Islamic Jihad by MA Khan

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इस्लामी जिहाद

बलपूर्वक धमाांतरण,
साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की
वर्रासत

एम.ए. खान

Felibri.com
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

कॉपीराइट एम.ए. खान

सर्ावजधकार सुरजित। लेखक की अनुमवत के वबना इस प्रकाशन का कोई भी भाग न तो पुनरुत्पावदत वकया िा सकता है, न ही
वकसी उपायोिन प्रणाली में सं ग्रहीत वकया िा सकता है तथा न ही इलेक्ट्रॉवनक, यांविक, फोटोकॉपी, अंकन अथर्ा अन्य वकसी
प्रकार से वकसी भी रूप अथर्ा वकसी भी साधन से प्रसारण वकया िा सकता है।

अंतरताना (इं टरनेट) की गवतशील प्रकृ वत के कारण, इस पुस्तक में वदया गया कोई भी र्ेब एडरेस अथर्ा जलं क पररर्वतवत, नष्ट
अथर्ा अमान्य वदख सकता है।

यू.एस.ए. में एफएलआईबीआरआई डॉट कॉम द्वारा प्रकाजशत

1
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

कु रआन के गुण-दोष आधाररत सूक्ष्म अन्वेषण के आधार पर लेखक ने अत्यं त गहनता से दशावया है वक इस्लाम अपने जिहाद अथर्ा
पवर्ि िं ग के जसद्ांत में स्पष्ट रूप से बलपूर्वक धमव पररर्तवन कराने, अ-मुस्लस्लमों (गैर मुसलमानों) को गुलाम (दास) बनाने तथा पूरे
वर्श्व में साम्राज्यर्ादी इस्लामी शासन स्थावपत करने का आह्वान करता है। इसके बाद रसूल की सुन्नतों र् मूल आत्मर्ृत्ों के गहन
अध्ययन के आधार पर लेखक उिागर करते हैं वक वकस प्रकार रसूल मुहम्मद द्वारा इस्लामी अल्लाह के शाश्वत सं बं ध र्ाले इन
आदे शों को पूणतव ः लागू वकया गया हैः रसूल मुहम्मद बलपूर्वक धमाांतरण, दासप्रथा िैसी कु प्रथा को चलाने में सं लग्न रहा और अरब
में प्रथम साम्राज्यर्ादी इस्लामी राज्य की स्थापना की। सुस्पष्ट ऐवतहाजसक अजभलेखों र् साक्ष्ों के माध्यम से इस पुस्तक में आगे
बताया गया है वक वकस प्रकार आि तक के इवतहास में मुसलमानों ने सं सार के वर्जभन्न भागों में इस्लामी जिहाद के इन प्रवतमान
प्रवतदशों (मॉडल) का वर्स्तार वकया। यह लेखक भवर्ष्यर्ाणी कर रहा है वक आने र्ाले दशकों में इस्लामी जिहाद और तीव्र होगा
तथा मानर् िावत, वर्शेषकर कावफरों र् पजिमी िगत पर इसका गं भीर पररणाम होगा। मैं मानता हं वक यह पुस्तक उभर रही उन
चुनौवतयों की व्यापक समझ प्रदान करेगा, िो चरमपं जथयों द्वारा उत्पन्न की गयी हैं और जिनका सामना मुस्लस्लम र् अ-मुस्लस्लम (गैर-
मुसलमान) िगत दोनों कर रहे हैं।

-इब्न र्राक, पुस्तक ’मैं मुसलमान क्ों नहीं हं’ (व्हाई आई एम नॉट ए मुस्लस्लम) के लेखक

यह पुस्तक अवत महत्वपूणव है और सबको अर्श्य पढ़नी चावहए। सुरुजचपूणव ढं ग से जलखी गयी यह पुस्तक जिहाद की वहंसक
साम्राज्यर्ादी प्रकृ वत पर प्रकाश डालती है। जिहाद इस्लाम का र्ह प्रमुख जसद्ांत है, जिसका अनुपालन र् लक्ष्प्रावि अ-मुस्लस्लमों
(गैर-मुसलमानों) के साथ ही मुसलमानों के भी मानर्ाजधकारों का हनन करके ही की िा सकती है, यह पुस्तक इस्लाम पर जलखी
गयी सर्ोत्म पुस्तकों में से एक है।

-नोनी दरर्ेश, पुस्तक ’अब र्े मुझे कावफर कहते हैं’ (नाऊ दे कॉल मी इजिडल) के लेखक

मैंने यह पुस्तक पढ़ी और इसे सम्मोवहत करने र्ाला पाया। ‘‘इस्लामी जिहाद’’ एक व्यापक सं दभव है, जिसमें ऐवतहाजसक पररप्रेक्ष् र्
र्तवमान समय में इस्लाम र् उसके रसूल के वर्षय में अनेक वर्स्तृत तथ्य समावहत हैं। िो जिहाद र् आतं क के पीछे के उत्प्रेरक बल
को समझना चाहते हैं, उन सबको यह पुस्तक अर्श्य पढ़नी चावहए।

-सामी अल रबा, पुस्तक ’’ढं का-जछपा अत्याचार’’ (र्ेल्ड एटर ोजसटीि) के लेखक

मैं ‘इस्लामी जिहाद’ नामक इस पुस्तक को उत्कृ ष्ट कृ वत कहंगा और यह भी कहंगा वक यह पुस्तक मानर्ता के प्रवत बड़ा योगदान
है। िब मैंने यह पुस्तक पढ़ना प्रारंभ वकया, तो मानों सम्मोवहत हो गया और इसे अंत तक पढ़े वबना छोड़ नहीं सका। मैं इसे
इस्लाम के वर्रुद् एक शविशाली अस्त्र कहंगा।

-शम्सुज्जोहा मनीक, इस्लाम के वर्द्वान र् लेखक

2
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

‘‘इस्लामी जिहाद’’ का पररमाण अवत वर्शाल र् गहरा है और इसका आयाम बड़ा है। अजधकांश ऐवतहाजसक सामवग्रयां व्यापक रूप
से जछपायी गयी हैं। इन जछपायी गयी ऐवतहाजसक साम्रवगयों को सामने लाने की आर्श्यकता है। इस्लामी जिहाद ने दासप्रथा फै लाने
में बड़ी भूवमका वनभायी है। यह पुस्तक मानर्ता के जलये र्रदान है।

-वबल र्ानवर, इस्लाम के वर्द्वान र् लेखक, रािनीवतक इस्लाम अध्ययन कें द्र के वनदे शक

‘‘इस्लामी जिहाद’’ नामक यह पुस्तक इतने अदभुत ढंग से लेखबद् की गयी है वक इस्लाम को उिागर करने की सटीकता के कारण
इसकी आलोचना की सं भार्ना नगण्य हो गयी है। अतः इस पुस्तक को माि पाठन-मनोरंिन के जलये अपने हाथ में न लें, अवपतु
इस्लाम का र्तवमान समझने एर्ं इसके भवर्ष्य का अनुमान लगाने हेतु इस्लाम के अतीत की र्ास्तवर्क प्रकृ वत पर स्वयं को जशजित
करने के जलये इसे गहरायी र् गं भीरता से पढ़ें ।

-स्लैंट राइट ब्लाग

इस पुस्तक ने अपने आरंभ से ही मुझे इसमें डु बो वदया। मैंने भारत में इस्लाम पर अध्यायों को समझा...। इस्लाम के इवतहास और
ऐवतहाजसक दृवष्ट से इसके अनुयावययों को लेकर तकव के सभी पिों को ध्यान में रखते हुए समग्रता र् औजचत्यपूणव ढंग से वर्मशव
वकया गया है। यह पुस्तक सबको अर्श्य पढ़नी चावहए। सं सार में आि िो हो रहा है, उसको देखते हुए यह पुस्तक और भी
महत्वपूणव हो िाती है।
-गॉडेस 101 (in amzon.co.uk)

इस पुस्तक में िब आप पराजित और दास बनाये गये लोगों की दुदवशा र् नरसं हार के वर्षय में पढ़ रहे होंग,े तो सं भर् है वक अत्यं त
व्यजथत हो िाएं । इस पुस्तक में बहुत से तथ्य वदये गये हैं। जिहावदयों की मानजसकता और अल्लाह के नाम पर लड़ी गयी रिरंजित
िं गों को गहनता से समझने के जलये पाठकों को इन तथ्यों पर गहरायी से जचंतन करना चावहए। श्रीमान खान ने सोचने को बाध्य
करने र्ाली एक ऐसी पुस्तक जलखी है, िो अत्यं त वर्स्तृत है और गं भीर पादवटप्पजणयों, सं दभवग्रंथों र् सूजचयों द्वारा प्रवतपुष्ट की गयी
है। यह ऐसी पुस्तक है, जिसे प्रत्येक उस व्यवि को सं दभव के रूप में रखना चावहए, जिसकी इस्लामी जिहाद के खूनी इवतहास और
इससे उपिे सभी पररणामों को समझने में रुजच है।

-स्टीर्न बी. जसम्पसन, लेखक

खान की यह कृ वत सोने की खान से वनकली हुई मूल्यर्ान धातु है। खान की इस पुस्तक से आपको न के र्ल इस्लाा्मी इवतहास का
जसद्हस्त ज्ञान वमलेगा, अवपतु इस्लामी धमवशास्त्र के वर्षय में भी ज्ञानर्द्व न होगा। इस कारण से यह पुस्तक उन लोगों के जलये
खतरा है, िो जिहाद की र्ास्तवर्कता को जछपाकर हमारी आं खों पर पट्टी बांध देते हैं। खान का उद्दे श्य ही आं ख खोलना है। र्ो इस
कायव में अत्यं त सफल हुए हैं... खान मुहम्मद के िीर्न को इस्लामी जसद्ांत र् इवतहास के सूक्ष्म-अन्वेषी रूप में उिागर करते हैं
और यह काम उन्ोंने अद्भुत र् उत्कृ ष्ट ढंग से वकया है। मैं नहीं बोलूं गा वक आप यह पुस्तक पढ़ें या नहीं। यह पुस्तक पवढ़ए और
स्वयं िावनए। -सी.सी. च्रप्पा (ऑन अमेिन डॉट कॉम)

3
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

यह पुस्तक ‘‘इस्लामी जिहाद’’ अनुसंधानपरक र् वर्द्वतापूणव ढं ग से जलखी गयी है। अपनी शैली, सुस्पष्ट अंतदृवष्ट, वर्श्लेषण की
गहराई और इस तथ्य में इसकी श्रेष्ठता है वक यह कु रआन सवहत इस्लाम के ही स्रोतों से वनकाले गये तथ्यों के आधार पर जलखी गयी
है। यह पुस्तक इस्लाम की जशिाओं एर्ं जिहाद की इसकी स्वीकृ वत के गहन परीिण र् सुदृढ़ तकों को भी प्रस्तुत करती है। यह
जिहाद की र्ास्तवर्कता को उिागर करती ही है, साथ ही जिहाद नामक बुराई के आगे आत्मसमपवण करके जिम्मी (जधम्मी) बन िाने
की भयार्हता पर भी प्रकाश डालती है।

-मुवमन साजलह, इस्लाम के वर्द्वान र् लेखक

‘‘यह पुस्तक ‘‘इस्लामी जिहादः बलपूर्वक धमव पररर्तवन, साम्राज्यर्ाद र् दासप्रथा की वर्रासत’’ मानर् िावत को एम.ए. खान का
उपहार है। यह पुस्तक हम सबको अवनर्ायव रूप से पढ़नी चावहए, क्ोंवक यह इस्लाम की र्ास्तवर्क प्रकृ वत का जचिण करती है और
अ-मुसलमानों (गैर-मुसलमानों) की सुरिा र् उनके िीर्न पर इस्लाम के गं भीर खतरे से अर्गत कराती है। मैं ऐसा बहुमूल्य
उपहार प्रदान करने के जलये इसके लेखक को धन्यर्ाद ज्ञावपत करता हं।’’

-मोहम्मद अशगर, पुस्तक मुहम्मद र् उसकी कु रआन (मुहम्मद एं ड वहि कु रआन) के लेखक

यह पुस्तक ‘‘इस्लामी जिहाद’’ अत्यं त वर्द्वतापूणव, प्रेरणादायी र् अकाट्य तथ्यों से युि है। इसकी भाषा सामान्य, समझने में सरल
और रुजच उत्पन्न करने र्ाली है। एक बार पाठक पढ़ना प्रारंभ करेगा, तो समाि वकये वबना उठने की इच्छा नहीं होगी। इस्लाम के
वकसी भी गं भीर पाठक को इस पुस्तक की उपेिा नहीं करनी चावहए। इस पुस्तक को पवढ़ए, तो आप समझ पाएं गे वक इस्लामी
जिहादी िो कर रहे हैं, क्ों कर रहे हैं। उपमहाद्वीप (भारत, पावकस्तान, बांग्लादे श) के पाठक और वर्शेष रूप से मुसलमान पाठक
िब मध्यपूर्व र् मध्यएजशया से आये मुस्लस्लम आक्ांताओं द्वारा उनके पूर्विों पर वकये गये अत्याचार को िानेंगे, तो वहल िाएं गे।
अनेक आक्मणों र् अनर्रता् हमलों का यह झं कझोर दे ने र्ाला वर्र्रण उत्सुकतापूर्वक अपनी िड़ों को ढूं ढ़ने पर बाध्य कर देगा।
मुस्लस्लम दुवनया के वकसी कोने के पाठक और यहां तक वक यूरोप और अमरीका के पाठक भी यह समझ पाने योग्य होंगे वक वकस
प्रकार उनके पूर्विों पर इस्लाम का भयानक दुष्प्रभार् पड़ा। यह पुस्तक आि के रािनीवतज्ञों को अर्श्य ही पढ़ना चावहए, चाहे र्ह
नेता मुसलमान हो अथर्ा गैर-मुसलमान, जिससे वक वनरंतर बढ़ रहे इस्लामी चरमपं थ के खतरे की ओर से उनकी उदासीनता दूर हो
सके ।

-अबुल कासेम, इस्लाम के वर्द्वान र् लेखक

‘‘एम.ए. खान की यह पुस्तक ‘‘इस्लामी जिहादः बलपूर्क


व धमव पररर्तवन, साम्राज्यर्ाद र् दासप्रथा की वर्रासत’’ जिहाद के
इवतहास वर्षय पर गुण-दोष आधाररत अनुसंधान पर तैयार की गयी अनुपम कृ वत है और िो भी इस वर्षय में रुजच रखते हैं, उन्ें
यह पुस्तक अर्श्य पढ़नी चावहए।’’

-िेफरी वकं ग, (शीघ्र ही आने र्ाली) पुस्तक फ्री स्पीच के लेखक

4
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

प्राक्कथन
मेरा िन्म र् लालन-पालन एक रुवढ़र्ादी मुस्लस्लम समाि में हुआ। भारत में स्नातक उपाजध लेने के पिात मैं आगे की
जशिा के जलये पजिम की ओर चला गया। रुवढ़र्ादी मुस्लस्लम पृष्ठ भूवम के बाद भी मैं उदारर्ादी सोच के साथ बड़ा हुआ। मेरे
वर्द्यालयी र् वर्श्वद्यालयी वदनों में मेरे वनकट वमि वहंदू र् जसख रहे। मैं उनके साथ अजधक सहि अनुभर् करता था, क्ोंवक र्े न के
बराबर धावमवक जझझक रखने र्ाले एर्ं अजधक उदार, सरल स्वभार् र् वर्नम्र थे। वर्श्ववर्द्यालयी जशिा पूरी करने तक मैं मिहबी
रीवतयों र् कमवकांडों को पूणत
व ः छोड़ चुका थाः ये मिहबी रीवतयों मुझे अपनी नहीं ओर नहीं खींच पाती थीं।
िब अमरीका में 9/11 का हमला (आक्मण) हुआ, तो उदार समाि में रहते हुए मैं एक दशक से अजधक समय व्यतीत
कर चुका था। मुझे सचेतन रूप से यह वर्श्वास हो गया था वक मिहबी रीवतयां यथाः नमाि, रोिा र् हि आवद सब अथवहीन हैं।
मुझे लगता था वक जिन व्यथव की मिहबी रीवतयों से वकसी का भी भला नहीं होता है, मैंने उनका अंधानुकरण नहीं वकया। उसकी
अपेिा मैंने पररश्रम र् बुवद्मत्ा पूणव ढं ग से कायव वकया है, इसजलये मुझे पुरस्कृ त वकया िाना चावहए। मेरे परमा् वमि गैर-मुसलमान
थे, अपने मुसलमान साजथयों को िुब्ध करते हुए मैं हराम (र्जिवत) भोिन करता था, (आधुवनकता में) मवदरा पान करता था। :
यवद सच कहं, तो इस प्रकार का उदार व्यवि बन िाने के बाद भी मैं उन मुसलमानों से जभन्न नहीं था, जिन्ें लगता था
वक 9/11 का हमला उजचत था। यद्यवप मुझे लगता था वक इस हमले का जशकार बने िो लोग मारे गये हैं, र्ो अकारण ही मरे। पूरे
वर्श्व में मुस्लस्लम समाि अमरीका को इस्लाम के घोर शिु के रूप में प्रस्तुत करता है, वर्शेष रूप से इिराइल-वफजलस्तीन सं घषव में
अमरीका के पि को लेकर। उस समय मैं भी यही सोचता वक अमरीका का अंधा समथवन पाकर इिराइल को वफजलस्तीन के
मुसलमानों पर भयानक अत्याचार कर रहा है, उनके जलये घोर कष्ट उत्पन्न कर रहा है। वनस्सं देह मुसलमानों में 9/11 के हमलों को
उजचत ठहराने का गहरा भार् था। मुसलमानों के इस भार् से सुपरपॉर्र अमरीका को रिपात करने का एक और बहाना वमल
गया। मैं भी भले ही तवनक ही मुसलमान था, वकं तु मैं भी उन्ीं मुसलमानों के िैसे सोचता था।
यह वर्जचि प्रतीत हो सकता है वक मैं अब भी इस्लाम में वर्श्वास करता था। मैं सोचता था वक आतं कर्ादी, िो इस्लाम
के नाम पर सब कर रहे हैं, वदग्भ्रवमत हैं। 9/11 के बाद मैंने धीरे -धीरे इस्लाम के बारे में पढ़ना प्रारंभ वकया: कु रआन, सुन्नत और
रसूल मुहम्मद के आत्मर्ृत्ों को पढ़ा। मैंने अपने िीर्न के 35 र्षों में ये सब नहीं पढ़ा था। मैं घोर आियव में पड़ गया। िीर्नभर
मुझे बताया गया वक रसूल मुहम्मद का िीर्न आदशव थाः उसका िीर्न अत्यं त करुणामयी र् न्यायवप्रयता का था, यह भी बताया
गया था वक इस्लाम सबसे शांवतपूणव धमव है और मैं इन सब बातों पर वर्श्वास भी करता था। वकं तु कु रआन पढ़ा, तो ऐसा लगा वक
यह तो अ-मुस्लस्लमों (गैर-मुसलमानों) का धमव पररर्तवन कराने अथर्ा उन्ें अपने अधीन भयानक अपमानिनक स्लस्थवत में जिम्मी
बनाकर रखने के जलये उनके वर्रुद् खुली िं ग का घोषणापि है। अपने पैगम्बरी के व्यर्साय और वर्शेषकर अपने अंवतम दस र्षों
की अर्जध में रसूल मुहम्मद भले ही कु छ भी रहा हो, वकं तु र्ह शांवतवप्रय, दयार्ाना् एर्ं न्याय के साथ खड़ा रहने र्ाला व्यवि तो
नहीं ही था।
मेरी जिज्ञासा बढ़ने लगी। मैंने इस्लामी धमवशास्त्र और रसूल मुहम्मद से लेकर आधुवनक समय तक के इस्लामी इवतहास
पर र्षों तक गहन अनुसंधान वकया, तो इसमें बलपूर्वक धमाांतरण, बबवर साम्राज्यर्ाद एर्ं भयभीत कर दे ने र्ाली दासप्रथा की

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

स्तब्धकारी घटनाएं वनकलकर सामने आयीं। यह बहुत बड़ी मानर् िासदी की दुखद गाथा है। ऐसी िासदी, िो इस्लाम के मूलभूत
तत्व इस्लामी पवर्ि िं ग अथावत जिहाद के नाम पर लायी गई। िासदी की यही गाथा इस पुस्तक का वर्षय है।

एम.ए. खान

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

आभार ज्ञापन

प्रथमतः मुझे इस कायव को करने में अपनी पत्नी के प्रोत्साहन एर्ं धीरि भरे त्याग के जलये आभार प्रकट करना चावहए,
उनके सहयोग के अभार् में यह पुस्तक साकार रूप नहीं ले पाती।
यह कायव मनुष्यों एर्ं अलौवकक वर्द्वानों र् लेखकों के कायों के आधार पर सम्पन्न वकया गया है और इस पुस्तक का
अजधकांश श्रेय उन्ीं को िाना चावहए। कु रआन के लेखक अल्लाह, अल-बुखारी, अबू मुस्लस्लम एर्ं अबू दाऊद, रसूल की सुन्नत के
सं कलनकतावओ,ं इब्न इस्हाक र् अल-तबरी, रसूल का आत्मर्ृत् जलखने र्ाले लेखकों, मुहम्मद फररश्ता, इब्न बतूता, एचएम इजलयट
र् िे. डाऊसन, िर्ाहरलाल नेहरू, के एस लाल, वगल्स वमल्टन, बनावडव लेवर्स, र्ीएस नायपाल, िीडी खोसला, पीके वहत्ी, एम.
उमरुद्दीन, एं डर यू बॉस्टम, आरएम ऐटन, बहाररस्तान-ए-शाही र् अलबरूनी जलजखत भारत आवद पुस्तकों का नामोल्लेख समीचीन
होगा।
मैं अपने उन वमिों अबुल काजसम, मोहम्मद अशगर, सईद कामरान वमिाव, शेर खान, मुवमन साजलह, सी. ली, र्ानवर
मैंकेंिी र् बहुत से अन्य वमिों का भी कम ऋृणी नहीं हं, जिन्ोंने इस काम को करने में मुझे अपार प्रोत्साहन वदया। इनमें से बहुतों
ने मुझे मूल्यर्ान सूचना र् सुझार् वदये हैं। सी. ली ने अपने पुस्तकों के वर्शाल सं ग्रह को मुझसे साझा वकया, जिससे मुझे अनुसंधान
में बड़ी सहायता वमली। इसके जलये ली के प्रवत वर्शेष रूप से धन्यर्ाद ज्ञावपत करता हं।
इस पुस्तक में वदये गये वर्षय र्ैजश्वक रुजच के हैं, परंतु इसमें प्रस्तुत ऐवतहाजसक आं कड़े अजधकांशतः भारत से जलये गये हैं
और इसके पीछे मुख्यतः दो कारण हैंः पहला यह वक समकालीन वर्द्वानों द्वारा वकये गये कायों के रूप में भारत पर ऐवतहाजसक
सूचनाओं का बड़ा भाग उपलब्ध है, दूसरा कारण यह है वक पुस्तक का आयतन बहुत अजधक न हो।
हो सकता है वक इस पुस्तक में कु छ भाषाई िुवटयां रह गयी हों, पर मैं आशा करता हं वक पाठकों को इससे यथान्यून
असुवर्धा होगी।

एम.ए. खान

15 अक्ट्ू बर 2008

7
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अनुक्माजणका
अध्याय एक 1

जिहादः वर्र्ाद 1

अध्याय दो 5

इस्लाम की आधारभूत मान्यताएं

अध्याय तीन 9

रसूल मुहम्मद का िीर्न और जिहाद की उत्पवत् 9

िन्म एर्ं आरंजभक िीर्न (570-610 ईसर्ी) 10

क्ा मुहम्मद मक्का से भगाया गया था? 12

क्ा मक्का के लोग क्ू र थे? 15

मक्कार्ाजसयों की आदशव सवहष्णुता 18

मुहम्मद का मक्कार्ाजसयों के वर्रुद् आतं क का अजभयान (623-623 ईसर्ी) 19

जिहाद का बीिारोपण 19

नखला का हमला 21

बद्र की िं ग 22

उहुद की वर्नाशकारी िं ग 23

खं दक की िं ग 24

मक्का की वर्िय और काबा पर बलपूर्वक अजधकार 25

मुहम्मद का मक्कार्ाजसयों को िमादान 28

मुहम्मद का यहवदयों के साथ व्यर्हार 30

मुहम्मद के अजभयान पर यहदी प्रभार् 30

यहवदयों को इस्लाम की ओर खींचने के जलये मुहम्मद का प्रयास 31

8
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

इस्लाम में यहदी जसद्ांत का बोध 31

मुहम्मद की यहवदयों से कटु ता 32

मुहम्मद द्वारा यहवदयों पर वहंसा 33

मुहम्मद का ईसाइयों के साथ व्यर्हार 37

मुहम्मद के अजभयान र् पं थ पर ईसाइयत का प्रभार् 38

मुहम्मद के पं थ पर अन्य मान्यताओं र् आख्यानों का प्रभार् 41

इस्लाम में ईसाई धमव के वर्चार 43

कु रआन में ईसाई धमव की वनंदा 44

मुहम्मद की ईसाइयों के प्रवत शिुता 45

मृत्युशैया पर मुहम्मद का ईसाई-वर्रोधी शिुता का भार् 46

मुहम्मद का ईसाई शासकों को धमकी भरा सं देश 47

मुहम्मद का ईसाइयों के वर्रुद् अजभयान 47

मुहम्मद का ईसाई प्रवतवनजधमं डल के साथ व्यर्हार 48

मुहम्मद के बताये अनुसार इस्लाम में अ-मुस्लस्लम की स्लस्थवत 49

इस्लाम में मूवतवपूिक 49

इस्लाम में यहदी 50

इस्लाम में ईसाई 50

अध्याय चार 53

इस्लाम का प्रसारः बलपूर्वक अथर्ा शांवतपूणव ढं ग से? 53

इस्लाम के प्रसार के जलये आरंजभक िं ग 53

इस्लाम के प्रसार के जलये िं गों पर मुसलमान वर्द्वान 59

इस्लामी राज्य के प्रभुत्व की रिा 60

वर्देशी शासकों के अत्याचार पर वनयं िण 61

9
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अत्याचारी शासकों से दुबवल देशों की मुवि 63

अत्याचार र् उत्पीड़न को दूर करना 63

स्पेन में स्वागत 66

भारत में इतने सारे लोग अभी भी वहंदू क्ों हैं? 72

भारत में धमाांतरण कै से हुआ? 73

तलर्ार के बल पर धमाांतरण 73

बलपूर्वक दास बनाकर धमव पररर्तवन 75

दास बनायी गयी जस्त्रयों को बच्चा उत्पन्न करने की मशीन के रूप में प्रयोग करना 75

धमाांतरण के जलये वर्र्श करने र्ाले अपमान र् आजथवक बोझ 77

बबवर औरंगिेब के समय धमाांतरण 81

कश्मीर में बबवर धमाांतरण 82

धमाांतरण के बचार् में धूततव ापूणव प्रचार 83

स्वैस्लच्छक धमाांतरण 83

वनम्न िावत के वहंदओ


ु ं का धमव पररर्तवन 83

सूवफयों द्वारा शांवतपूणव धमाांतरण 85

दजिणपूर्व एजशया में व्यापाररयों द्वारा धमाांतरण 99

ऐसा क्ा हुआ वक इस्लाम का तीव्र प्रवतरोध कर रहे दजिण पूर्व एवषया के कावफरों ने मुसलमानों द्वारा रािनीवतक सत्ा प्राि करने के
पिात इतनी तेिी से धमाांतरण कर जलया? 103

वनष्कषव 108

अध्याय पांच 111

अरब-इस्लामी साम्राज्यर्ाद 111

इस्लामी साम्राज्यर्ादः कु रआन के आदे श और सुन्नती प्रवतदशव (मॉडल) 112

इस्लामी शासन का अनुभर् 115

10
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

इस्लामी शासन क्ों उपवनर्ेशर्ाद नहीं है? 117

इस्लाम के वर्स्तार में आजथवक शोषण 119

इस्लाम का सांस्कृवतक साम्राज्यर्ाद 124

िीती गयी भूवम पर इस्लाम का योगदान 130

इस्लाम में बौवद्क अनुसरण पर प्रवतबं ध 133

इस्लाम समतार्ादी अथर्ा िावतभेद करने र्ाला? 135

इस्लाम द्वारा समतार्ादी बौद् धमव का वर्नाश 138

मुस्लस्लम दुवनया बौवद्क र् भौवतक रूप से उत्कृ ष्ट कै से? 139

उपवनर्ेशों को अपनी भूवम बताना 141

अध्याय छह 145

भारत में इस्लामी साम्राज्यर्ाद 145

इस्लामी वर्िय र् शासन 147

इस्लाम के आगमन से पूर्व भारत 153

उन्नत सभ्यता 153

िं ग की मुस्लस्लम सं वहता 157

मुस्लस्लम काल में वहंदू शासकों की सवहष्णुता र् शौयव 160

वहंद-ू मुसलमान वर्भािनः विवटश अवर्ष्कार? 164

वहंद-ू मुस्लस्लम अनबन, भारत का वर्भािन और विवटश वमलीभगत 167

मोपला वर्द्रोह 170

कलकत्ा में सीधी कारव र्ाई (डायरेक्ट् एक्शन) दंगे 172

पूर्ी बं गाल की ओर वहंद-ू वर्रोधी दंगे 175

वबहार में वहंदओ


ु ं का प्रवतकार 176

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

पावकस्तान की ओर दंगे 177

जसख र् वहंदू प्रत्युत्र 180

वहंदू र् जसखों का पूर्ववनयोजित नृिातीय नरसं हार 181

मुसलमानों का नृिातीय नरसं हार 183

उत्रदायी कौन? 185

भारत के सामाजिक, बौवद्क र् सांस्कृवतक िीर्न पर इस्लाम का प्रभार् 186

जशिा र् अजभगम पर 186

भयानक हुई िावत व्यर्स्था 188

इस्लाम के कारण िौहर प्रथा प्रारंभ हुई 190

मुसलमानों के शासन में सतीप्रथा बढ़ी 191

इस्लाम ने बालवर्र्ाह को बढ़ार्ा वदया 191

इस्लाम के कारण घातक ठग सं प्रदाय पनपा 192

धावमवक िनसांस्लख्यकी पर इस्लाम का प्रभार्ः अतीत र् र्तवमान 195

वर्रासत 199

अध्याय सात 203

इस्लामी दासप्रथा 203

दासप्रथा पर कु रआन की स्वीकृ वत 204

दासप्रथा का सुन्नत प्रवतदशव (मॉडल) 206

प्राचीन वर्श्व में दासप्रथा 207

भारत में मुसलमानों द्वारा दास बनाने की प्रथा 209

अन्य दे शों में मुसलमानों द्वारा दास बनाने की प्रथा 217

उस्मावनया ड्यूजशमे (छोटे बच्चों का अपहरण कर जिहादी के रूप में तैयार करना) 219

12
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

दासों की प्रस्लस्थवत (दिाव) 221

दासों की दुदवशा 222

सेक्स-स्लेर् (लौंडी) और रखैल बनाना 228

दासों की वनयवत 235

इस्लामी दास-व्यापार 241

यूरोपीय दास 244

र्ाइवकं ग दास-व्यापार एर्ं इसका मुस्लस्लम सं बं ध 246

यूरोपीय दास-व्यापार र् इस्लामी सहअपराध 248

इस्लामी दासप्रथा को जछपाना 249

इस्लाम में दासों के साथ व्यर्हार 252

इस्लाम ने दासप्रथा को अत्यजधक बढ़ाया 253

दासप्रथा, धमवशास्त्रीय एर्ं ऐवतहाजसक रूप से, इस्लाम का अजभन्न अंग है 253

इस्लामी दासप्रथा की वर्शेष क्ू रता र् आपदा 255

दासप्रथा का उन्मूलन और इस्लामी प्रवतरोध 256

उत्री अफ्रीका में इस्लामी दासप्रथा के वर्रुद् यूरोवपयों का सं घषव 257

विवटश सं घषव 257

विवटश नीत यूरोवपयनों ने पुनः धार्ा बोला 263

दासप्रथा पर उस्मावनया साम्राज्य द्वारा लगाये गये प्रवतबं ध पर मुसलमानों का प्रवतरोध 264

मुस्लस्लम दे शों में दासप्रथा की वनरंतरता र् पुनप्रावरंभ 265

मुसलमान पजिमी दे शों में दासप्रथा लाये 267

वनष्कषव 268

अध्याय आठ 269

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अंवतम शब्द 269

सं दभवग्रंथ सूची 273

सूची 277

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अध्याय एक

जिहादः वर्र्ाद

‘...व्यवि को र्षव में कम से कम एक बार जिहाद में अर्श्य िाना चावहए... यवद र्े अपनी गवढय़ों में हों, तो उन पर गुलेल से हमला करना
चावहए, भले ही उनमें जस्त्रयां और बच्चे भी क्ों न हों। उन लोगों को आग में िीवर्त िला दे ना चावहए अथर्ा उन्ें डु बोकर मार डालना
चावहए।’

-इमाम अल-गिाली, मुहम्मद के बाद इस्लाम का दूसरा सबसे बड़ा वर्द्वान

‘समस्त वर्श्व को इस्लामी बनाने के (मुस्लस्लम) वमशन और समझा-बुझाकर अथर्ा बलपूर्वक प्रत्येक व्यवि का इस्लाम में धमाांतरण कराने के
(अवनर्ायव कतवव्य) के कारण मुस्लस्लम समुदाय में जिहाद एक अवनर्ायव मिहबी कतवव्य है।’

-इब्न खलदुन, द मुक़वद्दमाह, न्यूयाकव , पृष्ठ 473

अ मरीका में 9/11 के दुखद हमले ने वर्श्व को बहुत पररर्वतवत कर वदया है। इससे ऐसा पररर्तवन आया है , जिसका पररणाम
लं बे समय में वदखेगा। अलकायदा र् उसी की मानजसकता के अन्य मुस्लस्लम समूहों द्वारा ‘‘जिहाद’’ या ‘‘पवर्ि िं ग’’ के
नाम पर कावफरों के वर्रुद् वर्श्वव्यापी अंधाधुं ध वहंसा ने इस्लामी दुवनया और अ-इस्लामी (गैर-इस्लामी) सं सार दोनों की सुरिा र्
स्थावयत्व को सं कट में डाल वदया है। र्ैजश्वक स्तर पर मुसलमानों की बड़ी आबादी में शुद्तार्ादी अथावत मुहम्मद के समय के
इस्लाम को पुनः स्थावपत करने की मं शा का उभार भी बढ़ रहा है। ये दोनों प्रर्ृवत्यां पजिम र् अन्य स्थानों के धमववनरपेि-
लोकतांविक राष्टरो ं के समि अभूतपूर्व खतरा उत्पन्न कर रही हैं। वहंसक जिहादी समूह, जिनका लक्ष् इस्लामी शररया वर्जध द्वारा
शाजसत वर्शुद् इस्लाम (1400 र्षव पूर्व के इस्लाम) को वर्श्व स्तर पर स्थावपत करने का लक्ष् है, अंधाधुं ध वहंसा, हत्या र् वर्नाश
के माध्यम से आधुवनकतार्ादी, धमववनरपेि-लोकतांविक र् प्रगवतशील वर्श्व-व्यर्स्था को पूणत
व ः नष्ट कर दे ना चाहते हैं। शुद्तार्ादी
इस्लाम के अवहंसक समथवक मुसलमान भी इसी लक्ष् को प्राि करना चाहते हैं। मुसलमानों में इस तथाकजथत अवहंसक शुद्तार्ादी
इस्लाम का बड़ा आकषवण है, यद्यवप ये अवहंसक मुसलमान वहंसा से लक्ष् प्राि करने की अपेिा शररया कानून को र्ैधता दे ने एर्ं
पजिमी समाि की परंपराओं र् सामाजिक आचरण को वमटा दे ने िैसे जभन्न साधनों से इस लक्ष् को प्राि करना चाहते हैं। ये
मुसलमान पजिमी अजभव्यवि की स्वतं िता, वर्परीत जलं गों का एक-दूसरे से स्वतं ि रूप से वमलना, समलैंवगकता आवद को इस्लाम
को आहत करने र्ाला मानते हैं।

र्षव 2006 के एक पोल में पाया गया था वक 40 प्रवतशत विवटश मुसलमान शररया कानून का शासन चाहते थे, िबवक
उनमें से 60 प्रवतशत चाहते थे वक मुसलमानों के वर्षयों र् प्रकरणों की मध्यस्थता के जलये शररया न्यायालय बनाए िाएं । कु छ

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

समय पूर्व सोशल कोहेसन इन द यूके के कें द्र द्वारा वकये गये अध्ययन में पाया गया वक विटे न के वर्श्ववर्द्यालयों के 4 प्रवतशत
मुसलमान वर्द्याथी इस्लाम को ‘‘बढ़ार्ा दे ने एर्ं सं रजित रखने’’ के जलये हत्या का समथवन करते हैं ; उनमें से 32 प्रवतशत मुसलमान
वर्द्याजथवयों को लगता है वक इस्लाम की रिा में की गयी हत्या उजचत है। उनमें से 40 प्रवतशत वर्द्याथी विटेन में मुसलमानों के
जलये शररया वर्जधयों (कानूनों) को लाने का समथवन करते हैं एर्ं 37 प्रवतशत इसका वर्रोध करते हैं। उनमें से 33 प्रवतशत
मुसलमान वर्द्याथी खलीफा का वर्श्वव्यापी शासन लाने का समथवन करते हैं , िबवक के र्ल 25 प्रवतशत ही इस वर्चार का वर्रोध
करते हैं। इस अध्ययन में यह भी पाया गया वक मुसलमानों में चरमपं थ बढ़ रहा है और युर्ा मुसलमान अपने अजभभार्कों की पीढ़ी
की तुलना में अजधक धमाांध हैं।1 यद्यवप विटे न की िनसं ख्या में मुसलमान अभी लगभग 3.5 प्रवतशत ही हैं , वकं तु र्हां मुस्लस्लम
समुदाय में अनजधकृ त रूप से शररया कानून अनेक रूपों में प्रचजलत है।

इन पररस्लस्थवतयों में कैं टरबरी के आकव वबशप रोर्न वर्जलयम्स ने फरर्री 2008 में कहा था वक यूनाइटे ड वकं गडम (यूके) में
शररया वर्जध का समार्ेशन अपररहायव हो गया है, अथावत इसे टाला नहीं िा सकता है और उन्ोंने सरकार से शररया को वर्जधक रूप
से लाने पर वर्चार करने को कहा था।2 विटे न की सरकार मुसलमानों की अनर्रता् मांग पर बाध्य हो गयी है वक र्ह विटेन में
मुसलमानों के तलाक, वर्त्ीय वर्र्ाद और यहां तक वक घरेलू वहंसा वर्र्ादों के प्रकरण के जलये शररया न्यायालय की वर्जधक
स्थापना और शररया कानून को वक्याजन्वत करे। डेली मेल ने जलखा ‘शररया न्यायालय ने दार्ा वकया है वक उसने वपछली गवमवयों से
अब तक 100 प्रकरणों पर सुनर्ाई की है, जिसमें से 6 प्रकरण घरेलू वहंसा के हैं। िबवक विटे न में घरेलू वहंसा व्यर्हार वर्षयक
प्रकरण (जसवर्ल र्ाद) नहीं होते हैं, अवपतु यह आपराजधक प्रकरणों के अंतगवत आते हैं। शररया न्यायालय चलाने र्ालों ने कहा वक
भवर्ष्य में र्े ‘छोटे -मोटे ’ आपराजधक प्रकरणों की भी सुनर्ाई करने की आशा करते हैं।’3 यह विटे न में शररया वर्जध की स्थापना का
एक चरण है।

इस्लामी ’’जिहाद’’ अथर्ा ’’पवर्ि िं ग’’ का अथव अल्लाह के सरोकार के जलये िं ग करना होता है; अल्लाह का र्ह
सरोकार, जिसे उसने इस्लामी जसद्ांतों में कु रआन की आयतों की लं बी सूची के माध्यम से डाला है , िैसे वक आयत 2:190।4

1
गाधवम डी, मुस्लस्लम स्टू डेंट बैक वकजलं ग इन द नेम ऑफ इस्लाम, टे लीग्राफ (यूके), 27 िुलाई 2008

2 शररया लॉ इन यूके इस ‘अनअर्ायडेबल’, बीबीसी न्यूि, 7 फरर्री 2008

3 मैथ्यू वहक्ले, इस्लावमक शररया कोर्ट्व इन विटे न आर नाउ ‘लीगली बाइं वडंग’, 15 जसतम्बर 2008

4 कु रआन 2.190: अल्लाह के उद्दे श्य से उनसे िं ग करो, िो तुमसे लड़ें, वकं तु सीमाएं मत लांघो; क्ोंवक अल्लाह को अर्ज्ञाकारी वप्रय नहीं हैं।
(अनुर्ाद युसुफ अली)

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अल्लाह द्वारा कु रआन में जिहाद के सं बं ध में 200 से अजधक आयतें दी गयी हैं। आि के वहंसक जिहाद के प्रजसद् नायक ओसामा
वबन लादे न ने कावफरों के वर्रुद् अपने जिहादी अजभयानों को वनम्नजलजखत मिहबी रूप में पररभावषत वकया हैः 5

िहां तक मुसलमानों और कावफरों के बीच सं बं ध की बात है , तो इस बारे में महान अल्लाह के शब्द ये हैंः ‘हम तुम्हें (कावफरों अथावत
गैरमुसलमानों को) अपनाने से अस्वीकार करते हैं। िब तक वक तुम के र्ल अल्लाह को ही न मानने लगो, हमारे मध्य शिुता र् घृणा
बनी ही रहेगी।’ इसजलये शिुता है, और यह शिुता हृदय में बैठे भयानक वर्द्वेष का सािी है। और यह भयानक शिुता तभी रुके गी,
िब यवद कावफर इस्लाम के प्रभुत्व के समि आत्मसमपवण कर दें, अथर्ा यवद उसका रि बहाया िाना र्जिवत वकया गया हो, अथर्ा
यवद उस समय में मुसलमान दुबवल अथर्ा असमथव हों। वकं तु यवद हृदय से (कावफरों के प्रवत) घृणा का लोप हो िाता है, तो यह बड़ा
कु फ्र है! सर्वसामथ्यवर्ान अल्लाह द्वारा अपने रसूल को कहे गये ये शब्द सच्चे सं बं ध के बारे में अंवतम अजभर्चन का र्णवन हैः ‘हे
रसूल! कावफरों र् मुनावफकों से िं ग करो और उनके प्रवत कठोर र् वनष्ठुर रहो। उनका वठकाना िहन्नुम (नकव ) है , उनकी वनयवत बहुत
बुरी है!’ इस प्रकार कावफरों और मुसलमानों के बीच सं बं ध का मूलतत्व र् आधार ऐसा है। कावफरों के वर्रुद् मुसलमानों की िं ग,
शिुता र् घृणामूलक व्यर्हार हमारे मिहब का आधार है। और हम इसे उनके प्रवत न्याय र् दयालुता मानते हैं।

अन्य लोग कावफरों (गैर-मुसलमानों) के प्रवत मुस्लस्लमों के इस एकवदशीय र् अवनयं वित शिुता को जिहाद के मिहबी
आधार के रूप में मानने पर प्रश्नजचह्न लगाते हैं। अनेक उदारर्ादी मुसलमान और इस्लाम के वर्द्वान तकव देते हैं वक अलकायदा र्
उसकी मानजसकता के अन्य इस्लामी समूहों के अंधाधुं ध वहंसक कायों को जिहाद नहीं कहा िाना चावहए। उनका दार्ा है वक
जिहाद का अथव शांवतपूणव आध्याजत्मक सं घषव है और यह वहंसा से पूणवतः दूर है। राष्टरपवत बुश के िैसे ही र्े भी तकव दे ते हैं वक
इस्लाम शांवत का धमव है और इसमें वहंसा का कोई स्थान नहीं है। व्यापक रूप से यह दार्ा भी वकया िाता है वक इस्लामी इवतहास
का हॉलमाकव उस सवहष्णुता, शांवत र् समानता का हॉलमाकव है, िो ईसाई धमव अपने मुस्लस्लम (स्पेन में) र् अ-ईसाई प्रिा (यथाः
यूरोप र् अमरीका में मूवतवपूिक र् यहदी) को दे पाने में वर्फल रहा।

िूसेल्स के ईस्ट र्ेस्ट इं स्टीट्यूट द्वारा आयोजित आतं कर्ाद प्रवतरोधी सम्मेलन (फरर्री 19-21, 2008) में र्िाओं ने
बारंबार तकव वदया वक शब्दार्ली ‘‘जिहाद’’ को अलकायदा की वहंसा से नहीं िोड़ना चावहए, क्ोंवक अजधकांश मुसलमानों के जलये
जिहाद का मूल अथव आध्याजत्मक उत्थान है, और र्े नहीं चाहते वक इस अथव का कहीं भी अपहरण कर जलया िाए।’ ईराकी वर्द्वान
शेख मोहम्मद अली ने सम्मेलन में कहा वक ‘जिहाद भीतर से सभी बुराइयों को दूर करने के जलये स्वयं के भीतर का सं घषव है... और
इस्लाम में कोई जिहादी आतं क नहीं है।’’ पावकस्तान के सं युि चीफ आफ स्टॉफ के पूर्व अध्यि िनरल एहसान उल हक़ ने
वनधवनता उन्मूलन, जशिा या िीर्न के सकारात्मक पिों को प्रोत्साहन दे ने के जलये सं घषव पर बल देते हुए कहा वक जिहावदयों को

5 रेमंड इिाहीम, द टू फेसेि ऑफ अलकायदा, आर्जधक समीिा, 21 जसतम्बर 2007

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

आतं कर्ादी कहना या तो ‘‘इस्लाम की समझ का अभार्’’ है अथर्ा दुभावग्य से यह ‘‘जिहाद शब्द के आशयपूर्वक दुरुपयोग’’ को
प्रवतवबं वबत करता है।6

अलकायदा द्वारा जिहाद के नाम पर 9/11 का हमला वकये िाने के बाद से ही मुस्लस्लम र् अनेकों अ-मुस्लस्लम वर्द्वान र्
जशिावर्दा् जिहाद के इस अवहंसक वर्चार के बचार् में सामने आ गये। डेवनयल पाइप्स ने जिहाद के अथव को सकारात्मक जसद् करने
के जलये कई उदाहरण उद्ृत वकये हैं, जिसका सारांश नीचे वदया गया है।7

हार्वडव इस्लामी सोसाइटी के अध्यि िायेद यासीन ने वर्श्ववर्द्यालय के सिारंभ समारोह 2002 में ‘मेरा अमरीकन जिहाद’
शीषवक से भाषण देते हुए कहाः ‘‘जिस सच्चे र् शुद्तम रूप में जिहाद करने की इच्छा सभी मुसलमानों के मन में होती है , उसका
सच्चा र् शुद्तम रूप यही है वक हम सही मागव पर चलने का सं कल्प लें और हमारे वहत प्रभावर्त हों, तब भी हम न्याय करें। यह
व्यविगत नैवतक व्यर्हार के जलये अपने भीतर का सं घषव है...।’’ हार्वडव के सं कायाध्यि वमशेल जशनागेल , जिन्ें सं भर्तः इस्लामी
धमवशास्त्र का कोई ज्ञान नहीं था, ने यासीन द्वारा दी गयी जिहाद की पररभाषा की पुवष्ट करते हुए इसे ’’अपने भीतर और समाि के
भीतर न्याय र् सामं िस्य’’ को प्रोत्साहन दे ने के जलये व्यवि के भीतर का सं घषव बताया। हार्वडव इस्लामी सोसाइटी के परामशवदाता
प्रोफेसर डेवर्ड वमट्टन ने सच्चे जिहाद को ‘‘ईश्वर के मागव के अनुपालन एर्ं समाि में अच्छाई करने के जलये अपने भीतर की मूल
प्रर्ृवत्यों पर वर्िय प्राि की वदशा में मुस्लस्लमों के सतता् सं घषव’’ के रूप में पररभावषत वकया। अमरीकी जशिा िगत में अनेकों वर्द्वान
जिहाद के इसी वर्चार का प्रचार कर रहे हैं। वर्स्कॉस्लिन वर्श्ववर्द्यालय के प्रोफेसर िो एल्डर जिहाद को एक ऐसे ‘‘धावमवक सं घषव के
रूप में दे खते हैं, िो अंतमवन, धमव के व्यविगत सं घषव’’ को प्रवतवबं वबत करता है। र्ेलेिली कॉलेि के प्रोफेसर रॉक्सैन यूबेन के जलये
‘‘जिहाद का अथव लोभ-लालच से बचना और श्रेष्ठ व्यवि बनना है।’’ िबवक िॉजिवया सदनव यूनीर्जसवटी के प्रोफेसर िॉन पासवल्स
जिहाद को ‘‘भूख र् अपनी इच्छाओं पर वर्िय प्राि करने के सं घषव’’ के रूप में देखते हैं। आमवस्टराग
ं अटलांवटक वर्श्ववर्द्यालय के
प्रोफेसर नेड रीनाल्डु की के अनुसार जिहाद का लक्ष् हैः ‘‘भीतर से अच्छा मुसलमान होना। बाहर से न्यायवप्रय समाि का वनमावण
करना।’’

न्यूयाकव वर्श्ववर्द्यालय के प्रोफेसर फरीद इसेक के जलये जिहाद का अथव ‘‘रंगभेद का वर्रोध करना और मवहलाओं के
अजधकारों के जलये काम करना है।’’ ड्यूक वर्श्ववर्द्यालय में इस्लामी अध्ययन के प्रमुख प्रोफेसर िूस लॉरेंस के अनुसार जिहाद
‘‘अच्छा वर्द्याथी होना, अच्छा सहकमी होना, अच्छा व्यापाररक साझेदार होने के समान होता है। सबसे बढ़कर जिहाद अपने क्ोध
को र्श में करने का नाम है।’’ उनके अनुसार अ-मुस्लस्लमों को भी जिहाद के अच्छे गुणों को ग्रहण करना चावहए; उदाहरण के जलये
सं युि राज्य अमरीका इस अन्याय भरे वर्श्व में सभी के जलये न्याय को प्रोत्सावहत करने के जलये अपनी वर्दे श नीवत की समीिा
करके जिहाद के इस गुण को ग्रहण कर सकता है। जिहाद के इस अवहंसक र् कु छ-अच्छा-करें के वर्चार के वर्परीत अलकायदा र्

6 व्हाट इस जिहाद? लैंग्वेि जस्टल वहंडसव टे रर फाइट, रायटसव, 20 फरर्री, 2008

7 पाइप्स डी (2003) वमजलटैं ट इस्लाम रीचेि अमेररका, डब्ल्यूडब्ल्यू नॉटव न, न्यूयाकव , पृ 258-68

