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भारत में बच्चों और बचपन पर शोध education DES PDF
भारत में बच्चों और बचपन पर शोध education DES PDF
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MANISH VERMA
BEST
AWARD
1
अनक्र
ु म
पाठ 1
पाठ 2
पाठ 3
पाठ 4
पाठ 5
पाठ 6
अनस
ु ंधान �रपोटर् लेखन
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2
अध्ययन करता है ।
संदभर् के आयु, �लंग, नस्ल, समस्या, बुद्�धम�ा, सामािजक स्तर, आ�थर्क िस्थ�त आ�द के
संदभर् म� , �व�भन्न श्रे�णय� के अंतगर्त सारणीबद्ध उपलब्ध ह�, कुछ श्रे�णयाँ �व�भन्न कारक�
काम करते हुए, बहुत मह�वपूणर् �नष्कषर् केस स्टडी के माध्यम से उपलब्ध कराए गए ह�।
अब, मल्
ू यांकन करने के �लए �क क्या प�रवतर्न आया है , और प�रवतर्न क� मात्रा क्या है ,
शोधकतर् को उम्र के �व�भन्न चरण� म� बच्चे का अध्ययन करना होगा, माता-�पता, �श�क�
ु ाय� म� मौजद
3. अलग-अलग प�रवार�, क�ाओं, स्कूल� और समद ू ा समह
ू पैटनर्, केस स्टडी के
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अ�धकांश पस्
ु तक� का एक �हस्सा-सामािजक, आपरा�धक या शै��क. �च�कत्सा या प्रबंधन,
बच्च� को एक साथ पाला गया, और सामान्य रूप से। जनसंख्या एक साथ, वे सािख्यक�य
प�रणाम� के पूरक है ।
6. ऐसे ब्यूरो या एज��सयाँ ह� िजन्ह� पेशेवर� और सरकार� �वभाग� के �लए मह�वपूणर् �नष्कष�
के �लए काम पर रखा जाता है । ये �नष्कषर् आम तौर पर केस स्टडी के प�रणाम होते ह�।
केस स्टडी के प�रणाम पुस्तक-रूप म� प्रका�शत �कए जाते ह�, क्य��क वे सामान्यीकरण तैयार
करने म� बहुत सहायक होते ह�। केस. स्टडी क� �रप�ट� के रूप म� �ान का बहुत उपयोगी
शर�र उपलब्ध है । बाल मनो�व�ान के �ेत्र म� , �वशेष रूप से, और सामान्य रूप से �श�ा
नह�ं है , जैसा �क वे भौ�तक �व�ान� म� करते ह�, जहाँ समस्या प्रबंधक�य या अन्य
व्यावहा�रक पहलओ
ु ं से संबं�धत हो सकती है ।
�नष्कषर्:-
सामािजक �व�ान के मामले म� , उद्दे श्य होता है , न केवल कुछ तथ्य� को प्रकट करना, जैसा
�क भौ�तक �व�ान� म� होता है , ले�कन संबं�धत सामािजक संस्था को अ�धक प्रभावी तर�के
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बाल मनो�व�ान के �ेत्र म� शोधकतार्ओं को, बच्चे या �कशोर से संबं�धत �व�भन्न �ेत्र� म�
�कए गए प्रयास� के प�रणाम� से बचना होगा। �ेत्र एक बाल मागर्दशर्न िक्ल�नक हो सकता
उ�र - प्रभावशाल� �श�ा एवं �श�ण के �लये माध्यम क� आवश्यकता होती है । सामान्यतः
शै��क सम्प्रेषण के भौ�तक साधन� को जनसंचार कहा जाता है ; जैसे-पुस्तक�, छपी हुई
सामग्री, कम्प्यूटर, स्लाइड, टे प, �फल्म एवं रे �डयो आ�द । जनसंचार साधन� के द्वारा
पहुँचाता है ।
सम्प्रेषणकतार् को तुरन्त पष्ृ ठपोषण �मल जाता है । दृश्य-श्रव्य �श�ण साधन व्यिक्त के
सम्प्रेषण का आधार ह�। जब सम्प्रेषण �कसी जनसंचार माध्यम और व्यिक्त के बीच होता है
तो हम उसे मास मी�डया (Mass Media) कहते ह� अथार्त ् वह सम्प्रेषण साधन, िजसम�
व्यिक्त क� अनुपिस्थ�त म� छपी हुई सामग्री, रे �डयो अथवा दृश्य-श्रव्य सामग्री (दरू दशर्न)
एकतरफा सम्प्रेषण होता है अथार्त ् सम्प्रेषणकतार् को पष्ृ ठ- पोषण प्राप्त नह�ं होता। जनसंचार
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1.शै��क रे �डयो (Educational Radio)- आधु�नक संचार के सभी माध्यम� म� रे �डयो सवर्-
सल
ु भ माध्यम है । भारत म� 99% से अ�धक जनसंख्या म� यह माध्यम अपनी पहुँच रखता
है । इटल� �नवासी जी. मारकोनी ने 19वीं शताब्द� म� इसका आ�वष्कार �कया था। यह रे �डयो
�वद्युत चम्
ु बकत्व के �सद्धान्त पर कायर् करता है । रे �डयो वतर्मान समय म� जनसंचार का
सबसे �मतव्ययी साधन है , इस कारण यह �व�भन्न आयु वग� तथा दरू -दराज के �ेत्र म�
रे �डयो के प्रयोग से एक कुशल तथा प्रभावशाल� �श�क को बहुत अ�धक व्यिक्त अथवा
�वद्याथ� एक साथ श्रवण तथा मनन कर सकते ह�, जब�क क�ागत �श�ण म� कुछ 40-60
छात्र ह� लाभ प्राप्त कर सकते ह�। इसके अ�त�रक्त रे �डयो के माध्यम से कायर्क्रम का
प्रसारण रु�चकर लगता है क्य��क इसका प्रसारण अनुभवी व्यिक्तय� क� सहायता से �कया
स्वस्थ कम�, अ�श��त तथा म�हलाएँ इत्या�द लाभािन्वत होते ह�। रे �डयो कायर्क्रम� से शै��क
अवसर� क� स्थापना एवं उनके �वस्तार म� सहायता प्राप्त होती है । इन सभी कारण� से भारत
2.शै��क दरू दशर्न - बीसवीं शताब्द� के उ�राद्र्ध तथा इक्क�सव� शताब्द� के प्रथम दशक म�
