 फ ट लंबे और तरल हाइडोजन, तरल ऑ सीजन
और केरो सन के ई ंधनवाला यह राॅकेट अब तक का बना सबसे शि शाली
राॅकेट है।
नाजी जमनी के एक राॅकेट इंजीिनयर वॉनर वॉन ान ने इसे बनाया था।
ि तीय िव यु के बाद उ ह ने अपनी पूरी टीम को अमे रका के लए काम
करने के लए लगा िदया था। सैटन 5 म तीन चरण थे, जो िमक ढंग से
ो े े ो े ै े ो
चालू होते थे। आज तक कोई भी राॅकेट सैटन 5 के समान मानवता को
इतनी लंबी दरू ी तक अंत र म नह ले जा सका है।
1960 के दशक तक चं मा एक बहुत बड़ा रह य ही बना हुआ था।
अपोलो िमशन के लए नासा ने कई तरह के लै डग थल का चुनाव
िकया, जनम अँधेरे समतल मैदान, लावा से बने समु और ु ह क
ट र से बने ऊँचे थान शािमल थे।
1969 से 1972 के बीच अमे रका के अंत र याि य ने छह बार चं मा
पर कदम रखा और िव भ थान पर वै ािनक िनरी ण िकया। ये सभी
जगह उसके करीब थ , जनका िनरी ण लूनर ऑ बटर (Lunar Orbiter) ने
बहुत अ छे ढंग से िकया था और जहाँ िमशन कंटोल अंत र याि य के
सीधे संपक म रह सकता था।
अंत र एज सय ने वहाँ मानवरिहत उड़ान संप क थ और इस लए
वहाँ मनु य क सुर ा के बारे म च तत होने क ज रत नह थी। अंत र
यान ने सौरमंडल के 60 से अ धक चं माओं का पता लगाया है और उसम
शिन के चं मा टाइटन पर तो एक यान को उतारा भी गया। हमारे अपने
चं मा पर रोबोिटक िमशन ने चार बार अ भयान िकए।
चीन ने इस साल के शु म चाँद क दस
ू री ओर सतह पर चग 4 लडर को
उतार कर एक नया इ तहास रच िदया। पहला िनजी लडर चं मा पर अ ैल
म उतरते समय दघु टना त हो गया। इसे इजराइल क एक कंपनी ने भेजा
था। इजराइल ने दोबारा ऐसा िमशन िफर करने के लए वादा िकया है।
इसके अलावा अमे रका अब िफर से चं मा पर मानव िमशन क एक
ंखला भेजने क योजना बना रहा है।
अंत र म मील के प थर
22 जुलाई, 1951 : सोिवयत संघ ने कु को या ी के प म सब-
ऑ बटल उड़ान के लए भेजना शु िकया।
4 अ ू बर, 1957 : पुतिनक-1 उप ह के प म मानव ारा बनाई गई
पहली व तु ने पृ वी क क ा का च र लगाना शु िकया।
3 नवंबर, 1957 : पुतिनक-2 ने पहली बार एक जानवर लाइका नामक
कु तया को लेकर पृ वी क क ा का च र लगाया।
31 जनवरी, 1958 : अंत र म अमे रका ने ए स लोरर-1 नामक पहला
सैटेलाइट भेजा।
जनवरी 1959 : स ने लूना-1 िमशन को चाँद पर भेजा। उड़ान पथ के
आकलन म गलती के कारण यह पूरी तरह सफल तो नह रहा और चाँद के
आगे िनकल गया। लेिकन यह पहला ऐसा िमशन था, जो चाँद के करीब

पहुँचा।
सतंबर 1959 : स ने लूना-2 िमशन लॉ िकया। यह पहला अंत र
यान था जसने चाँद क सतह क पहचान क ।
अ ू बर 1959 : लूना-3 के ज रए स पहली बार चाँद क सतह क
तसवीर लेने म सफल रहा।
12 अ ैल, 1961 : यूरी गाग रन वो तोक-1 राॅकेट से अंत र म पृ वी
क क ा का च र लगानेवाले पहले मानव बने।
31 मई, 1961 : डम-7 को लॉ िकया गया और एलन शेफड सब
ऑ बटल का च र लगानेवाले पहले अमे रक बने।
20 फरवरी, 1962 : ड शप-7 से अंत र म जाकर जॉन लेन
अमे रका के पहले अंत र या ी बने।
16 जून, 1963 : वो तोक-6 से अंत र म जानेवाली वैलटीना
तेरे कोवा पहली मिहला बन ।
18 माच, 1965 : अले सी लयोनोव ने पहला पेस वॉक (Space Walk)
िकया।
3 फरवरी, 1966 : स का लूना-9 मानवरिहत अंत र यान चं मा पर
पहली बार उतरा।
माच 1966 : माच 1966 म स ने लूना-10 के ज रए ऑ बटर भेजने म
सफलता पाई।
सतंबर 1968 : स ने ज ड-5 के प म पहला अंत र यान
( पेस ा ट) चाँद क क ा म भेजा, जो सफलतापूवक पृ वी पर लौटने म
कामयाब भी रहा। इस िमशन म चाँद पर पशुओ ं को भी भेजा गया था। इसम
दो कछुए, ू ट ाई एग (म छर के अंडे) और पौधे भेजे गए थे।
नवंबर 1968 : ज ड-6 िमशन पृ वी पर लौटते व ै श हो गया। फरवरी
1969 म स ने पहली बार मून रोवर को भेजने क को शश क , लेिकन यह
चाँद क क ा म पहुँचने म असफल रहा और न हो गया।
िदसंबर 1968 : अपोलो-8 िमशन को चाँद पर भेजने म कामयाबी पाई।
यह िमशन सफलतापूवक पृ वी पर लौटा भी।
जुलाई 1969 : अमे रका ने इसके बाद जुलाई 1969 म एक बार िफर
मानव अ भयान के साथ अपोलो-11 को चाँद पर भेजा और नील आम टांग
चाँद पर उतरनेवाले पहले मानव बने, उनके साथ बज ए डन भी थे।
सतंबर 1970 : सोिवयत स ने लूना-16 के साथ रोबोट को चाँद क

े औ ँ ो े
सतह पर भेजा और तीसरी बार चाँद क िम ी को पृ वी पर लाने म
कामयाबी हा सल क ।
अ ैल 1970 : अमे रका का मानव अ भयानवाला अपोलो-13 िमशन
तकनीक खामी के कारण सफल नह हो सका और इसे वापस लौटना
पड़ा।
िदसंबर 1972 : अमे रका ने अपोलो-17 के ज रए मानव अ भयान को
चाँद पर भेजने म सफलता पाई।
1973 : नौ मं जला ऊँचा और 78 टन वजनी काईलैब को अमे रका ने
1973 म अंत र म भेजा।
1975 : स और अमे रका के बीच अपोलो-सोयज
ु परी ण प रयोजना
अंत र म पहली अंतररा ीय साझेदारी बनी।
19 अ ैल, 1975 : भारत का पहला उप ह, ‘आयभट’ को सोिवयत संघ
ारा छोड़ा गया था।
7 जून, 1979 : भारत का दस
ू रा उप ह ‘भा कर’, जो 445 िकलो का
था, पृ वी क क ा म थािपत िकया गया।
12 जुलाई, 1979 : काईलैब पृ वी के वायम
ु ड
ं ल म वेश होने पर न
हो गया। काईलैब का मलबा ऑ टे लया और भारत के बीच हद
महासागर म िगरा।
18 जुलाई, 1980 : शार क , ीह रकोटा से उप ह ेपण यान-3
(एसएलवी-3) के सफल ेपण ारा रोिहणी उप ह आरएस-1 को क ा म
थािपत िकया गया और भारत अंत र मतावाले खास रा के ब का
छठा सद य बन गया।
2 अ ैल, 1984 : दो अ य सोिवयत अंत र याि य के साथ सोयज ु
टी-11 म राकेश शमा को लॉ िकया गया। वे अंत र म जानेवाले भारत के
पहले और िव के 138व यि थे। इस उड़ान म और सोयज ु -7 अंत र
क म राकेश शमा आठ िदन तक अंत र म रहे।
20 फरवरी, 1986 : सी अंत र टेशन मीर को अंत र म थािपत
िकया गया।
अ ू बर 1994 : व चरण से सुस त भारत के ुवीय उप ह ेपण
राॅकेट (पी.एस.एल.वी.) का थम सफल ेपण।
1998 : अंतररा ीय अंत र टेशन को पहली बार 1998 म लॉ िकया
गया।
23 माच, 2001 : सी अंत र टेशन मीर पृ वी क क ा म आकर
ो ो
जलकर न हो गया। इसका थोड़ा सा अंश हद महासागर म िगरा।
सतंबर 2003 : यरू ोपीय पेस एजसी ने माट-2 को चाँद पर भेजने म
सफलता पाई।
सतंबर 2007 : जापान ने सीलेन िमशन को चाँद पर भेजने म सफलता
पाई।
अ ू बर 2007 : चीन ने चांग ई-1 भिव य के िमशन के लए तकनीक
परी ण करने के लए यह अ भयान अंत र म भेजा था, जसम उसे
सफलता िमली।
अ ू बर 2008 : भारत ने चं यान-1 िमशन को रवाना िकया था। इस
िमशन के ज रए ही दिु नया को चाँद पर पानी क जानकारी िमल सक थी।
ऑ बटर ने जानबूझकर एक इ पै टर छोड़ा था, जो चं मा से टकराया था।
जून 2009 : 10 साल बाद अमे रका ने ऑ बटर को चाँद पर भेजा।
अमे रका के इस िमशन का मकसद चाँद क क ा से चं मा क सतह का
3डी मैप बनाना था।
15 सतंबर, 2011 : चीनी अंत र टेशन तआनग ग-2 को लॉ िकया
गया।
5 नवंबर, 2013 : सतीश धवन अंत र क से ुवीय उप ह े पण
यान (पीएसऍलवी) सी-25 के ारा मंगल ह क प र मा करने के लए एक
उप ह सफलतापूवक छोड़ा गया।
िदसंबर 2013 : चीन का चग ई-3 िमशन चाँद क सतह पर उतरा। इस
िमशन म रोवर यूतू चाँद क सतह पर उतरा था। चाँद पर रोबोिटक
पेस ॉ ट लड करानेवाला चीन दिु नया का तीसरा देश बन गया था।
जनवरी, 2014 : चौथी पीढ़ी के भू-तु यका लक उप ह मोचक राॅकेट
माक II (जी.एस.एल.वी. माक II) का सफल ेपण।
29 सतंबर, 2015 : ए टोसैट के प म भारत क पहली अंत र
वेधशाला को थािपत िकया गया।
अ ैल 2018 : चीन का बेकाबू हो चुका पेस टेशन तयांग ग-2 द ण
शांत े म पृ वी के वायम
ु ड
ं ल म पहुँचते ही न हो गया। चाइना नेशनल
पेस एडिमिन टेशन से माच 2016 से इसका संपक टू ट चुका था।
िदसंबर 2018 : चीन ने चग ई-4 िमशन को चाँद के दस
ू री तरफ उतारने
म सफलता पाई।
फरवरी 2019 : इजराइल ने बेरश
े ीट िमशन को लॉ िकया था। एक
िनजी कंपनी ारा लॉ यह िमशन अ ैल 2019 म चं मा पर उतरने के
ौ ो
दौरान असफल हो गया।
सतंबर 2019 : भारत ने जुलाई 2019 म चं यान-2 िमशन को चाँद के
लए रवाना करने का तय िकया था, परंतु उसे रोक िदया गया था। 7
सतंबर को इस िमशन के चाँद क सतह पर उतरने के लए रवाना िकया
गया, परंतु चं यान-2 का चाँद क सतह पर उतरने से केवल 2 िकलोमीटर
दरू इसके लडर िव म से संपक टू ट गया। हालाँिक इस िमशन का ऑ बटर
अभी भी चाँद क क ा म मौजूद है।
या एक झूठ थी अमे रका क चाँद पर ल डग?
21व सदी म हमने िवकास क दौड़ म बहुत बड़ी छलाँग लगाई है। इसक
शु आत 20व सदी म हो गई थी। अंत र को जानने क इ छा तो
इनसानी स यता म पहले से ही रही है, लेिकन 20व सदी म हम अंत र म
पहुँचने म सफल हो पाए। अगर हम कह िक अंत र म हमारी अब तक क
सबसे बड़ी सफलता चाँद पर इनसान को भेजना है, तो यह गलत नह
होगा। आ खरी बार इनसान को चाँद पर भेजने का िमशन 1972 म हुआ
था। आ खर य इसके बाद कभी भी िकसी इनसान को चाँद पर नह भेजा
गया? आ खर इसके पीछे कारण या है? आइए, जानते ह!
दरअसल, पहली बार इनसान ारा बनाई कोई चीज वष 1959 म चाँद
पर पहुँची। इसे सोिवयत संघ ने भेजा था। तभी से अमे रका और सोिवयत
संघ म अंत र म अपने पैर पसारने क होड़ लग गई। 20 जुलाई, 1969
को नासा ने पहली बार एक इनसान को चाँद पर भेजा। उसके बाद 1972
तक 6 मानव अ भयान चं मा पर भेजे गए। लेिकन इसके बाद अब तक
दोबारा इनसान को चाँद पर नह भेजा गया। लगभग 47 साल पहले
आ खरी बार इनसान को चाँद पर भेजा गया था। उसम जो माट कं यूटर
लगा था, उससे यादा शि शाली कं यूटर तो अब आपके हाथ म है, यानी
िक आपका मोबाइल। उस व जो तसवीर ली गई, वह भी बेहतर गुणव ा
क नह थी। तो अब तक दोबारा य िकसी इनसान को चाँद पर नह भेजा
गया?
दरअसल, इस पर भी कई तरह क बात सामने आ रही ह। यूएफओ
साइ टग िवशेष इयान टीवस का मानना है िक चाँद पर उ त स यता
िनवास करती है। इसी बात को छपाने के लए दोबारा कभी चाँद पर कोई
इनसानी अ भयान नह भेजा गया। उनका मानना है िक यह उ त स यता
चाँद के िबना रोशनीवाले िह से म रहती है और वहाँ से हम पर नजर रखती
है। नासा ने उनके साथ संपक बना लया था, इस लए हम सबसे छपाने के
लए दोबारा मैन मून ल डग नह कराई गई। पूव नासा कमचारी डोना हेयर
का कहना है, “यह सच है िक चाँद पर िबना रोशनीवाली जगह पर ए लयन
स यता बसती है। इस बात को नासा ारा ही छुपाया जा रहा है।”
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इस मु े पर नासा के कमचा रय को भी बात नह करने दी जाती। उनका
कहना था िक आ खरी मून ल डग के समय अंत र याि य के पास 3
उड़न त त रयाँ भी आई थ , जसक फुटेज को बाद म िमटा िदया गया।
डोना हेयर के इस इंटर यू से हर तरफ खलबली मच गई।
एक और ष ं स ांत (Conspiracy Theory) के अनुसार, कभी िकसी
इनसान ने चाँद पर पैर रखा ही नह , यह सब नासा का एक झूठ था।
सोिवयत संघ के अंत र म पहुँचने के बाद नासा िपछड़ रही थी और इसी
से बचने के लए उ ह ने एक झूठ गढ़ा। इसका कई और िवशेष ने भी
समथन िकया है और उनका भी मानना है िक उस समय क तकनीक से
ऐसा संभव ही नह था।
दरअसल, चाँद का गु वाकषण पृ वी से 6 गुना कम है, यानी 60
िकलो ाम वजनी चीज चाँद पर सफ 10 िकलो ाम महसूस होगी। लेिकन
िफर भी हम यहाँ से चाँद पर इनसान पहुँचाने म इतनी मेहनत लगाते ह और
चाँद से दोबारा पृ वी पर पहुँचने म भी काफ ई ंधन लगता है। ऐसी मता
उस समय नासा के पास नह थी। जबिक तीसरी योरी के अनुसार, आज
के समय म ऐसा संभव भी नह है, य िक अगर उस समय के मून िमशन
का बजट आज के समय म देख तो वह 120 अरब डॉलर बनता है। उस
समय अंत र क दौड़ म नासा को आगे िनकलना था, उसी के सहयोग से
उस समय ऐसा संभव हो पाया। जबिक अब नासा का सालाना बजट 20
अरब डॉलर है। आज तो वह सबसे आगे है, इस लए अब उसे बाहरी
सहयोग िमलना भी मु कल है।
अंत म हमारे मन म यही सवाल उठता है िक या सच म नासा ने
इनसान को चाँद पर भेजा था? अगर हाँ, तो या वहाँ उ त स यता बसती
है? यह सवाल इस लए यादा गहरा है, य िक अगर 46 साल पहले चाँद
पर जाया जा सकता था तो आज क तकनीक से ऐसा य संभव नह है?
या नासा का ग ा सबसे बड़ा झूठ था चाँद पर मानव अ भयान
इस बात म िकतनी स ाई है िक मानव ने चाँद पर कदम रखा था या
नह ? लेिकन कई लोग ने नासा के जारी च के आधार पर कई सवाल
उठाए ह। सबसे पहला सवाल है, नासा के च म िकसी भी तारे का नह
होना और आसमान का पूरी तरह काला होना, य िक अगर पृ वी से इतने
तारे िदखते ह तो चाँद से य नह ? जबिक पृ वी का अपना एक वायम ु ड
ं ल
है, लेिकन चं मा पर ऐसा नह है। वहाँ बादल होने क भी कोई गुज
ं ाइश नह
है। नासा से जारी च म एक भी तारा य नह है? इस लए कई लोग ने
इन च के ऊपर सवाल उठाया िक नासा के ये च नकली ह और कह
िफ माए गए ह।
िवशेष का दसू रा सबसे बड़ा सवाल चाँद पर गाड़े गए झंडे के लहराने
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को लेकर था, जो िक सबसे यादा हैरान कर देनेवाला था, य िक चाँद पर
हवा होती नह और कोई भी चीज हवा के िबना लहराती नह । जबिक नासा
ने जो वी डयो जारी िकया, उसम झंडा लहरा रहा था। चाँद पर झंडा लहरा
कैसे सकता था? कई सारे लोग ने इस सवाल को खड़ा िकया। यह एक
बहुत बड़ा सवाल था, जसने लोग के िदमाग म यह शक पैदा िकया है िक
यह वी डयो झूठा है। इसे िकसी टू डयो स िफ माया गया है।
अगर अंत र क बात क जाए तो सौरमंडल म रोशनी का एकमा
ज रया सूय ही है। सूरज क रोशनी के भाव से िकसी भी चीज क परछाई ं
एक ही िदशा म बनेगी। लेिकन नासा से जारी तसवीर को देखने से साफ
िदखता है िक जो भी व तुएँ ह, उनक परछाई ं एक िदशा म नह है। इससे
साफ है िक वहाँ पर रोशनी का केवल एक ोत नह है।
आमतौर पर राॅकेट काफ ताकतवर इंजनवाले होते ह और उनका बहुत
यादा भाव होता है, जससे जब उनको छोड़ा जाता है या जब वे उतरते
ह तो एक ग ा बन जाता है। लेिकन नासा के चाँद पर उतरे राॅकेट के च म
ऐसा ग ा िदखाई नह देता। नासा के राॅकेट म 2 अंत र या ी भी थे,
इस लए वह बहुत हलका नह हो सकता था।
जब नासा ने तसवीर जारी क तो उनम ए टोनॉ स के हेलमेट पर कुछ
त बब िदखाई िदए, जो चाँद पर नह हो सकता था। एक अंत र या ी के
हेलमेट पर तार से लटकती एक चीज िदखी, तो कुछ लोग ने उसके एक
तरह क पॉट लाइट होने का दावा िकया, जसे िफ म टू डयो म शू टग
म उपयोग िकया जाता है। नासा का कहना था िक ऐसा फोटो क खराब
गुणव ा के कारण है। लेिकन फोटो चाहे जैसा भी हो, िबना िकसी व तु के
उसका त बब बन नह सकता।
नासा ने जो वी डयो जारी िकए, उनम ए टोनॉ स चलते और उछलते
िदखाए गए। इससे साफ लगता है िक इनको संपािदत िकया गया है। कुछ
वै ािनक ने दावा िकया िक इनको लो मोशन तकनीक से बनाया गया है।
जब ए टोनॉ स उछलते ह तो उनके पास कुछ छुपे हुए पतले तार देखे गए।
चूँिक चाँद का गु वाकषण बल पृ वी से कम है, इस लए वहाँ उछलने पर
कोई व तु दोगुनी ऊँचाई तक जाती है। ऐसा िदखाने के लए उनको र सी
से बाँधकर ख चा गया।
जो भी तसवीर नासा ने चाँद पर ख चने का दावा िकया, उन सभी के लए
एक िवशेष कैमरे के उपयोग का दावा िकया गया। यह कैमरा ऑटो फोकस
के लए ॉस हेयर का इ तेमाल करता था। कुछ तसवीर म ये ॉस हेयर
उनके ऊपर नजर आते ह, लेिकन कुछ ऐसे भी फोटो ह, जनम ॉस हेयर
फोटो के पीछे नजर आ रहे ह। अनेक वै ािनक ने यह सवाल उठाया िक
नासा ने इन तसवीर के साथ छे ड़खानी क है। इन सभी सवाल का जवाब
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देने क को शश नासा ने क , लेिकन अभी तक अटकल जारी ह।
भारत के चं मा िमशन
भारत ने जब पीएसएलवी बनाया, पीएसएलवी-3 बनाया, ायोजेिनक
इंजन बनाया और जीएसएलवी के अलग-अलग प िवक सत िकए तो
अंत र म जाने और उसे जानने क मता िवक सत हो रही थी। इसी म
म भारत ने मंगल पर भी अपना मंगलयान भेजा था। चं मा पर पहुँचने, उस
पर कदम रखने, उसे अ छी तरह से जानने क आकां ा, मजबूरी और
आ था ने भारत को मून िमशन के लए े रत िकया। इस संदभ म भारत
अब तक दो चं अ भयान, चं यान-1 और चं यान-2 को भेज चुका है।
भारत का पहला चं मा िमशन
चं यान-1
भारतीय अंत र अनुसंधान संगठन (इसरो) ारा िवक सत चं यान-1
को चं मा क 100 िकमी. क क ा म सफलतापूवक थािपत कर भारत
भी चं मा संबधं ी अनुसंधान करनेवाले अ णी रा म शािमल हो गया।
चं यान-1 के उ तकनीक उपकरण ‘मून इ पै ट ोब’ ने चं मा क सतह
पर भारतीय तरंगे को भी पहुँचा िदया।
चं यान-1 म अनेक कार के कैमरे (ससर) िव भ मह वपूण अनु योग
के लए लगाए गए थे। इनक सहायता से पृ वी के एकमा उप ह चं मा
क 100 िकलोमीटर क क ा से चं मा क सतह क िव भ कार क
तसवीर तथा आँ कड़े एकि त िकए जा सके। भारतीय अंत र अनुसंधान
सगंठन (इसरो) के चं यान-1 ने िमशन केटरेन मै पग कैमरा, हाइपर
पे टल इमे जग कैमरा ए स रे पे टोमीटर, सथेिटक एपचर रडार तथा
मून आँ कड़ के िव ेषण से चं मा का भू-रासायिनक, खिनजीय तथा
थलाकृ तक (टोपो ािफकल) मान च ण िकया। चं यान-1 के कुल 11
पेलोड म 5 एवं भारत तथा 6 अ य देश ारा िवक सत िकए गए थे।
चं यान-1 के थीमेिटक मै पग कैमरे से ा ि िमतीय च ( टी रयो
इमेजेज) का कं यूटर आधा रत ड जटल फोटो ामेटी तकनीक से िव ेषण
कर वै ािनक चं मा के पहाड़ , घािटय , े टर तथा सतही च ान क
संरचनाओं का ि आयामी (लंबाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई) व प देख सके
और चं मा के भू-वै ािनक और भू-आकृ तक य िवकास तथा
थलाकृ तय के िनमाण क ि या को बेहतर ढंग से समझ सके।
चं यान-1 का दसू रा मह वपूण संवेदक हाइपर पे टल इमे जग कैमरा
था जसक िवभेदन मता 80 मीटर थी। चं यान-1 का एक अ य
मह वपूण पेलोड िमिनएचर सथेिटक एपचर रडार था। रडार संवेदक

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(कैमर ) से पृ वी या चं सतह को अँधेरे म भी दी िकया जा सकता है।
रडार तरंग क इसी िवशेषता के कारण चं मा के थायी प से
अंधकारमय रहनेवाले उस िह से के बारे म भी जानका रयाँ एकि त क जा
सक , जो चं मा क िव श घूणन एवं प र मण अव ध के अजूबे संयोग के
कारण कभी सूय के सामने नह आता है और सदैव अंधकारमय रहता है।

LRO और चं यान ने साथ िमलकर कैसे चं मा क सतह पर िहम क खोज क ?

चं यान-1 के एक अ य पेलोड िनयर इं ारेड पे टोमीटर क सहायता


से चं मा का ारं भक भू-रासायिनक मान च ण संभव हो सका, जसके

आधार पर चं मा क सतह पर िव भ त व क उप थ त और संभािवत
िवतरण का ारं भक आकलन संभव हो सका।
चं यान-1 के एक अ य उपकरण ए सरे पे टोमीटर से चं मा पर
िमलने वाले खिनज क जानकारी हा सल हो सक और चं मा के पवत
पर ए यिु मिनयम क अ धकता तथा मै ी शयम क यूनता और घािटय म
मै ी शयम क अ धकता और ए यिु मिनयम क यन ू ता संबध
ं ी वै ािनक
धारणाओं को पु करने म सहायता िमली।
चं यान-1 िमशन जहाँ एक ओर चं मा पर भिव य म भारत के रोबोिटक
तथा मानव िमशन को उतारने क पहली मह वपूण कड़ी था, वह दस ू री
ओर चं मा पर भिव य क मानव ब तय और योगशालाओं क थापना
के लए मह वपूण आँ कड़े जुटाने का सश मा यम भी सािबत हुआ।
चं यान-2
चं यान के कुल तीन मुख िह से थे—ऑ बटर, िव म लडर और
ान रोवर। चं यान-2 चं मा के लए पहले के चं यान-1 िमशन का
अगला चरण है। चं यान-2 को ि -माॅ ूल णाली के प म तैयार िकया
गया है। इसम इसरो ारा िवक सत रोवर को ले जानेवाला क ा यान
मॉ ूल (आर.सी.) शािमल था।

चं यान-2 : चं यान module मॉ ूल और उसके पेलोड।

चं यान-2 को चं मा क सतह पर अपना ‘िव म’ मॉ ूल उतारना था।


यह छह पिहय वाले रोवर ‘ ान’ को चाँद पर िफट कर देता। इसके ज रए
कई वै ािनक परी ण िकए जाने थे। चं यान-1 का ल ट ऑफ भार

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1,380 िकलो ाम था, जबिक चं यान-2 का भार 3,850 िकलो ाम है।

भारत का चं मा िमशन—चं यान-2

दो चं अ भयान क कहानी
चं यान-2 कैसे पूववत िमशन से अलग है, इसका एक सं अवलोकन
चं यान-1 चं यान-2
ेपण अ ू बर 2008 जुलाई 2019
वष
लाॅ पीएसएलवी (सी III) पीएसएलवी एमके III
हीकल (हलका ेपण यान)
रॉकेट
यान 1,380 िकलो ाम 3,850 िकलो ाम
का भार
िमशन ऑ बटर 1 साल (4 माह ऑ बटर 1 साल, लडर और ऑ बटर
और पहले ख म) 14 पृ वी िदन
काल
लागत 540 करोड़ पए 978 करोड़ पए
पेलोड 11 भारतीय और 14 भारतीय (अ धकतम CY1 वाले
अंतररा ीय सद य), नासा 1, ऑ बटर पर 8,
लडर पर 4, रोवर पर 2
या पानी के होने का पता चाँद म द णी ुव पर उतरने और
हा सल लगाया खोज करनेवाला पहला देश
हुआ
िवशेष चाँद के द णी गोलाध म चाँद के द णी ुव के समीप िव म
ता अपना तरंगा मून इ पै ट लडर सुर त उतारने क को शश
ोब को टकराया करेगा
ेपण
राॅकेट
जीसए
लवी
MK-III

चं यान-2 चाँद के द णी ुव े म उतरना था, जहाँ अभी तक कोई


देश नह पहुँचा है। इसका मकसद चं मा के बारे म जानकारी जुटाना और
ऐसी खोज करना था, जनसे भारत के साथ ही पूरी मानवता को फायदा
होता।
इन परी ण और अनुभव के आधार पर ही भावी चं अ भयान क
तैयारी म ज री बड़े बदलाव लाए जाते, तािक आने वाले दौर के चं
अ भयान म अपनाई जानेवाली नई टे नोलॉजी तय करने म मदद िमले।
सारी तैयारी के बावजूद िव म सफलता से उतर नह पाया। चं यान-2
खोज के एक नए यगु को बढ़ावा देने, अंत र के त हमारी समझ बढ़ाने,
ौ ोिगक क ग त को बढ़ावा देने, वै क तालमेल को आगे बढ़ाने और
खोजकताओं तथा वै ािनक क भावी पीढ़ी को े रत करने म भी सहायक
होना था और होगा भी।
चं मा पर पानी होने के सबूत तो चं यान-1 ने खोज लये थे। चं मा हम
पृ वी के िमक िवकास और सौरमंडल के पयावरण क िव सनीय
जानका रयाँ दे सकता है। अब यह पता लगाना था िक चाँद क सतह और
उपसतह के िकतने भाग म पानी है। चं मा का द णी ुव िवशेष प से
िदलच प है, य िक इसक सतह का बड़ा िह सा उ री ुव क तुलना म
अ धक छाया म रहता है। इसके चार ओर थायी प से छाया म रहनेवाले
इन े म पानी होने क संभावना है। चाँद के द णी ुवीय े के ठंडे
े ौ े ौ
े टस (ग ) म ारं भक सौर णाली के लु जीवा म रकॉड मौजूद ह।
चं यान-2 िव म लडर और ान रोवर को लेकर गया था, जो दो ग
(Crater) मं जनस-सी और समपे लयस-एन के बीचवाले मैदान म लगभग
70° द णी अ ांश पर सफलतापूवक उतरना था और संभवत: उतरा भी,
लेिकन टेढ़ा।
चं यान–2 िमशन अब तक के िमशन से अलग था। करीब दस वष के
वै ािनक अनुसंधान और अ भयांि क िवकास के कामयाब दौर के बाद
ू रे चं अ भयान से चं मा के द ण ुवीय े के अब
भेजे गए भारत के दस
तक के अछूते भाग के बारे म जानकारी लेना था। इस िमशन से यापक
भौगो लक, मौसम संबध ं ी अ ययन और चं यान-1 से खोजे गए खिनज का
िव ेषण करके चं मा के अ त व म आने और उसके िमक िवकास क
और यादा जानकारी िमलती। इसके चं मा पर रहने के दौरान हम चाँद क
सतह पर अनेक और भी परी ण कर पाते और वहाँ अनूठी रासायिनक
संरचनावाली नई िक म क च ान के िव ेषण भी शािमल थे।

चं यान-2 के उ े य

ऑ बटर पे-लोड 100 िकलोमीटर दरू क क ा से रमोट स सग


अ ययन करने वाला बनाया गया, जबिक लडर और रोवर पे-लोड को
ल डग साइट के नजदीक यथा थाने (in situ) आँ कड़े एक करना था।
चं मा क संरचना समझने के लए वहाँ क सतह म मौजूद त व का पता
लगाने और उनके िवतरण के बारे म जानने के लए यापक तर पर यथा
थाने खनन और परी ण िकए जाने थे। साथ ही चं मा के च ानी े
‘रेगो लथ’ (चाँद क िम ी) क िव तृत 3-डी मै पग भी क जानी थी। चं मा
के आयनमंडल म इले टाॅन घन व (ड सटी) और सतह के पास ला मा
वातावरण का भी अ ययन करना था। चं मा क सतह के ताप भौ तक
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गुण (िवशेषताओं) और वहाँ क भूकंपीय ग तिव धय को भी मापना था।
इं ारेड पे टो कोपी, सथेिटक अपचर रे डयोमीटी और पोलरीिमटी क
सहायता से तथा यापक पे टो कोपी तकनीक से चाँद पर पानी क
मौजूदगी के यादा-से- यादा आँ कड़े इक े िकए जाएँ गे। अब लडर के चाँद
क सतह पर उतरने म असफल होने से ये अ ययन पूरे नह हो पाएँ गे।
हालाँिक ऑ बटर अपने क म घूमकर कुछ जानका रयाँ अव य ही ा
कर सकेगा।
2020 म शी ही चं यान-3 भेजा जाएगा और जो अपने अधूरे अ ययन
को पूरा करने क सफल को शश करेगा।
चं मा के द णी ुव का ही चयन य ?

चं मा के द णी ुव का मह व

अभी तक चं मा पर जाने के लए अ य देश ने चं मा क िवषुवतीय रेखा


को चुना, लेिकन भारत ने इसके द णी ुव को चुना। इसके कारण थे—
1. चं मा के द णी ुव पर िव मान े टर अरब साल से सूय क रोशनी
से अछूते ह। यह सौर तं क उ प का िबना छे ड़ा हुआ द तावेज है।
2. इसके द णी ुव म हमेशा छाया म रहनेवाले ग म करीब 100
िम लयन टन पानी होने का अनुमान है।
3. द णी ुव क खुरदरी सतह अिवक सत िम ी (रेगो लथ) पर
हाइडोजन, अमोिनया, मीथेन, सो डयम, सीसा और चाँदी क मौजूदगी
का संकेत िमला है, जो इसे आव यक संसाधन का अछूता ोत बना
देता है।
4. इसके अवयव और अव थ त के लाभ इसे भिव य क अंत र खोज
के लए एक उपयु कने क जगह बना देते ह।
5. पृ वी से भेजे गए इले टक स ल क पहुँच चं मा के करीबी िह से
तक हो सकती है, लेिकन इसके दरू वाले िह से पर टेली कोप बाधाओं
से पूरी तरह मु होगा। चं मा का दरू वाला िह सा पृ वी से पूरी तरह
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छपा रहता है। वहाँ एक टेली कोप थािपत करना एक सपने जैसा है।
िपछले कुछ दशक से रे डयो खगोल वै ािनक चाँद को बहुत सतकता
से इस आशा से देख रहे ह िक एक िदन वे पृ वी के उप ह पर अपना
टेली कोप थािपत करगे! िबना िकसी बाधा से रिहत शि शाली और
संवेदनशील रे डयो टेली कोप ांड क उ प के गंभीर को
सुलझा सकता है। ऑ टकल टेली कोप केवल उस सीमा तक देख
सकते ह, जहाँ पहला सतारा ज म लेता है। रे डयो तरंग शु आती तार
और आकाशगंगा जैसे ांड के शु आती ढाँच के बारे म सूचनाएँ देती
ह। उ मीद है िक यह ांड के आरं भक अणुओ ं के बारे म भी सूचनाएँ
रखती ह, जो िबग बग के बाद 3,80,000 वष पहले बनी थी। लेिकन यह
संकेत या स ल बहुत हलके होते ह, जो एक मोबाइल फोन के स ल से
एक खरब गुना कमजोर होते ह। खगोलिवद को इनम से सभी शोर को
छाँटना या िनकालना पड़ता है। जहाँ रे डयो खगोलिव चं मा का
उपयोग करके आरं भक ांड क घटनाओं का पता लगाना चाहते ह,
वह हीय वै ािनक यह पता लगाना चाहते ह िक सौरमंडल कैसे बना
और पृ वी अपनी वतमान अव था म कैसे आई? चं मा और पृ वी के
त व म इतनी समानता है िक कभी-कभी तो भू-वै ािनक एक च ान या
िम ी के नमून म अंतर करना किठन पाते ह। लेिकन दोन म एक
मह वपूण अंतर है। माना जाता है िक 4.4 अरब साल पहले मंगल ह के
आकार क एक च ान के पृ वी से टकराने के बाद चं मा, पृ वी से
अलग हो गया। यही कारण है िक चं मा और पृ वी म बहुत समानता है।
बहरहाल, पृ वी िवक सत हो रही है, जबिक चं मा समय के साथ जम
गया है।
6. पृ वी म लेट-टे टॉिनक ग तिव ध जारी है, जोिक धीरे-धीरे इसक
सतह के इ तहास पर िदखती है। चं मा 1 अरब साल पहले भौगो लक
ि कोण से मर चुका है। हम ऐसा य सोचते ह? हाल म वै ािनक ने
देखा िक चं मा पर कुछ भौगो लक हलचल हो रही ह। लेिकन वे ऐसी
नह ह िक उसक सतह के इ तहास म बदलाव ला द। चं मा पर भी
पृ वी के समान बड़ी वालामुखी िव फोट क घटनाएँ होती थ । लेिकन
इस तरह क बड़ी वालामुखी घटना 3.2 अरब साल पहले हुई थी।
7. वायमु ड
ं ल के अभाव म चं मा पर मौसम नह होता है और इस लए
उसक सतह लंबे समय तक अछूती रहती है। चं मा ठीक वैसा ही
िदखता है, जैसी पृ वी काफ समय पहले थी। चं मा के बारे म हमारी
समझ हाल के िदन म सुधरी है। इसम सबसे मह वपूण िपछले दशक म
चं मा पर पानी क उप थ त क खोज थी। वै ािनक ने पूरे चं मा क
सतह पर पानी क एक पतली परत खोजी है। चं यान-1 सिहत कई
अ भयान ने चं मा के ुव पर पानी क मौजूदगी क पुि क है। ताजा

ो े ै े ै
शोध भी संकेत करता है िक चं मा के भीतर पानी है। अगर चं मा पर
बड़ी मा ा म पानी पाया गया तो वहाँ मानव बेस बनाना आसान होगा।
जीवन चलाने के अलावा पानी को हाइडोजन और ऑ सीजन म
तोड़कर चं मा क लंबी रात के लए ई ंधन के प म उपयोग िकया जा
सकता है। एक चं रात पृ वी के 2 स ाह के बराबर होती है। इससे बेस
बनाने के लए पृ वी से चं मा पर पानी ले जाने क ज रत ख म हो
जाएगी।
8. भारत का चं मा िमशन वै ािनक और रणनी तक कारण के सम वय से
संचा लत है। ह क खोज का चं मा एक आधार होगा और वहाँ पर
उप थ त िकसी भी देश के लए एक रणनी तक मह व क होगी। यही
कारण है िक स, यूरोप, अमे रका, चीन, भारत, जापान, द ण को रया
और कुछ दस ू रे देश भिव य म चं मा पर अ भयान क योजना बना रहे
ह। वै ािनक इन उ त ौ ोिगक वाले िमशन पर नजर रखना जारी
रखगे और अगले कुछ दशक म बहुत उ ेजक खोज होने क उ मीद है।
चं मा के द णी ुव पर चं यान को कैसे भेजा गया?
िकसी भी यान को पृ वी से चं मा तक भेजे जाने के दो तरीके ह। पहला,
अगर आपके पास बहुत शि शाली राॅकेट है (जो िक इंजन क तरह काम
करता है) तो सीधे चं मा पर जा सकता है। दसू रा, अगर राॅकेट शि शाली
नह है, तो भी चं मा पर जा सकते ह। अगर पृ वी के चार ओर घूम-
घूमकर अपनी ऊँचाई और पृ वी से दरू ी बढ़ा ली जाए, जससे िक चं मा के
गु वाकषण क के समीप जाकर उसम घुस जाएँ ।

चं यान और बाहुबली राॅकेट (GSLV MK III) लॉ पैड (Launch pad) पर।


लडर और रोवर के पेलोड और काय।

दोन म से िकसी भी िव ध से अगर चं मा क क ा म यान पहुँच जाए तो


भी चं मा क सतह पर यान को उतारना किठन है। किठन इस लए है,
य िक चं मा का अपना कोई वायम ु ड
ं ल नह है। अगर उसका कोई
वायमु ड
ं ल होता तो यान को पैराशूट के सहारे नीचे िगरा िदया जाता और
वह धीरे-धीरे सतह पर जाता। लेिकन वायम ु ड
ं ल के अभाव म इस सतह पर
सतह क ओर ट (Thrust) डालकर उतारना पड़ता है, जससे चं मा के
ारा उ प आकषण शि को काटा जा सके। तब इस तरह के यान म
टर (Thruster) डाले जाते ह, जो यान को धीरे-धीरे नीचे क ओर उतारगे
और ऐसा ही चं यान के साथ भी िकया जाना था।

चं यान के पास इतनी शि नह थी िक वह पृ वी क क ा के बाहर शि शाली तरीके से चला


जाता, जबिक अपोलो के पास इतनी शि थी। इस लए भारत ने चं यान को पृ वी के चार ओर
गोल-गोल घुमाकर पहले उसे पृ वी से दरू िकया और दरू करते-करते उसे लूनर ऑ बट के िनकट
िकया गया। इस पूरी ि या म समय लगा, जबिक अपोलो का रॉकेट इतना शि शाली था िक वह
पृ वी के गु वाकषण और उसक क ा को तोड़कर सीधे चं मा क ओर अ सर हो गया। भारत ने
ई ंधन बचाया, अमे रका ने समय बचाया।

चं यान-2 को 22 जुलाई को ीह रकोटा के शार क से ेिपत


(Launch) िकया गया। चं यान-2 को जीएसएलवी माक-3 से छोड़ा गया था।
उससे पहले चं यान-1 को पीएसएलवी से छोड़ा गया था। पीएसएलवी क
तुलना म जीएसएलवी माक-3 अ धक शि शाली है और अ धक भार ले
जा सकता है और लेकर गया भी। चं यान-2 का भार 3,850 िकलो ाम या
3.8 टन था।
जीएसएलवी, जसे ‘बाहुबली’ नाम िदया गया है, इस अपार शि को
े े ो ो औ ो े
पाने के लए दो ठोस बू टर और एक ल वड ोपेलट (Liquid Propellant)
का इ तेमाल करता है। यहाँ पर तरल ई ंधन, तरल हाइडोजन और तरल
ऑ सीजन रहे थे। ये दोन -253 ड ी सटी ेड पर तरल अव था म होते
ह। इस अव था पर सफ एक ही इंजन, ायोजेिनक (Cryogenic) इंजन ही
काम करता है।
अब जीएसएलवी माक-3 या बाहुबली, चं यान को उड़ाकर मा 16
िमनट म 6,000 िकलोमीटर क ऊँचाई (यह जयो स ोनस टांसफर
आ◌ॅ बट था) पर ले गया। यान अभी भी पृ वी क क ा म था और चं मा
क दरू ी यहाँ से अभी भी 3,76,000 िकलोमीटर थी। अब करना यह था िक
यान चं मा क क ा के िनकट या उसम पहुँचा िदया जाए। ऐसा करने के
लए चं यान को पृ वी के चार तरफ घुमाया गया और येक घुमावदार
च र म उसक ऊँचाई और पृ वी से उसक दरू ी को बढ़ाते गए। यह
ऊँचाई और दरू ी चं यान पर मौजूद ऑन बोड ोप शन स टम ारा
बढ़ाई गई, जसम बू टर उसी उ े य के लए लगाए हुए थे।

लडर को सॉ ट ल डग करने के लए यह आव यक था िक उसका थ ट िवक सत हो, जससे वह


धीरे-धीरे लड करे। ऑ बटर से काश अलग होने के साथ
लडर के वेग को धीरे-धीरे कम िकया गया।

इन बू टर को फायर कर चं यान 276×1,42,975 िकलोमीटर क


अंडाकार क ा म पहुँच गया। यानी चं यान पृ वी से लगभग 1.5 लाख
िकलोमीटर क दरू ी पर चला गया। इस ऊँचाई और इस दरू ी पर (1.421
लाख िकलोमीटर) चं यान को एक और बड़ा ट िदया गया, जससे वह
पृ वी के चार ओर घूमने के बजाय पृ वी के गु वाकषण शि के दायरे से
बाहर चला गया और चं मा क गु वाकषण क सीमा म पहुँच गया। यह
चरण ‘लूनर टांसफर टांजै टी’ (Lunar Transfer Trajectory) कहा जाता है।
लडर क सॉ ट ल डग के लए यह ज री था िक वह धीरे-धीरे उतरे, आसमान से सतह पर धड़ाम
से िगर न जाए। अगर वायुमड
ं ल होता तो इसे पैराशूट से उतार िदया जाता। लडर सतह क ओर जोर
से हवा फकता है, जससे वह धीरे-धीरे उतरता है।

अब चं यान चं मा के चार ओर च र लगाना ारंभ कर देता है (ऑ बट


करने लगता है)। अगर चं यान आज अपनी िनधा रत ग त से (जो िक बहुत
तेज है, करीब 22,000 िकलोमीटर तघंटे) सीधे चं मा पर जाता तो
टकराकर चूर-चूर हो जाता। अब इसक ग त कम करने क ज रत होती
है। इसके लए वह जैसे ही चं मा क क ा (Orbit) म आता है तो उसके
च र लगाने क ग त और उसक ऊँचाई कम कर देनी होती है। इसके लए
वह चं मा के चार ओर गोल-गोल घूमते हुए (अंडाकार क ा म) अपनी ग त
और ऊँचाई भी कम करता है। ऐसा टस को आगे जानेवाली िदशा म
फायर करके िकया जाता है।
2 सतंबर को लडर िव म ऑ बटर से अलग हो गया। अब ऑ बटर
वतं प से चं मा के च र लगाता है। लडर िव म रोवर ान को
लेकर चं मा क सतह क ओर धीरे-धीरे उतरना ारंभ करता है। अब
लडर क ग त और भी कम क गई और उसक ऊँचाई भी। 6 सतंबर क
रात को 1.30 बजे उसे नीचे लाया जाने लगा। अब चुनौती थी िक उसक
ग त को 6,000 िकलोमीटर तघंटे (सामा य िवमान क ग त से 7 गुना
अ धक) से कम करके 0 तक ला िदया जाए, जससे वह चं मा क सतह
पर ै श न करे, ब क धीरे-धीरे उतार िदया जाए, जैसे ब े को गोद से
उतारते ह। इसे ही ‘साॅ ट ल डग’ कहा जाता है और उसी द ता का पूरा
िव इंतजार कर रहा था।
7 सतंबर क सुबह 1.52 पर लड करने से 15 िमनट पहले लडर िव म

ो ो ँ े े
को 100 िकलोमीटर क ऊँचाई से नीचे िकया गया (Forced Decent), िफर
इस पर ेक लगाया गया। ेक का अथ इसके चार टर ने ग त क िदशा
म ही फायर िकया, जससे िक उसका वेग कम हो जाए।
जब कोई िवमान हवाई प ी पर उतरता है तो अपना रवस ट खोल
देता है, जससे उसक ग त बहुत ही कम हो जाती है।
30 िकलोमीटर क ऊँचाई पर वह अपने नेिवगेशन को खोलता है,
जससे िक ल डग साइट का पता चल सके। साथ-ही-साथ अपने पाय को
भी चं मा क सतह क तरफ मोड़ता है, जससे िक वह चार पाय पर उतर
सके। जब लडर िव म अपने गंत य थान क पहचान कर वहाँ पहुँचा तो
वह सतह के ऊपर लटक गया। उसके बाद उसने सम यावाले े क
पहचान क और उससे अलग हो गया। लडर िव म को दो ग -मं जनस-
सी और समपे लयस-एन के बीचवाले मैदान म लगभग 70° द णी अ ांश
पर उतरना था। अपने अं तम चरण म लडर िव म नीचे उतरने ही लगा था
िक 335 मीटर के बाद उससे संपक टू ट गया। अब पता चला िक लडर चार
खाने चत होकर िगर गया और टू ट गया।
अमे रक 4 िदन म पहुँचे, चं यान-2 को य लगे 48 िदन?
1959 म त कालीन सोिवयत संघ ने चाँद पर अपना िमशन लूना-2 भेजा
था। यह महज 36 घंट म ही चाँद पर पहुँच गया था। 10 साल बाद 20
जुलाई, 1969 म अमे रका ने अपना अपोलो-11 िमशन रवाना िकया था।
यह पहला मौका था, जब इनसान चाँद पर उतरा। इस िमशन को चाँद पर
पहुँचने म 4 िदन, 6 घंटे और 45 िमनट का व लगा था।

चं मा पर जानेवाले अपोलो म शिन-5 का उपयोग िकया था। शिन-5 का चं मा पर जाने का और


आने का पथ। शिन-5 ने अपोलो को 4 िदन म ही चाँद पर पहुँचा िदया था।

चं यान के पास इतनी शि नह थी िक वह पृ वी क क ा के बाहर


शि शाली तरीके से चला जाता, जबिक अपोलो के पास इतनी शि थी।
इस लए भारत ने चं यान को पृ वी के चार ओर गोल-गोल घुमाकर पहले
उसे पृ वी से दरू िकया और दरू करते-करते उसे लूनर ऑ बट के िनकट
िकया गया। इस पूरी ि या म समय लगा, जबिक अपोलो का रॉकेट इतना
शि शाली था िक वह पृ वी के गु वाकषण और उसक क ा को तोड़कर

े ओ ो े े े
सीधे चं मा क ओर अ सर हो गया। भारत ने ई ंधन बचाया, अमे रका ने
समय बचाया।
िफर चं यान-2 िमशन को 48 िदन का व य लगा? इस सवाल का
जवाब राॅकेट क डजाइ नग, इस पर खच होनेवाले ई ंधन और चं यान क
ग त म छपा है। अपोलो-11 क लॉ ग के लए नासा ने सैटन V राॅकेट का
इ तेमाल िकया था। यह बहुत िवशाल और ताकतवर राॅकेट था। यह
तघंटा 39,000 िकलोमीटर क ग त से या ा कर सकता था। इसके
अलावा इसम 43 टन भारवाहक मता भी थी।
चं मा तक क 3.8 लाख िकलोमीटर क दरू ी को तय करने के लए नासा
के राॅकेट ने 4 िदन का व लया था। उस दौर म नासा ने 185 िम लयन
डॉलर क रकम खच क थी। इसके िवपरीत, भारत ने इतने ताकतवर
राॅकेट का इ तेमाल नह िकया। इसके चलते इसरो ने सीधे के बजाय
च ीय रा ता चुना, जसम पृ वी क गु वाकषण शि का लाभ उठाकर
दरू ी को तय िकया जाता है। चं यान को ले जानेवाला राॅकेट जीएसएलवी-
माक-3 क वजन उठाने क मता महज 4 टन ही है। इसरो ने चं यान-2
िमशन पर महज 978 करोड़ पए खच िकए ह। इसम से 375 करोड़ पए
जीएसएलवी-माक-3 के िनमाण म खच िकए गए ह। नासा के सैटन V के
मुकाबले यह अ छी-खासी कम रकम है।

चं यान-2 क क ा

2006 म नासा का यू होराइजन लूटो िमशन चाँद पर साढ़े 8 घंटे म


पहुँचा। उसके बाद वह लूटो क ओर बढ़ गया। यूरोपीय पेस एजसी ने
2004 म माट-1 लूनर ोब िमशन भेजा था, जसको चाँद पर पहुँचने म 1
साल, 1 महीना और 2 ह ते लगे थे।
चाँद पर पहुँचने म िकतना समय लगेगा, यह राॅकेट क िक म के साथ-
साथ उसको ऊजा देने के लए इ तेमाल होनेवाले ई ंधन के कार और
मा ा पर िनभर करती है। उसी के िहसाब से चाँद पर जानेवाले रा ते को
तय िकया जाता है। जतने कम िदन म चाँद पर पहुँचना चाहगे, उतना

े औ
यादा ई ंधन जलेगा और उतना ही यादा खच भी आएगा।
दरअसल, कम ताकतवर और छोटे राॅकेट चाँद तक पहुँचने के लए चाँद
और पृ वी दोन के गु वाकषणीय खचाव का इ तेमाल करते ह। इस
वजह से उनका यादातर समय इन दोन क प र मा करने म बीत जाता
है। इसम ई ंधन बहुत कम खच होता है। चं यान-2 भी इसी तरह चाँद पर
पहुँचाने के लए बनाया गया था और यही वजह है िक इसको चाँद पर
उतरने म करीब 48 िदन लगे। चं यान को चाँद तक जाने म तो सफ पाँच
िदन लगे। बाक समय इसे पृ वी या िफर चाँद क प र मा करना था।
प र मा करने का कारण पृ वी के चार ओर घूम-घूमकर अपनी ऊँचाई
और दरू ी बढ़ाना था। अंतत: यह दरू ी और ऊँचाई इतनी बढ़ा दी गई िक वह
पृ वी के गु वाकषण भाव से बाहर चला गया और चं मा के भाव के
िनकट आ गया।
चं यान-2, 23 िदन पृ वी के च र लगाता हुआ धीरे-धीरे क ा म आगे
बढ़ा। उसके बाद वह चं मा क क ा म वेश कर गया। जीएसएलवी
माक-3 को पूरी ताकत से भेजने के बजाय इसरो अंत र यान को कई
क ाओं म घुमाकर चं मा के पास ले गया।
इस तरीके को ‘ओबथ इफे ट’ कहा जाता है। हर क ा के साथ अंत र
यान पृ वी के गु वीय खचाव से दरू होता जाता है और आ खर म चं मा
क क ा म दा खल हो जाता है।
चं यान-2 या है?
चं यान-2 को भारत के सबसे उ त इंजीिनय रग काय ारा अपने
िमशन को पूरा करने म सहायता िमलेगी। इसके एक कृत मॉ ूल म,
जसम िक देश भर म िवक सत तकनीक और सॉ टवेयर शािमल ह, इसम
इसरो का अब तक का सबसे शि शाली लॉ वाहन और पूण प से
वदेशी रोवर शािमल था।

चं यान के कुल तीन मुख िह से ह—


• ऑ बटर,
• िव म लडर, और
• ान रोवर।
1. ऑ बटर (Orbiter) : ऑ बटर चं यान का इकलौता िह सा है, जसे चाँद
क सतह पर नह उतरना है। यह लगभग 100 िकलोमीटर दरू रहकर
चाँद क क ा म च र काटता रहेगा। 2,379 िकलो का यह ऑ बटर एक
साल तक चं मा क क ा म घूमते हुए उसका अ वेषण करेगा।
चं यान-2 का ऑ बटर भारतीय डीप पेस नेटवक (IDSN) के अलावा
िव म लडर के साथ संचार करने म स म था।
ऑ बटर पे-लोड
टेरन
े मै पग कैमरा (TMC-2)
टीएमसी चं यान-2 िमशन म इ तेमाल िकए गए टेरन े मै पग कैमरे का
सू म प है। इसका मूल उ े य चं मा क 100 िकलोमीटर क ुवीय
क ा से 20 िकलोमीटर वैद म पाँच िम लयन क हाई पे सयल
रेजो यूशन से पैन- ोमैिटक पै टम बड (0.5 से 0.8 माइ ोन) म चं मा
क सतह का न शा तैयार करना है। टीएमसी से एक आँ कड़ से हम
चं मा के अ त व म आने और उसके िमक िवकास के बारे म संकेत
िमल सकगे और हम चं मा क सतह का 3डी मान च तैयार करने म मदद
िमलेगी।
लाज ए रया सॉ ट ए स-रे पे टोमीटर (CLASS)
सीएलएएसएस मै ी शयम, ए यिु मिनयम, स लकॉन, कै शयम,
टाइटेिनयम, आयरन और सो डयम जैसे मुख त व क मौजूदगी का पता
लगाने के वा ते चं मा के ए स-रे ोरसस (ए सआरएफ) के पे टा
( यास) को मापता है। ए सआरएफ तकनीक से इन त व क खोज क
जाएगी, य िक सूय क िकरण पड़ने पर इन त व से खास तरह क ए स-
रे िनकलती ह।
सोलर ए स-रे माॅनीटर (XSM)
ए सएसएम सूय और उसके कोरोना से िनकलनेवाली ए स-रे को
देखकर इन िकरण के सौर िविकरण क ती ता मापता है और CLASS को
सहयोग देता है। इस पे-लोड का मु य उ े य 1 से 1.5KeV मता क
एनज (XSM) रज म सोलर ए स-रे पे टम उपल ध कराना है। CLASS से
ा आँ कड़ के िव ेषण के लए/इनपुट के तौर पर सोलर ए स-रे पे टा
का हाई-एनज रेजो यूशन और हाई- े डस माप ( त ण पूण पे टम)
उपल ध कराएगा।
इमे जग आईआर पे टोमीटर (IIRS)
IIRS के दो मु य उ े य ह—
• ~20 एनएस के हाई रेजो यूशन पर पहली बार ~0.8-5.0 µm क पे टल
रज म चं मा का वै क खिनज आधा रत मान च बनाना, और
• (~80m) हाई पे सयल और (~20nm) के पे टल रेजो यूशन पर पहली
बार करीब 3.0µm के आसपास के जल/हाइडो सल फ चर का पूण
च ण करना।
IIRS चं मा क 100 िकलोमीटर क ा से 256 पे टल ब स म चं मा
क सतह से पराव तत ( र े ट) होनेवाले सौर िविकरण (रे डएशन) को भी
मापेगा।
ूएल वसी सथेिटक अपचर रडार (L&S)
एू ल वसी (एल एं ड एस) एसएआर-चं यान-1 के एस-बड िमनी
एसएआर के मुकाबले यादा मता दान करेगा—
• यादा गहराई (5-10 मीटर क गहराई तक जो एस बड से दगु ुनी है) तक
पहुँचने के लए एल बड।
• गोलाकार और पूण ुवीकृत रेजो यूशन िवक प (एस से 75 मीटर) और
आयातन कोण (इन- सटु एं ग स) (9 से 35 ड ी) क रज म, तािक
थायी प से छायांिकत भाग क िवशेषताओं का अ ययन िकया जा
सके।
इस पे-लोड के मु य वै ािनक उ े य ह—
• ुवीय े म हाई रेजो यूशन मान च बनाना।
• ुवीय े म जमा पानीवाली बफ क मा ा का अनुमान लगाना।
• बफ ली च ान क मोटाई और उसके िवतरण का अनुमान लगाना।
एटमॉ फय रक कंपो जशन ए सपोलरर (चेस-2)
चेस-2 चं यान-1 ारा िकए परी ण आगे जारी रखेगा। यह चार
ुव वाला िवशाल पे टोमीटर है। इससे चं मा के यूटल बाहरी वातावरण
क कै नग क जा सकती है। वह भी ~0.5 एएमयू के िवशाल रेजो यश ू नम
1 से 300 amv क यापक रज म। चेस-2 का मु य उ े य चं मा के यूटल
बाहरी वातावरण क संरचना और िवतरण तथा उतार-चढ़ाव का वह (इन-
सट) अ ययन करना है।
े ो
ूएल वसी रे डयो साइंस (डीएफआरएस) परी ण
चं मा के आयनमंडल म इले टोन ड सटी (घन व) क अ थायी उ प
का अ ययन इससे िकया जाएगा। उप ह से ए स (मेगाह ज) बड के
सगनल (संकेत) एक साथ सा रत (टांसिमट) िकए जाते ह और जमीन
पर डीप टेशन नेटवक रसीवर से ा िकए जाते ह।
लडर िव म (Lander Vikram)
कुल 1,471 िकलो ाम वजन के लडर िव म का सबसे ज री काम रोवर
ान को चाँद क सतह पर पहुँचाना था। लडर का दस ू रा ज री काम
चाँद क सतह पर मौजूद रहकर ान रोवर और क ा म घूम रहे ऑ बटर
के बीच संचार बनाना था। ऑ बटर को लडर से िमले आँ कड़ को भारत के
इसरो के सटर म भेजना था। िव म लडर म इसके लए अ याधुिनक
उपकरण लगाए गए थे।
चं यान-2 के लडर का नाम भारतीय अंत र काय म के जनक डॉ.
िव म साराभाई के नाम पर रखा गया था। यह चं मा के एक पूरे िदन काम
करने के लए िवक सत िकया गया था। चं मा का एक िदन पृ वी के लगभग
14 िदन के बराबर है। िव म के पास बगलोर के नजदीक बयालू म
आईडीएसएन के साथ-साथ ऑ बटर और रोवर के साथ संवाद करने क
मता थी। लडर को चाँद क सतह पर सफल ल डग करने के लए
डजाइन िकया गया था। अभी तक चं मा क सतह पर सॉ ट ल डग के
कुल 38 यास िकए गए ह, जनम से 52 तशत मौक पर सफलता िमली
थी।
लडर िव म के पे-लोड
एक है Radio Anatomy of Moon Bound Hypertensive Atmosphere, सं ेप म
कह तो—रांभा (RAMBHA)। यह चाँद क सतह पर एकदम छोटे-छोटे
बदलाव का पता लगाने का काम करनेवाला था। बड़े प रवतन का पता तो
ऊपर घूम रहा ऑ बटर कर ही रहा है, लेिकन छोटे बदलाव का पता लगाने
के लए ही यह रे डयोमीटर योग होनेवाला था।
चं मा का आयनमंडल एक उ ग तशील ला मा का वातावरण है। रांभा
जैसे लगमुइर ोब इन प र थ तय म जानकारी एक करने का भावी
उपकरण स हुए ह। इसका मु य उ े य इन िन न ल खत पहलुओ ं का
आकलन करना था—
• चं मा क सतह के पास एं िबएं ट इले टॉन ड सटी/टै ेचर
• अलग-अलग सौर थ तय के तहत सतह के पास पहली बार चं मा के
ला मा घन व का अ थायी िवकास।
ौ े
चं मा का ताप-भौ तक परी ण (चे ट)
अगला पेलोड था Chandra’s Surface Thermo-Physical Experiment यानी
CHEST, यानी चं यान का थमामीटर। िव म लडर का वो िह सा था, जो
चाँद क सतह के अंदर का बुखार नापनेवाला था। इसम हीट ससर लगे
होते ह। ये चं मा क सतह से 10 सटीमीटर अंदर जाकर चं मा का
तापमान नापनेवाला था।
चे ट चं मा क सतह के टै ेचर े डएं ट (तापमान के उतार-चढ़ाव) और
थमल कंड टिवटी (तापीय चालकता) को मापनेवाला था। इसम तापीय
ससस और एक हीटर लगा होता है, जसे चं मा क च ान (रेगो लथ) म
~10 सटीमीटर नीचे तक घुसा िदया जाता है। चे ट दो मो स म काम
करता है, यानी दो कार से काम करता है—
• अ य मोड संचालन, जसम िव भ गहराइय तक लगातार इन सटु
तापमान मापा जाता है।
• सि य मोड के संचालन म संपक म आई चं मा क च ान (रेगो लथ) का
िनधा रत अंतराल म तापमान का उतार-चढ़ाव मापा जाता है।
चं मा क भूकंपीय ग तिव ध मापने का यं (इलसा) (ILSA)
भूकंप नापेगा Instrument for Lunar Seismic Activity यानी ILSA। Seismic क
बात हो तो समझ जाइए िक भूकंप क बात हो रही है। तो बात साफ है, चाँद
पर भूकंप आया? छोटा या बड़ा? इसका पता यह उपकरण लगा लेगा।
इलसा तीन धा रय वाला एमईएमएस आधा रत भूकंप मापक यं है।
इससे चं मा के भूकंप से होनेवाली जमीन क मामूली िहल-डु ल, ग त और
ती ता का पता चल जाता है। इसका मु य उ े य ल डग साइट के
आसपास भूकंप क संभा यता जानना था। इलसा से 100mg/ hz जतनी
हलक सी िहल-डु ल और +0.5g क ग तशील रज और 40 ह ज क
बडिव थ का भी पता चल सकता है। डायनािमक रज पाने के लए दो
ससर योग िकए जाते ह—एक कोस रजवाला और एक फाइन रजवाला
ससर।
रोवर ान (Rover Pragyan)
चं यान-2 का रोवर, ान नाम का 6 पिहएवाला एक रोबोट वाहन था,
जो सं कृत म ‘ ान’ श द से लया गया था। यह 500 मीटर (½ आधा
िकलोमीटर) तक या ा कर सकता था और सौर ऊजा क मदद से काम
कर सकता था। यह सफ लडर के साथ संवाद कर सकता था।
ऑ बटर का िमशन कायकाल एक वष होगा, जबिक लडर (िव म) और
रोवर ( ान) का कायकाल चं मा के एक िदन यानी पृ वी के 14 िदन का


होना था।
ान पे-लोड
अ फा पा टकल ए स-रे पे टोमीटर (एपीए सएस) (APXS)
पहला तो है Alpha Particle X-ray) Spectrometer यानी APXS। हमारी-
आपक िह य का ए स-रे होता है, लेिकन यह पे टोमीटर जमीन का X-
ray करेगा, चाँद क जमीन का। और यह बताएगा िक सो डयम, मै नी शयम,
ए यिु मिनयम, स लका, कै शयम, टाइटेिनयम और आयरन जैसे िमनरल
चाँद पर मौजूद ह या नह ? और अगर ह तो िकतनी मा ा म ह?
एपीए सएस का मु य उ े य ल डग साइट के पासवाली चं मा क सतह
क त व संरचना जानना था। यह ए स-रे ोरेसस पे टो कॉपी तकनीक
से िकया जाता है, जहाँ ए स-रे या अ फा कण क मदद से सतह को
सि य िकया जाता है। एपीए सएस म रे डयोधम यू रयम (244) धातु
का योग िकया जाता है। इस धातु से हाई एनज अ फा कण और ए स-रे
िनकलती ह, जससे ए स-रे एिमशन पे टो कोपी और ए स-रे ोरेसस
पे टो कोपी दोन सि य हो जाती ह। इन तकनीक से एसीए सएस
सो डयम, मै ी शयम, ए यिु मिनयम, स लका, कै शयम, टाइटेिनयम,
आयरन जैसे त व का और कुछ मामूली मा ा म मौजूद त व , जैसे
ट ि◌शयम, वाईट रयम और जक िनयम क मौजूदगी का पता चल जाता
है।
लेजर इं ू ड ेकडाउन पे टो कोप (LIBS)
यानी LIBS म लेजर लगा हुआ है।
Laser Induced Breakdown Spectroscope
हलका-फुलका नह , मजबूतवाला। यह चाँद क जमीन पर तरह-तरह के
रे डएशन का पता लगानेवाला था और कोई त व बहुत यादा मा ा म
मौजूद है तो उसका भी पता लगा लेता।
ल स का मु य उ े य ल डग साइट के पास त व क भारी मा ा म
मौजूदगी का पता करना था। इसके लए िव भ थान म हाई पावर लेजर
प स फायर िकए जाते ह और ख म हो रहे ला मा से होनेवाला रे डएशन
(िविकरण) का िव ेषण िकया जाता है।
इस िमशन क कुछ तकनीक चुनौ तयाँ थ —
• चं मा क सतह पर उतरते समय बेहद कम वचा लत ग त सुिन त
करने के लए थॉट लेवल इंजन वाला ोप शन स टम।
• िमशन मैनेजमट : िव भ चरण पर ोपलट मैनेजमट, इंजन शु करना,
क ा (ऑ बट) और ेप पथ (टैवेलरी) का डजाइन।
े े औ
• लडर िवकास : िदशासूचक (नेिवगेशन), िनदशन और िनयं ण, िदशा
बताने और बाधा से बचने के लए नेिवगेशन ससर और आराम से उतरने
के लए लडर लौग मेकैिन म।
• रोवर िवकास : लडर मेकैिन म से रोल डाउन, चं मा क सतह पर
रो वग मेकैिन म, पावर णा लय का िवकास और परी ण, थमल
(तापीय) णा लयाँ, संचार और मोिब लटी णा लयाँ।
चं यान-2 क चं मा पर उतरने म या- या चुनौ तयाँ थ ?

