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पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्त में एक छोटी-सी नदी के श्चकनारे , पहाश्च़ियोों से श्चिरे हुए उस छोटे -से गााँ व पर, सन्ध्या

अपनी धाँ धली चादर डाल चकी थी। प्रेमकमारी वासदे व के श्चनश्चमत्त पीपल के नीचे दीपदान करने पहुाँ ची।
आयय-सोंस्कृश्चि में अश्वत्थ की वह मयाय दा अनायय-धमय के प्रचार के बाद भी उस प्रान्त में बची थी, श्चिसमें अश्वत्थ
चै त्य-वृक्ष या वासदे व का आवास समझकर पूश्चिि होिा था। मन्दिरोों के अभाव में िो बोश्चध-वृक्ष ही दे विा की
उपासना का स्थान था। उसी के पास ले खराम की बहुि परानी परचू न की दू कान और उसी से सटा हुआ
छोटा-सा िर था। बूढा ले खराम एक श्चदन िब 'रामा राम िै िै रामा' कहिा हुआ इस सोंसार से चला गया, िब
से वह दू कान बि थी। उसका पत्र निराम सरदार सन्तश्चसोंह के साथ िो़िोों के व्यापार के श्चलए यारकि गया
था। अभी उसके आने में श्चवलम्ब था। गााँ व में दस िरोों की बस्ती थी, श्चिसमें दो-चार खश्चत्रयोों के और एक िर
पन्दिि ले खराम श्चमसर का था। वहााँ के पठान भी शान्दन्तपूर्य व्यवसायी थे । इसीश्चलए विीररयोों के आक्रमर् से
वह गााँ व सदा सशङ्क रहिा था। गलमहम्मद खााँ -सत्तर वर्य का बूढा-उस गााँ व का मन्दखया-प्राय: अपनी
चारपाई पर अपनी चौपाल में प़िा हुआ काले -नीले पत्थरोों की श्चचकनी मश्चनयोों की माला अपनी लम्बी-लम्बी
उाँ गश्चलयोों में श्चिरािा हुआ श्चदखाई दे िा। कछ लोग अपने-अपने ऊाँट ले कर बश्चनि-व्यापार के श्चलए पास की
मन्दियोों में गये थे। ल़िके बन्दू कें श्चलये पहाश्च़ियोों के भीिर श्चशकार के श्चलए चले गये थे ।

पेे्रमकमारी दीप-दान और खीर की थाली वासदे व को चढाकर अभी नमस्कार कर रही थी श्चक नदी के
उिार में अपनी पिली-दबली काया में लडख़़िािा हुआ, एक थका हुआ मनष्य उसी पीपल के पास आकर
बैठ गया। उसने आियय से प्रेमकमारी को दे खा। उसके माँ ह से श्चनकल प़िा-''काश्चिर...!''

बन्दू क कन्धे पर रक्खे और हाथ में एक मरा हुआ पक्षी लटकाये वह दौ़ििा चला आ रहा था। पत्थरोों की
नकीली चट्टानें उसके पैर को छूिी ही न थीों। माँ ह से सीटी बि रही थी। वह था गलमहम्मद का सोलह बरस
का लडका अमीर खााँ ! उसने आिे ही कहा-''प्रेमकमारी, िू थाली उठाकर भागी क्ोों िा रही है ? मझे िो
आि खीर न्दखलाने के िू ने कह रक्खा था।''

''हााँ भाई अमीर! मैं अभी और ठहरिी; पर क्ा कर


ाँ , यह दे ख न, कौन आ गया है ! इसीश्चलए मैं िर िा रही
थी।''

अमीर ने आगन्तक को दे खा। उसे न िाने क्ोों क्रोध आ गया। उसने क़िे स्वर से पूछा-''िू कौन है ?''

