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#धौलागिरी_प्रकरण 8C :~ माता पार्वती ने पूछा :

“हे देवी सरस्वती ! अपनी अंतर्दृष्टि से देख कर, अब यह भी बताइये कि, इस बालक को, महादेव ने क्यों बुलाया है ?”
माता सरस्वती ने उत्तर दिया :
“हे जगत् जननी माँ ! आपके प्रश्न के उत्तर हेतु ! अंतर्दृष्टि से देखने की, कोई आवश्यकता ही नहीं है. क्योंकि हमें यह पता है ! तथा अभी आपसे, चर्चा भी
तो, हो रही थी कि……………. बाल्य-अवस्था वाला यह बालक ! अपने छठे चरण में है. तथा इसकी, छठे चरण की परीक्षायें, आरंभ भी हो गयी हैं.
इसलिये तो, आज महादेव ने, इसको बुलाया है. ताकि यह ! आठवें चरण के धर्मकाज वाले, ग्रह का चुनाव कर सके .”
माता पार्वती ! गंभीर स्वर में, माता लक्ष्मी से बोलीं :
“देवी लक्ष्मी ! अब आप, अपनी स्वरूपा ! भू-देवी को बुलाइये. उनकी भी इच्छा जानना ! अत्यंत आवश्यक है. क्योंकि इस पृथ्वी ग्रह का दायित्व तो,
उन्हीं के पास है. अतः उनकी इच्छा का सम्मान करना, सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. अंततोगत्वा अंतिम निर्णय तो वहीं करेंगी. इसलिये, अब उनके निर्णय के
पश्चात् ही, इस गुप्त-चर्चा को, आगे बढ़ाना ! उचित होगा.”
माता लक्ष्मी ने कहा :
“जैसी आज्ञा माँ !”
इतना बोल कर, माता लक्ष्मी ने, क्षणभर के लिये, अपनी आँखें मूँदी. तत्पश्चात् ! आँख खोलते हुये बोलीं :
“बस कु छ क्षण माँ !”
तभी उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के के कानों में, माता भू-देवी के आगमन की, पदचाप सुनायी पड़ी. माता भू-देवी ने, सर्वप्रथम माँ पार्वती का, चरण-स्पर्श
किया. उसके पश्चात् माता सरस्वती एवं उन्होंने ! एक-दूसरे का अभिवादन किया. तदोपरांत माता भू-देवी ! माता लक्ष्मी के साथ, उन्हीं के आसन पर,
उनके बगल में, बैठ गयीं. उनके आसन ग्रहण करते ही, वहाँ उपस्थित सभी नौ महादेव-दूत माता-सेविकाओं ने, उन्हें प्रणाम किया. सबसे अंत में, उस
लड़के ने, माता भू-देवी से आशीर्वाद लिया.
इन सब घटनाक्रमों के बाद ! माता पार्वती ने, माँ भूदेवी से पूछा :
“हे देवी ! आपको आह्वान करके , बुलाने का उद्देश्य तो, आपको स्पष्ट ही होगा.”
माँ भू-देवी ने उत्तर दिया :
“जी माता ! मुझे ज्ञात है. अब वह शुभ-समय ! आने ही वाला है. जब मुझे ! मेरे द्वारा ३००० वर्ष पूर्व ! महादेव एवं आपसे, की गयी प्रार्थना का, सुफल
प्राप्त होगा. विधि-विधान के अनुरूप ! महादेव की आज्ञा से, उनके गण वीरभद्र ! विध्वंस काज को, क्रियान्वयन करने हेतु ! संपूर्ण आवश्यक तैयारियाँ ! कर
भी चुके हैं.”
माता भू-देवी ने आगे कहा :
“मेरी इस धरा से, संपूर्ण मानवों का, कै से संहार करना है ? विध्वंस का क्या प्रारूप होगा ? अन्य प्राणियों में से, कै से अधिकाधिक को, बचा लिया जाये ?
इस प्रलय को, कै से कार्यान्वित किया जाये कि, एक भी मनुष्य ! मेरी इस धरा पर, शेष ना बचे. इन सभी बिंदुओं पर, मैं एवं वीरभद्र ! कई चरणों की, चर्चा
कर चुके हैं. अब तो हम दोनों ! महादेव से अंतिम आदेश की प्राप्ति हेतु ! प्रतीक्षारत हैं.”
माँ भू-देवी बोलती रहीं :
“मुझे इस बात से, अत्यंत प्रसन्नता है कि, महादेव की कृ पा से, मेरी धरा ! पापियों-अधर्मियों-कु कर्मियों से, मुक्त होने जा रही है. महादेव द्वारा सर्वनाश की
आज्ञा प्राप्त होते ही……………….. मेरी यह धरा ! दुष्टों से बहुतायत वाली यह धरा ! पुनः पवित्र होगी. मुझे अधर्मियों से, मुक्ति मिलेगी. पुनः मेरी इस
वाली धरा पर, नवसृष्टि का निर्माण होगा…………..”
तभी माता पार्वती ने, भूदेवी से कहा :
“परंतु भूदेवी ! मैंने आपको, अभी किसी और प्रयोजन से, यहाँ बुलाया है. इस प्रकार गुप्त रूप से, आपको यहाँ बुलाने का, मेरा उद्देश्य ! बिल्कु ल विपरीत
है. मैं चाहती हूँ कि, आप अपनी इस पृथ्वी वाली धरा पर, एक बार करुणा दिखायें.”
माता भूदेवी बोलीं :
“हे जगत्-जननी माता ! मुझे भी अपनी सभी धराओं की भाँति, इस पृथ्वी धरा से भी, अपार स्नेह है. परंतु इस धरा पर, अब अति हो चुकी है. हे माता !
आप स्वयं बतायें………………… मेरे दायित्व वाले, किस ग्रह पर, इतने अत्यधिक अनुपात में, कु कर्मी-अधर्मी हैं ?”
माता पार्वती बोलीं :
“हे देवी ! आपका रुष्ट होना, सर्वथा उचित है. परंतु इस धरा के , सभी मनुष्य भी तो, आपके ही बच्चे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि…………….. आपको उन्हें
सुधरने का, एक अवसर देना चाहिये.”
माता भू-देवी, हँसती हुयी बोलीं :
“हे माता ! आपको ऐसी आशा है कि……………. वह सब सुधरेंगे ?”
माता पार्वती बोलीं :
“देवी ! कु छ तो सुधरेंगे ही. सभी का सुधरना ! आवश्यक भी तो नहीं है. सभी सुधर गये तो, कु कर्म का भंडारण कर के , घूम रही आत्माओं को, कहाँ भेजा
जायेगा ?”
माता भूदेवी गंभीर स्वर में बोलीं :
“परंतु माता ! ऐसा भी तो नहीं है कि, यह विध्वंस ! के वल मेरी इच्छा से हो रहा है. अगर ऐसा होता तो, मैं यह प्रलय ! ३००० वर्ष पूर्व ही, ला चुकी होती.
अभी जो भी हो रहा है. वह विधि-विधान के , अनुरूप हो रहा है. मेरी इस धरा से, छठा चरण उत्तीर्ण करके , मेरी इसी धरा पर, अंतिम महादेव-दूत बने,
आर्यम्बापुत्र के बाद………………….. दूसरे ग्रह पर छठा चरण उत्तीर्ण करके , आठवें चरण के धर्मकाज हेतु ! मेरी इस धरा का चुनाव करने वाली, सभी
छः आत्माओं………….. सिद्धार्थ, वर्धमान, नागराज (म.अ.बा.), क्रिसना, महामद एवं एकोंकार ! सभी ने, इस धरा के मनुष्यों को, सुधरने का अवसर,
दिया तो था. परंतु उस अवसर का, दुःखद परिणाम ! हमने देखे ही हैं.”