दरू ी
पृ वी से चं मा क दरू ी 3,84,400 िकलोमीटर है। यहाँ एक समान गु व
बल भी नह है। वहाँ तक यान को पहुँचाना बड़ी चुनौती थी।
गहन अंत र संचार
अंत र म यान के साथ संचार केवल कमजोर रे डयो स नल के मा यम
से होता है। अंत र के माहौल और बहुत अ धक दरू ी के कारण रे डयो
स ल म बहुत यादा शोर होता है। ऐसे म उनक सटीकता बहुत मायने
रखती है।
भारत के चं यान-2 को 6 सतंबर को चं मा क सतह पर पहुँचना था।
यह पृ वी पर चं मा के पहले प का समय था। इस िदन यहाँ पर उतरने के
कारण लडर को सूय का काश अगले 14 िदन तक िमलना था। िव म
लडर और रोवर ान सौर ऊजा से संचा लत थे। एक बार यहाँ रात होने
पर उनको ऊजा िमलनी बंद हो जानेवाली थी। उस समय तापमान -180
ड ी से सयस तक िगर जाता है। यह िमशन बहुत कड़ी ठंड म काम करने
के लए डजाइन नह िकया गया था। अमे रक और चीनी िमशन ने िवशेष
ना भक य ऊजा का उपयोग करके इतनी कठोर ठंड म भी काम करने म
सफलता हा सल क थी।
धूल
अ भयान क सफलता म एक और बड़ी चुनौती चं मा पर पाई जानेवाली
े े
घनी धूल भी थी। यह धूल उपकरण क लंबे समय तक काम करने क
मता को ख म कर देती है।
इसरो को चं यान-2 के लडर क चं मा के द णी ुव पर सॉ ट ल डग
करानी थी, मतलब धीमे-धीमे ल डग। सॉ ट ल डग हॉलीवुड क साइंस
िफ शन िफ म म िदखाई जानेवाली उड़न त त रय जैसी होती है। सॉ ट
ल डग म लडर क ग त को धीरे-धीरे कम िकया जाता है, तािक वह आराम
से चाँद क सतह पर पूव िनधा रत जगह पर उतर सके। अपनी ल डग के
ठीक पहले िव म लडर क ग त 6 िकलोमीटर त सेकंड थी। मतलब वो
एक घंटे म लगभग 22 हजार िकलोमीटर तय करने क र तार से चल रहा
था। बड़े-बड़े हवाई जहाज से भी 20-22 गुना तेज।
अं तम समय पर जब लडर चं मा क सतह से महज 335 मीटर क दरू ी
पर था, तभी लडर िव म से संपक टू ट गया। इस वजह से चाँद पर उसक
सॉ ट ल डग होने के बजाय हाड ल डग हुई। हाड ल डग म लडर या
पेस ा ट चाँद क सतह पर ै श करता है, मतलब िगरता है। अब तक
अमे रका, स और चीन ही चाँद क सतह पर सॉ ट ल डग कराने म
कामयाब रहे ह। अभी तक चं मा क सतह पर सॉ ट ल डग के कुल 38
यास िकए गए ह, जनम से 52 तशत मौक पर सफलता िमली है।
चं यान िकतना िनकट, िफर भी दरू !
चं मा क सतह पर सॉ ट ल डग—मतलब धीमे-धीमे उतरना। सॉ ट
ल डग करने क बहुत सारी को शश नाकाम भी हुई ह। अपनी ल डग से
ठीक पहले िव म लडर क ग त 6 िकलोमीटर त सेकंड थी। मतलब वो
एक घंटे म लगभग 22 हजार िकलोमीटर तय करने क र तार से चल रहा
था। बड़े-बड़े हवाई जहाज से भी 20-22 गुना तेज।
लेिकन महज पं ह िमनट के अंदर िव म लडर को अपनी ग त घटाकर
2 मीटर त सेकंड लानी थी। यानी एक घंटे म 7 िकलोमीटर तय करने क
र तार तक। अगर िव म लडर ठीक तरीके से और िबना नुकसान पहुँचाए
ऐसा कर पाता तो ही वह चं मा क सतह पर सॉ ट ल डग कर सकता था,
लेिकन ऐसा करने म मु कल खड़ी हो गई ं।
भारत के अंत र काय म के सं थापक िव म ए. साराभाई के
नामवाला लडर िव म चं मा क सतह से केवल 335 मीटर दरू था, तभी
भारतीय अंत र अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ इसका संपक टू ट
गया।
इसरो ने िमशन के अं तम 15 िमनट को सबसे यादा किठन बताया था।
िमशन के आ खरी 13व िमनट म लडर िव म अपनी ग त को आव यक
तर तक घटाने म िवफल रहा, जससे उसक सॉ ट ल डग नह हो सक
औ ो
और हाड ल डग (Hard Landing) हो गई।
आ खरी ण म कैसे िगरा होगा लडर िव म?
चं मा क सतह पर उतरने के अं तम चरण के दौरान इसरो का लडर
िव म से संपक टू ट गया। िकसी अ प कारण से हुए एक घुमाव के कारण
िव म को गँवा िदया गया। आँ कड़ से पता चलता है िक चं मा पर उतरने
से पहले लडर एक बार उलट गया था। चं मा क सतह पर िव म लडर के
उतरने के आँ कड़ के िव ेषण से लडर के चं मा पर उतरने के यास के
दौरान पृ वी के साथ संपक टू टने क घटना क एक तसवीर पेश करने क
को शश क गई है।
आइए, समझते ह िक कैसे िव म क सॉ ट ल डग म गड़बड़ी आई होगी

िव म लडर चाँद क सतह से 30 िकमी. क ऊँचाई पर 1.66 िकमी.
त सेकंड क र तार से च र लगा रहा था। जब उसे चाँद क सतह पर
उतरना था, तब िव म लडर को सीधा रहना था और उसक ग त 2 मीटर
त सेकंड होनी चािहए थी। िव म लडर म पाँच बड़े टस थे, जो उसे
ल डग म मदद कर रहे थे। इ ह टस क मदद से िव म लडर ने चाँद के
चार तरफ च र भी लगाए थे। इनके अलावा िव म लडर पर 8 छोटे
टस और थे। टस छोटे राॅकेट जैसे होते ह, जो िकसी व तु को आगे
या पीछे बढ़ाने म मदद करते ह।
पाँच बड़े टस िव म के नीचे लगे थे। चार टस चार कोन म और
एक बीच म। ये िव म को ऊपर-नीचे ले जाने म मदद करते। जबिक 8 छोटे
टस िव म क िदशा िनधारण म मदद कर रहे थे। यह हो सकता है िक
चाँद क सतह से 400 मीटर क ऊँचाई पर ल डग के समय सभी बड़े
टस म एक साथ ई ंधन न पहुँचा हो। इससे यह हुआ होगा िक सारे
टस एक साथ चालू न हुए ह ! नतीजा यह िक लडर तेजी से घूमने लगा
होगा और संतुलन खो िदया होगा। इस समय लडर वैसे ही घूमने लगा होगा,
जैसे दीवाली म चकरी नाम क आ तशबाजी घूमती है।
िव म लडर का बड़ा िह सा ई ंधन क टंक था। लडर क तेज ग त और
िफर े कग क वजह से ई ंधन अपनी टंक म वैसे ही उछल रहा होगा, जैसे
पानी के टब म पानी उछलता है। इससे इंजन के नॉजल म ई ंधन सही से
नह पहुँचा होगा। इसक वजह से ल डग के समय टस को पूरा ई ंधन न
िमलने से ल डग म गड़बड़ी आई होगी। 30 िकमी. क ऊँचाई से 400 मीटर
क ऊँचाई तक आने म िव म लडर क ग त 1.66 िकमी./सेकंड (6,000
िकमी./घंटा) और 60 मीटर/सेकंड (200 िकमी./घंटा) हो गई थी।
लडर क िदशा भी ै तज (Horizontal) से सीधी (Vertical) हो चुक थी।
े ो ौ े े
इस पूरे समय कोन पर मौजूद चार टस काम कर रहे थे, जबिक
बीचवाला टर बंद था। 400 मीटर क ऊँचाई पर लडर क िदशा सीधी
हो गई। नीचे के चार टस म से दो बंद कर अगल-बगल लगे दो छोटे
टस को ऑन िकया गया, तािक नीचे आने के साथ-साथ िव म
हेलीकॉ टर क तरह मँडरा सके और ल डग के लए सही जगह खोज सके।
लेिकन यह कह पर िकसी टर ने िव म का साथ नह िदया होगा। ऐसा
इस लए हुआ होगा िक ई ंधन सही तरीके से एक साथ सभी काम करनेवाले
टस तक न पहुँचा हो!
चाँद क सतह से 100 मीटर क ऊँचाई पर िव म लडर को हेलीकॉ टर
क तरह मँडराना था। चाँद क गु वाकषण शि को रोकने के लए
अगल-बगल के छोटे टस ऑन रहने थे। लडर का कैमरा ल डगवाली
जगह खोजता और िफर उतरता। कैमरे से ली गई तसवीर ऑनबोड
कं यूटर म टोर क गई तसवीर से मैच करती। इसके बाद िव म लडर
मँडराना बंद कर धीरे-धीरे चार बड़े टस को बंद कर बीचवाले पाँचव
टर क मदद से नीचे उतरता। इस व िव म लडर म लगा रडार
अ टीमीटर लडर क ऊँचाई का खयाल रखता। चूँिक ल डग पूरी तरह से
वचा लत थी, इस पर पृ वी से िनयं ण नह िकया जा सकता था। हो
सकता है िक यह पर गु वाकषण को िव म लडर सही ढंग से भाँप नह
पाया होगा, य िक वहाँ गु वाकषण के भाव म बदलाव आता रहता है।
6 सतंबर को लडर ने जब चं मा क सतह पर उतरना शु िकया तो यह
लगभग 15 िमनट तक चलना था। शु म सबकुछ योजना के अनुसार हो
रहा था। िव म के उतरना शु होने के लगभग 11 िमनट बाद चीज गड़बड़
होती चली गई ं। उस समय िव म को थोड़ा घूमना था, तािक उसके कैमरे
एक उपयु ल डग थल के लए चं मा क सतह का न शा बना सक।
इस मह वपूण काय के दौरान िव म ने अ या शत प से और बेवजह एक
घुमाव िदखाया था। इससे कुछ पल के लए लडर चं मा क सतह पर
उतरने के ख से उलटा हो गया था।
इसका मतलब यह था िक िवपरीत ट पैदा करनेवाले इंजन, जो िव म
को धीमा कर रहे थे, उनका ख कुछ समय के लए चं मा क सतह के
ऊपर क ओर हो गया। इस लए लडर को धीमा करने के बजाय ट
इंजन ने वा तव म िव म लडर को चं मा क सतह क ओर नीचे धकेल
िदया।
िव म ारा भेजी गई अं तम री डग म यह प प से िदखाई दे रहा
था। अपने उतरने क शु आत के 11 िमनट और 28 सेकंड बाद िव म का
ऊ वाधर वेग ( जस ग त से वह चं मा पर उतर रहा था) 42.9 मीटर त
सेकंड था। डेढ़ िमनट बाद नाटक य प से यह ग त बढ़कर 58.9 मीटर
त सेकंड हो गई थी। शायद इसी कारण से लडर िव म चं मा क सतह
ो े ो
पर जोर से टकराकर त त हो गया।

अपने आ खरी ण म चं यान बहुत ही तेजी से िगरा। यह उसके बीच क


रेखा से जािहर है, जो सतह के िनकट सीधी हो गई है।

िवफलता ही चं मा पर पहुँचने म सफलता क राह


चं मा पर अ भयान का िमला-जुला इ तहास रहा है। अमे रका ने भले ही
50 साल पहले ही चाँद पर उतरने म सफलता हा सल क थी, लेिकन
इसके कुछ शु आती िमशन भी िवफल रहे थे। ऐसी ही िवफलता त कालीन
सोिवयत संघ को भी झेलनी पड़ी थी। बाद म उनक सफलता क दर बढ़ने
लगी। भारत के चं यान-2 का लडर िव म सफलता से चाँद के द णी ुव
के करीब उतरने से थोड़ा चूक गया। इससे हा सल अनुभव इसरो को
अगली बार चाँद पर सफलता से उतरने म सहायक होगा। चं मा पर उतरने
का कुल इ तहास सफलता से अ धक िवफलता का इ तहास रहा है।
िवफलता का इ तहास
वष एजसी उ े य प रणाम
पायिनयर 0, नासा चाँद क जानकारी जुटाना िवफल
1958
लूना, 1958 रॉसकॉसमॉस चाँद क सतह के बारे म िवफल
जानकारी जुटाना
लूना-1 रॉसकॉसमॉस चाँद के बारे म जानकारी आं शक
1959 जुटाना सफल
लूना-2 रॉसकॉसमॉस चाँद क सतह के बारे म सफल
1959 जानकारी जुटाना
लूना-3 रॉसकॉसमॉस चाँद क सतह के बारे म सफल
1959 जानकारी जुटाना
लूना-9 रॉसकॉसमॉस चाँद पर सॉ ट ल डग सफल
1966
लूना-10 रॉसकॉसमॉस ऑ बटर भेजना सफल
1966
ँ े
ज ड-5 रॉसकॉसमॉस चाँद क क ा से पृ वी पर सफल
1968 लौटना
ज ड-6 रॉसकॉसमॉस मून रोवर भेजना िवफल
1968
अपोलो-8 नासा मानवरिहत अ भयान सफल
1968
अपोलो-11 नासा मानव अ भयान सफल
1969
लूना-16 रॉसकॉसमॉस चाँद क िम ी को पृ वी सफल
1970 पर लाना
अपोलो-13 नासा मानव अ भयान िवफल
1970
अपोलो-17 नासा मानव अ भयान सफल
1972
माट-2 यूरोपीय अंत र जाँच अ भयान सफल
2003 एजसी
चांग ई-1 चाइना नेशनल पेस तकनीक परी ण सफल
2007 एडिमिन टेशन
सीलेन जा सा (जापान) चाँद क सतह क सफल
2007 जानकारी जुटाना
चं यान-1 इसरो ऑ बटर सफल
2008
लूनर नासा ऑ बटर सफल
ऑ बटर
2009
चग ई-3 चाइना नेशनल पेस रोवर यूतू को सतह पर सफल
2013 एडिमिन टेशन भेजना
चग ई-4 चाइना नेशनल पेस चाँद के दस ू री तरफ लड सफल
2018 एडिमिन टेशन कराना
बेरशे ीट इजराइल अंत र लडर भेजना िवफल
2019 एजसी

चं यान-2 इसरो ऑ बटर और रोवर भेजना आं शक


2019 सफल
आगे या?
े े
जस ऑ बटर से लडर अलग हुआ था, वह अभी भी चं मा क सतह से
119 िकमी. से 127 िकमी. क ऊँचाई पर घूम रहा है। 2,379 िकलो वजनी
ऑ बटर के साथ 8 पेलोड ह और यह एक साल काम करेगा। यानी लडर
और रोवर क थ त पता नह चलने पर भी िमशन जारी रहेगा। 8 पेलोड
के अलग-अलग काम ह गे—
• चाँद क सतह का न शा तैयार करना। इससे चाँद के अ त व और
उसके िवकास का पता लगाने क को शश होगी।
• मै ी शयम, ए यिु मिनयम, स लकॉन, कै शयम, टाइटेिनयम, आयरन
और सो डयम क मौजूदगी का पता लगाना।
• सूरज क िकरण म मौजूद सोलर रे डएशन क ती ता को मापना।
• चाँद क सतह क हाई रेजो यूशन तसवीर ख चना।
• सतह पर च ान या ग े को पहचानना, तािक लडर क भिव य म सॉ ट
ल डग हो सके।
• चाँद के द णी ुव पर पानी क मौजूदगी और खिनज का पता लगाना।
• ुवीय े के ग म बफ के प म जमा पानी का पता लगाना।
• चं मा के बाहरी वातावरण को कैन करना।
मंगल अ भयान के लए नासा चं मा पर बेस टेशन बनाना चाहता
है
नासा का कहना है िक वह चं मा पर एक थायी टेशन बनाना चाहता
है, जससे मंगल के अ भयान के लए उसका उपयोग िकया जा सके।
नासा ने अमे रक सीनेट क एक कमेटी को यह जानकारी दी है। नासा के
चं मा पर अगले अ भयान को िनजी े के उ म , जैसे एलन म क के
पेसए स और जेफ बेजोस क लू ओ र जन जैसी कंपिनय के सहयोग से
संप िकया जाएगा।
इससे इन अ भयान क लागत आसानी से वहन हो सकेगी। इसके लए
आनेवाले समय म एक बहुत ताकतवर राॅकेट बनाने क नासा क योजना
है। एजसी क योजना 2024 म चं मा पर िफर से मानव अ भयान भेजने क
है। चं मा पर अंत र टेशन बनाने से नई तकनीक उपल धय क जाँच
भी होगी और उसे मंगल अ भयान के लए जाँचा-परखा जा सकेगा। नासा
क योजना 2033 तक मंगल पर एक बड़ा िमशन भेजने क है। नासा का
मानना है िक चं मा पर पानी िमलने के बाद न केवल अंत र याि य को
वहाँ रहने म मदद िमलेगी, ब क उसे हाइडोजन और ऑ सीजन म
तोड़कर अंत र यान के लए ऊजा के तौर पर भी योग िकया जा

े े े ो
सकेगा। यह सुिवधा मंगल के अ भयान के लए बहुत मह वपूण स होगी।
चं यान और इसरो का मून िमशन वा तव म एक दरू गामी योजना है,
जसका उ े य केवल चं मा पर जाना नह है।
1. यह चं मा के द ण ुव पर उतरने के साथ भारत को वहाँ थािपत कर
देता और वह भी पहली बार म।
2. भारत उन देश के समूह म शािमल होना चाहता है, जो पेस सुपरपावर
ह, जैसे—अमे रका, स और चीन। भारत एक बड़ी अंत र शि बना
है और अपने भाव का िव तार करना चाहता है। भिव य म भारत
रणनी तक प से एक गंभीर दावेदार होगा। चं यान से भारत को बहुत
यादा रणनी तक लाभ होता।
3. अंत र संसाधन क खोज म भारत एक कदम आगे बढ़ेगा। नए
संसाधन भारत को उसक ऊजा ज रत को पूरा करने म सबसे आगे
रख सकते ह।
4. चं यान-1 ने चं मा पर रेयर अथ मेटी रयल क मौजूदगी को बताया था,
जसम ही लयम-3, टाइटेिनयम और अ य रे डयोए टव पदाथ भी
शािमल ह। इनको भिव य म उपयोग िकया जाएगा। चं मा को िवशेष प
से रेयर एलीमट (आरईई) या अब रेयर मून एलीमट (आरईएम) खिनज
के भंडार के प म देखा जा रहा है। इनका उपयोग संचार उपकरण को
बनाने म होता है। अगर यह संभावना सच सािबत हुई तो यह दरू संचार
जैसे संचार ौ ोिगक के े को पूरी तरह से बदल सकता है।
ही लयम-3 हमारी ऊजा सम या का समाधान करने के लए रामबाण
का काम करेगा। ना भक य संलयन म ही लयम-3 के ज रए न सफ
अप रिमत ऊजा िमलेगी, ब क यह ना भक य दषू ण से भी दरू होगा।
केवल एक सूटकेस ही लयम-3 हमारे देश को 1 साल के लए ऊजा
ज रत से मु कर देगा।
5. अमे रका चं मा पर एक अंत र टेशन बनाना चाहता है, जससे गहरे
अंत र म खोज करने का काम हो सके। यह सब अगले 30 साल म हो
सकता है। इसके सै य और नाग रक दोन तरह के लाभ हो सकते ह। ये
लाभ अगले 40-50 साल म हो सकते ह।
6. सैटेलाइट से हा सल डाटा बहुत उपयोगी होता है। डाटा अगली पीढ़ी
का भिव य होगा। अगली अथ यव था डाटा पर ही आधा रत होगी।
भारत के सुदरू संवेदी यं जो डाटा एकि त करते ह, वे बहुत ही
ामा णक होते ह। इनको बहुत ही स ती दर पर इसरो मुहय ै ा करा
सकता है। भारत इस मामले म अ णी होता जा रहा है। भारत अपनी
इस मता का उपयोग आय पैदा करने के लए कर सकता है।

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भारत के लए चं यान-2 िमशन के कई तीका मक अथ ह गे। ये सभी
अंत र े म भारत को अगले चरण म और अगले तर पर ले जा सकते
ह।
यह भारत के लए एक नया ां डग वै यू (Branding Value) लाएगा, जो
यव ु ाओं के बीच पहचान बनाने क एक नई ेरणा पैदा करेगा। अंत र क
ेरणा पैदा करने क मता सॉ टवेयर उ ोग क तुलना म बहुत बेहतर
होने जा रही है, जसने लोग को नौक रय के लए ो सािहत िकया है। यह
एक नए ढंग से अंत र उ ोग के आगे और पीछे जुड़े (Backward-forward
linkage) उ ोग म टाटअ स का एक समूह तैयार करेगा।

अंत र िवशेष ता भारत को एक नई सॉ ट पावर का दरजा देती है।


भारत आपदा बंधन के लए अ य देश क मदद कर रहा है। कैटसैट क
मदद से भारत न केवल अपने इलाके क , वरन् मोजांिबक क मदद करने म
स म हो सका है, जो च वात क अि म सूचना और मदद के लए भारत
क ओर देखता है।
आगे क राह, अब यहाँ से आगे
इसरो के पास अपने िव म लडर और ान रोवर क िवफलता पर
यादा सोचने का समय नह होगा। इसरो अगले दशक म आठ बड़े िमशन
क योजना बना रहा है, जसम 2024 म सूय, मंगल, शु और चं यान-3
के लए िमशन भेजकर चं मा पर वापसी शािमल ह।
1. चं यान-3 : चं यान-3 को जुलाई 2023 को छोड़े जाने क योजना है।
यह GSLV MK-III ारा छोड़ा जाएगा। चं यान-3 म चं यान-2 क तुलना
म बहुत बदलाव ह—जैसे यह अ धक मजबूत (Robust) ह, इसके पैट
अ धक मजबूत ह, इसम एक System के Fail करने के साथ दस ू रा काम
करने लगेगा, सम या रिहत थान पर उतरने के लए थान भी तलाश
कर सकता है और ऊँचाई क गणना भी कर सकता है।
2. ए टोसैट : इसरो अंत र म एक दस ू री वेधशाला ए टोसैट-2 को लॉ
करना चाहता है। यह वेधशाला ए टोसैट-1 को त थािपत करेगी और
अंत र एजसी को ांड क उ प को समझने म मदद करेगी। रमन
रसच इं टी यूट ारा िवक सत अ य उप ह-जिनत उपकरण,
आकाशीय पड के बारे म जानकारी हा सल करने म मदद करगे।
3. गगनयान : इस प रयोजना का उ े य तीन सद यीय चालक दल को
कम-से-कम सात िदन के लए अंत र म भेजना है। पहले इसका समय
वष 2022 के लए िनधा रत िकया गया था। इस प रयोजना क घोषणा
पहली बार धानमं ी नर मोदी ने अपने 2019 के वतं ता िदवस के
भाषण म क थी।

इसके लए भारतीय अंत र अनुसंधान संगठन (ISRO) ारा एक
अंत र यान िवक सत िकया जा रहा है। इसम एक स वस मॉ ूल और
एक ू मॉ ूल होता है, जसे सामूिहक प से ऑ बटल मॉ ूल के
प म जाना जाता है।
भारतीय अंत र एजसी ने बगलु पेस ए सपो के 6व सं करण म
‘गगनयान’ के ू मॉडल और ऑरज पेस सूट द शत िकए। अंत र
सूट का िवकास िव म साराभाई अंत र क , त वनंतपुरम म िकया
गया था। ‘गगनयान काय म’ के लए कुल 10,000 करोड़ पए क
ज रत है।
इसरो के िव म लडर के साथ संपक खो देने के कुछ ही घंटे पहले 6
ु ेना ने घोषणा क िक उसने पहले तर का
सतंबर को भारतीय वायस
चयन समा कर िदया है। इसरो के मानव अंत र िमशन (गगनयान) के
लए अपने 25 परी ण पायलट के पहले बैच का चयन कर लया है।
इस वष के अंत म तीन चयिनत फाइटर पायलट को स भेजा जाएगा,
ज ह िदसंबर 2023 तक इसरो के पहले मानवयु अंत र िमशन के
लए अंत र याि य के प म श त िकया जाएगा। स अंत र
सूट बनाने म भारत क मदद कर रहा है और अंत र याि य को स ाह
भर के लए अंत र कै सूल म रहने के लए श त कर रहा है।
इसरो ने सी अंत र एजसी रॉसकॉसमॉस के अलावा सुर त
अंत र यान क मह वपूण ौ ोिगिकय और िवशेष ता के िनमाण म
सहायता के लए यूरोपीय अंत र एजसी के साथ एक समझौता िकया
है। इसरो को साथ ही मानव वा य से संबं धत तैयारी भी करनी
होगी। इनम कम और शू य गु वाकषण, अंत र भोजन, मनोवै ािनक
अनुकूलन और अंत र पयावरण के लए शारी रक ति या से
संबं धत मु को सँभालने के लए श त डॉ टर शािमल ह गे।
4. शु यान िमशन : इसरो क एक और बड़ी प रयोजना शु ह के लए
खोजी अ भयान भेजना है। यह 2023 तक शु से लगभग 400
िकलोमीटर क दरू ी पर एक ाई-बाय िमशन शु यान-1 लॉ करेगा।
इसरो शु के वातावरण का अ ययन करने के लए इस ऑ बटर िमशन
को भेजने का इरादा रखता है। शु यान िमशन का उपयोग करके मु य
प से काबन डाइऑ साइड से बने शु ह के घने, गरम वातावरण
और उसक सतह का अ ययन करेगा।
5. भारत का अपना अंत र क : इसरो क सबसे मह वपूण योजनाओं म
से एक भारत का अपना अंत र टेशन बनाना है। तािवत टेशन
का वजन 15-20 टन होगा और यहाँ 15-20 िदन तक अंत र या ी रह
सकगे। अंत र टेशन थािपत करने क अपनी योजना के बारे म
ो ो ो े े े
इसरो भारत सरकार को एक िव तृत रपोट पेश करेगा। जसके बाद
इसके अमल म आने म पाँच से सात साल तक लग सकते ह। यह
‘गगनयान प रयोजना’ का िव तार है।
भारत एक ऐसा अंत र टेशन बनाना चाहता है, जहाँ अंत र या ी
योग का संचालन करने के लए अ धक समय तक रह सकते ह और
जहाँ से मंगल और शु के लए अंतर- ह के िमशन भी लॉ िकए जा
सकते ह।
6. मंगलयान-2 : भारत ने PSLV-C25 राॅकेट का इ तेमाल करते हुए 5
नवंबर, 2013 को अपना पहला ‘मास ऑ बटर िमशन’ (MOM) लॉ
िकया था। अगले ‘मंगलयान-2’ म लाल ह क सतह, आकृ त िव ान,
खिनज िव ान और उसके वातावरण का अ ययन करना तय िकया
गया है। 2024 म इसरो ने मंगल ह के लए दस
ू रे िमशन को लॉ करने
क योजना बनाई है। इसरो क वेबसाइट के अनुसार ऑ बटर एरो ै कग
का उपयोग अपने शु आती एपोजी को कम करके िनरी ण के लए और
अ धक उपयु क ा म वेश करेगा।
चं मा ुवीय अ वेषण (Lunar Polar Exploration)
चं मा ुवीय अ वेषण (Lunar Polar Exploration) के इस िमशन के लए
इसरो जापान क अंत र खोज एजसी जापान एयरो पेस ए स लोरेशन
एजसी-जाहा (Japan Aerospace Exploration Agency-Jaxa) के साथ गठबंधन
करेगा। इसरो ने एक बयान म कहा है िक जाहा और इसरो के वै ािनक एक
यवहायता अ ययन कर रहे ह, जससे चं मा के ुवीय इलाक क खोज
के सैटेलाइट िमशन को अमली जामा पहनाया जाए।
जाहा के ए टेरॉयड खोज यान हायाबुसा-2 ने अपने जो खम भरे दस
ू रे
अ भयान को जुलाई 2019 म एक ए टेरॉयड पर सफलतापूवक उतारकर
पूरा िकया है, जससे इस ीपीय देश का ौ ोिगक कौशल सािबत हुआ
है। भारत के 2022 म तािवत मानव अंत र िमशन के बाद जाहा-इसरो
संयु चं मा अ भयान के 2024 म होने क संभावना है।
जापान-भारत संयु चं मा अ भयान के बारे म पहला िवचार 2017 म
बगलु म बहुप ीय अंत र एज सय क एक बैठक म सावजिनक िकया
गया। इसके बाद धानमं ी नर मोदी 2018 म जापान दौरे के समय यह
अंतर-सरकारी वा ा का एक िह सा बने।
अगर िव म लडर सफलतापूवक चं मा पर उतर गया होता तो भारत
ऐसा करनेवाला चौथा देश बन गया होता। यह एक ऐसी उपल ध होती,
जसे जापान अभी तक हा सल नह कर पाया है। लूनर पोलर
ए स लोरेशन अभी आरं भक वा ा के चरण म है और इसक योजना
ो े े ै े े
चं मा पर एक रोवर भेजने क है। नासा के अगले कुछ वष म आटिमस
काय म के मा यम से चं मा पर वापसी करने के समय के साथ ही इसका
भी समय मेल खाएगा।
जहाँ नासा एक बार िफर से मानव को चं मा पर उतारने का िवचार कर
रहा है, वह ‘इसरो-जाहा िमशन’ केवल एक रोबोिटक िमशन होगा। इस पर
भी यह चं मा पर एक बेस बनाने के लए जमीनी काय को करेगा। िवशेष
के अनुसार, यह काम केवल वै क अंत र सहयोग से पूरा हो पाएगा।
इन बात के सच होने के बावजूद लूनर पोलर ए स लोरेशन िमशन ऐसे
समय म अ त व म आया है, जब पूरी दिु नया चाँद पर िफर से च िदखा
रही है। इसके लए कई प रयोजनाएँ , जनम वहाँ उतरने के िमशन और
मानव अंत र उड़ान के िमशन क योजनाएँ भी शािमल ह। भारत भी अब
ऐसी कुछ ौ ोिगिकय के लए तेजी से काम कर रहा है, जससे मानव
कम-से-कम कुछ समय चं मा पर क सके, इस लए जापान के सहयोग से
भारत का अगला चं मा िमशन बड़ा होगा।
7. आिद य एल-1 : इसरो कोरोना या सूय क बाहरी परत का अ ययन
करनेवाला पहला वै ािनक िमशन ‘आिद य एल-1’ 2023 तक लॉ
करेगा। आिद य एल-1 अंत र यान पृ वी से 1.5 िम लयन िकमी. दरू
क ा म जाएगा। इसरो के मुख ने कहा िक लै ा जयन बद ु L1 म
प र मा करते समय हण के दौरान भी सूय को देखने म कोई कावट
नह होगी।
इसरो के मुख के. सवन ने घोषणा क िक सूय का अ ययन करने के
लए भारत अपना पहला ‘िमशन आिद य एल-1’ शु कर सकता है।
उ ह ने कहा िक वै ािनक और खगोलिवद को सूय के बारे म बहुत कुछ
जानना बाक है। ‘आिद य एल-1 िमशन’ से कुछ सवाल के समाधान क
उ मीद क जा रही है।

अ याय 5
अंत र कैसे हमारा जीवन सुखमय करता
है?
आ ज हम जस तरह क जीवन-शैली अपनाते ह, जस प म अपनी
जदगी आसान करते ह, जस प म मनोरंजन करते ह, जस तरह पढ़ाई
करते ह, जन- जन तरीक से अपने जीवन को सुखमय बनाते ह, हर तरफ,
हर थान पर अंत र क ही भूिमका होती है।
अंत र ने ही आज हमारा जीवन आसान बनाया है। चाहे वह आपके
हाथ म हमेशा हँसता-खेलता मोबाइल हो, जस पर आप लगभग कुछ भी
कर सकते ह, या आपके घर का कं यूटर, जो इंटरनेट से सदैव जुड़ा रहता
है, या आपका टी.वी., जस पर देश-िवदेश के सैकड़ या हजार चैनल देख
सकते ह, या आपक गाड़ी से या ा के दौरान गूगल मैप का उपयोग करते ह,
या िफर कोई सामान खरीदते ह , यह सूची अंतहीन है। ये सारे काय करने
क सुिवधा अंत र उपयोग करने क तकनीक ने ही हम दी है।
जरा सो चए, मौसम िवभाग यह कैसे पूवानुमान कर पाता है िक भारत म
मानसून िकस िवशेष तारीख को द तक देगा और कहाँ पर िकतनी और
कब बा रश होगी? इनसैट ने अगर ये च और IRS ने अगर ये आँ कड़े
उपल ध नह कराए होते तो भारतीय मौसम िवभाग (IMD) को यह
जानकारी नह िमल पाती।
जरा सो चए, भारत से 8,000 िकमी. दरू ि केट का एक मैच हो रहा है
और यहाँ आराम से टी.वी. पर हम इस खेल का आनंद लेते ह। अगर िव
के िव भ देश ने अपने-अपने सैटेलाइट नह भेजे होते, तो भी यह संभव
नह था। जरा सो चए, अगर सरकार को यह िनणय लेना है िक कहाँ पर,
कौन सी फसल म रोग लग गए ह और उससे िनपटने के लए या करना
होगा? इसके लए उसे IRS ारा भेजे गए च पर ही िनभर कर िनणय लेना
होगा। अगर हम पानी के नए ोत क खोज करनी हो तो भी हम IRS ारा
भेजे गए च का िव ेषण करके ही मालूम चल पाएगा िक िकसी थान पर
भूिमगत जल ोत म पानी है भी या नह ?
यह भी सो चए िक यह कैसे संभव हो पाता है िक िकसी थान पर
च वाती हवाओं के बावजूद कोई हताहत नह होता। जबिक वहाँ का मंजर
देखकर यह लगता है िक शायद ही कोई बचा होगा! यह सबकुछ इस लए
संभव हो पाता है, य िक हमने सभी कोण से अंत र का उपयोग िकया है
औ औ ै
और एक तकनीक लगाकर अपना जीवन आसान और सुखमय िकया है।
अंत र क तकनीक आज हमारे शरीर का अंग बन चुक है। मोबाइल और
हमारे सभी कमर म यही तकनीक िव मान है।
सैटेलाइट ने बदला संचार का संसार
हमारे देश म आज टेलीिवजन डीटीएच सारण, ड जटल उप ह
समाचार समाहरण (डीएसएमजी) तथा वी-सैट जैसे िविवध अनु योग म
उप ह संचार का योग िव तृत व सव यापी हो गया है। यह उप ह संचार
आवरण और पहुँच के कारण संभव हो सका है। गत 30 वष के दौरान यह
तकनीक और भी अ धक प रप व हुई है तथा अब इसे अनेक अनु योग म
यावसा यक प म योग िकया जा रहा है। उप ह संचार का अपने जीवन
पर पड़ रहे भाव के बारे म जतना हम समझते ह, उससे कह अ धक
प म हम भािवत होते ह।
सामा जक िहत के उपयोग म इस तकनीक क मताओं के त इसरो
सदैव से आक षत रहा है तथा इस मता का मानवता क भलाई म
इ तेमाल करने क को शश िनरंतर करता रहा है। इसरो ारा सामा जक
िहत म िकए जा रहे यास म दरू श ा (टेली एजुकेशन), दरू चिक सा,
ाम संसाधन क (वीआरसी) तथा आपदा बंधन णाली (डीएमएस)
काय म शािमल ह। देश के िवकास हेतु अनु योग म अंत र ौ ोिगक
क मताएँ अपार ह।
अंत र अनिगनत थान पर हम ान और कभी-कभी सं ान भी देता
है। इसका उपयोग और इसके उपयोग क तकनीक ने हम पृ वी के बारे म
न सफ अ धका धक नई जानकारी दी है, वरना हम सम याओं से बचाया
है, आगाह िकया है और अवसर भी िदखाए ह।
सुदरू संवेदन सैटेलाइट तकनीक का उपयोग
पृ वी क िनगरानी (Earth Monitor)
भारतीय सुदरू संवेदन काय म उपयोगकताओं क ज रत के िहसाब से
संचा लत होता है। वा तव स पहला सुदरू संवेदन आधा रत काय म वष
पहले 1970 म ना रयल पेड़ क जड़ सूखने क बीमारी को ि च त करने के
लए चलाया गया था। िव भ उप ह आँ कड़े अनु योग म देशी व िवदेशी
उपयोगकताओं क ज रत के अनुसार िव भ आकाशीय, पे टमी एवं
का लक िवभेदन म आँ कड़ को उपल ध कराने के लए आईआरएस
उप ह म कई कार के उपकरण लगाए जाते ह।
आईआरएस उप ह हमारी पृ वी पर अंत र से नजर रखते ह और भूिम,
महासागर, वायम ं ल तथा पयावरण से संबं धत कई पहलुओ ं के िवषय म
ु ड
औ ँ े े ँ
समयब , मह वपूण और यव थत सूचनाएँ उपल ध कराते ह। ये सूचनाएँ
क व रा य सरकार को भोजन तथा जल सुर ा, पयावरण तथा
पा र थ तक णाली, मौसम व जलवायु क समझ, ाकृ तक संसाधन
क िनगरानी और बंधन तथा िवकास के काम का िनयोजन और
िनगरानी, आपदाओं क रोकथाम तथा बंधन सहायता और सुशासन के
लए ज री होती ह।
भारत ने िव भ कार के सुदरू संवेदन उप ह भेजे ह। जैसे—भूिम
संसाधन के लए LANDSAT, मान च ण और िनगरानी के लए CARTOSAT,
समु ी अ ययन के लए OCEANSAT, मौसम अ ययन के लए METSAT, और
केवल िनगरानी के लए अ य उप ह।
‘आपदा बंधन सहायता काय म’ म उपयोग

एक सैटेलाइट िकस तरह क सुिवधाएँ देता है और कैसे जीवन आसान करता है?

भू-जलवायु प र थ तय के कारण भारत पारंप रक प से ाकृ तक


आपदाओं के लए संवेदनशील रहा है। यहाँ पर बाढ़, सूखा, च वात, भूकंप
तथा भू खलन क घटनाएँ आम ह। भारत के लगभग 60 तशत भू-भाग
म िव भ बलताओं के भूकंप का खतरा बना रहता है। 40 िम लयन
हे टेयर से अ धक े म बारंबार बाढ़ आती है। कुल 7,516 िकमी. लंबी
तटरेखा म से 5,700 िकमी. म च वात का खतरा बना रहता है। खेती यो य
े का लगभग 68 तशत भाग सूखे क आशंका से त रहता है।
अंडमान-िनकोबार ीप समूह और पूव व प मी घाट के इलाक म सुनामी
का संकट बना रहता है। देश के कई भाग म पतझड़ी व शु क पतझड़ी वन
म आग लगना आम बात है। िहमालयी े तथा पूव व प मी घाट के
इलाक म अकसर भू खलन का खतरा रहता है।
आपदा बंधन सहायता काय म के तहत देश म ाकृ तक आपदाओं के
कुशल बंध के लए ज री आँ कड़ व सूचनाओं को उपल ध कराने के
लए इसरो अंत र थािपत आधारभूत संरचनाओं से ा सेवाओं का
अ धकतम समायोजन िकया जाता है। भू- थर उप ह (संचार व मौसम
िव ान), िनचली पृ वी क ा के भू- े ण उप ह, हवाई सव ण णाली
औ ँ े े
और भू-आधा रत मूल संरचनाएँ आपदा बंधन े ण णाली के मुख
घटक ह। इसरो के ‘नेशनल रमोट स सग क ’ (एनआरएससी) म थािपत
िनणय सहायता क म बाढ़, च वात, कृिष सूखा, भू खलन, भूकंप और
जंगल क आग जैसी ाकृ तक आपदाओं के लए कायकारी तर पर
िनगरानी का काम चल रहा है। िनणय म सहू लयत के लए संबं धत
यि य को लगभग त काल ही अंत र णा लय से तैयार क गई
सूचनाएँ भेज दी जाती ह। उप ह च के योग से तैयार बहुमू य
सूचनाओं से आपदा से िनपटने क तैयारी, पूव चेतावनी, ति या, राहत,
बेहतर पुनवास और रोकथाम जैसे आपदा बंधन के सभी चरण के लए
अपे त सूचनाएँ पाने म मदद िमलती है।
बाढ़ (Flood) का पूवानुमान और बंधन
िव भर म सवा धक बाढ़ के खतर का सामना कर रहे देश म भारत का
भी नाम आता है। भारत क लगभग सभी नदी बे सन म बाढ़ आती है। देश
के 35 रा य व क शा सत देश म से 22 म बाढ़ आती है। इस कारण 40
िम लयन हे टेयर इलाके अथात् देश के भौगो लक े फल के लगभग
आठव भाग म बाढ़ का खतरा बना रहता है। बाढ़ भािवत े तथा
बुिनयादी सुिवधाओं को पहुँची त के आकलन ारा िनणायक को राहत
काय क योजना बनाने म मदद िमलती है। उप ह आधा रत च िवशाल
े को िदखाते ह। अत: वे बाढ़ त इलाक के िव तार के मू यांकन म
सव े उपाय सािबत होते ह। जैसे ही बाढ़ क सूचना िमलती है, तुरत ं
सव थम उपल ध उप ह को बाढ़ त इलाक के सीमांकन के लए लगा
िदया जाता है। इसके लए काशीय व सू म तरंग, दोन कार के उप ह
आँ कड़ का उपयोग िकया जाता है। बाढ़ भािवत गाँव और प रवहन
नेटवक के अलावा बाढ़ म डू बे व बाढ़ से अछूते इलाक को िव भ रंग से
दरशाते बाढ़ मान च तैयार कर क /रा य क संबं धत एज सय को
िवत रत िकए जाते ह। िव भ बाढ़ त इलाक के ऐ तहा सक आँ कड़ का
योग कर बाढ़ के खतरेवाले इलाक का सीमांकन िकया जा रहा है। असम
व िबहार रा य म जले के तर पर इस कार के खतर को दरशानेवाला
एटलस तैयार कर लया गया है। इसके अलावा हवाई सव ण , मौसम के
पूवानुमान तथा क ीय जल आयोग ारा मौके पर ली गई सूचनाओं को
संयो जत कर तैयार क गई नदी पाकृ त ारा बाढ़ का पूवानुमान लगाने
क प त िवक सत कर कायकारी बनाई जा रही है।
च वात (Cyclone)
च वात, भारत के तटवत े को भािवत करनेवाली मुख आपदा
है। लगभग 7,516 िकमी. लंबी भारतीय तटरेखा को िव के उ ण-
किटबंधीय े म उठनेवाले लगभग 10 तशत च वात को झेलना
ै े
पड़ता है। इस े का लगभग 71 तशत भाग दस रा य —गुजरात,
महारा , गोवा, कनाटक, केरल, तिमलनाडु , पुदच
ु ेरी, आं देश, तेलग
ं ाना,
ओ डशा और प म बंगाल म आता है। अंडमान िनकोबार और ल ीप
समूह म भी च वात का संकट बना रहता है। बंगाल क खाड़ी तथा अरब
सागर म औसतन पाँच या छह उ ण-किटबंधीय च वात बनते ह और वे
भारतीय तट से टकराते ह।
च वात के तट पर पहुँचने पर तेज हवाओं, भारी वषा और तूफान, उससे
पैदा बाढ़ के कारण जान-माल के नुकसान का खतरा बढ़ जाता है। इसरो
सटीक मॉडल और उप ह के आँ कड़ के योग से भारतीय मौसम िव ान
िवभाग को भूम यरेखीय च वात पर िनगरानी रखकर उनक शि और
तट से टकराने का पूवानुमान लगाने म सहायता कर रहा है। च वात के
बनने पर उसके भावी रा ते क िनयिमत िनगरानी क जाती है। अंत र
उपयोग क , इसरो ारा तैयार एक ग णतीय मॉडल के योग से ायोिगक
तौर पर उनका पूवानुमान लगाया जाता है। इन ायोिगक माग को िनयिमत
प से िवभाग के वेब पोटल (http://www.mosdac.gov.in/scorpio/) पर
सूचना िवतरण के प म पो ट िकया जाता है।
ओशनसैट-2 के िविकरणमापी आँ कड़ से बने वायु तमान के योग से
एक ऐसा मॉडल बनाया गया है, जो कम दबाव को च वात म बदलने से
पहले ही उसका पूवानुमान लगाता है। सभी भूमडं लीय च वात क
उ प का इस तरह पूवानुमान लगाकर उ ह इस पोटल पर अपलोड िकया
जाता है।

सैटेलाइट ारा लया गया उ ण-किटबंधीय च वात का प। यह च इन च वात के उ प क ,


उनक ती णता, उनक िदशा और िव वंसक मता सभी बता देते ह।

इ तहास के 35 सबसे घातक उ ण-किटबंधीय च वात म से 26 च वात


बंगाल क खाड़ी म आए ह। इन तूफान से बां लादेश म सबसे यादा लोग
क मौत हुई है। िपछले 200 साल म दिु नया भर म उ ण-किटबंधीय
च वात से दिु नया भर म हुई कुल मौत म से 40 फ सदी सफ बां लादेश म
हुई ह, जबिक भारत म एक-चौथाई जान गई ह।

े े ओ ओ े
1891 से 2002 के बीच ओ डशा म 98 तूफान आए। ओ डशा म सबसे
ती उ ण-किटबंधीय च वात 05बी, 1अ ू बर, 1999 को आया था,
जसके कारण जान-माल का गंभीर नुकसान हुआ और लगभग 10,000
लोग मृ यु का शकार हो गए।
इससे पहले 1971 म ऐसे ही च वात म भी करीब 10 हजार लोग ही मारे
गए थे। अ ू बर, 2013 म च वात ‘फै लन’ और 2018 म च वात
‘ ततली’ के कोप से बड़ी सं या म लोग को बचाने के लए उ ह पहले ही
सुर त जगह पर पहुँचा िदया गया। हालाँिक उसके बावजूद भी इन दोन
तूफान म 77 लोग मारे गए थे। अ ू बर 2014 म ‘हुदहुद’ नाम के एक
च वात म 124 लोग मारे गए थे। ‘फोनी’ च वात भी काफ तेज था।
2017 म च वात ‘ओ खी’ क वजह से तिमलनाडु और केरल म 250
लोग मारे गए थे।
कृिष सूखा (Agricultural Drought)
भारत क 70 तशत से अ धक जनसं या य अथवा अ य प
से कृिष पर िनभर है। कृिष सूखे का मानव जीवन और अ य जीव पर गंभीर
भाव पड़ता है। देश के लगभग 68 तशत भू-भाग म कह कम तो कह
अ धक मा ा म सूखे का असर रहता है। इस े के 35 तशत भाग म
750 िम.मी. से 1,125 िम.मी. तक ही वषा होती है, अत: इसे थायी
सूखा त े माना जा सकता है। िवशाल इलाक को आवृ करते
अप र कृत िवभेदन आँ कड़ का योग कर खरीफ क फसल (जून से
नवंबर तक) का रा य/ जले/उप- जले के तर पर कृिष सूखे क
उप थ त, गंभीरता तथा बारंबारता क िनगरानी क गई। िपछले वष म
इसरो ारा िवक सत इस काय णाली को अब कृिष मं ालय के तहत
‘महालनोिबस रा ीय फसल पूवानुमान क ’ क थापना कर उसे
सं थागत प िदया गया है। इस समय इसरो का यान सूखा िनगरानी क
काय णाली को उ त बनाने पर कि त है तथा कृिष सूखे के लए पूव
चेतावनी तं िवक सत करने का यास हो रहा है।
जंगल क आग (Forest Fire)
जंगल म लगी आग का एक सैटेलाइट च , अमेजन घाटी म।

भारतीय वनावरण का लगभग 55 तशत भाग तवष आग से भािवत


रहता है। अनुमान है िक वन म आग के कारण भारत को तवष 440
करोड़ पय का आ थक नुकसान झेलना पड़ता है। भूम यरेखीय वन म
आग के कारण पयावरण पर गंभीर द ु भाव पड़ता है। दावाि से भारी मा ा
म अवशेष गैस और एरोसॉल कण पैदा होते ह, जो ोभमंडलीय ि या
और जलवायु पर िनणायक भाव डालते ह। वन म आग लगने के समय
(फरवरी से जून तक) के दौरान उप ह च क मदद से सि य दावाि का
पता लगाकर उसे भारतीय दावाि ति या और आकलन तं (इन ास)
क वेबसाइट (www.inffras.gov.in) पर अपलोड िकया जाता है।
भू खलन (Landslide)
थानीय तथा े ीय तर पर भू खलन के मान च ण म सुदरू संवेदन
आँ कड़ को उपयोगी पाया गया है। इन आँ कड़ को अ मिव ान
(Lithology), भौमक य संरचना (Geological Structure), भू पाकृ त
(Geometry), भूिम उपयोग/भूिम आवरण (Land use/Land cover), अपवाह
(Drainage), भू खलन खतरे आिद के मान च तैयार करने म भी योग
िकया जा सकता है। भौगो लक सूचना तं इन मान च म ढलान, ढलान
के ख, ढलान पाकृ त, च ान का आकार प रवतन, ढलान सं तरण,
कोण सहसंबध ं के िवषय को मान च म शािमल करके भू खलन के
खतरेवाले े को दरशाता है। अंत र िवभाग ने उ राखंड और िहमाचल
देश के िहमालयी े म पयटन और या ी माग तथा शलांग- सलचर-
आईजोल म खतरनाक े के मान च तैयार िकए ह। आपदा सेवा क
संबधं ी ि याकलाप के तहत सभी मुख भू खलन से पहुँची त के
आकलन के लए िनगरानी क जा रही है।
भूकंप (Earthquake)
सुदरू संवेदन तथा भौगो लक सूचना णाली (जीआईएस) एक ऐसा

ँ े े े े
आँ कड़ा सं ह उपल ध कराते ह जससे आपदा के बाद छूटे च का अ य
भौगो लक और थलाकृ तक आँ कड़ा सं ह के साथ िमलान कर खतरनाक
े का मान च तैयार िकया जा सकता है। सामा यत: भूकंप भािवत
इलाके बहुत बड़े े म फैले होते ह, लेिकन वे कुछ सुप र चत ( लेट
संपक) े म ही सीिमत रहते ह। उप ह आँ कड़े आपदा भािवत े का
सारपूण य उपल ध कराते ह। इन आँ कड़ को आपदा आकलन तथा
राहत उपाय के लए इलाके क बड़े पैमाने पर आधारभूत सूचनाएँ तैयार
करने म योग िकया जा सकता है।
सैटेलाइट नेिवगेशन काय म (Satellite Navigation Program)
उप ह नेिवगेशन सेवा वा ण यक और साम रक अनु योग के साथ
उभरती हुई उप ह आधा रत णाली है। इसरो उप ह आधा रत नेिवगेशन
सेवाएँ उपल ध कराने के लए, नाग रक उ यन ज रत क उभरती माँग
को पूरा करने के लए और उपयोगकता को थ त, नेिवगेशन और समय
आधा रत वतं उप ह नेिवगेशन णाली क ज रत को पूरा करने के
लए तब है। नाग रक उ यन ज रत को पूरा करने के लए इसरो
जीपीएस आधा रत भू-संव धत नौसंचालन-गगन (Geo Augmented
Navigation-GAGAN) णाली थािपत करने म हवाई अ ा ा धकरण
(एएआई) के साथ संयु प से काम कर रहा है। उपयोगकता के लए
वदेशी णाली पर आधा रत थ त, नेिवगेशन और समय सेवाओं क
आव यकताओं को पूरा करने के लए इसरो ने ‘भारतीय े ीय नौवहन
उप ह णाली’ आईआरएनएसएस (Indian Regional Navigation Satellite
System (IRNSS) : NavIC) नामक े ीय उप ह नेिवगेशन णाली क थापना
क है।
जीपीएस आधा रत भू-संव धत नौसंचालन-गगन
इसरो ने उप ह आधा रत सेवा ‘गगन’ (जीपीएस-एडेड जयो एगमटेड
नेिवगेशन) शु क है। यह इसरो और भारतीय िवमानप न ा धकरण क
एक साझा प रयोजना है। यह िवमानन े के जीपीएस कवरेज को बढ़ाने,
सटीकता म सुधार के लए है। इसे मु य प से नाग रक िवमानन और
भारतीय हवाई े के बेहतर हवाई यातायात बंधन के लए बनाया गया
है।
गगन कैसे काय करता है?