''एक मसलमान''-उत्तर श्चमला।

अमीर ने उसकी ओर से माँ ह श्चिराकर कहा-''मालू म होिा है श्चक िू भी भू खा है। चल, िझे बाबा से कहकर
कछ खाने को श्चदलवा दू ाँ गा। हााँ , इस खीर में से िो िझे नहीों श्चमल सकिा। चल न वहीों, िहााँ आग िलिी
श्चदखाई दे रही है ।'' श्चिर उसने प्रेमकमारी से कहा-''िू मझे क्ोों नहीों दे िी? वह सब आ िायाँगे, िब िे री खीर
मझे थो़िी ही सी श्चमले गी।''

सीश्चटयोों के शब्द से वाय-मिल गूाँिने लगा था। नटखट अमीर का हृदय चञ्चल हो उठा। उसने ठनककर
कहा-''िू मे रे हाथ पर ही दे िी िा और मैं खािा िाऊाँ।''
प्रेमकमारी हाँ स प़िी। उसने खीर दी। अमीर ने उसे माँ ह से लगाया ही था श्चक नवागन्तक मसलमान श्चचल्ला
उठा। अमीर ने उसकी ओर अबकी बार ब़िे क्रोध से दे खा। श्चशकारी ल़िके पास आ गये थे । वे सब-के-सब
अमीर की िरह लम्बी-चौ़िी हश्चियोों वाले स्वस्थ, गोरे और स्फूश्चिय से भरे हुए थे । अमीर खीर माँ ह में डालिे हुए
न िाने क्ा कह उठा और ल़िके आगन्तक को िेरकर ख़िे हो गये। उससे कछ पूछने लगे। उधर अमीर ने
अपना हाथ बढाकर खीर मााँ गने का सोंकेि श्चकया। प्रेमकमारी हाँ सिी िािी थी और उसे खीर दे िी िािी थी।
िब भी अमीर उसे िरे रिे हुए अपनी आाँ खोों में और भी दे ने को कह रहा था। उसकी आाँ खोों में से अननय,
श्चवनय, हठ, स्नेह सभी िो मााँ ग रहे थे, श्चिर प्रेमकमारी सबके श्चलए एक-एक ग्रास क्ोों न दे िी? नटखट अमीर
एक आाँ ख से लडकोों को, दू सरी आाँ ख से प्रेमकमारी को उलझाये हुए खीर गटकिा िािा था। उधर वह
नवागन्तक मसलमान अपनी टू टी-िूटी पश्तो में ल़िके से 'काश्चिर' का प्रसाद खाने की अमीर की धृ ष्टिा का
श्चवरोध कर रहा था। वे आियय से उसकी बािें सन रहे थे। एक ने श्चचल्लाकर कहा-''अरे दे खो, अमीर िो सब
खीर खा गया।''

श्चिर सब ल़िके िूमकर अब पेे्रमकमारी को िेर कर ख़िे हो गये। वह सबके उिले -उिले हाथोों पर खीर
दे ने लगी। आगन्तक ने श्चिर श्चचल्लाकर कहा-क्ा िम सब मसलमान हो?''

लडकोों ने एक स्वर से कहा-''हााँ , पठान।''

''और उस काश्चिर की दी हुई....?''

''यह मे री प़िोश्चसन है !''-एक ने कहा।

''यह मे री बहन है ।'' दू सरे ने कहा।

''निराम बन्दू क बहुि अच्छी चलािा है ।''-िीसरे ने कहा।

''ये लोग कभी झूठ नहीों बोलिे ''-चौथे ने कहा।

''हमारे गााँ व के श्चलए इन लोगोों ने कई ल़िाइयााँ की है ।'' -पााँ चवें ने कहा।

''हम लोगोों को िो़िे पर चढाना निराम ने श्चसखलाया है । वह बहुि अच्छा सवार है ।''-छठे ने कहा।