माता भूदेवी ! और भी गंभीर स्वर में आगे बोलीं :
“हे माता ! ऐसा माना जाता है कि, किसी भी ग्रह के मानवों की, निर्मित हो चुकी मूलप्रवृति को, अगर जानना हो तो, उस ग्रह पर, अपना छठा चरण बिताये,
किसी आत्मा से, पूछनी चाहिये. क्योंकि उसका अनुभव ! सर्वाधिक सही होता है. इसी सत्य के परिदृश्य में देखें तो, मेरी इस धरा से, छठा चरण उत्तीर्ण
करके , मेरी इसी धरा पर, अंतिम महादेव-दूत बने, आर्यम्बापुत्र के बाद………………….. मेरी इस धरा से, छठा चरण उत्तीर्ण करने वाली, कु ल और
आठ आत्मायें हुयीं.”
माँ भूदेवी ने आगे कहा :
“उन सभी आठों आत्माओं…………… चिहिरो, बद्री, कै होंग, लक्षाकी, आर्थर, मृदा, रशीदा एवं मुके श ! किसी ने भी, अपने आठवें चरण के , धर्मकाज
हेतु ! इस धरा का चुनाव नहीं किया. क्यों नहीं किया ? क्योंकि वह सभी इस धरा के , अधर्मियों से, भलीभाँति परिचित थे.”
उसके बाद माता भूदेवी ! अपने आसन से खड़ी हुयीं. तथा उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के के , सिर पर हाथ रख कर बोलीं :
“उन आठों के पश्चात् ! यह बालक ! अपने पिछले जन्म ! यानि सुभाष वाले जन्म में, प्रथम बार छठे चरण में, प्रवेश किया था. विधि-विधान के अनुसार !
आज से ७५ वर्ष पूर्व (१९२३) में भी, इसे महादेव ने, यहाँ बुलाया था. ताकि यह अपने, आठवें चरण के धर्मकाज हेतु ! अपनी इच्छानुसार ! उपयुक्त ग्रह
का, चुनाव कर सके . तब इसने, इस पृथ्वी ग्रह का, चुनाव करने के स्थान पर, शिवफिजनागड ग्रह का चुनाव, क्यों किया था ?”
माता भूदेवी बोलती रहीं :
“क्योंकि उन आठों की भाँति ! यह भी, इस धरा के , अधर्मियों से, भलीभाँति परिचित था. यह अलग बात है कि, इसके प्रयासों में, कु छ कमी रह गयी.
जिसके फलस्वरूप ! यह अपना छठा चरण ! उत्तीर्ण नहीं कर पाया. नहीं तो आज से, ५३ वर्ष पूर्व (१९४५) में भी, मैं और वीरभद्र ! संहार करने हेतु !
अपनी तैयारियाँ पूर्ण कर चुके थे. *यह उत्तीर्ण कर ही जायेगा.* ऐसा सोच कर, हमने महादेव से, अग्रिम अनुमति ले कर, उसके भी छः वर्ष पूर्व (१९३९)
से ही, उस संहार की, आधारशिला भी रखवा दी थी.”
माता भू-देवी ! पुनः अपने आसन पर, विराजती हुयी, आगे बोलीं :
“अब यह बालक ! अपना अगला जन्म ले कर, आज पुनः यहाँ आया है. इससे आज भी पूछिये ? क्या यह अपने, आठवें चरण के धर्मकाज हेतु ! क्या इस
पृथ्वी ग्रह का, चुनाव करेगा ?”
इतना बोलने के पश्चात् ! माता भूदेवी ने, उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के को, संबोधित करके , उससे पूछीं :
“राके श ! तुम माता पार्वती को बताओ कि, अभी से कु छ समय पश्चात् ! जब महादेव तुमसे, आठवें चरण के धर्मकाज हेतु ! किसी एक ग्रह का नाम पूछेंगे.
तब तुम किस ग्रह का, चुनाव करोगे ?”
उस लड़के के मस्तिष्क में, महादेव-गण संपेरा बाबा से, हुयी वार्ता की स्मृति ! अभी बिल्कु ल ताजी थी. अतः वह तपाक से बोला :
“माता ! मैं पृथ्वी ग्रह छोड़कर, उपलब्ध विकल्पों में से, किसी भी ग्रह का, चुनाव कर लूँगा. पृथ्वी गृह का चुनाव ! कदापि नहीं करूँ गा.”
माता भूदेवी बोलीं :
“……………….एवं जैसे ही, यह अगले २२ वर्षों (२०२०) में, अपना छठा चरण उत्तीर्ण कर लेगा. वैसे ही, मैं एवं वीरभद्र ! विध्वंस-काज आरंभ
कर देंगे. हाँ अगर यह ! अपने इस जन्म में भी, छठा चरण उत्तीर्ण नहीं कर पाता है तो, यह प्रलय कु छ और समय हेतु ! टल जायेगा. परन्तु इसके पिछले ५
वर्षों की, गति देख कर, मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि, इस बार यह नहीं चूके गा.”
माता पार्वती बोलीं :
“आप अपना क्रोध शांत कीजिये भूदेवी ! और ऐसी कोई युक्ति बताइये ! जिससे कि…………….. इस पृथ्वी ग्रह का, प्रलय टल जाये. एवं इस धरा के
मानवों को, एक और अंतिम अवसर मिल जाये.”
माता भू-देवी बोलीं :
“अब इसका तो, एक ही उपाय है कि……………. यह बालक राके श ! अपनी छठे चरण में ही, बार-बार अनुत्तीर्ण होता रहे. परंतु इसमें, हम क्या कर
सकते हैं ? यह तो पूर्णरूपेण ! इसके स्वयं के , कर्मों पर निर्भर करेगा.”
माता पार्वती बोलीं :
“हे देवी ! मेरे पास एक और भी युक्ति है. और वह पूर्ण रूप से, विधि-विधान सम्मत है.”
तीनों देवियों ! माता लक्ष्मी, माँ भूदेवी एवं माता सरस्वती ने, एक साथ पूछा :
“क्या युक्ति है माँ ?”
माता पार्वती मुस्कु राती हुयी बोलीं :
“अगर यह बालक राके श ! अपने आठवें चरण के , धर्मकाज हेतु ! आज महादेव के समक्ष ! किसी अन्य ग्रह के स्थान पर, इसी पृथ्वी ग्रह का, चुनाव कर
लेता है. तथा अपने इसी जन्म के , निर्धारित २७ वर्ष की अवधि में से, बचे हुये २२ वर्षों में, अपना छठा चरण भी, उत्तीर्ण कर लेता है. तब विधि-विधान के
अनुसार………….. इसी ग्रह पर, अपना छठा चरण उत्तीर्ण किये हुये, क्रमबद्धता से, कु ल नौ आत्माओं में से, *जिसमें से कम-से-कम, किसी एक के द्वारा
भी,* अपने आठवें चरण वाले, धर्मकाज को करने के लिये, इसी ग्रह का, चुनाव करना था. यह पहला नियम पूर्ण हो जायेगा. तत्पश्चात् ! इसके द्वारा किये
गये धर्म-काज से, अगर वह १:९९ का अनुपात ! किं चित् मात्र भी, सही हो जाता है. तब स्वतः ही, दूसरा नियम भी पूर्ण हो जायेगा. इस प्रकार आर्यम्बापुत्र
के बाद ! यह उसी की भाँति, इसी पृथ्वी ग्रह पर, छठा चरण उत्तीर्ण करके , इसी पृथ्वी ग्रह पर ही, अपने आठवें चरण का, धर्मकाज करने वाला, महादेव-दूत
बन जायेगा.”
इसके बाद माता ने, तीनों देवियों से पूछा :
“अब आप तीनों, मुझे यह बतायें कि…………. इस प्रकार ! कौन से विधि-विधान की, अवहेलना होगी.”
माता भूदेवी बोलीं :
“हे कृ पालु जगत्-जननी माता ! आप सत्य कह रही हैं. इस प्रकार से, किसी भी विधि-विधान की, अवहेलना नहीं होगी. तथा इस धरा से, प्रलय भी टल
जायेगा. परंतु यह बालक ! अभी आपके समक्ष ! यह तो बता ही चुका है कि……………… यह पृथ्वी ग्रह छोड़कर, उपलब्ध विकल्पों में से, किसी भी ग्रह
का, चुनाव कर लेगा. परंतु पृथ्वी ग्रह का चुनाव ! कदापि नहीं करेगा.”
