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श्रीः

श्रीमते रामानुजाय नमः


श्रीमते नगमा महादे शकाय नमः

श्रीव च मश्रैरनुगृहीतायां प ाम्

Á Á सु रबाहु वः Á Á
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श्री र रामानुज महादे शकन्


His Holiness śrīmad āṇḍavan śrīraṅgam
श्रीः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमते नगमा महादे शकाय नमः

Á Á सु रबाहु वः Á Á
श्रीव च मश्रे ो नम उ मधीमहे Á
यदु य यीक े या म लसूत्रताम् ÁÁ
श्रीम ौ हिरचरणौ समा श्रतोऽहं
श्रीरामावरजमुनी ल बोधः Á
नभ क त इह सु रोरुबाहुं
ो े त रण वलोकना भलाषी Á Á 1 ÁÁ
सु रायतभुजं भजामहे
वृक्षष मयम द्रमा श्रतम् Á
यत्र सुप्र थतनूपुरापगा
तीथर्म थर्तफलप्रदं वदुः Á Á 2 ÁÁ
चत् िरतगा मनी चन म म ालसा
चत् लत व ला चन फे नला सारवा Á
पत प कल चत् व्रज त नूपुरा ा नदी
सुसु रभुजा यं मधु नपीय म ा यथा Á Á 3 Á Á

उद धगम रा द्रम थम नल पयो -


मधुररसे रा सुध सु रदोः पिरघम् Á
अशरणमादृशा शरणं शरणा थर्जन -
प्रवण धयं भजेम तरुष मया द्रप तम् Á Á 4 ÁÁ
शशधरिर णा शखमु खरप्रकरं
त मर नभप्रभूततरुष मयं भ्रमदम् Á
प वे सु रबाहु वः

भदुिरतस लोकसु वशृ लश रवं


वन गिरमावस मुपया म हिरं शरणम् Á Á 5 ÁÁ
य ु शृ व नष सुरा नानां
ो र्पु ्र मुखम नम तानाम् Á
दपर् भूत् धृतमप शशा पृ ं
तद् धाम सु रभुज महान् वना द्रः Á Á 6 ÁÁ
यदीय शखरागतां श शकलां तु शाखामृगाः
नर हरशेखर भवनमामृश तः Á
ृश न ह देवता रसमा श्रते त ु टं
स एष सुमहातरुव्रज गिरः गृहं श्रीपतेः Á Á 7 ÁÁ
सु रदो दर् ाज्ञा
ल नकातरवशानुया य न किर ण Á
प्रणयजकलहसमा धः
यत्र वना द्रः स एष सु रदो ः Á Á 8 ÁÁ
स एष सौ यर् नधेः धृत श्रयो
वनाचलो नाम सुधाम यत्र ह Á
भुज राज कुल गौरवात्
न ख ताः कु लनः शख भः Á Á 9 ÁÁ
वृष गिररयम ुत य न्
मतमल यतुं पर रे ः Á
खगप तचरणौ खगाः शप े
भुजगपतेभुर्जगा सवर् एव Á Á 10 ÁÁ
हिरकुलम खलं हनूमद ं
कुलपजा वत थैव भ ाः Á
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प वे सु रबाहु वः

नजकुलपजटायुष गृध्राः
कुलपते गजा गजे ना ः Á Á 11 ÁÁ
वकुळधरसर ती वष
ररसभावयुतासु क र षु Á
द्रव त दृषद प प्रस गाना -
ह वनशैलतटीषु सु र Á Á 12 Á Á
भृ गाय त हंसताल नभृतं तत् पु ती को कला -
ऽ ु ाय थ व त जमुखादास्रं मधु ते Á
नस् मताः कुर ततयः शीतं शलासैकतं
साया े कल यत्र सु रभुज न् वन ाधरे Á Á 13 ÁÁ
पीता रं वरदशीतलदृ पातम्
आजानुल भुजमायतकणर्पाशम् Á
श्रीम हावन गर नवासदीक्षं
ल ीधरं कम प व ु ममा वर ु Á Á 14 ÁÁ
ज नजीवना य वमु यो यतो
जगता म त श्रु त शर ु गीयते Á
त ददं सम दुिरतैकभेषजं
वनशैलस वमहं भजे महः Á Á 15 ÁÁ
सद्ब्र ा पदै यी शर स यो नायायणो ा तथा
ा ातो ग तसा ल वषयान बोधोज् लै ः Á
न ु ा दकम तीयममृतं तं पु र केक्षणं
प्रारूढ श्रयमाश्रमे वन गरे ः कु ो दतं सु रम् Á Á 16 Á Á

