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Swami Satyanand

*शिवशक्तियन* यानि एक ऐसा, सत्य सनातन शाश्वत् संगठन. जिसकी स्थापना ! सप्तदेवों ने मिल
कर…… इस पृथ्वी ग्रह पर, प्रथम मानव जन्म के समय की. जिसकी बागडोर, ३००० वर्ष पूर्व !
आर्यंबापुत्र को दी गयी. फिर वर्तमान में उन्होंने, अपने शिष्य ! सत्यानंद को सौंप दिया.

#धर्मपुनर्स्थापना_तृतीय_बैठक_प्रश्नोत्तरी_पठनसामग्री

:~
दिनांक 19 फरवरी 2024, सोमवार की रात्रि. लगभग दस-ग्यारह बजे. यानि माघ माह, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि ! जया एकादशी. स्थान बुंदेलखंड के ,
हमीरपुर जिले का, एक नितांत ! एकांत ! निर्जन ! बीहड़ ! परंतु अत्यंत सुंदर स्थान.
उस बड़े आकार के , सूर्य भवन नामक ! दोमंजिला घर के , पहली मंजिल पर स्थित ! एक कोने वाले कमरे में, वह सैंतीस-अड़तीस वर्षीय भगवाधारी युवक !
कु छ भगवान-भक्तों के टिप्पणियों का, प्रतिउत्तर दे रहा था. तभी द्वार खटखटाया गया. उसने द्वार खोला ! बाहर द्वार पर, उस भवन ! एवं उसके विशाल
परिसर के स्वामी ! तथा उसके घनिष्ठ मित्र ! व त्यागी पुरुष ! स्वीडन के वैज्ञानिक ! डॉ॰ श्री रविकांत पाठक जी थे.
उन्होंने इच्छा व्यक्त की :
“सत्यानंद जी ! आइये कु छ देर सत्संग करते हैं.”
भगवाधारी युवक बोला :
“आप चलिये ! मैं बस अभी आया.”
उसने अपने डिवाइसों को, लॉग-आउट किया. फिर अपने कक्ष से निकल कर ! उनके कक्ष में पहुँचा. कु छ देर तक ! दोनों ने बड़ी आनंददायक धार्मिक
चर्चायें करी. तभी सहसा ! चमत्कारी ढंग से, एक ही क्षण में, पाठक जी, गहरी निद्रा में समा गये. उनकी तबियत भी, बहुत ठीक नहीं थी. अतः उनको !
सोता छोड़ कर के , वह युवक ! उनके कक्ष से बाहर निकला. अपने कक्ष में आया. कु ल जमा उस भवन में, उस समय ! वहीं दोनों थे.
उस भगवाधारी ने, मोबाइल देखा. एक वरिष्ठ शिवशक्तियन ! संजय जी का मिस्डकॉल दिखा. उनको फोन लगाया. और बातें करते-करते ! टहलने के
उद्देश्य से, उस भवन के छत पर पहुँचा. टहलते हुये बातें करता रहा. लगभग पंद्रह मिनट की, वार्ता हो चुकने के पश्चात् ! सहसा उसकी दृष्टि ! एक ऐसी
वस्तु पर गयी. जिसे देख कर…………….. उस युवक को, पाठक जी के , सहसा ! गहरी निद्रा में, समा जाने का कारण ! एक झटके से स्पष्ट हो गया.
वह वस्तु ! एक सीढ़ी थी. उस युवक ने, उस सीढ़ी की ओर ! उस प्रकाशमय ! अलौकिक सीढ़ी की ओर देखा. वस्तुतः वह एक नहीं ! एक जोड़ी सीढ़ी
थी. एक सीढ़ी ! चारदीवारी के इस पार थी. तथा दूसरी सीढ़ी ! उस पर थी. एवं ऊपर जा कर, दोनों का मुँह ! आपस में, बंधा हुआ था. जिससे वह अंग्रेजी
के अक्षर ! वी (V) के , उल्टा जैसा { /\ } आकार बना रहा था. उस सीढ़ी को देखते ही, युवक को समझ आ गया कि, अब उसे क्या करना है ?
उसने शिवशक्तियन संजय जी से कहा :
“आप सोइये गुप्ता जी ! मुझे भी कु छ कार्य है.”
इतना बोल कर, तत्क्षण उसने फोन काटा. झटकते हुये नीचे उतरा. कक्ष में मोबाइल रखा. तथा शीघ्रतापूर्वक ! उस दिव्य सीढ़ी के पास पहुँचा. उस सीढ़ी
का प्रयोग करके , चारदीवारी के उस पार पहुँचा. और जंगल में घुसता चला गया. अभी चंद कदम ही, चला होगा कि………….
उसके कानों में, महादेव-दूत विक्रांत महाराज का, स्वर सुनायी दिया :
“मेरा अनुसरण करो !”
उस भगवाधारी ने, तत्काल ! आवाज की दिशा में देखा. फिर चलता हुआ ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के पास पहुँचा. उनका चरण स्पर्श कर आशीर्वाद
लिया. फिर उनके पीछे-पीछे चल पड़ा. कु छ मिनट चल कर, उनके साथ-साथ वह ! एक टिब्बेनुमा स्थान पर पहुँचा.
विक्रांत महाराज ! वहाँ रुक कर के बोले :
“मेरा हाथ पकड़ो ! और छोड़ना मत !”
उस भगवाधारी के द्वारा ! आज्ञा का पालन करते ही, उसकी आँखों के समक्ष ! अंधेरा छाने लगा. आँखें अपने आप बंद हो गयी. जब खुली ! तब वह ! इसी
पृथ्वी ग्रह के , शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश के , दूत खंड में था.
शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश के , दूत खंड में, प्रवेश करने के साथ ही, वहाँ के वातावरण में, किन्ही अदृश्य स्रोत से, गगनभेदी स्वर में, महाकवि भूषण की
लिखित ! पंक्तियाँ गूँजने लगी……………
इन्द्र जिमि जंभ पर ! बाडब सुअंभ पर !
रावन सदंभ पर ! रघुकु ल राज है.
पौन बारिबाह पर ! संभु रतिनाह पर !
ज्यौं सहस्रबाह पर ! राम-द्विजराज है.
दावा द्रुम दंड पर ! चीता मृगझुंड पर !
भूषन वितुंड पर ! जैसे मृगराज है.
तेज तम अंस पर ! कान्ह जिमि कं स पर !
त्यौं मलिच्छ बंस पर ! सेर शिवराज है.
जय भवानी ! जय ………….. !
उन रोम-रोम पुलकित कर देने वाले, गूँजते स्वर के मध्य ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“श्वेतभानु ! इस पृथ्वी ग्रह के , तुम्हारे सभी मूल-जन्मों ! उदाहरणार्थ-जन्मों ! एवं समानांतर जन्मों ! इन सभी जन्मों को, समग्र रूप से देखें तो……….
यह तो मानना पड़ेगा कि, इस ग्रह हेतु ! मूल श्रेणी वाले, आठवें चरण का, धर्मकाज करने के लिये, माता ने सबसे उपयुक्त्त आत्मा का, चयन किया है.”
उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी युवक ने, कृ तज्ञभाव से, अपने सिर को झुकाया ! तथा हाथ जोड़ता हुआ बोला :
“जी तुरंग भैया ! अब चयन किया है तो, सदैव यहीं प्रार्थना करता हूँ कि, माता एवं महादेव ! व समस्त देवी-देवता-गण-दूत ! मिल कर, यह बेड़ा ! पार
करा दें. क्योंकि यह अभी तक का, सबसे मुश्किल ! व कठिन दायित्व है.”
तुरंग भैया ! यानि महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“अब तो शिवशक्तियन का, प्रवेश होना भी, आरंभ हो गया है. महाशिवरात्रि वाली, तृतीय भेंट-वार्ता बैठक में, पुराने अठारह शिवशक्तियन ! तथा सामान्य
भगवान-भक्तों के साथ-साथ ! छिपे हुये भावी शिवशक्तियन को भी तो, तुमसे आमंत्रण दिलवाया जा रहा है. अभी तक ! कितने आमंत्रण दे चुके हो ?”
भगवाधारी बोला :
“जी, 151 की जो, सूची प्राप्त हुयी है. उसमें तिथि अनुसार ! किनको कब आमंत्रण भेजना है ! इसका उल्लेख है. आज की तिथि तक वाले, सभी १२१
भोले-भक्तों को, आमंत्रित कर चुका हूँ. अभी ३० भगवान-भक्तों को, और करना है. परंतु अभी उनकी तिथि, नहीं आयी है.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“अभी जो शिवशक्तियन ! अपनी इच्छा से, संदेश आदान-प्रदान करने हेतु……….. गैर-आधिकारिक ! समानांतर समूह चला रहे हैं. क्या उसकी अनुमति
! तुमने उन्हें दी है ?”
भगवाधारी बोला :
“महाराज जी ! मैंने कोई अनुमति नहीं दी है. जब मुझसे पूछा गया था. तब मैंने ! यह बोला था कि……….. आप लोगों को, बनाना हो तो बनायें. परंतु
मुझे ! ऐसे किसी गैर-आधिकारिक ग्रुप में, रहने की अनुमति नहीं है. अतः मैं नहीं रहूँगा. अतः मैं उसमें नहीं हूँ. इसलिये मुझे यह भी नहीं पता कि, उसमें
क्या-क्या होता है ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“तुम्हें नहीं पता ! परंतु हमें तो पता है न कि, उसका दुरुपयोग हो रहा है. उसमें………….. समय व्यर्थ करने वाली ! नकारात्मकता फै लाने वाली !
गोपनीय जानकारियों को, प्रकल्प के दुश्मनों तक पहुँचने वाली ! भविष्य में शिवशक्तियन पर, आधिपत्य जमाने की, चरणबद्ध योजना वाली !
……………..इस प्रकार की, सभी, अनावश्यक ! व समय व्यतीत करने वाली कार्यवाहियाँ ! वहाँ धड़ल्ले से चल रही हैं.”
भगवाधारी बोला :
“मुझे उसकी कोई जानकारी नहीं है महाराज !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“परंतु ! तुम्हें इसका पता होना चाहिये. यह भी तुम्हारा ही दायित्व है. क्योंकि भले ही तुम्हारे लक्ष्य पर, कोई अंतर नहीं पड़ेगा. परंतु किसी कारणवश !
किसी भी शिवशक्तियन के , नकारात्मक होते ही, उस बेचारे शिवशक्तियन के , हाथ से तो, यह सुअवसर फिसल जायेगा. तुम्हारी इसी त्रुटि हेतु ! प्रभु श्रीकृ ष्ण
देव ने, तुम्हें बुलाया है. यहाँ दूत-खंड में, जन्मोत्सव के उपरांत ! तुम मेरे साथ ! श्रीकृ ष्ण-खंड चलोगे.”
भगवाधारी बोला :
“किसका जन्मोत्सव भैया ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“मूल श्रेणी के , आठवें चरण का, धर्मकाज कर रही, किसी भी आत्मा को, सहसा ! एक झटके से, मूल श्रेणी के , नौवें चरण में, प्रवेश नहीं कराया जाता. उसे
महादेव-दूत बनाने से पूर्व ! महादेव-दूत बनने का, अभ्यास कराया जाता है.”
“क्योंकि मूल श्रेणी के , आठवें चरण वाली आत्मा का, महादेव-दूत बनना, सुनिश्चित होता है. अतः उसके महादेव-दूत बनने के , पूर्व से ही, महादेव-दूत
वाले, काज करा-करा कर, अभ्यास भी, कराया जाता रहता है. तुम्हें आठवें चरण का, धर्मकाज करते हुये, अब बीस मास हो चुके हैं.”
“तुम इक्कीसवें मास में, प्रवेश कर चुके हो. तथा तुम अपने दायित्वों का निर्वहन ! बहुत ही अच्छे ढंग से, आदेशों का अक्षरशः पालन करते हुये, तीव्र एवं
समुचित गति से, कर रहे हो. अतः विधि-विधान के अनुरूप ! तुमको अब से कभी-कभी ! सीमित अवधि हेतु ! महादेव-दूत वाली सिद्धियाँ ! एवं शक्तियाँ
भी, प्रदान की जायेंगी.”
“आज से इसका आरंभ होगा ! अभी कु छ ही क्षणों के पश्चात् ! कु छ घंटों की, सीमित अवधि हेतु ! तुम्हें महादेव-दूत की, सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी. इन
सीमित अवधि में, तुम्हें ! तीन अलग-अलग ग्रहों पर, तीन अलग-अलग कार्यों का, दायित्व निर्वहन करना है.”
भगवाधारी युवक हाथ जोड़ कर बोला :
“महाराज जी, क्या यह करना ! अनिवार्य है ? या ऐच्छिक है ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“मूल-श्रेणी के आठवें चरण का, धर्म-काज करते हुये, इक्कीसवें माह में, प्रवेश करते ही, यह अनिवार्य हो जाता है. वैसे यह तुम ! क्यों पूछ रहे हो ?”
भगवाधारी युवक बोला :
“क्योंकि भैया ! अत्यंत व्यस्तता है. सांस लेने की फु रसत नहीं है. इस मुहावरे के प्रकार की, व्यस्तता है.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ने पूछा :
“जैसे ?”
भगवाधारी युवक ने उत्तर दिया :
“जैसे………… भिक्षाटन करना है ! गाड़ी भी स्वयं ड्राइव करना है ! भिक्षाटन का डेटा मेंटेन करना है ! भिक्षाटन हेतु आये निवेदन का भी, डेटा अपडेट
रखना है ! प्रतिदिवस सैकड़ों-हजारों संदेशों का, उत्तर देना है ! हजारों टिप्पणियों का, रिप्लाई करना है ! बच्चा ऑटिस्टिक है, तो उसको भी समय देना है !
आर्थिक जंजाल हैं, अतः उनसे भी निपटना है ! शिवशक्तियन को समय देना है ! मूल श्रेणी वालों को भी, अनावश्यक परंतु अनिवार्यतः समय देना है !
ऑटोबायोग्राफी, एवं अन्य घटनाक्रम, व प्रकरण लिखना है ! शिवशक्ति शिवालय स्थल के , एक साथ बारहों स्थान के , भूमि का बयाना-बट्टा का, कार्य भी
देखना है ! शिवशक्तियन भेंट-वार्ता बैठक, ऑर्गनाइज करना है. सैकड़ों आमंत्रण संदेश भेजना है ! शिवशक्तियन का आधिकारिक ग्रुप चलाना है ! अपना
भोजन स्वयं बनाना है ! बर्तन माँजना है ! कपड़े धोने हैं ! सामान्य सांसारिक लोगों से भी, बात करना है ! परिवार को भी समय देना है ! दुष्टों-विधर्मियों-
पापियों-कु कर्मियों-अधर्मियों से भी, निपटना है !.………………”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! उसकी बात को, बीच में काटते हुये ! उसकी सूची गिनाने की, धारा-प्रवाह लयबद्धता को, तोड़ते हुये बोले :
“श्वेतभानु ! रुक जाओ. मैं समझ गया. तुम्हारे पास ! कोस भर लंबी ! कार्यों की सूची है. उतना मुझे नहीं सुनना है. पहले मेरे एक बात का उत्तर दो. इन
सभी कार्यों में से, तुमसे कौन सा कार्य ! तुम्हारे अत्यंत व्यस्तता के कारण ! छू ट जा रहा है.”
भगवाधारी युवक हिचकता हुआ बोला :
“अभी तक तो, कोई सा भी नहीं महाराज !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज हँसते हुये बोले :
“तब फिर काहे की व्यस्तता ?”
इतना बोल कर ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! उस भगवाधारी को, अपने साथ ले कर, दूत-खंड के , उत्सव क्षेत्र में, चले गये.
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उत्सव क्षेत्र का विवरण ! यानि उस जन्मोत्सव समारोह का स्मरण ! अनुमति प्राप्त होने पर, फिर कभी लिखूँगा. अभी आगे के घटनाक्रमों को, लिखना आरंभ
करता हूँ.
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कु छ घंटों की, सीमित अवधि हेतु ! प्राप्त हुये, महादेव-दूतों वाली ! शक्तियों के साथ ! उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी युवक ने, तीन दायित्वों में
का, प्रथम दायित्व ! यानि अपने एक पूर्वजन्म का, जन्मोत्सव मनाने के उपरांत……………. अब वह ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के साथ ! शिवशक्ति
जगत ! गोबी-गुरुवंश के , दूत-खंड से, श्रीकृ ष्ण-खंड की ओर, बढ़ रहा था.
चलते-चलते हुये, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ने, उससे पूछा :
“इस वाले शिवशक्ति जगत को, देख कर के , कु छ स्मरण आ रहा है ?”
भगवाधारी ने उत्तर दिया :
“जी सभी कु छ ! अत्यंत स्पष्टता से, स्मरण आ रहा है. इस स्थान के आस-पास का क्षेत्र तो, मेरे मूल श्रेणी वाले, दूसरे जन्म के , एक समानांतर जन्म की,
आरंभिक कार्यस्थली रही है. उस जन्म को तो, मैं वैसे भी नहीं भूल सकता. क्योंकि उसी जन्म में, किये कु छ पापों की बदौलत ! मैं अपने मूल श्रेणी के ,
द्वितीय चरण में ही, चार मूल जन्मों तक, अँटका रह गया था. सभी कु छ ऐसे स्मरण हो रहा है. जैसे वह सब ! कल की ही बात हो.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“इतनी स्पष्टता से, सभी कु छ ! स्मरण होने का कारण ! अभी तुम्हें ! कु छ घंटों के लिये मिली हुयी, महादेव-दूतों वाली शक्तियाँ हैं. क्या तुम्हें ! यह अनुभव
! रुचिकर लगा ?”
भगवाधारी ने उत्तर दिया :
“जी ! मेरा तो…………….”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! उसका उत्तर आरंभ होने से पूर्व ही, उसकी बात ! काटते हुये बोले :
“चलो फिर ! महादेव-दूत वाली प्राप्त शक्तियों का, अभी आनंद लो. प्रभु श्रीकृ ष्ण खंड का, संधान करके , तुम वहीं पहुँचो. मैं भी तब तक ! वहीं चलता हूँ.”
इतना बोलने के साथ ही, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! अंतर्ध्यान हो चुके थे. उस भगवाधारी ने, उनके बताये तरीको से, संधान तो किया. परंतु उसे कोई
भी, मनोवांछित परिणाम की, प्राप्ति नहीं हुयी. अब वह क्या करे ?
अतः उसने युक्ति भिड़ायी ! ………और महादेव-दूत विक्रांत महाराज के , समीप पहुँचने का ही, संधान किया. तत्काल सुखद परिणाम सामने आया. वह
तत्क्षण ! श्रीकृ ष्ण खंड के , मुख्य द्वार पर ! पुनः महादेव-दूत विक्रांत महाराज के सानिध्य में, पहुँच चुका था.
अभी वह भगवाधारी युवक ! कु छ पूछने जा ही रहा था कि………….. महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! स्वयं ही बोले :
“तुम यहाँ का संधान ! सफलतापूर्वक ! इसलिये नहीं कर पाये. क्योंकि………… एक तो तुम यहाँ ! इधर काफी माह में, प्रथम बार आये हो. अतः तुम्हें !
यहाँ का कु छ भी, स्पष्ट स्मरण नहीं रहा होगा. दूसरा ! और जो बड़ा कारण है ! वह यह कि, यह देव-लोक ! यानि शिवशक्ति जगत क्षेत्र है.”
“अतः यहाँ के वल संधान करके ही, नहीं पहुँचा जा सकता. यहाँ आने की अनुमति होना भी, आवश्यक है. जो कि तुम्हारे पास नहीं था. वह तो अभी-अभी !
मैंने तुम्हारे हेतु भी, तुम्हें अके ले पहुँचने की, अनुमति दिलाया हूँ. तब जा कर पहुँचे हो. परंतु कोई बात नहीं ! धीरे-धीरे सभी प्रक्रिया ! एवं विधान ! तुम
स्वयं जान जाओगे. चलो हम प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान के समक्ष ! उनके सानिध्य में चलते हैं.”
इतना बोल कर, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! आगे-आगे ! तथा उनका अनुसरण करता हुआ ! वह भगवाधारी युवक ! उनके पीछे-पीछे ! चलने लगा.
कई सारी प्रक्रियाओं से, गुजरने के पश्चात् ! वह दोनों प्रभु श्रीकृ ष्ण के , भेंट-कक्ष में थे. कु छ ही समय के पश्चात् ! प्रभु श्रीकृ ष्ण का आगमन हुआ. उन दोनों
ने, प्रभु का चरण-स्पर्श करके , आशीर्वाद प्राप्त किया.
फिर प्रभु श्रीकृ ष्ण ! अपने सिंहासननुमा आसन पर विराजमान होते हुये, अपने दिव्य स्वर में बोले :
“राके श ! मैं यह समझता हूँ कि, वह त्रुटि ! तुमसे अनजाने में हुयी है. तुमने महादेव के , इस वाक्य ! यानि कि………… ***आत्मा की स्वतंत्रता में,
कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं करना चाहिये.*** ………….इस वाक्य को, सर्वोपरि रखते हुये, सभी अठारहों शिवशक्तियन को, उनकी इच्छा का कार्य !
करने दिये.”
“परंतु राके श ! यह भी तो सोचो ! कि महादेव आज्ञा वाले, इस प्रकल्प से, *क्या* प्राप्त करना ? उन सभी शिवशक्तियन का, परम् ध्येय है ? इस पुण्य-
प्रकल्प से, *क्या* प्राप्त करना ? उनका परम् उद्देश्य है ?”
कु छ देर तक चुप रहकर ! प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ने, स्वयं ही उत्तर दिया :
“उन सभी का परम् ध्येय है ! परम् उद्देश्य हैं ! ………..९९९९९ शिवशक्तियन में से, ९९९९ मूलश्रेणीपथगामी आत्मा वाली, शिवशक्तियन बनना.
अतः अगर ! उनमें से किसी के साथ ! पथ-भटकाव होता है. तो तुम उन्हें ! पुनः मूल-मार्ग पर लाने हेतु ! एक से अधिक संके त देना ! एवं कु छ अतिरिक्त
प्रयत्न करना.”
“मत भूलो राके श ! वह सभी ! इस पतित ग्रह पर, चहुँओर व्याप्त ! अज्ञानता वाले वातावरण में, पले-बढ़े हैं. धर्म की त्रुटिपूर्ण व्याख्यायें ! उनके इस जन्म
वाले, देह के मनोमस्तिष्क में, कू ट-कू ट कर भरी हुयी हैं. वह क्रोध के नहीं ! अपितु दया के पात्र हैं राके श ! उन्हें ठीक से समझाओ कि…………”
“उनका लक्ष्य ! इस महान पुण्य धर्मकाज के माध्यम से, मोक्ष-मार्ग पर बढ़ने हेतु ! मूलश्रेणी में प्रवेश पाना है. ना कि यहाँ ! बाकी के शिवशक्तियन के साथ
! सामाजिक गठबंधन करना. सामान्य शिष्टाचारवश ! चर्चा-वार्ता ठीक है. परंतु उससे अधिक ! उनका आपसी संपर्क ! उनके लिये, अंततोगत्वा !
हानिकारक ही सिद्ध होगा.”
“अतः वह सभी ! अपनी प्राथमिकता अनुसार ! तृतीय प्राथमिकता पर, इस महादेव-काज को रखते हुये, अपना सर्वोच्च योगदान दें. बजाये इसके कि, वह
सभी आपस में, संगठन-संगठन खेलें. बिना महादेव-दूतों से, प्राप्त आज्ञा के , संदेशों का आदान-प्रदान ! आपस में करने का, कोई अर्थ ही नहीं है. उन्हें जो
भी जानना हो, प्रत्यक्ष रूप से, तुमसे जानें.”
“तथा जब ! महादेव-दूतों द्वारा ! प्रसारित संदेशों के प्राप्ति हेतु ! वह आधिकारिक समूह से, जुड़े ही हुये हैं. तब अलग से, गैर-आधिकारिक ! समानांतर
समूह चलाने का, भला क्या औचित्य है ?”
“हाँ ! अगर तुम्हारे समझाने के पश्चात् भी, कोई अपनी इच्छा से, संगठन बना रहा है. तब वह उसकी ! अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता है. वैसे वह ! मूल
स्वतंत्रता नहीं हैं. क्योंकि वह ! विधान-रहित स्वतंत्रता है. तथा विधान-रहित स्वतंत्रता तो, पराधीनता से भी, अधिक दोषपूर्ण होती है. फिर वैसे कु कर्मियों
को, समझाना भी व्यर्थ है.”
“जो समझना चाहते हैं. उन्हें यह समझाओ कि, यह कोई संगठनात्मक कार्य नहीं है. यह तो सभी की, अपनी-अपनी ! नितांत व्यक्तिगत यात्रा है. यह कोई
समूह के साथ, खेला जाने वाला, कबड्डी-नुमा खेल नहीं है. या फिर यह ! चार मानवों वाले, डंडा-पकड़ दौड़ की भाँति ! समूह का खेल नहीं है. यह तो
तैराकी ! या लंबी दौड़ की भाँति ! खेला जाने वाला, व्यक्तिगत खेल जैसा खेल है.”
“इसके साथ ही, तुम ! उन सभी शिवशक्तियन को, यह भी समझाओ कि……….. वह सभी ! एक बात का, सदैव ध्यान रखें. वैसे मैंने देखा है.
शिवशक्तियन प्रसार-तंत्र के माध्यम से, महादेव-दूत ! माता सेविका चिहिरो ! सदैव इस बात को, समझाती भी रहती है कि…………”
“महादेव-दूतों द्वारा ! निर्देश दिये जा रहे ! या तुम्हारे द्वारा ! अनुरोध किये जा रहे ! किसी भी कार्य, या किसी भी दायित्व को, तभी पूर्ण करें. जब उससे !
उनकी दोनों प्रमुख प्राथमिकतायें ! बाधित नहीं हो रही हो.”
“यानि बताये गये, क्रमानुसार ही, समय देना है. प्रथम प्राथमिकता में, स्वयं के इस जन्म वाले देह ! व परिवार को, सर्वोच्च प्राथमिकता देनी है. तत्पश्चात् !
द्वितीय प्राथमिकता में, जीवन यापन हेतु ! जीविकोपार्जन / अर्थोपार्जन / धनोपार्जन वाले काज को, प्राथमिकता देनी है.”
“तदुपरांत ! तृतीय प्राथमिकता में, शिवशक्तियन वाला कार्यभार ! यानि दायित्वपूर्ति वाले, कार्य करने हैं. तथा के वल इतना ही नहीं ! इसके बाद भी, एक
विशेष तथ्य का, अवश्य ध्यान रखना है. वह तथ्य है……………”
“जगत् जननी माता ! एवं हम सभी देवों के देव महादेव ! के आज्ञा वाले, इन पुण्य धर्मकाज प्रकल्पों के , सभी कार्यों को, प्रथम या द्वितीय के बजाये, तृतीय
प्राथमिकता पर तो, रखना ही है.”
“उसे तृतीय प्राथमिकता पर ! रखने के साथ ही, एक और बात का, विशेष ध्यान रखना है. वह बात ! यह है कि………….. इस पुण्य-काज में, वह समय
लगाना है. जो उनका महत्वपूर्ण समय नहीं है. उन्हें वह समय लगाना है. जो अनावश्यक रूप से, कहीं-ना-कहीं, व्यर्थ व्यतीत हो जाता है. उन्हीं दुरुपयोग हो
रहे, समय का ही, यहाँ सदुपयोग करना है.”
“वैसे अगर कोई शिवशक्तियन ! तुमसे यह पूछे कि…………… इस नियम का, इतना अधिक ! एवं बार-बार उल्लेख ! क्यों किया जाता है ?”
“तब तुम उन्हें ! यह समझा देना कि…………… यह नियम बारंबार बताना ! इसलिये आवश्यक है. क्योंकि अगर किसी, नकारात्मक शक्तियों के , प्रभाव
में आकर ! कोई भी शिवशक्तियन ! भविष्य में, इस महादेव आज्ञा वाले, धर्म काज प्रकल्पों के प्रति ! या महादेव-दूतों के , कार्य प्रणाली के प्रति ! या तुम्हारे
स्वयं के ही प्रति……………”
“अगर वह ! अपने स्वयं के , त्रुटिपूर्ण कर्मों के कारण ! नकारात्मक हो जाये. तब वह ! ऐसा आरोप ना लगाये कि…………. उसके समय का, दुरुपयोग हो
गया. उसे यह ज्ञात रहे कि, उसने व्यर्थ वाला, समय लगाया है. और अगर उसने, अपनी स्वयं के इच्छानुसार ! मूल्यवान समय भी लगाया है तो, ऐसा करने
को, उसे बाध्य नहीं किया गया था.”
“……………क्योंकि वह व्यर्थ वाला समय भी, उसने अपनी स्वेच्छा से लगाया है. अतः उसके द्वारा ! कोई भी आरोप लगाना. सर्वथा अनुचित है.
चूँकि किसी भी सामान्य मानव ! या विशेष मानव ! यानि शिवशक्तियन को, अंततोगत्वा ! इसी जगत के , नकारात्मकता से भरे मनुष्यों के , मध्य ही तो रहना
है.”
“क्योंकि अधर्मियों से भरी हुयी, इस धरा पर, चहुँओर ! अधीरता एवम् व्यग्रता का, वातावरण है. धैर्य की भारी कमी है. तथा वहीं धैर्य की कमी ! किसी भी
मानव मात्र को, उचित-पथ से, विचलित करती है. अतः प्रत्येक शिवशक्तियन को, अत्यंत धैर्यवान बनना पड़ेगा. बड़े दायित्वों का, वहन करने से पूर्व ! छोटे-
बड़े कई दायित्वों को, स्वयं से आगे बढ़-बढ़ कर ! स्वीकार करना होगा.”
“आज उन सभी की संख्या ! काफी कम है. सैकड़ों में भी नहीं है. अतः आज उनको, पकड़-पकड़ कर ! दायित्व सौंपा जा रहा है. जब भविष्य में, यह
संख्या हजारों में पहुँचेगी. तब ऐसा नहीं होगा. तब तो अधिकतर दायित्व ! उसी शिवशक्तियन को मिलेगा. जिसके पास ! दायित्व पूर्ण करने का, इतिहास
होगा.”
“क्योंकि महादेव के बनाये, विधि-विधान के अनुसार ! जो शिवशक्तियन ! स्वयं से आगे बढ़ कर ! जितना ही अधिक, दायित्व स्वीकार करके , उसे पूर्ण
करता जायेगा. उसे उतना ही और दायित्व ! सौंपा जाता जायेगा. वहीं जो दायित्वों से बचेगा. उसे कोई भी नवीन दायित्व ! नहीं सौंपा जायेगा. क्योंकि
महादेव के आज्ञानुसार ! आत्मा की स्वतंत्रता ! अत्यंत महत्वपूर्ण है. उसको बाध्य करके , कोई भी कार्य ! नहीं कराना होता है.”
“परंतु ! उन्हें यह भी समझना कि…………. आत्मा की स्वतंत्रता का, विशेष लाभ ना उठायें. क्योंकि मूलश्रेणी में प्रवेश करने हेतु ! दायित्वों का, अधिक-
से-अधिक निर्वहन करना भी, अत्यधिक महत्वपूर्ण है.”
“उन्हें समझाना कि,
हम कर ही क्या सकते हैं ?
अन्य कोई विकल्प भी तो नहीं है.”
वर्तमान के , अठारहों शिवशक्तियन हेतु ! इतना सब कु छ ! विस्तार से बताने के पश्चात् ! प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज को, संबोधित
करके बोले :
“विक्रांत ! जैसा कि तुम्हें ज्ञात होगा. राके श अभी दूत बनने के , पूर्वाभ्यास हेतु ! तुम्हारे आज के दायित्व वाले, दो कार्यों को करेगा.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“जी प्रभु ! ऐसा ही है.”
अब प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी युवक को, संबोधित करके बोले :
“राके श ! यह एक प्रकार से, तुम्हारा महादेव-दूत के रूप में, लौकिक जगत का, प्रथम कार्य है. तुम अभी महादेव-दूत नहीं हो. परंतु ! अभ्यास हेतु ! अभी
कु छ सीमित अवधि हेतु ! कु छ घंटों तक ! तुम महादेव-दूत ही हो.”
“अतः तुम जाओ ! उस सुदूर अधर्मी ग्रह पर ! जो इस पृथ्वी ग्रह के , गणितीय गणना के अनुसार ! यहाँ से असंख्य प्रकाश वर्ष दूर है. अभी तुम वहाँ जाओ
! और उस पतित अधर्मी ग्रह पर, अपनी ओजस्वी वाणी में, धर्म पताका ! लहरा कर आओ. मैं यहीं से, तुम्हारे प्रदर्शन की, गुणवत्ता को देखूँगा.”
भगवाधारी युवक ! आशंकित भाव से बोला :
“परंतु प्रभु ! मुझे इस संदर्भ में, कु छ भी ज्ञान नहीं है. मुझे वहाँ की भाषा भी, नहीं आती होगी. अगर आपका ! मार्गदर्शन मिल जाता कि, मुझे क्या बोलना है
? तो मैं धन्य हो जाता.”
प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! मुस्कु राते हुये बोले :
“महादेव दूतों के लिये, भाषा की कोई बाध्यता नहीं होती. तुम्हें जो भाषा आती हो, उसमें बोलना. परंतु तुम पाओगे ! तुम्हारे मुख से, वह भाषा निकल रही
है. जो सुनने वाले को, समझ आ सके . और रही बात ! मार्गदर्शन की. तो उसकी कोई आवश्यकता नहीं है. तुम्हें जो समझ आये, वहीं बोलना. वह सही ही
होगा. क्योंकि अभी भले तुम ! महादेव-दूत नहीं हो. परंतु बिल्कु ल महादेव-दूत बनने के , द्वार पर ही तो खड़े हो. अतः सब अच्छा ही होगा. ऐसा मेरा
आशीर्वाद है.”
इतना बताने के बाद ! प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! भेंट-कक्ष से बाहर निकल गये. उनके जाने के पश्चात् ! भगवाधारी घबराया हुआ सा ! महादेव-दूत विक्रांत
महाराज से बोला :
“भैया ! मुझे तो सही में, इस संदर्भ में, कु छ भी ज्ञान नहीं है. अब कै से होगा ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज हँसते हुये बोले :
“चलो ! मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूँगा. क्योंकि यह तुम्हारा अभ्यास सत्र है. अतः मुझे ! तुम्हारे साथ रहने की, अनुमति है. हम कु छ देर बाद ! जिस ग्रह पर
होंगे. उस ग्रह वाला ! मूल श्रेणी के , प्रथम चरण का, जो मानव है. वह बहुत रोचक मनुष्य है. उससे मिल करके ही, तुम्हें आनंद आ जायेगा.”
“संयोग से वह ! अपने पिछले जन्म में, इसी पृथ्वी ग्रह पर था. इसी ग्रह से वह ! पूर्व श्रेणी से, मूल श्रेणी में पहुँचा है. अभी ! साढ़े बाईस वर्ष पूर्व ही तो,
उसकी पृथ्वी पर, मृत्यु हुयी है. मृत्यु से सात वर्ष पूर्व ! वह मूल श्रेणी में जाने योग्य ! आवश्यक अहर्तता ! प्राप्त कर चुका था. अतः उसके , उस जीवन के ,
अंतिम सात वर्ष ! पूर्व श्रेणी वाले, नौवें चरण की, प्रतीक्षा अवधि थी.”
“उसी प्रतीक्षा अवधि में, उसके सदकर्मों की, अत्यधिक अधिकता के कारण ! महादेव ने उसे दर्शन दे कर, वरदान माँगने को बोला था. वरदान में उसने !
यह माँगा कि…………… उसे अगला जन्म ! यानि मूल श्रेणी का प्रथम जन्म भी, इसी पृथ्वी ग्रह पर चाहिये.”
“महादेव ने जब उससे पूछा कि………… वह ऐसा क्यों चाहता है ? तब उसने बताया कि, उसे देवी-देवताओं के मूल पदसोपान ! यानि मूल पदानुक्रम से,
छेड़-छाड़ करने वाले, सभी साधु-संतों एवं बाबाओं को, मन भर ! पीट-पीट करके , सबक सिखाना है.”
“तब महादेव ने, उसे बताया कि………….. यह काम वह ! निर्विघ्न रूप से, पृथ्वी ग्रह पर, नहीं कर सकता. क्योंकि यहाँ ! लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के
कारण ! कानून का राज है. तुम्हें मैं ! ऐसे ग्रह पर, भेज दूँगा. जहाँ अधर्म की स्थिति ! कु छ-कु छ पृथ्वी जैसी ही है. परंतु वहाँ किसी प्रकार के , किसी नियम-
कानून का राज नहीं है. जो ताकतवर है ! वह अपनी मनमानी करता है. वहाँ तुम निर्विघ्न रूप से, अपने शारीरिक बल के बूते ! मनमानी कर सकते हो. और
वहाँ तुम्हारे मनचाहे आहार ! __ली की भी भरमार है.”
“तब फिर उसने ! उसी ग्रह पर, पैदा होने का, तथा साथ ही साथ ! खूब शारीरिक बल का, वरदान माँग लिया. जिसे महादेव ने, यह कह कर ! वरदान दे
दिया कि, तुम्हारे पास शारीरिक बल तो, बहुत रहेगा. परंतु बुद्धि बिल्कु ल भी नहीं रहेगी. के वल उतना ही ज्ञान रहेगा. जितना तुम्हारे मन की, अभी हार्दिक
इच्छा है.”
“उसके बाद उसने ! उस ग्रह पर जन्म लिया. वह बलवान बहुत है. शरीर भी वहाँ के औसत से, बड़ा एवं विशालकाय है. परंतु हाँ ! बुद्धि तनिक भी नहीं है.
एक ही बुद्धि है. दुष्ट धर्मप्रवर्तकों को पकड़ना ! उन्हें मन भर पीटना. फिर अपने बनाये, कारावास में, बंद कर देना. तथा उन्हें नियमित रूप से, पीट-पीट
करके , देवी-देवताओं का, मूल पदानुक्रम रटाना. और टोकरी भर-भर कर …….ली खाना”
“परिणामस्वरूप ! अभी तक उसने, काफी अधिक संख्या में, वैसे दुष्ट धर्मप्रवर्तकों को, अपने कारावास में, कै द कर रखा है. अब उसके कारावास में, नये
दुष्टों हेतु ! जगह नहीं है. अतः उसने ! महादेव-दूतों से, निवेदन किया है कि, कोई महादेव-दूत ! आ कर के , अपनी वाणी से, उन दुष्टों को, कोई ज्ञानवर्धक
बात बता दें.”
“ताकि उसके बाद वह ! सुधर चुके दुष्टों को, अपने कारावास से, रिहा कर देगा. तथा उनकी जगह ! और नये दुष्टों को, पकड़ कर लायेगा.”
“उसने मंच तैयार कर रखा है. तुम्हें चल कर, कोई भी भाषण जैसा ! कु छ भी बोल देना है. वह खुश हो जायेगा. उस पर सभी देवी-देवता-गण-दूत ! सभी
के सभी ! प्रसन्न रहते हैं. बड़ा ही मनोरंजक व्यक्तित्व है उसका.”
इतना बोलने के पश्चात् ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! अपने स्थान से, खड़े होते हुये बोले :
“चलो ! अब चला जाये. नहीं तो विलंब होगा.“
कु छ ही क्षणों में, महादेव-दूत विक्रांत महाराज के साथ ! वह सैंतीस-अड़तीस वर्षीय भगवाधारी युवक ! उस सुदूर ग्रह पर था. फिर कु छ मिनट की, भेंट के
पश्चात् ! उस मूल श्रेणी के प्रथम चरण वाले, युवा मानव द्वारा ! तैयार किये गये, ऊँ चे मंच पर था.
तभी प्रभु श्रीकृ ष्ण का दिव्य स्वर ! उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी के कानो में गूँजा :
“अब तुम बोल सकते हो सत्यानंद !”
एक ऊँ चे स्थान पर खड़े हुये ! उस भगवाधारी ने, अपने समक्ष ! नीचे मैदान में, सिर झुकाये ! हजारों की संख्या में, हाथ बांधे खड़े ! उन तथाकथित
धर्मप्रवर्तकों पर, दुष्ट पापियों पर ! एक दृष्टि फिरायी. तत्पश्चात् ! अपने बगल में खड़े, महादेव-दूत ! विक्रांत महाराज की ओर देखा. विक्रांत महाराज ने,
मुस्कु राते हुये ! एक क्षण के लिये, अपनी पलकों को, झपकाने के साथ-साथ ! अपने सिर को एक-दो बार, हल्का-हल्का ऊपर-नीचे किया.
आज्ञा रूपी संके त पा कर ! वह भगवाधारी युवक ! अपार-जनसैलाब को, संबोधित करता हुआ बोला :
“जो शाश्वत है ! वही सत्य है !
वही सनातन है ! वही पुरातन है !”
“वह वैभवशाली है ! वह समृद्ध है !
वह गौरवान्वित है ! वह प्रफु ल्लित है !”
“धर्म ! सुख व संपन्नता का प्रतीक है,
दरिद्रता व निर्धनता का नहीं.
धर्म ! उल्लास व उत्साह का प्रतीक है,
शोक व दुःख का नहीं.
धर्म ! प्रकाश का प्रतीक है,
अंधकार का नहीं.
धर्म ! जीवंतता का प्रतीक है,
मरणासन्नता का नहीं.
धर्म ! विजय का प्रतीक है,
पराजय का नहीं.
धर्म आनंद व संतोष का प्रतीक है,
ग्लानि, संताप व लोभ का नहीं.”
“धर्म गर्व है !
धर्म आह्लादायक है !
धर्म ही सर्वोच्च है !
धर्म ही सर्वस्व है !
धर्म है तो, सब कु छ है.
धर्म का कोई विकल्प नहीं.”
“धर्म मोक्ष का मार्ग हैं.
धर्म ही सदकर्म है.
सदकर्म ही धर्म है.
धर्म ही पुण्य है.
पुण्य ही धर्म है.
धर्म तो धर्म है.”
“धर्म से तुम भागोगे ?
भाग सको तो, भाग के देखो.
धर्म को तुम मारोगे ?
मार सको तो, मार के देखो.”
“तुम ! धर्म की गलत व्याख्या करोगे ?
तो अब करके दिखाओ ?
तुम ! देवी-देवताओं के ,
मूल-पदानुक्रम से, छेड़छाड़ करने का,
जघन्य अपराध करोगे ?
तुम ! उस मूल पदसोपान में,
मनगढ़ंत इष्ट-आराध्य घुसाओगे ?
तुम ! अपने आप को,
सर्वेसर्वा महादेव के स्थान पर रखोगे ?”
“…………..और
यह सब करके , तुम सोचते हो. धर्म चुप रहेगा ! तुम्हारी नौटंकियाँ देखेगा ! सदैव ध्यान रहे ! महादेव की रचित ! तथा माता शक्ति की ऊर्जा से संचालित !
यह सृष्टि ! धर्म के आधार पर ही चलेगी.”
“तुम कु छ मनमाना कु कर्म करते हो.
कोई प्रतिउत्तर नहीं मिलता देख कर,
तुम पुनः करते हो !
बार-बार करते हो !
करते ही जाते हो !
अपने आप को,
अधर्म का नायक समझते हो.”
“जब तुम !
इतने ही बड़े हो चुके होते हो.
तब फिर !
उस देह की मृत्यु के उपरांत !
क्यों चिल्लाते हो ?
देवी-देवता-गण से,
अपने किये कु कर्मों हेतु,
शीघ्रातिशीघ्र दण्ड की भीख !
क्यों माँगते हो ?”
“अरे मूर्ख !
तुम किस भ्रम में, जी रहे हो ?
कल तुम नहीं थे, धर्म तब भी था.
कल तुम नहीं रहोगे, धर्म तब भी रहेगा.”
“संपूर्ण सृष्टि के रचयिता ! देवों के देव महादेव से प्राप्त ! आत्मा की स्वतंत्रता का, तुम दुरुपयोग करते हो. तुम अभी अबोध हो ! क्योंकि तुम्हें ! यह भी नहीं
पता कि…………..”
“स्वतंत्रता का मूल अर्थ ही, विधि-विधान के अनुरूप चलना होता है. महादेव निर्मित ! विधि-विधान के अनुसार चलना ! पराधीनता नहीं है. वह तो महादेव
को, प्रसन्न करने का, प्रसन्न रखने का, सबसे उत्कृ ष्ट माध्यम है. सर्वोच्च मार्ग है. सर्वोत्तम कर्म है.”
क्रमशः

