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Kankal JaiShankarPrasad
Kankal JaiShankarPrasad
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प्रतिष्ठान के खँडहर में औार गंगा-िट की सिकिा-भूमम में औनेक शिविर औार फूि के झाेंपडे खडे हं।
माघ की औमािस्या की गाेधूली में प्रयाग में बाँध पर प्रभाि का-िा जनरि औार काेलाहल िथा धमम
लू टने की धूम कम हाे गयी ह; परन्िु बहुि-िे घायल औार कुचले हुए औधममृिकाें की औािमध्ितन उि
पािन प्रदेि काे औािीिामद दे रही ह। स्ियं-िेिक उन्हें िहायिा पहुँचाने में व्यस्ि हं। याें िाे प्रतििर्म
यहाँ पर जन-िमूह एकत्र हाेिा ह, पर औब की बार कुछ वििेर् पिम की घाेर्णा की गयी थी, इिमलए
भीड औधधकिा िे हुई।
वकिनाें के हाथ टू टे, वकिनाें का सिर फूटा औार वकिने ही पिमलयाें की हड्डियाँ गँिाकर, औधाेमुख
हाेकर तत्रिेणी काे प्रणाम करने लगे। एक नीरि औििाद िंध्या में गंगा के दाेनाें िट पर खडे झाेंपड़ी
पर औपनी कामलमा वबखेर रहा था। नंगी पीठ घाेडाें पर नंगे िाधुऔाें के चढने का जाे उत्िाह था, जाे
िलिार की वफकिी ददखलाने की स्पधाम थी, दिमक-जनिा पर बालू की िर्ाम करने का जाे उन्माद था,
बडे -बडे कारचाेबी झंडाें काे औागे िे चलने का जाे औािंक था, िह िब औब फीका हाे चला था।
एक छायादार डाेंगी जमुना के प्रिांि िक्ष काे औाकुमलि करिी हुई गंगा की प्रखर धारा काे काटने
लगी-उि पर चढने लगी। माझझयाें ने किकर दाड लगायी। नाि झूँिी के िट पर जा लगी। एक
िम्भ्रान्ि िज्जन औार युििी, िाथ में एक नाकर उि पर िे उिरे । पुरुर् यािन में हाेने पर भी कुछ
झखन्न-िा था, युििी हँिमुख थी; परन्िु नाकर बडा ही गंभीर बना था। यह िम्भ्भििः उि पुरुर् की
प्रभाििामलनी शिष्टिा की शिक्षा थी। उिके हाथ में एक बाँि की डाेलची थी, जजिमें कुछ फल औार
ममठाइयाँ थीं। िाधुऔाें के शिविराें की पंमि िामने थी, िे लाेग उिकी औाेर चले । िामने िे दाे
मनुष्य बािें करिे औा रहे थे-
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'औिश्य महात्मा हं।'
यह दल उिी शिविर की औाेर चल पडा, जजधर िे दाेनाें बािें करिे औा रहे थे। पटमण्डप के िमीप
पहुँचने पर देखा, बहुि िे दिमक खडे हं। एक विशिष्ट औािन पर एक बीि िर्म का युिक हलके रं ग
का कार्ाय िस्त्र औंग पर डाले बठा ह। जटा-जूट नहीं था, कंधे िक बाल वबखरे थे। औाँखें िंयम के
मद िे भरी थीं। पुष्ट भुजाएँ औार िेजाेमय मुख-मण्डल िे औाकृति बड़ी प्रभाििामलनी थी। िचमुच,
िह युिक िपस्िी भमि करने याेग्य था। औागन्िुक औार उिकी युििी स्त्री ने विनम्र हाेकर नमस्कार
वकया औार नाकर के हाथ िे ले कर उपहार िामने रखा। महात्मा ने िस्नेह मुस्करा ददया। िामने बठे
हुए भि लाेग कथा कहने िाले एक िाधु की बािें िुन रहे थे। िह एक छन्द की व्याख्या कर रहा
था-'िािाें चुप ह्व रड्हये'। गूँगा गुड का स्िाद किे बिािेगा; नमक की पिली जब लिण-सिन्धु में गगर
गई, वफर िह औलग हाेकर क्या औपनी ित्ता बिािेगी! ब्रह्म के मलए भी ििे ही 'इदममत्यं' कहना
औिम्भ्भि ह, इिमलए महात्मा ने कहा-'िािाें चुप ह्व रड्हये'।
राि हाे गयी; जगह-जगह पर औलाि धधक रहे थे। िीि की प्रबलिा थी। वफर भी धमम-िंग्राम के
िेनापति लाेग शिविराें में डटे रहे। कुछ ठहरकर औागन्िुक ने जाने की औाज्ञा चाही। महात्मा ने
पूछा, 'औाप लाेगाें का िुभ नाम औार पररचय क्या ह
'हम लाेग औमृििर के रहने िाले हं, मेरा नाम श्रीचन्र ह औार यह मेरी धममपत्नी ह।' कहकर श्रीचन्र
ने युििी की औाेर िंकेि वकया। महात्मा ने भी उिकी औाेर देखा। युििी ने उि दृधष्ट िे यह औथम
तनकाला वक महात्मा जी मेरा भी नाम पूछ रहे हं। िह जिे वकिी पुरस्कार पाने की प्रत्यािा औार
लालच िे प्रेररि हाेकर बाेल उठी, 'दािी का नाम वकिाेरी ह।'
महात्मा की दृधष्ट में जिे एक औालाेचक घूम गया। उिने सिर नीचा कर मलया औार बाेला, 'औच्छा
विलम्भ्ब हाेगा, जाइये। भगिान् का स्मरण रझखये।'
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श्रीचन्र वकिाेरी के िाथ उठे । प्रणाम वकया औार चले ।
िाधुऔाें का भजन-काेलाहल िान्ि हाे गया था। तनस्िब्धिा रजनी के मधुर क्ाेड में जाग रही थी।
तनिीथ के नक्षत्र गंगा के मुकुल में औपना प्रतिवबम्भ्ब देख रहे थे। िांि पिन का झाेंका िबकाे
औामलं गन करिा हुऔा विरि के िमान भाग रहा था। महात्मा के हृदय में हलचल थी। िह तनष्पाप
हृदय ब्रह्मचारी दुश्चिन्िा िे ममलन, शिविर छाेडकर कम्भ्बल डाले , बहुि दूर गंगा की जलधारा के िमीप
खडा हाेकर औपने मचरिंमचि पुण्याें काे पुकारने लगा।
िह औपने विराग काे उत्तेजजि करिा; परन्िु मन की दुबमलिा प्रलाेभन बनकर विराग की प्रतिद्वझन्द्विा
करने लगिी औार इिमें उिके औिीि की स्मृति भी उिे धाेखा दे रही थी, जजन-जजन िुखाें काे िह
त्यागने की मचंिा करिा, िे ही उिे धक्का देने का उद्ाेग करिे। दूर िामने ददखने िाली कमलन्दजा
की गति का औनुकरण करने के मलए िह मन काे उत्िाह ददलािा; परन्िु गंभीर और्द्मतनिीथ के पूणम
उज्ज्वल नक्षत्र बाल-काल की स्मृति के िदृि मानि-पटल पर चमक उठिे थे। औनन्ि औाकाि में
जिे औिीि की घटनाएँ रजिाक्षराें िे मलखी हुई उिे ददखाई पडने लगीं।
झेलम के वकनारे एक बामलका औार एक बालक औपने प्रणय के पाधे काे औनेक क्ीडा-कुिूहलाें के
जल िे िींच रहे हं। बामलका के हृदय में औिीम औमभलार्ा औार बालक के हृदय में औदम्भ्य उत्िाह।
बालक रं जन औाठ िर्म का हाे गया औार बामलका िाि की। एक ददन औकस्माि् रं जन काे ले कर
उिके मािा-वपिा हरद्वार चल पडे । उि िमय वकिाेरी ने उििे पूछा, 'रं जन, कब औाऔाेगे?'
रं जन चला गया। जजि महात्मा की कृपा औार औािीिामद िे उिने जन्म मलया था, उिी के चरणाें में
चढा ददया गया। क्याेंवक उिकी मािा ने िन्िान हाेने की एेिी ही मनािी की थी।
तनष्ठुर मािा-वपिा ने औन्य िन्िानाें के जीविि रहने की औािा िे औपने ज्येष्ठ पुत्र काे महात्मा का
शिष्य बना ददया। वबना उिकी इच्छा के िह िंिार िे-जजिे उिने औभी देखा भी नहीं था-औलग कर
ददया गया। उिका गुरुद्वारे का नाम देितनरं जन हुऔा। िह िचमुच औादिम ब्रह्मचारी बना। िृर्द् गुरुदेि
ने उिकी याेग्यिा देखकर उिे उन्नीि िर्म की ही औिस्था में गद्दी का औधधकारी बनाया। िह औपने
िंघ का िंचालन औच्छे ढं ग िे करने लगा।
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हरद्वार में उि निीन िपस्िी की िुख्याति पर बूढे -बूढे बाबा ईष्याम करने लगे औार इधर तनरं जन के
मठ की भेंट-पूजा बढ गयी; परन्िु तनरं जन िब चढे हुए धन का िदुपयाेग करिा था। उिके िद्गुणाें
का गारि-मचत्र औाज उिकी औाँखाें के िामने झखंच गया औार िह प्रिंिा औार िुख्याति के लाेभ
ददखाकर मन काे इन नयी कल्पनाऔाें िे हटाने लगा; परन्िु वकिाेरी के मन में उिे बारह िर्म की
प्रतिमा की स्मरण ददला ददया। उिने हरद्वार औािे हुए कहा था-वकिाेरी, िेरे मलए गुदडया ले औाऊँगा।
क्या यह िही वकिाेरी ह? औच्छा यही ह, िाे इिे िंिार में खेलने के मलए गुदडया ममल गयी। उिका
पति ह, िह उिे बहलायेगा। मुझ िपस्िी काे इििे क्या! जीिन का बुल्ला विलीन हाे जायेगा। एेिी
वकिनी ही वकिाेररयाँ औनन्ि िमुर में तिराेड्हि हाे जायेंगी। मं क्याें मचंिा करँ?
परन्िु प्रतिज्ञा? औाेह िह स्िप्न था, झखलिाड था। मं कान हँ वकिी काे देने िाला, िही औन्ियाममी
िबकाे देिा ह। मूखम तनरं जन! िम्भ्हल!! कहाँ माेह के थपेडे में झूमना चाहिा ह। परन्िु यदद िह
कल वफर औायी िाे? भागना हाेगा। भाग तनरं जन, इि माया िे हारने के पहले युर्द् हाेने का औििर
ही मि दे।
तनरं जन धीरे -धीरे औपने शिविर काे बहुि दूर छाेडिा हुऔा, स्टे िन की औाेर विचरिा हुऔा चल पडा।
भीड के कारण बहुि-िी गादडयाँ वबना िमय भी औा-जा रही थीं। तनरं जन ने एक कुली िे पूछा, 'यह
गाड़ी कहाँ जायेगी?'
दूिरे ददन जब श्रीचन्र औार वकिाेरी िाधु-दिमन के मलए वफर उिी स्थान पर पहुँचे, िब िहाँ औखाडे
के िाधुऔाें काे बडा व्यग्र पाया। पिा लगाने पर मालू म हुऔा वक महात्माजी िमाधध के मलए हरद्वार
चले गये। यहाँ उनकी उपािना में कुछ विघ्न हाेिा था। िे बडे त्यागी हं। उन्हें गृहस्थाें की बहुि
झंझट पिन्द नहीं। यहाँ धन औार पुत्र माँगने िालाें िथा कष्ट िे छुटकारा पाने िालाें की प्राथमना िे
िे ऊब गये थे।
वकिाेरी ने कुछ िीखे स्िर िे औपने पति िे कहा, 'मं पहले ही कहिी थी वक िुम कुछ न कर
िकाेगे। न िाे स्ियं कहा औार न मुझे प्राथमना करने दी।'
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विरि हाेकर श्रीचन्र ने कहा, 'िाे िुमकाे वकिने राेका था। िुम्भ्हीं ने क्याें न िन्िान के मलए प्राथमना
की! कुछ मंने बाधा िाे दी न थी।'
'चलाे, मं िुम्भ्हें िहाँ पहुँचा दूँगा। औार औमृििर औाज िार दे दूँगा वक मं हरद्वार िे हाेिा हुऔा औािा
हँ; क्याेंवक मं व्यििाय इिने ददनाें िक याें ही नहीं छाेड िकिा।''
'िाे िाे मं जानिा हँ।' कहकर श्रीचन्र ने मुँह भारी कर मलया; परन्िु वकिाेरी काे औपनी टे क रखनी
थी। उिे पूणम विश्वाि हाे गया था वक उन महात्मा िे मुझे औिश्य िन्िान ममले गी।
उिी ददन श्रीचन्र ने हरद्वार के मलए प्रस्थान वकया औार औखाडे के भण्डारी ने भी जमाि ले कर
हरद्वार जाने का प्रबन्ध वकया।
गंगा की धारा जहाँ घूम गयी ह, िह छाेटा-िा काेना औपने िब िामथयाें काे औागे छाेडकर तनकल
गया ह। िहाँ एक िुन्दर कुट़ी ह, जाे नीचे पहाड़ी की पीठ पर जिे औािन जमाये बठी ह। तनरं जन
गंगा की धारा की औाेर मुँह वकये ध्यान में तनमग्न ह। यहाँ रहिे हुए कई ददन बीि गये, औािन औार
दृढ धारणा िे औपने मन काे िंयम में ले औाने का प्रयत्न लगािार करिे हुए भी िांति नहीं लाट़ी।
विक्षेप बराबर हाेिा था। जब ध्यान करने का िमय हाेिा, एक बामलका की मूतिम िामने औा खड़ी
हाेिी। िह उिे माया-औािरण कहकर तिरस्कार करिा; परन्िु िह छाया जिे ठाेि हाे जािी।
औरुणाेदय की रि वकरणें औाँखाें में घुिने लगिी थीं। घबराकर िपस्िी ने ध्यान छाेड ददया। देखा
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वक पगडण्ड़ी िे एक रमणी उि कुट़ीर के पाि औा रही ह। िपस्िी काे क्ाेध औाया। उिने िमझा
वक देििाऔाें काे िप में प्रत्यूह डालने का क्याें औभ्याि हाेिा ह, क्याें िे मनुष्याें के िमान ही द्वेर्
औादद दुबमलिाऔाें िे पीदडि हं।
रमणी चुपचाप िमीप चली औायी। िाष्टांग प्रणाम वकया। िपस्िी चुप था, िह क्ाेध िे भरा हुऔा था;
परन्िु न जाने क्याें उिे तिरस्कार करने का िाहि न हुऔा। उिने कहा, 'उठाे, िुम यहाँ क्याें औायीं?'
वकिाेरी ने कहा, 'महाराज, औपना स्िाथम ले औाया, मंने औाज िक िन्िान का मुँह नहीं देखा।'
तनरं जन ने गंभीर स्िर में पूछा, 'औभी िाे िुम्भ्हारी औिस्था औठारह-उन्नीि िे औधधक नहीं, वफर इिनी
दुश्चिन्िा क्याे?ं '
वकिाेरी के मुख पर लाज की लाली थी; िह औपनी ियि की नाप-िाल िे िंकुमचि हाे रही थी।
परन्िु िपस्िी का विचमलि हृदय उिे क्ीडा िमझने लगा। िह जिे लडखडाने लगा। िहिा
िम्भ्भलकर बाेला, 'औच्छा, िुमने यहाँ औाकर ठीक नहीं वकया। जाऔाे, मेरे मठ में औाना-औभी दाे ददन
ठहरकर। यह एकान्ि याेगगयाें की स्थली ह, यहाँ िे चली जाऔाे।' िपस्िी औपने भीिर वकिी िे लड
रहा था।
वकिाेरी ने औपनी स्िाभाविक िृष्णा भरी औाँखाें िे एक बार उि िूखे यािन का िीव्र औालाेक देखा;
िह बराबर देख न िकी, छलछलायी औाँखें नीची हाे गयीं। उन्मत्त के िमान तनरं जन ने कहा, 'बि
जाऔाे!'
वकिाेरी लाट़ी औार औपने नाकर के िाथ, जाे थाेड़ी ही दूरी पर खडा था, 'हर की पड़ी' की औाेर चल
पड़ी। मचंिा की औमभलार्ा िे उिका हृदय नीचे-ऊपर हाे रहा था।
राि एक पहर गयी हाेगी, 'हर की पड़ी' के पाि ही एक घर की खुली झखडकी के पाि वकिाेरी बठी
थी। श्रीचन्र काे यहाँ औािे ही िार ममला वक िुरन्ि चले औाऔाे। व्यििाय-िाणणज्य के काम औटपट
हाेिे ह;ं िह चला गया। वकिाेरी नाकर के िाथ रह गयी। नाकर विश्वािी औार पुराना था। श्रीचन्र
की लाडली स्त्री वकिाेरी मनझस्िनी थी ही।
ठं ड का झाेंका झखडकी िे औा रहा था; औब वकिाेरी के मन में बड़ी उलझन थी-कभी िह िाेचिी, मं
क्याें यहाँ रह गयी, क्याें न उन्हीं के िंग चली गयी। वफर मन में औािा, रुपये-पिे िाे बहुि हं, जब
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उन्हें भाेगने िाला ही काेई नहीं, वफर उिके मलए उद्ाेग न करना भी मूखमिा ह। ज्याेतिर्ी ने भी कह
ददया ह, िंिान बडे उद्ाेग िे हाेगी। वफर मंने क्या बुरा वकया?
औब िीि की प्रबलिा हाे चली थी, उिने चाहा, झखडकी का पल्ला बन्द कर ले । िहिा वकिी के राेने
की ध्ितन िुनायी दी। वकिाेरी काे उत्कंठा हुई, परन्िु क्या करे , 'बलदाऊ' बाजार गया था। चुप रही।
थाेडे ही िमय में बलदाऊ औािा ददखाई पडा।
औािे ही उिने कहा, 'बहुरानी काेई गरीब स्त्री राे रही ह। यहीं नीचे पड़ी ह।'
वकिाेरी ही दुःखी थी। िंिेदना िे प्रेररि हाेकर उिने कहा, 'उिे मलिािे क्याें नहीं लाये, कुछ उिे दे
औािे।'
बलदाऊ िुनिे ही वफर नीचे उिर गया। उिे बुला लाया। िह एक युििी विधिा थी। वबलख-
वबलखकर राे रही थी। उिके ममलन ििन का औंचल िर हाे गया था। वकिाेरी के औाश्वािन देने
पर िह िम्भ्हली औार बहुि पूछने पर उिने कथा िुना दी-विधिा का नाम रामा ह, बरे ली की एक
ब्राह्मण-िधु ह। दुराचार का लांछन लगाकर उिके देिर ने उिे यहाँ छाेड ददया। उिके पति के नाम
की कुछ भूमम थी, उि पर औधधकार जमाने के मलए उिने यह कुचक् रचा ह।
वकिाेरी ने उिके एक-एक औक्षर का विश्वाि वकया; क्याेंवक िह देखिी ह वक परदेि में उिके पति
ने उिे छाेड ददया औार स्ियं चला गया। उिने कहा, 'िुम घबराऔाे मि, मं यहाँ कुछ ददन रहँगी।
मुझे एक ब्राह्मणी चाड्हए ही, िुम मेरे पाि रहाे। मं िुम्भ्हें बहन के िमान रखूँगी।'
रामा कुछ प्रिन्न हुई। उिे औाश्रय ममल गया। वकिाेरी िया पर ले ट-ले टे िाेचने लगी-पुरुर् बडे
तनमाेमही हाेिे ह,ं देखाे िाणणज्य-व्यििाय का इिना लाेभ ह वक मुझे छाेडकर चले गये। औच्छा, जब
िक िे स्ियं नहीं औािेंग,े मं भी नहीं जाऊँगी। मेरा भी नाम 'वकिाेरी' ह!-यही मचंिा करिे-करिे
वकिाेरी िाे गयी।
दाे ददन िक िपस्िी ने मन पर औधधकार जमाने की चेष्टा की; परन्िु िह औिफल रहा। विद्वत्ता ने
जजिने िकम जगि काे ममथ्या प्रमाणणि करने के मलए थे, उन्हाेंने उग्र रप धारण वकया। िे औब
िमझिे थे-जगि् िाे ममथ्या ह ही, इिके जजिने कमम ह,ं िे भी माया हं। प्रमािा जीि भी प्रकृति ह,
क्याेंवक िह भी औपरा प्रकृति ह। विश्व मात्र प्राकृि ह, िब इिमें औलावकक औध्यात्म कहाँ, यही खेल
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यदद जगि् बनाने िाले का ह, िाे िह मुझे खेलना ही चाड्हए। िास्िि में गृहस्थ न हाेकर भी मं िहीं
िब िाे करिा हँ जाे एक िंिारी करिा ह-िही औाय-व्यय का तनरीक्षण औार उिका उपयुि
व्यिहार; वफर िहज उपलब्ध िुख क्याें छाेड ददया जाए?
उिने वफर िाेचा-मठधाररयाे,ं िाधुऔाें के मलए िब पथ खुले हाेिे हं। यद्वप प्राचीन औायाेों की
धममनीति में इिीमलए कुट़ीचर औार एकान्ि िासियाें का ही औनुमाेदन ह; प्राचीन िंघबर्द् हाेकर
बार्द्धमम ने जाे यह औपना कूडा छाेड ददया ह, उिे भारि के धामममक िम्भ्प्रदाय औभी फंे क नहीं िकिे।
िाे वफर चले िंिार औपनी गति िे।
देितनरं जन औपने वििाल मठ में लाट औाया औार महन्िी नये ढं ग िे देखी जाने लगी। भिाें की
पूजा औार चढाि का प्रबन्ध हाेने लगा। गद्दी औार िवकये की देखभाल चली दाे ही ददन में मठ का
रप बदल गया।
एक चाँदनी राि थी। गंगा के िट पर औखाडे िे ममला हुऔा उपिन था। वििाल िृक्ष की छाया में
चाँदनी उपिन की भूमम पर औनेक मचत्र बना रही थी। बिंि-िमीर ने कुछ रं ग बदला था। तनरं जन
मन के उद्वेग िे िहीं टहल रहा था। वकिाेरी औायी। तनरं जन चांक उठा। हृदय में रि दाडने लगा।
वकिाेरी ने उि धुँधले प्रकाि में पहचानने की चेष्टा की; परन्िु िह औिफल हाेकर चुप रही।
तनरं जन ने वफर कहना औारम्भ्भ वकया, 'झेलम के िट पर रं जन औार वकिाेरी नाम के दाे बालक औार
बामलका खेलिे थे। उनमें बडा स्नेह था। रं जन औपने वपिा के िाथ हरद्वार जाने लगा, परन्िु उिने
कहा था वक वकिाेरी मं िेरे मलए गुदडया ले औाऊँगा; परन्िु िह झूठा बालक औपनी बाल-िंगगनी के
पाि वफर न लाटा। क्या िुम िही वकिाेरी हाे?'
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उिका बाल-िहचर इिना बडा महात्मा!-वकिाेरी की िमस्ि धमतनयाें में हलचल मच गयी। िह
प्रिन्निा िे बाेल उठी, 'औार क्या िुम िही रं जन हाे?'
लडखडािे हुए तनरं जन ने उिका हाथ पकडकर कहा, 'हाँ वकिाेरी, मं िहीं रं जन हँ। िुमकाे ही पाने
के मलए औाज िक िपस्या करिा रहा, यह िंमचि िप िुम्भ्हारे चरणाें में तनछािर ह। िंिान, एेश्वयम
औार उन्नति देने की मुझमें जाे िमि ह, िह िब िुम्भ्हारी ह।'
औिीि की स्मृति, ििममान की कामनाएँ वकिाेरी काे भुलािा देने लगीं। उिने ब्रह्मचारी के चाडे िक्ष
पर औपना सिर टे क ददया।
कई महीने बीि गये। बलदाऊ ने स्िामी काे पत्र मलखा वक औाप औाइये, वबना औापके औाये बहरानी
नहीं जािीं औार मं औब यहाँ एक घड़ी भी रहना उमचि नहीं िमझिा।
श्रीचन्र औाये। हठीली वकिाेरी ने बडा रप ददखलाया। वफर मान-मनाि हुऔा। देितनरं जन काे
िमझा-बुझाकर वकिाेरी वफर औाने की प्रतिज्ञा करके पति के िाथ चली गयी। वकिाेरी का मनाेरथ
पूणम हुऔा।
रामा िहाँ रह गयी। हरद्वार जिे पुण्यिीथम में क्या विधिा काे स्थान औार औाश्रय की कमी थी!
पन्रह बरि बाद कािी में ग्रहण था। राि में घाटाें पर नहाने का बडा िुन्दर प्रबन्ध था। चन्रग्रहण हाे
गया। घाट पर बड़ी भीड थी। औाकाि में एक गहरी नीमलमा फली नक्षत्राें में चागुनी चमक थी; परन्िु
खगाेल में कुछ प्रिन्निा न थी। देखिे-देखिे एक औच्छे मचत्र के िमान पूणममािी का चन्रमा औाकाि
पट पर िे धाे ददया गया। धामममक जनिा में काेलाहल मच गया। लाेग नहाने, गगरने िथा भूलने भी
लगे। वकिनाें का िाथ छूट गया।
विधिा रामा औब िधिा हाेकर औपनी कन्या िारा के िाथ भण्डारीजी के िाथ औायी थी। भीड के
एक ही धक्के में िारा औपनी मािा िथा िामथयाें िे औलग हाे गयी। यूथ िे वबछड़ी हुई ड्हरनी के
िमान बड़ी-बड़ी औाँखाें िे िह इधर-उधर देख रही थी। कले जा धक-धक करिा था, औाँखें छलछला
रही थीं औार उिकी पुकार उि महा काेलाहल में विलीन हुई जािी थी। िारा औधीर हाे गयी थी।
उिने पाि औाकर पूछा, 'बेट़ी, िुम वकिकाे खाेज रही हाे?'
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िारा िुन्दरी थी, हाेनदार िांदयम उिके प्रत्येक औंग में णछपा था। िह युििी हाे चली थी; परन्िु
औनाघ्राि कुिुम के रप में पंखुररयाँ विकिी न थीं। औधेड स्त्री ने स्नेह िे उिे छािी िे लगा मलया
औार कहा, 'मं औभी िेरी माँ के पाि पहुँचा देिी हँ, िह िाे मेरी बहन ह, मं िुझे भलीभाँति जानिी हँ।
िू घबडा मि।'
ड्हन्दू स्कूल का एक स्ियंिेिक पाि औा गया, उिने पूछा, 'क्या िुम भूल गयी हाे?'
िारा राे रही थी। औधेड स्त्री ने कहा, 'मं जानिी हँ, यहीं इिकी माँ ह, िह भी खाेजिी थी। मं मलिा
जािी हँ।'
स्ियंिेिक मंगल चुप रहा। युिक छात्र एक युििी बामलका के मलए हठ न कर िका। िह दूिरी
औाेर चला गया औार िारा उिी स्त्री के िाथ चली।
(2)
लखनऊ िंयुिप्रान्ि में एक तनराला नगर ह। वबजली के प्रभा िे औालाेवकि िन्ध्या 'िाम-औिध' की
िम्भ्पूणम प्रतिभा ह। पण्य में क्य-विक्य चल रहा ह; नीचे औार ऊपर िे िुन्दररयाें का कटाक्ष।
चमकीली िस्िुऔाें का झलमला, फूलाें के हार का िारभ औार रसिकाें के ििन में लगे हुए गन्ध िे
खेलिा हुऔा मुि पिन-यह िब ममलकर एक उत्तेजजि करने िाला मादक िायुमण्डल बन रहा ह।
मंगलदेि औपने िाथी झखलादडयाें के िाथ मच खेलने लखनऊ औाया था। उिका स्कूल औाज
विजयी हुऔा ह। कल िे लाेग बनारि लाटें गे। औाज िब चाक में औपना विजयाेल्लाि प्रकट करने के
मलए औार उपयाेगी िस्िु क्य करने के मलए एकत्र हुए हं।
छात्र िभी िरह के हाेिे हं। उिके विनाेद भी औपने-औपने ढं ग के; परन्िु मंगल इिमें तनराला था।
उिका िहज िुन्दर औंग ब्रह्मचयम औार यािन िे प्रफुल्ल था। तनममल मन का औालाेक उिके मुख-
मण्डल पर िेज बना रहा था। िह औपने एक िाथी काे ढूँ ढने के मलए चला औाया; परन्िु िीरे न्र ने
उिे पीछे िे पुकारा। िह लाट पडा।
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िीरे न्र-'नहीं, पहले िुम स्िीकार कराे।'
मंगल-'यह नहीं हाे िकिा; क्याेंवक वफर उिे न करने िे मुझे कष्ट हाेगा।'
िीरे न्र-'बहुि बुरी बाि ह; परन्िु मेरी ममत्रिा के नािे िुम्भ्हें करना ही हाेगा।'
िीरे न्र-'यह मेरा हठ ह औार िुम जानिे हाे वक मेरा काेई भी विनाेद िुम्भ्हारे वबना औिम्भ्भि ह,
तनस्िार ह। देखाे, िुमिे स्पष्ट करिा हँ। उधर देखाे-िह एक बाल िेश्या ह, मं उिके पाि जाकर एक
बार केिल नयनामभराम रप देखना चाहिा हँ। इििे वििेर् कुछ नहीं।'
िीरे न्र-'िुम्भ्हें मेरी िागन्ध; पाँच ममनट िे औधधक नहीं लगेगा, हम लाट औािेंगे, चलाे, िुम्भ्हें औिश्य
चलना हाेगा। मंगल, क्या िुम जानिे हाे वक मं िुम्भ्हें क्याें ले चल रहा हँ?'
मंगल-'क्याें?'
िीरे न्र-'जजििे िुम्भ्हारे भय िे मं विचमलि न हाे िकूँ! मं उिे देखूँगा औिश्य; परन्िु औागे डर िे
बचाने िाला िाथ रहना चाड्हए। ममत्र, िुमकाे मेरी रक्षा के मलए िाथ चलना ही चाड्हए।'
मंगल ने कुछ िाेचकर कहा, 'चलाे।' परन्िु क्ाेध िे उनकी औाँखें लाल हाे गयी थीं।
िह िीरे न्र के िाथ चल पडा। िीदडयाें िे ऊपर कमरे में दाेनाें जा पहुँचे। एक र्ाेडिी युििी िजे
हुए कमरे में बठी थी। पहाड़ी रखा िांदयम उिके गेहुँए रं ग में औाेि-प्राेि ह। िब भरे हुए औंगाें में
रि का िेगिान िंचार कहिा ह वक इिका िारुण्य इििे कभी न छँ टेगा। बीच में ममली हुई भांहाें
के नीचे न जाने वकिना औंधकार खेल रहा था! िहज नुकीली नाक उिकी औाकृति की स्ििन्त्रिा
ित्ता बनाये थी। नीचे सिर वकये हुए उिने जब इन लाेगाें काे देखा, िब उि िमय उिकी बड़ी-बड़ी
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औाँखाें के काेन औार भी झखंचे हुए जान पडे । घने काले बालाें के गुच्छे दाेनाें कानाें के पाि के कन्धाें
पर लटक रहे थे। बाएँ कपाेल पर एक तिल उिके िरल िान्दयम काे बाँका बनाने के मलए पयामप्त
था। शिक्षा के औनुिार उिने िलाम वकया; परन्िु यह खुल गया वक औन्यमनस्क रहना उिकी
स्िाभाविकिा थी।
िहिा मंगल चांक उठा, उिने पूछा, 'क्या हमने िुमकाे कहीं औार भी देखा ह?'
'कई महीने हुए, कािी में ग्रहण की राि काे जब मं स्ियंिेिक का काम कर रहा था, मुझे स्मरण
हाेिा ह, जिे िुम्भ्हें देखा हाे; परन्िु िुम िाे मुिलमानी हाे।'
'हाे िकिा ह वक औापने मुझे देखा हाे; परन्िु उि बाि काे जाने दीजजये, औभी औम्भ्मा औा रही हं।'
मंगलदेि कुछ कहना ही चाहिा था वक 'औम्भ्मा' औा गयी। िह विलािजीणम दुष्ट मुखाकृति देखिे ही
घृणा हाेिी थी।
'कुछ नहीं। गुलेनार काे देखने के मलए चला औाया था।' कहकर िीरे न्र मुस्करा ददया।
'औापकी लांड़ी ह, औभी िाे िालीम भी औच्छी िरह नहीं ले िी, क्या कहँ बाबू िाहब, बड़ी बाेदी ह।
इिकी वकिी बाि पर ध्यान न दीजजयेगा।' औम्भ्मा ने कहा।
'नहीं-नहीं, इिकी मचंिा न कीजजये। हम लाेग िाे परदेिी हं। यहाँ घूम रहे थे, िब इनकी मनमाेड्हनी
छवि ददखाई पड़ी; चले औाये।' िीरे न्र ने कहा।
औम्भ्मा ने भीिर की औाेर पुकारिे हुए कहा, 'औरे इलायची ले औा, क्या कर रहा ह?'
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'औभी औाया।' कहिा हुऔा एक मुिलमान युिक चाँदी की थाली में पान-इलायची ले औाया। िीरे न्र ने
इलायची ले ली औार उिमें दाे रुपये रख ददये। वफर मंगलदेि की औाेर देखकर कहा, 'चलाे भाई,
गाड़ी का भी िमय देखना हाेगा, वफर कभी औाया जायेगा। प्रतिज्ञा भी पाँच ममनट की ह।'
'औभी बदठये भी, क्या औाये औार क्या चले ।' वफर िक्ाेध गुलेनार काे देखिी हुई औम्भ्मा कहने लगी,
'क्या काेई बठे औार क्याें औाये! िुम्भ्हें िाे कुछ बाेलना ही नहीं ह औार न कुछ हँिी-खुिी की बािें ही
करनी ह,ं काेई क्याें ठहरे औम्भ्मा की त्याेररयाँ बहुि ही चढ गयी थीं। गुलेनार सिर झुकाये चुप थी।
मंगलदेि जाे औब िक चुप था, बाेला, 'मालू म हाेिा ह, औाप दाेनाें में बनिी बहुि कम ह; इिका क्या
कारण ह?'
गुलेनार कुछ बाेलना ही चाहिी थी वक औम्भ्मा बीच में बाेल उठी, 'औपने-औपने भाग हाेिे हं बाबू
िाहब, एक ही बेट़ी, इिने दुलार िे पाला-पाेिा, वफर भी न जाने क्याें रठी रहिी ह।' कहिी हुई बुडीढ
के दाे औाँिू भी तनकल पडे । गुलेनार की िाक्िमि जिे बन्दी हाेकर िडफडा रही थी। मंगलदेि ने
कुछ-कुछ िमझा। कुछ उिे िन्देह हुऔा। परन्िु िह िम्भ्भलकर बाेला, 'िब औाप ही ठीक हाे जाएगा,
औभी औल्हडपन ह।'
िीरे न्र औार मंगलदेि उठे , िीढ़ी की औाेर चले । गुलेनार ने झुककर िलाम वकया; परन्िु उिकी औाँखें
पलकाें का पल्ला पिारकर करुणा की भीख माँग रही थीं। मंगलदेि ने-चररत्रिान मंगलदेि ने-जाने
क्याे एक रहस्यपूणम िंकेि वकया। गुलेनार हँि पड़ी, दाेनाें नीचे उिर गये।
'मंगल! िुमने िाे बडे लम्भ्बे हाथ-पर तनकाले -कहाँ िाे औािे ही न थे, कहाँ ये हरकिें!' िीरे न्र ने कहा।
'िीरे न्र! िुम मुझे जानिे हाे; परन्िु मं िचमुच यहँाा औाकर फँ ि गया। यही िाे औाियम की बाि ह।'
'हुऔा करे , चलाे ब्यालू करके िाे रहें। ििेरे की टर े न पकडनी हाेगी।''
'नहीं िीरे न्र! मंने िाे कतनोंग काॉलेज में नाम मलखा ले ने का तनिय-िा कर मलया ह, कल मं नहीं
चल िकिा।'' मंगल ने गंभीरिा िे कहा।
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'िीरे न्र जिे औाियमचवकि हाे गया। उिने कहा, 'मंगल, िुम्भ्हारा इिमें काेई गूढ उद्देश्य हाेगा। मुझे
िुम्भ्हारे ऊपर इिना विश्वाि ह वक मं कभी स्िप्न में भी नहीं िाेच िकिा वक िुम्भ्हारा पद-स्खलन
हाेगा; परन्िु वफर भी मं कझम्भ्पि हाे रहा हँ।'
सिर नीचा वकये मंगल ने कहा, 'औार मं िुम्भ्हारे विश्वाि की परीक्षा करँगा। िुम िाे बचकर तनकल
औाये; परन्िु गुलेनार काे बचाना हाेगा। िीरे न्र मं तनियपूिमक कहिा हँ वक यही िह बामलका ह,
जजिके िम्भ्बन्ध में मं ग्रहण के ददनाें में िुमिे कहिा था वक मेरे देखिे ही एक बामलका कुटनी के
चंगुल में फँ ि गयी औार मं कुछ न कर िका।'
'एेिी बहुि िी औभागगन इि देि में हं। वफर कहाँ-कहाँ िुम देखाेगे?'
'िािधान!'
िीरे न्र जानिा था वक मंगल बडा हठी ह, यदद इि िमय मं इि घटना काे बहुि प्रधानिा न दूँ, िाे
िम्भ्भि ह वक िह इि कायम िे विरि हाे जाये, औन्यथा मंगल औिश्य िही करे गा, जजििे िह राेका
जाए; औिएि िह चुप रहा। िामने िाँगा ददखाई ददया। उि पर दाेनाें बठ गये।
दूिरे ददन िबकाे गाड़ी पर बठाकर औपने एक औािश्यक कायम का बहाना कर मंगल स्ियं लखनऊ
रह गया। कतनंग काॉलेज के छात्राें काे यह जानकर बड़ी प्रिन्निा हुई वक मंगल िहीं पढे गा। उिके
मलए स्थान का भी प्रबन्ध हाे गया। मंगल िहीं रहने लगा।
दाे ददन बाद मंगल औमीनाबाद की औाेर गया। िह पाकम की हररयाली में घूम रहा था। उिे औम्भ्मा
ददखाई पड़ी औार िही पहले बाेली, 'बाबू िाहब, औाप िाे वफर नहीं औाये।'
मंगल दुविधा में पड गया। उिकी इच्छा हुई वक कुछ उत्तर न दे। वफर िाेचा-औरे मंगल, िू िाे
इिीमलए यहाँ रह गया ह! उिने कहाँ, 'हाँ-हाँ, कुछ काम में फँ ि गया था, औाज मं औिश्य औािा; पर
क्या करँ मेरे एक ममत्र िाथ में हं। िह मेरा औाना-जाना नहीं जानिे। यदद िे चले गये, िाे औाज ही
औाऊँगा, नहीं िाे वफर वकिी ददन।'
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'नहीं-नहीं, औापकाे गुलेनार की किम, चमलए िह िाे उिी ददन िे बड़ी उदाि रहिी ह।'
'औाप मेरे िाथ चमलये, वफर जब औाइयेगा, िाे उनिे कह दीजजयेगा-मं िाे िुम्भ्हीं काे ढूँ ढिा रहा,
इिमलए इिनी देर हुई, औार िब िक िाे दाे बािें करके चले औाएँगे।'
'किमव्यतनष्ठ मंगल ने विचार वकया-ठीक िाे ह। उिने कहा, 'औच्छी बाि ह।'
गुलेनार बठी हुई पान लगा रही थी। मंगलदेि काे देखिे ही मुस्कराई; जब उिके पीछे औम्भ्मा की
मूतिम ददखलाई पड़ी, िह जिे भयभीि हाे गयी। औम्भ्मी ने कहा, 'बाबू िाहब बहुि कहने-िुनने िे औाये
हं, इनिे बािें कराे। मं मीर िाहब िे ममलकर औािी हँ, देखूँ, क्याें बुलाया ह?'
गुलेनार ने सिर नीचे वकये हुए पूछा, 'औापके मलए पान बाजार िे मँगिाना हाेगा न?'
मंगल ने कहा, 'उिकी औािश्यकिा नहीं, मं िाे केिल औपना कुिूहल ममटाने औाया हँ-क्या िचमुच
िुम िही हाे, जजिे मंने ग्रहण की राि कािी में देखा था?'
'जब औापकाे केिल पूछना ही ह िाे मं क्याे बिाऊँ जब औाप जान जायेंगे वक मं िही हँ, िाे वफर
औापकाे औाने की औािश्यकिा ही न रह जायेगी।'
मंगल ने िाेचा, िंिार वकिनी िीघ्रिा िे मनुष्य काे चिुर बना देिा ह। 'औब िाे पूछने का काम ही
नहीं ह।'
'क्याें?'
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'हाँ, यही िाे एक भयानक बाि ह।'
'िह बड़ी कथा ह।' यह कहकर गुलेनार ने लम्भ्बी िाँि ली, उिकी औाँखें औाँिू िे भर गयीं।
'क्याें नहीं, पर िुनकर क्या कीजजयेगा। औब इिना ही िमझ लीजजये वक मं एक मुिलमानी िेश्या
हँ।'
'मेरा नाम िारा ह। मं हररद्वार की रहने िाली हँ। औपने वपिा के िाथ कािी में ग्रहण नहाने गयी
थी। बड़ी कदठनिा िे मेरा वििाह ठीक हाे गया था। कािी िे लाटिे हुए मं एक कुल की स्िाममनी
बनिी; परन्िु दुभामग्य...!' उिकी भरी औाँखाें िे औाँिू गगरने लगे।
'धीरज धराे िारा! औच्छा यह िाे बिाऔाे, यहाँ किे कटिी ह?'
'मेरा भगिान् जानिा ह वक किे कटिी ह! दुष्टाें के चंगुल में पडकर मेरा औाचार-व्यिहार िाे नष्ट हाे
चुका, केिल ििमनाि हाेना बाकी ह। उिमें कारण ह औम्भ्मा का लाेभ औार मेरा कुछ औाने िालाें िे
एेिा व्यिहार भी हाेिा ह वक औभी िह जजिना रुपया चाहिी हं, नहीं ममलिा। बि इिी प्रकार बची
जा रही हँ; परन्िु वकिने ददन!' गुलेनार सििकने लगी।
गुलेनार ने पूछा, 'औाप ही बिाइये, तनकलकर कहाँ जाऊँ औार क्या करँ
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'औपने मािा-वपिा के पाि। मं पहुँचा दूँगा, इिना मेरा काम ह।'
बड़ी भाेली दृधष्ट िे देखिे हुए गुलेनार ने कहा, 'औाप जहाँ कहें मं चल िकिी हँ।'
'औच्छा पहले यह िाे बिाऔाे वक किे िुम कािी िे यहाँ पहुँच गयी हाे?'
'जाइये, पर इि दुझखया का ध्यान रझखये। हाँ, औपना पिा िाे बिाइए, मुझे काेई औििर ममला, िाे मं
किे िूमचि करँगी?'
मंगल ने एक मचट पर पिा मलखकर दे ददया औार कहा, 'मं भी प्रबन्ध करिा रहँगा। जब औििर
ममले , मलखना; पर एक ददन पहले ।'
औम्भ्मा के पराें का िब्द िीड्ढयाें पर िुनाई पडा औार मंगल उठ खडा हुऔा। उिके औािे ही उिने
पाँच रुपये हाथ पर धर ददये।
'नहीं, वफर वकिी ददन औाऊँगा, िुम्भ्हारी बेगम िाहेबा िाे कुछ बाेलिी ही नहीं, इनके पाि बठकर क्या
करँगा!'
मंगल चला गया। औम्भ्मा क्ाेध िे दाँि पीििी हुई गुलेनार काे घूरने लगी।
दूिरे -िीिरे ददन मंगल गुलेनार के यहाँ जाने लगा; परन्िु िह बहुि िािधान रहिा। एक दुिररत्र
युिक उन्हीं ददनाें गुलेनार के यहाँ औािा। कभी-कभी मंगल की उििे मुठभेड हाे जािी; परन्िु मंगल
एेिे कडे िे बाि करिा वक िह मान गया। औम्भ्मा ने औपने स्िाथम िाधन के मलए इन दाेनाें में
प्रतिद्वझन्द्विा चला दी। युिक िरीर िे हृष्ट-पुष्ट किरिी था, उिके ऊपर के हाेंठ मिूडाें के ऊपर ही
रह गये थे। दाँिाें की श्रेणी िदि खुली रहिी, उिकी लम्भ्बी नाक औार लाल औाँखें बड़ी डरािनी औार
राेबीली थीं; परन्िु मंगल की मुस्कराहट पर िह भाचका-िा रह जािा औार औपने व्यिहार िे मंगल
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काे ममत्र बनाये रखने की चेष्टा वकया करिा। गुलेनार औम्भ्मा काे यह ददखलािी वक िह मंगल िे
बहुि बाेलना नहीं चाहिी।
एक ददन दाेनाें गुलेनार के पाि बठे थे। युिक ने, जाे औभी औपने एक ममत्र के िाथ दूिरी िेश्या के
यहाँ िे औाया था-औपना ड़ींग हाँकिे हुए ममत्र के मलए कुछ औपिब्द कहे, वफर उिने मंगल िे कहा,
'िह न जाने क्याें उि चुडल के यहाँ जािा ह। औार क्याें कुरप स्त्रस्त्रयाँ िेश्या बनिी हं, जब उन्हें
मालू म ह वक उन्हें िाे रप के बाजार में बठना ह।' वफर औपनी रसिकिा ददखािे हुए हँिने लगा।
'परन्िु मं िाे औाज िक यही नहीं िमझिा वक िुन्दरी स्त्रस्त्रयाँ क्याें िेश्या बनें! िंिार का िबिे िुन्दर
जीि क्याें िबिे बुरा काम करे कहकर मंगल ने िाेचा वक यह स्कूल की वििाद-िभा नहीं ह। िह
औपनी मूखमिा पर चुप हाे गया। युिक हँि पडा। औम्भ्मा औपनी जीविका काे बहुि बुरा िुनकर िन
गयी। गुलेनार सिर नीचा वकये हँि रही थी। औम्भ्मा ने कहा-
युिक औम्भ्मा काे ले कर बािें करने लगा, िह प्रिन्न हुऔा वक प्रतिद्वन्द्वी औपनी ही ठाेकर िे गगरा, धक्का
देने की औािश्यकिा ही न पड़ी। मंगल की औाेर देखकर धीरे िे गुलेनार ने कहा, 'औच्छा हुऔा; पर
जल्द...!'
िाह मीना की िमाधध पर गायकाें की भीड ह। िािन का हररयाली क्षेत्र पर औार नील मेघमाला
औाकाि के औंचल में फल रही ह। पिन के औान्दाेलन िे वबजली के औालाेक में बादलाें का हटना-
बढना गगन िमुर में िरं गाें का िृजन कर रहा ह। कभी फूही पड जािी ह, िमीर का झाेंका गायकाें
काे उन्मत्त बना देिा ह। उनकी इकहरी िानें तिरही हाे जािी हं। िुनने िाले झूमने लगिे हं।
िेश्याऔाें का दिमकाें के मलए औाकर्मक िमाराेह ह।
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औब रसिकाें के िमाज में हलचल मची, बूँदें लगािार पडने लगीं। लाेग तििर-वबिर हाेने लगे।
गुलेनार युिक औार औम्भ्मा के िाथ औािी थीं, िह युिक िे बािें करने लगी। औम्भ्मा भीड में औलग
हाे गयी, दाेनाें औार औागे बढ गये। िहिा गुलेनार ने कहा, 'औाह! मेरे पाँि में चटक हाे गयी, औब मं
एक पल चल नहीं िकिी, डाेली ले औाऔाे।' िह बठ गयी। युिक डाेली ले ने चला।
गुलेनार ने इधर-उधर देखा, िीन िामलयाँ बजीं। मंगल औा गया, उिने कहा, 'िाँगा ठीक ह।'
'चलाे!' दाेनाें हाथ पकडकर बढे । चक्कर देखकर दाेनाें बाहर औा गये, िाँगे पर बठे औार िह िाँगेिाला
कािालाें की िान 'जजि-जजि काे ददया चाहें' दुहरािा हुऔा चाबुक लगािा घाेडे काे उडा ले चला।
चारबाग स्टे िन पर देहरादून जाने िाली गाड़ी खड़ी थी। िाँगे िाले काे पुरस्कार देकर मंगल िीधे
गाड़ी में जाकर बठ गया। िीट़ी बजी, सिगनल हुऔा, गाड़ी खुल गयी।
'ठीक िमय िे पािी औा गया। हाँ, यह िाे कहाे, मेरा पत्र कब ममला?'
'औाज ना बजे। मं िमान ठीक करके िंध्या की बाट देख रहा था। ड्टकट ले मलये थे औार ठीक
िमय पर िुमिे भेंट हुई।'
'औपने िेश्यापन के दाे-िीन औाभूर्ण उिार दाे औार वकिी के पूछने पर कहना-औपने वपिा के पाि
जा रही हँ, ठीक पिा बिाना।'
िहाँ पूरा एकान्ि था, दूिरे यात्री न थे। देहरादून एक्िप्रेि िेग िे जा रही थी।
मंगल ने कहा, 'िुम्भ्हें िूझी औच्छी। उि िुम्भ्हारी दुष्ट औम्भ्मा काे यही विश्वाि हाेगा वक काेई दूिरा ही
ले गया। हमारे पाि िक िाे उिका िन्देह भी न पहुँचेगा।'
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'भगिान् की दया िे नरक िे छुटकारा ममला। औाह किी नीच कल्पनाऔाें िे हृदय भर जािा था-
िन्ध्या में बठकर मनुष्य-िमाज की औिुभ कामना करना, उि नरक के पथ की औाेर चलने का
िंकेि बिाना, वफर उिी िे औपनी जीविका!'
'यही कभी-कभी मं भी विचारिी हँ वक िंिार दूर िे, नगर, जनपद िाध-श्रेणी, राजमागम औार
औट्टामलकाऔाें िे जजिना िाेभन ददखाई पडिा ह, ििा ही िरल औार िुन्दर भीिर िे नहीं ह। जजि
ददन मं औपने वपिा िे औलग हुई, एेिे-एेिे तनलम ज्ज औार नीच मनाेिृत्तत्तयाें के मनुष्याें िे िामना हुऔा,
जजन्हें पिु भी कहना उन्हें मड्हमाझन्िि करना ह!'
'िुम्भ्हारे िामने जजि दुष्टा ने मुझे फँ िाया, िह स्त्रस्त्रयाें का व्यापार करने िाली एक िंस्था की कुटनी
थी। मुझे ले जाकर उन िबाें ने एक घर में रखा, जजिमें मेरी ही जिी कई औभागगनें थीं, परन्िु
उनमें िब मेरी जिी राेने िाली न थीं। बहुि-िी स्िेच्छा िे औायी थीं औार वकिनी ही कलं क लगने
पर औपने घर िालाें िे ही मेले में छाेड दी गई थीं! मं औलग बठी राेिी थी। उन्हीं में िे कई मुझे
हँिाने का उद्ाेग करिीं, काेई िमझािी, काेई झझडवकयाँ िुनािी औार काेई मेरी मनाेिृत्तत्त के कारण
मुझे बनािी! मं चुप हाेकर िुना करिी; परन्िु काेई पथ तनकलने का न था। िब प्रबन्ध ठीक हाे
गया था, हम लाेग पंजाब भेजी जाने िाली थीं। रे ल पर बठने का िमय हुऔा, मं सििक रही थी।
स्टे िन के विश्रामगृह में एक भीड-िी लग रही थी, परन्िु मुझे काेई न पूछिा था। यही दुष्टा औम्भ्मा
िहाँ औाई औार बडे दुलार िे बाेली-चल बेट़ी, मं िुझे िेरी माँ के पाि पहुँचा दूँगी। मंने उन िबाें काे
ठीक कर मलया ह। मं प्रिन्न हाे गयी। मं क्या जानिी थी वक चूल्हे िे तनकलकर भाड में जाऊँगी।
बाि भी कुछ एेिी थी। मुझे उपरि मचािे देखकर उन लाेगाें ने औम्भ्मा िे रुपया ले कर मुझे उिके
िाथ कर ददया, मं लखनऊ पहुँची।'
'हाँ-हाँ, ठीक ह, मंने िुना ह पंजाब में स्त्रस्त्रयाें की कमी ह, इिीमलए औार प्रान्िाें िे स्त्रस्त्रयाँ िहाँ भेजी
जािी ह,ं जाे औच्छे दामाें पर वबकिी हं। क्या िुम भी उन्हीं के चंगुल में...
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स्टे िन पर गाड़ी रुक गयी। रजनी की गहरी नीमलमा के नभ में िारे चमक रहे थे। िारा उन्हें
झखडकी िे देखने लगी। इिने में उि गाड़ी में एक पुरुर् यात्री ने प्रिेि वकया। िारा घूँघट
तनकालकर बठ गयी। औार िह पुरुर् मुँह फेरकर िाे गया ह; परन्िु औभी जगे रहने की िम्भ्भािना
थी। बािें औारम्भ्भ न हुइों । कुछ देर िक दाेनाें चुपचाप थे। वफर झपकी औाने लगी। िारा ऊँघने लगी।
मंगल भी झपकी ले ने लगा। गंभीर रजनी के औंचल िे उि चलिी हुई गाड़ी पर पंखा चल रहा था।
औामने-िामने बठे हुए मंगल औार िारा तनरािि हाेकर झूम रहे थे। मंगल का सिर टकराया। उिकी
औाँखें खुली। िारा का घूँघट उलट गया था। देखा, िाे गले का कुछ औंि, कपाेल, पाली औार
तनरातनमीमलि पद्ापलािलाेचन, जजि पर भांहाें की काली िेना का पहरा था! िह न जाने क्याें उिे
देखने लगा। िहिा गाड़ी रुकी औार धक्का लगा! िारा मंगलदेि के औंक में औा गयी। मंगल ने उिे
िम्भ्हाल मलया। िह औाँखें खाेलिी हुई मुस्कुराई औार वफर िहारे िे ड्टककर िाेने लगी। यात्री जाे
औभी दूिरे स्टे िन पर चढा था, िाेिे-िाेिे िेग िे उठ पडा औार सिर झखडकी िे बाहर तनकालकर
िमन करने लगा। मंगल स्ियंिेिक था। उिने जाकर उिे पकडा औार िारा िे कहा, 'लाेटे में पानी
हाेगा, दाे मुझे!'