''और निराम ही िो हम लोगोों को ग़ि न्दखलािा है ।''-सािवें ने कहा।

''िम चोर हो।''-यह कहकर लडकोों ने अपने-अपने हाथ की खीर खा डाली और प्रेमकमारी हाँ स प़िी। सन्ध्या
उस पीपल की िनी छाया में पञ्जीभू ि हो रही थी। पश्चक्षयोों का कोलाहल शान्त होने लगा था। प्रेमकमारी ने
सब लडकोों से िर चलने के श्चलए कहा, अमीर ने भी नवागन्तक से कहा-''िझे भू ख लगी हो, िो हम लोगोों के
साथ चल।'' श्चकन्त वह िो अपने हृदय के श्चवर् से छटपटा रहा था। श्चिसके श्चलए वह श्चहिरि करके भारि से
चला आया था, उस धमय का मसलमान-दे श में भी यह अपमान! वह उदास माँ ह से उसी अन्धकार में कट्टर
ददाय न्त विीररयोों के गााँ वोों की ओर चल प़िा।

2
निराम पूरा साढे छ: िट का बश्चलष्ठ यवक था। उसके मस्तक में केसर का टीका न लगा रहे , िो कलाह
और सलवार में वह सोलहोों आने पठान ही िाँचिा। छोटी-छोटी भू री मूाँछें ख़िी रहिी थीों। उसके हाथ में
को़िा रहना आवश्यक था। उसके मख पर सोंसार की प्रसन्न आकाों क्षा हाँ सी बनकर खेला करिी। प्रेमकमारी
उसके हृदय की प्रशान्त नीश्चलमा में उज्ज्वल बृहस्पश्चि ग्रह की िरह झलमलाया करिी थी। आि वह ब़िी
प्रसन्निा में अपने िर की ओर लौट रहा था। सन्तश्चसोंह के िो़िे अच्छे दामोों में श्चबके थे । उसे परस्कार भी
अच्छा श्चमला था। वह स्वयों अच्छा ि़िसवार था। उसने अपना िो़िा भी अश्चधक मू ल्य पाकर बेच श्चदया था।
रुपये पास में थे । वह एक ऊाँचे ऊाँट पर बैठा हुआ चला आ रहा था। उसके साथी लोग बीच की मिी में
रुक गये थे ; श्चकन्त काम हो िाने पर, उसे िो प्रेमकमारी को दे खने की धन सवार थी। ऊपर सूयय की श्चकरर्ें
झलमला रही थीों। बीह़ि पहा़िी पथ था। कोसोों िक कोई गााँ व नहीों था। उस श्चनियनिा में वह प्रसन्न होकर
गािा आ रहा था।

''वह पश्चथक कैसे रुकेगा, श्चिसके िर के श्चकवा़ि खले हैं और श्चिसकी प्रेममयी यविी स्त्री अपनी काली
आाँ खोों से पश्चि की प्रिीक्षा कर रही है ।''

''बादल बरसिे हैं , बरसने दो। आाँ धी उसके पथ में बाधा डालिी है। वह उ़ि िायगी। धू प पसीना बहाकर
उसे शीिल कर ले गा, वह िो िर की ओर आ रहा है। उन कोमल भि-लिाओों का श्चस्नग्ध आश्चलोंगन और
श्चनमय ल दलार प्यासे को श्चनझयर और बिीली रािोों की गमी है ।''

''पश्चथक! िू चल-चल, दे ख, िे री श्चप्रयिमा की सहि नशीली आाँ खे िे री प्रिीक्षा में िागिी हुई अश्चधक लाल हो
गयी हैं । उनमें आाँ सू की बूाँद न आने पावे।''

पहा़िी प्रान्त को कन्दिि करिा हुआ बन्दू क का शब्द प्रश्चिध्वश्चनि हुआ। निराम का श्चसर िूम प़िा। गोली
सरय से कान के पास से श्चनकल गयी। एक बार उसके माँ ह से श्चनकल प़िा-''विीरी!'' वह झक गया। गोश्चलयााँ
चल चकी थीों। सब खाली गयीों। निराम ने श्चसर उठाकर दे खा, पश्चिम की पहा़िी में झा़िोों के भीिर दो-िीन
श्चसर श्चदखायी प़िे । बन्दू क साधकर उसने गोली चला दी।