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

बड़ी सं ख्या में धमाांध इस्लामी समूह वर्ियोन्माद में दार्ा करते हैं वक कावफरों और वर्शेष रूप से पजिमी दे शों और पजिम की ओर
झुकार् रखने र्ाले अथर्ा पजिम को सहयोग करने र्ाले मुस्लस्लम व्यवियों, समूहों र् सरकारों के वर्रुद् उनकी वहंसात्मक कारवर्ाई
जिहाद है। र्े प्रायः कु रआन की आयतों और रसूल मुहम्मद के िीर्न के उदाहरणों का सं दभव दे कर इस दार्े को न्यायोजचत ठहराते
हैं। स्पष्ट है वक जिहाद के इस चरमपं थी उपदे श के बारे में बड़ी असहमवत र् नकार है। यह चाहे जिहाद को लेकर भ्ांवत हो या कु छ
और, पर इस बात को नकारा नहीं िा सकता है वक वहंसक इस्लामी समूह अपनी इस मान्यता के साथ वक र्े अल्लाह के उद्दे श्य से
लड़ रहे हैं, आने र्ाले र्षों में मानर् िीर्न र् समाि की अपार िवत र् वर्नाश करते हुए वनदोष पुरुषों, मवहलाओं र् बच्चों के
वर्रुद् वहंसा र् आतं कर्ाद करते रखेंग।े इस पर कोई वर्र्ाद नहीं है वक मुसलमान अब वर्श्व के सभी राष्टरो ं में उल्लेखनीय र् स्थावपत
समूह हैं।

उच्च िन्मदर के कारण िनसं ख्या वर्स्फोट से िूझ रहे मुस्लस्लम दे शों से पजिम की ओर मुसलमानों की भीड़ के प्रर्ेश एर्ं
र्हां के मूल वनर्ाजसयों की घटती िनसं ख्या को दे खते हुए र्तवमान िनसांस्लख्यकीय रूझान सं के त देते हैं वक इस सदी के मध्य तक
अनेक पजिम दे शों में मुसलमान प्रमुख धावमवक समूह बन िाएं गे। यवद मुसलमानों में प्रबल वहंसक धमाांधता का ज्वार ऐसे ही बना
रहा, तो र्ह वदन बहुत दूर नहीं है वक िब सवहष्णु र् सभ्य वर्श्व की स्लस्थरता खतरे में पड़ िाएगी। सं सार के आधु वनकतार्ादी,
धमववनरपेि-लोकतांविक र् प्रगवतशील भवर्ष्य की स्लस्थरता सुरजित रखने के जलये राष्टरो ं को एक होकर एर्ं सैन्य र् र्ैचाररक दोनों
साधनों का प्रयोग करते हुए इन धमाांध इस्लामी समूहों की वर्चारधारा र् गवतवर्जधयों से वनपटना चावहए।

जिस प्रकार वहंसक इस्लावमयों ने सं सार में चारों ओर वर्ध्वं स मचा रखा है और र्े सर्ावजधक वर्ध्वं स इस्लामी दे शों में ही
कर रहे हैं, तो मुस्लस्लमों र् अ-मुस्लस्लमों दोनों के जलये इन वर्नाशकारी इस्लावमयों से वनपटने के जलये प्रभार्ी प्रवत-उपाय तैयार करने
हेतु जिहाद का जिहाद को लेकर ‘‘र्ास्तवर्क अथव’’ और जिहावदयों के मुख्य उद्दे श्य को समझना महत्वपूणव है। यह समझे वबना वक
जिहाद र्ास्तर् में क्ा है, मुसलमानों में जिहाद के नाम पर वहंसा की बढ़ती प्रर्ृवत् की रोकथाम के जलये प्रशासन र् लोगों द्वारा
प्रभार्शाली उपाय ढूं ढ़ पाना असं भर् होगा।

यह पुस्तक इस वर्षय में बताने का छोटा सा प्रयास है वक जिहाद क्ा है। यह पुस्तक रसूल मुहम्मद के िीर्न को पढ़े गी,
क्ोंवक मुसलमानों की पवर्ि पुस्तक कु रआन में िो आयतें दी गयी हैं , र्ो उसे ही इस्लामी ईश्वर (अल्लाह) से उतरोत्र प्राि हुईं।
इस पुस्तक में परीिण वकया िाएगा वक कब और वकन पररस्लस्थवतयों में अल्लाह ने इस्लामी जसद्ांतों में जिहाद को सस्लम्मजलत वकया।
यह कु रआन, जिहाद के प्रामाजणक पैगम्बरी (सुन्नती) जसद्ांत एर्ं रसूल मुहम्मद के मूल आत्मर्ृत्ों के आधार पर बतायेगी वक इस्लाम
के रसूल ने िब अपने िीर्न अंवतम तेईस र्षों (610-632 ईसर्ी) में इस्लामी मिहब की स्थापना की थी, तो कै से उसने जिहाद
के जसद्ांत को वक्याजन्वत वकया था। इस प्रकार यह जिहाद के मिहबी आधार र् सुन्नती प्रवतदशव (मॉडल) को समझने के पिात यह
परीिण करेगी वक वकस प्रकार मुसलमानों द्वारा इस्लामी प्रभुत्व काल में जिहाद का यह प्रोटोटाइवपकल मॉडल अवर्रत और वनरंतर
बनाये रखा गया।

इससे पूर्व यह ध्यान दे ना महत्वपूणव वक इस्लाम के िन्म के समय अल्लाह के जिहाद सं बं धी जसद्ांत को चलन में लाने में
रसूल मुहम्मद ने जिहादी कारवर्ाइयों के तीन बड़े मॉडल स्थावपत वकये थे।

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

1. इस्लाम के प्रसार के जलये वहंसा का प्रयोग


2. इस्लामी साम्राज्यर्ाद
3. इस्लामी दासप्रथा

इस पुस्तक के जभन्न-जभन्न अध्यायों में जिहाद की इन तीन परंपराओं पर वर्चार वकया िाएगा।

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अध्याय दो

इस्लाम की आधारभूत मान्यताएं

सा रांश रूप में नीचे दी गयीं इस्लाम की आधारभूत मान्यताओं पर दृवष्टपात करने से इस पुस्तक की वर्षय-र्स्तु समझने में
सहायता वमलेगी। मुसलमान मानते हैं वक इस्लाम अिाहवमक धारा का अंवतम एके श्वरर्ादी धमव है। िैसा वक मुसलमानों
द्वारा दार्ा वकया िाता है, इस्लामी ईश्वर अल्लाह र्ही ईश्वर है, िो यहवदयों और ईसाइयों का है और जिसने आदम और हव्वा को
बनाने के बाद मानर् िावत तक अपना पथ-प्रदशवन पहुंचाने के जलये 1,24,000 सं देशर्ाहक (पैगम्बर) भेिे थे। पैगम्बरों के
अनुक्म में आदम पहला पैगम्बर था और मुहम्मद अंवतम। मुहम्मद अंवतम पैगम्बर था और सभी पैगम्बरों में सर्वश्रेष्ठ था। र्ह
सर्वकाजलक रूप से मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ र् पूणव था। यह अंवतम र् सर्वश्रेष्ठ पैगम्बर अल्लाह के पूणीकृ त, अंवतम ईश्वरीय सं दे श कु रआन
को भी लेकर आया तथा अल्लाह द्वारा अंवतम बनाये गये मिहब इस्लाम की स्थापना की। अल्लाह द्वारा इससे पूर्व भेिे गये सं दे श
र् धमव (िैसे वक यहदी र् ईसाई धमवग्रंथ र् धमव) इस अंवतम मिहब इस्लाम के आगे अपूणव र् वनम्नकोवट के हैं। अल्लाह ने स्वयं
कु रआन में बल दे कर कहा है वक उसने अन्य सभी धमों को समाि करने और उनके स्थान पर नये मिहब की स्थापना के जलये
इस्लाम मिहब भेिा हैः ‘उस (अल्लाह) ने अपने सं देश और (एकमाि) सत्य धमव के साथ अपना पैगम्बर (मुहम्मद) भेिा, जिससे
वक र्ह अन्य सभी धमों पर इस्लाम का बोलबाला कर सके [कु रआन 48:28]।’8

इस्लाम कहता है वक समय बीतने के साथ यहदी धमवग्रंथ यहवदयों द्वारा वर्कृ त अथर्ा पररर्वतवत कर वदये गये थे [कु रआन
2:59], इसजलये इन धमवग्रंथों को वनरस्त वकया िाता है और इन्ें त्याग वदया िाना चावहए। यद्यवप इस्लाम में ईसाई धमवग्रंथों को
नीचा तो बताया गया है, वकं तु इसका मूल्यांकन तवनक अच्छा वकया गया है, यह अभी भी मान्य है। कु रआन कहती है वक ईसाइयों
ने अपने मूल ग्रंथ के कु छ अंश को वर्स्मृत कर वदया है [कु रआन 5:14] और यह भी कहती है वक ईसाइयों ने अपने मूल ग्रंथों की
जशिाओं को ठीक से नहीं समझा है और गलत ढंग से ईसामसीह को ईश्वर का बेटा मान जलया है [कु रआन 5:72; 112:2;
19:34-35; 4:171]। कु रआन यह भी कहती है वक ईसाई समुदाय के लोग गलत ढं ग से ईसामसीह को तीन ईश्वरों अथर्ा विदेर्ों
में से एक बताते हैं [कु रआन 5:73; 4:171]। यद्यवप ईसाई अपने धमव का पालन गलत ढं ग से करते हैं, वकं तु अल्लाह ने ईसाइयत
को एकसाथ वनरस्त नहीं वकया, अवपतु अल्लाह को आशा है वक ईसाई धमव अंततः इस्लाम द्वारा पीछे छोड़ वदया िाएगा [कु रआन
48:28]। वर्जचि बात है वक यहवदयों ने तौरात (ओल्ड टे स्टामेंट) को वकस प्रकार दूवषत वकया है अथर्ा ईसाइयों ने अपने मूल ग्रंथ

8 प्रसं गों में कु रआनी सं दभव कोष्ठक में वदये गये हैं। कु रआन 48:28 का अथव है 48र्ें अध्याय की 28र्ीं आयत। भाषाई स्पष्टता के जलये कु रआन
के तीन सर्ावजधक स्वीकायव अनुर्ाद, िो दजिणी कै लीफोवनवया वर्श्ववर्द्यालय (http://www.usc.edu/dept/MSA/quran/) द्वारा वकये
गये हैं, जलये गये हैं।

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

के अंशों को कै से वर्स्मृत कर वदया है या र्े बाइवबल (न्यू टे स्टामेंट) को गलत ढं ग से कै से समझ रहे हैं , इसकी िानकारी दे कर उन
तत्वों र् भागों की िुवटयां दूर करर्ाने के जलये वकसी को न भेिकर अल्लाह ने रसूल मुहम्मद को शीषव पर वबठाकर एक वनतांत जभन्न
मिहब ही धरती पर उतार वदया।

इस्लाम दो आधारभूत तत्वों पर आधाररत है: पहला, अल्लाह की र्ाणी, िो वक कु रआन में है, और दूसरा रसूल की
परंपराएं , जिसे हदीस या सुन्नत भी कहा िाता है। अल्लाह के अपने शब्दों में मानर् िावत के जलये सं देश अल्लाह की र्ाणी है और
यह अरबी कु रआन में अपररर्वतवत रूप से समावहत है। 610 से 632 के बीच मुहम्मद द्वारा उपदे श दे ने और इस्लामी जशिा के प्रसार
के व्यर्साय के समय अल्लाह ने टुकड़े-टुकड़े में अपने दूत फररश्ता जिबराइल के माध्यम से अपने सं देश भेि।े मुहम्मद सं भर्तः
अनपढ़ था। िब भी जिबराइल अल्लाह की आयतों को लेकर आता, तो र्ह आयतें बोल-बोलकर मुहम्मद को तब तक सुनाता, िब
तक वक र्ह उन आयतों को शब्दशः रट न लेता। मुहम्मद वफर उस आयत को अपने पढ़े -जलखे अनुयावययों से जलखर्ाता था,
जिससे वक अल्लाह के शब्द मूल रूप में बने रहें। र्ह र्ो आयतें अपने वप्रय अनुयावययों को रटर्ाता था। मुहम्मद की मृत्यु के पिात
र्ो आयतें सं कजलत की गयीं, जिसे कु रआन के रूप में िाना िाता है। इसजलये कु रआन की सामग्री इस्लामी ईश्वर अल्लाह के
अिरश: र्ो शब्द हैं, िो इस सं सार में मानर् िीर्न को ऐसा मागव वदखाने के जलये भेिे गये हैं, जिस मागव पर अल्लाह मानर् को ले
िाना चाहता है। ऐसा मागव, जिस पर चलकर मोवमन मृत्यु के बाद अल्लाह के िन्नत को प्राि करने और र्हां कभी न समाि होने
र्ाला माल-पुरस्कार प्राि करने योग्य बनेंग।े

दूसरा तत्व िो र्ास्तर् में इस्लामी पं थ का दूसरा आधा पि है, र्ह रसूल मुहम्मद के कथन, कायव, कारवर्ाइयां अथावत
रसूली परंपराएं हैं, जिन्ें एकसाथ सुन्नत या हदीस कहा िाता है। चूं वक अल्लाह ने िो इतने सारे पैग म्बर भेिे थे, उनमें मुहम्मद
मुसलमानों और र्ास्तर् में सभी मनुष्यों के जलये सर्ोत्म एर्ं धरती पर आने र्ाले मानर् िीर्न में सबसे उच्च पूणवता र्ाला था,
इसजलये यह वनजित कर वदया गया वक िन्नत में अल्लाह का पुरस्कार प्राि करना है , तो पूणव मानर् रसूल के पदजचह्नों पर चलकर
इस्लामी िीर्न ही िीना पड़ेगा। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार िो मुसलमान अपना िीर्न ठीक र्ैसे ही ही िीता है िैसा रसूल
मुहम्मद िीता था, तो र्ह कभी नकव (िहन्नुम) का स्वाद नहीं चखेगा और सीधे िन्नत में प्रर्ेश करेगा। परंतु सच यह भी है वक
वकसी मुसलमान के जलये मुहम्मद के िीर्न का पूणव अनुकरण करना लगभग असं भर् है। अतः अजधकांश मुसलमान कु छ समय
तक इस्लामी िहन्नुम के भयानक आग में भूने िाएं गे। िहन्नुम में उनके रहने की अर्जध उनके द्वारा िीर्न में वकये गये कायों के
पररमाण पर वनभवर करेगा। के र्ल मुसलमानों का एक समूह ऐसा है, िो िहन्नुम की आग में भूने िाने से बचकर सीधे िन्नत में
प्रर्ेश करेगा और र्ह समूह उन मुसलमानों का है, िो अल्लाह के मागव में लड़ते हुए शहीद के रूप में मारा िाएगा अथावत िो
जिहाद या पवर्ि िं ग में भाग लेगा कु रआन [9:111]। (अध्याय तीन में और दे खें)। इसजलये , मुहम्मद ने अपने िीर्न काल में जिन
िं गों की अगुर्ाई की थी अथर्ा उसने जिन िं गों को लड़ने का आदेश वदया था, उनमें मारे गये सैकड़ों मुसलमान, उसके बाद की
सवदयों में जिहाद लड़ते हुए मारे गये मुसलमान और र्तवमान में जिहाद करते हुए मारे िा रहे मुसलमान अथर्ा भवर्ष्य में जिहाद
करते हुए मारे िाने र्ाले मुसलमान सीधे इस्लामी िन्नत में प्रर्ेश करेंगे। जिन मुसलमानों की सामान्य अथर्ा प्राकृ वतक मृत्यु होती
है, उन्ें सं सार के अंत अथावत कयामत के उस वदन तक की प्रतीिा करनी होगी, िब अल्लाह वनणवय सुनायेगा वक िन्नत में प्रर्ेश
करने से पूर्व उन्ें वकतने वदन िहन्नुम में वबताना पड़ेगा।

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

इसजलये, मुसलमानों में रसूल मुहम्मद के िीर्न, उसकी कारवर्ाइयों, कायों र् कथनों का अिरशः अनुकरण करने की
सार्वभौवमक इच्छा होती है। मुसलमानों के िीर्न का एक और र्ांछनीय पि यह होता है वक र्ो कावफरों के वर्रुद् जिहाद करके
और वर्शेष रूप से अ-मुस्लस्लम (गैर-मुस्लस्लम) के वनयं िण र्ाले भूभाग को छीनकर इस्लाम को वर्स्तार देने के जलये इस्लामी पवर्ि
िं ग में लड़कर शहीद होने की इच्छा पालता है। मदीना में मुसलमानों के आरंजभक समुदाय ने रसूल मुहम्मद के मागवदशवन में जिहाद
अथावत िं ग में लड़ने एर्ं उन िं गों से प्राि अल्लाह-स्वीकृ त लूट का माल प्राि करने के व्यर्साय में अपने को पूणत
व ः समवपवत वकया
था (देखें अध्याय तीन)।

अपने पैगम्बरी व्यर्साय के तेईस र्षों में मुहम्मद कजथत अल्लाह के वनकट सम्पकव में था। कजथत अल्लाह उसे सभी
पररस्लस्थवतयों में, चाहे िं ग की कवठनाइयां हों अथर्ा बं वदयों के साथ व्यर्हार हो, पाररर्ाररक वर्र्ाद हों या कु छ और, उसके िीर्न
के लगभग प्रत्येक चरण में उसको मागवदशवन दे ता था। र्ह रसूल की कारवर्ाइयों र् कायों पर सतता् दृवष्ट रखता था। िब कभी
मुहम्मद गलती करता, तो अल्लाह र्हां उसे टोकने, ठीक करने अथर्ा मागदशवन दे ने के जलये खड़ा रहता। अतः पैगम्बरी व्यर्साय
के समय मुहम्मद द्वारा कही गयी प्रत्येक बात या उसके द्वारा वकया गया प्रत्येक कायव पर अल्लाह द्वारा प्रेररत अथर्ा ईश्वरीय प्रकृ वत
का ठप्पा लगा वदया िाता है।

तद्नुसार, प्रजसद् वर्द्वान र् सही मुस्लस्लम (रसूली परंपरा अथावत हदीस के सं ग्रह) का अनुर्ादक अब्दुल हावमद जसद्दीकी
प्रमुखता से कहता है वक सुन्नत ईश्वरीय स्रोत से आया है: ‘...कु रआन की जशिाएं और सुन्नत का स्रोत कोई मानर् नहीं है, अवपतु र्ो
सब अल्लाह द्वारा प्रेररत हैं और इस कारण सभी भौवतक या सांसाररक वर्चारों से परे हैं...।’9

अतः रसूल की सुन्नत इस्लामी पं थ का ऐसा अ-ग्रंथीय र् अद्व -ईश्वरीय घटक है, जिसका पालन मुसलमान को सूक्ष्मता से
करना होता है। मुसलमानों के जलये रसूल मुहम्मद के िीर्न का अनुकरण करना सैद्ांवतक फल भर नहीं है , अवपतु अल्लाह ने
बारंबार मुसलमानों को कु रआन के वनदे शों का अनुपालन करने के साथ ही रसूल का अनुसरण करने का भी आदे श वदया है। कु रआन
बारंबार कहती हैः अल्लाह की आज्ञा (िो वक कु रआन है) और उसके रसूल (िो वक सुन्नत है) का पालन करो [कु रआन 3:32;
4:13, 59, 69; 5:92; 8:1,20,46; 9:71; 24:47, 51-52, 54, 56; 33:33; 47:33; 49:14; 58:13; 64:12]। इस
प्रकार कु रआन के आदे श र् बोध एर्ं सुन्नत दोनों लगभग समान रूप से इस्लामी पं थ के महत्वपूणव आधे-आधे भाग का वनमावण करते
हैं। तथावप, इस्लाम के कु छ आधुवनक पिकार या तो अल्लाह के बारंबार चेताने र्ाले सं दे श की अर्ज्ञा करते हुए अथर्ा
अज्ञानतार्श सुन्नत को इस्लाम से पृथक करना चाहते हैं, क्ोंवक उसके कु छ अर्यर् आधुवनक वर्र्ेक में अस्वीकायव हैं। र्े कु रआन
को इस्लाम का एकमाि आधार बनाना चाहते हैं। यद्यवप मुहम्मद की मृत्यु के लगभग 200 र्षव पिात उच्च इस्लामी वर्द्वानों द्वारा
सं कजलत की गयी सुन्नत कु रआन के सं दे शों से अजधकाजधक मेल खाती है और सवदयों से इस्लाम के डॉक्ट्रों (उलेमाओं) द्वारा

9 सही मुस्लस्लम बाइ इमाम मुस्लस्लम, जसद्दीकी एएच द्वारा अनूवदत, वकताब भर्न, नई वदल्ली, 2004 सं स्करण, अंक 1, पृष्ठ. 210-11, वटप्पणी
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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

स्वीकार की िाती है। शररया अथर्ा इस्लामी पवर्ि कानून इस्लाम का एक और अवर्भाज्य अंग है। शररया कानून कोई पृथक
अर्यर् नहीं हैं, र्ो कु रआन र् सुन्नत से ही वनकले हुए हैं।

यद्यवप मुहम्मद ने अल्लाह की आयतों को टुकड़ों-टुकड़ों में जलखर्ाया था और अपने अनेक अनुयावययों को रटर्ाया था,
परंतु र्ह उन आयतों को पुस्तक के रूप में सं कजलत नहीं कर सका था। आि जिस कु रआन को हम िानते हैं , र्ह तीसरे खलीफा
उस्मान के शासन (644-656 ईसर्ी) में सं कजलत की गयी थी। ऐसे ही अल्लाह बारंबार मुसलमानों से रसूल का अनुसरण करने
को भले ही कहता है, परंतु मुहम्मद ने अपनी कारवर्ाइयों र् कायों का वर्र्रण देने र्ाली आत्मकथा जलखने पर ध्यान नहीं वदया
(अथर्ा दूसरों से नहीं जलखर्ाया) जिससे वक मुसलमान कयामत के वदन तक उसका अनुसरण कर सकें । स्पष्ट है वक इस्लामी ईश्वर
मुहम्मद को स्मरण कराना भूल गया वक र्ह उसकी आयतों को एक पुस्तक (कु रआन) के रूप में एकवित करे अथर्ा अपनी
आत्मकथा (जिसे सुन्नत कहते हैं) जलख डाले। अथावत अल्लाह मुहम्मद को यह बताना भूल गया वक इस्लामी पं थ के जिन दो घटकों
कु रआन र् सुन्नत का पालन मुसलमानों को कठोरता से करना है, उन्ें जलख डाले। मुहम्मद की मृत्यु के पिात कु छ बुवद्मान
मुसलमानों ने अल्लाह और उसके रसूल की इस कमी को ताड़ जलया। उनको लगा वक इस्लामी पं थ को अपररर्तवनीय एर्ं मूल
स्वरूप में रखने के जलये अल्लाह की आयतों और सुन्नत का व्यर्स्लस्थत सं गठन आर्श्यक होगा। क्ोंवक जिस प्रकार अल्लाह के पहले
के ग्रंथों गॉस्पेल और तोरात में अशुवद् आयी थी, र्ैसी इसमें न हो। इसके जलये उन्ोंने मुहम्मद की मृत्यु के लगभग दो दशक पिात
कु रआन को सं ग्रहीत वकया।

प्रखर इस्लामी वर्द्वानों की दो शाखाओं ने इस्लाम को सही पथ पर रखने के जलये पृथक-पृथक दो वर्शाल पररयोिनाओं
पर कायव प्रारंभ वकया। पहली पररयोिना सुन्नत एकि करने की थी। उसके अंतगवत लगभग 750 ईसर्ी में मुस्लस्लम वर्द्वान इब्न
इस्हाक ने रसूल के पहले आत्मर्ृत् सं कलन कायव आरंभ वकया। तत्पिाता् अनेक प्रख्यात मुस्लस्लम वर्द्वान र् शोधकताव मुहम्मद के
िीर्न पर कष्टसाध्य र् कु शल शोध करने के जलये इस िेि में उतरे। उन्ोंने हेिाि से सीररया तक बहुत से लोगों का सािात्कार
करते हुए समूचे अरब, फारस, वमस्र (इजिप्ट) तक छान मारा और रसूल के हिारों कथनों, कायों र् कारवर्ाइयों का वर्र्रण एकि
वकया। ये हदीस के छह उत्कृ ष्ट सं कलनकताव थे और इनके सं कलन को प्रामाजणक माना गयाः

1. अल-बुखारी (810-870) ने 7275 प्रामाजणक हदीसों का सं ग्रह वकया, जिसे सही बुखारी कहा गया।
2. मुस्लस्लम वबन अल-हज़्िाि, बुखारी के जशष्य (821-875) ने 9200 प्रामाजणक हदीस सं ग्रह वकये, जिसे सही मुस्लस्लम
कहा गया।
3. अबू दाऊद (817-888) ने 4800 प्रामाजणक हदीस सं ग्रहीत वकये, जिसे सुन्नत अबू दाऊद कहा गया।
4. अल-वतरवमिी (मृत्यु 892)।
5. इब्न मािाह (मृत्यु 886)।
6. ईमाम नसाई (बी. 215 वहिरी)।

सुन्नत के सं कलन के चरण में मेधा-सम्पन्न इस्लामी वर्द्वानों की एक और शाखा इस िेि में आयी। उसने इस्लामी समाि के
जलये सुपररभावषत कानूनों के गठन के जलये कु रआनी आयतों और रसूली सुन्नत की सही व्याख्या पर ध्यान कें वद्रत वकया। इस िेि

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

को इस्लामी न्यायशास्त्र (वफक़्ह) के रूप में िाना िाता है। इस िेि की चार प्रमुख शाखाएं हैं, जिन्ें लब्धप्रवतवष्ठत मुस्लस्लम वर्द्वानों
द्वारा आरंभ वकया गया है। ये हैंः

1. हनफी शाखा, इमाम अबू हनीफा (699-767) द्वारा स्थावपत, व्यापक रूप से दजिण एजशया, मध्य एजशया, तुकी,
बाल्कान, चीन और इजिप्ट के मुसलमानों में प्रचजलत।
2. मजलकी शाखा, इमाम मजलक वबन अनस (715-795) द्वारा स्थावपत, व्यापक रूप से उत्री र् पजिमी अफ्रीका र् अनेक
अरब राज्यों के मुसलमानों में प्रचजलत।
3. शाफी शाखा, इमाम अल-शाफी (717-795) द्वारा स्थावपत, व्यापक रूप से दजिणपूर्व एजशया, इजिप्ट, सोमाजलया,
इरीवटर या र् यमन के मुसलमानों में प्रचजलत।
4. हंबाली शाखा, इमाम अहमद इब्न हंबाल (780-855) द्वारा स्थावपत, सऊदी अरब र् अन्य अरब दे शों में प्रचजलत।

प्रजसद् इवतहासकार इब्न खलदुन के अनुसार, वफक़्ह इस्लाम में आर्श्यक (र्ाजिब), र्जिवत (हराम), अनुशंजसत (मं दूब),
अस्वीकायव (मकरुख) अथर्ा के र्ल अनुमन्य (मुबाह) से सं बजधत कानूनों के पालन से बं धे हुए लोगों के कायव -व्यर्हार का ज्ञान
है।10 इस्लामी न्यायशास्त्र की चार शाखाओं के सं स्थापकों र् अनुयावययों ने इस्लामी वर्जध र् बोध के सारसं ग्रह की रचना के जलये
तीन सवदयों से अजधक समय तक व्यापक शोध वकया। इस्लामी वर्जधयों र् बोध को सामूवहक रूप से इस्लामी पवर्ि वर्जधयों अथर्ा
शररया के रूप में िाना िाता है। कु छ अपर्ादों को छोड़कर, इस्लामी वर्जधयों की इन शाखाओं में कु छ छोटे -मोटे वर्र्रणों को लेकर
ही मत-जभन्नता है, परंतु र्ास्तवर्कता यह भी है वक र्ो मत-जभन्नताएं तत्वतः बहुत कम हैं।

इस्लामी ईश्वर अल्लाह ने इस्लाम को समस्त मानर्िावत के िीर्न के सम्पूणव र् अंवतम सं वहता के रूप में प्रस्तुत वकया था
[कु रआन 5:3]। दूसरे शब्दों में कहें, तो इस्लाम अल्लाह द्वारा प्रकट इच्छा के अनुक्म में मानर्िावत के िीर्न िीने की वर्स्तृत
वनयमार्ली है। इसजलये, इस्लाम के पास मानर् िीर्न की प्रत्येक सं भावर्त घटना, स्लस्थवत और कायव के जलये समाधान अथर्ा
मागवदजशवका है। मनुष्य द्वारा िीर्न की प्रत्येक स्लस्थवत में अनुपालन के जलये अल्लाह का कानून, प्रोटोकॉल र् बोध शररया के अंतगवत
आता है। शररया में िीर्न की प्रत्येक स्लस्थवत, चाहे भोिन हो, अथर्ा शौच, स्नान, यौन-सं बं ध, इबादत, िं ग या अन्य कोई
पररस्लस्थवत, सब आता है। शररया में मुसलमान के िीर्न का प्रत्येक पि आता हैः आध्याजत्मक, सामाजिक, वर्त्ीय र् रािनीवतक।
इस्लाम में आध्याजत्मक (धावमवक) र् सांसाररक पिों के मध्य पृथक्करण नहीं है। इस्लाम मानर्िावत की सांसाररक समस्याओं का
आल-इन-र्न समाधान है। इसजलये, तुकी के वर्द्वान डॉ. सेदात लैजसनर इस बात की पुवष्ट करते हैं वक इस्लाम के र्ल एक मिहब
नहीं है, अवपतु ‘यह एक रािनीवतक, आजथवक र् सांस्कृवतक प्रणाली का नाम भी है।’11 अलीगढ़ मुस्लस्लम वर्श्ववर्द्यालय के प्रोफेसर
एम. उमरुद्दीन इस्लाम और रािनीवत के बीच अवर्भाज्य सं बं ध दे खते हैं । र्ह कहते हैं वक ‘इस्लाम अपने सामान्य शास्लब्दक भार् में

10 लेर्ी आर (1957) द सोशल स्टर क्चर ऑफ इस्लाम, कै स्लिि यूनीसवर्वटी प्रेस, यूके, पृष्ठ. 150

11 लैजसनर एस, द जसवर्लाइिेशनल वडफरेंसेि ऐि ए कं डीशन फॉर तुवकव श फु ल-मेंबरजशप टू द ईयू; तुवकव श र्ीकली, 9 फरर्री 2005

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

एक धमव भर नहीं है। यह वर्चार पूणवतया वर्दे शी है वक धमव का सामाजिक आचरण से कोई सं बं ध नहीं होता है और यह के र्ल
मनुष्य के अंतस से सं बं जधत होता है तथा यूं कहें वक यह वर्चार इस्लाम का वर्रोधी है।’ र्ह कहते हैं वक इस्लाम का धमवशास्त्र
सं बं धी बोध मानर् िीर्न के सभी पिों को स्पशव करता है और ‘यह एक सर्वव्यापी प्रणाली, िीर्न की सम्पूणव सं वहता है तथा मानर्
व्यर्हारों के प्रत्येक पि र् गवतवर्जधयों के प्रत्येक चरण को समावहत र् प्रभावर्त करता है।’12 कु ल वमलाकर कु रआन और सुन्नत
इस्लाम के प्राथवमक घटक हैं। शररया वर्जधयां इन्ीं दो प्राथवमक स्रोतों से वनकली हैं। इस्लामी पं थ के पूणव आधार का गठन
कु रआन, सुन्नत और शररया वमलकर करते हैं। ये मुसलमानों के िीर्न र् उनके समाि के जलये सर्वकाजलक, सर्वस्थावनक, अवर्भाज्य
र् पूणव मागवदजशवका हैं।

12 उमरुद्दीन एम (2003) द इजथकल वफलॉसफी आफ अलक-ग़िाली, आदम पस्लब्लशसव एं ड वडस्टर ीब्यूटसव, न्यू देल्ही, पृष्ठ. 307

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अध्याय 3

मुहम्मद का िीर्न और जिहाद का िन्म

“मैं आतं क से वर्िेता बनाया गया हं।’’ -- रसूल मुहम्मद, बुखारी 4:52:220

“मुहम्मद (मानर्) चररि का आदशव मानक है।’’ -- अल्लाह, कु रआन 68:4, 33:21,

अ नेक मुसलमान ऐसा मानते हैं वक अल्लाह द्वारा मुहम्मद की रचना िह्ांड वनवमवत करने से पूर्व की गयी थी और मानर् िावत
को अपने अंवतम पं थ का उपदेश दे ने के जलये उसे सातर्ीं सदी में उतारना वनजित वकया था। व्यापक रूप से प्रसाररत एक
सुन्नत के अनुसार, िब पूछा गया वक ’सभी र्स्तुओं को बनाने से पूर्व अल्लाह ने सबसे पहले क्ा बनाया’, तो रसूल मुहम्मद ने
उत्र वदया, ’अल्लाह ने िो सबसे पहली कृ वत बनायी, र्ह उसके प्रकाश से बना तुम्हारा रसूल था...।’13 रसूल मुहम्मद का िीर्न,
िो सर्वकाजलक रूप से मानर् िीर्न (इं सान-ए-कावमल) के सर्ावजधक सं भर् पूणत
व ा र्ाला है, सद्गुणों से पररपूणव एर्ं वकसी भी प्रकार
की मजलनता से परे है। मनुष्य के सभी अच्छे लिण, चाहे र्ह यौवनक नैवतकता का लिण हो अथर्ा दयालुता का, उसमें
यथासं भर् उच्च अंश में थे, िबवक बुरे लिण या तो उसमें थे ही नहीं और यवद थे भी, तो यथान्यून अंश में थे। र्ह िुवटहीन र्
पापहीन था, क्ोंवक अल्लाह ने स्वयं उसे पवर्ि बनाया थाः ‘क्ा हमने (अल्लाह) तुम्हारे (मुहम्मद) सीने को खोल नहीं वदया और
तुम्हारे भीतर से बोझ (पाप) नहीं उतार वदया’ [कु रआन 94:1-2]। र्ह अत्यं त करुणामय, सच्चा, न्यायोजचत, अत्यं त दयार्ान,
अत्यं त उदार एर्ं अत्यं त सत्यवनष्ठ था, िबवक उसमें क्ू रता र् बबवरता लेशमाि भी नहीं थी। अल्लाह ने स्वयं यह कहते हुए इस बात
की पुवष्ट की है, ‘और हमने (अल्लाह) तुम्हें (मुहम्मद) एक व्यवि भर बनाकर नहीं भेिा है, अवपतु तुम्हें सं सार के जलये दया के रूप
मे भेिा है’ [कु रआन 21:107]।

रसूल मुहम्मद स्वयं यह कहते हुए अपने पास पूणव नैवतक चररि होने की डींगे हांकता था वक, ‘‘मैं नैवतकता को पूणव करने के जलये
भेिा गया हं।’’ महान इस्लामी वर्द्वान र् पुनरुत्थानर्ादी इमाम अल-गिाली (मृत्यु 1111), जिसे मुहम्मद के बाद सबसे बड़ा मुस्लस्लम
वर्द्वान माना िाता है, ‘रसूल को िीर्न के सभी पिों में आदशव एर्ं उत्कृ ष्टता में सम्पूणव पुरुष मानता था।’ रसूल के व्यवित्व के
लिणों की महानता के वर्षय में अल-गिाली ने जलखाः रसूल उच्चतम नैवतक लिण र् उदार चररि प्रदान करने के जलये कृ तज्ञता
प्रकट करते हुए अल्लाह की इबादत सदैर् पूरी वर्नम्रता से करते थे। र्ह मनुष्यों में वर्नम्रता के सागर, महानतम, सबसे साहसी,

13 हद्दाद िीएफ, द फस्टव जथंग दैट अल्लाह वक्येटेड र्ाि माय नूर, जलवर्ं ग इस्लाम र्ेबसाइट;
http://www.livingislam.org/fiqhi/fiqha_e30.html

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

सबसे न्यायवप्रय और सबसे पवर्ि व्यवि थे... रसूल ने एक मुि अथर्ा उत्पीवड़त नागररक के रूप में, एक शौहर के रूप में, एक
मुजखया के रूप में और एक वर्िेता के रूप में िो उच्च मानक स्थावपत वकये , उनसे पूर्व अथर्ा पिात कोई मनुष्य र्हां तक नहीं पहुंच
सका।14

इस प्रकार रसूल मुहम्मद मानर् िावत के प्रवत अच्छाई, न्याय और दया की सबसे महान अनुकृवत था। उसने अपने िीर्न
में िो वकया, र्ह सर्ोत्म था; उसने मुस्लस्लमों अथर्ा अ-मुस्लस्लमों से िो व्यर्हार वकया, र्ह सबसे उजचत और सर्ावजधक
दयालुताभरा था। इस अध्याय में रसूल मुहम्मद के िीर्न की सं जिि पड़ताल की िाएगी, वर्शेष रूप से अरब के मूवतवपूिक, यहदी
र् ईसाई आवद उन अ-मुस्लस्लमों के साथ उसके व्यर्हार को परखा िाएगा, जिनसे उसका िीर्न में आमना-सामना होता था। बार-
बार यह बताने की आर्श्यकता नहीं है वक मुसलमान वनवर्वर्ाद रूप से मानते हैं मुहम्मद ने उन अ-मुस्लस्लमों के साथ िो व्यर्हार
वकया था, र्ह प्रत्येक पि में पूणत
व ः उजचत, न्यायप्रद र् दयालुताभरा था।

इस अध्याय में मुहम्मद द्वारा इस्लामी पं थ की स्थापना के क्म में अल्लाह द्वारा प्रकट वकये गये इस्लाम के जिहाद के
जसद्ांत का वनर्वचन वर्स्तार से वकया िाएगा। इस अध्याय को पढ़ने के पिात पाठक अल्लाह द्वारा बताये गये जिहाद का सही अथव
समझ सकें गे और व्यर्हाररक ढं ग से उस जिहाद के मॉडल को समझ सकें गे, जिसे रसूल मुहम्मद ने अल्लाह के आदेश के सम्पूणव
अनुपालन में स्थावपत वकया था।

िन्म र् आरंजभक िीर्न (570-610 ईसर्ी)


इस्लाम के रसूल का िन्म लगभग 570 ईसर्ी (सी. 567-72) में अरबी रेवगस्तान स्लस्थत मक्का नगर के एक कु रैश
पररर्ार में हुआ। कु रैश उस नगर की मुख्य िनिावत (कबीला) थी। रेवगस्तानी घाटी में मक्का एक रणनीवतक स्थान पर था, िहां से
होकर दो बड़े व्यापाररक मागव िाते थे। इन दो व्यापाररक मागों में एक वहम्यार को वफजलस्तीन और सीररया से िोड़ता था, िबवक
दूसरा यमन, फारस की खाड़ी र् ईराक से िुड़ता था। इस रणनीवतक स्लस्थवत के कारण मक्का वहंद महासागर (पूर्ी अफ्रीका समेत)
और भूमध्य सागर के बीच व्यापार-कारर्ां का बड़ा पारगमन वबं दु था। मक्का से होकर इजिप्ट, सीररयाई, रोमन, बैिेंटाइन, फारस र्
भारतीय कें द्रों तक बड़े पररमाण में व्यापार होता था। इस प्रकार यह व्यापार र् र्ाजणज्य का िगमगाता कें द्र था और व्यापाररक-
कारर्ाओं द्वारा िल र् अन्य आर्श्यक र्स्तुओं की आपूवतव-सामग्री एकि करने के जलये ठहरने का पारंपररक स्थान था।
पररणामस्वरूप, इस िेि की दोनों शवियां फारस र् बैिेंटाइन साम्राज्य मक्का के नेताओं से गठबं धन कर इस पर वनयं िण करना
चाहती थीं।15

14 उमरुद्दीन (2003) द एजथकल वफलॉसफी आफ अल-गिाली, आदम पस्लब्लशसव एं ड वडस्टर ीब्यूटसव, नई वदल्ली, पृष्ठ. 66-67

15 र्ॉकर बी (2002) फाउं डेशन आफ इस्लाम, रूपा एं ड कं पनी, नई वदल्ली, पृष्ठ 37

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

मक्का में महत्वपूणव पद ग्रहण करने र्ाले पहले कु रैश व्यवि क़ु शैय वबन वकलाब थे। लगभग 450 ईसर्ी में उन्ोंने
बैंिेंटाइन सम्राट के समथवन र्ाली िनिावत के साथ वमलकर र्हां शासन कर रही खुिा िनिावत को सत्ा से हटाया और मक्का में
कु रैश नेतृत्व स्थावपत वकया। उन्ोंने मक्का के शासन और काबा के पवर्ि मं वदर के प्रशासन के जलये वनयम र् वर्जधयां स्थावपत कीं।
कहा िाता है वक उन्ोंने ईश्वर के पवर्ि घर काबा के उस मं वदर का पुनवनवमावण करर्ाया। पूर्व के प्रशासकों ने उस मं वदर को लं बे
समय से उपेजित रखा था। उन्ोंने काबा के मं वदर को भव्य बनाया और उसमें नबेवतयाइयों की देवर्यों अल-लात, अल-उज़्िा र्
अल-मन्नत की पुनः प्राण प्रवतष्ठा करायी। मूवतवपूिक अरब परंपरा में ये दे वर्यां ईश्वर (हुबाल) की बेवटयों के रूप में िानी िाती थीं।

दै वनक िीर्न में मुहम्मद के माता-वपता कवठनाइयों का सामना कर रहे थे। उसके वपता अब्दुल्ला की मृत्यु के समय
उसकी अम्मी अमीना छह माह की गभवर्ती थी। उसके वपता अब्दुल्ला की मृत्यु के पिात उसकी अम्मी अमीना की कवठनाई और
बढ़ गयी होगी। मक्का के सम्पन्न व्यवियों में अपना नर्िात बच्चा दत्क माता को दे कर उसकी देखभाल कराने की परंपरा थी।16
एक सिाह के मुहम्मद को हलीमा नाम की एक बद्दू (घुमंतू) मवहला को दे खभाल के जलये दे वदया गया, क्ोंवक अमीना के पास
दत्क-माता का व्यय र्हन करने के जलये बहुत धन नही था।17 हलीमा मुहम्मद को ले गयी और उसी के आयु के अपने बेटे के साथ
उसका लालन-पालन वकया। हलीमा चार र्षव के मुहम्मद को उसकी अम्मी अमीना से वमलाने लायी। चूं वक कजथत रूप से मुहम्मद
के आने से उसके दत्क माता-वपता का भाग्य पररर्वतवत हो गया था, इसजलये र्े उसे बड़े होने तक अपने पास रखना चाहते थे।
तद्नुसार हलीमा मुहम्मद को पुनः अपने साथ ले गयी। वकं तु िब मुहम्मद पांच र्षव का था, तो उसने आियविनक रूप से उसे
अमीना के पास र्ापस भेि वदया। ऐसी कहानी गढ़ी गयी है वक उसे अमीना को र्ापस करते हुए हलीमा ने मुहम्मद के साथ हुई
वर्जचि घटना को बताते हुए कहा, ‘‘सफेद र्स्त्रों में दो व्यवि मुहम्मद के पास आये और उसे नीचे फेंक वदया तथा उसके पेट को
खोलकर उसमें कु छ ढूं ढ़ा।’’18 बाद में अल्लाह द्वारा इस घटना का र्णवन यूं वकया गया वक उसने मुहम्मद के पापों को धोकर उसे
पवर्ि वकया था [कु रआन 94:1-2]। इस दार्े को सही ठहराने के जलये मुहम्मद अपने स्कं धास्लस्थ (कं धे की हड्डी) के ऊपर एक नये
जचह्न को वदखाया करता था; र्ही जचह्न बाद में उसकी पैगम्बरी के सील (मुहर) के रूप में प्रचाररत की गयी (सही बुखारी 4:741,
वतरवमिी 1524)।

अमीना ने मुहम्मद का ध्यान रखा। इसके कु छ समय बाद र्ह मुहम्मद को मक्का से 210 मील उत्र वदशा में दस-बारह
वदन की यािा की दूरी पर स्लस्थत मदीना ले आयी। मदीना की खिरि िनिावत का सं बं ध मुहम्मद से था, क्ोंवक उसकी परदादी
उसी से सं बं जधत थीं। दुभावग्य से िब उसकी अम्मी मक्का से लौट रही थीं, तो उनकी मृत्यु हो गयी। उस समय मुहम्मद माि छह र्षव
का था। इसके बाद अनाथ मुहम्मद का पालन-पोषण उसके बाबा अब्दुल मुत्ाजलब ने वकया। अब्दुल मुत्ाजलब की मृत्यु के पिात

16 मुईर डब्ल्यू (1894) द लाइफ आफ महोमेत, लं दन, पृष्ठ 129-30

17 इब्न इस्हाक, द लाइफ ऑफ मुहम्मद, अनुर्ाद ए वगलाउमे, आक्सफोडव प्रेस, कराची, 2004 इस्लरंट, पृष्ठ 71

18 इवबद, पृष्ठ 71-72

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

उसके चाचा अबू ताजलब ने उसकी देखभाल की। वकं तु तब भी उसे कवठन समय देखना पड़ा और उसने अत्यं त कम आयु में चरर्ाहे
का काम प्रारंभ कर वदया। र्ह पशुओं को चराते हुए एकाकी िीर्न व्यतीत करता था।

छब्बीस र्षव की अर्स्था में मुहम्मद की शादी मक्का की 40 र्षीय धनी व्यापारी खदीिा से हुई। इसके बाद से उसका
भाग्य नाटकीय ढंग से पररर्वतवत हो गया तथा उसकी सामाजिक प्रवतष्ठा बहुत बढ़ गयी। खदीिा ने पहले मुहम्मद को अपना व्यापार
दे खने के जलये नौकर रखा था। ऐसा कहा िाता है वक उस व्यापार को लाभ के साथ चलाते हुए उसने शीघ्र ही अपने स्वामी
(खदीिा) को प्रभावर्त कर जलया। खदीिा ने अपने से पं द्रह र्षव छोटे इस युर्ा, बुवद्मान र् योग्य व्यवि से प्रभावर्त होकर उसके
समि शादी का प्रस्तार् रखा।19 खदीिा के एक र्योर्ृद् चचेरे भाई र्ारका वबन नौफल थे। नौफल धावमवक वर्श्वासों में लचीले थे।
एके ष्वरर्ाद से प्रभावर्त होकर उन्ोंने पहले यहदी धमव अंगीकार वकया और उसके बाद ईसाई धमव को स्वीकार कर जलया।20 एक
हदीस (बुखारी 4:605) के अनुसार, ‘नौफल एक धमाांतररत ईसाई थे और अरबी में गॉस्पेल सुनाया करते थे।’ र्ारका के वनकट
सम्पकव में रहकर खदीिा भी एके श्वरर्ाद और वर्शेष रूप से ईसाई धमव से प्रभावर्त हो गयी। िबवक मुहम्मद अपनी कु रैश िनिावत
के बहुदेर्र्ादी धमव के मूवतवपूिक अनुष्ठानों का अनुसरण वकया करता था। वकं तु शादी ने उसे र्ारका और खदीिा के वनकट ला वदया
और अचानक मुहम्मद ने मूवतवपि
ू ा छोड़ दी तथा एके श्वरर्ादी यहदी र् ईसाई धमवशास्त्रों में रुजच लेने लगा। कहा िाता है वक शादी
के कु छ वदन बाद मुहम्मद ने उस र्षव कु छ समय मक्का के वनकट हीरा की पहावड़यों के एक खोह में वबताया। यह र्ही खोह है, िहां
उसके वप्रय बाबा रमिान के पवर्ि मास में ध्यान लगाते थे। मक्का के एके श्वरर्ादी पं थ (नीचे दे खें) हनफी समुदाय के लोगों में इस
प्रकार खोहों में िाकर ध्यान लगाने की सामान्य परंपरा थी। इस्लामी सुन्नत कहती है वक मुहम्मद ईश्वर की खोि में इस खोह में
समय व्यतीत करता था। कहानी गढ़ी गयी है वक 15 र्षव के ध्यान के पिात मुहम्मद को अल्लाह की ओर से एक नये मिहब
इस्लाम का उपदे श दे ने का सं दे श प्राि हुआ।

यह कहानी ठीक र्ैसी ही है, िैसे वक यहदी परंपरा के मूसा के बारे में कहा िाता है वक र्ह जसनाई की पहावड़यों के एक
खोह में ध्यान लगाता था और र्हीं ईश्वर (िेहोर्ा/याह्या) से सं र्ाद करता था। मुहम्मद सं भर्तः मूसा की इस कहानी से प्रे ररत था।
इस्लामी सावहत्य में ऐसे सं दभव भी हैं, िो हमें बताते हैं वक मुहम्मद उस खोह में अके ले समय नहीं व्यतीत करता था, अवपतु कभी-
कभी र्हां उसके साथ उसकी बीर्ी खदीिा और र्ारका भी िाते थे। इस्लामी सावहत्य यह भी बताते हैं वक र्ारका के सं पकों से
मुहम्मद अपने ध्यान की अर्जध के बाद के समय और अपने पैगम्बरी वमशन के आरंजभक वदनों में प्रायः यहदी रस्लब्बयों र् ईसाई
पुरोवहतों से वमलता रहता था। ऐसा माना िाता है वक र्ह उन वदनों लोगों की दृवष्ट से दूर रहकर हीरा पहाड़ी की खोह में

19 ध्यान रहे वक वर्धर्ा खदीिा अपने व्यापार को चलाने के जलये योग्य नौकर ढूं ढ़ रही थी। िब मुहम्मद अपने चाचा अबू ताजलब के साथ एक
व्यापाररक यािा पर दूसरे देश गया था, तो खदीिा के भतीिे खुिैमा की मुहम्मद से भेंट हुई थी। बारह र्षव की आयु से ही अपने चाचा के
व्यापाररक कारर्ां के साथ वर्जभन्न स्थानों पर िाकर मुहम्मद ने िो सीखा था, खुिैमा ने उस व्यापाररक प्रवतभा को ताड़ जलया था। खुिैमा ने बाद
में मुहम्मद का पररचय खदीिा से इस उद्दे श्य से कराया वक र्ह उसे अपना व्यापार चलाने के जलये नौकर रख ले।

20 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 83

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

एके श्वरर्ादी यहदी र् ईसाई धमवशास्त्र के ग्रंथों से पररजचत होता रहता था। सं भर्तः इसका उद्दे श्य यह था वक र्ह मक्का के
बहुदे र्र्ादी मूवतवपि
ू कों के बीच इन दोनों अिाहवमक मतों के ईश्वर के अस्लस्तत्व का उपदे श दे ने के जलये स्वयं को तैयार करना चाहता
था।

मक्का में पैगम्बरी वमशन (610-622)


इस पृष्ठभूवम में हीरा की पहाड़ी के खोह में 15 र्षव तक ध्यान करने के बाद मुहम्मद ने एक वदन (40 र्षव की अर्स्था में,
610 ईसर्ी) में दार्ा वकया वक उसने एक ऐसा अदृश्य स्वर सुना है, िो उसे कु छ सं देश दे रहा था।21 उसकी बात पर वर्श्वास करने
र्ाली पहली व्यवि उसकी बीर्ी खदीिा और खदीिा का चचेरा भाई र्ारका था। इन दोनों ने भ्वमत मुहम्मद को यह कहकर
समझाया वक अल्लाह ने उसे नये मिहब का उपदे श दे ने के जलये फररश्ता जिबराइल के माध्यम से सं र्ाद स्थावपत वकया था। एक
सुन्नत के अनुसार, र्ारका ने मुहम्मद से कहाः ‘र्ह र्ही फररश्ता है, जिसे अल्लाह ने पैगम्बर मूसा के पास भेिा था। िब तुम्हें ईश्वर
का सं दे श वमलेगा, तो उस समय यवद मैं िीवर्त रहा, तो दृढ़ता से तुम्हारा समथवन करूंगा’ [बुखारी 4:605]। यद्यवप र्ारका ने
कभी इस्लाम स्वीकार नहीं वकया और एक ईसाई व्यवि के रूप में ही उनकी मृत्यु हुई।

मुहम्मद ने अपने एके श्वरर्ादी ईश्वर को अल्लाह नाम वदया- अल्लाह अरब के मूवतवपूिकों के प्रमुख दे र्ता का नाम था22,
और यह नाम उस िेि में सामान्य रूप से ईश्वर के जलये प्रयोग वकया िाता था। अपने अल्लाह के वमशन के बारे में सार्विवनक रूप
से बताने से पूर्व प्रथम तीन र्षों तक मुहम्मद अपने कजथत ईश्वरीय सं दे श को अपने वनकट सहयोवगयों, वमिों र् पररर्ार के सदस्यों
को सुनाता रहा। उन सं दे शों में र्ह दार्ा करता था वक स्थानीय मूवतवपूिक परंपरा में जिस काबा को ईश्वर का गृह माना िाता है,
र्ह उसके अल्लाह का अनन्य स्थान है। उसने दार्ा वकया वक काबा की स्थापना यहदी कु लवपता अिाहम और उसके बेटे इस्माइल
द्वारा की गयी थी। ये दोनों इस्लाम में उच्च प्रवतवष्ठत पैगम्बर माने िाते हैं। उसने अपने नये पं थ को अिाहम का धमव बताया और
मक्का के बहुदे र्र्ावदयों से आह्वान वकया वक र्े मूवतवपूिा त्यागकर उसके पं थ का पालन करें। नीचे बताया गया है वक वकस प्रकार
मुहम्मद ने मांग की वक मक्का के मूवतवपूिक उसके पं थ का पालन करें और दार्ा वकया वक काबा उसके अल्लाह का हैः

वफर इसके पिाता् िो अल्लाह पर वमथ्या आरोप लगायें, तो र्ही पापी हैं। उनसे कह दो, अल्लाह सच्चा है, अतः अब आगे से तुम
एके श्वरर्ादी इिाहीम के धमव पर चलो तथा िान लो वक र्ह मूवतवपूिकों में से नहीं थे। वनस्सं दे ह मानर्िावत के जलये (अल्लाह के
मागवदशवन का कें द्र) िो पहला बनाया गया, र्ह र्ही है, िो मक्का में है, िो शुभ तथा सं सारर्ाजसयों के जलए मागवदशवन है। उसमें
(अल्लाह के मागवदशवन के ) स्पष्ट जचह्न हैं, (जिनमें) अिाहम प्राथवना के जलये खड़े हुए थे; और िो कोई उस (की सीमा) में प्रर्ेश कर
गया, र्ह सुरजित हो गया। तथा अल्लाह के जलए लोगों पर इस स्थान की तीथवयािा का कतवव्य है, िो उस तक मागव पा सकता हो।

21 इवबद, पृष्ठ 111

22 मुहम्मद के अब्बा का नाम अब्दुल्लाह था, जिसका अथव होता है अल्लाह का सेर्क

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

और िो अल्लाह पर वर्श्वास नहीं करे गा अथावत कु फ्र करेगा, तो (उसे बता दो) देखो! अल्लाह (सभी) प्राजणयों से वनस्पृह (स्वतं ि) है
[कु रआन 3:94-97]।

स्वाभावर्क है वक मुहम्मद के इस नाटक से मक्का के पवर्ि कु रैशों में अप्रसन्नता हुई थी। उनमें से अजधकांश ने मुहम्मद के
मिहब को दृढ़ता से अस्वीकार कर वदया। उन्ोंने काबा का अजधकार भी उसे (मुहम्मद) नहीं सौंपा। मक्का में तीस र्षव तक उपदेश
दे ने के बाद भी मुहम्मद के अनुयावययों की सं ख्या मुट्ठी भर थी और कु ल वमलाकर 100-150 लोग ही उसके मिहब में साथ आये।
622 ईसर्ी में उसने एक कहानी गढ़ी वक कु रैशों ने उसे मक्का से भगा वदया। िून 622 ईसर्ी में र्ह मदीना चला गया। मदीना में
स्वयं को सुरजित करने के बाद उसने अगले आठ र्षों तक कु रैशों के धमव र् आिीवर्का को नष्ट करने के जलये क्ू र वमशन चलाया।
630 ईसर्ी में उसने मक्का िीत जलया और काबा पर अजधकार कर जलया, र्हां की मूवतवयों को नष्ट कर वदया और अंततः मक्का के
मूवतवपि
ू कों को मृत्युतुल्य कष्ट दे कर इस्लाम स्वीकार करने पर बाध्य कर वदया।

आगे बढ़ने से पूर्,व आइये पहले हम मक्का से मुहम्मद के प्रस्थान एर्ं कु रैशों की क्ू रता र् असवहष्णुता के बारे में सुनायी
िाने र्ाली उन कहावनयों का परीिण करते हैं, िो मुस्लस्लम समािों में प्रचजलत हैं।

क्ा मुहम्मद को मक्का से भगाया गया था?


