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धौलागिरी dhaulagiri prakaran
धौलागिरी dhaulagiri prakaran
“हे देवी सरस्वती ! अपनी अंतर्दृष्टि से देख कर, अब यह भी बताइये कि, इस बालक को, महादेव ने क्यों बुलाया है ?”
माता सरस्वती ने उत्तर दिया :
“हे जगत् जननी माँ ! आपके प्रश्न के उत्तर हेतु ! अंतर्दृष्टि से देखने की, कोई आवश्यकता ही नहीं है. क्योंकि हमें यह पता है ! तथा अभी आपसे, चर्चा भी
तो, हो रही थी कि……………. बाल्य-अवस्था वाला यह बालक ! अपने छठे चरण में है. तथा इसकी, छठे चरण की परीक्षायें, आरंभ भी हो गयी हैं.
इसलिये तो, आज महादेव ने, इसको बुलाया है. ताकि यह ! आठवें चरण के धर्मकाज वाले, ग्रह का चुनाव कर सके .”
माता पार्वती ! गंभीर स्वर में, माता लक्ष्मी से बोलीं :
“देवी लक्ष्मी ! अब आप, अपनी स्वरूपा ! भू-देवी को बुलाइये. उनकी भी इच्छा जानना ! अत्यंत आवश्यक है. क्योंकि इस पृथ्वी ग्रह का दायित्व तो,
उन्हीं के पास है. अतः उनकी इच्छा का सम्मान करना, सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. अंततोगत्वा अंतिम निर्णय तो वहीं करेंगी. इसलिये, अब उनके निर्णय के
पश्चात् ही, इस गुप्त-चर्चा को, आगे बढ़ाना ! उचित होगा.”
माता लक्ष्मी ने कहा :
“जैसी आज्ञा माँ !”
इतना बोल कर, माता लक्ष्मी ने, क्षणभर के लिये, अपनी आँखें मूँदी. तत्पश्चात् ! आँख खोलते हुये बोलीं :
“बस कु छ क्षण माँ !”
तभी उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के के कानों में, माता भू-देवी के आगमन की, पदचाप सुनायी पड़ी. माता भू-देवी ने, सर्वप्रथम माँ पार्वती का, चरण-स्पर्श
किया. उसके पश्चात् माता सरस्वती एवं उन्होंने ! एक-दूसरे का अभिवादन किया. तदोपरांत माता भू-देवी ! माता लक्ष्मी के साथ, उन्हीं के आसन पर,
उनके बगल में, बैठ गयीं. उनके आसन ग्रहण करते ही, वहाँ उपस्थित सभी नौ महादेव-दूत माता-सेविकाओं ने, उन्हें प्रणाम किया. सबसे अंत में, उस
लड़के ने, माता भू-देवी से आशीर्वाद लिया.
इन सब घटनाक्रमों के बाद ! माता पार्वती ने, माँ भूदेवी से पूछा :
“हे देवी ! आपको आह्वान करके , बुलाने का उद्देश्य तो, आपको स्पष्ट ही होगा.”
माँ भू-देवी ने उत्तर दिया :
“जी माता ! मुझे ज्ञात है. अब वह शुभ-समय ! आने ही वाला है. जब मुझे ! मेरे द्वारा ३००० वर्ष पूर्व ! महादेव एवं आपसे, की गयी प्रार्थना का, सुफल
प्राप्त होगा. विधि-विधान के अनुरूप ! महादेव की आज्ञा से, उनके गण वीरभद्र ! विध्वंस काज को, क्रियान्वयन करने हेतु ! संपूर्ण आवश्यक तैयारियाँ ! कर
भी चुके हैं.”
माता भू-देवी ने आगे कहा :
“मेरी इस धरा से, संपूर्ण मानवों का, कै से संहार करना है ? विध्वंस का क्या प्रारूप होगा ? अन्य प्राणियों में से, कै से अधिकाधिक को, बचा लिया जाये ?