दोनोों िरि से गोश्चलयााँ चलीों। निराम की िााँ ि को छीलिी हुई एक गोली श्चनकल गयी। और सब बेकार
रहीों। उधर दो विीररयोों की मृ त्य हुई। िीसरा कछ भयभीि होकर भाग चला। िब निराम ने कहा-''निराम
को नहीों पहचानिा था? ले , िू भी कछ लेिा िा।'' उस विीरी के भी पैर में गोली लगी। वह बैठ गया। और
निराम अपने ऊाँट पर िर की ओर चला।

सलीम निराम के गााँ व से धमोन्माद के नशे में चू र इन्ीों सहधश्चमययोों में आकर श्चमल गया था। उसके भाग्य से
निराम की गोली उसे नहीों लगी। वह झाश्च़ियोों में श्चछप गया था। िायल विीरी ने उससे कहा-''िू परदे शी
भू खा बनकर इसके साथ िाकर िर दे ख आ। इसी नाले से उिर िा। वह िझे आगे श्चमल िायगा।'' सलीम
उधर ही चला।

निराम अब श्चनश्चिन्त होकर धीरे -धीरे िर की ओर बढ रहा था। सहसा उसे कराहने का शब्द सन प़िा।
उसने ऊाँट रोककर सलीम से पूछा-''क्ा है भाई? िू कौन है ?''

सलीम ने कहा-''भू खा परदे शी हाँ । चल भी नहीों सकिा। एक रोटी और दो िूाँट पानी!''


निराम ने ऊाँट बैठाकर उसे अच्छी िरह दे खिे हुए श्चिर पूछा-''िम यहााँ कैसे आ गये?''

''मैं श्चहन्दस्तान से श्चहिरि करके चला आया हाँ ।''

''अहो! भले आदमी, ऐसी बािोों से भी कोई अपना िर छो़ि दे िा है ? अच्छा, आओ, मे रे ऊाँट पर बैठ िाओ।''

सलीम बैठ गया। श्चदन ढलने लगा था। निराम के ऊाँट के गले के ब़िे -ब़िे िाँिर उस श्चनस्तब्ध शान्दन्त में
सिीविा उत्पन्न करिे हुए बि रहे थे । उल्लास से भरा हुआ निराम उसी की िाल पर कछ गनगनािा िा
रहा था। उधर सलीम कढकर मन-ही-मन भनभनािा िा रहा था; परन्त ऊाँट चपचाप अपना पथ अश्चिक्रमर्
कर रहा था। धीरे -धीरे बढऩेवाले अन्धकार में वह अपनी गश्चि से चल रहा था।

सलीम सोचिा था-'न हुआ पास में एक छरा, नहीों िो यहीों अपने साश्चथयोों का बदला चका ले िा!' श्चिर वह
अपनी मू खयिा पर झाँझलाकर श्चवचारने लगा-'पागल सलीम! िू उसके िर का पिा लगाने आया है न।' इसी
उधे ़िबन में कभी वह अपने को पक्का धाश्चमयक, कभी सत्य में श्चवश्वास करनेवाला, कभी शरर् दे नेवाले
सहधश्चमययोों का पक्षपािी बन रहा था। सहसा ऊाँट रुका और िर का श्चकवा़ि खल प़िा। भीिर से िलिे हुए
दीपक के प्रकाश के साथ एक सिर मख श्चदखायी प़िा। निराम ऊाँट बैठाकर उिर प़िा। उसने उल्लास
से कहा-''प्रेमो!'' प्रेमकमारी का गला भर आया था। श्चबना बोले ही उसने लपककर निराम के दोनोों हाथ
पक़ि श्चलये।

सलीम ने आियय से प्रेमा को दे खकर चीत्कार करना चाहा; पर वह सहसा रुक गया। उधर प्यार से प्रेमा के
कन्धोों को श्चहलािे हुए निराम ने उसका चौोंकना दे ख श्चलया।

निराम ने कहा-''प्रेमा! हम दोनोों के श्चलए रोश्चटयााँ चाश्चहए! यह एक भू खा परदे शी है । हााँ , पहले थो़िा-सा पानी
और एक कप़िा िो दे ना।''

प्रेमा ने चश्चकि होकर पूछा-''क्ोों?''

''योों ही कछ चम़िा श्चछल गया है। उसे बााँध लूाँ ?''