सच
ू ना माध्यम� ने �नःसन्दे ह मानव तथा मानव के जीवन को पूणरू
र् प से प�रव�तर्त कर
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�दया। इस प�रवतर्न म� सबसे अ�धक योगदान संचार माध्यम; जैसे-दरू संचार सेवाओं तथा
दरू दशर्न सेवाओं के कारण सम्भव हुआ। इस समयकाल म� इन तकनीक� सेवाओं ने इतनी
प्रग�त क� है । सम्पण
ू र् �वश्व एक वैिश्वक ग्राम के रूप म� ह� प�रव�तर्त हो गया है । अब मानव
है तथा य�द वह �वश्व के �कसी भी अन्य भाग म� उपिस्थत अपने �मत्र अथवा सम्बन्धी से
वातार्लाप करना चाहे तो वह ऐसा पलक झपकते ह� कर सकता है । अत: यह कहना त�नक
है तो �श�ा का �ेत्र इससे कैसे अप्रभा�वत रह सकता है वतर्मान समय म� �श�ा के �ेत्र म�
वस्तत
ु ः शै��क दरू दशर्न एक ऐसी व्यवस्था है , िजसके अन्तगर्त एक केन्द्र�य अ�भकरण के
सामग्री प्रस्तुत तथा प्रसा�रत क� जाती है । दरू दशर्न शै��क प्रसारण� के �लये एक मह�वपूणर्
तथा प्रभावशाल� माध्यम �सद्ध हो चुका है क्य��क इसम� जन�श�ा के �ेत्र क� अ�धकांश
प्रायः औपचा�रक तथा अनौपचा�रक दोन� ह� प्रकार क� �श�ा दरू दशर्न के माध्यम से प्रदान
प�रव�तर्त �कया जा सकता है तथा एक व्यिक्त अपने �नवास स्थान पर ह� क�ा म� अध्ययनं
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का अनुभव प्राप्त कर सकता है । दरू दशर्न, �श�ा के �लये तो एक वरदान �सद्ध हुआ है
क्य��क इसने का �नवर्हन �कया है । इस प्रणाल� क� अनेक सीमाओं को पार करके इसे अ�धक
सच
ू ना प्रौद्यो�गक� के �ेत्र म� इस शब्द का अथर् एक ह� कम्प्यूटर पर टे क्स्ट, ग्रा�फक्स,
एमीनेशन, आ�डयो, वी�डयो इत्या�द स�ु वधाओं के प्राप्त होने से लगाया जाता है । मल्ट�-
ह� तथा संगीत भी सन
ु ा जा सकता है । सी. डी. लगाकर �व�भन्न �वषय� क� जानकार� ल� जा
आम व्यिक्तगत कम्प्यट
ू र� क� तल ू र� म� ध्व�न ब्लास्टर काडर्,
ु ना म� मल्ट�-मी�डया कम्प्यट
स्पीकर, माइक्रोफोन एवं काम्पैक्ट �डस्क ड्राइव सिम्म�लत ह�। िजन्ह� संयक्
ु त रूप से मल्ट�-
प्रोग्राम का प्रयोग �कया जाता है , िजसे सी. डी. रोम कहा जाता है । उत्पादन सच
ू ना मनोरं जन
�श�ा तथा सज
ृ नात्मक काय� म� मल्ट�-मी�डया का अत्य�धक उपयोग है ।
मल्ट�-मी�डया प्रोग्राम दो प्रकार के हो सकते ह�। ल��नयर एवं इण्टरएिक्टव प्रोग्राम� म� �वषय
क� प्रस्तु�त एक बँधे बँधाये रूप म� होती है । इसम� उपभोक्ता का कोई हस्त�ेप नह�ं होता,
तकनीक ने �श�ा एवं मनोरं जन के �ेत्र म� अत्य�धक क्रािन्त पैदा कर रखी है । �फल्म� तथा
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मी�डया के कारण ह� सम्भव हुआ है । बहुच�चर्त �फल्म (जरु ा�सक पाकर्) के अ�धकांश दृश्य
सामग्री गूगल पर सचर् कर तुरन्त उपलब्ध हो जाती है एवं कम्प्यूटर द्वारा स्माटर् क्लास का
संचालन भी होने लगा है िजससे बालक म� पढ़ाई के साथ-साथ उत्साह का भी संचार होता है ।
कुछ �वद्वान� का मानना है �क वतर्मान समय म� संचार साधन� के प्रयोग के द्वारा क�ा
�श�ण का कायर्क्रम तैयार �कया जाता है । प्राथ�मक स्तर पर अनेक प्रकार के मनोरं जक
कायर्क्रम तैयार �कये जाते ह� िजनम� छात्र� का मनोरं जन भी होता है तथा उनको �ान भी
प्राप्त होता है । उदाहरणाथर्, �व�ान �वषय के �ान म� प�रवेशीय स्वच्छता एवं व्यिक्तगत
से सम्पन्न होते ह� तथा िजनका प्रयोग क�ा-क� �श�ण म� �कया जा सकता है । क�ा-क�
1. इनके माध्यम से �व�भन्न प्रकार के �वषय� का �ान सजीव रूप से क�ा म� कराया जा
सकता है तथा िजन कायर्क्रम� को उपिस्थत होकर छात्र नह�ं दे ख सकता है उन कायर्क्रम�
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सकता है क्य��क ये कायर्क्रम छात्र� क� रु�च एवं योग्यता को ध्यान म� रखकर बनाये
जाते ह�।
5. बहुमाध्यमीय शै��क कायर्क्रम� म� संचार साधन� का प्रयोग सम्भव होता है िजससे छात्र�
क� इन कायर्क्रम� के प्र�त �वशेष रु�च होती है िजससे क�ा �श�ण प्रभावी रूप से
सम्पन्न होता है ।
व्यापक अथर् मे शोध अ�भकल्प या शोध प्रारूप या शोध प्ररचना (�रसचर् �डजाइनय) �कसी
आनुभ�वक अध्ययन को आरं भ करने के पूवर् उसको सम्पन्न करने क� सम्पूणर् प्र�क्रया क�
ू रे शब्द� मे, यह �कसी शोध अध्ययन को सम्पन्न करने क� पूवर् �न�मर्त योजना है अथार्त ्
दस
अनुसध
ं ान-अध्ययन �कस प्रकार सम्पन्न �कया जाना है उसक� पूवर् संरचनात्मक रूपरे खा है ।