इस प्रलय को, कै से कार्यान्वित किया जाये कि, एक भी मनुष्य ! मेरी इस धरा पर, शेष ना बचे. इन सभी बिंदुओं पर, मैं एवं वीरभद्र ! कई चरणों की, चर्चा
कर चुके हैं. अब तो हम दोनों ! महादेव से अंतिम आदेश की प्राप्ति हेतु ! प्रतीक्षारत हैं.”
माँ भू-देवी बोलती रहीं :
“मुझे इस बात से, अत्यंत प्रसन्नता है कि, महादेव की कृ पा से, मेरी धरा ! पापियों-अधर्मियों-कु कर्मियों से, मुक्त होने जा रही है. महादेव द्वारा सर्वनाश की
आज्ञा प्राप्त होते ही……………….. मेरी यह धरा ! दुष्टों से बहुतायत वाली यह धरा ! पुनः पवित्र होगी. मुझे अधर्मियों से, मुक्ति मिलेगी. पुनः मेरी इस
वाली धरा पर, नवसृष्टि का निर्माण होगा…………..”
तभी माता पार्वती ने, भूदेवी से कहा :
“परंतु भूदेवी ! मैंने आपको, अभी किसी और प्रयोजन से, यहाँ बुलाया है. इस प्रकार गुप्त रूप से, आपको यहाँ बुलाने का, मेरा उद्देश्य ! बिल्कु ल विपरीत
है. मैं चाहती हूँ कि, आप अपनी इस पृथ्वी वाली धरा पर, एक बार करुणा दिखायें.”
माता भूदेवी बोलीं :
“हे जगत्-जननी माता ! मुझे भी अपनी सभी धराओं की भाँति, इस पृथ्वी धरा से भी, अपार स्नेह है. परंतु इस धरा पर, अब अति हो चुकी है. हे माता !
आप स्वयं बतायें………………… मेरे दायित्व वाले, किस ग्रह पर, इतने अत्यधिक अनुपात में, कु कर्मी-अधर्मी हैं ?”
माता पार्वती बोलीं :
“हे देवी ! आपका रुष्ट होना, सर्वथा उचित है. परंतु इस धरा के , सभी मनुष्य भी तो, आपके ही बच्चे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि…………….. आपको उन्हें
सुधरने का, एक अवसर देना चाहिये.”
माता भू-देवी, हँसती हुयी बोलीं :
“हे माता ! आपको ऐसी आशा है कि……………. वह सब सुधरेंगे ?”
माता पार्वती बोलीं :
“देवी ! कु छ तो सुधरेंगे ही. सभी का सुधरना ! आवश्यक भी तो नहीं है. सभी सुधर गये तो, कु कर्म का भंडारण कर के , घूम रही आत्माओं को, कहाँ भेजा
जायेगा ?”
माता भूदेवी गंभीर स्वर में बोलीं :
“परंतु माता ! ऐसा भी तो नहीं है कि, यह विध्वंस ! के वल मेरी इच्छा से हो रहा है. अगर ऐसा होता तो, मैं यह प्रलय ! ३००० वर्ष पूर्व ही, ला चुकी होती.
अभी जो भी हो रहा है. वह विधि-विधान के , अनुरूप हो रहा है. मेरी इस धरा से, छठा चरण उत्तीर्ण करके , मेरी इसी धरा पर, अंतिम महादेव-दूत बने,
आर्यम्बापुत्र के बाद………………….. दूसरे ग्रह पर छठा चरण उत्तीर्ण करके , आठवें चरण के धर्मकाज हेतु ! मेरी इस धरा का चुनाव करने वाली, सभी
छः आत्माओं………….. सिद्धार्थ, वर्धमान, नागराज (म.अ.बा.), क्रिसना, महामद एवं एकोंकार ! सभी ने, इस धरा के मनुष्यों को, सुधरने का अवसर,
दिया तो था. परंतु उस अवसर का, दुःखद परिणाम ! हमने देखे ही हैं.”