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प वे सु रबाहु वः

प तं व ा े र म त परं ब्र पुरुषः


परं ोत ं परम प च नारायण इ त Á
श्रु तब्रर् ेशादीं दु दत वभूतीं ु गृणती
यमाहारूढश्रीः स वन गिरधामा वजयते Á Á 17 ÁÁ
पृ थ ा ा ा ं नयमय त य नकरं
तद य मी त पुर व दत ेन भगवान् Á
स एष ै य न वजहदशेषं वन गिरं
सम ासीनो नो वशतु हृदयं सु रभुजः Á Á 18 ÁÁ
प्र गा न कदाऽ स वत्
भूमभू मम भव यं श्रु तः Á
तं वना द्र नलयं सुसु रं
सु रायतभुजं भजामहे Á Á 19 ÁÁ
व य े सु रभुजं भुजगे भोग -
स ं महावन गिरप्रणयप्रवीणम् Á
यं तं वदुदर्हरम गुणोपजु म्
आकाशमौप नषदीषु सर तीषु Á Á 20 ÁÁ
यत् ाय रूप तकृ तक नजे ा नया शेषा -
न ाशेषप्रप त इह च दवा च पुव चश ःै Á
व ैः श ःै प्रवा ो हतवृ जनतया न मेवानव ः
तं व े सु रा ं वन गिर नलयं पु र कायताक्षम् Á Á 21 ÁÁ
गुणजं गु णनो ह म ळ ं
प्र मतं प्र ुत य रूपमे Á
तमन सुखावबोधरूपं
वमलं सु रबाहुमाश्रयामः Á Á 22 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

अ तप तताव ध म हमानुभवप्रभवत् -
सुखकृत न र जलधी यत न दशम् Á
प्र तभटमेव हेय नकर सदाऽप्र तमं
हिर मह सु रा मुपया म वना द्रतटे Á Á 23 ÁÁ
सदा षा ु ा ैः पृथुलबल वज्ञानशकन -
प्रभावीय यरव ध वधुरैरे धतदशम् Á
द्रम
ु ोम ाभृ िरसरमहो ानमु दतं
प्रप ऽे ारूढ श्रय मममहं सु रभुजम् Á Á 24 ÁÁ
सौशी ा श्रतव ल मृदुतासौहादर्सा ाजर्वैः
धैयर् य ै र्सुवीयर्शौयर्कृ ततागा ीयर्चातुयर्कैः Á
सौ य तसौकुमायर्समतालाव मु ैगुर्णैः
देवः श्रीतरुष शैल नलये न ं तः सु रः Á Á 25 ÁÁ
ये े क गुण वप्रुड प वै लोको रं ाश्रयं
कुय त् तादृशवैभवैरग णतै नर् ीमभूमा तैः Á
न ै दर् गुणै तोऽ धकशुभ ैका दा ाश्रयैः
इ ं सु रबाहुम शरणं यातो वनाद्री रम् Á Á 26 ÁÁ
सदा सम ं जगदीक्षते ह यः
प्र क्षदृ ा युगप व ु ा तः Á
स ईदृशज्ञान न ध नर् ध ु नः
संहा द्रकु ेषु चका सु रः Á Á 27 ÁÁ
ऐ यर्तेजोबलवीयर्श यः
क दृ धाः सु रबाहुसंश्रयाः Á
योऽसौ जगज्ज लय त क्रयाः
स तोऽ ादुपक य जः Á Á 28 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

यत् क ायुतभोगतोऽ प कृशतां याया ताव लं


ये ेक तथा वधैः सततजैरंहो भरु ीम भः Á
अ ादा वह संसृतावुप चतै ं सुस ं जनं
स ा क्षमते क्षणाद् वन गिरप्र प्रयः सु रः Á Á 29 ÁÁ
यज्जातीयो यादृशो य भावो
पाद ायां सं श्रतो योऽ प कोऽ प Á
तज्जातीय ादृश भावः
ेनं सु रो व ल ात् Á Á 30 ÁÁ
नहीनो जा ा वा भृशमकुशलै व चिरतैः
पुमान् वै यः क द् बहुतृणम प ादगुणतः Á
श्रय ं तं प ेद् भुजगप तना तु म प यो
वना द्रप्र ः स मम शरणं सु रभुजः Á Á 31 ÁÁ
एकैकम ळगुणानुभवा भन म्
ईदृक् या न त च सु रदो कृ े Á
ते ये शतं त नय ुमनाः श्रु तव
नैवैष वाङ्मनसगोचर इ ुदाह Á Á 32 Á Á

