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#इतिवृत_के _पुनरावृत्त_होने_का_काल 2A :~ पूर्वश्रेणी के आठवें चरण वाला !

ऋभज नामक मनुष्य बोला :


“गुरु जी ! मुझे आपके द्वारा लिपिबद्ध की गयी ! समस्त देवी-देवताओं-गणों-दूतों से वार्तालाप वाली, ज्ञानवर्धक पठन-सामग्री कहाँ मिलेगी ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“वह सभी कु छ ! मैं तुम्हें, उपलब्ध कराऊँ गा ऋभज. परंतु उनका अध्ययन ! आरंभ करने से पूर्व ! तुम्हें सर्वप्रथम ! आत्मा की यात्रा को, समझना होगा.
यह समझना होगा कि……………. आत्मा के निर्माण होने से, उसके मोक्ष प्राप्त करने तक के मध्य में, कितने पड़ाव हैं ? वह सभी अठारह चरण ! कौन-
कौन से हैं ? यह समझना होगा.”
इतना बोल कर……………. शकोमफु बाबा ! सड़क से नीचे उतर कर ! पुलिया के अंदर घुस गये. ऋभज ! सड़क के ऊपर ही खड़ा रहा. कु छ ही समय
में, शकोमफु बाबा ! पुलिया से निकल कर ! ऊपर सड़क पर आ गये. उनके साथ…………… उनकी धर्मपत्नी ! तथा उनके छः बच्चे भी बाहर आये. एक
बच्चा ! गुरुमाता की गोद में था. दो बच्चे ! शकोमफु बाबा के कं धे पर, तथा गोद में थे. तीन बच्चे ! अपने पैरों से चलते हुये, बाहर आये.
उन तीनों ! यानि बाकी के तीन से, अपेक्षाकृ त थोड़े बड़े, बच्चों के पास ! सामानों की एक-एक गठरी भी थी. शकोमफु बाबा ! तथा गुरु माता के पीठ पर भी,
एक-एक बड़ी गठरी थी. शकोमफु बाबा तो, बिल्कु ल जोकर जैसे दिख रहे थे. क्योंकि उनके गर्दन में, स्पीकर लटक रहा था. पीठ पर उन्होंने ! एक बड़ी
गठरी बाँध रखी थी. एक कं धे में, एक बड़ा थैला टाँग रखा था. गोद में एक बच्चा ! तथा कं धे पर एक बच्चा ! उठा रखा था.
ऋभज बोला :
“गुरु जी ! लाइये ! थैला मुझे दे दीजिये.”
शकोमफु बाबा ! अपने कं धे वाला थैला ! उसे पकड़ाते हुये, उससे पूछे :
“तुम्हारे परिवार वाले कहाँ हैं ?”
ऋभज बोला :
“इसी मार्ग पर ! आगे खेतों के मध्य में बना हुआ ! मेरा एक और घर है. सब वहीं पर ! हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं.”
शकोमफु बाबा ने पूछा :
“वहाँ पहुँचने में, कितना समय लगेगा ?”
ऋभज बोला :
“गुरु जी ! लगभग आधे घंटे तो, लग ही जायेंगे. तब तक अगर संभव हो तो, मुझे वह ! अठारहों चरण समझा दीजिये.
शकोमफु बाबा ने, आत्मा-यात्रा का ! चरण समझाना ! आरंभ किया. उन्होंने जो समझाया. अगर मैं उसे ! अपने शब्दों में लिखूँ. तो वह कु छ ऐसा
होगा………….
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मूलश्रेणी वाले नौ चरणों के , आरंभ होने से पहले, पूर्वश्रेणी वाले, नौ चरणों का विवरण :~
पूर्वश्रेणी का पहला चरण :~
महादेव द्वारा ! अजर/अमर आत्मा का निर्माण.