मुसलमान वनवर्वर्ाद रूप से यह मानते हैं वक कु रैशों ने 622 ईसर्ी में मुहम्मद और उसके अनुयावययों को मक्का से भगा
वदया था और उन्ें मदीना में रहने को वर्र्श कर वदया था- यह घटना वहिरा या वहिरत के रूप में प्रजसद् है। इस कहानी के
अनुसार, कु रैशों ने उनके वप्रय रसूल को मारने के जलये हत्यारे भेिे थे। फररश्ता जिबराइल द्वारा इसकी सूचना वदये िाने के बाद
मुहम्मद अपने वर्श्वस्त अनुयायी र् वमि अबू बक् के साथ मक्का से भाग वनकला। िब हत्यारों ने इन दोनों का पीछा वकया, तो ये
दोनों मक्का से लगभग एक घं टे की दूरी पर स्लस्थत सोर पहाड़ी की एक खोह में जछप गये। िब तक पीछा करने र्ाले उस खोह तक
पहुंचते, कबूतरों ने उसके मुहाने पर घोसला बना वदया, उसमें अंडे रख वदये और मकवड़यों ने िाला बुन वदया। यह देखकर पीछा
करने र्ालों ने सोचा वक उस खोह में कोई नहीं गया होगा और र्हां से चले गये। इसके बाद मुहम्मद और अबू बक् र्हां से रात के
अंधेरे में वनकले तथा 12 वदन की यािा करने के बाद मदीना पहुंच।े यह कहानी इस्लामी लोककथाओं र् सावहत्यों में मुहम्मद को
बचाने र्ाले अल्लाह के चमत्कार के रूप में सुनायी िाती है।

भले ही कु रैशों द्वारा मुहम्मद की हत्या के प्रयास की कहानी इस्लामी सावहत्य में लोकवप्रय बना हुआ है और मुसलमानों को
इस कहानी पर अगाध वर्श्वास भी है, परंतु बहुत से ऐसे कारण हैं, जिनके आधार पर माना िा सकता है वक इस कहानी की पुवष्ट के
जलये वर्श्वसनीय प्रमाण न के बराबर हैं। पहली बात तो यह है वक मक्का में मुहम्मद िब अपना पैगम्बरी वमशन चला रहा था, तो
उसकी िनिावत के समुदाय में लोगों का दूसरे दे श चले िाना या िाने का प्रयास करना अपेिाकृ त सामान्य था। चूं वक मुहम्मद
अनर्रता् मक्कार्ाजसयों के धमव, परंपराओं र् सं स्कृ वत का अपमान वकये िा रहा था, इसजलये 615 ईसर्ी आते-आते मुहम्मद के वमशन
का वर्रोध बढ़ गया था। इससे उसके जलये अपने नये मिहब के प्रचार की गवतवर्जधयां चलानी तवनक कवठन हो गयी। िो वगने-चुने
लोग मुहम्मद के अनुयायी बने भी थे, उनके पररर्ार र्ाले उन्ें अपने पूर्विों के धमव में र्ापस लौटने के जलये समझा-बुझा रहे थे।

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

महानतम इस्लामी इवतहासकार अल-तबरी के अनुसार, कु रैश कु छ धमाांतररत मुसलमानों को मूवतवपूिा की ओर र्ापस लौटा ले िाने
में सफल रहे थे, ‘परीिा की ऐसी घड़ी जिसने इस्लाम के लोगों को वहला वदया था...।’23 इस आशं का से वक र्े सब अपने मूल
धमव में र्ापस लौट िाएं गे, मुहम्मद ने ‘उन्ें अबीसीवनया चले िाने का आदे श वदया।’ इस आदे श के बाद उसके लगभग एक दिव न
अनुयायी, जिन पर अपने पूर्विों के धमव में आने का अजधक दबार् था, गोपनीय ढं ग से अपने पररर्ारों को छोड़कर छोटे -छोटे समूहों
में अबीसीवनया (इथोवपया) वनकल गये। 616 ईसर्ी में, प्रर्ासन की दूसरी लहर चली। वर्जभन्न अनुमानों के अनुसार, मुहम्मद के
82-111 अनुयायी मक्का छोड़कर अबीसीवनया गये थे। ये स्व-वनर्ावजसत अनुयायी मक्का लौट आये और इसके छह माह से तेरह र्षव के
बाद मदीना चले गये। उनमें से कु छ ने ईसाई धमव स्वीकार कर जलया था और ईसाई धमावर्लं बी के रूप में अबीसीवनया में पूरा िीर्न
वबताया। ऐसा लगता है मुहम्मद द्वारा उन्ें अबीसीवनया भेिने के पीछे दो कारण थे। पहला तो यह वक र्ह उन्ें अपने पूर्विों के
धमव में र्ापस लौटने से रोकना चाहता था और दूसरा कारण यह था वक यवद उसे कहीं और िाकर रहना पड़े, तो ऐसी स्लस्थवत के
जलये र्ह पहले से ही एक वठकाना बनाकर तैयार रखना चाहता था। मुहम्मद ने ऐसा इस कारण वकया होगा, क्ोंवक मक्का में उसका
वमशन वर्फल हो गया था।

मुहम्मद द्वारा कु रैशों के धमव र् परंपराओं का अपमान बढ़ता िा रहा था और उसकी अर्ज्ञा र् वढठाई बढ़ती िा रही थी।
इससे रुष्ट होकर कु रैशों ने 617 ईसर्ी में मुहम्मद के समूह का सामाजिक और आजथवक बवहष्कार कर वदया। यद्यवप, दो र्षव बाद यह
बवहष्कार हटा जलया गया। बवहष्कार तो हटा जलया गया था, वकं तु मुहम्मद का पैगम्बरी वमशन लगभग ठहर गया था, क्ोंवक उसके
जलये सार्विवनक रूप से अपना मिहब फैलाना करना लगभग असं भर् हो गया था। इन पररस्लस्थवतयों में र्ह 619 ईसर्ी में नया
वठकाना ढूं ढ़ने ताइफ गया। मुहम्मद और कु रआन दोनों ने ताइफ र्ाजसयों की मुख्य दे र्ी अल-लात का पहले ही अपमान वकया था।
वफर भी ताइफ के लोगों ने मुहम्मद के नये समुदाय के प्रर्ेश का प्रवतरोध नहीं वकया।

ताइफ में उसने लोगों से कहा वक र्े अपने पूर्विों के धमव को छोड़ दें और उसके पं थ में सस्लम्मजलत हो िाएं । इससे भी
महत्वपूणव यह था वक उसने ताइफ के लोगों को कु रैशों के प्रवत शिुता पालने के जलये उकसाया, िबवक कु रैशों के साथ ताइफ के
लोगों के अच्छे व्यापाररक सं बं ध थे। मुहम्मद र्हां दस वदन तक ठहरा और र्हां के अगुर्ा लोगों से वमलकर उन्ें अपने मिहबी
वमशन और कु रैश-वर्रोधी षडयं ि में सस्लम्मजलत होने के जलये उन्ें भड़काता रहा। ताइफ के इस वमशन का र्णवन इब्न इस्हाक इस
प्रकार करता है: ‘रसूल उनके साथ बैठे और उन्ें इस्लाम में आने को आमं वित वकया तथा उनसे अपने गृह (मक्का) के अपने
वर्रोजधयों के वर्रुद् सहायता करने को कहा।’ वकं तु र्ह अपने पैगम्बरी और कु रैश-वर्रोधी वद्व-धारी वमशन के जलये ताइफ से कु छ
भी पाने में वर्फल रहा। इससे वनराश मुहम्मद बहुत भयभीत हो गया वक र्ह मक्का लौटा, तो कु रैशों की ओर से र्ैर और बढ़
िाएगा। इसी भय के कारण उसने ताइफ छोड़ने से पूर्व र्हां के लोगों से वनर्ेदन वकया: ‘आप लोगों को िो करना था, र्ही वकया,

23 अल-तबरी (1988) द वहस्टर ी आफ अल-तबरी, अनुर्ाद डब्ल्यूएम र्ाट एं ड एमर्ी मैकडोनाल्ड, स्टे ट यूनीर्जसवटी ऑफ न्यूयाकव प्रेस, अंक. 6,
पृष्ठ 45

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अब कृ पया इस प्रकरण को गुि ही रखें।’24 परंतु वकसी प्रकार यह समाचार मक्का पहुंच गया। तब भी कु रैशों ने मुहम्मद पर कोई
वर्शेष क्ोध नहीं वदखाया और िब र्ह मक्का लौटा, तो उसे कु रैशों की ओर से वकसी प्रकार की शिुता का सामना नहीं करना पड़ा।

619 ईसर्ी में मुहम्मद का ताइफ चले िाने और अपने अनुयावययों को अबीसीवनया भेिने की इन दो घटनाओं को देख ते
हुए यह वर्श्वास करना कवठन है वक कु रैशों ने उसकी हत्या का प्रयास वकया और मदीना भागने पर वर्र्श वकया। िैसा वक नीचे
बताया गया है वक 620 ईसर्ी में ही मुहम्मद के मदीना चले िाने की उत्सुकता उसके हत्या के दार्े को और अवर्श्वसनीय बनाती
है।

मक्का में उसका वमशन थम गया था, तो मुहम्मद 620 ईसर्ी के र्षव की तीथवयािा के जलये मदीना से मक्का आने र्ाले
लोगों से वमलने लगा और उन्ें अपना पं थ समझाने लगा। उनमें से छह लोग उसके पं थ इस्लाम में धमाांतररत हो गये। मक्का में
अपने वमशन की कवठनाई बताते हुए मुहम्मद ने उनके समि स्वयं की मदीना िाने की इच्छा प्रकट की और उनसे पूछा वक क्ा र्ो
लोग मदीना में उसकी रिा करने में समथव हैं।25 वकं तु उन धमाांतररतों ने मदीना की दो िनिावतयों के मध्य चल रहे भयानक सं घषव
को देखते हुए उसे मदीना आने से रोक वदया और कहा वक सही समय आने तक र्ह मदीना आने की अपनी योिना टाल दे ।

अगले र्षव हि के समय बारह व्यवि, जिनमें वपछले र्षव के र्ो 6 लोग भी थे, मुहम्मद से गोपनीय रूप से एक स्थान पर
वमले। उन्ोंने उसके दीन के प्रवत वनष्ठा प्रकट की। इस्लामी इवतहास में यह घटना अक़बा की प्रथम प्रवतज्ञा के नाम से िानी िाती
है।26 मुहम्मद ने नये धमाांतररतों को अपना दीन जसखाने के जलये मक्का के अपने अनुयायी मुसाब इब्न उमैर को उनके साथ भेिा।

मदीना में मुहम्मद के मिहब के वर्स्तार में मुसाब का प्रयास रंग लाया। अगले र्षव (622) मुसाब के साथ मदीना के
पचहत्र नागररक (वतहत्र आदमी और दो औरत) हि यािा के जलये मक्का गये और उन्ोंने अकबा में मुहम्मद के साथ पुनः गुि
बैठक की। उस बैठक में मुहम्मद के साथ उसका चाचा अल-अब्बास भी गया था। बैठक में अब्बास ने मुहम्मद के मदीना िाकर
रहने की इच्छा की घोषणा करते हुए बोला वक र्ैसे तो रसूल के अपने लोग और अनुयावययों के बीच मक्का में सुरजित हैं, ‘वकं तु र्ह
(मुहम्मद) आप लोगों की सुरिा में मदीना में रहने को र्रीयता दे ते हैं...। यवद आप लोग उनकी रिा के जलये प्रवतबद् हों और इस
काम में समथव हों, तो र्चन दीजिए। पर यवद आप लोगों को अपने सामथ्र्य पर सं देह है , तो इस योिना को तुरंत छोड़ दें ।’ इस पर
मदीना के धमाांतररतों (मुसलमानों) ने कहा: ‘आपने िो कहा, उसे हमने सुना। हे रसूल, आप अपने और अपने अल्लाह के जलये िो
चाहें मांग लें। तब मुहम्मद बोला और यह कहते हुए अपनी बात समाि वकया वक ‘मैं आप लोगों से ऐसी वनष्ठा चाहता हं वक आप
लोग मेरी रिा र्ैसे ही करोगे, िैसे वक आप अपनी जस्त्रयों और बच्चों की करते हैं। इस पर अल-बारा (मदीना का धमाांतररत) ने

24 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 192-93

25 मुईर, पृष्ठ 114

26 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 198-99

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अपना हाथ उठाया और बोलाः ‘उस अल्लाह की कसम, जिसने आपके ऊपर सत्य भेिा है, हम आपकी रिा र्ैसे ही करेंगे, िैसे
वक हम अपनी औरतों की करते हैं। हम अपनी वनष्ठा प्रकट करते हैं और हम र्ो िं गी कौम हैं, जिसमें वपता अपने बेटे को हजथयार
पकड़ाता है।’ इस्लाम में अंसार अथावत सहायक कहे िाने र्ाले मदीना के उन धमाांतररतों की यह प्रवतज्ञा अक़बा की वद्वतीय प्रवतज्ञा
कही िाती है।27

इस घटना से स्पष्ट पता चलता है वक उस समय (622) मक्का में मुहम्मद पर कोई खतरा नहीं था। तब भी र्ह 620
ईसर्ी में ही अपनी इच्छा से मदीना चले िाने को उत्सुक था। 622 में मदीना िाने से कु छ मास पूर्व उसने अपनी सुरिा के जलये
मदीना के अपने धमाांतररत मुसलमानों से प्रवतज्ञा करर्ायी। इसजलये यह प्रश्न उठता है वक िब र्ह मदीना िाने के जलये स्वयं ही
इतना उतार्ला था, क्ोंवक उसे र्हां उसे अपने मिहब के प्रसार का भवर्ष्य अच्छा वदख रहा था, तो वकसी को उसे मक्का से भगाने
की आर्श्यकता क्ा थी? इसके अवतररि मई 622 में मदीना वनकलने से पूर्व अप्रैल में ही उसने अपने अनुयावययों को मदीना चले
िाने का आदे श वदया था और उसके आदे श पर अगले दो माह में र्े छोटे -छोटे समूह में मदीना चले गये थे। मुहम्मद और उसके
वर्श्वस्त साथी अबू बक् र् उनके पररर्ारों ने सबसे अंत में मक्का छोड़ा था। इन पररस्लस्थवतयों में वनम्नजलजखत प्रश्नों पर वर्चार होना
चावहएः

1. मदीना िाने के उतार्लेपन और मदीना िाने के बाद अपनी सुरिा की गारंटी मांगने के पीछे मुहम्मद का उद्दे श्य क्ा था?
2. उसने अपने प्रस्थान से एक मास पूर्व ही अपने अनुयावययों को मदीना क्ों भेिा?
3. जिस मक्का में उसका पैगम्बरी वमशन ठहर गया था, र्हां र्ह अके ले क्ा करने िा रहा था?

ये पररस्लस्थवतयां और साक्ष्, िो सबसे प्रामाजणक र् वर्श्वसनीय इस्लामी स्रोतों से पता चलते हैं, स्पष्ट रूप से बताते हैं वक
मुहम्मद मदीना ने बड़े उत्साह के साथ मदीना िाने का वनणवय वकया था। इसजलये , वकसी को उसे मक्का से भगाने अथर्ा उसकी
हत्या करने की आर्श्यकता ही नहीं थी, क्ोंवक र्ह तो अपनी इच्छा से ही मक्का छोड़कर िा रहा था, जिससे कु रैश वपछले तेरह
र्षों से मुहम्मद द्वारा वकये िा रहे जिस अपमान, यातना और सामाजिक र् पाररर्ाररक कलह को झेल रहे थे, उन सबका अंत अपने
आप ही हो िाता। इसके अवतररि मुहम्मद के मदीना चले िाने के बाद भी उसका चेला (िो बाद में उसका दामाद बना) अली
अबू बक् की बीर्ी और उसकी बेटी आयशा (जिसकी शादी मुहम्मद से होनी थी) कई वदनों तक मक्का में रहे और उन्ें कु रैशों की
ओर से कोई बड़ी िवत नहीं पहुंचायी गयी, न ही उनका उत्पीड़न वकया गया।

इस्लामी इवतहासकार इब्न इस्हाक हमें बताता है वक कु रैशों ने समझा: ‘मुहम्मद (मदीना में) अपने कबीले के बाहर के
लोगों में अनुयायी पा गया है, (और) र्े (कु रैश) अब सुरजित नहीं हैं, क्ोंवक उन पर अचानक हमला हो सकता है।’ तब उन्ोंने
मुहम्मद को लोहे के सीखचों के पीछे बं द कर दे न,े उसे मार भगाने या उसकी हत्या करने पर वर्चार वकया और अंवतम वर्कल्प

27 इवबद, पृष्ठ 204; मुईर, पृष्ठ 129-30

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अपनाने का वनणवय वकया।28 वकं तु यह बात वकसी भी बुवद् या तकव से गले के नीचे नहीं उतरती वक यवद क्ू र कु रैश (िैसा वक
इस्लामी सावहत्य में उन्ें बताया गया है) मुहम्मद का प्राण लेने पर उतारू थे, तो चामत्काररक रूप से रातों-रात बचकर उसके वनकल
िाने के बाद उन्ोंने मक्का में रह गये अली र् मुहम्मद के पररर्ार की मवहलाओं एर्ं अबू बक् के पररर्ार की मवहलाओं को प्रतावड़त
क्ों नहीं वकया। उन्ोंने इन दोनों के पररर्ार र्ालों न तो बं दी बनाया, न उत्पीड़न वकया और न ही दास बनाया, िबवक र्े ऐसा
करके अबू बक् र् मुहम्मद को आत्मसमपवण के जलये वर्र्श कर सकते थे। वकं तु ऐसा कु छ नहीं हुआ, अवपतु मुहम्मद के
सफलतापूर्क
व वनकल िाने के बाद, तल्हा िो पहले ही मदीना चला गया था, मक्का लौटकर आया और ऐसी सहिता से अबू बक् र्
मुहम्मद के पररर्ार के सदस्यों को ले गया वक मानों कु छ हुआ ही न हो।29

इन तथ्यों से इस बात पर वर्श्वास कर पाना लगभग असं भर् हो िाता है वक कु रैशों ने मुहम्मद की हत्या का प्रयास वकया
था अथर्ा उसे मक्का से भगाया था। यहां तक वक अल्लाह ने भी मुहम्मद के वमशन की सफलता का भवर्ष्य मदीना में दे खा था
और उसे र्हां चले िाने का आदेश वदया था, िैसा वक मुहम्मद ने कहा हैः ‘मुझे एक ऐसे नगर में चले िाने का आदे श वमला था,
िो अन्य नगरों को लील (िीत) लेगा, और इस नगर को यसररब कहते हैं तथा र्ही मदीना (मदीनत-उल नबी, रसूल का वनर्ास)
है’ [बुखारी 3:95]। अल्लाह ने बाद में वदये एक आयत [कु रआन 2:217] में मुहम्मद र् उसके समुदाय के साथ कु रैशों के
व्यर्हार का सं जिि वर्र्रण भी वदया है: ‘...अल्लाह की दृवष्ट में अल्लाह के मागव में िाने से रोकना, अल्लाह को न मानना, उस
पवर्ि मस्लस्िद में िाने से रोकना और उस मस्लस्िद के सदस्यों को भगाना अत्यं त गं भीर अपराध है।’ अल्लाह स्पष्ट रूप से सुझार् दे
रहा है वक मक्का के लोग मुहम्मद के पं थ को स्वीकार नहीं कर रहे हैं, दूसरों (प्रायः पररर्ार के सदस्यों) को इस्लाम स्वीकार करने से
रोक रहे हैं और मुहम्मद के समुदाय को काबा में िाने से रोक रहे हैं। वकं तु अल्लाह इस बात का कोई उल्लेख नहीं कर रहा है वक
कु रैशों ने मुहम्मद या वकसी अन्य मुसलमान की हत्या का प्रयास वकया। ‘‘इसके सदस्यों को भगाना’’ कहने के पीछे अल्लाह का
मं तव्य यही रहा होगा वक चूं वक कु रैशों ने इस्लाम स्वीकार नहीं वकया, तो मुहम्मद को अपनी सफलता की सं भार्ना की दृवष्ट से
मदीना िाना पड़ा। मुहम्मद ने स्वयं बद्र की िं ग के वर्र्रण में इसकी पुवष्ट की है। िब कु रैश पराजित हो गये, तो मुसलमान कु रैशों
के शर्ों को अपमानिनक ढंग से सामूवहक कि में फेंक रहे थे। एक मनोवर्कृ त के िैसे मुहम्मद उन मरे हुए लोगों के शर्ों पर
चीखते हुए कह रहा था: ’हे िहन्नुम की आग में िलने र्ाले लोगो, तुम अपने रसूल के बुरे सं बं धी थे। िब दूसरे लोग (मदीना के
लोग) मुझको मान रहे थे, तो तुमने मुझे झूठा कहा; िब दूसरों ने मुझे अपनाया, तो तुमने मुझे वतरस्कृ त वकया; िब दूसरे मेरे पि
आ रहे थे, तो तुम मुझसे लड़ रहे थे।’30 यहां भी मुहम्मद इसका कोई उल्लेख नहीं कर रहा है वक उसकी हत्या का प्रयास हुआ
था। यहां जिस लड़ाई का उल्लेख है, उसका आशय उस लड़ाई से है, िो उसने (मुहम्मद) मदीना बसने के बाद (नीचे वर्र्रण

28 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 121-122

29 मुईर पृष्ठ 165

30 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 306

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

वदया गया है) स्वयं प्रारंभ वकया था। इससे पूर्व, मुसलमानों और कु रैशों के बीच कोई लड़ाई अथर्ा िं ग नहीं हुई थी और न ही
मदीना के लोग ऐसी िं गों में मुहम्मद की ओर से लड़े थे।

कु रैशों द्वारा मुहम्मद की हत्या के प्रयास की यह कहानी सं भर्तः उसी (मुहम्मद) ने स्वयं ही इस वर्श्वास के साथ गढ़ी
होगी वक िब र्ह मदीना पहुंचेगा, तो र्हां के लोग यह सुनकर उससे सहानुभवू त वदखाएं गे अथर्ा उसने यह कपोलकस्लल्पत कहानी
इसजलये गढ़ी होगी, क्ोंवक र्ह मदीना के लोगों और वर्शेष रूप से अपने नये-नये धमाांतररत मुसलमानों में कु रैशों के प्रवत शिुता
का भार् उत्पन्न करने की मं शा रखता था। आइये, यहां यह भी स्मरण करें वक इससे तीन र्षव पूर्व इसी प्रकार से मुहम्मद ने ताइफ
के लोगों में कु रैशों के प्रवत शिुता उत्पन्न करने का वर्फल प्रयास वकया था।

क्ा मक्का के लोग क्ू र थे?


इस्लामी जशिा ऐसा वदखाने का प्रयास करती है वक मक्का की कु रैश िनिावत के लोग सं भर्तः ऐसे बबवरतम लोग थे ,
जिन्ोंने रसूल पर अत्यजधक क्ू रता वदखाई। एक मुसलमान ने मुझको जलखा वक ‘13 र्षों तक बहुत से मुसलमान भयानक ढं ग से
सताये गये, प्रताड़ना से ही मर गये।’31 ये लोग इस प्रकार के आरोप इसजलये लगाते हैं वक कु रैशों के वर्रुद् मुहम्मद के आतं की
अजभयान, मक्का पर बलपूर्वक अजधकार और कु रैशों के धमव के वर्नाश को उजचत ठहरा सकें ।

कु रआन और सुन्नत में कु रैशों को बारंबार असभ्य, क्ू र उत्पीड़क और अल्लाह के शिुओं के रूप में वदखाया गया है। यहां
तक वक मुहम्मद िब मक्का में था, तब भी उसने उन्ें ऐसा घृणायोग्य र् पापी बताया, िो ‘‘सबसे अजधक घृणा वकये िाने योग्य’’
[कु रआन 56:46] बनने पर उतारू थे और ऐसे ‘‘घृजणत’’ थे, िो भयानक आग के गोले एर्ं उबलते िल में फेंके िाएं गे’’
[कु रआन 56:41-42]। यहां तक वक मुहम्मद ने मक्का के मूवतवपूिकों की वनंदा की और उन्ें यह कहकर बुरे पररणाम भुगतने की
धमकी दी वक, ’हम दोवषयों से ऐसे ही वनपटेंग।े उस वदन (सत्य) नकारने र्ालों को सं ताप दें गे [कु रआन 77:18-19]।’ उसने स्वयं
को और अपने अनुयावययों को सच्चे पथ र्ाला बताया और जिसने उसको नकारा उसे झूठा, पापी र् वमथ्या रचने र्ाला बताया।
उसने मक्का के मूवतवपि
ू कों को िहन्नुम की आग में अनं त काल तक िलने र्ाला बताया। कु छ आरंजभक आयतों में कहा गया है:

1. ‘र्ह वफर र्ह उन लोगों में होता है, िो ईमान लाये और जिन्ोंने धैयव (सहनशीलता और सं यम) एर्ं दया र् करुणा के
कायव का वर्धान वदया। यही लोग (अल्लाह के ) दायें हाथ र्ाले हैं। वकं तु जिन्ोंने हमारे जचह्न (आयतों) को नहीं माना...
र्ैसे लोगों पर (सभी ओर से) आग वघरी होगी’ [कु रआन 90:17-20]।

31 इस्लामी सावहत्यों में मृत्यु की वकसी घटना का उल्लेख नहीं है ; मक्का में मुहम्मद के रहने के समय इस्लाम-वर्रोधी वहंसा अथर्ा ऐसी वकसी
वहंसा में वकसी मुसलमान के मारे िाने का कहीं प्रमाण नहीं वमलता है।

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

2. ‘‘िो अल्लाह के जचह्न (आयतों) पर वर्श्वास नहीं लाते, अल्लाह उन्ें मागवदशवन नहीं दे गा और र्े कठोर दं ड/यातना के
भागी बनेंगे। िो अल्लाह के जचह्नों में वर्श्वास नहीं करते, र्ही झूठ गढ़ते हैंः र्ही हैं िो झूठ बोलते हैं!’ [कु रआन
16:104-05]।

यद्यवप इस्लामी समाि में प्रचजलत इस दार्े को सत्य मानना अत्यं त कवठन है वक कु रैशों ने मुहम्मद र् उसके समुदाय पर
अमानर्ीय क्ू रता की थी। उन वदनों के असहाय बं िर रेवगस्तानी र्ातार्रण में कवठनाई से िूझ रहे मक्का के नागररक अत्यं त धावमवक
हुआ करते थे। उन्ोंने अपने भगर्ान के मं वदर काबा में 360 मूवतवयां एकि की थीं, जिससे वक र्े भगर्ान की कृ पा प्राि करने के
जलये उसकी पूिा कर सकें । उन्ोंने काबा के मं वदर को अरब र् आसपास के मूवतवपूिकों के जलये ईश्वरभवि का सबसे पवर्ि स्थान
और तीथवयािा का कें द्र बना वदया था। र्े काबा को उतना ही प्रवतवष्ठत बनाये हुए थे, िैसे वक आि के मुसलमानों ने बना रखा है।
मुहम्मद ने न के र्ल आधारहीन ढंग से काबा पर अपने अल्लाह का स्थान होने का दार्ा वकया, अवपतु उसकी आयतों ने भी
मूवतवपि
ू कों के धमव को झूठा बताया।

उन अपमानिनक वटप्पजणयों, ढीठ दार्ों र् मांगों के बाद भी कु रैशों ने मुहम्मद र् उसके समुदाय को मक्का में 30 र्षव तक
रहने वदया। िब तक मुहम्मद की बातें प्रत्यि रूप से कु रैशों के प्रवत शिुताभरी और अपमानिनक नहीं हुईं, उसे पहले सात र्षों में
र्हां अपने पं थ के प्रचार की अच्छी स्वतं िता वमली हुई थी। यद्यवप काबा पर मुहम्मद के दार्े का वर्रोध अर्श्य था। बाद में िब
मुहम्मद की ओर से कु रैशों र् उनके दे र्ी-दे र्ताओं का अपमान बढ़ता गया, तो उसके वमशन का वर्रोध प्रारंभ हुआ, वकं तु तब भी
कु रैशों द्वारा उस पर कोई हमला वकये िाने अथर्ा उसे िवत पहुंचाये िाने की वकसी घटना का उल्लेख नहीं वमलता है। कु रैशों के
उन कु छ दासों के उत्पीड़न की कु छ जछटपुट सं दभव वमलते हैं, िो मुहम्मद के अपमानिनक पं थ में सस्लम्मजलत हो गये थे। परंतु
उत्पीड़न की र्ो घटनाएं भी उन धमाांतररतों के प्राणों को सं कट में डालने र्ाली नहीं थीं। अन्य घटनाओं में कु छ कु रैशों ने अपने
पररर्ार के सदस्यों को (कभी-कभी गृह में बं द करके ) मुहम्मद के समुदाय में सस्लम्मजलत होने से रोका था।

मुस्लस्लम इवतहासकारों द्वारा वदये गये कु छ साक्ष् जसद् करते हैं वक कु रैशों ने मुहम्मद की ओर से वदख रहे प्रत्यि शिु-भार्
और आहत करने र्ाले अपशब्दों के बाद भी उसके प्रवत उल्लेखनीय सवहष्णुता रखी थी। अल-िुहरी जलखता है:

‘मुहम्मद िो कु छ कहते थे, कावफर कु रैश उसका वर्रोध नहीं करते थे। िहां र्े लोग बैठे होते थे, यवद र्ह (मुहम्मद) र्हां से वनकलते
थे, तो र्े उनकी ओर सं के त करके कहते थेः ‘अब्द-अल-मुत्ाजलब कबीले का यह युर्ा दार्ा करता है वक उसे अल्लाह से सं दे श वमला
है!’ िब तक वक अल्लाह ने कु रैशों के ईश्वरों पर हमला करना नहीं प्रारंभ वकया..., और िब तक अल्लाह ने यह घोषणा नहीं कर दी
वक उनके पूर्वि िो कु फ्र (इस्लाम, अल्लाह र् उसके रसूल को नहीं मानना) में मरे हैं, (िहन्नुम की आग में) िलेंगे, कु रैश लोग यही
व्यर्हार करते रहे। वकं तु इसके बाद र्े लोग रसूल से घृणा करने लगे और उनके प्रवत शिुता वदखाने लगे।’32

32 शमाव एसएस (2004) खलीफाि एं ड सुल्तािः ररलीजियस आइवडयालॉिी एं ड पॉलीवटकल प्रैस्लक्सस, रूपा एं ड कं पनी, न्यू देल्ही, पृष्ठ 63;
मुईर, पृष्ठ 63

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

यद्यवप मुहम्मद के सं देश में उनके धमव, ईश्वरों र् परंपराओं के प्रवत र्ैर और था, वकं तु तब भी िब उसने उन लोगों
(कु रैशों) को इस्लाम स्वीकार करने को कहा, तो उन लोगों अपेिाकृ त वर्नम्रता वदखाते हुए उस प्रस्तार् को अस्वीकार वकया। एक
घटना में उल्लेख है वक मुहम्मद के चाचा अबू ताजलब िब कहीं िा रहे थे, तो उन्ें अपना बेटा अली मुहम्मद के साथ नमाि पढ़ता
हुआ वमला। उन्ोंने अली से पूछा वक र्ह क्ा कर रहा है। इस पर रसूल ने उत्र वदया, ‘अल्लाह द्वारा मुझे िो सं दे श वदया गया है,
र्ह उसका अनुसरण कर रहा है’ और रसूल ने अबू ताजलब को भी उसका अनुसरण करने को कहा। इस पर उस र्ृद् व्यवि ने उत्र
वदया वक र्े न तो अपने पूर्विों के धमव को छोड़ेंगे और न ही ऐसी प्राथवना-पद्वत को अपनाएं गे, जिसमें ‘अपने वनतम्बों को जसर से
ऊपर रखना पड़े (नमाि के समय की शारीररक मुद्रा)।’33

कु रैशों के दे र्ी-दे र्ताओं और पूर्ि


व ों पर मुहम्मद की वमथ्याभरी वनंदा र् अपशब्दों पर प्रवतवक्या के वर्षय में बैहकी ने
अपनी पुस्तक ‘पैगम्बरी का प्रमाण’ में मुहम्मद के जशष्य अमरू इब्न अल आस के साक्ष्ों से जलखा है:

‘एक बार िब काबा में मूवतवपूिकों के मुजखया आये, तो मैं र्हां उपस्लस्थत था। र्े अल्लाह के रसूल के बारे में बात कर रहे थे और
उन्ोंने कहा, ‘हमें कभी भी इतना कु छ सहन नहीं करना पड़ा, जितना वक इस व्यवि से सहन करना पड़ रहा है। यह व्यवि हमारे
पूर्विों को कोसता है, हमारे धमव की वनंदा करता है और हमारे लोगों को बांट रहा है और हमारे देर्ताओं को बुरा कहता है। इस
व्यवि की ऐसी कष्टदायी बातों को सहन करना पड़ रहा है...।’ रसूल िो वक र्हीं पास में बैठे थे, ये सब सुन रहे थे और उन्ोंने
प्रवतवक्या दी, ‘कु रैश के लोगो! मैं वनजित ही इसके जलये तुम लोगों को ब्याि सवहत लौटाऊंगा।’ 34

कु रैश अपने पूर्विों के धमव पर अवडग रहे और मुहम्मद के वमशन के वर्रोध में थे, वकं तु इस तथ्य के बाद भी उन्ोंने
मुहम्मद का वमशन प्रारंभ होने के छह र्षव पिात तक काबा में उसके प्रर्ेश को नहीं रोका। यह बात शैतानी आयत [कु रआन
53:19-20] से भी स्पष्ट होती है, यह र्ही शैतानी आयत है, जिस पर सलमान रश्दी का उपन्यास आधाररत है। अल-तबरी के
इवतहास के अनुसार, ये दो शैतानी आयतें, जिनमें मुहम्मद ने मूवतवपि
ू कों की देवर्यों अल-लात, अल-उज़्िा और अल-मनात को पूिा
के योग्य माना था, कजथत रूप से शैतान द्वारा मुहम्मद के मुख में डाली गयी थीं, जिसे अल्लाह ने बाद में वनरस्त कर वदया [कु रआन
53:21-22]।35 यह घटना तब हुई, िब मुहम्मद 616 ईसर्ी में कु रैशों के र्ररष्ठ िनों के साथ काबा में समझौता बैठक कर रहा
था।36 628 ईसर्ी में हुदै वबया की सं जध के बाद कु रैशों ने मुहम्मद र् उसके अनुगावमयों को 3 र्षव तक काबा में प्रर्ेश और प्रवतर्षव
तीथवयािा करने की पुनः अनुमवत दे दी (नीचे देखें)। अब, आइए आि के सं दभव में ऐसी ही एक काल्पवनक स्लस्थवत पर वर्चार करें:

33 ग्लूब िेबी (ग्लूब पाशा, 1979) द लाइफ एं ड टाइम्स आफ मुहम्मद, हॉडर एं ड स्टाउफ्टन, लं दन, पृष्ठ 98

34 शमाव पृष्ठ 63-64

35 अल-तबरी, अंक 6, पृष्ठ 107

36 इवबद, पृष्ठ 165-67, पृष्ठ 80

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

कल्पना कीजिये वक मक्का के वकसी समुदाय या सऊदी अरब के वकसी स्थान अथर्ा वर्श्व के वकसी अन्य भाग का कोई
व्यवि मक्का िाए और मुसलमानों की भीड़ के समि घोषणा करे वक उसे सच्चे ईश्वर से सं देश वमला है; वक र्ह सच्चा पैगम्बर है;
वक इस्लाम असत्य है; वक काबा उसके ईश्वर का पवर्ि स्थान है; और वक मुसलमानों को अपने असत्य पं थ को छोड़कर उसके नये
धमव को स्वीकार करना चावहए।

यह कल्पना करना कवठन नहीं है वक उस नये पैगम्बर का क्ा होगा। वनजित रूप से र्ह व्यवि तत्काल मार वदया
िाएगा। र्ास्तवर्कता तो यह है वक यवद कोई व्यवि वकसी मुस्लस्लम दे श के वकसी बड़े मस्लस्िद में भी ऐसा दार्ा कर दे , तो आि
यू.एन. चाटव र के अंतगवत अजभव्यवि की स्वतं िता एर्ं मानर् अजधकारों की गारंटी होने के बाद भी इस्लाम के उन्मादी अनुयावययों के
हाथों उसकी ऐसी ही स्लस्थवत ही कर दी िाएगी। मुसलमान अरब के उस काल को बबवर युग बताते हैं और तत्कालीन मक्का के
मूवतवपि
ू कों को घृजणत र् दुष्ट कहते हैं, तो आइए आि के मुसलमानों में उन्मादी वहंसा की बढ़ती प्रर्ृवत् और उन कजथत दुष्ट र्
अभागे मूवतवपूिकों की प्रर्ृवत् की तुलना करके देख।ें उन मूवतवपि
ू कों ने लगभग 30 र्षव तक मुहम्मद पर कोई शारीररक प्रहार नहीं
वकया, िबवक इस अर्जध में र्ह उनके धमव र् सं स्कृ वत पर वनरंतर हमला करता रहा, उनके सबसे पवर्ि धमवस्थान पर अपना दार्ा
करता रहा। कु रैशों के िीर्न र् धमव पर मुहम्मद के पैगम्बरी वमशन के प्रभार् पर सर वर्जलयम मुईर जलखते हैं: ‘उनका पवर्ि
धमवस्थान, मक्का का र्ैभर् और पूरे अरब की तीथवयािा के कें द्र पर नष्ट हो िाने का खतरा मं डरा रहा था।’37 मुहम्मद द्वारा की िा
रही धृष्टता, अपमान और अत्याचार सहने के बाद भी कु रैशों ने मुहम्मद को काबा में प्रर्ेश की अनुमवत दी थी, िबवक काबा को तो
छोवड़ये, मुस्लस्लम दे शों में आि भी वकसी मस्लस्िद के भीतर वकसी गैर-मुसलमान का प्रर्ेश र्जिवत है, यहां तक वक गैर-मुसलमान
मस्लस्िद को देखने के जलये भी भीतर नहीं िा सकता है। इस्लाम के दो सबसे पवर्ि नगरों मक्का र् मदीना में इस्लाम की स्थापना से
लेकर आि तक गैर-मुसलमान का प्रर्ेश र्जिवत है।

फरर्री 2007 में फ्रांस के उन अनेक नागररकों की हत्या कर दी गयी थी, िो मदीना के वनकट वनवषद् िेि में चले गये
थे।38 इस्लाम की असवहष्णु जशिाओं ने सातर्ीं सदी के सवहष्णु र् सभ्य लोगों को इस सीमा तक उन्मादी र् हत्यारा बना वदया है
वक के र्ल अरब ही नहीं, अवपतु वर्श्व के अन्य भागों के मुसलमान भी इस्लाम की परंपरा को इसी असवहष्णुता र् धमाांधता के साथ
आगे बढ़ा रहे हैं। और वर्डम्बना यह है वक मुहम्मद सातर्ीं सदी के मक्का के उन अत्यं त सवहष्णु र् सभ्य लोगों को क्ू र, दुष्ट और
घृजणत बताता था, तो आि के मुसलमान भी र्ैसा ही कर रहे हैं।

आि भी अनेक इस्लामी दे शों में मुसलमान उन लोगों की हत्या कर देते हैं, िो सार्विवनक रूप से इस्लाम छोड़ते हैं। सभी
मुस्लस्लम दे शों ने यू.एन. चाटव र के उस सार्वभौवमक मानर् अजधकार घोषणापि पर हस्तािर वकये हैं, िो व्यवि को इसकी गारंटी देता
है वक र्ह िो धमव चाहे चुने, इस तथ्य के बाद भी यह स्लस्थवत है। परंतु सातर्ीं सदी के मक्का के मूवतवपि
ू कों ने न तो मुहम्मद को

37 मुईर, पृष्ठ 62

38 ग्लोब एं ड मेल (कनाडा), गनमेन स्ले 3 फ्रेंचमेन इन सऊदी अरेवबया, 26 फरर्री 2007

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

कोई िवत पहुंचायी और न ही मक्का के उन दिवनों उच्शश्रृंखल नागररकों को कोई हावन पहुंचायी, जिन्ोंने उसके मिहब को स्वीकार
कर जलया था। स्पष्ट है वक मक्का के कु रैश मूवतवपूिकों की तुलना में आि के मुसलमान कहीं अजधक असवहष्णु , क्ू र र् असभ्य हैं।

मक्कार्ाजसयों की अनुकरणीय सवहष्णुता


मुहम्मद के समय मक्का का समाि वनजित रूप से फारस, सीररया, इजिप्ट र् भारत की तुलना में वपछड़ा और सरल था।
मक्का के लोगों का समुदाय अत्यं त धावमवक था। मुसलमानों द्वारा मक्का के उन लोगों (मूवतवपूिकों) का जचिण भले ही असवहष्णुता,
घृणा और वहंसा से भरे मनुष्यों के रूप वकया िाता हो, वकं तु सच तो यह है वक उन लोगों की वर्शेषता वर्जभन्न पं थों के प्रवत
सवहष्णुता, सद्भार् और सबको साथ लेकर चलने र्ाली थी। उदाहरण के जलये, भले ही काबा का मं वदर मक्कार्ाजसयों के ईश्वर का
पवर्ि धाम और उनकी धावमवक भवि का कें द्र था, तब भी उन्ोंने इस पर के र्ल अपना अजधकार नहीं माना। अवपतु उन्ोंने सऊदी
अरब के उस िेि एर्ं मेसोपोटावमया, वफजलस्तीन, सीररया र् दूर के अन्य िेिों के सभी धावमवक पं थों को उस पवर्ि धाम के गभवगहृ
में अपने-अपने धावमवक प्रतीक और मूवतवयां रखने की अनुमवत दी थी।39 चूं वक मक्का व्यापार का एक प्रमुख कें द्र था और दूर-दे शों से
आने र्ाले व्यापाररयों के ठहरार् का स्थान था, तो मक्का के लोग उन वर्दे शी व्यापाररयों की आध्याजत्मक आर्श्यकताओं को स्थान
दे ने की प्रर्ृवत् को साथ लेकर चलते थे, जिससे वक र्े िब मक्का में हों, तो अपने धावमवक पूिापाठ कर सकें । काबा के गभवगृह में
प्रवतवष्ठत वर्जभन्न स्थानों की प्राचीन मूवतवयों से 360 अखं ड आकृ वतयों का घेरा बन गया था। यहां तक वक यहदी र् ईसाई धमव का
प्रवतवनजधत्व करते हुए क्मशः अिाहम और इस्माईल के पुतले एर्ं नर्िात ईसामसीह को गोद में ली हुई मैरी की मूवतव भी र्हां
प्रवतवष्ठत थी। िब मुहम्मद ने मक्का िीता, तो उसने उस गभवगहृ में प्रवतवष्ठत मूवतवयों के वर्ध्वं स का आदेश वदया। तुकी के मुस्लस्लम
इवतहासकार एमेल एसीन के अनुसार, मुहम्मद ने अिाहम और इस्माइल के पुतले को नष्ट करने का आदे श वदया, वकं तु अपने हाथों
से ढं ककर मैरी और ईसामसीह की मूवतवयों की रिा की।40 ईसाई और यहदी लोग कु रैशों को उनकी मूवतवपूिा परंपरा के कारण
वनरंतर जझड़कते थे, वकं तु इस तथ्य के बाद भी मूवतवपूिक कु रैशों ने काबा के मं वदर में ईसाई और यहदी प्रतीकों को रखा था।
मुहम्मद िब मक्का में था, तो सीररया के व्यापारी मक्का में वबना वकसी प्रवतरोध के ईसाई धमव का प्रचार कर रहे थे।41 अनेक कु रैशों ने
ईसाई धमव स्वीकार कर जलया था। ईसाई धमव स्वीकार करने र्ाले ऐसे महत्वपूणव लोगों में र्ारका इब्न नौफल र् उस्मान इब्न हुर्ैररस
भी थे, िो मक्का में सम्मावनत र् प्रवतवष्ठत स्थान रखते थे (नीचे देखें)।

िैसा वक पहले ही बताया िा चुका है वक कु रैशों के धमव के प्रवत मुहम्मद की घोर घृणा र् अपमान के बाद भी मुसलमानों
को काबा में प्रर्ेश और तीथवयािा करने की अनुमवत थी। यहां तक वक भारत के वहंद,ू िो वक अनेक प्रकार की मूवतवयों की पूिा

39 र्ॉकर, पृष्ठ 44

40 इसीन ई (1963) वक्जियन द ब्लेस्ड, मदीना द रैवडएं ट, एलेक, लं दन, पृष्ठ 109

41 टै घर िे (1998) वक्जियन इन मुस्लस्लम इजिप्टः ए वहस्टॉररकल स्टडी आफ द ररलेसंस वबटवर्न कॉप्ट्र्ट् एं ड मुस्लस्लम्स फ्रॉम 640 टू 1922,
अनुर्ाद मैकर आरएन, ओरोस र्ेरलैग, आल्टे नबगव, पृष्ठ 16