अ पादमर व लोचनं
प पा णतलम नप्रभम् Á
सु रोरुभुज म राप तं
व षीय वरदं वना द्रगम् Á Á 33 ÁÁ
कनकमरकता नद्रवाणां
मथनसमु तसारमेलनो म् Á
जय त कम परूपम तेजो
वन गिरन नसु रोरुबाहोः Á Á 34 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

कं नु यं ा वभूषणं भवन्
असावल ार इतीिरतो जनैः Á
व र् ुबालद्रम
ु ष म तं
वनाचलं वा पिरतः प्रसाधयन् Á Á 35 ÁÁ
सुख श नर् ैः कुसुमसुकुमारा सुखदैः
सुसौग ै दर् ाभरणगण द ायुधगणैः Á
अल ायः सव नर्ग दतमल ार इ त यः
समा ानं ध े स वन गिरनाथोऽ ु शरणम् Á Á 36 ÁÁ
मकुटमकुटमालो ंसचूडाललाम -
लक तलकमालाकु लै ः सो र्पु ्र ःै Á
म णवरवनमालाहारकेयूरक ैः
तुल सकटकका ीनूपुरा ै भूषैः Á Á 37 Á Á

अ सजलजरथा ै ः शा र् कौमोदक ाम्


अग णतगुणजालै रायुधैर था ैः Á
सतत वततशोभं प नाभं वनाद्रेः
उपवनसुखल लं सु रं व षीय Á Á 38 ÁÁ
आजानज गतब ुरग लु -
भ्रा द मधुपा लसदेशकेशम् Á
व ा धरा पिरबहर् कर टराजं
है ! सु र बत सु रमु मा म् Á Á 39 ÁÁ
अ ं तम मर न मर्तमेव यत् ात्
त ारसा धतसुत तवृ वातर्म् Á
ईश केशव गरे रलका लजालं
त ु कु मधुपा महावन Á Á 40 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

जु ा मीक ल द स ु भं
धृतो र्पु ्र ं वलस शेषकम् Á
भू ा ललाटं वपुलं वराजते
वना द्रनाथ समु ्र त श्रयः Á Á 41 ÁÁ
सुचारुचाप य वभ्रमं भ्रुवोः
युगं सुनेत्रा सहस्रपत्रयोः Á
उपा गं वा मधुपावल युगं
वराजते सु रबाहुसंश्रयम् Á Á 42 ÁÁ
अदीघर्मप्रेमदुघं क्षणोज् लं
नचोरम ः करण प ताम् Á
अनु म ं नु कथं नदशर्नं
वना द्रनाथ वशालयोदृर्शोः Á Á 43 ÁÁ
प्रश्ोत ेमसारामृतरसचुलकप्रक्रमप्र क्रया ां
व क्ष ालो कतो मर्प्रसरणमु षत ा का ाजना ाम् Á
व ो प्रवृ तलयकरणैका शा क्रया ां
देवोऽल ारनामा वन गिर नलयो वीक्षतामीक्षणा ाम् Á Á 44 ÁÁ
प्रेमामृतौघपिरवा हमहा क्ष स ु
म े प्रब समुद तसेतुक ा Á
ऋ ी सुसु रभुज वभा त नासा
क द्रम ु ाङ्कुर नभा वनशैलभतुर्ः Á Á 45 ÁÁ
ाभा षता धकन नभ न र्
म तामृतपिरस्रवसं वा म् Á
आभा त वद्रम
ु समाधरमा म
देव सु रभुज वना द्रभतुर्ः Á Á 46 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

