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#ऑटोबायोग्राफी_ऑफ_स्वामी_सत्यानंद_1st_एडिशन

भाग
आत्मकथा आरंभ !
बिल्कुल आरंभ से शुभारंभ !!
महादेव द्वारा रचित ! इस सृष्टि का, जैसे-जैसे ! प्रतिक्षण………. निरंतर ! अनवरत ! विस्तार
होता जा रहा है. वैसे-वैसे ही, महादेव द्वारा ! प्रत्येक दिवस ! असंख्य नये आत्माओं का,
निर्माण भी किया जाता ! जा रहा है. यह पूरी प्रक्रिया ! बिना रुके ! बगैर थमें ! अनंत काल से, सी
ही ! चली आ रही है.
क्योंकि देवों के देव ! महादेव द्वारा ! बनाया गया ! यहीं विधि का विधान है. यह सदा से, ऐसे
ही चलता आया है. सदैव ऐसे ही चलता रहेगा. क्योंकि यही सत्य है ! यही शाश्व वतहै ! यही
सनातन है.
यह आत्मकथा है ! ऐसे ही एक आत्मा की. उसके निर्माण ! यानि जन्म की. उसके यात्रा की. यानि
में चलने की.
मोक्ष प्राप्ति के दि शा
नोट :~ पृथ्वी ग्रह के पाठकों को, सभी कुछ आसानी से, समझ में आ जाये. इसलिये ! समय के
गणना का आधार ! पृथ्वी ग्रह के गणितीय गणना ! एवं समय-चक्र के अनुसार ! रखा गया है. वैसे
यह गणना ! प्रत्येक ग्रह-उपग्रह पर, अलग-अलग होती है.
जैसे प्रति दिवस ! असंख्य आत्माओं का, निर्माण होता है. वैसे ही करोड़ों वर्ष पूर्व ! एक दिवस !
उस दिवस के, कुल आत्मा निर्माण में, महादेव द्वारा ! *सत्यमार्गी* नामक ! एक आत्मा का भी, निर्माण
किया गया.
पृथ्वी ग्रह के, गणितीय गणना के अनुसार देखें तो, लगभग इक्कीस घंटे पूर्व ! समाप्त हुये,
अंतिम बैठक के, २१ घंटे बाद ! लगभग ३ घंटे चलने वाली, पुनः नयी बैठक का, आरंभ हो चुका था.
उन अंतिम २४ घंटों में, नयी निर्मित हुयी, सभी आत्मायें ! उस बैठक में, उपस्थित थी.
उन्हीं में उपस्थित था ! वह सत्यमार्गी नामक आत्मा भी. उस दिवस के, पिछले दिवस वाली,
बैठक में उपस्थित ! सभी आत्माओं को, उनके पूर्व श्रेरेणी के, दूसरे चरण का, उनका प्रथम नवीन
देह ! प्राप्त हो चुका था. अब इस समूह वाली, आत्माओं कि बारी थी. यह बैठक ! प्रति दिवस ! ऐसे ही
नियमित प्रक्रिया के तहत् ! चलती रहती थी.
! कुछ यूँ था. एक प्रकार से, चढ़ने के क्रमानुसार में, चार चरणबद्ध
उस बैठक स्थली का दृय श्य
ऊँचाई वाले स्थानों पर…………… महादेव ! माता ! एवं तेरह और देवी-देवता ! यानि कुल पंद्रह !
भगवान व मातायें उपस्थित थीं. एक प्रकार से, दरबार लगा हुआ था. आगे बढ़ने से पूर्व ! वहाँ का
दृश्य ! कलम से उकेर सकूँ ! ऐसा प्रयत्न करके देखता हूँ.
चढ़ाई के क्रम में, सबसे आरंभ में, दो युगल सिंहासन लगे हुये थे. एक पर ! प्रभु श्री !
रीरामभगवान
एवं माता सीता ! विराजमान थीं. दूसरे पर ! प्रभु श्री ! एवं माता रुक्मणी ! विराजमान थीं.
रीकृष्णभगवान
चढ़ाई के ही क्रम में, उनसे थोड़ा ऊँचे स्थान पर, दो और युगल सिंहासन लगे हुये थे. एक पर ! भगवान
कार्तिकेय देव एवं देवी देवसेना ! विराजमान थीं. वहीं दूसरे पर ! भगवान गणेश देव एवं
देवी रिद्धिसिद्धि ! विराजमान थीं.
उससे ऊपर वाले, ऊँचे स्थान पर, पाँच देवी-देवताओं के बैठने हेतु ! एक जैसे दो युगल सिंहासन ! तथा एक
एकल सिंहासन लगा हुआ था. पहले युगल सिंहासन पर ! भगवान विष्णु देव जी ! एवं देवी लक्ष्मी माँ !
विराजमान थीं. दूसरे युगल सिंहासन पर ! भगवान ब्रह्मा देव जी ! एवं देवी सरस्वती माँ ! विराजमान थीं.
तीसरे एकल सिंहासन पर ! भगवान रुद्र देव जी ! अकेले विराजमान थे.
सबसे ऊपर वाले, ऊँचे स्थान पर ! एक विशाल शिला के ऊपर ! एक आसन लगा हुआ था. जिस पर ! परम्
पिता परमेवर
या श्वनि देवों के देव महादेव ! एवम् जगत् जननी माँ ! माता शक्तिस्वरूपा पार्वती माई
विराजमान थीं.
…………….तथा उन सभी देवी-देवताओं के समक्ष ! उनके सानिध्य में, विगत् २४ घंटों में, नव-
निर्मित हुये, असंख्य ! आत्माओं की भीड़ ! उपस्थित थी. उसी भीड़ में, वह सत्यमार्गी नामक !
आत्मा भी उपस्थित था. जिसकी यह आत्मकथा ! लिखी जा रही है.
वहाँ की, लगभग तीन घंटे चलने वाली ! कार्यवाही का शुभारंभ करते हुये, सर्वप्रथम ! प्रभु
श्री कृ ष्ण भगवान बोले :
“महादेव के अंश से निर्मित हुयी ! सभी आत्माओं का स्वागत है. तथा कुछ ही समय पचात् त् !
श्चा
सभी की आरंभ होने वाली ! मोक्ष-यात्रा हेतु ! हम सभी की ओर से, असीम शुभकामनायें ! व
मंगकामनायें हैं.”
“सर्वप्रथम आप सभी को, मैं यह बतलाना चाहता हूँ कि, आप कौन हैं ?”
“परंतु ! यह बतलाने से पूर्व ! मैं सबसे पहले, महादेव के बनाये विधि-विधान के अनुरूप !
उस छः चरणीय ! या छः वर्गीय ! व्यवस्था को, आपके समक्ष रखता हूँ. इससे आपको समझने
में, आसानी होगी.”
“सबसे सर्वोच्च स्थान पर हैं……………… परम् पिता परमेवर रश्व! देवों के देव महादेव ! एवम् जगत्
जननी माँ ! शक्तिस्वरूपा पार्वती माता ! आप परम् माता-पिता हैं ! अतः आप इसमें से, किसी भी वर्ग !
या चरण में नहीं हैं. क्योंकि आप सर्वोच्च हैं.”
“या इस छः पदसोपान ! या पदानुक्रम को, समझने हेतु ! इन्हें सबसे सर्वोच्च ! यानि शू'न्य पर,
हम रख सकते हैं.”
“अब आते हैं !
उन छः सोपानों पर !”
“जिसमें प्रथम सोपान पर हैं………… त्रिदेव ! यानि भगवान विष्णु देव एवं देवी लक्ष्मी
माँ ! तथा भगवान ब्रह्मा देव एवं देवी सरस्वती माँ ! तथा भगवान रुद्र देव. यह महादेव शि व
एवं माता शक्ति की आज्ञा से, इस सृष्टि के, प्रमुख संचालक हैं. जिनका कार्य ! सभी आत्माओं को, नये-
नये देह में, जन्म देना ! पालना ! एवं उस देह का, अंत करना है.”
“द्वितीय सोपान पर ! क्रमानुसार हम चारों आते हैं………. यानि इस सोपान के, सबसे पहले व
दूसरे स्थान पर ! श्री कार्तिके य देव व देवी देवसेना एवं श्री गणेश देव व देवी रिद्धिसिद्धि आती हैं. इन दोनों देवों का
कार्य……….. देवी ! देवता ! गण ! दूत ! के संचालन का है. यानि इस सृष्टि का संचालन करने वाले,
समस्त देवी-देवता-गण-दूत ! को, संचालित करने का कार्यभार ! उनके कंधों पर है.”
“जिसमें श्री ! मुख्य देवी-देवताओं ! तथा आत्माओं ! एवं दूतों ! को
री कार्तिकेयजीकादायित्व
लेकर है. तथा श्री श ! सभी गणों ! तथा बाकी के अन्य सभी देवी-देवताओं को,
री गणेजीकादायित्व
ले कर है.”
“वि षपशेरिस्थितियों में, श्री कार्तिके य जी के पास ! सभी देवताओं का, नेतृत्व करने को लेकर, अतिरिक्त
कार्यभार है. तथा वि ष शेर्यभार के रूप में, श्री गणेश जी के पास ! समस्त सृष्टि के, किसी भी शुभ !
का
मंगल ! धर्म कार्य को, शुभारंभ करने हेतु ! अनुमति प्रदान करने का है. अगर वह कार्य ! शुभ-मंगल-
धर्म काज हो तब.”
“इसी सोपान के, तीसरे व चौथे स्थान पर ! प्रभु श्रीरीराम व देवी सीता एवं मैं व मेरी
धर्मपत्नी देवी रुक्मणी आती हैं. प्रभु श्रीरीराम का कार्य…………. समस्त ग्रहों ! उपग्रहों !
इत्यादि पर ! मानव देह रूपी आत्माओं के लिये, मनुष्य रूप में, अवतार ले कर…………….
चारित्रिकगुणता ! आदर्वादितार्श
वादिता! एवं राज्यपद्धति का मानदंड ! यानि मार्गदर् कार्शि
का! तैयार करना होता
है.”
“वहीं मेरा कार्य…………… समस्त ग्रहों ! उपग्रहों ! इत्यादि पर ! मानव देह रूपी आत्माओं
के लिये, मनुष्य रूप में, अवतार ले कर…….. योजनानीति ! रणनीति ! एवं धर्मस्थापनापद्धति !
हेतु……….. मानदंड ! यानि मार्गदर् कार्शि
का! तैयार करना होता है.”
“अब समझते हैं तृतीय सोपान को…………… इसमें संचालक दल के, समस्त देवी-देवता आते हैं.
जिनके अलग-अलग दायित्व हैं. इसमें बहुत अधिक संख्या में, देवी-देवता हैं.”
“चौथे सोपान में, महादेव के अंश से निर्मित ! सभी महादेव-गण आते हैं. तथा सभी देवी-
देवताओं के वाहन स्वरूप ! तथा कुछ सेवक स्वरूप ! महादेव-गण आते हैं. इनमें से कुछ गण के,
नियमित कार्यभार हैं. तो वहीं कुछ के, कभी-कभी वाले, कुछ वि ष
काशेर्य -भार हैं.”
“पाँचवें सोपान में…………….. अत्यधिक संख्या में, ग्राम देवी ! ग्राम देवता ! नगर देवी !
नगर देवता ! कुल देवी ! कुल देवता इत्यादि ! आस्था रूपी………. देवी-देवता होते हैं. जो कि सीमित
क्षेत्र ! या सीमित मानव समूह ! के रक्षार्थ कार्य हेतु ! होते हैं.”
“यह कोई मूल ! देवी-देवता नहीं होते हैं. यह मानक देवी-देवता होते हैं. जिसमें अधिकतर मामलों में,
वरिष्ठ महादेव-दूत ! या महादेव-गण का, प्रवेश होता है. वहीं कुछ मामलों में, देवी-देवताओं का
भी, प्रवेश होता है. यानि कि, वहाँ वास करने का, किसी ना किसी देवी-देवता-गण ! या वरिष्ठ दूत
को, दायित्व सौंपा गया होता है.”
“अब ! बच गया ! छठा सोपान……….. छठा व अंतिम सोपान ! यानि परमात्मा ! ………….अब यह
परमात्मा क्या है ? या यह परमात्मा कौन हैं ?”
“यह परमात्मा हैं आप सभी आत्मा ! आप आत्मायें ! अभी से अपनी, यात्रा आरंभ कर रहे
हैं. आपकी यात्रा ! अपने परम् लक्ष्य ! यानि मोक्ष के लिये है. और जब आप ! अपनी यात्रा
पूर्ण कर लेंगे. यानि जब कोई आत्मा ! अपना परम् लक्ष्य प्राप्त कर लेती हैं. तब उस परम्
लक्ष्य की, प्राप्ति कर चुकी, आत्मा ही ! परमात्मा कहलाती है. इसे ही महादेव-दूत भी कहते हैं.”
“जैसे पाँचों सोपानों के, समस्त देवी-देवता-गण का निर्माण ! महादेव ने किया है. वैसे ही,
छठे सोपान के, समस्त आत्माओं का निर्माण भी, महादेव ही किये हैं व करते हैं. यानि आप
भी, महादेव के अंश हो. क्योंकि उन्होंने ! आपका निर्माण किया है. अतः महादेव ! हम सभी
देवी-देवता-गण के जैसे परम् पिता हैं. उसी की भाँति ! महादेव ! आपके भी परम् पिता हुये.”
“……………..तथा ! अपनी आत्मा की मोक्ष-यात्रा में, लाखों-करोड़ों देह बदलते हुये, जिस
यात्रा को आप करेंगे. उसमें आपको प्राप्त होने वाले, प्रत्येक देह में, प्राण रूपी ऊर्जा
का संचार ! जगत जननी माता शक्ति करेंगी. क्योंकि यह समस्त सृष्टि ! उन्हीं के ऊर्जा से,
संचालित है. अतः शक्ति स्वरूपा माता पार्वती ! आपकी ! एवं हम सभी की, परम् माता हैं.”
इतने विस्तार से, जब छः वर्गों के बारे में, समझा कर ! प्रभु श्री , अपनी
रीकृष्णभगवानने
वाणी को विराम दिया. तब प्रभु श्रीरीराम भगवान बोले :
“जैसा कि, प्रभु श्रीरीकृष्ण ने, आप सभी को, आपके परम् लक्ष्य ! यानि आत्मा को, परमात्मा
बनाने के विषय में बताया. अब मैं इसी कड़ी में, आप सभी को, उस यात्रा के संदर्भ में,
पूर्ण विस्तार से, बताता हूँ. जिस यात्रा को पूर्ण करके, आप परमात्मा बनेंगे. यानि मोक्ष को
प्राप्त होंगे. यानि महादेव-दूत बनेंगे.”
प्रभु श्रीरीराम भगवान ने, आत्मा के निर्माण से लेकर, मोक्ष तक की यात्रा को, अत्यंत विस्तार
से बताया. परंतु अभी उतने विस्तार से, मुझे लिखने की, अनुमति नहीं है. अतः संक्षेपण
करते हुये, मैं इसको ! अपने शब्दों में, लिखने का प्रयत्न करता हूँ………………
मूलरेणी
वालेश्रे नौ चरणों के, आरंभ होने से पहले, पूर्वरेणी
वालेश्रे , नौ चरणों का विवरण :~
पूर्वरेणी
का श्रे पहला चरण :~
महादेव द्वारा ! अजर/अमर आत्मा का निर्माण.
पूर्वरेणी
का श्रे दूसरा चरण :~
अपनी पृथ्वी के गणितीय गणना ! व दृष्टिगोचर होते जीवन ! के अनुसार समझे तो, लगभग
तैंतीस लाख जन्म ! पेड़-पौधे-शैवाल इत्यादि के रूप में.
पूर्वरेणी
का श्रे तीसरा चरण :~
लगभग चौबीस लाख जन्म ! कीड़े-मकोड़े इत्यादि के रूप में.
पूर्वरेणी
का श्रे चौथा चरण :~
लगभग पंद्रह लाख जन्म ! जलचर जीव इत्यादि के रूप में.
पूर्वरेणी
का श्रे पाँचवा चरण :~
लगभग नौ लाख जन्म ! प शुइत्यादि के रूप में.
पूर्वरेणी
का श्रे छठा चरण :~
लगभग तीन लाख जन्म ! पक्षी इत्यादि के रूप में.
:~ अब यहाँ एक वि ष शेत :- ऐसा नहीं है कि, यहाँ तक के, चरणों में से, एक चरण के , सभी कुल
बा
जन्मों को, भोगने के पचात् ही श्चा , दूसरे चरण में, जन्म मिलेगा. यहाँ तक के, सभी चरणों में से,
सम्मिलित रूप से, जन्म मिलते रहेंगे. यानि पूर्वरेणी के श्रे चरण क्रमांक………… दो ! तीन !
चार ! पाँच ! एवं छः ! के जन्म ! क्रमानुसार नहीं होते है. इन पाँच चरणों के जन्म ! सम्मिलित /
समानांतर रूप से, साथ-साथ चलते रहते हैं. यानि इन पाँच चरणों के साथ ! ऐसा नहीं है
कि……….. एक चरण के , सभी जन्म ! समाप्त होने के बाद ही, दूसरे चरण के , जन्मों का आरंभ होगा.
इन पाँचों चरण के, जन्म ! साथ-साथ चलते रहते हैं.
अब आगे………………
पूर्वरेणी
का श्रे सातवाँ चरण :~
कुल इक्कायासी जन्म…………. पूज्य पेड़ / पौधे / जलचर / प श/ पक्षी इत्यादि के रूप में.
पूर्वरेणी
का श्रे आठवाँ चरण :~
न्यूनतम तीन सौ तैंतीस वर्षों में…………. न्यूनतम तीन ! या अधिकतम कितने भी मनुष्य जन्म. अथवा ! इसको
ऐसे भी, समझ सकते हैं कि………. न्यूनतम तीन जन्म ! जिसमें कम से कम, कुल ३३३ वर्ष ! पूर्ण
होने चाहिये. उन तीन जन्मों का मिला कर, अधिकतम वर्ष ! कितने भी हो सकते हैं.
इसमें ग्यारह वर्ष तक की, आयु के अवस्था तक ! यानि बालक अवस्था में हुयी………. मृत्यु पर
! उस जन्म के वर्षों की, गणना नहीं होती है. तथा साथ ही, उस जन्म क्रमांक की भी, गणना नहीं
होती है.
इस चरण का, प्रथम मानव जन्म ! हर हाल में, अच्छे आदर् र्शपरिवेश में ही होता है. जहाँ वह
मनुष्य ! सदकर्म ही करे. ऐसा माहौल / वातावरण ! सदैव उपलब्ध रहता है. परंतु फिर भी अगर ! उस
आत्मा ने, कुकर्म ही किये. तो वह ! उस जन्म में, जितने कुकर्म किये रहेगा. उसी के अनुसार,
उसके अगले जन्म में, उसको उतने ही, कुकर्मी व अधर्मी परिवेश वाले, परिवार व / या माहौल
में, पैदा किया जायेगा. हाँ ! अगर वह चाहे तो, अपने आपको चेत करके ! पुनः सदकर्म ! व
धर्म के मार्ग पर, स्वयं को ला कर के, और अधिक कुकर्म / अधर्म यानि पाप करने से, स्वयं
को बचा सकता है.
………और इस प्रकार, यह होते हैं ! कुल चौरासी लाख, चौरासी जन्म !
………..तथा ! यह कोई आवयकन श्य हीं है कि, आपका हर जन्म ! इस सृष्टि के, एक ही ग्रह (जैसे
पृथ्वी या कोई भी ग्रह) पर ही मिलता रहे. इस सृष्टि के, अनगिनत असंख्य ग्रहों ! उपग्रहों !
जहाँ किसी भी रूप में जीवन है. उन सभी ग्रहों / उपग्रहों में से, कहीं भी मिल सकता है.
किसी भी ग्रह पर ! कितने भी जन्म मिल सकते हैं. किसी ग्रह पर एक जन्म ! तो किसी ग्रह पर,
एक से अधिक जन्म ! तो बहुतों ग्रहों पर, शून्य ! यानि एक भी जन्म ! नहीं मिल सकता है. क्योंकि आपके
जन्मों की संख्या ! चौरासी लाख चौरासी है. तथा जीवनयुक्त ग्रहों की संख्या ! इससे बहुत-बहुत
अधिक है.
पूर्वरेणी
का श्रे नौवाँ चरण :~
इस चरण के तीन प्रकार हैं. प्रथम ! द्वितीय ! तृतीय ! ……….जो आठवें चरण के, समाप्ति के
पचात् त्! उस आठवें चरण वाले, तीन या सभी जन्मों के, सदकर्मों ! व कुकर्मों ! के अनुरूप तय
श्चा
होता है.
पूर्वरेणी
के श्रे , नौवें चरण का, प्रथम प्रकार :~
“अगर सद्कर्मों की ! बहुत अधिक न्यूनता हो. तथा कुकर्मों की, अत्यधिक अधिकता हो. तब उस
आत्मा को, पुनः चौरासी लाख चौरासी योनियों के, क्रमिक चक्र में, जाना होगा. यानि पूर्वरेणीणी
श्रे
के, दूसरे चरण से, पुनः आरंभ करना होगा.
पूर्वरेणी
के श्रे , नौवें चरण का, द्वितीय प्रकार :~
“सदकर्म भले ही कम हो. परंतु कुकर्म भी ! अधिक नहीं हो. तो उन कर्मों के अनुसार ! एक या एक से
अधिक जन्मों हेतु ! पूर्वरेणी
के श्रे ………….. चरण दो ! तीन ! चार ! पाँच ! एवं छः ! में जाना
होगा. उसके पचात् त् ! यानि उन पूर्व के, मानव जन्म वाले, कुकर्मों का दंड भोगने हेतु ! पुनः
श्चा
पूर्वरेणी
के श्रे आठवें चरण में, मनुष्य जन्म मिलेगा.”
पूर्वरेणी
के श्रे , नौवें चरण का, तृतीय प्रकार :~
“अगर सद्कर्मों की ! बहुत अधिक यानि पर्याप्त अधिकता ! तथा कुकर्मों की न्यूनता है. तो इस
चरण में, कुछ कालखंड ! यानि वर्तमान में चल रहे, जन्म की बची हुयी अवधि ! प्रतीक्षा अवधि
रहेगी. और उस प्रतीक्षा अवधि को, काटना ही, एक प्रकार से, इन आत्माओं के लिये, यह नौंवा
चरण कहलायेगा. कुछ अवधि पचात् त् ! जब उस चल रहे जन्म की ! समय-सीमा समाप्त हो
श्चा
जायेगी. यानि वह आत्मा ! वर्तमान देह का, त्याग कर देगी. तब उस आत्मा को, सदैव के लिये,
मूलरेणी
में श्रे प्रवेश मिल जायेगा. उसे पुनः कभी भी, चौरासी लाख चौरासी योनियों का, चक्कर
नहीं लगाना पड़ेगा. अब उसकी आत्मा ! मूल श्रेरेणी के, प्रथम चरण में, जन्म ले कर, मोक्ष के दि श
की ओर, यात्रा आरंभ करेगी. जिसके हेतु ! महादेव ने उस आत्मा का, निर्माण किया था.
……………अब !
पूर्वरेणी
वालेश्रे , नौ चरणों को, पार करने के पचात् त्! मूलरेणी
श्चा वालेश्रे , नौ चरणों का विवरण :~
मूलरेणी
का श्रे पहला चरण :~
यहाँ से आपको ! सदैव मनुष्य जन्म ही मिलता है. इस चरण से आपको………. कभी-कभी
महादेव ! माता ! देवी-देवता-गण ! एवं महादेव दूतों के , दर्शन व मार्गदर्शन मिलना ! आरंभ हो जाता है. कुछ-कुछ
आसान-आसान दायित्व मिलने भी, आरंभ हो जाते हैं. इस चरण को पार करने योग्य ! पर्याप्त
सदकर्मों का ! जब तक संचयन नहीं हो जाता है. तब तक आपकी आत्मा को, बार-बार इसी चरण
में, मनुष्य जन्म ! मिलता रहता है. और इस चरण के, प्रत्येक व सभी जन्मों का, सदकर्म !
आपस में एक साथ ! संचित होते रहता है. यानि अग्रेषित होते रहता है. जब तक कि, चरण
पार करने योग्य ! पर्याप्त सदकर्मों का ! संचयन ना हो जाये. साथ ही इस चरण ! या मूलरेणीणी श्रे
के किसी भी चरण को, उत्तीर्ण करने से पूर्व ! आपके कुकर्मों का…………. दंड भोग-भोग करके,
शून्य या न्यूनतम हो जाना ! अनिवार्य है. इस चरण ! या किसी भी चरण को, पार करके ! उसके अगले
चरण में, पहुँचते ही……….. पुराने सभी संचय सदकर्म ! शून्य हो जाते हैं. क्योंकि उन्हीं
सदकर्मों के, बूते ही तो, आप अगले चरण में, प्रवेश करते हैं. परंतु साथ ही, यह अवय श्य
ध्यान रहे कि…………. चरण पार करने से पूर्व ! नये-पुराने सभी संचित कुकर्मों का, दंड भोग लेना
भी, अनिवार्य है.
मूलरेणी
का श्रे दूसरा चरण :~
इस चरण की भी, सभी नियमावली ! एवं परिस्थितियाँ ! इसके पहले वाले चरण ! यानि मूलरेणी
के श्रे ,
पहले चरण जैसे ही हैं. बस इस चरण में आपको ! मिलने वाले दायित्व……….. बड़े !
कठिन ! कठोर ! होते हैं. तथा सदकर्मों का, संचयन भी पहले चरण से, बहुत अधिक करना
पड़ता है.
मूलरेणी
का श्रे तीसरा चरण :~
दूसरे चरण को, पार करने के पचात् त्! अगले चरण ! यानि चौथे चरण में, जाने की प्रतीक्षा
श्चा
अवधि को ही ! तीसरा चरण बोलते हैं. इस चरण में ! कोई नया या अलग से, जन्म नहीं मिलता.
बल्कि दूसरे चरण के, अंतिम जन्म की, बची हुयी अवधि ही ! तीसरा चरण कहलाती है.
मूलरेणी
का श्रे चौथा चरण :~
इस चरण में ! जो सबसे प्रथम बदलाव आता हैं. वह यह है कि………….. यहाँ से अब ! पूर्व
जन्मों के संचित सदकर्म ! अगले जन्म में, अग्रेषित होना ! बंद हो जाता है. तथा इस चरण
में, एक विशेष सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी के लिये, यहाँ के गणनानुसार ! लगभग सत्ताईस वर्षों
में, आपको ! कुल पंद्रह कठिन परीक्षाओं में से, न्यूनतम ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना
अनिवार्य है. इन परीक्षाओं के मध्य……….. विकट ! व अत्यंत संकट वाली, परिस्थितियों
में, महादेव-दूतों से, सहायता भी मिलती रहती है. परंतु इन ग्यारह परीक्षाओं को, एक ही जन्म के ,
उस सीमित अवधि में ही, उत्तीर्ण करना आवयकहै श्य . अन्यथा अगले जन्म में, पुनः नये
ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना पड़ता है. इस चरण में भी, जन्मों के संख्या की, कोई
बाध्यता नहीं है. परीक्षा उत्तीर्ण होने तक, बारंबार मानव जन्म ही, मिलता रहता है. बाकी के
चरणों की भाँति ही, यहाँ भी ! चरण पार करने के लिये, आपके कुकर्मों का…………. दंड भोग-
भोग करके, शून्य या न्यूनतम हो जाना ! अनिवार्य है.
मूलरेणी
का श्रे पाँचवा चरण :~
इस चरण में, सभी कुछ ! चौथे चरण जैसा ही रहता है. बस उसी सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी ग्रह
के गणनानुसार ! लगभग सत्ताईस वर्ष में, आपको कुल ! एक सौ पचास कठिन परीक्षाओं में से, एक सौ ग्यारह
परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य है. बाकी का सभी कुछ ! चौथे चरण जैसा ही रहता है.
मूलरेणी
का श्रे छठा चरण :~
इस चरण में भी, सभी कुछ ! चौथे व पाँचवे चरण जैसा ही रहता है. बस उसी सीमित अवधि !
यानि पृथ्वी के लिये, सत्ताईस वर्ष में ही, आपको कुल पंद्रह सौ कठिन परीक्षाओं में से,
ग्यारह सौ ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है. परंतु इस चरण में, उन
परीक्षाओं के मध्य ! आपको अपने दूसरे स्वरूप की, सहायता भी मिलती रहती है. इसके अलावा
! बाकी सभी कुछ ! चौथे व पाँचवे चरण जैसा ही रहता है.
मूलरेणी
का श्रे सातवाँ चरण :~
छठे चरण को, पार करने के पचात् त् ! अगले चरण, यानि आठवें चरण में, जाने की प्रतीक्षा
श्चा
अवधि को, सातवाँ चरण बोलते हैं. इस चरण में, कोई नया ! या अलग से, जन्म नहीं मिलता.
बल्कि छठे चरण के, अंतिम जन्म की, बची हुयी अवधि ही, या उसी जन्म में, महादेव-दूत बनने हेतु
! जो मुख्य धर्मकाज का आदेश मिलता है. उस आज्ञा मिलने के, तिथि तक की, प्रतीक्षा अवधि
ही, सातवाँ चरण कहलाती है.
मूलरेणी
का श्रे आठवाँ चरण :~
इस चरण में, आपको अपने स्वयं की इच्छानुसार ! इस संपूर्ण सृष्टि के, किसी भी एक ग्रह ! या
उपग्रह पर, उस ग्रह से संबंधित ! महादेव आज्ञा का, एक विशेष धर्मकाज करना होता है. उस काज को
करने की, आज्ञा मिलने वाली तिथि से ही, आपका आठवाँ चरण ! आरंभ हो जाता है. इसमें
करने वाले, वि ष धशेर्मकाज की जानकारी ! भले ही आपको, आठवाँ चरण आरंभ होने के समय,
प्राप्त होती है. परंतु कौन से ग्रह पर, आपको अपना ! वि ष
धशेर्मकाज संपन्न करना है. इसका
वैकल्पिक चुनाव ! आपको छठे चरण के, आरंभिक काल में ही, स्वयं से कर लेना होता है.
मूलरेणी
का श्रे नौवाँ चरण :~
वस्तुतः ! यह कोई चरण ही नहीं है. यह एक अवस्था है. लाखों-करोड़ों ! या उससे भी अधिक
जन्म ले कर, आपकी आत्मा ने, जिस परम् उद्देय श्य ! यानि परमात्मा बनने हेतु ! यानि मोक्ष
पाने हेतु ! करोड़ों-अरबों-खरबों ! या उससे भी अधिक वर्ष की यात्रा के लिये ! अपनी
आत्मा-यात्रा का ! अपनी मोक्ष-यात्रा का ! आरंभ किया था. उसकी यह अंतिम सीढ़ी है. यहाँ
आपकी आत्मा ! मोक्ष को प्राप्त कर, परमात्मा बन जाती है ! महादेव-दूत बन जाती है. इस चरण में,
आप तब पहुँचते हैं. जब आठवें चरण वाले, महादेव से आज्ञा प्राप्त ! वि ष धशेर्म -काज को,
संपन्न कर लेते हैं. या उस काज को करते हुये ! अथवा संपन्न होने से पूर्व ही ! आपकी
आत्मा ! उस वर्तमान देह का, त्याग कर देती है. यानि उस जन्म की, आपकी आयु अवधि ! समाप्त
हो जाती है. अंततोगत्वा ! यह, वह चरण है, जिसमें आपको ! उसी जन्म में ! हर हाल में !
महादेव-दूत ! बन ही जाना है. जिसके परिणामस्वरूप ! आप जन्म-मरण के चक्र से, सदैव के
लिये ! स्वतंत्र हो जाते हैं. संपूर्ण सृष्टि के, सभी ग्रहों-उपग्रहों या स्थानों पर, किसी भी
स्वरूप में, कितने भी अवधि तक, रह सकते हैं. आप शि वशक्ति जगत स्थलों पर भी, रह सकते
हैं. यानि आप मोक्ष को, प्राप्त कर लेते हैं. अब आपका ! एक ही काज बच जाता है………..
महादेव का दूत बन कर, महादेव के आज्ञा वाले काज को, समय-समय पर करते रहना. तथा पूरे
सृष्टि के, सभी ग्रहों-उपग्रहों के, मूलरेणी
वाली श्रे आत्माओं का, विधि-विधान के अनुरूप !
सहायता करना. एवं यह सभी कु छ भी, अनिवार्य नहीं होता. यह पूर्णतः ! आपकी अपनी इच्छा पर, निर्भर
करता है.
……………पूर्वरेणी के श्रे सभी नौ चरण ! तथा मूलरेणी
के श्रे सभी नौ चरण ! को समझने के
पचात् त्! इन निम्नलिखित ! चार बिंदुओं को भी समझना ! अत्यंत आवयकहै
श्चा श्य .
:~
सदकर्म / धर्म / पुण्य हो ! या कुकर्म / अधर्म / पाप हो ! यह दोनों ही, जन्म-जन्मांतर तक ! संचय
व अग्रेषित यानि फॉरवर्ड होते रहते हैं. जब तक इनका शुभ-फल ! या उपयुक्त-दंड ! ना मिल जाये.
:~
कुकर्म / अधर्म / पाप का, हर हाल में, दंड मिलेगा ही मिलेगा. कुकर्मों का समुचित दंड भोगने के
अलावा, इससे बचाव का, कोई भी अन्य मार्ग नहीं है.
:~
दान-पुण्य करके ! देवी-देवता-गण ! यानि इष्ट-आराध्य की पूजा करके ! उनका नाम जप करके ! पुण्यों
में बढ़ोतरी तो, की जा सकती है. किंतु उससे रत्ती भर भी ! पाप नहीं काटे जा सकते. पाप का
दंड तो, हर हाल में, अगले जन्म में, भोगना ही पड़ेगा. जैसे इस जन्म में, पूर्वजन्म का भोग
रहे हो.
:~
वैसे देखें तो, पुण्य एकत्र व संचय करने का, सबसे सर्वोत्तम मार्ग ! धर्म / सदकर्म करना
ही है. *कर्म* से बढ़कर, कुछ भी नहीं है. सदकर्म करके ! सदकर्म / पुण्य को, और भी बढ़ाया
जा सकता है. लेकिन उससे कुकर्म / पाप को, नहीं मिटाया जा सकता. सदकर्म / पुण्य से, कुकर्म / पाप
को, किसी भी हाल में, समायोजित यानि एडजस्ट ! नहीं किया जा सकता.
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……………….जब प्रभु श्रीरीराम भगवान ने, आत्मा-यात्रा के, सभी अठारहों चरणों को, समझा
कर ! अपनी वाणी को विराम दिया. तब भगवान श्री श :
रीगणेदेवबोले
“जैसा कि, श्री कृ ष्ण देव ने, सभी छः वर्गों के विषय में समझाया. तथा श्रीरीराम देव ने, अठारहों
चरणों के संदर्भ में समझाया.”
“अब ! यहाँ उपस्थित ! सभी नव-निर्मित आत्माओं को, मैं कुछ और तथ्य ! समझाता हूँ. अभी आप सभी !
पूर्वरेणी
के श्रे , प्रथम चरण में हैं. इस बैठक के पचात् त् ! आप पूर्व श्रेरेणी के, द्वितीय चरण में,
श्चा
प्रवेश कर जायेंगे. आप सभी को, नवीन-देह की प्राप्ति होगी. और उसी के साथ ! एक चक्र के , चौरासी
लाख चौरासी जन्मों का, आपका प्रथम जन्म भी, हो जायेगा.”
“अभी जितनी भी बातें ! आप सुन रहे हैं. इसकी स्पष्ट स्मृति ! आपके चौरासी लाख इक्कासी
जन्मों तक ! स्पष्ट रहेगी. यानि पूर्वरेणी
के श्रे , सातवें चरण तक ! यह सभी बातें ! आपको
स्मरण रहेगी. परंतु जैसे ही आप ! पूर्व श्रेरेणी के, आठवें चरण में, प्रवेश करेंगे. यानि
जब आप ! प्रथम मानव जन्म लेंगे. वैसे ही यह सभी स्मृति ! समाप्त हो जायेगी. परंतु हाँ !
रिक्तता योनि में, यह स्मृति ! सदैव बनी रहेगी.”
“एक और भी, परिवर्तन होगा. बाकी के, चौरासी लाख इक्कासी जन्मों में, जहाँ आपके पास !