माता पार्वती हँसती हुयी बोलीं :
“मेरे समक्ष इसने क्या बोला है ? इससे कोई अंतर नहीं पड़ता. मेरे नाथ के समक्ष ! यह कौन सा ग्रह चुनता है. वह महत्वपूर्ण है. क्योंकि यहाँ हो रही, हमारी
गुप्त-वार्ता ! मेरे नाथ को नहीं दिख रही है. मैंने जानबूझकर ! ऐसा प्रावधान किया हुआ है. अब आप सब ! मुझे यह बतायें कि………………… इस
बालक के साथ, अभी ऐसा क्या किया जाये. ताकि यह महादेव के समक्ष ! अपने आठवें चरण के काज हेतु ! इस पृथ्वी ग्रह का ही चुनाव करे.”
उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के को, जैसे ही पूरी बात समझ आयी. वैसे ही उसने, माता पार्वती के चरणों में, अपना सिर लगा कर, रोते हुये, उनसे विनती
करने लगा :
“माता ! आप कृ पा करके , ऐसा मत कीजिये. मुझे अपने आठवें चरण का धर्मकाज ! यहाँ नहीं करना है माँ !……….”
क्रमशः

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#धौलागिरी_प्रकरण 12B :~ नोट :- मुझे इस बात का, बहुत अच्छे से, भान है कि……… 27 दिसंबर 1997 को, धौलागिरी पर्वत के , शिवशक्ति
जगत पर घटित ! संपूर्ण घटनाक्रम के , इस संवाद का, यह अंश ! काफी बड़ी संख्या में, पाठकों को विचलित कर सकता हैं. कई मनुष्य ! आज के बाद से,
मुझे पढ़ना बंद कर सकते हैं. परंतु महादेव-दूतों का आदेश है कि, लिखा जाये. अतः लिखा जा रहा है.
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अब वह ग्यारह-बारह वर्षीय लड़का ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के साथ, लौट कर वापिस ! उस स्थान पर आ गया था. जहां एक शिला पर, महादेव-दूत
आर्यंबापुत्र महाराज को, बैठा छोड़ कर, वह स्वयं ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के सानिध्य में, धौलागिरी-मंत्रणा-खंड घूमने गया था. लौट कर उसने पाया
कि……………… महादेव-दूत आर्यंबापुत्र महाराज ! ध्यान में लीन हैं.
अतः महादेव-दूत विक्रांत महाराज ने, उस लड़के को सांके तिक भाषा में, समझाया कि……………. वह आर्यंबापुत्र महाराज के ध्यान में, विध्न डाले बगैर
! चुपचाप शांतिपूर्वक ! वहीं नीचे बैठ जाये. तथा उनके ध्यान से वापिस लौटने की, प्रतीक्षा करे. इतना समझा कर, विक्रांत महाराज ! उसे वहीं छोड़कर,
पुनः मंत्रणा-खंड की ओर, चले गये.
वह लड़का ! वहीं नीचे बैठ कर, उनके ध्यान टू टने की, प्रतीक्षा करने लगा. प्रतीक्षा बहुत लंबी नहीं रही. क्योंकि अभी कु छ ही मिनट हुये होंगे कि, महादेव-
दूत आर्यंबापुत्र महाराज ! अपनी आँखें खोलते हुये बोले :
“मैंने अभी माता सीता एवं प्रभु श्रीराम से, तुम्हारे प्रश्नों के निवारण हेतु ! समय ले लिया हूँ. चलो आओ ! सियाराम-खंड चलते हैं.”
इतना बोल कर, आर्यंबापुत्र महाराज ! चल पड़े. वह लड़का भी………….
“जी गुरुजी !”
………..बोलते हुये, उनके पीछे-पीछे चलने लगा.
लगभग आधे घंटे की पदयात्रा के पश्चात् ! अभी वह जिस खंड में प्रविष्ट हुये थे. उसका नाम सियाराम खंड था. वहाँ भी कई महादेव-दूत ! एवं महादेव-दूत
माता-सेविकायें ! अपनी-अपनी स्वेच्छावश ! सेवा-भाव से, व्यवस्था संबंधी ! दैनिक क्रियाकलाप में, जुटे हुये थे. परंतु उस लड़के का ध्यान ! एक विशेष
बात पर गया.
…………….वहाँ के कोई भी महादेव-दूत स्त्री-पुरुष ! अपने शक्लों-सूरत से, भारतीय महाद्वीप की तो, बात ही छोड़िये. इस पृथ्वी ग्रह के , कहीं से भी,
नहीं दिख रहे थे.
यह बात ! उस लड़के को खटकी. अतः उसने पूछा :
“गुरुजी ! इस खंड में, सेवा में लगे, सभी महादेव-दूत ! किसी सुदूर ग्रह वाले हैं. कोई भी अपने पृथ्वी ग्रह का नहीं है. ऐसा क्यों गुरुजी ?”
महादेव-दूत आर्यंबापुत्र महाराज गुरुजी ने उत्तर दिया :
“ऐसा इसलिये है कि, माता सीता एवं प्रभु श्रीराम ! इस पृथ्वी ग्रह के निवासियों से, लगभग छः-सात सौ वर्षों से, अत्यंत रुष्ट हैं. इसी कारण से, उनके खंड
में, सेवा हेतु ! पृथ्वी ग्रह के जैसे ! मुखाकृ ति वाले दूतों की, नियुक्ति नहीं की जाती है.”
लड़के ने पुनः पूछा :
“परंतु गुरुजी ! माता सीता एवं प्रभु श्रीराम ! इस पृथ्वी ग्रह के निवासियों से, रुष्ट क्यों हैं ?”
आर्यंबापुत्र गुरुजी ने उत्तर दिया :
“क्योंकि लगभग छः-सात सौ वर्षों से, वहाँ के लोग ! किसी भ्रांति का शिकार हो कर, उनको महादेव से ऊपर ! तथा माता सीता को, माता शक्ति पार्वती से
ऊपर ! स्थापित कर के , पूजने लगे हैं. इससे उन दोनों के हृदय को, बहुत चोट पहुँचती है कि………. इस ग्रह के दुष्टों ने, उनके आराध्य ! एवं उनके
निर्माणकर्ता को ही, उनसे ऊपर स्थापित कर दिया है.”
लड़का पुनः बोला :
“परंतु गुरुजी ! जैसा आपने बताया कि, इस ग्रह के लोग ! भ्रांति का शिकार हो कर के , ऐसा कर रहे हैं. तो ऐसे में, भला उन लोगों की, क्या गलती है ?”
गुरुजी ने उत्तर दिया :
“क्योंकि माता सीता ! एवं प्रभु श्रीराम का, ऐसा मानना है कि…………… उनकी जीवनी ! यानि उनके जीवन-दर्शन के ग्रंथ ! अभी भी इस पृथ्वी ग्रह
पर, सर्वसुलभता से उपलब्ध हैं. जिसमें सैकड़ों हेर-फे र ! एवं फे र-बदल करने के बाद भी, कई-कई स्थानों पर, स्पष्ट रूप से, ऐसा उल्लेखित है
कि………… प्रभु श्रीराम ! महादेव के बड़े उपासक व आराधक हैं. तथा देवी सीता ! माता शक्ति स्वरूपों की पूजा करती हैं.”
गुरुजी आर्यंबापुत्र ने आगे कहा :
“अतः प्रभु श्रीराम ! एवं माता सीता का, ऐसा मानना है कि……………. जानबुझकर ! भ्रांति फै लाने वाले तो, महापाप के दोषी हैं ही. परंतु अपने
आलस्य ! व अकर्मण्यता की आड़ में, उस भ्रामक व मिथ्या बात का, अनुसरण करने वाली आत्मायें भी, कु छ पाप के दोषी तो हैं ही.”
लड़के ने अगला प्रश्न पूछा :
“गुरुजी ! आलस्य व अकर्मण्यता से, प्रभु एवं माँ का, क्या आशय है ?”
