रसखान के सवैये

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ऐमिटी इंटरनैशनल स्कूल

कक्षा - आठ

विषय - हिन्दी

उप विषय - रसखान के सिैये


आज का सवु िचार

सफलता हाथों की लकीरों में नह ीं माथे के


पसीनों में ममलती है ।
पिला सिैया—

धूरर भरे अति शोमभि श्याि जू, िैसी बनी मसर सुन्दर टोटी
खेलि खाि फिरैं अँगना, पग पैंजतन बाजति पीरी कछौटी
िा छवि को रसखान बबलोकि, बारि काि कलातनधध कोटी
काग के भाग बडे सजनी, िरर िाथ सों ले गया िाखन रोटी
रसखान
रसखान क
के े सिै
सिैयये े का
का भािाथथ
भािाथथ –:-

श्री कृष्ण भगिान जी धूल से सने हुए आँगन में खेलते -खाते हुए भाग
रहे हैं । मसर पर सद
ींु र चोट बनी हुई है | उनकी माँ ने उनके पाँि में
जो पायल पहना रखी हैं , िे बज रह हैं | उन्होंने पीला पीताम्बर पहन
रखा है | रसखान जी कहते हैं कक िे कृष्ण जी की इस मनमोहक छवि
पर कामदे ि की करोड़ों–करोड़ों कलाएँ न्यौछािर करने के मलए तत्पर हैं|
रसखान जी कहते हैं कक ककतने भाग्य िाला है िह कौआ, जो श्री कृष्ण
जी के हाथ से माखन िाल रोट ले जाता है , क्योंकक िह तो साक्षात ्
हरर के हाथ से माखन-रोट स्िरूप प्रसाद पाकर धन्य हो गया है ,
जजसकी आकाींक्षा इस पथ् ृ िी पर बसे प्रत्येक मानि को है |
दस
ू रा सिैया—

या लकुटी अरु कािररया पर, राज तििूँ पुर को िजज डारौं


आठिुँ मसद्धध निौ तनधध कौ सख ु , नंद की धेनु टराय बबसारौं॥
नैनन सौं रसखातन सबै, ब्रज के बन - बाग िडाग तनिारौं
कोहटक िूँ कलधौि के धाि , करील के कंु जन ऊपर िारौं॥

रसखान के सिैये का भािाथथ :-

प्रस्तत
ु पींजक्तयों में कवि रसखान का भगिान श्री कृष्ण एिीं उनसे जड़ ु ी
िस्तुओीं के प्रतत बड़ा गहरा लगाि दे खने को ममलता है । िे कृष्ण की लाठी
और कींबल के मलए तीनों लोकों का राज-पाट तक छोड़ने के मलए तैयार हैं।
अगर उन्हें नन्द की गायों को चराने का मौका ममले, तो इसके मलए िो आठों
मसद्धधयों एिीं नौ तनधधयों के सख ु को भी त्याग सकते हैं। जब से कवि ने
ब्रज के िनों, बगीचों, तालाबों इत्यादद को दे खा है , िे इनसे दरू नह ीं रह पा
रहे हैं। जब से कवि ने कर ल की झाड़ड़यों और िन को दे खा है , िे इनके
ऊपर करोड़ों सोने के महल भी न्योछािर करने के मलए तैयार हैं।
िीसरा सिैया—
िानुष िौं िो ििी रसखातन, बसौं ब्रज गोकुल गाँि के ्िारन
जौ पसु िौं िो किा बसु िेरो, टरौं तनि नंद की धेनु िँझारन॥
पािन िौं िो ििी धगरर को, जो फकयौ िररछत्र परु ं दर- धारन
जौ खग िौं िो बसेरो करौं, मिमल कामलंदी- कूल कदं ब की डारन
रसखान के सिैये का भािाथथ :-
प्रस्तुत पींजक्तयों में कवि रसखान के श्री कृष्ण एिीं उनके गाँि गोकुल-ब्रज के
प्रतत लगाि का िणणन हुआ है । रसखान मानते हैं कक ब्रज के कण-कण में श्री
कृष्ण बसे हुए हैं। इसी िजह से िे अपने प्रत्येक जन्म में ब्रज की धरती पर
जन्म लेना चाहते हैं। अगर उनका जन्म मनुष्य के रूप में हो, तो िे गोकुल के
ग्िालों के बीच में जन्म लेना चाहते हैं। पशु के रूप में जन्म लेने पर, िे
गोकुल की गायों के साथ घूमना-कफरना चाहते हैं।
अगर िे पत्थर भी बनें, तो उसी गोिधणन पिणत का पत्थर बनना चाहते हैं,
जजसे श्री कृष्ण ने इन्र के प्रकोप से गोकुलिामसयों को बचाने के मलए अपनी
उँ गल पर उठाया था। अगर िे पक्षी भी बनें, तो िे यमुना के तट पर कदम्ब
के पेड़ों में रहने िाले पक्षक्षयों के साथ रहना चाहते हैं। इस प्रकार कवि चाहे
कोई भी जन्म लें , िे रहना ब्रज की भूमम पर ह चाहते हैं।
• पैंजतन - पैंजतन की आिाज मधरु लगती है ।