ता�कर्क एवं क्रमबद्ध पद्ध�तय� द्वारा नवीन एवं पूराने तथ्य� क� खोज एवं उसमे पाये जाने
वाले अनक्र
ु म�, अंत:सम्बंध�, कायर्कारण-व्याख्या का �वश्लेषण करना है ।"
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सामान्य अथ� मे " प्रारूप " शब्द का प्रयोग �कसी रूपरे खा के �लए होता है । अथार्त ् यह
�कसी भी कायर् को प्रारं भ करने के पूवर् �न�मर्त कायर् है जो कायर् के दौरान उत्पन्न होने वाल�
एकाफ के अनुसार " �नणर्य कायार्िन्वत करने क� िस्थ�त आने के पूवर् ह� �नणर्य करने क�
1. अनुसध
ं ान अ�भकल्प का �नमार्ण अनस
ु ध
ं ान कायर् आरं भ करने से पूवर् �कया जाता है ।
2. अनुसध
ं ान प्रारूप शोधकायर् के �लए रूपरे खा का �नमार्ण करना होता है । यह शोध का
3. अनुसध
ं ान प्रारूप सामािजक घटनाओं का सरल�करण करता है ।
4. शोध प्रारूप शोधकतार् के �लए एक पथ-प्रदशर्क क� भ�ू मका �नभाता है िजसके प्रयोग से
5. शोध प्ररचना शोधकायर् मे आने वाल� बाधाओं का दरू कर शोध कायर् को सरल करता है ।
6. अनुसध
ं ान प्रारूप के �नमार्ण से शोध कायर् सी�मत समय, धन और श्रम मे पूणर् होता है ,
7. अनुसध
ं ान प्रारूप शोध समस्या पर आधा�रत होता है ।
8. शोधकतार् अनुसध
ं ान प्रारूप से शोधकायर् के अ�धकतम उद्दे श्य� को प्राप्त करने मे सफल
होता है ।
9. अनुसध
ं ान प्रारूप शोध कायर् मे प�रिस्थ�तय� को �नयं�त्रत कर शोध कायर् को सरल बनाता
है ।
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10. अनुसध
ं ान प्रारूप शोध कायर् का प्रारूप है , इससे शोधकायर् मे सत्यता, प्रामा�णकता और
�वश्वसनीयता आती है ।
12. अनुसध
ं ान अ�भकल्प अध्ययन पद्ध�तय� और अनुसध
ं ान उद्दे श्य�, दोन� को जोड़ता है ।
13. अनस
ु ध
ं ान अ�भकल्प सामािजक शोध क� ज�टल प्रकृ�त को सरल बनाता है तथा मानव
14. अनुसध
ं ान अ�भकल्प सामािजक अनुसध
ं ानकतार्ओं को �दशा प्रदान करता है ।
1. समस्या क� व्याख्या: -
सवर्प्रथम शोधकतार् को अध्ययन क� जाने वाल� समस्या क� व्याख्या करनी चा�हए। इसके
अंतगर्त हमे चय�नत �वषय को बहुत ह� स्पष्ट तथा बार�क� के साथ समझना चा�हए। इस
2. अनुसध
ं ान प्रारूप क� रूपरे खा: -
अनस
ु ध
ं ान कायर् के द्�वतीय चरण मे यह �निश्चत करना आवश्यक होता है �क शोधकायर्
�कस प्रकार से �कया जायेगा? शोधकायर् का �ेत्र क्या होगा? शोध के उद्दे श्य कैसे प्राप्त
�कये जाय�गे।
3. �नदशर्न क� योजना: -
शोधकायर् हे तु चय�नत क� गई समस्या के �लए तथ्य� का संकलन करते समय हमे सदै व
करने हे तु उपयक्
ु त पद्ध�त क� योजना बनाना बहुत जरूर� होता है ।
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4. तथ्य संग्रहण: -
अध्ययनकतार् को शोध के �लए �नदशर्न का चयन होने के पश्चात अपनी चय�नत समस्या के
अध्ययन आ�द पद्ध�तय� के माध्यम से �कया जाता है । इसके �लए हमे अपने अध्ययन क�
प्रकृ�त को समझना आवश्यक होता है िजससे �क समग्र मे से उ�चत �नदश� से सह� तथ्य
5. तथ्य� का �वश्लेषण: -
अध्ययन �ेत्र से प्राप्त �कये गये तथ्य, प्राथ�मक सामग्री कहलाते है । तथ्य संग्रहण द्वारा
प्राप्त प्राथ�मक सामग्री को अं�तम रूप से सत्य व उपयोगी नह� माना जा सकता है क्य��क
संग्रह�त करने के बाद तथ्य� का �वश्लेषण �कया जाता है िजससे �बखर� हुई अथवा फैल� हुई
स्पष्ट हो जाती है ।
महत्वपूणर् कायर् है । इसका उद्दे श्य अध्ययन के सम्पूणर् �नष्कष� से सम्बं�धत व्यिक्तय� को
प्र�श��त करना होता है अतः प्र�तवेदन तैयार करते समय हमे �नम्न�ल�खत बात� को ध्यान
मे रखनी चा�हए--
2. अध्ययन �व�धय�, साधन�, उद्दे श्य�, आ�द का स्पष्ट तथा स�वस्तार �ववरण हो।
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4. प्र�तवेदन मे सार�णय�, �चत्र�, आलेख� तथा मान�चत्र� आ�द का सम�ु चत प्रयोग हो।
5. �नष्कषर् तथा सझ
ु ाव भी �दये जाने चा�हए।
7. नई समस्या क� व्याख्या: -
इसके साथ ह� शोध समस्या के �वश्लेषण के साथ ह� हमे इससे उत्पन्न होने वाल� नई
समस्याओं क� भी व्याख्या करनी चा�हए, िजससे शोध के �लए नये �वषय एवं नई समस्या
क� व्याख्या क� जा सके।
है । इन �व�धय� से जो प�रणाम प्राप्त होते ह�, उन्ह� �वश्वसनीय तथा वैध कहा जा सकता है ।
1. �नयिन्त्रत �नर��ण �व�ध - �नयिन्त्रत �नर��ण �व�ध बालक के �नजी व्यवहार का अंकन
प्रकार ह�
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है , यह अन्य समद
ु ाय� के बालक� के व्यवहार से क्य� �भन्न होता है , क� जानकार� �मलती
है ।
है । इस सच