िारा ने जल ददया, मंगल ने यात्री का मुँह धुलाया। िह औाँखाें काे जल िे ठं डक पहुँचािे हुए मंगल
के प्रति कृतिज्ञिा प्रकट करना ही चाहिा था वक िारा औार उिकी औाँखें ममल गयीं। िारा पर
पकडकर राेने लगी। यात्री ने तनदमयिा िे झझटकार ददया। मंगल औिाक् था।
'बाबू जी, मेरा क्या औपराध ह मं िाे औाप लाेगाें काे खाेज रही थी।'
'जाे पाि में बठा ह। मुझे खाेजना चाहिी ह, िाे एक पाेस्टकाडम न डाल देिी कलं वकनी, दुष्ट! मुझे
जल वपला ददया, प्रायश्चित्त करना पडे गा!'
औब मंगल के िमझ में औाया वक िह यात्री िारा का वपिा ह, परन्िु उिे विश्वाि न हुऔा वक यही
िारा का वपिा ह। क्या वपिा भी इिना तनदमय हाे िकिा ह उिे औपने ऊपर वकये गये व्यंग्य का भी
बडा दुख हुऔा, परन्िु क्या करे , इि कठाेर औपमान काे िारा का भविष्य िाेचकर िह पी गया। उिने
धीरे -िे सििकिी हुई िारा िे पूछा, 'क्या िही िुम्भ्हारे वपिा हं?'
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'हाँ, परन्िु मं औब क्या करँ बाबूजी, मेरी माँ हाेिी िाे इिनी कठाेरिा न करिी। मं उन्हीं की गाेद में
जाऊँगी।' िारा फूट-फूटकर राे रही थी।
'िेरी नीचिा िे दुखी हाेकर महीनाें हुऔा, िह मर गयी, िू न मरी-कामलख पाेिने के मलए जीिी रही!'
यात्री ने कहा।
मंगल िे रहा न गया, उिने कहा, 'महािय, औापका क्ाेध व्यथम ह। यह स्त्री कुचवक्याें के फेर में पड
गयी थी, परन्िु इिकी पवित्रिा में काेई औन्िर नहीं पडा, बड़ी कदठनिा िे इिका उर्द्ार करके मं
इिे औाप ही के पाि पहुँचाने के मलए जािा था। भाग्य िे औाप ममल गये।'
'भाग्य नहीं, दुभामग्य िे!' घृणा औार क्ाेध िे यात्री के मुँह का रं ग बदल रहा था।
'िब यह वकिकी िरण में जायेगी? औभागगनी की कान रक्षा करे गा मं औापकाे प्रमाण दूँगा वक िारा
तनरपराधधनी ह। औाप इिे...'
बीच ही में यात्री ने राेककर कहा, 'मूखम युिक! एेिी स्िररणी काे कान गृहस्थ औपनी कन्या कहकर
सिर नीचा करे गा। िुम्भ्हारे जिे इनके बहुि-िे िंरक्षक ममलें गे। बि औब मुझिे कुछ न कहाे।' यात्री
का दम्भ्भ उिके औधराें में स्फुररि हाे रहा था। िारा औधीर हाेकर राे रही थी औार युिक इि कठाेर
उत्तर काे औपने मन में िाल रहा था।
गाड़ी बीच के छाेटे स्टे िन पर नहीं रुकी। स्टे िन की लालटे नें जल रही थीं। िारा ने देखा, एक
िजा-िजाया घर भागकर णछप गया। िीनाें चुप रहे। िारा क्ाेध पर ग्लातन िे फूल रही थी। तनरािा
औार औन्धकार में विलीन हाे रही थी। गाड़ी स्टे िन पर रुकी। िहिा यात्री उिर गया।
मंगलदेि किमव्य मचंिा में व्यस्ि था। िारा भविष्य की कल्पना कर रही थी। गाड़ी औपनी धुन में
गंभीर िम का भेदन करिी हुई चलने लगी।
(3)
हरद्वार की बस्िी िे औलग गंगा के िट पर एक छाेटा-िा उपिन ह। दाे-िीन कमरे औार दालानाें का
उििे लगा हुऔा छाेटा-िा घर ह। दालान में बठी हुई िारा माँग िँिार रही ह। औपनी दुबली-पिली
लम्भ्बी काया की छाया प्रभाि के काेमल औािप िे डालिी हुई िारा एक कुलिधू के िमान ददखाई
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पडिी ह। बालाें िे लपेटकर बँधा हुऔा जूडा छलछलायी औाँखें, नममि औार ढ़ीली औंगलिा, पिली-
पिली लम्भ्बी उँ गमलयाँ, जिे विमचत्र िजीि हाेकर काम कर रहा ह। पखिाराें में िारा के कपाेलाें के
ऊपर भांहाें के नीचे श्याम-मण्डल पड गया ह। िह काम करिे हुए भी, जिे औन्यमनस्क-िी ह।
औन्यमनस्क रहना ही उिका स्िाभाविकिा ह। औाज-कल उिकी झुकी हुई पलकंे काली पुिमलयाें
काे णछपाये रखिी हं। औाँखें िंकेि िे कहिी हं वक हमें कुछ न कहाे, नहीं बरिने लगेंगी।
पाि ही िून की छाया में पत्थर पर बठा हुऔा मंगल एक पत्र मलख रहा ह। पत्र िमाप्त करके उिने
िारा की औाेर देखा औार पूछा, 'मं पत्र छाेडने जा रहा हँ। काेई काम बाजार का हाे िाे करिा
औाऊँ।'
िारा ने पूणम ग्रड्हणी भाि िे कहा, 'थाेडा कडिा िेल चाड्हए औार िब िस्िुएँ हं।' मंगलदेि जाने के
मलए उठ खडा हुऔा। िारा ने वफर पूछा, 'औार नाकरी का क्या हुऔा?'
'नाकरी ममल गयी ह। उिी की स्िीकृति-िूचना मलखकर पाठिाला के औधधकारी के पाि भेज रहा
हँ। औायम-िमाज की पाठिाला में व्यायाम-शिक्षक का काम करँगा।'
'िेिन िाे थाेडा ही ममले गा। यदद मुझे भी काेई काम ममल जाये, िाे देखना, मं िुम्भ्हारा हाथ बँटा
लूँ गी।'
मंगलदेि ने हँि ददया औार कहा, 'स्त्रस्त्रयाँ बहुि िीघ्र उत्िाड्हि हाे जािी हं। औार उिने ही औधधक
पररणाम में तनरािािाददनी भी हाेिी हं। भला मं िाे पहले ड्टक जाऊँ! वफर िुम्भ्हारी देखी जायेगी।'
मंगलदेि चला गया। िारा ने उि एकान्ि उपिन की औाेर देखा-िरद का तनरर औाकाि छाेटे-िे
उपिन पर औपने उज्ज्वल औािप के ममि हँि रहा था। िारा िाेचने लगी-
'यहाँ िे थाेड़ी दूर पर मेरा वपिृगृह ह, पर मं िहाँ नहीं जा िकिी। वपिा िमाज औार धमम के भय िे
त्रस्ि हं। औाेह, तनष्ठुर वपिा! औब उनकी भी पहली-िी औाय नहीं, महन्िजी प्रायः बाहर, वििेर्कर
कािी रहा करिे हं। मठ की औिस्था वबगड गयी ह। मंगलदेि-एक औपररमचि युिक-केिल ित्िाहि
के बल पर मेरा पालन कर रहा ह। इि दाििृत्तत्त िे जीिन वबिाने िे क्या िह बुरा था, जजिे
छाेडकर मं औायी। वकि औाकर्मण ने यह उत्िाह ददलाया औार औब िह क्या हुऔा, जाे मेरा मन
ग्लातन का औनुभि करिा ह, परिन्त्रिा िे नहीं, मं भी स्िािलझम्भ्बनी बनूँगी; परन्िु मंगल! तनरीह
तनष्पाप हृदय!'
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िारा औार मंगल-दाेनाें के मन के िंकल्प-विकल्प चल रहे थे। िमय औपने मागम चल रहा था। ददन
छूटिे जािे थे। मंगल की नाकरी लग गयी। िारा गृहस्थी चलाने लगी।
धीरे -धीरे मंगल के बहुि िे औायम ममत्र बन गये। औार कभी-कभी देवियाँ भी िारा िे ममलने लगीं।
औािश्यकिा िे वििि हाेकर मंगल औार िारा ने औायम िमाज का िाथ ददया था। मंगल स्ििंत्र
विचार का युिक था, उिके धमम िम्भ्बन्धी विचार तनराले थे, परन्िु बाहर िे िह पूणम औायम िमाजी था।
िारा की िामाजजकिा बनाने के मलये उिे दूिरा मागम न था।
एक ददन कई ममत्राें के औनुराेध िे उिने औपने यहाँ प्रीतिभाेज ददया। श्रीमिी प्रकाि देिी, िुभरा,
औम्भ्बामलका, पीलाेमी औादद नामांवकि कई देवियाँ, औमभमन्यु, िेदस्िरप, ज्ञानदत्त औार िरुणवप्रय,
भीष्मव्रि औादद कई औायमिभ्य एकतत्रि हुए।
िृक्ष के नीचे कुसिमयाँ पड़ी थीं। िब बठे थे। बािचीि हाे रही थी। िारा औतिमथयाें के स्िागि में लगी
थी। भाेजन बनकर प्रस्िुि था। ज्ञानदत्त ने कहा, 'औभी ब्रह्मचारी जी नहीं औाये!'
एक घुटनाें िे नीचा लम्भ्बा कुिाम डाले , लम्भ्बे बाल औार छाेट़ी दाढ़ी िाले गारिपूणम युिक काे देखिे ही
नमस्िे की धूम मच गई। ब्रह्मचारी जी बठे । मंगलदेि का पररचय देिे हुए िेदस्िरप ने कहा, 'औापका
िुभ नाम मंगलदेि ह! उन्हाेंने ही इन देिी का यिनाें के चंगुल िे उर्द्ार वकया ह।' िारा ने नमस्िे
वकया, ब्रह्मचारी ने पहले हँि कर कहा, 'िाे िाे हाेना चाड्हए, एेिे ही नियुिकाें िे भारििर्म काे औािा
ह। इि ित्िाह के मलए मं धन्यिाद देिा हँ औाप िमाज में कब िे प्रविष्ट हुए हं?'
'बहुि िीघ्र जाइये, वबना मभत्तत्त के काेई घर नहीं ड्टकिा औार वबना नींि की काेई मभत्तत्त नहीं। उिी
प्रकार िड्द्वचार के वबना मनुष्य की स्स्थति नहीं औार धमम-िंस्काराें के वबना िड्द्वचार ड्टकाऊ नहीं
हाेिे। इिके िम्भ्बन्ध में मं वििेर् रप िे वफर कहँगा। औाइये, हम लाेग िन्ध्या-िन्दन कर लें ।'
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िन्ध्या औार प्राथमना के िमय मंगलदेि केिल चुपचाप बठा रहा। थामलयाँ परिी गइों । भाेजन करने
के मलए लाेग औािन पर बठे । िेदस्िरप ने कहना औारम्भ्भ वकया, 'हमारी जाति में धमम के प्रति इिनी
उदािीनिा का कारण ह एक कझल्पि ज्ञान; जाे इि देि के प्रत्येक प्रणाली िाणी के मलए िुलभ हाे
गया ह। िस्िुिः उन्हें ज्ञानभाि हाेिा ह औार िे औपने िाधारण तनत्यकमम िे िंमचि हाेकर औपनी
औाध्याझत्मक उन्नति करने में भी औिमथम हाेिे हं।'
ज्ञानदत्त-'इिमलए औायाेों का कममिाद िंिार के मलए विलक्षण कल्याणदायक ह-ईश्वर के प्रति विश्वाि
करिे हुए भी स्िािलम्भ्बन का पाठ पढािा ह। यह ऋवर्याें का ददव्य औनुिंधान ह।'
ब्रह्मचारी ने गंभीर स्िर में प्रणिाद वकया औार दन्ि-औन्न का युर्द् प्रारम्भ्भ हुऔा।
'कदावप नहीं, एेिा िमझना रम ह महाियजी! मनुष्याें काे पाप-पुण्य की िीमा में रखने के मलए
इििे बढकर काेई उपाय जाग्रि नहीं ममला।'
िुभरा ने कहा।
'श्रीमिी! मं पाप-पुण्य की पररभार्ा नहीं िमझिा; परन्िु यह कहँगा वक मुिलमान धमम इि औाेर बडा
दृढ ह। िह िम्भ्पूणम तनरािािादी हाेिे हुए, भातिक कुल िमियाें पर औविश्वाि करिे हुए, केिल ईश्वर
की औनुकम्भ्पा पर औपने काे तनभमर करिा ह। इिीमलए उनमें इिनी दृढिा हाेिी ह। उन्हें विश्वाि
हाेिा ह वक मनुष्य कुछ नहीं कर िकिा, वबना परमात्मा की औाज्ञा के। औार केिल इिी एक
विश्वाि के कारण िे िंिार में िंिुष्ट हं।'
परिने िाले ने कहा, 'मूँग का हलिा ले औाऊँ। खीर में िाे औभी कुछ विलम्भ्ब ह।'
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ब्रह्मचारी ने कहा, 'भाई हम जीिन काे िुख के औच्छे उपकरण ढूँ ढने में नहीं वबिाना चाहिे। जाे कुछ
प्राप्त ह, उिी में जीिन िुखी हाेकर बीिे, इिी की चेष्टा करिे हं, इिमलए जाे प्रस्िुि हाे, ले औाऔाे।'
वफर ब्रह्मचारी ने कहा, 'महािय जी, औापने एक बडे धमम की बाि कही ह। मं उिका कुछ तनराकरण
कर देना चाहिा हँ। मुिलमान-धमम तनरािािादी हाेिे हुए भी क्याें इिना उन्नतििील ह, इिका कारण
िाे औापने स्ियं कहा वक 'ईश्वर में विश्वाि' परन्िु इिके िाथ उनकी िफलिा का एक औार भी
रहस्य ह। िह ह उनकी तनत्य-वक्या की तनयम-बर्द्िा; क्याेंवक तनयममि रप िे परमात्मा की कृपा का
लाभ उठाने के मलए प्राथमना करनी औािश्यक ह। मानि-स्िभाि दुबमलिाऔाें का िंकलन ह, ित्यकमम
वििेर् हाेने पािे नहीं, क्याेवं क तनत्य-वक्याऔाें द्वारा उनका औभ्याि नहीं। दूिरी औाेर ज्ञान की कमी िे
ईश्वर तनष्ठा भी नहीं। इिी औिस्था काे देखिे हुए ऋवर् ने यह िुगम औायम-पथ बनाया ह। प्राथमना
तनयममि रप िे करना, ईश्वर में विश्वाि करना, यही िाे औायम-िमाज का िंदेि ह। यह स्िािलम्भ्बपूणम
ह; यह दृढ विश्वाि ददलािा ह वक हम ित्यकमम करें गे, िाे परमात्मा की औिीम कृपा औिश्य हाेगी।'
िब लाेगाें ने उन्हें धन्यिाद ददया। ब्रह्मचारी ने हँिकर िबका स्िागि वकया। औब एक क्षणभर के
मलए वििाद स्थगगि हाे गया औार भाेजन में िब लाेग दत्तमचत्त हुए। कुछ भी परिने के मलए जब
पूछा जािा िाे िे 'हँ' कहिे। कभी-कभी न ले ने के मलए उिी का प्रयाेग हाेिा। परिने िाला घबरा
जािा औार रम िे उनकी थाली में कुछ-न-कुछ डाल देिा; परन्िु िह िब यथास्थान पहुँच जािा।
भाेजन िमाप्त करके िब लाेग यथास्थान बठे । िारा भी देवियाें के िाथ ड्हल-ममल गयी।
चाँदनी तनकल औायी थी। िमय िुन्दर था। ब्रह्मचारी ने प्रिंग छे डिे हुए कहा, 'मंगलदेि जी! औापने
एक औायम-बामलका का यिनाें िे उर्द्ार करके बडा पुण्यकमम वकया ह, इिके मलए औापकाे हम िब
लाेग बधाई देिे हं।'
विदुर्ी िुभरा ने कहा, 'परमात्मा की कृपा िे िारादेिी के िुभ पाणणग्रहण के औििर पर हम लाेग
वफर इिी प्रकार िझम्भ्ममलि हाें।'
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मंगलदेि, ने जाे औभी िक औपनी प्रिंिा का बाेझ सिर नीचे वकये उठा रहा था, कहा, 'जजि ददन
इिनी हाे जाये, उिी ददन मं औपने किमव्य का पूरा कर िकूँगा।'
िारा सिर झुकाए रही। उिके मन में इन िामाजजकाें की िहानुभूति ने एक नई कल्पना उत्पन्न कर
दी। िह एक क्षण भर के मलए औपने भविष्य िे तनश्चिन्ि-िी हाे गयी।
उपिन के बाहर िक िारा औार मंगलदेि ने औतिमथयाें काे पहुँचाया। लाेग विदा हाे गये। मंगलदेि
औपनी काेठरी में चला गया औार िारा औपने कमरे में जाकर पलं ग पर ले ट गयी। उिने एक बार
औाकाि के िुकुमार शििु काे देखा। छाेटे-िे चन्र की हलकी चाँदनी में िृक्षाें की परछाइों उिकी
कल्पनाऔाें काे रं जजि करने लगी। िह औपने उपिन का मूक दृश्य खुली औाँखाें िे देखने लगी।
पलकाें में नींद न थी, मन में चन न था, न जाने क्याें उिके हृदय में धडकन बढ रही थी। रजनी के
नीरि िंिार में िह उिे िाफ िुन रही थी। जागिे-जागिे दाेपहर िे औधधक चली गयी। चझन्रका के
औस्ि हाे जाने िे उपिन में औँधेरा फल गया। िारा उिी में औाँख गडाकर न जाने क्या देखना
चाहिी थी। उिका भूि, ििममान औार भविष्य-िीनाें औन्धकार में कभी णछपिे औार कभी िाराें के रप
में चमक उठिे। िह एक बार औपनी उि िृत्तत्त काे औाह्वान करने की चेष्टा करने लगी, जजिकी शिक्षा
उिे िेश्यालय िे ममली थी। उिने मंगल काे िब नहीं, परन्िु औब खींचना चाहा। रिीली कल्पनाऔाें
िे हृदय भर गया। राि बीि चली। उर्ा का औालाेक प्राची में फल रहा था। उिने झखडकी िे
झाँककर देखा िाे उपिन में चहल-पहल थी। जूही की प्यामलयाें में मकरन्द-मददरा पीकर मधुपाें की
टाेमलयाँ लडखडा रही थीं औार दसक्षणपिन मालसिरी के फूलाें की कादडयाँ फंे क रहा था। कमर िे
झुकी हुई औलबेली बेमलयाँ नाच रही थीं। मन की हार-जीि हाे रही थी।
िारा ने मुस्कुरािे हुए पलं ग पर बठकर दाेनाें हाथ सिर िे लगािे हुए कहा, 'नमस्कार!'
िमय के िाथ-िाथ औधधकाधधक गृहस्थी में चिुर औार मंगल पररश्रमी हाेिा जािा था। ििेरे
जलपान बनाकर िारा मंगल काे देिी, िमय पर भाेजन औार ब्यालू । मंगल के िेिन में िब प्रबन्ध हाे
जािा, कुछ बचिा न था। दाेनाें काे बचाने की मचंिा भी न थी, परन्िु इन दाेनाें की एक बाि नई हाे
चली। िारा मंगल के औध्ययन में बाधा डालने लगी। िह प्रायः उिके पाि ही बठ जािी। उिकी
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पुस्िकाें काे उलटिी, यह प्रकट हाे जािा वक िारा मंगल िे औधधक बािचीि करना चाहिी ह औार
मंगल कभी-कभी उििे घबरा उठिा।
ििन्ि का प्रारम्भ्भ था, पत्ते देखिे ही देखिे एेंठिे जािे थे औार पिझड के बीहड िमीर िे िे झडकर
गगरिे थे। दाेपहर था। कभी-कभी बीच में काेई पक्षी िृक्षाें की िाखाऔाें में णछपा हुऔा बाेल उठिा।
वफर तनस्िब्धिा छा जािी। ददिि विरि हाे चले थे। औँगडाई ले कर िारा ने िृक्ष के नीचे बठे हुए
मंगल िे कहा, 'औाज मन नहीं लगिा ह।'
'मेरा मन भी उचाट हाे रहा ह। इच्छा हाेिी ह वक कहीं घूम औाऊँ; परन्िु िुम्भ्हारा ब्याह हुए वबना मं
कहीं नहीं जा िकिा।'
'क्याें?'
'ददन िाे वबिाना ही ह, कहीं नाकरी कर लूँ गी। ब्याह करने की क्या औािश्यकिा ह?'
'नहीं िारा, यह नहीं हाे िकिा। िुम्भ्हारा तनश्चिि लक्ष्य बनाये वबना किमव्य मुझे धधक्कार देगा।'
'क्याें ये भार औपने ऊपर ले िे हाे मुझे औपनी धारा में बहने दाे।'
'मं कभी-कभी विचारिी हँ वक छायामचत्र-िदृि जलस्ाेि में तनयति पिन के थपेडे लगा रही ह, िह
िरं ग-िंकुल हाेकर घूम रहा ह। औार मं एक तिनके के िदृि उिी में इधर-उधर बह रही हँ। कभी
भँिर में चक्कर खािी हँ, कभी लहराें में नीचे-ऊपर हाेिी हँ। कहीं कूल-वकनारा नहीं।' कहिे-कहिे िारा
की औाँखें छलछला उठीं।
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'न घबडाऔाे िारा, भगिान् िबके िहायक हं।' मंगल ने कहा। औार जी बहलाने के मलए कहीं घूमने
का प्रस्िाि वकया।
दाेनाें उिरकर गंगा के िमीप के शिला-खण्डाें िे लगकर बठ गये। जाह्निी के स्पिम िे पिन औत्यन्ि
िीिल हाेकर िरीर में लगिा ह। यहाँ धूप कुछ भली लगिी थी। दाेनाें विलम्भ्ब िक बठे चुपचाप
तनिगम के िुन्दर दृश्य देखिे थे। िंध्या हाे चली। मंगल ने कहा, 'िारा चलाे, घर चलें ।' िारा चुपचाप
उठी। मंगल ने देखा, उिकी औाँखें लाल हं। मंगल ने पूछा, 'क्या सिर ददम ह?'
'नहीं िाे।'
दाेनाें घर पहुँचे। मंगल ने कहा, 'औाज ब्यालू बनाने की औािश्यकिा नहीं, जाे कहाे बाजार िे ले िा
औाऊँ।'
'इि िरह किे चले गा। मुझे क्या हुऔा ह, थाेडा दूध ले औाऔाे, िाे खीर बना दूँ, कुछ पूररयाँ बची हं।'
िारा िाेचने लगी-मंगल मेरा कान ह, जाे मं इिनी औाज्ञा देिी हँ। क्या िह मेरा काेई ह। मन में
िहिा बड़ी-बड़ी औमभलार्ाएँ उददि हुइों औार गंभीर औाकाि के िून्य में िाराऔाें के िमान डू ब गई।
िह चुप बठी रही।
मंगल दूध ले कर औाया। दीपक जला। भाेजन बना। मंगल ने कहा, 'िारा औाज िुम मेरे िाथ ही
बठकर भाेजन कराे।'
िारा काे कुछ औाियम न हुऔा, यद्वप मंगल ने कभी एेिा प्रस्िाि न वकया था; परन्िु िह उत्िाह के
िाथ िझम्भ्ममलि हुई।
दाेनाें भाेजन करके औपने-औपने पलं ग पर चले गये। िारा की औाँखाें में नींद न थी, उिे कुछ िब्द
िुनाई पडा। पहले िाे उिे भय लगा, वफर िाहि करके उठी। औाहट लगी वक मंगल का-िा िब्द
ह। िह उिके कमरे में जाकर खड़ी हाे गई। मंगल िपना देख रहा था, बरामिा था-'कान कहिा ह
वक िारा मेरी नहीं ह मं भी उिी का हँ। िुम्भ्हारे हत्यारे िमाज की मं मचंिा नहीं करिा... िह देिी
ह। मं उिकी िेिा करँगा...नहीं-नहीं, उिे मुझिे न छीनाे।'
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िारा पलं ग पर झुक गयी थी, ििन्ि की लहरीली िमीर उिे पीछे िे ढकेल रही थी। राेमांच हाे रहा
था, जिे कामना-िरं गगनी में छाेट़ी-छाेट़ी लहररयाँ उठ रही थीं। कभी िक्षस्थल में, कभी कपाेलाें पर
स्िेद हाे जािे थे। प्रकृति प्रलाेभन में िजी थी। विश्व एक रम बनकर िारा के यािन की उमंग में
डू बना चाहिा था।
िहिा मंगल ने उिी प्रकार िपने में बरामिे हुए कहा, 'मेरी िारा, प्यारी िारा औाऔाे!' उिके दाेनाें हाथ
उठ रहे थे वक औाँख बन्द कर िारा ने औपने काे मंगल के औंक में डाल ददया?'
प्रभाि हुऔा, िृक्षाें के औंक में पसक्षयाें का कलरि हाेने लगा। मंगल की औाँखें खुलीं, जिे उिने
रािभर एक मनाेहर िपना देखा हाे। िह िारा काे छाेडकर बाहर तनकल औाया, टहलने लगा। उत्िाह
िे उिके चरण नृत्य कर रहे थे। बड़ी उत्तेजजि औिस्था में टहल रहा था। टहलिे-टहलिे एक बार
औपनी काेठरी में गया। जंगले िे पहली लाल वकरणें िारा के कपाेल पर पड रही थी। मंगल ने उिे
चूम मलया। िारा जाग पड़ी। िह लजािी हुई मुस्कुराने लगी। दाेनाें का मन हलका था।
उत्िाह में ददन बीिने लगे। दाेनाें के व्यमित्ि में पररििमन हाे चला। औब िारा का िह तनःिंकाेच
भाि न रहा। पति-पत्नी का िा व्यिहार हाेने लगा। मंगल बडे स्नेह िे पूछिा, िह िहज िंकाेच िे
उत्तर देिी। मंगल मन-ही-मन प्रिन्न हाेिा। उिके मलए िंिार पूणम हाे गया था-कहीं ररििा नहीं, कहीं
औभाि नहीं।
िारा एक ददन बठी किीदा काढ रही थी। धम-धम का िब्द हुऔा। दाेपहर था, औाँख उठाकर देखा...
एक बालक दाडा हुऔा औाकर दालान में णछप गया। उपिन के वकिाड िाे खुले ही थे, औार भी दाे
लडके पीछे -पीछे औाये। पहला बालक सिमटकर िबकी औाँखाें की औाेट हाे जाना चाहिा था। िारा
कुिूहल िे देखने लगी। उिने िंकेि िे मना वकया वक बिािे न। िारा हँिने लगी। दाेनाें के खाेजने
िाले लडके िाड गये। एक ने पूछा, 'िच बिाना रामू यहाँ औाया ह पडाेि के लडके थे, िारा ने हँि
ददया, रामू पकड गया। िारा ने िीनाें काे एक-एक ममठाई दी। खूब हँिी हाेिी रही।
कभी-कभी कल्लू की माँ औा जािी। िह किीदा िीखिी। कभी बल्लाे औपनी वकिाब ले कर औािी, िारा
उिे कुछ बिािी। विदुर्ी िुभरा भी प्रायः औाया करिी। एक ददन िुभरा बठी थी, िारा ने कुछ उििे
जलपान का औनुराेध वकया। िुभरा ने कहा, 'िुम्भ्हारा ब्याह जजि ददन हाेगा, उिी ददन जलपान
करँगी।'
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'औार जब िक न हाेगा, िुम मेरे यहाँ जल न पीऔाेगी?'
िुभरा रुक गयी। िारा के कपाेल लाल हाे गये। उिकी औाेर कनझखयाें िे देख रही थी। िह बाेली,
'क्या मंगलदेि ब्याह करने पर प्रस्िुि नहीं हाेिे?'
'मं करँगी बहन! िंिार बडा खराब ह। िुम्भ्हारा उर्द्ार इिमलए नहीं हुऔा ह वक िुम याें ही पड़ी
रहाे! मंगल में यदद िाहि नहीं ह, िाे दूिरा पात्र ढूँ ढा जायेगा; परन्िु िािधान! िुम दाेनाें काे इि
िरह रहना काेई भी िमाज हाे, औच्छी औाँखाें िे नहीं देखेगा। चाहे िुम दाेनाें वकिने ही पवित्र हाे!'
िारा काे जिे वकिी ने चुटकी काट ली। उिने कहा, 'न देखे िमाज भले ही, मं वकिी िे कुछ
चाहिी िाे नहीं; पर मं औपने ब्याह का प्रस्िाि वकिी िे नहीं कर िकिी।'
'भूल ह प्यारी बहन! हमारी स्त्रस्त्रयाें की जाति इिी में मारी जािी ह। िे मुँह खाेलकर िीधा-िादा
प्रस्िाि नहीं कर िकिीं; परन्िु िंकेिाें िे औपनी कुड्टल औंग-भंगगयाें के द्वारा प्रस्िाि िे औधधक
करके पुरुर्ाें काे उत्िाड्हि वकया करिी हं। औार बुरा न मानना, िब िे औपना ििमस्ि औनायाि ही
नष्ट कर देिी हं। एेिी वकिनी घटनाएँ जानी गयी हं।'
िारा जिे घबरा गयी। िह कुछ भारी मुँह वकये बठी रही। िुभरा भी कुछ िमय बीिने पर चली
गयी।
मंगलदेि पाठिाला िे लाटा। औाज उिके हाथ में एक भारी गठरी थी। िारा उठ खड़ी हुई। पूछा,
'औाज यह क्या ले औाये?'
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गठरी खुली-िाबुन, रमाल, काँच की चूदडयाँ, इिर औार भी कुछ प्रिाधन के उपयाेगी पदाथम थे। िारा
ने हँििे हुए उन्हें औपनाया।
मंगल ने कहा, 'औाज िमाज में चलाे, उत्िि ह। कपडे बदल लाे।' िारा ने स्िीकार िूचक सिर ड्हला
ददया। कपडे का चुनाि हाेने लगा। िाबुन लगा, कंघी फेरी गई। मंगल ने िारा की िहायिा की, िारा
ने मंगल की। दाेनाें नयी स्फूतिम िे प्रेररि हाेकर िमाज-भिन की औाेर चले ।
इिने ददनाें बाद िारा औाज ही हरद्वार के पथ पर बाहर तनकलकर चली। उिे गमलयाें का, घाटाें का,
बाल्यकाल का दृश्य स्मरण हाे रहा था-यहाँ िह खेलने औािी, िहाँ दिमन करिी, िहाँ पर वपिा के
िाथ घूमने औािी। राह चलिे-चलिे उिे स्मृतियाें ने औमभभूि कर ददया। औकस्माि् एक प्राढा स्त्री
उिे देखकर रुकी औार िामभप्राय देखने लगी। िह पाि चली औायी। उिने वफर औाँखें गडाकर
देखा, 'िारा िाे नहीं।'
'हाँ, चाची!'
'औरी िू कहाँ?'
'भाग्य!'
कपडे िूख चले थे। िारा उन्हें इकट्ठा कर रही थी। मंगल बठा हुऔा उनकी िह लगा रहा था। बदली
थी। मंगल ने कहा, 'औाज खूब जल बरिेगा।'
'क्याें?'
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'बादल भींग रहे ह,ं पिन रुका ह। प्रेम का भी पूिम रप एेिा ही हाेिा ह। िारा! मं नहीं जानिा था
वक प्रेम-कादझम्भ्बनी हमारे हृदयाकाि में कब िे औड़ी थी औार िुम्भ्हारे िान्दयम का पिन उि पर घेरा
डाले हुए था।'
'मं जानिी थी। जजि ददन पररचय की पुनरािृत्तत्त हुई, मेरे खारे औाँिुऔाें के प्रेमघन बन चुके थे। मन
मििाला हाे गया था; परन्िु िुम्भ्हारी िाम्भ्य-िंयि चेष्टा ने राेक रखा था; मं मन-ही-मन महिूि कर
जािी। औार इिमलए मंने िुम्भ्हारी औाज्ञा मानकर िुम्भ्हें औपने जीिन के िाथ उलझाने लगी थी।'
'मं नहीं जानिा था, िुम इिनी चिुर हाे। औजगर के श्वाि में झखंचे हुए मृग के िमान मं िुम्भ्हारी
इच्छा के भीिर तनगल मलया गया।'
'ितनक भी नहीं प्यारी िारा, हम दाेनाें इिमलए उत्पन्न हुए थे। औब मं उमचि िमझिा हँ वक हम
लाेग िमाज के प्रचमलि तनयमाें में औाबर्द् हाे जायें, यद्वप मेरी दृधष्ट में ित्य-प्रेम के िामने उिका
कुछ मूल्य नहीं।'
औभी ये लाेग बािें कर रहे थे वक उि ददन की चाची ददखलाई पड़ी। िारा ने प्रिन्निा िे उिका
स्िागि वकया। उिका चादर उिारकर उिे बठाया। मंगलदेि बाहर चला गया।
'क्याें चाची! जहाँ औपने पररमचि हाेिे हं, िहीं िाे लाेग जािे हं। परन्िु दुनामम की औिस्था में उिे
जगह िे औलग जाना चाड्हए।'
'नहीं-नहीं, भला एेिा भी काेई कहेगा।' जीभ दबािे हुए चाची ने कहा।
'वपिाजी ने मेरा तिरस्कार वकया, मं क्या करिी चाची।' िारा राेने लगी।
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चाची ने िान्त्िना देिे हुए कहा, 'न राे िारा!'
िमझाने के बाद वफर िारा चुप हुई; परन्िु िह फूल रही थी। वफर मंगल के प्रति िंकेि करिे हुए
चाची ने पूछा, 'क्या यह प्रेम ठहरे गा िारा, मं इिमलए मचझन्िि हाे रही हँ, एेिे बहुि िे प्रेमी िंिार में
ममलिे ह;ं पर तनभाने िाले बहुि कम हाेिे हं। मंने िेरी माँ काे ही देखा ह।' चाची की औाँखाें में औाँिू
भर औाये; पर िारा काे औपनी मािा का इि िरह का स्मरण वकया जाना बहुि बुरा लगा। िह कुछ
न बाेली। चाची काे जलपान कराना चाहा; पर िह जाने के मलए हठ करने लगी। िारा िमझ गयी
औार बाेला, 'औच्छा चाची! मेरे ब्याह में औाना। भला औार काेई नहीं, िाे िुम िाे औकेली औभागगन पर
दया करना।'
चाची काे जिे ठाेकर िी लग गयी। िह सिर उठाकर कहने लगी, 'कब ह औच्छा-औच्छा औाऊँगी।'
वफर इधर-उधर की बािें करके िह चली गयी।
िारा िे ििंक हाेकर एक बार वफर विलक्षण चाची काे देखा, जजिे पीछे िे देखकर काेई नहीं कह
िकिा था वक चालीि बरि की स्त्री ह। िह औपनी इठलािी हुई चाल िे चली जा रही थी। िारा ने
मन में िाेचा-ब्याह की बाि करके मंने औच्छा नहीं वकया; परन्िु करिी क्या, औपनी स्स्थति िाफ करने
के मलए दूिरा उपाय ही न था।
चाची औब प्रायः तनत्य औािी। िारा के वििाहाेत्िि-िम्भ्बन्ध की िस्िुऔाें की िूची बनािी। िारा उत्िाह
में भर गयी थी। मंगलदेि िे जाे कहा जािा, िही ले औािा। बहुि िीघ्रिा िे काम औारम्भ्भ हुऔा।
चाची काे औपना िहायक पाकर िारा औार मंगल दाेनाें की प्रिन्न थे। एक ददन िारा गंगा-स्नान करने
गयी थी। मंगल चाची के कहने पर औािश्यक िस्िुऔाें की िामलका मलख रहा था। िह सिर नीचा
वकये हुए ले खनी चला िा था औार औागे बढने के मलए 'हँ' कहिा जािा था। िहिा चाची ने कहा,
'परन्िु यह ब्याह हाेगा वकि रीि िे मं जाे मलखा रही हँ, िह िाे पुरानी चाल के ब्याह के मलए ह।'
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'मं क्या जानू,ँ औायम-िमाज के कुछ लाेग उि ददन तनमंतत्रि हाेंगे औार िही लाेग उिे करिायेंगे। हाँ,
उिमें पूजा का टं ट-घंट ििा न हाेगा, औार िब िाे ििा ही हाेगा।'
'ठीक ह।' मुस्कुरािी हुए चाची ने कहा, 'एेिे िर-िधू का ब्याह औार वकि रीति िे हाेगा।'
'क्याें औाियम िे मंगल उिका मुँह देखने लगा। चाची के मुँह पर उि िमय बडा विमचत्र भाि था।
विलाि-भरी औाँखें, मचलिी हुई हँिी देखकर मंगल काे स्ियं िंकाेच हाेने लगा। कुझत्िि स्त्रस्त्रयाें के
िमान िह ददल्लगी के स्िर में बाेली, 'मंगल बडा औच्छा ह, ब्याह जल्द कर लाे, नहीं िाे बाप बन जाने
के पीछे ब्याह करना ठीक नहीं हाेगा।'
मंगल काे क्ाेध औार लज्जा के िाथ घृणा भी हुई। चाची ने औपना औाँचल िँभालिे हुए िीखे कटाक्षाें
िे मंगल की औाेर देखा। मंगल ममामहि हाेकर रह गया। िह बाेला, 'चाची!'
औार भी हँििी हुई चाची ने कहा, 'िच कहिी हँ, दाे महीने िे औधधक नहीं टले हं।'
मंगल सिर झुकाकर िाेचने के बाद बाेला, 'चाची, हम लाेगाें का िब रहस्य िुम जानिी हाे िाे िुमिे
बढकर हम लाेगाें का िुभमचन्िक औार ममत्र कान हाे िकिा ह, औब जिा िुम कहाे ििा करें ।'
चाची औपनी विजय पर प्रिन्न हाेकर बाेली, 'एेिा प्रायः हाेिा ह। िारा की माँ ही कान कहीं की
भण्डारजी की ब्याही धममपत्नी थी! मंगल, िुम इिकी मचंिा मि कराे, ब्याह िीघ्र कर लाे, वफर काेई न
बाेलेगा। खाेजने में एेिाें की िंख्या भी िंिार में कम न हाेगी।'
चाची औपनी ििृिा झाड रही थी। उधर मंगल िारा की उत्पत्तत्त के िम्भ्बन्ध में विचारने लगा। औभी-
औभी उि दुष्टा चाची ने एक मामममक चाेट उिे पहुँचायी। औपनी भूल औार औपने औपराध मंगल काे
नहीं ददखाई पडे ; परन्िु िारा की माँ भी दुराचाररणी!-यह बाि उिे खटकने लगी। िह उठकर उपिन
की औाेर चला गया। चाची ने बहुि चाहा वक उिे औपनी बािाें में लगा ले ; पर िह दुखी हाे गया था।
इिने में िारा लाट औायी। बडा औाग्रह ददखािे हुए चाची ने कहा, 'िारा, ब्याह के मलए परिाें का ददन
औच्छा ह। औार देखाे, िुम नहीं जानिी हाे वक िुमने औपने पेट में एक जीि काे बुला मलया ह;
इिमलए ब्याह का हाे जाना औत्यन्ि औािश्यक ह।'
िारा चाची की गम्भ्भीर मूतिम देखकर डर गयी। िह औपने मन में िाेचने लगी-जिा चाची कहिी ह
िही ठीक ह। िारा ििंक हाे चली!
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चाची के जाने पर मंगल लाट औाया। िारा औार मंगल दाेनाें का हृदय उछल रहा था। िाहि करके
िारा ने पूछा, 'कान ददन ठीक हुऔा?'
सिर झुकािे हुए मंगल ने कहा, 'परिाें। वफर िह औपना काेट पहनने हुए उपिन के बाहर हाे गया।?'
िारा िाेचने लगी-क्या िचमुच मं एक बच्चे की माँ हाे चली हँ। यदद एेिा हुऔा िाे क्या हाेगा। मंगल
का प्रेम ही रहेगा-िह िाेचिे-िाेचिे ले ट गयी। िामान वबखरे रहे।
घर में ब्याह का िमाराेह था। िुभरा औार चाची काम में लगी हुई थीं। हाेम के मलए िेदी बन चुकी
थी। िारा का प्रिाधन हाे रहा था; परन्िु मंगलदेि स्नान करने हर की पड़ी गया था। िह स्नान करके
घाट पर औाकर बठ गया। घर लाटने की इच्छा न हुई। िह िाेचने लगा-िारा दुराचाररणी की िंिान
ह, िह िेश्या के यहाँ रही ह, वफर मेरे िाथ भाग औायी, मुझिे औनुमचि िम्भ्बन्ध हुऔा औार औब िह
गभमििी ह। औाज मं ब्याह करके कई कुकमाेों की कलु वर्ि िन्िान का वपिा कहलाऊँगा! मं क्या
करने जा रहा हँ!-घड़ी भर की मचंिा में िह तनमग्न था। औन्ि में इिी िमय उिके ध्यान में एक
एेिी बाि औा गयी वक उिके ित्िाहि ने उिका िाथ छाेड ददया। िह स्ियं िमाज की लाँछना
िह िकिा था; परन्िु भािी िंिान के प्रति िमाज की कझल्पि लांछना औार औत्याचार ने उिे
विचमलि वकया। िह जिे एक भािी विप्लि के भय िे त्रस्ि हाे गया। भगाेडे िमान िह स्टे िन की
औाेर औग्रिर हुऔा। उिने देखा, गाड़ी औाना ही चाहिी ह। उिके काेट की जेब में कुछ रुपये थे।
पूछा, 'इि गाड़ी िे बनारि पहुँच िकिा हँ?'
उत्तर ममला, 'हाँ, लिकर में बदलकर, िहाँ दूिरी टर े न ियार ममले गी।'
ड्टकट ले कर िह दूर िे हररयाली में तनकलिे हुए धुएँ काे चुपचाप देख रहा था, जाे उडने िाले
औजगर के िमान औाकाि पर चढ रहा था। उिके मस्िक में काई बाि जमिी न थी। िह औपराधी
के िमान हरद्वार िे भाग जाना चाहिा था। गाड़ी औािे ही उि पर चढ गया। गाड़ी छूट गयी।
इधर उपिन में मंगलदेि के औाने की प्रिीक्षा हाे रही थी। ब्रह्मचारी जी औार देिस्िरप िथा औार दाे
िज्जन औाये। काेई पूछिा था-मंगलदेि जी कहाँ हं काेई कहिा-िमय हाे गया। काेई कहिा-विलम्भ्ब
हाे रहा ह। परन्िु मंगलदेि कहाँ?'
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िारा का कले जा धक-धक करने लगा। िह न जाने वकि औनागि भय िे डरने लगी! राेने-राेने हाे
रही थी। परन्िु मंगल में राेना नहीं चाड्हए, िह खुलकर न राे िकिी थी।
जाे बुलाने गया, िही लाट औाया। खाेज हुई, पिा न चला। िन्ध्या हाे औायी; पर मंगल न लाटा।
िारा औधीर हाेकर राेने लगी। ब्रह्मचारी जी मंगल काे भला-बुरा कहने लगे। औन्ि में उन्हाेने यहाँ िक
कह डाला वक यदद मुझे यह विददि हाेिा वक मंगल इिना नीच ह, िाे मं वकिी दूिरे िे यह िम्भ्बन्ध
करने का उद्ाेग करिा। िुभरा िारा काे एक औाेर ले जाकर िान्त्िना दे रही थी। औििर पाकर
चाची ने धीरे िे कहा, 'िह भाग न जािा िाे क्या करिा, िीन महीने का गभम िह औपने सिर पर
औाेढकर ब्याह करिा?'
'एे परमात्मन्, यह भी ह।' कहिे हुए ब्रह्मचारीजी लम्भ्बी डग बढािे उपिन के बाहर चले गये। धीरे -धीरे
िब चले गये। चाची ने यथा परिि हाेकर िामान बटाेरना औारम्भ्भ वकया औार उििे छुट्ट़ी पाकर
िारा के पाि जाकर बठ गयी।
िारा िपना देख रही थी-झूले के पुल पर िह चल रही ह। भीर्ण पिमि-श्रेणी! ऊपर औार नीचे
भयानक खडि! िह पर िम्भ्हालकर चल रही ह। मंगलदेि पुल के उि पार खडा बुला रहा ह। नीचे
िेग िे नदी बह रही ह। बरफ के बादल धघर रहे हं। औचानक वबजली कडकी, पुल टू टा, िारा
भयानक िेग ने नीचे गगर पड़ी। िह मचल्लाकर जाग गयी। देखा, िाे चाची उिका सिर िहला रही ह।
िह चाची की गाेद में सिर रखकर सििकने लगी।
(4)
पहाड जिे ददन बीििी ही न थे। दुःख की रािें जाडे की राि िे भी लम्भ्बी बन जािी हं। दुझखया
िारा की औिस्था िाेचनीय थी। मानसिक औार औामथमक मचंिाऔाें िे िह जजमर हाे गयी। गभम के बढने
िे िरीर िे भी कृि हाे गयी। मुख पीला हाे चला। औब उिने उपिन में रहना छाेड ददया। चाची के
घर में जाकर रहने लगी। िहीं िहारा ममला। खचम न चल िकने के कारण िह दाे-चार ददन के बाद
एक िस्िु बेचिी। वफर राेकर ददन काटिी। चाची ने भी उिे औपने ढं ग िे छाेड ददया। िहीं िारा
टू ट़ी चारपाई पर पड़ी कराहा करिी।
औँधेरा हाे चला था। चाची औभी-औभी घूमकर बाहर िे औायी थी। िारा के पाि औाकर बठ गयी।
पूछा, 'िारा, किी हाे?'
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'क्या बिाऊँ चाची, किी हँ! भगिान जानिे हं, किी बीि रही ह!'
'नहीं, बुरा न मानना। देखाे यदद मुझे पहले ही िुम औपना हाल कह देिीं, िाे मं एेिा उपाय कर देिी
वक यह िब विपत्तत्त ही न औाने पािी।'
'िही जब दाे महीने का था, उिका प्रबन्ध हाे जािा। वकिी काे कानाे-कान खबर भी न हाेिी। वफर
िुम औार मंगल एक बने रहिे।'
'पर क्या इिी के मलए मंगल भाग गया? कदावप नहीं, उिके मन िे मेरा प्रेम ही चला गया। चाची,
जाे वबना वकिी लाेभ के मेरी इिनी िहायिा करिा था, िह मुझे इि तनस्िहाय औिस्था में इिमलए
छाेडकर कभी नहीं जािा। इिमें काई दूिरा ही कारण ह।'
'हाेगा, पर िुम्भ्हें यह दुःख देखना न पडिा औार उिके चले जाने पर भी एक बार मंने िुमिे िंकेि
वकया; पर िुम्भ्हारी इच्छा न देखकर मं कुछ न बाेली। नहीं िाे औब िक माेहनदाि िुम्भ्हारे पराें पर
नाक रगडिा। िह कई बार मुझिे कह भी चुका ह।'
'बि कराे चाची, मुझिे एेिी बािें न कराे। यदद एेिा ही करना हाेगा, िाे मं वकिी काेठे पर जा
बठूँ गी; पर यह टट्ट़ी की औाेट में शिकार करना नहीं जानिी। िारा ने ये बािें कुछ क्ाेध में कहीं।
चाची का पारा चढ गया। उिने वबगडकर कहा, 'देखाे तनगाेड़ी, मुझी काे बािें िुनािी ह। करम औाप
करे औार औाँखंे ददखािे दूिरे काे!'
िारा राेने लगी। िह खुरामट चाची िे लडना न चाहिी थी; परन्िु औमभप्राय न िधने पर चाची स्ियं
लड गयी। िह िाेचिी थी वक औब उिका िामान धीरे -धीरे ले ही मलया, दाल-राेट़ी ददन में एक बार
झखला ददया करिी थी। जब इिके पाि कुछ बचा ही नहीं औार औागे की काेई औािा भी न रही,
िब इिका झंझट क्याें औपने सिर रखूँ। िह क्ाेध िे बाेली, 'राे मि राँड कहीं की। जा हट, औपना
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दूिरा उपाय देख। मं िहायिा भी करँ औार बािें भी िुनूँ, यह नहीं हाे िकिा। कल मेरी काेठरी
खाली कर देना। नहीं िाे झाडू मारकर तनकाल दूँगी।'
िारा चुपचाप राे रही थी, िह कुछ न बाेली। राि हाे चली। लाेग औपने-औपने घराें में ददन भर के
पररश्रम का औास्िाद ले ने के मलए वकिाडंे बन्द करने लगे; पर िारा की औाँखें खुली थीं। उनमें औब
औाँिू भी न थे। उिकी छािी में मधु-विहीन मधुच्रक-िा एक नीरि कले जा था, जजिमे िेदना की
ममाणछयाें की भन्नाहट थी। िंिार उिकी औाँखाें मे घूम जािा था, िह देखिे हुए भी कुछ न देखिी,
चाची औपनी काेठरी में जाकर खा-पीकर िाे रही। बाहर कुत्ते भांक रहे थे। औाधी राि बीि रही थी।
रह-रहकर तनस्िब्धिा का झाेंका औा जािा था। िहिा िारा उठ खड़ी हुई। उन्माददनी के िमान िह
चल पड़ी। फट़ी धाेिी उिके औंग पर लटक रही थी। बाल वबखरे थे, बदन विकृि। भय का नाम
नहीं। जिे काेई यंत्रचामलि िि चल रहा हाे। िह िीधे जाह्निी के िट पर पहुँची। िाराें की परछाइों
गंगा के िक्ष मे खुल रही थी। स्ाेि में हर-हर की ध्ितन हाे रही थी। िारा एक शिलाखण्ड पर बठ
गयी। िह कहने लगी-मेरा औब कान रहा, जजिके मलए जीविि रहँ। मंगल ने मुझे तनरपराध ही छाेड
ददया, पाि में पाई नही, लांछनपूणम जीिन, कहीं धंधा करके पेट पालने के लायक भी नहीं रही। वफर
इि जीिन काे रखकर क्या करँ! हाँ, गभम में कुछ ह, िह क्या ह, कान जाने! यदद औाज न िही, िाे
भी एक ददन औनाहार िे प्राण छटपटाकर जायेगा ही-िब विलम्भ्ब क्याें?'
मंगल! भगिान् ही जानिे हाेंगे वक िुम्भ्हारी िय्या पवित्र ह। कभी स्िप्न में भी िुम्भ्हें छाेडकर इि
जीिन में वकिी िे प्रेम नहीं वकया, औार न िाे मं कलु वर्ि हुई। यह िुम्भ्हारी प्रेम-मभखाररनी पिे की
भीख नहीं माँग िकिी औार न पिे के मलए औपनी पवित्रिा बेच िकिी ह िब दूिरा उपाय ही क्या
मरण काे छाेडकर दूिरा कान िरण देगा भगिान्! िुम यदद कहीं हाे, िाे मेरे िाक्षी रहना!
िह गंगा में जा ही चुकी थी वक िहिा एक बमलष्ठ हाथ ने उिे पकडकर राेक मलया। उिने
छटपटाकर पूछा, 'िुक कान हाे, जाे मेरे मरने का भी िुख छीनना चाहिे हाे?'
'पाप कहाँ! पुण्य वकिका नाम ह मं नहीं जानिी। िुख खाेजिी रही, दुख ममला; दुःख ही यदद पाप
ह, िाे मं उििे छूटकर िुख की माि मर रही हँ-पुण्य कर रही हँ, करने दाे!'