‘गगन थरता परी ण’ जून, 2013 म सफलतापूवक पूरा िकया गया।


समी ा सिम त ारा णाली के सम दशन क समी ा क गई।
माणीकरण ग तिव ध के भाग के प म डीजीसीए का मक ने बगलु म
गगन कॉ ले स, कंु दलह ी का दौरा िकया और भारतीय भू-अप लक क
(INLUS), भारतीय मु य िनयं ण क (INMCC), भारतीय संदभ भू-क
(INRES) और अ य सुिवधाओं म अं तम िनरी ण ग तिव धय को पूरा
िकया।
गगन के उपयोग से िवमानन े के लए ई ंधन क बचत, उपकरण क
लागत म बचत, उड़ान सुर ा, अंत र मता म वृ , मता, िव सनीयता
क वृ , ऑपरेटर के लए काम के बोझ म कमी, हवाई यातायात के लए
समु ी े क कवरेज पर िनयं ण, उ सटीकता (High Precision) क
थ त जैसे कई फायदे ह। िवमानन े म लाभ क मा ा इस तरह के
सुिवधा के उपयोग के तर पर िनभर करेगा।
नाग रक उ यन े के लए गगन के कुछ संभािवत लाभ ह—
1. काय े मागदशन से िवशेष प से तकूल मौसम क थ त म,
सुर ा म सुधार।
2. च र काटने म कमी।
3. काय े गाइडस ि याओं के सुग यता के साथ बेहतर ऊजा और
अं तम अवरोहण ोफाइल बंधन म मदद िमलेगी।
4. आगमन, थान, समु ीय और माग सिहत उड़ान के सभी चरण के
लए वै क िनरंतरायु नौसंचालन।
5. एयरलाइन को सीधा माग, एका धक ि कोण से काफ ई ंधन बचत
और हवाई अ और हवाई े क मता म वृ ।
6. िवमानन े के अलावा, गगन रेलवे, रोडवेज, जहाज , अंत र यान म
ौ औ े ै
नौसंचालन और सुर ा संवधन म लाभ देता है।
े ीय नौसंचालन उप ह णाली (आई.आर.एन.एस.एस.)
नौ-प रवहन के लए भारतीय े ीय नेिवगेशन सैटेलाइट स टम (IRNSS)
है, जो भू थर और भू-समका लक क ाओं म सात उप ह पर आधा रत
णाली है। यह 20 मीटर से अ धक सटीकता के साथ भारतीय सीमाओं से
1,500 िकमी. तक फैले े क िनगरानी करते हुए सटीक जगह बताने क
सेवा देता है। उ सटीकता पोजीश नग उपयोग के लए सुर ा एज सय को
उपल ध है। 2016 म स टम का नाम बदलकर ‘नािवक’ (Navigation with
Indian Constellation) कर िदया गया। इन सेवाओं के अनेक रणनी तक लाभ
ह।
आई.आर.एन.एस.एस. क ‘मानक थ तक सेवा’ एस.पी.एस (Standard
Positional Service) सेवाओं के दो कार ह—

• सभी उपयोगकताओं और तबं धत सेवा (आरएस)।


• अ धकृत उपयोगकताओं के लए िनरंतर सेवा।
ाथिमक सेवा े म आई.आर.एन.एस.एस. णाली िकसी चीज क 20
मीटर क बेहतर सटीकता क थ त क जानकारी दान करती है।
आई.आर.एन.एस.एस. से कुछ उपयोग ह—
• थलीय, हवाई और समु ी नौसंचालन
• आपदा बंधन
• वाहन अनुवतन और बेड़ा बंधन
• मोबाइल फोन के साथ एक करण
• सटीक समय
• मान च ण और भूिम डाटा अ ध हण (Land Data Acquisition)
• घुमत
ं ू लोग और पयटक के लए थलीय नौसंचालन सहायता
• डाइवर के लए य और आवाज नेिवगेशन
जलवायु और पयावरण अ ययन, पूवानुमान, चेतावनी और बचाव
जलवायु मौसम पैरामीटर का दीघका लक औसत है। हमारे देश क
भौगो लक यव था के कारण जलवायु हर जगह अलग होती है। इस तरह
भारत कई कृिष-जलवायु े म िवभा जत है और देश क आ थक
ग तिव धयाँ जलवाय,ु िवशेषताओं पर अ य धक िनभर ह। कई ज री
जलवायु चर (Variable) ह, जो वै क जलवायु णाली को समझने और
े े े
िनगरानी करने के लए मह वपूण ह। इनसे अंत र आधा रत णा लय का
सबसे अ छा अवलोकन िकया जा सकता है।
इसरो के िव भ क शोध अ ययन और पृ वी क जलवायु णाली,
संवेदक और उप ह को डजाइन करने, जलवायु और पयावरणीय मानक
का अ ययन करने के लए भू-आधा रत अवलोकन से संबं धत
ग तिव धय म लगे ह।
इसरो ने मौसम मापदंड पर आधा रत अवलोकन से वदेशी णाली
तैयार और िवक सत क है। इसम—
(i) वचा लत मौसम क (ए.ड यू.एस.) शािमल ह, जो मह वपूण मौसम
पैरामीटर, जैसे िक दबाव, तापमान, आ ता, वषा, हवा और सुदरू े
से िविकरण और दगु म े से तघंटे क जानकारी दान करते ह।
(ii) िम ी का तापमान, िम ी क नमी, िम ी क गरमी और शु िविकरण,
हवा क ग त, हवा क िदशा, दबाव और आ ता को मापने के लए ए ो
मेटोलॉ जकल (ए ोमेट) टावस ह।
(iii) बहु तरीय माइ ो-मेटेरोलॉ जकल अवलोकन के लए स टावर
और साथ ही वन प त सतह पर िम ी के तापमान और नमी पर
उपसतह अवलोकन है।
(iv) डॉ लर मौसम रडार (डी.ड यू.आर.) से च वात और भारी बा रश
जैसी खराब मौसम क घटनाओं क िनगरानी करना शािमल है।
(v) वायम
ु ड
ं लीय मापदंड क ऊ वाधर ोफाइल को अवलोकन के लए
जीपीएस स डे और सीमा तर लडार (बी.एल.एल)। जीपीएस स डे
तापमान, दबाव, आ ता और पवन मापदंड दान करता है। बी.एल.एल.
एरोसोल और सीमा परत क ऊ वाधर सां ता दान करता है।
जलवायु प रवतन का ाकृ तक णा लय पर गहन भाव पड़ता है।
भाव के िनगरानी और मू यांकन म मापदंड के दीघका लक डाटाबेस क
आव यकता होती है, जसम सुदरू संवेदन और भू-आधा रत िव धय को
और प रवतन क भिव यवाणी के लए उपयु मॉडल को लया जाता है।
इसरो के पास भू-तु यकारी और ुवीय क ीय उप ह के मजबूत समूह है।
िवशेष प से िव श संकेतक, जैसे बफ का िपघलना, म थलीकरण,
भूिम उपयोग और भूिम आवरण प रवतन और एजट जैसे जीएचजी,
एरोसोल इ यािद पर जलवायु प रवतन पर सि य अनुसंधान कर रहे ह।
जलवायु प रवतन के वै ािनक पहलुओ ं को समझने के लए, इसरो
भूमड
ं ल जैवमंडल काय म (इसरो-जी.बी.पी.) के मा यम से, बहुसं थागत
भागीदारी के साथ, िपछले दो दशक से जलवायु पर अ ययन कर रहा है।
अ ययन से वायम ु ड
ं लीय एरोसोल, टेस गैस, जी.एच.जी., पैलो ाइमेट,

भूिम कवर प रवतन, वायम
ु ड
ं लीय सीमा तर क ग तशीलता, वन प त
णा लय म ऊजा और जन िविनमय, रा ीय काबन प रयोजना
(एन.सी.पी.) और े ीय जलवायु मॉड लग (आर.सी.एम.) को लया गया
है।
रा ीय सुदरू संवेदन क , हैदराबाद म सतंबर, 2012 म जलवायु और
पयावरण अ ययन (एन.आई.सी.ई.एस.) के लए रा ीय सूचना णाली पर
काय म शु िकया गया है। यह नई रा ीय पहल जलवायु प रवतन क
िव श ज रत के लए योगदान देगा, जो अनुसंधान आव यकताओं और
रा ीय आव यकता के मा यम से िवक सत क जाएगी। वायम ु ड
ं लीय,
महासागर और थलीय अवलोकन के मा यम से जलवायु चर पर
मू यवान समयाव ध संबध ं ी जानकारी पैदा करने के लए भू-अवलोकन
उपकरण के डजाइन, उ पादन और संचालन पर मु य बल िदया जाएगा।
काय म के उ े य को ा करने के लए अंतररा ीय और रा ीय जलवायु
अनुसंधान समुदाय के साथ जलवायु प रवतन और पयावरण अ ययन से
मजबूत सहयोग कायम िकया जाएगा।
सुदरू संवेदन उप ह ने या िकया?
मान च तैयार करने म उपयोग

DEM, जो सुदरू संवेदन सैटेलाइट ारा तैयार िकया गया है, वह सतह क ऊँचाई,
ढाल, गहराई सभी चीज क जानकारी दे देते ह।

सुदरू संवेदन आँ कड़ से देशभर के भूिम संसाधन, पवत क ऊँचाई और


िव तार तथा नीचे के भूिम-िव यास के बारे म पूरी जानकारी िमल जाती है।
ये सैटेलाइट जो च तैयार करते ह, उसे ‘ ड जटल टेरन े मॉडल’ (DTM)
या ‘ ड जटल ए लवेशन मॉडल’ (DEM) कहते ह।
इन च के सहारे यह जानना संभव होता है िक सतह िकतनी ऊबड़-
खाबड़ है, िकतनी ऊँची-नीची है और ऊँचाई या गहराई भी िकतनी है। जो
च लये जाते ह, उनम छायाएँ होती ह और सूय के एक िवशेष कोण पर
ँ ओ े े ँ
छायाएँ बनती ह। इन छायाओं के िव तार से उस सतह क ऊँचाई (Terrain
& Elevation) क जानकारी िमल जाती है। काट सैट म ऐसे पेलोड लगे ह,
जो इन बात क जानकारी देते ह। इन आँ कड़ के सहारे उसका मान च
बनाना आसान हो जाता है और े फल जानना भी। अब इस मान च का
उपयोग अकादमी काय के लए या िफर सै य काय के लए िकया जा
सकता है।
संसाधन बंधन म उपयोग क तकनीक
समु ी संसाधन का सव ण, खोज और बंधन
समु म कहाँ मछ लयाँ ह, कहाँ हो सकती ह और िकतनी गहराई पर हो
सकती ह, यह बताने का काय ओशनसैट करता है। ओशनसैट समु ी जल
के तापमान को महसूस (Sense) करता है। जहाँ समु ी जल का तापमान
कम होगा, वहाँ पर पादप लवक ( ल टन) पाए जाते ह। यही पादप लवक
मछ लय के भोजन होते ह। जहाँ लवक ह गे, वहाँ पर ही मछ लयाँ भी
ह गी।
थमल स सग इमेजेरी (Thermal Sensing Imagery) के आधार पर
ओशनसैट यह जानकारी देता है। िफर इसी जानकारी को मछली
मारनेवाली नौकाओं के साथ साझा िकया जाता है। ये नौकाएँ जस थान
पर पानी अपे ाकृत ठंडा होता है, वहाँ जाकर मछली मार लेती ह।
कृिष उ पादकता और बेहतर संसाधन बंधन
सुदरू संवेदन कृिष को बेहतर करने का साधन, कृिष क सम याओं से
िनकलने का ज रया, कृिष के लए बेहतर िनयोजन करने का तरीका, जैसे
सभी उपाय को दान करता है। इन सभी क सुिवधा दान करने के
तरीके बहुत ह। सुदरू संवेदन उप ह जैसे IRS सतह क नमी को बता सकता
है। जमीन के नीचे िकतनी गहराई पर पानी है, उसे बता सकता है। पानी क
गुणव ा कैसी है, उसे बता सकता है और उसके सहारे अ छी तरह योजना
बनाई जा सकती है, फसल का िनधारण िकया जा सकता है, कौन सी
फसल बेहतर होगी, यह बताया जा सकता है।
इतना ही नह , अगर फसल हो गई तो, फसल िकतनी व थ है, फसल
के प े िकतने हरे-भरे ह, उनम िकतना फल लगा हुआ है और उनम
िकतना रोग लगा हुआ है, यह सारी बात मालूम चल जाती ह। फसल म जरा
भी पीलापन आया और जानकारी िमल गई िक कोई रोग लग गया है या
िफर पानी क कमी हो गई है। इस लए कभी-कभी आपने अखबार म पढ़ा
होगा िक इस बार फसल क उ पादकता बहुत अ धक होनेवाली है।
यह सबकुछ पृ वी क सतह से 400 िकलोमीटर ऊपर मँडराते उप ह

ौ े े े ै
पौध , िम ी क नमी के आधार पर भिव यवाणी कर देते ह। ामसैट
(GRAMSAT) ऐसा ही एक सैटेलाइट है, जो ामीण े के लए बनाया गया
है।
खिनज संसाधन क खोज
यह आ यजनक लगता है िक पृ वी क सतह के 500 मीटर नीचे कौन
से खिनज ह, इसका पता पृ वी के ऊपर मँडराते हुए सैटेलाइट दे देते ह।
ऐसा हो रहा है और यह िब कुल संभव है। सुदरू संवेदन उप ह सतह के
रंग, उसम िमले खिनज क चमक और वहाँ उप थत संकेत , जैसे दरार
या टीले या अ य कोई ऐसे थान, जो खिनज के िनमाण म मददगार
सािबत हो सकते ह, का संकेत कर देते ह। इतना ही नह , िकसी िम ी का
संगठन िनधा रत करता है िक वहाँ पर पेड़ क प य का रंग कैसा होगा?
जैसे लोहे के ऊपर एक आम का पेड़ और ताँबे के ऊपर एक आम के पेड़
क प य का रंग अलग-अलग और काश परावतन से संबं धत होगा।
इसका पता सुदरू संवेदन उप ह लगा लेते ह। आप इस बात पर आ य कर
सकते ह िक हम लोग ने जो ऑ बटल भेजा है, वह 100 िकलोमीटर ऊपर
से चं मा क सतह के 10 सटीमीटर नीचे तक पता लगा सकता है िक
चं मा पर िकस तरह का खिनज पाया जाएगा, तो पृ वी या चीज है!
मौसम और च वात क भिव यवाणी
अगर भारत म उप ह के सबसे अ धक काय, उपयोग और उनके संपूण
भारत पर भाव क भी बात आती है तो वह कोई उप ह होगा, जो मौसम
क न ज पकड़ ले और उसक भिव यवाणी कर दे। इनसैट ने अपनी
िव भ सैटेलाइट ंखलाओं ारा च तो भेजे ही, परंतु इस बारे म अ धक
िवशेष सैटेलाइट है मेटसैट या Meteorological Satellite। इस सैटेलाइट म
भू- थै तक (Geostationary) सैटेलाइट के पेलोड तो ह ही, पर साथ-साथ
रमोट स सग सैटेलाइट के बी पेलोड ह, जैसे सी.सी.डी (Charged Couple
Device)।

इन पेलोड के सहारे यह सैटेलाइट वायम


ु ड
ं ल म या जलवा प क मा ा
को भी जान जाता है और जलवा प लेकर चलती हवाओं क ग त और
उनक ऊँचाई भी। इसी के सहारे यह भिव यवाणी करने क थ त म भी
होता है िक मानसून कहाँ तक आया है, उसक ग त या है, उससे वषा क
संभावनाएँ िकतनी ह और वषा क बारंबारता िकतनी होगी?
मौसम क भिव यवाणी म अब बहुत सारे सैटेलाइट और बहुत सारे
आँ कड़ के ोत लये जाते ह, जो िन न दबाव क , उ दबाव क , प मी
िव ोभ क थ त और ऊपरी वायम ु ड
ं ल प रसंचरण, इन सभी को एक
माला म िपरोकर उसे िवशेष कं यट
ू र म डालकर उससे िन कष िनकालते
ह।
संचार उप ह
संचार उप ह म टांसप डर को उपयोग िकया जाता है। टांसप डर
इले टॉिनक उपकरण ह, जो जमीन (अप लक) से संकेत क बीम को
हा सल करते ह और उ ह एं लीफाई (Amplify) करते ह (एक अरब गुना
बढ़ाते ह)। इसके बाद एक अलग, कम आवृ पर संकेत बीम को वापस
जमीन पर (डाउन लक) भेजते ह। इन स ल को पृ वी के डश एं टीना
रसीव करते ह और िफर वही ॉडका ट करते ह या फैला देते ह।
उनका इ तेमाल मोबाइल अनु योग , जैसे—जहाज, वाहन , िवमान
और ह तचा लत ट मनल तथा टी.वी. और रे डयो सारण के लए होता
है। इससे उन जगह पर भी संचार संभव हुआ, जहाँ केबल या तार जैसी
अ य ौ ोिगिकय का अनु योग अ यावहा रक या असंभव है।
सै य और सुर ा के लए अंत र तकनीक
िपछले साल ही अमे रका ने अपनी सेना क छठी शाखा क थापना क ।
उसने अपनी ‘ पेस फोस’ के साथ एक अमे रक अंत र कमान बनाई है।
अंत र और साइबर यु के लए चीन ने 2015 म अपनी सेना क पाँचव
शाखा ‘ टेटे जक सपोट फोस’ बनाई। भारत क ‘र ा अंत र एजसी’
(डीएसए) के गठन को इसी संदभ म देखने क ज रत है।
शु से ही अंत र ने सै य ि कोण से च जगाई है और वा तव म,
अ धकांश अंत र काय म सै य उ े य से ही संचा लत थे। डी.एस.ए को
अंत र आधा रत प रसंप य के िनयं ण के लए ‘भारतीय अंत र
अनुसंधान संगठन’ (ISRO), ‘र ा खुिफया एजसी’ (DIA) और ‘रा ीय
तकनीक अनुसंधान कायालय’ (NTRO) जैसी एज सय के मा यम से काम
करना होगा।
भारत एक ऐसा देश है, जसने इनसैट ंखला जैसे बहुउपयोगी उप ह
का िवकास िकया है, जो र ा के लहाज से भी अलग-अलग एज सय के
उपयोग के लए साझा करने के लए सुिवधाजनक है।
अ धकांश देश म अंत र के नाग रक काय उनके अिनवाय प से सै य
काय म का एक िह सा थे। भारत एक अलग ख अपनाया था जसने
जोर देकर कहा िक इसका काय म िवकासा मक ल य को पूरा करने के
उ े य से था। भारत अपने काय म को जतना संभव हो उतना बनाने के
लए यास करता है। यह िवक सत होनेवाली ौ ोिगिकय , इसक परी ण
ि याओं और उनसे जुड़े सभी तरह के िववरण दान करता है।
इसरो के इस फैसले का एक कारण यह था िक िमसाइल ौ ोिगक
े ौ े े े
िनयं ण यव था के दौर म उसे हर तरह क िवदेशी सहायता िमल सके।
उसने अंत र ेपण वाहन या रॉकेट से लेकर ससर और उप ह तक
के कई अनु योग के लए बहुत थोड़ी सहायता हा सल क ।
सै य अनु योग के लए भारत के पास र ा अनुसंधान और िवकास
संगठन था, जो िमसाइल को िवक सत करने के लए खुद यास करता
था। जब डी.आर.डी.ओ. यह काम करने म सफल नह हुआ, तो उसने
इसरो से ए.पी.जे. अ दल
ु कलाम को आयात िकया। अ दल ु कलाम ने
एसएलवी-3 को िवक सत करने म मदद क थी। उ ह ने अपने ान का
उपयोग अि ंखला क िमसाइल को िवक सत करने के लए िकया था।
इस तरह भारत एक ऐसे मॉडल को बनाने म सफल हो गया, जो कई
अंत र अनु योग क सै य और नाग रक दोन कृ त का उपयोग कर
सकता है।
भारत ने 1980 के दशक म दरू संचार, रमोट स सग और नेिवगेशन के
लए उप ह का योग शु िकया। र ा के लए इसका उपयोग ांस के
एस.पी.ओ.टी. जैसे संगठन से च हा सल करने तक सीिमत था। इसके
बाद 1980 के दशक म ‘भारतीय रमोट स सग’ (IRS) उप ह काय म जैसे
अपने वयं के इमे जग सैटेलाइट को नाग रक उपयोग के लए िवक सत
िकया। 2001 म, इसने एक इमे जग उप ह लॉ िकया, जसे ‘ ौ ोिगक
योग उप ह’ (TES) कहा जाता है।
2005 म शु काट सैट ंखला से भारत को अपने वयं के ऐसे उप ह
िमले, जो सै य प से उपयोगी च देने म स म थे। हालाँिक सश बल
के लए केवल थोड़ा काम करते ह, अ य योग हमेशा क तरह बहुउ ेशीय
होता है।
अ य मह वपूण बहुउ ेशीय सैटेलाइट ंखला रसोससैट-2 (2011),
SARAL (2013), ओशनसैट-2 (2009) और RISAT-2 (2009) और RISAT-1
(2012) जैसे मौसम उप ह ह। इनका डाटा इसरो टेशन या र ा और
खुिफया एज सय को िदया जा सकता है।
2001 के सुधार के म ेनजर DIA र ा मह व के च को िवक सत करने
और िव ेषण करने का क चलाता है, जसम उप ह डाटा का िव ेषण
करने के लए वा लयर म एक क है। सै य उप ह का िनयं ण करनेवाले
NTRO का टेशन असम म है।

संचार के े म इसरो क इनसैट ंखला देश को दरू संचार और टी.वी.


सारण क मता दान कर रही है। सै य संचार के लए पूरी तरह
सम पत पहला उप ह GSAT-7 (INSAT-4F) 2013 म लॉ िकया गया था।
यह भारतीय नौसेना क ज रत को पूरा करने के लए था। िदसंबर 2018
ु ेना क आव यकताओं को पूरा करने के लए GSAT-
म, इसने भारतीय वायस
7A लॉ िकया।
नेिवगेशन के े म, भारत द णी ए शया म जीपीएस जैसी मता दान
करने के लए अपने ‘ े ीय नेिवगेशन सैटेलाइट स टम’ (IRNSS) के साथ
सामने आया है। यह सै य उपयोग के लए एं ि टेड डाटा भी दान करेगा।
शु के दशक म अंत र का उपयोग सेना म यादातर सहायक तरीके
जैसे— च , इले टॉिनक इंटे लजस, संचार और नौवहन आिद के लए
िकया गया था। बहरहाल, तेज ग त से एं ि टेड संचार और इमेज के
आधुिनक यु म बढ़ते मह व से अंत र के यु संबध ं ी उपयोग के बारे म
सजगता बढ़ी है। फाइटर जे स, यूएवी और दसू री यु साम ी को गाइड
करने के लए अंत र णाली क मता ज री है। वा तव म कई सेनाएँ
अब यु लड़ने और जीतने क अपनी मता के लए अंत र के उपयोग
को बहुत मह वपूण मानती ह।
िमसाइल वाहक
सैटेलाइटरोधी ह थयार (Anti-Satellite Weapon)
भारत ने द ु मन के उप ह को खराब करने, उनके स ल को जाम करने
या उ ह पकड़ने और ख म करने म सै य च िदखाई है। यह एक पूरी तरह
नई दिु नया है जसे ‘काउं टर पेस’ िमशन कहा जाता है। भारतीय ASAT
परी ण इस पूरी यव था का छोटा सा िह सा था और कुछ हद तक पुराना
तरीका था। अमे रका और चीन जैसे देश ने अ य तकनीक क ओर यान
िदया है, जैसे िक उप ह को ट र मारना या उ ह न करने के लए जमीन
या अंत र से लेजर का उपयोग करना।
भिव य म उप ह के और भी अ धक गहन उपयोग क संभावना है। छोटे
उप ह क ऐसी ंखला, जो माँग पर रीयल टाइम डाटा देने म स म हो,
बहुत उपयोगी हो सकती है। उप ह को िन य या खराब होने क हालत
म सेना चाहेगी िक वे तेजी से उ ह बदलने क मता रख। दस
ू रे श द म,
उनके अपने रॉकेट और उप ह ह ।
यह आ य क बात नह है िक भारत ने भी अब डीएसए को बनाया है।
यह अंत र संबधं ी ग तिव धय म तेज वृ का संकेत भी है। अगले दशक
म इसरो नए रॉकेट मोटस, ोप शन स टम, ई ंधन आिद पर काम करेगा।
यह 2023 तक मानव को अंत र म भेजने क भी उ मीद करता है।
जैसा िक अ य देश के मामले म साफ है, वे उन ौ ोिगिकय को
िवक सत करगे, जनके सै य उपयोग ह। भारत को एक लंबा रा ता तय
करना है। यह केवल काउं टर पेस तकनीक के े म ही नह है, जसम
भारत ने ASAT का परी ण िकया है, ब क यह चुनौती दोहरे उपयोगवाली

ौ ो े े ै ै े
अंत र ौ ोिगिकय के े म आ सकती है, जैसे— त त उप ह का
िनरी ण, मर मत और िनपटानवाले रोबोट या ऐसे उप ह, जो लेजर से
लैस ह ।
सै य उ े य के लए अंत र का उपयोग करने के लए भारत क
मताएँ बेहद सीिमत ह। सै य उ े य के लए इसके पास करीब एक दजन
उप ह ह, जबिक चीन के पास शायद उससे 10 गुना अ धक उप ह ह।

भारतीय ASAT परी ण

काट सैट और आर.आई.एस.ए.टी (RISAT) जैसे उप ह उपयोगी च


दान कर सकते ह। लेिकन भारत को रीयल टाइम क इमेज या
इले टॉिनक इंटे लजस को हा सल करने के लए एक लंबा रा ता तय
करना है, जो आधुिनक यु क ग त को बनाए रखने म अकसर ज री
होता है।

अ याय 6
भारतीय अंत र अनुसध
ं ान काय म
इ तहास
भारत म अंत र अनुसंधान ग तिव धय क शु आत 1960 के दशक म
हुई। उस समय संयु रा य अमे रका म भी उप ह के उपयोग से जुड़े
अनु योग परी णा मक चरण म ही थे। अमे रक उप ह सनकाम-3 से
शांत महासागर के े म टोिकयो ओलंिपक खेल के सीधे सारण ने
संचार उप ह क मता को द शत िकया। इससे भारतीय अंत र
काय म के जनक डॉ. िव म साराभाई ने त काल भारत के लए अंत र
ौ ोिगिकय के लाभ को पहचान लया।
डॉ. साराभाई यह मानते थे िक अंत र के संसाधन म इतना साम य है
िक वह मानव तथा समाज क वा तिवक सम याओं को दरू कर सकते ह।
यह उनक दरू द शता थी। अहमदाबाद थत भौ तक अनुसंधान
योगशाला (पी.आर.एल.) के िनदेशक के प म डॉ. साराभाई ने देश के
सभी िह स से स म तथा उ कृ वै ािनक , मानव िव ािनय , िवचारक
तथा समाज िव ािनय को िमलाकर भारतीय अंत र काय म का नेतृ व
करने के लए एक दल गिठत िकया।
भारत म अंत र अनुसंधान क न व 1962 म परमाणु ऊजा िवभाग ारा
गिठत ‘भारतीय अंत र अनुसंधान सिम त’ (Indian National Committee for
Space Research-INCOSPAR) के गठन के साथ पड़ी। इस सिम त क
अ य ता डॉ. िव म साराभाई को स पी गई थी। सिम त के गठन के साथ
ही त वनंतपुरम के िनकट थुब ं ा नामक थान पर थुब ं ा भू-म यरेखीय
रॉकेट ेपण क (Thumba Equatorial Rocket Launching Station-TERLS) क
थापना का काय शु िकया गया। 21 नवंबर, 1963 को इसी टेशन से
थम साउं डग रॉकेट ‘नाइक एपाशा’ का ेपण िकया गया। ‘नाइक
एपाशा’ का िवकास अमे रका ारा िकया गया था। इस सफलता के 2 वष
बाद 1965 म अंत र ौ ोिगक के े म आ मिनभरता हा सल करने के
उ े य से अनुसंधान एवं िवकास को ो साहन देने के लए थुब ं ा म
‘अंत र िव ान एवं ौ ोिगक क ’ क थापना क गई। 15 अग त,
1969 को INCOSPAR को पुनगिठत कर ‘भारतीय अंत र अनुसंधान
संगठन’ (INDIAN SPACE RESEARCH ORGANISATION-ISRO) क थापना क
गई।
अपने शु आती िदन से ही भारतीय अंत र काय म क सु ढ़ योजना
ै ै े े े
रही है। इसम तीन िव श खंड जैसे संचार तथा सुदरू संवेदन के लए
‘उप ह, अंत र प रवहन णाली और अनु योग काय म’ (Applications
Program) को शािमल िकया गया। 1967 म अहमदाबाद थत पहले
परी णा मक उप ह संचार भू- टेशन (Experimental Satellite
Communication Ground Station) को शु िकया गया। इसने भारतीय तथा
अंतररा ीय वै ािनक और इंजीिनयर के लए श ण क के प म भी
काय िकया।
उप ह णाली रा ीय िवकास म अपना योगदान दे सकती है, इस बात
को सािबत करने क ज रत थी। इसरो क यह साफ धारणा थी िक
अनु योग िवकास क पहल म अपने खुद के उप ह का इंतजार करने क
ज रत नह है। शु आती िदन म िवदेशी उप ह का योग िकया जा
सकता है। रा ीय िवकास के लए एक पूरी तरह िवक सत उप ह णाली के
परी ण से पहले, दरू दशन के मा यम क मता को मा णत करने के लए
कुछ िनयंि त परी ण को ज री माना गया। इसके तहत िकसान के लए
कृिष संबध
ं ी सूचना देने हेतु टी.वी. काय म कृिष दशन क शु आत क
गई, जसक अ छी ति या िमली।
1972 म अंत र आयोग (Space Commission) तथा अंत र िवभाग
(Department of Space-DOS) का गठन करते हुए इसके अंतगत इसरो (ISRO)
को एक वाय शासी िनकाय का दरजा िदया गया। इसी वष भारतीय
रा ीय अंत र काय म का प खाका तैयार िकया गया। साथ ही ‘िव म
साराभाई अंत र क ’ (VSSC) क थापना क गई।
1972 के बाद के वष म भारतीय अंत र काय म ने अनेक मह वपूण
उपल धय को हा सल िकया।
1975-76 म ‘उप ह अनुदेशा मक टेलीिवजन परी ण-साइट’ (Satellite
Instruction Television Experiment-SITE) नामक काय म चलाया गया।
इसके अंतगत अमे रका के उप ह एटीएस-6 के मा यम से शै क काय म
क ंखला का दरू दशन से सारण िकया गया। यह िव म सबसे बड़े
समाजशा ीय परी ण (Sociological Test) के प म सामने आया। इस
परी ण से छह रा य के 2,400 गाँव के करीब 2,00,000 लोग को लाभ
पहुँचा। इससे ‘अमे रक ौ ोिगक उप ह’ (एटीएस-6) का योग करते
हुए िवकास आधा रत काय म का सारण िकया गया। एक वष म
ाथिमक कूल के 50,000 िव ान के अ यापक को श त करने का
ेय साइट को जाता है।
साइट के बाद वष 1977-79 के दौरान ांसीसी-जमन ‘ समफोनी’
उप ह का योग करके इसरो और डाक एवं तार िवभाग क एक संयु
प रयोजना ‘उप ह दरू संचार परी ण प रयोजना- टेप’ (Satellite
Telecommunication Experiments Project-STEP)क शु आत क गई।
दरू दशन पर कि त साइट के अगले म म तैयार टेप को दरू संचार
परी ण के लए बनाया गया था। टेप का उ े य घरेलू संचार हेतु भू-
तु यकारी उप ह (Geostationary Satellites) का योग करते हुए णाली
जाँच दान करना, िव भ भूखड ं सुिवधाओं के डजाइन, उ पादन,
थापना, चालन तथा रखरखाव म मताओं तथा अनुभव को हा सल
करना था। इसका एक ल य देश के लए तािवत चालना मक
(Operational) घरेलू उप ह णाली ‘इनसैट’ के लए ज री वदेशी मता
का िनमाण करना था। इस काय म के बाद दरू संचार के े म अंत र
अनुसंधान क अिनवायता खुद ही सािबत हो गई। देश म संचार उप ह के
िवकास एवं िनमाण क भूिमका म टेप काय म का ही हाथ है।
साइट के बाद ‘खेड़ा संचार प रयोजना’ (के.सी.पी.) क शु आत हुई।
इसने गुजरात रा य के खेड़ा जले म ज रत के अनुसार और थानीय
मह व के काय म के सारण के लए े योगशाला के प म काय
िकया। के.सी.पी. को 1984 म कुशल ामीण संचार स मता के लए
‘यनू े को-आई.पी.डी.सी. (संचार के िवकास के लए अंतररा ीय काय म)
पुर कार’ दान िकया गया।
10 मई, 1972 को सोिवयत संघ और भारत के बीच एक समझौता हुआ,
जसके ारा भारत म बने उप ह का ेपण सोिवयत संघ के रॉकेट से
करने क यव था क गई। इसके बाद कम समय म ही देश का पहला
उप ह ‘आयभट’ 19 अ ैल, 1975 को सोिवयत संघ के रॉकेट से
सफलतापूवक अंत र म भेजा गया।
दसू री मुख उपल ध थी, िनचली भू-क ा (एल.ई.ओ.) म 40 िक. ा.
भार तक के उप ह को थािपत करने क मतावाले थम ेपक रॉकेट
एसएलवी-3 का िवकास करना। इसक पहली सफल उड़ान 1980 म क
गई। एसएलवी-3 काय म के मा यम से संपूण रॉकेट डजाइन, िमशन
डजाइन, साम ी, हाडवेयर संिवरचन, ठोस नोदन ौ ोिगक (Solid
Propulsion Technology), िनयं ण ऊजा संयं , उ यन क , रॉकेट समेकन
जाँच तथा लॉ ऑपरेशन के लए मता का िनमाण िकया गया। हमारे
अंत र काय म म उप ह को क ा म थािपत करने हेतु उपयु
िनयं ण और मागदशन के साथ बहुचरणीय रॉकेट णा लय का िवकास
करना एक मह वपूण उपल ध थी।
80 के दशक के परी णा मक चरण म यो ाओं के लए सहयोगी भू-
णा लय के साथ अंत र णा लय के डजाइन, िवकास तथा क ीय
बंधन म शु से अंत तक मता दशन िकया गया। सुदरू संवेदन के े
म भा कर-I और II ठोस कदम थे, जबिक भावी संचार उप ह णाली के
लए ऐ रयन या ी नीतभार परी ण (ए पल) अ दतू बना। जिटल संव धत
ो े े े ौ ो ै े
उप ह मोचक रॉकेट (ए.एस.एल.वी.) के िवकास ने नई ौ ोिगिकय जैसे
टैप-ऑन, ब बीय ताप कवच (Bulbous Heat Shield), संवृत पाश िनद शका
(Closed Loop Guidance) और अंक य वपायलट के योग को भी द शत
िकया। इससे जिटल िमशन हेतु ेपक रॉकेट डजाइन क कई बारीिकय
को जानने का मौका िमला। इससे पी.एस.एल.वी. और जी.एस.एल.वी. जैसे
ेपक राॅकेट का िनमाण िकया जा सका।
90 के दशक के दौरान, दो यापक े णय के तहत मुख अंत र
अवसंरचना को तैयार िकया गया—
एक का योग बहुउ ेशीय भारतीय रा ीय उप ह णाली (इनसैट) के
मा यम से संचार, सारण तथा मौसम िव ान के लए िकया गया। दस ू रे
का उपयोग भारतीय सुदरू संवेदन उप ह (आई.आर.एस.) णाली के लए
हुआ। ुवीय उप ह ेपक रॉकेट (पी.एस.एल.वी.) तथा भू-तु यकारी
उप ह मोचक रॉकेट-जीएसएलवी (Geosynchronous Satellite Launch
Rocket-GSLV) का िवकास तथा संचालन इस चरण क िव श उपल धयाँ
थ।

युवा अ दल
ु कलाम िव म साराभाई के साथ।

िव म साराभाई का नाम भारतीय अंत र काय म का पयाय।


थुब
ं ा िवषुवतरेखीय राॅकेट लॉ ग टेशन।

िव म साराभाई अंत र क ।

भारत का पहला उप ह आयभट।

भारतीय अंत र काय म के उ े य


भारतीय अंत र काय म का ाथिमक उ े य है—अंत र सेवाओं के
संचालन म आ मिनभरता हा सल करना और मु य उ े य है—शां तपूण
ढंग से बाहरी अंत र का उपयोग।
े ो े
भारतीय अंत र काय म के तहत दो मु य ल य रखे गए ह—
1. िव भ कार के काय के लए उपयु अंत र उप ह िवक सत करने
म स म िवशेष तैयार करना, जो उप ह िनमाण क योजना, उसके
डजाइन तथा िनमाण के काय को काया वत कर सक।
2. इसके साथ-साथ उप ह को पहले से िन त िकसी क ा म थािपत
करने म स म उ चत रॉकेट का िवकास करने के लए आव यक सभी
ौ ोिगक सुिवधाएँ तथा कौशल िवक सत करना है। सं ेप म, अंत र
अनुसंधान के दो मु य घटक ह—
(1) उप ह का िनमाण करना।
(2) ेपण यान का िवकास करना।
भारत िव का छठा देश है, जसने दोन घटक म सफलता हा सल क
है। अ य देश ह—अमे रका, स, चीन, ांस तथा इजराइल।
भारतीय अंत र अनुसध
ं ान काय म से संबं धत सं थान और
थान
1. िव म साराभाई अंत र क (Vikram Sarabhai Space Centre) : िव म
साराभाई अंत र क त वनंतपुरम (केरल) के िनकट थुब ं ा म थत
है। ेपण यान ौ ोिगक के िवकास म इस क का मह वपूण थान
है।
यह भारतीय अंत र काय म के लए ेपक रॉकेट ौ ोिगिकय के
डजाइन और िवकास के लए अ णी क है। इस क म वैमािनक ,
िवमानन, कं यूटर तथा सूचना िनयं ण, मागिनदशन तथा रॉकेट
डजाइन साम ी, अ भयांि क , रॉकेट समेकन तथा नोदक, बहुलक,
रसायन और अंत र भौ तक के े म अनुसंधान एवं िवकास काय
िकया जाता है।
इसके मुख काय म म ुवीय उप ह ेपक रॉकेट (पीएसएलवी),
भू-तु यकारी उप ह ेपक रॉकेट (जीएसएलवी), रोिहणी प र ापी
रॉकेट, अंत र कै सूल पुन: ाि परी ण, पुन पयोगी ेपक रॉकेट,
भू-तु यकारी उप ह ेपक रॉकेट-माक-3 (जीएसएलवी माक-3) का
िवकास और रॉकेट णा लय के े म अ यंत उ त ौ ोिगिकय का
िवकास शािमल है।
भारतीय अंत र योजना और उसके शोध से संबं धत थान।

2. इसरो उप ह क (ISRO Satellite Centre) : यह बगलु (कनाटक) म


थत है। इस क म उप ह क िव भ णा लय क डजाइ नग,
उनका िनमाण, परी ण का काय होता है। यह क उप ह िनमाण से
संबं धत ि याकलाप क अ याधुिनकतम ौ ोिगक के िवकास और
अंत र यान के डजाइन, िवकास, संिवरचन एवं जाँच हेतु सुिवधाओं
को बनाने के काम म जुटा हुआ है। क म अ यंत श त एवं कुशल
मानवशि है, जसम लगभग 1,500 यो य अ भयंता एवं लगभग 600
तकनी शयन शािमल ह।

भारत का अंत र भाग धानमं ी के अधीन है।

इसरो उप ह समेकन और जाँच थापना (आईसाइट) म एक ही छत के


नीचे 6.5 का मीटर ताप िनवात चबर (Thermal Vacuum Chamber), 29
टन क कंपन सुिवधा और संघ एं टीना जाँच सुिवधा (Impact Antenna
Test Facility) के साथ अंत र यान समेकन और जाँच सुिवधा के लए
ै औ ौ
अ याधुिनक व छ, सुस त सुिवधा है। सभी संचार और नौवहन
अंत र यान का समु यन, समेकन और जाँच आईसाइट पर िकए जाते
ह। मानक कृत उप- णा लय के उ पादन हेतु एक सम पत सुिवधा
आईसाइट म थािपत क गई ह।

ISRO का अंत र सैटेलाइट क

1972 म अपनी शु आत से इस क ने िव भ कार के रॉकेट का


िनमाण िकया है, जसम उप ह संचार के लए ौ ोिगक और उपयोग
का यापक पे टम, ाकृ तक संसाधन िनगरानी के लए सुदरू संवेदन
(Remote Sensing), सव ण और बंधन, मौसम िव ान एवं नौ-संचालन
शािमल ह।

PSLV लॉ क तैयारी म। PSLV को िन मत कर,


ई ंधन भर इसे उड़ाने क तैयारी हो रही है।

3. अंत र अनु योग क Space Application Centre (SAC) : यह क


ै ै ो ै
अहमदाबाद (गुजरात) म थत है। सैक इसरो का एक अि तीय क है।
इसम नीतभार (Payload) िवकास से लेकर सामा जक उपयोग तक के
िव भ िवषय से संबं धत काय शािमल ह। इस तरह यह क
ौ ोिगक , िव ान और सामा जक उपयोग क सहि या बनाता है। यह
क संचार, नौवहन, भू- े ण, हीय े ण तथा मौसम िव ान के
िवकास, ाि और स म बनाने तथा संबं धत आँ कड़ के संसाधन और
भू- णा लय के लए उ रदायी है। यह सामा जक लाभ के यापक
उपयोग के लए अंत र ौ ोिगक का उपयोग करने म मह वपूण
भूिमका िनभा रहा है।
4. सतीश धवन अंत र क (शार) : शार क आं देश के पूव तट पर
ीह रकोटा ीप पर थत है। इस क से िव भ रॉकेट के ेपण के
साथ-साथ ठोस ई ंधन आधा रत रॉकेट इंजन का परी ण भी िकया
जाता है। ीह रकोटा अपने दो लॉ ग पैड के साथ इसरो का मुख
लॉ ग क है।

ीह रकोटा रॉकेट लॉ ग क म रॉकेट, बू टर के साथ


ेपण (Launch) के लए तैयार होकर िनकलते हुए।

इसे िन न काय स पे गए ह—
• लॉ ग रॉकेट काय म के लए ठोस नोदक बू टर का उ पादन।
• िव भ उप- णा लय और ठोस रॉकेट मोटर को स म बनाने के लए
अवसंरचना दान करना और आव यक परी ण आयो जत करना।
• लॉ ग आधार अवसंरचना दान करना।
• उप ह और लॉ ग रॉकेट का समु य, समेकन तथा लॉ ग।
5. मु य िनयं ण सुिवधा (Master Control Facility) : इसरो क मु य
िनयं ण सुिवधा हासन (कनाटक) म थत है। उप ह के ेपण के बाद
उ ह पृ वी क उ चत क ा म थािपत करने तथा उप ह से लगातार
संपक बनाए रखने एवं संकेत को हण करने का मह वपूण काय इसी
क से होता है।

े ै े
एम.सी.एफ. के ि याकलाप म चैबीस घंटे अनुवतन, दरू िम त तथा
िनयं ण यव था (Telemetry, Tracking and Command Systems) का
संचालन शािमल है। इनम िकसी आक मकता के मामले म सम या
बंधन, क रखरखाव यिु याँ और पुन: ाि जैसे िवशेष काय भी
शािमल ह। एम.सी.एफ. उप ह क भावशाली उपयोिगता के लए और
िवशेष संचालन के दौरान सेवा म बाधाओं को कम करने हेतु सभी
एज सय के साथ सम वय करती है।
एम.सी.एफ. िफलहाल दस क ीय उप ह , जैसे—इनसैट-3सी,
इनसैट-3ए, इनसैट-3ई, इनसैट-4ए, इनसैट-4बी, इनसैट-4सीआर,
क पना-1, जीसैट-8, जीसैट-12 तथा जीसैट-10 का िनयं ण कर रहा
है। इन सभी के संचालन को भावी करने के लए एम.सी.एफ., हासन म
आठ उप ह िनयं ण भू- टेशन से यु एक कृत सुिवधा उपल ध है।
6. इसरो दरू िम त, अनुवतन एवं िनदश संचार नेटवक (ISRO, Telemetry,
Tracking and Command Communication Network) : इसका मु यालय
बगलु (कनाटक) म है। ीह रकोटा, त वनंतपुरम, लखनऊ, कार
िनकोबार एवं माॅरीशस म इसके उपक ह। इन क के मा यम से इसरो
रॉकेट और उप ह के लए दरू िम त, अनुवतन और िनदश संचार माग
क सुिवधा उपल ध कराता है।
7. व णोदक णाली क (Liquid Propulsion System Centre) : व
णोदक णाली पर शोध परी ण एवं िवकास के लए त वनंतपुरम,
बगलु तथा मह िग र म क क थापना क गई है। इन क ारा
रॉकेट और उप ह के ेपण के लए व एवं ायोजेिनक संचालन
णाली तथा सहायक नोदन णाली (Auxiliary Propulsion System) का
काया वयन िकया जाता है।
8. इसरो जड़ व णाली इकाई (ISRO, Inertial System Unit) :
त वनंतपुरम थत इसरो जड़ व णाली इकाई से उप ह एवं ेपण
यान के लए जड़ वीय उपकरण एवं णा लय का ि या वयन िकया
जाता है।

ISRO का Inertial System Unit


9. िवकास एवं शै क संचार इकाई (Development & Educational
Communication Unit-DECU) : अहमदाबाद (गुजरात) थत डेकू इकाई
ारा िवकास एवं श ा संचार के े तथा दरू दशन, सामा जक
ौ ोिगक , नी त अ ययन, शोध, सव ण के े म सम वयन िकया
जाता है।
यह उपयोगकता एज सय के साथ उनक ज रत पूरी करने के लए
नए व प के साथ परी ण करने का काय करता है। डेकू संचार,
शै क सूचना क साम ी के तैयार करने तथा अं तम उपयोगकताओं
तक पहुँचाने का काम करता है। इस तरह ‘डेकू’ अपने मु य ल य
‘दगु म तक गमन’ को पूरा करने के लए अंत र उपयोग को ‘अं तम
छोर’ तक पहुँचने म मदद करता है।
10. रा ीय सुदरू संवेदन अ भकरण (National Remote Sensing Agency) :
हैदराबाद (आं देश) थत यह अ भकरण सुदरू संवेदन उप ह से
ा आँ कड़ तथा अ य संबं धत संसाधन के हण करने और सार
काय के लए उ रदायी है।
11. भौ तक शोध योगशाला (Physical Research Laboratory) :
अहमदाबाद (गुजरात) म थत भौ तक शोध योगशाला अंत र से
संबं धत िव भ कार के अ ययन एवं शोध के लए मुख क है।
12. रा ीय ाकृ तक संसाधन बंधन णाली (National Natural
Resources Management System) : बगलु थत इस णाली का मु य
काय, भू-उपयोग, जल ोत वािनक , सामुि क संसाधन से संबं धत
अनुसंधान म दरू संवेदन णाली से ा सूचनाओं को भरपूर उपयोग
के लए उपल ध कराना है।

रा ीय सुदरू संवेदन अ भकरण, देहरादन


13. रा ीय म यमंडल, समताप मंडल, भारी ोभ मंडल रडार सुिवधा


(National Mesosphere, Stratosphere, Troposphere Radar Facility) :
त प त के िनकट ‘गंडक ’ नामक थान पर थत इस क ारा

े े ै ो ँ
पयावरण के े म अनुसंधानरत वै ािनक को सुिवधाएँ उपल ध कराई
जाती ह।
14. उ र-पूव अंत र उपयोग क (एनई-सैक) : शलांग थत, एनई-
सैक अंत र िवभाग तथा उ र-पूव प रष (उ.पू.प.) का संयु उ म
है। यह अंत र िव ान तथा ौ ोिगक का उपयोग करते हुए उ र-पूव
रा य को िवकासा मक सहायता दान करता है।
15. सेमी-कंड टर योगशाला (एससीएल) : इस योगशाला का मु य
काय सू म-इले टॉिनक के े म अनुसंधान और िवकास करना है।
16. भारतीय अंत र िव ान तथा ौ ोिगक सं थान (आईआईएसटी) :
यह ए शया का पहला अंत र िव िव ालय है। इसे भारतीय अंत र
काय म क आव यकताओं को पूरा करने हेतु अंत र िव ान तथा
ौ ोिगक म उ गुणव ा क श ा दान करने के ल य के साथ
2007 के दौरान त वनंतपुरम म थािपत िकया गया।
17. एं िट स कॉरपोरेशन लिमटेड (एं िट स) : भारत सरकार क एक पूण
वािम ववाली कंपनी है। इसका शासिनक िनयं ण अंत र िवभाग,
भारत सरकार के पास है। एं िट स कॉरपोरेशन लिमटेड को सतंबर
1992 म अंत र उ पाद , तकनीक परामश सेवाओं और इसरो ारा
िवक सत ौ ोिगिकय के ह तांतरण के वा ण यक दोहन व चार-
सार के लए बनाया गया। इसका एक अ य मुख उ े य भारत म
अंत र से जुड़ी औ ोिगक मताओं के िवकास को आगे बढ़ाना भी है।

अंत र कॉरपोरेशन लिमटेड भवन

18. िव ुत-् का शक णाली योगशाला ( लयोस) : बगलु म थत


िव ुत-् का शक णाली योगशाला सुदरू संवेदन एवं मौसम िव ान
से जुड़े उप ह के लए िव ुत्- का शक संवेदक (Electro-optics
sensors) और कैमरा का शक के डजाइन, िवकास और उ पादन के
लए उ रदायी है। संवेदक णाली म भू-संवेदक (Geo-sensor), तारा
अनुवतक (Star follower), सूय संवेदक (Sun-sensor), चुंबक य संवेदक
(Magnetic-sensor), तंतु का शक (Fiber optics), तापमान संवेदक
(Temperature sensors) और संसाधन इले टॉिनक (Processing
electronics) शािमल ह। का शक णाली म खगोलिव ानीय/वै ािनक

े ो े ौ
उ े य मान च कला उपयोग , सुदरू संवेदन तथा मौसम िव ानीय
उप ह के लए परावतक दपण का शक तथा अपवतक बहु-घटक
का शक दोन शािमल ह।
ISRO के यावसा यक खंड INSpace का गठन
IN-SPACE एक वाय नोडल एजसी है, जसे क सरकार ारा
अनुमोिदत िकया गया है और यह अंत र िवभाग ारा शा सत होगी। यह
संगठन इसरो और भारत म िनजी अंत र े के बीच एक मा यम के प
म काय करेगा।
भारतीय रा ीय अंत र संवधन और ा धकरण क के तहत, िनजी
पा टय को अंत र ग तिव धय को करने और लॉ मेिनफे टो के लए
अंत र िवभाग (डीओएस) के उपकरण और सुिवधाओं का उपयोग करने
क अनुम त दी जाएगी।
यह पहली बार होगा जब भारतीय अंत र अनुसंधान संगठन (इसरो) के
िनयं णाधीन इं ा ट चर और संप का इ तेमाल िनजी े ारा िकया
जाएगा।
IN-SPACEएक एक कृत लॉ घोषणा को आक षत करेगा, जो
आव यकताओं को यान म रखता है ISRO, NSIL और NGPE ाथिमकताओं
और त परता तर पर आधा रत है।
IN-SPACE पदो त और हाथ पकड़े जाने के लए एक उपयु तं का
काम करेगा, साझा करना अंत र ग तिव धय म एनजीपीई क भागीदारी
को ो सािहत करने के लए ौ ोिगक और िवशेष ता।
अंत र ग तिव धय , पूँजी-गहन, उ ौ ोिगक को पूरा करने के लए
एनजीपीई ारा सुिवधाओं क आव यकता होगी। ये सुिवधाएँ िव भ इसरो
म फैली हुई ह, ि◌जनक क को एनजीपीई ारा उपयोग क अनुम त दी
जाएगी।
IN-SPACE ौ ोिगक के आदान- दान क पेशकश करने के लए एक
उपयु तं का काम करेगा, जहाँ भी संभव हो या उ चत लागत पर, लागत
से मु पर िवशेष ता और सुिवधाएँ एनजीपीई को बढ़ावा देने के लए
आधार।
IN-SPACE DOS के तहत एक वाय िनकाय के प म काय करेगा, एक
वडो नोडल एजसी के प म एनजीपीई ारा अंत र ग तिव धय और
इसरो सुिवधाओं के उपयोग को स म और िविनयिमत करने के लए।
आई.एस.आर.ओ. प रसर के भीतर सुिवधाओं क थापना क अनुम त
देगा, आधा रत सुर ा मानदंड और यवहायता आकलन पर।
ो औ
रमोट स सग डाटा का िवपणन, आदान- दान और सार ारा िनयंि त
िकया जाएगा रमोट स सग नी त। येक नई पॉ लसी के अनुसार परी ा
क आव यकता होगी जाँच क और आईएन-SPACE कानूनी और सुर ा
पहलुओ ं के कारक ारा अनुम त दी जा रही है।
IN-SPACE का िनणय सभी िहतधारक सिहत अं तम और बा यकारी
होगा। इसरो एनजीपीई को इसरो से अलग से अनुम त लेने क आव यकता
नह होगी।
पेसपोट
साथ-ही-साथ सतीश धवन अंत र क (एसडीएससी) शार,
ीह रकोटा, म भारत का पेसपोट बनकर आ रहा है। उसका उ े य
भारतीय अंत र काय म के लए लॉ बेस इं ा ट चर दान करने के
लए होगा।
ेपण तकनीक
प र ापी रॉकेट (Sounding Rocket)
प र ापी रॉकेट एक या दो चरणवाले ठोस ई ंधन रॉकेट ह। इनका ऊपरी
वायम ं लीय े के अंत र अनुसंधान के लए योग िकया जाता है।
ु ड
1963 म थुब ं ा भूम यरेखीय रॉकेट ेपण क (टी.ई.आर.एल.एस.) क
थापना के साथ भारत म वायिवक एवं वायम ं लीय िव ान के काय े म
ु ड
मह वपूण तेजी आई। 21 नवंबर, 1963 को त वनंतपुरम, केरल के समीप
थुब
ं ा से थम प र ापी रॉकेट के ेपण से भारतीय अंत र काय म क
शु आत हुई। प र ापी रॉकेट ने रॉकेट-वािहत यं ीकरण का योग करते
हुए व थाने (in situ) वायम
ु ड
ं ल के अ वेषण को संभव बनाया। पहले रॉकेट
स (एम-100) एवं ांस (सचौर) से आया तत दो चरण वाले रॉकेट थे।
एम-100, 85 िकमी. क ऊँचाई पर 70 िक. ा. के पेलोड को ले जा सकता
था और सचौर लगभग 30 िक. ा. के पेलोड को 150 िकमी. ऊपर तक
पहुँचाने म सहायक बना।

Sounding रॉकेट, इसक णाली और इसके अंश

इसरो ने वदेशी प से बने राॅकेट का ेपण सन् 1965 म शु िकया।


इससे हा सल अनुभव ठोस ई ंधन ौ ोिगक म महारत हा सल करने म
े ँ
बहुत मह वपूण था। सन् 1975 म, सभी प र ापी रॉकेट ग तिव धयाँ
रोिहणी प र ापी रॉकेट (आरएसआर) काय म के तहत लाई गई थ । 75
िम.मी. के यासवाला आरएच-75 वा तव म थम भारतीय प र ापी रॉकेट
था, जसके बाद आरएच-100 और आरएच-125 राॅकेट को बनाया गया।
प र ापी रॉकेट काय म आधार शला के समान था, जस पर इसरो म
ेपण यान ौ ोिगक पी इमारत का िनमाण िकया जा सका। िव भ
थान से प र ापी रॉकेट के एक साथ ेपण ारा सम वत अ भयान
आयो जत करना संभव हुआ है। एक िदन म कई प र ापी रॉकेट े पण
करना भी संभव हुआ है।
एसएलवी (Satellite Launch Vehicle)
उप ह ेपक यान (एसएलवी-3) पहला भारतीय ायोिगक उप ह
ेपण यान (रॉकेट) था। 17 टन भारी व 22 मीटर ऊँचे एसएलवी के सभी
चार ठोस चरण थे तथा यह 40 िक. ा. वग के उप ह को िन न पृ वी
क ा-एलईओ (Low Earth Orbit) म थािपत करने म स म था।
18 जुलाई, 1980 को शार क , ीह रकोटा से उप ह ेपण यान-3
(एसएलवी-3) के सफल ेपण ारा रोिहणी उप ह आरएस-1 को क ा म
थािपत िकया गया। इसके बाद भारत अंत र मतावाले खास रा के
ब का छठा सद य बन गया। अग त 1979 म एसएलवी-3 क पहली
ायोिगक उड़ान आं शक प से सफल रही। जुलाई 1980 म आयो जत
ेपण के अलावा, मई 1981 और अ ैल 1983 म एसएलवी-3 के दो और
ेपण िकए गए, जनके ारा सुदरू संवेदी संवेदक से यु रोिहणी उप ह
को क ा म थािपत िकया गया।
एसएलवी-3 प रयोजना ने सफलताओं क पराका ा हा सल क । उससे
संव धत उप ह ेपण यान (एएसएलवी), ुवीय उप ह ेपण यान
(पीएसएलवी) तथा भू-तु यकारी उप ह ेपण यान (जीएसएलवी) जैसे
उ त ेपण वाहन क प रयोजनाओं का माग श त हुआ।
एएसएलवी (The Augmented Satellite Launch Vehicle–ASLV)
40 टन भारी और 23.8 मी. लंबे पाँच चरण वाले, पूणत: ठोस ई ंधनवाले
रॉकेट एएसएलवी को 400 िकमी. ऊपर वृ ीय क ाओं म 150 िक. ा. भार
के उप ह को भेजने के िमशन के लए बनाया गया था।
एसएलवी-3 िमशन से हा सल अनुभव के आधार पर बने एएसएलवी ने
भावी ेपण रॉकेट के लए ज री टैपऑन ौ ोिगक , जड़ वीय िदशा-
िनदशन, ब बीय ताप कवच (Bulbous Heat Shield) और लंबवत् समाकलन
(Vertical Integration) जैसी मह वपूण ौ ोिगिकय के दशन हेतु कम
लागत के म यवत यान के प म अपनी उपयोिगता स क थी।
े ो
एएसएलवी काय म के अंतगत चार िवकासा मक उड़ान आयो जत क
गई ं। पहली िवकासा मक उड़ान 24 माच, 1987 को तथा दस
ू री 13 जुलाई,
1988 को हुई। 20 मई, 1992 को एएसएलवी-डी3 सफल ेपण ारा
106 िक. ा. भारी ोस-सी को 255 x 430 िकमी. क ा म थािपत िकया
गया। 4 मई, 1994 को रॉकेट एएसएलवी-डी4 ारा 106 िक. ा. भारी
ोस-सी2 को क ा म थािपत िकया गया। इसम दो पेलोड-गामा िकरण
फोट-जीआरबी (Gamma-ray Burst) परी ण और मंदन िवभव िव ेषक
(आरपीए) लगे थे। इस उप ह ने सात साल तक काम िकया।
ुवीय उप ह ेपण रॉकेट (Polar Satellite Launch Vehicle–
PSLV)
ु ीय उप ह
व ेपक रॉकेट (पीएसएलवी) भारत का तीसरी पीढ़ी का
ेपक रॉकेट है। यह पहला भारतीय ेपक रॉकेट है, जो व ई ंधन चरण
का उपयोग करता है। अ ू बर 1994 म इसके थम सफल ेपण के बाद,
जून 2017 तक लगातार 39 सफल िमशन के साथ पीएसएलवी भारत के
िव सनीय और बहुमुखी ेपक रॉकेट के प म उभरकर आया है। वष
1994-2017 क अव ध के दौरान इस रॉकेट ने 48 भारतीय उप ह और
िवदेशी ाहक के लए 209 उप ह का ेपण िकया है।

इसके अलावा रॉकेट ने सफलतापूवक दो अंत र यान—वष 2008 म


चं यान-1 एवं वष 2013 म मंगल क अंत र यान का ेपण िकया,
ज ह ने मश: चं और मंगल तक या ा तय क ।
पीएसएलवी ने अनेक उप ह , िवशेषकर आईआरएस ंखला के उप ह
को िन न पृ वी क ा म भेजकर ‘इसरो के ल ू घोड़े’ (वक हॉस ऑफ

ो ै ो
इसरो) का खताब पाया है। यह 1,750 िक. ा. तक भार को 600 िकमी. क
ऊँचाई पर सूय तु यकारी ुवीय क ा (Sun Synchronous Polar Orbit) म ले
जा सकता है।
अपनी अि तीय िव सनीयता के कारण पीएसएलवी को िव भ उप ह
को भू-तु यकारी क ा तथा आईआरएनएसएस उप ह समूह के उप ह को
भू- थर क ा म भेजने के लए भी योग िकया गया है।
भू-तु यकारी उप ह ेपण वाहन-जीएसएलवी
(Geosynchronous Satellite Launch Vehicle-GSLV)
भू-तु यकारी उप ह ेपक रॉकेट माक-II (जीएसएलवी माक-II) भारत म
िवक सत सबसे बड़ा ेपक रॉकेट है, जो वतमान म चलन म है। यह
चौथी पीढ़ी का ेपक रॉकेट चार व टैप–ऑन से यु तीन चरण का
रॉकेट है। वदेशी प से िवक सत ायोजेिनक ऊपरी चरण-सीयूएस
(Cryogenic Upper Stage) उड़ान मा णत है। जीएसएलवी माक-II का यह
तीसरा चरण है। जनवरी, 2014 से रॉकेट ने लगातार चार सफलताएँ
अ जत क ह।
जीएसएलवी के मु य पेलोड भू-तु यकारी क ा म संचा लत इनसैट
ेणी के संचार उप ह ह। अत: इन उप ह को जीएसएलवी ारा भू-
तु यकारी अंतरण क ा म भेजा जाता है।
जीएसएलवी माक-III
जीएसएलवी माक-III इसरो ारा िवक सत तीन चरण वाला भारी वाहक
ेपक रॉकेट है। रॉकेट म दो ठोस टैप-ऑन, एक ोड व बू टर और
एक ायोजेिनक ऊपरी चरण शािमल ह।
जीएसएलवी माक-III को भू-तु यकारी अंतरण क ा (जी.टी.ओ.) म 4
टन ेणी के उप ह या िन न भू-क ा (एल.ई.ओ.) म लगभग 10 टन का
भार ले जाने के लए डजाइन िकया गया है। यह मता जीएसएलवी माक-
II क मता से लगभग दोगुनी है।
जीएसएलवी माक-III क पहली िवकासा मक उड़ान 5 जून, 2017 को
हुई। जीएसएलवी माक-III ने ीह रकोटा से जीसैट-19 उप ह को भू-
तु यकारी अंतरण क ा (जी.टी.ओ.) म सफलतापूवक थािपत िकया।
जीएसएलवी माक-III क दस ू री िवकासा मक उड़ान 14 नवंबर, 2018
को सतीश धवन अंत र क , शार, ीह रकोटा से हुई। इसने उ
मतावाले संचार उप ह जीसैट-29 का सफलतापूवक ेपण िकया।
जीएसएलवी माक-V
े ो े ै ो
जीएसएलवी एमके V वो पहला सफल यावसा यक ेपण है, जो 22
अ ू बर, 2022 को िकया गया था। इससे दिु नया के भारी पेलोड के बाजार
म भारत को वेश करने म मदद िमलेगी। यह जीएसएलवी एमके V का
पहला िमशन भी था जसके अंतगत उसने एक साथ कई उप ह को लॉ
िकया और अपने साथ लगभग 6 टन पेलोड लेकर गया। यह इसरो क ओर
से अब तक लॉ िकया गया सबसे भारी पेलोड था।
ौ ोिगक
जीएसएलवी एमके V के िनचले चरण क रचना पीएसएलवी और
जीएसएलवी क स क जा चुक ौ ोिगिकय से क गई है। हालाँिक,
ायोजेिनक तीसरा चरण यानी C25 ौ ोिगक के उन त व का उपयोग
करता है, जो जीएसएलवी एमके II के ायोजेिनक ऊपरी चरण (CUS) से
भ है। CUS एक चरणब दहन च का योग करता है। दस ू री ओर, C25
एक गैस जनरेटर च का योग करता है। गैस जनरेटर च म कम िव श
आवेग (4 तशत के म का) होता है, लेिकन यह इतना जिटल नह होता
और परी ण म कुछ हद तक लचीलेपन को संभव बनाता है।
यान का ायोजेिनक चरण जहाँ पृ वी क 600 िकमी. क ऊँचाई पर
थत िनचली क ाओं तक भारी पेलोड को ले जाना संभव बनाता है, वह
इसम जीसैट ंखला के चार टन वग के उप ह को जयो स ोनस टांसफर
क ाओं म ले जाने क भी मता होती है।
पृ वी से 605 िकमी. क ऊँचाई पर पहुँचकर, जीएसएलवी एमके III ने
ि टेन के 5,200 िकलो ाम के 36 उप ह को एक-एक कर िन त क ा म
लॉ िकया। उप ह को िनधा रत क ा म लॉ करने के साथ ही यह
ेपण सफलतापूवक समा हुआ।