ू ी म� �दये गये पद� के अनुसार जाँच करके ह� व्यवहार तथा �वकास का �नर��ण
�कया जाता है ।
प�� के साथ बालक के व्यवहार म� क्य� �भन्नता पाई जाती है , इस बात क� जानकार� उन
प�रिस्थ�तय� का �वश्लेषण करने से होती है , िजनम� �न�दर् ष्ट व्यवहार �कया जाता है ।
(d) समय �नद� शन – इस �व�ध द्वारा �कसी �नधार्�रत समय म� बालक के �वकास तथा
उपयक्
ुर् त चार� प्र�व�धय� क� सीमाएँ इस प्रकार ह�-
2. प्रश्नावल� �व�ध- �व�भन्न प्रश्न� के उ�र बालक� से प्राप्त �कये जाते ह�। उनके उ�र� के
अध्ययन पर बालक के �वकास का अध्ययन �कया जाता है । जी० स्टे लने हॉल ने सवर्प्रथम
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123 प्रश्न� क� सच
ू ी बोस्टन स्कूल के बच्च� का अध्ययन करने के �लए तैयार क�। पाइल्स,
• बच्चे प्रश्न� का भाव क�ठन भाषा होने के कारण समझ नह�ं पाते,
• जानबझ
ू कर गलत उ�र आ जाते ह�,
रखा जाता है । बालक के जन्म के समय होने वाल� घटनाओं का संकलन �कया जाता है ।
इसी �व�ध म� उद्द�पन, अनु�क्रया के मध्य होने वाले सम्बन्ध� का अध्ययन �कया जाता है ।
�कसी भी उद्दे श्य से शर�र तथा व्यवहार म� क्या प�रवतर्न होते ह�, यह जानना ह� इस �व�ध
�कया जाता है ।
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आचरण सम्बन्धी ज�टल प्रिन्थय� के अध्ययन के �लए काम म� लाई जाती है और उसम�
ग्रिन्थ �कन कारण� से पैदा हुई है , और पात्र को क्या सहायता द� जानी चा�हये? बालक� म�
कभी-कभी असामान्य व्यवहार पाया जाता है । य�द इस असामान्य व्यवहार का समय रहते
उपचार नह�ं �कया जाता तो उसम� मान�सक �व��प्तता �वक�सत होने लगती है ।
7. सांिख्यक� �व�ध- सांिख्यक� �व�ध से प्राप्त आँकड़� का �वश्लेषण �कया जाता है तथा
जब बच्च� के एक ह� समह
ू का अध्ययन लंबी समयाव�ध म� �कया जाना हो, िजसे दे खा जा
ह� नमन
ू े का अध्ययन �कया जाता है ।
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क्रमबद्ध आकड़े एक�त्रत �कए जाते ह�। इस प्रकार का अध्ययन समय के साथ �कसी �वषय
या मद
ु दे क� ग�तशीलता का अध्ययन करने के �लए बेहद उपयोगी होता है । अनुदैघ्यर्
• स�
ू म स्तर का �वश्लेषण संभव है ।
�वस्ता�रत अव�ध म� कई बार �कया जाता है । उदाहरण के �लए प्राथ�मक स्कूल के बच्च� म�
बद�धलिब्ध (IQ) के �वकास का अध्ययन करने वाला शोधकतार् पहल� क�ा के छात्र� के
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नमन
ू े का चयन करके उनका आई क्यू पर��ण करे गा तथा उसी समह
ू के छात्र� का क्रमबद्ध
रूप से अगल� क�ा म� भी पर��ण �कया जाएगा। इस प्रकार हर साल पर��ण के आधार पर
2. ट्र� ड स्टडीज - ट्र� ड स्टडी पैनल अध्ययन से अलग होती है िजसम� सामान्य आबाद� से
अध्ययन �कया जाता है । शोधकतार् द्वारा लगातार ट्र� ड के अध्ययन से प्राप्त आकड़� क� जाँच
करने से �वषय के व्यवहार म� होने वाले प�रवतर्न के पैटनर् को पहचाना जा सकता है , िजससे
• यह मानव के वद्
ृ �ध और �वकास से संबं�धत �कए जाने वाले शोध काय� म� मदद करता
है ।
• है ।
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• यह चर क� एक �वस्तत
ृ श्रंख
ृ ला को समझने के �लए गहराई और व्यापक अध्ययनक�
अनुम�त दे ता है
न्यायदशर् रहता है ।
लंबी अव�ध तक न्यायदशर् के साथ रहना पड़ता है और उनके साथ सहयोग को बनाए रखना
पड़ता है ।
• �वस्ता�रत अव�ध के �लए �वषय� के साथ सहयोग बनाए रखना मिु श्कल है ।
• �श�ा के �ेत्र म� �वद्या�थर्य�, कमर्चा�रय�, �श�ण �व�धय� आ�द म� होने वाले �नरं तर
• समय के साथ चय�नत स�पल क� �कसी भी कारणवश अनपलब्ध होने क� संभावना रहती है ।
अनुप्रस्थ अध्ययन:-
अनद
ु ै घ्यर् और अनप्र
ु स्थ अध्ययन के बीच मख्
ु य अंतर यह है �क अनद
ु ै घ्यर् अध्ययन म� बच्च�
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20
• अनुप्रस्थ अध्ययन कम महँगे होते ह�, क्य��क इसे पूरा करने के �लए वष� क�
• इसम� �नयंत्रण प्रभाव सी�मत होता है क्य��क न्यायदशर् केवल एक बार भाग लेते ह�।
म� उपयोगी है ।
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पव
ू ार्ग्रह से प्रभा�वत हो सकते ह�।
• इस �व�ध म� अकसर बाहर� चर� द्वारा जनसंख्या और न्यायदशर् के बीच अंतर होने क�
• अनुप्रस्थ अध्ययन म� न्यायदशर् का चयन करना क�ठन कायर् है क्य��क प्रत्येक आयु स्तर
म� असमथर् है ।
है ।
प्रश्न 6. – बच्च� को समझने के �लए केस स्टडी तर�के क� �वशेषताओं क� व्याख्या क�रए?