1A :~
दिनांक 19 फरवरी 2024, सोमवार की रात्रि. लगभग दस-ग्यारह बजे. यानि माघ माह, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि ! जया एकादशी. स्थान बुंदेलखंड के ,
हमीरपुर जिले का, एक नितांत ! एकांत ! निर्जन ! बीहड़ ! परंतु अत्यंत सुंदर स्थान.
उस बड़े आकार के , सूर्य भवन नामक ! दोमंजिला घर के , पहली मंजिल पर स्थित ! एक कोने वाले कमरे में, वह सैंतीस-अड़तीस वर्षीय भगवाधारी युवक !
कु छ भगवान-भक्तों के टिप्पणियों का, प्रतिउत्तर दे रहा था. तभी द्वार खटखटाया गया. उसने द्वार खोला ! बाहर द्वार पर, उस भवन ! एवं उसके विशाल
परिसर के स्वामी ! तथा उसके घनिष्ठ मित्र ! व त्यागी पुरुष ! स्वीडन के वैज्ञानिक ! डॉ॰ श्री रविकांत पाठक जी थे.
उन्होंने इच्छा व्यक्त की :
“सत्यानंद जी ! आइये कु छ देर सत्संग करते हैं.”
भगवाधारी युवक बोला :
“आप चलिये ! मैं बस अभी आया.”
उसने अपने डिवाइसों को, लॉग-आउट किया. फिर अपने कक्ष से निकल कर ! उनके कक्ष में पहुँचा. कु छ देर तक ! दोनों ने बड़ी आनंददायक धार्मिक
चर्चायें करी. तभी सहसा ! चमत्कारी ढंग से, एक ही क्षण में, पाठक जी, गहरी निद्रा में समा गये. उनकी तबियत भी, बहुत ठीक नहीं थी. अतः उनको !
सोता छोड़ कर के , वह युवक ! उनके कक्ष से बाहर निकला. अपने कक्ष में आया. कु ल जमा उस भवन में, उस समय ! वहीं दोनों थे.
उस भगवाधारी ने, मोबाइल देखा. एक वरिष्ठ शिवशक्तियन ! संजय जी का मिस्डकॉल दिखा. उनको फोन लगाया. और बातें करते-करते ! टहलने के
उद्देश्य से, उस भवन के छत पर पहुँचा. टहलते हुये बातें करता रहा. लगभग पंद्रह मिनट की, वार्ता हो चुकने के पश्चात् ! सहसा उसकी दृष्टि ! एक ऐसी
वस्तु पर गयी. जिसे देख कर…………….. उस युवक को, पाठक जी के , सहसा ! गहरी निद्रा में, समा जाने का कारण ! एक झटके से स्पष्ट हो गया.
वह वस्तु ! एक सीढ़ी थी. उस युवक ने, उस सीढ़ी की ओर ! उस प्रकाशमय ! अलौकिक सीढ़ी की ओर देखा. वस्तुतः वह एक नहीं ! एक जोड़ी सीढ़ी
थी. एक सीढ़ी ! चारदीवारी के इस पार थी. तथा दूसरी सीढ़ी ! उस पर थी. एवं ऊपर जा कर, दोनों का मुँह ! आपस में, बंधा हुआ था. जिससे वह अंग्रेजी
के अक्षर ! वी (V) के , उल्टा जैसा { /\ } आकार बना रहा था. उस सीढ़ी को देखते ही, युवक को समझ आ गया कि, अब उसे क्या करना है ?
उसने शिवशक्तियन संजय जी से कहा :
“आप सोइये गुप्ता जी ! मुझे भी कु छ कार्य है.”
इतना बोल कर, तत्क्षण उसने फोन काटा. झटकते हुये नीचे उतरा. कक्ष में मोबाइल रखा. तथा शीघ्रतापूर्वक ! उस दिव्य सीढ़ी के पास पहुँचा. उस सीढ़ी
का प्रयोग करके , चारदीवारी के उस पार पहुँचा. और जंगल में घुसता चला गया. अभी चंद कदम ही, चला होगा कि………….
उसके कानों में, महादेव-दूत विक्रांत महाराज का, स्वर सुनायी दिया :
“मेरा अनुसरण करो !”
उस भगवाधारी ने, तत्काल ! आवाज की दिशा में देखा. फिर चलता हुआ ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के पास पहुँचा. उनका चरण स्पर्श कर आशीर्वाद
लिया. फिर उनके पीछे-पीछे चल पड़ा. कु छ मिनट चल कर, उनके साथ-साथ वह ! एक टिब्बेनुमा स्थान पर पहुँचा.
विक्रांत महाराज ! वहाँ रुक कर के बोले :
“मेरा हाथ पकड़ो ! और छोड़ना मत !”
उस भगवाधारी के द्वारा ! आज्ञा का पालन करते ही, उसकी आँखों के समक्ष ! अंधेरा छाने लगा. आँखें अपने आप बंद हो गयी. जब खुली ! तब वह ! इसी
पृथ्वी ग्रह के , शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश के , दूत खंड में था.
---- ---- ---- ---- ---
शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश के , दूत खंड में, प्रवेश करने के साथ ही, वहाँ के वातावरण में, किन्ही अदृश्य स्रोत से, गगनभेदी स्वर में, महाकवि भूषण की
लिखित ! पंक्तियाँ गूँजने लगी……………
इन्द्र जिमि जंभ पर ! बाडब सुअंभ पर !
रावन सदंभ पर ! रघुकु ल राज है.
पौन बारिबाह पर ! संभु रतिनाह पर !
ज्यौं सहस्रबाह पर ! राम-द्विजराज है.
दावा द्रुम दंड पर ! चीता मृगझुंड पर !
भूषन वितुंड पर ! जैसे मृगराज है.
तेज तम अंस पर ! कान्ह जिमि कं स पर !
त्यौं मलिच्छ बंस पर ! सेर शिवराज है.
जय भवानी ! जय ………….. !
उन रोम-रोम पुलकित कर देने वाले, गूँजते स्वर के मध्य ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“श्वेतभानु ! इस पृथ्वी ग्रह के , तुम्हारे सभी मूल-जन्मों ! उदाहरणार्थ-जन्मों ! एवं समानांतर जन्मों ! इन सभी जन्मों को, समग्र रूप से देखें तो……….
यह तो मानना पड़ेगा कि, इस ग्रह हेतु ! मूल श्रेणी वाले, आठवें चरण का, धर्मकाज करने के लिये, माता ने सबसे उपयुक्त्त आत्मा का, चयन किया है.”
उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी युवक ने, कृ तज्ञभाव से, अपने सिर को झुकाया ! तथा हाथ जोड़ता हुआ बोला :
“जी तुरंग भैया ! अब चयन किया है तो, सदैव यहीं प्रार्थना करता हूँ कि, माता एवं महादेव ! व समस्त देवी-देवता-गण-दूत ! मिल कर, यह बेड़ा ! पार
करा दें. क्योंकि यह अभी तक का, सबसे मुश्किल ! व कठिन दायित्व है.”
तुरंग भैया ! यानि महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“अब तो शिवशक्तियन का, प्रवेश होना भी, आरंभ हो गया है. महाशिवरात्रि वाली, तृतीय भेंट-वार्ता बैठक में, पुराने अठारह शिवशक्तियन ! तथा सामान्य
भगवान-भक्तों के साथ-साथ ! छिपे हुये भावी शिवशक्तियन को भी तो, तुमसे आमंत्रण दिलवाया जा रहा है. अभी तक ! कितने आमंत्रण दे चुके हो ?”
भगवाधारी बोला :
“जी, 151 की जो, सूची प्राप्त हुयी है. उसमें तिथि अनुसार ! किनको कब आमंत्रण भेजना है ! इसका उल्लेख है. आज की तिथि तक वाले, सभी १२१
भोले-भक्तों को, आमंत्रित कर चुका हूँ. अभी ३० भगवान-भक्तों को, और करना है. परंतु अभी उनकी तिथि, नहीं आयी है.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“अभी जो शिवशक्तियन ! अपनी इच्छा से, संदेश आदान-प्रदान करने हेतु……….. गैर-आधिकारिक ! समानांतर समूह चला रहे हैं. क्या उसकी अनुमति
! तुमने उन्हें दी है ?”
भगवाधारी बोला :
“महाराज जी ! मैंने कोई अनुमति नहीं दी है. जब मुझसे पूछा गया था. तब मैंने ! यह बोला था कि……….. आप लोगों को, बनाना हो तो बनायें. परंतु
मुझे ! ऐसे किसी गैर-आधिकारिक ग्रुप में, रहने की अनुमति नहीं है. अतः मैं नहीं रहूँगा. अतः मैं उसमें नहीं हूँ. इसलिये मुझे यह भी नहीं पता कि, उसमें
क्या-क्या होता है ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“तुम्हें नहीं पता ! परंतु हमें तो पता है न कि, उसका दुरुपयोग हो रहा है. उसमें………….. समय व्यर्थ करने वाली ! नकारात्मकता फै लाने वाली !
गोपनीय जानकारियों को, प्रकल्प के दुश्मनों तक पहुँचने वाली ! भविष्य में शिवशक्तियन पर, आधिपत्य जमाने की, चरणबद्ध योजना वाली !
……………..इस प्रकार की, सभी, अनावश्यक ! व समय व्यतीत करने वाली कार्यवाहियाँ ! वहाँ धड़ल्ले से चल रही हैं.”
भगवाधारी बोला :
“मुझे उसकी कोई जानकारी नहीं है महाराज !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“परंतु ! तुम्हें इसका पता होना चाहिये. यह भी तुम्हारा ही दायित्व है. क्योंकि भले ही तुम्हारे लक्ष्य पर, कोई अंतर नहीं पड़ेगा. परंतु किसी कारणवश !
किसी भी शिवशक्तियन के , नकारात्मक होते ही, उस बेचारे शिवशक्तियन के , हाथ से तो, यह सुअवसर फिसल जायेगा. तुम्हारी इसी त्रुटि हेतु ! प्रभु श्रीकृ ष्ण
देव ने, तुम्हें बुलाया है. यहाँ दूत-खंड में, जन्मोत्सव के उपरांत ! तुम मेरे साथ ! श्रीकृ ष्ण-खंड चलोगे.”
भगवाधारी बोला :
“किसका जन्मोत्सव भैया ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“मूल श्रेणी के , आठवें चरण का, धर्मकाज कर रही, किसी भी आत्मा को, सहसा ! एक झटके से, मूल श्रेणी के , नौवें चरण में, प्रवेश नहीं कराया जाता. उसे
महादेव-दूत बनाने से पूर्व ! महादेव-दूत बनने का, अभ्यास कराया जाता है.”
“क्योंकि मूल श्रेणी के , आठवें चरण वाली आत्मा का, महादेव-दूत बनना, सुनिश्चित होता है. अतः उसके महादेव-दूत बनने के , पूर्व से ही, महादेव-दूत
वाले, काज करा-करा कर, अभ्यास भी, कराया जाता रहता है. तुम्हें आठवें चरण का, धर्मकाज करते हुये, अब बीस मास हो चुके हैं.”
“तुम इक्कीसवें मास में, प्रवेश कर चुके हो. तथा तुम अपने दायित्वों का निर्वहन ! बहुत ही अच्छे ढंग से, आदेशों का अक्षरशः पालन करते हुये, तीव्र एवं
समुचित गति से, कर रहे हो. अतः विधि-विधान के अनुरूप ! तुमको अब से कभी-कभी ! सीमित अवधि हेतु ! महादेव-दूत वाली सिद्धियाँ ! एवं शक्तियाँ
भी, प्रदान की जायेंगी.”
“आज से इसका आरंभ होगा ! अभी कु छ ही क्षणों के पश्चात् ! कु छ घंटों की, सीमित अवधि हेतु ! तुम्हें महादेव-दूत की, सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी. इन
सीमित अवधि में, तुम्हें ! तीन अलग-अलग ग्रहों पर, तीन अलग-अलग कार्यों का, दायित्व निर्वहन करना है.”
भगवाधारी युवक हाथ जोड़ कर बोला :
“महाराज जी, क्या यह करना ! अनिवार्य है ? या ऐच्छिक है ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“मूल-श्रेणी के आठवें चरण का, धर्म-काज करते हुये, इक्कीसवें माह में, प्रवेश करते ही, यह अनिवार्य हो जाता है. वैसे यह तुम ! क्यों पूछ रहे हो ?”
भगवाधारी युवक बोला :
“क्योंकि भैया ! अत्यंत व्यस्तता है. सांस लेने की फु रसत नहीं है. इस मुहावरे के प्रकार की, व्यस्तता है.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ने पूछा :
“जैसे ?”
भगवाधारी युवक ने उत्तर दिया :
“जैसे………… भिक्षाटन करना है ! गाड़ी भी स्वयं ड्राइव करना है ! भिक्षाटन का डेटा मेंटेन करना है ! भिक्षाटन हेतु आये निवेदन का भी, डेटा अपडेट
रखना है ! प्रतिदिवस सैकड़ों-हजारों संदेशों का, उत्तर देना है ! हजारों टिप्पणियों का, रिप्लाई करना है ! बच्चा ऑटिस्टिक है, तो उसको भी समय देना है !
आर्थिक जंजाल हैं, अतः उनसे भी निपटना है ! शिवशक्तियन को समय देना है ! मूल श्रेणी वालों को भी, अनावश्यक परंतु अनिवार्यतः समय देना है !
ऑटोबायोग्राफी, एवं अन्य घटनाक्रम, व प्रकरण लिखना है ! शिवशक्ति शिवालय स्थल के , एक साथ बारहों स्थान के , भूमि का बयाना-बट्टा का, कार्य भी
देखना है ! शिवशक्तियन भेंट-वार्ता बैठक, ऑर्गनाइज करना है. सैकड़ों आमंत्रण संदेश भेजना है ! शिवशक्तियन का आधिकारिक ग्रुप चलाना है ! अपना
भोजन स्वयं बनाना है ! बर्तन माँजना है ! कपड़े धोने हैं ! सामान्य सांसारिक लोगों से भी, बात करना है ! परिवार को भी समय देना है ! दुष्टों-विधर्मियों-
पापियों-कु कर्मियों-अधर्मियों से भी, निपटना है !.………………”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! उसकी बात को, बीच में काटते हुये ! उसकी सूची गिनाने की, धारा-प्रवाह लयबद्धता को, तोड़ते हुये बोले :
“श्वेतभानु ! रुक जाओ. मैं समझ गया. तुम्हारे पास ! कोस भर लंबी ! कार्यों की सूची है. उतना मुझे नहीं सुनना है. पहले मेरे एक बात का उत्तर दो. इन
सभी कार्यों में से, तुमसे कौन सा कार्य ! तुम्हारे अत्यंत व्यस्तता के कारण ! छू ट जा रहा है.”
भगवाधारी युवक हिचकता हुआ बोला :
“अभी तक तो, कोई सा भी नहीं महाराज !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज हँसते हुये बोले :
“तब फिर काहे की व्यस्तता ?”
इतना बोल कर ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! उस भगवाधारी को, अपने साथ ले कर, दूत-खंड के , उत्सव क्षेत्र में, चले गये.
~~~~~~~~~
उत्सव क्षेत्र का विवरण ! यानि उस जन्मोत्सव समारोह का स्मरण ! अनुमति प्राप्त होने पर, फिर कभी लिखूँगा. अभी आगे के घटनाक्रमों को, लिखना आरंभ
करता हूँ.
~~~~~~~~~
कु छ घंटों की, सीमित अवधि हेतु ! प्राप्त हुये, महादेव-दूतों वाली ! शक्तियों के साथ ! उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी युवक ने, तीन दायित्वों में
का, प्रथम दायित्व ! यानि अपने एक पूर्वजन्म का, जन्मोत्सव मनाने के उपरांत……………. अब वह ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के साथ ! शिवशक्ति
जगत ! गोबी-गुरुवंश के , दूत-खंड से, श्रीकृ ष्ण-खंड की ओर, बढ़ रहा था.
चलते-चलते हुये, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ने, उससे पूछा :
“इस वाले शिवशक्ति जगत को, देख कर के , कु छ स्मरण आ रहा है ?”
भगवाधारी ने उत्तर दिया :
“जी सभी कु छ ! अत्यंत स्पष्टता से, स्मरण आ रहा है. इस स्थान के आस-पास का क्षेत्र तो, मेरे मूल श्रेणी वाले, दूसरे जन्म के , एक समानांतर जन्म की,
आरंभिक कार्यस्थली रही है. उस जन्म को तो, मैं वैसे भी नहीं भूल सकता. क्योंकि उसी जन्म में, किये कु छ पापों की बदौलत ! मैं अपने मूल श्रेणी के ,
द्वितीय चरण में ही, चार मूल जन्मों तक, अँटका रह गया था. सभी कु छ ऐसे स्मरण हो रहा है. जैसे वह सब ! कल की ही बात हो.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“इतनी स्पष्टता से, सभी कु छ ! स्मरण होने का कारण ! अभी तुम्हें ! कु छ घंटों के लिये मिली हुयी, महादेव-दूतों वाली शक्तियाँ हैं. क्या तुम्हें ! यह अनुभव
! रुचिकर लगा ?”
भगवाधारी ने उत्तर दिया :
“जी ! मेरा तो…………….”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! उसका उत्तर आरंभ होने से पूर्व ही, उसकी बात ! काटते हुये बोले :
“चलो फिर ! महादेव-दूत वाली प्राप्त शक्तियों का, अभी आनंद लो. प्रभु श्रीकृ ष्ण खंड का, संधान करके , तुम वहीं पहुँचो. मैं भी तब तक ! वहीं चलता हूँ.”
इतना बोलने के साथ ही, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! अंतर्ध्यान हो चुके थे. उस भगवाधारी ने, उनके बताये तरीको से, संधान तो किया. परंतु उसे कोई
भी, मनोवांछित परिणाम की, प्राप्ति नहीं हुयी. अब वह क्या करे ?
अतः उसने युक्ति भिड़ायी ! ………और महादेव-दूत विक्रांत महाराज के , समीप पहुँचने का ही, संधान किया. तत्काल सुखद परिणाम सामने आया. वह
तत्क्षण ! श्रीकृ ष्ण खंड के , मुख्य द्वार पर ! पुनः महादेव-दूत विक्रांत महाराज के सानिध्य में, पहुँच चुका था.
अभी वह भगवाधारी युवक ! कु छ पूछने जा ही रहा था कि………….. महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! स्वयं ही बोले :
“तुम यहाँ का संधान ! सफलतापूर्वक ! इसलिये नहीं कर पाये. क्योंकि………… एक तो तुम यहाँ ! इधर काफी माह में, प्रथम बार आये हो. अतः तुम्हें !
यहाँ का कु छ भी, स्पष्ट स्मरण नहीं रहा होगा. दूसरा ! और जो बड़ा कारण है ! वह यह कि, यह देव-लोक ! यानि शिवशक्ति जगत क्षेत्र है.”
“अतः यहाँ के वल संधान करके ही, नहीं पहुँचा जा सकता. यहाँ आने की अनुमति होना भी, आवश्यक है. जो कि तुम्हारे पास नहीं था. वह तो अभी-अभी !
मैंने तुम्हारे हेतु भी, तुम्हें अके ले पहुँचने की, अनुमति दिलाया हूँ. तब जा कर पहुँचे हो. परंतु कोई बात नहीं ! धीरे-धीरे सभी प्रक्रिया ! एवं विधान ! तुम
स्वयं जान जाओगे. चलो हम प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान के समक्ष ! उनके सानिध्य में चलते हैं.”
इतना बोल कर, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! आगे-आगे ! तथा उनका अनुसरण करता हुआ ! वह भगवाधारी युवक ! उनके पीछे-पीछे ! चलने लगा.
कई सारी प्रक्रियाओं से, गुजरने के पश्चात् ! वह दोनों प्रभु श्रीकृ ष्ण के , भेंट-कक्ष में थे. कु छ ही समय के पश्चात् ! प्रभु श्रीकृ ष्ण का आगमन हुआ. उन दोनों
ने, प्रभु का चरण-स्पर्श करके , आशीर्वाद प्राप्त किया.
फिर प्रभु श्रीकृ ष्ण ! अपने सिंहासननुमा आसन पर विराजमान होते हुये, अपने दिव्य स्वर में बोले :
“राके श ! मैं यह समझता हूँ कि, वह त्रुटि ! तुमसे अनजाने में हुयी है. तुमने महादेव के , इस वाक्य ! यानि कि………… ***आत्मा की स्वतंत्रता में,
कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं करना चाहिये.*** ………….इस वाक्य को, सर्वोपरि रखते हुये, सभी अठारहों शिवशक्तियन को, उनकी इच्छा का कार्य !
करने दिये.”
“परंतु राके श ! यह भी तो सोचो ! कि महादेव आज्ञा वाले, इस प्रकल्प से, *क्या* प्राप्त करना ? उन सभी शिवशक्तियन का, परम् ध्येय है ? इस पुण्य-
प्रकल्प से, *क्या* प्राप्त करना ? उनका परम् उद्देश्य है ?”
कु छ देर तक चुप रहकर ! प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ने, स्वयं ही उत्तर दिया :
“उन सभी का परम् ध्येय है ! परम् उद्देश्य हैं ! ………..९९९९९ शिवशक्तियन में से, ९९९९ मूलश्रेणीपथगामी आत्मा वाली, शिवशक्तियन बनना.
अतः अगर ! उनमें से किसी के साथ ! पथ-भटकाव होता है. तो तुम उन्हें ! पुनः मूल-मार्ग पर लाने हेतु ! एक से अधिक संके त देना ! एवं कु छ अतिरिक्त
प्रयत्न करना.”
“मत भूलो राके श ! वह सभी ! इस पतित ग्रह पर, चहुँओर व्याप्त ! अज्ञानता वाले वातावरण में, पले-बढ़े हैं. धर्म की त्रुटिपूर्ण व्याख्यायें ! उनके इस जन्म
वाले, देह के मनोमस्तिष्क में, कू ट-कू ट कर भरी हुयी हैं. वह क्रोध के नहीं ! अपितु दया के पात्र हैं राके श ! उन्हें ठीक से समझाओ कि…………”
“उनका लक्ष्य ! इस महान पुण्य धर्मकाज के माध्यम से, मोक्ष-मार्ग पर बढ़ने हेतु ! मूलश्रेणी में प्रवेश पाना है. ना कि यहाँ ! बाकी के शिवशक्तियन के साथ
! सामाजिक गठबंधन करना. सामान्य शिष्टाचारवश ! चर्चा-वार्ता ठीक है. परंतु उससे अधिक ! उनका आपसी संपर्क ! उनके लिये, अंततोगत्वा !
हानिकारक ही सिद्ध होगा.”
“अतः वह सभी ! अपनी प्राथमिकता अनुसार ! तृतीय प्राथमिकता पर, इस महादेव-काज को रखते हुये, अपना सर्वोच्च योगदान दें. बजाये इसके कि, वह
सभी आपस में, संगठन-संगठन खेलें. बिना महादेव-दूतों से, प्राप्त आज्ञा के , संदेशों का आदान-प्रदान ! आपस में करने का, कोई अर्थ ही नहीं है. उन्हें जो
भी जानना हो, प्रत्यक्ष रूप से, तुमसे जानें.”
“तथा जब ! महादेव-दूतों द्वारा ! प्रसारित संदेशों के प्राप्ति हेतु ! वह आधिकारिक समूह से, जुड़े ही हुये हैं. तब अलग से, गैर-आधिकारिक ! समानांतर
समूह चलाने का, भला क्या औचित्य है ?”
“हाँ ! अगर तुम्हारे समझाने के पश्चात् भी, कोई अपनी इच्छा से, संगठन बना रहा है. तब वह उसकी ! अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता है. वैसे वह ! मूल
स्वतंत्रता नहीं हैं. क्योंकि वह ! विधान-रहित स्वतंत्रता है. तथा विधान-रहित स्वतंत्रता तो, पराधीनता से भी, अधिक दोषपूर्ण होती है. फिर वैसे कु कर्मियों
को, समझाना भी व्यर्थ है.”
“जो समझना चाहते हैं. उन्हें यह समझाओ कि, यह कोई संगठनात्मक कार्य नहीं है. यह तो सभी की, अपनी-अपनी ! नितांत व्यक्तिगत यात्रा है. यह कोई
समूह के साथ, खेला जाने वाला, कबड्डी-नुमा खेल नहीं है. या फिर यह ! चार मानवों वाले, डंडा-पकड़ दौड़ की भाँति ! समूह का खेल नहीं है. यह तो
तैराकी ! या लंबी दौड़ की भाँति ! खेला जाने वाला, व्यक्तिगत खेल जैसा खेल है.”
“इसके साथ ही, तुम ! उन सभी शिवशक्तियन को, यह भी समझाओ कि……….. वह सभी ! एक बात का, सदैव ध्यान रखें. वैसे मैंने देखा है.
शिवशक्तियन प्रसार-तंत्र के माध्यम से, महादेव-दूत ! माता सेविका चिहिरो ! सदैव इस बात को, समझाती भी रहती है कि…………”
“महादेव-दूतों द्वारा ! निर्देश दिये जा रहे ! या तुम्हारे द्वारा ! अनुरोध किये जा रहे ! किसी भी कार्य, या किसी भी दायित्व को, तभी पूर्ण करें. जब उससे !
उनकी दोनों प्रमुख प्राथमिकतायें ! बाधित नहीं हो रही हो.”
“यानि बताये गये, क्रमानुसार ही, समय देना है. प्रथम प्राथमिकता में, स्वयं के इस जन्म वाले देह ! व परिवार को, सर्वोच्च प्राथमिकता देनी है. तत्पश्चात् !
द्वितीय प्राथमिकता में, जीवन यापन हेतु ! जीविकोपार्जन / अर्थोपार्जन / धनोपार्जन वाले काज को, प्राथमिकता देनी है.”
“तदुपरांत ! तृतीय प्राथमिकता में, शिवशक्तियन वाला कार्यभार ! यानि दायित्वपूर्ति वाले, कार्य करने हैं. तथा के वल इतना ही नहीं ! इसके बाद भी, एक
विशेष तथ्य का, अवश्य ध्यान रखना है. वह तथ्य है……………”
“जगत् जननी माता ! एवं हम सभी देवों के देव महादेव ! के आज्ञा वाले, इन पुण्य धर्मकाज प्रकल्पों के , सभी कार्यों को, प्रथम या द्वितीय के बजाये, तृतीय
प्राथमिकता पर तो, रखना ही है.”
“उसे तृतीय प्राथमिकता पर ! रखने के साथ ही, एक और बात का, विशेष ध्यान रखना है. वह बात ! यह है कि………….. इस पुण्य-काज में, वह समय
लगाना है. जो उनका महत्वपूर्ण समय नहीं है. उन्हें वह समय लगाना है. जो अनावश्यक रूप से, कहीं-ना-कहीं, व्यर्थ व्यतीत हो जाता है. उन्हीं दुरुपयोग हो
रहे, समय का ही, यहाँ सदुपयोग करना है.”
“वैसे अगर कोई शिवशक्तियन ! तुमसे यह पूछे कि…………… इस नियम का, इतना अधिक ! एवं बार-बार उल्लेख ! क्यों किया जाता है ?”
“तब तुम उन्हें ! यह समझा देना कि…………… यह नियम बारंबार बताना ! इसलिये आवश्यक है. क्योंकि अगर किसी, नकारात्मक शक्तियों के , प्रभाव
में आकर ! कोई भी शिवशक्तियन ! भविष्य में, इस महादेव आज्ञा वाले, धर्म काज प्रकल्पों के प्रति ! या महादेव-दूतों के , कार्य प्रणाली के प्रति ! या तुम्हारे
स्वयं के ही प्रति……………”
“अगर वह ! अपने स्वयं के , त्रुटिपूर्ण कर्मों के कारण ! नकारात्मक हो जाये. तब वह ! ऐसा आरोप ना लगाये कि…………. उसके समय का, दुरुपयोग हो
गया. उसे यह ज्ञात रहे कि, उसने व्यर्थ वाला, समय लगाया है. और अगर उसने, अपनी स्वयं के इच्छानुसार ! मूल्यवान समय भी लगाया है तो, ऐसा करने
को, उसे बाध्य नहीं किया गया था.”
“……………क्योंकि वह व्यर्थ वाला समय भी, उसने अपनी स्वेच्छा से लगाया है. अतः उसके द्वारा ! कोई भी आरोप लगाना. सर्वथा अनुचित है.
चूँकि किसी भी सामान्य मानव ! या विशेष मानव ! यानि शिवशक्तियन को, अंततोगत्वा ! इसी जगत के , नकारात्मकता से भरे मनुष्यों के , मध्य ही तो रहना
है.”
“क्योंकि अधर्मियों से भरी हुयी, इस धरा पर, चहुँओर ! अधीरता एवम् व्यग्रता का, वातावरण है. धैर्य की भारी कमी है. तथा वहीं धैर्य की कमी ! किसी भी
मानव मात्र को, उचित-पथ से, विचलित करती है. अतः प्रत्येक शिवशक्तियन को, अत्यंत धैर्यवान बनना पड़ेगा. बड़े दायित्वों का, वहन करने से पूर्व !
छोटे-बड़े कई दायित्वों को, स्वयं से आगे बढ़-बढ़ कर ! स्वीकार करना होगा.”
“आज उन सभी की संख्या ! काफी कम है. सैकड़ों में भी नहीं है. अतः आज उनको, पकड़-पकड़ कर ! दायित्व सौंपा जा रहा है. जब भविष्य में, यह
संख्या हजारों में पहुँचेगी. तब ऐसा नहीं होगा. तब तो अधिकतर दायित्व ! उसी शिवशक्तियन को मिलेगा. जिसके पास ! दायित्व पूर्ण करने का, इतिहास
होगा.”
“क्योंकि महादेव के बनाये, विधि-विधान के अनुसार ! जो शिवशक्तियन ! स्वयं से आगे बढ़ कर ! जितना ही अधिक, दायित्व स्वीकार करके , उसे पूर्ण
करता जायेगा. उसे उतना ही और दायित्व ! सौंपा जाता जायेगा. वहीं जो दायित्वों से बचेगा. उसे कोई भी नवीन दायित्व ! नहीं सौंपा जायेगा. क्योंकि
महादेव के आज्ञानुसार ! आत्मा की स्वतंत्रता ! अत्यंत महत्वपूर्ण है. उसको बाध्य करके , कोई भी कार्य ! नहीं कराना होता है.”
“परंतु ! उन्हें यह भी समझना कि…………. आत्मा की स्वतंत्रता का, विशेष लाभ ना उठायें. क्योंकि मूलश्रेणी में प्रवेश करने हेतु ! दायित्वों का, अधिक-
से-अधिक निर्वहन करना भी, अत्यधिक महत्वपूर्ण है.”
“उन्हें समझाना कि,
हम कर ही क्या सकते हैं ?
अन्य कोई विकल्प भी तो नहीं है.”
वर्तमान के , अठारहों शिवशक्तियन हेतु ! इतना सब कु छ ! विस्तार से बताने के पश्चात् ! प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज को, संबोधित
करके बोले :
“विक्रांत ! जैसा कि तुम्हें ज्ञात होगा. राके श अभी दूत बनने के , पूर्वाभ्यास हेतु ! तुम्हारे आज के दायित्व वाले, दो कार्यों को करेगा.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“जी प्रभु ! ऐसा ही है.”
अब प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी युवक को, संबोधित करके बोले :
“राके श ! यह एक प्रकार से, तुम्हारा महादेव-दूत के रूप में, लौकिक जगत का, प्रथम कार्य है. तुम अभी महादेव-दूत नहीं हो. परंतु ! अभ्यास हेतु ! अभी
कु छ सीमित अवधि हेतु ! कु छ घंटों तक ! तुम महादेव-दूत ही हो.”
“अतः तुम जाओ ! उस सुदूर अधर्मी ग्रह पर ! जो इस पृथ्वी ग्रह के , गणितीय गणना के अनुसार ! यहाँ से असंख्य प्रकाश वर्ष दूर है. अभी तुम वहाँ जाओ
! और उस पतित अधर्मी ग्रह पर, अपनी ओजस्वी वाणी में, धर्म पताका ! लहरा कर आओ. मैं यहीं से, तुम्हारे प्रदर्शन की, गुणवत्ता को देखूँगा.”
भगवाधारी युवक ! आशंकित भाव से बोला :
“परंतु प्रभु ! मुझे इस संदर्भ में, कु छ भी ज्ञान नहीं है. मुझे वहाँ की भाषा भी, नहीं आती होगी. अगर आपका ! मार्गदर्शन मिल जाता कि, मुझे क्या बोलना है
? तो मैं धन्य हो जाता.”
प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! मुस्कु राते हुये बोले :
“महादेव दूतों के लिये, भाषा की कोई बाध्यता नहीं होती. तुम्हें जो भाषा आती हो, उसमें बोलना. परंतु तुम पाओगे ! तुम्हारे मुख से, वह भाषा निकल रही
है. जो सुनने वाले को, समझ आ सके . और रही बात ! मार्गदर्शन की. तो उसकी कोई आवश्यकता नहीं है. तुम्हें जो समझ आये, वहीं बोलना. वह सही ही
होगा. क्योंकि अभी भले तुम ! महादेव-दूत नहीं हो. परंतु बिल्कु ल महादेव-दूत बनने के , द्वार पर ही तो खड़े हो. अतः सब अच्छा ही होगा. ऐसा मेरा
आशीर्वाद है.”
इतना बताने के बाद ! प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! भेंट-कक्ष से बाहर निकल गये. उनके जाने के पश्चात् ! भगवाधारी घबराया हुआ सा ! महादेव-दूत विक्रांत
महाराज से बोला :
“भैया ! मुझे तो सही में, इस संदर्भ में, कु छ भी ज्ञान नहीं है. अब कै से होगा ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज हँसते हुये बोले :
“चलो ! मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूँगा. क्योंकि यह तुम्हारा अभ्यास सत्र है. अतः मुझे ! तुम्हारे साथ रहने की, अनुमति है. हम कु छ देर बाद ! जिस ग्रह पर
होंगे. उस ग्रह वाला ! मूल श्रेणी के , प्रथम चरण का, जो मानव है. वह बहुत रोचक मनुष्य है. उससे मिल करके ही, तुम्हें आनंद आ जायेगा.”
“संयोग से वह ! अपने पिछले जन्म में, इसी पृथ्वी ग्रह पर था. इसी ग्रह से वह ! पूर्व श्रेणी से, मूल श्रेणी में पहुँचा है. अभी ! साढ़े बाईस वर्ष पूर्व ही तो,
उसकी पृथ्वी पर, मृत्यु हुयी है. मृत्यु से सात वर्ष पूर्व ! वह मूल श्रेणी में जाने योग्य ! आवश्यक अहर्तता ! प्राप्त कर चुका था. अतः उसके , उस जीवन के ,
अंतिम सात वर्ष ! पूर्व श्रेणी वाले, नौवें चरण की, प्रतीक्षा अवधि थी.”
“उसी प्रतीक्षा अवधि में, उसके सदकर्मों की, अत्यधिक अधिकता के कारण ! महादेव ने उसे दर्शन दे कर, वरदान माँगने को बोला था. वरदान में उसने !
यह माँगा कि…………… उसे अगला जन्म ! यानि मूल श्रेणी का प्रथम जन्म भी, इसी पृथ्वी ग्रह पर चाहिये.”
“महादेव ने जब उससे पूछा कि………… वह ऐसा क्यों चाहता है ? तब उसने बताया कि, उसे देवी-देवताओं के मूल पदसोपान ! यानि मूल पदानुक्रम से,
छेड़-छाड़ करने वाले, सभी साधु-संतों एवं बाबाओं को, मन भर ! पीट-पीट करके , सबक सिखाना है.”
“तब महादेव ने, उसे बताया कि………….. यह काम वह ! निर्विघ्न रूप से, पृथ्वी ग्रह पर, नहीं कर सकता. क्योंकि यहाँ ! लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के
कारण ! कानून का राज है. तुम्हें मैं ! ऐसे ग्रह पर, भेज दूँगा. जहाँ अधर्म की स्थिति ! कु छ-कु छ पृथ्वी जैसी ही है. परंतु वहाँ किसी प्रकार के , किसी
नियम-कानून का राज नहीं है. जो ताकतवर है ! वह अपनी मनमानी करता है. वहाँ तुम निर्विघ्न रूप से, अपने शारीरिक बल के बूते ! मनमानी कर सकते
हो. और वहाँ तुम्हारे मनचाहे आहार ! __ली की भी भरमार है.”
“तब फिर उसने ! उसी ग्रह पर, पैदा होने का, तथा साथ ही साथ ! खूब शारीरिक बल का, वरदान माँग लिया. जिसे महादेव ने, यह कह कर ! वरदान दे
दिया कि, तुम्हारे पास शारीरिक बल तो, बहुत रहेगा. परंतु बुद्धि बिल्कु ल भी नहीं रहेगी. के वल उतना ही ज्ञान रहेगा. जितना तुम्हारे मन की, अभी हार्दिक
इच्छा है.”
“उसके बाद उसने ! उस ग्रह पर जन्म लिया. वह बलवान बहुत है. शरीर भी वहाँ के औसत से, बड़ा एवं विशालकाय है. परंतु हाँ ! बुद्धि तनिक भी नहीं है.
एक ही बुद्धि है. दुष्ट धर्मप्रवर्तकों को पकड़ना ! उन्हें मन भर पीटना. फिर अपने बनाये, कारावास में, बंद कर देना. तथा उन्हें नियमित रूप से, पीट-पीट
करके , देवी-देवताओं का, मूल पदानुक्रम रटाना. और टोकरी भर-भर कर …….ली खाना”
“परिणामस्वरूप ! अभी तक उसने, काफी अधिक संख्या में, वैसे दुष्ट धर्मप्रवर्तकों को, अपने कारावास में, कै द कर रखा है. अब उसके कारावास में, नये
दुष्टों हेतु ! जगह नहीं है. अतः उसने ! महादेव-दूतों से, निवेदन किया है कि, कोई महादेव-दूत ! आ कर के , अपनी वाणी से, उन दुष्टों को, कोई ज्ञानवर्धक
बात बता दें.”
“ताकि उसके बाद वह ! सुधर चुके दुष्टों को, अपने कारावास से, रिहा कर देगा. तथा उनकी जगह ! और नये दुष्टों को, पकड़ कर लायेगा.”
“उसने मंच तैयार कर रखा है. तुम्हें चल कर, कोई भी भाषण जैसा ! कु छ भी बोल देना है. वह खुश हो जायेगा. उस पर सभी देवी-देवता-गण-दूत ! सभी
के सभी ! प्रसन्न रहते हैं. बड़ा ही मनोरंजक व्यक्तित्व है उसका.”
इतना बोलने के पश्चात् ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! अपने स्थान से, खड़े होते हुये बोले :
“चलो ! अब चला जाये. नहीं तो विलंब होगा.“
कु छ ही क्षणों में, महादेव-दूत विक्रांत महाराज के साथ ! वह सैंतीस-अड़तीस वर्षीय भगवाधारी युवक ! उस सुदूर ग्रह पर था. फिर कु छ मिनट की, भेंट के
पश्चात् ! उस मूल श्रेणी के प्रथम चरण वाले, युवा मानव द्वारा ! तैयार किये गये, ऊँ चे मंच पर था.
तभी प्रभु श्रीकृ ष्ण का दिव्य स्वर ! उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी के कानो में गूँजा :
“अब तुम बोल सकते हो सत्यानंद !”
एक ऊँ चे स्थान पर खड़े हुये ! उस भगवाधारी ने, अपने समक्ष ! नीचे मैदान में, सिर झुकाये ! हजारों की संख्या में, हाथ बांधे खड़े ! उन तथाकथित
धर्मप्रवर्तकों पर, दुष्ट पापियों पर ! एक दृष्टि फिरायी. तत्पश्चात् ! अपने बगल में खड़े, महादेव-दूत ! विक्रांत महाराज की ओर देखा. विक्रांत महाराज ने,
मुस्कु राते हुये ! एक क्षण के लिये, अपनी पलकों को, झपकाने के साथ-साथ ! अपने सिर को एक-दो बार, हल्का-हल्का ऊपर-नीचे किया.
आज्ञा रूपी संके त पा कर ! वह भगवाधारी युवक ! अपार-जनसैलाब को, संबोधित करता हुआ बोला :
“जो शाश्वत है ! वही सत्य है !
वही सनातन है ! वही पुरातन है !”
“वह वैभवशाली है ! वह समृद्ध है !
वह गौरवान्वित है ! वह प्रफु ल्लित है !”
“धर्म ! सुख व संपन्नता का प्रतीक है,
दरिद्रता व निर्धनता का नहीं.
धर्म ! उल्लास व उत्साह का प्रतीक है,
शोक व दुःख का नहीं.
धर्म ! प्रकाश का प्रतीक है,
अंधकार का नहीं.
धर्म ! जीवंतता का प्रतीक है,
मरणासन्नता का नहीं.
धर्म ! विजय का प्रतीक है,
पराजय का नहीं.
धर्म आनंद व संतोष का प्रतीक है,
ग्लानि, संताप व लोभ का नहीं.”
“धर्म गर्व है !
धर्म आह्लादायक है !
धर्म ही सर्वोच्च है !
धर्म ही सर्वस्व है !
धर्म है तो, सब कु छ है.
धर्म का कोई विकल्प नहीं.”
“धर्म मोक्ष का मार्ग हैं.
धर्म ही सदकर्म है.
सदकर्म ही धर्म है.
धर्म ही पुण्य है.
पुण्य ही धर्म है.
धर्म तो धर्म है.”
“धर्म से तुम भागोगे ?
भाग सको तो, भाग के देखो.
धर्म को तुम मारोगे ?
मार सको तो, मार के देखो.”
“तुम ! धर्म की गलत व्याख्या करोगे ?
तो अब करके दिखाओ ?
तुम ! देवी-देवताओं के ,
मूल-पदानुक्रम से, छेड़छाड़ करने का,
जघन्य अपराध करोगे ?
तुम ! उस मूल पदसोपान में,
मनगढ़ंत इष्ट-आराध्य घुसाओगे ?
तुम ! अपने आप को,
सर्वेसर्वा महादेव के स्थान पर रखोगे ?”
“…………..और
यह सब करके , तुम सोचते हो. धर्म चुप रहेगा ! तुम्हारी नौटंकियाँ देखेगा ! सदैव ध्यान रहे ! महादेव की रचित ! तथा माता शक्ति की ऊर्जा से संचालित !
यह सृष्टि ! धर्म के आधार पर ही चलेगी.”
“तुम कु छ मनमाना कु कर्म करते हो.
कोई प्रतिउत्तर नहीं मिलता देख कर,
तुम पुनः करते हो !
बार-बार करते हो !
करते ही जाते हो !
अपने आप को,
अधर्म का नायक समझते हो.”
“जब तुम !
इतने ही बड़े हो चुके होते हो.
तब फिर !
उस देह की मृत्यु के उपरांत !
क्यों चिल्लाते हो ?
देवी-देवता-गण से,
अपने किये कु कर्मों हेतु,
शीघ्रातिशीघ्र दण्ड की भीख !
क्यों माँगते हो ?”
“अरे मूर्ख !
तुम किस भ्रम में, जी रहे हो ?
कल तुम नहीं थे, धर्म तब भी था.
कल तुम नहीं रहोगे, धर्म तब भी रहेगा.”
“संपूर्ण सृष्टि के रचयिता ! देवों के देव महादेव से प्राप्त ! आत्मा की स्वतंत्रता का, तुम दुरुपयोग करते हो. तुम अभी अबोध हो ! क्योंकि तुम्हें ! यह भी नहीं
पता कि…………..”
“स्वतंत्रता का मूल अर्थ ही, विधि-विधान के अनुरूप चलना होता है. महादेव निर्मित ! विधि-विधान के अनुसार चलना ! पराधीनता नहीं है. वह तो महादेव
को, प्रसन्न करने का, प्रसन्न रखने का, सबसे उत्कृ ष्ट माध्यम है. सर्वोच्च मार्ग है. सर्वोत्तम कर्म है.”
क्रमशः