पूर्वश्रेणी का दूसरा चरण :~
अपनी पृथ्वी के गणितीय गणना ! व दृष्टिगोचर होते जीवन ! के अनुसार समझे तो, लगभग तैंतीस लाख जन्म ! पेड़-पौधे-शैवाल इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का तीसरा चरण :~
लगभग चौबीस लाख जन्म ! कीड़े-मकोड़े इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का चौथा चरण :~
लगभग पंद्रह लाख जन्म ! जलचर जीव इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का पाँचवा चरण :~
लगभग नौ लाख जन्म ! पशु इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का छठा चरण :~
लगभग तीन लाख जन्म ! पक्षी इत्यादि के रूप में.
:~ अब यहाँ एक विशेष बात ! ऐसा नहीं है कि, यहाँ तक के , चरणों में से, एक चरण के , सभी कु ल जन्मों को, भोगने के पश्चात् ही, दूसरे चरण में, जन्म
मिलेगा. यहाँ तक के , सभी चरणों में से, सम्मिलित रूप से, जन्म मिलते रहेंगे. यानि पूर्वश्रेणी के चरण क्रमांक………… दो ! तीन ! चार ! पाँच ! एवं छः
! के जन्म ! क्रमानुसार नहीं होते है. इन पाँच चरणों के जन्म ! सम्मिलित / समानांतर रूप से, साथ-साथ चलते रहते हैं. यानि इन पाँच चरणों के साथ !
ऐसा नहीं है कि……….. एक चरण के , सभी जन्म ! समाप्त होने के बाद ही, दूसरे चरण के , जन्मों का आरंभ होगा. इन पाँचों चरण के , जन्म ! साथ-साथ
चलते रहते हैं.
अब आगे………………
पूर्वश्रेणी का सातवाँ चरण :~
कु ल इक्कायासी जन्म…………. पूज्य पेड़ / पौधे / जलचर / पशु / पक्षी इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का आठवाँ चरण :~
न्यूनतम तीन सौ तैंतीस वर्षों में…………. न्यूनतम तीन ! या अधिकतम कितने भी मनुष्य जन्म. अथवा ! इसको ऐसे भी, समझ सकते हैं कि……….
न्यूनतम तीन जन्म ! जिसमें कम से कम, कु ल ३३३ वर्ष ! पूर्ण होने चाहिये. उन तीन जन्मों का मिला कर, अधिकतम वर्ष ! कितने भी हो सकते हैं.
इसमें ग्यारह वर्ष तक की, आयु के अवस्था तक ! यानि बालक अवस्था में हुयी………. मृत्यु पर ! उस जन्म के वर्षों की, गणना नहीं होती है. तथा साथ
ही, उस जन्म क्रमांक की भी, गणना नहीं होती है.
इस चरण का, प्रथम मानव जन्म ! हर हाल में, अच्छे आदर्श परिवेश में ही होता है. जहाँ वह मनुष्य ! सदकर्म ही करे. ऐसा माहौल / वातावरण ! सदैव
उपलब्ध रहता है. परंतु फिर भी अगर ! उस आत्मा ने, कु कर्म ही किये. तो वह ! उस जन्म में, जितने कु कर्म किये रहेगा. उसी के अनुसार, उसके अगले
जन्म में, उसको उतने ही, कु कर्मी व अधर्मी परिवेश वाले, परिवार व / या माहौल में, पैदा किया जायेगा. हाँ ! अगर वह चाहे तो, अपने आपको चेत करके !
पुनः सदकर्म ! व धर्म के मार्ग पर, स्वयं को ला कर के , और अधिक कु कर्म / अधर्म (पाप) करने से, स्वयं को बचा सकता है.
………और इस प्रकार, यह होते हैं ! कु ल चौरासी लाख, चौरासी जन्म !
