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मगु ल साम्राज्य का पतन (Decline of the Mughal Empire) आधनु नक भारत (MODERN INDIA)

औरंगजेब के उत्तराधिकारी
• 18वीं शताब्दी के पव ू ाार्द्ा में औरंगजेब की मृत्यु के बाद से मगु ल साम्राज्य का पतन तेजी से आरंभ हो गया.
• मग ु ल बादशाहों ने अपनी सत्ता की मनहमा खो दी.
• हालांनक अंनतम मग ु ल बादशाह बहादरु शाह नितीय (1837-57 ई.) तक यह नकसी तरह चलता रहा.
• मग ु लों की सत्ता नदल्ली के इदा-नगदा ही नसमट कर रह गई.
• 1803 ई. में निनटश का नदल्ली पर कब्जा हो जाने के पश्चात् तो मुगल बादशाह के वल अंग्रेजों के पेंशनधारी

बनकर ही रह गए.

• औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् उसके तीनों बेटे मअु ज्जम, आजम तथा कामबख्श के बीच सत्ता के नलए संघर्ा
शरूु हो गया.
• मअ ु ज्जम ने 18 जनू , 1707 को ‘जाज’ू नामक स्थान पर आजम को तथा 13 जनवरी, 1709 को
हैदराबाद के ननकट कामबख्श तथा उसके पत्रु ों को हराकर मार डाला.
बहादुरशाह प्रथम (1707-12 ई.)
• उत्तरानधकार संघर्ा जीतने के बाद मअ ु ज्जम, बहादुरशाह-प्रथम के नाम से नसंहासन पर बैठा.
• इसे शाहआलम भी कहा जाता है.

• 65 वर्ीय बहादरु शाह-प्रथम ने समझौते तथा मेल-नमलाप की नीनत अपनाई.

• उसने नहन्दू सरदारों और राजाओ ं के प्रनत अनधक सनहष्णत ु ापणू ा रूख अपनाया.
• वह नविान, योग्य और आत्मगौरव से पररपण ू ा व्यनि था.
• उसने औरंगजेब िारा अपनाई गई कई संकीणातावादी नीनत को बदल नदया.


• आरंभ में उसने आमेर और मारवाड़ (जोधपरु ) के राजपतू राज्यों पर पहले से अनधक ननयंत्रण रखने की
कोनशश की.
• उसने आमेर की गद्दी पर जयनसंह को हटाकर नवजय नसंह (जयनसंह का छोटा भाई) को बैठाया तथा मारवाड़
के राजा अजीत नसंह को मगु ल सत्ता की अधीनता स्वीकार करने के नलए मजबरू नकया.
• कड़ा प्रनतरोध के कारण तरु ं त ही दोनों राज्यों से समझौता कर नलया.
• जयनसंह और अजीत नसंह को अपने राज्य वापस नमल गए, नकन्तु मालवा और गुजरात के सबू ेदार के ओहदों
की मााँग को अस्वीकार कर नदया गया.
• मराठों को दक्कन की सरदेशमख ु ी दे दी गई, नकन्तु चौथ का अनधकारी नहीं नदया गया.
• उसने शाहू को मराठों का नवनधवत राजा नहीं माना.
• इस प्रकार वह मराठों को परू ी तरह खुश नहीं कर सका.
• मराठे आपस में लड़ते रहे तथा दक्कन अव्यवस्था का नशकार बना रहा.
• बहादरु शाह ने गरुु गोनवदं नसहं के साथ सनं ध कर तथा एक बड़ा मनसब देकर नसखों के साथ मेल-नमलाप की
नीनत अपनाई.
• गोनवदं नसहं की मृत्यु के पश्चात् बदं ा बहादरु के नेतत्ृ व में बगावत शरू
ु हुई तथा बहादरु शाह ने उनके नवरुर्द्
सैननक अनभयान नकया.
• नकन्तु नसखों को दबाया नहीं जा सका और लौहगढ़ का नकला, नजसपर बहादरु शाह ने अनधकार कर नलया था
तथा उसे गोनवदं नसहं ने अम्बाला के आर-पवू ा में नहमालय की तराई में बनाया था, वापस ले नलया.
• बहादरु शाह ने बंदु ेला सरदार छत्रसाल से मेल-नमलाप कर नलया तथा जाट सरदार चरू ामन से भी दोस्ती कर
ली.
• चरू ामन ने बंदा बहादरु के नखलाफ बहादरु शाह का साथ नदया.
इसके शासन काल में अंधाधंधु जागीरें तथा पदोन्ननत देने के काल मगु ल राजकोर्, जो 1707 ई. में करीब

17 करोड़ थी, खाली हो गया.


• इसी बीच बहादरु शाह की 1712ई. में दभ ु ााग्यवश मृत्यु हो गई.
• बहादरु शाह ने जल्
ु फीकार खााँ को मीर बख्शी के पद पर ननयि ु नकया था तथा साथ ही दक्कन की सबू ेदारी भी
प्रदान की थी.
• इनतहासकार खाफी खााँ ने बहादरु शाह के बारे में कहा है नक बादशाह राजकीय कायों में इतना अनधक

लापरवाह था नक लोग उसे “शाहे बेखबर” कहने लगे.


मुगल शासक एवं उनके शासन काल शासन
शासन शासन काल

1526-1530
जहीरुद्दीन महु म्मद बाबर ई.

नानसरुद्दीन हुमायाँू (1540 से 1545 तक नदल्ली पर अफगान शासक शेरशाह का शासन 1530-1556
था) ई.

1556-1605
जलालद्दु ीन महु म्मद अकबर ई.

1605-1627
जहााँगीर ई.

1627-1653
शाहजहााँ ई.

1653-1707
औरंगजेब ई.

1707-1712
बहादरु शाह ई.
1712-1713
जहााँदार शाह ई.

1713-1719
फरुाखनसयर ई.

1719-1740
महु म्मदशाह ई.

1748-1753
अहमदशाह ई.

आलमगीर नितीय 1753-1758 ई

1758-1806
शाह आलम नितीय ई.

1806-1837
अकबर नितीय ई.

1837-1857
बहादरु शाह नितीय ई.

(Advent of Europeans in India) आधनु नक भारत (MODERN INDIA)


भारत में यरू ोनपयों का आगमन
पुर्तगाली
• 1486 ई. में पत ु ागाली नानवक बाथोलोम्यो ने उत्तमाशा अंतरीप (के प ऑफ गडु होप) तथा 1498 ई.
में वास्कोधिगामा ने भारत की खोज की.
यरू ोपीय यात्री वास्कोडिगामा
• प्रथम पत ु ागीज तथा प्रथम यरू ोपीय यात्री वास्कोधिगामा 90 नदन की यात्रा कर अब्दुल मनीक नामक
गजु राती पथ-प्रदशाक की सहायता से 17 मई, 1498 ई. को कालीकट के बंदरगाह पर पहुचं ा,
• वहां वास्कोधिगामा का स्वागत वहां के राजा जमोररन (नहन्दू शासक) ने नकया .

• नकन्तु कालीकट के समद्र ु ी तटों पर पहले से ही व्यापार कर रहे अरबों ने उसका नवरोध नकया.
• वास्कोनडगामा 1499 ई. में पत ु ागाल लौट गया.
• वास्कोनडगामा नजस माल को (खासकर कालीनमचा) लेकर वापस लौटा वह परू ी यात्रा की कीमत के 60 गन ुा
दामों पर नबका.
• सन् 1500 में पेड्रो अल्वारे ज किाल के भारत आगमन तथा 1502 में वास्कोनडगामा के दब ु ारा आने से
कालीकट, कोचीन तथा कन्नानोर में व्यापाररक के न्द्रों की स्थापना हुई.
• बाद में इनका स्थान गोवा ने ले नलया.
अल्फांसों दि अलबुककक
• 1503 ई में अल्ांसों धद अलबुककत सेना का कमाण्डर तथा 1509 में भारत में पत ु ागानलयों का गवनार
बनाया गया.
• यह भारत में दस ू रा पतु ागाली गवनार था,
• पहला फ्ांधसस्को धि अधलमिा था जो 1505-9 ई. तक गवनार रहा.

• अल्बक ु का ने 1510 में बीजापरु के शासक से गोवा छीन नलया.


• अल्बक ु का ने पतु ागानलयों को भारतीय मनहलाओ ं से नववाह करने को प्रोत्सानहत नकया.
• अल्बक ु का मसु लमानों का नवरोधी था.
• 1515 ई. में अल्बक ु का की मृत्यु हो गई.
पतु ागानलयों ने 1503 ई. में कोचीन में अपने पहले दगु ा की स्थापना की.
• 1529-38 में ननना-दा-कुन्हा गवनार बना नजसने राजधानी को 1530 ई. में कोचीन से गोवा स्थानांतररत
नकया तथा गुजरात के शासक बहादरु शाह से नदव तथा बसीन (1534 ई.) प्राप्त नकया.
• 1542-45 ई. में माधटत न अल्ांसों धि सज ू ा गवनार बना.
• प्रनसर्द् जेसइ ु ट संत फ्ांनसस्कों जेनवयर उसके साथ भारत आया था.
• अलबक ु का के उत्तरानधकाररयों ने पनश्चमी तट पर दमन, सलसेट, चौल तथा बंबई, मद्रास के ननकट सैन थोम
तथा बंगाल में हुगली में बनस्तयां बसाई .
पर्ु तगाडियों का पर्न
• 16वीं शताब्दी के अंत तक पत ु ागाली शनि का हास हुआ तथा धीरे -धीरे ये बनस्तयां उनके हाथों से ननकलती
गई.
• एक मग ु ल सामंत कानसम खान िारा भगाए जाने के कारण 1631 ई. में उन्हें हुगली से हाथ धोना पड़ा.
• सन् 1661 में इग्ं लैंड के शासन चाल्सा नितीय का नववाह पत ु ागाल के राजा की बहन के साथ हुआ तथा
चाल्र्स नितीय को दहेज के रूप में बंबई प्राप्त हुई .
• मराठों ने 1739 ई. में सलसेट तथा बसीन पर अनधकार कर नलया.

• अत ं तः उनके पास नसफा गोवा, धदव र्था दमन बचा रहा जो उनके पास 1961 तक रहा.
पर्ु तगाडियों के पर्न के कारण
• उनकी धानमाक असनहष्णत ु ा के कारण भारतीय शासकों तथा जनता में नवरोध की भावना उत्पन्न हुई.
• व्यापार में उनके अननु चत तरीके ज्यादा नदन तक सफल नहीं रह सके .

• वे अन्य यरू ोपीय कंपननयों (सीनमत जनसंख्या, नपछड़ी अथाव्यवस्था आनद जैसी पत ु ागाल की आंतररक
कमजोररयों के कारण) के समक्ष प्रनतयोनगता में सफलतापवू ाक नहीं नटक सके .
• िाजील की खोज के कारण उनका ध्यान भारत की ओर से हट गया.
• पत ु ागानलयों ने अकबर की अनमु नत से हुगली में तथा शाहजहााँ की अनमु नत से बंदल े में कारखाने स्थानपत
नकए.
• पत ु ागाली मालाबार और कोंकण तट से सवाानधक काली नमचा का ननयाात करते थे.
• मालाबार तट से अदरक, दालचीनी, चद ं न, हल्दी, नील आनद का ननयाात करते थे.
िच
• डच सस ं द के एक आदेश के िारा माचा 1605 ई. में िच ईस्ट इधं िया कंपनी की स्थापना हुई नजसे यर्द् ु
करने, संनध करने, नकलों पर कब्जा करने तथा नकले बनाने का अनधकार नदया गया.
• डचों ने अपना कारखाना मसूलीपटम (1605 ई.), पल ु ीकट (1610 ई.), सरू त (1616 ई.),
नवनमनलपटमम (1641 ई.) कारीकल (1645 ई.), नचनसरु ा (1653 ई.), कानसम बाजार, बसागोरे ,
पटना, बालासोर, नागापटम (सभी 1658 ई.) तथा कोचीन (1663 ई.) में स्थानपत नकया था.
• 17वीं शताब्दी में पव ू ा के साथ सबसे महत्वपणू ा व्यापाररक शनि के रूप में, नजसमें भारत भी था, उन्होंने
पतु ागानलयों को नवस्थानपत नकया.
• 1690 ई. तक भारत में उनका प्रमख ु कें द्र पुलीकट था, जो इसके बाद नागापट्टम हो गया.
• 17वीं शताब्दी के मध्य में (1654 ई.) अंग्रेज एक महत्वपणू ा शनि बनने लगे.
• भारत में 60-70 वर्ा तक संघर्ा के बाद 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में डच शनि अंग्रेजों के सामने कमजोर
पड़ने लगी.
• यह 1759 ई. में बदेरा के युर्द् में अंग्रेजों के हाथों पराजय के साथ परू ी तरह ध्यस्त हो गई.
• एक-एक कर सारी इच बनस्तयां अंग्रेजों के हाथ लग गई.
• 1795 ई. में उन्हें अंग्रेजों ने भारत से बाहर ननकाल नदया.

अंग्रेज
• ईस्ट इधं िया कंपनी िारा सरू त में कारखाना लगाने के ननणाय (1608 ई.) के बाद कै प्टन
हाधकन्स जहांगीर के दरबार में गए (1609 ई.).
• प्रारंभ में जहांगीर अनुमनत देने के नलए तैयार था, पर बाद में पतु ागाली दबाव में मक ु र गए.
• परंतु जब स्वाली (सरू त के ननकट) में 1612 ई. में कै प्टन बेस्ट ने पत ु ागाली बेड़े को परानजत नकया तो
जहांगीर ने अंग्रेजों को कारखाना लगाने के नलए फरमान जारी कर नदया (1613 ई.).
• सर थॉमस रो 1615 ई. में जेम्स I के राजदत ू के रूप में जहागं ीर के दरबार में आए तथा 1618 ई. के
अंत तक यहीं रहे और राज्य के नवनभन्न भागों में कारखाने लगाने तथा व्यापार करने की अनमु नत प्राप्त की.
• फरवरी 1619 ई. में वे भारत से वापस गए.
कारखानों की स्थापना
पनश्चमी तट-
• अग्र ं ेजों ने आगरा, अहमदाबाद, बड़ौदा तथा भड़ौच में 1619 ई. तक कारखाने लगाए जो सरू त के ननयत्रं ण
में थे.
• 1665 ई. में कंपनी ने 10 पाउंड प्रनत साल के भाड़े पर चाल्सा II से बंबई ली.

• गेराल्ड औग ं ीयर 1669 से 1677 ई. तक इसके पहले गवानर थे.


• 1687 ई. में पनश्चमी तट पर कंपनी का मुख्यालय सरू त से हटाकर बंबई कर नदया गया.

दनक्षण-पवू ी तट-
• मसल ू ीपटनम (1611 ई.) तथा पल ु ीकट के ननकट अरमागांव में कारखाने लगाए गए.
• 1639 ई. में फ्ांनसस डे ने चंद्रनगरी के राजा से मद्रास प्राप्त नकया तथा एक नकलाबंद कारखाना लगाने की
अनमु नत प्राप्त की नजसे फोया सेंट जॉजा कहा गया.
• शीघ्र ही मसल ू ीपटनम के स्थान पर कोरोमंडल तट पर कंपनी का मुख्यालय मद्रास हो गया
• 1658 में पवू ी भारत की अंग्रेज बनस्तयां (बंगाल, नबहार तथा उड़ीसा) फोटा सेट जाजा के अधीन कर दी गई.
पवू ी भारत-
• उड़ीसा के हररहरपरु तथा बालासोर (1633 ई.), हुगली (1651 ई.) तथा उसके बाद पटना, ढाका,
कानसमबाजार में (बंगाल तथा नबहार) अनेक कारखाने लगाए गए.
• 1690 ई. में जॉब चारानोक ने सतु ानतु ी में एक एक कारखाना लगाया तथा सतु ानतु ी, कालीकट तथा
गोनवदं परु की जमींदारी अग्रं ेजों ने (1696 ई.) में प्राप्त की.
• ये गांव बाद में कलकत्ता के रूप में उभरे .
• 1696 ई. में अंग्रेजों ने सतु ानतु ी के कारखाने की घेराबंदी की (बदावान के जमींदार सोभा नसंह के नवद्रोह का
बहाना बनाकर) तथा इस नए रूप में 1700 ई. में फोटा नवनलयम नाम नदया गया.
• एक प्रधान के साथ एक सनमनत का गठन नकया गया (सर चाल्र्स ऐरे पहले प्रधान थे) तथा बंगाल, नबहार तथा
उड़ीसा इस फोटा नवनलयम की सनमनत के अधीन कर नदया गया (1700 ई.) .
फ्ांसीसी

• 1664 ई. में राज्य प्रश्रय िारा कोलवटा में फ्ांसीसी ईस्ट इनं डया कंपनी की स्थापना की.
• पहला फ्ांसीसी कारखाना सरू त में 1668 ई. में फ्ांकोइस कारोन के िारा बनाया गया.
• बाद में 1669 ई. में माराकारा ने मसल ू ीपटनम में कारखाना स्थानपत नकया था.
• मनु स्लम गवनार (वानलकोंडापरु म) से फ्ांकोइस मानटान तथा बेलांगेर डी लेसपीने ने 1673 ई. में एक छोटा-सा
गावं नलया.
• यह गांव आगे चलकर पांनडचेरी बना तथा इसके पहले गवनार फ्ांकोइस मानटान बने. 1690 ई. में बंगाल के
मगु ल नायब से चंदरे गांव नलया गया.
• 1706 से 1720 ई. के बीच भारत में फ्ांसीनसयों का पतन हुआ नजससे 1720 ई. में कपनी पनु गानठत हुई.
• भारत में फ्ांसीसी शनि नननोयार तथा दमु ास िारा पनु ः 1720 से 1742 ई. के बीच गनठत हुआ.
• उन्होंने मालाबार पर माहे, कोरोमडं ल परयानाम (1725 में) तथा तानमलनाडु में कराइकल पर कब्जा नकया
(1739 ई.).
• 1742 ई. में िुप्ले के फ्ांसीसी गवनार के रूप में आगमन के साथ आंग्ल फ्ांसीसी संघर्ा प्रारंभ हुआ, नजसमें
वे अंततः परानजत हुए.
िेधनस
• डेनमाका की ईस्ट इनं डया कंपनी 1616 ई. में बनी.
• उन्होंने 1620 ई. में ट्रानकोबेर (तानमलनाडु) तथा 1676 ई. में श्रीरामपरु (बंगाल) में अपनी बस्ती बनाई.

• श्रीरामपरु उनका भारत में मख्


ु यालय था.
• परंतु वे अपनी नस्थनत मजबूत नहीं कर पाए तथा 1845 ई. में अपनी सारी संपनत्त उन्होंने अंग्रेजों को बेच दी.
प्रमख
ु यरू ोपीय कम्पनी
स्थापना
कंपनी वर्त

पतु ागाली ईस्ट इनं डया कंपनी (इस्तादो द इनं डया) 1498 ई.

अग्रं ेजी ईस्ट इनं डया कंपनी (द गवनार एण्ड कंपनी ऑफ मचेण्ट्स ऑफ लंदन ट्रेनडंग इन टू द ईस्ट
इनं डज) 1600 ई.

डच ईस्ट इनं डया कंपनी (वेरींनगडे ओस्त इनण्डशे कंपने) 1602 ई.

डैननश ईस्ट इनं डया कंपनी 1616 ई.

फ्ांसीसी ईस्ट इनं डया कंपनी (कम्पने देस इण्डेस ओररयंतलेस) 1664 ई.

स्वीनडश ईस्ट इनं डया कंपनी 1731 ई.

कनााटक में आंग्ल-फ्ासं ीसी प्रनतस्पधाा


• भारत में निनटश तथा फ्ांसीसी कम्पननयां मुख्यतः व्यापाररक कम्पननयां थीं, नकन्तु शीघ्र ही ये कम्पननयां भारत

की राजनीनत में अपररहाया रूप से उलझती चली गई.ं


• वास्तव में जब मुगल सत्ता क्षीण हो गई तथा दक्कन के सब ू ेदार इन कम्पननयों की रक्षा करने में असमथा सानबत
हुए तो इन कम्पननयों ने स्वयं ही अपनी रक्षा करने का बीड़ा उठाया.
• इससे इनका भारत की राजनीनत में अनधक उलझ जाना बहुत स्वाभानवक था.
• भारत में फ्ांसीनसयों का मुख्य कायाालय पांनडचेरी में था तथा अंग्रेजों की मुख्य बनस्तयां मद्रास, बम्बई और
कलकत्ता में थीं.
• इनके अलावा इन कम्पननयों के अन्य कायाक्रम भी थे.
• आंग्ल-फ्ांसीसी कम्पननयों के मध्य अपने एकानधकार को स्थानपत करने के नलए कनााटक में तीन यर्द् ु हुए.
• ु के बाद फ्ांसीसी कम्पनी की पराजय हुई.
तीसरे यर्द्

कनातटक का प्रथम युद्ध (The First Carnatic war, 1746-48)


• 1740 में आनस्ट्रया के उत्तरानधकार को लेकर यरू ोप में निटेन और फ्ांस के मध्य संघर्ा प्रारंभ हो गया.

• कनााटक का प्रथम यर्द् ु इस संघर्ा का नवस्तार मात्र ही था.


• क्योंनक प्रायः जैसे ही यरू ोप में इन दोनों शनियों के मध्य कोई यर्द्
ु आरंभ हो जाता था, भारत में भी इन दोनों
कंपननयों पर प्रभाव पड़ता था.
• 1746 में आंग्ल-फ्ांसीसी कम्पननयों के मध्य कनााटक में यर्द् ु प्रारंभ हो गया.
• बारनैट के नेतत्ृ व में निनटश नौसेना ने कुछ फ्ांसीसी जलपोतों पर कब्जा कर नलया.

• पानं डचेरी के फ्ें च गवनार जनरल डूप्ले ने मॉरीशस नस्थत फ्ांसीसी गवनार ला बड ु ों से सहायता प्राप्त कर निनटश
प्रभत्ु व वाले प्रदास नगर को जल एवं थल दोनों ही मागों से घेर नलया.
• कुछ ही समय बाद मद्रास ने आत्मसमपाण कर नदया.

• ला बुिों ने एक बड़ी धनरानश के बदले मद्रास नगर को वापस निटेन को लौटा नदया नकन्तु िूप्ले इस काया से

सहमत नहीं था अतः उसने मद्रास को पनु ः जीत नलया.


• परन्तु वह पानं डचेरी से 18 मील दरू दनक्षण में नस्थत फोटा सेन्ट डेनवड नामक स्थान को जीतने में असफल

रहा.
• कनात टक का प्रथम यद्ध ु के नलए भी स्मरणीय है.
ु सेन्ट येमे के यर्द्
• इस यर्द् ु का प्रमखु कारण मद्रास पर फ्ांसीनसयों का अनधकार होना था.
डुप्ले ने कनााटक के नवाब अनवरुद्दीन को यह वचन नदया था नक वह मद्रास को जीत कर नवाब को सौंप

देगा.
• नकन्तु समय आने पर डूप्ले अपने वादे से मक ु र गया.
• इससे नवाब ने रुष्ट होकर अपनी मांग स्वीकार करवाने के नलए एक नवशाल सेना भेजी.

• कै धप्टन पेरािाइज के नेतत्ृ व में एक छोटी सी फ्ांसीसी सेना ने नवाब की सेना को अनडयार नदी के समीप

सेन्ट टोमे नामक स्थान पर परानजत कर नदया.


• एला शापल की संधि (1748) के बाद यरू ोप में आनस्ट्रया के उत्तरानधकार का यर्द् ु समाप्त हो गया.
• इसके साथ ही कनााटक का प्रथम यर्द् ु भी समाप्त हो गया तथा मद्रास पनु ः अग्रं ेजों को प्राप्त हो गया.
कनातटक का धिर्ीय युद्ध (The Second Carnatic war, 1749-54)
• 1748 में दक्कन के धनजाम आस्जाह की मृत्यु हो गई.

• इसके बाद उसके पत्र ु नाधसरजंग तथा पौत्र (नानसरजंग का भतीजा) मुजफ््रजंग के मध्य उत्तरानधकार के
नलए संघर्ा प्रारंभ हो गया.
• कनााटक में भी नवाब अनवरुद्दीन तथा उसके बहनोई चन्दा साधहब के मध्य में सत्ता प्रानप्त के नलए संघर्ा हो

रहा था.
• िूप्ले ने राजनीनतक अनस्थरता की इस नस्थनत से लाभ उठाने का प्रयत्न नकया.

• उसने मज ु फ्फरजंग और कनााटक की सबू ेदारी का समथान नकया.


• अंग्रेजों का समथान नाधसरजंग और अनवरूद्दीन के साथ था.

• अगस्त 1749 में िूप्ले के नेतत्ृ व में मुजफ््रजंग, चन्दा साधहब और फ्ें च सेनाओ ं ने वैल्लौर के

समीप अम्बूर नामक स्थान पर अनवरूद्दीन को परानजत कर नदया.


• 1750 में एक सघ ं र्ा में नाधसरजगं भी मारा गया.
• मज ु फ्फरजंग दक्कन का सबू ेदार बन गया तथा उसने डूप्ले को कृ ष्णा नदी के दनक्षणी भाग में मगु ल प्रदेशों का
गवनार ननयि ु कर नदया.
• 1751 में चन्दा साधहब कनााटक के नवाब बन गए.

• इस प्रकार डूप्ले की योजनाएं सफल नसर्द् हुई नकन्तु शीघ्र ही उसके समक्ष गम्भीर चन ु ौनतयां प्रस्ततु होने लगी.
• कनााटक की राजधानी अरकाट को क्लाइव ने मात्र 210 सैननकों की मदद से अपने कब्जे में ले नलया.

• कनााटक का नवाब चन्दा सानहब 4,000 सैननकों की मदद से भी अरकाट को पन ु ः प्राप्त न कर सका.
• 1752 में धस्िगर लोरे न्स के नेतत्ृ व में निनटश सैननकों ने धिचनापली से भी फ्ास ं ीनसयों को खदेड़ नदया.
• नत्रचनापली की हार से डूप्ले की सारी योजनाओ ं पर पानी नफर गया.

• 1754 में गोडेहू को डूप्ले के स्थान पर भारत में फ्ांसीसी प्रदेशों का गवनार जनरल ननयुि नकया गया.

• अंग्रेजों के प्रत्याशी मुहम्मद अली को कनााटक का नवाब बनाया गया.

• नकन्तु हैदराबाद में फ्ांसीनसयों की नस्थनत अभी भी सदृ ु ढ़ अवस्था में थी.
• कुल नमलाकर यह कहना होगा नक कनााटक के दसू रे यर्द् ु से फ्ांसीनसयों की योजनाओ ं को कुछ ठे स पहुचं ी
जबनक अंग्रेजों की नस्थनत सदृु ढ़ हो गई.
कनातटक का र्ृर्ीय युद्ध (The Third Carnatic War, 1758-63)
• फ्ांसीसी सरकार ने 1757 में काउन्ट लाली को भारत भेजा.

• लाली एक वर्ा की लम्बी समद्र ु ी यात्रा के बाद अप्रैल, 1758 में भारत पहुचाँ ा.
• इस बीच अंग्रेज बंगाल के नवाब धसराजुद्दौला को परानजत कर बंगाल पर अनधकार करने में सफल हो चक ुे
थे.
• इस सफलता से प्राप्त अपार धन के बल पर अंग्रेज फ्ांसीनसयों को दक्कन में परानजत करने में सफल हो गए.

• 1758 में काउन्ट लाली ने ्ोटत सेन्ट िेधवि जीत नलया. इसके बाद उसने मद्रास को घेर नलया.

• नकन्तु शीघ्र ही उसे एक शनिशाली नौसेना के आने पर अपना घेरा उठाना पड़ा.

• इसके बाद लाली ने बुस्सी को हैदराबाद से वापस बल ु ाने की एक गंभीर भल ू की.


• इससे हैदराबाद में फ्ास ं ीनसयों की नस्थनत कमजोर हो गई.
• 1760 में सर आयर कूट ने वधन्दवाश नामक स्थान पर फ्ांसीनसयों को बरु ी तरह परानजत नकया.

• बस् ु सी को बन्दी बना नलया गया.


• जनवरी, 1761 में दक्कन में फ्ास ं ीनसयों की पणू ारूपेण पराजय हो गई.
• इसके बाद फ्ांसीसी पांनडचेरी वापस लौट गए.

• शीघ्र ही अग्र ं ेजों ने पानं डचेरी, माही तथा नजजी के फ्ासं ीसी प्रदेशों पर भी कब्जा कर नलया.
• 1763 में पांनडचेरी फ्ांसीनसयों को वापस कर नदया गया.

फ्ांसीधसयों की अस्लर्ा के कारण (Causes of Fallure of the French)


फ्ांसीनसयों की पराजय के प्रमुख कारण ननम्ननलनखत हैं-
फ्ाांसीडसयों का यरू ोप में उिझना (French Continental Preoccupations)
• 18वीं शताब्दी के फ्ांसीसी सम्राटों ने यरू ोपीय देशों जैसे इटली, बेनल्जयम और जमानी आनद में अपने

साम्राज्य नवस्तार के नलए नजतना प्रयत्न नकया उतना वे भारत तथा उत्तरी अमेररका के संबंध में न कर पाए.
• इस काया में उनका काफी धन भी व्यय हुआ था तथा कोई नवशेर् सफलता भी प्राप्त न हो सकी.

• दस ू री तरफ अंग्रेजों ने यरू ोप में के वल शनि-संतल ु न बनाए रखने तक अपनी भनू मका सीनमत रखी.
• उन्होंने एकाग्रनचत से भारत और उत्तरी अमेररका में अपने साम्राज्य का नवस्तार नकया.

प्रशासडनक डिन्नर्ाएां (Administrative Differences)


• फ्ांस की तत्कालीन शासन व्यवस्था या प्रशासननक प्रणाली को भी फ्ांसीनसयों की पराजय के नलए उत्तरदायी

माना जाता है.


• लई ु चौदहवें और उसके बाद लईू पन्द्रहवें के शासन काल में फ्ांस की प्रशासननक व्यवस्था ननरन्तर नगरती गई.
• दस ू री ओर निटेन निग (Whigs) दल के अधीन संवैधाननक व्यवस्था की ओर बढ़ रहा था.
• यह व्यवस्था फ्ांस की राजशाही से उत्तम थी.
• इसने निटेन को नदन प्रनतनदन शनिशाली बनाया.
कम्पडनयों के गठन में डिन्नर्ा (Difference in the Organisation of Companies)
• फ्ांसीसी कम्पनी एक सरकारी कम्पनी भी.

• अतः इसके नक्रयाकलाप भी सरकारी थे.

• कम्पनी से जड़ ु े व्यनियों का कम्पनी की समृनर्द् से कोई लेना-देना नहीं था.


• उदासीनता की नस्थनत यह थी नक 1725 से 1765 के मध्य कम्पनी के भागीदारों की कोई भी बैठक नहीं

हुई.
• 1721 से 1740 तक कम्पनी उधार के धन से व्यापार करती रही.

• ऐसी कंपनी डुप्ले की महत्वाकांक्षाओ ं की पनू ता न कर सकी.

• दस ू री ओर निनटश ईस्ट इधं िया कम्पनी एक ननजी व्यापाररक कम्पनी थी.


• निटेन इस कम्पनी के कल्याण में नवशेर् रुनच नदखाता था.

• कम्पनी की नवत्तीय नस्थनत इतनी सदृ ु ढ़ थी नक लोभवश निनटश ससं द ने 1767 में कम्पनी को आदेश नदया
नक वह 4 लाख पौंड वानर्ाक निनटश राजकोर् में जमा करवाया करे .
नौसेना की िडू मका (Role of the Navy)
• कनााटक के यर्द् ु ों ने यह स्पष्ट नकया नक निनटश नौसेना नकतनी शनिशाली है.
• डूप्ले की सफलता काफी हद तक निनटश नौसेना की नननष्क्रयता पर आधाररत थी.

• धीरे -धीरे निनटश नौसेना सशि होती गई नजसके कारण काउन्ट लाली डूप्ले नजतनी सफलता प्राप्त नहीं कर

सका.
बांगाि में अांग्रेजो की सफिर्ा का प्रिाव (Impact of English Successes in Bengal)
• अग्र ं ेजों की सफलता में बगं ाल की नवजय का उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा.
• बंगाल नवजय से अंग्रेजों को अपार धन और जनशनि की प्रानप्त हुई.
• दक्कन बग ं ाल की तल ु ना में कम धनी था अतः फ्ासं ीनसयों को दक्कन की नवजय का कोई खास लाभ न
हुआ.
• आगे चलकर लाली के सैननकों को वेतन देने के नलए भी धन नहीं था.

कम्पडनयों का राजनीडर्क नेर्त्ृ व (Political Leadership of Companies)


• फ्ास ं ीसी कम्पनी का राजनीनतक तथा सैननक नेतत्ृ व निनटश कम्पनी की तल ु ना में दबु ाल था.
• डूप्ले, बस् ु सी तथा काउन्ट लाली व्यनिगत रूप से क्लाइव, लौरे न्स सॉण्डसा से कम नहीं थे नकन्तु वे अपने
सैननकों में क्लाइव के समान जोश न भर सके .
• डूप्ले एक उत्तम नेता होते हुए भी फ्ांसीनसयों की पराजय के नलए उत्तरदायी बना.

• उसने अपनी महत्वकांक्षाओ ं के सामने कम्पनी के व्यापाररक तथा नवत्तीय पक्षों की अवहेलना की.

ं (Anglo-Maratha Relations)
आग्ं ल-मराठा सबं ि
भारतीय राज्यों के मध्य राजनीनतक सवोच्चता एवं क्षेत्रीय नवस्तार के संघर्ो ने ईस्ट इनं डया कंपनी को इन राज्यों के आतं ररक
मामलों में हस्तक्षेप का सनु हरा अवसर प्रदान नकया। जहााँ तक मराठों के क्षेत्र का प्रश्न है तो यहााँ निनटश हस्तक्षेप का मख्ु य
कारण वानणनजयक था । सन 1784 में चीन के साथ कपास के व्यापार और गजु रात एवं बॉम्बे के तट से अचानक बढ़े व्यापार
ने अंग्रेजो की राजनीनतक महत्वकांक्षाओ को बहुत अनधक बढ़ा नदया । मराठा सरदारों के आपसी झगड़ो ने अंग्रेजो को वह
अवसर प्रदान कर नदया नजसकी उन्हें तलाश थी। पेशवा नारायण राव की मृत्यु के पश्चात रघनु ाथ राव ने पेशवा पद पर अपना
दावा प्रस्ततु नकया तथा नाना फड़नवीस एवं माधवराव का नवरोध नकया।

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775 - 82 ई.) (First Anglo-Maratha War (1755-82)

रघनु ाथ राव ने बंबई के अंग्रेजी गवनार से 1775 ई. में संनध कर ली । बंबई की अंग्रेजी सरकार ने गवनार जनरल एवं उसकी
काउंनसल की पवू ा सहमनत को आवश्यक नहीं समझा। 7 माचा, 1775 ई. को रघनु ाथ राव और बंबई सरकार के मध्य हुई सनं ध
के अनसु ार अंग्रेज रघनु ाथ राव को पेशवा पद पर प्रनतनर्ठत करने के नलए सैन्य सहायता देंगे नजसके बदले सालसेट और बेनसन
के आसपास का क्षेत्र एवं भड़ौच तथा सरू त की आय पर अंग्रेजो का अनधकार होगा। इस सनं ध में शानमल 16 शतो में से एक
यह भी थी नक मराठे , बंगाल एवं कनााटक पर आक्रमण नहीं करें गे।
प्रथम आग्ं ल मराठा यर्द्
ु लगभग 7 वर्ो तक चला। कनाल कीनटंग के नेतत्ृ व में अग्रं ेजी सेना ने सरू त पर आक्रमण कर नदया।
आरंनभक यर्द्ु 18 मई, 1775 ई. को 'आरस के मैदान' में हुआ। इस यर्द् ु में अंग्रेज नवजयी रहे। मराठे पनू ा पर अपना ननयंत्रण
बनाए रखने में कामयाब रहे। अंत में दोनों पक्षों के मध्य 1782 ई. में सालबाई नक संनध से यर्द्
ु समाप्त हो गया।

धिर्ीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803 - 05 ई.) (Second Anglo-Maratha War (1803-05)

सन 1800 में नाना फड़नवीस की मृत्यु के पश्चात पनू ा दरबार र्डयंत्रो का के न्द्र बन गया था। लॉडा वेलेजली का ऐसा मानना
था नक भारत को नेपोनलयन के खतरे से बचने का एकमात्र उपाय समस्त भारतीय राज्यों का अनधग्रहण करना था। इस उद्देश्य की
प्रानप्त के नलए उसके सहायक संनध प्रणाली का नवकास नकया। नाना फड़नवीस अंग्रजो की कुनटलता से पररनचत थे, इसनलए
उन्होंने मराठो को सहायक सनं ध से दरू रखा। नकन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात पेशवा बाजीराव ने अपना असली रूप नदखाया। सन
1801 में पेशवा बाजीराव नद्रतीय ने जसवंत राव होल्कर के भाई नबठठू जी की हत्या कर दी तथा पनू ा पर आक्रमण कर पेशवा
और नसनं धया की सेना को परानजत कर नदया। पनू ा पर होल्कर का ननयत्रं ण हो गया। बाजीराव नद्रतीय ने भागकर बेसीन में शरण
ली। 31 नसतम्बर, 1802 ई. को बाजीराव नद्रतीय एवं अंग्रेजो के मध्य बेसीन की संनध (Treaty of Bassein,
1802) हुई।
बेसीन की संधि की प्रमुख बार्ें धनम्नवर् है:
• कंपनी को सरू त नगर नमल गया।

• पेशवा ने अंग्रेजी संरक्षण स्वीकार कर नलया।


• पेशवा ने पनू ा में अंग्रेजी सेना को रखना स्वीकार कर नलया।
• पेशवा ने अंग्रेजो को ननजाम से चौथ वसल ू ी का अनधकार दे नदया तथा गायकवाड़ के नवरुर्द् यर्द्
ु न करने का वचन
नदया।
• पेशवा ने अपने नवदेशी मामले कंपनी के अधीन कर नदया।
• पेशवा ने कंपनी के नकसी भी यरू ोपीय शत्रु को न रखना स्वीकार नकया।

र्ृर्ीया आंग्ल-मराठा युद्ध (1817 - 18 ई.) (Third Anglo-Maratha War (1817-18)

सन 1805 के पश्चात मराठों को शांनत के जो नगने-चनु े वर्ा नमले थे, उन्होंने उनका प्रयोग अपनी शनि को सदृु ढ़ करने के
नवपरीत आपसी र्ड्यंत्र और कलह में नष्ट कर नदया। लॉडा हेनसटंग्स के भारत का गवनार जनरल बनकर आने के बाद उसने
अग्रं ेजी क्षेष्ठता को स्थानपत करने के नलए भारतीय शनियों के नवरुर्द् दमनात्मक रुख अपनाया।
हेनसटंग्स ने नपंडाररयो के नवरुर्द् अपने अनभयान की शरुु आत की नजससे मराठों के प्रभुत्व को चनु ौती नमली। दोनों पक्षों के मध्य
तनाव बढ़ता गया नजसने संघर्ा को अवश्यभावी बना नदया। यह संघर्ा नपंडाररयो के नवरुर्द् हेनसटंग्स की प्रत्यक्ष कायावाही से
तृतीय आंग्ल-मराठा यर्द् ु में पररणत हो गया।

धपंिाररयो का दमन (Oppression of Pindaris)

नपंडारी मराठा सेना में अवैतननक सैननकों के रूप में अपनी सेवा देते थे। ये लटू मार करने वाले दलों के रूप में होते थे नजनकी
ननयनु ि बाजीराव-प्रथम के समय शरू ु हुई थी। ये मराठों की ओर से यर्द्ु में भाग लेते थे नजसके बदले उन्हें लटू से प्राप्त रकम
का नननश्चत नहस्सा नदया जाता था। पानीपत के तृतीय यर्द्
ु में मराठों की पराजय के पश्चात वे नसंनधया तथा होल्कर की सेना में
भती हो गए थे तथा मालवा के क्षेत्र में बस गए थे। उनके दल में सांप्रदानयक एकता थी अथाात उनमे नहन्दू एवं मसु लमान दोनों
ही शानमल थे। इनके प्रमुख नेता वानसल महु म्मद, चीत,ू करीम खां इत्यानद थे।
19वीं सदी के पवू ााधा में उन्होंने नमजाापरु , शाहाबाद, ननजाम के क्षेत्र आनद पर आक्रमण कर वहााँ लटू मार मचा दी। लॉडा
हेनसटंग्स ने नपंडाररयो के दमन के नलए सेना भेज दी। यह संघर्ा तृतीय आंग्ल-मराठा यर्द् ु में पररवनतात हो गया। आधनु नक
अनसु धं ानों ने यह नसर्द् कर नदया है नक मराठे स्वयं इनकी लटू मार से परे शान थे तथा उन्होंने अपनी सेना का प्रयोग नपंडाररयो के
दमन के नलए ही नकया था।

मराठों की पराजय के कारण (Reasons for Marathas’ Defeat)

• मराठों िारा अपना स्वतंत्र अनस्तत्व स्थानपत करने की प्रनतद्रनन्द्रतीय ने कें द्रीय मराठा शनि को कमजोर कर नदया
नजसका अग्रं ेजो ने परू ा लाभ उठाया।
• मराठा सरदारों के बीच आपसी र्ड्यंत्र और एकता की कमी ने अंग्रेजो को हस्तक्षेप का अवसर प्रदान कर नदया।
• मराठों की नस्थर आनथाक नीनत एवं सीनमत आय के स्रोतों से भी उनकी नस्थनत अंग्रेजो की तल ु ना में कमजोर हो गयी।
• प्रशासन में व्यनिगत ननष्ठां, जात-पााँत तथा अन्य सामानजक आधारों पर नवभाजन का प्रयास नकया जाता रहा, नजससे
मराठा प्रशासन में लयबद्र्त्ता का अभाव आ गया और अनेक गटु ों का ननमााण हो गया।
• स्पष्ट राजनीनतक लक्ष्यों का अभाव तथा उत्तम गप्तु चर व्यवस्था की कमी ने भी मराठों की पराजय को अवसयंभवी बना
नदया।
प्रथम आग्ं ल मैसरू यर्द्

प्रथम आंग्ल मैसरू यर्द् ु 1767 से 1769 के बीच 2 वर्ों के नलए चला था | प्रथम आंग्ल मैसरू यर्द् ु मैसूर और अंग्रेजों के
बीच में हुआ था, नजसमें मैसूर का प्रनतनननधत्व हैदर अली ने फ्ांस की सहायता से नकया, जबनक ईस्ट इनं डया कंपनी ने मराठा
और ननजाम की सहायता ली |
इस यर्द्
ु के बीच में हैदर अली ने अचानक से मद्रास पर अपनी सेना िारा हमला कर नदया और वहां पर ईस्ट इनं डया कंपनी को
हरा नदया इसी के साथ यह युर्द् खत्म हुआ और मैसूर की संधि की गई |
युद्ध के कारण
• प्रथम आंग्ल मैसरू यर्द्ु का प्रमख
ु कारण था मद्रास के आसपास ईस्ट इनं डया कंपनी का बढ़ता हुआ प्रभाव,
नजसे हैदर अली और फ्ांसीसी कभी नहीं चाहते थे |
• ईस्ट इनं डया कंपनी अपना क्षेत्र को लगातार दनक्षण में बढ़ा रही थी और वह भी मैसरू पर कब्जा करना चाहती

थी |
• इसी कारण से हैदर अली ईस्ट इनं डया कंपनी से यर्द् ु करना चाहते थे |
मिास की संधि
• मद्रास की सनं ध 1776 में है दर अली और ईस्ट इधं िया कंपनी के बीच में की गई |
• इस संनध में यह तय हुआ नक भनवष्य में हैदर अली के मैसूर राज्य पर बाहरी आक्रमण के समय ईस्ट इनं डया

कंपनी उनकी सैन्य सहायता करे गी अथाात ईस्ट इनं डया कंपनी मैसरू राज्य की सहायता करने को मजबरू हुई |
• यह संनध EIC के नलए शमानाक रही |

मद्रास की सनं ध के बावजदू जब मैसरू पर 1771 में मराठों का हमला हुआ, तब ईस्ट इनं डया कंपनी उनकी सहायता करने नहीं
आई, आगे के यर्द् ु के नलए यह एक प्रमुख कारण रहा नक अब ईस्ट इनं डया कंपनी हमेशा से मैसरू राज्य की शत्रु बन गई |

नितीय आंग्ल मैसरू यर्द्



नितीय-आंग्ल मैसरू यर्द्
ु 1780 से 1784 के बीच में मैसरू और ईस्ट इनं डया कंपनी के बीच में लड़ा गया | शरुु आत में हैदर
अली ने आकोट पर कब्जा कर नलया, लेनकन बाद में अंग्रेज सेना अनधकारी सर आयरकूट के नेतत्ृ व में उसे हार का सामना
करना पड़ा | 1782 के बीच में हैदर अली की मृत्यु हो जाती है और उसके पश्चात उसका बेटा टीपू सलु र्ान यर्द्
ु को जारी
रखता है | 1784 में मंगलौर की संनध यर्द्
ु समाप्त होता है |
यद्ध
ु का कारण
•1780 में ईस्ट इनं डया कंपनी ने अरब सागर के नकनारे नस्थत माहे पर कब्जा कर नलया, जो एक प्रमुख
व्यापाररक कें द्र था तथा मैसरू राज्य से सटा हुआ था |
मंगलौर की संधि
• इस संनध के तहत हैदर अली िारा कंपनी को 1770 में दी गई व्यापाररक सनु वधाएं पव ू ावत कायम रखी गई |
• टीपू ने भनवष्य में कनााटक पर दावा छोड़ने तथा बनं दयों को छोड़ने का वादा नकया |

• इस संनध की अनधकतर शतें टीपू के अनक ु ू ल थी |

तृतीय आंग्ल मैसरू यर्द्



तृतीय आंग्ल मैसरू यर्द्
ु 1790 से 1792 के बीच में टीपू सुलर्ान और लॉित कॉनतवाधलस के नेतत्ृ व में ईस्ट इनं डया कंपनी
के बीच में लड़ा गया, नजसमें टीपू सल्ु तान की हार हो गई और उसके बाद 1792 में श्रीरंगपट्टनम की सनं ध की गई |
युद्ध के कारण
• टीपू सल् ु तान ने अपनी सैन्य शनि को काफी मजबतू नकया था | इसके नलए टीपू सल्ु तान ने फ्ासं की सहायता
भी ली |
• मैसरू के दनक्षण में िावणकोर जोनक ईस्ट इनं डया कंपनी का सहयोगी प्रदेश था, उस पर हमला कर नदया और

इसी कारण से तीसरा आंग्ल मैसरू यर्द् ु शरू


ु हुआ |
श्रीरंगपट्टनम की संधि
• इस सनं ध के तहत टीपू सल् ु तान के राज्य का लगभग आधा क्षेत्र उससे छीन नलया और ईस्ट इनं डया कंपनी,
मराठा और ननजाम में बांट नदया, नजसमें अनधकतर क्षेत्र निनटश के पास रहा |
• कुगत के राजा को स्वतत्र ं ता दे दी गई |
• क्षनतपनू ता के रूप में टीपू को 3 करोड़ रुपए देने पड़े तथा पैसे देने की गारंटी के नलए टीपू के दो बेटों को अंग्रेज

अपने साथ ले गए |

चौथा आंग्ल मैसरू यर्द्



चौथा आंग्ल मैसरू यर्द्ु 1798 से 1799 के बीच में चला, नजसमें ररचित वेलेंस्की के नेतत्ृ व में ईस्ट इनं डया कंपनी ने टीपू
सल्ु तान को हरा नदया |
युद्ध के कारण
ु में हुई हार के बाद टीपू सल्ु तान ने अलग-अलग नवदेशी देशों; जैसे –अरब, र्ुकी, अफगान, आनद
• तीसरे यर्द्

से सहायता के नलए संपका नकया | तथा टीपू सुल्तान ने नेपोधलयन बोनापाटत भारत में हमला करने के नलए
आमनं त्रत नकया था, हालााँनक वह नमस्र से आगे नहीं आ पाया |
• वेलेंस्की ने टीपू सुल्तान को सहायक संधि पर हस्ताक्षर करने को कहा, लेनकन टीपू ने मना कर नदया और
उसके बाद टीपू सल्ु तान को सहायक संनध पर हस्ताक्षर करने को कहा, लेनकन टीपू ने मना कर नदया और
उसके बाद चौथे आग्ं ल मैसरू यर्द् ु की शरुु आत होती है |
महत्वपूणत घटनाएं
• इस यर्द् ु में इस यर्द्
ु में टीपू सलु र्ान की मत्ृ यु उसकी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में हो जाती है |
• मैसरू राज्य को ईस्ट इनं डया कंपनी और ननजाम के बीच में बांट नदया जाता है |

• ईस्ट इनं डया कंपनी िारा वाडयार वंश के 5 वर्ा के बच्चे कृष्णराजा र्ृर्ीय को राजा बनाया जाता है तथा

सहायक संनध पर हस्ताक्षर कर नदए जाते हैं |


• टीपू सल् ु तान के पररवार को वेललोर भेज नदया जाता है |
• इस तरह से चार यर्द् ु के बाद मैसरू ईस्ट इनं डया कंपनी के अधीन आ जाता है |
ु (The Battle of Plassey) बंगाल के नवाब नसराजद्दु ौला और ईस्ट इनं डया कंपनी के संघर्ा का पररणाम
प्लासी का यर्द्
था. इस यर्द्ु के अत्यंत महत्त्वपणू ा तथा स्थाई पररणाम ननकले. 1757 ई. में हुआ प्लासी का यर्द् ु ऐसा यर्द्
ु था नजसने भारत में
अंग्रेजों की सत्ता की स्थापना कर दी.