1A(i) :~ मैं विवादास्पद नहीं ! अत्यंत सरल व सहज हूँ. तुम्हें लग सकता हूँ. क्योंकि तुम स्वयं उलझे हुये हो. परंतु हाँ ! रहस्यमय अवश्य लगता हूँ.
वैसे वास्तव में, हूँ नहीं. हूँ तो संदेहास्पद भी नहीं. परंतु किसी-किसी को, लगता अवश्य हूँ. तो उसका कारण यह है कि……….
उसने उथले-उथले ! ऊपर-ऊपर ! जैसे-तैसे झांकने-समझने का, राह चलता प्रयत्न किया है. वैसे में, कोई भी विराट व्यक्तित्व ! संदेहास्पद ही लगेगा.
मैं सिजोफ्रे निया का, मनोरोगी भी नहीं हूँ. परंतु हाँ ! जो स्वयं मनोरोगी हैं. उन्हें वैसा ही दिखता हूँ. क्योंकि उन्हें ! मैं ही क्यों ? उन्हें तो सभी के सभी !
मनोरोगी ही दिखते हैं. अतः उनका इलाज ! मेरे पास नहीं है. वैसे ! ऐसा नहीं है कि, उनका इलाज नहीं है. वस्तुतः मेरे पास ! किसी भी अनावश्यक कार्य
को करने हेतु ! समय ही नहीं है.
मैंने सार्वजनिक पटल पर ! अपने पूर्व के , अनेकों जन्मों से लेकर, इस वर्तमान जन्म तक के , घटनाक्रमों पर ! सैकड़ों प्रकरणों के माध्यम से, हजारों पन्ने
लिखे हैं. आने वाले भविष्य में, और भी कई-कई हजार पन्ने ! लिखने वाला हूँ.
अब तुम आओगे ! कहीं से भी पलट कर ! एक पन्ना पढ़ोगे. तो क्या होगा ? होना क्या है ? या तो स्वयं पागल हो जाओगे. या मुझे पागल घोषित करोगे.
ऐसा क्यों ? क्योंकि तुम ! इससे अधिक, कु छ कर भी नहीं सकते.
चलो मान लो ! तुम आँखों पर पट्टी बाँध कर, हाथी को टटोलोगे. तो परिणाम क्या होगा ? कान छु ओगे, तो पंखा बोलोगे. सूँड से लिपट गये, तो अजगर
बोलोगे. पूँछ हाथ आयी, तो झाड़ू बोलोगे. पाँव से टकराये, तो खंबा बोलोगे. इत्यादि ! इत्यादि ! इत्यादि !
कहने का आशय ! यह है कि………… तुम सब कु छ बोलोगे. हाथी कभी नहीं बोलोगे. जानते हो क्यों ? क्योंकि तुम्हारा अस्तित्व ! इतना बड़ा है ही नहीं
कि, तुम हाथी को टटोल कर, सही निष्कर्ष पर पहुँच सको.
अतः कु छ उपाय बताये देता हूँ. आँखों पर से पट्टी खोल कर देखो. हाथी को, बिल्कु ल चिपक कर के , मत देखो. थोड़ा दूर से देखो. थोड़ी ऊँ चायी पर चढ़
कर देखो. टुकड़ों-टुकड़ों में मत देखो ! समग्र देखो.
क्या देख पाओगे ? वैसे काफी मुश्किल है. परंतु प्रयास करके देखना. क्या पता दिख जाऊँ . वैसे अगर तुम ! खुले हुये उजागर ! या छु पे हुये गुप्त !
शिवशक्तियन नहीं हो. तो इस बात की, रत्ती भर ही, संभावना है कि………….. तुम मुझे देख पाओ !
ऐसा क्यों है ? जानते हो !
क्या जानना चाहते हो ?
चलो बताये देता हूँ. क्योंकि मैं ! इस पृथ्वी पर, आया ही हूँ. अपने शिवशक्तियन के लिये. उनके उद्धार के लिये. उनको सत्य से, अवगत कराने के लिये.
उनको पूर्व श्रेणी से, मूल श्रेणी में, प्रवेश कराने के लिये. उनकी आत्मा-यात्रा को, भटकाव-रहित मार्ग पर, लाने के लिये. उन्हें मोक्ष की दिशा में, कु छ और
कदम ! चलाने के लिये.
यहाँ एक स्वाभाविक सा प्रश्न उठता है. के वल शिवशक्तियन के लिये ही क्यों ? सभी के लिये, क्यों नहीं ? उत्तर है………….. क्योंकि शिवशक्तियन के
पास ! पूर्वजन्मों के संचित सदकर्मों की, अधिकता ! तथा कु कर्मों की न्यूनता है. तथा यह तुम्हें कै से पता ? कि तुम शिवशक्तियन नहीं हो ? क्योंकि वह
सूची ! तुम्हारे पास तो है नहीं.
इतना पढ़ने के बाद ! एक और जिज्ञासा ! उत्पन्न होगी. कि यह शिवशक्तियन कौन हैं ? अभी उन रहस्यमयी-गुप्त लोगों की, बात छोड़ो. अपनी स्वयं की
बात करो. कि कहीं तुम भी, शिवशक्तियन तो नहीं.
अरे ! अरे !
यह भी कै सा प्रश्न पूछ बैठा ?
इस बारे में भला ! तुम्हें कै से मालूम होगा ?
क्योंकि शिवशक्तियन की सूची तो, मेरे पास है.
चलो एक सूत्र पकड़ाता हूँ. पकड़ सको तो, पकड़ कर रखना. नीचे के पैराग्राफ में, दो पंक्तियाँ लिख रहा हूँ. पहले उसको पढ़ो.
***जितनी भी चीजें ! तुम्हें वास्तविक दिखती हैं. वह सभी काल्पनिक हैं. और जो तुम्हें ! कल्पना लगता है, वास्तव में, वहीं वास्तविक है.***
क्या ऊपर लिखित ! दोनों पंक्ति पढ़ लिये ? अच्छा बताओ ? कु छ-कु छ पचा ? क्या पचाने योग्य पंक्ति लग रही है ? इसके तीन उत्तर हैं…………. हाँ !
या नहीं ! या कु छ-कु छ !
अगर उत्तर ‘नहीं’ है. तो फिर आप ! यह सब पढ़ कर, अपना समय जया कर रहे हैं. …………..और अगर उत्तर ‘हाँ’ है. तो फिर तुम आगे भी पढ़ो.
और अगर उत्तर ‘कु छ-कु छ’ है. ………….तो आप ! तक तक झेलो ! जब तक झेला जा रहा है. परंतु प्रयास करो ! शीघ्रातिशीघ्र ‘हाँ’ या ‘नहीं’
किसी एक पलड़े पर, स्थिर होने का. क्योंकि वहीं सर्वथा उचित है.
‘हाँ’ वाले ! इस श्रृंखला के साथ-साथ ! पूर्व में लिखित ! सभी शृंखलायें पढ़ो. ‘कु छ-कु छ’ वाले भी, एक बार पढ़ कर देखो ! कहाँ तक पचता है. या आप
! कहाँ तक पचा पाते हो.
क्रमशः

1B :~
शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश के , दूत खंड में, प्रवेश करने के साथ ही, वहाँ के वातावरण में, किन्ही अदृश्य स्रोत से, गगनभेदी स्वर में, महाकवि भूषण की
लिखित ! पंक्तियाँ गूँजने लगी……………
इन्द्र जिमि जंभ पर ! बाडब सुअंभ पर !
रावन सदंभ पर ! रघुकु ल राज है.
पौन बारिबाह पर ! संभु रतिनाह पर !
ज्यौं सहस्रबाह पर ! राम-द्विजराज है.
दावा द्रुम दंड पर ! चीता मृगझुंड पर !
भूषन वितुंड पर ! जैसे मृगराज है.
तेज तम अंस पर ! कान्ह जिमि कं स पर !
त्यौं मलिच्छ बंस पर ! सेर शिवराज है.
जय भवानी ! जय ………….. !
उन रोम-रोम पुलकित कर देने वाले, गूँजते स्वर के मध्य ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“श्वेतभानु ! इस पृथ्वी ग्रह के , तुम्हारे सभी मूल-जन्मों ! उदाहरणार्थ-जन्मों ! एवं समांतर जन्मों ! इन सभी जन्मों को, समग्र रूप से देखें तो………. यह
तो मानना पड़ेगा कि, इस ग्रह हेतु ! मूल श्रेणी वाले, आठवें चरण का, धर्मकाज करने के लिये, माता ने सबसे उपयुक्त्त आत्मा का, चयन किया है.”
उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी युवक ने, कृ तज्ञभाव से, अपने सिर को झुकाया ! तथा हाथ जोड़ता हुआ बोला :
“जी तुरंग भैया ! अब चयन किया है तो, सदैव यहीं प्रार्थना करता हूँ कि, माता एवं महादेव ! व समस्त देवी-देवता-गण-दूत ! मिल कर, यह बेड़ा ! पार
करा दें. क्योंकि यह अभी तक का, सबसे मुश्किल ! व कठिन दायित्व है.”
तुरंग भैया ! यानि महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“अब तो शिवशक्तियन का, प्रवेश होना भी, आरंभ हो गया है. महाशिवरात्रि वाली, तृतीय भेंट-वार्ता बैठक में, पुराने अठारह शिवशक्तियन ! तथा सामान्य
भगवान-भक्तों के साथ-साथ ! छिपे हुये भावी शिवशक्तियन को भी तो, तुमसे आमंत्रण दिलवाया जा रहा है. अभी तक ! कितने आमंत्रण दे चुके हो ?”
भगवाधारी बोला :
“जी, 151 की जो, सूची प्राप्त हुयी है. उसमें तिथि अनुसार ! किनको कब आमंत्रण भेजना है ! इसका उल्लेख है. आज की तिथि तक वाले, सभी १२१
भोले-भक्तों को, आमंत्रित कर चुका हूँ. अभी ३० भगवान-भक्तों को, और करना है. परंतु अभी उनकी तिथि, नहीं आयी है.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“अभी जो शिवशक्तियन ! अपनी इच्छा से, संदेश आदान-प्रदान करने हेतु……….. गैर-आधिकारिक ! समानांतर समूह चला रहे हैं. क्या उसकी अनुमति
! तुमने उन्हें दी है ?”
भगवाधारी बोला :
“महाराज जी ! मैंने कोई अनुमति नहीं दी है. जब मुझसे पूछा गया था. तब मैंने ! यह बोला था कि……….. आप लोगों को, बनाना हो तो बनायें. परंतु
मुझे ! ऐसे किसी गैर-आधिकारिक ग्रुप में, रहने की अनुमति नहीं है. अतः मैं नहीं रहूँगा. अतः मैं उसमें नहीं हूँ. इसलिये मुझे यह भी नहीं पता कि, उसमें
क्या-क्या होता है ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“तुम्हें नहीं पता ! परंतु हमें तो पता है न कि, उसका दुरुपयोग हो रहा है. उसमें………….. समय व्यर्थ करने वाली ! नकारात्मकता फै लाने वाली !
गोपनीय जानकारियों को, प्रकल्प के दुश्मनों तक पहुँचने वाली ! भविष्य में शिवशक्तियन पर, आधिपत्य जमाने की, चरणबद्ध योजना वाली !
……………..इस प्रकार की, सभी, अनावश्यक ! व समय व्यतीत करने वाली कार्यवाहियाँ ! वहाँ धड़ल्ले से चल रही हैं.”
भगवाधारी बोला :
“मुझे उसकी कोई जानकारी नहीं है महाराज !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“परंतु ! तुम्हें इसका पता होना चाहिये. यह भी तुम्हारा ही दायित्व है. क्योंकि भले ही तुम्हारे लक्ष्य पर, कोई अंतर नहीं पड़ेगा. परंतु किसी कारणवश !
किसी भी शिवशक्तियन के , नकारात्मक होते ही, उस बेचारे शिवशक्तियन के , हाथ से तो, यह सुअवसर फिसल जायेगा. तुम्हारी इसी त्रुटि हेतु ! प्रभु श्री
कृ ष्ण ने, तुम्हें बुलाया है. यहाँ दूत-खंड में, जन्मोत्सव के उपरांत ! तुम मेरे साथ ! श्रीकृ ष्ण-खंड चलोगे.”
भगवाधारी बोला :
“किसका जन्मोत्सव भैया ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“मूल श्रेणी के , आठवें चरण का, धर्मकाज कर रही, किसी भी आत्मा को, सहसा ! एक झटके से, मूल श्रेणी के , नौवें चरण में, प्रवेश नहीं कराया जाता. उसे
महादेव-दूत बनाने से पूर्व ! महादेव-दूत बनने का, अभ्यास कराया जाता है.”
“क्योंकि मूल श्रेणी के , आठवें चरण वाली आत्मा का, महादेव-दूत बनना, सुनिश्चित होता है. अतः उसके महादेव-दूत बनने के , पूर्व से ही, महादेव-दूत
वाले, काज करा-करा कर, अभ्यास भी, कराया जाता रहता है. तुम्हें आठवें चरण का, धर्मकाज करते हुये, अब बीस मास हो चुके हैं.”
“तुम इक्कीसवें मास में, प्रवेश कर चुके हो. तथा तुम अपने दायित्वों का निर्वहन ! बहुत ही अच्छे ढंग से, आदेशों का अक्षरशः पालन करते हुये, तीव्र एवं
समुचित गति से, कर रहे हो. अतः विधि-विधान के अनुरूप ! तुमको अब से कभी-कभी ! सीमित अवधि हेतु ! महादेव-दूत वाली सिद्धियाँ ! एवं शक्तियाँ
भी, प्रदान की जायेंगी.”
“आज से इसका आरंभ होगा ! अभी कु छ ही क्षणों के पश्चात् ! कु छ घंटों की, सीमित अवधि हेतु ! तुम्हें महादेव-दूत की, सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी. इन
सीमित अवधि में, तुम्हें ! तीन अलग-अलग ग्रहों पर, तीन अलग-अलग कार्यों का, दायित्व निर्वहन करना है.”
भगवाधारी युवक हाथ जोड़ कर बोला :
“महाराज जी, क्या यह करना ! अनिवार्य है ? या ऐच्छिक है ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“मूल-श्रेणी के आठवें चरण का, धर्म-काज करते हुये, इक्कीसवें माह में, प्रवेश करते ही, यह अनिवार्य हो जाता है. वैसे यह तुम ! क्यों पूछ रहे हो ?”
भगवाधारी युवक बोला :
“क्योंकि भैया ! अत्यंत व्यस्तता है. सांस लेने की फु रसत नहीं है. इस मुहावरे के प्रकार की, व्यस्तता है.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ने पूछा :
“जैसे ?”
भगवाधारी युवक ने उत्तर दिया :
“जैसे………… भिक्षाटन करना है ! गाड़ी भी स्वयं ड्राइव करना है ! भिक्षाटन का डेटा मेंटेन करना है ! भिक्षाटन हेतु आये निवेदन का भी, डेटा अपडेट
रखना है ! प्रतिदिवस सैकड़ों-हजारों संदेशों का, उत्तर देना है ! हजारों टिप्पणियों का, रिप्लाई करना है ! बच्चा ऑटिस्टिक है, तो उसको भी समय देना है !
आर्थिक जंजाल हैं, अतः उनसे भी निपटना है ! शिवशक्तियन को समय देना है ! मूल श्रेणी वालों को भी, अनावश्यक परंतु अनिवार्यतः समय देना है !
ऑटोबायोग्राफी, एवं अन्य घटनाक्रम, व प्रकरण लिखना है ! शिवशक्ति शिवालय स्थल के , एक साथ बारहों स्थान के , भूमि का बयाना-बट्टा का, कार्य भी
देखना है ! शिवशक्तियन भेंट-वार्ता बैठक, ऑर्गनाइज करना है. सैकड़ों आमंत्रण संदेश भेजना है ! शिवशक्तियन का आधिकारिक ग्रुप चलाना है ! अपना
भोजन स्वयं बनाना है ! बर्तन माँजना है ! कपड़े धोने हैं ! सामान्य सांसारिक लोगों से भी, बात करना है ! परिवार को भी समय देना है ! दुष्टों-विधर्मियों-
पापियों-कु कर्मियों-अधर्मियों से भी, निपटना है !.………………”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! उसकी बात को, बीच में काटते हुये ! उसकी सूची गिनाने की, धारा-प्रवाह लयबद्धता को, तोड़ते हुये बोले :
“श्वेतभानु ! रुक जाओ. मैं समझ गया. तुम्हारे पास ! कोस भर लंबी ! कार्यों की सूची है. उतना मुझे नहीं सुनना है. पहले मेरे एक बात का उत्तर दो. इन
सभी कार्यों में से, तुमसे कौन सा कार्य ! तुम्हारे अत्यंत व्यस्तता के कारण ! छू ट जा रहा है.”
भगवाधारी युवक हिचकता हुआ बोला :
“अभी तक तो, कोई सा भी नहीं महाराज !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज हँसते हुये बोले :
“तब फिर काहे की व्यस्तता ?”

क्रमशः
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1C :~
कु छ घंटों की, सीमित अवधि हेतु ! प्राप्त हुये, महादेव-दूतों वाली ! शक्तियों के साथ ! उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी युवक ने, तीन दायित्वों में
का, प्रथम दायित्व ! यानि अपने एक पूर्वजन्म का, जन्मोत्सव मनाने के उपरांत……………. अब वह ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के साथ ! शिवशक्ति
जगत ! गोबी-गुरुवंश के , दूत-खंड से, श्रीकृ ष्ण-खंड की ओर, बढ़ रहा था.
चलते-चलते हुये, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ने, उससे पूछा :
“इस वाले शिवशक्ति जगत को, देख कर के , कु छ स्मरण आ रहा है ?”
भगवाधारी ने उत्तर दिया :
“जी सभी कु छ ! अत्यंत स्पष्टता से, स्मरण आ रहा है. इस स्थान के आस-पास का क्षेत्र तो, मेरे मूल श्रेणी वाले, दूसरे जन्म के , एक समानांतर जन्म की,
आरंभिक कार्यस्थली रही है. उस जन्म को तो, मैं वैसे भी नहीं भूल सकता. क्योंकि उसी जन्म में, किये कु छ पापों की बदौलत ! मैं अपने मूल श्रेणी के ,
द्वितीय चरण में ही, चार मूल जन्मों तक, अँटका रह गया था. सभी कु छ ऐसे स्मरण हो रहा है. जैसे वह सब ! कल की ही बात हो.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“इतनी स्पष्टता से, सभी कु छ ! स्मरण होने का कारण ! अभी तुम्हें ! कु छ घंटों के लिये मिली हुयी, महादेव-दूतों वाली शक्तियाँ हैं. क्या तुम्हें ! यह अनुभव
! रुचिकर लगा ?”
भगवाधारी ने उत्तर दिया :
“जी ! मेरा तो…………….”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! उसकी बात काटते हुये बोले :
“चलो फिर ! महादेव-दूत वाली प्राप्त शक्तियों का, अभी आनंद लो. प्रभु श्रीकृ ष्ण खंड का, संधान करके , तुम वहीं पहुँचो. मैं भी तब तक ! वहीं चलता हूँ.”
इतना बोलने के साथ ही, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! अंतर्ध्यान हो चुके थे. उस भगवाधारी ने, उनके बताये तरीको से, संधान तो किया. परंतु उसे कोई
भी, मनोवांछित परिणाम की, प्राप्ति नहीं हुयी. अब वह क्या करे ?
अतः उसने युक्ति भिड़ायी ! ………और महादेव-दूत विक्रांत महाराज के , समीप पहुँचने का ही, संधान किया. तत्काल सुखद परिणाम सामने आया. वह
तत्क्षण ! श्रीकृ ष्ण खंड के , मुख्य द्वार पर ! पुनः महादेव-दूत विक्रांत महाराज के सानिध्य में, पहुँच चुका था.
अभी वह भगवाधारी युवक ! कु छ पूछने जा ही रहा था कि………….. महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! स्वयं ही बोले :
“तुम यहाँ का संधान ! सफलतापूर्वक ! इसलिये नहीं कर पाये कि………… एक तो तुम यहाँ ! प्रथम बार आये हो. अतः तुम्हें ! यहाँ का कु छ भी, स्मरण
नहीं रहा होगा. दूसरा कारण है ! यह देव-लोक यानि शिवशक्ति जगत क्षेत्र है. अतः यहाँ के वल संधान करके ही, नहीं पहुँचा जा सकता. यहाँ आने की
अनुमति होना भी, आवश्यक है. जो कि तुम्हारे पास नहीं था.”
“वह तो अभी-अभी ! मैंने तुम्हारे हेतु भी, तुम्हें अके ले पहुँचने की, अनुमति दिलाया हूँ. तब जा कर पहुँचे हो. परंतु कोई बात नहीं ! धीरे-धीरे सभी प्रक्रिया
! एवं विधान ! तुम स्वयं जान जाओगे. चलो हम प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान के समक्ष ! उनके सानिध्य में चलते हैं.”
इतना बोल कर, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! आगे-आगे ! तथा उनका अनुसरण करता हुआ ! वह भगवाधारी युवक ! उनके पीछे-पीछे ! चलने लगा.
कई सारी प्रक्रियाओं से, गुजरने के पश्चात् ! वह दोनों प्रभु श्रीकृ ष्ण के , भेंट-कक्ष में थे. कु छ ही समय के पश्चात् ! प्रभु श्रीकृ ष्ण का आगमन हुआ. उन दोनों
ने, प्रभु का चरण-स्पर्श करके , आशीर्वाद प्राप्त किया.
फिर प्रभु श्रीकृ ष्ण ! अपने सिंहासननुमा आसन पर विराजमान होते हुये, अपने दिव्य स्वर में बोले :
“राके श ! मैं यह समझता हूँ कि, वह त्रुटि ! तुमसे अनजाने में हुयी है. तुमने महादेव के , इस वाक्य ! यानि कि………… ***आत्मा की स्वतंत्रता में,
कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं करना चाहिये.*** ………….इस वाक्य को, सर्वोपरि रखते हुये, सभी अठारहों शिवशक्तियन को, उनकी इच्छा का कार्य !
करने दिये.”
“परंतु राके श ! यह भी तो सोचो ! कि महादेव आज्ञा वाले, इस प्रकल्प से, क्या प्राप्त करना ? उन सभी शिवशक्तियन का, परम् ध्येय है ? इस पुण्य-प्रकल्प
से, क्या प्राप्त करना ? उनका परम् उद्देश्य है ?”
“उन सभी का परम् ध्येय है ! परम् उद्देश्य हैं ! ………..९९९९९ शिवशक्तियन में से, ९९९९ मूलश्रेणीपथगामी आत्मा वाली, शिवशक्तियन बनना.
अतः अगर ! उनमें से किसी के साथ ! पथ-भटकाव होता है. तो तुम उन्हें ! पुनः मूल-मार्ग पर लाने के , एक से अधिक संके त ! एवं प्रयत्न करना.”
“मत भूलो राके श ! वह सभी ! इस पतित ग्रह के , चहुँओर व्याप्त वातावरण में, पले-बढ़े हैं. धर्म की त्रुटिपूर्ण व्याख्यायें ! उनके इस जन्म वाले, देह के
मनोमस्तिष्क में, कू ट-कू ट कर भरी हुयी हैं. वह क्रोध के नहीं ! दया के पात्र हैं राके श ! उन्हें ठीक से समझाओ कि…………”
“उनका लक्ष्य ! इस महान पुण्य धर्मकाज के माध्यम से, मोक्ष-मार्ग पर बढ़ने हेतु ! मूलश्रेणी में प्रवेश पाना है. ना कि यहाँ ! बाकी के शिवशक्तियन के साथ
! सामाजिक गठबंधन करना. सामान्य शिष्टाचारवश ! चर्चा-वार्ता ठीक है. परंतु उससे अधिक ! उनका आपसी संपर्क ! उनके लिये, अंततोगत्वा !
हानिकारक ही सिद्ध होगा.”
“अतः वह सभी ! अपनी प्राथमिकता अनुसार ! तृतीय प्राथमिकता पर, इस महादेव-काज को रखते हुये, अपना सर्वोच्च योगदान दें. बजाये इसके कि, वह
सभी आपस में, संगठन-संगठन खेलें. बिना महादेव-दूतों से, प्राप्त आज्ञा के , संदेशों का आदान-प्रदान ! आपस में करने का, कोई अर्थ ही नहीं है. उन्हें जो
भी जानना हो, प्रत्यक्ष रूप से, तुमसे जानें.”
“तथा जब ! महादेव-दूतों द्वारा ! प्रसारित संदेशों के प्राप्ति हेतु ! वह आधिकारिक समूह से, जुड़े ही हुये हैं. तब अलग से, गैर-आधिकारिक ! समानांतर
समूह चलाने का, भला क्या औचित्य है ?”
“हाँ ! अगर तुम्हारे समझाने के पश्चात् भी, कोई अपनी इच्छा से, संगठन बना रहा है. तब वह उसकी ! अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता है. वैसे वह ! मूल
स्वतंत्रता नहीं हैं. क्योंकि वह ! विधान-रहित स्वतंत्रता है. तथा विधान-रहित स्वतंत्रता तो, पराधीनता से भी, अधिक दोषपूर्ण होती है. फिर वैसे कु कर्मियों
को, समझाना भी व्यर्थ है.”
“जो समझना चाहते हैं. उन्हें यह समझाओ कि, यह कोई संगठनात्मक कार्य नहीं है. यह तो सभी की, अपनी-अपनी ! नितांत व्यक्तिगत यात्रा है. यह कोई
समूह के साथ, खेला जाने वाला, कबड्डी-नुमा खेल नहीं है. या फिर यह ! चार मानवों वाले, डंडा-पकड़ दौड़ की भाँति ! समूह का खेल नहीं है. यह तो
तैराकी ! या लंबी दौड़ की भाँति ! खेला जाने वाला, व्यक्तिगत खेल जैसा खेल है.”
“इसके साथ ही, तुम ! उन सभी शिवशक्तियन को, यह भी समझाओ कि……….. वह सभी एक बात का, सदैव ध्यान रखें. वैसे मैंने देखा है. शिवशक्तियन
प्रसार-तंत्र के माध्यम से, महादेव-दूत ! माता सेविका चिहिरो ! सदैव इस बात को, समझाती भी रहती है कि…………”
“महादेव-दूतों द्वारा ! निर्देश दिये जा रहे ! या तुम्हारे द्वारा ! अनुरोध किये जा रहे ! किसी भी कार्य, या किसी भी दायित्व को, तभी पूर्ण करें. जब उससे !
उनकी दोनों प्रमुख प्राथमिकतायें ! बाधित नहीं हो रही हो.”
“यानि बताये गये, क्रमानुसार ही, समय देना है. प्रथम प्राथमिकता में, स्वयं के इस जन्म वाले देह ! व परिवार को, सर्वोच्च प्राथमिकता देनी है. तत्पश्चात् !
द्वितीय प्राथमिकता में, जीवन यापन हेतु ! जीविकोपार्जन / अर्थोपार्जन / धनोपार्जन वाले काज को, प्राथमिकता देनी है.”
“तदुपरांत ! तृतीय प्राथमिकता में, शिवशक्तियन वाला कार्यभार ! व दायित्वपूर्ति वाले कार्य करने हैं. तथा के वल इतना ही नहीं ! इसके बाद भी, एक विशेष
तथ्य का, अवश्य ध्यान रखना है. वह तथ्य है…………… जगत् जननी माता ! एवं हम सभी देवों के देव महादेव ! के आज्ञा वाले, इन पुण्य धर्मकाज
प्रकल्पों के , सभी कार्यों को, प्रथम या द्वितीय के बजाये, तृतीय प्राथमिकता पर तो, रखना ही है.”
“उस तृतीय प्राथमिकता में भी, इसमें वह समय लगाना है. जो उनका महत्वपूर्ण समय नहीं है. उन्हें वह समय लगाना है. जो अनावश्यक रूप से, कहीं-ना-
कहीं, व्यर्थ व्यतीत हो जाता है. उन्हीं दुरुपयोग हो रहे, समय का ही, यहाँ सदुपयोग करना है.”
“वैसे अगर कोई शिवशक्तियन ! तुमसे यह पूछे कि…………… इस नियम का, इतना अधिक एवं बार-बार उल्लेख ! क्यों किया जाता है ?”
“तब तुम उन्हें ! यह समझा देना कि…………… यह नियम बारंबार बताना ! इसलिये आवश्यक है. क्योंकि अगर किसी, नकारात्मक शक्तियों के , प्रभाव
में आकर ! कोई भी शिवशक्तियन ! भविष्य में, इस महादेव आज्ञा वाले, धर्म काज प्रकल्पों के प्रति ! या महादेव-दूतों के , कार्य प्रणाली के प्रति ! या तुम्हारे
ही प्रति……………”
“अगर स्वयं ! अपनी त्रुटिपूर्ण कर्मों के कारण ! नकारात्मक हो जाये. तब वह ! ऐसा आरोप ना लगाये कि…………. उसके समय का, दुरुपयोग हो गया.
उसे यह ज्ञात रहे कि, उसने व्यर्थ वाला, समय लगाया है. और अगर उसने, अपनी स्वयं के इच्छानुसार ! मूल्यवान समय भी लगाया है तो, ऐसा करने को,
उसे बाध्य नहीं किया गया था.”
“……………क्योंकि वह व्यर्थ वाला समय भी, उसने अपनी स्वेच्छा से लगाया है. अतः वह आरोप ना लगाये. चूँकि किसी भी सामान्य मानव ! या
विशेष मानव ! यानि शिवशक्तियन को, अंततोगत्वा ! इसी जगत के , नकारात्मकता से भरे मनुष्यों के , मध्य ही तो रहना है.”
“क्योंकि अधर्मियों से भरी हुयी, इस धरा पर, चहुँओर ! अधीरता एवम् व्यग्रता का, वातावरण है. धैर्य की भारी कमी है. तथा वहीं धैर्य की कमी ! किसी भी
मानव मात्र को, उचित-पथ से, विचलित करती है. अतः प्रत्येक शिवशक्तियन को, अत्यंत धैर्यवान बनना पड़ेगा. बड़े दायित्वों का, वहन करने से पूर्व !
छोटे-बड़े कई दायित्वों को, स्वयं से आगे बढ़-बढ़ कर ! स्वीकार करना होगा.”
“आज उन सभी की संख्या ! काफी कम है. सैकड़ों में भी नहीं है. अतः आज उनको, पकड़-पकड़ कर ! दायित्व सौंपा जा रहा है. जब भविष्य में, यह
संख्या हजारों में पहुँचेगी. तब ऐसा नहीं होगा. तब तो अधिकतर दायित्व ! उसी शिवशक्तियन को मिलेगा. जिसका दायित्व पूर्ण करने का, इतिहास होगा.”
“क्योंकि महादेव के बनाये, विधि-विधान के अनुसार ! जो शिवशक्तियन ! स्वयं से आगे बढ़ कर ! जितना ही अधिक, दायित्व स्वीकार करके , उसे पूर्ण
करता जायेगा. उसे उतना ही और दायित्व ! सौंपा जायेगा. वहीं जो दायित्वों से बचेगा. उसे कोई भी दायित्व ! नहीं सौंपा जायेगा. क्योंकि महादेव के
आज्ञानुसार ! आत्मा की स्वतंत्रता ! अत्यंत महत्वपूर्ण है.”
“परंतु ! उन्हें यह भी समझना कि…………. आत्मा की स्वतंत्रता का, विशेष लाभ ना उठायें. क्योंकि मूलश्रेणी में प्रवेश करने हेतु ! दायित्वों का, अधिक-
से-अधिक निर्वहन करना भी, अत्यधिक महत्वपूर्ण है. क्या कर सकते हैं ? अन्य कोई विकल्प भी तो नहीं है.”
क्रमशः