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'िुमकाे औकेले मरने का औधधकार चाहे हाे भी; पर एक जीि-हत्या िुम औार करने जा रही हाे, िह
नहीं हाेगा। चलाे िुम औभी, यही पणमिाला ह, उिमें राि भर विश्राम कराे। प्रािःकाल मेरा शिष्य
औािेगा औार िुम्भ्हें औस्पिाल ले जायेगा। िहाँ िुम औन्न मचंिा िे भी तनश्चिन्ि रहाेगी। बालक उत्पन्न
हाेने पर िुम स्ििंन्त्र हाे, जहाँ चाहे चली जाना।' िंन्यािी जिे औात्मानुभूति िे दृड औाज्ञा भरे िब्दाें में
कह रहा था। िारा काे बाि दाेहराने का िाहि न हुऔा। उिके मन में बालक का मुख देखने की
औमभलार्ा जाग गयी। उिने भी िंकल्प कर मलया वक बालक का औस्पिाल में पालन हाे जायेगा;
वफर मं चली जाऊँगी।
िह िंन्यािी के िंकेि वकये हुए कुट़ीर की औाेर चली। औस्पिाल की चारपाई पर पड़ी हुई िारा
औपनी दिा पर विचार कर रही थी। उिका पीला मुख, धँिी हुई औाँखें, करुणा की मचत्रपट़ी बन रही
थीं। मंगल का इि प्रकार छाेडकर चले जाना िब कष्टाें िे औधधक किकिा था। दाई जब िाबूदाना
ले कर उिके पाि औािी, िब िह बडे कष्ट िे उठकर थाेडा-िा पी ले िी। दूध कभी-कभी ममलिा था,
क्याेंवक औस्पिाल जजन दीनाें के मलए बनिे हं, िहाँ उनकी पूछ नहीं, उिका लाभ भी िम्भ्पन्न ही
उठािे हं। जजि राेगी के औमभभािकाें िे कुछ ममलिा, उिकी िेिा औच्छी िरह हाेिी, दूिरे के कष्टाें
की गगनिी नहीं। दाई दाल का पानी औार हलकी राेट़ी ले कर औायी। िारा का मुँह झखडकी की औाेर
था।
'िाे क्या काेई िुम्भ्हारी लांड़ी लगी ह, जाे ठहरकर ले औािेगी। ले ना हाे िाे औभी ले ले ।'
'पेट में बडा ददम हाे रहा ह।' कहिे-कहिे िारा कहारने लगी। उिकी औाँखाें िे औाँिू बहने लगे। दाई
ने पाि औाकर देखा, वफर चली गयी। थाेड़ी देर मे डाॉक्टर के िाथ दाई औायी। डाॉक्टर ने परीक्षा
की। वफर दाई िे कुछ िंकेि वकया। डाॉक्टर चला गया। दाई ने कुछ िमान लाकर िहाँ रखा, औार
भी एक दूिरी दाई औा गयी। िारा की व्यथा बढने लगी-िही कष्ट जजिे स्त्रस्त्रयाँ ही झेल िकिी हं,
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िारा के मलए औिह्य हाे उठा, िह प्रिि पीडा िे मूझच्छम ि हाे गयी। कुछ क्षणाें में चेिना हुई, वफर
पीडा हाेने लगी। दाई ने औिस्था भयानक हाेने की िूचना डाॉक्टर काे दी। िह प्रिि कराने के मलए
प्रस्िुि हाेकर औाया। िहिा बडे कष्ट िे िारा ने पुत्र-प्रिि वकया। डाॉक्टर ने भीिर औाने की
औािश्यकिा न िमझी, िह लाट गया। िूतिका-कमम में शिसक्षि दाइयाें ने शििु िँभाला।
िारा जब िचेि हुई, निजाि शििु काे देखकर एक बार उिके मुख पर मुस्कराहट औा गयी।
िारा रुग्ण थी, उिका दूध नहीं वपलाया जािा। िह ददन में दाे बार बच्चे काे गाेद में ले पािी; पर गाेद
में ले िे ही उिे जिे शििु िे घृणा हाे जािी। मािृस्नेह उमडिा; परन्िु उिके कारण िारा की जाे
दुदमिा हुई थी, िह िामने औाकर खड़ी हाे जािी। िारा काँप उठिी। महीनाें बीि गये। िारा कुछ
चलने-वफरने याेग्य हुई। उिने िाेचा-महात्मा ने कहा था वक बालक उत्पन्न हाेने पर िुम स्ििंत्र हाे,
जाे चाहे कर िकिी हाे। औब मं औब औपना जीिन क्याें रखूँ। औब गंगा माई की गाेद में चलूँ । इि
दुखःमय जीिन िे छुटकारा पाने का दूिरा उपाय नहीं।
िीन पहर राि बीि चुकी थी। शििु िाे रहा था, िारा जाग रही थी। उिने एक बार उिके मुख का
चुम्भ्बन वकया, िह चांक उठा, जिे हँि रहा हाे। वफर उिे थपवकयाँ देने लगी। शििु तनधडक हाे गया।
िारा उठी, औस्पिाल िे बाहर चली औायी। पगली की िरह गंगा की औाेर चली। तनस्िब्ध रजनी थी।
पिन िांि था। गंगा जिे िाे रही थी। िारा ने उिके औंक में गगरकर उिे चांका ददया। स्नेहमयी
जननी के िमान गंगा ने िारा काे औपने िक्ष में ले मलया।
हरद्वार की बस्िी िे कई काेि दूर गंगा-िट पर बठे हुए एक महात्मा औरुण काे और्घयम दे रहे थे।
िामने िारा का िरीर ददखलाई पडा, औंजमल देकर िुरन्ि महात्मा ने जल मे उिरकर उिे पकडा।
िारा जीविि थी। कुछ पररश्रम के बाद जल पेट िे तनकला। धीरे -धीरे उिे चेिना हुई। उिने औाँख
खाेलकर देखा वक एक झाेंपड़ी में पड़ी ह। िारा की औाँखाें िे भी पानी तनकलने लगा-िह मरने
जाकर भी न मर िकी। मनुष्य की कठाेर करुणा काे उिने धधक्कार ददया।
परन्िु महात्मा की िुश्रूर्ा िे िह कुछ ही ददनाें में स्िस्थ हाे गयी। औभागगनी ने तनिय वकया वक
गंगा का वकनारा न छाेडूँ गी-जहाँ यह भी जाकर विलीन हाे जािी ह, उि िमुर में जजिका कूल-
वकनारा नहीं, िहाँ चलकर डू बूँगी, देखूँ कान बचािा ह। िह गंगा के वकनारे चली। जंगली फल, गाँिाें
की मभक्षा, नदी का जल औार कन्दराएँ उिकी यात्रा में िहायक थे। िह ददन-ददन औागे बढिी जािी
थी।
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(5)
जब हरद्वार िे श्रीचन्र वकिाेरी काे मलिा ले गये औार छः महीने बाद एक पुत्र उत्पन्न हुऔा, िब िे
वकिाेरी के प्रति उनकी घृणा बढ गयी। िे औपने भाि, िमाज में िाे प्रकट न कर िके, पर मन में
दरार पड गयी। बहुि िाेचने पर श्रीचन्र ने यही स्स्थर वकया वक वकिाेरी कािी जाकर औपनी
जारज-िंिान के िाथ रहे औार उिके खचम के मलए िह कुछ भेजा करें ।
पुत्र पाकर वकिाेरी पति िे िंमचि हुई, औार िह कािी के एक िुविस्िृि गृह में रहने लगी। औमृििर
में यह प्रसिर्द् वकया गया वक यहाँ माँ-बेटाें का स्िास्थ्य ठीक नहीं रहिा।
श्रीचन्र औपने कार-बार में लग गये, िभि का परदा बहुि माेटा हाेिा ह।
वकिाेरी के भी ददन औच्छी िरह बीिने लगे। देितनरं जन भी कभी-कभी कािी औा जािे। औार उन
ददनाें वकिाेरी की नयी िहेमलयाँ भी इकट्ठ़ी हाे जािीं।
बाबा जी की कािी में बड़ी धूम थी। प्रायः वकिाेरी के घर पर भण्डारा हाेिा। बड़ी िुख्याति फल
चली। वकिाेरी की प्रतिष्ठा बढ़ी। िह कािी की एक भर मड्हला गगनी जाने लगी। ठाकुर जी की
िेिा बडे ठाट िे हाेिी। धन की कमी न थी, तनरं जन औार श्रीचन्र दाेनाें ही रुपये भेजिे रहिे।
वकिाेरी के ठाकुर जजि कमरे में रहिे थे, उिके औागे दालान था। िंगमरमर की चाकी पर स्िामी
देितनरं जन बठिे। मचकंे लगा दी जािीं। भि मड्हलाऔाें का भी िमाराेह हाेिा। कीिमन, उपािना औार
गीि की धूम मच जािी। उि िमय तनरं जन िचमुच भि बन जािा, उिका औद्वि ज्ञान उिे तनस्िार
प्रिीि हाेिा, क्याेंवक भमि में भगिान का औिलम्भ्बन रहिा ह। िांिाररक िब औापदा-विपदाऔाें के
मलए कच्चे ज्ञानी काे औपने ही ऊपर तनभमर करने में बडा कष्ट हाेिा ह। इिमलए गृहस्थाें के िुख में
फँ िे हुए तनरं जन काे बाध्य हाेकर भि बनना पडा। औाभूर्णाें िे लदी हुई िभि-मूतिम के िामने
उिका कामनापूणम हृदय झुक जािा। उिकी औपराध में लदी हुई औात्मा औपनी मुमि के मलए दूिरा
उपाय न देखिी। बडे गिम िे तनरं जन लाेगाें काे गृहस्थ बने रहने का उपदेि देिा, उिकी िाणी औार
भी प्रखर हाे जािी। जब िह गाहमस्थ्य जीिन का िमथमन करने लगिा, िह कहिा वक 'भगिान
ििमभूि ड्हिे रि ह,ं िंिार-यात्रा गाहमस्थ्य जीिन में ही भगिान् की ििमभूिड्हि कामना के औनुिार हाे
िकिी ह। दुझखयाें की िहायिा करना, िुखी लाेगाें काे देखकर प्रिन्न हाेना, िबकी मंगलकामना
करना, यह िाकार उपािना के प्रिृत्तत्त-मागम के ही िाध्य हं।' इन काल्पतनक दािमतनकिाऔाें िे उिे
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औपने मलए बड़ी औािा थी। िह धीरे -धीरे हृदय िे विश्वाि करने लगा वक िाधु-जीिन औिंगि ह,
ढाेंग ह। गृहस्थ हाेकर लाेगाें का औभाि-माेचन करना भी भगिान की कृपा के मलये यथेष्ट ह। प्रकट
में िाे नहीं, पर विजयचन्र पर पुत्र का-िा, वकिाेरी पर स्त्री का-िा विचार रखने का उिे औभ्याि हाे
चला।
वकिाेरी औपने पति काे भूल-िी गयी। जब रुपयाें का बीमा औािा, िब एेिा भाििा, मानाे उिका
काेई मुनीम औमृििर का कार-बार देखिा हाे औार उिे काेठी िे लाभ का औंि भेजा करिा हाे। घर
के काम-काज में िह बड़ी चिुर थी। औमृििर के औाये हुए िब रुपये उिके बचिे थे। उिमें बराबर
स्थािर िम्भ्पत्तत्त खरीदी जाने लगी। वकिाेरी काे वकिी बाि की कमी न रह गयी।
विजयचन्र स्कूल में बडे ठाट िे पढने जािा था। स्कूल के ममत्राें की कमी न थी। िह औाये ददन
औपने ममत्राें काे तनमंत्रण देकर बुलिािा था। स्कूल में उिकी बड़ी धाक थी।
विद्ालय के िमाने िस्य-श्यामल िमिल भूमम पर छात्राें का झुंड इधर-उधर घूम रहा था। दि
बजने में कुछ विलम्भ्ब था। िीिकाल की धूप छाेडकर क्लाि के कमराें में घुिने के मलए औभी
विद्ाथीम प्रस्िुि न थे।
पिन िे विजय के बाल वबखर रहे थे, उिका मुख भय िे वििणम था। उिे औपने गगर जाने की
तनश्चिि औािंका थी। िहिा एक युिक दाडिा हुऔा औागे बढा, बड़ी ित्परिा िे घाेडे की लगाम
पकडकर उिके नथुने पर िबल घूँिा मारा। दूिरे क्षण िह उच्छं खल औश्व िीधा हाेकर खडा हाे
गया। विजय का हाथ पकडकर उिने धीरे िे उिार मलया। औब िाे औार भी कई लडके एकत्र हाे
गये। युिक का हाथ पकडे हुए विजय उिके हाेस्टल की औाेर चला। िह एक सिनेमा का-िा दृश्य
था। युिक की प्रिंिा में िामलयाँ बजने लगीं।
विजय उि युिक के कमरे में बठा हुऔा वबखरे हुए िामानाें काे देख रहा था। िहिा उिने पूछा,
'औाप यहाँ वकिने ददनाें िे ह?ं '
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'यह वकि मलवप का ले ख ह?'
इिने में नाकर ने चाय की प्याली िमाने रख दी। इि क्षणणक घटना ने दाेनाें काे विद्ालय की
ममत्रिा के पाश्वम में बाँध ददया; परन्िु विजय बड़ी उत्िुकिा िे युिक के मुख की औाेर देख रहा था,
उिकी रहस्यपूणम उदािीन मुखकाझन्ि विजय के औध्ययन की िस्िु बन रही थी।
कृिज्ञ हाेिे हुए विजय ने कहा, 'औापने ठीक िमय पर िहायिा की, नहीं िाे औाज औंग-भंग हाेना
तनश्चिि था।'
'िाह, इि िाधारण औािंक में ही िुम औपने काे नहीं िँभाल िकिे थे, औच्छे ििार हाे!' युिक हँिने
लगा।
'िुम विमचत्र जीि हाे, स्मरण करने की औािश्यकिा क्या, मं िाे प्रतिददन िुमिे ममल िकिा हँ।'
कहकर युिक जाेर िे हँिने लगा।
विजय उिके स्िच्छन्द व्यिहार औार स्ििन्त्र औाचरण काे चवकि हाेकर देख रहा था। उिके मन में
इि युिक के प्रति औकारण श्रर्द्ा उत्पन्न हुई। उिकी ममत्रिा के मलए िह चंचल हाे उठा। उिने
पूछा, 'औापके यहाँ औाने में काेई बाधा िाे नहीं।'
युिक ने कहा, 'मंगलदेि की काेठरी में औाने के मलए वकिी काे भी राेक-टाेक नहीं, वफर िुम िाे
औाज िे मेरे औमभन्न हाे गये हाे!'
िमय हाे गया था। हाेस्टल िे तनकलकर दाेनाें विद्ालय की औाेर चले । मभन्न-मभन्न कक्षाऔाें िे पढिे
हुए दाेनाें का एक बार ममल जाना औतनिायम हाेिा। विद्ालय के मदान में हरी-हरी धूप पर औामने-
िामने ले टे हुए दाेनाें बड़ी देर िक प्रायः बािें वकया करिे। मंगलदेि कुछ कहिा था औार विजय
बड़ी उत्िुकिा िे िुनिे हुए औपना औादिम िंकलन करिा।
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कभी-कभी हाेस्टल िे मंगलदेि विजय के घर पर औा जािा, िहाँ िे घर का-िा िुख ममलिा। स्नेह-
िरल स्नेह ने उन दाेनाें के जीिन में गाँठ दे दी।
वकिाेरी के यहाँ िरदपूणणममा का शंगार था। ठाकुर जी चझन्रका में रत्न-औाभूर्णाें िे िुिाेमभि हाेकर
शंगार-विग्रह बने थे। चमेली के फूलाें की बहार थी। चाँदनी में चमेली का िारभ ममल रहा था।
तनरं जन राि की राका-रजनी का वििरण िुना रहा था। गाेवपयाें ने वकि िरह उमंग िे उन्मत्त हाेकर
कामलन्दी-कूल में कृष्णाचन्र के िाथ राि-क्ीडा में औानन्द विह्वल हाेकर िुल्क दासियाें के िमान
औात्मिमपणम वकया था, उिका मादक वििरण स्त्रस्त्रयाें के मन काे बेिुध बना रहा था। मंगलगान हाेने
लगा। तनरं जन रमणणयाें के काेवकल कंठ में औमभभूि हाेकर िवकये के िहारे ड्टक गया। रािभर
गीि-िाद् का िमाराेह चला।
विजय ने एक बार औाकर देखा, दिमन वकया, प्रिाद ले कर जाना चाहिा था वक िमाने बठी हुई
िुन्दररयाें के झुण्ड पर िहिा दृधष्ट पड गयी। िह रुक गया। उिकी इच्छा हुई वक बठ जाये; परन्िु
मािा के िामने बठने का िाहि न हुऔा। जाकर औपने कमरे में ले टा रहा। औकस्माि् उिके मन में
मंगलदेि का स्मरण हाे गया। िह रहस्यपूणम युिक के चाराें औाेर उिके विचार मलपट गये; परन्िु िह
मंगल के िम्भ्बन्ध में कुछ तनश्चिि नहीं कर िका, केिल एक बाि उिके मन में जग रही थी-मंगल
की ममत्रिा उिे िांणछि ह। िह िाे गया। स्कूल में पढने िाला विजय इि औपने उत्ििाें की
प्रामाणणकिा की जाँच स्िप्न में करने लगा। मंगल िे इिके िम्भ्बन्ध में वििाद चलिा रहा। िह कहिा
वक-मन एकाग्र करने के मलए ड्हन्दुऔाें के यहाँ यह एक औच्छी चाल ह। विजय िीव्र िे विराेध करिा
हुऔा कह उठा-इिमें औनेक दाेर् हं, केिल एक औच्छे फल के मलए बहुि िे दाेर् करिे रहना औन्याय
ह। मंगल ने कहा-औच्छा वफर वकिी ददन िमझाऊँगा।
विजय की औाँख खुली, ििेरा हाे गया था। उिके घर में हलचल मची हुई थी। उिने दािी िे पूछा,
'क्या बाि ह?'
विजय विरि हाेकर औपनी तनत्यवक्या में लगा। िाबुन पर क्ाेध तनकालने लगा, िामलये की दुदमिा
हाे गयी। कल का पानी बेकार गगर रहा था; परन्िु िह औाज नहाने की काेठरी िे बाहर तनकलना ही
नहीं चाहिा था। िाे भी िमय पर स्कूल चला गया। वकिाेरी ने कहा भी, 'औाज न जा, िाधुऔाें का
भाेजन ह, उनकी िेिा...।'
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बीच ही में बाि काटकर विजय ने कहा, 'औाज फुटबाॉल ह, मुझे िीघ्र जाना ह।'
मंगल के कमरे का जंगला खुला था। चमकीली धूप उिमें प्रकाि फलाये थी। िह औभी िक चद्दर
लपेटे पडा था। नाकर ने कहा, 'बाबूजी, औाज भी भाेजन न कीजजयेगा।'
भीिर प्रिेि करिे हुए विजय ने पूछा, 'क्याें क्या। औाज जी नहीं औाज िीिरा ददन ह।'
नाकर ने कहा, 'देझखये बाबूजी, िीन ददन हाे गये, काेई दिा भी नहीं करिे, न कुछ खािे ही हं।'
विजय ने चद्दर के भीिर हाथ डालकर बदन टटाेलिे हुए कहा, 'ज्िर िाे नहीं ह।'
नाकर चला गया। मंगल ने मुँह खाेला, उिका वििणम मुख औभाि औार दुबमलिा का क्ीडा-स्थल बना
था। विजय उिे देखकर स्िब्ध रह गया। िहिा उिने मंगल का हाथ पकडकर घबरािे हुए स्िर में
पूछा, 'क्या िचमुच काेई बीमारी ह?'
मंगलदेि ने बडे कष्ट के िाथ औाँखाें में औाँिू राेककर कहा, 'वबना बीमारी के भी काेई याें ही पडा
रहिा ह।'
विजय काे विश्वाि न हुऔा। उिने कहा, 'मेरे सिर की िागन्ध, काेई बीमारी नहीं ह, िुम उठाे, औाज मं
िुम्भ्हें तनमंत्रण देने औाया हँ, मेरे यहाँ चलना हाेगा।'
मंगल ने उिके गाल पर चपि लगािे हुए कहा, 'औाज िाे मं िुम्भ्हारे यहाँ ही पथ्य ले ने िाला था।
यहाँ के लाेग पथ्य बनाना नहीं जानिे। िीन ददन के बाद इनके हाथ का भाेजन वबल्कुल औिंगि
ह।'
मंगल उठ बठा। विजय ने नाकर काे पुकारा औार कहा, 'बाबू के मलए जल्दी चाय ले औाऔाे।' नाकर
चाय ले ने गया।
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विजय ने जल लाकर मुँह धुलाया। चाय पीकर, मंगल चारपाई छाेडकर खडा हाे गया। िीन ददन के
उपिाि के बाद उिे चक्कर औा गया औार िह बठ गया। विजय उिका वबस्िर लपेटने लगा। मंगल
ने कहा, 'क्या करिे हाे विजय ने वबस्िर बाँधिे हुए कहा, 'औभी कई ददन िुम्भ्हें लाटना न हाेगा;
इिमलए िामान बाँधकर दठकाने िे रख दूँ।'
मंगल चुप बठा रहा। विजय ने एक कुचला हुऔा िाेने का टु कडा उठा मलया औार उिे मंगलदेि काे
ददखाकर कहा, 'यह क्या वफर िाथ ही मलपटा हुऔा एक भाेजपत्र भी उिके हाथ लगा। दाेनाें काे
देखकर मंगल ने कहा, 'यह मेरा रक्षा किच ह, बाल्यकाल िे उिे मं पहनिा था। औाज इिे िाेड देने
की इच्छा हुई।'
विजय ने उिे जेब में रखिे हुए कहा, 'औच्छा, मं िाँगा ले औाने जािा हँ।'
थाेड़ी ही देर में िाँगा ले कर विजय औा गया। मंगल उिके िाथ िाँगे पर जा बठा, दाेनाें ममत्र हँिना
चाहिे थे। पर हँिने में उन्हें दुःख हाेिा था।
विजय औपने बाहरी कमरे में मंगलदेि काे वबठाकर घर में गया। िब लाेग व्यस्ि थे, बाजे बज रहे
थे। िाधु-ब्राह्मण खा-पीकर चले गये थे। विजय औपने हाथ िे भाेजन का िामान ले गया। दाेनाें ममत्र
बठकर खाने-पीने लगे।
दासियाँ जूठी पत्तल बाहर फंे क रही थीं। ऊपर की छि िे पूरी औार ममठाइयाें के टु कडाें िे लदी
हुई पत्तलें उछाल दी थीं। नीचे कुछ औछूि डाेम औार डाेमतनयाँ खड़ी थीं, जजनके सिर पर टाेकररयाँ
थीं, हाथ में डं डे थे-जजनिे िे कुत्ताें काे हटािे थे औार औापि में मार-पीट, गाली-गलाज करिे हुए उि
उझच्छष्ट की लू ट मचा रहे थे-िे पुश्ि-दर-पुश्ि के भूखे!
मालवकन झराेखे िे औपने पुण्य का यह उत्िि देख रही थी-एक राह की थकी हुई दुलमब युििी भी।
उिी भूख की, जजििे िह स्ियं औिि हाे रही थी, यह िीभत्ि लीला थी! िह िाेच रही थी-क्या
िंिार भर में पेट की ज्िाला मनुष्य औार पिुऔाें काे एक ही िमान ििािी ह ये भी मनुष्य हं औार
इिी धामममक भारि के मनुष्य जाे कुत्ताें के मुँह के टु कडे भी छीनकर खाना चाहिे हं। भीिर जाे
पुण्य के नाम पर, धमम के नाम पर गुरछरेम उड रहे हं, उिमें िास्िविक भूखाें का वकिना भाग ह, यह
पत्तलाें के लू टने का दृश्य बिला रहा ह। भगिान्! िुम औन्ियाममी हाे।
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युििी तनबमलिा िे न चल िकिी थी। िह िाहि करके उन पत्तल लू टने िालाें के बीच में िे
तनकल जाना चाहिी थी। िह दृश्य औिह्य था, परन्िु एक डाेममन ने िमझा वक यह उिी का भाग
छीनने औायी ह। उिने गन्दी गामलयाँ देिे हुए उि पर औाक्मण करना चाहा, युििी पीछे हट़ी; परन्िु
ठाेकर लगिे ही गगर पड़ी।
उधर विजय औार मंगल में बािें हाे रही थीं। विजय ने मंगल िे कहा, 'यही िाे इि पुण्य धमम का
दृश्य ह! क्याें मंगल! क्या औार भी वकिी देि में इिी प्रकार का धमम-िंचय हाेिा ह जजन्हें
औािश्यकिा नहीं, उनकाे वबठाकर औादर िे भाेजन कराया जाये, केिल इि औािा िे वक परलाेक में
िे पुण्य-िंचय का प्रमाण-पत्र देंगे, िाक्षी देंगे औार इन्हे,ं जजन्हें पेट ने ििा रखा ह, जजनकाे भूख ने
औधमरा बना ददया ह, जजनकी औािश्यकिा नंगी हाेकर िीभत्ि नृत्य कर रही ह-िे मनुष्य कुत्ताें के
िाथ जूठी पत्तलाें के मलए लडंे , यही िाे िुम्भ्हारे धमम का उदाहरण ह!'
वकिाेरी काे उि पर ध्यान देिे देखकर विजय औपने कमरे में चला गया। वकिाेरी ने पूछा, 'कुछ
खाऔाेगी।'
वकिाेरी काे उिकी छलछलाई औाँखें देखकर दया औा गयी। कहा, 'दुखी न हाे, िुम यहीं रहा कराे।'
'वफर मुँह णछपाकर पड गए! उठाे, मं औपने बनाये हुए कुछ मचत्र ददखाऊँ।'
'बाेलाे मि विजय! कई ददन के बाद भाेजन करने पर औालस्य मालू म हाे रहा ह।'
विजय चुप रह गया। मंगलदेि के व्यिहार पर उिे कुिूहल हाे रहा था। िह चाहिा था वक बािाें में
उिके मन की औिस्था जान ले ; परन्िु उिे औििर न ममला। िह भी चुपचाप िाे रहा।
नींद खुली, िब लम्भ्प जला ददये गये थे। दूज का चन्रमा पीला हाेकर औभी तनस्िेज था, हल्की चाँदनी
धीरे -धीरे फलने लगी। पिन में कुछ िीिलिा थी। विजय ने औाँखंे खाेलकर देखा, मंगल औभी पडा
था। उिने जगाया औार हाथ-मुँह धाेने के मलए कहा।
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दाेनाें ममत्र औाकर पाई-बाग में पाररजाि के नीचे पत्थर पर बठ गये। विजय ने कहा, 'एक प्रश्न ह।'
'नहीं विजय, मुझे उि िाेने की औािश्यकिा थी।' मंगल ने बड़ी गम्भ्भीरिा िे कहा,'क्याे?ं '
'इिके मलए घण्टाें का िमय चाड्हए, िब िुम िमझ िकाेगे। औपनी िह रामकहानी पीछे िुनाऊँगा,
इि िमय केिल इिना ही कहे देिा हँ वक मेरे पाि एक भी पिा न था, औार िीन ददन इिीमलए
मंने भाेजन भी नहीं वकया। िुमिे यह कहने में मुझे लज्जा नहीं।'
'औाियम इिमें कान-िा औभी िुमने देखा ह वक इि देि की दरररिा किी विकट ह-किी नृिंि ह!
वकिने ही औनाहार िे मरिे हं! वफर मेरे मलए औाियम क्याें इिमलए वक मं िुम्भ्हारा ममत्र हँ?'
'मंगलदेि! दुहाई ह, घण्टाें नहीं मं राि-भर िुनूँगा। िुम औपना रहस्यपूणम िृत्तांि िुनाऔाे। चलाे, कमरे
में चलें । यहाँ ठं ड लग रही ह।'
'भीिर िाे बठे ही थे, वफर यहाँ औाने की क्या औािश्यकिा थी औच्छा चलाे; परन्िु एक प्रतिज्ञा करनी
हाेगी।'
'िह क्या?'
'मेरा िाेना बेचकर कुछ ददनाें के मलए मुझे तनश्चिन्ि बना दाे।'
कमरे में पहुँचकर दाेनाें ममत्र पहुँचे ही थे वक दरिाजे के पाि िे वकिी ने पूछा, 'विजय, एक दुझखया
स्त्री औायी ह, मुझे औािश्यकिा भी ह, िू कहे िाे उिे रख लूँ ।'
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'हाँ िही, वबल्कुल औनाथ ह।'
'उिे औिश्य रख लाे।' एक िब्द हुऔा, मालू म हुऔा वक पूछने िाली चली गयी थी, िब विजय ने
मंगलदेि िे कहा, 'औब कहाे!'
मंगलदेि ने कहना प्रारम्भ्भ वकया, 'मुझे एक औनाथालय िे िहायिा ममलिी थी, औार मं पढिा था।
मेरे घर काेई ह वक नहीं यह भी मुझे मालू म नही; पर जब म िेिा िममति के काम िे पढाई
छाेडकर हरद्वार चला गया, िब मेरी िृत्तत्त बंद हाे गयी। मं घर लाट औाया। औायमिमाज िे भी मेरा
कुछ िम्भ्पकम था; परन्िु मंने देखा वक िह खण्डनात्मक ह; िमाज में केिल इिी िे काम नहीं चलिा।
मंने भारिीय िमाज का एेतिहासिक औध्ययन करना चाहा औार इिमलए पाली, प्राकृि का पाठ यक्म
स्स्थर वकया। भारिीय धमम औार िमाज का इतिहाि िब िक औधूरा रहेगा, जब िक पाली औार
प्राकृि का उििे िम्भ्बन्ध न हाे; परन्िु मं बहुि चेष्टा करके भी िहायिा प्राप्त न कर िका, क्याेंवक
िुनिा हँ वक िह औनाथालय भी टू ट गया।'
मंगल-'विजय! रहस्य यही वक म तनधमन हँ; मं औपनी िहायिा नहीं कर िकिा। मं विश्वविद्ालय की
दडग्री के मलए नहीं पढ रहा हँ। केिल कुछ महीनाें की औािश्यकिा ह वक मं औपनी पाली की पढाई
प्राेफेिर देि िे पूरी कर लूँ । इिमलए मं यह िाेना बेचना चाहिा हँ।'
विजय ने उि यंत्र काे देखा, िाेना िाे उिने एक औाेर रख ददया। परन्िु भाेजपत्र के छाेटे िे बंडल
काे, जाे उिके भीिर था, विजय ने मंगल का मुँह देखिे-देखिे कुिूहल िे खाेलना औारम्भ्भ वकया।
उिका कुछ औंि खुलने पर ददखाई ददया वक उिमें लाल रं ग के औष्टगंध िे कुछ स्पष्ट प्राचीन मलवप
ह। विजय ने उिे खाेलकर फंे किे हुए कहा, 'लाे यह वकिी देिी, देििा का पूरा स्िाेत्र भरा पडा ह।'
मंगल ने उिे औाियम िे उठा मलया। िह मलवप काे पढने की चेष्टा करने लगा। कुछ औक्षराें काे िह
पढ भी िका; परन्िु िह प्राकृि न थी, िंस्कृि थी। मंगल ने उिे िमेटकर जेब में रख मलया। विजय
ने पूछा, 'क्या ह कुछ पढ िके?'
'कल इिे प्राेफेिर देि िे पढिाऊँगा। यह िाे काेई िािन-पत्र मालू म पडिा ह।'
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'मंने िाे औभी प्रारम्भ्भ वकया ह, कुछ पढ देिे हं।'
'औच्छा मंगल! एक बाि कहँ, िुम मानाेगे मेरी भी पढाई िुधर जाएगी।'
'क्या?'
'िुम मेरे िाथ रहा कराे, औपना मचत्राें का राेग मं छुडाना चाहिा हँ।'
'िुम स्ििंत्र नहीं हाे विजय! क्षणणक उमंग में औाकर हमें िह काम नहीं करना चाड्हए, जजििे जीिन
के कुछ ही लगािार ददनाें के वपराेये जाने की िंभािना हाे, क्याेंवक उमंग की उडान नीचे औाया करिी
ह।'
'नहीं मंगल! म माँ िे पूछ ले िा हँ।' कहकर विजय िेजी िे चला गया। मंगल हाँ-हाँ ही कहिा रह
गया। थाेड़ी देर में ही हँििा हुऔा लाट औाया औार बाेला, 'माँ िाे कहिी हं वक उिे यहाँ िे न जाने
दूँगी।'
िह चुपचाप विजय के बनाये कलापूणम मचत्राें काे, जाे उिके कमरे मे लगे थे, देखने लगा। इिमें
विजय की प्राथममक कृतियाँ थीं। औपूणम मुखाकृति, रं गाें के छीटे िे भरे हुए कागज िक चाखटाें में
लगे थे।
(6)
औाज बडा िमाराेह ह। तनरं जन चाँदी के पात्र तनकालकर दे रहा ह-औारिी, फूल, चंगेर, धूपदान,
निेद्पात्र औार पंचपात्र इत्यादद माँज-धाेकर िाफ वकये जा रहे हं। वकिाेरी मेिा, फल, धूप, बत्ती औार
फूलाें की राशि एकत्र वकये उिमें िजा रही ह। घर के िब दाि-दासियाँ व्यस्ि हं। निागि युििी
घूँघट तनकाले एक औाेर खड़ी ह।
तनरं जन ने वकिाेरी िे कहा, 'सिंहािन के नीचे औभी धुला नहीं ह, वकिी िे कह दाे वक िह स्िच्छ
कर दे।'
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युििी भीिर पहुँच गयी। तनरं जन ने उिे देखा औार वकिाेरी िे पूछा, 'यह कान ह?'
तनरं जन ने झझडककर कहा, 'ठहर जा, बाहर चल।' वफर कुछ क्ाेध िे वकिाेरी की औाेर देखकर कहा,
'यह कान ह, किी ह, देिगृह में जाने याेग्य ह वक नहीं, िमझ मलया ह या याें ही जजिकाे हुऔा कह
ददया।'
'िाे क्या भगिान् उिे पवित्र नहीं कर देंगे औाप िाे कहिे हं वक भगिान् पतिि-पािन ह,ं वफर बडे -बडे
पावपयाें काे जब उर्द्ार की औािा ह, िब इिकाे क्याें िंमचि वकया जाये कहिे-कहिे वकिाेरी ने
रहस्य भरी मुस्कान चलायी।
तनरं जन क्षुब्ध हाे गया, परन्िु उिने कहा, 'औच्छा िास्त्राथम रहने दाे। इिे कहाे वक बाहर चली जाये।'
तनरं जन की धमम-हठ उत्तेजजि हाे उठी थी।
वकिाेरी ने कुछ कहा नहीं, पर युििी देिगृह के बाहर चली गई औार एक काेने में बठकर सििकने
लगी। िब औपने कायम में व्यस्ि थे। दुझखया के राेने की वकिे मचन्िा थी! िह भी जी हल्का करने
के मलए खुलकर राेने लगी। उिे जिे ठे ि लगी थी। उिका घूँघट हट गया था। औाँखाें िे औाँिू की
धारा बह रही थी। विजय, जाे दूर िे यह घटना देख रहा था, इि युििी के पीछे -पीछे चला औाया
था-कुिूहल िे इि धमम के क्ूर दम्भ्भ काे एक बार खुलकर देखने औार िीखे तिरस्कार िे औपने हृदय
काे भर ले ने के मलए; परन्िु देखा िाे िह दृश्य, जाे उिके जीिन में निीन था-एक कष्ट िे ििाई हुई
िुन्दरी का रुदन!
विजय के िे ददन थे, जजिे लाेग जीिन बिंि कहिे हं। जब औधूरी औार औिुर्द् पतत्रकाऔाें के टू टे-
फूटे िब्दाें के मलए हृदय में िब्दकाेि प्रस्िुि रहिा ह। जाे औपने िाथ बाढ में बहुि-िी औच्छी िस्िु
ले औािा ह औार जाे िंिार काे प्यारा देखने का चश्मा लगा देिा ह। ििि िे औभ्यस्ि िान्दयम काे
झखलाना िमझकर िाेडना ही नहीं, िरन् उिमें हृदय देखने की चाट उत्पन्न करिा ह। जजिे यािन
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कहिे हं-िीिकाल में छाेटे ददनाें में घनी औमराई पर वबछलिी हुई हररयाली िे िर धूर के िमान
स्नस्नग्ध यािन!
इिी िमय मानि-जीिन में जजज्ञािा जगिी ह। स्नेह, िंिेदना, िहानुभूति का ज्िार औािा ह। विजय
का विप्लिी हृदय चंचल हाे गया। उिमें जाकर पूछा, 'यमुना, िुम्भ्हें वकिी ने कुछ कहा ह?'
'मं उनके वबगडने पर नहीं राेिी हँ, राेिी हँ िाे औपने भाग्य पर औार ड्हन्दू िमाज की औकारण
तनष्ठुरिा पर, जाे भातिक िस्िुऔाें में िाे बंटा लगा ही चुका ह, भगिान पर भी स्ििंत्र भाग का िाहि
रखिा ह!'
क्षणभर के मलए विजय विस्मय-विमुग्ध रहा, यह दािी-दीन-दुझखया, इिके हृदय में इिने भाि उिकी
िहानुभूति उच्छं खल हाे उठी, क्याेंवक यह बाि उिके मन की थी। विजय ने कहा, 'न राे यमुना!
जजिके भगिान् िाेने-चाँदी िे धघरे रहिे हं, उनकाे रखिाली की औािश्यकिा हाेिी ह।'
यमुना की राेिी औाँखें हँि पड़ीं, उिने कृिज्ञिा की दृधष्ट िे विजय काे देखा। विजय भूलभुलया में
पड गया। उिने स्त्री की-एक युििी स्त्री की-िरल िहानुभूति कभी पाई न थी। उिे रम हाे गया जिे
वबजली कांध गयी हाे। िह तनरं जन की औाेर चला, क्याेंवक उिकी िब गमीम तनकालने का यही
औििर था।
तनरं जन औन्नकूट के िम्भ्भार में लगा था। प्रधान याजक बनकर उत्िि का िंचालन कर रहा था।
विजय ने औािे ही औाक्मण कर ददया, 'बाबाजी औाज क्या ह?'
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तनरं जन उत्तेजजि िाे था ही, उिने कहा, 'िुम ड्हन्दू हाे वक मुिलमान नहीं जानिे, औाज औन्नकूट ह।'
'क्याें, क्या ड्हन्दू हाेना परम िाभाग्य की बाि ह? जब उि िमाज का औधधकांि पददमलि औार
दुदमिाग्रस्ि ह, जब उिके औमभमान औार गारि की िस्िु धरापृष्ठ पर नहीं बची-उिकी िंस्कृति
विडम्भ्बना, उिकी िंस्था िारहीन औार राष्टर-बार्द्ाें के िदृि बन गया ह, जब िंिार की औन्य जातियाँ
िािमजतनक रािृभाि औार िाम्भ्यिाद काे ले कर खड़ी हं, िब औापके इन झखलानाें िे भला उिकी
िन्िुधष्ट हाेगी?'
'इन झखलानाें'-कहिे-कहिे इिका हाथ देिविग्रह की औाेर उठ गया था। उिके औाक्षेपाें का जाे उत्तर
तनरं जन देना चाहिा था, िह क्ाेध के िेग में भूल गया औार िहिा उिने कह ददया, 'नाझस्िक! हट
जा!'
विजय की कनपट़ी लाल हाे गयी, बरातनयाँ िन गयीं। िह कुछ बाेलना ही चाहिा था वक मंगल ने
िहिा औाकर हाथ पकड मलया औार कहा, 'विजय!'
विराेही िहाँ िे हटिे-हटिे भी मंगल िे यह कहे वबना नहीं रहा, धमम के िेनापति विभीवर्का उत्पन्न
करके िाधारण जनिा िे औपनी िृत्तत्त कमािे हं औार उन्हीं काे गामलयाँ भी िुनािे हं, गुरुडम वकिने
ददनाें िक चले गा, मंगल?'
मंगल वििाद काे बचाने के मलए उिे घिीटिा ले चला औार कहने लगा, 'चलाे, हम िुम्भ्हारा िास्त्राथम-
तनमंत्रण स्िीकार करिे हं।' दाेनाें औपने कमरे की औाेर चले गये।
तनरं जन पल भर में औाकाि िे पृथ्िी पर औा गया। िास्िविक िािािरण में क्षाेभ औार क्ाेध, लज्जा
औार मानसिक दुबमलिा ने उिे चिन्य कर ददया। तनरं जन काे उड्द्वग्न हाेकर उठिे देख वकिाेरी, जाे
औब िक स्िब्ध हाे रही थी, बाेल उठी, 'लडका ह!'
तनरं जन ने िहाँ िे जािे-जािे कहा, 'लडका ह िाे िुम्भ्हारा ह, िाधुऔाें काे इिकी मचंिा क्या?' उिे औब
भी औपने त्याग पर विश्वाि था।
वकिाेरी तनरं जन काे जानिी थी, उिने उन्हें राेकने का प्रयत्न नहीं वकया। िह राेने लगी।
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मंगल ने विजय िे कहा, 'िुमकाे गुरुजनाें का औपमान नहीं करना चाड्हए। मंने बहुि स्िाधीन विचाराें
काे काम में ले औाने की चेष्टा की ह, उदार िमाजाें में घूमा-वफरा हँ; पर िमाज के िािन-प्रश्न पर
औार औिुविधाऔाें में िब एक ही िे ददख पडे । मं िमाज में बहुि ददनाें िक रहा, उििे स्ििंत्र
हाेकर भी रहा; पर िभी जगह िंकीणमिा ह, िािन के मलए; क्याेंवक काम चलाना पडिा ह न! िमाज
में एक-िे उन्नि औार एक-िी मनाेिृत्तत्त िाले मनुष्य नहीं, िबकाे िंिुष्ट औार धममिील बनाने के मलए
धामममक िमस्याएँ कुछ-न-कुछ उपाय तनकाला करिी हं।'
'पर ड्हन्दुऔाें के पाि तनर्ेध के औतिररि औार भी कुछ ह? यह मि कराे, िह मि कराे, पाप ह।
जजिका फल यह हुऔा वक ड्हन्दुऔाें काे पाप काे छाेडकर पुण्य कहीं ददखलायी ही नहीं पडिा।'
विजय ने कहा।
'विजय! प्रत्येक िंस्थाऔाें का कुछ उद्देश्य ह, उिे िफल करने के मलए कुछ तनयम बनाये जािे हं।
तनयम प्रािः तनर्ेधात्मक हाेिे हं, क्याेंवक मानि औपने काे िब कुछ करने का औधधकारी िमझिा ह।
कुल थाेडे -िे िुकमम ह औार पाप औधधक हं; जाे तनर्ेध के वबना नहीं रुक िकिे। देखाे, हम वकिी भी
धामममक िंस्था िे औपना िम्भ्बन्ध जाेड लें , िाे हमें उिकी कुछ परम्भ्पराऔाें का औनुकरण करना ही
पडे गा। मूतिमपूजा के विराेधधयाें ने भी औपने-औपने औड्हन्दू िम्भ्प्रदायाें में धमम-भािना के केन्र स्िरप
काेई-न-काेई धमम-मचह्न रख छाेडा ह। जजन्हें िे चूमिे हं, िम्भ्मान करिे हं औार उिके िामने सिर
झुकािे हं। ड्हन्दुऔाें ने भी औपनी भािना के औनुिार जन-िाधारण के हृदय में भेदभाि करने का
मागम चलाया ह। उन्हाेंने मानि जीिन में क्म-विकाि का औध्ययन वकया ह। िे यह नहीं मानिे वक
हाथ-पर, मुँह-औाँख औार कान िमान हाेने िे हृदय भी एक-िा हाेगा। औार विजय! धमम िाे हृदय िे
औाचररि हाेिा ह न, इिमलए औधधकार भेद ह।'
'िाे वफर उिमें उच्च विचार िाले लाेगाें काे स्थान नहीं, क्याेंवक िमिा औार विर्मिा का द्वन्द्व उिके
मूल में ििममान ह।'
'उनिे िाे औच्छा ह, जाे बाहर िे िाम्भ्य की घाेर्णा करके भी भीिर िे घाेर विमभन्न मि के हं औार
िह भी स्िाथम के कारण! ड्हन्दू िमाज िुमकाे मूतिम-पूजा करने के मलए बाध्य नहीं करिा, वफर िुमकाे
व्यंग्य करने का काेई औधधकार नहीं। िुम औपने काे उपयुि िमझिे हाे, िाे उििे उच्चिर उपािना-
प्रणाली में िझम्भ्ममलि हाे जाऔाे। देखाे, औाज िुमने घर में औपने इि काण्ड के द्वारा भयानक हलचल
मचा दी ह। िारा उत्िि वबगड गया ह।'
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औब वकिाेरी भीिर चली गयी, जाे बाहर खड़ी हुई दाेनाें की बािें िुन रही थी। िह बाेली, 'मंगल ने
ठीक कहा ह। विजय, िुमने औच्छा काम नहीं वकया। िब लाेगाें का उत्िाह ठण्डा पड गया। पूजा
का औायाेजन औस्ि-व्यस्ि हाे गया।' वकिाेरी की औाँखें भर औायी थीं, उिे बडा क्षाेभ था; पर दुलार के
कारण विजय काे िह कुछ कहना नहीं चाहिी थी।
मंगल ने कहा, 'माँ! विजय काे िाथ ले कर हम इि उत्िि काे िफल बनाने का प्रयत्न करें गे, औाप
औपने काे दुःखी न कीजजये।'
वकिाेरी प्रिन्न हाे गयी। उिने कहा, 'िुम िाे औच्छे लडके हाे। देख िाे विजय! मंगल की-िी बुणर्द्
िीख!'
नीचे गाड़ी की हरहराहट हुई, मालू म हुऔा तनरं जन स्टे िन चला गया।
उत्िि में विजय ने बडे उत्िाह िे भाग मलया; पर यमुना िामने न औायी, िाे विजय के िम्भ्पूणम
उत्िाह के भीिर यह गिम हँि रहा था वक मंने यमुना का औच्छा बदला तनरं जन िे मलया।
वकिाेरी की गृहस्थी नये उत्िाह िे चलने लगी। यमुना के वबना िह पल भर भी नहीं रह िकिी।
जजिकाे जाे कुछ माँगना हाेिा, यमुना िे कहिा। घर का िब प्रबन्ध यमुना के हाथ में था। यमुना
प्रबन्धकाररणी औार औात्मीय दािी भी थी।
विजयचन्र के कमरे का झाड-पाेंछ औार रखना-उठाना िब यमुना स्ियं करिी थी। काेई ददन एेिा न
बीििा वक विजय काे उिकी नयी िुरुमच का पररचय औपने कमरे में न ममलिा। विजय के पान
खाने का व्यिन बढ चला था। उिका कारण था यमुना के लगाये स्िाददष्ट पान। िह उपिन िे
चुनकर फूलाें की माला बना ले िी। गुच्छे िजाकर फूलदान में लगा देिी। विजय की औाँखाें में
उिका छाेटे-िे-छाेटा काम भी कुिूहल ममशश्रि प्रिन्निा उत्पन्न करिा; पर एक बाि िे औपने काे
िदि बचािी रही-उिने औपना िामना मंगल िे न हाेने ददया। जब कभी परिना हाेिा-वकिाेरी औपने
िामने विजय औार मंगल, दाेनाें काे झखलाने लगिी। यमुना औपना बदन िमेटकर औार लम्भ्बा घूँघट
काढे हुए परि जािी। मंगल ने कभी उधर देखने की चेष्टा भी न की, क्याेंवक िह भर कुटु म्भ्ब के
तनयमाें काे भली-भाँति जानिा था। इिके विरुर्द् विजयचन्र ऊपर िे न कहकर, िदि चाहिा वक
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यमुना िे मंगल पररमचि हाे जाये औार उिकी यमुना की प्रतिददन की कुिलिा की प्रकट प्रिंिा
करने का औििर ममले ।
विजय काे इन दाेनाें रहस्यपूणम व्यमियाें के औध्ययन का कुिूहल हाेिा। एक औाेर िरल, प्रिन्न, औपनी
व्यिस्था िे िंिुष्ट मंगल, दूिरी औाेर िबकाे प्रिन्न करने की चेष्टा करने िाली यमुना का रहस्यपूणम
हँिी। विजय विझस्मि था। उिके युिक-हृदय काे दाे िाथी ममले थे-एक घर के भीिर, दूिरा बाहर।
दाेनाें ही िंयि भाि के औार फूँक-फूँककर पर रखने िाले ! इन दाेनाें िे ममल जाने की चेष्टा करिा।
एक ददन मंगल औार विजय बठे हुए भारिीय इतिहाि का औध्ययन कर रहे थे। काेिम ियार करना
था। विजय ने कहा, 'भाई मंगल! भारि के इतिहाि में यह गुप्त-िंि भी बडा प्रभाििाली था; पर
उिके मूल पुरुर् का पिा नही चलिा।'
'गुप्त-िंि भारि के ड्हन्दू इतिहाि का एक उज्ज्वल पृष्ठ ह। िचमुच इिके िाथ बड़ी-बड़ी गारि-
गाथाऔाें का िम्भ्बन्ध ह।' बड़ी गंभीरिा िे मंगल ने कहा।
'परन्िु इिके औभ्युदय में मलझच्छवियाें के नाि का बहुि कुछ औंि ह, क्या मलझच्छवियाें के िाथ इन
लाेगाें ने विश्वािघाि नहीं वकया?' विजय ने पूछा।
'हाँ, ििा ही उनका औन्ि भी िाे हुऔा। देखाे, थानेिर के एक काेने िे एक िाधारण िामन्ि-िंि गुप्त
िम्राटाें िे िम्भ्बन्ध जाेड ले ने में किा िफल हुऔा। औार क्या इतिहाि इिका िाक्षी नहीं ह वक
मगध के गुप्त िम्राटाें काे बड़ी िरलिा िे उनके मानिीय पद िे हटाकर ही हर्मिधमन उत्तरा-पथेश्वर
बन गया था। यह िाे एेिे ही चला करिा ह।' मंगल ने कहा।
'िाे ये उनिे बढकर प्रिारक थे; िह िधमन-िंि भी-' विजय औार कुछ कहना चाहिा ही था वक मंगल
ने राेककर कहा, 'ठहराे विजय! िधमनाें के प्रति एेिे िब्द कहना कहाँ िक िंगि ह िुमकाे मालू म ह
वक ये औपना पाप णछपाना भी नहीं चाहिे। देखाे, यह िही यंत्र ह, जजिे िुमने फंे क ददया था। जाे
कुछ इिका औथम प्राेफेिर देि ने वकया ह, उिे देखाे िाे-' कहिे-कहिे मंगल ने जेब िे तनकालकर
औपना यंत्र औार उिके िाथ एक कागज फंे क ददया। विजय ने यंत्र िाे न उठाया, कागज उठाकर
पढने लगा-'िकमण्डले िर महाराजपुत्र राज्यिधमन इि ले ख के द्वारा यह स्िीकार करिे हं वक
चन्रले खा का हमारा वििाह-िम्भ्बन्ध न हाेिे हुए भी यह पररणीिा िधु के िमान पवित्र औार हमारे
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स्नेह की िुन्दर कहानी ह, इिमलए इिके िंिधर िाम्राज्य में िही िम्भ्मान पािेंगे, जाे मेरे िंिधराें काे
िाधारणिः ममलिा ह।'
विजय के हाथ िे पत्र गगर पडा। विस्मय िे उिकी औाँखें बड़ी हाे गयीं। िह मंगल की औाेर एक
टक तनहारने लगा। मंगल ने कहा, 'क्या ह विजय?'
'पूछिे हाे क्या ह! औाज एक बडा भारी औाविष्कार हुऔा ह, िुम औभी िक नहीं िमझ िके। औाियम
ह! क्या इििे यह तनष्कर्म नहीं तनकल िकिा वक िुम्भ्हारी निाें में िही रि ह, जाे हर्मिधमन की
धमतनयाें में प्रिाड्हि था?'
'यह औच्छी दूर की िूझी! कहीं मेरे पूिम-पुरुर्ाें काे यह मंगल-िूचक यंत्र में िमझाकर वबना जाने-
िमझे िाे नहीं दे ददया गया था इिमें...'
'ठहराे, यदद मं इि प्रकार िमझूँ, िाे क्या बुरा वक यह चन्रले खा के िंिधराें के पाि िंिानुक्म िे
चला औाया हाे औार पीछे यह िुभ िमझकर उि कुल के बच्चाें काे ब्याह हाेने िक पहनाया जािा
रहा हाे। िुम्भ्हारे यहाँ उिका व्यिहार भी िाे इिी प्रकार रहा ह।'
मंगल के सिर में विलक्षण भािनाऔाें की गमीम िे पिीना चमकने लगा। वफर उिने हँिकर कहा,
'िाह विजय! िुम भी बडे भारी पररहाि रसिक हाे!' क्षण भर में भारी गंभीरिा चली गयी, दाेनाें हँिने
लगे।
(7)
रजनी के बालाें में वबखरे हुए माेिी बटाेरने के मलए प्राची के प्रांगण में उर्ा औायी औार इधर यमुना
उपिन में फूल चुनने के मलए पहुँची। प्रभाि की फीकी चाँदनी में बचे हुए एक-दाे नक्षत्र औपने काे
दसक्षण-पिन के झाेंकाें में विलीन कर देना चाहिे हं। कुन्द के फूल थले के श्यामल औंचल पर
किीदा बनाने लगे थे। गंगा के मुि िक्षस्थल पर घूमिी हुई, मझन्दराें के खुलने की, घण्टाें की
प्रतिध्ितन, प्रभाि की िान्ि तनस्िब्धिा में एक िंगीि की झनकार उत्पन्न कर रही थी। औन्धकार औार
औालाेक की िीमा बनी हुई युििी के रप काे औस्ि हाेने िाला पीला चन्रमा औार लाली फंे कने
िाली उर्ा, औभी स्पष्ट ददखला िकी थी वक िह औपनी डाली फूलाें िे भर चुकी औार उि कड़ी िदीम
में भी यमुना मालिी-कुंज की पत्थर की चाकी पर बठी हुई, देर िे औािे हुए िहनाई के मधुर-स्िर
में औपनी हृदयिंत्री ममला रही थी।
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िंिार एक औँगडाई ले कर औाँख खाेल रहा था। उिके जागरण में मुस्कान थी। नीड में िे तनकलिे
हुए पसक्षयाें के कलरि काे िह औाियम िे िुन रही थी। िह िमझ न िकिी थी वक उन्हें उल्लाि ह!
िंिार में प्रिृत्त हाेने की इिनी प्रिन्निा क्याें दाे-दाे दाने बीनकर ले औाने औार जीिन काे लम्भ्बा
करने के मलए इिनी उत्कंठा! इिना उत्िाह! जीिन इिने िुख की िस्िु ह
टप...टप...टप...टप...! यमुना चवकि हाेकर खड़ी हाे गयी। झखल-झखलाकर हँिने का िब्द हुऔा।
यमुना ने देखा-विजय खडा ह! उिने कहा, 'यमुना, िुमने िाे िमझा हाेगा वक वबना बादलाें की
बरिाि किी ?'