माता भूदेवी ! और भी गंभीर स्वर में आगे बोलीं :
“हे माता ! ऐसा माना जाता है कि, किसी भी ग्रह के मानवों की, निर्मित हो चुकी मूलप्रवृति को, अगर जानना हो तो, उस ग्रह पर, अपना छठा चरण बिताये,
किसी आत्मा से, पूछनी चाहिये. क्योंकि उसका अनुभव ! सर्वाधिक सही होता है. इसी सत्य के परिदृश्य में देखें तो, मेरी इस धरा से, छठा चरण उत्तीर्ण
करके , मेरी इसी धरा पर, अंतिम महादेव-दूत बने, आर्यम्बापुत्र के बाद………………….. मेरी इस धरा से, छठा चरण उत्तीर्ण करने वाली, कु ल और
आठ आत्मायें हुयीं.”
माँ भूदेवी ने आगे कहा :
“उन सभी आठों आत्माओं…………… चिहिरो, बद्री, कै होंग, लक्षाकी, आर्थर, मृदा, रशीदा एवं मुके श ! किसी ने भी, अपने आठवें चरण के , धर्मकाज
हेतु ! इस धरा का चुनाव नहीं किया. क्यों नहीं किया ? क्योंकि वह सभी इस धरा के , अधर्मियों से, भलीभाँति परिचित थे.”
उसके बाद माता भूदेवी ! अपने आसन से खड़ी हुयीं. तथा उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के के , सिर पर हाथ रख कर बोलीं :
“उन आठों के पश्चात् ! यह बालक ! अपने पिछले जन्म ! यानि सुभाष वाले जन्म में, प्रथम बार छठे चरण में, प्रवेश किया था. विधि-विधान के अनुसार !
आज से ७५ वर्ष पूर्व (१९२३) में भी, इसे महादेव ने, यहाँ बुलाया था. ताकि यह अपने, आठवें चरण के धर्मकाज हेतु ! अपनी इच्छानुसार ! उपयुक्त ग्रह
का, चुनाव कर सके . तब इसने, इस पृथ्वी ग्रह का, चुनाव करने के स्थान पर, शिवफिजनागड ग्रह का चुनाव, क्यों किया था ?”
माता भूदेवी बोलती रहीं :
“क्योंकि उन आठों की भाँति ! यह भी, इस धरा के , अधर्मियों से, भलीभाँति परिचित था. यह अलग बात है कि, इसके प्रयासों में, कु छ कमी रह गयी.
जिसके फलस्वरूप ! यह अपना छठा चरण ! उत्तीर्ण नहीं कर पाया. नहीं तो आज से, ५३ वर्ष पूर्व (१९४५) में भी, मैं और वीरभद्र ! संहार करने हेतु !
अपनी तैयारियाँ पूर्ण कर चुके थे. *यह उत्तीर्ण कर ही जायेगा.* ऐसा सोच कर, हमने महादेव से, अग्रिम अनुमति ले कर, उसके भी छः वर्ष पूर्व (१९३९)
से ही, उस संहार की, आधारशिला भी रखवा दी थी.”
माता भू-देवी ! पुनः अपने आसन पर, विराजती हुयी, आगे बोलीं :
“अब यह बालक ! अपना अगला जन्म ले कर, आज पुनः यहाँ आया है. इससे आज भी पूछिये ? क्या यह अपने, आठवें चरण के धर्मकाज हेतु ! क्या इस
पृथ्वी ग्रह का, चुनाव करेगा ?”
इतना बोलने के पश्चात् ! माता भूदेवी ने, उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के को, संबोधित करके , उससे पूछीं :
“राके श ! तुम माता पार्वती को बताओ कि, अभी से कु छ समय पश्चात् ! जब महादेव तुमसे, आठवें चरण के धर्मकाज हेतु ! किसी एक ग्रह का नाम पूछेंगे.
तब तुम किस ग्रह का, चुनाव करोगे ?”