बगं ाल की तत्कालीन नस्थनत और अंग्रेजी स्वाथा ने East India Company को बंगाल की राजनीनत में हस्तक्षेप करने
का अवसर प्रदान नकया. अलीवदी खां, जो पहले नबहार का नायब-ननजाम था, ने औरंगजेब की मृत्यु के बाद आई राजनैनतक
उठा-पटक का भरपरू लाभ उठाया. उसने अपनी शनि बहुत बढ़ा ली. वह एक महत्त्वाकाक्ष
ं ी व्यनि था. उसने बंगाल के
तत्कालीन नवाब सरफराज खां को यर्द्
ु में हराकर मार डाला और स्वयं नवाब बन गया.

9 अप्रैल को अलीवदी खां की मृत्यु हो गई. अलीवदी खां की अपनी कोई संतान नहीं थी इसनलए उसकी मृत्यु के बाद अगला
नवाब कौन होगा, इसके नलए कुछ लोगों में उत्तरानधकार के नलए र्ड्यंत्र होने शरू
ु हो गए. पर अलीवदी ने अपने जीवनकाल में
ही अपनी सबसे छोटी बेटी के पत्रु नसराजद्दु ौला को उत्तरानधकारी मनोनीत कर नदया था. अंततः वही हुआ भी. नसराजुद्दौला
बंगाल का नवाब बना.

नसराजद्दु ौला
नसराजद्दु ौला भले ही नवाब बन गया पर उसे कई नवरोनधयों का सामना करना पड़ा. उसकी सबसे बड़ी नवरोधी और प्रनतिदं ी
उसके पररवार से ही थी और वह थी उसकी मौसी. उसकी मौसी का नाम घसीटी बेगम था. घसीटी बेगम का
पत्रु शौकर्जगं जो स्वयं पनू णाया (नबहार) का शासक था, उसने अपने दीवान अमीचदं और नमत्र जगत सेठ के साथ
नसराजद्दु ौला को परास्त करने का सपना देखा. मगर नसराजुद्दौला पहले से ही सावधान हो चक
ु ा था. उसने सबसे पहले घसीटी
बेगम को कै द नकया और उसका सारा धन जब्त कर नलया. इससे शौकतजंग भयभीत हो गया और उनसे नसराजद्दु ौला के प्रनत
वफादार रहने का वचन नदया. पर नसराजद्दु ौला ने बाद में उसे यर्द्
ु में हराकर मार डाला.
इधर ईस्ट इनं डया कंपनी अपनी नस्थनत मजबतू कर चक ु ंद थे. मगर
ु ी थी. दनक्षण में फ्ांसीनसयों को हराकर अंग्रेजों के हौसले बल
वे बंगाल में भी अपना प्रभुत्व जमाना चाहते थे. पर अलीवदी खां ने पहले से ही नसराजद्दु ौला को सलाह दे नदया था नक नकसी
भी हालत में अग्रं ेजों का दखल बगं ाल में नहीं होना चानहए. इसनलए नसराजद्दु ौला भी अंग्रेजों को लेकर शनं कत था.

नसराजद्दु ौला और अंग्रेजों के बीच संघर्ा

1. नसराजद्दु ौला ने अंग्रेजों को फोटा नवनलयम नकले को नष्ट करने का आदेश नदया नजसको अंग्रेजों ने ठुकरा नदया.
गस्ु साए नवाब ने मई, 1756 में आक्रमण कर नदया. 20 जनू , 1756 ई. में कानसमबाजार पर नवाब का
अनधकार भी हो गया.
2. उसके बाद नसराजद्दु ौला ने फोटा नवनलयम पर भी अनधकार कर नलया. अनधकार होने के पहले ही अंग्रेज गवनतर
ड्रेक ने अपनी पत्नी और बच्चों के साथ भागकर ्ुलटा नामक एक िीप में शरण ले ली. कलकत्ता में बची-
खचु ी अंग्रेजों की सेना को आत्मसमपाण करना पड़ा. अनेक अंग्रेजों को बंदी बनाकर और माधनकचंद के नजम्मे
कलकत्ता का भार सौंपकर नवाब अपनी राजधानी मनु शादाबाद लौट गया.
3. ऐसी ही पररनस्थनत में “काल कोठरी” की दुघतटना (The Black Hole Tragedy) घटी नजसने
अंग्रेजों और बंगाल के नवाब के सम्बन्ध को और भी कटु बना नदया. कहा जाता है नक 146 अंग्रेजों, नजनमें
उनकी नियााँ और बच्चे भी थे, को फोटा नवनलयम के एक कोठरी में बदं कर नदया गया था नजसमें दम घटु ने से
कई लोगों की मौत हो गई थी.
4. जब इस घटना की खबर मद्रास पहुचाँ ी तो अग्रं ेज़ बहुत गस्ु से में आ गए और उन्होंने नसराजद्दु ौला से बदला लेने की
ठान ली. शीघ्र ही मद्रास से क्लाइव (Lord Clive) और वाटसन थल सेना लेकर कलकत्ता की ओर बढ़े
और नवाब के अनधकारीयों को ररश्वत देकर अपने पक्ष में कर नलया. पररणामस्वरूप माननकचंद ने नबना नकसी
प्रनतरोध के कलकत्ता अग्रं ेजों को सौंप दी. बाद में अग्रं ेजों ने हुगली पर भी अनधकार कर नलया. ऐसी नस्थनत में
बाध्य होकर नवाब को अंग्रेजों से समझौता करना पड़ा.

अलीनगर की सनं ध
9 फ़रवरी, 1757 को क्लाइव ने नवाब के साथ एक संनध (अलीनगर संनध) की नजसके अनसु ार मग़ु ल सम्राट िारा अंग्रेजों को
दी गई सारी सनु वधायें वापस नमली जानी थीं. नवाब को लाचार होकर अंग्रेजों को सारी जब्त फै क्टररयााँ और संपनत्तयााँ लौटाने के
नलए बाध्य होना पड़ा. कम्पनी को नवाब की तरफ से हजााने की रकम भी नमली. नवाब अन्दर ही अन्दर बहुत अपमाननत
महससू कर रहा था.

प्लासी का यर्द्

अग्रं ेज़ इस सनं ध से भी सतं ष्टु नहीं हुए. वे नसराजद्दु ौला को गद्दी से हटाकर नकसी वफादार नवाब को नबठाना चाहते थे जो उनके
कहे अनसु ार काम करे और उनके काम में रोड़ा न डाले. क्लाइव ने नवाब के नखलाफ र्ड्यंत्र करना शरू ु कर नदया.
उसने मीरजा्र (Mir Jafar) से एक गप्तु संनध की और उसे नवाब बनाने का लोभ नदया. इसके बदले में मीरजाफर ने
अग्रं ेजों को कानसम बाजार, ढाका और कलकत्ता की नकलेबंदी करने, 1 करोड़ रुपये देने और उसकी सेना का व्यय सहन करने
का आश्वासन नदया. इस र्ड्यंत्र में जगत सेठ, राय दल
ु ाभ और अमीचंद भी अंग्रेजों से जड़ु गए.

अब क्लाइव ने नवाब पर अलीनगर की संनध भंग करने का आरोप लगाया. इस समय नवाब की नस्थनत अत्यंत दयनीय थी.
दरबारी-र्ड्यंत्र और अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण से उत्पन्न खतरे की नस्थनत ने उसे और भी भयभीत कर नदया. उसने
मीरजाफर को अपनी तरफ करने की कोनशश भी की पर असफल रहा. नवाब की कमजोरी को भााँपकर क्लाइव ने सेना के साथ
प्रस्थान नकया. नवाब भी राजधानी छोड़कर आगे बढ़ा. 23 जून, 1757 को प्लासी के मैदान में दोनों सेनाओ ं की मठु भेड़
हुई. यह यर्द्
ु नाममात्र का युर्द् था. नवाब की सेना के एक बड़े भाग ने यर्द्
ु में नहस्सा नहीं नलया. आंतररक कमजोरी के बावजदू
नसराजद्दु ौला की सेना, नजसका नेतत्ृ व मीरमदन और मोहनलाल कर रहे थे, ने अंग्रेजों की सेना का डट कर सामना नकया.
परन्तु मीरजा्र के धवश्वासघार् के कारण नसराजद्दु ौला को हारना पड़ा. वह जान बचाकर भागा, परन्तु मीरजाफर के
पत्रु मीरन ने उसे पकड़वा कर मार डाला.

यर्द्
ु के पररणाम
ु (The Battle of Plassey) के पररणाम अत्यतं ही व्यापक और स्थायी ननकले. इसका प्रभाव कम्पनी,
प्लासी के यर्द्
बंगाल और भारतीय इनतहास पर पड़ा.

1. मीरजाफर को क्लाइव ने बंगाल का नवाब घोनर्त कर नदया. उसने कंपनी और क्लाइव को बेशुमार धन नदया और
संनध के अनसु ार अंग्रेजों को भी कई सनु वधाएाँ नमलीं.
2. बगं ाल की गद्दी पर एक ऐसा नवाब आ गया जो अग्रं ेजों के हाथों की कठपतु ली मात्र था.
3. प्लासी के यर्द्ु (The Battle of Plassey) ने बंगाल की राजनीनत पर अंग्रेजों का ननयंत्रण कायम कर
नदया.
4. अंग्रेज़ अब व्यापारी से राजशनि के स्रोत बन गये.
5. इसका नैनतक पररणाम भारतीयों पर बहुत ही बरु ा पड़ा. एक व्यापारी कंपनी ने भारत आकर यहााँ से सबसे अमीर
प्रातं के सबू ेदार को अपमाननत करके गद्दी से हटा नदया और मग़ु ल सम्राट तमाशा देखते रह गए.
6. आनथाक दृनष्टकोण से भी अंग्रेजों ने बंगाल का शोर्ण करना शरू ु कर नदया.
7. इसी यर्द्ु से प्रेरणा लेकर क्लाइव ने आगे बगं ाल में अग्रं ेजी सत्ता स्थानपत कर ली.
8. बंगाल से प्राप्त धन के आधार पर अंग्रेजों ने दनक्षण में फ्ांसीनसयों पर नवजय प्राप्त कर नलया.

बक्सर का युद्ध (Battle Of Buxar in Hindi) भारतीय इनतहास की ननणाायक लड़ाइयों में से एक थी। यह
1764 में देश के उत्तर-पवू ी क्षेत्र में हुआ था। यह बक्सर की लड़ाई थी नजसने बंगाल और नबहार पर धिधटश ईस्ट इधं िया
कंपनी (British East India Company in Hindi) का ननयत्रं ण अनजात नकया था। इस महत्वपणू ा लड़ाई के
बीज प्लासी की लड़ाई के तरु ं त बाद बोए गए थे।
o बक्सर का युद्ध (Battle Of Buxar Hindi me) हेक्टर मनु रो के नेतत्ृ व वाली निनटश ईस्ट इनं डया कंपनी
की सेना और शाह आलम नितीय (मगु ल सम्राट), शजु ा-उद-दौला (अवध के नवाब) और मीर कानसम (बंगाल के
नवाब) की सयं ि ु सेना के बीच लड़ी गई थी।
o 1765 में कंपनी की जीत और शाह आलम नितीय के आत्मसमपाण के साथ लड़ाई समाप्त हो गई। लड़ाई के बाद,
कंपनी का प्रनतनननधत्व करने वाले रॉबटत क्लाइव ने शुजा-उद-दौला और शाह आलम-नितीय के साथ इलाहाबाद की
संनध पर हस्ताक्षर नकए।

बक्सर की लड़ाई (Battle Of Buxar in Hindi) पर इस लेख में, यर्द् ु की प्रस्तावना, तत्काल कारण, यर्द्
ु के
पाठ्यक्रम और पररणामों पर चचाा की गई है। यह आधनु नक इनतहास के तहत प्रारंनभक और साथ ही UPSC मेन्स
परीक्षा में यूपीएससी उम्मीदवारों के नलए एक बहुत ही महत्वपणू ा नवर्य है।

वेदों के प्रकार के बारे में जानें!

बक्सर के यर्द्
ु की पृष्ठभनू म | Background Of Battle Of Buxar

o 1757 में प्लासी की लड़ाई (Battle of Plassey in Hindi) में नवजयी होने के बाद निनटश सेना की
जड़ें बंगाल की भनू म पर मजबूत हो गई।ं प्लासी का युद्ध के पररणामस्वरूप नसराज-उद-दौला को निनटश ईस्ट इनं डया
कंपनी िारा मीर जाफर के कमाडं र के साथ बदल नदया गया। कठपतु ली सम्राट के रूप में नसराज-उद-दौला।
o मीर जाफर गद्दी पर बैठने के बाद अंग्रेजों की लगातार बढ़ती मांगों का सामना नहीं कर सका। फलस्वरूप उसने डच
ईस्ट इनं डया कंपनी से हाथ नमला नलया और नवद्रोह कर नदया।
o इसने अंग्रेजों को मीर जाफर को रुपये की पेंशन के साथ इस्तीफा देने के नलए मजबरू नकया। 1760 में वानर्ाक पेंशन
के रूप में 15000।
o अब, निनटश ईस्ट इनं डया ने मीर जाफर के दामाद मीर कानसम को बंगाल का नया नवाब बनाया।

यर्द्
ु की ओर ले जाने वाले प्रमख
ु कारण | Key Reasons That Led To War

o राज्य के मामलों को बेहतर बनाने के नलए दृढ़ संकनल्पत एक मजबतू और कुशल शासक मीर कानसम ने 1762 में
राजधानी को कलकत्ता के मनु शादाबाद से नबहार के मंगु ेर में स्थानांतररत कर नदया।
o उसने खदु को एक स्वतंत्र शासक घोनर्त नकया। इससे अंग्रेज नाराज हो गए, क्योंनक वे चाहते थे नक वह उनका
कठपतु ली शासक बने।
o उन्होंने अपनी सेना को प्रनशनक्षत करने के नलए नवदेशी देशों के नवशेर्ज्ञों को भी काम पर रखा, क्योंनक मीर कानसम को
अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के नलए उनकी ताकत बहुत जरूरी है।
o निनटश ईस्ट इनं डया कंपनी के अनधकाररयों ने अपने ननजी लाभ के नलए 1717 के फरमान और दस्तक का दरुु पयोग
नकया।
o इस अनधननयम ने मीर कानसम को अंतरााष्ट्रीय व्यापार पर सभी कताव्यों को समाप्त करने का चरम कदम उठाने के नलए
प्रेररत नकया, नजसने व्यापार में अपने स्वयं के नवर्यों को बढ़त दी और अंग्रेजों को रोक कर रखा।
o उन्होंने निनटश व्यापाररयों और भारतीय व्यापाररयों दोनों के साथ समान व्यवहार नकया और इस प्रकार ईस्ट इनं डया
कंपनी के साथ नकसी नवशेर् व्यवहार से इनकार नकया नजससे उन्हें भारी राजस्व हानन हुई।
o अंग्रेजों ने अन्य सभी पर तरजीही उपचार की मांग की।
o इन सभी कारकों, नवशेर् रूप से पारगमन शल्ु क पर संघर्ा के पररणामस्वरूप 1763 में यर्द् ु नछड़ गया।

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बक्सर यर्द्
ु का क्रम | Course Of Battle Of Buxar

o जब 1763 में यर्द् ु नछड़ गया, तो इनतहास के सबसे सक्षम प्रमख ु ों में से एक, हेक्टर मनु रो के नेतत्ृ व में अंग्रेजी सेना ने
नगररया, कटवा, मुनशादाबाद, मंगु ेर और सटू ी में लगातार जीत हानसल की।
o इस करारी हार ने मीर कानसम को अवध की ओर भागने के नलए मजबरू कर नदया और वहां उन्होंने अंग्रेजों को हमेशा
के नलए खदेड़ने की उम्मीद में भारतीय शासकों के साथ गठबंधन नकया।
o शज ु ा-उद-दौला, अवधी के नवाब
o शाह आलम – II, एक मग ु ल बादशाह, जो अंग्रेजों से बंगाल वापस पाना चाहता था।
o अतं में भारतीय इनतहास में एक महत्वपणू ा मोड़ के रूप में सबसे महत्वपणू ा लड़ाई 22 अक्टूबर, 1764 को मेजर
हेक्टर मनु रो के नेतत्ृ व में अंग्रेजी सेना के नखलाफ मीर कानसम, शजु ा-उद-दौला और शाह आलम-नितीय की संयि ु
सेनाओ ं के बीच गगं ा नदी के तट पर एक छोटे से शहर बक्सर में हुई।
o संयिु सेना को अंग्रेजी सेना ने आमने-सामने की प्रनतयोनगता में परानजत नकया।

पूना समझौर्ा के बारे में जानें!

बक्सर की लड़ाई के पररणाम | Results Of Battle Of Buxar

o मीर कानसम ने अपने सैननकों को छोड़ नदया और यर्द् ु के मैदान से भाग गया।
o शाह आलम-नितीय और शुजा-उद-दौला ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमपाण कर नदया।
o अंग्रेज उत्तरी भारत के नननवारोध शासक बन गए और उन्हें परू े भारत में सत्ता और वचास्व के दावेदार घोनर्त कर नदया।
o रॉबटा क्लाइव, नजन्होंने यर्द्
ु में महत्वपणू ा भनू मका ननभाई, ने शजु ा-उद-दौला और शाह आलम-नितीय के साथ 1765
में इलाहाबाद की संनध नामक दो महत्वपणू ा संनधयों पर हस्ताक्षर नकए।
o ु के बाद, मीर जाफर को नफर से अंग्रेजों ने कठपतु ली शासक (Puppet Ruler) बना नदया।
यर्द्
o मीर जाफर ने अपनी सेना को बनाए रखने के नलए बदावान, नमदनापरु और चटगांव नजलों को भी अंग्रेजों के सामने
आत्मसमपाण कर नदया।
o निनटश व्यापाररयों को 2 प्रनतशत के शुल्क के साथ नमक को छोड़कर बंगाल में व्यापार पर अनधमान्य शल्ु क छूट भी
दी गई थी।
o मीर जाफर के ननधन के बाद उनके नाबानलग बेटे ननजाम-उद-दौला को बादशाह बनाया गया। लेनकन अंग्रेजों ने अपनी
पसंद के नायब-सूबेदार को ननयिु करके प्रशासन की वास्तनवक शनि को बनाए रखा।
o बाद में ननजाम-उद-दौला 53 लाख रुपये प्रनत वर्ा के साथ एक सनं ध पर हस्ताक्षर करके अग्रं ेजों के पेंशनभोगी बन
गए।
o 1772 में, निनटश ईस्ट इनं डया कंपनी ने पेंशन योजना को परू ी तरह से समाप्त कर नदया और बगं ाल का प्रशासन सीधे
अपने हाथों में ले नलया।

इलाहाबाद की संधि | Treaty Of Allahabad

o 1765 में बक्सर की लड़ाई (Battle Of Buxar in Hindi) के बाद इलाहाबाद में लॉडा रॉबटा क्लाइव
ने शजु ा-उद-दौला और शाह आलम-नितीय के साथ दो महत्वपणू ा संनधयों पर हस्ताक्षर नकए।
o अवध के नवाब शजु ा-उद-दौला के साथ इलाहाबाद की पहली संनध :
o शज ु ा-उद-दौला को इलाहाबाद और कारा को शाह आलम-नितीय को सौंपने के नलए मजबरू नकया गया था।
o उन्होंने ईस्ट इनं डया कंपनी को 50 लाख रुपये की क्षनतपनू ता देने पर भी सहमनत व्यि की।
o संपनत्त का उनका परू ा कब्जा बनारस के जमींदार बलवंत नसंह को सौंप नदया गया था।

o भले ही शुजा-उद-दौला हार गया था, अवध को कभी भी कब्जा नहीं नकया गया था, लेनकन नवदेशी
आक्रमण से बचाने के नलए एक बफर राज्य के रूप में छोड़ नदया गया था।
o शाह आलम के साथ इलाहाबाद की दसू री संनध :
o शाह आलम को इलाहाबाद में कंपनी के सरं क्षण में रहना था जो उन्हें इलाहाबाद की पहली सनं ध के तहत

शजु ा-उद-दौला से नमला था।


o नबहार और उड़ीसा के नजलों को कंपनी को सौंप नदया जाना था।
o शाह आलम को कंपनी को बंगाल का दीवानी अनधकार देने वाला एक फरमान देना था।

o ननजामत समारोह के बदले में, यानी रक्षा, पनु लस और न्याय प्रशासन, शाह आलम को कंपनी को नबहार,

उड़ीसा और बंगाल के नजलों के नलए प्रनत वर्ा 53 लाख रुपये का भगु तान करना पड़ा।

बक्सर का युद्ध (Battle Of Buxar in Hindi) भारतीय इनतहास की ननणाायक लड़ाइयों में से एक थी। यह
1764 में देश के उत्तर-पवू ी क्षेत्र में हुआ था। यह बक्सर की लड़ाई थी नजसने बंगाल और नबहार पर धिधटश ईस्ट इधं िया
कंपनी (British East India Company in Hindi) का ननयत्रं ण अनजात नकया था। इस महत्वपणू ा लड़ाई के
बीज प्लासी की लड़ाई के तरु ं त बाद बोए गए थे।

o बक्सर का युद्ध (Battle Of Buxar Hindi me) हेक्टर मनु रो के नेतत्ृ व वाली निनटश ईस्ट इनं डया कंपनी
की सेना और शाह आलम नितीय (मगु ल सम्राट), शजु ा-उद-दौला (अवध के नवाब) और मीर कानसम (बंगाल के
नवाब) की संयिु सेना के बीच लड़ी गई थी।
o 1765 में कंपनी की जीत और शाह आलम नितीय के आत्मसमपाण के साथ लड़ाई समाप्त हो गई। लड़ाई के बाद,
कंपनी का प्रनतनननधत्व करने वाले रॉबटत क्लाइव ने शुजा-उद-दौला और शाह आलम-नितीय के साथ इलाहाबाद की
संनध पर हस्ताक्षर नकए।

बक्सर की लड़ाई (Battle Of Buxar in Hindi) पर इस लेख में, यर्द्


ु की प्रस्तावना, तत्काल कारण, यर्द्
ु के
पाठ्यक्रम और पररणामों पर चचाा की गई है।

बक्सर के यर्द्
ु की पृष्ठभनू म | Background Of Battle Of Buxar

o 1757 में प्लासी की लड़ाई (Battle of Plassey in Hindi) में नवजयी होने के बाद निनटश सेना की
जड़ें बंगाल की भनू म पर मजबूत हो गई।ं प्लासी का युद्ध के पररणामस्वरूप नसराज-उद-दौला को निनटश ईस्ट इनं डया
कंपनी िारा मीर जाफर के कमांडर के साथ बदल नदया गया। कठपतु ली सम्राट के रूप में नसराज-उद-दौला।
o मीर जाफर गद्दी पर बैठने के बाद अंग्रेजों की लगातार बढ़ती मांगों का सामना नहीं कर सका। फलस्वरूप उसने डच
ईस्ट इनं डया कंपनी से हाथ नमला नलया और नवद्रोह कर नदया।
o इसने अंग्रेजों को मीर जाफर को रुपये की पेंशन के साथ इस्तीफा देने के नलए मजबरू नकया। 1760 में वानर्ाक पेंशन
के रूप में 15000।
o अब, निनटश ईस्ट इनं डया ने मीर जाफर के दामाद मीर कानसम को बंगाल का नया नवाब बनाया।

यर्द्
ु की ओर ले जाने वाले प्रमख
ु कारण | Key Reasons That Led To War

o राज्य के मामलों को बेहतर बनाने के नलए दृढ़ संकनल्पत एक मजबतू और कुशल शासक मीर कानसम ने 1762 में
राजधानी को कलकत्ता के मनु शादाबाद से नबहार के मगंु ेर में स्थानातं ररत कर नदया।
o उसने खदु को एक स्वतंत्र शासक घोनर्त नकया। इससे अंग्रेज नाराज हो गए, क्योंनक वे चाहते थे नक वह उनका
कठपतु ली शासक बने।
o उन्होंने अपनी सेना को प्रनशनक्षत करने के नलए नवदेशी देशों के नवशेर्ज्ञों को भी काम पर रखा, क्योंनक मीर कानसम को
अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के नलए उनकी ताकत बहुत जरूरी है।
o निनटश ईस्ट इनं डया कंपनी के अनधकाररयों ने अपने ननजी लाभ के नलए 1717 के फरमान और दस्तक का दरुु पयोग
नकया।
o इस अनधननयम ने मीर कानसम को अंतरााष्ट्रीय व्यापार पर सभी कताव्यों को समाप्त करने का चरम कदम उठाने के नलए
प्रेररत नकया, नजसने व्यापार में अपने स्वयं के नवर्यों को बढ़त दी और अंग्रेजों को रोक कर रखा।
o उन्होंने निनटश व्यापाररयों और भारतीय व्यापाररयों दोनों के साथ समान व्यवहार नकया और इस प्रकार ईस्ट इनं डया
कंपनी के साथ नकसी नवशेर् व्यवहार से इनकार नकया नजससे उन्हें भारी राजस्व हानन हुई।
o अग्रं ेजों ने अन्य सभी पर तरजीही उपचार की मागं की।
o इन सभी कारकों, नवशेर् रूप से पारगमन शल्ु क पर संघर्ा के पररणामस्वरूप 1763 में यर्द् ु नछड़ गया।
बक्सर यर्द्
ु का क्रम | Course Of Battle Of Buxar

o जब 1763 में यर्द् ु नछड़ गया, तो इनतहास के सबसे सक्षम प्रमख ु ों में से एक, हेक्टर मनु रो के नेतत्ृ व में अंग्रेजी सेना ने
नगररया, कटवा, मनु शादाबाद, मगंु ेर और सटू ी में लगातार जीत हानसल की।
o इस करारी हार ने मीर कानसम को अवध की ओर भागने के नलए मजबरू कर नदया और वहां उन्होंने अंग्रेजों को हमेशा
के नलए खदेड़ने की उम्मीद में भारतीय शासकों के साथ गठबंधन नकया।
o शज ु ा-उद-दौला, अवधी के नवाब
o शाह आलम – II, एक मग ु ल बादशाह, जो अग्रं ेजों से बंगाल वापस पाना चाहता था।
o अंत में भारतीय इनतहास में एक महत्वपणू ा मोड़ के रूप में सबसे महत्वपणू ा लड़ाई 22 अक्टूबर, 1764 को मेजर
हेक्टर मनु रो के नेतत्ृ व में अंग्रेजी सेना के नखलाफ मीर कानसम, शजु ा-उद-दौला और शाह आलम-नितीय की संयि ु
सेनाओ ं के बीच गंगा नदी के तट पर एक छोटे से शहर बक्सर में हुई।
o ु सेना को अग्रं ेजी सेना ने आमने-सामने की प्रनतयोनगता में परानजत नकया।
सयं ि

बक्सर की लड़ाई के पररणाम | Results Of Battle Of Buxar

o मीर कानसम ने अपने सैननकों को छोड़ नदया और यर्द् ु के मैदान से भाग गया।
o शाह आलम-नितीय और शुजा-उद-दौला ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमपाण कर नदया।
o अंग्रेज उत्तरी भारत के नननवारोध शासक बन गए और उन्हें परू े भारत में सत्ता और वचास्व के दावेदार घोनर्त कर नदया।
o रॉबटा क्लाइव, नजन्होंने यर्द्
ु में महत्वपणू ा भनू मका ननभाई, ने शजु ा-उद-दौला और शाह आलम-नितीय के साथ 1765
में इलाहाबाद की संनध नामक दो महत्वपणू ा संनधयों पर हस्ताक्षर नकए।
o ु के बाद, मीर जाफर को नफर से अंग्रेजों ने कठपतु ली शासक (Puppet Ruler) बना नदया।
यर्द्
o मीर जाफर ने अपनी सेना को बनाए रखने के नलए बदावान, नमदनापरु और चटगांव नजलों को भी अंग्रेजों के सामने
आत्मसमपाण कर नदया।
o निनटश व्यापाररयों को 2 प्रनतशत के शुल्क के साथ नमक को छोड़कर बंगाल में व्यापार पर अनधमान्य शल्ु क छूट भी
दी गई थी।
o मीर जाफर के ननधन के बाद उनके नाबानलग बेटे ननजाम-उद-दौला को बादशाह बनाया गया। लेनकन अंग्रेजों ने अपनी
पसंद के नायब-सूबेदार को ननयि ु करके प्रशासन की वास्तनवक शनि को बनाए रखा।
o बाद में ननजाम-उद-दौला 53 लाख रुपये प्रनत वर्ा के साथ एक सनं ध पर हस्ताक्षर करके अग्रं ेजों के पेंशनभोगी बन
गए।
o 1772 में, निनटश ईस्ट इनं डया कंपनी ने पेंशन योजना को परू ी तरह से समाप्त कर नदया और बगं ाल का प्रशासन सीधे
अपने हाथों में ले नलया।
इलाहाबाद की संधि | Treaty Of Allahabad

o 1765 में बक्सर की लड़ाई (Battle Of Buxar in Hindi) के बाद इलाहाबाद में लॉडा रॉबटा क्लाइव
ने शजु ा-उद-दौला और शाह आलम-नितीय के साथ दो महत्वपणू ा संनधयों पर हस्ताक्षर नकए।
o अवध के नवाब शजु ा-उद-दौला के साथ इलाहाबाद की पहली सनं ध :
o शज ु ा-उद-दौला को इलाहाबाद और कारा को शाह आलम-नितीय को सौंपने के नलए मजबरू नकया गया था।
o उन्होंने ईस्ट इनं डया कंपनी को 50 लाख रुपये की क्षनतपनू ता देने पर भी सहमनत व्यि की।
o संपनत्त का उनका परू ा कब्जा बनारस के जमींदार बलवंत नसंह को सौंप नदया गया था।

o भले ही शुजा-उद-दौला हार गया था, अवध को कभी भी कब्जा नहीं नकया गया था, लेनकन नवदेशी
आक्रमण से बचाने के नलए एक बफर राज्य के रूप में छोड़ नदया गया था।
o शाह आलम के साथ इलाहाबाद की दसू री सनं ध :
o शाह आलम को इलाहाबाद में कंपनी के संरक्षण में रहना था जो उन्हें इलाहाबाद की पहली संनध के तहत

शजु ा-उद-दौला से नमला था।


o नबहार और उड़ीसा के नजलों को कंपनी को सौंप नदया जाना था।
o शाह आलम को कंपनी को बंगाल का दीवानी अनधकार देने वाला एक फरमान देना था।

o ननजामत समारोह के बदले में, यानी रक्षा, पनु लस और न्याय प्रशासन, शाह आलम को कंपनी को नबहार,

उड़ीसा और बंगाल के नजलों के नलए प्रनत वर्ा 53 लाख रुपये का भगु तान करना पड़ा।

Revolt of 1857 – इसके कारण, नेता और इसके प्रभाव


नवद्रोह इतना व्यापक था नक कोई एक कारण इसकी घटना को सही नहीं ठहरा सकता था। 1857 के नवद्रोह के नलए नवनभन्न
आयामों के कई कारक नजम्मेदार थे।
1857 का नवद्रोह
नवनभन्न वगों के बीच उग्र असंतोर् 1857 में एक नहसं क तफ ू ान के रूप में फूट पड़ा नजसने भारत में निनटश साम्राज्य को
उसकी नींव तक नहला नदया। यह निनटश ईस्ट इनं डया कंपनी के नखलाफ संगनठत नवरोध की पहली अनभव्यनि थी। यह निनटश
ईस्ट इनं डया कंपनी की सेना के नसपानहयों के नवद्रोह के रूप में शरू
ु हुआ लेनकन अंततः एक लोकनप्रय नवद्रोह में बदल गया।
1857 के भारतीय नवद्रोह को कई नामों से जाना जाता है, नसपाही नवद्रोह (निनटश इनतहासकारों िारा), भारतीय नवद्रोह,
महान नवद्रोह (भारतीय इनतहासकारों िारा), 1857 का नवद्रोह, भारतीय नवद्रोह और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (नवनायक दामोदर
सावरकर िारा)।
1857 के नवद्रोह के कारण
नवद्रोह इतना व्यापक था नक कोई एक कारण इसकी घटना को सही नहीं ठहरा सकता था। 1857 के नवद्रोह के नलए नवनभन्न
आयामों के अनेक कारक उत्तरदायी थे। कुछ महत्वपणू ा कारण इस प्रकार हैं:
आनथाक कारण
भनू म पर भारी करों और कंपनी िारा अलोकनप्रय राजस्व बंदोबस्त से नकसान और जमींदार नाराज थे।
इन समहू ों में से कई भारी राजस्व मांगों को परू ा करने और साहूकारों को अपने ऋण चक
ु ाने में असमथा थे, अंततः उन भनू म को
खो रहे थे जो उनके पास पीनढ़यों से थी। इससे ग्रामीण ऋणग्रस्त हो रहे थे।
बड़ी संख्या में नसपाही नकसान वगा के थे और गांवों में उनके पाररवाररक संबंध थे, इसनलए नकसानों की नशकायतों ने उन्हें भी
प्रभानवत नकया।
इग्ं लैंड में औद्योनगक क्रांनत के बाद, भारत में निनटश नननमात सामानों की आमद हुई, नजसने उद्योगों, नवशेर् रूप से भारत के
कपड़ा उद्योग को बबााद कर नदया और इस प्रकार बड़े पैमाने पर बेरोजगारी हुई। निनटश शासन ने कारीगरों और हस्तनशल्प के
लोगों के नलए मसु ीबतें खड़ी कीं।
राजनीनतक कारण
व्यपगत के नसर्द्ातं और प्रत्यक्ष नवलय के माध्यम से निनटश नवस्तार ने बड़ी संख्या में भारतीय शासकों और प्रमख
ु ों के बीच
आक्रोश पैदा नकया।
रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पत्रु को झासं ी के नसहं ासन पर बैठने की अनुमनत नहीं थी।
कुप्रशासन के बहाने लाडा डलहौजी िारा अवध पर कब्जा करने से हजारों रईसों, अनधकाररयों, नौकरों और सैननकों को
बेरोजगार कर नदया गया। इस वजह से अवध, एक वफादार राज्य, को असंतोर् और सानज़श के कें द्र में बदल नदया।
सैन्य कारण
भारतीय नसपानहयों को निनटश सैननकों से कमतर माना जाता था। उन्हें समान रैं क के यरू ोपीय नसपाही से भी कम वेतन नदया
जाता था। उन्हें अपने घरों से दरू के इलाकों में सेवा करनी पड़ती थी।
1856 में लॉडा कै ननगं ने जनरल सनवास एननलस्टमेंट एक्ट पाररत नकया था, नजसके अनसु ार नसपानहयों को समद्रु के पार निनटश
भनू म में भी सेवा करने के नलए तैयार रहना पड़ता था।
सामानजक और धानमाक कारण
भारत में तेजी से फै ल रही पनश्चमी सभ्यता परू े देश में नचतं ाजनक थी।
1850 में एक अनधननयम ने नहदं ू को, जो ईसाई धमा में पररवनतात हो गया था, को अपनी पश्ु तैनी संपनत्तयों को नवरासत में लेने
की अनमु नत दी।
लोगों को नवश्वास हो गया था नक सरकार भारतीयों को ईसाई बनाने की योजना बना रही है।
सती और कन्या भ्रूण हत्या जैसी प्रथाओ ं का उन्मल
ू न, और नवधवा पनु नवावाह को वैध बनाने वाले काननू को स्थानपत
सामानजक संरचना के नलए खतरा माना जाता था।
तात्कानलक कारण
भारत में 1857 का नवद्रोह अतं तः चबी वाले कारतसू ों की घटना के कारण नछड़ गया।
एक अफवाह फै ल गई नक नई एनफील्ड राइफल्स के कारतसू ों में गायों और सअ
ू रों की चबी लगी हुई थी।
राइफलों को लोड करने से पहले नसपानहयों को कारतसू ों पर लगे कागज को काटना पड़ा। नहदं ू और मनु स्लम दोनों नसपानहयों ने
उनका इस्तेमाल करने से इनकार कर नदया।
1857 के नेताओ ं का नवद्रोह

ु में शानमल हैं:


नवनभन्न नेताओ ं ने स्थानीय स्तर पर नवद्रोह का नेतत्ृ व नकया। उनमें से प्रमख

लखनऊ – बेगम हजरत महल


कानपरु – नाना साहब
नदल्ली – बहादरु शाह नितीय
झांसी – रानी लक्ष्मीबाई
नबहार – कंु वर नसंह
दक्कन नवद्रोह और दक्कन दगं ा कमीशन कब ननयि
ु नकया गया

दक्कन नवद्रोह कब हुआ और दक्कन दगं ा कमीशन कब ननयि ु नकया गया : 1874-1879 में दक्कन नवद्रोह महाराष्ट्र के
पनू ा, अहमदाबाद, सतारा और शोलापरु आनद क्षेत्रों में मख्ु य रूप से फै ला। दक्कन नवद्रोह मुख्यतः मराठा नकसानों िारा सदू पर
पैसा देने वाले साहूकारों के नवरूर्द् नकया गया था।

दक्कन धविोह के प्रमख


ु कारण क्या थे

ु कारण थे –
इसके दो प्रमख

1. साहूकारों एवं अनाज के व्यापाररयों िारा धकसानों का दमन :- इस नवद्रोह का प्रमख ु आधार सदू खोर साहूकारों
िारा नकसानों पर अत्याचार था। महाराष्ट्र के पनू ा एवं अहमदनगर नजलों में गजु राती एवं मारवाड़ी साहूकार ढेर सारे
हथकण्डे अपनाकर नकसानों का शोर्ण कर रहे थे। साहूकारों िारा नकसानों को उच्च ब्याज के जाल में फसा नदया गया
था।
2. धिधटश सरकार िारा बढाया गया भूधम कर :- अमेररकी गृह यर्द् ु (1863-65) के बाद से आयी कपास के
ननयाात मे कमी के कारण भारतीय नकसानों की आय प्रभानवत हुई थी परन्तु निनटश सरकार िारा भनू म कर में कोई कमी
नहीं करी गयी।

उपरोि दोनों कारणों से नकसान आनथाक रूप से टूट चक ु ा था। नदसम्बर, 1874 ई० में नशरूर तालकु ा के करडाह गााँव के एक
सदू खोर कालरू ाम ने नकसान (बाबा सानहब देशमख ु ) के नखलाफ़ अदालत से घर की नीलामी की नडक्री (कुकी वारंट) प्राप्त कर
ली। इस पर नकसानों ने साहूकारों के नवरूर्द् आन्दोलन शरूु कर नदया और साहूकारों के घरों एवं कायाालयों में घसु कर लेखा
बनहयााँओ ं को जलाना शुरू कर नदया गया।

1875 ई0 तक यह आन्दोलन अन्य जगहों पर फै ल गया। बही-खाते जला नदए गए तथा ऋणबधं ों को नष्ट करा जाने लगा।
साहूकार एवं अनाज व्यापारी रातों-रात गााँव छोड़कर भागने लगे।

दक्कन आंदोलन का नेर्ृत्व धकसने धकया

वासदु वे बलवंत फड़के ने दक्कन नवद्रोह का नेतत्ृ व नकया। इसमें उनको महाराष्ट्र के नशनक्षत वगा का खासा सहयोग प्राप्त हुआ।
जनस्टस एम० जी० रानाड़े इसमें से प्रमख
ु नामों में से एक थे।

दक्कन आंदोलन के पररणाम

1. निनटश सरकार ने “दक्कन उपद्रव आयोग” का गठन नकया। नकसानों की नस्थनत में सधु ार हेतु 1876 ई० में “दक्कन
कृ र्क राहत अनधननयम 1879” को पाररत नकया गया।

दक्कन कृ र्क राहत अनधननयम 1879 – इस अनधननयम का मूल उद्देश्य ननम्नवत है –

▪ बेदखल खेनतहर नकसानों को उनकी जमीनें वापस लौटाना था।


▪ नवशेर् अवसरों जैसे शादी एवं त्यौहारों पर नकसानों को नवत्तीय सहायता प्रदान कराना।
▪ ऋणग्रस्त भनू म की नबक्री नकसी बाहरी व्यनि को करने पर प्रनतबंध।
▪ नदवानलया नकसानों की सहायता करना।

2. नकसानों के आत्म नवश्वास में वृनर्द्।

दक्कन दगं ा कमीशन क्यों गधठर् धकया गया ?


