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2.

बहु की विदा

लेखक परिचय :

विनोद रस्तोगी का जन्म 12 मई सन 1922 ई. को उत्तर प्रदे श के फर्रुखाबाद जजले में शमसाबाद
ग्राम में हुआ था। उनकी शशक्षा शमसाबाद फर्रुखाबाद और कन्नौज में हुई। हहन्दी विषय में एम.ए
करने के उपरान्त िह आकाशिाणी के इलाहाबाद केन्र में नाट्यननदे शक के पद पर कायु करने लगे।

उनके आठ उपन्यास एिं दो कविता संग्रह प्रकाशशत हो चुके हैं। "आजादी के बाद, बफु की मीनार,
गोपा का दान, फफसलन और पााँि भगीरथ के बेटे" यह उनके प्रकाशशत नाटक है ।

उनकी रचनाओं की भािभूशम सामाजजक है । उसमें आधुननक युग के बदलते पररिेश के संधात से
उत्पन्न प्रेम समस्या, नतलक-दहे ज़, रूहियों जैसे विषयों पर सुंदर एकांकी उनकी भाि-भूशम है । इनमें
िस्तु-योजना, िातािरण, पात्र सभी का संयोजन संतुशलत है ।

आधुननक एकांकीकारों में लेखक का प्रमुख स्थान है । सामाजजक जीिन की अनेक समस्याओं को िे
अपने एकांफकयों की विषय-िस्तु बनाते हैं। विशभन्न रे डियो रूपकों के लेखक विनोद रस्तोगी के एकांकी
अपनी शैली में सहज संप्रषणीय है । आधुननक जीिन की मानशसक कुण्ठाओं को भी उन्होंने अपने
एकांफकयों में स्थान हदया है । इस तरह से हमें ज्ञात होता है फक विनोद रस्तोगी का आधुननक हहन्दी
एकांकीकारों में विशशष्ट स्थान है ।

कहानी परिचय :

प्रस्तुत एकांकी में एकांकीकार विनोद रस्तोगी ने अपने समाज में फैले दहे ज़ प्रथा की ओर संकेत
फकया है । इस समस्या से हमारे सामाजजक जीिन को तहस-नहस कर रही है । इसमें एक धनी व्यापारी
अपनी बहु को इसशलए मायके नहीं भेजता क्योंफक उसके मायके िाले उनकी दहे ज़ की मााँग पूरी नहीं
कर सकते। रक्षाबंधन के अिसर पर मायके से आए बहु के भाई को िे खरी-खोटी भी सुनाते हैं। जैसा
व्यव्हार जीिन लाल अपनी बहु के साथ करते है उसी तरह का व्यव्हार उसकी पुत्री के ससुराल िाले
उसके साथ करते है । यह पररजस्थनत उनके सामने आने पर उसकी सोच बदल जाती है । इस िजह से
िह बहु को मायके जाने की अनुमनत दे ता है । एकांकी में बहु के रूप में कमला सुशील और शांत
महहला है । िह अपनी पीिा को पी जाती है ।

अपने समाज में दहे ज़ - प्रथा एक अशभशाप है । इस अशभशाप को खत्म करने के शलए मानिीय -
भािना में पररितुन लाना जर्ररी है ।
कहानी

पात्र - परिचय

जीिनलाल - एक धनी व्यापारी, अिस्था पचास िषु।

राजेश्िरी - जीिनलाल की पत्नी, अिस्था नियालीस िषु।

रमेश - जीिनलाल का पुत्र, अिस्था बाईस िषु।

कमला - रमेश की पत्नी, अिस्था उन्नीस िषु

प्रमोद - कमला का भाई, अिस्था तेईस िषु।

(कमरा आधुननक ढं ग से सजा है । सामने की ओर बाएाँ कोने में रे डियो और दाएाँ कोने में पुस्तकों का
रै क है । कमरे के बीच में सोफे-सैट है । िोटी गोलमेज पर सुन्दर फूलदान रखा है ।

कमरे में दो द्िार है । सामने िाला द्िार अन्दर जाने के शलए है और बाई ओर का द्िार बाहरी
बरामदे में खुलता है । दोनों पर पदे पिे हैं। दाई ओर खखड़की है जो खुली हुई है ।

पदाु उठने पर जीिनलाल खखड़की के समीप खड़े हुए हदखाई पड़ते है । िे बाहर की ओर दे ख रहे हैं।
आाँखों पर चश्मा हैं। भरे हुए चेहरे पर बड़ी - बड़ी मूाँिे है शसर गंजा है । धोती - कुताु पहने हैं। मुख
पर गंभीरता और समद्
ृ धध के धचह्न है ।

(उससे कुि दरू हटकर ही प्रमोद विनम्र भाि से खड़ा है । िह पें ट और बुशटु पहने है । चेहरे पर
ननराशाजनक / कर्रणा भाि है ।)

प्रमोद : (आगे बिकर धीमे स्िर में ) क्या ननणुय फकया आपने?