उस लड़के के मस्तिष्क में, महादेव-गण संपेरा बाबा से, हुयी वार्ता की स्मृति ! अभी बिल्कु ल ताजी थी. अतः वह तपाक से बोला :
“माता ! मैं पृथ्वी ग्रह छोड़कर, उपलब्ध विकल्पों में से, किसी भी ग्रह का, चुनाव कर लूँगा. पृथ्वी गृह का चुनाव ! कदापि नहीं करूँ गा.”
माता भूदेवी बोलीं :
“……………….एवं जैसे ही, यह अगले २२ वर्षों (२०२०) में, अपना छठा चरण उत्तीर्ण कर लेगा. वैसे ही, मैं एवं वीरभद्र ! विध्वंस-काज आरंभ
कर देंगे. हाँ अगर यह ! अपने इस जन्म में भी, छठा चरण उत्तीर्ण नहीं कर पाता है तो, यह प्रलय कु छ और समय हेतु ! टल जायेगा. परन्तु इसके पिछले ५
वर्षों की, गति देख कर, मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि, इस बार यह नहीं चूके गा.”
माता पार्वती बोलीं :
“आप अपना क्रोध शांत कीजिये भूदेवी ! और ऐसी कोई युक्ति बताइये ! जिससे कि…………….. इस पृथ्वी ग्रह का, प्रलय टल जाये. एवं इस धरा के
मानवों को, एक और अंतिम अवसर मिल जाये.”
माता भू-देवी बोलीं :
“अब इसका तो, एक ही उपाय है कि……………. यह बालक राके श ! अपनी छठे चरण में ही, बार-बार अनुत्तीर्ण होता रहे. परंतु इसमें, हम क्या कर
सकते हैं ? यह तो पूर्णरूपेण ! इसके स्वयं के , कर्मों पर निर्भर करेगा.”
माता पार्वती बोलीं :
“हे देवी ! मेरे पास एक और भी युक्ति है. और वह पूर्ण रूप से, विधि-विधान सम्मत है.”
तीनों देवियों ! माता लक्ष्मी, माँ भूदेवी एवं माता सरस्वती ने, एक साथ पूछा :
“क्या युक्ति है माँ ?”
माता पार्वती मुस्कु राती हुयी बोलीं :
“अगर यह बालक राके श ! अपने आठवें चरण के , धर्मकाज हेतु ! आज महादेव के समक्ष ! किसी अन्य ग्रह के स्थान पर, इसी पृथ्वी ग्रह का, चुनाव कर
लेता है. तथा अपने इसी जन्म के , निर्धारित २७ वर्ष की अवधि में से, बचे हुये २२ वर्षों में, अपना छठा चरण भी, उत्तीर्ण कर लेता है. तब विधि-विधान के
अनुसार………….. इसी ग्रह पर, अपना छठा चरण उत्तीर्ण किये हुये, क्रमबद्धता से, कु ल नौ आत्माओं में से, *जिसमें से कम-से-कम, किसी एक के द्वारा
भी,* अपने आठवें चरण वाले, धर्मकाज को करने के लिये, इसी ग्रह का, चुनाव करना था. यह पहला नियम पूर्ण हो जायेगा. तत्पश्चात् ! इसके द्वारा किये
गये धर्म-काज से, अगर वह १:९९ का अनुपात ! किं चित् मात्र भी, सही हो जाता है. तब स्वतः ही, दूसरा नियम भी पूर्ण हो जायेगा. इस प्रकार आर्यम्बापुत्र
के बाद ! यह उसी की भाँति, इसी पृथ्वी ग्रह पर, छठा चरण उत्तीर्ण करके , इसी पृथ्वी ग्रह पर ही, अपने आठवें चरण का, धर्मकाज करने वाला, महादेव-दूत
बन जायेगा.”
इसके बाद माता ने, तीनों देवियों से पूछा :
“अब आप तीनों, मुझे यह बतायें कि…………. इस प्रकार ! कौन से विधि-विधान की, अवहेलना होगी.”