दक्कन दगं ा कमीशन नकसानों की नस्थनत में सधु ार हेतु 1876 ई० में गनठत नकया गया। नजसका उद्देश्य बेदखल खेनतहर
नकसानों को उनकी जमीनें वापस लौटाना, नदवानलया हो चक ु े नकसानों की सहायता करना, ऋणग्रस्त भूनम की नबक्री नकसी
बाहरी व्यनि को न करना एवं नवशेर् अवसरों जैसे शादी एवं त्यौहारों पर नकसानों को नवत्तीय सहायता प्रदान कराना था।

नील आदं ोलन / चपं ारण आंदोलन


Published on फ़रवरी 27, 2020
नील आंदोलन / चंपारण आंदोलन क्या था : नील आंदोलन / चंपारण आंदोलन तब शरूु हुआ जब भारत पर अंग्रेजों का
कब्जा था। आइये जानते हैं नील आदं ोलन / चंपारण आंदोलन या नजसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है
कब शुरू हुआ और इसके पररणाम क्या रहे।

आज से लगभग 100 वर्ा पूवा चंपारण नबहार में भारतीय नकसानों को अंग्रेजी अत्याचार का सामना करते हुए नील की खेती
के नलए न के वल बाध्य नकया जा रहा है था बनल्क उनका कई तरह से शोर्ण भी हो रहा था। यही वह समय था जब महात्मा
गााँधी ने इस आंदोलन में भाग लेने का ननणाय नलया।

नील की खेर्ी का मर्लब या क्या है नील की खेर्ी ?

नील की खेती का मतलब: नील एक रंजक पदाथा है नजसका प्रयोग वि उद्योग में डाई के नलए नकया जाता था। इसकी निटेन में
बड़ी मांग के कारण इसकी खेती अग्रं ेजों िारा दनक्षण अफ़्रीका के साथ-साथ भारत में भी शरू
ु करा दी गयी। नजस कारण
भारतीय नकसान जोनक अनाज एवं अन्य नगदी फसलें उगाने की अनधक इच्छा रखता था, उसको नील की खेती के नलए
अग्रं ेजों ने बाध्य कर नदया।

धकसान नील की खेर्ी को क्यों नही करना चाहर्ा था ?

1. नील की खेती के नलए उपजाऊ भनू म की ही आवश्यकता होती है, नील को कम उपजाऊ भनू म पर नहीं उगाया जा
सकता है, साथ ही नील की खेती भनू म की उवाकाता को भी नकारात्मक रूप से प्रभानवत करती है।
2. नील की खेती के साथ ही नकसानों को इसके पोधों से नील ननष्कर्ाण की प्रनक्रया में भी काया करना होता था नजस
कारण वो अपनी अन्य फसलों पर काया नहीं कर पाता था।
3. नील की पैदावार को गांव के नीलहे साहबों िारा बेहद कम दामों में खरीदना, बल पूवाक नकसानों को प्रतानड़त कर
जबरन नील की खेती कराना भी नकसानों के रोर् का एक प्रमखु कारण था।
नील आंदोलन / नील की क्रांनत

नील आंदोलन, नील की जबरन खेती के नवरूर्द् एक नकसान आंदोलन था। ये आंदोलन भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में एक
मील का पत्थर सानबत हुआ। इससे पहले भी समय समय पर नील की खेती के नखलाफ आदं ोलन होते रहे थे।

1. 1859 का नील आदं ोलन:- वर्ा 1859-60 में बंगाल में ननलहे साहबों ने “ददनी” नामक व्यवस्था लागू कर
रखी थी। नजसके अन्तगात 2रू० प्रनत बीघा की दर से खेती करने के नलए नकसानों को बाध्य नकया जाता था। इसके
नवरूर्द् बंगाल में आदं ोलन हुए तथा बाद में अग्रं ेजों िारा एक नील आयोग का गठन नकया गया नजसका अध्यक्ष सनचन
सीटनंकर को बनाया गया। इस आयोग की ररपोटा के बाद बंगाल में जबरन नील की खेती पर प्रनतबंध लगा नदया गया।
2. चंपारण आदं ोलन:- 20 वी सदी की शरुु आत में इस क्षेत्र में ननलहे साहबों िारा अग्रं ेजी सरकार की सहायता से
“तीनकनठया” व्यवस्था लागू कर रखी थी। इस व्यवस्था के अन्तगात 1 बीघा भनू म के अन्तगात आने वाली बीस कठ्ठे
(स्थानीय भनू म माप का पैमाना) में से तीन कठ्ठों में नील की खेती करना अननवाया था।

चंपारण नील आंदोलन के नेर्ा / चंपारण नील आंदोलन का नेर्ृत्व धकसने धकया ?

चपं ारण नील आदं ोलन का नेतत्ृ व सबसे पहले प०ं राजकुमार शक्ु ल िारा नकया गया। उन्होंने एक नकसान होने के नाते इस
शोर्ण को स्वयं झेला था। अतः उन्होंने इसके नखलाफ आवाज उठाना शुरू नकया। वर्ा 1915 में जब महात्मा गांधी जी का
भारत आगमन हुआ तब वे गांधी जी से कलकत्ता, कानपरु एवं लखनऊ में नमले तथा उन्हें चंपारण में हो रहे अत्याचार से
अवगत कराया एवं उन्हें चंपारण आकर इस आंदोलन में शानमल होने के नलए आमंनत्रत नकया।

गांिी जी का चंपारण आगमन कब हुआ ? / गांिी जी चम्पारण कब पहुुँचे ?

गाधं ी जी पनं डत राजकुमार शक्ु ल के आमत्रं ण पर 10 अप्रैल 1917 को बाक


ं ीपरु पहुचं े और नफर मजु फ्फरपरु होते हुए 15
अप्रैल को 1917 को नबहार के चंपारण पहुचाँ े। तत्कालीन समय चम्पारण नबहार राज्य का एक नज़ला हुआ करता था नजसे
अब दो नज़लों पवू ी चम्पारण नजला और पनश्चमी चम्पारण नजला में बााँट नदया गया है।

चंपारण आंदोलन / चम्पारण सत्याग्रह

चंपारण आंदोलन कब हुआ ? / चम्पारण सत्याग्रह कब हुआ ?

चंपारण आंदोलन 19 अप्रैल 1917 को शरू ु हुआ था। नजसका नेतत्ृ व गांधी जी ने नकया। नील की खेती के नवरोध में चल
रहे नील आदं ोलन को ही जब गाधं ी जी ने नबहार के चम्पारण से शरू
ु नकया तो इसे चम्पारण आदं ोलन या चम्पारण सत्याग्रह के
नाम से जाना जाने लगा।
गांधी जी को चंपारण के नकसानों के साथ-साथ नबहार के बड़े वकीलों का भी सहयोग प्राप्त हुआ। गांधी जी ने कई जन सभाएाँ
की, नीलहे साहबों के साथ कई बैठके की तथा इसकी जानकारी वे अंग्रेज पदानधकाररयों को पत्रों के माध्यम से देते रहे। यह
आदं ोलन कुल एक वर्ा तक चला तथा अंत में निनटश सरकार िारा एक जाच ं सनमनत गनठत की गयी, नजसमें गााँधी जी को भी
सदस्य बनाया गया। नजसके फलस्वरूप चंपारण कृ नर् अनधननयम-1918 बना तथा नकसानों को नील की खेती की बाध्यता से
मनु ि नमली।

इसी आदं ोलन के दौरान गााँधी जी की मल


ु ाकात डॉ. राजेंद्र प्रसाद से हुई जो आगे चलकर भारत के प्रथम राष्ट्रपनत बने।

चंपारण आदं ोलन के स्लर्ा के कारण / चम्पारण सत्याग्रह के स्लर्ा के कारण क्या थे

1. सत्य एवं अधहंसा पर आिाररर् अधहंसक आंदोलन होना – गांधी जी के नेतत्ृ व में चलाया गया चंपारण आंदोलन
शांनतपणू ा अनहसं क आंदोलन था। नजस कारण निनटश सरकार को उसका दमन कर पाना कनठन पड़ रहा था।
2. आंदोलन का सही प्रचार एवं प्रसार होना – तत्कालीन समाचार पत्रों िारा चंपारण आंदोलन को प्रमुखता से छापा
गया। नजससे आंदोलन की लोकनप्रयता नकसानों में बढ़ी और नशनक्षत वगा भी गांधी जी के इस आंदोलन से जड़ु ता
चला गया।
3. वकीलों का सहयोग प्राप्त होना – क्योंनक गांधी जी भी स्वयं बैररस्टर (वकील) थे, इसनलए उन्हें नबहार के बड़े
वकीलों से काफी सहयोग प्राप्त हुआ।

चंपारण आदं ोलन के पररणाम / चम्पारण सत्याग्रह के पररणाम क्या रहे

1. धकसानों को र्ीनकधठया व्यवस्था/नीलहे साहब एवं दमनकारी धिधटश कृधर् नीधर्यों से छुटकारा धमला
– नकसान अब नील की खेती के नलए बाध्य नहीं था। अब नकसान अपनी इच्छा अनसु ार नगदी फसलों की कृ नर् को
करने के नलए स्वतत्रं था।
2. धवकास की प्रारंधभक पहल – इस आंदोलन के दौरान गांधी जी भारतीयों को यह समझाने में सफल हुए नक
स्वच्छता स्वतंत्रता से कहीं अनधक महत्वपणू ा है। साथ ही चंपारण में पाठशाला, नचनकत्सालय, खादी संस्था, आश्रम
भी स्थानपत नकए नजससे वहां का प्रारंनभक नवकास शरू ु हुआ।
3. गांिी जी के महात्मा बनने का स्र – इसी आंदोलन से मोहन दास करम चन्द्र गांधी का महात्मा बनने का सफर
भी शरू ु हुआ। इस आंदोलन के आगमन के साथ ही उनका व्यनित्व मोहन दास करमचंद गााँधी से महात्मा गााँधी की
तरफ अग्रसर हुआ।
4. धकसानों का आत्म धवश्वास बढा – इस आंदोलन से पहले चंपारण के नकसानों की मनोनस्थनत आत्महत्या करने की
हो चली थी। पर गाधं ी जी िारा सम्पानदत इस सफल आदं ोलन के बाद भारतीय नकसानों का आत्मनवश्वास बढ़ा और
उन्हें सत्याग्रह एवं एकता की शनि का आभास हुआ।
5. स्वर्िं र्ा आदं ोलन में सहायक – चपं ारण आदं ोलन में सत्याग्रह का भारत के राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम प्रयोग सफल
रहा। अनहसं क होने के कारण निनटश सरकार को भी इसके आगे झक ु ना पड़ा। यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक
मील का पत्थर सानबत हुआ। यह माना जाने लगा नक अगर एकता के साथ सत्याग्रह नकया जाये तो अंग्रेजों को भारत
छोड़ने के नलए नववश करा जा सकता है।

नबजोनलया नकसान आंदोलन

नबजोनलया नकसान आदं ोलन (Bijolia Peasant Movement in Hindi) : नबजोनलया नकसान आदं ोलन
राजस्थान से शुरू होकर परु े देश में फै लने वाला एक संगनठत नकसान आंदोलन था। नबजोनलया नकसान आंदोलन इनतहास का
सबसे लबं ा चला अनहसं क नकसान आदं ोलन था जोनक करीब 44 वर्ो तक चला।

नबजोनलया नकसान आदं ोलन

भारत के इनतहास का सबसे लंबा अनहंसक नकसान आदोलन के रूप में प्रख्यात नबजोनलया नकसान आंदोलन मेवाड़ क्षेत्र के
नबजोनलया (प्राचीन नाम नवजयावल्ली) में हुआ था। नबजोनलया नठकाना उपरमाल की जागीर के अन्तगात आता था। उपरमाल
की इस जागीर को राणा सांगा िारा अशोक परमार नाम के व्यनि को खाण्वा के यर्द्
ु में साथ देने के नलए उपहार उपहार स्वरूप
नदया गया था।

ू रूप से यहां पर सवाानधक नकसान धाकड़ जानत के थे। नठकानेदार िारा नकसानों पर नवनभन्न प्रकार के 84 दमनकारी (लाग,
मल
बाग, बेगार, लाटा, कंू ता, चवरी, तलवार बंधाई) कर लगे हुये थे। 1894 ई0 में राव कृ ष्ण नसंह नया नठकानेदार बना। इन करो
से प्रतानणत नकसानों को नए नठकानेदार से करों में राहत करने की उम्मीद थी परन्तु 1897 ई0 तक करों में कोई भी कमी नहीं
की गयी। अतः इसी वर्ा 1897 ई0 से ही इस आंदोलन की नींव पड़ी।

नबजोनलया नकसान आंदोलन के चरण

इस आंदोलन को तीन चरणों में नेतत्ृ व के आधार पर बााँट कर समझा जा सकता है –

1. प्रथम चरण (1897-1916) – नेर्ृत्व- सािु सीर्ारम दास

वर्ा 1897 में इसी जागीर के एक गांव नगरधरपरु में एक पंचायत बल ु ाकर साधु सीतारामदास की अध्यक्षता में यह ननणाय नलया
गया नक वतामान नठकानेदार रावकृ ष्ण नसहं की मेवाड़ के महाराणा से नशकायत की जायेगी। इस काया हेतु ठाकरी पटेल एवं
नानजी पटेल को ननयि ु नकया गया। इस नशकायत पर मेवाड़ महाराणा ने अपने जांच अनधकारी हानमदहुसैन को ननयि ु नकया
परन्तु जांच उपरान्त कोई भी कायावाही नहीं हुई।

जांच उपरान्त कोई भी कायावाही नहीं होने से नबजोनलया नठकाने के नठकानेदार रावकृ ष्ण नसंह के हौसले और बल
ु ंद हो गये एवं
उसने प्रनतशोधवश नशकायत करने वाले ठाकरी पटेल एवं नानजी पटेल को मेवाड़ से ननष्कानशत करा नदया। साथ ही वर्ा
1903 ई0 में चंवरी नामक एक नया कर लागू कर नदया नजसके अन्तगात लड़की की शादी हेतु 5 रू0 का नकद कर का
प्रावधान था।

वर्ा 1906 ई0 में रावकृ ष्ण नसंह के ननःसंतान ननधन हो जाने के बाद, रावपृथ्वी नसंह इसका उत्तरानधकारी बना। नठकानेदार
बनते ही उसने तलवार बधं ाई कर (उत्तरानधकार कर) लागू कर नदया। नजसका नकसानों िारा परु जोर नवरोध नकया गया।

2. धिर्ीय चरण (1916-1923) – नेर्त्ृ व- धवजय धसहं पधथक

वर्ा 1916 ई0 में साधसु ीताराम दास के आग्रह पर नवजय नसहं पनथक इस आदं ोलन से जडु ें और इस आदं ोलन का नेतत्ृ व
ू नाम भपू नसंह था एवं यह बुलंदशहर (उ0प्र0) के ननवासी थे। 1917 ई0 में इनके िारा सावन-अमावस्या
संभाला। इनका मल
के नदन उपरामल पंचबोडा (13 सदस्य) का गठन नकया गया। इस पंचबोडा के सरपंच के पद पर मन्ना पेटल को ननयुि नकया
गया।

1918 ई0 में नवजय नसंह बम्बई में गााँधी जी से नमले तथा इस आंदोलन से अवगत कराया। गााँधी जी इनसे बहुत प्रभानवत हुए
एवं इन्हे राष्ट्रीय पनथक की उपाधी दी। गााँधी जी ने अपने महासनचव महादेव देशाई को इस आदं ोलन की जाच
ं हेतु भेजा।

यहीं 1919 ई0 में नवजय नसंह िारा वधाा महाराष्ट्र से राजस्थान के सरी नामक एक पत्र ननकाला गया, साथ ही इसी वर्ा यही
पर राजस्थान सेवक संघ की स्थापना भी इनके िारा की गयी। आगे चल कर कानपरु से छपने वाले समाचार पत्र के माध्यम से
नबजोनलया नकसान आदं ोलन को परु े भारत वर्ा में फै ला नदया गया।

गाधं ी जी िारा इस आदं ोलन में रूनच लेने के कारण निनटश सरकार ने वर्ा 1918-19 में एक और जाच ं आयोग का गठन
नबन्दलु ाला भट्टाचाया की अध्यक्षता में नकया। इसी आयोग िारा जांच के उपरान्त करों में कुछ कमी की गयी।

10 नसतम्बर 1923 में नवजय नसंह पनथक को बेंगू नामक एक अन्य नकसान आंदोलन से जडु ने के कारण नगरफ्तार कर नलया
गया।

3. र्र्ृ ीय चरण (1927-1941) – नेर्त्ृ व- माधणक्य लाल वमात

1927 ई0 से मानणक्य लाल वमाा ने नबजोनलया नकसान आदं ोलन का नेतत्ृ व संभाला। इसमें हररभाऊ उपाध्याय एवं
जमनालाल बजाज ने इनका साथ नदया। 1941 ई0 में मानणक्य लाल वमाा एवं मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी0 नवजय राघवाचाया
के मध्य एक समझौता हुआ नजसके अन्तगात नकसानों की सभी मांगे मान ली गयी तथा 44 वर्ा से चल रहे इस आंदोलन का
अंत हुआ।

नबजोनलया आंदोलन अपने अनहसं क स्वरूप के कारण अन्य नकसान आंदोलनों से अलग था। मानणक्य लाल वमाा का
“पंनछड़ा” गीत नजसने नकसानों में जोश भर नदया इसके कुछ प्रमख
ु नबन्दु रहें। इस आंदोलन में मनहलाओ ं ने भी बढ़-चढ़ कर
भाग नलया, नजनमें से अंजना देवी चौधरी, नारायण देवी वमाा व रमा देवी प्रमख
ु थीं। अंततः नकसानों की जीत के साथ 44 वर्ो
तक चले भारत के इस नकसान आंदोलन का अंत हुआ।

ू े जाने वािे महत्वपणू त प्रश्न एवां उनके उत्तर –


डबजोडिया डकसान आांदोिन से अक्सर पछ

प्रश्न:- धबजोधलया धकसान आदं ोलन कब हुआ था ?

उत्तर:- नबजोनलया नकसान आदं ोलन 1897 ई० में मेवाड़ क्षेत्र के नबजोनलया में शरू
ु हुआ था। नबजोनलया नकसान आदं ोलन
44 वर्ों तक चला था नजसके तीन चरण थे प्रथम चरण (1897-1916) तक, नितीय चरण (1916-1923) तक,
तृतीय एवं अंनतम चरण (1927-1941) तक।

प्रश्न:- धबजोधलया धकसान आंदोलन के नेर्ृत्वकर्ात कौन थे / धबजोधलया धकसान आंदोलन के जनक कौन थे

उत्तर:- नबजोनलया नकसान आंदोलन के नेतत्ृ वकताा या नबजोनलया नकसान आंदोलन के जनक साधु सीतारम दास थे। इन्होने
नबजोनलया नकसान आदं ोलन के प्रथम चरण (1897-1916) का नेतत्ृ व नकया। इनके बाद नितीय चरण (1916-1923)
का नेतत्ृ व नवजय नसंह पनथक िारा नकया गया। इनके बाद इस आंदोलन के तृतीय एवं अंनतम चरण (1927-1941) का
नेतत्ृ व मानणक्य लाल वमाा िारा नकया गया।

प्रश्न:- धबजोधलया धकसान आदं ोलन के प्रमख


ु कारण क्या थे ?

उत्तर:- नबजोनलया नकसान आदं ोलन के प्रमखु कारण नकसानों पर लगाए गए नवनभन्न प्रकार के 84 दमनकारी कर जैसे –
लाग, बाग, बेगार, लाटा, कंू ता, चवरी, तलवार बंधाई आनद थे। नजनके बोझ तले दबे नकसानों की हालत नदन-प्रनतनदन बद से
बदतर होती जा रही थी।

प्रश्न:- धबजोधलया धकसान आंदोलन का पररणाम क्या धनकला ?

उत्तर:- नबजोनलया नकसान आंदोलन के पररणाम स्वरूप 1941 ई0 को नकसानों की सभी मांगों को मान नलया गया और 44
वर्ा तक चला अनहसं क नबजोनलया नकसान आंदोलन समझौते के साथ समाप्त हो गया।

अहमदाबाद नमल मजदरू आंदोलन


अहमदाबाद नमल मजदरू आंदोलन कब हुआ था ? अहमदाबाद नमल मजदरू आंदोलन की प्रमख ु वजह क्या थीं ?
इस आंदोलन का नेतत्ृ व नकसने नकया ? अहमदाबाद नमल स्ट्राइक / अहमदाबाद नमल आंदोलन की सफलता के पररणाम क्या
हुए आनद प्रश्न अगर आप ढूढ़ रहें हैं तो इनके उत्तर नीचे नदए गए हैं।

वर्ा 1918 तक गजु रात एक प्रमख ु व्यापारी क्षेत्र के रूप में नवकनसत हो गया था। यहााँ पर मख्ु यतः कपास कपड़ा नमलें एवं अन्य
उद्योग प्रमख
ु ता से स्थानपत हो चक
ु े थे। यहीं पर अहमदाबाद में नमल मानलकों एवं नमल मज़दरू ों के मध्य हुए नववाद को अहमदाबाद
नमल मज़दरू आंदोलन के रूप में जाना जाता है।

अहमदाबाद धमल मजदूर आंदोलन की प्रमुख वजह क्या थीं ?

इस आंदोलन का प्रमख ु कारण नमल मानलकों एवं मज़दरू ों के बीच प्लेग बोनस नववाद था। 1917 में अहमदाबाद में प्लेग फै ल
जाने के कारण नमल मजदरू ों ने पलायन करना शरू ु कर नदया नजसे रोकने हेतु नमल मानलकों िारा मजदरू ों को प्रनत माह प्लेग बोनस
देना शरू
ु नकया गया। इस बीमारी के प्रकोप में कुछ कमी आने पर नमल मानलकों िारा नदए गए इस बोनस को बंद कर नदया गया।
ु (1914-1918) के बाद बढ़ी हुई महगं ाई के कारण इसे वापस न लेने एवं मानसक वेतन में ही
नमल मजदरू , प्रथम नवश्व यर्द्
जोड़ने की मांग करने लगे। यह मांग अस्वीकार होने पर मजदरू महात्मा गााँधी जी के नेतत्ृ व में इस आन्दोलन में बैठ गये।

अहमदाबाद धमल मजदूर आंदोलन कब हुआ ?

अहमदाबाद नमल मजदरू आंदोलन 15 माचा 1918 में गजु रात के अहमदाबाद में शुरू हुआ था। चंपारण आंदोलन की सफलता
को देखते हुए अनसयू ा बेन साराभाई िारा िारा गााँधी जी को आंदोलन करने के नलए आमंनत्रत नकया गया था। अनसयू ा बेन
साराभाई स्वयं एक नमल मानलक अंबालाल साराभाई की बहन भी थी, जोनक गााँधी जी के करीबी नमत्र थे एवं अंबालाल साराभाई
ने गजु रात में बने साबरमती आश्रम के ननमााण हेतु सबसे अनधक दान भी नदया था।

अहमदाबाद धमल मजदूर आदं ोलन का नेर्ृत्व धकसने धकया

अहमदाबाद नमल मजदरू आदं ोलन का शरुु आती नेतत्ृ व अनसयू ा बेन साराभाई िारा नकया गया। बाद में उनके आग्रह पर गााँधी जी
इस आंदोलन से जड़ु े। अनसू ुइया बेन साराबाई ने आंदोलन के समाप्त होने तक गााँधी जी का सहयोग नदया एवं इसके बाद भी कई
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में प्रमुख भूनमका ननभाई।

अहमदाबाद धमल मजदूर आंदोलन

अहमदाबाद नमल मजदरू आंदोलन को समाप्त करने हेतु नमल मानलकों िारा 20% वेतन वृनर्द् की पेशकश की गयी, परन्तु मजदरू
50% वेतन की मांग पर अड़े रहें। वेतन में बढ़ोतरी की मांग को अस्वीकार करने पर गााँधी जी, मजदरू ों के साथ आमरण अनशन
पर बैठ गए। यह हड़ताल 21 नदन तक चली और अंत में मामले की गम्भीरता को देखते हुए नमल मानलकों ने न्यायानधकरण में
जाने का फै सला नकया। न्यायानधकरण में गााँधी जी के सझु ाव पर मजदरू ों के वेतन में 35% की मांग को स्वीकार कर नलया गया।

अहमदाबाद धमल मजदूर आंदोलन की स्लर्ा के पररणाम क्या हुए

1. गााँधी जी का पहला सफल आमरण अनशन आंदोलन – यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गााँधी जी िारा नकया गया
पहला आमरण अनशन (आहार त्याग, उपवास) आदं ोलन था जोनक सफल रहा।
2. 1918 में ही गााँधी जी ने “अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोनसएशन” की स्थापना की।
3. भारतीय सफलता आदं ोलन में एक प्रमुख भूनमका।
4. “ट्रस्टीनशप का नसर्द्ांत”- इसी आंदोलन के दौरान गााँधी जी िारा “ट्रस्टीनशप का नसर्द्ांत” नदया गया। इसके अन्तगात
पंजू ीपनतयों / नमल मानलकों का यह कताव्य है नक वे अपने अन्तगात काया करने वाले मजदरू ों / कमाचाररयों के नहत का
ध्यान रखें।

नखलाफत आंदोलन, नखलाफत आंदोलन के मुख्य नेता और आंदोलन के पररणाम

नखलाफत आदं ोलन, नखलाफत आदं ोलन के मख्ु य नेता और आदं ोलन के पररणाम : नखलाफत आदं ोलन, नखलाफत आदं ोलन
के मुख्य नेता, आंदोलन की समय सारणी और आंदोलन के पररणाम क्या रहे इसकी सम्पणू ा जानकारी यहााँ दी गयी है।

धखला्र् आंदोलन की पृष्ठभूधम ?

नखलाफत आंदोलन की शरुु आत प्रथम नवश्व यर्द् ु के पश्चात हुई। प्रथम धवश्व युद्ध(1914-1918) में र्ुकी ने नमत्र राष्ट्रों के
नवरूर्द् जमतनी और ऑधस्िया का साथ नदया था, नजसमें नमत्र राष्ट्रों की जीत हुई और तुकी को हार का सामना करना पड़ा। यर्द् ु
के उपरान्त निटेन ने तक
ु ी के प्रनत कठोर नीनत अपनाते हुए कई ननणाय नलए, नजसमें खली्ा का पद समाप्त करना एवं तक ु ी का
नवभाजन भी शानमल था। ख़लीफ़ा अरबी भार्ा में ऐसे शासक को कहा जाता है जो नकसी इस्लामी राज्य या अन्य शररया (इस्लामी
काननू ) से चलने वाली राजकीय व्यवस्था का शासक हो।

प्रथम नवश्व यर्द्


ु के दौरान नहन्दस्ु तान के मसु लमानों का सहयोग प्राप्त करने के नलए निनटश सरकार ने ये वादा नकया था नक वो
तक ु ी के प्रनत उदारतापवू ाक व्यवहार करें गे परन्तु यर्द्
ु उपरान्त अंग्रेज अपने इस वादे को भूल गए और खलीफा नजसे सारे नवश्व के
मसु लमान अपना धानमाक गरू ु मानते थे, का पद ही समाप्त कर नदया।

धखला्र् आदं ोलन


ये आंदोलन सन् 1919 से 1924 तक चला था। इस आंदोलन का सीधे तौर पर भारत से कोई सम्बन्ध नहीं था। नखलाफत
आंदोलन का मुख्य उद्देश्य र्ुकी खली्ा के पद को पुनः स्थाधपर् करना तथा वहााँ के धानमाक क्षेत्रों से प्रनतबंधों को हटाना
था।

सन् 1919 में अली बि ं ुओ ं िारा अनखल भारतीय नखलाफत कमेटी का गठन नकया गया। नजसने इस आदं ोलन की शरुु आत
की। निनटश सरकार पर इस आंदोलन का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और वर्ा 1920 में सेव्रेस की संधि से तक
ु ी का नवभाजन
कर नदया गया।

धखला्र् आंदोलन के मुख्य नेर्ा

नखलाफत आंदोलन की शरुु आत अली बन्िुओ ं (शोकर् अली, मुहम्मद अली) िारा की गयी। मौलाना अबुल कलाम
आजाद ने “अल धहलाल” और मोहम्मद अली ने “कामरेि” समाचार पत्रों से नखलाफत आंदोलन का खबू प्रचार प्रसार
नकया।

आगे चल कर महात्मा गाुँिी जी भी इस आदं ोलन से जड़ु गए और इस आदं ोलन की लोकनप्रयता और भी बड़ गयी। अधखल
भारर्ीय धखला्र् कमेटी का पहला सम्मेलन नदल्ली में 24 नवंबर 1919 को हुआ इसकी अध्यक्षता महात्मा गााँधी िारा
की गई।

महात्मा गााँधी के इस आंदोलन से जड़ु ते ही कांग्रेस के बड़े नेता भी इस आंदोलन से जड़ु गये। गााँधी जी का इस आंदोलन से जड़ु ने
का मुख्य कारण यह था नक वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में मनु स्लम सहयोग को बढ़ाना चाहते थे। अगस्त 1920 में गााँधी जी
ने इसे असहयोग आदं ोलन से जोड़ नदया। इसी कारण इन दोनो आदं ोलन को जड़ु वा आदं ोलन भी कहा जाता है।

धखला्र् आंदोलन समय सारणी

धदनांक घटना

1919 अनखल भारतीय नखलाफत कमेटी का गठन नकया गया ।

17 अक्टूबर
अनखल भारतीय नखलाफत नदवस मनाया गया ।
1919

24 नवंबर
महात्मा गााँधी ने नदल्ली में नखलाफत कमेटी के पहले सम्मेलन की अध्यक्षता की ।
1919

फरवरी 1920 नखलाफत सनमनत का एक दल तत्कालीन वायसराय लाडा चेमस्फोडा से नमलने गया ।
मई 1920 सेनिज़ की संनध से तक
ु ी का नवभाजन कर नदया गया ।

नखलाफत सनमनत का इलाहबाद अनधवेशन । यही पर सरकारी स्कूल और न्यायालय का बनहष्कार शुरू नकया
जनू 1920
गया । इसी अनधवेशन के बाद से इस आदं ोलन का नेतत्ृ व पणू ात्या माहात्मा गााँधी िारा नकया गया ।

1 अगस्त 1920 बाल गंगाधर नतलक जी की मृत्यु ।

31 अगस्त
गााँधी जी िारा असहयोग आंदोलन की शरू
ु आत ।
1920

वर्ा 1924 मस्ु तफा कमाल पाशा की सरकार ने तक


ु ी में खलीफा के पद को परू ी तरह समाप्त कर नदया ।
आदं ोलन के पररणाम

वर्ा 1921 में अली बन्धओ ु ं (शोकत अली, महु म्मद अली) िारा नदए गए एक भार्ण नजसमें उन्होंने मसु लमानों को इस्लाम का
हवाला देते हुए सेना छोड़ने के नलए कहा था, नजसके कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। इसी के बाद से ये आंदोलन की गनत धीमी हो
गयी और वर्ा 1922 आते-आते ये आंदोलन काफी मंद हो चक ु ा था।

वर्ा 1924 में मुस्र््ा कमाल पाशा के नेतत्ृ व में तक


ु ी में एक जनतांनत्रक सरकार का गठन हुआ तथा खलीफा के पद को परू ी
तरह से समाप्त कर नदया गया, और इसी के साथ नखलाफत आदं ोलन भी समाप्त हो गया।

भले ही ये आदं ोलन परू ी तरह से सफल न रहा हो नफर भी इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं जोनक ननम्नवत हैं-

1. 31 अगस्त 1920 को महात्मा गााँधी ने मनु स्लम नेताओ ं को असहयोग आंदोलन से जोड़ नदया
2. नहन्दु – मनु स्लम एकता को बल नमला

जनलयांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल, 1919)

जनलयावं ाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Hatyakand) की घटना 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के
नदन अमृतसर के जनलयांवाला बाग में हुई थी। जहााँ एकनत्रत ननहत्थे लोगों को जनरल रे नजनाल्ड एडवडा डायर (Reginald
Edward Harry Dyer) के आदेश पर गोनलयों से छलनी कर नदया गया। माना जाता है नक जनलयांवाला बाग की यह
अमानवीय घटना ही भारत में निनटश शासन के अंत की शुरुआत बनी।
जनलयांवाला बाग हत्याकांड

▪ वर्ा 1919 में रॉलेट एक्ट पास हुआ था। नजसका नवरोध गााँधी जी, सत्याग्रह के िारा कर रहे थे। नवरोध प्रदशानों के
नलए जनसभा, प्राथाना सभा आनद का आयोजन नकया जा रहा था।
▪ रॉलेट एक्ट के नवरोध में एक देश व्यापी सत्याग्रह के नलए 6 अप्रैल की तारीख को चनु ा गया था। परन्तु कुछ गड़बड़ी
के कारण ये नवद्रोह समय से पवू ा ही शरूु हो गया। साथ ही इसने अनहसं क सत्याग्रह के स्थान पर नहसं क रूप धारण कर
नलया।
▪ पजं ाब में नस्थनत और भी नबगड़ गयी नजस कारण निनटश सरकार ने यहां सैननक शासन (माशाल लॉ) लागू कर नदया।
▪ 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के नदन अमृतसर के जनलयांवाला बाग में एक सावाजननक सभा का आयोजन नकया
गया।
▪ सभा में भाग लेने वाले अनधकांश लोग आस-पास के गााँव से आये हुए ग्रामीण थे, जो सरकार िारा शहर में लगाए हुए
प्रनतबंध से बेखबर थे।
▪ ये लोग 10 अप्रैल, 1919 को सत्याग्रनहयों पर गोली चलाने तथा अपने नेताओ ं डा० सत्यपाल व डा० नकचलू को
पंजाब से बाहर भेजे जाने का नवरोध कर रहे थे।
▪ हसं राज नामक एक भारतीय ने इस सभा की मुखनबरी निनटश सरकार को कर दी।
▪ जनरल डायर (रे नजनाल्ड एडवडा डायर) ने इस सभा के आयोजन को सरकारी आदेश की अवहेलना समझा तथा सभा
स्थल को सशि सैननकों के साथ घेर नलया।
▪ डायर ने नबना नकसी पूवा चेतावनी के सभी पर गोनलयां चलाने का आदेश दे नदया। लोगों पर तब तक गोनलयां चलवाई ं
गयीं जब तक सैननकों की गोनलयां समाप्त नहीं हो गयीं।
▪ सभा स्थल के सभी ननकास मागा सैननकों िारा नघरे होने के कारण सभा में सनम्मनलत ननहत्थे लोग चारों ओर से
गोनलयों से छलनी होते रहे।
▪ इस घटना में लगभग 1000 से अनधक लोग मारे गये, नजसमें यवु ा, मनहलायें, बढ़ू े तथा बच्चे शानमल थे।
▪ जनलयांवाला बाग हत्याकांड से परू ा देश स्तब्ध रह गया। वहशी क्रूरता ने देश को मौन कर नदया।
▪ रवीन्द्रनाथ टैगोर ने नवरोध स्वरूप अपनी “नाइटहुड” की उपानध त्याग दी तथा शंकर नायर ने वायसराय की
कायाकाररणी से त्याग पत्र दे नदया।
▪ 18 अप्रैल, 1919 को गााँधी जी ने अपना सत्याग्रह वापस ले नलया क्योंनक नहसं ा हो रही थी।
▪ अंग्रेजी सरकार ने जनरल डायर को प्रशनस्त पत्र से सम्माननत नकया था।
▪ इस हत्याकाडं की नवश्व भर में ननदं ा होने लगी नजस कारण निनटश सरकार ने दबाव में आकर इस हत्याकाडं की जाच ं
हेतु हटं र कमीशन को ननयि ु नकया। नजसकी नसफाररशों के आधार पर जनरल डायर को पदावनत कर उसे कनाल बना
नदया गया, साथ ही उसे वापस निटेन भेज नदया गया। जहां पर 1927 में िेन हेमरे ज (brain hemorrhage) के
कारण उसकी मृत्यु हो गयी।
▪ इस घटना में सरदार उधम नसंह बच गये थे। आगे चलकर वे क्रानं तकारी बने तथा उन्होंने इस घटना का बदला 21 वर्ों
बाद 13 माचा, 1940 को इग्ं लैंड जाकर जनरल डायर के हैड, माइकल ओ डायर(उस समय पंजाब के लेनफ्टनेंट
गवनार) की हत्या करके नलया।
▪ 4 जनू 1940 को सरदार उधम नसंह को माइकल ओ डायर (Michael O’Dwyer) की हत्या का दोर्ी
ठहराया गया और 31 जल
ु ाई 1940 को उन्हें पेंटननवले जेल में फांसी दे दी गई।

MAHATMA GANDHI

जन्म अक्टूबर 02, 1869

मृत्यु जनवरी 30, 1948

जन्म-स्थान पोरबंदर, कानठयावाड़

परू ा नाम मोहनदास करमचंद गााँधी

नपता का नाम करमचंद गााँधी

माता का नाम पतु लीबाई गााँधी

पत्नी का नाम कस्तरू बा गााँधी


गाुँिी जी का प्रारंधभक जीवन

गााँधी जी का जन्म गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर में 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके नपता करमचन्द गान्धी
निनटश राज के समय कानठयावाड़ की एक छोटी सी ररयासत के दीवान थे। मोहनदास की माता पतु लीबाई थीं वह अत्यनधक
धानमाक प्रनवनत्त की थीं नजसका प्रभाव युवा मोहनदास पड़ा और इन्ही मूल्यों ने आगे चलकर उनके जीवन में महत्वपूणा भनू मका
ननभायी।

सन 1883 में साढे 13 साल की उम्र में ही उनका नववाह 14 साल की कस्तरू बा से करा नदया गया। जब मोहनदास 15 वर्ा
के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म नलया लेनकन कुछ नदनों में ही उसकी मृत्यु हो गई। उनके नपता करमचन्द गााँधी भी इसी
साल (1885) में चल बसे। बाद में मोहनदास और कस्तरू बा के चार सन्तान हुई ं – हरीलाल गान्धी (1888), मनणलाल
गान्धी (1892), रामदास गान्धी (1897) और देवदास गांधी (1900)।

गाुँिी जी की धशक्षा-दीक्षा

उनकी नमनडल स्कूल की नशक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की नशक्षा राजकोट में हुई। सन 1887 में उन्होंने मैनट्रक की परीक्षा
अहमदाबाद से उत्तीणा की। इसके बाद मोहनदास ने भावनगर के शामलदास कॉलेज में दानखला नलया पर ख़राब स्वास्थ्य और
गृह नवयोग के कारण वह कॉलेज छोड़कर पोरबंदर वापस चले गए। वर्ा 1888 में मोहनदास यनू नवनसाटी कॉलेज लन्दन में
काननू की पढाई करने और बैररस्टर बनने के नलये इग्ं लैंड चले गये। जनू 1891 में गााँधी भारत लौट गए और उन्हें अपनी मां के
मौत के बारे में पता चला। उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की पर उन्हें कोई खास सफलता नहीं नमली। इसके बाद वो
राजकोट चले गए जहााँ उन्होंने जरूरतमन्दों के नलये मक ु दमे की अनजायााँ नलखने का काया शरू
ु कर नदया परन्तु कुछ समय बाद
उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा। आनख़रकार सन् 1893 में एक भारतीय फमा से दनक्षण अफ्ीका में एक वर्ा के करार पर
वकालत का काया स्वीकार कर नलया।

गाुँिी जी दधक्षण अफ्ीका में (1893 – 1914)

गााँधी 24 साल की उम्र में दनक्षण अफ्ीका पहुचं े। उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दनक्षण अफ्ीका में नबताये जहााँ उनके
राजनैनतक नवचार और नेतत्ृ व कौशल का नवकास हुआ। दनक्षण अफ्ीका में उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ा।
दनक्षण अफ्ीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए उनके मन में निनटश साम्राज्य के अन्तगात भारनतयों के सम्मान
तथा स्वयं अपनी पहचान से सम्बंनधत प्रश्न उठने लगे। उन्होंने भारनतयों की नागररकता सम्बंनधत मद्दु े को भी दनक्षण अफ़्रीकी
सरकार के सामने उठाया और सन 1906 के ज़ल ु ु यर्द्
ु में भारतीयों को भती करने के नलए निनटश अनधकाररयों को सनक्रय रूप
से प्रेररत नकया। गााँधी के अनुसार अपनी नागररकता के दावों को काननू ी जामा पहनाने के नलए भारतीयों को निनटश यर्द् ु प्रयासों
में सहयोग देना चानहए।

भारर्ीय स्वर्िं र्ा सग्रं ाम का सघं र्त (1916 – 1945)


वर्ा 1914 में गांधी दनक्षण अफ्ीका से भारत वापस लौट आये। इस समय तक गांधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप
में प्रनतनष्ठत हो चक
ु े थे। वह उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृ ष्ण गोखले के कहने पर भारत आये थे और शरू ु आती दौर में गााँधी
के नवचार बहुत हद तक गोखले के नवचारों से प्रभानवत थे। प्रारंभ में गााँधी ने देश के नवनभन्न भागों का दौरा नकया और
राजनैनतक, आनथाक और सामानजक मद्दु ों को समझने की कोनशश की। भारत में आने के बाद गााँधी जी ने कुछ आन्दोलन भी
नकये जो इस प्रकार है –

चम्पारण सत्याग्रह (1917)

15 अप्रैल, 1917 को राजकुमार शक्ु ल के साथ मोहनदास करमचदं गाधं ी चपं ारण, मोनतहारी पहुचे थे। बाबू गोरख प्रसाद के
घर पर उन्हें ठहराया गया। नबहार के उत्तर-पनश्चम में नस्थत चंपारण वह इलाका है जहां सत्याग्रह की नींव पड़ी सन 1917 में
नबहार के चम्पारण में हुए आंदोलनों ने गााँधी को भारत में पहली राजनैनतक सफलता नदलाई। चपं ारण में निनटश ज़मींदार
नकसानों को खाद्य फसलों की बजाए नील की खेती करने के नलए मजबरू करते थे और सस्ते मूल्य पर फसल खरीदते थे नजससे
नकसानों की नस्थनत बदतर होती जा रही थी। इस कारण वे अत्यनधक गरीबी से नघर गए। एक नवनाशकारी अकाल के बाद
अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी कर लगा नदए नजनका बोझ नदन प्रनतनदन बढता ही गया। कुल नमलाकर नस्थनत बहुत ननराशाजनक
थी। गांधी जी ने जमींदारों के नखलाफ़ नवरोध प्रदशान और हड़तालों का नेतत्ृ व नकया नजसके बाद गरीब और नकसानों की मांगों
को माना गया।

खेड़ा सत्याग्रह (1918)

खेड़ा सत्याग्रह गुजरात के खेड़ा नजले में नकसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के नवरुर्द् एक सत्याग्रह (आन्दोलन) था।
सन 1918 में गजु रात नस्थत खेड़ा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था नजसके कारण नकसान और गरीबों की नस्थनत
बदत् र हो गयी और लोग कर माफ़ी की मागं करने लगे। खेड़ा में गााँधी जी के मागादशान में सरदार पटेल ने अग्रं ेजों के साथ इस
समस्या पर नवचार नवमशा के नलए नकसानों का नेतत्ृ व नकया। इसके बाद अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मनु ि देकर सभी कै नदयों
को ररहा कर नदया। इस प्रकार चपं ारण और खेड़ा के बाद गाधं ी की ख्यानत देश भर में फै ल गई और वह स्वतंत्रता आन्दोलन के
एक महत्वपणू ा नेता बनकर उभरे ।

धखला्र् आन्दोलन (1919 – 1924)

नखलाफत आंदोलन (1919-1924) भारत में मुख्यत: मसु लमानों िारा चलाया गया राजनीनतक-धानमाक आंदोलन था। इस
ु ी में खलीफा के पद की पनु :स्थापना कराने के नलये अग्रं ेजों पर दबाव बनाना था।
आदं ोलन का उद्देश्य तक

असहयोग आन्दोलन (1921)


गााँधी जी का मानना था की भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारनतयों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब नमलकर
अग्रं ेजों के नखलाफ हर बात पर असहयोग करें तो आजादी सभं व है। गााँधी जी की बढती लोकनप्रयता ने उन्हें काग्रं ेस का सबसे
बड़ा नेता बना नदया था और अब वह इस नस्थनत में थे नक अंग्रेजों के नवरुर्द् असहयोग, अनहसं ा तथा शांनतपूणा प्रनतकार जैसे
अिों का प्रयोग कर सकें । इसी बीच जनलयावाल ं ा नरसहं ार ने देश को भारी आघात पहुचं ाया नजससे जनता में क्रोध और नहसं ा
की ज्वाला भड़क उठी थी। गांधी जी ने स्वदेशी नीनत का आह्वान नकया नजसमें नवदेशी वस्तओ ु ं नवशेर्कर अंग्रेजी वस्तओ
ु ं का
बनहष्कार करना था। उनका कहना था नक सभी भारतीय अंग्रेजों िारा बनाए विों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों िारा हाथ से
बनाई गई खादी पहनें। उन्होंने परू
ु र्ों और मनहलाओ ं को प्रनतनदन सतू कातने के नलए कहा। इसके अलावा महात्मा गााँधी ने
निटेन की शैनक्षक संस्थाओ ं और अदालतों का बनहष्कार, सरकारी नौकररयों को छोड़ने तथा अंग्रेजी सरकार से नमले तमगों और
सम्मान को वापस लौटाने का भी अनरु ोध नकया। असहयोग आन्दोलन को अपार सफलता नमल रही थी नजससे समाज के सभी
वगों में जोश और भागीदारी बढ गई लेनकन फरवरी 1922 में इसका अंत चौरी-चौरा कांड के साथ हो गया। इस नहंसक घटना
के बाद गाधं ी जी ने असहयोग आदं ोलन को वापस ले नलया। उन्हें नगरफ्तार कर राजद्रोह का मक ु दमा चलाया गया नजसमें उन्हें
छह साल कै द की सजा सनु ाई गयी। ख़राब स्वास्थ्य के चलते उन्हें फरवरी 1924 में सरकार ने ररहा कर नदया।