GSLV और PPPPPSLV म अंतर।

ै मजेट इंजन–टीडी
इसरो ने पहले ायोिगक ै मजेट इंजन के िनमाण म सफलता हा सल
ै ो े
क है। इसका परी ण सतीश धवन अंत र क , शार, ीह रकोटा से 28
अग त, 2016 को सफलतापूवक िकया गया।

ै मजेट के काय करने क िव ध।

इसरो ारा डजाइन िकए गए ै मजेट इंजन ने हाइडोजन का ई ंधन के


प म और वायमु ड
ं लीय हवा से ऑ सीजन का ऑ सीडाइजर के प म
उपयोग िकया है। 28 अग त का परी ण मैक6 ग त क हाइपरसोिनक
उड़ान के साथ इसरो के ै मजेट इंजन का पहला छोटी अव ध का
ायोिगक परी ण है।
इसरो णोदन प रसर (IPRC), मह िग र, त नेलवेली-तिमलनाडु
इसरो ोप शन कॉ ले स (IPRC), मह िग र भारतीय अंत र काय म
के लए अ याधुिनक णोदन ौ ोिगक उ पाद को बनाने के लए
आव यक अ याधुिनक सुिवधाओं से लैस है। पूव म IPRC को LPSC,
मह िग र के नाम से जाना जाता था और इसे 1 फरवरी, 2014 से IPRC के
प म उ त िकया गया था।
IPRC, मह िग र क मुख ग तिव धय म लॉ ग वाहन के लए पृ वी
ट लग णोदक इंजन, ायोजेिनक इंजन और चरण का संयोजन,
एक करण और परी ण, ऊपरी चरण के इंजन और अंत र यान टस
के साथ-साथ इसक उप- णा लय के परी ण क उ ऊँचाई परी ण,
भारतीय ायोजेिनक रॉकेट काय म, आिद के लए ायोजेिनक णोदक
का उ पादन और आपू त शािमल है। अध- ायोजेिनक को ड ो टे ट
सुिवधा (एससीएफटी) आईपीआरसी, मह िग र म अधचालकज य उप-
णा लय के िवकास, यो यता और वीकृ त परी ण के लए थािपत क
गई है।
IPRC इसरो के लॉ वाहन और उप ह काय म के लए टाॅ ग
ल वड ोपेलट क आपू त के लए ज मेदार है। IPRC इसरो अंत र
काय म के शू य दोष माँग को पूरा करने के लए गुणव ावाले उ पाद क
सुर ा और िव सनीयता के उ मानक को सुिन त करता है। यह
भारतीय अंत र काय म म अपने योगदान म िनरंतर सुधार के लए
अनुसंधान और िवकास (RR&D) और ौ ोिगक िवकास काय म (TDP)
भी करता है।
तरल णोदन णाली क (LPSC)
तरल णोदन णाली क (LPSC) इसरो के लॉ वाहन के लए तरल
णोदन चरण के डजाइन, िवकास और आपू त का क है। व िनयं ण
वाॅ व, टांस ूसर, वै यूम थ तय के लए णोदक बंधन उपकरण
और तरल णोदन णाली के अ य मुख घटक का िवकास भी इस क
के दायरे म है। LPSC क ग तिव धयाँ और सुिवधाएँ इसके दो प रसर म
फैली हुई ह, जैसे LPSC, Valiamala, Thriruvan त वनंतपुरम और LPSC,
बगलु , कनाटक।
स टम डजाइन, इंजीिनय रग और प रयोजना
LPSC, Valaimala R&D,
बंधन काय के लए ज मेदार है। क के मुख काय को सँभालते हुए
व िनयं ण अवयव इकाई तथा साम ी और िविनमाण इकाइयाँ पृ वी
थै तक और ायोजेिनक णोदन सं थाओं के अलावा यहाँ थत ह।
एलपीएससी, बगलु रमोट स सग और संचार उप ह और अ य
वै ािनक िमशन के लए णोदन णाली के डजाइन और उ पादन के
लए ज मेदार है। टांस ूसर और ससर का िवकास और उ पादन सभी
यहाँ िकए जाते ह।
भारत के उप ह
संचार उप ह (Communication Satellite)
भारतीय रा ीय उप ह (इनसैट) णाली, भू थर क ा म थािपत नौ
संचार उप ह सिहत ए शया-पे सिफक े म सबसे बड़े घरेलू संचार
उप ह म से एक है। इनसैट-1बी से शु आत करते हुए इसक थापना
1983 म क गई। इसने भारत के संचार े म एक मह वपूण ां त क
शु आत क और बाद म भी इसे बरकरार रखा। इस समय संचार उप ह
इनसैट-3ए, इनसैट-3सी, इनसैट-3ई, इनसैट-4ए, इनसैट-4 सी.आर.,
जीसैट-8, जीसैट-10 तथा जीसैट-12सी काय कर रहे ह। कुल 195
टांसप डर सिहत यह णाली दरू संचार, दरू दशन, सारण, उप ह समाचार
सं हण, सामा जक अनु योग, मौसम पूवानुमान, आपदा चेतावनी तथा
खोज और बचाव काय म सेवाएँ दान कर रही है।
सैटेलाइट और इसके सौर पैनल। इ ह सौर पैनल के सहारे
सैटेलाइट अपनी ऊजा लेता है। यह INSAT क तसवीर है।

भू े ण उप ह (Earth Observation Satellite)


वष 1988 के IRS-1A से शु आत करते हुए इसरो ने कई सुदरू संवेदन
उप ह को अंत र म भेजा है। आज भारत के पास सबसे बड़ी सं या म
सुदरू संवेदन उप ह का समूह है। वतमान म ‘तेरह’ चालनरत उप ह
क ा म ह— रसोससैट-1 और 2, 2ए, काट सैट-1 एवं 2, 2ए, 2बी,
रीसैट-1 एवं 2, ओशनसैट-2, मेघा-टाॅिप स, सरल तथा कैटसैट-1।
अ य चार उप ह—इनसैट-3डी., क पना एवं इनसैट-3ए,
इनसैट-3डी.आर. भू थर क ा म ह।
देश म तथा वै क उपयोग हेतु िव भ उपयोगकताओं क ज रत को
पूरा करने हेतु िविवध थािनक, पे टमी तथा का लक िवभेदन म
आव यक आँ कड़ा दान करने के लए िव भ उपकरण को इन उप ह से
भेजा गया है। इन उप ह से ा आँ कड़ का योग िव भ अनु योग जैसे
—कृिष, जल संसाधन, शहरी योजना, ामीण िवकास, खिनज संभावना,
पयावरण, वािनक , समु ी संसाधन और आपदा बंधन म िकया जाता है।
इसरो क बढ़ती मता
फरवरी 2017 म इसरो ने जब एक ही रॉकेट से 117 सैटेलाइट को
अंत र म भेजा तो सीएनएन ने कहा िक अब स, अमे रका भूल जाइए!
असली अंत र होड़ तो ए शया म चल रही है। एक रॉकेट से 117 उप ह
आज तक िकसी भी देश ने सफलतापूवक नह भेजे ह। इससे पहले स ने
एक साथ 35 उप ह अंत र म भेजे थे। इससे सािबत हो गया िक भारत
का अंत र काय म काफ आगे बढ़ गया है। भारत, चीन और जापान
अंत र म काफ तेजी से आगे बढ़ रहे ह। द ण को रया भी अंत र म
काफ काम कर रहा है। यह सभी शीतयु के दौरान क अंत र होड़ क
याद िदला रहा है।

े े ै े े ो
भारत ने इसके बाद एक एं टी सैटेलाइट िमसाइल से एक उप ह को मार
िगराया। इसका परी ण लंबे समय से अटका हुआ था। धानमं ी मोदी ने
‘िमशन शि ’ क सफलता क घोषणा क । चीन ने इस मता को 2007 म
ही हा सल कर लया था। तब से भारत भी इसे हा सल करने क को शश म
था। भारत क इस को शश का रणनी तक मह व भी बताया जा रहा है।
भारत इससे अपने द ु मन देश के सैटेलाइट को न कर सकता है।
डीआरडीओ के वै ािनक का मानना है िक ज रत पड़ने पर इससे 1,000
िकलोमीटर तक क ऊँचाई तक के सैटेलाइट को िगराया जा सकता है।
भारत इस मामले म चीन से िपछड़ना नह चाहता। इसके बाद अब भारत
‘िमसाइल डफस ो ाम’ म तेजी से आगे बढ़ेगा। ‘िमसाइल डफस
काय म’ म भारत क िदलच पी पािक तान को लेकर भी है। भारत
चाहेगा िक कोई भी यु शु करने से पहले वह पािक तान क परमाणु
अ योग करने क मता को न कर दे। दस ू रे श द म, पािक तान के
परमाणु अ को हवा म ही िन भावी करने क मता से वायस ु ेना को भी
काफ शि िमलेगी।
भारत ने 1962-62 म अपना अंत र काय म शु िकया था और अब
वह मंगल तक अपने अ भयान भेज रहा है। मंगल अ भयान को 2014 म
भेजा गया था और यह अब भारत का गव बन चुका है। इसे 2,000 पए के
नोट पर जगह दी गई है। इसे महज 7.4 करोड़ डाॅलर के खच पर भेजा गया
था, जो हॉलीवुड क िफ म ‘ ेिवटी’ के बजट से भी कम था। बाक देश
क तुलना म भारत उप ह से 60-70 फ सदी कम क मत पर भेजता है।
इसका कारण यहाँ के एयरो पेस इंजीिनयर का बहुत कम वेतन होना है।
भारत म अ छी यो यता के एयरो पेस इंजीिनयर का मा सक वेतन करीब
70 हजार पए महीना है। चीन और स क सैटेलाइट मता से मुकाबला
करने के लए अमे रका ने हाल ही म 32 अरब डॉलर का िनवेश िकया।
चीन, स और अमे रका म पहले से ही होड़ थी, लेिकन अब भारत भी
इसम शािमल होता िदख रहा है।
भारत को य अंत र काय म को जारी रखना चािहए?
अंत र के बारे म जानकारी हा सल करने म ाचीन भारत का योगदान
बहुत बड़ा रहा है, जबिक वतमान समय म भारत उतना भावशाली नह है।
अंत र प रयोजनाओं पर पैसा खच करने के लए अकसर भारत क
आलोचना क जाती है। खासकर जब इसक लगभग एक-चौथाई आबादी
गरीबी रेखा से नीचे है। लेिकन जब प मी देश को भारत को ह थयार
बेचना होता है तो वे इसे एक िवक सत देश बताते ह।
भारत का उ पादन स ता है

े े े
भारत के चं यान-2 लॉ क लागत अंतररा ीय मानक के िहसाब से
बहुत बड़ी नह है। इसक लागत लगभग 50 लाख डॉलर है।
10 वष क अपे त जीवन अव ध के साथ इसक प रचालन लागत हर
वष और घटती जाएगी। भारत के अंत र उ ोग का दावा है िक यह ‘बहुत
स ता’ है।
भारत वै ािनक अनुसंधान और िवशेष प से अंत र अनुसंधान के
लए अपने बजट आवंटन को लगातार बढ़ा रहा है। वा तव म यह आं शक
प से उस आलोचना के जवाब म है िक देश क सरकार िव ान पर उतना
खच नह करती है, जतना िक उसे करना चािहए।
यह य स ता है?
1. इसरो आयात पर िनभरता को कम करने के लए उ ोग क भागीदारी
के साथ मह वपूण पुरज और सामान के लए वदेशीकरण काय म
का अनुसरण करता है। भारतीय उ ोग इसरो क ज रत के अनुसार,
पुरज और सामान के डजाइन, िनमाण और परी ण म मह वपूण
योगदान दे रहे ह।
2. लागत एक पहला कारक है, जसे िकसी प रयोजना को शु करने के
समय ही यान म रखा जाता है। भारत एक ऐसा देश है, जहाँ नासा या
यूरोपीय अंत र एजसी के बराबर भारी-भरकम खच करने के बारे म
सोच ही नह सकते ह। भारत वै ािनक खोज िमशन पर भारी मा ा म
खच नह कर सकता।
3. कई िमशन के लए जाँचे-परखे गए PSLV का बार-बार उपयोग करना भी
लॉ बजट को कम रखने म मदद करता है।
4. इसरो अंत र यान के िवकास के हर चरण पर कड़ी िनगरानी रखता है,
इस लए, वह उ पाद क िफजूलखच से बचने म स म है।
5. भारत अपने अंत र काय म पर हर साल लगभग 1.2 अरब डॉलर
खच करता है, जबिक नासा का िपछले साल का बजट 20 अरब डॉलर
से अ धक का था।
6. भारत म तभाओं को िनयु करने क लागत प मी देश क तुलना म
बहुत कम है। अमे रका म एक एयरोनॉिटकल इंजीिनयर क अनुमािनत
वा षक आय 1,05,000 डॉलर है, जबिक भारत म उतने ही कुशल
इंजीिनयर का सबसे यादा वेतन केवल 20,000 डॉलर से कम है।
अंत र म उ िमता
(In Space) के ान के उपरांत अंत र के े म िनजी सहभािगता के लए

े ँ ै ो े
बहुत ही बेहतर प र थ तयाँ तैयार हो गई ह। 100 से अ धक टाटअप
काय करने लगे ह। इनम से पोय सबसे मह वपूण है—Skyroot Aerospace,
Agnikul Cosmos, Dhruv Space, Fixxel और Bellatrix Aerospace। इनम से कुछ
रॉकेट तकनीक, कुछ सैटेलाइट, कुछ डाटा, कुछ Propulsion और कुछ
ई ंधन पर काम कर रहे ह।
भारत के खगोलीय अ वेषण िमशन
भारतीय अंत र काय म म खगोल िव ान (Astronomy), तारा भौ तक
(Star Physics), हीय िव ान (Planetary Science) और भू-िव ान
(Geosciences), वायमु ड
ं लीय िव ान (Atmospheric Sciences) और सै ां तक
भौ तक िव ान (Theoretical Physics) जैसे े के अनुसंधान शािमल ह।
बैलून (Balloon), प र ापी रॉकेट (Sounding Rocket), अंत र आधार (Space
Base) और भू-आधा रत सुिवधाएँ (Ground-based Facilities) इन अनुसंधान
यास म सहायक ह। प र ापी राॅकेट क ंखला वायम ु ड
ं लीय योग के
लए उपल ध ह। िवशेष प से खगोलीय ए स िकरण और गामा िकरण
फुट क खोज को िदशा देने के लए उप ह पर िव भ वै ािनक
उपकरण ेिपत िकए गए ह।
इनम मुख रहे ह—ए टोसैट, चं यान िमशन और मंगलयान।

अ याय 7
भारत क अंत र म उपल धयाँ
सा इिकल पर रॉकेट, सामा य लोहार क तरह रॉकेट का िनमाण,
बैलगाड़ी पर सैटेलाइट का प रवहन। ये तसवीर इसरो और इससे संबं धत
कामकाज क ह। एक समय ऐसा भी था, जब इसरो िकस प म अपने को
यव थत करता था और कैसे काम चलाता था।

1981 म इसरो के वै ािनक भारत का पहला


दरू संचार सैटेलाइट ए पल बैलगाड़ी पर ले जाते हुए।

याद क जए, िकस तरह से इसरो ने चं यान-2 को चाँद पर उतारने का


यास िकया और िकस तरह से आपने पूरी रात िबताई होगी! चं यान-2
को उतरते देखने के लए लोग रातभर जगे रहे और उ ह ने यह भी देखा िक
चं यान-2 ने कैसे उतरने क को शश क !
अ याधुिनक लॉ पैड और उस पर चं यान लये बाहुबली रॉकेट।

अब लोग ने यह भी जाना िक तकनीक या होती है और तकनीक का


बंधन या होता है? िकतने कम खच म तकनीक को बं धत िकया जा
सकता है।
भारत के अंत र िवकास क या ा िकसी हैरतअंगेज कहानी से कम नह
है। लोहार क दक ु ान से साइिकल, साइिकल से बैलगाड़ी, बैलगाड़ी से
ए पल, आयभट, आयभट से इनसैट, िफर आईआरएस और िफर उनके
बड, S-बड, C-बड, KU-बड, CCD, VHRR, LISS (Linear Imaging Self Scanning)
और अब लडसैट, काट सैट, मेटसैट, ए टोसैट, ए-सैट, चं यान, गगनयान,
मंगलयान और आगे न जाने िकतने! भारतीय अंत र क ये सारी
उपल धयाँ ही रही ह।
इसरो का कोर े
1969 म अपनी थापना के बाद से ही इसरो सामा जक उ े य और
कोर े , दोन को पूरा कर रहा है। पहला े उप ह संचार का था, इनसैट
और जीसैट के साथ दरू संचार, सारण और ॉडबड बुिनयादी ढाँचे के लए
रा ीय ज रत को पूरा करना था। धीरे-धीरे बड़े उप ह को बड़े पैमाने पर
टांसप डर ले जाने के लए बनाया गया। भारतीय उप ह पर लगभग 200
टांसप डर दरू संचार, टेलीमे ड सन, टेलीिवजन, ॉडबड, रे डयो, आपदा
बंधन तथा खोज और बचाव सेवाओं जैसे े से जुड़ी सेवाएँ देते ह।
भारत एक तरह से कम क मत पर अंत र सेवाएँ देने का एक क बन चुका
है। अब तक भारत करीब 260 िवदेशी उप ह को लॉ कर चुका है।
नौ-प रवहन के लए भारतीय े ीय नेिवगेशन सैटेलाइट स टम (IRNSS)
है, जो भू थर और भू-समका लक क ाओं म सात उप ह पर आधा रत
णाली है। यह 20 मीटर से अ धक सटीकता के साथ भारतीय सीमाओं से
1,500 िकमी. तक फैले े क िनगरानी करते हुए सटीक जगह बताने क
सेवा देता है। उ सटीकता पोजीश नग उपयोग के लए सुर ा एज सय को
उपल ध है। 2016 म स टम का नाम बदलकर ‘नािवक’ (Navigation with
Indian Constellation) कर िदया गया। इन सेवाओं के अनेक रणनी तक लाभ
ह।
ो ँ
नई मह वाकां ी प रयोजनाएँ
बढ़ते आ मिव ास के साथ इसरो ने अ धक मह वाकां ी अंत र िव ान
और अ वेषण िमशन को भी शु िकया है। इनम से सबसे उ ेखनीय
चं यान और मंगलयान िमशन ह। एक मानवयु अंत र िमशन, गगनयान
को 2021 म पहली बार भेजने क योजना बनाई गई है। ये िमशन केवल
ौ ोिगक दशन के लए नह ह, ब क अंत र िव ान म ान क
सीमाओं का िव तार करने के लए भी ह। मानव िमशन क सफलता इसरो
क मताओं और भरोसे को पूरी दिु नया म बढ़ा देगी। रॉकेट तकनीक म
महारत हा सल िकए िबना यह संभव नह है।
इसरो के बेहतरीन काय
लॉ - हीकल तकनीक म महारत हा सल िकए िबना इसम से कोई भी
संभव नह होगा। सैटेलाइट लॉ हीकल (SLV) और ऑगमटेड सैटेलाइट
लॉ हीकल (ASLV) के साथ शु आत करते हुए इसरो ने ुवीय सैटेलाइट
लॉ हीकल (PSLV) को पृ वी क िनचली और सूय क समका लक
क ाओं म उप ह को रखने के लए िवक सत और प र कृत िकया है। 46
सफल िमशन के साथ पीएसएलवी का एक रकॉड है। जयो स ोनस
सैटेलाइट लॉ हीकल (GSLV) काय म अभी भी अपने Mk-III व प के
साथ िवक सत कर रहा है। इसम तीन िमशन ह, और भू- थै तक क ा म
3.5 मीिटक टन (MT) पेलोड ले जाने म स म है। इसक तुलना म च
ए रयन 5 रॉकेट ने 100 से अ धक लॉ िमशन िकए ह। यह 5 मीिटक टन
पेलोड ले जाता है।
भारतीय उ ोग सहयोग
इन वष म इसरो ने उ ोग के साथ एक मजबूत संघ बनाया, िवशेष प
से सावजिनक े के उप म , जैसे िक हद ु तान एयरोनॉिट स लिमटेड,
िम धातु िनगम लिमटेड और भारत इले टॉिन स लिमटेड। िनजी े
क लासन एं ड टु ो, गोदरेज और बालचंदनगर इंड टीज जैसी बड़ी
इकाइयाँ भी इसरो के लए काम करती ह।
िनजी े के सभी सहयोगी िटयर-2/िटयर-3 तर के िव े ता ह, जो
उपकरण और सेवाएँ देते ह। असबली, इंटी ेशन और टे टग (एआईटी)
क भूिमका केवल इसरो तक सीिमत है। इसरो ने 1992 म एक िनजी कंपनी
के प म ‘एं िट स’ क थापना क । यह इसरो के उ पाद और सेवाओं
तथा इंटरफेस क माक टग के लए िनजी े के साथ ौ ोिगक साझेदारी
के ह तांतरण म उसके वा ण यक अंग के प म काम करती है।
नए अंत र टाटअप


नए अंत र टाटअप सरकार के ड जटल इं डया, टाटअप इं डया,
कल इं डया जैसे मुख काय म और माट सटीज िमशन जैसी
योजनाओं के साथ तालमेल िबठाते ह। वे डाटा िव े ता, जैसे इसरो/एं िट स
और अं तम उपयोगकता के बीच डाटा ए◌ेप को बनानेवाले के प म एक
भूिमका िनभाते ह। वे टैलट पूल, नवाचार मता और ौ ोिगक का लाभ
उठाते ह। उ ह एक स म पा र थ तक तं , ो साहन और पूँजी क
आव यकता होती है। ये बगलु जैसे शहर म मौजूद ह, जहाँ सबसे यादा
नए अंत र टाटअप शु हुए ह।
छोटे सैटेलाइट क ां त
इसरो क एक और शानदार सफलता छोटे उप ह के े म है। वै क
तर पर 17,000 छोटे उप ह को अब से लेकर 2030 के बीच लॉ िकए
जाने क उ मीद है। इसरो 2019 तक एक छोटा उप ह ेपण यान
(एसएसएलवी) िवक सत करने क तैयारी कर रहा है। यह पीएसएलवी के
साथ-साथ िनजी े को सेवा देनेवाला एक मुख रॉकेट सािबत हो सकता
है।
काफ पहले इसरो ने थानीय पंचायत और गैर-सरकारी संगठन के
साथ िमलकर काम करने के लए ‘ ाम संसाधन क ’ का िवचार शु
िकया था। लेिकन अब तक केवल 460 पायलट प रयोजनाओं को शु
िकया गया है। ामीण े के लए इसका िव तार करना एक किठन
चुनौती है। लेिकन अगर ठीक से क पना क जाए तो इसम ामीण भारत
को बदलने क मता है।
दस
ू रे देश को ो साहन
भारत के वै ािनक िवकास म यादा िनवेश क अकसर आलोचना होती
है। अभी भी भारत म करोड़ लोग को पीने का साफ पानी नह िमलता है।
भारत म िबजली, शौचालय, सड़क और रेल कने टिवटी क पया सुिवधा
नह है। इसके िवपरीत सरकार का कहना है िक िव ान और ौ ोिगक
पर खच करने से चहुँमुखी सामा जक िवकास होता है।
खगोल िव ान एवं अ य शाखाएँ
भारतीय अंत र काय म म खगोल िव ान (Astronomy), तारा भौ तक
(Star Physics), हीय िव ान (Planetary Science) और भू-िव ान
(Geosciences), वायमु ड
ं लीय िव ान (Atmospheric Sciences) और सै ां तक
भौ तक िव ान (Theoretical Physics) जैसे े के अनुसंधान शािमल ह।
बैलून (Balloon), प र ापी राॅकेट (Sounding Rocket), अंत र आधार (Space
Base) और भू-आधा रत सुिवधाएँ (Ground-based Facilities) इन अनुसंधान
यास म सहायक ह। प र ापी राॅकेट क ंखला वायम ु ड
ं लीय योग के
े े ो औ
लए उपल ध ह। िवशेष प से खगोलीय ए स-िकरण और गामा िकरण
फुट क खोज को िदशा देने के लए उप ह पर िव भ वै ािनक
उपकरण ेिपत िकए गए ह।
ए टोसैट

ए टोसैट

ए टोसैट थम भारतीय खगोलीय िमशन है, जसका ल य ए स–


िकरण, का शक एवं यू.वी. पे टम बड म एक साथ खगोलीय ोत का
अ ययन करना है। इन नीतभार (पे-लोड) म पराबगनी (दरू एवं समीप),
सीिमत का शक एवं ए स-िकरण े (0.3 के.ई.वी. से 100 के.ई.वी.
तक) के ऊजा बड शािमल ह। ए टोसैट िमशन का एक अनोखा गुण यह है
िक यह एक उप ह के साथ िव भ खगोलीय व तुओ ं के एक ही साथ बहु-
तरंगदै य े ण म सहायक है। इसे क ा म 28 सतंबर, 2015 को ेिपत
िकया गया था। ए टोसैट िमशन क यूनतम उपयोगी कालाव ध 5 वष है।

भारत क थम बहु-तरंगदै य अंत र वेधशाला ए टोसैट।

मंगल िमशन
भारत ने 1962-66 म अपना अंत र काय म शु िकया था और अब
वह मंगल तक अपने अ भयान भेज रहा है। मंगल अ भयान को 2014 म
भेजा गया था और यह अब भारत का गव बन चुका है। इसे 2,000 पए के
ो ै े ो े े
नोट पर जगह दी गई है। इसे महज 7.4 करोड़ डॉलर के खच पर भेजा गया
था, जो हॉलीवुड क िफ म ‘ ेिवटी’ के बजट से भी कम था।
अंतर हीय अंत र म भारत का यह पहला यास था। यह अ भयान
मंगल के सतह के ल ण , आकृ त िव ान, खिनज िव ान तथा उसके
वायम
ु ड
ं ल का अ वेषण एवं े ण करने के लए बनाया गया। साथ ही इसे
मंगल के वायमु ड
ं ल म मीथेन क िव श खोज, इस ह पर जीवन क
संभा यता या पूव म जीवन के बारे म सूचना देने के लए भी बनाया गया।
अंतर हीय िमशन म अ य धक द ू रयाँ सबसे यादा चुनौतीपूण ह, जो
इन िमशन के लए अ याव यक ौ ोिगिकय को िवभा जत करने और
उनम महारत हा सल करने से अंत र अ वेषण क असीम संभावनाओं को
खोल दगी। पृ वी से दरू जाने के बाद क ा यान को मंगल ह क क ा म
वेश करने से पूव 300 िदन तक अंतर हीय अंत र म रहना पड़ा। गहन
अंत र संचार और नौवहन–मागदशन िनयं ण मताओं के अ त र ,
अंत र यान से जुड़ी आक मकताओं का बंधन करने के लए िमशन को
वाय ता क ज रत थी।
जब एक बार भारत ने अंत र म जाने का िन य कर लया तब इसरो को
समय न नह करना था, य िक अगला ेपण वडो (Launch Window)
कुछ ही महीन का था और वह इस अवसर को खोना नह चाहता था।
इसके आगे ेपण वडो 780 िदन के बाद वष 2016 म था। इस तरह
िमशन क आयोजना, अंत र यान और ेपक राॅकेट का िनमाण और
सहायक णा लय क तैयारी का काय शी शु िकया गया।

भारत का गौरव—मंगलयान, जसे चीन ने भी ए शया का गौरव कहा था।

मंगल िमशन 80,000 िकमी. तक 372 िकमी. क दीघवृ ीय क ा म


मंगल ह क प र मा करने के लए डजाइन िकया गया था। क ा यान के

साथ मंगल ह के लए यह पहला अंतर हीय िमशन था। किठन िमशन
चालन और अंत र यान क नोदन (Propulsion) संचार और अ य
णा लय पर मह वपूण ज रत को यान म रखते हुए मंगल िमशन को
चुनौतीपूण ौ ोिगक िमशन और िव ान िमशन कहा जा सकता है। िमशन
के मु य ेरक ौ ोिगक उ े य भूिम आधा रत यिु कौशल (ई.बी.एम.),
मंगल हीय अंतरण ेप-पथ (एम.टी.टी.) और मंगल क ा अंत: ेपण
(एम.ओ.आई.) चरण क मता के साथ अंत र यान का डजाइन और
िनमाण करना था। लगभग 400 िम लयन िकमी. क दरू ी पर संव धत गहन
अंत र िमशन योजना और संचार बंधन का िनमाण करना भी इसका एक
अंग था। वाय ुिट संसूचन (Autonomous Error Detection) और पुन: ाि
(Recovery) भी िमशन के लए मह वपूण थे।

मंगलयान कैसे कम ई ंधन म मं जल पर पहुँचा?


इसरो ने एक पुराने राॅकेट और गु वाकषण बल का उपयोग करके
मंगलयान को उसक मं जल मंगल ह तक भेजने म सफलता कैसे हा सल
क ? भारत के िमशन मंगलयान ने 1 िदसंबर, 2013 को पृ वी क क ा को
छोड़ा। जब यह 24 सतंबर, 2014 को मंगल ह क क ा म पहुँचा, तब
तक मंगलयान 10 महीने के भीतर 718 िम लयन िकलोमीटर क दरू ी तय
कर चुका था। लेिकन यहाँ एक सवाल पैदा होता है िक मंगलयान को 5
नवंबर, 2013 को ीह रकोटा से ेिपत िकया गया था और मंगल ह
भेजने से पहले यह 25 िदन तक पृ वी क क ा का च र लगाता रहा था,
ऐसा य िकया गया? नासा के मेवेन िमशन ने मंगल ह पर पहुँचने के लए
केवल 15 िदन का समय लगाया था। इसका कारण यह है िक नासा का
रॉकेट इसरो के रॉकेट से 6 गुना यादा ताकतवर था, लेिकन उसम ई ंधन
भी बहुत यादा लगा था।
5 नवंबर, 2013 को पीएसएलवी रॉकेट ने मंगलयान को पृ वी क
िनचली अंडाकार क ा (Low Elliptical Orbit) म रख िदया, जसम पृ वी से
सबसे कम दरू ी 240 िकलोमीटर और सबसे अ धक दरू ी 24,000
िकलोमीटर होती है। तकनीक प से सबसे कम दरू ी को पे रजी और
सबसे अ धक दरू ी को एपोजी कहते ह। जब सैटेलाइट इस क ा म होता है
तो उसे पृ वी का च र लगाने के लए िकसी ऊजा या ई ंधन क ज रत
नह होती। यह उसी तरह पृ वी के चार ओर घूमती है, जैसे पृ वी सूय के
चार ओर घूमती है।
लेिकन सैटेलाइट िकस ग त से घूमेगी, यह दो चीज पर िनभर करता है।
पहला, पृ वी से दरू ी और दस
ू रा, क ा का आकार। पृ वी के नजदीक
सैटेलाइट क ग त सबसे तेज और गु वाकषण खचाव सबसे अ धक
होता है। जहाँ तक क ा के आकार का सवाल है, यादा अंडाकार क ा से

ै े े े ै ो ो े
सैटेलाइट क ग त सबसे तेज रहती है। इ ह दो स ांत का उपयोग करके
इसरो समय-समय पर सैटेलाइट क ग त को बढ़ाता है। पे रजी के समीप
सैटेलाइट क ग त सबसे अ धक होती है, इस लए अगर आप पे रजी के
पास सैटेलाइट क मोटर को चालू करगे तो उसे बहुत अ धक ग त देगा, जो
इसे अ धक दरू तक पहुँचा देता है। जैसे ही सैटेलाइट पे रजी के समीप
आता है, बगलु के िमशन कंटोल से इसक मोटर को चला िदया जाता है,
जो इसे और अ धक बड़ी क ा म पहुँचा देता है। 5 नवंबर से लेकर 16
नवंबर के बीच इसरो ने ऐसे पाँच बार मंगलयान क क ा को बढ़ाने का काम
िकया। इसने मंगलयान क क ा क एपोजी को 1,93,000 िकलोमीटर तक
बढ़ा िदया। 5 नवंबर को जस क ा म मंगलयान को रखा गया था, यह
उसक तुलना म 8 गुना अ धक था। यह ध ा सैटेलाइट क ग त को 11
िकलोमीटर त सेकंड से थोड़ा कम तक पहुँचा देता है, जो िक पृ वी के
पलायन वेग के नजदीक है। ऐसी थ त म पहुँचने के बाद िमशन कंटोल
सैटेलाइट क मोटर को एक बार िफर फायर करते ह और उसे पृ वी के
गु वाकषण से बाहर िनकालकर सूय के गु वाकषण बल के भाव म
पहुँचा देते ह, जससे िक वह सूय क उसी तरह प र मा करने लगता है,
जैसे िक पृ वी करती है। पृ वी 1 लाख िकलोमीटर तघंटा क ग त से
सूय क प र मा करती है। सैटेलाइट भी उसी पीड से सूय क क ा म
घूमने लगता है। मंगलयान क नई क ा सूय क उस क ा को काटनेवाली
होती है, जसम मंगल ह सूय का च र लगाता है। इसे ‘टांसफर क ा’ या
‘हानमेन ऑरिबट’ कहते ह। कुछ बदओ ु ं पर यह ऑ बट मंगल ह क सूय
क क ा को काटती है। िमशन क समय अव ध क योजना बहुत
यानपूवक बनाई जाती है। ऐसा इस लए िकया जाता है, य िक जब
मंगलयान उस बद ु पर पहुँच जाए तो मंगल ह खुद उसे अपने गु वाकषण
के दायरे म ख च ले। इस समय सैटेलाइट को िफर से फायर िकया जाता है,
लेिकन इस बार यह उलटी िदशा म फायर िकया जाता है, जससे इसक
ग त कम हो जाए और मंगल अपने गु वाकषण से वयं अपनी क ा म
थािपत कर द। इस तरह से मंगलयान उसक क ा म घूमने लगता है।
अब अगर कोई आपसे यह पूछे िक इसरो के मंगलयान म केवल उतना
ई ंधन य लगा, जतना िक चं मा पर जाने पर लगता है? जबिक मंगल ह
चं मा से 100 गुना अ धक दरू ी पर है, तो अब इसका जवाब आपके पास
है।
जो भी ई ंधन लगता है, वह केवल यान को लो ऑ बट म भेजने म लगता
है और सफ दरू ी गु वाकषण के कारण तय क जाती है।
चं यान-1
चं मा के लए भारत का थम िमशन, चं यान-1 एस.डी.एस.सी. शार,

ो े ो े
ीह रकोटा से 22 अ ू बर, 2008 को सफलतापूवक ेिपत िकया गया
था। अंत र यान चं मा क रासायिनक, खिनज िव ानीय और काश-
भूिव ानीय मान च ण के लए चं मा क सतह से 100 िकमी. क ऊँचाई
पर चं मा के चार ओर प र मा कर रहा था। अंत र यान से भारत,
अमे रका, जमनी, वीडन और बु गा रया म िन मत 11 वै ािनक उपकरण
को भेजा गया, जनका चयन इसरो क घोषणा (एओ) के ज रए िकया गया
था।
इस अंत र यान ने चं मा क 3,400 से यादा प र माएँ क और यह
312 िदन, अथात् 29 अग त तक काम करता रहा।
चं यान-1 ने चं मा पर पानी होने क प पुि क । यह खोज सबसे
अलग थी। चं यान-1 ने चं मा के ुव े म बफ के प म पानी जमा होने
क भी खोज क । इसने चं मा क सतह पर मै ी शयम, ए यिु मिनयम और
स लकॉन होने का भी पता लगाया। चं मा का मान च तैयार करना इस
िमशन क एक और बड़ी उपल ध थी।

चं यान-1 और उसके अवयव

चं मा के अ त व म आने और उसके िमक िवकास से जुड़ी जानकारी


ा करके हम समूचे सौरमंडल और हमारी पृ वी का इ तहास समझने म
सहायता िमलेगी। चं मा का तापमान बहुत यादा और बहुत कम होता है।
इसके जस भाग पर सीधे सूय क रोशनी पड़ती है, वहाँ 130 ड ी
से सयस तक तापमान होता है और बेहद गरमी रहती है, पर रात के व
यह शू य से -180 ड ी से सयस नीचे हो जाता है और जबरद त ठंड
रहती है। अभी तक िकसी चं िमशन को चं मा पर जीवन के होने के माण
या संकेत नह िमले ह।
अगर चं यान-2 के ेपण के नतीज पर ही िवचार िकया जाए तो भारत
को उ मीद है िक यह िवकासशील देश को अपने अंत र ेपण के लए
े े ओ ो े े
प मी देश के बजाय उसक सुिवधाओं का उपयोग करने के लए
ो सािहत करेगा।
इस लए आलोचना क परवाह िकए िबना भारत अंत र अनुसंधान पर
पैसा लगा रहा है। इसरो का बजट बढ़ाया गया है और अब शु पर एक
िमशन शु करने क योजना है। इसरो के अलावा इसका एक यावसा यक
अंग Inspace पूरी तरह कायरत है। भारत ने GSLV V MK-3 भी टे ट कर लया
तथा इसका उपयोग कर लया।
िमशन शि , इसरो क बढ़ती मता
फरवरी 2017 म इसरो ने जब एक ही राॅकेट से 117 सैटेलाइट को
अंत र म भेजा तो सीएनएन ने कहा िक अब स, अमे रका भूल जाइए।
असली अंत र होड़ तो ए शया म चल रही है। एक राॅकेट से 117 उप ह
आज तक िकसी भी देश ने सफलतापूवक नह भेजे ह। इससे पहले स ने
एक साथ 35 उप ह अंत र म भेजे थे। इससे सािबत हो गया िक भारत
का अंत र काय म काफ आगे बढ़ गया है। भारत, चीन और जापान
अंत र म काफ तेजी से आगे बढ़ रहे ह। द ण को रया भी अंत र म
काफ काम कर रहा है। यह सभी शीत यु के दौरान क अंत र होड़ क
याद िदला रहा है।
भारत ने इसके बाद एक एं टी सैटेलाइट िमसाइल से एक उप ह को मार
िगराया। इसका परी ण लंबे समय से अटका हुआ था। धानमं ी मोदी ने
िमशन शि क सफलता क घोषणा क । चीन ने इस मता को 2007 म
ही हा सल कर लया था। तब से भारत भी इसे हा सल करने क को शश म
था। भारत क इस को शश का रणनी तक मह व भी बताया जा रहा है।
भारत इससे अपने द ु मन देश के सैटेलाइट को न कर सकता है।
डीआरडीओ के वै ािनक का मानना है िक ज रत पड़ने पर इससे 1,000
िकलोमीटर तक क ऊँचाई तक के सैटेलाइट को िगराया जा सकता है।
भारत इस मामले म चीन से िपछड़ना नह चाहता था। इसके बाद अब
भारत ‘िमसाइल डफस ो ाम’ म तेजी से आगे बढ़ेगा। ‘िमसाइल डफस
काय म’ म भारत क िदलच पी पािक तान को लेकर भी है। भारत
चाहेगा िक कोई भी यु शु करने से पहले वह पािक तान क परमाणु
अ योग करने क मता को न कर दे। दसू रे श द म पािक तान के
परमाणु अ को हवा म ही िन भावी करने क मता से वायस ु ेना को भी
काफ शि िमलेगी।
ASAT ारा कैसे दस
ू रे सैटेलाइट को मार िगराया जा सकता है।

ASAT के काय का च ीय िववरण


ै औ ँ
सै य और सुर ा म भारत क उपल धयाँ
शु के दशक म अंत र का उपयोग सेना म यादातर सहायक तरीके
जैसे— च , इले टॉिनक इंटे लजस, संचार और नौवहन आिद के लए
िकया गया था। बहरहाल, तेज ग त से एं ि टेड संचार और इमेज के
आधुिनक यु म बढ़ते मह व से अंत र के यु संबध ं ी उपयोग के बारे म
सजगता बढ़ी है। फाइटर जे स, यूएवी और दसू री यु साम ी को गाइड
करने के लए अंत र णाली क मता ज री है। वा तव म कई सेनाएँ
अब यु लड़ने और जीतने क अपनी मता के लए अंत र के उपयोग
को बहुत मह वपूण मानती ह।
इस लए भारत ने द ु मन के उप ह को खराब करने, उनके स ल को
जाम करने या उ ह पकड़ने और ख म करने म सैिनक च िदखाई है। यह
एक पूरी तरह नई दिु नया है, जसे ‘काउं टर पेस’ िमशन कहा जाता है।
भारतीय ASAT परी ण इस पूरी यव था का छोटा सा िह सा था और कुछ
हद तक पुराना तरीका था। अमे रका और चीन जैसे देश ने अ य तकनीक
क ओर यान िदया है, जैसे िक उप ह को ट र मारना या उ ह न करने
के लए जमीन या अंत र से लेजर का उपयोग करना।
भिव य म उप ह के और भी अ धक गहन उपयोग क संभावना है। छोटे
उप ह क ऐसी ंखला, जो माँग पर रीयल टाइम डाटा देने म स म हो,
बहुत उपयोगी हो सकती है। उप ह को िन य या खराब होने के हालात
म सेना चाहेगी िक वे तेजी से उ ह बदलने क मता रख। दस
ू रे श द म,
उनके अपने रॉकेट और उप ह ह ।
यह आ य क बात नह है िक भारत ने भी अब डीएसए (Defence Space
Agency-DSA) को बनाया है, ब क यह अंत र संबध
ं ी ग तिव धय म तेज
वृ का संकेत भी है।
अगले दशक म इसरो नए रॉकेट मोटस, ोप शन स टम, ई ंधन आिद
पर काम करेगा। यह 2022 तक मानव को अंत र म भेजने क भी उ मीद
करता है। हाल ही म आईएसएस मुख ने 2030 तक अंत र टेशन
बनाने क घोषणा क है।
जैसा िक अ य देश के मामले म साफ है, वे उन ौ ोिगिकय को
िवक सत करगे जनके सै य उपयोग ह। लेिकन भारत को एक लंबा रा ता
तय करना है। यह केवल ‘काउं टर पेस तकनीक ’ के े म ही नह है,
जसम भारत ने ASAT का परी ण िकया है। यह चुनौती दोहरे उपयोगवाली
अंत र ौ ोिगिकय के े म आ सकती है, जैसे— त त उप ह का
िनरी ण, मर मत और िनपटानवाले राॅबोट या ऐसे उप ह, जो लेजर से
लैस ह ।

ै े े ो े े
सै य उ े य के लए अंत र का उपयोग करने के लए भारत क
मताएँ बेहद सीिमत ह। सै य उ े य के लए इसके पास करीब एक दजन
उप ह ह, जबिक चीन के पास शायद उससे 10 गुना यादा उप ह ह।
काट सैट और RISAT जैसे उप ह उपयोगी च दान कर सकते ह,
लेिकन भारत को रीयल टाइम क इमेज या इले टॉिनक इंटे लजस को
हा सल करने के लए एक लंबा रा ता तय करना है, जो आधुिनक यु क
ग त को बनाए रखने म अकसर ज री होता है।
भारत को अंत र म य यादा यास करना चािहए?
यह एक नया यु े होगा और भारत को एक तरोधक शि िवक सत
करनी होगी। पहला उप ह लॉ िकए जाने के साठ साल बाद, अंत र
सै य होड़ का नया मैदान बनता जा रहा है, जस पर िवक सत देश क जा
करना और हावी होना चाहते ह।
िपछले साल अमे रका ने अपनी सेना क छठी शाखा क थापना करके
यह संकेत िदया। उसने अपनी ‘ पेस फोस’ के साथ एक अमे रक अंत र
कमान बनाई है। अंत र और साइबर यु के लए ज मेदा रय के साथ
चीन ने 2015 म अपनी सेना क पाँचव शाखा ‘ टैटे जक सपोट’ फोस
बनाई। इसी संदभ म हम भारत क ‘र ा अंत र एजसी’ (डीएसए) क
थापना के बारे म हुए फैसले को देखने क ज रत है।
शु से ही अंत र ने सै य ि कोण से च जगाई है और वा तव म,
अ धकांश अंत र काय म सै य उ े य से ही संचा लत थे। बाहरी
अंत र सं ध (Outer Space Treaty) अंत र म परमाणु ह थयार क तैनाती
पर तबंध लगाती है। यह आकाशीय व तुओ ं पर सै य िठकान को बनाने
पर रोक लगाती है। यह अंत र म पारंप रक सै य ग तिव धय , अंत र -
उ मुख सै य बल या अंत र म पारंप रक ह थयार के उपयोग पर तबंध
नह लगाती है।
DSA बनाने का िनणय भारत के िकफायती अंत र काय म को यान म
रखते हुए िकया गया है। इसे अंत र आधा रत प रसंप य के िनयं ण के
लए भारतीय अंत र अनुसंधान संगठन (ISRO), र ा खुिफया एजसी
(DIA) और रा ीय तकनीक अनुसंधान कायालय (NTRO) जैसी एज सय के
मा यम से काम करना होगा।
भारत एक ऐसा देश है, जसने इनसैट ंखला जैसे बहुउपयोगी उप ह
का िवकास िकया है, जो र ा के लहाज से भी अलग-अलग एज सय के
उपयोग के लए साझा करने के लए सुिवधाजनक है।
अ धकांश देश म अंत र के नाग रक काय उनके अिनवाय प से सै य
काय म का एक िह सा थे। भारत का एक अलग ख था, जसने जोर
े ो े े
देकर कहा िक इसका काय म िवकासा मक ल य को पूरा करने के
उ े य से था। भारत अपने काय म को जतना संभव हो, उतना पारदश
बनाने के लए यास करता चला है। यह िवक सत होनेवाली ौ ोिगिकय ,
इसक परी ण ि याओं और उनसे जुड़े सभी तरह के िववरण दान
करता है।
इसरो के इस फैसले का एक कारण यह था िक िमसाइल ौ ोिगक
िनयं ण यव था के दौर म उसे हर तरह क िवदेशी सहायता िमल सके।
उसने अंत र ेपण वाहन या रॉकेट से लेकर ससर और उप ह तक
के कई अनु योग के लए बहुत थोड़ी सहायता हा सल क ।
सै य अनु योग के लए भारत के पास र ा अनुसंधान और िवकास
संगठन था, जो िमसाइल को िवक सत करने के लए खुद यास करता
था। जब डीआरडीओ यह काम करने म सफल नह रहा, तो उसने इसरो से
एपीजे अ दल
ु कलाम को आमंि त िकया। अ दल ु कलाम ने एसएलवी-3
को िवक सत करने म मदद क थी। उ ह ने अपने ान का उपयोग अि
ंखला क िमसाइल को िवक सत करने के लए िकया था। इस तरह
भारत एक ऐसे मॉडल को बनाने म सफल हो गया, जो कई अंत र
अनु योग क सै य और नाग रक दोन कृ त का उपयोग कर सकता है।

IRNSS : नेिवगेशन सैटेलाइट स टम उपयोिगता मता एवं इसके काय।

भारत ने 1980 के दशक म दरू संचार, रमोट स सग और नेिवगेशन के


लए उप ह का योग शु िकया। र ा के लए इसका उपयोग ांस के
एसपीओटी जैसे संगठन से च हा सल करने तक सीिमत था। इसके बाद
1980 के दशक म भारतीय रमोट स सग (आईआरएस) उप ह काय म
जैसे अपने वयं के इमे जग सैटेलाइट को नाग रक उपयोग के लए
िवक सत िकया। 2001 म, इसने एक इमे जग उप ह लॉ िकया, जसे
‘ ौ ोिगक योग उप ह’ (TES) कहा जाता है।
े े े े ो
2001 के सुधार के म ेनजर डीआईए र ा मह व के च को िवक सत
करने और िव ेषण करने का क चलाता है, जसम उप ह डाटा का
िव ेषण करने के लए वा लयर म एक क है। सै य उप ह का िनयं ण
करनेवाले NTRO का टेशन असम म है।
संचार के े म इसरो क इनसैट ंखला देश को दरू संचार और टी.वी.
सारण क मता दान कर रही है। सै य संचार के लए पूरी तरह
सम पत पहला उप ह GSAT-7 (INSAT-4F) 2013 म लॉ िकया गया था।
यह भारतीय नौसेना क ज रत को पूरा करने के लए था। िदसंबर 2018
ु ेना क आव यकताओं को पूरा करने के लए GSAT-
म, इसने भारतीय वायस
7A लॉ िकया।

नेिवगेशन के े म, भारत द णी ए शया म जीपीएस जैसी मता दान


करने के लए अपने ‘ े ीय नेिवगेशन सैटेलाइट स टम’ (IRNSS) के साथ
सामने आया है। यह सै य उपयोग के लए एं ि टेड डाटा भी दान करेगा।
िवशेषकर चं यान-2 के बाद अंत र म हमारी जतनी भी योजनाएँ आ
रही ह, वे सभी हमारी उपल धय को और भी दी करगी। हमारा
अंत र और हमारी सोच सुपरनोवा का व प ले लेगी।
2020 म इसरो अंत र म 25 से अ धक िमशन ले जा रहा है।
चं यान-3
इसरो ने इसी तरह अब चं यान-3 क तैयारी भी कर ली है। 2023 म
चं यान-3 को चं मा पर उतारने क तैयारी का ारंभ हो चुका है।
चं यान-3 क बनावट चं यान-2 क तरह होगी, अथात् इसके पास भी
लडर और रोवर होगा और ऑ बटर तो पहले से घूम ही रहा है।
गौरतलब है िक इसरो चं यान-3 को उसी जगह उतारने क को शश
करेगा, जहाँ चं यान-2 को उतरना था। चं यान-2 उतरने से पहले ही
िगरकर टू ट गया था। चं यान-3 से पहले चं यान-2 क किमय को पूरा
करने का यास िकया जाएगा और उसके लए पैर उसके और भी मजबूत
करने ह गे, जससे िक वह आसानी से उतर सके।
चं यान-3 िमशन का पूरा यय 615 करोड़ पए होगा, जबिक चं यान-2
के ऊपर िकया गया यय 960 करोड़ पए था।
चं यान-3 के ज रए भारत चाँद क या ा पर िनकलेगा तो आिद य के
ज रए हमारा ल य सूय रहेगा। संस म अंत र िवभाग ने जवाब म कहा
िक चं यान-3 िमशन (Chandrayaan-3) और आिद य एल-1 (Aditya L-1)
साल 2023 म लॉ िकए जाएँ गे।
काट सैट-3 (Cartosat-3)
भारतीय अंत र एजसी इसरो (Indian Space Research Organization) ने
27 नवंबर, 2019 क सुबह देश क सुर ा और िवकास के लए इ तहास
रचा। इसरो ने सुबह 9.28 बजे सैटेलाइट काट सैट-3 को सफलतापूवक
लॉ कर िदया। अब भारतीय सेनाएँ पािक तान क नापाक हरकत और
उनक आतंक ग तिव धय पर बाज जैसी नजर रख पाएँ गी। ज रत पड़ने
पर इस सैटेलाइट क मदद से स जकल या एयर टाइक भी कर पाएँ गी।
इसरो ने काट सैट-3 सैटेलाइट को 27 नवंबर, 2019 को सुबह 9.28 बजे
ीह रकोटा ीप पर थत सतीश धवन पेस सटर (SDSC SHAR) के
लाॅ पैड-2 से लॉ िकया। काट सैट-3 सैटेलाइट पीएसएलवी-सी47
(PSLV-C47) रॉकेट से छोड़ा गया। काट सैट-3 पृ वी से 509 िकलोमीटर क
ऊँचाई पर च र लगाएगा। यह सबसे ताकतवर कैमरेवाला नाग रक उप ह
है। इतना ताकतवर है िक उस ऊँचाई से जमीन पर 9.84 इंच क ऊँचाई
तक क प तसवीर ले सकेगा। यानी कलाई पर बँधी घड़ी पर िदख रहे
सही समय क भी सटीक जानकारी िमल जाएगी। यह देश का अब तक का
सबसे बेहतरीन अथ ऑ जरवेशन सैटेलाइट है। अभी तक इतनी
सटीकतावाला सैटेलाइट कैमरा िकसी देश ने लॉ नह िकया है। अमे रका
क िनजी पेस कंपनी ड जटल लोब का जयोआई-1 सैटेलाइट 16.14
इंच क ऊँचाई तक क तसवीर ले सकता है।
6 टैप ऑ स के साथ यह पीएसएलवी क 21व उड़ान थी। जबिक,
पीएसएलवी रॉकेट क यह 74व उड़ान थी।
काट सैट-3 अपनी सीरीज का नौवाँ सैटेलाइट है। काट सैट-3 का
कैमरा, जसे Panchromatic Camera कहते ह।
काट सैट-3 सं ेप म
• इस उप ह को पृ वी के ऊपर 509 िकलोमीटर क ऊँचाई पर सूयतु य
का लक क ा (Sun Synchronous Orbit) म थािपत िकया गया।
• इस उप ह का भार 1625 िकलो ाम है, जो िक इस वग के िपछले सभी
उप ह के भार से दोगुना है।
• काट सैट-3 काट सैट ख
ं ला का नौवाँ उप ह है। इस ंखला का पहला
उप ह वष 2005 म ेिपत िकया गया था।
• PSLV-C47 से अलग होने के बाद काट सैट-3 बगलु थत इसरो के
टेलीमेटी टै कग एं ड कमांड नेटवक (Telemetry Tracking and Command
Network) के िनयं ण म है।

• इस ेपण म काट सैट-3 के अलावा अमे रका के 13 वा ण यक नैनो


ै े े
सैटेलाइट भी शािमल थे।
• काट सैट-3 के येक कैमरे म 25 सटीमीटर के ाउं ड रेजो यश
ू नक
मता होगी। इसका ता पय है िक यह पृ वी पर उप थत िकसी व तु
के यनू तम िह से को भी 500 िकलोमीटर क ऊँचाई से प देख
सकता है।
• वतमान म अमे रक कंपनी मै सर (Maxar) के उप ह व ड य-ू 3
(WorldView-3) क ाउं ड रेजो यश
ू न मता सवा धक 31 सटीमीटर है।
इस उप ह म कई नई तकनीक का योग िकया गया है, जसम उ
मता के घुमावदार कैमरे, हाई पीड डाटा टांसिमशन तथा एडवांस
कं यू टग स टम आिद शािमल ह।
काट सैट-3 क उपयोिगता
• यह उप ह रमोट स सग के मामले म िव म सव े होगा, इस लए इसे
‘शाप ट आई’ (Sharpest Eye) कहा जा रहा है।
• इसके अलावा इसे काट ाफ या अ य मान च ण संबध ं ी काय के लए
योग म लाया जाएगा जससे यह भौगो लक संरचनाओं म ाकृ तक
तथा मानवजिनत कारण से होनेवाले बदलाव क जानकारी देगा।
• इन उप ह से ा हाई रेजो यूशन फोटो ा स क आव यकता िविवध
अनु योग म उपयोगी है, जनम काट ाफ , अवसंरचना योजना
िनमाण, शहरी एवं ामीण िवकास, उपयोिगता बंधन, ाकृ तक
संसाधन इ वटी एवं बंधन, आपदा बंधन शािमल ह।
• काट सैट ेणी के उप ह से ा डाटा का योग सश बल ारा
िकया जाता है। अत: काट सैट-3 ारा ा डाटा देश के सुदरू सीमावत
इलाक म िनगरानी एवं र ा के ि कोण से मह वपूण होगा।
RISAT
भारतीय अंत र अनुसंधान संगठन (ISRO) ने ताकतवर रडार इमे जग
सैटेलाइट रीसैट-2बीआर1 (RISAT-2BR1) क सफल लॉ ग क ।
‘ रसैट-2बीआर1’ को ेपण के लगभग 16 िमनट बाद और अ य उप ह
को लगभग पाँच िमनट बाद उनक अलग-अलग िन द क ाओं म थािपत
कर िदया गया। 50व पीएसएलवी ने ‘ रसैट-2बीआर1’ को 576 िकलोमीटर
क क ा म सफलतापूवक बेहद सटीक तरीके से थािपत कर िदया है।
‘ रसैट-2बीआर1’ एक ‘जिटल’ उप ह है, लेिकन इसका िनमाण कम
समय म ही कर लया गया।
628 िकलो ाम वजनी रडार इमे जग पृ वी िनगरानी उप ह
ै े े े े ै ो
‘ रसैट-2बीआर1’ के ेपण से पहले 2019 मई म रसैट-2बी को क ा म
थािपत िकया गया था। पीएसएलवी-सी 48 पर सवार ‘ रसैट-2बीआर1’
के साथ नौ िवदेशी उप ह को भी क ा म थािपत िकया गया।
इनम से अमे रका के छह उप ह और इजराइल, इटली तथा जापान का
एक-एक उप ह शािमल है। उप ह का ेपण यू पेस इं डया लिमटेड
के साथ वा ण यक बंधन के तहत िकया जा रहा है। अमे रका के छह
उप ह का इ तेमाल जहाँ बहुउ े यीय दरू संवेदी उ े य के लए होगा,
वह इटली के उप ह का इ तेमाल अनुसंधान उ े य पर आधा रत है।
कुल 50 िमशन म से 48 िमशन इसरो के लए सफल रहे ह। पीएसएलवी
ने अब तक लगभग 310 िवदेशी उप ह को पृ वी क क ा म थािपत
िकया है। इस तरह का पहला उप ह सतंबर 1993 म ेिपत िकया गया
था।
पीएसएलवी-सी48 ‘ यू एल कनिफगरेशन’ वाली दस ू री उड़ान है। समान
‘कनिफगरेशन’ वाली पहली उड़ान अ ैल 2019 (पीएसएलवी-सी45/
एिमसैट और 28 अ य उप ह) म रवाना क गई थी। सै य उ े य के लए
उपयोग के साथ ही ‘ रसैट 2बीआर1’ को कृिष, वन और आपदा बंधन के
काय के लए भी इ तेमाल िकया जाएगा।
इस सैटेलाइट के फायदे
• आरआईएसएटी-2बीआरआई1 के बारे म बताएँ , तो यह बादल के पीछे
छपकर पृ वी क बेहद छोटी-छोटी चीज क भी बेहद साफ तसवीर ले
सकती है। इस सैटेलाइट का उपयोग ाकृ तक आपदाओं को रोकने के
लए भी िकया जाएगा। इसके अलावा, इस सैटेलाइट का उपयोग कृिष,
फॉरे टी के लए भी िकया जा सकता है।
• रीसैट-2बी सैटेलाइट का इ तेमाल िकसी भी तरह के मौसम म टोही
ग तिव धय , रणनी तक िनगरािनय और आपदा बंधन म आसानी से
िकया जा सकेगा। रीसैट-2बी सैटेलाइट के साथ सथेिटक अपचर रडार
(सार) इमेजर भेजा गया है। इससे संचार सेवाएँ िनरंतर बनी रहगी।
• इस सैटेलाइट के ज रए अंत र से जमीन पर 3 फ ट क ऊँचाई तक क
उ दा तसवीर ली जा सकती ह।
• बादल रहने पर रेगुलर रमोट स सग या ऑ टकल इमे जग सैटेलाइट
जमीन पर मौजूद चीज क थ त ढंग से नह िदखा पाती। सथेिटक
अपचर रडार (सार) इस कमी को पूरा करेगा। यह हर मौसम म चाहे रात
हो, बादल हो या बा रश हो, ऑ जे ट क सही तसवीर जारी करेगा।
• इससे आपदा राहत म और सुर ा बल को काफ मदद िमलेगी।

