Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 3

ऐसा ोता न ीिं?

ा न ीिं? ब्राह्मण, ठाकुर थोड़ी ी थी कक नाक कट जायगी। य तो उन् ी केदार ने धचढ़कर क ा-रग्घू दादा ने बनाई ैं, और ककसने! भगत के घर से इतने में रग्घू भी अिंदर आ गया। पन्ना ने अव े लना की दृत्ष्ट से दे खकर पूछा-

अलग्योझा ऊाँची जातों में ोता ै कक घर में चा े जो कुछ करो, बा र परदा ढका र े । व बसूला और रुखानी म ॉँग लाए और चटपट बना दीिं। खूब दौड़ती ैं काकी! बैठ क्यों रग्घू तुमने धगरिारी से कोई गाय म ॉँगी ै?
तो सिंसार को हदखाकर दूसरा घर कर सकती ै , किर व रग्घू कक दबैल बनकर खुन्नू मैं खीिंचाँ।ू
भोला म तो ने प ली स्त्री के मर जाने बाद दूसरी सगाई की, तो उसके लड़के रग्घू ने क्षमा-प्राथषना के भाव से क ा- ॉँ, म ॉँगी तो ै, कल लाएगा।
क्यों र े ?
रग्घू के मलए बुरे हदन आ गए। रग्घू की उम्र उस समय केवल दस वर्ष की थी। खुन्नू गाड़ी में बैठ गया। केदार खीिंचने लगा। चर-चर शोर ु आ मानो गाड़ी भी
पन्ना-रुपये ककसके घर से आऍगेिं , य भी सोचा ै?
चैने से ग ॉँव में गुल्ली-डिंडा खेलता किरता था। म ॉँ के आते ी चक्की में जुतना भोला को मरे एक म ीना गुजर चुका था। सिंध्या ो गई थी। पन्ना इसी धचन्ता इस खेल में लड़कों के साथ शरीक ै।

पड़ा। पन्ना रुपवती स्त्री थी और रुप और गवष में चोली-दामन का नाता ै। व में पड़ ु ई थी कक स सा उसे ख्याल आया, लड़के घर में न ीिं ैं। य बैलों के
रग्घू-सब सोच मलया ै काकी! मेरी य मु र न ीिं ै । इसके पच्चीस रुपये ममल
लछमन ने दूसरी गाड़ी में बैठकर क ा-दादा, खीिंचो।
अपने ाथों से कोई काम न करती। गोबर रग्घू तनकालता, बैलों को सानी रग्घू लौटने की बेला ै , क ीिं कोई लड़का उनके नीचे न आ जाए। अब द्वार पर कौन
र े ैं, प ॉँच रुपये बतछया के मुजा दे दूाँ गा! बस, गाय अपनी ो जाएगी।
दे ता। रग्घू ी जूठे बरतन म ॉँजता। भोला की ऑ िंखें कुछ ऐसी किरीिं कक उसे रग्घू ै , जो उनकी दे खभाल करे गा? रग्घू को मेरे लड़के िूटी ऑ िंखों न ीिं भाते। कभी
रग्घू ने झुतनय ॉँ को भी गाड़ी में बबठा हदया और गाड़ी खीिंचता ु आ दौड़ा। तीनों
में सब बुराइय ॉँ- ी-बुराइय ॉँ नजर आतीिं। पन्ना की बातों को व प्राचीन ाँसकर न ीिं बोलता। घर से बा र तनकली, तो दे खा, रग्घू सामने झोपड़े में बैठा पन्ना सन्नाटे में आ गई। अब उसका अववश्वासी मन भी रग्घू के प्रेम और
लड़के तामलय ॉँ बजाने लगे। पन्ना चककत नेत्रों से य दृश्य दे ख र ी थी और
मयाषदानुसार ऑ िंखें बिंद करके मान लेता था। रग्घू की मशकायतों की जरा परवा ऊख की गाँडरे रया बना र ा ै , लड़के उसे घेरे खड़े ैं और छोटी लड़की उसकी सज्जनता को अस्वीकार न कर सका। बोली-मु र को क्यों बेचे दे ते ो? गाय की
सोच र ी थी कक य व ी रग्घू ै या कोई और।
न करता। नतीजा य गदष न में ाथ डाले उसकी पीठ पर सवार ोने की चेष्टा कर र ी ै । पन्ना को अभी कौन जल्दी ै ? ाथ में पैसे ो जाऍ,िं तो ले लेना। सूना-सूना गला अच्छा न
ु आ कक रग्घू ने मशकायत करना ी छोड़ हदया। ककसके
सामने रोए? बाप ी न ीिं, सारा ग ॉँव उसका दुश्मन था। बड़ा त्जद्दी लड़का ै , पन्ना अपनी ऑ िंखों पर ववश्वास न आया। आज तो य नई बात ै । शायद दुतनया को थोड़ी दे र के बाद दोनों गाडड़य ॉँ लौटीिं: लड़के घर में जाकर इस यानयात्रा के लगेगा। इतने हदनों गाय न ीिं र ी, तो क्या लड़के न ीिं त्जए?

को तो कुद समझता ी न ीिं: बेचारी उसका दुलार करती ै , खखलाती-वपलाती ैं हदखाता ै कक मैं अपने भाइयों को ककतना चा ता ू ाँ और मन में छुरी रखी ु ई अनुभव बयान करने लगे। ककतने खुश थे सब, मानों वाई ज ाज पर बैठ आये
ै । घात ममले तो जान ी ले ले! काला स ॉँप ै , काला स ॉँप! कठोर स्वर में बोली- रग्घू दाशषतनक भाव से बोला-बच्चों के खाने-पीने के य ी हदन ैं काकी! इस उम्र
य उसी का िल ै । दूसरी औरत ोती, तो तनबा न ोता। व तो क ा, पन्ना ों।
तुम सबके सब व ॉँ क्या करते ो? घर में आओ, स ॉँझ की बेला ै , गोरु आते में न खाया, तो किर क्या खाऍगेिं । मु र प नना मुझे अच्छा भी न ी मालूम
इतनी सीिी-सादी ै कक तनबा ोता जाता ै । सबल की मशकायतें सब सुनते ैं ,
ोंगे। खुन्नू ने क ा-काकी सब पेड़ दौड़ र े थे। ोता। लोग समझते ोंगे कक बाप तो गया। इसे मु र प नने की सूझी ै।
तनबषल की िररयाद भी कोई न ीिं सुनता! रग्घू का हृदय म ॉँ की ओर से हदन-हदन
िटता जाता था। य ािं तक कक आठ साठ गुजर गए और एक हदन भोला के
रग्घू ने ववनीत नेत्रों से दे खकर क ा-मैं तो ूिं ी काकी, डर ककस बात का ै? लछमन-और बतछय ॉँ कैसी भागीिं, सबकी सब दौड़ीिं! भोला म तो गाय की धचिंता ी में चल बसे। न रुपये आए और न गाय ममली।
नाम भी मृतयु का सन्दे श आ प ु ाँचा।
मजबूर थे। रग्घू ने य समस्या ककतनी सुगमता से ल कर दी। आज जीवन में
बड़ा लड़का केदार बोला-काकी, रग्घू दादा ने मारे मलए दो गाडड़यााँ बना दी ैं। केदार-काकी, रग्घू दादा दोनों गाडड़य ॉँ एक साथ खीिंच ले जाते ैं।
प ली बार पन्ना को रग्घू पर ववश्वास आया, बोली-जब ग ना ी बेचना ै , तो
पन्ना के चार बच्चे थे-तीन बेटे और एक बेटी। इतना बड़ खचष और कमानेवाला
य दे ख, एक पर म और खुन्नू बैठेंगे, दूसरी पर लछमन और झुतनय ॉँ। दादा अपनी मु र क्यों बेचोगे? मेरी ाँसुली ले लेना।
कोई न ीिं। रग्घू अब क्यों बात पूछने लगा? य मानी ु ई बात थी। अपनी स्त्री झुतनय ॉँ सबसे छोटी थी। उसकी व्यिंजना-शत्क्त उछल-कूद और नेत्रों तक पररममत
दोनों गाडड़य ॉँ खीिंचेंगे।
लाएगा और अलग र े गा। स्त्री आकर और भी आग लगाएगी। पन्ना को चारों थी-तामलय ॉँ बजा-बजाकर नाच र ी थी।
रग्घू-न ीिं काकी! व तुम् ारे गले में ब ु त अच्छी लगती ै । मदो को क्या, मु र
ओर अिंिेरा ी हदखाई दे ता था: पर कुछ भी ो, व रग्घू की आसरै त बनकर घर य क कर व एक कोने से दो छोटी-छोटी गाडड़य ॉँ तनकाल लाया। चार-चार प नें या न प नें।
में र े गी। त्जस घर में उसने राज ककया, उसमें अब लौंडी न बनेगी। त्जस लौंडे खुन्नू-अब मारे घर गाय भी आ जाएगी काकी! रग्घू दादा ने धगरिारी से क ा
पह ए लगे थे। बैठने के मलए तख्ते और रोक के मलए दोनों तरि बाजू थे।
को अपना गुलाम समझा, उसका मुिं न ताकेगी। व सुन्दर थीिं, अवस्था अभी ै कक में एक गाय ला दो। धगरिारी बोला, कल लाऊाँगा।
पन्ना-चल, मैं बूढ़ी ु ई। अब ाँ सुली प नकर क्या करना ै । तू अभी लड़का ै,
कुछ ऐसी ज्यादा न थी। जवानी अपनी पूरी ब ार पर थी। क्या व कोई दूसरा पन्ना ने आश्चयष से पूछा-ये गाडड़य ॉँ ककसने बनाई? तेरा गला अच्छा न लगेगा?
केदार-तीन सेर दूि दे ती ै काकी! खूब दूि पीऍगेिं ।
घर न ीिं कर सकती? य ीिं न ोगा, लोग ाँसेंगे। बला से! उसकी बबरादरी में क्या