बारदोली सत्याग्रह (1928)

सन् 1928 में जब साइमन कनमशन भारत में आया, तब उसका राष्ट्रव्यापी बनहष्कार नकया गया था। इस बनहष्कार के कारण
भारत के लोगों में आजादी के प्रनत अदम्य उत्साह था। जब कनमशन भारत में ही था, तब बारदोली का सत्याग्रह भी प्रारंभ हो
गया था। बारदोली गजु रात नजले में नस्थत है। बारदोली में सत्याग्रह करने का प्रमख
ु कारण ये था नक, वहााँ के नकसान जो वानर्ाक
लगान दे रहे थे, उसमें अचानक 30% की वृर्द्ी कर दी गई थी और बढा हुआ लगान 30 जनू 1927 से लागु होना था। इस
बढे हुए लगान के प्रनत नकसानों में आक्रोश होना स्वाभानवक था। मम्ु बई राज्य की नवधानसभा ने भी इस वृर्द्ी लगान का नवरोध
नकया था। नकसानों का एक मंडल उच्च अनधकाररयों से नमलने गया परंतु उसका कोई असर नही हुआ। अनेक जन सभाओ ं िारा
भी इस लगान का नवरोध नकया गया नकन्तु मम्ु बई सरकार टस से मस न हुई। तब नववश होकर इस लगान के नवरोध में सत्याग्रह
आन्दोलन करने का ननणाय नलया गया। नकसानों की एक नवशाल सभा बारदोली में आयोनजत की गई, नजसमें सवासम्मनत से ये
ननणाय नलया गया नक बढा हुआ लगान नकसी भी कीमत पर नही नदया जायेगा। जो सरकारी कमाचारी लगान लेने आयेंगे उनके
साथ असहयोग नकया जायेगा क्योंनक उस दौरान सरकारी कमाचाररयों के नलए खाने एवं आने-जाने की व्यवस्था नकसानों िारा
की जाती थी। इस आन्दोलन की नजम्मेदारी श्री वल्लभ भाई पटेल को सौंपी गई। नजसे उन्होने गााँधी जी की सलाह पर स्वीकार
नकया। बारदोली में जब सरकारी कमाचाररयों को लगान नही नमला तो वे नकसानो के जानवरों को उठाकर ले जाने लगे। नकसानो
की चल अचल सम्पनत्त भी कुका की जाने लगी। इस अत्याचार के नवरोध में नवठ्ठल भाई पटेल जो की वल्लभ भाई पटेल के बङे
भाई थे, उन्होने सरकार को चेतावनी दी नक, यनद ये अत्याचार बदं नही हुआ तो वे के नन्द्रय असेम्बली के अध्यक्ष पद से
त्यागपत्र दे देंगे।

स्वराज और नमक सत्याग्रह (1930)

31 नदसम्बर 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया और कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 का नदन भारतीय
स्वतत्रं ता नदवस के रूप में मनाया। इसके पश्चात गाधं ी जी ने सरकार िारा नमक पर कर लगाए जाने के नवरोध में नमक सत्याग्रह
चलाया नजसके अंतगात उन्होंने 12 माचा से 6 अप्रेल तक अहमदाबाद से दांडी, गजु रात, तक लगभग 388 नकलोमीटर की
यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य स्वयं नमक उत्पन्न करना था। इस यात्रा में हजारों की संख्‍या में भारतीयों ने भाग नलया और
अंग्रेजी सरकार को नवचनलत करने में सफल रहे। इस दौरान सरकार ने लगभग 60 हज़ार से अनधक लोगों को नगरफ्तार कर
जेल भेजा। इसके बाद लाडा इरनवन के प्रनतनननधत्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ नवचार-नवमशा करने का ननणाय नलया
नजसके फलस्वरूप गाधं ी-इरनवन सनं ध पर माचा 1931 में हस्ताक्षर हुए। गाधं ी-इरनवन संनध के तहत निनटश सरकार ने सभी
राजनैनतक कै नदयों को ररहा करने के नलए सहमनत दे दी। इस समझौते के पररणामस्वरूप गांधी कांग्रेस के एकमात्र प्रनतनननध के
रूप में लंदन में आयोनजत गोलमेज सम्मेलन में भाग नलया परन्तु यह सम्मेलन कांग्रेस और दसू रे राष्ट्रवानदयों के नलए घोर
ननराशाजनक रहा। इसके बाद गाधं ी नफर से नगरफ्तार कर नलए गए और सरकार ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोनशश
की।

1934 में गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे नदया। उन्होंने राजनीनतक गनतनवनधयों के स्थान पर अब ‘रचनात्मक
कायाक्रमों’ के माध्यम से ‘सबसे ननचले स्तर से’ राष्ट्र के ननमााण पर अपना ध्यान लगाया। उन्होंने ग्रामीण भारत को नशनक्षत
करने, छुआछूत के नख़लाफ़ आन्दोलन जारी रखने, कताई, बनु ाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की
आवश्यकताओ ं के अनक ु ू ल नशक्षा प्रणाली बनाने का काम शरू ु नकया।

हररजन आंदोलन (1932)

दनलत नेता बी आर अम्बेडकर की कोनशशों के पररणामस्वरूप अंग्रेज सरकार ने अछूतों के नलए एक नए संनवधान के अंतगात
पृथक ननवााचन मंजरू कर नदया था। येरवडा जेल में बंद गांधीजी ने इसके नवरोध में नसतंबर 1932 में छ: नदन का उपवास
नकया और सरकार को एक समान व्यवस्था (पनू ा पैक्ट) अपनाने पर मजबरू नकया। अछूतों के जीवन को सधु ारने के नलए गांधी
जी िारा चलाए गए अनभयान की यह शरू ु आत थी। 8 मई 1933 को गाधं ी जी ने आत्म-शनु र्द् के नलए 21 नदन का उपवास
नकया और हररजन आंदोलन को आगे बढ़ाने के नलए एक-वर्ीय अनभयान की शरुु आत की। अमबेडकर जैसे दनलत नेता इस
आन्दोलन से प्रसन्न नहीं थे और गाधं ी जी िारा दनलतों के नलए हररजन शब्द का उपयोग करने की ननदं ा की।

भारर् छोड़ो आन्दोलन (1942)

ु के आरंभ में गाधं ी जी अग्रं ेजों को ‘अनहसं ात्मक नैनतक सहयोग’ देने के पक्षधर थे परन्तु काग्रं ेस के बहुत से
नितीय नवश्व यर्द्
नेता इस बात से नाखुश थे नक जनता के प्रनतनननधयों के परामशा नलए नबना ही सरकार ने देश को यर्द् ु में झोंक नदया था। गांधी
ने घोर्णा की नक एक तरफ भारत को आजादी देने से इक ं ार नकया जा रहा था और दसू री तरफ लोकतानं त्रक शनियों की जीत
के नलए भारत को यर्द्ु में शानमल नकया जा रहा था। जैस-े जैसे यर्द् ु बढता गया गांधी जी और कांग्रेस ने “भारत छोड़ो”
आन्दोलन की मांग को तीव्र कर नदया। ‘भारत छोड़ो’ स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ा का सवाानधक शनिशाली आंदोलन बन
गया नजसमें व्यापक नहसं ा और नगरफ्तारी हुई। इस संघर्ा में हजारों की संख्‍या में स्वतंत्रता सेनानी या तो मारे गए या घायल हो
गए और हजारों नगरफ्तार भी कर नलए गए। गाधं ी जी ने यह स्पष्ट कर नदया था नक वह निनटश यर्द् ु प्रयासों को समथान तब तक
नहीं देंगे जब तक भारत को तत्‍काल आजादी न दे दी जाए। उन्होंने यह भी कह नदया था नक व्यनिगत नहसं ा के बावजूद यह
आन्दोलन बन्द नहीं होगा। उनका मानना था की देश में व्याप्त सरकारी अराजकता असली अराजकता से भी खतरनाक है। गााँधी
जी ने सभी कांग्रेनसयों और भारतीयों को अनहसं ा के साथ करो या मरो (डू ऑर डाय) के साथ अनुशासन बनाए रखने को कहा।

जैसा नक सबको अनुमान था अंग्रेजी सरकार ने गांधी जी और कांग्रेस कायाकारणी सनमनत के सभी सदस्यों को मबु ंई में 9
अगस्त 1942 को नगरफ्तार कर नलया और गाधं ी जी को पणु े के आंगा खां महल ले जाया गया जहााँ उन्हें दो साल तक बदं ी
बनाकर रखा गया। इसी दौरान उनकी पत्नी कस्तरू बा गांधी का देहांत बाद 22 फरवरी 1944 को हो गया और कुछ समय बाद
गाधं ी जी भी मलेररया से पीनड़त हो गए। अग्रं ेज़ उन्हें इस हालत में जेल में नहीं छोड़ सकते थे इसनलए जरूरी उपचार के नलए 6
मई 1944 को उन्हें ररहा कर नदया गया। आनशंक सफलता के बावजदू भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को संगनठत कर नदया
और नितीय नवश्व यर्द्
ु के अतं तक निनटश सरकार ने स्पष्ट सक ं े त दे नदया था की जल्द ही सत्ता भारतीयों के हााँथ सौंप दी
जाएगी। गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन समाप्त कर नदया और सरकार ने लगभग 1 लाख राजनैनतक कै नदयों को ररहा कर
नदया।

गाुँिी जी की हत्या

30 जनवरी 1948 को राष्ट्रनपता महात्मा गााँधी की नदल्ली के ‘नबरला हाउस’ में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। गााँधी
जी एक प्राथाना सभा को संबोनधत करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथरू ाम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोनलयां दाग दी। ऐसे
माना जाता है की ‘हे राम’ उनके मख
ु से ननकले अंनतम शब्द थे। नाथरू ाम गोडसे और उसके सहयोगी पर मक ु दमा चलाया गया
और 1949 में उन्हें मौत की सजा सनु ाई गयी।

गांिीजी से सम्बंधिर् महत्वपूणत प्रश्नोत्तर

▪ गााँधी जी का नववाह नकतने वर्ा के आयु में हुआ था – 13 वर्ा


▪ गााँधी जी के नवदेशी वस्तुओ ं के बनहष्कार के आंदोलन का लक्ष्य था – कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन
▪ नतरंगे को राष्ट्र ध्वज के रूप में कब स्वीकार नकया गया है – लाहौर काग्रं ेस
▪ नमक सत्याग्रह नकस सन में प्रारंभ हुआ था – 1930 में
▪ गााँधी की ने ‘दाडं ी यात्रा’ कहां से शरू
ु की थी – अहमदाबाद
▪ महात्मा गााँधी िारा सनवनय अवज्ञा आंदोलन नकस वर्ा में शरू ु नकया गया था – 1930
▪ गांधी जी की दांडी यात्रा उदहारण है – सनवनय अवज्ञा का
▪ गााँधी जी की महत्वपणू ा नशक्षाएं कौन सी हैं – सत्य और अनहसं ा
▪ महात्मा गााँधी के नमक सत्याग्रह का अंनतम लक्ष्य क्या था – भारत के नलए पणू ा स्वराज
▪ नकस आदं ोलन की नवफलता के बाद ‘स्वराज्य पाटी’ बनाई गई थी – असहयोग आदं ोलन
▪ असहयोग आंदोलन का आरंभ नकया गया – 1920 ई. में
▪ ‘स्वराज्य पाटी’ नकन ने नमलकर बनाई थी – मोतीलाल नेहरू और सी. आर. दास
▪ गााँधी जी के साथ ‘नमक सत्याग्रह’ का नेतत्ृ व नकसने नकया था – सरोनजनी नायडू
▪ ‘नमक काननू ’ के उल्लंघन में गााँधी जी ने नकस आंदोलन की शरुु आत की थी – सनवनय अवज्ञा आंदोलन
▪ गााँधी जी का नप्रय गीत ‘वैष्णव जन तो …” के रचनयता हैं – नरसी मेहता
▪ नकसने कहा है “स्वाद का वास्तनवक स्थान नजह्वा नहीं, बनल्क मन है।” – महात्मा गााँधी
▪ नकसने कहा था “सत्य परम तत्व है और वह ईश्वर है” – महात्मा गााँधी
▪ गााँधी जी को माना जाता है – दाशाननक अराजकतावादी
▪ महात्मा गााँधी को “अधानग्न फकीर” नकस ने कहा था – नवंस्टन चनचाल
▪ महात्मा गााँधी के साथ 1931 में समानता की शतों पर निनटश सरकार की बातचीत पर सबसे जोरदार नवरोध नकसने
नकया था – नवस्ं टन चनचाल ने
▪ “करें गे या मरें ग”े या “करो या मरो” गााँधी जी ने यह वाक्य नकस जन-आंदोलन में कहे थे – भारत छोड़ो आंदोलन
▪ “भारत छोड़ो आदं ोलन” का नारा नकसने नदया था – महात्मा गााँधी
▪ “भारत छोड़ो आंदोलन” की शरुु आत हुई थी – वर्ा 1942 ई. में
▪ गााँधी जी ने नकस धानमाक ग्रंथ को अपनी माता कहा था – भगवद्गीता
▪ गााँधी जी ने नकस समाचार पत्र का सपं ादन गााँधी जी ने नकया था – “नवजीवन”, “हररजन” और “यगं इनं डया”
▪ वर्ा 1933 में गााँधी जी िारा संपानदत समाचार पत्र का क्या नाम था – यंग इनं डया
▪ महात्मा गााँधी िारा शरू ु की गयी साप्तानहक पनत्रका कौन सी थी – यगं इनं डया
▪ गााँधी जी को सवाप्रथम “राष्ट्रनपता” बोलकर नकसने सम्बोनधत नकया था – सभु ार्चन्द्र बोस
▪ दनक्षण अफ्ीका में महत्मा गााँधी जी िारा प्रकानशत की गयी पनत्रका का नाम था – इनं डयन ओपीननयन
▪ गााँधी जी के नाम के साथ “महात्मा” नाम जोड़ा गया था – चम्पारन सत्याग्रह के दौरान
▪ “अन्तयोदय” का नवचार नकसने नदया था – महात्मा गााँधी
▪ वर्ा 1919 में गााँधी जी ने नकसके नवरोध में ‘सत्याग्रह सभा’ का आयोजन नकया था – रौलेट एक्ट
▪ महात्मा गााँधी ने पहली बार सत्याग्रह का प्रयोग कहााँ नकया था – दनक्षण अफ्ीका
▪ गााँधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन नकस वर्ा शरू ु नकया था – 1919
▪ नकस आंदोलन के साथ महात्मा गााँधी ने भारतीय राजनीनत में पदापाण नकया था – चम्पारण
▪ चम्पारण संघर्ा के दौरान महात्मा गााँधी के साथ कौन-कौन शानमल थे – राजेन्द्र प्रसाद और अनग्रु ह नारायण नसंह
▪ गााँधी जी ने 1930 में ‘दाडं ी माचा’ का आयोजन नकस कारण से नकया था – नमक के ऊपर कर लगाये जाने के
कारण
▪ गजु रात में ‘साबरमती आश्रम’ की स्थापना गााँधी जी ने नकस वर्ा की थी – 1917 में
▪ गााँधी जी ने नकस नवदेशी पत्रकार को दांडी माचा के दौरान अपने साबरमती आश्रम में ठहराया था – बेव नमलर
▪ नमक सत्याग्रह एवं दांडी यात्रा पर सरकार की तत्कालीन प्रनतनक्रया क्या थी – इन्हें गंभीरता से नहीं नलया
▪ नकस कारण से महात्मा गााँधी ने 20 नसतम्बर, 1932 को ‘यरवदा जेल’ में आमरण अनशन प्रारम्भ नकया था –
रै म्जे मैक्डोनाल्ड के साम्प्रदानयक अवाडा के नवरुर्द्
▪ महात्मा गााँधी ने व्यनिगत सत्याग्रह के नलए प्रथम सत्याग्रही के रूप में नकसे चनु ा था – नवनोबा भावे
▪ भारत छोड़ो आंदोलन कब प्रारम्भ हुआ था – 1942 ई. में.
▪ मोहनदास करमचंद गााँधी की माता का नाम है – पतु लीबाई
▪ गााँधी जी ने नकस आदं ोलन को ‘चौरी-चौरा काडं ’ के बाद वापस ले नलया था – असहयोग आदं ोलन
▪ गााँधी जी ने नकस नसर्द्ांत के माध्यम से आनथाक असमानताओ ं को दरू करने का प्रयास नकया था – न्यासधाररता
नसर्द्ातं
▪ एक समय गााँधी जी के सहयोगी रहे, बाद में उनसे अलग होकर एक आमल ू पररवतावादी आंदोलन “आत्म-सम्मान
आंदोलन” चलाने वाले व्यनि कौन थे – ई. वी. रामास्वामी नायकर
▪ गााँधी-इरनवन समझौता नकससे सम्बनन्धत है – सनवनय अवज्ञा आंदोलन
▪ महात्मा गााँधी नकसकी कृ नतयों और रचनाओ ं से अत्यनधक प्रभानवत थे – नलयो टॉलस्टॉय
▪ गााँधी जी से दनक्षण अफ्ीका में नमलने कौन गया था – गोपाल कृ ष्ण गोखले
▪ महात्मा गााँधी ने सनवनय अवज्ञा आंदोलन वर्ा 1930 में नकस स्थान से प्रारम्भ नकया था – साबरमती आश्रम
▪ गााँधी जी खादी को नकसका प्रतीक मानते थे – आनथाक स्वतत्रं ता का
▪ महात्मा गााँधी के अनसु ार संसार में सबसे शनिशाली बल कौन सा है – वीर की अनहसं ा
▪ 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने का मुख्य कारण था – नक्रप्स नमशन की नवफलता
▪ भारत छोड़ो आदं ोलन 1942 में नकस महीने में शरू ु नकया गया था – अगस्त
▪ कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रस्ताव नकस वर्ा पाररत नकया था – 1942 में
▪ भारत छोड़ो आदं ोलन नकस वर्ा शरू ु नकया गया था – 1942 ई. में
▪ ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान ‘समांतर सरकार’ का गठन कहां नकया गया था – बनलया
▪ भारत छोड़ो प्रस्ताव पाररत करने पर गााँधी जी को कौन सी जेल में कै द नकया गया था – आगा खााँ पैलेस में
▪ नकस सत्याग्रह में गााँधी जी ने प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं नलया था – राजकोट सत्याग्रह
▪ भारत छोड़ो आंदोलन के उत्पन्न दगं े नकस क्षेत्र में सवाानधक व्यापक रहे – नबहार और संयि ु प्रांत में
▪ नबहार के नकस नेता ने गााँधी जी के साथ नकसान आदं ोलन का नेतत्ृ व नकया था – डॉ राजेंद्र प्रसाद
▪ महात्मा गााँधी ने सवाप्रथम नकस नकसान आंदोलन में भाग नलया था – चंपारण
▪ स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गााँधी के करीबी अंग्रेज नमत्र थे – रे वरे ण्ड चाली एन्ड्रूज
▪ महात्मा गााँधी का मानना था नक नितीय नवश्वयर्द् ु में भागीदरी से उनके नकस नसर्द्ांत का उल्लंघन होगा – अनहसं ा
▪ भारत छोड़ो आंदोलन के समय इग्ं लैंड का प्रधानमंत्री था – नवंस्टन चनचाल
▪ महात्मा गााँधी ने नखलाफत आदं ोलन का समथान क्यों नकया – गााँधी जी ने अग्रं ेजों के नखलाफ अपने आदं ोलन में
भारतीय मसु लमानों का सहयोग प्राप्त करना चाहते थे।
▪ चम्पारण नील आदं ोलन के राष्ट्रीय नेता कौन थे – महात्मा गााँधी
▪ सरोनजनी नायडू को ‘नाइनटंगल ऑफ़ इनं डया’ का नख़ताब नकसने नदया था – महात्मा गााँधी
▪ गााँधी जी अपना राजनैनतक गुरु नकसे मानते थे – गोपाल कृ ष्ण गोखले
▪ गााँधी जी का प्रथम सत्याग्रह कहााँ हुआ था – चम्पारण
▪ गांधीजी ने नफननक्स सेटलमेट कहााँ शुरू नकया था – दनक्षण अफ्ीका के डरबन में
▪ गांधीजी दनक्षण अफ्ीका से भारत लौटे – 9 जनवरी 1915
▪ नकस कारन गाधं ीजी ने कै सरी-ए-नहन्द पदवी छोड़ी – जनलयावं ाला बाग़ नरसहं ार (1919)
▪ नकस एकमात्र कांग्रेस के अनधवेशन की अध्यक्षता गााँधी जी ने की थी – बेलगाम अनधवेशन (1924)
▪ गााँधी जी ने साप्तानहक हररजन कब शरुु नकया – 1933
▪ टैगोर को गुरूदेव का नाम नकसने नदया – महात्मा गााँधी
▪ गााँधी जी ने ‘पोस्ट डेटेड चेक’ नकसे कहााँ – नक्रप्स नमशन (1942)
▪ गााँधी जी के आत्मकथा का असली नाम क्या हैं – सत्य न प्रयोगों
▪ गााँधी जी की आत्मकथा प्रथम बार कब प्रकानशत हुई थी – 1927 (नवजीवन में )
▪ गााँधी जी ने अपनी आत्मकथा नकस भार्ा में नलखी – गुजरती

भारत के गवनार जनरल तथा वायसराय

भारर् के गवनतर जनरल र्था वायसराय: भारर् के गवनतर जनरल (Governor General of India) भारतीय
उपमहािीप पर निनटश राज का प्रधान पद था। नजसपर नसफा अंग्रेजो का अनधकार था। स्वतंत्रता प्रानप्त से पवू ा कोई भी भारतीय
इस पद पर नहीं बैठा। गवनतर जनरल ऑ् द प्रेसीिेंसी ऑ् ्ोटत धवधलयम के शीर्ाक के साथ इस कायाालय को 1773
में सृनजत नकया गया था।

1858 ई. तक गवनार जनरल की ननयुनि ईस्ट इनं डया कंपनी के ननदेशकों िारा की जाती थी, 1857 के नवद्रोह के बाद इनकी
ननयनु ि निनटश सरकार िारा की जाने लगी।

1947 में जब भारत और पानकस्तान को आजादी नमली तब वायसराय की पदवी को हटा नदया गया, लेनकन दोनों नई
ररयासतों में गवनार-जनरल के कायाालय को तब तक जारी रखा गया जब तक उन्होंने क्रमशः 1950 और 1956 में गणतंत्र
संनवधान को अपनाया।

बगं ाल के गवनार

लॉित क्लाइव (Lord Clive)

कायत काल – 1757-1760 एवं 1765-1767

▪ लॉडा क्लाइव ईस्ट इनं डया कम्पनी िारा भारत में ननयि
ु होने वाला प्रथम गवनतर था।
▪ ईस्ट इनं डया कंपनी ने 1757 में बंगाल का गवनार ननयि ु नकया।
▪ लॉडा क्लाइव को भारत में अंग्रेजी शासन का जन्मदाता माना जाता है।

मुख्य घटना और कायत

▪ क्लाइव ने बंगाल में िैि शासन की व्यवस्था की, नजसके तहत राजस्व वसूलने, सैननक संरक्षण एवं नवदेशी मामले
कम्पनी के अधीन थे, जबनक शासन चलाने की नजम्मेदारी नवाबों के हाथ में थी।
▪ क्लाइव के बाद, िैध शासन के दौरान वेरेलस्ट (1767-1769) और काधटतयर (1769-1772) बंगाल के
गवनार रहे।
▪ 1757 का प्लासी का युद्ध (Battle of Plassey) भी लॉडा क्लाइव के नेतत्ृ व में लड़ा गया।

बंगाल के गवनार-जनरल

वारेन हेधस्टंग्स (Warren Hastings)

कायतकाल – 20 अक्टूबर 1773 – 1 फ़रवरी 1785

मुख्य घटना और कायत

▪ 1773 ई. में रे ग्यल ु ेनटंग एक्ट के िारा वारे न हेनस्टंग्स को बंगाल का प्रथम गवनतर जनरल बनाया गया, नजसने बंगाल
में स्थानपत िैि शासन प्रथा को समाप्त कर नदया एवं प्रत्येक नजले में फौजदारी तथा दीवानी अदालतों की स्थापना
की।
▪ हेनस्टंग्स के समय में रे ग्यल
ु ेनटंग एक्ट के तहत 1774 में कलकत्ता में उच्च न्यायालय की स्थापना की गयी।
▪ हेनस्टंग्स ने बंगाली िाह्मण नन्द कुमार पर छूटा आरोप लगा कर न्यायालय से फााँसी की सजा नदलवाई।
▪ प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध वारे न हेनस्टंग्स के समय में ही लड़ा गया, प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध (1775 – 1782
ई.) जो सलबाई की संधि (1782ई.) से समाप्त हुआ एवं धिर्ीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-1784
ई.) जो मंगलौर की संधि (1784ई.) के िारा समाप्त हुआ।
▪ हेनस्टंग्स के समय में 1784 ई. को एधशयाधटक सोसायटी ऑफ़ बगं ाल (Asiatic Society of
Bangal) की स्थापना हुई।
▪ हेनस्टंग्स के समय में ही बोित ऑफ़ रेवेन्यू (Board of Revenue) की स्थापना हुई।
▪ हेनस्टंग्स ने 1781 ई. में कलकत्ता में प्रथम मदरसा की स्थापना की।
▪ हेनस्टंग्स के समय में 1782 ई. को जोनाथन डंकन ने बनारस में संस्कृ त नवद्यालय की स्थापना की।
▪ वारे न हेनस्टंग्स के समय में ही धपट्स इधं िया एक्ट (Pitt’s India Act) पाररर् हुआ, नजसके िारा बोडा ऑफ़
कंट्रोल की स्थापना हुई|
▪ नपट्स एक्ट के नवरोध में इस्तीफ़ा देकर जब वारे न हेनस्टग्स फ़रवरी, 1785 ई. में इग्ं लैण्ड पहुचाँ ा, तो बका िारा उसके
ऊपर महानभयोग लगाया गया। निनटश पानलायामेंट में यह महानभयोग 1788 ई. से 1795 ई. तक चला, परन्तु अन्त
में उसे आरोपों से मि
ु कर नदया गया।

सर जॉन मैक्रसन (Sir John Macpherson)

कायतकाल – 1 फ़रवरी 1785 – 12 नसतबं र 1786

▪ इन्हें अस्थायी गवनार जनरल ननयि


ु नकया था।

लॉित कॉनतवाधलस ( Lord Cornwallis or Charles Cornwallis)

कायतकाल – 12 नसतबं र 1786 – 28 अक्टूबर 1793

मख्
ु य घटना और कायत

▪ लॉडा कॉनावॉनलस को भारत में धसधवल सेवा एवं पधु लस व्यवस्था का जनक माना जाता है।
▪ इसके समय में नजले के समस्त अनधकार नजला कलेक्टर के हाथों में दे नदए गए।
▪ कानावानलस के समय में 1790 से 1792 ई. में र्र्ृ ीय आग्ं ल-मैसरू (Anglo-Mysore War) यर्द् ु हुआ।
▪ 1793 में कानावानलस ने बंगाल, नबहार और उड़ीसा में भनू म कर से सम्बंनधत स्थाई बंदोबस्र् पद्धधर्
(Permanent Settlement) लागू की, नजसके तहत जमींदारो को अब भरू ाजस्व का लगभग 90% कंपनी
को तथा लगभग 10% अपने पास रखना था।
▪ कॉनावॉनलस ने नजले में पनु लस थाना की स्थापना कर एक दारोगा को इसका इचं ाजा बनाया।

सर जॉन शोर (Sir John Shore)

कायतकाल – 28 अक्टूबर 1793 – 18 माचा 1798

मुख्य घटना और कायत

▪ अहस्र्क्षेप नीधर् एवं खारदा का युद्ध सर जॉन शोर के काल की महत्वपूणा घटना थी।
▪ खारदा का यद्ध ु 1795 ई. में मराठों एवं ननजाम के बीच लड़ा गया।

सर अलित क्लाकत (Sir Alured Clarke)

कायतकाल – 18 माचा 1798 – 18 मई 1798


▪ इन्हें अस्थायी गवनार जनरल ननयि
ु नकया था।

लॉित वेलेजली (Lord Wellesley)

कायतकाल – 18 मई 1798 – 30 जल
ु ाई 1805

▪ लॉडा वेलेज़ली जो अपने आप को बंगाल का शेर कहता था।

मुख्य घटना और कायत

▪ लॉडा वेलेजली ने सहायक संधि की पद्धधर् लागू की।


▪ नोट- िारर् में सहायक सांडि का प्रयोग वेिेज़िी से पहिे फ़्ाांडससी गवनतर िूप्िे ने डकया था।

▪ वेलेजली के समय में हैदराबाद, मैसरू , तजं ौर, अवध, जोधपरु , जयपरु , बदंू ी, भरतपरु और पेशावर ने सहायक सनं ध पर
हस्ताक्षर नकये।
▪ वेलेज़ली ने 1800 ई. में नागररक सेवा में भती हुए यवु कों को प्रनशक्षण देने के नलए ्ोटत धवधलयम कॉलेज की
स्थापना की।
▪ वेलेज़ली के काल में ही चौथा आग्ं ल-मैसरू यद्ध ु 1799 ई. में हुआ नजसमें टीपू सलु र्ान मारा गया था।
▪ इसके शासन काल में धिर्ीय आंग्ल-मराठा युद्ध 1803-1805 ई. में हुआ था।

लॉित कानतवाधलस (Lord Cornwallis)

कायतकाल – 30 जल
ु ाई 1805 – 5 अक्टूबर 1805

मुख्य घटना और कायत

▪ 1805 ई. में लॉडा कॉनावॉनलस का दसू रा कायाकाल शरू


ु हुआ, परन्तु शीघ्र ही उनकी म्रत्यु हो गयी।

सर जॉजत बारलो (Sir George Barlow)

कायतकाल – 10 अक्टूबर 1805 से 31 जल


ु ाई 1807

मुख्य घटना और कायत

▪ 1805 ई. की राजपरु घाट की सधं ि एवं 1806 ई. का वेललोर में धसपाही धविोह इसके काल की महत्वपणू ा
घटना थी।
▪ राजपरु घाट की संनध 1805 ई. में धेलकार एवं सर जॉन बारलो के मध्य हुई थी।
लॉित धमंटो (Lord Minto)

कायतकाल – 31 जल
ु ाई 1807 – 4 अक्टूबर 1813

मुख्य घटना और कायत

▪ अमर्ृ सर की सधं ि एवं चाटत र एक्ट इसके काल की महत्वपणू ा घटना थी।
▪ अमृतसर की संनध 25 अप्रैल 1809 ई. में रणजीत नसंह एवं लॉडा नमन्टो के मध्य हुई नजसकी मध्यस्थता मेटकॉफ ने
की थी।
▪ 1813 का चाटतर एक्ट नमन्टो के काल में ही पास हुआ था।

माधक्वतस हेधस्टंग्स (Marquess Of Hastings)

कायतकाल – 4 अक्टूबर 1813 – 9 जनवरी 1823

मुख्य घटना और कायत

▪ हेनस्टंग्स के कायाकाल में 1814-1816 ई. को आंग्ल नेपाल युद्ध हुआ, इसमें नेपाल के अमरनसंह को
आत्मसमपाण करना पड़ा।
▪ माचा 1816 ई. में हेनस्टंग्स एवं गोरखों के बीच संगोली की संधि के िारा आंग्ल-नेपाल यर्द्
ु का अंत हुआ। इसी
संनध के कारण वतामान में भारत और नेपाल के बीच कालापानी सीमा का नववाद चला रहा है।
▪ संगौली की संनध के िारा काठमांिू में एक निनटश रे नजडेंट रखना स्वीकार नकया गया और इस संनध के िारा अंग्रेजों
को धशमला, मसूरी, रानीखेर्, एवं नैनीर्ाल प्राप्त हुए।
▪ हेनस्टंग्स के ही कायाकाल में र्ृर्ीय आग्ं ल-मराठा यद्ध
ु (1817-1818 ई.) हुआ, और 1818 में हेनस्टंग्स ने
पेशवा का पद समाप्त कर नदया।
▪ 1817-1818 ई. में ही इसने नपडं ाररयों का दमन नकया, नजसके नेता चीतू, वानसल मोहम्मद तथा करीम खां थे।
▪ हेनस्टंग्स ने 1799 में प्रेस पर लगाये गए प्रनतबंधों को समाप्त कर नदया।
▪ इसी के समय में 1822 ई. को टैनेन्सी एक्ट या काश्र्कारी अधिधनयम लागू हुआ।

जॉन ऐिम्स (John Adam)

कायतकाल – 9 जनवरी 1823 – 1 अगस्त 1823

▪ इन्हें अस्थायी गवनार जनरल ननयि


ु नकया था।
लॉित एमहस्टत (Lord William Amherst)

कायतकाल – 1 अगस्त 1823 – 13 माचा 1828

मुख्य घटना और कायत

▪ लॉडा एमहसटा के काल में 1824-1826 ई. को प्रथम आग्ं ल-बमात यद्ध ु लड़ा गया था।
▪ 1825 ई. में निनटश सेना के सैननक कमाण्डर ने बमाा सेना को परास्त कर 1826 ई. में ‘याण्िबू की सधन्ि’ की।
▪ 1824 ई. का बैरकपरु का सैन्य धविोह भी लॉडा एमहस्टा के समय में ही हुआ था।

धवधलयम बटरवथत बेले (William Butterworth Bayley)

कायतकाल – 13 माचा 1828 – 4 जल


ु ाई 1828

▪ इन्हें अस्थायी गवनार जनरल ननयि


ु नकया था।

लॉित धवधलयम बैंधटक (Lord William Bentinck)

कायतकाल – 4 जल
ु ाई 1828 – 1833

▪ लॉित धवधलयम बैंधटक 1803 ई. में मद्रास के गवनार की हैनसयत से भारत आया।
▪ 1833 ई. के चाटार-एक्ट िारा बगं ाल के गवनार को भारत का गवनार-जनरल बना नदया गया।
▪ लॉित धवधलयम बैंधटक 1828-1833 तक बंगाल के गवनार एवं 1835 तक भारत का गवनार जनरल रहा, नजसे
‘नवनलयम कै वेंनडश बैनटंग’ के नाम से भी जाना जाता है।

मख्
ु य घटना और कायत

▪ लॉित धवधलयम बैंधटक के शासन काल में कोई यर्द् ु नहीं हुआ, एवं इसका शासन काल शानं त का काल रहा था।
▪ लॉडा नवनलयम बैंनटक ने 1829 में राजा राममोहन राय की सहायता से ‘सर्ी प्रथा‘ पर प्रनतबन्ध लगा नदया, इसके
बाद उसने धशशु-वि पर भी प्रनतबन्ध लगाया।
▪ बैंनटक के कायाकाल में देवी-देवताओ ं को नर बनल देने की प्रथा का भी अतं कर नदया गया।
भारत के गवनार जनरल

लॉित धवधलयम बैंधटक (Lord William Bentinck)

कायतकाल – 1833 – 20 माचा 1835

▪ 1833 ई. में लॉित धवधलयम बैंधटक भारत के प्रथम गवनार-जनरल बने।

मुख्य घटना और कायत

▪ लॉडा नवनलयम बैंनटक भारत में नकये गए सामानजक सधु ारों के नलए नवख्यात है।
▪ बैंनटक ने कोटा ऑफ़ डायरे क्टसा की इच्छाओ ं के अनुसार भारतीय ररयासतों के प्रनत तटस्थता की नीनत अपनायी।
▪ इसने ठगों के आतंक से ननपटने के नलए कनाल स्लीमैन को ननयि ु नकया।
▪ बैंनटक के कायाकाल में अपनायी गयी मैकाले की नशक्षा पर्द्नत ने भारत के बौनर्द्क जीवन को उल्लेखनीय ढंग से
प्रभानवत नकया, इस प्रकार लॉडा नवनलयम बैंनटक का भारत के नशक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपणू ा स्थान।

सर चालसत मेटका् (Lord Metcalfe or Charles Metcalfe)

कायतकाल – 20 माचा 1835 – 4 माचा 1836

मुख्य घटना और कायत

▪ चाल्सा मेटकाफ में भारत में समाचार पत्रों पर लगे प्रनतबंधों को समाप्त कर नदया, इस कारण इसे प्रेस का मुधिदार्ा भी
कहा जाता है

लॉित ऑकलैंि (Lord Auckland)

कायतकाल – 20 माचा 1836 – 4 माचा 1842

मुख्य घटना और कायत

▪ लॉडा ऑकलैंड के कायाकाल में प्रथम आंग्ल-अ्गान युद्ध (first Anglo-Afghan, 1838-1842 ई.)
हुआ।
▪ 1839 ई. में ऑकलैंड ने कलकत्ता से नदल्ली तक ग्रैंड ट्रक रोड की मरम्मत करवाई।
▪ ऑकलैंड के समय में भारतीय नवद्यानथायों को िॉक्टरी की धशक्षा हेर्ु धवदेश जाने की अनुमधर् धमली।
▪ आकलैण्ड के कायाकाल में बम्बई और मिास मेधिकल कालेजों की स्थापना की गयी|
लॉित एलनबरो (Lord Ellenborough)

कायतकाल – 28 फ़रवरी 1842 – जनू 1844

मुख्य घटना और कायत

▪ एलनबरो के समय में प्रथम आग्ं ल-अफ़ग़ान यर्द्ु समाप्त हुआ।


▪ 1843 में एलनबरो ने चाल्सा नेनपयर को असैननक एवं सैननक शनियों के साथ नसन्ध भेजा। नेनपयर ने अगस्त,
1843 में नसन्ध को पणू ा रूप से निनटश साम्राज्य में नमला नलया गया।
▪ 1843 के एक्ट – V के िारा दास-प्रथा का उन्मूलन भी एलनबरो के समय में हुआ।

लॉित हाधििंग (Lord Hardinge)

कायतकाल – 23 जल
ु ाई 1844 – 12 जनवरी 1848

मुख्य घटना और कायत

▪ लॉडा हानडिंग के कायाकाल में प्रथम आंग्ल-धसख युद्ध (1845-1846 ई.) हुआ। जो लाहौर की सनन्ध के िारा
समाप्त हुआ।
लॉडा हानडिंग ने नरबधल-प्रथा पर प्रधर्बंि लगाया।

लॉित िलहौजी (Lord Dalhousie)

कायतकाल – 12 जनवरी 1848 – 28 फ़रवरी 1856

▪ लॉडा डलहौज़ी, नजसे ‘अलत ऑफ़ िलहौजी’ भी कहा जाता था।


▪ लॉडा डलहौजी एक कट्टर उपयोनगतावादी एवं साम्राज्यवादी था, लेनकन डलहौजी को उसके सधु ारों के नलए भी जाना
जाता है।

मख्
ु य घटना और कायत

▪ लॉडा डलहोजी के समय में धिर्ीय आग्ं ल-धसक्ख यद्ध ु (1848-49 ई.) तथा 1849 ई. में पजं ाब का निनटश
शासन में नवलय और नसक्ख राज्य का प्रनसर्द् धहरा कोधहनूर महारानी धवक्टोररया को भेज धदया गया।
▪ डलहौजी के कायाकाल में 1851-1852 में धिर्ीय आंग्ल-बमात युद्ध लड़ा गया और 1852 में बमाा के लोअर
बमाा एवं नपगु राज्य को निनटश साम्राज्य में नमला नलया गया।
▪ डलहौजी के कायाकाल में ही भारत में रेलवे और संचार प्रणाली का धवकास हुआ।
▪ इसके कायाकाल में भारत में दानजानलंग को सनम्मनलत कर नलया गया।
▪ लॉडा डलहौजी के कायाकाल में वुि का धनदेश पि (Wood’s dispatch) आया, नजसे भारत में नशक्षा
सधु ारों के नलए ‘मैग्नाकाटात’ कहा जाता है।
▪ इसने 1852 ई. में एक इनाम कमीशन की स्थापना की, नजसका उद्देश्य भूनम कर रनहत जागीरों का पता कर उन्हें
नछनना था।
▪ इसने 1854 में नया िाकघर अधिधनयम (Post Office Act) पाररर् धकया, नजसके िारा भारत में पहली
बार डाक नटकटों का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
▪ 1856 ई. में अवध को कुशासन का आरोप लगाकर अंग्रेजी राज्य में नमला नलया गया।
▪ 1856 ई. में तोपखाने के मख्ु यालय को कलकत्ता से मेरठ स्थानातं ररत नकया, और सेना का मख् ु यालय धशमला में
स्थाधपर् धकया।
▪ डलहौजी के समय में भारतीय बदं रगाहों का नवकास करके , इन्हें अन्तरााष्ट्रीय वानणज्य के नलये खोल नदया गया|
▪ लॉडा डलहौजी के समय में ही धहन्दू धविवा पुनधवतवाह अधिधनयम भी पाररर् हुआ।
▪ इसने धशमला को ग्रीष्मकालीन राजिानी बनाया।
▪ डलहोजी ने नर-बधल प्रथा को रोकने का प्रयास भी नकया।

लॉित कै धनंग (Lord Canning)

कायतकाल – 128 फ़रवरी 1856 – 1 नवम्बर 1858

▪ लॉडा कै ननंग भारत का अंधर्म गवनतर जनरल था।

मुख्य घटना और कायत

▪ लॉडा कै ननंग के कायाकाल की सबसे महत्वपणू ा घटना 1857 का धविोह था। 1857 के नवद्रोह के पश्चात् बहादरु
शाह को रंगून ननवाानसत कर नदया गया।

भारत के वायसराय

लॉित कै धनगं (Lord Canning)

कायतकाल – 1 नवम्बर 1858 – 21 माचा 1862

▪ 1858 में निनटश ससं द िारा पाररत अनधननयम िारा इसे भारत का प्रथम वायसराय बनाया गया।

मख्
ु य घटना और कायत
▪ कै ननंग के कायाकाल में IPC, CPC तथा CrPC जैसी दण्डनवनधयों को पाररत नकया गया।
▪ कै ननंग के समय में ही लंदन नवश्वनवद्यालय की तजा पर 1857 में कलकत्ता, मद्रास, और बम्बई नवश्वनवद्यालयों की
स्थापना की गई।
▪ 1861 का भारतीय पररर्द् अनधननयम कै ननंग के समय में ही पाररत हुआ।
▪ कै ननगं के कायाकाल में ही भारतीय इनतहास का प्रनसर्द् नील धविोह भी हुआ।
▪ 1861 का भारर्ीय पररर्द् अधिधनयम कै ननंग के समय में ही पाररत हुआ।
▪ इसके समय में धविवा पुनधवतवाह अधिधनयम 1856 ई. में स्वतन्त्र रूप से लागू हुआ।

लॉित एधलगन (Lord Elgin)

कायतकाल – 21 माचा 1862 – 20 नवम्बर 1863

मुख्य घटना और कायत

▪ इसकी सबसे महत्त्वपणू ा सफलता थी- ‘वहाबी आंदोलन’ का सफलतापवू ाक दमन।


▪ लॉडा एनल्गन की 1863 ई. में धमाशाला (नहमाचल प्रदेश) में मृत्यु हो गई।

सर रॉबटत नेधपयर (Sir Robert Napier)

कायतकाल – 21 नवम्बर 1863 – 2 नदसम्बर 1863

▪ सर रॉबटा नेनपयर को भारत के कायावाहक वायसराय के रूप में ननयि


ु नकया गया था।

सर धवधलयम िेधनसन (Sir William Denison)

कायतकाल – 2 नदसम्बर 1863 – 12 जनवरी 1864

▪ सर नवनलयम डेननसन को भारत के कायावाहक वायसराय के रूप में ननयि


ु नकया गया था।

सर जॉन लॉरेंस (Sir John Lawrence)

कायतकाल – 12 जनवरी 1864 – 12 जनवरी 1869

मख्
ु य घटना और कायत
▪ जॉन लॉरें स ने अफगाननस्तान में हस्तक्षेप न करने की नीनत का पालन नकया, इसके कायाकाल में यरू ोप के साथ संचार
व्यवस्था (1869-1870) कायम की गयी।
▪ जॉन लॉरें स के ही कायाकाल में कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में उच्च न्यायालयों की स्थापना की गयी।
▪ इसके कायाकाल में पंजाब में काश्तकारी अनधननयम पाररत नकया गया।