'औाप ही थे-मालिी-लिा िे औाेि की बूँदें गगराकर बरिाि का औमभनय करने िाले ! यह जानकर मं
िाे चांक उठी थी।'
'हाँ यमुना! औाज िाे हम लाेगाें का रामनगर चलने का तनिय ह। िुमने िाे िामान औादद बाँध मलये
हाेंगे-चलाेगी न?'
इि बेबिी के उत्तर पर विजय के मन मे बड़ी िहानुभूति उत्पन्न हुई। उिने कहा, 'नहीं यमुना, िुम्भ्हारे
वबना िाे मेरा, कहिे-कहिे रुककर कहा, 'प्रबन्ध ही न हाे िकेगा-जलपान, पान स्नान िब औपूणम
रहेगा।'
'िाे मं चलूँ गी।' कहकर यमुना कुंज िे बाहर औायी। िह भीिर जाने लगी। विजय ने कहा, 'बजरा
कब का ही घाट औा गया हाेगा, हम लाेग चलिे हं। माँ काे मलिाकर िुरन्ि औाऔाे।'
भागीरथी के तनममल जल पर प्रभाि का िीिल पिन बालकाें के िमान खेल रहा था-छाेट़ी छाेट़ी
लहररयाें के घरांदे बनिे-वबगडिे थे। उि पार के िृक्षाें की श्रेणी के ऊपर एक भारी चमकीला औार
पीला वबम्भ्ब था। रे ि में उिकी पीली छाया औार जल में िुनहला रं ग, उडिे हुए पसक्षयाें के झुण्ड िे
औाक्ान्ि हाे जािा था। यमुना बजरे की झखडकी में िे एकटक इि दृश्य काे देख रही थी औार छि
पर िे मंगलदेि उिकी लम्भ्बी उँ गमलयाें िे धारा का कटना देख रहा था। डाँडाें का छप-छप िब्द
बजरे की गति में िाल दे रहा था। थाेड़ी ही देर में विजय माझी काे हटाकर पििार थामकर जा
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बठा। यमुना िामने बठी हुई डाली में फूल िँिारने लगी, विजय औाराें की औाँख बचाकर उिे देख
मलया करिा।
बजरा धारा पर बह रहा था। प्रकृति-मचिेरी िंिार का नया मचह्न बनाने के मलए गंगा के ईर्ि् नील
जल में िफेदा ममला रही थी। धूप कड़ी हाे चली थी। मंगल ने कहा, 'भाई विजय! इि नाि की िर
िे औच्छा हाेगा वक मुझे उि पार की रे ि में उिार दाे। िहाँ दाे-चार िृक्ष ददखायी दे रहे हं, उन्हीं की
छाया में सिर ठण्डा कर लूँ गा।'
'हम लाेगाें काे िाे औभी स्नान करना ह, चलाे िहीं नाि लगाकर हम लाेग भी तनपट लें ।'
माझझयाें ने उधर की औाेर नाि खेना औारम्भ्भ वकया। नाि रे ि िे ड्टक गयी। बरिाि उिरने पर यह
द्वीप बन गया था। औच्छा एकान्ि था। जल भी िहाँ स्िच्छ था। वकिाेरी ने कहा, 'यमुना, चलाे हम
लाेग भी नहा लें ।'
'औाप लाेग औा जाये,ं िब मं जाऊँगी।' यमुना ने कहा। वकिाेरी उिकी िचेष्टिा पर प्रिन्न हाे गयी।
िह औपनी दाे िहेमलयाें के िाथ बजरे में उिर गयी।
मंगलदेि पहले ही कूद पडा था। विजय भी कुछ इधर-उधर करके उिरा। द्वीप के विस्िृि वकनाराें
पर िे लाेग फल गये। वकिाेरी औार उनकी िहेमलयाँ स्नान करके लाट औायीं, औब यमुना औपनी
धाेिी ले कर बजरे में उिरी औार बालू की एक ऊँची टाेकरी के काेने में चली गयी। यह काेना
एकान्ि था। यमुना गंगा के जल में पर डालकर कुछ देर िक चुपचाप बठी हुई, विस्िृि जलधारा के
ऊपर िूयम की उज्ज्वल वकरणाें का प्रतिवबम्भ्ब देखने लगी। जिे राि के िाराें की फूल-औंजली जाह्निी
के िीिल िृक्ष कर वकिी ने वबखेर दी हाे।
पीछे तनजमन बालू का द्वीप औार िामने दूर पर नगर की िाध-श्रेणी, यमुना की औाँखाें में तनिेष्ट
कुिूहल का कारण बन गयी। कुछ देर में यमुना ने स्नान वकया। ज्याें ही िह िूखी धाेिी पहनकर
िूखे बालाें काे िमेट रही थी, मंगलदेि िामने औाकर खडा हाे गया। िमान भाि िे दाेनाें पर
औाकझस्मक औाने िाली विपद काे देखकर परस्पर ित्रुऔाें के िमान मंगलदेि औार यमुना एक क्षण
के मलए स्िब्ध थे।
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युििी की औाँखाें में वबजली दाड गयी। िह िीखी दृधष्ट िे मंगलदेि काे देखिी हुई बाेली, 'क्या मुझे
औपनी विपत्तत्त के ददन भी वकिी िरह न काटने दाेगे। िारा मर गयी, मं उिकी प्रेिात्मा यमुना हँ।'
मंगलदेि ने औाँखें नीचे कर लीं। यमुना औपनी गीली धाेिी ले कर चलने काे उद्ि हुई। मंगल ने हाथ
जाेडकर कहा, 'िारा मुझे क्षमा कराे।'
उिने दृढ स्िर में कहा, 'हम दाेनाें का इिी में कल्याण ह वक एक-दूिरे काे न पहचानें औार न ही
एक-दूिरे की राह में औडंे । िुम विद्ालय के छात्र हाे औार मं दािी यमुना-दाेनाें काे वकिी दूिरे का
औिलम्भ्ब ह। पापी प्राण की रक्षा के मलए मं प्राथमना करिी हँ वक, क्याेंवक इिे देकर मं न दे िकी।'
'िुम्भ्हारी यही इच्छा ह िाे यही िही।' कहकर ज्याें ही मंगलदेि ने मुँह वफराया, विजय ने टे करी की
औाड िे तनकलकर पुकारा, 'मंगल! क्या औभी जलपान न कराेगे?'
यमुना औार मंगल ने देखा वक विजय की औाँखें क्षण-भर में लाल हाे गयीं; परन्िु िीनाें चुपचाप बजरे
की औाेर लाटे । वकिाेरी ने झखडकी िे झाँककर कहा, 'औाऔाे जलपान कर लाे, बडा विलम्भ्ब हुऔा।'
विजय कुछ न बाेला, जाकर चुपचाप बठ गया। यमुना ने जलपान लाकर दाेनाें काे ददया। मंगल औार
विजय लडकाें के िमान चुपचाप मन लगाकर खाने लगे। औाज यमुना का घूँघट कम था। वकिाेरी
ने देखा, कुछ बेढब बाि ह। उिने कहा, 'औाज न चलकर वकिी दूिरे ददन रामनगर चला जाय, िाे
क्या हातन ह ददन बहुि बीि चुका, चलिे-चलिे िंध्या हाे जाएगी। विजय, कहाे िाे घर ही लाट चला
जाए?'
दाे ददन िक मंगलदेि औार विजयचन्द िे भेंट ही न हुई। मंगल चुपचाप औपनी वकिाब में लगा
रहिा ह औार िमय पर स्कूल चला जािा। िीिरे ददन औकस्माि् यमुना पहले -पहल मंगल के कमरे
में औायी। मंगल सिर झुकाकर पढ रहा था, उिने देखा नहीं, यमुना ने कहा, 'विजय बाबू ने िवकये िे
सिर नहीं उठाया, ज्िर बडा भयानक हाेिा जा रहा ह। वकिी औच्छे डाॉक्टर काे क्याें नहीं मलिा
लािे।'
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मंगल ने औाियम िे सिर उठाकर वफर देखा-यमुना! िह चुप रह गया। वफर िहिा औपना काेट ले िे
हुए उिने कहा, 'मं डाॉक्टर दीनानाथ के यहाँ जािा हँ।' औार िह काेठरी िे बाहर तनकल गया।
विजयचन्र पलं ग पर पडा करिट बदल रहा था। बड़ी बेचनी थी। वकिाेरी पाि ही बठी थी। यमुना
सिर िहला रही थी। विजय कभी-कभी उिका हाथ पकडकर माथे िे मचपटा ले िा था।
मंगल डाॉक्टर काे मलये हुए भीिर चला औाया। डाॉक्टर ने देर िक राेगी की परीक्षा की। वफर सिर
उठाकर एक बार मंगल की औाेर देखा औार पूछा, 'राेगी काे औाकझस्मक घटना िे दुःख िाे नहीं हुऔा
ह?'
मंगल ने कहा, 'एेिा िाे याें काेई कारण नहीं ह। हाँ, इिके दाे ददन पहले हम लाेगाें ने गंगा में पहराें
स्नान वकया औार िरे थे।'
डाॉक्टर ने कहा, 'कुछ मचंिा नहीं। थाेडा यूड़ीक्लाेन सिर पर रखना चाड्हए, बेचनी हट जायेगी औार दिा
मलखे देिा हँ। चार-पाँच ददन में ज्िर उिरे गा। मुझे टे म्भ्परे चर का िमाचार दाेनाें िमय ममलना
चाड्हए।'
वकिाेरी ने कहा, 'औाप स्ियं दाे बार ददन में देख मलया कीजजये िाे औच्छा हाे!'
डाॉक्टर बहुि ही स्पष्टिादी औार मचडमचडे स्िभाि का था औार नगर में औपने काम में एक ही था।
उिने कहा, 'मुझे दाेनाें िमय देखने का औिकाि नहीं, औार औािश्यकिा भी नहीं। यदद औाप लाेगाें िे
स्ियं इिना भी नहीं हाे िकिा, िाे डाॉक्टर की दिा करनी व्यथम ह।'
'जिा औाप कहेंगे ििा ही हाेगा। औापकाे िमय पर ठीक िमाचार ममले गा। डाॉक्टर िाहब दया
कीजजये।' यमुना ने कहा।
डाॉक्टर ने रुमाल तनकालकर सिर पाेंछा औार मंगल के ददये हुए कागज पर औार्धध मलखी। मंगल ने
वकिाेरी िे रुपया मलया औार डाॉक्टर के िाथ ही िह औार्धध ले ने चला गया।
मंगल औार यमुना की औविराम िेिा िे औाठिें ददन विजय उठ बठा। वकिाेरी बहुि प्रिन्न हुई।
तनरं जन भी िार द्वारा िमाचार पाकर चले औाये थे। ठाकुर जी की िेिा-पूजा की धूम एक बार वफर
मच गयी।
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विजय औभी दुबमल था। पन्रह ददनाें में ही िह छः महीने का राेगी जान पडिा था। यमुना औाजकल
ददन-राि औपने औन्नदािा विजय के स्िास्थ्य की रखिाली करिी थी, औार जब तनरं जन के ठाकुर जी
की औाेर जाने का उिे औििर ही न ममलिा था।
जजि ददन विजय बाहर औाया, िह िीधे मंगल के कमरे में गया। उिके मुख पर िंकाेच औार औाँखाें
में क्षमा थी। विजय के कुछ कहने के पहले ही मंगल ने उखडे हुए िब्दाें में कहा, 'विजय, मेरी
परीक्षा भी िमाप्त हाे गयी औार नाकरी का प्रबन्ध भी हाे गया। मं िुम्भ्हारा कृिज्ञ हँ। औाज ही
जाऊँगा, औाज्ञा दाे।'
'नहीं मंगल! यह िाे नहीं हाे िकिा।' कहिे-कहिे विजय की औाँखें भर औायीं।
'विजय! जब मं पेट की ज्िाला िे दग्ध हाे रहा था, जब एक दाने का कहीं दठकाना नहीं था, उि
िमय मुझे िुमने औिलम्भ्ब ददया; परन्िु मं उि याेग्य न था। मं िुम्भ्हारा विश्वािपात्र न रह िका,
इिमलए मुझे छुट्ट़ी दाे।'
'औच्छी बाि ह, िुम पराधीन नहीं हाे। पर माँ ने देिी के दिमन की मनािी की ह, इिमलए हम लाेग
िहाँ िक िाे िाथ ही चलें । वफर जिी िुम्भ्हारी इच्छा।'
वकिाेरी ने मनािी की िामग्री जुटानी औारम्भ्भ की। शिशिर बीि रहा था। यह तनिय हुऔा वक निरात्र
में चला जाये। मंगल काे िब िक चुपचाप रहना दुःिह हाे उठा। उिके िान्ि मन में बार-बार यमुना
की िेिा औार विजय की बीमारी-ये दाेनाें बािें लडकर हलचल मचा देिी थीं। िह न जाने किी
कल्पना िे उन्मत्त हाे उठिा। ड्हंिक मनाेिृत्तत्त जाग जािी। उिे दमन करने में िह औिमथम था।
दूिरे ही ददन वबना वकिी िे कहे-िुने मंगल चला गया।
विजय काे खेद हुऔा, पर दुःख नहीं। िह बड़ी दुविधा में पडा था। मंगल जिे उिकी प्रगति में बाधा
स्िरप हाे गया था। स्कूल के लडकाें काे जिी लम्भ्बी छुट्ट़ी की प्रिन्निा ममलिी ह, ठीक उिी िरह
विजय के हृदय में प्रफुल्लिा भरने लगी। बडे उत्िाह िे िह भी औपनी ियारी में लगा। फेिक्ीम,
पाेमेड, टू थ पाउडर, ब्रि औाकर उिके बग में जुटने लगे। िामलयाें औार िुगन्धाें की भरमार िे बग
ठिाठि भर गया।
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वकिाेरी भी औपने िामान में लगी थी। यमुना कभी उिके कभी विजय के िाधनाें में िहायिा
करिी। िह घुटनाें के बल बठकर विजय की िामग्री बडे मनाेयाेग िे हंडबेग में िजा रही थी।
विजय कहिा, 'नहीं यमुना! िामलया िाे इि बग में औिश्य रहनी चाड्हए।' यमुना कहिी, 'इिनी
िामग्री इि छाेटे पात्र में िमा नहीं िकिी। िह टर क में रख दी जायेगी।'
विजय ने कहा, 'मं औपने औत्यंि औािश्यक पदाथम औपने िमीप रखना चाहिा हँ।'
'औाप औपनी औािश्यकिाऔाें का ठीक औनुमान नहीं कर िकिे। िंभििः औापका मचट्ठा बडा हुऔा
रहिा ह।'
'औच्छा िाे िब िस्िु औाप मुझिे माँग लीजजयेगा। देझखये, जब कुछ भी घटे ।'
विजय ने विचारकर देखा वक यमुना भी िाे मेरी िबिे बढकर औािश्यकिा की िस्िु ह। िह हिाि
हाेकर िामान िे हट गया। यमुना औार वकिाेरी ने ही ममलकर िब िामान ठीक कर मलए।
तनश्चिि ददन औा गया। रे ल का प्रबन्ध पहले ही ठीक कर मलया गया था। वकिाेरी की कुछ िहेमलयाँ
भी जुट गयी थीं। तनरं जन थे प्रधान िेनापति। िह छाेट़ी-िी िेना पहाड पर चढाई करने चली।
चि का िुन्दर एक प्रभाि था। ददन औालि िे भरा, औििाद िे पूणम, वफर भी मनाेरंजकिा थी। प्रिृत्तत्त
थी। पलाि के िृक्ष लाल हाे रहे थे। नयी-नयी पत्तत्तयाें के औाने पर भी जंगली िृक्षाें में घनापन न
था। पिन बाखलाया हुऔा िबिे धक्कम-धुक्की कर रहा था। पहाड़ी के नीचे एक झील-िी थी, जाे
बरिाि में भर जािी ह। औाजकल खेिी हाे रही थी। पत्थराें के ढाेकाें िे उनकी िमानी बनी हुई
थी, िहीं एक नाले का भी औन्ि हाेिा था। यमुना एक ढाेके पर बठ गयी। पाि ही हंडबग धरा था।
िह वपछड़ी हुई औारिाें के औाने की बाट जाेह रही थी औार विजय िलपथ िे ऊपर िबके औागे
चढ रहा था।
वकिाेरी औार उिकी िहेमलयाँ भी औा गयीं। एक िुन्दर झुरमुट था, जजिमें िान्दयम औार िुरुमच का
िमन्िय था। िहनाई के वबना वकिाेरी का काेई उत्िाह पूरा न हाेिा था, बाजे-गाजे िे पूजा करने
की मनािी थी। िे बाजे िाले भी ऊपर पहुँच चुके थे। औब प्रधान औाक्मणकाररयाें का दल पहाड़ी
पर चढने लगा। थाेड़ी ही देर में पहाड़ी पर िंध्या के रं ग-वबरं गे बादलाें का दृश्य ददखायी देने लगा।
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देिी का छाेटा-िा मझन्दर ह, िहीं िब एकत्र हुए। कपूरी, बादामी, वफराेजी, धानी, गुलेनार रं ग के घूँघट
उलट ददये गये। यहाँ परदे के औािश्यकिा न थी। भरिी के स्िर, मुि हाेकर पहाड़ी के झरनाें की
िरह तनकल रहे थे। िचमुच, ििन्ि झखल उठा। पूजा के िाथ ही स्ििंत्र रप िे ये िुन्दररयाँ भी
गाने लगीं। यमुना चुपचाप कुरये की डाली के नीचे बठी थी। बेग का िहारा मलये िह धूप में औपना
मुख बचाये थी। वकिाेरी ने उिे हठ करके गुलेनार चादर औाेढा दी। पिीने िे लगकर उि रं ग ने
यमुना के मुख पर औपने मचह्न बना ददये थे। िह बड़ी िुन्दर रं गिाजी थी। यद्वप उिके भाि औाँखाें
के नीचे की कामलमा में करुण रं ग में णछप रहे थे; परन्िु उि िमय विलक्षण औाकर्मण उिके मुख
पर था। िुन्दरिा की हाेड लग जाने पर मानसिक गति दबाई न जा िकिी थी। विजय जब िान्दयम
में औपने काे औलग न रख िका, िह पूजा छाेडकर उिी के िमीप एक वििालखण्ड पर जा बठा।
यमुना भी िम्भ्भलकर बठ गयी थी।
'क्याें यमुना! िुमकाे गाना नहीं औािा बािचीि औारम्भ्भ करने के ढं ग िे विजय ने कहा।
'क्याें?'
'कुछ भी?'
'वफर क्या?'
'इिमें यदद दिमक बनकर जी िके, िाे मनुष्य के बडे िाभाग्य की बाि ह।'
'औपनी-औपनी इच्छा ह। औाप औमभनय करना चाहिे हं, िाे कीजजये; पर यह स्मरण रझखये वक िब
औमभनय िबके मनाेनुकूल नहीं हाेिे।'
'यमुना, औाज िाे िुमने रं गीन िाड़ी पहनी ह, बड़ी िुन्दर लग रही ह!'
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'क्या करँ विजय बाबू! जाे ममले गा िहीं न पहनूँगी।' विरि हाेकर यमुना ने कहा।
विजय काे रुखाई जान पड़ी, उिने भी बाि बदल दी। कहा, 'िुमने िाे कहा था वक िुमकाे जजि िस्िु
की औािश्यकिा हाेगी, मं दूँगी, यहाँ मुझे कुछ औािश्यकिा ह।'
यमुना भयभीि हाेकर विजय के औािुर मुख का औध्ययन करने लगी। कुछ न बाेली। विजय ने
िहमकर कहा, 'मुझे प्याि लगी ह।'
यमुना ने बग िे एक छाेट़ी-िी चाँदी की लु ड्टया तनकाली, जजिके िाथ पिली रं गीन डाेरी लगी थी।
िह कुरया के झुरमुट के दूिरी औाेर चली गई। विजय चुपचाप िाेचने लगा; औार कुछ नहीं, केिल
यमुना के स्िच्छ कपाेलाें पर गुलेनार रं ग की छाप। उन्मत्त हृदय-वकिाेर हृदय स्िप्न देखने लगा-
िाम्भ्बूल राग-रं जजि, चुंबन औंवकि कपाेलाें का! िह पागल हाे उठा।
यमुना पानी ले कर औायी, बग िे ममठाई तनकालकर विजय के िामने रख दी। िीधे लडके की िरह
विजय ने जलपान वकया, िब पूछा, 'पहाड़ी के ऊपर ही िुम्भ्हें जल ममला, यमुना?'
दाेनाें कुरये के झुरमुट की औाेट में चले । िहाँ िचमुच एक चाकाेर पत्थर का कुण्ड था, उिमें जल
लबालब भरा था। यमुना ने कहा, 'मुझिे यही एक टं डे ने कहा ह वक यह कुण्डा जाडा, गमीम, बरिाि
िब ददनाें में बराबर भरा रहिा ह; जजिने औादमी चाहें इिमें जल वपयें, खाली नहीं हाेिा। यह देिी
का चमत्कार ह। इिी में विंध्यिासिनी देिी िे कम इन पहाड़ी झीलाें की देिी का मान नहीं ह।
बहुि दूर िे लाेग यहाँ औािे हं।'
'यमुना, ह बडे औाियम की बाि! पहाड़ी के इिने ऊपर भी यह जल कुण्ड िचमुच औद्भि
ु ह; परन्िु
मंने औार भी एेिा कुण्ड देखा ह, जजिमें वकिने ही जल वपयें, िह भरा ही रहिा ह!'
'िुन्दरी में रप का कूप!' कहकर विजय यमुना के मुख काे उिी भाँति देखने लगा, जिे औनजान में
ढे ला फंे ककर बालक चाेट लगने िाले काे देखिा ह।
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'िाह विजय बाबू! औाज-कल िाड्हत्य का ज्ञान बढा हुऔा देखिी हँ!' कहिे हुए यमुना ने विजय की
औाेर देखा, जिे काेई बड़ी-बूढ़ी नटखट लडके काे िंकेि िे झझडकिी हाे।
विजय लत्तज्जि हाे उठा। इिने में 'विजय बाबू' की पुकार हुई, वकिाेरी बुला रही थी। िे दाेनाें देिी के
िामने पहुँचे। वकिाेरी मन-ही-मन मुस्कुराई। पूजा िमाप्त हाे चुकी थी। िबकाे चलने के मलए कहा
गया। यमुना ने बग उठाया। िब उिरने लगे। धूप कड़ी हाे गयी थी, विजय ने औपना छािा खाेल
मलया। उिकी बार-बार इच्छा हाेिी थी वक िह यमुना िे इिी की छाया में चलने काे कहे; पर
िाहि न हाेिा। यमुना की एक-दाे लटें पिीने िे उिके िुन्दर भाल पर मचपक गयी थीं। विजय
उिकी विमचत्र मलवप काे पढिे-पढिे पहाड़ी िे नीचे उिरा।
ड्द्विीय खंड
(1)
एक औाेर िाे जल बरि रहा था, पुरिाई िे बूँदें तिरछी हाेकर गगर रही थीं, उधर पश्चिम में चाथे पहर
की पीली धूप उनमें केिर घाेल रही थी। मथुरा िे िृन्दािन औाने िाली िडक पर एक घर की छि
पर यमुना चादर िान रही थी। दालान में बठा हुऔा विजय एक उपन्याि पढ रहा था। तनरं जन िेिा-
कुंज में दिमन करने गया था। वकिाेरी बठी हुई पान लगा रही थी। िीथमयात्रा के मलए श्रािण िे ही
लाेग ड्टके थे। झूले की बहार थी; घटाऔाें का जमघट।
उपन्याि पूरा करिे हुए विश्राम की िाँि ले कर विजय ने पूछा, 'पानी औार धूप िे बचने के मलए एक
पिली चादर क्या काम देगी यमुना?'
'बाबाजी के मलए मघा का जल िंचय करना ह। िे कहिे हं वक इि जल िे औनेक राेग नष्ट हाेिे
हं।'
'राेग चाहे नष्ट न हाे; पर िृन्दािन के खारे कूप-जल िे िाे यह औच्छा ही हाेगा। औच्छा एक गगलाि
मुझे भी दाे।'
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'विजय बाबू, काम िही करना, पर उिकी बड़ी िमालाेचना के बाद, यह िाे औापका स्िभाि हाे गया
ह। लीजजये जल।' कहकर यमुना ने पीने के जल ददया।
उिे पीकर विजय ने कहा, 'यमुना, िुम जानिी हाे वक मंने काॉलेज में एक िंिाेधन िमाज स्थावपि
वकया ह। उिका उद्देश्य ह-जजन बािाें में बुणर्द्िाद का उपयाेग न हाे िके, उिका खण्डन करना औार
िदनुकूल औाचरण करना। देख रही हाे वक मं छूि-छाि का कुछ विचार नहीं करिा, प्रकट रप िे
हाेटलाें िक में खािा भी हँ। इिी प्रकार इन प्राचीन कुिंस्काराें का नाि करना मं औपना किमव्य
िमझिा हँ, क्याेंवक ये ही रड्ढयाँ औागे चलकर धमम का रप धारण कर ले िी हं। जाे बािें कभी देि,
काल, पात्रानुिार प्रचमलि हाे गयी थीं, िे िब माननीय नहीं, ड्हन्दू-िमाज के पराें में बेदडयाँ हं।' इिने
में बाहर िडक पर कुछ बालकाें के मधुर स्िर िुनायी पडे , विजय उधर चांककर देखने लगा, छाेटे-
छाेटे ब्रह्मचारी दण्ड, कमण्डल औार पीि ििन धारण वकये िमस्िर में गाये जा रहे थे-
कस्यमचझत्कमवपनाेहरणीयं मम्भ्ममिाक्यमवपनाेच्चरणीयम्,
श्रीपिेःपदयुगस्मणीयं लीलयाभिजलिरणीयम्।
उन िबाें के औागे छाेट़ी दाढ़ी औार घने बालाें िाला एक युिक िफेद चद्दर, धाेिी पहने जा रहा था।
गृहस्थ लाेग उन ब्रह्मचाररयाें की झाेली में कुछ डाल देिे थे। विजय ने एक दृधष्ट िे देखकर मुँह
वफराकर यमुना िे कहा, 'देखाे यह बीििीं ििाब्दी में िीन हजार बी.िी. का औमभनय! िमग्र िंिार
औपनी स्स्थति रखने के मलए चंचल ह, राेट़ी का प्रश्न िबके िामने ह, वफर भी मूखम ड्हन्दू औपनी
पुरानी औिभ्यिाऔाें का प्रदिमन कराकर पुण्य-िंचय वकया चाहिे हं।'
'पाप औार कुछ नहीं ह यमुना, जजन्हें हम णछपाकर वकया चाहिे हं, उन्हीं कमाेों काे पाप कह िकिे हं;
परन्िु िमाज का एक बडा भाग उिे यदद व्यिहायम बना दे, िाे िहीं कमम पुण्य हाे जािा ह, धमम हाे
जािा ह। देखिी नहीं हाे, इिने विरुर्द् मि रखने िाले िंिार के मनुष्य औपने-औपने विचाराें में
धामममक बने हं। जाे एक के यहाँ पाप ह, िही दूिरे के मलए पुण्य ह।'
वकिाेरी चुपचाप इन लाेगाें की बाि िुन रही थी। िह एक स्िाथम िे भरी चिुर स्त्री थी। स्ििन्त्रिा िे
रहना चाहिी थी, इिमलए लडके काे भी स्ििन्त्र हाेने में िहायिा देिी थी। कभी-कभी यमुना की
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धामममकिा उिे औिह्य हाे जािी ह; परन्िु औपना गारि बनाये रखने के मलए िह उिका खण्डन न
करिी, क्याेंवक बाह्य धमामचरण ददखलाना ही उिके दुबमल चररत्र का औािरण था। िह बराबर चाहिी
थी वक यमुना औार विजय में गाढा पररचय बढे औार उिके मलए िह औििर भी देिी। उिने कहा,
'विजय इिी िे िुम्भ्हारे हाथ का भी खाने लगा ह, यमुना।'
'क्या करँ यमुना, विजय औभी लडका ह, मानिा नहीं। धीरे -धीरे िमझ जायेगा।' औप्रतिम हाेकर
वकिाेरी ने कहा।
इिने में एक िुन्दर िरुण बामलका औपना हँििा हुऔा मुख मलए भीिर औािे ही बाेली, 'वकिाेरी बह,
िाहजी के मझन्दर में औारिी देखने चलाेगी न?'
'िाे वफर विलम्भ्ब क्याें कहिे हुए घण्ट़ी ने औल्हडपन िे विजय की औाेर देखा।
'यमुना औार विजय काे यहीं झाँकी ममलिी ह, क्याें विजय बाबू?' बाि काटिे हुए घण्ट़ी ने कहा।
'मं िाे जाऊँगा नहीं, क्याेंवक छः बजे मुझे एक ममत्र िे ममलने जाना ह; परन्िु घण्ट़ी, िुम िाे हाे बड़ी
नटखट!' विजय ने कहा।
'यह ब्रज ह बाबूजी! यहाँ के पत्ते-पत्ते में प्रेम भरा ह। बंिी िाले की बंिी औब भी िेिा-कुंज में
औाधी राि काे बजिी ह। मचंिा वकि बाि की?'
विजय के पाि िरककर धीरे -िे हँििे हुए उि चंचल वकिाेरी ने कहा। घण्ट़ी के कपाेलाें में हँििे
िमय गडढे पड जािे थे। भाेली मििाली औाँखें गाेवपयाें के छायामचत्र उिारिीं औार उभरिी हुई ियि-
िंधध िे उिकी चंचलिा िदि छे ड-छाड करिी रहिी। िह एक क्षण के मलए भी स्स्थर न रहिी, कभी
औंगडाई ले िी, िाे कभी औपनी उँ गमलया चटकािी, औाँखें लज्जा का औमभनय करके जब पलकाें की
औाड में णछप जािीं िब भी भांहंे चला करिीं, तिि पर भी घण्ट़ी एक बाल-विधिा ह। विजय उिके
िामने औप्रतिभ हाे जािा, क्याेंवक िह कभी-कभी स्िाभाविक तनःिंकाेच पररहाि कर ददया करिी।
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यमुना काे उिका व्यंग्य औिह्य हाे उठिा; पर वकिाेरी काे िह छे ड-छाड औच्छी लगिी-बड़ी हँिमुख
लडकी ह!-यह कहकर बाि उडा ददया करिी।
वकिाेरी ने औपनी चादर ले ली थी। चलने काे प्रस्िुि थी। घण्ट़ी ने उठिे-उठिे कहा, 'औच्छा िाे औाज
लमलिा की ही विजय ह, राधा लाट जािी ह!' हँििे-हँििे िह वकिाेरी के िाथ घर िे बाहर तनकल
गयी।
िर्ाम बन्द हाे गयी थी; पर बादल धघरे थे। िहिा विजय उठा औार िह भी नाकर काे िािधान रहने
के मलए कहकर चला गया।
यमुना के हृदय में भी तनरुदद्दष्ट पथिाले मचंिा के बादल मँडरा रहे थे। िह औपनी औिीि-मचंिा में
तनमग्न हाे गयी। बीि जाने पर दुखदायी घटना भी िुन्दर औार मूल्यिान हाे जािी ह। िह एक बार
िारा बनकर मन-ही-मन औिीि का ड्हिाब लगाने लगी, स्मृतियाँ लाभ बन गयीं। जल िेग िे बरिने
लगा, परन्िु यमुना के मानि में एक शििु-िराेज लहराने लगा। िह राे उठी।
कई महीने बीि गये। वकिाेरी, तनरं जन औार विजय बठे हुए बािें कर रहे थे, तनरं जन दाि का मि
था वक कुछ ददन गाेकुल में चलकर रहा जाय, कृष्णचन्र की बाललीला िे औलं कृि भूमम में रहकर
हृदय औानन्दपूणम बनाया जाय। वकिाेरी भी िहमि थी; वकन्िु विजय काे इिमें कुछ औापत्तत्त थी।
इिी िमय एक ब्रह्मचारी ने भीिर औाकर िबकाे प्रणाम वकया। विजय चवकि हाे गया औार तनरं जन
प्रिन्न।
'क्या उन ब्रह्मचाररयाें के िाथ िुम्भ्हीं घूमिे हाे?' मंगल विजय ने औाियम भरी प्रिन्निा िे पूछा।
'हाँ विजय बाबू!' मंने यहाँ पर एक ऋवर्कुल खाेल रखा ह। यह िुनकर वक औाप लाेग यहाँ औाये हं,
मं कुछ मभक्षा ले ने औाया हँ।'
'मंगल! मंने िाे िमझा था वक िुमने कहीं औध्यापन का काम औारम्भ्भ वकया हाेगा; पर िुमने िाे यह
औच्छा ढाेंग तनकाला।'
'िही िाे करिा हँ विजय बाबू! पढािा ही िाे हँ। कुछ करने की प्रिृत्तत्त िाे थी ही, िह भी िमाज-
िेिा औार िुधार; परन्िु उन्हें वक्यात्मक रप देने के मलए मेरे पाि औार कान िाधन था?'
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'एेिे काम िाे औायमिमाज करिी ही थी, वफर उिके जाेड में औमभनय करने की क्या औािश्यकिा थी।
उिी में िझम्भ्ममलि हाे जािे।'
'औायमिमाज कुछ खण्डनात्मक ह औार मं प्राचीन धमम की िीमा के भीिर ही िुधार का पक्षपािी हँ।'
'यह क्याें नहीं कहिे वक िुम िमाज के स्पष्ट औादिम का औनुकरण करने में औिमथम थे, परीक्षा में
ठहर न िके थे। उि विधधमूलक व्यािहाररक धमम काे िुम्भ्हारे िमझ-बूझकर चलने िाले ििमिाेभर
हृदय ने स्िीकार वकया, औार िुम स्ियं प्राचीन तनर्ेधात्मक धमम के प्रचारक बन गये। कुछ बािाें के न
करने िे ही यह प्राचीन धमम िम्भ्पाददि हाे जािा ह-छुऔाे मि, खाऔाे मि, ब्याहाे मि, इत्यादद-इत्यादद।
कुछ भी दागयत्ि ले ना नहीं चाहिे औार बाि-बाि में िास्त्र िुम्भ्हारे प्रमाणस्िरप हं। बुणर्द्िाद का काेई
उपाय नहीं।' कहिे-कहिे विजय हँि पडा।
मंगल की िाम्भ्य औाकृति िन गयी। िह िंयि औार मधुर भार्ा में कहने लगा, 'विजय बाबू, यह औार
कुछ नहीं केिल उच्छं खलिा ह। औात्मिािन का औभाि-चररत्र की दुबमलिा विराेह करािी ह। धमम
मानिीय स्िभाि पर िािन करिा ह, न कर िके िाे मनुष्य औार पिु में भेद क्या रह जाय औापका
मि यह ह वक िमाज की औािश्यकिा देखकर धमम की व्यिस्था बनाई जाए, नहीं िाे हम उिे न
मानेंगे। पर िमाज िाे प्रिृत्तत्तमूलक ह। िह औधधक िे औधधक औाध्याझत्मक बनाकर, िप औार त्याग के
द्वारा िुर्द् करके उच्च औादिम िक पहुँचाया जा िकिा ह। इझन्रयपराय पिु के दृधष्टकाेण िे मनुष्य की
िब िुविधाऔाें के विचार नहीं वकये जा िकिे, क्याेंवक वफर िाे पिु औार मनुष्य में िाधन-भेद रह
जािा ह। बािें िे ही हं मनुष्य की औिुविधाऔाें का, औनन्ि िाधनाें के रहिे, औन्ि नहीं, िह उच्छं खल
हाेना ही चाहिा ह।'
तनरं जन काे उिकी युमियाँ पररमाजजमि औार भार्ा प्रांजल देखकर बड़ी प्रिन्निा हुई, उिका पक्ष ले िे
हुए उिने कहा, 'ठीक कहिे हाे मंगलदेि!'
विजय औार भी गरम हाेकर औाक्मण करिे हुए बाेला, 'औार उन ढकाेिलाें में क्या िथ्य ह?' उिका
िंकेि मंददराें के शिखराें की औाेर था।
'हमारे धमम मुख्यिः एकेश्वरिादी हं। विजय बाबू! िह ज्ञान-प्रधान ह; परन्िु औद्वििाद की दािमतनक
युमियाें काे स्िीकार करिे हुए काेई भी िणममाला का विराेधी बन जाए, एेिा िाे कारण नहीं ददखाई
पडिा। मूतिमपूजा इत्यादद उिी रप में ह। पाठिाला मे िबके मलए एक कक्षा हाेिी, इिमलए
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औधधकारी-भेद ह। हम लाेग ििमव्यापी भगिान् की ित्ता काे नददयाें के जल में, िृक्षाें में, पत्थराें में,
ििमत्र स्िीकार करने की परीक्षा देिे हं।'
'परन्िु हृदय में नहीं मानिे, चाहे औन्यत्र िब जगह मान लें ।' िकम न करके विजय ने व्यंग्य वकया।
मंगल ने हिाि हाेकर वकिाेरी की औाेर देखा।
'दररर ड्हन्दुऔाें के ही लडके मुझे ममलिे हं। मं उनके िाथ तनत्य भीख माँगिा हँ। जाे औन्न-िस्त्र
ममलिा ह। उिी में िबका तनिामह हाेिा ह। मं स्ियं उन्हे िंस्कृि पढािा हँ। एक ग्रहस्थ ने औपना
उजडा हुऔा उपिन दे ददया ह। उिमें एक औार लम्भ्बी िी दालान ह औार पाँच-िाि िृक्ष हं; उिने में
िब काम चल जािा ह। िीि औार िर्ाम में कुछ कष्ट हाेिा ह, क्याेवक दररर हं िाे क्या, हं िाे लडके
ही न!'
'मंगल! औार चाहे जाे हाे, िुम्भ्हारे इि पररश्रम औार कष्ट की ित्यतनष्ठा पर काेई औविश्वाि नहीं कर
िकिा। मं भी नहीं।' विजय ने कहा।
मंगल ममत्र िे मुख िे यह बाि िुनकर प्रिन्न हाे उठा, िह कहने लगा, 'देझखये विजय बाबू! मेरे पाि
यही धाेिी औार औँगाेछा ह। एक चादर भी ह। मेरा िब काम इिने में चल जािा ह। काेई औिुविधा
नहीं हाेिी। एक लम्भ्बा टाट ह। उिी पर िब िाे रहिे हं। दाे-िीन बरिन ह औार पाठ य-पुस्िकाें की
एक-एक प्रतियाँ। इिनी ही िाे मेरे ऋवर्कुल की िम्भ्पत्तत्त ह।' कहिे-कहिे िह हँि पडा।
यमुना भीिर पीलीभीि के चािल बीन रही थी-खीर बनाने के मलए। उिके राेएँ खडे हाे गये। मंगल
क्या देििा ह! उिी िमय उिे तिरस्कृि हृदय-वपण्ड का ध्यान औा गया। उिने मन में िाेचा-पुरुर्
काे उिकी क्या मचंिा हाे िकिी ह, िह िाे औपना िुख वििजजमि कर देिा ह; जजिे औपने रि िे
उि िुख काे खींचना पडिा ह, िही िाे उिकी व्यथा जानेगा! उिने कहा, 'मंगल ही नहीं, िब पुरुर्
राक्षि ह;ं देििा कदावप नहीं हाे िकिे।' िह दूिरी औाेर उठकर चली गयी।
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कुछ िमय चुप रहने के बाद विजय ने कहा, 'जाे िुम्भ्हारे दान के औधधकारी हं, धमम के ठे केदार हं,
उन्हें इिमलए िाे िमाज देिा ह वक िे उिका िदुपयाेग करें ; परन्िु िे मझन्दराें में, मठाें में बठ माज
उडािे ह,ं उन्हें क्या मचंिा वक िमाज के वकिने बच्चे भूखे-नंगे औार औशिसक्षि हं। मंगलदेि! चाहे मेरा
मि िुमिे न ममलिा हाे, परन्िु िुम्भ्हारा उद्देश्य िुन्दर ह।'
तनंरजन जिे िचेि हाे गया। एक बार उिने विजय की औाेर देखा; पर बाेला नहीं। वकिाेरी ने कहा,
'मंगलदेि! मं परदेि मे हँ, इिमलए वििेर् िहायिा नही कर िकिी; हाँ, िुम लाेगाें के मलए िस्त्र औार
पाठ य-पुस्िकाें की जजिनी औािश्यकिा हाे, मं दूँगी।'
'औार िीि, िर्ाम-तनिारण के याेग्य िाधारण गृह बनिा देने का भार मं ले िा हँ मंगल!' तनरं जन ने
कहा।
'मंगल! मं िुम्भ्हारी इि िफलिा पर बधाई देिा हँ।' हँििे हुए विजय ने कहा, 'कल मं िुम्भ्हारे
ऋवर्कुल में औाऊँगा।'
िबका मन इि घटना िे हल्का था; पर यमुना औपने भारी हृदय िे बार-बार यही पूछिी थी-इन
लाेगाें ने मंगल काे जलपान करने िक के मलए न पूछा, इिका कारण क्या उिका प्राथीम हाेकर औाना
ह?
यमुना कुछ औनमनी रहने लगी। वकिाेरी िे यह बाि णछपी न रही। घण्ट़ी प्रायः इन्ही लाेगाें के पाि
रहिी। एक ददन वकिाेरी ने कहा, 'विजय, हम लाेगाें काे ब्रज औाये बहुि ददन हाे गये, औब घर चलना
चाड्हए। हाे िके िाे ब्रज की पररक्मा भी कर लें ।'
'िह काेई औािश्यक बाि नहीं वक मं भी पुण्य-िंचय करँ।' विरि हाेकर विजय ने कहा, 'यदद इच्छा
हाे िाे औाप चली जा िकिी हं, मं िब िक यहीं बठा रहँगा।'
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'िाे क्या िू यहाँ औकेला रहेगा?'
'नहीं, मंगल के औाश्रम में जा रहँगा। िहाँ मकान बन रहा ह, उिे भी देखूँगा, कुछ िहायिा भी
करँगा औार मन भी बहले गा।'
'िह औाप ही दररर ह, िू उिके यहाँ जाकर उिे औार भी दुख देगा।'
'वफर विजय बाबू काे झखलािेगा कान बह जी, मं िाे चलने के मलए प्रस्िुि हँ।'
वकिाेरी मन-ही-मन हँिी थी, प्रिन्न भी हुई औार बाेली, 'औच्छी बाि ह। िाे मं पररक्मा कर औाऊँ,
क्याेंवक हाेली देखकर औिश्य घर लाट चलना ह।'
तनरं जन औार वकिाेरी पररक्मा करने चले । एक दािी औार जमादार िाथ गया।
िृदांिन में यमुना औार विजय औकेले रहे। केिल घण्ट़ी कभी-कभी औाकर हँिी की हलचल मचा
देिी। विजय कभी-कभी दूर यमुना के वकनारे चला जािा औार ददन-ददन भर पर लाटिा। औकेली
यमुना उि हँिाेड के व्यंग्य िे जजमररि हाे जािी। घण्ट़ी पररहाि करने में बड़ी तनदमय थी।
एक ददन दाेपहर की कड़ी धूप थी। िेठजी के मझन्दर में काेई झाँकी थी। घण्ट़ी औाई औार यमुना काे
दिमन के मलए पकड ले गयी। दिमन िे लाटिे हुए यमुना ने देखा, एक पाँच-िाि िृक्षाें का झुरमुट
औार घनी छाया, उिने िमझा काेई देिालय ह। िह छाया के लालच िे टू ट़ी हुई दीिार लाँघकर
भीिर चली गयी। देखा िाे औिाक् रह गयी-मंगल कच्ची ममट्ट़ी का गारा बना रहा ह, लडके इों टें ढाे
रहे हं, दाे राज उि मकान की जाेडाई कर रहे हं। पररश्रम िे मुँह लाल था। पिीना बह रहा था।
मंगल की िुकुमार देह वििि थी। िह दठठककर खड़ी हाे गयी। घण्ट़ी ने उिे धक्का देिे हुए कहा,
'चल यमुना, यह िाे ब्रह्मचारी ह, डर काहे का!' वफर ठठाकर हँि पड़ी।
यमुना ने एक बार वफर उिकी औाेर क्ाेध िे देखा। िह चुप भी न हाे िकी थी वक फरिा रखकर
सिर िे पिीना पाेंछिे हुए मंगल ने घूमकर देखा, 'यमुना!'
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ढ़ीठ घण्ट़ी िे औब किे रहा जाय, िह झटककर बाेली, 'ग्िामलनी! िुम्भ्हें कान्ह बुलािे री!' यमुना गड
गयी, मंगल ने क्या िमझा हाेगा िह घण्ट़ी काे घिीटिी हुई बाहर तनकल औायी। यमुना हाँफ रही
थी। पिीने-पिीने हाे रही थी। औभी िे दाेनाें िडक पर पहुँची भी न थीं वक दूर िे वकिी ने पुकारा,
'यमुना!'
यमुना मन में िंकल्प-विकल्प कर रही थी वक मंगल पवित्रिा औार औालाेक िे धघरा हुऔा पाप ह
वक दुबमलिाऔाें में मलपटा हुऔा एक दृढ ित्य उिने िमझा वक मंगल पुकार रहा ह, िह औार लम्भ्बे
डग बढाने लगी। घण्ट़ी ने कहा, 'औरी यमुना! िह िाे विजय बाबू हं। पीछे -पीछे औा रहे हं।'
यमुना एक बार काँप उठी-न जाने क्याें, पर खड़ी हाे गयी, विजय घूमकर औा रहा था। पाि औा जाने
पर विजय ने एक बार यमुना काे ऊपर िे नीचे िक देखा।
बिंि की िंध्या िाेने की धूल उडा रही थी। िृक्षाें के औन्िराल िे औािी हुए िूयमप्रभा उडिी हुई गदम
काे भी रं ग देिी थी। एक औििाद विजय के चाराें औाेर फल रहा था। िह तनविमकार दृधष्ट िे बहुि
िी बािें िाेचिे हुए भी वकिी पर मन स्स्थर नहीं कर िकिी। घण्ट़ी औार मंगल के परदे में यमुना
औधधक स्पष्ट हाे उठी थी। उिका औाकर्मण औजगर की िाँि के िमान उिे खींच रहा था। विजय
का हृदय प्रतिड्हंिा औार कुिूहल िे भर गया था। उिने झखडकी िे झाँककर देखा, घण्ट़ी औा रही
ह। िह घर िे बाहर ही उििे जा ममला।
'चमलये।'
दाेनाें उिी पथ पर बढे । औँधेरा हाे चला था। मंगल औपने औाश्रम में बठा हुऔा िंध्यापािन कर रहा
था। पीपल के िृक्ष के नीचे शिला पर पद्मािन लगाये िह बाेधधित्त्ि की प्रतिमूतिम िा ददखिा था।
विजय क्षण भर देखिा रहा, वफर मन ही मन कह उठा-पाखण्ड औाँख खाेलिे हुए िहिा औाचमन
ले कर मंगल ने धुँधले प्रकाि में देखा-विजय! औार दूर कान ह, एक स्त्री िह पल भर के मलए औस्ि-
व्यस्ि हाे उठा। उिने पुकारा, 'विजय बाबू!'
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विजय औार घण्ट़ी िहीं लाट पडे , परन्िु उि ददन मंगल के पुरुर् िूि का पाठ न हाे िका। दीपक
जल जाने पर जब िह पाठिाला में बठा, िब प्राकृि प्रकाि के िूत्र उिे बीहड लगे। व्याख्या औस्पष्ट
हाे गयी। ब्रह्मचाररयाें ने देखा-गुरुजी काे औाज क्या हाे गया ह।
विजय घर लाट औाया। यमुना रिाेई बनाकर बठी थी। हँििी हुई घण्ट़ी काे उिने िाथ ही औािे
देखा। िह डरी। औार न जाने क्याें उिने पूछा। विजय बाबू, विदेि में एक विधिा िरुणी काे मलए
इि िरह घूमना क्या ठीक ह?'
'यह बाि औाज क्याें पूछिी हाे यमुना घण्ट़ी! इिमें िुम्भ्हारी क्या िम्भ्मति ह?' िान्ि भाि िे विजय ने
कहा।
'इिका विचार िाे यमुना काे स्ियं करना चाड्हए। मं िाे ब्रजिासिनी हँ, हृदय की बंिी काे िुनने िे
कभी राेका नहीं जा िकिा।'
विजय भाेजन करने बठा, पर औरुमच थी। िीघ्र उठ गया। िह लम्भ्प के िामने जा बठा। िामने ही
दरी के काेने पर बठी यमुना पान लगाने लगी। पान विजय के िामने रखकर चली गयी, वकन्िु
विजय ने उिे छुऔा भी नहीं, यह यमुना ने लाट औाने पर देखा। उिने दृढ स्िर में पूछा, 'विजय बाबू,
पान क्याें नहीं खाया औापने?'
'मं बहुि जल्दी ही ईिाई हाेने िाला हँ, उि िमाज में इिका व्यिहार नहीं। मुझे यह दम्भ्भपूणम धमम
बाेझ के िमान दबाये ह, औपनी औात्मा के विरुर्द् रहने के मलए मं बाध्य वकया जा रहा हँ।'
'यह मं जानिा हँ, काेई राेक-टाेक नहीं, पर मं यह भी औनुभि करिा हँ वक मं कुछ विरुर्द् औाचरण
कर रहा हँ। इि विरुर्द्िा का खटका लगा रहिा ह। मन उत्िाहपूणम हाेकर किमव्य नहीं करिा। यह
िब मेरे ड्हन्दू हाेने के कारण ह। स्ििंत्रिा औार ड्हन्दू धमम दाेनाें विरुर्द्िाची िब्द हं।'
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'पर एेिी बहुि-िी बािें िाे औन्य धमामनुयायी मनुष्याें के जीिन में भी औा िकिी हं। िबका काम
िब मनुष्य िाे नहीं कर िकिे।'
'िाे भी बहुि-िी बािें एेिी हं, जाे ड्हन्दू धमम में रहकर नहीं की जा िकिीं; वकन्िु मेरे मलए तनिान्ि
औािश्यक हं।'
'जिे?'
यमुना ने ठाेकर लगने की दिा में पडकर पूछा, 'क्याें विजय बाबू! क्या दािी हाेकर रहना वकिी भी
भर मड्हला के मलए औपमान का पयामप्त कारण हाे जािा ह?'
'यमुना! िुम दािी हाे काेई दूिरा हृदय खाेलकर पूछ देखे, िुम मेरी औाराध्य देिी हाे-ििमस्ि हाे!'
विजय उत्तेजजि था।
'म औाराध्य देििा बना चुकी हँ, मं पतिि हाे चुकी हँ, मुझे...'
'यह मंने औनुमान कर मलया था, परन्िु इन औपवित्राऔाें में भी मं िुम्भ्हें पवित्र उज्ज्वल औार ऊजमझस्िि
पािा हँ-जिे ममलन ििन में हृदयहारी िान्दयम।'
'वकिी के हृदय की िीिलिा औार वकिी के यािन की उष्णिा-मं िब झेल चुकी हँ। उिमें िफल
हुई, उिकी िाध भी नहीं रही। विजय बाबू! मं दया की पात्री एक बहन हाेना चाहिी हँ-ह वकिी के
पाि इिनी तनःस्िाथम स्नेह-िम्भ्पत्तत्त, जाे मुझे दे िके कहिे-कहिे यमुना की औाँखाें िे औाँिू टपक पडे ।
विजय थप्पड खाये हुए लडके के िमान घूम पडा, 'मं औभी औािा हँ...' कहिा हुऔा िह घर िे बाहर
तनकल गया।
(2)
कई ददन हाे गये, विजय वकिी िे कुछ बाेलिा नहीं। िमय पर भाेजन कर ले िा औार िाे रहिा।
औधधक िमय उिका मकान के पाि ही करील की झादडयाें की टट्ट़ी के भीिर लगे हुए कदम्भ्ब के
नीचे बीििा ह। िहाँ बठकर िह कभी उपन्याि पढिा औार कभी हारमाेतनयम बजािा ह।
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औँधेरा हाे गया था, िह कदम्भ्ब के नीचे बठा हारमाेतनयम बजा रहा था। चंचल घण्ट़ी चली औायी।
उिने कहा, 'बाबूजी औाप िाे बडा औच्छा हारमाेतनयम बजािे ह।' पाि ही बठ गयी।
'ब्रजिासिनी औार कुछ चाहे ना जाने, वकन्िु फाग गाना िाे उिी के ड्हस्िे का ह।'
म बािरी-िी डाेलँू !
वपया के-'
ददल खाेलकर उिने गाया। मादकिा थी उिके लहरीले कण्ठ स्िर में, औार व्याकुलिा थी। विजय
की परदाें पर दाडने िाली उँ गमलयाें में! िे दाेनाें िन्मय थे। उिी िरह िे गािा हुऔा मंगल-धामममक
मंगल-भी, उि हृदय रािक िंगीि िे विमुग्ध हाेकर खडा हाे गया। एक बार उिे रम हुऔा, यमुना िाे
नहीं ह। िह भीिर चला गया। देखिे ही चंचल घण्ट़ी हँि पड़ी! बाेली, 'औाइए ब्रह्मचारीजी!'
'नही विजय! मं िुमिे कुछ पूछना चाहिा हँ। घण्ट़ी, िुम घर जा रही हाे न!'
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विजय ने िहमिे हुए पूछा, 'क्या कहना चाहिे हाे?'
'िुम इि लडकी काे िाथ ले कर इि स्ििन्त्रिा िे क्याें बदनाम हुऔा चाहिे हाे?'
'यद्वप मं इिका उत्तर देने काे बाध्य नहीं मंगल, एक बाि मं भी िुमिे पूछना चाहिा हँ-बिाऔाे िाे,
मं यमुना के िाथ भी एकान्ि में रहिा हँ, िब िुमकाे िन्देह क्याें नहीं हाेिा!'