महादेव-दूत ! एवं उस लड़के के गुरू ! आर्यंबापुत्र महाराज ने, उस लड़के यानि अपने शिष्य को, विस्तारपूर्वक समझाया…………..
“देखो ! जब भी कोई दुष्ट आत्मा ! अधर्म फै लाने के उद्देश्य से, यानि स्वयं को भगवान ! या सर्वेसर्वा बनाने के नियत से, अधर्म या पाप करना, आरंभ
करती है. तब वह सर्वप्रथम ! देवी-देवताओं के पदानुक्रम में, हेर-फे र करती है. अथवा किसी मनगढ़ंत ! देवी-देवता का, सूत्रपात करते हुये, उसे कथाओं
में, अवतरित करती है.”
“उसके बाद ! उसका अगला कदम होता है. ऐसे साधन-संपन्न मानवों ढूँढना. जो महा-आलसी एवं घोर-अकर्मण्य हों.
अब तुम्हारे मस्तिष्क में, यह स्वाभाविक जिज्ञासा उत्पन्न होगी कि…………. महा-आलसी एवं घोर-अकर्मण्य मनुष्य ! भला साधन-संपन्न कै से हो गया ?”
“ऐसा बिल्कु ल हो सकता है ! इस पृथ्वी ग्रह पर, या इसी ग्रह के जैसे ! और वह ग्रह ! जहां अधम् मानवों की, भरमार है. वहाँ ऐसा खूब ! एवं बहुतायत में
होता है. अब पहले इसको समझो कि, यह होता कै से है ?”
“होता यह है कि………… उस वर्तमान जन्म वाले साधन-संपन्न ! परंतु आलसी एवं घोर-अकर्मण्य मनुष्य के , वह पूर्वज ! जो सही में सदकर्मी, कर्मठ व
परिश्रमी थे. जिसके परिणामस्वरूप ! उनके पास ! वह प्रसिद्धि-समृद्धि-धन-वैभव आया था.”
“वहीं इस पृथ्वी ग्रह के , अधिकतर संविधानों के , संवैधानिक नियमानुसार ! अपने पूर्वज की संपत्ति का उत्तराधिकारी ! उसका जन्मना वंशज होता है. अतः
वह आलसी एवं घोर-अकर्मण्य मनुष्य ! जो कि उनका वंशज है. जिसके कारण ! उसे विरासत में, वह संपूर्ण समृद्धि-धन-वैभव की, प्राप्ति हो गयी. साथ ही
प्रसिद्धि का भी, कु छ अंश प्राप्त हो गया.”
“अब उन सदकर्मी-कर्मठ मानवों के , ऐसे वंशज ! जो घोर-आलसी हैं. जिनको परिश्रम करना ही नहीं है. परंतु परिश्रम ! या सदकर्म नहीं करने की अवस्था
में, उनके मन एवं मस्तिष्क में, स्वाभाविक रूप से बैठा हुआ ! धर्म का ज्ञान ! उन्हें बार-बार संके त करके , यह कहता रहता है कि…………. सदकर्म करो
! परिश्रम करो ! तप (अति-कठोर-परिश्रम) करो !”
“…………..और वह ! यह सब करना नहीं चाहते हैं. परिणामस्वरूप ! वह आत्मग्लानि से भर जाते हैं. उनका अंतर्मन ! उन्हें कचोटता रहता है. इस
प्रकार से, इस पृथ्वी ग्रह पर, ऐसे आत्मग्लानियुक्त मनुष्यों की, सदैव से ही, कु छ-कु छ संख्या रही है. परंतु विगत् तीन हजार वर्षों से, इसमें दिन-दूनी ! रात-
चौगुनी ! वृद्धि हो रही है.”
“अब मैं ! यह आशा करता हूँ कि…………… तुम्हें ऐसे वर्ग के मनुष्यों की, समझ हो गयी होगी. जो महा-आलसी ! एवं घोर-अकर्मण्य ! परंतु साधन-
संपन्न व धनवान होते हैं. अतः अब आगे समझाता हूँ…………”
“अब जैसा ! मैंने तुम्हें अभी बताया था कि……….. जब भी कोई दुष्ट कु कर्मी आत्मा ! अधर्म फै लाने के उद्देश्य से, स्वयं को भगवान ! या सर्वेसर्वा बनाने
के नियत से, अधर्म या पाप करने का, आरंभ करती है. तब वह सर्वप्रथम ! देवी-देवताओं के पदानुक्रम में, हेर-फे र करती है. अथवा किसी मनगढ़ंत ! देवी-
देवता का, सूत्रपात करते हुये, उसे अवतरित करती है. उसके बाद ! उसका अगला कदम होता है………..….”
“…………….ऐसे विरासत वाले, साधन-संपन्न व धनवान मानवों को ढूँढना. जो महा-आलसी एवं घोर-अकर्मण्य हों. आत्मग्लानि से भर हुये हों !
जिनका अंतर्मन ! उनके द्वारा ! परिश्रम नहीं करने को ले कर, बारंबार कचोट रहा हो.”
“ऐसे मनुष्यों के पास पहुँच कर……….
तथाकथित नवविचार के प्रणेता ! अथवा नये दोषपूर्ण पंथ के जनक ! तथाकथित संत महात्मा ! जबकि वास्तव में वह ! बहुत बड़े ढोंगी होते हैं.
…………. उस मनुष्य को, यह समझाते हैं कि………”
“अरे भाई ! यह देखो ! हमने अभी-अभी ! यह नव-पंथ अवतरित किया है. इसकी मूल-शिक्षा में, यह कहीं नहीं है कि, तुम परिश्रम या सदकर्म करके ही,
मोक्ष प्राप्त कर सकते हो. तुम बस इस पंथ के , अनुयायी बन कर भी, मोक्ष प्राप्त कर सकते हो. इस प्रकार से भी, तुम्हें भगवद्-प्राप्ति हो सकती है. आओ मेरे
भाई ! आओ मेरे बच्चे ! यहाँ आओ ! मेरे समीप आओ ! मैं तुम्हें अत्यंत छोटे-सरल-सुगम मार्ग से, भगवद्-प्राप्ति कराता हूँ. आओ ! आओ ! शीघ्र आओ
!”
“अपने महा-आलसी प्रवृति के कारण ! घोर आत्मग्लानि से भरा हुआ ! वह अकर्मण्य मनुष्य ! जिसका महादेव-रचित अंतर्मन ! परिश्रम नहीं करने पर,
कचोट-कचोट कर, जीना मुश्किल कर रखा है………….
वह अकर्मण्य मनुष्य ! जैसे ही, उस नव-पंथ-प्रणेता के विचारों को सुनता है. वैसे ही उसके कानों में, शहद घुल जाता है. वह झट से, उस पाखंडी का, चेला
बन जाता है.”
“अब जैसे ही, वह चेला बनता है. वह ! अपने गुरु यानि तथाकथित संत महात्मा के सिखाये ! इस बात को, प्रचारित करना आरंभ करता है कि………..
मेरे पास ! जो भी समृद्धि ! प्रसिद्धि ! धन ! वैभव ! इत्यादि है. वह इसी पंथ के , अनुगामी होने से है. जबकि सत्य यह होता है कि, वह सभी कु छ ! उसे
पहले से, विरासत में प्राप्त हुआ होता है.”
“अब उसकी भ्रामक बात को सुन कर ! सामान्य साधारण मानव ! भ्रमित होना आरंभ करता है. एवं लोभवश ! उस पंथ का, अनुयायी बन जाता है. अब
जैसे-जैसे उस पंथ के , अनुयायियों की संख्या बढ़ती जाती है. वैसे-वैसे ही, उसकी चर्चा भी फै लती जाती है.”
“तत्पश्चात् ! वहाँ अकर्मण्यों का, जमावड़ा लगना आरंभ हो जाता है. जिसके परिणामस्वरूप ! उसके बाहु-बल में वृद्धि होती है. बाहु-बल के पश्चात् !
धन-बल के आवश्यकता की, आकांक्षा जगती है. अब वह नव-पंथ-प्रणेता ! धूर्त-ढोंगी ! तथाकथित संत महात्मा ! एक दूसरे प्रकार के , मनुष्यों को,
आकर्षित करना आरंभ करता है.”