ु ाय हो सकता है ।'
यहाँ तक �क एक परू ा समद
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म�रयम के अनुसार, “एक केस स्टडी एक से�टंग या एक ह� �वषय के दस्तावेज� का, एकल
ु ार, 'केस स्टडी �रसचर् एक शोध रणनी�त के रूप म� �डजाइन, डेटा संग्रह
�पन के अनस
�व�ध है ।"
ु ार, 'केस स्टडी �रसचर् एक शोध रणनी�त के रूप म� �डजाइन, डेटा संग्रह
�यन के अनस
�व�ध है ।'
है ।
• एक समह
ू , एक साइट, एक वगर्, एक नी�त, एक कायर्क्रम, एक प्र�क्रया, एक संस्था या
एक समद
ु ाय हो सकता है ।
• इसम� आमतौर पर समय के साथ डेटा संग्रह के कई स्रोत शा�मल होते ह�।
• यह एक सवर्व्यापी अनस
ु ध
ं ान �व�ध है ।
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• यह केस से जड़
ु ी सभी प्रासं�गक �व�शष्ट घटनाओं पर प्रकाश डालती है ।
अप्रत्य� और अमत
ू र् दृिष्टकोण से।
करते ह�:
कारक दस
ू र� को कैसे प्रभा�वत करता है ।
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�मता है ।
• यह एक पण
ू र् अनस
ु ध
ं ान ट�म के �बना एक ह� शोधकतार् द्वारा �कया जा सकता है ।
मदद करता है ।
करती है , जो अकसर अन्य तकनीक� का उपयोग करने वाले अ�धकांश कुशल शोधकतार्ओं
म� �वस्तार का अभाव है ।
नजरअंदाज करना है ।
�रश्तेदार केस या व्यिक्त क� कमजोर� का उल्लेख करना पसंद नह�ं करते ह�।
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है ।
उ�र – सा�ात्कार :-
सा�ात्कार क� प�रभाषा :-
पौ�लन यंग के अनुसार, " सा�ात्कार एक व्यविस्थत �व�ध मानी जा सकती है िजसके द्वारा
मनोवै�ा�नक प्र�क्रया के �लए यह आवश्यक है �क दोन� व्यिक्त परस्पर प्र�तउ�र करते रह� ,
यद्य�प सा�ात्कार के सामािजक खोज के उद्दे श्य मे सम्बं�धत दल� से बहुत �भन्न उ�र
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अन्तः �क्रया के वास्त�वक प�रणाम� का �नर��ण करने के �लए प्रयोग मे ल� जाती ह�।"
एम. एन. बस,ु " एक सा�ात्कार को कुछ �वषय� को लेकर व्यिक्तय� के आमने-सामने का
1. सा�ात्कार मे अनुसध
ं ानकतार् और सच
ू नादाता के बीच आमने-सामने के संबंध प्रत्य� रूप
से स्था�पत होते है ।
प्राप्त क� जाती है ।
बच्च� पर शोध करने के �लए सा�ात्कार पेश आने वाल� चुनौ�तय� ह�—
तथ्य� के दोषपूणर् स्म�ृ त क कारण छूटने क� संभावना बनी रहती है । य�द �कसी भत
ू काल�न
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ह� । क्य��क सच
ू नादाता अनेक बात� को बढ़ा-चढ़ा कर बताता है तथा अनेक असंबं�धत बात�
बताता है । सच
ू नादाता पर आ�श्रत होने के कारण कई बार अनुसध
ं ानकतार् को अनावश्यक बात�
भी सन
ु नी पड़ती है ।
बनाकर प्रस्तुत करत सकता है । साथ ह�, य�द सचनादाता के मनोभाव अनुसध
ं ानकतार्ओं को
प्रस्तुत कर सकता है ।
समस्या के बारे म� उसके �ान से इतना अ�धक प्रभा�वत हो जाता है �क उसम� ह�नता क�
दाताओं पर ह� �नभर्र रहना पड़ता है । उनसे सा�ात्कार का समय लेना तथा सा�ात्कार हे त
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उन्ह� तैयार करना एक क�ठन कायर् है । साथ ह�, अपने जीवन से संबं�धत व्यिक्तगत बात�
सच
ू नादाता अजनबी अनुसध
ं ानकतार् के सामने प्रकट नह�ं दे ना चाहता।
लगनवान, बद्
ु �धमान, मनोवै�ा�नक दृिष्ट से कुशल तथा अनुसध
ं ान क� दृिष्ट से प्र�श��त
करना पड़े तो भी सच
ू नाओं म� काफ� अंतर हो सकता है ।
�ेत्र के फैले हुए ह� तो उनम� संपकर् स्था�पत करना और भी क�ठन एवं खच�ला हो सकता है ।
�नष्कषर् :-
महत्वपण
ू र् उपयोगी पद्ध�त है । इस पद्ध�त के द्वारा हम व्यिक्तगत अमत
ू र् घटनाओं का
अध्ययन कर सकते है । उक्त अध्ययन से आलपोटर् का यह कथन सत्य प्रतीत होता है ," य�द
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हम जानना चाहते है �क लोग क्या सोचते करते है ? क्या अनुभव करते है ? तथा क्या याद
रखते है ? तथा उनक� भावनाएं और प्रेरणाय� क्या है ? तो उनसे क्य� नह� पूछते!! इस प्रकार
अनुसध
ं ानकतार् का आमने-सामने का संबध रहता है तथा सच
ू नाय� अ�धकतम रूप म� सवर्श्रेष्ठ
प्राप्त होती है । इसके द्वारा व्यिक्तगत तथ्य� का भी संकलन सरलता से �कया जा सकता।
होते ह� �शशु शुरूआती अवस्था म� अपने माता-�पता से ह� सार� �क्रयाएँ सीखता है और अपना
माता-�पता न �सफर् बच्च� को अच्छ� �श�ा दे ते ह� बिल्क सह�-गलत क� पहचान कराते हुए
बच्च� का स्व�णर्म भ�वष्य बनाने का भी काम करते ह�। बच्चे माता-�पता का मागर्दशर्न
पाकर सभी क�ठनाईय� पर �वजय पाते हुए सपने को साकार करते ह�। दरअसल माता-�पता
के व्यवहार और �क्रयाओं का उनके बच्च� का सीधा प्रभाव पड़ता है । य�द घर म� कुछ गलत
होता है तो बच्चे गलत सीखते ह�। इसी तरह य�द घर का वातावरण सह� होता है तो बच्च�
को अच्छ� �श�ा �मलती है । इस�लए सबसे पहले माता-�पता क� भ�ू मका बहुत ह� मह�वपूणर्
होती है ।
माता-�पता के रूप म� आप जैसा कर� गे, आपके बच्चे वैसा ह� सीखने क� 'को�शश कर� गे। य�द
�दखाना चाहते ह� तो यह बहुत जरूर� है �क आप बच्च� के �लए एक रोल मॉडल बन� । बच्च�
के सामने स्वयं एक बेहतर उदाहरण बन� ता�क इसका सकारात्मक प्रभाव आपके बच्चे पर
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न केवल फोटोग्राफ� आपके बच्च� के �लए एक मजेदार शौक है , बिल्क यह �वशेष �ण� को
हमेशा के �लए पकड़ने का एक तर�का है और इसके स्वास्थ्य और �वकास संबंधी लाभ ह�।
रूप म� पहचाना। यह संख्या प्रत्येक पीढ़� के साथ बढ़ रह� है ले�कन रचनात्मकता का पोषण
�लए दृश्य कला एक मह�वपूणर् कौशल क्य� है और हमने आपको �दखाने के �लए इस ब्लॉग
व्यिक्त प्र�त वषर् लगभग 160 तस्वीर� (स्टे �टस्टा) काम करती ह�। 2018 म� ल� गई तस्वीर�
क� मात्रा केवल ऐप्स के रूप म� बढ़ती है क्य��क इंस्टाग्राम और स्नैपचैट जैसे ऐप सोशल
मी�डया पर हावी रहते ह�। एक अन्य �वशालकाय, ऐप्स म� 1 �ब�लयन से अ�धक उपयोगकतार्
सोशल मी�डया पर इस तरह क� �नभर्रता के साथ, मनोरम दृश्य� को लेने म� स�म होना
से संबं�धत है । माक��टंग �डिजटल दायरे म� बदल रह� है और इसम� �चत्र और वी�डय� बहुत
बड़ी भ�ू मका �नभाते ह�। इस वषर् किस्मथ) के आधार पर �वपणन संचार का 84 प्र�तशत
वी�डय� ऑनलाइन प्राप्त करते ह�। फोटो के साथ सामग्री को �बना बीटाहाउस) क� तुलना म�
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सीखे गए कई कौशल वास्त�वक जीवन म� स्थानांत�रत �कए जा सकते ह�। एक दृश्य कला के
(Parents.Com) । तस्वीर लेते समय, आपको अपने आस-पास के वातावरण के बारे म� पता
होना चा�हए और शॉट म� क्या अच्छा लगेगा और क्या नह�ं। �वश्लेषण करने क� यह �मता
फोटोग्राफ� जैसे शौक बच्च� को उनक� ठ�क मोटर और दृश्य स्था�नक कौशल �वक�सत करने
म� मदद करते ह�। कला म� शा�मल होना एक छात्र क� तुलना म� अ�धक शै��णक उपलिब्धय�
को प्राप्त करने के �लए वै�ा�नक रूप से �सद्ध �कया गया है जो इसम� शा�मल नह�ं है । इस
सम्मान म� वद्
ृ �ध क� है । िजससे उच्च शै��णक उपलिब्धयाँ हो समती है
कौशल प्रदान करती है जो नौकर� �मलने म� सहायक होती ले�कन सामान्य रूप से जीवन म�
भी। हर नौकर� के �लए �कसी ऐसे व्यिक्त क� जरूरत होती है जो एक कशल समस्या
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करती है ।
�वचार� को तैयार करना और आपके �लए आसानी से बॉक्स के बारे म� सोचना आसान होता
पर के साथ संघषर् कर� गे। फोटोग्राफ� आपको एक तस्वीर के माध्यम से एक कहानी बताने क�
बताते ह� �क आप क्या �चत्र नह�ं लेते ह�। हालां�क रचनात्मकता कल्पनशीलता को भी प्रे�रत
एक शानदार तर�का है । सबसे मह�वपणर् बात कला ' का �नमार्ण आपको उन चीज� पर काम
ह�।
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प्रश्न 9. – बालक� के संवेगात्मक �वकास म� स्कूल एंव हम – उम्र बालक� क� भ�ू मका क�
�ववेचना क�िजए?
उ�र – �वकास अपने सामान्य रूप से आयु बढ़ने के साथ-साथ होने वाले प�रवतर्न� का ह�
दस
ू रा नाम है । इस दृिष्टकोण से संवेगात्मक �वकास म� �नम्न प्रकार के प�रवतर्न दे खने को
�मलते ह�
(अ) जन्म के पश्चात ् बच्चे म� धीरे -धीरे �व�भन्न संवेग� का जन्म होता रहता है ।
पाठान्तर �क्रयाओं तथा रोचक �क्रयाओं के माध्यम से उ�चत अवसर प्रदान �कये जाने
चा�हए।
3. बालक� को अपने अध्यापक� से पयार्प्त स्नेह और सहयोग �मलना चा�हए। प्रत्येक अवस्था
अवहे लना नह�ं क� जानी च�हये । जहाँ तक हो सके अध्यापक� को बच्चे क� सभी प्रकार क�
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4. बालक� के संवेग� को संय�मत एवं प्र�श��त करने के �लए अध्यापक द्वारा उपयक्
ु त
�व�धय� का प्रयोग �कया जाना चा�हए। जैसे भी हो बच्चे के संवेगात्मक तनाव को समाप्त
करने क� चेष्टा क� जानी चा�हए तथा उसके अन्दर �कसी भी प्रकार क� अनावश्यक मान�सक
चा�हए। जहाँ तक हा सके 'सादा जीवन उच्च �वचार' को बच्च� के जीवन का एक मूल मंत्र
6. अध्यापक बच्च� के �लए आदशर् होते ह� वे उनके हर आचरण का अनकरण: ह�। अतः
का अच्छ� तरह से अध्ययन �कया जाना चा�हए। व्यिक्त क� सहायता हो तो समय से पहले
योग्य व्यिक्तय� क� सहायता लेकर उसके �नराकरण और रोकथाम के �लए पूरा प्रत्यन करना
चा�हए।
ग्रहण कराने म� संवेगात्मक रूप से स�क्रय साझीदार बनने का प्रयत्न करना चा�हए। ' खाल�
�दमाग शैतान का घर माना जाता है बेकार बैठे हुए, मन गलत रास्त� पर भटकता है । अतः
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�कसी उपयोगी कायर् म� लगे रहकर शार��रक या मान�सक रूप से व्यस्त रहना संवेग� को
माता-�पता, अन्य प�रजन� तथा �मत्र-मंडल� के द्वारा उसके साथ �कया जाने वाला व्यवहार