1D :~
#धर्मपुनर्स्थापना_तृतीय_बैठक_प्रनोत्तरी
त्
तरी _पठनसामग्री :~ दिनांक 19 फरवरी 2024,
श्नो
सोमवार की रात्रि. लगभग दस-ग्यारह बजे. यानि माघ माह, शुक्ल पक्ष, एकाद तिथि ! जया एकाद .
स्थान बुंदेलखंड के, हमीरपुर जिले का, एक नितांत ! एकांत ! निर्जन ! बीहड़ ! परंतु अत्यंत सुंदर
स्थान.
उस बड़े आकार के, सूर्य भवन नामक ! दोमंजिला घर के, पहली मंजिल पर स्थित ! एक कोने वाले
कमरे में, वह सैंतीस-अड़तीस वर्षीय भगवाधारी युवक ! कुछ भगवान-भक्तों के टिप्पणियों
का, प्रतिउत्तर दे रहा था. तभी द्वार खटखटाया गया. उसने द्वार खोला ! बाहर द्वार पर, उस भवन
! एवं उसके विशाल परिसर के स्वामी ! तथा उसके घनिष्ठ मित्र ! व त्यागी पुरुष ! स्वीडन के वैज्ञानिक !
डॉ॰ श्री .
री रविकांतपाठकजीथे
उन्होंने इच्छा व्यक्त की :
“सत्यानंद जी ! आइये कुछ देर सत्संग करते हैं.”
भगवाधारी युवक बोला :
“आप चलिये ! मैं बस अभी आया.”
उसने अपने डिवाइसों को, लॉग-आउट किया. फिर अपने कक्ष से निकल कर ! उनके कक्ष में
पहुँचा. कुछ देर तक ! दोनों ने बड़ी आनंददायक धार्मिक चर्चायें करी. तभी सहसा ! चमत्कारी
ढंग से, एक ही क्षण में, पाठक जी, गहरी निद्रा में समा गये. उनकी तबियत भी, बहुत ठीक नहीं थी.
अतः उनको ! सोता छोड़ कर के, वह युवक ! उनके कक्ष से बाहर निकला. अपने कक्ष में आया.
कुल जमा उस भवन में, उस समय ! वहीं दोनों थे.
उस भगवाधारी ने, मोबाइल देखा. एक वरिष्ठ शिवशक्तियन ! संजय जी का मिस्डकॉल दिखा. उनको फोन
लगाया. और बातें करते-करते ! य टहलने के उद्देययसे, उस भवन के छत पर पहुँचा. टहलते हुये
बातें करता रहा. लगभग पंद्रह मिनट की, वार्ता हो चुकने के पचात् त् ! सहसा उसकी दृष्टि ! एक
श्चा
सी वस्तु पर गयी. जिसे देख कर…………….. उस युवक को, पाठक जी के, सहसा ! गहरी निद्रा में,
समा जाने का कारण ! एक झटके से स्पष्ट हो गया.
वह वस्तु ! एक सीढ़ी थी. उस युवक ने, उस सीढ़ी की ओर ! उस प्रकाशमय ! अलौकिक सीढ़ी की ओर
देखा. वस्तुतः वह एक नहीं ! एक जोड़ी सीढ़ी थी. एक सीढ़ी ! चारदीवारी के इस पार थी. तथा दूसरी
सीढ़ी ! उस पर थी. एवं ऊपर जा कर, दोनों का मुँह ! आपस में, बंधा हुआ था. जिससे वह अंग्रेजी के अक्षर !
वी (V) के, उल्टा जैसा { /\ } आकार बना रहा था. उस सीढ़ी को देखते ही, युवक को समझ आ गया
कि, अब उसे क्या करना है ?
उसने शि वशक्तियन संजय जी से कहा :
“आप सोइये गुप्ता जी ! मुझे भी कुछ कार्य है.”
इतना बोल कर, तत्क्षण उसने फोन काटा. झटकते हुये नीचे उतरा. कक्ष में मोबाइल रखा. तथा
शीघ्रतापूर्वक ! उस दिव्य सीढ़ी के पास पहुँचा. उस सीढ़ी का प्रयोग करके, चारदीवारी के उस पार
पहुँचा. और जंगल में घुसता चला गया. अभी चंद कदम ही, चला होगा कि………….
उसके कानों में, महादेव-दूत विक्रांत महाराज का, स्वर सुनायी दिया :
“मेरा अनुसरण करो !”
उस भगवाधारी ने, तत्काल ! आवाज की दि शा में देखा. फिर चलता हुआ ! महादेव-दूत विक्रांत
महाराज के पास पहुँचा. उनका चरण स्पर् र्शकर आ र्वाद
लिया शी . फिर उनके पीछे-पीछे चल पड़ा.
कुछ मिनट चल कर, उनके साथ-साथ वह ! एक टिब्बेनुमा स्थान पर पहुँचा.
विक्रांत महाराज ! वहाँ रुक कर के बोले :
“मेरा हाथ पकड़ो ! और छोड़ना मत !”
उस भगवाधारी के द्वारा ! आज्ञा का पालन करते ही, उसकी आँखों के समक्ष ! अंधेरा छाने
लगा. आँखें अपने आप बंद हो गयी. जब खुली ! तब वह ! इसी पृथ्वी ग्रह के, शिवशक्ति जगत ! गोबी-
गुरुवंश के, दूत खंड में था.
शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश के, दूत खंड में, प्रवेश करने के साथ ही, वहाँ के वातावरण में,
स्रोत से, गगनभेदी स्वर में, महाकवि भूषण की लिखित ! पंक्तियाँ गूँजने
किन्ही अदृय श्य
लगी……………
इन्द्र जिमि जंभ पर ! बाडब सुअंभ पर !
रावन सदंभ पर ! रघुकुल राज है.
पौन बारिबाह पर ! संभु रतिनाह पर !
ज्यौं सहस्रबाह पर ! राम-द्विजराज है.
दावा द्रुम दंड पर ! चीता मृगझुंड पर !
भूषन वितुंड पर ! जैसे मृगराज है.
तेज तम अंस पर ! कान्ह जिमि कंस पर !
त्यौं मलिच्छ बंस पर ! सेर शिवराज है.
जय भवानी ! जय ………….. !
उन रोम-रोम पुलकित कर देने वाले, गूँजते स्वर के मध्य ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज
बोले :
“श्वेतभानु ! इस पृथ्वी ग्रह के, तुम्हारे सभी मूल-जन्मों ! उदाहरणार्थ-जन्मों ! एवं समानांतर जन्मों ! इन सभी
जन्मों को, समग्र रूप से देखें तो………. यह तो मानना पड़ेगा कि, इस ग्रह हेतु ! मूल श्रेरेणी
वाले, आठवें चरण का, धर्मकाज करने के लिये, माता ने सबसे उपयुक्त्त आत्मा का, चयन
किया है.”
उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी युवक ने, कृतज्ञभाव से, अपने सिर को झुकाया ! तथा
हाथ जोड़ता हुआ बोला :
“जी तुरंग भैया ! अब चयन किया है तो, सदैव यहीं प्रार्थना करता हूँ कि, माता एवं महादेव ! व
समस्त देवी-देवता-गण-दूत ! मिल कर, यह बेड़ा ! पार करा दें. क्योंकि यह अभी तक का, सबसे
मुकिल लश्कि ! व कठिन दायित्व है.”
तुरंग भैया ! यानि महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“अब तो शि वशक्तियन का, प्रवेश होना भी, आरंभ हो गया है. महा वरात्रि
वाली शि , तृतीय भेंट-
वार्ता बैठक में, पुराने अठारह शि वशक्तियन ! तथा सामान्य भगवान-भक्तों के साथ-साथ ! छिपे
हुये भावी शि वशक्तियन को भी तो, तुमसे आमंत्रण दिलवाया जा रहा है. अभी तक ! कितने
आमंत्रण दे चुके हो ?”
भगवाधारी बोला :
“जी, 151 की जो, सूची प्राप्त हुयी है. उसमें तिथि अनुसार ! किनको कब आमंत्रण भेजना है !
इसका उल्लेख है. आज की तिथि तक वाले, सभी १२१ भोले-भक्तों को, आमंत्रित कर चुका हूँ.
अभी ३० भगवान-भक्तों को, और करना है. परंतु अभी उनकी तिथि, नहीं आयी है.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“अभी जो शि वशक्तियन ! अपनी इच्छा से, संदेश आदान-प्रदान करने हेतु……….. गैर-
आधिकारिक ! समानांतर समूह चला रहे हैं. क्या उसकी अनुमति ! तुमने उन्हें दी है ?”
भगवाधारी बोला :
“महाराज जी ! मैंने कोई अनुमति नहीं दी है. जब मुझसे पूछा गया था. तब मैंने ! यह बोला था
कि……….. आप लोगों को, बनाना हो तो बनायें. परंतु मुझे ! ऐसे किसी गैर-आधिकारिक ग्रुप में,
रहने की अनुमति नहीं है. अतः मैं नहीं रहूँगा. अतः मैं उसमें नहीं हूँ. इसलिये मुझे यह
भी नहीं पता कि, उसमें क्या-क्या होता है ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“तुम्हें नहीं पता ! परंतु हमें तो पता है न कि, उसका दुरुपयोग हो रहा है. उसमें…………..
समय व्यर्थ करने वाली ! नकारात्मकता फैलाने वाली ! गोपनीय जानकारियों को, प्रकल्प के
दुमनों क पहुँचने वाली ! भविष्य में शि वशक्तियन पर, आधिपत्य जमाने की, चरणबद्ध योजना
त श्म
वाली ! ……………..इस प्रकार की, सभी, अनावयककश्य ! व समय व्यतीत करने वाली कार्यवाहियाँ !
वहाँ धड़ल्ले से चल रही हैं.”
भगवाधारी बोला :
“मुझे उसकी कोई जानकारी नहीं है महाराज !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“परंतु ! तुम्हें इसका पता होना चाहिये. यह भी तुम्हारा ही दायित्व है. क्योंकि भले ही तुम्हारे
लक्ष्य पर, कोई अंतर नहीं पड़ेगा. परंतु किसी कारणवश ! किसी भी शि वशक्तियन के, नकारात्मक
होते ही, उस बेचारे शि वशक्तियन के, हाथ से तो, यह सुअवसर फिसल जायेगा. तुम्हारी इसी
त्रुटि हेतु ! प्रभु श्रीरीकृष्ण देव ने, तुम्हें बुलाया है. यहाँ दूत-खंड में, जन्मोत्सव के उपरांत ! तुम
मेरे साथ ! श्रीकृ ष्ण-खंड चलोगे.”
भगवाधारी बोला :
“किसका जन्मोत्सव भैया ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“मूल श्रेरेणी के, आठवें चरण का, धर्मकाज कर रही, किसी भी आत्मा को, सहसा ! एक झटके से, मूल
श्रेणी के , नौवें चरण में, प्रवेश नहीं कराया जाता. उसे महादेव-दूत बनाने से पूर्व ! महादेव-
दूत बनने का, अभ्यास कराया जाता है.”
“क्योंकि मूल श्रेरेणी के, आठवें चरण वाली आत्मा का, महादेव-दूत बनना, सुनिचित
होता
श्चि है.
अतः उसके महादेव-दूत बनने के, पूर्व से ही, महादेव-दूत वाले, काज करा-करा कर, अभ्यास
भी, कराया जाता रहता है. तुम्हें आठवें चरण का, धर्मकाज करते हुये, अब बीस मास हो चुके
हैं.”
“तुम इक्कीसवें मास में, प्रवेश कर चुके हो. तथा तुम अपने दायित्वों का निर्वहन ! बहुत ही
अच्छे ढंग से, आदे शों का अक्षर3 शःपालन करते हुये, तीव्र एवं समुचित गति से, कर रहे हो.
अतः विधि-विधान के अनुरूप ! तुमको अब से कभी-कभी ! सीमित अवधि हेतु ! महादेव-दूत वाली
सिद्धियाँ ! एवं शक्तियाँ भी, प्रदान की जायेंगी.”
“आज से इसका आरंभ होगा ! अभी कुछ ही क्षणों के पचात् त् ! कुछ घंटों की, सीमित अवधि हेतु
श्चा
! तुम्हें महादेव-दूत की, सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी. इन सीमित अवधि में, तुम्हें ! तीन अलग-
अलग ग्रहों पर, तीन अलग-अलग कार्यों का, दायित्व निर्वहन करना है.”
भगवाधारी युवक हाथ जोड़ कर बोला :
“महाराज जी, क्या यह करना ! अनिवार्य है ? या ऐच्छिक है ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“मूल-श्रेणी के आठवें चरण का, धर्म-काज करते हुये, इक्कीसवें माह में, प्रवेश करते ही, यह
अनिवार्य हो जाता है. वैसे यह तुम ! क्यों पूछ रहे हो ?”
भगवाधारी युवक बोला :
“क्योंकि भैया ! अत्यंत व्यस्तता है. सांस लेने की फुरसत नहीं है. इस मुहावरे के प्रकार
की, व्यस्तता है.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ने पूछा :
“जैसे ?”
भगवाधारी युवक ने उत्तर दिया :
“जैसे………… भिक्षाटन करना है ! गाड़ी भी स्वयं ड्राइव करना है ! भिक्षाटन का डेटा मेंटेन
करना है ! भिक्षाटन हेतु आये निवेदन का भी, डेटा अपडेट रखना है ! प्रतिदिवस सैकड़ों-
हजारों संदे शोंका, उत्तर देना है ! हजारों टिप्पणियों का, रिप्लाई करना है ! बच्चा ऑटिस्टिक
है, तो उसको भी समय देना है ! आर्थिक जंजाल हैं, अतः उनसे भी निपटना है ! शिवशक्तियन को
समय देना है ! मूल श्रेरेणी वालों को भी, अनावयकप श्य
रंतु अनिवार्यतः समय देना है !
ऑटोबायोग्राफी, एवं अन्य घटनाक्रम, व प्रकरण लिखना है ! शिवशक्ति शिवालय स्थल के , एक साथ बारहों स्थान
के, भूमि का बयाना-बट्टा का, कार्य भी देखना है ! शिवशक्तियन भेंट-वार्ता बैठक, ऑर्गनाइज करना
है. सैकड़ों आमंत्रण संदेश भेजना है ! शिवशक्तियन का आधिकारिक ग्रुप चलाना है ! अपना भोजन
स्वयं बनाना है ! बर्तन माँजना है ! कपड़े धोने हैं ! सामान्य सांसारिक लोगों से भी, बात
करना है ! परिवार को भी समय देना है ! दुष्टों-विधर्मियों-पापियों-कुकर्मियों-अधर्मियों से
भी, निपटना है !.………………”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! उसकी बात को, बीच में काटते हुये ! उसकी सूची गिनाने की,
धारा-प्रवाह लयबद्धता को, तोड़ते हुये बोले :
“श्वेतभानु ! रुक जाओ. मैं समझ गया. तुम्हारे पास ! कोस भर लंबी ! कार्यों की सूची है. उतना
मुझे नहीं सुनना है. पहले मेरे एक बात का उत्तर दो. इन सभी कार्यों में से, तुमसे कौन सा
कार्य ! तुम्हारे अत्यंत व्यस्तता के कारण ! छूट जारहाहै .”
भगवाधारी युवक हिचकता हुआ बोला :
“अभी तक तो, कोई सा भी नहीं महाराज !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज हँसते हुये बोले :
“तब फिर काहे की व्यस्तता ?”
इतना बोल कर ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! उस भगवाधारी को, अपने साथ ले कर, दूत-खंड
के, उत्सव क्षेत्र में, चले गये.
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उत्सव क्षेत्र का विवरण ! यानि उस जन्मोत्सव समारोह का स्मरण ! अनुमति प्राप्त होने पर,
फिर कभी लिखूँगा. अभी आगे के घटनाक्रमों को, लिखना आरंभ करता हूँ.
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कुछ घंटों की, सीमित अवधि हेतु ! प्राप्त हुये, महादेव-दूतों वाली ! शक्तियों के साथ ! उस
सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी युवक ने, तीन दायित्वों में का, प्रथम दायित्व ! यानि
अपने एक पूर्वजन्म का, जन्मोत्सव मनाने के उपरांत……………. अब वह ! महादेव-दूत विक्रांत
महाराज के साथ ! शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश के, दूत-खंड से, श्रीकृ ष्ण-खंड की ओर, बढ़ रहा था.
चलते-चलते हुये, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ने, उससे पूछा :
“इस वाले शि वशक्ति जगत को, देख कर के, कुछ स्मरण आ रहा है ?”
भगवाधारी ने उत्तर दिया :
“जी सभी कु छ ! अत्यंत स्पष्टता से, स्मरण आ रहा है. इस स्थान के आस-पास का क्षेत्र तो,
मेरे मूल श्रेरेणी वाले, दूसरे जन्म के, एक समानांतर जन्म की, आरंभिक कार्यस्थली रही है. उस
जन्म को तो, मैं वैसे भी नहीं भूल सकता. क्योंकि उसी जन्म में, किये कुछ पापों की बदौलत !
मैं अपने मूल श्रेरेणी के, द्वितीय चरण में ही, चार मूल जन्मों तक, अँटका रह गया था. सभी
कुछ ऐसे स्मरण हो रहा है. जैसे वह सब ! कल की ही बात हो.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“इतनी स्पष्टता से, सभी कुछ ! स्मरण होने का कारण ! अभी तुम्हें ! कुछ घंटों के लिये मिली
हुयी, महादेव-दूतों वाली शक्तियाँ हैं. क्या तुम्हें ! यह अनुभव ! रुचिकर लगा ?”
भगवाधारी ने उत्तर दिया :
“जी ! मेरा तो…………….”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! उसका उत्तर आरंभ होने से पूर्व ही, उसकी बात ! काटते हुये
बोले :
“चलो फिर ! महादेव-दूत वाली प्राप्त शक्तियों का, अभी आनंद लो. प्रभु श्रीरीकृष्ण खंड का,
संधान करके, तुम वहीं पहुँचो. मैं भी तब तक ! वहीं चलता हूँ.”
इतना बोलने के साथ ही, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! अंतर्ध्यान हो चुके थे. उस भगवाधारी
ने, उनके बताये तरीको से, संधान तो किया. परंतु उसे कोई भी, मनोवांछित परिणाम की,
प्राप्ति नहीं हुयी. अब वह क्या करे ?
अतः उसने युक्ति भिड़ायी ! ………और महादेव-दूत विक्रांत महाराज के, समीप पहुँचने का ही,
संधान किया. तत्काल सुखद परिणाम सामने आया. वह तत्क्षण ! श्रीकृ ष्ण खंड के , मुख्य द्वार पर ! पुनः
महादेव-दूत विक्रांत महाराज के सानिध्य में, पहुँच चुका था.
अभी वह भगवाधारी युवक ! कुछ पूछने जा ही रहा था कि………….. महादेव-दूत विक्रांत महाराज !
स्वयं ही बोले :
“तुम यहाँ का संधान ! सफलतापूर्वक ! इसलिये नहीं कर पाये. क्योंकि………… एक तो तुम यहाँ
! इधर काफी माह में, प्रथम बार आये हो. अतः तुम्हें ! यहाँ का कुछ भी, स्पष्ट स्मरण नहीं रहा
होगा. दूसरा ! और जो बड़ा कारण है ! वह यह कि, यह देव-लोक ! यानि शि वशक्ति जगत क्षेत्र
है.”
“अतः यहाँ केवल संधान करके ही, नहीं पहुँचा जा सकता. यहाँ आने की अनुमति होना भी,
आवयकहै श्य . जो कि तुम्हारे पास नहीं था. वह तो अभी-अभी ! मैंने तुम्हारे हेतु भी, तुम्हें अकेले
पहुँचने की, अनुमति दिलाया हूँ. तब जा कर पहुँचे हो. परंतु कोई बात नहीं ! धीरे-धीरे सभी
प्रक्रिया ! एवं विधान ! तुम स्वयं जान जाओगे. चलो हम प्रभु श्रीरीकृष्ण भगवान के समक्ष ! उनके
सानिध्य में चलते हैं.”
इतना बोल कर, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! आगे-आगे ! तथा उनका अनुसरण करता हुआ ! वह
भगवाधारी युवक ! उनके पीछे-पीछे ! चलने लगा. कई सारी प्रक्रियाओं से, गुजरने के
पचात् त् ! वह दोनों प्रभु श्रीरीकृष्ण के, भेंट-कक्ष में थे. कुछ ही समय के पचात् त्
श्चा ! प्रभु
श्चा
श्रीकृ ष्ण का आगमन हुआ. उन दोनों ने, प्रभु का चरण-स्पर् र्शकरके, आ र्वाद
प्राप्त
शी किया.
फिर प्रभु श्रीरीकृष्ण ! अपने सिंहासननुमा आसन पर विराजमान होते हुये, अपने दिव्य स्वर में
बोले :
“राकेश ! मैं यह समझता हूँ कि, वह त्रुटि ! तुमसे अनजाने में हुयी है. तुमने महादेव के,
इस वाक्य ! यानि कि………… ***आत्मा की स्वतंत्रता में, कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं करना
चाहिये.*** ………….इस वाक्य को, सर्वोपरि रखते हुये, सभी अठारहों शि वशक्तियन को, उनकी
इच्छा का कार्य ! करने दिये.”
“परंतु राकेश ! यह भी तो सोचो ! कि महादेव आज्ञा वाले, इस प्रकल्प से, *क्या* प्राप्त करना
? उन सभी शि वशक्तियन का, परम् ध्येय है ? इस पुण्य-प्रकल्प से, *क्या* प्राप्त करना ? उनका
है ?”
परम् उद्देय श्य
कुछ देर तक चुप रहकर ! प्रभु श्रीरीकृष्ण भगवान ने, स्वयं ही उत्तर दिया :
“उन सभी का परम् ध्येय है ! परम् उद्देय श्य हैं ! ………..९९९९९ वक्तियन में से, ९९९९
मूलरेणीपथगामी
आ श्रेत्मा वाली, शिवशक्तियन बनना. अतः अगर ! उनमें से किसी के साथ ! पथ-
भटकाव होता है. तो तुम उन्हें ! पुनः मूल-मार्ग पर लाने हेतु ! एक से अधिक संके त देना ! एवं कु छ
अतिरिक्त प्रयत्न करना.”
“मत भूलो राकेश ! वह सभी ! इस पतित ग्रह पर, चहुँओर व्याप्त ! अज्ञानता वाले वातावरण में,
पले-बढ़े हैं. धर्म की त्रुटिपूर्ण व्याख्यायें ! उनके इस जन्म वाले, देह के मनोमस्तिष्क
में, कूट-कूट कर भरी हुयी हैं. वह क्रोध के नहीं ! अपितु दया के पात्र हैं राकेश ! उन्हें ठीक
से समझाओ कि…………”
“उनका लक्ष्य ! इस महान पुण्य धर्मकाज के माध्यम से, मोक्ष-मार्ग पर बढ़ने हेतु !
मूलरेणी
में श्रे प्रवेश पाना है. ना कि यहाँ ! बाकी के शि वशक्तियन के साथ ! सामाजिक
गठबंधन करना. सामान्य शि ष्टाचारवश ! चर्चा-वार्ता ठीक है. परंतु उससे अधिक ! उनका आपसी
संपर्क ! उनके लिये, अंततोगत्वा ! हानिकारक ही सिद्ध होगा.”
“अतः वह सभी ! अपनी प्राथमिकता अनुसार ! तृतीय प्राथमिकता पर, इस महादेव-काज को रखते
हुये, अपना सर्वोच्च योगदान दें. बजाये इसके कि, वह सभी आपस में, संगठन-संगठन
खेलें. बिना महादेव-दूतों से, प्राप्त आज्ञा के, संदे शों का आदान-प्रदान ! आपस में करने
का, कोई अर्थ ही नहीं है. उन्हें जो भी जानना हो, प्रत्यक्ष रूप से, तुमसे जानें.”
“तथा जब ! महादेव-दूतों द्वारा ! प्रसारित संदे शों के प्राप्ति हेतु ! वह आधिकारिक समूह से,
जुड़े ही हुये हैं. तब अलग से, गैर-आधिकारिक ! समानांतर समूह चलाने का, भला क्या औचित्य है
?”
“हाँ ! अगर तुम्हारे समझाने के पचात्
भी श्चा , कोई अपनी इच्छा से, संगठन बना रहा है. तब वह
उसकी ! अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता है. वैसे वह ! मूल स्वतंत्रता नहीं हैं. क्योंकि वह !
विधान-रहित स्वतंत्रता है. तथा विधान-रहित स्वतंत्रता तो, पराधीनता से भी, अधिक दोषपूर्ण
होती है. फिर वैसे कुकर्मियों को, समझाना भी व्यर्थ है.”
“जो समझना चाहते हैं. उन्हें यह समझाओ कि, यह कोई संगठनात्मक कार्य नहीं है. यह तो सभी की,
अपनी-अपनी ! नितांत व्यक्तिगत यात्रा है. यह कोई समूह के साथ, खेला जाने वाला, कबड्डी-
नुमा खेल नहीं है. या फिर यह ! चार मानवों वाले, डंडा-पकड़ दौड़ की भाँति ! समूह का खेल
नहीं है. यह तो तैराकी ! या लंबी दौड़ की भाँति ! खेला जाने वाला, व्यक्तिगत खेल जैसा
खेल है.”
“इसके साथ ही, तुम ! उन सभी शि वशक्तियन को, यह भी समझाओ कि……….. वह सभी ! एक बात का,
सदैव ध्यान रखें. वैसे मैंने देखा है. शिवशक्तियन प्रसार-तंत्र के माध्यम से, महादेव-दूत !
माता सेविका चिहिरो ! सदैव इस बात को, समझाती भी रहती है कि…………”
“महादेव-दूतों द्वारा ! निर्देश दिये जा रहे ! या तुम्हारे द्वारा ! अनुरोध किये जा रहे ! किसी
भी कार्य, या किसी भी दायित्व को, तभी पूर्ण करें. जब उससे ! उनकी दोनों प्रमुख प्राथमिकतायें !
बाधित नहीं हो रही हो.”
“यानि बताये गये, क्रमानुसार ही, समय देना है. प्रथम प्राथमिकता में, स्वयं के इस जन्म
वाले देह ! व परिवार को, सर्वोच्च प्राथमिकता देनी है. तत्पचात् त् ! द्वितीय प्राथमिकता में,
श्चा
जीवन यापन हेतु ! जीविकोपार्जन / अर्थोपार्जन / धनोपार्जन वाले काज को, प्राथमिकता देनी है.”
“तदुपरांत ! तृतीय प्राथमिकता में, शिवशक्तियन वाला कार्यभार ! यानि दायित्वपूर्ति वाले, कार्य
करने हैं. तथा केवल इतना ही नहीं ! इसके बाद भी, एक विशेष तथ्य का, अवय श्य ध्यान रखना है. वह
तथ्य है……………”
“जगत् जननी माता ! एवं हम सभी देवों के देव महादेव ! के आज्ञा वाले, इन पुण्य धर्मकाज प्रकल्पों के,
सभी कार्यों को, प्रथम या द्वितीय के बजाये, तृतीय प्राथमिकता पर तो, रखना ही है.”
“उसे तृतीय प्राथमिकता पर ! रखने के साथ ही, एक और बात का, वि ष ध्शेयान रखना है. वह बात !
यह है कि………….. इस पुण्य-काज में, वह समय लगाना है. जो उनका महत्वपूर्ण समय नहीं है. उन्हें
वह समय लगाना है. जो अनावश्यक रूप से, कहीं-ना-कहीं, व्यर्थ व्यतीत हो जाता है. उन्हीं दुरुपयोग
हो रहे, समय का ही, यहाँ सदुपयोग करना है.”
“वैसे अगर कोई शि वशक्तियन ! तुमसे यह पूछे कि…………… इस नियम का, इतना अधिक ! एवं
बार-बार उल्लेख ! क्यों किया जाता है ?”
“तब तुम उन्हें ! यह समझा देना कि…………… यह नियम बारंबार बताना ! इसलिये आवयककश्य
है. क्योंकि अगर किसी, नकारात्मक शक्तियों के, प्रभाव में आकर ! कोई भी शि वशक्तियन !
भविष्य में, इस महादेव आज्ञा वाले, धर्म काज प्रकल्पों के प्रति ! या महादेव-दूतों के,
कार्य प्रणाली के प्रति ! या तुम्हारे स्वयं के ही प्रति……………”
“अगर वह ! अपने स्वयं के, त्रुटिपूर्ण कर्मों के कारण ! नकारात्मक हो जाये. तब वह ! ऐसा
आरोप ना लगाये कि…………. उसके समय का, दुरुपयोग हो गया. उसे यह ज्ञात रहे कि, उसने
व्यर्थ वाला, समय लगाया है. और अगर उसने, अपनी स्वयं के इच्छानुसार ! मूल्यवान समय भी
लगाया है तो, ऐसा करने को, उसे बाध्य नहीं किया गया था.”
“……………क्योंकि वह व्यर्थ वाला समय भी, उसने अपनी स्वेच्छा से लगाया है. अतः उसके
द्वारा ! कोई भी आरोप लगाना. सर्वथा अनुचित है. चूँकि किसी भी सामान्य मानव ! या वि ष
माशेनव
! यानि शि वशक्तियन को, अंततोगत्वा ! इसी जगत के, नकारात्मकता से भरे मनुष्यों के, मध्य ही
तो रहना है.”
“क्योंकि अधर्मियों से भरी हुयी, इस धरा पर, चहुँओर ! अधीरता एवम् व्यग्रता का, वातावरण है.
धैर्य की भारी कमी है. तथा वहीं धैर्य की कमी ! किसी भी मानव मात्र को, उचित-पथ से,
विचलित करती है. अतः प्रत्येक शि वशक्तियन को, अत्यंत धैर्यवान बनना पड़ेगा. बड़े
दायित्वों का, वहन करने से पूर्व ! छोटे
-बड़े कई दायित्वों को, स्वयं से आगे बढ़-बढ़ कर !
स्वीकार करना होगा.”
“आज उन सभी की संख्या ! काफी कम है. सैकड़ों में भी नहीं है. अतः आज उनको, पकड़-
पकड़ कर ! दायित्व सौंपा जा रहा है. जब भविष्य में, यह संख्या हजारों में पहुँचेगी. तब ऐसा नहीं
होगा. तब तो अधिकतर दायित्व ! उसी शि वशक्तियन को मिलेगा. जिसके पास ! दायित्व पूर्ण करने
का, इतिहास होगा.”
“क्योंकि महादेव के बनाये, विधि-विधान के अनुसार ! जो शिवशक्तियन ! स्वयं से आगे बढ़ कर !
जितना ही अधिक, दायित्व स्वीकार करके, उसे पूर्ण करता जायेगा. उसे उतना ही और दायित्व !
सौंपा जाता जायेगा. वहीं जो दायित्वों से बचेगा. उसे कोई भी नवीन दायित्व ! नहीं सौंपा
जायेगा. क्योंकि महादेव के आज्ञानुसार ! आत्मा की स्वतंत्रता ! अत्यंत महत्वपूर्ण है. उसको
बाध्य करके, कोई भी कार्य ! नहीं कराना होता है.”
“परंतु ! उन्हें यह भी समझना कि…………. आत्मा की स्वतंत्रता का, वि ष शेभ ना उठायें.
ला
क्योंकि मूलरेणी
में श्रे प्रवेश करने हेतु ! दायित्वों का, अधिक-से-अधिक निर्वहन करना भी,
अत्यधिक महत्वपूर्ण है.”
“उन्हें समझाना कि,
हम कर ही क्या सकते हैं ?
अन्य कोई विकल्प भी तो नहीं है.”

वर्तमान के , अठारहों शिवशक्तियन हेतु ! इतना सब कु छ ! विस्तार से बताने के पश्चात् ! प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज को, संबोधित
करके बोले :
“विक्रांत ! जैसा कि तुम्हें ज्ञात होगा. राके श अभी अभ्यास हेतु ! तुम्हारे दायित्व वाले, दो कार्यों को करेगा.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“जी प्रभु ! ऐसा ही है.”
प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी युवक को, संबोधित करके बोले :
“राके श ! यह एक प्रकार से, तुम्हारा महादेव-दूत के रूप में, लौकिक जगत का, प्रथम कार्य है. तुम अभी महादेव-दूत नहीं हो. परंतु ! अभ्यास हेतु ! अभी
कु छ सीमित अवधि हेतु ! कु छ घंटों तक ! तुम महादेव-दूत ही हो.”
“अतः तुम जाओ ! उस सुदूर अधर्मी ग्रह पर ! जो इस पृथ्वी ग्रह के , गणितीय गणना के अनुसार ! यहाँ से असंख्य प्रकाश वर्ष दूर है. अभी तुम वहाँ जाओ
! और उस पतित अधर्मी ग्रह पर, अपनी ओजस्वी वाणी में, धर्म पताका ! लहरा कर आओ. मैं यहीं से, तुम्हारे प्रदर्शन की, गुणवत्ता को देखूँगा.”
भगवाधारी युवक ! आशंकित भाव से बोला :
“परंतु प्रभु ! मुझे इस संदर्भ में, कु छ भी ज्ञान नहीं है. मुझे वहाँ की भाषा भी, नहीं आती होगी. अगर आपका मार्गदर्शन मिल जाता कि, मुझे क्या बोलना है
? तो मैं धन्य हो जाता.”
प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! मुस्कु राते हुये बोले :
“महादेव दूतों के लिये, भाषा की कोई बाध्यता नहीं होती. तुम्हें जो भाषा आती हो, उसमें बोलना. परंतु तुम पाओगे ! तुम्हारे मुख से, वह भाषा निकल रही
है. जो सुनने वाले को, समझ आ सके . और रही बात ! मार्गदर्शन की. तो उसकी कोई आवश्यकता नहीं है. तुम्हें जो समझ आये, वहीं बोलना. वह सही ही
होगा. क्योंकि अभी भले तुम ! महादेव-दूत नहीं हो. परंतु बिल्कु ल महादेव-दूत बनने के , द्वार पर ही तो खड़े हो. अतः सब अच्छा ही होगा. यह मेरा
आशीर्वाद है.”
इतना बताने के बाद ! प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ! कक्ष से बाहर निकल गये. उनके जाने के पश्चात् ! भगवाधारी घबराया हुआ सा ! महादेव-दूत विक्रांत
महाराज से बोला :
“भैया ! मुझे तो सही में, इस संदर्भ में, कु छ भी ज्ञान नहीं है. अब कै से होगा ?”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज हँसते हुये बोले :
“चलो ! मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूँगा. क्योंकि यह तुम्हारा अभ्यास सत्र है. अतः मुझे ! तुम्हारे साथ रहने की, अनुमति है. हम कु छ देर बाद ! जिस ग्रह पर
होंगे. उस ग्रह वाला जो, मूल श्रेणी के , प्रथम चरण का, मानव है. वह बहुत रोचक मनुष्य है. उससे मिल करके ही, तुम्हें आनंद आ जायेगा.”
“संयोग से वह ! अपने पिछले जन्म में, इसी पृथ्वी ग्रह पर था. इसी ग्रह से वह ! पूर्व श्रेणी से, मूल श्रेणी में पहुँचा है. अभी ! साढ़े बाईस वर्ष पूर्व ही तो,
उसकी पृथ्वी पर, मृत्यु हुयी है. मृत्यु से सात वर्ष पूर्व ! वह मूल श्रेणी में जाने योग्य ! आवश्यक अहर्तता ! प्राप्त कर चुका था. अतः उसके , उस जीवन के ,
अंतिम सात वर्ष ! पूर्व श्रेणी वाले, नौवें चरण की, प्रतीक्षा अवधि थी.”
“उसी प्रतीक्षा अवधि में, उसके सदकर्मों की, अत्यधिक अधिकता के कारण ! महादेव ने उसे दर्शन दे कर, वरदान माँगने को बोला था. वरदान में उसने !
यह माँगा कि…………… उसे अगला जन्म ! यानि मूल श्रेणी का प्रथम जन्म भी, इसी पृथ्वी ग्रह पर चाहिये.”
“महादेव ने जब उससे पूछा कि………… वह ऐसा क्यों चाहता है ? तब उसने बताया कि, उसे देवी-देवताओं के मूल पदसोपान ! यानि मूल पदानुक्रम से,
छेड़-छाड़ करने वाले, सभी साधु-संतों एवं बाबाओं को, मन भर ! पीट-पीट करके , सबक सिखाना है.”
“तब महादेव ने, उसे बताया कि………….. यह काम वह ! निर्विघ्न रूप से, पृथ्वी ग्रह पर, नहीं कर सकता. क्योंकि यहाँ ! लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के
कारण ! कानून का राज है. तुम्हें मैं ! ऐसे ग्रह पर, भेज दूँगा. जहाँ अधर्म की स्थिति ! कु छ-कु छ पृथ्वी जैसी ही है. परंतु वहाँ किसी प्रकार के , किसी
नियम-कानून का राज नहीं है. जो ताकतवर है ! वह अपनी मनमानी करता है. वहाँ तुम निर्विघ्न रूप से, अपने शारीरिक बल के बूते ! मनमानी कर सकते
हो. और वहाँ तुम्हारे मनचाहे आहार ! __ली की भी भरमार है.”
“तब फिर उसने ! उसी ग्रह पर, पैदा होने का, तथा साथ ही, खूब शारीरिक बल का, वरदान माँग लिया. जिसे महादेव ने, यह कह कर ! वरदान दे दिया
कि, तुम्हारे पास शारीरिक बल तो, बहुत रहेगा. परंतु बुद्धि बिल्कु ल भी नहीं रहेगी. के वल उतना ही ज्ञान रहेगा. जितना तुम्हारे मन की, अभी हार्दिक इच्छा
है.”
“उसके बाद उसने ! उस ग्रह पर जन्म लिया. बलवान बहुत है. शरीर भी वहाँ के औसत से, बड़ा एवं विशालकाय है. बुद्धि तनिक भी नहीं है. एक ही बुद्धि
है. दुष्ट धर्मप्रवर्तकों को पकड़ना ! उन्हें मन भर पीटना. फिर अपने बनाये, कारावास में, बंद कर देना. तथा उन्हें नियमित रूप से, पीट-पीट करके , देवी-
देवताओं का, मूल पदानुक्रम रटाना. और टोकरी भर-भर कर …….ली खाना”
“परिणामस्वरूप ! अभी तक उसने, काफी अधिक संख्या में, वैसे दुष्ट धर्मप्रवर्तकों को, अपने कारावास में, कै द कर रखा है. अब उसके कारावास में, नये
दुष्टों हेतु ! जगह नहीं है. अतः उसने ! महादेव-दूतों से, निवेदन किया है कि, कोई महादेव-दूत ! आ कर के , अपनी वाणी से, उन दुष्टों को, कोई ज्ञानवर्धक
बात बता दें.”
“ताकि उसके बाद वह ! सुधर चुके दुष्टों को, अपने कारावास से, रिहा कर देगा. तथा उनकी जगह ! और नये दुष्टों को, पकड़ कर लायेगा.”
“उसने मंच तैयार कर रखा है. तुम्हें चल कर, कोई भी भाषण जैसा ! कु छ भी बोल देना है. वह खुश हो जायेगा. उस पर सभी देवी-देवता-गण-दूत ! सभी
के सभी ! प्रसन्न रहते हैं. बड़ा ही मनोरंजक व्यक्तित्व है उसका. चलो ! अब चला जाये. नहीं तो विलंब होगा.“
कु छ ही क्षणों में, महादेव-दूत विक्रांत महाराज के साथ ! वह सैंतीस-अड़तीस वर्षीय भगवाधारी युवक ! उस सुदूर ग्रह पर था. फिर कु छ मिनट की, भेंट के
पश्चात् ! उस मूल श्रेणी के प्रथम चरण वाले, युवा मानव द्वारा ! तैयार किये गये, ऊँ चे मंच पर था.
तभी प्रभु श्रीकृ ष्ण का दिव्य स्वर ! उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी के कानो में गूँजा :
“अब तुम बोल सकते हो सत्यानंद !”
एक ऊँ चे स्थान पर खड़े हुये ! उस भगवाधारी ने, अपने समक्ष ! नीचे मैदान में, सिर झुकाये ! हजारों की संख्या में, हाथ बांधे खड़े ! उन तथाकथित
धर्मप्रवर्तकों पर, दुष्ट पापियों पर ! एक दृष्टि फिरायी. तत्पश्चात् ! अपने बगल में खड़े, महादेव-दूत ! विक्रांत महाराज की ओर देखा. विक्रांत महाराज ने,
मुस्कु राते हुये ! एक क्षण के लिये, अपनी पलकों को, झपकाने के साथ-साथ ! अपने सिर को एक-दो बार, हल्का-हल्का ऊपर-नीचे किया.
आज्ञा रूपी संके त पा कर ! वह भगवाधारी युवक ! अपार-जनसैलाब को, संबोधित करता हुआ बोला :
“जो शाश्वत है ! वही सत्य है !
वही सनातन है ! वही पुरातन है !”
“वह वैभवशाली है ! वह समृद्ध है !
वह गौरवान्वित है ! वह प्रफु ल्लित है !”
“धर्म ! सुख व संपन्नता का प्रतीक है,
दरिद्रता व निर्धनता का नहीं.
धर्म ! उल्लास व उत्साह का प्रतीक है,
शोक व दुःख का नहीं.
धर्म ! प्रकाश का प्रतीक है,
अंधकार का नहीं.
धर्म ! जीवंतता का प्रतीक है,
मरणासन्नता का नहीं.
धर्म ! विजय का प्रतीक है,
पराजय का नहीं.
धर्म आनंद व संतोष का प्रतीक है,
ग्लानि, संताप व लोभ का नहीं.”
“धर्म गर्व है !
धर्म आह्लादायक है !
धर्म ही सर्वोच्च है !
धर्म ही सर्वस्व है !
धर्म है तो, सब कु छ है.
धर्म का कोई विकल्प नहीं.”
“धर्म मोक्ष का मार्ग हैं.
धर्म ही सदकर्म है.
सदकर्म ही धर्म है.
धर्म ही पुण्य है.
पुण्य ही धर्म है.
धर्म तो धर्म है.”
“धर्म से तुम भागोगे ?
भाग सको तो, भाग के देखो.
धर्म को तुम मारोगे ?
मार सको तो, मार के देखो.”
“तुम ! धर्म की गलत व्याख्या करोगे ?
तो अब करके दिखाओ ?
तुम ! देवी-देवताओं के ,
मूल-पदानुक्रम से, छेड़छाड़ करने का,
जघन्य अपराध करोगे ?
तुम ! उस मूल पदसोपान में,
मनगढ़ंत इष्ट-आराध्य घुसाओगे ?
तुम ! अपने आप को,
सर्वेसर्वा महादेव के स्थान पर रखोगे ?”
“…………..और
यह सब करके , तुम सोचते हो. धर्म चुप रहेगा ! तुम्हारी नौटंकियाँ देखेगा ! सदैव ध्यान रहे ! महादेव की रचित ! तथा माता शक्ति की ऊर्जा से संचालित !
यह सृष्टि ! धर्म के आधार पर ही चलेगी.”
“तुम कु छ मनमाना कु कर्म करते हो.
कोई प्रतिउत्तर नहीं मिलता देख कर,
तुम पुनः करते हो !
बार-बार करते हो !
करते ही जाते हो !
अपने आप को,
अधर्म का नायक समझते हो.”
“जब तुम !
इतने ही बड़े हो चुके होते हो.
तब फिर !
उस देह की मृत्यु के उपरांत !
क्यों चिल्लाते हो ?
देवी-देवता-गण से,
अपने किये कु कर्मों हेतु,
शीघ्रातिशीघ्र दण्ड की भीख !
क्यों माँगते हो ?”
“अरे मूर्ख !
तुम किस भ्रम में, जी रहे हो ?
कल तुम नहीं थे, धर्म तब भी था.
कल तुम नहीं रहोगे, धर्म तब भी रहेगा.”
“संपूर्ण सृष्टि के रचयिता ! देवों के देव महादेव से प्राप्त ! आत्मा की स्वतंत्रता का, तुम दुरुपयोग करते हो. तुम अभी अबोध हो ! क्योंकि तुम्हें ! यह भी नहीं
पता कि…………..”
“स्वतंत्रता का मूल अर्थ ही, विधि-विधान के अनुरूप चलना होता है. महादेव निर्मित ! विधि-विधान के अनुसार चलना ! पराधीनता नहीं है. वह तो महादेव
को, प्रसन्न करने का, प्रसन्न रखने का, सबसे उत्कृ ष्ट माध्यम है. सर्वोच्च मार्ग है. सर्वोत्तम कर्म है.”
क्रमशः