“वह दूसरे प्रकार के , मनुष्य कौन होते हैं ?
वह मनुष्य………….. जो ठग ! चोर ! या डकै त ! प्रवृति के होते हैं. जिन्हें परिश्रम से धन कमाना ! अच्छा नहीं लगता है. जो ठगी ! चोरी ! डकै ती !
इत्यादि माध्यम से, धनोपार्जन करते हैं. जिसके परिणामस्वरूप ! उनके पास धन तो, पर्याप्त मात्रा में होता है. परंतु शांति नहीं होती. क्योंकि वह पापी-
अधर्मी ! इस जगत से, अपने कु कर्मों को, कितना भी छु पा ले. परंतु अपने अंतर्मन से कै से छु पाये ? अतः वह सदैव बेचैन रहता है.”
“अब वह तथाकथित ! नवविचार नव-पंथ का प्रणेता ! तथाकथित संत महात्मा ! ऐसे मनुष्यों के पास ! अपने धूर्त चेलों को भेज कर, उन्हें यह समझाता है
कि……….
तुमने पाप किया है ! कोई बात नहीं ! यह नाम जप लो ! सभी पाप कट जायेंगे ! अपनी पाप की कमायी का, कु छ हिस्सा दान कर दो ! और यह नाम जपते
रहो ! सभी पाप कट जायेंगे ! तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी ! तुम्हें भगवद्-प्राप्ति हो जायेगी !”
“तत्पश्चात् वहाँ ! पापी अकर्मण्यों के साथ-साथ ! कु कर्मी-अधर्मी रक्तपिपासु धनवानों का भी, जमावड़ा लगना आरंभ हो जाता है. जिसके परिणामस्वरूप !
बाहु-बल के साथ-साथ ! उसके धन-बल में भी, बेतहाशा वृद्धि होती है. अब बाहु-बल एवं धन-बल के पश्चात् ! उसमें संख्या-बल यानि राज-बल यानि
राजनैतिक-बल के , आवश्यकता की, कु त्सित आकांक्षा जगती है.”
“जिसके लिये, उसे अत्यधिक संख्या में, उस नव-पन्थ से, मनुष्यों की भीड़ को, जोड़ना होता है. अतः वह नव-पंथ-प्रणेता ! धूर्त-पापी-अधर्मी-कु कर्मी-
ढोंगी ! तथाकथित संत महात्मा ! अपना, अगला कदम उठाता है.”
वह अगला कार्य ! जो वह करता है. वह होता है…………. अपने चेलों द्वारा निर्मित ! प्रचार-प्रसार तंत्र का घोर दुरुपयोग ! व्यापक स्तर पर, भ्रामक बातें
फै लाना ! यानि सामान्य जन-मानस में, सत्य के विपरीत ! असत्य बातें बिठाना ! भिन्न-भिन्न प्रकार के , बनावटी कथा-कहानीयों के माध्यम से, मिथ्या बातें
प्रचारित-प्रसारित करना.”
“जिन मिथ्या बातों में से, कु छ प्रमुख बातें ! मैं अभी बता देता हूँ. जैसे !
………मोक्ष के लिये, के वल व के वल ! नाम जपना ही पर्याप्त है.
………कु कर्म को दान-पुण्य करके , या नाम-जप करके , काटा जा सकता है.
……..सदकर्म का अर्थ ! के वल भक्ति होता है. कोई कार्य मत करो. के वल भक्ति करो.
………इत्यादि.”
“जैसे ही वह ! इस प्रकार की, मिथ्या बातें (जो कि पालन करने में सरल दिखती हैं) फै लाना आरंभ करता है. उसके पास भीड़ जुटती जाती है. उसमें
सर्वाधिक भीड़ ! उन बुजुर्गों व वृद्धों की होती है. जो ऐसा सोचते हैं कि, अब मेरी आयु ! अधिक हो गयी है. अतः अब मुझे ! कोई भी कर्म करने की,
आवश्यकता ही नहीं है. अब कर्म करने का दायित्व ! मेरी अगली पीढ़ी का है.”
“कु छ वृद्ध पुरुष व स्त्रियाँ ! जो ऐसा भी सोचते हैं कि, अब मेरे सारे कार्य ! मेरे पुत्र व पुत्रवधू को ही करना चाहिये. मेरे द्वारा अब ! बस आलसी की भाँति !
के वल गुरुजी जी के सुझाये नाम को, जपना ही पर्याप्त है. ……….और वह पंथ-प्रणेता ! तथाकथित संत ! उनके इस विचारों का, एक कदम आगे बढ़ते
हुये, यह बोल कर, पोषण करता है कि………. हे वृद्ध ! एवं हे वृद्धा ! अगर बैठे-बैठे थक जाओ तो, लेट कर भी, जप सकते हो. वृद्ध-वृद्धा प्रसन्न हो जाते
हैं. क्योंकि उनके आलस्य व अकर्मण्यता को, पोषक जो मिल गया है.”
“इसकी परिणति यह होती है कि…………. वहाँ वृद्ध-वृद्धाओं की, भीड़ उमड़ पड़ती है. जिसके देखा-देखी ! वहाँ पर नवयुवक-नवयुतियों ! युवक-
युवतियों ! यानि सभी वर्ग का, बड़ा वृहद् समूह ! तैयार हो जाता है.”
“तत्पश्चात्…………… पापी-अकर्मण्यों ! एवं कु कर्मी-अधर्मी-रक्तपिपासु-धनवानों ! के साथ-साथ ! वहाँ सामान्य-साधारण निर्दोष मनुष्यों की भी, बड़ी
संख्या एकत्र हो जाती है. परिणामतः अब वहाँ बाहु-बल ! धन-बल ! के साथ-साथ संख्या-बल ! भी आ जाती है. जिससे उस अधर्मी नव-पंथ-प्रणेता को,
राज-बल यानि राजनैतिक-बल का, संरक्षण प्राप्त हो जाता है.”
“इतना होने के पश्चात् ! अब वह कु कर्मी नव-पंथ-प्रणेता ! धूर्त-पापी-अधर्मी-कु कर्मी-ढोंगी ! तथाकथित संत महात्मा ! अपना, अंतिम कदम उठाता है.
………..और वह अंतिम कदम क्या होता है ?”
“………..वह अंतिम कदम होता है. स्वयं को ही भगवान घोषित कर देना. इसी उद्देश्य से तो, वह अपने आरंभिक काल में, देवी-देवताओं के मूल
पदानुक्रम को, ऊपर-नीचे किये होता है.”
“बीतते हुये समय के साथ ! बात पुरानी होती जाती है. साथ ही यह भ्रांति फै लती जाती है कि, इतनी पुरानी बात है तो, सत्य ही होगी. उस अधर्मी नव-
पंथ-प्रणेता की आत्मा तो, कब का अपना वह देह-त्याग करके , अगले देह में जा कर, दंड भोग रही होती है. परंतु उसके बाद ! उस पंथ के अनुगामी ! उसी
असत्य को, प्रत्येक पीढ़ी-पीढ़ी ! ढोते रहते हैं. जाने-अनजाने मोक्ष के , मूल-सत्य-मार्ग ! *यानि सदकर्म सबसे महत्वपूर्ण है.*। ……….को भूल कर,
अपने आत्मा की यात्रा-अवधि बढ़ाते रहते हैं.”
इतना विस्तार से बता कर, जब गुरु जी चुप हुये तो, उस ग्यारह-बारह वर्षीय बालक ने पूछा :
“गुरु जी ! तो सबसे प्रमुख तथ्य क्या है ?”
महादेव-दूत आर्यंबापुत्र महाराज गुरुजी ने उत्तर दिया :
“सबसे महत्वपूर्ण सदकर्म है. सदकर्म ही धर्म है. धर्म ही पुण्य है.”