माता भूदेवी बोलीं :
“हे कृ पालु जगत्-जननी माता ! आप सत्य कह रही हैं. इस प्रकार से, किसी भी विधि-विधान की, अवहेलना नहीं होगी. तथा इस धरा से, प्रलय भी टल
जायेगा. परंतु यह बालक ! अभी आपके समक्ष ! यह तो बता ही चुका है कि……………… यह पृथ्वी ग्रह छोड़कर, उपलब्ध विकल्पों में से, किसी भी ग्रह
का, चुनाव कर लेगा. परंतु पृथ्वी ग्रह का चुनाव ! कदापि नहीं करेगा.”
माता पार्वती हँसती हुयी बोलीं :
“मेरे समक्ष इसने क्या बोला है ? इससे कोई अंतर नहीं पड़ता. मेरे नाथ के समक्ष ! यह कौन सा ग्रह चुनता है. वह महत्वपूर्ण है. क्योंकि यहाँ हो रही, हमारी
गुप्त-वार्ता ! मेरे नाथ को नहीं दिख रही है. मैंने जानबूझकर ! ऐसा प्रावधान किया हुआ है. अब आप सब ! मुझे यह बतायें कि………………… इस
बालक के साथ, अभी ऐसा क्या किया जाये. ताकि यह महादेव के समक्ष ! अपने आठवें चरण के काज हेतु ! इस पृथ्वी ग्रह का ही चुनाव करे.”
उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के को, जैसे ही पूरी बात समझ आयी. वैसे ही उसने, माता पार्वती के चरणों में, अपना सिर लगा कर, रोते हुये, उनसे विनती
करने लगा :
“माता ! आप कृ पा करके , ऐसा मत कीजिये. मुझे अपने आठवें चरण का धर्मकाज ! यहाँ नहीं करना है माँ !……….”
क्रमशः
#धौलागिरी_प्रकरण 14D :~ ऐसे ही, अनेकों महादेव-दूतों के बारे में, बताने के पश्चात् ! महादेव दूत देवी आरात्रिका ने, उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के
से कहा :
“राके श ! तुम्हें आये हुये, इतना समय हो गया है. तुम अपने बाकी के प्रश्न ! बाद में पूछना. अभी चलो ! तुम कु छ भोजन कर लो.”
उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के ने कहा :
“हे देवी ! मैंने तो अभी कु छ ही समय पूर्व ! सियाराम खंड में, भोजन करके आया हूँ.”
महादेव दूत देवी आरात्रिका बोलीं :
“तो यहाँ दूत-खंड में भी कर लो. एवं अभी इच्छा नहीं हो तो, जाओ ! इस उत्सव में, घूमो ! देखो ! समझो ! कु छ नहीं समझ में आये तो, किसी भी
महादेव-दूत को, अपना परिचय दे कर, अपना प्रश्न पूछ लो. तथा अगर विश्राम करने की इच्छा हो तो, वहाँ चले जाना. वहाँ तुम्हारे विश्राम का, स्थान
निर्धारित है. वहाँ जाने पर ! तुम्हें ! तुम्हारा कक्ष ! पता चल जायेगा.”
इतना निर्देश पा कर, अब वह ग्यारह-बारह वर्षीय लड़का ! धौलागिरी पर्वत स्थित ! शिवशक्ति जगत स्थल के , दूत-खंड वाले, उस बड़े से प्रांगण में,
औचक्का सा ! चारों ओर विचरण करने लगा. सभी प्रकार के , सैकड़ों जाने-पहचाने भोजन ! तथा हजारों अनजाने भोजन ! की वहाँ भरमार थी. खाने वाले
भी, महादेव-दूत ही थे. खिलाने-परोसने वाले भी, महादेव-दूत ही थे. और बनाने वाले भी, महादेव-दूत ही थे.
