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इतिवृत Itivrutti Ke Punaravrutt Hone Ka Kaal
इतिवृत Itivrutti Ke Punaravrutt Hone Ka Kaal
#इतिवृत_के _पुनरावृत्त_होने_का_काल 3B :~ अब इससे अधिक सुनना ! ऋभज एवं निप्री के बस का, बिल्कु ल भी नहीं था. उनके बुद्धि-विवेक को,
दुरुस्त करने हेतु ! इतना सुनना ही, पर्याप्त था. परिणामस्वरूप ! पति-पत्नी दोनों एक साथ ! घर में प्रवेश किये. तथा साधु बाबा के चरणों में गिर
कर……..
…………रोते हुये बोले :
“गुरु जी ! मुझे क्षमा कर दीजिये. हम अभी के अभी ! सब कु छ त्याग करने हेतु ! तैयार हैं.”
शकोमफु बाबा बोले :
“अभी ! इस क्षण ! तुम्हारे सदकर्मों के प्रभाव की प्रबलता ! हावी है. इसलिये तुम ! अभी इतने सकारात्मक बन रहे हो.”
ऋभज बोला :
“फिर मैं क्या करूँ ? गुरुजी ! अब आप ही मुझे ! इस नर्क से निकाल सकते हैं. गुरु का स्थान तो, भगवान से भी ऊपर होता है. अतः हे गुरु जी ! मुझ पर
कृ पा कीजिये.”
शकोमफु बाबा ! थोड़े क्रोधित स्वर में बोले :
“यह तुम्हारी पहली त्रुटि है. अतः क्षमा कर दे रहा हूँ. भविष्य में ध्यान रहे कि, यह त्रुटि ! दुहरायी नहीं जाये. सदैव ध्यान रहे…………….. गुरु का स्थान
! बस गुरु के स्थान तक होता है. उससे ऊपर नहीं. अतः मेरे समक्ष ! मुझे भगवान से ऊपर ! बताने की चेष्टा नहीं करना.”
ऋभज बोला :
“क्षमा गुरुजी ! मैं आगे से ध्यान रखूँगा.”
अपने पति के समर्थन में, निप्री बोली :
“गुरु जी ! धर्म-ज्ञान के मामले में, कृ पया आप ! हम दोनों को, महा मूर्ख ही समझें. हमें कु छ भी नहीं पता ! गुरु जी ! यहाँ जो भी सैकड़ों पंथ हैं. उनके
माध्यम से, जितनी भी भ्रामक ! व आधी-अधूरी जानकारियाँ ! हमें प्राप्त हैं. हम के वल उसी के अनुरूप ! आचरण कर रहे हैं.”
शकोमफु बाबा बोले :
“इसीलिये तो, सर्वश्रेष्ठ देव की आज्ञा से, यह धर्मकाज प्रकल्प ! यहाँ स्थापित होने जा रहा है. तुम दोनों पति-पत्नी ! अपने सभी प्रश्नों ! व जिज्ञासाओं का
! शीघ्रातिशीघ्र मुझसे ! निदान प्राप्त लो. ताकि तुम्हारा विश्वास ! तुम्हें इस पुण्य-पथ पर, बनाये रखे. नहीं तो, कु कर्मों के प्रभाव ! जब-जब प्रबल होंगे.
तब-तब वह ! तुम्हें भटकायेंगे. और उसी भटकाव में, कभी एक क्षण ऐसा भी आयेगा कि………….”
“………..तुम्हें ! यह शकोमफु बाबा ही, गलत लगने लगेगा. जिसके फलस्वरूप ! तुम्हें इस धर्मकाज से ही, घृणा हो जायेगी. तदुपरांत ! तुम इन पुण्य-
प्रकल्पों को, संदेह की दृष्टि से, देखने लगोगे.”
“…………और इन सभी नकारात्मक घटनाओं का, कु ल मिला कर ! यह असर होगा कि, तुम इस धर्मकाज प्रकल्प से, स्वतः ही दूर हो जाओगे. मैं तो
तुम्हें ! कभी सांके तिक रूप से, तो कभी प्रत्यक्ष रूप से, बुलाता रहूँगा. परंतु तुम मुझे ! दुत्कारते रहोगे. एक समय बाद ! मैं भी तुम्हें ! बुलाना छोड़ दूँगा.”
ऋभज ने पूछा :
“गुरु जी ! इस नकारात्मकता से बचाव का, क्या उपाय है ?”