जीिनलाल : विदा नहीं होगी।

प्रमोद : लेफकन जरा सोधचए तो। यहद आपने विदा नहीं की तो बहन की क्या दशा होगी।

जीिनलाल : मैंने उसकी दशा का ठे का नहीं शलया है ।

प्रमोद : हर लड़की पहला सािन अपनी सखी सहे शलयों के साथ हाँस - खेलकर बबताने का
सपना दे खती है ।

जीिनलाल : जानता हूाँ।

(जीिनलाल सोफे पर बैठकर जमुहाई लेते हैं, मानो प्रमोद की बातों से ऊब रहे हो।)

प्रमोद : यह जानकार भी ...

जीिनलाल : अपना ननणुय सुना चक


ू ा हूाँ। विदा नहीं होगी।
प्रमोद : यहद मैं कमला को बबना शलए ही गया तो मााँ का ह्रदय टूट जायेगा।

जीिनलाल : मैं मजबूर हूाँ। अगर मााँ - बहन का इतना ही ख्याल था तो दहे ज़ पूरा क्यों नहीं
हदया?

प्रमोद : (दीन स्िर में ) अपनी सामर्धयु के अनुसार जजतना भी हो सका हमने दे हदया। फफर
भी अगर .....

जीिनलाल : (कड़े स्िर में ) अगर तुम्हारी सामर्धयु कम थी तो अपनी बराबरी का घर दे खते।
झोपिी में रहकर महल से नाता क्यों जोड़ा?

प्रमोद : (हाथ जोड़कर) जी .......

जीिनलाल : (उठकर आिेश में टहलते हुए) दे ना तो दरू , बारात की खानतर भी ठीक से नहीं की
गयी। मेरे नाम पर जो धब्बा लगा, मेरी शान को जो ठे स पहुाँची, भरी बबरादरी में
जो हाँसी हुई, उस करारी चोट का घाि आज भी हरा है। जाओ, कह दे ना अपनी मााँ
से फक अगर बेटी विदा करना चाहती है तो पहले उस घाि के शलए मरहम भेजें।

प्रमोद : जी ....... आप इस समय तो विदा कर दें । हम गौने में आपकी हर मााँग को पूरी
करने की चेष्टा करें गे।

जीिनलाल : मैंने दनु नया दे खी है , प्रमोद! ये बाल धुप में सफ़ेद नहीं हुए है । और तुम .......
(उत्तेजजत स्िर में ) कल के िोकरे मुझे बनाना चाहते हो।

प्रमोद : यह आप क्या कह रहें है ?

जीिनलाल : ठीक कह रहा हूाँ। मेरा फैसला आखखरी है । विदा तभी होगी जब पााँच हजार नगद
(दायााँ हाथ फैलाकर) इस हाथ पर रख दोगे।

प्रमोद : (आिेश में ) यह तो सरासर अन्याय है , शशकायत आपको हम से है । उस भोली


भाली लड़की ने आपका क्या बबगाड़ा है । जो विदा न करके आप उससे बदला ले रहे
है ? अगर रमेश बाबू होते ......

जीिनलाल : तो िह क्या कर लेता? मेरे सामने माँुह खोलने की हहम्मत नहीं है उसमें । िह मेरा
बेटा है । तुम्हारी तरह बड़ों के मुाँह लगने की बदतमीजी करने िाला कोई आिारा
िोकरा नहीं है ।

प्रमोद : (अपमान से नतलशमलाकर) बाबूजी? बेटीिाला समझकर ही आप मेरा अपमान कर


रहे है । फकन्तु ....... फकन्तु यह न भूशलए के आप भी बेटी िाले है ।

जीिनलाल : हााँ, हम भी बेटी िाले है । लेफकन तुम्हारी तरह नहीं। वपिले महीने हमने अपनी बेटी
गौरी की शादी की है । िह खानतदारी की फक बारात िाले दं ग रह गए। इतना दहे ज़
हदया फक दे खने िालो ने दााँतो तले अाँगुली दिा ली। (ददु-शमधित आिेश) तुम मेरी
बराबरी करोगे? हााँ ........ बेटी िाले ....... ! बेटी िाले होकर हमारी मूाँि ऊाँची है ।
समझे!