अलग-अलग स्थानों पर, कु छ-कु छ संख्या के समूह में, महादेव-दूत खड़े या बैठ कर, बातें कर रहे थे. कई समूहों की बातों को सुन कर, उसे ऐसा लगा
कि……… वहाँ जो अधिकतर चर्चायें चल रही थी. वह चर्चा थी. किसी मूलश्रेणी वाले आत्मा के , परीक्षाओं के मध्य ! की गयी सहायता के दौरान ! घटित
रोमांचित घटनाओं की.
एक स्थान पर ! सीमित संख्या में, कु छ महादेव-दूत एकत्र हो कर, ऐसे बातें कर रहे थे. जैसे वह सभी किसी ! पर्दे या स्क्रीन पर, एक ही दृश्य देख रहे हों.
परंतु वहाँ ! ना ही कोई स्क्रीन था ! ना ही ऐसा कोई यंत्र. वह लड़का ! विस्मित सा खड़ा हो कर ! अभी कु छ समझने का, प्रयत्न कर ही रहा था
कि…………..
एक थोड़ा अलग मुखाकृ ति के , महादेव-दूत ने, उससे पूछा :
“मनोज ! क्या मैं तुम्हारी भाषा में, यह वाक्य बोला हूँ ?”
उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के ने उत्तर दिया :
“जी महाराज !”
उन्होंने पूछा :
“क्या हम सभी जो देख रहें हैं. वह तुम देखना चाहोगे ?”
लड़के ने पूछा :
“आप सब क्या देख रहे हैं ?”
उन्होंने कहा :
“हम सब ! सुभद्र विस्तार क्षेत्र के , अग्रिच्खन्ड के , आकाशगंगा वृत्मवर्झ के , सौरंभ तारे के , सबसे बड़े ग्रह जार्थम पर ! संपूर्ण शुद्ध नव-जीवन आरंभ करने
हेतु ! हो रहे प्रलय ! संहार ! को देख रहे हैं. क्या तुम्हें भी देखना है ?”
उस लड़के ने, उत्सुकता से बोला :
“जी महाराज ! अवश्य देखना है.”
उन्होंने कहा :
“कु छ क्षण के लिये ! आँखें बंद करो.”
लड़के ने, महादेव-दूत के आदेशों का, पालन करते हुये, आँखें बंद कर लिया. लेकिन उसे कु छ भी नहीं दिखा. हाँ ! महादेव-दूत का स्वर ! अवश्य सुनायी
दिया. जो बोल रहे थे :
“अभी आँखें मत खोलना. पहले मेरी बात ! ध्यानपूर्वक सुनो ! और समझो !”
“अब तुम जैसे ही, आँखें खोलोगे ! तुम्हें वहाँ का ! विध्वंस-दृश्य दिखने लगेगा. तुम्हें अगर देखना बंद करना हो तो, एक बार पूरी तरह से, आँखें बंद कर
के , पुनः खोल लेना. दिखना बंद हो जायेगा. पुनः देखना हो तो, यहीं प्रक्रिया दोहराना. और जब पूर्णतः देखना बंद करना हो तो, मुझे बताना. मैं वह
सिद्धियाँ वापिस ले लूँगा. नहीं तो अर्धरात्रि के बाद ! वैसे भी दिखना बंद हो जायेगा. क्योंकि मैंने ! कु छ सीमित समय के लिये ही, यह सुविधा ! तुम्हें दी है.
अब तुम आँखें खोल सकते हो.”
लड़के ने आँखें खोली. और चमत्कार हो गया. उसे अपने चारों ओर ! पृथ्वी नुमा ! किसी ग्रह का दृश्य दिखने लगा. तथा उसी ग्रह के , दिख रहे दृश्य से
संबंधित ! ध्वनि भी, उसे सुनायी देने लगी. वहाँ के लोग भी, पृथ्वी ग्रह से थोड़े ही अलग थे. पेड़ पौधे व अन्य चीजें भी, पृथ्वी जैसी ही थी. परंतु ऐसा
प्रतीत हो रहा था. जैसे वह ग्रह ! पृथ्वी से भी पिछड़ा हुआ था. परंतु वहाँ तो, प्रलय या विध्वंस जैसा ! कु छ भी नहीं था.