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#धर्मपुनर्स्थापना_तृतीय_बैठक_प्रश्नोत्तरी_पठनसामग्री
प्रभु श्रीकृ ष्ण का दिव्य स्वर ! उस सैंतीस-अड़तीस वर्षीय ! भगवाधारी के कानो में गूँजा :
“अब तुम बोल सकते हो सत्यानंद !”
एक ऊँ चे स्थान पर खड़े हुये ! उस भगवाधारी ने, अपने समक्ष ! नीचे मैदान में, सिर झुकाये ! हजारों की संख्या में, हाथ बांधे खड़े ! उन तथाकथित
धर्मप्रवर्तकों पर, पापियों पर ! एक दृष्टि फिरायी. तत्पश्चात् ! अपने बगल में खड़े, महादेव-दूत ! विक्रांत महाराज की ओर देखा. विक्रांत महाराज ने,
मुस्कु राते हुये ! एक क्षण के लिये, अपनी पलकों को, झपकाने के साथ-साथ ! अपने सिर को एक-दो बार, हल्का-हल्का ऊपर-नीचे किया.
आज्ञा रूपी संके त पा कर ! वह भगवाधारी युवक ! अपार-जनसैलाब को, संबोधित करता हुआ बोला :
“जो शाश्वत है ! वही सत्य है !
वही सनातन है ! वही पुरातन है !”
“वह वैभवशाली है ! वह समृद्ध है !
वह गौरवान्वित है ! वह प्रफु ल्लित है !”
“धर्म ! सुख व संपन्नता का प्रतीक है,
दरिद्रता व निर्धनता का नहीं.
धर्म ! उल्लास व उत्साह का प्रतीक है,
शोक व दुःख का नहीं.
धर्म ! प्रकाश का प्रतीक है,
अंधकार का नहीं.
धर्म ! जीवंतता का प्रतीक है,
मरणासन्नता का नहीं.
धर्म ! विजय का प्रतीक है,
पराजय का नहीं.
धर्म आनंद व संतोष का प्रतीक है,
ग्लानि, संताप व लोभ का नहीं.”
“धर्म गर्व है !
धर्म आह्लादायक है !
धर्म ही सर्वोच्च है !
धर्म ही सर्वस्व है !
धर्म है तो, सब कु छ है.
धर्म का कोई विकल्प नहीं.”
“धर्म मोक्ष का मार्ग हैं.
धर्म ही सदकर्म है.
सदकर्म ही धर्म है.
धर्म ही पुण्य है.
पुण्य ही धर्म है.
धर्म तो धर्म है.”
“धर्म से तुम भागोगे ?
भाग सको तो, भाग के देखो.
धर्म को तुम मारोगे ?
मार सको तो, मार के देखो.”
“तुम ! धर्म की गलत व्याख्या करोगे ?
तो अब करके दिखाओ ?
तुम ! देवी-देवताओं के ,
मूल-पदानुक्रम से, छेड़छाड़ करने का,
जघन्य अपराध करोगे ?
तुम ! उस मूल पदसोपान में,
मनगढ़ंत इष्ट-आराध्य घुसाओगे ?
तुम ! अपने आप को,
सर्वेसर्वा महादेव के स्थान पर रखोगे ?”
“…………..और
यह सब करके , तुम सोचते हो. धर्म चुप रहेगा !
तुम्हारी नौटंकियाँ देखेगा ! सदैव ध्यान रहे ! महादेव की रचित ! तथा माता शक्ति की ऊर्जा से संचालित ! यह सृष्टि ! धर्म के आधार पर ही चलेगी.”
“तुम कु छ मनमाना कु कर्म करते हो.
कोई प्रतिउत्तर नहीं मिलता देख कर,
तुम पुनः करते हो !
बार-बार करते हो !
करते ही जाते हो !
अपने आप को,
अधर्म का नायक समझते हो.”
“जब तुम !
इतने ही बड़े हो चुके होते हो.
तब फिर !
उस देह की मृत्यु के उपरांत !
क्यों चिल्लाते हो ?
देवी-देवता-गण से,
अपने किये कु कर्मों हेतु,
शीघ्रातिशीघ्र दण्ड की भीख !
क्यों माँगते हो ?”
“अरे मूर्ख !
तुम किस भ्रम में, जी रहे हो ?
कल तुम नहीं थे, धर्म तब भी था.
कल तुम नहीं रहोगे, धर्म तब भी रहेगा.”
“संपूर्ण सृष्टि के रचयिता ! देवों के देव महादेव से प्राप्त ! आत्मा की स्वतंत्रता का, तुम दुरुपयोग करते हो. तुम अभी अबोध हो ! क्योंकि तुम्हें ! यह भी नहीं
पता कि…………..”
“स्वतंत्रता का मूल अर्थ ही, विधि-विधान के अनुरूप चलना होता है. महादेव निर्मित ! विधि-विधान के अनुसार चलना ! पराधीनता नहीं है. वह तो महादेव
को, प्रसन्न करने का, प्रसन्न रखने का, सबसे उत्कृ ष्ट माध्यम है. सर्वोच्च मार्ग है. सर्वोत्तम कर्म है.”
क्रमशः
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:~
वह सैंतीस-अड़तीस वर्षीय भगवाधारी युवक ! अपनी बात को समाप्त करने के साथ ! उस ऊँ चे स्थान पर, समीप में खड़े ! महादेव-दूत ! विक्रांत महाराज
का चरण स्पर्श किया. उन्होंने आशीर्वाद देने के साथ ! धीमे स्वर में कहा :
“बहुत बढ़िया श्वेतभानु ! संबोधन अच्छा था.”
उसके बाद ! वह भगवाधारी ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के , पीछे-पीछे ! मंच से नीचे उतरा. नीचे खड़े ! उसी सुदूर ग्रह के निवासी ! मूल श्रेणी के प्रथम
चरण वाले, विशालकाय देहकाया के स्वामी ! उस युवा मानव ने, कृ तज्ञता प्रकट करते हुये, हाथ जोड़ कर कहा :
“महाराज जी ! अब मैं इनको सँभाल लूँगा.”
कु छ और औपचारिक वार्तालाप के पश्चात् ! उस विशालकाय शक्तिशाली मनुष्य से विदा ले कर ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के साथ ! वह भगवाधारी
युवक ! पुनः पृथ्वी ग्रह के , शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश स्थित दूत-खंड में थे.
वहाँ पहुँचते ही, विक्रांत महाराज बोले :
“तुम्हारे दो दायित्व संपन्न हुये. अब आज के पूर्वाभ्यास वाला ! एक और दायित्व ! शेष बचा हुआ है. आज का तीसरा दायित्व है………… इसी सौर
मंडल के , एक अन्य ग्रह पर, एक अबला को बचाने गयी ! उस ग्रह के मूल श्रेणी वाली, पाँचवें चरण की, एक स्त्री की रक्षा हेतु तैनात रहना. तथा
आवश्यकता पड़ने पर ! उसकी समुचित सहायता करना.”
इतना बोल कर ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! खड़े होते हुये बोले :
“चलो ! यहाँ प्रतीक्षा करने से अच्छा है. उसी ग्रह पर, विचरण किया जाये. मैं गिद्ध बनूँगा. तुम क्या बनना चाहते हो ? ऐसा करो ! तुम भी गिद्ध ही बनों.
इस प्रकार ! एक ही साथ रहा जायेगा. उस घटनास्थली के पास ! एक ठूंठ पेड़ है. चलो उसी पर बैठ कर, गप्पे मारी जाये. हम दोनों वहाँ ! चिड़ियों की
भाषा में, बात करेंगे. अतः वहाँ किसी को, समझ भी नहीं आयेगा. आओ ! चलो ! चलते हैं.”
~~~~~~~~~
इसी सौर मंडल के , एक अन्य ग्रह पर, एक अबला को बचाने गयी ! उस ग्रह के मूल श्रेणी वाली, पाँचवें चरण की, एक स्त्री की रक्षा वाले, रोचक प्रकरण का
विवरण ! भविष्य में, अनुमति प्राप्त होते ही, अवश्य लिखूँगा. अभी के लिये, आगे के घटनाक्रमों को, लिखना आरंभ करता हूँ.
~~~~~~~~~
उस मूल श्रेणी वाली, पाँचवें चरण की, उस स्त्री की रक्षा के पश्चात् ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के साथ ! वह भगवाधारी युवक ! पुनः पृथ्वी ग्रह के ,
शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश स्थित ! श्रीकृ ष्ण-खंड के , भेंट-कक्ष में, प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान एवं माता रुक्मणी के समक्ष ! उनके सानिध्य में, बैठे हुये थे.
अपने सिंहासननुमा आसन पर विराजमान ! प्रभु श्रीकृ ष्ण देव के बगल में बैठीं ! देवी रुक्मणी माँ ! अपने दिव्य स्वर में, उस भगवाधारी से बोलीं :
“राके श ! तुम अच्छा बोलते हो. प्रभु के संग-संग ! मैंने भी, तुम्हारा संबोधन सुना. तुम बहुत यशस्वी बनोगे राके श ! मेरा आशीष है. अब अपने
शिवशक्तियन दल के साथ मिलकर ! इस पृथ्वी ग्रह को भी, अधर्म से ! तथा अधर्मियों से ! मुक्त करो.”
माता के चुप होने पर, प्रभु श्रीकृ ष्ण देव बोले :
“राके श ! तुम्हारे दूत-रूप के पूर्वाभ्यास वाले, आज के तीनों दायित्व ! सफलतापूर्वक ! संपन्न हुये. अतः तुमसे दूत वाली………… सिद्धियाँ ! एवं
शक्तियाँ ! वापस ली जाती हैं. दूत-काज वाले, अगले पूर्वाभ्यास के समय ! तुम्हें पुनः यह सिद्धियाँ-शक्तियाँ ! प्राप्त हो जायेंगी.”
“अब तुम्हारा ! अगला दायित्व है. महाशिवरात्रि वाली ! तृतीय भेंट-वार्ता बैठक में, अपने तीन स्वरूपों के साथ ! एक ही साथ ! एक ही समय पर ! तीनों
ही स्थानों पर ! उपलब्ध रहना. अपने तृतीय स्वरूप के माध्यम से, अतिगुप्त कार्यकारिणी के , 51 से 99 सदस्यों के साथ ! बैठक करना.”
“अपने द्वितीय स्वरूप के माध्यम से, मूलश्रेणी के 51 मानवों संग ! बैठक करना. तथा प्रथम यानि मूल स्वरूप के माध्यम से, शिवशक्तियन के साथ बैठक
करना. परंतु यह ध्यान रखना ! इस बार उस समूह के आमंत्रित ! 63 से 151 भोले-भक्तों में, के वल शिवशक्तियन ही नहीं होंगे. उसमें पुराने शिवशक्तियन
के साथ-साथ ! भावी शिवशक्तियन भी होंगे. तथा कु छ सामान्य मानव भी होंगे.”
“तत्पश्चात् ! अर्द्धरात्रि से लेकर ! प्रातः तक ! जब सभी भोले-भक्त विश्राम कर रहे होंगे. तब तुम अपने, तीनों स्वरूप को, दो स्वरूप में, समाहित कर !
मूल स्वरूप को लेकर, महाशिवरात्रि उत्सव में, सम्मिलित होने, शिवशक्ति जगत जाओगे. तथा एक स्वरूप को, किसी भी आपातकाल हेतु ! वहीं उपलब्ध
रखोगे.”
भगवाधारी युवक ने, कोई प्रश्न पूछने हेतु ! हाथ उठाया. प्रभु की अनुमति मिलने पर, उसने पूछा :
“हे प्रभु ! क्या मैं जान सकता हूँ कि, उन आमंत्रित 151 भोले-भक्तों में से, कौन-कौन से, भावी शिवशक्तियन हैं ?”
प्रभु श्रीकृ ष्ण बोले :
“उसमें आने वाले ! या आये हुये, अधिकतर मनुष्य ! शिवशक्तियन ही होंगे. जिनमें से कु छ का शिवशक्तियन क्रमांक ! उसी बैठक के कु छ दिवस उपरांत !
आवंटित हो जायेगा. तथा कु छ में समय लगेगा. यह इस बात पर, निर्भर करेगा कि……….. आने वाले आमंत्रित भोले-भक्तों में से, किसकी ! कै सी तैयारी
रहती है ?”
भगवाधारी युवक ने पूछा :
“क्या उन्हें कु छ तैयारी भी करनी है ?”
प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान बोले :
“ऐसी कोई विशेष तैयारी नहीं करनी है. उन्हें बस तुम्हारे द्वारा ! अभी तक लिखित ! यानि जो प्रकरण ! तथा घटनाक्रम ! तुमसे महादेव-दूतों ने, अभी तक
लिखवायें हैं. उन सभी प्रकरणों ! एवं घटनाक्रमों को, उन्हें पढ़ कर आना होगा. वैसे यह ! कोई अनिवार्य नियम नहीं है. यह पूर्णतः उनकी स्वेच्छा पर,
निर्भर करता है. वैसे पढ़ कर आने से, लाभ यह होगा कि, वहाँ की चर्चायें ! उन्हें, समझ में आयेंगी. तथा उनके समय का, सदुपयोग होगा.”
भगवाधारी युवक ने कहा :
“परंतु ! किसी भी मानव के लिये, सभी प्रकरणों को पढ़ना ! अत्यंत कठिन कार्य होगा. क्योंकि महादेव-दूतों के आज्ञानुसार ! सभी लिखित पठन-सामग्री !
कु ल १११ स्थानों पर, उपलब्ध है. इतना कोई ढूँढ ही नहीं पायेगा. क्योंकि कु छ तो, गुप्त रूप से, अतिगुप्त कार्यकारिणी सदस्यों हेतु ! लिखे गये हैं.”
प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान बोले :
“इसके समाधान संबंधी दिशा-निर्देश ! अभी तुम्हारे लौटते समय ! विक्रांत से तुम्हें ! प्राप्त हो जायेगा.”
इतना बोलने के पश्चात् ! प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ने, महादेव-दूत विक्रांत महाराज को, संबोधित करके बोले :
“विक्रांत ! राके श को, उसके दुविधाओं का, निवारण-मार्ग बताओ. तथा इसे लौकिक जगत में, वापिस छोड़ कर आओ.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“जैसी आज्ञा प्रभु !”
उसके बाद……….. प्रभु श्रीकृ ष्ण देव ! एवं देवी रुक्मणी माँ से, आशीर्वाद ले कर, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! तथा वह भगवाधारी युवक ! उस भेंट-
कक्ष से बाहर निकले. पृथ्वी ग्रह के , शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश स्थित ! श्रीकृ ष्ण-खंड के , भेंट-कक्ष से निकल कर, मुख्य द्वार की ओर, पैदल बढ़ते
हुये, विक्रांत महाराज ! भगवाधारी युवक से बोले :
“श्वेतभानु !”
उनका अनुसरण करता हुआ, पैदल चलता भगवाधारी बोला :
“जी भैया !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“एक बात जानते हो श्वेतभानु ! आने वाले भविष्य में, जब तुम्हारे मूल श्रेणी के आठवें चरण का, महादेव-आज्ञा वाला ! धर्मकाज संपन्न हो जायेगा. तथा
जब महादेव की इच्छा एवं आज्ञा से, तुम्हारे पृथ्वी ग्रह वाले……………. मूल-जन्मों ! उदाहरणार्थ-जन्मों ! एवं समांतर जन्मों ! यानि सभी जन्मों का,
सार्वजनिक उल्लेख ! कर दिया जायेगा. तब सभी शिवशक्तियन का मनोबल ! बहुत बढ़ जायेगा. क्योंकि उन्हें ! इस बात का गर्व होगा कि, जो बात ! इस
जगत के , सर्वसाधारण को, उस दिन पता चल रही है. वह तो उन्हें ! वर्षों पूर्व से पता थी.”
भगवाधारी बोला :
“जी !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“अब मैं तुम्हें ! महाशिवरात्रि वाली, तृतीय शिवशक्तियन भेंटवार्ता बैठक से पूर्व ! एक और महत्वपूर्ण कार्य का, दायित्व सौंपता हूँ.”
“तुम्हें अभी से, अगले कु छ दिवस में ही, सभी महादेव-दूतों की आज्ञा से, पूर्व में कु ल १११ स्थानों पर, तुम्हारे द्वारा लिखित………… सभी प्रकरणों ! एवं
घटनाक्रमों को, लयबद्धता में पिरोते हुये ! तारतम्य बना कर, एक ही श्रृंखला में, लिख देना है. ताकि महाशिवरात्रि बैठक में, पधारने वाले, सभी शिवशक्तियन
! एवं भोले-भक्तों को, अलग-अलग स्थानों पर, ढूँढना नहीं पड़े.”
“जिससे उन्हें ! पढ़ने में आसानी हो. क्योंकि प्रश्नोत्तरी सत्र ! यानि Q&A सेशन में, भाग लेने के लिये, उस नयी श्रृंखला का, सभी भाग ! पढ़ा होना
अनिवार्य है. के वल कार्यक्रम में, उपस्थित रहने के लिये, इसकी अनिवार्यता नहीं है. परंतु वहाँ का, सत्र समझने में, आसानी के लिये, पढ़ लेना उपयुक्त
रहेगा.”
भगवाधारी युवक ने पूछा :
“क्या उन गुप्त प्रकरणों को भी लिखना है. जो अभी तक नहीं लिखे गये थे. या अतिगुप्त श्रेणी वाले, अतिगुप्त कार्यकारिणी सदस्यों हेतु ! या कु छ भावी
शिवशक्तियन हेतु ! लिखे गये हैं.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“तुम लिखना आरंभ करो. मैं अपने दिशा-निर्देश में, तुम्हें बताता चलूँगा कि, अभी इस बैठक हेतु ! कितना लिखना है. तथा कितना सार्वजनिक करना है.”
इतना बोल कर ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज आगे बोले :
“चलो ! अब मैं तुम्हें ! तुम्हारे स्थान पर पहुँचा दूँ.”
उसके बाद ! जब वह भगवाधारी युवक ! अपने लौकिक स्थान पर पहुँच गया. तब उसने ! प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान के आज्ञाओं का, पालन करते हुये, बिल्कु ल
आरंभ से, सभी प्रकरणों एवं घटनाक्रमों को लिखना आरंभ किया.
आत्मकथा आरंभ !
बिल्कु ल आरंभ से शुभारंभ !!
महादेव द्वारा रचित ! इस सृष्टि का, जैसे-जैसे ! प्रतिक्षण………. निरंतर ! अनवरत ! विस्तार होता जा रहा है. वैसे-वैसे ही, महादेव द्वारा ! प्रत्येक दिवस
! असंख्य नये आत्माओं का, निर्माण भी किया जाता ! जा रहा है. यह पूरी प्रक्रिया ! बिना रुके ! बगैर थमें ! अनंत काल से, ऐसी ही ! चली आ रही है.
क्योंकि देवों के देव ! महादेव द्वारा ! बनाया गया ! यहीं विधि का विधान है. यह सदा से, ऐसे ही चलता आया है. सदैव ऐसे ही चलता रहेगा. क्योंकि यही
सत्य है ! यही शाश्वत है ! यही सनातन है.
यह आत्मकथा है ! ऐसे ही एक आत्मा की. उसके निर्माण ! यानि जन्म की. उसके यात्रा की. यानि मोक्ष प्राप्ति की दिशा में चलने की.
नोट :~ पृथ्वी ग्रह के पाठकों को, सभी कु छ आसानी से, समझ में आ जाये. इसलिये ! समय के गणना का आधार ! पृथ्वी ग्रह के गणितीय गणना ! एवं
समय-चक्र के अनुसार ! रखा गया है. वैसे यह गणना ! प्रत्येक ग्रह-उपग्रह पर, अलग-अलग होती है.
जैसे प्रति दिवस ! असंख्य आत्माओं का, निर्माण होता है. वैसे ही करोड़ों वर्ष पूर्व ! एक दिवस ! उस दिवस के , कु ल आत्मा निर्माण में, महादेव द्वारा !
*सत्यमार्गी* नामक ! आत्मा का भी, निर्माण किया गया.
पृथ्वी ग्रह के , गणितीय गणना के अनुसार देखें तो, लगभग इक्कीस घंटे पूर्व ! समाप्त हुये, अंतिम बैठक के , २१ घंटे बाद ! लगभग ३ घंटे चलने वाली, पुनः
नयी बैठक का, आरंभ हो चुका था. उन अंतिम २४ घंटों में, नयी निर्मित हुयी, सभी आत्मायें ! उस बैठक में, उपस्थित थी.
उन्हीं में उपस्थित था ! वह सत्यमार्गी नामक आत्मा भी. उस दिवस के , पिछले दिवस वाली, बैठक में उपस्थित ! सभी आत्माओं को, उनके पूर्व श्रेणी के ,
दूसरे चरण का, उनका प्रथम नवीन देह ! प्राप्त हो चुका था. अब इस समूह वाली, आत्माओं कि बारी थी. यह बैठक ! प्रति दिवस ! ऐसे ही नियमित प्रक्रिया
के तहत् ! चलती रहती थी.
उस बैठक स्थली का दृश्य ! कु छ यूँ था. एक प्रकार से, चढ़ने के क्रमानुसार में, चार चरणबद्ध ऊँ चाई वाले स्थानों पर…………… महादेव ! माता ! एवं
तेरह और देवी-देवता ! यानि कु ल पंद्रह ! भगवान व मातायें उपस्थित थीं. एक प्रकार से, दरबार लगा हुआ था. आगे बढ़ने से पूर्व ! वहाँ का दृश्य ! कलम
से उके र सकूँ ! ऐसा प्रयत्न करके देखता हूँ.
चढ़ाई के क्रम में, सबसे आरंभ में, दो युगल सिंहासन लगे हुये थे. एक पर ! प्रभु श्री राम भगवान ! एवं माता सीता ! विराजमान थीं. दूसरे पर ! प्रभु श्री
कृ ष्ण भगवान ! एवं माता रुक्मणी ! विराजमान थीं.
चढ़ाई के ही क्रम में, उनसे थोड़ा ऊँ चे स्थान पर, दो और युगल सिंहासन लगे हुये थे. एक पर ! भगवान कार्तिके य देव एवं देवी देवसेना ! विराजमान थीं.
वहीं दूसरे पर ! भगवान गणेश देव एवं देवी रिद्धिसिद्धि ! विराजमान थीं.
उससे ऊपर वाले, ऊँ चे स्थान पर, पाँच देवी-देवताओं के बैठने हेतु ! एक जैसे दो युगल सिंहासन ! तथा एक एकल सिंहासन लगा हुआ था. पहले युगल
सिंहासन पर ! भगवान विष्णु देव जी ! एवं देवी लक्ष्मी माँ ! विराजमान थीं. दूसरे युगल सिंहासन पर ! भगवान ब्रह्मा देव जी ! एवं देवी सरस्वती माँ !
विराजमान थीं. तीसरे एकल सिंहासन पर ! भगवान रुद्र देव जी अके ले विराजमान थे.
सबसे ऊपर वाले, ऊँ चे स्थान पर ! एक विशाल शिला के ऊपर ! एक आसन लगा हुआ था. जिस पर ! परम् पिता परमेश्वर यानि देवों के देव महादेव !
एवम् जगत् जननी माँ ! माता शक्तिस्वरूपा पार्वती माई विराजमान थीं.
…………….तथा उन सभी देवी-देवताओं के समक्ष ! उनके सानिध्य में, विगत् २४ घंटों में, नव-निर्मित हुये, असंख्य ! आत्माओं की भीड़ !
उपस्थित थी. उसी भीड़ में, वह सत्यमार्गी नामक ! आत्मा भी उपस्थित था. जिसकी यह आत्मकथा ! लिखी जा रही है.
वहाँ की, लगभग तीन घंटे चलने वाली ! कार्यवाही का शुभारंभ करते हुये, सर्वप्रथम ! प्रभु श्री कृ ष्ण भगवान बोले :
“महादेव के अंश से निर्मित हुयी ! सभी आत्माओं का स्वागत है. तथा कु छ ही समय पश्चात् ! सभी की आरंभ होने वाली ! मोक्ष-यात्रा हेतु ! हम सभी की
ओर से, असीम शुभकामनायें ! व मंगकामनायें हैं.”
“सर्वप्रथम आप सभी को, मैं यह बतलाना चाहता हूँ कि, आप कौन हैं ?”
“परंतु ! यह बतलाने से पूर्व ! मैं सबसे पहले, महादेव के बनाये विधि-विधान के अनुरूप ! उस छः चरणीय ! या छः वर्गीय ! व्यवस्था को, आपके समक्ष
रखता हूँ. इससे आपको समझने में, आसानी होगी.”
“सबसे सर्वोच्च स्थान पर हैं……………… परम् पिता परमेश्वर ! देवों के देव महादेव ! एवम् जगत् जननी माँ ! शक्तिस्वरूपा पार्वती माता ! आप परम्
माता-पिता हैं ! अतः आप इसमें से, किसी भी वर्ग ! या चरण में नहीं हैं. क्योंकि आप सर्वोच्च हैं.”
“या इस छः पदसोपान ! या पदानुक्रम को, समझने हेतु ! इन्हें सबसे सर्वोच्च ! यानि शून्य पर, हम रख सकते हैं.”
“अब आते हैं !
उन छः सोपानों पर !”
“जिसमें प्रथम सोपान पर हैं………… त्रिदेव ! यानि भगवान विष्णु देव एवं देवी लक्ष्मी माँ ! तथा भगवान ब्रह्मा देव एवं देवी सरस्वती माँ ! तथा भगवान
रुद्र देव. यह महादेव शिव एवं माता शक्ति की आज्ञा से, इस सृष्टि के , प्रमुख संचालक हैं. जिनका कार्य ! सभी आत्माओं को, नये-नये देह में, जन्म देना !
पालना ! एवं उस देह का, अंत करना है.”
“द्वितीय सोपान पर ! क्रमानुसार हम चारों आते हैं………. यानि इस सोपान के , सबसे पहले व दूसरे स्थान पर ! श्री कार्तिके य देव व देवी देवसेना एवं श्री
गणेश देव व देवी रिद्धिसिद्धि आती हैं. इन दोनों देवों का कार्य……….. देवी ! देवता ! गण ! दूत ! के संचालन का है. यानि इस सृष्टि का संचालन करने
वाले, समस्त देवी-देवता-गण-दूत ! को, संचालित करने का कार्यभार ! उनके कं धों पर है.”
“जिसमें श्री कार्तिके य जी का दायित्व ! मुख्य देवी-देवताओं ! तथा आत्माओं ! एवं दूतों ! को लेकर है. तथा श्री गणेश जी का दायित्व ! सभी गणों ! तथा
बाकी के अन्य सभी देवी-देवताओं को, ले कर है.”
“विशेष परिस्थितियों में, श्री कार्तिके य जी के पास ! सभी देवताओं का, नेतृत्व करने को लेकर, अतिरिक्त कार्यभार है. तथा विशेष कार्यभार के रूप में, श्री
गणेश जी के पास ! समस्त सृष्टि के , किसी भी शुभ ! मंगल ! धर्म कार्य को, शुभारंभ करने हेतु ! अनुमति प्रदान करने का है. अगर वह कार्य ! शुभ-मंगल-
धर्म काज हो तब.”
“इसी सोपान के , तीसरे व चौथे स्थान पर ! प्रभु श्रीराम व देवी सीता एवं मैं व मेरी धर्मपत्नी देवी रुक्मणी आती हैं. प्रभु श्रीराम का कार्य…………. समस्त
ग्रहों ! उपग्रहों ! इत्यादि पर ! मानव देह रूपी आत्माओं के लिये, मनुष्य रूप में, अवतार ले कर……………. चारित्रिकगुणता ! आदर्शवादिता ! एवं
राज्यपद्धति का मानदंड ! यानि मार्गदर्शिका ! तैयार करना होता है.”
“वहीं मेरा कार्य…………… समस्त ग्रहों ! उपग्रहों ! इत्यादि पर ! मानव देह रूपी आत्माओं के लिये, मनुष्य रूप में, अवतार ले कर…….. योजनानीति
! रणनीति ! एवं धर्मस्थापनापद्धति ! हेतु……….. मानदंड ! यानि मार्गदर्शिका ! तैयार करना होता है.”
“अब समझते हैं तृतीय सोपान को…………… इसमें संचालक दल के , समस्त देवी-देवता आते हैं. जिनके अलग-अलग दायित्व हैं. इसमें बहुत अधिक
संख्या में, देवी-देवता हैं.”
“चौथे सोपान में, महादेव के अंश से निर्मित ! सभी महादेव-गण आते हैं. तथा सभी देवी-देवताओं के वाहन स्वरूप ! तथा कु छ सेवक स्वरूप ! महादेव-गण
आते हैं. इनमें से कु छ गण के , नियमित कार्यभार हैं. तो वहीं कु छ के , कभी-कभी वाले, कु छ विशेष कार्य-भार हैं.”
“पाँचवें सोपान में…………….. अत्यधिक संख्या में, ग्राम देवी ! ग्राम देवता ! नगर देवी ! नगर देवता ! कु ल देवी ! कु ल देवता इत्यादि ! आस्था
रूपी………. देवी-देवता होते हैं. जो कि सीमित क्षेत्र ! या सीमित मानव समूह ! के रक्षार्थ कार्य हेतु ! होते हैं.”
“यह कोई मूल ! देवी-देवता नहीं होते हैं. यह मानक देवी-देवता होते हैं. जिसमें अधिकतर मामलों में, वरिष्ठ महादेव-दूत ! या महादेव-गण का, प्रवेश होता
है. वहीं कु छ मामलों में, देवी-देवताओं का भी, प्रवेश होता है. यानि कि, वहाँ वास करने का, किसी ना किसी देवी-देवता-गण ! या वरिष्ठ दूत को, दायित्व
सौंपा गया होता है.”
“अब ! बच गया ! छठा सोपान……….. छठा व अंतिम सोपान ! यानि परमात्मा ! ………….अब यह परमात्मा क्या है ? या यह परमात्मा कौन हैं
?”
“यह परमात्मा हैं आप सभी आत्मा ! आप आत्मायें ! अभी से अपनी, यात्रा आरंभ कर रहे हैं. आपकी यात्रा ! अपने परम् लक्ष्य ! यानि मोक्ष के लिये है.
और जब आप ! अपनी यात्रा पूर्ण कर लेंगे. यानि जब कोई आत्मा ! अपना परम् लक्ष्य प्राप्त कर लेती हैं. तब उस परम् लक्ष्य की, प्राप्ति कर चुकी, आत्मा ही
! परमात्मा कहलाती है. इसे ही महादेव-दूत भी कहते हैं.”
“जैसे पाँचों सोपानों के , समस्त देवी-देवता-गण का निर्माण ! महादेव ने किया है. वैसे ही, छठे सोपान के , समस्त आत्माओं का निर्माण भी, महादेव ही किये
हैं व करते हैं. यानि आप भी, महादेव के अंश हो. क्योंकि उन्होंने ! आपका निर्माण किया है. अतः महादेव ! हम सभी देवी-देवता-गण के जैसे परम् पिता हैं.
उसी की भाँति ! महादेव ! आपके भी परम् पिता हुये.”
“……………..तथा ! अपनी आत्मा की मोक्ष-यात्रा में, लाखों-करोड़ों देह बदलते हुये, जिस यात्रा को आप करेंगे. उसमें आपको प्राप्त होने वाले,
प्रत्येक देह में, प्राण रूपी ऊर्जा का संचार ! जगत जननी माता शक्ति करेंगी. क्योंकि यह समस्त सृष्टि ! उन्हीं के ऊर्जा से, संचालित है. अतः शक्ति स्वरूपा
माता पार्वती ! आपकी ! एवं हम सभी की, परम् माता हैं.”
इतने विस्तार से, जब छः वर्गों के बारे में, समझा कर ! प्रभु श्री कृ ष्ण भगवान ने, अपनी वाणी को विराम दिया. तब प्रभु श्रीराम भगवान बोले :
“जैसा कि, प्रभु श्रीकृ ष्ण ने, आप सभी को, आपके परम् लक्ष्य ! यानि आत्मा को, परमात्मा बनाने के विषय में बताया. अब मैं इसी कड़ी में, आप सभी को,
उस यात्रा के संदर्भ में, पूर्ण विस्तार से, बताता हूँ. जिस यात्रा को पूर्ण करके , आप परमात्मा बनेंगे. यानि मोक्ष को प्राप्त होंगे. यानि महादेव-दूत बनेंगे.”
प्रभु श्रीराम भगवान ने, आत्मा के निर्माण से लेकर, मोक्ष तक की यात्रा को, अत्यंत विस्तार से बताया. परंतु अभी उतने विस्तार से, मुझे लिखने की,
अनुमति नहीं है. अतः संक्षेपण करते हुये, मैं इसको ! अपने शब्दों में, लिखने का प्रयत्न करता हूँ………………
मूलश्रेणी वाले नौ चरणों के , आरंभ होने से पहले, पूर्वश्रेणी वाले, नौ चरणों का विवरण :~
पूर्वश्रेणी का पहला चरण :~
महादेव द्वारा ! अजर/अमर आत्मा का निर्माण.
पूर्वश्रेणी का दूसरा चरण :~
अपनी पृथ्वी के गणितीय गणना ! व दृष्टिगोचर होते जीवन ! के अनुसार समझे तो, लगभग तैंतीस लाख जन्म ! पेड़-पौधे-शैवाल इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का तीसरा चरण :~
लगभग चौबीस लाख जन्म ! कीड़े-मकोड़े इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का चौथा चरण :~
लगभग पंद्रह लाख जन्म ! जलचर जीव इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का पाँचवा चरण :~
लगभग नौ लाख जन्म ! पशु इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का छठा चरण :~
लगभग तीन लाख जन्म ! पक्षी इत्यादि के रूप में.
:~ अब यहाँ एक विशेष बात :- ऐसा नहीं है कि, यहाँ तक के , चरणों में से, एक चरण के , सभी कु ल जन्मों को, भोगने के पश्चात् ही, दूसरे चरण में, जन्म
मिलेगा. यहाँ तक के , सभी चरणों में से, सम्मिलित रूप से, जन्म मिलते रहेंगे. यानि पूर्वश्रेणी के चरण क्रमांक………… दो ! तीन ! चार ! पाँच ! एवं छः
! के जन्म ! क्रमानुसार नहीं होते है. इन पाँच चरणों के जन्म ! सम्मिलित / समानांतर रूप से, साथ-साथ चलते रहते हैं. यानि इन पाँच चरणों के साथ !
ऐसा नहीं है कि……….. एक चरण के , सभी जन्म ! समाप्त होने के बाद ही, दूसरे चरण के , जन्मों का आरंभ होगा. इन पाँचों चरण के , जन्म ! साथ-साथ
चलते रहते हैं.
अब आगे………………
पूर्वश्रेणी का सातवाँ चरण :~
कु ल इक्कायासी जन्म…………. पूज्य पेड़ / पौधे / जलचर / पशु / पक्षी इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का आठवाँ चरण :~
न्यूनतम तीन सौ तैंतीस वर्षों में…………. न्यूनतम तीन ! या अधिकतम कितने भी मनुष्य जन्म. अथवा ! इसको ऐसे भी, समझ सकते हैं कि……….
न्यूनतम तीन जन्म ! जिसमें कम से कम, कु ल ३३३ वर्ष ! पूर्ण होने चाहिये. उन तीन जन्मों का मिला कर, अधिकतम वर्ष ! कितने भी हो सकते हैं.
इसमें ग्यारह वर्ष तक की, आयु के अवस्था तक ! यानि बालक अवस्था में हुयी………. मृत्यु पर ! उस जन्म के वर्षों की, गणना नहीं होती है. तथा साथ
ही, उस जन्म क्रमांक की भी, गणना नहीं होती है.
इस चरण का, प्रथम मानव जन्म ! हर हाल में, अच्छे आदर्श परिवेश में ही होता है. जहाँ वह मनुष्य ! सदकर्म ही करे. ऐसा माहौल / वातावरण ! सदैव
उपलब्ध रहता है. परंतु फिर भी अगर ! उस आत्मा ने, कु कर्म ही किये. तो वह ! उस जन्म में, जितने कु कर्म किये रहेगा. उसी के अनुसार, उसके अगले
जन्म में, उसको उतने ही, कु कर्मी व अधर्मी परिवेश वाले, परिवार व / या माहौल में, पैदा किया जायेगा. हाँ ! अगर वह चाहे तो, अपने आपको चेत करके !
पुनः सदकर्म ! व धर्म के मार्ग पर, स्वयं को ला कर के , और अधिक कु कर्म / अधर्म यानि पाप करने से, स्वयं को बचा सकता है.
………और इस प्रकार, यह होते हैं ! कु ल चौरासी लाख, चौरासी जन्म !
………..तथा ! यह कोई आवश्यक नहीं है कि, आपका हर जन्म ! इस सृष्टि के , एक ही ग्रह (जैसे पृथ्वी या कोई भी ग्रह) पर ही मिलता रहे. इस सृष्टि
के , अनगिनत असंख्य ग्रहों ! उपग्रहों ! जहाँ किसी भी रूप में जीवन है. उन सभी ग्रहों / उपग्रहों में से, कहीं भी मिल सकता है. किसी भी ग्रह पर ! कितने
भी जन्म मिल सकते हैं. किसी ग्रह पर एक जन्म ! तो किसी ग्रह पर, एक से अधिक जन्म ! तो बहुतों ग्रहों पर, शून्य ! यानि एक भी जन्म ! नहीं मिल
सकता है. क्योंकि आपके जन्मों की संख्या ! चौरासी लाख चौरासी है. तथा जीवनयुक्त ग्रहों की संख्या ! इससे बहुत-बहुत अधिक है.
पूर्वश्रेणी का नौवाँ चरण :~
इस चरण के तीन प्रकार हैं. प्रथम ! द्वितीय ! तृतीय ! ……….जो आठवें चरण के , समाप्ति के पश्चात् ! उस आठवें चरण वाले, तीन या सभी जन्मों के ,
सदकर्मों ! व कु कर्मों ! के अनुरूप तय होता है.
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, प्रथम प्रकार :~
“अगर सद्कर्मों की ! बहुत अधिक न्यूनता हो. तथा कु कर्मों की, अत्यधिक अधिकता हो. तब उस आत्मा को, पुनः चौरासी लाख चौरासी योनियों के ,
क्रमिक चक्र में, जाना होगा. यानि पूर्वश्रेणी के , दूसरे चरण से, पुनः आरंभ करना होगा.
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, द्वितीय प्रकार :~
“सदकर्म भले ही कम हो. परंतु कु कर्म भी ! अधिक नहीं हो. तो उन कर्मों के अनुसार ! एक या एक से अधिक जन्मों हेतु ! पूर्वश्रेणी के ………….. चरण
दो ! तीन ! चार ! पाँच ! एवं छः ! में जाना होगा. उसके पश्चात् ! यानि उन पूर्व के , मानव जन्म वाले, कु कर्मों का दंड भोगने हेतु ! पुनः पूर्वश्रेणी के आठवें
चरण में, मनुष्य जन्म मिलेगा.”
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, तृतीय प्रकार :~
“अगर सद्कर्मों की ! बहुत अधिक यानि पर्याप्त अधिकता ! तथा कु कर्मों की न्यूनता है. तो इस चरण में, कु छ कालखंड ! यानि वर्तमान में चल रहे, जन्म
की बची हुयी अवधि ! प्रतीक्षा अवधि रहेगी. और उस प्रतीक्षा अवधि को, काटना ही, एक प्रकार से, इन आत्माओं के लिये, यह नौंवा चरण कहलायेगा. कु छ
अवधि पश्चात् ! जब उस चल रहे जन्म की ! समय-सीमा समाप्त हो जायेगी. यानि वह आत्मा ! वर्तमान देह का, त्याग कर देगी. तब उस आत्मा को, सदैव
के लिये, मूलश्रेणी में प्रवेश मिल जायेगा. उसे पुनः कभी भी, चौरासी लाख चौरासी योनियों का, चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा. अब उसकी आत्मा ! मूल श्रेणी
के , प्रथम चरण में, जन्म ले कर, मोक्ष के दिशा की ओर, यात्रा आरंभ करेगी. जिसके हेतु ! महादेव ने उस आत्मा का, निर्माण किया था.
……………अब !
पूर्वश्रेणी वाले, नौ चरणों को, पार करने के पश्चात् ! मूलश्रेणी वाले, नौ चरणों का विवरण :~
मूलश्रेणी का पहला चरण :~
यहाँ से आपको ! सदैव मनुष्य जन्म ही मिलता है. इस चरण से आपको………. कभी-कभी महादेव ! माता ! देवी-देवता-गण ! एवं महादेव दूतों के , दर्शन
व मार्गदर्शन मिलना ! आरंभ हो जाता है. कु छ-कु छ आसान-आसान दायित्व मिलने भी, आरंभ हो जाते हैं. इस चरण को पार करने योग्य ! पर्याप्त सदकर्मों
का ! जब तक संचयन नहीं हो जाता है. तब तक आपकी आत्मा को, बार-बार इसी चरण में, मनुष्य जन्म ! मिलता रहता है. और इस चरण के , प्रत्येक व
सभी जन्मों का, सदकर्म ! आपस में एक साथ ! संचित होते रहता है. यानि अग्रेषित होते रहता है. जब तक कि, चरण पार करने योग्य ! पर्याप्त सदकर्मों का
! संचयन ना हो जाये. साथ ही इस चरण ! या मूलश्रेणी के किसी भी चरण को, उत्तीर्ण करने से पूर्व ! आपके कु कर्मों का…………. दंड भोग-भोग करके ,
शून्य या न्यूनतम हो जाना ! अनिवार्य है. इस चरण ! या किसी भी चरण को, पार करके ! उसके अगले चरण में, पहुँचते ही……….. पुराने सभी संचय
सदकर्म ! शून्य हो जाते हैं. क्योंकि उन्हीं सदकर्मों के , बूते ही तो, आप अगले चरण में, प्रवेश करते हैं. परंतु साथ ही, यह अवश्य ध्यान रहे कि………….
चरण पार करने से पूर्व ! नये-पुराने सभी संचित कु कर्मों का, दंड भोग लेना भी, अनिवार्य है.
मूलश्रेणी का दूसरा चरण :~
इस चरण की भी, सभी नियमावली ! एवं परिस्थितियाँ ! इसके पहले वाले चरण ! यानि मूलश्रेणी के , पहले चरण जैसे ही हैं. बस इस चरण में आपको !
मिलने वाले दायित्व……….. बड़े ! कठिन ! कठोर ! होते हैं. तथा सदकर्मों का, संचयन भी पहले चरण से, बहुत अधिक करना पड़ता है.
मूलश्रेणी का तीसरा चरण :~
दूसरे चरण को, पार करने के पश्चात् ! अगले चरण ! यानि चौथे चरण में, जाने की प्रतीक्षा अवधि को ही ! तीसरा चरण बोलते हैं. इस चरण में ! कोई नया
या अलग से, जन्म नहीं मिलता. बल्कि दूसरे चरण के , अंतिम जन्म की, बची हुयी अवधि ही ! तीसरा चरण कहलाती है.
मूलश्रेणी का चौथा चरण :~
इस चरण में ! जो सबसे प्रथम बदलाव आता हैं. वह यह है कि………….. यहाँ से अब ! पूर्व जन्मों के संचित सदकर्म ! अगले जन्म में, अग्रेषित होना !
बंद हो जाता है. तथा इस चरण में, एक विशेष सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी के लिये, यहाँ के गणनानुसार ! लगभग सत्ताईस वर्षों में, आपको ! कु ल पंद्रह
कठिन परीक्षाओं में से, न्यूनतम ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य है. इन परीक्षाओं के मध्य……….. विकट ! व अत्यंत संकट वाली,
परिस्थितियों में, महादेव-दूतों से, सहायता भी मिलती रहती है. परंतु इन ग्यारह परीक्षाओं को, एक ही जन्म के , उस सीमित अवधि में ही, उत्तीर्ण करना
आवश्यक है. अन्यथा अगले जन्म में, पुनः नये ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना पड़ता है. इस चरण में भी, जन्मों के संख्या की, कोई बाध्यता नहीं है.
परीक्षा उत्तीर्ण होने तक, बारंबार मानव जन्म ही, मिलता रहता है. बाकी के चरणों की भाँति ही, यहाँ भी ! चरण पार करने के लिये, आपके कु कर्मों
का…………. दंड भोग-भोग करके , शून्य या न्यूनतम हो जाना ! अनिवार्य है.
मूलश्रेणी का पाँचवा चरण :~
इस चरण में, सभी कु छ ! चौथे चरण जैसा ही रहता है. बस उसी सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी ग्रह के गणनानुसार ! लगभग सत्ताईस वर्ष में, आपको कु ल !
एक सौ पचास कठिन परीक्षाओं में से, एक सौ ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य है. बाकी का सभी कु छ ! चौथे चरण जैसा ही रहता है.
मूलश्रेणी का छठा चरण :~
इस चरण में भी, सभी कु छ ! चौथे व पाँचवे चरण जैसा ही रहता है. बस उसी सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी के लिये, सत्ताईस वर्ष में ही, आपको कु ल पंद्रह
सौ कठिन परीक्षाओं में से, ग्यारह सौ ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है. परंतु इस चरण में, उन परीक्षाओं के मध्य ! आपको अपने दूसरे
स्वरूप की, सहायता भी मिलती रहती है. इसके अलावा ! बाकी सभी कु छ ! चौथे व पाँचवे चरण जैसा ही रहता है.
मूलश्रेणी का सातवाँ चरण :~
छठे चरण को, पार करने के पश्चात् ! अगले चरण, यानि आठवें चरण में, जाने की प्रतीक्षा अवधि को, सातवाँ चरण बोलते हैं. इस चरण में, कोई नया ! या
अलग से, जन्म नहीं मिलता. बल्कि छठे चरण के , अंतिम जन्म की, बची हुयी अवधि ही, या उसी जन्म में, महादेव-दूत बनने हेतु ! जो मुख्य धर्मकाज का
आदेश मिलता है. उस आज्ञा मिलने के , तिथि तक की, प्रतीक्षा अवधि ही, सातवाँ चरण कहलाती है.
मूलश्रेणी का आठवाँ चरण :~
इस चरण में, आपको अपने स्वयं की इच्छानुसार ! इस संपूर्ण सृष्टि के , किसी भी एक ग्रह ! या उपग्रह पर, उस ग्रह से संबंधित ! महादेव आज्ञा का, एक
विशेष धर्मकाज करना होता है. उस काज को करने की, आज्ञा मिलने वाली तिथि से ही, आपका आठवाँ चरण ! आरंभ हो जाता है. इसमें करने वाले,
विशेष धर्मकाज की जानकारी ! भले ही आपको, आठवाँ चरण आरंभ होने के समय, प्राप्त होती है. परंतु कौन से ग्रह पर, आपको अपना ! विशेष धर्मकाज
संपन्न करना है. इसका वैकल्पिक चुनाव ! आपको छठे चरण के , आरंभिक काल में ही, स्वयं से कर लेना होता है.
मूलश्रेणी का नौवाँ चरण :~
वस्तुतः ! यह कोई चरण ही नहीं है. यह एक अवस्था है. लाखों-करोड़ों ! या उससे भी अधिक जन्म ले कर, आपकी आत्मा ने, जिस परम् उद्देश्य ! यानि
परमात्मा बनने हेतु ! यानि मोक्ष पाने हेतु ! करोड़ों-अरबों-खरबों ! या उससे भी अधिक वर्ष की यात्रा के लिये ! अपनी आत्मा-यात्रा का ! अपनी मोक्ष-यात्रा
का ! आरंभ किया था. उसकी यह अंतिम सीढ़ी है. यहाँ आपकी आत्मा ! मोक्ष को प्राप्त कर, परमात्मा बन जाती है ! महादेव-दूत बन जाती है. इस चरण
में, आप तब पहुँचते हैं. जब आठवें चरण वाले, महादेव से आज्ञा प्राप्त ! विशेष धर्म-काज को, संपन्न कर लेते हैं. या उस काज को करते हुये ! अथवा संपन्न
होने से पूर्व ही ! आपकी आत्मा ! उस वर्तमान देह का, त्याग कर देती है. यानि उस जन्म की, आपकी आयु अवधि ! समाप्त हो जाती है. अंततोगत्वा !
यह, वह चरण है, जिसमें आपको ! उसी जन्म में ! हर हाल में ! महादेव-दूत ! बन ही जाना है. जिसके परिणामस्वरूप ! आप जन्म-मरण के चक्र से, सदैव
के लिये ! स्वतंत्र हो जाते हैं. संपूर्ण सृष्टि के , सभी ग्रहों-उपग्रहों या स्थानों पर, किसी भी स्वरूप में, कितने भी अवधि तक, रह सकते हैं. आप शिवशक्ति
जगत स्थलों पर भी, रह सकते हैं. यानि आप मोक्ष को, प्राप्त कर लेते हैं. अब आपका ! एक ही काज बच जाता है……….. महादेव का दूत बन कर,
महादेव के आज्ञा वाले काज को, समय-समय पर करते रहना. तथा पूरे सृष्टि के , सभी ग्रहों-उपग्रहों के , मूलश्रेणी वाली आत्माओं का, विधि-विधान के
अनुरूप ! सहायता करना. एवं यह सभी कु छ भी, अनिवार्य नहीं होता. यह पूर्णतः ! आपकी अपनी इच्छा पर, निर्भर करता है.
……………पूर्वश्रेणी के सभी नौ चरण ! तथा मूलश्रेणी के सभी नौ चरण ! को समझने के पश्चात् ! इन निम्नलिखित ! चार बिंदुओं को भी समझना
! अत्यंत आवश्यक है.
:~
सदकर्म / धर्म / पुण्य हो ! या कु कर्म / अधर्म / पाप हो ! यह दोनों ही, जन्म-जन्मांतर तक ! संचय व अग्रेषित यानि फॉरवर्ड होते रहते हैं. जब तक इनका
शुभ-फल ! या उपयुक्त-दंड ! ना मिल जाये.
:~
कु कर्म / अधर्म / पाप का, हर हाल में, दंड मिलेगा ही मिलेगा. कु कर्मों का समुचित दंड भोगने के अलावा, इससे बचाव का, कोई भी अन्य मार्ग नहीं है.
:~
दान-पुण्य करके ! देवी-देवता-गण ! यानि इष्ट-आराध्य की पूजा करके ! उनका नाम जप करके ! पुण्यों में बढ़ोतरी तो, की जा सकती है. किं तु उससे रत्ती
भर भी ! पाप नहीं काटे जा सकते. पाप का दंड तो, हर हाल में, अगले जन्म में, भोगना ही पड़ेगा. जैसे इस जन्म में, पूर्वजन्म का भोग रहे हो.
:~
वैसे देखें तो, पुण्य एकत्र व संचय करने का, सबसे सर्वोत्तम मार्ग ! धर्म / सदकर्म करना ही है. *कर्म* से बढ़कर, कु छ भी नहीं है. सदकर्म करके ! सदकर्म
/ पुण्य को, और भी बढ़ाया जा सकता है. लेकिन उससे कु कर्म / पाप को, नहीं मिटाया जा सकता. सदकर्म / पुण्य से, कु कर्म / पाप को, किसी भी हाल में,
समायोजित यानि एडजस्ट ! नहीं किया जा सकता.
क्रमशः