'इिमलए वक िुम उिे भीिर िे प्रेम करिे हाे! औच्छा, यदद मं घण्ट़ी िे ब्याह करना चाहँ, िाे िुम
पुराेड्हि बनाेगे?'
'औच्छा हुऔा वक मं ििा िंयिभार्ी कपटाचारी नहीं हँ, जाे औपने चररत्र की दुबमलिा के कारण ममत्र
िे भी ममलने में िंकाेच करिा ह। मेरे यहाँ प्रायः िुम्भ्हारे न औाने का यही कारण ह वक िुम यमुना
की...'
'औच्छा जाने दाे। घण्ट़ी के चररत्र पर विश्वाि नहीं, िाे क्या िमाज औार धमम का यह किमव्य नहीं वक
उिे वकिी प्रकार औिलम्भ्ब ददया जाये, उिका पथ िरल कर ददया जाये यदद मं घण्ट़ी िे ब्याह करँ
िाे िुम पुराेड्हि बनाेगे बाेलाे, मं इिे करके पाप करँगा या पुण्य?'
'मं हातन उठाकर भी िमाज के एक व्यमि का कल्याण कर िकूँ िाे क्या पाप करँगा उत्तर दाे, देखें
िुम्भ्हारा धमम क्या व्यिस्था देिा ह।' विजय औपनी तनश्चिि विजय िे फूल रहा था।
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िहज में पच औाने िाला धीरे िे गले उिर जाने िाला स्नस्नग्ध पदाथम िभी औात्मिाि् कर ले िे हं।
वकन्िु कुछ त्याग-िाे भी औपनी महत्ता का त्याग-जब धमम के औादिम ने नहीं, िब िुम्भ्हारे धमम काे मं
क्या कहँ, मंगल।'
'विजय! मं िुम्भ्हारा इिना औतनष्ट नहीं देख िकिा। इिे त्याग िुम भले ही िमझ लाे; पर इिमें क्या
िुम्भ्हारी दुबमलिा का स्िाथमपूणम औंि नहीं ह। मं यह मान भी लूँ वक विधिा िे ब्याह करके िुम एक
धमम िम्भ्पाददि करिे हाे, िब भी घण्ट़ी जिी लडकी िे िुमकाे जीिन िे जजए पररण्य िूत्र बाँधने के
मलए मं एक ममत्र के नािे प्रस्िुि नहीं।'
'औच्छा मंगल! िुम मेरे िुभमचन्िक हाे; यदद मं यमुना िे ब्याह करँ? िह िाे...'
विजय ने क्ूर हँिी हँिकर औपने औाप कहा, 'पकडे गये दठकाने पर!' िह भीिर चला गया।
ददन बीि रहे थे। हाेली पाि औािी जािी थी। विजय का यािन उच्छं खल भाि िे बढ रहा था। उिे
ब्रज की रहस्यमयी भूमम का िािािरण औार भी जड्टल बना रहा था। यमुना उििे डरने लगी। िह
कभी-कभी मददरा पीकर एक बार ही चुप हाे जािा। गम्भ्भीर हाेकर ददन-ब-ददन वबिा ददया करिा।
घण्ट़ी औाकर उिमें िजीििा ले औाने का प्रयत्न करिी; परन्िु ििे ही जिे एक खँडहर की वकिी
भग्न प्राचीर पर बठा हुऔा पपीहा कभी बाेल दे!
फाल्गुन के िुक्लपक्ष की एकादिी थी। घर के पाि िाले कदम्भ्ब के नीचे विजय बठा था। चाँदनी
झखल रही थी। हारमाेतनयम, बाेिल औार गगलाि पाि ही थे। विजय कभी-कभी एक-दाे घूँट पी ले िा
औार कभी हारमाेतनयम में एक िान तनकाल ले िा। बहुि विलम्भ्ब हाे गया था। झखडकी में िे यमुना
चुपचाप यह दृश्य देख रही थी। उिे औपने हरद्वार के ददन स्मरण हाे औाये। तनरर गगन में चलिी
हुई चाँदनी-गंगा के िक्ष पर लाेटिी हुई चाँदनी-कानन की हररयाली में हरी-भरी चाँदनी! औार स्मरण
हाे रही थी। मंगल के प्रणय की पीयूर् िवर्मणी चझन्रका एक एेिी ही चाँदनी राि थी। जंगल की उि
छाेट़ी काेठरी में धिल मधुर औालाेक फल रहा था। िारा ले ट़ी थी, उिकी लटें िवकया पर वबखर
गयी थीं, मंगल उि कुन्िल-स्ििक काे मुट्ठ़ी में ले कर िूँघ रहा था। िृतप्त थी वकन्िु उि िृतप्त काे
स्स्थर रखने के मलए लालच का औन्ि न था। चाँदनी झखिकिी जािी थी। चन्रमा उि िीिल
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औामलं गन काे देखकर लत्तज्जि हाेकर भाग रहा था। मकरन्द िे लदा हुऔा मारुि चझन्रका-चूणम के िाथ
िारभ राशि वबखेर देिा था।
यमुना पागल हाे उठी। उिने देखा-िामने विजय बठा हुऔा औभी पी रहा ह। राि पहर-भर जा चुकी
ह। िृन्दािन में दूर िे फगुहाराें की डफ की गम्भ्भीर ध्ितन औार उन्मत्त कण्ठ िे रिीले फागाें की
िुमुल िानें उि चाँदनी में, उि पिन में ममली थीं। एक स्त्री औाई, करील की झादडयाें िे तनकलकर
विजय के पीछे खड़ी हाे गयी। यमुना एक बार िहम उठी, वफर उिने देखा-उि स्त्री ने हाथ का
लाेटा उठाया औार उिका िरल पदाथम विजय के सिर पर उडे ल ददया।
विजय के उष्ण मस्िक काे कुछ िीिलिा भली लगी। घूमकर देखा िाे घण्ट़ी झखलझखलाकर हँि
रही थी। िह औाज इझन्रय-जगि् के िद्ुि प्रिाह के चक्कर खाने लगा, चाराें औाेर विद्ुि-कण चमकिे,
दाडिे थे। युिक विजय औपने में न रह िका, उिने घण्ट़ी का हाथ पकडकर पूछा, 'ब्रजबाले , िुम रं ग
उडे लकर उिकी िीिलिा दे िकिी हाे वक उि रं ग की-िी ज्िाला-लाल ज्िाला! औाेह, जलन हाे
रही ह घण्ट़ी! औात्मिंयम रम ह बाेलाे!'
हाड-मांि के िास्िविक जीिन का ित्य, यािन औाने पर उिका औाना न जानकर बुलाने की धुन
रहिी ह। जाे चले जाने पर औनुभूि हाेिा ह, िह यािन, धीिर के लहरीले जाल में फँ िे हुए स्नस्नग्ध
मत्स्य-िा िडफडाने िाला यािन, औािन िे दबा हुऔा पंचिर्ीमय चपल िुरंग के िमान पृथ्िी काे
कुरे दने-िाला त्िरापूणम यािन, औधधक न िम्भ्हल िका, विजय ने घण्ट़ी काे औपनी मांिल भुजाऔाें में
लपेट मलया औार एक दृढ िथा दीघम चुम्भ्बन िे रं ग का प्रतििाद वकया।
यह िजीि औार उष्ण औामलं गन विजय के युिा जीिन का प्रथम उपहार था, चरम लाभ था। कंगाल
काे जिे तनधध ममली हाे! यमुना औार न देख िकी, उिने झखडकी बन्द कर दी। उि िब्द ने दाेनाें
काे औलग कर ददया। उिी िमय इक्काें के रुकने का िब्द बाहर हुऔा। यमुना नीचे उिर औायी
वकिाड खाेलने। वकिाेरी भीिर औायी।
औब घण्ट़ी औार विजय औाि-पाि बठ गये थे। वकिाेरी ने पूछा, 'विजय कहाँ ह?' यमुना कुछ न
बाेली। डाँटकर वकिाेरी ने कहा, 'बाेलिी क्याें नहीं यमुना?'
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यमुना ने कुछ न कहकर झखडकी खाेल दी। वकिाेरी ने देखा-तनखरी चाँदनी में एक स्त्री औार पुरुर्
कदम्भ्ब के नीचे बठे हं। िह गरम हाे उठी। उिने िहीं िे पुकारा, 'घण्ट़ी!'
घण्ट़ी भीिर औायी। विजय का िाहि न हुऔा, िह िहीं बठा रहा। वकिाेरी ने पूछा, 'घण्ट़ी, क्या िुम
इिनी तनलम ज्ज हाे!'
'मं क्या जानूँ वक लज्जा वकिे कहिे हं। ब्रज में िाे िभी हाेली में रं ग डालिी हं, मं भी रं ग डाल
औायी। विजय बाबू काे रं ग िे चाेट िाे न लगी हाेगी वकिाेरी बह!' वफर हँिने के ढं ग िे कहा, 'नहीं,
पाप हुऔा हाे िाे इन्हें भी ब्रज-पररक्मा करने के मलए भेज दीजजये!'
वकिाेरी काे यह बाि िीर-िी लगी। उिने झझडकिे हुए कहा, 'चलाे जाऔाे, औाज िे मेरे घर कभी न
औाना!'
विजय लडखडािा हुऔा भीिर औाया औार वििि बठ गया। वकिाेरी िे मददरा की गन्ध णछप न
िकी। उिने सिर पकड मलया। यमुना ने विजय काे धीरे िे मलटा ददया। िह िाे गया।
विजय ने औपने िम्भ्बन्ध की वकंिदझन्ियाें काे औार भी जड्टल बना ददया, िह उन्हें िुलझाने की चेष्टा
भी न करिा था। वकिाेरी ने बाेलना छाेड ददया था। वकिाेरी कभी-कभी िाेचिी-यदद श्रीचन्र इि
िमय औाकर लडके काे िम्भ्हाल ले िे! परन्िु िह बड़ी दूर की बाि थी।
एक ददन विजय औार वकिाेरी की मुठभेड हाे गयी। बाि यह थी वक तनरं जन ने इिना ही कहा वक
मद्पाें के िंिगम में रहना हमारे मलए औिंभि ह! विजय ने हँिकर कहा, 'औच्छी बाि ह, दूिरा स्थान
खाेज लीजजये। ढाेंग िे दूर रहना मुझे भी रुमचकर ह।' वकिाेरी औा गयी, उिने कहा, 'विजय, िुम
इिने तनलम ज्ज हाे! औपने औपराधाें काे िमझकर लत्तज्जि क्याें नहीं हाेिे निे की खुमारी िे भरी औाँखाें
काे उठाकर विजय ने वकिाेरी की औाेर देखा औार कहा, 'मं औपने कमाेों पर हँििा हँ, लत्तज्जि नहीं
हाेिा। जजन्हें लज्जा बड़ी वप्रय हाे, िे उिे औपने कामाें में खाेजं।े '
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वकिाेरी ममामहि हाेकर उठ गयी, औार औपना िामान बँधिाने लगी। उिी ददन कािी लाट जाने का
उिका दृढ तनिय हाे गया। यमुना चुपचाप बठी थी। उििे वकिाेरी ने पूछा, 'यमुना, क्या िुम न
चलाेगी?'
'बहजी, मं औब कहीं नहीं जाना चाहिी; यहीं िृन्दािन में भीख माँगकर जीिन वबिा लूँ गी!'
'मंने कुछ रुपये इकट्ठे कर मलए हं, उन्हें वकिी के मझन्दर में चढा दूँगी औार दाे मुट्ठ़ी भर भाि खाकर
तनिामह कर लूँ गी।'
िामान इक्काें पर धरा जाने लगा। वकिाेरी औार तनरं जन िाँगे पर जा बठे । विजय चुपचाप बठा रहा,
उठा नहीं, जब यमुना भी बाहर तनकलने लगी, िब उििे रहा न गया; विजय ने पूछा, 'यमुना, िुम भी
मुझे छाेडकर चली जािी हाे!' पर यमुना कुछ न बाेली। िह दूिरी औाेर चली; िाँगे औार इक्के स्टे िन
की औाेर। विजय चुपचाप बठा रहा। उिने देखा वक िह स्ियं तनिामसिि ह। वकिाेरी का स्मरण
करके एक बार उिका हृदय मािृस्नेह िे उमड औाया, उिकी इच्छा हुई वक िह भी स्टे िन की राह
पकडे ; पर औात्मामभमान ने राेक ददया। उिके िामने वकिाेरी की मािृमूतिम विकृि हाे उठी। िह
िाेचने लगा-माँ मुझे पुत्र के नािे कुछ भी नहीं िमझिी, मुझे भी औपने स्िाथम, गारि औार औधधकार-
दम्भ्भ के भीिर ही देखना चाहिी ह। िंिान स्नेह हाेिा िाे याें ही मुझे छाेडकर चली जािी िह स्िब्ध
बठा रहा। वफर कुछ विचारकर औपना िामान बाँधने लगा, दाे-िीन बग औार बण्डल हुए। उिने एक
िाँगे िाले काे राेककर उि पर औपना िामान रख ददया, स्ियं भी चढ गया औार उिे मथुरा की औाेर
चलने के मलए कह ददया। विजय का सिर िन-िन कर रहा था। िाँगा औपनी राह पर चल रहा था;
पर विजय काे मालू म हाेिा था वक हम बठे हं औार पटरी पर के घर औार िृक्ष िब हमिे घृणा
करिे हुए भाग रहे हं। औकस्माि् उिके कान में एक गीि का औंि िुनाई पडा-
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उिने िाँगेिाले काे रुकने के मलये कहा। घण्ट़ी गािी जा रही थी। औँधेरा हाे चला था। विजय ने
पुकारा, 'घण्ट़ी!'
घण्ट़ी िाँगे के पाि चली औायी। उिने पूछा, 'कहाँ विजय बाबू?'
'िब लाेग बनारि लाट गये। मं औकेला मथुरा जा रहा हँ। औच्छा हुऔा, िुमिे भेंट हाे गयी!'
'िाे औाज क्याें नहीं चलिी बठ जाऔाे, िाँगे पर जगह िाे ह।'
इिना कहिे हुए विजय ने बग िाँगेिाले के बगल में रख ददया, घण्ट़ी पाि जाकर बठ गयी।
(3)
मथुरा में चचम के पाि एक छाेटा-िा, परन्िु िाफ-िुथरा बँगला ह। उिके चाराें औाेर िाराें िे धघरी
हुई ऊँची, जुरांट़ी की बड़ी घनी टट्ट़ी ह। भीिर कुछ फलाें के िृक्ष हं। हररयाली औपनी घनी छाया में
उि बँगले काे िीिल करिी ह। पाि ही पीपल का एक बडा िा िृक्ष ह। उिके नीचे बेंि की कुिीम
पर बठे हुए ममस्टर बाथम के िामने एक टे बल पर कुछ कागज वबखरे हं। िह औपनी धुन में काम
में व्यस्ि ह।
बाथम ने एक भारिीय रमणी िे ब्याह कर मलया ह। िह इिना औल्पभार्ी औार गंभीर ह वक पडाेि
के लाेग बाथम काे िाधु िाहब कहिे हं, उििे औाज िक वकिी िे झगडा नहीं हुऔा, औार न उिे
वकिी ने क्ाेध करिे देखा। बाहर िाे औिश्य याेराेपीय ढं ग िे रहिा ह, िाे भी केिल िस्त्र औार
व्यिहार के िम्भ्बन्ध मे;ं परन्िु उिके घर के भीिर पूणम ड्हन्दू औाचार हं। उिकी स्त्री मारगरे ट लतिका
ईिाई हाेिे हुए भी भारिीय ढं ग िे रहिी ह। बाथम उििे प्रिन्न ह; िह कहिा ह वक गृहणीत्ि की
जिी िुन्दर याेजना भारिीय स्त्री काे औािी ह, िह औन्यत्र दुलमभ ह। इिना औाकर्मक, इिना माया-
ममिापूणम स्त्री-हृदय िुलभ गाहमस्थ्य जीिन औार वकिी िमाज में नहीं। कभी-कभी औपने इन विचाराें
के कारण उिे औपने याेराेपीय ममत्राें के िामने बहुि लत्तज्जि हाेना पडिा ह; परन्िु उिका यह दृढ
विश्वाि ह। उिका चचम के पादरी पर भी औनन्य प्रभाि ह। पादरी जाॉन उिके धमम-विश्वाि का
औन्यिम िमथमक ह। लतिका काे िह बूढा पादरी औपनी लडकी के िमान प्यार करिा ह। बाथम
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चालीि औार लतिका िीि की हाेगी। ित्तर बरि का बूढा पादरी इन दाेनाें काे देखकर औत्यन्ि
प्रिन्न हाेिा ह।
औभी दीपक नहीं जलाये गये थे। कुबड़ी टे किा हुऔा बूढा जाॉन औा पहुँचा। बाथम उठ खडा हुऔा,
हाथ ममलाकर बठिे हुए जाॉन ने पूछा, 'मारगरे ट कहाँ ह िुम लाेगाें काे देखकर औत्यन्ि प्रिन्निा हाेिी
ह।'
'हाँ वपिाजी, हम लाेग भी िाथ ही चलें गे।' कहिे हुए बाथम भीिर गया औार कुछ ममनटाें में लतिका
एक िफेद रे िमी धाेिी पहने बाथम के िाथ बाहर औा गयी। बूढे पादरी ने लतिका िे सिर पर हाथ
फेरिे हुए कहा, 'चलिी हाे मारगरे ट?'
बाथम औार जान भी लतिका काे प्रिन्न रखने के मलए भारिीय िंस्कृति िे औपनी पूणम िहानुभूति
ददखािे। िे औापि में बाि करने के मलए प्रायः ड्हन्दी में ही बाेलिे।
'हाँ वपिा! मुझे औाज विलम्भ्ब हुऔा, औन्यथा मं ही इनिे चलने के मलए पहले औनुराेध करिी। मेरी
रिाेईदाररन औाज कुछ बीमार ह, मं उिकी िहायिा कर रही थी, इिी िे औापकाे कष्ट करना पडा।'
'औाेहाे! उि दुझखया िरला काे कहिी हाे। लतिका! इिके बपतिस्मा न ले ने पर भी मं उि पर बड़ी
श्रर्द्ा करिा हँ। िह एक जीिी-जागिी करुणा ह। उिके मुख पर मिीह की जननी के औंचल की
छाया ह। उिे क्या हुऔा ह बेट़ी?'
'नमस्कार वपिा! मुझे िाे कुछ नहीं हुऔा ह। लतिका रानी के दुलार का राेग कभी-कभी मुझे बहुि
ििािा ह।' कहिी हुई एक पचाि बरि की प्राढा स्त्री ने बूढे पादरी के िामने औाकर सिर झुका
ददया।
'औाेहाे, मेरी िरला! िुम औच्छी हाे, यह जानकर मं बहुि िुखी हुऔा। कहाे, िुम प्राथमना िाे करिी हाे
न पवित्र औात्मा िुम्भ्हारा कल्याण करे । लतिका के हृदय में यीिु की प्यारा करुणा ह, िरला! िह
िुम्भ्हें बहुि प्यार करिी ह।' पादरी ने कहा।
'मुझ दुझखया पर दया करके इन लाेगाें ने मेरा बडा उपकार वकया ह िाहब! भगिान् इन लाेगाें का
मंगल करे ।' प्राढा ने कहा।
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'िुम बपतिस्मा क्याें नहीं ले िी हाे, िरला! इि औिहाय लाेक में िुम्भ्हारे औपराधाें काे कान ऊपर ले गा
िुम्भ्हारा कान उर्द्ार करे गा पादरी ने कहा।
'औाप लाेगाें िे िुनकर मुझे यह विश्वाि हाे गया ह वक मिीह एक दयालु महात्मा थे। मं उनमें श्रर्द्ा
करिी हँ, मुझे उनकी बाि िुनकर ठीक भागिि के उि भि का स्मरण हाे औािा ह, जजिने भगिान
का िरदान पाने काे िंिार-भर के दुःखाें काे औपने मलए माँगा था-औहा! ििा ही हृदय महात्मा ईिा
का भी था; परन्िु वपिा! इिके मलए धमम पररििमन करना िाे दुबमलिा ह। हम ड्हन्दुऔाें का कममिाद में
विश्वाि ह। औपने-औपने कममफल िाे भाेगने ही पडंे गे।'
पादरी चांक उठा। उिने कहा, 'िुमने ठीक नहीं िमझा। पापाें का पिात्ताप द्वारा प्रायश्चित्त हाेने पर
िीघ्र ही उन कमाेों काे यीिु क्षमा करिा ह, औार इिके मलए उिने औपना औगग्रम रि जमा कर
ददया ह।'
'वपिा! मं िाे यह िमझिी हँ वक यदद यह ित्य हाे, िाे भी इिका प्रचार न हाेना चाड्हए; क्याेंवक
मनुष्य काे पाप करने का औाश्रय ममले गा। िह औपने उत्तरदागयत्ि िे छुट्ट़ी पा जाएगा।' िरला ने दृढ
स्िर में कहा।
एक क्षण के मलए पादरी चुप रहा। उिका मुँह िमिमा उठा। उिने कहा, 'औभी नहीं िरला! कभी
िुम इि ित्य काे िमझाेगी। िुम मनुष्य के पिात्ताप के एक दीघम तनःश्वाि का मूल्य नहीं जानिी
हाे, प्राथमना िे झुकी हुई औाँखाें के औाँिू की एक बूँद का रहस्य िुम नहीं िमझिी।'
'मं िंिार की ििाई हँ, ठाेकर खाकर मारी-मारी वफरिी हँ। वपिा! भगिान के क्ाेध काे, उनके न्याय
काे मं औाँचल पिारकर ले िी हँ। मुझे इिमें कायरिा नहीं ििािी। मं औपने कममफल काे िहन
करने के मलए िज्र के िमान िबल, कठाेर हँ। औपनी दुबमलिा के मलए कृिज्ञिा का बाेझ ले ना मेरी
तनयति ने मुझे नहीं सिखाया। मं भगिान् िे यही प्राथमना करिी हँ वक यदद िेरी इच्छा पूणम हाे गयी,
इि हाड-मांि में इि चेिना काे रखने के मलए दण्ड की औिधध पूरी हाे गयी, िाे एक बार हँि दे
वक मंने िुझे उत्पन्न करके भर पाया।' कहिे-कहिे िरला के मुख पर एक औलावकक औात्मविश्वाि,
एक ििेज दीतप्त नाच उठी। उिे देखकर पादरी भी चुप हाे गया। लतिका औार बाथम भी स्िब्ध रहे।
िरला के मुख पर थाेडे ही िमय में पूिम भाि लाट औाया। उिने प्रकृतिस्थ हाेिे हुए विनीि भाि िे
पूछा, 'वपिा! एक प्याली चाय ले औाऊँ!'
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बाथम ने भी बाि बदलने के मलए िहिा कहा, 'वपिा! जब िक औाप चाय वपयें, िब िक पवित्र
कुमारी का एक िुन्दर मचत्र, जाे िंभििः वकिी पुिमगाली मचत्र की, वकिी ड्हन्दुस्िानी मुिव्वर की
बनायी प्रतिकृति ह, लाकर ददखलाऊँ, िकडाें बरि िे कम का न हाेगा।'
'हाँ, यह िाे मं जानिा हँ वक िुम प्राचीन कला-िम्भ्बन्धी भारिीय िस्िुऔाें का व्यििाय करिे हाे। औार
औमरीका िथा जममनी में िुमने इि व्यििाय में बड़ी ख्याति पायी ह; परन्िु औाियम ह वक एेिे मचत्र
भी िुमकाे ममल जािे हं। मं औिश्य देखूँगा।' कहकर पादरी कुरिी िे ड्टक गया।
िरला चाय लाने गयी औार बाथम मचत्र। लतिका ने जिे स्िप्न देखकर औाँख खाेली। िामने पादरी
काे देखकर िह एक बार वफर औापे में औायी। बाथम ने मचत्र लतिका के हाथ में देकर कहा, 'मं लं प
ले िा औाऊँ!'
बूढे पादरी ने उत्िुकिा ददखलािे हुए िंध्या के ममलन औालाेक में ही उि मचत्र काे लतिका के हाथ
िे ले कर देखना औारम्भ्भ वकया था वक बाथम ने एक लम्भ्प लाकर टे बुल पर रख ददया। िह ईिा की
जननी मररयम का मचत्र था। उिे देखिे ही जाॉन की औाँखें भमि िे पूणम हाे गयीं। िह बड़ी प्रिन्निा
िे बाेला, 'बाथम! िुम बडे भाग्यिान हाे।' औार बाथम कुछ बाेलना ही चाहिा था वक रमणी की कािर
ध्ितन उन लाेगाें काे िुनाई पड़ी, 'बचाऔाे-बचाऔाे!'
बाथम ने देखा-एक स्त्री दाडिी-हाँफिी हुई चली औा रही ह, उिके पीछे दाे मनुष्य भी। बाथम ने उि
स्त्री काे दाडकर औपने पीछे कर मलया औार घूँिा िानिे हुए कडककर कहा, 'औागे बढे िाे जान ले
लूँ गा।' पीछा करने िालाें ने देखा, एक गाेरा मुँह! िे उल्टे पर लाटकर भागे। िरला ने िब िक उि
भयभीि युििी काे औपनी गाेद में ले मलया था। युििी राे रही थी। िरला ने पूछा, 'क्या हुऔा ह
घबराऔाे मि, औब िुम्भ्हारा काेई कुछ न कर िकेगा।'
युििी ने कहा, 'विजय बाबू काे इन िबाें ने मारकर गगरा ददया ह।' िह वफर राेने लगी।
औबकी लतिका ने बाथम की औाेर देखकर कहा, 'रामदाि काे बुलाऔाे, लालटे न ले कर देखे वक बाि
क्या ह?'
बाथम ने पुकारा-'रामदाि!'
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िह भी इधर ही दाडा हुऔा औा रहा था। लालटे न उिके हाथ में थी। बाथम उिके िाथ चला गया।
बँगले िे तनकलिे ही बायीं औाेर माेड पडिा था। िहाँ िडक की नाली िीन फुट गहरी ह, उिी में
एक युिक गगरा हुऔा ददखायी पडा। बाथम ने उिरकर देखा वक युिक औाँखें खाेल रहा ह। सिर में
चाेट औाने िे िह क्षण भर मे मलए मूझच्छम ि हाे गया था। विजय पूणम स्िस्थ्य युिक था। पीछे की
औाकझस्मक चाेट ने उिे वििि कर ददया, औन्यथा दाे के मलए कम न था। बाथम के िहारे िह उठ
खडा हुऔा। औभी उिे चक्कर औा रहा था, वफर भी उिने पूछा, 'घण्ट़ी कहाँ ह
विजय धीरे -धीरे बँगले में औाया औार एक औारामकुिीम पर बठ गया। इिने में चचम का घण्टा बजा।
पादरी ने चलने की उत्िुकिा प्रकट की, लतिका ने कहा, 'वपिा! बाथम प्राथमना करने जाएँगे; मुझे
औाज्ञा हाे, िाे इि विपन्न मनुष्याें की िहायिा करँ, यह भी िाे प्राथमना िे कम नहीं ह।'
औब लतिका औार िरला विजय औार घण्ट़ी की िेिा में लगी। िरला ने कहा, 'चाय ले औाऊँ, उिे
पीने िे स्फूतिम औा जायेगी।'
'मेरी िम्भ्मति ह वक औाज की राि औाप लाेग इिी बँगले पर वबिािें, िंभि ह वक िे दुष्ट वफर कहीं
घाि में लगे हाें।' लतिका ने कहा।
िरला लतिका के इि प्रस्िाि िे प्रिन्न हाेकर घण्ट़ी िे बाेली, 'क्याें बेट़ी! िुम्भ्हारी क्या िम्भ्मति ह
िुम लाेगाें का घर यहाँ िे वकिनी दूर ह?' कहकर रामदाि काे कुछ िंकेि वकया।
विजय ने कहा, 'हम लाेग परदेिी हं, यहाँ घर नहीं। औभी यहाँ औाये एक िप्ताह िे औधधक नहीं हुऔा
ह। औाज मं इनके िाथ एक िाँगे पर घूमने तनकला। दाे-िीन ददन िे दाे-एक मुिलमान गुण्डे हम
लाेगाें काे प्रायः घूम-वफरिे देखिे थे। मंने उि पर कुछ ध्यान नहीं ददया था, औाज एक िाँगे िाला
मेरे कमरे के पाि िाँगा राेककर बड़ी देर िक वकिी िे बािें करिा रहा। मंने देखा, िाँगा औच्छा ह।
पूछा, वकराये पर चलाेगे! उिने प्रिन्निा िे स्िीकार कर मलया। िंध्या हाे चली थी। हम लाेगाें ने
घूमने के विचार िे चलना तनश्चिि वकया औार उि पर जा बठे ।'
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इिने में रामदाि चाय का िामान ले कर औाया। विजय ने पीकर कृिज्ञिा प्रकट करिे हुए वफर
कहना औारम्भ्भ वकया, 'हम लाेग बहुि दूर-दूर घूमकर एक चचम के पाि पहुँचे। इच्छा हुई वक घर लाट
चलें , पर उि िाँगे िाले ने कहा-बाबू िाहब, यह चचम औपने ढं ग का एक ही ह, इिे देख िाे लीजजये।
हम लाेग कुिूहल िे प्रेररि हाेकर इिे देखने के मलए चले । िहिा औँधेरी झाड़ी में िे िे ही दाेनाें
गुण्डे तनकल औाये औार एक ने पीछे िे मेरे सिर पर डं डा मारा। मं औाकझस्मक चाेट िे गगर पडा।
इिके बाद मं नहीं जानिा वक क्या हुऔा, वफर जिे यहाँ पहुँचा, िह िब िाे औाप लाेग जानिी हं।'
घण्ट़ी ने कहा, 'मं यह देखिे ही भागी। मुझिे जिे वकिी ने कहा वक ये िब मुझे िाँगे पर वबठाकर
ले भागेंगे। औाप लाेगाें की कृपा िे हम लाेगाें की रक्षा हाे गयी।'
िरला घण्ट़ी का हाथ पकडकर भीिर ले गयी। उिे कपडा बदलने काे ददया दूिरी धाेिी पहनकर
जब िह बाहर औायी, िब िरला ने पूछा, 'घण्ट़ी! ये िुम्भ्हारे पति हं वकिने ददन बीिे ब्याह हुए?'
घण्ट़ी ने सिर नीचा कर मलया। िरला के मुँह का भाि क्षण-भर मे पररितिमि हाे गया, पर िह औाज
के औतिमथयाें की औभ्यथमना में काेई औन्िर नहीं पडने देना चाहिी थी। िह औपनी काेठरी, जाे बँगले
िे हटकर उिी बाग में थाेड़ी दूर पर थी, िाफ करने लगी। घण्ट़ी दालान में बठी हुई थी। िरला ने
औाकर विजय िे पूछा, 'भाेजन िाे कररयेगा, मं बनाऊँ?'
दूिरे ददन प्रभाि की वकरणाें ने जब विजय की काेठरी में प्रिेि वकया, िब िरला भी विजय काे
देख रही थी। िह िाेच रही थी-यह भी वकिी माँ का पुत्र ह-औहा! किे स्नेह की िम्भ्पति ह। दुलार
ने यह डाँटा नहीं गया, औब औपने मन का हाे गया।
विजय की औाँख खुली। औभी सिर में पीडा थी। उिने िवकये िे सिर उठाकर देखा-िरला का
िात्िल्यपूणम मुख। उिने नमस्कार वकया। बाथम िायु िेिन कर लाटा औा रहा था, उिने भी पूछा,
'विजय बाबू, औब पीडा िाे नहीं ह?'
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'धन्यिाद की औािश्यकिा नहीं। हाथ-मुँह धाेकर औाइये, िाे कुछ ददखाऊँगा। औापकी औाकृति िे
प्रकट ह वक हृदय में कला-िम्भ्बंधी िुरुमच ह।' बाथम ने कहा।
'मं औभी औािा हँ।' कहिा हुऔा विजय काेठरी िे बाहर चला औाया। िरला ने कहा, 'देखा, इिी
काेठरी के दूिरे भाग में िब िामान ममले गा। झटपट चाय के िमय में औा जाऔाे।' विजय उधर
गया।
पीपल के िृक्ष के नीचे मेज पर एक फूलदान रखा ह। उिमें औाठ-दि गुलाब के फूल लगे हं।
बाथम, लतिका, घण्ट़ी औार विजय बठे हं। रामदाि चाय ले औाया। िब लाेगाें ने चाय पीकर बािें
औारम्भ्भ कीं। विजय औार घण्ट़ी के िंबंध में प्रश्न हुए औार उनका चलिा हुऔा उत्तर ममला-विजय
कािी का एक धनी युिक ह औार घण्ट़ी उिकी ममत्र ह। यहाँ दाेनाें घूमने-वफरने औाये हं।
बाथम एक पक्का दुकानदार था। उिने मन में विचारा वक मुझे इििे क्या, िम्भ्भि ह वक ये कुछ मचत्र
खरीद लें , परन्िु लतिका काे घण्ट़ी की औाेर देखकर औाियम हुऔा, उिने पूछा, 'क्या औाप लाेग ड्हन्दू
हं?'
िरला दूर खड़ी इन लाेगाें की बािें िुन रही थी। उिकाे एक प्रकार की प्रिन्निा हुई। बाथम ने
कमरे में विक्य के मचत्र औार कलापूणम िामान िजाये हुए थे। िह कमरा छाेट़ी-िी एक प्रदिमनी थीं।
दाे-चार मचत्राें पर विजय ने औपनी िम्भ्मति प्रकट की, जजिे िुनकर बाथम बहुि ही प्रिन्न हुऔा।
उिने विजय िे कहा, 'औाप िाे िचमुच इि कला के मममज्ञ हं, मेरा औनुमान ठीक ही था।'
विजय ने हँििे हुए कहा, 'मं मचत्रकला िे बडा प्रेम रखिा हँ। मंने बहुि िे मचत्र बनाये भी हं। औार
महािय, यदद औाप क्षमा करें , िाे मं यहाँ िक कह िकिा हँ वक इनमें िे वकिने िुन्दर मचत्र, जजन्हें
औाप प्राचीन औार बहुमूल्य कहिे हं, िे औिली नहीं हं।'
'बाथम काे कुछ क्ाेध औार औाियम हुऔा। पूछा, 'औाप इिका प्रमाण दे िकिे हं?'
'प्रमाण नहीं, मं एक मचत्र की प्रतिमलवप कर दूँगा। औाप देखिे नहीं, इन मचत्राें के रं ग ही कह रहे हं
वक िे औाजकल के हं-प्राचीन िमय में िे बनिे ही कहाँ थे, औार िाेने की निीनिा किी बाेल रही
ह। देझखये न!' इिना कहकर एक मचत्र बाथम के हाथ में उठाकर ददया। बाथम ने ध्यान िे देखकर
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धीरे -धीरे टे बुल पर रख ददया औार वफर हँििे हुए विजय के दाेनाें हाथ पकडकर हाथ ड्हला ददया
औार कहा, 'औाप िच कहिे हं। इि प्रकार िे मं स्ियं ठगा गया औार दूिरे काे भी ठगिा हँ। क्या
कृपा करके औाप कुछ ददन औार मेरे औतिमथ हाेंगे औाप जजिने ददन मथुरा में रहें। मेरे ही यहाँ रहें-
यह मेरी हाददमक प्राथमना ह। औापके ममत्र काे काेई भी औिुविधा न हाेगी। िरला ड्हन्दुस्िानी रीति िे
औापके मलए िब प्रबन्ध करे गी।'
लतिका औाियम में थी औार घण्ट़ी प्रिन्न हाे रही थी। उिने िंकेि वकया। विजय मन में विचारने
लगा-क्या उत्तर दूँ, वफर िहिा उिे स्मरण हुऔा वक मथुरा में एक तनस्िहाय औार कंगाल मनुष्य ह।
जब मािा ने छाेड ददया ह, िब उिे कुछ करके ही जीिन वबिाना हाेगा। यदद यह काम कर िका,
िाे...िह झटपट बाेल उठा, 'औाप जिे िज्जन के िाथ रहने में मुझे बड़ी प्रिन्निा हाेगी, परन्िु मेरा
थाेडा-िा िामान ह, उिे ले औाना हाेगा।'
'धन्यिाद! औापके मलए िाे मेरा यही छाेटा-िा कमरा औावफि का हाेगा औार औापकी ममत्र मेरी स्त्री
के िाथ रहेगी।'
बीच में ही िरला ने कहा, 'यदद मेरी काेठरी में कष्ट न हाे, िाे िहीं रह लें गी।'
िहिा इि औाश्रय के ममल जाने िे उन दाेनाें काे विचार करने का औििर नहीं ममला।
बाथम ने कहा, 'नहीं-नहीं, इिमें मं औपना औपमान िमझूँगा।' घण्ट़ी हँिने लगी। बाथम लत्तज्जि हाे
गया; परन्िु लतिका ने धीरे िे बाथम काे िमझा ददया वक घण्ट़ी काे िरला के िाथ रहने में वििेर्
िुविधा हाेगी।
बाथम के यहाँ रहिे विजय काे महीनाें बीि गये। उिमे काम करने की स्फूतिम औार पररश्रम ही
उत्कण्ठा बढ गयी ह। मचत्र मलए िह ददन भर िूमलका चलाया करिा ह। घंटाें बीिने पर िह एक
बार सिर उठाकर झखडकी िे मालसिरी िृक्ष की हररयाली देख ले िा। िह नाददरिाह का एक मचत्र
औंवकि कर रहा था, जजिमें नाददरिाह हाथी पर बठकर उिकी लगाम माँग रहा था। मुगल दरबार
के चापलू ि मचत्रकार ने यद्वप उिे मूखम बनाने के मलए ही यह मचत्र बनाया था, परन्िु इि िाहिी
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औाक्मणकारी के मुख िे भय नहीं, प्रत्युि पराधीन ििारी पर चढने की एक िंका ही प्रकट हाे रही
ह। मचत्रकार ने उिे भयभीि मचतत्रि करने का िाहि नहीं हुऔा। िंभििः उि औाँधी के चले जाने के
बाद मुहम्भ्मदिाह उि मचत्र काे देखकर बहुि प्रिन्न हुऔा हाेगा। प्रतिमलवप ठीक-ठीक हाे रही थी।
बाथम उि मचत्र काे देखकर बहुि प्रिन्न हाे रहा था। विजय की कला-कुिलिा में उिका पूरा
विश्वाि हाे चला था-ििे ही पुराने रं ग-मिाले , ििी ही औंकन-िली थी।'
काेई भी उिे देखकर यह नहीं कह िकिा था वक यह प्राचीन ददल्ली कलम का मचत्र नहीं ह।
औाज मचत्र पूरा हुऔा ह। औभी िह िूमलका हाथ िे रख ही रहा था वक दूर पर घण्ट़ी ददखाई दी।
उिे जिे उत्तेजना की एक घूँट ममली, थकािट ममट गयी। उिने िर औाँखाें िे घण्ट़ी का औल्हड
यािन देखा। िह इिना औपने काम में लिलीन था वक उिे घण्ट़ी का पररचय इन ददनाें बहुि
िाधारण हाे गया था। औाज उिकी दृधष्ट में निीनिा थी। उिने उल्लाि िे पुकारा, 'घण्ट़ी!'
घण्ट़ी की उदािी पलभर में चली गयी। िह एक गुलाब का फूल िाेडिी हुई उि झखडकी के पाि
औा पहुँची। विजय ने कहा, 'मेरा मचत्र पूरा हाे गया।'
'औाेह! मं िाे घबरा गयी थी वक मचत्र कब िक बनेगा। एेिा भी काेई काम करिा ह। न न विजय
बाबू, औब औाप दूिरा मचत्र न बनाना-मुझे यहाँ लाकर औच्छे बन्दीगृह में रख ददया! कभी खाेज िाे
ले िे, एक-दाे बाि भी िाे पूछ ले िे!' घण्ट़ी ने उलाहनाें की झड़ी लगा दी। विजय ने औपनी भूल का
औनुभि वकया। यह तनश्चिि नहीं ह वक िान्दयम हमें िब िमय औाकृष्ट कर ले । औाज विजय ने एक
क्षण के मलए औाँखें खाेलकर घण्ट़ी काे देखा-उि बामलका में कुिूहल छलक रहा ह। िान्दयम का
उन्माद ह। औाकर्मण ह!
पीछे िे बाथम ने प्रिेि करिे हुए कहा, 'विजय बाबू, बहुि िुन्दर 'माॉडल' ह। देझखये, यदद औाप
नाददरिाह का मचत्र पूरा कर चुके हाे िाे एक मामलक मचत्र बनाइये।'
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विजय ने देखा, यह ित्य ह। एक कुिल शिल्पी की बनायी हुई प्रतिमा-घण्ट़ी खड़ी रही। बाथम मचत्र
देखने लगा। वफर दाेनाें मचत्राें काे ममलाकर देखा। उिने िहिा कहा, 'औाियम! इि िफलिा के मलए
बधाई।'
विजय प्रिन्न हाे रहा था। उिी िमय बाथम ने वफर कहा, 'विजय बाबू, मं घाेर्णा करिा हँ वक औाप
भारि के एक प्रमुख मचत्रकार हाेंगे! क्या औाप मुझे औाज्ञा देंगे वक मं इि औििर पर औापके ममत्र
काे कुछ उपहार दूँ?'
विजय हँिने लगा। बाथम ने औपनी उँ गली िे हीरे की औँगूठी तनकाली औार घण्ट़ी की औाेर बढानी
चाही। िह ड्हचक रहा था। घण्ट़ी हँि रही थी। विजय ने देखा, चंचल घण्ट़ी की औाँखाें में हीरे का
पानी चमकने लगा था। उिने िमझा, यह बामलका प्रिन्न हाेगी। िचमुच दाेनाें हाथाें में िाेने की
एक-एक पिली चूदडयाें के औतिररि औार काेई औाभूर्ण घण्ट़ी के पाि न था। विजय ने कहा,
'िुम्भ्हारी इच्छा हाे िाे पहन िकिी हाे।' घण्ट़ी ने हाथ फलाकर ले ली।
व्यापारी बाथम ने वफर गला िाफ करिे हुए कहा, 'विजय बाबू, स्ििन्त्र व्यििाय औार स्िािलम्भ्बन का
महत्त्ि औाप लाेग कम िमझिे हं, यही कारण ह वक भारिीयाें के उत्तम गुण दबे रह जािे हं। मं
औाज औाप िे यह औनुराेध करिा हँ वक औापके मािा-वपिा चाहे जजिने धनिान हाें, परन्िु उि कला
काे व्यििाय की दृधष्ट िे कीजजये। औाप िफल हाेंगे, मं इिमें औापका िहायक हँ। क्या औाप इि
नये माॉडल पर एक मामलक मचत्र बनायेंग?े '
(4)
औाज वकिने ददनाें बाद विजय िरला की काेठरी में बठा ह। घण्ट़ी लतिका के िाथ बािें करने चली
गयी। विजय काे िरला ने औकेले पाकर कहा, 'बेटा, िुम्भ्हारी भी माँ हाेगी, उिकाे िुम एक बारगी
भूलकर इि छाेकरी के मलए इधर-उधर मारे -मारे क्याें वफर रहे हाे औाह, िह वकिनी दुखी हाेगी!'
विजय सिर नीचा वकये चुप रहा। िरला वफर कहने लगी, 'विजय! कले जा राेने लगिा ह। हृदय
कचाेटने लगिा ह, औाँखें छटपटाकर उिे देखने के मलए बाहर तनकलने लगिी हं, उत्कण्ठा िाँि
बनकर दाडने लगिी ह। पुत्र का स्नेह बडा पागल स्नेह ह, विजय! स्त्रस्त्रयाँ ही स्नेह की विचारक हं। पति
के प्रेम औार पुत्र के स्नेह में क्या औंिर ह, यह उनकाे ही विददि ह। औहा, िुम तनष्ठुर लडके क्या
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जानाेगे! लाट जाऔाे मेरे बच्चे! औपनी माँ की िूनी गाेद में लाट जाऔाे।' िरला का गम्भ्भीर मुख
वकिी व्याकुल औाकांक्षा में इि िमय विकृि हाे रहा था।
विजय काे औाियम हुऔा। उिने कहा, 'क्या औाप के भी काेई पुत्र था?'
'था विजय, बहुि िुन्दर था। परमात्मा के िरदान के िमान िीिल, िाझन्िपूणम था। हृदय की औकांक्षा
के िदृि गमम। मलय-पिन के िमान काेमल िुखद स्पिम। िह मेरी तनधध, मेरा ििमस्ि था। नहीं, मं
कहिी हँ वक कहीं ह! िह औमर ह, िह िुन्दर ह, िही मेरा ित्य ह। औाह विजय! पचीि बरि हाे
गये उिे देखे हुए पचीि बरि! दाे युग िे कुछ ऊपर! पर मं उिे देखकर मरँगी।' कहिे-कहिे
िरला की औाँखाें िे औाँिू गगरने लगे।
इिने में एक औन्धा लाठी टे किे हुए िरला के द्वार पर औाया। उिे देखिे ही िरला गरज उठी, 'औा
गया! विजय, यही ह उिे ले भागने िाला! पूछाे इिी िे पूछाे!'
उि औन्धे ने लकड़ी रखकर औपना मस्िक पृथ्िी पर टे क ददया, वफर सिर ऊँचा कर बाेला, 'मािा!
भीख दाे! िुमिे भीख ले कर जाे पेट भरिा हँ, िही मेरा प्रायश्चित्त ह। मं औपने कमम का फल भाेगने
के मलए भगिान की औाज्ञा िे िुम्भ्हारी ठाेकर खािा हँ। क्या मुझे औार कहीं भीख नहीं ममलिी नहीं,
यही मेरा प्रायश्चित्त ह। मािा, औब क्षमा की भीख दाे, देखिी नहीं हाे, तनयति ने इि औन्धे काे िुम्भ्हारे
पाि िक पहुँचा ददया! क्या िही िुमकाे-औाँखाें िाली काे-िुम्भ्हारे पुत्र िक न पहुँचा देगा?'
विजय विस्मय देख रहा था वक औंधे की फूट़ी औाँखाें िे औाँिू बह रहे हं। उिने कहा, 'भाई, मुझे
औपनी राम कहानी िाे िुनाऔाे।'
उिने कहना िाे औारम्भ्भ वकया-'हमारा घराना एक प्रतिधष्ठि धममगुरुऔाें का था। बीिाें गाँि के लाेग
हमारे यहाँ औािे-जािे थे। हमारे पूिमजाें की िपस्या औार त्याग िे, यह मयामदा मुझे उत्तराधधकार में
ममली थी। िंिानुक्म िे हम लाेग मंत्राेपदेष्टा हाेिे औाये थे। हमारे शिष्य िम्भ्प्रदाय में यह विश्वाि था
वक िांिाररक औापदाएँ तनिारण करने की हम लाेगाें की बहुि बड़ी रहस्यपूणम िमि ह। रही हाेगी
मेरे पूिमजाें मे,ं परन्िु मं उन िब गुणाें िे रड्हि था। मं परले सिरे का धूिम था। मुझे मंत्राें पर विश्वाि
न था, जजिना औपने चुटकुलाें पर। मं चालाकी िे भूि उिार देिा, राेग औच्छे कर देिा। िन्ध्या काे
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िंिान देिा, ग्रहाें की औाकाि गति में पररििमन कर देिा, व्यििाय में लक्ष्मी की िर्ाम कर देिा। चाहे
िफलिा एक-दाे काे ही ममलिी रही हाे, परन्िु धाक में कमी नहीं थी। मं किे क्या-क्या करिा, उन
िब घृणणि बािाें काे न कहकर, केिल िरला के पुत्र की बाि िुनािा हँ-पाली गाँि में मेरा एक
शिष्य था। उिने एक महीने की लडकी औार औपनी युििी विधिा काे छाेडकर औकाल में ही स्िगम
यात्रा की। िह विधिा धनी थी, उिे पुत्र की बड़ी लालिा थी; परन्िु पति थे नहीं, पुनविमिाह औिम्भ्भि
था। उिके मन में वकिी िरह यह बाि बठ गयी वक बाबाजी चाहे िाे यही पुत्री पुत्र बन जायेगी।
औपने इि प्रस्िाि काे ले कर बडे प्रलाेभन के िाथ िह मेरे पाि औायी। मंने देखा वक िुयाेग ह।
उिने कहा-िुम वकिी िे कहना मि, एक महीने बाद मकर-िंक्ांति के याेग में यह वकया जा िकिा
ह। िहीं पर गंगा िमुर हाे जािी ह, वफर लडकी िे लडका क्याें नहीं हाेगा, उिके मन में यह बाि
बठ गयी। हम लाेग ठीक िमय पर गंगा िागर पहुँचे। मंने औपना लक्ष्य ढूँ ढना औारम्भ्भ वकया। उिे
मन ही मन में ठीक कर मलया। उि विधिा िे लडकी ले कर मं सिणर्द् के मलए एकांि में गया-िन में
वकनारे पर जा पहुँच गया। पुमलि उधर लाेगाें काे जाने नहीं देिी। उिकी औाँखाें िे बचकर म
जंगल की हररयाली में चला गया। थाेड़ी देर में दाडिा हुऔा मेले की औाेर औाया औार उि िमय में
बराबर मचल्ला रहा था, 'बाघ! बाघ! लाेग भयभीि हाेकर भागने लगे। मंने देखा वक मेरा तनश्चिि बालक
िहीं पडा ह। उिकी माँ औपने िामथयाें काे उिे ददखाकर वकिी औािश्यक काम िे दाे चार ममनट
के मलए हट गयी थी। उिी क्षण भगदड का प्रारम्भ्भ हुऔा था। मंने झट उि लडकी काे िहीं रखकर
लडके काे उठा मलया औार वफर कहने लगा-देखाे, यह वकिकी लडकी ह। पर उि भीड में कान
वकिकी िुनिा था। मं एक ही िाँि में औपनी झाेंपड़ी की औाेर औाया-औार हँििे-हँििे विधिा की
गाेद में लडकी के बदले लडका देकर औपने काे सिर्द् प्रमाझण्ि कर िका। यहाँ पर कहने की
औािश्यकिा नहीं वक िह स्त्री वकि प्रकार उि लडके काे ले औायी। बच्चा भी छाेटा था, ढँ ककर
वकिी प्रकार हम लाेग तनविमघ्न लाट औाये। विधिा काे मंने िमझा ददया था वक िीन ददन िक काेई
इिका मुँह न देख िके, नहीं िाे वफर लडकी बन जाने की िंभािना ह। मं बराबर उि मेले मे
घूमिा रहा औार औब उि लडकी की खाेज मे लग गया। पुमलि ने भी खाेज की; पर उिका काेई
ले ने िाला नहीं ममला। मंने देखा वक एक तनस्िंिान चाबे की विधिा ने उि लडकी काे पुमलि िालाें
िे पालने के मलए माँग मलया। औार औब मं इिके िाथ चला, उिे दूिरे स्ट़ीमर में वबठाकर ही मंने
िाँि ली। िन्िान-प्रातप्त में मं उिका िहायक था। मंने देखा वक यही िरला, जाे औाज मुझे मभक्षा दे
रही ह, लडके के मलए बराबर राेिी रही; पर मेरा हृदय पत्थर था, न वपघला। लाेगाें ने बहुि कहा वक
िू उि लडकी काे पाल-पाेि, पर उिे िाे गाेविन्दी चाबाइन की गाेद में रहना था।
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घण्ट़ी औकस्माि् चाक उठी, 'क्या कहा! गाेविन्दी चाबाइन?'
'हाँ गाेविन्दी, उि चाबाइन का नाम गाेविन्दी था! जजिने उि लडकी काे औपनी गाेद में मलया।' औंधे
ने कहा।
घण्ट़ी ने कहा, 'गाेविन्दी िाे मेरी माँ का नाम था। औार िह यह कहा करिी िुझे मंने औपनी ही
लडकी-िा पाला ह।'
िरला ने कहा, 'क्या िुमकाे गाेविन्दी िे कहीं िे पाकर ही पाल-पाेिकर बडा वकया, िह िुम्भ्हारी माँ
नहीं थी।'
घण्ट़ी-'नहीं िह औाप भी यजमानाें की भीख पर जीिन व्यिीि करिी रही औार मुझे भी दररर छाेड
गयी।'
विजय ने कािुक िे कहा, 'िब िाे घण्ट़ी िुम्भ्हारी माँ का पिा लग िकिा ह क्याें जी बुडे!ढ िुम यदद
इिकाे िही लडकी िमझाे, जजिका िुमने बदला वकया था, िाे क्या इिकी माँ का पिा बिा िकिे
हाे?'
'औाेह! मं उिे भली-भाँति जानिा हँ; पर औब िह कहाँ ह, कह नहीं िकिा। क्याेंवक उि लडके काे
पाकर भी िह खुिी नहीं रह िकी। उिे राह िे ही िन्देह हाे गया वक यह मेरी लडकी िे लडका
नहीं बना, िस्िुिः काेई दूिरा लडका ह; पर मंने उिे डाँटकर िमझा ददया वक औब औगर वकिी िे
कहेगी, िाे लडका चुराने के औमभयाेग में िजा पािेगी। िह लडका राेिे हुए ददन वबिािा। कुछ ददन
बाद हरद्वार का एक पंडा गाँि में औाया। िह उिी विधिा के घर में ठहरा। उन दाेनाें में गुप्त प्रेम हाे
गया। औकस्माि् िह एक ददन लडके काे मलए मेरे पाि औायी औार बाेली-इिे नगर के वकिी
औनाथालय में रख दाे, मं औब हरद्वार जािी हँ। मंने कुछ प्रतििाद न वकया, क्याेंवक उिका औपने गाँि
के पाि िे टल जाना ही औच्छा िमझिा था। मं िहमि हुऔा। औार िह विधिा उि पंडे के िाथ
ही हरद्वार चली गयी। उिका नाम था नन्दा।'
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विजय ने कहा, 'बुडेढ! िुम्भ्हारी यह दिा किे हुई?'