गुरुजी ने आगे कहा :
“अब आते हैं……… कु कर्म यानि अधर्म या पाप पर. तो एक बात समझ लो. कु कर्म का हर हाल में, दंड मिलेगा ही मिलेगा. कु कर्मों का समुचित दंड भोगने
के अलावा, इससे बचाव का, कोई भी अन्य मार्ग नहीं है. दान-पुण्य करके ! देवी-देवता-गण एवं इष्ट-आराध्य की पूजा करके , उनका नाम जप करके , कु छ
मात्रा में, पुण्यों में बढ़ोतरी तो, की जा सकती है. परंतु उससे तनिक भी, पाप नहीं काटा जा सकता. पाप का दंड तो, हर हाल में, अगले जन्म में, मिल कर
ही रहेगा.
“वैसे पुण्य एकत्र ! अथवा संचय करने का, सबसे सर्वोत्तम मार्ग ! सदकर्म करना है. *सदकर्म* से बढ़कर, कु छ भी नहीं है. सदकर्म करके , सदकर्म-संचय
यानि पुण्य-भंडार को, और बढ़ाया जा सकता है. लेकिन उससे कु कर्म को, मिटाया नहीं जा सकता. सदकर्म (पुण्य) से, कु कर्म (पाप) को, किसी भी हाल
में, समायोजित (एडजस्ट) नहीं किया जा सकता.”
लेखक द्वारा अनुरोधनात्मक प्रार्थना :~
अगर आप ! अपने विवेकानुसार………. किसी *सत्य-सही* पंथ-संप्रदाय इत्यादि के , फ़ॉलोवर/अनुयायी/अनुगामी हैं. तो आपको, इस संवाद को, दिल
पर लेने की, कोई आवश्यकता नहीं है.
यह तो *असत्य-गलत* मान्यताओं का, अनुसरण करने वाले, निर्दोष मनुष्यों को, सदमार्ग पर लाने हेतु ! लिखी गयी है.
चूँकि आप ! क्योंकि पहले से ही, अपने विवेकानुसार ! सदमार्ग पर हैं. अतः आप निश्चिंत रहें. सादर प्रणाम संग बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका.
!! हर हर महादेव !! जय शिव शक्ति !! माता शक्ति व महादेव की जय हो !! जगत् जननी माता की जय हो !! जय हो जय हो जय हो !!
क्रमशः
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#धौलागिरी_प्रकरण 14A :~ माता रुक्मणी बोलीं :


“हे प्रभु श्रीराम ! जैसा आपने बताया कि……… बस कु छ आत्माओं ने ही, अपना सर्वस्व झोंक कर, प्रयत्न किया था. जिसमें यह बालक वाली, आत्मा भी
थी. तब भी यह ! अपने मूलश्रेणी वाले, उस दूसरे जन्म में, अपने दूसरे चरण में, अनुत्तीर्ण क्यों रह गया ?”
प्रभु श्रीराम बोले :
“हे देवी रुक्मणी ! इसके कई कारण हैं. एक तो इसको ! उस जन्म में, 381 वर्षों की, लंबी अवधि मिली थी. जिसके अनुपात में, यह उतने सदकर्मों का,
पर्याप्त संचयन ! नहीं कर पाया. तथा उससे भी बड़ा ! यानि सबसे बड़ा ! एक और कारण था. जो थोड़ा विस्तृत एवं जटिल कारण है. आप अपनी दिव्यदृष्टि
से, उसको देख लीजियेगा.”
तभी वह लड़का बोला :
“हे प्रभु ! अब मुझमें भी, वह कारण जानने की, जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी है. मेरे पास तो, दिव्यदृष्टि भी नहीं है.”
प्रभु श्रीराम बोले :
“महादेव-दूत बनते ही, तुम्हें वह दिव्यदृष्टि प्राप्त हो जायेगी.”
माता सीता बोलीं :
“हे प्रभु ! अभी तो इसको ! महादेव-दूत बनने में, लगभग पैंतीस वर्ष लगेंगे. अगर संभव हो तो, इस जिज्ञासु बालक की, जिज्ञासा को, संक्षेप में, अभी शांत
कर दीजिये.”
प्रभु श्रीराम बोले :
“उस कारण का आरंभ ! लगभग 1700 वर्ष पुर्व हुआ था. जब इसकी आत्मा ! अपने पूर्वश्रेणी वाले, आठवें चरण के , अंतिम जन्म में थी. उस जन्म में,
इसकी आत्मा को, जो देह मिला था. वह था शिलखाग उपग्रह पर, ऋभज नामक मनुष्य जन्म. इसके उस जन्म के , काल-खंड में, एक दूसरी शकोमफु
नामक आत्मा ! जो महादेव-दूत बनने हेतु ! अपने आठवें चरण के , धर्मकाज को, उसी ग्रह पर, कर रही थी.”
प्रभु ने आगे कहा :
“महादेव दूत बनने हेतु ! आठवें चरण का, धर्मकाज कर रहे, शकोमफु की आयु ! इससे लगभग बारह वर्ष कम थी. जैसे इसको अपने, आठवें चरण हेतु !
9999 पूर्वश्रेणी के आत्माओं को, चयन करने का वरदान प्राप्त है. वैसे ही उस शकोमफु नामक आत्मा को भी, यह वरदान प्राप्त था. और उसकी सूची में,
इसकी आत्मा ! यानि ऋभज का भी नाम था. काल के प्रारब्ध ने, इसको-उसको मिलाया. और यह ! उसका अनुयायी बन गया.”
तभी माता सीता बोलीं :
“हे प्रभु ! फिर तो यह………… इतिवृत के पुनरावृत्त होने वाली बात हो गयी.”
प्रभु बोले :
“हाँ देवी ! इसलिये माता पार्वती ने, मुझे आज बताया है कि…………… आगामी 26 वर्षों के पश्चात् ! इस पृथ्वी ग्रह पर, उस शिलखाग उपग्रह वाले
इतिवृत के , पुनरावृत्त होने का, काल-खंड आयेगा.”
माता रुक्मणी बोलीं :
“हे प्रभु श्रीराम ! आप वह घटनाक्रम बता दीजिये.”
प्रभु ने आगे बताना शुरू किया. बाकी सभी मंत्रमुग्ध हो कर, उनकी वाणी को सुनते रहे. उन्होंने कहा :
“जैसा की उस शकोमफु को, महादेव से यह वरदान प्राप्त था कि, उसके आठवें चरण वाले, धर्मकाज प्रकल्प में, सहयोग करने वाले, पूर्वश्रेणी के 9999
आत्माओं को, सीधे मूलश्रेणी में प्रवेश मिलेगा. वह वरदान ! बाकी के 9998 पूर्वश्रेणी वाले आत्माओं की भाँति ! इसके आत्मा व देह ऋभज पर भी फलित
हुआ.”
प्रभु आगे बोले :
“परंतु यह इतने अत्यधिक मन से, तथा संपूर्ण समर्पण भाव से, उस धर्मकाज में जुटा था कि……….. उसको उसी जन्म में, महादेव ने दर्शन दिया. और
प्रसन्न हो कर, वरदान माँगने को बोले.”
प्रभु बोलते रहे :
“इसने वरदान में यह माँगा कि…………… हे महादेव ! मेरे आत्मा की मोक्ष-यात्रा ! बहुत पीछे चल रही है. क्योंकि मैं अपने, कु कर्मों के कारण ! दो-दो
बार चौरासी लाख चौरासी योनियों को, भोग चुका हूँ. परंतु अब मैंने ! जब अपने सभी कु कर्मों का, दंड भोग लिया है. तथा सदकर्म भी संचय हो गये हैं.
जिससे आप प्रसन्न हुये हैं. अतः आप मुझे ! कु छ ऐसा वरदान दीजिये. जिससे कि मैं शीघ्रातिशीघ्र ! अपने मूलश्रेणी के , सभी चरणों को, कम-से-कम जन्मों
में, पार कर लूँ.”
प्रभु श्रीराम बताते रहे :
“यह सुन कर, महादेव ने इससे कहा कि…….. ऐसी तो कोई युक्ति ! संभव नहीं है. जो भी होगा. वह विधि-विधान के , अनुरूप ही होगा. परंतु मैं तुम्हें !