यशोदाङ्गु ग्रो मत चबुकाघ्राणमु दतौ


कपोलाव ा प नुपरतत षर्गमकौ Á
वराजेते व ततसहकारासवरस
प्रमा ु वन गरे ः सु रहरे ः Á Á 47
ृ ा द्रम ÁÁ
ाल कु लमुदग्रसुवणर्पु
न क ल तकायमलानुकारम् Á
य णर्पाशयुगलं नगलं धयां नः
सोऽयं सुसु रभुजो वनशैलभूषा Á Á 48 ÁÁ
सदंससंस तकु ला का -
वतीणर्कण भरणा क रः Á
सुब ुर नब नो युवा
सुसु रः सु रदो वर्जृ ते Á Á 49 ÁÁ
ूढगूढभुजजत्रुमु सत्
क ुक रधरं धराधरम् Á
वृक्षष मयभूभृत टे
सु रायतभुजं भजामहे Á Á 50 ÁÁ
म रभ्रमण वभ्रमो टाः
सु र वलस बाहवः Á
इ रासम भन भ नाः
च नागुरु वले पभू षताः Á Á 51 ÁÁ
ा कणा पिरकमर्ध मर्णो
भा सु रभुज बाहवः Á
पािरजात वटपा यत र्यः
प्रा थर्ताथर्पिरदानदी क्षताः Á Á 52 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

सागरा रतमालकानन
ामल र्य उदारपीवराः Á
शेषभोगपिरभोगभा गनः
त भा वन गर शतुभुर्जाः Á Á 53 ÁÁ
अहमह मकाभाजो गोवधर्नो ृ तनमर् ण
प्रमथन वधाव ेलर् प्रब सम क्रयाः Á
अ भमतबहूभावाः का ा भर णस मे
वन गिरपतेब हाः शु सु रदोहर्रेः Á Á 54 ÁÁ
श्रीम ना द्रप तपा णतला यु म्
आरूढयो वर्मलश रथा यो ु Á
एकोऽ मा श्रत इवो मराजहंसः
प प्रयोऽक इव त मतो तीयः Á Á 55 ÁÁ
ल ाः पदं कौ ुभसं ृ तं च
श्रीव भू म वर्मलं वशालम् Á
वभा त वक्षो वनमालयाऽऽ ं
वना द्रनाथ सुसु र Á Á 56 ÁÁ
सौ य मृतसारपूरपिरवाहावतर्गत यतं
यातः क विर स वनभू ोजस ू तभूः Á
ना भः शु त कु कु नभ नभ त न वर्धू -
ु ष शैलवसतेरारूढल ा हरे ः Á Á 57 Á Á
स ु द्रम

सु र कल सु रबाहोः
श्रीमहातरुवनाचलभतुर्ः Á
ह ! यत्र नवस जग
प्रा पतक्र शम त नु म म् Á Á 58 ÁÁ

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प वे सु रबाहु वः

प दु मधुकैटभक टौ
ह ह युगलाभसुवृ ौ Á
राजतः क्रमकृशौ च सदूरू
सु र वनभूधरभतुर्ः Á Á 59 ÁÁ
यौवनवृषककुदो ेद नभं नतरां
भा त वभोरुभयं जानु शुभाकृ तकम् Á
सु रभुजना ो म रम थता ेः
च नवन वलस रवृषभपतेः Á Á 60 Á Á

अधोमुखं पदार व योः


रुद तोदा सुनालस भे Á
वल ज े नु रं हतो दृशौ
वना द्रनाथ सुसु र मे Á Á 61 ÁÁ
सुसु र ा पदार व े
पादार व ा धकसौकुमाय Á
अतोऽ था ते बभृयात् कथं नु
तदासनं नाम सहस्रपत्रम् Á Á 62 ÁÁ
सौ यर्मादर्वसुग रसप्रवाहैः
एते ह सु रभुज पदार व े Á
अ ोजड पिरर णम जै ां
तद् वै परा जत ममे शरसा बभ तर् Á Á 63 ÁÁ
एते ते बत सु रा यजुषः पादार व े शुभे
य णजसमु त त्रपथगास्रोत ु क त् कल Á
ध ेऽसौ शरसा ध्रुवः तदपरं स्रोतो भवानीप तः
य ा ालकन के त नजगुः नामैवम थर्कम् Á Á 64 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