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• यह उप ह भारतीय सीमाओं क सुर ा के लहाज से बेहद अहम है। इसी
कारण से इसको ‘भारत का खुिफया उप ह’ भी कहा जा रहा है।
• भारत क िनगरानी क ताकत अंत र पर पहले से और अ धक बढ़
जाएगी। इसरो ने बताया िक रसैट-2बीआर1 िमशन क लाइफ पाँच
साल है।
रीसैट-2बीआर1 (RISAT-2BR1) सैटेलाइट क खा सयत
• रीसैट-2बीआर1 एक रडार इमे जग िनगरानी उप ह है. इस उप ह का
भार 628 िकलो ाम है।
• यह सैटेलाइट रात के अँधेरे तथा खराब मौसम म भी काम करेगी।
• इस रडार क सहायता से देश क सीमाओं पर नजर रखी जाएगी, यह
येक मौसम म द ु मन क हरकत पर अपनी नजर बनाए रख सकता
है।
• इसरो के अनुसार, इस सैटेलाइट को अंत र म 576 िकलोमीटर क
ऊँचाई वाली क ा म 37 ड ी झुकाव पर थािपत िकया जाएगा।
• यह सैटेलाइट देश क सेनाओं के अ त र कृिष, जंगल और आपदा
बंधन िवभाग क भी सहायता करेगी।
• रीसैट-2बीआर1 सैटेलाइट के पृ वी क क ा म थािपत होने के बाद
भारत क रडार इमे जग ताकत कई गुना बढ़ जाएगी।
• यह सैटेलाइट अपनी क ा म थािपत होने के साथ ही काम करना शु
कर देगी तथा कुछ देर बाद ही इससे तसवीर िमलनी शु हो जाएँ गी।
• यह उप ह लगभग 100 िकलोमीटर के दायरे क तसवीर लेकर भेजेगा।
इसको खासतौर पर सीमापार से होनेवाली घुसपैठ रोकने हेतु तैयार
िकया गया है।
जीसैट-30
देश का सबसे ताकतवर संचार उप ह ‘जीसैट–30’ सफलतापूवक
अंत र म तैनात कर िदया गया। ए रयन-5 ेपण यान के ज रए अंत र
क उड़ान भरनेवाले इस उप ह से न सफ इंटरनेट क ग त बढ़ेगी, ब क
5G योजना के िवकास, दरू संचार और डीटीएच सेवा े म भी मदद
िमलेगी।
‘जीसैट-30’ को अंत र म तैनात करने का ज मा यूरोपीय कंपनी
‘ए रयन पेस’ पर था। ‘ए रयन-5’ ने दो उप ह ‘यूटेलसैट कने ट’ और
‘जीसैट-30’ को अंत र म थािपत िकया।

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कनाटक के हासन थत इसरो क एमसीएफ ने ‘जीसैट-30’ उप ह को
भूम य रेखा से 36 हजार िकलोमीटर क ऊँचाई पर जयो टेशनरी
(भू थर) क ा म थािपत करेगा, तािक यह ‘सी’ और ‘केयू’ बड क
कवरेज मता बढ़ा सके।
जीसैट-30 अपने िव श िव यास से डीटीएच सेवाओं, एटीएम, शेयर
बाजार और ई-गवनस तक संपक उपल ध कराएगा।
मौसम का िमजाज भाँपने के अलावा ाकृ तक आपदाओं क
भिव यवाणी करने, जलवायु प रवतन का असर आँ कने और राहत एवं
बचाव अ भयान चलाने म मदद करेगा। एटीम, शेयर बाजार को बेहतर
इंटरनेट कने वटी दान करने के साथ ही ड जटल यूज सं ह म भी
कारगर होगा।
जीसैट-30 क आव यकता
• 2005 म ेिपत भारतीय संचार उप ह ‘इनसैट-4ए’ क उ पूरी हो रही
है।
• यही नह , देश म 5-जी इंटरनेट सेवा उपल ध कराने क को शश भी तेज
हो गई ह। ऐसे म सेवा दाताओं को यादा ताकतवर सैटेलाइट क
ज रत पड़ेगी। ‘जीसैट-30’ कंपिनय क इसी ज रत पर खरा
उतरेगा।
उप ह क िवशेषताएँ
• 3357 िकलो ाम वजनी है।
• यह 6000 हजार वाट ऊजा का इ तेमाल करेगा।
• इसके 2 सौर पैनल लगाए गए ऊजा कैद करने के लए, और
• 5 साल होगी िमशन क कुल अव ध।
गगनयान म उड़ान भरने को तैयार योमिम
चं यान-2 के बाद अब देश व दिु नया क नजर इसरो क मह वाकां ी
प रयोजना ‘गगनयान’ पर िटक ह। आनेवाले समय म इसरो पहली बार
मानवयु यान अंत र म भेजेगा। इसके लए चार अंत र याि य का
चयन भी कर लया गया है। 2020 जनवरी म चार अंत र याि य को स
म टे नग के लए भेजा गया। गगनयान िमशन के लए इसरो को नासा, स
और अ य अंतररा ीय पेस एज सय क मदद िमल रही है।
भारतीय अंत र एजसी, नासा और अ य अंत र एज सय तथा उ म
से बात कर रही है िक कैसे वह मानवयु अंत र यान पर साथ िमलकर
काम कर सकती है और कैसे उनके अनुभव से सीखा जा सकता है!
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‘गगनयान’ इसरो के अंतर हीय िमशन के दीघका लक ल य म भी मदद
करेगा। अंतर हीय िमशन दीघका लक एजडे म शािमल है।
अंत र एजसी ने मह वपूण ौ ोिगिकय , जैसे िक िनचली क ा के लए
10 टन क पेलोड मतावाला संचालना मक लॉ र पहले ही िवक सत कर
लया है और इसका दशन िकया है।
इस रोबोट का नाम सं कृत के दो श द ‘ योम’ (अंत र ) और ‘िम ’
(दो त) को िमलाकर ‘ योमिम ’ िदया गया है।
‘ योमिम ’ को अधमानव रोबोट के नमूने के प म पहले मानवरिहत
‘गगनयान’ िमशन के लए बनाया गया है। ‘ योमिम ’ अंत र याि य का
अंत र म साथी होगा और उनसे बात करेगा। ‘ योमिम ’ अंत र याि य
क पहचान करने सिहत उनके सवाल का जवाब देगा। म ू नॉयड (मानव
श वाले रोबोट) अंत र म इनसान क तरह काम करेगा और जीवन
णाली के संचालन पर नजर रखेगा।
यह जाँच करेगा िक सभी णा लयाँ ठीक ढंग से काम कर रही ह या नह ?
यह बहुत लाभदायक होगा। इससे ऐसा लगेगा िक जैसे कोई इनसान उड़
रहा है!
इस रोबोट को इसरो ने इनसान क तरह बनाया है, इसका चेहरा एक
लड़क जैसा है। इसके शरीर का सफ ऊपरी िह सा बनाया गया है,
इस लए इसे Half Humanoid नाम िदया गया है। इसके पीछे क वजह है िक
अंत र म गु वाकषण नह होता और ऐसी थ त म अंत र म चला
नह जा सकता और इस लए वहाँ इस Robot को पैर क ज रत नह
पड़ेगी।
यह लाइव ऑपरेशन करने म भी स म है। ‘ योमिम ’ एक मानव क
तरह काय करेगा और इसरो को पूरी रपोट भेजेगा। यह इसरो के कमांड
सटर के लगातार संपक म रहेगा। इसरो एक योग के तौर पर ‘ योमिम ’
को भेजेगा। मानवरिहत िमशन क सफलता इसरो का हौसला बढ़ाएगी िक
मानव िमशन क िदशा म उसके यास सही ह। इससे मानव िमशन के
दौरान आनेवाली िकसी भी तरह क बाधा से िनपटा जा सकेगा।
भारत म ज द ही सामा य प से अंत र उड़ान श ण शु होगा।
इसम कई समुलेटर और अ य उपकरण के इ तेमाल के साथ िमशन से
जुड़ा िव श श ण िदया जाएगा।
जीएसएलवी एमके III
जीएसएलवी एमके III पहला सफल यावसा यक ेपण है, जो 22
अ ू बर, 2022 को िकया गया था। इससे दिु नया के भारी पेलोड के बाजार
ो े े े े
म भारत को वेश करने म मदद िमलेगी। यह जीएसएलवी एमके III का
पहला िमशन भी था, जसके अंतगत उसने एक साथ कई उप ह को लॉ
िकया और अपने साथ लगभग 6 टन पेलोड लेकर गया। यह इसरो क ओर
से अब तक लॉ िकया गया सबसे भारी पेलोड था।
ौ ोिगक
जीएसएलवी एमके III के िनचले चरण क रचना पीएसएलवी और
जीएसएलवी क स क जा चुक ौ ोिगिकय से क गई है। हालाँिक,
ायोजेिनक तीसरा चरण यानी C25 ौ ोिगक के उन त व का उपयोग
करता है, जो जीएसएलवी एमके II के ायोजेिनक ऊपरी चरण (CUS) से
भ ह। CUS एक चरणब दहन च का योग करता है। दस ू री ओर, C25
एक गैस जनरेटर च का योग करता है। गैस जनरेटर च म कम िव श
आवेग (4 तशत के म का) होता है, लेिकन यह इतना जिटल नह होता
और परी ण म कुछ हद तक लचीलेपन को संभव बनाता है।
यान का ायोजेिनक चरण जहाँ पृ वी क 600 िकमी. क ऊँचाई पर
थत िनचली क ाओं तक भारी पेलोड को ले जाना संभव बनाता है, वह
इसम जीसैट ंखला के चार टन वग के उप ह को जयो स ोनस टांसफर
क ाओं म ले जाने क भी मता होती है।
पृ वी से 605 िकमी. क ऊँचाई पर पहुँचकर, जीएसएलवी एमके III ने
ि टेन के 5200 िकलो ाम के 36 उप ह को एक-एक कर िन त क ा म
लॉ िकया। उप ह को िनधा रत क ा म लॉ करने के साथ ही यह
ेपण सफलतापूवक समा हुआ।
मह व
इस कार, इसरो क वा ण यक शाखा ‘ यू पेस इं डया’ ने िवदेशी
मु ा अ जत करने क िदशा म पहला कदम सफलतापूवक बढ़ा िदया है।
इसरो जहाँ एक तरफ घरेलू आव यकताओं को पूरा करने के लए काम कर
रहा है, वह दस
ू री तरफ उसने यावसा यक प से िवदेशी मु ा अ जत
करने का माग भी खोल िदया है। इसी म म, ‘ यू पेस इं डया’ और
अंत र िवभाग ने ि टेन क कंपनी ‘वनवेब’ के साथ 36 उप ह को नगी
म लॉ करने का समझौता िकया था। यह ेपण सफल रहा।
भारी उप ह को लॉ करने क भारत क मता के साथ अनेक
मह वपूण यावसा यक लाभ जुड़े ह। यह भारत को अरब -खरब डॉलर के
वै क उप ह ेपण बाजार का एक मह वपूण िकरदार बना देगा, जससे
भारत कम लागत म भारी उप ह लॉ करनेवाला एक िव सनीय भागीदार
बन जाएगा। इससे इसरो के लए अ त र आय अ जत करना संभव होगा।
चूँिक उप ह ेपण बाजार म आनेवाला समय भारी संचार उप ह का
ो े े
होगा। इस लए जस कार भारत ने अपने पीएसएलवी म महारत ा क
है, उसी कार उसके सामने ेपण यान के इस े म स ा करने
का ो साहन है। भारी लॉ र क मता का लाभ भिव य म भारत को
अपने मानव अंत र काय म म भी िमलेगा। यही नह , बढ़ी हुई े पण
मता से भारत अंत र क गहराई म अपनी खोज को अ धक गंभीरता के
साथ आगे बढ़ा सकेगा।
इन सारी बात को यान म रखते हुए यह कहना होगा िक एमके III को
अपनी मता को बढ़ाना ही होगा। भले ही, भारत म यह उ तम पेलोड
मता का दावा कर सकता है, लेिकन दिु नया के मानक म यह म यम भार
ले जानेवाला रॉकेट ही है। उदाहरण के लए, पृ वी क िनचली क ा तक
एमके III जहाँ 8,000 िकलो ाम ले जा सकता है, वह पेसए स के
फा कन-9 क मता 23,000 िकलो ाम क है।

अ याय 8
भारत क अंत र नी त
अं त र म भारत य भर रहा ऊँची उड़ान और य यह उड़ान जारी
रहनी चािहए?
ाचीन भारत का योगदान
अंत र को लेकर भारत ने अनेक मह वपूण जानका रय और ान को
जुटाया है। ाचीन भारत क तुलना म हमारी नवीनतम उपल धयाँ कह
भी नह ठहरती ह। इसके बावजूद, प मी जगत् सारी बड़ी उपल धय के
ेय पर क जा जमाए बैठा है। हम भी यही श ा दी गई और िदमाग म यही
भरा गया िक सारी मह वपूण चीज क खोज प मी देश ने क है। हमारे
ाचीन ंथ म दी गई श ा और उनम दज ान हमारे छा के लए
उपल ध नह है। हमारे पास वा य परंपरा थी, बातचीत के ारा और
बोलकर, क पना कर ान को आगे बढ़ाते थे, वह , प मी जगत् ने अपनी
सारी उपल धय को कमलब िकया, लेिकन इसका मतलब यह नह िक
उ ह ने ही उनक खोज क थी।
हमारा अपना सौरमंडल है, इसक जानकारी सबसे पहले भारतीय को
हुई। हजार साल पहले, ऋ वेद ने बताया िक सूय हमारे ांड के क म है
और उसके सारे ह इसक प र मा करते ह। खगोलशा समय का
िहसाब रखता था, और स या य साल-दर-साल दोहराए जाते थे। हमारे
पूवज क गणना िब कुल सटीक थी, और एक साल का मतलब था, एक
साल, ना कम, ना यादा।
‘हनुमान चालीसा’ सूय से पृ वी क िब कुल सटीक दरू ी को बताती है।
एक यगु 12,000 वष के बराबर है, 1 सह यगु 1,20,00,000 वष के
समान और 1 योजन 8 मील (12.8748 िकमी.) के बराबर। आधुिनक
िव ान ने जब पृ वी से सूय क वा तिवक दरू ी क गणना क तो बताया िक
यह 1,52,000,000 िकमी. है। ाचीन हनुमान चालीसा के अनुसार जो
गणना क गई, उसने इसे लगभग 9,60,00,000 मील या 15,36,00,000
िकलोमीटर बताया। कमाल क बात है िक यह अंतर सफ 1 तशत का
है!
भारत के महान् खगोलशा ी और ग णत आयभट ने पाया िक तारे
प म िदशा क ओर जाते ह, य िक धरती (गोलाकार आकृ त के कारण)
अपनी धुरी पर घूमती है। उ ह ने बताया िक ह और उनके उप ह सूरज
ो े े ै औ
क पराव तत रोशनी से चमकते ह। गु काल म उनक या त फैली और
उ ह ने 499 ईसा पूव म 23 साल क यव
ु ाव था म ही इसक गणना कर ली
थी।
धरती क प र ध क माप भी सबसे पहले भारतीय ने ही क थी।
आयभट ने अनुमान लगाया था िक धरती क प र ध लगभग 39,736 है।
अब वै ािनक जान चुके ह िक धरती क प र ध 40,075 िकमी. है। प मी
देश का इ तहास अब भी हम यही पढ़ा रहा है िक लबट ने साल 1761 म
यरू ोप म पाई क अता ककता को स िकया था। सच तो यह है िक लबट
के पैदा होने से 13 सिदय से भी अ धक पहले, आयभट को अता कक
सं या पाई (π) क जानकारी थी। यन ू ािनय क बात कर तो वे आज भी
भारत म क गई खोज का ेय लेते ह।
बा रश का अनुमान लगाने क हमारी मता से यन
ू ानी हैरान थे। वे यो ा
थे, इस कारण हमल क योजना बनाते थे, जसके लए यह ज री था िक
उ ह सही मौसम क जानकारी हो। जो भी मौसम का अनुमान लगा लेता,
उसे बड़े काम का समझा जाता था, और वे ऐसे लोग क भरती कर लया
करते थे। कुछ िव ान् यन
ू ानी भारत आए और उ ह ने भारतीय खगोल
िव ान क नकल शु कर दी। बावजूद इसके, हमारा सौरमंडल सूयकि त
है, इसका मॉडल पेश करने का ेय इ तहास म कोपरिनकस को ही िदया
गया है। और यह औपिनवे शकता ही है।
अंत र के अ ययन म भारत के योगदान का कोई जोड़ नह है। हाल क
खोज तो एक झलक भर है। सबसे पहले हमने ही पृ वी क प र ध को नापा
था और यह जाना था िक एक साल िकतना लंबा होता है। ाचीन
स यताओं म हण भय पैदा करते थे, जबिक वेद ने उनके पीछे के िव ान
को प िकया था। हम काश क ग त को जानते थे और सौरमंडल के
अ त व को सबसे पहले हमने ही माना। हनुमान चालीसा ने पृ वी और
सूय के बीच क दरू ी का ठीक-ठीक अंदाजा लगाया। आयभट, ब ला,
भा कराचाय, गु , वराहिमिहर, िवजयनंदी और वतपाल जैसे खगोल
भौ तक िवद और खगोलिवद ने अ त ु जानकारी दी। प मी देश उनके
योगदान को वीकार करने के लए तैयार नह ह और कारण प है।
भारत िव -गु बनने क सारी िवशेषताएँ रखता है और उ ह ने इसे िकसी
हद तक नह होने िदया है और न होने दगे।
बैलगाड़ी से मंगलयान तक का सफर
पहले भारत क िव भ सरकारी एज सय के बीच कोई तालमेल नह
था। डीआरडीओ ने अपने दम पर िमसाइल को बनाने का यास िकया,
लेिकन बुरी तरह िवफल रहा। िफर उसने इसरो से ए.पी.जे. अ दल
ु कलाम
को बुलाया। भारत के पूव रा प त कलाम ने भारत के उप ह ेपण यान–
ो े े
3 (एसएलवी-3) को िवक सत िकया था। एसएलवी-3 सीरीज के येक
यान का वजन 22 टन था और उसने पृ वी क िनचली क ा (LEO) म 40
िकलो के पेलोड को सफलतापूवक थािपत िकया था। उनक िगनती
भारत के मुख उप ह ेपण यान म क जा रही थी। पहली बार उ ह
जुलाई 1980 म लॉ िकया गया था और उनके कारण भारत िव का मा
छठा देश बन गया, जसे अंत र क उड़ान भरने का दरजा हा सल हुआ।
भारत ने उनका उपयोग रोिहणी उप ह को क ा तक ले जाने और
थािपत करने के लए िकया। सरकार और डीआरडीओ क इ छा थी िक
ए.पी.जे. उसी तकनीक का इ तेमाल कर सै य उपयोग के लए अि
िमसाइल को तैयार कर। अि िमसाइल परमाणु ह थयार ले जाने म स म
लंबी दरू ी क अंतरमहा ीपीय सतह से सतह पर मार करनेवाली बै ल टक
िमसाइल ह। शु आत जहाँ 700 से 900 िकमी. रज क िमसाइल से हुई,
जो एक टन पेलोड ले सकती थ , वह अब तीन टन तक वजन के साथ
12,000 िकमी. क सीमा तक पहुँच सकती ह। DRDO और अ दल ु कलाम
ने हमारे उप ह ेपक का संलयन िमसाइल णाली के साथ करने म
सफलता ा क ।
अंत र ौ ोिगक क वतमान थत
अमे रक सेना के पास एक पेस कमांड है और अंत र के त सम पत
एक छठी ट भी है। चीन के पास टैट जक सपोट फोस है, जसक
एकमा ज मेदारी अंत र यु लड़ने क है। भारत के पास ऐसे खतर से
िनपटने के लए एक डफस पेस एजसी (डीएसए) है। अंत र म भारत
क प रसंप य का िनयं ण भी डीएसए के हाथ म है।
भारत के पास तरह-तरह के काम करनेवाले अनेक कार के उप ह ह।
अंत र का लाभ उठाने के लए भारत ने उपल ध ौ ोिगक का इ तेमाल
करना शु िकया। हमने इसका उपयोग रमोट स सग, नेिवगेशन, दरू संचार
और अंत र के अ य योग के लए िकया। साल 2005 म भारत ने
काट सैट सीरीज के सैटेलाइट िवक सत िकए, जो कई कार के काय कर
सकते थे। काट सैट उप ह का इ तेमाल पृ वी के अवलोकन और
संसाधन बंधन के लए िकया जाता है। उनम से कुछ सफ र ा उ े य
और िनगरानी के लए उपल ध ह। इस ंखला का आ खरी उप ह 2019
के आ खर म लॉ िकया गया था, जो आज भी पूरी दिु नया म सबसे अ छी
गुणव ा क तसवीर उपल ध कराता है। उन उप ह को एक थान से
दसू रे थान और िव भ कोण पर थत िकया जा सकता है।
अंत र म भारत क तर को ेपण यान ौ ोिगक म हमारे महारत
ने संभव बनाया। इसरो ने उप ह ेपण यान (एसएलवी) और संव धत
उप ह ेपण यान (एएसएलवी) क शु आत क । िवक सत होकर यह

े े
अ धक उ त ुवीय उप ह ेपण यान (पीएसएलवी) के प म आया,
जसने उप ह को क ा म थािपत िकया। अब तक लॉ िकए गए 54
पीएसएलवी म से 51 को उनके लए िनधा रत क ा म सफलतापूवक
थािपत िकया जा चुका है, जो एक आकषक उपल ध है। भारत अब
अगली पीढ़ी के जयो स ोनस (भू- थै तक) सैटेलाइट लॉ हीकल
(जीएसएलवी) िवक सत कर रहा है। भू थर क ा म 3.5 मीिटक टन
पेलोड ले जाने क जीएसएलवी क मता सािबत हो चुक है। इसक
तुलना च ए रयन-5 से क जा रही है। 100 से अ धक ए रयन-5 लॉ
िकए गए थे और वे 5 मीिटक टन पेलोड ले जा सकते ह।
भारत के पास रसोससैट-2 (2011) सीरीज और मौसम क जानकारी
देनेवाले सरल (2013) जैसे सै य ि से मह वपूण म टी-टा क और दरू
संवेदी उप ह भी ह। हमारे पास महासागर म काम आनेवाले ओशनसैट-2
(2009) और रसैट-2 (2009) और रसैट-1 (2012) जैसे टोही ंखला के
सैटेलाइट भी ह। इन उप ह के कारण इसरो के टेशन र ा और खुिफया
एज सय के काम आनेवाले डाटा को धारा वाह प से भेज पाते ह।
इसरो ने 129 भारतीय उप ह और 342 िवदेशी उप ह का े पण
क ा म िकया था। साल 1975 से लेकर अब तक कुल िमलाकर 36 देश ने
इसरो का इ तेमाल िकया है। िफलहाल भारत के पास 53 सि य उप ह
ह, जनम से 21 वा ण यक, 21 अवलोकन, आठ नेिवगेशन और तीन
वै ािनक अ ययन के लए ह।
‘र ा खुिफया एजसी’ (डीआईए) क थापना साल 2001 म क गई थी
और यह र ा छिव सं करण और िव ेषण क क देखरेख करता था।
वा लयर म डीआईए का एक सैटेलाइट रसी वग सटर है, जो सैटेलाइट
डाटा क जाँच करता है। साल 2004 म गिठत ‘रा ीय तकनीक अनुसंधान
संगठन’ (एनटीआरओ) रा ीय सुर ा सलाहकार को तकनीक खुिफया
जानकारी उपल ध कराता है और यह धानमं ी कायालय म थत है।
एनटीआरओ हमारे सभी सै य उप ह को िनयंि त करता है और इसका
टेशन असम म है। यह िव भ अ धकृत उपयोगकताओं को जानकारी
उपल ध कराता है।
िकफायती है ‘मेक इन इं डया’
कुछ देश भारत को मु य प से इस कारण वीकार नह कर पाते,
य िक भारत सबसे अ छी तकनीक इ तेमाल करने के बावजूद उनक
नजर म ‘स ता’ है। भारत ने िव भ कार क अनेक उपल धयाँ हा सल
क ह और सारी बाधाओं को पार कर यहाँ तक पहुँचा है। अ धकांश देश के
अंत र काय म जहाँ साम रक िहत को साध रहे थे, वह उनका िनयं ण
िनजी हाथ म था। भारत ने िवकास संबध ं ी ल य को लेकर अंत र म
े े ो े े
उड़ान भरी। पूरी दिु नया से जानकारी साझा करने को लेकर भारत के मन म
कभी कोई आशंका नह रही और यह हमेशा ही पारदश रहा है। इसका
िवरोध इस कारण होता है, य िक यह पूँजीवादी िहत को पूरा नह करता
है।
चूँिक भारतीय अंत र काय म कम खच ला है, इस लए दस ू र के
मुकाबले इसके अपने ही फायदे ह। यह है िक यह िकस कार
िकफायती है? सबसे पहले बात कर तो भारत क रा ीय अंत र एजसी,
भारतीय अंत र अनुसंधान संगठन बगलु म थत है। इसरो आयात पर
िनभर नह है और ज री सामान और पुरजे अपने देश से ही जुटाता है।
सभी अ भयान के लए हम पीएसएलवी का इ तेमाल करते ह, जससे
संसाधन क बरबादी नह होती है।
अमे रका क वतं एजसी, नेशनल एरोनॉिट स एं ड पेस
एडिमिन टेशन (नासा) ने मंगल ह पर चालकदल रिहत अ भयान को
भेजने पर 671 िम लयन डॉलर खच िकए। दस ू री तरफ, भारत का
मंगलयान महज 74 िम लयन डॉलर के खच पर मंगल ह तक पहुँच गया।
चं यान-2 िमशन क कुल लागत त ध कर देनेवाली मा 970 करोड़
पए थी, जस खच म कुछ अमे रक सनेमा भी नह बन पाते। प मी देश
जतना खच करते ह, उसके मुकाबले भारतीय अंत र काय म का खच
मा 10 तशत है। भारतीय अंत र काय म का बजट सालाना 1.2
िब लयन डॉलर है, जबिक अमे रका 20 िब लयन डॉलर से अ धक खच
करता है।
रा ीय भावना दस
ू रा कारण है, जसके चलते भारत सीिमत बजट म काम
कर पाता है। इसरो म भारतीय वै ािनक काम करते ह, जबिक नासा म
िवदेशी नाग रक और कॉ टै ट पर काम करनेवाले दिु नया भर के लोग भरे
ह। अमे रका को जहाँ एक औसत एयरोनॉिटकल इंजीिनयर पर हर साल
एक लाख डॉलर खच करना पड़ता है, वह भारत का काम बेहद कम क मत
म हो जाता है। अमे रक सरकार और नासा अ छी तरह जानते ह िक वे
जनता का पैसा बरबाद कर रहे ह और उ ह उसे सही भी ठहराना है। इसके
लए वे भारतीय अंत र काय म क छिव खराब करते ह। पूरी िनल ता
से प मी देश सवाल करते ह िक इतनी गरीबी के बावजूद भारत महँगे
अंत र काय म को आगे य बढ़ा रहा है?
स ा के करीबी उ ोगप तय के पैस पर पलनेवाली मी डया भारतीय
अंत र काय म क आलोचना करती है। उनका दावा है िक भारत क
एक-चौथाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। वे इस पर भी सवाल उठाते ह
िक भारत जैसे देश को अंत र काय म पर इतना पैसा बहाने क ज रत
या है? ऐसी आलोचनाओं क परवाह िकए िबना भारत शु ह के अपने
िमशन को लॉ करने क योजना बना रहा है।
ो े े
सोिवयत संघ ने अपना पहला उप ह 1957 म लॉ िकया था, नासा ने
1958 म और भारत ने 1975 म। अंत र को लेकर साल 1967 क बाहरी
अंत र सं ध को दिु नया भर म मा यता ा है। िवडंबना दे खए िक वही
प मी देश भारत म अरब -खरब के ह थयार क िब ी को बढ़ावा देते ह!
अंत र दिु नया भर म एक फलता-फूलता उ ोग है
मॉलसैट उ ह कहते ह, जनका वजन 1,000 पाउं ड से कम होता है
और जनका उ पादन बड़े पैमाने पर िकया जा सकता है। भारी-भरकम,
उलझाऊ और महँगे अ भयान अब यावहा रक नह ह। मॉलसैट माँग के
मुतािबक छोटे रॉकेट से लॉ िकया जा सकता है, या हम समूह म उ ह
क ा म भेज सकते ह।
इस व वै क सैटेलाइट लॉ के कमाऊ उ ोग म ांस, स और
अमे रका क िह सेदारी 75 तशत है। सैटेलाइट उ ोग संघ के अनुसार,
सैटेलाइट उ ोग कई अरब डॉलर का उ ोग है और भारत क इसम महज
2 तशत से अ धक क मामूली िह सेदारी है, जबिक 3 तशत बाजार
पर चीन का क जा है। भारत के पास कुछ िकलो के छोटे-छोटे उप ह के
साथ ही कई टन वजनवाले उप ह को लॉ करने क तकनीक है। सरकार
ने यह समझ लया िक भारत के अंत र े के ढाँचे म फेरबदल ज री है।
उसने िनजी कंपिनय को शािमल करने और य िवदेशी िनवेश आमंि त
करने का फैसला िकया। कई कंपिनयाँ अब अंत र के बाजार म उतर चुक
ह।
बदल डाला बाजार
इसरो उन िदन को बहुत पीछे छोड़ चुका है जब वह 3,000 िकलो के
सैटेलाइट को 640 के पेलोड के साथ लॉ करने को ऐ तहा सक बताया
करता था। उस रॉकेट का वजन पाँच जंबो जेट के बराबर हुआ करता था
और उसे बनाने म हम एक दशक लग जाता था। साल 2019 म, भारत ने
चं यान को लॉ िकया और 20 अग त को चं मा क क ा म एक
ऑ बटर को छोड़ा।
मौसम िव ान और संचार से जुड़े अ धकांश उप ह का वजन लगभग
चार टन होता है, और उ ह लॉ करने के लए बहुत बड़े रॉकेट क ज रत
होती है। भारत ने हाल म एक ही बार म 104 सैटेलाइट लॉ िकए, जसके
कारण दिु नया भर म उसक साख मजबूत हुई। अंतररा ीय समुदाय क
आँ ख खुल गई ह और वे भारत को कम बजटवाले उप ह के एक बेहतर
िवक प के प म देख रहे ह। वे ऐसी कंपिनय क तलाश म ह, जो उनके
उप ह को बनाएँ , लॉ कर और उ ह सि य बनाए रख।
अंत र म उड़ान क बुिनयाद

ेपण वाहन तकनीक म महारत हा सल िकए िबना यह सब संभव नह
था। सैटेलाइट लॉ हीकल (एसएलवी) और ऑगमटेड सैटेलाइट लॉ
हीकल (एएसएलवी) यानी संव धत उप ह ेपण यान के साथ शु आत
के बाद इसरो ने पोलर सैटेलाइट लॉ हीकल (पीएसएलवी) को पृ वी क
िन न क ा और पृ वी से 1,000 िकमी. क ऊँचाई पर थत सूय
तु यका लक क ाओं म उप ह को थािपत करने के लए सतत
य नशील शि के प म िवक सत और प र कृत िकया। पीएसएलवी का
46 सफल अ भयान का एक ऐसा रकॉड है, जसे सभी दोहराना चाहगे।
जयो स ोनस सैटेलाइट लॉ हीकल (जीएसएलवी) काय म अभी
अपने िवक सत होने के चरण म है, जहाँ इसका एमके-III वे रएं ट अब तक
तीन िमशन पूरे कर चुका है और यह भू थर क ा म 4 मीिटक टन से भी
अ धक पेलोड ले जाने म स म है। इसक तुलना च ए रयन-5 से क जा
सकती है, जो अब तक 100 से अ धक लॉ िमशन पूरे कर चुका है और
इसक मता 5 एमटी पेलोड क है।
जीएसएलवी एमके III
जीएसएलवी एमके III के साथ इसरो क वा ण यक शाखा ‘ यू पेस
इं डया’ ने िवदेशी मु ा अ जत करने क िदशा म पहला कदम
सफलतापूवक बढ़ा िदया है। इसरो जहाँ एक तरफ घरेलू आव यकताओं
को पूरा करने के लए काम कर रहा है, वह दस
ू री तरफ उसने यावसा यक
प से िवदेशी मु ा अ जत करने का माग भी खोल िदया है। इसी म म,
‘ यू पेस इं डया’ और अंत र िवभाग ने ि टेन क कंपनी ‘वनवेब’ के
साथ 36 उप ह को नगी म लॉ करने का समझौता िकया था। यह
ेपण सफल रहा।
भारी उप ह को लॉ करने क भारत क मता के साथ अनेक
मह वपूण यावसा यक लाभ जुड़े ह। ये भारत को अरब -खरब डॉलर के
वै क उप ह ेपण बाजार का एक मह वपूण िकरदार बना देगा, जससे
भारत कम लागत म भारी उप ह लॉ करनेवाला एक िव सनीय भागीदार
बन जाएगा। इससे इसरो के लए अ त र आय अ जत करना संभव होगा।
चूँिक उप ह ेपण बाजार म आनेवाला समय भारी संचार उप ह का
होगा, इस लए जस कार भारत ने अपने पीएसएलवी म महारत ा क
है, उसी कार उसके सामने ेपण यान के इस े म स ा करने
का ो साहन है। भारी लॉ र क मता का लाभ भिव य म भारत को
अपने मानव अंत र काय म म भी िमलेगा। यही नह , बढ़ी हुई ेपण
मता से भारत अंत र क गहराई म अपनी खोज को अ धक गंभीरता के
साथ आगे बढ़ा सकेगा।
इन सारी बात को यान म रखते हुए यह कहना होगा िक एमके III को

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अपनी मता को बढ़ाना ही होगा। भले ही भारत म यह उ तम पेलोड
मता का दावा कर सकता है, लेिकन दिु नया के मानक म यह म यम भार
ले जानेवाला रॉकेट ही है। उदाहरण के लए, पृ वी क िनचली क ा तक
एमके III जहाँ 8,000 िकलो ाम ले जा सकता है, वह पेसए स के
फा कन-9 क मता 23,000 िकलो ाम क है।
नई मह वाकां ी प रयोजनाएँ
भारत चं मा पर अपने पैर जमाना चाहता है और उसक नजर चं मा के
द णी ुव पर है। सफलता िमलते ही, भारत स, अमे रका और चीन के
साथ खड़ा होगा। वहाँ पहुँचते ही, हम एक गंभीर त पध बन जाएँ गे,
जसके पास संपूण अंत र शि होगी। भारत िमशन मंगल पर भी काम
कर रहा है और िमशन मून से इसम सहायता िमलेगी। अंत र म उड़ान
भरनेवाले अ य देश क तुलना म हमारा खच बहुत कम होता है।
डीएसए के नेतृ व म भारत क अंत र संबध ं ी ग तिव धयाँ र तार
पकड़नेवाली ह। इसरो आनेवाले दशक म नए-नए ेपण यान , बेहतर
रॉकेट मोटर और ोप शन या णोदन णा लय पर काम करने क तैयारी
म है। मानवसिहत ऑ बटर भी एजडे म शािमल है, और उसके साथ ही एक
भारतीय पेस टेशन भी, जसे देश साल 2030 तक थािपत करने क
योजना बना रहा है। अभी हाल ही म, आलोचना के बाद भारत को अंत र
शोध के लए अ धक धन मुहय ै ा कराना पड़ा।
1960 के दशक म सामा य सी शु आत के बाद, भारत के अंत र
काय म ने र तार पकड़ी और मह वपूण उपल धय को हा सल िकया।
इनम उप ह , अंत र ेपण यान के िनमाण के साथ ही उनसे जुड़ी
िव भ कार क मताएँ शािमल ह। भारतीय अंत र शोध संगठन
(इसरो) का वा षक बजट कुछ ही वष पहले तक जहाँ 6,000 करोड़ पए
था, वह अब 13,700 करोड़ पए को पार कर चुका है और इसम िनरंतर
वृ ही हो रही है।
उ ोग के भीतर पर पर संबध

र ा अंत र एजसी और र ा अंत र शोध संगठन के साथ िमलकर
काम करते हुए भारतीय अंत र शोध संगठन को अपनी एक असै य
पहचान बनाने के लए भरपूर यास करना चािहए। भारत के लए बननेवाले
नए अंत र कानून को यह ल य रखना चािहए िक वै क अंत र
अथ यव था म भारत क िह सेदारी एक दशक के भीतर बढ़कर 10
तशत हो जाए। हम एक नई साझेदारी क ज रत है, जसम ऊपर जन
तीन िवभाग का ज िकया गया है, उनके साथ पारंप रक िनजी उप म
और अंत र े के हमारे नए पथ दशक और उ मी साथ िमलकर काम
कर।
िपछले कुछ वष म इसरो के संबध
ं उ ोग जगत्, िवशेष प से हद ु तान
एयरोनॉिट स लिमटेड, िम धातु िनगम लिमटेड और भारत
इले टॉिन स लिमटेड जैसे सावजिनक े के उप म (पीएसय)ू तथा
लासन एं ड टू ो, गोदरेज और बालचंदनगर इंड टीज जैसी िनजी े क
कंपिनय से मजबूत हुए ह। हालाँिक, िनजी े के उ म टीयर-2/टीयर-3
के वडर ह, जो कल-पुरजे और सेवाएँ उपल ध कराते ह।
अब अंत र टाटअप ने भारत क इस उ िमता को आगे बढ़ाया है।
भारत के लगभग 100 से ऊपर टाटअप अब िव भ आयाम पर काम कर
रहे ह और इ ह धानमं ी मोदी का संपूण साथ है।
वै क अंत र उ ोग
पेसए स (एलन म क क कंपनी) ने जनवरी 2021 म एक अकेला
ोजे टाइल ( े य) लॉ िकया, जसके साथ 143 मॉलसैट अंत र
तक पहुँचे। पेसए स ने इन छोटे उप ह को एक िवशेष ुवीय क ा म
सफलतापूवक थािपत िकया। अब ये मॉलसैट अला का के ुवीय े
म अपने ाहक को सेवा उपल ध कराते ह।
साल 2019 म िकए गए आकलन के अनुसार, वै क अंत र उ ोग का
मू य लगभग 420 िब लयन डॉलर था। 2018 म इसका मू य 360
िब लयन डॉलर था। साल 2040 तक इसम 50 तशत तक वृ हो
जाएगी। उप ह का इ तेमाल सै य उ े य और वै ािनक शोध के लए भी
होता है और उ ह कॉम शयल नह कहा जा सकता। साल 2019 म 2,514
उप ह क ा म थे, जनम से 1,327 अमे रका के थे। दिु नया म अंत र क
अथ यव था म सरकार क ओर से महज 20 तशत पैसा खच िकया
जाता है।
हर साल 5 तशत क च वृ िवकास क दर का मतलब होगा िक
वै क अंत र अथ यव था साल 2026 तक 550 िब लयन डॉलर तक
पहुँच जाएगी। अनुमान है िक खच का सबसे बड़ा िह सा खच नैनो
सैटेलाइ स के इ तेमाल और उनक िब ी से जुड़ा होगा। यह भारत क
भूिमका अहम हो जाती है। भारतीय अंत र काय म िकफायती है और
हम इसका फायदा उठाना ही चािहए।
आनेवाले 50 वष म अंत र के े म पया बदलाव िदखगे। इन
प रवतन को नई तकनीक, घटते खच, भारतीय के यास और अंत र
काय म म अनेक उ िमय क ओर से िकए जानेवाले अरब पए के
िनवेश से र तार िमलेगी। िफलहाल बेहतर संचार नेटवक पर काफ जोर है,
लेिकन देखते-ही-देखते इसम अंत र पयटन भी शािमल हो जाएगा।
ो े ै े औ े
भिव य क बात कर तो बड़े पैमाने पर प रवहन और खिनज के खनन क
योजना है। अंत र पृ वी का एक अ भ अंग बन जाएगा और सरकार के
साथ ही िनजी कंपिनय और बड़े कारोबा रय का इस पर दबदबा होगा।
हमने अंत र का इ तेमाल संचार, सारण और नेिवगेशन के लए
िकया, लेिकन अब यह सबकुछ बदल रहा है। भू-राजनी त के कारण
इनसान अब महज चं मा तक सीिमत नह रह गया है। अमे रक साल
2024 तक अंत र म रहना चाहते ह और चीन क योजना है िक 2035
तक चाँद पर बस जाएँ । अंत र म अब सफ सरकार क ही िदलच पी
नह रही। ‘ पेसए स’ क कुल संप लगभग 100 िब लयन डॉलर क है
और कंपनी के िनवेश म तेजी आ रही है। एक और अरबप त, जेफ बेजोस
और उनक कंपनी ‘ लू ऑ र जन’ चं मा को उपिनवेश बनाना चाहते ह।
‘ लू ऑ र जन’ क शु आत बेजोस ने एक अंत र पयटन कंपनी के
तौर पर क थी और उसने जुलाई 2021 म अंत र म एक रॉकेट भेजा था।
उसी महीने रचड ैनसन अपने पेस लेन म अंत र क या ा पर
िनकले। अंत र पयटन म िकतनी संभावनाएँ ह, इसका अंदाजा इसी बात
से लगाया जा सकता है िक लगभग 600 अरबप त अंत र म उड़ान भरने
क ती ा म ह और त यि 2,50,000 डॉलर चुकाने के लए तैयार ह।
उनम से कई ने एडवांस म ही पैसे दे िदए ह और अपनी बारी का इंतजार
कर रहे ह। अभी क क मत स ती ह। मोगन टेनली का अनुमान है िक
साल 2040 तक अंत र उ ोग का मू य आ यजनक प से 1 िट लयन
डॉलर का हो जाएगा। हाल क घटनाएँ िदखाती ह िक अंत र म सबसे
अ धक िनवेश सरकार क ओर से नह , ब क गैर-सरकारी लोग क ओर
से िकया जाता है। भारत का स ता अंत र काय म इन सभी को मात दे
सकता है।
भारत को अपना अंत र काय म बनाने क आव यकता य है?
बाहरी अंत र एक ऐसा े है, जस पर मोदी 1.0 सरकार का खास
यान था। लंबे समय से, भारत सामा जक, वै ािनक और सुर ा िहत के
लए अंत र े म िनवेश करने के लए जाना जाता है। िपछले कुछ वष
म, भारत ने अंत र के े म कुछ बड़ी सफलताएँ हा सल क ह और इस
िवकास पथ पर उसे तेज ग त से आगे बढ़ते जाने क आव यकता है।
मोटे तौर पर, इसरो का अंत र काय म िपछले कुछ दशक से सही
रा ते पर है। हालाँिक दो े ऐसे ह, जनम प ता नह है। एक है—भारत
का हीय िमशन और दस ू रा है—भारत का तािवत मानव िमशन।
आज वै क एज सय ने पहले ही मनु य के चं मा और मंगल पर पहुँचने
के लए अपनी समय-सीमा क घोषणा कर दी है, जबिक हम अपने दस ू रे
अ भयान म देरी कर, पहले िमशन के दौरान ा जानकारी का िव तार
े े ै
करने म भी िवफल रहे ह। यह यान रखना मह वपूण है िक ह का एजडा
एक िमशन का एजडा नह हो सकता। आनेवाले कुछ दशक म इन
काय म क योजना बहुत सोच-िवचारकर बनानी होगी। अ य देश, जो इस
े म ह, उ ह ने कम-से-कम चार से पाँच िमशन के लए अपने काय म
को साफतौर पर बता िदया है। याद रहे िक यह सारी आपाधापी उन ह पर
मौजूद संसाधन के लए है। दभ ु ा य से, इसरो ने ु ह के लए िकसी भी
िमशन क योजना नह बनाई है, जहाँ सही मायने म खिनज खनन क
संभावना है। इसी तरह, भारत के तािवत मानव अंत र काय म के बारे
म बहुत साफ नह है।
हम सभी जानते ह िक साल 2023 म भारत अपने अंत र याि य को
अंत र म पृ वी क सतह से लगभग 400 िकमी. क ऊँचाई पर लॉ
करेगा। यहाँ इस बात क आशंका है िक कह यह काय म भी महज ‘फ ल-
गुड ो ाम’ बनकर ही न रह जाए! अगर हम इनसान को अंत र म भेज
रहे ह तो हम मानव अंत र िमशन के लए एक दीघका लक एजडा बनाने
क आव यकता है। ऐसे काय म एक समय म एक कदम चलनेवाले
काय म नह हो सकते। हम बड़ा सोचने, बड़ी योजना बनाने और बड़ा
िनवेश करने क ज रत है। भारत को अपना ‘अंत र टेशन’ बनाने क
ज रत है, नह तो मानव अंत र काय म म िनवेश का कोई मतलब नह
है। हम कम-से-कम आनेवाले 10 से 15 वष के लए योजना बनाने क
ज रत है। यह आनेवाली पीिढ़य के लए मोदी 2.0 का उपहार हो सकता
है। वा तव म, अपनी अगली पीढ़ी के लए यह सब करना हमारा दा य व है।
सबसे अ छी बात यह है िक हम लोग ने ऐसे बहुत से काय म का
अनुसरण करना ारंभ कर िदया है और 2023 के अंत तक अ छे -खासे
नी तगत प रवतन हो चुके ह गे।
अंत र के नए टाटअप
इसरो अनेक सावजिनक े के उप म के साथ िमलकर काम करता
है। अ धकांश िनजी कंपिनय क भूिमका सेवा और पुरजे उपल ध कराने
तक सीिमत है। वैसे तो इसरो का ‘एं िट स’ नाम का अपना कम शयल वग
है, मगर उसक भूिमका भी सीिमत है। अब उप ह के पुरजे जोड़ने, उनक
जाँच और उ ह एक कृत िकए जाने या िनजीकरण करने का व आ गया
है।
अंत र िवभाग गैर-सरकारी-िनजी-सं थाओं (एनजीपीई) को े पण
यान और उप ह के उ पादन के लए ो सािहत करता है। यू पेस
इं डया लिमटेड (एनएसआईएल) भारत सरकार का एक सावजिनक े
का उप म और इसरो क एक वा ण यक शाखा है। वा ण यक े पण
यान और उप ह क ज मेदारी एनएसआईएल ही सँभालती है। इसरो का
ो ो ेऔ े ो े
पूरा जोर अब तकनीक को उ त बनाने और अंत र के अ भयान को आगे
बढ़ाने पर रहता है।
टाटअप इं डया, कल इं डया, ड जटल इं डया, मेक इन इं डया और
माट सटी िमशन जैसे भारत सरकार के मुख काय म का ल य यह है
िक उनसे अंत र के नए-नए टाटअप क शु आत म मदद िमल सके।
ऐसे टाटअप डाटा बेचनेवाले (इसरो/एं िट स) और उपयोगकताओं के
बीच डाटा-ए◌ेप िनमाण क भूिमका िनभा सकते ह। भारत तभा का धनी
है, उसके पास तकनीक ान और नए योग क मता है। िनजी
कंपिनयाँ इन सारी बात का लाभ उठाने के लए तैयार ह। उ ह ज रत है
तो बगलु जैसे शहर म सहायक इको स टम, तेजी लानेवाली सं कृ त,
पूँजीप त उ िमय और सलाहकार क , जहाँ अंत र े के सबसे अ धक
नए-नए टाटअप खड़े हो चुके ह। अंत र म भारत के 100 से भी अ धक
टाटअप बहुत त मयता से काम कर रहे ह। यह टाटअप सैटेलाइट
िनमाण, लघु रॉकेट िनमाण, सैटेलाइट क रपेय रग से लेकर कचरे क
मै पग तक का काम कर रहे ह।
लघु उप ह ां त
िकसी मौन ां त क तरह, छोटे उप ह क ां त शु हो चुक है। पूरी
दिु नया म अभी से लेकर साल 2030 तक 17,000 छोटे-छोटे उप ह को
लॉ िकए जाने क उ मीद है। इसरो एक ‘ मॉल सैटेलाइट लॉ हीकल’
(एसएलवी) बना रहा है, जसके कुछ समय प ात् बनकर तैयार होने क
उ मीद है। इसके साथ ही भरोसेमदं पीएसएलवी को तैयार करने का काम
िनजी े को स पा जा सकता है।
िन कष
िवशेष ता से भारत को एक नए सॉ ट पावर का दरजा िमलेगा। अ य
देश को उनक डाटा मॉड लग के बंधन म भारत मदद कर रहा है और
आगे भी कर सकता है।
अंत र का िनजीकरण य ?
अंत र म भारत क ग तिव धय म अ धक-से-अ धक िनजी भागीदारी
को सुिन त करने के लए सरकार ने एक नए संगठन को बनाए जाने क
मंजूरी दी है। यह एक ऐसा िनणय है, जसे उसने ‘ऐ तहा सक’ बताया है।
यह अंत र े को खोलने और अंत र आधा रत ए◌े स और सेवाओं
को सभी के लए बड़े पैमाने पर उपल ध बनाने के लए िकए जा रहे सुधार
का मह वपूण िह सा है।
श ण और शोध सं थान सिहत िनजी े क ज रत और माँग का

े े ो े
अंदाजा ‘इं डयन नेशनल पेस मोशन एं ड ऑथराइजेशन सटर’ या IN-
SPACE लगाएगा। अब तक इसरो ने IN-SPACE को अपने दजन सैटेलाइट
थानांत रत कर िदए ह।
अंत र म िनजी भागीदार क ज रत या है?
भारत के अंत र े म िनजी उ ोग क भागीदारी पहले से ही है। अब
तो रॉकेट और उप ह के िनमाण और उ ह आकार देने का काफ सारा
काम िनजी े करता है। शोध सं थान क भी भागीदारी बढ़ रही है। इन
सबके बीच तेजी से बढ़ती वै क अंत र अथ यव था म भारतीय उ ोग
क िह सेदारी बमु कल तीन फ सदी थी, जसक क मत पहले से ही कम-
से-कम 360 अरब डॉलर थी। इस बाजार का केवल दो तशत िह सा
रॉकेट और उप ह ेपण (लॉ ) सेवाओं के लए था, जसके लए काफ
बड़े बुिनयादी ढाँचे और भारी िनवेश क आव यकता होती है। बाक का 95
तशत उप ह आधा रत सेवाओं और जमीन आधा रत णा लय से जुड़ा
है।
इसके अलावा अंत र आधा रत ए◌े स और सेवाओं क माँग देश के
भीतर भी तेजी से बढ़ रही है और इसरो के लए इ ह पूरा करना एक बड़ी
चुनौती है। सैटेलाइट डाटा, तसवीर और अंत र ौ ोिगक क
आव यकता अब मौसम से लेकर कृिष और प रवहन से लेकर शहरी
िवकास समेत कई दस ू रे े को भी है।
कुछ कंपिनयाँ अपने खुद के ेपण वाहन को बनाने म जुटी थ । इसरो
के पीएसएलवी जैसे रॉकेट, जो उप ह और अ य पेलोड को अंत र म ले
जाते ह, इसरो अब ऐसा करने म उनक मदद करना चाहेगा।
इसरो उन िनजी कंपिनय को अपनी सारी सुिवधाएँ देने के लए तैयार है,
जनके ोजे ट को IN-SPACE ने हरी झंडी दे दी है। इसरो ने कहा िक िनजी
कंपिनयाँ अगर चाह तो ीह रकोटा लॉ टेशन के भीतर अपना लॉ पैड
भी बना सकती ह और इसरो इसके लए ज री जमीन भी उपल ध करा
रहा है, एक नया पेस कॉ ले स भी बन गया है और IN-SPACE को इसरो
के वजनी सैटेलाइट भी दे िदए ह।
अंत र े म िनजी भागीदारी को बढ़ाना दो वजह से ज री है। एक
कम शयल और दस ू रा टैटे जक। इसम कोई शक नह िक पेस
टे नोलॉजी का जन-जन तक पहुँचना, अंत र संसाधन का बेहतर
इ तेमाल और अंत र आधा रत सेवाओं क बढ़ती आव यकता आज एक
ज रत बन चुक है और इसरो के लए अपने दम पर इ ह पूरा करना संभव
नह िदखता है।
िनजी उ ोग इसरो का बोझ कम कर देगा और इसरो अपना यान
औ े े ो औ
िव ान, अनुसंधान और िवकास, एक से दस ू रे ह म खोजबीन और
रणनी त के लहाज से िकए जानेवाले ेपण पर कि त कर सकेगा।
िफलहाल, इसरो के संसाधन क बहुत अ धक खपत टीन ग तिव धय म
हो जाती है, जसके चलते इसके कह अ धक ज री रणनी तक उ े य म
देरी होती है। यह ज री नह िक सफ इसरो ही मौसम और संचार उप ह
को लॉ करे। दिु नया भर म अ धक-से-अ धक सं या म िनजी कंपिनयाँ
यावसा यक लाभ के लए इस काम को अपने हाथ म ले रही ह। नासा क
तरह ही इसरो भी अिनवाय प से एक वै ािनक संगठन है, जसका मु य
उ े य अंत र क खोज और वै ािनक िमशन को अंजाम देना है।
आनेवाले वष म कई मह वाकां ी अंत र िमशन ह, जनम सूय का
िनरी ण करने का िमशन, चं मा के लए एक िमशन, एक मानव अंत र
उड़ान और िफर शायद चं मा पर िकसी इनसान क ल डग शािमल है।
और ऐसा नह है िक िनजी कंपिनय के आने से वा ण यक ेपण से
इसरो को जो पैसे िमलते ह, वे उसे नह िमलगे। अगले कुछ वष म अंत र
आधा रत अथ यव था का दिु नया ही नह , भारत म भी एक ‘िव फोट’
होनेवाला है और इससे होनेवाला फायदा सभी के लए पया होगा। इसके
अलावा, इसरो िनजी े को अपनी सुिवधाएँ और डाटा उपल ध कराकर
भी कुछ पैसे कमा सकता है।
अप टीम
उप ह िनमाण
दरू संवेदी और संचार जैसे उप ह आधा रत ए◌ेप क माँग तेजी से बढ़ी
है, जसने छोटे उप ह क माँग को बढ़ाया है। यू पेस टाटअप इसी माँग
को पूरा करने का ल य रखते ह। भारत म यू पेस इको स टम को बढ़ावा
देने के लए ‘एं िट स’ ने छोटे-छोटे उप ह क शु आत क ।
अंत र म उप ह क मर मत या क ा म उ ह अप ेड करने क स वस
से जुड़ी माँग म वृ एक और मह वपूण चलन है। इन-ऑ बट स वस माकट
(आईओएसएम) का आकार साल 2028 तक 4.5 िब लयन अमे रक डॉलर
के बराबर जाएगा। ‘ डफस एडवां ड रसच ोजे स एजसी’
(डीएआरपीए), ऑ बटल एटीके और इफे टव पेस जैसे संगठन भी
स व सग के लए अंत र यान बनाते ह।
भारतीय अंत र उ ोग ने अब अप टीम और डाउन टीम े के
सम वयन, उनके बीच किड़य क थापना और उ ह सम प देने म
काम करना ारंभ कर िदया ह। अप टीम का अथ जहाँ से मु य उ पाद
सामान लेता है, सेवा लेता है, डाउन टीम का अथ मु य उ पाद जहाँ
सामान और सेवाएँ लेता है।

ौ ौ
मौजूदा माहौल म जब सुर ा एज सय क अंत र आधा रत ज रत बढ़
रही ह, तब इसरो को न केवल दरू संवेदी और दरू संचार के अ भयान को
सामा य प से जारी रखना होगा, ब क उसे रा ीय सुर ा क
आव यकताओं को भी पूरा करना होगा। यिद कोई ऐसा काय म हो जसम
उ ोग जगत् िनयिमत प से अंत र यान को बनाने म मदद करे तो
भारतीय अंत र े म िनजी उप म के लए बाजार म बड़े पैमाने पर
अवसर पैदा हो सकते ह। इससे इसरो अपना यान नई पीढ़ी क तकनीक
को िवक सत करने पर कि त कर सकेगा और िनजी उ िमय को
ो साहन देकर इसरो ने यह ारंभ कर िदया है।
छोटे-छोटे उप ह अंत र उ ोग के आयाम म यापक प रवतन ला रहे
ह। एक हा लया माकट टडी के मुतािबक, साल 2026 तक पृ वी क
िनचली क ा (एलईओ) म 10,000 से अ धक माइ ोसैटेलाइट लॉ िकए
जाएँ गे। छोटे-छोटे उप ह के िनमाण के लए सरकारी एज सय और िनजी
कंपिनय के बीच सहयोग के चलन को इले टॉिनक और अ य पुरज के
आकार म कमी लाकर संभव बनाया जा रहा है।
कुल बजट का 60 तशत खच ेपण पर होता है। हलके उप ह क
लागत कम होती है। अगर उ त और िकफायती इले टॉिन स का
अ धकतम इ तेमाल हो तो हलके उप ह ज दी ही बड़े उप ह का िवक प
बन सकते ह। छोटे उप ह को बनाने म कम समय लगता है, जससे उ ह
कम समय म अप ेड भी िकया जा सकता है। कम समय म छोटे उप ह के
समूह को थािपत कर यापक कवरेज हा सल क जा सकती है। उप ह
िनमाण का पिहया तेजी से घूमता है तो लॉ के समय क योजना बनाने
और उसके बंधन म भी मदद िमलती है। इसरो ने इन सभी को ो साहन
देना ारंभ कर िदया है।
िन कष
चूँिक र ा मं ालय अब डफस पेस एजसी और एक डफस पेस
रसच ऑगनाइजेशन थािपत कर चुका है, इस लए इसरो को अपनी
िव श असै य पहचान बना लेनी चािहए। भारत के नए अंत र कानून का
ल य यह हो िक वै क अंत र अथ यव था म एक दशक के भीतर भारत
क िह सेदारी 10 तशत तक ले जाने म मदद िमले। इसके लए इसरो,
थािपत िनजी े और अंत र े के नए उ िमय के बीच एक नई
साझेदारी क ज रत है, जसे इसरो ने InSpace क थापना के साथ पूरा
कर लया है।
अ य संगठन के साथ काम करने के किठन और चुनौतीपूण िदन से ही
इसरो ने लगातार अपनी ग तिव धय को आं त रक प िदया है और खुद
को एक लॉ र और उप ह उ पादक और सेवा एजसी के प से बदलकर

एक पथ दशक का प धारण कर लया है।
भारतीय अंत र काय म क सीमाएँ
जािहर है, हमारे अंत र काय म ने य िप तर तो कर ली है, परंतु
इसक कुछ सीमाएँ भी रही ह। एक सीमा है, हम िफर से इ तेमाल िकए
जानेवाले लॉ र बनाने म बहुत पीछे ह, य िक हमारा यान लॉ क
सं या बढ़ाने पर यादा है।
ए◌े स के मामले म भी, जन 160 प रयोजनाओं का लंबे समय से
इंतजार था और अं तम उपयोगकता िवभाग क ओर से रमोट स सग
डाटा को इ तेमाल को बढ़ावा देने के लए अं तम उपयोगकताओं क ओर
से लागू िकया जाना था, उ ह भी इसरो क ओर से तैयार भुवन मैप म
आं त रक काम का िह सा बना िदया गया। शायद ही कोई ऐसा ए◌ेप हो,
जो मह वपूण हो और जो मॉड लग और िव ेषण क मताओं को बढ़ाता
हो। डाटा साइंस ने जहाँ दिु नया म तूफान ला िदया है, वह इसरो इस तर
से पूरी तरह अछूता है।
सबकुछ आं त रक काररवाई का िह सा बना िदए जाने क िदशा म उठाया
गया सबसे खराब कदम रमोट स सग डाटा नी त का अनाव यक िनमाण
था। इसके आने से पहले तक, आईआरएस डाटा सभी के लए उपल ध
था।
इससे भी बुरा फैसला तसवीर को बेचने का था, जो टै स भरनेवाल के
पैसे से तैयार क जा रही थ । इसका नतीजा यह हुआ िक संभािवत
उपयोगकता उ ोग और श ा के े से दरू हो गए।
इसरो के पास सैटेलाइट तैयार करने और उनके परी ण क िव तरीय
सुिवधाएँ ह और उनका इ तेमाल ऑपरेशन और R&D (शोध और िवकास)
दोन के लए होता है, लेिकन ऑपरेशन को यादा तरजीह दी जाती रही है
और R&D का नुकसान होता रहा है।
यह यान िदया जाना चािहए िक इसरो अंत र िवभाग ( डपाटमट ऑफ
पेस-DOS) का मा एक िह सा है और अंत र िवभाग नासा क तरह ही
मु य संगठन है। हालाँिक इसके आकार और इसके िवकास क कृ त के
कारण गलती से इसरो को अंत र िवभाग मान लेना और ISRO क जगह
DOS और DOS क जगह ISRO के सं श द के इ तेमाल क गलती हो
सकती है।
पहली ज रत एक अंत र नी त क है, जो लंबे समय से अटक और
लटक हुई है। ISRO-DOS से मु एक जीवंत उ ोग को ो सािहत करने के
लए ऐसी नी त क आव यकता है। इस तरह क नी त को अंत र उ ोग
एवं उपयोगकता समुदाय से सामने आना चािहए, और यह न हो िक उसे
ISRO-DOS संचा लत कर।
दसू रा, इसरो के पुनगठन क ज रत है, तािक उससे जुड़ी सुिवधाओं
और सेवाओं के साथ प रचालन क सारी ग तिव धय से उसे मु कर
िदया जाए। सभी सेवाएँ एसीएल (एं िट स कॉरपोरेशन ल.) के पास होनी
चािहए। सरकार क आ थक सहायता से चलनेवाली इसरो क िवशाल
सुिवधाओं को रा ीय अंत र ौ ोिगक िनमाण और परी ण संप य का
प िदया जाना चािहए, जनका इ तेमाल इसरो-डॉस और उ ोग दोन
िबना भेदभाव कर सक। भारत सरकार क ओर से इन प रसंप य के
बंधन के लए एनएसआईएल का िफर से गठन िकया जाना चािहए।
इसरो को पृ वी से संबं धत ए◌े स, अंत र िव ान और अंत र
काय म म मानव के लए उ त लॉ र, पेलोड और ाउं ड स टम पर
यान कि त करना चािहए। दस ू री तरफ, एसीएल और एनएसआईएल के
साथ बातचीत ज री होगी और यह स ती से यावसा यक शत पर ही हो,
जैसी अ य सह-याि य पर लागू होती है।
मताओं का यावसायीकरण और सामा जक भाव के पैमाने
सुर ा बल क ज रत को पूरा करने के लए वतं उ ोग बन, जो
इसरो से अलग ह , जो अिनवाय प से एक नाग रक संगठन है। यह भी
संभव है िक एमईओ (िम डल अथ ऑ बट) का उपयोग कर िनजी संचार
सेवा देनेवाली कंपिनयाँ संचार उप ह का खच उठाएँ , जैसा िक बाक
दिु नया म हो रहा है। उदाहरण के तौर पर ऐसा 5जी सेवाओं के लए िकया
जा सकता है। रमोट स सग सैटेलाइट के लए भी यही लागू हो सकता है।
सरकार को इससे अलग हो जाना चािहए और केवल वही काम करना
चािहए, जो उ ोग नह कर सकते। इनम वा य सेवा, श ा, अंत र
िव ान और अंत र म मानव के लए उ त तकनीक और णा लय का
िवकास शािमल है। उ ोग को अपना रा ता खोजने के लए छोड़ द और
एक स म अंत र नी त के आधार पर अपना काम कर, जसक समी ा
और संशोधन सभी िहतधारक के साथ बातचीत के बाद समय-समय पर
िकया जाना चािहए।
इस िदशा म सरकार ने एक बहुत ही बेहतर कदम उठाया और वह ISRO
और IN-SAPCE को अलग करके, िनजी भागीदारी और देश म तभा को
पोिषत करने के लए जो प र थ तयाँ पैदा करनी थ , उसे धानमं ी ी
नर मोदी और डॉ जीत सह ने कर िदया है और अब अंत र ही इसक
सीमा है।