सामान्य-साधारण मस्तिष्क रहेगा. वहीं उन मानव देह वाले, तीन जन्मों में, आपके पास
चैतन्य मस्तिष्क रहेगा. जो आपको धर्म-अधर्म ! सदकर्म-कुकर्म ! पाप-पुण्य ! इत्यादि में,
अंतर करना सिखायेगा.”
“क्योंकि मानव देह प्राप्त करते ही, आप पाप-पुण्य, सदकर्म-कुकर्म, धर्म-अधर्म के, लेखा-
जोखा से बंध जायेंगे. आपके सदकर्मों एवम् कुकर्मों का, संचयन ! तथा सुफल व दण्ड के
माध्यम से, उनका क्षरण ! आरंभ हो जायेगा.”
“इसीलिये तो, मानव देह में, आपको चैतन्य मस्तिष्क मिलता है. ताकि उस चैतन्य मस्तिष्क
का, प्रयोग करते हुये, आप अपने सदकर्मों में, बढ़ोतरी कर सकें. तथा कुकर्मों को, शून्य या
न्यूनतम रखने हेतु ! सदैव प्रयासरत रहें.”
“परंतु ध्यान रहे. पदानुक्रम ! यानि पदसोपान ! ऊपर नीचे नहीं होना चाहिये. ऐसा इसलिये आवश्यक
है. क्योंकि इससे देवी-देवता-गण-दूत ! रुष्ट हो जाते हैं. जिसके परिणामस्वरूप ! आपके सोच-
विचार की, दिशा स्थिर नहीं रह पाती. फलस्वरूप ! आपको सदबुद्धि प्रदान करने वाले, संकेतों की
प्राप्ति ! बाधित होने लगती है. जिससे आपके द्वारा ! चौरासी लाख इक्कासी जन्मों का, एक और
क्रमिक चक्र लगाने की, संभावना प्रबल हो जाती है.”
“तदोपरांत ! बचाव का, संयोग को छोड़ कर, कोई अन्य मार्ग ! शेष नहीं बच जाता. संयोग वाले मार्ग
में……………….. आपके उस मानव जन्म के, किसी हितैषी ! मूल श्रेरेणी वाले आत्मा को,
अगर आपके हेतु ! उचित लग जाये. तो वह आपको, व्यक्तिगत रूप से, सत्य से अवगत करा
सकता है. परंतु वह पूर्णतया ! उसकी स्वेच्छा पर, निर्भर करता है. इसके हेतु ! उसे बाध्य नहीं
किया जा सकता.”
“किसी-किसी पूर्वरेणी
वालेश्रे , मानव देहधारी आत्माओं के साथ ! कभी-कभी एक और भी, दुर्लभ
संयोग बन पड़ता है. वह दुर्लभ संयोग होता है…………… जब आपके ! पूर्वरेणी वालेश्रे ,
आठवें चरण का, कोई मानव जन्म चल रहा हो.”
“तथा दुर्लभ संयोगवश ! उसी काल-खंड में, कोई मूल श्रेरेणी वाले, आठवें चरण की आत्मा ! उसी
ग्रह पर, महादेव-दूत बनने से पूर्व वाले दायित्व ! यानि अपने मूल श्रेरेणी के आठवें चरण का , वि षशे

धर्मकाज ! कर रही हो. तब उसके माध्यम से भी, आप सत्य से, अवगत हो जाते हैं.”
“क्योंकि केवल उसे ही, सार्वजनिक रूप से, वि ष
याशे सामान्य ! सभी मानवों को, सत्य से
अवगत कराने की, अनुमति प्राप्त होती है. अन्य कोई भी, मूल श्रेरेणी की आत्मा ! सार्वजनिक रूप
से, यह बता ही नहीं सकती. क्योंकि ऐसा करने से, उसकी अलौकिक स्मृति तत्क्षण छीन जाती
है.”
“अतः ऐसे किसी, संयोग ! या दुर्लभ संयोग की, प्रतीक्षा करने से, अधिक उचित है. निरंतर
सदकर्म करना ! एवं कु कर्म से यथासंभव बचने हेतु ! अपने-आप को, जाग्रत अवस्था में रखना.”
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प्रभु श्री ! प्रभु श्रीरीराम भगवान ! एवं प्रभु श्री गणेश भगवान के द्वारा ! उन चौबीस घंटों के,
रीकृष्णभगवान
सभी नव-निर्मित आत्माओं को, अत्यंत महत्वपूर्ण ज्ञान ! प्रदान किया जा चुका था. भगवान श्री रीगणे श
देव के , अपने स्थान पर, विराजने के पचात् त् !………….
श्चा
……………भगवान श्री , उन पूर्व श्रेरेणी के, प्रथम चरण वाले, आत्माओं
रीकार्तिकेयदेवने
को, काफी सारी, ज्ञानवर्धक बातें बतायी. उनके बाद तीनों त्रिदेवों ने भी, सभी आत्माओं को,
काफी कुछ समझाया. फिर माता पार्वती ने, उन सभी को, अत्यंत महत्वपूर्ण बातें बतायीं.
~~~~~~~~~
भगवान कार्तिकेय देव ! तथा त्रिदेव ! यानि ………… भगवान रुद्र देव ! भगवान ब्रह्मदेव !
भगवान विष्णुदेव ! तथा माता पार्वती माँ द्वारा ! बतायी गयी बातों को, अभी लिखने की अनुमति
नहीं होने के कारण ! अभी नहीं लिख रहा हूँ. भविष्य में, अनुमति प्राप्त होते ही, अवय श्य
लिखूँगा.
अभी के लिये, आगे के घटनाक्रमों को, लिखना आरंभ करता हूँ.
~~~~~~~~~
शक्ति स्वरूपा माता पार्वती माई के , अनु सन
संबंधी
शा संबोधन ! समाप्त होने के पचात् त् ! …………..अब
श्चा
देवों के देव ! सर्वोच्च देव ! महादेव शि वशं करभगवान द्वारा ! पूर्व श्रेरेणी के, प्रथम चरण वाली
आत्माओं को, संबोधित किया जाना था.
उन अंतिम २४ घंटों में, नयी निर्मित हुयी, सभी आत्माओं के साथ-साथ ! उस बैठक में, उपस्थित !
सत्यमार्गी नामक आत्मा भी, बिल्कुल ध्यान पूर्वक ! महादेव की बात सुनने हेतु ! एकाग्रचित्त हो गयी.
भगवान भोलेनाथ ने, बोलना आरम्भ किया :
“तुम सभी ! मेरे लिये, अत्यंत प्रिय हो. क्योंकि तुम सभी के सभी, मेरे ही अंश हो. मैं
तुम्हें ! स्वयं से दूर ! नहीं करना चाहता. परंतु इस सृष्टि के, कुशलतापूर्वक संचालन हेतु ! मैंने
कुछ विधान बनाये हैं. उन विधि-विधानों का, पालन करना अनिवार्य है.”
“इसलिये, मैं तुम्हें ! एक छोटी सी यात्रा पर, भेज रहा हूँ. मैं तुम्हें ! अपने स्वयं से, कुछ
काल-खंड हेतु ! दूर कर रहा हूँ. और तुम्हें ! जितनी चाहिये ! उतनी पर्याप्त स्वतंत्रता भी, दे रहा हूँ.
तुम अपने इच्छानुसार ! जितने चाहो, उतने अच्छे बनो. या जितनी चाहो, उतनी त्रुटि करो. पाप
करो ! पुण्य करो ! मेरी ओर से, कोई मनाही नहीं है. तुम जो चाहोगे……………. मैं तुम्हें !
वहीं पर्याप्त मात्रा में दूँगा.”
“तुम अगर पाप करोगे. यानि, जब तुम्हें ! कुकर्म में आनंद आयेगा. तो मैं तुम्हें ! तुम्हारे
इच्छित आनंद की पूर्ति हेतु ! जितना ही पाप किये रहोगे. उसी के अनुपात में, मैं तुम्हें !
उतने ही पापी वातावरण में, अगला जन्म दे दूँगा. ताकि तुम ! और भी अधर्म करके, आनंदित हो
सको.”
“वहीं अगर ! तुम पुण्य करोगे. सदकर्म करोगे. यानि जब तुम्हें ! सदकर्म में आनंद आयेगा.
तो मैं तुम्हें ! तुम्हारे इच्छित आनंद की पूर्ति हेतु ! जितना ही पुण्य किये रहोगे. उसी के
अनुपात में, मैं तुम्हें ! उतने ही सदकर्मी वातावरण में, अगला जन्म दे दूँगा. ताकि तुम !
और भी आनंदित हो सको.”
“तथा इस प्रकार ! तुम्हारी संपूर्ण यात्रा भर ! यह क्रम चलता रहेगा. इसके साथ ही, मैं तुम्हें
! एक दायित्व भी, सौंप रहा हूँ. तुम्हारा दायित्व है. इस यात्रा को, पूर्ण करना. और पूर्ण करके, पुनः
मेरे समीप आ जाना. इस यात्रा के, परिणति स्वरूप ! मोक्ष प्राप्त करके, मेरा दूत बन जाना.
आत्मा से परमात्मा बन जाना.”
~~~~~~~~~
नोट :~ जब यह उपरोक्त कुछ पैराग्राफ ! सर्वप्रथम सार्वजनिक पटल पर रखा गया था. तब उसके,
कुछ ही मिनट के पचात् त् ! जिज्ञासु व चैतन्य मस्तिष्क के स्वामी ! एक आदरणीय शिवशक्तियन की,
श्चा
सर्वथा उचित टिप्पणी आयी. उनका आभार ! क्योंकि, उनकी टिप्पणी के कारण ! उसकी व्याख्या
करने का, तथा उस व्याख्या को, सभी के लिये, उपलब्ध होने का, यह शुभ-संयोग भी बना.
इसी को तो, चैतन्य मस्तिष्क बोलते हैं. क्योंकि मैं ! सभी प्रकरणों व घटनाक्रमों को,
अत्यंत संक्षेप में लिखता हूँ. इसलिये यह आवयकहै श्य कि…………. जहाँ भी कुछ जिज्ञासा
पूछें. ताकि उसकी व्याख्या ! या विस्तृत व्याख्या की जा सके.
उत्पन्न हो. उसे अवय श्य
अब आप पहले, उन शि वशक्तियन की, जिज्ञासा या / व टिप्पणी को पढ़ें. तत्पचात् त्! उसके
श्चा
उत्तर / व्याख्या को भी पढ़ें.
चरण स्पर्!
ये जो महादेव दूत होते हैं. क्या वो अनंत काल तक ! महादेव दूत बने रहते हैं. अथवा दूत
के रूप में, यानि परमात्मा रूप में भी, कोई यात्रा जारी रहती है ? चूंकि कोई भी परमात्मा /
महादेव-दूत ! महादेव का ही अंश है. तो क्या वह ! अनंत काल तक ! परमात्मा ही रहती है. अथवा
कभी जाकर ! महादेव में ही, विलीन भी हो जाती है ? क्योंकि यात्रा तो, सृजन से आरम्भ हुई थी.
इसलिए इसकी परिणिति ! पुनः वहीं विलीन होने में होनी चाहिये. जहां से इसका निर्माण हुआ !
अर्थात महादेव में, समाहित हो जाना. दूत के रूप में, वो अपने सर्वोच्च शि खरपर होगी. लेकिन
इसे यात्रा समाप्ति तो नहीं कह सकते. जैसे शरीर पंचतत्वों से बना है. और इसका अंत !
तब माना जाता है. जब ये पुनः पंचतत्वों में बिखर जाये.

अब इस उपरोक्त टिप्पणी / जिज्ञासा की, उत्तर / व्याख्या

शुभ प्रभात
सादर अभिनंदन !!
महादेव द्वारा ! बोले गये………. उस यात्रा-पूर्णता का अर्थ ! उस दायित्व वाले यात्रा के,
पूर्ण होने से है. उस आत्मा-यात्रा की समाप्ति से है. जो यात्रा ! एक आत्मा ! प्रथम चरण से,
आरंभ करती है. तथा अठारहवें चरण पर, समाप्त करती है.
महादेव-दूत बनने के बाद ! वहाँ के यात्रा को, आत्मा-यात्रा नहीं बोल सकते. क्योंकि तब आत्मा !
आत्मा-रूप में, बचती ही नहीं है. वह परमात्मा के रूप में, परिवर्तित हो चुकी होती है.
क्योंकि मोक्ष प्राप्त करते ही, आत्मा-यात्रा समाप्त हो जाती है. अब वह आत्मा ! परमात्मा बन
चुकी होती है. इसलिये ! वहाँ के पचात्
की श्चा यात्रा को, परमात्मा-यात्रा बोलते हैं.
वस्तुतः मूल यात्रा तो, कभी समाप्त ही नहीं होती. क्योंकि संपूर्ण सृष्टि ही, निरंतर ! अनवरत !
यात्रा पर है. और सदैव रहेगी भी.
!! जय शि वशक्ति !!
~~~~~~~~~
क्रम1 शN

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#ऑटोबायोग्राफी_ऑफ_स्वामी_सत्यानंद_1st_एडिशन
भाग
देवों के देव ! सर्वोच्च देव ! महादेव ! शिव शंकर भगवान के , संबोधन समाप्ति के साथ ही, लगभग तीन घंटे तक चले, उस बैठक का, समापन हो चुका था.
तथा बैठक समाप्ति के साथ ही, उस बैठक में उपस्थित ! सभी पूर्व श्रेणी के , प्रथम चरण वाली, आत्माओं को, उनके द्वितीय चरण में पहुँचाने की, प्रक्रिया भी
आरंभ हो गयी.
यानि कि, उनको अपना प्रथम जन्म ! यानि प्रथम देह आवरण ! प्राप्त होने लगे. उस सत्यमार्गी नामक आत्मा की, बारी आने पर, सभी आत्माओं की भाँति !
उसे भी, महादेव-दूतों के द्वारा ! यह समझाया गया :
“जब भी तुम्हें ! ऐसा लगे कि………. तुम्हारे द्वारा धारण किये गये देह में, अब तुम्हें नहीं रहना है. तब तुम ! उस देह को त्यागने हेतु ! आत्मिक संदेश !
प्रेषित कर सकते हो. अगर तुम्हारा निवेदन ! उचित पाया गया. तो तुम्हें ! उस देह को त्यागने की, अनुमति प्राप्त हो जायेगी. तथा तुम्हें ! वहाँ से निकाल
कर, रिक्तता योनि में, भेज दिया जायेगा. फिर जब तक तुम्हारे लिये, नवीन देह का, आवंटन नहीं हो जायेगा. तब तक तुम ! उसी रिक्तता योनि में, यथावत्
बने रहोगे.”
सत्यमार्गी नामक आत्मा बोली :
“मैं तो जाते ही, देह त्यागने का, निवेदन भेज दूँगा. ताकि चौरासी लाख इक्कासी जन्मों में से, एक जन्म का झंझट तो, समाप्त हो जाये.”
संबंधित महादेव-दूत हंसते हुये बोले :
“अत्यंत शीघ्रतापूर्वक भी, निवेदन मत भेजना. क्योंकि न्यूनतम निर्धारित समय से पूर्व ! देह त्यागने पर, उस जन्म की गिनती ही, नहीं होती है.”
सत्यमार्गी नामक आत्मा ने पूछा :
“और यह न्यूनतम निर्धारित समय ! कितना होता है ?”
संबंधित महादेव-दूत ने उत्तर दिया :
“वह अलग-अलग ग्रहों / उपग्रहों के , अलग-अलग देहों के लिये, भिन्न-भिन्न अवधि होती है. जिसकी तुम्हें ! प्रत्येक जन्म के साथ ! या जन्म से थोड़ा पहले
ही, जानकारी प्राप्त हो जायेगी.”
सत्यमार्गी नामक आत्मा बोली :
“फिर मैं ! अपने प्रत्येक जन्म के , न्यूनतम निर्धारित अवधि के , समाप्त होते ही, देह त्यागने का, निवेदन भेज दिया करूँ गा. आप ! कृ पया करके , मेरा
निवेदन स्वीकार कर लीजियेगा ! या स्वीकार करा दीजियेगा.”
संबंधित महादेव-दूत हंसते हुये बोले :
“पहले तुम जन्म तो लो. तुम्हें यह पता ही नहीं है कि………… महादेव के बनाये, विधि-विधान में, तुम कहीं से भी, कोई भी त्रुटि-द्वार ! ढूँढ ही नहीं
सकते. क्योंकि ऐसा कोई द्वार ! है ही नहीं. तुम्हारे आत्मा के साथ में, महादेव द्वारा ! कई भावनायें सम्मिलित की गयी है. जिसमें से एक *मोह* नामक
भावना भी है. तुम्हारे द्वारा ! लौकिक देह धारण करते ही, तुम्हें स्वयं ! उस देह से, मोह उत्पन्न हो जायेगा. और वैसे भी, इच्छामृत्यु के उद्देश्य से किया गया
! कोई भी कृ त्य ! जघन्य अपराध की श्रेणी में, आने वाला घोर दंडनीय कु कर्म होता है.”
महादेव-दूतों से, कु छ वार्तालाप के पश्चात् ! उस सत्यमार्गी नामक आत्मा को भी, अपने प्रथम देह की प्राप्ति हुयी. वह कोई नव-निर्मित ग्रह था. जहां उसे !
एक खौलते हुये, ज्वालामुखीय लावा के मध्य ! शैवालनुमा एक अत्यंत छोटे पौधे के रूप में, प्रथम जन्म मिला. अभी उस ग्रह पर, अन्य कोई जानवर ! या
मानवकृ ति जैसे जीवों का वास ! आरंभ नहीं हुआ था.
उसे जब वहाँ जन्म मिला ! तब वहाँ के ऊर्जास्रोत तारे की गर्मी ! वहाँ चहुँओर फै ली हुयी थी. परंतु वहाँ रात्रि होने के साथ ही, अत्यंत ठंडक शुरू हो गयी.
इतनी ठंडक कि, कु छ ही समय में, खौलते हुये लावे, ठंडे पत्थर में, परिवर्तित हो गये. परिमाणस्वरूप ! उसके , उस शैवालनुमा देह में, उसका वास करना !
अत्यंत दूभर व कष्टकर होने लगा.
उसके आस-पास के , उसके संगी-साथी शैवालनुमा पौधों में से, प्रति क्षण कई-कई आत्मायें ! अपना देह त्यागते जा रही थी. अंततोगत्वा ! उस सत्यमार्गी
नामक आत्मा ने भी, अपने देह के मोह का, त्याग करते हुये, कष्टों से बचने हेतु ! रुद्र देव के कार्य-सेवा में लगे, महादेव-दूतों तक ! अपने देह त्याग का,
निवेदन प्रेषित किया. तत्क्षण ही, उसका निवेदन ! स्वीकृ त भी हो गया.
देह त्यागने के , कु छ ही क्षणों पश्चात् ! वह पुनः महादेव-दूतों के समक्ष था. जिस ग्रह पर उसने, प्रथम जन्म पाया था. उस ग्रह के अनुसार ! वहाँ उसकी
जीवन अवधि ! कु ल एक दिवस से भी कम थी.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उस सत्यमार्गी नामक आत्मा के , निर्माण तिथि को, करोड़ों वर्ष बीत चुके थे. अब वह आत्मा ! अपने चौरासी लाख जन्मों को, पूर्ण कर चुकी थी. यानि पूर्व
श्रेणी के , छठे चरण को भी, पार कर चुकी थी. कु छ दिवस ! रिक्तता योनि में, बिताने के पश्चात् ! उस दिन उसके , पूर्व श्रेणी वाले, सातवें चरण के , कु ल
इक्कासी पूज्य जन्मों में का, प्रथम जन्म लेने का, शुभ दिवस था.
एक सुदूर ग्रह के , एक सजीव पत्थरनुमा ! परंतु उस ग्रहवासीयों के लिये, अत्यंत पूज्य पत्थर के रूप में, उसका जन्म होना था. आसमान में, बिजली
कड़कने जैसी ! एक घटना घटित हुयी. तथा उसी के , ऊर्जा (पिता) वाले वेग से, उस सत्यमार्गी नामक आत्मा की, जन्म दायनी माँ ! यानि उस बड़े पत्थर
में, विखंडन की घटना घटित हुयी. फलस्वरूप ! उस पत्थर (माँ) के , कई टुकड़े हुये. उन सभी अलग-अलग टुकड़ों में, अलग-अलग आत्माओं (उस जन्म
की बहनों) ने, प्रवेश किया. जिसमें एक पत्थर में, उस सत्यमार्गी नामक आत्मा को भी, प्रवेश मिला.
उस ग्रह के , अत्यंत ! पूज्य स्वरूप में, उस सत्यमार्गी नामक आत्मा ने, अपने उस जन्म के , हजारों वर्ष बिताये.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
वह सत्यमार्गी नामक आत्मा ! उस तिथि को, पूर्व श्रेणी के आठवें चरण का, अपना तीसरा ! व अंतिम जन्म का, निर्धारित अवधि जी कर ! अभी-अभी ही,
देह-त्याग कर आयी थी. उसके लेखा-जोखा खंड में, प्रवेश करते ही, उसे अपने दोनों थैली को, अलग-अलग पलटने का, संबंधित महादेव-दूत से, आदेश
प्राप्त हुआ.
तत्क्षण उसने ! आज्ञा का पालन करते हुये, अपने साथ लटकती ! सदकर्म-कु कर्म संचित करने वाले, दोनों थैलों को, वहाँ अलग-अलग उड़ेल दिया. सेकें ड
से भी कम समय में, संबंधित महादेव-दूत बोले :
“तुम ! चौरासी लाख चौरासी योनियों का, एक और चक्र लगाने हेतु ! पुनः वापिस भेजे जाते हो. तुम्हें पूर्व श्रेणी के , द्वितीय चरण से, पुनः अपनी यात्रा !
आरंभ करनी होगी. तुम अपना ! उड़ेला हुआ ! यह दोनों प्रकार का कर्म ! अपने थैले में भरो. और रिक्तता योनि में, अगले देह प्राप्ति तक, प्रतीक्षा करो.”
सत्यमार्गी नामक वह आत्मा ! विलाप करती रही. निवेदन करती रही ! रोती रही ! गिड़गिड़ाती रही ! दया-याचना करती रही. परंतु परिणाम वहीं रहा !
क्योंकि संपूर्ण सृष्टि के निर्माणकर्ता ! एवं उसके विधि-विधान के रचयिता ! महादेव के अनुसार……………. जहाँ आत्मा को, कु छ भी करने की, स्वतंत्रता
है. वहीं विधि-विधान में, कु छ भी बदलाव नहीं करने की, प्रतिबद्धता भी है.
अतः सत्यमार्गी नामक आत्मा को, कोई राहत नहीं मिली. कु छ समय तक ! उसको रिक्तता योनि में, रखने के पश्चात् ! उसके दूसरे क्रमिक चक्र का, प्रथम
जन्म ! यानि कु ल जन्मों की गिनती में, चौरासी लाख पच्चासीवाँ जन्म ! किसी सुदूर ग्रह के , एक विशालकाय छिपकलीनुमा जीव के रूप में, दे दिया गया.
जब वह जन्म लेने हेतु ! जा रहा था. तब उसी के साथ ! यात्रा कर रही, उसी जैसी स्थिति वाली, एक दूसरी आत्मा ! रुष्ट भाव में, उससे बोली :
“सत्यमार्गी ! मैं जब भी कभी, मूलश्रेणी में, प्रवेश पाऊँ गा. तब देखना ! मैं कु कर्मों का ! वह पहाड़ खड़ा करूँ गा कि…………. ! ………..फिर
देखूँगा. कोई कै से ? मुझसे मानव जन्म ! छीन पाता है.”
सत्यमार्गी नामक आत्मा बोली :
“पहले यह ! दूसरा क्रमिक चक्र तो, पूरा करो.”
दूसरी आत्मा बोली :
“दूसरा ! दूसरा होगा तुम्हारा ! मैं तो अभी ! अपने………….. आठ करोड़, उन्नीस लाख, पचास हजार, चार सौ, बाईसवें चक्र का, प्रथम जन्म लेने जा
रहा हूँ.”
~~~~~~~~~
जब यह प्रकरण प्रथम बार ! सार्वजनिक पटल पर रखा गया था. तब एक आदरणीय पाठक ने, एक प्रश्न पूछा था. वह प्रश्न :~ दूसरी आत्मा द्वारा कहे हुये
वाक्य ! आठ करोड़, उन्नीस लाख, पचास हजार, चार सौ, बाईसवें चक्र के , प्रथम जन्म का ! अभिप्राय क्या है स्वामी जी ?
उत्तर :~ एक क्रमिक चक्र में, पूर्व श्रेणी के , दूसरे चरण से लेकर ! आठवें चरण तक की यात्रा होती है. यानि एक चक्र में, चौरासी लाख चौरासी जन्म होते
हैं. तीन मानव जन्म तथा बाकी अन्य देह जन्म. अतः दूसरी आत्मा के बोलने का अर्थ ! वह अपना 68,83,90,42,02,35,365 वाँ जन्म लेने जा रहा
था.
इस उत्तर को पढ़ कर ! एक शिवशक्तियन की टिप्पणी :~ मात्र इसी आत्मा ने, पूरा बिग बैंग सिद्धांत ! धूलधूसरित कर दिया. बिग बैंग सिद्धांत में, कहा गया
है कि, 1450 करोड़ साल पहले, सारी सृष्टि ! सभी आकाशगंगायें ! एक बिंदु में समाहित थी. बिंदु की बात ! भले ही सही हो. परन्तु पूरी सृष्टि का ठेका
लेना, ये अनुचित है. ये ब्रह्माण्ड भले ही 1450 करोड़ साल पुराना हो. परन्तु पूरी सृष्टि के बारे में, सिर्फ और सिर्फ शिवशक्ति ही जानते हैं. अब हम लोगों
को, ये तो पता चल ही गया है कि, ब्रह्मांड असंख्य हैं. और ब्रह्माण्डों से मिलकर बने विस्तार क्षेत्र भी असंख्य हैं. और ये सब ! बनते बिगड़ते रहते हैं.
~~~~~~~~~
अब यह ! उस सत्यमार्गी नामक आत्मा के , दूसरे क्रम का, चौरासी लाख इक्कासीवाँ जन्म चल रहा था. यानि दूसरे क्रमिक चक्र वाला, पूर्व श्रेणी के सातवें
चरण का, अंतिम जन्म चल रहा था. यानि इक्कासी पूज्य जन्मों में का, अंतिम जन्म चल रहा था. यानि जन्मों की कु ल गिनती के अनुसार ! एक करोड़,
अड़सठ लाख, एक सौ पैंसठवाँ जन्म चल रहा था.
पूज्य जन्म होने के कारण ! सत्यमार्गी नामक वह आत्मा ! एक सुदूर ग्रह पर, एक पूज्य वृक्ष स्वरूप में, अत्यंत आदर-सत्कार वाले परिवेश में, अपना जीवन
जी रही थी. सब कु छ आनंदमय था. बस उसे यह बात ! भली-भाँति ज्ञात था (क्योंकि पूर्व श्रेणी के , दूसरे से सातवें चरण में, सभी को यह ज्ञात रहता है)
कि, अब उसे अगला जन्म ! मानव-देह में प्राप्त होगा.
……………और मानव-देह प्राप्त होते ही, उसकी यह सभी स्मृति ! समाप्त हो जायेगी. और खोई हुयी यह स्मृति ! पुनः तभी लौटेगी. जब वह !
मानव-देह-त्याग करके , रिक्तता योनि में लौटेगा. साथ ही उसे ! यह भी पता था कि, इस बार के चक्र का, पहला मानव जन्म ! उसे सदकर्मी परिवार में तो,
किसी भी हाल में, नहीं मिलेगा.
क्योंकि यह विशेष सुविधा ! के वल पहले चक्र वाले, आत्माओं को ही मिलती हैं. वह भी तीन मानव-जन्म के , के वल प्रथम मानव-देह-जन्म में ही. जबकि
उसका तो यह ! दूसरा चक्र है. अतः उसे जो जन्म मिलेगा. वह उसके दोनों थैलों में, संचित-संग्रहित ! दोनों प्रकार के कर्मों के , लेखा-जोखा के अनुरूप
मिलेगा.
उसे यह भी, बहुत अच्छे से ज्ञात था कि…………. इन विगत् चौरासी लाख अस्सी जन्मों के , कर्मों से ! तथा साथ ही, इस वर्तमान जन्म के , कर्मों से भी,
उसके पूर्व वाले, तीन मानव-देह में, एकत्र किये गये, सदकर्मों-कु कर्मों पर, कोई अंतर नहीं पड़ेगा. क्योंकि मानव-देह में, एकत्र / संग्रह / संचय किये
गये……………… सदकर्मों का सुफल हो ! या कु कर्मों का दंड हो. वह सब मिलेगा ! या भोगना पड़ेगा ! तो मानव-देह-जन्म में ही. उसका कोई ! अन्य
विकल्प नहीं है.
इन्ही बातों को, वह प्रतिदिन सोचता था. उस दिन भी सोच रहा था. तभी दिन के समय में ही, काफी तीव्रता से, बिल्कु ल रात्रि जैसा ! अंधेरा छा गया. वहाँ
! उस ग्रह के निवासियों में, किसी अज्ञात आशंका को ले कर, चहुँओर ! चीत्कार मच गया. हवा का बहुत तेज वेग ! उस ग्रह पर, दबाव बनाता गया. ऐसा
लग रहा था. जैसे कोई दूसरा बड़ा ग्रह ! उस ग्रह से, टकराने वाला हो.
बहुत तीव्र आवाज ! बढ़ते हुये क्रम में, आने लगी. इतनी तीव्र की, वहाँ के किसी भी जीव की, श्रवण क्षमता ! शायद ही बच पायी होगी. और ! फिर कु छ
टकराया ! भीषण टक्कर ! एक क्षण में, सब कु छ नष्ट हो गया. उस सत्यमार्गी नामक आत्मा का, वह पूज्य ! वृक्ष रूपी देह भी.
समग्र प्रलय हो चुके , उस ग्रह के , सभी वर्तमान देह-धारी आत्माओं ने, तत्काल उस ग्रह वाले, अपने-अपने वर्तमान देह का, त्याग किया. तथा उसके पश्चात्
! वह सभी के सभी, महादेव-दूतों के समक्ष ! लेखा-जोखा खंड में, पहुँच चुके थे. जब सत्यमार्गी नामक आत्मा ! संबंधित महादेव-दूत के पास पहुँची. तो
महादेव-दूत उससे बोले :
“सत्यमार्गी ! तुम्हारा तो यह, पूर्व श्रेणी सातवें चरण का, इक्कासीवाँ जन्म था. इसलिये तुम प्रतीक्षा करो. एक दुर्लभ संयोगवश ! तुम………… एक ऐसे ग्रह
के , ऐसे काल-खंड में, अपने ऐसे जन्म-अवस्था में थे कि, तुम्हारे हेतु ! लाभदायक परिस्थिति है.”
किसी अनजानी ! प्रसन्नता से, प्रफु ल्लित ! वह सत्यमार्गी नामक आत्मा ! प्रतीक्षा-क्षेत्र में चली गयी. जहाँ उस समय ! उसके जैसे वाले ! यानि उसके अंतिम
जन्म वाले, ग्रह जैसे परिस्थिति के ! यानि समग्र रूप से, प्रलय हो चुके , ग्रहों-उपग्रहों पर की, आत्माओं का, जमावड़ा लगा था. अपने पूर्व श्रेणी वाले, सातवें
चरण के अंतिम ! यानि इक्कासीवाँ जन्म का, आनन-फानन में, अपना-अपना पूज्य स्वरूप वाला ! देह-त्याग कर, आयी हुयी बहुतेरी आत्मायें ! वहाँ
उपस्थित थी.
वहाँ चहुँओर ! अलग-अलग समूह में, एकत्रित आत्मायें ! आपस में चर्चायें कर रही थी. अपना-अपना एक्सपर्ट-कमेंट नुमा ! अनुमानित लाभदायक
परिस्थितियों पर, राय बता रही थीं. जिसमें से कु छ गंभीर ! तो कु छ हास्यास्पद भी थीं. प्रतीक्षा बहुत लंबी नहीं चली. क्योंकि महादेव-दूतों का दल ! उन्हें
संबोधित करने हेतु ! उस लेखा-जोखा विभाग के , प्रतीक्षा-खंड में, पधार चुके थे.
उनमें से, सबसे वरिष्ठ महादेव-दूत बोले :
“चूँकि विधी-विधान में, असंख्य संहितायें हैं. अतः समझाने के समय ! सभी संहिताओं को समझाना ! बहुत सरल नहीं है. तथा विधि-विधान के , सभी
संहिताओं का, ज्ञान होना ! आवश्यक भी नहीं है. जब जो आत्मा ! जैसी परिस्थिति में होती है. उस परिस्थिति वाली संहितायें ! उसे, उसी समय ! समझा
दी जाती हैं.”
“जैसे ! यहाँ एकत्रित ! आप सभी आत्मायें ! एक दुर्लभ संयोगवश ! एक विशेष अलग ! परंतु लाभदायक परिस्थिति में, आ गयी हैं. ऐसा संयोग भी,
असंख्य आत्माओं में, किसी-किसी एक के साथ ही बनता है. आप सभी ! यहाँ उपस्थित आत्मायें ! विगत् चौबीस घंटों में, उसी सुखद लाभदायक संयोग
वाली ! आत्मायें हैं.”
“महादेव-रचित ! विधि-विधान की, एक संहिता के अनुसार ! जब भी कोई ग्रह ! या उपग्रह ! अपने समग्र प्रलय ! या आंशिक विध्वंस की, आवश्यक
अहर्तता ! प्राप्त कर लेती है. तब उस ग्रह / उपग्रह के , संपूर्ण मानवों या सम्पूर्ण जीवन का, अंत करने हेतु ! संबंधित महादेव-गण ! जब वहाँ विध्वंस करते हैं
! या प्रलय लाते हैं.”
“तब उस ग्रह / उपग्रह पर ! उस प्रलय / विध्वंस वाले क्षण में ! देह धारण किये हुये ! पूर्व श्रेणी वाले, सातवें चरण की, अंतिम पूज्य जन्म ! यानि इक्कासीवें
जन्म वाली, सभी आत्माओं को, यह विशेष लाभदायक परिस्थिति वाली, सुविधा मिलती है. इस विशेष सुविधा को, मिलने के पीछे का कारण ! यह है
कि……………. पूज्य जन्मों के , अंतिम जन्म में, किसी भी आत्मा के , किसी देह की, अकाल मृत्यु ! नहीं करायी जा सकती.”
“…………….और अगर ! किसी भी कारणवश ! ऐसा होता है तो, उसे सांत्वना स्वरूप ! कु ल ४५ सुविधाओं में से, कोई भी एक सुविधा ! उसकी
इच्छानुसार ! उसे प्रदान की जाती है. अतः अभी, आप सभी को, सर्वप्रथम ! वह ४५ सुविधायें…………. दिखायी / बतलायी / समझायी जायेंगी.
तदुपरांत ! आप अपनी-अपनी इच्छानुसार ! कोई भी एक सुविधा का, चयन कर सकते हैं.”
वहाँ उपस्थित सभी आत्माओं को, कु ल सभी ४५ विशेष लाभदायक परिस्थिति वाले विकल्प ! दिखाये जा चुके थे. वहाँ उपस्थित ! सभी आत्मायें ! अपने-
अपने स्वेच्छा से, इच्छित विकल्प का, चुनाव कर-कर के , अपने अगले जन्म की प्रतीक्षा हेतु ! रिक्तता योनि में, जा रहे थे.
जब ! उस सत्यमार्गी नामक आत्मा के , चयन करने की बारी आयी. तब उसने, विकल्प क्रमांक १४ का, चयन किया. जिसमें यह सुविधा प्राप्त थी
कि……………. उसके पूर्व श्रेणी वाले, आगामी दो मानव जन्मों में, उसकी बारह वर्ष की अवस्था होने पर, उसे किसी भी, सांके तिक माध्यम से, यह बता
दिया जायेगा कि…………..
…………..सदकर्म करना ही, मोक्ष प्राप्ति का, एक मात्र मार्ग है. उसके बाद ! यह पूर्णतः ! उसके , उन आगामी दोनों मानव जन्मों के , मनोवृत्ति पर
निर्भर करेगा कि…………. उस एक ! अस्पष्ट संके त के सहारे ! अपने उस देह के , पूर्ण जीवन भर ! यानि संपूर्ण आयु भर ! वह सदकर्मी बना रहे.