आ ायक ल तको सुग पु ं


योगी हादर्सरसीरुहराजहंसम् Á
उ धमर्सहकारफलप्रका ं
व ये सु रभुज पदार व म् Á Á 65 ÁÁ
सुसु र ा तु वामनाकृतेः
क्रमत्रयप्रा थर् न मानसे कल Á
इमे पदे ताव दहास ह ुनी
वचक्रमाते त्रजगत् पद ये Á Á 66 ÁÁ
सौ यर्सारामृत स ुवीची -
श्रेणीषु पादाङ्गु लना मकासु Á
ृ च श्रयमा का ा
नखावल शु त सु र Á Á 67 ÁÁ
यो जातक्र शमा मल च शरसा स ा वतः श ुना
सोऽयं य रणाश्रयी शशधरो नूनं नख ाजतः Á
पूणर् ं वमल मुज् लतया साध बहु ं तथा
यात ं तरुष शैल नलयं व ामहे सु रम् Á Á 68 ÁÁ
य ाः कटाक्षणमनुक्षणमी राणाम्
ऐ यर्हेतुिर त सवर्जनीनमेतत् Á
श्रीः से त सु र नषेवणतो नराहुः
तं ह श्रयः श्रयमुदाहुरुदारवाचः Á Á 69 ÁÁ
द ाच महा तु ो मगुणै ारु लाव क -
ु भावगभर्सततापूवर् प्रयै वर्भ्रमैः Á
प्रायैर त
रूपाकार वभू त भ सदृशीं न ानपेतां श्रयं
नीलां भू ममपीदृशीं रम यता न ं वनाद्री रः Á Á 70 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

अ ो चे त नर क्षणहादर्भाव -
प्रेमानुभावमधुरप्रणयप्रभावः Á
आजस्रन तर द रसानुभू तः
ां प्रेयसीं रम यता वनशैलनाथः Á Á 71 ÁÁ
सु र वनशैलवा सनो
भोगमेव नजभोगमाभजन् Á
शेष एष इ त शेषताकृतेः
प्री तमान हप तः नाम न Á Á 72 ÁÁ
वाहनासन वतानचामरात्
याकृ तः खगप त यीमयः Á
न दा र तरे व य वै
ेष सु रभुजो वना द्रगः Á Á 73 ÁÁ
वना द्रनाथ सुसु र वै
प्रभु श ा थ से स तः Á
सम लोकैकधुर रः सदा
कटाक्षवी ोऽ च सवर्कमर्सु Á Á 74 ÁÁ
छत्रचामरमुखाः पिर दाः
सूरयः पिरजना नै गाः Á
सु रोरुभुज म ते सदा
ज्ञानश मुख न स ण ु ाः Á Á 75 ÁÁ
ारनाथगणनाथत जाः
पािरष पदभा गन था Á
मामका गुरवः पुरातनाः
सु रं वनमहीध्रगं श्रताः Á Á 76 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

ईदृशैः पिरजनैः पिर दैः


न स नजभोगभू मगः Á
सु रो वन गरे टीषु वै
र ते सकलदृ गोचरः Á Á 77 ÁÁ
आक्र डभू मषु सुग षु पौ क षु
वैकु धाम न समृ सुवा पकासु Á
श्रीम तागृहवतीषु यथा तथैव
ल ीधरः सज त संह गरे टीषु Á Á 78 ÁÁ
आन म रमहाम णम पा ः
ल ा भुवाऽ हपतौ सह नीलया च Á
न ङ् न नज द जनैकसे ो
न ं वसन् सज त सु रदोवर्नाद्रौ Á Á 79 ÁÁ
प्र थर् न त्रगुणकप्रकृतेरसी
वैकु धाम न परा रना न ेÁ
न ं वसन् परमस मयेऽ तीत -
योगी वाङ्मनस एष हिरवर्नाद्रौ Á Á 80 ÁÁ
लोकां तुदशर् दधत् कल सु र
पङ् गुणो िरतस वृतीदम म् Á
अ ा न चा सुसदृं श पर ता न
क्र डा वधेिरह पिर दतामग न् Á Á 81 ÁÁ
सुरनर तयर्गा दबहुभेदक भ मदं
जगदथ चा म वरणा न च स तथा Á
गुणपुरुषौ च मु पुरुषा वना द्रपतेः
उपकरणा न नमर् वधयेऽ प भव वभोः Á Á 82 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