………..तथा ! यह कोई आवश्यक नहीं है कि, आपका हर जन्म ! इस सृष्टि के , एक ही ग्रह (जैसे पृथ्वी या कोई भी ग्रह) पर ही मिलता रहे. इस सृष्टि
के , अनगिनत असंख्य ग्रहों ! उपग्रहों ! जहाँ किसी भी रूप में जीवन है. उन सभी ग्रहों / उपग्रहों में से, कहीं भी मिल सकता है. किसी भी ग्रह पर ! कितने
भी जन्म मिल सकते हैं. किसी ग्रह पर एक जन्म ! तो किसी ग्रह पर, एक से अधिक जन्म ! तो बहुतों ग्रहों पर, शून्य ! यानि एक भी जन्म ! नहीं मिल
सकता है. क्योंकि आपके जन्मों की संख्या ! चौरासी लाख चौरासी है. तथा जीवनयुक्त ग्रहों की संख्या ! इससे बहुत-बहुत अधिक है.
पूर्वश्रेणी का नौवाँ चरण :~
इस चरण के तीन प्रकार हैं. प्रथम ! द्वितीय ! तृतीय ! ……….जो आठवें चरण के , समाप्ति के पश्चात् ! उस आठवें चरण वाले, तीन या सभी जन्मों के ,
सदकर्मों ! व कु कर्मों ! के अनुरूप तय होता है.
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, प्रथम प्रकार :~
“अगर सद्कर्मों की ! बहुत अधिक न्यूनता हो. तथा कु कर्मों की, अत्यधिक अधिकता हो. तब उस आत्मा को, पुनः चौरासी लाख चौरासी योनियों के ,
क्रमिक चक्र में, जाना होगा. यानि पूर्वश्रेणी के , दूसरे चरण से, पुनः आरंभ करना होगा.
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, द्वितीय प्रकार :~
“सदकर्म भले ही कम हो. परंतु कु कर्म भी ! अधिक नहीं हो. तो उन कर्मों के अनुसार ! एक या एक से अधिक जन्मों हेतु ! पूर्वश्रेणी के ………….. चरण
दो ! तीन ! चार ! पाँच ! एवं छः ! में जाना होगा. उसके पश्चात् ! यानि उन पूर्व के , मानव जन्म वाले, कु कर्मों का दंड भोगने हेतु ! पुनः पूर्वश्रेणी के आठवें
चरण में, मनुष्य जन्म मिलेगा.”
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, तृतीय प्रकार :~
“अगर सद्कर्मों की ! बहुत अधिक यानि पर्याप्त अधिकता ! तथा कु कर्मों की न्यूनता है. तो इस चरण में, कु छ कालखंड ! यानि वर्तमान में चल रहे, जन्म
की बची हुयी अवधि ! प्रतीक्षा अवधि रहेगी. और उस प्रतीक्षा अवधि को, काटना ही, एक प्रकार से, इन आत्माओं के लिये, यह नौंवा चरण कहलायेगा. कु छ
अवधि पश्चात् ! जब उस चल रहे जन्म की ! समय-सीमा समाप्त हो जायेगी. यानि वह आत्मा ! वर्तमान देह का, त्याग कर देगी. तब उस आत्मा को, सदैव
के लिये, मूलश्रेणी में प्रवेश मिल जायेगा. उसे पुनः कभी भी, चौरासी लाख चौरासी योनियों का, चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा. अब उसकी आत्मा ! मूल श्रेणी
के , प्रथम चरण में, जन्म ले कर, मोक्ष के दिशा की ओर, यात्रा आरंभ करेगी. जिसके हेतु ! महादेव ने उस आत्मा का, निर्माण किया था.
……………अब !