41
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

करते थे, र्ो भी पवर्ि काबा के मं वदर में प्रर्ेश पाते थे। भारत के व्यापारी काबा से दे र्ी अल-मनात की प्रस्तर की र्ो मूवतव सोमनाथ
लाये थे, िो काबा से लुि हो गयी थी। सोमनाथ में अल-मनात अत्यं त लोकवप्रय दे र्ी हो गयीं। मुस्लस्लम वर्िेता गिनी का सुल्तान
महमूद काबा की मूवतवपूिक परंपरा के उस अर्शेष को नष्ट करने पर उतारू था और उसने उस मूवतव को नष्ट करने के जलये 1024 में
सोमनाथ पर आक्मण वकया। अपने उस पवर्ि र् प्रवतवष्ठत मूवतव की रिा करते हुए 50,000 वहंदू बजलदान हुए थे।42

इन तथ्यों को देखते हुए यह जसद् होता है वक मक्का के र्ो मूवतवपि


ू क आि के मुसलमानों की तुलना में वनजित ही अजधक
सवहष्णु, मेल-वमलाप रखने र्ाले और सभ्य लोग थे। मुहम्मद द्वारा कु रैशों के धमव, दे र्ी-दे र्ताओं और परंपराओं का इतना अनादर
और अपमान वकये िाने के बाद भी र्े उसे 30 र्षों तक सहते रहे। उन्ोंने िो एकमाि क्ू रता वदखायी थी, र्ह दो र्षव तक (617-
619) मुहम्मद के समुदाय का सामाजिक र् आजथवक बवहष्कार था और यह तो ऐसा दं ड है, जिसे आि भी इस प्रकार के प्रकरणों से
वनपटने के जलये अत्यजधक सभ्य उपाय के रूप में देखा िाता है। करुणा, सवहष्णुता, सामं िस्य और अवहंसा की बात करें, तो सातर्ीं
सदी के मक्का के वनर्ाजसयों का समाि भले ही गं र्ार र् वपछड़ी प्रकृ वत का था, वकं तु स्पष्ट रूप से र्े आि के मानकों में भी अत्यं त
सभ्य वदखते हैं। कु लवमलाकर, सत्य यह है वक मुसलमानों द्वारा वपछले 1400 र्षों से कलं वकत वकये िा रहे मक्का के मूवतवपूिक
र्ास्तर् में अत्यं त सवहष्णु र् सभ्य लोग थे।

मक्कार्ाजसयों के वर्रुद् मुहम्मद का आतं की अजभयान (623-630)


रसूल मुहम्मद का मदीना चले िाना उसके पैगम्बरी अजभयान की सफलता के जलये र्रदान बन गया। सफल पररणाम
आना सं भावर्त भी था, क्ोंवक मुहम्मद के मदीना िाने से पहले ही मुसाब इब्न उमैर का अजभयान र्हां बड़ी सं ख्या में लोगों को
इस्लाम में लाने में सफल रहा था। मुहम्मद मदीना पहुंचा, तो र्हां उसके अनुयायी उत्सुकता से स्वागत के जलये प्रतीिारत थे।
मदीना में मूवतवपूिक और यहदी समुदाय के लोग रहते थे। र्हां यहदी समुदाय धनी और अजधक प्रभार्शाली था। धीरे -धीरे मदीना
के अन्य नागररक उसके अजभयान में िुड़ने लगे। ऐसे लोगों में अजधकांशतः मूवतवपूिक िनिावतयों के लोग थे।

जिहाद का बीि
इब्न इस्हाक के अनुसार, मदीना आने के प्रथम र्षव में मुहम्मद ने इस नगर की िनिावतयों से एक सं जध की, िो मदीना
के सं वर्धान के रूप में प्रजसद् है। इस सं जध में िो अनुबंध (शतें) थे, उनसे मुहम्मद की वहंसक मं शा और वर्शेष रूप से कु रै शों के
प्रवत उसकी वहंसक मं शा वदखती है।43 ऐसे दो अनुबंध थेः

42 शमाव एसएस (2004) कै लीफ्स एं ड सुल्तािः ररलीजियश आइवडयॉलािी एं ड पॉलीवटकल प्रैस्लक्सस, रूपा एं ड कं पनी, न्यू दे ल्ही, पृष्ठ 144-45

43 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 231-33; र्ॉट डब्ल्यूएम, मुहम्मद इन मदीना, आक्सफोडव यूनीर्जसवटी प्रेस, कराची, 2004 इस्लरंट, पृष्ठ. 221-25

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

1. वकसी भी मोवमन को वकसी कावफर की हत्या के जलये मारा नहीं िाएगा और न ही मुसलमानों के वर्रुद् वकसी कावफर का
समथवन वकया िाएगा।
2. (मदीना के ) बहुदे र्र्ादी न तो उसके सं रिण में रह रहे वकसी कु रैश की सं पवत् या व्यवि को लेंगे और न ही मुसलमानों
के वर्रुद् िाएं गे।

इस सं जध के ये अनुबंध स्पष्टतः बताते हैं वक मुहम्मद अपने पैतक


ृ नगर के कु रैशों के वर्रुद् वहंसक अजभयान प्रारंभ करने
की मं शा से मदीना आया था और शीघ्र ही उसने वहंसक अजभयान प्रारंभ कर वदये। िैसे ही र्ह र्हां िमा, उसने अपना ध्यान
कु रैशों से प्रवतशोध लेने की ओर कें वद्रत कर वदया। ऐसा प्रतीत होता है वक मुहम्मद के अनुयायी वहंसा में जलि होने का वर्रोध कर
रहे थे। ऐसे में अल्लाह मुहम्मद की सहायता के जलये आया और उसने वहंसा-भड़काने र्ाली आयतों की झड़ी लगाते हुए मुसलमानों
से जिहाद अथर्ा पवर्ि िं ग करने को कहा, आरंभ में कु रैशों के वर्रुद् जिहाद करने को कहा और इसके बाद सभी गैर-मुसलमानों
के वर्रुद् यह िं ग लड़ने को कहा। मुहम्मद के अनुयायी वहंसा के जलये अवनच्छु क थे, तो अल्लाह ने एक टे लर-मेड
(आर्श्यकतानुसार तैयार) आयत भेिकर जिहाद अथावत िं ग को मुसलमानों का मिहबी कतवव्य बता वदया: ‘‘अल्लाह के मागव में
उनसे लड़ो, िो तुमसे लड़ते हैं, वकं तु सीमाएं न लांघो; क्ोंवक अल्लाह को अर्ज्ञा करने र्ाले वप्रय नहीं हैं [कु रआन 2:190]।’
अभी तक मुसलमानों और कु रैशों के बीच कोई सं घषव नहीं हुआ था। चूं वक कु रैश मुहम्मद के अजभयान का दृढ़ता से वर्रोध कर रहे
थे, तो इस वर्रोध को ही ‘‘िं ग’’ के समान मान जलया गया। इसजलये कु रैशों से िं ग करना मुसलमानों के जलये अल्लाह द्वारा
स्वीकृ त आदेश बन गया।

मुहम्मद के िो अनुयायी अभी भी अकारण वहंसा में जलि होने की र्ैधता पर प्रश्न उठा रहे थे, उनके जलये अल्लाह ने यह
कहकर वहंसा करना सरल बना वदया वक: ‘और उन्ें िहां पाओ काट डालो, और उन्ें र्हां से मार भगाओ िहां से उन्ोंने तुम्हें
हटाया है; क्ोंवक वफत्ना (उपद्रर्) र् दबार् हत्या से भी बुरा है... [कु रआन 2:191]।’ चूं वक उन कु रैशों ने मुहम्मद से सं घषव वकया
था और उसे वनकाल बाहर वकया था, तो यह हत्या िैसे िघन्य अपराध से भी बुरा अपराध था, इसजलये न्याय के जलये कु रैशों से
िं ग करना इसकी र्ैधता से बढ़कर कहीं अजधक महत्वपूणव हो चला।

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

इसजलये मोवमनों में कु रैशों से िं ग करने को लेकर कोई नैवतक वहचक नहीं रह गयी, क्ोंवक र्े कु रैशों पर हमला करके
अल्लाह के उद्दे श्य में के र्ल न्याय प्रदान कर रहे थे। अल्लाह उन पर दबार् डाल रहा है वक र्े ढृ ढ़ता से तब तक लड़ते रहें , िब
तक वक न्याय और अल्लाह (इस्लाम) का प्रभुत्व न हो िाएः ‘और उनसे तब तक लड़ते रहो, िब तक वक वितना अथर्ा दबार्
समाि न हो िाए, और सभी ओर न्याय र् अल्लाह में वर्श्वास न हो िाए [कु रआन 2:193]।’ आगे बढ़ने से पूर्व आइए देखें वक
इन आयतों में वित्ना (उपद्रर्) और दबार् वकसका प्रतीक है।

उपद्रर् र् दबार्
आयत 2:193 की यह शब्दार्ली उपद्रर् या दबार् (अन्य आयतों में अत्याचार भी) को अरबी के वित्ना शब्द के जलये
प्रयुि होती है और परंपरागत रूप से इसे मूवतवपूिा के रूप में समझा िाता है , या सटीक ढं ग से कहें, तो मूवतवपूिा की परंपरा
पर कु रैशों की अवडगता, इस्लाम में आने से मना करने को वफत्ना समझा िाता है। वकं तु इस्लाम के आधुवनक वर्द्वानों ने गैर-
मुसलमानों र् पजिम के लोगों को भ्वमत करने के जलये कु रआन के अंग्रेिी अनुर्ाद में वित्ना शब्द के जलये अस्पष्ट सी शब्दार्ली
दी है। इन अस्पष्ट अनुर्ादों से प्रभावर्त होकर इस्लाम के अनेक वर्द्वान यह कहने को तत्पर रहते हैं वक इस्लाम में वहंसक
जिहाद या हत्या की अनुमवत कठोर शतों के साथ दी गयी है, िैसे वक उपद्रर्, दमन या अत्याचार से लड़ने के जलये। यह
तावकव क भी लगता है। कौन सा ऐसा व्यवि होगा भला, िो दमन या अत्याचार से लड़ने के शांवतवप्रय उद्दे श्यों की सराहना नहीं
करेगा?

वकं तु कु रआन की भाषा में उपद्रर्, दमन या अत्याचार का र्ास्तवर्क अथव क्ा है, यह समझने के जलये इन
पाररभावषक शब्दार्जलयों का समग्र वर्श्लेषण वकये िाने की आर्श्यकता है। अरबी भाषा में वित्ना (अल-फसाद भी) का अथव
होता है वकसी समूह में असं तोष या मतभेद, कानून र् व्यर्स्था का उल्लं घन, या अर्ज्ञा, सत्ा प्रवतष्ठान के वर्रुद् कोई क्ांवत या
युद्, अथर्ा इसी प्रकार की कोई घटना। उल्लेखनीय है वक कु रैश समुदाय मक्का के प्रशासन के शीषव पर था और असं तुष्टों में
मुहम्मद का समुदाय था, तो वित्ना कु रैशों नहीं वकया होगा, अवपतु मुहम्मद ही वित्ना कर रहा होगा।

तब रसूल और इस्लामी अल्लाह ने कु रैशों को वित्ना करने का दोषी कै से बता वदया? ऐसा सं भर्तः इसजलये हुआ
होगा, क्ोंवक आयत 2:193 (8:39 भी) के अनुसार, कु रआन को सं सार के सर्ोच्च रचवयता अल्लाह द्वारा वर्जध र् न्याय की
ऐसी सर्ोच्च पुस्तक के रूप में प्रकट वकया गया, जिसका प्रभुत्व सभी धमों को स्वीकार करना ही होगा। इस प्रकार मुहम्मद और
अल्लाह के वनणवय के अनुसार कु रआन अथावत अल्लाह के सं दे श को अस्वीकार करना अथर्ा इसका वर्रोध करना वित्ना होगा
और मुहम्मद के पं थ को लेकर कु रैश यही कर रहे थे। और अल्लाह आयत 2:217 में वित्ना को ठीक ऐसे ही पररभावषत करता
हैः ‘‘...अल्लाह की दृवष्ट में अल्लाह के पथ में िाने से रोकना, अल्लाह को नकारना, उसकी पवर्ि मस्लस्िद में िाने से रोकना
और मस्लस्िद के सदस्यों को भगाना गं भीर अपराध है।’ वित्ना और दबार् हत्या से भी बुरा है।’’ इस प्रकार यवद वकसी ने
इस्लामी मिहब को स्वीकार करने से मना कर वदया, तो यह वित्ना, दबार् और अत्याचार माना िाता है, िो वक अल्लाह र्
उसके रसूल की दृवष्ट में हत्या से भी िघन्य अपराध माना गया है।

पाठकों को यह अर्श्य ध्यान रखना चावहए वक मूवतवपूिक कु रैशों का के र्ल यही अपराध (इस्लाम को स्वीकार न
करना) था, जिसके जलये मुहम्मद उन पर सारे अत्याचार वकये, िैसा वक नीचे र्णवन वकया गया है। इसके अवतररि, कु रैश या
अरब के अन्य मूवतवपूिकों के साथ मुहम्मद के व्यर्हार का नमूनापरक प्रोटोकॉल वर्श्व के सभी मूवतवपूिकों पर प्रत्येक काल में 44
लागू होंग।े
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अल्लाह ने मुसलमानों को सभी गैर-मुस्लस्लम धमों को वमटा दे ने का पुनः आदे श वदयाः ‘और उनसे तब तक लड़ते रहो,
िब तक वक वफत्ना या दबार् समाि न हो िाए, और सबमें र् सभी स्थानों पर न्याय और अल्लाह में वर्श्वास व्याि हो िाए; वकं तु
यवद र्े हार मान लें, र्स्तुतः अल्लाह सब देख रहा है वक र्े क्ा कर रहे हैं [कु रआन 8:39]।’ ऐसा प्रतीत होता है वक ये आयतें भी
मुहम्मद के कु छ अनुयावययों को प्रेररत करने के जलये पयावि नहीं थीं। उन्ोंने कु रैशों या वकसी और से िं ग करने में सं जलि होने से
मना कर वदया, क्ोंवक र्े वहंसा को अच्छा नहीं मानते थे। इसके पिात अल्लाह नयी आयतों के साथ आया और सभी मुसलमानों
के जलये िं ग करना अवनर्ायव बना वदया, चाहे िं ग करना उन्ें अच्छा लगे या नहींः ‘तुम्हारे जलये िं ग करना वनजित वकया गया है
और तुम्हें यह अच्छा नहीं लगता। वकं तु हो सकता है वक िो बात तुम्हें अच्छी न लगती हो, र्ही तुम्हारे जलये अच्छी हो, और िो
तुम्हें अच्छा लगता हो, र्ह तुम्हारे जलये बुरा हो। वकं तु अल्लाह िानता है, और तुम नहीं’ [कु रआन 2:216]।

लगता है वक आरंभ में मुहम्मद के अनुयावययों ने िं ग में सस्लम्मजलत होने का वर्रोध करते हुए यह तकव वदया था वक
अल्लाह ने इसकी अनुमवत नहीं दी है। वकं तु िब सातर्ें आसमान से र्ह अनुमवत आ गयी, तो अब भी कु छ अवहंसक, कोमल-हृदय
अनुयायी वहंसा में जलि होने को लेकर असमं िस में थे और र्े रिपात एर्ं सं भावर्त मृत्यु से भयभीत हो रहे थे। अल्लाह ने यह
कहते हुए मुहम्मद के उन सशं वकत अनुयावययों की भत्सवना की: और िो ईमान लाये, उन लोगों ने कहा वक क्ों नहीं उतारी गयी
कोई सूरा (िं ग के सं बं ध में), तो िब एक वनणावयक सूरा उतार दी गयी और िं ग का उल्लेख कर वदया गया, तो तुमने देखा वक
जिनके मन में व्याजध (दुवर्धा) है र्े तुम्हारी ओर ऐसे दे ख रहे हैं , मानों मृत्यु के समय अचेत पड़े हों। लानत है उन पर।! [कु रआन
47:20]।

मुहम्मद के लगभग सभी आरंजभक अनुयायी समाि के वनम्न र्गव से सं बं ध रखने र्ाले उपद्रर्ी थे। वकं तु िब वनदोषों के
प्राण लेने र्ाला जिहाद आरंभ हुआ, तो चूं वक र्े एक ऐसे समाि से आते थे, िो अवहंसक र् शांवतवप्रय था, इसजलये र्े इसमें भाग
लेने में नैवतक रूप से वहचक रहे रहे थे। अल्लाह ने इस क्ू र काम का उत्रदावयत्व अपने पर लेकर मुहम्मद के अनुयावययों के इस
अपराध-बोध को हटा वदयाः ‘तो ये तुम नहीं हो, जिसने उन्ें काट डाला, अवपतु यह अल्लाह है जिसने उन्ें मारा है, और िब तुमने
उनको (शिु) कष्ट वदया तो तुमने नहीं वदया, अवपतु र्ह अल्लाह था जिसने उन्ें कष्ट वदया, और जिससे वक र्ह अपनी ओर से
मोवमनों को अच्छा उपहार दे; वनजित रूप से अल्लाह सुन रहा है, सब िान रहा है’ [कु रआन 8:17]।

यह भी प्रतीत होता है वक मुहम्मद के कु छ मक्का के अनुयायी कु रैशों से िं ग नहीं करना चाहते थे , उनके प्रवत शिुता नहीं
पालना चाहते थे। क्ोंवक कु रैश उनके अपने पाररर्ाररक सदस्य, सं बं धी और उनकी ही िनिावत के लोग थे। ऐसे अनुयावययों को
वर्श्वास में लेने के जलये अल्लाह ने एक और आयत भेिकर उन्ें अपने सगे-सं बं जधयों से नाता तोड़ लेने को प्रेररत वकया। उदाहरण
के जलये, अल्लाह ने आयत भेिकर कहाः ‘हे ईमान लाने र्ालो! र्ास्तर् में, तुम्हारी बीवर्यों और बच्चों में से ही तुम्हारे शिु हैं;
अतः , उनसे सार्धान रहो...’ [कु रआन 64:14]।

अल्लाह मुसलमानों को मुसलमानों से अपनी पूरी सामथ्यव र् सं साधन जिहाद के जलये दे ने को कहता है और र्चन दे ता है
वक र्ह उन्ें इसे पूरा लौटाएगा: ’जितना हो सके , तुम उनके जलए हजथयारबं द ताकत और घोड़े तैयार रखो, जिससे अल्लाह के
शिुओं र् अपने शिुओं और उनके आसपास के लोगों को आतं वकत कर सको। जिनको तुम नहीं िानते , उन्ें अल्लाह ही िानता

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

है। अल्लाह के मागव में तुम िो भी व्यय (खचव) करोगे, तुम्हें पूरा र्ापस वमलेगा और तुम्हारा कु छ न वबगड़ेगा’ [कु रआन 8:60]।
ऐसा ज्ञात होता है वक मुहम्मद के कु छ अनुयायी जिहाद में इसजलये साथ नहीं दे ना चाहते थे, क्ोंवक र्े अपनी जितनी सं पवत् र्
सं साधन व्यय करते, के र्ल उतना ही र्ापस वमलता। इसजलये अल्लाह ने अन्य पुरस्कारों के साथ ही जिहाद में व्यय की गयी धन-
सं पवत् कई गुना अजधक करके र्ापस करने का र्ादा वकया: ‘और क्ा कारण है वक तुम व्यय नहीं करते अल्लाह के मागव में?
...कौन है र्ह, िो अल्लाह को अच्छा उधार दे ? क्ोंवक (अल्लाह) उसके इस उधार की र्ापसी कई गुना बढ़ाकर करेगा, और
(इसके अवतररि) एक बड़ा पुरस्कार भी दे गा’ [कु रआन 57:10-11]। अभी भी मुहम्मद के अनुयावययों में कु छ ऐसे थे, िो अल्लाह
के जिहादी िं ग में अपने धन को नहीं लगाना चाहते थे, तो अल्लाह ने उनकी भत्सवना इस प्रकार कीः ‘सुनो! तुम्ही लोग हो, जिन्ें
बुलाया िा रहा है वक अल्लाह के मागव में व्यय करो: पर तुममें से कु छ इसमें कृ पणता (कं िूसी) करने लगते हैं और ऐसा करने र्ाले
वकसी से नहीं, अपनी आत्मा से ही कृ पणता करते हैं...’ [कु रआन 47:38]।

अल्लाह की आरंजभक प्रेरणा र् स्वीकृ वत ही मुसलमानों को जिहाद अथर्ा पवर्ि िं ग िैसा वहंसक हमला करने और वर्शेष
रूप से मक्का के कु रैशों के वर्रुद् वहंसक जिहाद करने के जलये उकसाने र्ाली है। वहंसा के जलये अल्लाह से अनुज्ञवि (लाइसेंस)
वमलते ही मुहम्मद ने फरर्री 623 ईसर्ी में पहला जिहादी हमला (गिर्ा) का आदेश वदया। यह आदे श उसने मदीना पहुंचने के
माि आठ मास के भीतर वदया था। मुहम्मद ने सबसे पहला जिहादी हमला र्हां वनकट स्लस्थत मागव से वनकल रहे कु रैश व्यापाररक-
कारर्ां पर करर्ाया। इस जिहादी हमले के दो उद्दे श्य थे: एक तो इस कारर्ां को लूटना और दूसरा कु रैशों को प्रतावड़त करना। वकं तु
यह हमला वर्फल रहा। कु छ मास (महीनों) में ऐसे ही दो और हमले के आदे श वदये गये, वकं तु र्ो भी वर्फल रहे। मदीना आने के
लगभग 12 मास पिात मुहम्मद ने जिहादी हमलों का नेतृत्व स्वयं करना प्रारंभ कर वदया, वकं तु उसके सारे प्रयास व्यथव गये। अगले
कु छ मास में उसने तीन और हमलों का नेतृत्व वकया, वकं तु वर्फल रहा।44

नखला का हमला
िनर्री 624 में रसूल ने अब्दुल्ला इब्न िाहश के नेतृत्व में आठ हमलार्रों का एक दल मक्का के एक कारर्ां पर हमला
करने के जलये नखला भेिा। नखला मदीना से नौ वदन की यािा की दूरी पर था और मक्का से इसकी दूरी माि दो वदन की यािा की
थी। इस दल को भेिते समय रसूल ने अब्दुल्ला के हाथ में एक पि देते हुए वनदे श वदया वक दो वदन की यािा करने के बाद ही उस
पि को खोले। वनधावररत समय पर अब्दुल्ला ने िब र्ह पि खोला, तो उसमें जलखा था: ‘िब तुम मेरा यह पि पढ़ो, तो तब तक
आगे बढ़ते रहो, िब तक वक मक्का र् अल-ताइफ के बीच नखला न पहुंच िाओ। र्हां घात लगाकर कु रैश (कारर्ां) की प्रतीिा
करो....।’45 अब्दुल्ला र् उसका वगरोह इस आज्ञा का पालन करते हुए नखला पहुंच गया।

44 मुईर, पृष्ठ 225-228

45 इब्न इस्हाक, पृष्ठ. 287; मुईर पृष्ठ 208-209

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

यह उरमा (काबा की छोटी तीथवयािा) का समय था। वनकट आ रहे कारर्ां को उनकी मं शा का आभास न हो सके , इसके
जलये वगरोह के एक सदस्य ने जसर मुं ड़र्ा जलया, जिससे ऐसा लगे वक र्े लोग तीथवयािा करके आ रहे हैं, इसजलये शिु नहीं हो सकते
हैं। िैसे ही कारर्ां उनकी पहुंच में आया, र्े उस पर टू ट पड़े: कारर्ां का एक सेर्क मारा गया; दो को बं दी बना जलया गया, िबवक
एक व्यवि भागने में सफल रहा। हमलार्रों का ये दल मालदार कारर्ां और दो बं वदयों के साथ मदीना पहुंचा।

यह रिब का महीना था; िो अरबी परंपरा में र्षव के उन चार पवर्ि मास में आता था, जिसमें लड़ाई-झगड़ा या रिपात
करना वनवषद् था। सवदयों पुरानी इस पवर्ि परंपरा के उल्लं घन से मदीना के नागररकों और यहां तक वक मुहम्मद के कु छ
अनुयावययों में बड़ा असं तोष र् रोष उत्पन्न हो गया। इससे मुहम्मद वर्जचि स्लस्थवत में फंस गया। उसने पहले तो हमलार्र दल के
लोगों पर ही दोषारोपण करते हुए स्वयं को इस घटना से पृथक करने का प्रयास वकया। वकं तु िब उसने देखा वक इससे अब्दुल्ला
इब्न िाहश र् उसके साथी हमलार्रों का मन जखन्न हो गया (जिससे सं भार्ना थी वक भवर्ष्य में हमला करने को कहने पर र्ो लोग
पीछे हट िाएं गे), तो अल्लाह तुरंत बचार् में आया और भले ही र्ह रिपात पवर्ि मास में हुआ था, पर उसने उसको न्यायोजचत
ठहराने के जलये वनम्नजलजखत आयत उतार दी:

र्े वनवषद् माह में िं ग के बारे में पूछते हैं। उनसे कह दोः ‘र्े पूछते हैं वक पवर्ि मास में िं ग करना कै सा है? उनसे कह दोः उसमें
िं ग करना गं भीर (अपराध) है; परन्तु अल्लाह की दृवष्ट में अल्लाह के पथ पर िाने से रोकना, अल्लाह को मानने से अस्वीकार करना,
मस्लस्िदे हराम (पवर्ि मस्लस्िद) में िाने से रोकना और मस्लस्िद के सदस्यों को र्हां से वनकालना उससे भी गं भीर अपराध है।’ वित्ना
(इस्लाम से वर्चजलत करना) हत्या से भी बुरा है। और र्े तो तुमसे लड़ते ही रहेंगे , िब तक वक, यवद उनके र्श में हो, तुम्हें तुम्हारे
मिहब (इस्लाम) से फेर न दें ... [कु रआन 2:217]।

जिन मुसलमानों ने इस घटना पर अप्रसन्नता व्यि की थी और सं भर्तः मुहम्मद के पं थ को छोड़ सकते थे, उनको
चेतार्नी दे ते हुए यह आयत समाि हुई वक ‘...और तुममें से िो व्यवि अपने मिहब (इस्लाम) से दूर होगा, वफर कु फ्र पर ही
उसकी मौत होगी, ऐसे लोगों का वकया-कराया, इस सं सार तथा परलोक दोनों में व्यथव हो िाएगा तथा ये ही लोग िहन्नुम की आग
में िलेंगे और अनं त काल तक उसी आग में पड़े रहेंगे’ [कु रआन 2:217]। इस आदे श से वकसी भी समय, कहीं भी और वकसी भी
कारण से कु रैशों या वकसी भी कजथत शिु पर हमला करना और उनकी हत्या करना ईश्वरीय रूप से न्यायोजचत हो गया। रसूल ने
अब्दुल्ला को अमीर-उल-मुमीनीन की उपाजध दे कर सम्मावनत वकया।

इस पर वर्चार वकये िाने की आर्श्यकता है वक लूटपाट के इस सफल हमले से पूर्व मुहम्मद का समुदाय घोर आजथवक
अभार्ों का सामना कर रहा था। इसजलये, मुहम्मद के समुदाय र् पं थ में रिपात र्ाले इस हमले का वर्शेष महत्व था, क्ोंवक
इससे उन्ें अपने अभार्ों को दूर करने के जलये बहुत (लूट का माल) वमला।

अल्लाह ने मुसलमानों के जलये लूट का माल यह कहते हुए र्ैध बना वदया: ‘तो उस माले ग़नीमत (लूट का माल) का
भोग करो, र्ह हलाल (उजचत) स्वच्छ है तथा अल्लाह के प्रवत अपना कतवव्य पूरा करो’ [कु रआन 8:69]। अल्लाह ने िं ग में लूटे
गये माल के वर्तरण को लेकर एक और आयत 8:1 उतारी और उसके अनुसार, रसूल ने लूट के माल का पांचर्ां अंश अपने जलये
रख जलया और िो शेष बचा उसे हमलार्रों में बांट वदया गया। और अजधक धन प्राि करने के जलये उन दोनों बं वदयों को वफरौती

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

लेकर छोड़ वदया गया।46 इससे मुहम्मद और उसके समुदाय में लूटपाट की गवतवर्जधयों का प्रारंभ हो गया और गैर -मुस्लस्लम कारर्ां
र् समुदाय को लूटना उनकी आिीवर्का का बड़ा स्रोत बन गया।

बद्र की िं ग
मुहम्मद के पैगम्बरी वमशन के जलये अगला हमला, िो र्ास्तर् में सबसे प्रजसद् र् महत्वपूणव है, इसके दो मास पिात माचव
624 ईसर्ी में हुआ। मुहम्मद ने कु रैशों के एक धनी कारर्ां पर हमला करने और उसे लूटने की योिना बनायी। इब्न इस्हाक ने
जलखा है, ‘िब रसूल ने सुना वक मक्का के नेता अबू सुफ्यान सीररया से र्ापस लौट रहे हैं, तो उन्ोंने मुसलमानों को बुलाया और
बोले, ‘यह र्ो कु रैश कारर्ां है, जिसमें उनकी सं पवत् है। िाओ और उस पर हमला करो, सं भर्तः अल्लाह इस कारर्ां को जशकार
के रूप में हमें दे गा।’ लोग उसके आह्वान पर िुटे। कु छ लोग उत्साहपूर्वक िु टे, िबवक कु छ लोग की इच्छा नहीं थी पर आये47,
क्ोंवक उन्ोंने कल्पना नहीं की थी वक रसूल िं ग शुरू करेंगे।’48 मुहम्मद के हमले की योिना की सूचना अबू सुफ्यान तक पहुंची,
तो उन्ोंने बचार्-दल मं गर्ाने के जलये एक दूत को मक्का भेिा। इस बीच, सुफ्यान मुहम्मद के वगरोह से बचते हुए लालसागर तट
के वकनारे-वकनारे दूसरे मागव से चले और सुरजित मक्का पहुंचने के जलये कारर्ां की गवत बढ़ा दी।

परंतु कारर्ां को बचाने और मुहम्मद के लुटेरे वगरोह को पाठ पढ़ाने के जलये एक बचार्-दल पहले ही मक्का से वनकल
चुका था। मुहम्मद ने िल से पररपूणव मरु-हररत िेि में बद्र नामक स्थान के वनकट कारर्ां पर हमला करने की योिना बनायी थी।
इस स्थान पर पहुंचकर उसने पहले िल के कु ओं को बालुओं से पाट वदया और के र्ल उस एक कु एं को छोड़ा, िो उसके जशवर्र के
वनकट था, जिससे वक उसके वगरोह के लोगों को िलापूवतव होती रहे। र्ह इस बात से अनजभज्ञ था वक अबू सुफ्यान कारर्ां लेकर
सुरजित वनकल गये हैं। िब उसने मक्का की सेना के पदचाप का कोलाहल अपनी ओर आते हुए सुना, तो उसे लगा वक र्ह कारर्ां
ही है।

कई वदनों तक तपते बालू के रेवगस्तान में कष्टसाध्य यािा के पिात रमिान के सिर्ें वदन िब मक्का की सेना बद्र में
पहुंची, तो उसके सैवनक थक चुके थे और भयानक प्यास से व्याकु ल हो गये थे। वकं तु उनको िल प्राि करने से रोकने के जलये
मुहम्मद द्वारा सभी कु ओं को नष्ट कर वदया गया था। मक्का की सेना की ओर लगभग 700 (कु छ कहते हैं 1000) योद्ा थे, िबवक
मुहम्मद के वगरोह में लगभग 350 हमलार्र थे। अगले वदन िब मक्का की सेना और मुहम्मद के वगरोह में रिरंजित सं घषव हुआ, तो
प्यास से व्याकु ल मक्का के सैवनक तीव्रता से धराशायी होने लगे और अपनी बड़ी िवत कराकर उन्ें पीछे हटना पड़ा, िबवक मुहम्मद

46 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 286-88

47 यह स्पष्ट होता है वक इस समय भी, अल्लाह द्वारा जिहाद या पवर्ि िं ग की अनुमवत वदये िाने के एक र्षव से अजधक समय पिात मुहम्मद
के बहुत से अनुयायी वहंसा में जलि होने को अवनच्छु क थे।

48 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 289

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

के वगरोह के के र्ल 15 हमलार्र मारे गये। मुहम्मद के आदे श पर युद्भूवम में बं दी बनाये गये मक्का के कु छ सैवनकों को क्ू रता से
काट डाला गया।49

बद्र की बड़ी िीत से दुस्सावहत रसूल ने शीघ्र ही मदीना के बनू कै नुका की यहदी िनिावत पर हमला कर वदया और उन्ें
मार-काट कर र्हां से भगा वदया (नीचे र्णवन है)।

उहुद का वर्नाशकारी सं घषव


बद्र की अवर्श्वसनीय िीत से मुहम्मद और उसके समुदाय में यह आत्मवर्श्वास भर गया वक िं ग में वर्रोजधयों पर िीत में
अल्लाह उनकी सहायता कर रहा है। अल्लाह ने इस बात की पुवष्ट के जलये एक टे लर-मेड (आर्श्यकतानुसार) आयत भेिकर
बताया वक र्ह, र्ास्तर् में, िं ग में फररश्ते भेिकर उनकी सहायता करता है, जिससे 20 अवडग मुसलमान लड़ाके 200 वर्रोजधयों
पर भारी पड़ िाते हैं [कु रआन 8:66]। मुहम्मद ने शीघ्र ही मक्का के कारर्ाओं पर तीन और हमले कर उनका माल लूट जलया।
इससे कु रैशों की आिीवर्का का साधन र्ाजणज्य लगभग रुक गया और र्े अत्यं त क्ु द् हो गये, तो उन्ोंने मुहम्मद र् उसके वगरोह के
हमलों का आक्ामक प्रत्युत्र दे ने का वनणवय वकया। 23 माचव 625 को अबू सुफ्यान के नेतृत्व में मक्का के लगभग 3000 योद्ा
मदीना के वनकट उहुद नामक स्थान पर मुहम्मद के नेतृत्व र्ाले वगरोह के 700 मुसलमानों से जभड़ गये। सं ख्या के आधार पर दुबल

मुसलमान वगरोह तुरंत ही दुबक गया और मुसलमानों की बड़ी िवत हुई। इस युद् में मुहम्मद को भी एक पत्थर आकर लगा, जिससे
उसके दांत टू ट गये और र्ह अचेत होकर वगर पड़ा। इस युद् में मुसलमानों के 74 जिहादी मारे गये, िबवक मक्का की सेना के
के र्ल 9 लोगों ने प्राण गं र्ाये।

चूं वक इस वर्नाशकारी युद् से पूर्व मुहम्मद ने र्चन वदया था वक फररश्तों की सहायता से 20 मुसलमान भी 200 शिुओं
को मार-वगरायेंग,े वकं तु उहुद के इस युद् में इतनी बड़ी सं ख्या में मुसलमान मारे गये वक उसके अनुयावययों समेत वगरोह के अन्य
सदस्यों में मुहम्मद के पैगम्बरी के दार्े पर सं दे ह व्याि हो गया और एक प्रकार से उनमें मुहम्मद के प्रवत र्ैर -भार् पनप गया। उसके
वर्रोधी, वर्शेष रूप से यहदी और असं तुष्ट मुनाविक अब्दुल्ला इब्न उबै (नीचे दे खें वक र्ह क्ों असं तुष्ट था) ने भी इस घटना का
उपयोग मुहम्मद को तुच्छ दशावने एर्ं उसके पैगम्बर होने के दार्े पर सं दे ह फैलाने के जलये वकया। हर बार के िैसे , इस बार भी
अल्लाह मुहम्मद के बचार् में आया और उसकी पैगम्बरी के प्रवत र्ैर र् सं दे ह को काटते हुए आयतों की लं बी श्रृंखला उतार दी
[कु रआन 3:120-200]।

वर्रोजधयों को पराजित करने में फररश्तों की सहायता के उसके आश्वासन पर अवर्श्वास प्रकट करते हुए पररर्ाद
(जशकायत) करने र्ालों का मुं ह बं द करने के जलये अल्लाह ने इसका दोष मुहम्मद के अनुयावययों पर ही मढ़ वदया और उनमें दृढ़ता
र् धैयव का अभार् बताते हुए आयत उतारी: ’स्मरण करो, िब तुम (रसूल) मोवमनों से कह रहे थेः ‘क्ा तुम्हारे जलये इतना ही पयावि

49 इवबद, पृष्ठ 289-314; र्ॉकर, पृष्ठ 119-20

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नहीं है वक अल्लाह तुम्हें (वर्शेष रूप से) उतारे गये तीन हिार िररश्तों से सहायता दे ?’ हां, यवद तुम अवडग रहोगे और आज्ञाकारी
रहोगे, तो भले ही र्े (शिु) तुम्हारे सामने तूफान के िैसे और पूरे उत्साह (उत्ेिना) के साथ आ िाएं , तुम्हारा स्वामी तुम्हें (तीन
नहीं, पांच हिार जचन् लगे िररश्तों की सहायता भेिग
े ा, जिससे वक तुम उन पर भयानक हमला कर दो’ [कु रआन 3:224-25]।

अल्लाह ने कहा वक इससे पूर्व बद्र की िं ग में िब मुसलमानों को हार का भय सता रहा था, तो उसने र्ास्तर् में उनकी
सहायता की थी; और उस सहायता के जलये उन्ें उसके प्रवत कृ तज्ञ होना चावहए: ‘स्मरण करो, तुम्हारे (मुसलमानों में) दो ित्थे
(बद्र में) कायरता में पड़ गये थे; वकं तु अल्लाह उनका रिक था, और मोवमन को (सदा) अल्लाह में वर्श्वास बनाये रखना चावहए।
बद्र में िब तुम तुच्छ र् छोटी फौि र्ाले थे, तो अल्लाह ने तुम्हारी सहायता की थी; अल्लाह से डरो; इस प्रकार उसके उसके प्रवत
कृ तज्ञता वदखाओ’ [कु रआन 3:122-23]।

अल्लाह ने मुसलमान लड़ाकों पर यह भी आरोप लगाया वक उन्ोंने मुहम्मद के आदे श पर ध्यान नहीं वदया और उसने
उहुद में उनकी परािय का का यही कारण बताया: ’(और स्मरण करो) िब तुम (पहाड़ी पर) चढ़े (भागे) िा रहे थे और तुम वकसी
की ओर मुड़कर नहीं देख रहे थे, िबवक रसूल (लड़ने के जलये) तुम्हें, पीछे से, पुकार रहे थे। इसजलये उसने (अल्लाह ने) तुम्हें दुख
के बदले दुख दे वदया, जिससे (र्ह तुमको पाठ पढ़ा सके ) वक िो तुमसे खो गया अथर्ा िो वर्पवत् तुम पर आ पड़ी है , उस पर
सं ताप न करो’ [कु रआन 3:153]।

आगे अल्लाह ने मुहम्मद से पूर्व आये अपने पैगम्बरों र् उनके अनुयावययों का उदाहरण दे ते हुए बताया वक वकस प्रकार
उन लोगों ने हतोत्सावहत हुए वबना उसके उद्दे श्य से जलये वनरंतर सं घषव वकया। अल्लाह ने मुहम्मद के अनुयावययों को भी उनके िैसा
करने को कहा: ‘वकतने ही रसूल लड़े (अल्लाह के मागव में), और उनके साथ वमलकर बहुत-से अल्लाह र्ाले (लड़े)? अल्लाह के
मागव में लड़ते हुए उन पर वर्पदा भी आयी, तो भी र्े हतोत्सावहत नहीं हुए, और न ही उनकी (इच्छा) मं द हुई, न ही र्े दबे। और
अल्लाह को र्ो ही वप्रय हैं, िो दृढ़ र् धैयवर्ान होते हैं’ [कु रआन 3:146]।

उहुद में िो मारे गये थे, उनके वर्षय में अल्लाह ने आयत उतार कर उनके सं बं जधयों र् साजथयों को सांत्वना दी वक र्े
र्ास्तर् में मरे नहीं हैं, अवपतु तन्मयार्स्था में चले गये हैं; और र्े िन्नत पहुंच गये हैं, िहां र्े आनं द का भोग कर रहे हैंः ‘िो
अल्लाह के मागव में मृत्यु को प्राि हुए, उन्ें मरा हुआ न समझो। नहीं, र्े िीवर्त हैं, अपने स्वामी के पास आिीवर्का पा रहे हैं; र्े
अल्लाह द्वारा प्रदान वकये गये पाररतोवषक का आनं द-भोग कर रहे हैं: और िो उनसे वमले नहीं, िो (उनके परम आनं द में) साथ
होने से अभी तक पीछे रह गये हैं वक उनका (शहादत) र्ैभर् इस तथ्य में है वक उन्ें कोई भय नहीं होगा; न ही उनको कभी कोई
दुख-वर्षाद होगा’ [कु रआन 3:168-70]।

इसी बीच उहुद की िं ग के पांच मास पिात अगस्त 625 में मुहम्मद ने मदीना के बनू निीर की यहदी िनिावत पर
हमला वकया और उन्ें पुनः मारकाट कर र्हां से वनर्ावजसत कर वदया। वकं तु कु रैशों के वर्रुद् उहुद के वर्नाशकारी िं ग से सीख लेते
हुए मुहम्मद ने कु छ समय के जलये मक्का के कारर्ां पर हमला करना बं द कर वदया। उहुद में अपने वर्िय अजभयान के पिात कु रैशों
ने आगे ध्यान नहीं वदया। चूं वक मुहम्मद ने उनके कारर्ां पर हमला करना बं द कर वदया था, तो सं भर्त: उन्ोंने सोचा वक उसे सीख

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

वमल गयी है और अब र्ो आगे कोई खतरा उत्पन्न नहीं करेगा। इस बीच, मुहम्मद ने अपना समय ताकत एकि करने में लगाया और
धमाांतररत मुसलमानों की सं ख्या र् भौवतक सं साधन (वनर्ावजसत की गयी बनू क़ै नुका और बनू निीर िनिावत से लूटा गया धन)
िुटाया। लगभग एक र्षव के वर्राम के पिात, उसने 626 ईसर्ी में पुनः मक्का के कारर्ां पर हमले करने प्रारंभ कर वदये। मालदार
कारर्ां पर वनरंतर हो रहे सफल हमलों में मुसलमान लूट की धन-सं पवत्, ऊंट र् दास पाकर धनी होने लगे। अब मुहम्मद ने अपने
लुटेरे वगरोह को सबल र् सुदृढ़ बनाने के जलये आसपास के गैर-मुसलमान िनिावतयों को भी हमले में सस्लम्मजलत होने के जलये
बुलाया। कु छ गैर-मुसलमान िनिावतयां उसके लूटपाट की कारवर्ाइयों में भाग लेने वगरोह में आ गयीं, उन्ोंने ऐसा सं भर्तः दो
कारणों से वकया: लूट का धन प्राि करने के लोभ और मुहम्मद के हमलों से अपनी सुरिा के जलये। इस समय तक, मुहम्मद ने
मदीना की दो सबल िनिावतयों पर हमला कर उन्ें वनर्ावजसत कर वदया था, जिससे स्पष्ट भान होता है वक िो गैर-मुसलमान
िनिावतयां मुहम्मद के वगरोह में सस्लम्मजलत हो गयी थीं, यवद र्े उसकी बात न माने होते, तो उन पर मुहम्मद के हमले का खतरा
था।

खं दक की िं ग
मक्का के कारर्ांओं पर कु छ समय पूर्व हुए हमले से स्पष्ट सं दे श गया वक कु रैशों पर मुहम्मद का खतरा अभी टला नहीं है।
इसजलये अबू सुफ्यान ने मुहम्मद के खतरे को नष्ट करने के जलये 627 ईसर्ी में एक और प्रत्युत्र-आक्मण की तैयारी की। उन्ोंने
आस-पड़ोस की िनिावतयों से साथ देने का आह्वान वकया और मुहम्मद के हमले को झेल चुके बनू गताफन, बनू सुलैम र् बनू
असद सवहत अनेक िनिावतयों ने उनका साथ दे ने का वनणवय वकया। अबू सुफ्यान के नेतृत्व में 10000 योद्ाओं (कु छ कहते हैं
7000) की महासं घ सेना एकि हुई। उस समय मुहम्मद की िमता अजधक से अजधक 3000 लड़ाकों को िुटा पाने की थी। तब
उसके समुदाय के जलये स्लस्थवत अत्यं त गं भीर वदख रही थी।

सौभाग्य से मुहम्मद को एक धमाांतररत फारस का प्रजसद् सलमान वमल गया था, जिसने मुहम्मद को मदीना के अपने
वनर्ास के चारों ओर खं दक खोदने का सुझार् वदया। फारस में शिु के आक्मण से बचार् के जलये ऐसा करना सामान्य रणनीवत थी,
वकं तु अरब में इसका प्रचलन नहीं था। मुहम्मद को यह सुझार् तुरंत समझ में आ गया और उसने अपने समुदाय की पररजध के चारों
ओर खं दक खोदने का आदे श वदया। मुसलमान बस्ती के चारों ओर खं दक खोदकर घरों की बाहरी जभवत्यां (दीर्ारें) पत्थरों से
सुरजित कर दी गयीं। कु रैशों ने नगर की घेराबं दी कर दी। वकं तु र्े मुसलमानों की इस युवि से अनजभज्ञ थे, इसजलये र्े खं दक को
पार कर पाने में वर्फल रहे। लं बी घेराबं दी के पिात 21 वदन (कु छ कहते हैं लगभग एक मास) वनकल गये , तो मक्का की सेना पीछे
हट गयी। इस घेराबं दी में अजधक सं घषव नहीं हुआ। मुहम्मद की ओर से के र्ल 5 जिहादी मारे गये, िबवक मक्का की ओर के तीन
सैवनकों को प्राण गं र्ाने पड़े। इस्लाम स्वीकार करने से पूर्व यहदी धमव से ईसाई धमव में दीजित हुए जिस सलमान के सुझार् ने उस
वदन मुसलमानों को बचा जलया था, उसके अच्छे ज्ञान के जलये मुहम्मद ने उसकी और उसके समुदाय की भली-भांवत प्रशं सा की।50

50 इवबद पृष्ठ. 122-22; इब्न इस्हाक, पृष्ठ 456-61; मुईर, पृष्ठ 306-14

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

ज्यों ही कु रैशों ने घेराबं दी हटा ली, मुहम्मद ने मदीना में अंवतम शेष यहदी िनिावत बने क़ु रैिा पर कु रैशों की सहायता
का आरोप लगाते हुए हमला कर वदया। िब यहवदयों ने आत्मसमपवण कर वदया, तो उसने यहवदयों के पुरुषों को काट डाला और
उनकी जस्त्रयों र् बच्चों को बलपूर्क
व पकड़कर दास बना जलया (नीचे र्जणवत है)।

मक्का की िीत और काबा पर बलपूर्क


व अजधकार
628 ईसर्ी तक मुहम्मद ने या तो मदीना की सभी सबल यहदी िनिावतयों को मारकर वनर्ावजसत कर वदया अथर्ा उन
सबको मार-काट के नष्ट कर वदया तथा आसपास के िेिों की बहुत सी िनिावतयों को धमकी देकर या हमले करके अपनी अधीनता
स्वीकार करने पर वर्र्श कर वदया। र्ह अब मक्का के अपने पैतृक नगर एर्ं उसमें स्लस्थत काबा पर बलपूर्वक अजधकार करने में
पयावि समथव हो चुका था। र्ह अपना पैगम्बरी वमशन प्रारंभ करने के आरंजभक वदनों से ही काबा पर अपना दार्ा ठोंक रहा था।
इसके अवतररि र्ह काबा ही था, र्षों से जिसकी ओर मुं ह करके मदीना में उसके समुदाय के लोग नमाि पढ़ते आ रहे थे। इस
प्रकार काबा उसके मिहबी वमशन का सबसे पवर्ि प्रतीक और बलपूर्वक अजधकार करने का सबसे बड़ा कारण चुका था। काबा का
बड़ा आजथवक महत्व भी था (िैसा वक आि यह सऊदी अरब के जलये है ), क्ोंवक अरब के लोगों के जलये उमरा और हि नामक
तीथवयािा के कें द्र के रूप में यह लुभार्ना रािस्व-वनमावण उद्यम था। इसके अवतररि अल्लाह ने कु रैशों से िं ग करने और उन्ें
पराजित करने के जलये कु रआन में अत्यजधक प्रयास र् स्थान वदया था। इसजलये मक्का अपने अधीन लाना मुहम्मद के पैगम्बरी
व्यर्साय का मुख्य वमशन था।

हुदै वबया की सं जध: खं दक की िं ग के एक र्षव पिात और मक्का से मदीना स्थानांतररत होने के छह र्षव के पिात, माचव 628 ईसर्ी
में मुहम्मद ने अपने पैतृक नगर की ओर बढ़ने का साहस वकया। उसने आसपास की िनिावतयों को उसके अजभयान में सस्लम्मजलत
होने के जलये आमं वित वकया, वकं तु उन िनिावतयों ने उसके इस खतरनाक अजभयान के आमं िण को नकार वदया। छोटी तीथवयािा
उमरा के समय मुहम्मद 1300 से 1525 हजथयारबं द मुसलमानों की अगुर्ाई करते हुए मक्का की ओर बढ़ा। कु रैशों को मुहम्मद के
आने की सूचना वमली, उन्ें पुनः र्ो सब भयानक रिपात, अपमान और अत्याचार स्मरण हो उठे , िो मुहम्मद ने उनके साथ वकया
था। इसजलये उन्ोंने अब आगे से कभी मुहम्मद को मक्का नगर में प्रर्ेश की अनुमवत न दे ने का प्रण वकया। िब मुहम्मद को कु रैशों
के प्रण का पता चला, तो र्ह ठहर गया और हुदै वबया नामक स्थान पर अपना पड़ार् डाल वदया। उसने मक्का के लोगों को सं देश
जभिर्ाया वक र्ह के र्ल शांवतपूर्क
व तीथवयािा करने आया है और इसके बाद मदीना र्ापस लौट िाएगा।