रग्घू मुस्कराकर बोला-तुम अभी से कैसे बूढ़ी ो गई? ग ॉँव में ै कौन तुम् ारे ‘न क ू ाँगी, जाकर दो साडड़यााँ और ममठाई ले आ।’
रग्घू-रुपये-पैसे तेरे ाथ में दे ने लगूाँ तो दुतनया कया क े गी, य तो सोच। केदार-कुछ न ीिं, रात की रोहटय ॉँ थीिं, खुन्नू और लछमन ने खायीिं। मैंने सततू खा
बराबर?
तीसरे हदन मुमलया मैके से आ गई। दरवाजे पर नगाड़े बजे, श नाइयों की मिुर मलया।
मुमलया-दुतनया जो चा े , क े । दुतनया के ाथों बबकी न ीिं ू ाँ। दे ख लेना, भ ॉँड
रग्घू की सरल आलोचना ने पन्ना को लत्ज्जत कर हदया। उसके रुखे-मुरछाए ध्वतन आकाश में गूाँजने लगी। मुाँ -हदखावे की रस्म अदा ु ई। व इस मरुभूमम
लीपकर ाथ काला ी र े गा। किर तुम अपने भाइयों के मलए मरो, मै। क्यों पन्ना-और ब ू ?
मुख पर प्रसन्नता की लाली दौड़ गई। में तनमषल जलिारा थी। गे ु ऑ िं रिं ग था, बड़ी-बड़ी नोकीली पलकें, कपोलों पर ल्की
मरुाँ ?
सुखी, ऑ िंखों में प्रबल आकर्षण। रग्घू उसे दे खते ी मिंत्रमुग्ि ो गया।
2 केदार-व पड़ी सो र ै , कुछ न ीिं खाया।
रग्घू-ने कुछ जवाब न हदया। उसे त्जस बात का भय था, व इतनी जल्द मसर
प्रात:काल पानी का घड़ा लेकर चलती, तब उसका गे ु ऑ िं रिं ग प्रभात की सुन री
पााँच साल गुजर गए। रग्घू का-सा मे नती, ईमानदार, बात का िनी दूसरा ककसान पन्ना ने उसी वक्त चूल् ा जलाया और खाना बनाने बैठ गई। आटा गूाँिती थी
आ पड़ी। अब अगर उसने ब ु त ततथो-थिंभो ककया, तो साल-छ:म ीने और काम
ककरणों से कुन्दन ो जाता, मानों उर्ा अपनी सारी सुगिंि, सारा ववकास और
ग ॉँव में न था। पन्ना की इच्छा के बबना कोई काम न करता। उसकी उम्र अब और रोती थी। क्या नसीब ै ? हदन-भर खेत में जली, घर आई तो चूल् े के सामने
चलेगा। बस, आगे य डोंगा चलता नजर न ीिं आता। बकरे की म ॉँ कब तक खैर
उन्माद मलये मुस्कराती चली जाती ो।
23 साल की ो गई थी। पन्ना बार-बार क ती, भइया, ब ू को बबदा करा लाओ। जलना पड़ा।
मनाएगी?
कब तक नै में पड़ी र े गी? सब लोग मुझी को बदनाम करते ैं कक य ी ब ू को 3
केदार का चौद व ॉँ साल था। भाभी के रिं ग-ढिं ग दे खकर सारी त्स्थत समझ ् र ा
न ीिं आने दे ती: मगर रग्घू टाल दे ता था। क ता कक अभी जल्दी क्या ै ? उसे एक हदन पन्ना ने म ु ए का सुखावन डाला। बरसात शुरु ो गई थी। बखार में
मुमलया मैके से ी जली-भुनी आयी थी। मेरा शौ र छाती िाड़कर काम करे , और था। बोला-काकी, भाभी अब तुम् ारे साथ र ना न ीिं चा ती।
अपनी स्त्री के रिं ग-ढिं ग का कुछ पररचय दूसरों से ममल चुका था। ऐसी औरत को अनाज गीला ो र ा था। मुमलया से बोली-ब ू , जरा दे खती र ना, मैं तालाब से
पन्ना रानी बनी बैठी र े , उसके लड़े रईसजादे बने घूमें। मुमलया से य बरदाश्त
घर में लाकर व अपनी श ॉँतत में बािा न ीिं डालना चा ता था। न ा आऊाँ?
पन्ना ने चौंककर पूछा-क्या कुछ क ती थी?
न ोगा। व ककसी की गुलामी न करे गी। अपने लड़के तो अपने ोते ी न ीिं,
आखखर एक हदन पन्ना ने त्जद करके क ा-तो तुम न लाओगे? भाई ककसके ोते ैं ? जब तक पर न ीिं तनकते ैं , रग्घू को घेरे ु ए ैं। ज्यों ी मुमलया ने लापरवा ी से क ा-मुझे नीिंद आ र ी ै , तुम बैठकर दे खो। एक हदन न
केदार-क ती कुछ न ीिं थी: मगर ै उसके मन में य ी बात। किर तुम क्यों न ीिं
जरा सयाने ु ए, पर झाड़कर तनकल जाऍगेिं , बात भी न पूछेंगे। न ाओगी तो क्या ोगा?
उसे छोड़ दे तीिं? जैसे चा े र े , मारा भी भगवान ् ै ?
‘क हदया कक अभी कोई जल्दी न ीिं।’
एक हदन उसने रग्घू से क ा-तुम् ें इस तर गुलामी करनी ो, तो करो, मुझसे न पन्ना ने साड़ी उतारकर रख दी, न ाने न गयी। मुमलया का वार खाली गया।
पन्ना ने द ॉँतों से जीभ दबाकर क ा-चुप, मरे सामने ऐसी बात भूलकर भी न
‘तुम् ारे मलए जल्दी न ोगी, मेरे मलए तो जल्दी ै । मैं आज आदमी भेजती ू ाँ।’
ोगी।
क ना। रग्घू तुम् ारा भाई न ीिं, तुम् ारा बाप ै । मुमलया से कभी बोलोगे तो
कई हदन के बाद एक शाम को पन्ना िान रोपकर लौटी, अाँिेरा ो गया था।
‘पछताओगी काकी, उसका ममजाज अच्छा न ीिं ै।’ समझ लेना, ज र खा लूाँगी।
रग्घू-तो किर क्या करुाँ , तू ी बता? लड़के तो अभी घर का काम करने लायक भी हदन-भर की भूखी थी। आशा थी, ब ू ने रोटी बना रखी ोगी: मगर दे खा तो य ॉँ
न ीिं ैं। चूल् ा ठिं डा पड़ा ु आ था, और बच्चे मारे भूख के तड़प र े थे। मुमलया से
‘तुम् ारी बला से। जब मैं उससे बोलूाँगी ी न ीिं, तो क्या वा से लड़ेगी? रोहटय ॉँ 4
आह स्ता से पूछा-आज अभी चूल् ा न ीिं जला?
तो बना लेगी। मुझसे भीतर-बा र का सारा काम न ीिं ोता, मैं आज बुलाए लेती
मुमलया-लड़के रावत के ैं , कुछ तुम् ारे न ीिं ैं। य ी पन्ना ै , जो तुम् ें दाने-दाने दश रे का तयौ ार आया। इस ग ॉँव से कोस-भर एक पुरवे में मेला लगता था।
ू ाँ।’ को तरसाती थी। सब सुन चुकी ूिं । मैं लौंडी बनकर न र ू ाँगी। रुपये-पैसे का मुझे केदार ने क ा-आज दोप र को भी चूल् ा न ीिं जला काकी! भाभी ने कुछ बनाया ग ॉँव के सब लड़के मेला दे खने चले। पन्ना भी लड़कों के साथ चलने को तैयार
ह साब न ीिं ममलता। न जाने तुम क्या लाते ो और व क्या करती ै । तुम ी न ीिं।
‘बुलाना चा ती ो, बुला लो: मगर किर य न क ना कक य मे ररया को ठीक ु ई: मगर पैसे क ॉँ से आऍ िं? किंु जी तो मुमलया के पास थी।
समझते ो, रुपये घर ी में तो ैं: मगर दे ख लेना, तुम् ें जो एक िूटी कौड़ी भी
न ीिं करता, उसका गुलाम ो गया।’
पन्ना-तो तुम लोगों ने खाया क्या? रग्घू ने आकर मुमलया से क ा-लड़के मेले जा र े ैं, सबों को दो-दो पैसे दे दो।
ममले।

रग्घू-अच्छा उठ, बना-खा। प ु ाँचा दूाँ गा। लग गया। घर भी जाऊाँ, तो मन य ॉँ ी र े गा और तुम जो ो, मेरी बात न ीिं
मुमलया ने तयोररय ॉँ चढ़ाकर क ा-पैसे घर में न ीिं ैं। मुमलया-तो मुझे क्या तुम् ारे घर में ममठाई ममलती ै ? मेरे मलए क्या सिंसार में
पूछते।
मुमलया ने रग्घू की ओर ऑ िंखें उठाई। रग्घू उसकी सूरत दे खकर डर गया। व जग न ीिं ै?
रग्घू-अभी तो तेल न बबका था, क्या इतनी जल्दी रुपये उठ गए?
मािुयष, व मो कता, व लावण्य गायब ो गया था। द ॉँत तनकल आए थे, ऑ िंखें मुमलया की ये रसीली बातें रग्घू पर कोई असर न डाल सकीिं। व उसी रुखाई से
रग्घू-तेरी जैसी मजी, ज ॉँ चा े र । मैं अपने घर वालों से अलग न ीिं ो सकता।
िट गई थीिं और नथुने िड़क र े थे। अिंगारे की-सी लाल ऑ िंखों से दे खकर बोला-मुमलया, मुझसे य न ोगा। अलग ोने का ध्यान करते ी मेरा मन न
मुमलया- ॉँ, उठ गए?
त्जस हदन इस घर में दो चूल् ें जलें गे, उस हदन मेरे कलेजे के दो टु कड़े ो
बोली-अच्छा, तो काकी ने य सला दी ै, य मिंत्र पढ़ाया ै ? तो य ॉँ ऐसी कच्चे जाने कैसा ो जाता ै। य चोट मुझ से न स ी जाएगी।
जाऍगेिं । मैं य चोट न ीिं स सकता। तुझे जो तकलीि ो, व मैं दूर कर
रग्घू-क ॉँ उठ गए? जरा सुनाँ,ू आज तयो ार के हदन लड़के मेला दे खने न जाऍगेिं ? न ीिं ू ाँ। तुम दोनों की छाती पर मूाँग दलूाँगी। ो ककस िेर में ?
सकता ू ाँ। माल-असबाब की मालककन तू ै ी: अनाज-पानी तेरे ी ाथ ै , अब मुमलया ने परर ास करके क ा-तो चूडड़य ॉँ प नकर अन्दर बैठो न! लाओ मैं मूाँछें

मुमलया-अपनी काकी से क ो, पैसे तनकालें , गाड़कर क्या करें गी? रग्घू-अच्छा, तो मूाँग ी दल लेना। कुछ खा-पी लेगी, तभी तो मूाँग दल सकेगी। र क्या गया ै ? अगर कुछ काम-ििंिा करना न ीिं चा ती, मत कर। भगवान ने लगा लूिं। मैं तो समझती थी कक तुममें भी कुछ कल-बल ै । अब दे खती ू ाँ, तो
मुझे समाई दी ोती, तो मैं तुझे ततनका तक उठाने न दे ता। तेरे य सुकुमार तनरे ममट्टी के लौंदे ो।
खूट
ाँ ी पर किंु जी ाथ पकड़ मलया और बोली-किंु जी मुझे दे दो, न ीिं तो ठीक न मुमलया-अब तो तभी मुाँ में पानी डालूाँगी, जब घर अलग ो जाएगा। ब ु त झेल
ाथ-पािंव मे नत-मजदूरी करने के मलए बनाए ी न ीिं गए ैं: मगर क्या करुाँ
ोगा। खाने-प ने को भी चाह ए, कागज-ककताब को भी चाह ए, उस पर मेला चुकी, अब न ीिं झेला जाता। पन्ना दालान में खड़ी दोनों की बातचीत सुन न ीिं थी। अब उससे न र ा गया।
अपना कुछ बस ी न ीिं ै । किर भी तेरा जी कोई काम करने को न चा े , मत
दे खने को भी चाह ए। मारी कमाई इसमलए न ीिं ै कक दूसरे खाऍ िं और मूाँछों सामने आकर रग्घू से बोली-जब व अलग ोने पर तुली ु ई ै , किर तुम क्यों
कर: मगर मुझसे अलग ोने को न क , तेरे पैरों पड़ता ू ाँ।
रग्घू सन्नाटे में आ गया। एक हदन तक उसके मुाँ से आवाज ी न तनकली।
पर ताव दें । उसे जबरदस्ती ममलाए रखना चा ते ो? तुम उसे लेकर र ो, मारे भगवान ् ने
अलग ोने की उसने स्वप्न में भी कल्पना न की थी। उसने ग ॉँव में दो-चार
मुमलया ने मसर से अिंचल खखसकाया और जरा समीप आकर बोली-मैं काम करने तनबा हदया, तो अब क्या डर? अब तो भगवान ् की दया से तीनों लड़के सयाने
पन्ना ने रग्घू से क ा-भइया, पैसे क्या ोंगे! लड़के मेला दे खने न जाऍगेिं । पररवारों को अलग ोते दे खा था। व खूब जानता था, रोटी के साथ लोगों के
से न ीिं डरती, न बैठे-बैठे खाना चा ती ू ाँ: मगर मुझ से ककसी की िौंस न ीिं ो गए ैं, अब कोई धचन्ता न ीिं।
रग्घू ने खझड़ककर क ा-मेला दे खने क्यों न जाऍगेिं ? सारा ग ॉँव जा र ा ै। मारे हृदय भी अलग ो जाते ैं। अपने मेशा के मलए गैर ो जाते ैं। किर उनमें
स ी जाती। तुम् ारी ी काकी घर का काम-काज करती ैं , तो अपने मलए करती
ी लड़के न जाऍगेिं ? व ी नाता र जाता ै , जो ग ॉँव के आदममयों में । रग्घू ने मन में ठान मलया था रग्घू ने ऑ िंसू-भरी ऑ िंखों से पन्ना को दे खकर क ा-काकी, तू भी पागल ो गई ै
ैं, अपने बाल-बच्चों के मलए करती ैं। मुझ पर कुछ ए सान न ीिं करतीिं, किर
कक इस ववपत्तत को घर में न आने दूाँ गा: मगर ोन ार के सामने उसकी एक न क्या? जानती न ीिं, दो रोहटय ॉँ ोते ी दो मन ो जाते ैं।
मुझ पर िौंस क्यों जमाती ैं? उन् ें अपने बच्चे प्यारे ोंगे , मुझे तो तुम् ारा
य क कर रग्घू ने अपना ाथ छुड़ा मलया और पैसे तनकालकर लड़कों को दे चली। आ ! मेरे मुाँ में कामलख लगेगी, दुतनया य ी क े गी कक बाप के मर जाने
आसरा ै । मैं अपनी ऑ िंखों से य न ीिं दे ख सकती कक सारा घर तो चैन करे ,
हदये: मगर किंु जी जब मुमलया को दे ने लगा, तब उसने उसे आिंगन में िेंक हदया पन्ना-जब व मानती ी न ीिं, तब तुम क्या करोगे? भगवान ् की मरजी ोगी, तो
पर दस साल भी एक में तनबा न ो सका। किर ककससे अलग ो जाऊाँ ?
जरा-जरा-से बच्चे तो दूि पीऍ िं, और त्जसके बल-बूते पर गृ स्थी बनी ु ई ै, व
और मुाँ लपेटकर लेट गई! लड़के मेला दे खने न गए। कोई क्या करे गा? परालब्ि में त्जतने हदन एक साथ र ना मलखा था, उतने हदन
त्जनको गोद में खखलाया, त्जनको बच्चों की तर पाला, त्जनके मलए तर -तर के
मट्ठे को तरसे। कोई उसका पूछनेवाला न ो। जरा अपना मुिं तो दे खो, कैसी
र े । अब उसकी य ी मरजी ै , तो य ी स ी। तुमने मेरे बाल-बच्चों के मलए जो
कष्ठ झेले, उन् ीिं से अलग ो जाऊाँ? अपने प्यारों को घर से तनकाल बा र करुाँ ?
सूरत तनकल आई ै । औरों के तो चार बरस में अपने पट्ठे तैयार ो जाऍगेिं । तुम
इसके बाद दो हदन गुजर गए। मुमलया ने कुछ न ीिं खाया और पन्ना भी भूखी कुछ ककया, व भूल न ीिं सकती। तुमने इनके मसर ाथ न रखा ोता, तो आज
उसका गला िाँस गया। क ॉँपते ु ए स्वर में बोला-तू क्या चा ती ै कक मैं अपने
तो दस साल में खाट पर पड़ जाओगे। बैठ जाओ, खड़े क्यों ो? क्या मारकर
र ी रग्घू कभी इसे मनाता, कभी उसे:पर न य उठती, न व । आखखर रग्घू ने इनकी न जाने क्या गतत ोती: न जाने ककसके द्वार पर ठोकरें खातें ोते , न
भाइयों से अलग ो जाऊाँ? भला सोच तो, क ीिं मुाँ हदखाने लायक र ू ाँगा?
भागोगे? मैं तुम् ें जबरदस्ती न ब ॉँि लूाँगी, या मालककन का ु क्म न ीिं ै ? सच
ै रान ोकर मुमलया से पूछा-कुछ मुाँ से तो क , चा ती क्या ै? जाने क ॉँ-क ॉँ भीख म ॉँगते किरते। तुम् ारा जस मरते दम तक गाऊाँगी। अगर
क ू ाँ , तुम बड़े कठ-कलेजी ो। मैं जानती, ऐसे तनमोह ए से पाला पड़ेगा, तो इस
मुमलया-तो मेरा इन लोगों के साथ तनबा न ोगा। मेरी खाल तुम् ारे जूते बनाने के काम आते, तो खुशी से दे दूाँ । चा े तुमसे अलग
मुमलया ने िरती को सम्बोधित करके क ा-मैं कुछ न ीिं चा ती, मुझे मेरे घर घर में भूल से न आती। आती भी तो मन न लगाती, मगर अब तो मन तुमसे
ो जाऊाँ, पर त्जस घड़ी पुकारोगे, कुतते की तर दौड़ी आऊाँगी। य भूलकर भी न
प ु ाँचा दो। रग्घू-तो तू अलग ो जा। मुझे अपने साथ क्यों घसीटती ै?
सोचना कक तुमसे अलग ोकर मैं तुम् ारा बुरा चेतूाँगी। त्जस हदन तुम् ारा