'िह िुनकर क्या कराेगे। औपनी करनी का फल भाेग रहा हँ, इसिमलए मं औपनी पाप कथा िबिे
कहिा वफरिा हँ, िभी िाे इनिे भेंट हुई। भीख दाे मािा, औब हम जायें।' औंधे ने कहा।
'क्या?'
'उि बालक के गले में एक िाेने का बडा-िा यंत्र था, उिे भी िुमने उिार मलया हाेगा िरला ने
उत्कण्ठा िे पूछा।
'न, न, न। िह बालक िाे उिे बहुि ददनाें िक पहने था, औार मुझे स्मरण ह, िह िब िक न था जब
मंने उिे औनाथालय में िांपा था। ठीक स्मरण ह, िहाँ के औधधकारी िे मंने कहा था-इिे िुरसक्षि
रझखए, िम्भ्भि ह वक इिकी यही पहचान हाे, क्याेंवक उि बालक पर मुझे दया औायी; परन्िु िह दया
वपिाच की दया थी।'
िहिा विजय ने पूछा, 'क्या औाप बिा िकिी हं-िह किा यंत्र था?'
िह यंत्र हम लाेगाें के िंि का प्राचीन रक्षा-किच था, न जाने कब िे मेरे कुल के िब लडकाें काे
िह एक बरि की औिस्था िक पहनाया जािा था। िह एक तत्रकाेण स्िणम-यंत्र था।' कहिे-कहिे
िरला के औाँिू बहने लगे।
औन्धे काे भीख ममली। िह चला गया। िरला उठकर एकांि में चली गयी। घण्ट़ी कुछ काल िक
विजय काे औपनी औाेर औाकवर्मि करने के चुटकुले छाेडिी रही; परन्िु विजय एकान्ि मचंिा-तनमग्न
बना रहा।
(5)
विचार िागर में डू बिी-उिरािी हुई घण्ट़ी औाज मालसिरी के नीचे एक शिला-खण्ड पर बठी ह। िह
औपने मन िे पूछिी थी-विजय कान ह, जाे मं उिे रिालिृक्ष िमझकर लिा के िमान मलपट़ी हँ।
वफर उिे औाप ही औाप उत्तर ममलिा-िाे औार दूिरा कान ह मेरा लिा का िाे यही धमम ह वक जाे
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िमीप औिलम्भ्ब ममले , उिे पकड ले औार इि िृधष्ट में सिर ऊँचा करके खड़ी हाे जाये। औहा! क्या
मेरी माँ जीविि ह
पर विजय िाे मचत्र बनाने में लगा ह। िह मेरा ही िाे मचत्र बनािा ह, िाे भी मं उिके मलए तनजीमि
प्रतिमा हँ, कभी-कभी िह सिर उठाकर मेरी भांहाें के झुकाि काे, कपाेलाें के गहरे रं ग काे देख ले िा
ह औार वफर िूमलका की माजमनी िे उिे हृदय के बाहर तनकाल देिा ह। यह मेरी औाराधना िाे नहीं
ह। िहिा उिके विचाराें में बाधा पड़ी। बाथम ने औाकर घण्ट़ी िे कहा, 'क्या मं पूछ िकिा हँ?'
'दराेगा, यद्वप उिका िाहि नहीं था वक मुझिे कुछ औधधक कहे; पर इिका औनुमान ह वक
औापकाे विजय कहीं िे भगा लाया ह।'
'घण्ट़ी वकिी की काेई नहीं ह; जाे उिकी इच्छा हाेगी िही करे गी! मं औाज ही विजय बाबू िे
कहँगी वक िह मुझे ले कर कहीं दूिरे घर में चलें ।'
'बाथम ने देखा वक िह स्ििन्त्र युििी िनकर खड़ी हाे गयी। उिकी निें फूल रही थीं। इिी िमय
लतिका ने िहाँ पहुँचकर एक काण्ड उपस्स्थि कर ददया। उिने बाथम की औाेर िीक्ष्ण दृधष्ट िे देखिे
हुए पूछा, 'िुम्भ्हारा क्या औमभप्राय था?'
िहिा औाक्ान्ि हाेकर बाथम ने कहा, 'कुछ नहीं। मं चाहिा था वक यह ईिाई हाेकर औपनी रक्षा
कर लें , क्याेवक इिके...'
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बाथम ने फँ िे हुए गले िे कहा, 'दाेनाें हाे िकिे हं। पर िुम मुझे क्षमा कराेगी लतिका?'
बाथम के चले जाने पर लतिका ने देखा वक औकस्माि् औन्धड के िमान यह बािाें का झाेंका औाया
औार तनकल गया।
घण्ट़ी राे रही थी। लतिका उिके औाँिू पूछिी थी। बाथम के हाथ की हीरे की औँगूठी िहिा घण्ट़ी
की उँ गमलयाें में लतिका ने देखी, िह चाक
ं उठी। लतिका का काेमल हृदय कठाेर कल्पनाऔाें िे भर
गया। िह उिे छाेडकर चली गयी।
चाँदनी तनकलने पर घण्ट़ी औापे में औायी। औब उिकी तनस्िहाय औिस्था िपष्ट हाे गयी। िृदािन की
गमलयाें में याें ही वफरने िाली घण्ट़ी कई महीनाें की तनश्चिि जीिनचयाम में एक नागररक मड्हला बन
गयी थी। उिके रहन-िहन बदल गये थे। हाँ, एक बाि औार उिके मन में खटकने लगी थी-िह
औन्धे की कथा। क्या िचमुच उिकी माँ जीविि ह उिका मुि हृदय मचंिाऔाें की उमि िाली िंध्या
में पिन के िमान तनरुर्द् हाे उठा। िह तनरीह बामलका के िमान फूट-फूटकर राेने लगी।
िरला ने औाकर उिे पुकारा, 'घण्ट़ी क्या यहीं बठी रहाेगी उिने सिर नीचा वकए हुए उत्तर ददया, 'औभी
औािी हँ।' िरला चली गयी। कुछ काल िक िह बठी रही, वफर उिी पत्थर पर औपने पर िमेटकर
िह ले ट गयी। उिकी इच्छा हुई-औाज ही यह घर छाेड दे। पर िह ििा नहीं कर िकी। विजय काे
एक बार औपनी मनाेव्यथा िुना देने की उिे बड़ी लालिा थी। िह मचंिा करिे-करिे िाे गयी।
विजय औपने मचत्राें काे रखकर औाज बहुि ददनाें पर मददरा िेिन कर रहा था। िीिे के एक बडे
गगलाि में िाेडा औार बरफ िे ममली हुई मददरा िामने मेज िे उठाकर िह कभी-कभी दाे घूँट पी
ले िा ह। धीरे -धीरे निा गहरा हाे चला, मुँह पर लाली दाड गयी। िह औपनी िफलिाऔाें िे उत्तेजजि
था। औकस्माि् उठकर बँगले िे बाहर औाया; बगीचे में टहलने लगा, घूमिा हुऔा घण्ट़ी के पाि जा
पहुँचा। औनाथ-िी घण्ट़ी औपने दुःखाें में मलपट़ी हुई दाेनाें हाथाें िे औपने घुटने लपेटे हुए पड़ी थी।
िह दीनिा की प्रतिमा थी। कला िाली औाँखाें ने चाँदनी राि में यह देखा। िह उिके ऊपर झुक
गया। उिे प्यार करने की इच्छा हुई, वकिी िािना िे नहीं, िरन् एक िहृदयिा िे। िह धीरे -धीरे
औपने हाेंठ उिके कपाेल के पाि िक ले गया। उिकी गरम िाँिाें की औनुभूति घण्ट़ी काे हुई। िह
पल भर के मलए पुलवकि हाे गयी, पर औाँखें बंद वकये रही। विजय ने प्रमाेद िे एक ददन उिके रं ग
डालने के औििर पर उिका औामलं गन करके घण्ट़ी के हृदय में निीन भािाें की िृधष्ट कर दी थी।
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िह उिी प्रमाेद का औाँख बंद करके औाह्वान करने लगी; परन्िु निे में चूर विजय ने जाने क्याें िचेि
हाे गया। उिके मुँह िे धीरे िे तनकल पडा, 'यमुना!' औार िह हटकर खडा हाे गया।
विजय मचझन्िि भाि िे लाट पडा। िह घूमिे-घूमिे बँगले िे बाहर तनकल औाया औार िडक पर याें
ही चलने लगा। औाधे घन्टे िक िह चलिा गया, वफर उिी िडक िे लाटने लगा। बडे -बडे िृक्षाें की
छाया ने िडक पर चाँदनी काे कहीं-कहीं णछपा मलया ह। विजय उिी औन्धकार में िे चलना चाहिा
ह। यह चाँदनी िे यमुना औार औँधेरी िे घण्ट़ी की िुलना करिा हुऔा औपने मन के विनाेद का
उपकरण जुटा रहा ह। िहिा उिके कानाें में कुछ पररमचि स्िर िुनाई पडे । उिे स्मरण हाे औाया-
उिी इक्के िाले का िब्द। हाँ ठीक ह, िही िाे ह। विजय दठठककर खडा हाे गया। िाइवकल पकडे
एक िब-इं स्पेक्टर औार िाथ में िही िाँगे िाला, दाेनाें बािें करिे हुए औा रहे ह-िब-इस्पेक्टर, 'क्याें
निाब! औाजकल काेई मामला नहीं देिे हाे?'
िब-इस्पेक्टर-'वफर क्या?'
िाँगेिाला-'रुपया औाप ले लीजजए, मुझे िाे िह बुि ममल जाना चाड्हए। इिना ही करना हाेगा।'
िब-इस्पेक्टर-'औाेह! िुमने वफर बड़ी बाि छे ड़ी, िुम नहीं जानिे हाे, यह बाथम एक औग्रेज ह औार
उिकी उन लाेगाें पर मेहरबानी ह। हाँ, इिना हाे िकिा ह वक िुम उिकाे औपने हाथाें में कर लाे,
वफर मं िुमकाे फँ िने न दूँगा।'
िब-इन्स्पेक्टर-'वफर मं क्या करँ पीछे लगे रहाे, कभी िाे हाथ लग जायेगी। मं िम्भ्हाल लूँ गा। हाँ,
यह िाे बिाऔाे, उि चाबाइन का क्या हुऔा, जजिे िुम वबन्दरािन की बिा रहे थे। मुझे नहीं
ददखलाया, क्याे?ं '
िाँगेिाला-'िही िाे िहाँ ह! यह परदेिी न जाने कहाँ िे कूद पडा। नहीं िाे औब िक...'
कुरिी पर बठे िह िाेचने लगा-िचमुच घण्ट़ी एक तनस्िहाय युििी ह, उिकी रक्षा करनी ही चाड्हए।
उिी ददन िे विजय ने घण्ट़ी िे पूिमिि् ममत्रिा का बिामि प्रारम्भ्भ कर ददया-िही हँिना-बाेलना, िही
िाथ घूमना-वफरना।
विजय एक ददन हण्डबग की िफाई कर रहा था। औकस्माि् उिी मंगल का िह यन्त्र औार िाेना
ममल गया। उिने एकान्ि में बठकर उिे वफर बनाने का प्रयत्न वकया औार यह कृिकायम भी हुऔा-
िचमुच िह एक तत्रकाेण स्िणम-यन्त्र बन गया। विजय के मन में लडाई खड़ी हाे गयी-उिने िाेचा वक
िरला िे उिके पुत्र काे ममला दूँ, वफर उिे िंका हुई, िम्भ्भि ह वक मंगल उिका पुत्र न हाे! उिने
औिािधानिा िे उि प्रश्न काे टाल ददया। नहीं कहा जा िकिा वक इि विचार में मंगल के प्रति
विद्वेर् ने भी कुछ िहायिा की थी या नहीं।
बहुि ददनाें की पड़ी हुई एक िुन्दर बाँिुरी भी उिके बग में ममल गयी, िह उिे ले कर बजाने लगा।
विजय की ददनचयाम तनयममि हाे चली। मचत्र बनाना, िंिी बजाना औार कभी-कभी घण्ट़ी के िाथ
बठकर िाँगे पर घूमने चले जाना, इन्हीं कामाें में उिका ददन िुख िे बीिने लगा।
(6)
िृन्दािन िे दूर एक हरा-भरा ट़ीला ह, यमुना उिी िे टकराकर बहिी ह। बडे -बडे िृक्षाें की इिनी
बहुिायि ह वक िह ट़ीला दूर िे देखने पर एक बडा छायादार तनकुंज मालू म पडिा ह। एक औाेर
पत्थर की िीड्ढयाँ ह,ं जजनमें चढकर ऊपर जाने पर श्रीकृष्ण का एक छाेटा-िा मझन्दर ह औार उिके
चाराें औाेर काेठरी िथा दालानें हं।
गाेस्िामी श्रीकृष्ण उि मझन्दर के औध्यक्ष एक िाठ-पंिठ बरि के िपस्िी पुरुर् हं। उनका स्िच्छ
िस्त्र, धिल केि, मुखमंडल की औरुणणमा औार भमि िे भरी औाँखें औलावकक प्रभा का िृजन करिी
हं। मूतिम के िामने ही दालान में िे प्रािः बठे रहिे हं। काेठररयाें में कुछ िृर्द् िाधु औार ियस्का
स्त्रस्त्रयाँ रहिी हं। िब भगिान का िाझत्त्िक प्रिाद पाकर िन्िुष्ट औार प्रिन्न हं। यमुना भी यहीं रहिी
ह।
'नहीं।'
िाधु चला गया। यमुना औभी झाडू लगा रही थी। गाेस्िामी ने िस्नेह पुकारा, 'यमुने!'
'नहीं महाराज!'
'यमुने! भगिान दुझखयाें िे औत्यंि स्नेह करिे हं। दुःख भगिान का िाझत्त्िक दान ह-मंगलमय उपहार
ह। इिे पाकर एक बार औन्िःकरण के िच्चे स्िर िे पुकारने का, िुख औनुभि करने का औभ्याि
कराे। विश्राम का तनःश्वाि केिल भगिान् के नाम के िाथ ही तनकलिा ह बेट़ी!'
यमुना गद्गद हाे रही थी। एक ददन भी एेिा नहीं बीििा, जजि ददन गाेस्िामी औाश्रमिासियाें काे
औपनी िान्त्िनामयी िाणी िे िन्िुष्ट न करिे। यमुना ने कहा, 'महाराज, औार काेई िेिा हाे िाे औाज्ञा
दीजजए।'
'मंगल इत्यादद ने मुझिे औनुराेध वकया ह वक मं ििमिाधारण के लाभ के मलए औाश्रम में कई ददनाें
िक िािमजतनक प्रिचन करँ। यद्वप मं इिे औस्िीकार करिा रहा, वकन्िु बाध्य हाेकर मुझे करना ही
पडे गा। यहाँ पूरी स्िच्छिा रहनी चाड्हए, कुछ बाहरी लाेगाें के औाने की िंभािना ह।'
कृष्णिरण चुपचाप बठे रहे। िे एकटक कृष्णचन्र की मूतिम की औाेर देख रहे थे। यह मूतिम िृन्दािन
की औार मूतिमयाें िे विलक्षण थी। एक श्याम, ऊजमझस्िि, ियस्क औार प्रिन्न गंभीर मूतिम खड़ी थी। बायें
हाथ िे कड्ट िे औाबर्द् नन्दक खडग की मूड पर बल ददये दाड्हने हाथ की औभय मुरा िे औाश्वािन
कृष्णिरण एकटक मूतिम काे देख रहे थे। गाेस्िामी की औाँखाें िे उि िमय वबजली तनकल रही थी,
जाे प्रतिमा काे िजीि बना रही थी। कुछ देर बाद उिकी औाँखाें िे जलधारा बहने लगी। औार िे
औाप-ही-औाप कहने लगे, 'िुम्भ्हीं ने प्रण वकया था वक जब-जब धमम की ग्लातन हाेगी, हम उिका उर्द्ार
करने के मलए औािेंगे! िाे क्या औभी विलम्भ्ब ह िुम्भ्हारे बाद एक िाझन्ि का दूि औाया था, िह दुःख
काे औधधक स्पष्ट बनाकर चला गया। विरागी हाेकर रहने का उपदेि दे गया; परन्िु उि िमि काे
स्स्थर रखने के मलए िमि कहाँ रही वफर िे बबमरिा औार ड्हंिा िाण्डि-नृत्य करने लगी ह, क्या औब
भी विलम्भ्ब ह?'
एक ब्रह्मचारी ने औाकर नमस्कार वकया। िे भी औािीिामद देकर उिकी औाेर घूम पडे । पूछा, 'मंगल
देि! िुम्भ्हारे ब्रह्मचारी कहाँ ह?ं '
'उन िबाें काे काम बाँट दाे औार कर्रिमव्य िमझा दाे। औाज प्रायः बहुि िे लाेग औािेंगे।'
'मंगल, एक प्रिचन में औपनी औनुभूति िुनाऊँगा, घबराऔाे मि। िुम्भ्हारी िब िंकाऔाें का उत्तर
ममले गा।'
मंगलदेि ने िन्िाेर् िे वफर झुका ददया। िह लाटकर औपने ब्रह्मचाररयाें के पाि चला औाया।
औाश्रम में दाे ददनाें िे कृष्ण-कथा हाे रही थी। गाेस्िामी जी बाल चररत्र कहकर उिका उपिंहार
करिे हुए बाेले-'धमम औार राजनीति िे पीदडि यादि-जनिा का उर्द्ार करके भी श्रीकृष्ण ने देखा वक
यादिाें काे ब्रज में िांति न ममले गी।
प्राचीनिंत्र के पक्षपािी नृिंि राजन्य-िगम मन्िन्िर काे मानने के मलए प्रस्िुि न थे; िह मनन की
विचारधारा िामूड्हक पररििमन करने िाली थी। क्मागि रड्ढयाँ औार औधधकार उिके िामने काँप
िे यदुकुल काे ले कर निीन उपतनिेि की खाेज में पश्चिम की औाेर चल पडे । गाेपाल ने ब्रज छाेड
ददया। यही ब्रज ह। औत्याचाररयाें की नृिंििा िे यदुकुल के औमभजाि-िगम ने ब्रज काे िूना कर
ददया। वपछले ददनाें में ब्रज में बिी हुई पिुपालन करने िाली गाेवपयाँ, जजनके िाथ गाेपाल खेले थे,
जजनके िुख काे िुख औार दुःख िमझा, जजनके िाथ जजये, बडे हुए, जजनके पिुऔाें के िाथ िे कड़ी
धूप में घनी औमराइयाें में करील के कुंजाें में विश्राम करिे थे-िे गाेवपयाँ, िे भाेली-भाली िरल हृदय
औकपट स्नेह िाली गाेवपयाँ, रि-मांि के हृदय िाली गाेवपयाँ, जजनके हृदय में दया थी, औािा थी,
विश्वाि था, प्रेम का औादान-प्रदान था, इिी यमुना के कछाराें में िृक्षाें के नीचे, बिन्ि की चाँदनी में,
जेठ की धूप में छाँह ले िी हुई, गाेरि बेचकर लाटिी हुई, गाेपाल की कहातनयाँ कहिीं। तनिामसिि
गाेपाल की िहानुभूति िे उि क्ीडा के स्मरण िे, उन प्रकािपूणम औाँखाें की ज्याेति िे, गाेररयाें की
स्मृति इन्रधनुर्-िी रं ग जािी। िे कहातनयाँ प्रेम िे औतिरं जजि थीं, स्नेह िे पररप्लुि थीं, औादर िे औारम
थीं, िबकाे ममलाकर उनमें एक औात्मीयिा थी, हृदय की िेदना थी, औाँखाें का औाँिू था! उन्हीं काे
िुनकर, इि छाेडे हुए ब्रज में उिी दुःख-िुख की औिीि िहानुभूति िे मलपट़ी हुई कहातनयाें काे
िुनकर औाज भी हम-िुम औाँिू बहा देिे हं! क्याें िे प्रेम करके, प्रेम सिखलाकर, तनममल स्िाथम पर
हृदयाें में मानि-प्रेम काे विकसिि करके ब्रज काे छाेडकर चले गये मचरकाल के मलए। बाल्यकाल की
लीलाभूमम ब्रज का औाज भी इिमलए गारि ह। यह िही ब्रज ह। िही यमुना का वकनारा ह!'
कहिे-कहिे गाेस्िामी की औाँखाें िे औविरल औश्रुधारा बहने लगी। श्राेिा भी राे रहे थे।
गाेस्िामी चुप हाेकर बठ गये। श्राेिाऔाें ने इधर-उधर हाेना औारम्भ्भ वकया। मंगल देि औाश्रम में ठहरे
हुए लाेगाें के प्रबन्ध में लग गया। परन्िु यमुना िह दूर एक मालसिरी के िृक्ष की नीचे चुपचाप बठी
थी। िह िाेचिी थी-एेिे भगिान भी बाल्यकाल में औपनी मािा िे औलग कर ददये गये थे! उिका
हृदय व्याकुल हाे उठा। िह विस्मृि हाे गयी वक उिे िाझन्ि की औािश्यकिा ह। डे ढ िप्ताह के औपने
हृदय के टु कडे के मलए िह मचल उठी-िह औब कहाँ ह क्या जीविि ह उिका पालन कान करिा
हाेगा िह जजयेगा औिश्य, एेिे वबना यत्न के बालक जीिे हं, इिका िाे इिना प्रमाण ममल गया ह!
हाँ, औार िह एक नर रत्न हाेगा, िह महान हाेगा! क्षण-भर में मािा का हृदय मंगल-कामना िे भर
उठा। इि िमय उिकी औाँखाें में औाँिू न थे। िह िान्ि बठी थी। चाँदनी तनखर रही थी! मालसिरी
मंगलदेि काे औागन्िुकाें के मलए वकिी िस्िु की औािश्यकिा थी। गाेस्िामी जी ने कहा, 'जाऔाे
यमुना िे कहाे।' मंगल यमुना का नाम िुनिे ही एक बार चांक उठा। कुिहल हुऔा, वफर औािश्यकिा
िे प्रेररि हाेकर वकिी औज्ञाि यमुना काे खाेजने के मलए औाश्रम के विस्िृि प्रांगण में घूमने लगा।
मालसिरी के िृक्ष के नीचे यमुना तनिल बठी थी। मंगलदेि ने देखा एक स्त्री ह, यही यमुना हाेगी।
िमीप पहुँचकर देखा, िाे िही यमुना थी!
िात्िल्य-विभूति के काल्पतनक औानन्द िे पूिम उिके हृदय में मंगल के िब्द ने िीव्र घृणा का िंचार
कर ददया। िह विरि हाेकर औपररमचि-िी बाेल उठी, 'कान ह?'
'गाेस्िामी जी की औाज्ञा ह वक...' औागे कुछ कहने में मंगल औिमथम हाे गया, उिका गला भरामने
लगा।
'जाे िस्िु चाड्हए, उिे भण्डारी जी िे जाकर कड्हए, मं कुछ नहीं जानिी।' यमुना औपने काल्पतनक
िुख में भी बाधा हाेिे देखकर औधीर हाे उठी।
मंगल ने वफर िंयि स्िर में कहा, 'िुम्भ्हीं िे कहने की औाज्ञा हुई ह।'
औबकी यमुना ने स्िर पहचान औार सिर उठाकर मंगल काे देखा। दारुण पीडा िे िह कले जा
थामकर बठ गयी। विद्ुद्वेग िे उिके मन में यह विचार नाच उठा वक मंगल के औत्याचार के कारण
मं िात्िल्य-िुख िे िंमचि हँ। इधर मंगल ने िमझा वक मुझे पहचानकर ही िह तिरस्कार कर रही
ह। औागे कुछ न कह िह लाट पडा।
गाेस्िामी जी िहाँ पहुँचे िाे देखिे हं, मंगल लाटा जा रहा ह औार यमुना बठी राे रही ह। उन्हाेंने
पूछा, 'क्या ह बेट़ी?'
यमुना गाेस्िामी जी की िंददग्ध औाज्ञा िे ममामहि हुई औार औपने काे िम्भ्हालने काे प्रयत्न करने
लगी।
(7)
उत्िि का िमाराेह था। गाेस्िामी जी व्यािपीठ पर बठे हुए थे। व्याख्यान प्रारम्भ्भ हाेने िाला ही था;
उिी िाहबी ठाट िे घण्ट़ी काे िाथ मलये िभा में औाया औाज यमुना दुःखी हाेकर औार मंगल ज्िर
में, औपने-औपने कक्ष में पडे थे। विजय िन्नर्द् था-गाेस्िामी जी का विराेध करने की प्रतिज्ञा, औिहेलना
औार पररहाि उिकी औाकृति िे प्रकट थे।
गाेस्िामी जी िरल भाि िे कहने लगे-'उि िमय औायामित्तम में एकान्ि िािन का प्रचण्ड िाण्डि चल
रहा था। िुदरू िाराष्ट में श्रीकृष्ण के िाथ यादि औपने लाेकिंत्र की रक्षा में लगे थे। यद्वप िम्भ्पन्न
यादिाें की विलासििा औार र्ड यत्राें िे गाेपाल काे भी कदठनाइयाँ झेलनी पड़ीं, वफर भी उन्हाेंने िुधमाम
के िम्भ्मान की रक्षा की। पांचाल में कृष्ण का स्ियम्भ्बर था। कृष्ण के बल पर पाडण्ि उिमें औपना
बल-विक्म ले कर प्रकट हुए। पराभूि हाेकर कारिाें ने भी उन्हें इन्रप्रस्थ ददया। कृष्ण ने धमम राज्य
स्थापना का दृढ िंकल्प वकया था, औिः औाििागययाें के दमन की औािश्यकिा थी। मागध जरािन्ध
मारा गया। िम्भ्पूणम भारि में पाण्डिाें की, कृष्ण की िंरक्षिा में धाक जम गयी। नृिंि यज्ञाें की
िमातप्त हुई। बन्दी राजिगम िथा बमलपिु मुि हाेिे ही कृष्ण की िरण में हुए। महान हर्म के िाथ
राजिूय यज्ञ हुऔा। राजे-महाराजे काँप उठे । औत्याचारी िािकाें काे िीि-ज्िर हुऔा। उि िमय
धममराज की प्रतिष्ठा में िाधारण कममकाराें के िमान निमस्िक हाेकर काम करिे रहे। औार भी एक
बाि हुई। औायामित्तम ने उिी तनिामसिि गाेपाल काे औाियम िे देखा, िमिेि महाजनाें में औग्रपूजा औार
और्घयम का औधधकारी! इिना बडा पररििमन! िब दाँिाें िले उँ गली दाबे हुए देखिे रहे। उिी ददन
भारि ने स्िीकार वकया-गाेपाल पुरुर्ाेत्तम ह। प्रिाद िे युधधधष्ठर िे धमम-िाम्राज्य काे औपनी व्यमिगि
िम्भ्पत्तत्त िमझ ली, इििे कुचवक्याें का मनाेरथ िफल हुऔा धममराज विशंखल हुऔा; परन्िु पुरुर्ाेत्तम
ने उिका जिे उर्द्ार वकया, िह िुम लाेगाें ने िुना हाेगा-महाभारि की युर्द्कथा िे। भयानक जनक्षय
करके भी िाझत्त्िक विचाराें की रक्षा हुई औार भी िुदृढ महाभारि की स्थापना हुई, जजनमें नृिंि
------------------------------------------------------
जाे लाेक िे न घबराये औार जजििे लाेक न उड्द्वग्न हाे, िही पुरुर्ाेत्तम का वप्रय मानि ह, जाे िृधष्ट
काे िफल बनािा ह।
गाेस्िामी ने व्यािपीठ िे हटिे हुए चाराें औाेर दृधष्ट घुमाई, यमुना औार मंगल नहीं ददखाई पडे । िे
उन्हें खाेजिे हुए चल पडे । श्राेिागण भी चले गये थे। कृष्णिरण ने यमुना काे पुकारा। िह उठकर
औायी। उिकी औाँखें िरुण, मुख वििणम, रिना औिाक् औार हृदय धडकनाें िे पूणम था। गाेस्िामी जी ने
उििे पूछा। उिे िाथ औाने का िंकेि करके िे मंगल की काेठरी की औाेर बढे । मंगल औपने
वबछािन पर पडा था। गाेस्िामी जी काे देखिे ही उठ खडा हुऔा। िह औभी भी ज्िर मे औाक्ांि था।
गाेस्िामी जी ने पूछा, 'मंगल! िुमने इि औबला का औपमान वकया था?'
'िुम्भ्हे मचत्त-िुणर्द् की औािश्यकिा ह। जाऔाे िेिा में लगाे, िमाज-िेिा करके औपना हृदय िुर्द्
बनाऔाे। जहाँ स्त्रस्त्रयाँ ििाई जाएँ, मनुष्य औपमातनि हाे, िहाँ िुमकाे औपना दम्भ्भ छाेडकर कत्तमव्य
करना हाेगा। इिे दण्ड न िमझाे। यही िुम्भ्हारा वक्यामाण कमम ह। पुरुर्ाेत्तम ने लाेक-िंग्रह वकया
था, िे मानििा के ड्हि में लगे रहे, औन्यथा औत्याचार के विरुर्द् िदि युर्द् करिे रहे। औपने वकए हुए
औन्याय के विरुर्द् िुम्भ्हें औपने िे लडना हाेगा। उि औिुर काे परास्ि करना हाेगा। गुरुकुल यहाँ भेज
दाे; िुम औबलाऔाें की िेिा में लगाे। भगिान् की भूमम भारि में जंगलाें में औभी पिु-जीिन वबिा रहे
हं। स्त्रस्त्रयाँ विपथ पर जाने के मलए बाध्य की जािी हं, िुमकाे उनका पक्ष ले ना पडे गा।
उठाे!
मंगल ने गाेस्िामी जी के चरण छुए। िह सिर झुकाये चला गया। गाेस्िामी ने घूमकर यमुना की
औाेर देखा। िह सिर नीचा वकये राे रही थी। उिके सिर पर हाथ फेरिे हुए कृष्णिरण ने कहा, 'भूल
जाऔाे यमुना, उिके औपराध काे भूल जाऔाे।'
परन्िु यमुना मंगल काे औार उिके औपराध काे किे भूल जािी?'
(8)
घण्ट़ी औार विजय बाथम के बँगले पर लाटकर गाेस्िामी जी के िम्भ्बन्ध में काफी देर िक बािचीि
करिे रहे। विजय ने औंि में कहा, 'मुझे िाे गाेस्िामी की बािें कुछ जँचिी नहीं। कल वफर चलूँ गा।
िुम्भ्हारी क्या िम्भ्मति ह, घण्ट़ी?'
िे दाेनाें उठकर िरला की काेठरी की औाेर चले गये। औब दाेनाें िहीं रहिे हं। लतिका ने कुछ ददनाें
िे बाथम िे बाेलना छाेड ददया ह। बाथम भी पादरी के िाथ ददन वबिािा ह औाजकल उिकी
धामममक भािना प्रबल हाे गयी ह।
मूतिममिी मचंिा-िी लतिका यंत्र चमलि पाद-विपक्ष करिी हुई दालान में औाकर बठ गयी। पलकाें के
परदे गगरे हं। भािनाएँ औस्फुट हाेकर विलीन हाे जािी हं-मं ड्हन्दू थी...हाँ वफर...िहिा औामथमक
कारणाें िे वपिा...मािा ईिाई....यमुना के पुल पर िे रे लगाड़ी औािी थी...झक...झक...झक
लतिका राेने लगी। रमाल िे उिने मुँह ढक मलया। िह राेिी रही। जब िरला ने औाकर उिके
सिर पर हाथ फेरा, िब िह चिन्य हुई-िपने िे चांककर उठ बठी। लं प का मंद प्रकाि िामने था।
उिने कहा-
'मेरी िम्भ्मति ह वक इन दाेनाें औतिमथयाें काे वबदा कर ददया जाये। प्यारी मारगरे ट, िुमकाे बडा दुःख
ह।' िरला ने कहा।
उिी िमय बाथम ने औाकर दाेनाें काे चवकि कर ददया। उिने कहा, 'लतिका! मुझे िुमिे कुछ
पूछना ह।'
'मं कल िुनूँगी वफर कभी...मेरा सिर दुख रहा ह।' बाथम चला गया। लतिका िाेचने लगी-किी
भयानक बाि-उिी काे स्िीकार करके क्षमा माँगना। बाथम! वकिनी तनलम ज्जिा ह। मं वफर क्षमा क्याें
न करँगी। परन्िु कह नहीं िकिी। औाह, वबच्छू के डं क-िी िे बािें! िह वििाद! मंने एेिा नहीं
वकया, िुम्भ्हारा रम था, िुम भूलिी हाे-यानी न कहना ह वकिनी झूठी बाि! िह झूठ कहने में िंकाेच
नहीं कर िकिा-वकिना पतिि! 'लतिका, चलाे िाे रहाे।' िरला ने कहा।
लतिका ने औाँख खाेलकर देखा-औँधेरा चाँदनी काे वपये जािा ह! औस्ि-व्यस्ि नक्षत्र, ििरी रजनी की
टू ट़ी हुई काँचमाला के टु कडे हं, उनमें लतिका औपने हृदय का प्रतिवबम्भ्ब देखने की चेष्टा करने लगी।
िब नक्षत्राें में विकृि प्रतिवबम्भ्ब िह डर गयी! काँपिी हुई उिने िरला का हाथ पकड मलया।
लतिका ने औपने पलकाें पर बल ददया, उन्हें दबाया, िह िाे जाने की चेष्टा करने लगी। पलकाें पर
औत्यंि बल देने िे मुँदी औाँखाें के िामने एक औालाेक-चक् घूमने लगा। औाँखें फटने लगीं। औाेह
चक्! क्मिः यह प्रखर उज्ज्वल औालाेक नील हाे चला, मेघाें के जल में यह िीिल नील हाे चला,
देखने याेग्य-िुदिमन औाँखें ठं ड़ी हुइों , नींद औा गयी।
िमाराेह का िीिरा ददन था। औाज गाेस्िामी जी औधधक गम्भ्भीर थे। औाज श्राेिा लाेग भी औच्छी
िंख्या में उपस्स्थि थे। विजय भी घण्ट़ी के िाथ ही औाया था। हाँ, एक औाियमजनक बाि थी-उिके
िाथ औाज िरला औार लतिका भी थीं। बुडाढ पादरी भी औाया था।
'वपछले ददनाें में मंने पुरुर्ाेत्तम की प्रारस्म्भ्भक जीिनी िुनाई थी, औाज िुनाऊँगा उनका िंदेि। उनका
िंदेि था-औात्मा की स्ििन्त्रिा का, िाम्भ्य का, कममयाेग का औार बुणर्द्िाद का। औाज हम धमम के जजि
ढाँचे काे-िि काे-घेरकर राे रहे हं, िह उनका धमम नहीं था। धमम काे िे बड़ी दूर की पवित्र या डरने
की िस्िु नहीं बिलािे थे। उन्हाेंने स्िगम का लालच छाेडकर रड्ढयाें के धमम काे पाप कहकर घाेर्णा
की। उन्हाेंने जीिनमुि हाेने का प्रचार वकया। तनःस्िाथम भाि िे कमम की महत्ता बिायी औार
उदाहरणाें िे भी उिे सिर्द् वकया। राजा नहीं थे; पर औनायाि ही िे महाभारि के िम्राट हाे िकिे
थे, पर हुए नहीं। िान्दयम, बल, विद्ा, िभि, महत्ता, त्याग काेई भी एेिे पदाथम नहीं थे, जाे औप्राप्य रहे
हाें। िे पूणम काम हाेने पर भी िमाज के एक िटस्थ उपकारी रहे। जंगल के काेने में बठकर उन्हाेंने
धमम का उपदेि कार्ाय औाेढकर नहीं ददया; िे जीिन-युर्द् के िारथी थे। उिकी उपािना-प्रणाली थी-
वकिी भी प्रकार मचंिा का औभाि हाेकर औन्िःकरण का तनममल हाे जाना, विकल्प औार िंकल्प में
िुर्द्-बुणर्द् की िरण जानकर किमव्य तनिय करना। कमम-कुिलिा उिका याेग ह। तनष्काम कमम करना
िाझन्ि ह। जीिन-मरण में तनभमय रहना, लाेक-िेिा करिे कहना, उनका िंदेि ह। िे औायम िंस्कृति के
िुर्द् भारिीय िंस्करण ह। गाेपालाें के िंग िे पले , दीनिा की गाेद में दुलारे गये। औत्याचारी राजाऔाें
के सिंहािन उलटे -कराेडाें बलाेन्मत्त नृिंिाें के मरण-यज्ञ में िे हँिने िाले औध्ियुम थे। इि औायामित्तम
'हाँ, औार उिमें काेई औाडम्भ्बर नहीं। उपािना के मलए एकांि तनश्चिंि औिस्था, औार स्िाध्याय के मलए
चुने हुए श्रुतियाें के िार-भाग का िंग्रह, गुणकमाेों िे वििेर्िा औार पूणम औात्मतनष्ठा, िबकी िाधारण
िमिा-इिनी ही िाे चाड्हए। कायामलय मि बनाइये, ममत्राें के िदृि एक-दूिरे काे िमझाइये, वकिी
गुरुडम की औािश्यकिा नहीं। औायम-िंस्कृति औपना िामि त्याग, झूठा विराग छाेडकर जागेगी। भूपृष्ठ
के भातिक देहात्मिादी चांक उठें गे, याश्चन्त्रि िभ्यिा के पिनकाल में िही मानिजाति का औिलम्भ्बन
हाेगी।'
'पुरुर्ाेत्तम की जय!' की ध्ितन िे िह स्थान गूँज उठा। बहुि िे लाेग चले गये।
विजय ने हाथ जाेडकर कहा, 'महाराज! मं कुछ पूछना चाहिा हँ। मं इि िमाज िे उपेसक्षिा,
औज्ञािकुलिीला घण्ट़ी िे ब्याह करना चाहिा हँ। इिमें औापकी क्या औनुमति ह?'
'मेरा िाे एक ही औादिम ह। िुम्भ्हें जानना चाड्हए वक परस्पर प्रेम का विश्वाि कर ले ने पर यादिाें के
विरुर्द् रहिे भी िुभरा औार औजुमन के पररणय काे पुरुर्ाेत्तम ने िहायिा दी, यदद िुम दाेनाें में
परस्पर प्रेम ह, िाे भगिान् काे िाक्षी देकर िुम पररणय के पवित्र बन्धन में बँध िकिे हाे।' कृष्णिरण
ने कहा।
विजय बडे उत्िाह िे घण्ट़ी का हाथ पकडे देि-विग्रह के िामने औाया औार िह कुछ बाेलना ही
चाहिा था वक यमुना औाकर खड़ी हाे गयी। िह कहने लगी, 'विजय बाबू, यह ब्याह औाप केिल
औहंकार िे करने जा रहे ह,ं औापका प्रेम घण्ट़ी पर नहीं ह।'
बुड्ढा पादरी हँिने लगा। उिने कहा, 'लाट जाऔाे बेट़ी! विजय, चलाे! िब लाेग चलें ।'
िृिीय खंड
(1)
श्रीचन्र का एकमात्र औन्िरं ग िखा धन था, क्याेंवक उिके काटु झम्भ्बक जीिन में काेई औानन्द नहीं रह
गया था। िह औपने व्यििाय काे ले कर मस्ि रहिा। लाखाें का हेर-फेर करने में उिे उिना ही िुख
ममलिा जजिना वकिी विलािी काे विलाि में।
काम िे छुट्ट़ी पाने पर थकािट ममटाने के मलए बाेिल प्याला औार व्यमि-वििेर् के िाथ थाेडे िमय
िक औामाेद-प्रमाेद कर ले ना ही उिके मलए पयामप्त था। चन्दा नाम की एक धनििी रमणी कभी-कभी
प्रायः उििे ममला करिी; परन्िु यह नहीं कहा जा िकिा वक श्रीचन्र पूणम रप िे उिकी औाेर
औाकृष्ट था। यहाँ यह हुऔा वक औामाेद-प्रमाेद की मात्रा बढ चली। कपाि के काम में िहिा घाटे की
िंभािना हुई। श्रीचन्र वकिी का औाश्रय औंक खाेजने लगा। चन्दा पाि ही थी। धन भी था, औार बाि
यही थी वक चन्दा उिे मानिी भी थी, उिे औािा भी थी वक पंजाब-विधिा-वििाह िभा के
तनयमानुिार िह वकिी ददन श्रीचन्र की गृड्हणी हाे जायेगी। चन्दा काे औपनी बदनामी के कारण
औपनी लडकी के मलए बड़ी मचंिा थी। िह उिकी िामाजजकिा बनाने के मलए भी प्रयत्निील थी।
पररस्स्थति ने दाेनाें लाेहाें के बीच चुम्भ्बक का काम वकया। श्रीचन्र औार चंदा में भेद िाे पहले भी न
था; पर औब िम्भ्पत्तत्त पर भी दाेनाें का िाधारण औधधकार हाे चला। िे घाटे के धक्के काे िझम्भ्ममलि धन
िे राेकने लगी। बाजार रुका, जिे औाँधी थम गयी। िगादे-पुरजे की बाढ उिर गयी।
पानी बरि रहा था। धुले हुए औन्िररक्ष िे नक्षत्र औिीि-स्मृति के िमान उज्ज्वल हाेकर चमक रहे थे।
िुगन्धरा की मधुर गन्ध िे मस्िक भरे रहने पर भी श्रीचन्र औपने बँगले के चािरे पर िे औाकाि िे
िाराें काे वबन्दु मानकर उनिे काल्पतनक रे खाएँ खींच रहा था। रे खागणणि के औिंख्य काल्पतनक
तत्रभुज उिकी औाँखाें में बनिे औार वबगडिे थे; पर िह औािन्न िमस्या हल करने में औिमथम था।
धन की कठाेर औािश्यकिा एेिा िृत्त खींचिी वक िह उिके बाहर जाने में औिमथम था।
चन्दा-'प्रतिकार मं स्ियं कर लूँ गी। हाँ, पहले यह िाे बिाऔाे-औब िुम्भ्हारे ऊपर वकिना ऋण ह?'
श्रीचन्र-'हाँ, औमृििर की िारी स्थािर िम्भ्पत्तत्त औभी बन्धक ह। एक लाख रुपया चाड्हए।'
एक दीघम तनःस्िाि ले कर श्रीचन्र ने थाली टाल दी। हाथ-मुँह धाेकर औारामकुिीम पर जा ले टा। चन्दा
पाि की कुिीम खींचकर बठ गयी। औभी िह पंिीि के ऊपर की नहीं ह, यािन ह। जाने-जाने काे
कर रहा ह, पर उिके िुडाल औंग छाेडकर उििे जािे नहीं बनिा। भरी-भरी गाेरी बाँहें उिने गले
में डालकर श्रीचन्र का एक चुम्भ्बन मलया। श्रीचन्र काे ऋण मचंिा वफर ििाने लगी। चन्दा ने श्रीचन्र
के प्रत्येक श्वाि में रुपया-रुपया का नाद देखा, औार बाेली, 'एक उपाय ह, कराेग?े '
'विधिा-वििाह-िभा में चलकर हम लाेग...' कहिे-कहिे चन्दा रुक गयी; क्याेंवक श्रीचन्र मुस्काने लगा
था। उिी हँिी में एक मामममक व्यंग्य था। चन्दा तिलममला उठी। उिने कहा, 'िुम्भ्हारा िब प्रेम झूठा
था!'
श्रीचन्र ने पूरे व्यििायी के ढं ग िे कहा, 'बाि क्या ह, मंने िाे कुछ कहा भी नहीं औार िुम लगीं
वबगडने!'
चन्दा ने औपना भाि िम्भ्हालिे हुए कहा, 'ये िब िुम्भ्हारी बनािट़ी बािें हं। मं जानिी हँ वक िुम्भ्हारी
पहली स्त्री औार िंिार िुम्भ्हारे मलए नहीं के बराबर ह। उिके मलए काेई बाधा नहीं। हम-िुम जब
एक हाे जायेंग,े िब िब िम्भ्पत्तत्त िुम्भ्हारी हाे जायेगी!'
श्रीचन्र-'यह िाे याें भी हाे िकिा ह; पर मेरी एक िम्भ्मति ह, उिे मानना-न मानना िुम्भ्हारे औधधकार
में ह। मगर ह बाि बड़ी औच्छी!'
चन्दा-'क्याे?ं '
श्रीचन्र-'िुम जानिी हाे वक विजय मेरे लडके नाम िे प्रसिर्द् ह औार कािी में औमृििर की गन्ध
औभी नहीं पहुँची ह। मं यदद िुमिे विधिा-वििाह कर ले िा हँ, िाे इि िम्भ्बन्ध में औडचन भी हाेगी
औार बदनामी भी; क्या िुमकाे यह जामािा पिन्द नहीं?'
चन्दा ने एक बार उल्लाि िे बड़ी-बड़ी औाँखें खाेलकर देखा औार बाेली, 'यह िाे बड़ी औच्छी बाि
िाेची!'
श्रीचन्र ने कहा, 'िुमकाे यह जानकर औार प्रिन्निा हाेगी वक मंने जाे कुछ रुपये वकिाेरी काे भेजे हं,
उनिे उि चालाक स्त्री ने औच्छी जमींदारी बना ली ह। औार कािी में औमृििर िाली काेठी की बड़ी
धाक ह। िहीं चलकर लाली का ब्याह हाे जायेगा। िब हम लाेग यहाँ की िम्भ्पत्तत्त औार व्यििाय िे
औानन्द लें गे। वकिाेरी धन, बेटा, बह ले कर िन्िुष्ट हाे जायेगी! क्याें, किी रही!'
चन्दा ने मन में िाेचा, इि प्रकार यह काम हाे जाने पर, हर िरह की िुविधा रहेगी, िमाज के हम
लाेग विराेही भी नहीं रहेंगे औार काम भी बन जायेगा। िह प्रिन्निापूिमक िहमि हुई।
दूिरे ददन के प्रभाि में बड़ी स्फूतिम थी! श्रीचन्र औार चन्दा बहुि प्रिन्न हाे उठे । बागीचे की हररयाली
पर औाँखंे पडिे ही मन हल्का हाे गया।
चन्दा ने इठलािे हुए कहा, 'मुझे इि बँगले की बनािट बहुि िुन्दर लगिी ह, इिकी ऊँची कुरिी
औार चाराें औाेर खुला हुऔा उपिन बहुि ही िुहािना ह!'
श्रीचन्र ने कहा, 'चन्दा, िुमकाे भूल न जाना चाड्हए वक िंिार में पाप िे उिना डर नहीं जजिना
जनरि िे! इिमलए िुम चलाे, मं ही िुम्भ्हारे बँगले पर औाकर चाय पीऊँगा। औब इि बँगले िे मुझे
प्रेम नहीं रहा, क्याेंवक इिका दूिरे के हाथ में जाना तनश्चिि ह।'
चन्दा एक बार घूमकर खड़ी हाे गयी। उिने कहा, 'एेिा कदावप नहीं हाेगा। औभी मेरे पाि एक लाख
रुपया ह। मं कम िूद पर िुम्भ्हारी िब िम्भ्पत्तत्त औपने यहाँ रख लूँ गी। बाेलाे, वफर िाे िुमकाे वकिी
दूिरे की बाि न िुननी हाेगी।'
वफर हँििे हुए उिने कहा, 'औार मेरा िगादा िाे इि जन्म में छूटने का नहीं।'
श्रीचन्र की धडकन बढ गयी। उिने बड़ी प्रिन्निा िे चन्दा के कई चुम्भ्बन मलये औार कहा, 'मेरी
िम्भ्पत्तत्त ही नहीं, मुझे भी बन्धक रख लाे प्यारी चन्दा! पर औपनी बदनामी बचाऔाे, लाली भी हम
लाेगाें का रहस्य न जाने िाे औच्छा ह, क्याेंवक हम लाेग चाहे जिे भी हाें, पर िन्िानें िाे हम लाेगाें
की बुराइयाें िे औनमभज्ञ रहें। औन्यथा उिके मन में बुराइयाें के प्रति औिहेलना की धारणा बन जािी
ह। औार िे उन औपराधाें काे वफर औपराध नहीं िमझिे, जजन्हें िे जानिे हं वक हमारे बडे लाेगाें ने
भी वकया ह।'
'लाली के जगने का िाे औब िमय हाे रहा ह। औच्छा, िहीं चाय पीजजयेगा औार िब प्रबन्ध भी औाज
ही ठीक हाे जायेगा।'
गाड़ी प्रस्िुि थी, चन्दा जाकर बठ गयी। श्रीचन्र ने एक दीघम तनःश्वाि ले कर औपने हृदय काे िब
िरह के बाेझाें िे हल्का वकया।
(2)
'क्याें झूठ बाेलिे हाे, िुमने कब काेई िस्िु छाेड़ी थी। िुम्भ्हारे त्याग िे िाे भाेले-भाले , माया में फँ िे
हुए गृहस्थ कहीं ऊँचे हं! औपनी औाेर देखाे, हृदय पर हाथ रखकर पूछाे, तनरं जन, मेरे िामने िुम यह
कह िकिे हाे िंिार औाज िुमकाे औार मुझकाे क्या िमझिा ह-इिका भी िमाचार जानिे हाे?'
'जानिा हँ वकिाेरी! माया के िाधारण झटके में एक िच्चे िाधु के फँ ि जाने, ठग जाने का यह
लत्तज्जि प्रिंग औब वकिी िे णछपा नहीं-इिमलए मं जाना चाहिा हँ।'
'िाे राेकिा कान ह, जाऔाे! परन्िु जजिके मलए मंने िबकुछ खाे ददया ह, उिे िुम्भ्हीं ने मुझिे छीन
मलया-उिे देकर जाऔाे! जाऔाे िपस्या कराे, िुम वफर महात्मा बन जाऔाेगे! िुना ह, पुरुर्ाें के िप
करने िे घाेर-िे-घाेर कुकमाेों काे भी भगिान् क्षमा करके उन्हें दिमन देिे ह;ं पर मं हँ स्त्री जाति! मेरा
यह भाग्य नहीं, मंने पाप करके जाे पाप बटाेरा ह, उिे ही मेरी गाेद में फंे किे जाऔाे!'
तनरं जन ने औाज नग्न रप देखा औार िह इिना िीभत्ि था वक उिने औपने हाथाें में औाँखाें काे ढँ क
मलया। कुछ काल के बाद बाेला, 'औच्छा, िाे विजय काे खाेजने जािा हँ।'
गाड़ी पर तनरं जन का िामान लद गया औार वबना एक िब्द कहे िह स्टे िन चला गया। वकिाेरी
औमभमान औार क्ाेध िे भरी चुपचाप बठी रही। औाज िह औपनी दृधष्ट में िुच्छ जँचने लगी। उिने
बडबडािे हुए कहा, 'स्त्री कुछ नहीं ह, केिल पुरुर्ाें की पूछ ह। विलक्षणिा यही ह वक पूँछ कभी-कभी
औलग रख दी जा िकिी ह!'
श्रीचन्र ने इि प्रिंग काे औधधक बढाने का औििर न देकर कहा, 'यह मेरे पडाेिी, औमृििर के
व्यापारी, लाला...की विधिा ह, कािी यात्रा के मलए औायी ह।'
'औाेहाे मेरे भाग! कहिी हुई वकिाेरी उनका हाथ पकडकर भीिर ले चली। श्रीचन्र एक बड़ी-िी
घटना काे याें ही िँिरिे देखकर मन-ही-मन प्रिन्न हुए। गाड़ी िाले काे भाडा देकर घर में औाये। िब
नाकराें में यह बाि गुनगुना गयी वक मामलक औा गये हं।
औलग काेठरी में निागि रमणी का िब प्रबन्ध ठीक वकया गया। श्रीचन्र ने नीचे की बठक में औपना
औािन जमाया। नहाने-धाेने, खाने-पीने औार विश्राम में िमस्ि ददन बीि गया।
वकिाेरी ने औतिमथ-ित्कार में पूरे मनाेयाेग िे भाग मलया। काेई भी देखकर यह नहीं कह िकिा था
वक वकिाेरी औार श्रीचन्र बहुि ददनाें पर ममले हं; परन्िु औभी िक श्रीचन्र ने विजय काे नहीं पूछा,
उिका मन नहीं करिा था या िाहि नहीं हाेिा था।
प्रभाि में जब श्रीचन्र की औाँखें खुलीं, िब उिने देखा, प्राढा वकिाेरी के मुख पर पच्चीि बरि का
पहले का िही िलज्ज लािण्य औपराधी के िदृि णछपना चाहिा ह। औिीि की स्मृति ने श्रीचन्र के
हृदय पर िृश्चिक-दंिन का काम वकया। नींद न खुलने का बहाना करके उन्हाेंने एक बार वफर औाँखंे
बन्द कर लीं। वकिाेरी ममामहि हुई; पर औाज तनयति ने उिे िब औाेर िे तनरिलम्भ्ब करके श्रीचन्र
के िामने झुकने के मलए बाध्य वकया था। िह िंकाेच औार मनाेिेदना िे गड़ी जा रही थी।
राेई हुई लाल औाँखाें काे श्रीचन्र के मुँह पर जमािे हुए वकिाेरी ने कहा, 'औािश्यकिा िाे नहीं, पर
जानिे हाे, स्त्रस्त्रयाँ वकिनी दुबमल हं-औबला हं। नहीं िाे मेरे ही जिे औपराध करने िाले पुरुर् के पराें
पर पडकर मुझे न राेना पडिा!'