……………तथा जब ! उसके पूर्व श्रेणी वाले, आठवें चरण का, तीसरा या / व अंतिम मानव जन्म (सत्यमार्गी के मामले में, दूसरे क्रमिक चक्र का,
अंतिम मानव जन्म) होगा. तब उसको ! वह जन्म ! ऐसे ग्रह / उपग्रह पर, दिया जायेगा. जहाँ उसके , उस जन्म के , काल खंड में, उसी समानांतर अवधि
में, कोई मूल श्रेणी वाले, आठवें चरण की आत्मा ! महादेव-दूत बनने हेतु ! महादेव-आज्ञा वाला ! विशेष धर्मकाज कर रही होगी.
जहाँ उसके ! संचित सदकर्मों की प्रबलता से, यह तय होगा कि………….. वह ! उस भावी महादेव-दूत पर, कितना विश्वास करेगा. तथा उसके संचित
कु कर्मों की प्रबलता से, यह निर्धारित होगा कि…………. वह ! उस भावी महादेव-दूत पर, कितना अविश्वास करेगा.
परंतु हाँ ! अगर वह चाहे तो, अपने संचित कु कर्मों की, प्रबलता से उपजे, अपनी नकारात्मक अविश्वास वाली, भावनाओं पर ! बलात् कठु राघात करके भी,
सकारात्मक बने रहने का, प्रयत्न कर सकता है. यह सब पूर्णतः ! उसकी स्वेच्छा पर निर्भर करेगा.
परंतु उसने ! उस तीसरे, या अंतिम जन्म से पहले के , यानि आगामी दो, या दो से अधिक जन्मों में, अगर भरपूर सदकर्म ! तथा न्यूनतम कु कर्म किया. तब
उसको ! उसका तीसरा व / या अंतिम मानव जन्म ! ऐसे में, उस ग्रह / उपग्रह पर, दिया जायेगा. जहाँ उसके , उस जन्म के काल खंड में, उसी समानांतर
अवधि में, कोई मूल श्रेणी वाले, आठवें चरण की, ऐसी आत्मा ! महादेव-दूत बनने हेतु ! महादेव-आज्ञा वाला ! विशेष धर्मकाज कर रही होगी.
***जिसे कु छ पूर्व श्रेणी के , आत्माओं को, उस धर्मकाज के माध्यम से, मूल श्रेणी में, ले जाने का, वरदान प्राप्त होगा.***
{ नोट :~ यहाँ आदरणीय पाठकों को, धौलागिरी प्रकरण ! या अन्य प्रकरणों को पढ़ कर ! उत्पन्न हुयी, उस जिज्ञासा का भी, संभवतः उत्तर प्राप्त हो
जायेगा कि……………. क्यों मूल श्रेणी के , छठे चरण वाले, २७ वर्षीय परीक्षा के , आरंभिक वर्ष में ही (लगभग पाँचवें वर्ष में ही), उन आत्माओं से, उनके
महादेव-दूत बनने हेतु ! किये जाने वाले, आठवें चरण के , धर्मकाज को करने हेतु ! इतने अग्रिम रूप से, ग्रह / उपग्रह का चयन ! करा लिया जाता है.
(जबकि उस समय ! यह भी तय नहीं होता है कि, वह आत्मा ! अपने मूल श्रेणी का, छठा चरण ! उस बार में, उत्तीर्ण कर भी पायेगी या नहीं.) तब भी,
इसलिये चयन करा लिया जाता है. क्योंकि उसी के आधार पर तो, यह तय होता है कि………… उस ग्रह / उपग्रह के , उस समानांतर काल-खंड में,
किन-किन सौभाग्यशाली ! या वरदानी (वरदान या सुविधायुक्त) पूर्व श्रेणी ! एवं मूल श्रेणी के आत्माओं को, वहाँ जन्म दिया जाये. }
उस सत्यमार्गी नामक आत्मा ने, सांत्वना स्वरूप प्राप्त ! विशेष लाभदायक परिस्थिति वाले विकल्पों में से, एक विकल्प का, चयन तो कर लिया था. परंतु
तभी उसे, महादेव-दूतों द्वारा ! यह बताया गया कि…………..
“उसके द्वारा चयनित ! वह वरदान ! उस पर तभी फलित होगा. जब वह स्वयं के प्रयासों से, उस धर्मकाज में बना रहे. क्योंकि वह भावी महादेव-दूत
आत्मा ! उससे प्रत्यक्ष या संके तों के माध्यम से, एक ही बार ! संपर्क करेगी. अगर उसने वह ! शुभ अवसर गवाँ दिया. तो आज उसे प्राप्त हो रहे………..
उस ४५ विशेष लाभदायक परिस्थितियों वाले, विकल्पों में से, एक चयनित विकल्प का, कोई भी अर्थ ! शेष नहीं रह जायेगा.”
आगे उसे, कु छ और भी बताया गया. जिसका अर्थ ! यह था कि………….. वैसे, उसके आत्मा की, (इस मामले में, उस सत्यमार्गी नामक आत्मा की)
कोई भी त्रुटि ! नहीं होने पर भी, एक और परिस्थिति में, वह वरदान ! फलित नहीं होगा.
वह या वैसा तब होगा ! जब वह ! मूल श्रेणी के , छठे चरण वाली आत्मा ! (जिसके आठवें चरण के , धर्मकाज में, सहयोगी बनने की, इस पूर्वश्रेणी वाली
आत्मा हेतु ! रचना रची जाये. और वह आत्मा !) अपने छठे चरण की, १५०० परीक्षाओं में से, न्यूनतम निर्धारित ! ११११ परीक्षायें ! उत्तीर्ण ही नहीं कर
पाये.
(वैसे अनुत्तीर्ण होने की, संभावना ही, सबसे अधिक होती है. क्योंकि प्रति अरबों / खरबों में से, कोई एक ही आत्मा ! एक ही जन्म में ! यानि मूल श्रेणी
वाले, छठे चरण के , पहले जन्म में ही, मूल श्रेणी वाले, छठे चरण की, ११११ परीक्षाओं में, उत्तीर्ण हो पाती है.)
बहरहाल ! डू बते को तिनके का सहारा ! यहीं मान कर…………. उस सत्यमार्गी नामक आत्मा ने, उस दुर्लभ संयोग के बदौलत ! सांत्वना स्वरूप प्राप्त
हुये, ४५ विशेष लाभदायक परिस्थिति वाले विकल्पों में से, इस विकल्प क्रमांक १४ का चयन करके , अपने अगले जन्म की प्रतीक्षा में, यानि अपने ! दूसरे
क्रमिक चक्र के , पूर्व श्रेणी वाले, आठवें चरण के , प्रथम मानव देह जन्म हेतु ! प्रतीक्षा करने, रिक्तता योनि में चला गया.
कु छ काल पश्चात् ! उस सत्यमार्गी नामक आत्मा को, उसके दूसरे क्रमिक चक्र का, प्रथम मानव जन्म मिला. यानि दूसरे क्रमिक चक्र का, चौरासी लाख
बेरासीयवाँ जन्म मिला. या इसको, यूँ समझें कि, दूसरे क्रमिक चक्र वाला, पूर्व श्रेणी के आठवें चरण का, पहला जन्म मिला. जबकि, समग्र रूप से देखें तो,
जन्मों की कु ल गिनती के अनुसार ! एक करोड़, अड़सठ लाख, एक सौ छयासठवाँ जन्म मिला. तथा दोनों चक्र के , कु ल मानव जन्मों को, मिला कर गिनें
तो………. उसे ! उसके , चौथे मानव देह जन्म की, प्राप्ति हुयी.
उस सुदूर उपग्रह पर, जब उसके ! उस जन्म के , बारह वर्ष पूर्ण होने वाले थे. तभी एक रात्रि ! उसे एक स्वप्न दिखा. स्वप्न में उसे जो दिखा ! उसका
संक्षिप्त विवरण ! कु छ यूँ है………………
अत्यंत उमसनुमा ! गर्मी का मौसम था. एक अनजाने से, अपरिचित हरे-भरे पहाड़ी पर, उस पहाड़ी के सभी दिशाओं से, बहुत सारे बच्चे ! चढ़ायी चढ़ रहे
थे. उन्हीं बच्चों में से, एक बच्चा ! वह स्वयं भी था. तथा और थे……… उसी के लगभग आयु वर्ग के , बहुत सारे अलग-अलग मुखाकृ ति ! व देहकाया वाले
बच्चे. कु छ ही देर की चढ़ायी में, सभी बच्चे ! उस पहाड़ी के शिखर पर थे.
परंतु उस पहाड़ी का शिखर ! कोई नुकीला नहीं था. या ऐसा भी नहीं था कि, उसपर कम समतली जगह हो. उस पहाड़ी के शिखर बिंदु पर……………
बिंदु के स्थान पर ! बहुत बड़ा ! हरा-भरा ! नरम घास का मैदान था. वहाँ का मौसम भी सुहाना था. तभी वहाँ के वातावरण में, अलौकिक ! स्वर गुंजा.
बोलने वाला अदृश्य था. परंतु आवाज बहुत स्पष्ट थी :
“बच्चों ! अगर कोई कहानी देखना ! एवं सुनना चाहते हो तो, पीठ के बल ! घास पर लेट करके , आकाश की ओर, अपनी दृष्टि कें द्रित करो.”
अलग-अलग मुखाकृ ति ! व देहकाया वाले ! सभी बच्चों ने, तत्क्षण ! उस निर्देश का पालन किया. जिसमें से एक वह ! स्वयं भी था. लेटते ही, ऊपर का
संपूर्ण आकाश ! किसी थियेटर के , पर्दे में बदल गया. अंतर बस इतना था कि, उस पर्दे का रंग ! सफे द के बजाये नीला था. और वह पर्दा ! समतल होने
बजाये, तारामण्डल के पर्दे जैसा, उल्टा-कटोरेनुमा आकर का था.
उस पर्दे पर, कोई चलचित्र आरंभ हो चुका था. परंतु एक और भी अंतर था. उस पर्दे पर ! प्रकाश यानि फ़ोकस के आने का स्रोत ! कहीं नहीं दिख रहा था.
वहाँ जो चला कर, दिखाया गया. वह ! किसी दूसरे अनजान मानव के , किसी एक जन्म के , जीवन-यात्रा को, डाक्यूमेंट्री जैसा ! शूट किया हुआ ! एक
चलचित्र था. जिसमें उसने ! यह देखा कि…………..
एक बहुत ही, धर्मी-सदकर्मी मनुष्य है. परंतु उसके जीवन में, अपार कष्ट है. वह कोई भी, गलत कार्य ! नहीं करता. परंतु फिर भी, उसके जीवन में, तथा
उसके परिवार-जन के जीवन में, दुःख समाप्त ही नहीं होते. वह जितना ही सदकर्म करता है. उसे उतना ही अधिक ! दण्ड-रूपी दुःख ! व कष्ट मिलता
जाता है. निरंतर-अनवरत समस्याओं से घिरा रहता है. हर ओर से, उस पर दुःखों का पहाड़ ! गिरते रहता है.
एक प्रकार से देखें तो, उससे अधिक ! सदकर्मी-धर्मी ! बहुत ही कम लोग होंगे. जबकि वहीं, उससे अधिक कष्ट-दुःख ! व समस्याओं से ग्रस्त लोग भी,
बहुत कम होंगे. बहुत ही कम लोगों ने, उतना दुःख भोगा होगा. उस डाक्यूमेंट्री के अनुसार…………. अंततोगत्वा ! वह सदकर्मी मानव ! अपना जीवन जी
कर, अपार कष्ट में ही, अपने परिवार को, छोड़ कर ! मर जाता है. उसी के साथ ! वह उल्टा कटोरे नुमा पर्दा ! पुनः नीला हो जाता है.
…………….और वहाँ के वातावरण में, पुनः उसी अलौकिक स्वर में, घोषणा होती है :
“हाँ तो बच्चों ! अब एक बात बताओ ? क्या उस अच्छे व्यक्ति के साथ ! जो कु छ हुआ ! क्या वह उचित था ? क्या भगवान को, ऐसा करना चाहिये था ?”
पीठ के बल सोये ! मुख आकाश की ओर किये ! नरम घास पर लेटे हुये………… सभी बच्चे ! एकमेव स्वर में बोले. उनके बोलने का, मिला-जुला अर्थ था
:
“बिल्कु ल भी नहीं. उन बेचारे ! धर्मी-सदकर्मी के साथ ! बहुत गलत हुआ. भगवान को ऐसा बिल्कु ल भी, नहीं करना चाहिये. भगवान इतने निर्दयी ! कै से
हो सकते हैं ?”
अदृश्य स्रोत वाले का, अलौकिक स्वर ! पुनः वहाँ के वातावरण में गूँजा :
“अच्छा ! किसी भी घटनाक्रम का, बहुत ही छोटा ! एवं आधा-अधूरा अंश देख कर ! अपने मनोमस्तिष्क से, पूर्वानुमान लगा कर ! किसी भी निर्णय पर,
पहुँचने से पहले…………… उसी धर्मी-सदकर्मी आत्मा के , पूर्व जन्म की, कहानी भी देख लो.”
“………….तथा उसके पूर्वजन्म वाले, घटनाक्रम को, देखने से पूर्व ! आत्मा-यात्रा के , अठारह चरणों को भी, ठीक से समझ लो. क्योंकि ! उन
अठारह चरणों को, समझे बिना ! कु छ भी समझ में, नहीं आयेगा.”
…………….और उसके बाद ! अलौकिक वाणी पर, विराम लगते ही, पुनः उस आकाश वाले पर्दे पर, नया चलचित्र आरंभ हो गया. जिसमें ग्राफिक्स
इमेज जैसे आकृ तियों के माध्यम से, आत्मा-यात्रा के , अठारहों चरणों को, विस्तारपूर्वक समझाया गया. तदोपरांत ! उस धर्मी-सदकर्मी आत्मा के , पूर्व जन्म
वाली, कहानी दिखाने की, बारी थी.
अबकि बार ! वहाँ जो दिखाया जा रहा था. वह उसी अनजान मानव के , एक जन्म पूर्व वाले, जीवन-यात्रा की, डाक्यूमेंट्री जैसी चलचित्र थी. जिसमें, उस
बारह वर्षीय लड़के ने, यह देखा कि…………..
वह तो, एक बहुत ही, अधर्मी-कु कर्मी मनुष्य है. परंतु उसके जीवन में, फिर भी खूब मजे हैं. वह कोई भी, सही कार्य ! नहीं करता. परंतु फिर भी, उसके
जीवन में, तथा उसके परिवार-जन के जीवन में, प्रत्यक्षतः कोई भी, कमी नहीं दिखती. वह जितना ही कु कर्म रूपी………… चोरी ! लूट ! व्यभिचार !
अत्याचार ! भ्रष्टाचार ! इत्यादि करता है.
उसे, उसके परिणामस्वरूप ! उतना ही अधिक ! धन-धान्य-सम्मान ! मिलता जाता है. निरंतर-अनवरत संपूर्ण जीवन ! भोग-विलास करता हुआ ! मजे
करता रहता है. कहीं कोई दुःख ! या दुःख का साया तक ! उसके पास नहीं फटकता. उसके जीवन में, चहुँओर ! सुख-ही-सुख है.
एक प्रकार से देखें तो, उससे अधिक ! कु कर्मी-अधर्मी ! बहुत ही कम लोग होंगे. जबकि वहीं, उससे अधिक धन-धान्य संपन्न ! तथा मान-सम्मान से
परिपूर्ण ! सामाजिक जीवन वाले लोग भी, बहुत कम ही होंगे. बहुत ही कम लोगों को, उतनी अत्यधिक सुख-सुविधायें ! प्राप्त होती होंगी. उस डाक्यूमेंट्री के
अनुसार…………. अंततोगत्वा ! वह कु कर्मी मानव ! अपना जीवन जी कर, अपार वैभव से परिपूर्ण समृद्धि ! अपने परिवार हेतु छोड़ कर ! मर जाता है.
उसी के साथ ! वह उल्टा कटोरे नुमा पर्दा ! पुनः नीला हो जाता है. तथा उसके कु छ ही क्षण पश्चात् ! उस पर पुनः चलचित्र आरंभ हो जाता है. अब उसमें
! उसी कु कर्मी आत्मा के , मरणोपरांत का दृश्य ! यानि उस आत्मा द्वारा ! उसका, वह देह त्यागने के बाद का, दृश्य दिख रहा था.
जिसमें वह ! लेखा-जोखा खंड में था. तथा अपने साथ लटकते ! सदकर्म एवं कु कर्म के थैले को, पलटने के पश्चात् ! अपने कु कर्मों के , विशाल ढेर को देख
कर, विलाप कर रहा था. तथा उन कु कर्मों के लिये ! शीघ्रातिशीघ्र दंड देने हेतु ! प्रार्थनायें कर रहा था.
वैसे कु छ देर की विनती के पश्चात् ! उसकी प्रार्थना ! स्वीकार कर ली जाती है. तथा उसी के साथ ! वह उल्टा कटोरे नुमा पर्दा ! पुनः नीला हो जाता है.
बाकी उसके प्रार्थना को, स्वीकार किये जाने का, क्या परिणाम निकला ? वह तो, उसने ! पहले ही देख लिया था.
…………….अतः अब ! वहाँ के वातावरण में, पुनः उसी अलौकिक स्वर में, घोषणा होती है :
“हाँ तो बच्चों ! अब बताओ ? क्या उस कु क्रमी व्यक्ति को, दण्ड देना उचित था ? क्या भगवान को, ऐसा करना चाहिये था ?”
पीठ के बल, नरम घास पर लेटे हुये ! चेहरा आकाश की ओर किये ! …………सभी बच्चे ! एकमेव स्वर में बोले. उनके बोलने का, इस बार ! मिला-
जुला अर्थ था :
“बिल्कु ल उस दुष्ट-पापी को, दण्ड मिलना ही चाहिये ! कठोर से कठोर दण्ड मिलना चाहिये.”
अदृश्य स्रोत वाले का, अलौकिक स्वर ! एक बार फिर से, वहाँ के वातावरण में गूँजा :
“अच्छा बच्चों ! इसलिये मैंने कहा था. किसी भी घटनाक्रम का, बहुत ही छोटा ! एवं आधा-अधूरा अंश देख कर ! कभी भी, अपने मनोमस्तिष्क से,
पूर्वानुमान लगा कर ! किसी भी निर्णय पर, झट से नहीं पहुँचना चाहिये.”
“अब एक और जिज्ञासा ! जो तुम्हारे मस्तिष्क में उठेगी. वह यह कि………… तुम्हें यह सब ! क्यों दिखाया गया है ?”
“इसका उत्तर है………….. तुम सभी-के -सभी ! ऐसी आत्मा हो, जिसके पास ! पूर्वजन्मों के संचित कु कर्मों का, विशाल भंडार है. परंतु तुम्हें ! उसका,
स्मरण नहीं होगा. क्योंकि तुम अभी, पूर्व श्रेणी में हो. और विधि-विधान के अनुसार ! पूर्व श्रेणी के आत्मा को, उसके मानव-देह-जन्म में, कु छ भी अलौकिक
स्मरण ! नहीं रह सकता.”
“अब यहाँ ! एक और प्रश्न उठता है. वह ! यह है कि………. उसी विधि-विधान के अनुसार ! कु कर्मी आत्मा को तो, और भी कु कर्म करने को, छोड़
दिया जाता है. तब फिर ! तुम्हें यह सब दिखा कर ! सचेत क्यों किया जा रहा है ?”
“इसका उत्तर है…………… तुम सभी ! हो तो घोर कु कर्मी आत्मा ही. परंतु किन्ही-किन्ही ! अलग-अलग कारणों से, तुम सभी को, कु छ विशेष
लाभदायक परिस्थितियों वाली, सुविधायें प्राप्त है. तुम्हें भले ही, इस बात का, स्मरण नहीं है. परंतु ! तुमने, अपने स्वयं की स्वेच्छा से, अपने अंतिम
पूर्वजन्म की समाप्ति पर ! स्वयं ही, इस विकल्प का ! इस सुविधा का ! चयन किया होगा.”
“उसी सुविधा के अनुसार ! तुम्हें, यह सचेत करने वाला कार्य ! किया गया है. परंतु ! इसका यह अर्थ ! बिलकु ल भी नहीं है कि…………. तुम्हें यह
घटना ! इस देह के , जीवन भर, स्मरण रहेगी. बिल्कु ल भी नहीं रहेगी. अभी कु छ समय पश्चात् ! यहाँ से लौटते ही, तुम सब कु छ भूल जाओगे. इस घटना
का, तुम्हारे ऊपर ! कोई असर नहीं रहेगा.”
“परंतु ! तुम अभी, जो यहाँ चुनाव करोगे. उसका असर ! अवश्य ही, तुम्हारे इस जन्म भर रहेगा. अब प्रश्न यह है कि, तुम्हें अभी ! चुनाव क्या करना है
?”
“तुम्हें बस ! चुनाव यह करना है कि…………. तुम अपने पूर्वजन्मों के , संचित कु कर्मों का दण्ड ! इस जन्म में, किस गति से, भोगना चाहते हो ?”
“एक है सामान्य गति ! जिसमें तुम्हारी कोई इच्छा ! मान्य नहीं होगी. क्योंकि कम से कम ! उतना दण्ड तो ! यानि उस गति से दण्ड तो…………….
तुम्हें ! हर हाल में, भोगना ही पड़ेगा.”
“दूसरा विकल्प है ! सामान्य से नौ गुणा तेज गति से, सामान्य से नौ गुणा अधिक दण्ड भोगना. उसका अभी तुम्हें ! एक संक्षिप्त विवरण ! दिखाया जायेगा.
जो सभी के लिये, उसके कु कर्मों के भंडार अनुसार ! अलग-अलग होगा. तुम सब अपनी आँखें बंद करो. और नौ गुणा तेज गति वाले, दण्ड का विवरण
देखो.”
“इस विवरण को, देखने के मध्य में ही, तुम्हें अगर ! यह मुश्किल लगे तो………….. तुम कभी भी, बीच में ही उठ कर ! यहाँ से जा सकते हो. तुम्हारे
जाने का अर्थ ! यह माना जायेगा कि, तुम्हें नौ गुणा तीव्र गति से, दंड नहीं भोगना है. तुम्हारे ! यहाँ से लौटते ही, यहाँ के घटनाक्रम का, तुम्हें कु छ भी
स्मरण ! नहीं रहेगा.”
“………..और अगर तुमने ! पूरा देख लिया तो, उसका अर्थ ! यह माना जायेगा कि, तुम्हारी इसमें रुचि है. फिर तुम्हारे हेतु ! सामान्य गति वाला
विकल्प ! समाप्त हो जायेगा. उससे तीव्र गति वाले, दो विकल्पों में से, तुम्हें एक विकल्प का चुनाव ! हर हाल में, करना ही होगा.”
उस सत्यमार्गी नामक आत्मा के , उस वर्तमान जन्म वाले, बारह वर्षीय देह ने भी, बाकी सभी की भाँति ! अपनी आँखें बंद की. तत्क्षण उसे ! अपने भविष्य
के , दुःखों व कष्टों की, विवरणिका दिखायी जाने लगी. उसकी तो आरंभ में ही, हिम्मत जवाब दे गयी. उससे आगे का, देखा नहीं गया. उसने अपनी आँखें
खोली. उसे कई सारे बच्चे ! उठ कर ढलान की ओर ! जाते दिखे. वह भी उठने ही वाला था कि, उसने सोचा ! थोड़ा और देख कर, फिर लौट जायेगा.”
उसने पुनः अपनी आँखें बंद की. और उसको देखने में, इतना खो गया कि…………. वह पूरा ही देख लिया. अब वह फँ स चुका था. उसने वहाँ से भागना
चाहा. परंतु ! एक महादेव-दूत द्वारा ! पकड़ कर, बिठा दिया गया. उसने ! अपने आस-पास ! दृष्टि फिरायी. लगभग नब्बे प्रतिशत बच्चे ! वहाँ से जा चुके
थे. बाकी बचे हुये, सभी बच्चों के पास ! एक-एक महादेव-दूत खड़े थे. जिसमें से अधिकतर बच्चे ! रो रहे थे. वह भी रोने लगा. लेकिन महादेव-दूत पर !
महादेव-दूतों पर ! इसका कोई असर नहीं पड़ा.
तभी अदृश्य स्रोत वाला, अलौकिक स्वर ! एक बार फिर से, वहाँ के वातावरण में गूँजा :
“अपने कु कर्मों के , शीघ्रातिशीघ्र दंड भोगने हेतु ! दृढ़ संकल्पित ! सभी आत्माओं को, बहुत-बहुत बधाई………”
वहाँ उपस्थित बच्चों में से, एक साथ ! कई बच्चे ! अधिकतर बच्चे ! एकमेव स्वर में चिल्लाये. जिसमें वह सत्यमार्गी भी था. उनके चीख-चिल्लाहट का, कु ल
जमा अर्थ था.
“हम कोई दृढ़-संकल्पित नहीं हैं. हम तो यहाँ ! धोखे से फँ स गये हैं. कृ पया हमें ! यहाँ से जाने दीजिये.”
उनके चीं-पों भरे, चीख-चिल्लाहट से, अदृश्य स्रोत वाले, अलौकिक स्वर पर, कोई भी असर नहीं पड़ा. पुनः वह दिव्य स्वर ! वहाँ के वातावरण में गूँजा :
“तुम सभी के , रोने-धोने से ! हम सभी पर ! कोई असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि यह हमारा ! प्रत्येक दिवस का काज है. यह रोना-धोना ! हम नियमित देखते-
सुनते हैं. अतः शांत हो कर, आगे की प्रक्रिया समझो.”
कु छ बच्चे चुप हो गये ! कु छ सुबकते रहे ! तो वहीं कु छ पूर्ववत् चिल्लाते रहे. तथा उन बच्चों के , नौटंकियों से परे, अदृश्य स्रोत वाले का, अलौकिक स्वर ! एक
बार फिर से, वहाँ के वातावरण में गूँजा :
“अब तुम्हारे पास ! दो ही विकल्प शेष है. या तो नौ गुणा तीव्र गति से, दण्ड भोगो. या निन्यानवे गुणा तीव्र गति से, निन्यानवे गुणा अधिक दंड भोगो. नौ
गुणा वाले की, विवरणिका ! तुम अभी देख चुके हो. अब आँखें बंद करके , निन्यानवे गुणा वाली, विवरणिका भी, देख ही लो.”
सत्यमार्गी ने थर-थर काँपते हुये, आँखें बंद करके , उस विवरणिका को भी देखा. उसका उल्लेख करने हेतु ! बहुत हिम्मत चाहिये. अतः अभी रहने दीजिये.
भविष्य के किसी अन्य एडिशन में, हिम्मत जुटायी जायेगी.
वहाँ उपस्थित ! सभी बच्चों ने, जब अपनी-अपनी विवरणिका देख ली. तब उनसे ! उनके पास, उनकी रखवाली में खड़े, महादेव-दूत ने, उनसे पूछा :
“निर्णय सुनाओ ! नौ गुणा ? या निन्यानवे गुणा ?”
तब तक सत्यमार्गी ! सही में दृढ़-संकल्पित हो चुका था. उसने मुट्ठी व जबड़ा भींच कर, उत्तर दिया :
“निन्यानवे गुणा !”
महादेव-दूत ने, उससे पूछा :
“क्या तुम यह निर्णय ! सभी पहलुओं पर ! विचार करके ले रहे हो ? क्योंकि निन्यानवे गुणा ! बहुत अधिक होता है. इसमें बस तुम ! समय पूर्व मरोगे नहीं.
बाकी तुम्हारे साथ ! सभी दुर्दशायें ! हो जायेंगीं.”
सत्यमार्गी नामक आत्मा के देह धारी ! बारह वर्षीय बच्चे कहा :
“जी ठीक है.”
महादेव-दूत बोले :
“तथास्तु !”
कमाल की बात तो यह थी कि, वहाँ बचे-खुचे उपस्थित बच्चों में से, अधिकतर ने, निन्यानवे गुणा वाला ही, विकल्प चयन किया था. वह सोच रहा था
कि………… ‘इन सब ने क्या सोच कर, यह विकल्प चुना होगा ?’
तभी महादेव-दूत बोले :
“अब तुम जा सकते हो.”
जाने से पहले, सत्यमार्गी नामक आत्मा के देह धारी ! उस बारह वर्षीय बच्चे ने पूछा :
“क्या सभी दुःख व कष्ट ! पूर्व जन्मों के , कु कर्म-स्वरूप ही होते हैं. ?”
महादेव-दूत ने उत्तर दिया :
“नहीं ! ऐसा बिल्कु ल भी नहीं है. दण्ड ! दुःख ! विपदा ! कष्ट ! इत्यादि ! कई-कई प्रकार के होते हैं. उसकी बहुत ही, विस्तृत व्याख्या है. उदाहरणार्थ मैं
तुम्हें ! कु छ मुख्य-मुख्य ! समझा दे रहा हूँ. जैसे……….”
“कु छ तो पूर्ण रूप से, पूर्वजन्मों के संचित कु कर्मों को, काटने हेतु ! ही होते हैं.”
“कु छ वर्तमान जन्म के , तुम्हारे स्वयं द्वारा किये ! कर्मों के , प्रतिक्रिया स्वरूप होते हैं. कभी-कभी उसी बहाने, पूर्वजन्मों के संचित कु कर्मों को, काटने वाले
दण्ड भी, उसी में जोड़ दिये जाते हैं. जिससे दण्ड का आकार………. किये गये क्रिया के , प्रतिक्रिया से भी बड़ा ! प्रतीत होने लगता है.”
“कु छ तो के वल ! उसी वर्तमान जन्म के , क्रिया की प्रतिक्रिया भर ही होते हैं.”
“वहीं कु छ के वल ! उसी वर्तमान जन्म के , कु कर्मों के दण्ड होते हैं. वैसे यह वाले दण्ड ! बहुत ही कम ! यानि नगण्य मात्रा में होते हैं. क्योंकि, कु छ विशेष
परिस्थितियों को छोड़ कर, वर्तमान जन्म के , अधिकतर कु कर्मों का दण्ड ! उसके आगामी मानव जन्म में ही, मिलने का प्रावधान है.”
“कु छ दण्ड ! ऐसे भी होते हैं. जो ना तो, पूर्वजन्म के संचित कु कर्मों को, काटने वाले होते हैं. और ना ही, उस वर्तमान जन्म के , किसी क्रिया की, प्रतिक्रिया
स्वरूप होते हैं. उसके उदारहण स्वरूप ! एक घटनाक्रम समझो………..”
“मान लो ! कोई बहुत दुष्ट मानव है. और वह ! अनावश्यक रूप से, बिना किसी कारण ! या अपने किसी कु त्सित कारणों से, तुम्हें परेशान करता है. और
तुम स्वयं से, उससे बचाव करने में, असमर्थ हो. तथा तुम्हें ! उससे बचाने के , दायित्व का संके त ! जिन-जिन मानवों को, दिया गया है. उसमें से कोई भी,
तुम्हें बचाने वाले, अपने हिस्से के , उस सदकर्म को करने, नहीं आता है. तब उस परिस्थिति में, उस दुष्ट मानव द्वारा ! किये गये अत्याचार का, तुम पर दुःख
व कष्ट रूपी असर तो होगा. परंतु…………..”
“चूँकि, वह दुःख ! एवं कष्ट ! तुम्हारे द्वारा ! किसी किये गये कु कर्म ! या पाप का, परिणाम नहीं है. अतः वह भोगा गया कष्ट ! एवं दुःख. तुम्हें ! उसी जन्म
के भविष्य में, या अगले मानव जन्म ! या जन्मों में…………… तुम्हारे हेतु ! बहुत बड़े, एवं अतिविशेष ! लाभदायक परिस्थितियों का, निर्माण करेगा ! या
करता रहेगा.”
“अभी के लिये, इतना समझना ही पर्याप्त है. अब तुम जाओ.”
आज्ञा पा कर वह बच्चा ! वहाँ से निकला. तथा अपने घर पहुँचा. जिस बड़े ! व ऊँ चे पेड़ के ऊपर बने, घर में वह सोया था. उसे वहाँ ! अपनी बिस्तर की
ओर, तेजी से बढ़ता ! एक जहरीला कीड़ा दिखा. उससे बचने हेतु ! वह बिस्तर से नीचे उतर कर, एक ओर भागा. और उसी भागने के क्रम में, संतुलन
बिगड़ने से, उस बहुत ऊँ चाई से, नीचे गिर गया. उसके कमर की हड्डी ! पूरी तरह से टू ट गयी. भयंकर पीड़ा………………..
क्रमशः

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#ऑटोबायोग्राफी_ऑफ_स्वामी_सत्यानंद_1st_एडिशन
भाग
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उस जन्म की बची हुयी आयु ! तथा उसके अगले जन्म की, संपूर्ण आयु ! अत्यंत कष्ट व दुःख में भोगता रहा. अभी महादेव-दूतों से, उसका विवरण लिखने
की, अनुमति नहीं है. अतः सीधे, उसके भी अगले जन्म के , पचास वर्ष की आयु में चलते हैं.
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परम् पिता शिव के द्वारा निर्मित ! एवं माता शक्ति की ऊर्जा से संचालित ! इस अनंत एवं अनवरत फै लती जा रही सृष्टि के , चहुँओर ! कई विस्तार क्षेत्र हैं.
उसमें से एक विस्तार क्षेत्र का नाम ! अंतरिक्ष है. सभी विस्तार क्षेत्रों की भाँति ! इस अंतरिक्ष नामक विस्तार क्षेत्र के भी, तीन खंड हैं. जिनके नाम
हैं………..
1. ब्रह्मा खंड (ब्रह्मांड)
2. विष्णु खंड (विखांड)
3. रुद्र खंड (रुद्राण्ड)
उन्हीं खंडों में, एक खंड ! ब्रह्मांड भी है. एक-एक खंड में, खरबों से भी अधिक, आकाशगंगायें हैं. अतः बाकि खंडों की भाँति ही, इस ब्रह्मांड में भी, खरबों
से भी अधिक, आकाशगंगायें हैं. जिनमें से एक आकाशगंगा का नाम ! क्षीरमार्ग है.
सभी आकाशगंगाओं की भाँति ! इस क्षीरमार्ग नामक आकाशगंगा में भी, कई-कई खरबों से भी अधिक ! तारें हैं. जिनमें से एक तारे का नाम ! सूर्य है. हर
तारे के पास ! कई ग्रह-उपग्रह होते हैं. सूरज नामक तारे के पास भी, कई ग्रह-उपग्रह हैं. उन्हीं कई में से, एक ग्रह ! यह पृथ्वी भी है.
यानि अगर किसी पृथ्वीवासी को, इस सृष्टि में स्थित ! किसी सुदूर ग्रहवासी को, पत्राचार हेतु ! अपना पता देना हो तो, वह ऐसे लिखेगा………….
ग्रह : पृथ्वी
तारा : सूर्य
आकाशगंगा : क्षीरमार्ग
खंड : ब्रह्मांड
विस्तार क्षेत्र : अंतरिक्ष
******सृष्टि******
……………इसी प्रकार से, यहाँ जो घटनाक्रम लिखने जा रहा हूँ. वह जहाँ की घटना है. वहाँ के पता (ऐड्रेस) को, निम्नलिखित प्रकार से लिखा
जायेगा. वहाँ के उच्चारण अनुसार ! अपनी देवनागरी लिपि में, जो मुझसे, लिखते बन पा रहा है. वह लिख रहा हूँ. मात्रा या अक्षर की, कु छ त्रुटियाँ हो सकती
है.
उपग्रह : शिलखाग
ग्रह : टाऊली
तारा : विक्रीसाल
आकाशगंगा : मछेट
खंड : अर्जाख
विस्तार क्षेत्र : अनंचाम
******सृष्टि******
घटनाक्रम का स्थान लिखने के पश्चात् ! अब अगर, काल खंड की बात करें तो, इस पृथ्वी ग्रह के , गणितीय गणना के अनुसार ! काल खंड होगा…………
लगभग 1809 वर्ष पूर्व का ! यानि सन् 215.
घटनाक्रम को ! वहाँ के मूल भाषा में, यहाँ लिखा जाना ! चूँकि संभव नहीं है. अतः घटनाक्रम के मूल भावार्थों को, समेटने का प्रयास करते हुये, अपनी !