''अरे , िो क्ा कहीों ल़िाई भी हुई है ?''

''हााँ , िीन-चार विीरी श्चमल गये थे।''

''और यह?''-कहकर प्रेमा ने सलीम को दे खा। सलीम भय और क्रोध से सूख रहा था! िृर्ा से उसका मख
श्चववर्य हो रहा था।

''एक श्चहन्दू है ।'' निराम ने कहा।

''नहीों, मसलमान हाँ ।''

''ओहो, श्चहन्दस्तानी भाई! हम लोग श्चहन्दस्तान के रहने वालोों को श्चहन्दू ही सा दे खिे हैं । िम बरा न मानना।''-
कहिे हुए निराम ने उसका हाथ पक़ि श्चलया। वह झाँझला उठा और प्रेमकमारी हाँ स प़िी। आि की हाँ सी
कछ दू सरी थी। उसकी हाँ सी में हृदय की प्रसन्निा साकार थी। एक श्चदन और प्रेमा का मसकाना सलीम ने
दे खा था, िब िैसे उसमें स्नेह था। आि थी उसमें मादकिा, निराम के ऊपर अनराग की वर्ाय ! वह और भी
िल उठा। उसने कहा-''काश्चिर, क्ा यहााँ कोई मसलमान नहीों है ?''

''है िो, पर आि िो िमको मे रे ही यहााँ रहना होगा।'' दृढिा से निराम ने कहा।

सलीम सोच रहा था, िर दे खकर लौट आने की बाि! परन्त यह प्रेमा! ओह, श्चकिनी सिर! श्चकिना प्यार-
भरा हृदय! इिना सख! काश्चिर के पास यह श्चवभू श्चि! िो वह क्ोों न यहीों रहे ? अपने भाग्य की परीक्षा कर
दे खे!

सलीम वहीों खा-पीकर एक कोठरी में सो रहा और सपने दे खने लगा-उसके हाथ में रक्त से भरा हुआ छरा
है । निराम मरा प़िा है । विीररयोों का सरदार उसके ऊपर प्रसन्न है । लूट में पक़िी हुई प्रेमा उसे श्चमल रही
है । विीररयोों का बदला ले ने में उसने पूरी सहायिा की है। सलीम ने प्रेमा का हाथ पकडऩा चाहा। साथ ही
प्रेमा का भरपूर थप्प़ि उसके गाल पर प़िा। उसने श्चिलश्चमला कर आाँ खें खोल दी। सूयय की श्चकरर्ें उसकी
आाँ खोों में िसने लगीों।

बाहर अमीर श्चचलम भर रहा था। उसने कहा-''नि भाई, िू ने मे रे श्चलए पोस्तीन लाने के श्चलए कहा था। वह
कहााँ है ?'' वह उछल रहा था। उसका ऊधमी शरीर प्रसन्निा से नाच रहा था।

निराम मलायम बालोों वाली चम़िे की सदरी-श्चिस पर रे शमी सनहरा काम था-श्चलये हुए बाहर श्चनकला।
अमीर को पहना कर उसके गालोों पर चपि ि़ििे हुए कहा-''नटखट, ले , िू अभी छोटा ही रहा। मैं ने िो
समझा था श्चक िीन महीनोों में िू बहुि बढ गया होगा।''

वह पोस्तीन पहनकर उछलिा हुआ प्रेमा के पास चला गया। उसका नाचना दे खकर वह न्दखलन्दखला प़िी।
गलमहम्मद भी आ गया था। उसने पूछा-''निराम, िू अच्छी िरह रहा?''

''हााँ िी! यहीों आिे हुए कछ विीररयोों से सामना हो गया। दो को िो श्चठकाने लगा श्चदया। थो़िी-सी चोट मे रे
पैर में भी आ गयी।''

''विीरी!''-कहकर बूढा एक बार श्चचन्ता में प़ि गया। िब िक निराम ने उसके सामने रुपये की थै ली उलट
दी। बूढा अपने िो़िे का दाम सहे िने लगा।

प्रेमा ने कहा-''बाबा! िमने कछ और भी कहा था। वह िो नहीों आया!''

