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तेयम
तेयम
‘कोट्ट’ ;चेण्डा, माद्यल्ल, नागाड़ा आदद को बिाना, पाटू ;गीत या गान, तुल्लल
;नृत्य आट्टम ;अजभनयपूणि नृत्य तर्ा कजल ;खेल परक प्रदिशन आदद प्रदिशन कलाएँ
आददकाल से ही के रल के समाि में व्याप्त रही हैं।
इन जवधाओं ने के रल की सभी कला रूपों को प्रभाजवत दकया।
इनमें से ‘तेयम’ भी एक है।
नाट्य जवशेषताएं
अजभनय में स्तुजतगीत और अंग जवक्षेप की प्रधानता होती है।
रूपसज्जा पात्रानुकूल तर्ा कर्कजल िैसी भड़कीली होती है ।
वेषजवधानों में मुकुटों की प्रधानता होती है, जिसे नाररयल के पेड़ के नरम पत्ते
और के ले के पत्तों व जिलकों से तैयार दकया िाता है।
मंच : मंददर के प्रांगण या अन्य दकसी सावििजनक िगहों पर तेयम के प्रदशिन
दकये िाते हैं।
तेयम के प्रकार
1.जतरयाटम : शजिशाली देवताओं के नाम मनाया िाता है ।
जतरयाटम’ में भगवती, भद्रकाली तर्ा अन्य देजवयों पर तेयम प्रस्तुत होता है।
3. कोलम : मनुष्य िाजत के वीरों के नाम मनाया िाता है । (इसे भी कोलम कहने की प्रर्ा है )
कण्णन, चेम्मरजत्त, वीरन, ब्रह्मराक्ष सत्रा कजतवनूर तर्ा चक्कू लोती आदद तेयम के जवषय मानव
वीरों से संबंजधत होते हैं।
आमतौर पर वीरों की पूिा से संबजतत ‘कोलम’ के रल की दजलत और शोजषत िाजतयों - मण्णान,
वेलन व नायाडी आदद के बीच प्रचजलत है।