यहाँ की मूल भाषा के , देवनागरी लिपि में, लिख रहा हूँ.
अभी वर्तमान में, ऑटोबायोग्राफी का, फर्स्ट एडिशन ! मैं यहाँ लिख रहा हूँ. यह अत्यंत संक्षेप में, लिख रहा हूँ. क्योंकि जितनी अनुमति है. उससे अधिक
लिखना ! मेरे लिये, संभव भी नहीं है. भविष्य में अगर ! महादेव-दूतों से आज्ञा मिली. तो विस्तार से भी, अवश्य लिखूँगा.
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अभी इसको संक्षेप में, क्यों लिखवाया जा रहा है. इसके पीछे भी, एक बड़ा विशेष ! एवं स्पष्ट कारण है. अभी वर्तमान काल-खंड में, यानि बीते मंगलवार 09
जनवरी 2024 को, यानि वरदान (एक विशेष वरदान) मिलने (27 दिसंबर 1997) के , एक्जेक्ट 26 वर्षों के पश्चात् !
जो मुझे ! कु छ आरंभिक वाली, पत्रक-सूची प्राप्त हुयी है. यानि पूर्वश्रेणी के , आठवें चरण वाले, कु ल 99999 आत्माओं की सूची में का, 111-111 नामों
वाला ! कु छ पत्रक.
वैसे समग्र रूप से देखें तो, कु ल 900 पत्रकों के माध्यम से, मिलने वाली सूची में का, मुझे ! अभी कु छ आरंभिक पत्रक ! प्राप्त हुये हैं. जिसमें से, प्रति
पत्रक-सूची में, कु ल 111 आत्माओं के नाम हैं. जो तीन प्रकार के , अनुपातिक वर्गों में बँटे हुये हैं. पूर्ण-विश्वासी 15, लगभग-विश्वासी 27, अभी वर्तमान
में अविश्वासी 69.
जिनमें से मुझे ! महादेव-दूतों के मार्गदर्शन में, औसतन प्रति पत्रक से, 11 आत्माओं का, नाम चुनना था. वैसे दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो, इसे 11 नाम
चुनने के साथ-साथ ! बाकी के 100 नाम छाँटना ! भी बोल सकते हैं.
…………..और किसी का नाम छाँटना ! मेरे लिये, बहुत कष्ट ! व करुणा का विषय हो जाता है. अतः मैंने ! ऐसा नहीं करके , ***सभी के सभी
111 नामों को, चुन लिया जाये.*** ऐसा निवेदन करके , मैंने उसकी अनुमति भी प्राप्त कर ली है.
परंतु इससे ! विधि-विधान के द्वारा निर्धारित ! वरदान के नियमों में, बदलाव तो हो नहीं सकता. ……………और नियमानुसार ! कु ल 99999 की
सूची में से, के वल 9999 आत्माओं के ही नाम चुने जाने थे. अतः उसी के अनुरूप ! प्रति 111 नामों की सूची में से, अधिकतम 11 नाम ही चुनने की,
पहले से अनुमति थी.
परंतु अब ऐसा नहीं हैं. चयन के नियमों का, पालन करते हुये ! महादेव-दूतों के मार्गदर्शन में, प्रति पत्रक से न्यूनतम 11, तथा अधिकतम 111 नामों का,
सहर्ष चयन किया जा सकता है. फिर वह चयनित नाम वाले शिवशक्तियन ! अपने बारे में, अपने कर्मों के माध्यम से, स्वयं यह तय करेंगे कि, वह 99999
की सूची में ही, बने रहते हैं.
………..या ! मोक्ष की ओर, तीव्र गति से बढ़ते हैं. यानि अपने अगले जन्म को, मूल श्रेणी में, पक्का करते हैं. यानि इसी जन्म में, पूर्व श्रेणी के , नौवें
चरण में जाने हेतु ! तत्पर हैं.
वैसे ! जब आरंभिक पत्रक प्राप्त हुये, तब कु छ और भी वाकया हुआ. हुआ यूँ कि……………. सूची प्राप्त होने से पहले, मैंने ! अपने सांसारिक बुद्धि-विवेक
से, जिन आत्माओं का नाम ! सोच रखा था. उसमें से बमुश्किल ! पंद्रह-बीस प्रतिशत नाम ही, उस सूची में, आ पाये थे. कु छ ऐसे नाम ! जिनके बारे में, मैं
बहुत अधिक आश्वस्त जैसा था कि……… इन आत्माओं के नाम तो, अवश्य ही आयेंगे. जबकि उनके नाम ! उसमें नहीं थे.
वहीं ! कु छ ऐसे नाम भी, आ गये थे. जिनके बारे में, मैं बहुत आश्वस्त नहीं था. परंतु उनके नाम भी, पत्रक में थे. तथा ! कु छ ऐसे आत्माओं के नाम भी थे
! या हैं ! …………जिनका अभी तक ! मैंने नाम भी नहीं सुना है. अब जैसी महादेव एवं माता की इच्छा व आज्ञा !
जैसा मैंने ! कु छ ऊपर के पैराग्राफ में, लिखा है कि, उस सुदूर उपग्रह वाले, लगभग अठारह सौ वर्ष पूर्व के , घटनाक्रम को, लिखवाने के पीछे ! एक बड़ा
विशेष ! एवं स्पष्ट कारण है. तो वह कारण ! यह है कि……………
……………..जो मेरे साथ ! उस जन्म में घटित हुआ था. वहीं प्रक्रिया ! अभी इस पृथ्वी ग्रह के , वर्तमान वाली कु ल 99999 आत्माओं में से,
चुनिंदा 9999 आत्माओं के साथ ! घटित होने वाली है. इसीलिये ! इस आरंभिक श्रृंखला को, धौलागिरी में, माता सीता ने……………. *इतिवृत के
पुनरावृत्त होने का काल* शीर्षक दिया था.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हाँ तो अब पुनः ! ऑटोबायोग्राफी के , उस काल-खंड वाले, घटनाक्रम पर लौटते हैं. जहाँ हम थे. ……………..तो अब ! भगवान महादेव शिव एवं
माता शक्ति का, ध्यान करते हुये, पुनः लिखने का, शुभारंभ करता हूँ.
यह ! उस सत्यमार्गी नामक आत्मा के , यानि उसकी आत्मा-यात्रा के …………… एक करोड़, अड़सठ लाख, एक सौ अड़सठवें जन्म की, आत्मकथा है.
जो उसके पूर्व श्रेणी के , दूसरे क्रमिक चक्र वाले, आठवें चरण के , अंतिम यानि तीसरे जन्म का, घटनाक्रम है.
(नोट :~ वैसे अगर ! उस आत्मा के , अभी वाले वर्तमान जन्म को, गिनती के क्रमांक में देखेंगे तो………… अब उसके मूल श्रेणी का, नौवाँ जन्म ! चल
रहा है. तथा पूर्व श्रेणी व मूल श्रेणी ! दोनों को समग्र करके देखेंगे तो……….. यह जो उसका वर्तमान जन्म है. यह ! उस सत्यमार्गी नामक आत्मा
का…………. एक करोड़, अड़सठ लाख, एक सौ सतहतरौवाँ जन्म है.)
अब उसके ! उस जन्म पर लौटते हैं ! जिस जन्म का, घटनाक्रम ! लिखने जा रहा हूँ. उस जन्म में, उस आत्मा द्वारा ! धारण किये गये देह के , जन्म-मरण
के काल खंड को, इस पृथ्वी ग्रह के , गणितीय गणना के अनुसार देखें तो, वह कु छ इस प्रकार से होगा.
जन्म वर्ष : 1859 वर्ष पूर्व ! यानि सन् 165.
मृत्यु वर्ष : 1715 वर्ष पूर्व ! यानि सन् 309.
कु ल आयु : लगभग 144 वर्ष.
परंतु ! यह जो घटनाक्रम है. यह ! उसके , उस जन्म वाले देह के , लगभग 50 वर्ष की, आयु अवस्था का है. यानि आज सन् 2024 से, 1809 वर्ष पूर्व !
सन् 215 का. उस जन्म में, उसके वाले ! देह स्वरूप का नाम है…………… ऋभज !
अब !
घटनाक्रम आरंभ !
दोपहर बाद का समय ! कु छ छोटे-छोटे बच्चे ! एवं किशोरों का समूह ! हुड़दंग मचाता हुआ ! सड़क पर चिल्लाते जा रहा था :
“अरे ! चलो ! चलो ! एक साधु आया है. मुखिया जी ने, उसको बाँध दिया है. अब उसकी पिटायी होने वाली है. बड़ा मजा आयेगा. मैं भी मारूँ गा ! तुम भी
मारना ! चलो ! चलो ! मुखिया जी के , बैठाका पर चलो ! आज तो जलसा होगा ! जलसा !”
इस पृथ्वी ग्रह के , गणितीय गणना के अनुसार ! अगर देखें तो, लगभग 50 वर्ष की आयु का, एक ऋभज नामक मानव ! इस शोरगुल वाले, पूरे मामले को
समझने के लिये, उन हुड़दंगी बच्चों में से, किसी को हाँक लगायी. बच्चों में से तो, किसी ने प्रतिक्रिया नहीं दी. परंतु उसी मार्ग से जा रहे, एक दूसरे व्यक्ति ने,
जिसकी आयु भी लगभग 50-55 वर्ष ही थी………..
…….उसने, ऋभज से कहा :
“अरे कु छ विशेष नहीं है. एक 35-40 वर्ष का, जवान साधु वेशधारी ! कोई ढोंगी है. जो बैटरी चलित छोटा सा स्पीकर ! (नोट : उस काल-खंड में, उस
उपग्रह का विज्ञान, पृथ्वी ग्रह से, सैकड़ो वर्ष आगे तक उन्नत था.) गले में लटका कर, लोगो को एकत्र कर रहा है. और जब कु छ तीस-चालीस लोग ! एकत्र
हो जा रहे हैं. तब बड़ी ऊटपटाँग बातें, सबको बता करके , गुमराह कर रहा है.”
ऋभज ने पूछा :
“क्या बातें कर रहा है ?”
उस आदमी ने उत्तर दिया :
“वह कह रहा है ! तुम जिस एके श्वरवाद की, धारणा के अनुगामी हो. वह सही ज्ञान नहीं है. वह भ्रांति है. संपूर्ण सृष्टि के निर्माण ! एवं संचालन की, बड़ी
अजीब सी व्याख्या बता रहा है. जैसे हमारे यहाँ ! राजा साहब के , कार्यालयों में होता है न. कु छ-कु छ उसी प्रकार से. बोल रहा है कि, सभी भगवानों का,
विभाग व कार्य बँटा हुआ है.”
ऋभज ने जिज्ञासापूर्वक पूछा :
“इसका अर्थ तो यह हुआ कि, भगवान की संख्या ! एक से अधिक है. यानि यह तो, कु छ-कु छ उस प्रकार की बात हो गयी…………. जैसे कोई-कोई !
बहुत पुराने बुजुर्ग कहते हैं. अरे ! और वह पागल पुजारी भी तो, यही कहता था.”
उस आदमी ने पूछा :
“कौन ? वह ! जिसे राजा साहब ने, दो-तीन वर्ष पूर्व ! मृत्यदंड दिया था.”
ऋभज बोला :
“हाँ ! हाँ ! वहीं ! मैं उसी की बात कर रहा हूँ. जिसे पुराने मंदिर के तहखाने से, हजारों वर्ष पूर्व की लिखित ! कु छ पांडु लिपियाँ मिल गयी थी. जिसको
आधार बना कर, वह कहता था कि, नाम जपने से, कु छ नहीं होगा. मोक्ष का एक ही मार्ग है सदकर्म !”
वह आदमी बोला :
“इसीलिये तो उसको मृत्युदंड मिला था.”
ऋभज उसकी बात काटते हुये बोला :
“अरे नहीं भाई ! मैंने उसके दण्ड दिये वाले दिन का, राजा साहब के दरबार का, लाइव प्रसारण देखा था. बाकी सभी बातों के लिये तो, उसे पिटायी व
तड़ीपार का दंड मिला था. उसके मृत्युदंड का, कारण बना था. उसके द्वारा ! इस बात पर अड़ जाना कि, देवी-देवता एक नहीं ! कई-कई हैं. और सबसे
प्रमुख देवता टेंग्रिस हैं ! उसके अनुसार……….. जिन्होंने इस पूरे अनंचाम को बनाया है. तथा इस पूरे अनंचाम में, जितनी भी सजीव चीजें हैं. उसमें ऊर्जा
प्रवाहित करने का काम ! उनकी पत्नी उमा करती हैं.”
वह आदमी बोला :
“जो भी हो. उसका मुझे विस्तार से नहीं पता. वैसे यह जवान साधु वेशधारी ढोंगी भी, कु छ-कु छ इसी प्रकार की, बातें कर रहा है. इसलिये तो हमारे गाँव
के , मुखिया जी ने, उस को पकड़ कर के , अपने बैठाका के पास वाले पेड़ में, बाँध दिया है. मैं तो उसके देह पर थूक करके , एक दो डंडा मार कर, आ गया
हूँ. तुम भी जाओ ! अपना हाथ साफ कर लो. मैं भी भोजन करके , वापिस वहीं आ रहा हूँ.”
पूर्व श्रेणी के , दूसरे चक्र वाले, आठवें चरण के , तीसरे व अंतिम मानव जन्म वाला ! शिलखाग उपग्रह का निवासी ! वह पचास वर्षीय ऋभज नामक व्यक्ति !
अपने स्थान से उठा ! तथा तेज कदमों से, अपने गाँव के , मुखिया जी वाले, बैठाका की ओर चल पड़ा. कु छ ही मिनट की पदयात्रा के बाद ! वह उस पेड़ के
समीप था. जिस पेड़ से, उस 35-40 वर्ष के , जवान साधु वेशधारी को, बांधा गया था.
उस पचास वर्षीय ऋभज को, प्रथम दृष्टि में ही, यह समझ आ गया कि, उस जवान साधु की, चौकस मरम्मत ! यानि ठीक से पिटायी हुयी है. वह साधु !
बेसुध सा, उस पेड़ से बंधा हुआ, झूल रहा था. उसके देह पर ! अन्य लोगों द्वारा ! फें के गये थूक की, गंदगी के कारण ! गंदी-गंदी मक्खियाँ भिनभिना रही
थी. उस साधु का बड़ा सा थैला ! तथा बैटरी चलित छोटा स्पीकर ! पास ही में, नीचे भूमि पर पड़े हुये थे.
यह भी एक अद्भुत संयोग ही था कि, जिस समय ! ऋभज वहाँ पहुँचा. उस समय वहाँ ! कोई भी नहीं था. सभी लोग अपने इच्छा भर, उस युवा साधु के
साथ ! मारपीट करके जा चुके थे. ऋभज ने अपने आस-पास देखा ! तथा जब वह ! आश्वस्त हो गया कि, उसे कोई नहीं देख रहा है. तब उसने ! उस
युवा साधु का, चरण-स्पर्श किया.
आशीर्वाद देने के साथ ही, वह युवा साधु बोले :
“मेरे इस गाँव में आने के , उद्देश्यों की पूर्ति हुयी. मेरा मंतव्य पूर्ण हुआ.”
ऋभज बोला :
“हे साधु बाबा ! मैं आपकी रहस्यमयी बातें ! समझ नहीं पा रहा हूँ. मुझ नादान-अबोध को, समझ आ जाये, कृ पया ऐसी भाषा में, समझाइये बाबा !”
35-40 वर्षीय ! जवान साधु बोले :
“ऐ मूर्ख ऋभज ! यह शकोमफु ! के वल तुझे लेने के लिये, इस पतित गाँव में आया है मूर्ख. तथा तुझे ! एवं तेरे जैसे ही, तेरे अलावा ! और भी 9998
मानवों का, उद्धार करने हेतु ! इस शिलखाग उपग्रह पर, जन्म लिया है मूर्ख !”
अचरज से भरा हुआ ! वह पचास वर्षीय ऋभज नामक व्यक्ति बोला :
“परंतु साधु बाबा ! आपको मेरा नाम ! कै से ज्ञात हुआ ? क्योंकि मेरे अनुसार ! हम तो संभवतः ! पहले कभी नहीं मिले हैं.”
शकोमफु नामक साधु बाबा बोले :
“तुम्हारा नाम ! मुझे इसलिये ज्ञात है कि………… इस संपूर्ण सृष्टि के रचयिता ! तथा इस समस्त सृष्टि के , संचालक दल वाले, सभी देवी ! देवता ! गण
! दूत ! के भी रचयिता ! परम् पिता सर्वश्रेष्ठ देव टेंग्रिस (उस उपग्रह पर, भगवान शिव महादेव का, सर्वाधिक प्रचलित नाम) भगवान ने, तथा उनकी शक्ति
स्वरूपा अर्द्धांगिनी ! माता उमा ने, और सभी सप्त देवों ने, एवं त्रिदेवों ने, मिल कर तुम्हारा नाम ! कु छ विशेष सौभाग्यशाली 99999 मनुष्यों की, सूची में
रखा है. तुम चाहो तो, उस थैले में, अपना नाम ! देख भी सकते हो.”
कौतूहल से भरा हुआ ! वह ऋभज नामक व्यक्ति ! भूमि पर पड़े हुये ! उस साधु बाबा के , थैले में हाथ डाला. अन्दर कागजों का ढेर था. सभी कागजों पर,
अनेकों-अनेक नाम अंकित थे. अभी वह ! प्रथम पत्रक की, सूची पढ़ना ! आरंभ ही किया था कि…………..
उसके कानों में, शकोमफु बाबा का स्वर पड़ा :
“तुम्हारा नाम 897 वें पत्रक के , क्रमांक संख्या 112 पर है. एवं वह पत्रक ! नीचे से चौथे स्थान पर होगा.”
धड़कते हृदय के साथ ! उस ऋभज नामक व्यक्ति ने, नीचे से चौथा पत्रक निकाला ! उस पत्रक में, सबसे ऊपर ! शीर्षक लिखा था………… पत्रक संख्या
८९७. उस पत्रक पर ! एक से लेकर, ५६ क्रमांक तक के नाम थे. उसने पत्रक को पलटा ! पीछे ५७ से लेकर ११२ क्रमांक तक के नाम थे. तथा सबसे
अंतिम क्रमांक पर ! यानि 112 वें नंबर पर, उसका ऋभज नाम ! तथा उसका अन्य विवरण ! लिखा हुआ था. अपने नाम को पढ़कर ! उस पचास वर्षीय
व्यक्ति के आँखों से, अश्रुधारा बह निकली.
पचास वर्षीय ऋभज ! अपनी आँखों से बहती हुयी, अश्रुधारा को पोंछता हुआ ! रुँ धे स्वर में, अपने से दस-पंद्रह वर्ष छोटे, शकोमफु बाबा से बोला :
“हे साधु बाबा ! यह सब किनके नाम हैं ? इसमें मेरा भी नाम होने का, क्या शुभ-अर्थ है ? मेरी जिज्ञासा शांत करें बाबा ! मुझ मूर्ख को समझायें बाबा !”
शकोमफु नामक साधु बाबा बोले :
“सब जिज्ञासायें शांत करूँ गा. सभी प्रश्नों का उत्तर दूँगा. पहले मेरा एक कार्य करो.”
ऋभज बोला :
“गुरुजी ! मुझे आज्ञा कीजिये गुरुजी ! मैं अभी से, इसी क्षण से, आपका अनुयायी हूँ. मेरे अंदर से, मेरी अंतरात्मा कह रही है कि…………. मैं अपना यह
संपूर्ण जीवन ! आपके चरणों में, समर्पित कर दूँ. अतः अब मैं आपके प्रति ! पूर्णतः समर्पित हूँ गुरुजी !”
शकोमफु बाबा बोले :
“पूर्णतः समर्पित तो नहीं हो. कु छ तुम्हारी अपनी कु त्सित सोच भी है. जिसके कारण ! तुम मेरे साथ होना चाहते हो. परंतु वह ! बहुत चिंता की बात नहीं है.
क्योंकि वैसे कु त्सित विचार ! तुम्हारे पूर्वजन्मों वाले, कु कर्मों के प्रभाव से है. वह समय के साथ ! कु कर्मों का दंड भोगते-भोगते ! समाप्त हो जायेगा.”
ऋभज हाथ जोड़ता हुआ बोला :
“गुरु जी ! आपको तो सब कु छ पता है. मुझे आज्ञा करें ! मैं क्या करूँ ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“मैं तुम्हारे लिये ही तो, इस पतित गाँव में, तथा तुम्हारे जैसों के लिये ही तो, इस पतित उपग्रह पर आया हूँ. मूर्ख ! तुम्हारी समझ में, यह नहीं आ रहा कि,
मैं तुम्हारे कारण ही तो, इस जंजाल में फँ सा हूँ. मुझे यहाँ से निकालो ! मेरी रस्सी खोलो ! और मेरे साथ ! यहाँ से भाग चलो. चलो इस धर्मकाज को, पूर्ण
किया जाये. अब यह के वल मेरा काम नहीं है. यह तुम्हारा भी कार्य है.”
ऋभज बोला :
“गुरु जी ! अभी रस्सी खोलना, उचित नहीं रहेगा. मैं उचित अवसर देख कर ! रात्रि में खोलूँगा. ताकि कोई देखेगा भी नहीं. ………….और ! एक
और बात गुरु जी ! आपने बोला कि, मेरे साथ भाग चलो. मैं भाग तो चलूँगा. परंतु मेरी पत्नी एवं बच्चे भी तो हैं. क्या उनको छोड़ कर भागना ! उचित होगा
?”
शकोमफु बाबा बोले :
“यहीं तो इस उपग्रह की दुर्दशा है. यहाँ हर बात का, अर्थ ही बदला जा चुका है. जब मैंने यह बोला कि, तुम भाग चलो. तब उसका ! यह अर्थ नहीं है कि,
के वल तुम भाग चलो. यहाँ *तुम* का अर्थ………….. तुम ! तथा तुम्हारी पत्नी ! तथा तुम्हारे ऊपर निर्भर ! तुम्हारे अभिभावक एवं बच्चे ! सब
सम्मिलित हैं मूर्ख !”
तभी वहाँ ! कु छ और लोगों के , आ जाने से, उनकी बात में, व्यवधान पड़ गया. नव-आगंतुक आते ही, उस शकोमफु बाबा की, पिटायी आरंभ कर दिये.
उस ऋभज नामक व्यक्ति से, यह सब नहीं देखा गया. तो वह ! वहाँ से घर के लिये चल पड़ा.
घर पहुँचते ही, उसने अपनी धर्म-पत्नी से कहा :
“निप्री ! एक युवा साधु बाबा आये हैं. सभी पुरातन शाश्वत ज्ञान को, सही बता रहे हैं. परंतु अभी जो धर्म की व्याख्या ! हमारे यहाँ है. उसके अनुसार !
उनकी बातें, लोगों को पसंद नहीं आ रही है. अतः लोग उन्हें ! बाँध कर पीट रहे हैं. मुझे उन्होंने ! अपना अनुयायी बनाने की, स्वीकृ ति दे दी है. क्या तुम
साथ में चलोगी ?”
निप्री व्यंग्यपूर्वक हँसती हुयी बोली :
“क्यों ? मैं कै से जा सकती हूँ. मैं तो स्त्री हूँ. धर्म के अनुसार तो, मेरे कारण ! धर्म-पथ के पथिक का, ब्रह्मचर्य ही भंग हो जायेगा. मैं यह पाप ओढ़ने हेतु !
क्यों जाऊँ ?”
ऋभज ने अपनी धर्म-पत्नी ! निप्री को समझाया :
“पागल ! ऐसा नहीं है. तू जो बोल रही है. वह अभी वाले धर्म के , व्याख्यानुसार बोल रही है. जबकि, जो सत्य ! सनातन ! शाश्वत ! पुरातन ! धर्म है.
जिसको बहुत तेजी से, मिटाया जा रहा है. उसके अनुसार तो, दाम्पत्य जीवन ! धर्म-पथ की महत्वपूर्ण कड़ी है. ब्रह्मचर्य का बोलबाला तो, धर्म की इस नयी
व्याख्या से, प्रभावी हुआ है. सदैव से तो, दाम्पत्य ही सर्वोच्च रहा है.”
निप्री थोड़ा गंभीर होती हुयी बोली :
“………….और आप जिस साधु बाबा का, अभी उल्लेख कर रहे हैं. उनका इस विषय पर, क्या मत है ?”
ऋभज बोला :
“अरे ! वह तो हैं ही, सत्य-सनातन-शाश्वत वाले.”
अब निप्री विनती करती हुयी, अपने पति से बोली :
“फिर तो आप ! मुझे ऐसे दिव्य बाबा के , एक बार दर्शन ! करा ही दीजिये.”
ऋभज बोला :
“आज रात्रि में ले चलूँगा. परंतु तुझे ! मेरी एक सहायता करनी पड़ेगी.”
निप्री ने पूछा :
“कै सी सहायता ?”
ऋभज बोला :
“वह साधु बाबा ! बड़े कड़ियल दिमाग के हैं. मुझे ऐसा लगता है कि…………… मुझे वह ! तभी अपना अनुयायी बनायेंगे. जब मैं उनके साथ ! तुम सभी
को लेकर, धर्म-काज पर निकल जाऊँ .”
निप्री बोली :
“………और आपने क्या सोचा है ?”
ऋभज बोला :
“मैंने तो यहीं सोचा है कि……… अपना घर-द्वार एवं काम छोड़ कर, ऐसे किसी साधु बाबा के , पीछे-पीछे निकल पड़ना ! कोई बुद्धिमानी की बात नहीं है.”
निप्री बोली :
“तब फिर क्या दुविधा है ? आप उन्हें स्पष्ट मना कर दीजिये.”
ऋभज बोला :
“परंतु मैं उस साधु बाबा का साथ ! छोड़ना भी नहीं चाहता. क्योंकि मेरा अंतर्मन ! ऐसा कह रहा है कि, मुझे उन्हीं के सहारे ! मोक्ष की प्राप्ति होगी.
इसीलिये मैं चाहता हूँ कि, मैं अपना काम भी नहीं छोड़ूँ. तथा उनको भी, अपनी कु छ मजबूरी गिना कर, उनके संपर्क में बना रहूँ.”
निप्री ने पूछा :
“आप मुझसे क्या चाहते हैं ?”
ऋभज बोला :
“मैं चाहता हूँ कि………… हम दोनों ! अपने विवाहित वाले, तीनों बच्चों को छोड़ कर, बाकी के पाँचों बच्चों व माताजी को लेकर, आज रात्रि में, साधु बाबा
के पास चला जाये. और ऐसा प्रदर्शित किया जाये कि, हम सभी उनके प्रति ! पूर्णतः समर्पित हैं. फिर कोई मजबूरी का रोना रो कर, वापस चला आया
जाये. तथा उन्हें ! बहुत बड़ी धनराशि दे दी जाये. इस प्रकार ! हम उनकी दृष्टि में, समर्पित भी दिखने लगेंगे. तथा हमें ! अपना घर व काम छोड़कर !
उनके साथ-साथ ! भटकना भी नहीं पड़ेगा.
निप्री बोली :
“यह आपने ! बहुत अच्छी युक्ति सोची है. आप धनराशि बाँधिये. मैं बच्चों ! एवं माताजी को, तैयार करती हूँ.”
कु छ घंटों के पश्चात् ! आधी रात से थोड़ा पहले ! वह ऋभज नामक व्यक्ति ! अपनी धर्मपत्नी निप्री ! तथा पाँच अविवाहित बच्चे ! एवं अपनी माँ के साथ !
खेतों में बने, अपने एक अतिरिक्त आवास पर पहुँचा. वहाँ उसने ! अपने साथ लाये, धन-राशि के भारी-भरकम ! थैले को रख दिया. तथा एक तेज धार
वाले, चाकू नुमा हथियार को लेकर, मुखिया जी के , बैठाका की ओर ! चल दिया.
दबे पाँव वह ! शकोमफु नामक साधु बाबा के पास पहुँचा. वह ऐसे ही, पेड़ में बंधे हुये, झूल रहे थे. वहाँ पर ! उन दोनों में, कोई वार्ता नहीं हुयी. उस ऋभज
नामक ! पचास वर्षीय व्यक्ति ने, बिना कोई ध्वनि उत्पन्न किये ! रस्सी को काटने में, सफल हो गया. दोनों वहाँ से चुपचाप ! गाँव से बाहर जाने वाले मार्ग
पर, चलने लगे. वहाँ से चलना आरंभ करने से पूर्व ! शकोमफु बाबा ने, नीचे मिट्टी पर फें के हुये ! अपने बड़े से थैले को, कं धे पर टांग लिया. तथा बैटरी
चलित छोटे स्पीकर को, गर्दन में लटका लिया.
गाँव के रिहाइश क्षेत्र से, बाहर निकल कर ! ऋभज बोला :
“गुरु जी ! आपकी आज्ञा के अनुसार………….. मैं सपरिवार ! घर छोड़ कर, आपके सानिध्य में, आ गया हूँ. इसी मार्ग में, मेरा पूरा परिवार ! हमारी
प्रतीक्षा कर रहा है.”
मूल श्रेणी के , आठवें चरण वाले, शकोमफु बाबा बोले :
“उसके पहले ! मैं भी अपना परिवार ! साथ ले लूँ. क्योंकि गाँव में, प्रवेश करने से पूर्व ! मैंने अपने परिवार को, वहाँ ! उस मार्ग के नीचे, पुलिया के अंदर !
छिपा दिया था.”
पूर्व श्रेणी वाले मानव ! ऋभज ने, आश्चर्य से पूछा :
“गुरु जी ! आप तो साधु बाबा हैं. क्या आपके पास भी परिवार है ?”
शकोमफु बाबा ने, उत्तर देने के बजाये, उल्टा प्रश्न पूछा :
“क्यों ? क्या नहीं होनी चाहिये ?”
ऋभज बोला :
“गुरु जी ! बाकी साधु बाबा के पास तो, परिवार नहीं होता है.”
शकोमफु बाबा बोले :
“उन बाबाओं को, त्याग की प्रतिमूर्ति बन कर ! अपने-आप को, पूज्य व भगवान ! सिद्ध करना होगा. या फिर दाम्पत्य जीवन का ! दायित्व निर्वहन करने
में, उन्होंने अपने-आप को, सक्षम नहीं पाया होगा. या लाखों बाबाओं में, कोई इक्का-दुक्का ! ऐसे भी साधु होंगे. जिनके अंदर ! प्रकृ ति के विरुद्ध ! विपरीत
लिंगी यानि स्त्री के प्रति ! सही में वैराग्य भाव ! उत्पन्न हो गया होगा. वहीं कु छ ऐसे भी होंगे ! जिन्हें समाज ने, विवाह योग्य ही, नहीं समझा होगा. जिसके
फलस्वरूप ! वह अविवाहित रह गये होंगे. तथा बाद में, साधु वस्त्र धारण कर ! बाबा बन गये होंगे.”
“अच्छा ऋभज ! एक बात बताओ ? ध्वंसदेव (रुद्रदेव) तथा समस्त टेंग्रिस-अंश (महादेव-गण) को छोड़कर ! कितने प्रतिशत भगवान ऐसे हैं. जो दाम्पत्य
जीवन में नहीं हैं ? मुझे उत्तर दो ! …………….और यह उत्तर ! तुम सत्य-सनातन-शाश्वत धर्मज्ञान के अनुरूप देना.”
“इधर के कु छ सौ वर्षों ! या हजार वर्षों में, मानवों द्वारा ! नये-नये पैदा किये गये, फर्जी भगवानों का, उदाहरण मत देना. तथा उन पापी ! अधर्मी ! कु कर्मी
! साधुओं या गुरुओं का भी, उदाहरण मत देना. जो स्वयं से, स्वयं को ! भगवान घोषित कर चुके हैं. या फिर अपने अनुयायियों से, स्वयं
को……………. भगवान ! या भगवान का अवतार ! घोषित करा चुके हैं.”
ऋभज बोला :
“गुरु जी ! आपके द्वारा ! इसी सत्य-सनातन-शाश्वत धर्मज्ञान को, बाँटने के कारण ही तो, आज आप ! उतना अधिक पिटाये हैं ! एवं उपहास व घृणा के ,
पात्र भी बने हैं.”
शकोमफु बाबा बोले :
“मुझसे घृणा करने से ! या मेरा उपहास उड़ाने से ! या मेरी पिटायी करने से ! क्या सत्य बदल जायेगा ?”
ऋभज बोला :
“साधु बाबा ! क्या आपको डर नहीं लगता ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“मूर्ख ! मोक्ष प्राप्ति से पूर्व का, यह मेरा अंतिम जन्म है. मुझे क्यों डरना चाहिये ? डरना तो उसको चाहिये ! जो इस सत्य को, नकार रहा है. जो स्वयं अभी
! पूर्वश्रेणी में ही, अँटका हुआ है. परंतु भ्रामक जानकारियों के बूते ! अपने-आप को, ज्ञानी समझ कर ! अपने इस वर्तमान जन्म की ! दिन-प्रतिदिन
सार्थकता को, खो रहा है.”
ऋभज बोला :
“गुरु जी ! परंतु यह कै से सिद्ध होगा कि, आप जो बोल रहे हैं ! वहीं सत्य है ? क्योंकि इस प्रकार तो, सभी अपनी ही बात को, सत्य बतलायेंगे ! बतलाते
भी हैं.”
शकोमफु बाबा बोले :
“इसके दो उत्तर हैं ! प्रथम उत्तर है…………… मुझे सत्य को, सत्य प्रमाणित करने की, कोई आवश्यकता ही नहीं है. परंतु यह कोई ! निदान प्रदान
करने वाला ! उत्तर नहीं हुआ. मेरे दूसरे उत्तर से, तुम्हारे ज्ञान-चक्षु ! एक झटके से खुल जायेंगे.”
“अतः दूसरा उत्तर है…………….. कोई भी आत्मा ! जब मानव देह धारण करती है. तब से उसके ! सदकर्मों एवं कु कर्मों का ! लेखा-जोखा आरंभ होता
है. तथा मानव देह धारण करते ही, उस आत्मा को ! सर्वश्रेष्ठ देव टेंग्रिस भगवान ! एवं शक्ति स्वरूपा माता उमा माँ की कृ पा से, चैतन्य मनोमस्तिष्क भी
मिलता है. वह मनोमस्तिष्क ! जो नित्य-प्रतिदिन ! नवीन-नवीन ! जिज्ञासायें उत्पन्न करता है.”
“सत्य ज्ञान वह है. जो उस मानव देह धारी आत्मा की ! सभी वैध जिज्ञासाओं का ! समाधान कर सके . उसके सभी प्रश्नों का, उत्तर दे सके . गोल-मोल
बातें करके , उसको इधर-उधर भटकाये नहीं. जैसे अगर गणित का, सूत्र सही है. तो हर हाल में, उत्तर भी सही ही होगा. वैसे ही ! सत्य धर्मज्ञान वह है !
जो तुम्हारे सभी प्रश्नों का ! उत्तर दे सके . जो तुम्हारे सभी जिज्ञासाओं को, समुचित उत्तर दे कर ! शांत कर सके .”
ऋभज बोला :
“तो क्या आप ! मेरी धर्म संबंधी ! सभी प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“बिल्कु ल दे सकता हूँ. आखिर मुझे ! इस शिलखाग उपग्रह पर, भेजा भी तो, इसी लिये गया है. परंतु इसके लिये, पहले तुम्हें ! कु छ मूलआधारभूत बातों
का, अध्ययन करना पड़ेगा. नहीं तो तुम्हें ! कु छ भी समझ में, नहीं आयेगा.”
ऋभज बोला :
“आप आज्ञा करें गुरु जी ! मुझे क्या अध्ययन करना पड़ेगा ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“कु छ विशेष अध्ययन ! नहीं करना पड़ेगा. मेरे आत्मा की यात्रा में, मेरे गुरुओं यानि दूतों से, तथा समस्त देवी-देवता-गण से, जो मैंने ! वार्तालाप के
माध्यम से, सीखा है. उन सभी वार्तालापों को, मैंने लिपिबद्ध कर रखा है. उसको पढ़ना पड़ेगा. उसके पश्चात् ! मैं तुम्हारे धर्म-संबंधी ! सभी प्रश्नों का,
उत्तर दे दूँगा.