प्रमोद : जी ........

जीिनलाल : रमेश गया है गौरी को विदा कराने। (कलाई पर बाँधी घिी दे खकर) कुि दे र में उसे
लेकर आता ही होगा। मेरी बेटी पहला सािन यहााँ बबताएगी। तुम्हारी बहन के सपने
कभी पुरे नहीं होंगे और उसे सपनों के खून का दाग तुम्हारे हाथों और तुम्हारी मााँ
के आाँचल पर होगा। समझे .........!

प्रमोद : (व्यंग्य से) जो हमारी बहन है क्या िह आपकी कोई नहीं है ?

जीिनलाल : (तेजी से) बेटी और बहू को एक तराजू पर तौलना चाहते हो? बेटी-बेटी है और बह-
बहू।

प्रमोद : ठीक है । अब आप अपनी जजद पर अड़े है तो विनती करना व्यथु है । (रूककर धीमे
स्िर में) क्या जाने से पहले एक बार बहन से शमल सकता हूाँ।

जीिनलाल : जरूर। और हााँ, उसे यह भी बताते जाना फक अगली बार मेरे शलए मरहम लेकर
विदा कराने कब आओगे। (ऊाँचे स्िर में) अरे , सुनती हो, गौरी की मााँ। जरा बहू को
भेज दो। अपने भाई से शमल ले आकर। (सहज स्िर में ) में तब तक दे खूाँ फक माली
के बच्चे ने झूला िाला या नहीं? (द्िार की ओर बिते है : द्िार का पदाु हटाकर
मुड़ते हुए) गौरी के शलए झल
ू ा िाल रहा हूाँ, लान में ।

(जीिनलाल का प्रस्थान। प्रमोद थका - सा सोफे पर बैठ जाता है । अन्दर से कमला


आती है । चााँद से सुन्दर मुखड़े पर उदासी की घटा है । हाथों में लाल चडू ड़यााँ है ।
रे शमी साड़ी-ब्लाउज पहने है । प्रमोद के पास जाकर चप
ु चाप खड़ी हो जाती है - शसर
नीचा फकए है ।)

प्रमोद : (भारी स्िर में ) बैठ जाओ कमला।

(कमला पास ही बैठ जाती है )

प्रमोद : अच्िी तरह से तो हो?

(कमला शससकने लगती है ।)

प्रमोद : (आत्तु स्िर में ) पागल न बनो, कमला रोओ मत, मैं कहता हूाँ रोओ मत। इन
मोनतयों का मूल्य समझने िाला यहााँ कोई नहीं है । पानी में पत्थर नहीं वपघल
सकता।
कमला : (शससकती हुई) भइया। क्या .....

प्रमोद : घबराओ मत। मैं जल्दी ही फफर आऊाँगा और उस बार विदा अिश्य होगी, क्योंफक
में चोट का मरहम लेकर आऊाँगा।

कमला : (न समझने के ढं ग से) मरहम ....?

प्रमोद : हााँ, कमला? हमारे व्यिहार से बाबू जी के कलेजे में घाि हो गया है । उन्हें मरहम
चाहहए और उस मरहम की कीमत है पााँच हजार रूपये। (कमला चौंककर भाई की
ओर दे खती है ।)

प्रमोद : तुम धचंता न करो, कमला मरहम का प्रबंध हो जाएगा। इस धगरे हाल में भी मकान
सात-आठ हजार में बबक ही जाएगा।

कमला : (व्याकुलता पूणु आग्रह से) मेरी, विदा के शलए घर न बेचना, भइया आपको मेरे
सुख-सुहाग की सौगंध है ।

प्रमोद : यह क्या कह रही हो तुम? क्या तुम नहीं चाहती फक पहला सािन सखी सहेली के
साथ मााँ के घर बबताओ?

कमला : फकस लड़की की यह कामना नहीं होगी, भैया? लेफकन ...... लेफकन उस कामना की
पूनतु के शलए इतनी बड़ी कीमत चुकाना कहााँ तक ठीक है ....? साल - दो साल में
विमला का ब्याह भी आपको करना है । आिेश में आकर ........

प्रमोद : (बीच में ही) लेफकन तुम.......

कमला : मेरी धचंता आप न करें । सच, विदा न होने से मुझे जरा भी दुःु ख न होगा।

प्रमोद : कमला........