उस लड़के ने, एक बार आँखों को, पूर्णतः बंद कर के , वापिस से खोला. अब उसे दूत-खंड का, वर्तमान दृश्य दिखने ! व सुनायी देने लगा. उसने अपने
पास खड़े ! महादेव-दूत से पूछा :
“महाराज ! वहाँ तो कोई भी, विध्वंश नहीं हो रहा है. सभी कु छ समान्य सा है. अगर कु छ असामान्य है तो, वह है वहाँ का पिछड़ापन ! वह ग्रह तो, पृथ्वी
से भी पिछड़ा हुआ है.”
महादेव-दूत बोले :
“अभी प्रलय शुरू नहीं हुआ है. होने वाला है. और रही बात ! उस ग्रह के पिछड़ेपन की. तो जिस भी ग्रह पर ! धर्म की सही व्याख्या ! यानि धर्म का अर्थ
सदकर्म छोड़कर, कु छ और लगाया जायेगा. उसका पिछड़ना तय है. यह बात सदैव ध्यान रखो. कर्म सबसे महत्वपूर्ण है.”
वह लड़का बोला :
“जब इतनी बड़ी घटना ! घटने वाली है तो, आप कु छ ही महादेव-दूत ! उसे क्यों देख रहे हैं ? बाकि के महादेव-दूत ! क्यों नहीं देख रहे हैं ?”
महादेव-दूत बोले :
“इसके कई उत्तर हैं. तुम्हें कै से पता ! कौन देख रहा है ! कौन नहीं देख रहा है ? दूसरी बात ! एक साथ कई-कई ग्रहों पर, प्रलय चल रहे होते हैं. जिसको
जहाँ का देखना होगा. वहाँ का देख रहा है. जिसको कहीं का नहीं देखना है. वह कहीं का भी, नहीं देख रहा है. हो सकता है ! किसी को प्रलय नहीं देख कर
के , नव-सृजन देखना हो, तो वह ! सृजन देख रहा होगा.”
“किसी को एक ग्रह का, विध्वंस नहीं देख करके , ग्रहों के समूह का ही, विध्वंस देखना हो. यानि किसी तारे ! एवं उसके संग-संग ! उसके सभी ग्रहों-
उपग्रहों को, एक साथ समाप्त होते देखना हो. तो वह उसको देख रहा होगा. किसी को सृष्टि का, विस्तार देखना हो तो, वह उसको देख रहा होगा. किसी को
कु छ नहीं देख कर के , के वल यहाँ का, प्रत्यक्ष ही देखना होगा. अतः सभी की अपनी-अपनी इच्छा.
“………….और रही बात ! हमारे इस समूह की. तो हम सभी ! यहाँ एक साथ ! इसलिये एकत्र हैं कि, हम सभी का, उस विध्वंस होने जा रहे ग्रह से,
कभी ना कभी का, कु छ-ना-कु छ संबंध है. अतः हम सभी ! अपने-अपने अनुभव बाँट रहे हैं.”
लड़के ने पूछा :
“संबंध यानि कि, आप सभी का, कोई-ना-कोई जन्म ! वहाँ हुआ होगा ?”
महादेव-दूत ने उत्तर दिया :
“संबंध के वल जन्म लेने से ही, नहीं होता है. उसके कई कारण होते हैं. मोक्ष प्राप्त करने के पश्चात् ! आत्मा को, जन्म लेने की अनिवार्यता ! समाप्त हो
जाती है. परंतु किसी आत्मा को, कहीं जन्म लेने की, इच्छा हुयी तो, वह ले भी सकती है. संबंध और भी कई प्रकार के होते हैं. जैसे मेरा ही ! उस ग्रह पर,
कोई जन्म नहीं हुआ. परंतु मेरा भी, उस ग्रह से काफी गहरा संबंध है.”
उस लड़के ने, कौतुहलता से पूछा :
“फिर कै सा संबंध है ?”