अ याय 9
अंत र म ह थयार
भूिमका
पहले जन देश के पास समु ी माग को िनयंि त करने क मता थी,
उ ह ने दसू रे देश पर िवजय ा क । िपछली शता दी म वायु शि इस
मता के साथ जुड़ गई। अंत र पर राज करनेवाले देश इस सदी म दिु नया
पर राज करगे। हम इसके लए लो अथ ऑ बट (LEO) म सै य उप ह क
आव यकता है। LEO म जसका दबदबा होगा, वही दिु नया को िनयंि त
करेगा। हालाँिक भारत कभी िकसी दस ू रे देश पर हमला नह करता है,
लेिकन जवाबी काररवाई क ताकत पैदा करना ज री है। अंत र
गु वाकषणवाले पहाड़ और संसाधन के साथ ही ऊजा से भरे महासागर
का एक माग है।
अंत र म सहयोग
हमारी अंतररा ीय यव था म कोई भी दमदार क ीय संगठन नह है,
इस लए इस े म अराजकता है। देश ज र एक-दस ू रे के साथ आ सकते
ह और सहयोगी बन सकते ह, लेिकन तभी, जब उ ह ऐसे अ य गठबंधन
का मुकाबला करने क आव यकता हो। ऐ तहा सक प से, वेज, मल ा
और ज ा टर जैसी िव श भौगो लक िवशेषताओं ने चोक पॉइंट के प म
काम िकया है, जहाँ एक अपे ाकृत प से कमजोर देश ताकतवर देश पर
भारी पड़ सकता है। काला सागर इसका जीता-जागता उदाहरण है। तुक
नाटो का सद य है और काला सागर के एक मुहाने पर उसका िनयं ण है।
उसने बो फोरस जलडम म य के रा ते स के यु पोत क आवाजाही
पर रोक लगा दी है, जससे सी सेना के आने-जाने म अवरोध हो सकता
है।
सै य ि से इसी तरह क मु कल ज दी ही अंत र म देखी जा
सकगी। लागत म कमी से अंत र म मह वपूण आपू त और ह थयार
(अ वेषण के नाम पर) के भंडार म वृ होगी। जस देश का अंत र पर
भु व हो गया, वह अंत र म वा ण य और राजनी त पर भु व हा सल
कर लेगा।
ऐसी योजना है िक पृ वी क िनचली क ा म सौर परावतक का
इ तेमाल करनेवाले उप ह भेजे जाएँ । इस ौ ोिगक के इ तेमाल से पैदा
होनेवाली सौर ऊजा पृ वी के साथ ही उप ह के ई ंधन क ज रत को पूरा

े ो औ े े
करेगी। हम चाह तो खनन और फुरसत के काम के लए लॉ िकए गए
वा ण यक उप ह से दी जानेवाली ऐसी सुिवधाओं पर शु क लगा सकते
ह।
अंत र म मौजूद उप ह पृ वी को देख पाते ह और उनका इ तेमाल
संचार, िनगरानी, जीपीएस टै कग और नेिवगेशन के लए िकया जाता है।
िव भ देश क सेनाएँ अंत र का उपयोग जानकारी इक ा करने और
जमीन पर होनेवाली ग तिव धय पर नजर रखने के लए करती ह। अंत र
म ह थयार तैनात करना सबसे नई घटना है। इसम अ य धक िवनाशकारी
ह थयार को क ा म भेजना और उ ह वह रखना शािमल है। कुछ देश
सै य उपयोग के लए चं मा जैसे आकाशीय पड का भी इ तेमाल करते
ह।
स के िमन शहर क कहानी एं टी-सैटेलाइट िमसाइल
नवंबर 2021 म स ने िमन से एक िमसाइल लॉ क और अपने
उप ह कॉसमॉस 1408 को न कर िदया। कॉसमॉस 8 फ ट लंबा जासूसी
उप ह था, जसका वजन 1,750 िकलो ाम था। कॉसमॉस को साल 1982
म लॉ िकया गया था और दो साल तक उसे चलाया गया, जसके बाद
उसे अंत र म न हो जाने के लए छोड़ िदया गया। उस उप ह म णोदन
णाली नह थी और इसे पृ वी पर वापस नह लाया जा सकता था। बाहरी
अंत र सं ध के अनुसार, पारंप रक े पा क अनुम त है, जसका
मतलब था िक स ने कोई अंतररा ीय कानून नह तोड़ा। उसने ‘डायरे ट
एं टी-सैटेलाइट िमसाइल’ (DR-ASAT) का उपयोग कर अपने उप ह को न
कर िदया।
जाने या अनजाने म, कॉसमॉस टू टकर 1,500 टु कड़ के कचरे म बदल
गया। इसका मलबा पूरे अंत र म फैल गया। इस मलबे ने 50 िकमी. दरू
उड़ान भर रहे अंतररा ीय अंत र टेशन (ISS) के चालक दल के लए
खतरा पैदा कर िदया, ज ह इस े से गुजरना पड़ा। ISS पर सवार सात
सद यीय चालक दल को आदेश िदया गया िक वे अपने कै सूल के अंदर
चले जाएँ । िकसी अनहोनी क थ त म उ ह पृ वी पर लौटने का आदेश
था। ISS हर 93 िमनट म एक बार मलबे के बीच से गुजर रहा था। तीन बार
उ ह अपने कै सूल म इंतजार करना पड़ा और जब ISS से कॉसमॉस के
मलबे क ट र नह हुई तो उ ह ने राहत क साँस ली और अपने
वक टेशन पर वापस चले गए।
कॉसमॉस के अंत र मलबे ने चीनी तयांग ग अंत र टेशन को भी
खतरे म डाल िदया। तयांग ग ने अब तक काम शु नह िकया है और यह
िनमाणाधीन है। यह एक मॉ ूलर पेस टेशन है, जसे चीनी वै ािनक
पृ वी से लगभग 400 िकमी. दरू अंत र म खड़ा कर रहे ह। अ य देश भी
ो े े े
तयांग ग को िव ीय सहायता दे रहे ह। इसका पहला चरण 2022 के अंत
म पूरा होनेवाला है। जनवरी 2022 के म य म, तयांग ग िकसी हादसे से
बाल-बाल बच गया, जब कॉसमॉस का अंत र मलबा इससे 15 मीटर से
भी कम दरू ी से िनकला। िक मत अ छी थी िक कोई िवनाशकारी घटना
नह हुई।
एं टी-सैटेलाइट िमसाइल-भारत, चीन और अमे रका
अकेले स ने ही एं टी-सैटेलाइट िमसाइल (एएसएटी) का परी ण नह
िकया है। चीन ने 2007 म, अमे रका ने 2008 म और भारत ने 2019 म
अपने सभी परी ण पूरे कर लये ह। इस व कई देश ऐसे ह, जो अंत र
को लेकर उ साही ह, और इसका मतलब है िक आनेवाले वष म इस तरह
के परी ण लगातार ह गे। बहुत ज द, अंत र म ह थयार और सेनाओं क
होड़ तेज हो जाएगी।
िव भ देश अपने द ु मन पर अंत र से ही नजर रखते ह। त ं ी देश
अंत र म तैनात ह थयार का इ तेमाल द ु मन के उप ह या पृ वी पर
उनके मह वपूण सै य िठकान पर हमला करने के लए करते ह। पृ वी क
क ा म दो कार के अंत र ह थयार ह, काइनेिटक एनज वेपस ं (KEW)
और डायरे टेड एनज वेपस ं (DEW)। केईड यू अंत र म ल य पर
िनशाना साधने के लए लेजर का उपयोग करते ह और डीईड यू पृ वी पर
मौजूद व तुओ ं पर वार करने के लए अंत र से िमसाइल दागते ह।
गु वाकषण के कारण र तार म तेजी पारंप रक DEW ेपा क ताकत
को बढ़ा देती है। म टीपल इं डपडटली टागटेबल री-एं टी हीकल (MIRV)
कहे जानेवाले आधुिनक वाहन और भी िवनाशकारी ह। MIRV िमसाइल कई
वारहेड ले जाती है और उसका इ तेमाल एक साथ कई ल य को भेदने के
लए िकया जाता है।
ि टेन, ांस, चीन, अमे रका और स जैसे देश ने MIRV को तैनात
िकया है। बताया जा रहा है िक पािक तान भी इसे िवक सत कर रहा है।
इजराइल ने भी कुछ MIRV तैनात िकए ह, हालाँिक इसक पुि नह हुई है।
द ु मन से घरे भारत ने अपनी अि ंखला म MIRV क तकनीक को
एक कृत कर िदया और साल 2021 म दो बार इसका सफलतापूवक
परी ण भी िकया। चीन क थत तौर पर ‘असुर त’ लूटोिनयम उ पादन
का उपयोग करके अपने MIRV परमाणु श ागार को बढ़ा रहा है।
अंतररा ीय परमाणु ऊजा एजसी (IAEA) के सुर ा उपाय का उ ंघन कर
आइसोटोप को अलग करने के तरीक को असुर त कहा जाता है।
अंतररा ीय कानून
अंतररा ीय कानून बाहरी अंत र को ‘ लोबल कॉमन’ के प म एक

ै ै े े
अलग वग म रखता है, जसका मतलब है िक अंत र िकसी भी देश के
रा ीय अ धकार े से बाहर है और इस कारण यह सफ अंतररा ीय
कानून से ही िनयंि त होगा। िकसी देश के े ा धकार से बाहर के
महासागरीय े , अंटाकिटका, यहाँ तक िक साइबर पेस अंतररा ीय
सं धय क ि से ‘ लोबल कॉमन’ के उदाहरण ह। अंत र और
खगोलीय पड संयु रा चाटर के साथ ही अंतररा ीय कानून के अधीन ह
और उस कानून के अनुसार वे सभी देश के लए शोध और उपयोग के
लहाज से खुले ह। अंत र क ग तिव धयाँ 1967 क ‘यूनाइटेड नेशस

आउटर पेस टीटी’ (OST) ारा िनयंि त क जाती ह, जस पर 111 देश
के ह ता र ह।
OST कहता है िक कोई भी देश चं मा या अ य ह जैसे खगोलीय पड
सिहत, बाहरी अंत र के अ धकार े पर क जा नह कर सकता है।
अंत र म सै य िठकान क थापना, िकसी भी यु साम ी का परी ण
और सै य अ यास करने पर भी तबंध है। बाहरी अंत र मामल के लए
संयु रा कायालय (UNOOSA) पर इनक जाँच क ज मेदारी है। हालाँिक
सच यही है िक UNOOSA के पास इन िनयम को भावी ढंग से लागू करने के
लए आव यक कानूनी अ धकार या मता नह है। िनयम को लागू करा
पाने क भावी शि न होने से यह िव भ देश पर छोड़ िदया गया है िक
वे इन कायद पर चल। कुछ देश दिु नया क भलाई से कह यादा अपने
सावजिनक िहत को मह व देते ह और वे दिु नया के कानून के िव काय
भी करगे।
केवल 18 देश ने 1979 के मून ए ीमट (चं मा पर समझौते) क पुि क ,
और ये ऐसे देश ह, जनम से कोई भी अंत र म उड़ान नह भर रहा है।
अंत र को लेकर आपाधापी बढ़ रही है और अंत र के शां तपूण उपयोग
को लेकर संघष जारी रहेगा। कुछ देश दावा करते ह िक अंत र 80 िकमी.
के बाद शु होता है, जबिक दस ू रे कहते ह िक 100 िकमी. के बाद। अगर
इन देश के बीच इस दरू ी पर ही सहम त नह है तो िववाद के प रणाम
गंभीर हो सकते ह। इसका मतलब है िक जो देश 80 िकमी. क सीमा पर
यक न करते ह, वे पृ वी से 90 िकमी. ऊपर दस ू रे देश के उप ह को
िनशाना बना सकते ह।
इसी तरह OST शां तपूण उ े य को प रभािषत नह करता है। स
अंत र म सभी सै य ग तिव धय पर पूण तबंध चाहता है, जबिक
अमे रका का कहना है िक जब तक यह गैर-आ ामक है, तब तक यह
शां तपूण है। संयु रा का कहना है िक यह तब तक शां तपूण है, जब तक
ताकत से िकसी कार का खतरा पैदा नह होता है। िफलहाल पूरी तरह से
म पैदा करनेवाली थ त बनी हुई है।


भिव य के कानून
चं मा और पृ वी के बीच बढ़ती आ थक ग तिव ध, जसे ससलुनर
(पृ वी और चं मा के बीच) कहा जाता है, वह अंत र म उड़ान भरनेवाले
देश को चं मा पर एक सै य मौजूदगी दज कराना अप रहाय बना देगा।
ांस, अमे रका, स और चीन जैसे देश ने अपनी अंत र प रसंप य
क सुर ा के लए अपनी सेना म पहले ही अलग-अलग पेस डवीजन बना
लये ह। ये सश बल अंत र म ह थयार क एक और होड़ शु कर
सकते ह।
रा प त डोना ड टंप ने 2019 म ‘यूएस पेस’ फोस बनाई थी। इसे
बनाने क दलील यह थी िक अंत र एक यु े है। चीन ने पीपु स
लबरेशन आम क ‘ टैटे जक सपोट फोस’ के अंग के प म 2015 म
‘ डफस पेस फोस’ का गठन िकया। इसम साइबर और इले टॉिनक यु
को शािमल करते हुए चीन ने 2016 म एक ेत-प जारी िकया। इसम
उसने अंत र शि बनने के अपने दीघका लक रणनी तक ल य को
िनधा रत िकया था।
चीन ने अपनी अंत र प रसंप य को बढ़ाया है और खुलकर अंत र
पर राज करना चाहता है। स ने 2021 म अपनी हाइपरसोिनक िमसाइल,
‘ कजल’ का परी ण िकया। यहाँ तक िक यू े न के साथ चल रहे यु म
इसका इ तेमाल भी िकया। अमे रका और चीन दोन ऐसी ही िमसाइल
तैयार करने के करीब ह। ‘ कजल’ आवाज क र तार से 20 गुना से
अ धक ग त से उड़ता है, जससे उसक िदशा और ऊँचाई इस तरह बदल
सकती है िक उसे रोकना मु कल हो जाता है।
ऐसी हाइपरसोिनक िमसाइल क उड़ान उप ह पर िनभर करती है,
इस लए उप ह न केवल नाग रक और सै य संचार के लए ब क िमसाइल
हमल का पता लगाने और उनक जानकारी देने के लए भी आव यक है।
अनेक देश दसू रे देश के उप ह पर वार करने क ऐसी मता िवक सत
करगे। भारत ने अपनी ताकत का दशन िकया है और एक अंत र शि
क मह वाकां ा के साथ वह पीछे नह रह सकता।
भिव य के ह थयार
चीन ने ‘ रलेिटिव टक ाइ टॉन एं पलीफायर (RKA)’ नाम का एक ऐसा
माइ ोवेव उपकरण बनाया है, जो 5 मेगावाट तरंगवाले िव फोट कर
अंत र म उप ह को जाम या न कर सकता है। अंत र म ल य को
तबाह करने के लए उप ह को RKA से लैस भी िकया जा सकता है। कुछ
देश गु प से अ य देश के उप ह का पीछा करते ह। 2020 म स के
कॉसमॉस 2,542 सै य उप ह ने एक अमे रक उप ह का पीछा िकया और

े े ो
एक ती ग तवाले ेपा को दागकर ‘ह थयार का परी ण’ िकया था।
सै य े के प म अंत र के इ तेमाल को लेकर मौजूदा अंतररा ीय
सं धयाँ पया नह ह। नवंबर 2021 म संयु रा महासभा ने अंत र म
सै य ग तिव धय को िनयम बनाने के लए उस ताव को मंजूर िकया,
जसम एक नया कायसमूह िनयु करने क माँग क गई थी। लेिकन िनयम
तभी लागू िकए जा सकते ह, जब कई देश के पास एक-दस ू रे को परमाणु
ह थयार के इ तेमाल से रोकने के लए पया मता िवक सत हो जाए।
ऐसी थ त म भारत के लए यह अिनवाय हो गया है िक वह अंत र
ह थयार णा लय के िवकास पर यान दे। अंत र ौ ोिगक म यिद
कोई देश बहुत आगे िनकल चुका है तो उसक बराबरी करने क ज रत है।
अंत र म ह थयार पाट II
अंत र से ह थयार को समा करने के िपछले सभी यास बुरी तरह
िवफल रहे ह। कुछ देश म इतनी उ त ौ ोिगिकयाँ ह िक उनके कारण
सं धय का कोई अथ नह रह जाता है। अंत र म शां त बनाए रखने के
लए जलवायु प रवतन सं धय जैसे समझौत क ज रत है। देश को यह
वीकार करना चािहए िक वे जस कार से अंत र का उपयोग करते ह,
वह अ छे के िहत को भािवत करेगा। सभी देश ‘इंटरनेशनल
जयोिफ जकल ईयर’ (IGY) यानी ‘अंतररा ीय भूभौ तक य वष’ के ताव
पर सहमत हो गए ह और कई देश ‘इंटरनेशनल पेस टेशन’ (ISS) का
उपयोग करते ह। इससे प है िक हम संघष को कम करने और िबगड़ते
अंतररा ीय संबध ं को िफर से बेहतर बनाने के लए अंत र का उपयोग
भावी ढंग से कर सकते ह। लेिकन यू े न संकट क पृ भूिम म सभी देश
को एक बड़े अंतररा ीय अंत र टेशन क संक पना पर काय करना
होगा। यह ु ह को न करने के लए ज री है। खासतौर पर जब
इनसान चं मा और मंगल पर अपना बेस बनाने क योजना बना रहा है। देश
िवशेष उपल धयाँ अपने दम पर हा सल करने के बजाय हम एकजुट होना
चािहए और ऐसे बड़े अ भयान के लए पया संसाधन और तकनीक
मता को साझा करना चािहए। ऐसे अ भयान के लए पहली शत यह होनी
चािहए िक अंत र से सभी देश अपने-अपने ख ारा ISS म भाग न लेने
क घोषणा, चीन का िनरंतर आ मण, यह आगे क राह को बेहतर नह
बनाता है।

अ याय 10
अंत र के खतरे
चूँ िक अंत र म ऑ सीजन नह होती, लहाजा उसक खोज के अपने
ही खतरे ह। अंत र म जीिवत रहने के लए हमने खास िक म के सूट और
यान का आिव कार िकया। मगर अंत र म वहाँ मौजूद कचरे के साथ ही
सौर वाला और िविकरण जैसे अ य खतरे भी ह। आइए, उन पर एक
नजर डालते ह!
अंत र के खतर का अथ या है?
इसका अथ यही है िक अंत र एक ऐसी जगह है, जहाँ इनसानी चूक
और तकनीक के फेल हो जाने क कोई गुज
ं ाइश नह है।
अंत र के खतर के कार
अंत र यान म हमारे अंत र याि य के साथ ही मह वपूण
इले टॉिनक उपकरण रहते ह। बाहरी वातावरण क कठोर प र थ तय से
बचाने के लए उन पर सुर ा परत चढ़ाए जाने क ज रत होती है। वे पृ वी
से हजार िकलोमीटर ऊपर प र मा करते ह और वहाँ से आगे भी जाते ह।
यिद वे पहले से तय रा ते पर नह चलते, तो उनके वापस पृ वी से टकराने
या दरू भटक जाने का खतरा रहता है। इसके अलावा, उप ह को
चलानेवाल के सामने अब अंत र म मौजूद कचरे से िनपटने क भी
चुनौती है।
अंत र म तापमान बेहद गरम या िफर ठंडा होता है। सूय हर 90 िमनट
पर उगता और अ त होता है, जससे हमारी जैिवक िदनचया तालमेल नह
िबठा पाती है। जहाँ छाँव होती है, वहाँ तापमान -120°C तक िगर जाता है,
लेिकन सूरज के सीधे संपक म आते ही तापमान 150°C हो जाता है। सूरज
जब चमकता है, तब अंत र यान असहनीय प से गरम हो सकते ह।
इनसान के लए लगभग 20°C का तापमान आदश होता है, और पेस सूट
और यान को इस तापमान को बनाए रखना होता है तथा उ ह गरम और
ठंडा करने क बेहद उ दा तकनीक क ज रत होती है।
अपनी क ा म उप ह क र तार बहुत तेज होती है और वे िदन म कई
बार पृ वी का च र लगा लेते ह। अंत र म इससे कोई सम या नह होती,
य िक वहाँ हवा का घषण नह होता (जो वेग के िव बल लगाता है)।
सम या तब होती है, जब अंत र या ी पृ वी पर लौटते ह और उसके
े े े े
वातावरण के संपक म आते ह। बहुत अ धक घषण के कारण सरलता के
लए यही या या उ चत है, तापमान असाधारण प से अ धक हो जाता
है, जो 2,500°C तक जा सकता है। इस वजह से ही अंत र यान म सुर ा
के लए हीट ूफ सेरािमक टाइ स का इ तेमाल िकया जाता है। वे इस तरह
से बनाए जाते ह िक हीट एनज को सोखकर उसे वातावरण क ओर वापस
मोड़ द।
अंत र याि य के लए खतरे
अंत र खतरनाक, जो खम भरा और अिन त हो सकता है। पृ वी और
अंतररा ीय पेस टेशन, दोन म ही मनु य पर पड़नेवाले अंत र के
भाव का अ ययन करनेवाले वै ािनक ने अंत र याि य से जुड़े कुछ
बड़े खतर का पता लगाया है।
िविकरण
सूय से िविकरण िनकलता है, जो उप ह और इले टॉिनक उपकरण को
त पहुँचा सकता है। अंत र यान को इस कार बनाया जाता है िक वे
सामा य रे डएशन से सुर त रह। कभी-कभी सूरज िविकरण के िव फोट
से अ य धक ऊजा के कण और पेस रे डएशन ए स-रे उ प करता है।
ऐसी सौर वाला उप ह को गंभीर त पहुँचा सकती है।
ऐसी सौर वाला को ‘ जयोमै ेिटक टॉम’ कहा जाता है, जनक उ
आवे शत लपट करंट और उ ऊजा के कण फैलाती ह, जो हमारे उप ह
को त त कर देते ह। ये यान म लगे लोबल पो जश नग स टम (GPS)
और अंत र म िनकले याि य को भी नुकसान पहुँचा सकते ह। इन लपट
क ओर आक षत होने के कारण उप ह अ धक िदन िटक नह पाते।
अंत र िविकरण को सबसे खतरनाक माना जाता है, य िक उसे आँ ख
से देखा नह जा सकता। पृ वी क िनचली क ा म भी िविकरण जानलेवा
हो सकता है। अंत र म हम जतनी दरू ी तक जाते ह, जो खम उतना ही
बढ़ जाता है।
िविकरण शरीर के अंग को िनदश देनेवाले हमारे क ीय नायतु ं और
शरीर क ग तिव धय को नुकसान पहुँचाता है, जससे हम अंग पर िनयं ण
खो देते ह। शरीर म िविकरण का वेश हमारे क ीय नायु तं को
त त कर देता है और हम अपना होश, चीज को समझने क शि
और म त क से शरीर के दसू रे अंग तक संकेत भेजने क मता खो देते
ह। िविकरण से कसर का खतरा भी काफ बढ़ जाता है। िविकरण का
अचानक िव फोट कुछ ही घंट म जान ले सकता है।
िविकरण क माप म िविकरण फैलानेवाले ोत, उसका कार और हण

ै औ ँ
क गई िविकरण क मा ा शािमल रहती है। गामा और ए स िकरण जहाँ
थोड़ी-थोड़ी मा ा शरीर म जमा करती ह, वह अ फा कण बहुत भारी मा ा
म इनसान के शरीर म िविकरण को इक ा कर देते ह। अ फा कण
अ य धक सि य ही लयम परमाणु होते ह, जो हमारे शरीर म वेश कर
सकते ह और गंभीर नुकसान पहुँचा सकते ह।
कम ऊजावाली िकरण डीएनए के रेश के बीच से आर-पार हो जाती ह,
लेिकन अ फा कण ति या करते ह और एक-एक को शका को न कर
देते ह। िव भ िविकरण क समान मा ा से सभी इनसान म एक बराबर
जैिवक त नह होती है। यही कारण है िक िविकरण क डोज इ ववैलट
पर आधा रत होती है। डोज इ ववैलट क इकाई Sv है, और मानव
िविकरण खुराक को मापने क इकाई िमलीरेम (mrem) है।
एक औसत यि पूरे साल म 360 िमलीरेम या 3.6 mSv के संपक म
आता है। अंत र िविकरण का एक mSv छाती के तीन ए स-रे के बराबर
होता है। जो लोग पृ वी पर रे डयोधम पदाथ के पास रहकर काम करते ह,
वे औसतन 50 mSv के संपक म रहते ह। तीन महीने तक ISS पर रहनेवाले
अंत र याि य को 150 mSv िविकरण का सामना करना पड़ता है।
मंगल ह पर जानेवाले एक अंत र या ी को एक तरफ से छह महीने के
सफर के दौरान 300 mSv का खतरा रहेगा और उतना ही लौटते समय भी।
उसे पृ वी के अनुकूल बनने के लए और भी छह महीने इंतजार करना होगा
और इस तरह अ त र 400 mSv झेलना होगा। मंगल ह पर जाने और
वापस लौटने तक कुल िमलाकर 1,000 mSv िविकरण का जो खम उठाना
पड़ेगा।
िनपटने के उपाय
एक िव ध है, अंत र याि य के शरीर म व के िवतरण पर बारीक से
नजर रखने के लए इसके लए जाँघ पर पहने जानेवाले कं ेशन कफ से
र संचार को सुचा बनाए रखने म मदद िमलती है। रीढ़ क ह ी के
अ टासाउं ड से पीठ दद पर नजर रखी जाती है। MRI और हाई-
रजॉ यूशन इमे जग िह य के घन व और मांसपे शय के संकुचन का
आकलन करते ह। चालक दल िनयिमत प से भार उठानेवाले तरोधक
यायाम करते ह।
िव भ कार के िविकरण क िनगरानी और पहचान के लए हम बेहतर
रे डएशन डटे टर तैयार कर रहे ह। इससे चालक दल को डोज का
अंदाजा अ छी तरह िमल सकेगा। अंत र याि य को िनयिमत प से
मे डकल टे नग दी जाती है, जससे वे जान लेते ह िक सेहत से जुड़ी
सम या हो तो या करना है? चालक दल के सद य एक-दस ू रे क लैब
टे टग और अ टासाउं ड कैन करते ह।
े े े े े ो ै े ै ै े
अंत र या ी अपने साथ ले जानेवाले खाने को कैसे पैक कर, कैसे रख,
कैसे इ तेमाल कर और खराब होने से बचाएँ , इसे बेहतर बनाने पर
शोधकता काम कर रहे ह। ऐसी दवाइय पर भी काम होनेवाला है, जो लंबे
समय तक चल और जन पर िविकरण का असर न हो।
िविकरण के जो खम को कम कर अंत र याि य और सामि य को
सुर ा देने के यावहा रक तरीक को लागू करने पर इंजीिनयर लगातार
काम कर रहे ह। धरती पर मौजूद शोध सं थान म ांडीय िकरण और
अंत र क धूल जैसी थ त पैदा क जाती है, जससे उनके भाव का
अ ययन हो सके। यह सबकुछ भिव य म अंत र याि य क सेहत पर
आनेवाले खतर को समा करने के लए िकया जा रहा है।
द ण अटलांिटक िवसंग त
अपनी क ा म उप ह एक असामा य े से गुजरते ह, जसे ‘द ण
अटलांिटक िवसंग त’ कहा जाता है। ये पृ वी के वातावरण म ऐसे थल ह,
जहाँ सौर हवाएँ और ांडीय िविकरण का वेश होता है। यह चली से
ज बा वे तक फैला एक िवशाल े है।
इस े म जो अ त र खतरनाक िविकरण वेश करता है, वह हमारे
उप ह म लगे इले टॉिनक उपकरण को खराब कर देता है। वै ािनक का
कहना है िक अ य धक उजावाले कण उप ह क कं यूटर णा लय को
बुरी तरह त त कर सकते ह, यहाँ तक िक GPS को भी बंद कर सकते
ह।
अंत र क धूल
ज ह ‘अंत र क धूल’ या ‘ ांडीय धूल’ कहा जाता है, उनके कारण
भी उप ह खराब हो जाते ह। अ य िकसी भी वजह क तुलना म सबसे
अ धक अंत र धूल के कारण ही उप ह खराब हुए ह। ये सू म पड ह, जो
अंत र म हैरान करनेवाली ग त से उड़ते ह। वे जब िकसी उप ह से
टकराते ह तो उसक संरचना को कोई त नह पहुँचाते, लेिकन भड़ंत के
बाद वे जस िव ुत् चुंबक य प स (ईएमपी) को उ प करते ह, उनसे
उप ह के इले टॉिनक उपकरण बुरी तरह न हो जाते ह।
अंत र धूल जब िकसी अंत र यान से टकराता है, तो ला मा म बदल
जाता है। उस ला मा से रे डयोधम संकेत िनकलते ह, जो हमारे उप ह
को िन य कर बेकार बना देते ह। इसके बाद पृ वी से उसका संपक टू ट
जाता है। उसका ढाँचा बच जाता है, लेिकन वह भटकने लगता है, य िक
हम उसे िनयंि त नह कर पाते ह।
अंत र याि य क र ा करनेवाली चीज
ौ े ै ो े
आमतौर पर सबसे अ छा कवच वह है, जो िविकरण से हमारी र ा
करता है। अंत र म जब हम और दरू जाते ह तो उप ह का सामना सीधे
सबसे अ धक भेदनेवाली ‘गांगेय ांडीय िकरण ’ (GCR) (उ -ऊजा
ोटॉन और भारी आयन) के जो खम का सामना करना पड़ता है। वे
ए यिु मिनयम से होकर गुजर जाते ह, लेिकन सीमट को भेद नह पाते।
आधुिनक अंत र यान के अंदर पॉ लए थलीन का इ तेमाल होता है, जो
अंत र िविकरण को काफ हद तक कम करता है।
अंत र िविकरण जब िकसी उप ह से टकराता है तो वह बाहरी कवच से
ति या करता है। इस ति या से गौण परमाणु उ पाद उ प होते ह,
जो मुख उ पाद से कह अ धक खतरनाक होते ह। वै ािनक अब RFX1
का इ तेमाल करते ह, जो हलके वजनवाला पॉ लए थलीन ला टक होता
है, जो हाइडोजन और काबन एटम से बना होता है। इससे बेहतर सुर ा
िमलती है और आनेवाले अंत र िविकरण कण के द ु भाव कम होते ह।
मौजूदा कवच सात सटीमीटर तक मोटे ह, िफर भी अंत र याि य को
उनसे 35 तशत से भी कम सुर ा िमलती है। अ य उ पाद को लेकर भी
योग िकए जा रहे ह।
अंत र म भड़ंत और कचरा
अंत र िवशाल है और अनेक बेकार िन य उप ह अंत र म इधर-
उधर भटक रहे ह और टकराने क राह देख रहे ह। हम कायरत वतमान
उप ह को छोड़ िदए गए उप ह के टकराने के खतरे से बचाकर िनकाल
सकते ह। साल 2009 म खराब हो चुके और काम कर रहे उप ह के बीच
भड़ंत हुई थी। 2009 म एक इ र डयम संचार उप ह और एक सी उप ह
अंत र म टकरा गए, जसके बाद मलबे के हजार टु कड़े अंत र म फैल
गए।
सभी उप ह का लॉ योजना के अनुसार नह हो पाता है। लॉ के
दौरान उपकरण म गड़बड़ी से उप ह गलत क ा म चले जाते ह, जससे
उस क ा के अ य उप ह खतरे म आ जाते ह। कभी-कभी आं त रक
सम याओं के कारण भी उप ह अ छी तरह काय नह करते और बेकार हो
जाते है। िफर अंत र क क ा म इधर-उधर घूमते रहते ह।
िनपटने के उपाय
अंत र यान के भीतर जो कुछ भी होता है, उसक गहन िनगरानी क
जाती है। डॉ टर और मनोवै ािनक यवहार संबध ं ी सेहत पर नजर रखते
ह और सुिन त करते ह िक अंत र या ी िमशन से पहले, उसके दौरान
और बाद म व थ रह।

औ ो ै े
अंत र म इनसान पर शारी रक और मनोवै ािनक खतरे
मनु य एक सामा जक ाणी है और लंबे समय तक अकेले रहने से हम
पर बुरा भाव पड़ता है। अंत र यान बहुत संकु चत होते ह, संकु चत
जगह के कारण मनु य क यह सम या और भी बढ़ जाती है। अंत र म
िनयिमत प से सोने और जागने का च भी भािवत होता है, जससे
न द पूरी नह हो पाती है।
तज म सूरज कहाँ से िनकलेगा और कहाँ डू बेगा, इसक अिन तता
के कारण, अंत र याि य को उसी कार अंत र म घबराहट महसूस
होती है, जस कार समंदर म समु याि य को होती है। इस कारण भारी
सरदद, तं ा, चड़ चड़ाहट और लगातार िमचली क सम या महसूस हो
सकती है।
चाँद पर जाने म महज तीन िदन लगते ह, और िकसी आपात थ त म
हम कुछ ही घंट म वापस लौट सकते ह। दस ू री ओर, मंगल ह पृ वी से
22 करोड़ िकमी. दरू है और वहाँ तक जाने म लगभग एक वष का समय
लगेगा।
मंगल पर एक बार पहुँचने के बाद वै ािनक दो साल तक रहने, उस ह
पर खोज करने और िफर पृ वी पर लौटने क योजना बना रहे ह। इस तरह
यह उस अ ात थान तक तीन साल क या ा हो जाती है। खाना,
दवाइय और अ य ज री सामान क स लाई बीच म नह क जा सकती,
जबिक इंटरनेशलन पेस टेशन म ऐसा करना संभव है। एक बार हम
सफर पर िनकल गए तो लौट नह सकते।
पृ वी से अंत र क ओर धमाके के साथ जाने और वापस लौटने के
दौरान गु वाकषण क जबरद त शि याँ शािमल रहती ह। टेकऑफ के
दौरान खून पैर क ओर खच जाता है, जससे म त क को उसक
स लाई नह िमल पाती है। अंत र म शरीर के तरल पदाथ ऊपर क ओर
जाने लगते ह, लाल र को शका का उ पादन कम हो जाता है और चलने-
िफरने के अभाव म मांसपे शय और ह ी का घन व कम हो जाता है।
यि गत तर पर अंत र क या ा िकसी को बेहद छोटा होने का
अहसास कराती है। कोई भी जब अनंत अंत र म सफर करता है तो
उसका असर उसके मनोिव ान पर पड़ता है। वह तुलना मक प से
सोचता है और यह समझ पाता है िक हमारी पृ वी एक छोटी सी जगह है।
शारी रक खतर से कैसे िनपट?
वै ािनक सुझाव देते ह िक अंत र याि य को अपने अहंकार को
छोड़कर अंत र म भाईचारा िदखाना चािहए। सबसे अ छा तरीका यही
होता है िक यान पर मौजूद अ य लोग म से िकसी एक के साथ बहुत
ो े

यादा दो ती िकए िबना सभी के साथ अ छा कामकाजी संबध ं बनाया
जाए। टीम का एक अ छा खलाड़ी होना ज री है। सभी को आपस म और
पृ वी पर मौजूद मैनेजर के साथ ोफेशनल रलेशन शप रखनी चािहए।
ISSपर अंत र या ी भावना मक संबल के लए ‘रोबोनॉट 2’ नाम के
एक रोबोट का इ तेमाल करते ह। ‘रोबोनॉट’ अपने वामी क आवाज को
पहचानता है और उसके िनदश का पालन करता है। वै ािनक कृि म
गु वाकषण शि पर भी काम कर रहे ह, जससे अंत र या ी अपने
पालतू जानवर को अंत र म ले जा सकगे।
धरती पर मौजूद अपन के साथ भावना मक संबध ं बनाए रखने पर
अंत र या ी काफ जोर देते ह। वे अपने ि य यि क तसवीर अपने
साथ रखते ह और सोशल मी डया के ज रए उनसे जुड़े रहते ह। ISS पर
मौजूद याि य क मनोदशा म प रवतन पर पृ वी पर उनके मैनेजर और
यान म उनके साथी नजर रखते ह। हम अंत र म जब और अ धक दरू ी पर
जाएँ गे तो ऐसा करना संभव नह हो सकेगा। मंगल ह पृ वी से 22 करोड़
िकमी. दरू है और वहाँ तक पहुँचने म रे डयो स ल को 22 िमनट लगते ह।
पेस लॉ के समय जतना रोमांच होता है, उसके बाद नह होता,
अंत र म या ी िटन के ड बे स श समट जाते ह, जहाँ करने को कुछ नह
होता, तो बो रयत भी हावी हो जाती है। यह खासतौर पर तब होता है, जब
कोई अपने िमशन के ल य को पूरा कर देता है और सफर कर रहा होता है।
अपने खाली समय को उ ह कला, संगीत और फोटो ाफ जैसी हॉबी के
ज रए िबताना पड़ता है।
अंत र का कचरा
इनसान ने जस तरह पृ वी का इ तेमाल िकया, उसी तरह वे अंत र
का भी करते ह। हमने अंत र म दरू -दरू तक सफर िकया है और हर जगह
ढेर सारा कचरा छोड़ िदया है। हमने हजार उप ह और कचरे के टु कड़
(छोटे-बड़े) को अंत र म छोड़ िदया है, यह जानते हुए भी िक िकसी िदन
ये कोई गंभीर खतरा पैदा कर दगे!
अंत र म इनसान क ओर से छोड़े गए कचरे या मशीनरी के ऐसे बेकार
टु कड़ को ‘अंत र का कचरा’ या ‘अंत र का मलबा’ कहा जाता है। जब
तक वे धरती के वातावरण म िगरते और जलकर खाक नह हो जाते, तब
तक क ा म घूमते रहते ह।
कुछ मौसम और लगभग सारे संचार उप ह पृ वी क भू थर क ा म
36,000 िकमी. क ऊँचाई पर रखे जाते ह। परी ण के उ े य से कुछ देश
ने अपने ही उप ह को न िकया है, जसके चलते अंत र म हजार
टु कड़ का कचरा फैल गया है। उप ह क भड़ंत से भी ऐसे ही प रणाम
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सामने आते ह। अनेक अंत र यान के अंत र के खतरनाक कचरे से
टकराने क खबर आई ह। एक अनुमान के अनुसार, अंत र म कचरे के
लगभग 5 लाख टु कड़े मौजूद ह। इनसे टकराने पर अंत र यान को गंभीर
त पहुँच सकती है।
पृ वी क क ा म 3,000 मृत उप ह, 10 सटीमीटर से बड़े अंत र के
कचरे के 34,000 से अ धक टु कड़े और लाख क तादाद म छोटे-छोटे
टु कड़े मौजूद ह। ट र से बचने के लए उपयोग म लाए जा रहे मौजूदा
उप ह (मानव सिहत यान को िमलाकर) को साल म सैकड़ बार अपना
रा ता बदलना पड़ता है।
िनपटने के उपाय
बेकार हो चुके उप ह को हटा देना चािहए, तािक नए उप ह उनक
जगह ले सक। अंत र के कचरे को हटाने के लए कंपिनय ने नए-नए
उपाय ढू ँ ढ़ िनकाले ह। उनम से यादातर म उ ह ख चकर पृ वी के
वातावरण म लाया जाता है, जहाँ वे जलकर न हो जाते ह।
भले ही यह गैरज री लगता हो, लेिकन इस पर गौर करना ही होगा िक
अमेजन और पेसए स जैसी िनजी कंपिनयाँ क ा म मानव सिहत और
उनके अ त र हजार उप ह को लॉ करने क योजना बना रही ह।
तमाम देश को अंत र के नए कचरे के िनमाण से बचने पर सहमत होना
चािहए। इन देश को सैटेलाइट िवरोधी िमसाइल के इ तेमाल से उप ह
को न करने के पारंप रक तरीके पर पाबंदी लगानी चािहए। अंत र के
बंधन म िनजी कंपिनय और सरकार को िमलकर काम करना चािहए।
उप ह को िनयंि त करनेवाल को ऐसे यान को लॉ करना चािहए,
ज ह हम िमशन पूरा होने पर हटा सक। सफ णोदन णालीवाले उप ह
का ही इ तेमाल होना चािहए। हम अंत र म बेकार पड़ी चीज को वहाँ से
हटाने पर भी काम करना होगा।
एं टी-सैटेलाइट ह थयार से उ प अंत र का कचरा
एं टी-सैटेलाइट वेपस
ं या ASAT ऐसी सै य िमसाइल ह, जो िकसी द ु मन
देश के उप ह को अंत र म न या जाम कर सकती ह। अमे रिकय ने
सबसे पहले ऐसी िमसाइल का इ तेमाल 1958 म िकया था, जसके बाद
सोिवयत संघ ने 1964 म चीन ने 2007 म और भारत ने 2019 म िकया।
यु म देश ने अब तक ASAT का इ तेमाल नह िकया है।
ह थयार के इ तेमाल से पृ वी क क ा का च र लगा रहे उप ह
ASAT
को न करने से अंत र म बहुत अ धक मा ा म कचरा पैदा हो जाता है।
ऐसा अनुमान है िक एक िवशालकाय उप ह को, िवशेष प से पृ वी क
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िनचली क ा म न करने से अंत र के कचरे के टु कड़े दोगुने हो जाएँ गे,
जो िफलहाल पृ वी के च र लगा रहे ह। उप ह को न करने के उ े य से
ऐसे परी ण या सै य णा लय पर िकसी कार का कोई अंतररा ीय
तबंध न होने से यह सम या और गंभीर हो जाती है।
सभी अंत र कचर के समान यह मलबा उ ग त से अंत र म चार
ओर फैलता रहता है। धातु का एक ही टु कड़ा उप ह को त पहुँचाने या
न करने के लए काफ होता है। बीते 50 वष से अंत र म यह मलबा
इक ा हो रहा है, वह ASAT के इ तेमाल से चालू उप ह से नए मलबे के
टकराने का खतरा बढ़ जाता है।
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िकसी अंत र यान पर मँडराते घातक खतर म से आधा खतरा अंत र
के मलबे का होता है। जब िकसी िन त ऊँचाई पर मलबे क मा ा इतनी
अ धक हो जाती है िक वो उप ह के लए खतरा बन जाता है, तो उन े
म उप ह का इ तेमाल खतरे से खाली नह रहता। बेकार पड़े उप ह को
ख च लाने का हम अब तक कोई यावहा रक तरीका नह िमला है, लेिकन
ASAT तो इसका हल िब कुल ही नह है। नया मलबा बनने से रोकना ही
एकमा उपाय है।
िकसी उप ह क ओर बढ़ते अंत र खतरे पर िमशन कंटोल नजर
रखता है और उप ह का रा ता बदलकर उसक र ा करता है। लेिकन
अंत र के कचरे के छोटे-छोटे टु कड़े नजर नह आते। चूँिक पृ वी का
च र लगाते अंत र यान और कचरे क र तार बहुत तेज होती है,
लहाजा बेहद छोटे टु कड़े से हुई ट र भी िवनाशकारी हो सकती है।
कचरे के छोटे-छोटे टु कड़े अकसर उप ह से टकराते रहते ह। एक स े
जतना छोटा कचरा भी उप ह के बाहरी कवच म सुराख कर सकता है।
यह हीट शी ड, खड़िकय , सोलर पैनल और उससे भी कह अ धक
मह वपूण प से पेसवॉक कर रहे अंत र या ी के लए घातक हो सकता
है।
िनपटने के उपाय
अपनी क ा म अंत र यान उलटी िदशा म चलते ह, जससे सोलर
पैनल, खड़िकय और हीट शी ड जैसे मह वपूण िह स को सुर त रखा
जाता है। अंत र यान क िनरंतर जाँच से मलबे से हुई ट र का पता
लगाया जाता है और अंत र या ी तुरत
ं उनक मर मत कर देते ह। िकसी
उप ह के नाजुक पुरज क र ा के तरीक पर रॉकेट साइंिट ट काम कर
रहे ह।
हीट शी ड के टाइ स अगर खराब हो जाते ह तो अंत र या ी मजबूत
े े े े े
टाइ स से तुरत
ं बदल सकते ह। कचरे का पता लगानेवाले ससर िफलहाल
अंत र यान के पंख म लगे होते ह। ज दी ही उनका इ तेमाल हीट शी ड
के िह स के साथ ही पूरे यान म िकया जाएगा।
अंत र यान के सामने थत पेस कै सूल को इस कार बनाया जाता
है िक िनवात अंत र के थमल रे डएशन से वे अ त र सुर ा दान कर।
उनका इ तेमाल पुन: वेश करनेवाले वाहन के प म िकया जाता है,
जनसे सफल अ भयान के बाद अंत र या ी पृ वी पर लौटते ह। इन
कै सूल का इ तेमाल तब िकया जाता है, जब अंत र का मलबा िकसी
अंत र यान से टकराता है।
नी तगत सुझाव
अंत र का इ तेमाल हम नेिवगेशन, अवलोकन, संचार और मौसम क
भिव यवाणी के लए करते ह। समाज हमारे अंत र यान पर काफ हद
तक िनभर हो चुका है। अंतररा ीय समुदाय अंत र को नए वै ािनक े
के प म जान चुका है और अंत र के कचरे को सीिमत करना चाहता है।
अंतररा ीय समुदाय को िवनाशकारी ASAT ह थयार के परी ण या
इ तेमाल पर ाथिमकता से पाबंदी लगाने के कदम उठाने पड़गे। भारत
अंत र ौ ोिगक के े म काफ आगे रहा है और इस कारण उसे ऐसे
यास का भी नेतृ व करना चािहए।

अ याय 11
अंत र से संबं धत मु े
भूिमका
अंत र जैसी कोई जगह नह होगी। ऐसा कोई थान भी नह होगा।
लगता है िक अंत र के बारे म हम जतना जानते ह, उतना ही कम जानते
ह।
हम अंत र क ओर जतना ही े रत होते ह, उतना ही हम भय भी
लगता है। चाहे िकसी भी तर क तकनीक य न िवक सत कर ली जाए,
अंत र के सामने हम हमेशा छोटे ही िदखगे। अगर मानव जा त को कभी
भी अपने बड़े होने का अहसास हो तो उसे अंत र क गहराई देख लेनी
चािहए। उसक सारी ां तयाँ दरू हो जाएँ गी।
चं यान अंत र के बारे म नविन मत ज ासाएँ हम यह मानने को िववश
करती ह िक अभी तक हम लोग ने जो कुछ भी िकया, वह िकतना सही है!
आ खरकार, अंत र भी हमारी कृ त का ही िह सा है। पृ वी क कृ त
से हमने छे ड़छाड़ क , उसका फल भुगतगे ही और भुगतने क ग त बढ़ेगी
ही, घटेगी नह । िबना जाने-समझे अंत र के साथ भी हम लोग ने यही
िकया और कर भी रहे ह।
हमारी यही चाहत कई शंकाएँ पैदा करती है। कई उठाती है, कई
सम याएँ पैदा करती है और यही मु े बनते ह, कुछ वा तिवक, कुछ
अजीबोगरीब।
अंत र म मनु य के लए सम याएँ
चं यान-2 का लडर िव म चं मा के 335 मी. नजदीक आकर टकरा
गया। क पना क जए, इसम अगर कोई मनु य होता तो! सूरज क
रोशनीवाले िह से का तापमान 170°C और छाया े का -150°C, कोई
हवा नह और सूय से आनेवाला िविकरण…।
अंत र एक बहुत ही किठन वातावरण है और अ यंत खतरनाक। यह
मानव रहन-सहन के लए िब कुल ही उपयु नह है। अंत र म हमारे
जाने क मंशा और इसको उपिनवेश बनाने क मंशा, हमारे लए वैसे ही
असीम, अनिगनत खतरे पैदा करती ह, जनम से हम कुछ क क पना तो
कर सकते ह, पर बहुत क नह ।
सबसे बड़ी सम या िविकरण क है। िविकरण नंगी आँ ख से नह िदखता,
े औ ै े
पर इस कारण से यह और भी घातक है। पृ वी के ऊपर िविकरण क मा ा
(Dose) बढ़ती ही जाती है, य िक उस थान पर हमारी र ा करनेवाला
चुंबकमंडल नह होता। िविकरण क यह मा ा हमारे क ीय नायत ु ं को
नुकसान पहुँचा देती है। हमारे सं ान क मता को समा कर सकती है
और यावहा रक बदलाव भी ला सकती है। ISS पृ वी के चुंबकमंडल के
ठीक ऊपर है और इस कारण वहाँ के अंत र या ी (Astronaut) िविकरण
से हमेशा भािवत रहे ह, परंतु िविकरण क यह मा ा गहरे अंत र से कह
कम है।
1. अकेलापन एवं बंदी होने क अनुभू त : अंत र याि य क चाहे िकतनी
ही अ छी टे नग हुई हो, वे िकतने जीवंत य न ह , लेिकन छोटी जगह
म रहने के कारण उनम कुछ यावहा रक बदलाव तो आएँ गे ही। यह तो
जेल ही है, भले यह सजा न होकर एक उपल ध होती है, इस लए जो
अंत र या ी होते ह, उनक खोज बहुत हो शयारी और सावधानी से
क जाती है।
पृ वी पर मनु य अपने अकेलेपन को दरू करने के लए िकसी से बात
कर सकते ह, टी.वी. देख सकते ह और सभी चीज से संपक करने क
आदत बन जाती है। अंत र या ा वा तव म एक ब लदान है, य िक
इस वास के दौरान न द क कमी, न द के च म उलटफेर, िव भ
काय के बीच असंतुलन और काय का असीम बोझ मनु य क इन
सम याओं को बढ़ा देते ह। हाँ, इन सब मु से िनपटने के लए
वै ािनक तर पर और बड़े तर पर काय हो रहा है।
2. दरू ी : अंत र म द ू रयाँ जानलेवा होती ह। हमलोग मंगल ह पर जाने
क बात करते ह। सोच ली जए, यह ह यहाँ से 25 करोड़ िकलोमीटर
दरू है और यहाँ पहुँचने म डेढ़ वष से चार वष का समय लग सकता है।
इतनी दरू तक, इतने िदन तक अपने वा य, मान सक वा य,
िववेक, समझ और धैय बचाए रख पाना अ यंत किठन है। अगर बीच म
कोई चिक सा क गंभीर सम या पैदा हो गई तो कोई रा ता ही नह
बचा रह जाएगा। मंगल ह पर जाने के लए लॉ वडो (Launch
Window) बहुत ही मह वपूण हो जाएगा, य िक एक लॉ वडो छूट
जाने पर और दस ू रा आने पर मंगल ह क दरू ी म 1-1.5 करोड़ िकमी.
का अंतर आ जाएगा। आप मंगल ह पर अगर िनकल गए तो वापस
आना सफ 7-8 वष के बाद ही संभव है।
3. गु व क कमी : पृ वी से या ा के दौरान और िकसी भी ह और
उप ह तक पहुँचने म गु व म भ ता आएगी ही। जैसे चं मा पर पृ वी
के गु वाकषण का ⅙ और मंगल ह पर पृ वी का ⅜वाँ और इन सभी
ह के बीच पूण गु वहीनता या शू य गु व क थ त रहेगी। वापस
पृ वी पर (अगर) तो पूरे शरीर को नए सरे से समायो जत करना पड़ेगा
ो ो े ँ
(अगर हो पाया तो)। िन न गु व क थ त म शरीर क मांसपे शयाँ
और िह याँ िकतनी कमजोर हो जाएँ गी, इसका अंदाजा लगाना मु कल
है। िफर अंत र यान क या ा का बहुत मनोरंजक अनुभव नह
रहनेवाला, य िक जस ग त से यह ला ट होता है और जस गगनभेदी
आवाज से ला ट होता है, वह गोली क र तार से भी अ धक होता है
और पृ वी क ओर इसका आगमन भी उसी र तार से होता है, य िक
यह दोन गु व (जो ाकृ तक है) के िव होता है।
4. अ त तकूल वातावरण : अंत र यान क या ा एक मशीन के भीतर
ही तो होती है। न वहाँ ाकृ तक बैठने क जगह, न चलने क जगह, न
सोने क जगह, न ाकृ तक हवा, न दबाव, और न उतना खुलापन। ऐसी
थ त म अपने शरीर का रखरखाव, अपने शारी रक और मान सक
संतुलन का रखरखाव बहुत ही मह वपूण होता है। मनु य मनु य है और
वह खुश रह सकता है, खेल सकता है, द:ु खी भी हो सकता है, हजार
सोच रख सकता है, य िक वह रोबोट नह है।
चं मा पर िकसका अ धकार?
भारत के चं यान-2 के लडर िव म से चाँद क सतह पर उतरते समय
संपक टू ट गया। वह चाँद पर पानी, अ◌ॉ सीजन और दस ू रे ाकृ तक
संसाधन क खोज करनेवाला था। आज वहाँ भारत गया, कल कोई और
देश जाएगा, िफर कोई और। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है िक
चं मा पर या कोई अपने वािम व का दावा कर सकता है?
चं मा के द णी ुव पर अपना झंडा फहराने क योजना बनानेवाला
भारत या यह कह सकता है िक वा तव म अब यह उसका है? पृ वी पर
तो िकसी जगह आप अपने देश का झंडा फहराकर उसको अपने वािम व
म होने का दावा कर सकते ह। इस सवाल का सं ेप म प उ र है—
नह । भारत और कोई भी दस ू रा देश आपस म चं मा को नह बाँट सकते
ह। इसका कारण है, संयु रा क ‘बाहरी अंत र सं ध’ (Outer Space
Treaty)।

इस सं ध पर अमे रका, ि टेन, सोिवयत संघ और भारत ने भी शीतयु


के चरम के िदन म ह ता र िकए ह। इसम चं मा का िवशेष प से उ ेख
है। इसम कहा गया है िक क जा, उपयोग या और िकसी मा यम से इसे
रा ीय उपयोग का िवषय नह बनाया जा सकता।
इससे साफ है िक 50 साल पहले नील आम टांग ने जब चं मा पर
अमे रका का झंडा लगाया तो इसका यह मतलब नह है िक चं मा अमे रका
का हो गया! यहाँ आम टांग के स श द का उ ेख िकया जा सकता है,
“मनु य के लए एक छोटा कदम, लेिकन मानवता के लए एक लंबी
छलाँग।” इससे यह भाव िनकलता है िक चं मा पर जाना केवल अमे रका
ै ै
क उपल ध नह है, ब क पूरी मानवता क उपल ध है।
सं ध म कहा गया है िक चं मा क खोज को सभी देश के उपयोग के
लए मु रखा जाएगा, लेिकन वह सभी देश के िहत और लाभ के लए
िकए जाने चािहए। सरल श द म, चं मा सभी का है और िकसी एक का
नह है। 1967 म जब बड़ी शि य ने इस सं ध पर ह ता र िकए तो उस
समय वहाँ के ाकृ तक संसाधन के दोहन क संभावना और िवचार
प र य म नह था।
अब चं मा म अचानक इतनी च य जगी है? नासा, अमेजन के जेफ
बेजोस, पेसए स के एलन म क, चीन, स, भारत, जापान, इजराइल
सिहत कई देश ने अब चं मा पर अपने अ भयान भेजने शु कर िदए ह।
इसका कारण या है?
इसका वही कारण है, जसके लए भारत सरकार ने चं यान-2 पर 987
करोड़ पए खच िकए ह। इन खोज म हम चं मा पर पानी, ऑ सीजन
और ही लयम-3 के िमलने क उ मीद है, जो िक व छ ऊजा के लए
मह वपूण ह। अगले कदम के प म हम वहाँ से इनका खनन कर सकते ह।
चाँद पर मानव बसाना बड़ा सवाल नह है। बड़ा सवाल यह है िक कौन
चं मा के ाकृ तक संसाधन का मा लक होगा और उनका फायदा
उठाएगा? या वा तव म अमेजन हमारी ऑनलाइन शॉ पग से हा सल पैसे
को अंत र खोज म खच कर रही है? 2023 म वा तव म थ त या है?
पूरी दिु नया इस समय दो िह स म िवभा जत है। अमे रका और यूरोप के
कुछ देश का िव ास ‘पानेवाला रखेगा’ क नी त म है। 2015 म अमे रका
ने कम शयल पेस लॉ कंपिटिटवनेस ए◌े ट (Commercial Space Launch
Competitiveness Act) पास िकया था, जसम मूल प से ए टेरॉयड जैसे
खगोलीय पड से खिनज का खनन करने म स म नाग रक को उस पर
अ धकार रखने और बेचने के अ धकार को मा यता दी गई थी। यह गहरे
समु के लए कानून (Laws of High Seas) के समान है।
स और ाजील जैसे देश का मानना है िक चं मा के संसाधन पूरी
मानवता से जुड़े ह। जहाँ तक भारत का सवाल है, यिद हम गहरे ग ,े भारी
धूल, साफ पानी क अिन तता और डेढ़ सौ ड ी से सयस तक ऊँचे
तापमान और -170°C के नीचे तापमानवाली जगह पर जाएँ गे, तो या वहाँ
घर जैसा महसूस होगा? या हमारी अपनी पृ वी को और आदरपूवक नह
देखा जाना चािहए?
अंत र का कचरा िकतना खतरनाक?
आज हर देश अंत र के े म अपने को े सािबत करने के लए नए-
नए योग कर रहा है। हर साल न जाने िकतने ही रॉकेट और सैटेलाइट को
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अंत र म भेजा जाता है। इस अंधी दौड़ म हम एक खतरे को नजरअंदाज
कर रहे ह, जो आनेवाले दौर म इस होड़ को ही ख म करने क मता
रखता है। वह खतरा है—
अंत र म बढ़ता कचरा
अंत र म कचरा केवल दो तरीक से ही बनता है—पहला, जब िकसी
भी रॉकेट को लॉ िकया जाता है तो उसके बू टर रॉकेट और वह वयं
अलग-अलग चरण पर टू टकर अलग होते जाते ह। यादातर बू टर रॉकेट
पृ वी क क ा म ही अलग होते ह और इस लए समु म िगर जाते ह,
जबिक रॉकेट का ऊपरी िह सा सैटेलाइट से अंत र म अलग होता है
और वह कचरे के प म घूमता रहता है। जब सैटेलाइट खराब हो जाते ह
या उनक समयाव ध (Time Period) भी ख म हो जाती है तो वह भी
अंत र म कचरे के प म घूमते रहते ह। अंत र कचरे क दस ू री सबसे
बड़ी वजह ‘केसलर सडोम’ है। जब सैटेलाइट अपनी सीमा पूरी कर लेता
है या िकसी कारण वै ािनक का उस पर िनयं ण ख म हो जाता है तो वे
अंत र म ही च र लगाते रहते ह। एक अनुमान के अनुसार, अंत र म
भेजे गए करीब 95 तशत सैटेलाइट अब काम म नह आ रहे ह। लेिकन
सम या यह ख म नह होती, ब क यह से शु होती है। ये खराब
सैटेलाइट हमेशा च र लगाते रहते ह और एक-दस ू रे से टकराकर अनेक
टु कड़ म टू ट जाते ह। ये छोटे टु कड़े और ट र से और भी छोटे टु कड़ म
बदल जाते ह। ऐसी ट र लगातार होती रहती ह। इससे इन टु कड़ क
सं या हजार म बढ़ती रहती है। इस तरह से इनक कृ त एक ‘चेन
रए शन’ का प धारण कर लेती है।
सबसे पहले स ने 1957 म अपना पहला कृि म उप ह पुतिनक लॉ
िकया और उसके बाद से हजार उप ह अंत र म भेजे गए। तभी से
अंत र कचरे क शु आत हुई। जनवरी 2019 को िकए गए सव के
अनुसार, 1 सटीमीटर से छोटे अंत र कचर क सं या 12 करोड़ 80
लाख, 1 से लेकर 10 सटीमीटर तक के कचर क सं या 9 लाख और 10
सटीमीटर से बड़े टु कड़ क सं या 34 हजार के आसपास है। हर पल
इनक मा ा ट र के साथ बढ़ती ही जा रही है।
कुछ ऐसी घटनाएँ भी ह, ज ह ने इस कचरे को बढ़ाने म मु य भूिमका
िनभाई। 1996 म ांस का एक उप ह अपनी क ा का च र लगाते हुए
उसी के एक रॉकेट से टकरा गया। इस रॉकेट म 10 साल पहले अंत र म
िव फोट हो गया था। इस घटना म दोन ही टू टकर हजार छोटे-छोटे
टु कड़ म बँट गए। इसी तरह क एक घटना कॉसमॉस 1275 नामक सी
उप ह के साथ हुई थी, जो लॉ के तीन महीने बाद 1981 से ही लापता
था। बाद म पता चला िक उसक बैटरी म िव फोट हुआ था और वह