2A :~
वह सैंतीस-अड़तीस वर्षीय भगवाधारी युवक ! अपनी बात को समाप्त करने के साथ ! उस ऊँ चे स्थान पर, समीप में खड़े ! महादेव-दूत ! विक्रांत महाराज
का चरण स्पर्श किया. उन्होंने आशीर्वाद देने के साथ ! धीमे स्वर में कहा :
“बहुत बढ़िया श्वेतभानु ! संबोधन अच्छा था.”
उसके बाद ! वह भगवाधारी ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के , पीछे-पीछे ! मंच से नीचे उतरा. नीचे खड़े ! उसी सुदूर ग्रह के निवासी ! मूल श्रेणी के प्रथम
चरण वाले, विशालकाय देहकाया के स्वामी ! उस युवा मानव ने, कृ तज्ञता प्रकट करते हुये, हाथ जोड़ कर कहा :
“महाराज जी ! अब मैं इनको सँभाल लूँगा.”
कु छ और औपचारिक वार्तालाप के पश्चात् ! उस विशालकाय शक्तिशाली मनुष्य से विदा ले कर ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के साथ ! वह भगवाधारी
युवक ! पुनः पृथ्वी ग्रह के , शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश स्थित दूत-खंड में थे.
वहाँ पहुँचते ही, विक्रांत महाराज बोले :
“तुम्हारे दो दायित्व संपन्न हुये. अब आज के पूर्वाभ्यास वाला ! एक और दायित्व ! शेष बचा हुआ है. आज का तीसरा दायित्व है………… इसी सौर
मंडल के , एक अन्य ग्रह पर, एक अबला को बचाने गयी ! उस ग्रह के मूल श्रेणी वाली, पाँचवें चरण की, एक स्त्री की रक्षा हेतु तैनात रहना. तथा
आवश्यकता पड़ने पर ! उसकी समुचित सहायता करना.”
इतना बोल कर ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! खड़े होते हुये बोले :
“चलो ! यहाँ प्रतीक्षा करने से अच्छा है. उसी ग्रह पर, विचरण किया जाये. मैं गिद्ध बनूँगा. तुम क्या बनना चाहते हो ? ऐसा करो ! तुम भी गिद्ध ही बनों.
इस प्रकार ! एक ही साथ रहा जायेगा. उस घटनास्थली के पास ! एक ठूंठ पेड़ है. चलो उसी पर बैठ कर, गप्पे मारी जाये. हम दोनों वहाँ ! चिड़ियों की
भाषा में, बात करेंगे. अतः वहाँ किसी को, समझ भी नहीं आयेगा. आओ ! चलो ! चलते हैं.”
~~~~~~~~~
इसी सौर मंडल के , एक अन्य ग्रह पर, एक अबला को बचाने गयी ! उस ग्रह के मूल श्रेणी वाली, पाँचवें चरण की, एक स्त्री की रक्षा वाले, रोचक प्रकरण का
विवरण ! भविष्य में, अनुमति प्राप्त होते ही, अवश्य लिखूँगा. अभी के लिये, आगे के घटनाक्रमों को, लिखना आरंभ करता हूँ.
~~~~~~~~~
उस मूल श्रेणी वाली, पाँचवें चरण की, उस स्त्री की रक्षा के पश्चात् ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज के साथ ! वह भगवाधारी युवक ! पुनः पृथ्वी ग्रह के ,
शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश स्थित ! श्रीकृ ष्ण-खंड के , भेंट-कक्ष में, प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान एवं माता रुक्मणी के समक्ष ! उनके सानिध्य में, बैठे हुये थे.
अपने सिंहासननुमा आसन पर विराजमान ! प्रभु श्रीकृ ष्ण देव के बगल में बैठीं ! देवी रुक्मणी माँ ! अपने दिव्य स्वर में, उस भगवाधारी से बोलीं :
“राके श ! तुम अच्छा बोलते हो. प्रभु के संग-संग ! मैंने भी, तुम्हारा संबोधन सुना. तुम बहुत यशस्वी बनोगे राके श ! मेरा आशीष है. अब अपने
शिवशक्तियन दल के साथ मिलकर ! इस पृथ्वी ग्रह को भी, अधर्म से ! तथा अधर्मियों से ! मुक्त करो.”
माता के चुप होने पर, प्रभु श्रीकृ ष्ण देव बोले :
“राके श ! तुम्हारे दूत-रूप के पूर्वाभ्यास वाले, आज के तीनों दायित्व ! सफलतापूर्वक ! संपन्न हुये. अतः तुमसे दूत वाली………… सिद्धियाँ ! एवं
शक्तियाँ ! वापस ली जाती हैं. दूत-काज वाले, अगले पूर्वाभ्यास के समय ! तुम्हें पुनः यह सिद्धियाँ-शक्तियाँ ! प्राप्त हो जायेंगी.”
“अब तुम्हारा ! अगला दायित्व है. महाशिवरात्रि वाली ! तृतीय भेंट-वार्ता बैठक में, अपने तीन स्वरूपों के साथ ! एक ही साथ ! एक ही समय पर ! तीनों
ही स्थानों पर ! उपलब्ध रहना. अपने तृतीय स्वरूप के माध्यम से, अतिगुप्त कार्यकारिणी के , 51 से 99 सदस्यों के साथ ! बैठक करना.”
“अपने द्वितीय स्वरूप के माध्यम से, मूलश्रेणी के 51 मानवों संग ! बैठक करना. तथा प्रथम यानि मूल स्वरूप के माध्यम से, शिवशक्तियन के साथ बैठक
करना. परंतु यह ध्यान रखना ! इस बार उस समूह के आमंत्रित ! 63 से 151 भोले-भक्तों में, के वल शिवशक्तियन ही नहीं होंगे. उसमें पुराने शिवशक्तियन
के साथ-साथ ! भावी शिवशक्तियन भी होंगे. तथा कु छ सामान्य मानव भी होंगे.”
“तत्पश्चात् ! अर्द्धरात्रि से लेकर ! प्रातः तक ! जब सभी भोले-भक्त विश्राम कर रहे होंगे. तब तुम अपने, तीनों स्वरूप को, दो स्वरूप में, समाहित कर !
मूल स्वरूप को लेकर, महाशिवरात्रि उत्सव में, सम्मिलित होने, शिवशक्ति जगत जाओगे. तथा एक स्वरूप को, किसी भी आपातकाल हेतु ! वहीं उपलब्ध
रखोगे.”
भगवाधारी युवक ने, कोई प्रश्न पूछने हेतु ! हाथ उठाया. प्रभु की अनुमति मिलने पर, उसने पूछा :
“हे प्रभु ! क्या मैं जान सकता हूँ कि, उन आमंत्रित 151 भोले-भक्तों में से, कौन-कौन से, भावी शिवशक्तियन हैं ?”
प्रभु श्रीकृ ष्ण बोले :
“उसमें आने वाले ! या आये हुये, अधिकतर मनुष्य ! शिवशक्तियन ही होंगे. जिनमें से कु छ का शिवशक्तियन क्रमांक ! उसी बैठक के कु छ दिवस उपरांत !
आवंटित हो जायेगा. तथा कु छ में समय लगेगा. यह इस बात पर, निर्भर करेगा कि……….. आने वाले आमंत्रित भोले-भक्तों में से, किसकी ! कै सी तैयारी
रहती है ?”
भगवाधारी युवक ने पूछा :
“क्या उन्हें कु छ तैयारी भी करनी है ?”
प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान बोले :
“ऐसी कोई विशेष तैयारी नहीं करनी है. उन्हें बस तुम्हारे द्वारा ! अभी तक लिखित ! यानि जो प्रकरण ! तथा घटनाक्रम ! तुमसे महादेव-दूतों ने, अभी तक
लिखवायें हैं. उन सभी प्रकरणों ! एवं घटनाक्रमों को, उन्हें पढ़ कर आना होगा. वैसे यह ! कोई अनिवार्य नियम नहीं है. यह पूर्णतः उनकी स्वेच्छा पर,
निर्भर करता है. वैसे पढ़ कर आने से, लाभ यह होगा कि, वहाँ की चर्चायें ! उन्हें, समझ में आयेंगी. तथा उनके समय का, सदुपयोग होगा.”
भगवाधारी युवक ने कहा :
“परंतु ! किसी भी मानव के लिये, सभी प्रकरणों को पढ़ना ! अत्यंत कठिन कार्य होगा. क्योंकि महादेव-दूतों के आज्ञानुसार ! सभी लिखित पठन-सामग्री !
कु ल १११ स्थानों पर, उपलब्ध है. इतना कोई ढूँढ ही नहीं पायेगा. क्योंकि कु छ तो, गुप्त रूप से, अतिगुप्त कार्यकारिणी सदस्यों हेतु ! लिखे गये हैं.”
प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान बोले :
“इसके समाधान संबंधी दिशा-निर्देश ! अभी तुम्हारे लौटते समय ! विक्रांत से तुम्हें ! प्राप्त हो जायेगा.”
इतना बोलने के पश्चात् ! प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ने, महादेव-दूत विक्रांत महाराज को, संबोधित करके बोले :
“विक्रांत ! राके श को, उसके दुविधाओं का, निवारण-मार्ग बताओ. तथा इसे लौकिक जगत में, वापिस छोड़ कर आओ.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“जैसी आज्ञा प्रभु !”
उसके बाद……….. प्रभु श्रीकृ ष्ण देव ! एवं देवी रुक्मणी माँ से, आशीर्वाद ले कर, महादेव-दूत विक्रांत महाराज ! तथा वह भगवाधारी युवक ! उस भेंट-
कक्ष से बाहर निकले. पृथ्वी ग्रह के , शिवशक्ति जगत ! गोबी-गुरुवंश स्थित ! श्रीकृ ष्ण-खंड के , भेंट-कक्ष से निकल कर, मुख्य द्वार की ओर, पैदल बढ़ते
हुये, विक्रांत महाराज ! भगवाधारी युवक से बोले :
“श्वेतभानु !”
उनका अनुसरण करता हुआ, पैदल चलता भगवाधारी बोला :
“जी भैया !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“एक बात जानते हो श्वेतभानु ! आने वाले भविष्य में, जब तुम्हारे मूल श्रेणी के आठवें चरण का, महादेव-आज्ञा वाला ! धर्मकाज संपन्न हो जायेगा. तथा
जब महादेव की इच्छा एवं आज्ञा से, तुम्हारे पृथ्वी ग्रह वाले……………. मूल-जन्मों ! उदाहरणार्थ-जन्मों ! एवं समांतर जन्मों ! यानि सभी जन्मों का,
सार्वजनिक उल्लेख ! कर दिया जायेगा. तब सभी शिवशक्तियन का मनोबल ! बहुत बढ़ जायेगा. क्योंकि उन्हें ! इस बात का गर्व होगा कि, जो बात ! इस
जगत के , सर्वसाधारण को, उस दिन पता चल रही है. वह तो उन्हें ! वर्षों पूर्व से पता थी.”
भगवाधारी बोला :
“जी !”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“अब मैं तुम्हें ! महाशिवरात्रि वाली, तृतीय शिवशक्तियन भेंटवार्ता बैठक से पूर्व ! एक और महत्वपूर्ण कार्य का, दायित्व सौंपता हूँ.”
“तुम्हें अभी से, अगले कु छ दिवस में ही, सभी महादेव-दूतों की आज्ञा से, पूर्व में कु ल १११ स्थानों पर, तुम्हारे द्वारा लिखित………… सभी प्रकरणों ! एवं
घटनाक्रमों को, लयबद्धता में पिरोते हुये ! तारतम्य बना कर, एक ही श्रृंखला में, लिख देना है. ताकि महाशिवरात्रि बैठक में, पधारने वाले, सभी शिवशक्तियन
! एवं भोले-भक्तों को, अलग-अलग स्थानों पर, ढूँढना नहीं पड़े.”
“जिससे उन्हें ! पढ़ने में आसानी हो. क्योंकि प्रश्नोत्तरी सत्र ! यानि Q&A सेशन में, भाग लेने के लिये, उस नयी श्रृंखला का, सभी भाग ! पढ़ा होना
अनिवार्य है. के वल कार्यक्रम में, उपस्थित रहने के लिये, इसकी अनिवार्यता नहीं है. परंतु वहाँ का, सत्र समझने में, आसानी के लिये, पढ़ लेना उपयुक्त
रहेगा.”
भगवाधारी युवक ने पूछा :
“क्या उन गुप्त प्रकरणों को भी लिखना है. जो अभी तक नहीं लिखे गये थे. या अतिगुप्त श्रेणी वाले, अतिगुप्त कार्यकारिणी सदस्यों हेतु ! या कु छ भावी
शिवशक्तियन हेतु ! लिखे गये हैं.”
महादेव-दूत विक्रांत महाराज बोले :
“तुम लिखना आरंभ करो. मैं अपने दिशा-निर्देश में, तुम्हें बताता चलूँगा कि, अभी इस बैठक हेतु ! कितना लिखना है. तथा कितना सार्वजनिक करना है.”
इतना बोल कर ! महादेव-दूत विक्रांत महाराज आगे बोले :
“चलो ! अब मैं तुम्हें ! तुम्हारे स्थान पर पहुँचा दूँ.”
क्रमशः
नोट :~ इसके अगले भाग से………….. बिल्कु ल आरंभ से, ऑटोबायोग्राफी लिखी जायेगी. जो संभवतः अगले कु छ दिवस में, करोड़ों वर्षों की यात्रा करते
हुये, अभी के वर्तमान में, पहुँच जायेगी.
क्रमशः
संलग्न चित्र का, पोस्ट से कोई संबंध नहीं है. यह छवि शिवशक्तियन हाकिम श्रीमिचकू लाल सक्सेना जी (कोड ~ SS6SHSS /
9 ॐ 000003396.) के साथ ! होटल ताजमहल लखनऊ वाली बैठक के दिन ! वहीं ली गयी थी.
नोट :~ महाशिवरात्रि वाली, तृतीय भेंट-वार्ता बैठक में, आमंत्रित भगवान-भक्त ! अगर इस श्रृंखला के सभी भाग ! पढ़े होंगे तो, उन्हें वहाँ के , सत्र-चर्चा को,
समझने में, आसानी होगी. क्योंकि मेरे द्वारा ! महादेव-दूतों के आज्ञानुसार ! उनके ही प्रश्नों का उत्तर देना ! सहज होगा. जो पढ़ कर आये होंगे. यह
निवेदन ! के वल प्रश्न पूछने की, इच्छा रखने वाले, भगवान-भक्तों पर ही, लागू होता है. के वल कार्यक्रम अटैंड करने वाले, भगवान-भक्त ! किसी भी निवेदन
से, पूर्णतः मुक्त हैं. उनके द्वारा पढ़ना ! या नहीं पढ़ना ! पूर्णरूपेण ! उनकी इच्छा पर, निर्भर करता है.
क्रमशः

2B :~
आत्मकथा आरंभ !
बिल्कु ल आरंभ से शुभारंभ !!
महादेव द्वारा रचित ! इस सृष्टि का, जैसे-जैसे ! प्रतिक्षण………. निरंतर ! अनवरत ! विस्तार होता जा रहा है. वैसे-वैसे ही, महादेव द्वारा ! प्रत्येक दिवस
! असंख्य नये आत्माओं का, निर्माण भी किया जाता ! जा रहा है. यह पूरी प्रक्रिया ! बिना रुके ! बगैर थमें ! अनंत काल से, ऐसी ही ! चली आ रही है.
क्योंकि देवों के देव ! महादेव द्वारा ! बनाया गया ! यहीं विधि का विधान है. यह सदा से, ऐसे ही चलता आया है. सदैव ऐसे ही चलता रहेगा. क्योंकि यही
सत्य है ! यही शाश्वत है ! यही सनातन है.
यह आत्मकथा है ! ऐसे ही एक आत्मा की. उसके निर्माण ! यानि जन्म की. उसके यात्रा की. यानि मोक्ष प्राप्ति की दिशा में चलने की.
नोट :~ पृथ्वी ग्रह के पाठकों को, सभी कु छ आसानी से, समझ में आ जाये. इसलिये ! समय के गणना का आधार ! पृथ्वी ग्रह के गणितीय गणना ! एवं
समय-चक्र के अनुसार ! रखा गया है. वैसे यह गणना ! प्रत्येक ग्रह-उपग्रह पर, अलग-अलग होती है.
जैसे प्रति दिवस ! असंख्य आत्माओं का, निर्माण होता है. वैसे ही करोड़ों वर्ष पूर्व ! एक दिवस ! उस दिवस के , कु ल आत्मा निर्माण में, महादेव द्वारा !
*सत्यमार्गी* नामक ! आत्मा का भी, निर्माण किया गया.
पृथ्वी ग्रह के , गणितीय गणना के अनुसार देखें तो, लगभग इक्कीस घंटे पूर्व ! समाप्त हुये, अंतिम बैठक के , २१ घंटे बाद ! लगभग ३ घंटे चलने वाली, पुनः
नयी बैठक का, आरंभ हो चुका था. उन अंतिम २४ घंटों में, नयी निर्मित हुयी, सभी आत्मायें ! उस बैठक में, उपस्थित थी.
उन्हीं में उपस्थित था ! वह सत्यमार्गी नामक आत्मा भी. उस दिवस के , पिछले दिवस वाली, बैठक में उपस्थित ! सभी आत्माओं को, उनके पूर्व श्रेणी के ,
दूसरे चरण का, उनका प्रथम नवीन देह ! प्राप्त हो चुका था. अब इस समूह वाली, आत्माओं कि बारी थी. यह बैठक ! प्रति दिवस ! ऐसे ही नियमित प्रक्रिया
के तहत् ! चलती रहती थी.
उस बैठक स्थली का दृश्य ! कु छ यूँ था. एक प्रकार से, चढ़ने के क्रमानुसार में, चार चरणबद्ध ऊँ चाई वाले स्थानों पर…………… महादेव ! माता ! एवं
तेरह और देवी-देवता ! यानि कु ल पंद्रह ! भगवान व मातायें उपस्थित थीं. एक प्रकार से, दरबार लगा हुआ था. आगे बढ़ने से पूर्व ! वहाँ का दृश्य ! कलम
से उके र सकूँ ! ऐसा प्रयत्न करके देखता हूँ.
चढ़ाई के क्रम में, सबसे आरंभ में, दो युगल सिंहासन लगे हुये थे. एक पर ! प्रभु श्री राम भगवान ! एवं माता सीता ! विराजमान थीं. दूसरे पर ! प्रभु श्री
कृ ष्ण भगवान ! एवं माता रुक्मणी ! विराजमान थीं.
चढ़ाई के ही क्रम में, उनसे थोड़ा ऊँ चे स्थान पर, दो और युगल सिंहासन लगे हुये थे. एक पर ! भगवान कार्तिके य देव एवं देवी देवसेना ! विराजमान थीं.
वहीं दूसरे पर ! भगवान गणेश देव एवं देवी रिद्धिसिद्धि ! विराजमान थीं.
उससे ऊपर वाले, ऊँ चे स्थान पर, पाँच देवी-देवताओं के बैठने हेतु ! एक जैसे दो युगल सिंहासन ! तथा एक एकल सिंहासन लगा हुआ था. पहले युगल
सिंहासन पर ! भगवान विष्णु देव जी ! एवं देवी लक्ष्मी माँ ! विराजमान थीं. दूसरे युगल सिंहासन पर ! भगवान ब्रह्मा देव जी ! एवं देवी सरस्वती माँ !
विराजमान थीं. तीसरे एकल सिंहासन पर ! भगवान रुद्र देव जी अके ले विराजमान थे.
सबसे ऊपर वाले, ऊँ चे स्थान पर ! एक विशाल शिला के ऊपर ! एक आसन लगा हुआ था. जिस पर ! परम् पिता परमेश्वर यानि देवों के देव महादेव !
एवम् जगत् जननी माँ ! माता शक्तिस्वरूपा पार्वती माई विराजमान थीं.
…………….तथा उन सभी देवी-देवताओं के समक्ष ! उनके सानिध्य में, विगत् २४ घंटों में, नव-निर्मित हुये, असंख्य ! आत्माओं की भीड़ !
उपस्थित थी. उसी भीड़ में, वह सत्यमार्गी नामक ! आत्मा भी उपस्थित था. जिसकी यह आत्मकथा ! लिखी जा रही है.
वहाँ की, लगभग तीन घंटे चलने वाली ! कार्यवाही का शुभारंभ करते हुये, सर्वप्रथम ! प्रभु श्री कृ ष्ण भगवान बोले :
“महादेव के अंश से निर्मित हुयी ! सभी आत्माओं का स्वागत है. तथा कु छ ही समय पश्चात् ! सभी की आरंभ होने वाली ! मोक्ष-यात्रा हेतु ! हम सभी की
ओर से, असीम शुभकामनायें ! व मंगकामनायें हैं.”
“सर्वप्रथम आप सभी को, मैं यह बतलाना चाहता हूँ कि, आप कौन हैं ?”
“परंतु ! यह बतलाने से पूर्व ! मैं सबसे पहले, महादेव के बनाये विधि-विधान के अनुरूप ! उस छः चरणीय ! या छः वर्गीय ! व्यवस्था को, आपके समक्ष
रखता हूँ. इससे आपको समझने में, आसानी होगी.”
“सबसे सर्वोच्च स्थान पर हैं……………… परम् पिता परमेश्वर ! देवों के देव महादेव ! एवम् जगत् जननी माँ ! शक्तिस्वरूपा पार्वती माता ! आप परम्
माता-पिता हैं ! अतः आप इसमें से, किसी भी वर्ग ! या चरण में नहीं हैं. क्योंकि आप सर्वोच्च हैं.”
“या इस छः पदसोपान ! या पदानुक्रम को, समझने हेतु ! इन्हें सबसे सर्वोच्च ! यानि शून्य पर, हम रख सकते हैं.”
“अब आते हैं !
उन छः सोपानों पर !”
“जिसमें प्रथम सोपान पर हैं………… त्रिदेव ! यानि भगवान विष्णु देव एवं देवी लक्ष्मी माँ ! तथा भगवान ब्रह्मा देव एवं देवी सरस्वती माँ ! तथा भगवान
रुद्र देव. यह महादेव शिव एवं माता शक्ति की आज्ञा से, इस सृष्टि के , प्रमुख संचालक हैं. जिनका कार्य ! सभी आत्माओं को, नये-नये देह में, जन्म देना !
पालना ! एवं उस देह का, अंत करना है.”
“द्वितीय सोपान पर ! क्रमानुसार हम चारों आते हैं………. यानि इस सोपान के , सबसे पहले व दूसरे स्थान पर ! श्री कार्तिके य देव व देवी देवसेना एवं श्री
गणेश देव व देवी रिद्धिसिद्धि आती हैं. इन दोनों देवों का कार्य……….. देवी ! देवता ! गण ! दूत ! के संचालन का है. यानि इस सृष्टि का संचालन करने
वाले, समस्त देवी-देवता-गण-दूत ! को, संचालित करने का कार्यभार ! उनके कं धों पर है.”
“जिसमें श्री कार्तिके य जी का दायित्व ! मुख्य देवी-देवताओं ! तथा आत्माओं ! एवं दूतों ! को लेकर है. तथा श्री गणेश जी का दायित्व ! सभी गणों ! तथा
बाकी के अन्य सभी देवी-देवताओं को, ले कर है.”
“विशेष परिस्थितियों में, श्री कार्तिके य जी के पास ! सभी देवताओं का, नेतृत्व करने को लेकर, अतिरिक्त कार्यभार है. तथा विशेष कार्यभार के रूप में, श्री
गणेश जी के पास ! समस्त सृष्टि के , किसी भी शुभ ! मंगल ! धर्म कार्य को, शुभारंभ करने हेतु ! अनुमति प्रदान करने का है. अगर वह कार्य ! शुभ-मंगल-
धर्म काज हो तब.”
“इसी सोपान के , तीसरे व चौथे स्थान पर ! प्रभु श्रीराम व देवी सीता एवं मैं व मेरी धर्मपत्नी देवी रुक्मणी आती हैं. प्रभु श्रीराम का कार्य…………. समस्त
ग्रहों ! उपग्रहों ! इत्यादि पर ! मानव देह रूपी आत्माओं के लिये, मनुष्य रूप में, अवतार ले कर……………. चारित्रिकगुणता ! आदर्शवादिता ! एवं
राज्यपद्धति का मानदंड ! यानि मार्गदर्शिका ! तैयार करना होता है.”
“वहीं मेरा कार्य…………… समस्त ग्रहों ! उपग्रहों ! इत्यादि पर ! मानव देह रूपी आत्माओं के लिये, मनुष्य रूप में, अवतार ले कर…….. योजनानीति
! रणनीति ! एवं धर्मस्थापनापद्धति ! हेतु……….. मानदंड ! यानि मार्गदर्शिका ! तैयार करना होता है.”
“अब समझते हैं तृतीय सोपान को…………… इसमें संचालक दल के , समस्त देवी-देवता आते हैं. जिनके अलग-अलग दायित्व हैं. इसमें बहुत अधिक
संख्या में, देवी-देवता हैं.”
“चौथे सोपान में, महादेव के अंश से निर्मित ! सभी महादेव-गण आते हैं. तथा सभी देवी-देवताओं के वाहन स्वरूप ! तथा कु छ सेवक स्वरूप ! महादेव-गण
आते हैं. इनमें से कु छ गण के , नियमित कार्यभार हैं. तो वहीं कु छ के , कभी-कभी वाले, कु छ विशेष कार्य-भार हैं.”
“पाँचवें सोपान में…………….. अत्यधिक संख्या में, ग्राम देवी ! ग्राम देवता ! नगर देवी ! नगर देवता ! कु ल देवी ! कु ल देवता इत्यादि ! आस्था
रूपी………. देवी-देवता होते हैं. जो कि सीमित क्षेत्र ! या सीमित मानव समूह ! के रक्षार्थ कार्य हेतु ! होते हैं.”
“यह कोई मूल ! देवी-देवता नहीं होते हैं. यह मानक देवी-देवता होते हैं. जिसमें अधिकतर मामलों में, वरिष्ठ महादेव-दूत ! या महादेव-गण का, प्रवेश होता
है. वहीं कु छ मामलों में, देवी-देवताओं का भी, प्रवेश होता है. यानि कि, वहाँ वास करने का, किसी ना किसी देवी-देवता-गण ! या वरिष्ठ दूत को, दायित्व
सौंपा गया होता है.”
“अब ! बच गया ! छठा सोपान……….. छठा व अंतिम सोपान ! यानि परमात्मा ! ………….अब यह परमात्मा क्या है ? या यह परमात्मा कौन हैं
?”
“यह परमात्मा हैं आप सभी आत्मा ! आप आत्मायें ! अभी से अपनी, यात्रा आरंभ कर रहे हैं. आपकी यात्रा ! अपने परम् लक्ष्य ! यानि मोक्ष के लिये है.
और जब आप ! अपनी यात्रा पूर्ण कर लेंगे. यानि जब कोई आत्मा ! अपना परम् लक्ष्य प्राप्त कर लेती हैं. तब उस परम् लक्ष्य की, प्राप्ति कर चुकी, आत्मा ही
! परमात्मा कहलाती है. इसे ही महादेव-दूत भी कहते हैं.”
“जैसे पाँचों सोपानों के , समस्त देवी-देवता-गण का निर्माण ! महादेव ने किया है. वैसे ही, छठे सोपान के , समस्त आत्माओं का निर्माण भी, महादेव ही किये
हैं व करते हैं. यानि आप भी, महादेव के अंश हो. क्योंकि उन्होंने ! आपका निर्माण किया है. अतः महादेव ! हम सभी देवी-देवता-गण के जैसे परम् पिता हैं.
उसी की भाँति ! महादेव ! आपके भी परम् पिता हुये.”
“……………..तथा ! अपनी आत्मा की मोक्ष-यात्रा में, लाखों-करोड़ों देह बदलते हुये, जिस यात्रा को आप करेंगे. उसमें आपको प्राप्त होने वाले,
प्रत्येक देह में, प्राण रूपी ऊर्जा का संचार ! जगत जननी माता शक्ति करेंगी. क्योंकि यह समस्त सृष्टि ! उन्हीं के ऊर्जा से, संचालित है. अतः शक्ति स्वरूपा
माता पार्वती ! आपकी ! एवं हम सभी की, परम् माता हैं.”
क्रमशः

2C :~
इतने विस्तार से, जब छः वर्गों के बारे में, समझा कर ! प्रभु श्री कृ ष्ण भगवान ने, अपनी वाणी को विराम दिया. तब प्रभु श्रीराम भगवान बोले :
“जैसा कि, प्रभु श्रीकृ ष्ण ने, आप सभी को, आपके परम् लक्ष्य ! यानि आत्मा को, परमात्मा बनाने के विषय में बताया. अब मैं आप सभी को, उस यात्रा के
संदर्भ में, पूर्ण विस्तार से, बताता हूँ. जिस यात्रा को पूर्ण करके , आप परमात्मा बनेंगे. यानि मोक्ष को प्राप्त होंगे. यानि महादेव-दूत बनेंगे.”
प्रभु श्रीराम भगवान ने, आत्मा के निर्माण से लेकर, मोक्ष तक की यात्रा को, अत्यंत विस्तार से बताया. परंतु अभी उतने विस्तार से, मुझे लिखने की,
अनुमति नहीं है. अतः संक्षेपण करते हुये, मैं इसको ! अपने शब्दों में, लिखने का प्रयत्न करता हूँ………………
मूलश्रेणी वाले नौ चरणों के , आरंभ होने से पहले, पूर्वश्रेणी वाले, नौ चरणों का विवरण :~
पूर्वश्रेणी का पहला चरण :~
महादेव द्वारा ! अजर/अमर आत्मा का निर्माण.
पूर्वश्रेणी का दूसरा चरण :~
अपनी पृथ्वी के गणितीय गणना ! व दृष्टिगोचर होते जीवन ! के अनुसार समझे तो, लगभग तैंतीस लाख जन्म ! पेड़-पौधे-शैवाल इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का तीसरा चरण :~
लगभग चौबीस लाख जन्म ! कीड़े-मकोड़े इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का चौथा चरण :~
लगभग पंद्रह लाख जन्म ! जलचर जीव इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का पाँचवा चरण :~
लगभग नौ लाख जन्म ! पशु इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का छठा चरण :~
लगभग तीन लाख जन्म ! पक्षी इत्यादि के रूप में.
:~ अब यहाँ एक विशेष बात :- ऐसा नहीं है कि, यहाँ तक के , चरणों में से, एक चरण के , सभी कु ल जन्मों को, भोगने के पश्चात् ही, दूसरे चरण में, जन्म
मिलेगा. यहाँ तक के , सभी चरणों में से, सम्मिलित रूप से, जन्म मिलते रहेंगे. यानि पूर्वश्रेणी के चरण क्रमांक………… दो ! तीन ! चार ! पाँच ! एवं छः
! के जन्म ! क्रमानुसार नहीं होते है. इन पाँच चरणों के जन्म ! सम्मिलित / समानांतर रूप से, साथ-साथ चलते रहते हैं. यानि इन पाँच चरणों के साथ !
ऐसा नहीं है कि……….. एक चरण के , सभी जन्म ! समाप्त होने के बाद ही, दूसरे चरण के , जन्मों का आरंभ होगा. इन पाँचों चरण के , जन्म ! साथ-साथ
चलते रहते हैं.
अब आगे………………
पूर्वश्रेणी का सातवाँ चरण :~
कु ल इक्कायासी जन्म…………. पूज्य पेड़ / पौधे / जलचर / पशु / पक्षी इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का आठवाँ चरण :~
न्यूनतम तीन सौ तैंतीस वर्षों में…………. न्यूनतम तीन ! या अधिकतम कितने भी मनुष्य जन्म. अथवा ! इसको ऐसे भी, समझ सकते हैं कि……….
न्यूनतम तीन जन्म ! जिसमें कम से कम, कु ल ३३३ वर्ष ! पूर्ण होने चाहिये. उन तीन जन्मों का मिला कर, अधिकतम वर्ष ! कितने भी हो सकते हैं.
इसमें ग्यारह वर्ष तक की, आयु के अवस्था तक ! यानि बालक अवस्था में हुयी………. मृत्यु पर ! उस जन्म के वर्षों की, गणना नहीं होती है. तथा साथ
ही, उस जन्म क्रमांक की भी, गणना नहीं होती है.
इस चरण का, प्रथम मानव जन्म ! हर हाल में, अच्छे आदर्श परिवेश में ही होता है. जहाँ वह मनुष्य ! सदकर्म ही करे. ऐसा माहौल / वातावरण ! सदैव
उपलब्ध रहता है. परंतु फिर भी अगर ! उस आत्मा ने, कु कर्म ही किये. तो वह ! उस जन्म में, जितने कु कर्म किये रहेगा. उसी के अनुसार, उसके अगले
जन्म में, उसको उतने ही, कु कर्मी व अधर्मी परिवेश वाले, परिवार व / या माहौल में, पैदा किया जायेगा. हाँ ! अगर वह चाहे तो, अपने आपको चेत करके !
पुनः सदकर्म ! व धर्म के मार्ग पर, स्वयं को ला कर के , और अधिक कु कर्म / अधर्म यानि पाप करने से, स्वयं को बचा सकता है.
………और इस प्रकार, यह होते हैं ! कु ल चौरासी लाख, चौरासी जन्म !
………..तथा ! यह कोई आवश्यक नहीं है कि, आपका हर जन्म ! इस सृष्टि के , एक ही ग्रह (जैसे पृथ्वी या कोई भी ग्रह) पर ही मिलता रहे. इस सृष्टि
के , अनगिनत असंख्य ग्रहों ! उपग्रहों ! जहाँ किसी भी रूप में जीवन है. उन सभी ग्रहों / उपग्रहों में से, कहीं भी मिल सकता है. किसी भी ग्रह पर ! कितने
भी जन्म मिल सकते हैं. किसी ग्रह पर एक जन्म ! तो किसी ग्रह पर, एक से अधिक जन्म ! तो बहुतों ग्रहों पर, शून्य ! यानि एक भी जन्म ! नहीं मिल
सकता है. क्योंकि आपके जन्मों की संख्या ! चौरासी लाख चौरासी है. तथा जीवनयुक्त ग्रहों की संख्या ! इससे बहुत-बहुत अधिक है.
पूर्वश्रेणी का नौवाँ चरण :~
इस चरण के तीन प्रकार हैं. प्रथम ! द्वितीय ! तृतीय ! ……….जो आठवें चरण के , समाप्ति के पश्चात् ! उस आठवें चरण वाले, तीन या सभी जन्मों के ,
सदकर्मों ! व कु कर्मों ! के अनुरूप तय होता है.
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, प्रथम प्रकार :~
“अगर सद्कर्मों की ! बहुत अधिक न्यूनता हो. तथा कु कर्मों की, अत्यधिक अधिकता हो. तब उस आत्मा को, पुनः चौरासी लाख चौरासी योनियों के ,
क्रमिक चक्र में, जाना होगा. यानि पूर्वश्रेणी के , दूसरे चरण से, पुनः आरंभ करना होगा.
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, द्वितीय प्रकार :~
“सदकर्म भले ही कम हो. परंतु कु कर्म भी ! अधिक नहीं हो. तो उन कर्मों के अनुसार ! एक या एक से अधिक जन्मों हेतु ! पूर्वश्रेणी के ………….. चरण
दो ! तीन ! चार ! पाँच ! एवं छः ! में जाना होगा. उसके पश्चात् ! यानि उन पूर्व के , मानव जन्म वाले, कु कर्मों का दंड भोगने हेतु ! पुनः पूर्वश्रेणी के आठवें
चरण में, मनुष्य जन्म मिलेगा.”
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, तृतीय प्रकार :~
“अगर सद्कर्मों की ! बहुत अधिक यानि पर्याप्त अधिकता ! तथा कु कर्मों की न्यूनता है. तो इस चरण में, कु छ कालखंड ! यानि वर्तमान में चल रहे, जन्म
की बची हुयी अवधि ! प्रतीक्षा अवधि रहेगी. और उस प्रतीक्षा अवधि को, काटना ही, एक प्रकार से, इन आत्माओं के लिये, यह नौंवा चरण कहलायेगा. कु छ
अवधि पश्चात् ! जब उस चल रहे जन्म की ! समय-सीमा समाप्त हो जायेगी. यानि वह आत्मा ! वर्तमान देह का, त्याग कर देगी. तब उस आत्मा को, सदैव
के लिये, मूलश्रेणी में प्रवेश मिल जायेगा. उसे पुनः कभी भी, चौरासी लाख चौरासी योनियों का, चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा. अब उसकी आत्मा ! मूल श्रेणी
के , प्रथम चरण में, जन्म ले कर, मोक्ष के दिशा की ओर, यात्रा आरंभ करेगी. जिसके हेतु ! महादेव ने उस आत्मा का, निर्माण किया था.
……………अब !
पूर्वश्रेणी वाले, नौ चरणों को, पार करने के पश्चात् ! मूलश्रेणी वाले, नौ चरणों का विवरण :~
मूलश्रेणी का पहला चरण :~
यहाँ से आपको ! सदैव मनुष्य जन्म ही मिलता है. इस चरण से आपको………. कभी-कभी महादेव ! माता ! देवी-देवता-गण ! एवं महादेव दूतों के , दर्शन
व मार्गदर्शन मिलना ! आरंभ हो जाता है. कु छ-कु छ आसान-आसान दायित्व मिलने भी, आरंभ हो जाते हैं. इस चरण को पार करने योग्य ! पर्याप्त सदकर्मों
का ! जब तक संचयन नहीं हो जाता है. तब तक आपकी आत्मा को, बार-बार इसी चरण में, मनुष्य जन्म ! मिलता रहता है. और इस चरण के , प्रत्येक व
सभी जन्मों का, सदकर्म ! आपस में एक साथ ! संचित होते रहता है. यानि अग्रेषित होते रहता है. जब तक कि, चरण पार करने योग्य ! पर्याप्त सदकर्मों का
! संचयन ना हो जाये. साथ ही इस चरण ! या मूलश्रेणी के किसी भी चरण को, उत्तीर्ण करने से पूर्व ! आपके कु कर्मों का…………. दंड भोग-भोग करके ,
शून्य या न्यूनतम हो जाना ! अनिवार्य है. इस चरण ! या किसी भी चरण को, पार करके ! उसके अगले चरण में, पहुँचते ही……….. पुराने सभी संचय
सदकर्म ! शून्य हो जाते हैं. क्योंकि उन्हीं सदकर्मों के , बूते ही तो, आप अगले चरण में, प्रवेश करते हैं. परंतु साथ ही, यह अवश्य ध्यान रहे कि………….
चरण पार करने से पूर्व ! नये-पुराने सभी संचित कु कर्मों का, दंड भोग लेना भी, अनिवार्य है.
मूलश्रेणी का दूसरा चरण :~
इस चरण की भी, सभी नियमावली ! एवं परिस्थितियाँ ! इसके पहले वाले चरण ! यानि मूलश्रेणी के , पहले चरण जैसे ही हैं. बस इस चरण में आपको !
मिलने वाले दायित्व……….. बड़े ! कठिन ! कठोर ! होते हैं. तथा सदकर्मों का, संचयन भी पहले चरण से, बहुत अधिक करना पड़ता है.
मूलश्रेणी का तीसरा चरण :~
दूसरे चरण को, पार करने के पश्चात् ! अगले चरण ! यानि चौथे चरण में, जाने की प्रतीक्षा अवधि को ही ! तीसरा चरण बोलते हैं. इस चरण में ! कोई नया
या अलग से, जन्म नहीं मिलता. बल्कि दूसरे चरण के , अंतिम जन्म की, बची हुयी अवधि ही ! तीसरा चरण कहलाती है.
मूलश्रेणी का चौथा चरण :~
इस चरण में ! जो सबसे प्रथम बदलाव आता हैं. वह यह है कि………….. यहाँ से अब ! पूर्व जन्मों के संचित सदकर्म ! अगले जन्म में, अग्रेषित होना !
बंद हो जाता है. तथा इस चरण में, एक विशेष सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी के लिये, यहाँ के गणनानुसार ! लगभग सत्ताईस वर्षों में, आपको ! कु ल पंद्रह
कठिन परीक्षाओं में से, न्यूनतम ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य है. इन परीक्षाओं के मध्य……….. विकट ! व अत्यंत संकट वाली,
परिस्थितियों में, महादेव-दूतों से, सहायता भी मिलती रहती है. परंतु इन ग्यारह परीक्षाओं को, एक ही जन्म के , उस सीमित अवधि में ही, उत्तीर्ण करना
आवश्यक है. अन्यथा अगले जन्म में, पुनः नये ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना पड़ता है. इस चरण में भी, जन्मों के संख्या की, कोई बाध्यता नहीं है.
परीक्षा उत्तीर्ण होने तक, बारंबार मानव जन्म ही, मिलता रहता है. बाकी के चरणों की भाँति ही, यहाँ भी ! चरण पार करने के लिये, आपके कु कर्मों
का…………. दंड भोग-भोग करके , शून्य या न्यूनतम हो जाना ! अनिवार्य है.
मूलश्रेणी का पाँचवा चरण :~
इस चरण में, सभी कु छ ! चौथे चरण जैसा ही रहता है. बस उसी सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी ग्रह के गणनानुसार ! लगभग सत्ताईस वर्ष में, आपको कु ल !
एक सौ पचास कठिन परीक्षाओं में से, एक सौ ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य है. बाकी का सभी कु छ ! चौथे चरण जैसा ही रहता है.
मूलश्रेणी का छठा चरण :~
इस चरण में भी, सभी कु छ ! चौथे व पाँचवे चरण जैसा ही रहता है. बस उसी सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी के लिये, सत्ताईस वर्ष में ही, आपको कु ल पंद्रह
सौ कठिन परीक्षाओं में से, ग्यारह सौ ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है. परंतु इस चरण में, उन परीक्षाओं के मध्य ! आपको अपने दूसरे
स्वरूप की, सहायता भी मिलती रहती है. इसके अलावा ! बाकी सभी कु छ ! चौथे व पाँचवे चरण जैसा ही रहता है.
मूलश्रेणी का सातवाँ चरण :~
छठे चरण को, पार करने के पश्चात् ! अगले चरण, यानि आठवें चरण में, जाने की प्रतीक्षा अवधि को, सातवाँ चरण बोलते हैं. इस चरण में, कोई नया ! या
अलग से, जन्म नहीं मिलता. बल्कि छठे चरण के , अंतिम जन्म की, बची हुयी अवधि ही, या उसी जन्म में, महादेव-दूत बनने हेतु ! जो मुख्य धर्मकाज का
आदेश मिलता है. उस आज्ञा मिलने के , तिथि तक की, प्रतीक्षा अवधि ही, सातवाँ चरण कहलाती है.
मूलश्रेणी का आठवाँ चरण :~
इस चरण में, आपको अपने स्वयं की इच्छानुसार ! इस संपूर्ण सृष्टि के , किसी भी एक ग्रह ! या उपग्रह पर, उस ग्रह से संबंधित ! महादेव आज्ञा का, एक
विशेष धर्मकाज करना होता है. उस काज को करने की, आज्ञा मिलने वाली तिथि से ही, आपका आठवाँ चरण ! आरंभ हो जाता है. इसमें करने वाले,
विशेष धर्मकाज की जानकारी ! भले ही आपको, आठवाँ चरण आरंभ होने के समय, प्राप्त होती है. परंतु कौन से ग्रह पर, आपको अपना ! विशेष धर्मकाज
संपन्न करना है. इसका वैकल्पिक चुनाव ! आपको छठे चरण के , आरंभिक काल में ही, स्वयं से कर लेना होता है.
मूलश्रेणी का नौवाँ चरण :~
वस्तुतः ! यह कोई चरण ही नहीं है. यह एक अवस्था है. लाखों-करोड़ों ! या उससे भी अधिक जन्म ले कर, आपकी आत्मा ने, जिस परम् उद्देश्य ! यानि
परमात्मा बनने हेतु ! यानि मोक्ष पाने हेतु ! करोड़ों-अरबों-खरबों ! या उससे भी अधिक वर्ष की यात्रा के लिये ! अपनी आत्मा-यात्रा का ! अपनी मोक्ष-यात्रा
का ! आरंभ किया था. उसकी यह अंतिम सीढ़ी है. यहाँ आपकी आत्मा ! मोक्ष को प्राप्त कर, परमात्मा बन जाती है ! महादेव-दूत बन जाती है. इस चरण
में, आप तब पहुँचते हैं. जब आठवें चरण वाले, महादेव से आज्ञा प्राप्त ! विशेष धर्म-काज को, संपन्न कर लेते हैं. या उस काज को करते हुये ! अथवा संपन्न
होने से पूर्व ही ! आपकी आत्मा ! उस वर्तमान देह का, त्याग कर देती है. यानि उस जन्म की, आपकी आयु अवधि ! समाप्त हो जाती है. अंततोगत्वा !
यह, वह चरण है, जिसमें आपको ! उसी जन्म में ! हर हाल में ! महादेव-दूत ! बन ही जाना है. जिसके परिणामस्वरूप ! आप जन्म-मरण के चक्र से, सदैव
के लिये ! स्वतंत्र हो जाते हैं. संपूर्ण सृष्टि के , सभी ग्रहों-उपग्रहों या स्थानों पर, किसी भी स्वरूप में, कितने भी अवधि तक, रह सकते हैं. आप शिवशक्ति
जगत स्थलों पर भी, रह सकते हैं. यानि आप मोक्ष को, प्राप्त कर लेते हैं. अब आपका ! एक ही काज बच जाता है……….. महादेव का दूत बन कर,
महादेव के आज्ञा वाले काज को, समय-समय पर करते रहना. तथा पूरे सृष्टि के , सभी ग्रहों-उपग्रहों के , मूलश्रेणी वाली आत्माओं का, विधि-विधान के
अनुरूप ! सहायता करना. एवं यह सभी कु छ भी, अनिवार्य नहीं होता. यह पूर्णतः ! आपकी अपनी इच्छा पर, निर्भर करता है.
……………पूर्वश्रेणी के सभी नौ चरण ! तथा मूलश्रेणी के सभी नौ चरण ! को समझने के पश्चात् ! इन निम्नलिखित ! चार बिंदुओं को भी समझना
! अत्यंत आवश्यक है.
:~
सदकर्म / धर्म / पुण्य हो ! या कु कर्म / अधर्म / पाप हो ! यह दोनों ही, जन्म-जन्मांतर तक ! संचय व अग्रेषित यानि फॉरवर्ड होते रहते हैं. जब तक इनका
शुभ-फल ! या उपयुक्त-दंड ! ना मिल जाये.
:~
कु कर्म / अधर्म / पाप का, हर हाल में, दंड मिलेगा ही मिलेगा. कु कर्मों का समुचित दंड भोगने के अलावा, इससे बचाव का, कोई भी अन्य मार्ग नहीं है.
:~
दान-पुण्य करके ! देवी-देवता-गण ! यानि इष्ट-आराध्य की पूजा करके ! उनका नाम जप करके ! पुण्यों में बढ़ोतरी तो, की जा सकती है. किं तु उससे रत्ती
भर भी ! पाप नहीं काटे जा सकते. पाप का दंड तो, हर हाल में, अगले जन्म में, भोगना ही पड़ेगा. जैसे इस जन्म में, पूर्वजन्म का भोग रहे हो.
:~
वैसे देखें तो, पुण्य एकत्र व संचय करने का, सबसे सर्वोत्तम मार्ग ! धर्म / सदकर्म करना ही है. *कर्म* से बढ़कर, कु छ भी नहीं है. सदकर्म करके ! सदकर्म
/ पुण्य को, और भी बढ़ाया जा सकता है. लेकिन उससे कु कर्म / पाप को, नहीं मिटाया जा सकता. सदकर्म / पुण्य से, कु कर्म / पाप को, किसी भी हाल में,
समायोजित यानि एडजस्ट ! नहीं किया जा सकता.
क्रमशः