पूर्वश्रेणी के आठवें चरण वाला ! ऋभज नामक मनुष्य बोला :
“गुरु जी ! मुझे आपके द्वारा लिपिबद्ध की गयी ! समस्त देवी-देवताओं-गणों-दूतों से वार्तालाप वाली, ज्ञानवर्धक पठन-सामग्री कहाँ मिलेगी ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“वह सभी कु छ ! मैं तुम्हें, उपलब्ध कराऊँ गा ऋभज. परंतु उनका अध्ययन ! आरंभ करने से पूर्व ! तुम्हें सर्वप्रथम ! आत्मा की यात्रा को, समझना होगा.
यह समझना होगा कि……………. आत्मा के निर्माण होने से, उसके मोक्ष प्राप्त करने तक के मध्य में, कितने पड़ाव हैं ? वह सभी अठारह चरण ! कौन-
कौन से हैं ? यह समझना होगा.”
इतना बोल कर……………. शकोमफु बाबा ! सड़क से नीचे उतर कर ! पुलिया के अंदर घुस गये. ऋभज ! सड़क के ऊपर ही खड़ा रहा. कु छ ही समय
में, शकोमफु बाबा ! पुलिया से निकल कर ! ऊपर सड़क पर आ गये. उनके साथ…………… उनकी धर्मपत्नी ! तथा उनके छः बच्चे भी बाहर आये. एक
बच्चा ! गुरुमाता की गोद में था. दो बच्चे ! शकोमफु बाबा के कं धे पर, तथा गोद में थे. तीन बच्चे ! अपने पैरों से चलते हुये, बाहर आये.
उन तीनों ! यानि बाकी के तीन से, अपेक्षाकृ त थोड़े बड़े, बच्चों के पास ! सामानों की एक-एक गठरी भी थी. शकोमफु बाबा ! तथा गुरु माता के पीठ पर भी,
एक-एक बड़ी गठरी थी. शकोमफु बाबा तो, बिल्कु ल जोकर जैसे दिख रहे थे. क्योंकि उनके गर्दन में, स्पीकर लटक रहा था. पीठ पर उन्होंने ! एक बड़ी
गठरी बाँध रखी थी. एक कं धे में, एक बड़ा थैला टाँग रखा था. गोद में एक बच्चा ! तथा कं धे पर एक बच्चा ! उठा रखा था.
ऋभज बोला :
“गुरु जी ! लाइये ! थैला मुझे दे दीजिये.”
शकोमफु बाबा ! अपने कं धे वाला थैला ! उसे पकड़ाते हुये, उससे पूछे :
“तुम्हारे परिवार वाले कहाँ हैं ?”
ऋभज बोला :
“इसी मार्ग पर ! आगे खेतों के मध्य में बना हुआ ! मेरा एक और घर है. सब वहीं पर ! हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं.”
शकोमफु बाबा ने पूछा :
“वहाँ पहुँचने में, कितना समय लगेगा ?”
ऋभज बोला :
“गुरु जी ! लगभग आधे घंटे तो, लग ही जायेंगे. तब तक अगर संभव हो तो, मुझे वह ! अठारहों चरण समझा दीजिये.
क्रमशः

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#ऑटोबायोग्राफी_ऑफ_स्वामी_सत्यानंद_1st_एडिशन
भाग
शकोमफु बाबा ने, आत्मा-यात्रा का ! चरण समझाना ! आरंभ किया. उन्होंने जो समझाया. अगर मैं उसे ! अपने शब्दों में लिखूँ. तो वह कु छ ऐसा
होगा………….
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मूलश्रेणी वाले नौ चरणों के , आरंभ होने से पहले, पूर्वश्रेणी वाले, नौ चरणों का विवरण :~
पूर्वश्रेणी का पहला चरण :~
महादेव द्वारा ! अजर/अमर आत्मा का निर्माण.
पूर्वश्रेणी का दूसरा चरण :~
अपनी पृथ्वी के गणितीय गणना ! व दृष्टिगोचर होते जीवन ! के अनुसार समझे तो, लगभग तैंतीस लाख जन्म ! पेड़-पौधे-शैवाल इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का तीसरा चरण :~
लगभग चौबीस लाख जन्म ! कीड़े-मकोड़े इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का चौथा चरण :~
लगभग पंद्रह लाख जन्म ! जलचर जीव इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का पाँचवा चरण :~
लगभग नौ लाख जन्म ! पशु इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का छठा चरण :~
लगभग तीन लाख जन्म ! पक्षी इत्यादि के रूप में.
:~ अब यहाँ एक विशेष बात ! ऐसा नहीं है कि, यहाँ तक के , चरणों में से, एक चरण के , सभी कु ल जन्मों को, भोगने के पश्चात् ही, दूसरे चरण में, जन्म
मिलेगा. यहाँ तक के , सभी चरणों में से, सम्मिलित रूप से, जन्म मिलते रहेंगे. यानि पूर्वश्रेणी के चरण क्रमांक………… दो ! तीन ! चार ! पाँच ! एवं छः
! के जन्म ! क्रमानुसार नहीं होते है. इन पाँच चरणों के जन्म ! सम्मिलित / समानांतर रूप से, साथ-साथ चलते रहते हैं. यानि इन पाँच चरणों के साथ !
ऐसा नहीं है कि……….. एक चरण के , सभी जन्म ! समाप्त होने के बाद ही, दूसरे चरण के , जन्मों का आरंभ होगा. इन पाँचों चरण के , जन्म ! साथ-साथ
चलते रहते हैं.
अब आगे………………
पूर्वश्रेणी का सातवाँ चरण :~
कु ल इक्कायासी जन्म…………. पूज्य पेड़ / पौधे / जलचर / पशु / पक्षी इत्यादि के रूप में.
पूर्वश्रेणी का आठवाँ चरण :~
न्यूनतम तीन सौ तैंतीस वर्षों में…………. न्यूनतम तीन ! या अधिकतम कितने भी मनुष्य जन्म. अथवा ! इसको ऐसे भी, समझ सकते हैं कि……….
न्यूनतम तीन जन्म ! जिसमें कम से कम, कु ल ३३३ वर्ष ! पूर्ण होने चाहिये. उन तीन जन्मों का मिला कर, अधिकतम वर्ष ! कितने भी हो सकते हैं.
इसमें ग्यारह वर्ष तक की, आयु के अवस्था तक ! यानि बालक अवस्था में हुयी………. मृत्यु पर ! उस जन्म के वर्षों की, गणना नहीं होती है. तथा साथ
ही, उस जन्म क्रमांक की भी, गणना नहीं होती है.
इस चरण का, प्रथम मानव जन्म ! हर हाल में, अच्छे आदर्श परिवेश में ही होता है. जहाँ वह मनुष्य ! सदकर्म ही करे. ऐसा माहौल / वातावरण ! सदैव
उपलब्ध रहता है. परंतु फिर भी अगर ! उस आत्मा ने, कु कर्म ही किये. तो वह ! उस जन्म में, जितने कु कर्म किये रहेगा. उसी के अनुसार, उसके अगले
जन्म में, उसको उतने ही, कु कर्मी व अधर्मी परिवेश वाले, परिवार व / या माहौल में, पैदा किया जायेगा. हाँ ! अगर वह चाहे तो, अपने आपको चेत करके !
पुनः सदकर्म ! व धर्म के मार्ग पर, स्वयं को ला कर के , और अधिक कु कर्म / अधर्म (पाप) करने से, स्वयं को बचा सकता है.
………और इस प्रकार, यह होते हैं ! कु ल चौरासी लाख, चौरासी जन्म !
………..तथा ! यह कोई आवश्यक नहीं है कि, आपका हर जन्म ! इस सृष्टि के , एक ही ग्रह (जैसे पृथ्वी या कोई भी ग्रह) पर ही मिलता रहे. इस सृष्टि
के , अनगिनत असंख्य ग्रहों ! उपग्रहों ! जहाँ किसी भी रूप में जीवन है. उन सभी ग्रहों / उपग्रहों में से, कहीं भी मिल सकता है. किसी भी ग्रह पर ! कितने
भी जन्म मिल सकते हैं. किसी ग्रह पर एक जन्म ! तो किसी ग्रह पर, एक से अधिक जन्म ! तो बहुतों ग्रहों पर, शून्य ! यानि एक भी जन्म ! नहीं मिल
सकता है. क्योंकि आपके जन्मों की संख्या ! चौरासी लाख चौरासी है. तथा जीवनयुक्त ग्रहों की संख्या ! इससे बहुत-बहुत अधिक है.
पूर्वश्रेणी का नौवाँ चरण :~
इस चरण के तीन प्रकार हैं. प्रथम ! द्वितीय ! तृतीय ! ……….जो आठवें चरण के , समाप्ति के पश्चात् ! उस आठवें चरण वाले, तीन या सभी जन्मों के ,
सदकर्मों ! व कु कर्मों ! के अनुरूप तय होता है.
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, प्रथम प्रकार :~
“अगर सद्कर्मों की ! बहुत अधिक न्यूनता हो. तथा कु कर्मों की, अत्यधिक अधिकता हो. तब उस आत्मा को, पुनः चौरासी लाख चौरासी योनियों के ,
क्रमिक चक्र में, जाना होगा. यानि पूर्वश्रेणी के , दूसरे चरण से, पुनः आरंभ करना होगा.
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, द्वितीय प्रकार :~
“सदकर्म भले ही कम हो. परंतु कु कर्म भी ! अधिक नहीं हो. तो उन कर्मों के अनुसार ! एक या एक से अधिक जन्मों हेतु ! पूर्वश्रेणी के ………….. चरण
दो ! तीन ! चार ! पाँच ! एवं छः ! में जाना होगा. उसके पश्चात् ! यानि उन पूर्व के , मानव जन्म वाले, कु कर्मों का दंड भोगने हेतु ! पुनः पूर्वश्रेणी के आठवें
चरण में, मनुष्य जन्म मिलेगा.”
पूर्वश्रेणी के , नौवें चरण का, तृतीय प्रकार :~
“अगर सद्कर्मों की ! बहुत अधिक यानि पर्याप्त अधिकता ! तथा कु कर्मों की न्यूनता है. तो इस चरण में, कु छ कालखंड ! यानि वर्तमान में चल रहे, जन्म
की बची हुयी अवधि ! प्रतीक्षा अवधि रहेगी. और उस प्रतीक्षा अवधि को, काटना ही, एक प्रकार से, इन आत्माओं के लिये, यह नौंवा चरण कहलायेगा. कु छ
अवधि पश्चात् ! जब उस चल रहे जन्म की ! समय-सीमा समाप्त हो जायेगी. यानि वह आत्मा ! वर्तमान देह का, त्याग कर देगी. तब उस आत्मा को, सदैव
के लिये, मूलश्रेणी में प्रवेश मिल जायेगा. उसे पुनः कभी भी, चौरासी लाख चौरासी योनियों का, चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा. अब उसकी आत्मा ! मूल श्रेणी
के , प्रथम चरण में, जन्म ले कर, मोक्ष के दिशा की ओर, यात्रा आरंभ करेगी. जिसके हेतु ! महादेव ने उस आत्मा का, निर्माण किया था.
……………अब !
पूर्वश्रेणी वाले, नौ चरणों को, पार करने के पश्चात् ! मूलश्रेणी वाले, नौ चरणों का विवरण :~
मूलश्रेणी का पहला चरण :~
यहाँ से आपको ! सदैव मनुष्य जन्म ही मिलता है. इस चरण से आपको………. कभी-कभी महादेव ! माता ! देवी-देवता-गण ! एवं महादेव दूतों के , दर्शन
व मार्गदर्शन मिलना ! आरंभ हो जाता है. कु छ-कु छ आसान-आसान दायित्व मिलने भी, आरंभ हो जाते हैं. इस चरण को पार करने योग्य ! पर्याप्त सदकर्मों
का ! जब तक संचयन नहीं हो जाता है. तब तक आपकी आत्मा को, बार-बार इसी चरण में, मनुष्य जन्म ! मिलता रहता है. और इस चरण के , प्रत्येक व
सभी जन्मों का, सदकर्म ! आपस में एक साथ ! संचित होते रहता है. यानि अग्रेषित होते रहता है. जब तक कि, चरण पार करने योग्य ! पर्याप्त सदकर्मों का
! संचयन ना हो जाये. साथ ही इस चरण ! या मूलश्रेणी के किसी भी चरण को, उत्तीर्ण करने से पूर्व ! आपके कु कर्मों का…………. दंड भोग-भोग करके ,
शून्य या न्यूनतम हो जाना ! अनिवार्य है. इस चरण ! या किसी भी चरण को, पार करके ! उसके अगले चरण में, पहुँचते ही……….. पुराने सभी संचय
सदकर्म ! शून्य हो जाते हैं. क्योंकि उन्हीं सदकर्मों के , बूते ही तो, आप अगले चरण में, प्रवेश करते हैं. परंतु साथ ही, यह अवश्य ध्यान रहे कि………….
चरण पार करने से पूर्व ! नये-पुराने सभी संचित कु कर्मों का, दंड भोग लेना भी, अनिवार्य है.
मूलश्रेणी का दूसरा चरण :~
इस चरण की भी, सभी नियमावली ! एवं परिस्थितियाँ ! इसके पहले वाले चरण ! यानि मूलश्रेणी के , पहले चरण जैसे ही हैं. बस इस चरण में आपको !
मिलने वाले दायित्व……….. बड़े ! कठिन ! कठोर ! होते हैं. तथा सदकर्मों का, संचयन भी पहले चरण से, बहुत अधिक करना पड़ता है.
मूलश्रेणी का तीसरा चरण :~
दूसरे चरण को, पार करने के पश्चात् ! अगले चरण ! यानि चौथे चरण में, जाने की प्रतीक्षा अवधि को ही ! तीसरा चरण बोलते हैं. इस चरण में ! कोई नया
या अलग से, जन्म नहीं मिलता. बल्कि दूसरे चरण के , अंतिम जन्म की, बची हुयी अवधि ही ! तीसरा चरण कहलाती है.
मूलश्रेणी का चौथा चरण :~
इस चरण में ! जो सबसे प्रथम बदलाव आता हैं. वह यह है कि………….. यहाँ से अब ! पूर्व जन्मों के संचित सदकर्म ! अगले जन्म में, अग्रेषित होना !
बंद हो जाता है. तथा इस चरण में, एक विशेष सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी के लिये, यहाँ के गणनानुसार ! लगभग सत्ताईस वर्षों में, आपको ! कु ल पंद्रह
कठिन परीक्षाओं में से, न्यूनतम ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य है. इन परीक्षाओं के मध्य……….. विकट ! व अत्यंत संकट वाली,
परिस्थितियों में, महादेव-दूतों से, सहायता भी मिलती रहती है. परंतु इन ग्यारह परीक्षाओं को, एक ही जन्म के , उस सीमित अवधि में ही, उत्तीर्ण करना
आवश्यक है. अन्यथा अगले जन्म में, पुनः नये ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना पड़ता है. इस चरण में भी, जन्मों के संख्या की, कोई बाध्यता नहीं है.
परीक्षा उत्तीर्ण होने तक, बारंबार मानव जन्म ही मिलता रहता है. बाकी के चरणों की भाँति ही, यहाँ भी ! चरण पार करने के लिये, आपके कु कर्मों
का…………. दंड भोग-भोग करके , शून्य या न्यूनतम हो जाना ! अनिवार्य है. तथा इन सत्ताईस वर्षों में, वह मानव देह ! लगभग-लगभग अमर रहता है.
कु छ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर ! उसकी मृत्यु नहीं होती.
मूलश्रेणी का पाँचवा चरण :~
इस चरण में, सभी कु छ ! चौथे चरण जैसा ही रहता है. बस उसी सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी ग्रह के गणनानुसार ! लगभग सत्ताईस वर्ष में, आपको कु ल !
एक सौ पचास कठिन परीक्षाओं में से, एक सौ ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य है. तथा इन सत्ताईस वर्षों में, वह मानव देह ! लगभग-लगभग
अमर रहता है. कु छ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर ! उसकी मृत्यु नहीं होती. बाकी का सभी कु छ ! चौथे चरण जैसा ही रहता है.
मूलश्रेणी का छठा चरण :~
इस चरण में भी, सभी कु छ ! चौथे व पाँचवे चरण जैसा ही रहता है. बस उसी सीमित अवधि ! यानि पृथ्वी के लिये, सत्ताईस वर्ष में ही, आपको कु ल पंद्रह
सौ कठिन परीक्षाओं में से, ग्यारह सौ ग्यारह परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है. परंतु इस चरण में, उन परीक्षाओं के मध्य ! आपको अपने दूसरे
स्वरूप की, सहायता भी मिलती रहती है. तथा इन सत्ताईस वर्षों में, वह मानव देह ! लगभग-लगभग अमर रहता है. कु छ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर !
उसकी मृत्यु नहीं होती. इसके अलावा ! बाकी सभी कु छ ! चौथे व पाँचवे चरण जैसा ही रहता है.
मूलश्रेणी का सातवाँ चरण :~
छठे चरण को, पार करने के पश्चात् ! अगले चरण, यानि आठवें चरण में, जाने की प्रतीक्षा अवधि को, सातवाँ चरण बोलते हैं. इस चरण में, कोई नया ! या
अलग से, जन्म नहीं मिलता. बल्कि छठे चरण के , अंतिम जन्म की, बची हुयी अवधि ही, या उसी जन्म में, महादेव-दूत बनने हेतु ! जो मुख्य धर्मकाज का
आदेश मिलता है. उस आज्ञा मिलने के , तिथि तक की, प्रतीक्षा अवधि ही, सातवाँ चरण कहलाती है.
मूलश्रेणी का आठवाँ चरण :~
इस चरण में, आपको अपने स्वयं की इच्छानुसार ! इस संपूर्ण सृष्टि के , किसी भी एक ग्रह ! या उपग्रह पर, उस ग्रह से संबंधित ! महादेव आज्ञा का, एक
विशेष धर्मकाज करना होता है. उस काज को करने की, आज्ञा मिलने वाली तिथि से ही, आपका आठवाँ चरण ! आरंभ हो जाता है. इसमें करने वाले,
विशेष धर्मकाज की जानकारी ! भले ही आपको, आठवाँ चरण आरंभ होने के समय, प्राप्त होती है. परंतु कौन से ग्रह पर, आपको अपना ! विशेष धर्मकाज
संपन्न करना है. इसका वैकल्पिक चुनाव ! आपको छठे चरण के , आरंभिक काल में ही, स्वयं से कर लेना होता है.
मूलश्रेणी का नौवाँ चरण :~
वस्तुतः ! यह कोई चरण ही नहीं है. यह एक अवस्था है. लाखों-करोड़ों ! या उससे भी अधिक जन्म ले कर, आपकी आत्मा ने, जिस परम् उद्देश्य ! यानि
मोक्ष हेतु ! करोड़ों-अरबों-खरबों ! या उससे भी अधिक वर्ष की यात्रा हेतु ! अपनी आत्मा-यात्रा का, आरंभ किया था. उसकी यह अंतिम सीढ़ी है. यहाँ
आपकी आत्मा ! मोक्ष को प्राप्त कर, महादेव-दूत बन जाती है. इस चरण में, आप तब पहुँचते हैं. जब आठवें चरण वाले, महादेव से आज्ञा प्राप्त ! विशेष धर्म-
काज को, संपन्न कर लेते हैं. या उस काज को करते हुये ! अथवा संपन्न होने से पूर्व ही ! आपकी आत्मा ! उस वर्तमान देह का, त्याग कर देती है. यानि
उस जन्म की, आपकी आयु अवधि ! समाप्त हो जाती है. अंततोगत्वा ! यह, वह चरण है, जिसमें आपको ! उसी जन्म में ! हर हाल में ! महादेव-दूत ! बन
ही जाना है. जिसके परिणामस्वरूप ! आप जन्म-मरण के चक्र से, सदैव के लिये ! स्वतंत्र हो जाते हैं. संपूर्ण सृष्टि के , सभी ग्रहों-उपग्रहों या स्थानों पर,
किसी भी स्वरूप में, कितने भी अवधि तक, रह सकते हैं. आप शिवशक्ति जगत स्थलों पर भी, रह सकते हैं. यानि आप मोक्ष को, प्राप्त कर लेते हैं. अब
आपका ! एक ही काज बच जाता है……….. महादेव का दूत बन कर, महादेव के आज्ञा वाले काज को, समय-समय पर करते रहना. तथा पूरे सृष्टि के ,
सभी ग्रहों-उपग्रहों के , मूलश्रेणी वाली आत्माओं का, विधि-विधान के अनुरूप ! सहायता करना. एवं यह सभी कु छ भी, अनिवार्य नहीं होता. यह पूर्णतः !
आपकी अपनी इच्छा पर, निर्भर करता है.
……………पूर्वश्रेणी के सभी नौ चरण ! तथा मूलश्रेणी के सभी नौ चरण ! को समझने के पश्चात् ! इन निम्नलिखित ! चार बिंदुओं को भी समझना
! अत्यंत आवश्यक है.
:~
सदकर्म / धर्म / पुण्य हो ! या कु कर्म / अधर्म / पाप हो ! यह दोनों ही, जन्म-जन्मांतर तक ! संचय व अग्रेषित (फॉरवर्ड) होते रहते हैं. जब तक इनका
शुभ-फल ! या उपयुक्त-दंड ! ना मिल जाये.
:~
कु कर्म / अधर्म / पाप का, हर हाल में, दंड मिलेगा ही मिलेगा. कु कर्मों का समुचित दंड भोगने के अलावा, इससे बचाव का, कोई भी अन्य मार्ग नहीं है.
:~
दान-पुण्य करके ! देवी-देवता-गण ! यानि इष्ट-आराध्य की पूजा करके ! उनका नाम जप करके ! पुण्यों में बढ़ोतरी तो, की जा सकती है. किं तु उससे रत्ती
भर भी ! पाप नहीं काटे जा सकते. पाप का दंड तो, हर हाल में, अगले जन्म में, भोगना ही पड़ेगा. जैसे इस जन्म में, पूर्वजन्म का भोग रहे हो.
:~
वैसे देखें तो, पुण्य एकत्र व संचय करने का, सबसे सर्वोत्तम मार्ग ! धर्म / सदकर्म करना ही है. *कर्म* से बढ़कर, कु छ भी नहीं है. सदकर्म करके ! सदकर्म
/ पुण्य को, और भी बढ़ाया जा सकता है. लेकिन उससे कु कर्म / पाप को, नहीं मिटाया जा सकता. सदकर्म / पुण्य से, कु कर्म / पाप को, किसी भी हाल में,
समायोजित / एडजस्ट ! नहीं किया जा सकता.
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शकोमफु साधु बाबा ने, ऋभज को ! जितने समय में, आत्मा-यात्रा के , अठारहों चरण को ! यानि आत्मा के , निर्माण से ले कर ! मोक्ष तक की यात्रा को !
विस्तार से समझाया. उतने समय में, वह सभी ! यानि शकोमफु बाबा, उनकी धर्मपत्नी, तथा उनके छः बच्चे ! एवं ऋभज ! सभी पैदल चलते-चलते ! एक
आलीशान हवेलीनुमा घर में घुसे. वहाँ पहुँचते ही, ऋभज की माताजी ! धर्मपत्नी ! एवं पाँच बच्चों ने, बारी-बारी से ! शकोमफु बाबा व गुरु माता का, चरण-
स्पर्श करके , उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया.
ऋभज ने, शकोमफु बाबा ! व गुरु माता से छु पा कर, अपनी धर्मपत्नी को, आँखों से संके त किया. ताकि वह अपनी योजना पर ! कार्य आरंभ करे. उसकी
धर्मपत्नी निप्री ने, योजना के मुताबिक ! अपना पूर्ण समर्पण दिखाते हुये. अभी वर्तमान में, धर्मकाज हेतु ! साथ नहीं चलने के , मजबूरी का रोना-गाना !
आरंभ करने ही वाली थी कि……………..
शकोमफु बाबा बोले :
“ऋभज ! इस धर्मकाज प्रकल्प के प्रति ! तुम्हारा समर्पण भाव देख कर ! मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ. तुमने इतनी अल्प-अवधि में ही, तत्काल निर्णय करके !
परिवार के सभी सदस्यों के साथ………… घर-द्वार ! एवं काम-कार्य छोड़ कर ! चले आये हो. यह बहुत अच्छी बात है. परंतु अभी तुम्हें ! ऐसा करने की,
कोई आवश्यकता नहीं है.”
ऋभज के तो मन में, लड्डू फू टने लगे. क्योंकि बिना किसी ड्रामे के , सभी कु छ स्वतः ही, उसके मन-मुताबिक ! हुये जा रहा था. उसने एक दृष्टि ! अपनी
पत्नी ! निप्री की ओर देखा. उसके चेहरे पर भी, वहीं भाव थे. जो ऋभज के , मन में थे. परंतु ऋभज ने, अपने मन के भावों को, चेहरे पर परिलक्षित होने से,
बचाते हुये !
प्रत्यक्षतः शांत स्वर में बोला :
“परंतु गुरु जी ! आपने ही तो कहा था कि, परिवार के सभी सदस्यों को ले कर ! आपके साथ यहाँ से भाग चलूँ. और चल कर ! इस धर्मकाज को, पूर्ण
करूँ .”
शकोमफु बाबा बोले :
“वैसा बोलने के पीछे, मेरा उद्देश्य ! तुम्हारी परीक्षा लेना था. ताकि यह ! सुनिश्चित किया जा सके कि………… आवश्यकता पड़ने पर ! तुम ऐसा कर
पाओगे ! या नहीं ? चूँकि तुम ! इस परीक्षा में, उत्तीर्ण हुये. अतः अभी किसी को भी, साथ चलने की, आवश्यकता नहीं है. तुम सभी अपने ! गाँव स्थित
मूल-निवास-स्थान पर ! जा सकते हो.”
“आगे तुम्हारे लिये…………. जब जैसा आदेश होगा ! तभी काज बताऊँ गा. अतः अभी ! तुम सब जाओ. मुझे भी अपनी ! तथा अपने परिवार की सुरक्षा
हेतु ! रात्रि-रात्रि में ही, इस क्षेत्र की सीमा से, काफी दूर निकल जाना होगा. इस क्षेत्र में तो, मैं के वल तुम ! और तुम्हारे जैसे ही दो और मनुष्यों को, उद्धार-
मार्ग पर लाने हेतु ! आया था. अतः मेरे यहाँ आने का ! मंतव्य पूर्ण हो चुका है. अब तुम लौट जाओ. मैं तुमसे संपर्क बनाये रखूँगा.”
ऋभज हाथ जोड़ कर बोला :
“गुरु जी ! जब के वल, मुझसे संपर्क करना ही, यहाँ आपके आने का, उद्देश्य था. तब तो आप मुझसे ! सीधे भी तो, संपर्क कर सकते थे. इतने कष्ट वाला
मार्ग ! आपने क्यों चुना ?”
शकोमफु बाबा ने, मुस्कु राते हुये उत्तर दिया :
“सीधे संपर्क करने की, दूतों द्वारा ! मनाही होती है. संपर्क का माध्यम ही, यहीं होता है कि………….. कोई ना कोई रचना ! रची जायेगी. कोई घटनाक्रम
! घटित कराया जायेगा. ताकि तुम्हारे सदकर्मों के , प्रभाव की प्रबलता हो तो………….. तुम स्वयं से जुड़ सको. या तुम्हारे कु कर्मों के प्रभाव की, प्रबलता
हो तो…………… तुम उस घटना ! या संके त की उपेक्षा कर दो.”
ऋभज मन ही मन काँप गया ! उसने पूछा :
“तो क्या ? मुझे इस धर्मकाज प्रकल्प से, जोड़ने के लिये, यही रचना रची गयी थी कि…………… आपके बांधे जाने की सूचना ! हुड़दंगी बच्चों के माध्यम
से, मुझ तक पहुँचे. और मैं आकर ! आपको बचाऊँ .”
शकोमफु बाबा बोले :
“तुमने बिल्कु ल सही समझा ऋभज !”
ऋभज ने पूछा :
“…………और अगर मैं ! आता ही नहीं. या आता भी तो………… अगर नकारात्मक दृष्टिकोण से आता. यानि आपको बचाने के बजाये, बाकी सभी
मानवों की भाँति ! आपका उपहास उड़ाने ! या आपसे घृणा करने ! या आपको मारने-पीटने ! के लिये आता. तब आप क्या करते ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“मैं कु छ भी नहीं करता ! मैं यह मान लेता कि……….. तुम्हारे कु कर्मों के , प्रभाव की प्रबलता ! अभी अधिक है. और यह मान कर, मैं लौट जाता. जैसे
तुम्हारे अलावा ! इसी क्षेत्र के , दो और मनुष्यों का नाम भी, मेरी सूची में है. परंतु उनमें से, एक के कानों में, सूचना तो पहुँची. परंतु उसने ! उस सूचना-
संके त की ! उपेक्षा कर दी. वहीं दूसरे तक ! जब यह संके त पहुँचा. तो वह ! मेरे पास तो आया ! परंतु मुझ पर, विश्वास करने के बजाये ! मुझ पर संदेह
करके ! मुझे कु छ लाठी पिट कर ! चला गया.”
“तुम इस धर्मकाज के , संगी-साथी-सहयोगी बने. यह तुम्हारे सदकर्मों के , प्रभाव की प्रबलता थी. तथा जो दो मानव ! इस धर्मकाज प्रकल्प से नहीं जुड़े. वह
उनके कु कर्मों के प्रभाव की, प्रबलता थी. अब वह दोनों ! अपने कु कर्मों के आधार पर ! पुनः चौरासी लाख चौरासी योनियों के , क्रमिक चक्र में जायेंगे.
क्योंकि यह उनके ! पूर्व श्रेणी के , आठवें चरण का, अंतिम मानव जन्म है. अतः जैसा सदकर्म ! उसका वैसा सुफल. उसी प्रकार से जैसा कु कर्म ! वैसा
उसका दण्ड. मैं इसमें क्या कर सकता हूँ. यहीं विधि का विधान है.”
ऋभज ने पूछा :
“गुरु जी ! क्या मैं यह जान सकता हूँ कि……….. मैं इन अठारह चरणों में से, किस चरण में हूँ ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“ऋभज तुम ! तथा मेरे थैले में रखे, सभी ९०० पत्रकों में लिखित ! कु ल ९९९९९ मानव ! सभी के सभी ! पूर्व श्रेणी के , आठवें चरण में हैं. तथा इनका
यह वर्तमान जन्म ! उनके इस क्रमिक चक्र का ! अंतिम मानव देह जन्म है. अब यह ! यहाँ से, या तो मूल श्रेणी में जायेंगे. या पुनः ! एक और क्रमिक चक्र
लगाने हेतु ! चौरासी लाख चौरासी योनियों को, भोगने के लिये, पूर्व श्रेणी के द्वितीय चरण से, अपनी यात्रा आरंभ करेंगे.”
“वैसे अगर ! तुम्हारी बात करें तो………… तुम्हारे अभी तक के , आत्मा-यात्रा के अनुसार ! तुम वह पतित आत्मा हो. जो करोड़ों वर्ष पूर्व भी ! एक बार
इस चरण में आयी थी. यानि पूर्व श्रेणी के , आठवें चरण में पहुँची थी. परंतु तुम्हारे कु कर्मों के , संचयन भंडार के बोझ तले दब कर ! तुम पुनः एक बार !
चौरासी लाख चौरासी जन्मों का, क्रमिक चक्र लगाने हेतु ! भेज दिये गये थे. तभी तो यह तुम्हारा ! एक करोड़, अड़सठ लाख, एक सौ अड़सठवाँ जन्म है.
यह तुम्हारे ! पूर्व श्रेणी के , दूसरे चक्र वाले, आठवें चरण का, तीसरा जन्म है.”
“अब यहाँ से ! या तो तुम ! मूल श्रेणी में प्रवेश करके , इस चौरासी लाख चौरासी जन्मों के , क्रमिक चक्र से, मुक्ति पाओगे. या पुनः ! चौरासी लाख चौरासी
जन्मों का, क्रमिक चक्र लगाने हेतु ! पूर्व श्रेणी के , द्वितीय चरण से, अपनी यात्रा आरंभ करोगे.”
ऋभज ने हाथ जोड़ कर पूछा :
“गुरु जी ! मुझे, चौरासी लाख चौरासी जन्मों का, क्रमिक चक्र लगाने से, बचने के लिये, क्या करना पड़ेगा ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“कर्म ही करना पड़ेगा. इस संपूर्ण सृष्टि के लिये, बनाये गये विधि-विधान में, कर्म की ही, सर्वोच्च प्रधानता है. अन्य कोई भी, लघु-मार्ग ! है ही नहीं. अब कर्म
के दो प्रकार होते हैं. सदकर्म ! एवं कु कर्म. मोक्ष के दिशा में, निरंतर-अनवरत ! यात्रा कर रही आत्मा को, उसके सदकर्मों का संचयन ! आगे बढ़ाता है.
तथा कु कर्मों का संचयन ! पीछे धके लता है. या फिर आगे नहीं बढ़ने देता है. अतः सभी मानव को ! अपने जीवन-काल में, सदकर्मों की अधिकता ! तथा
कु कर्मों की न्यूनता ! रखने का सदैव प्रयास चाहिये.”
“परंतु ! तुम्हारे इस वर्तमान जन्म में, तुम्हारी बात कु छ और है ऋभज. तुम अत्यंत सौभाग्यशाली हो. क्योंकि तुम ! मुझे प्राप्त एक वरदान का, विशेष अंग
हो. संपूर्ण सृष्टि के रचयिता ! तथा इस समस्त सृष्टि के , संचालक दल वाले, सभी देवी ! देवता ! गण ! दूत ! के भी रचयिता ! परम् पिता ! सर्वश्रेष्ठ देव !
उमापति टेंग्रिस भगवान से, प्राप्त वरदान के अनुसार ! तुम्हारा नाम ! कु छ विशेष सौभाग्यशाली 99999 मनुष्यों की, सूची में है. जिसमें से मुझे !
अधिकतम कु ल 9999 मानवों का चयन करना है. तथा अब तुम ! मेरे द्वारा चयनित ! उन अति-विशिष्ट सौभाग्यशाली 9999 मनुष्यों में से एक हो.”
“अतः इसका अर्थ ! यह है कि………. अगर तुम पूर्ण मनोयोग से, इस धर्मकाज प्रकल्प हेतु ! अपना सर्वस्व न्योछावर कर के ! इस पुण्य-काज में, जुट
जाओगे. तब तुम्हारे साथ ! एक विशेष सुविधा जुड़ जायेगी. वह विशिष्ट-सुविधा यह है कि………… तुम्हें मूल श्रेणी में, भेजने हेतु ! जब तक तुम्हारे पर्याप्त
सद्कर्मों का, संचयन नहीं हो जाता है. तब तक तुम्हें ! इसी देह में, जीवित रखा जायेगा.”
“इसके लिये, भले ही तुम्हारी आयु ! कितनी भी अधिक ! क्यों ना हो जाये. जब तक तुम्हारे ! पूर्व जन्मों के कु कर्मों का, दण्ड भोगवा-भोगवा कर ! कु कर्मों
के संचय भंडार को, न्यूनतम या शून्य नहीं कर दिया जायेगा. तथा तुम्हारे ! सद्कर्मों के संचय भंडार को, तुमसे सदकर्म करा-करा कर, उतना पर्याप्त नहीं
कर दिया जायेगा. जितने से तुम ! मूल श्रेणी में, प्रवेश पा सको. तब तक तुम्हें ! अमर बना कर, इसी देह में, जीवित रखा जायेगा.”
“अब अगर मैं ! और अधिक ज्ञान बांचूँगा तो, भोर हो जायेगी. और फिर मुझे ! अपने परिवार सहित, सकु शल ! इस अति पतित क्षेत्र से, बाहर निकलने में,
मुश्किल आयेगी. अतः अब मैं चलता हूँ. तुम सब भी, गाँव स्थित ! अपने मूल आवास पर, लौट जाओ.”
इतना बोल कर, शकोमफु बाबा ! जैसे ही अपने स्थान से, खड़े हुये. ऋभज नामक वह व्यक्ति ! उनके पैरों के गिर पड़ा. और विनती करता हुआ बोला :
“गुरु जी ! अभी निकलने पर, आप सभी के प्राणों को, भारी खतरा है. अतः मेरी आपसे ! विनती है कि, आप आज की बची हुयी रात्रि ! एवं कल का पूरा
दिन ! यहीं रुक जाइये. क्योंकि सुबह होते ही, आपको ढूँढने का, खोजबीन-अभियान चलेगा. और आप यहाँ ! पूर्णतः सुरक्षित हैं. मैं कल रात्रि में, आपको
सुरक्षित निकालने का, कोई-ना-कोई प्रबंध करता हूँ.”