पूर्वश्रेणी वाले, नौ चरणों को, पार करने के पश्चात् ! मूलश्रेणी वाले, नौ चरणों का विवरण :~
मूलश्रेणी का पहला चरण :~
यहाँ से आपको ! सदैव मनुष्य जन्म ही मिलता है. इस चरण से आपको………. कभी-कभी महादेव ! माता ! देवी-देवता-गण ! एवं महादेव दूतों के , दर्शन
व मार्गदर्शन मिलना ! आरंभ हो जाता है. कु छ-कु छ आसान-आसान दायित्व मिलने भी, आरंभ हो जाते हैं. इस चरण को पार करने योग्य ! पर्याप्त सदकर्मों
का ! जब तक संचयन नहीं हो जाता है. तब तक आपकी आत्मा को, बार-बार इसी चरण में, मनुष्य जन्म ! मिलता रहता है. और इस चरण के , प्रत्येक व
सभी जन्मों का, सदकर्म ! आपस में एक साथ ! संचित होते रहता है. यानि अग्रेषित होते रहता है. जब तक कि, चरण पार करने योग्य ! पर्याप्त सदकर्मों का
! संचयन ना हो जाये. साथ ही इस चरण ! या मूलश्रेणी के किसी भी चरण को, उत्तीर्ण करने से पूर्व ! आपके कु कर्मों का…………. दंड भोग-भोग करके ,
शून्य या न्यूनतम हो जाना ! अनिवार्य है. इस चरण ! या किसी भी चरण को, पार करके ! उसके अगले चरण में, पहुँचते ही……….. पुराने सभी संचय
सदकर्म ! शून्य हो जाते हैं. क्योंकि उन्हीं सदकर्मों के , बूते ही तो, आप अगले चरण में, प्रवेश करते हैं. परंतु साथ ही, यह अवश्य ध्यान रहे कि………….
चरण पार करने से पूर्व ! नये-पुराने सभी संचित कु कर्मों का, दंड भोग लेना भी, अनिवार्य है.
मूलश्रेणी का दूसरा चरण :~
इस चरण की भी, सभी नियमावली ! एवं परिस्थितियाँ ! इसके पहले वाले चरण ! यानि मूलश्रेणी के , पहले चरण जैसे ही हैं. बस इस चरण में आपको !
मिलने वाले दायित्व……….. बड़े ! कठिन ! कठोर ! होते हैं. तथा सदकर्मों का, संचयन भी पहले चरण से, बहुत अधिक करना पड़ता है.
मूलश्रेणी का तीसरा चरण :~
दूसरे चरण को, पार करने के पश्चात् ! अगले चरण ! यानि चौथे चरण में, जाने की प्रतीक्षा अवधि को ही ! तीसरा चरण बोलते हैं. इस चरण में ! कोई नया
या अलग से, जन्म नहीं मिलता. बल्कि दूसरे चरण के , अंतिम जन्म की, बची हुयी अवधि ही ! तीसरा चरण कहलाती है.
मूलश्रेणी का चौथा चरण :~
इस चरण में ! जो सबसे प्रथम बदलाव आता हैं. वह यह है कि………….. यहाँ से अब ! पूर्व जन्मों के संचित सदकर्म ! अगले जन्म में, अग्रेषित होना !
बंद हो जाता है. तथा इस चरण में, एक विशेष सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी के लिये, यहाँ के गणनानुसार ! लगभग सत्ताईस वर्षों में, आपको ! कु ल पंद्रह
कठिन परीक्षाओं में से, न्यूनतम ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य है. इन परीक्षाओं के मध्य……….. विकट ! व अत्यंत संकट वाली,
परिस्थितियों में, महादेव-दूतों से, सहायता भी मिलती रहती है. परंतु इन ग्यारह परीक्षाओं को, एक ही जन्म के , उस सीमित अवधि में ही, उत्तीर्ण करना
आवश्यक है. अन्यथा अगले जन्म में, पुनः नये ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना पड़ता है. इस चरण में भी, जन्मों के संख्या की, कोई बाध्यता नहीं है.
परीक्षा उत्तीर्ण होने तक, बारंबार मानव जन्म ही मिलता रहता है. बाकी के चरणों की भाँति ही, यहाँ भी ! चरण पार करने के लिये, आपके कु कर्मों
का…………. दंड भोग-भोग करके , शून्य या न्यूनतम हो जाना ! अनिवार्य है.