अनभल मेरे मन में आएगा, उसी हदन ववर् खाकर मर जाऊाँगी। भगवान ् करे , तुम दूसरी ब ू -ककस भरोसे पर कोई मरे -अपने लड़के तो बात न ीिं पूछें पराए लड़कों ोना चा ती ू ाँ न ीिं तो व इसी धचन्ता में घुल-घुलकर प्राण दे दे गा। य लड़ककय ॉँ वा से धगरे ु ए आम चुन र े थे। केदार ने क ा-आज म भी आम
दूिों न ाओिं, पूतों िलों! मरते दम तक य ी असीस मेरे रोऍ-रोऍ
िं िं से तनकलती का क्या भरोसा? कल इनके ाथ-पैर ो जायेंगे, किर कौन पूछता ै ! अपनी-अपनी सोचकर उसने अलग चूल् ा जलाया और खाना बनाने लगी। इतने में केदार और चुनने चलें , खूब आम धगर र े ैं।
र े गी और अगर लड़के भी अपने बाप के ैं। तो मरते दम तक तुम् ारा पोस मे ररयों का मुिं दे खेंगे। प ले ी से िटकार दे ना अच्छा ै , किर तो कोई कलक खुन्नू मदरसे से आ गए। पन्ना ने क ा-आओ बेटा, खा लो, रोटी तैयार ै।
खुन्नू-दादा जो बैठे ैं?
मानेंगे। न ोगा।
केदार ने पूछा-भइया को भी बुला लूाँ न?
लछमन-मैं न जाऊाँगा, दादा घुड़केंगे।
य क कर पन्ना रोती ु ई व ॉँ से चली गई। रग्घू व ीिं मूततष की तर बैठा र ा। मुमलया पानी लेकर गयी, खाना बनाया और रग्घू से बोली-जाओिं, न ा आओ, रोटी
पन्ना-तुम आकर खा लो। उसकी रोटी ब ू ने अलग बनाई ै।
आसमान की ओर टकटकी लगी थी और ऑ िंखों से ऑ िंसू ब र े थे। तैयार ै।
केदार-व तो अब अलग ो गए।
खुन्नू-जाकर भइया से पूछ न आऊाँ?
रग्घू ने मानों सुना ी न ीिं। मसर पर ाथ रखकर द्वार की तरि ताकता र ा।
लक्षमन-तो अब मको कोई मारे गा, तब भी दादा न बोलें गे?
5 पन्ना-जब उनका जी चा े गा, खाऍगेिं । तू बैठकर खा: तुझे इन बातों से क्या
मुमलया-क्या क ती ू ाँ , कुछ सुनाई दे ता ै , रोटी तैयार ै , जाओिं न ा आओ। मतलब? त्जसका जी चा े गा खाएगा, त्जसका जी न चा े गा, न खाएगा। जब व
पन्ना की बातें सुनकर मुमलया समझ गई कक अपने पौबार ैं। चटपट उठी, घर केदार-वा , तब क्यों न बोलें गे?
और उसकी बीवी अलग र ने पर तुले ैं, तो कौन मनाए?
में झाड़ू लगाई, चूल् ा जलाया और कुऍ िं से पानी लाने चली। उसकी टे क पूरी ो
रग्घू-सुन तो र ा ू ाँ , क्या ब रा ू ाँ? रोटी तैयार ै तो जाकर खा ले। मुझे भूख
रग्घू ने तीनों लड़कों को दरवाजे पर खड़े दे खा: पर कुछ बोला न ीिं। प ले तो
गई थी।
न ीिं ै। केदार-तो क्यों अम्माजी, क्या म अलग घर में र ें गे?
व घर के बा र तनकलते ी उन् ें ड ॉँट बैठता था: पर आज व मूततष के समान
ग ॉँव में त्स्त्रयों के दो दल ोते ैं-एक ब ु ओिं का, दूसरा सासों का! ब ु ऍ िं सला तनश्चल बैठा र ा। अब लड़कों को कुछ सा स ु आ। कुछ दूर और आगे बढ़े ।
मुमलया ने किर न ीिं क ा। जाकर चूल् ा बुझा हदया, रोहटय ॉँ उठाकर छीिंके पर रख पन्ना-उनका जी चा े , एक घर में र ें , जी चा े ऑ िंगन में दीवार डाल लें ।
और स ानुभूतत के मलए अपने दल में जाती ैं, सासें अपने में । दोनों की पिंचायतें रग्घू अब भी न बोला, कैसे बोले? व सोच र ा था, काकी ने लड़कों को खखला-
दीिं और मुाँ ढ ॉँककर लेट र ी।
अलग ोती ैं। मुमलया को कुऍ िं पर दो-तीन ब ु ऍ िं ममल गई। एक से पूछा-आज खुन्नू ने दरवाजे पर आकर झ ॉँका, सामने िूस की झोंपड़ी थी, व ीिं खाट पर पड़ा वपला हदया, मुझसे पूछा तक न ीिं। क्या उसकी ऑ िंखों पर भी परदा पड़ गया ै:
तो तुम् ारी बुहढ़या ब ु त रो-िो र ी थी। जरा दे र में पन्ना आकर बोली-खाना तैयार ै , न ा-िोकर खा लो! ब ू भी भूखी रग्घू नाररयल पी र ा था। अगर मैंने लड़कों को पुकारा और व न आयें तो? मैं उनकों मार-पीट तो न
ोगी। सकूाँगा। लू में सब मारे -मारे किरें गे। क ीिं बीमार न पड़ जाऍ।िं उसका हदल
मुमलया ने ववजय के गवष से क ा-इतने हदनों से घर की मालककन बनी ु ई ै, खुन्नू- भइया तो अभी नाररयल मलये बैठे ैं।
मसोसकर र जाता था, लेककन मुाँ से कुछ क न सकता था। लड़कों ने दे खा
राज-पाट छोड़ते ककसे अच्छा लगता ै ? ब न, मैं उनका बुरा न ीिं चा ती: लेककन रग्घू ने झुाँझलाकर क ा-काकी तू घर में र ने दे गी कक मुाँ में कामलख लगाकर
कक य बबलकुल न ीिं बोलते, तो तनभषय ोकर चल पड़े।
पन्ना-जब जी चा े गा, खाऍगेिं ।
एक आदमी की कमाई में क ॉँ तक बरकत ोगी। मेरे भी तो य ी खाने-पीने, क ीिं तनकल जाऊाँ? खाना तो खाना ी ै , आज न खाऊाँगा, कल खाऊाँगा, लेककन
प नने-ओढ़ने के हदन ैं। अभी उनके पीछे मरो, किर बाल-बच्चे ो जाऍ िं, उनके अभी मुझसे न खाया जाएगा। केदार क्या अभी मदरसे से न ीिं आया? स सा मुमलया ने आकर क ा-अब तो उठोगे कक अब भी न ीिं? त्जनके नाम पर
केदार-भइया ने भाभी को ड ॉँटा न ीिं?
पीछे मरो। सारी त्जन्दगी रोते ी कट जाएगी। िाका कर र े ो, उन् ोंने मजे से लड़कों को खखलाया और आप खाया, अब
पन्ना-अभी तो नीिं आया, आता ी ोगा।
मुमलया अपनी कोठरी में पड़ी सुन र ी थी। बा र आकर बोली-भइया ने तो न ीिं आराम से सो र ी ै । ‘मोर वपया बात न पूछें, मोर सु ाधगन न ॉँव।’ एक बार भी
एक ब ू -बुहढ़या य ी चा ती ै कक य सब जन्म-भर लौंडी बनी र ें । मोटा-झोटा
ड ॉँटा अब तुम आकर ड ॉँटों। तो मुाँ से न िूटा कक चलो भइया, खा लो।
पन्ना समझ गई कक जब तक व खाना बनाकर लड़कों को न खखलाएगी और
खाएिं और पड़ी र ें ।
खुद न खाएगी रग्घू न खाएगा। इतना ी न ीिं, उसे रग्घू से लड़ाई करनी पड़ेगी,
केदार के चे रे पर रिं ग उड़ गया। किर जबान न खोली। तीनों लड़कों ने खाना
उसे जली-कटी सुनानी पड़ेगी। उसे य हदखाना पड़ेगा कक मैं ी उससे अलग
खाया और बा र तनकले। लू चलने लगी थी। आम के बाग में ग ॉँव के लड़के-
रग्घू को इस समय ममाषन्तक पीड़ा ो र थी। मुमलया के इन कठोर शब्दों ने मुमलया ऐिंठकर बोली- ॉँ, भूख क्यों लगेगी! भाइयों ने खाया, व तुम् ारे पेट में चार की जग छ: रोहटय ॉँ खा जाऊाँ, चा े तू मुझे घी के मटके ी में डु बा दे : पर की उम्र अब उन्नीस की ो गई थी। उसने पढ़ना छोड़ हदया था और खेती का
घाव पर नमक तछड़क हदया। दु:खखत नेत्रों से दे खकर बोला-तेरी जो मजी थी, व ी प ु ाँच ी गया ोगा। य दाग मेरे हदल से न ममटे गा। काम करता था। खुन्नू गाय चराता था। केवल लछमन अब तक मदरसे जाता
तो ु आ। अब जा, ढोल बजा! था। पन्ना और मुमलया दोनों एक-दूसरे की सूरत से जलती थीिं। मुमलया के दोनों
रग्घू ने द ॉँत पीसकर क ा-मुझे जला मत मुमलया, न ीिं अच्छा न ोगा। खाना मुमलया-दाग-साग सब ममट जाएगा। प ले सबको ऐसा ी लगता ै । दे खते न ीिं
लड़के ब ु िा पन्ना ी के पास र ते। व ीिं उन् ें उबटन मलती, व ी काजल
मुमलया-न ीिं, तुम् ारे मलए थाली परोसे बैठी ै। क ीिं भागा न ीिं जाता। एक बेला न खाऊाँगा, तो मर न जाउाँ गा! क्या तू समझती ो, उिर कैसी चैन की विंशी बज र ी ै, व तो मना ी र ी थीिं कक ककसी तर
लगाती, व ी गोद में मलये किरती: मगर मुमलया के मुिं से अनुग्र का एक शब्द
ैं, घर में आज कोई बात ो गई ैं ? तूने घर में चूल् ा न ीिं जलाया, मेरे कलेजे में य सब अलग ो जाऍ।िं अब व प ले की-सी च ॉँदी तो न ीिं ै कक जो कुछ घर
भी न तनकलता। न पन्ना ी इसकी इच्छुक थी। व जो कुछ करती तनव्याषज
रग्घू-मुझे धचढ़ा मत। तेरे पीछे मैं भी बदनाम ो र ा ू ाँ। जब तू ककसी की ोकर
आग लगाई ै । मुझे घमिंड था कक और चा े कुछ ो जाए, पर मेरे घर में िूट में आवे, सब गायब! अब क्यों मारे साथ र ने लगीिं ?
भाव से करती थी। उसके दो-दो लड़के अब कमाऊ ो गए थे। लड़की खाना पका
न ीिं र ना चा ती, तो दूसरे को क्या गरज ै , जो मेरी खुशामद करे ? जाकर काकी
का रोग न आने पाएगा, पर तूने घमिंड चूर कर हदया। परालब्ि की बात ै।
लेती थी। व खुद ऊपर का काम-काज कर लेती। इसके ववरुद्ध रग्घू अपने घर
से पूछ, लड़के आम चुनने गए ैं, उन् ें पकड़ लाऊाँ? रग्घू ने आ त स्वर में क ा-इसी बात का तो मुझे गम ै । काकी ने मुझे ऐसी
का अकेला था, व भी दुबल
ष , अशक्त और जवानी में बूढ़ा। अभी आयु तीस वर्ष
मुमलया ततनककर बोली-सारा मो -छो तुम् ीिं को ै कक और ककसी को ै? मैं तो आशा न थी।
मुमलया अाँगूठा हदखाकर बोली-य जाता ै । तुम् ें सौ बार गरज ो, जाकर पूछो। से अधिक न थी, लेककन बाल खखचड़ी ो गए थे। कमर भी झुक चली थी। ख ॉँसी
ककसी को तुम् ारी तर बबसूरते न ीिं दे खती।
ाँ -सा लगता था। जान पड़ता था, रोहटय ॉँ भूसी
रग्घू खाने बैठा, तो कौर ववर् के घूट ने जीणष कर रखा था। दे खकर दया आती थी। और खेती पसीने की वस्तु ै।
इतने में पन्ना भी भीतर से तनकल आयी। रग्घू ने पूछा-लड़के बगीचे में चले खेती की जैसी सेवा ोनी चाह ए, व उससे न ो पाती। किर अच्छी िसल क ॉँ
रग्घू ने ठिं डी स ॉँस खीिंचकर क ा-मुमलया, घाव पर नोन न तछड़क। तेरे ी कारन की ैं। दाल पानी-सी लगती। पानी किंठ के नीचे न उतरता था, दूि की तरि
गए काकी, लू चल र ी ै। से आती? कुछ ऋण भी ो गया था। व धचिंता और भी मारे डालती थी। चाह ए
मेरी पीठ में िूल लग र ी ै । मुझे इस गृ स्थी का मो न ोगा, तो ककसे ोगा? दे खा तक न ीिं। दो-चार ग्रास खाकर उठ आया, जैसे ककसी वप्रयजन के श्राद्ध का
मैंने ी तो इसे मर-मर जोड़ा। त्जनको गोद में खेलाया, व ीिं अब मेरे पट्टीदार भोजन ो। तो य था कक अब उसे कुछ आराम ममलता। इतने हदनों के तनरन्तर पररश्रम के
पन्ना-अब उनका कौन पुछततर ै ? बगीचे में जाऍ,िं पेड़ पर चढ़ें , पानी में डू बें। मैं
ोंगे। त्जन बच्चों को मैं ड ॉँटता था, उन् ें आज कड़ी ऑ िंखों से भी न ीिं दे ख बाद मसर का बोझ कुछ ल्का ोता, लेककन मुमलया की स्वाथषपरता और
अकेली क्या-क्या करुाँ ?
रात का भोजन भी उसने इसी तर ककया। भोजन क्या ककया, कसम पूरी की। अदूरदमशषता ने ल राती ु ई खेती उजाड़ दी। अगर सब एक साथ र ते, तो व
सकता। मैं उनके भले के मलए भी कोई बात करुाँ , तो दुतनया य ी क े गी कक य
रात-भर उसका धचतत उद्ववग्न र ा। एक अज्ञात शिंका उसके मन पर छाई ु ई अब तक पेन्शन पा जाता, मजे में द्वार पर बैठा ु आ नाररयल पीता। भाई काम
रग्घू-जाकर पकड़ लाऊाँ? अपने भाइयों को लूटे लेता ै । जा मुझे छोड़ दे , अभी मुझसे कुछ न खाया
थी, जेसे भोला म तो द्वार पर बैठा रो र ा ो। व कई बार चौंककर उठा। ऐसा करते, व सला दे ता। म तो बना किरता। क ीिं ककसी के झगड़े चुकाता, क ीिं
जाएगा।
पन्ना-जब तुम् ें अपने मन से न ीिं जाना ै , तो किर मैं जाने को क्यों क ू ाँ? तुम् ें जान पड़ा, भोला उसकी ओर ततरस्कार की आाँखों से दे ख र ा ै। सािु-सिंतों की सेवा करता: व अवसर ाथ से तनकल गया। अब तो धचिंता-भार