मुहम्मद तीथवयािा पर िाने पर अड़ा हुआ था, िबवक कु रैश दृढ़ता से इसके वर्रोध में थे। मुहम्मद की फौिी ताकत और
क्ू रता र् रिपात करने की िमता को देखते हुए कु रैशों ने रिपात की सं भार्ना र्ाले सं घषव को टालने के जलये उसके साथ समझौता
करने का वनणवय वकया। समझौता-र्ाताव की अर्जध में गहन सौदे बािी हुई, जिसके फलस्वरूप मुहम्मद का दामाद और इस्लाम का
तीसरा खलीफा उस्मान समझौते के जलये मक्का र्ालों के जशवर्र की ओर गया। उस्मान के लौटकर आने में वर्लं ब हो रहा था, तो
मुसलमान खेमे में एक प्रर्ाद (अफर्ाह) फैल गया वक र्ह मारा गया। मुहम्मद ने तुरंत एक बबूल के पेड़ के नीचे अपने हजथयारबं द
साजथयों को एकि वकया और एक-एक कर उन्ें सं कल्प वदलाया वक र्े ‘‘मृत्यु तक उस्मान के साथ’’ रहेंग।े इस्लामी इवतहास में यह
प्रजसद् शपथ ‘र्ृि का सं कल्प’ के रूप में िानी िाती है। मुहम्मद ने अपने जशवर्र में मुसलमानों में इतना मिहबी उन्माद भड़काया

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

वक र्े सभी तुरंत शिु पर झपट कर आत्महत्या करने की मनः स्लस्थवत में आ चुके थे। तभी उस्मान जशवर्र में र्ापस लौटा और
भयानक रिपात टल गया। समझौते में वनजित शतों को लेकर उस्मान आया और समझौते पर हस्तािर हुए। यही समझौता प्रजसद्
हुदै वबया की सं जध था।

इस सं जध में प्रार्धान वकया गया वक दस र्षों तक दोनों पि शिुता पर वर्राम लगाएं गे। इसमें यह भी कहा गया वक
मुहम्मद का दल काबा की यािा वकये वबना मदीना लौट िाएगा, पर अगले र्षव से तीन र्षों तक उन्ें र्हां र्ावषवक तीथवयािा करने
की अनुमवत होगी।51

यहां, कु रैशों की ओर से बड़े वर्रोध को देखते हुए मुहम्मद ने ढोंग वकया वक र्ह तीथवयािा के जलये आया था, न वक िं ग
के जलये। परंतु उसकी र्ास्तवर्क मं शा मक्का पर अजधकार करने की थी, िैसा वक इब्न इस्हाक जलखा है: ‘चूं वक रसूल ने िो लक्ष्
रखा था, उसके अनुसार रसूल के साथी वनस्सं देह मक्का पर बलपूर्वक अजधकार करने के जलये वनकले थे और िब उन्ोंने दे खा वक
रसूल ने स्वयं इस काम का बीड़ा उठाया था, परंतु शांवत-सं जध हो गयी और उन्ें पीछे हटना पड़ रहा है, तो र्े लगभग मृत्यु तुल्य
अर्साद में िाने लगे।’52 सशस्त्र सं घषव में कु रैशों से जभड़ने की अपेिा कायरतापूर्वक सं जध पर हस्तािर करने से रि के प्यासे उमर
सवहत कु छ मुसलमानों में क्ोध पनप गया। इस पर मुहम्मद ने उन्ें आश्वासन वदया वक उसने अल्लाह के वनदेश पर यह सं जध की है
और इससे अंततः उसके वगरोह को लाभ होगा। इस घटना के बाद अल्लाह को मुहम्मद के वगरोह को मनाने के जलये कु रआन का
पूरा सूरा/अध्याय 48 (सूरा अल-फतह या वर्िय) उतारने का कष्ट उठाकर यह समझाना पड़ा वक र्ास्तर् में र्तवमान पररस्लस्थवत में
यह सं जध अजधक उजचत है और वर्िय के समान है तथा वनणावयक वर्िय शीघ्र होगी।

मुहम्मद द्वारा सं जध का उल्लं घनः बहुत कम समय में ही मुहम्मद के वगरोह ने इस सं जध का उल्लं घन वकया। मक्का के एक धमाांतररत
अबू बशीर ने सं जध का उल्लं घन करते हुए एक कु रैश की हत्या कर दी। उसने लगभग सत्र मुसलमान लुटेरों र्ाला वगरोह बनाया
और मुहम्मद की मूक सहमवत से मक्का के कारर्ां पर हमले करने लगा। हमले में र्ह कारर्ां के वकसी भी व्यवि को िीवर्त नहीं
छोड़ता था। अबू बशीर की कारवर्ाइयों पर इब्न इस्हाक ने जलखा है: ‘तब अबू बशीर वनकल पड़ा और िूअल मरर्ा के िेि में मागव
पर समुद्र तट के वकनारे रुकने तक चलता रहा... यह र्ह मागव था जिससे कु रैश सीररया िाने के अभ्यस्त थे... लगभग 70 लुटेरे
उसके साथ हो जलये थे और उन लुटेरों ने अचानक कु रैशों पर हमला बोल वदया, जिसे पकड़ पाये उसे मार डाला और आसपास से
वनकलने र्ाले प्रत्येक कारर्ां के लोगों को टुकड़ों-टुकड़ों में काट डाला।’

वनरीह कु रैशों ने सबकु छ सं जध पर छोड़ वदया। यद्यवप अभी भी उन्ोंने मुहम्मद को ‘‘सं बं धी होने की दुहाई दे ते हुए’ भीख
मांगी वक र्ह उन कारर्ां पर हमला करने से अपने जिहादी लुटेरों को रोके । इस वनर्ेदन पर मुहम्मद ने अपने हमलार्रों को मदीना
र्ापस बुला जलया। कु छ धमाांतररत औरतें, िो अपने पररर्ार द्वारा रोककर रखी गयी थीं, मदीना में मुहम्मद के समुदाय में सस्लम्मजलत

51 मुईर, पृष्ठ 353-59; इब्न इस्हाक, पृष्ठ 500-05

52 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 505

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

होने के जलये मक्का से भाग वनकलने में सफल हो गयीं। सं जध के अनुसार इन औरतों को र्ापस वकया िाना था। िब मक्कार्ासी उन
औरतों को लेने आये, तो मुहम्मद ने सं जध का पूणव उल्लं घन करते हुए इन औरतों को र्ापस करने से मना कर वदया।53

मुहम्मद ने सं जध तोड़ दी और मक्का पर हमला कर वदयाः हुदैवबया की सं जध पर हस्तािर करने के दो र्षव की अर्जध में मुहम्मद
कु रैशों को उखाड़ फेंकने में पयावि ताकतर्र हो चुका था। इसजलये उसने इस दस र्षव की सं जध को तोड़ वदया और मक्का पर हमले
का आदे श वदया। र्ह कु रैशों पर अचानक हमला करना चाहता था। िब तैयाररयां चल रही थीं, तो र्ह अल्लाह से प्राथवना करता
रहा: ‘‘हे अल्लाह, कु रैशों का अंधा र् बहरा बना दो, जिससे वक हम अचानक उनकी भूवम पर िाकर हमला कर सकें ।’’54 िनर्री
630 में र्ह 10000 की मिबूत सेना की अगुर्ाई करते हुए मक्का की ओर बढ़ चला।

जछपते-जछपाते मुसलमान फौि रावि में मक्का के वनकट पहुंच गयी और अल-िहरान नामक स्थान पर पड़ार् डाला। रात
के अंधेरे में प्रत्येक जिहादी ने पृथक-पृथक आग िलायी, जिससे कु रैशों में यह भ्म उत्पन्न वकया िा सके वक र्हां एक अत्यं त
वर्शाल फौि एकि है। मुहम्मद की फौि का अनुमान लगाते हुए उसके चाचा अल-अब्बास ने कहा, ‘‘आह! कु रैशों, मुहम्मद मक्का
में बलपूर्वक प्रर्ेश कर गया, तो कु रैश िावत का सदा के जलये अंत हो िाएगा, अतः इससे पहले वक र्ह यहां पहुंचे, तो तुम लोग
उसके पास िाकर अपनी रिा की गुहार लगाओ।’’55 आगे बढ़ने से पूर्व, आइए इस वर्र्ाद का परीिण करें वक र्ास्तर् में वकसने
सं जध का उल्लं घन वकया था।

र्ास्तर् में वकसने तोड़ी थी हुदैवबया की सं जध?


र्ैसे तो मुसलमान डेवनयल पाइप्स से घृणा करते हैं , क्ोंवक र्े इस्लाम पर र्स्तुवनष्ठ वर्चार प्रकट करते थे, वकं तु पाइप्स ने
दार्ा वकया वक इस सं जध को मुहम्मद ने नहीं तोड़ा था, अवपतु तकनीकी रूप से कु रैशों ने ऐसा वकया था। र्ह जलखते हैं , ‘तकनीकी
रूप से मुहम्मद इस सं जध को तोड़ने के अपने वनणवय में सही था, क्ोंवक कु रैशों अथर्ा उनके सहयोवगयों ने इस सं जध की शतों का
उल्लं घन वकया था।’56 उस प्रचजलत इस्लामी मत से उनका वर्चार वमलता है वक र्ो मक्का के ही लोग थे, जिन्ोंने सं जध का
उल्लं घन वकया था।57 कु रैशों द्वारा सं जध का कजथत उल्लं घन का सं बं ध तीसरे पि की दो िनिावतयों के मध्य चल रही अनबन थी:
ये िनिावतयां बनू बक् और बनू खुिा थीं। बनू बक् कु रैशों की सहयोगी थी, िबवक बनू खुिा मुहम्मद के साथ थी।

53 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 507-09; मुईर, पृष्ठ 364-65

54 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 544

55 इवबद, पृष्ठ 547

56 पाइप्स डी (2002) वमलीटैं ट इस्लाम कम्स टू अमेररका, डब्ल्यूडब्ल्यू नॉटव न एं ड कं पनी, न्यूयाकव , पृष्ठ 185

57 द टे वकं ग आफ मक्का, वमवनस्टर ी आफ हि (सऊदी अरब), http://www.hajinformation.com/main/b2109.htm

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अल-तबरी के अनुसार, मुहम्मद के पररदृश्य में आने से पूर्व व्यापाररक यािा पर िा रहे बनू बक् िनिावत के व्यापारी
मजलक वबन अब्द पर बनू खुिा के कु छ लोगों ने हमला वकया। प्रत्युत्र में बनू बक् के लोगों ने बनू खुिा के एक व्यवि को मार
डाला। दूसरी बार हमला करके बनू खुिा के लोगों ने बनू बक् िनिावत के प्रमुख व्यवियों में सस्लम्मजलत सलमा, कु लसुम र् िुऐब
नामक तीन भाइयों को मार डाला। इसकी प्रवतवक्या में बनू बक् के लोगों ने बनू खुिा के एक व्यवि मुनास्लब्बह की हत्या कर दी,
जिसमें कु छ कु रैशों ने कजथत रूप से रात के अंधेरे में बनी बक् की सहायता की थी।58 इस समय बनू खुिा मुहम्मद का मार्ला
(सहयोगी) बन चुका था। इस प्रकार पाइप्स के िैसे वर्द्वानों के अनुसार, कु रैशों ने हुदैवबया की सं जध का उल्लं घन वकया था और
मुहम्मद मक्का पर हमला करने में वर्जधक रूप से सही था।

यहां सबसे पहले जिस बात की उपेिा की गयी है, र्ह यह है वक खुिा िनिावत ही बनू बक् के साथ अनबन को
उकसाने र्ाला था। खुिा िनिावत ने बनू बक् पर दो बार हमला वकया और उनके चार व्यवियों को मार डाला। दूसरे हमले से पूर्व
बनू बक् ने बनू खुिा पर के र्ल एक बार आक्मण वकया था, जिसमें खुिा का एक व्यवि मारा गया था। बाद में पुनः हमला करने
के पिात भी खुिा ने बनू बक् के चार व्यवियों की हत्या कर दी थी, िबवक बनू बक् के लोगों ने अपने वर्राजधयों के के र्ल दो
व्यवियों की हत्या की थी। मुहम्मद की सहयोगी िनिावत खुिा के लोगों ने बनू बक् के चार अवतररि लोगों की हत्या की थी।

अगली जिस बात की यहां उपेिा की गयी, र्ह यह है वक पहली बात तो यह थी वक मुहम्मद को मक्का पर बलपूर्वक
अजधकार करने अथर्ा काबा की मूवतवयों र्ाले मं वदर में प्रर्ेश करने का प्रयास करने अजधकार नहीं था, क्ोंवक इसी के कारण हुदैवबया
की सं जध हुई थी। पाइप्स इस तथ्य को भी पूणवतः वर्स्मृत कर रहे हैं वक मुहम्मद ने अर्सर पाते ही कु रैश िनिावत के सदस्यों की
हत्या और उनके व्यापाररक-कारर्ां को लूटकर सबसे पहले और बार-बार सं जध की शतों का उल्लं घन वकया था। यह बात भी सोचने
र्ाली है वक िब बनू खुिा के सदस्यों की हत्या बनू बक् के लोगों ने की थी, तो मुहम्मद ने इसके उत्रदायी बनू बक् पर हमला न
करके कु रैशों पर क्ों वकया? सबसे अच्छा होता वक बनू खुिा कु रैशों के स्थान मक्का पर हमला करता और मुहम्मद उनके सहयोग में
खड़ा हो िाता। पर सच तो यही है वक मुहम्मद का मक्का पर बलपूर्वक अजधकार करने के पीछे कोई तकव या यथोजचत कारण नहीं
वदखता।

आइए, मक्का पर रसूल मुहम्मद के हमले पर र्ापस आएं । रसूल के ससुरों में से एक कु रैश नेता अबू सुफ्यान मुसलमानों
की खतरनाक मं शा भांपकर रात के अंधेरे में ही चुपचाप मुहम्मद से वमलने वनकल पड़े , जिससे वक र्े मुहम्मद को मक्का पर हमला न
करने के जलये मना सकें । मागव में अबू सुफ्यान को मुहम्मद का चचेरा भाई अल-अब्बास वमला, जिसने उन्ें सुरिा का आशर्ासन
वदया और मुहम्मद से वमलाने ले गया। उमर अल-खत्ाब (िो बाद में दूसरा खलीफा बना) उनसे टकरा गया और अबू सुफ्यान को

58 अल-तबैर, अंक. 6, पृष्ठ 160-62

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

दे खते ही चीख उठा: ‘‘अबू सुफ्यान, अल्लाह का शिु! अल्लाह का धन्यर्ाद वक उसने वबना वकसी समझौते या बातचीत के ही उसे
लाकर सामने पटक वदया।’’ तब उसने अपनी तलर्ार लहराते हुए बोला: ‘‘मुझे इसका जसर धड़ से उतारने दो।’’59

अल-अब्बास ने सुफ्यान को सुरिा का र्चन देने के आधार पर उमर को मनाया वक र्ह इतना कठोर कदम न उठाये।
मुहम्मद ने अल-अब्बास से कहा वक र्ह अबू सुफ्यान को अगले वदन प्रातः काल ले आये। अगले वदन िब अबू सुफ्यान लाए गये ,
तो रसूल ने कहा: ’’क्ा यही समय नहीं है वक तुम समझ िाओ वक अल्लाह के अवतररि कोई ईश्वर नहीं है?’’ अबू सुफ्यान ने
कभी नहीं माना वक मुहम्मद एक पैगम्बर है, इसजलये िब र्ह वहचकने लगे, तो क्ु द् मुहम्मद चीख पड़ा, ‘‘तुम पर कोप हो, अबू
सुफ्यान! क्ा इसी समय तुम्हें नहीं मान लेना चावहए वक मैं अल्लाह का रसूल हं ?’’ इस पर अबू सुफ्यान बोले, ‘‘मुझे अभी भी
तुम्हारे रसूल होने पर सं दे ह है।’’ अबू सुफ्यान के प्राण सं कट में देखकर अल-अब्बास तुरंत बीच में पड़ा और बलपूर्वक उससे बोला,
‘‘इससे पहले वक तुम्हारा जसर कट िाए, आत्मसमपवण कर दो और स्वीकार कर लो वक अल्लाह के अवतररि कोई ईश्वर नहीं है तथा
मुहम्मद अल्लाह का रसूल है।’’ अबू सुफ्यान के पास उसकी बात मानने के अवतररि कोई वर्कल्प नहीं बचा। अल-अब्बास ने तब
मुहम्मद से वनर्ेदन वकया वक र्ह अबू सुफ्यान के लोगों के जलये कु छ करे। इस पर मुहम्मद बोला, ‘‘िो भी अबू सुफ्यान के गृह में
प्रर्ेश कर िाएगा, र्ह सुरजित रहेगा और िो अपने द्वार के वकर्ाड़ बं द कर लेगा, र्ह सुरजित होगा तथा र्ह िो मस्लस्िद (काबा)
में प्रर्ेश कर िाएगा, र्ह सुरजित रहेगा।’’60

मक्का र्ापस आकर अबू सुफ्यान ने अपने लोगों को बताया वक उनके नगर में मुहम्मद के प्रर्ेश का वर्रोध करना व्यथव है
और उनसे बोला वक हारने र्ाली यह लड़ाई न लड़ो। अवपतु अबू सुफ्यान ने ‘अस्लीम तस्लाम’ भी कहा अथावत यवद तुम लोग बचना
चाहते, हो तो मुसलमान बन िाओ। िो लोग अपने मूवतवपूिक धमव को बचाये रखना चाहते थे, उन्ें उन्ोंने सुझार् वदया वक र्े गृह
के भीतर रहें अथर्ा उनके गृह में आकर शरण ले लें। अगले वदन प्रातः मुहम्मद की फौि मदीना की ओर बढ़ी। मक्कार्ाजसयों का
एक हठी समूह, जिसने खाजलद इब्न र्लीद की फौि के मागव को अर्रुद् कर वदया था, ने थोड़ा-बहुत प्रवतरोध वकया। खाजलद की
पहुंच में िो भी आया, उसे उसने काट डाला तथा िो लोग अपने प्राण बचाने के जलये पहाड़ी पर भागे थे उन्ें दौड़ा जलया।

मक्का पर बलपूर्क
व अजधकार करने के पिात मुहम्मद ने चीखते हुए काबा की सभी मूवतवयों को नष्ट करने का आदे श देते
हुए कहा वक: सत्य (अब) पहुंच चुका है, और झूठ का नाश हो चुका है: क्ोंवक झूठ (की प्रकृ वत) होती ही ऐसी है वक उसका अंत
वनजित है।’61 बाद में अल्लाह ने मुहम्मद की इस उवि को अपनी एक आयत आयत के रूप में कॉपी कर जलया और कु रआन में
िोड़ वदया [कु रआन 17:81]। मुहम्मद काबा के मध्य में खड़ा हुआ और उसने एक छड़ी से एक-एक कर उन मूवतवयों की ओर

59 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 547

60 इवबद, पृष्ठ 547-48

61 इवबद, पृष्ठ 552

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

सं के त वकया और धावमवक मक्कार्ाजसयों द्वारा जिन मूवतवयों की पूिा पूरे मनोयोग से सवदयों से की िा रही थी, र्े टुकड़े-टुकड़े कर दी
गयीं। मुहम्मद ने स्वयं काठ की उस पेंडुकी (कबूतर) को नष्ट वकया, िो वक कु रैशों के दे र्ता थे।

मक्का पर बलाता् अजधकार और काबा की लूटपाट से धन (माल) प्राि करने के पिात मुहम्मद ने खाजलद वबन र्लीद को
मक्का से दो वदन की यािा पर स्लस्थत नखला में अल-उज़्िा की मूवतव-मं वदर के वर्ध्वं स के जलये भेिा।62 मुहम्मद के अम्र नामक
अनुयायी ने हुिैल िनिावत द्वारा पूजित सुर्ा नामक मूवतव-जचि को तोड़ा; कोिैद में पूिी िाने र्ाली प्रजसद् देर्ी अल-मनात के
मं वदर को मदीना के मुसलमानों के उस वगरोह ने नष्ट कर वदया, जिसके सदस्य पहले कभी इस दे र्ी के भि हुआ करते थे।63 जिस
वदन मुहम्मद ने मक्का पर अजधकार वकया, अजधकांश मूवतवपूिकों ने इस्लाम स्वीकार कर जलया। आगे बढ़ने से पूर्व आइए, मक्का पर
बलपूर्वक अजधकार करने के अर्सर पर मुहम्मद द्वारा कु रैशों के साथ वकये गये उदार व्यर्हार के कु छ लोकवप्रय दार्े का परीिण
करें।

मक्कार्ाजसयों को मुहम्मद का िमादान


रसूल मुहम्मद की मक्का पर िीत के सं बं ध में मुसलमान पारंपररक रूप से बहुत से दार्े करते हैं।

1. प्रथमतः , यह वक मुसलमान फौि ने नगर में शांवत से वबना वकसी प्रवतरोध के प्रर्ेश वकया था और कु रैशों द्वारा उनका
स्वागत वकया गया था।
2. वद्वतीयतः , यह वक कु रैशों ने वबना वकसी दबार् के बड़ी सं ख्या में अपनी इच्छा से इस्लाम स्वीकार वकया।
3. तृतीयतः , यह वक मुहम्मद ने कु रैशों के प्राण न लेकर उनके प्रवत आदशव िमादान वदखाया।

मुहम्मद का मक्का में शांवतपूणव प्रर्ेशः हुदै वबया की 10 र्षीय सं जध करने के माि दो र्षव पिात ही इस सं जध को तोड़कर मुहम्मद ने
मक्का पर हमला वकया, वकं तु इस तथ्य के बाद भी मुसलमानों को लगता है वक मक्का पर िीत शांवतपूणव कारवर्ाई थी। वनस्सं देह,
मुहम्मद और उसके अनुयावययों ने अनर्रत उन दो र्षों में उस सं जध का उल्लं घन वकया था। िहां तक मक्का में वबना प्रवतरोध
मुहम्मद के प्रर्ेश के दार्े का सं बं ध है, तो यह समझना कवठन नहीं है वक यवद उस मक्कार्ाजसयों ने अपने नगर की रिा करने का
प्रयास वकया होता, तो क्ा हुआ होता। नगर पर हमला करने से पूर्व मुहम्मद ने अबू सुफ्यान पर क्ा दबार् डाला था? र्ह दबार्
था: या तो इस्लाम स्वीकार करो अथर्ा तुम्हारा जसर धड़ से पृथक कर वदया िाएगा, यही था ना? और िब मक्का के कु छ हठी लोगों
ने मूखवता में खाजलद वबन र्लीद की फौि का वर्रोध वकया, तो र्े लोग उसकी फौि के तलर्ार के जशकार बन गये। मुसलमानों को
वबना प्रवतरोध इस कारण प्रर्ेश नहीं वमला वक र्े शांवतवप्रय र् अच्छे लोग थे, अवपतु इसजलये वमला वक र्े दुबवल मक्कार्ाजसयों को
रौंद डालने में पयावि खतरनाक र् समथव थे। मदीना की अभागी यहदी िनिावत की वनयवत मक्कार्ाजसयों में मन-मस्लस्तष्क में कौंध

62 इवबद, पृष्ठ 558

63 मुईर, पृष्ठ 412

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

रही थी और वर्शेष रूप से यहदी िनिावत बनू क़ु रैिा के लोगों को मुहम्मद द्वारा जिस प्रकार बबवर ढंग से तलर्ारों से काट डाला
गया था, र्ह भयानक अत्याचार र् मारकाट का दृश्य उनकी आं खों के सामने नाच रहा था।

मक्का के लोगों का स्वेच्छा से इस्लाम स्वीकार करनाः जिस वदन मुहम्मद ने मक्का पर बलपूर्वक अजधकार वकया, उस वदन यवद कु रैशों
ने बड़ी सं ख्या में इस्लाम स्वीकार कर जलया, तो एक प्रश्न स्वभावर्क रूप से उठता है: दो र्षव पूर्व िब मुहम्मद मदीना के अजभयान
पर आया था, तो उस समय उन लोगों ने इस्लाम स्वीकार क्ों नहीं वकया था? उस समय मक्का के लोग अपने रि की अंवतम बूं द
तक मुहम्मद का मक्का में प्रर्ेश रोकने के जलये तत्पर क्ों थे? मक्का के लोगों द्वारा इस्लाम र् मुहम्मद के वर्रोध का ही पररणाम था
वक मुहम्मद हुदै वबया की सं जध पर हस्तािर करने पर बाध्य हुआ। इसके अवतररि हुदै वबया की सं जध होने के दो र्षों में मुहम्मद ने
ऐसा कोई भी शांवतवप्रय र् वप्रय कायव नहीं वकया, िो वक मुहम्मद के मक्का पर वर्िय के वदन बड़ी सं ख्या में कु रैशों को इस्लाम
स्वीकार करने के जलये प्रेररत करता। अवपतु मुहम्मद ने अर्सर वमलते ही सबसे पहले उस सं जध का उल्लं घन वकया और उसके
अनुयावययों ने अनर्रता् कु रैशों के कारर्ां र् उसमें सस्लम्मजलत लोगों पर हमला करके उन पर भयानक अत्याचार वकये। मुहम्मद ने इस
सं जध के समाि होने के आठ र्षव पूर्व ही इसे तोड़ भी वदया। मुहम्मद ने यहवदयों के सुदृढ़ िेिों खैबर, बनू सुलैम, बनू लीस, बनू
मुरवह, िात अत्लह, मुताह और बनू नेदा्ि आवद अन्य गैर-मुस्लस्लम िनिावतयों पर अकारण ही वहंसक हमले का आदे श वदया।64
अंततः अपने यहां के नागररकों को अबू सुफ्यान को भी अस्लीम तस्लाम अथावत यवद तुम सुरजित रहना चाहते हो, तो मुसलमान बन
िाओ... का सं दे श दे ना पड़ा। अपनी सुरिा के जलये मक्कार्ाजसयों के पास के र्ल दो वर्कल्प थे: पहला इस्लाम स्वीकार कर लें; और
दूसरा उस मस्लस्िद (काबा) अथर्ा अबू सुफ्यान के गृह में आश्रय लें। इन घटनाओं से स्पष्ट हो िाता है वक इस्लाम की शांवतवप्रय
प्रकृ वत अथर्ा मुहम्मद का शांवतपूणव र् प्रेममय व्यर्हार या प्रेरणादायी कायव िैसा कु छ नहीं था वक कु रैश उस वदन बड़ी सं ख्या में
इस्लाम स्वीकार करने के जलये तैयार हो गये।

मुहम्मद का िमादानः मुसलमानों द्वारा आत्मसमपवण करने र्ाले कु रैशों को प्राणदान दे ने की घटना को रसूल मुहम्मद की अनुकरणीय
उदारता र् िमादान के रूप में वदखाया िाता है। मुसलमान पारंपररक रूप से इसे मुहम्मद की शिुओं पर अनुकरणीय करुणा के
प्रमाण के रूप में उद्ृत करते हैं। मुसलमान ऐसा दशावते हैं वक इवतहास में कभी भी वकसी नेता ने अपने परास्त शिु के प्रवत ऐसा
अद्भुत िमादान र् सवहष्णुता नहीं वदखायी है। वकं तु मुहम्मद हो या थोड़ी-बहुत भी समझ रखने र्ाला अन्य कोई व्यवि हो, र्ह ऐसे
लोगों की हत्या कै से कर सकता है, िो पहले ही अपने नगर को हजथयाने का वर्रोध न करने पर सहमत हो चुके हों और जिनके नेता
(अबू सुफ्यान) ने पहले ही मुहम्मद के मिहब र् पैगम्बरी को स्वीकार कर जलया हो? मुहम्मद ने अबू सुफ्यान को र्चन भी वदया था
वक यवद उन्ोंने मक्का पर उसके कब्जे के अजभयान का वर्रोध नहीं वकया, तो र्ह उन्ें हावन नहीं पहुंचायेगा।

64 इवबद, पृष्ठ 392-93

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

यह स्पष्ट पता चलता है वक िब मुहम्मद आरंभ में अपने मिहब का उपदे श मक्का में दे रहा था, तो कु रैशों ने कभी भी
उस पर कोई क्ू रता नहीं वदखायी थी। मुहम्मद तीस र्षों तक कु रैशों के धमव र् परंपराओं का अपमान करता रहा, वकं तु इसके बाद
भी उन्ोंने कभी उससे व्यर्हार करने में सभ्यता की सीमा नहीं लांघी। यद्यवप मुहम्मद ही था, जिसने मक्का के कारर्ां पर लूटपाट
करने के जलये उग्रता से हमले वकये और इसी कारण उनके बीच में रिपात र्ाले अनेक सं घषव हुए। मुहम्मद द्वारा अनर्रता् रूप से
मक्का के कारर्ां पर हमले और लूटपाट करने तथा उनके व्यापार को नष्ट करने से कु रैशों को भारी आजथवक हावन र् कवठनाई का
सामना करना पड़ा था। इससे भी महत्वपूणव यह है वक र्ो कु रैश लोग मुहम्मद समेत उन सभी मुसलमानों के वपता, माता, भाई,
बहन र् सं बं धी थे, िो मक्का से मदीना गये थे। क्ा सं सार का कोई क्ू रतम मनुष्य भी अपने ऐसे वनकट सं बं जधयों पर तलर्ार
चलायेगा, िो पहले ही उस क्ू रतम मनुष्य के इतने अकारण अत्याचार सह चुके हों?

आि के समय में भी मुसलमानों को यही लगता है वक मुहम्मद ने कु रैशों पर बहुत बबवरता नहीं वदखायी थी। कु रैशों ने
मुहम्मद के प्रवत प्रत्यि रूप से सभ्य र् सवहष्णु व्यर्हार वकया था, वकं तु तब भी सभी मुसलमान सोचते हैं वक कु रैशों का अपराध
ऐसा अिम्य था वक रसूल को मक्का पर अपनी िीत के वदन ही उन सबको एकसाथ काट डालना चावहए था।

र्ैसे मुहम्मद द्वारा मक्का को हजथयाए िाने की घटना रिहीन नहीं थी। खाजलद इब्न र्लीद ने बबवरतापूर्वक उन लोगों की
हत्या कर दी थी, जिन्ोंने उसका थोड़ा-बहुत भी प्रवतरोध वकया था। मुहम्मद ने भी उन दस या बारह मक्कार्ाजसयों की हत्या का
आदे श वदया था, जिन्ोंने पहले इस्लाम छोड़ वदया था अथर्ा उसकी र् उसके पं थ की आलोचना या उपहास वकया था।
प्रभार्शाली पररर्ारों से सं बं ध रखने र्ाले कु छ वनर्ावजसत लोगों के पररर्ारों ने प्रयास वकया, तो उन्ें िीर्नदान वमल गया। परंतु
अंतत: चार कु रैशों की हत्या कर दी गयी। मक्का की िीत के पिात मुहम्मद के आदे श पर जिन कु रैशों की हत्या की गयी, उनमें ऐसी
दो गावयका बाजलकाएं थीं, जिन्ोंने मुहम्मद पर व्यं ग्य-गीत रचे थे।65 मुहम्मद ने मक्का के लोगों अथावत कु रैश िनिावत के लोगों पर
िो अत्याचार, रिपात वकया था और िो अपमान, कष्ट, रिपात र् कवठनाइयां दी थीं, उसकी तुलना में कु रैश लोगों ने मुहम्मद के
साथ जिस प्रकार अपेिाकृ त मानर्ीय व्यर्हार वकया था, उसको देखते हुए कोई भी वर्र्ेकपूणव न्याय मक्का के नागररकों को मृत्यदु ं ड
नहीं ही देता, वर्शेष रूप से तब िबवक कु रैशों ने अपनी भूवम पर मुहम्मद के शासन को वबना शतव स्वीकार कर जलया था। मुहम्मद
की मक्का पर वर्िय के बाद आगे भी बबवर प्रकार की क्ू रता की िाती रही। काबा के वर्ध्वं स के पिात मुहम्मद ने खाजलद वबन
र्लीद को आसपास की िनिावतयों को अधीन बनाने के जलये भेिा। खाजलद ििीमा िनिावत के पास पहुंचा और उनको अपने
शस्त्र डाल दे ने का आदे श वदया। इब्न इस्हाक जलखता है: ‘ज्यों ही उन्ोंने अपने शस्त्र नीचे रख वदये, खाजलद ने पीठ से उनके हाथ
बांध वदये और उन्ें तलर्ार की नोंक पर रखा, उनमें से कइयों की हत्या कर दी।’66 इस िनिावत ने पहले ही मुहम्मद के समि
समपवण का प्रस्तार् वदया था। इस आधार पर खाजलद के वगरोह के कु छ मदीना नागररकों र् कु छ प्रर्ाजसयों ने ििीमा के शेष बचे
लोगों का िीर्न बचाने के जलये हस्तिेप वकया। इसके अवतररि ििीमा के लोगों ने मुहम्मद या उसके समुदाय के जलये कभी कोई

65 इवबद, पृष्ठ 410-11, र्ाकर, पृष्ठ 319

66 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 561

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

समस्या नहीं उत्पन्न की थी। इसजलये ििीमा के लोगों पर की गयी यह क्ू रता बबवरता से कम नहीं थी। मक्का पर वर्िय के बाद
मुहम्मद ने जिस हृदयहीनता से कु रैशों के दे र्ी-दे र्ताओं की मूवतवयों का वर्ध्वं स वकया था, जिस प्रकार उसने अपने आलोचकों की
हत्या की थी, जिस प्रकार खाजलद ने मक्का के उन नागररकों की बबवर हत्या की थी जिन्ोंने तवनक भी वर्रोध वकया था, जिस प्रकार
खाजलद ने वनमवमता से ििीमा िनिावत के लोगों को काट डाला था, उसको दे खते हुए मुहम्मद का कायव-व्यर्हार क्ू र अत्याचार का
पररचायक है, न वक यह वकसी िमाशीलता, करुणा र् उदारता का लिण है।

रसूल ने वहंसक या धमकी भरी चालबािी का प्रयोग करे हुए अरब की अन्य सभी मूवतवपूिक िनिावतयों को अधीन बना
जलया था। इस घटना को इस पुस्तक में सस्लम्मजलत नहीं वकया िाएगा, जिससे वक वर्मशव को छोटा रखा िा सके । यद्यवप कु रैशों के
साथ उसका सं घषव, िो दयायुि तो नहीं ही था, मूवतवपूिक लोगों के साथ उसके व्यर्हार की ऐसी आदशव रूपरेखा प्रस्तुत करता है,
िो प्रत्येक काल में वर्श्व के सभी मूवतवपि
ू कों पर लागू होगा।

मुहम्मद का यहवदयों के साथ व्यर्हार

मुहम्मद के वमशन पर यहदी प्रभार्


यह पहले ही बताया िा चुका है वक रसूल मुहम्मद यहवदयों र् ईसाईयों के एके श्वरर्ादी मान्यता से अत्यं त प्रभावर्त था।
सं भर्तः इसी से र्ह एके श्वरर्ादी कल्पना के ईश्वर की घोषणा करते हुए मक्का के मूवतवपूिकों में एके श्वरर्ादी पं थ का उपदेश दे ने का
पैगम्बरी वमशन प्रारंभ करने को प्रेररत हुआ। मुहम्मद ने यहवदयों एर्ं उनके पं थ र् परंपराओं के बारे में पहली बार तब िाना, िब
र्ह 12 र्षव की आयु में अपने चाचा अबू ताजलब के साथ एक व्यापाररक यािा पर सीररया गया था।67 मक्का में भी अब्दैस बेन
सैलोम नामक एक वर्द्वान यहदी रब्बी से उसकी िान-पहचान थी। कहा िाता है वक सैलोम ने मुहम्मद को यहदी धमवग्रंथों को
पढ़कर सुनाया था और यहदी परंपराओं से मुहम्मद को पररजचत कराया था। इब्न इस्हाक द्वारा जलजखत मुहम्मद के आत्मर्ृ त् से पता
चलता है वक र्ह मक्का में बाइवबल सं बं धी टीकाओं के अध्ययन कें द्र बेथ हा-वमदराश में िाया करता था। मुस्लस्लम टीकाकार अल-
बैदर्ी कहता है, िैसा वक तौरात में अंवकत है, कु छ यहदी मुहम्मद को प्राचीन इवतहास पढ़कर सुनाया करते थे।

यह भी बताया गया है वक मुहम्मद यहदी उपासनागृह जसनगॉग भी गया था। माना िाता है वक कु रआन और यहदी
धमवग्रंथों के मध्य सहमवत की पुवष्ट र्ाले कु रआन के आयत 46:10 में जिस गर्ाह का उल्लेख है, र्ह यह रब्बी ही था। इस आयत
को डालने का उद्दे श्य यहवदयों को मुहम्मद के नये पं थ को स्वीकार करने के जलये प्रेररत करना था।68

67 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 79-81; मुईर, पृष्ठ 21

68 र्ाकर, पृष्ठ 180-81

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

622 ईसर्ी में िब मुहम्मद मदीना गया, तो र्हां अजधकांशत: यहदी और बहुदे र्र्ादी िनिावतयां रहती थीं। र्हां
बहुदे र्र्ादी कम धनी थी, िबवक यहदी प्रगवतशील, समृद् और प्रभार्शाली समुदाय था। इसकी पुवष्ट करते हुए प्रजसद् इस्लामी
वर्द्वान अबुल अला मौदूदी (मृत्यु 1979) जलखता है, ‘आजथवक रूप से र्े (यहदी) अरवबयों से अत्यजधक सबल थे। चूं वक र्े अजधक
सभ्य और सांस्कृवतक रूप से उन्नत दे शों वफजलस्तीन र् सीररया से यहां बसने आये थे, तो उनके पास ऐसी कलाएं थीं जिससे अरबी
अनिान थे; र्े र्ाह्य सं सार से व्यापाररक सं बं ध भी रखते थे।’69 यहवदयों ने वबना वकसी प्रवतरोध के मुहम्मद को अपने नगर में दो
कारणों से बसने वदया होगा। पहला यह वक मुहम्मद मूवतवपूिा को नष्ट करने के जलये वनरीह बहुदे र्र्ावदयों में एके श्वरर्ादी पं थ का
प्रचार कर रहा था। मूवतवपूिा समाि हो िाए, यह यहवदयों के मन की बात थी। दूसरे इस समय मुहम्मद का पं थ यहदी पं थ के
अनुकूल एर्ं यहदी पं थ की ओर प्रर्ृत् वदखता था, क्ोंवक कु रआन में यहवदयों र् उनके धमवग्रंथों को अत्यं त सम्मानिनक बताया
गया था। मदीना में आरंभ के समय मुहम्मद यहवदयों र् उनके धमव की प्रशं सा करता रहा। उसने उनके साथ मधुर सं बं ध रखा और
यहवदयों की अनेक परंपराओं िैसे वक रमिान, खतना, प्राथवना करते समय येरूशलम की ओर मुख रखना आवद को ग्रहण वकया
(नीचे देजखए)।

यहवदयों को इस्लाम की ओर लाने का मुहम्मद का प्रयास


िब रसूल मुहम्मद ने मदीना में सवक्यता से इस्लाम का प्रचार आरंभ वकया, तो बड़ी सं ख्या में बहुदे र्र्ावदयों ने उसका
पं थ स्वीकार वकया। वकं तु र्ह धनी यहदी समुदाय पर अपना वर्शेष प्रभार् नहीं डाल सका। अप्रभावर्त यहवदयों को इस्लाम में लाने
के प्रयास में अल्लाह ने वर्शेष रूप से वनवमवत आयतों को उतारना प्रारंभ वकया। उदाहरण के जलये , अल्लाह की ओर से आयतों की
ऐसी श्रृंखला आयी, जिसका सं बं ध िेनीजसस की यहदी कथा [कु रआन 2:30-38], यहदी मूसा और इिराइल के बच्चों की कथाओं
[फनतं द 2:240-61] से था। तब अल्लाह ने यहवदयों र् ईसाइयों (एके श्वरर्ादी सैवबयन धमावर्लं वबयों को भी) कहा वक उसकी
कृ पा प्राि करने के जलये र्े अपने धमवग्रंथों के साथ-साथ कु रआन में भी वर्श्वास करें: ‘र्ो िो वर्श्वास करते हैं (कु रआन में), और र्ो
िो यहदी (धमवग्रंथ), ईसाई र् सैवबयन मत का पालन करते हैं, र्ो सभी िो अल्लाह और उसके कयामत के वदन पर वर्श्वास करते
हैं और सही काम करते हैं, अपने स्वामी से पाररतोवषक प्राि करेंगे; उनमें कोई भय नहीं होगा, न ही उन पर कभी कोई दुख
आयेगा’ [कु रआन 2:62, और 22:17 भी देखें]।

अल्लाह ने यहवदयों (और ईसाइयों को) सं बोजधत करते हुए मुहम्मद को उसका रसूल स्वीकार कराने के जलये सीधा प्रयास
वकया: ‘हे ग्रंथों के अनुयावययों (यहवदयों और ईसाइयों)! तुम्हारे पास रसूलों के आने का क्म बं द होने के बाद हमारा पैगम्बर
(मुहम्मद) तुम्हें समझाने आया है, जिससे वक तुम यह न कह सको वक: हमारे पास कोई शुभ सूचना देने र्ाला और सार्धान करने

69 मदूदी एए (1993) वहस्टॉररकल बैकग्राउं ड टू सूरा अल-हश्र; इन टुर्ाडा् वस अंडरस्टैं वडंग द कु रआन, (अनुर्ाद अंसारी िेडआई), मरकिी
मकतबा इस्लामी पस्लब्लशसव, न्यू देल्ही

61
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

र्ाला नहीं आया, तो तुम्हारे पास शुभ सूचना सुनाने तथा सार्धान करने र्ाला आ गया है तथा अल्लाह िो चाहे कर सकता है
[कु रआन 5:19]।’ वकं तु यहवदयों को मुहम्मद के पं थ की ओर लाने का इस इस्लामी ईश्वर का सारा प्रयास सर्वथा वर्फल हो गया।

इस्लाम में यहदी जसद्ांत का बोध


मुहम्मद पर यहदी धमव का प्रभार् इस तथ्य से भी ज्ञात होता है वक उसने कु रआन में कु रैशों की मूवतवपि
ू ा की तुलना में
यहदी धमव को अजधक प्रवतवष्ठत रखा। यहदी कु लवपता अिाहम (इिाहीम) र् उसके बेटे इस्माइल, यहदी परम्परा के पैगम्बर मूसा र्
वकं ग डेवर्ड (दाऊद) और सोलोमन (सुलैमान) इत्यावद को इस्लाम के पैगम्बरों में उच्च प्रवतवष्ठत स्थान वमला है। र्ास्तर् में मुहम्मद
ने अपने से अजधक सम्मान मूसा को वदया [बुखारी 4:610, 620]।

मुहम्मद के पैगम्बरी वमशन के आरंजभक चरण में इस्लामी आयतें और मुहम्मद के व्यविगत हार्-भार् भी यहदी धमव की
ओर भली-भांवत झुके हुए थे। ऐसा जलखा गया है वक उसने कहा, ‘िो वकसी यहदी या ईसाई को गलत समझेगा, कयामत के वदन
उस यहदी या ईसाई की ओर से मैं उस व्यवि पर अजभयोग लगाऊंगा।’

इन धमों के प्रवत उसके हार्-भार् ऐसे प्रतीत होते हैं वक र्ह मूवतवपूिक अरबों के बीच एक ऐसे एके श्वरर्ादी धमव का
प्रचार करना चाहता था, िो यहदी धमव और ईसाई धमव दोनों का वमलािुला रूप हो। कु रआन की आरंजभक आयतें यहवदयों को
सुप्रवतवष्ठत लोगों के रूप में मान्यता देती हैं: ‘और वनजित ही हमने इिराइल के बच्चों (यहवदयों) को र्ह पुस्तक (तौरात), र्ह
बुवद्मत्ा और र्ह आगम वदया, तथा हमने उन्ें अच्छी र्स्तुएं दीं, और हमने उन्ें सभी िावतयों में उत्म बनाया [कु रआन
45:16]।’ यहदी धमवग्रंथों के बारे में कु रआन कहती है वक उसमें अल्लाह का ‘‘मागवदशवन र् प्रकाश’’ [कु रआन 5:44] है और र्ो
ग्रंथ सच्चे लोगों के जलये अल्लाह की कृ पा र् मागवदशवन थे [कु रआन 6:153-54]। कु रआन कई स्थानों पर वफजलस्तीन (येरूशलम)
को ‘‘पुण्य भूवम’’ के रूप में मान्यता दे ती है। आरंभ में मुहम्मद ने अपने नये पं थ के कें द्र के रूप में येरूशलम को दे खा था। र्ह
येरूशलम ही था, िहां से र्ह कजथत रूप से िन्नत गया था। उसने येरूशलम को मदीना िाने के बाद मुसलमानों के नमाि की
वदशा के रूप में ग्रहण वकया था।

मुहम्मद ने दान दे ने की यहदी परंपरा की भी नकल की थी और उसने इसका अरबी नाम िकात वदया तथा इसे इस्लाम के
पांच स्तं भों में एक बनाया। यहदी परंपरा का अनुसरण करते हुए उसने सुअर का मांस खाना र्जिवत वकया, नहाने-धोने र् शौच एर्ं
शुद् होने की वर्शेष रीवत दी, शवनर्ार को ‘‘सब्त मानने की परंपरा’’ स्थावपत की (बाद में इसे शुक्र्ार को कर वदया गया)। यहदी
परंपराओं का अनुसरण करते हुए उसने अशुरा का उपर्ास इस्लाम के पांच स्तम्ों में से एक बनाया, अशुरा के उपर्ास को बाद
रमिान के रूप में पररर्वतवत कर वदया गया। उसने यहदी परंपरा का पालन करते हुए मुसलमानों के जलये खतना परंपरा प्रारंभ की

62
इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

[अबू दाऊद 41:5251]70, और दार्ा वकया वक िब उसका िन्म हुआ, तो उसका खतना पहले से वकया हुआ था। आरंभ में र्ह
स्वयं को नबी कहता था। नबी पैगम्बरों के जलये प्रयोग वकया िाने र्ाला यहदी शब्द है।

मुहम्मद की यहवदयों से कड़र्ाहट


यहवदयों ने अल्लाह र् रसूल मुहम्मद के इस्लाम स्वीकार के आह्वान को अनदेखा कर वदया। कु रआन में यहदी धमवग्रंथ र्
परंपराओं के बारे में बहुत सी अशुवद्यां र् वमलार्ट थी। उदाहरण के जलये, कु रआन 7:157 दार्ा करता है वक मुहम्मद कजथत रूप
से अिाहम के बेटे इस्माइल का र्ं शि है और र्ही मसीहा है, जिसके बारे में तौरात में पहले ही बता वदया गया था। िबवक कु रआन
में इससे पहले दी गयी आयतें इस आयत के वर्परीत थीं और उन आयतों में स्पष्ट कहा गया था वक पैगम्बरी के र्ल इिराइल के
बच्चों [कु रआन 45:16] और उनमें भी वर्शेष रूप से इसाक र् िैकब के पररर्ार में ही प्रदान की गयी थी [कु रआन 29:17]।
मुहम्मद एक अरबी था, न वक इिराइली और उसका र्ं श भी इसाक र् िैकब के र्ं श से जभन्न था। यहदी रस्लब्बयों ने कु रआन के इस
स्पष्ट वर्रोधाभास को इंवगत करते हुए मुहम्मद के पैगम्बरी के दार्े को पूणवतः अस्वीकार कर वदया।

इसके अवतररि इस्माइल अिाहम का अर्ैध सं तान था, िो एक अ-यहदी िावत की इजिप्ट की एक रखैल हगार से उसके
सं बं ध से िन्मा था। इसजलये र्ह ईश्वर के वनयमपि से बाहर था। बाइवबल ने भी उसका र्णवन ‘‘असभ्य र् वहंसक’’ के रूप वकया है
[िेन 16:12]। इस प्रकार ईश्वर इस्माइल के र्ं शिों को पैगम्बरी नहीं दे सकता था। यहवदयों ने मुहम्मद के इस दार्े को भी
अस्वीकार कर वदया वक कु रआन ईश्वर का सं दे श है, क्ोंवक यह वकसी पवर्ि भाषा वहिू या सीररयाई भाशा में नहीं आया था, अवपतु
कवर्यों और वपयक्कड़ों की भाषा अरबी में आया था। यहवदयों ने मुहम्मद द्वारा बतायी गयी तौरात की घटनाओं में बहुत सी अशुवद्यों
पर ध्यान वदलाया और उसे यहदी धमवग्रंथों से अनजभज्ञ बताया, िबवक मुहम्मद की आयतें यहदी धमवग्रंथों की पुवष्ट के दार्े करती
थीं। उदाहरण के जलये, उसने गलत ढं ग से यहवदयों पर आरोप लगाते हुए कहा वक एिरा (उिैर) ईश्वर का बेटा था [कु रआन
9:30], जिसे यहवदयों ने जसरे से नकार वदया। कु ल वमलाकर, यहवदयों ने मुहम्मद के पैगम्बरी के दार्े को यह जसद् करके नकार
वदया वक उसकी कजथत आयतें वर्कृ त, भ्ामक और बहुत बार तो अबोधगम्य (न समझ में आने र्ाली) हैं।

मुहम्मद के मदीना आने का एक र्षव भी नहीं बीता होगा वक बद्र की िं ग से कु छ समय पूर्व 623 ईसर्ी में यह कटु र्ाद-
वर्र्ाद और मनमुटार् चरम पर आ गया। यहवदयों (और ईसाइयों को) इस्लाम के िाल में फंसाने में वर्फल होने पर उत्े जित र्
क्ु द् अल्लाह ने अब उन्ें और मनाने का प्रयास बं द करने कहा तथा बोला: ‘और िब तक तुम यहवदयों र् ईसाइयों का धमव नहीं
मानोगे, र्े तुमसे सहमत (प्रसन्न) नहीं होंग।े उनसे कह दो: सीधी डगर र्ही है, िो अल्लाह ने बतायी है और तुम्हारे पास ज्ञान आ
गया है, उसके पिात भी यवद तुमने र्ही वकया िो र्ो चाहते हैं, तो अल्लाह (की पकड़) से तुम्हारा कोई रिक नहीं होगा, कोई
सहायक नहीं होगा [कु रआन 2:120]।’

70 सही बुखारी, सही मुस्लस्लम और सुनन अबू दाऊद नामक प्रामाजणक स्रोतों से हदीस (या सुन्नत) के सं दभव र्ाक्ों के भीतर कोष्ठक में हैं।