शकोमफु बाबा ने, अपनी धर्मपत्नी की ओर देखा. जब गुरु-माता की ओर से, उन्हें मौन स्वीकृ ति मिल गयी. तब उन्होंने कहा :
“ठीक है ऋभज ! ऐसा कर लेते हैं. परंतु ! फिर तुम्हें ! हमारे लिये, थोड़ा भोजन का भी, प्रबंध करना पड़ेगा. क्योंकि मेरे बच्चे ! काफी भूखे हैं. मैं तो विशेष
परिस्थितियों को छोड़ कर, प्रत्येक सत्ताईस घंटों के पश्चात् ही, भोजन करता हूँ. परंतु इनके साथ ! ऐसा नहीं है. अतः यह भूखे हैं.”
ऋभज एवं उसकी धर्मपत्नी निप्री ने, आत्मग्लानि के साथ ! एकमेव स्वर में कहा :
“गुरु जी ! हड़बड़ी में बड़ी भूल हो गयी. यहाँ तो भोजन का प्रबंध नहीं है. परंतु हम अभी जा कर ! आपके हेतु ! अपने गाँव वाले मूल-आवास से, भोजन ले
कर आते हैं.”
इतना बोल कर, ऋभज एवं उसकी धर्मपत्नी निप्री ने, अपने पाँच बच्चों ! व माताजी को साथ लिया. तथा वहाँ से निकल पड़े. जब वह निकल रहे थे. तभी
उन्हें शकोमफु बाबा का, स्वर सुनायी दिया :
“ऋभज ! तुम्हारा यह थैला ! यहीं छू ट गया है. इसे लेते जाओ.”
ऋभज बोला :
“गुरु जी ! इस थैले में, कु छ धन-राशि है. यह मैं आपके लिये लाया हूँ. इस धर्म-काज में, आपके काम आयेंगे.”
शकोमफु बाबा ने थैले को खोला. उसमें बहुत बड़ी धन-राशि थी. उन्होंने थैले से, बहुत छोटी सी धन-राशि निकाली. तथा थैले को, वापिस बाँधते हुये बोले
:
“इसमें बहुत बड़ी धन-राशि है. मुझे देवी-देवताओं के आज्ञानुसार ! एक सामान्य मनुष्य से, जितनी अधिकतम धन-राशि लेने की, अनुमति है. उतनी मैं ले
चुका हूँ. इससे अधिक धनराशि ! मैं तुमसे नहीं ले सकता.”
ऋभज ने हठ करते हुये कहा :
“गुरु जी ! कृ पया रख लीजिये. बहुत बड़ा धर्म-काज है. आपको इसकी आवश्यकता पड़ेगी.”
शकोमफु बाबा ! मना करते हुये बोले :
“धनराशि के लिये, जिन मानवों से, बड़ी राशि ले सकता हूँ. उस सूची में, अभी तुम्हारा नाम नहीं है. अतः मैं तुमसे ! अतिरिक्त धनराशि ! नहीं ले सकता.”
ऋभज बोला :
“क्या आपके पास ! हर काज हेतु ! अलग-अलग सूची है ?”
शकोमफु बाबा ने, अपने भारी-भरकम थैले को, थपथपाते हुये कहा :
“मेरे पास ! सैकड़ों प्रकार की सूचियाँ हैं. मैं उसी सूची के अनुरूप ही तो, कार्य करता हूँ. क्योंकि मैं ! सर्वश्रेष्ठ देव उमापति टेंग्रिस भगवान ! तथा माता उमा
! एवं समस्त देवी ! देवता ! गण ! व दूतों के , आज्ञाओं का ! अक्षरशः पालन करता हूँ. और मैं चाहता हूँ कि, तुम भी अपने उद्धार हेतु ! ऐसा ही करो.”
ऋभज ! एवं उसकी धर्मपत्नी निप्री ! एकमेव स्वर में बोले :
“हम ऐसा ही करेंगे ! गुरुजी. आपकी आज्ञाओं का, हुबहू पालन करेंगे.”
शकोमफु बाबा बोले :
“अगर ऐसा है तो………… फिर मेरी आज्ञा मान कर ! यह धनराशि वाला, भारी-भरकम थैला ! तुम अपने साथ ले कर जाओ. और यह मूर्खता भरी बात
! कभी मत सोचना कि………….. तुमसे इस धर्मकाज प्रकल्प में, धन माँगा जायेगा. क्योंकि धन तो, उससे माँगा जायेगा. जो निर्धन है.”
“अरे मूर्ख ! तुम्हारे पास अगर, धन नहीं रहता. तब तुम्हें ! धन व्यवस्था करने को, बोला जाता. अभी तुम्हारे पास ! चूँकि धन की भरमार है. अतः तुमसे !
धन नहीं माँगा जायेगा. तुमसे वह माँगा जायेगा. जिसे देने में, तुम्हें अत्यधिक कष्ट हो. कदाचित् ऐसा हो सकता है कि, तुमसे समय माँगा जाये. क्योंकि तुम्हारे
पास ! समय का अभाव है.”
“ऋभज एवं निप्री ! एक बात अपने मनोमस्तिष्क में, भलीभाँति बिठा लो. किसी भी ग्रह ! या उपग्रह पर ! होने वाला, सबसे बड़ा धर्मकाज ! वह होता है.
जो मूलश्रेणी के , आठवें चरण वाली आत्मा को, निमित्त मात्र बना कर ! स्वयं सर्वश्रेष्ठ देव उमापति टेंग्रिस भगवान ! एवं माता उमा माँ करती हैं.”
“………………..और उस धर्मकाज से, जुड़े हुये मानवों से, यानि वह मानव ! जिनका उद्धार होने वाला है. उनसे कभी भी, वह नहीं माँगा जाता !
जो वह आसानी से दे सकते हों. उनसे तो, वह माँगा जाता है. जो देने में, उनकी हालत ! दयनीय हो जाये. उन्हें मानसिक या शारीरिक या दोनों प्रकार से,
अत्यधिक कष्टों का, सामना करना पड़े. ताकि उन्हीं कष्टों को भोगते हुये ! उनके पूर्वजन्मों के , संचित कु कर्म भी कटते रहें.”
शकोमफु बाबा की, अमृत-वाणी सुनने के पश्चात् ! ऋभज एवं उसकी धर्मपत्नी निप्री ! अपने पाँच बच्चों ! व माताजी को साथ ले कर, अपने खेतों वाले घर
से, अपने गाँव वाले घर के लिये, निकल चुके थे. साथ ही साथ ! ऋभज के हाथों में, उसकी धनराशि का ! भारी-भरकम थैला भी था. जिसे लेने से,
शकोमफु बाबा ने, स्पष्ट मना कर दिया था.
अभी वह सभी ! कु छ ही कदम चले होंगे कि………. निप्री ने, अपने पति ऋभज से कहा :
“हम दोनों तो, साधु बाबा द्वारा ! सौंपे जाने वाले, दायित्वों से बचने के लिये ! जाने कै से-कै से ? बहाने सोच कर ! तथा योजनायें बना कर गये थे. परंतु
शकोमफु बाबा की, सहजता ने तो, स्वतः ही सभी काज ! आसान कर दिया.”
ऋभज बोला :
“हाँ ! तुम बिल्कु ल ठीक बोल रही हो निप्री. परंतु इसी बात से, मेरा हृदय ! तभी से उद्वेलित है. ………..कि इतने पवित्र आत्मा के प्रति ! हमारे द्वारा
प्रदर्शित किया जा रहा ! यह बनावटी समर्पण भाव ! क्या कहीं से भी उचित है ?”
उसकी धर्मपत्नी निप्री बोली :
“आपने तो, मेरे मन की बात कह दी. हमें अपना ! मन का मैल साफ करके , पूर्ण समर्पण भाव से, साधु बाबा वाले, धर्मकाज में जुट जाना चाहिये. मैं तो
कहती हूँ कि…………… हमें अभी ही चल कर ! अपने कु त्सित विचार ! एवं मानसिकता हेतु ! शकोमफु बाबा से, क्षमा माँगनी चाहिये. तथा अपने ! मैले
मन के बारे में भी, उन्हें बता देना चाहिये. क्योंकि वह तो गुरु हैं ! अवश्य ही वह ! हमें क्षमा कर देंगे. तथा मार्ग भी सुझायेंगे.”
ऋभज बोला :
“तुम बिल्कु ल ठीक बोल रही हो निप्री ! आओ चलो ! हम दोनों वापिस चलते हैं.”
उसके बाद ऋभज ने, धन राशि वाला, भारी-भरकम थैला ! उन पाँचो में से, अपने सबसे बड़े बच्चे को पकड़ाया. तथा अपनी माता जी से बोला :
“माँ ! आप बच्चों को साथ लेकर, घर जाइये. हम दोनों भी, थोड़ी देर से, आ रहे हैं. तब तक आप ! सेविकाओं से, आठ-दस लोगों हेतु ! भोजन तैयार
कराइये.”
अब वह पति-पत्नी ! वापिस खेतों में बने हुये, महल की ओर लौटने लगे. तथा ऋभज की माँ ! उसके पाँचों अविवाहित बच्चों को ले कर, पूर्ववत् ! गाँव वाले
घर की ओर, बढ़ने लगीं. कु छ ही समय में, वह पति-पत्नी ! पुनः अपने खेत वाले, घर के समीप पहुँचे. तभी उन्हें ! घर के अंदर चल रहा वार्तालाप !
सुनायी पड़ा.
चर्चा का विषय ! ऋभज एवं निप्री ही थे. अतः उन दोनों के पाँव ! अंदर की बातचीत सुनने हेतु ! वहीं के वहीं ठिठक गये. रात्रि के सन्नाटे के कारण ! घर के
अंदर हो रही वार्ता ! बाहर स्पष्ट सुनायी पड़ रही थी.
गुरु माता का स्वर :
“हे स्वामी ! इस धर्मकाज के लिये, यह तो बहुत अच्छा हो गया कि…………. आपको एक और धीर-गंभीर ! मनुष्य मिल गया. मैं तो उन दोनों का,
समर्पण भाव देख कर ! भाव-विभोर हो गयी हूँ.”
शकोमफु बाबा का स्वर :
“अभी वह ! कोई धीर-गंभीर नहीं है. वह तो उसके ! पूर्वजन्मों वाले, सदकर्मों के प्रभाव की, प्रबलता है. जो उसको बल-पूर्वक ! इस धर्मकाज प्रकल्प के
प्रति ! सकारात्मक बनाये हुये है. जैसे ही ! उसके पूर्वजन्मों वाले, कु कर्मों के प्रभाव की प्रबलता ! अपना जोर लगायेगी. वह तत्क्षण भाग जायेगा ! या फिर
इस धर्मकाज के प्रति ! नकारात्मक हो जायेगा.”
गुरु माता का स्वर :
“परन्तु मुझे तो वह ! अत्यंत गंभीर लगा स्वामी. पता नहीं आपके संदेह का, क्या आधार है ?”
शकोमफु बाबा का स्वर :
“मेरे संदेह करने ! या नहीं करने से, कोई अंतर नहीं पड़ता. क्योंकि देवताओं से प्राप्त सूची में, उसका नाम है. मेरे लिये यहीं पर्याप्त है. बाकी अगर वह !
के वल अपने आरंभिक अवस्था तक में भी, टीका रह जाता है. इस नकारात्मक जगत् के , मध्य में रह कर भी, इस धर्मकाज प्रकल्प के प्रति ! सकारात्मक
बना रहता है.”
“तब आरंभिक काल के बाद ! जब उसका जुड़ाव ! इस पुण्य-प्रकल्प से, प्रगाढ़ हो जायेगा. तब तो उसके ऊपर ! वैसे भी…………. कै सी भी
नकारात्मकता ! हावी नहीं हो सकती. अतः जो भी अड़चन है. वह उसके आरंभिक अवस्था में ही है. वैसे तुम बताओ ? तुम्हें किस आधार पर ! वह बहुत
धीर-गंभीर प्रतीत हुआ ?”
गुरु माता का स्वर :
“क्योंकि वह ! आपके प्रथम आज्ञा पर ही, अपने पूरे परिवार के साथ ! आपका अनुसरण करने हेतु ! इस धर्मकाज के लिये, अपना घर-द्वार ! एवं काम-
कार्य त्याग कर ! आ गया था. तथा उतनी बड़ी धन-राशि भी, लेता आया था. इसीलिये, मुझे वह ! इस धर्मकाज प्रकल्प के प्रति ! अत्यंत धीर-गंभीर
लगा.”
शकोमफु बाबा का स्वर :
“जो वह धन राशि लाया था. उससे उसकी गंभीरता ! बिल्कु ल भी नहीं झलकती. क्योंकि वह बड़ी धनराशि ! उसको भगवान से प्राप्त ! कु ल धनराशि का !
एक अत्यंत छोटा अंशमात्र भी नहीं है. परंतु हाँ ! उसके द्वारा ! इस धर्मकाज प्रकल्प के लिये, अपना घर-द्वार ! एवं काम-कार्य त्याग कर ! आ जाना.
………….अवश्य ही, घोर गंभीरता का परिचायक है.”
फिर शकोमफु बाबा ! हँसते हुये बोले :
“……………अगर वह ! सही में, सच्चे मन से, आया होता तो ?”
चुपचाप बाहर खड़े हो कर, अंदर की वार्ता सुन रहे ! ऋभज एवं उसकी पत्नी निप्री ! शकोमफु बाबा की बात सुन कर ! अंदर तक काँप गये. तभी उन्हें !
गुरु माता का स्वर सुनायी दिया. वह अपने पति ! शकोमफु बाबा से पूछ रही थीं.
गुरु माता का स्वर :
“आपके बोलने का क्या अर्थ है ? मैं कु छ समझी नहीं स्वामी !”
शकोमफु बाबा का स्वर :
“एक बात बताओ ? क्या अगर वह सही में, जाने के उद्देश्य से, घर से निकला होता ! तो क्या उसके पास ! थोड़ा भी खाना नहीं होता ? आठ सदस्यों के
परिवार में, वस्त्रों इत्यादि का, क्या एक भी थैला नहीं होता ? क्या मार्ग के लिये, रूखा-सूखा ! कु छ भी भोजन का, प्रबंध नहीं होता ?”
“उसके पास ! ऐसा कोई भी प्रबंध नहीं था. क्योंकि सही में उसे ! चलना ही नहीं था. मैं तो यह ! भलीभाँति जानता ही था कि………… अगर उसे !
अभी साथ चलने को, बोल भी देता. तब भी वह ! बिल्कु ल नहीं चलता. तब फिर वह ! कोई रोना-धोना करके ! बहाने बनाता. यहीं तो उसके ! कु कर्मों के
प्रभाव की, प्रबलता है. जिससे कि उसे ! निरंतर लड़ना है. तभी तो वह ! दोनों पति-पत्नी ! मूल श्रेणी में, प्रवेश कर पायेंगे.”
क्रमशः

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#ऑटोबायोग्राफी_ऑफ_स्वामी_सत्यानंद_1st_एडिशन
भाग
अब इससे अधिक सुनना ! ऋभज एवं निप्री के बस का, बिल्कु ल भी नहीं था. उनके बुद्धि-विवेक को, दुरुस्त करने हेतु ! इतना सुनना ही, पर्याप्त था.
परिणामस्वरूप ! पति-पत्नी दोनों ! एक साथ ! घर में प्रवेश किये. तथा साधु बाबा के , चरणों में गिर कर……..
…………रोते हुये बोले :
“गुरु जी ! मुझे क्षमा कर दीजिये. हम अभी के अभी ! सब कु छ त्याग करने हेतु ! तैयार हैं.”
शकोमफु बाबा बोले :
“अभी ! इस क्षण ! तुम्हारे सदकर्मों के प्रभाव की प्रबलता ! हावी है. इसलिये तुम ! अभी इतने सकारात्मक बन रहे हो.”
ऋभज बोला :
“फिर मैं क्या करूँ ? गुरुजी ! अब आप ही मुझे ! इस नर्क से निकाल सकते हैं. गुरु का स्थान तो, भगवान से भी ऊपर होता है. अतः हे गुरु जी ! मुझ पर
कृ पा कीजिये.”
शकोमफु बाबा ! थोड़े क्रोधित स्वर में बोले :
“यह तुम्हारी पहली त्रुटि है. अतः क्षमा कर दे रहा हूँ. भविष्य में ध्यान रहे कि, यह त्रुटि ! दुहरायी नहीं जाये. सदैव ध्यान रहे…………….. गुरु का स्थान
! बस गुरु के स्थान तक होता है. उससे ऊपर नहीं. अतः मेरे समक्ष ! मुझे भगवान से ऊपर ! बताने की चेष्टा ! कभी भी नहीं करना. वैसे कभी ऐसा करना
! तुम्हारे हेतु हानिकारक है.”
ऋभज बोला :
“क्षमा गुरुजी ! मैं आगे से ध्यान रखूँगा.”
अपने पति के समर्थन में, निप्री बोली :
“गुरु जी ! धर्म-ज्ञान के मामले में, कृ पया आप ! हम दोनों को, महा मूर्ख ही समझें. हमें कु छ भी नहीं पता ! गुरु जी ! यहाँ जो भी सैकड़ों पंथ हैं. उनके
माध्यम से, जितनी भी भ्रामक ! व आधी-अधूरी जानकारियाँ ! हमें प्राप्त हैं. हम के वल उसी के अनुरूप ! आचरण कर रहे हैं.”
शकोमफु बाबा बोले :
“इसीलिये तो, सर्वश्रेष्ठ देव की आज्ञा से, यह धर्मकाज प्रकल्प ! यहाँ स्थापित होने जा रहा है. तुम दोनों पति-पत्नी ! अपने सभी प्रश्नों ! व जिज्ञासाओं का
! शीघ्रातिशीघ्र मुझसे ! निदान प्राप्त लो. ताकि तुम्हारा विश्वास ! तुम्हें इस पुण्य-पथ पर, बनाये रखे. नहीं तो, कु कर्मों के प्रभाव ! जब-जब प्रबल होंगे.
तब-तब वह ! तुम्हें भटकायेंगे. और उसी भटकाव में, कभी एक क्षण ऐसा भी आयेगा कि………….”
“………..तुम्हें ! यह शकोमफु बाबा ही, गलत लगने लगेगा. जिसके फलस्वरूप ! तुम्हें इस धर्मकाज से ही, घृणा हो जायेगी. तदुपरांत ! तुम इन पुण्य-
प्रकल्पों को, संदेह की दृष्टि से, देखने लगोगे.”
“…………और इन सभी नकारात्मक घटनाओं का, कु ल मिला कर ! यह असर होगा कि, तुम इस धर्मकाज प्रकल्प से, स्वतः ही दूर हो जाओगे. मैं तो
तुम्हें ! कभी सांके तिक रूप से, तो कभी प्रत्यक्ष रूप से, बुलाता रहूँगा. परंतु तुम मुझे ! दुत्कारते रहोगे. एक समय बाद ! मैं भी तुम्हें ! बुलाना छोड़ दूँगा.”
ऋभज ने पूछा :
“गुरु जी ! इस नकारात्मकता से बचाव का, क्या उपाय है ?”
शकोमफु बाबा बोले
“कोई उपाय नहीं है. और अगर है भी तो, यही एक मात्र उपाय है कि……………. अपने-आप को बल-पूर्वक ! सकारात्मक रखते हुये, इस धर्मकाज में,
कै से भी यत्न-प्रयत्न करके , सप्रयास बनाये रखना. अपने दायित्वों का, निर्वहन करते रहना. और ऐसा करते-करते ! जैसे-जैसे समय व्यतीत होता जायेगा.
तब फिर वैसे-वैसे ! इस पुण्य-पथ से, भागने की, तुम्हारी संभावना भी, क्षीण होती जायेगी. फिर वह दिवस भी आयेगा. जब तुम्हें ! इस चौरासी लाख
चौरासी योनियों के , बार-बार वाले क्रमिक चक्र से, मुक्ति मिल जायेगी.”
ऋभज ने पूछा :
“गुरु जी ! आपने संध्या-काल में बताया था कि……….. आप भगवान जी की आज्ञा से, इस धर्मकाज को, संपन्न करने के लिये, कु ल 9999 पूर्वश्रेणी
के , मानवों का ! एक समूह दल बनाने वाले हैं. उसमें से कितनी संख्या ! अभी तक पूर्ण हो चुकी है गुरुजी ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“उसमें तो अभी तक ! अच्छी-भली संख्या हो गयी है. मैं तुम्हें ! उन सभी धर्म-योद्धाओं से, मिलाऊँ गा भी.”
ऋभज बोला :
“यह सबसे उचित रहेगा गुरु जी ! क्योंकि जब मैं ! उन्हीं के संगति में रहूँगा. तब फिर मेरे नकारात्मक होने का, डर भी समाप्त हो जायेगा.”
शकोमफु बाबा हंसते हुये बोले :
“यह डर तो, उस समूह-दल के संपर्क में, रहने पर भी, पूर्णतः समाप्त नहीं होगा. क्योंकि वहाँ भी तुम्हें ! नकारात्मक करने वाले, एक से एक धुरंधर मिलेंगे.”
अब ऋभज ! कान्फ्यूज होता हुआ बोला :
“गुरु जी ! यह आप क्या बोल रहे हैं ? उनको आपने चयनित करके , उस समूह-दल में रखा है. वह भला ! इस धर्मकाज के प्रति ! अथवा आपके प्रति !
मुझे क्यों नकारात्मक करेंगे ?”
शकोमफु बाबा ने, मुस्कु राते हुये उत्तर दिया :
“क्योंकि वह ! अंततोगत्वा ! नकारात्मकता फै लाने के उद्देश्य से ही, उस समूह-दल में, अभी तक बने हुये हैं.”
ऋभज ने कौतूहलवश पूछा :
“क्या आप उन्हें जानते हैं ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“क्यों नहीं जानता ? बिल्कु ल जानता हूँ. वह समूह दल के , जिन-जिन सकारात्मक धर्म-योद्धाओं को, नकारात्मक करते रहते हैं. उसमें से कु छ-कु छ मुझे !
उनके बारे में, अवगत कराते रहते हैं. तथा कु छ-कु छ जानकारियाँ मुझे ! सर्वश्रेष्ठ देव के दूतों से भी, मिलती ही रहती हैं.”
ऋभज ने आश्चर्य से पूछा :
“तब फिर आप उन्हें ! अपने समूह-दल से, निकाल क्यों नहीं देते ?”
शकोमफु बाबा बोले :
“क्योंकि वह समूह-दल ! मेरा है ही नहीं. वह समूह-दल तो, इस धर्मकाज प्रकल्प का है. और यह धर्मकाज प्रकल्प ! सर्वश्रेष्ठ देव तथा माता उमा का है.
तथा उनसे तो, कु छ भी नहीं छिपा है. और वैसे भी ! मैं कौन होता हूँ ? उन्हें निकालने वाला. वह ! उस समूह-दल में, प्रविष्ट हुये हैं……………”
“अपने पूर्वजन्मों के संचित सदकर्मों के बूते. तथा अगर वह ! बाहर भी होंगे. तो वह होंगे………….. अपने कु कर्मों के बूते. परंतु हाँ ! अगर बाहर होने से
पूर्व ! उन्हें सदबुद्धि आ गयी. तो वह भी प्रकल्प में, सक्रिय सकारात्मक भागीदारी निभा कर ! मूल श्रेणी में, प्रवेश पा सकते हैं.”
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………..अब यहाँ से, लगभग हजार वर्ष तक के , घटनाक्रमों को, अभी लिखने की अनुमति ! नहीं होने के कारण ! एक लंबी छलांग लगा कर, सीधे
पहुँचते हैं…………… पृथ्वी ग्रह के , बारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों ! या तेरहवीं शताब्दी के , आरम्भिक वर्षों वाले, काल-खंड में.
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तो आइये ! चलते हैं……………. अभी से पौना हजार वर्ष पूर्व ! यानि लगभग साढ़े सात सौ वर्ष पूर्व वाले, समयावधि में. इसी पृथ्वी ग्रह के , भारतीय
महाद्वीप स्थित ! दक्कन के पठारी क्षेत्र पर ! यानि वर्तमान के ………. कर्नाटक, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश ! वाले क्षेत्रों में.
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नोट :~ विवाद से बचने हेतु ! इस सत्य घटना क्रम के , कु छ-कु छ नाम ! स्थान ! तिथि ! इत्यादि में, थोड़े से बदलाव किये गये हैं.
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घटनाक्रम आरंभ !!
लगभग 150 वर्षीय ! एक युवा देह काया के स्वामी ! एक राजा के समक्ष ! एक लगभग 300 वर्षीय ! शक्तिशाली देह काया के , स्वस्थ तंदुरुस्त योगी खड़े
थे.
उस योगी ने, अपने सामने खड़े राजा को, ललकारते हुये कहा :
“ऐ राजा सयोअमप्र ! तुम एक राजा हो. सांसारिक व्यक्ति हो. राजशी पोशाक धारण करते हो. महलों में रहते हो. योगियों हेतु वर्जित ! यानि तामसिक प्रवृति
की वस्तुयें भी, खाते हो. परंतु फिर भी, अपने आप को, योगी कह के , प्रचारित करते हो. और यह सब करते व कहते हुये, तुम्हें तनिक भी, लज्जा नहीं
आती. आज अपनी सिद्धि को, मेरे समक्ष सिद्ध करो. नहीं तो, अपने कु कर्मों का दंड भोगने हेतु ! तैयार रहो.”
राजा सयोअमप्र ने, विनम्रतापूर्वक ! अपने सामने खड़े, योसिलिं महाराज को झुक करके , प्रणाम किया. और बोले :
“हे योगी राज योसिलिं महाराज ! कौन से कु कर्मों का दंड !”
योसिलिं महाराज ने “हूँहअ” बोलते हुये, उस राजा के अभिवादन को, ठु करा कर बोले :
“तुम्हारा कु कर्म यह है कि……………. तुम योगी नहीं हो कर भी, संपूर्ण क्षेत्र में, अपने आप को, योगी के रूप प्रचारित करके , स्थापित कर चुके हो.”
राजा सयोअमप्र ने, हाथ जोड़ कर कहा :
“हे योगी राज योसिलिं महाराज ! मैं यह स्पष्ट देख पा रहा हूँ कि, आपकी स्वयं की आत्मा ! मोक्ष मार्ग पर है. आप पूर्व चरण से, मूल चरण में, प्रविष्ट हो
चुके हैं. अभी आप मूल वाले, प्रथम चरण में हैं. तो क्या आपको नहीं पता ! ……………….कि धर्म का पहनावे-ओढ़ावे ! या खान-पान ! या रहन-
सहन ! इत्यादि से, कोई भी प्रत्यक्ष संबंध नहीं है. धर्म एवं अधर्म का संबंध ! के वल एवं के वल सदकर्म व कु कर्म से है.”
योसिलिं महाराज दंभपूर्वक स्वर में बोले :
“तो क्या ? इतने सारे जो ऋषि ! योगी ! तपस्वी ! साधु ! संत ! महात्मा ! इत्यादि हैं. सब सभी असत्य बोलते हैं. क्या वह ! तथा उनके कथन !
आचरण ! इत्यादि ! सत्य नहीं हैं.”
राजा सयोअमप्र ने, विनयशीलता से कहा :
“हे योगी राज योसिलिं महाराज ! सत्य तो एक ही हैं. परम् पिता शिव एवं माता शक्ति ! बाकी सभी तो, उन्हीं के अंश हैं. उन्हीं से उत्पन्न हुये हैं ! या उन्हीं
के द्वारा ! निर्मित किये गये हैं. एवं मैं ! जो आपको बता रहा हूँ कि………………..
***धर्म का पहनावे-ओढ़ावे ! या खान-पान ! या रहन-सहन ! इत्यादि से, कोई भी संबंध नहीं है. धर्म एवं अधर्म का संबंध ! के वल एवं के वल सदकर्म व
कु कर्म से है.***
……………….यह सभी बातें मैं ! उन्हीं परम् पिता शिव ! एवं माता शक्ति ! तथा ब्रह्मा विष्णु महेश (रुद्र) त्रिदेव एवं सभी देवी ! देवता ! गण ! व
महादेव-दूतों से, प्राप्त शिक्षा एवं ज्ञान के , आधार पर बता रहा हूँ.”
योसिलिं महाराज ! व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ बोले :
“………..और तुम्हें यह सभी ज्ञान ! कहाँ से प्राप्त हुआ ?”
राजा सयोअमप्र ने कहा :
“हे योगी राज योसिलिं महाराज ! क्योंकि जैसे आप मूल चरण में हैं. मैं भी मूल चरण में ही हूँ. मूल चरण में, प्रविष्ट होने के पश्चात् ! यह मेरा दूसरा जन्म है.
तथा महादेव एवं माता पार्वती की कृ पा व आशीर्वाद से, मैं अभी द्वितीय चरण में हूँ. एवं मैं अपने, इस जन्म के , सांसारिक दायित्वों के अनुसार ! राजा स्वरूप
में हूँ. अतः मेरे अपने, राजा वाले लौकिक कर्तव्य भी हैं. जिसके अनुरूप मेरा रहन-सहन है. परंतु मैं भी एक योगी ही हूँ.”
योसिलिं महाराज बोले :
“फिर यह बात ! मुझे क्यों नहीं पता ? कि तुम मुझसे एक श्रेणी ऊपर, द्वितीय चरण में हो.”
राजा सयोअमप्र ने उत्तर दिया :
“क्योंकि हो सकता है. आपके अंदर व्याप्त दंभ के कारण ! अहंकारी प्रवृति के कारण ! आपकी आत्मा पर, एक आवरण चढ़ गया हो. जो सत्य को देखने में,
बाधा उत्पन्न कर रहा हो. क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो, आपको यह अवश्य पता होता कि………………..
***धर्म का पहनावे-ओढ़ावे ! या खान-पान ! या रहन-सहन ! इत्यादि से, कोई भी संबंध नहीं है. धर्म एवं अधर्म का संबंध ! के वल एवं के वल सदकर्म व
कु कर्म से है.***
………….और जब आपको, इस सत्य का, सदैव स्मरण रहता. तब आप कभी भी, मेरे या किसी के भी, वस्त्र-पोशाक ! या भोजन-प्रणाली ! या
रहन-सहन ! इत्यादि पर, व्यंग्यात्मक कटाक्ष नहीं करते.”
योसिलिं महाराज क्रोधित हो कर बोले :
“अब मुझे तुम्हारी ! कोई भी बात नहीं सुननी है. मुझसे बचाव का, अब एक ही मार्ग शेष है. तुम अभी के अभी ! अपनी सिद्धि को, मेरे समक्ष सिद्ध करो.
तुम अपने आप को, शिवभक्त कहते फिरते हो. सभी को शिवशक्ति की भक्ति का पाठ पढ़ाते रहते हो. आज मुझे कु छ दिखाओ कि, तुम्हें इस शिवभक्ति से क्या
मिला है ?”
राजा सयोअमप्र ने, प्रार्थना करते हुये कहा :
“हे योगी राज योसिलिं महाराज ! मैं तो एक अदना सा शिवभक्त हूँ. उसी भक्ति के प्रवाह में, अपने आप को छोटा सा योगी भी मान बैठा हूँ. परंतु आप एक
बड़े एवं महान योगी हैं. अतः सर्वाधिक उपयुक्त यह रहेगा कि………….. आप क्या कर सकते हैं ? यह प्रदर्शित करें.”
इतना सुनते ही, योसिलिं महाराज के मुखमण्डल पर, मुस्कान आ गयी. योसिलिं महाराज ने, अपनी हीरे जड़ित तलवार को, म्यान से बाहर निकाला. तथा
राजा सयोअमप्र को पकड़ाते हुये कहा :
“यह तलवार पकड़ो. तथा अपनी संपूर्ण शक्ति से, मेरे सिर पर, प्रहार करो. तुम देखना ! मुझे कु छ नहीं होगा.”
राजा सयोअमप्र ने, उनकी आज्ञा का पालन करते हुये, तलवार को, हवा में उठाया. तथा अपने दोनों हाथों एवं पूरी शक्ति से, योसिलिं महाराज के , सिर के
मध्य भाग में, दे मारा ! परंतु आश्चर्य ! घोर आश्चर्य ! तलवार छटक कर, राजा सयोअमप्र के हाथों से, छू ट गयी. जैसे वह तलवार ! किसी के देह से ना
टकरा कर, किसी मजबूत चट्टान या मोटी धातु से टकरायी हो.
योसिलिं महाराज की देह काया ! बहुत सख्त थी. वह ऐसे योगी थे, जिन्होंने मूलभूत तत्वों पर, महारत हासिल कर ली थी. उनकी ध्यान-साधना का, तप-
बल ऐसा था कि, उनका शरीर ! अत्यंत कठोर व स्थिर हो चुका था. तभी तो 300 वर्ष की, आयु होने के पश्चात् भी, उनका शरीर बिल्कु ल युवक की
भाँति ! स्वस्थ व ताकतवर था.
योसिलिं महाराज ! तलवार के वार से, तनिक भी विचलित हुये बिना ! चट्टान की भाँति ! वहीं खड़े-खड़े हंसते हुये बोले :
“ऐ राजा सयोअमप्र ! तुमने देखा ! एक असली योगी कै सा होता है ? उसके तप-बल की, परिणति कै सी होती है ? अपने आप को, योगी बोल देने से, कोई
सिद्ध योगी नहीं हो जाता.”
राजा सयोअमप्र ने, विनयशीलतापूर्वक कहा :
“जी महाराज !”
योसिलिं महाराज अहंकारपूर्वक स्वर में बोले :
“चूँकि तुमने ! मेरे सिर पर, तलवार से वार किया है. अतः अब मैं भी, तुम्हारे सिर पर, इसी तलवार से, प्रहार करूँ गा. देखूँ ! तुम कै से योगी हो.”
राजा सयोअमप्र ने, उनकी आज्ञा का पालन करते हुये, उनके आगे गर्दन झुका कर, विनम्रतापूर्वक कहा :
“जैसी आज्ञा महाराज !”
योसिलिं महाराज ने, अपनी तलवार उठायी. तथा उससे राजा सयोअमप्र को काट डाला. परंतु यह क्या ? तलवार राजा के शरीर से, बिल्कु ल मध्य भाग से,
इस प्रकार आर-पार हो गयी. जैसे वह हवा में हो. योसिलिं महाराज ने, कई-कई बार ! उस तलवार से, अलग-अलग प्रकार से, प्रहार किया. प्रत्येक बार
तलवार ! राजा सयोअमप्र को छु ये बगैर ! हवा में आर-पार हो गयी.
सहसा ! योसिलिं महाराज को, अपनी भूल का, आभास हुआ. वह तत्क्षण ! राजा सयोअमप्र के चरणों में गिर कर बोले :
“कृ पया मेरा उद्धार करें. मुझे अपना शिष्य बनायें.”
राजा सयोअमप्र ने, उन्हें उठाते हुये, उनसे सहृदयतापूर्वक कहा :
“शिष्य बनाना भिन्न बात है. एवं उद्धार करना भिन्न बात है. उद्धार तो के वल व के वल शिवशक्ति के हाथ में है. अथवा उनकी आज्ञा से, त्रिदेव व देवी-देवता-
गण के हाथ में है. आप अपनी स्वेच्छा से, शिष्य बने हैं. अतः मैं आपको, सर्वप्रथम ! यही शिक्षा दे रहा हूँ कि…………
***गुरु का काज ! के वल सदमार्ग दिखाना है. सदमार्ग पर उँगली पकड़ कर चलाना है. उद्धार करना ! गुरु के वश का नहीं है. शिष्य का उद्धार भी, वही
करेंगे ! जो गुरु का उद्धार करेंगे.***
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नोट :~ आज के वर्तमान परिदृश्य में, बहुत सारी अज्ञानता भरी बातें ! जो बहुत बड़े स्तर पर, स्थापित हो गयी हैं. उनमें से अभी के वल दो बातों का उल्लेख
करूँ गा. यह जानते-बुझते करूँ गा कि, इससे बहुत पाठकों का हृदय ! छलनी-छलनी हो जायेगा. कु छ हो सकता है कि, अलग-अलग बहाने से, गरियाना भी
आरंभ कर दें. परंतु कोई बात नहीं ! मुझे यह पता है कि, जड़ हो चुकी मान्यताओं के टू टने से, पीड़ा तो होगी ही. अतः लिख देता हूँ.