रोकना ोता , तो रोक न दे त?े तुम् ारे सामने ी तो गए ोंगे? मुमलया-मैं कसम रखा दूाँ गी, न ीिं चुपके से चले चलो। हदन-हदन बढ़ता जाता था।
व दोनों जून भोजन करता था: पर जैसे शत्रु के घर। भोला की शोकमग्न मूततष
आखखर उसे िीमा-िीमा ज्वर र ने लगा। हृदय-शूल, धचिंता, कड़ा पररश्रम और
पन्ना की बात पूरी भी न ु ई थी कक रग्घू ने नाररयल कोने में रख हदया और रग्घू-दे ख, अब भी कुछ न ीिं बबगड़ा ै । अपना ठ छोड़ दे । ऑ िंखों से न उतरती थी। रात को उसे नीिंद न आती। व ग ॉँव में तनकलता, तो
अभाव का य ी पुरस्कार ै । प ले कुछ परवा न की। समझा आप ी आप
बाग की तरि चला। इस तर मुाँ चुराए, मसर झुकाए मानो गो- तया की ो।
अच्छा ो जाएगा: मगर कमजोरी बढ़ने लगी, तो दवा की किक्र ु ई। त्जसने जो
मुमलया- मारा ी ल ू वपए, जो खाने न उठे ।
बता हदया, खा मलया, डाक्टरों और वैद्यों के पास जाने की सामर्थयष क ॉँ? और
6
रग्घू ने कानों पर ाथ रखकर क ा-य तूने क्या ककया मुमलया? मैं तो उठ ी 7 सामर्थयष भी ोती, तो रुपये खचष कर दे ने के मसवा और नतीजा ी क्या था? जीणष
रग्घू लड़कों को लेकर बाग से लौटा, तो दे खा मुमलया अभी तक झोंपड़े में खड़ी र ा था। चल खा लूाँ। न ाने-िोने कौन जाए, लेककन इतनी क े दे ता ू ाँ कक चा े ज्वर की और्धि आराम और पुत्ष्टकारक भोजन ै। न व बसिंत-मालती का
पााँच साल गुजर गए। रग्घू अब दो लड़कों का बाप था। आाँगन में दीवार खखिंच
ै । बोला-तू जाकर खा क्यों न ीिं लेती? मुझे तो इस बेला भूख न ीिं ै। सेवन कर सकता था और न आराम से बैठकर बलबिषक भोजन कर सकता था।
गई थी, खेतों में मेड़ें डाल दी गई थीिं और बैल -बतछए ब ॉँि मलये गए थे। केदार
कमजोरी बढ़ती ी गई।

र ा, अपना काम करता र ा। मारे कमजोरी के कभी-कभी मसर पकड़कर बैठ आज प ली बार उसे अपनी स्वाथषपरता पर लज्जा आई। प ली बार आतमा ने
पन्ना को अवसर ममलता, तो व आकर उसे तसल्ली दे ती: लेककन उसके लड़के पन्ना-तो तुझे य ॉँ आने की ऐसी क्या जल्दी थी? ड ॉँठ म ॉँड़ न जाती। तीन-तीन
जाता और जरा दम लेकर किर ाथ चलाने लगता था। सारी खेती त स-न स अलग्योझे पर धिक्कारा।
अब रग्घू से बात भी न करते थे। दवा-दारु तो क्या करतें , उसका और मजाक लड़के तो ैं , और ककसी हदन काम आऍगेिं ? केदार तो कल ी म ॉँड़ने को क र ा
ो र ी थी, उसे कौन सिंभालेगा? अनाज की ड ॉँठें खमल ान में पड़ी थीिं, ऊख अलग
उड़ाते। भैया समझते थे कक म लोगों से अलग ोकर सोने और ईट रख लें गे। था: पर मैंने क ा, प ले ऊख में पानी दे लो, किर आज म ड़ना, माँड़ाई तो दस 9
सूख र ी थी। व अकेली क्या-क्या करे गी? किर मसिंचाई अकेले आदमी का तो
भाभी भी समझती थीिं, सोने से लद जाऊाँगी। अब दे खें कौन पूछता ै ? मससक- हदन बाद भ ो सकती ै , ऊख की मसिंचाई न ु ई तो सूख जाएगी। कल से पानी
काम न ीिं। तीन-तीन मजदूरों को क ॉँ से लाए! ग ॉँव में मजदूर थे ी ककतने। इस घटना को ु ए प ॉँच साल गुजर गए। पन्ना आज बूढ़ी ो गई ै । केदार घर
मससककर न मरें तो क दे ना। ब ु त ‘ ाय! ाय!’ भी अच्छी न ीिं ोती। आदमी चढ़ा ु आ ै , परसों तक खेत पुर जाएगा। तब माँड़ाई ो जाएगी। तुझे ववश्वास न
आदममयों के मलए खीिंचा-तानी ो र ी थी। क्या करें , क्या न करे । का मामलक ै । मुमलया घर की मालककन ै । खुन्नू और लछमन के वववा ो
उतना काम करे , त्जतना ो सके। य न ीिं कक रुपये के मलए जान दे दे । आएगा, जब से भैया मरे ैं, केदार को बड़ी धचिंता ो गई ै । हदन में सौ-सौ बार
चुके ैं: मगर केदार अभी तक क्व ॉँरा ै । क ता ैं- मैं वववा न करुाँ गा। कई
इस तर तेर हदन बीत गए। कक्रया-कमष से छुट्टी ममली। दूसरे ी हदन सवेरे पूछता ै , भाभी ब ु त रोती तो न ीिं ैं? दे ख, लड़के भूखे तो न ीिं ैं। कोई लड़का
जग ों से बातचीत ु ई, कई सगाइय ॉँ आयीिं: पर उसे ामी न भरी। पन्ना ने
पन्ना क ती-रग्घू बेचारे का कौन दोर् ै?
मुमलया ने दोनों बालकों को गोद में उठाया और अनाज म ॉँड़ने चली। खमल ान रोता ै , तो दौड़ा आता ै , दे ख अम्म ॉँ, क्या ु आ, बच्चा क्यों रोता ै ? कल रोकर
कम्पे लगाए, जाल िैलाए, पर व न िाँसा। क ता-औरतों से कौन सुख? मे ररया
में प ुिं चकर उसने एक को तो पेड़ के नीचे घास के नमष बबस्तर पर सुला हदया बोला-अम्म ॉँ, मैं जानता कक भैया इतनी जल्दी चले जाऍगेिं , तो उनकी कुछ सेवा
केदार क ता-चल, मैं खूब समझता ू ाँ। भैया की जग मैं ोता, तो डिंडे से बात घर में आयी और आदमी का ममजाज बदला। किर जो कुछ ै, व मे ररया ै।
और दूसरे को व ीिं बैठाकर अनाज म ॉँड़ने लगी। बैलों को ॉँकती थी और रोती कर लेता। क ॉँ जगाए-जगाए उठता था, अब दे खती ो, प र रात से उठकर काम
करता। मजाक थी कक औरत यों त्जद करती। य सब भैया की चाल थी। सब म ॉँ-बाप, भाई-बन्िु सब पराए ैं। जब भैया जैसे आदमी का ममजाज बदल गया,
थी। क्या इसीमलए भगवान ् ने उसको जन्म हदया था? दे खते-दे खते क्या वे क्या में लग जाता ै । खुन्नू कल जरा-सा बोला, प ले म अपनी ऊख में पानी दे
सिी-बिी बात थी। तो किर दूसरों की क्या धगनती? दो लड़के भगवान ् के हदये ैं और क्या चाह ए।
ो गया? इन् ीिं हदनों वपछले साल भी अनाज म ॉँड़ा गया था। व रग्घू के मलए लें गे, तब भैया की ऊख में दें गे। इस पर केदार ने ऐसा ड ॉँटा कक खुन्नू के मुाँ से
बबना ब्या ककए दो बेटे ममल गए, इससे बढ़कर और क्या ोगा? त्जसे अपना
आखखर एक हदन रग्घू का हटमहटमाता ु आ जीवन-दीपक बुझ गया। मौत ने लोटे में शरबत और मटर की घुघ
ाँ ी लेकर आई थी। आज कोई उसके आगे ै, न किर बात न तनकली। बोला, कैसी तुम् ारी और कैसी मारी ऊख? भैया ने त्जला
समझो, व अपना ै : त्जसे गैर समझो, व गैर ै।
सारी धचन्ताओिं का अिंत कर हदया। पीछे : लेककन ककसी की लौंडी तो न ीिं ू ाँ! उसे अलग ोने का अब भी पछतावा न न मलया ोता, तो आज या तो मर गए ोते या क ीिं भीख म ॉँगते ोते। आज
था। तुम बड़े ऊखवाले बने ो! य उन् ीिं का पुन-परताप ै कक आज भले आदमी बने एक हदन पन्ना ने क ा-तेरा विंश कैसे चलेगा?
अिंत समय उसने केदार को बुलाया था: पर केदार को ऊख में पानी दे ना था। बैठे ो। परसों रोटी खाने को बुलाने गई, तो माँड़य
ै ा में बैठा रो र ा था। पूछा, क्यों
डरा, क ीिं दवा के मलए न भेज दें । ब ाना बना हदया। एकाएक छोटे बच्चे का रोना सुनकर उसने उिर ताका, तो बड़ा लड़का उसे केदार-मेरा विंश तो चल र ा ै । दोनों लड़कों को अपना ी समझता ूिं ।
रोता ै ? तो बोला, अम्म ॉँ, भैया इसी ‘अलग्योझ’ के दुख से मर गए, न ीिं अभी
चुमकारकर क र ा था-बैया तुप र ो, तुप र ो। िीरे -िीरे उसके मुिं पर ाथ
उनकी उममर ी क्या थी! य उस वक्त न सूझा, न ीिं उनसे क्यों बबगाड़ करते?
8 िेरता था और चुप कराने के मलए ववकल था। जब बच्चा ककसी तर न चुप न पन्ना-समझने ी पर ै , तो तू मुमलया को भी अपनी मे ररया समझता ोगा?