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

इसके बाद यहवदयों के प्रवत अल्लाह का स्वर और मुहम्मद का हार्-भार् दोनों पररर्वतवत होने लगा। यहदी कु लवपता
अिाहम अब ‘‘मुसलमान’’ और मुहम्मद के अपने वमशन पूर्व र्ाहक बन चुका था: अिाहम न तो यहदी था और न ही ईसाई; बस
र्ह अपने ईमान में सच्चा था, अल्लाह का आज्ञाकारी था (अथावत इस्लाम को मानने र्ाला था) [कु रआन 3:67]। पैगम्बरी की
र्ं शार्ली के सं बं ध में वर्रोधाभास का उत्र दे ने और पैगम्बरी पर मुहम्मद के दार्े को र्ैधता दे ने के जलये अल्लाह ने अब आयतों की
श्रृंखला उतारी, जिससे वक अिाहम-इस्माइल की सं तवत क्म को लेकर एक पूणत
व ः नयी र्ं शार्ली रची िा सके । अपने धमव का ठे का
इिराइल के बच्चों से छीनने और एक अरबी मुहम्मद को दे ने के जलये अल्लाह ने उस अिाहम र् इस्माइल के साथ अपना एक नयी
कहानी रची, जिसने कजथत रूप से अल्लाह के पवर्ि गृह काबा की स्थापना की थी। मुहम्मद के पैगम्बरी वमशन को इिराइल के
स्थान पर अरब कें वद्रत बनाने के जलये अल्लाह ने अब दार्ा वकया वक उसने अपने मिहब का कें द्र बनाने के जलये काबा के चारों ओर
अपनी कृ पा भेिी है [कु रआन 2:126-30]। आयतों के इन नये समुच्चयों (3:67, 2:126-30) के माध्यम से अल्लाह ने
अिाहवमक धमव का पूणवतः नया पररप्रेक्ष् रचा, िो अरब कें वद्रत था, न वक इिराइल कें वद्रत और इसमें यह भी था वक इसको मानने
र्ाले अिाहम-इस्माइल की र्ं शार्ली को मानेंग,े न वक इसाक या िैकब र्ाली बात। दूसरे शब्दों में इस्लाम मूलतः र्ह धमव था,
जिसे अल्लाह ने अिाहम (और इस्माइल) के माध्यम से स्थावपत करने की योिना बनायी थी और अरबी पैगम्बर मुहम्मद अल्लाह के
मूल आशय वनवहत उसी मिहब को इसके वर्शुद् रूप में पुनः र्ैसा ही बनाने के जलये आया।

जिस यहदी तौरात को अल्लाह ने आरंभ में अपने ‘‘मागवदशवन र् प्रकाश’’ [कु रआन 5:44], से समावहत एक ईश्वरीय
पुस्तक एर्ं सही पथ पर चलने र्ालों के जलये कृ पा र् मागवदशवन [कु रआन 6:153-54] के रूप में मान्यता दी थी, र्ह अब यहवदयों
द्वारा वर्कृ त वकया हुआ बताया िाने लगा [कु रआन 2:79]। र्ो यहदी, जिन्ें अल्लाह द्वारा ‘सभी मनुष्यों में श्रेष्ठ’ [कु रआन
45:15] होने की मान्यता दी गयी थी, अब ‘मोवमनों (मुसलमानों) के प्रवत सबसे अजधक शिुता वदखाने र्ाले बताये िाने लगे
[कु रआन 5:82]।’ मुहम्मद अब स्वयं को नबी के स्थान पर रसूल (पैगम्बर) कहने लगा। अपने मिहब के नये कें द्र का अवर्ष्कार
करने के बाद अल्लाह ने अब नमाि की वदशा येरूशलम से मक्का की ओर करने के जलये आयतें भेिीं [कु रआन 2:144]। मुहम्मद
ने सब्त का वदन शवनर्ार से पररर्वतवत कर इसे शुक्र्ार को कर वदया और इसका नाम (िुमा) कर वदया तथा यहदी परंपराओं में होने
र्ाले अशुरा के उपर्ास को मक्का के हनीफों की परंपरा के अनुसार एक मास लं बे रमिान में पररर्वतवत कर वदया। मदीना पहुंचने के
बाद मुहम्मद ने जिन यहदी प्रथाओं, परंपराओं र् प्राथवना-पद्वत को अभी तक ग्रहण वकया था, उन सबको या तो पररर्वतवत कर
वदया अथर्ा उनमें सं शोधन कर वदया। यहवदयों ने अब उस पर अस्लस्थर-जचत् होने का आरोप लगाया। उन्ोंने मुहम्मद का उपहास
भी उड़ाया वक र्ह पररर्वतवत हो गया और मूवतवयों र्ाले काबा के मं वदर में रखी मूवतवपूिकों की श्रद्ा काले पत्थर के टुकड़े की ओर
मुं ह करके प्राथवना करने लगा है।

ं ा
यहवदयों पर मुहम्मद की वहस
मदीना में मुहम्मद के आयतों की नीर-िीर वर्र्ेकी आलोचना करने के साथ ही यहवदयों में उसके मिहबी वमशन से जचढ़
बढ़ने लगी। यहवदयों के तावकव क प्रश्नों का उसके पास उत्र न के बराबर होता था। 624 के आरंजभक समय में बद्र में कु रैशों पर
अचं जभत करने र्ाली वर्िय तथा व्यापाररक कारर्ांओं पर लूटमार करने र्ाले हमलों से वमले धन र् बढ़ती ताकत से उत्सावहत

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

मुहम्मद ने अब अपनी तलर्ार का मुं ह अपने धमव पर अवडग एर्ं अपने अकाट्य तकों से असहिता उत्पन्न करने र्ाले यहवदयों की
ओर कर वदया। उसकी बद्र की वर्िय कु छ ही समय पहले हुई थी और उसने यहवदयों के व्यापार-कें द्र पर ही उनको बुलाकर
अवनष्टकारी चेतार्नी दे ते हुए बोला: ‘‘हे यहवदयों, सं भल िाओ, कहीं ऐसा न हो वक अल्लाह तुम पर भी र्ैसा ही कोप भेिे, िैसा
वक (बद्र में) कु रैशों पर भेिा था। मुसलमान बन िाओ। तुम िानते हो वक मैं एक रसूल हं , जिसे अल्लाह ने भेिा है...।’’71
यहवदयों को मुहम्मद के इस अवनष्टकारी धमकी को अनसुना करने का बड़ा दं ड भुगतना पड़ा।

बनू क़ै नुक़ा पर हमलाः इस चेतार्नी के बाद एक वदन अप्रैल 624 में बनू क़ै नुक़ा के एक युर्ा ने कजथत रूप से हाट में एक
मुसलमान औरत को छे ड़ वदया। र्हां उपस्लस्थत एक मुसलमान ने उस युर्ा को मार डाला। प्रवतशोध में यहवदयों द्वारा उस मुसलमान
की हत्या कर दी गयी।72 इस झगड़े को बहाना बनाकर मुहम्मद ने मदीना के सबसे धनी समुदाय बनू क़ै नुक़ा के पूरे समुदाय को घेर
जलया। 15 वदन की घेराबं दी के बाद यहवदयों ने आत्मसमपवण कर वदया। मुहम्मद ने आदेश वदया वक आत्मसमपवण वकये हुए यहदी
पुरुषों की सामूवहक हत्या करने के जलये उन्ें बांध वदया िाए। इसी समय खिरि कबीले का मुजखया अब्दुल्लाह इब्न उबै सामने
आये और दृढ़तापूर्वक बीचबचार् करने लगे। अब्दुल्लाह इब्न उबै ने इस्लाम स्वीकार कर जलया था, वकं तु मुहम्मद के वमशन पर
उनकी वनष्ठा सं वदग्ध थी। उन्ोंने मुहम्मद से कहा, ‘‘अल्लाह के र्ास्ते, क्ा आप एक ही वदन इन 700 व्यवियों को काट
डालेंग?े ?’’ अब्दुल्लाह मुहम्मद के सामने वगड़वगड़ाये, ‘‘हे मुहम्मद, मेरे लोगों पर दया कररये।’’ ध्यान रहे वक बनू क़ै नुक़ा अब्दुल्लाह
उबै की िनिावत की सहयोगी थी।

िब मुहम्मद ने उनकी गुहार को अनसुना कर वदया, तो अब्दुल्लाह ने उसका वगरेबां पकड़ जलया और चीखने लगे,
‘‘अल्लाह का र्ास्ता, िब तक तुम मेरे लोगों से उदारतापूर्वक व्यर्हार नहीं करोगे, मैं तुम्हें िाने नहीं दूंगा।” र्ो चेतार्नी भरे स्वर
में बोले, ‘‘मैं एक पुरुष हं, पररस्लस्थवतयां उलट सकती हैं!”73

अब्दुल्लाह एक प्रभार्शाली नेता थे, इस कारण मुहम्मद ने बं दी बनाये गये ििीमा िनिावत के लोगों के हत्या की गवत
मं द कर दी। अब उसने ििीमा के लोगों को मदीना छोड़कर सीररया चले िाने को कहा। उन्ें मदीना छोड़ने के जलये तीन वदन का
समय वदया तथा उन्ें अपने व्यापार के उपकरणों र् र्स्तुओं को ले िाने से रोक वदया। िैसे ही यहदी मदीना छोड़कर गये, मुहम्मद
ने उनके गृहों के र्स्तुओं और उनकी सं पवत् को हड़प जलया। उसने इस धन-सं पवत् को अपने अनुयावययों में यह कहकर बांट वदया
वक यह अल्लाह के मागव में जिहाद के माध्यम से वमला पवर्ि लूट का माल है।

71 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 363

72 मुईर, पृष्ठ 241

73 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 545-46; र्ाकर, पृष्ठ 184

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

इसी समय उसने उन व्यवियों की हत्या का आदे श वदया, जिन्ोंने उसके पं थ और कायों की आलोचना की थी। उसके
जशकार में 120 र्षव के र्योर्ृद् कवर् अबू अफाक भी थे, जिन्ोंने मुहम्मद की वहंसक कारवर्ाइयों की आलोचना करते हुए पद रचे
थे। एक और जशकार पांच बच्चों की मां र् कर्वयिी अस्मा वबं ते मारर्ान थीं, जिन्ोंने मुहम्मद द्वारा अबू अफाक की हत्या और
उसकी अन्य वहंसक गवतवर्जधयों की वनंदा करने र्ाली कवर्ताएं जलखी थीं। मुहम्मद का तीसरा जशकार यहदी कवर् काब वबन अशरफ
थे, जिन्ोंने बद्र में मुहम्मद की बबवरता की वनंदा करते हुए पद रचे थे और कु रैशों को अपनी परािय का प्रवतशोध लेने के जलये प्रेररत
वकया था।74

इब्न इस्हाक के अनुसार, मुहम्मद ने उस समय यह कहते हुए यहवदयों के नरसं हार की सामान्य सहमवत दे दी थी वक ‘‘िो
भी यहदी तुम्हारे हाथ आये, उसकी हत्या कर दो।’’ इसके पिात सुनैन नामक एक यहदी व्यापारी नया-नया मुसलमान बने एक
यहदी मुहैस्लिश के सामने पड़ गया। मुहैस्लिश उस अभागे व्यापारी सुनैन पर टू ट पड़ा और उसे मार डाला। मुहैस्लिश के पररर्ार से
उस यहदी सुनैन से सामाजिक र् व्यापाररक सं बं ध थे और मुहैस्लिश उस व्यापारी से लाभ अजिवत करता था। उसके बड़े भाई
हुर्ैस्लिश ने एक मूल्यर्ान व्यवि की हत्या करने पर यह कहते हुए उसका वर्रोध वकया वक, ‘‘तुम ईश्वर के शिु हो। तुमने उसे ही
मार डाला, जिसके धन से तुम्हारे तन पर चबी चढ़ी है।’’ छोटे भाई मुहैस्लिश ने अजशष्टता से उत्र वदया, ‘‘जिसने मुझे उसकी हत्या
का आदे श वदया है, यवद र्ह मुझे तुम्हारी हत्या का भी आदे श देता, तो मैं तुम्हारा भी जसर काट लेता।’’ इब्न इस्हाक जलखता है वक
मुहम्मद के पं थ ने उसमें िो बबवर स्वभार् र् प्रवतबद्ता डाली थी, उससे प्रभावर्त होकर हुर्ैस्लिश चीख पड़ा, ‘‘ईश्वर की सौगं ध, िो
मिहब तुम्हें ऐसा बना सकता है, र्ह अद्भुत है!’’ और र्ह भी मुसलमान धमव बन गया।75

बनू निीर पर हमलाः मदीना के यहवदयों पर मुहम्मद का अगला अत्याचार अगस्त 625 ईसर्ी में हुआ। उहुद की वर्नाशकारी िं ग
के कु छ मास पिात मुहम्मद अपने साजथयों अबू बक्, उमर और अली के साथ बनू निीर के नेता के वनर्ास पर एक वर्र्ाद के
समाधान के जलये गया। वर्र्ाद यह था वक मुहम्मद के एक अनुयायी ने बनू निीर िनिावत की सहयोगी िनिावत के एक व्यवि
की हत्या कर दी थी। समझौता-र्ाताव के बीच में ही मुहम्मद (अपने साजथयों से यह कहते हुए वक िब तक मैं न आऊं , यहां से मत
वहलना) अचानक उठ खड़ा हुआ और मदीना र्ापस लौट आया।’76 उसके साजथयों ने लं बे समय तक प्रतीिा की, पर मुहम्मद
लौटकर नहीं आया, तो र्े भी चले गये। इब्न इस्हाक के अनुसार, मुहम्मद ने इसके बाद बनू निीर पर आरोप मढ़ वदया वक र्े घर
की छत से पत्थर फेंककर उसकी हत्या का षडयं ि रच रहे थे (रोचक बात यह है वक उसके िो साथी र्हां इतने लं बे समय तक
उसकी प्रतीिा कर रहे थे, उनमें से वकसी ने भी छत पर वकसी को नहीं दे खा था।)

74 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 675-76, 367

75 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 369

76 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 437

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

उसके बाद उसने यहदी समुदाय पर वर्द्रोह का आरोप लगाया और आदे श वदया वक उन्ें मृत्यत
ु ुल्य कष्ट दे कर मदीना से
भगा वदया िाए। कु छ टीकाकार यह भी उद्ृत करते हैं वक उहुद की वर्नाशकारी िं ग से पूर्व मक्का के अबू सुफ्य
ा् ान के साथ बनू
निीर िनिावत का र्ाजणस्लज्यक लेन-दे न होने के कारण मुहम्मद उनसे शिुता पाल बैठा था। यद्यवप कु रआन इसका कारण
वनम्नजलजखत बताती है: ‘अल्लाह ने उनके जलये दे श वनकाला का आदेश दे वदया था... क्ोंवक उन्ोंने अल्लाह और उसके रसूल का
वर्रोध वकया था: और यवद कोई भी अल्लाह का वर्रोध करेगा, तो वनजित ही अल्लाह उसे कड़ी यातना दे ने र्ाला है [कु रआन
59:3-4]।’ दूसरे शब्दों में कहें, तो बनू निीर िनिावत द्वारा इस्लाम न स्वीकार करना ही उन पर मुहम्मद के हमले का कारण था।

कु रआन में बारंबार ढोंगी के रूप में वनंवदत अब्दुल्लाह इब्न उबै ने पुनः मुहम्मद के इस आरोप की वनंदा करते हुए बनू
निीर पर वर्द्रोह की बात को आधारहीन बताया और यहां तक वक उन्ोंने बनू निीर की ओर से लड़ने की धमकी भी दी। अल्लाह
कु रआन में इस घटना का र्णवन यूं करता है: ‘ढोंगी लोग बनू निीर र्ालों से कहते हैं... ‘यवद तुम्हें यहां से वनकाला गया, तो हम
भी तुम्हारे साथ बाहर आएं गे तथा हम तुम्हारे बारे में वकसी की बात नहीं सुनेंगे; और यवद तुम पर (िं ग में) हमला होता है, तो हम
तुम्हारी सहायता करेंगे।’ पर अल्लाह सािी है वक र्े र्ास्तर् में झूठे हैं [कु रआन 59:11]।’

अब्दुल्लाह के समथवन से उत्सावहत यहवदयों ने िब मदीना नहीं छोड़ा, तो मुहम्मद ने उन पर हमला कर वदया और उनकी
गढ़ी छीन ली। इब्न इस्हाक जलखता है: शीघ्र ही र्े आत्मसमपवण कर दें , इसके जलये ‘रसूल ने आदेश वदया वक उनके खिूर के र्ृिों
को काटकर वगरा वदया िाए और िला डाला िाए। इस पर उन्ोंने (बनू निीर) ने मुहम्मद को पुकारा और बोले, ‘मुहम्मद तुमने तो
वनदवयी वर्नाश को र्जिवत वकया है और िो भी ऐसे अपराध का दोषी होता है तुमने उस पर अजभयोग लगाया है। तब तुम हमारे
खिूर के र्ृिों को क्ों काट कर वगरा रहे हो, िला रहे हो?’’77 उन्ोंने बहुत देर बाद इस शतव पर आत्मसमपवण वकया वक उन्ें
मक्का छोड़कर िाने का अर्सर वदया िाएगा। मुहम्मद ने उनकी सं पवत्, घर र् व्यापाररक र्स्तुओं के साथ ही उनकी तलर्ारों, ढालों
कर्चों और जशरस्त्राण (लोहे के टोपों) पर कब्जा कर जलया। उसने ये सब अपने अनुयावययों में बांट वदया।

बनू क़ु रैिा का नरसं हारः यहवदयों के वर्रुद् मुहम्मद का सबसे भयानक क्ू रता का कृ त्य अप्रैल 625 में खं दक की उस िं ग के ठीक
बाद सामने आया, जिसमें मक्कार्ाजसयों ने मदीना की घेराबं दी की थी। इस्लामी सावहत्य बताते हैं वक उस घेराबं दी के समय कु रैशों ने
सहायता के जलये बनू क़ु रैिा से सम्पकव वकया था और कजथत रूप से बनू क़ु रैिा के लोग उनकी सहायता के जलये सहमत हो गये थे।
वकं तु र्ास्तवर्कता यह थी वक इस पूरे सं घषव में बनू क़ु रैिा िनिावत तटस्थ रही थी। र्ास्तवर्कता यह थी वक जिस खं दक से मुहम्मद
का समुदाय बचा था, उसे खोदने के जलये बनू क़ु रैिा ने अपनी कु दालें र् उपकरण मुहम्मद को वदये थे। िब कु रैश र्ापस लौट गये,
तो मुहम्मद ने बनू क़ु रैिा पर गुिचरी करने और सं जध तोड़ने का आरोप लगाया, िबवक मुहम्मद और बनू क़ु रैिा के बीच सं भर्तः
कोई सं जध थी ही नहीं।78 अल्लाह कु रआन में इस आरोप की पुवष्ट वनम्न रूप से करता है: ‘और अल्लाह ने तौरात के उन लोगों

77 इवबद

78 र्ाट डब्ल्यूएम 1961 इस्लाम एं ड द इं टीग्रेशन ऑफ सोसाइटी, राउतलेि एं ड कै गन पॉल; लं दन, पृष्ठ. 19। र्ास्तर् में कोई सं जध थी ही
नहीं। मुसलमानों द्वारा जिस मदीना के सं वर्धान को सं जध के रूप में प्रचाररत वकया िाता है , उस पर वकसी यहदी िनिावत ने हस्तािर वकये ही

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अथावत बनू क़ु रैिा के यहवदयों को उनकी गवढ़यों से वगरा वदया, जिन्ोंने उन (कु रैशों) का साथ वदया, तथा उनके मन में भय भर
वदया... [कु रआन 33:26]।’ यह समझ पाना कवठन है वक अपनी गवढ़यों में बैठे हुए बनू क़ु रैिा के लोग कु रैश योद्ाओं की
सहायता कै से कर रहे होंग,े िैसा वक अल्लाह दार्ा कर रहा है। तो भी अल्लाह और मुहम्मद के जलये यह उन पर हमला करने एर्ं
लगभग एक मास तक तब तक उनकी घेराबं दी वकये रखने का पयावि कारण था, िब तक वक र्े आत्मसमपवण न कर दें।

अब्दुल्लाह इब्न उबै ने पुनः बनू क़ु रैिा पर मुहम्मद के हमले की वनंदा की। वकं तु र्ह अपनी मृत्यु से बहुत दूर नहीं थे और
उनकी ताकत भी घट गयी थी, क्ोंवक उनके अजधकांश अनुयायी मुहम्मद के पि में िा वमले थे। अब मुहम्मद सरलता से उनकी
उपेिा कर सकता था। िैसे दो र्षव पूर्व बनू निीर के लोग वनर्ावजसत हुए थे, र्ैसे ही आत्मसमपवण कर चुके बनू क़ु रैिा िनिावत के
लोगों ने भी मदीना छोड़कर िाने का प्रस्तार् वदया, वकं तु मुहम्मद ने उनके प्रस्तार् को ठु करा वदया और उनकी िनिावत के सभी
पुरुषों की हत्या करने का वनणवय वकया। इन पुरुषों की सं ख्या यही कोई 800-900 रही होगी। हत्या वकये िाने र्ाले पुरुषों की
र्यस्कता का वनधावरण उनके गुिांगों पर के श उगने से वकया गया।79 जस्त्रयों और बच्चों को दास के रूप में बं दी बना जलया गया तथा
पहले के िैसे ही उनके भी भर्नों र् सं पवत्यों का अजधहरण (िब्त) कर जलया गया और मुसलमानों में बांट वदया गया। इस्लामी
ईश्वर ने यह आयत उतारते हुए इन बबवर अत्याचारों को सुस्पष्ट स्वीकृ वत दीः ‘...कु छ को तुमने काट डाला और कु छ को तुमने बं दी
बना जलया। और उसने अल्लाह ने तुम लोगों को उनकी भूवम, उनके भर्न और उनकी सं पवत् का स्वामी बना वदया और तुम्हें ऐसी
भूवम का स्वामी बना वदया, िो तुमने दे खा-सोचा तक न होगा। अल्लाह सदा सबकु छ करने में समथव है [कु रआन 33:26-27]।’

मुहम्मद के वनणवय के अनुपालन में हाट-स्थान में एक गडा् ढ़ा खोदा गया; और मुहम्मद की उपस्लस्थवत में उन 800-900
बं वदयों के हाथ पीछे बांधकर उस गडा् ढ़े के वकनारे पं विबद् करके खड़ा कर वदया गया तथा उनके ित-वर्ित शर्ों को उसमें डालने
से पूर्व जसर काटकर उनकी हत्या की गयी। मुहम्मद ने स्वयं दो यहदी नेताओं के जसर धड़ से काटकर वगराया। यहवदयों की हत्या का
यह क्म पूरे वदन चलता रहा और रात में अंधेरा होने पर मशाल िलाकर हत्या का काम वनरंतर रहा। इस र्ीभत्स नरसं हार के बारे में
िानकर उस कै रेन आम्स्टर ाांग को भी वर्तृष्णा हो गयी थी, िो इस्लाम के बारे में पजिम की गलत धारणाओं को सही करने के अपने
अहवनवश अजभयान के कारण मुसलमानों में अत्यं त लोकवप्रय हैं। उन्ें मुहम्मद द्वारा वकये गये इस नरसं हार की घटना को िानकर

नहीं थे। मोंटगोमरी र्ाट, इस्लाम पर जिनकी पुस्तकें पावकस्तान में व्यापक रूप से प्रकात होती हैं , के अनुसार, उस पिक पर हस्तािर करने
र्ाले नौ पि थे और उनमें सब के सब मुसलमान और अरब की र्ो मूवतवपूिक िनिावतयां थीं, िो मुहम्मद के मदीना आने के बाद बड़ी सं ख्या में
इस्लाम में धमाांतररत होकर वनजित ही मुसलमान बन गये थे।

79 अबू दाऊद 38:4390: अवतिाह अल-क़ु रािी ने बतायाः ‘‘मैं बं दी बनाये गये बनी क़ु रैिा के उन लोगों में से एक था। र्े मुहम्मद के साथी
ने हमारा परीिण वकया, और जिनके गुिांगों पर के श उग आये थे उनकी हत्या कर दी गयी और जिनके के श नहीं उगे थे उनकी हत्या नहीं की
गयी...।’’

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

इतनी घृणा हो गयी थी वक उन्ोंने इसकी तुलना यहवदयों पर नाजियों द्वारा वकये गये अत्याचार से की थी।80 यह क्ू र नरसं हार
वनजित रूप से यहवदयों का पहला सर्वनाश कहा िा सकता है।

एक यहदी मवहला, जिसके पवत का गला रेत वदया गया था, ने अपने पवत के हत्यारे की दास बनने की अपेिा अपने जलये
भी र्ही वनयवत मांगी। उसकी इच्छा पूरी की गयी और उसने स्लस्मतापूर्वक (मुस्कराते हुए) मृत्यु को गले लगाया। उस नरसं हार को
अपनी आं खों से देखने र्ाली मुहम्मद की युर्ा बीर्ी आयशा बाद में प्रायः कहा करती थी वक मृत्यु का र्रण करते समय भी उस
नावयका के मुख पर िो स्लस्मत (मुस्कुराहट) थी, उसका दृश्य लं बे समय तक उसका पीछा करता रहा। इब्न इस्हाक के अनुसार,
‘आयशा कहा करती थी, ‘र्ह मवहला यह िानती थी वक उसकी हत्या कर दी िाएगी, पर एक पल के जलये भी उसके मुख से हंसी
दूर नहीं हुई और मुझे उसका यह भार् कभी नहीं भूल सकता।’’81

अल-िावबर नामक एक और र्ृद् यहदी व्यवि थे, जिन्ोंने पहले कभी कु छ मुसलमानों के प्राण बचाये थे, उन्ें िमा कर
वदया गया। वकं तु उन्ोंने यह कहते हुए इसे ठु करा वदया वक अब िब उसके सभी वप्रय िन मार वदये गये हैं, तो उनकी िीने की
कोई इच्छा नहीं है। इब्न इस्हाक ने उनके कथन को इस प्रकार अंवकत वकया हैः ‘‘कोई र्ृद् व्यवि पररर्ार और बच्चों के वबना
िीर्न लेकर क्ा करेगा।’’ मुहम्मद चीखा: ‘‘हां, तुम भी उन्ीं के पास िाओगे-िहन्नुम की आग में’’ और उस र्ृद् की हत्या का
आदे श वदया।82

मुहम्मद ने माले गनीमत अथावत लूट के पवर्ि माल के रूप में हजथयाई गयी बनू क़ु रैिा की सारी सं पवत् में से पांचर्ां भाग
अपने जलये रख जलया और शेष सं पवत् को अनुयावययों में बांट वदया। बं दी बनायी गयी जस्त्रयों और बच्चों को भी उसी प्रकार बांट
वदया गया। बं दी बनायी गयी जस्त्रयों में से युर्ा र् आकषवक मवहलाओं को लौंडी (सेक्स-स्लेर्) बनाकर रख जलया गया; स्वयं मुहम्मद
ने रेहाना नामक एक सुं दर औरत को अपनी रखैल बनाने के जलये ले जलया। पुरुषों की हत्या करने के बाद उसी रात र्ह उस मवहला
को अपने वबछौने पर उठा ले गया। कु छ जस्त्रयों को दूसरे दे शों में ले िाकर बेच वदया गया, जिससे वक उससे वमले धन से आगामी
िं गों में प्रयोग वकये िाने के जलये हजथयार र् घोड़े क्य वकये िा सकें । इस बारे में इब्न इस्हाक जलखता है: ‘तब रसूल ने साब िैद
अल-अंसारी को बनू क़ु रैिा की बं दी बनायी गयी कु छ जस्त्रयों के साथ नज्द भेिा, िहां उसने उन जस्त्रयों को हजथयारों र् घोड़े के
बदले बेच वदया।’83

80 आम्सवस्टरांग के 1991 मुहम्मदः अ र्ेस्टनव अटे म्प्ट टू अंडरस्टैं ड इस्लाम, गोलांि, लं दन, पृष्ठ 207

81 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 465; र्ाकर, पृष्ठ 185-86

82 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 466

83 इवबद, पृष्ठ 465

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

खैबर के यहवदयों पर हमला: बनू क़ु रैिा का नरसं हार करने के साथ ही मदीना से यहवदयों का सफाया हो गया। अब मुहम्मद का
ध्यान खैबर के यहदी समुदाय के लोगों पर था। खैबर का यह यहदी समुदाय अरब प्रायद्वीप का एक और प्रभुत्वशाली यहदी गढ़
था। खैबर सीररया के मागव पर मदीना से 70 मील दूर स्लस्थत था। र्ह वर्शेष रूप से वनर्ावजसत बनू निीर िनिावत के यहवदयों से
जचढ़ा हुआ था, क्ोंवक मदीना से भगाये िाने के बाद र्े र्हां बस गये थे। इसके नेता अबू रफी मक्का र् उसके सहयोवगयों की उस
सेना में थे, जिसने खं दक के युद् के समय मदीना की घेराबं दी की थी। इसजलये उसे अबू रफी और उनके समुदाय से प्रवतशोध लेना
था।

इसके शीघ्र बाद 627 मुहम्मद ने अली के नेतृत्व में फौि को िं गी अजभयान पर खैबर भेिा, परंतु उं टों और पशुओं को
पकड़ने के अवतररि इस अजभयान का और कोई पररणाम नहीं वनकला। तब मुहम्मद ने अबू रफी की हत्या के जलये एक वगरोह
भेिा। वमि होने का बहाना करके हत्यारे अबू रफी के वनर्ास में प्रर्ेश कर गये और उन्ें वनपटा वदया। िब सफल हत्यारे मदीना
लौटकर आये, तो रसूल चीखा: ‘‘क्ा तुम सफल रहे!!’’ और उन्ोंने उत्र वदया, ‘‘हे रसूल! हां।’84’ ऐसा ही एक और हत्यारा
वमशन खैबर के नेता उसीर (यूसीर) की हत्या करने के जलये भेिा गया। वकं तु इस बार यहदी सचेत थे, जिससे मुहम्मद का यह
वमशन वर्फल हो गया।

इसके बाद िनर्री 628 में मुहम्मद ने खैबर के नेता से समझौता करने के जलये तीस मुसलमानों का एक प्रवतवनजधमं डल
भेिा। र्हां पहुंचकर उस प्रवतवनजधमं डल ने उसीर को आश्वासन वदया वक ‘मुहम्मद उसे खैबर का शासक बना देगा और उसे वर्शेष
प्रवतष्ठा देगा। उन्ोंने उसीर को सुरिा का र्चन वदया।’ इस आश्वासन पर उसीर के नेतृत्व में खै बर के तीस सदस्यों का
प्रवतवनजधमं डल मदीना की ओर चला। प्रत्येक यहदी व्यवि ऊंट पर एक-एक मुसलमान के पीछे सर्ार हुआ। खैबर से कु छ दूर आगे
चलकर मुसलमान इन यहवदयों पर टू ट पड़े और इनको मार डाला। के र्ल एक यहदी वकसी प्रकार बचकर भाग पाया। िब यहवदयों
की इस बबवर हत्या का समाचार मुहम्मद तक पहुंचा, तो उसने यह कहते हुए अल्लाह को धन्यर्ाद वदया, ‘‘र्स्तुतः अल्लाह ने ही
कु पथ पर चल रहे इन लोगों को लाकर सामने पटक वदया।’’85

इसके बाद मई 628 ईसर्ी में रसूल अपनी अगुर्ाई में 1600 जिहावदयों की मिबूत फौि लेकर खैबर पर हमला करने
वनकला। र्ो चोरी-जछपे रात में खैबर पहुंच गया। इब्न इस्हाक के अनुसार, िब खैबर के काम करने र्ाले लोग प्रातः अपनी कु दाल
और टोकरी लेकर बाहर आये, तो उन्ोंने रसूल और उसकी फौि को देखा। तो ‘र्े चीख पड़े , ‘मुहम्मद अपनी फौि के साथ’ और
उल्टे पांर् भाग गये। रसूल ने कहा, ‘अल्लाह अकबर! खैबर वमट गया।’’86

84 मुईर, पृष्ठ 348

85 इवबद, पृष्ठ 349

86 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 511; बुखारी 2:68 भी देखें

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

यहां िब रिवपपासु युद् प्रारंभ हुआ, तो लं बे सं घषव के बाद मुसलमानों को वर्िय वमली। इसमें यहवदयों की ओर अपने
समुदाय को बचाने के जलये सं घषव कर रहे 93 यहवदयों ने प्राणों का बजलदान वदया, िबवक मुहम्मद की ओर के 19 जिहादी मारे
गये। अबू रफी की हत्या के बाद उनका पोता वकनाना बनू निीर िनिावत का नेता बना। एक वर्श्वासघाती यहदी ने मुहम्मद को
सूचना दी वक वकनाना अपनी वनजध (खिाना) एक गुि स्थान पर जछपाये हुए है। उस वनजध का पता करने के जलये मुहम्मद ने
वकनाना को मृत्युतुल्य प्रताड़ना दी, उसके सीने पर िलती आग रख वदया। पर र्ह वनजध नहीं वमल सकी, तो वकनाना की हत्या कर
दी गयी।

खैबर की वर्िय के बाद, ‘उनके योद्ाओं (प्राण-प्रण से लड़ रहे यहवदयों) की हत्या कर दी गयी; उनकी जस्त्रयों र् बच्चों
को बं दी बना जलया गया [बुखारी 2:14:68]।87 इब्न इस्हाक ने जलखा है, ‘खैबर की जस्त्रयों को मुसलमानों में बांट वदया गया।’
बं दी बनायी गयी जस्त्रयों में तीन बहुमूल्य मवहलाएं वकनाना की सिह र्षीय पत्नी सावफया और वकनाना की पत्नी की दो कुं र्ारी चचेरी
बहनें भी थीं। सुन्नत से ज्ञात होता है वक आरंभ में सावफया मुहम्मद के जिहादी साथी वदह्या वबन खलीफा-अल कलबी के अंश
(वहस्से) में आयी थी। िब वकसी ने उसकी अप्रवतम सुं दरता के वर्षय में मुहम्मद को बताया और बोला वक र्ह के र्ल रसूल के भोग
के योग्य है, तो मुहम्मद में उसे पाने की इच्छा पनप गयी, िैसा वक मुस्लस्लम 8:3329 [बुखारी 5:512 में भी] वदया गया है: ‘अनस
(अल्लाह उनसे प्रसन्न हो), ने बतायाः सावफया (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) िं ग में लूटे गये माल के रूप में पहले दावहया के वहस्से में
आयी और उन्ोंने अल्लाह के रसूल (अल्लाह उन्ें शांवत प्रदान करे) की उपस्लस्थवत में उसकी सुं दरता का बखान वकया और बोलेः
हमने िं ग की उन बं वदयों में उसके िैसा कोई और नहीं देखा।’ यह सुनकर मुहम्मद ने आदेश वदया वक वदह्या और सावफया को
उसके सामने लाया िाए। िब रसूल ने सावफया को दे खा, तो उसने वदह्या से कहा, ‘‘बं दी जस्त्रयों में से कोई और ले लो।’ रसूल ने
उसे मुि कर वदया और उससे शादी कर ली [अबू दाऊद 19:2992]।’ इब्न इस्हाक ने जलखा है, ‘रसूल ने आदे श वदया वक
सावफया उनके पीछे लायी िाए और उन्ोंने अपना चोंगा उसके ऊपर फेंक वदया, जिससे वक मुसलमान िान िाएं वक उन्ोंने उसे
अपने जलये चुन जलया है।’88 वदह्या को शांत करने के जलये उसे सावफया की दो युर्ा चचेरी बहनों को वदया गया।

मुहम्मद ने इस िं ग में वमले लूट के माल को अपने जिहावदयों में बांट वदया। र्ह आत्मसमपवण वकये हुए यहवदयों को
वनर्ावजसत करना चाहता था [बुखारी 3:53]। वकं तु िैसा वक एक हदीस [अबू दाऊद 19:3008] में जलखा है वक मुसलमानों के
पास इतने आदमी नहीं थे वक उनकी आहरण (िब्त) की गयी भूवम को िोत सकें : ‘... उनके (मुसलमानों) के पास उन िब्त की
गयी भूवम पर काम करने के जलये पयावि लोग नहीं थे।’ इसजलये मुहम्मद ने उन यहवदयों को दो शतों पर र्हां रहने और उस भूवम
को अपने पास रखने की अनुमवत दी: पहला, ‘‘हम तुम्हें इस शतव पर यहां रहने दें गे वक िब तक हमारी इच्छा होगी, तभी तक तुम

87 इवबद, पृष्ठ 515

88 इवबद

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यहां रहोगे’’ [बुखारी 3:53] और दूसरी शतव यह है वक तुम इस भूवम पर जितनी उपि (फल और सस्लब्जयां) उत्पन्न करोगे, उसका
आधा भाग कर के रूप में मुसलमानों को दे दोगे [बुखारी 3:521-24]।

खैबर की घटना के बाद, फदक के भयभीत यहदी िनिावत ने भी तुरंत मुहम्मद के पास का प्रस्तार् जभिर्ाया वक यवद
उन्ें भी अपनी भूवम पर होने र्ाली उपि का आधा भाग दे ने के बदले अपनी भूवम पर रहने वदया िाए, तो र्े भी आत्मसमपवण
करने को तैयार हैं। बाद में अरब की अन्य सबल यहदी िनिावत-कै मुस, र्सीह, सोलैजलम और र्ादी अल-कु रा आवद को भी या तो
बलपूर्वक अधीन कर जलया गया अथर्ा उन्ें मारकाट कर भगा वदया गया। अपनी मृत्यु से पूर्व मुहम्मद ने अपने साजथयों को अरब
की भूवम से सभी यहवदयों र् ईसाइयों को नष्ट करने का आदे श वदया। इब्न इस्हाक के अनुसार, रसूल िब मरणासन्न स्लस्थवत में थे,
तो वनदे श वदया ‘वक इन दोनों धमों को अरब प्रायद्वीप में रहने की अनुमवत न दी िाए।’89 पररणामस्वरूप दूसरे खलीफा उमर ने
638 ईसर्ी में खैबर के यहवदयों को भगा वदया; और उसके शासन के अंत (644 ईसर्ी) तक अरब प्रायद्वीप में एक भी यहदी और
ईसाई न बचा [बुखारी 3:531, अबू दाऊद 19:3001]।90

ईसाइयों के साथ मुहम्मद का व्यर्हार


प्रोफेसर एडर्डव सेड बताते हैं वक मध्ययुग की अजधकांश अर्जध और पुनिावगरण के आरंजभक र्षों में ईसाई यूरोप में
इस्लाम को ‘धमव त्याग, ईशवनंदा और अंधकार का शैतानी मिहब माना िाता था।’91

पाइप्स ने जलखा है, ‘ईसाइयों ने लं बे समय तक इस्लाम को अपने ही धमव से वनकले एक वर्धमी आं दोलन के रूप में
दे खा।’92 इग्नाि गोल्डिाइहर ने दार्ा करते हैं वक ‘मुहम्मद ने कोई नया वर्चार नहीं वदया था... (उसके ) सं दे श यहवदयों, ईसाइयों
र् अन्य स्रोतों के धावमवक वर्चारों र् वनयमों के सं कजलत मैल थे।’93 कु रआन स्वयं ही इस्लाम पर यहदी र् ईसाई प्रभार् से सहमवत
व्यि करती है; मूवतवपूिक, पारसी, साबी र् इस्लाम-पूर्व के अन्य धमों र् धावमवक प्रथाओं को भी इस्लामी पं थ में िोड़ा गया था।
सैमअ
ु ल ज्वेमर ने वनष्कषव वनकाला है वक इस्लाम ‘‘कोई अवर्ष्कार नहीं, अवपतु पुराने वर्चारों का एक कपटिाल है।’’94 इन दार्ों

89 इवबद, पृष्ठ 525

90 मुईर, पुष्ठ 381

91 सेड ईडब्ल्यू (1997) इस्लाम एं ड द र्ेस्ट इन कर्ररंग इस्लामः हाउ द मीवडया एं ड एक्पटव स वडटरमाइन हाउ र्ी सी द रेस्ट आफ द र्ल्डव,
वर्न्टे ि, लं दन, पृष्ठ 5-6

92 पाइप्स डी (1983) इन द पथ ऑफ गॉड, बेजसक बुक्स, न्यूयाकव , पृष्ठ 77

93 गोल्डिाइहर आई (1981) इं टरोडक्शन टू इस्लामी जथऑलािी एं ड लॉ, अनुर्ाद एं डर ास एं ड रूथ हामरोरी, वप्रं सटन, पृष्ठ 4-5

94 ज़्र्ेमर एस (1908) इस्लामः ए चैलेंि टू फेथ, न्यूयाकव , पृष्ठ 24

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

के बीच वक इस्लाम की स्थापना उस समय प्रचजलत धावमवक वर्चारों, वर्शेष रूप से ईसाईयत र् यहदी धमव के वर्चारों र् प्रथाओं का
घालमेल कर की गयी है, यहां रसूल मुहम्मद द्वारा ईसाइयों के साथ व्यर्हार के वर्षय में व्यापक रूप से वर्चार वकया िाएगा,
जिससे पाठक इस्लाम के आधार और ईसाइयत के साथ इसके सं बं ध को समझ सकें । इससे पाठकों को यह समझने में सहिता
होगी वक वकस प्रकार ईसाइयत ने मुहम्मद के वमशन और उसके धमवशास्त्र पर वकस प्रकार वर्शेष रूप से प्रभार् डाला था और कै से
िैसे-िैसे इस्लाम िमता गया, उसका मिहब धीरे-धीरे पररर्वतवत होता गया।

मुहम्मद के वमशन और पं थ पर ईसाई प्रभार्


आठर्ीं सदी के ईसाई धमवशास्त्री िॉन ऑफ दमाकस (749 ईसर्ी) के अनुसार, मुहम्मद का मिहब ईसाई धमव का
भटका हुआ रूप था। उन्ोंने जलखा, ‘मुहम्मद ने ओल्ड र् न्यू टे स्टामेंट के सम्पकव में आने के बाद अपने नये पं थ को सं गवठत वकया।
र्ह इन ग्रंथों में सम्पकव में सं भर्तः वकसी ऐररयन पुरोवहत के माध्यम से आया।’ िमवन दाशववनक वनकोलस ऑफ क्ूसा (1464
ईसर्ी) को कु रआन में ईसाइयत के एक मत नेस्टररयनर्ाद का तं ति
ु ाल वदखता है। नेस्टररयनर्ाद ईसाई धमव का र्ह पं थ है, िो
आरंजभक ईसाई सवदयों में मध्यपूर्व में अत्यं त प्रसाररत था।95

इस्लामी सावहत्य इसकी पुवष्ट करते हैं वक मुहम्मद का ईसाई धमव के साथ पहला सम्पकव बावहरा नामक एक वर्द्वान
नेस्टररयन पुरोवहत के माध्यम से हुआ था। र्ह इस पुरोवहत से 12 र्षव की अर्स्था में तब वमला था, िब र्ह अपने चाचा अबू
ताजलब के साथ व्यापाररक यािा पर सीररया गया था। इस यािा के समय ईसाई समुदाय के प्रभुत्व र्ाले सीररया में ईसाई धमव ,
परंपरा र् धावमवक कमवकांडों के वर्षयों से मुहम्मद का पररचय पहली बार हुआ। कहार्ी गढ़ी गयी है वक बावहरा धावमवक वर्मशव में
मुहम्मद की रुजच से अत्यं त प्रभावर्त था और कजथत रूप से उसमें आने र्ाले रसूल को देखा था, िैसा वक मुस्लस्लम सावहत्य बताते
हैं।96 बताया गया है वक बावहरा ने मुहम्मद को कु छ ईसाई जसद्ांत र् वनयम बतलाये और बाइवबल के प्रेरणादायी प्रसं गों को पढ़कर
उसे सुनाया। मुहम्मद को बावहरा से वमले बाइवबल के ज्ञान पर इब्न इस्हाक ने जलखा है: ‘र्हां उन्ोंने एक पुस्तक से ज्ञान प्राि
वकया... र्ह पुस्तक िो पीवढ़यों से एक-दूसरे के पास चली आ रही थी।’97 मुहम्मद को उस ज्ञान र् जशिा को बाद में कु रआन में
वदखाना था, जिससे वक अरब के लोग एक सच्चे ईश्वर की सं कल्पना से पररजचत हो सकें ।

िैसा वक पहले ही बताया गया है वक मुहम्मद अल्लाह से सं दे श प्राि करने से पूर्व ही यहदी र् ईसाई धमव के ग्रंथों में
सं भर्त: प्रजशजित हो चुका था। इस्लामी सावहत्य में ऐसे बहुत से सं दभव वदये गये हैं, िो बताते हैं वक अपने पैगम्बरी वमशन को
अपनाने से पूर्व मुहम्मद स्वयं ईसाई र् यहदी धमवग्रंथों से पररजचत हो चुका था और र्ह इन पं थों के ‘‘एके श्वरर्ाद’’ की मूल

95 र्ाकर, पृष्ठ 188

96 अल-तबरी, अंक 6, पृष्ठ 45

97 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 79-81

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अर्धारणा से प्रभावर्त था। ईसाई धमव से उसका वनकट सम्पकव तब हुआ, िब 24 र्षव की अर्स्था में खदीिा से उसकी शादी हुई।
खदीिा का अपने चचेरे भाई र्ारक़ा इब्न नौफल के माध्यम से ईसाई धमवशास्त्रों से अच्छा सं बं ध था। र्ारक़ा ने तो गॉस्पेल के कु छ
भागों का अरबी में अनुर्ाद भी वकया था। इब्न इस्हाक ने जलखा है: ‘र्ारक़ा ने स्वयं को ईसाई धमव से िोड़ जलया था और िब तक
र्ह ईसाई धमवग्रंथों मे पारंगत न हो गया, उनका अध्ययन करता रहा।’98 िैसा वक जलखा गया है, र्ह पहला व्यवि था, जिसने
फररश्ता जिबराइल के साथ मुहम्मद को सं र्ाद की पुवष्ट की थी और मुहम्मद को उसके पैगम्बरी वमशन को प्रारंभ करने के जलये
मनाया था। खदीिा के जिस दास िैद इब्न हाररस को मुहम्मद ने अपने दत्क पुि के रूप में ग्रहण वकया था, र्ह भी ईसाई था।

िब 25 र्षव की अर्स्था में मुहम्मद खदीिा का व्यापाररक कारर्ां लेकर सीररया गया, तो र्हां उसे एक नस्तूर या नेस्टर
नामक नेस्टररयन पुरोवहत वमला, जिसने कजथत रूप से मुहम्मद को पैगम्बर के रूप में स्वीकार वकया था।99 इसके अवतररि, मुस्लस्लम
टीकाकार हुसैन ने बताया है वक रसूल वनत्य सायं काल तौरात र् इंिील (गॉस्पेल) सुनने एक ईसाई के पास िाते थे।100 इस्लामी
सावहत्य भी बताते हैं वक र्ारक़ा और खदीिा ने मुहम्मद को उन ईसाई पुरोवहतों से वमलर्ाया था, िो मक्का में रहते थे। ऐसा ही
वननेर्ाह का एक ईसाई पुरोवहत अद्दास था, िो मक्का में बस गया था। खदीिा मुहम्मद को अद्दास के पास लाई और उसने लं बे
र्ातावलाप में मुहम्मद को यह समझाया था वक फररश्ता जिबराइल पैगम्बरों तक ईश्वर का सं दे श पहुंचाने र्ाला है।

बेंिावमन र्ाकर ने ईसाई धमव के साथ मुहम्मद के अन्य सम्पकों के वर्षय में िानकारी दी है।101 माना िाता है वक एक
ईसाई तमीम अल-दारी के प्रभार् में आकर मुहम्मद के िहन्नुम र् िन्नत सं बं धी वर्चार बने थे। अब्दुल कै स िनिावत का एक कै स
ईसाई था, जिसके वनर्ास पर मुहम्मद प्रायः िाया करता था। व्यर्साय से तलर्ार बनाने र्ाला एक युर्ा यूनानी ईसाई मक्का में बस
गया था। र्ह तौरात और ईसामसीह के उपदेशों का अच्छा ज्ञाता था। मुहम्मद वनयवमत उसके घर िाता था। मुहम्मद एक यूनानी
ईसाई अबू तखीदा के घर भी वनयवमत िाता था। ईसाई तमीम िनिावत का अबू रुकिा अपने िीर्न की शुद्ता के जलये वर्ख्यात
था। ईसाई धमव के प्रवत उसके समपवण र् वनः स्वाथव भार् के कारण उसे ‘‘लोक पुरोवहत’’ की उपाजध वमली थी। मुहम्मद उसके साथ
भी िुड़ा था और र्ह बाद में मुसलमान हो गया। ऐसा माना िाता है वक मुहम्मद के समकालीन यमामा के वकसी रहमान ने भी
मुहम्मद को कु छ ईसाई वर्चार वदया। इब्न इस्हाक ने पुवष्ट की है वक मुहम्मद का यमामा के वकसी रहमान से सं पकव था। अन्य
मुस्लस्लम टीकाकार रहमान को पैगम्बर के र्ेश में उपदे श दे ने र्ाले यमामा के एक प्रजसद् उपदे शक मुसजै लमा बताते हैं। मुहम्मद की

98 इवबद पृष्ठ 99

99 मुईर, पृष्ठ 21

100 र्ाकर, पृष्ठ 190

101 इवबद, पृष्ठ 190-91

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

मृत्यु के बाद मुसैजलमा इस्लाम का भयानक शिु बन गया था। मुसलमानों और मुसजै लमा के अनुयावययों के बीच अनेक रिरंजित
सं घषव हुए और र्ह मारा गया (बाद में इस पर बताया िाएगा)।

मक्का के लोगों का भी दूसरे दे शों के ईसाइयों से अच्छा सम्पकव था। उस िेि की कु छ ईसाई िनिावतयों ने मक्का में
र्ाजणस्लज्यक वडपो बना रखा था और र्हां उनके प्रवतवनजध थे। र्ाकर ने जलखा है, ‘ऐसी ही एक ईसाई िनिावत इज्ल थी, िो एक
समझौते के अंतगवत साहम कोरैश (कु रैश) से िुड़ी हुई थी और एक अन्य ईसाई िनिावत ग़ासन िुहरा के कु रैश कबीले से िुड़ी हुई
थी तथा काबा के ही वनकट उनका वर्शेषाजधकार प्राि कें द्र था।’ र्ाकर जलखा है, इसके अवतररि ‘मक्का में ईसाई िनसं ख्या थी,
भले ही र्ह छोटी थी, वकं तु प्रभार्शाली थी। उस ईसाई िनसं ख्या में अबीसीवनया, सीररया, ईराक और वफजलस्तीन के अरबी र्
वर्दे शी और दास र् मुि दोनों प्रकार के ईसाई थे। र्े लोग र्हां जशल्पकार, भर्नवनमावता, व्यापारी, जचवकत्सक और लेखकों के रूप
में कायवरत थे।’ कु छ मुस्लस्लम इवतहासकारों ने भी मक्का में ईसाई कविस्तान होने के वर्षय में जलखा है।102