पहली बात :~
सारे तीर्थ धाम आपके चरणो में.
हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में.
हृदय में माँ गौरी लक्ष्मी, कं ठ शारदा माता है.
जो भी मुख से वचन कहें, वो वचन सिद्ध हो जाता है.
हैं गुरु ब्रह्मा, हैं गुरु विष्णु, हैं शंकर भगवानआपके चरणो में.
जनम के दाता मात पिता हैं.
आप करम के दाता हैं.
आप मिलाते हैं ईश्वर से,
आप ही भाग्य विधाता हैं. �दुखिया मन को रोगी तन को, मिलता है आराम आपके चरणो में.
निर्बल को बलवान बना दो,
मूर्ख को गुणवान प्रभु.
देवकमल और वंसी को भी, ज्ञान का दो वरदान गुरु.
हे महा दानी हे महा ज्ञानी,
रहूँ मैं सुबहो-शाम आपके चरणो में.
हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में.
दूसरी बात :~
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय,
बलिहारी गुरु अपने गोविंद दियो बताय.
कबीर जी इस दोहे के माध्यम से, यह कहना चाहते हैं कि………….. गुरु और भगवान दोनों समक्ष खड़े हैं. मैंने गुरु से पूछा था कि, भगवान कौन हैं ?
उनके बताये मुझे यह ज्ञात है कि, यह भगवान हैं. अतः हे गुरुजी ! हम आप के आभारी हैं. हम आप पर न्योछावर हैं कि, आपके बताये मार्ग पर चल कर,
हमें भगवान की प्राप्ति हुयी. और फिर गुरु व शिष्य दोनों भगवान के चरणों लेट जाते हैं.
बाकि मुझे यह नहीं पता कि………….. आप इसका क्या अर्थ निकालते हैं ?
मुझे इतना पता है कि, भगवान से बड़ा ! कोई भी नहीं है. वैसे कबीर जी के दोहे वाले गुरु जी भी, यहीं समझायें हैं.
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राजा सयोअमप्र ने, योसिलिं जी को, अपने गले लगाया. फिर अपने साथ ! उन्हें ले कर, एक एकांत स्थान पर पहुँच कर बोले :
“हे योगी सिलिं ! मुझे आपके आगमन का, महादेव-दूत से, कु छ दिवस पूर्व ही, संके त प्राप्त हो गया था. मुझे स्वयं भी, आपसे भेंट की, अत्यंत प्रतीक्षा थी.
क्योंकि हमारे द्वारा ! हम दोनों के द्वारा ! एक-दूसरे के सहयोगी बनते ही ! हमें सप्तदेव के , दो देवों से, कु छ महत्वपूर्ण दायित्व मिलने वाला है. अगर हमने !
अपने कर्तव्यों को, ठीक से निभा लिया. तो उसके फल स्वरूप ! हमारे सदकर्मों के भंडार में, पर्याप्त पुण्यों का ! संचयन हो जायेगा. जो हम दोनों के ही,
अपने-अपने वर्तमान चरण को, पार कराने में, अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होगा.”
योगी सिलिं बोले :
“हे राजन ! अब आप ! इस जन्म में, मेरे गुरु हैं. मुझसे एक चरण ऊपर भी हैं. मुझे आप मार्गदर्शित करते रहें. आपकी जो भी आज्ञा होगी. आपका शिष्य !
उसका पालन करेगा.”
राजा सयोअमप्र बोले :
“हम दोनों ही, महादेव ! माता ! एवं समस्त देवी ! देवता ! गण ! व दूत के , निर्देशों का पालन करेंगे. अब हमें शीघ्र ही, यहाँ से ! उस स्थान के लिये,
प्रस्थान करना होगा. जहाँ हमें ! प्रभु श्रीराम एवं प्रभु श्री कृ ष्ण से, अगला निर्देश प्राप्त होगा.”
योगी सिलिं ने कहा :
“तो प्रस्थान करते हैं गुरुजी !”
राजा सयोअमप्र ! खड़े होते हुये बोले :
“अवश्य !”
अब वह मूलश्रेणी वाले, प्रथम व द्वितीय चरण के , दोनों योगी ! एक दिशा को प्रस्थान कर गये. लगभग पच्चीस से तीस घंटों की, यानि डेढ़ दिन व एक रात
के , निरंतर ! अनवरत ! संवाद रहित पदयात्रा के पश्चात् ! वह जहाँ पहुँचे. वहाँ घना जंगल था. एक नदी बह रही थी. नदी में पानी का जलस्तर ! कु छ कम
होने के कारण ! नदी के मध्य में, एक बड़ी सी चट्टान ! पानी से बाहर निकल गयी थी.
(नोट :~ अभी वर्तमान में, उस नदी को, बेड़ती नदी के नाम से जाना जाता है. तथा वह स्थान ! वर्तमान के कर्नाटक स्थित सिरसी से, लगभग एक घंटे की
दूरी पर है. तथा वह जहाँ से चले थे. वह स्थान ! कर्नाटक स्थित शिवमोगा के पास है.)
उसी चट्टान पर लगे ! दो ऊँ चे आसनों पर, प्रभु श्रीराम एवं प्रभु श्रीकृ ष्ण विराजमान थे. उनके समक्ष ! उस शिलाखंड के सतह पर, तीन साधारण मनुष्य बैठे
हुये थे. वह दोनों योगी ! वहीं नदी के तट पर ! प्रतीक्षा करने लगे. कु छ ही समय पश्चात् ! वह तीनों मानव ! वहाँ से उठे. और नदी के बहती जलधारा में,
अपना पाँव जमाते हुये. तट की ओर बढ़ने लगे.
उन तीनों के ऐसा करते ही, इधर तट पर खड़े दोनों योगी भी, पानी में उतर कर ! उस शिलाखंड की ओर बढ़ने लगे. मार्ग के मध्य में, उन पाँचों का ! बहुत
ही सीमित ! बिल्कु ल चलते-चलते वाला ! अभिवादन हुआ. जब तक ! वह तीनों तट पर पहुँचे. तब तक ! वह दोनों योगी भी, दोनों प्रभु के चरणों में, लेटे
हुये थे. प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करके , वह दोनों योगी ! प्रभु श्रीराम एवं प्रभु श्रीकृ ष्ण के समक्ष ! नीचे सतह पर बैठ गये.
प्रभु श्री कृ ष्ण भगवान बोले :
“सत्य ! सनातन ! शाश्वत ! जीवन पद्धति पर, यानि धर्म पर ! बहुत बड़ा संकट आने वाला है. एक प्रथम चरण की आत्मा ! पूर्णतः अधर्मी हो कर ! पाप
करने हेतु आतुर है. यह उस आत्मा का, मूलश्रेणी में प्रवेश के पश्चात् ! अभी प्रथम जन्म ही है. जैसे ही उसको ! यह ज्ञात हुआ है कि……… अब वह
मूलश्रेणी के , प्रथम चरण में, आ चुका है. अब वह कितना भी कु कर्म करे. उसे प्रत्येक जन्म में, मिलेगा तो मनुष्य देह ही. तभी से वह ! अधर्म-पथ का,
निरंतर पथिक हो गया है.”
प्रभु श्री कृ ष्ण के चुप होते ही, प्रभु श्री राम भगवान बोले :
“………….और महादेव के बनाये ! विधि-विधान के अनुरूप ! किसी भी आत्मा के , स्वतंत्रता के अधिकारों का ! हनन नहीं किया जा सकता है. तथा
अलौकिक मार्ग से, उसे वर्तमान जन्म के कु कर्मों हेतु ! उसी वर्तमान जन्म में ही, दंडित भी नहीं किया जा सकता है. उसे उसके कु कर्मों का, समुचित दंड !
उस आत्मा के , भविष्य वाले जन्मों में तो, मिलेगा ही. परंतु मेरा स्वयं का ! एवं श्रीकृ ष्ण देव का भी, यह कहना है कि………… तुम दोनों गुरु ! शिष्य !
लौकिक मार्ग से, उसका वध किये बिना ! उसके द्वारा फै लाये जा रहे, अधर्म को रोको.”
आगे की बात ! प्रभु श्री कृ ष्ण भगवान ने समझाया :
“…………..उस अधर्म को रोकना ! इसलिये भी आवश्यक है. क्योंकि यह पृथ्वी ग्रह ! लगभग २३०० वर्ष पूर्व ही, प्रलय हेतु ! आवश्यक अर्हतता !
प्राप्त कर चुकी है. और अब ! इसको संहार हेतु ! एक प्रकार के नौ ! एवं एक प्रकार के , छः दूतों के , उत्तीर्ण होने की प्रतीक्षा है. नौ वाली सूची में, अभी तक
सात हो चुके हैं. तथा छः वाली सूची में, अभी तक पाँच हो चुके हैं. इस प्रकार से देखें तो…………..”
“……..प्रलय के छोर पर खड़े ! इस पृथ्वी ग्रह हेतु ! और अधर्मिता ! अत्यंत संकटकारी सिद्ध होगी. क्योंकि वह पापी ! जो अधर्म करने जा रहा है.
उसके मूल में ही, मानवों को धर्म ! यानि सदकर्म से, विमुख करके , अकर्मण्यता के पथ पर लाना है. सभी देवों को, यह भलीभाँति ज्ञात है कि, वह मानवों
हेतु ! ऐसी आकर्षक ! एवं लोभकारी नीति पर, काम करने जा रहा है कि………. उसका समूह-दल ! बहुत शीघ्र ही, बहुत बड़ा ! एवं प्रभावकारी होता
चला जायेगा.”
पुनः प्रभु श्री कृ ष्ण के , चुप होते ही, प्रभु श्री राम भगवान बोले :
“अन्य समस्त देवों की तुलना में, हम इसलिये अधिक चिंतित हैं…………… क्योंकि उसकी योजना में, वह स्वयं से, अपने-आप को, मेरा या श्रीकृ ष्ण
का, अवतार घोषित करने जा रहा है. तथा हम दोनों में से, किसी एक को, सर्वेसर्वा सिद्ध करने का, जघन्य आपराधिक कृ त्य ! करने जा रहा है. जिसके
दंडस्वरूप ! उसे तो हजारों जन्मों तक ! इन कु कर्मों को काटने हेतु ! निरंतर दंड भोगना पड़ेगा. परंतु उन आलसी ! अकर्मण्य ! अल्पनिर्दोषी ! सामान्य-
साधारण ! मानवों का, क्या होगा ? जो उसके बताये ! आलस्य के मार्ग को, पकड़ कर, अपनी आत्मा के , मोक्ष-यात्रा की अवधि को, अनावश्यक रूप से,
लंबित करेंगे.”
राजा सयोअमप्र ने, हाथ जोड़ कर पूछा :
“हे प्रभु ! मेरी अज्ञानता हेतु ! मुझे क्षमा करने की, कृ पा करते हुये, कृ पया हमें ! मूल पदानुक्रम से, अवगत करा दें.”
उत्तर में, प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ने, विस्तारपूर्वक समझा कर बताया :
“यह संपूर्ण सृष्टि ! एक विधि-विधान के अनुरूप ! सदैव से अनवरत ! चलती आ रही है. इसके सृष्टि के रचयिता ! तथा समस्त देवी ! देवता ! गण ! दूत
! आत्मा ! इन सभी के भी रचयिता ! देवों के देव महादेव हैं. एवं इस समस्त सृष्टि ! तथा समस्त देवी ! देवता ! गण ! दूत ! आत्मा ! में, ऊर्जा का संचार
करने वालीं ! जगत जननी माता शक्ति हैं. उनका कोई पदानुक्रम नहीं है. क्योंकि वह सभी पदानुक्रम से ऊपर हैं. वह सर्वेसर्वा हैं.”
“उनके पश्चात् ! एक दो तीन के पदानुक्रम पर ! इस संपूर्ण सृष्टि के लिये, संयुक्त रूप से, प्रमुख संचालक ! त्रिदेव यानि ब्रह्मा विष्णु रुद्र (महेश) आते हैं !
जिनका कार्य जन्म देना ! पालना ! एवं अंत करना है.”
“उसके पश्चात् ! चार एवं पाँच के पदानुक्रम पर ! इस संपूर्ण सृष्टि के लिये, संयुक्त रूप से, पंचदेव यानि कार्तिके य व गणेश आते हैं. उन दोनों देवों का
कार्य……….. देवी ! देवता ! गण ! दूत ! के संचालन का है. यानि इस सृष्टि का संचालन करने वाले, समस्त देवी-देवता-गण-दूत ! को, संचालित करने
का कार्यभार ! उनके कं धों पर है.”
“जिसमें कार्तिके य जी का दायित्व ! मुख्य देवी-देवताओं ! तथा आत्माओं ! एवं दूतों ! को लेकर है. तथा गणेश जी का दायित्व ! सभी गणों ! तथा बाकी
के अन्य सभी देवी-देवताओं को, ले कर है. विशेष परिस्थितियों में, कार्तिके य जी के पास ! सभी देवताओं का नेतृत्व करने को लेकर, अतिरिक्त कार्यभार है.
तथा विशेष कार्यभार के रूप में, गणेश जी के पास ! समस्त सृष्टि के , किसी भी शुभ ! मंगल ! धर्म कार्य को, शुभारंभ करने हेतु ! अनुमति प्रदान करने का
है. अगर वह कार्य ! शुभ-मंगल-धर्म काज हो तब.”
“उसके पश्चात् ! छः एवं सात के पदानुक्रम पर ! इस संपूर्ण सृष्टि के लिये, संयुक्त रूप से, सप्तदेव ! यानि प्रभु श्रीराम ! एवं मैं आता हूँ. प्रभु श्रीराम का
कार्य…………. समस्त ग्रहों ! उपग्रहों ! इत्यादि पर ! मानव देह रूपी आत्माओं के लिये, मनुष्य रूप में, अवतार ले कर……… चारित्रिकगुणता !
आदर्शवादिता ! एवं राज्यपद्धति का मानदंड ! यानि मार्गदर्शिका ! तैयार करना होता है. वहीं मेरा कार्य…………… समस्त ग्रहों ! उपग्रहों ! इत्यादि पर !
मानव देह रूपी आत्माओं के लिये, मनुष्य रूप में, अवतार ले कर…….. योजनानीति ! रणनीति ! एवं धर्मस्थापनापद्धति ! हेतु मानदंड ! यानि मार्गदर्शिका
! तैयार करना होता है.”
अब प्रभु श्रीराम बोले :
“…………..और वह जो, प्रथम चरण वाली आत्मा है. जो अपने इस वर्तमान देह में, पूर्णतः अधर्मी हो कर ! पाप करने हेतु ! आतुर है. जिसके बारे
में, हमने अभी तुम दोनों को, अवगत कराया है. वह दुष्ट मानव ! इस पदानुक्रम में, मुझे या श्रीकृ ष्ण में से, किसी भी एक को, सबसे ऊपर ! यानि सर्वेसर्वा
के रूप में, महादेव के स्थान पर, तथा माता पार्वती के स्थान पर, देवी सीता या देवी रुक्मणी को, बिठाना चाहता है.”
“हमने जब इस संदर्भ में, महादेव से बात की. तब उन्होंने मुस्कु राते हुये, विधि-विधान के ऊपर ! सब कु छ छोड़ देने को कहा. परंतु हमें ! इससे घोर
आपत्ति है कि………… कोई हमारे आराध्य के स्थान पर ! हमें सुशोभित करे. कोई हमारी पूजा-ध्यान-आराधना करे. इससे हमें ! कोई आपत्ति नहीं है.
परंतु पदानुक्रम तो ज्ञात रहे. यहाँ तो हमारे ही, आराध्य को ! छोटा दिखाने के , प्रयत्नों की नींव डाली जा रही है.”
“………….और विधि-विधान के अनुरूप ! इसके लिये अलौकिक रूप से, अब इस पृथ्वी ग्रह पर, कु छ भी करने का, कोई प्रावधान नहीं है. अतः
मूलश्रेणी के आत्माओं को, हम यह दायित्व सौंप रहे हैं कि………… वह अपने लौकिक माध्यम से, इस अधर्म को रोकने हेतु ! जो भी हो सकता हो !
अवश्य करें.”
राजा सयोअमप्र ने पूछा :
“हे प्रभु ! अभी आपने बताया कि…………. वह दुष्ट मानव ! आप दोनों प्रभु में से, किसी एक को, सबसे ऊपर ! यानि सर्वेसर्वा के रूप में, स्थापित
करके , अपना कु त्सित विचार ! सामान्य साधारण मानवों पर ! थोपना चाहता है. तो क्या अभी तक ! उसने यह तय नहीं किया है कि…………. आपमें से
किसको ! स्थापित करना है ?”
उत्तर प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ने दिया :
“इस अधर्मकारी योजना को, मूर्त रूप देने हेतु ! अभी कई दिवस से, उनकी निरंतर बैठकें चल रही हैं. अभी कल रात्रि तक तो, किसी भी एक नाम पर,
अंतिम निर्णय नहीं हुआ है.”
राजा सयोअमप्र ने पूछा :
“हे प्रभु ! बैठकें चल रही है. इसका अर्थ ! क्या एक से अधिक पापी-मनुष्य हैं ?”
प्रभु श्रीकृ ष्ण भगवान ने, विस्तारपूर्वक समझाया :
“उस योजना में तो, गुप्त रूप से, बहुत मनुष्य सम्मिलित हैं. यह संपूर्ण योजना ! इस पृथ्वी ग्रह पर स्थित ! ज्ञान का दिशा दिखाने वाले, दिव्य-भूखंड !
यानि धर्म मार्गदर्शिका ! दिव्य-भूमि (भारत) से, धर्म का समापन करके , अधर्म की स्थापना करने का, वृहद् एवं विस्तृत प्रयास है. अतः इस बात से ! कोई
विशेष अंतर नहीं पड़ता कि………. किसका नाम तय होता है. क्योंकि जहाँ एक बार ! यह क्रम आरंभ हुआ ! वैसे ही एक-एक करके , नित-नवीन !
अनेकों सर्वेसर्वा बनाये जायेंगे.”
“आरंभ में पादुनक्रम वाले, देवी-देवताओं को, सर्वेसर्वा बनाया जायेगा. कालांतर में किसी भी नाम को, बना दिया जायेगा. ऐसे कु त्सित प्रयत्न ! इस धर्म
मार्गदर्शिका भूमि से अलग ! सुदूर भूमि पर, पूर्व में होते रहे हैं. परंतु इस भूमि पर ! जब धर्म बचा रहता है. तो बाकी की भूमि पर ! पुनः सब सही हो जाता
है. परंतु इस बार यह प्रयास ! सत्य-सनातन-शाश्वत पद्धति के , अनुगामीयों के मध्य से, किया जा रहा है.”
“अतः इसके परिणाम ! आरंभ में तो कम समझ आयेंगे. परंतु यह विषबेल की भाँति ! धर्म को चहुँओर से लपेट लेंगे. क्योंकि इस नव-पंथ का आरंभ !
किसी सुदूर भूमि से, नहीं हो रहा है. जिसे आसानी से, सामान्य साधारण जन ! चिन्हित कर सके . बल्कि इसका आरंभ ! पृथ्वी ग्रह के , समस्त
धरतीवासियों को, ज्ञान का दिशा दिखाने वाले, इसी दिव्य-भूखंड ! यानि भारत भूमि से, हो रहा है. काशी से हो रहा है. अतः उस अधर्म को रोकने हेतु ! मैं
तुम दोनों को, तत्क्षण काशी प्रस्थान करने की, आज्ञा देता हूँ. तुम्हें भविष्य में, महादेव-दूतों से, एवं हमसे संके त प्राप्त होते रहेंगे.”
जब वह दोनों योगी ! उसी समय काशी प्रस्थान हेतु ! दोनों प्रभु से, आज्ञा एवं आशीर्वाद ले कर, नदी की बहती जलधारा में, उतर गये. तब वातावरण में !
प्रभु श्रीराम की दिव्य वाणी गूँजी :
“एक बात सदैव ध्यान रखना…………. यह नव-पंथ ! अत्यंत विषैले सिद्ध होंगे. क्योंकि एक कु त्सित प्रयत्न के , सफल होते ही, इन नव-पंथों की,
श्रृंखला बन जायेगी. सुदूर स्थानों पर, आरंभ किये गये, त्रुटिपूर्ण पंथों की तुलना में, यह नव-पंथ ! अत्यधिक घातक सिद्ध होंगे. क्योंकि यह ! सत्य-
सनातन-शाश्वत धर्म में, घुलमिल कर रहेंगे. इनकी जड़ों ने, अगर एक बार पैठ बना लिया. तो उन्हें निकालना ! सरल नहीं होगा.”
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………..अब यहाँ से, लगभग साढ़े सात सौ वर्ष तक के , घटनाक्रमों को, अभी लिखने की अनुमति ! नहीं होने के कारण ! एक लंबी छलांग लगा कर,
सीधे पहुँचते हैं…………… इसी पृथ्वी ग्रह के , सन् 1945 में.
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नोट :~ विवाद से बचने हेतु ! इस वाले सत्य घटना क्रम के भी, कु छ-कु छ नाम ! स्थान ! व तिथि ! इत्यादि में, थोड़े से बदलाव किये गये हैं.
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घटनाक्रम आरंभ !

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#ऑटोबायोग्राफी_ऑफ_स्वामी_सत्यानंद_1st_एडिशन
भाग
यह बात है सन् 1945 के वसंत की. तिथि है ! फाल्गुन मास के , कृ ष्ण पक्ष की, त्रयोदशी तिथि. पहर है अर्धरात्रि का. स्थान है……………… मनीला से
कु छ दूर स्थित एक टापू ! टापू का नाम है…… अंबिल आइलैंड ! क्षेत्र अथवा देश है…… फिलीपींस.
दिव्य ! अलौकिक ! आभामण्डलयुक्त ! सिंह पर सवार ! माता पार्वती का स्वर ! उस निर्जन टापू पर गूँजा :
“राम ! मुझे अपने पुत्र सुभाष पर, बहुत विश्वास है. तुम्हारे इस ग्रह से, रुष्ट होने के कारणों को, कदाचित् यह दूर कर पाये.”
मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम बोले :
“हे माँ ! मुझे भी विलक्षण क्षमताओं के धनी ! इस युवक सुभाष पर, पूर्ण विश्वास है. परंतु इस ग्रह के , अधिकतर वासियों पर, तनिक भी विश्वास नहीं है.
अतः हे माता ! आप व्यर्थ प्रयत्न कर रही हैं. महादेव का यह कहना………. सर्वथा उपयुक्त है कि, ऐसे ग्रह के , समस्त मानवों का, संहार होना ही ! वहाँ
पुनः धर्म स्थापना की, सबसे सरल विधि है.”
“………….और वैसे भी माँ ! प्रलय के माध्यम से, अपने भूमि पर से, समस्त मनुष्यों का, एक साथ संहार कराने हेतु ! यह ग्रह ! आवश्यक अहर्तता
! पहले ही प्राप्त कर चुकी है. तथा आवश्यक अहर्तता ! प्राप्त करने के पश्चात् ! अंतिम के दो नियमों का, पालन करते हुये, प्रथम नियम के , कु ल सभी छः
अवसर ! पूर्व में ही यह ग्रह ! प्राप्त कर चुकी है. एवं दूसरे नियम का भी, पालन करते हुये, कु ल नौ अस्वीकृ तियों में से, आठ अस्वीकृ तियाँ भी, इसने पूर्व में
ही, प्राप्त कर ली हैं.”
“इस युवक सुभाष के , अपने छठे चरण में, अनुत्तीर्ण होने वाली, दुःखद घटना ! अगर नहीं घटित हुयी होती. तो जो विध्वंस ! अब यहाँ ! इस ग्रह पर,
थमने जा रहा है. यहीं विध्वंस ! आगे प्रलय का रूप ले कर, इस ग्रह के समस्त मानवों का, अंत कर देता. श्री रुद्रदेव ! भूदेवी ! तथा महादेव-गण वीरभद्र !
की समस्त तैयारियों पर, इस युवक सुभाष के , अनुत्तीर्ण होने वाली दुःखद घटना ने, व्यवधान उत्पन्न कर दिया है.”
माता पार्वती बोलीं :
“राम ! तुम जिसे दुःखद घटना बता रहे हो. इसे मैं सुखद घटना मानती हूँ. क्योंकि इसके अनुत्तीर्ण होने से ही तो, यह विध्वंस टल पाया है. इस मूर्ख को,
२२ वर्ष पूर्व ही, मैंने संके त किया था कि………… यह अपने आठवें चरण के , धर्मकाज हेतु ! पृथ्वी ग्रह का चयन करे. परन्तु इस मूर्ख ने, शिवफिजनागड
ग्रह का, चुनाव कर लिया था. वह तो अच्छा हुआ ! जो यह अनुत्तीर्ण हो गया. अन्यथा यहाँ प्रलय आ गया होता.”
उस टापू के , रेतीले तट पर, उस समय उपस्थित हजारों-लाखों कछु ओं के मध्य ! सबसे विशाल कछु आ ! यानि महादेव-गण कच्छप महाराज पर सवार !
भगवान विष्णु देव बोले :
“हे करुणामयी माँ ! परंतु यह आवश्यक तो नहीं है कि…………… सुभाष ! अपने अगले जन्म में भी, अपने छठे चरण में, अनुत्तीर्ण ही रह जाये. इस
प्रकार से यह विध्वंस ! कु छ वर्षों के लिये ही तो, स्थगित हुआ है.”
माता पार्वती बोलीं :
“हे विष्णु देव ! इस बार बाईस वर्ष पूर्व ! मैंने जो इसे, के वल संके त-मात्र किया था कि………… यह अपने आठवें चरण के , धर्मकाज हेतु ! पृथ्वी ग्रह का
चुनाव करे. वैसा कोई संके त ! मैं इसके अगले जन्म में, यानि अभी से लगभग ५३ वर्ष पश्चात् ! नहीं करूँ गी. वैसे किसी संके त के स्थान पर, मैं इससे !
पृथ्वी ग्रह का चुनाव ! हर परिस्थिति में, करवा ही दूँगी.”
महादेव-दूत माता-सेविका ! देवी एलोइसिया जी, तथा महादेव-दूत शकोमफु महाराज ! के मध्य में खड़ा ! वह मूल श्रेणी के छठे चरण वाला, अड़तालीस
वर्षीय सुभाष नामक युवक बोला :
“हे माँ ! अगर आपकी यहीं इच्छा थी. तो आपने मुझ मूर्ख को, संके त क्यों भेजा ! मुझे सीधे आदेश करती माँ !”
माता पार्वती बोलीं :
“तुम्हारे अगले जन्म में यहीं करूँ गी.”
सुभाष बोला :
“मुझे अभी इस देह को, कब तक ढोना है माँ ?”
माता पार्वती ! देवी एलोइसिया को, संबोधित करके बोलीं :
“एलोइसिया ! इसको इसके प्रश्नों का, उत्तर दे दो.”
महादेव-दूत माता-सेविका ! देवी एलोइसिया जी, सुभाष से बोलीं :
“तुम्हारे कर्मों में, अगर कोई विशेष परिवर्तन ! नहीं आया. तो जैसा कि, मैं देख पा रही हूँ. आज ही की तिथि को, आज से ४१ वर्षों पश्चात् ! तुम्हारा
अगला जन्म ! यानि मूल श्रेणी का, नौवाँ जन्म होगा.”
छठे चरण वाला, सुभाष नामक मानव बोला :
“यानि अभी इस देह को, और भी ४१ वर्ष ढोना है.”
महादेव-दूत माता-सेविका ! देवी एलोइसिया जी ने, सुभाष की बात को, काटते हुये कहा :
“नहीं ! इस देह को तो, लगभग साढ़े चालीस वर्ष ही ढोओगे.”
सुभाष बोला :
“यानि कि, लगभग छः माह ! रिक्तता योनि में भी बितानी है.”
महादेव-दूत माता-सेविका ! देवी एलोइसिया जी ने, उसको समझाया :
“सुभाष ! आत्मा जब पुराने देह को त्यागती है. तब वह तत्काल जन्म नहीं लेती है. इस पृथ्वी ग्रह के , गणितीय गणनानुसार ! वह लगभग तीन मास की,
गर्भधारण की हुयी स्त्री के , गर्भ वाले शिशु में, प्रवेश करती है. जिस भी गर्भ का, उसके लिये निर्धारण हुआ रहता है. उस गर्भ के , शिशु में प्रवेश करती है. इस
प्रकार से, मनुष्य देह धारण करने वाली आत्मा ! लगभग छः मास ! गर्भ में भी रहती है.”
सुभाष ने जिज्ञासापूर्वक पूछा :
“क्या मुझे ! यह जानकारी मिल सकती है. मैं अपना अगला जन्म कहाँ लूँगा ?”
उत्तर देवी एलोइसिया जी ने नहीं दिया. उनके स्थान पर, माता पार्वती ने, महादेव-दूत शकोमफु महाराज को, आदेश देकर दिया :
“शकोमफु ! विधि-विधान के अनुरूप ! जितना आगे तक का, बताना संभव हो. इस सुभाष को, उतना आगे तक का बता दो.”
महादेव-दूत शकोमफु महाराज बोले :
“क्षमा करें माँ ! मुझे एक चौथे चरण वाले, मनुष्य के परीक्षा में, उसकी सहायता करने जाना है. मैं के वल अलौकिक माध्यम से, सुभाष को यहाँ पहुँचाने का,
दायित्व निर्वहन करने आया था माँ !”
माता पार्वती बोलीं :
“ठीक है शकोमफु ! तुम जाओ.”
फिर तत्काल ही, माता ने यहीं आदेश ! देवी एलोइसिया को दे दिया. माता की आज्ञा पा कर ! महादेव-दूत माता-सेविका ! देवी एलोइसिया जी ने, बताना
आरंभ किया :
“तुम्हारे कर्मों में, अगर कोई विशेष परिवर्तन ! नहीं आया. तो जैसा कि, मैं देख पा रही हूँ. आज ही की तिथि को, आज से ४१ वर्षों पश्चात् ! तुम्हारा
अगला जन्म ! यानि मूल श्रेणी का, नौवाँ जन्म होगा.”
“उस जन्म के , तुम्हारे आरंभिक आठ वर्ष ! बहुत कष्टमय बीतेंगे. क्योंकि उन्हीं सीमित आठ वर्षों में ही, तुमको अपने ! इस सुभाष वाले वर्तमान जन्म के ,
सभी कु कर्मों का, दंड भोगना होगा. उन कष्टकारी आठ वर्षों के उपरान्त ! …………और भी लगभग चार वर्षों के पश्चात् ! यानि जन्म के , लगभग बारह
वर्षों के बाद ! तुम अपने आठवें चरण वाले, धर्मकाज को करने हेतु ! विधि-विधान के अनुरूप ! ग्रह का चुनाव करने के लिये, धौलागिरी लाये जाओगे. माता
के कथानुसार ! सम्भवतः तभी ! माता तुमसे ! पृथ्वी ग्रह का, चयन करायेंगी.”
“…………..तथा आगे भी, तुम्हारे सदकर्मों की गति ! अगर ठीक रही. तब आज ही की तिथि को, जैसे आज से ४९ वर्ष पश्चात् ! तुम्हारे छठे चरण
की, १५०० परीक्षाओं का, आरंभ होगा. वैसे ही, आज ही की तिथि को, आज से ७६ वर्ष पश्चात् ! तुम अपने मूल श्रेणी का, छठा चरण पार कर जाओगे.
परंतु यह तभी होगा. जब तुम ! अपने छठे चरण को, पार करने हेतु ! न्यूनतम अनिवार्य ११११ परीक्षायें ! उत्तीर्ण कर जाओ.”
“परंतु शुभ सूचना यह है कि…………….. तुम उस जन्म में, अपने छठे चरण को, अगर पार कर गये. तब तुम्हारे सातवें चरण की प्रतीक्षा अवधि ! अत्यंत
सीमित रहेगी. के वल लगभग सवा वर्षों की ही रहेगी. उन सवा वर्षों में, तुम उस जन्म के , उस समय तक के , पैंतीस वर्षों में, किये कु कर्मों का दंड भोगोगे.”
“फिर उन लगभग सवा वर्षों के पश्चात् ! तुम्हें, तुम्हारे आठवें चरण के , दायित्व वाले धर्म-काज को, शुभारंभ करने का, महादेव से आदेश प्राप्त होगा.
धर्मकाज आरंभ करने के , लगभग डेढ़ वर्षों के उपरांत ! तुम अपने सहयोगियों, अनुयायियों एवं शिवशक्तियन के साथ ! प्रथम भेंट-वार्ता बैठक करोगे. जिसमें
उपस्थित शिवशक्तियन की संख्या…………. अधिकतम आठ ! तथा न्यूनतम तीन रहेगी.” (वैसे कु ल संख्या पाँच रही थी.)
…………….महादेव-दूत माता-सेविका ! देवी एलोइसिया जी ने, सन् 1945 की महाशिवरात्रि को, आगे का जैसा बताया था. उसका ब्योरा :
“उसके कु छ ही दिवस पश्चात् ! यानि आठवें चरण का, धर्मकाज आरंभ करने के , लगभग पौने दो वर्षों के पश्चात् ! तुम उस प्रकल्प के प्रति गंभीर !
पूर्वश्रेणी वाले मानवों के साथ ! द्वितीय व तृतीय बैठक करोगे.”
“उस द्वितीय भेंट-वार्ता बैठक की तिथि ! प्रथम-बैठक के , कु छ ही दिवस पश्चात् की होगी. यानि तृतीय भेंट-वार्ता बैठक से, एक मास पूर्व की, तिथि होगी.
उस बैठक में, सम्मिलित होने वाले, सहयोगियों, अनुयायियों एवं शिवशक्तियन की, अधिकतम संख्या चौबीस ! तथा न्यूनतम संख्या नौ रहेगी.” (वैसे कु ल
संख्या अठारह रही थी.)
……………..एवं उसके बाद ! तृतीय बैठक की तिथि ! आज ही की तिथि के , आज से 79 वर्ष पश्चात् की होगी. (यानि 08 मार्च 2024 का
दिनांक होगा.) उस बैठक में, सम्मिलित होने वाले, सहयोगियों, अनुयायियों एवं शिवशक्तियन व महादेव-भक्तों की, अधिकतम संख्या निन्यानवे ! तथा
न्यूनतम संख्या तिरसठ रहेगी.” (वैसे कु ल संख्या …………. रही थी.)
(नोट :~ अभी वर्तमान में, यानि इस घटनाक्रम को लिखने के दिनांक ! आज २५ जनवरी २०२४ के , एक दिवस पूर्व ही, उस प्रथम बैठक ! यानि दो
दिवसीय बैठक का, समापन हुआ है. उपरोक्त लिखित ! अभी तक की सभी बातें ! अक्षरशः सत्य हुयी हैं.)
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………..अब यहाँ से आगे के , लगभग पौने पाँच वर्ष तक के , घटनाक्रमों को, अभी लिखने की अनुमति ! नहीं होने के कारण ! एक और छलांग लगा
कर, सीधे पहुँचते हैं…………… इसी पृथ्वी ग्रह के , सन् 1949 के अंतिम महीनों में.
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नोट :~ विवाद से बचने हेतु ! इस वाले सत्य घटना क्रम के भी, कु छ-कु छ नाम ! स्थान ! व तिथि ! इत्यादि में, थोड़े से बदलाव किये गये हैं.
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घटनाक्रम आरंभ !
22 दिसंबर 1949 की, कु हासे वाली रात. अर्धरात्रि से थोड़ा पहले समय ! स्थान…………. पृथ्वी ग्रह स्थित भारतवर्ष के , अवध क्षेत्र की अयोध्या
नगरी. एक बड़े से बंगलेनुमा कोठी के बाहर, मोटी लकड़ी की, अलाव जल रही थी. उसको घेरा बनाये छः लोग ! अपने कं धे पर से, चादर ओढ़े बैठे हुये थे.
परंतु वहाँ कु र्सियों की संख्या सात थी. एक कु र्सी खाली थी.
वहाँ बैठे सभी छः के मध्य ! एक अजीब सी चुप्पी पसरी हुयी थी. अगर वहाँ अलाव नहीं जल रहा होता तो, यह समझ पाना ! असंभव जैसा ही था कि, वहाँ
कोई बैठा भी है. तभी बहुत हल्की सी आहट हुयी. बंगले में से, लगभग छः फिट का, एक व्यक्ति निकल कर, उन सभी की ओर, आ रहा था. उसने बड़ी सी
चादर को, इस प्रकार से, ओढ़ रखा था कि…………… उसकी आँखों पर, धारण किये हुये चश्मे के अलावा, उसके चेहरे का, कोई भी भाग ! नहीं दिख
रहा था.