कमला : गौरी आ रही है । बहुत अच्िा स्िाभाि है उसका। हर समय हाँसती - ही रहती है ।
उसके साथ रहकर मुझे सखी सहे शलयों की कमी बबलकुल नहीं अखरे गी। आप
विश्िास करें , भैया।

प्रमोद : लेफकन आज नहीं तो कल र्रपया तो दे ना ही पड़ेगा, कमला कागज के दो टुकड़ों पर


अपना स्नेह और प्यार बेचने िालों के बीच तुम इस तरह कब तक रह सकोगी।

कमला : धीरे -धीरे सब ठीक हो जाएगा, भैया। मााँ जी ममता की मूनतु हैं ही, बाबूजी जरा
जजद्दी स्िाभाि के हैं। समय के साथ िह भी सब भूल जाएाँगे।

प्रमोद : मुझे तो ऐसा नहीं लगता। सब एक ही धातु के बने है । हो सकता है , मााँ जी की


ममता शसफु हदखािा है ।

(अंदर से राजेश्िरी का प्रिेश। गोरा रं ग, स्िस्थ शरीर। सफ़ेद साड़ी और ब्लाउज पहने है ।)
राजेश्िरी : कैसा हदखािा, भैया?

(प्रमोद चौक पड़ता है । कमला और प्रमोद उठने का उपक्रम करते है ।)

राजेश्िरी : (दस
ू रे कोच पर बैठती हुई) बैठे रहे तुम लोग। (हाँसकर) क्या बात हो रही थी, भाई
-बहन में ?

प्रमोद : बस, कुशल क्षेम पूि रहा था।

राजेश्िरी : हााँ, विदा के शलए क्या कहा उन्होंने......?

(प्रमोद मौन रहता है । कमला दृष्टी नीची कर लेती है ।)

राजेश्िरी : समझ गई, अपनी जजद के आगे तो िे फकसी की सुनते ही नहीं। जब तुम्हारी
धचट्ठी आई थी तभी मना कर रहे थे। मैं तो समझाते-समझाते हार गई। क्या
कहा उन्होंने?

(प्रमोद अब भी मौन है ।)

राजेश्िरी : मुझसे शमु कैसी ......? मेरे शलए जैसा रमेश िैसे ही तुम। बोलो, फकतना र्रपया
चाहते है िे?

प्रमोद : जी ....... जी ....... रूपये की तो कोई बात नहीं हुई। िे तो.......

राजेश्िरी : (बीच में ही) मााँ से झूठ बोलते हो। मैं उन्हें अच्िी तरह जानती हूाँ इंसान से ज्यादा
प्यारा उन्हें पैसा है ।

प्रमोद : जी ........ आप ........

राजेश्िरी : (प्रमोद की ओर गि
ू दृष्टी से दे खती हुई) बोली, फकतना र्रपया लेकर िे विदा करने
को तैयार है ? चप
ु क्यों हो? बताओ।

प्रमोद : (धीमे और उदास स्िर में) पााँच हजार।

राजेश्िरी : बस! मैं दे ती हूाँ तुम्हें रूपये। उनके मुाँह पर मारकर कहना फक यह लो कागज के रं ग
- बबरं गे टुकड़े जजन्हें तम
ु आदमी से ज्यादा प्यार करते हो। (उठकर सामने िाले
द्िार की ओर बिती हुई) मैं अभी लाती हूाँ।

प्रमोद : (उठकर) ठहररए मााँजी।

(राजेश्िरी र्रक जाती है और मुड़कर प्रमोद की ओर दे खती है ।)

प्रमोद : मुझे रूपये नहीं चाहहए मैं बबना विदा कराए जा रहा हूाँ।

कमला : (कमला उसी प्रकार मूनतुित बैठी है ।)


राजेश्िरी : (लौटती हुई) यह क्या कर रहे हो, बेटा? मेरे रहते विदा न हो यह कभी नहीं हो
सकता। मैं मााँ हूाँ, मााँ के हदल को समझती हूाँ (भारी स्िर में ) जजस तरह उतािली
होकर मैं गौरी की राह दे ख रही हूाँ उसी तरह तुम्हारी मााँ कमला की राह दे ख रही
होगी। नहीं विदा जरूर होगी। तुम अकेले नहीं जाओगे। (कमरे से कंु जजयों का गुच्िा
ननकालकर कमला की ओर बढाती हुई।) जा बेटी नतजोरी से रूपये ननकाल ला।

(कमला गुच्िा लेने के शलए हाथ आगे नहीं बढाती। प्रमोद खखड़की की ओर मंद गनत
से बिता है ।)