ज्ञा ननः सततयो गनो ह ये


सु रा परभ भा गनः Á
मु मा परमां परे पदे
न क रपदं भज ते Á Á 83 ÁÁ
देव सु रभुज वना द्रभतुर्ः
है ! शीलव मथवाऽऽ श्रतव ल म् Á
ऐश भावमजह िरहावतारै ः
योऽल कार जगदा श्रततु धम Á Á 84 ÁÁ
संहा द्रनाथ ! तव वाङ्मनसा तवृ ं
रूपं ती यमुदाह रह वाणी Á
एवं च न मह चेत् समवातिर ः
ज्ज्ञानभ वधयोऽ मुधाऽभ व न् Á Á 85 ÁÁ
ये भ ा भवदेकभोगमनसोऽन ा स ीवनाः
त ं े षणत रो ध नधना थ वनाद्री रः ! Á
म ेऽ ं यदवातरः सुरनरा ाकार द ाकृ तः
तेनैव त्रदशैनर्रै सुकरं प्रा थर्तप्राथर्नम् Á Á 86 ÁÁ
श्रीमन् ! महावन गर श ! वधीशयो े
म े तु व ुिर त यः प्रथमावतारः Á
तेनैव चेत् तव म ह जनाः कला ाः
भावमवग कथं भवेयुः Á Á 87 ÁÁ
हे ! देव ! सु रभुज महा म े
सौल तो वसदृशं चिरतं म ह ः Á
अ करो ष य द तत्र सुरैरमी भः
सा ा कषर्पिरपालनमेव साधु ! Á Á 88 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

इहावतीणर् वना द्रनाथ ! ते


नगूहतः ं म हमानमै रम् Á
उमापतेः कं वजयः प्रय रः
प्रय रा वे जद ब ना Á Á 89 ÁÁ
पु ो ु नमू नो तधुत ाव तर्तावतर्वत् -
संवत णर्वनीरपूर वलुठ ाठ न द ाकृतेः Á
संहाद्रीश ! न वैभवं तव कथं ाल माल ते
प ाक्ष जुघुक्षतोऽ प वभवं ल ीधराधोक्षज ! Á Á 90 ÁÁ
साचलावटतटाकदी घर्का
जा वीजल धव धर्तः क्षये Á
शृ स मतनौमर्नोरभूः
अग्रतोऽ जवपु हर् सु र ! Á Á 91 ÁÁ
प्रलयजनीरपूरपिरपूिरत नलयावस वदन -
भ्रमदशर भूतशरणा थर्ना कशरणं भवन् कृपया Á
चलदुदधीिरता ुकलुषी क्रया गमनः पृ वधृता -
ऽचलकुल एष मीनतनुरत्र सु रभुजो वना द्र वषयः Á Á 92 ÁÁ
पृ े प्र ा द्रभ्रमणकरणैः क फ णनो
वकृ ाकृ त वधुतदु ा च लतैः Á
अव ो न न् वकसदर व क्ष े णरु चः
पुराऽभुः संहाद्रेः प्रयतम ! हरे ! क पवपुः Á Á 93 ÁÁ
जगत् प्रल नं पुनरु धीषर्तः
संह क्ष त क्ष लय ! सु र ! Á
पुरा वराह तवेयमुवर्रा
दं ्र ा ये ोः कल ल ल क्षता Á Á 94 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

न वायुः प े ययतुरथवाऽ ं श शरवी


दशोऽन न् व ाऽ चलदचला साचलकुला Á
नभ प्रश् ो त थतम प पाथो नरहरौ
य े शु पु ष स त हे सु रभुज ! Á Á 95 ÁÁ
अरालं पातालं त्रदश नलयः प्रा पतलयो
धिरत्री नधूर्ता ययुर प दशः काम प दशाम् Á
अजृ ा ो धः घुमुघु म त घूणर्न् सुरिरपोः
व भ ाने वक्ष य नरहरौ सु रभुज ! Á Á 96 ÁÁ
नखक्रकचकप्र धक्र थतदै वक्षस् ल
समु रु धर टा ु िरत ब तं ं वपुः Á
वलो रु षतः पुनः प्र तमृगे श ावशाद्
य एष नरकेसर स इह दृ ते सु रः Á Á 97 ÁÁ
क्ष तिरयं ज नसंहृ तपालनैः
न गरणो रणो रणैर प Á
वन गर श ! तवैव सती कथं
वरद वामन भक्षणमहर् त Á Á 98 ÁÁ
भागर्वः कल भवान् भवन् पुरा
कु सु रवनाचले र ! Á
अजुर्न बलद पर्त तु
े त र त बाहुकाननम् Á Á 99 ÁÁ
आज्ञा तवात्रभवती व दता त्रयी सा
धम तदु म खले न वना द्रनाथ ! Á
अ ूनमाचिरतुमा क शक्षणाथर्म्
अत्रावतीयर् कल सु र ! राघवोऽभूः Á Á 100 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