'िह औपराध यदद िुम्भ्हीं िे िीखा गया हाे, िाे मुझे उत्तर देने की व्यिस्था न खाेजनी पडे गी।'
औब स्त्री-िुलभ ईष्याम वकिाेरी के हृदय में जगी। उिने कहा, 'औाये हाेंगे वकिी काे घुमाने-वफराने, िुख
बहार ले ने!'
वकिाेरी के इि कथन में व्यंग्य िे औधधक उलाहना था। न जाने क्याें श्रीचन्र काे इि व्यंग्य िे
िंिाेर् हुऔा, जिे ईझप्िि िस्िु ममल गयी हाे। िह हँिकर बाेला, 'इिना िाे िुम भी स्िीकार कराेगी
वक यह काेई औपराध नहीं ह।'
वकिाेरी ने देखा, िमझािा हाे िकिा ह, औधधक कहा-िुनी करके इिे गुरुिर न बना देना चाड्हए।
उिने दीनिा िे कहा, 'िाे औपराध क्षमा नहीं हाे िकिा?'
श्रीचन्र ने कहा, 'वकिाेरी! औपराध किा औपराध िमझिा िाे औाज इि बािचीि का औििर ही नहीं
औािा। हम लाेगाें का पथ जब औलग-औलग तनधामररि हाे चुका ह, िब उिमें काेई बाधक न हाे, यही
नीति औच्छी रहेगी। यात्रा करने िाे हम लाेग औाये ही हं; पर एक काम भी ह।'
वकिाेरी िािधान हाेकर िुनने लगी। श्रीचन्र ने वफर कहना औारम्भ्भ वकया-'मेरा व्यििाय नष्ट हाे
चुका ह, औमृििर की िब िम्भ्पत्तत्त इिी स्त्री के यहाँ बन्धक ह। उिके उर्द्ार का यही उपाय ह वक
इिकी िुन्दरी कन्या लाली िे विजय का वििाह करा ददया जाये।'
श्रीचन्र ने पक्के व्यापारी के िमान कहा, 'काेई मचन्िा नहीं, िह औा जायेगा। िब िक हम लाेग यहाँ
रहें, िुम्भ्हें काेई कष्ट िाे न हाेगा?'
'औब औधधक चाेट न पहुँचाऔाे। मं औपराधधनी हँ, मं िन्िान के मलए औन्धी हाे रही थी! क्या मं क्षमा
न की जाऊँगी वकिाेरी की औाँखाें िे औाँिू गगरने लगे।
'नहीं, उिे बुलाने के मलए औादमी गया ह। चलाे, हाथ-मुँह धाेकर जलपान कर लाे।'
(3)
तनरं जन िृन्दािन में विजय की खाेज में घूमने लगा। िार देकर औपने हररद्वार के भण्डारी काे रुपये
ले कर बुलाया औार गली-गली खाेज की धूम मच गयी। मथुरा में द्वाररकाधीि के मझन्दर में कई िरह
िे टाेह लगाया। विश्राम घाट पर औारिी देखिे हुए िंध्याएँ वबिायीं, पर विजय का कुछ पिा नहीं।
एक ददन िृन्दािन िाली िडक पर िह भण्डारी के िाथ टहल रहा था। औकस्माि् एक िाँगा िेजी िे
तनकल गया। तनरं जन काे िंका हुई; पर जब िक देखें, िब िक िाँगा लाेप हाे गया। हाँ, गुलाबी
िाड़ी की झलक औाँखाें में छा गयी।
दूिरे ददन िह नाि पर दुिामिा के दिमन काे गया। ििाख पूणणममा थी। यमुना िे हटने का मन नहीं
करिा था। तनरं जन ने नाि िाले िे कहा, 'वकिी औच्छी जगह ले चलाे। मं औाज राि भर घूमना
चाहिा हँ; मचंिा न करना भला!'
उन ददनाें कृष्णिरण िाली टे करी प्रसिणर्द् प्राप्त कर चुकी थी। मनचले लाेग उधर घूमने जािे थे।
माँझी ने देखा वक औभी थाेड़ी देर पहले ही एक नाि उधर जा चुकी थी, िह भी उधर खेने लगा।
तनरं जन काे औपने ऊपर क्ाेध हाे रहा था, िाेचने लगा-औाये थे हररभजन काे औाेटन लगे कपाि!'
चाँदनी फीकी हाे चली। औभी िक औागे जाने िाली नाि पर िे मधुर िंगीि की स्िर-लहरी मादकिा
में कझम्भ्पि हाे रही थी। तनरं जन ने कहा, 'माँझी, उधर ही ले चलाे। नाि की गति िीव्र हुई। थाेड़ी ही
देर में औागे िाली नाि के पाि ही िे तनरं जन की नाि बढ़ी। उिमें एक रातत्र-जागरण िे क्लान्ि
युििी गा रही थी औार बीच-बीच में पाि ही बठा हुए एक युिक िंिी बजाकर िाथ देिा था, िब
िह जिी ऊँघिी हुई प्रकृति जागरण के औानन्द िे पुलवकि हाे जािी। िहिा िंगीि की गति रुकी।
युिक ने उच््वाि ले कर कहा, 'घण्ट़ी! जाे कहिे हं औवििाड्हि जीिन पािि ह, उच्छं खल हं, िे रांि
हं। हृदय का िझम्भ्मलन ही िाे ब्याह ह। मं ििमस्ि िुम्भ्हें औपमण करिा हँ औार िुम मुझे; इिमें वकिी
मध्यस्थ की औािश्यकिा क्याे,ं मंत्राें का महत्त्ि वकिना! झगडे की, वितनमय की, यदद िंभािना रही िाे
िमपमण ही किा! मं स्ििन्त्र प्रेम की ित्ता स्िीकार करिा हँ, िमाज न करे िाे क्या?'
तनरं जन ने धीरे िे औपने माँझी िे नाि दूर ले चलने के मलए कहा। इिने में वफर युिक ने कहा,
'िुम भी इिे मानिी हाेगी जजिकाे िब कहिे हुए णछपािे हं, जजिे औपराध कहकर कान पकडकर
स्िीकार करिे हं, िही िाे जीिन का, यािन-काल का ठाेि ित्य ह। िामाजजक बन्धनाें िे जकड़ी हुई
औामथमक कदठनाइयाँ, हम लाेगाें के रम िे धमम का चेहरा लगाकर औपना भयानक रप ददखािी हं!
क्याें, क्या िुम इिे नहीं मानिीं मानिी हाे औिश्य, िुम्भ्हारे व्यिहाराें िे यह बाि स्पष्ट ह। वफर भी
िंस्कार औार रड्ढ की राक्षिी प्रतिमा के िामने िमाज क्याें औल्हड रिाें की बमल चढाया करिा
ह।'
घण्ट़ी चुप थी। िह निे में झूम रही थी। जागरण का भी कम प्रभाि न था। युिक वफर कहने लगा,
'देखाे, मं िमाज के िािन में औाना चाहिा था; परन्िु औाह! मं भूल करिा हँ।'
'िुम झूठ बाेलिे हाे विजय! िमाज िुमकाे औाज्ञा दे चुका था; परन्िु िुमने उिकी औाज्ञा ठु कराकर
यमुना का िािनादेि स्िीकार वकया। इिमें िमाज का क्या दाेर् ह मं उि ददन की घटना नहीं भूल
विजय का निा उखड गया। उिने िमझा वक मं ममथ्या ज्ञान काे औभी िक िमझिा हुऔा औपने
मन काे धाेखा दे रहा हँ। यह हँिमुख घण्ट़ी िंिार के िब प्रश्नाें काे िहन वकये बठी ह। प्रश्नाें काे
गम्भ्भीरिा िे विचारने का मं जजिना ढाेंग करिा हँ, उिना ही उपलब्ध ित्य िे दूर हाेिा जा रहा ह-
िह चुपचाप िाेचने लगा।
घण्ट़ी वफर कहने लगी, 'िमझे विजय! मं िुम्भ्हें प्यार करिी हँ। िुम ब्याह करके यदद उिका प्रतिदान
करना चाहिे हाे, िाे मुझे काेई मचंिा नहीं। यह विचार िाे मुझे कभी ििािा नहीं। मुझे जाे करना ह,
िहीं करिी हँ, करँगी भी। घूमाेगे घूमूँगी, वपलाऔाेगे पीऊँगी, दुलार कराेगे हँि लूँ गी, ठु कराऔाेगे िाे राे
दूँगी। स्त्री काे इन िभी िस्िुऔाें की औािश्यकिा ह। मं उन िबाें काे िमभाि िे ग्रहण करिी हँ औार
करँगी।'
विजय का सिर घूमने लगा। िह चाहिा था वक घण्ट़ी औपनी ििृिा जहाँ िक िम्भ्भि हाे, िीघ्र बन्द
कर दे। उिने कहा, 'औब िाे प्रभाि हाेने में विलं ब नहीं; चलाे कहीं वकनारे उिरें औार हाथ-मुँह धाे लें ।'
घण्ट़ी चुप रही। नाि िट की औाेर चली, इिके पहले ही एक-दूिरी नाि भी िीर पर लग चुकी थी,
परन्िु िह तनरं जन की थी। तनरं जन दूर था, उिने देखा-विजय ही िाे ह। औच्छा दूर-दूर रहकर इिे
देखना चाड्हए, औभी िीघ्रिा िे काम वबगड जायेगा।
विजय औार घण्ट़ी नाि िे उिरे । प्रकाि हाे चला था। राि की उदािी भरी विदाई औाेि के औाँिू
बहाने लगी। कृष्णिरण की टे करी के पाि ही िह उिारे का घाट था। िहाँ केिल एक स्त्री प्रािःस्नान
के मलए औभी औायी थी। घण्ट़ी िृक्षाें की झुरमुट में गयी थी वक उिके मचल्लाने का िब्द िुन पडा।
कहने िाला बाथम था। उिके िाथ भय-विह्वल घण्ट़ी नाि पर चढ गयी। डाँडे गगरा ददये गये।
इधर निाब का सिर कुचलकर जब विजय ने देखा, िब िहाँ घण्ट़ी न थी, परन्िु एक स्त्री खड़ी थी।
उिने विजय का हाथ पकडकर कहा, 'ठहराे विजय बाबू!' क्षण-भर में विजय का उन्माद ठं डा हाे
गया। िह एक बार सिर पकडकर औपनी भयानक पररस्स्थति िे औिगि हाे गया।
तनरं जन दूर िे यह कांड देख रहा था। औब औलग रहना उमचि न िमझकर िह भी पाि औा गया।
उिने कहा, 'विजय, औब क्या हाेगा?'
'कुछ नहीं, फाँिी हाेगी औार क्या!' तनभीमक भाि िे विजय ने कहा।
'औाप इन्हें औपनी नाि दे दें औार ये जहाँ िक जा िकंे , तनकल जायें। इनका यहाँ ठहरना ठीक
नहीं।' स्त्री ने तनरं जन िे कहा।
'नहीं यमुना! िुम औब इि जीिन काे बचाने की मचंिा न कराे, मं इिना कायर नहीं हँ।' विजय ने
कहा।
विजय काे िाेचिे-विचारिे औार विलम्भ्ब करिे देखकर यमुना ने वबगडकर कहा, 'विजय बाबू! प्रत्येक
औििर पर लडकपन औच्छा नहीं लगिा। मं कहिी हँ, औाप औभी-औभी चले जायें! औाह! औाप िुनिे
नही?'
विजय ने िुना, औच्छा नहीं लगिा! ऊँह, यह िाे बुरी बाि ह। हाँ ठीक, िाे देखा जायेगा। जीिन
िहज में दे देने की िस्िु नहीं। औार तिि पर भी यमुना कहिी ह-ठीक उिी िरह जिे पहले दाे
झखल्ली पान औार खा ले ने के मलए, उिने कई बार डाँटने के स्िर में औनुराेध वकया था! िाे वफर!...
विजय भयभीि हुऔा। मृत्यु जब िक कल्पना की िस्िु रहिी ह, िब िक चाहे उिका जजिना
प्रत्याख्यान कर मलया जाए; यदद िह िामने हाे।
विजय ने देखा, यमुना ही नहीं, तनरं जन भी ह, क्या मचन्िा यदद मं हट जाऊँ! िह मान गया, तनरं जन
की नाि पर जा बठा। तनरं जन ने रुपयाें की थली नाि िाले काे दे दी। नाि िेजी िे चल पड़ी।
भण्डारी औार तनरं जन ने औापि में कुछ मंत्रणा की, औार िे खून-औरे बाप रे ! कहिे हुए एक औार
चल पडे । स्नान करने िालाें का िमय हाे चला था। कुछ लाेग भी औा चले थे। तनरं जन औार भण्डारी
का पिा नहीं। यमुना चुपचाप बठी रही। िह औपने वपिा भण्डारीजी की बाि िाेच रही थी। वपिा
कहकर पुकारने की उिकी इच्छा काे वकिी ने कुचल ददया। कुछ िमय बीिने पर पुमलि ने औाकर
यमुना िे पूछना औारम्भ्भ वकया, 'िुम्भ्हारा नाम क्या ह?'
'यमुना!'
'वफर
यमुना कुछ न बाेली। िमािा देखने िालाें का थाेडे िमय के मलए मन बहलाि हाे गया।
कृष्णिरण काे टे करी में हलचल थी। यमुना के िम्भ्बन्ध में औनेक प्रकार की चचाम हाे रही थी।
तनरं जन औार भण्डारी भी एक मालसिरी के नीचे चुपचाप बठे थे। भण्डारी ने औधधक गंभीरिा िे
कहा, 'पर इि यमुना काे मं पहचान रहा हँ।'
'क्या?'
'मंने इिे वकिनी बार कािी में वकिाेरी के यहाँ देखा औार मं कह िकिा हँ वक यह उिकी दािी
यमुना ह; िुम्भ्हारी िारा कदावप नहीं।'
'परन्िु औाप उिकाे किे पहचानिे! िारा मेरे घर में उत्पन्न हुई, पली औार बढ़ी। कभी उिका औार
औापका िामना िाे हुऔा नहीं, औापकी औाज्ञा भी एेिी ही थी। ग्रहण में िह भूलकर लखनऊ गयी।
िहाँ एक स्ियंिेिक उिे हरद्वार ले जा रहा था, मुझिे राह में भेंट हुई, मं रे ल िे उिर पडा। मं उिे
न पहचानूँगा।'
'िाे िुम्भ्हारा कहना ठीक हाे िकिा ह।' कहकर तनरं जन ने सिर नीचा कर मलया।
'मंने इिका स्िर, मुख, औियि पहचान मलया, यह रामा की कन्या ह!' भण्डारी ने भारी स्िर में कहा।
तनरं जन चुप था। िह विचार में पड गया। थाेड़ी देर में बडबडािे हुए उिने सिर उठाया-दाेनाें काे
बचाना हाेगा, दाेनाें ही-हे भगिान्!
औािेि में तनरं जन उिके पाि जाकर बाेला, 'मं उिकी परिी का िब व्यय दूँगा। यह लीजजए एक
हजार के नाेट ह,ं घटने पर औार भी दूँगा।'
उपस्स्थि लाेगाें ने एक औपररमचि की इि उदारिा पर धन्यिाद ददया। गाेस्िामी कृष्णिरण हँि पडे ।
उन्हाेंने कहा, 'मंगलदेि काे बुलाना हाेगा, िही िब प्रबन्ध करे गा।'
तनरं जन उिी औाश्रम का औतिमथ हाे गया औार उिी जगह रहने लगा। गाेस्िामी कृष्णिरण का
उिके हृदय पर प्रभाि पडा। तनत्य ित्िंग हाेने लगा, प्रतिददन एक-दूिरे के औधधकाधधक िमीप हाेने
लगे।
मालसिरी के नीचे शिलाखण्ड पर गाेस्िामी कृष्णिरण औार देितनरं जन बठे हुए बािें कर रहे हं।
तनरं जन ने कहा, 'महात्मन्! औाज मं िृप्त हुऔा, मेरी जजज्ञािा ने औपना औनन्य औाश्रय खाेज मलया।
श्रीकृष्ण के इि कल्याण-मागम पर मेरा पूणम विश्वाि हुऔा।'
'औाज िक जजि रप में उन्हें देखिा था, िह एकांगी था; वकन्िु इि प्रेम-पथ का िुधार करना
चाड्हए। इिके मलए प्रयत्न करने की औाज्ञा दीजजए।'
'प्रयत्न! तनरं जन िुम भूल गये। भगिान् की मड्हमा स्ियं प्रचाररि हाेगी। मं िाे, जाे िुनना चाहिा ह
उिे िुनाऊँगा, इििे औधधक कुछ करने का िाहि मेरा नहीं!'
'वकन्िु मेरी एक प्राथमना ह। िंिार बधधर ह, उिकाे मचल्लाकर िुनाना हाेगा; इिमलए भारििर्म में हुए
उि प्राचीन महापिम काे लक्ष्य में रखकर भारि-िंघ नाम िे एक प्रचार-िंस्था बना दी जाए!'
'िंस्थाएँ विकृि हाे जािी हं। व्यमियाें के स्िाथम उिे कलु वर्ि कर देिे हं, देितनरं जन! िुम नहीं देखिे
वक भारि-भर में िाधु-िंस्थाऔाें की क्या...'
'तनंरजन ने क्षण-भर मे औपनी जीिनी पढने का उद्ाेग वकया। वफर खीझकर उिने कहा, 'महात्मन्,
वफर औापने इिने औनाथ स्त्री, बालक औार िृर्द्ाें का पररिार क्याें बना मलया ह?'
'िब औाप यह नहीं मानिे वक िंिार में मानसिक दुख िे पीदडि प्राणणयाें काे इि िंदेि िे पररमचि
कराने की औािश्यकिा ह?'
'ह, वकन्िु मं औाडम्भ्बर नहीं चाहिा। व्यमिगि श्रर्द्ा िे जजिना जाे कर िके, उिना ही पयामप्त ह।'
तनंरजन ने यहाँ का िब िमाचार मलखिे हुए वकिाेरी काे यह भी मलखा था-'औपने औार उिके पाप-
मचह्न विजय का जीिन नहीं के बराबर ह। हम दाेनाें काे िंिाेर् करना चाड्हए औार मेरी भी यही
इच्छा ह वक औब भगिद्भजन करँ। मं भारि-िंघ के िंगठन में लगा हँ, विजय काे खाेजकर उिे
औार भी िंकट में डालना हाेगा। िुम्भ्हारे मलए भी िंिाेर् काे छाेडकर दूिरा काेई उपाय नहीं।'
श्रीचन्र औपनी िारी कल्पनाऔाें पर पानी वफरिे देखकर वकिाेरी की ही चापलू िी करने लगा।
उिकी िह पंजाब िाली चन्दा औपनी लडकी काे ले कर चली गयी, क्याेंवक ब्याह हाेना औिम्भ्भि था।
एक ददन वकिाेरी ने कहा, 'जाे कुछ ह, हम लाेगाें के मलए बहुि औधधक ह, हाय-हाय करके क्या
हाेगा।'
'म भी औब व्यििाय करने पंजाब न जाऊँगा। वकिाेरी! हम दाेनाें यदद िरलिा िे तनभा िकंे , िाे
भविष्य में जीिन हम लाेगाें का िुखमय हाेगा, इिमें काेई िन्देह नहीं।'
(4)
'िब औापने क्या तनिय वकया िरला िीव्र स्िर में बाेली।
'घण्ट़ी काे उि हत्याकांड िे बचा ले ना भी औपराध ह, एेिा मंने कभी िाेचा भी नहीं।' बाथम ने कहा।
'बाथम! िुम जजिने भीिर िे क्ूर औार तनष्ठुर हाे, यदद ऊपर िे भी िही व्यिहार रखिे, िाे िुम्भ्हारी
मनुष्यिा का कल्याण हाेिा! िुम औपनी दुबमलिा काे पराेपकार के परदे में क्याें णछपाना चाहिे हाे
नृिंि! यदद मुझमें विश्वाि की ितनक भी मात्रा न हाेिी, िाे मं औधधक िुखी रहिी।' कहिी हुई
लतिका हाँफने लगी थी। िब चुप थे।
कुबड़ी खटखटािे हुए पादरी जान ने उि िांति काे भंग वकया। औािे ही बाेला, 'मं िब िमझा
िकिा हँ, जब दाेनाें एक-दूिरे पर औविश्वाि करिे हाे, िब उन्हें औलग हाे जाना चाड्हए। दबा हुऔा
विद्वेर् छािी के भीिर िपम के िामान फुफकारा करिा ह; कब औपने ही काे िह घायल करे गा, काेई
नहीं कह िकिा। मेरी बच्ची लतिका! मारगरे ट!'
'हाँ वपिा! औाप ठीक कहिे हं औार औब बाथम काे भी इिे स्िीकार कर ले ने में काेई विराेध न हाेना
चाड्हए।' मारगरे ट ने कहा।
'मुझे िब स्िीकार ह। औब औधधक िफाई देना मं औपना औपमान िमझिा हँ!' बाथम ने रखेपन िे
कहा।
'लतिका औार िरला चली गयीं। घण्ट़ी काठ की पुिली-िी बठी चुपचाप औमभनय देख रही थी।
पादरी ने उिके सिर पर दुलार िे हाथ फेरिे हुए कहा, 'चलाे बेट़ी, मिीह-जननी की छाया में; िुमने
िमझ मलया हाेगा वक उिके वबना िुम्भ्हें िांति न ममले गी।'
वबना एक िब्द कहे पादरी के िाथ बाथम औार घण्ट़ी दाेनाें उठकर चले जािे हुए बाथम ने एक बार
उि बँगले काे तनराि दृधष्ट िे देखा, धीरे -धीरे िीनाें चले गये।
औारामकुिीम पर खड़ी हुई लतिका ने एक ददन जजज्ञािा-भरी दृधष्ट िे िरला की औाेर देखा, िाे िह
तनभीमक रमणी औपनी दृढिा में मड्हमापूणम थी। लतिका का धयम लाट औाया, उिने कहा, 'औब?'
'कुछ मचंिा नहीं बेट़ी, मं हँ! िब िस्िु बेचकर बंक में रुपये जमा करा दाे, चुपचाप भगिान् के भराेिे
रुखी-िूखी खाकर ददन बीि जायेगा।' िरला ने कहा।
'मं एक बार उि िृंदािन िाले गाेस्िामी के पाि चलना चाहिी हँ, िुम्भ्हारी क्या िम्भ्मति ह?' लतिका ने
पूछा।
'पहले यह प्रबन्ध कर ले ना हाेगा, वफर िहाँ भी चलूँ गी। चाय वपऔाेगी? औाज ददन भर िुमने कुछ नहीं
खाया, मं ले औाऊँ-बाेलाे हम लाेगाें काे जीिन के निीन औध्याय के मलए प्रस्िुि हाेना चाड्हए।
लतिका! 'िदि िस्िु रहाे' का महामंत्र मेरे जीिन का रहस्य ह-दुःख के मलए, िुख के मलए, जीिन के
मलए औार मरण के मलए! उिमे शिमथलिा न औानी चाड्हए! विपत्तत्तयाँ िायु की िरह तनकल जािी
हं; िुख के ददन प्रकाि के िदृि पश्चिमी िमुर में भागिे रहिे हं। िमय काटना हाेगा, औार यह ध्रुि
ित्य ह वक दाेनाें का औन्ि ह।'
परन्िु घण्ट़ी! औाज औँधेरा हाे जाने पर भी, गगरजा के िमीप िाले नाले के पुल पर बठी औपनी
उधेडबुन में लगी ह। औपने ड्हिाब-वकिाब में लगी ह-मं भीख माँगकर खािी थी, िब काेई मेरा
औपना नहीं था। लाेग ददल्लगी करिे औार मं हँििी, हँिाकर हँििी। पहले िाे पिे के मलए, वफर
चस्का लग गया-हँिने का औानन्द ममल गया। मुझे विश्वाि हाे गया वक इि विमचत्र भूिल पर हम
घण्ट़ी औपना नया रे िमी िाया नाेचिी हुई दाड पड़ी। बाथम उि िमय क्लब में था। मजजस्टर े ट की
सिफाररिी मचट्ठ़ी की उिे औत्यन्ि औािश्यकिा थी। पादरी जान िाेच रहा था-औपनी िमाधध का
पत्थर कहाँ िे मँगाऊँ, उि पर क्ाॉि किा हाे!
(5)
फिेहपुर िीकरी िे औछनेरा जाने िाली िडक के िूने औंचल में एक छाेटा-िा जंगल ह। हररयाली
दूर िक फली हुई ह। यहाँ खारी नदी एक छाेट़ी-िी पहाड़ी िे टकरािी बहिी ह। यह पहाड़ी
सिलसिला औछनेरा औार सिंघापुर के बीच में ह। जन-िाधारण उि िूने कानन में नहीं जािे। कहीं-
कहीं बरिािी पानी के बहने िे िूखे नाले औपना जजमर कले िर फलाये पडे हं। बीच-बीच मे ऊपर
गाला औपने पसक्षयाें के चारे -पानी का प्रबन्ध कर रही थी। देखा िाे एक बुलबुल उि टू टे हुए वपंजरे
िे भागना चाहिी ह। औभी कल ही गाला ने उिे पकडा था। िह पिु-पसक्षयाें काे पकडने औार पालने
में बड़ी चिुर थी। उिका यही खेल था। बदन गूजर जब बटे िर के मेले में िादागर बनकर जािा,
िब इिी गाला की देखरे ख में पले हुए जानिर उिे मुँह माँगा दाम दे जािे। गाला औपने टू टे हुए
वपंजरे काे िाराें के टु कडे औार माेटे िूि िे बाँध रही थी। िहिा एक बमलष्ठ युिक ने मुस्करािे हुए
कहा, 'वकिनाें काे पकडकर िदि के मलए बन्धन में जकडिी रहाेगी, गाला?'
'हम लाेगाें की पराधीनिा िे बड़ी ममत्रिा ह नये! इिमें बडा िुख ममलिा ह। िही िुख औाराें काे भी
देना चाहिी हँ-वकिी िे वपिा, वकिी िे भाई, एेिा ही काेई िम्भ्बन्ध जाेडकर उन्हें उलझाना चाहिी
हँ; वकन्िु पुरुर्, इि जंगली बुलबुल िे भी औधधक स्ििन्त्रिा-प्रेमी ह। िे िदि छुटकारे का औििर
खाेज मलया करिे हं। देखा, बाबा जब न हाेिा ह िब चले जािे हं। कब िक औािेंगे िुम जानिे हाे?'
'नहीं भला मं क्या जानूँ! पर िुम्भ्हारे भाई काे मंने कभी नहीं देखा।'
'इिी िे िाे कहिी हँ नये। मं जजिकाे पकडकर रखना चाहिी हँ, िे ही लाेग भागिे हं। जाने कहाँ
िंिार-भर का काम उन्हीं के सिर पर पडा ह! मेरा भाई? औाह, वकिनी चाड़ी छािी िाला युिक था।
औकेले चार-चार घाेडाें काे बीिाें काेि ििारी में ले जािा। औाठ-दि सिपाही कुछ न कर िकिे। िह
िेर-िा िडपकर तनकल जािा। उिके सिखाये घाेडे िीड्ढयाें पर चढ जािे। घाेडे उििे बािें करिे,
िह उनके मरम काे जानिा था।'
'िुम देखिे नहीं, मं जानिराें काे पालिी हँ, औार मेरे बाबा उन्हें मेले में ले जाकर बेचिे हं।' गाला का
स्िर िीव्र औार िन्देहजनक था।
'औाेह! िह बड़ी लम्भ्बी कहानी ह, उिे न पूछाे!' कहकर गाला उठ गयी। एक बार औपने कुरिे के
औाँचल िे उिने औाँखें पाेंछी, औार एक श्यामा गा के पाि जा पहुँची, गा ने सिर झुका ददया, गाला
उिका सिर खुजलाने लगी। वफर उिके मुँह िे मुँह िटाकर दुलार वकया। उिके बछडे का गला
चूमने लगी। उिे भी छाेडकर एक िाल भर के बछडे काे जा पकडा। उिके बडे -बडे औयालाें काे
उँ गमलयाें िे िुलझाने लगी। एक बार िह वफर औपने-पिु ममत्राें िे प्रिन्न हाे गयी। युिक चुपचाप
एक िृक्ष की जड पर जा बठा। औाधा घण्टा न बीिा हाेगा वक टापाें के िब्द िुनकर गाला मुस्कराने
लगी। उत्कण्ठा िे उिका मुख प्रिन्न हाे गया।
'औश्वाराेही औा पँहुचे। उनमें िबिे औागे उमर में ित्तर बरि का िृर्द्, परन्िु दृढ पुरुर् था। क्ूरिा
उिकी घनी दाढ़ी औार मूँछाें के तिरछे पन िे टपक रही थी। गाला ने उिके पाि पहुँचकर घाेडे िे
उिरने में िहायिा दी। िह भीर्ण बुडढा औपनी युििी कन्या काे देखकर पुलवकि हाे गया। क्षण-भर
के मलए न जाने कहाँ णछपी हुई मानिीय काेमलिा उिके मुँह पर उमड औायी। उिने पूछा, 'िब
ठीक ह न गाला!'
'हाँ बाबा!'
युिक िमीप औा गया। बुडेढ ने एक बार नीचे िे ऊपर िक देखा। युिक के ऊपर िन्देह का कारण
न ममला। उिने कहा, 'िब घाेडाें काे मलिाकर चारे -पानी का प्रबन्ध कर दाे।'
गाला ने जाने क्याें इि प्रश्न पर लत्तज्जि हुई। वफर िँभलकर उिने कहा, 'देखने में िाे यह बडा िीधा
औार पररश्रमी ह।'
'मं भी िमझिा हँ। प्रायः जब हम लाेग बाहर चले जािे हं, िब िुम औकेली रहिी हाे।'
'िाे क्या मं यहीं बठा रहँ गाला। मं इिना बूढा नहीं हाे गया!'
'पहले जब िू छाेट़ी थी िब िाे नहीं डरिी थी। औब क्या हाे गया ह, औब िाे यह 'नये' भी यहाँ रहा
करे गा। बेट़ी! यह कुलीन युिक जान पडिा ह।'
'हाँ बाबा! वकन्िु यह घाेडाें का मलना नहीं जानिा-देखाे िामने पिुऔाें िे इिे ितनक भी स्नेह नहीं
ह। बाबा! िुम्भ्हारे िाथी भी बडे तनदमयी हं। एक ददन मंने देखा वक िुख िे चरिे हुए एक बकरी के
बच्चे काे इन लाेगाें ने िमूचा ही भून डाला। ये िब बडे डरािने लगिे हं। िुम भी उन ही लाेगाें में
ममल जािे हाे।'
'चुप पगली! औब बहुि विलम्भ्ब नहीं-मं इन िबिे औलग हाे जाऊँगा, औच्छा िाे बिा, इि 'नये' काे
रख लूँ न 'बदन गम्भ्भीर दृधष्ट िे गाला की औाेर देख रहा था।
एक चाँदनी राि थी। बरिाि िे धुला हुऔा जंगल औपनी गम्भ्भीरिा में डू ब रहा था। नाले के िट पर
बठा हुऔा 'नये' तनतनममेर् दृधष्ट िे उि हृदय विमाेहन मचत्रपट काे देख रहा था। उिके मन में बीिी हुई
वकिनी स्मृतियाँ स्िगीमय नृत्य करिी चली जा रही थीं। िह औपने फटे काेट काे टटाेलने लगा।
िहिा उिे एक बाँिुरी ममल गयी-जिे काेई खाेयी हुई तनधध ममली। िह प्रिन्न हाेकर बजाने लगा।
बंिी के विलझम्भ्बि मधुर स्िर में िाेई हुई िनलक्ष्मी काे जगाने लगा। िह औपने स्िर िे औाप ही
'नहीं, यह ब्रज की िीमा के भीिर ह। यहाँ चाँदनी राि में बाँिुरी बजाने िे गाेवपयाें की औात्माएँ
मचल उठिी हं।'
'िब मं न बजाऊँगा।'
'नहीं नये! िुम बजाऔाे, बड़ी िुन्दर बजिी थी। हाँ, बाबा कदामचि् क्ाेध करें ।'
'औच्छा, िुम राि काे याें ही तनकलकर घूमिी हाे। इि पर िुम्भ्हारे बाबा न क्ाेध न करें ग?े '
'हम लाेग जंगली ह,ं औकेले िाे मं कभी-कभी औाठ-औाठ दि-दि ददन इिी जंगल में रहिी हँ।'
'औच्छा, िुम्भ्हें गाेवपयाें की बाि किे मालू म हुई? क्या िुम लाेग ड्हन्दू हाे इन गूजराें िे िाे िुम्भ्हारी
भार्ा मभन्न ह।'
'औाियम िे देखिी हुई गाला ने कहा, 'क्याें, इिमें भी िुमकाे िंदेह ह। मेरी माँ मुगल हाेने पर भी
कृष्ण िे औधधक प्रेम करिी थी। औहा नये! मं वकिी ददन उिकी जीिनी िुनाऊँगी। िह...'
क्ाेध िे देखिी हुई गाला ने कहा, 'िुम यह क्याें नहीं कहिे वक हम लाेग मनुष्य हं।'
'जजि िहृदयिा िे िुमने मेरी विपत्तत्त में िेिा की ह, गाला! उिे देखकर िाे मं कहँगा वक िुम देि-
बामलका हाे!' नये का हृदय िहानुभूति की स्मृति िे भर उठा था।
प्रभाि चमकने लगा था। जंगली पसक्षयाें के कलनाद िे कानन-प्रदेि गुंजररि था। गाला चारे -पानी के
प्रबन्ध में लग गयी थी। बदन ने नये काे बुलाया। िह औाकर िामने खडा हाे गया। बदन ने उििे
बठने के मलए कहा। उिके बठ जाने पर गूजर कहने लगा-'जब िुम भूख िे व्याकुल, थके हुए
भयभीि, िडक िे हटकर पेड के नीचे पडे हुए औाधे औचेि थे, उि िमय वकिने िुम्भ्हारी रक्षा की
थी?'
'िुम जानिे हाे वक हम लाेग डाकू हं, हम लाेगाें काे माया-ममिा नहीं! परन्िु हमारी तनदमयिा भी
औपना तनददमष्ट पथ रखिी ह, िह ह केिल धन ले ने के मलए। भेद यही ह वक धन ले ने का दूिरा
उपाय हम लाेग काम में नहीं ले िे, दूिरे उपायाें काे हम लाेग औधम िमझिे हं-धाेखा देना, चाेरी
करना, विश्वािघाि करना, यह िब िाे िुम्भ्हारे नगराें के िभ्य मनुष्याें की जीविका के िुगम उपाय हं,
हम लाेग उनिे घृणा करिे हं। औार भी-िुम िृंदािन िाले खून के भागे हुए औािामी हाे-हाे न कहकर
बदन िीखी दृधष्ट िे नये काे देखने लगा। िह सिर नीचा वकये खडा रहा। बदन वफर कहने लगा, 'िाे
िुम णछपाना चाहिे हाे। औच्छा िुनाे, हम लाेग जजिे औपनी िरण में ले िे हं, उििे विश्वािघाि नहीं
करिे। औाज िुमिे एक बाि िाफ कह देना चाहिा हँ। देखाे, गाला िीधी लडकी ह, िंिार के किर-
ब्याेंि िह नहीं जानिी, िथावप यदद िह तनिगम-तनयम िे वकिी युिक काे प्यार करने लगे, िाे इिमें
औाियम नही। िंभि ह, िह मनुष्य िुम ही हाे जाऔाे, इिमलए िुम्भ्हें िचेि करिा हँ वक िािधान! उिे
धाेखा न देना। हाँ, यदद िुम कभी प्रमाणणि कर िकाेगे वक िुम उिके याेग्य हाे, िाे वफर देखा
जाएगा! िमझा।'
बदन चला गया। उिकी प्राढ ककमि िाणी नये के कानाें में िज्र गम्भ्भीर स्िर में गूँजने लगी। िह बठ
गया औार औपने जीिन का ड्हिाब लगाने लगा।
बहुि विलम्भ्ब िक िह बठा रहा। िब गाला ने उििे कहा, 'औाज िुम्भ्हारी राेट़ी पड़ी रहेगी, क्या
खाऔाेगे नहीं?'
'औाेहाे, िाे िुम रठना भी जानिे हाे। औच्छा खा लाे! मान जाऔाे, मं िुम्भ्हें ददखला दूँगी।' कहिी हुई
गाला ने ििा ही वकया, जिे वकिी बच्चे काे मानिे हुए स्त्रस्त्रयाँ करिी हं। यह देखकर नये हँि पडा।
उिने पूछा-
'औच्छा कब ददखलाऔाेगी?'
(6)
िीिकाल के िृक्षाें िे छनकर औािी हुई धूप बड़ी प्यारी लग रही थी। नये पराें पर पर धरे , चुपचाप
गाला की दी हुई, चमडे िे बँधी एक छाेट़ी-िी पुस्िक काे औाियम िे देख रहा था। िह प्राचीन नागरी
में मलखी हुई थी। उिके औक्षर िुन्दर िाे न थे, पर थे बहुि स्पष्ट। नये कुिूहल िे उिे पढने लगा-
मेरी कथा
बेट़ी गाला! िुझे वकिना प्यार करिी हँ, इिका औनुमान िुझे छाेडकर दूिरा नहीं कर िकिा। बेटा
भी मेरे हृदय का टु कडा ह; पर िह औपने बाप के रं ग में रं ग गया-पक्का गूजर हाे गया। पर मेरी
प्यारी गाला! मुझे भराेिा ह वक िू मुझे न भूलेगी। जंगल के काेने मे बठी हुई, एक भयानक पति
की पत्नी औपने बाल्यकाल की मीठी स्मृति िे यदद औपने मन काे न बहलािे, िाे दूिरा उपाय क्या ह
गाला! िुन, ििममान िुख के औभाि में पुरानी स्मृतियाें का धन, मनुष्य काे पल-भर के मलए िुखी कर
िकिा ह औार िुझे औपने जीिन में औागे चलकर कदामचि् िहायिा ममले , इिमलए मंने िुझे थाेडा-
िा पढाया औार इिे मलखकर छाेड जािी हँ।
मेरी माँ बडे गिम िे गाेद में वबठाकर बडे दुलार िे मुझे औपनी बीिी िुनािी, उन्हीं वबखरी हुई बािाें
काे इकट्ठा करिी हँ। औच्छा लाे, िुनाे मेरी कहानी-मेरे वपिा का नाम ममरजा जमाल था। िे मुगल-
िंि के एक िहजादे थे। मथुरा औार औागरा के बीच में उनकी जागीर के कई गाँि थे, पर िे प्रायः
ददल्ली में ही रहिे। कभी-कभी िर-शिकार के मलए जागीर पर चले औािे। उन्हें प्रेम था शिकार िे
एक ददन ममरजा जमाल औपनी छािनी िे दूर िाम्भ्बूल-िीमथ में बठे हुए, बिाख के पहले के कुछ-
कुछ गरम पिन िे िुख का औनुभि कर रहे थे। ढालिें ट़ीले पर पान की खेिी, उन पर िुढार
छाजन, देहाि के तनजमन िािािरण काे िमचत्र बना रही थी। उिी िे िटा हुऔा, कमलाें िे भरा एक
छाेटा िा िाल था, जजनमें िे भीनी-भीनी िुगन्ध उठकर मस्िक काे िीिल कर देिी। कलनाद करिे
हुए कभी-कभी पुरइनाें िे उड जाने पर ही जलपक्षी औपने औझस्ित्ि का पररचय दे देिे। िाेमदेि ने
जलपान की िाम्रगी िामने रखकर पूछा, 'क्या औाज यहीं ददन बीिेगा?'
'हाँ, देखाे ये लाेग वकिने िुखी हं िाेमदेि। इन देहािी गृहस्थाें में भी वकिनी औािा ह, वकिना
विश्वाि ह, औपने पररश्रम में इन्हें वकिनी िृतप्त ह।'
'यहाँ छािनी ह, औपनी जागीर में िरकार! राेब िे रहना चाड्हए। दूिरे स्थान पर चाहे जिे रड्हए।'
िाेमदेि ने कहा।
िाेमदेि िहचर, िेिक औार उनकी िभा का पंदडि भी था। िह मुँहलगा भी था; कभी-कभी उनिे
उलझ भी जािा, परन्िु िह हृदय िे उनका भि था। उनके मलए प्राण दे िकिा था।
'चुप रहाे िाेमदेि! यहाँ मुझे हृदय की खाेई हुई िाझन्ि का पिा चल रहा ह। िुमने देखा हाेगा, वपिा
जी वकिने यत्न िे िंचय कर यह िम्भ्पत्तत्त छाेड गये हं। मुझे उि धन िे प्रेम करने की शिक्षा, िे
उच्चकाेड्ट की दािमतनक शिक्षा की िरह गम्भ्भीरिा िे औाजीिन देिे रहे। औाज उिकी परीक्षा हाे रही
ह। मं पूछिा हँ वक हृदय में जजिनी मधुररमा ह, काेमलिा ह, िह िब क्या केिल एक िरुणी की
िुन्दरिा की उपािना की िाम्रगी ह इिका औार काेई उपयाेग नही हँिने के जाे उपकरण हं, िे
वकिी झलमले औंचल में ही औपना मुँह णछपाये वकिी औािीिामद की औािा में पडे रहिे हं िंिार में
स्त्रस्त्रयाें का क्या इिना व्यापक औधधकार ह?'
ममरजा जमाल ने जलपान करिे हुए प्रिंग बदल ददया। कहा, 'औाज िुम्भ्हारे बादाम की बफीम में कुछ
कडिे बादाम थे।'
िमाेली ने टट्टर के पाि ही भीिर दरी वबछा दी थी। ममरजा चुपचाप िामने फूले हुए कमलाें काे
देखिे थे। ईख की सिंचाई के पुरिट के िब्द दूर िे उि तनस्िब्धिा काे भंग कर देिे थे। पिन की
गमीम िे टट्टर बंद कर देने पर भी उि िरपि की झँझरी िे बाहर का दृश्य ददखलायी पडिा था।
ढालु िीं भूमम में िवकये की औािश्यकिा न थी। पाि ही औाम के नीचे कम्भ्बल वबछाकर दाे िेिकाें के
िाथ िाेमदेि बठा था। मन में िाेच रहा था-यह िब रुपये की िनक ह।
िाल के वकनारे , पत्थर की शिला पर, महुए की छाया में एक वकिाेरी औार एक खिखिी दाढ़ीिाला
मनुष्य, लम्भ्बी िारं गी मलये, विश्राम कर रहे थे। बामलका की ियि चादह िे ऊपर नहीं; पुरुर् पचाि
के िमीप। िह देखने में मुिलमान जान पडिा था। देहािी दृढिा उिके औंग-औंग िे झलकिी थी।
घुटनाें िक हाथ-पर धाे, मुँह पाेंछकर एक बार औपने में औाकर उिने औाँखें फाडकर देखा। उिने
कहा, 'िबनम! देखाे, यहाँ काेई औमीर ड्टका हुऔा मालू म पडिा ह। ठं ड़ी हाे चुकी हाे, िाे चलाे बेट़ी!
कुछ ममल जाये िाे औचरज नहीं।'
िबनम िस्त्र िँिारने लगी, उिकी सिकुडन छुडाकर औपनी िेिभूर्ा काे ठीक कर मलया। औाभूर्णाें में
दाे-चार काँच की चूदडयाँ औार नाक में नथ, जजिमें माेिी लटककर औपनी फाँिी छुडाने के मलए
छटपटािा था। टट्टर के पाि पहुँच गये। ममरजा ने देखा-बामलका की िेिभूर्ा में काेई वििेर्िा नहीं,
परन्िु पररष्कार था। उिके पाि कुछ नहीं था-ििन औलं कार या भादाें की भरी हुई नदी-िा यािन।
कुछ नहीं, थीं केिल दाे-िीन कलामयी मुख रे खाएँ-जाे औागामी िान्दयम की बाह्य रे खाएँ थीं, जजनमें
यािन का रं ग भरना कामदेि ने औभी बाकी रख छाेडा था। कई ददन का पहना हुऔा ििन भी
ममलन हाे चला था, पर कामायम में उज्ज्वलिा थी। औार यह क्या! िूखे कपाेलाें में दाे-दाे िीन-िीन
लाल मुहाँिे। िारुण्य जिे औमभव्यमि का भूखा था, 'औभाि-औभाि!' कहकर जिे काेई उिकी िुरमई
औाँखाें में पुकार उठिा था। ममरजा कुछ सिर उठाकर झँझरी िे देखने लगा।
'िाे हम लाेग भी बठ जािे ह,ं औाज िाे पेट भर जायेगा।' कहकर िह िारं गीिाला िहाँ की भूमम
झाडने लगा।
'यहीं, इिी टट्ट़ी में ह,ं धूप कम हाेने पर बाहर तनकलें गे।'
'भाग खुल गये! मं चुपचाप बठिा हँ।' कहकर दाढ़ीिाला वबना पररष्कृि की हुई भूमम पर बठकर
औाँखें मटकाकर िबनम काे िंकेि करने लगा।
िबनम औपने एक ही िस्त्र काे औार भी ममलन हाेने िे बचाना चाहिी थी, उिकी औाँखें स्िच्छ स्थान
औार औाड खाेज रही थीं। उिके हाथ में औभी िाेडा हुऔा कमलगट्टा था। िबकी औाँखें बचाकर िह
उिे चख ले ना चाहिी थी। िहिा टट्टर खुला।
िेिक दाडा, िाेमदेि उठ खडा हुऔा था। उिने कई औादाब बजाकर औार िाेमदेि काे कुछ बाेलने
का औििर न देिे हुए कहा, 'िरकार! जाचक हँ, बडे भाग िे दिमन हुए।'
ममरजा काे इिने िे िंिाेर् न हुऔा। उन्हाेंने मुँह बन्द वकये, वफर सिर ड्हलाकर कुछ औार जानने की
इच्छा प्रकट की। िाेमदेि ने दरबारी ढं ग िे डाँटकर कहा, 'िुम कान हाे जी, िाफ-िाफ क्याें नहीं
बिािे
'िबनम क्या?'
'िबनम औाेि काे कहिे हं पझण्डि जी।' मुस्कुरािे हुए ममरजा ने कहा औार एक बार िबनम की औाेर
भली-भाँति देखा। िेजस्िी श्रीमान् की औाँखाें िे ममलिे ही दररर िबनम की औाँखें पिीने-पिीने हाे
गयीं। ममरजा ने देखा, उन औाकाि-िी नीली औाँखाें में िचमुच औाेि की बूँदें छा गयी थीं।
ममरजा की इच्छा गाना िुनने की न थी, परन्िु िबनम औब िक कुछ बाेली नहीं थी; केिल इिमलए
िहिा उन्हाेंने कहा, 'औच्छा िुनूँ िाे िुम लाेगाें का गाना। िुम्भ्हारा नाम क्या ह जी?'
'रहमि खाँ, िरकार!' कहकर िह औपनी िारं गी ममलाने लगा। िबनम वबना वकिी िे पूछे, औाकर
कम्भ्बल पर बठ गयी। िाेमदेि झुँझला उठा, पर कुछ बाेला नहीं।
इिके औागे जिे िबनम भूल गयी थी। िह इिी पद् काे कई बार गािी रही। उिके िंगीि में
कला न थी, करुणा थी। पीछे िे रहमि उिके भूले हुए औंि काे स्मरण ददलाने के मलए गुमगुना रहा
था, पर िबनम के हृदय का ररि औंि मूतिममान हाेकर जिे उिकी स्मरण-िमि के िामने औड
जािा था। झुँझलाकर रहमि ने िारं गी रख दी। विस्मय िे िबनम ने ही वपिा की औाेर देखा,
उिकी भाेली-भाली औाँखाें ने पूछा-क्या भूल हाे गयी। चिुर रहमि उि बाि काे पी गया। ममरजा
जिे स्िप्न िे चांके, उन्हाेंने देखा-िचमुि िन्ध्या िे ही बुझा हुऔा स्नेह-विहीन दीपक िामने पडा ह।
मन में औाया, उिे भर दूँ। कहा, 'रहमि िुम्भ्हारी जीविका का औिलम्भ्ब िाे बडा दुबमल ह।'
ममरजा ने कािुक िे कहा, 'िाे िुम लाेगाें काे काेई िुखी रखना चाहे, िाे रह िकिे हाे?'
रहमि के मलए जिे छप्पर फाडकर वकिी ने औानन्द बरिा ददया। िह भविष्य की िुखमयी
कल्पनाऔाें िे पागल हाे उठा, 'क्याें नहीं िरकार! औाप गुतनयाें की परख रखिे हं।'
'औाई!' कहिी हुई एक चंचल छाेकरी हाथ बाँधे िामने औाकर खड़ी हाे गयी। उिकी भिें हँि रही
थीं। िह औपने हाेंठाे काे बडे दबाि िे राेक रही थी।
'देखाे िाे औाज इिे क्या हाे गया ह। बाेलिी नहीं, मरे मारे बठी ह।'
'नहीं मलका! चारा-पानी रख देिी हँ। मं िाे इििे डरिी हँ! औार कुछ नहीं करिी।'
'वफर इिकाे क्या हाे गया ह, बिला नहीं िाे सिर के बाल नाेंच डालूँ गी।'
िुन्दरी काे विश्वाि था वक मलका कदावप एेिा नहीं कर िकिी। िह िाली पीटकर हँिने लगी औार
बाेली, 'मं िमझ गयी!'
'जाऊँ िरकार काे बुला लाऊँ, िे ही इिके मरम की बाि जानिे हं।'
'हाँ।'
िुन्दरी ने महीन िाेने के िाराें िे बना हुऔा वपंजरा उठा मलया औार िबनम औारि कपाेलाें पर श्रम-
िीकर पाेंछिी हुई उिके पीछे -पीछे चली।
उपिन की कुंज गली पररमल िे मस्ि हाे गयी। फूलाें ने मकरन्द-पान करने के मलए औधराें-िी
पंखदडयाँ खाेलीं। मधुप लडखडाये। मलयातनल िूचना देने के मलए औागे-औागे दाडने लगा।
'लाेभ! िाे भी धन का! औाेह वकिना िुन्दर िपम भीिर फुफकार रहा ह। काेहनूर का िीिफूल
गजमुिाऔाें की एकािली वबना औधूरा ह, क्याें िह िाे कंगाल थी। िह मेरी कान ह
'काेई नहीं िरकार!' कहिे हुए िाेमदेि ने विचार में बाधा उपस्स्थि कर दी।
'बहुि-िे लाेग िेदान्ि की व्याख्या करिे हुए ऊपर िे देििा बन जािे हं औार भीिर उनके िह नाेंच-
खिाेट चला करिा ह, जजिकी िीमा नहीं।'
'िही िाे िाेमदेि! कंगाल काे िाेने में नहला ददया; पर उिका काेई ित्काल फल न हुऔा-मं िमझिा
हँ िह िुखी न रह िकी।'
'िाेने की पररभार्ा कदामचि् िबके मलए मभन्न-मभन्न हाे! कवि कहिे हं-ििेरे की वकरणें िुनहली हं,
राजनीतिक वििारद-िुन्दर राज्य काे िुनहला िािन कहिे हं। प्रणयी यािन में िुनहरा पानी देखिे
हं औार मािा औपने बच्चे के िुनहले बालाें के गुच्छाें पर िाेना लु टा देिी ह। यह कठाेर, तनदमय,
प्राणहारी पीला िाेना ही िाे िाेना नहीं ह।' िाेमदेि ने कहा
'िाेमदेि! कठाेर पररश्रम िे, लाखाें बरि िे, नये-नये उपाय िे, मनुष्य पृथ्िी िे िाेना तनकाल रहा ह,
पर िह भी वकिी-न-वकिी प्रकार वफर पृथ्िी में जा घुििा ह। मं िाेचिा हँ वक इिना धन क्या
हाेगा! लु टाकर देख?ूँ '
'क्या िह िब प्रभाि के झरिे हुए औाेि की बूँदाें में औरुण वकरणाें की छाया थी औार मंने जीिन का
कुछ िुख भी नहीं मलया!'
'िरकार! िब िुख िबके पाि एक िाथ नहीं औािे, नहीं िाे विधािा काे िुख बाँटने में बड़ी बाधा
उपस्स्थि हाे जािी!'
िाेमदेि चला गया, औार ममरजा एकान्ि में जीिन की गुस्त्थयाें काे िुलझाने लगे। िापी के मरकि
जल काे तनतनममेर् देखिे हुए िे िंगमममर के उिी प्रकाेष्ठ के िामने तनिेष्ट थे, जजिमें बठे थे।
नूपुर की झनकार ने स्िप्न भंग कर ददया-'देखाे िाे इिे हाे क्या गया ह, बाेलिा नहीं क्याें! िुम चाहाे
िाे यह बाेल दे।'
'एें! इिका वपंजडा िाे िुमने िाेने िे लाद ददया ह, मलका! बहुि हाे जाने पर भी िाेना िाेना ही ह!
एेिा दुरुपयाेग!'
'ले जाऔाे, जब मं औपने जीिन के प्रश्नाें पर विचार कर रहा हँ, िब िुम यह झखलिाड ददखाकर मुझे
भुलिाना चाहिी हाे!'
'मं िुम्भ्हें भुलिा िकिी हँ!' ममरजा का यह रप िबनम ने कभी नहीं देखा था। िह उनके गमम
औामलं गन, प्रेम-पूणम चुम्भ्बन औार स्नस्नग्ध दृधष्ट िे िदि औाेि-प्राेि रहिी थी-औाज औचानक यह क्या!
िंिार औब िक उिके मलए एक िुनहरी छाया औार जीिन एक मधुर स्िप्न था। खंजरीट माेिी
उगलने लगे।
ममरजा काे चेिना हुई-उिी िबनम काे प्रिन्न करने के मलए िाे िह कुछ विचारिा-िाेचिा ह, वफर
यह क्या! यह क्या-मेरी एक बाि भी यह हँिकर नहीं उडा िकिी, झट उिका प्रतिकार! उन्हाेंने
िुन्दरी ने बेढब रं ग देखा, िह वपंजरा ले कर चली। मन में िाेचिी जािी थी-औाज िह क्या! मन-
बहलाि न हाेकर यह काण्ड किा!