मुमलया का जीवन अिंिकारमय ो गया। त्जस भूमम पर उसने मनसूबों की दीवार ु आ तो व खुद उसके पास लेट गया और उसे छाती से लगाकर प्यार करने य क कर पन्ना ने मुमलया की ओर सिंकेतपूणष दृत्ष्ट से दे खकर क ा-तुम् ें व
केदार ने झेंपते ु ए क ा-तुम तो गाली दे ती ो अम्म ॉँ!
लगा: मगर जब य प्रयतन भी सिल न ु आ, तो व रोने लगा। अलग न र ने दे गा ब ू , क ता ै , भैया मारे मलए मर गए तो म भी उनके
खड़ी की थी, व नीचे से खखसक गई थी। त्जस खूट
ाँ ें के बल पर व उछल र ी
बाल-बच्चों के मलए मर जाऍगेिं ।
थी, व उखड़ गया था। ग ॉँववालों ने क ना शुरु ककया, ईश्वर ने कैसा ततकाल दिं ड पन्ना-गाली कैसी, तेरी भाभी ी तो ै!
उसी समय पन्ना दौड़ी आयी और छोटे बालक को गोद में उठाकर प्यार करती
हदया। बेचारी मारे लाज के अपने दोनों बच्चों को मलये रोया करती। ग ॉँव में
ु ई बोली-लड़कों को मुझे क्यों न दे आयी ब ू ? ाय! ाय! बेचारा िरती पर पड़ा मुमलया की आिंखों से ऑ िंसू जारी थे। पन्ना की बातों में आज सच्ची वेदना, सच्ची
केदार-मेरे जेसे लट्ठ-गाँवार को व क्यों पूछने लगी!
ककसी को मुाँ हदखाने का सा स न ोता। प्रतयेक प्राणी उससे य क ता ु आ
लोट र ा ै । जब मैं मर जाऊाँ तो जो चा े करना, अभी तो जीती ू ाँ, अलग ो सान्तवना, सच्ची धचन्ता भरी ु ई थी। मुमलया का मन कभी उसकी ओर इतना
मालूम ोता था-‘मारे घमण्ड के िरती पर प ॉँव न रखती थी: आखखर सजा ममल
जाने से बच्चे तो न ीिं अलग ो गए। आकवर्षत न ु आ था। त्जनसे उसे व्यिंग्य और प्रततकार का भय था, वे इतने पन्ना-तू करने को क , तो मैं उससे पूछूाँ?
गई कक न ीिं !’ अब इस घर में कैसे तनवाष ोगा? व ककसके स ारे र े गी?
दयालु, इतने शुभेच्छु ो गए थे।
ककसके बल पर खेती ोगी? बेचारा रग्घू बीमार था। दुबल
ष था, पर जब तक जीता मुमलया ने क ा-तुम् ें भी तो छुट्टी न ीिं थी अम्म ॉँ, क्या करती? केदार-न ीिं मेरी अम्म ॉँ, क ीिं रोने-गाने न लगे।

मुमलया-मैं आज ी चली जाऊाँगी, अम्मा, उसके पैरों पड़कर मना लाऊाँगी। ईदगाह कौन सुनने वाला था? हदल पर जो कुछ बीतती थी, व हदल में ी स ती थी
पन्ना-तेरा मन ो, तो मैं बातों-बातों में उसके मन की था लूाँ?
ओर जब न स ा गया,. तो सिंसार से ववदा ो गई। अब ाममद अपनी बूढ़ी दादी
पन्ना-बता दूाँ , व तू ी ै! रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी ै । ककतना मनो र, ककतना सु ावना अमीना की गोद में सोता ै और उतना ी प्रसन्न ै । उसके अब्बाजान रूपये
केदार-मैं न ीिं जानता, जो चा े कर।
प्रभाव ै । वृक्षों पर अजीब ररयाली ै , खेतों में कुछ अजीब रौनक ै , आसमान कमाने गए ैं। ब ु त-सी थैमलय ॉँ लेकर आऍगेिं । अम्मीजान अल्ल ा ममय ॉँ के घर
मुमलया लजाकर बोली-तुम तो अम्म ॉँजी, गाली दे ती ो।
पन्ना केदार के मन की बात समझ गई। लड़के का हदल मुमलया पर आया ु आ पर कुछ अजीब लामलमा ै । आज का सूयष दे खो, ककतना प्यारा, ककतना शीतल ै, से उसके मलए बड़ी अच्छी-अच्छी चीजें लाने गई ैं , इसमलए ाममद प्रसन्न ै।

ै : पर सिंकोच और भय के मारे कुछ न ीिं क ता। पन्ना-गाली कैसी, दे वर ी तो ै! यानी सिंसार को ईद की बिाई दे र ा ै । ग विं में ककतनी लचल ै । ईदगा आशा तो बड़ी चीज ै , और किर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का
जाने की तैयाररय ॉँ ो र ी ैं। ककसी के कुरते में बटन न ीिं ै , पड़ोस के घर में पवषत बना लेती े। ाममद के प विं में जूते न ीिं ैं, मसर परएक पुरानी-िुरानी
उसी हदन उसने मुमलया से क ा-क्या करुाँ ब ू , मन की लालसा मन में ी र मुमलया-मुझ जैसी बुहढ़या को व क्यों पूछेंगे? सुई-िागा लेने दौड़ा जा र ा ै । ककसी के जूते कड़े ो गए ैं, उनमें तेल डालने टोपी ै , त्जसका गोटा काला पड़ गया ै , किर भी व प्रसन्न ै । जब उसके
जाती ै । केदार का घर भी बस जाता, तो मैं तनत्श्चन्त ो जाती। के मलए तेली के घर पर भागा जाता ै । जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें । अब्बाजान थैमलय ॉँ और अम्मीजान तनयमतें लेकर आऍगी,
िं तो व हदल से
पन्ना-व तुझी पर द ॉँत लगाए बैठा ै । तेरे मसवा कोई और उसे भाती ी न ीिं।
ईदगा से लौटते-लौटते दोप र ो जाएगी। तीन कोस का पेदल रास्ता, किर अरमान तनकाल लेगा। तब दे खेगा, मो मसन, नूरे और सम्मी क ॉँ से उतने पैसे
मुमलया-व तो करने को ी न ीिं क ते। डर के मारे क ता न ीिं: पर उसके मन की बात मैं जानती ू ाँ।
सैकड़ों आदममयों से ममलना-भें टना, दोप र के प ले लोटना असम्भव ै । लड़के तनकालें गे।
सबसे ज्यादा प्रसन्न ैं। ककसी ने एक रोजा रखा ै, व भी दोप र तक, ककसी ने
पन्ना-क ता ै , ऐसी औरत ममले, जो घर में मेल से र े , तो कर लूाँ। वैिव्य के शौक से मुरझाया ु आ मुमलया का पीत वदन कमल की भ ॉँतत अरुण
व भी न ीिं, लेककन ईदगा जाने की खुशी उनके ह स्से की चीज ै । रोजे बड़े- अभाधगन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो र ी ै । आज ईद का हदन, उसके घर
ो उठा। दस वर्ो में जो कुछ खोया था, व इसी एक क्षण में मानों ब्याज के
बूढ़ो के मलए ोंगे। इनके मलए तो ईद ै । रोज ईद का नाम रटते थे, आज व में दाना न ीिं! आज आबबद ोता, तो क्या इसी तर ईद आती ओर चली जाती!
मुमलया-ऐसी औरत क ॉँ ममलेगी? क ीिं ढू ाँ ढ़ो।
साथ ममल गया। व ी लवण्य, व ी ववकास, व ीिं आकर्षण, व ीिं लोच।
आ गई। अब जल्दी पड़ी ै कक लोग ईदगा क्यों न ीिं चलते। इन् ें गृ स्थी इस अन्िकार और तनराशा में व डू बी जा र ी ै । ककसने बुलाया था इस

पन्ना-मैंने तो ढू ाँ ढ़ मलया ै। *** धचिंताओिं से क्या प्रयोजन! सेवैयों के मलए दूि ओर शक्कर घर में ै या न ीिं, तनगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम न ीिं, लेककन ाममद! उसे ककसी के

इनकी बला से, ये तो सेवेयािं खाऍगेिं । व क्या जानें कक अब्बाजान क्यों बद वास मरने-जीने के क्या मतलब? उसके अन्दर प्रकाश ै , बा र आशा। ववपत्तत अपना
मुमलया-सच, ककस ग ॉँव की ै? सारा दलबल लेकर आये, ाममद की आनिंद-भरी धचतबन उसका ववध्वसिं कर
चौिरी कायमअली के घर दौड़े जा र े ैं। उन् ें क्या खबर कक चौिरी ऑ िंखें बदल
लें , तो य सारी ईद मु रष म ो जाए। उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर का िन दे गी।
पन्ना-अभी न बताऊाँगी, मुदा य जानती ू ाँ कक उससे केदार की सगाई ो जाए,
भरा ु आ ै । बार-बार जेब से अपना खजाना तनकालकर धगनते ैं और खुश
तो घर बन जाए और केदार की त्जन्दगी भी सुिल ो जाए। न जाने लड़की ाममद भीतर जाकर दादी से क ता ै -तुम डरना न ीिं अम्म ॉँ, मै सबसे प ले
ोकर किर रख लेते ैं। म मूद धगनता ै , एक-दो, दस,-बार , उसके पास बार
मानेगी कक न ीिं। आऊाँगा। बबल्कुल न डरना।
पैसे ैं। मो नमसन के पास एक, दो, तीन, आठ, नौ, पिंद्र पैसे ैं। इन् ीिं अनधगनती
मुमलया-मानेगी क्यों न ीिं अम्म ॉँ, ऐसा सुन्दर कमाऊ, सुशील वर और क ॉँ ममला पैसों में अनधगनती चीजें लाऍगेंिं - खखलौने, ममठाइयािं, बबगुल, गें द और जाने क्या- अमीना का हदल कचोट र ा ै । ग ॉँव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जा र े
जाता ै ? उस जनम का कोई सािु-म ातमा ै , न ीिं तो लड़ाई-झगड़े के डर से क्या। ैं। ाममद का बाप अमीना के मसवा और कौन ै ! उसे केसे अकेले मेले जाने दे ?
कौन बबन ब्या ा र ता ै । क ॉँ र ती ै , मैं जाकर उसे मना लाऊाँगी। उस भीड़-भाड़ से बच्चा क ीिं खो जाए तो क्या ो? न ीिं, अमीना उसे यों न जाने
और सबसे ज्यादा प्रसन्न ै ाममद। व चार-प ॉँच साल का गरीब सूरत, दुबला-
दे गी। नन् ी-सी जान! तीन कोस चलेगा कैसे? पैर में छाले पड़ जाऍगेिं । जूते भी
पन्ना-तू चा े , तो उसे मना ले। तेरे ी ऊपर ै। पतला लड़का, त्जसका बाप गत वर्ष ै जे की भें ट ो गया और म ॉँ न जाने क्यों
तो न ीिं ैं। व थोड़ी-थोड़ी दूर पर उसे गोद में ले लेती, लेककन य ॉँ सेवैय ॉँ कोन
पीली ोती- ोती एक हदन मर गई। ककसी को पता क्या बीमारी ै । क ती तो