वन गिरप तर शते त देवैः


त्रपुरहर त्रपुर चापभ ात् Á
ग ण परशुरामद शर्त
कधनुषः पिरमशर्दशर्ना Á Á 101 Á Á
अनवा मत्र कल ल ते जनैः
न च ल मेत दह भो ु म ते Á
अनवा मत्र कल ना राम ! तद्
जगती या तृणमवै क्ष सु र ! Á Á 102 ÁÁ
शखिरषु व पने ापगा तोया -
नुभव स रसज्ञो द कार वासान् Á
त दह तदनुभूतौ सा भलाषोऽ राम
श्रय स वन गर ं सु र भूय भूयः Á Á 103 ÁÁ
उपवनतरुष ैमर् ते ग शैल -
प्रण यभवदुद ो ा यग वर् स े Á
वन गिरतटभू मप्र रे सु र ! ं
भज स नु मृगयानानुद्रवश्रा शा म् Á Á 104 ÁÁ
कूले ऽ ेः कल द क्षण नवसन् दूरो रा ो धगान्
दै ान् एकपत त्रणाऽ न इतीयं कंवद ी श्रुता Á
तत्रैवे रम सां जयथाः ! त ाद् वनाद्री र !
श्रीमन् ! सु र ! सेतुब नमुखाः क्र डा वाड रम् Á Á 105 ÁÁ
रघुकुल तलक ं जातु चद् यातुधान -
लमृगमृगयायां स स ः पुराऽभूः Á
तदुपज नतखेद े दनाया गायन् -
मधुकरतरुष ं र से कं वना द्रम् Á Á 106 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

हे ! सु रै कतरज न कृ भावे
े मातरौ च पतरौ च कुले अ प े Á
एकक्षणादनुगृहीतवतः फलं ते
नीला कुले न सदृशी कल रु णी च Á Á 107 ÁÁ
ं ह सु र ! यदा न यः
पूतना नमधा दा नु कम् Á
जीणर्मेव जठरे पयो वषं
दुजर्रं वद तदा ना सह Á Á 108 ÁÁ
आ श्रतेषु सुलभो भवन् भवान्
म र्तां य द जगाम सु र ! Á
अ ु नाम तदुलूखले कयद्
दामब इ त कं तदाऽरुदः Á Á 109 ÁÁ
सु रोरुभुज ! न न न -
ं भवन् भ्रमर वभ्रमालकः Á
म रे षु नवनीतत जं
व वी धयमुत चूचुरः Á Á 110 ÁÁ
का लय फणतां शर ु मे
स द शखर मेव वा Á
व जु वनशैल सु र !
दा युगम पर्तं ययोः Á Á 111 ÁÁ
गू हत म हमाऽ प सु र !
ं व्रजे क म त शक्रमाक्रमीः Á
स रात्रमदधा कं गिरं
पृ त सुहृदः कमक्रुधः Á Á 112 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

हे न न न ! सुसु र सु रा !
बृ ावने वहरत व व वी भः Á
वेणु नश्रवणत रु भ दा वै
सग्राव भजर्तु वलायमहो ! व ल े Á Á 113 ÁÁ
गायं गायं वन गिरपते ! ं ह बृ ावना ः
गोपीस ै वर्हर स यदा सु र ूढबाहो Á
रासार ो वबहु वधप्रेम सीम नीनां
चेत ेत व च तु तदा कां दशाम भूताम् Á Á 114 ÁÁ
इ तं न म षतं च तावकं
र म त ु म त प्रय रम् Á
तेन कंसमुखक टशासनं
सु रा कम प प्रश ते Á Á 115 ÁÁ
वाराणसीदहन पौ ्र कभौमभ -
क द्रम ु ाहरणश रजृ णा ाः Á
अ ा भारतबलक्रथनादय े
क्र डाः सुसु रभुज ! श्रवणामृता न Á Á 116 ÁÁ
ं ह सु र ! वना द्रनाथ ! हे
वे टा यमहीध्र मूधर् न Á
देवसे वतपदा ुज यः
सं श्रते इह त से सदा Á Á 117 ÁÁ
ह शैल नलयो भवन् भवान्
सा तं वरदराजसा यः Á
इ मथर्मनुक या ददद्
व मेव दयते ह सु र ! Á Á 118 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

म ेक्षीरपयो ध शेषशयने शेषे सदा सु र !