======================================
3A :~
जब प्रभु श्रीराम भगवान ने, आत्मा-यात्रा के , सभी अठारहों चरणों को, समझा कर ! अपनी वाणी को विराम दिया. तब भगवान श्री गणेश देव बोले :
“जैसा कि, श्री कृ ष्ण देव ने, सभी छः वर्गों के विषय में समझाया. तथा श्रीराम देव ने, अठारहों चरणों के संदर्भ में समझाया.”
“अब ! यहाँ उपस्थित ! सभी नव-निर्मित आत्माओं को, मैं कु छ और तथ्य ! समझाता हूँ. अभी आप सभी ! पूर्वश्रेणी के , प्रथम चरण में हैं. इस बैठक के
पश्चात् ! आप पूर्व श्रेणी के , द्वितीय चरण में, प्रवेश कर जायेंगे. आप सभी को, नवीन-देह की प्राप्ति होगी. और उसी के साथ ! एक चक्र के , चौरासी लाख
चौरासी जन्मों का, आपका प्रथम जन्म भी, हो जायेगा.”
“अभी जितनी भी बातें ! आप सुन रहे हैं. इसकी स्पष्ट स्मृति ! आपके चौरासी लाख इक्कासी जन्मों तक ! स्पष्ट रहेगी. यानि पूर्वश्रेणी के , सातवें चरण तक
! यह सभी बातें ! आपको स्मरण रहेगी. परंतु जैसे ही आप ! पूर्व श्रेणी के , आठवें चरण में, प्रवेश करेंगे. यानि जब आप ! प्रथम मानव जन्म लेंगे. वैसे ही
यह सभी स्मृति ! समाप्त हो जायेगी. परंतु हाँ ! रिक्तता योनि में, यह स्मृति ! सदैव बनी रहेगी.”
“एक और भी, परिवर्तन होगा. बाकी के , चौरासी लाख इक्कासी जन्मों में, जहाँ आपके पास ! सामान्य-साधारण मस्तिष्क रहेगा. वहीं उन मानव देह वाले,
तीन जन्मों में, आपके पास चैतन्य मस्तिष्क रहेगा. जो आपको धर्म-अधर्म ! सदकर्म-कु कर्म ! पाप-पुण्य ! इत्यादि में, अंतर करना सिखायेगा.”
“क्योंकि मानव देह प्राप्त करते ही, आप पाप-पुण्य, सदकर्म-कु कर्म, धर्म-अधर्म के , लेखा-जोखा से बंध जायेंगे. आपके सदकर्मों एवम् कु कर्मों का, संचयन !
तथा सुफल व दण्ड के माध्यम से, उनका क्षरण ! आरंभ हो जायेगा.”
“इसीलिये तो, मानव देह में, आपको चैतन्य मस्तिष्क मिलता है. ताकि उस चैतन्य मस्तिष्क का, प्रयोग करते हुये, आप अपने सदकर्मों में, बढ़ोतरी कर
सकें . तथा कु कर्मों को, शून्य या न्यूनतम रखने हेतु ! सदैव प्रयासरत रहें.”
“परंतु ध्यान रहे. पदानुक्रम ! यानि पदसोपान ! ऊपर नीचे नहीं होना चाहिये. ऐसा इसलिये आवश्यक है. क्योंकि इससे देवी-देवता-गण-दूत ! रुष्ट हो जाते
हैं. जिसके परिणामस्वरूप ! आपके सोच-विचार की, दिशा स्थिर नहीं रह पाती. फलस्वरूप ! आपको सदबुद्धि प्रदान करने वाले, संके तों की प्राप्ति !
बाधित होने लगती है. जिससे आपके द्वारा ! चौरासी लाख इक्कासी जन्मों का, एक और क्रमिक चक्र लगाने की, संभावना प्रबल हो जाती है.”
“तदोपरांत ! बचाव का, संयोग को छोड़ कर, कोई अन्य मार्ग ! शेष नहीं बच जाता. संयोग वाले मार्ग में……………….. आपके उस मानव जन्म के ,
किसी हितैषी ! मूल श्रेणी वाले आत्मा को, अगर आपके हेतु ! उचित लग जाये. तो वह आपको, व्यक्तिगत रूप से, सत्य से अवगत करा सकता है. परंतु वह
पूर्णतया ! उसकी स्वेच्छा पर, निर्भर करता है. इसके हेतु ! उसे बाध्य नहीं किया जा सकता.”
“किसी-किसी पूर्वश्रेणी वाले, मानव देहधारी आत्माओं के साथ ! कभी-कभी एक और भी, दुर्लभ संयोग बन पड़ता है. वह दुर्लभ संयोग होता
है…………… जब आपके ! पूर्वश्रेणी वाले, आठवें चरण का, कोई मानव जन्म चल रहा हो.”
“तथा दुर्लभ संयोगवश ! उसी काल-खंड में, कोई मूल श्रेणी वाले, आठवें चरण की आत्मा ! उसी ग्रह पर, महादेव-दूत बनने से पूर्व वाले दायित्व ! यानि
अपने मूल श्रेणी के आठवें चरण का , विशेष धर्मकाज ! कर रही हो. तब उसके माध्यम से भी, आप सत्य से, अवगत हो जाते हैं.”
“क्योंकि के वल उसे ही, सार्वजनिक रूप से, विशेष या सामान्य ! सभी मानवों को, सत्य से अवगत कराने की, अनुमति प्राप्त होती है. अन्य कोई भी, मूल
श्रेणी की आत्मा ! सार्वजनिक रूप से, यह बता ही नहीं सकती. क्योंकि ऐसा करने से, उसकी अलौकिक स्मृति तत्क्षण छीन जाती है.”
“अतः ऐसे किसी, संयोग ! या दुर्लभ संयोग की, प्रतीक्षा करने से, अधिक उचित है. निरंतर सदकर्म करना ! एवं कु कर्म से यथासंभव बचने हेतु ! अपने-
आप को, जाग्रत अवस्था में रखना.”
क्रमशः

3B :~
प्रभु श्री कृ ष्ण भगवान ! प्रभु श्रीराम भगवान ! एवं प्रभु श्री गणेश भगवान के द्वारा ! उन चौबीस घंटों के , सभी नव-निर्मित आत्माओं को, अत्यंत महत्वपूर्ण
ज्ञान ! प्रदान किया जा चुका था. भगवान श्री गणेश देव के , अपने स्थान पर, विराजने के पश्चात् !………….
……………भगवान श्री कार्तिके य देव ने, उन पूर्व श्रेणी के , प्रथम चरण वाले, आत्माओं को, काफी सारी, ज्ञानवर्धक बातें बतायी. उनके बाद तीनों
त्रिदेवों ने भी, सभी आत्माओं को, काफी कु छ समझाया. फिर माता पार्वती ने, उन सभी को, अत्यंत महत्वपूर्ण बातें बतायीं.
~~~~~~~~~
भगवान कार्तिके य देव ! तथा त्रिदेव ! यानि ………… भगवान रुद्र देव ! भगवान ब्रह्मदेव ! भगवान विष्णुदेव ! तथा माता पार्वती माँ द्वारा ! बतायी गयी
बातों को, अभी लिखने की अनुमति नहीं होने के कारण ! अभी नहीं लिख रहा हूँ. भविष्य में, अनुमति प्राप्त होते ही, अवश्य लिखूँगा. अभी के लिये, आगे के
घटनाक्रमों को, लिखना आरंभ करता हूँ.
~~~~~~~~~
शक्ति स्वरूपा माता पार्वती माई के , अनुशासन संबंधी संबोधन ! समाप्त होने के पश्चात् ! …………..अब देवों के देव ! सर्वोच्च देव ! महादेव शिव
शंकर भगवान द्वारा ! पूर्व श्रेणी के , प्रथम चरण वाली आत्माओं को, संबोधित किया जाना था.
उन अंतिम २४ घंटों में, नयी निर्मित हुयी, सभी आत्माओं के साथ-साथ ! उस बैठक में, उपस्थित ! सत्यमार्गी नामक आत्मा भी, बिल्कु ल ध्यान पूर्वक !
महादेव की बात सुनने हेतु ! एकाग्रचित्त हो गयी. भगवान भोलेनाथ ने, बोलना आरम्भ किया :
“तुम सभी ! मेरे लिये, अत्यंत प्रिय हो. क्योंकि तुम सभी के सभी, मेरे ही अंश हो. मैं तुम्हें ! स्वयं से दूर ! नहीं करना चाहता. परंतु इस सृष्टि के ,
कु शलतापूर्वक संचालन हेतु ! मैंने कु छ विधान बनाये हैं. उन विधि-विधानों का, पालन करना अनिवार्य है.”
“इसलिये, मैं तुम्हें ! एक छोटी सी यात्रा पर, भेज रहा हूँ. मैं तुम्हें ! अपने स्वयं से, कु छ काल-खंड हेतु ! दूर कर रहा हूँ. और तुम्हें ! जितनी चाहिये !
उतनी पर्याप्त स्वतंत्रता भी, दे रहा हूँ. तुम अपने इच्छानुसार ! जितने चाहो, उतने अच्छे बनो. या जितनी चाहो, उतनी त्रुटि करो. पाप करो ! पुण्य करो !
मेरी ओर से, कोई मनाही नहीं है. तुम जो चाहोगे……………. मैं तुम्हें ! वहीं पर्याप्त मात्रा में दूँगा.”
“तुम अगर पाप करोगे. यानि, जब तुम्हें ! कु कर्म में आनंद आयेगा. तो मैं तुम्हें ! तुम्हारे इच्छित आनंद की पूर्ति हेतु ! जितना ही पाप किये रहोगे. उसी के
अनुपात में, मैं तुम्हें ! उतने ही पापी वातावरण में, अगला जन्म दे दूँगा. ताकि तुम ! और भी अधर्म करके , आनंदित हो सको.”
“वहीं अगर ! तुम पुण्य करोगे. सदकर्म करोगे. यानि जब तुम्हें ! सदकर्म में आनंद आयेगा. तो मैं तुम्हें ! तुम्हारे इच्छित आनंद की पूर्ति हेतु ! जितना ही
पुण्य किये रहोगे. उसी के अनुपात में, मैं तुम्हें ! उतने ही सदकर्मी वातावरण में, अगला जन्म दे दूँगा. ताकि तुम ! और भी आनंदित हो सको.”
“तथा इस प्रकार ! तुम्हारी संपूर्ण यात्रा भर ! यह क्रम चलता रहेगा. इसके साथ ही, मैं तुम्हें ! एक दायित्व भी, सौंप रहा हूँ. तुम्हारा दायित्व है. इस यात्रा
को, पूर्ण करना. और पूर्ण करके , पुनः मेरे समीप आ जाना. इस यात्रा के , परिणति स्वरूप ! मोक्ष प्राप्त करके , मेरा दूत बन जाना. आत्मा से परमात्मा बन
जाना.”
क्रमशः
3C :~
देवों के देव ! सर्वोच्च देव ! महादेव ! शिव शंकर भगवान के , संबोधन समाप्ति के साथ ही, लगभग तीन घंटे तक चले, उस बैठक का, समापन हो चुका था.
तथा बैठक समाप्ति के साथ ही, उस बैठक में उपस्थित ! सभी पूर्व श्रेणी के , प्रथम चरण वाली, आत्माओं को, उनके द्वितीय चरण में पहुँचाने की, प्रक्रिया भी
आरंभ हो गयी.
यानि कि, उनको अपना प्रथम जन्म ! यानि प्रथम देह आवरण ! प्राप्त होने लगे. उस सत्यमार्गी नामक आत्मा की, बारी आने पर, सभी आत्माओं की भाँति !
उसे भी, महादेव-दूतों के द्वारा ! यह समझाया गया :
“जब भी तुम्हें ! ऐसा लगे कि………. तुम्हारे द्वारा धारण किये गये देह में, अब तुम्हें नहीं रहना है. तब तुम ! उस देह को त्यागने हेतु ! आत्मिक संदेश !
प्रेषित कर सकते हो. अगर तुम्हारा निवेदन ! उचित पाया गया. तो तुम्हें ! उस देह को त्यागने की, अनुमति प्राप्त हो जायेगी. तथा तुम्हें ! वहाँ से निकाल
कर, रिक्तता योनि में, भेज दिया जायेगा. फिर जब तक तुम्हारे लिये, नवीन देह का, आवंटन नहीं हो जायेगा. तब तक तुम ! उसी रिक्तता योनि में, यथावत्
बने रहोगे.”
सत्यमार्गी नामक आत्मा बोली :
“मैं तो जाते ही, देह त्यागने का, निवेदन भेज दूँगा. ताकि चौरासी लाख इक्कासी जन्मों में से, एक जन्म का झंझट तो, समाप्त हो जाये.”
संबंधित महादेव-दूत हंसते हुये बोले :
“अत्यंत शीघ्रतापूर्वक भी, निवेदन मत भेजना. क्योंकि न्यूनतम निर्धारित समय से पूर्व ! देह त्यागने पर, उस जन्म की गिनती ही, नहीं होती है.”
सत्यमार्गी नामक आत्मा ने पूछा :
“और यह न्यूनतम निर्धारित समय ! कितना होता है ?”
संबंधित महादेव-दूत ने उत्तर दिया :
“वह अलग-अलग ग्रहों / उपग्रहों के , अलग-अलग देहों के लिये, भिन्न-भिन्न अवधि होती है. जिसकी तुम्हें ! प्रत्येक जन्म के साथ ! या जन्म से थोड़ा पहले
ही, जानकारी प्राप्त हो जायेगी.”
सत्यमार्गी नामक आत्मा बोली :
“फिर मैं ! अपने प्रत्येक जन्म के , न्यूनतम निर्धारित अवधि के , समाप्त होते ही, देह त्यागने का, निवेदन भेज दिया करूँ गा. आप ! कृ पया करके , मेरा
निवेदन स्वीकार कर लीजियेगा ! या स्वीकार करा दीजियेगा.”
संबंधित महादेव-दूत हंसते हुये बोले :
“पहले तुम जन्म तो लो. तुम्हें यह पता ही नहीं है कि………… महादेव के बनाये, विधि-विधान में, तुम कहीं से भी, कोई भी त्रुटि-द्वार ! ढूँढ ही नहीं
सकते. क्योंकि ऐसा कोई द्वार ! है ही नहीं. तुम्हारे आत्मा के साथ में, महादेव द्वारा ! कई भावनायें सम्मिलित की गयी है. जिसमें से एक *मोह* नामक
भावना भी है. तुम्हारे द्वारा ! लौकिक देह धारण करते ही, तुम्हें स्वयं ! उस देह से, मोह उत्पन्न हो जायेगा. और वैसे भी, इच्छामृत्यु के उद्देश्य से किया गया
! कोई भी कृ त्य ! जघन्य अपराध की श्रेणी में, आने वाला घोर दंडनीय कु कर्म होता है.”
महादेव-दूतों से, कु छ वार्तालाप के पश्चात् ! उस सत्यमार्गी नामक आत्मा को भी, अपने प्रथम देह की प्राप्ति हुयी. वह कोई नव-निर्मित ग्रह था. जहां उसे !
एक खौलते हुये, ज्वालामुखीय लावा के मध्य ! शैवालनुमा एक अत्यंत छोटे पौधे के रूप में, प्रथम जन्म मिला. अभी उस ग्रह पर, अन्य कोई जानवर ! या
मानवकृ ति जैसे जीवों का वास ! आरंभ नहीं हुआ था.
उसे जब वहाँ जन्म मिला ! तब वहाँ के ऊर्जास्रोत तारे की गर्मी ! वहाँ चहुँओर फै ली हुयी थी. परंतु वहाँ रात्रि होने के साथ ही, अत्यंत ठंडक शुरू हो गयी.
इतनी ठंडक कि, कु छ ही समय में, खौलते हुये लावे, ठंडे पत्थर में, परिवर्तित हो गये. परिमाणस्वरूप ! उसके , उस शैवालनुमा देह में, उसका वास करना !
अत्यंत दूभर व कष्टकर होने लगा.
उसके आस-पास के , उसके संगी-साथी शैवालनुमा पौधों में से, प्रति क्षण कई-कई आत्मायें ! अपना देह त्यागते जा रही थी. अंततोगत्वा ! उस सत्यमार्गी
नामक आत्मा ने भी, अपने देह के मोह का, त्याग करते हुये, कष्टों से बचने हेतु ! रुद्र देव के कार्य-सेवा में लगे, महादेव-दूतों तक ! अपने देह त्याग का,
निवेदन प्रेषित किया. तत्क्षण ही, उसका निवेदन ! स्वीकृ त भी हो गया.
देह त्यागने के , कु छ ही क्षणों पश्चात् ! वह पुनः महादेव-दूतों के समक्ष था. जिस ग्रह पर उसने, प्रथम जन्म पाया था. उस ग्रह के अनुसार ! वहाँ उसकी
जीवन अवधि ! कु ल एक दिवस से भी कम थी.
क्रमशः

3D :~
उस सत्यमार्गी नामक आत्मा के , निर्माण तिथि को, करोड़ों वर्ष बीत चुके थे. अब वह आत्मा ! अपने चौरासी लाख जन्मों को, पूर्ण कर चुकी थी. यानि पूर्व
श्रेणी के , छठे चरण को भी, पार कर चुकी थी. कु छ दिवस ! रिक्तता योनि में, बिताने के पश्चात् ! उस दिन उसके , पूर्व श्रेणी वाले, सातवें चरण के , कु ल
इक्कासी पूज्य जन्मों में का, प्रथम जन्म लेने का, शुभ दिवस था.
एक सुदूर ग्रह के , एक सजीव पत्थरनुमा ! परंतु उस ग्रहवासीयों के लिये, अत्यंत पूज्य पत्थर के रूप में, उसका जन्म होना था. आसमान में, बिजली
कड़कने जैसी ! एक घटना घटित हुयी. तथा उसी के , ऊर्जा (पिता) वाले वेग से, उस सत्यमार्गी नामक आत्मा की, जन्म दायनी माँ ! यानि उस बड़े पत्थर
में, विखंडन की घटना घटित हुयी. फलस्वरूप ! उस पत्थर (माँ) के , कई टुकड़े हुये. उन सभी अलग-अलग टुकड़ों में, अलग-अलग आत्माओं (उस जन्म
की बहनों) ने, प्रवेश किया. जिसमें एक पत्थर में, उस सत्यमार्गी नामक आत्मा को भी, प्रवेश मिला.
उस ग्रह के , अत्यंत ! पूज्य स्वरूप में, उस सत्यमार्गी नामक आत्मा ने, अपने उस जन्म के , हजारों वर्ष बिताये.
क्रमशः

3E :~
वह सत्यमार्गी नामक आत्मा ! उस तिथि को, पूर्व श्रेणी के आठवें चरण का, अपना तीसरा ! व अंतिम जन्म का, निर्धारित अवधि जी कर ! अभी-अभी ही,
देह-त्याग कर आयी थी. उसके लेखा-जोखा खंड में, प्रवेश करते ही, उसे अपने दोनों थैली को, अलग-अलग पलटने का, संबंधित महादेव-दूत से, आदेश
प्राप्त हुआ.
तत्क्षण उसने ! आज्ञा का पालन करते हुये, अपने साथ लटकती ! सदकर्म-कु कर्म संचित करने वाले, दोनों थैलों को, वहाँ अलग-अलग उड़ेल दिया. सेकें ड
से भी कम समय में, संबंधित महादेव-दूत बोले :
“तुम ! चौरासी लाख चौरासी योनियों का, एक और चक्र लगाने हेतु ! पुनः वापिस भेजे जाते हो. तुम्हें पूर्व श्रेणी के , द्वितीय चरण से, पुनः अपनी यात्रा !
आरंभ करनी होगी. तुम अपना ! उड़ेला हुआ ! यह दोनों प्रकार का कर्म ! अपने थैले में भरो. और रिक्तता योनि में, अगले देह प्राप्ति तक, प्रतीक्षा करो.”
सत्यमार्गी नामक वह आत्मा ! विलाप करती रही. निवेदन करती रही ! रोती रही ! गिड़गिड़ाती रही ! दया-याचना करती रही. परंतु परिणाम वहीं रहा !
क्योंकि संपूर्ण सृष्टि के निर्माणकर्ता ! एवं उसके विधि-विधान के रचयिता ! महादेव के अनुसार……………. जहाँ आत्मा को, कु छ भी करने की, स्वतंत्रता
है. वहीं विधि-विधान में, कु छ भी बदलाव नहीं करने की, प्रतिबद्धता भी है.
अतः सत्यमार्गी नामक आत्मा को, कोई राहत नहीं मिली. कु छ समय तक ! उसको रिक्तता योनि में, रखने के पश्चात् ! उसके दूसरे क्रमिक चक्र का, प्रथम
जन्म ! यानि कु ल जन्मों की गिनती में, चौरासी लाख पच्चासीवाँ जन्म ! किसी सुदूर ग्रह के , एक विशालकाय छिपकलीनुमा जीव के रूप में, दे दिया गया.
जब वह जन्म लेने हेतु ! जा रहा था. तब उसी के साथ ! यात्रा कर रही, उसी जैसी स्थिति वाली, एक दूसरी आत्मा ! रुष्ट भाव में, उससे बोली :
“सत्यमार्गी ! मैं जब भी कभी, मूलश्रेणी में, प्रवेश पाऊँ गा. तब देखना ! मैं कु कर्मों का ! वह पहाड़ खड़ा करूँ गा कि…………. ! ………..फिर
देखूँगा. कोई कै से ? मुझसे मानव जन्म ! छीन पाता है.”
सत्यमार्गी नामक आत्मा बोली :
“पहले यह ! दूसरा क्रमिक चक्र तो, पूरा करो.”
दूसरी आत्मा बोली :
“दूसरा ! दूसरा होगा तुम्हारा ! मैं तो अभी ! अपने………….. आठ करोड़, उन्नीस लाख, पचास हजार, चार सौ, बाईसवें चक्र का, प्रथम जन्म लेने जा
रहा हूँ.”
क्रमशः

3F :~
यह सत्यमार्गी नामक आत्मा के , दूसरे क्रम का, चौरासी लाख इक्कासीवाँ जन्म चल रहा था. यानि दूसरे क्रमिक चक्र वाला, पूर्व श्रेणी के सातवें चरण का,
अंतिम जन्म चल रहा था. यानि इक्कासी पूज्य जन्मों में का, अंतिम जन्म चल रहा था. यानि जन्मों की कु ल गिनती के अनुसार ! एक करोड़, अड़सठ लाख,
एक सौ पैंसठवाँ जन्म चल रहा था.
पूज्य जन्म होने के कारण ! सत्यमार्गी नामक वह आत्मा ! एक सुदूर ग्रह पर, एक पूज्य वृक्ष स्वरूप में, अत्यंत आदर-सत्कार वाले परिवेश में, अपना जीवन
जी रही थी. सब कु छ आनंदमय था. बस उसे यह बात ! भली-भाँति ज्ञात था (क्योंकि पूर्व श्रेणी के , दूसरे से सातवें चरण में, सभी को यह ज्ञात रहता है)
कि, अब उसे अगला जन्म ! मानव-देह में प्राप्त होगा.
……………और मानव-देह प्राप्त होते ही, उसकी यह सभी स्मृति ! समाप्त हो जायेगी. और खोई हुयी यह स्मृति ! पुनः तभी लौटेगी. जब वह !
मानव-देह-त्याग करके , रिक्तता योनि में लौटेगा. साथ ही उसे ! यह भी पता था कि, इस बार के चक्र का, पहला मानव जन्म ! उसे सदकर्मी परिवार में तो,
किसी भी हाल में, नहीं मिलेगा.
क्योंकि यह विशेष सुविधा ! के वल पहले चक्र वाले, आत्माओं को ही मिलती हैं. वह भी तीन मानव-जन्म के , के वल प्रथम मानव-देह-जन्म में ही. जबकि
उसका तो यह ! दूसरा चक्र है. अतः उसे जो जन्म मिलेगा. वह उसके दोनों थैलों में, संचित-संग्रहित ! दोनों प्रकार के कर्मों के , लेखा-जोखा के अनुरूप
मिलेगा.
उसे यह भी, बहुत अच्छे से ज्ञात था कि…………. इन विगत् चौरासी लाख अस्सी जन्मों के , कर्मों से ! तथा साथ ही, इस वर्तमान जन्म के , कर्मों से भी,
उसके पूर्व वाले, तीन मानव-देह में, एकत्र किये गये, सदकर्मों-कु कर्मों पर, कोई अंतर नहीं पड़ेगा. क्योंकि मानव-देह में, एकत्र / संग्रह / संचय किये
गये……………… सदकर्मों का सुफल हो ! या कु कर्मों का दंड हो. वह सब मिलेगा ! या भोगना पड़ेगा ! तो मानव-देह-जन्म में ही. उसका कोई ! अन्य
विकल्प नहीं है.
इन्ही बातों को, वह प्रतिदिन सोचता था. उस दिन भी सोच रहा था. तभी दिन के समय में ही, काफी तीव्रता से, बिल्कु ल रात्रि जैसा ! अंधेरा छा गया. वहाँ
! उस ग्रह के निवासियों में, किसी अज्ञात आशंका को ले कर, चहुँओर ! चीत्कार मच गया. हवा का बहुत तेज वेग ! उस ग्रह पर, दबाव बनाता गया. ऐसा
लग रहा था. जैसे कोई दूसरा बड़ा ग्रह ! उस ग्रह से, टकराने वाला हो.
बहुत तीव्र आवाज ! बढ़ते हुये क्रम में, आने लगी. इतनी तीव्र की, वहाँ के किसी भी जीव की, श्रवण क्षमता ! शायद ही बच पायी होगी. और ! फिर कु छ
टकराया ! भीषण टक्कर ! एक क्षण में, सब कु छ नष्ट हो गया. उस सत्यमार्गी नामक आत्मा का, वह पूज्य ! वृक्ष रूपी देह भी.

क्रमशः

3G :~
समग्र प्रलय हो चुके , उस ग्रह के , सभी वर्तमान देह-धारी आत्माओं ने, तत्काल उस ग्रह वाले, अपने-अपने वर्तमान देह का, त्याग किया. तथा उसके पश्चात्
! वह सभी के सभी, महादेव-दूतों के समक्ष ! लेखा-जोखा खंड में, पहुँच चुके थे. जब सत्यमार्गी नामक आत्मा ! संबंधित महादेव-दूत के पास पहुँची. तो
महादेव-दूत उससे बोले :
“सत्यमार्गी ! तुम्हारा तो यह, पूर्व श्रेणी सातवें चरण का, इक्कासीवाँ जन्म था. इसलिये तुम प्रतीक्षा करो. एक दुर्लभ संयोगवश ! तुम………… एक ऐसे ग्रह
के , ऐसे काल-खंड में, अपने ऐसे जन्म-अवस्था में थे कि, तुम्हारे हेतु ! लाभदायक परिस्थिति है.”
किसी अनजानी ! प्रसन्नता से, प्रफु ल्लित ! वह सत्यमार्गी नामक आत्मा ! प्रतीक्षा-क्षेत्र में चली गयी. जहाँ उस समय ! उसके जैसे वाले ! यानि उसके अंतिम
जन्म वाले, ग्रह जैसे परिस्थिति के ! यानि समग्र रूप से, प्रलय हो चुके , ग्रहों-उपग्रहों पर की, आत्माओं का, जमावड़ा लगा था. अपने पूर्व श्रेणी वाले, सातवें
चरण के अंतिम ! यानि इक्कासीवाँ जन्म का, आनन-फानन में, अपना-अपना पूज्य स्वरूप वाला ! देह-त्याग कर, आयी हुयी बहुतेरी आत्मायें ! वहाँ
उपस्थित थी.
वहाँ चहुँओर ! अलग-अलग समूह में, एकत्रित आत्मायें ! आपस में चर्चायें कर रही थी. अपना-अपना एक्सपर्ट-कमेंट नुमा ! अनुमानित लाभदायक
परिस्थितियों पर, राय बता रही थीं. जिसमें से कु छ गंभीर ! तो कु छ हास्यास्पद भी थीं. प्रतीक्षा बहुत लंबी नहीं चली. क्योंकि महादेव-दूतों का दल ! उन्हें
संबोधित करने हेतु ! उस लेखा-जोखा विभाग के , प्रतीक्षा-खंड में, पधार चुके थे.
उनमें से, सबसे वरिष्ठ महादेव-दूत बोले :
“चूँकि विधी-विधान में, असंख्य संहितायें हैं. अतः समझाने के समय ! सभी संहिताओं को समझाना ! बहुत सरल नहीं है. तथा विधि-विधान के , सभी
संहिताओं का, ज्ञान होना ! आवश्यक भी नहीं है. जब जो आत्मा ! जैसी परिस्थिति में होती है. उस परिस्थिति वाली संहितायें ! उसे, उसी समय ! समझा
दी जाती हैं.”
“जैसे ! यहाँ एकत्रित ! आप सभी आत्मायें ! एक दुर्लभ संयोगवश ! एक विशेष अलग ! परंतु लाभदायक परिस्थिति में, आ गयी हैं. ऐसा संयोग भी,
असंख्य आत्माओं में, किसी-किसी एक के साथ ही बनता है. आप सभी ! यहाँ उपस्थित आत्मायें ! विगत् चौबीस घंटों में, उसी सुखद लाभदायक संयोग
वाली ! आत्मायें हैं.”
“महादेव-रचित ! विधि-विधान की, एक संहिता के अनुसार ! जब भी कोई ग्रह ! या उपग्रह ! अपने समग्र प्रलय ! या आंशिक विध्वंस की, आवश्यक
अहर्तता ! प्राप्त कर लेती है. तब उस ग्रह / उपग्रह के , संपूर्ण मानवों या सम्पूर्ण जीवन का, अंत करने हेतु ! संबंधित महादेव-गण ! जब वहाँ विध्वंस करते हैं
! या प्रलय लाते हैं.”
“तब उस ग्रह / उपग्रह पर ! उस प्रलय / विध्वंस वाले क्षण में ! देह धारण किये हुये ! पूर्व श्रेणी वाले, सातवें चरण की, अंतिम पूज्य जन्म ! यानि इक्कासीवें
जन्म वाली, सभी आत्माओं को, यह विशेष लाभदायक परिस्थिति वाली, सुविधा मिलती है. इस विशेष सुविधा को, मिलने के पीछे का कारण ! यह है
कि……………. पूज्य जन्मों के , अंतिम जन्म में, किसी भी आत्मा के , किसी देह की, अकाल मृत्यु ! नहीं करायी जा सकती.”
“…………….और अगर ! किसी भी कारणवश ! ऐसा होता है तो, उसे सांत्वना स्वरूप ! कु ल ४५ सुविधाओं में से, कोई भी एक सुविधा ! उसकी
इच्छानुसार ! उसे प्रदान की जाती है. अतः अभी, आप सभी को, सर्वप्रथम ! वह ४५ सुविधायें…………. दिखायी / बतलायी / समझायी जायेंगी.
तदुपरांत ! आप अपनी-अपनी इच्छानुसार ! कोई भी एक सुविधा का, चयन कर सकते हैं.”
क्रमशः