मूलश्रेणी का पाँचवा चरण :~
इस चरण में, सभी कु छ ! चौथे चरण जैसा ही रहता है. बस उसी सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी ग्रह के गणनानुसार ! लगभग सत्ताईस वर्ष में, आपको कु ल !
एक सौ पचास कठिन परीक्षाओं में से, एक सौ ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य है. बाकी का सभी कु छ ! चौथे चरण जैसा ही रहता है.
मूलश्रेणी का छठा चरण :~
इस चरण में भी, सभी कु छ ! चौथे व पाँचवे चरण जैसा ही रहता है. बस उसी सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी के लिये, सत्ताईस वर्ष में ही, आपको कु ल पंद्रह
सौ कठिन परीक्षाओं में से, ग्यारह सौ ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है. परंतु इस चरण में, उन परीक्षाओं के मध्य ! आपको अपने दूसरे
स्वरूप की, सहायता भी मिलती रहती है. इसके अलावा ! बाकी सभी कु छ ! चौथे व पाँचवे चरण जैसा ही रहता है.
मूलश्रेणी का सातवाँ चरण :~
छठे चरण को, पार करने के पश्चात् ! अगले चरण, यानि आठवें चरण में, जाने की प्रतीक्षा अवधि को, सातवाँ चरण बोलते हैं. इस चरण में, कोई नया ! या
अलग से, जन्म नहीं मिलता. बल्कि छठे चरण के , अंतिम जन्म की, बची हुयी अवधि ही, या उसी जन्म में, महादेव-दूत बनने हेतु ! जो मुख्य धर्मकाज का
आदेश मिलता है. उस आज्ञा मिलने के , तिथि तक की, प्रतीक्षा अवधि ही, सातवाँ चरण कहलाती है.
मूलश्रेणी का आठवाँ चरण :~
इस चरण में, आपको अपने स्वयं की इच्छानुसार ! इस संपूर्ण सृष्टि के , किसी भी एक ग्रह ! या उपग्रह पर, उस ग्रह से संबंधित ! महादेव आज्ञा का, एक
विशेष धर्मकाज करना होता है. उस काज को करने की, आज्ञा मिलने वाली तिथि से ही, आपका आठवाँ चरण ! आरंभ हो जाता है. इसमें करने वाले,
विशेष धर्मकाज की जानकारी ! भले ही आपको, आठवाँ चरण आरंभ होने के समय, प्राप्त होती है. परंतु कौन से ग्रह पर, आपको अपना ! विशेष धर्मकाज
संपन्न करना है. इसका वैकल्पिक चुनाव ! आपको छठे चरण के , आरंभिक काल में ही, स्वयं से कर लेना होता है.
मूलश्रेणी का नौवाँ चरण :~
वस्तुतः ! यह कोई चरण ही नहीं है. यह एक अवस्था है. लाखों-करोड़ों ! या उससे भी अधिक जन्म ले कर, आपकी आत्मा ने, जिस परम् उद्देश्य ! यानि
मोक्ष हेतु ! करोड़ों-अरबों-खरबों ! या उससे भी अधिक वर्ष की यात्रा हेतु ! अपनी आत्मा-यात्रा का, आरंभ किया था. उसकी यह अंतिम सीढ़ी है. यहाँ
आपकी आत्मा ! मोक्ष को प्राप्त कर, महादेव-दूत बन जाती है. इस चरण में, आप तब पहुँचते हैं. जब आठवें चरण वाले, महादेव से आज्ञा प्राप्त ! विशेष धर्म-
काज को, संपन्न कर लेते हैं. या उस काज को करते हुये ! अथवा संपन्न होने से पूर्व ही ! आपकी आत्मा ! उस वर्तमान देह का, त्याग कर देती है. यानि
उस जन्म की, आपकी आयु अवधि ! समाप्त हो जाती है. अंततोगत्वा ! यह, वह चरण है, जिसमें आपको ! उसी जन्म में ! हर हाल में ! महादेव-दूत ! बन
ही जाना है. जिसके परिणामस्वरूप ! आप जन्म-मरण के चक्र से, सदैव के लिये ! स्वतंत्र हो जाते हैं. संपूर्ण सृष्टि के , सभी ग्रहों-उपग्रहों या स्थानों पर,
किसी भी स्वरूप में, कितने भी अवधि तक, रह सकते हैं. आप शिवशक्ति जगत स्थलों पर भी, रह सकते हैं. यानि आप मोक्ष को, प्राप्त कर लेते हैं. अब
आपका ! एक ही काज बच जाता है……….. महादेव का दूत बन कर, महादेव के आज्ञा वाले काज को, समय-समय पर करते रहना. तथा पूरे सृष्टि के ,
सभी ग्रहों-उपग्रहों के , मूलश्रेणी वाली आत्माओं का, विधि-विधान के अनुरूप ! सहायता करना. एवं यह सभी कु छ भी, अनिवार्य नहीं होता. यह पूर्णतः !
