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2 - 1594972486 - Naath Samprdya P 15
2 - 1594972486 - Naath Samprdya P 15
" नाथ सम्प्रदाय " बौद्ध धम्प्म का ही एक अवैददक परिवर्ती शाखा है । बौद्ध धम्प्म के अनुसाि ही नाथ सम्प्रदाय को भी
परिवर्र्तिर्त ककया जा सकर्ता है । नाथ सम्प्रदाय में योगिर्नयों का भी समावेश था। १७वीीं शर्ताब्दी की इस गित्रकला में एक नाथ
योगिनी का गित्रण है ।
नेपाल स्थथर्त एक मत्सथयेन्द्रनाथ मस्न्द्दि जहााँ दहन्द्दू औि बौद्ध दोनों ही पूजा-अिाधना किर्ते हैं।
मध्ययुि में उत्सपन्द्न इस सम्प्रदाय में बौद्ध, शैव र्तथा योि की पिम्प्पिाओीं का समन्द्वय ददखायी दे र्ता
है। यह हठयोि की साधना पद्धर्र्त पि आधारिर्त पींथ है। शशव इस सम्प्रदाय के रथम िुरु एवीं आिाध्य
हैं। इसके अलावा इस सम्प्रदाय में अनेक िरु ु हुए स्जनमें िुरु मस्छिन्द्रनाथ /मत्सथयेन्द्रनाथ र्तथा
िुरु िोिखनाथ सवािगधक रशसद्ध हैं। नाथ सम्प्रदाय समथर्त दे श में बबखिा हुआ था। िरु ु िोिखनाथ
ने इस सम्प्रदाय के बबखिाव औि इस सम्प्रदाय की योि ववद्याओीं का एकत्रीकिण ककया, अर्तः इसके
सींथथापक िोिखनाथ माने जार्ते हैं। भािर्त में नाथ सम्प्रदाय को सन्द्यासी, योिी, जोिी, नाथ, अवधूर्त,
कौल, उपाध्याय (पस्चिम उत्ति रदे श में ), आदद नामों से जाना जार्ता है। इनके कुि िुरुओीं के शशष्य
मुसलमान, जैन, शसख औि बौद्ध धमि के भी थे। इस पींथ के लोिो को शशव का वींशज माना जार्ता
है ।
अनक्र
ु म
1जीवन शैली
2साधना-पद्धर्र्त
3िरु
ु पिम्प्पिा
o 3.1रािस्म्प्भक दस नाथ
4िौिासी शसद्ध एवीं नौ नाथ
5सन्द्यास दीक्षा
6इन्द्हें भी दे खें
7बाहिी कडड़यााँ
नाथ साधु-सन्द्र्त परिव्राजक होर्ते हैं। वे भिवा िीं ि के बबना शसले वथत्र धािण किर्ते हैं। ये योिी अपने
िले में काली ऊन का एक जनेऊ िखर्ते हैं स्जसे 'शसले' कहर्ते हैं। िले में एक सीींि की नादी िखर्ते हैं।
इन दोनों को 'सीींिी सेली' कहर्ते हैं। उनके एक हाथ में गिमटा, दस
ू िे हाथ में कमण्डल, दोनों कानों में
कुण्डल, कमि में कमिबन्द्ध होर्ता है। ये जटाधािी होर्ते हैं। नाथपन्द्थी भजन िार्ते हुए घूमर्ते हैं
औि शभक्षाटन कि जीवन यापन किर्ते हैं। उम्र के अींर्र्तम ििण में वे ककसी एक थथान पि रुककि
अखण्ड धूनी िमार्ते हैं। कुि नाथ साधक दहमालय की िुफाओीं में िले जार्ते हैं। इसके अलावा नाथ
सम्प्रदाय में िह
ृ थथ जोिी भी होर्ते है।
साधना-पद्धर्र्त[सींपाददर्त किें ]
नाथ सम्प्रदाय में सास्त्सवक भाव से शशव की भस्तर्त की जार्ती है। वे शशव को 'अलख' (अलक्ष) नाम से
सम्प्बोगधर्त किर्ते हैं। ये अशभवादन के शलए 'आदे श' या आदीश शब्द का रयोि किर्ते हैं। अलख औि
आदे श शब्द का अथि रणव या 'पिम पुरुष' होर्ता है। नाथ साधु-सन्द्र्त हठयोि पि ववशेष बल दे र्ते हैं।
िरु
ु पिम्प्पिा[सींपाददर्त किें ]
८वी सदी में ८४ शसद्धों के साथ बौद्ध धमि के वज्रयान की पिम्प्पिा का रिलन हुआ। ये सभी भी
नाथ ही थे। शसद्ध धमि की वज्रयान शाखा के अनुयायी शसद्ध कहलार्ते थे। उनमें से रमुख जो हुए
उनकी सींख्या िौिासी मानी िई है।
नौ नाथ िुरु
1. मछिें रनाथ
2. िोिखनाथ
3. जालींदिनाथ
4. नािेशनाथ
5. भर्तििीनाथ
6. िपिटीनाथ
7. कानीफनाथ
8. िहनीनाथ
9. िे वननाथ