• काग - काग की िाणी ककणश होती है ।


तनम्नमलखखि प्रश्नों के उत्तर दीजजए -
िौखखक प्रश्नों के उत्तर —
क. कवि अगले जन्म में ग्िाले के रूप में िहाँ की गायों को
चराते हुए अपना जीिन बबताना चाहते हैं।

ख . कवि ब्रज की काँटेदार झाड़ड़यों ि ् कींु जों पर करोडों महलों के


सख
ु ों को भी न्यौछािर करने के मलए तैयार हैं।

ग. कवि नींद की गायों को चराने में आठ मसद्धध और नौ तनधधयों के


सुख को भूल जाना चाहते हैं ।

घ. कवि रसखान कौिे के भाग्य की सराहना इसमलए करते हैं


क्योंकक िह साक्षात ् हरर के हाथ से माखन-रोट स्िरूप प्रसाद
पाकर धन्य हो गया ।
मलखखि प्रश्नोत्तर

उत्तर - कवि रसखान मनुष्य पशु और पक्षी पक्षी और पत्थर तक ब्रज क्षेत्र
में बनना चाहता है इससे कवि रसखान की भगिान कृष्ण के प्रतत भजक्त के
अनन्य भाि की पजु ष्ट होती है । ब्रजभमू म के प्रतत कवि का प्रेम अनेक रूपों में
अमभव्यक्त हुआ है -
एक ओर जहाँ कवि को ब्रजभमू म से गहरा लगाि होने के कारण िे अगले
जन्म में ग्िाले के रूप में िहाँ की गायों को चराते हुए अपना जीिन बबताना
चाहते हैं। तो दसू र ओर ब्रजभमू म में रहने के मलए उन्हें पश,ु पक्षी और पत्थर
बनना भी स्िीकायण है । पशु का जन्म ममले तो िे नन्द की गायों के बीच
घूमकर ब्रज का आनींद प्राप्त करना चाहते हैं, पक्षी बनें तो कदम्ब के पेड़ पर
बैठकर कृष्ण की बाल ल लाओीं का आनींद उठाना चाहते हैं, और यदद पत्थर
भी बनें तो गोिधणन पिणत का क्योंकक उसे कृष्ण ने अपनी उँ गल पर उठाया
था। इस प्रकार हर एक रूप में िे ब्रजभमू म में ह रहना चाहते हैं।
मलखखि प्रश्न-
(2)कामदे ि सौंदयण के प्रततरूप हैं परीं तु कृष्ण के समान नह ीं , क्यों ? कवि को कृष्ण का
कौन सा रूप बहुत पसींद है ?

उत्तर -कामदे ि को सौंदयण का दे िता स्िीकार ककया जाता है ,परीं तु कवि रसखान के
अनस ु ार श्री कृष्ण का रूप कामदे ि से कई गन ु ा सद
ींु र है |जीिन की हर अिस्था
में चाहे िह बचपन हो अथिा यि ु ािस्था ,भगिान कृष्ण का स्िरूप मनोहार है |
उनका सौंदयण अद्वितीय तथा अनप ु म है |
कृष्ण का बाल रूप कवि रसखान को सबसे अधधक मनोहार लगता है ,
जजसमें िे पीले िस्त्र धारण ककए हुए हैं | उनके पैरों में बँधी पायल बज रह है ,
उनके मसर पर सद ींु र चोट सश
ु ोमभत हो रह है , धल ू उनके परू े शर र पर लगी
हुई है तथा िे घर के आँगन में माखन- रोट खाते हुए घम ू रहे हैं | कवि रसखान
कृष्ण के इस बाल रूप पर मग्ु ध हैं |
(3) तनम्नमलखखि पंजतियों का भाि स्पष्ट कीजजए -
क. पािन िौं िो ििी धगरर को, जो फकयौ िररछत्र परु ं दर- धारन