पकाएगा? पैसे ोते तो लौटते-लोटते सब सामग्री जमा करके चटपट बना लेती। ोता ै । सुना ै , य ॉँ मुदो की खोपडड़यािं दौड़ती ैं। और बड़े-बड़े तमाशे ोते ें , ीरे -जवा रात तक उनके पास र ते ैं। त्जससे खुश ो गए, उसे टोकरों जवा रात किर आप ी बोले- म लोग चा ें तो एक हदन में लाखों मार लाऍ।िं म तो
य ॉँ तो घिंटों चीजें जमा करते लगें गे। म ॉँगे का ी तो भरोसा ठ रा। उस हदन पर ककसी को अिंदर न ीिं जाने दे त।े और व ॉँ शाम को सा ब लोग खेलते ैं। दे हदए। अभी य ीिं बैठे ें , प ॉँच ममनट में कलकतता प ु ाँच जाऍ।िं इतना ी लेते ैं , त्जसमें अपनी बदनामी न ो और नौकरी न चली जाए।
ि ीमन के कपड़े मसले थे। आठ आने पेसे ममले थे। उस उठन्नी को ईमान की बड़े-बड़े आदमी खेलते ें , मूाँछो-दाढ़ी वाले। और मेमें भी खेलती ैं , सच! मारी ाममद ने पूछा-य लोग चोरी करवाते ैं , तो कोई इन् ें पकड़ता न ीिं?
ाममद ने किर पूछा-त्जन्नात ब ु त बड़े-बड़े ोते ैं?
तर बचाती चली आती थी इसी ईद के मलए लेककन कल ग्वालन मसर पर सवार अम्म ॉँ को य दे दो, क्या नाम ै , बैट, तो उसे पकड़ ी न सके। घुमाते ी लुढ़क
मो मसन उसकी नादानी पर दया हदखाकर बोला..अरे , पागल! इन् ें कौन पकड़ेगा!
ो गई तो क्या करती? ाममद के मलए कुछ न ीिं े , तो दो पैसे का दूि तो जाऍ।िं
मो मसन-एक-एक मसर आसमान के बराबर ोता ै जी! जमीन पर खड़ा ो जाए
पकड़ने वाले तो य लोग खुद ैं, लेककन अल्ला , इन् ें सजा भी खूब दे ता ै।
चाह ए ी। अब तो कुल दो आने पैसे बच र े ैं। तीन पैसे ाममद की जेब में ,
तो उसका मसर आसमान से जा लगे, मगर चा े तो एक लोटे में घुस जाए।
म मूद ने क ा- मारी अम्मीजान का तो ाथ क ॉँपने लगे, अल्ला कसम। राम का माल राम में जाता ै । थोड़े ी हदन ु ए, मामू के घर में आग लग
पािंच अमीना के बटु वें में । य ी तो बबसात ै और ईद का तयौ ार, अल्ला ी बेड़ा
गई। सारी लेई-पूाँजी जल गई। एक बरतन तक न बचा। कई हदन पेड़ के नीचे
पर लगाए। िोबन और नाइन ओर मे तरानी और चुडड़ ाररन सभी तो आऍगी।
िं ाममद-लोग उन् ें केसे खुश करते ोंगे? कोई मुझे य मिंतर बता दे तो एक
मो मसन बोल-चलों, मनों आटा पीस डालती ैं। जरा-सा बैट पकड़ लेगी, तो ाथ
सोए, अल्ला कसम, पेड़ के नीचे! किर न जाने क ॉँ से एक सौ कजष लाए तो
सभी को सेवेय ॉँ चाह ए और थोड़ा ककसी को ऑ िंखों न ीिं लगता। ककस-ककस सें त्जन्न को खुश कर लूाँ।
क ॉँपने लगें गे! सौकड़ों घड़े पानी रोज तनकालती ैं। प ॉँच घड़े तो तेरी भैंस पी
बरतन-भ ॉँड़े आए।
मुाँ चुरायेगी? और मुाँ क्यों चुराए? साल-भर का तयों ार ैं। त्जन्दगी खैररयत से
जाती ै । ककसी मेम को एक घड़ा पानी भरना पड़े, तो ऑ िंखों तक अाँिेरी आ
र ें , उनकी तकदीर भी तो उसी के साथ ै , बच्चे को खुदा सलामत रखे, यें हदन मो मसन-अब य तो न जानता, लेककन चौिरी सा ब के काबू में ब ु त-से
जाए। ाममद-एक सौ तो पचास से ज्यादा ोते ै ?
भी कट जाऍगेिं । त्जन्नात ैं। कोई चीज चोरी जाए चौिरी सा ब उसका पता लगा दें गे ओर चोर
का नाम बता दे गें। जुमराती का बछवा उस हदन खो गया था। तीन हदन ै रान
म मूद-लेककन दौड़तीिं तो न ीिं, उछल-कूद तो न ीिं सकतीिं। ‘क ॉँ पचास, क ॉँ एक सौ। पचास एक थैली-भर ोता ै । सौ तो दो थैमलयों में
ग ॉँव से मेला चला। ओर बच्चों के साथ ाममद भी जा र ा था। कभी सबके सब
ु ए, क ीिं न ममला तब झख मारकर चौिरी के पास गए। चौिरी ने तुरन्त बता भी न आऍ िं?
दौड़कर आगे तनकल जाते। किर ककसी पेड़ के नीिंचे खड़े ोकर साथ वालों का मो मसन- ॉँ, उछल-कूद तो न ीिं सकतीिं; लेककन उस हदन मेरी गाय खुल गई थी हदया, मवेशीखाने में ै और व ीिं ममला। त्जन्नात आकर उन् ें सारे ज ान की
इिंतजार करते। य लोग क्यों इतना िीरे -िीरे चल र े ैं ? ाममद के पैरो में तो और चौिरी के खेत में जा पड़ी थी, अम्म ॉँ इतना तेज दौड़ी कक मैं उन् ें न पा खबर दे जाते ैं। अब बस्ती घनी ोने लगी। ईइगा जाने वालो की टोमलय ॉँ नजर आने लगी। एक
जैसे पर लग गए ैं। व कभी थक सकता ै ? श र का दामन आ गया। सड़क सका, सच। से एक भड़कीले वस्त्र प ने ु ए। कोई इक्के-त ॉँगे पर सवार, कोई मोटर पर, सभी
के दोनों ओर अमीरों के बगीचे ैं। पक्की चारदीवारी बनी ु ई ै । पेड़ो में आम अब उसकी समझ में आ गया कक चौिरी के पास क्यों इतना िन ै और क्यों
इत्र में बसे, सभी के हदलों में उमिंग। ग्रामीणों का य छोटा-सा दल अपनी
और लीधचय ॉँ लगी ु ई ैं। कभी-कभी कोई लड़का किंकड़ी उठाकर आम पर आगे चले। लवाइयों की दुकानें शुरू ु ई। आज खूब सजी ु ई थीिं। इतनी उनका इतना सम्मान ै।
ववपन्नता से बेखबर, सन्तोर् ओर िैयष में मगन चला जा र ा था। बच्चों के मलए
तनशान लगाता े । माली अिंदर से गाली दे ता ु आ तनिंलता ै । लड़के व ााँ से एक ममठाइय ॉँ कौन खाता? दे खो न, एक-एक दूकान पर मनों ोंगी। सुना ै , रात को
नगर की सभी चीजें अनोखी थीिं। त्जस चीज की ओर ताकते, ताकते ी र जाते
आगे चले। य पुमलस लाइन ै । य ीिं सब कातनसहटबबल कवायद करते ैं। रै टन!
िल ॉँग पर ैं। खूब ाँस र े ैं। माली को केसा उल्लू बनाया ै। त्जन्नात आकर खरीद ले जाते ैं। अब्बा क ते थें कक आिी रात को एक आदमी
और पीछे से आनष की आवाज ोने पर भी न चेतते। ाममद तो मोटर के नीचे
िाय िो! रात को बेचारे घूम-घूमकर प रा दे ते ैं, न ीिं चोररय ॉँ ो जाऍ।िं मो मसन
र दूकान पर जाता ै और त्जतना माल बचा ोता ै, व तुलवा लेता ै और
जाते-जाते बचा।
बड़ी-बड़ी इमारतें आने लगीिं। य अदालत ै, य कालेज ै, य क्लब घर ै। ने प्रततवाद ककया-य कातनसहटबबल प रा दे ते ें ? तभी तुम ब ु त जानते ों अजी
सचमुच के रूपये दे ता ै , बबल्कुल ऐसे ी रूपये।
इतने बड़े कालेज में ककतने लड़के पढ़ते ोंगे? सब लड़के न ीिं ैं जी! बड़े-बड़े जरत, य चोरी करते ैं। श र के त्जतने चोर-डाकू ें , सब इनसे मु ल्ले में
स सा ईदगा नजर आई। ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया े । नाचे पक्का
आदमी ैं, सच! उनकी बड़ी-बड़ी मूाँछे ैं। इतने बड़े ो गए, अभी तक पढ़ते जाते ाममद को यकीन न आया-ऐसे रूपये त्जन्नात को क ॉँ से ममल जाऍगी?
िं जाकर ‘जागते र ो! जाते र ो!’ पुकारते ें । तभी इन लोगों के पास इतने रूपये
िशष ै , त्जस पर जाजम हढछा ु आ ै । और रोजेदारों की पिंत्क्तय ॉँ एक के पीछे
ैं। न जाने कब तक पढ़ें गे ओर क्या करें गे इतना पढ़कर! ाममद के मदरसे में आते ें । मेरे मामू एक थाने में कातनसहटबबल ें । बार रूपया म ीना पाते ें ,
एक न जाने क ॉँ वक चली गई ैं, पक्की जगत के नीचे तक, ज ॉँ जाजम भी
मो मसन ने क ा-त्जन्नात को रूपये की क्या कमी? त्जस खजाने में चा ें चले
दो-तीन बड़े-बड़े लड़के ें , बबल्कुल तीन कौड़ी के। रोज मार खाते ैं, काम से जी लेककन पचास रूपये घर भेजते ें । अल्ला कसम! मैंने एक बार पूछा था कक
न ीिं ै । नए आने वाले आकर पीछे की कतार में खड़े ो जाते ैं। आगे जग
जाऍ।िं लो े के दरवाजे तक उन् ें न ीिं रोक सकते जनाब, आप ैं ककस िेर में !
चुराने वाले। इस जग भी उसी तर के लोग ोंगे ओर क्या। क्लब-घर में जादू मामू, आप इतने रूपये क ॉँ से पाते ैं? ाँसकर क ने लगे-बेटा, अल्ला दे ता ै।
न ीिं े । य ॉँ कोई िन और पद न ीिं दे खता। इस्लाम की तनगा में सब बराबर
ें । इन ग्रामीणों ने भी वजू ककया ओर वपछली पिंत्क्त में खड़े ो गए। ककतना चोगा, नीचे सिेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुन री जिंजीर, एक ाममद को सिंदे ु आ, ये केवल क्रूर ववनोद ें मो मसन इतना उदार न ीिं ै, प ु ाँचते टू ट-िूट बराबर ो जाऍगेिं । धचमटा ककतने काम की चीज ै । रोहटय ॉँ तवे
सुन्दर सिंचालन ै , ककतनी सुन्दर व्यवस्था! लाखों मसर एक साथ मसजदे में झुक ाथ में कानून का पौथा मलये ु ए। मालूम ोता ै , अभी ककसी अदालत से त्जर लेककन य जानकर भी व उसके पास जाता ै । मो मसन दोने से एक रे वड़ी से उतार लो, चूल् ें में सेंक लो। कोई आग म ॉँगने आये तो चटपट चूल् े से आग
जाते ैं, किर सबके सब एक साथ खड़े ो जाते ैं , एक साथ झुकते ें , और एक या ब स ककए चले आ र े ै। य सब दो-दो पैसे के खखलौने ैं। ाममद के पास तनकालकर ाममद की ओर बढ़ाता ै। ाममद ाथ िैलाता ै । मो मसन रे वड़ी तनकालकर उसे दे दो। अम्म ॉँ बेचारी को क ॉँ िुरसत े कक बाजार आऍ िं और
साथ खड़े ो जाते ैं , एक साथ खड़े ो जाते ैं , एक साथ झुकते ें , और एक कुल तीन पैसे ैं, इतने म ाँगे खखलौन व केसे ले? खखलौना क ीिं ाथ से छूट पड़े अपने मुाँ में रख लेता ै । म मूद नूरे ओर सम्मी खूब तामलय ॉँ बजा-बजाकर इतने पैसे ी क ॉँ ममलते ैं? रोज ाथ जला लेती ैं।
साथ खड़े ो जाते ैं , कई बार य ी कक्रया ोती े , जैसे बबजली की लाखों बत्ततयााँ तो चूर-चूर ो जाए। जरा पानी पड़े तो सारा रिं ग घुल जाए। ऐसे खखलौने लेकर ाँसते ैं। ाममद खखमसया जाता ै।
ाममद के साथी आगे बढ़ गए ैं। सबील पर सबके सब शबषत पी र े ैं। दे खो,
एक साथ प्रदीप्त ों और एक साथ बुझ जाऍ िं, और य ी ग्रम चलता, र े । ककतना व क्या करे गा, ककस काम के!
मो मसन-अच्छा, अबकी जरूर दें गे ाममद, अल्ला कसम, ले जा। सब कतने लालची ैं। इतनी ममठाइय ॉँ लीिं, मुझे ककसी ने एक भी न दी। उस पर
अपूवष दृश्य था, त्जसकी सामूह क कक्रयाऍ,िं ववस्तार और अनिंतता हृदय को श्रद्धा,
मो मसन क ता ै -मेरा मभश्ती रोज पानी दे जाएगा स ॉँझ-सबेरे क ते ै , मेरे साथ खेलो। मेरा य काम करों। अब अगर ककसी ने कोई काम
गवष और आतमानिंद से भर दे ती थीिं, मानों भ्रातृतव का एक सूत्र इन समस्त
ाममद-रखे र ो। क्या मेरे पास पैसे न ीिं ै?
करने को क ा, तो पूछूाँगा। खाए ममठाइय ॉँ, आप मुाँ सड़ेगा, िोड़े-िुत्न्सयााँ
आतमाओिं को एक लड़ी में वपरोए ु ए ैं।
म मूद-और मेरा मसपा ी घर का प रा दे गा कोई चोर आएगा, तो िौरन बिंदक
ू से तनकलें गी, आप ी जबान चटोरी ो जाएगी। तब घर से पैसे चुराऍगेिं और मार
सम्मी-तीन ी पेसे तो ैं। तीन पैसे में क्या-क्या लोगें ?
िैर कर दे गा।
2 खाऍगेिं । ककताब में झूठी बातें थोड़े ी मलखी ें । मेरी जबान क्यों खराब ोगी?