उसके पहुँचने से पहले ही, सभी छः लोग, अपनी-अपनी कु र्सी से, खड़े हो चुके थे. वह निःशब्द ! खाली कु र्सी पर बैठ गया. अब वहाँ कु ल सात मनुष्य हो
चुके थे. उसके बैठने के साथ ही, बाकी के छः लोग ! संभवतः उसका चरणस्पर्श करने हेतु ! आगे बढ़ ही रहे थे कि…………… वह छः फिटा मानव !
अत्यंत गंभीर स्वर में बोला :
“समय की अल्पता को देखते हुये, कृ पया आप सब बैठ जायें. सभी को मेरा आशीर्वाद है.”
जब सभी ! पुनः अपनी-अपनी कु र्सियों पर, विराजमान हो गये. तब उस छः फिटे मनुष्य ने कहा :
“इस धरती पर, अरबों लोग हैं. परंतु आप सभी, वह सौभाग्यशाली हैं……………. जो प्रभु को, साक्षात् अपनी आँखों से, प्रकट होते हुये देखेंगे.”
सभी छः एकमेव स्वर में बोले :
“जी भगवान जी ! जय श्री राम !!”
भगवान जी नामक वह व्यक्ति बोले :
“आज वह शुभ तिथि आ चुकी है. जिसके बारे में, लगभग साढ़े चार वर्ष पूर्व ही, साक्षात् माता पार्वती एवं महादेव की आज्ञा से, भगवान विष्णु की सहमति के
पश्चात् ! उनके स्वरूप ! मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम ने, मुझे आज की तिथि बताते हुये, कहा था कि…………… सुभाष ! तुम सांसारिक तैयारियाँ पूर्ण
रखना. मैं पुनः प्रकट होऊँ गा. आज साक्षात् प्रभु श्रीराम की बतायी, वह शुभ रात्रि आ गयी है.”
थोड़ा रुक कर, उस व्यक्ति ने आगे कहा :
“मुझे तुम सभी के , दृढ़ इच्छाशक्ति पर, तनिक भी संदेह नहीं है. परंतु मैं तुम सभी को, सोचने-विचारने का, एक अंतिम अवसर ! प्रदान करता हूँ. अभी भी
कोई ! अपना कदम पीछे खींचना चाहे, तो खींच सकता है. क्योंकि अब ! यहाँ से यह मार्ग ! वन वे स्ट्रीट हो जायेगा.”
एक 42 वर्षीय व्यक्ति ने कहा :
“हममें से वैसा पापी, कोई भी नहीं है भगवान जी !”
भगवान जी नामक व्यक्ति बोले :
“करण ! तुम्हारी एवं दत्त की, क्लास वन वाली सरकारी नौकरी भी, छीन सकती है.”
40 वर्षीय दत्त नामक व्यक्ति बोले :
“राम-काज हेतु ! ऐसी-ऐसी लाखों नौकरियाँ ! प्रभु के श्री चरणों में न्योछावर है, भगवान जी !”
भगवान जी नामक व्यक्ति बोले :
“बहुत बढ़िया ! एक बार सभी को, उसके दायित्व का, स्मरण करा देता हूँ. क्योंकि उसके पश्चात् ! मिशन के दरम्यान ! हममें से कोई भी, आपस में
वार्तालाप नहीं करेगा. सर्वप्रथम हम सभी यहाँ से, एक साथ चलेंगे. अपनी इन सौभाग्यशाली आँखों से, प्रभु श्रीराम को, प्रकट होता देखेंगे. उसके पश्चात् !
……………”
भगवान जी नामक व्यक्ति ने, अपना गला साफ किया. एवं मद्धिम स्वर में, एक-एक व्यक्ति को, संबोधित करते हुये, योजना संबंधी दायित्वों को, संक्षेप में
बताना आरंभ किये :
“……………प्रेम ! (20 वर्षीय नौजवान) हम सभी तो, प्रभु के दिव्य दर्शन करके , तत्क्षण ! वापिस अपने-अपने मिशन पर लग जायेंगे. परंतु तुम
वहीं रहोगे. किसी भी गड़बड़ी का, संदेह होते ही, दौड़ कर वहाँ जाओगे. *जहाँ हमारी बैकअप टीम ! इस मिशन हेतु ! स्टैंड बाय पर खड़ी है.* तुम उनको
सूचित करोगे. उसके पश्चात् ! पुर्वनियोजित योजना अनुरूप एक्शन लोगे.”
“…………..अभय ! (29 वर्षीय अत्यंत जोशीला युवक) तुम एवं तुम्हारे सभी दरभंगिया बंधु ! अपनी योजना-अनुसार ! पूरे फै जाबाद (अयोध्या जी)
में, *भये प्रगट कृ पाला दीनदयाला* मिशन का, नेतृत्व करोगे.”
“…………अशोक ! (23 वर्षीय नौजवान) तथा कल्याण ! (17 वर्षीय किशोर) तुम दोनों ! अपने-अपने निर्धारित दिशा के गाँवों में, साइकिल दौड़ा
दोगे. ध्यान रहे ! तुम्हारा काज ! किसी को भी विस्तार से, बताने के बजाये, संक्षेप में बताते हुये, अधिक से अधिक क्षेत्र कवर करना है.”
“………….करण तथा दत्त ! तुम दोनों को, अपने स्वविवेक से, कै से-कै से इस पूरे मामले को, हैंडल करना है. तुम दोनों भलीभाँति जानते हो.”
“………….एवं मैं ! तत्काल दिल्ली प्रस्थान कर जाऊँ गा. वहाँ पटेल जी के साथ बैठ कर, संपूर्ण वस्तुस्थिति पर, दृष्टि बनाये रखूँगा.”
उसके बाद भगवान जी नामक व्यक्ति ने पूछा :
“क्या सभी तैयार हैं ?”
सभी एक साथ बोले :
“जी भगवान जी !”
भगवान जी नामक व्यक्ति खड़े होते हुये बोले :
“अब मैं अंतिम वाक्य बोलूँगा. उसके बाद ! आप लोग भी, एक अंतिम वाक्य बोलेंगे. उसके पश्चात् ! हममें कोई वार्ता नहीं होगी. सभी यंत्रवत् ! अपना-
अपना सदकर्म करेंगे ! रामकाज में जुट जायेंगे !”
फिर भगवान जी नामक वह व्यक्ति ! कोठी के मुख्य द्वार की ओर, तेज कदमों से, लंबे-लंबे डग भर कर, बढ़ते हुये बोले :
“पुनः प्रगट होने वाले हैं रामलाला ! कृ पाला दीनदयाला ! जय श्री राम !”
उनका अनुसरण करके , उनके गति को पकड़ने हेतु ! लगभग दौड़ते हुये, सभी छः सौभाग्यशाली मनुष्य ! एकमेव स्वर में बोले :
“जय जय श्री राम !”
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………..एक बार पुनः ! यहाँ से आगे के , लगभग छत्तीस वर्ष तक के , घटनाक्रमों को, अभी लिखने की अनुमति ! नहीं होने के कारण ! एक और छलांग
लगाते हुये, सीधे पहुँचते हैं…………… सन् 1985 के , सितंबर माह में.
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मूल श्रेणी के , नौवें जन्म !
यानि वर्तमान जन्म का, घटनाक्रम आरंभ !
यह कहानी है………….. निराशा ! व अंधकार के रसातल से ! सफलता के शिखर पर पहुँचे……… एक बच्चे की.
यह आत्मकथा है………….. एक ऐसे युवक की. जिसे महादेव ! एवं माता पार्वती ! ………..16 जून 2022 को, साक्षात् दर्शन दे कर……….
साधु बनने की, आज्ञा देते हैं. साधु बन कर ! विशेष धर्म-काज करने का, दायित्व सौंपते हैं. यह उन सत्य घटनाक्रमों के , विवरण का ! वह दस्तावेज है.
जिसमें उल्लेख है…………… उन सभी घटनाओं का, जिन सत्य घटनाओं के माध्यम से, आप जानेंगे कि………..
महादेव कै से ? रचना रचते हैं. एक अभूतपूर्व घटनाक्रम का. जिस घटनाक्रम में, 1986 के महाशिवरात्रि की रात को ! यानि 08 मार्च 1986 को, जन्म
होता है………. एक बच्चे का. राके श नामक बच्चे का.
वह बच्चा ! जिसने, अपने पिछले जन्म के , आरंभिक २१ वर्षों में, उसके पिछले जन्मों के , सभी कु कर्मों का, दंड भोगता है. फिर उसके , अगले २७ वर्षों तक
! कु ल १५०० कठिन परीक्षाओं से गुजरता है. जिसमें से उसको ! न्यूनतम ११११ परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है. परंतु वह उत्तीर्ण होता
है………. के वल ७५३ परीक्षाओं में.
उस बच्चे को, उसके पिछले जन्म के , उन ७५३ परीक्षाओं में, उत्तीर्ण होने के फलस्वरूप ! उसे अत्यंत समृद्धि ! प्रसिद्धि ! एवं वैभवशाली ! जीवन जीने
का, प्रस्ताव प्राप्त होता है. परंतु इस जन्म का राके श ! तथा उस जन्म का सुभाष ! ………..
………….अपने उस जन्म के , न्यूनतम ११११ परीक्षाओं में, उत्तीर्ण नहीं हो पाने के कारण ! अपनी बची हुयी, शेष आयु को, हिमालय पर्वत पर जा
कर………… माता शक्ति ! एवं महादेव शिव की, तपस्या में लगा देता है. तथा 41 वर्षों की, कठोर तपस्या के पश्चात् ! उसके आत्मा द्वारा ! उस सुभाष
वाले देह को, त्यागने से पूर्व ! उसे साक्षात् ! महादेव एवं माता पार्वती के , दर्शन होते हैं.
देवों के देव ! महादेव द्वारा ! जब उसे वरदान माँगने की, अनुमति मिलती है. तब वह ! महादेव से, एक बड़ा ही अजीबोगरीब ! वरदान माँगता है. वरदान में
वह ! साढ़े अठ्ठासी वर्षीय वृद्ध सुभाष ! यह माँग करता है कि………… उसके अगले जन्म में, इस जन्म के , सभी कु कर्मों का दण्ड ! उसे शीघ्रातिशीघ्र
मिल जाये. कम-से-कम आयु में, उसे सभी दंड ! दे दिये जायें.
ताकि उसकी ! जो सत्ताईस वर्षीय परीक्षा ! उसके इक्कीस वर्ष की अवस्था में, आरंभ होने वाली होगी. वह बचपन में ही, आरंभ हो जाये. महादेव द्वारा !
“तथास्तु” बोलने के साथ ही, उसे उसके ! मनचाहे वरदान की, प्राप्ति होती है. वरदान प्राप्त होने के साथ ही ! उसकी आत्मा………… 16 सितंबर
1985 को, अपने पुराने देह का, त्याग करती है.
………………तथा वह आत्मा ! रिक्तता योनि में, बिना एक क्षण बिताये. अपने मूल स्वरूप के मृत देह से, सवा चार सौ किलोमीटर ! तथा अपने
दूसरे स्वरूप के मृत देह से, सवा तीन सौ किलोमीटर दूर स्थित ! इस अनंत सृष्टि के , अंतरिक्ष नामक विस्तार क्षेत्र के , ब्रह्मांड खंड के , क्षीरमार्ग आकाशगंगा
के , सूर्य नामक तारे के , पृथ्वी ग्रह के , भारत वर्ष देश के , बिहार प्रांत के , चम्पारण क्षेत्र के , एक गाँव ! छपरा बहास की एक स्त्री के , लगभग तीन मास के ,
गर्भ-भ्रूण में, प्रवेश करती है.
उसके लगभग छः माह पश्चात् ! यानि 08 मार्च 1986 को, महाशिवरात्रि की रात को, वह आत्मा ! नये देह के साथ ! इस धरती पर, पदार्पण करती है.
जो उस आत्मा का…………… एक करोड़, अड़सठ लाख, एक सौ सतहतरौवाँ जन्म है. तथा मूल श्रेणी का नौवाँ जन्म है.
यहाँ वर्णित ! या उल्लेखित घटनाक्रम ! उसी आत्मा के द्वारा ! धारण किये गये………….. इस अंतिम ! एवं वर्तमान जन्म वाले, राके श नामक देह के ,
बचपन की है.
महादेव द्वारा ! सन् 1986 में, नव-जीवन प्रदान करने के पश्चात् ! महादेव उसे, अगले 35 वर्षों तक ! विभिन्न-विभिन्न प्रकार के , लगभग डेढ़ हजार,
परीक्षाओं से गुजारते हैं. जिसमें से कु छ सौ परीक्षायें ! अत्यंत कठिन होती हैं. जिसमें से जीवित बच निकलना ! असंभव होता है. परंतु हर बार ! स्वयं
महादेव ही, स्वयं से, या अपने गण व दूतों के सहयोग से, बचाते व निकलवाते भी हैं.
यह सत्यकथा ! उन्हीं परीक्षाओं की है ! महादेव के असीम कृ पा की है ! उनके आशीर्वाद की है ! माता के अपने पुत्र के प्रति ! अत्यंत ममता भरे स्नेह की है
! वह स्नेह…………. जिसमें माता ! अपने उस बच्चे के , इतने कष्ट भरे, परीक्षा लिये जाने पर……………
महादेव से कभी, हठ करती हैं. कभी रुष्ट भी होती हैं. तो कभी मनाती भी हैं. तो कभी-कभी ! बच्चे को ही, समझाती हैं कि………… जाने दो पुत्र ! पिता
ही तो हैं. तुम्हारे भले के लिये ही, कर रहे हैं.
साथ ही यह ! एक युवा बिज़नेसमैन के , साधु बन जाने की, आत्मकथा भी है. जिसे साक्षात् महादेव के , आदेश से ही, लिखा जा रहा है. यह महागाथा है.
निराशा व अंधकार के , रसातल से निकल कर ! सफलता के शिखर पर पहुँचे…….. एक बच्चे की ! एक लड़के की ! एक युवक की ! तथा मोक्ष प्राप्त करने
जा रही, एक आत्मा की.
यह कहानी है…………. उस यात्रा की, जिसमें वह बालक ! अपने जन्म सन् 1986 से लेकर, अगले 35 वर्षों में, यानि सन् 2021 तक ! जीवन में
उतार-चढ़ाव के , अनगिनत आयाम देखता हुआ ! जैसे………. अत्यंत समृद्धि ! फिर दरिद्रता ! पुनः सफलता ! फिर भुखमरी ! ………और यहीं
क्रमिक चक्र ! कई-कई बार दुहराया जाना.
परंतु भगवान की कृ पा ! एवं उन्हीं के आशीर्वाद से प्राप्त ! पुरुषार्थ के बल-बूते………… पुनः सब कु छ ठीक करना. फिर नियति के खेल द्वारा ! पुनः सब
कु छ बिखरा देना. और बनने-बिगड़ने का यह क्रम………… एक बार ! या दो बार नहीं ! कई-कई बार घटित होना ! बार-बार घटित होना ! सैकड़ों बार
घटित होना.
तत्पश्चात् ! उस युवक को, अनगिनत उतार-चढ़ाव के बाद…………… महादेव द्वारा ! बृहद संपन्नता ! व सफलता के , सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाना. फिर
उसके तत्काल बाद ! उस युवक के जीवन में, अलग प्रकार के , अलौकिक घटनाओं का घटना. या यूँ कहें कि, निरंतर घटित होने वाली ! दैवीय अलौकिक
घटनाओं की, पूरी श्रृंखला का घटना.
जिसके परिणामस्वरुप ! उस युवा बिजनेसमैन द्वारा ! अपने कै रियर के , टॉप पोजिशन पर होते हुये ! एक झटके से, अपना सब कु छ त्याग कर……… साधु
बन जाने का, निर्णय करना. या महादेव द्वारा ! निर्णय कराना.
यह कहानी ! अब साधु बन चुके , उसी बच्चे की है ! किशोर की है ! युवक की है ! तो फिर चलिये, देरी ना करते हुये……….. इस आत्मकथा को, आरंभ
करते हैं. परंतु कहाँ से आरंभ करें ? यह समझ नहीं आ रहा. इसलिये ! आरंभ से ही, आरंभ करते हैं.
महागाथा ! आत्मकथा ! आरंभ…………..
सन् 1986 का वसंत ऋतु ! फाल्गुन माह ! महाशिवरात्रि ! दिनांक 08 मार्च ! (डॉक्यूमेंट के अनुसार 04 मार्च) को, बिहार के चम्पारण क्षेत्र में, एक
धनाढ्य किसान परिवार के , दूसरी संतान ! या दूसरे पुत्र के रूप में, उस बालक का, जन्म होता है. उसके जन्म के साथ ही, दबे-छिपे शब्दों में, एक और
चर्चा का भी, जन्म होता है कि…….…… वह बालक ! सर्वाइव नहीं कर पायेगा. कारण होता है ! उसका अत्यंत कमजोर होना.
“वह बच्चा आज मारेगा ! अच्छा ! आज नहीं मरा क्या ? फिर तो कल पक्का ही मर जायेगा !” ………….ऐसी चर्चाओं के मध्य ! वह बच्चा ! दिन-
प्रति-दिन ! अपना समय काटते हुये ! काल का ग्रास बनने की, प्रतीक्षा करते हुये ! बड़ा होता जाता है. पर जो नहीं होता है. वह है उसके स्वास्थ्य में,
रत्ती-भर भी सुधार. एक और चीज भी होती है. वह यह कि, वह बच्चा ! मरता भी नहीं है.
बच्चे का नामकरण कर दिया जाता है……….राके श. जो उसके तीन-चार वर्ष बड़े भाई ! मुके श के तर्ज पर होता है. बड़ा भाई मुके श ! जो अल्प आयु में ही,
अपने अभूतपूर्व शारीरिक विकास ! तथा विलक्षण बुद्धिमत्ता के कारण ! गाँव व रिश्तेदारों में, अभूतपूर्व ख्याति अर्जित करता है. वहीं उसका छोटा भाई
राके श ! उसके बिल्कु ल विपरीत ! मौत के आगमन की, बाट जोहता रहता है.
उस बालक की दादी ! व माता-पिता ! उपचार का हर यत्न करते हैं. ताकि बालक स्वस्थ्य हो जाये. पर वह बालक ! ड़ेढ़ वर्ष से अधिक की आयु का, हो
चूकने के पश्चात् भी ! बिस्तर से उठ कर ! बैठ पाना भी, नहीं सीख पाता.
उस डेढ़ वर्षीय बच्चे राके श का ! अगर कोई सबसे अच्छा मित्र-संगी है. तो वह है……… उससे तीन-चार वर्ष बड़ा ! उसका भाई मुके श. जो उसके साथ !
दिन-भर खेलता है. वो बैठ या चल नहीं सकता तो……….. वह उसको ! दिन भर घसीटता है. कु ल मिला कर ! उसे अपने बड़े भाई मुके श का साथ !
बहुत भाता है. उसके साथ वह ! तमाम शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद भी, अत्यंत प्रसन्न रहता है.
परंतु उसकी प्रसन्नता के , एक मात्र वजह को, ग्रहण लगने वाला है. क्योंकि बड़े भाई मुके श की ख्याति ! अब उस परिवार के , दुश्मनों को चुभने लगती है.
इतनी चुभने लगती है कि…………. उसकी मौत का ! षड्यंत्र रचा जाता है.
ध्यान रखें ! यहाँ पुरातन काल के , गौरवशाली ! वैभवशाली ! बिहार का, चित्रण नहीं हो रहा है. यहाँ चर्चा हो रही है. अस्सी के दशक वाले बिहार की.
आपसी पटेदारी ! व गवईं दुश्मनी से ओत-प्रोत ! ईर्ष्या तथा घृणा में ! आकं ठ तक डू बे हुये ! गाँव-समाज से बने बिहार की.
सन् 1987 का, शारदीय नवरात्र चल रहा होता है. गाँव में दुर्गापूजा के कारण ! हर्षों-उल्लास व उत्सव का माहौल है. उन दोनों भाइयों के पिता ! उस
दुर्गापूजा समिति के , मुख्य कर्ता-धर्ता हैं. सुबह का समय है……… तभी ! एक समाचार ! आग की भाँति ! पूरे क्षेत्र में पसर जाती है.
वह समाचार होता है…………. सामाजिक योद्धा ! गरीबों के मसीहा ! पंच-परमेश्वर ! बाबू-साहेब श्रीमान गंगा सिंह जी के , बड़े पुत्र मुके श का ! यानि उस
बालक राके श के , बड़े भाई का ! उसकी दादी द्वारा बनवाये गये ! शिव मंदिर के बगल में ! ट्रैक्टर द्वारा कु चले जाने के कारण ! बड़ी ही दर्दनाक मृत्यु हो गयी
है.
अपने बड़े भाई की मृत्यु का ! उस बच्चे को, कु छ समझ तो नहीं आया. बस ! शायद उसे इतना ही, समझ आया कि…………… कु छ तो है ! जो मिसिंग
है ! उस डेढ़ वर्षीय बालक के , बड़े भाई की मृत्यु ने, उस बच्चे के माता-पिता व दादी को, जो अपूरणीय क्षति पहुँचायी. वह तो अपनी जगह थी ही. परंतु उस
बच्चे के ऊपर तो, यह ब्रजपात सामान ही था. उसे तो समझ में भी नहीं आया कि……… यह हुआ क्या ?
उसकी आँखें ! …………..जो शायद ! स्वयं के मौत की प्रतीक्षा, अपने जन्म से ही कर रही थी. किं तु इस आघात् ने, उसके मृत्यु की बाट जोहती
आँखों को, पथरा दिया था. अब उन आँखों ने, रोना व अश्रु बहाना भी, छोड़ दिया था. शायद उन आँखों का, बस एक ही काज ! शेष रह गया था. एकटक
! बिना पलक झपकाये ! किसी शून्य को, निरंतर निहारते रहना.
क्योंकि उसके शारीरिक अक्षमता ! व अनगिनत बीमारियों से ग्रसित ! उसके दुःखदायी एवं पीड़ायुक्त देह को, उसके स्वर्गीय बड़े भाई द्वारा…………
घसीटा जाना ! उसे आनंदित करता था. अब उसके जीवन का, वह एक मात्र सुख भी, उससे छीन चुका था.
उसे अपने मौत की, बड़ी शिद्दत से तलाश थी. उसके परिवार के सभी हित-चिंतक ! उस पर तरस खा कर ! उसके माता-पिता व दादी के अनुपस्थिति में,
भगवान से एक प्रार्थना अवश्य करते थे कि………..
‘हे भगवान ! या तो, इस बच्चे को ठीक कर दो ! या फिर इसे ! अपने पास बुला लो’
कु छ माह पश्चात् ! उस बच्चे के गाँव ! छपरा बहास में, भिक्षाटन करते हुये ! शायद गूँगे या मौन-व्रतधारी ! एक सिद्ध महात्मा पधारे. जो उस बालक के , द्वार
पर भी आये. उस बच्चे की, शिव-भक्त दादी ने, साधु महाराज से, उस बच्चे को दिखाया ! एवं उनसे प्रश्न पूछा :
“हे महाराज ! इस बालक को, इसके पीड़ायुक्त देह से, कब मुक्ति मिलेगी ?”
साधु महाराज ने, संके तों के माध्यम से, जो बताया, तथा वहाँ उपस्थित जनों ने, उसका जो अर्थ निकाला. वह कु छ इस प्रकार था……….
*कै सी बात करती हो वृद्ध स्त्री ? ये इतना शीघ्र ! मृत्यु को प्राप्त नहीं होगा. मैं जो देख पा रहा हूँ. वह यह है कि………… इसको माध्यम बना कर !
भविष्य में, साक्षात् भगवान भोलेनाथ ! कु छ अति विशिष्ट ! एवं बृहद विशाल धर्म-काज ! करने वाले हैं. अगर तुम्हारे लिये, यह बच्चा ! बोझ है तो, तुम
इसको ! मुझे सौंप दो.*
इतना सुनते ही, देहरी के पार ! अंदर की ओर, दरवाजे के पल्ले पीछे खड़ी ! उस बच्चे की माँ ! लोक-लिहाज की चिंता किये बगैर ! दौड़ती हुयी, दुवार
(मुख्य द्वार के बाहर का स्थान) पर आयी. एवम् अपने इकलौते बच्चे (एक मात्र जीवित बच्चे) को ले कर ! अंदर चली गयी. ताकि कहीं वो साधु महाराज !
सच में ही, उसके बच्चे को ले कर ! ना चले जायें.
जो भी हो ! पर उन साधु महाराज के द्वारा ! आशा का संचार करने से, उस परिवार को, संबल तो बहुत बड़ा मिला. बच्चे का पूर्ववत ! हर प्रकार के डॉक्टर
! वैद्य ! तांत्रिक ! सभी से इलाज चलता रहा. परिणाम भी हर बार की तरह ! वहीं ‘ढाक के तीन पात’ आता रहा. बच्चा ना ही मर रहा था. ना ही उसके
स्वास्थ्य में, रत्ती-भर भी, सुधार हो रहा था.
जहां से भी, जो भी सलाह ! राय ! मार्गदर्शन ! मिलता. उस राके श नामक बच्चे के अभिभावक ! उसका अवश्य पालन करते. इसी क्रम में, किसी ने राय
दिया कि………
*चूँकि ! इसके बड़े भाई मुके श की, दर्दनाक मृत्यु हो गयी है. और इसका नाम भी, मुके श के तुकबंदी में राके श है. अतः इसके मृत्यु की भी, प्रबल संभावना
है. अतः तत्क्षण ! इसका नाम बदलो.*
मरता ! क्या ना करता ! के तर्ज पर, तत्क्षण बच्चे का, नाम बदल दिया गया. या यूँ कहें कि, उसका नाम छिन लिया गया. क्योंकि उसे ! कोई नया नाम,
नहीं दिया गया. यानि अब उस राके श नामक बच्चे का, कोई नाम नहीं था. वह बच्चा ! अब अनाम था.
बच्चे की आयु ! पाँच वर्ष की होने वाली थी. बच्चे का चलना या खड़ा होना तो, बहुत दूर की बात थी. बच्चा तो बिना सहारे के , बैठ तक नहीं पाता था. बस पेट
के बल ! घसीट-घसीट कर ! कु छ-कु छ दूर ! खिसक भर जाता था.
तभी एक दिन ! उस बच्चे के परिवार को, एक और पद-यात्रा करते, सिद्ध संत महात्मा के बारे में, जानकारी मिली. तत्काल बच्चे के पिताजी ! उस स्थान पर
पहुँचे. जहाँ वह सिद्ध बाबा ! ठहरे हुये थे. किं तु वहाँ पहुँच कर, उन्हें पता चला कि…………… वह तो, दो सप्ताह पहले, वहाँ रात्रि विश्राम के लिये रुके थे.
अब तक तो, वह पता नहीं, पैदल चलते-चलते ! कहाँ तक पहुँच गये होंगे.
उनके बारे में, पता लगाने पर, यह ज्ञात हुआ कि, बाबा जी एक बड़ी लंबी यात्रा ! यानि देशाटन-तीर्थाटन पर निकले हैं. उन्होंने ! उन सिद्ध महात्मा ने !
अपनी पद-यात्रा ! उत्तर में नेपाल के , सुदूर हिमालय पहाड़ से आकर ! काठमांडू स्थित भगवान पशुपतिनाथ मंदिर से, आरंभ की है………
………तथा उनकी ये पद-यात्रा ! भारत के दक्षिणी आखिरी छोर पर, भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित ज्योतिर्लिंग ! रामेश्वरम धाम तक जायेगी. यात्रा के
साथ-साथ साधु महाराज ! एक और पुण्य-काज भी, करते जा रहे थे. मार्ग में मिलने वाले, श्रद्धालुओं से भेंट करना ! उनकी समस्यायें सुनना ! तथा उनके
कष्टों से उबरने का, समाधान बताना.
उस पाँच वर्षीय अनाम बच्चे (क्योंकि अब उसका कोई नाम नहीं था, उसका पुराना नाम, उससे छीना जा चुका था. और नया नामकरण ! अभी हुआ नहीं
था) के पिताजी ! घर पहुँचे. घर में वाहन के नाम पर, उपलब्ध जीप व बुलेट ! दोनों निकाली गयी. वाहन के लिये, कई गैलन अतिरिक्त ईंधन रखा गया.
तीन सेवकों (जिसमें एक जीप का ड्राइवर भी था) ने, बुलेट पर आसन जमाया. क्योंकि बच्चे के पिताजी को, ऐन समय पर, पता नहीं क्या सूझा कि, उन्होंने
स्वयं ही, जीप ड्राइव करने का, निर्णय करके ! ड्राइवर को अन्य दो सेवकों के साथ ! बुलेट पर सवार करा दिया. तथा वह स्वयं ! उनका वह अनाम बच्चा !
बच्चे की माता ! व दादी ! तथा एक घरेलू महिला सेविका ! जीप में सवार हो गये.
सिद्ध साधु महात्मा की खोज ! एक गाँव से, दूसरे गाँव ! दूसरे से तीसरे गाँव ! कस्बा ! व शहर में जारी थी. कहीं लोग-बाग बतलाते ! यहाँ तो बारह दिन
पहले रुके थे. यहाँ तो दस दिन पूर्व ! फलाँ आदमी के यहाँ रुके थे. सप्ताह भर पूर्व ! उस मठ में ठहरे थे. इत्यादि ! इत्यादि !
फिर एक दिन ! यानि उन सिद्ध संत के , खोज अभियान के तीसरे दिन ! लगभग दो सौ किलोमीटर से अधिक की ! सीधी व टेढ़ी-मेढ़ी ! गाँव-गाँव की यात्रा
के पश्चात् ! अब वह परिवार ! उत्तरी बिहार के , सीमावर्ती जिला चंपारण से चल कर……… पाटलिपुत्र (पटना) के समीप ! गंगा मैया को पार करके !
साधु बाबा के खोजबीन में, दक्षिणी बिहार के , गाँव-दर-गाँव ! भटक रहा था.
दोपहर के बाद का पहर ! एक गाँव में, उसी ग्राम के , एक ग्रामीण ने बताया :
“सिद्ध बाबाजी ! कल रात को, हमारे ही गाँव के , शिव मंदिर पर ठहरे थे. आज ही सुबह ! दक्खिन (दक्षिण) दिशा को निकले हैं. अब तक तो वह ! बहुत
दूर चले गये होंगे. लेकिन चूँकि ! आप लोग गाड़ी से हैं. तो हो सकता है. शायद उन तक ! जल्दी पहुँच जायें. आप लोग ! इस दिशा को जाइये.”
जीप और बुलेट ! उस ग्रामवासी के बताये मार्ग पर, दक्षिण दिशा की ओर, तेज गति से दौड़ चली. संध्या की गोधूली बेला ! सूर्य देवता अस्त होने ही वाले
थे. परंतु उस अनाम बच्चे के परिवारजन ! आँखों में उम्मीद की, नयी किरण के आस में, गाँव की धूल उड़ाते ! टू टे-फू टे, कच्चे सड़कों पर, हिचकोले खाते,
फ़र्राटा भरते ! जीप में बैठ कर ! चले जा रहे थे.
तभी सहसा ! उसी सड़क के किनारे, आगे थोड़ी दुरी पर, चलते हुये ! एक सिद्ध बाबा दिखे. ब्रेक लगने के साथ ही, जीप वहीं रुक गयी. सभी लोग ! जीप
व बुलेट से उतर कर, बाबा जी की ओर, तेज कदमों से चलने लगे.
वह अनाम बच्चा भी, अपनी माँ के गोद में था. जिसे कु छ ही क्षण बाद ! उसके पिता ने, अपने गोद में ले कर, बाबा जी की ओर, दौड़ लगा दिया. बच्चे के सवा
छः फिट के पिता जी ! अपने लंबे-लंबे कदमों से, कु छ ही देर में, बाबा जी के पीछे ! उनके समीप पहुँच गये.
आहट सुनकर बाबा जी मुड़े. पता नहीं क्या सोच कर, वह सिद्ध बाबा ! वही भूमि पर बैठ गये. तब तक ! पीछे से दौड़ते हुये ! उस अनाम बच्चे की माँ !
दादी ! व उनके घर के अन्य सेवक ! व सेविका ! भी पहुँच गये. किसी के भी, कु छ भी बोलने से पूर्व ! वह सिद्ध बाबा जी ! बच्चे के पिता पर, दिव्य दृष्टि
गड़ाये ! स्वयं ही बोल पड़े :
“बीस दिवस पूर्व ! तुम्हारे गाँव से ही तो, होकर आया हूँ. वहीं मिल लेते. तो इतना नहीं भागना पड़ता. समय को गवाँओगे ! तो भागना पड़ेगा ही.”
वहाँ उपस्थित ! सभी के सभी लोग ! विस्मित नेत्रों से, सिद्ध साधु बाबा को, देख रहे थे. उन सभी लिये, यह बड़ी ही, अबूझ पहेली थी कि……….. बाबा
जी ! इतना सब-कु छ, कै से जानते हैं ? बाबा जी ने आश्चर्यचकित लोगों को, ……………और आश्चर्य में डालते हुये, आगे बोले :
“लाओ बच्चे को, मुझे पकड़ाओ !“
उन्होंने बच्चे को, अपने दोनों हाथों से पकड़ा. कु छ देर तक ! अपने दोनों हाथों के सहारे ! उसे हवा में उठाये रखा. तत्पश्चात् ! उस बच्चे को, अपने बगल
में, बिठा कर के बोले :
“हाँ ! अब बताओ क्या समस्या है ?“
उनलोगों के मुख से, कोई बोल ही नहीं, फु ट रहा था. साधु बाबा ! तथा उस पाँच वर्षीय बच्चे को छोड़ कर ! वहाँ उपस्थित ! सभी जनों के आँखों से,
निरंतर अश्रुधारा ! बहे जा रही थी.
कारण ! चमत्कार हो चुका था. क्योंकि वह बच्चा ! जीवन में प्रथम बार ! बगैर किसी के सहारे ! या बिना किसी टेक के , बिल्कु ल सीधा बैठा हुआ था. बैठा
क्या था ? वह तो अपनी ही मस्ती में मस्त ! मिट्टी से खेल रहा था. कु छ मिट्टी ! उन साधु बाबा के ऊपर ! उछाल भी रहा था.
वहीं शांत बैठे साधु बाबा ! मंद-मंद मुस्कु रा रहे थे. बाकी सभी जन ! उनकी चरणों में, गिरे हुये थे. दूर पश्चिम में, सूरज देवता ! अस्त हो रहे थे. परंतु उस
परिवार के लिये तो, एक प्रकार से, सूर्योदय ही हो रहा था. उनकी टिमटिमाती हुयी, उम्मीद की ढिबरी ! अब प्रकाशमान हो चुकी थी. तभी सिद्ध साधु बाबा
! अपनी दिव्य व ओजस्वी वाणी से बोले :
“अब मेरे पीछे आने की, कोई आवश्यकता नहीं है. तुम लोग ! अब यही से लौट जाओ. अभी इस बच्चे के ऊपर ! कई झंझावात आना शेष है.”
“………उसके लिये ! अपने आप को, सुदृढ़ करो. परंतु चिंता मत करना ! यह बच्चा ! सभी झंझावातों को, पार कर जायेगा. क्योंकि इसको ! पार
करना ही होगा. ……विधि के विधान को, भला कौन टाल सका है. ये तो वैसे भी, माध्यम बनने वाला है. भविष्य में होने वाले, भगवान भोलेनाथ के , कु छ
अति विशिष्ट, एवं बड़े धर्म-काज प्रकल्पों का.”
इतना बोलकर, साधु बाबा ! आगे को बढ़ गये. उनके जाने के , काफी देर बाद तक भी,,वह सभी लोग ! अवाक् से, वही बैठे रहे. अंधेरा घिर आया था. तभी
आकाश से, बूँदा-बूंदी शुरू हो गयी. वह बच्चा ! जो अपने पाँच वर्ष के आयु तक ! एक शब्द भी, स्पष्ट नहीं बोल पाया था.
वही बच्चा ! अब………….. माई पानी ! माई पानी ! पानी ! पानी ! माई ! माई ! पानी माई ! माई पानी ! …………..निरंतर बोले जा रहा था.
क्रमशः

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