बूढा त्योरी बदलकर निराम को दे खने लगा। निराम ने कहा-''मझे िर में अस्तबल के श्चलए एक दालान
बनाना है । इसश्चलए बाश्चलयााँ नहीों ला सका।''

''नहीों निराम! िझको पेशावर श्चिर से िाना होगा। प्रेमा के श्चलए बाश्चलयााँ बनवा ला! िू अपनी बाि रखिा
है ।''

''अच्छा चाचा! अबकी बार िाऊाँगा, िो....ले ही आऊाँगा।''


श्चहिरिी सलीम आियय से उनकी बािें सन रहा था। सलीम िैसे पागल होने लगा था। मनष्यिा का एक पक्ष
वह भी है , िहााँ वर्य, धमय और दे श को भू लकर मनष्य, मनष्य के श्चलए प्यार करिा है । उसके भीिर की
कोमल भावना, शायरोों की प्रेम-कल्पना, चटकी ले ने लगी! वह प्रेम को 'काश्चिर' कहिा था। आि उसने
चपािी खािे हुए मन-ही-मन कहा-''बिे -काश्चिर!''

सलीम िमक्क़िी-िीवन की लालसाओों से सन्तप्त, व्यन्दक्तगि आवश्यकिाओों से असन्तष्ट यक्तप्रान्त का


मसलमान था। कछ-न-कछ करिे रहने का उसका स्वभाव था। िब वह चारोों ओर से असिल हो रहा था,
िभी िकी की सहानभू श्चि में श्चहिरि का आिोलन ख़िा हुआ था। सलीम भी उसी में िट प़िा। मसलमानी
दे शोों का आश्चिथ्य क़िवा होने का अनभव उसे अिगाश्चनस्तान में हुआ। वह भटकिा हुआ निराम के िर
पहुाँ चा था।

मन्दिम उत्कर्य का उबाल िब ठिा हो चला, िब उसके मन में एक स्वाथय पूर्य कोमल कल्पना का उदय
हुआ। वह सूिी कश्चवयोों-सा सौियोपासक बन गया। निराम के िर का काम करिा हुआ वह िीवन श्चबिाने
लगा। उसमें भी 'बिे -काश्चिर' को उसने अपनी सोंसार-यात्रा का चरम लक्ष्य बना श्चलया।

प्रेमा उससे साधारर्ि: हाँ सिी-बोलिी और काम के श्चलए कहिी। सलीम उसके श्चलए न्दखलौना था। दो मन दो
श्चवरुद्ध श्चदशाओों में चलकर भी श्चनयश्चि से बाध्य थे, एकत्र रहने के श्चलए।

अमीर ने एक श्चदन निराम से कहा-''उस पािी सलीम को अपने यहााँ से भगा दो क्ोोंश्चक उसके ऊपर सिे ह
करने का पूरा कारर् है ।''

निराम ने हाँ सकर कहा-''भाई अमीर! वह परदे श में श्चबना सहारे आया है । उसके ऊपर सबको दया करनी
चाश्चहए।''

अमीर के श्चनष्कपट हृदय में यह बाि न िाँची। वह रठ गया। िब भी निराम ने सलीम को अपने यहााँ रहने
श्चदया।

सलीम अब कभी-कभी दू र-दू र िूमने के श्चलए भी चला िािा। उसके हृदय में सौियय के कारर् िो श्चस्नग्धिा
आ गयी थी, वह लालसा में पररर्ि होने लगी। प्रश्चिश्चक्रया आरम्भ हुई। एक श्चदन उसे लाँ ग़िा विीरी श्चमला।
सलीम की उससे कछ बािें हुई। वह श्चिर से कट्टर मसलमान हो उठा। धमय की प्रेरर्ा से नहीों, लालसा की
ज्वाला से!