आपकी अपनी इच्छा पर, निर्भर करता है.
……………पूर्वश्रेणी के सभी नौ चरण ! तथा मूलश्रेणी के सभी नौ चरण ! को समझने के पश्चात् ! इन निम्नलिखित ! चार बिंदुओं को भी समझना
! अत्यंत आवश्यक है.
:~
सदकर्म / धर्म / पुण्य हो ! या कु कर्म / अधर्म / पाप हो ! यह दोनों ही, जन्म-जन्मांतर तक ! संचय व अग्रेषित (फॉरवर्ड) होते रहते हैं. जब तक इनका
शुभ-फल ! या उपयुक्त-दंड ! ना मिल जाये.
:~
कु कर्म / अधर्म / पाप का, हर हाल में, दंड मिलेगा ही मिलेगा. कु कर्मों का समुचित दंड भोगने के अलावा, इससे बचाव का, कोई भी अन्य मार्ग नहीं है.
:~
दान-पुण्य करके ! देवी-देवता-गण ! यानि इष्ट-आराध्य की पूजा करके ! उनका नाम जप करके ! पुण्यों में बढ़ोतरी तो, की जा सकती है. किं तु उससे रत्ती
भर भी ! पाप नहीं काटे जा सकते. पाप का दंड तो, हर हाल में, अगले जन्म में, भोगना ही पड़ेगा. जैसे इस जन्म में, पूर्वजन्म का भोग रहे हो.
:~
वैसे देखें तो, पुण्य एकत्र व संचय करने का, सबसे सर्वोत्तम मार्ग ! धर्म / सदकर्म करना ही है. *कर्म* से बढ़कर, कु छ भी नहीं है. सदकर्म करके ! सदकर्म
/ पुण्य को, और भी बढ़ाया जा सकता है. लेकिन उससे कु कर्म / पाप को, नहीं मिटाया जा सकता. सदकर्म / पुण्य से, कु कर्म / पाप को, किसी भी हाल में,
समायोजित / एडजस्ट ! नहीं किया जा सकता.
क्रमशः
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#इतिवृत_के _पुनरावृत्त_होने_का_काल 3B :~ अब इससे अधिक सुनना ! ऋभज एवं निप्री के बस का, बिल्कु ल भी नहीं था. उनके बुद्धि-विवेक को,
दुरुस्त करने हेतु ! इतना सुनना ही, पर्याप्त था. परिणामस्वरूप ! पति-पत्नी दोनों एक साथ ! घर में प्रवेश किये. तथा साधु बाबा के चरणों में गिर
कर……..
…………रोते हुये बोले :
“गुरु जी ! मुझे क्षमा कर दीजिये. हम अभी के अभी ! सब कु छ त्याग करने हेतु ! तैयार हैं.”
शकोमफु बाबा बोले :
“अभी ! इस क्षण ! तुम्हारे सदकर्मों के प्रभाव की प्रबलता ! हावी है. इसलिये तुम ! अभी इतने सकारात्मक बन रहे हो.”