आशय - कृष्ण की ल ला- भमू म ब्रज के प्रतत अपना लगाि


प्रकट करते हुए कवि कहता है कक अगले जन्म में यदद मैं
पत्थर बनँू तो उसी गोिधणन पिणत का पत्थर बनना चाहता हूँ,
जजसे कृष्ण ने अपनी उँ गल पर उठाकर लोगों को इींर के
प्रकोप से बचाया था। इस प्रकार कवि चाहे कोई भी जन्म
लें, िो रहना ब्रज की भमू म पर ह चाहते हैं।
भाि स्पष्ट कीजजए –

(ख) कोहटक िूँ कलधौि के धाि करील के कंु जन ऊपर िारौं


आशय - उपयक् ुण त पींजक्तयों में कवि रसखान ब्रज की काँटेदार झाड़ड़यों को
सुींदर सोने के महलों और अट्टामलकाओीं से भी श्रेष्ठ और महान मानते हैं
और उसे ह पाना चाहते हैं, जजससे कृष्ण के प्रतत अपने प्रेम और तनष्ठा
को प्रकट कर सकें। कृष्ण से जड़ ु े स्थानों पर रहने से कवि को महलों में
रहने से ज्यादा सींतोष और शाींतत ममलती है ।

रसखान की इच्छा बस इतनी है कक यदद विधाता की इच्छा से


अगले जन्म में िह पत्थर भी बने तो उसी गोिधणन पिणत का, जजसे ब्रज
की रक्षा के मलए इन्र के कारण कृष्ण ने छतर की भाँतत उठा मलया था ।
तात्पयण यह है कक रसखान प्रत्येक जस्थतत में कृष्ण का तनकटतम सातनध्य
प्राप्त करना चाहते हैं।
(ग) िा छवि को रसखान बबलोकि, बारि काि कलातनधध कोटी
काग के भाग बडे सजनी, िरर िाथ सों ले गया िाखन रोटी

आशय - प्रथम पींजक्त में कवि कृष्ण के अनप ु म ि मनोहार रूप का िणणन करते हुए
कहते हैं कक िे कृष्ण के सौंदयण पर कामदे ि के सौंदयण को तथा उनकी करोड़ों कलाओीं
को न्यौछािर कर सकते हैं क्योंकक कृष्ण के सौंदयण की तल ु ना ककसी से नह ीं हो
सकती ।
दस
ू र पींजक्त में कवि काग अथाणत कौिे के भाग्य की सराहना करते हैं और कहते
हैं कक िह कौिा बड़े भाग्य िाला है , अत्यींत भाग्यशाल है क्योंकक उसने तो साक्षात,
हरर के हाथों से मक्खन तथा रोट के रूप में प्रसाद ग्रहण कर मलया है जजस की
कामना प्रत्येक व्यजक्त को होती है ।
उत्तर-
पसु – पशु
बसु – िश
पाहन – पत्थर
धारन – धारण
बन – िन
पीर – पील
कोट – कोदट
छबब - छवि

डारन
िारौं रोट
कछोट
बबसारौं
उत्तर-
िरर – शेरिरर, केिरर, िग
ृ राज, िग
ृ राज, िनराज, िग
ृ ेन्र, मसंि, केशरी, व्याघ्र, शादथ ल

कूल - फकनारा, िट, कगार, साहिल, िीर

पुरंदर -इंर, अिरपति, अिरनाथ, सुरपति, दे िपति, दे िराज, दे िेन्र, दे िेश, िेघराज

िडाग -सर, सरोिर, जलाशय, िालाब

धेनु – गौ, गऊ, सुरमभ, गैया, गौिािा, गाय

खग - पक्षी, खेटर, दविज, पिंग, पंछी, वििग, पररन्दा, शकुन्ि


उत्तर- सिैयों िें प्रयत
ु ि अलंकार यत
ु ि शब्द अनप्र
ु ास अलंकार यत
ु ि शब्द
तनम्नमलखखि िैं -

सोमभत स्याम जू ,खेलत खात ,हरर हाथ ,कोदटक हूँ कलधौत के धाम , कर ल के
कींु जन कामलींद –कूल , कदीं ब की , काम कला ,पग पैजतन ।
LAUGHTER EXERCISE
तनिाथत्री
पन
ू ि नेिरा

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