वह राि ब़िी भयानक थी। कछ बूाँदें प़ि रही थीों। सलीम अभी सशोंक होकर िाग रहा था। उसकी आाँ खें
भश्चवष्य का दृश्य दे ख रही थीों। िो़िोों के पद-शब्द धीरे -धीरे उस श्चनियनिा को भे दकर समीप आ रहे थे ।
सलीम ने श्चकवा़ि खोलकर बाहर झााँ का। अाँधेरी उसके कलर्-सी िैल रही थी। वह ठठाकर हाँ स प़िा।

भीिर निराम और प्रेमा का स्नेहालाप बि हो चका था। दोनोों िन्द्रालस हो रहे थे । सहसा गोश्चलयोों की
क़िक़िाहट सन प़िी। सारे गााँ व में आिों क िैल गया।

''विीरी! विीरी!''
उन दस िरोों में िो भी कोई अस्त्र चला सकिा था, बाहर श्चनकल प़िा। अस्सी विीररयोों का दल चारोों ओर से
गााँ व को िेरे में करके भीर्र् गोश्चलयोों की बौछार कर रहा था।

अमीर और निराम बगल में ख़िे होकर गोली चला रहे थे । कारिू सोों की परिल्ली उनके कन्धोों पर थी।
निराम और अमीर दोनोों के श्चनशाने अचू क थे । अमीर ने दे खा श्चक सलीम पागलोों-सा िर में िसा िा रहा है।
वह भी भरी गोली चलाकर उसके पीछे निराम के िर में िसा। बीसोों विीरी मारे िा चके थे । गााँ ववाले भी
िायल और मृ िक हो रहे थे। उधर निराम की मार से विीररयोों ने मोरचा छो़ि श्चदया था। सब भागने की धन
में थे । सहसा िर में से श्चचल्लाहट सनाई प़िी।

निराम भीिर चला गया। उसने दे खा; प्रेमा के बाल खले हैं । उसके हाथ में रक्त से रश्चञ्जि एक छरा है । एक
विीरी वहीों िायल प़िा है । और अमीर सलीम की छािी पर चढा हुआ कमर से छरा श्चनकाल रहा है ।
निराम ने कहा-''यह क्ा है , अमीर?''

''चप रहो भाई! इस पािी को पहले ....।''

''ठहरो अमीर! यह हम लोगोों का शरर्ागि है ।''-कहिे हुए निराम ने उसका छरा छीन श्चलया; श्चकन्त ददाय न्त
यवक पठान कटकटा कर बोला-

''इस सूअर के हाथ! नहीों निराम! िम हट िाओ, नहीों िो मैं िमको ही गोली मार दू ाँ गा। मे री बहन, प़िोश्चसन
का हाथ पक़ि कर खीोंच रहा था। इसके हाथ....''

निराम आियय से दे ख रहा था। अमीर ने सलीम की कलाई कक़िी की िरह िो़ि ही दी। सलीम श्चचल्लाकर
मू न्दच्छयि हो गया। प्रेमा ने अमीर को पक़िकर खीोंच श्चलया। उसका रर्चिी-वेश श्चशश्चथल हो गया था। सहि
नारी-सलभ दया का आश्चवभाय व हो रहा था। निराम और अमीर बाहर आये।

विीरी चले गये।

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एक श्चदन टू टे हाथ को श्चसर से लगाकर िब प्रेमा को सलाम करिे हुए सलीम उस गााँ व से श्चवदा हो रहा था,
िब प्रेमा को न िाने क्ोों उस अभागे पर ममिा हो आयी। उसने कहा-''सलीम, िम्हारे िर पर कोई और
नहीों है , िो वहााँ िाकर क्ा करोगे? यहीों प़िे रहो।''

सलीम रो रहा था। वह अब भी श्चहन्दस्तान िाने के श्चलए इच्छक नहीों था; परन्त अमीर ने क़िककर कहा-
''प्रेमा! इसे िाने दे ! इस गााँ व में ऐसे पाश्चियोों का काम नहीों।''

सलीम पेशावर में बहुि श्चदनोों िक भीख मााँ गकर खािा और िीिा रहा। उसके 'बिे -काश्चिर' वाले गीि को
लोग ब़िे चाव से सनिे थे ।

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