म मूद- मसे गुलाबजामुन ले जाओ ाममद। मो ममन बदमाश ै। अम्म ॉँ धचमटा दे खते ी दौड़कर मेरे ाथ से ले लें गी और क ें गी-मेरा बच्चा
नमाज खतम ो गई। लोग आपस में गले ममल र े ैं। तब ममठाई और खखलौने नूरे-ओर मेरा वकील खूब मुकदमा लड़ेगा।
अम्म ॉँ के मलए धचमटा लाया ै । ककतना अच्छा लड़का ै । इन लोगों के खखलौने
की दूकान पर िावा ोता ै । ग्रामीणों का य दल इस ववर्य में बालकों से कम
ाममद-ममठाई कौन बड़ी नेमत ै । ककताब में इसकी ककतनी बुराइय ॉँ मलखी ैं। पर कौन इन् ें दुआऍ िं दे गा? बड़ों का दुआऍ िं सीिे अल्ला के दरबार में प ु ाँचती ैं ,
सम्मी-ओर मेरी िोबबन रोज कपड़े िोएगी।
उतसा ी न ीिं ै। य दे खो, ह ड
िं ोला ें एक पैसा दे कर चढ़ जाओ। कभी आसमान
और तुरिंत सुनी जाती ैं। मैं भी इनसे ममजाज क्यों स ू ाँ ? मैं गरीब स ी, ककसी से
पर जाते ु ए मालूम ोगें , कभी जमीन पर धगरते ु ए। य चखी ै , लकड़ी के मो मसन-लेककन हदन मे क र े ोगे कक ममले तो खा लें । अपने पैसे क्यों न ीिं
ाममद खखलौनों की तनिंदा करता ै -ममट्टी ी के तो ैं, धगरे तो चकनाचूर ो जाऍ िं, कुछ म ॉँगने तो न ीिं जाते। आखखर अब्बाजान कभीिं न कभी आऍगेिं । अम्मा भी
ाथी, घोड़े, ऊाँट, छड़ो में लटके ु ए ैं। एक पेसा दे कर बैठ जाओिं और पच्चीस तनकालते?
लेककन ललचाई ु ई ऑ िंखों से खखलौनों को दे ख र ा ै और चा ता ै कक जरा ऑ िंएगी ी। किर इन लोगों से पूछूाँगा, ककतने खखलौने लोगे? एक-एक को टोकररयों
चक्करों का मजा लो। म मूद और मो मसन ओर नूरे ओर सम्मी इन घोड़ों ओर
दे र के मलए उन् ें ाथ में ले सकता। उसके ाथ अनायास ी लपकते ें , लेककन खखलौने दूाँ और हदखा ू ाँ कक दोस्तों के साथ इस तर का सलूक ककया जात ै।
ऊाँटो पर बैठते ें । ाममद दूर खड़ा ै । तीन ी पैसे तो उसके पास ैं। अपने म मूद-इस समझते ें , इसकी चालाकी। जब मारे सारे पैसे खचष ो जाऍगेिं , तो
लड़के इतने तयागी न ीिं ोते ें , ववशेर्कर जब अभी नया शौक ै। ाममद य न ीिं कक एक पैसे की रे वडड़य ॉँ लीिं, तो धचढ़ा-धचढ़ाकर खाने लगे। सबके सब
कोर् का एक तत ाई जरा-सा चक्कर खाने के मलए न ीिं दे सकता। में ललचा-ललचाकर खाएगा।
ललचता र जाता ै। ाँसेंगे कक ाममद ने धचमटा मलया ै। ाँसें! मेरी बला से! उसने दुकानदार से

सब चखखषयों से उतरते ैं। अब खखलौने लें गे। अिर दूकानों की कतार लगी ु ई ममठाइयों के बाद कुछ दूकानें लो े की चीजों की, कुछ धगलट और कुछ नकली पूछा-य धचमटा ककतने का ै?
खखलौने के बाद ममठाइयााँ आती ैं। ककसी ने रे व डड़य ॉँ ली ें , ककसी ने
ै । तर -तर के खखलौने ैं -मसपा ी और गुजररया, राज ओर वकी, मभश्ती और ग नों की। लड़कों के मलए य ॉँ कोई आकर्षण न था। वे सब आगे बढ़ जाते ैं,
गुलाबजामुन ककसी ने सो न लवा। मजे से खा र े ैं। ाममद बबरादरी से पृथक दुकानदार ने उसकी ओर दे खा और कोई आदमी साथ न दे खकर क ा-तुम् ारे
िोबबन और सािु। व ! कतते सुन्दर खखलोने ैं। अब बोला ी चा ते ैं। म मूद ाममद लो े की दुकान पर रूक जात े । कई धचमटे रखे ु ए थे। उसे ख्याल
ै । अभागे के पास तीन पैसे ैं। क्यों न ीिं कुछ लेकर खाता? ललचाई ऑ िंखों से काम का न ीिं ै जी!
मसपा ी लेता े , खाकी वदी और लाल पगड़ीवाला, किंिें पर बिंदक
ू रखे ु ए, मालूम आया, दादी के पास धचमटा न ीिं ै । तबे से रोहटय ॉँ उतारती ैं , तो ाथ जल
सबक ओर दे खता ै।
ोता े , अभी कवायद ककए चला आ र ा ै । मो मसन को मभश्ती पसिंद आया। जाता ै । अगर व धचमटा ले जाकर दादी को दे दे तो व ककतना प्रसन्न ोगी!
‘बबकाऊ ै कक न ीिं?’
कमर झुकी ु ई ै , ऊपर मशक रखे ु ए ैं मशक का मुाँ एक ाथ से पकड़े ु ए किर उनकी ऊगमलय ॉँ कभी न जलें गी। घर में एक काम की चीज ो जाएगी।
मो मसन क ता ै - ाममद रे वड़ी ले जा, ककतनी खुशबूदार ै!
ै । ककतना प्रसन्न ै ! शायद कोई गीत गा र ा ै । बस, मशक से पानी अड़ेला ी खखलौने से क्या िायदा? व्यथष में पैसे खराब ोते ैं। जरा दे र ी तो खुशी ोती ‘बबकाऊ क्यों न ीिं ै ? और य ााँ क्यों लाद लाए ैं?’
चा ता ै । नूरे को वकील से प्रेम े । कैसी ववद्वतता े उसके मुख पर! काला ै । किर तो खखलौने को कोई ऑ िंख उठाकर न ीिं दे खता। य तो घर प ु ाँचते-

तो बताते क्यों न ीिं, कै पैसे का ै ?’ ाममद ने खाँजरी की ओर उपेक्षा से दे खा-मेरा धचमटा चा े तो तुम् ारी खॅजरी का तनकलने वाली चीज े । उसको पेट के अन्दर डाल हदया जाना बेतुकी-सी बात
ाममद इस प्रबल तकष का जवाब न दे सका। उसने पूछा- में पकड़ने कौने
पेट िाड़ डाले। बस, एक चमड़े की खझल्ली लगा दी, ढब-ढब बोलने लगी। जरा-सा ोने पर भी कुछ नयापन रखती े। ाममद ने मैदान मार मलया। उसका धचमटा
‘छ: पैसे लगें गे।’ आएगा?
पानी लग जाए तो खतम ो जाए। मेरा ब ादुर धचमटा आग में , पानी में , आाँिी रूस्तमे-ह न्द े । अब इसमें मो मसन, म मूद नूरे, सम्मी ककसी को भी आपत्तत
में , तूिान में बराबर डटा खड़ा र े गा। न ीिं ो सकती।
ाममद का हदल बैठ गया। नूरे ने अकड़कर क ा-य मसपा ी बिंदक
ू वाला।