लॉित मेयो Lord Mayo

कायतकाल – 12 जनवरी 1869 – 8 फ़रवरी 1872

मुख्य घटना और कायत

▪ लॉित मेयो के कायाकाल में भारर्ीय सांधख्यकीय बोित का गठन नकया गया।
▪ भारत में अग्रं ेजों के समय में प्रथम जनगणना 1872 ई. में लॉडा मेयो के समय में हुई थी।
▪ मेयो के काल में 1872 ई. में अजमेर, राजस्थान में मेयो कॉलेज की स्थापना की गई।
▪ 1872 ई. में कृधर् धवभाग की स्थापना भी मेयो के काल में हुई थी।
▪ लॉडा मेयो की एक अफगान ने 1872 ई. में चाकू मार कर हत्या कर दी।

सर जॉन स्िे ची (Sir John Strachey)

कायतकाल – 9 फ़रवरी 1872 – 23 फ़रवरी 1872

▪ सर जॉन स्ट्रेची को भारत के कायावाहक वायसराय के रूप में ननयि


ु नकया गया था।

द लॉित नेधपयर (The Lord Napier)

कायतकाल – 24 फ़रवरी 1872 – 3 मई 1872

▪ द लॉडा नेनपयर को भारत के कायावाहक वायसराय के रूप में ननयि


ु नकया गया था।

लॉित नाथतिुक (Lord Northbrook)

कायतकाल – 3 मई 1872 – 12 अप्रैल 1876

▪ इसके समय में बंगाल में भयानक अकाल पड़ा।

मख्
ु य घटना और कायत
▪ भारत में उसकी नीनत “करों में कमी, अनावश्यक काननू ों को न बनाने तथा कृ नर् योग्य भनू म पर भार कम करने” की
थी।
▪ लॉडा नाथािकु के समय में पंजाब में कूका आन्दोलन हुआ।
▪ नाथािक
ु ने 1875 में बड़ौदा के शासक गायकवाड को पदच्यतु कर नदया।
▪ नाथािकु के कायाकाल में धप्रंस ऑफ़ वेलस एिवित र्र्ृ ीय की भारत यात्रा 1875 में सपं न्न हुई।
▪ इसी के समय में स्वेज नहर खुल जाने से भारत एवं निटेन के बीच व्यापार में वृनर्द् हुई।

लॉित धलटन (Lord Lytton)

कायतकाल – 12 अप्रैल 1876 – 8 जनू 1880

▪ इसका परू ा नाम ‘रॉबटत बुलवेर धलटन एिवित’ था, एवं इनका एक उपनाम ‘ओवेन मेरेधिथ‘ भी था।
▪ यह एक प्रनसर्द् उपन्यासकार, ननबंध-लेखक एवं सानहत्यकार था, सानहत्य में ऐसे ‘ओवेन मेरेधिथ’ नाम से जाना
गया।

मुख्य घटना और कायत

▪ इसमें समय में बम्बई, मद्रास, हैदराबाद, पंजाब एवं मध्य भारत में भयानक अकाल पड़ा।
▪ इसने ररचित स्टेची की अध्यक्षता में अकाल आयोग की स्थापना की।
▪ लॉडा नलटन के कायाकाल में प्रथम धदलली दरबार का आयोजन नकया गया और एक राज-अनधननयम पाररत करके
1877 में निटेन की महारानी नवक्टोररया को ‘कै सर-ए-धहन्द’ की उपानध से नवभनू र्त नकया गया।
▪ नलटन ने अलीगढ में एक मुधस्लम एग्ं लो प्राच्य महाधवद्यालय की स्थापना की।
▪ इसके कायाकाल में 1878 में वनातक्यूलर प्रेस एक्ट (Vernacular Press Act) पाररत नकया गया,
नजसके कारण कई स्थानीय भार्ाओाँ के समाचार पत्र आनद को ‘धविोहात्मक सामग्री’ के प्रकाशन का आरोप
लगाकर बंद कर नदया गया।
▪ इसके समय में शस्त्र एक्ट (आम्सत एक्ट) 1878 पाररत हुआ, नजसमें भारतीयों को शि रखने और बेचने से रोका
गया।
▪ इसने धसधवल सेवा परीक्षाओ ं में प्रवेश की अनधकतम आयु सीमा घटाकर 19 वर्ा कर दी।

लॉित ररपन (Lord Ripon)

कायतकाल – 8 जनू 1880 – 13 नदसम्बर 1884

मुख्य घटना और कायत


▪ ररपन ने समाचारपत्रों की स्वतंत्रता को बहाल करते हुए 1882 ई. में वनातक्यूलर प्रेस एक्ट को रद्द कर नदया, नजस
कारण इसे प्रेस का मुधिदार्ा कहा जाता है।
▪ ररपन ने नसनवल सेवा में प्रवेश की अनधकतम आयु को 19 से बढ़ाकर 21 वर्ा कर नदया।
▪ ररपन के काल में भारत में 1881 ई. में सवाप्रथम धनयधमर् जनगणना करवाई गई।
▪ 1881 ई. में प्रथम कारखाना अधिधनयम ररपन के िारा लाया गया।
▪ ररपन के समय में 1882 में नशक्षा के क्षेत्र में सर नवनलयम हटं र की अध्यक्षता में हंटर आयोग (Hunter
Commission) का गठन हुआ और 1882 में स्थानीय शासन प्रणाली की शरुु आत हुई।
▪ 1883 में इल्बटा नबल (Ilbert Bill) नववाद, ररपन के समय में ही पाररत हुआ, नजसमे भारनतयों को भी यरू ोपीय
कोटा में जज बनने का अनधकार दे नदया गया था।
▪ फ्लोरें स नाइनटंगेल ने ररपन को भारर् का उद्धारक की सज्ञं ा दी।

लॉित ि्ररन (Lord Dufferin)

कायतकाल – 13 नदसम्बर 1884 – 10 नदसम्बर 1888

मख्
ु य घटना और कायत

▪ डफररन के काल में 28 नदसम्बर 1885 ई. को बम्बई में ए. ओ. ह्यमू के नेतत्ृ व में भारर्ीय राष्िीय कांग्रेस की
स्थापना हुई।
▪ इसी समय बंगाल टे नेन्सी एक्ट (धकराया अधिधनयम), अवध टेनेन्सी एक्ट तथा पंजाब टेनेन्सी एक्ट पाररत हुआ।
▪ डफररन के समय में र्ृर्ीय आंग्ल-बमात युद्द हुआ और बमाा को भारत में नमला नलया गया।
▪ लॉडा डफररन के समय में अफगाननस्तान की उत्तरी सीमा का ननधाारण नकया गया।

लॉित लैंसिाउन (Lord Lansdowne)

कायतकाल – 10 नदसम्बर 1888 – 11 अक्टूबर 1894

मुख्य घटना और कायत

▪ भारत एवं अफगाननस्तान के बीच सीमा रे खा नजसे िूरण्ि रेखा के नाम से जाना जाता है, का ननधाारण 1893 ई. में
लैंसडाउन के समय में हुआ।
▪ इस रे खा का ननधाारण निनटश अनधकारी सर मोटीमर िूरंि (Sir Mortimer Durand) और अ्गान
अमीर अब्दुर रहीम खान (Abdur Rahman Khan) के बीच हुआ।
▪ 1891 ई. में दसू रा कारखाना अनधननयम लाया गया, नजसमें मनहलाओ ं को 11 घंटे प्रनतनदन से अनधक काम करने
पर प्रनतबधं लगाया गया।
▪ लॉडा लैंसडाउन के समय में 1891 में एज ऑफ़ कन्सेंट धबल (Age of Consent Act) पाररत हुआ,
नजसके अंतगात एक व्यनि के यौन कृत्यों के नलए सहमनत की उम्र बढ़ा दी गयी, नजसमे लड़नकयों की यौन सहमती
की उम्र 10 वर्ा से बढाकर 12 वर्ा कर दी गयी।
▪ इससे कम उम्र में यौन सम्बन्ध बनाने पर इसे बलात्कार माना गया, चाहे वे नववानहत ही क्यों न हों।

लॉित एधलगन (Lord Elgin)

कायतकाल – 11 अक्टूबर 1894 – 6 जनवरी 1899

मुख्य घटना और कायत

▪ लॉडा एनल्गन के कायाकाल में भारत में क्रांनतकाररयों की शरुु आत हुई, और पनू ा के चापेकर बंिुओ ं (Chapekar
brothers) दामोदर हरी चापेकर, बालकृ ष्ण हरी चापेकर और वसदु ेव हरी चापेकर ने निनटश प्लेग कनमश्नर,
डब्ल्य.ू सी. रैं ड (W. C. Rand) को गोली मारकर भारत की प्रथम राजनीनतक हत्या की।
▪ लॉडा एनल्गन के समय में ही भारत में देशव्यापी अकाल पड़ा, नजसमें करीब 45 लाख लोगों की मौत हुई।
▪ एनल्गन ने नहन्दु कुश पवात के दनक्षण में नचत्राल राज्य के नवद्रोह को दबाया।

लॉित कजतन (Lord Curzon)

कायतकाल – 6 जनवरी 1899 – 18 नवम्बर 1905

मख्
ु य घटना और कायत

▪ लॉडा कजान के कायाकाल में सर एण्ड्रयू फ़्रेजर की अध्यक्षता में एक पनु लस आयोग का गठन नकया गया। इस आयोग
की अनश ु ंसा पर प्रान्र्ीय पुधलस की स्थापना व के न्िीय गुप्तचर धवभाग की स्थाना (C.I.D.) की भी स्थापना
की गई।
▪ कजान के समय में उत्तरी पनश्चमी सीमावती प्रान्त (North West Frontier Province) की स्थापना भी की
गयी।
▪ शैनक्षक सधु ारों के अन्तगात कज़ान ने 1902 ई. में सर टॉमस रैले (Sir Thomas Ralley) की अध्यक्षता
में धवश्वधवद्यालय आयोग का गठन नकया। नजसकी अनुशंसाओ ं पर भारर्ीय धवश्वधवद्यालय अधिधनयम,
1904 पाररत हुआ।
▪ कजान के समय में 1904 में प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिधनयम पाररत हुआ, नजसके िारा भारत में पहली बार
ऐनतहानसक इमारतों की सरु क्षा एवं मरम्मत की ओर ध्यान देने के नलए भारर्ीय परु ार्त्त्व धवभाग की स्थापना हुई।
▪ कज़ान ने 1901 ई. में सर कॉनलन स्कॉट मॉनक्रीफ (Sir Colin C. Scott-Moncrieff) की अध्यक्षता में
एक नसच ं ाई आयोग का भी गठन नकया।
▪ कजान के समय में भारत में भयानक अकाल भी पड़ा, नजससे करीब 60-90 लाख लोगों के मरने का अनमु ान लगाया
गया।
▪ 1899-1990 ई. में पड़े अकाल व सख ू े की नस्थनत के नवश्ले र्ण के नलए सर एण्टनी मैकडॉनल (Antony
MacDonnell) की अध्यक्षता में एक अकाल आयोग का गठन नकया गया।
▪ लॉडा कज़ान के समय में सवाानधक महत्त्वपणू ा काया था – 1905 ई. में बगं ाल का धवभाजन, नजसके बाद भारत में
क्रांनतकारी गनतनवनधयों का सूत्रपात हो गया।
▪ 1905 ई. में लॉडा कज़ान ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे नदया।

लॉित धमन्टों धिर्ीय (Lord Minto II)

कायतकाल – 18 नवम्बर 1905 – 23 नवम्बर 1910

मख्
ु य घटना और कायत

▪ लॉडा नमटं ो के कायाकाल में 1906 में मधु स्लम लीग (All-India Muslim League) की स्थापना हुई।
▪ इसके कायाकाल में 1906 में कांग्रेस का सूरर् का अधिवेशन हुआ नजसमें कांग्रेस का धवभाजन हो गया, नजसका
1916 के लखनऊ अनधवेशन में पनु ः एकीकरण हुआ।
▪ लॉडा नमण्टो के समय में मॉले-धमंटो सुिार अधिधनयम (Morley-Minto Reforms, 1909 ई.) पाररत
हुआ, नजसमे सरकार में भारतीय प्रनतनननधत्व में मामलू ी बढ़ोत्तरी हुई और नहन्दओ
ु ं और मुसलमानों के नलए अलग
ननवााचक मण्डल बनाया गया।
▪ इसके कायाकाल में खदु ीराम बोस (Khudiram Bose) को फांसी दे दी गयी, नजसने प्रफुल्लकुमार चाकी
(Prafulla Chaki) के साथ नमलकर कलकत्ता के मनजस्ट्रेट नकंग्जफोडा (Kingsford) की बग्घी पर बम
फें का था।
▪ नमटं ो के ही कायाकाल 1908 में बालगगं ाधर नतलक को 6 वर्ा की सजा सनु ाई गयी थी, क्योंनक नतलक ने
क्रानन्तकारी प्रफुल्ल चाकी और खदु ीराम बोस के बम हमले का समथान नकया था, और इन्हें बमाा की जेल में भेज नदया
गया।
▪ लॉडा नमंटो के समय में अंग्रेजों ने बांटो और राज करो की नीनत औपचाररक रूप से अपना ली थी।

लॉित हाधििंग धिर्ीय (Lord Hardinge II)

कायतकाल – 23 नवम्बर 1910 – 4 अप्रैल 1916

मुख्य घटना और कायत


▪ लॉडा हानडिंग के समय सन 1911 में जॉजा पंचम के आगमन पर धदलली दरबार का आयोजन नकया गया, साथ ही
बंगाल नवभाजन को रद्द कर नदया गया।
▪ 1911 में ही बंगाल से अलग करके नबहार और उड़ीसा नाम से नए राज्यों का ननमााण हुआ।
▪ हानडिंग के कायाकाल में भारत की राजधानी को कलकत्ता से नदल्ली स्थानांतररत कर नदया गया।
▪ हानडिंग के समय में ही सन 1914 में प्रथम नवश्व यर्द्
ु प्रारंभ हुआ, नजसके नलए वह भारत का समथान पाने में सफल
रहा।
▪ हानडिंग के समय में 1913 में धफ़रोजशाह मेहर्ा ने बाम्बे क्राधनकल एवं गणेश शंकर धवद्याथी ने प्रर्ाप का
प्रकाशन नकया।
▪ हानडिंग के कायाकाल में धर्लक ने अप्रैल 1915 में और एनी बेसेंट ने नसतम्बर 1915 में होमरूल लीग की
स्थापना की।
▪ 1916 ई. में पंनडत महामना मदन मोहन मालवीय ने बनारस नहन्दू की स्थापना की और लॉडा हानडिंग को बनारस नहन्दू
नवश्वनवद्यालय का कुलपनत भी ननयि ु नकया गया।

लॉित चेम्स्ोित (Lord Chelmsford)

कायतकाल – 4 अप्रैल 1916 – 2 अप्रैल 1921

मुख्य घटना और कायत

▪ इसके कायाकाल में नतलक और एनी बेसेंट ने अपने होमरूल लीग के आन्दोलन की शरुु आत की।
▪ 1916 में कांग्रेस और मनु स्लम लीग में एक समझौता हुआ नजसे लखनऊ पैक्ट के नाम से जाना जाता है।
▪ इसके समय में ही भारत में शौकत अली, महु म्मद अली और मौलाना अबुल कलम आजाद िारा धखला्र्
आन्दोलन (khilafat movement) की भी शुरुआत की गयी, नजसे बाद में गााँधी िारा चलाये
गए असहयोग आन्दोलन (noncooperation movement) का भी समथान भी नमला।
▪ 1920 में ही मोहम्मडन एंग्लो ओररएटं ल कालेज (सैयद अहमद खान िारा 1875 में स्थानपत) अलीगढ़ मनु स्लम
नवश्वनवद्यालय बना।
▪ चेम्सफोडा के कायाकाल में, सर नसडनी रौलट की अध्यक्षता में एक कमेटी ननयि ु करके रौलेट एक्ट (Rowlatt
Acts) माचा 1919 में पाररत नकया गया, नजससे मनजस्ट्रेटों को यह अनधकार नमल गया नक वह नकसी भी
सदं हे ास्पद नस्थनत वाले व्यनि को नगरफ्तार करके उस पर मक
ु दमा चला सकता था।
▪ चेम्सफोडा के समय में ही 1919 में जधलयाुँवाला बाग हत्याकाण्ि हुआ।
▪ इसके समय में भारत सरकार अनधननयम, 1919 ई. व मॉण्टे ग्यू-चेम्सफ़ोित सुिार (Montagu-
Chelmsford reforms) लाया गया।
▪ 1916 ई. में पनू ा में मनहला नवश्वनवद्यालय की स्थापना तथा 1917 ई. में नशक्षा पर सैिलर आयोग (Sadler
Commission) की ननयनु ि लॉडा चेम्सफ़ोडा के समय में ही की गई।
लॉित रीधिंग (Lord Reading)

कायतकाल – 2 अप्रैल 1921 – 3 अप्रैल 1926

मुख्य घटना और कायत

▪ लॉडा रीनडंग के समय में गााँधी जी का भारतीय राजनीनत में पणू ा रूप से प्रवेश हो चक
ु ा था।
▪ लॉडा रीनडंग के कायाकाल में 1919 का रौलेट एक्ट वापस ले नलया गया।
▪ रीनडंग के समय में ही के रल में 1921 में मोपला धविोह (Moplah Rebellion) हुआ, जो नखलाफत
आन्दोलन का ही एक रूप था, नजसके नेता वरीयनकुन्नाथ कंु जअहमद हाजी, सीथी कोया थंगल और अली मनु स्लयर
थे।
▪ लॉडा रीनडंग के ही कायाकाल में 5 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा की घटना हुई, नजसकी वजह से गााँधी जी ने
अपना असहयोग आन्दोलन वापस ले नलया।
▪ लॉडा रीनडंग के समय में 1921 में धप्रन्स ऑफ़ वेलस (Prince of Wales) का भारत आगमन भी हुआ।
▪ लॉडा रीनडंग के कायाकाल एम. एन. रॉय (Manabendra Nath Roy) िारा नदसम्बर 1925 में भारर्ीय
कम्युधनस्ट पाटी (Communist Party of India, CPI) का भी गठन नकया गया।
▪ 1922 में नचतरंजन दास, नरनसंह नचंतामन के लकर और मोतीलाल नेहरू ने नमलकर स्वराज पाटी (Congress-
Khilafat Swarajaya Party) का गठन नकया।
▪ लॉडा रीनडंग के कायाकाल में नदल्ली और नागपरु नवश्वनवद्यालयों की भी स्थापना हुई।

लॉित इरधवन (Lord Irwin)

कायतकाल – 3 अप्रैल 1926 – 18 अप्रैल 1931

मुख्य घटना और कायत

▪ इरनवन के कायाकाल के दौरान गााँधी जी ने 12 माचा, 1930 ई. में सधवनय अवज्ञा आन्दोलन (Civil
Disobedience Movement) की शरुु आत की।
▪ इरनवन के कायाकाल में 1919 ई. के गवनामेंट ऑफ़ इनं डया एक्ट की समीक्षा करने के नलए, 1928 में साइमन
कमीशन (Simon Commission) ननयि ु नकया गया।
▪ साइमन कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन (Sir John Simon) थे, और इसके एक सदस्य क्लीमेंट
एटली (Clement Attlee) भी थे, जो बाद में इग्ं लैंड के प्रधानमंत्री बने, नजनके कायाकाल में 1947 में भारत
और पानकस्तान को स्वतंत्रता नमली।
▪ लॉडा इरनवन के कायाकाल में मोतीलाल नेहरु ने नेहरु ररपोटत पेश की, नजसमे भारत को अनधशसी राज्य
(dominion status) का दजाा देने की बात कही गयी।
▪ काग्रं ेस ने 1930 ई. में महात्मा गाधं ी के नेतत्ृ व में सत्याग्रह आन्दोलन शरू
ु नकया और अपने कुछ अनयु ानययों के
साथ दांिी यािा करके नमक कानून तोडा।
▪ इरनवन के समय में लंदन में निनटश सरकार और गााँधी जी के बीच प्रथम गोलमेज सम्मलेन (Round Table
Conferences.) हुआ।
▪ माचा 1931 में गााँधी और इरनवन के बीच गााँधी-इरनवन समझौता (Gandhi-Irwin Pact) हुआ, नजसके बाद
गााँधी ने सनवनय अवज्ञा आन्दोलन (Civil Disobedience Movement) वापस ले नलया।
▪ इरनवन के कायाकाल में 1929 में, पनब्लक सेफ्टी नबल और लाला लाजपत रॉय की हत्या के नवरोध में नदल्ली के
असेम्बली हॉल में भगत नसहं और उनके सानथयों ने बम फें का।
▪ लॉडा इरनवन के कायाकाल में ही 1929 में प्रनसर्द् लाहौर र्ि्यंि एवं स्वतंत्रता सेनानी जधर्नदास की 64 नदन की
भखू हड़ताल के बाद जेल में मृत्यु हो गयी थी।
▪ इरनवन ने खनन और भ-ू नवज्ञान के नवकास के नलए इनं डयन स्कूल ऑफ़ माइसं , धनबाद (Indian School of
Mines Dhanbad) की स्थापना भी की।

लॉित धवधलंगिन (Lord Willingdon)

कायतकाल – 18 अप्रैल 1931 – 18 अप्रैल 1936

मुख्य घटना और कायत

▪ लॉडा नवनलंगडन के कायाकाल में 1931 में. धिर्ीय गोलमेज सम्मेलन और 1932 में र्ृर्ीय गोलमेज
सम्मेलन का आयोजन लन्दन में हुआ।
▪ नवनलंगडन के समय में 1932 में देहरादनू में भारर्ीय सेना अकादमी (Indian Military Academy,
IMA) की स्थापना की गयी| 1934 में गााँधी जी ने दोबारा सधवनय अवज्ञा आन्दोलन शरू ु नकया।
▪ 1935 में गवनामेंट ऑफ़ इनं डया एक्ट पाररत नकया गया, एवं 1935 में ही बमाा को भारत से अलग कर नदया गया।
▪ नवनलंगडन के समय में ही भारर्ीय धकसान सभा की भी स्थापना की गयी।
▪ महात्मा गााँधी एवं अम्बेडकर के बीच 24 नसतम्बर, 1932 ई. को पनू ा समझौता हुआ।

लॉित धलनधलथगो (Lord Linlithgow)

कायतकाल – 18 अप्रैल 1936 – 1 अक्टूबर 1943

मुख्य घटना और कायत


▪ 1939 में सभु ार् चन्द्र बोस ने कांग्रेस छोड़कर ्ॉरवित ब्लाक नाम की अलग पाटी का गठन कर नलया।
▪ लॉडा नलननलथगो के समय में ही पहली बार मनु स्लम लीग िारा 1940 में पाधकस्र्ान की मांग की गयी।
▪ 1942 ई. में धक्रप्स धमशन(Cripps Mission) भारत आया।
▪ 1940 में कांग्रेस ने व्यनिगत असहयोग आन्दोलन प्रारंभ नकया।
▪ लॉडा नलननलथगो के कायाकाल में गााँधी जी ने करो या मरो का नारा देते हुए भारर् छोड़ो आन्दोलन की शरुु आत
की।
▪ 1943 के बंगाल के अकाल के समय लॉडा नलननलथगो भारत के वायसराय थे।

लॉित वेवेल (Lord Wavell)

कायतकाल – 1 अक्टूबर 1943 – 21 फ़रवरी 1947

मुख्य घटना और कायत

▪ 1945 में लॉडा वेवेल ने नशमला में एक समझौते का आयोजन नकया, नजसे धशमला समझौर्ा या वेवेल प्लान के
नाम से जाना गया।
▪ वेवेल के समय में 1946 में नौसेना का नवद्रोह हुआ था।
▪ 1946 में अंतररम सरकार का गठन नकया गया।
▪ निटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 ्रवरी, 1947 को भारत को स्वतंत्र करने की घोर्णा कर दी।

लॉित माउंटबेटेन (Lord Mountbatten)

कायतकाल – 21 फ़रवरी 1947 – 15 अगस्त 1947

▪ लॉडा माउंटबेटन भारत का अंधर्म वायसराय था।

मुख्य घटना और कायत

▪ लॉडा माउंटबेटन ने 3 जनू , 1947 को भारत के नवभाजन की घोर्णा की।


▪ 4 जल ु ाई, 1947 को निनटश संसद में भारतीय स्वतंत्रता अनधननयम प्रस्ततु नकया गया, नजसे 18 जुलाई, 1947
को पाररत करके भारत की स्वतंत्रता की घोर्णा कर दी गयी।
▪ भारतीय स्वतत्रं ता अनधननयम िारा भारत को नवभाजन करके भारत और पानकस्तान नाम के दो राज्यों में बााँट नदया
गया।
▪ 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतत्रं हो गया।

चक्रवर्ी राजगोपालाचारी (Chakravarti Rajagopalachari)


कायतकाल – 15 अगस्त 1947 – 1948

▪ भारत की स्वतत्रं ता के बाद 1948 में चक्रवती राजगोपालाचारी को स्वतत्रं भारत का प्रथम गवनार जनरल ननयि

नकया गया।

Regulating Act 1773

▪ रे गल
ु ेनटंग एक्ट 1773 निनटश सरकार के िारा उठाया गया पहला ऐसा कदम था नजसके अन्तगात कंपनी के कायों को
ननयनमत और ननयंनत्रत नकया गया।
▪ इससे पहले निनटश सरकार ने 1767 में के वल कंपनी के कायों में हस्तक्षेप करते हुए 40 लाख की वानर्ाक

आय में 10% अपना नहस्सा तय नकया था।


▪ इसके िारा पहली बार कम्पनी के प्रशासननक और राजनीनतक कायों को मान्यता नमली और इसके िारा भारत में
के न्द्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी।
▪ रे गलु ेनटंग एक्ट 1773 अनधननयम के िारा बंगाल के गवनार को बंगाल का गवनार जनरल कहा जाने लगा और उसकी
सहायता के नलए एक चार सदस्यीय कायाकारी पररर्द का गठन नकया गया। लॉडा वारे न हेनस्टंग्स बंगाल का पहला
गवनार जनरल बना।
▪ इस एक्ट के िारा मद्रास एवं बम्बई के गवनारों को बंगाल के गवनार जनरल के अधीन कर नदया गाय। इससे पहले
बंगाल, मद्रास एवं बम्बई के गवनार एक दसू रे के प्रनत उत्तरदायी नहीं थे, तथा वे सीधे अपने ननणाय लेने के नलए स्वतंत्र
थे।
▪ अब 500 पौण्ड अंशधाररयों के स्थान पर 1000 पौण्ड अंशधाररयों को कोटा ऑफ डायरे क्टर(24 सदस्य की
गवननिंग बॉडी) को चनु ने का अनधकार नदया गया।
▪ कंपनी के डायरे क्टर(24 सदस्य की गवननिंग बॉडी) से कहा गया नक वे अब से राजस्व, दीवानी एवं सैन्य प्रशासन के
संबंध में नकये गये सभी प्रकार के कायों से निनटश सरकार को अवगत करायेंगे।
▪ कंपनी के डायरे क्टरों का कायाकाल 4 वर्ा कर नदया गया तथा प्रनत वर्ा उनमें से एक चौथाई सदस्यों के स्थान पर नये
सदस्यों के ननवााचन की पर्द्नत को अपनाया गया।
▪ बगं ाल में एक प्रशासक मण्डल गनठत नकया गया। नजसमें गवनार जनरल तथा 4 पार्ाद ननयि ु नकये गए थे।
▪ पार्ाद नागररक तथा सैन्य प्रशासन से सम्बनन्धत थे।
▪ ननणाय बहुमत के आधार पर नलया जाता था।
▪ इनकी ननयि ु तथा हटाने का अनधकार निनटश सम्राट एवं कोटा ऑफ डायरे क्टरों को था।
▪ इस प्रशासक मण्डल का पहला अध्यक्ष लॉडा वारे न हेनस्टंग्स बना।

▪ 4 पार्ाद क्रमशः क्लैवररंग, मानसल, बरवैल एवं नफनलप फ्ांनसस थे।

▪ इस एक्ट के अंतगात 1774 में बंगाल में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी। इसमें मुख्य न्यायाधीश के
अनतररि तीन अन्य न्यायाधीश ननयि ु नकए गए। इसके पहले मुख्य न्यायाधीश “सर एनलजा एम्पी” बने। कम्पनी के
सभी कमाचारी इसके अधीन कर नदए गये। न्यानयक नवनधयां इग्ं लैंड के अनसु ार ही थीं।
▪ काननू बनाने का अनधकार गवनार जनरल व उसकी पररर्द को दे नदया गया नकन्तु लागू करने से पवू ा भारत के सनचव
की अनमु नत लेना अननवाया था।
▪ इस समय तक कंपनी में भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुचाँ चक ु ा था। अतः इस एक्ट के िारा कम्पनी के कमाचाररयों के
ननजी व्यापार पर रोक लगा दी गयी, एवं उनका वेतन बड़ा नदया गया और नकसी भी तरह के उपहार या ररश्वत लेने पर
रोक लगा दी गई।
▪ ु ेनटंग एक्ट में वर्ा 1781 में कुछ संशोधन नकए गए जोनक ननम्नवत है –
इस रे गल
▪ इस संशोनधत एक्ट को “एक्ट ऑफ सेटलमेंट” का नाम नदया गया।
▪ कलकत्ता नस्थत उच्चतम न्यायालय के कायाक्षेत्र को पररभानर्त कर नदया गया।
▪ नकसी भी नस्थनत में राजस्व एकनत्रत करने की व्यवस्था में कोई रूकावट नहीं डाली जाए।
▪ नए कानन ू ों को बनाते व लागू करते समय भारतीय समाज व धानमाक रीनत ररवाजों का सम्मान नकया जाए।

रे गल
ु ेनटंग एक्ट 1773 के बाद भी कंपनी का शासन-प्रबन्धन निनटश सरकार के हाथों में नहीं आ सका, नजस कारण निनटश
संसद िारा नपट्स इनं डया एक्ट 1784 पाररत नकया गया।

Pitt’s India Act 1784

ु नबन्दु ननम्नवत हैं –


नपट्स इनं डया एक्ट 1784 के प्रमख

▪ 1773 में आये रे गल ु ेनटंग एक्ट के दोर्ों को इस एक्ट के िारा दरू नकया गया।
▪ इसे निटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री “नपट द यंगर” ने 1784 में संसद में प्रस्तानवत नकया था।
▪ कंपनी अनधकृ त प्रदेश को पहली बार “निनटश अनधकृ त प्रदेश” कहा गया।
▪ इस एक्ट से कम्पनी के राजनीनतक और आनथाक कायों को अलग-अलग कर नदया गया। अतः इस एक्ट से ही िैध
शासन व्यवस्था की शरुु आत हुयी।
▪ व्यापाररक मामलों का संचालन “बोडा ऑफ डायरे क्टसा” के हाथ में ही रहने नदया गया।
▪ इस एक्ट से राजनीनतक मामलों के नलए एक नए ननकाय “ननयंत्रण बोडा” का गठन कर नदया गया ।
▪ 6 कनमश्नरों के “ननयत्र ं ण बोडा” की स्थापना की गयी, नजसे भारत में अग्रं ेजी अनधकृ त क्षेत्र पर परू ा अनधकार
नदया गया।
▪ इसे “बोडा ऑफ कन्ट्रोल” कहा जाता था। इसके सदस्यों की ननयनु ि निटेन के सम्राट िारा की गयी।

▪ इसके 6 सदस्यों में एक निटेन का अथामंत्री तथा दस ू रा नवदेश सनचव तथा अन्य सम्राट िारा अपनी ‘नप्रवी
कौंनसल’ के सदस्यों में से चनु े जाते थे ।
▪ गवनार जनरल के पररर्द की सदस्यों की संख्या 4 से घटाकर 3 कर दी गयी।
▪ 3 में से एक सदस्य मख् ु य सेनापनत होता था।
▪ इससे अब गवनार जनरल का महत्व बढ़ गया, अब वो नकसी भी एक सदस्य को अपनी तरफ कर सारे ननणाय
लेने में समथा था।
▪ कंपनी के डायरे क्टरों की एक गप्तु सभा बनायी गयी, जो संचालक मण्डल(बोडा ऑफ डायरे क्टर) के सभी आदेशों को
भारत भेजती थी।
▪ “बोडा ऑफ डायरे क्टर” िारा तैयार नकये जाने वाले पत्र व आज्ञायें “ननयंत्रण बोडा” के सम्मख ु रखे जाते थे। भारत से
प्राप्त होने वाले पत्रों को भी “ननयंत्रण बोडा” के सम्मुख रखना आवश्यक था।
▪ “ननयत्रं ण बोडा”, “बोडा ऑफ डायरे क्टर” िारा नदए गए आदेशों एवं पत्रों में बदलाव कर सकता था।
▪ “बोडा ऑफ कन्ट्रोल”(ननयंत्रण बोडा) पर व्यय की जाने वाली धनरानश भारतीय आय से ली जाती थी। परन्तु
16000 पौण्ड वानर्ाक से अनधक व्यय होने पर यह ननयम लागू नहीं होता था।
▪ पोर्ण तथा संरक्षण के अनधकार “बोडा ऑफ कन्ट्रोल” के पास नहीं थे। अथाात भारत में कंपनी के अन्तगात ये नकसी
भी व्यनि को ननयि ु तो कर सकता था परन्तु निटेन के सम्राट को यह अनधकार था नक वो नकसी को भी वापस बल ु ा
कर उसे अपदस्थ कर दे।
▪ “बोडा ऑफ कन्ट्रोल” का चेयरमैन स्वयं राज्य मत्रं ी होता था।
▪ “बोडा ऑफ डायरे क्टर” को यह अनधकार नमल गया नक वह सम्राट की स्वीकृ नत से गवनार जनरल तथा उसकी पररर्द
की ननयनु ि कर सके ।
▪ बंबई तथा मद्रास के गवनार पूणा रूप से गवनार जनरल के अधीन कर नदये गये।
▪ मद्रास तथा बंबई के गवनारों की सहायता हेतु भी तीन सदस्यों की पररर्द का गठन नकया गया।
▪ वारे न हेनस्टंग्स तत्कालीन गवनार जनरल ने इस एक्ट का नवरोध नकया तथा 1785 में इस्तीफा देकर वो वापस इग्ं लैड
चला गया जहां पर “बका ” नामक एक मत्रं ी ने उस पर महानभयोग एवं भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर मक ु दमा चलाया।
नजसमें बाद में वारे न हेनस्टंग्स को बरी कर नदया गया।
▪ इस एक्ट के अनसु ार गवनार जनरल नकसी भी संनध को करने से पहले कंपनी के डायरे क्टरों से स्वीकृ नत लेगा।
▪ इस एक्ट में यह साफ कर नदया गया नक भारतीय राज्यों को जीतना व उनके नलए साम्राज्यवादी नीनतयां बनाना निनटश
सरकार के नलए अशोभनीय है। अतः राज्य क्षेत्र को बढ़ाने वाली नीनत न अपनाई जाए।
▪ इस एक्ट में कंपनी के कमाचाररयों का देशी शासकों के साथ धन के लेन-देन को गलत एवं अपमानजनक बताया। इस
तरह के कायों में नलप्त कमाचाररयों के नलए कठोर काननू बनाने पर बल नदया गया।
▪ भारत में अग्रं ेज अनधकाररयों पर मक ु दमा चलाने के नलये इग्ं लैण्ड में एक कोटा की स्थापना की गयी।
▪ 1786 में इस एक्ट में कुछ संशोधन नकए गए-
▪ गवनार जनरल को मख् ु य सेनापनत की शनियााँ दे दी गयीं।
▪ नवशेर् पररनस्थनतयों में गवनार जनरल अपने सहायक मण्डल के ननदेशों को रद्द कर सकता है।

नपट्स इनं डया एक्ट 1784 में भी कुछ कनमयााँ रह गयीं नजनको दरू करने के नलए निनटश संसद िारा चाटार एक्ट 1793 लाया
गया।

Charter Act 1793

ु ं को नीचे उल्लेनखत नकया गया है –


इस एक्ट के महत्वपणू ा नबन्दओ
▪ इस अनधननयम ने भारत में निनटश क्षेत्रों पर कंपनी के शासन को जारी रखा।
▪ कंपनी के व्यापाररक एकानधकार को अगले 20 वर्ों के नलए और आगे बढ़ा नदया गया, जबनक उस समय निटेन में
कंपनी के भारत में व्यापाररक एकानधकार को समाप्त करने के नलए आवाजें उठने लगी थी।
▪ इस एक्ट से यह साफ कर नदया गया नक कंपनी के सभी राजनीनतक काया स्वतंत्र नहीं है बनल्क निनटश सरकार की ओर
से हैं, कंपनी के वल क्राउन की प्रनतनननध के रूप में काया करती है।
▪ कंपनी के डायरे क्टरों के लाभांश को 10% तक बढ़ाने की स्वीकृ नत दे दी गई थी।
▪ इस एक्ट के िारा गवनार जनरल और उसकी पररर्द के सदस्यों की सदस्यता की योग्यता की व्याख्या करते हुए कम से
कम 12 वर्ों का भरत में रहने का अनुभव अननवाया कर नदया गया।
▪ प्रधान सेनापनत, गवनार जनरल की पररर्द का सदस्य नहीं बन सकता था, जब तक उसे ननयत्रं ण बोडा िारा नवशेर् रूप
से नानमत न नकया जाए। इससे पहले के एक्ट के अनसु ार वो पररर्द का सदस्य था।
▪ 1786 के नपट्स इनण्डया एक्ट में गवनार-जनरल को अनधक अनधकार नदए गए थे, वह कुछ पररनस्थनतयों में अपनी
पररर्द के ननणाय को अस्वीकार कर सकता था। इस एक्ट में इस ननयम को और पररभानर्त नकया गया, तथा यह साफ
कर नदया गया नक गवनार-जनरल के वल शानं त व्यवस्था, सरु क्षा एवं अग्रं ेजी प्रदेशों के नहत के नवर्यों पर ही पररर्द के
ननणाय को अस्वीकार कर सकता है, न्याय, नवनध या कर सम्बन्धी मामलों में उसे यह अनधकार नहीं था।
▪ गवनार जनरल को यह अनधकार नदया गया नक नजस समय वो बंगाल से अनपु नस्थत हो, वह अपनी पररर्द के असैननक
सदस्यों में से एक उपाध्यक्ष को ननयि ु कर सकता है।
▪ ननयत्रं ण बोडा की सरं चना में कुछ बदलाव कर नदए गए। इसमें एक अध्यक्ष और दो जनू नयर सदस्य होने चानहए। जनू नयर
सदस्य के नलए सम्राट की नप्रवी काउंनसल का सदस्य होने की बाध्यता को समाप्त कर नदया गया।
▪ ननयत्रंण बोडा और कंपनी के सभी कमाचाररयों का वेतन अब कंपनी को ही भारतीय कोर् से देना था। कंपनी के
कमाचाररयों में भ्रष्टाचार का मुख्य कारण था नक उनका वेतन निनटश कोर् से नदया जाता था नजस कारण वेतन कम था
और ननयनमत रूप से नदया भी नहीं जाता था नजस कारण कमाचारी भ्रष्टाचार में नलप्त रहते थे। इस एक्ट िारा इसका
समाधान करने का प्रयास नकया गया।
▪ सभी खचों के बाद, कंपनी को निनटश सरकार को सालाना भारतीय राजस्व से 5 लाख रुपये का भगु तान करना था।
▪ इस एक्ट में यह ननयम बना नदया गया नक कंपनी के वररष्ठ अनधकारी नबना अनमु नत के भारत नहीं छोड़ सकते थे, अगर
वे ऐसा करते हैं तो इसे उनका इस्तीफा माना जाएगा।
▪ कंपनी को भारत में व्यापार करने के नलए व्यनियों और कंपनी के कमाचाररयों को लाइसेंस देने का अनधकार नदया गया
था। इसे “नवशेर्ानधकार” या “देश व्यापार” के रूप में जाना जाता था।
▪ सवोच्च न्यायालय के अनधकार क्षेत्र को और बढ़ा नदया गया।
▪ इस एक्ट को निनटश सरकार की नवस्तार वादी नीनत का सूचक माना जा सकता है। कंपनी ने अब भारतीयों के
व्यनिगत अनधकारों और संपनत्त को भी ननयंनत्रत करना शुरू कर नदया।

Charter Act 1813

ु ं को नीचे उल्लेनखत नकया गया है-


चाटार एक्ट 1813 के महत्वपणू ा नबन्दओ
▪ सभी निनटश व्यापाररयों को भारत से व्यापार करने की छूट दे दी गयी।
▪ कंपनी का भारतीय व्यापार पर एकानधकार समाप्त कर नदया गया। जबनक चीन से चाय के व्यापार पर एकानधकार
कायम रखा गया।
▪ कंपनी के भागीदारों को भारतीय मनु ाफे से मात्र 10.5% भाग ही नमलेगा।
▪ कंपनी को 20 वर्ों के नलए भारतीय प्रदेशों में राजस्व पर ननयंत्रण का अनधकार दे नदया गया।
▪ इस एक्ट के अनसु ार भारत में अग्रं ेजों िारा बनाए गए स्थानीय ननकाय अपने अन्तगात आने वाले भारतीयों पर कर
(सफाई कर, चौकीदारी कर आनद) लगा सकते थे। साथ ही कर न देने वालों को दनण्डत करने का भी प्रावधान इस
एक्ट में नकया गया।
▪ इस एक्ट के अनसु ार कंपनी को अपना क्षेत्रीय राजस्व और वानणनज्यक मनु ाफे को अलग-अलग व्यवनस्थत करना था।
▪ ननयत्रं ण बोडा की शनि को पररभानर्त व उसकी शनि का नवस्तार करते हुए बोडा की ननगरानी और आदेश जारी करने
की शनियों को बढ़ाया गया।
▪ कंपनी के सम्बन्ध में अंनतम ननणाय लेना का अनधकार निनटश सम्राट के पास ही रहा परन्तु नवत्तीय मामलों को कंपनी
के दे नदया गया।
▪ इस एक्ट के िारा भारतीय कोटों को निनटश नवर्यों पर अनधक अनधकार नदए गए।
▪ ईसाई धमा प्रचारक को आज्ञा प्राप्त करके भारत में धमा प्रचार करने की सनु वधा दी गयी।
▪ कलकत्ता में ईसाई धमा के प्रचार एवं भारत में रह रहे ईसाइयों के नलए एक नगरजाघर, एक नबशप तथा तीन पादररयों को
ननयिु नकया गया।
▪ निनटश व्यापाररयों तथा इजं ीननयरों को भारत आने की तथा यहां बसने की अनुमनत प्रदान कर दी गयी, परन्तु इसके
नलए संचालक मण्डल या ननयंत्रण बोडा से लाइसेंस लेना अननवाया था।
▪ कंपनी की आय से भारतीयों की नशक्षा पर प्रनत वर्ा 1 लाख रूपये व्यय करने की व्यवस्था की गयी।
▪ भारतीय सानहत्य एवं नवज्ञान आधाररत नशक्षा को बढ़ाने के नलए प्रावधान बनाए गए।
▪ इस एक्ट के िारा कंपनी के कमाचाररयों (नागररक एवं सैननक दोनों) हेतु प्रनशक्षण की व्यवस्था की गई। इसके नलए
कलकत्ता एवं मद्रास के कॉलेजों को ननयंत्रण बोडा के ननयमों के अनुरूप चलाने की व्यवस्था की गई।
▪ इस एक्ट के िारा भारत में निनटश सेना की संख्या 29,000 ननधााररत कर दी गयी एवं कंपनी को भारतीय सैननकों के
नलए ननयम एवं काननू बनाने का भी अनधकार दे नदया गया।