ं त ैभवमा नो भु व भव े षु वा तः Á
वश्रा ा खलनेत्रपात्र मह सन् स ो वाया टे
श्रीर े नजधा शेषशयने शेषे वनाद्री र ! Á Á 119 ÁÁ
क भ व न् क लक दू षतान्
दु ानशेषान् भगवन् ह न स Á
स एष त ावसरः सुसु र !
प्रशा ध ल ीश ! समक्षमेव नः Á Á 120 ÁÁ
ईदृशा दवतारस माः
सवर् एव भवदा श्रतान् जनान् Á
त्रातुमेव न कदा चद था
तेन सु र ! भव माश्रये Á Á 121 ÁÁ
ामामन कवयः करुणामृता ं
ामेव सं श्रतज न मुप मेषाम् Á
एषां व्रज ह ह लोचनगोचर ं
हे सु रा ! पिरच िरषे वना द्रम् Á Á 122 ÁÁ
अश ं नो क त् तव न च न जाना स न खलं
दयालुः क्ष ा चा हम प च नागां स तिरतुम् Á
क्षमोऽत े षो ग तिर त च क्षुद्र इ त च
क्षम ैताव ो बल मह हरे ! सु रभुज ! Á Á 123 ÁÁ
ल ायु हतान् हर न् जसुतं श ूकदोषा ृतं
सा ीप भजं मृतं जसुतान् बालां वैकु गान् Á
गभ चाजुर् नस वं ुदधरः ेनैव रूपेण यः
ाभी ं मम म रु ो ददसे नो कं वनाद्री र ! Á Á 124 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

आयो गान् सपशुक टतृणां ज ून्


क मर्णो नु बत क दृशवेदना ान् Á
सायु ल वभवान् नज न लोकान्
सा ा नकान् अगमयो वनशैलनाथ ! Á Á 125 ÁÁ
हिरतवारणभृ समा यं
किर गरौ वरद मपू वर्काम् Á
दृशमल य एव ह सु र
ु टमदा पर तमीदृशम् Á Á 126 ÁÁ
इह च देव ! ददा स परान् वरान्
वरद ! सु र ! सु रदोधर्र Á
वन गरे र भत टमावसन्
न खललोचनगोचरवैभवः Á Á 127 ÁÁ
इद ममे शृणुमो मलय जं
नृप मह यमेव ह सु र Á
चरणसा ृ तवा न त तद् वयं
वन गर र ! जातमनोरथाः Á Á 128 ÁÁ
वज्ञापनां वन गर र ! स रूपाम्
अ कुरु करुणाणर्व ! मामक नाम् Á
श्रीर धाम न यथापुरमेष सोऽहं
रामानुजायर्वशगः पिरव तर्षीय Á Á 129 Á Á

क ेदं च विर भावन ! वनाद्रीश ! प्रभो ! सु र !


प्र ा ानपराङ्मुखो वरदतां प व ं कुरु Á
श्रीर श्रयम हं प्रगुणयन् भो ां कुरु
प्र क्षं सु नर मेव वदधत् प्र थर्नां प्राथर्नाम् Á Á 130 ÁÁ
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प वे सु रबाहु वः

कारु ामृतवािरधे ! वृषपते हे ! स स न!


श्रीमन् ! सु र ! यो ता वर हतानु ायर् स ल!Á
क्षा न् साधुजनैः कृतां ु न खलानेवापचारान् क्षणात्
त ो ाम नशं कुरु भगवन् ! श्रीर धाम श्रयम् Á Á 131 ÁÁ
इदं भूयो भूयः पुनर प च भूयः पुनर प
ु टं वज्ञी ामी ग तरबुधोऽन शरणः Á
कृतागा दु ा ा कलुषम तर ी नवधेः
दयाया े पात्रं वन गिरपते ! सु रभुज Á Á 132 ÁÁ
ÁÁ इतप ां सु रबाहु वः समा ः ÁÁ

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