पा�रवा�रक वातावरण, क्रोध , भय, �चंता, ईष्यार् आ�द कल�ु षत संवेग� को ह� जन्म दे सकते
ह�। जब�क प्रेम, दया, सहानुभ�ू त और आत्म-सम्मान से भरपूर वातावरण द्वारा बच्चे म�
�नष्कषर् :-
सामािजक गण
ु � के �वकास पर भी �नभर्र करता है और इस दृिष्ट से सामािजक �वकास
अच्छे -बुरे संवेग तथा उसक� आदत� इन्ह�ं से प्रभा�वत होती ह�। एक साहसी और �नभर्य जा�त
या समद
ु ाय म� पैदा होने वाले अथवा ऐसे वातावरण म� पलने वाले बच्चे म� भी साहस और
�नभर्रता के गण
ु आ जाना स्वाभा�वक ह� है । िजस समाज म� लोग शीघ्र ह� उ�ेिजत होकर
कमजो�रय� के �शकार हो जाते ह�। भय, ईष्यार्, क्रोध, प्रेम, सहानुभ�ू त, दया आ�द सभी तरह
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ताल-मेल रख� और �मत्र बनाएँ उनके प्र�त सद्भाव रख� , उनसे सभी ईष्यार् न कर� । �मत्र-मंडल�
उन्ह� घ�नष्ठता दे गी। �मत्र उन्ह� कृपालु व अच्छे संस्कार� वाला व्यिक्त बनाएँगे। दस
ू र� के
प्र�त अच्छे व्यवहार रखने तथा उन्ह� पसंद करने से उनक� सामान्य अ�भरू�चयाँ रखने से
समायोजन� म� सध
ु ार होता है । जब �मत्र� से बातचीत हो और रु�चयाँ अनेक हो तो �मत्र-
करने म� कोई कसर नह�ं छोड़ते। अत: बच्चे के संवेगात्मक �वकास का यथा�व�ध बनाए रखने
म� स्कूल व �मत्र दोन� ह� प्रकार के कारक� का �वशेष प्रकार से ध्यान रखा जाना चा�हए।
उ�र - हम डेटा को ग्राफ और चाटर् और जानकार� के बड़े संग्रह के रूप म� सोच सकते ह�,
जानबझ
ू कर या अन्यथा - हमारे आस-पास क� द�ु नया के बारे म� �श�क इस प्राकृ�तक �मता
क� कैसे अ�धक स्पष्ट कर सकते ह� और इस प्रकार बच्च� के �लए अ�धक उपयोगी हो सकते
ह�।
बच्च� का �वकासशील डेटा संग्रह - जन्म से पहले ह� हमारा �दमाग लगातार जानकार�
अंतर करते ह� और �कसी अन्य म�हला को उसक� आवाज पसंद करते ह�।
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बच्चे और बच्चे लगातार अपने आस-पास क� द�ु नया के बारे म� आंकड़े ले रहे ह�। वे इस डेटा
आवश्यकता होती है ।
उनक� भाषा के �वकास पर �वचार कर� । छोटे बच्चे सीखते ह� खेल के माध्यम से, टॉडलसर्
और प्री-स्कूल सीखते ह� �क घूमने वाले आकार के सॉटर् र के टुकड़े अक्सर सॉटर् र म� बेहतर
�फट होते ह�। उन्ह� पता चलता है �क नीले और पीले रं ग के �मश्रण से हरे रं ग का रं ग
पव
ू स्
र् कूल� क�ा म� डेटा संग्रह को समझना-उनके आस-पास क� द�ु नया को समझना और आने
वाल� सच
ू नाओं को छांटना बच्च� के �लए एक सहज �मता हो सकती है । ले�कन आमतौर
पर वे इस प्र�क्रया के बारे म� नह�ं जानते ह�। �श�क� के पास अपने �नपटान म� शिक्तशाल�
डेटा संग्रह और प्रबंधन उपकरन� को पहचानने बच्च� क� सहायता करने का मह�वपूणर् काम
प्रीस्कूल क�ा म� डेटा संग्रह और डेटा म� शा�मल मह�वपूणर् अवधारणाएँ क्या ह�, और �श�क
डेटा के ग�णत का समथर्न कैसे कर सकते ह� ? डेटाडेस के बारे म� बच्चे क्या जानते ह� और
क्या जानना चाहते ह�, उन अंत�न�हर्त अवधारणाओं के बारे म� िजन्ह� बच्च� को इकट्ठा करने
समझने के �लए, िजनका वे जवाब दे ने क� को�शश कर रहे ह�, डेटा का प्र�त�न�धत्व करने के
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अंततः, उपयोगी होने के �लए डेटा को व्यविस्थत, वग�कृत और क्रमबद्ध करना होगा। बच्चे
ह�, और उन्ह� यह बताने के �लए प्रे�रत करते ह� �क वे �कस तरह से हल करते ह� �क �श�क
इन प्रमख
ु कौशल के �वकास का समथर्न कर सकते ह�।
�कसी भी प्रश्न को समझना - प्रश्न को समझना सरल लगता है , है ना? �फर भी प्रश्न को
स्थानीय पाक� के बारे म� बच्च� क� िज�ासा के साथ करना है । क्या हम जानना चाहते ह�
�क पड़ोस या शहर म� �कतने पाकर् ह� ? �कतने बच्चे पाक� म� जाते ह� ? वे �कतन अलग-
अलग पाक� म� जाते ह� ? बच्च� के सबसे लोक�प्रय पाकर् ? इन सभी को �व�भन्न प्रकार क�
बच्च� को यह पता लगाने म� मदद करने के �लए �क वे क्या पता लगाना चाहते ह�, सवाल
करने के �लए उपयोग कर� । बहुत मह�वपूणर् बात, हमेशा उन सवाल� का जवाब द� जो बच्च�
प्रश्न 11.- अगर आपको शहर� स्लम म� रहने वाल� �कशो�रय� का सा�ात्कार करना दै �नक
उ�र - अगर हम� शहर� स्लम म� रहने वाल� �कशो�रय� का सा�ात्कार करना ह� तो हम
ु त भोजन �मलता है ?
पौ�शक से यक्
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3. पा�रवा�रक, सामािजक/समद
ु ाय स्तर पर क्या उन्ह� ल��गक भेदभाव का सामना करना पडा
4. �कशोरावस्था म� आने वाले शार��रक बदलाव� क� �श�ा उन्ह� प्राप्त हुई है , य�द हुई है तो
5. क्या उनके स्लम म� पयार्प्त �च�कत्सीय स�ु वधा समय पर उपलब्ध हो जाती हैं?
8. सरकार द्वारा चलायी जाने वाल� कल्याणकार� योजनाओं क� जानकार� �कतनी है तथा
10. क्या �श�ा के माध्यम से उनके जीवन म� कुछ प�रवतर्न हुए ह�?
है ?