मैवनशैन प्रभार्ः मैवनशैनर्ाद एक्ट्ाबा के मैनी (276 ईसर्ी) द्वारा स्थावपत र्ह मत था, जिसकी रचना ईसाई, पारसी र् बौद् वर्चारों
को वमलाकर हुई थी और रसूल मुहम्मद के समय हीरा (मेसोपोटावमया) में यह पं थ पल्लवर्त हुआ था। चूं वक मक्का का हीरा के साथ
व्यापार र् र्ाजणज्य फलफूल रहा था, तो वनस्ंसदेह मैवनशैनर्ाद का वर्चार मक्का भी पहुंचा था। मैनी ने अपने बारे में दार्ा वकया था
वक र्ो र्ही रिक हैं, जिसके आगमन के वर्षय में ईसामसीह ने बताया था; मैनी का यह भी दार्ा था वक पैगम्बरों के अनुक्म में र्ो
अंवतम पैगम्बर हैं; उन्ोंने यह भी दार्ा वकया था वक उन्ें दै र्ीय सृवष्टकताव के सं दे श वमले हैं ; उन्ोंने यह भी दार्ा वकया था वक
ईसामसीह सूली पर नहीं लटकाये गये थे, अवपतु उनके स्थान पर एक दूसरे व्यवि को रख वदया गया था। ऐसा प्रतीत होता है वक
मैवनशैनर्ाद के इन मूलभूत वर्ष्वासों ने मुहम्मद को प्रभावर्त वकया था और इन्ें इस्लाम में महत्वपूणव स्थान वमला।

नेस्टोररयन प्रभार्ः नेस्टोररयनर्ाद एक और ईसाई पं थ था, जिसकी स्थापना कु स्तुंतुवनया के वबशप नेस्टोयस (451 ईसर्ी) ने की
थी। यह ईसाई पं थ फारस में पल्लवर्त हो रहा था तथा मुहम्मद के समय मक्का पहुंचा। नेस्टोररयन पुरोवहत के साथ मुहम्मद की
बैठक का उल्लेख पहले ही वकया िा चुका है। नेस्टोररयन वर्शुवद्र्ादी थे तथा ईसामसीह र् क्ास के जचि प्रदशवन के वर्रोधी थे।
नेस्टोररयनों के इस वर्चार को इस्लामी जसद्ांतों में बड़ा स्थान वमला। डेनमाकव के एक समाचारपि में मुहम्मद के जचि के प्रकाशन के
बाद फरर्री, 2006 में मुसलमानों द्वारा वकये गये व्यापक प्रदशवन और वहंसा की उन घटनाओं में इस वर्चार की झलक वदखती है।
इस वहंसा में अनेक लोग मारे गये थे। इस्लाम में िीवर्त प्राजणयों और वर्शेषकर रसूल मुहम्मद का जचिण करना अथर्ा छवर् या
जचि बनाना प्रवतबं जधत है।

एकांतर्ासी ईसाई साधुओ ं का प्रभार्ः उस समय के ध्यानमग्न ईसाई साधुओं ने भी मुहम्मद के धमवशास्त्र सं बं धी वर्चारों पर गहराई
से प्रभार् डाला था। इस्लामी इवतहासर्ृत् और मूवतवपूिक इवतहासर्ृत् दोनों के अनुसार, ईसाई साधुओ ं ने इजिप्ट, एजशया माइनर
(आि का तुकी), सीररया, वफजलस्तीन, मेसोपोटावमया और अरब के मागों पर आश्रमर्ासी समुदाय बना रखे थे। इस ईसाई समुदाय

102 इवबद, पृष्ठ 180

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

के लोगों ने अपना िीर्न अच्छे कायों, दान-परोपकार, वनधवनों, रोवगयों र् अनाथों-वर्शेषकर पररत्यि बाजलकाओं की सेर्ा कायव में
समवपवत कर वदया था। थके हुए यािी और व्यापार-कारर्ां के लोग अपनी यािा के समय रावि में इन आश्रमों में वर्श्राम के जलये
ठहरते थे। आश्रम के लोग उन लोगों का स्वागत करते थे, उन्ें आश्रय दे ते थे और उनकी सेर्ा करते थे। चूं वक मुहम्मद इन िेिों में
अपनी व्यापाररक यािा के जलये बहुत घूमा होगा, तो वनजित ही र्ह इन आश्रमों से भली-भांवत पररजचत रहा होगा; उसने स्वयं इन
आश्रमों में आवतथ्य प्राि वकया था। िब मुहम्मद सीररया की अपनी पहली व्यापाररक यािा पर गया था, तो ईसाई साधु बावहरा ने
उसे बहुत बार भोिन कराया था।103 इन ईसाई साधुओ ं ने मुहम्मद के मन-मस्लस्तष्क पर सकारात्मक प्रभार् डाला था और मुहम्मद ने
कु रआन में उनकी िीर्नशैली को बहुत श्रद्ा से डालाः

1. ‘अपना धन अच्छाइयों पर व्यय करोः अपने माता-वपता, पररर्ार, अनाथों, यावियों और अभार्ग्रस्त लोगों की सहायता के
जलये।’ [कु रआन 2:225]
2. ‘माता-वपता, सं बं जधयों, अनाथों, अभार्ग्रस्तों, पड़ोजसयों और यावियों के प्रवत दयालु रहो।’ [कु रआन 4:36]

मुहम्मद द्वारा ईसाई साधुओं से जलया गया इस्लाम का एक और बड़ा पि प्राथवना पद्वत है। र्ो ईसाई साधु िीर्न पूणव
पवर्िता में वबताते थे, उन्ोंने अपना िीर्न वदन में अनेक बार प्राथवना में समवपवत कर रखा था। उन ईसाई साधुओ ं की प्राथवना
पद्वत में श्रद्ामय आसन समावहत थे: हथेजलयों को िोड़कर खड़े होना, झुकना, घुटना टेकना और एवड़यों के बल बैठना। मुहम्मद
ने वनस्सं दे ह ईसाई साधुओं की इस प्राथवना पद्वत की नकल की थी। सीिे आचवर की पुस्तक वमजस्टक एैलीमेंर्ट् इन मुहम्मद (1924)
के अनुसार, र्े ईसाई साधु इस वर्श्वास से दे र रात को भी प्राथवना-अनुष्ठान वकया करते थे वक ‘‘सोने से अच्छा है प्राथवना करना।’’104
भोर में मुसलमानों की अिान इसी आधार पर िोड़ी गयी है। उन ईसाई साधुओ ं की िीर्न शैली के कु छ पिों िैसे ईश्वर के प्रवत
समपवण, उदारता र् दान के कायों से मुहम्मद इतना प्रभावर्त था वक उसने इन पिों को कु रआन में डाला: ‘...उस पुस्तक के
अनुयावययों (ईसाईयों) में से सच्चे लोग हैं; र्े रात में अल्लाह की आयतें पढ़ते हैं और ईश्वर का बखान करते हैं... र्े सही मागव पर
चलने को कहते हैं, गलत कायव करने से रोकते हैं और र्े एक-दूसरे के साथ भलाई के कायव में अग्रसर रहते हैं, और र्े सदाचाररयों
में से हैं।’ [कु रआन 3:113-14]

वकं तु पैगम्बरी वमशन प्रारंभ करने से बहुत पहले ही मुहम्मद शादी कर चुका था और सांसाररक िीर्न में सं जलि था,
इसजलये उसने र्ैराग्यर्ाद की वनंदा की। उसने दार्ा वकया वक र्ैराग्य अल्लाह का आदे श नहीं है, अवपतु ईसाइयों द्वारा बनाया गया
है [कु रआन 57:27]।

मक्का में ईसाई धमव को लाने का उस्मान इब्न हुर्ैररस का प्रयासः यहां जिस एक अन्य व्यवि के उल्लेख की आर्श्यकता है, र्ह है
उस्मान इब्न हुर्ैररस, िो मक्का में एक प्रभार्शाली नेता और मुहम्मद की पहली बीर्ी खदीिा का चचेरा भाई था। इब्न इस्हाक के

103 अल-तबरी, अंक 6, पृष्ठ 44-45; इब्न इस्हाक, पृष्ठ 80

104 र्ाकर, पृष्ठ 62

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अनुसार, उस्मान का बहुदे र्र्ाद से मोहभं ग हो गया था। काबा में मूवतवपूिा से व्याकु ल होकर ‘र्ह बैिटें ाइन सम्राट के पास चला
गया और ईसाई हो गया। उसे र्हां उच्च पद वदया गया।’105 मुहम्मद के पैगम्बरी वमशन के प्रारंभ के पांच र्षव पूर्व 605 ईसर्ी में
उस्मान मक्का लौट आया था। उस पर बैिेंटाइन साम्राज्य का हाथ था, तो उसने र्हां प्रचजलत बहुदे र्र्ाद में सुधार की मं शा से मक्का
के शासन पर दबार् डाला। शासन कर रहे मक्कार्ाजसयों ने उसके इस प्रयास का वर्रोध वकया, तो र्ह सीररया भाग गया और र्ही
उसकी हत्या हो गयी।106

उकि के मेले में वक़स इब्न सैदा का उपदे शः मुहम्मद मक्का के वनकट उकि के र्ावषवक मेले में उपदेश सुनने िाया करता था।
उकि के मेले में मुहम्मद की वक़स इब्न सैदा (‘वक़स’ का अथव होता है ‘पुरोवहत’) से भेंट हुई, जिसका यहां उल्लेख वकया िाना
आर्श्यक है। इस्लामी सुन्नत बताती है वक मुहम्मद के वमशन के प्रारंभ से पूर्व इयाद िनिावत से सं बं जधत निरान के वबशप वक़स
इब्न सैदा मेले में प्रर्चन दे ते थे।

र्ो मानों ‘‘परमानं द‘‘ में बोल रहे होते थे, तत्कालीन अरबी कवर्ता शैली में तुकबं दी कवर्ता (सई) गा रहे होते थे, जिसे
आि पढ़कर कु रआन की आरंजभक सूराएं स्मरण हो उठती हैं। एक उपदे श में र्ो गा रहे थेः

‘हे तुम, लोगों वनकट आओ/ और सुनो, और डरो/लिण व्याख्यावयत हैं/वर्रोध न वकया िाए/जसतारे िो अस्त होते हैं और उगते
हैं/समुद्र िो कभी नहीं सूखता है।

आकाश के ऊपर िो पड़ता है/धरती पर नीचे िो रहता है/बाररश हो िाती है/पेड़ -पौधों को िीर्न वमल िाता है/नर और नारी वमल
िाते हैं।

समय उड़ रहा है और समय उड़ गया/हे नश्वर कहो/आि र्ो िनिावतयां कहां हैं/जिन्ोंने कभी अर्ज्ञा की/भलाई के वनयम/कहां हैं
र्े?

र्ास्तर् में ईश्वर ही देता है/उनको प्रकाश िो िीना चाहते हैं!’

वबशप तब मानर् दोषों, ईश्वर की कृ पा और आने र्ाले प्रलय के वदन का उपदे श देने लगे। मुहम्मद ‘‘मं िमुग्ध सा’’ उस
उपदे श को सुन रहा था और उसमें खो गया था। उस उपदे श ने उसके तन-मन में तरंग उत्पन्न कर वदया, िैसा वक मुस्लस्लम वर्द्वान
अल-िावहि एक सुन्नत में जलखा है वक मुहम्मद ने स्वयं ही बताया वक ‘कै से र्ो उत्साहपूर्वक र्ह दृश्य, र्ह व्यवि, र्ो सुव्यि शब्द
और प्रेरक सं दे श का स्मरण वकया करते थे।’ बाद के र्षों में िब इयाद िनिावत का एक प्रवतवनजधमं डल ने मक्का की यािा पर

105 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 99

106 र्ाकर, पृष्ठ 66

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

आया, तो मुहम्मद ने उनसे वक़स के बारे में पूछा और उसे बताया गया वक उनकी मृत्यु हो गयी (613 ईसर्ी)। इस समाचार से
दुखी मुहम्मद ने उनके बारे में सहृदयता से कहा वक र्ही थे, जिन्ोंने उसे ‘‘सच्चे िह्ांडीय धमव’’ का उपदे श वदया था।107

उकि के मेले में यहदी धमोपदे शक भी प्रर्चन करते थे। दोनों धमों के उपदे शक मूवतवपि
ू ा करने के कारण अरब
िनिावतयों का वतरस्कार करते हुए और नकव में उनके जलये दं ड की चेतार्नी दे ते हुए ताना मारते थे। मुहम्मद उस मेले में िाया
करता था और यहदी र् ईसाई धमोपदे शकों के उपदे शों को सुना करता था। यहवदयों और ईसाई के मध्य पारस्पररक शिुता के बाद
भी इन दोनों धमों में एक समानता यह है वक दोनों के पास एक एकात्मक ईश्वर, उतारी गयी ईश्वरीय पुस्तक और अपने-अपने
पैगम्बर थे; दोनों उग्रता से मूवतवपूिा की वनंदा करते थे; और वनजित ही दोनों अपने-अपने उपदे शों में नकव में वमलने र्ाले दं ड का
भय वदखाते थे- इन सब ने वनजित ही मुहम्मद के मन-मस्लस्तष्क पर गहरा प्रभार् डाला था।

मुहम्मद के पं थ पर अन्य मान्यताओं र् आख्यानों का प्रभार्


मुहम्मद के पैगम्बरी वमशन के आधार को अच्छे से समझने के जलये यहां वर्षयांतर करते हुए उन अन्य मान्यताओं, प्रथाओं
और आख्यानों को सं जिि रूप से समावहत करना आर्श्यक है, जिन्ोंने उसके पं थ के गठन में महत्वपूणव भूवमका वनभायी।

हनीवफयों का प्रभार्ः यहां हनीफ पं थ के एक िैद इब्न अम्र के प्रभार् का यहां उल्लेख वकया िाना चावहए। हनीफ एक सीररयाई
ईसाई शब्द है, जिसका अथव है मूवतवपूिा से दूर हो चुका व्यवि। अरब में मुहम्मद के समय, यह शब्द सामान्य रूप में
एके श्वरर्ावदयोंः यहवदयों, ईसाइयों, पारजसयों और सावबयों (सैवबयि) के सं दभव में प्रयोग वकया िाता था। मक्का में हनीफ शब्द
मुख्यतः उनके जलये प्रयोग वकया िाता था, िो यहदी और ईसाई प्रभार् में मूवतवपूिा को छोड़ चुके थे और मूवतवपूिा का सुधार
एके श्वरर्ाद में करने का प्रयास कर रहे थे। इब्न इस्हाक ने मक्का के हनीफों की मान्यता पर जलखा हैः 108

...उनका वर्चार यह था वक उनके लोगों ने उनके वपता अिाहम के धमव को भ्ष्ट कर वदया है और जिस पत्थर (काबा में काला पत्थर)
की र्ो पररक्मा करते हैं, उसका कोई महत्व नहीं है , क्ोंवक र्ह पत्थर न तो सुन सकता है, न दे ख सकता है और न ही सहायता कर
सकता है। उन्ोंने कहा, ‘अपने जलये धमव ढूं ढ़ो, क्ोंवक ईष्वर िानता है, तुम्हारे पास कोई धमव नहीं है।’ तो र्े र्हां अपने-अपने ढं ग
से अिाहम के धमव हनीवफया को खोिते हुए गये।

िैद इब्न अम्र के अवतररि उस्मान इब्न हुर्ैररि और र्ारका इब्न नौफल भी हनीफ थे।

िैद उमर का चाचा था, र्ही उमर िो मुहम्मद का साथी और इस्लाम का दूसरा खलीफा था। र्ह स्वयं को अिाहम के
धमव का अनुयायी कहता था तथा अपनी िनिावत की मूवतवपूिक परंपरा को नीचा वदखाते हुए कवर्ताएं जलखा करता था।

107 इवबद, पृष्ठ 90

108 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 99

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िैद नर्िात बाजलकाओं की हत्या और मूवतवपूिा की वनंदा करता था। प्रत्येक र्षव रमिान के मास में र्ो हीरा की पहाड़ी
के खोह में ध्यान लगाते हुए समय व्यतीत करता था।

595 ईसर्ी के आसपास, मुहम्मद (आयु 24-25) मागव में िैद से वमला और सं र्ाद वकया। मुहम्मद ने उसको बजल
चढ़ाया गया मांस वदया। िैद ने उस मांस को लेने से मना कर वदया, मूवतवपूिा करने के जलये मुहम्मद को फटकार लगायी और
मूवतवपि
ू कों के ईश्वर को चढ़ाया गया मांस खाने पर उसको जझड़का। मुहम्मद ने बाद में कहा था, ‘‘उसके बाद मैंने िानबूझकर उन
मूवतवयों में से वकसी भी मूवतव को न कभी छु आ और न ही मैंने कभी उनको पशु बजल दी।’’ िैद काबा के प्रांगण में बैठा करता था
और र्हीं प्राथवना वकया करता था: ‘‘हे ईश्वर, मुझे नहीं पता वक आप क्ा चाहते हैं वक आपकी पूिा कै से की िाए। यवद मुझे पता
होता, तो मैं वनजित ही र्ैसे ही आपकी पूिा करता।’’ लोगों ने उसका उपहास उड़ाया, तो र्ह सीररया चला गया और इसके बाद
र्ह रस्लब्बयों र् पुरोवहतों से इसका ज्ञान लेने के जलये ईराक चला गया। 608 ईसर्ी में र्ापस लौटते समय र्ह डकै तों के हाथों मारा
गया।109

िैद के जसद्ांतों और प्रथाओं से मुहम्मद के इतनी गहराई से प्रभावर्त होने से प्रतीत होता है वक उसने बाद में िैद के सारे
जसद्ांतों को इस्लाम में डाला। र्ास्तर् में मुहम्मद अपने अनुयावययों को आरंभ में हनीफ कहा करता था। कु रआन इसकी पुवष्ट करती
है वक मुहम्मद के र्ल अिाहम के मूल र् शुद् मिहब (एके श्वरर्ाद) का उपदे श दे रहा था [कु रआन 21:51], ‘‘अिाहम
बहुदे र्र्ावदयों में से नहीं था’’ [कु रआन 16:123]। दूसरे शब्दों में अिाहम एक हनीफ था।110 बाद की आयत कु रआन 3:67 में
मुहम्मद ने ‘‘मुसलमान’’ शब्द िोड़ा और यह भी िोड़ा वक अिाहम अब एक मुसलमान और एक हनीफ था (अथावत र्ह
बहुदे र्र्ादी नहीं था)।

अपने उपदे शों में मुहम्मद सभी गैर-मुसलमानों को तो िहन्नुम की आग में भेिता ही था और यहां तक वक उससे अपार
स्नेह करने र्ाले चाचा अबू ताजलब र् अपनी अम्मी अमीना को भी िहन्नुम की आग में भेिता था, क्ोंवक र्ो दोनों गैर-मुसलमान
थे। वकं तु िैद इसका अपर्ाद था, क्ोंवक उसके गैर-मुसलमान होने के बाद मुहम्मद ने उस पर ईश्वर की दया होने की दुआ की थी।
इब्न इस्हाक ने जलखा है, िब मुहम्मद से पूछा गया: ‘‘क्ा हमें िैद वबन अम्र के जलये अल्लाह की िमा मांगनी चावहए?’ उसने
उत्र वदया, ‘हां, क्ोंवक उन्ें एक पूरी कौम के एकमाि प्रवतवनजध के रूप में पुनिीवर्त वकया िाएगा।’’111 रसूल ने आगे कहा,

109 इवबद, पृष्ठ 99-103; र्ाकर, पृष्ठ 89

110 दोि नॉट पॉलीथीस्र्ट् इन मक्का र्र काल्ड हनीफ्स

111 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 100

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

‘‘र्ह िन्नत िाने र्ाले लोगों में से एक हैं। मैंने उन्ें र्हां देखा है।’’112 इससे स्पष्ट होता है वक मुहम्मद के िीर्न र् उसके जसद्ांतों
के गठन में िैद (और सामान्य रूप में हनीफ) का अत्यजधक प्रभार् था।

अन्य एके श्वरर्ादी प्रभार्: मुहम्मद के पं थ के वनमावण में प्रत्यि रूप से यहवदयों और ईसाईयों का प्रबल प्रभार् था। मदीना िाने के
बाद यहवदयों के साथ उसका सम्पकव नाटकीय ढं ग से बढ़ गया था। उस िेि में प्रचजलत फारस के अवग्न-पूिक िोरावष्टरयन (अथावत
पारसी धमव) और जसतारों की पूिा करने र्ाले साबी धमव आवद अन्य एके श्वरर्ादी पं थों ने भी मुहम्मद को प्रभावर्त वकया था। उसने
इन धमों के अनेक वर्चार र् सं वहताओं को इस्लाम में सस्लम्मजलत वकया। यहवदयों और ईसाइयों के साथ ही कु रआन साबी धमव के
लोगों का भी उल्लेख पुस्तक के लोग के रूप में करता है [कु रआन 5:69] तथा िोरावष्टरयनों (मदिुस/मैवगअंस) का अनुकूल ढंग से
जचिण करता है [कु रआन 22:17]। उसने अथावत मुहम्मद ने स्वगव (िन्नत) और नकव (िहन्नुम) की िोरावष्टरयन अर्धारणा को
इस्लाम में डाला। कु रआन 71:15 में उसकी जसतारों की कसम स्पष्ट रूप से साबी धमव के प्रभार् को दशावती है।

बहुदे र्र्ादी प्रभार्ः गुं िायमान धावमवक गवतवर्जधयों के कें द्र काबा के समीप बड़े होते हुए मुहम्मद पर धावमवकता का प्रभार् पड़ा था।
मुहम्मद जिस बहुदे र्र्ादी धमव और परंपरा के बीच पला-बढ़ा था, उसकी छाप भी उसके नये पं थ पर पड़ी। उदाहरण के जलये,
पवर्ि काबा मं वदर की तीथवयािा र्ाला हि र् उमरा बहुदे र्र्ादी (मूवतवपूिक) प्रथाएं थीं और इसे भी छोटे -मोटे पररर्तवन के साथ
इस्लाम में डाला गया। हि के प्रारूप में तो मुहम्मद ने के र्ल इतना ही पररर्तवन वकया वक िो पशु बजल पहले मूवतवपि
ू कों के ईश्वर
के जलये दी िाती थी, उसे अब कु बावनी नाम दे कर अदृश्य अल्लाह के जलये वकया िाने लगा।

मुहम्मद के िीर्न के आसपास हो रही घटनाओं का ध्यान से वर्श्लेषण करने पर स्पष्ट रूप से पता चलता है वक र्ह एक
ईश्वर की पूिा करने र्ाले प्रचजलत एके श्वरर्ादी समुदाय से वर्शेष रूप से प्रभावर्त था। यहदी र् ईसाई मतार्लं वबयों एर्ं उपदेशकों
के साथ सम्पकव र् वर्मशव ने उसके मन-मस्लस्तष्क को एके श्वरर्ादी ईश्वर की अर्धारणा के जलये अत्यजधक प्रेररत वकया। उन धमों में
ईश्वर के कठोर वनणवय एर्ं नकव में भयानक दं ड की अर्धारणा ने अर्श्य ही उसके मन में मृत्यु के पिात ईश्वर के प्रवतशोध का भय
भर वदया होगा, िबवक कु रैशों की मूवतवपि
ू क परंपराओं में ऐसी कोई अर्धारणा नहीं थी। मुहम्मद के वमशन के माि पांच र्षव पूर्व
ही इब्न हुर्ैररस ने मक्का के मूवतवपि
ू कों को सुधार कर ईसाई धमव की ओर लाने के जलये वमशन चलाया था, अतः वनजित ही इब्न
हुर्ैररस के वमशन से मुहम्मद को अपना वमशन चलाने और एर्ं मक्का मूवतवपूिकों के बीच अपने एके श्वरर्ादी पं थ की स्थापना की
प्रेरणा वमली होगी।

इस्लाम में ईसाई धमव के वर्चार


मुहम्मद ईसाई धमवशास्त्रों से अत्यं त प्रभावर्त था और अपना पैगम्बरी वमशन प्रारंभ करने से पूर्व र्ह सं भर्तः ईसाई धमव में
प्रजशजित हो चुका था। यह बात इस तथ्य से वनकल कर आती है वक कु रआन में ईसाई धमव की अनेक अर्धारणाओं को चुराकर

112 र्ाकर, पृष्ठ 90

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अल्लाह के ईश्वरीय आयत के रूप में प्रस्तुत वकया गया है। रसूल ने स्पष्ट रूप से ईसाई पुरोवहतों की प्राथवना शैली की नकल की थी।
615 ईसर्ी में िब मुहम्मद ने अपने कु छ अनुयावययों को अबीसीवनया में बसने के जलये भेिा, तो र्हां के ईसाई रािा द्वारा र्हां
उनका स्वागत वकया गया और उन्ें सुरिा दी गयी। अल-तबरी के अनुसार, उन प्रर्ाजसयों ने बाद में कहा: ‘‘हम अबीसीवनया आये
और हमें र्हां श्रेष्ठ आवतथ्य के साथ रखा गया। हमें प्रतावड़त वकये वबना अथर्ा अवप्रय शब्द सुने वबना अपने मिहब का पालन
करने के जलये सुरिा दी गयी।’’113 वनजित ही इस घटना ने मुहम्मद के मन-मस्लस्तष्क पर ईसाई धमव के प्रवत अनुकूल छाप डाली
थी। िैसा वक इस तथ्य से अनुमान लगाया िा सकता है वक इस घटना के बाद से ही अल्लाह द्वारा भेिी गयी आयतों में ईसाई धमव
(यहदी धमव भी) का मूल्यांकन अच्छे स्वरूप में होने लगा। कु रआन की यह पररपाटी तब तक चलती रही, िब तक वक मुहम्मद
मदीना नहीं चला गया।

कु रआन में अल्लाह ईसामसीह को सं बोजधत करते हुए कहता है: ‘हे ईसा! कयामत के वदन मैं तुम्हारे अनुयावययों को उनसे
श्रेष्ठ बनाऊंगा/रखूं गा, िो मिहब (इस्लाम) को अस्वीकार करते हैं [कु रआन 3:55]।’ कु रआन में यह भी जलखा है वक ईसाई
अहंकार से मुि हैं और मुसलमानों के प्रवत वमिता का भार् रखने की प्रर्ृवत् र्ाले हैं । यहां कु रआन स्पष्ट रूप से मुसलमान
प्रर्ाजसयों के प्रवत अबीसीवनया के रािा के आवतथ्य को इं वगत करती है। िनर्री 630 में मक्का में वर्ियी प्रर्ेश के बाद मुहम्मद ने
मूवतवयों को नष्ट करने तथा जभवत्यों (दीर्ारों) र् स्तम्ों से जचिों को वमटाने का आदेश वदया। िैसा वक पहले ही बताया िा चुका है
वक अिाहम और इस्माइल के पुतले भी नष्ट कर वदये गये, परंतु मुहम्मद ने मैरी और नर्िात ईसामसीह के जचि को अपने हाथों से
ढं ककर उसकी रिा की।

कु रआन में बाइवबल के प्रसं गों से वमलती-िुलती घटनाएं ः मुहम्मद ने न के र्ल ईसाई धावमवक रीवतयों र् वर्चारों को ग्रहण वकया,
अवपतु उसने बाइवबल के अनेक प्रसं गों को लगभग हबह या थोड़ा हेर-फेर करके नकल कर जलया। इस प्रकार की कु छ घटनाएं नीचे
सूचीबद् की गयी हैंः 114

1. ‘धरती के उत्राजधकारी मेरे सत्यपथ पर चलने र्ाले लोग होंगे’ [कु रआन 21:105], यह आयत [बाइवबल पीएस
37:29] से नकल करके हबह उतार दी गयी है।
2. माकव के गॉस्पेल का एक पद में जलखा हैः ‘क्ोंवक धरती अपने फल को ऊपर लाती है ; पहले अंकुर, वफर गुठली
और इसके बाद उस गुठली का पूरा फल आता है’ [माकव 4:28]। कु रआन इसे इस प्रकार जलखती है: ‘र्ो बीि हैं ,
िो अंकुर में अपनी िड़ वनकालते हैं, वफर उसे मिबूत करते हैं और अपने तनों पर बढ़ते िाते हैं [कु रआन
48:29]।’

113 अल-तबरी, अंक 6, पृष्ठ 99

114 इवबद, पृष्ठ 93

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

3. ईसा मसीह ने कहा: ‘वकसी ऊंट का सुई के जछद्र से पार हो िाना सरल है , वकं तु वकसी धनी व्यवि का स्वगव के राज्य
में प्रर्ेश करना उतना सरल नहीं है [मैट्ट 19:24]।’ कु रआन के अनुसार, ‘िन्नत (स्वगव) का द्वार उनके जलये नहीं
खोले िाएं गे, िो हमारी आयतों को झुठलाते हैं, न ही र्े िन्नत में प्रर्ेश पाएं गे, िब तक वक ऊंट सुई के जछद्र से पार
न हो िाए [कु रआन 7:40]।’
4. बाइवबल कहती है, प्रलय के वदन, ‘आकाश वमलकर एक बं डल िैसे जलपट िाएं गे [ईसा 34:4]।’ कु रआन कहती
है, ‘उस वदन हम आकाश को ऐसे गोल-गोल लपेट देंगे, मानों वक जलखे हुए कागिों का पुजलं दा हो [कु रआन
21:104]।’
5. बाइवबल कहती है, ‘िहां दो या तीन व्यवि मेरे नाम से िुटते हैं, र्हां मैं उनके बीच होता हं [मैट्ट 18-20]।’
कु रआन इसे कहती है: ‘तीन व्यवि चुपचाप एकसाथ नहीं वमल सकते हैं, क्ोंवक उनके बीच चौथा अल्लाह होता है
[कु रआन 58:7]।’
6. बाइवबल कहती है, ‘इतने कायव हैं, िो ईसामसीह ने वकये वक यवद उन कायों को जलखने बैठा िाए, तो लगता है वक
सारा सं सार वमला वदया िाए, तो भी उस पुस्तक के जलखने के जलये पृष्ठ कम पड़ िाएं गे [िॉन 21:25]।’ कु रआन
इसे ऐसे कहती हैः ‘यवद सागर स्याही हो िाए, तो भी मेरे स्वामी की बातें जलखने के जलये कम पड़ िाएगी [कु रआन
18:109]।’

इस्लाम में ईसाई शब्दार्लीः इस्लाम की अजधकांश शब्दार्जलयां भी ईसाई धावमवक रीवतयों से उधार ली गयी थीं। ‘‘इस्लाम’’
(‘‘मुसलमान’’ का भी) अथव है ‘‘अल्लाह के प्रवत समपवण’’ और इस शब्द का मूल भी सैवमवटक शब्दार्ली ‘स्लम‘ में है तथा ईसाई
रीवत में इस शब्द का अथव ‘‘ईश्वर के प्रवत वनष्ठा’’ होता है। शब्दार्ली ‘‘कु रआन’’ की उत्पवत् ईसाई अरैमैक शब्दार्ली करआन से
हुई है, जिसका प्रयोग तत्कालीन समय में चचव की सेर्ा में पवर्ि पाठ करने के अथव में वकया िाता था। शब्द सूरा की उत्पवत्
अरैमेक ईसाई शब्दार्ली सूिा से हुई है, जिसका अथव है वकसी पुस्तक का भाग और शब्द आय अथावत आयत या जचह्न भी ईसाई
शब्दार्ली से जलया गया है। अन्य इस्लामी शब्दार्जलयां भी पहले से ही ईसाइयों द्वारा प्रयोग की िा रही थीं।

कु रआन में ईसामसीह और बाइवबल को अच्छे ढंग से स्थान वदया गया है। कु रआन कहती है वक ईश्वर ने ईसामसीह को
मानर्िावत के जलये दया के प्रतीक के रूप में भेिा [कु रआन 19:21]। इसमें पुवष्ट की गयी है वक गॉस्पेल (‘इर्ैंिेल’ से इंिील) एक
ऐसी ईश्वरीय पुस्तक है, िो ईसामसीह को प्रदान की गयी थी और िो लोग ईसामसीह का अनुसरण करते हैं, उनके हृदय को
अल्लाह ने दयाभार् से पररपूणव कर वदया है [कु रआन 57:27]। कु रआन स्पष्ट कहती है वक ईसाइयों का गॉस्पेल मानर् िावत का
ऐसा मागवदशवन है [कु रआन 3:3], जिसमें सत्य समावहत है [कु रआन 9:111], और िो मागदशवन र् ज्ञान का प्रकाश देती है
[कु रआन 5:46]। कु रआन कुं र्ारी मैरी (मररयम) का सम्मान अवत प्रवतवष्ठत नारी के रूप में करती है। कु रआन कहती है , सं सार की
सभी मवहलाओं में सबसे ऊपर चुने िाने के बाद र्ह (मैरी) अल्लाह द्वारा पवर्ि बनायी गयी [कु रआन 3:37] और उसकी पवर्िता
अिुण्ण रखी गयी [कु रआन 66:12]। र्ह एक ‘सं त मवहला थीं’ [कु रआन 5:75]। ईश्वर ने अपनी भार्ना उसके गभव में फूंक दी
थी; और इस प्रकार ईसा मसीह का िन्म ईश्वर का ऐसा रचनात्मक कायव था, जिसे एक ऐसी वनमवल कुं र्ारी मवहला पर सौंपा गया,

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

जिसने अपना कुं र्ारापन अिुण्ण रखा [कु रआन 19:21, 21:91]। कु रआन कहती है, िो गॉस्पेल को मानते हैं र्ो इस सं सार और
परलोक दोनों स्थानों पर अच्छा फल भोगेंगे [कु रआन 5:69]।

इस्लाम में कु छ नया नहींः यह स्पष्ट है वक मुहम्मद के समय अरब में प्रचजलत सभी प्रकार के धावमवक वर्चारों र् प्रथाओं- ईसाई,
यहदी, पारसी, हनफी, मूवतवपूिक और लोकवप्रय आख्यानों र् वमथकों को कु रआन में या तो हबह अथर्ा थोड़े -बहुत हेरफेर के साथ
सस्लम्मजलत वकया गया है। र्स्तुतः अल्लाह ने न तो कोई नई बात कही थी और न ही मुहम्मद कु छ नया ढूं ढकर लाया था, र्स्तुतः
इस्लाम के गठन में कु छ भी नया नहीं था। इस्लाम के जसद्ांत, रीवतयों अथर्ा परंपराओं में ऐसा कु छ अनोखा नहीं है , िो वक
इस्लाम के िन्म के पहले से वर्द्यमान धावमवक मान्यताओं, सामाजिक प्रथाओं एर्ं लोकवप्रय वमथकों र् आख्यानों में न रहा हो।
अल्लाह र् मुहम्मद ने पहले से वर्द्यमान वर्चारों, जचंतनों र् परंपराओं को ही इस्लाम में जखचड़ी बनाकर प्रस्तुत वकया। इसजलये
इग्नाि गोल्डिाइहर और सैमअ
ु ल ज्वेमर िैसे वर्द्वानों ने ठीक ही कहा है वक मुहम्मद ने कोई नया वर्चार नहीं वदया था, अवपतु उस
समय के वर्द्यमान वर्चारों र् प्रथाओं का नया कपटिाल बुन वदया था। इससे सहमवत व्यि करते हुए इब्न र्राक जलखते हैंः

मुहम्मद कोई मौजलक जचंतक नहीं था, उसने वकसी नये नीवत-जसद्ांत को नहीं गढ़ा। उसके समय में िो प्रचजलत सांस्कृवतक पररर्ेश
था, र्हीं से उठा जलया था। लं बे समय से इस्लाम की सं कलक प्रकृ वत पहचान ली गयी है अथावत इसमें कु छ भी मूल नहीं, सब दूसरों
से जलया हुआ है। यहां तक वक मुहम्मद भी िानता था वक इस्लाम कोई नया धमव नहीं है और कु रआन में समावहत आयतों ने ही पहले
से वर्द्यमान धमवग्रंथों की पुवष्ट की है। रसूल ने सदै र् दार्ा वकया वक र्ह यहवदयों, ईसाइयों र् अन्य महान धमों के सं पकव में था।115

वनजित रूप से मुहम्मद के वमशन पर ईसाई धमव का सर्ावजधक प्रेरक प्रभार् रहा। क्ोंवक मुहम्मद के वमशन का आरंजभक
उद्दे श्य मक्का में मूवतवपूिा को दूर करना था और मक्का में कु छ ईसाई यह वमशन पहले से चला रहे थे। ईसाई जसद्ांतों र् प्रथाओं को
इस्लाम में व्यापक रूप से सस्लम्मजलत वकया गया है। इसजलये यह ऐवतहाजसक ईसाई मान्यता वक इस्लाम उनके अपने पं थ का ही एक
वर्कृ त रूप है, अजधक उजचत लगती है।

कु रआन में ईसाई धमव की वनंदा


मुहम्मद के पैगम्बरी वमशन के पहले पांच र्षव में िब कु रआन के कु ल 114 अध्यायों में से लगभग 20 अध्याय ही आये
थे, तो उनमें बाइवबल या ईसाई धमव के वर्षय में अवत अल्प उल्लेख था। मुहम्मद द्वारा 615 ईसर्ी में अपने अनुयावययों को ईसाई
दे श अबीसीवनया भेिने के बाद से ही नयी आयतों में बाइवबल की कथाओं की पुवष्ट होनी प्रारंभ हो गयी। यह पररपाटी मदीना में
मुहम्मद के वमशन की आरंजभक अर्जध तक चलती रही।

सं भर् है वक मक्का के बहुदे र्र्ावदयों को अपने मिहब में लाने की कोई सं भार्ना न दे खकर मुहम्मद को लगा होगा वक
यवद र्ह अपने नये पं थ में ईसाइयों र् यहवदयों के धमव का अनुमोदन करता है , तो ईसाई र् यहदी उसके वमशन से िुड़ िाएं गे,

115 इब्न र्राक (1995) व्हाई आई ऐम नॉट मुस्लस्लम, प्रॉमैजथअस बुक्स, न्यूयाकव , पृष्ठ 34

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इसजलये उसने ईसाइयों र् यहवदयों पर अपना ध्यान कें वद्रत वकया। अबीसीवनया के जिन ईसाइयों ने मुसलमानों के प्रवत अच्छा
आवतथ्य वदखाया था, उनके साथ वमिर्ता् सं बं ध रखने की सुवनयोजित आर्श्यकता भी थी। अबीसीवनया के साथ कु रैशों के
व्यापाररक सं बं ध थे और उन्ोंने र्हां के ईसाई रािा के पास प्रवतवनजधमं डल भेिकर यह सं देश जभिर्ाया था वक र्हां बसे हुए
मुसलमानों को वनकाल वदया िाए अथर्ा उन्ें मक्का को सौंप वदया िाए। उन्ोंने रािा से पररर्ाद (जशकायत) वकया वक मुसलमान
एक वर्धमी पं थ की स्थापना कर रहे हैं। मुसलमानों पर कोई कारवर्ाई करने से पूर्व रािा उनके वर्धमव का प्रमाण चाहता था। िब
रािा ने मुसलमानों को अपने दरबार में समन वकया और उनसे उनके वर्धमी जसद्ांतों के बारे में पूछा, तो मुसलमानों के प्रर्िा ने
कु वटलता वदखाते हुए ईसाई धमव की पुवष्ट करने र्ाले सूरा मररयम पढ़कर सुनाया, जिसमें कुं र्ारी मैरी, िॉन द बैपवटस्ट और
ईसामसीह के चामत्काररक िन्म का उल्लेख था। इससे रािा प्रसन्न हो गया और उसने मुसलमान अप्रर्ाजसयों को वनकालने से मना
कर वदया।116

र्षों तक कु रआन में ईसाई धमव की पुवष्ट करने और उन्ें मुहम्मद के पं थ में लाने का प्रयास करने के बाद भी ईसाई
(यहदी भी) उसके पं थ में न के बराबर सं ख्या में आये। मदीना िाने के बाद र्षों तक ईसाइयों र् यहवदयों को लाने का प्रयास
चलता रहा, वकं तु व्यथव रहा। अवपतु कु रआन की आयतों में अनेक वर्सं गवतयों को उिागर करते हुए ईसाई र् यहदी उनके पं थ
(इस्लाम) पर तावकव क प्रश्न उठाने लगे। र्े उनके बड़े आलोचक और जखझाने र्ाले बन गये। उनका व्यर्हार मुसलमानों के प्रवत
कठोर होने लगा। अपने पं थ के गठन में ईसाई (और यहदी) जसद्ांतों से इतना कु छ लेने के बाद भी मुहम्मद ने ईसाइयों र् यहवदयों
की वनंदा करने में तवनक भी सं कोच नहीं वकया, क्ोंवक र्े इस्लाम स्वीकार करने को अवनच्छु क थे। र्ह अब ईसाइयों पर आरोप
लगाने लगा वक र्े लोग अपने ग्रंथों को नहीं समझ रहे हैं या भूल गये हैं [कु रआन 5:14]। विदे र् की भ्ांवत के कारण मुह म्मद को
लगता था वक ईसाई उन तीन दे र्ों में वर्श्वास करते हैं और उसने उन पर हमला वकयाः ‘र्े वनजित ही कावफर हैं , िो कहते हैं वक
अल्लाह तीनों (दे र्ों) में तीसरा है’ [कु रआन 5:73] और उनसे आह्वान वकया ‘इसजलये अल्लाह और उसके रसूल को मानो, और
तीन (दे र्) न कहो [कु रआन 4:171]।’

िैसे यहदी वर्चारों में ईसामसीह के ईश्वरत्व र् उनके अर्तार को अस्वीकार वकया गया है , र्ैसे ही अब मुहम्मद ने अब
अस्वीकार कर वदया। ईसामसीह ईश्वर का बेटा नहीं था, क्ोंवक ‘अल्लाह ने कोई सं तान नहीं िन्मा [कु रआन 112:3]।’ कु रआन
[19:36] कहती है, ‘यह अल्लाह (की मवहमा) के उपयुि नहीं है वक र्ह कोई बेटा िने।’ अल्लाह ने कहा वक बेटा उत्पन्न करना
अल्लाह की मवहमा के अनुकूल नहीं है [कु रआन 4:171]। इब्न इसहाक मुहम्मद की एक कहानी बताता है, जिसमें र्ह दो ईसाई
सं तों की वनंदा इसजलये कर रहा था, क्ोंवक उनकी मान्यता थी वक ईश्वर का बेटा है। तब उन्ोंने पुनः पूछाः ‘‘उसका वपता कौन था,
मुहम्मद?’’ चूं वक र्ह स्वयं कुं र्ारी मां से िीसस के चामत्काररक िन्म की पुवष्ट कर चुका था, तो उसे कोई उत्र नहीं सूझा और र्ह
चुप्पी साध गया।117 उसे इसका उत्र दे ने के जलये समय चावहए था और बाद उसने एक आयत गढ़ी, जिसमें कहा गया, ‘अल्लाह

116 र्ाकर, पृष्ठ 109

117 इवबद, पृष्ठ 199

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िो चाहे रच सकता है। िब र्ह कु छ करने का वनणवय करता है, तो िो अल्लाह रचना चाहता है, उसकी रचना कर दे ता है। िब
र्ह कोई काम करने का वनणवय लेता है: तो उसके जलये कहता है वक हो िा और र्ह काम हो िाता है!’ [कु रआन 4:47]

कु रआन ने अब उन ईसाइयों पर अल्लाह के कोप को लागू वदया, जिन्ोंने कहा वक ईसामसीह ईश्वर का बेटा था [कु रआन
9:30]। मुहम्मद ने यह भी मानने से अस्वीकार कर वदया वक ईसामसीह की मृत्यु सूली पर हुई थी, िैसा वक कु रआन कहती है,
‘उन लोगों ने उस (ईसामसीह) की हत्या नहीं की थी, न वक उसे सूली पर लटकाया था’; अवपतु अर्ास्तवर्क सूली पर चढ़ाये िाने
के समय, ‘अल्लाह ने उसे अपनी ओर उठा जलया था’ [कु रआन 4:157-58]। िैसा वक पहले ही बताया िा चुका है वक यह
वर्चार मैवनशेइज्म से नकल वकया गया था। यह समझा िा सकता है वक यवद यह झुठला वदया िाए वक मानर् िावत के पापों के
जलये सूली पर चढ़कर ईसामसीह की मृत्यु हुई, तो ईसाई धमव अपनी अजधकांश स्वत्व महानता खो देगा।

ईसाइयों के प्रवत मुहम्मद का र्ैर


उसके पं थ की आलोचना कर रहे ईसाइयों से मुहम्मद जचढ़ गया था और र्ह अब के र्ल ईसाई धमव के जसद्ांतों की वनंदा
तक ही सीवमत नहीं रहा। मुहम्मद अब उन ईसाई पुरोवहतों को लोभी कहने लगा, िो अपने अनुयावययों को मुहम्मद के वमशन में
सस्लम्मजलत होने से रोक रहे थे। मुहम्मद उन पुरोवहतों को कहने लगा वक र्े लोगों के धन के भिक हैं, क्ोंवक र्े उस धन को
अल्लाह के वमशन में व्यय नहीं कर रहे हैं। िैसा वक कु रआन कहती हैः ‘...र्ो (ईसाई) पुरोवहत वनदवयतापूर्वक मानर्िावत के धन
का भिण कर रहे हैं और (लोगों को) अल्लाह के मागव में िाने से रोक रहे हैं। र्े िो सोने और चांदी का ढे र लगाते हैं तथा अल्लाह
के मागव में उसे व्यय नहीं करते हैं, (हे मुहम्मद) उन्ें बता दो वक उन्ें पीड़ादायी यातना वमलेगी... [कु रआन 9:34]’

अल्लाह अब ईसाइयों पर उसके सच्चे पं थ को वर्कृ त करने का आरोप लगाते हुए उनकी वनंदा करने लगा और उनसे
प्रवतशोध लेने की बात कहने लगा [कु रआन 9:30]। ईसाइयों के प्रवत अल्लाह का व्यर्हार अब शिुतापूणव हो गया और र्ह यह
आयत दे कर उनके प्रवत घृणा फैलाने लगा: ‘हे मोवमनो! उनमें से वकसी को अपना अजभभार्क न बनाओ, जिन्ोंने तुमसे पहले
पुस्तक प्राि वकया (अथावत ईसाई, यहदी)... यवद तुम सच्चे मोवमन हो, तो अल्लाह के प्रवत अपना कतवव्य पूरा करते रहो [कु रआन
5:57]।’ उसने अब ईसाइयों को सत्य का उल्लं घन करने र्ाला बताते हुए उन्ें िहन्नुम में िाने र्ाला कहा और बोला वक र्े सदा
िहन्नुम में पड़े रहेंगे [कु रआन 5:77, 98:6]।

यह वदखाने के जलये वक इस्लामी पं थ ईसाइयत के प्रवत अत्यं त वमिर्ता् है, इस्लाम के वर्द्वान प्रायः कु रआन के कु छ
चयवनत सं दभव को ही वदखाते हैं। स्पष्ट है वक सुवनयोजित ढंग से र्ो आयतें ईसाइयों को ईसाई धमव छोड़कर इस्लाम स्वीकार करने
और मुहम्मद को अपना रसूल स्वीकार करने के जलये लुभाने के उद्दे श्य से लायी गयी थीं। वकं तु िब ईसाइयों को लुभाने के अल्लाह
के सारे प्रयास वर्फल हो गये, तो ईसाइयों के प्रवत शिुता एर्ं ईसाइयों के वर्रुद् वहंसा भड़काने र्ाली बहुत सी आयतें आयीं, परंतु
र्ो वर्द्वान ऐसी आयतों का उल्लेख कभी नहीं करेंग।े उन शिुतापूणव आयतों में से कु छ नीचे दी गयी हैंः

1. यहदी और ईसाई मूवतवयों र् वमथ्या दे र्ों में वर्श्वास रखते हैं [कु रआन 4:51]।
2. ‘र्ो (ईसाई और यहदी) हैं, जिन्ें अल्लाह ने श्राप वदया है’ [कु रआन 4:52]।

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3. अल्लाह ने ईसाइयों में पारस्पररक शिुता र् घृणा भड़का दी है [कु रआन 5:14]।
4. यहदी और ईसाई हारने र्ालों में से है [कु रआन 5:53]।
5. ईसाई िहन्नुम की आग में भूने िाएं गे [कु रआन 5:72]।
6. ईसाई तीन दे र्ों को मानकर गलत हैं। उसके जलये उन्ें पीड़ादायी यातना वमलेगी [कु रआन 5:73] ।
7. यहवदयों, ईसाइयों अथर्ा कावफरों को अपना अजभभार्क न बनाओ [कु रआन 5:57]।
8. यहवदयों और ईसाइयों को अपना वमि न बनाओ। यवद तुम ऐसा करते हो, तो अल्लाह तुम्हें में उन्ीं में एक मानेगा
[कु रआन 5:51]।
9. ईसाई और यहदी वर्कृ त होते हैं। अल्लाह स्वयं उनके वर्रुद् लड़ता है [कु रआन 9:30]।
10. धनी और लोभी ईसाई पुरोवहतों को पीड़ादायीय यातना वमलेगी... [कु रआन 9:34]।
11. यहदी और ईसाई बुरे अर्ज्ञाकारी हैं [कु रआन 5:59]।
12. यहदी रब्बी (धमावचारी) और ईसाई पुरोवहतों की करतूत बुराई है [कु रआन 5:63]।
13. अल्लाह ने मुहम्मद के पास िो सं दे श भेिा है, उस पर ईसाइयों और यहवदयों को अर्श्य ही वर्श्वास करना चावहए;
यवद र्े ऐसा नहीं करेंगे, तो अल्लाह उन्ें लं गूर बना दे गा, िैसे वक अल्लाह ने सब्त-तोड़ने र्ालों के साथ वकया था
[कु रआन 4:47]।
14. ईसाइयों और यहवदयों से िं ग करो, िब तक वक ‘र्े तत्परता से कर (िजिया) न दे ने लगें और अपमावनत र् पराजित
न कर वदये िाएं ’ [कु रआन 9:29]।

मुहम्मद मरते समय भी ईसाई-वर्रोधी शिुता पाले रहा


ईसाइयों के प्रवत रसूल मुहम्मद की शिुता उस समय भी बनी रही, िब र्ह मृत्युशय
ै ा पर पड़ा था। रसूल भयानक अस्वस्थ हो गया
और पूरी रात भयं कर पीड़ा से चीखता हुआ वर्लाप करता रहा। उसकी बीर्ी आयशा ने उसे शांत करने की आशा में र्ही शब्द कहे,
िो र्ह तब कहा करता था, िब दूसरे पीड़ा में होते थे: ‘‘हे रसूल, यवद हममें से कोई भी इस प्रकार वर्लाप करता, तो आप उसे
वनजित ही डांटते।’’ उसने उत्र वदया, ‘‘हां, पर मैं दोगुने ज्वर-ताप से िल रहा हं।’’118 अगले वदर्स प्रातः उसकी पीड़ा और
भयार्ह हो गयी और र्ह लगभग अचेत अर्स्था में आ गया। उसकी एक और बीर्ी उम्मे सलमा ने उसे अबीसीवनयाई वर्जध से
वनवमवत उस वमश्रण को दे ने का सुझार् वदया, िो उसने तब सीखा था िब र्हां प्रर्ासी बनकर गयी थी।