Charter Act 1833

चाटार एक्ट के महत्वपणू ा नबंदु ननम्नवत हैं –

▪ इस एक्ट से कंपनी के चीन से चाय के व्यापार पर एकानधकार को समाप्त कर नदया गया।


▪ भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर कंपनी के अनधकारों को 20 वर्ों के नलए और बढ़ा नदया गया। नकंतु यह नननश्चत
नकया गया नक भारतीय प्रदेशों का प्रशासन अब निनटश सम्राट के नाम से नकया जायेगा, तथा भारत अब निनटश
उपननवेश बन गया।
▪ इस एक्ट के बाद से बंगाल के गवनार जनरल को अब भारत का गवनार जनरल कहा जाने लगा। भारतीय प्रदेशों में
शासन करने के नलए सभी सैन्य, न्यानयक और नागररक शनियां इसमें नननहत थी।
▪ निनटश अनधकृ त भारतीय प्रदेशों पर इसका पणू ा ननयंत्रण था।
▪ लाडा नवनलयम बैंनटक भारत का पहला गवनार जनरल बना।
▪ इस एक्ट के अनसु ार मद्रास और बम्बई प्रेसीडेंसी के गवनारों की नवधायी शनियों को समाप्त कर नदया गया।
▪ इस एक्ट से पव ू ा बने काननू ों को ननयामक काननू और बाद में बने काननू ों को अनधननयम या एक्ट कहा गया।
▪ चाटार एक्ट 1833 के अनसु ार भारत में निनटश सरकार का नवत्तीय, नवधायी तथा प्रशासननक रूप से के न्द्रीकरण करने
का प्रयास नकया गया।
इस एक्ट के पाररत होने के बाद कंपनी को प्रशासननक ननकाय बना नदया गया। इससे पूवा कंपनी एक व्यापाररक ननकाय
के रूप में काया कर रही थी।
▪ अब अंग्रेजों को नबना अनुमनत पत्र के ही भारत आने, रहने तथा भूनम खरीदने की व्यवस्था कर दी गयी।
▪ बगं ाल के साथ मद्रास, बम्बई तथा अन्य अनधकृ त प्रदेशों को भी भारत के गवनार जनरल के ननयत्रं ण में कर नदया गया।
▪ इस एक्ट के बाद से सभी कर गवनार जनरल की आज्ञा से लगाये जायेंगे तथा उनका व्यय भी उसी की मजी से होगा।
▪ इस एक्ट के अनसु ार गवनार जनरल की पररर्द ही भारत में काननू बना पायेगी तथा मद्रास व बम्बई की काननू बनाने
की शनि समाप्त कर दी गयी।
▪ गवनार जनरल की पररर्द की संख्या जो नपट्स इनण्डया एक्ट िारा चार से घटाकर तीन कर दी गई थी उसे पनु ः चार कर
नदया गया। चौथे सदस्य को काननू नवशेर्ज्ञ के रूप में बढ़ाया गया।
▪ पहला कानन ू नवशेर्ज्ञ लाडा मैकाले था।
▪ भारतीय कानन ू को सचं ानलत, सनं हताबर्द् तथा सधु ारने की भावना से एक नवनध आयोग की ननयनु ि की गयी।
▪ इस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार नसनवल सेवा की चयन प्रनक्रया को खल ु ी प्रनतयोनगता से करने का प्रावधान था।
▪ धमा, वंश, रंग या जन्म स्थान आनद के आधार पर नकसी भारतीय को कंपनी के नकसी पद से नजसके वो योग्य
है वंनचत नहीं रखा जायेगा।
▪ बाद में कोटा ऑफ डायरे क्टर के नवरोध से इस प्रावधान को समाप्त कर नदया गया।
▪ भारत में दास प्रथा को समाप्त कर नदया गया।
▪ 1843 में दास में प्रथा लाडा एलनबरो के समय में “दास प्रथा उन्मल ू न” एक्ट लाया गया था।

Charter Act 1853

इस एक्ट के महत्वपणू ा नबंदु ननम्नवत हैं –

▪ अब कंपनी को भारतीय प्रदेशों को “जब तक संसद चाहे” तब तक के नलये अपने अधीन रखने की अनुमनत दे दी
गयी।
▪ चाटार एक्ट 1853 के अनसु ार डायरे क्टरों की संख्या 24 से घटा कर 18 कर दी गयी और उसमे 6 सम्राट िारा
मनोनीत नकये जाने का प्रावधान था।
कंपनी में ननयनु ियों के मामलों में डायरे क्टर का संरक्षण समाप्त कर नदया गया।
▪ गवनार जनरल की पररर्द में जो चौथा “नवनध सदस्य” चाटार एक्ट 1833 के प्रावधानों के अनुरूप जोड़ा गया था, उसे
वोट देने का अनधकार प्राप्त नहीं था। इस एक्ट के िारा गवनार जनरल को भी वोट देने का अनधकार नदया गया और
उसकी नस्थनत को बाकी तीनों सदस्यों के समान कर नदया गया।
▪ चाटार एक्ट 1853 के अनसु ार गवनार जनरल की पररर्द के नवधायी और प्रशासननक कायों को उल्लेनखत कर प्रथक
कर नदया गया।
▪ नवधायी कायों हेतु 6 नए पार्ाद जोड़े गए, नजन्हें नवधान पार्ाद कहा गया।

▪ इन 6 पार्ादों का चन ु ाव बंगाल, मद्रास, बंबई और आगरा की स्थानीय प्रांतीय सरकारों िारा नकया गया। अतः
इस एक्ट से स्थानीय प्रनतनननधत्व का भी शभु ारम्भ हुआ।
▪ इस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार अब “भारत के गवनार जनरल” को बंगाल के शासन से मि ु कर नदया गया एवं
बंगाल के प्रशासननक कायों हेंतु एक गवनार की ननयनु ि का प्रावधान था। नए गवनार की ननयनु ि तक एक अस्थाई
लेनफ्टनेंट गवनार की ननयनु ि की गयी।
▪ गवनार जनरल को अब भारत के शासन को के न्द्रीय रूप से संभालना था।

▪ इस प्रकार चाटार एक्ट 1853 ने भारत में कें द्रीय प्रशासन की नींव रखी।
▪ इस एक्ट के अनसु ार नसनवल सेवा की भती हेतु खल ु ी प्रनतयोनगता का प्रावधान नकया गया।
▪ 1854 में भारतीय नसनवल सेवा हेतु मैकाले सनमनत का गठन नकया गया।
▪ इस प्रावधान के अनस ु ार नसनवल सेवा अब भारतीयों के नलए भी खोल दी गयी थी। परन्तु आयु अहताा को
18-23 वर्ा रखा गया था, जोनक उस समय के शैक्षनणक स्तर के अनरू ु प न्यायसगं त नहीं थी।
▪ भारत में कंपनी का भू-क्षेत्र का नवस्तार काफी बढ़ जाने के कारण, इस एक्ट के िारा दो नए प्रांतों नसंध और पंजाब को
गनठत नकया गया।

Charter Act 1858

ु नबन्दु ननम्नवत है-


इस एक्ट के प्रमख

▪ भारत का शासन निटेन की संसद को दे नदया गया।


▪ अब भारत के शासन को निटेन की ओर से “भारत का राज्य सनचव” को चलाना था।
▪ डायरे क्टरों की सभा और ननयंत्रण बोडा को भंग कर उनके समस्त अनधकारों भारत सनचव को दे नदये गये। इस
तरह इस एक्ट ने भारत में िैध शासन प्रणाली को समाप्त कर नदया।
▪ इसकी सहायता के नलए 15 सदस्यीय भारत पररर्द (इनण्डया काउंनसल) का गठन नकया गया।

▪ भारत पररर्द (इनण्डया काउंनसल) के 15 सदस्यों में 7 सदस्यों का चयन सम्राट तथा शेर् सदस्यों का चयन
कंपनी के डायरे क्टर करते थे।
भारतीय शासन संबधं ी सभी काननू ों एवं कदमों पर भारत सनचव की स्वीकृ नत अननवाया थी, जबनक भारत
पररर्द (इनण्डया काउंनसल) के वल सलाहकारी प्रकृ नत की थी।
▪ अनखल भारतीय सेवाएाँ तथा अथाव्यवस्था से सम्बन्धी मामलों पर भारत सनचव, भारत पररर्द (इनण्डया

काउंनसल) की राय मानने हेतु बाध्य था।


▪ भारत राज्य सनचव को एक ननगम ननकाय घोनर्त कर नदया गया। नजस पर इग्ं लैंड तथा भारत में दावा दानखल
नकया जा सकता था तथा जो खदु भी दावा दानखल करने में सक्षम था।
▪ सर चाल्सा वुड, ननयंत्रण बोडा के अंनतम अध्यक्ष तथा भारत के पहले राज्य सनचव बने।
▪ भारत का गवनार जनरल अब भारत का वायसराय कहा जाने लगा।
▪ भारत का प्रथम वायसराय लाडा कै ननंग बना।

▪ जोनक भारत में ताज (निनटश संसद) के प्रनतनननध के रूप में काया करे गा।

▪ भारत का वायसराय, भारत सनचव की आज्ञा के अनस ु ार काया करने के नलए बाध्य था।
▪ निनटश ससं द के “भारत मत्रं ी” को वायसराय से गप्तु पत्र व्यवहार करने तथा प्रनतवर्ा संसद में भारतीय निनटश सरकार
हेतु बजट रखने का अनधकार नदया गया।
▪ इसी एक्ट के क्रम में महारानी नवक्टोररया ने कुछ घोर्णाएाँ की नजन्हें तत्कालीन वायसराय लाडा कै ननंग ने इलाहाबाद के
दरबार में 1 नवम्बर, 1858 को पढ़ा-
▪ भारत के सभी धमों की प्राचीन मान्यताओ ं और परम्पराओ ं का सम्मान नकया जाएगा।

▪ भारत के सभी राजाओ ं के पदों का सम्मान करते हुए, निनटश राज के क्षेत्र नवस्तार को तात्कानलक प्रभाव से
रोक नदया जाएगा।
▪ सभी भारतीयों को नसनवल सेवा की परीक्षा में समानता का दजाा नदया जाएगा।
▪ भारत की मध्यमवगीय जनता के नलए नशक्षा एवं उन्नती के नए अवसरों को उपलब्ध कराया जाएगा।

Indian Councils Act – 1861

इस अनधननयम के मख्ु य नबदं ु ननम्नवत हैं –

▪ इसके िारा काननू बनाने की प्रनक्रया में भारतीय प्रनतनननधयों को शानमल करने की शरुु आत हुई।
▪ इस अनधननयम िारा वायसराय की पररर्द में पांचवा सदस्य नवनधवेत्ता के रूप में जोड़ा गया ।
▪ इस अनधननयम के प्रावधानों के अनसु ार वायसराय की पररर्द का नवस्तार नकया गया। काननू ननमााण हेतु अनतररि
सदस्यों को जोड़ा गया नजनकी संख्या न्यनू तम 6 और अनधकतम 12 तक हो सकती थी। इन सदस्यों का कायाकाल 2
वर्ा का था। इस तरह वायसराय की पररर्द में सदस्यों की कुल संख्या बढ़कर 17 हो गयी।
▪ नामांनकत सदस्यों में से आधे सदस्यों का गैर-सरकारी होना अननवाया था। वायसराय कुछ भारतीयों को नवस्ताररत
पररर्द में गैर-सरकारी सदस्यों के रूप में नामानं कत कर सकता था।
▪ इस अनधननयम के प्रावधानों के अनसु ार वायसराय की नवस्ताररत पररर्द के सदस्यों का भारतीय होने की कोई
अननवायाता नहीं थी । परन्तु व्यवहाररिा में सभ्रं ांत भारतीय को इसमें जोड़ा गया, 1862 में लॉडा कै ननंग ने तीन
भारतीय- बनारस के राजा, पनटयाला के महाराजा और सर नदनकर राव को नवधान पररर्द में मनोनीत नकया।
▪ इस अनधननयम ने मद्रास और बबं ई प्रेसीडेंनसयों को नवधायी शनियां पनु ः देकर नवकें द्रीकरण की प्रनक्रया की शरुु आत
की।
▪ इस प्रकार इस अनधननयम ने रे गल ु ेनटंग एक्ट 1773 िारा शरू ु हुई के न्द्रीकरण की प्रवृनत्त को उलट नदया।
▪ इस नवधायी नवकास नीनत के कारण 1937 तक प्रांतों को संपणू ा आंतररक स्वायत्तता हानसल हो गई।
▪ बंगाल-1862, उत्तर पनश्चमी सीमा प्रान्त-1866 और पंजाब-1867 में नवधान पररर्द का गठन हुआ।
▪ इसने वायसराय को पररर्द में काया संचालन के नलए अनधक ननयम और आदेश बनाने की शनियां प्रदान की।
▪ इसने वायसराय को आपात काल में नबना काउंनसल की संस्तनु त के अध्यादेश जारी करने के नलए अनधकृ त नकया। ऐसे
अध्यादेश की अवनध मात्र छह माह होती थी।
▪ इस अनधननयम के अनसु ार वायसराय अब प्रशासननक एवं नवधायी कायों हेतु नये प्रांतों का गठन और उसके नलए
लेनफ्टनेंट गवनार की ननयनु ि कर सकता था।
▪ लॉडा कै ननंग के िारा 1859 में प्रारम्भ की गयी पोटाफोनलयो प्रणाली को भी मान्यता दी।
▪ पोटाफोनलयो प्रणाली- इसके अत ं गात वायसराय की पररर्द का एक सदस्य, एक या अनधक सरकारी नवभागों
का प्रभारी बनाया जा सकता था तथा उसे इस नवभाग में काउंनसल की तरफ से अंनतम आदेश पाररत करने का
अनधकार था।

Indian Councils Act 1892

इसके प्रमुख नबन्दु ननम्नवत है –

▪ इसने नवधान पररर्द के कायों में वृनर्द् कर उन्हें बजट पर बहस करने और कायापानलका के प्रश्नों का उत्तर देने के नलए
अनधकृ त नकया। परन्तु कायापानलका से परू क प्रश्न पछ ू ने और मत नवभाजन का अनधकार नहीं नदया गया ।
▪ के न्द्रीय और प्रातं ीय पररर्दों में अनतररि सदस्यों की सख्ं या को बढ़ा नदया गया।
▪ के न्द्रीय पररर्द में अनतररि सदस्यों की संख्या न्यनू तम 10 और अनधकतम 16 कर दी गयी ।
▪ प्रांतीय पररर्द में अनतररि सदस्यों की संख्या में वृनर्द् की गयी। बम्बई और मद्रास में संख्या 20 एवं उत्तर

प्रदेश में 15 कर दी गयी।


▪ इसके माध्यम से कें द्रीय और प्रांतीय नवधान पररर्दों में गैर-सरकारी सदस्यों की संख्या भी बढ़ाई गई, हालांनक

बहुमत सरकारी सदस्यों का ही रहता था। 2/5 सदस्य गैर-सरकारी होना अननवाया था।
▪ इस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार वायसराय को के न्द्रीय में और गवनारों को प्रांतीय नवधान पररर्दों में नामांनकत गैर-
सरकारी सदस्यों के सम्बन्ध में नवशेर् अनधकार नदए गए।
▪ इसमें के न्द्रीय नवधान पररर्द और बंगाल चैंबर ऑफ कॉमसा में गैर-सरकारी सदस्यों के नामांकन के नलए
वायसराय की शनियों का प्रावधान था।
▪ प्रांतीय नवधान पररर्दों में गवनार, नजला पररर्द, नगरपानलका, नवश्वनवद्यालय, व्यापार संघ, जमींदार आनद की

नसफाररशों के आधार पर गैर-सरकारी सदस्यों को नामानं कत कर सकता था ।


▪ इसके अलावा प्रांतीय नवधान पररर्दों में गवनार को नजला पररर्द, नगरपानलका, नवश्वनवद्यालय, व्यापार संघ जमींदारों
और चैंबर ऑफ कॉमसा की नसफाररशों पर गैर-सरकारी सदस्यों की ननयनु ि करने की शनि थी।
▪ 1861 के भारत पररर्द अनधननयम के प्रावधानों के अनुसार नवधान पररर्द में ननयि ु नकये गये गैर-सरकारी सदस्य जो
मख्ु यतः राजा-रजवाड़े, बड़े जमींदार एवं अवकाश प्राप्त अनधकारी होते थे, भारत की सामान्य जनता से सामानजक
जड़ु ाव स्थानपत कर पाने में असमथा थे। अतः इस अनधननयम ने के न्द्रीय और प्रातं ीय नवधान पररर्दों दोनों में गैर-
सरकारी सदस्यों की ननयनु ि के नलए एक सनमनत और परोक्ष रूप से चनु ाव का प्रावधान नकया हालांनक चनु ाव शब्द
अनधननयम में प्रयोग नहीं हुआ था, “नननश्चत ननकायों की नसफाररश पर की जाने वाली नामाक ं न की प्रनक्रया” कहा
गया।
Indian Councils Act 1909

इस अनधननयम की प्रमुख नवशेर्ताएाँ ननम्नवत हैं-

▪ के न्द्रीय और प्रांतीय नवधान पररर्दों के आकार में काफी वृनर्द् की गयी।


▪ के न्द्रीय पररर्द की संख्या को 16 से बढ़ाकर 60 कर नदया गया।
▪ प्रांतीय नवधानपररर्दों में संख्या एक समान नहीं थी।

▪ के न्द्रीय पररर्द में सरकारी बहुमत को बनाए रखा लेनकन प्रांतीय पररर्दों में गैर-सरकारी सदस्यों के बहुमत की
अनमु नत थी।
▪ नवधान पररर्द के नलए प्रत्यक्ष ननवााचन की प्रनक्रया को भी शरू ु नकया गया।
▪ इस अनधननयम से के न्द्रीय और प्रातं ीय स्तर में नवधान पररर्द के चचाा कायों का दायरा बढ़ाया गया। जैसे बजट में परू क
प्रश्न पछू ना, बजट पर संकल्प रखना आनद। परन्तु वायसराय उत्तर देने के नलए बाध्य नहीं था।
▪ इस अनधननयम के अतं गात पहली बार नकसी भारतीय को वायसराय और गवनार की कायापररर्द के साथ एसोनसएशन
बनाने का प्रावधान नकया गया।
▪ सतेन्द्र प्रसाद नसन्हा वायसराय की कायापानलका पररर्द के प्रथम भारतीय सदस्य बने।
▪ उन्हें नवनध सदस्य बनाया गया था।
▪ इस अनधननयम में प्रथम बार ननवााचन में धमा के आधार पर मनु स्लमों के नलए सांप्रदानयक प्रनतनननधत्व का प्रावधान
नकया गया।
▪ इस अनधननयम के प्रावधानों के अनस ु ार मनु स्लम उम्मीदवारों के नलए के वल मनु स्लम मतदाता ही मतदान कर
सकता था।
▪ मनु स्लमों को जनसंख्या के आधार पर के न्द्रीय और प्रात ं ीय पररर्द में अनधक प्रनतनननधयों को भेजने की
व्यवस्था की गयी।
▪ मनु स्लम व्यनियों के नलए वोट डालने के नलए आय की योग्यता भी नहद ंओ
ु ं से कम रखी गयी।
▪ इस प्रकार इस अनधननयम ने सांप्रदानयकता को वैधाननकता प्रदान की। इसी कारण लाडा नमंटो 2 (नितीय) को
सांप्रदानयक ननवााचन का जनक के रूप में भी जाना जाता है।
▪ इसमें प्रेसीडेंसी कापोरे शन, चैंबसा ऑफ कॉमसा नवश्वनवद्यालयों और जमीदारों के नलए अलग प्रनतनननधत्व का
प्रावधान भी नकया गया।

Government of India Act 1919

इस एक्ट के महत्वपणू ा नबंदु ननम्नवत हैं-

▪ 20 अगस्त, 1917 को निनटश सरकार ने पहली बार घोनर्त नकया नक उसका उद्देश्य भारत में क्रनमक रूप से
उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना है।
▪ निटेन में भारत के उच्चायि
ु कायाालय का गठन नकया गया एवं भारत सनचव के कुछ काया उसे स्थानांतररत कर नदये
गए।
▪ कें द्रीय और प्रांतीय नवर्यों की सचू ी की पहचान कर एवं उन्हें पृथक कर राज्यों पर के न्द्रीय ननयंत्रण कम कर नदया गया।
लेनकन सरकार का ढााँचा के न्द्रीय और एकात्मक ही बना रहा।
▪ कें द्रीय और प्रांतीय नवधान पररर्दों को अपनी-अपनी सचू ी के नवर्यों पर काननू बनाने का पणू ा अनधकार प्रदान नकया
गया।
▪ इसमें प्रांतीय नवर्यों को पनु ः दो भाग ‘हस्तांतररत’ और ‘आरनक्षत’ में नवभि नकया गया।
▪ हस्तात ं ररत नवर्यों पर गवनार उन मंनत्रयों की सहायता लेता था जो नवधान पररर्द के प्रनत उत्तरदायी थे।
▪ आरनक्षत नवर्यों पर गवनार कायापानलका पररर्द की सहायता से शासन करता था, जो नवधान पररर्द के प्रनत
उत्तरदायी नहीं था।
▪ शासन की इस दोहरी व्यवस्था को िैध शासन व्यवस्था कहा गया। हालांनक यह व्यवस्था काफी हद तक
असफल ही रही।
▪ ननंयन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक(CAG) का सुझाव इसी एक्ट में नदया गया था।
▪ 1921 का नरे न्द्र मॉडल (chamber of provinces) नजसमें ररयासतों को तीन श्रेनणयों में बााँटने की व्यवस्था
थी। ये मॉटेग्यू-चेम्सफोडा सधु ारों में ही एक सधु ार था।
▪ इस अनधननयम में पहली बार देश में निसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष ननवााचन की व्यवस्था प्रारम्भ की। इस प्रकार
भारत में नवधान पररर्द के स्थान पर निसदनीय व्यवस्था यानी राज्यसभा और लोकसभा का गठन नकया गया।
▪ दोनों सदनों के बहुसंख्यक सदस्यों को प्रत्यक्ष ननवााचन के माध्यम से ननवाानचत नकया जाता था।

▪ इसके अनुसार, वायसराय की कायाकारी पररर्द के 6 सदस्यों में से तीन सदस्यों को भारतीय होना आवश्यक था।
▪ कुल सदस्य – 8

▪ प्रथम पद – वायसराय(निनटश)

▪ नितीय पद – कमाण्डर इन चीफ(निनटश)

▪ शेर् 6 में से तीन का भारतीय होना अननवाया था।

▪ इसने सांप्रदानयक आधार पर नसक्खों, भारतीय ईसाई, आंग्ल-भारतीयों और यरू ोनपयों के नलए भी पृथक ननवााचन के
नसर्द्ांत का नवस्तार कर नदया।
▪ इस काननू ने सपं नत्त कर या नशक्षा के आधार पर सीनमत संख्या में लोगों को मतानधकार प्रदान नकया। इसी एक्ट के
िारा पहली बार मनहलाओ ं को वोट डालने का अनधकार नमला।
▪ इस एक्ट के प्रावधानों के अनसु ार ही 1926 में नसनवल सेवकों की भती के नलए लोक सेवा आयोग का गठन नकया
गया।
▪ इस एक्ट के अनसु ार पहली बार कें द्रीय बजट और प्रातं ीय बजट को अलग-अलग कर नदया गया। राज्य नवधान
सभाओ ं को अपना बजट स्वयं बनाने का अनधकार नदया।
▪ इस अनधननयम के अनसु ार निनटश संसद में भारत मंत्री के वेतन एवं भत्तों को भारतीय राजस्व के स्थान पर निनटश
राजस्व से नदया जाने का प्रावधान था।
▪ इसके अंतगात एक वैधाननक आयोग का गठन नकया गया, नजसका काया दस वर्ा बाद जांच कर अपनी ररपोटा प्रस्ततु
करना था नक ये अनधननयम अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में नकस स्तर तक सफल रहा है।
रॉलेट एक्ट 1919

रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act) : प्रथम नवश्व यर्द्


ु की समानप्त पर जब भारतीय जनता सवं ैधाननक सधु ारों का इतं जार कर रही
थी, तब निनटश सरकार ने दमनकारी रॉलेट एक्ट को जानता के सम्मुख पेश कर नदया। रॉलेट एक्ट 26 जनवरी, 1919 को
पास हुआ। यह एक्ट निटेन के हाई कोटा के जज “सर नसडनी रौलेट” की अध्यक्षता वाली सनमनत की नसफाररशों पर आधाररत
था।

Rowlatt Act

ु नवशेर्ताएाँ ननम्नवत हैं-


रॉलेट एक्ट की प्रमख

▪ क्रानं तकाररयों पर शीघ्र कायावाही करने हेतु लाया गया था।


▪ निनटश सरकार को भारतीयों पर के वल संदहे होने पर नबना मक ु दमा चलाए अनननश्चतकाल तक नजर बंद व 2 साल
तक जेल में रखने का अनधकार प्राप्त हो गया।
▪ जेल में रखे व्यनि को मक ु दमें की धाराएं एवं मकु दमा दजा कराने वाले व्यनि का नाम तक जानने का
अनधकार इस एक्ट िारा छीन नलया गया।
▪ क्रांनतकाररयों से सम्बनन्धत मुकदमों को तीन जजों की नवशेर् त्वररत अदालत में चलाया जाए। ननचली अदालतों में इन
मक ु दमों के सम्बन्ध में कोई अनधकार नहीं था। इस प्रावधान से दोर्ी िारा पनु ः अपील की गंजु ाईश को समाप्त कर नदया
गया।
▪ संदहे के आधार पर नकसी व्यनि को नकसी नवशेर् स्थान पर जाने, सभा करने व नकसी नवशेर् काया को करने से
प्रनतबनं धत नकया जा सकता था।
▪ निनटश सरकार नवरोधी नकसी भी सामग्री का संग्रहण, प्रकाशन व नवतरण गैर काननू ी घोनर्त कर नदया गया।
▪ इस एक्ट के िारा कोटा को ऐसी सामनग्रयों को साक्ष्य के रूप में स्वीकृ नत देने का अनधकार प्राप्त हो गया जोनक
“भारतीय साक्ष्य अनधननयम” के अंतगात मान्य नहीं है।
▪ अपने पवू ावती अनभयानों से प्रनसर्द् व साहसी हो चक ु े गााँधी जी ने प्रस्तानवत रॉलेट एक्ट के नवरोध में देशव्यापी
आंदोलन का आवाहन नकया।
▪ निनटश सरकार ने भारतीयों को प्रथम नवश्व यर्द् ु में सहयोग देने के बदले सवं ैधाननक सधु ार करने की बात मानी थी।
परन्तु नवश्व यर्द्
ु समाप्त होने के बाद निनटश सरकार मक ु र गई और इस एक्ट को पाररत कर नदया, नजसे भारतीयों ने
अपना घोर अपमान समझा। सवं ैधाननक प्रनतरोध का जब सरकार पर कोई असर नहीं हुआ तो गााँधी जी ने सत्याग्रह
प्रारम्भ करने का ननणाय नकया। एक “सत्याग्रह सभा” गनठत की गयी तथा होमरूल लीग के यवु ा सदस्यों से सम्पका कर
अग्रं ेजी हुकूमत के नवरूर्द् संघर्ा करने का ननणाय हुआ।
▪ प्रचार काया प्रारम्भ हो गया।

▪ राष्ट्रव्यापी हड़ताल, उपवास तथा प्राथाना सभाओ ं के आयोजनों का फै सला नकया गया।
▪ नगरफ्तारी देने की योजना भी बनाई गई। प्रमख ु काननू ों के भी अवहेलना करनी थी।
▪ सत्याग्रह प्रारम्भ करने के नलए 6 अप्रैल की तारीख तय की गयी।
▪ नकन्तु तारीख की ग़लतफहमी के कारण सत्याग्रह प्रारम्भ होने से पहले ही आंदोलन ने नहसं क स्वरूप धारण
कर नलया।
▪ कलकत्ता, बंबई, नदल्ली, अहमदाबाद इत्यानद स्थानों में बड़े पैमाने पर नहसं ा हुई तथा अंग्रेज नवरोधी प्रदशान
आयोनजत नकये गये।
▪ प्रथम नवश्व यर्द्
ु के दौरान सरकारी दमन, बलपवू ाक ननयनु ियों तथा कई कारणों से त्रस्त पंजाब में ये नहसं ात्मक प्रनतरोध
सबसे गंभीर थे।अमृतसर और लाहौर में तो नस्थनत पर ननयत्रं ण पाना मनु श्कल हो गया।
▪ पंजाब में सेना शासन लागू कर नदया गया था।
▪ गााँधी जी ने पजं ाब जाकर यथानस्थनत को संभालने का प्रयास नकया, नकन्तु उन्हे हररयाणा के ननकट रोक कर बम्बई भेज
नदया गया।
▪ तत्पश्चात 13 अप्रैल 1919 (बैसाखी) के नदन जनलयावं ाला बाग की घटना हुयी।

Simon Commission 1927

ु नबन्दु ननम्नवत हैं-


साइमन कमीशन 1927 एक्ट के सम्बन्ध में प्रमख

▪ यद्यनप संवैधाननक सधु ारों के संबंध में निनटश सरकार िारा इस आयोग का गठन 10 वर्ा बाद यानी 1929 में होना
था परन्तु निटेन की तत्कालीन सत्तादल कंजरवेनटव पाटी ने सारा श्रेय स्वयं लेने के नलए 2 वर्ा पवू ा ही इस आयोग का
गठन करने का मन बनाया। साथ ही कंजरवेनटव पाटी के तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट “लाडा बका नहेड” का मानना
था नक भारतीय लोग स्वयं संवैधाननक सधु ारों हेतु योजना बनाने में अक्षम हैं, इसनलए साइमन कमीशन की ननयनु ि
करना आवश्यक है।
▪ भारर् में साइमन कमीशन के धवरोि का क्या कारण था ?
भारतीय जनरोर् का मुख्य कारण नकसी भी भारतीय को कमीशन का सदस्य न बनाया जाना तथा भारत में स्वशासन के
संबंध में ननणायों का नवदेनशयों िारा नलया जाना था।
▪ पनु लस िारा प्रदशानकाररयों पर लानठयां बरसाई गई।ं लखनऊ में जवाहर लाल नेहरू तथा गोनवंद वल्लभ पंत को बरु ी
तरह पीटा गया।
▪ लाहौर में लाला लाजपत राय पर पनु लस की लानठयों से आयी चोटों के कारण 17 नवंबर, 1928 को मृत्यु हो गयी।

साइमन कमीशन 1927 पर कांग्रेस की प्रधर्धक्रया – कांग्रेस के मद्रास अनधवेशन (नदसम्बर, 1927) में एम० ए०
अंसारी की अध्यक्षता में कांग्रेस ने प्रत्येक स्तर एवं प्रत्येक स्वरूप में इसका बनहष्कार करने का ननणाय नलया।

▪ नकसान मजदरू पाटी, नलबरल फे डरे शन, नहन्दु महासभा तथा मनु स्लम लीग ने कांग्रेस के साथ नमलकर कमीशन का
बनहष्कार करने का ननणाय नलया।
▪ जबनक पजं ाब में सघं वानदयों तथा दनक्षण भारत में जनस्टस पाटी कमीशन का बनहष्कार न करने का ननणाय नलया।
▪ इसी बीच “मोती लाल नेहरु” ने पणू ा स्वतंत्रता का प्रस्ताव पाररत करा नलया।
साइमन कमीशन 1927 पर जन प्रधर्धक्रया – 3 फरवरी, 1928 को साइमन कमीशन बंबई पहुचाँ ा। परू े भारत-वर्ा में
हड़ताल व नवरोध नकया गया तथा जहां भी गये वहां इन्हे काले झंडों तथा “साइमन गो बैक” के नारे झेलने पड़े।

▪ के न्द्रीय नवधानसभा के भारतीय सदस्यों ने भी साइमन कमीशन का स्वागत करने से इक


ं ार कर नदया।
▪ इन्ही नवरोधी गनतनवनधयों के बीच “जवाहर लाल नेहरू” तथा “सभु ार् चन्द्र बोस” प्रमख
ु यवु ा राष्ट्रवादी की तरह
उभरे तथा कई स्थानों के दौरे और सभाओ ं को संबोनधत नकया गया।

साइमन कमीशन की ररपोटा 1930 में प्रकानशत की गयी। नजसके प्रमुख नबन्दु ननम्नवत हैं-

▪ प्रांतीय क्षेत्रों में काननू तथा व्यवस्था सनहत सभी क्षेत्रों में उत्तरदायी सरकार गनठत की जाये।
▪ कें द्रीय नवधान मण्डल का पनु गाठन नकया जाए। इसमें संघीय भावना हो तथा इसके सदस्य प्रांतीय नवधान मण्डलों िारा
अप्रत्यक्ष तरीके से चनु े जाए।
▪ कें द्र में उत्तरदायी सरकार का गठन न नकया जाए, क्योंनक इसके नलए अभी सही समय नहीं आया है।
▪ साप्रं दानयक ननवााचन व्यवस्था को जारी रखा जाए।

निनटश सरकार ने साइमन कमीशन की नसफाररशों पर नवचार करने के नलए निनटश भारत और भारतीय ररयासतों के प्रनतनननधयों
के साथ तीन गोल मेज सम्मेलन नकए। इन गोल मेज सम्मेलनों में कााँग्रेस की तरफ से गााँधी जी भी शानमल हुए। इन तीनों
सम्मेलनों के आधार पर “संवैधाननक सधु ारों का श्वेत पत्र” बनाया गया। नजसे आगे चलकर कुछ संशोधनों के साथ भारत
शासन अनधननयम, 1935 में शानमल नकया गया।

भारत शासन अनधननयम 1935 (Government of India Act 1935)

ु नबन्दु ननम्नवत हैं –


भारत शासन अनधननयम 1935 की नवशेर्ता एवं इस अनधननयम के प्रमख

▪ भारत शासन अनधननयम 1935 के अनसु ार अनखल भारतीय संघ की स्थापना की गयी, नजसमें राज्यों और ररयासतों
को एक इकाई की तरह माना गया।
▪ इसने के न्द्र और इकाइयों(राज्य एवं ररयासतों) के बीच तीन सनू चयों- संघीय सचू ी (59 नवर्य), राज्य सचू ी (54
नवर्य) और समवती सचू ी (36 नवर्य) के आधार पर शनियों का बटवारा कर नदया गया। अवनशष्ट शनियां
वायसराय को दे दी गई,ं नजसके माध्यम से वायसराय उन नवर्यों पर ननणाय ले सकता था जोनक नकसी भी सचू ी में नहीं
थे।
▪ हालांनक यह संघीय व्यवस्था कभी अनस्तत्व में नहीं आई क्योंनक देसी ररयासतों ने इस संघ में शानमल होने से इनकार
कर नदया।
▪ इसने प्रातं ों में िैध शासन व्यवस्था समाप्त कर दी तथा प्रातं ीय स्वायत्तता का शभु ारंभ नकया। राज्यों को अपने दायरे में
रहकर स्वायत्त तरीके से शासन का अनधकार नदया गया।
▪ राज्यों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की गयी, यानी गवनार को राज्य नवधान पररर्दों के नलए उत्तरदायी
मंनत्रयों की सलाह पर काम करना अननवाया था। यह व्यवस्था 1937 में शरू ु की गयी और 1939 में समाप्त
कर दी गयी।
▪ 11 राज्यों में से 6 में निसदनीय व्यवस्था(नवधान सभा और नवधान पररर्द) प्रारम्भ की गई। बंगाल, बम्बई,

मद्रास, नबहार, सयं ि ु प्रान्त और असम। हालानं क इन पर कई प्रकार के प्रनतबधं थे।


▪ इस अनधननयम के अनसु ार के न्द्र में िैध शासन प्रणाली का शभु ारम्भ नकया। पररणामतः संघीय नवर्यों को स्थानांतररत
और आरनक्षत नवर्यों में नवभि करना पड़ा, हालानं क ये भी कभी लागू नहीं हो सका।
▪ इसने मतानधकार का नवस्तार नकया। लगभग 10% जनसंख्या को मतानधकार नमल गया।

▪ दनलत जानतयों, मनहलाओ ं और मजदरू वगा के नलए अलग से ननवााचन की व्यवस्था कर साप्र ं दानयकता
प्रनतनननधत्व व्यवस्था का नवस्तार नकया।
▪ भारतीय ररजवा बैंक की स्थापना की गयी।

▪ इसने न के वल संघीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की बनल्क प्रांतीय सेवा आयोग और 2 या अनधक
राज्यों के नलए संयि ु सेवा आयोग की स्थापना भी की।
▪ इसके तहत 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी।

▪ इस अनधननयम िारा, भारत शासन अनधननयम-1858, िारा स्थानपत भारत पररर्द को समाप्त कर नदया।
▪ इग्ं लैंड में भारत सनचव को सलाहकारों की एक सभा नमल गई।
▪ इस एक्ट में पररवतान करने के नलए निनटश संसद की अनुमनत अननवाया थी।
▪ बमाा को भारत से अलग कर नदया गया।

अगस्र् प्रस्र्ाव, 1940 August Offer, 1940

1940
नितीय नवश्वयर्द्ु में नहटलर की असाधारण सफलता तथा बेनल्जयम, हालैंड एवं फ्ांस के पतन के पश्चात् निटेन की नस्थनत अत्यन्त
नाजक ु हो गयी, फलतः निटेन ने समझौतावादी दृनष्टकोण की नीनत अपनायी। यर्द् ु में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से
8 अगस्त 1940 को वायसराय धलनधलथगो ने एक घोर्णा की, नजसे अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है। इस प्रस्ताव
में ननम्न प्रावधान थे-
▪ भारत के नलये िोधमधनयन स्टे ट्स मुख्य लक्ष्य।
▪ भारतीयों को सनम्मनलत कर यर्द् ु सलाहकार पररर्द की स्थापना।
▪ वायसराय की कायाकाररणी पररर्द का नवस्तार।

▪ यर्द्ु के पश्चात् संनवधान सभा का गठन नकया जायेगा, नजसमें मुख्यतया भारतीय अपने सामानजक, आनथाक एवं राजनीनतक
धारणाओ ं के अनरू ु प संनवधान के ननमााण की रूपरे खा सनु ननश्चत करें गे। संनवधान ऐसा होगा नक रक्षा, अल्पसंख्यकों के
नहत, राज्यों से सनं धयां तथा अनखल भारतीय सेवायें इत्यानद मद्दु ों पर भारतीयों के अनधकार का पणू ा ध्यान रखा जायेगा।
▪ अल्पसंख्यकों को आश्वस्त नकया गया नक सरकार ऐसी नकसी संस्था को शासन नहीं सोपेगी, नजसके नवरुर्द् सशि मत
हो।
▪ उि आधारों पर भारतीय सरकार को सहयोग प्रदान करें गे।
कांग्रेस ने अगस्त प्रस्तावों को अस्वीकार कर नदया। नेहरूजी ने कहा “डोनमननयन स्टेट्स का मद्दु ा पहले ही अप्रासंनगक हो चक ु ा
है”। गांधीजी ने घोर्णा की- “अगस्त प्रस्तावों के रूप में सरकार ने जो घोर्णायें की हैं, उनसे राष्ट्रवानदयो तथा उपननवेशी सरकार
के बीच खाई और चौड़ी होगी।“

यद्यनप मनु स्लम लीग ने प्रस्ताव में अल्पसंख्यकों के संबंध में नदये गये आश्वासन का स्वागत नकया, नकन्तु प्रस्ताव में पानकस्तान
की मांग स्पष्ट रूप से स्वीकार न नकये जाने के कारण उसने भी प्रस्ताव को अस्वीकार कर नदया। लीग ने घोर्णा की नक भारत का
नवभाजन ही गनतरोध के हल का एकमात्र उपाय है।

मलू यांकन

प्रस्ताव में प्रथम बार भारतीयों िारा स्वयं सनं वधान ननमााण करने को स्वीकार नकया गया। िोधमधनयन स्टे ट्स के मद्दु े को भी स्पष्ट
रूप से स्वीकार नकया गया।
जल ु ाई 1941 में वायसराय की कायाकाररणी पररर्द का नवस्तार कर भारतीयों को प्रथम बार बहुमत नदया गया, नकनती रक्षा,
नवत्त एवं गृह सनचव जैसे महत्वपणू ा मद्दु ों पर अभी भी अंग्रेजों का वचास्व बना रहा। इसके अनतररि एक राष्ट्रीय सरु क्षा पररर्द का
भी गठन नकया गया, नजसका काया संबंनधत नवर्य पर सलाह देना था।

वेवेल योजना-14 जून 1945

(Wavell Plan – 14 June 1945)

जनू 1945 में लाडा वेवेल िारा भारत की वैधाननक समस्या के समाधान के नलए नशमला सम्मेलन में जो योजना प्रस्ततु की गई
उसे ही वैभव योजना के नाम से जाना जाता है

▪ अक्टूबर 1943 में लाडा नलननलथगो के स्थान पर लाडा नबस्काउंट वेवल पर वायसराय और गवनार जनरल ननयि ु
नकए गए
▪ इस समय भारत की नस्थनत तनावपणू ा थी उन्होंने भारतीय संवैधाननक गनतरोध दरू करने की नदशा में प्रयास प्रारंभ नकया
▪ सवाप्रथम भारत छोड़ो आंदोलन के समय नगरफ्तार कांग्रेस कायासनमनत के सदस्य को ररहा नकया गया
▪ माचा 1945 में वायसराय इग्ं लैंड गए और वहां निनटश सरकार से भारतीय मामलों पर चचाा की
▪ 14 जनू 1945 को उन्होंने अपने नवचार नवमशा के पररणामों से जनता को एक रे नडयो प्रसारण िारा अवगत करवाया
▪ भारत राज्य सनचव लाडा एमरी ने कॉमसं सभा में इसी प्रकार का विव्य नदया और यह कहा नक माचा 1942 का
प्रस्ताव पणू ारूपेण नफर भी उपनस्थत था
▪ वायसराय और भारत सनचव दोनों के नवचार और मनोभाव. समान थे
▪ भारत के नवद्यमान राजनीनतक गनतरोध को दरू करना ,भारत को उसके पणू ा स्वशासन के लक्ष्य को आगे बढ़ाना और
संवैधाननक समझौता प्राप्त करना था

वेवेल योजना के प्रमख


ु प्रावधान ननम्न प्रकार थे

वेवेल योजना के मुख्य धबंदु

▪ वॉयस राय की कायाकाररणी पररर्द का पनु ागठन नकया जाएगा, पररर्द में वायसराय और कमाडं र-इन-चीफ को छोड़कर
सभी सदस्य भारतीय होंगे
▪ प्रनतरक्षा को छोड़कर समस्त भाग भारतीय को नदए जाएंगे
▪ कायाकाररणी में मुसलमान सदस्य की संख्या सवणा नहदं ओ ु ं के बराबर होगी
▪ कायाकाररणी पररर्द एक अंतररम राष्ट्रीय सरकार के समान होगा,इसे देश का शासन तब तक चलाना है जब तक नक
एक नए स्थाई सनवधान पर आम सहमनत नहीं बन जाती है, गवनार जनरल नबना कारण ननशेर्ानधकार का प्रयोग नहीं
करे गा
▪ कांग्रेस के नेता ररहा नकए जाएंगे और शीघृ नशमला में एक सम्मेलन बल ु ाया जाएगा
▪ यर्द्
ु समाप्त होने के बाद भारतीय स्वयं ही अपना संनवधान बनाएंगे
▪ भारत में ग्रेट निटेन के वानणज्य और अन्य नहतों की देखभाल के नलए एक उच्चायि ु की ननयनु ि की जाएगी
▪ निनटश सरकार का अंनतम उद्देश्य भारत संघ का ननमााण करके भारत में स्वशासन की स्थापना करना है
▪ नहदं ू और मुसलमान समदु ाय के अनतररि भारत के अन्य समदु ायों जेसे दनलत नसक्ख पारसी आनद को भी उनचत
प्रनतनननधत्व जाएगा

धक्रप्स धमशन
नितीय नवश्व यर्द्
ु चल रहा था। ऐसी नस्थनत में भारतीयों का समथान प्राप्त करने के नलए माचा 1942 में सर स्टैफोडा नक्रप्स की
अध्यक्षता में एक नमशन भारत भेजा गया था। यह नमशन भारतीय राजव्यवस्था में कुछ सनं वधाननक सधु ार करने के प्रस्ताव लेकर
भारत आया था। इसके अध्यक्ष स्टैफोडा नक्रप्स होने के कारण इस नमशन को ‘नक्रप्स नमशन’ के नाम से जाना जाता है।
सर स्टैफोडा नक्रप्स निटेन के एक वामपथं ी नेता थे। वे तत्कालीन हाउस ऑफ कॉमन्स के नेता थे। स्टैफोडा नक्रप्स तत्कालीन
निनटश प्रधान मंत्री नवंस्टन चनचाल के यर्द्
ु मंनत्रमंडल में मंत्री भी थे। इन्होंने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का सनक्रय समथान नकया
था।

धक्रप्स धमशन भारर् क्यों भेजा गया?