12. स्लम म� �वद्यमान समस्याओं का हल वे �कस प्रकार कर सकती ह�? य�द उन्ह� पयार्प्त
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प्र�तभाशाल� बालक :-
वैसे बालक जो अपनी श्रेष्ठ �मता एवं �क्रयात्मक योग्यता के बल पर शै��क उपलिब्धय� म�
�वद्यालय स्तर पर उच्च स्थान प्राप्त करते ह� या �कसी �वशेष �ेत्र, जैसे- ग�णत, कला,
�व�ान, सज
ृ नात्मक लेखन इत्या�द म� उच्च स्तर�य प्र�तभा रखते ह�, प्र�तभाशाल� बालक� क�
श्रेणी म� आते ह�। ऐसे बालक� क� पहचान के बाद उनके �लए �वशेष क�ाओं क� व्यवस्था
क� जा सकती है
• बद्
ु �ध एवं व्यावहा�रक �ान का उपयोग
• �वशाल शब्दकोष
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• आवश्यकता पड़ने पर �व�शष्ट बालक� के �लए �वशेष स्कूल एवं क�ाओं क� भी व्यवस्था
करनी पड़ती है । उनके �लए पुस्तकालय म� भी उनक� रू�च के अनुकूल व्यवस्था क� जानी
चा�हए।
• है �वगहस्ट्र के अनस
ु ार, "प्र�तभाशाल� बालक� के �लए �श�ा का सफल कायर्क्रम वह� हो
सकता है िजसका उद्दे श्य उनक� �व�भन्न योग्यताओं का �वकास करना हो।”
• इस कथन के अनस
ु ार, प्र�तभाशाल� बालक� क� �श�ा व्यवस्था इस प्रकार होनी चा�हए
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सज
ृ नात्मक बालक :-
सज
ृ नात्मकता है ।"
पंिक्तयाँ या उसके �वचार आपको उद्वे�लत करते ह�, साधारणीकरण के �लए बाध्य करते
ह�। यह दो वस्तओ
ु ं का सम्बन्ध होता है , परन्तु साहचयर् को दे खने क� कामना आप नह�ं
• �गलफोडर् ने सज
ृ नात्मक के तत्व �नम्न प्रकार के बताए ह�
• समस्या क� पुनव्यार्ख्या सज
ृ नात्मकता का एक तत्व समस्या क� पुनव्यार्ख्या है ।
• सामंजस्य
• जो बालक तथा व्यिक्त असामान्य �कन्तु प्रासं�गक �वचार तथा तथ्य� के साथ समन्वय
स्था�पत करते ह� वे सज
ृ नात्मक कहलाते ह�।
• ऐसे व्यिक्तय� म� भी सज
ृ नात्मकता �वद्यमान रहती है , जो तकर्, �चन्तन तथा प्रमाण
द्वारा दस
ू रे व्यिक्तय� के �वचार� म� प�रवतर्न कर दे ते
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सम्बन्ध सज
ृ नात्मकता से है ।
सज
ृ नात्मकता क� पहचान
• सज
ृ नशील बालक� म� मौ�लकता के दशर्न होते ह�।
• सज
ृ नशील बालक� का दृिष्टकोण सामान्य व्यिक्तय� से अलग होता है
• प�रहास�प्रयता भी सज
ृ नात्मकता क� पहचान है । सज
ृ नात्मक बालक� म� हँ सी-मजाक क�
• उत्सक
ु ता भी सज
ृ नात्मकता का एक आवश्यक तत्व है ।
• सज
ृ नशील बालक� म� संवेदनशीलता अ�धक पाई जाती ह�।
• सज
ृ नशील बालक� म� स्वाय�ता का भाव पाया जाता है ।
सज
ृ नात्मकता के पर��ण :-
• सज
ृ नात्मकता क� पहचान के �लए �नरन्तरता, लोचनीयता, मौ�लकता तथा �वस्तार का
• प्रमख
ु पर��ण इस प्रकार ह�
• �चत्रप�ू तर् पर��ण �चत्रपू�तर् पर��ण म� अपूणर् �चत्र� को पूरा करना पड़ता है ।
• प्रोडक्ट इम्यरू वमेन्ट टास्क चूने के �खलौन� द्वारा �वचार� को लेखबद्ध करके
सज
ृ नात्मकता पर बल �दया जाता है ।
• व�
ृ पर��ण इस पर��ण म� व�
ृ म� �चत्र बनाए जाते ह�।
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सज
ृ नात्मकता का �वकास
उपाय कर�
• मल्
ू यांकन बालक� म� अपन मल्
ू यांकन स्वयं करने क� प्रव�ृ � का �वकास करना चा�हए।
• समस्या के स्तर� क� पहचान समस्या के स्तर� को पहचानकर उसे दरू करना चा�हए।
खेल-कूद, स्काउ�टंग, एनसीसी आ�द �क्रयाओं द्वारा नवीन उद्भावनाओं का �वकास करना
चा�हए।
�व�धयाँ ह� -
2. एकल अध्ययन �व�ध- इस ऐ�तहा�सक शोध प्र�व�ध के अन्तगर्त अध्यापक द्वारा बच्चे के
से सच
ू ना एक�त्रत कर उसे �वद्यालय� के अ�भलेख� का �मलान कर �नदान �कया जाता है
तथा सध
ु ार भी �कया जाता है
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नह�ं हो पाती है । अतएव उसक� �च�कत्सक�य जाँच कराकर पता लगाया जा सकता ह�।
4. शै��क पर��ण- धीमी ग�त से सीखने वाले बच्च� का जब �वद्यालय म� प्रवेश कराया
जाता है तो वह अपनी आयुवगर् के बच्च� के साथ �श�ा ग्रहण करने म� क�ठनाई का अनुभव
करता है । यह शै��क पर��ण� म� कम अंक प्राप्त करता है । इसके अ�त�रक्त ऐसे बच्च� क�
सवेगांत्मक गण
ु � का बोध होता है तथा इनके अचतेन मिस्तक का भी पता चल जाता है
क्य��क अचेतन मिस्तक उनके व्यवहार� को भी �नयिन्त्रत करता है । व्यवहार� एवं समायोजन
6. बुद्�ध पर��ण- धीमीग�त से सीखने वाले बच्च� क� पहचान के दो मानदण्ड माने जाते ह�।
(1)शै��क उपलिब्ध (2) मान�सक स्तर । मान�सक स्तर के �लए प्रमा�णक बद्
ु �ध पर��ण
का प्रयोग करना चा�हए। �कसी एक बुद्�ध पर��ण के आधार पर पहचान करना अ�धक
बुद्�ध पर��ा का उपयोग करने पर अ�धक �वश्वसनीय बुद्�ध स्तर प्राप्त कर इनक� पहचान
क� जा सकेगी।
7. अन्य मनोवै�ा�नक पर��ण- मनोवै�ा�नक पर��ण कई प्रकार के होते ह�। इनम� �लखना,
पढ़ना तथा भाषा के कौशल� का पर��ण �कया जाता है और �नदानात्मक पर��ण भी प्रयुक्त
�कये जाते ह�। इन पर��ण� के आधार पर यह पता चलता है �क धीमीग�त से सीखने वाले
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