विधि-विधान के , एक प्रावधान के अनुरूप ! यह वरदान देता हूँ कि, तुम्हारी आत्मा ! मूलश्रेणी के आरंभिक आठ जन्मों तक ! एक साथ कई-कई समानांतर
जन्म लेती रहेगी. जिससे तुम्हारे सदकर्म संचयन की, गति तीव्र हो जायेगी. ………..और इस प्रकार ! इसके ऊपर वह वरदान ! इसके आठवें जन्म
तक ! फलित होता रहा.”
माता रुक्मणी बोलीं :
“हाँ ! ऐसा प्रावधान तो है. परंतु कई बार ! वैसे वरदानधारी आत्माओं को, उसके दुष्प्रभाव भी, भोगने पड़ते है. समांतर जन्मों में, कोई देह सदकर्म करके ,
पुण्य-संचयन कर रही होती है. तो वहीं कोई समांतर देह कु कर्म करके , सत्यानाश भी कर रही होती है. तथा सभी की आत्मा ! एक ही होने के कारण ! पाप-
पुण्य का समग्र संचयन ! एक साथ ही होता है.”
माता सीता बोलीं :
“हे प्रभु ! कहीं ऐसा तो नहीं हैं कि, इसकी आत्मा के , एक देह सयोमप्र ने, पर्याप्त पुण्य एकत्र किये हों. और किसी समानांतर दूसरे देह ने, सब सत्यानाश
कर दिया हो.”
प्रभु श्रीराम बोले :
“बिल्कु ल ! ऐसा ही हुआ था. इसके मूलश्रेणी के , दूसरे जन्म में. इसके एक दूसरे समांतर देह ने, महादेव-दूत महामद की इच्छा का, पालन करने हेतु !
अधर्म को मिटाने का, काज करना आरम्भ किया. जिसमें इसको ! जिन कु ल चार करोड़ पैंतीस लाख लोगों का, सही मार्ग पर लाना था. इसने उनको तो,
सही मार्ग पर लाया ही. साथ ही साथ इसने ! और भी कु छ ! लगभग चालीस लोगों को, जो पहले से ही, सही मार्ग पर थे. उनके ऊपर भी अत्याचार किया.
साथ ही इसने ! कु छ और भी कु कर्म किये. इन सभी संयुक्त कारणों से, यह अपने उस जन्म में, अपने दूसरे चरण को, पार नहीं कर पाया.”
क्रमशः
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#धौलागिरी_प्रकरण 14D :~ ऐसे ही, अनेकों महादेव-दूतों के बारे में, बताने के पश्चात् ! महादेव दूत देवी आरात्रिका ने, उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के
से कहा :
“राके श ! तुम्हें आये हुये, इतना समय हो गया है. तुम अपने बाकी के प्रश्न ! बाद में पूछना. अभी चलो ! तुम कु छ भोजन कर लो.”
उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के ने कहा :
“हे देवी ! मैंने तो अभी कु छ ही समय पूर्व ! सियाराम खंड में, भोजन करके आया हूँ.”
महादेव दूत देवी आरात्रिका बोलीं :
“तो यहाँ दूत-खंड में भी कर लो. एवं अभी इच्छा नहीं हो तो, जाओ ! इस उत्सव में, घूमो ! देखो ! समझो ! कु छ नहीं समझ में आये तो, किसी भी
महादेव-दूत को, अपना परिचय दे कर, अपना प्रश्न पूछ लो. तथा अगर विश्राम करने की इच्छा हो तो, वहाँ चले जाना. वहाँ तुम्हारे विश्राम का, स्थान
निर्धारित है. वहाँ जाने पर ! तुम्हें ! तुम्हारा कक्ष ! पता चल जायेगा.”
इतना निर्देश पा कर, अब वह ग्यारह-बारह वर्षीय लड़का ! धौलागिरी पर्वत स्थित ! शिवशक्ति जगत स्थल के , दूत-खंड वाले, उस बड़े से प्रांगण में,
औचक्का सा ! चारों ओर विचरण करने लगा. सभी प्रकार के , सैकड़ों जाने-पहचाने भोजन ! तथा हजारों अनजाने भोजन ! की वहाँ भरमार थी. खाने वाले
भी, महादेव-दूत ही थे. खिलाने-परोसने वाले भी, महादेव-दूत ही थे. और बनाने वाले भी, महादेव-दूत ही थे.
अलग-अलग स्थानों पर, कु छ-कु छ संख्या के समूह में, महादेव-दूत खड़े या बैठ कर, बातें कर रहे थे. कई समूहों की बातों को सुन कर, उसे ऐसा लगा
कि……… वहाँ जो अधिकतर चर्चायें चल रही थी. वह चर्चा थी. किसी मूलश्रेणी वाले आत्मा के , परीक्षाओं के मध्य ! की गयी सहायता के दौरान ! घटित
रोमांचित घटनाओं की.
एक स्थान पर ! सीमित संख्या में, कु छ महादेव-दूत एकत्र हो कर, ऐसे बातें कर रहे थे. जैसे वह सभी किसी ! पर्दे या स्क्रीन पर, एक ही दृश्य देख रहे हों.
परंतु वहाँ ! ना ही कोई स्क्रीन था ! ना ही ऐसा कोई यंत्र. वह लड़का ! विस्मित सा खड़ा हो कर ! अभी कु छ समझने का, प्रयत्न कर ही रहा था
कि…………..
एक थोड़ा अलग मुखाकृ ति के , महादेव-दूत ने, उससे पूछा :
“मनोज ! क्या मैं तुम्हारी भाषा में, यह वाक्य बोला हूँ ?”
उस ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के ने उत्तर दिया :
“जी महाराज !”
उन्होंने पूछा :
“क्या हम सभी जो देख रहें हैं. वह तुम देखना चाहोगे ?”
लड़के ने पूछा :
“आप सब क्या देख रहे हैं ?”
उन्होंने कहा :
“हम सब ! सुभद्र विस्तार क्षेत्र के , अग्रिच्खन्ड के , आकाशगंगा वृत्मवर्झ के , सौरंभ तारे के , सबसे बड़े ग्रह जार्थम पर ! संपूर्ण शुद्ध नव-जीवन आरंभ करने
हेतु ! हो रहे प्रलय ! संहार ! को देख रहे हैं. क्या तुम्हें भी देखना है ?”
उस लड़के ने, उत्सुकता से बोला :
“जी महाराज ! अवश्य देखना है.”
उन्होंने कहा :
“कु छ क्षण के लिये ! आँखें बंद करो.”
लड़के ने, महादेव-दूत के आदेशों का, पालन करते हुये, आँखें बंद कर लिया. लेकिन उसे कु छ भी नहीं दिखा. हाँ ! महादेव-दूत का स्वर ! अवश्य सुनायी
दिया. जो बोल रहे थे :
“अभी आँखें मत खोलना. पहले मेरी बात ! ध्यानपूर्वक सुनो ! और समझो !”
“अब तुम जैसे ही, आँखें खोलोगे ! तुम्हें वहाँ का ! विध्वंस-दृश्य दिखने लगेगा. तुम्हें अगर देखना बंद करना हो तो, एक बार पूरी तरह से, आँखें बंद कर
के , पुनः खोल लेना. दिखना बंद हो जायेगा. पुनः देखना हो तो, यहीं प्रक्रिया दोहराना. और जब पूर्णतः देखना बंद करना हो तो, मुझे बताना. मैं वह
सिद्धियाँ वापिस ले लूँगा. नहीं तो अर्धरात्रि के बाद ! वैसे भी दिखना बंद हो जायेगा. क्योंकि मैंने ! कु छ सीमित समय के लिये ही, यह सुविधा ! तुम्हें दी है.
अब तुम आँखें खोल सकते हो.”
लड़के ने आँखें खोली. और चमत्कार हो गया. उसे अपने चारों ओर ! पृथ्वी नुमा ! किसी ग्रह का दृश्य दिखने लगा. तथा उसी ग्रह के , दिख रहे दृश्य से
संबंधित ! ध्वनि भी, उसे सुनायी देने लगी. वहाँ के लोग भी, पृथ्वी ग्रह से थोड़े ही अलग थे. पेड़ पौधे व अन्य चीजें भी, पृथ्वी जैसी ही थी. परंतु ऐसा
प्रतीत हो रहा था. जैसे वह ग्रह ! पृथ्वी से भी पिछड़ा हुआ था. परंतु वहाँ तो, प्रलय या विध्वंस जैसा ! कु छ भी नहीं था.