3H :~
वहाँ उपस्थित सभी आत्माओं को, कु ल सभी ४५ विशेष लाभदायक परिस्थिति वाले विकल्प ! दिखाये जा चुके थे. वहाँ उपस्थित ! सभी आत्मायें ! अपने-
अपने स्वेच्छा से, इच्छित विकल्प का, चुनाव कर-कर के , अपने अगले जन्म की प्रतीक्षा हेतु ! रिक्तता योनि में, जा रहे थे.
जब ! उस सत्यमार्गी नामक आत्मा के , चयन करने की बारी आयी. तब उसने, विकल्प क्रमांक १४ का, चयन किया. जिसमें यह सुविधा प्राप्त थी
कि……………. उसके पूर्व श्रेणी वाले, आगामी दो मानव जन्मों में, उसकी बारह वर्ष की अवस्था होने पर, उसे किसी भी, सांके तिक माध्यम से, यह बता
दिया जायेगा कि…………..
…………..सदकर्म करना ही, मोक्ष प्राप्ति का, एक मात्र मार्ग है. उसके बाद ! यह पूर्णतः ! उसके , उन आगामी दोनों मानव जन्मों के , मनोवृत्ति पर
निर्भर करेगा कि…………. उस एक ! अस्पष्ट संके त के सहारे ! अपने उस देह के , पूर्ण जीवन भर ! यानि संपूर्ण आयु भर ! वह सदकर्मी बना रहे.
……………तथा जब ! उसके पूर्व श्रेणी वाले, आठवें चरण का, तीसरा या / व अंतिम मानव जन्म (सत्यमार्गी के मामले में, दूसरे क्रमिक चक्र का,
अंतिम मानव जन्म) होगा. तब उसको ! वह जन्म ! ऐसे ग्रह / उपग्रह पर, दिया जायेगा. जहाँ उसके , उस जन्म के , काल खंड में, उसी समानांतर अवधि
में, कोई मूल श्रेणी वाले, आठवें चरण की आत्मा ! महादेव-दूत बनने हेतु ! महादेव-आज्ञा वाला ! विशेष धर्मकाज कर रही होगी.
जहाँ उसके ! संचित सदकर्मों की प्रबलता से, यह तय होगा कि………….. वह ! उस भावी महादेव-दूत पर, कितना विश्वास करेगा. तथा उसके संचित
कु कर्मों की प्रबलता से, यह निर्धारित होगा कि…………. वह ! उस भावी महादेव-दूत पर, कितना अविश्वास करेगा.
परंतु हाँ ! अगर वह चाहे तो, अपने संचित कु कर्मों की, प्रबलता से उपजे, अपनी नकारात्मक अविश्वास वाली, भावनाओं पर ! बलात् कठु राघात करके भी,
सकारात्मक बने रहने का, प्रयत्न कर सकता है. यह सब पूर्णतः ! उसकी स्वेच्छा पर निर्भर करेगा.
परंतु उसने ! उस तीसरे, या अंतिम जन्म से पहले के , यानि आगामी दो, या दो से अधिक जन्मों में, अगर भरपूर सदकर्म ! तथा न्यूनतम कु कर्म किया. तब
उसको ! उसका तीसरा व / या अंतिम मानव जन्म ! ऐसे में, उस ग्रह / उपग्रह पर, दिया जायेगा. जहाँ उसके , उस जन्म के काल खंड में, उसी समानांतर
अवधि में, कोई मूल श्रेणी वाले, आठवें चरण की, ऐसी आत्मा ! महादेव-दूत बनने हेतु ! महादेव-आज्ञा वाला ! विशेष धर्मकाज कर रही होगी.
***जिसे कु छ पूर्व श्रेणी के , आत्माओं को, उस धर्मकाज के माध्यम से, मूल श्रेणी में ले जाने का वरदान प्राप्त होगा.***
{ नोट :~ यहाँ आदरणीय पाठकों को, धौलागिरी प्रकरण ! या अन्य प्रकरणों को पढ़ कर ! उत्पन्न हुयी, उस जिज्ञासा का भी, संभवतः उत्तर प्राप्त हो
जायेगा कि……………. क्यों मूल श्रेणी के , छठे चरण वाले, २७ वर्षीय परीक्षा के , आरंभिक वर्ष में ही (लगभग पाँचवें वर्ष में ही), उन आत्माओं से, उनके
महादेव-दूत बनने हेतु ! किये जाने वाले, आठवें चरण के , धर्मकाज को करने हेतु ! इतने अग्रिम रूप से, ग्रह / उपग्रह का चयन ! करा लिया जाता है.
(जबकि उस समय ! यह भी तय नहीं होता है कि, वह आत्मा ! अपने मूल श्रेणी का, छठा चरण ! उस बार में, उत्तीर्ण कर भी पायेगी या नहीं.) तब भी,
इसलिये चयन करा लिया जाता है. क्योंकि उसी के आधार पर तो, यह तय होता है कि………… उस ग्रह / उपग्रह के , उस समानांतर काल-खंड में,
किन-किन सौभाग्यशाली ! या वरदानी (वरदान या सुविधायुक्त) पूर्व श्रेणी ! एवं मूल श्रेणी के आत्माओं को, वहाँ जन्म दिया जाये. }
उस सत्यमार्गी नामक आत्मा ने, सांत्वना स्वरूप प्राप्त ! विशेष लाभदायक परिस्थिति वाले विकल्पों में से, एक विकल्प का, चयन तो कर लिया था. परंतु
तभी उसे, महादेव-दूतों द्वारा ! यह बताया गया कि…………..
“उसके द्वारा चयनित ! वह वरदान ! उस पर तभी फलित होगा. जब वह स्वयं के प्रयासों से, उस धर्मकाज में बना रहे. क्योंकि वह भावी महादेव-दूत
आत्मा ! उससे प्रत्यक्ष या संके तों के माध्यम से, एक ही बार ! संपर्क करेगी. अगर उसने वह ! शुभ अवसर गवाँ दिया. तो आज उसे प्राप्त हो रहे………..
उस ४५ विशेष लाभदायक परिस्थितियों वाले, विकल्पों में से, एक चयनित विकल्प का, कोई भी अर्थ ! शेष नहीं रह जायेगा.”
आगे उसे, कु छ और भी बताया गया. जिसका अर्थ ! यह था कि………….. वैसे, उसके आत्मा की, (इस मामले में, उस सत्यमार्गी नामक आत्मा की)
कोई भी त्रुटि ! नहीं होने पर भी, एक और परिस्थिति में, वह वरदान ! फलित नहीं होगा.
वह या वैसा तब होगा ! जब वह ! मूल श्रेणी के , छठे चरण वाली आत्मा ! (जिसके आठवें चरण के , धर्मकाज में, सहयोगी बनने की, इस पूर्वश्रेणी वाली
आत्मा हेतु ! रचना रची जाये. और वह आत्मा !) अपने छठे चरण की, १५०० परीक्षाओं में से, न्यूनतम निर्धारित ! ११११ परीक्षायें ! उत्तीर्ण ही नहीं कर
पाये.
(वैसे अनुत्तीर्ण होने की, संभावना ही, सबसे अधिक होती है. क्योंकि प्रति अरबों / खरबों में से, कोई एक ही आत्मा ! एक ही जन्म में ! यानि मूल श्रेणी
वाले, छठे चरण के , पहले जन्म में ही, मूल श्रेणी वाले, छठे चरण की, ११११ परीक्षाओं में, उत्तीर्ण हो पाती है.)
बहरहाल ! डू बते को तिनके का सहारा ! यहीं मान कर…………. उस सत्यमार्गी नामक आत्मा ने, उस दुर्लभ संयोग के बदौलत ! सांत्वना स्वरूप प्राप्त
हुये, ४५ विशेष लाभदायक परिस्थिति वाले विकल्पों में से, इस विकल्प क्रमांक १४ का चयन करके , अपने अगले जन्म की प्रतीक्षा में, यानि अपने ! दूसरे
क्रमिक चक्र के , पूर्व श्रेणी वाले, आठवें चरण के , प्रथम मानव देह जन्म हेतु ! प्रतीक्षा करने, रिक्तता योनि में चला गया.
क्रमशः

3i :~
कु छ काल पश्चात् ! उस सत्यमार्गी नामक आत्मा को, उसके दूसरे क्रमिक चक्र का, प्रथम मानव जन्म मिला. यानि दूसरे क्रमिक चक्र का, चौरासी लाख
बेरासीयवाँ जन्म मिला. या इसको, यूँ समझें कि, दूसरे क्रमिक चक्र वाला, पूर्व श्रेणी के आठवें चरण का, पहला जन्म मिला. जबकि, समग्र रूप से देखें तो,
जन्मों की कु ल गिनती के अनुसार ! एक करोड़, अड़सठ लाख, एक सौ छयासठवाँ जन्म मिला. तथा दोनों चक्र के , कु ल मानव जन्मों को, मिला कर गिनें
तो………. उसे ! उसके , चौथे मानव देह जन्म की, प्राप्ति हुयी.
उस सुदूर उपग्रह पर, जब उसके ! उस जन्म के , बारह वर्ष पूर्ण होने वाले थे. तभी एक रात्रि ! उसे एक स्वप्न दिखा. स्वप्न में उसे जो दिखा ! उसका
संक्षिप्त विवरण ! कु छ यूँ है………………
अत्यंत उमसनुमा ! गर्मी का मौसम था. एक अनजाने से, अपरिचित हरे-भरे पहाड़ी पर, उस पहाड़ी के सभी दिशाओं से, बहुत सारे बच्चे ! चढ़ायी चढ़ रहे
थे. उन्हीं बच्चों में से, एक बच्चा ! वह स्वयं भी था. तथा और थे……… उसी के लगभग आयु वर्ग के , बहुत सारे अलग-अलग मुखाकृ ति ! व देहकाया वाले
बच्चे. कु छ ही देर की चढ़ायी में, सभी बच्चे ! उस पहाड़ी के शिखर पर थे.
परंतु उस पहाड़ी का शिखर ! कोई नुकीला नहीं था. या ऐसा भी नहीं था कि, उसपर कम समतली जगह हो. उस पहाड़ी के शिखर बिंदु पर……………
बिंदु के स्थान पर ! बहुत बड़ा ! हरा-भरा ! नरम घास का मैदान था. तभी वहाँ के वातावरण में, अलौकिक ! स्वर गुंजा. बोलने वाला अदृश्य था. परंतु
आवाज बहुत स्पष्ट थी :
“बच्चों ! अगर कोई कहानी देखना ! एवं सुनना चाहते हो तो, पीठ के बल ! घास पर लेट करके , आकाश की ओर, अपनी दृष्टि कें द्रित करो.”
अलग-अलग मुखाकृ ति ! व देहकाया वाले ! सभी बच्चों ने, तत्क्षण ! उस निर्देश का पालन किया. जिसमें से एक वह ! स्वयं भी था. लेटते ही, ऊपर का
संपूर्ण आकाश ! किसी थियेटर के , पर्दे में बदल गया. अंतर बस इतना था कि, उस पर्दे का रंग ! सफे द के बजाये नीला था. और वह पर्दा ! समतल होने
बजाये, तारामण्डल के पर्दे जैसा, उल्टा-कटोरेनुमा आकर का था.
उस पर्दे पर, कोई चलचित्र आरंभ हो चुका था. परंतु एक और भी अंतर था. उस पर्दे पर ! प्रकाश यानि फ़ोकस के आने का स्रोत ! कहीं नहीं दिख रहा था.
वहाँ जो चला कर, दिखाया गया. वह ! किसी दूसरे अनजान मानव के , किसी एक जन्म के , जीवन-यात्रा को, डाक्यूमेंट्री जैसा ! शूट किया हुआ ! एक
चलचित्र था. जिसमें उसने ! यह देखा कि…………..
एक बहुत ही, धर्मी-सदकर्मी मनुष्य है. परंतु उसके जीवन में, अपार कष्ट है. वह कोई भी, गलत कार्य ! नहीं करता. परंतु फिर भी, उसके जीवन में, तथा
उसके परिवार-जन के जीवन में, दुःख समाप्त ही नहीं होते. वह जितना ही सदकर्म करता है. उसे उतना ही अधिक ! दण्ड-रूपी दुःख ! व कष्ट मिलता
जाता है. निरंतर-अनवरत समस्याओं से घिरा रहता है. हर ओर से, उस पर दुःखों का पहाड़ ! गिरते रहता है.
एक प्रकार से देखें तो, उससे अधिक ! सदकर्मी-धर्मी ! बहुत ही कम लोग होंगे. जबकि वहीं, उससे अधिक कष्ट-दुःख ! व समस्याओं से ग्रस्त लोग भी,
बहुत कम होंगे. बहुत ही कम लोगों ने, उतना दुःख भोगा होगा. उस डाक्यूमेंट्री के अनुसार…………. अंततोगत्वा ! वह सदकर्मी मानव ! अपना जीवन जी
कर, अपार कष्ट में ही, अपने परिवार को, छोड़ कर ! मर जाता है. उसी के साथ ! वह उल्टा कटोरे नुमा पर्दा ! पुनः नीला हो जाता है.
क्रमशः

3J :~
…………….और वहाँ के वातावरण में, पुनः उसी अलौकिक स्वर में, घोषणा होती है :
“हाँ तो बच्चों ! अब एक बात बताओ ? क्या उस अच्छे व्यक्ति के साथ ! जो कु छ हुआ ! क्या वह उचित था ? क्या भगवान को, ऐसा करना चाहिये था ?”
पीठ के बल सोये ! मुख आकाश की ओर किये ! नरम घास पर लेटे हुये………… सभी बच्चे ! एकमेव स्वर में बोले. उनके बोलने का, मिला-जुला अर्थ था
:
“बिल्कु ल भी नहीं. उन बेचारे ! धर्मी-सदकर्मी के साथ ! बहुत गलत हुआ. भगवान को ऐसा बिल्कु ल भी, नहीं करना चाहिये. भगवान इतने निर्दयी ! कै से
हो सकते हैं ?”
अदृश्य स्रोत वाले का, अलौकिक स्वर ! पुनः वहाँ के वातावरण में गूँजा :
“अच्छा ! किसी भी घटनाक्रम का, बहुत ही छोटा ! एवं आधा-अधूरा अंश देख कर ! अपने मनोमस्तिष्क से, पूर्वानुमान लगा कर ! किसी भी निर्णय पर,
पहुँचने से पहले…………… उसी धर्मी-सदकर्मी आत्मा के , पूर्व जन्म की, कहानी भी देख लो.”
“………….तथा उसके पूर्वजन्म वाले, घटनाक्रम को, देखने से पूर्व ! आत्मा-यात्रा के , अठारह चरणों को भी, ठीक से समझ लो. क्योंकि ! उन
अठारह चरणों को, समझे बिना ! कु छ भी समझ में, नहीं आयेगा.”
…………….और उसके बाद ! अलौकिक वाणी पर, विराम लगते ही, पुनः उस आकाश वाले पर्दे पर, नया चलचित्र आरंभ हो गया. जिसमें ग्राफिक्स
इमेज जैसे आकृ तियों के माध्यम से, आत्मा-यात्रा के , अठारहों चरणों को, विस्तारपूर्वक समझाया गया. तदोपरांत ! उस धर्मी-सदकर्मी आत्मा के , पूर्व जन्म
वाली, कहानी दिखाने की, बारी थी.
अबकि बार ! वहाँ जो दिखाया जा रहा था. वह उसी अनजान मानव के , एक जन्म पूर्व वाले, जीवन-यात्रा की, डाक्यूमेंट्री जैसी चलचित्र थी. जिसमें, उस
बारह वर्षीय लड़के ने, यह देखा कि…………..
वह तो, एक बहुत ही, अधर्मी-कु कर्मी मनुष्य है. परंतु उसके जीवन में, फिर भी खूब मजे हैं. वह कोई भी, सही कार्य ! नहीं करता. परंतु फिर भी, उसके
जीवन में, तथा उसके परिवार-जन के जीवन में, प्रत्यक्षतः कोई भी, कमी नहीं दिखती. वह जितना ही कु कर्म रूपी………… चोरी ! लूट ! व्यभिचार !
अत्याचार ! भ्रष्टाचार ! इत्यादि करता है.
उसे, उसके परिणामस्वरूप ! उतना ही अधिक ! धन-धान्य-सम्मान ! मिलता जाता है. निरंतर-अनवरत संपूर्ण जीवन ! भोग-विलास करता हुआ ! मजे
करता रहता है. कहीं कोई दुःख ! या दुःख का साया तक ! उसके पास नहीं फटकता. उसके जीवन में, चहुँओर ! सुख-ही-सुख है.
एक प्रकार से देखें तो, उससे अधिक ! कु कर्मी-अधर्मी ! बहुत ही कम लोग होंगे. जबकि वहीं, उससे अधिक धन-धान्य संपन्न ! तथा मान-सम्मान से
परिपूर्ण ! सामाजिक जीवन वाले लोग भी, बहुत कम ही होंगे. बहुत ही कम लोगों को, उतनी अत्यधिक सुख-सुविधायें ! प्राप्त होती होंगी. उस डाक्यूमेंट्री के
अनुसार…………. अंततोगत्वा ! वह कु कर्मी मानव ! अपना जीवन जी कर, अपार वैभव से परिपूर्ण समृद्धि ! अपने परिवार हेतु छोड़ कर ! मर जाता है.
उसी के साथ ! वह उल्टा कटोरे नुमा पर्दा ! पुनः नीला हो जाता है. तथा उसके कु छ ही क्षण पश्चात् ! उस पर पुनः चलचित्र आरंभ हो जाता है. अब उसमें
! उसी कु कर्मी आत्मा के , मरणोपरांत का दृश्य ! यानि उस आत्मा द्वारा ! उसका, वह देह त्यागने के बाद का, दृश्य दिख रहा था.
जिसमें वह ! लेखा-जोखा खंड में था. तथा अपने साथ लटकते ! सदकर्म एवं कु कर्म के थैले को, पलटने के पश्चात् ! अपने कु कर्मों के , विशाल ढेर को देख
कर, विलाप कर रहा था. तथा उन कु कर्मों के लिये ! शीघ्रातिशीघ्र दंड देने हेतु ! प्रार्थनायें कर रहा था.
वैसे कु छ देर की विनती के पश्चात् ! उसकी प्रार्थना ! स्वीकार कर ली जाती है. तथा उसी के साथ ! वह उल्टा कटोरे नुमा पर्दा ! पुनः नीला हो जाता है.
बाकी उसके प्रार्थना को, स्वीकार किये जाने का, क्या परिणाम निकला ? वह तो, उसने ! पहले ही देख लिया था.
…………….अतः अब ! वहाँ के वातावरण में, पुनः उसी अलौकिक स्वर में, घोषणा होती है :
“हाँ तो बच्चों ! अब बताओ ? क्या उस कु क्रमी व्यक्ति को, दण्ड देना उचित था ? क्या भगवान को, ऐसा करना चाहिये था ?”
पीठ के बल, नरम घास पर लेटे हुये ! चेहरा आकाश की ओर किये ! …………सभी बच्चे ! एकमेव स्वर में बोले. उनके बोलने का, इस बार ! मिला-
जुला अर्थ था :
“बिल्कु ल उस दुष्ट-पापी को, दण्ड मिलना ही चाहिये ! कठोर से कठोर दण्ड मिलना चाहिये.”
अदृश्य स्रोत वाले का, अलौकिक स्वर ! एक बार फिर से, वहाँ के वातावरण में गूँजा :
“अच्छा बच्चों ! इसलिये मैंने कहा था. किसी भी घटनाक्रम का, बहुत ही छोटा ! एवं आधा-अधूरा अंश देख कर ! कभी भी, अपने मनोमस्तिष्क से,
पूर्वानुमान लगा कर ! किसी भी निर्णय पर, झट से नहीं पहुँचना चाहिये.”
“अब एक और जिज्ञासा ! जो तुम्हारे मस्तिष्क में उठेगी. वह यह कि………… तुम्हें यह सब ! क्यों दिखाया गया है ?”
“इसका उत्तर है………….. तुम सभी-के -सभी ! ऐसी आत्मा हो, जिसके पास ! पूर्वजन्मों के संचित कु कर्मों का, विशाल भंडार है. परंतु तुम्हें ! उसका,
स्मरण नहीं होगा. क्योंकि तुम अभी, पूर्व श्रेणी में हो. और विधि-विधान के अनुसार ! पूर्व श्रेणी के आत्मा को, उसके मानव-देह-जन्म में, कु छ भी अलौकिक
स्मरण ! नहीं रह सकता.”
“अब यहाँ ! एक और प्रश्न उठता है. वह ! यह है कि………. उसी विधि-विधान के अनुसार ! कु कर्मी आत्मा को तो, और भी कु कर्म करने को, छोड़
दिया जाता है. तब फिर ! तुम्हें यह सब दिखा कर ! सचेत क्यों किया जा रहा है ?”
“इसका उत्तर है…………… तुम सभी ! हो तो घोर कु कर्मी आत्मा ही. परंतु किन्ही-किन्ही ! अलग-अलग कारणों से, तुम सभी को, कु छ विशेष
लाभदायक परिस्थितियों वाली, सुविधायें प्राप्त है. तुम्हें भले ही, इस बात का, स्मरण नहीं है. परंतु ! तुमने, अपने स्वयं की स्वेच्छा से, अपने अंतिम
पूर्वजन्म की समाप्ति पर ! स्वयं ही, इस विकल्प का ! इस सुविधा का ! चयन किया होगा.”
“उसी सुविधा के अनुसार ! तुम्हें, यह सचेत करने वाला कार्य ! किया गया है. परंतु ! इसका यह अर्थ ! बिलकु ल भी नहीं है कि…………. तुम्हें यह
घटना ! इस देह के , जीवन भर, स्मरण रहेगी. बिल्कु ल भी नहीं रहेगी. अभी कु छ समय पश्चात् ! यहाँ से लौटते ही, तुम सब कु छ भूल जाओगे. इस घटना
का, तुम्हारे ऊपर ! कोई असर नहीं रहेगा.”
“परंतु ! तुम अभी, जो यहाँ चुनाव करोगे. उसका असर ! अवश्य ही, तुम्हारे इस जन्म भर रहेगा. अब प्रश्न यह है कि, तुम्हें अभी ! चुनाव क्या करना है
?”
“तुम्हें बस ! चुनाव यह करना है कि…………. तुम अपने पूर्वजन्मों के , संचित कु कर्मों का दण्ड ! इस जन्म में, किस गति से, भोगना चाहते हो ?”
“एक है सामान्य गति ! जिसमें तुम्हारी कोई इच्छा ! मान्य नहीं होगी. क्योंकि कम से कम ! उतना दण्ड तो ! यानि उस गति से दण्ड तो…………….
तुम्हें ! हर हाल में, भोगना ही पड़ेगा.”
“दूसरा विकल्प है ! सामान्य से नौ गुणा तेज गति से, सामान्य से नौ गुणा अधिक दण्ड भोगना. उसका अभी तुम्हें ! एक संक्षिप्त विवरण ! दिखाया जायेगा.
जो सभी के लिये, उसके कु कर्मों के भंडार अनुसार ! अलग-अलग होगा. तुम सब अपनी आँखें बंद करो. और नौ गुणा तेज गति वाले, दण्ड का विवरण
देखो.”
“इस विवरण को, देखने के मध्य में ही, तुम्हें अगर ! यह मुश्किल लगे तो………….. तुम कभी भी, बीच में ही उठ कर ! यहाँ से जा सकते हो. तुम्हारे
जाने का अर्थ ! यह माना जायेगा कि, तुम्हें नौ गुणा तीव्र गति से, दंड नहीं भोगना है. तुम्हारे ! यहाँ से लौटते ही, यहाँ के घटनाक्रम का, तुम्हें कु छ भी
स्मरण ! नहीं रहेगा.”
“………..और अगर तुमने ! पूरा देख लिया तो, उसका अर्थ ! यह माना जायेगा कि, तुम्हारी इसमें रुचि है. फिर तुम्हारे हेतु ! सामान्य गति वाला
विकल्प ! समाप्त हो जायेगा. उससे तीव्र गति वाले, दो विकल्पों में से, तुम्हें एक विकल्प का चुनाव ! हर हाल में, करना ही होगा.”
उस सत्यमार्गी नामक आत्मा के , उस वर्तमान जन्म वाले, बारह वर्षीय देह ने भी, बाकी सभी की भाँति ! अपनी आँखें बंद की. तत्क्षण उसे ! अपने भविष्य
के , दुःखों व कष्टों की, विवरणिका दिखायी जाने लगी. उसकी तो आरंभ में ही, हिम्मत जवाब दे गयी. उससे आगे का, देखा नहीं गया. उसने अपनी आँखें
खोली. उसे कई सारे बच्चे ! उठ कर ढलान की ओर ! जाते दिखे. वह भी उठने ही वाला था कि, उसने सोचा ! थोड़ा और देख कर, फिर लौट जायेगा.”
उसने पुनः अपनी आँखें बंद की. और उसको देखने में, इतना खो गया कि…………. वह पूरा ही देख लिया. अब वह फँ स चुका था. उसने वहाँ से भागना
चाहा. परंतु ! एक महादेव-दूत द्वारा ! पकड़ कर, बिठा दिया गया. उसने ! अपने आस-पास ! दृष्टि फिरायी. लगभग नब्बे प्रतिशत बच्चे ! वहाँ से जा चुके
थे. बाकी बचे हुये, सभी बच्चों के पास ! एक-एक महादेव-दूत खड़े थे. जिसमें से अधिकतर बच्चे ! रो रहे थे. वह भी रोने लगा. लेकिन महादेव-दूत पर !
महादेव-दूतों पर ! इसका कोई असर नहीं पड़ा.
तभी अदृश्य स्रोत वाला, अलौकिक स्वर ! एक बार फिर से, वहाँ के वातावरण में गूँजा :
“अपने कु कर्मों के , शीघ्रातिशीघ्र दंड भोगने हेतु ! दृढ़ संकल्पित ! सभी आत्माओं को, बहुत-बहुत बधाई………”
वहाँ उपस्थित बच्चों में से, एक साथ ! कई बच्चे ! अधिकतर बच्चे ! एकमेव स्वर में चिल्लाये. जिसमें वह सत्यमार्गी भी था. उनके चीख-चिल्लाहट का, कु ल
जमा अर्थ था.
“हम कोई दृढ़-संकल्पित नहीं हैं. हम तो यहाँ ! धोखे से फँ स गये हैं. कृ पया हमें ! यहाँ से जाने दीजिये.”
उनके चीं-पों भरे, चीख-चिल्लाहट से, अदृश्य स्रोत वाले, अलौकिक स्वर पर, कोई भी असर नहीं पड़ा. पुनः वह दिव्य स्वर ! वहाँ के वातावरण में गूँजा :
“तुम सभी के , रोने-धोने से ! हम सभी पर ! कोई असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि यह हमारा ! प्रत्येक दिवस का काज है. यह रोना-धोना ! हम नियमित देखते-
सुनते हैं. अतः शांत हो कर, आगे की प्रक्रिया समझो.”
कु छ बच्चे चुप हो गये ! कु छ सुबकते रहे ! तो वहीं कु छ पूर्ववत् चिल्लाते रहे. तथा उन बच्चों के , नौटंकियों से परे, अदृश्य स्रोत वाले का, अलौकिक स्वर ! एक
बार फिर से, वहाँ के वातावरण में गूँजा :
“अब तुम्हारे पास ! दो ही विकल्प शेष है. या तो नौ गुणा तीव्र गति से, दण्ड भोगो. या निन्यानवे गुणा तीव्र गति से, निन्यानवे गुणा अधिक दंड भोगो. नौ
गुणा वाले की, विवरणिका ! तुम अभी देख चुके हो. अब आँखें बंद करके , निन्यानवे गुणा वाली, विवरणिका भी, देख ही लो.”
सत्यमार्गी ने थर-थर काँपते हुये, आँखें बंद करके , उस विवरणिका को भी देखा. उसका उल्लेख करने हेतु ! बहुत हिम्मत चाहिये. अतः अभी रहने दीजिये.
भविष्य के किसी अन्य एडिशन में, हिम्मत जुटायी जायेगी.
वहाँ उपस्थित ! सभी बच्चों ने, जब अपनी-अपनी विवरणिका देख ली. तब उनसे ! उनके पास, उनकी रखवाली में खड़े, महादेव-दूत ने, उनसे पूछा :
“निर्णय सुनाओ ! नौ गुणा ? या निन्यानवे गुणा ?”
तब तक सत्यमार्गी ! सही में दृढ़-संकल्पित हो चुका था. उसने मुट्ठी व जबड़ा भींच कर, उत्तर दिया :
“निन्यानवे गुणा !”
क्रमशः

3K :~
महादेव-दूत ने, उससे पूछा :
“क्या तुम यह निर्णय ! सभी पहलुओं पर ! विचार करके ले रहे हो ? क्योंकि निन्यानवे गुणा ! बहुत अधिक होता है. इसमें बस तुम ! समय पूर्व मरोगे नहीं.
बाकी तुम्हारे साथ ! सभी दुर्दशायें ! हो जायेंगीं.”
सत्यमार्गी नामक आत्मा के देह धारी ! बारह वर्षीय बच्चे कहा :
“जी ठीक है.”
महादेव-दूत बोले :
“तथास्तु !”
कमाल की बात तो यह थी कि, वहाँ बचे-खुचे उपस्थित बच्चों में से, अधिकतर ने, निन्यानवे गुणा वाला ही, विकल्प चयन किया था. वह सोच रहा था
कि………… ‘इन सब ने क्या सोच कर, यह विकल्प चुना होगा ?’
तभी महादेव-दूत बोले :
“अब तुम जा सकते हो.”
जाने से पहले, सत्यमार्गी नामक आत्मा के देह धारी ! उस बारह वर्षीय बच्चे ने पूछा :
“क्या सभी दुःख व कष्ट ! पूर्व जन्मों के , कु कर्म-स्वरूप ही होते हैं. ?”
महादेव-दूत ने उत्तर दिया :
“नहीं ! ऐसा बिल्कु ल भी नहीं है. दण्ड ! दुःख ! विपदा ! कष्ट ! इत्यादि ! कई-कई प्रकार के होते हैं. उसकी बहुत ही, विस्तृत व्याख्या है. उदाहरणार्थ मैं
तुम्हें ! कु छ मुख्य-मुख्य ! समझा दे रहा हूँ. जैसे……….”
“कु छ तो पूर्ण रूप से, पूर्वजन्मों के संचित कु कर्मों को, काटने हेतु ! ही होते हैं.”
“कु छ वर्तमान जन्म के , तुम्हारे स्वयं द्वारा किये ! कर्मों के , प्रतिक्रिया स्वरूप होते हैं. कभी-कभी उसी बहाने, पूर्वजन्मों के संचित कु कर्मों को, काटने वाले
दण्ड भी, उसी में जोड़ दिये जाते हैं. जिससे दण्ड का आकार………. किये गये क्रिया के , प्रतिक्रिया से भी बड़ा ! प्रतीत होने लगता है.”
“कु छ तो के वल ! उसी वर्तमान जन्म के , क्रिया की प्रतिक्रिया भर ही होते हैं.”
“वहीं कु छ के वल ! उसी वर्तमान जन्म के , कु कर्मों के दण्ड होते हैं. वैसे यह वाले दण्ड ! बहुत ही कम ! यानि नगण्य मात्रा में होते हैं. क्योंकि, कु छ विशेष
परिस्थितियों को छोड़ कर, वर्तमान जन्म के , अधिकतर कु कर्मों का दण्ड ! उसके आगामी मानव जन्म में ही, मिलने का प्रावधान है.”
“कु छ दण्ड ! ऐसे भी होते हैं. जो ना तो, पूर्वजन्म के संचित कु कर्मों को, काटने वाले होते हैं. और ना ही, उस वर्तमान जन्म के , किसी क्रिया की, प्रतिक्रिया
स्वरूप होते हैं. उसके उदारहण स्वरूप ! एक घटनाक्रम समझो………..”
“मान लो ! कोई बहुत दुष्ट मानव है. और वह ! अनावश्यक रूप से, बिना किसी कारण ! या अपने किसी कु त्सित कारणों से, तुम्हें परेशान करता है. और
तुम स्वयं से, उससे बचाव करने में, असमर्थ हो. तथा तुम्हें ! उससे बचाने के , दायित्व का संके त ! जिन-जिन मानवों को, दिया गया है. उसमें से कोई भी,
तुम्हें बचाने वाले, अपने हिस्से के , उस सदकर्म को करने, नहीं आता है. तब उस परिस्थिति में, उस दुष्ट मानव द्वारा ! किये गये अत्याचार का, तुम पर दुःख
व कष्ट रूपी असर तो होगा. परंतु…………..”
“चूँकि, वह दुःख ! एवं कष्ट ! तुम्हारे द्वारा ! किसी किये गये कु कर्म ! या पाप का, परिणाम नहीं है. अतः वह भोगा गया कष्ट ! एवं दुःख. तुम्हें ! उसी जन्म
के भविष्य में, या अगले मानव जन्म ! या जन्मों में…………… तुम्हारे हेतु ! बहुत बड़े, एवं अतिविशेष ! लाभदायक परिस्थितियों का, निर्माण करेगा
! या करता रहेगा.”
“अभी के लिये, इतना समझना ही पर्याप्त है. अब तुम जाओ.”
आज्ञा पा कर वह बच्चा ! वहाँ से निकला. तथा अपने घर पहुँचा. जिस बड़े ! व ऊँ चे पेड़ के ऊपर बने, घर में वह सोया था. उसे वहाँ ! अपनी बिस्तर की
ओर, तेजी से बढ़ता ! एक जहरीला कीड़ा दिखा. उससे बचने हेतु ! वह बिस्तर से नीचे उतर कर, एक ओर भागा. और उसी भागने के क्रम में, संतुलन
बिगड़ने से, उस बहुत ऊँ चाई से, नीचे गिर गया. उसके कमर की हड्डी ! पूरी तरह से टू ट गयी. भयंकर पीड़ा………………..
~~~~~~~~~
उस जन्म की बची हुयी आयु ! तथा उसके अगले जन्म की, संपूर्ण आयु ! अत्यंत कष्ट व दुःख में भोगता रहा. अभी महादेव-दूतों से, उसका विवरण लिखने
की, अनुमति नहीं है. अतः सीधे, उसके भी अगले जन्म के , पचास वर्ष की आयु में चलते हैं.
~~~~~~~~~
क्रमशः

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#धर्मपुनर्स्थापना_तृतीय_बैठक_प्रश्नोत्तरी_पठनसामग्री
..................“संपूर्ण सृष्टि के रचयिता ! देवों के देव महादेव से प्राप्त ! आत्मा की स्वतंत्रता का, तुम दुरुपयोग करते हो. तुम अभी अबोध हो ! क्योंकि
तुम्हें ! यह भी नहीं पता कि…………..” “स्वतंत्रता का मूल अर्थ ही, विधि-विधान के अनुरूप चलना होता है. महादेव निर्मित ! विधि-विधान के अनुसार
चलना ! पराधीनता नहीं है. वह तो महादेव को, प्रसन्न करने का, प्रसन्न रखने का, सबसे उत्कृ ष्ट माध्यम है. सर्वोच्च मार्ग है. सर्वोत्तम कर्म है.”

FB post by Swami Satyanand शिवशक्ति सेवक सत्यानंद शिवशक्ति सेवक सत्यानंद


आत्मा के १८ चरण की यात्रा जो कि आत्मा से परमात्मा बनने तक की यात्रा है ......... इस के बारे में और महादेव द्वारा रचित विधि विधान के सन्दर्भ में
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20.02.2024
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देवो के देव– महादेव, के विधि-विधान को पूरा करने हेतु प्रयासरत “स्वामी सत्यानंद” जी , को आप दान स्वरुप न्यूनतम १/- की धनराशि दान दे सकतें हैं
....... “स्वामी सत्यानंद” जी, के द्वारा किये जाने वाले “धर्म कें द्र स्थापना “ के अभियान को समझने के लिए.........“स्वामी सत्यानंद” जी , आपके लिए
हमेशा उपलब्ध हैं– उनके फोन नंबर 9313 246 190 पर व्हाट्सएप पर मैसेज देकर बात कर सकतें हैं,
निवेदक
SS1SSPG- फ़ोन 94122-96850
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~ : महाशिवरात्रि भेंट-वार्ता बैठक :~


१५ चरण वाली, विस्तृत कार्यक्रम सारणी.
07 मार्च 2024 गुरुवार ; दोपहर से संध्या तक : कार्यक्रम-स्थल एवं आस-पास के , महादेव-भक्तों से भेंट. उनके द्वार जा कर ! और / या ! ग्रैंड मर्क्यूरी
होटल में. (सत्यानंद काज)

07 मार्च 2024 गुरुवार ; देर संध्या : पूर्व-श्रेणी के , अति-गुप्त वर्ग वाले, भावी शिवशक्तियन के , तृतीय बैच के साथ ! कार्यकारिणी बैठक. स्थान :~ ग्रैंड
मर्क्यूरी होटल. (राके श मूल स्वरूप काज)

07 मार्च 2024 गुरुवार ; रात्रि : मूल-श्रेणी वाले, भावी शिवशक्तियन के , तृतीय बैच के साथ ! कार्यकारिणी बैठक. स्थान :~ कोर्टयार्ड मैरियट होटल.
(राके श मूल स्वरूप काज)

08 मार्च 2024 शुक्रवार ; प्रातः काल : पूर्व-श्रेणी के , अति-गुप्त वर्ग वाले, भावी शिवशक्तियन के , द्वितीय बैच के साथ ! कार्यकारिणी बैठक. स्थान :~
क्लार्क शिराज होटल. (राके श मूल स्वरूप काज)

08 मार्च 2024 शुक्रवार ; सुबह से दोपहर तक : महादेव-दूतों के निमंत्रण पर, 21 राज्यों के , 81 जिलों से पधार रहे………….. पूर्व-श्रेणी व मूल-
श्रेणी वाले, कु ल लगभग 351 शिवशक्तियन ! भावी शिवशक्तियन ! एवं महादेव-भक्तों का स्वागत ! व रूम अलॉटमेंट वर्क . स्थान :~ रेडिसन होटल, ताज
होटल, हिल्टन होटल. (सत्यानंद काज)

08 मार्च 2024 शुक्रवार ; दोपहर बारह बजे से डेढ़ बजे तक : सभी पधारे हुये, आदरणीय महादेव-भक्तों का भोजन कार्यक्रम. स्थान :~ रेडिसन होटल,
ताज होटल, हिल्टन होटल. (सत्यानंद काज व राके श द्वितीय स्वरूप काज व श्वेतभानु तृतीय स्वरूप काज)
08 मार्च 2024 शुक्रवार ; संध्या पूर्व : पूर्व-श्रेणी वाले, शिवशक्तियन ! भावी शिवशक्तियन ! एवं महादेव-भक्तों के साथ ! छोटे-छोटे ग्रुप में बैठकी. स्थान
:~ रेडिसन होटल व ताज होटल. (सत्यानंद काज)

08 मार्च 2024 शुक्रवार ; संध्या से रात्रि या देर रात्रि तक : पूर्व-श्रेणी वाले, शिवशक्तियन ! भावी शिवशक्तियन ! एवं महादेव-भक्तों के साथ ! वृहद्
प्रश्नोत्तरी सत्र (कु ल उपस्थिति ६३-८१). तथा रात्रि भोजन. एवं देर रात्रि में, छोटी-छोटी बैठकी भी. स्थान :~ रेडिसन या ताज या आईटीसी में से, कहीं
भी एक जगह. अभी किन्ही कारणों से, सार्वजनिक पटल पर, बताने की अनुमति नहीं है. (सत्यानंद काज)

08 मार्च 2024 शुक्रवार ; देर रात्रि के पश्चात् : मूल-श्रेणी वाले, प्रथम बैच के , भावी शिवशक्तियन के साथ ! वृहद् प्रश्नोत्तरी सत्र ! तथा छोटी-छोटी
बैठकी. स्थान :~ ताज या आईटीसी में से, कहीं भी एक जगह. अभी किन्ही कारणों से, सार्वजनिक पटल पर, बताने की अनुमति नहीं है. (राके श मूल
स्वरूप काज)

09 मार्च 2024 शनिवार ; प्रातः काल : पूर्व-श्रेणी के , अति-गुप्त वर्ग वाले, भावी शिवशक्तियन के , प्रथम बैच के साथ ! वृहद् प्रश्नोत्तरी सत्र ! तथा छोटी-
छोटी बैठकी. स्थान :~ हिल्टन होटल. (राके श मूल स्वरूप काज)

09 मार्च 2024 शनिवार ; सुबह साढ़े सात बजे से साढ़े नौ बजे तक : पूर्व-श्रेणी वाले, शिवशक्तियन ! भावी शिवशक्तियन ! एवं महादेव-भक्तों के साथ !
छोटी-छोटी बैठकी ! एवं सुबह का भोजन ! एवं व्यक्तिगत भेंट-वार्ता. स्थान :~ रेडिसन या ताज या आईटीसी में से, कहीं भी एक जगह. अभी किन्ही
कारणों से, सार्वजनिक पटल पर, बताने की अनुमति नहीं है. (सत्यानंद काज)

09 मार्च 2024 शनिवार ; सुबह दस बजे से दोपहर एक बजे तक : महादेव-दूतों के निमंत्रण पर, 21 राज्यों के , 81 जिलों से पधारे………….. पूर्व-
श्रेणी व मूल-श्रेणी वाले, कु ल लगभग 351 शिवशक्तियन ! भावी शिवशक्तियन ! एवं महादेव-भक्तों की, अगले भेंट-बैठक में आने हेतु ! विदाई व रूम चेक-
आउट वर्क . स्थान :~ रेडिसन होटल, ताज होटल, हिल्टन होटल. (सत्यानंद काज व राके श द्वितीय स्वरूप काज व श्वेतभानु तृतीय स्वरूप काज)

09 मार्च 2024 शनिवार ; दोपहर तीन बजे से संध्या सात बजे तक : पूर्व-श्रेणी वाले, शिवशक्तियन ! भावी शिवशक्तियन ! एवं महादेव-भक्तों के साथ !
छोटी-छोटी बैठकी. स्थान :~ आईटीसी का रॉयल सुइट. (सत्यानंद काज)

09 मार्च 2024 शनिवार ; रात्रि भर : मूल-श्रेणी वाले, द्वितीय बैच के , भावी शिवशक्तियन के साथ ! छोटी-छोटी बैठकी. स्थान :~ आईटीसी का सुपर
रॉयल सुइट. (राके श मूल स्वरूप काज)

10 मार्च 2024 रविवार ; सुबह से दोपहर तक : कार्यक्रम-स्थल एवं आस-पास के , महादेव-भक्तों से भेंट. उनके द्वार जा कर ! और / या ! आईटीसी
रॉयल सुइट में. (सत्यानंद काज)
कार्यक्रम सारणी का, सूचनार्थ ब्योरा ! समाप्त.

नोट :~ पूर्व-श्रेणी के , अति गुप्त वर्ग वाले, भावी शिवशक्तियन ! तथा मूल-श्रेणी के भावी शिवशक्तियन ! या कोई भी मूल श्रेणी वाले मानव, कृ पया ध्यान
रखें. यह शेड्यूल ! के वल आपके , रूटीन बनाने की, तैयारियों हेतु है. अतः कृ पया सदैव की भाँति ! इस पोस्ट पर भी, कोई रियेक्ट (लाइक कमेंट शेयर)
नहीं करें.
…………..बाकी सभी आदरणीय पाठक-गण ! एवं पूर्व-श्रेणी वाले, शिवशक्तियन ! भावी शिवशक्तियन ! व महादेव-भक्त ! कु छ भी करने हेतु ! पूर्ववत्
स्वतंत्र हैं. उनका सहर्ष स्वागत है.
!! जय शिव शक्ति !!
!! माता शक्ति व महादेव की जय हो !!
स्वामी सत्यानंद Sahil Singh Suryavanshi
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ट्रेन, बस व फ्लाइट के , टाइमिंग के कारण…………….. वैसे शिवशक्तियन ! एवं महादेव-भक्त ! जो महाशिवरात्रि भेंट-वार्ता में, 07 मार्च को ही, पहुँच जा
रहे हैं. या 07 मार्च की देर रात्रि ! या 08 मार्च के , अर्ली मॉर्निंग पहुँच रहे हैं.
उन सभी देवियों व सज्जनों के लिये, 07-08 मार्च हेतु ! ग्रैंड मर्क्यूरी होटल में, रूम बुक कर दिये गये हैं. वहीं 08-09 मार्च हेतु ! पूर्ववत् रेडिसन में बुकिं ग
है हीं.
आप सभी के , भोजन का प्रबंध ! निम्नलिखित प्रकार से है……………
लंच
07 मार्च 2024 गुरुवार
दोपहर 01:00-02:00pm
होटल ग्रैंड मर्क्यूरी के रेस्टोरेंट में.

डिनर
07 मार्च 2024 गुरुवार
रात्रि 08:00-09:00pm
होटल ग्रैंड मर्क्यूरी के रेस्टोरेंट में.

ब्रेकफास्ट
(के वल होटल में स्टे किये हुये के लिये)
08 मार्च 2024 शुक्रवार
सुबह 06:30-08:00am
होटल ग्रैंड मर्क्यूरी के रेस्टोरेंट में.

लंच
08 मार्च 2024 शुक्रवार
दोपहर 01:00-02:30pm
होटल रेडीसन के रेस्टोरेंट में.

डिनर
08 मार्च 2024 शुक्रवार
रात्रि 07:00-09:00pm
होटल रेडिसन के अंबर हॉल में.

ब्रेकफास्ट
09 मार्च 2024 शनिवार
सुबह 07:30-10:00am
होटल ताज के रेस्टोरेंट एवं
होटल रेडीसन के रेस्टोरेंट में.
नोट :~ दोनों ही होटल ! रेडीसन व मर्क्यूरी ! बिल्कु ल आस-पास ही, आमने-सामने हैं.
स्वामी सत्यानंद Sahil Singh Suryavanshi

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