राजेश्िरी : जाती क्यों नहीं (गुच्िा कमला के हाथ में थमाती हुई) जल्दी कर।

(कमला उठकर मााँजी कहती है और फफर शससकने लगती है । राजेश्िरी 'मेरी बेटी'
कहकर उसे ह्रदय से लगा लेती है । प्रमोद खखड़की के बाहर की ओर दे खने लगता
है ।)

जीिनलाल : (बाहर से) अरे ! सुनती हो गौरी के आने का समय हो गया तुमने स्िागत की कोई
तैयारी नहीं की।

राजेश्िरी : (कमला से) जा बेटी तू अंदर जा।

(कमला अंदर जाती है प्रमोद मुड़कर बाहर िाले द्िार की ओर दे खता है जजधर से
जीिनलाल आते है ।)

जीिनलाल : अरे ! तुम यहााँ खड़ी हो? जाकर तैयारी करो स्िागत की, जरा यह भी तो दे ख ले
फक नाक िाले अपनी बेटी का स्िागत कैसे करते है ?

राजेश्िरी : (धचिकर) कभी सीधी बात नहीं ननकलती मुाँह से? जब दे खो तब बेढंगी बातें ।

जीिनलाल : यह लो इसमें कौन-सी उलटी बात हैं?

राजेश्िरी : तुम समझते हो फक दनु नया में एक तुम ही नाक िाले हो, और सब नकटे है ।

जीिनलाल : तुम्हें तो मेरी हर बात में बुराई हदखाई दे ती है । प्रमोद तुम ही बताओ, मैंने कोई
बात कही है ।

प्रमोद : (धीरे - धीरे आगे बिता हुआ) ठीक ही कहा आपने, आज के योग में पैसा ही नाक
और माँूि है । जजनके पास पैसा नहीं िह नाक माँूि होते हुए भी नकटा है , माँूि कटा
है । (नेपर्धय से हानु का स्िर)

जीिनलाल : (प्रसन्न स्िर में ) आ गई मेरी गौरी राजेश्िरी अरे ! खड़ी-खड़ी मेरा माँुह क्या दे ख रही
हो अंदर से शमठाई का थाल लाओ (राजेश्िरी उसी प्रकार खड़ी रहती है । उसकी दृष्टी
बाहर िाले द्िार की ओर है । प्रमोद भी उसी ओर दे ख रहा है अंदर िाले द्िार के
पदे की ओट में कमला खड़ी है । बाहर से उसका हाथ हदखाई पि रहा है । जीिनलाल
बड़े उत्साह से द्िार की ओर बिते हैं तभी बाहर से रमेश आता है । इकहरे बदन का
सुन्दर नियि
ु क है िह पें ट और कमीज पहने है । हाथ में बरसाती कोट है । चेहरे पर
उदासी के धचह्न है । बरसाती कोट कोच पर रखकर चप
ु चाप खड़ा हो।)

जीिनलाल : (बाहर िाले द्िार का पदाु हटाकर) बाहर झााँकने के बाद घबराएाँ हुए स्िर में गौरी
कहााँ है ?

रमेश : (धीमे स्िर में ) िह नहीं आई।

जीिनलाल : नहीं आई। क्यों तबबयत तो ठीक है ?

रमेश : जी हााँ।

जीिनलाल : फफर?

रमेश : उन्होंने विदा नहीं की।

(राजेश्िरी हतप्रभ सी कोच पर बैठ जाती है । कमला के हाथ में कंपन होता है जजससे
पदाु भी हहल जाता है । प्रमोद बड़े र्धयान से जीिनलाल की ओर दे ख रहा है ।)

जीिनलाल : (जैसे फकसी ने िाती पर घस


ूाँ ा मार हदया हो।) विदा नहीं की! क्यों नहीं की विदा?

रमेश : कह रहे थे दहे ज़ पूरा नहीं हदया गया।

जीिनलाल : (बबगड़कर) हमने जीिन भर की कमाई दे दी है और उनकी नजर में दहे ज़ पूरा नहीं
हदया गया। लोभी कहीं के।

राजेश्िरी : (उठकर) उन्हें क्यों भला बुरा कह रहे हो। बेटी िाले चाहे अपना घरद्िार बेचकर दे
दें पर बेटे िालों की नाक भौंह शसकुड़ी ही रहती है ।

जीिनलाल : मगर शराफत और इन्साननयत ......

राजेश्िरी : (बीच में ही) अब शराफत और इन्साननयत की दह


ु ाई दे ते हो। कुि दे र पहले तो।

जीिनलाल : चप
ु रहो तम
ु !

राजेश्िरी : बहुत चप
ु रही ! अब नहीं रहूाँगी। आखखर क्या कमी है बहू के दहे ज़ में मगर तुम हो
फक ......