धचमटे ने सभी को मोह त कर मलया, अब पैसे ककसके पास िरे ैं ? किर मेले से ववजेता को ारनेवालों से जो सतकार ममलना स्वाभववक ै, व ाममद को भी
‘ठीक-ठीक पााँच पैसे लगें गे, लेना ो लो, न ीिं चलते बनो।’ ाममद ने मुाँ धचढ़ाकर क ा-य बेचारे म ब ादुर रूस्तमे-ह द
िं को पकड़ेगें!
दूर तनकल आए ें , नौ कब के बज गए, िूप तेज ो र ी ै । घर प ुिं चने की ममल। औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खचष ककए, पर कोई काम की चीज
अच्छा लाओ, अभी जरा कुश्ती ो जाए। इसकी सूरत दे खकर दूर से भागें गे।
ाममद ने कलेजा मजबूत करके क ा- तीन पैसे लोगे? जल्दी ो र ी े । बाप से त्जद भी करें , तो धचमटा न ीिं ममल सकता। ाममद ै न ले सके। ाममद ने तीन पैसे में रिं ग जमा मलया। सच ी तो ै , खखलौनों का
पकड़ेगें क्या बेचारे !
बड़ा चालाक। इसीमलए बदमाश ने अपने पैसे बचा रखे थे। क्या भरोसा? टू ट-िूट जाऍगी।
िं ाममद का धचमटा तो बना र े गा बरसों?
य क ता ु आ व आगे बढ़ गया कक दुकानदार की घुड़ककय ॉँ न सुने। लेककन
मो मसन को एक नई चोट सूझ गई-तुम् ारे धचमटे का मुाँ रोज आग में जलेगा।
दुकानदार ने घुड़ककय ॉँ न ीिं दी। बुलाकर धचमटा दे हदया। ाममद ने उसे इस तर सिंधि की शते तय ोने लगीिं। मो मसन ने क ा-जरा अपना धचमटा दो, म भी
अब बालकों के दो दल ो गए ैं। मो मसन, म मद, सम्मी और नूरे एक तरि ैं,
किंिे पर रखा, मानों बिंदक
ू ै और शान से अकड़ता ु आ सिंधगयों के पास आया। उसने समझा था कक ाममद लाजवाब ो जाएगा, लेककन य बात न ु ई। ाममद दे खें। तुम मारा मभश्ती लेकर दे खो।
ाममद अकेला दूसरी तरि। शास्त्रथष ो र ा ै । सम्मी तो वविमी ा गया! दूसरे
जरा सुनें, सबके सब क्या-क्या आलोचनाएाँ करते ैं! ने तुरिंत जवाब हदया-आग में ब ादुर ी कूदते ैं जनाब, तुम् ारे य वकील,
पक्ष से जा ममला, लेककन मो मसन, म मूद और नूरे भी ाममद से एक-एक, दो-दो म मूद और नूरे ने भी अपने-अपने खखलौने पेश ककए।
मसपा ी और मभश्ती लैडडयों की तर घर में घुस जाऍगेिं । आग में व काम ै,
साल बड़े ोने पर भी ाममद के आघातों से आतिंककत ो उठे ैं। उसके पास
जो य रूस्तमे-ह न्द ी कर सकता ै।
मो मसन ने ाँसकर क ा-य धचमटा क्यों लाया पगले, इसे क्या करे गा? ाममद को इन शतो को मानने में कोई आपत्तत न थी। धचमटा बारी-बारी से
न्याय का बल ै और नीतत की शत्क्त। एक ओर ममट्टी ै , दूसरी ओर लो ा, जो
सबके ाथ में गया, और उनके खखलौने बारी-बारी से ाममद के ाथ में आए।
इस वक्त अपने को िौलाद क र ा ै। व अजेय ै , घातक ै । अगर कोई शेर म मूद ने एक जोर लगाया-वकील सा ब कुरसी-मेज पर बैठेगे, तुम् ारा धचमटा
ाममद ने धचमटे को जमीन पर पटकर क ा-जरा अपना मभश्ती जमीन पर धगरा ककतने खूबसूरत खखलौने ैं।
आ जाए ममय ॉँ मभश्ती के छक्के छूट जाऍ,िं जो ममय ॉँ मसपा ी ममट्टी की बिंदक
ू तो बाबरचीखाने में जमीन पर पड़ा र ने के मसवा और क्या कर सकता ै?
दो। सारी पसमलय ॉँ चूर-चूर ो जाऍ िं बचा की।
छोड़कर भागे, वकील सा ब की नानी मर जाए, चोगे में मुिं तछपाकर जमीन पर
म मूद बोला-तो य धचमटा कोई खखलौना ै? ाममद ने ारने वालों के आाँसू पोंछे -मैं तुम् े धचढ़ा र ा था, सच! य धचमटा
लेट जाऍ।िं मगर य धचमटा, य ब ादुर, य रूस्तमे-ह द
िं लपककर शेर की गरदन इस तकष ने सम्मी और नूरे को भी राजी कर हदया! ककतने हठकाने की बात क ी
भला, इन खखलौनों की क्या बराबर करे गा, मालूम ोता ै , अब बोले, अब बोले।
पर सवार ो जाएगा और उसकी ऑ िंखे तनकाल लेगा। े पट्ठे ने! धचमटा बावरचीखाने में पड़ा र ने के मसवा और क्या कर सकता ै?
ाममद-खखलौना क्यों न ी ै ! अभी कन्िे पर रखा, बिंदक
ू ो गई। ाथ में ले
मलया, िकीरों का धचमटा ो गया। चा ू ाँ तो इससे मजीरे काकाम ले सकता लेककन मो मसन की पाटी को इस हदलासे से सिंतोर् न ीिं ोता। धचमटे का
ू ाँ। ाममद को कोई िड़कता ु आ जवाब न सूझा, तो उसने ि ॉँिली शुरू की-मेरा
मो मसन ने एड़ी-चोटी का जारे लगाकर क ा-अच्छा, पानी तो न ीिं भर सकता?
एक धचमटा जमा दूाँ , तो तुम लोगों के सारे खखलौनों की जान तनकल जाए। मसक्का खूब बैठ गया ै । धचपका ु आ हटकट अब पानी से न ीिं छूट र ा ै।
धचमटा बावरचीखाने में न ी र े गा। वकील सा ब कुसी पर बैठेगें , तो जाकर उन् े
तुम् ारे खखलौने ककतना िं न ी कर
ी जोर लगाऍ,िं मेरे धचमटे का बाल भी ब का ाममद ने धचमटे को सीिा खड़ा करके क ा-मभश्ती को एक डािंट बताएगा, तो जमीन पर पटक दे गा और उनका कानून उनके पेट में डाल दे गा।
मो मसन-लेककन इन खखलौनों के मलए कोई में दुआ तो न दे गा?
सकतें मेरा ब ादुर शेर ै धचमटा। दौड़ा ु आ पानी लाकर उसके द्वार पर तछड़कने लगेगा।
बात कुछ बनी न ी। खाल गाली-गलौज थी, लेककन कानून को पेट में डालनेवाली
म मूद-दुआ को मलये किरते ो। उल्टे मार न पड़े। अम्मााँ जरूर क ें गी कक मेले
सम्मी ने खाँजरी ली थी। प्रभाववत ोकर बोला-मेरी खाँजरी से बदलोगे? दो आने मो मसन परास्त ो गया, पर म मूद ने कुमुक प ु ाँचाई-अगर बचा पकड़ जाऍ िं तो बात छा गई। ऐसी छा गई कक तीनों सूरमा मुाँ ताकते र गए मानो कोई
में य ी ममट्टी के खखलौने ममले?
की ै। अदालम में बॅि-े बाँिे किरें गे। तब तो वकील सा ब के पैरों पड़ेगे। िेलचा कानकौआ ककसी गिंडव
े ाले कनकौए को काट गया ो। कानून मुाँ से बा र

ाममद को स्वीकार करना पड़ा कक खखलौनों को दे खकर ककसी की मााँ इतनी खुश अब र ा म मूद का मसपा ी। उसे चटपट ग ॉँव का प रा दे ने का चाजष ममल गया,
‘तीन पैसे हदये।’
न ोगी, त्जतनी दादी धचमटे को दे खकर ोंगी। तीन पैसों ी में तो उसे सब-कुछ लेककन पुमलस का मसपा ी कोई सािारण व्यत्क्त तो न ीिं, जो अपने पैरों चलें व
करना था ओर उन पैसों के इस उपयों पर पछतावे की बबल्कुल जरूरत न थी। पालकी पर चलेगा। एक टोकरी आई, उसमें कुछ लाल रिं ग के िटे -पुराने धचथड़े
अमीना ने छाती पीट ली। य कैसा बेसमझ लड़का ै कक दोप र ु आ, कुछ
किर अब तो धचमटा रूस्तमें -ह न्द े ओर सभी खखलौनों का बादशा । बबछाए गए त्जसमें मसपा ी सा ब आराम से लेटे। नूरे ने य टोकरी उठाई और
खाया न वपया। लाया क्या, धचमटा! ‘सारे मेले में तुझे और कोई चीज न ममली,
अपने द्वार का चक्कर लगाने लगे। उनके दोनों छोटे भाई मसपा ी की तर
जो य लो े का धचमटा उठा लाया?’
रास्ते में म मूद को भूख लगी। उसके बाप ने केले खाने को हदयें। म मून ने
‘छोनेवाले, जागते ल ो’ पुकारते चलते ें । मगर रात तो अाँिेरी ोनी चाह ए, नूरे
केवल ाममद को साझी बनाया। उसके अन्य ममत्र मुिं ताकते र गए। य उस
को ठोकर लग जाती ै । टोकरी उसके ाथ से छूटकर धगर पड़ती ै और ममय ॉँ ाममद ने अपरािी-भाव से क ा-तुम् ारी उाँ गमलय ॉँ तवे से जल जाती थीिं, इसमलए
धचमटे का प्रसाद थािं।
मसपा ी अपनी बन्दूक मलये जमीन पर आ जाते ैं और उनकी एक ट ॉँग में मैने इसे मलया।
ववकार आ जाता ै।
3
बुहढ़या का क्रोि तुरन्त स्ने में बदल गया, और स्ने भी व न ीिं, जो प्रगल्भ
ग्यार बजे ग ॉँव में लचल मच गई। मेलेवाले आ गए। मो मसन की छोटी ब न म मूद को आज ज्ञात ु आ कक व अच्छा डाक्टर ै । उसको ऐसा मर म ममला ोता े और अपनी सारी कसक शब्दों में बबखेर दे ता ै। य मूक स्ने था, खूब
दौड़कर मभश्ती उसके ाथ से छीन मलया और मारे खुशी के जा उछली, तो ममय िं गया ै त्जससे व टू टी ट ॉँग को आनन-िानन जोड़ सकता े । केवल गूलर का ठोस, रस और स्वाद से भरा ु आ। बच्चे में ककतना व्याग, ककतना सदभाव और
मभश्ती नीचे आ र े और सुरलोक मसिारे । इस पर भाई-ब न में मार-पीट ु ई। दूि चाह ए। गूलर का दूि आता ै । टााँग जवाब दे दे ती ै । शल्य-कक्रया असिल ककतना वववेक ै ! दूसरों को खखलौने लेते और ममठाई खाते दे खकर इसका मन
दानों खुब रोए। उसकी अम्म ॉँ य शोर सुनकर बबगड़ी और दोनों को ऊपर से ु ई, तब उसकी दूसरी टााँग भी तोड़ दी जाती ै । अब कम-से-कम एक जग ककतना ललचाया ोगा? इतना जब्त इससे ु आ कैसे? व ॉँ भी इसे अपनी बुहढ़या
दो-दो च ॉँटे और लगाए। आराम से बैठ तो सकता ै । एक ट ॉँग से तो न चल सकता था, न बैठ सकता दादी की याद बनी र ी। अमीना का मन गदगद ो गया।
था। अब व मसपा ी सिंन्यासी ो गया ै । अपनी जग पर बै ठा-बैठा प रा दे ता
ममय ॉँ नूरे के वकील का अिंत उनके प्रततष्ठानुकूल इससे ज्यादा गौरवमय ु आ। ै । कभी-कभी दे वता भी बन जाता ै । उसके मसर का झालरदार सािा खुरच और अब एक बड़ी ववधचत्र बात ु ई। ाममद कें इस धचमटे से भी ववधचत्र। बच्चे
वकील जमीन पर या ताक पर ो न ीिं बैठ सकता। उसकी मयाषदा का ववचार तो हदया गया ै । अब उसका त्जतना रूपािंतर चा ों, कर सकते ो। कभी-कभी तो ाममद ने बूढ़े ाममद का पाटष खेला था। बुहढ़या अमीना बामलका अमीना बन
करना ी ोगा। दीवार में खूहाँ टयााँ गाड़ी गई। उन पर लकड़ी का एक पटरा रखा उससे बाट का काम भी मलया जाता ै। गई। व रोने लगी। दामन िैलाकर ाममद को दुआऍ िं दे ती जाती थी और आाँसूिं
गया। पटरे पर कागज का कालीन बबदाया गया। वकील सा ब राजा भोज की की बड़ी-बड़ी बूिंदे धगराती जाती थी। ाममद इसका र स्य क्या समझता!
भााँतत मसिं ासन पर ववराजे। नूरे ने उन् ें पिंखा झलना शुरू ककया। अदालतों में अब ममय ॉँ ाममद का ाल सुतनए। अमीना उसकी आवाज सुनते ी दौड़ी और

खर की टहट्टय ॉँ और बबजली के पिंखे र ते ें । क्या य ॉँ मामूली पिंखा भी न ो! उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। स सा उसके ाथ में धचमटा दे खकर व
***
कानून की गमी हदमाग पर चढ़ जाएगी कक न ीिं? ब ॉँस का पिंखा आया ओर नूरे चौंकी।

वा करने लगें मालूम न ीिं, पिंखे की वा से या पिंखे की चोट से वकील सा ब


‘य धचमटा क ााँ था?’
स्वगषलोक से मृतयुलोक में आ र े और उनका माटी का चोला माटी में ममल
गया! किर बड़े जोर-शोर से मातम ु आ और वकील सा ब की अत्स्थय़ााँ घूरे पर
‘मैंने मोल मलया ै ।’
डाल दी गई।
‘कै पैसे में?’

You might also like