इस वमश्रण के प्रभार् से सचेत (होश में आने) होने के उपरांत मुहम्मद सशं वकत हो गया वक उसे क्ा वपलाया गया है
और उसने आदे श वदया वक उस कि में उपस्लस्थत सभी औरतें र्ही औषजध लें। उसके सामने ही उस औषजध को उन सभी औरतों
के मुं ह में डाला गया।

118 इवबद, पृष्ठ 141

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ईसाई अबीसीवनया के उस औषजध के प्रभार् पर हुई बातचीत अबीसीवनया तक पहुंच गयी। उसकी बीवर्यों में से दो उम्मे
सलमा और उम्मे हबीबा उस देश में प्रर्ासी के रूप में रही थीं, तो र्ो सुं दर माररया कै थेडरल एर्ं उसकी जभवत्यों (दीर्ारों) पर लगे
अद्भुत जचिों का बखान करने लगीं। यह सुनते ही मुहम्मद आगबबूला हो गया और चीखते हुए बोला: ‘‘मेरे स्वामी, यहवदयों र्
ईसाइयों को नष्ट कर दो। उन पर अल्लाह का क्ोध भड़कने दो। पूरे अरब में इस्लाम के अवतररि कोई और दीन न रहने दो।’’119
मृत्यु के समय रसूल द्वारा प्रकट इस इच्छा से उसके बाद के उत्राजधकाररयों ने यह वनष्कषव वनकाला वक अरब से यहवदयों र् ईसाइयों
को वनकाल बाहर वकया िाए।

ईसाई शासकों को मुहम्मद का धमकी भरा सं दे श


628 ईसर्ी में िब मुहम्मद इतना ताकतर्र नहीं था वक मक्का तक पर अजधकार कर सके , तब भी उसने अरब के दूर-
स्लस्थत यमामा, ओमान और बहरीन के रािाओं के पास दूत भेिकर कहा था वक र्ह पैगम्बर है और र्े रािा इस्लाम स्वीकार कर लें।
ओमान और बहरीन के रािाओं ने कोई उत्र ही नहीं वदया। अरब के सबसे ताकतर्र व्यवि यमामा के ईसाई मुजखया हौदा इब्न
अली ने उल्टे यह सं दे श भेि वदया वक मुहम्मद अपनी पैगम्बरी में साझा (वहंस्सा) दे। यह उत्र पाकर मुहम्मद ने उसे बहुत कोसा।
एक र्षव बाद वकसी कारणर्श हौदा की मृत्यु हो गयी। रोम (कु स्तुंतुवनया) के सम्राट हरक्ूजलस, ग़स्सान के रािकु मार हैररस सिम
और इजिप्ट के ईसाई गर्वनर िैसे ताकतर्र वर्देशी ईसाई शासकों के पास भी रािनीवतक सं दे श भेिकर उनसे इस्लाम स्वीकार करने
को कहा गया। रोम र् गस्सान में मुहम्मद के दूतों को वतरस्कार वमला और उन्ें ‘‘वर्जिि व्यवि का दूत’’ कहा गया। इजिप्ट के
रोमन गर्नवर ने इस्लाम तो स्वीकार नहीं वकया, वकं तु उसने अपनी दो दाजसयों (दोनों बहन) को मुहम्मद के पास उपहार के रूप में
भेिकर वमिर्ता् उत्र वदया। रसूल ने उन दाजसयों में से युर्ा र् आकषवक माररया को अपने हरम में लौंडी (सेक्स-स्लेर्) बनाकर
रखैल के रूप में रख जलया।

ईसाइयों के वर्रुद् मुहम्मद का अजभयान


बाद में िब मुसलमानों ने ताकत िुटा जलया, तो मुहम्मद ने उन सभी ईसाई रािाओं के वर्रुद् फौिी अजभयान प्रारंभ
वकये, जिन्ोंने उसके सं दे श को ठु करा वदया था। पर रखैल माररया िैसा सुं दर उपहार पाकर र्ह इजिप्ट से सं तुष्ट था, तो उसने उस
पर हमला नहीं वकया, यद्यवप उसकी मृत्यु के बाद उसके उत्राजधकाररयों ने इजिप्ट पर भी हमला वकया।

जसतम्बर 629 में मुहम्मद ने सीररया में ईसाइयों के सीमार्ती िेि मुता पर हमला करने के जलये 3000 जिहावदयों की
बड़ी फौि भेिी। मुहम्मद ने अपने कमांडरों को आदे श वदया वक र्े ईसाइयों को इस्लाम स्वीकार करने को कहें , यवद र्े न मानें तो
अल्लाह के नाम पर उन पर तलर्ार तानें। मुसलमान हमलार्रों से वनपटने के जलये बड़ी सं ख्या में ईसाई एकवित हुए। युद् हुआ

119 इवबद, पृष्ठ 142; इब्न इस्हाक, पृष्ठ 523

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

और इसमें मुसलमानों को बड़ी िवत हुईः दो अग्रणी मुस्लस्लम िनरल िैद और िफर मारे गये। के र्ल खाजलद इब्द र्लीद अपनी
चतुराई से प्राण बचाकर भागने में सफल हो सका।120

फरर्री 630 में मुहम्मद ने अम्र इब्न अल-आस की अगुर्ाई में जिहावदयों की फौि को ओमान की ईसाई िनिावत के
वर्रुद् अजभयान पर भेिा और र्हां के शासक को इस्लाम स्वीकार करने और िजिया दे ने के जलये कहा गया। उन िनिावतयों में से
कु छ ने इस्लाम स्वीकार कर जलया, िबवक मािुना िनिावत को वर्र्श वकया गया वक यवद र्े ईसाई धमव पर बने रहना चाहते हैं , तो
अपनी आधी भूवम और आधी सम्पवत् दें । उसी मास में एक सं दे श वहम्यार के ईसाई रािकु मार के पास भेिा गया और उससे इस्लाम
स्वीकार करने की मांग करते हुए अपनी धन-सं पवत् र् आय का दसर्ां भाग, िजिया और उपहार दे ने को कहा गया। उन लोगों को
वहम्यार भाषा के स्थान पर अरबी बोलने को कहा गया। उनसे कहा गया वक यवद र्े ये सब करने से मना करते हैं तो उन्ें अल्लाह
का शिु माना िाएगा। अपने प्राण बचाने के जलये रािकु मार ने इस्लाम स्वीकार करते हुए उत्र भेिा।121

अक्ट्ू बर 630 में मुहम्मद ने सीररया के बैिेंटाइन सीमा पर िं ग छे ड़ने के जलये 30 हिार घोड़े र् फौि एकवित वकये। दो
र्षव पूर्व सम्राट हरक्ुजलस और ग़स्सान के रािकु मार ने मुहम्मद के उस सं दे श को ठु करा वदया था, जिसमें उसने उनसे इस्लाम
स्वीकार करने को कहा था। उसने अनेक राज्यों को रािनीवतक सं दे श भेिकर उन्ें इस्लाम स्वीकार करने अथर्ा िजिया कर चुकाने
को कहा। आयला िनिावत के ईसाई रािकु मार योहाना (िॉन) इब्न रूबा ने अपने लोगों को हमले से बचाने के जलये िजिया कर
दे ना स्वीकार करते हुए मुहम्मद के साथ सं जध कर ली।

मुहम्मद 20 वदन तक तबूक में रुका था और कु छ छोटे समुदायों को अपने अधीन लाया था। अब मुहम्मद की इच्छा थी
वक र्ह सीररया की भूवम पर अवतक्मण करने के जलये आगे बढ़े और यह उसके उस अजभयान का मुख्य उद्दे श्य था। िब र्ह
तैयाररयां कर रहा था, तभी उस तक एक गुि सूचना पहुंची वक सीमा पर बहुत बड़ी यूनानी सेना मुसलमानों से वनपटने के जलये
एकि हुई है। इस सूचना ने मुहम्मद की फौि को हताश कर वदया और र्ह अपनी उत्कट इच्छा पूरा वकये वबना ही पीछे हटने पर
वर्र्श हो गया।

उधर, िब मुहम्मद तबूक में था, तो उसने खाजलद इब्न र्लीद को अरब के ईसाई रािकु मार उकै वदर इब्न अब्दुल मजलक
द्वारा शाजसत हरभरे िल से पररपूणव दूमा के िेिों में भेिा। उस समय उकै वदर अपने भाई के साथ आखेट (जशकार) करने वनकला
हुआ था, तो खाजलद ने घात लगाकर हमला वकया और उसके भाई की हत्या करने के बाद उकै वदर को बं दी बनाकर मदीना ले
आया। उकै वदर को इस्लाम स्वीकार करने तथा िजिया कर दे ने के जलये सं जध करने को बाध्य वकया गया। मुहम्मद की मृत्यु के बाद

120 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 532-40; मुईर, पृष्ठ 393-95

121 र्ाकर, पृष्ठ 204-05

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

उकै वदर ने वर्द्रोह कर वदया। उसकी अर्ज्ञा और इस्लाम छोड़ने का प्रवतशोध लेने के जलये खाजलद दूमा लौट आया और रािकु मार
उकै वदर को मार डाला तथा उसके समुदाय को जछन्न-जभन्न कर वदया।

ईसाई प्रवतवनजधयों के साथ मुहम्मद का व्यर्हार


ईसाइयों के साथ मुहम्मद के व्यर्हार को उस घटना से समझा िा सकता है वक उसने 631 ईसर्ी में कु छ ईसाई
प्रवतवनजधमं डल के साथ कै सा व्यर्हार वकया था। 630 में मुहम्मद के मक्का िीतने के बाद अरब की भयभीत िनिावतयों के
प्रवतवनजधमं डल मुसलमानों के हमले से रिा की गुहार लगाते हुए मक्का आने लगे। फरर्री में प्रभार्शाली ईसाई िनिावत बनू
हनीफा का एक जशष्टमं डल मदीना में मुहम्मद से वमलने आया। यद्यवप यह अस्पष्ट है वक उनकी क्ा बातचीत हुई, वकं तु रसूल ने
अपने र्िू से बचे िल का एक पाि उनको वदया और बोला वक र्ापस लौटकर र्े अपने वगररिाघरों को नष्ट कर दें तथा उस पर यह
िल जछड़क कर उसके स्थान पर मस्लस्िद बना दें। एक मास बाद 60 व्यवियों का एक जशष्टमं डल, जिनमें सोने का क्ॉस पहने हुए
अजधकांशतः तग़जलब िनिावत के ईसाई थे, मुहम्मद से वमलने आये। उसने उनके साथ सं जध की वक र्े लोग तो ईसाई धमव मान
सकते हैं, वकं तु र्े अपने बच्चों को ईसाई धमव में दीजित करने के जलये बवपतस्मां नहीं करेंगे।122 इसका अथव यह हुआ वक उनके बच्चे
मुसलमानों की सं पवत् हो गये।

इसी र्षव एक और उल्लेखनीय अर्सर पर नेज्रान का एक 14 सदस्यीय ईसाई प्रवतवनजधमं डल मुहम्मद से वमलने आया।
इस प्रवतवनजधमं डल का नेतृत्व वकनाना िनिावत के अब्दुल मसीह, बक् िनिावत के वबशॅ प अबू हाररस और प्रवतवष्ठत दयान पररर्ार
के एक प्रवतवनजध कर रहे थे। मुहम्मद ने उनके सामने कु रआन की आयतें पढ़ीं और वर्नम्रता के कारण उन लोगों ने मान जलया वक
उनके पास अपने लोगों के जलये सं दे श वमला गया है। वकं तु िब उसने उन लोगों पर इस्लाम स्वीकार करने का दबार् डाला, तो
उन्ोंने मना कर वदया। दोनों पिों में धावमवक वर्षयों पर बहुत तकव -वर्तकव हुआ, वकं तु कोई सहमवत नहीं बन सकी। अंततः मुहम्मद
ने सुझार् वदया वक चूं वक दोनों पि एक-दूसरे को कोस रहे हैं, तो दोनों के बीच एक मल्लयुद् हो िाए, जिससे वक जिसकी भी बात
झूठी हो उस पर अल्लाह का कोप पड़े। ईसाई प्रवतवनजधमं डल ने इस प्रकार के ओछे कायव में सस्लम्मजलत होने से मना कर वदया।123
अल्लाह ने कु रआन में इस कहानी को इस प्रकार बताया है: ‘वकं तु तुम्हारे पास ज्ञान आ िाने के बाद यवद कोई भी तुमसे इस वर्षय
में वर्र्ाद करे, तो उनसे कहो: आओ, हम अपने बेटों और तुम्हारे बेटों तथा अपनी जस्त्रयों और तुम्हारी जस्त्रयों एर्ं अपने वनकट के
लोगों र् तुम्हारे वनकट के लोगों को बुलायें, तब सच्चे मन से इबादत करें, और झूठ बोलने र्ालों पर अल्लाह का कोप हो, ऐसी
प्राथवना करें [कु रआन 3:61]।’

122 मुईर, पृष्ठ 458

123 इवबद, पृष्ठ 458-60

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

र्हां से िाने से पूर्व मुहम्मद ने उस प्रवतवनजधमं डल को आश्वस्त वकया वक उन्ें अपना धमव मानने में कोई छे ड़छाड़ नहीं की
िाएगी तथा उनकी भूवम र् सं पवत् का आहरण (िब्त) नहीं वकया िाएगा। पर कु छ ही समय बाद उसी र्षव मुहम्मद ने नेज्रान के
लोगों को बलपूर्क
व इस्लाम स्वीकार कराने के जलये खाजलद को भेिा। र्ो लोग िानते थे वक खाजलद की छवर् एक बबवर सामूवहक
हत्यारे की है, इसजलये उन्ोंने तेिी से इस्लाम के आगे घुटने टे क वदये। यद्यवप कई अन्य स्थानों पर सं घषव चल रहा था और इसी
दबार् के कारण खाजलद का ध्यान दूसरी ओर कें वद्रत हो गया, इसजलये नेज्रान के अजधकांश लोग मुहम्मद की मृत्यु तक ईसाई बने
रहे। बाद में खलीफा उमर ने अरब से ईसाइयों के सफाये के जलये नया अजभयान प्रारंभ वकया। हमलों र् वर्नाश के नये खतरे को
दे खते हुए नेज्रान िनिावत के अजधकांश लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर जलया। 635 ईसर्ी में उमर ने बड़ी सं ख्या में नेज्रान के प्रमुख
नागररकों, वर्द्वानों और धावमवक नेताओं को वनर्ावसन (उनकी भूवम से भगा वदया) में भेि वदया।124

632 ईसर्ी में रसूल एक और िं गी अजभयान की तैयारी कर रहा था वक अचानक र्ह भयानक रुग्ण (बीमार) हो गया।
मरते समय उसकी इच्छा यह थी वक उसके उत्राजधकारी खलीफा समूचे अरब से अन्य धमों को नष्ट करें। मुसलमान फौिों ने सबसे
पहले समस्त अरब को बलपूर्क
व इस्लाम में धमाांतररत कराने के अजभयान को प्रारंभ वकया। शीघ्र ही उन्ोंने मध्य एजशया की ईसाई
िनिावतयों की ओर ध्यान कें वद्रत कर वदया। मुहम्मद के पैगम्बरी वमशन से पहले से ही यमामा के मुसजै लमा पैगम्बर के रूप में
मुख्यतः धमव के ईसाई सं स्करण का प्रचार कर रहे थे। मुसजै लमा ने मुहम्मद को पि भेिकर कहा वक र्ह उन्ें पैगम्बर के रूप में
स्वीकार करे और उन्ोंने आह्वान वकया वक शिुता भार् पाले वबना र्े दोनों अपने-अपने धमव का प्रचार अपने-अपने लोगों के बीच
करें। मुसैजलमा के प्रस्तार् को अस्वीकार करते हुए मुहम्मद ने उत्र वदया, ‘‘अल्लाह के रसूल मुहम्मद की ओर से झूठे मुसजै लमा
को... यह धरती अल्लाह की है। अपनी रचनाओं में से जिसे र्ह चाहेगा, पैगम्बरी दे गा और इसका पररणाम इस पवर्ि के पि में
है।’’125

मुसजै लमा अत्यं त लोकवप्रय थे और उनके अनुयावययों की सं ख्या मुहम्मद के अनुयावययों की सं ख्या से कम नहीं थी। अबू
बक् ने मुसैजलमा के वर्रुद् एक िं गी दल भेिा, क्ोंवक मुसैजलमा की बढ़ती लोकवप्रयता उसके नये-नर्ेले इस्लाम के जलये खतरा
था। यमामा के प्रथम युद् में मुसजै लमा के अनुयावययों द्वारा मुसलमानों को पराजित कर वदया गया। 634 ईसर्ी के दूसरे युद् में
मुसलमानों की इतनी भयानक परािय हुई वक मदीना में कोई ऐसा घर नहीं था, िहां से वर्लाप के स्वर न सुनाई पड़ रहे हों। सबसे
महत्वपूणव बात यह है वक इस युद् में कु रआन स्मरण करने र्ाले सर्ोत्म लोगों सवहत मुहम्मद के मुख्य साजथयों में से 39 लोगों का
र्ध हुआ। कु छ मास बाद 634 ईसर्ी में अबू बक् खाजलद के पास पहुंचा और मुसजै लमा को समाि करने के जलये उसे बड़ी फौि
के साथ भेिा। ‘‘मृत्यु का बाग’’ नाम से प्रजसद् अक्बा में भयानक िं ग हुई। इस िं ग में मुसैजलमा को मार डाला गया; उनके 10

124 र्ाकर, पृष्ठ 207

125 इब्न इस्हाक, पृष्ठ 649

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

हिार अनुयावययों को काट डाला गया; उनके शेष बचे अनुयावययों को बलपूर्वक इस्लाम स्वीकार कराया गया।126 इसके बाद अरब
में कोई महत्वपूणव ईसाई समुदाय नहीं बचा। ऐसा था उस रसूल मुहम्मद का िीर्न, जिसके बारे में मुसलमान कहते हैं वक र्ह
वनवर्वर्ाद रूप से धरती पर आने र्ाले सभी मनुष्यों में महानतम, सर्ावजधक करुणामय और सर्ावजधक दयार्ान था।

इस्लाम में मुहम्मद द्वारा प्रदत् गैर-मुसलमानों की प्रस्लस्थवत (दिाव)


रसूल मुहम्मद द्वारा गैर-मुसलमानों के साथ वकये गये व्यर्हार के आधार पर आइए हम उस प्रस्लस्थवत का मूल्यांकन करें,
िो उसने अरब के मूवतवपूिक, यहदी और ईसाई आवद वर्जभन्न प्रकार के कावफरों को वदया था।

इस्लाम में मूवतवपि


ू क
रसूल मुहम्मद ने तीस र्षों तक मक्का के मूवतवपि
ू कों के बीच इस्लाम का उपदे श देने का प्रयास वकया, वकं तु अजधक प्रगवत
करने में वर्फल रहा। यद्यवप मक्का के अजधकांश नागररकों ने उसके सं दे श को नकार वदया था, वकं तु तब भी मक्का के नागररकों की
ओर से उसके प्रवत कोई वहंसक शिुता नहीं वदखायी गयी। इस तथ्य के बाद भी मक्का के नागररक मुहम्मद के प्रवत वहंसक नहीं हुए
वक उसके सं दे श उनके धमव, परंपराओं, पूर्विों के प्रवत घृणास्पद र् अपमानिनक थे तथा उसने दार्ा वकया था वक काबा उसके
अल्लाह का है। कु रैशों ने उससे िो एकमाि शिुता वदखायी थी, र्ह यह थी वक उन्ोंने दो र्षव के जलये उसका सामाजिक र्
आजथवक बवहष्कार वकया था, िो वक वकसी उद्दं ड र् उपद्रर्ी व्यवि से वनपटने का अपेिाकृ त सभ्य ढंग था। वनस्सं दे ह मक्का के
मूवतवपि
ू कों ने मुहम्मद के शिुता भरे आचरण, अपमानिनक स्वभार् र् कायों पर उल्लेखनीय सवहष्णुता वदखायी थी। मक्का में अपने
वमशन की सफलता की आशा न दे खकर और यह दे खकर वक उनकी अनुपस्लस्थवत में भी मदीना में उसका वमशन ठीक चल रहा है,
र्ह र्हां चला गया (622)।

अल्लाह ने बाद में कहा वक मक्कार्ाजसयों द्वारा इस्लाम को अस्वीकार करना ‘‘वफत्ना (उपद्रर्) र् अत्याचार’’ है , िो वक
‘‘हत्या से भी बुरा’’ है। इस अस्वीकार का प्रवतशोध लेने के जलये अल्लाह ने मक्का के नागररकों पर हमले और उनकी हत्या की
स्वीकृ वत दी [कु रआन 2:190-93]। मक्कार्ाजसयों द्वारा उसके नये मिहब को अस्वीकार करना इतना आहत करने र्ाला एर्ं अिम्य
लगा वक उसने यह मुसलमानों का बाध्यकारी कतवव्य बना वदया वक यवद उन्ें न भी अच्छा लगे, तो भी र्े इस्लाम न स्वीकार करने
र्ालों की हत्या करें और उनसे िं ग करें [कु रआन 2:216]। अल्लाह ने (िं ग के जलये र्जिवत) पवर्ि मासों में भी मक्का के
मूवतवपि
ू कों से िं ग करना और उनकी हत्या करना र्ैध कर वदया, िैसे वक मुसलमानों ने नखला में पहले जिहादी हमले में हत्याएं की
थीं [कु रआन 2:217]।

नखला में उस वर्र्ादास्पद, वकं तु सफल रिरंजित जिहादी हमले के बाद मदीना के मुसलमानों र् मक्का के मूवतवपूिकों के
बीच अनेक बड़े सं घषव-बद्र की िं ग (624), उहुद (625) और खं दक (627) हुई। इन सं घषों का चरम 630 ईसर्ी में मक्का पर

126 इवबद, पृष्ठ 209

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

मुहम्मद की िीत के साथ हुई। उसने मक्का की पवर्ि मूवतवयों र्ाले मं वदर काबा पर बलपूर्वक कब्जा कर जलया और उसमें स्लस्थत सभी
दे र्-मूवतवयों का वर्ध्वं स कर वदया और उस मं वदर को इस्लामी ईश्वर अल्लाह के पवर्ि घर में रूपांतररत कर वदया।

यद्यवप उसी वदन मक्का के अजधकांश मूवतवपूिकों ने इस्लाम के आगे घुटने टेक वदये, पर मक्का के नेता अबू सुफ्यान के साथ
हुए समझौते के आधार पर उन लोगों को मूवतवपूिा की परंपरा मानने की छू ट दी गयी, िो अपने पूर्विों के धमव को नहीं छोड़ना
चाहते थे। परंतु यह छू ट माि एक र्षव तक रही। अगले हि यािा (631) के समय अल्लाह ने अचानक कई आयतों (9:1-5)
उतारा और वर्शेष रूप से आयत 9:5 उतारी, जिसमें मूवतवपूिकों को इस्लाम स्वीकार करने अथर्ा मृत्यु स्वीकार करने का वर्कल्प
दे ते हुए मूवतवपूिा को नष्ट करने का आदे श वदया गयाः ‘िब पवर्ि मास बीत िाएं , मूवतवपूिकों को िहां पाओ र्हीं काट डालो, और
उन्ें पकड़ कर (बं दी) बना लो, और उनकी घेराबं दी करो, और उनकी घात में रहो। वकं तु यवद र्े प्रायजित करें और नमाि स्थावपत
करें तथा िकात दें , तो उन्ें छोड़ दो...।’

मुहम्मद के िीर्न काल में ही इस आदे श के साथ अरब में मूवतवपूिा पूणवतः लुिा् हो गयी। इसीजलये इस्लाम में
बहुदे र्र्ावदयों, मूवतवपूिकों, िीर्र्ावदयों, कावफरों और नास्लस्तकों के जलये इस्लाम अथर्ा मृत्यु में से एक चुनने का वर्कल्प मानक
स्वीकृ वत बन गयी।

इस्लाम में यहदी


आरंभ में रसूल मुहम्मद यहवदयों को इस्लाम स्वीकारने और उसे अपना पैगम्बर स्वीकार करने को कहता रहा। िब
यहवदयों ने मुहम्मद के इस प्रस्तार् को ठु करा वदया, तो उसने उनके साथ कठोरता से वनपटने का वनणवय वकया। बद्र में कु रैशों पर
वमली िीत से उत्सावहत होकर उसने सबसे पहले मदीना के बनू क़ै नुक़ा की यहदी िनिावत पर हमला वकया। उस यहदी िनिावत
को पराजित करने के बाद र्ह आत्मसमपवण कर दे ने र्ाली इस िनिावत के लोगों की हत्याएं करना चाहता था, िैसा वक अल-तबरी
ने जलखा है: ‘र्े बेड़ी में िकड़े हुए थे और र्ह (मुहम्मद) उनकी हत्या करना चाहता था।’127 वकं तु इस्लामी सावहत्य में ढोंगी के रूप
में वर्ख्यात अब्दुल्लाह इब्न उबै ने िब मुहम्मद को दृढ़तापूर्क
व रोका वक उन यहवदयों की सामूवहक हत्या न हो, तो उसने यहवदयों
के उस पूरे समुदाय को उनके पैतक
ृ स्थान से वनर्ावजसत कर वदया अथावत भगा वदया।

अगले र्षव िब मुहम्मद ने एक थोथा बहाना बनाकर मदीना की दूसरी बड़ी यहदी िनिावत बनू निीर पर हमला वकया,
तो अब्दुल्लाह इब्न उबै, िो वक अभी भी ताकतर्र नेता थे, ने यहवदयों की ओर से लड़ने की चेतार्नी दी। रसूल ने पुनः इस
िनिावत को वनर्ावजसत करने की शतव पर समझौता वकया। दो र्षव पिात िब बनू क़ु रैिा की अंवतम िनिावत पर हमला वकया गया,
तो मुहम्मद ने बलहीन हो चुके अब्दुल्ला के वर्रोध को अनदेखा कर वदया और अपनी उस मूल योिना पर र्ापस आ गया, िो
उसने तीन र्षव पूर्व बनू क़ै नुक़ा के जलये बनायी थी। उसने बनू क़ु रैिा के सभी र्यस्क पुरुषों की हत्या कर दी तथा उनकी जस्त्रयों र्

127 अल-तबरी, अंक 7, पृष्ठ 86

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

बच्चों को बलपूर्वक दास बना जलया। बनू क़ु रैिा से हजथयाई गयी धन-सं पवत् और बं दी बनायी गयी जस्त्रयों र् बच्चों को उसके
अनुयावययों में बांट वदया गया। मवहला बं वदयों में से िो युर्ा और आकषवक थीं, उन्ें लौंडी (सेक्स-स्लेर्) बना वदया गया। अष्व
(घोड़े) और हजथयार िुटाने के जलये मुहम्मद ने स्वयं कु छ जस्त्रयों को बाहर के दे शों में बेचा।

कु ल वमलाकर िब यहवदयों ने इस्लाम को ठु कराया, तो मुहम्मद ने उन पर एक-एक कर हमला वकया। इन हमलों में
र्यस्क पुरुषों की हत्या कर दी िानी थी और उनकी जस्त्रयों र् बच्चों को दास बना जलया िाना था। रसूल मुहम्मद की पुस्तक में
यहवदयों के जलये यही सर्ोच्च परमादे श था।

इस्लाम में ईसाई


मक्का और मदीना के चारों ओर ईसाइयों की कोई बड़ी उपस्लस्थवत नहीं थी। इसजलये मुहम्मद ने ईसाइयों के साथ उस प्रकार की
कटुता और वनरंतर हमले की प्रर्ृवत् नहीं वदखायी, िैसा वक उसने मूवतवपूिकों र् यहवदयों के साथ वदखाया। यद्यवप ईसाइयों के साथ
उसके व्यर्हार को उन पिों से समझा िा सकता है, िो उसने दूसरे दे शों बहरीन, ओमान, इजिप्ट, सीररया और बैिेंटाइन के ईसाई
रािाओं या गर्नवरों को भेिे थे। यहां ऐसे दो पिों को वदया गया है, जिनमें से एक उसने ओमान के ईसाई रािा (628) और दूसरा
तबूक (630) के अपने अजभयान के समय आयला िनिावत के ईसाई रािकु मार को भेिा था। ओमान सरकार की र्ेबसाइट पर
उन ओमान रािाओं को भेिे गये रसूल मुहम्मद के पि की प्रवत है, जिसमें जलखा है:128

अल्लाह द्वारा मुसलमानों को मक्का में प्रर्ेश की ताकत दे ने के बाद इस्लाम प्रधान सत्ा हो गयी थी और आतं क के प्रयोग से इसे फैला
वदया गया था... रसूल ने तब ओमान के दो रािाओं अल िुलांदा के बेटों िैफर र् अब्द सवहत पड़ोसी रािाओं र् शासकों से शांवतपूणव
साधनों से सम्पकव करना उपयुि पाया। इवतहास की पुस्तकें हमें बताती हैं वक मुहम्मद ने अम्र इब्न अल-आस के फौिी दल के हाथ
ओमान के लोगों के जलये सं देश और अल िुलांदा के बेटों िैफर र् अब्द के जलये पि भेिा था, जिसमें जलखा था: ‘दयार्ान और
करुणामय अल्लाह के नाम में, मुहम्मद वबन अब्दुल्ला की ओर से अल िुलांदा के बेटों िैफर र् अब्द के जलये, उन पर शांवत हो िो
सही मागव चुनते हैं। इस्लाम स्वीकार करो, और तुम सुरजित होगे। मैं मानर् िावत के जलये अल्लाह का पैगम्बर हं, यहां उन सभी को
सचेत करना है वक कावफर वनंदनीय हैं। यवद तुम इस्लाम की शरण में आ िाते हो, तो तुम रािा बने रहोगे, वकं तु यवद इससे बचते हो,
तो तुम्हारा शासन समाि कर वदया िाएगा और मेरी पैगम्बरी जसद् करने के जलये मेरे घोड़े तुम्हारे िेि में प्रर्ेश कर िाएं गे।’

यह पि बताता है वक 628 ईसर्ी में उस समय भी ईसाइयों को सुरिा पाने के जलये इस्लाम स्वीकार करने का वर्कल्प
वदया गया। यवद र्े इस्लाम नहीं स्वीकार करते हैं , तो उन्ें इस्लाम के क्ोध का सामना करना पड़ेगा, जिसका अथव होगा िं ग, मृत्यु

128 (http://www.mofa.gov.om/oman/discoveroman/omanhistory/OmanduringISlam) यह पिक


अब ओमान सरकार की र्ेबसाइट से हटा जलया गया है। वर्कीपीवडया ने
http://www.wikiislam.com/wiki/Quotations_on_Islam#Official_Oman_Site पर इसकी एक प्रवत
सुरजित रखी हुई है।

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

और वर्नाश एर्ं साथ में ही उनकी जस्त्रयों र् बच्चों को बलपूर्वक दास बना जलया िाएगा। ऐसा ही मुहम्मद ने बनू क़ु रैिा यहवदयों के
साथ वकया था। आयला (630) िनिावत के रािकु मार को भेिे अपने पि में रसूल ने जलखा थाः ‘... या तो इस्लाम स्वीकार करो
अथर्ा िजिया कर दो... तुम लोग िकात िानते हो। यवद तुम लोग समुद्र और धरती की ओर से सुरिा चाहते हो, तो अल्लाह और
उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो... पर यवद तुम लोग इसका वर्रोध करोगे और अल्लाह र् उसके रसूल को अप्रसन्न करोगे , तो
मैं तुमसे तब तक कु छ भी स्वीकार नहीं करूंगा, िब तक वक मैं तुमसे िं ग न कर लूं और तुम्हारे छोटों को बं दी न बना लूं तथा
तुम्हारे बड़ों की हत्या न कर दूं; क्ोंवक मैं सच में अल्लाह का रसूल हं...।’129

यह पि बताता है वक इन दो र्षों में ईसाइयों के साथ व्यर्हार का प्रार्धान कु छ सीमा पर पररर्वतवत हो चुका था। बनू
क़ु रैिा के यहवदयों के नरसं हार के बाद सबसे बड़ा वर्कल्प यह था वक इस्लाम स्वीकार करें या मृत्यु (साथ ही उनकी जस्त्रयों र् बच्चों
को दास बनाया िाना), पर अब तीसरा वर्कल्प यह भी था वक मुहम्मद को अपनी भूवम के स्वामी के रूप में स्वीकार करते हुए पोल
टै क्स (िजिया) चुकाया िाए। बनू क़ु रैिा के यहवदयों के नरसं हार के डेढ़ र्षव पिात अगस्त 628 में खैबर के यहवदयों को भी इसी
प्रकार का वर्कल्प वदया गया था। खैबर के यहवदयों को पराजित करने के बाद उनकी जस्त्रयों र् बच्चों को बलपूर्वक दास (गुलाम)
बनाकर पकड़ लाया गया था। बचे हुए यहवदयों पुरुषों को इस शतव पर छोड़ वदया गया था वक िब तक मुसलमानों की इच्छा हो, र्े
अपनी भूवम पर बने रह सकते हैं, वकं तु उन्ें अपनी उपि का 50 प्रवतशत भाग िजिया के रूप में दे ना होगा। अल्लाह ने बाद में
आयत 9:29 (631 ईसर्ी में उतारी गयी) में इस नये उदाहरण को यहवदयों र् ईसाइयों के साथ व्यर्हार के अंवतम प्रोटोकॉल के
रूप में सं वहताबद् कर वदया: ‘िो न तो अल्लाह को मानते हैं और न ही कयामत के वदन को और न ही जिसे अल्लाह और उसके
रसूल ने र्जिवत (हराम) वकया है, उसे हराम समझते हैं तथा न ही सत्य के मिहब (इस्लाम) को अपना धमव बनाते हैं , (भले ही र्ो
हों) पुस्तक के लोग (यहदी और ईसाई), िब तक र्े अधीनता स्वीकार करने की इच्छा से िजिया न दें और अपने को पराजित
(अपमावनत) न अनुभर् करें, उनसे िं ग करते रहो।’

इस्लाम में यहवदयों और ईसाइयों को पुस्तक (तौरात र् इं िील) के वर्शेषाजधकार प्राि लोगों के रूप में मान्यता वमली है।
तब भी, यवद र्े इस्लाम स्वीकार करने में वर्फल होते हैं, तो मुसलमानों को उनसे तब तक लड़ते रहना चावहए, िब तक वक र्े
सर्ोच्च इस्लाम के आगे अपने को अपमावनत र् पराजित न अनुभर् करने लगें। उनको पराजित करने के बाद मुसलमान उसी प्रकार
उनकी जस्त्रयों र् बच्चों को दास (गुलाम) बना सकते हैं, जिस प्रकार रसूल ने बनू क़ु रैिा और खैबर के यहवदयों की जस्त्रयों र् बच्चों के
साथ वकया था। यवद परास्त ईसाई और यहदी इच्छापूर्वक इस्लाम की सर्ोच्चता र् सार्वभौवमकता स्वीकार कर लें तथा
अपमानिनक िजिया, भूवम कर र् अन्य उपहार दे ने को सहमत हो िाएं , तो उन्ें उमर की सं जध (अगले अध्याय में देखें) में
उस्लल्लजखत अपािता के साथ िीने की अनुमवत दे दी िाए।

एक र्षव पिात अपनी मृत्यु से पूर्व मुहम्मद का मन पुनः पररर्वतवत हो गया और अब र्ह इस्लामी भूभाग पर यहवदयों र्
ईसाइयों को कोई स्थान नहीं दे ना चाहता है, र्ैसे ही िैसे वक अरब से सभी मूवतवपूिकों का सफाया कर वदया गया था। अपनी

129 मुईर, पृष्ठ 402

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

मृत्युशैया पर उसने िो तीन अंवतम इच्छाएं प्रकट की थीं, उसमें से एक में कहा गया था वक ‘अरब प्रायद्वीप में इन दो धमों को नहीं
वदया िाना चावहए।’ एक हदीस में इसकी पुवष्ट होती हैः ‘उमर अल-खत्ाब द्वारा यह बताया गया है वक उसने अल्लाह के रसूल को
कहते सुना: ‘मैं अरब प्रायद्वीप से यहवदयों और ईसाइयों को खदे ड़ दूंगा, मुसलमानों को छोड़कर वकसी को नहीं रहने दूंगा’’
[मुस्लस्लम 19:4366]।’’

तद्नुसार खलीफा उमर ने अरब प्रायद्वीप से यहवदयों और ईसाइयों का सफाया कर वदया [बुखारी 3:39:53]।

इसजलये इस्लाम बहुदे र्र्ावदयों (इस्लाम को न मानने र्ाले अ-ईसाई र् अ-यहदी लोगों, मूवतवपूिकों, कावफरों, िीर्र्ावदयों
और नास्लस्तकों आवद) को इस्लाम में धमाांतररत होने अथर्ा मृत्यु में से एक वर्कल्प देता है , िबवक ईसाइयों र् यहवदयों को
अपमावनत र् भयानक शोषण वकये िाने योग्य अमानर्ीय समुदाय बना दे ने का प्रार्धान वकया गया है। यह ध्यान वदये िाने योग्य
है वक मुहम्मद के समय वर्श्व की बड़ी िनसं ख्या उन बहुदे र्र्ावदयों की थी, िो भारत, चीन, दजिण र् उत्री अमरीका एर्ं अफ्रीका
में रहते थे। प्राचीन काल से ही उन्ीं बहुदे र्र्ादी लोगों और उल्लेखनीय रूप से भारत र् चीन में रहने र्ाले लोगों ने ही मूल्यर्ान र्
रचनात्मक सभ्यता को िन्म वदया था। इस्लामी धमवशास्त्र ने एक झटके में आदे श दे वदया वक उन बहुदेर्र्ावदयों को या तो बबवरता
से इस्लाम में धमाांतररत करा जलया िाए या वहंसक रूप से िहन्नुम में फेंक वदया िाए। वर्डम्बना देजखये वक इतनी उन्नत सभ्यता
र्ाले बहुदे र्र्ावदयों का बलपूर्वक धमाांतरण कराने अथर्ा उन्ें िहन्नुम में फेंकने का अजधकार उस अपेिाकृ त असभ्य र् वपछड़े
मुस्लस्लम समुदाय को वदया गया, जिनके पास उस समय तक उल्लेख करने योग्य कोई उपलस्लब्ध नहीं थी।

मुहम्मद का जिहाद और उसका पररणाम


रसूल मुहम्मद के जिहाद अथावत अल्लाह के उद्दे श्य में उसके सं घषव अथर्ा िं ग में प्रत्यि रूप से र्ो सब आते हैं , िो उसने
अरब के लोगों में इस्लाम का प्रसार करने और इस्लाम के भौगोजलक िेि का वर्स्तार करने कारवर्ाइयों र् कायव- शांवतपूणव, मनाने
र्ाला अथर्ा सैन्य- वकये थे। अपने पैगम्बरी वमशन के काल में, वर्शेष रूप से मदीना िाने के बाद िब इस्लाम के तत्व-रािनीवत में
जिहाद के जसद्ांत ने प्रर्ेश वकया, रसूल मुहम्मद ने अरब प्रायद्वीप में अपने अनुयावययों के छोटे से समूह को बड़ी र् ताकतर्र सैन्य
बल बना वदया था। अल्लाह के उद्दे श्यों के जलये उसने िो सं घषव वकया, उसका सबसे मूल्यर्ान उपहार मदीना के नर्िात खलीफत
के रूप में एक ताकतर्र इस्लामी राज्य की स्थापना के रूप में वमला। अपने पैगम्बरी व्यर्साय के युग -वनमावता चरण की अर्जध में
मुहम्मद ने प्रत्यि रूप से जिहादी कारवर्ाइयों के तीन बड़े आदशव बनाये, िो वनम्नजलजखत हैं:

1. कावफरों का बलपूर्वक धमाांतरण, वर्शेष रूप से बहुदे र्र्ावदयों का।


2. साम्राज्यर्ाद: इस्लामी शासन की स्थापना के जलये बहुदे र्र्ावदयों, यहवदयों और ईसाइयों की भूवम को िीतना।
3. दासप्रथा और दास-व्यापार: उदाहरण के जलये, बनू क़ु रैिा की जस्त्रयों और बच्चों को बलपूर्वक दास बनाना और रसूल
मुहम्मद द्वारा उनमें से कु छ को बेचना।

रसूल मुहम्मद ने अल्लाह के ईश्वरीय आदे शों के कठोर अनुपालन में जिहाद के इन प्रवतमानों (प्रोटोटाइपकल) को स्थावपत
वकया। मुहम्मद की मृत्यु के बाद उसके द्वारा स्थावपत मदीना खलीफत को प्रमोचन मं च (लांजचंग पैड) के रूप में प्रयोग करते हुए

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

इस्लामी पवर्ि फौजियों अथावत जिहावदयों ने इस्लाम के प्रसार और वर्श्व के दूर-कोनों में अपना रािनीवतक िेि बनाने के जलये अरब
से बाहर वनकल कर टू ट पड़े। इस्लामी प्रभुत्व के काल में अल्लाह-आदे जशत जिहाद के अजभयानों को आगे बढ़ाने में इन मुस्लस्लम
जिहावदयों ने सतकव तापूर्क
व जिहाद प्रवतमानों के इन तीन बड़े पैगम्बरी प्रवतदशव (मॉडल) को हबह उतारा।

रसूल मुहम्मद ने अपने अनुयावययों में इस्लाम के वहत में लड़ने के जलये इस प्रकार वनष्ठा र् साहस भरा था वक उसकी मृत्यु
के एक दशक के भीतर ही मुस्लस्लम जिहावदयों ने फारस के महान साम्राज्य को रौंद डाला, िबवक वर्श्व के सर्ावजधक ताकतर्र
बैिंटाइन साम्राज्य में स्थायी अवतक्मण वकया। उसकी मृत्यु के एक सदी के भीतर इस्लाम ने बर्ं डर की गवत से पूर्व के टर ास
ं ोजिआना
और जसंध (भारत) तक फैलते हुए, समूचे इजिप्ट और उत्री अफ्रीका को िीतते हुए और यूरोप के हृदय फ्रांस तक पहुंचते हुए वर्श्व
का सबसे बड़ा राज्य (खलीफत) बना डाला। बाद के कालखं डों में रसूल मुहम्मद द्वारा प्रारंभ की गयी जिहादी कारवर्ाइयों के तीन
मुख्य प्रवतमानात्मक प्रारूपों ने वकस प्रकार इस्लाम के इवतहास को प्रभावर्त वकया, उन पर हम आगामी अध्यायों में बात करेंगे।

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

अध्याय 4

इस्लाम का प्रसारः बलपूर्क


व या शांवतपूणव ढं ग से?

‘िब पवर्ि मास बीत िाएं , तो मूवतवपूिकों को िहां पाओ, र्हीं काट डालो, और उन्ें बं दी बनाओ और उन्ें घेरो और
घात लगाकर उनकी प्रतीिा करो, तब यवद र्े पिाताप करें और नमाि स्थावपत करें तथा िकात दें (अथावत र्े मुसलमान
बन िाएं ), तो मागव उनके जलये छोड़ दो; वनजित ही अल्लाह िमाशील, दया करने र्ाला है।’

-अल्लाह, कु रआन 9:5

‘जिहाद की बाध्यता का आधार मुस्लस्लम आवर्भावर् की सार्वभौवमकता है। अल्लाह की र्ाणी और अल्लाह के सं दे श
मानर्िावत के जलये हैं; जिन्ोंने इस्लाम स्वीकार वकया है, उनका कतवव्य है वक िो मुसलमान नहीं बने हैं, उनका
धमाांतरण कराने अथर्ा कम से कम उनको कु चल दे ने के जलये वबना रुके आगे बढ़ें (जिहाद करें)। यह कतवव्य समय या
स्थान की सीमा से परे है। जिहाद तब तक चलते रहना चावहए, िब तक वक सम्पूणव वर्श्व या तो इस्लामी मिहब को
स्वीकार न कर लें अथर्ा इस्लामी राज्य की सत्ा के अधीन न आ िाए।’

-बनावडव लुईस, द पॉलीवटकल लैंग्वि


े ऑफ इस्लाम, पृष्ठ 73

इस्लाम का प्रसार वहंसक था। इसके जलये पिाताप करने या िमा मांगने की प्रर्ृवत् वदख रही है, िबवक हमें इसके जलये
कोई पिाताप नहीं करना चावहए। क्ोंवक यह कु रआन के आदे शों में से एक है वक तुम्हें इस्लाम के प्रसार के जलये िं ग
अर्श्य करना चावहए।’

-डॉ अली ईस्सा उस्मान, इस्लामी वर्द्वान, वफजलस्तीनी समािशास्त्री और सं युि राष्टर ररलीफ
एं ड र्क्र्स एिेंसी ऑन एिूकेशन के परामशवदाता, द मुस्लस्लम माइं ड, पृष्ठ 94

इस्लाम के प्रसार के जलये आरं जभक िं गें

इ स्लाम का प्रसार वहंसा से हुआ या शांवतपूणव वमशनरी गवतवर्जधयों (दार्ा) से, यह वर्षय लं बे समय से गहन वर्मशव का वर्षय
रहा है और बीते कु छ दशकों में यह वर्मशव बहुत बढ़ा है। इस वर्षय पर इं टरनेट पर ढूं ढ़ने पर इस्लाम-समथवक लेखकों के बहुत
से लेख र् टीकाएं वमलती हैं, जिनमें इस्लाम के प्रसार में वहंसा के प्रयोग की बात को नकारा िाता है। यद्यवप रसूल मुहम्मद द्वारा
इस्लाम की स्थापना (िैसा वक पहले बताया िा चुका है है) और उसके बाद का इवतहास (इस पुस्तक में जिस पर बात की िाएगी)

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

ऐसे असं ख्य सं घषों र् िं गों से भरा पड़ा है , जिन्ोंने करोड़ों की सं ख्या में मानर् िीर्न को लील जलया है। इस वर्मशव पर आगे बढ़ने
से पूर्व आइए सबसे पहले इस्लाम की स्थापना के र्षों र् दशकों के रिरंजित इवतहास पर दृवष्ट डालते हैं।

प्रवतवष्ठत इस्लामी इवतहासकारों द्वारा जलखे गये रसूल मुहम्मद के आत्मर्ृत् में उसके दस र्षव के मदीना प्रर्ास के समय
उसके द्वारा वकये गये वर्फल या सफल हमलों, लूटपाट के अजभयानों र् िं गों को सूचीबद् वकया गया है। उनमें से सिह से उन्नतीस
हमलों र् लूटपाट के अजभयानों का नेतृत्व उसने स्वयं वकया था। नीचे उन बड़े अजभयानों और िं गों की सूची दी गयी है , जिसका
व्यविगत रूप से नेतृत्व मुहम्मद ने वकया था।

• 623 ईसर्ी- र्द्दन की िं ग


• 623 ईसर्ी- साफ्र्ान की िं ग
• 623 ईसर्ी- िुल अशीर की िं ग
• 624 ईसर्ी- नखला की िं ग
• 624 ईसर्ी- बद्र की िं ग
• 624 ईसर्ी- बनू साजलम की िं ग
• 624 ईसर्ी- ईद-उल-वफतर और िकात-उल-वफतर की िं ग
• 624 ईसर्ी- बनू क़ै नुक़ा की िं ग
• 624 ईसर्ी- सावर्क़ की िं ग
• 624 ईसर्ी- ग़तफान की िं ग
• 624 ईसर्ी- बहरान की िं ग
• 625 ईसर्ी- उहुद की िं ग
• 625 ईसर्ी- हुमरा-उल-असद की िं ग
• 625 ईसर्ी- र्द्दन की िं ग
• 625 ईसर्ी- बनू निीर की िं ग
• 625 ईसर्ी- िातूर-ररक़ा की िं ग
• 626 ईसर्ी- बद्रू-उखरा की िं ग
• 626 ईसर्ी- िुमतुल-िं दल की िं ग
• 626 ईसर्ी- बनू मुस्तलक़ वनकाह की िं ग
• 627 ईसर्ी- खं दक की िं ग
• 627 ईसर्ी- अिहाब की िं ग
• 627 ईसर्ी- बनू क़ु रैिा की िं ग
• 627 ईसर्ी- बनू लह्यान की िं ग
• 627 ईसर्ी- ग़ावहबा की िं ग

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इस्लामी जिहाद: बलपूर्वक धमाांतरण, साम्राज्यर्ाद और दासप्रथा की वर्रासत

• 627 ईसर्ी- खैबर की िं ग


• 628 ईसर्ी- हुदै वबया का अजभयान
• 630 ईसर्ी- मक्का की वर्िय
• 630 ईसर्ी- हुनसीन की िं ग
• 630 ईसर्ी- तबूक की िं ग

रसूल मुहम्मद की मृत्यु 632 ईसर्ी में हुई और उसका ससुर अबू बक् इस्लामी राज्य का प्रथम खलीफा बना। इस्लाम के
िेि के वर्स्तार और इस्लामी मिहब के प्रसार के उद्दे श्य से आक्ामक िं गें चलती रहींः

• 633 ईसर्ी- ओमान, हज्रामउत, किीमा, र्लािा, उल्लीस और अंबार की िं ग


• 634 ईसर्ी- बसरा, दमाकस और अिनावदन की िं ग

खलीफा अबू बक् की 634 ईसर्ी में कजथत रूप से हत्या कर दी गयी। रसूल का एक और ससुर और साथी उमर अल-
खत्ब दूसरा खलीफा बना। उसके वनदे शन में इस्लामी िेि के वर्स्तार का अजभयान वनरंतर रहाः

• 634 ईसर्ी- नमराक और सक़ीवतया की िं ग


• 635 ईसर्ी- विि, बुर्ैब, दमाकस और फहल की िं ग
• 636 ईसर्ी- यरमुक, क़दीजसया और मैदेन की िं ग
• 637 ईसर्ी- िलुना की िं ग
• 638 ईसर्ी- यरमुक की िं ग, येरूशरलम और ििीराह की िीत
• 639 ईसर्ी- खुइजिस्तान की िीत और इजिप्ट में आं दोलन
• 641 ईसर्ी- वनहार्ं द की िं ग
• 642 ईसर्ी- फारस में रे की िं ग
• 643 ईसर्ी- अिरबैिान की िीत
• 644 ईसर्ी- फासव और खारन की िीत

जिस खलीफा उमर ने इस्लामी राज्य के वर्स्तार में कें द्रीय भूवमका वनभायी थी, उसकी हत्या 644 में हो गयी। मुहम्मद
का साथी और दामाद उस्मान अगला खलीफा हुआ तथा वर्िय की श्रृंखला आगे बढ़ती रहीः

• 647 ईसर्ी- साइप्रस द्वीप की िीत


• 648 ईसर्ी- बैिेंटाइन के वर्रुद् अजभयान
• 651 ईसर्ी- बैिेंटाइन के वर्रुद् समुद्री िं ग
• 654 ईसर्ी- इस्लाम उत्री अफ्रीका में फैला

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