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प्रतिलेखन-69&70

उपाध्यक्ष महोदय, अगर भारत की आर्थिक व्यवस्था को हम दे खें तो यह कहने में


कोई त्रुटि नह ीं होगी कक कृषि उसका आधार है । ककसी भी दे श की सामाजिक और आर्थिक
शजतत उस दे श की भमू म की उत्पादन शजतत पर ननभिर रहा करती है . यटद भूमम की
उत्पादन शजतत में कोई कमी हो िाती है तो उस दे श की आर्थिक और सामाजिक जस्थनत
में भी कुछ पररवतिन आरीं भ हो िाता है । कृषि भारत के मिए एक आर्थिक व्यवस्था ह
नह ीं है , यह एक सींस्कृनत भी है। िो िोग आींदोिन में षवश्वास रखते हैं, इनको पता होगा
कक जितने भी आींदोिन इस दे श में होते हैं, वे समाि के नाम से, धमि के नाम से, िानत
के नाम से या रािनीनत के नाम से होते हैं। ऐसे आींदोिनों में कोई भी समाि शाममि हो,
िेककन कृषि समाि उसमें शाममि नह ीं होता है । उस आींदोिन के साथ कृषि समाि की
सहानभ
ु नू त भी नह ीं होती है । इसमिए यटद सभी बातों को ध्यान में रखकर हम दे खें तो
इस दे श के मिए आवश्यक यह होगा कक हमार सींस्कृनत की रक्षा के मिए और िीवन
प्रणाि की रक्षा के मिए और िीवन प्रणाि की रक्षा के मिए कृषि पर षवशेि ध्यान टदया
िाए।

कृषि के क्षेत्र में इस विि काफी प्रगनत हुई है । यटद आप 1801 से 1901 तक का काि दे खें
तो आप दे खेंगे कक हमारे दे श में 31 अकाि पडे जिनमें चार करोड िोग मरे । िेककन आि
हमारे खाद्य मींत्रािय ने एक सौ रुपये मन के भाव पर गेहूीं खर दकर एक भी आदमी को
मरने नह ीं टदया, इसके मिए हमारा खाद्य मींत्रािय बधाई का पात्र है।

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