Untitled 2.pages अन्न -दान

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अन्न - दान
बहुत समय पहले की बात है। कु रु- क्षेत्र में विजय के पश्चात युधिष्टिर राजा बने। कु छ दिनों के बाद बाद उन्होंने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति
पर एक नेवला वहाँ पर आया। उस नेवले का शरीर आधा सोने का था। वह यज्ञ की जगह पर इधर- उधर लोटता रहा। फिर उदास होकर वहाँ से जाने लगा।
इस पर युधिष्टिर ने उससे उदास होने का कारण पूछा। तब वह मनुष्यों की तरह बोलते हुए कहने लगा कि मैं एक गरीब परिवार के घर के पास रहता था।
उस परिवार में जो कु छ भी लोग कम कर लाते उसे आपस मैं मिल- बाँट कर खाते तथा उनके यहाँ यदि कोई मेहमान आ जाता तो सबसे पहले उसे खिला
कर तब वह परिवार खुद खाता। एक दिन बहुत कम कमाई हुई। जैसे ही वे थोड़ा सा आना पका कर खाने बैठे वैसे हाई उनके यहाँ मेहमान आ गए। उन्होंने
ख़ुशी- ख़ुशी मेहमान का सत्कार किया और सारा भोजन उन्हें खिला दिया। खाना खाका मेहमान चले गए और वह समूचा परिवार भूख के कारण मर गया।
अगले दिन जब मैं वहाँ पहुँचा तो जहां जूठन था वहाँ बैठा गया तो मेरा आधा शरीर सोने का हो गया और मैं मनुष्यों की आवाज़ मैं बोलने और समझने भी
लग गया।
मुझे एक ऋषि ने बताया की यह उस परिवार के पुण्य के कारण हुआ है। अगर वैसा ही पुण्य करने वाला कोई तुम्हें मिल जाए तो यम वहाँ जाकर लोटना
तो तुम्हारा बाक़ी शरीर भी सोने का हो जाएगा। मुझे पता चला कि यहाँ महाराजा बहुत बड़ा यज्ञ कर कर रहें हैं तो मैंने सोचा हो सकता है इस यज्ञ हे पुण्य
मैं पूरा सोने का बन जाऊँ गा। पर ऐसा हो ना पाया इसलिए मैं उदास हूँ। इस पर सभा मैं मौजूद सभी ज्ञानी लोगों ने कहा कि अन्नदान और त्याग से बड़ा
कोई यज्ञ नहीं है।

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