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सैकड़ टु कड़ म बँट गया था।
माच 2000 म चीन के एक रॉकेट के ऊपरी चरण म िव फोट हुआ,
जसके कारण अंत र म कचरा खतरनाक ढंग से बढ़ गया। फरवरी 2007
म एक सी रॉकेट म द ण ऑ टे लया के ऊपर पृ वी क क ा म
िव फोट हुआ। इसके 1,000 से यादा टु कड़ क पहचान क गई, जो
आज भी अंत र म घूम रहे ह।

एक कण िकतनी अ धक मा ा म नुकसान पहुँचा सकता है, जब वह 80,000 िकमी. त घंटे क ग त


से चलते हुए िकसी सैटेलाइट से टकरा जाए! यह उसका उदाहरण है।

अंत र के कचरे को सबसे यादा बढ़ानेवाली एक मूखतापूण घटना


2007 म सामने आई, जब चीन ने एक खराब सैटेलाइट को एक िमसाइल
से न कर िदया। इस घटना क वजह से 2,300 से यादा कचरे के टु कड़े
बने, जनका आकार गो फ क गद के बराबर था। इसके खतर से बचने के
लए नासा के एक उप ह को अपना रा ता बदलना पड़ा।
10 फरवरी, 2009 को एक खराब सी सैटेलाइट क ट र इरी डयम
क यिु नकेशन सैटेलाइट से हुई, जससे हजार टु कड़े हो गए। हर साल ऐसी
कई घटनाएँ होती ह।
िकसी भी सैटेलाइट का नुकसान अंत र म कचरे क मौजूदगी से नह ,
ब क तेज ग त से टकराने से होता है। यह कचरा 28 हजार िकलोमीटर
तघंटे क र तार से पृ वी क क ा म च र लगाता रहता है। यह र तार
आईएसएस से भी यादा है। अब आप अंदाजा लगा सकते ह िक इस ग त
से चलता हुआ एक छोटा टु कड़ा भी यिद िकसी से टकराता है तो उसे
िकतना नुकसान पहुँचा सकता है! अंत र म मानव िन मत 7,500 टन से
भी यादा मा ा कचरे के प म मौजूद है।
अंत र कचरा केवल सैटेलाइट और अंत र यान के लए ही खतरा
नह है। यह कचरा अगर िकसी तरह पृ वी क क ा म वेश करता है और
पूरी तरह से नह जले तो पृ वी पर िगरकर लोग के जीवन को खतरे म
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डाल सकता है। वष 1979 म अमे रक अंत र टेशन ‘ काईलैब’ के कुछ
िह से हद महासागर और शांत महासागर म िगरे थे। स का ‘मीर
अंत र टेशन’ भी शांत महासागर म ही िगराया गया। चीन का
‘ तयानय ग अंत र टेशन’ 2 अ ैल, 2019 को शांत महासागर म िगरा।
यह 2016 से ही अिनयंि त होकर अंत र म च र लगा रहा था।
सभी देश के लए अंत र का कचरा एक सम या बन गया है। वै ािनक
को िकसी भी अंत र यान को ेिपत करने से पहले यह देखना पड़ता है
िक उसके रा ते म कोई कचरा तो नह पड़ा है? एक अनुमान के अनुसार,
अगर आज भी सभी देश अंत र म उप ह भेजना बंद कर द तो आपस म
टकराकर ही कुछ समय बाद अंत र का कचरा अपनी सं या दोगुनी कर
लेगा।
2 अ ैल, 2018 को पेसए स के ‘रीयज ू ेबल रॉकेट’ क मदद से ‘ रमूव
डे ी’ अ भयान शु िकया गया। यह अ भयान सारे िव िव ालय के पेस
सटर के नेतृ व म फा कन रॉकेट के ज रए शु िकया गया। पहले यह यान
आईएसएस पर गया और बाद म पृ वी क क ा म छोड़ िदया गया। यह एक
छोटे उप ह क सहायता से खराब सैटेलाइट कचरे को पृ वी के वातावरण
म ले आता है, जससे िक यह जलकर न हो जाए। अभी यह परी ण के
चरण म है। यह िमशन अगर सफल होता है तो इसको बड़े तर पर चलाए
जाने क संभावना है।
अगर हम िकसी देश के सैटेलाइट को तबाह कर द, जनसे जीपीएस और
ै ा कराई जाती ह, तो हम उससे जंग आसानी से
अ य संचार सुिवधाएँ मुहय
जीत सकते ह। इसी के साथ एं टी-सैटेलाइट िमसाइल वेपन का िवचार शु
हुआ। 27 माच, 2019 को भारत ने अपने ‘शि िमशन’ म िमसाइल से
पृ वी क िनचली क ा म थत एक उप ह को तबाह करके दिु नया के
सामने अपनी मता द शत कर दी। इससे पहले स, अमे रका और चीन
के पास ऐसी मता थी। यह ह थयार सैटेलाइट को कई हजार टु कड़ म
तोड़ देता है। हालाँिक भारत ने यह परी ण लो अथ ऑ बट म िकया है,
इस लए यह कचरा शी ही पृ वी के वायम ु ड
ं ल म आकर जल जाएगा।
लेिकन अगर कोई देश िबना िवचार िकए बाहरी अंत र म िकसी सैटेलाइट
को उड़ा दे तो िफर वह कचरा हमारे भिव य को तबाह कर सकता है।
ISRO और अंत र कचरा
3 अ ैल को PSLV-C19 लॉ हीकल का चौथा चरण (इसने 2012 म
रडार इमे जग सैटेलाइट RISAT-1 को लॉ िकया था) म य अटलांिटक
सागर के ऊपर जलकर न हो गया था।
इसरो ने ‘पुन: यो य ेपण वाहन ’ (Reusable Launch Vehicles) को

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िवक सत करने क योजना बनाई है।
इसके तहत ISRO ने 2007 म एक अंत र कै सूल रकवरी योग और
2016 म टे नोलॉजी डेमो टेटर (RLV-TD) परी ण िकया था।
द णी शांत महासागर म िकसी भी उपयु तट से 1,500 वग िकमी.
दरू तक के े म अब तक 260 से भी अ धक उप ह नीचे आ चुके ह।
समाधान
अगर यह सम या है तो इसका समाधान भी है। एक उपाय है—इसे
िन य करना (Passivation)। एक अंत र यान के Passivation का अथ है
िक िकसी िमशन के अथवा उपयोिगता के अंत म पेस ा ट म िनिहत
िकसी भी आं त रक ऊजा ोत को हटा देना।
दस
ू री िव ध है—
Design for Demise: पेस ा ट क ऐसी साम ी के साथ डजाइ नग,
जो वायम
ु ड
ं ल म पुन: वेश करने पर जल जाए और पृ वी पर एक िव श
थान पर उसे िगरा िदया जाए।
तीसरा उपाय डऑ ब टग स टम : इसके अंतगत अंतररा ीय िदशा-
िनदश के तहत िकसी िमशन क अव ध के 25 वष के भीतर उप ह को
नीचे लाया जाए। एक तरीका यह भी है—
Remove DEBRIS : यिू नव सटी ऑफ सरे के पेस सटर के नेतृ व म एक
अ वेषण के तहत अंतररा ीय अंत र टेशन (ISS) के लए SpaceX उड़ान
को लॉ िकया गया था। इसे पृ वी क िन न क ा म छोड़ िदया जाएगा,
जहाँ यह एक छोटे से उप ह क सहायता से अंत र मलबे को रकै चर
(पुन हण) कर लेगा। इसम एक जाल के साथ लगे भालानुमा यं ारा यह
काय िकया जाएगा। लेिकन इन सभी म इतना खच लगेगा िक उसका
अंदेशा नह है। यह सोचने क बात है िक कचरा बनाना ही य , जब साफ
नह कर सकते, घाव देना ही य , जब मरहम नह लगा सकते?
भारत म InSpace के गठन के उपरांत बहुत से नए टाटअप उभरकर आए
ह। सभी टाटअप नई बात को, नई सम याओं के समाधान को लेकर चल
रहे ह। इनम से एक टाटअप अंत र म कचरे क मै पग तक कर रहा है,
इसके बाद कचरे क सम या का समाधान मु कल नह होगा।
अंत र म मरने पर शरीर का या होगा?
अगर आप अंत र म िबना पेस सूट (Space Suit) के ह गे तो 15 सेकंड
म बेहोश हो जाएँ गे और 30 सेकंड से लेकर 1 िमनट के बीच आपक मौत
हो जाएगी। अगर आपने एक आधुिनक सुर त पेस सूट पहना है तो

े ो औ ो
उसक ऑ सीजन 6 घंटे तक ख म नह होगी और आप तब तक तो जदा
रहगे। लेिकन उसके बाद आपक मौत हो जाएगी। उसके बाद आपके शरीर
का या होगा? या कोई उसे िफर से हा सल कर पाएगा या वह अंत र म
हमेशा घूमता रहेगा?
िपछले 60 साल के अंत र खोज के अ भयान म मानव ने अभी तक
केवल 18 जान गँवाई ह। अब या ी अंत र यान के िवकास और मंगल ह
पर आम लोग के जाने क तैयारी क संभावनाओं के साथ यह संभव है िक
अंत र म मौत क सं या बढ़ सकती है। तब वैसी थ त म शू य
गु वाकषण म अं तम सं कार कैसे िकया जाएगा? इसम या जिटलताएँ
आ सकती ह?
जब भी अंत र म कोई या ी जाता है तो उसक मौत क संभावनाएँ बनी
रहती ह। इस सबके बावजूद नासा ने अभी तक अंत र याि य क मृ यु
होने के बाद उससे िनपटने के लए कोई आ धका रक नी त नह बनाई है।
आईएसएस म मृत अंत र याि य को रखने के लए कोई जगह नह है।
इसका एक उपाय है िक मृत शरीर को एक दबाववाले सूट म ही रखा जाए
और उसे बहुत ठंडा कर िदया जाए! मृत शरीर पर बहुत सारे जैिवक खतरे
होते ह और बै टी रया को बहुत यादा समय तक दरू नह रखा जा
सकता।
इसका दस ू रा उपाय एक वीडन क कंपनी ने 2005 म पेश िकया था।
इससे मानव शरीर को जमाकर उसे छोटे-छोटे जमे हुए सू म टु कड़ म बाँट
देना था। यह एक तरह का अं तम सं कार जैसा ही था, जो सभी जैिवक
खतर को दरू करनेवाला और िफर उसे पृ वी पर वापस लाने म आसान
बनाता था। अगर जमाव तापमान पर लाने के लए तरल नाइटोजन नह है
तो कोई बात नह , अंत र का तापमान उसे जमा देने के लए पया है।
नािवक अपने जहाज म मृत लोग को समु म वािहत कर देते ह, तो
अंत र या ी ऐसा य नह कर सकते? अंत र समु से काफ जिटल
जगह है। अगर िकसी मृत शरीर को एक अंत र यान से बाहर िनकाल
िदया जाएगा तो वह उसी यान क टांजे टरी यानी प र मा पथ म च र
लगाने लगेगा। अगर एक से अ धक मरे लोग को आपने वहाँ से अंत र म
डाल िदया, तो िफर आप उस रा ते से वापस आना किठन बना लगे।
इस लए यह बहुत किठन उपाय है।
हम पृ वी पर लोग को दफनाते ह तो ऐसा दस ू रे ह पर भी तो कर
सकते ह! अगर हम अ य ह पर ऐसा करने लगे तो इसके प रणाम काफ
खतरनाक ह गे। मानव शरीर, खासकर मृत शरीर पृ वी के बै टी रया और
क टाणुओ ं के लए बहुत यादा उपयु व तु होते ह। उनसे दस ू रे ह पर
भी दषू ण फैल सकता है। यहाँ तक िक मंगल ह पर भेजे गए ोब को भी
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बहुत यादा सैिनटाइज िकया गया था, जससे िक पृ वी के बै टी रया
और वायरस वहाँ न पहुँच सक। इस लए सबसे सुर त और उपयु उपाय
मृत शरीर को जलाना ही होता है। यह एक ऐसी वा तिवकता है, जसको
आगे के बढ़ते अंत र यास के लए वीकार करने और हल करने क
ज रत है।
जापान का अंत र म एक ए लवेटर बनाना िकतना कारगर होगा?
जापान अंत र म एक ए लवेटर बनाना चाहता है। एक जापानी अखबार
‘मिनची समबन’ ने यह खबर दी है। सजुओका िव िव ालय क एक टीम
ऐसा ए लवेटर िवक सत करने क योजना बना रही है। यह पृ वी से
इंटरनेशनल पेस टेशन (आईएसएस) को जोड़ेगा। यह ए लवेटर एक
बहुत मजबूत केबल के सहारे या ा करेगा। इसका अं तम सं करण काबन
नैनो यब ू से बना हो सकता है। यह ए लवेटर 6 कार के बराबर वजन ले
जाने लायक मता का बनाया जाएगा। यह 59 फ ट लंबा और 3.6 फ ट
चौड़ा होगा। दल का दावा है िक यह करीब 200km/h तक या ा कर सकता
है और पृ वी से आईएसएस (ISS) तक पहुँचने म इसे 8 िदन लगगे। 2050
तक यह आईएसएस तक लोग और सामान को ले जाने लगेगा। इस केबल
क पूरी लंबाई 9,00,000 िकमी. होगी। इसक अनुमािनत लागत करीब 90
अरब डॉलर होगी। लेिकन इससे अंत र म लोग के आने-जाने का तरीका
पूरी तरह बदल सकता है। दल क योजना इसका एक छोटा ायोिगक
सं करण शु करने क है। आईएसएस से दो छोटे सैटेलाइट लॉ िकए
जाएँ गे और उनके बीच करीब 30 फ ट लंबी केबल लटकाकर उन दोन के
बीच एक कंटेनर को चलाया जाएगा।
पृ वी पर अगले 1 अरब साल म या होगा?
पृ वी पर मानव का अ त व 200 हजार साल से है। इस दौरान मनु य
ने बहुत उ पात िकए ह, बहुत उछल-कूद मचाई है और मनमौजी होकर
बदलाव िकया है। वा तव म बहुत यादा बदलाव का अनुभव िकया गया है।
अपनी शु आती जगह अ का से िनकलकर मानव पूरी पृ वी पर फैल
गया और चं मा तक पहुँच गया। एक समय ए शया और अमे रका जुड़े हुए
थे, बाद म ए शया और अ का को जोड़नेवाला बे रग का सेतु समु म डू ब
गया। इसके सहारे ही मनु य िव भर म फैला था।
अगर मानवता अगले 1 अरब साल तक कायम रही तो इसके बीच म
या- या प रवतन हो सकते ह? आइए, इसे देखने क को शश करते ह—
भिव य म 10,000 साल पूरे होने पर या होगा? कं यट
ू र के सॉ टवेयर
म सबसे पहले ईयर 10,000 ॉ लम पैदा ह गी। 4 अंक म वष क पहचान
करनेवाले कं यट
ू र सॉ टवेयर ो ाम इसके बाद िदन को िदखाने म

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असमथ ह गे। यह वा तव म y10k होगा। वै ीकरण के जारी रहने के कारण
मानव के बीच अ◌ानुवं शक भ ताएँ ख म हो जाएँ गी। सभी के बाल और
वचा का रंग समान हो जाएगा।
20 हजार साल होने पर भाषाओं म आज क तुलना म केवल 1 तशत
श द ही बचगे। उस समय िकसी भी आधुिनक भाषा क पहचान कायम नह
रह सकेगी।
50 हजार साल पूरे होने पर पृ वी एक और िहम यगु म चली जाएगी।
इसका कारण लोबल वा मग का िनरंतर जारी रहना होगा। िनया ा जल
पात (फॉल) पूरी तरह ख म हो जाएगा।
1 लाख साल पूरे होने पर पृ वी पर से िदखनेवाला तार का समूह पूरी
तरह बदल जाएगा। मंगल ह पर मानव उसी तरह बस जाएगा, जैसे िक
पृ वी पर बसा हुआ है।
2.5 लाख साल होने पर माउं ट लया वालामुखी क सतह उभरकर एक
नया ीप बना देगा।
5 लाख साल होने पर पृ वी से एक ु ह टकराएगा, जसका यास 1
िकलोमीटर होगा, जससे मनु य कृि म प से अपना बचाव करने म स म
हो जाएगा।
9.5 लाख वष पर एरीजोना का मी डयर े टर, जसे अब तक का सबसे
सुर त े टर माना जाता है, पूरी तरह ख म हो जाएगा। 10 लाख साल
होने पर पृ वी पर एक बहुत बड़ा वालामुखी िव फोट होगा, जससे
3,200 यिू बक िकलोमीटर राख िनकलेगी, जो यब ू स सुपर िव फोट के
समान होगा, जो 70 हजार साल पहले हुआ था। जसने करीब-करीब पृ वी
पर मानवता को समा कर िदया था। इसी समय बीटल जूइस तारे म
सुपरनोवा के प म िव फोट होगा, जससे पृ वी से िदन म ही नया सूय,
नया तारा देखा जा सकेगा।
20 लाख साल होने पर ड कैिनयन ख म हो जाएगा। उस समय तक
कई ह पर मानव क आबादी बस जाएगी और हर ह पर वहाँ क
प र थ तय के अनुसार मानव के भ - भ प िवक सत हो जाएँ गे। ये
पूरी तरह से पृ वी के मानव प से अलग ह गे।
1 करोड़ साल पूरे होने पर पूव अ का से पृ वी का एक िह सा टू टकर
अलग हो जाएगा और उनके बीच एक नया समु ी े पैदा हो जाएगा।
अ का के ये दो टु कड़े पूरी तरह अलग हो जाएँ गे।
5 करोड़ साल होने पर मंगल ह का चं मा फोबोस उसी ह से टकरा
जाएगा, जससे वहाँ भारी तबाही होगी। पृ वी पर अ का महा ीप
यूरे शया महा ीप से जुड़ जाएगा और भूम यसागर ख म हो जाएगा। वहाँ
ो े े
ू ु
पर एक नई पवत ंखला बन जाएगी, जो संभवत: माउं ट एवरे ट से भी
ऊँची होगी।
6 करोड़ साल होने पर कनाडा क राॅक पवतमाला पूरी तरह से एक
समतल मैदान म बदल जाएगी। 8 करोड़ साल होने पर हवाई ीप समूह पूरी
तरह समु म डू ब जाएँ गे। 10 करोड़ साल पूरे होने पर एक ए टेरॉयड के
पृ वी से टकराने क संभावना है। यह ट र ठीक उसी तरह होगी, जैसे 6.6
करोड़ साल पहले हुई एक ट र ने पृ वी से डायनासोर को ख म कर िदया
था। ए टॉयड का यास 10 िकलोमीटर होगा। इससे कृि म प से बचाव
भी िकया जाना संभव हो सकेगा या नह , यह च बना रहेगा। इस समय
तक शिन के चार ओर के वलय नह रहगे और वह पृ वी के जैसा ही ह
बन जाएगा।
24 करोड़ साल पूरे होने पर पृ वी अपनी वतमान अव था से
आकाशगंगा के क के 14 च र पूरे कर लेगी। 25 करोड़ साल पूरे होने पर
पृ वी के सभी महा ीप िमलकर एक थल बन जाएँ गे, जो पुराने प जया
महा ीप जैसा ही होगा। इसका नाम ‘प जया अ टमा’ होगा। 40 से 50
करोड़ साल होने पर यह एक बार िफर टू ट जाएगा।
50 से 60 करोड़ साल के बीच पृ वी से 6,500 काश वष दरू एक गामा
रे ब ट होगा। यह पृ वी से टकराएगा और ओजोन लेयर को बहुत नुकसान
पहुँचाएगा। इससे पृ वी पर जीवन का बड़ा िह सा ख म हो जाएगा। 60
करोड़ साल होने पर चं मा पृ वी से दरू चला जाएगा। इसके बाद पृ वी पर
सूय हण संभव नह होगा। इस समय लेट टे टोिनक मूवमट बंद हो
जाएगा और काबन डाइऑ साइड का तर वायम ु ड
ं ल म नाटक य ढंग से
बहुत िगर जाएगा। इस समय c3 फोटो सथे सस असंभव हो जाएगा। पृ वी
के 99 तशत पेड़-पौधे ख म हो जाएँ गे।
80 करोड़ साल पूरे होने पर काबन डाइऑ साइड का तर और भी
िगरता जाएगा, जससे फोटो सथे सस के अभाव म पेड़-पौधे ख म होते
जाएँ गे। वायम
ु ड
ं ल से मु ऑ सीजन और ओजोन गायब हो जाएँ गे और
पृ वी पर सभी जिटल तरह का जीवन ख म हो जाएगा।
अंत म एक अरब साल पूरे होने पर सूय का तापमान 10 तशत बढ़
जाएगा, जससे पृ वी क सतह का तापमान 47 ड ी से सयस (117
फाॅरन
े हाइट) हो जाएगा। पूरा वायम
ु ड
ं ल एक नमीवाले ीन हाउस म बदल
जाएगा। महासागर से पानी भाप बनकर उड़ जाएगा। पृ वी के ुव पर कुछ
पानी बचा रह जाएगा, जहाँ जीवन के अं तम कुछ अवशेष बचे रह सकगे।
पृ वी पर मँडराता अंत र का खतरा
हम पर िवलु हो जाने का खतरा हमेशा मँडराता रहता है। कभी बड़ी
ो ो े
सुनामी का खतरा, तो कभी सुपरबग का खतरा, तो कभी परमाणु यु के
खतरे क तलवार हमारे ऊपर हमेशा लटकती रहती है। लेिकन अब जस
खतरे क चेतावनी नासा ने दी है, वह खतरा पृ वी से नह , ब क अंत र
से हमारी तरफ टाइम बम क तरह बढ़ा चला आ रहा है। नासा ने बता िदया
है िक 13 अ ैल, 2029 म यह ए टेरॉयड एपािफस हमारी पृ वी से टकरा
भी सकती है और नह भी! इसका खतरा इतना यापक है िक दिु नया भर
के सभी वै ािनक इस खतरे से िनपटने के लए एक हो गए ह।
लेिकन नासा ने इसे इतना खतरनाक य मान लया है? दरअसल यह
ए टेराॅयड 350 िकमी. चौड़ी है और लगभग 30 िकलोमीटर त सेकंड क
र तार से सूय के च र काट रही है। ठीक इसी र तार म पृ वी भी सूय के
च र काट रही है और दोन के ‘सन ऑ बट डेज’ (Sun Orbit Days) भी
समान ह, जहाँ हमारी पृ वी सूय का एक च र 365 िदन म पूरा करती है,
वह एपािफस 324 िदन म सूय का च र पूरा करता है, तो एपािफस हमारे
लए खतरा य बन गया है? दरअसल एपािफस क प र मा क ा
(ऑ बटल पाथ) हमारी पृ वी के ऑ बटल पाथ को काटते हुए िनकलता है।
इसके कारण इसक पृ वी से टकराने क संभावना हमेशा बनी रहती है।
इसी वजह से नासा ने 13 अ ैल, 1929 को पृ वी और एपािफस के
नजदीक आकर टकराने पर मुहर लगा दी है। जब यह ए टेराॅयड हमारी
पृ वी क गु वीय िगर त म आएगा तो पृ वी से टकरा जाएगा या उसके
ऑ बटल म कुछ बदलाव होगा? इन दोन हालात म यह हमारे लए घातक
स होगा; य िक अगर यह टकराया तो तबाही िन त है और अगर
इसक ऑ बटल पाथ म कुछ बदलाव होते ह तो यह िफर से 13 अ ैल,
2036 म वापस आएगा। इस बार इसके पृ वी से टकराने क संभावना
अ धक बल होगी।
नासा ने एपािफस को ‘टो रनो केल’ पर चौथा थान िदया है, यानी यह
हमारी पृ वी के लए खतरे क घंटी है। ‘टो रनो केल’ नासा ारा िकसी
ए टेरॉयड कॉमेट के खतरे को बताने का तरीका है, जहाँ जीरो से लेकर दस
तक कैटेगरी होती है, जो िक पृ वी के खतरे को दरशाती है।
लेिकन अब सवाल आता है िक अगर एपािफस हमारी पृ वी से टकराया
तो उससे पृ वी को िकतना नुकसान होनेवाला है? या पृ वी से मानव
जा त िवलु हो जाएगी? दरअसल, एपािफस ु िहकाओं क ेणी म
शािमल है। अगर यह अपनी पूरी र तार से पृ वी के वायम
ु ड
ं ल म वेश
करती है तो संभव है िक आसमान म ही जलकर फट जाए।
स म ऐसी ही एक चे लया वस मे योर क घटना हुई थी। यह केवल 20
मीटर ही चौड़ी थी। यह पृ वी से ऊपर हवा म फट पड़ी। इसका ला ट 3
लाख टीएनटी के बराबर था। इससे िनकली शॉक वेब ने जमीन पर घर क
खड़िकयाँ तोड़ डाल । 3,000 से यादा िब डग को नुकसान पहुँचाया
औ े ो ो े
और 1,000 से यादा लोग को ज मी कर िदया। बावजूद इसके यह
काॅमेट पृ वी से नह टकराया, नुकसान इसने िफर भी िकया। एपािफस के
खतरे को कम करके देखा जाना मूखता ही है। इसक ट र से 2 िकमी.
चौड़ा और आधा िकलोमीटर गहरा ग ा बन जाएगा।
इससे िनकलनेवाली ऊजा स के हाइडोजन बम से 15 गुना यादा
होगी, जो 85 करोड़, 50 लाख टीएनटी बम के बराबर होगी। जस इलाके म
एपािफस िगरेगा, वहाँ त काल ही करोड़ लोग क मौत हो जाएगी और
य बड़ा ही भयावह होगा। इससे उठनेवाली िम ी और धूल से पूरी पृ वी
पर असर पड़ेगा और हमारी पृ वी एक लघु िहम यगु क थ त म चली
जाएगी। लेिकन यह लंबे समय तक नह रहेगा। अगर यह समु म िगरा तो
100 मीटर ऊँची सुनामी उठे गी। अगर एपािफस रेिग तानी इलाके म िगरा
तो जान-माल को कोई नुकसान तो नह होगा, लेिकन पृ वी पर इसका
असर िफर भी पड़ेगा।
आज से 6 करोड़ साल पहले एक 10 िकलोमीटर चौड़ी ए टेरॉयड पृ वी
से टकराई थी, जसके कारण 99 तशत जीव का अंत हो गया था, जनम
डायनासोर भी शािमल थे।
लेिकन िफर भी हमारे पास अपनी पृ वी को बचाने के लए कुछ उपाय
भी तो ह। इनम से सबसे पहले आता है ‘डीप इंपै ट’ (Deep Impact)।
इसका मतलब है िक इससे पहले िक मारक ु ह हमारी ओर आकर
हमसे टकराए, हम अपने यान को सोचे-समझे कोण से सीधा टकरा द।
इससे उसक क ा म कुछ सटीमीटर का अंतर आ जाता है। यही अंतर
पृ वी पर जीवन को बचाने म अपना योगदान दे सकता है। नासा ऐसा कर
भी चुका है। पर हो सकता है िक अगली बार जब आए तो उसका ल य
सीधा हमारी पृ वी हो! य िक िकसी भी ए टेराॅयड को िकसी ह से
टकराने म हजार , लाख या करोड़ साल लगते ह। तब तक ये िबना अपनी
क ा म बदलाव के सूय का च र लगाते रहते ह।
दसू रा िवक प िकसी ए टेराॅयड से रॉकेट को जोड़कर उसक क ा म
बदलाव का यास करना है। लेिकन यह बहुत किठन काम है। तीसरा और
अं तम िवक प परमाणु िव फोट है। वैसे तो एपािफस से अभी कोई खतरा
नह है, लेिकन िनकट भिव य म यह पृ वी से ज र टकराएगा।

अ याय 12
अंत र : एक नई दिु नया, एक नई अथ य था,
एक नया ह थयार, एक नया भिव य
अं त र का मह व हमारे जीवन म हमेशा से रहा है। पहले यह हमारे लए
स दयबोधक था। पहले हमारे लए यह शू य म खो जानेवाला पहलू था। पहले यह
अ ययन करने के लए था, पहले यह हमारे लए रह यमय था। पहले यह पता
लगाना था िक कहाँ तक जाया जा सकता है और य जाया जा सकता है?

सबसे पहले जब कभी भी अंत र के उपयोग करने क बात आई होगी तो वह


रे डयो के लए आई होगी, उसके बाद टेलीिवजन तक और अब बढ़कर जीवन के
लगभग हर एक पहलू म अंत र वेश कर चुका है। यानी अगर आप इंटरनेट
चलाते ह, मोबाइल उपयोग करते ह, या हवाई या ा का िटकट बुक करते ह तो
अंत र िव ान आपके जीवन म है। अंत र ने बहुत जगह पर जीवन को आसान
कर िदया है।
अंत र के उपयोग से हमारे जीवन म सबसे बड़ा बदलाव यह आया िक हम
पृ वी से जो नह देख सकते थे, उसे अंत र से देख सकते ह। इससे हम योजना
बनाने म आसानी होती है, य िक हम पता चल पाता है िक कहाँ पर या उपल ध
है! इससे हम पता लगता है िक निदयाँ िकतनी साफ या दिू षत ह, सड़क पर
भीड़ है या नह ? सड़क को चौड़ा करने के लए या िकया जा सकता है?
ये सारी बात अंत र के दायरे म चली आती ह। पहले और अभी के अंत र म
भी अब अंतर है। भारत म हम लोग ने सफ अंत र के वे उपयोग िकए थे, जससे
हमारी नाग रक सम याओं का समाधान हो पाए। हमारी खेती सु ढ़ हो जाए, हम
नगरीय सम याओं को बेहतर प से समझ पाएँ , हमारा टेलीक युिनकेशन ठीक हो
जाए और हम सुदरू संवेदन यं का उपयोग कर सक। अब इसका प िब कुल ही
अलग हो गया है।

ै ो े े
भारत अब वह नह चाहता है, जो उसने अंटाकिटक के साथ िकया। अंटाकिटक
तक पहुँचने म हम देर हो गई। अंटाकिटक हमारे हाथ से चला गया। अब अंत र
के िकसी ह के साथ हम लोग यह काम नह करना चाहते ह। इसका सबसे बड़ा
कारण है िक अगर हम लोग ने ऐसा िकया तो हम पता नह कौन से ह के ऊपर
हमारा अ◌ा धप य नह रहेगा? उसके संसाधन हमारे अंतगत नह रहगे और
उसके संसाधन का उपयोग हम नह कर सकगे। यह भी अंत र िव ान का एक
उपयोग है।
दस
ू रा उपयोग होता है, सुर ा क ि से। अंत र आपको सुर ा देता है।
अंत र आपको आ मण करने के लए भी े रत करता है।
अंत र आपके आ मण का आधार भी है। आपके पास अगर सैटेलाइट है,
तभी दसू रे के सैटेलाइट को व त कर उसक पूरी रणनी त को समा कर सकते
ह। अगर सैटेलाइट का सं ह है तो उन सैटेलाइट के सहारे दस
ू रे के इंटरनेट को
रोक सकते ह। सैटेलाइट को जाम कर सकते ह।
अंत र तो हमेशा से ही े रत करता है िक लोग अंत र पर जाएँ , वहाँ देख
अथात् अंत र पयटन का े भी बन सकता है।
अंत र को देखने का नज रया िब कुल अलग हो गया है। जसका अंत र के
ऊपर अ◌ा धप य है, उसक वै क ां डग भी हो जाती है।
अंत र अब एक िब कुल नई अथ यव था के प म काम कर रहा है। अंत र
यान बनाने के लए अथ यव था के अनेक िह से काम पाते ह। रॉकेट बनाने के
लए जन व तुओ ं का उपयोग करते ह, उनके बहुत सारे उपो पाद होते ह। जैसे
कोई अगर रॉकेट अंत र से नीचे क ओर आ रहा है तो वह जल न जाए, इसके
लए उसम काबन कंपो ज स के टु कड़े लगे रहते ह। काबन कंपो जट से बने हुए
पदाथ जलते नह और उसे ठंडा रखते ह। काबन कंपो ज स का उपयोग कई
जगह पर कर सकते ह, जैसे—च मे, पेस मेकर आिद बनाने म। दस ू रा े
टेलीिवजन का है। आज हरेक यि अपना टेलीिवजन रख सकता है। अब आता
है—इंटरनेट। अंत र के िबना इंटरनेट संभव ही नह है। पूरी पृ वी का च पा-
च पा इंटरनेट से पूरी तरह से छाया हुआ है अथात् इंटरनेट से पूरा िव
आ छािदत है। यह सब अंत र क वजह से ही संभव हो पाया है।
अंत र एक नए प म श ा को आकार दे रहा है। अब दरू -दराज के े म
कोई भी, कह भी, िकसी भी तरह क श ा ा कर सकता है। जािहर है, इसी के
सहारे सभी नए तरह के ई-काॅमस के बारे म बात कर रहे ह। अंत र ने
अथ यव था म मदद इस प म क है िक इसक बहुत सी प गामी किड़याँ
(Backward Linkages), अ गामी किड़याँ (Forward Linkages) ह। प गामी किड़याँ
(Backward Linkages), मतलब अंत र के उ पाद बनाने म या लगता है और इन
उ पाद का उपयोग या होता है? अ गामी किड़याँ (Forward Linkages) अथात्
आगे क ओर! यहाँ केिमकल बनाने का उपयोग होता है जैसे कोई डाइ िमथाइल
हाइडोजन को अगर बनाता है तो यह प गामी किड़याँ (Backward Linkages) ह। यह
एक पूरा उ ोग हो जाता है। इसे ही रॉकेट म भरा जाता है। रॉकेट के ऊपर का जो
केस बनता है, वह एक उ ोग हो जाता है। सैटेलाइट बनता है, वह भी एक उ ोग
ै ँ औ ँ
है। इस तरह प गामी किड़याँ (Backward Linkages) और अ गामी किड़याँ (Forward
Linkages) बहुत सु ढ़ हो गई ह।

अंत र एक नया ह थयार भी है। हम लोग सैटेलाइट का ह थयार क तरह


उपयोग कर सकते ह। हम लोग िकसी बाहर के ह के ऊपर या चं मा पर जाएँ
और पैराबो लक िमरर लगाकर सूय क सारी रोशनी को एक थान पर संकि त
कर िदया जाए तो यह अ छा-खासा लेसर बीम बन जाता है। द ु मन के सैटेलाइट
को जाम िकया जा सकता है। भारत के सैटेलाइट को कोई जाम करता है, तो वह
ह थयार के प म इ तेमाल हो सकेगा।
अंत र हमारा भिव य भी है। हम जानते ह िक पृ वी के ऊपर सबसे बड़ी
सम या पयावरण है। हम पयावरणीय सम याओं का समाधान तभी कर पाएँ गे, जब
हम अ छी तरह का मान च िमल सकेगा। मान च ांकन तभी संभव हो पाएगा,
जबिक हम लोग को अ छी तसवीर िमलगी। नदी माग तभी बना पाएँ गे, जब हम
समझ पाएँ गे िक उस थान पर नदी को िकतना चौड़ा या गहरा करना है? िकस
थान पर िकतना पानी है? इसक वजह से हम अपनी पयावरणीय सम याओं का
समाधान कर पाएँ गे।
हम लोग इसक वजह से टैिफक सम याओं का भी समाधान कर पाएँ गे, य िक
इसके सहारे हम मालूम चल पाता है िक िकस थान पर टैिफक अ धक है और
िकस थान पर नह ! यह हम नए-नए संसाधन को खोजने का एक ज रया है।
इ ह संसाधन को खोजने के लए हम चं मा पर भी गए ह। पृ वी पर अ का और
िवशेषकर लैिटन अमे रका म हम लोग नए संसाधन खोज सकते है। श ा को
बढ़ावा दे सकते ह। टेलीिवजन के सहारे नई सूचनाओं को अलग-अलग जगह दे
सकते ह। जािहर है, यह हम नॉलेज इकोनॉमी अथ यव था क तरफ ले जाता है।
नॉलेज इकोनॉमी अथ यव था का अथ है िक ान से िव क अथ यव था
चलनेवाली है।
नॉलेज इकोनॉमी अथ यव था का मतलब है, कौन सी सूचना िकतनी ामा णक
है, और वा तिवक प म सूचना का िकतना उपयोग कर सकते ह? नॉलेज
इकोनॉमी का सबसे बड़ा िह सा अंत र का सं थागत ढाँचा बनाने का काय
करता है। अगर हमारे पास नॉलेज इकोनाॅमी आ जाती है तो हम एक और नई
अथ यव था क ओर ले जाएगा, जसे ‘िगग इकोनॉमी’ कहते ह। इसका अथ है
िक कहाँ पर, िकस थान पर, िकस प म िवक ीकृत करके आ थक ग तिव धय
को बढ़ाने का काय करते ह? इस तरह हरेक यि अपने आप म एक सं था बन
जाएगा। जब हरेक यि अपने आप म सं था बन गया तो यह बात मह वपूण हो
जाती है। ऐसी ही अथ यव था क क पना पूरे िव के लए हम कर रहे ह। इसम
जो यि गत तभाएँ ह, वे मुख रत होकर आएँ गी।
अब अंत र आने-जाने का एक नया थान हो गया है अथात् एक नया पयटन
े हो गया है। यह भिव य क नई अथ यव था भी हो जाती है।
अंत र वा तिवक प म एक नई अथ यव था है, एक नया ह थयार है, एक
नया भिव य है, अंत र वा तिवक प से एक नई दिु नया भी है।

े ो े े े
1960 के दशक क एक छोटी शु आत के बाद से भारत के अंत र काय म म
लगातार ग त हुई है। उसे कई मह वपूण सफलताएँ हा सल हुई ह। इनम उप ह
का िनमाण, उसे अंत र म ले जानेवाले रॉकेट और संबं धत मताओं क एक
पूरी ंखला शािमल है।
अंत र एक नया उ ोग है
आज वै क अंत र उ ोग का मू य 350 अरब डॉलर है और 2025 तक
इसके 550 अरब डॉलर से अ धक होने क संभावना है। इसरो क भावशाली
मताओं के बावजूद इसम भारत का िह सा महज 7 अरब डॉलर है, जो वै क
बाजार का केवल 2 तशत है। इसके अलावा आ टिफ शयल इंटे लजस और िबग
डाटा एना लिट स के िवकास के कारण नई संभावनाओं का उदय हुआ है।
ॉडबड और डायरे ट टू होम (DTH) टेलीिवजन से िमलनेवाली आय का इसम
दो- तहाई िह सा है। उप ह च और नेिवगेशन क भारतीय सेवाओं के लए
उपयोग िकए जानेवाले एक- तहाई से अ धक टांसप डर िवदेशी उप ह से प े पर
ह और माँग बढ़ने पर यह अनुपात बढ़ जाएगा।
वै क उप ह बाजार, जसम उप ह के िनमाण, लॉ ग और उनके बीच संवाद
बनाए रखना शािमल है, 120 अरब अमे रक डॉलर का है। हाल के साल म
कने टिवटी क बढ़ती माँग के चलते यह बाजार तेजी से िवक सत हुआ है।
अमे रका, ांस और स उप ह ेपण उ ोग के लगभग 75 तशत िह से पर
क जा रखते ह। सैटेलाइट उ ोग म भारत क िह सेदारी केवल 0.5 तशत है,
जबिक चीन क बाजार िह सेदारी 3 तशत है। इसके बहुत तेजी से बढ़ने क
संभावना है। भारत अब इस बाजार के एक बड़े िह से पर क जा कर सकता है।
केवल कुछ देश के पास ही छोटे से लेकर बड़े उप ह को लॉ करने क मता
है। भारत उनम से एक है।
बाजार का बदलता व प
अ धकांश मौसम िव ान और संचार उप ह का वजन लगभग चार टन होता है
और इ ह ेिपत करने के लए बड़े रॉकेट क ज रत होती है। नए ेपण के
ज रए भारत ने अंतररा ीय समुदाय को एक मजबूत संदेश िदया है िक कम
लागतवाला िवक प उसके पास उपल ध है। इसने हाल ही म एक बार म िव भ
आकार के 104 उप ह को सफलतापूवक ेिपत िकया, जससे इसक
िव सनीयता बढ़ गई। िव ेषक का कहना है िक कम लागत के कारण भारत बढ़ते
उप ह ेपण उ ोग का क बन सकता है।
1960 के दशक क एक छोटी शु आत के बाद से भारत के अंत र काय म म
लगातार ग त हुई है। उसे कई मह वपूण सफलताएँ ा हुई ह। इनम उप ह का
िनमाण, उसे अंत र म ले जानेवाले रॉकेट और संबं धत मताओं क एक पूरी
ंखला शािमल है। भारतीय अंत र अनुसंधान संगठन (इसरो) का वा षक बजट
1.5 अरब डॉलर को पार कर गया है, जो भारतीय बजट का करीब 0.4 तशत है।
इसके बावजूद, इसरो से िमलनेवाली सेवाओं क तुलना म भारत म अंत र
आधा रत सेवाओं क माँग कह यादा है। इस अंतर को पाटने के लए िनजी े
े ै े े
का िनवेश मह वपूण है, जसके लए एक उपयु नी त वातावरण बनाने क
ज रत है। इस बात का अहसास बढ़ रहा है िक अंत र े के सम िवकास को
सुिन त करने के लए रा ीय कानून क ज रत है। 2017 म पेश िकए गए पेस
ए स िबल के मसौदे को ख म कर िदया गया है। सरकार के पास अब एक नए
िवधेयक को ाथिमकता देने का अवसर है। इसका िनजी े , बड़े खलािड़य
और टाटअप दोन ारा समान प से वागत िकया जा सकता है।
1980 के दशक म ‘भारतीय रमोट स सग’ (IRS) ंखला के साथ शु आत
करते हुए, आज काट सैट और रसोससैट ंखला भूिम, महासागर और
वायुमड
ं लीय िनगरानी के लए बड़े इलाके के म टी- पे टल हाई रजो यूशन
डाटा दान करते ह।
इसरो ने उप ह आधा रत सेवा गगन (GPS Aided Geo Augmented Navigation) शु
क है। यह इसरो और भारतीय िवमानप न ा धकरण क एक साझा प रयोजना
है। यह िवमानन े के जीपीएस कवरेज को बढ़ाने, सटीकता म सुधार के लए है।
इसे मु य प से नाग रक िवमानन और भारतीय हवाई े के बेहतर हवाई
यातायात बंधन के लए बनाया गया है।
पृ वी अवलोकन और अंत र आधा रत च का उपयोग करने का एक दस ू रा
े मौसम क भिव यवाणी, आपदा बंधन और रा ीय संसाधन का मान च ण
और योजना बनाने जैसी रा ीय ज रत के लए था। ये संसाधन कृिष और
वाटरशेड, भूिम संसाधन और वािनक बंधन को कवर करते ह। उ रेजो यूशन
और सटीक थ त के साथ, भौगो लक सूचना णाली के योग, ामीण और
शहरी िवकास और योजना के सभी पहलुओ ं को कवर करते ह।
नई अंत र उ िमता
अंत र उ िमता भारत म लगभग दो दजन टाटअप के साथ उभरी है।
पारंप रक िव े ता/आपू तकता मॉडल से े रत नह है, लेिकन िबजनेस-टू -िबजनेस
और िबजनेस-टू -कं यूमर े म सेवाओं क खोज म अवसर देखती है।
संचार
सैटेलाइट के ज रए संचार आज भी सबसे बड़ा स वस माकट है। साल 2017 म
सैटकॉम (अप टीम से डाउन टीम तक) का अनुमािनत वै क बाजार लगभग
130 िब लयन अमे रक डॉलर था, जसम से 80 तशत कमाई डाउन टीम से
हुई थी। उ ूपुट ( ि या या णाली से गुजरनेवाली साम ी या व तुओ ं क
मा ा) और वै क कवरेज हा सल करने के लए, हजार उप ह के साथ LEO (लो
अथ ऑ बट) मॉलसैट तारामंडल को तैनात करने क एक वृ खासतौर पर
देखी जाती है। रे डयो वसी क सीिमत उपल धता क मु कल को दरू करने
के लए, ऑ टकल संचार म िदलच पी बढ़ेगी, जसका इ तेमाल पहले से ही
यूरोपीय डाटा रले सैटेलाइट स टम (ईडीआरएस) जैसे कुछ न म िकया
जाता है। एक भारतीय टाटअप आरएफ स टम क तुलना म लोअर फॉम
फै टर और पावर के साथ उ डाटा दर पर सुर त संचार लक देने के लए एक
ऑ टकल संचार णाली क पूरी ंखला बनाने का इरादा रखता है।
े े औ े
वा ण यक उप ह ऑपरेटर के कारण एक और खास टड इन- पेस एज टग
और थलीय एप जैसे अ य नेटव कग लेटफॉम के िनमाण के प म देखा जाता
है। लघु प देने का टड सभी कार के ऑ बट म उप ह तक जाएगा और फाइबर
या 5G क ओर से जो े कवर नह िकए गए ह, उनम नई कने टिवटी के तरीके
उपल ध कराएगा।
टाटअप अ टा-हाई कैपे सटी टांसप डर भी िवक सत कर रहे ह, जो बेहतर
पे टल द ता और बड़ी मा ा म अ यु बडिव थ देने के लए िमलीमीटर वेव
फ़ी वसी रज म काम करते ह। ये त उप ह बहुत अ धक अप लक/डाउन लक
मता दान करते ह।
भारत म संचार उ े य के लए उप ह आधा रत सेवाओं क काफ माँग है, और
ये 5G, इंटरनेट ऑफ थ स (IoT) और ‘भारत नेट’ जैसी पहल को लागू करने के
साथ ही तर क ओर बढ़ेगा।
अंत र े म ौ ोिगक को यावसा यक बनाने और पैसे मुहय
ै ा कराने के लए
थािपत िनयामक ढाँचे और िदशा-िनदश क कमी के कारण भारतीय अंत र
े म िनजी िनवेश म कमी आई है, य िक िनजी कंपिनय और टाटअप को
िनवेश के लए यादा ो साहन नह िमलता है और अब शु पर एक िमशन शु
करने क योजना है।
अंत र का साम रक रणनी तकरण
भारत के अंत र उ ोग क िवशेषता िकफायती खच के साथ स ता
इंजीिनय रग कौशल है। चं यान से भारत को बहुत यादा रणनी तक लाभ हुआ
है। भारत उन देश के समूह म शािमल होना चाहता है, जो पेस सुपरपावर ह, जैसे
—अमे रका, स और चीन। भारत एक बड़ी अंत र शि बन जाएगा और
भिव य म भारत रणनी तक प से एक गंभीर दावेदार होगा। अंत र संसाधन क
खोज म भारत एक कदम आगे बढ़ेगा। नए संसाधन भारत को उसक ऊजा
ज रत को पूरा करने म सबसे आगे रख सकते ह।
चं यान-1 ने चं मा पर रेयर अथ मेटी रयल क मौजूदगी को बताया था। जसम
हीली यम-3, टाइटेिनयम और अ य रे डयोए टव पदाथ भी शािमल ह। इनको
भिव य म उपयोग िकया जाएगा। चं मा को िवशेष प से रेयर एलीमट (REE) या
अब रेयर मून एलीमट (RME) खिनज के भंडार के प म देखा जा रहा है। इनका
उपयोग संचार उपकरण को बनाने म होता है। अगर यह संभावना सच सािबत हुई,
तो यह दरू संचार जैसे संचार ौ ोिगक के े को पूरी तरह से बदल सकता है।
नए यु े
अंत र एक नया यु े होगा और भारत को एक तरोधक शि िवक सत
करनी होगी। पहला उप ह लॉ िकए जाने के साठ साल बाद अंत र सै य होड़
का नया मैदान बनता जा रहा है। जस पर िवक सत देश क जा करना और हावी
होना चाहते ह।
िपछले साल अमे रका ने अपनी सेना क छठी शाखा क थापना करके यह
े े े ो े े
संकेत िदया। उसने अपनी ‘ पेस फोस’ के साथ एक अमे रक अंत र कमान
बनाई है। अंत र और साइबर यु के लए ज मेदा रय के साथ, चीन ने 2015 म
अपनी सेना क पाँचव शाखा ‘ टैटे जक सपोट फोस’ बनाई।
शु से ही अंत र ने सै य ि कोण से च जगाई है और वा तव म,
अ धकांश अंत र काय म सै य उ े य से ही संचा लत थे। बाहरी अंत र सं ध
(Outer Space Treaty) अंत र म परमाणु ह थयार क तैनाती पर तबंध लगाती
है। यह आकाशीय व तुओ ं पर सै य िठकान को बनाने पर रोक लगाती है। यह
अंत र म पारंप रक सै य ग तिव धय , अंत र -उ मुख सै य बल या अंत र म
पारंप रक ह थयार के उपयोग पर तबंध नह लगाता है।
िन कष
चं यान-2 हमारे लए सफ एक यान को भेजने क ि या नह थी, ब क यह
अंत र को एक उ ोग, एक नई अथ यव था का सू पात, अपने देश क
तकनीक ां डग, अपनी सुर ा क मता का िवकास और िन त प से भिव य
क थाती के िनमाण से े रत रहा है।
अंत र का अ वेषण, इसक खोज, इसके ान का सं करण और उपयोग
मानवता के उ थान म सहायक होना है, लेिकन साथ-ही-साथ मनु य के सोचने
और क पना करने क पराका ा, िव ान का आकषण और नई तकनीक का
परी ण करने क मता और मान सकता से संबं धत हो जाता है।
भारत का अंत र यास, इसक तकनीक मता, इसके वै ािनक का अद य
साहस, उनक क पना से संबं धत तो है ही, साथ-ही-साथ यह उन वै ािनक के
धैय, उनक िनबाध तप या, आपसी सहयोग और सामा जक पूँजी और अपने देश
क अ मता क र ा करने के ज बे से भी उतना ही े रत रहा है।

अ याय 13
अंत र का नवीन साम रक व प
21 व सदी म अंत र क यह नई होड़ न तो अ या शत है और न ही
िबना सोची-समझी। अंत र ही पृ वी और मानवता का भिव य भी हो
सकता है और भिव य का यु थल भी। इस लए अंत र पर िनयं ण और
भु व जमाने के लए उन सभी देश म होड़ लगी हुई है, जो या तो
महाशि याँ ह या िफर महाशि बनने क मंशा रखती ह।
अंत र का िनयं ण और इसका उपयोग ही है, जसके कारण आप
मोबाइल से बात कर पाते ह या अपने िटकट बुक कराते ह, टी.वी. देखते ह
या िफर खरीददारी करते ह। यह सूचना भी आप तक पहुँच रही है, तो यह
भी अंत र बंधन क देन है।
अंत र मानव जा त के क याण का रा ता तो है ही, साथ-ही-साथ यह
आ थक लाभ का और इससे भी अ धक आ मण और र ा करने का भी
अब रा ता हो गया है। अमे रका ने चाँद पर मनु य भेजकर पूरे िव म
अपनी मताओं का लोहा मनवा लया था।
शीतयु म अंत र म िकए िनवेश को आज अमे रका आ थक प से
भुना रहा है।
इससे वह शीतयु म सबसे आगे िनकलने म स म हो गया। आज
अमे रका इसी मता को आ थक प से भुना रहा है। शीतयु म अमे रका
और सोिवयत संघ दोन ही एक-दस ू रे को पीछे छोड़कर अंत र म अपना
वच व जमाने क होड़ म लगे थे। शीतयु का सबसे बड़ा ह थयार
अंतरमहा ीपीय िमसाइल भी अंत र तकनीक का ही िह सा था।
अंत र ही भिव य का यु थल होगा
‘अपोलो-11 िमशन’ क सफलता ने दिु नया को िब कुल नए ढंग से
सोचने पर मजबूर कर िदया। उस समय के अमे रक जनरल होमर बाशी ने
िट पणी क थी िक जो चं मा पर िनयं ण रखेगा, वह पृ वी पर िनयं ण
रखेगा। लेिकन इस बात के मह व को समझने म लोग को कुछ समय लगा।
शु म अ धकांश अंत र काय म सै य उ े य से संचा लत थे
िव ान हमेशा िवचार के पीछे चलता है और िवचार को हमेशा क पना
के समथन क ज रत होती है। आज चं मा मानवता के एक र क के प
ै ँ औ े औ
म उभर रहा है। वहाँ पर खिनज संसाधन और REE के अलावा He3 और
पानी होने के सबूत िमले ह। यह कहना गैर-ज री नह है िक पृ वी पर
संसाधन , ऊजा ोत और पानी का संकट पैदा हो रहा है और हम
वैक पक ह क ज रत महसूस होती है। चं मा के अलावा मंगल ह भी
वै ािनक के लए अनुसंधान का क बना है, य िक वहाँ पर भी जीवन
चलाने के लए पया पानी के माण िमले ह।
कुछ वै ािनक बहुत पहले ही अंटाकिटका को भिव य के पानी के एक
ोत के अलावा वहाँ मानव को बसाने क वैक पक जगह के प म देख
रहे थे। उस समय इस बात पर उतना यान नह िदया गया। आज जस
तरह से गंगा-यमुना के मैदान म पानी का संकट पैदा हो रहा है, उससे साफ
लगता है िक उन वै ािनक क ि िकतनी आगे थी! अगर िव ान ऐसी ही
अ गामी सोच नह रखेगा तो मानवता एक के बाद दस ू रे संकट म फँसती
चली जाएगी।
चं मा पर भारत के ताजा अ भयान को इसी संदभ म देखा जाना चािहए।
जब डोना ड टंप यह कहते ह िक चीन और भारत को िवकासशील देश
नह माना जाना चािहए, तो आ थक सम याओं के बावजूद हम एक
अ गामी ि कोण अपनाना चािहए। यूरोपीय अंत र एजसी 2030 तक
चं मा पर एक अंतररा ीय गाँव बसाने के बारे म बात कर रही है। सी
पेस एजसी ‘रोसकॉसमॉस’ ने 2025 तक चं मा पर कॉलोनी बनाने क
पहले ही घोषणा कर दी है, जसके 2040 तक पूरा होने क उ मीद है। ऐसी
थ त म िव क सबसे बड़ी लोकतांि क ताकत भारत, पीछे नह रह
सकता है।
भारत जनसं या के मामले म केवल चीन से थोड़ा ही पीछे है और इसको
यान म रखकर हम कुछ िवक प क तरफ ज र सोचना होगा। यहाँ हम
मुगल शासक क ऐ तहा सक गलती को भी यान म रखना होगा। मुगल ने
िवला सतापूण जीवन-शैली को अपनाने क जगह अगर एक शि शाली
नौसेना बनाने पर यान िदया होता तो भारत यूरोपीय औपिनवे शक
ताकत का गुलाम नह बनता।
यूरोप के राजाओं और रािनय ने ऐसा िकया था। वीन मैरी ने इं लड को
सबसे शि शाली नौसेना दी। स क जार कैथरीना ने समु क ताकत
को वीकार करते हुए कहा िक दिु नया से जुड़ने के लए हम एक खड़क
क ज रत है। इसके लए उसने पोलड को िवभा जत करने से भी परहेज
नह िकया। अमे रका क खोज करनेवाले कोलंबस को पेन क रानी
इसाबेला ने धन िदया था।
अब मानवता का भिव य अंत र से जुड़ा हुआ है। इस लए इसरो को
बधाई देनी चािहए, जसने िक भिव य क आव यकताओं और
ओ ो ो ँ
अिनवायताओं को यान म रखकर कई योजनाएँ बनाई ह।
अपने िनकटतम ह चं मा पर जाकर अपना भु व जमाने क एक ताजा
होड़ अब शु हो गई है। भारत के इस होड़ म कूदने के बाद अब यह तेज ही
होगी। अब इससे भी आगे जाने क बारी है। अंत र का िवकास अब तक
नाग रक और साथ ही सै य उ े य के लए सारण और नेिवगेशन को
सुिवधाजनक बनाने के लए उप ह संचार पर कि त रहा है, पर अब कई
चीज बदल रही ह।
ौ ोिगक अपनी ात सीमा से आगे बढ़ रही है और डजाइन का
उपयोग भी िविवध और यादा मानवतावादी हो गया है। भू-राजनी त पृ वी
क िन न क ा क उथल-पुथल से आगे मनु य को भेजने के लए एक नई
होड़ पैदा कर रही है। चीन 2035 तक लोग को चं मा पर भेजने क योजना
बना रहा है। अमे रका चाहता है िक 2024 तक अमे रक िफर चं मा पर
जाएँ ।
चीन ने भी चं मा के दरू वाले िह से पर सफलता से अपना लडर
उतारकर नया इ तहास रचा है। चीन ने घोषणा क है िक उसका इरादा
चं मा के द ण ुव पर एक शोध क बनाने का है। अगले दशक म वह
चं मा पर अंत र या ी उतारने का इरादा रखता है। जापान क अंत र
एजसी ‘जाहा’ (JAXA) ने घोषणा क है िक वह टोयोटा के साथ िमलकर
चं मा पर एक मानव िमशन भेजने क तैयारी कर रहा है।
अब िनजी े का दखल बढ़ रहा है। 1958 और 2009 के बीच अंत र
म लगभग सभी खच रा य एज सय ारा और मु य प से नासा और
पटागन ारा िकया गया था।
िपछले एक दशक म अंत र म िनजी िनवेश बढ़ा है
िपछले एक दशक म िनजी िनवेश सालाना औसतन 2 अरब डॉलर या
कुल खच के 15 तशत तक बढ़ गया है। यह और अ धक बढ़ने के लए
तैयार है। पहली िनजी अंत र कंपनी पेसए स ने 21 सफल उप ह लॉ
िकए ह।
अंत र म आनेवाले समय म कुछ बड़ा और नया होने जा रहा है।
अमे रक कंपनी पेसए स और बोइंग नासा से अपने अंत र यान क
मंजूरी लेने के बहुत करीब ह। नासा का अनुमान है िक अगले साल तक यह
अंत र यान उड़ान भरेगा। इसके अलावा दो अ य िनजी कंपिनय ‘व जन
गैले टक’ और ‘ लू ओ र जन’ ने भी इस िदशा म अपनी तैयारी बहुत तेज
कर दी है।
अब जो देश अंत र उ ोग म आगे ह गे, केवल वे ही पैसा कमाएँ गे