ऋभज बोला :
“फिर मैं क्या करूँ ? गुरुजी ! अब आप ही मुझे ! इस नर्क से निकाल सकते हैं. गुरु का स्थान तो, भगवान से भी ऊपर होता है. अतः हे गुरु जी ! मुझ पर
कृ पा कीजिये.”
शकोमफु बाबा ! थोड़े क्रोधित स्वर में बोले :
“यह तुम्हारी पहली त्रुटि है. अतः क्षमा कर दे रहा हूँ. भविष्य में ध्यान रहे कि, यह त्रुटि ! दुहरायी नहीं जाये. सदैव ध्यान रहे…………….. गुरु का स्थान
! बस गुरु के स्थान तक होता है. उससे ऊपर नहीं. अतः मेरे समक्ष ! मुझे भगवान से ऊपर ! बताने की चेष्टा नहीं करना.”
ऋभज बोला :
“क्षमा गुरुजी ! मैं आगे से ध्यान रखूँगा.”
अपने पति के समर्थन में, निप्री बोली :
“गुरु जी ! धर्म-ज्ञान के मामले में, कृ पया आप ! हम दोनों को, महा मूर्ख ही समझें. हमें कु छ भी नहीं पता ! गुरु जी ! यहाँ जो भी सैकड़ों पंथ हैं. उनके
माध्यम से, जितनी भी भ्रामक ! व आधी-अधूरी जानकारियाँ ! हमें प्राप्त हैं. हम के वल उसी के अनुरूप ! आचरण कर रहे हैं.”
शकोमफु बाबा बोले :
“इसीलिये तो, सर्वश्रेष्ठ देव की आज्ञा से, यह धर्मकाज प्रकल्प ! यहाँ स्थापित होने जा रहा है. तुम दोनों पति-पत्नी ! अपने सभी प्रश्नों ! व जिज्ञासाओं का
! शीघ्रातिशीघ्र मुझसे ! निदान प्राप्त लो. ताकि तुम्हारा विश्वास ! तुम्हें इस पुण्य-पथ पर, बनाये रखे. नहीं तो, कु कर्मों के प्रभाव ! जब-जब प्रबल होंगे.
तब-तब वह ! तुम्हें भटकायेंगे. और उसी भटकाव में, कभी एक क्षण ऐसा भी आयेगा कि………….”
“………..तुम्हें ! यह शकोमफु बाबा ही, गलत लगने लगेगा. जिसके फलस्वरूप ! तुम्हें इस धर्मकाज से ही, घृणा हो जायेगी. तदुपरांत ! तुम इन पुण्य-
प्रकल्पों को, संदेह की दृष्टि से, देखने लगोगे.”
“…………और इन सभी नकारात्मक घटनाओं का, कु ल मिला कर ! यह असर होगा कि, तुम इस धर्मकाज प्रकल्प से, स्वतः ही दूर हो जाओगे. मैं तो
तुम्हें ! कभी सांके तिक रूप से, तो कभी प्रत्यक्ष रूप से, बुलाता रहूँगा. परंतु तुम मुझे ! दुत्कारते रहोगे. एक समय बाद ! मैं भी तुम्हें ! बुलाना छोड़ दूँगा.”
ऋभज ने पूछा :
“गुरु जी ! इस नकारात्मकता से बचाव का, क्या उपाय है ?”
शकोमफु बाबा बोले
“कोई उपाय नहीं है. और अगर है भी तो, यही एक मात्र उपाय है कि……………. अपने-आप को बल-पूर्वक ! सकारात्मक रखते हुये, इस धर्मकाज में,
कै से भी यत्न-प्रयत्न करके , सप्रयास बनाये रखना. अपने दायित्वों का, निर्वहन करते रहना. और ऐसा करते-करते ! जैसे-जैसे समय व्यतीत होता जायेगा.