उन्होंने उत्तर दिया :
“मैंने वहाँ पर जन्म ली हुयी, कई मूलश्रेणी के आत्माओं की, उनके परीक्षा में, वहाँ उनकी ! सहायता की है.”
फिर उन्होंने ! पास में ही, किसी और महादेव-दूत को, खाना परोस रहे, एक अन्य महादेव दूत से कहा :
“इधर आओ ! और इस बालक को बताओ ! तुमसे संबंधित किसी ग्रह पर ! प्रलय तो नहीं आने वाला है ?”
वह वाले महादेव-दूत ! खाना परोस कर आये. और बोले :
“अभी से कु छ समय पश्चात् ! मेरे मूलश्रेणी के , चौथे चरण में, जो सत्रह जन्म हुये, उसमें से चौदहवें जन्म में, मेरा जन्म ! जिस जार्थम ग्रह पर हुआ था.
उस ग्रह पर, अभी से कु छ समय पश्चात् ! प्रलय आरंभ होगा. यह वहीं वाला ग्रह है. जिस ग्रह पर ! मेरे परीक्षा क्रमांक…….. ४/१५ वें परीक्षा में, आपने
मेरी सहायता की थी. जिसमें हमने ! उन दुष्कर्मियों के समूह से, उस स्त्री एवं उसकी दोनों बेटियों को, सकु शल बचाया था.”
महादेव-दूत ! उस महादेव-दूत को, संबोधित करके बोले :
“मुझे स्मृति है. मैं तो इस बालक को, समझा रहा था. ठीक है तुम जाओ.”
इसके बाद ! वह महादेव-दूत ! ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के को, संबोधित करके बोले :
“अब ! तुम्हें समझ आया ! कि किसी ग्रह से, संबंध होने के , कई कारण हो सकते हैं.”
लड़के ने बोला :
“जी महाराज !”
और तत्क्षण ही, अगला प्रश्न भी पूछ लिया :
“अच्छा महाराज जी ! अभी आप बता रहे थे कि…….. ग्रहों के समूह का, एक साथ भी, विध्वंस होता है. यानि किसी तारे का, उसके सभी ग्रहों-उपग्रहों
के संग ! एक ही बार में, एक साथ संहार हो सकता है. ऐसा क्यों ? और कब होता है ?”
महादेव-दूत बोले :
“ऐसा बिल्कु ल हो सकता है. होते भी रहता है. जैसे किसी ग्रह के ऊपर ! वर्तमान में मानव-देह धारण करके , जीवन जी रही, यानि निवास कर रही, सभी
आत्माओं के , पाप-पुण्य का, संयुक्त लेखा-जोखा ! उस ग्रह के लिये, मान्य होता है. उसी प्रकार से, किसी तारे के , सभी ग्रहों-उपग्रहों को मिला करके , उस
तारे हेतु भी, संयुक्त लेखा-जोखा मान्य रहता है. और तारा ही क्यों ? यह लेखा-जोखा………….. आकाशगंगा ! खंडों ! एवं विस्तार क्षेत्रों पर भी, मान्य
होता है. बस संपूर्ण समग्र सृष्टि पर, एक साथ मान्य नहीं होता.”
तभी उस जार्थम ग्रह के , चतुर्थ चरण वाले महादेव-दूत ! एक लोटे नुमा पात्र में, बिल्कु ल अमृतमयी गाढ़ा सौंधा दूध ले कर आये. और उस लड़के को, देते
हुये बोले :
“तुम इसको पकड़ो ! और मेरे साथ आओ. हम दोनों वहाँ ! आराम कक्ष में बैठ कर ! संहार देखेंगे. वहाँ कोई मुझसे वरिष्ठ महादेव-दूत नहीं हैं. वहाँ सभी
मुझसे ! बाद वाले महादेव-दूत हैं. अतः मुझे कु छ भोजन चाहिये होगा. तो वहीं माँगा भी लूँगा.”
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