जीिनलाल : (अनसुनी करके) मेरी बेटी की विदा न करके उन्होंने मेरा अपमान फकया है । मैं
......... मैं .......

राजेश्िरी : तुम भी तो फकसी बेटी की विदा न करके अपमान कर रहे हो फकसी का।
जीिनलाल : (चीखकर) गौरी की मााँ।

राजेश्िरी : अब भी आाँखें नहीं खुली? जो व्यिहार अपनी बेटी के शलए तुम दस


ू रों से चाहते हो
िही दस
ू रों की बेटी को दो जब तक बहू और बेटी को एक-सा नहीं समझोगे तो न
तुम्हें सुख शमलेगा और न ही शाजन्त। (जीिनलाल बैचेनी से इधर-उधर टहलते है िे
हाथ मल रहे ) फफर शसर नीचे झुका है प्रमोद रमेश के पास जाकर खड़ा हो जाता है ।

जीिनलाल : बहू और बेटी, बेटी और बहू अजीब उलझन है । कुि समझ में नहीं आता।

राजेश्िरी : अगर हर बेटे िाला यह याद रखे फक िह बेटी िाला भी है तो सब उलझनें सुलझ
जाएाँ।

जीिनलाल : (रूककर पत्नी की ओर दे खते हुए) ......... शायद तुम ठीक कहती हो।

प्रमोद : (आगे बिकर धीमे स्िर में ) अब मुझे बाबूजी आज्ञा दीजजए।

जीिनलाल : (चौंककर) ए ...।

प्रमोद : मेरी गािी का समय हो रहा है । मैं जा रहा हूाँ। (द्िार तक आता है फफर घूमकर) मैं
जल्दी ही आऊाँगा। विश्िास रखे इस बार आपकी चोट के शलए मरहम लाना भूलाँ ूगा
नहीं।

जीिनलाल : (दख
ु ी स्िर में ) ठहरों, प्रमोद! मुझे और लजज्जत न करो! बेटा मेरी चोट का इलाज
बेटी की ससुराल िालों ने दस
ू री चोट से कर हदया है ।

प्रमोद : (लौटता हुआ आश्चयु से) बाबू जी ......।

जीिनलाल : (ननुःश्िास िोड़कर) कभी-कभी चोट भी मरहम का काम कर जाती है बेटा (राजेश्िरी
की ओर मुड़कर) अरे खड़ी-खड़ी हमारा मुाँह क्या ताक रही हो, अंदर जाकर तैयारी
क्यों नहीं करती। बहु विदा नहीं करनी हैं क्या ....?

(कमला का हाथ पदे की ओट में हो जाता है । िह हषु के आाँसू पोंिती हुई शीघ्रता से
अंदर जाती है । रमेश प्रमोद मुस्कुरा कर एक दस
ू रे की ओर दे खते है । जीिनलाल
मंदगनत से आगे की ओर बिते है तभी धीरे - धीरे यिननका धगरती है ।)

शब्दार्थ :

समद्
ृ धध - सम्पन्न जजद्द - हठ
सामर्धयु - शजक्त, ताकत सखी - सहे ली
खानतरदारी - स्िागत सत्कार विदा - रिाना करना
मरहम - एक प्रकार की दिा अन्दर - भीतर
उपक्रम - प्रयास कंु जी – चाबी
भाषा अध्ययन :

1. ननम्नशलखखत शब्दों की ितुनी शुद्ध कीजजए -

1) दरद - ददु
2) हां - हााँ
3) बबननत - विनती
4) व्यरथ - व्यथु
5) फकमत - कीमत
6) सूहाग - सुहाग
7) भय्या - भैया
8) आंचल – आाँचल

2. ननम्नशलखखत शब्दों के हहन्दी मानक रूप शलखखए।

1) खयाल - ख्याल
2) बेिकंू फ - बेिकूफ
3) जादा - ज्यादा
4) तबबयत ् - तबबयत
5) नजर - नजर
6) शराफ़त - शराफत
7) इन्साननयत - इंसाननयत
8) जजद्द - जजद
9) खन
ू - खन

3. ननम्नशलखखत मुहािरों और लोकोजक्तयों को अपने िाक्यों में प्रयोग कीजजये -

1) हृदय टूटना -
िाक्य : िी राम िन-गमन का समाचार सुनकर कौशल्य का हृदय टूट गया।

2) नाक-भौं शसकोड़ना -
िाक्य : शसमा फकतना भी काम कर दे पर उसकी सास नाक-भौं शसकोड़ती रहती है ।