• वर्ा 1939 से 1945 के बीच नितीय नवश्व यर्द् ु लड़ा गया था। इस दौरान भारत पर निटेन का शासन था और निटेन
दनक्षण-पवू ा एनशया में परानजत हो रहा था। इसके अलावा, भारत पर जापान के आक्रमण का खतरा ननरंतर बढ़ता जा
रहा था। जापान भारत की पवू ी सीमा पर दस्तक दे रहा था। ऐसे में, निटेन के नलए यह आवश्यक हो गया था नक वह
जल्द से जल्द भारतीयों का समथान प्राप्त करे ।
• दसू रे नवश्व यर्द्
ु के दौरान अमेररका, रूस, चीन जैसे नमत्र राष्ट्रों िारा निटेन पर ननरंतर यह दबाव बनाया जा रहा था नक
वह यथाशीघ्र भारत का सहयोग प्राप्त करे ।
• भारतीय राष्ट्रवानदयों का मत था नक यनद यर्द्
ु के उपरांत भारतीयों को पणू ा स्वतंत्रता प्रदान की जाए तो वे नमत्र राष्ट्रों
का समथान करने के नलए तैयार हो जाएाँगे। ऐसी नस्थनत में, निटेन के नलए यह आवश्यक हो गया था नक वे भारतीयों
की मााँग पर नवचार करने के नलए जल्द से जल्द कोई कदम उठाए और भारत का सहयोग प्राप्त करे ।

यर्द्
ु में निटेन का सहयोग करने पर नवनभन्न मत

• दसू रे नवश्व यर्द्


ु में निटेन का समथान करने या नहीं करने के मद्दु े पर भी भारत के नवनभन्न नेताओ ं अलग-अलग राय
रखते थे। इस मद्दु े पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी दो धड़े बन गए थे। महात्मा गांधी यर्द्
ु में निटेन का साथ नहीं देने के
पक्ष में थे। उनका मानना था नक यर्द् ु नैनतक रूप से सही नहीं होता है और उन्हें निटेन की मंशा पर भी शक था।
इसीनलए वे यर्द् ु में निटेन का सहयोग नहीं करना चाहते थे।
• सरदार बल्लभ भाई पटेल, चक्रवती राजगोपालाचारी, मोहम्मद अली नजन्ना जैसे नेताओ ं ने यर्द् ु में निटेन का सहयोग
करने की वकालत की थी और उनका मानना था नक इस संकट की घड़ी में निटेन का सहयोग करना चानहए।
• भारतीय राष्ट्रीय काग्रं ेस ने अंग्रेजों से तत्काल पणू ा स्वतत्रं ता प्रदान करने की बात कही थी। मोहम्मद अली नजन्ना ने
कांग्रेस के इस मत का तीखा नवरोध नकया था और पृथक पानकस्तान के मद्दु े का परु जोर समथान नकया था।

नक्रप्स नमशन के मख्ु य प्रावधान

• इसके अंतगात कहा गया यर्द्


ु के बाद भारत को डोनमननयन स्टेटस प्रदान नकया जाएगा और भारत नकसी भी घरे लू या
बाहरी सत्ता के अधीन नहीं रहेगा। भारत अपनी इच्छा के अनसु ार निनटश राष्ट्रमंडल से संबंध नवच्छे द भी कर सके गा।
• यर्द्
ु के उपरातं प्रभत्ु व नस्थनत वाला भारतीय संघ स्थानपत नकया जाएगा। यह सघं राष्ट्रमंडल, सयं ि
ु राष्ट्र और अन्य
अंतरराष्ट्रीय ननकायों के साथ अपने संबंध स्थानपत करने के नलए स्वतंत्र होगा।
• यर्द्
ु के बाद एक संनवधान ननमाात्री सभा गनठत की जाएगी। इसके सदस्य अंशतः प्रांतीय नवधानसभाओ ं िारा
आनपु ानतक प्रनतनननधत्व िारा ननवाानचत होंगे और अंशतः ररयासतों िारा मनोनीत होंगे।
• यनद कोई प्रांत या देसी ररयासत संघ में शानमल होने का इच्छुक नहीं होगा, तो उसे अपना अलग संनवधान बनाने की
अनमु नत होगी।
• निनटश सरकार संनवधान बनाने वाले ननकाय को सत्ता हस्तांतररत करते समय इस बात का ध्यान रखेगी नक उस
सनं वधान में नस्लीय और धानमाक अल्पसख्ं यकों की रक्षा के नलए पयााप्त प्रावधान नकए गए हों।
• इस दौरान भारत की रक्षा की नजम्मेदारी निनटश सरकार की रहेगी और गवनार जनरल की शनियााँ यथावत बनी रहेंगी।

नक्रप्स नमशन का मूल्यांकन


• इस नमशन के माध्यम से एक ऐसी संनवधान सभा के ननमााण की बात कही गई थी जो परू ी तरह से भारतीयों िारा
नननमात होनी थी। इससे पवू ा अगस्त प्रस्ताव में नजस सनं वधान सभा के ननमााण की बात कही गई थी वह परू ी तरह से
भारतीयों से नननमात नहीं थी।
• नक्रप्स नमशन के माध्यम से संनवधान सभा के गठन की एक ठोस योजना प्रस्ततु की गई थी।
• संनवधान सभा का नहस्सा नहीं बनने की इच्छा रखने वाले प्रांत या देशी ररयासत के नलए अलग संनवधान बनाने का जो
प्रावधान नकया गया था, वह असल में, भारत के नवभाजन का एक प्रयास था।
• इसके अंतगात भारत को अपनी इच्छा से राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने या नहीं बनने का नवकल्प नदया गया था।
• यह नमशन भारत के नवनभन्न वगों की आकांक्षाओ ं को पणू ा नहीं कर सका था और अंततः यह नमशन नवफल हो गया
था।
• इस नमशन की नवफलता के बाद महात्मा गांधी सनहत भारत के समस्त राष्ट्रवादी नेताओ ं को इस बात का आभास हो
गया था नक अग्रं ेज अभी भी वास्तनवक रूप में भारत को सत्ता हस्तातं ररत करने के पक्ष में नहीं है और वे नसफा
लीपापोती करने की ही मंशा रखते हैं। इसी पृष्ठभनू म के आलोक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नेतत्ृ व में
भारत छोड़ो आदं ोलन शरू ु करने की योजना बनाई और अंततः वर्ा 1942 में ही भारत छोड़ो आदं ोलन आरंभ हो
गया था।

काग्रं ेस की आपनत्त

• चाँनू क नक्रप्स नमशन के अतं गात पणू ा स्वतत्रं ता के स्थान पर डोनमननयन स्टेटस प्रदान करने का प्रावधान नकया गया था,
इसनलए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने नक्रप्स नमशन को अस्वीकार कर नदया था। इसके अलावा भारतीय संघ में शानमल न
होने वाले राज्यों को पृथक संनवधान बनाने का अनधकार भी नदया गया था इसके कारण भी कांग्रेस ने नक्रप्स नमशन को
स्वीकृ नत प्रदान नहीं की थी।
• महात्मा गाधं ी ने तो नक्रप्स नमशन को एक ‘उत्तर नदनानं कत चेक’ तक कह नदया था। नक्रप्स नमशन के प्रावधानों पर
चचाा करने के नलए कांग्रेस की तरफ से जवाहर लाल नेहरू और मौलाना अबल ु कलाम आजाद को आनधकाररक तौर
पर भेजा गया था।

मनु स्लम लीग की आपनत्त

• मनु स्लम लीग ने एक भारतीय संघ बनाने के प्रस्ताव को खाररज कर नदया था और उसने मोहम्मद अली नजन्ना के
नेतत्ृ व में खल
ु कर पृथक पानकस्तान बनाने की बात कही थी। नक्रप्स नमशन में भारत के नवभाजन का स्पष्ट प्रावधान न
होने के कारण मनु स्लम लीग ने भी इसे अस्वीकार कर नदया था।

भारतीय स्वाधीनता अनधननयम 1947 (Indian Independence Act 1947)

भारतीय स्वाधीनता अनधननयम 1947 के सम्बन्ध में प्रमुख बातें ननम्नवत हैं –
▪ भारतीय स्वाधीनता अनधननयम 1947 के अनसु ार निनटश शासन समाप्त होने के बाद सत्ता का उत्तरदानयत्व भारतीय
हाथों में सौंप नदया जाएगा।
▪ इस घोर्णा पर मनु स्लम लीग िारा आंदोलन नकया गया और भारत के नवभाजन की बात कही गयी।
▪ 3 जनू , 1947 को वायसराय लॉडा माउंटबेटन ने नवभाजन की योजना पेश की, नजसे माउंटबेटन योजना कहा गया।
इसमें स्पष्ट नकया गया नक 1946 में गनठत संनवधान सभा िारा बनाया गया संनवधान उन क्षेत्रों में लागू नहीं होगा जो
इसे स्वीकार नहीं करें गे।
▪ इस योजना को कांग्रेस और मुनस्लम लीग ने स्वीकार कर नलया।
▪ इस प्रकार भारतीय स्वतत्रं ता अनधननयम, 1947 बनाकर उसे लागू कर नदया गया।
▪ भारत का नवभाजन कर दो स्वतंत्र डोनमननयन (संप्रभु राष्ट्र) भारत और पानकस्तान का सृजन नकया गया, नजन्हें
निनटश राष्ट्रमण्डल से अलग होने की स्वतत्रं ता थी।
▪ इसमें वायसराय का पद समाप्त कर नदया और उसके स्थान पर दोनों डोनमननयन राज्यों में गवनार जनरल पद को

सृनजत नकया गया, नजस पर निटेन का कोई ननयत्रं ण नहीं था।


▪ इन दोनों डोनमननयन राज्यों की संनवधान सभाओ ं को अपने देशों का संनवधान बनाने और उसके नलए नकसी
भी देश के संनवधान की अपनाने की शनि दी गयी।
▪ सभाओ ं को यह भी शनि थी नक वे नकसी भी निनटश कानून को समाप्त करने के नलए कानन ू बना सकते हैं।
यहााँ तक नक उन्हें स्वतंत्रता अनधननयम को भी ननरस्त करने का अनधकार था।
▪ इसमें दोनों डोनमननयन राज्यों की सनं वधान सभाओ ं को यह शनि प्रदान की गयी नक वे नए सनं वधान का

ननमााण एवं कायाानन्वत होने तक अपने-अपने सम्बनन्धत क्षेत्रों के नलए नवधानसभा बना सकते हैं। 15 अगस्त,
1947 के बाद निनटश संसद में पाररत हुआ कोई भी अनधननयम दोनों डोनमननयनों पर तब तक लागू रहेंग,े
जब तक की दोनों डोनमननयन उस काननू को मानने के नलए काननू नहीं बना लेंगे।
▪ इस कानन ू ने निटेन में भारत सनचव का पद समाप्त कर नदया।
▪ इसमें 15 अगस्त, 1947 से भारतीय ररयासतों पर निनटश संप्रभुता की समानप्त की भी घोर्णा की गयी।
इसके साथ ही आनदवासी क्षेत्र में समझौता सबं धं ों पर भी निनटश हस्तक्षेप समाप्त हो गया।
▪ इसमें भारतीय ररयासतों को यह स्वतंत्रता दी गयी नक वे चाहें तो भारतीय डोनमननयन के साथ नमल सकती हैं
या स्वतंत्र रह सकती हैं।
▪ इस अनधननयम ने नया संनवधान बनने तक प्रत्येक डोनमननयन के शासन सच ं ालन के नलए भारत शासन
अनधननयम-1935 के तहत उनकी प्रांतीय सेवाओ ं से सरकार चलाने की व्यवस्था की। हांलानक दोनों
डोनमननयन राज्यों को इस काननू में सधु ार करने का अनधकार था।
▪ इसके अंतगात भारत के गवनार जनरल एवं प्रांतीय गवनारों को राज्यों का संवैधाननक प्रमख ु ननयि
ु नकया गया,
नजन्हें सभी मामलों पर राज्यों की मत्रं ी पररर्द के परामशा पर काया करना होता था।
▪ इसने अनधननयम ने शाही उपानध से “भारत का सम्राट” शब्द समाप्त कर नदया।

▪ “भारत के राज्य सनचव” िारा नसनवल सेवाओ ं में ननयनु ियों में आरक्षण करने की प्रणाली समाप्त कर दी।

परन्तु 15 अगस्त, 1947 से पवू ा के नसनवल सेवा कमाचाररयों को वही सनु वधाएाँ नमलती रहेंगी, जो उन्हें
पहले से प्राप्त हो रही थीं।
▪ 14-15 अगस्त, 1947 की मध्य रानत्र को भारत में निनटश शासन का अंत हो गया और समस्त शनियां 2 नए
स्वतंत्र डोनमननयनों भारत एवं पानकस्तान को स्थानांतररत कर दी गई।ं लॉडा माउन्टबेटन नए डोनमननयन भारत के प्रथम
गवनार जनरल बने।
▪ लॉडा माउन्टबेटन ने जवाहर लाल नेहरू को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ नदलाई।
▪ 1946 में बनी संनवधान सभा को स्वतंत्र भारत की संसद के रूप में स्वीकार कर नलया गया।

आया समाज | Arya Samaj

o आयत समाज (Arya Samaj in Hindi) एक धहंदू सुिार संगठन था नजसकी स्थापना स्वामी दयानंद
सरस्वती ने 7 अप्रैल, 1875 को बॉम्बे में की थी।
o पंनडत गरुु दत्त, लाला लाजपत राय, स्वामी श्रर्द्ानन्द और लाला हसं राज जैसे नेताओ ं और राष्ट्रवानदयों को इस संगठन
में शानमल नकया गया।
o इस संगठन के सदस्य मनू ता पजू ा, अंधनवश्वास, पशु बनल, बहुदवे वाद और परु ोनहतवाद के नखलाफ खड़े थे।
o “बैक टू वेद” इस संगठन का आदशा वाक्य था। इसके संस्थापक, स्वामी दयानंद सरस्वती ने दावा नकया नक कोई भी
वैज्ञाननक नसर्द्ातं या आनवष्कार नजसे आधनु नक मल ू का माना जाता था, वास्तव में वेदों से नलया गया था।
o आया समाज ने मनहला नशक्षा, बाल नववाह के उन्मूलन पर ध्यान कें नद्रत नकया और कुछ मामलों में नवधवा पनु नवावाह
की अनमु नत के नलए खड़ा था।
o इस संगठन ने भारतीयों की धानमाक धारणाओ ं को बदलने में अहम भनू मका ननभाई। यह काफी हद तक एक धमािंतरण
आदं ोलन था नजसके कारण 19वीं और 20वीं शताब्दी में एक उग्र धहदं ू चेर्ना का उदय हुआ।

आया मनहला समाज | Arya Mahila Samaj

o आयत मधहला समाज (Arya Mahila Samaj in Hindi) नजसे मधहलाओ ं का आयत समाज भी कहा
जाता है, इसकी स्थापना 1882 में पंनडता रमाबाई ने की थी। अपने पनत की मृत्यु के तुरंत बाद, वह पणु े चली गई ं
जहााँ वह िह्म समाज के आदशों से प्रभानवत थीं और उन्होंने आया मनहला समाज की शुरुआत की।
o यह संगठन भारतीय समाज में मनहलाओ ं की नस्थनत को ऊंचा उठाने के उद्देश्य से शुरू नकया गया था। इस सामाधजक
और िाधमतक सुिार आंदोलन (Social and Religious Reform Movement Hindi
me) ने मनहला नशक्षा और बाल नववाह के उत्पीड़न से मनु ि को बढ़ावा नदया जो उस समय समाज में प्रचनलत था।
इसने नवनभन्न मोचों पर मनहलाओ ं की नस्थनत में सधु ार लाने पर काम नकया।
o इसके अलावा, पंधिर्ा रमाबाई ने त्यागी हुई और प्रतानड़त नवधवाओ,ं नवशेर्कर यवु ाओ ं की मदद करने के नलए
शारदा सदन की भी स्थापना की।
अहमनदया आंदोलन | Ahmadiyya Movement

o अहमधदया आंदोलन (Ahmadiyya Movement in Hindi) एक इस्लामी पनु रुत्थानवादी आंदोलन


था जो 19वीं शताब्दी के अंत में हुआ था।
o इस आंदोलन की शरुु आत कानदयान के नमजाा गुलाम अहमद ने 1889 में ईसाई नमशनररयों और आया समाज के
नववाद के नखलाफ लड़ने के नलए की थी।
o पनश्चमी उदारवाद और नहदं ओ
ु ं के धानमाक सधु ार आंदोलन से प्रभानवत होकर, धमजात गुलाम अहमद ने इस आंदोलन
को सभी मानवता के सावाभौनमक धमा की तजा पर आधाररत नकया।
o इस आंदोलन ने भारतीय मसु लमानों के बीच पनश्चमी नशक्षा के प्रसार में महत्वपणू ा भनू मका ननभाई और यह नजहाद के
नखलाफ भी खड़ा हुआ, जो गैर-मसु लमानों के नखलाफ एक पनवत्र यर्द् ु था।

आत्मीय सभा | Atmiya Sabha

o आत्मीय सभा (Atmiya Sabha in Hindi), नजसे दोस्तों के समाज के रूप में भी जाना जाता है, की
स्थापना 1814 में कलकत्ता में राजा राममोहन राय ने की थी।
o इस सभा के सदस्य अक्सर वेदांत के एके श्वरवादी आदशों पर सत्र और दाशाननक चचाा करते थे।
o उन्होंने मनू ता पजू ा, अंधनवश्वास और प्रथाओ,ं सामानजक बरु ाइयों जैसे बाल नववाह, सती आनद और जानतगत कठोरता
के नखलाफ अनभयान चलाया।
o आत्मीय सभा के कुछ प्रनसर्द् सदस्य वृंदाबन नमत्रा, प्रसन्न कुमार टैगोर, िारका नाथ टैगोर और नशवप्रसाद नमश्रा थे।

िह्म समाज | Brahmo Samaj

o िह्म समाज (Brahmo Samaj in Hindi), नजसे पहले िह्म सभा के रूप में जाना जाता था, की
स्थापना अगस्त 1828 में राजा राममोहन राय ने की थी। इसका प्रारंनभक मील का पत्थर बंगाल में शरू ु हुआ था।
o 1814 में उनके िारा स्थानपत आत्मीय सभा ने 1828 में िह्म समाज का रूप ले नलया।
o इस धानमाक समाज ने मनू तापूजा की आलोचना की और सती, बाल नववाह आनद जैसी सामानजक बरु ाइयों की ननंदा की
और उन्होंने मानवीय गररमा पर बहुत जोर नदया। उन्होंने अवतारों में नवश्वास को त्याग नदया और जानत व्यवस्था के
नखलाफ थे।
o िह्म समाज (Brahmo Samaj Hindi me) का एजेंडा नहदं ू धमा को शर्द् ु करना और एके श्वरवाद का
प्रचार करना था। यह नवशर्द्
ु रूप से उपननर्दों और वेदों पर आधाररत था।
o राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद, 19वीं शताब्दी के दौरान धानमाक समाज कई बार नवभानजत हुआ।
देवबंद आंदोलन | Deoband Movement

o देवबंद आंदोलन (Deoband Movement in Hindi) की शरुु आत मोहम्मद कानसम नानोत्वी और


रानशद अहमद गगं ोही ने 1866 में दारुल उलूम में की थी। यह एक पुनरुत्थानवादी आदं ोलन (Revivalist
Movement) था जो मुसलमानों के रूनढ़वादी वगा िारा आयोनजत नकया गया था।
o इस आदं ोलन का मख्ु य उद्देश्य मसु लमानों के बीच कुरान और हदीस की नशक्षाओ ं का प्रचार करना और नवदेशी
शासकों के नखलाफ नजहाद का समथान करना था। अनष्ठु ान प्रथाओ ं की शनु र्द् के इदा-नगदा बार-बार प्रकट होना
आदं ोलन का महत्वपणू ा नहस्सा था।
o यह देवबंद स्कूल मल
ू रूप से छात्रों को उलमा के सदस्यों के रूप में उनकी भनू मका के नलए तैयार करने के नलए बनाया
गया था।

देव समाज | Deva Samaj

o देव समाज (Deva Samaj in Hindi) 1887 में लाहौर में नशव नारायण अनग्नहोत्री िारा स्थानपत एक
धानमाक सप्रं दाय था।
o समाज ने गरुु की सवोच्चता और अच्छे कायों की आवश्यकता पर जोर नदया।
o इसने नवधवा पनु नवावाह, मनहला नशक्षा, जानतयों के सामानजक एकीकरण और बाल नववाह और सती प्रथा के उन्मल ू न
की वकालत की।
o 1892 में, इसके सस्ं थापक ने ईश्वर और स्वयं की दोहरी पजू ा की वकालत की और बाद में उन्होंने ईश्वर की पजू ा को
त्याग नदया। इसके अलावा, उन्होंने नशीले पदाथों से परहेज, नहसं ा, ररश्वतखोरी और जुआ गनतनवनधयों जैसे नैनतक
नैनतकता को भी ननधााररत नकया।
o देव समाज (Deva Samaj Hindi me) के बाद के दशान और उनकी नशक्षाओ ं को देव शाि नामक
पस्ु तक में सक
ं नलत नकया गया था।

फ़राज़ी आदं ोलन | Faraizi Movement

o फ़राजी आंदोलन (Faraizi Movement in Hindi), नजसे फ़राईद आंदोलन (Fara’id


movement) के रूप में भी जाना जाता है, 1818 में पवू ी बंगाल में हाजी शरीयर् उललाह िारा शरू ु नकया
गया था।
o प्रारंभ में यह सामाधजक और िाधमतक सुिार आंदोलन (Social and Religious Reform
Movement in Hindi) धानमाक शनु र्द्करण और अननु चत नवश्वासों और गैर-इस्लानमक प्रथाओ ं को त्यागने
पर कें नद्रत था।
o इसने बंगाली मसु लमानों को इस्लाम के अननवाया कताव्यों का पालन करने के नलए जोर नदया जैसे नक दैननक प्राथाना,
रमजान में उपवास, दान देना और मक्का की तीथायात्रा।
o 1830 के आसपास यह आंदोलन राजनीनतक और आनथाक मद्दु ों में उलझ गया। करों का भगु तान करने पर फ़राज़ी
नकसानों और नहदं ू जमींदारों के बीच संघर्ा के कारण, कई फ़राईद नकसानों पर संदहे नकया गया और उन्हें उत्पीनड़त
गया।
o अंततः 1840 में इस आंदोलन को दूदू धमयां ने अपने हाथ में ले नलया, नजन्होंने सामाधजक और िाधमतक
आदं ोलन (Social and Religious Movement in Hindi) को एक क्रानं तकारी आदं ोलन में
बदल नदया।

प्राथाना समाज | Prarthana Samaj

o प्राथतना समाज (Prarthana Samaj in Hindi) की स्थापना आत्माराम पांिुरंग ने के शव चंि


सेन की मदद से 1867 में बॉम्बे में की थी। महादेव गोधबंद रानािे समाज िारा की गई लोकनप्रयता और काम के
पीछे थे।
o परमहसं सभा जो एक गप्तु समाज थी जो उदार नवचारों के प्रसार पर काम कर रही थी, प्राथाना समाज की अग्रदतू थी।
o िह्म समाज की तरह, इस धानमाक समाज ने भी एके श्वरवाद का प्रचार नकया, मूनतापजू ा और परु ोनहतों के वचास्व की
ननंदा की।
o उनका 4 सत्रू ीय सामानजक एजेंडा था
o जानत व्यवस्था की अस्वीकृ नत
o नवधवा पन ु नवावाह
o मनहलाओ ं की नशक्षा
o परुु र्ों और मनहलाओ ं दोनों के नलए शादी की उम्र बढ़ाना।
o समाज देश के कुछ नहस्सों में पस्ु तकालय, मफ्ु त वाचनालय, स्कूल और अनाथालय स्थानपत करने में सफल रहा।

रामकृ ष्ण आंदोलन | Ramakrishna Movement

o 19वीं शताब्दी के उत्तराधा में, बंगाल का िह्म समाज कमजोर पड़ने लगा और इसने रामकृष्ण आंदोलन
(Ramakrishna Movement in Hindi) के उदय का मागा प्रशस्त नकया।
o रामकृ ष्ण परमहसं , एक महान नशक्षक, नजन्होंने सरल भार्ा में महान और गहरे दाशाननक नवचारों को व्यि नकया और
नसखाया, उन्हें कई अनयु ायी नमले। उनका मानना था नक मनष्ु य की सेवा ही ईश्वर की सेवा है, क्योंनक मनष्ु य पृथ्वी पर
ईश्वर का अवतार है। वह इस नवचारधारा के कट्टर नवश्वासी थे नक सभी धमों में एक अंतननानहत एकता थी और के वल
पजू ा के तरीके अलग-अलग थे।
o उनकी नशक्षाओ ं को उनके अनयु ानययों िारा देश भर में फै लाया गया और इसे रामकृष्ण आंदोलन
(Ramakrishna Movement Hindi me) के रूप में जाना जाने लगा।
रामकृ ष्ण नमशन | Ramakrishna Mission

o रामकृष्ण परमहंस के ननधन के बाद, स्वामी नववेकानंद ने 1896 में रामकृष्ण धमशन (Ramakrishna
Mission in Hindi) की स्थापना की। उन्होंने रामकृ ष्ण परमहसं के संदेशों और नशक्षाओ ं का प्रसार नकया और
उन्हें समकालीन समाज की जरूरतों के साथ समेटने का भी प्रयास नकया।
o यह नमशन मनू तापजू ा और वेदांत के दशान में नवश्वास करता था।
o नमशन का मुख्य उद्देश्य देश में समाज सेवा प्रदान करना था। उस उद्देश्य की पनू ता के नलए, परू े देश में कई स्कूल,
अनाथालय, अस्पताल और पस्ु तकालय स्थानपत नकए गए।
o इसके अलावा, इसने भक ू ं प, सनू ामी, बाढ़, अकाल और महामारी जैसी प्राकृ नतक आपदाओ ं से प्रभानवत लोगों को
मदद की पेशकश की।

सत्यशोधक समाज | Satyashodhak Samaj

o सत्यशोिक समाज (Satyashodhak Samaj in Hindi) की स्थापना 24 नसतबं र 1873 को पणु े


में ज्योधर्बा ्ुले ने की थी।
o उन्होंने समाज के ननचले वगों को नशनक्षत करने और उन्हें उनके अनधकारों के प्रनत जागरूक करने के उद्देश्य से इस
समाज सधु ार समाज की स्थापना की। ऐसा करके उन्होंने भारतीय समाज के दनलत वगा को मि ु कराने का प्रयास
नकया।
o के वल ननचली जानतयों या शद्रू समाज के सदस्यों को ही समाज में प्रवेश नदया जाता था।
o इसने जानत व्यवस्था को खाररज कर नदया और िाह्मणों की सामानजक और राजनीनतक श्रेष्ठता के नखलाफ भी था।
उन्होंने उपननर्दों, वेदों और आया समाज के प्रभत्ु व को भी खाररज कर नदया।
o समाज ने इस बात पर जोर नदया नक देवताओ ं के साथ संवाद करने के नलए नकसी माध्यम या नबचौनलयों की
आवश्यकता नहीं थी और लोगों को सभी धानमाक और अंधनवश्वासों से मि ु करने का प्रयास नकया।

▪ भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस की स्थापना नदसबं र, 1885 में बॉम्बे में की गई थी।
▪ इसके प्रारंनभक नेतत्त्ृ वकत्तााओ ं में दादाभाई नौरोजी, नफरोजशाह मेहता, बदरुद्दीन तैयबजी, डब्ल्य.ू सी. बनजी, सरु े न्द्रनाथ
बनजी, रोमेश चंद्र दत्त, एस. सिु मण्य अय्यर शानमल थे। प्रारंभ में इसके कई नेतत्त्ृ वकत्ताा बंबई और कलकत्ता से
संबंनधत थे।
▪ एक सेवाननवृत्त निनटश अनधकारी, ए.ओ. ह्यमू ने नवनभन्न क्षेत्रों के भारतीयों को एक साथ लाने में भी भनू मका ननभाई।
▪ भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का गठन राष्ट्र ननमााण की प्रनक्रया को बढ़ावा देने की नदशा में एक प्रयास था।
▪ देश के सभी क्षेत्रों तक पहुचाँ स्थानपत करने के नलये नवनभन्न क्षेत्रों में कॉन्ग्रेस के सत्र आयोनजत करने का ननणाय नलया
गया।
▪ अनधवेशन का अध्यक्ष उसी क्षेत्र से चनु ा जाता था, जहााँ नक कॉन्ग्रेस के अनधवेशन का आयोजन नकया जा रहा हो।
धवधभन्न सि:

▪ पहला अधिवेशन: वर्ा 1885 में बॉम्बे में आयोनजत। अध्यक्ष: डब्ल्य.ू सी. बनजी
▪ दूसरा सि: वर्ा 1886 में कलकत्ता में आयोनजत। अध्यक्ष: दादाभाई नौरोजी
▪ र्ीसरा सि: वर्ा 1887 में मद्रास में आयोनजत। अध्यक्ष: सैयद बदरुद्दीन तैय्यबजी (पहले मनु स्लम अध्यक्ष)
▪ चौथा सि: वर्ा 1888 में इलाहाबाद में आयोनजत। अध्यक्ष: जॉजा यल
ू , पहले अंग्रेज़ अध्यक्ष
▪ वर्त 1896: कलकत्ता। अध्यक्ष: रहीमतल्ु ला सयानी
o रवींद्रनाथ टैगोर िारा पहली बार राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ गाया गया।
▪ वर्त 1899: लखनऊ। अध्यक्ष: रमेश चंद्र दत्त।
o भ-ू राजस्व के स्थायी ननधाारण की मांग।
▪ वर्त 1901: कलकत्ता। अध्यक्ष: नदनशॉ ई. वाचा।
o पहली बार गांधीजी कॉन्ग्रेस के मंच पर नदखाई नदये।
▪ वर्त 1905: बनारस। अध्यक्ष: गोपाल कृ ष्ण गोखले
o सरकार के नखलाफ स्वदेशी आदं ोलन की औपचाररक घोर्णा।
▪ वर्त 1906: कलकत्ता। अध्यक्ष: दादाभाई नौरोजी
o इसमें चार प्रस्तावों को अपनाया गया: स्वराज (स्व सरकार), बनहष्कार आंदोलन, स्वदेशी और राष्ट्रीय
नशक्षा।
▪ वर्त 1907: सरू त। अध्यक्ष: रास नबहारी घोर्
o कॉन्ग्रेस का नवभाजन- नरमपंथी और गरमपंथी
o सत्र का स्थनगत होना।
▪ वर्त 1910: इलाहाबाद। अध्यक्ष: सर नवनलयम वेडरबना
o एम.ए. नजन्ना ने 1909 के अनधननयम िारा शुरू की गई पृथक ननवााचन प्रणाली की ननंदा की।
▪ वर्त 1911: कलकत्ता। अध्यक्ष: बी.एन. धर
o कॉन्ग्रेस अनधवेशन में पहली बार जन-गण-मन गाया गया।
▪ वर्त 1915: बॉम्बे। अध्यक्ष: सर एस.पी. नसन्हा
o चरमपथं ी समहू के प्रनतनननधयों को स्वीकार करने के नलये कॉन्ग्रेस के सनं वधान में बदलाव नकया गया।
▪ वर्त 1916: लखनऊ। अध्यक्ष: ए.सी. मजूमदार
o कॉन्ग्रेस के दो गटु ों- नरमपंनथयों और अनतवानदयों के बीच एकता।
o कॉन्ग्रेस और मनु स्लम लीग के बीच राजनीनतक सहमनत बनाने के नलये लखनऊ पैक्ट पर हस्ताक्षर नकये
गए।
▪ वर्त 1917: कलकत्ता। अध्यक्ष: एनी बेसेंट, कॉन्ग्रेस की पहली मनहला अध्यक्ष
▪ वर्त 1918 (धवशेर् सि): बॉम्बे। अध्यक्ष: सैयद हसन इमाम
o इस सत्र को नववादास्पद मॉन्टेग्य-ू चेम्सफोडा सधु ार योजना के संबंध में बल
ु ाया गया था।
▪ वर्त 1919: अमृतसर। अध्यक्ष: मोतीलाल नेहरू
o कॉन्ग्रेस ने नखलाफत आंदोलन को समथान नदया।
▪ वर्त 1920 (धवशेर् सि): कलकत्ता। अध्यक्ष: लाला लाजपत राय
o महात्मा गाधं ी ने असहयोग संकल्प को आगे बढ़ाया।
▪ वर्त 1920: नागपरु । अध्यक्ष: सी. नवजयराघवाचाया
o भार्ायी आधार पर कॉन्ग्रेस की काया सनमनतयों का पनु गाठन।
▪ वर्त 1922: गया। अध्यक्ष: सी.आर. दास
o सी.आर. दास और अन्य नेता INC से अलग हो गए।
o स्वराज पाटी का गठन।
▪ वर्त 1924: बेलगाम। अध्यक्ष: एम.के . गाधं ी
o महात्मा गांधी की अध्यक्षता में आयोनजत के वल एक सत्र।
▪ वर्त 1925: कानपरु । अध्यक्ष: सरोनजनी नायडू, पहली भारतीय मनहला अध्यक्ष।
▪ वर्त 1927: मद्रास। अध्यक्ष: डॉ. एम.ए. अंसारी
o चीन, ईरान और मेसोपोटानमया में भारतीयों को इस्तेमाल नकये जाने के नखलाफ प्रस्ताव पाररत नकया।
o साइमन कमीशन के बनहष्कार के नखलाफ एक प्रस्ताव पाररत नकया।
o पणू ा स्वराज पर संकल्प को अपनाया।
▪ वर्त 1928: कलकत्ता। अध्यक्ष: मोतीलाल नेहरू
o अनखल भारतीय यवु ा कॉन्ग्रेस का गठन।
▪ वर्त 1929: लाहौर। अध्यक्ष: जवाहर लाल नेहरू
o 'पणू ा स्वराज' पर प्रस्ताव पाररत नकया।
o पणू ा स्वतत्रं ता के नलये सनवनय अवज्ञा आदं ोलन शरू
ु नकया जाना।
o 26 जनवरी को 'स्वतंत्रता नदवस' के रूप में मनाए जाने की घोर्णा।
▪ वर्त 1931: कराची। अध्यक्ष: वल्लभभाई पटेल
o मौनलक अनधकारों और राष्ट्रीय आनथाक कायाक्रम पर सक
ं ल्प।
o गांधी-इरनवन समझौते का समथान।
o महात्मा गांधी लंदन में होने वाले दसू रे गोलमेज सम्मेलन में INC का प्रनतनननधत्व करने के नलये
नामांनकत।
▪ वर्त 1934: बॉम्बे। अध्यक्ष: राजेंद्र प्रसाद
o कॉन्ग्रेस के सनं वधान में संशोधन।
▪ वर्त 1936: लखनऊ। अध्यक्ष: जवाहर लाल नेहरू
o जवाहर लाल नेहरू िारा समाजवादी नवचारों को प्रोत्साहन नदया जाना।
▪ वर्त 1937: फै जपरु । अध्यक्ष: जवाहर लाल नेहरू
o नकसी गााँव में होने वाला पहला अनधवेशन।
▪ वर्त 1938: हररपरु ा। अध्यक्ष: सभु ार् चंद्र बोस
o जवाहर लाल नेहरू के नेतत्त्ृ व में राष्ट्रीय योजना सनमनत की स्थापना।
▪ वर्त 1939: नत्रपरु ी। अध्यक्ष: राजेंद्र प्रसाद
o सभु ार् चद्रं बोस को नफर से चनु ा गया लेनकन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
o उनकी जगह राजेंद्र प्रसाद को ननयि
ु नकया गया था।
o सभु ार् चद्रं बोस ने फॉरवडा ब्लॉक का गठन नकया।
▪ वर्त 1940: रामगढ़। राष्ट्रपनत: अबुल कलाम आज़ाद
▪ वर्त 1941–45: यह अवनध नवनभन्न घटनाओ ं अथाात-् भारत छोड़ो आंदोलन, आरआईएन म्यनु टनी और आईएनए
िारा प्रभानवत।
o नक्रप्स नमशन, वेवेल योजना और कै नबनेट नमशन जैसी संवैधाननक वातााओ ं का चरण।
o इस चरण के दौरान इन घटनाओ ं के कारण कॉन्ग्रेस का कोई अनधवेशन नहीं हुआ।
▪ वर्त 1946: मेरठ। अध्यक्ष: जेबी कृ पलानी
o आज़ादी से पहले का आनखरी सत्र।
o जे.बी. कृ पलानी स्वतत्रं ता के समय INC के अध्यक्ष थे।
1885 से 1947 तक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की घटनाओ ं का कालक्रम
1885 ईस्वी
1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन बम्बई (मंबु ई) में 28 नदसंबर को आयोनजत हुआ था नजसके प्रथम सत्र में 72 प्रनतनननध
उपनस्थत थे।

2. लॉडा रैं डोल्फ चनचाल भारत के सनचव बने।

1905 ईस्वी
1. बंगाल नवभाजन के ननणाय की घोर्णा 19 जल
ु ाई 1905 को भारत के तत्कालीन वाइसराय लॉडा कज़ान िारा की गयी थी।

1906 ईस्वी
1. निनटश भारत ने आनधकाररक तौर पर भारर्ीय मानक समय (Indian Standard Time) को अपनाया था।
2. दनक्षण अफ्ीका में अनहसं ा आंदोलन को नचनित करने के नलए महात्मा गांधी ने शब्द ‘सत्याग्रह’ को प्रतीक रूप में
इस्तेमाल नकया था।
3. बगं ाल के नवभाजन ने सांप्रदानयक नवभाजन को भी जन्म दे नदया। 30 नदसबं र, 1906 को ढाका के नवाब आगा खां और
नवाब मोहनसन-उल-मुल्क के नेतत्ृ व में भारतीय मनु स्लमों के अनधकारों की रक्षा के नलए मनु स्लम लीग का गठन नकया गया।

1907 ईस्वी
1. कांग्रेस का सरू त अनधवेशन 1907 ई. में सरू त में सम्पन्न हुआ। ऐनतहानसक दृनष्ट से यह अनधवेशन अनत महत्त्वपूणा था।
गरम दल तथा नरम दल के आपसी मतभेदों के कारण इस अनधवेशन में कांग्रेस दो भागों में नवभानजत हो गई।

2. लाला लाजपत राय और अजीत नसहं को पंजाब की कै नाल कॉलोनी में दगं ों के बाद माडं ले भेज नदया गया था।

1908 ईस्वी
1. 8 जनू , 1908 को खदु ीराम बोसे को कै नेडी तथा उनकी बेटी के हत्या के जमु ा में अदालत में पेश नकया गया था और 13
जनू को उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. इसके बाद 11 अगस्त, 1908 को उन्हें फांसी पर चढ़ा नदया गया।

2. देशद्रोह के आरोप में नतलक को छह साल की कारावास की सजा सनु ाई गई।


1909 ईस्वी
1. मॉले-धमटं ो सि ु ार या भारर्ीय पररर्द अधिधनयम 1909: इस अनधननयम को निनटश ससं द िारा पाररत नकया गया था
नजसके िारा निनटश भारत के शासन में भारतीयों की नहस्सेदारी अल्प मात्रा में बढ़ायी गयी थी। इसे इस नाम से इसनलये जाना
जाता है क्योंनक इस समय माले भारत के सनचव एवं लाडा नमन्टो, वायसराय थे। इन्हीं दोनों के नाम पर इसे माले-नमन्टो सधु ारों
की संज्ञा दी गयी। सरकार िारा इन सधु ारों को प्रस्ततु करने के पीछे मुख्य दो घटनाये थीं। अक्टूबर 1906 में आगा खां के
नेतत्ृ व में एक मनु स्लम प्रनतनननधमडं ल वायसराय लाडा नमन्टो से नमला और मांग की नक मसु लमानों के नलए पृथक ननवााचन
प्रणाली की व्यवस्था की जाए तथा मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनपु ात में प्रनतनननधत्व नदया जाये।
1911 ईस्वी
1. भारत की राजधानी कलकत्ता से नदल्ली में स्थानांतररत कर नदया गया था

1912 ईस्वी
1. नदल्ली के चांदनी चौक में लॉडा हानडिंगे पर रास नबहारी बोस और सनच्चंद्र सान्याल ने बम फें का था।

1913 ईस्वी
1. निनटश शासन को खत्म करने के नलए भारत में नवद्रोह का आयोजन करने के नलए सैन फ्ांनसस्को में गदर पाटी का गठन
नकया गया था।

1914 ईस्वी
1. प्रथम नवश्वयर्द्
ु की शरुु आत 28 जल ु ाई 1914 ई. में हुई। यह यर्द्
ु 4 वर्ा तक चला नजसमे 37 देशो ने भाग नलया था।
यह महायर्द्
ु यरू ोप, एनशया व अफ़्रीका तीन महािीपों और समंदु र, धरती और आकाश में लड़ा गया। इसमें भाग लेने वाले देशों
की सख्ं या, इसका क्षेत्र (नजसमें यह लड़ा गया) तथा इससे हुई क्षनत के अभतू पवू ा आक ं ड़ों के कारण ही इसे नवश्व यर्द्
ु कहते हैं।
ु के ख़त्म होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जमानी, ऑनस्ट्रया-हगं री (हैप्सबगा) और उस्माननया ढह गए। यरू ोप की
इस यर्द्
सीमाएाँ नफर से ननधााररत हुई और अमेररका एक 'महाशनि ' बन कर उभरा।

1915 ईस्वी
1. दनक्षण अफ्ीका से महात्मा गांधी की वापसी

1916 ईस्वी
1. गांधी जी ने अहमदाबाद में साबरमती आश्रम का ननमााण नकया था।

2. होम रूल आन्दोलन, एक राष्ट्रीय राजनीनतक सगं ठन था नजसकी स्थापना 1916 में बाल गगं ाधर नतलक िारा भारत में
स्वशासन के नलए राष्ट्रीय मांग का नेतत्ृ व करने के नलए "होम रूल" के नाम के साथ की गई थी।
3. एनी बेसेंट िारा एक और होमरूल लीग शुरूवात नक गयी।
4. बनारस धहंदू धवश्वधवद्यालय की स्थापना मदन मोहन मालवीय िारा की गयी
1917 ईस्वी
1. गांधीजी के नेतत्ृ व में नबहार के चम्पारण नजले में सन् 1917-18 में एक सत्याग्रह हुआ। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से
जाना जाता है। गाधं ीजी के नेतत्ृ व में भारत में नकया गया यह पहला सत्याग्रह था।

2. मोंटेग, भारत के राज्य सनचव, ने घोर्णा की नक भारत में निनटश सरकार का लक्ष्य नजम्मेदार सरकार की शुरूआत है।

1918 ईस्वी
1. पहला अनखल भारतीय शोनर्त वगा सम्मेलन आयोनजत नकया गया था।

2. रोलेट (राजद्रोह) सनमनत अपनी ररपोटा प्रस्ततु की थी। रोलेट नबल 16 फरवरी, 1919 को पेश नकया था।

1919 ईस्वी
1. एटं ी-रौलट सत्याग्रह: एम.के . गांधी ने रौलट नबल के नखलाफ अनभयान शरू ु नकया और सत्याग्रह सभा की स्थापना 24
फरवरी, 1919 को बॉम्बे में की। इस आंदोलन के दौरान, एम.के . गांधी ने प्रनसर्द् उर्द्रण नदया "यह मेरा दृढ़ नवश्वास है नक
हम के वल पीनड़तों के माध्यम से मनु ि प्राप्त करें ग,े अग्रं ेजों से हम पर सधु ार नहीं नकए जाने वाले सधु ारों के िारा हम क्रूरता, हम
आत्मा बल का उपयोग करें गे"।
2. जनलयांवाला बाग त्रासदी और अमृतसर नरसंहार

3. मोंटेग चेम्सफोडा सधु ार या भारत सरकार अनधननयम 1919 की घोर्णा

1920 ईस्वी
1. लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में बम्बई (मबंु ई) में आयोनजत अनखल भारतीय व्यापार सघं काग्रं ेस (एआईटीयसू ी) की
पहली बैठक सम्पंन्य हुआ था"।

2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस) असहयोग प्रस्ताव प्रस्ततु नकया था।

1921 ईस्वी
1. इसी वर्ा नप्रंस की स्थायी सलाहकार पररर्द का उद्घाटन; राज्य पररर्द और नवधान सभा की पररर्द का उद्घाटन हुआ था।

2. वेलस के राजकुमार (राजा एडवडा VIII) बम्बई (मंबु ई), भारत में आगमन हुआ था और इनके आगमन पर व्यापक
आंदोलन हुआ था नजसकी वजह से खाली सड़कों पर उनका स्वागत नकया गया था।
3. नहदं ू समाज में अस्पृश्यता के नखलाफ संघर्ा, वाइकम सत्याग्रह पर चचाा के नलए टी के माधवन, नतरुनेलवेली में महात्मा
गांधी से नमले।
1922 ईस्वी
1. चौरी चौरा की घटना: उत्तर प्रदेश में गोरखपरु के पास का एक कस्बा है जहााँ 4 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने नबनट्रश
सरकार की एक पनु लस चौकी को आग लगा दी थी नजससे उसमें छुपे हुए 22 पनु लस कमाचारी नजन्दा जल के मर गए थे। इस
घटना को चौरीचौरा काण्ड के नाम से जाना जाता है। इसके पररणामस्वरूप गाधं ीजी ने कहा था नक नहसं ा होने के कारण
असहयोग आन्दोलन उपयि ु नहीं रह गया है और उसे वापस ले नलया था। चौरी चौरा की इस घटना से महात्मा गााँधी िारा
चलाये गये असहयोग आन्दोलन को आघात पहुचाँ ा, नजसके कारण उन्हें असहयोग आन्दोलन को स्थानगत करना पड़ा, जो
बारदोली, गुजरात से शुरू नकया जाने वाला था।
2. दसू रा मोप्ला नवद्रोह, मालाबार तट, के रल

3. रबींिनाथ टैगोर ने नवश्व भारर्ी धवश्वधवद्यालय स्थापना की थी।


1923 ईस्वी
1. मोतीलाल नेहरू ने स्वराजवादी पाटी की स्थापना की थी।
1925 ईस्वी
1. देशबंधु नचत्तरंजन दास की मौत

2. क्रांनतकाररयों िारा काकोरी सानजश का मामला

1927 ईस्वी
1. साइमन कमीशन की ननयनु ि

1928 ईस्वी
1. भारत के एक नए संनवधान के नलए नेहरू ररपोटा

1929 ईस्वी
1. सभी दलों मनु स्लम सम्मेलन नजन्ना के नेतत्ृ व में "चौदह अंक" तैयार करता है।

2. लोक सरु क्षा नवधेयक के नखलाफ नवरोध करने के नलए कें द्रीय नवधानसभा में भगत नसंह और बट्टूकेश्वर दत्त के बम फें का।

3. जनतन दास की 64 नदनों के उपवास के बाद मृत्य।ु

4. लॉडा इरनवन की घोर्णा नक भारत में निनटश नीनत का लक्ष्य वचास्व नस्थनत का अनुदान था।