शकोमफु बाबा बोले
“कोई उपाय नहीं है. और अगर है भी तो, यही एक मात्र उपाय है कि……………. अपने-आप को बल-पूर्वक ! सकारात्मक रखते हुये, इस धर्मकाज में,
कै से भी यत्न-प्रयत्न करके , सप्रयास बनाये रखना. अपने दायित्वों का, निर्वहन करते रहना. और ऐसा करते-करते ! जैसे-जैसे समय व्यतीत होता जायेगा.
तब फिर वैसे-वैसे ! इस पुण्य-पथ से, भागने की, तुम्हारी संभावना भी, क्षीण होती जायेगी. फिर वह दिवस भी आयेगा. जब तुम्हें ! इस चौरासी लाख
चौरासी योनियों के , बार-बार वाले क्रमिक चक्र से, मुक्ति मिल जायेगी.”
ऋभज ने पूछा :
“गुरु जी ! आपने संध्या-काल में बताया था कि……….. आप भगवान जी की आज्ञा से, इस धर्मकाज को, संपन्न करने के लिये, कु ल 9999 पूर्वश्रेणी
के , मानवों का ! एक समूह दल बनाने वाले हैं. उसमें से कितनी संख्या ! अभी तक पूर्ण हो चुकी है गुरुजी ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“उसमें तो अभी तक ! अच्छी-भली संख्या हो गयी है. मैं तुम्हें ! उन सभी धर्म-योद्धाओं से, मिलाऊँ गा भी.”
ऋभज बोला :
“यह सबसे उचित रहेगा गुरु जी ! क्योंकि जब मैं ! उन्हीं के संगति में रहूँगा. तब फिर मेरे नकारात्मक होने का, डर भी समाप्त हो जायेगा.”
शकोमफु बाबा हंसते हुये बोले :
“यह डर तो, उस समूह-दल के संपर्क में, रहने पर भी, पूर्णतः समाप्त नहीं होगा. क्योंकि वहाँ भी तुम्हें ! नकारात्मक करने वाले, एक से एक धुरंधर मिलेंगे.”
अब ऋभज ! कान्फ्यूज होता हुआ बोला :
“गुरु जी ! यह आप क्या बोल रहे हैं ? उनको आपने चयनित करके , उस समूह-दल में रखा है. वह भला ! इस धर्मकाज के प्रति ! अथवा आपके प्रति !
मुझे क्यों नकारात्मक करेंगे ?”
शकोमफु बाबा ने, मुस्कु राते हुये उत्तर दिया :
“क्योंकि वह ! अंततोगत्वा ! नकारात्मकता फै लाने के उद्देश्य से ही, उस समूह-दल में, अभी तक बने हुये हैं.”
ऋभज ने कौतूहलवश पूछा :
“क्या आप उन्हें जानते हैं ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“क्यों नहीं जानता ? बिल्कु ल जानता हूँ. वह समूह दल के , जिन-जिन सकारात्मक धर्म-योद्धाओं को, नकारात्मक करते रहते हैं. उसमें से कु छ-कु छ मुझे !
उनके बारे में, अवगत कराते रहते हैं. तथा कु छ-कु छ जानकारियाँ मुझे ! सर्वश्रेष्ठ देव के दूतों से भी, मिलती ही रहती हैं.”
ऋभज ने आश्चर्य से पूछा :
“तब फिर आप उन्हें ! अपने समूह-दल से, निकाल क्यों नहीं देते ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“क्योंकि वह समूह-दल ! मेरा है ही नहीं. वह समूह-दल तो, इस धर्मकाज प्रकल्प का है. और यह धर्मकाज प्रकल्प ! सर्वश्रेष्ठ देव तथा माता उमा का है.
तथा उनसे तो, कु छ भी नहीं छिपा है. और वैसे भी ! मैं कौन होता हूँ ? उन्हें निकालने वाला. वह ! उस समूह-दल में, प्रविष्ट हुये हैं……………”
“अपने पूर्वजन्मों के संचित सदकर्मों के बूते. तथा अगर वह ! बाहर भी होंगे. तो वह होंगे………….. अपने कु कर्मों के बूते. परंतु हाँ ! अगर बाहर होने से
पूर्व ! उन्हें सदबुद्धि आ गयी. तो वह भी प्रकल्प में, सक्रिय सकारात्मक भागीदारी निभा कर ! मूल श्रेणी में, प्रवेश पा सकते हैं.”
क्रमशः
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