3) ठे स पहुाँचाना -
िाक्य : शशिानी 5 िीं कक्षा में फेल होने के कारण उसके माता-वपता के हृदय को बहुत ठे स पहुाँची।

4) दााँतों तले उाँ गली दबाना -


िाक्य : रानी पद्मािती की िीरता दे खकर सभी ने दााँतो तले उाँ गली दबा ली।

5) राह दे खना -
िाक्य : उषा मेले में खोये बेटी की अब तक राह दे ख रही है ।
6) नाक िाले होना -
िाक्य : आनंद साहब अपने को बहुत नाक िाला समझते थे।

7) बाल धप
ू में सफ़ेद होना -
िाक्य : अफसोस है फक तुम्हें इस उम्र में भी इन बातों की जानकारी नहीं है , तुमने क्या बाल धूप में
सफ़ेद फकये हैं?

8) झोंपड़ी में रहकर महलों से नाता जोड़ना -


िाक्य : झोपिी में रहकर महलों से नाता जोड़ना िैसा ही दष्ु कर कायु है , जैसे तलिार की धाि पर
चलना।

9) मूाँि ऊाँची होना -


िाक्य : केिल हदखािे से मूाँि ऊाँची नहीं रहती है उसके शलए अच्िा ितुन करना चाहहए।

4. ननम्नशलखखत शब्द युग्मों से पूणु पुनर्रक्त, अपूणु पुनर्रक्त, प्रनतर्धिनयात्मक और शभन्नाथुक शब्द
अलग-अलग कीजजए।

सखी - साहहशलयों, हाँस - खेलकर, मााँ - बहन, भोली - भाली, सात - आठ, सुख - सुहाग, हाँसती -
हाँसाती, भाई - बहन, समझाते - समझाते, रं ग - बबरं गे, घर - द्िार, इधर – उधर।

उत्ति : पूणु पुनर्रक्त - समझाते - समझाते, हाँसती - हाँसाती।

अपूणु पुनर्रक्त - भोली - भाली, रं ग - बबरं गे, इधर - उधर।

प्रनतर्धिनयात्मक - सखी - सहे शलयााँ, हाँस - खेलकर, सुख - सुहाग।

शभन्नाथुक - मााँ - बहन, सात - आठ, भाई - बहन, घर - द्िार।

5. ननम्नशलखखत शब्दों के विलोम शब्द शलखखए।

1) ननराशा - आशा
2) अपना - पराया
3) अन्याय - न्याय
4) सुन्दर - बदसूरत
ध्यान से पढ़िए :

एक बार मोहन इन्दौर गया। िहााँ िह सड़क पर धीरे -धीरे चल रहा था, तभी उसे पीिे से सुनो-सुनो
की पररधचत आिाज सुनाई दी। जब उसने मुड़कर दे खा तो उसे भोला-भाला सतीश पास आता हदखाई
हदया। इस भीड़-भाड़ िाले शहर में अचानक बहुत हदन का बबिड़ा शमत्र शमल जाने पर िह बहुत
प्रसन्न हुआ। भाग-दौड़ भरे िातािरण से िह दोनों एक चाय की दक
ू ान पर गए। िहााँ उनहोंने चाय-
िाय ली तथा बीते हदनों की गप-शप करते हुए शहर में धूमने ननकल पड़े।

इस अनुच्िे द में रे खांफकत शब्दों पर र्धयान दीजजये। धीरे -धीरे , सुनो-सुनो - पूणु पुनर्रक्त शब्द है भीड़-
भाड़, भोला-भाला, भाग-दौड़, गप-शप, अपूणु पुनर्रक्त और चाय-िाय - प्रनतर्धिन्यात्मक शब्द है ।

बोध प्रश्न :

(क) अति लघु उत्तिीय प्रश्न :

(1) 'बहू की विदा' एकांकी फकस समस्या पर आधाररत है ?


उत्ति : 'बहू की विदा' एकांकी समाज में फैली दहे ज की समस्या पर आधाररत है ।

(2) प्रमोद अपनी बहन की विदा क्यों कराना चाहता था?


उत्ति : प्रमोद अपनी बहहन की विदा इसशलए कराना चाहता था जजससे िह अपनी शादी के पश्चात ्
पड़ने िाले पहले सािन को अपने मायके में बबता सके।

(3) जीिनलाल ने कमला को विदा करने से क्यों मना कर हदया?


उत्ति : जीिनलाल के कमला को विदा करने से इसशलए मना कर हदया था क्योंफक कमला के वपता ने
शादी में उनके स्तर के अनुरूप दहे ज हदया था।

(4) 'बहु की विदा' पाठ में कौन-से उत्सि की चचाु फक है ?