े ै े
इससे लगता है िक ज द ही अंत र पयटन का सुनहरा यगु आनेवाला
है। आरंभ म ये िनजी कंपिनयाँ पयटक को पृ वी से 90 से 100 िकलोमीटर
ऊपर बाहरी अंत र म भेजगी, जससे िक वे शू य गु वाकषण और
भारहीनता का अनुभव करने के साथ ही अंत र को देख सक। इसके लए
करीब 2 लाख डॉलर क मत चुकानी होगी। कंपिनय को उ मीद है िक धीरे-
धीरे इस क मत म कमी होगी। लू ओ र जन तो लोग को चं मा पर िफर से
भेजने क दौड़ म भी शािमल है। इसके चं मा पर जानेवाले यान का नाम
‘ लू मून’ होगा। इसके 2024 तक तैयार होने क उ मीद है।
2030 तक अंत र उ ोग का वा षक राज व दोगुना होकर 800 अरब
डॉलर हो सकता है।
यूजीलड म ‘रॉकेट लैब’ नाम क एक कंपनी ने कम क मत पर पृ वी क
िनचली क ा म उप ह भेजने के लए रॉकेट तैयार िकए ह। दबु ई म
अमीरात एयरलाइन ने ऐसा िवशालकाय हवाई अ ा बनाने का काम शु
िकया है, जस पर हवाई जहाज के अलावा रॉकेट को भी ेिपत करने
क सुिवधा होगी।
अमेजन के सं थापक जेफ बेजोस आम टांग के चाँद पर पहुँचने क
शता दी से पहले लाख लोग को अंत र क सैर कराना चाहते ह।
अब तक अ धकांश रॉकेट वै ािनक खोज के लए ही डजाइन िकए
जाते थे, लेिकन अब पयटक क सुिवधा के लए उनम कुछ नई यव थाएँ
करनी ह गी। इसके अलावा, बाहरी ह पर खनन के लए भी उनम कुछ
िवशेष बदलाव करने ह गे। आनेवाले भिव य म मनु य पृ वी पर एक थान
से दसू रे थान पर जाने के लए भी संभवत: अंत र का उपयोग करेगा
और इससे उड़ान म बहुत कम समय लगेगा। पेसए स ने इस िदशा म
गंभीरता से यास शु िकया है।
भारत म InSpace क थापना के बाद िनजी उ िमय को बहुत ही
ो साहन िमला है। भारत का अंत र काय म स ता और सुिवधाजनक
होने के कारण अंत र टू र म म अब नया दौर लेकर आएगा। Skyroot के
िव म-S लॉ ने भारतीय अंत र उ िमय को एक नई राह दी है। भारत
अपनी इस संभावना से िव अंत र उ ोग म Disruption करने क मता
रखता है।
अब अंत र के भी पृ वी का ही एक िव तार बनने क संभावना है। यह
केवल सरकार के लए ही नह , ब क फम और िनजी यि य के लए
एक नया े बनेगा। लेिकन इसे पूरा करने के लए दिु नया म अंत र के
कानून क एक यव था बनाने क ज रत पड़ेगी और ये ही िनयम शां त म
और यु म भी लागू रहने चािहए।
अंत र का साम रक मह व
अंत र क राजनी त, इसके आ थक फायदे उठा लेने से भी यादा
िकसी भी देश के अपना बचाव या दसू रे के ऊपर हमला करने क मता से
भी जुड़ी है। यह समय ही बताएगा िक अंत र का ान िकस तरह पृ वी
पर िनयं ण करनेवाले मानव और उनके भिव य को तय करेगा?
अंत र क तकनीक, अंत र क सम या, उसका बंधन और उसका
उपयोग अब एक अलग उ ोग है। जो देश इसम आगे ह गे, वे न केवल पैसा
कमाएँ गे, ब क एक नए समुदाय को भी बनाएँ गे और यह उन देश क नई
शि का प रचायक भी होगा। सबसे अ छी बात है िक भारत अब इस
सबका िह सा है। इ ह सब बात के म ेनजर अब अंत र को एक नए
नज रए से देखने क ज रत बढ़ जाती है।
अंत र के अगले 50 साल बहुत अलग ह गे। अंत र क नई
उपयोिगताओं क खोज, इसका र ा े के अ धक-से-अ धक उपयोग,
दोन प म, हमले म और िनगरानी के उ े य से उपयोिगता बढ़ाने के प
म सैटेलाइट को िगराने क लागत और चीनी और भारतीय मह वाकां ाओं
का उ व, ये सभी िमलकर और उ िमय क एक नई पीढ़ी अंत र
िवकास के नए यगु का आगाज करनेवाली ह।
अंत र एक नया यु े होगा। पहला उप ह लॉ िकए जाने के साठ
साल बाद, अंत र सै य होड़ का नया मैदान बनता जा रहा है। जस पर
िवक सत देश क जा करना और हावी होना चाहते ह।
2022 म अमे रका ने अपनी सेना क छठी शाखा क थापना करके यह
संकेत िदया। उसने अपनी ‘ पेसफोस’ के साथ एक अमे रक अंत र
कमान बनाई है। अंत र और साइबर यु के लए ज मेदा रय के साथ,
चीन ने 2015 म अपनी सेना क पाँचव शाखा ‘ टैटे जक सपोट फोस’
बनाई। इसी संदभ म भारत ने ‘र ा अंत र एजसी’ (डीएसए) क थापना
क शु आत क है।
शु से ही अंत र ने सै य ि कोण से च जगाई है। वा तव म,
अ धकांश अंत र काय म सै य उ े य से ही संचा लत थे। ‘बाहरी
अंत र सं ध’ (Outer Space Treaty) अंत र म परमाणु ह थयार क तैनाती
पर तबंध लगाती है। यह आकाशीय व तुओ ं पर सै य िठकान को बनाने
पर रोक लगाती है। पर यह अंत र म पारंप रक सै य ग तिव धय ,
अंत र -उ मुख सै य बल या अंत र म पारंप रक ह थयार के उपयोग
पर तबंध नह लगाती।
DSA बनानेका िनणय भारत के िकफायती अंत र काय म को यान म
रखते हुए िकया गया है। इसे अंत र आधा रत प रसंप य के िनयं ण के
लए भारतीय अंत र अनुसंधान संगठन (ISRO), र ा खुिफया एजसी (DIA)
और रा ीय तकनीक अनुसंधान कायालय (NTRO) जैसी एज सय के
मा यम से काम िकया जाएगा।
वाड का अंत र टेशन
चीन के या, ांस, जमनी, पे जैसे देश के सहयोग से अपना ही ‘चीनी
अंतररा ीय अंत र टेशन’ तैयार करने क ि या म है। इस बीच,
अमे रका ने जो अंतररा ीय अंत र टेशन बनाया था और जो साल
2000 से ही क ा म है, उसक िवदाई साल 2030 तक हो जाएगी। इसका
मतलब है िक अमे रका दसू रा अंत र टेशन तैयार करने क ताक म है।
हालाँिक, चीन को उसक अंत र मह वाकां ाओं को दरू रखने के
मकसद से अमे रका और लोकतांि क जगत् के लए वाड के सद य देश
के बीच एक अंत र गठबंधन सबसे आदश थ त होगी। वाड म
अमे रका, भारत, जापान और ऑ टे लया शािमल ह। चूँिक पहले से ही इन
चार सहयोगी देश के बीच एक भू-रणनी तक गठबंधन पर काम हो रहा है,
इस लए चीन के खतरे को समा करने के लए अंत र म इसका िव तार
अ त ु प से कारगर होगा।
वाड के सद य के बीच इस कार क यव था से सभी को फायदा
होगा, य िक हर देश के पास अंत र गठबंधन को देने के लए कुछ खास
और अनोखा होगा। अमे रका के पास जहाँ उ तकनीक और अगली पीढ़ी
के एिवयोिन स के लए ज री उ त तकनीक आधार है, जो पेस डॉक
िनमाण क रीढ़ का काम करती है, वह अंतर हीय वाहन (आईपीवी) का
िनमाण भी होगा, जो मानव या ी, चालक दल और मशीनरी के प रवहन के
लए आव यक होगा।
ऑ टे लया के ाकृ तक संसाधन टील बनाने के काम आएँ गे, जो ऐसी
ज री साम ी है, जसक आव यकता पेस डॉक को बनाने म बहुत बड़ी
मा ा म पड़ती है।
अपने अंत र े म उ श त और अनुभवी कायबल के साथ भारत
इस अंत र गठबंधन के लए आव यक लोग उपल ध करा सकेगा, जो
सभी वाड सद य के बीच और शायद पूरी दिु नया म भी पैस के लहाज
से सबसे िकफायती ह।
जापान चार देश के इस अंत र यास म अपने उ त रोबोिट स और
वचा लत मशीनरी के साथ मदद कर सकता है।
हालाँिक वाड सद य के बीच इस यव था का सबसे बड़ा िवषय यही
होगा िक वे सभी एक साथ यही देखना चाहगे िक अंत र म अपना दबदबा
कायम करने म चीन िकस कार िवफल होता है? भारत, ऑ टे लया,
औ े े े े ो े े
जापान और अमे रका यह सुिन त करने के लए एक अजेय मोरचे के प
म काम करगे िक चीन पर न केवल इस ह पर, ब क उसके आसपास के
अंत र म भी नकेल कस दी जाए।
चीनी अंत र टेशन के लए चीन-के या क साझेदारी पहले ही टंप
शासन क आँ ख म चुभ गई थी, जसम अमे रका के अलावा उसके कुछ
करीबी देश भी ह। टंप शासन ने बार-बार के या को सावधान िकया था िक
वो बी जग क ओर से िबछाए जा रहे भारी कज के जाल म फँस सकता है।
अजटीना म, कागजी डैगन के िकलेबद
ं पेस सटर क स त जाँच हो रही
है। चीन दावा करता है िक यह सभी के लए खुला है, लेिकन अजटीना के
कई लोग को यह अहसास हो चला है िक चीन 8 फ ट उँ चे काँटेदार
तारवाले उस पेस सटर का इ तेमाल असल म जासूसी और सेना से जुड़े
उ े य के लए कर रहा है।
ऐसे म समझदारी इसी म है िक वाड के सद य देश ज द-से-ज द एक
अंत र गठबंधन को बना ल, तािक पृ वी के बाहर एक महाशि के प म
खुद को थािपत करने का चीन का इरादा नाकाम कर िदया जाए। लेिकन
संभवत: ऐसा हो नह पाएगा, य िक अमे रका हर समय हर िकसी को
बेवकूफ बनाकर और अपनी नी तय और काय म असीम िवरोधाभास
लेकर यह करेगा ही नह । चीन कभी उसका द ु मन, कभी दो त बना रहता
है।
अ धकांश देश म अंत र के नाग रक काय उनके अिनवाय प से सै य
काय म का एक िह सा थे। भारत का एक अलग ख था, जसने जोर
देकर कहा िक इसका काय म िवकासा मक ल य को पूरा करने के
उ े य से है। भारत अपने काय म को जतना संभव हो, उतना पारदश
बनाने के लए यास करता है। यह िवक सत होनेवाली ौ ोिगिकय ,
इसक परी ण ि याओं और उनसे जुड़े सभी तरह के िववरण दान
करता है।
लेिकन र ा के अलावा अंत र खुद को एक नए े के प म िवक सत
करेगा। अंत र आय कमाने के नए मा यम के प म िवक सत हो रहा है
और िन त प से यह सभी के लए समृ और बेहतर संचार नेटवक के
लए पयटन को शािमल करेगा। लंबे समय म इसम खिनज दोहन और यहाँ
तक िक बड़े पैमाने पर प रवहन शािमल हो सकता है। ये कुछ नए
यावसा यक मॉडल ह, जो या तो िवक सत हो रहे ह या होने के करीब ह।
अंत र म ये नए यवसाय अब बहुत भ ह। इसम िनचली क ाओं म
संचार उप ह के समूह को लॉ करने और रखरखाव का बड़ा यवसाय
और अमीर के लए पयटन मुख ह। आनेवाले समय म िन त प से
उप-क ीय मण पर व जन और लू ओ र जन कंपिनय के या ी िदखाई

दगे।
2030 तक अंत र उ ोग का वा षक राज व दोगुना होकर 800 अरब
डॉलर हो सकता है। कुछ लोग मंगल पर बसने क इ छा रखते ह। अमेजन
के सं थापक आम टांग के चाँद पर पहुँचने क शता दी से पहले लाख
लोग को अंत र टेशन पर रहते देखना चाहते ह।
िफर भारत म धानमं ी के नेतृ व म और डॉ जीत सह के कुशल
शासन ने ऐसे आयाम खोल िदए ह जसक क पना िव कभी कर भी
नह सकता था। भारत के लोग का साहस, उनक मता, भारतीय कौशल
और उ तरीय तकनीक को भारत के धानमं ी माननीय ी नर मोदी
का ो साहन हो तो भारत कई अंत र के ऊपर िवजय ा कर लेगा।
ऐसे समय म, जब पृ वी का पयावरण िबगड़ता जा रहा है, आशावािदय
को अंत र म एक संभावना नजर आती है। इन सबके बावजूद अंत र क
ओर यह ख न तो रामबाण है और न ही कोई आसान काम।
बाहरी अंत र म चुनौ तयाँ
इस पूरे सपने को साकार करने के लए एक बड़ी सम या को हल करना
होगा और एक खतरनाक जो खम से बचना होगा। 1967 क ‘आउटर पेस
टीटी’ ने अंत र को ‘सभी मानव जा त का साझा थान’ घोिषत िकया
और सं भुता का दावा करने से मना िकया।
जीवन के लए चं मा के ुव पर बफ का उपयोग करने का सबसे अ छा
दावा कौन करेगा? या मंगल ह पर बसनेवाल को पयावरण से मनचाहा
यवहार करने क अनुम त होनी चािहए? उप ह के बीच ट र के लए
कौन उ रदायी है? अंत र म पहले से ही भीड़ है, 2,000 से अ धक
उप ह पृ वी क क ा म ह। नासा ने 27,000 िकमी. तघंटे से अ धक के
वेग पर 5,00,000 से अ धक मलबे के टु कड़ का पता लगाया है।
अंत र म सै य ग तिव ध के लए कोई ठीक से तैयार ोटोकॉल या
िनयम नह है। अमे रका, चीन और भारत तेजी से अपनी िवनाशकारी
मताओं को बढ़ा रहे ह; लेजर के साथ सै य उप ह को अंधा कर रहे ह,
पृ वी पर उनके संकेत को जाम कर रहे ह या, यहाँ तक िक उड़ा रहे ह,
जससे मलबा ु ेना के िनमाण के
ांड म िबखरा हुआ है। 1947 म वायस
बाद से पहली बार अमे रका ने एक नई सेना क ‘ पेस आम ’ गिठत करने
क योजना बनाई है।
अंत र का ान ही अब मानव और उनके भिव य को तय करेगा
अंत र के सही उपयोग से मानवता अपनी जकड़न को तोड़ सकती है।
एक रोमांिटक गंत य और अराजक सीमांत के प म अंत र को बढ़ावा
े ै ै ँ
देना एक गलती है। अंत र ऐसा थान है, जहाँ मानवता अपनी जकड़न
को तोड़ और अपने भा य को िफर से तय कर सकती है। अंत र े क
संभावनाओं को पूरा करने के लए यव था क ज रत होती है। अंत र
और चं मा िमलकर पृ वी का िव तार बन सकते ह, लेिकन अंत र म
ाकृ तक संतुलन का िबगड़ना पृ वी क उन सम याओं को कई गुना बढ़ा
सकता है, जसम सुधार करने क को शश देश वे छा से या अिन छा से
कर रहे ह।

अ याय 14
भिव य क अंत र रणनी त और राजनी त
इ तहास और पृ भूिम
अंत र को लेकर भारत िव का और मानवता का पहला सुपर पावर
रहा। भारत ने अनेक मह वपूण जानका रय और ान को जुटाया है।
ाचीन भारत क तुलना म हमारी नवीनतम उपल धयाँ कह भी नह
ठहरती ह। परंतु भारत क सारी जानकारी, सारा ान िवशु सनातनी
व प म मानवता के लए था।
सबसे पहले भारतीय ने ही यह माना िक हमारा अपना सौरमंडल है।
हजार साल पहले, ऋ वेद ने बताया िक सूय हमारे ांड के क म है और
सारे ह उसक प र मा करते ह। खगोलशा समय का िहसाब रखता था
और स या य साल-दर-साल समान अव ध म दोहराए जाते थे। ाचीन
भारत क गणना िब कुल सटीक थी, और एक साल का मतलब था एक
साल, ना कम, ना यादा।
आधुिनक िव ान क गणना के अनुसार, पृ वी से सूय क दरू ी
15,20,00,000 िकमी. है। हनुमान चालीसा के अनुसार, अनुमािनत गणना
लगभग 9,60,00,000 मील या 15,36,00,000 िकमी. थी। आ य है िक
दोन गणनाओं म मा 1 तशत क चूक है।
महान् भारतीय खगोल िव ानी और ग णत आयभट ने पाई (π) का
अनुमािनत मान िनकालने पर काम िकया। वह इस नतीजे पर पहुँचे िक यह
अप रमेय सं या है और इसका मान लगभग 3.1416 है। आयभट का
अनुमान था िक धरती क प र ध लगभग 39,736 िकमी. है। वै ािनक अब
जान चुके ह िक धरती क प र ध 40,075 िकमी. है। आयभट ने पाया िक
तारे प मी िदशा म जाते िदखते ह, य िक पृ वी (अपने गोलाकार आकार
के कारण) अपनी धुरी पर घूमती है। उ ह ने बताया था िक ह और उनके
उप ह सूरज से िमलनेवाली रोशनी से चमकते ह।
अंत र के अ ययन म भारत का अतुलनीय योगदान है। हाल क खोज
तो उसक बानगी भर है। हम पहले ही जानते थे िक एक साल िकतना लंबा
होता है। ाचीन स यताओं म हण से लोग डरते थे, लेिकन वेद ने उनके
पीछे के िव ान को समझाया था। हम रोशनी क ग त के बारे म जानकारी
थी और भारत के इस योगदान के उपरांत कुछ े ण अरब के रेिग तान म
िकया गया। िफर औ ोिगक ां त से पहले और बाद म यूरोप से योगदान
आए। गैली लयो, कोपरिनकस आिद सभी इसका ही िह सा थे।
ो ेऔ ो ो े
इसक खोज ने और यूरोप को िमली नई अ मता ने अंत र म एक नई
ज ासा ला दी। अंत र अब ज ासा से भी बढ़कर थान हो गया। ांस,
इटली, ि टेन, अमे रका और स ने थम िव यु के पहले और उसके
बाद म अंत र पर अ छी सूचनाएँ एकि त कर ली थ और ानोपाजन भी
कर लया था। ि तीय िव यु तक अंत र को एक नई ि से देखा जाने
लगा था।
अब तक यु का व प प रव तत हो चुका था और असली यु से परे
अब मतभेद को देखा जा रहा था। सौरमंडल के अ त व क बात को
सबसे पहले हमने ही माना था।
दस
ू रे िव यु के बाद अमे रका- स क त ंि ता
आधुिनक यु म शािमल त ं ी जल, थल, नभ और साइबर पेस म
एक-दसू रे को चुनौती देते ह। साइबर पेस और अंत र के नए े म
संघष को सभी आधुिनक यु म देखा जा सकता है। जो इस संघष को
जारी रखते ह, उ ह जीत िमलती है और जनक इ छाशि कमजोर पड़
जाती है, वे यु हार जाते ह। िकसी भी यु म अंत र अब अहम भूिमका
िनभाने लगा है।
ि तीय िव यु के बाद क अंत र नी त
ि तीय िव यु म ांस, स और ि टेन क लड़ाई जमनी, जापान और
इटली के िव थी, लेिकन अमे रका इसम शािमल नह हुआ। वष 1937
म, जापान ने चीन पर आ मण कर िदया और 1940 म जापान जमनी का
साथी बन गया। पल हाबर क घटना के साथ ही अमे रका का असहयोग
समा हो गया।
अमे रक कमांडर कभी टोही उड़ान नह भरते थे और यही उनक सबसे
बड़ी भूल थी। उन िदन पता लगाने का यही एक तरीका था िक कोई उनक
ओर बढ़ रहा है या नह ? उस समय देश के पास उप ह नह थे, जो उनके
नौसैिनक कमांडर को चौक ा कर सक िक द ु मन उनके करीब आ रहा है।
1920 के दशक से ही दिु नया भर म ‘रे डयो डटे शन एं ड र जग’
(RADAR) का उपयोग िकया जाता रहा है। आला अमे रक नौसैिनक
कमांडर ने तकनीक म कोई िदलच पी नह िदखाई और अ धकारी शोध
के लए पैसे देने से इनकार कर िदया करते थे। यह समझा जा सकता है िक
उन िदन लंबी दरू ी क िमसाइल य नह थी, जो पेलोड ले जा सकती थी।
लड़ाकू िवमान ने जब पल हाबर पर बम िगराना शु िकया तो सारी
प र थ त बदल गई। दिु नया भर के देश को रडार तकनीक का मह व
समझ आने लगा।

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6 िदसंबर, 1941 को 353 जापानी लड़ाकू िवमान ने पल हाबर पर
भीषण गोलाबारी क । यह हाबर हवाई के ओहू म थत है, जहाँ अमे रका
शांत नौसैिनक बेड़ा मौजूद था। सुबह के आठ बजने म अभी पाँच िमनट
बाक थे िक जापािनय ने कुछ िमनट के भीतर ही अमे रक बेड़े को तबाह
कर िदया। अमे रका को जो मनोवै ािनक झटका लगा, वो कह यादा
जबरद त था।
पल हाबर पर हमला करने के लए जन जापानी कािमकेज पायलट को
चुना गया था, वे जापान के सबसे बेहतरीन पायलट म शािमल थे और
उ ह ने जस काम को अंजाम िदया, उसम उनका कोई जोड़ नह था। एक
ही बम के हमले ने ए रजोना नाम के अमे रक यु पोत को डु बो िदया, जो
18 यु पोत पल हाबर पर लंगर डाले खड़े थे, उनम से 17 महासागर के गत
म समा गए।
जापानी िवमानवाहक पोत ने 24 नवंबर को अपना सफर शु िकया और
लगभग 5,000 िकमी. क दरू ी खुले महासागर म तय करते हुए, िबना िकसी
बाधा और िबना िकसी क नजर म आए मं जल तक पहुँच गए। अगर उस
समय उप ह होते तो इतना िवनाशकारी हमला नह होता। पूरी दिु नया
हैरान रह गई और उसने तुरत
ं इस घटना का सं ान लया।
अनेक देश के पास अब सैटेलाइट ह, जो उनक सीमाओं पर नजर गड़ाए
रहती ह, सुननेवाले उपकरण ह, जो द ु मन के रे डयाे सारण को सुन पाते
ह और अ याधुिनक रडार ह। 11 सतंबर, 2001 को यह प हो गया िक
पल हाबर से अमे रिकय ने कोई सबक नह लया।
अमे रका के U2 टोही िवमान
पल हाबर म च का देनेवाले हमले के बाद अमे रिकय ने दस
ू रे िव यु म
शािमल होने का फैसला िकया। िद गज सैिनक रह चुके, रा प त वाइट डी
आइजनहावर साल 1953 म अमे रका के रा प त बने और 1961 तक इस
पद पर कािबज रहे। दसू रे िव यु क नाकािमय के बाद उ ह ने अपने देश
क पहली अंत र नी त तैयार करने का फैसला िकया। अब द ु मन बदल
गए थे और शीतयु का मतलब था िक अमे रक सेना पूववत सोिवयत
संघ पर नजर रखना चाहती थी। जसे ‘पल हाबर मट लटी’ कहा जाता है,
वही अमे रका क पूरी अंत र नी त को े रत कर रही थी।
अमे रक सरकार ने लॉकहीड के साथ साझेदारी क और सगल इंजन
जेट िवमान तैयार िकया, जसम हाई रजॉ यूशन कैमरे िफट थे, ज ह ‘U2’
नाम िदया गया। वे 70,000 फ ट क ऊँचाई पर उड़ते थे और पािक तान,
नॉव, टक और जापान थत बेस से उड़ान भरा करते थे। इसने कई देश
म जासूसी क ग तिव धयाँ क और िवयतनाम, यूबा, चीन और सोिवयत

े ै ो े ै े ै ो ै
संघ के सै य िठकान को अपने कैमरे म कैद िकया। कई लोग का मानना है
िक आधुिनक यगु के अंत र और साइबर पेस म खोज क शु आत U2
िवमान से ही हुई।
आ खरकार 1 मई, 1960 को सोिवयत ने एक U2 को मार िगराया, जो
उनके इलाके म घुस आया था। इस घटना के बाद सी परमाणु काय म
पर अमे रक िनगरानी बंद हो गई, लेिकन U2 िवमान ने तकनीक प से
कम उ त देश क जासूसी करना जारी रखा। अंत र यु का दौर लंबे
समय तक जारी रहनेवाला था।
पुतिनक—अंत र म पहला उप ह
4 अ ू बर, 1957 को स ने बा केटबॉल के आकार के 85 िकलो के
उप ह, ‘ पुतिनक-1’ को अंत र म भेजा। ‘ पुतिनक-1’ पृ वी क
प र मा करनेवाला पहला उप ह था। अमे रिकय को आशंका थी िक स
के पास परमाणु शि से लैस बै ल टक िमसाइल है, जसे वो अंत र से
लॉ कर सकता है। आइजनहावर ने एक साल के भीतर ‘नेशनल
एरोनॉिट स एं ड पेस एडिमिन टेशन’ (NASA) क थापना क । इस तरह
अंत र क रेस शु हो गई।
एक होड़ शु हो गई और उसका नतीजा तकनीक तर के प म
सामने आया, जो इनसान को चाँद पर ले गया, अनेक उप ह का ेपण
हुआ और अंत म ‘इंटरनेशनल पेस टेशन’ (ISS) अ त व म आया। यह
पृ वी क प र मा करता है और अंत र के इस टेशन म हजार मेहमान,
अंत र या ी और वै ािनक रह चुके ह।
12 अ ैल, 1961 को सय ने यूरी गाग रन को अंत र म भेजा, जो
हाल के इ तहास म अंत र म पहुँचनेवाले पहले यि बन गए। अमे रक
भी पीछे नह रहे और 5 मई, 1961 को उ ह ने एलन शेफड को अंत र म
भेजा। एक दशक और एक ह ते बाद 19 अ ैल, 1971 को सोिवयत ने एक
पेस टेशन पर काम शु िकया और अंत र क क ा म ‘सै यूट-1’ को
भेजा।
‘सै यूट ंखला’ ने ‘मीर’ के लए बुिनयादी काम िकए, जो पहला टेशन
था। बड़ी मु कल से ‘मीर’ को अंत र म तैयार िकया गया। यह एक
मॉ ूलर पेस टेशन था, जसके िह स को रॉकेट के ज रए क ा म
भेजा गया था। पूरा होने पर यह अंत र म 43 फ ट का वक टेशन बन
गया था, जहाँ सोिवयत अंत र याि य के साथ ही दिु नया भर से आए
अंत र या ी रहते थे। मीर ने कई वष तक तमाम चुनौ तय का अ छी
तरह सामना िकया। यह सल सला 1990 के दशक तक जारी रहा, जसके
बाद यह धीरे-धीरे पुराना पड़ने लगा और इसे खाली कर न कर िदया
गया। यहाँ सीखी गई बात आज भी अंत र याि य का मागदशन करती ह।
इंटरनेशनल पेस टेशन (ISS)
वष 1998 से 2011 के बीच बनकर तैयार हुआ ‘इंटरनेशनल पेस
टेशन’ (ISS) इंजीिनय रग क एक उ कृ िमसाल है। इसने तकनीक और
िव ान का सफलतापूवक संगम िकया और 2 नवंबर, 2000 से ही यहाँ
इनसान रह रहे ह। यह 400 िकमी. क ऊँचाई पर पृ वी क प र मा करता
है और 28,000 िकमी. तघंटे क र तार से 90 िमनट म हमारा एक च र
लगा लेता है। ISS तक पहुँचने के लए अंत र याि य को सी ‘सोयजु
कै सूल’ का ही इ तेमाल करना पड़ता है। 3 माच, 2020 को एलन म क
क कंपनी ‘ पेसए स’ पहली कंपनी बन गई, जो आम नाग रक को ISS
तक ले गई।
1950 के दशक के आ खर तक U2 क उड़ान बेहद जो खम भरी हो चुक
थ । आइजनहावर ऐसी सैटेलाइट चाहते थे, जो अंत र से द ु मन देश क
जासूसीवाली तसवीर भेज सक। ‘CORONA टोही काय म’ को अमल म
लाने के लए अमे रक सरकार, CIA और एयरफोस ने हाथ िमलाया। जब
सोिवयत ने 1 मई, 1960 को उनके U2 को मार िगराया, तब ‘CORONA
ोजे ट’ ने और र तार पकड़ ली।
अमे रिकय ने ऐसे सैटेलाइट तैयार िकए, जो पृ वी क तसवीर को
वापस भेज सकते थे। वह खास कैमरे फोटो ाफ क िफ म पर तसवीर
को कैद करते, सैटेलाइट पर ही उ ह डेवलप करते, इले टॉिनक तरीके से
उ ह कैन करते और िफर ाउं ड टेशन तक उ ह वापस भेज देते थे। 19
अग त, 1960 को स ने एक ‘बायो सैटेलाइट’ (जो पशुओ ं और पौध को
अंत र म ले जाता है) लॉ िकया। ‘कोराबल- पुतिनक 2’ दो कु को
पृ वी क क ा तक ले गया और उ ह सुर त वापस ले आया।
टारिफश ाइम ो ाम
1960 के दशक के दौरान अमे रका ने एक टारिफश ाइम ो ाम लॉ
िकया। रॉकेट हाइडोजन बम को बाहरी अंत र म ले जाते और पृ वी के
वातावरण म दोबारा वेश करने पर उनम धमाका कर िदया करते थे।
(हाइडोजन बम दस ू री पीढ़ी के परमाणु ह थयार ह और पहली पीढ़ी के
एटमी बम से अ धक शि शाली ह)। उ ह परमाणु ह थयार से लैस
‘अंतरमहा ीपीय बै ल टक िमसाइल ’ (ICBM) को पहुँचाने के लए
िवक सत िकया गया था।
ै शनल ऑ बटल बॉ बाडमट स टम (FOBS)
उस समय तक, कई देश अ याधुिनक रडार तैयार कर चुके थे। उसी
दौरान, सोिवयत संघ क अपनी ही योजना थी और उसने ‘ ै शनल

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ऑ बटल बॉ बाडमट स टम’ (एफओबीएस) िवक सत िकया। FOBS ने
परमाणु िमसाइल को ले जाने के लए िन न टैजे टी (अ धकतम 150
िकमी.) का इ तेमाल िकया। उ ह ने ऐसा इस लए िकया, तािक रडार को
धोखा िदया जा सके और हमले से कुछ पल पहले तक उसका पता न लग
सके।
1960 के दशक के आ खर तक, तमाम देश के अनेक कृि म उप ह
क ा तक पहुँच चुके थे। सोिवयत संघ क ओर से अपने साथी देश को
प म देश से बचाने के लए खड़ी क गई दीवार के दोन तरफ के देश को
अंत र म अपनी संप य को लेकर चता सताने लगी। इसका नतीजा
‘आ मर ाथ’ एं टी-सैटेलाइट ह थयार को िवक सत िकए जाने के प म
सामने आया।
काटक : अंत र म पहली तोप
सय ने ‘अ माज रज’ के सै य अंत र टेशन को बनाने के लए
अपने ‘सै यट
ू ’ उप ह का इ तेमाल िकया। पृ वी क क ा से ‘सै यट ू ’
लगभग 270 िकमी. क ऊँचाई पर थे। उ ह ने अंत र म शोध िकया।
उनके पास सै य टोही उ े य के लए अ याधुिनक कैमरे थे और जाँचे-
परखे िवमान के ारा इ तेमाल िकए जानेवाले ह थयार थे। ‘सै यूट-3’
पेस टेशन पर तैनात R-23M काटक रैिपड फायर तोप पहला ‘र ा मक
अंत र ह थयार’ बन गया। यु म परखे गए हवाई ह थयार से िवक सत,
ये अंत र तोप त िमनट 200 ाम वजन के हजार 14.5 िममी के गोले
दाग सकती ह। 1975 क शु आत म, सोिवयत सेना ने अंत र म अपनी
िवशाल तोप का परी ण िकया। वै ािनक ने ताकतवर रीकॉइल का तोड़
िनकालने के लए जेट टस का इ तेमाल िकया और टे ट फाय रग के
फौरन बाद अंत र यान को क ा से बाहर कर िदया जाता था। अंत र म
ह थयार के यु को लेकर सय ने भौ तक से जुड़ी काम क कई बात
सीख ।
अमे रक F-15 और अमे रक एं टी-सैटेलाइट िमसाइल (ASAT)
1980 के दशक तक, अमे रक जासूसी उप ह पृ वी पर अपने द ु मन
पर नजर रख रहे थे और अ य उप ह अंत र से संचार के लक मुहय ै ा
करा रहे थे। अमे रक वायसु ेना क ओर से िवक सत अमे रक F-15 िवमान
तकनीक प से उ त हो चुके थे और वजन के मुकाबले ट का अ छा
अनुपात हा सल कर लया था। इसका मतलब था िक जब वे सीधे ऊपर
क ओर उड़ान भरा करते थे, तब भी वे र तार बढ़ा सकते थे। वॉट ASM-
135A नाम क एं टी-सैटेलाइट (ASAT) िमसाइल अंत र म द ु मन के उप ह
को िनशाना बनाने के लए पसंदीदा ह थयार थी। इं ारेड गाइडस स टम
गरमी क तलाश करनेवाली िमसाइल को राह िदखाता था। 1985 के अंत
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म, अमे रिकय ने F-16 पर लोड िकए गए िवशेष प से सुस त िमसाइल
का इ तेमाल िकया और अपने उप ह, ‘सोल वड P78-1’ को पृ वी से 550
िकमी. ऊपर क ा म ले गया। िमसाइल ने ल य को िनशाना बनाया और
अमे रका ने इस िमशन को तब तक उ ेखनीय प से सफल बताया, जब
तक उप ह ने िनगरानी करनेवाले वै ािनक तक डाटा वापस भेजना बंद
नह िकया।
ि लयंट पेब स
1980 के दशक के दस ू रे िह से म अमे रका अंत र म कई छोटी
िमसाइल तैनात करने पर िवचार कर रहा था। ‘ि लयंट पेब स बै ल टक
िमसाइल स टम’ नाम क इन िमसाइल को पूरे अंत र म तैनात िकया
जाना था। जैसे ही द ु मन क िमसाइल लॉ होती, इं ारेड ससर उनका
पता लगाते, उ ह इंटरसे ट करते और न कर िदया करते थे। इनका
उ पादन शु हुआ, लेिकन लागत बढ़ने के कारण 1993 म इस प रयोजना
को र कर िदया गया।
अंत र : एक नया मोरचा
1967 म, दिु नया भर के देश ने ‘आउटर पेस टीटी’ पर ह ता र िकए।
इसने सामूिहक िवनाश के ह थयार को क ा म कह भी रखने पर पाबंदी
लगा दी, चाहे वे िकसी भी देश के य न ह , लेिकन देश को क ा के ऐसे
ह थयार िवक सत करने क अनुम त दे दी। 1972 म, सोिवयत संघ और
अमे रका ने ‘एं टी-बै ल टक िमसाइल सं ध’ (ABM टीटी या ABMT) पर
ह ता र िकए। दोन देश अपने एं टी-बै ल टक िमसाइल श ागार को
100-100 तक सीिमत करने पर सहमत हुए। वष 2002 म रा प त बुश इस
सं ध से बाहर िनकल आए। वे अंत र आधा रत िमसाइल को और
अ धक आ ामक तरीके से आगे बढ़ाना चाहते थे। सं ध से अमे रका के
िनकल जाने के बाद दिु नया भर म ह थयार क होड़ का एक और दौर शु
हो गया।
2007 क शु आत म, चीन ने सचुआन ांत क िकसी जगह से एक
एं टी-सैटेलाइट िमसाइल लॉ क । इसने फगयनु ंखला के एक पुराने पड़
चुके चीनी मौसम िनगरानी उप ह को क ा से बाहर िकया। 750 िकलो का
यह उप ह करीब 850 िकलोमीटर क दरू ी पर पृ वी क प र मा कर रहा
था। चीनी सोिवयत FOBS पर आधा रत एक अवधारणा पर भी काम कर रहे
ह।
माच 2019 म, भारत ने ‘पृ वी रज’ क अपनी एक सैटेलाइट िमसाइल
का इ तेमाल िकया और पृ वी से 283 िकमी. दरू प र मा कर रहे ल य
को िनशाना बनाया। इसके साथ ही भारत उन देश के शानदार समूह म

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शािमल हो गया, ज ह ने एं टी-सैटेलाइट िमसाइल टे ट िकया है। मा चार
देश ने ऐसा िकया है— स, अमे रका, चीन और भारत।
अंत र क नई वा ण यक पहचान
जनवरी 2021 म, पेसए स (एलन म क क कंपनी) ने एक सगल
ोजे टाइल लॉ िकया, जसम 143 मॉलसैट थे। पेसए स ने इन छोटे
उप ह को एक िवशेष ुवीय क ा म सफलतापूवक लॉ िकया। ये
मॉलसैट अब अला का के ुवीय े म ाहक को ज री सुिवधाएँ दे रहे
ह।
मॉलसैट अब सुदरू अंत र म पड़ताल के मौके, डाटा-सटर और
अंत र आधा रत िबलबोड भी उपल ध कराते ह। अंत र म जाने के लए
मानो होड़-सी लगी है और अगर कह िक इसम संभावनाओं क सुनामी
मौजूद है, तो गलत नह होगा। ाउड कं यू टग म शािमल संगठन के
यास से अंत र का एक भरा-पूरा पा र थ तक तं बनाने क ि या
जारी है।
साल 2019 म, वै क अंत र उ ोग लगभग 420 िब लयन डॉलर का
था। 2018 म यह 360 िब लयन डॉलर का था। इसम अंत र म शोध,
उसक खोज और उसका उपयोग शािमल है। इस अथ यव था के एक-
चौथाई िह से का संबधं उपभो ा टेलीिवजन क ग तिव धय से है।
अनुमान है िक यह िह सा 2040 तक 50 तशत तक पहुँच जाएगा।
उप ह का उपयोग सै य उ े य और वै ािनक शोध के लए भी िकया
जाता है, जसे वा ण यक नह माना जा सकता।
साल 2019 म संचार उप ह से दिु नया भर क कमाई लगभग 271
िब लयन डॉलर थी और 95 नए उप ह लॉ िकए गए थे। उन ेपण का
मतलब था िक 2,514 उप ह क ा म थे, जनम से अमे रका के 1,327
उप ह थे। अंत र क अथ यव था म दिु नया भर क सरकार का खच
मा 20 तशत है। सालाना 5 तशत क च वृ दर का मतलब है िक
वै क अंत र अथ यव था साल 2026 तक 550 िब लयन डॉलर क हो
जाएगी। ऐसी उ मीद है िक नैनो सैटेलाइ स के इ तेमाल और िब ी पर
अ छा-खासा खच िकया जाएगा। ए शया शांत, यूरोप और द ण
अमे रका के देश के पास उप ह या उनके लाॅ र का यावसा यक
उ पादन शु करने क तकनीक या जानकारी नह है। इन उ पाद क
उनके यहाँ भारी माँग है। यह भारत क भूिमका अहम हो जाती है। भारतीय
अंत र काय म इनम सबसे िकफायती है।
बेजोस ने अंत र क सैर करानेवाली एक कंपनी के प म ‘ लू
ओ र जन’ क शु आत क और इसने जुलाई 2021 म अंत र म एक
रॉकेट भेजा। उसी महीने रचड ैनसन ने अपने अंत र िवमान म अंत र
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क या ा क । अंत र पयटन इतना बड़ा े है िक लगभग 600
अरबप तय म से हर एक अपनी उड़ान के लए 2,50,000 डॉलर का
भुगतान करने के इंतजार म है। कई लोग ने एडवांस पेमट कर िदया है और
वे अपनी बारी का इंतजार कर रहे ह। िफलहाल िटकट क क मत स ती ह।
पहले अंत र पयटक ने इंटरनेशनल पेस टेशन तक पहुँचने के लए 20
िम लयन डॉलर चुकाए थे, हालाँिक यह साल 2001 क बात है।
अंत र के नए उपयोिगता वाहन चालक दल और याि य को अंत र म
ले जाते ह, पृ वी पर लौटते ह और सुर त प से रनवे पर उतर जाते ह।
मॉगन टेनली का अनुमान है िक 2040 तक अंत र उ ोग क वै यू 1
िट लयन डॉलर हो जाएगी, जो वाकई च कानेवाला है। हाल के घटना म
हम िदखाते ह िक अंत र म अ धकांश िनवेश सरकार क ओर से नह ,
ब क िनजी यि य क ओर से िकए गए ह।
अंत र म अ य देश क उड़ान
यरू ोपीय संघ के अलावा जापान, द ण को रया और संयु अरब
अमीरात उन नए देश म शािमल ह, जो ज द ही अंत र म उड़ान भरना
चाहते ह। अंत र अब चंद देश क तकनीक दशन क िम कयत नह
रह गई है।
मंगल के लए इतने िमशन य ?
पहले के मुकाबले कह अ धक देश अब अंत र म जा रहे ह, य िक
ेपण और िवकास क लागत कम हो गई है। दरू ी क बात कर तो मंगल
एक पड़ाव आगे है और जनके पास सबसे अ धक मता और संसाधन ह,
वही वहाँ तक पहुँच सकते ह। इस वजह से ही इस ह के लए सारे
अ भयान दिु नया भर म वै ािनक और तकनीक कौशल क िमसाल माने
जाते ह।
भौ तक ही मंगल तक ले जाता है
पृ वी और मंगल अलग-अलग ग त से सूय क प र मा करते ह, लेिकन
हर 26 महीन म, उनक क ाएँ इस तरह एक-दसू रे क सीध म आ जाती ह
िक अंत र एज सयाँ होहमैन टांसफर ऑ बट के नाम से िव यात थ त
का लाभ उठा सकती ह।
नासा ने मई 2018 म इसी अवसर का लाभ उठाया, जब उसने
‘इनसाइट, मास वेक डटे टर’ को लॉ िकया।
मंगल का वातावरण पृ वी क तुलना म बहुत पतला है और मु य प से
काबन डाइऑ साइड से बना है। यह इतना पतला है िक वै ािनक काफ
हद तक मान चुके ह िक इस ह क सतह पर पानी मौजूद नह हो सकता।
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हालाँिक अब भी इस लाल ह क वायम ु ड
ं लीय थ तय के बारे म कई
पहे लयाँ ह, ज ह हल कर लेने क उ मीद खगोलिवद को है।
इस ह के िव च वातावरण के बारे म और जानकारी के लए, संयु
अरब अमीरात ने 14 जुलाई को ‘अल अमल’ ोब को मंगल ह पर भेजा,
जसे ‘होप’ के नाम से भी जाना जाता है।
अब तक सफ अमे रका और स ही मंगल क सतह पर उतर पाए ह।
‘इंजेनुइटी िमशन’ अंत र क अलग-अलग दिु नया और बृह प त या
शिन के अब तक अनजाने उप ह का पता लगाने के नए तरीक को संभव
बनाएगा।
पस वरस का टचडाउन पॉइंट एक ाचीन झील का एक िकनारा है, जसे
‘जेजेरो े टर’ के नाम से जाना जाता है। ऐसा लगता है जैसे इस ग े म
कभी पानी भरा था और पस वरस के वै ािनक उपकरण यह जानने के लए
िक या कभी वहाँ जीवन पनपा था, उसक िम ी और तलछट का िव ेषण
कर लगे। यह नमून को भी इक ा करेगा और उ ह ‘जेजेरो े टर’ क सतह
पर छोड़ देगा, तािक मंगल पर इसके बाद के िमशन उन नमून को िफर से
इक ा करगे और उ ह पृ वी पर वापस ले आएँ गे।
अमे रक सेना का अपना पेस कमांड और छठा बेड़ा है, जो खास
अंत र के लए है। चीन के पास टैटे जक सपोट फोस यानी साम रक
सहायता बल है और इस पर सफ और सफ अंत र यु क ज मेदारी
है। इन खतर का मुकाबला करने के लए भारत के पास डफस पेस
एजसी (DSA) है।
DSA क भूिमका इसरो, नेशनल टे नकल रसच ऑिफस (NTRO), और
डफस इंटे लजस एजसी (DIA) जैसी िव भ भारतीय अंत र एज सय के
बीच तालमेल िबठाने क है। यह अंत र म भारत क प रसंप य को भी
िनयंि त करेगी। भारत के पास कई उप ह ह, जो अलग-अलग तरह के
काम करते ह।
भारत के र ा े ने अंत र का इ तेमाल मु य प से िनगरानी के
अपने उ े य के लए िकया है। हालाँिक, आधुिनक यगु म लड़े जानेवाले
यु के लए गु संकेतवाले सारण और तसवीर क स त ज रत है।
हमारे लड़ाकू िवमान , गोला-बा द और मानवरिहत िवमान को राह
िदखाने के लए भी उप ह आव यक ह। दिु नया भर क सेनाएँ मानती ह िक
छोटी-बड़ी लड़ाइय और यु को जीतने म अंत र क भूिमका अहम होती
है और भारत भी इस बात को मानता है।
आधुिनक यगु क सेनाएँ द ु मन के उप ह को कुछ भी देखने से रोक
देती ह, उनके स ल जाम कर देती ह और उ ह न तक कर देती ह।
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2019 के अंत म, िमशन शि के अंग के प म, भारत ने अंत र म एक
एं टी-सैटेलाइट (ASAT) िमसाइल परी ण शु िकया। पीएम नर मोदी ने
यह घोिषत िकया िक भारतीय वै ािनक ने अंत र म 300 िकमी. क दरू ी
पर लो अथ ऑ बट (LEO) म एक सि य उप ह को मा आधे िमनट म मार
िगराया है। अब तक सफ स, चीन और अमे रका के पास यह तकनीक
थी।
‘पृ वी डफस हीकल’ (PDV) माक-II भारत के बै ल टक िमसाइल
र ा (BMD) काय म का िह सा है। वे क ा म मौजूद द ु मन के उप ह को
मार िगरा सकते ह। ‘पृ वी िमसाइल’ द ु मन के मह वपूण संचार लक को
रोक देगी और इस कार उनक िनगरानी मता सीिमत हो जाएगी।
भारत के पास इमे जग इं ारेड ससर तकनीक भी है, जसक मदद से
जमीन या अंत र आधा रत लेजर का इ तेमाल कर द ु मन के उप ह को
तबाह िकया जा सकता है। ज दी ही अंत र एक नया यु े बननेवाला
है और चुनौ तय से िनपटने के लए भारत को अपनी तरोधक मता
िवक सत करनी ही होगी।
इसके अलावा अंत र का लाभ उठाने के लए भारत ने त काल
उपल ध ौ ोिगक का इ तेमाल करना शु कर िदया था। हमने रमोट
स सग, नेिवगेशन, दरू संचार और अंत र से जुड़े दस
ू रे काम के लए
इसका उपयोग िकया। भारत ने 2005 म उप ह क काट सैट ंखला
तैयार क , जससे हम ऐसे उप ह िमले, जो कई कार के काम कर सकते
थे। काट सैट उप ह का इ तेमाल पृ वी पर नजर रखने और संसाधन के
बंधन के लए िकया जाता है।
कुछ ही उप ह र ा उ े य और िनगरानी के लए उपल ध ह।
काट सैट-3 सीरीज को 2019 के अंत म लॉ िकया गया था और भारत का
यह उप ह दिु नया भर म सव े गुणव ावाली तसवीर उपल ध करता है।
इन उप ह को इ छानुसार कह भी ले जाया जा सकता है और िव भ
कोण पर इ ह थत करना संभव है।
भारत के पास ‘ रसोससैट-2’ (2011) सीरीज जैसे सै य शि को
बढ़ानेवाले म टी-टा कर उप ह और रमोट स सग सैटेलाइट ह। साथ ही,
‘सरल’ (2013) जैसे मौसम उप ह भी ह। महासागरीय म उपयोग के
लहाज से, हमारे पास ‘ओशनसैट-2’ (2009) और टोह लेनेवाले उप ह
क ंखला RISAT-2 (2009) और RISAT-1 (2012) है। इन उप ह क मदद
से इसरो के टेशन से डाटा का वाह लगातार जारी रहता है, जनका
उपयोग हमारी र ा और खुिफया एज सयाँ करती ह।
इसरो क ओर से लॉ िकए गए और उसक देखरेख म काम करनेवाले
INSAT सीरीज के बहुउ श
े ीय भू थर उप ह संचार क ज रत को पूरा
े े औ ै े े
करते ह। भारत ने सफ और सफ सै य उ े य के लए पहला उप ह
साल 2013 के अंत म लॉ िकया था। यह INSAT सीरीज का GSAT-7
उप ह है, जो हमारी नौसेना क ज रत को पूरा करता है।
2018 के अंत म एक GSAT-7A उप ह हमारी अंत र मता म जुड़ा, जो
हमारी वायस ु ेना क ज रत के मुतािबक जानकारी देता है। नेिवगेशन म
मदद के लए हमारे पास ‘इं डयन रीजनल नेिवगेशन सैटेलाइट स टम’
(IRNSS) है। इस उप ह से GPS क सुिवधाएँ िमलती ह और यह हमारे
सश बल के लए एं ि टेड डाटा भी उपल ध कराता है।
अंत र म जाग उठा चीन
अंत र का सै य उपयोग और इस पर कारोबार, दोन ही लहाज से
अंत र पर अमे रका का ही दबदबा रहा है। अब इस े म एक नया देश
जाग उठा है, और वह देश है चीन। स क मदद से, रह यमयी क यिु न ट
शासनवाले देश ने इस नए मोरचे पर आ ामक ढंग से अपना दावा ठोक
िदया है। अंत र म चीन क सै य शि का िव तार अंधाधुध ं ग त से हो
रहा है और बी जग म बैठी स ा उसे पूरा समथन दे रही है।
कई िनजी कंपिनयाँ भी अब अंत र के े पर क जा जमाने के लए
मैदान म ह। इन प र थ तय म भारत जैसे लोकतं क अपनी सीमाएँ ह।
इस व सबसे बड़ी ज रत इस बात क है िक सभी लोकतांि क देश इक े
ह और अपने रा ीय िहत को थािपत कर। भारत सबसे बड़ा लोकतं है
और इसका नेतृ व उसे ही करना चािहए।
चीन का मुकाबला
अंत र से जुड़ी उपल धय का भारत म एक समृ इ तहास है और
इसने खगोल िव ान म अ छा-खासा योगदान िदया है। अमे रका जानता है
िक अंत र म उसके एका धकार के िदन लद गए ह। अमे रका अब अंत र
शोध म भारत का रणनी तक साझेदार है। 2021 म अमे रक शासन ने
ऐलान िकया िक वो भारत के साथ सूचना और सेवाओं को साझा करेगा।
उसने बाहरी अंत र म भारत के साथ दीघका लक संबध ं क पेशकश क
है। इस कार का सहयोग कोई नई बात नह है। भारत और अमे रका दोन
ने महासागर से जुड़ी जानका रय को आपस म साझा िकया है और
अंत र पर नई नी त भी इसी तज पर होने क उ मीद है।
‘ पेस सचुएशनल अवेयरनेस’ (SSA) के आधार पर डाटा साझा िकया
जाता है। SSA इनसान क ओर से भेजे गए कृि म उप ह , अंत र के
मलबे, ाकृ तक उ काओं और अंत र म मौसम क िनगरानी करता है।
अंत र अब हमारे दैिनक जीवन का एक अ भ अंग है और टै कग म
कावट आने से गंभीर संकट पैदा हो सकता है।
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कई देश ‘चं मा सं ध’ और ‘बाहरी अंत र सं ध’ जैसे समझौत से बँधे
ह। िकसी भी शां तपूण ग तिव ध का सम वय अभी तो संयु रा के साथ
करना होगा। यह िम देश के साथ सहयोग का मह व बढ़ जाता है। भारत,
ऑ टे लया, अमे रका और जापान नवगिठत वाड के सद य ह। वाड ने
एक ‘अंत र काय समूह’ बनाया है। ये समूह अंत र म शां तपूण
ग तिव धय के लए अपने उप ह से िमलनेवाले डाटा को साझा करता है।
अंत र का पया उपयोग िकया जा सके, इस उ े य से ये सभी देश
अंत र म अवसर क जानकारी भी साझा करते ह। भारत के ांस जैसे
देश के साथ अंत र सुर ा साझा करने के समझौते भी ह।
अंत र के े म बदलाव काफ तेजी से हो रहे ह। ऐसे म अ य देश के
अ धकार का स मान, िववाद का शां तपूण िनपटारा, ाकृ तक आपदाओं
के दौरान सहयोग, अंत र म मलबे का बंधन और िनयं ण तथा वै क
मानदंड िवक सत करना आव यक है। चीन जैसे धूत देश का मुकाबला
करने के लए भारत इस तरह के सहयोग का उपयोग कर सकता है।
भारत
िफलहाल भारत के पास 53 उप ह ह, जो काम कर रहे ह, जनम से 21
कम शयल ह और 21 िनगरानी रखनेवाले, वह 8 नेिवगेशन के लए ह और
तीन वै ािनक अ ययन म सहायता करते ह।
भारत म अंत र से जुड़ी ग तिव धय म भारी तेजी आनेवाली है। इसरो
आनेवाले दशक म नई लॉ हीकल, बेहतर रॉकेट मोटर और ोप शन
स टम पर काम करने क योजना बना रहा है। मानव सिहत ऑ बटर क
भी तैयारी है और इसके साथ ही 2030 तक भारतीय पेस टेशन क
थापना क भी योजना है। अंत र से जुड़ी सारी ग तिव धयाँ सेना के तर
क गुणव ावाली िव धय और तकनीक पर जोर दगी।
अ धकांश मौसम िव ान और संचार उप ह का वजन लगभग चार टन
होता है और उ ह लॉ करने के लए एक भीमकाय रॉकेट क आव यकता
होती है। भारत ने हाल ही म एक बार म 104 उप ह को ेिपत िकया,
जससे दिु नया भर म इसक त ा बढ़ी है। अंतररा ीय समुदाय क आँ ख
खुल गई ह और वो भारत के कम बजट वाले उप ह को एक यावहा रक
िवक प मानता है।
कने टिवटी क बढ़ती माँग के कारण, अरब का वै क उप ह बाजार
िदन दनू ी-रात चौगुनी तर कर रहा है। ये बाजार ऐसी कंपिनय क तलाश
म ह, जो उनके उप ह का िनमाण, ेपण और रखरखाव कर सक।
िव ेषक का अनुमान है िक भारत कम लागत के साथ बढ़ते उप ह
ेपण उ ोग का क बन सकता है।

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साल 2017 से लेकर अब तक इसरो ने एक लंबा सफर तय कर लया है।
वो एक ऐसा व था, जब इसरो 640 टन के पेलोड के साथ 3,000 िकलो
के उप ह के ेपण को ऐ तहा सक िदन बताया करता था। वह रॉकेट पाँच
जंबो जेट के वजन के बराबर था और उसे बनाने म हम एक दशक का समय
लगा था। अभी तो भारत को अंत र म बहुत आगे जाना है और उसे आगे
बढ़ते देना सरकार क दरू ि पर िनभर करता है।
भारत ने 22 जुलाई, 2019 को चं यान-II लॉ िकया और 20 अग त
को चं मा क क ा म एक ऑ बटर को भेजा। इसने एक चं रोवर के साथ
एक लडर को उतारने क भी को शश क , लेिकन असफल रहा। िव म
लडर चं मा पर सॉ ट-ल डग नह कर पाया।
भारत चं मा पर अपने आप को थािपत करना चाहता है और उसका
ल य है, चं मा का द णी ुव। एक बार सफलता िमल गई तो भारत स,
अमे रका और चीन के बराबर हो जाएगा। वहाँ पहुँचने के बाद, भारत एक
गंभीर तयोगी और संपूण अंत र शि बन जाएगा।
चं मा अंत र म गहन शोध के लए एक लॉ ग पैड है। भारत ‘िमशन
मंगल’ पर भी काम कर रहा है और ‘िमशन मून’ उस िदशा म एक अहम
पड़ाव है। अंत र म हमारे हर अ भयान का खच अंत र क खोज
करनेवाले अ य देश के खच क तुलना म एक बहुत छोटा सा िह सा होता
है। चं मा क खोज से ा डाटा और जानकारी से हम भिव य के अंत र
अ वेषण को िनयंि त करने म मदद िमलेगी। भारत भिव य म अंत र के
लए बेहतर रणनी तक योजनाएँ भी बना सकेगा।
इसरो का यान अब अग त 2023 म लॉ होनेवाले चं यान-III पर
कि त है। यह ल डग ा ट चं मा के भूकंप क ती ता को मापेगा और
चं मा क सतह पर खिनज और पानी क खोज करेगा। पहले ही ‘चं यान-
II’ का ऑ बटर चं मा से 100 िकमी. क दर
ू ी पर उसक प र मा कर रहा
है और उसने मह वपूण खोज क है।
भारत चाँद पर अपने पहले चालक दलवाले िमशन क भी तैयारी कर रहा
है। हमारा मून लडर जब चं मा पर उतरेगा तो भारत इस उपल ध को
हा सल करनेवाला चौथा देश बन जाएगा। तीन अंत र या ी इस समय
स म श ण ले रहे ह और संभव है िक 2023 म िमशन पर िनकल जाएँ ।
GSLV V MK3 क सफलता ने भारत के आयाम को और भी िव तृत कर
िदया है।
भारत म अंत र आधा रत सेवाओं क माँग उ ह पूरा करने क इसरो क
मता से कह अ धक है। भारत के पास रोबोट जैसी तकनीक नह है िक
वह त त उप ह क जाँच, मर मत और उनका िनपटारा कर सके, ना

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ही सैटेलाइट पर पॉटलाइट क तकनीक है। हमारे पास सै य उ े य के
लए दजन भर उप ह ह, जबिक चीन के पास शायद सौ से अ धक ह।
हमारे पास रीयल टाइम इले टॉिनक इंटे लजस का भी अभाव है, जो
एकदम नए तरीके के यु के लए ज री है। हम सरकार और अंत र के
नए अ दत ू के बीच एक नई साझेदारी बनाने क आव यकता है।
अंत र म अगले 50 साल न केवल बहुत अलग िदखगे, ब क
बहुत अलग ह गे
आनेवाले 50 वष अंत र म िपछले 60 वष से बहुत अलग िदखगे। हम
र ा, यातायात, हमलावर वाहन और िनगरानी उप ह म वृ देखने को
िमलेगी।
िनजी उ िमय क एक नई पीढ़ी, बेहतर र ा बजट, कम होती लागत,
नई ौ ोिगिकयाँ और भारत के साथ ही चीन से त पधा इस होड़ को
अंत र म ले जाएगी। यह नया यु का मैदान बन जाएगा, दिु नया भर क
सेनाएँ हावी होने और क जा करने क को शश करगी।
अग त 2019 के अंत म अमे रका ने अपने अंत र बल के साथ एक नए
‘यूएस पेस कमांड’ (USSPACECOM) का ऐलान िकया। सै य उ े य के
लए अंत र क सभी काररवाइय को एक साथ जोड़ िदया गया और अब
वे अपने सश बल के अ य अंग को श त, संगिठत और सुस त
करते ह।
जुलाई 2022 म अमे रका ने ‘िमसाइल स वलांस स टम’ लागू करने क
योजना और इसक सैटेलाइट को लॉ करने क योजना का भी अनावरण
कर िदया। चीन के पास अंत र यु के लए अपनी ही ‘ टैटे जक सपोट
फोस’ है। बेहद गु साइबर फोस के साथ, यह एक ऐसा खतरा है, जसे
दस
ू रे देश नजरअंदाज नह कर सकते। भारत ने सावधानी भरा ख
अपनाया है और एक ‘ डफस पेस एजसी’ (DSA) बनाई है।
अंत र म सै य त ान को खड़ा करने पर पाबंदी है और ऐसी सं धयाँ
ह, जो बाहरी अंत र म परमाणु ह थयार को रखने को तबं धत करती ह।
हालाँिक, यह तबंध पारंप रक ह थयार या सै य ग तिव धय पर लागू
नह होता है। सभी चाहते ह िक वे खिनज संपदा का फायदा उठाएँ और
धनी पयटक को िमशन पर ले जाएँ । अंत र पृ वी क मा सेना ही नह
बनेगा, जसक अपे ा है, ब क उसका एक िव तृत अंग बन जाएगा। इन
सबके बीच, आपरा धक ग तिव धय से इनकार नह िकया जा सकता।
भू-राजनी त मानवता को पृ वी क िनचली क ा से आगे क ओर ले जा
रही है। चीन, भारत और अमे रका ज द ही चं मा पर इनसान को उतारने
क योजना बना रहे ह और उसे अपना उपिनवेश बनाना चाहते ह। एलन
ै े ो ँ े
म क जैसे िनजी कारोबा रय क भी इसी तरह क आकां ाएँ ह। कई देश
नई िक म के िकफायती उप ह लॉ कर रहे ह। चं मा सफ एक पड़ाव है
और कई देश ने अपनी नजर मंगल ह पर िटका दी ह।
िपछली कुछ शता दय म, इनसान ने पृ वी क सूरत बदल दी है। हमारे
जीवन क प र थ तयाँ खराब हो गई ह, पयावरण का रण असहनीय
तर पर पहुँच गया है और राजनेताओं को सीिमत संसाधन के लए एक-
दसू रे से लड़ने से फुरसत नह है। अंत र म असीिमत मता है और यह
िव भ देश का यान आक षत कर रहा है। अंत र पर िवजय पाने का
हमारा आशावाद न तो हमारी सम याओं का समाधान है और न ही
अंत र कोई शरण थली है।
अब सवाल यह उठता है िक इलाके पर दावा कौन-कौन करेगा और कहाँ
करेगा? या बसनेवाल को चं मा या मंगल के वातावरण को न करने क
अनुम त दी जानी चािहए, जैसा िक उ ह ने पृ वी पर िकया है? चं मा के
ुव पर बफ के क मती संसाधन के उपयोग का अ धकार िकसे िमलेगा?
हजार उप ह पृ वी क प र मा करते ह। कृि म अंत र मलबे के 5 लाख
से अ धक टु कड़े बेकाबू खतरा बनकर मँडरा रहे ह। उनम से कुछ 27,000
िकमी./घंटे क ग त से घूम रहे ह। हम अभी भी एं टी-सैटेलाइट िमसाइल
का परी ण कर रहे ह और इस मलबे को बढ़ा रहे ह।
दिु नया भर म सेनाओं के पास अब भी अंत र के लए कोई मानक
ऑपरे टग स टम या ोटोकॉल नह है। या होता है, जब कृि म उप ह
आपस म टकराते ह? या हमारी अंत र या ाओं से िव भ देश के बीच
यु और बढ़ेगा? यु और शां त के दौरान आसमान पर राज करने के लए
नए िनयम बनाने आव यक ह।
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