तब फिर वैसे-वैसे ! इस पुण्य-पथ से, भागने की, तुम्हारी संभावना भी, क्षीण होती जायेगी. फिर वह दिवस भी आयेगा. जब तुम्हें ! इस चौरासी लाख
चौरासी योनियों के , बार-बार वाले क्रमिक चक्र से, मुक्ति मिल जायेगी.”
ऋभज ने पूछा :
“गुरु जी ! आपने संध्या-काल में बताया था कि……….. आप भगवान जी की आज्ञा से, इस धर्मकाज को, संपन्न करने के लिये, कु ल 9999 पूर्वश्रेणी
के , मानवों का ! एक समूह दल बनाने वाले हैं. उसमें से कितनी संख्या ! अभी तक पूर्ण हो चुकी है गुरुजी ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“उसमें तो अभी तक ! अच्छी-भली संख्या हो गयी है. मैं तुम्हें ! उन सभी धर्म-योद्धाओं से, मिलाऊँ गा भी.”
ऋभज बोला :
“यह सबसे उचित रहेगा गुरु जी ! क्योंकि जब मैं ! उन्हीं के संगति में रहूँगा. तब फिर मेरे नकारात्मक होने का, डर भी समाप्त हो जायेगा.”
शकोमफु बाबा हंसते हुये बोले :
“यह डर तो, उस समूह-दल के संपर्क में, रहने पर भी, पूर्णतः समाप्त नहीं होगा. क्योंकि वहाँ भी तुम्हें ! नकारात्मक करने वाले, एक से एक धुरंधर मिलेंगे.”
अब ऋभज ! कान्फ्यूज होता हुआ बोला :
“गुरु जी ! यह आप क्या बोल रहे हैं ? उनको आपने चयनित करके , उस समूह-दल में रखा है. वह भला ! इस धर्मकाज के प्रति ! अथवा आपके प्रति !
मुझे क्यों नकारात्मक करेंगे ?”
शकोमफु बाबा ने, मुस्कु राते हुये उत्तर दिया :
“क्योंकि वह ! अंततोगत्वा ! नकारात्मकता फै लाने के उद्देश्य से ही, उस समूह-दल में, अभी तक बने हुये हैं.”
ऋभज ने कौतूहलवश पूछा :
“क्या आप उन्हें जानते हैं ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“क्यों नहीं जानता ? बिल्कु ल जानता हूँ. वह समूह दल के , जिन-जिन सकारात्मक धर्म-योद्धाओं को, नकारात्मक करते रहते हैं. उसमें से कु छ-कु छ मुझे !
उनके बारे में, अवगत कराते रहते हैं. तथा कु छ-कु छ जानकारियाँ मुझे ! सर्वश्रेष्ठ देव के दूतों से भी, मिलती ही रहती हैं.”
ऋभज ने आश्चर्य से पूछा :
“तब फिर आप उन्हें ! अपने समूह-दल से, निकाल क्यों नहीं देते ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“क्योंकि वह समूह-दल ! मेरा है ही नहीं. वह समूह-दल तो, इस धर्मकाज प्रकल्प का है. और यह धर्मकाज प्रकल्प ! सर्वश्रेष्ठ देव तथा माता उमा का है.
तथा उनसे तो, कु छ भी नहीं छिपा है. और वैसे भी ! मैं कौन होता हूँ ? उन्हें निकालने वाला. वह ! उस समूह-दल में, प्रविष्ट हुये हैं……………”
“अपने पूर्वजन्मों के संचित सदकर्मों के बूते. तथा अगर वह ! बाहर भी होंगे. तो वह होंगे………….. अपने कु कर्मों के बूते. परंतु हाँ ! अगर बाहर होने से
पूर्व ! उन्हें सदबुद्धि आ गयी. तो वह भी प्रकल्प में, सक्रिय सकारात्मक भागीदारी निभा कर ! मूल श्रेणी में, प्रवेश पा सकते हैं.”
क्रमशः
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