उत्ति : 'बहु की विदा' पाठ में रक्षाबंधन उत्सि की चचाु फक है ।

(5) जीिनलाल की पत्नी फकसके प्रनत आत्मीय भाि रखती है ?


उत्ति : जीिनलाल की पत्नी अपने बहु के प्रनत आत्मीय भाि रखती है ।

(6) जीिनलाल फकसको खरी-खोटी सुनाता है ?


उत्ति : जीिनलाल मायके से आए बहु के भाई को खरी-खोटी सुनाता है ।

(7) जीिनलाल का हृदय पररितुन कब होता है ?


उत्ति : जीिनलाल की पुत्री को दहे ज़ की मााँग के िजह से उसके ससुराल िाले मायके नहीं भेजते हैं
तथा उनका बेटा बबना बहहन के घर लौटता है । यह सब दे ख जीिनलाल को अपनी गलती का एहसास
हो जाता है , जजससे जीिनलाल का हृदय पररितुन हो जाता है ।
(ख) लघु उत्तिीय प्रश्न :

(1) 'बेटी िाले होकर हमारी मूाँिे ऊाँची हैं' इस कथन का क्या अशभप्राय है ?
उत्ति : इस कथन का अशभप्राय यह है फक हमने अथाुत ् जीिनलाल ने तो अपनी बेटी की शादी में
भरपूर दहे ज हदया था अतुः हमें ससुराल िालों के सामने झुकने की कोई आिश्यकता नहीं है अथाुत ्
हमारी मूाँि ऊाँची है हम उनसे दबकर नहीं रह सकते।

(2) प्रमोद अपना घर क्यों बेचना चाहता था?


उत्ति : प्रमोद अपना घर जीिनलाल की इच्िा पूनतु अथाुत ् दहे ज के शलए पााँच हजार र्रपये जट
ु ाने के
शलए बेचना चाहता था।

(3) राजेश्िरी ने बहू की विदा करिाने के शलए क्या उपाय फकया?


उत्ति : राजेश्िरी को जब यह बात ज्ञात हुई फक उसका पनत कमला की विदाई के बदले में पााँच हजार
र्रपये मााँग रहा है तो िह अपने पास से पााँच हजार र्रपये दे कर जीिनलाल के मुाँह पर मारने की बात
कहती है ।

(4) जीिनलाल का अहं कारी चररत्र िणुन कीजजए ?


उत्ति : 'बहु की विदा' के रचनाकार िी विनोद रस्तोगी हैं। इसमें जीिनलाल एक अहं कारी व्यजक्त है ।
कम दहे ज़ शमलने पर िह प्रमोद का अपमान करता है और अपनी बेटी में हदए दहे ज़ की िींगें मारता
है और िह यहााँ तक कह दे ता है फक मैं बेटी िाला होकर भी अपनी मूाँिे ऊाँची रखता हूाँ। इस तरह
जीिनलाल का अहं कारी चररत्र हदखाई दे ता है ।

(5) पाठ में राजेश्िरी का दहे ज़ विरोधी स्िभाि फकस तरह से दशाुया है ?
उत्ति : पाठ में राजेश्िरी एक ममतामय मााँ है । िह प्रारम्भ से ही दहे ज़ विरोधी है । उसकी मान्यता है
फक बेटी िाला फकतना भी दहे ज़ दे पर बेटे िाले कभी सन्तुष्ट नहीं होते। बेटी गौरी के विदा न होने
पर जब जीिनलाल को गहरा आघात पहुाँचता है तब भी िह यही कहती है फक "बेटी िाले चाहे अपना
घर-द्िार बेचकर दे दें पर बेटे िालों की नाक-भौंह शसकुड़ी रहती है ।" इस समस्या के समाधान के
शलए िह कहती है फक यहद सब बेटे िाले यह र्धयान रखें फक बे बेटी िाले भी हैं तो सब उलझनें दरू
हो जाएाँ। इस कथन से राजेश्िरी का दहे ज़ विरोधी स्िभाि हदखाई दे ता है ।

(ग) दीघथ उत्तिीय प्रश्न :

(1) 'बहू की विदा' एकांकी की कथािस्तु अपने शब्दों में शलखखए।

(2) जीिनलाल का चररत्र-धचत्रण कीजजए।

(3) फकस घटना ने जीिनलाल का हृदय पररिनतुत कर हदया? स्पष्ट कीजजए।

(4) राजेश्िरी के चररत्र की विशेषताओं पर प्रकाश िाशलए।

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