5. जवाहरलाल नेहरू के तहत काग्रं ेस का लाहौर सत्र भारत के नलए पणू ा स्वतत्रं ता (पणू ा स्वराज) के लक्ष्य को अपनाया गया
था।
1930 ईस्वी
1. जवाहरलाल नेहरू, भारत के नतरंगा को लाहौर में रनव के नकनारों पर फहराया था।

2. पहले स्वतंत्रता नदवस मनाया गया।

3. कांग्रेस की कायाकाररणी सनमनत साबरमती में नमलती है और सनवनय अवज्ञा आंदोलन को दांडी माचा के साथ पाररत कर
देती है।

महात्मा गांधी दांडी माचा के साथ सनवनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत की थी।

5. भारत में भावी संवैधाननक व्यवस्था के नलए साइमन कमीशन की ररपोटा पर नवचार करने के नलए लंदन में पहला गोलमेज
सम्मेलन शरू
ु हुआ था।

1931 ईस्वी
1. गाधं ी-इरनवन समझौते और सनवनय अवज्ञा आदं ोलन का ननलनं बत

2. भगत नसहं , सख ु (लाहौर मामले में) को फासं ी दी गयी थी।


ु देव और राज गरू

3. नितीय राउंड टेबल कॉन्फ्ें स शुरू होता है महात्मा गांधी नितीय गोलमेज़ सम्मलेन में भाग लेने के नलए महात्मा गााँधी लंदन
पहुचं े थे।

1932 ईस्वी
1. निनटश प्रधान मंत्री रामसे मैक डोनाल्ड ने अलग-अलग मतदाताओ ं की जगह हररजनों को अलग मतदाताओ ं को अलग-
अलग वोट देने के नलए सांप्रदानयक परु स्कार की घोर्णा की।

2. गांधी ने उपवास करके अंग्रेजो से नवरोध जताया था

3. पनू ा समझौते पर हस्ताक्षर नकए नजसके िारा हररजन अलग मतदाताओ ं के स्थान पर आरनक्षत सीटें प्राप्त करें ।

4. तीसरा गोलमेज सम्मेलन लदं न से शरू


ु हुआ था।

1935 ईस्वी
1. भारत सरकार अनधननयम पाररत हुआ था।

1937 ईस्वी
1. 1935 के अनधननयम के तहत भारत में आयोनजत चनु ाव।
2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सात प्रान्तों में मंनत्रयों का गठन नकया था।

1938 ईस्वी
1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 19 से 22 फरवरी 1938 के दौरान हररपरु ा कांग्रेस सत्र की अध्यक्षता सभु ार् चंद्र बोस ने की थी।
सरदार वल्लभभाई पटेल ने सम्मेलन के नलए हररपरु ा का चयन नकया था। 51 बल ु ॉक्सचायो को इस अवसर के नलए सजाया
गया था। प्रनसर्द् नचत्रकार नंदलाल बोस ने हररपरु ा सत्र के नलए महात्मा गांधी के अनरु ोध पर सात पोस्टर तैयार नकए।

1939 ईस्वी
1. भारतीय राष्ट्रीय काग्रं ेस का नत्रपरु ी सत्र।

2. सभु ार् चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता से इस्तीफा नदया।

3. नितीय नवश्व यर्द्


ु शुरू हुआ था। वाइसराय ने घोर्णा की नक भारत भी यर्द्
ु में शानमल होगा।

4. निनटश सरकार की यर्द्


ु नीनत के नखलाफ प्रांतों में कांग्रेस मंनत्रयों ने इस्तीफा दे नदया था।

5. मुधस्लम लीग ने कांग्रेस मंत्रालयों के त्यागपत्र के उपलक्ष में उद्धार धदवस मनाया था।
1940 ईस्वी
1. मनु स्लम लीग का लाहौर सत्र पानकस्तान के सक ं ल्प को प्रस्ततु नकया था।

2. वाइसरॉय नलननलथगो ने अगस्त ऑफ़र की घोर्णा की।

3. कांग्रेस ने व्यनिगत सत्याग्रह आंदोलन की शरुु आत की

1941 ईस्वी
1. रबींद्रनाथ टैगोर की मृत्यु

2. सभु ार् चद्रं बोस भारत से जमानी को भाग ननकले।

1942 ईस्वी
1. चनचाल ने नक्रप्स नमशन की घोर्णा की

2. क्रेप्स नमशन के प्रस्तावों को काग्रं ेस ने खाररज कर नदया था।


3. भारत छोड़ो का संकल्प एआईसीसी के बॉम्बे सत्र िारा पाररत नकया गया, नजसने परू े भारत में एक ऐनतहानसक सनवनय
अवज्ञा आंदोलन की शरुु आत की।

4. जवाहरलाल नेहरू की बेटी इनं दरा एक पारसी वकील और नवद्रोही, नफरोज गाधं ी से उनके नपता की इच्छाओ ं के नवरुर्द्
नववाह कर नलया था।

5. भारतीय नेता, मोहनदास गांधी को निनटश सेना िारा मंबु ई में नगरफ्तार नकया गया था।

6. नए नववानहत जोड़े इनं दरा गाधं ी और नफरोज गाधं ी को भारत छोड़ो आदं ोलन में अपनी भागीदारी के नलए नगरफ्तार कर नलए
गए थे।

7. नितीय नवश्व यर्द्


ु के दौरान सन 1942 में भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के नलये आजाद नहन्द फौज या
इनन्डयन नेशनल आमी (INA) नामक सशि सेना का सगं ठन नकया गया।

1943 ईस्वी
1. सभु ार् चद्रं बोस ने भारतीय राष्ट्रीय काग्रं ेस के नेतत्ृ व पर कहा और नसगं ापरु में 'नन: शल्ु क भारत की अस्थायी सरकार' के
गठन की घोर्णा की।

2. मनु स्लम लीग के कराची सत्र 'नवभाजन और छोड़ो' के नारे को ग्रहण नकया था।

3. कोलकाता के बदं रगाह पर जापानी हमले।

. कुलाल कोनवार, भारतीय राष्ट्रीय काग्रं ेस गोलघाट के अध्यक्ष, भारत छोड़ो आदं ोलन के पहले शहीद।

1944 ईस्वी
1. वावेल ने भारतीय राजनीनतक नेताओ ं की कायाकारी पररर्द बनाने के नलए नशमला सम्मेलन का आह्वाहन नकया था।

1946 ईस्वी
1. निनटश और भारतीय वायु सेना इकाइयों की रॉयल एयर फोसा ने निनटश शासन के नखलाफ़ नवद्रोह नकया था।

2. निनटश प्रधान मत्रं ी अटली ने कै नबनेट नमशन की घोर्णा की थी।

3. वावेल ने अंतररम सरकार बनाने के नलए नेहरू को आमंनत्रत नकया था।

4. संनवधान सभा का पहला सत्र इसी वर्ा हुआ था।

5. नेहरू कांग्रेस पाटी के नेता चनु े गए।


6. भारत के नलए संनवधान सभा पहली बार नमली थी।

1947 ईस्वी
1. निनटश प्रधान मंत्री एटली ने घोर्णा नक निनटश सरकार जनू 1948 तक भारत छोड़ देगी।

2. लॉडा माउंटबेटन, नपछले निनटश वासीराय और भारत के गवनार जनरल की शपथ ली।

3. भारत के नवभाजन के नलए माउंटबेटन योजना की घोर्णा की गई थी।

4. भारतीय स्वतंत्रता नवधेयक को हाउस ऑफ कॉमन्स में पेश नकया गया और 18 जुलाई, 1947 को निनटश संसद ने पाररत
नकया।

5. कश्मीर में भारत और पानकस्तान प्रशानसत कश्मीर बलों के बीच यर्द्


ु हुआ था।

6. जनू ागढ़ भारत के डोनमननयन में शानमल हो गया था।

7. एयर इधं िया ने पहली बार का अंतरराष्ट्रीय उडान भरा था।


8. भारतीयों को आजादी नमली

9. जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधान मंत्री बने और लाल नकले पर भारतीय नतरंगा फहराए, जो प्रतीकात्मक रूप से
निनटश औपननवेनशक शासन के अतं को दशााते हैं।

क्रानन्तकाररयों‍की‍काया-प्रणाली
क्रांनतकाररयों‍का‍मानना‍था‍नक‍‘अंग्रेजी‍शासन‍पाशनवक‍बल‍पर‍नस्थत‍है‍और‍यनद‍हम‍अपने‍आपको‍स्वतंत्रा‍करने‍के ‍नलए‍
पाशनवक‍बल‍का‍प्रयोग‍करते‍हैं‍तो‍यह‍उनचत‍ही‍है.‍उनका‍संदशे ‍थाः‍‘तलवार‍हाथ‍में‍लो‍और‍सरकार‍को‍नमटा‍दो.’

उनकी‍काया-प्रणाली‍के ‍अन्तगात‍ननम्ननलनखत‍बातें‍शानमल‍थीं:

1. पत्रों‍की‍सहायता‍से‍प्रचार‍िारा‍नशनक्षत‍लोगों‍के ‍मनष्तष्क‍में‍दासता‍के ‍प्रनत‍घृणा‍उत्पन्न‍करना.


2. संगीत, नाटक‍एवं‍सानहत्य‍के ‍िारा‍बेकारी‍और‍भख ू ‍से‍त्रस्त‍लोगों‍को‍ननडर‍बनाकर‍उनमें‍मातृभनू म‍और‍स्वतंत्रता‍
का‍प्रेम‍भरना.
3. बम‍बनाना, बंदक ू ‍आनद‍चोरी‍से‍उपलब्ध‍करना‍तथा‍नवदेशों‍से‍शि‍प्राप्त‍करना.
4. चन्दा, दान‍तथा‍क्रांनतकारी‍डकै नतयों‍िारा‍व्यय‍के ‍नलए‍धन‍का‍प्रबंध‍करना.

महाराष्ि में क्राधन्र्कारी अधभयान


क्रांनत‍की‍लहर‍सबसे‍पहले‍महाराष्ट्र‍से‍चली‍और‍शीघ्र‍ही‍इसने‍समचू े‍भारत‍को‍अपनी‍नगरफ्त‍में‍ले‍नलया.‍प्रथम‍क्रांनतकारी‍
सगं ठन‍1896-97 में‍पनू ा‍में‍दामोदर‍हरर‍चापेकर‍और‍बालकृ ष्ण‍हरर‍चापेकर‍िारा‍स्थानपत‍नकया‍गया.‍इसका‍नाम‍
‘व्यायाम मंिल’ था.‍इस‍गटु ‍के ‍िारा‍रै ण्ड‍और‍एमहस्टा‍नामक‍दो‍अंग्रेज‍अनधकाररयों‍की‍हत्या‍की‍गयी.‍यह‍यरू ोपीयों‍की‍प्रथम‍
राजनीनतक‍हत्या‍थी.‍इस हत्या‍का‍ननशाना‍तो‍पनू ा‍में‍प्लेग‍सनमनत‍के ‍प्रधान‍श्री‍रै ण्ड‍थे, परन्त‍ु एमहस्टा‍भी‍अकस्मात‍् मारे ‍गये.‍
चापेकर‍बन्ध‍ु पकड़े‍गये‍तथाप‍फासं ी‍पर‍लटका‍नदये‍गये.‍शासक‍वगा‍ने‍अग्रं जों‍के ‍नवरुर्द्‍नटप्पणी‍नलखने‍के ‍नलए‍नतलक‍को‍
उत्तरदायी‍ठहराकर‍18 मास‍की‍सजा‍दी.‍1918 की‍नवद्रोह‍सनमनत‍की‍ररपोटा‍में‍यह‍कहा‍गया‍था‍नक‍भारत‍में‍क्रांनतकारी‍
आन्दोलन‍का‍प्रथम‍आभास‍महाराष्ट्र‍में‍नमलता‍है, नवशेर्कर‍पनू ा‍नजले‍के ‍नचतपावन‍िाह्मणों‍में.‍ये‍िाह्मण‍महाराष्ट्र‍के ‍शासक‍
पेशवाओ‍ं के ‍वंशज‍थे.‍उल्लेखनीय‍है‍नक‍चापेकर‍बन्ध‍ु तथा‍नतलक‍नचतपावन‍िाह्मण‍ही‍थे.

सावरकर‍ने‍1904 में‍नानसक‍में‍‘धमिमेला’ नाम‍से‍एक‍संस्था‍आरंभ‍की‍थी‍जो‍शीघ्र‍ही‍मेजनी‍के ‍‘र्रुण इटली’ की‍तजा‍


पर‍एक‍गप्तु ‍सभा‍‘अधभनव भारर्’ में‍पररवनतात‍हो‍गयी.‍बगं ाल‍के ‍क्रानं तकाररयों‍से‍भी‍इस‍सस्ं था‍का‍सबं धं ‍था.‍इस‍सस्ं था‍ने‍
अपने‍उद्देश्य‍की‍पनू ता‍के ‍नलए‍नवदेशों‍से‍अि-शि‍मंगवाया‍और‍बम‍बनाने‍का‍काम‍रूनसयों‍के ‍सहायता‍से‍नकया.‍अनेक‍गप्तु ‍
संस्थाएं‍बम्बई, पनू ा, नानसक, नागपरु , कोल्हापरु ‍आनद‍जगहों‍में‍सनक्रय‍थीं.‍शीघ्र‍ही‍सरकार‍इनकी‍कायावानहयों‍से‍परानजत‍हो‍
गयी.‍गणेश‍दामोदर‍सावरकर‍को‍भारत‍से‍ननवाानसत‍कर‍नदया‍गया.‍नजला‍मनजस्ट्रेट‍जैक्सन‍की‍हत्या‍के ‍आरोप‍में‍दामोदर‍सावरकर‍
सनहत‍अनेक‍व्यनियों‍पर‍‘नाधसक र्ि्यंि’ के स‍चलाया‍गया.‍उन्हें‍भारत‍से‍आजीवन‍ननवाानसत‍कर‍‘कालापानी’ की‍सजा‍दी‍
गयी.‍बाद‍में‍सरकार‍की‍दमनात्मक‍नीनत‍एवं‍धन‍की‍कमी‍के ‍कारण‍महाराष्ट्र‍में‍क्रांनतकारी‍आन्दोलन‍ठंडा‍हो‍गया.

बंगाल में क्रांधर्कारी आन्दोलन


बगं ाल‍में‍क्रांनतकारी‍आन्दोलन‍का‍सत्रू ापात‍भद्रलोक‍समाज‍से‍हुआ.‍पी.‍नमत्रा‍ने‍एक‍गप्तु ‍क्रांनतकारी‍सभा‍‘अनुशीलन सधमधर्’
का‍गठन‍नकया. बंग-धवभाजन की‍याजेना, इसके ‍नवरुर्द्‍जन‍आक्रोश‍की‍भावना‍एवं‍सरकारी‍दमनात्मक‍कारा वाइयों‍ने‍
क्रानं तकारी‍कारा वाइयों‍का‍प्रसार‍नकया.‍1905 में‍बारीन्द्र‍वफ
ु मार‍घोर्‍ने‍‘भवानी‍मनं दर’‍नामक‍की‍पनु स्तका‍प्रकानशत‍कर‍
क्रांनतकारी‍आन्दोलन‍को‍बढ़ावा‍नदया.‍इसके ‍पश्चात‍् ‘वर्तमान रणनीधर्’ नामक‍पनु स्तका‍प्रकानशत‍की.‍‘युगान्र्र’ और‍‘सांध्य’
नामक‍पनत्रकाओ‍ं िारा‍भी‍अंग्रेज‍नवरोधी‍नवचार‍फै लाये‍गये.‍इसी‍प्रकार‍एक‍अन्य‍पनु स्तका‍‘मुधि कौन पथे’ में‍भारतीय‍सैननकों‍
से‍क्रानं तकाररयों‍को‍हनथयार‍देने‍को‍आग्रह‍नकया‍गया.

पवू ा‍बंगाल‍के ‍लेनफ्टनेंट‍गवनार‍सर‍बैमनफल्ड‍फुलर‍की‍हत्या‍का‍काम‍प्रफुल्ल‍चाकी‍को‍सौंपा‍गया, नकन्त‍ु यह‍काम‍परू ा‍नहीं‍हो‍


सका.‍1907 में‍बगं ाल‍के ‍लेनफ्टनेंट‍गवानर‍की‍ट्रेन‍को‍मेदनीपरु ‍के ‍पास‍उड़ा‍देने‍का‍र्ड्यत्रं ‍हुआ‍तथा‍1908 ई.‍में‍
चन्द्रनगर‍के ‍मेयर‍को‍मारने‍की‍योजना‍बनायी‍गयी.‍30 अप्रैल‍को‍प्रफुल्ल‍चाकी‍और‍खदु ीराम‍बोस‍ने‍मजु फ्फरपरु ‍के ‍नजला‍जज‍
नकंग्सपफोडा‍की‍हत्या‍करने‍का‍प्रयास‍नकया, परन्त‍ु गलती‍से‍बम‍श्री‍के नेडी‍की‍गाड़ी‍पर‍नगरा‍नजससे‍दो‍मनहलाओ ं की‍मृत्य‍ु हो‍
गयी.‍खदु ीराम‍बोस‍पकड़े‍गये.‍जबनक‍प्रफुल्ल‍चाकी‍ने‍आत्महत्या‍कर‍ली.‍बोस‍पर‍अनभयोग‍चलकार‍उन्हें‍फााँसी‍दे‍दी‍गयी.

सरकार‍ने‍अवैध‍हनथयारों‍की‍तलाशी‍के ‍सबं धं ‍में‍माननकतला‍उद्यान‍तथा‍कलकत्ता‍में‍तलानशया‍ं लीं‍और‍34 व्यनियों‍को‍बन्दी‍


बनाया, नजसमें‍दो घोर् बन्िु – अरनवंद‍घोर्‍और‍बारीन्द्र‍घोर्‍सनम्मनलत‍थे.‍इन‍पर‍अलीपरु ‍र्ड्यंत्र‍का‍मक
ु दमा‍बना.‍मक
ु दमे‍
के ‍नदनों‍में‍सरकारी‍गवाह‍नरे न्द्र‍गोसाई‍की‍जे
ं ल‍में‍हत्या‍कर‍दी‍गयी.‍फरवरी‍1909 में‍सरकारी‍वकील‍की‍हत्या‍कर‍दी‍गयी‍
तथा‍24 फरवरी, 1910 को‍उप-पनु लस‍अधीक्षक‍की‍कलकत्ता‍उच्च‍न्यायालय‍से‍बाहर‍आते‍समय‍हत्या‍कर‍दी‍गयी.‍इस‍
र्ड्यत्रं ‍में‍अनेक‍व्यनियों‍को‍फााँसी‍की‍सजा‍दी‍गयी.‍1910 में‍हावड़ा‍र्ड्यत्रं ‍एव‍ं ढाका‍र्ड्यत्रं ‍हुए.‍बाररसाल‍में‍भी‍
क्रांनतकारी‍काया‍हुए.‍रॉलेट‍कमेटी‍की‍ररपोटा‍में‍1906 से‍1917 के ‍बीच‍मध्य‍बंगाल‍में‍110 डाकें ‍तथा‍हत्या‍के ‍60
प्रयत्नों‍का‍उल्लेख‍है.

इन‍क्रांनतकारी‍घटनाओ‍ं को‍रोकने‍के ‍नलए‍सरकार‍ने‍नवस्फोट‍पदाथा‍अनधननयम, 1908 और‍समाचार‍पत्र‍(अपराध‍प्रेरक)‍


अनधननयम, 1908 पास‍नकये.‍इसके ‍अलावा‍व्यापक‍दमन‍चक्र‍चलाया‍गया.‍अनेक‍क्रानं तकारी‍फााँसी‍पर‍चढ़ा‍नदये‍गये.‍कुछ‍
को‍नगरफ्तार‍कर‍नलया‍गया‍और‍अनेक‍को‍ननवाानसत‍कर‍नदया‍गया.‍इन‍दमनात्मक‍कायों‍से‍क्रांनतकारी‍संगठन‍टूटने‍लगे.

पंजाब र्था धदलली में क्रांधर्कारी कारतवाइयाुँ


बगं ाल‍की‍घटनाओ‍ं का‍प्रभाव‍लगभग‍समचू े‍देश‍पर‍पड़ा.‍पजं ाब‍और‍नदल्ली‍भी‍क्रानं तकाररयों‍से‍बचे‍नहीं‍रहे.‍1907 ई.‍के ‍
आस-पास‍पंजाब‍के ‍नकसानों‍में‍‘औपननवेनशक‍नवधयेक’‍था.‍इसका‍नेतत्ृ व‍अजीत‍नसंह‍कर‍नामक‍क्रांनतकारी‍संस्था‍बनायी.‍
लाला‍क्रांनतकारी‍गनतनवनधयों‍में‍नलप्त‍थे.‍नसंह‍को‍बन्दी‍बना‍नलया‍गया‍तथा‍से‍ननवाानसत‍कर‍नदये‍गये.‍अनजत‍और‍वे‍फ़्रांस‍चले‍
गये.

नदल्ली‍अमीरचंद‍ने‍नकया.‍1912 में‍नदल्ली‍में‍लॉडा‍हानडिंग‍पर‍बम‍फें का‍गया, नजसमें‍जख्मी‍हो‍गया‍और‍उसका‍एक‍सेवक‍


मारा‍गया.‍सरकार‍ने‍संनदग्ध‍व्यनियों‍को‍नगरफ्तार‍कर‍मक
ु दमा‍चलाया.‍अमीरचंद‍और‍बम‍फें कने‍वाले‍बसंत‍नवश्वास‍को‍फांसी‍दे‍
दी‍गयी.‍रास‍नबहारी‍बोस‍भागकर‍जापान‍चले‍गये‍और‍वहीं‍से‍क्रांनतकारी‍गनतनवनधयां‍संचानलत‍करते‍रहे.

भारर् के अन्य भागों में क्रांधर्कारी गधर्धवधियां


देश‍के ‍अन्य‍भागों‍में‍भी‍क्रांनतकारी‍गनतनवनधयां‍चल‍रही‍थीं.‍मद्रास‍में‍क्रांनतकारी‍गनतनवनधयों‍का‍संचालन धवधपन चन्ि
पाल कर‍रहे‍थे.‍उनके ‍नवचारों‍से‍प्रभानवत‍होकर‍अनेक‍लोग‍आन्दोलन‍में‍कूद‍पड़े.‍1911 में‍नतनेवेली‍के ‍नजला‍मनजस्ट्रेट‍नम.‍
ऐश‍को‍रे लवे‍स्टेशन‍पर‍ही‍गोली‍मार

दी‍गयी.‍नीलक ं ठ‍अय्यर‍और‍वी.पी.एस.‍अय्यर‍ने‍मद्रास‍में‍आन्दोलन‍को‍आगे‍बढ़ाया.‍राजस्थान‍में‍क्रांनतकारी‍फै लाने‍में‍मख्ु य‍


भनू मका‍अजानु ‍लाल‍सेठी, के सरी‍नसहं ‍बारहट‍और‍राव‍गोपाल‍नसहं ‍ने‍ननभायी, प्रताप‍नसंह‍ने‍अजमेर‍में‍क्रांनत‍को‍जीनवत‍रखा.‍
मध्य‍प्रदेश‍के ‍प्रमख ु ‍प्रांत, आगरा‍एवं‍अवध‍के ‍क्रांनतकाररयों‍का‍प्रमख
ु ‍क्रांनतकारी‍अमरौती‍के ‍गणेश‍श्रीकृ ष्ण‍खापडे‍थे.‍संयि ु ‍
के न्द्र‍बनारस‍बना.‍नबहार‍में‍पटना‍तथा‍झारखण्ड‍में‍देवघर, दमु का‍आनद‍जगहों‍पर‍भी‍घटनाएं‍हुई.‍पटना‍में
ं ‍कामाख्या‍नाथ‍नमत्रा,
सधु ीर‍कुमार‍नसहं , पनु ीतलाल, बाब‍ू मंगला‍चरण‍आनद‍ने‍क्रानं तकारी‍गनतनवनधयों‍को‍अपना‍सनक्रय‍सहयोग‍नदया.

नवदेशों‍में‍क्रानं तकारी‍सगं ठन‍एव‍ं काया


अनके ‍क्रांनतकारी‍सरकारी‍चंगुल‍से‍बचने‍के ‍नलए‍नवदेश‍चले‍गये‍और‍वहीं‍से‍अपना‍संघर्ा‍जारी‍रखा.‍नवदेशों‍में‍क्रांनतकारी‍
आन्दोलन‍के ‍प्रसार‍का‍श्रेय‍श्यामजी‍कृ ष्ण‍वमाा‍को‍जाता‍है.‍लंदन‍में‍इन्होंने‍1905 में‍‘इधं िया होमरूल सोसाइटी’ की‍
स्थापना‍की.‍उन्होंने‍“इधं ियन सोधशयोलॉधजस्ट” नामक‍पत्र‍ननकालकर‍भारत‍में‍स्वराज्य‍प्रानप्त‍ को‍अपना‍उद्देश्य‍बताया.‍उन्होंने‍
लंदन‍में‍‘इधं िया हाउस’ की‍भी‍स्थापना‍की‍जो‍क्रांनतकारी‍गनतनवनधयों‍का‍के न्द्र‍था.‍बाद‍में‍उन्हें‍लंदन‍छोड़कर‍पेररस‍भागना‍
पड़ा.‍उनकी‍जगह‍नेतत्ृ व‍नवनायक‍दामोदर‍सावरकर‍के ‍हाथ‍में‍आ‍गया.‍उन्होंने‍अपनी‍प्रनसर्द्‍पस्ु तक‍‘1857 ई. का
भारर्ीय स्वर्ंिर्ा का युद्ध’ नलखी.‍जल ु ाई‍1909 ई.‍में‍लंदन‍में‍ही‍मदन‍लाल‍ढींगरा‍ने‍भारत‍सनचव‍के ‍ए.डी.सी., कनला‍
सर‍नवनलयम‍कजान‍वाइली‍को‍गोली‍मार‍दी.‍ढ़ींगरा‍को‍फााँसी‍दे‍दी‍गयी‍और‍इस‍र्ड्यंत्र‍में‍शानमल‍होने‍के ‍आरोप‍में सावरकर‍
को‍नगरफ्तार‍कर‍भारत‍भेजा‍गया, जहा‍ं उन‍पर‍मक ु दमा‍चलाकर‍देश‍ननकाला‍की‍सजा‍दी‍गयी.‍फ़्रासं ‍में‍मैडम‍भीकाजी‍कामा‍
क्रांनतकारी‍कारा वाईयों‍का‍संचालन‍कर‍रही‍थी.‍सानथयों‍ने‍1931 ई.‍में‍सैन‍फ्ांनसस्को‍में‍की.‍संस्था‍ने‍एक‍साप्तानहक‍पत्र‍
‘गदर’ आन्दोलन‍को‍बढ़ावा‍देती‍रहा.

क्रांनतकाररयों‍ने‍लंदन‍में‍कमाल‍पाशा‍से‍भेंट‍की.‍भारत‍और‍नमस्र‍के ‍क्रांनतकाररयों‍का‍सनम्मनलत‍सम्मलेन‍िसु ेल्स‍में‍हुआ.‍बैंकोक‍


और‍चीन‍के ‍गरुु िारे ‍क्रानं तकारी‍नवचारों‍के ‍के न्द्र‍बन‍गये.

प्रथम‍नवश्व‍यर्द्
ु ‍के ‍समय‍क्रांनतकारी‍गनतनवनधयां
1913 ई.‍तक‍भारत‍में‍सरकारी‍दमन‍चक्र, सगठं नात्मक‍कमजोररयों‍एव‍ं धन-जन‍समथान‍के ‍अभाव‍से‍क्रानं तकारी‍आन्दोलन‍
की‍गनत‍धीमी‍पड़‍गयी‍थी, लेनकन‍जब‍प्रथम‍नवश्व‍यर्द् ु ‍प्रारम्भ‍हुआ‍तो‍क्रांनतकाररयों‍को‍अच्छा‍अवसर‍नमला.‍भारत‍में‍और‍
भारत‍के ‍बाहर‍भी‍क्रांनतकारी सरकार‍का‍तख्ता‍पलटने‍की‍तैयारी‍जोर-शोर‍से‍करने‍लगे.‍इस‍योजना‍में‍प्रवासी‍भारतीय‍तथा‍
उनके ‍सगं ठनों‍ने‍महत्त्वपणू ा‍भनू मका‍ननभायी.‍बनलान‍में‍स्थानपत‍‘भारर्ीय स्वर्िं र्ा सधमधर्’ और‍अमरीका‍की‍‘गदर पाटी’ ने‍
भारतीयों‍को‍स्वदेश‍भेजने‍की‍योजना‍बनायी‍तानक‍वे‍भारत‍जाकर‍स्थानीय‍क्रांनतकाररयों‍एवं‍सेना‍की‍सहायता‍से‍नवद्रोह‍कर‍सकें .‍
उनके ‍नलए‍खचा‍की‍व्यवस्था‍की‍गयी‍और‍हनथयारों‍का‍प्रबंध‍नकया‍गया.‍इसके ‍अलावा‍पाटी‍ने‍सदु रू -पवू ा, दनक्षण-पवू ा‍एनशया‍
तथा‍भारत‍में‍नस्थत‍सैननकों‍से‍गप्तु ‍सम्पका ‍कर‍उन्हें‍नवद्रोह‍के ‍नलए‍उकसाया.‍नवद्रोह‍पजं ाब‍में‍शरू ु ‍होने‍वाला‍था, इसके ‍नलए‍
21 फरवरी, 1915 का‍नदन‍भी‍तय‍हुआ.‍दभु ााग्यवश‍सरकार‍को‍इस‍योजना‍का‍पता‍चल‍गया‍और‍उसने‍नस्थनत‍ननयंनत्रत‍
कर‍ली.‍पंजाब‍में‍प्रनसर्द्‍‘कामागाटा मारू काण्ि’ ने‍एक‍नवस्फोटक‍नस्थनत‍पैदा‍कर‍दी.‍बाबा‍गरुु दत्त‍नसंह‍ने‍एक‍जापानी‍
जलपोत‍‘कामागाटा‍मारू’‍को‍भाड़े‍पर‍लेकर‍पजं ाबी‍नसखों‍तथा‍मसु लमानों‍को‍लेकर‍कनाडा‍के ‍बैंकूवर‍नगर‍ले‍जाने‍का‍प्रयत्न‍
नकया.‍कनाडा‍सरकार‍ने‍इन्हें‍उतरने‍की‍अनमु नत‍नहीं‍दी‍और‍जहाज‍को‍नफर‍से‍कलकत्ता‍लौटना‍पड़ा.‍यानत्रयों‍का‍मानना‍था‍नक‍
अंग्रेजी‍सरकार‍के ‍दबाव‍के ‍कारण‍ही‍उन्हें‍उतरने‍की‍अनुमनत‍नहीं‍दी‍गयी.‍इसी‍प्रकार‍क्रानन्तकाररयों‍के ‍प्रयास‍से‍नसंगापरु ‍में‍
ननयि ु ‍पाच ं वी‍लाइं ट‍इन्फैं न्ट्री‍बटानलयन‍ने‍फरवरी‍1915 को‍नवद्रोह‍कर‍नदया, नजसे‍सरकार‍ने‍ननमामतापवू ाक‍कुचल‍नदया.‍
काबल ु ‍में‍राजा‍महेन्द्र‍प्रताप, बरकतल्ु लाह‍और‍ओबेदल्ु ला‍के ‍प्रयासों‍से‍नदसम्बर‍1915 में‍भारत‍की‍प्रथम‍अस्थायी‍सरकार‍
बनायी‍गयी, नजसके ‍अध्यक्ष‍राजा‍महेन्द्र‍प्रताप‍थे.‍इस‍सरकार‍ने‍कई‍नवदेशी‍देशों‍से‍भी‍सहायता‍मांगी‍परन्त‍ु सफलता‍नहीं‍नमली.‍
1919 तक‍अतं रााष्ट्रीय‍और‍भातरीय‍राजनीनत‍में‍तेजी‍से‍बदलाव‍आ‍रहा‍था.‍नवश्व‍यर्द् ु ‍में‍इग्ं लैंड‍की‍नवजय‍से‍क्रांनतकारी‍
आन्दालेन‍को‍गहरी‍ठे स‍लगी. भारत‍सरकार‍ने‍भी‍नस्थनत‍से‍ननबटने‍के ‍नलए‍कानन‍ू बनाए, जैसे‍–

1. राजद्रोह‍सभाओ‍ं को‍रोकने‍अनधननयम‍1908
2. नवस्फोटक‍पदाथा‍काननू ‍–‍1908
3. समाचार‍पत्र‍(अपराध‍प्रोत्साहन)‍अनधननयम‍–‍1910
4. भारत‍रक्षा‍अनधननयम‍–‍1915

इस‍प्रकार‍1919-20 तक‍सरकार‍ने‍क्रानं तकारी‍कारा वाइयों‍को‍ननयनं त्रत‍कर‍नलया.

क्रांनतकारी‍आन्दोलन‍का‍दसू रा‍चरण
असहयोग‍आंदोलन‍के ‍असफल‍होने‍से‍क्रांनतकाररयों‍में‍पनु ः‍उग्रता‍आयी.‍बंगाल‍में‍परु ानी‍अनशु ीलन‍तथा‍यगु ांतर‍सनमनतयां‍पनु ः‍
जाग‍उठीं‍तथा‍उत्तरी‍भारत‍के ‍लगभग‍सभी‍प्रमुख‍नगरों‍में‍क्रांनतकारी‍संगठन‍बन‍गये.‍इस‍काल‍की‍सबसे‍बड़ी‍नवशेर्ता‍यह‍है‍नक‍
इस‍समय‍यह‍समझा‍गया‍नक‍एक‍अनखल‍भारतीय‍सगठं न‍होने‍तथा‍अनधक‍उत्तम‍तालमेल‍होने‍से‍अच्छा‍पररणाम‍ननकल‍सकता‍
है.‍अतएव‍समस्त‍क्रांनतकारी‍दलों‍का‍अक्टूबर‍1924 में‍कानपरु ‍में‍एक‍सम्मेलन‍बल ु ाया‍गया, नजसमें‍सनचन्द्र‍नाथ‍सान्याल,
जगदीश‍चन्द्र‍चटजी‍तथा‍राम‍प्रसाद‍नबनस्मल‍जैसे‍परु ाने‍क्रांनतकारी र्था भगर् धसंह, सुखदेव, भगवर्ी चरण वोहरा र्था
चन्िशेखर आजाद एवं राजगरुु जैसे‍नये‍क्रानं तकारी‍ने‍भाग‍नलया.‍इस‍अनखल‍भारतीय‍सम्मेलन‍के ‍पररणामस्वरूप‍‘भारर्
गणर्ंि सधमधर् या सेना’ (Hindustan Republican Association or Amry) का‍जन्म‍
हुआ.‍इसकी‍शाखाएं‍नबहार, य.ू पी., नदल्ली, पंजाब, मद्रास‍आनद‍कई‍जगहों‍पर‍स्थानपत‍की‍गई.‍इस‍दल‍कें ‍तीन‍प्रमुख‍
आदशा‍ननम्न‍हैं‍–

1. भारतीय‍जनता‍में‍गांधीजी‍की‍अनहसं ावाद‍की‍नीनतयों‍की‍ननरथाकता‍के ‍प्रनत‍जागृनत‍उत्पन्न‍करना.


2. पणू ा‍स्वतत्रं ता‍की‍प्रानप्त‍के ‍नलए‍प्रत्यक्ष‍कायावाही‍तथा‍लोगों‍को‍क्रानं त‍के ‍नलए‍तैयार‍करना.
3. अंग्रेजी‍साम्राज्यवाद‍के ‍स्थान‍पर‍समाजवादी‍नवचारधारा‍से‍प्रेररत‍भारत‍में‍संघीय‍गणतंत्रा‍की‍स्थापना‍करना.

अपने उद्देश्यों‍की‍पनू ता‍के ‍नलए‍सस्ं था‍ने‍हनथयार‍बनाने‍और‍सरकारी‍खजाने‍लटू ने‍की‍भी‍योजना‍बनायी.‍सस्ं था‍का‍प्रथम‍


महत्त्वपणू ा‍काया काकोरी की िेन िकै र्ी थी.‍इस‍ट्रेन‍िारा‍अंग्रेजी‍खजाना‍ले‍जाया‍जा‍रहा‍था.‍क्रांनतकाररयों‍ने‍ट्रेन‍पर‍आक्रमण‍
कर‍उसे‍लटू ‍नलया, परंत‍ु वे‍जल्द‍ही‍पकड़े‍गये.‍उनपर‍‘काकोरी र्ि्यंि’ का‍मकुदमा‍चलाकर‍राम‍प्रसाद‍नबनस्मल‍और‍
अशफाक‍उल्ला‍सनहत‍चार‍लोगों‍को‍1925 में‍फााँसी‍पर‍चढ़ा‍नदया‍गया.‍1928 ई.‍में‍चन्द्रशेखर‍आजाद‍आनद‍िारा‍
‘धहन्दुस्र्ान ररपधब्लकन एसोधसएशन’ का‍नाम‍बदलकर‍‘धहन्दुस्र्ान सोशधलस्ट ररपधब्लकन एसोधससएशन’ कर‍नदया‍
गया.‍1928 में‍ही‍भगत‍नसंह, चन्द्रशेखर‍और‍राजगरुु ‍ने‍लाहौर‍के ‍सहायक‍पनु लस कप्तान सांिसत की‍हत्या‍कर‍दी.‍
उल्लेखनीय‍है‍नक साइमन धवरोिी प्रदशान‍के ‍समय‍साडं सा‍के ‍िारा‍ही‍लाठी‍चलवायी‍गयी‍थी‍नजसमें‍लाजपत‍राय‍को‍चोट‍
लगी‍और‍उनकी‍मृत्य‍ु हो‍गयी‍थी.

अप्रैल‍1929 में भगर् धसहं और बटुकेश्वर दत्त ने‍नदल्ली‍में‍के न्द्रीय‍नवधान‍सभा‍में‍बम‍फें का, नजसका‍उद्देश्य‍था‍‘बहरी‍
सरकार‍को‍आवाज‍सनु ाना’.‍बम‍फें कने‍के ‍बाद‍दोनों‍ने‍ही‍अपनी‍नगरफ्तारी भी‍दी.‍1930 में सूयतसेन ने‍चटगांव‍के ‍
शिागार‍पर‍आक्रमण‍कर‍अनेक‍अंग्रेज‍अनधकाररयों‍की‍हत्या‍कर‍दी.‍इस‍अनभयान‍में‍मनहलाओ‍ं ने‍भी‍नहस्सा‍नलया.‍सयू ासेन‍ने‍
चटगांव‍में‍ही‍अपने‍आप‍को‍प्रांतीय‍स्वतंत्रा‍भारत‍सरकार‍का‍प्रधान‍भी‍घोनर्त‍नकया.‍सरकार‍ने‍भी‍अपना‍दमन-चक्र‍चलाया.‍
‘लाहौर र्ि्यिं ’ में‍फंसाकर‍भगत‍नसहं , राजगरुु ‍और‍सख ु देव‍को‍23 माचा, 1931 को‍फााँसी‍पर‍लटका‍नदया‍गया.

चन्िशेखर आजाद भी‍फरवरी‍1931 में‍ही‍इलाहाबाद‍के ‍अल्फ्े ड‍पाका ‍में‍एक‍पनु लस‍मठु भेड़‍में‍मारे ‍गये.‍सयू ा‍सेन को‍
1933 ई.‍में‍फााँसी‍पर‍चढ़ा‍नदया‍गया.‍इसी‍बीच‍जेलों‍की‍दव्ु यावस्था‍के ‍नवरोध‍में‍जतीन‍दास‍ने‍63 नदनों‍की‍आमरण‍
अनशन‍के ‍पश्चात‍् अपने‍प्राण‍त्याग‍नदये.‍इस‍प्रकार 1935 के भारर् सरकार अधिधनयम के ‍पाररत‍होने‍पर‍क्रांनतकारी‍
गनतनवनधयों‍में‍कुछ‍ढील‍आयी‍और‍1939 तक‍शांनत‍बनी‍रही.‍परन्त‍ु जब‍अंग्रेजी‍सरकार‍ने‍भारतीय‍जनता‍की‍अनमु नत‍के ‍
नबना‍भारत‍को‍नितीय‍नवश्व‍यर्द्ु ‍में‍धके ल‍नदया‍तो‍पनु ः‍अवस्था‍नबगड़ती‍चली‍गयी. धक्रप्स धमशन की‍असफलता‍तथा‍
कांग्रेस िारा ‘भारर् छोड़ो’ प्रस्र्ाव को‍पाररत‍करने‍एवं‍गांधीजी‍और‍उनके ‍सहयोनगयों‍की‍नगरफ्तारी‍ने‍पनु ः‍क्रानन्तकाररयों‍
को‍अपनी‍गनतनवनधयााँ‍आरंभ‍करने‍पर‍बाध्य‍कर‍नदया.‍इस‍आन्दोलन‍के ‍मख्ु य‍पात्र‍सभु ार्चन्द्र‍बोस‍एवं‍जय‍प्रकाश‍नारायण‍थे.‍
जयप्रकाश‍नारायण‍तथा‍इनके ‍सहयोनगयों‍ने‍आतं ररक‍तोड़-फोड़‍की‍नीनत‍अपनायी‍तथा‍सभु ार्‍चन्द्र‍बोस‍ने‍देश‍के ‍बाहर‍जाकर‍
जमानी‍तथा‍जापान‍की‍सहायता‍से‍भारतीय‍राष्ट्रीय‍सेना‍(Indian National Army or INA) का‍
गठन‍कर‍भारत‍पर‍आक्रमण‍करने‍का‍फै सला‍नकया.

क्रांनतकारी‍आन्दोलन‍की‍असफलता
क्रानन्तकारी‍आन्दोलन‍की‍असफलता‍के ‍कारण:‍क्रांनतकारी‍आन्दोलन‍की‍असफलता‍के ‍ननम्ननलनखत‍मख्ु य‍कारण‍थे‍:-

के न्िीय संगठन का अभाव


क्रानं तकाररयों‍का‍कोई‍के न्द्रीय‍सगं ठन‍नहीं‍था, जो‍नवनभन्न‍प्रातं ों में‍क्रानं तकारी‍कायों‍का‍सगं ठन‍और‍समन्वय‍कर‍सके .‍सगं ठन‍
के ‍अभाव‍में‍नवनभन्न‍प्रांतों‍के ‍क्रांनतकारी‍नेताओ‍ं में‍परस्पर‍सहयोग‍तथा‍समन्वय‍नहीं‍था.

मध्यम वगत के धशधक्षर् लोगों र्क ही सीधमर्


क्रानन्तकारी‍आन्दोलन‍लोकनप्रय‍नहीं‍बन‍सका.‍यह‍के वल‍मध्यम‍वगा‍के ‍नशनक्षत‍नवयवु कों‍तक‍ही‍सीनमत‍रहा.

अंग्रेजी सरकार का दमन चक्र


क्रांनतकारी‍आन्दोलन‍की‍नवफलता‍का‍मख्ु य‍कारण‍अंग्रेजी‍सरकार‍की‍दमन‍नीनत‍थी.‍सरकार‍तरह-तरह‍के ‍काननू ‍बनाकर‍
क्रानं तकारी‍आन्दोलन‍को‍नननष्क्रय‍करने‍में‍सफल‍रही.‍अनके ‍लोगों‍को‍प्राणदडं, कालापानी, देश‍ननवाासन‍और‍कठोर‍शारीररक‍
यातनाएं‍दी‍गयीं, नजसने‍जनता‍को‍आतंनकत‍और‍भयभीत‍कर‍नदया.

अस्त्र-शस्त्र का अभाव
यद्यनप‍क्रानं तकाररयों‍में‍साहस‍और‍उत्साह‍की‍कमी‍नहीं‍थी, नफर‍भी‍उन्होंने‍जो‍चोरी-नछपे‍हनथयार‍इकट्ठा‍नकये‍वे‍निनटश‍सरकार‍
से‍लड़ने‍के ‍नलए‍अपयााप्त‍थे.

महात्मा गांिी का भारर्ीय राजनीधर् र्था जनर्ा पर प्रभाव


महात्मा‍गांधी‍का‍भारतीय‍राजनीनत‍में‍प्रवेश‍क्रांनतकारी‍आन्दोलन‍के ‍नलए‍बहुत‍घातक‍नसर्द्‍हुआ.‍गांधीजी‍ने‍स्वतंत्रता‍की‍प्रानप्त‍
के ‍नलए‍शानन्त‍और‍असहयोग‍का‍रास्ता‍अपनाया‍जो‍सत्य‍और‍अनं हसा‍जैसे‍ऊाँ चे‍नसर्द्ातं ों‍पर‍आधाररत‍था.‍ये‍नसर्द्ातं ‍भारतीयों‍
के ‍नलए‍सरलता‍से‍ग्राह्य‍नसर्द्‍हुए.‍इसके ‍अनतररि‍भारतीय‍जनमानस‍दनक्षण‍अफ्ीका‍में‍महात्मा‍गांधी‍की‍सफलता‍देख‍चक ु ा‍था.‍
अतः‍महात्मा‍गांधी‍के ‍आन्दोलन‍के ‍समक्ष‍क्रांनतकारी‍आन्दोलन‍नटक‍नहीं‍सका.

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