उस लड़के ने, एक बार आँखों को, पूर्णतः बंद कर के , वापिस से खोला. अब उसे दूत-खंड का, वर्तमान दृश्य दिखने ! व सुनायी देने लगा. उसने अपने
पास खड़े ! महादेव-दूत से पूछा :
“महाराज ! वहाँ तो कोई भी, विध्वंश नहीं हो रहा है. सभी कु छ समान्य सा है. अगर कु छ असामान्य है तो, वह है वहाँ का पिछड़ापन ! वह ग्रह तो, पृथ्वी
से भी पिछड़ा हुआ है.”
महादेव-दूत बोले :
“अभी प्रलय शुरू नहीं हुआ है. होने वाला है. और रही बात ! उस ग्रह के पिछड़ेपन की. तो जिस भी ग्रह पर ! धर्म की सही व्याख्या ! यानि धर्म का अर्थ
सदकर्म छोड़कर, कु छ और लगाया जायेगा. उसका पिछड़ना तय है. यह बात सदैव ध्यान रखो. कर्म सबसे महत्वपूर्ण है.”
वह लड़का बोला :
“जब इतनी बड़ी घटना ! घटने वाली है तो, आप कु छ ही महादेव-दूत ! उसे क्यों देख रहे हैं ? बाकि के महादेव-दूत ! क्यों नहीं देख रहे हैं ?”
महादेव-दूत बोले :
“इसके कई उत्तर हैं. तुम्हें कै से पता ! कौन देख रहा है ! कौन नहीं देख रहा है ? दूसरी बात ! एक साथ कई-कई ग्रहों पर, प्रलय चल रहे होते हैं. जिसको
जहाँ का देखना होगा. वहाँ का देख रहा है. जिसको कहीं का नहीं देखना है. वह कहीं का भी, नहीं देख रहा है. हो सकता है ! किसी को प्रलय नहीं देख कर
के , नव-सृजन देखना हो, तो वह ! सृजन देख रहा होगा.”
“किसी को एक ग्रह का, विध्वंस नहीं देख करके , ग्रहों के समूह का ही, विध्वंस देखना हो. यानि किसी तारे ! एवं उसके संग-संग ! उसके सभी ग्रहों-
उपग्रहों को, एक साथ समाप्त होते देखना हो. तो वह उसको देख रहा होगा. किसी को सृष्टि का, विस्तार देखना हो तो, वह उसको देख रहा होगा. किसी को
कु छ नहीं देख कर के , के वल यहाँ का, प्रत्यक्ष ही देखना होगा. अतः सभी की अपनी-अपनी इच्छा.
“………….और रही बात ! हमारे इस समूह की. तो हम सभी ! यहाँ एक साथ ! इसलिये एकत्र हैं कि, हम सभी का, उस विध्वंस होने जा रहे ग्रह से,
कभी ना कभी का, कु छ-ना-कु छ संबंध है. अतः हम सभी ! अपने-अपने अनुभव बाँट रहे हैं.”
लड़के ने पूछा :
“संबंध यानि कि, आप सभी का, कोई-ना-कोई जन्म ! वहाँ हुआ होगा ?”
महादेव-दूत ने उत्तर दिया :
“संबंध के वल जन्म लेने से ही, नहीं होता है. उसके कई कारण होते हैं. मोक्ष प्राप्त करने के पश्चात् ! आत्मा को, जन्म लेने की अनिवार्यता ! समाप्त हो
जाती है. परंतु किसी आत्मा को, कहीं जन्म लेने की, इच्छा हुयी तो, वह ले भी सकती है. संबंध और भी कई प्रकार के होते हैं. जैसे मेरा ही ! उस ग्रह पर,
कोई जन्म नहीं हुआ. परंतु मेरा भी, उस ग्रह से काफी गहरा संबंध है.”
उस लड़के ने, कौतुहलता से पूछा :
“फिर कै सा संबंध है ?”
उन्होंने उत्तर दिया :
“मैंने वहाँ पर जन्म ली हुयी, कई मूलश्रेणी के आत्माओं की, उनके परीक्षा में, वहाँ उनकी ! सहायता की है.”
फिर उन्होंने ! पास में ही, किसी और महादेव-दूत को, खाना परोस रहे, एक अन्य महादेव दूत से कहा :
“इधर आओ ! और इस बालक को बताओ ! तुमसे संबंधित किसी ग्रह पर ! प्रलय तो नहीं आने वाला है ?”
वह वाले महादेव-दूत ! खाना परोस कर आये. और बोले :
“अभी से कु छ समय पश्चात् ! मेरे मूलश्रेणी के , चौथे चरण में, जो सत्रह जन्म हुये, उसमें से चौदहवें जन्म में, मेरा जन्म ! जिस जार्थम ग्रह पर हुआ था.
उस ग्रह पर, अभी से कु छ समय पश्चात् ! प्रलय आरंभ होगा. यह वहीं वाला ग्रह है. जिस ग्रह पर ! मेरे परीक्षा क्रमांक…….. ४/१५ वें परीक्षा में, आपने
मेरी सहायता की थी. जिसमें हमने ! उन दुष्कर्मियों के समूह से, उस स्त्री एवं उसकी दोनों बेटियों को, सकु शल बचाया था.”
महादेव-दूत ! उस महादेव-दूत को, संबोधित करके बोले :
“मुझे स्मृति है. मैं तो इस बालक को, समझा रहा था. ठीक है तुम जाओ.”
इसके बाद ! वह महादेव-दूत ! ग्यारह-बारह वर्षीय लड़के को, संबोधित करके बोले :
“अब ! तुम्हें समझ आया ! कि किसी ग्रह से, संबंध होने के , कई कारण हो सकते हैं.”
लड़के ने बोला :
“जी महाराज !”
और तत्क्षण ही, अगला प्रश्न भी पूछ लिया :
“अच्छा महाराज जी ! अभी आप बता रहे थे कि…….. ग्रहों के समूह का, एक साथ भी, विध्वंस होता है. यानि किसी तारे का, उसके सभी ग्रहों-उपग्रहों
के संग ! एक ही बार में, एक साथ संहार हो सकता है. ऐसा क्यों ? और कब होता है ?”
महादेव-दूत बोले :
“ऐसा बिल्कु ल हो सकता है. होते भी रहता है. जैसे किसी ग्रह के ऊपर ! वर्तमान में मानव-देह धारण करके , जीवन जी रही, यानि निवास कर रही, सभी
आत्माओं के , पाप-पुण्य का, संयुक्त लेखा-जोखा ! उस ग्रह के लिये, मान्य होता है. उसी प्रकार से, किसी तारे के , सभी ग्रहों-उपग्रहों को मिला करके , उस
तारे हेतु भी, संयुक्त लेखा-जोखा मान्य रहता है. और तारा ही क्यों ? यह लेखा-जोखा………….. आकाशगंगा ! खंडों ! एवं विस्तार क्षेत्रों पर भी, मान्य
होता है. बस संपूर्ण समग्र सृष्टि पर, एक साथ मान्य नहीं होता.”
तभी उस जार्थम ग्रह के , चतुर्थ चरण वाले महादेव-दूत ! एक लोटे नुमा पात्र में, बिल्कु ल अमृतमयी गाढ़ा सौंधा दूध ले कर आये. और उस लड़के को, देते
हुये बोले :
“तुम इसको पकड़ो ! और मेरे साथ आओ. हम दोनों वहाँ ! आराम कक्ष में बैठ कर ! संहार देखेंगे. वहाँ कोई मुझसे वरिष्ठ महादेव-दूत नहीं हैं. वहाँ सभी
मुझसे ! बाद वाले महादेव-दूत हैं. अतः मुझे कु छ भोजन चाहिये होगा. तो वहीं माँगा भी लूँगा.”
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