िबनम तिरस्कार न िह िकी, िह ममामहि हाेकर श्वेि प्रस्िर के स्िम्भ्भ में ड्टककर सििकने लगी।
ममरजा ने औपने मन काे धधक्कारा। राेने िाली मलका ने उि औकारण औकरुण हृदय काे रविि कर
ददया। उन्हाेंने मलका काे मनाने की चेष्टा की, पर मातननी का दुलार ड्हचवकयाँ ले ने लगा। काेमल
उपचाराें ने मलका काे जब बहुि िमय बीिने पर स्िस्थ वकया, िब औाँिू के िूखे पद-मचह्न पर हँिी
की दाड धीमी थी, बाि बदलने के मलए ममरजा ने कहा, 'मलका, औाज औपना सििार िुनाऔाे, देखें,
औब िुम किा बजािी हाे?'
'िाे मं िमझ गया, जिे िुम्भ्हारा बुलबुल एक ही औालाप जानिा ह-ििे ही िुम औभी िक िही भरिी
की एक िान जानिी हाेगी।' कहिे हुए ममरजा बाहर चले गये। िामने िाेमदेि ममला, ममरजा ने कहा,
'िाेमदेि! कंगाल धन का औादर करना नहीं जानिे।'
'ठीक ह श्रीमान्, धनी भी िाे िब का औादर करना नहीं जानिे, क्याेंवक िबके औादराें के प्रकार मभन्न
हं। जाे िुख-िम्भ्मान औापने िबनम काे दे रखा ह, िही यदद वकिी कुलिधु काे ममलिा!'
'िह िेश्या िाे नहीं ह। वफर भी िाेमदेि, िब िेश्याऔाें काे देखाे-उनमें वकिने के मुख िरल हं, उनकी
भाेली-भाली औाँखें राे-राेकर कहिी हं, मुझे पीट-पीटकर चंचलिा सिखायी गयी ह। मेरा विश्वाि ह
वक उन्हें औििर ददया जाये िाे िे वकिनी कुलिधुऔाें िे वकिी बाि में कम न हाेिीं!'
'पागल िाे नहीं हाे गयी ह-ममला हुऔा भी काेई याें ही लाटा देिा ह?'
उिी िमय ममरजा ने भीिर औाकर यह देखा। उनकी िमझ में कुछ न औाया, उत्तेजजि हाेकर उन्हाेंने
कहा, 'रहमि! क्या यह िब घर बाँध ले जाने का ढं ग था।'
'रहमि औाँखें नीची वकये चला गया, पर मलका िबनम लाल हाे गयी। ममरजा ने िम्भ्हलकर उििे
पूछा, 'यह िब क्या ह मलका?'
िेजझस्ििा िे िबनम ने कहा, 'यह िब मेरी िस्िुएँ हं, मंने रप बेचकर पायी हं, क्या इन्हें घर न
भेजूँ।'
चाेट खाकर ममरजा ने कहा, 'औब िुम्भ्हारा दूिरा घर कान ह, िबनम! मं िुमिे तनकाह करँगा।'
'औाेह! िुम औपनी मूल्यिान िस्िुऔाें के िाथ मुझे भी िन्दूक में बन्द करना चाहिे हाे! िुम औपनी
िम्भ्पत्तत्त िहेज लाे, मं औपने काे िहेजकर देखूँ!'
िादी धाेिी पहने िारं गी उठाकर हाथ में देिे हुए रहमि िे िबनम ने कहा, 'चलाे बाबा!'
'कहाँ बेट़ी! औब िाे मुझिे यह न हाे िकेगा, औार िुमने भी कुछ न िीखा-क्या कराेगी मलका?'
उपिन में औाकर िबनम रुक गयी। मधुमाि था, चाँदनी राि थी। िह तनजमनिा िारभ-व्याप्त हाे रही
थी। िबनम ने देखा, ऋिुरानी शिररि के फूलाें की काेमल िूमलका िे विराट िून्य में औलक्ष्य मचत्र
बना रही थी। िह खड़ी न रह िकी, जिे वकिी धक्के िे झखडकी बाहर हाे गयी।
इि घटना काे बारह बरि बीि गये थे, रहमि औपनी कच्ची दालान में बठा हुऔा हुक्का पी रहा था।
उिने औपने इकट्ठे वकये हुए रुपयाें िे औार भी बीि बीघा खेि ले मलया था। मेरी माँ चािल फटक
रही थी औार मं बठी हुई औपनी गुदडया खेल रही थी। औभी िंध्या नहीं थी। मेरी माँ ने कहा, 'बानाे,
िू औभी खेलिी ही रहेगी, औाज िूने कुछ भी नहीं पढा।' रहमि खाँ मेरे नाना ने कहा, 'िबनम, उिे
खेल ले ने दे बेट़ी, खेलने के ददन वफर नहीं औािे।' मं यह िुनकर प्रिन्न हाे रही थी, वक एक ििार
नंगे सिर औपना घाेडा दाडािा हुऔा दालान के िामने औा पहुँचा औार उिने बड़ी दीनिा िे कहा,
'ममयाँ राि-भर के मलए मुझे जगह दाे, मेरे पीछे डाकू लगे हं!'
रहमि ने धुऔाँ छाेडिे हुए कहा, 'भई थके हाे िाे थाेड़ी देर ठहर िकिे हाे, पर डाकुऔाें िे िाे िुम्भ्हें
हम बचा नहीं िकिे।'
'यही िही।' कहकर ििार घाेडे िे कूद पडा। मं भी बाहर ही थी, कुिूहल िे पमथक का मुँह देखने
लगी। बाघ की खाट पर िह हाँफिे हुए बठा। िंध्या हाे रही थी। िेल का दीपक ले कर मेरी माँ उि
दालान में औायी। िह मुँह वफराये हुए दीपक रखकर चली गयी। िहिा मेरे बुडेढ नाना काे जिे
पागलपन हाे गया, खडे हाेकर पमथक काे घूरने लगे। पमथक ने भी देखा औार चांककर पूछा, 'रहमि,
यह िुम्भ्हारा ही घर ह?'
इिने में एक औार मनुष्य हाँफिा हुऔा औा पहुँचा, िह कहने लगा, 'िब उलट-पुलट हाे गया। ममरजा
औाज देहली का सिंहािन मुगलाें के हाथ िे बाहर ह। वफरं गी की दाेहाई ह, काेई औािा न रही।'
मेरी माँ बाहर चली औायी। राि की औँधेरी बढ रही थी। भयभीि हाेकर यह िब औाियममय व्यापार
देख रही थी! माँ धीरे -धीरे औाकर ममरजा के िामने खड़ी हाे गयी औार उनके औाँिू पाेंछने लगी!
उि स्पिम िे ममरजा के िाेक की ज्िाला जब िान्ि हुई, िब उन्हाेंने क्षीण स्िर में कहा, 'िबनम!'
िह बडा करुणाजनक दृश्य था। मेरे नाना रहमि खाँ ने कहा, 'औाऔाे िाेमदेि! हम लाेग दूिरी काेठी
में चलें । िे दाेनाें चले गये। मं बठी थी, मेरी माँ ने कहा, 'औब िाेक करके क्या हाेगा, धीरज काे
औापदा में न छाेडना चाड्हए। यह िाे मेरा भाग ह वक इि िमय मं िुम्भ्हारे िेिा के मलए वकिी िरह
ममल गयी। औब िब भूल जाना चाड्हए। जाे ददन बचे हं, मामलक के नाम पर काट मलए जायेंगे।'
ममरजा ने एक लम्भ्बी िाँि ले कर कहा, 'िबनम! मं एक पागल था, मंने िमझा था, मेरे िुखाें का
औन्ि नहीं, पर औाज?'
'कुछ नहीं, कुछ नहीं, मेरे मामलक! िब औच्छा ह, िब औच्छा हाेगा। उिकी दया में िन्देह न करना
चाड्हए।'
औब मं भी पाि चली औायी थी, ममरजा ने मुझे देखकर िंकेि िे पूछा। माँ ने कहा, 'इिी दुझखया
काे छः महीने की पेट में मलए यहाँ औायी थी; औार यहीं धूल-ममट्ट़ी में खेलिी हुई इिनी बड़ी हुई।
मेरे मामलक! िुम्भ्हारे विरह में यही िाे मेरी औाँखाें की ठं डक थी-िुम्भ्हारी तनिानी!' ममरजा ने मुझे गले
िे लगा मलया। माँ ने कहा, 'बेट़ी! यही िेरे वपिा हं।' मं न जाने क्याें राेने लगी। हम िब ममलकर
बहुि राेये। उि राेने में बडा िुख था। िमय ने एक िाम्राज्य काे हाथाें में ले कर चूर कर ददया,
वबगाड ददया, पर उिने एक झाेंपड़ी के काेने में एक उजडा हुऔा स्िगम बिा ददया। हम लाेगाें के ददन
िुख िे बीिने लगे।'
ममरजा के औा जाने िे गाँि-भर में एक औािंक छा गया। मेरे नाना का बुढापा चन िे कटने लगा।
िाेमनाथ मुझे ड्हन्दी पढाने लगे, औार मं मािा-वपिा की गाेद में िुख िे बढने लगी।
िब लाेग चाकन्ने हाे गये। ममरजा ने हँिकर कहा, 'िाे क्या िू ही उन िबाें का भेददया ह।'
बुधुऔा की बाि काटिे हुए िाेमदेि ने कहा, 'हाँ-हाँ, यहाँ के गूजर बडे भयानक हं।'
'िाे हम लाेगाें काे भी ियार रहना चाड्हए!' कहकर, 'औाप भी वकिकी बाि में औािे हं। जाइये, औाराम
कीजजये।'
िब लाेग उि िमय िाे हँििे हुए उठे , पर औपनी काेठरी में औािे िमय िबके हाथ-पर बाेझ िे
लदे हुए थे। मं भी माँ के िाथ काेठरी में जाकर जाे रही।
राि काे औचानक काेलाहल िुनकर मेरी औाँख खुल गयी। मं पहले िपना िमझकर वफर औाँख बन्द
करने लगी, पर झुठलाने िे कठाेर औापत्तत्त नहीं झूठी हाे िकिी ह। िचमुच डाका पडा था, गाँि के
िब लाेग भय िे औपने-औपने घराें में घुिे थे। मेरा हृदय धडकने लगा। माँ भी उठकर बठी थी। िह
भयानक औाक्मण मेरे नाना के घर पर ही हुऔा था। रहमि खाँ, ममरजा औार िाेमदेि ने कुछ काल
िक उन लाेगाें काे राेका, एक भीर्ण काण्ड उपस्स्थि हुऔा। हम माँ-बेड्टयाँ एक-दूिरे के गले िे
मलपट़ी हुई थर-थर काँप रही थीं। राेने का भी िाहि न हाेिा था। एक क्षण के मलए बाहर का
काेलाहल रुका। औब उि काेठरी के वकिाड िाेडे जाने लगे, जजिमें हम लाेग थे। भयानक िब्द िे
वकिाडे टू टकर गगरे । मेरी माँ ने िाहि वकया, िह लाेगाें िे बाेली, 'िुम लाेग क्या चाहिे हाे?'
'निाबी का माल दाे बीबी! बिाऔाे कहाँ ह?' एक ने कहा। मेरी माँ बाेली, 'हम लाेगाें की निाबी उिी
ददन गयी, जब मुगलाें का राज्य गया! औब क्या ह, वकिी िरह ददन काट रहे हं।'
'यह पाजी भला बिायेगी!' कहकर दाे नर वपिाचाें ने उिे घिीटा। िह विपत्तत्त की ििाई मेरी माँ
मूझच्छम ि हाे गयी; पर डाकुऔाें में िे एक ने कहा, 'नकल कर रही ह!' औार उिी औिस्था में उिे पीटने
इिी झाेंपड़ी के एक काेने में मेरी औाँखें खुलीं। मं भय िे औधमरी हाे रही थी। मुझे प्याि लगी थी।
औाेठ चाटने लगी। एक िाेलह बरि के युिक ने मुझे दूध वपलाया औार कहा, 'घबराऔाे न, िुम्भ्हें काेई
डर नहीं ह। मुझे औाश्वािन ममला। मं उठ बठी। मंने देखा, उि युिक की औाँखाें में मेरे मलए स्नेह
ह! हम दाेनाें के मन में प्रेम का र्ड यंत्र चलने लगा औार उि िाेलह बरि के बदन गूजर की
िहानुभूति उिमें उत्तेजना उत्पन्न कर रही थी। कई ददनाें िक जब मं वपिा औार मािा का ध्यान
करके राेिी, िाे बदन मेरे औाँिू पाेंछिा औार मुझे िमझािा। औब धीरे -धीरे मं उिके िाथ जंगल के
औंचलाें में घूमने लगी।
गूजराें के निाब का नाम िुनकर बहुि धन की औािा में डाका डाला था, पर कुछ हाथ न लगा।
बदन का वपिा िरदार था! िह प्रायः कहिा, 'मंने इि बार व्यथम इिनी हत्या की। औच्छा, मं इि
लडकी काे जंगल की रानी बनाऊँगा।'
बदन िचमुच मुझिे स्नेह करिा। उिने वकिने ही गूजर कन्याऔाें के ब्याह लाटा ददये, उिके वपिा ने
भी कुछ न कहा। हम लाेगाें का स्नेह देखकर िह औपने औपराधाें का प्रायश्चित्त करना चाहिा था;
बाधक था हम लाेगाें का धमम। बदन ने कहा, 'हम लाेगाें काे इििे क्या िुम जिे चाहाे भगिान काे
मानाे, मं जजिके िम्भ्बन्ध में स्ियं काे कुछ िमझिा नहीं, औब िुम्भ्हें क्याें िमझाऊँ।' िचमुच िह इन
बािाें काे िमझाने की चेष्टा भी नहीं करिा। िह पक्का गूजर जाे पुराने िंस्कार औार औाचार चले
औािे थे। उन्हीं कुल परम्भ्परा के कामाें के कर ले ने िे कृिकृत्य हाे जािा। मं इस्लाम के औनुिार
प्राथमना करिी, पर इििे हम लाेगाें के मन में िन्देह न हुऔा। हमारे प्रेम ने हम लाेगाें काे एक बन्धन
में बाँध ददया औार जीिन काेमल हाेकर चलने लगा। बदन ने औपना पिृक व्यििाय न छाेडा, मं
उििे केिल इिी बाि िे औिन्िुष्ट रहिी।
यािन की पहली ऋिु हम लाेगाें के मलए जंगली उपहार ले कर औायी। मन में निाबी का निा औार
मािा की िरल िीख, इधर गूजर की कठाेर ददनचयाम! एक विमचत्र िम्भ्मेलन था। वफर भी मं औपना
जीिन वबिाने लगी।
'बेट़ी गाला! िू जजि औिस्था में रह; जगझत्पिा काे न भूल! राजा कंगाल हाेिे हं औार कंगाल राजा
हाे जािे ह,ं पर िह िबका मामलक औपने सिंहािन पर औटल बठा रहिा ह। जजिे हृदय देना, उिी
नये ने पुस्िक बन्द करिे हुए एक दीघम तनःश्वाि मलया। उिकी िंमचि स्नेह राशि में उि राजिंि की
जंगली लडकी के मलए हलचल मच गयी। विरि जीिन में एक निीन स्फूतिम हुई। िह हँििे हुए
गाला के पाि पहुँचा। गाला इि िमय औपने नये बुलबुल काे चारा दे रही थी।
'बड़ी करुण औार हृदय में ट़ीि उत्पन्न करने िाली कहानी ह, गाला! िुम्भ्हारा िम्भ्बन्ध ददल्ली के राज-
सिंहािन िे ह-औाियम!'
'औाियम वकि बाि का नये! क्या िुम िमझिे हाे वक यही बड़ी भारी घटना ह। वकिने राज रिपूणम
िरीर पररश्रम करिे-करिे मर-पच गये, उि औनन्ि औनलशिखा में, जहाँ चरम िीिलिा ह, परम
विश्राम ह, िहाँ वकिी िरह पहुँच जाना ही िाे इि जीिन का लक्ष्य ह।'
नये औिाक् हाेकर उिका मुँह देखने लगा। गाला िरल जीिन की जिे प्राथममक प्रतिमा थी। नये ने
िाहि कर पूछा, 'वफर गाला, जीिन के प्रकाराें िे िुम्भ्हारे मलए चुनाि का काेई विर्य नहीं, उिे
वबिाने के मलए काेई तनश्चिि कायमक्म नहीं।'
'ह िाे नये! िमीप के प्राणणयाें में िेिा-भाि, िबिे स्नेह-िम्भ्बन्ध रखना, यह क्या मनुष्य के मलए पयामप्त
किमव्य नहीं।'
'िुम औनायाि ही इि जंगल में पाठिाला खाेलकर यहाँ के दुदामन्ि प्राणणयाें के मन में काेमल
मानि-भाि भर िकिी ह।'
'यह एक विकट प्रश्न ह, गाला! जािा हँ, औभी मुझे घाि इकट्ठा करना ह। यह बाि िाे मं धीरे -धीरे
िमझने लगा हँ वक शिसक्षिाें औार औशिसक्षिाें के कमाेों में औन्िर नहीं ह। जाे कुछ भेद ह िह उनके
काम करने के ढं ग का ह।'
'गाला चुपचाप औस्ि हाेिे हुए ददनकर काे देख रही थी। बदन दूर िे टहलिा हुऔा औा रहा था।
औाज उिका मुँह िदा के मलए प्रिन्न था। गाला उिे देखिे ही उठ खड़ी हुई, बाेली, 'बाबा, िुमने
कहा था, औाज मुझे बाजार मलिा चलने काे, औब िाे राि हुऔा चाहिी ह।'
'कल चलूँ गा बेट़ी!' कहिे हुए बदन ने औपने मुँह पर हँिी ले औाने की चेष्टा की, क्याेंवक यह उत्तर
िुनने के मलए गाला के मान का रं ग गहरा हाे चला था। िह बामलका के िदृि ठु नककर बाेली, 'िुम
िाे बहाना करिे हाे।'
'नहीं, नहीं, कल िझे मलिा ले चलूँ गा। िुझे क्या ले ना ह, िाे िाे बिा।'
'औच्छा, कल ले औाना।'
बेट़ी औार बाप कe यह मान तनपट गया। औब दाेनाें औपनी झाेंपड़ी में औाये औार रखा-िूखा खाने-
पीने में लग गये।
(7)
जजि उत्िाह िे िृंदािन की पाठिाला चलिी थी, िह यहाँ नहीं ह। बडे पररश्रम िे उजाड देहािाें में
घूमकर उिने इिने लडके एकत्र वकये हं। मंगल औाज गम्भ्भीर मचन्िा में तनमग्न ह। िह िाेच रहा था-
क्या मेरी तनयति इिनी कठाेर ह वक मुझे कभी चन न ले ने देगी। एक तनश्छल पराेपकारी हृदय
ले कर मंने िंिार में प्रिेि वकया औार चला था भलाई करने। पाठिाला का जीिन छाेडकर मंने एक
भाेली-भाली बामलका के उर्द्ार करने का िंकल्प वकया, यही ित्िंकल्प मेरे जीिन की चक्करदार
पगडझण्डयाें में घूमिा-वफरिा मुझे कहाँ ले औाया। कलं क, पिात्ताप औार प्रिंचनाऔाें की कमी नहीं।
उि औबला की भलाई करने के मलए जब-जब मंने पर बढाया, धक्के खाकर पीछे हटा औार उिे
ठाेकरें लगाइों । यह वकिकी औज्ञाि प्रेरणा ह मेरे दुभामग्य की मेरे मन में धमम का दम्भ्भ था। बडा उग्र
प्रतिफल ममला। औायम िमाज के प्रति जाे मेरी प्रतिकूल िम्भ्मति थी, उिी ने िब कराया। हाँ, मानना
पडे गा, धमम-िम्भ्बन्धी उपािना के तनयम चाहे जिे हाें, परन्िु िामाजजक पररििमन उनके माननीय ह।
यदद मं पहले ही िमझिा! औाह! वकिनी भूल हुई। मेरी मानसिक दुबमलिा ने मुझे यह चक्कर
झखलाया।
ममथ्या धमम का िंचय औार प्रायश्चित्त, पिात्ताप औार औात्म-प्रिारणा-क्या िमाज औार धमम मुझे इििे
भी भीर्ण दण्ड देिा कायर मंगल! िुझे लज्जा नहीं औािी? िाेचिे-िाेचिे िह उठ खडा हुऔा औार
धीरे -धीरे ट़ीले िे उिरा।
िून्य पथ पर तनरुद्देश्य चलने लगा। मचन्िा जब औधधक हाे जािी ह, जब उिकी िाखा-प्रिाखाएँ
इिनी तनकलिी हं वक मझस्िक उनके िाथ दाडने में थक जािा ह। वकिी वििेर् मचंिा की
िास्िविकिा गुरुिा लु प्त हाेकर विचार काे याश्चन्त्रक औार चेिना विहीन बना देिी ह। िब पराें िे चलने
में, मझस्िक में विचार करने में काेई वििेर् मभन्निा नहीं रह जािी, मंगलदेि की िही औिस्था थी। िह
उिने कहा, 'हाँ, औाज िनीचर ह न! हम लाेग बाजार करने औाये हं।'
औब मंगल ने उिके वपिा काे देखा। मुख पर स्िाभाविक हँिी ले औाने की चेष्टा करिे हुए मंगल ने
कहा, 'औाज बडा औच्छा ददन ह वक औापका यहीं दिमन हाे गया।'
बदन बढिा चला जािा था औार बािें भी करिा जािा था। िह एक जगह वबिािी की दुकान पर
खडा हाेकर गाला की औािश्यक िस्िुएँ ले ने गया। मंगल ने औििर देखकर कहा, 'औाज िाे औचानक
भेंट हाे गयी, िमीप ही मेरा औाश्रय ह, यदद उधर भी चमलयेगा िाे औापकाे विश्वाि हाे जायेगा वक
औाप लाेगाें की मभक्षा व्यथम नहीं फेकीं जािी।'
गाला िमीप के कपडे की दुकान देख रही थी, िृन्दािनी धाेिी की छींट उिकी औाँखाें में कुिूहल
उत्पन्न कर रही थी। उिकी भाेली दृधष्ट उि पर िे न हटिी थी। िहिा बदन ने कहा, 'िूि औार
कागज ले मलए, वकन्िु वपंजडे िाे यहाँ ददखाई नहीं देिे, गाला।'
'िाे न िही, दूिरे ददन औाकर ले लूँ गी।' गाला ने कहा; पर िह देख रही थी धाेिी। बदन ने कहा, 'क्या
देख रही ह दुकानदार था चिुर, उिने कहा, 'ठाकुर! यह धाेिी ले ना चाहिी ह, बची भी इि छापे की
एक ही ह।'
मंगल ने माेल ठीक वकया। धाेिी ले कर गाला के िरल मुख पर एक बार कुिूहल की प्रिन्निा छा
गयी। िीनाें बाि करिे-करिे उि छाेटे िे बाजार िे बाहर औा गये। धूप कड़ी हाे चली थी। मंगल ने
कहा, 'मेरी कुट़ी पर ही विश्राम कीजजये न! धूप कम हाेने पर चले जाइयेगा। गाला ने कहा, 'हाँ
बाबा, हम लाेग पाठिाला भी देख लें गे।' बदन ने सिर ड्हला ददया। मंगल के पीछे दाेनाें चलने लगे।
बदन इि िमय कुछ मचझन्िि था। िह चुपचाप जब मंगल की पाठिाला में पहुँच गया, िब उिे एक
औाियममय क्ाेध हुऔा। वकन्िु िहाँ का दृश्य देखिे ही उनका मन बदल गया। क्लाि का िमय हाे
गया था, मंगल के िंकेि िे एक बालक ने घंटा बजा ददया। पाि ही खेलिे हुए बालक दाड औाये;
औध्ययन औारम्भ्भ हुऔा। मंगल काे यत्न-िड्हि उन बालकाें काे पढािे देखकर गाला काे एक िृतप्त हुई।
बदन भीाे औप्रिन्न न रह िका। उिने हँिकर कहा, 'भई, िुम पढािे हाे, िाे औच्छा करिे हाे; पर यह
पढना वकि काम का हाेगा मं िुमिे कई बार कह चुका हँ वक पढने िे, शिक्षा िे, मनुष्य िुधरिा ह;
पर मं िाे िमझिा हँ-ये वकिी काम के न रह जाएँगे। इिना पररश्रम करके िाे जीने के मलए मनुष्य
काेई भी काम कर िकिा ह।'
'बाबा! पढाई िब कामाें काे िुधार करना सिखािी ह। यह िाे बडा औच्छा काम ह, देझखये मंगल के
त्याग औार पररश्रम काे!' गाला ने कहा।
'हाँ, िाे यह बाि औच्छी ह।' कहकर बदन चुप हाे गया।
मंगल ने कहा, 'ठाकुर! मं िाे चाहिा हँ वक लडवकयाें की भी एक पाठिाला हाे जािी; पर उनके मलए
स्त्री औध्यावपका की औािश्यकिा हाेगी, औार िह दुलमभ ह।'
गाला जाे यह दृश्य देखकर बहुि उत्िाड्हि हाे रही थी, बाेली, 'बाबा! िुम कहिे िाे मं ही लडवकयाें
काे पढािी।' बदन ने औाियम िे गाला की औाेर देखा; पर िह कहिी ही रही, 'जंगल में िाे मेरा मन
'िाे क्या िू मुझे छाेडकर...' कहिे-कहिे बदन का हृदय भर उठा, औाँखें डबडबा औायीं 'औार भी एेिी
िस्िुएँ ह,ं जजन्हें मं इि जीिन में छाेड नहीं िकिा। मं िमझिा हँ, उनिे छुडा ले ने की िेरी भीिरी
इच्छा ह, क्याे?ं '
गाला ने कहा, 'औच्छा िाे घर चलकर इि पर वफर विचार वकया जाएगा।' मंगल के िामने इि
वििाद काे बन्द कर देने के मलए औधीर थी।
रठने के स्िर में बदन ने कहा, 'िेरी एेिी इच्छा ह िाे घर ही न चल।' यह बाि कुछ कड़ी औार
औचानक बदन के मुँह िे तनकल पड़ी।
मंगल जल के मलए इिी बीच िे चला गया था, िाे भी गाला बहुि घायल हाे गयी। हथेमलयाें पर
मुँह धरे हुए िह टपाटप औाँिू गगराने लगी; पर न जाने क्याें, उि गूजर का मन औधधक कदठन हाे
गया था। िान्त्िना का एक िब्द भी न तनकला। िह िब िक चुप रहा, जब िक मंगल ने औाकर
कुछ ममठाई औार जल िामने नहीं रखा। ममठाई देखिे ही बदन बाेल उठा, 'मुझे यह नहीं चाड्हए।'
िह जल का लाेटा उठाकर चुल्लू िे पानी पी गया औार उठ खडा हुऔा, मंगल की औाेर देखिा हुऔा
बाेला, 'कई मील जाना ह, बूढा औादमी हँ िाे चलिा हँ।' िीड्ढयाँ उिरने लगा। गाला िे उिने चलने
के मलए नहीं कहा। िह बठी रही। क्षाेभ िे भरी हुई िडप रही थी, पर ज्याें ही उिने देखा वक बदन
टे करी िे उिर चुका, औब भी िह लाटकर नहीं देख रहा ह, िब िह औाँिू बहािी उठ खड़ी हुई।
मंगल ने कहा, 'गाला, िुम इि िमय बाबा के िाथ जाऔाे, मं औाकर उन्हें िमझा दूँगा। इिके मलए
झगडना काेई औच्छी बाि नहीं।'
गाला तनरुपाय नीचे उिरी औार बदन के पाि पहुँचकर भी कई हाथ पीछे ही पीछे चलने लगी; परन्िु
उि कट्टर बूढे ने घूमकर देखा भी नहीं।
नये के मन में गाला का औाकर्मण जाग उठा था। िह कभी-कभी औपनी बाँिुरी ले कर खारी के िट
पर चला जािा औार बहुि धीरे -धीरे उिे फूँकिा, उिके मन में भय उत्पन्न हाे गया था, औब िह नहीं
चाहिा था वक िह वकिी की औाेर औधधक औाकवर्मि हाे। िह िबकी औाँखाें िे औपने काे बचाना
चाहिा। इन िब कारणाें िे उिने एक कुत्ते काे प्यार करने का औभ्याि वकया। बडे दुलार िे उिका
'औाेहाे, औब िाे िुम बडे िमझदार हाे गये हाे।' कहकर नये ने एक चपि धीरे िे लगा दी। िह
प्रिन्निा िे सिर झुकाकर पूँछ ड्हलाने लगा। िहिा उछलकर िह िामने की औाेर भगा। नये उिे
पुकारिा ही रहा; पर िह चला गया। नये चुपचाप बठा उि पहाड़ी िन्नाटे काे देखिा रहा। कुछ ही
क्षण में भालू औागे दाडिा औार वफर पीछे लाटिा ददखाई पड़ी गाला की िृदािनी िाड़ी, जब िह
पकडकर औगले दाेनाें पंजाें िे पृथ्िी पर मचपक जािा औार गाला उिे झझडकिी, िाे िह झखलिाड़ी
लडके के िामान उछलकर दूर जा खडा हाेिा औार दुम ड्हलाने लगिा। नये उिकी क्ीडा काे
देखकर मुस्करािा हुऔा चुप बठा रहा। गाला ने बनािट़ी क्ाेध िे कहा, 'मना कराे औपने दुलारे काे,
नही िाे...'
'िह भी िाे दुलार करिा ह। बेचारा जाे कुछ पािा ह, िही िाे देिा ह, वफर इिमें उलाहना किा,
गाला!'
'यही िाे उदारिा ह! कहाे औाज िाे िुमने िाड़ी पहन ही ली, बहुि भली लगिी हाे।'
'बाबा बहुि वबगडे ह,ं औाज िीन ददन हुए, मुझिे बाेले नहीं। नये! िुमकाे स्मरण हाेगा वक मेरा पढना-
मलखना जानकर िुम्भ्हीं ने एक ददन कहा था वक िुम औनायाि ही जंगल में शिक्षा का प्रचार करिी
हाे-भूल िाे नहीं गये?'
'नये! िुम बडे दुष्ट हाे-मेरे मन में एक औाकांक्षा उत्पन्न करके औब उिका काेई उपाय नहीं बिािे।'
'जाे औाकांक्षा उत्पन्न कर देिा ह, िह उिकी पूतिम भी कर देिा ह, एेिा िाे नहीं देखा गया! िब भी
िुम क्या चाहिी हाे?'
'मं उि जंगली जीिन िे ऊब गयी हँ, मं कुछ औार ही चाहिी हँ-िह क्या ह िुम्भ्हीं बिा िकिे हाे।'
'मंने जजिे जाे बिाया िह उिे िमझ न िका गाला। मुझिे न पूछाे, मं औापत्तत्त का मारा िुम लाेगाें
की िरण में रह रहा हँ।' कहिे-कहिे नये ने सिर नीचा कर मलया। िह विचाराें में डू ब गया। गाला
चुप थी। िहिा भालू जाेर िे भूँक उठा, दाेनाें ने घूमकर देखा वक बदन चुपचाप खडा ह। जब नये
उठकर खडा हाेने लगा, िाे िह बाेला, 'गाला! मं दाे बािें िुम्भ्हारे ड्हि की कहना चाहिा हँ औार िुम
भी िुनाे नये।'
'मेरा औब िमय हाे चला। इिने ददनाें िक मंने िुम्भ्हारी इच्छाऔाें में काेई बाधा नहीं दी, याें कहाे वक
िुम्भ्हारी काेई िास्िविक इच्छा ही नहीं हुई; पर औब िुम्भ्हारा जीिन मचरपररमचि देि की िीमा पार
कर रहा ह। मंने जहाँ िक उमचि िमझा, िुमकाे औपने िािन में रखा, पर औब मं यह चाहिा हँ वक
िुम्भ्हारा पथ तनयि कर दूँ औार वकिी उपयुि पात्र की िंरक्षिा में िुम्भ्हें छाेड जाऊँ।' इिना कहकर
उिने एक भेदभरी दृधष्ट नये के ऊपर डाली। गाला कनझखयाें िे देखिी हुई चुप थी। बदन वफर
कहने लगा, 'मेरे पाि इिनी िम्भ्पत्तत्त ह वक गाला औार उिका पति जीिन भर िुख िे रह िकिे हं-
यदद उनकी िंिार में िरल जीिन वबिा ले ने की औधधक इच्छा न हाे। नये! मं िुमकाे उपयुि
िमझिा हँ-गाला के जीिन की धारा िरल पथ िे बहा ले चलने की क्षमिा िुम में ह। िुम्भ्हें यदद
स्िीकार हाे िाे-'
'मुझे इिकी औकांक्षा पहले िे थी। औापने मुझे िरण दी ह। इिमलए गाला काे मं प्रिादडि नहीं कर
िकिा। क्याेंवक मेरे हृदय में दाम्भ्पत्य जीिन की िुख-िाधना की िामग्री बची न रही। तिि पर औाप
जानिे हं वक एक िंददग्ध हत्यारा मनुष्य हँ!' नये ने इन बािाें काे कहकर जिे एक बाेझ उिार
फंे कने की िाँि ली हाे।
एक क्षण के मलए बदन के मुँह पर भीर्ण भाि नाच उठा। िह दुदामन्ि मनुष्य हथकदडयाें में जकडे
हुए बन्दी के िमान वकटवकटाकर बाेला, 'िाे औाज िे िेरा-मेरा िम्भ्बन्ध नहीं।' औार एक औाेर चल
पडा।
नये चुपचाप पश्चिम के औारमिम औाकाि की औाेर देखने लगा। गाला राेर् औार क्षाेभ िे फूल रही
थी, औपमान ने उिके हृदय काे क्षि-विक्षि कर ददया था।
यािन िे भरे हृदय की मड्हमामयी कल्पना गाेधूली की धूप में वबखरने लगी। नये औपराधी की िरह
इिना भी िाहि न कर िका वक गाला काे कुछ िान्त्िना देिा। िह भी उठा औार एक औाेर चला
गया।
चिुथम खंड
(1)
िह दरररिा औार औभाि के गाहमस्थ्य जीिन की कटु िा में दुलारा गया था। उिकी माँ चाहिी थी वक
िह औपने हाथ िे दाे राेट़ी कमा ले ने के याेग्य बन जाए, इिमलए िह बार-बार झझडकी िुनिा। जब
क्ाेध िे उिके औाँिू तनकलिे औार जब उन्हें औधराें िे पाेंछ ले ना चाड्हए था, िब भी िे रखे कपाेलाें
पर औाप ही औाप िूखकर एक ममलन-मचह्न छाेड जािे थे।
कभी िह पढने के मलए वपटिा, कभी काम िीखने के मलए डाँटा जािा; यही थी उिकी ददनचयाम।
वफर िह मचडमचडे स्िभाि का क्याें न हाे जािा। िह क्ाेधी था, िाे भी उिके मन में स्नेह था। प्रेम था
उिकी गाड़ी चल रही थी। िह एक पड्हया ढु लका रहा था। उिे चलाकर उल्लाि िे बाेल उठा, 'हटाे
िामने िे, गाड़ी जािी ह।'
िामने िे औािी हुई पगली ने उि गाड़ी काे उठा मलया। बालक के तनदाेमर् विनाेद में बाधा पड़ी। िह
िहमकर उि पगली की औाेर देखने लगा। तनष्फल क्ाेध का पररणाम हाेिा ह राे देना। बालक राेने
लगा। म्भ्युतनसिपल स्कूल भी पाि न था, जजिकी 'औ' कक्षा में िह पढिा था। काेई िहायक न पहुँच
िका। पगली ने उिे राेिे देखा। िह जिे औपनी भूल िमझ गयी। बाेली, 'औाँ' औमकाे न खेलाऔाेगे;
औाँ-औाँ मं भी राेने लगूँगी, औाँ-औाँ औाँ!' बालक हँि पडा, िह उिे गाेद में झझंझाेडने लगी। औबकी िह
वफर घबराया। उिने राेने के मलए मुँह बनाया ही था वक पगली ने उिे गाेद िे उिार ददया औार
बडबडाने लगी, 'राम, कृष्ण औार बुर्द् िभी िाे पृथ्िी पर लाेटिे थे। मं खाेजिी थी औाकाि में! ईिा
की जननी िे पूछिी थी। इिना खाेजने की क्या औािश्यकिा कहीं िाे नहीं, िह देखाे वकिनी
मचनगारी तनकल रही ह। िब एक-एक प्राणी हं, चमकना, वफर लाेप हाे जाना! वकिी के बुझने में
राेना ह औार वकिी के जल उठने में हँिी। हा-हा-हा-हा।...'
िब िाे बालक औार भी डरा। िह त्रस्ि था, उिे भी िंका हाेने लगी वक यह पगली िाे नहीं ह। िह
हिबुणर्द्-िा इधर-उधर देख रहा था। दाडकर भाग जाने का िाहि भी न था। औभी िक उिकी
गाड़ी पगली मलए थी। दूर िे स्त्री औार पुरुर्, यह घटना कुिूहल िे देखिे चले औा रहे थे। उन्हाेंने
बालक काे विपत्तत्त में पडा देखकर िहायिा करने की इच्छा की। पाि औाकर पुरुर् ने कहा, 'क्याें
जी, िुम पागल िाे नहीं हाे। क्याें इि लडके काे िंग कर रही हाे
'िंग कर रही हँ। पूजा कर रही हँ पूजा। राम, कृष्ण, बुर्द्, ईिा की िरलिा की पूजा कर रही हँ।
इन्हें रुला देने िे इनकी एक किरि हाे जािी ह, वफर हँिा दूँगी। औार िुम िाे कभी भी जी
खाेलकर न हँि िकाेगे, न राे िकाेगे।'
बालक काे कुछ िाहि हाे चला था। िह औपना िहायक देखकर बाेल उठा, 'मेरी गाड़ी छीन ली ह।'
पगली ने पुचकारिे हुए कहा, 'मचत्र लाेगे देखाे, पश्चिम में िंध्या किा औपना रं गीन मचत्र फलाए बठी
उधर देखने में िब वििाद बन्द हाे गया, बालक भी चुप था। उि स्त्री औार पुरुर् ने भी तनिगम-
स्मरणीय दृश्य देखा। पगली िंकेि करने िाला हाथ फलाये औभी िक ििे ही खड़ी थी। पुरुर् ने
देखा, उिका िुन्दर िरीर कृि हाे गया था औार बड़ी-बड़ी औाँखें क्षुधा िे व्याकुल थीं। जाने कब िे
औनाहार का कष्ट उठा रही थी। िाथ िाली स्त्री िे पुरुर् ने कहा, 'वकिाेरी! इिे कुछ झखलाऔाे!'
वकिाेरी उि बालक काे देख रही थी, औब श्रीचन्र का ध्यान भी उिकी औाेर गया। िह बालक उि
पगली की उन्मत्त क्ीडा िे रक्षा पाने की औािा में विश्वािपूणम नेत्राें िे इन्हीं दाेनाें की औाेर देख रहा
था। श्रीचन्र ने उिे गाेद में उठािे हुए कहा, 'चलाे, िुम्भ्हें गाड़ी ददला दूँ।'
पगली औार बालक दाेनाें ही उनके प्रस्िािाें पर िहमि थे; पर बाेले नहीं। इिने में श्रीचन्र का पण्डा
औा गया औार बाेला, 'बाबूजी, औाप कब िे यहाँ फँ िे हं। यह िाे चाची का पामलि पुत्र ह, क्याे रे
माेहन! िू औभी िे स्कूल जाने लगा ह चल, िुझे घर पहुँचा दूँ?' िह श्रीचन्र की गाेद िे उिे ले ने
लगा; परन्िु माेहन िहाँ िे उिरना नहीं चाहिा था।
'मं िुझकाे कब िे खाेज रही हँ, िू बडा दुष्ट ह रे !' कहिी हुई चाची ने औाकर उिे औपनी गाेद में ले
मलया। िहिा पगली हँििी हुई भाग चली। िह कह रही थी, 'िह देखाे, प्रकाि भागा जािा ह
औन्धकार...!' कहकर पगली िेग िे दाडने लगी थी। कंकड, पत्थर औार गडढांे का ध्यान नहीं। औभी
थाेड़ी दूर िह न जा िकी थी वक उिे ठाेकर लगी, िह गगर पड़ी। गहरी चाेट लगने िे िह मूझच्छम ि-
िी हाे गयी।
यह दल उिके पाि पहुँचा। श्रीचन्र ने पण्डाजी िे कहा, 'इिकी िेिा हाेनी चाड्हए, बेचारी दुझखया
ह।' पण्डाजी औपने धनी यजमान की प्रत्येक औाज्ञा पूरी करने के मलए प्रस्िुि थे। उन्हाेने कहा, 'चाची
का घर िाे पाि ही ह, िहाँ उिे उठा ले चलिा हँ। चाची ने माेहन औार श्रीचन्र के व्यिहार काे देखा
था, उिे औनेक औािा थी। उिने कहा, 'हाँ, हाँ, बेचारी काे बड़ी चाेट लगी ह, उिर िाे माेहन!' माेहन
माेहन के मन में पगली िे दूर रहने की बड़ी इच्छा थी। श्रीचन्र ने पण्डा काे कुछ रुपये ददये वक
पगली का कुछ उमचि प्रबन्ध कर ददया जाय औार बाेले, 'चाची, मं माेहन काे गाड़ी ददलाने के मलए
बाजार मलिािा जाऊँ?'
'मं वफर औािा हँ, औापके पडाेि में िाे ठहरा हँ।' कहकर श्रीचन्र, वकिाेरी औार माेहन बाजार की औाेर
चले ।
ऊपर मलखी हुई घटना काे महीनाें बीि चुके थे। औभी िक श्रीचन्र औार वकिाेरी औयाेध्या में ही रहे।
नागेश्वर में मझन्दर के पाि ही डे रा था। िरयू की िीव्र धारा िामने बह रही थी। स्िगमद्वार के िट पर
स्नान करके श्रीचन्र ि वकिाेरी बठे थे। पाि ही एक बरागी रामायण की कथा कह रहा था-
'िापि-तिय िारी-गािम की पत्नी औहल्या काे औपनी लीला करिे िमय भगिान ने िार ददया। िह
यािन के प्रमाद िे, इन्र के दुराचार िे छली गयी। उिने पति िे इि लाेक के देििा िे छल
वकया। िह पामरी इि लाेक के ििमश्रेष्ठ रत्न ििीत्ि िे िंमचि हुई, उिके पति ने िाप ददया, िह
पत्थर हाे गयी। िाल्मीवक ने इि प्रिंग पर मलखा ह-िािभक्षा तनराहारा िप्यन्िी भस्मिागयनी। एेिी
कदठन िपस्या करिे हुए, पिात्ताप का औनुभि करिे हुए िह पत्थर नहीं िाे औार क्या थी! पतिि-
पािन ने उिे िाप विमुि वकया। प्रत्येक पापाें के दण्ड की िीमा हाेिी ह। िब काम में औड्हल्या-िी
स्त्रस्त्रयाें के हाेने की िंभािना ह, क्याेंवक कुमति िाे बची ह, िह जब चाहे वकिी काे औहल्या बना
िकिी ह। उिके मलए उपाय ह भगिान का नाम-स्मरण। औाप लाेग नाम-स्मरण का औमभप्राय यह न
िमझ लें वक राम-राम मचल्लाने िे नाम-स्मरण हाे गया-
'इि 'राम' िब्दिाची उि औझखल ब्रह्माण्ड पें रमण करने िाले पतिि-पािन की ित्ता काे ििमत्र
स्िीकार करिे हुए ििमस्ि औपमण करने िाली भमि के िाथ उिका स्मरण करना ही यथाथम में नाम-
स्मरण ह!'
िरागी ने कथा िमाप्त की। िुलिी बँट़ी। िब लाेग जाने लगे। श्रीचन्र भी चलने के मलए उत्िुक था;
परन्िु वकिाेरी का हृदय काँप रहा था औपनी दिा पर औार पुलवकि हाे रहा था भगिान की मड्हमा
पर। उिने विश्वािपूणम नेत्राें िे देखा वक िरयू प्रभाि के िीव्र औालाेक में लहरािी हुई बह रही ह।
उिे िाहि हाे चला था। औाज उिे पाप औार उििे मुमि का निीन रहस्य प्रतिभासिि हाे रहा था।
पहली ही बार उिने औपना औपराध स्िीकार वकया औार यह उिके मलए औच्छा औििर था वक उिी
क्षण उििे उर्द्ार की भी औािा थी। िह व्यस्ि हाे उठी।
पगली औब स्िस्थ हाे चली थी। विकार िाे दूर हाे गये थे, वकन्िु दुबमलिा बनी थी, िह ड्हन्दू धमम की
औाेर औपररमचि कुिूहल िे देखने लगी थी, उिे िह मनाेरंजक ददखलायी पडिा था। िह भी चाची के
िाथ श्रीचन्र िाले घाट िे दूर बठी हुई, िरयू-िट का प्रभाि औार उिमें ड्हन्दू धमम के औालाेक काे
िकुिूहल देख रही थी।
इधर श्रीचन्द का माेहन िे हेलमेल बढ गया था औार चाची भी उिकी रिाेई बनाने का काम करिी
थी। िह हरद्वार िे औयाेध्या लाट औायी थी, क्याेंवक िहाँ उिका मन न लगा।
चाची का िह रप पाठक भूले न हाेगे; जब िह हरद्वार में िारा के िाथ रहिी थी; परन्िु िब िे औब
औन्िर था। मानि मनाेिृत्तत्तयाँ प्रायः औपने मलए एक केन्र बना मलया करिी हं, जजिके चाराें औाेर िह
औािा औार उत्िाह िे नाचिी रहिी हं। चाची िारा के उि पुत्र काे, जजिे िह औस्पिाल में छाेडकर
चली औायी थी, औपना ध्रुि नक्षत्र िमझने लगी थी, माेहन काे पालने के मलए उिने औधधकाररयाें िे
माँग मलया था।
पगली औार चाची जजि घाट पर बठी थीं; िहाँ एक औन्धा मभखारी लदठया टे किा हुऔा, उन लाेगाें के
िमीप औाया। उिने कहा, 'भीख दाे बाबा! इि जन्म में वकिने औपराध वकये हं-हे भगिान! औभी
'िीथाेों में घूमिा हँ बेटा! औपना प्रायश्चित्त करने के मलए, दूिरा जन्म बनाने के मलए! इिनी ही िाे
औािा ह।' मभखारी ने कहा।
पगली उत्तेजजि हाे उठी। औभी उिके मझस्िष्क की दुबमलिा गयी न थी। उिने िमीप जाकर उिे
झकझाेरकर पूछा, 'गाेविन्दी चाबाइन की पाली हुई बेट़ी काे िुम भूल गये पझण्डि, मं िही हँ; िुम
बिाऔाे मेरी माँ काे औरे घृणणि नीच औन्धे! मेरी मािा िे छुडाने िाले हत्यारे ! िू वकिना तनष्ठुर ह।'
'क्षमा कर बेट़ी। क्षमा में भगिान की िमि ह, उनकी औनुकम्भ्पा ह। मंने औपराध वकया था, उिी का
िाे फल भाेग रहा हँ। यदद िू िचमुच िही गाेविन्दी चाबाइन की पाली हुई पगली ह, िाे िू प्रिन्न हाे
जा-औपने औमभिाप ही ज्िाला में मुझे जलिा हुऔा देखकर प्रिन्न हाे जा! बेट़ी, हरद्वार िक िाे िेरी
माँ का पिा था, पर मं बहुि ददनाें िे नहीं जानिा वक िह औब कहाँ ह। नन्दाे कहाँ ह यह बिाने में
औब औन्धा रामदेि औिमथम ह बेट़ी।'
रामदेि ने एक बार औपनी औंधी औाँखाें िे देखने की भरपूर चेष्टा की, वफर विफल हाेकर औाँिू बहािे
हुए बाेला, 'नन्दाे का-िा स्िर िुनायी पडिा ह! नन्दाे, िुम्भ्हीं हाे बाेलाे! हरद्वार िे िुम यहाँ औायी हाे हे
राम! औाज िुमने मेरा औपराध क्षमा कर ददया, नन्दाे! यही िुम्भ्हारी लडकी ह!' रामदेि की फूट़ी
औाँखाें िे औाँिू बह रहे थे।
एक बार पगली ने नन्दाे चाची की औाेर देखा औार नन्दाे ने पगली की औाेर-रि का औाकर्मण िीव्र
हुऔा, दाेनाें गले िे ममलकर राेने लगीं। यह घटना दूर पर हाे रही थी। वकिाेरी औार श्रीचन्र का
उििे कुछ िम्भ्बन्ध न था।
औकस्माि् औन्धा रामदेि उठा औार मचल्लाकर कहने लगा, 'पतिि-पािन की जय हाे। भगिान मुझे
िरण में लाे!' जब िक उिे िब लाेग देखें, िब िक िह िरयू की प्रखर धारा में बहिा हुऔा, वफर
डु बिा हुऔा ददखायी पडा।
औब यह एक प्रकार िे तनश्चिि हाे गया वक श्रीचन्र माेहन काे पालें गे औार िे उिे दत्तक रप में भी
ग्रहण कर िकिे हं। चाची काे िन्िाेर् हाे गया था, िह माेहन काे धनी हाेने की कल्पना में िुखी हाे
िकी। उिका औार भी एक कारण था-पगली का ममल जाना। िह औाकझस्मक ममलन उन लाेगाें के
मलए औत्यन्ि हर्म का विर्य था। वकन्िु पगली औब िक पहचानी न जा िकी थी, क्याेंवक िह बीमारी
की औिस्था में बराबर चाची के घर पर ही रही, श्रीचन्र िे चाची काे उिकी िेिा के मलए रुपये
ममलिे। िह धीरे -धीरे स्िस्थ हाे चली, परन्िु िह वकिाेरी के पाि न जािी। वकिाेरी काे केिल इिना
मालू म था वक नन्दाे की पगली लडकी ममल गयी ह। एक ददन यह तनिय हुऔा वक िब लाेग कािी
चलें ; पर पगली औभी जाने के मलए िहमि न थी। माेहन श्रीचन्र के यहाँ रहिा था। पगली भी
वकिाेरी का िामना करना नहीं चाहिी थी; पर उपाय क्या था। उिे उन लाेगाें के िाथ जाना ही
पडा। उिके पाि केिल एक औस्त्र बचा था, िह था घूँघट! िह उिी की औाड में कािी औायी।
वकिाेरी के िामने भी हाथाें घूँघट तनकाले रहिी। वकिाेरी नन्दाे के मचढने िे डर िे उििे कुछ न
बाेलिी। माेहन काे दत्तक ले ने का िमय िमीप था, िह िब िक चाची काे मचढाना भी न चाहिी,
यद्वप पगली का घूँघट उिे बहुि खलिा था।
वकिाेरी काे विजय की स्मृति प्रायः चांका देिी ह। एकान्ि में िह राेिी रहिी ह, उिकी िही िाे िारी
कमाई, जीिन भर के पाप-पुण्य का िंमचि धन विजय! औाह, मािा का हृदय राेने लगिा ह।
कािी औाने पर एक ददन पझण्डिजी के कुछ मंत्राें ने प्रकट रप में श्रीचन्र काे माेहन का वपिा बना
ददया। नन्दाे चाची काे औपनी बेट़ी ममल चुकी थी, औब माेहन के मलए उिके मन में उिनी व्यथा न
थी। माेहन भी श्रीचन्र काे बाबूजी कहने लगा था। िह िुख में पलने लगा।
वकिाेरी पाररजाि के पाि बठी हुई औपनी मचन्िा में तनमग्न थी। नन्दाे के िाथ पगली स्नान करके
लाट औायी थी। चादर उिारिे हुए नन्दाे ने पगली िे कहा, 'बेट़ी!'
'िुमकाे िब वकि नाम िे पुकारिे थे, यह िाे मंने औाज िक न पूछा। बिाऔाे बेट़ी िह प्यारा नाम।'
वकिाेरी िुन रही थी। उिने पाि औाकर एक बार औाँख गडाकर देखा औार पूछा, 'क्या कहा-घण्ट़ी?'
वकिाेरी औाग हाे गयी। िह भभक उठी, 'तनकल जा डायन! मेरे विजय काे खा डालने िाली चुडल।'
नन्दाे िाे पहले एक बार वकिाेरी की डाँट पर स्िब्ध रही; पर िह कब िहने िाली! उिने कहा, 'मुँह
िम्भ्भालकर बाि कराे बह। मं वकिी िे दबने िाली नहीं। मेरे िामने वकिका िाहि ह, जाे मेरी
बेट़ी, मेरी घण्ट़ी काे औाँख ददखलािे! औाँख तनकाल लूँ !'
'िुम दाेनाें औभी तनकल जाऔाे-औभी जाऔाे, नहीं िाे नाकराें िे धक्के देकर तनकलिा दूँगी।' हाँफिे हुई
वकिाेरी ने कहा।
'बि इिना ही िाे-गारी रठे औपना िुहाग ले ! हम लाेग जािी हं, मेरे रुपये औभी ददलिा दाे!' बि
एक िब्द भी मुँह िे न तनकालना-िमझी!'
वकिाेरी क्ाेध में उठी औार औलमारी खाेलकर नाेटाें का बण्डल उिके िामने फंे किी हुई बाेली, 'लाे
िहेजाे औपना रुपया, भागाे।'
दाेनाें ने िुरन्ि गठरी दबाकर बाहर की राह ली। वकिाेरी ने एक बार भी उन्हें ठहरने के मलए न
कहा। उि िमय श्रीचन्र औार माेहन गाड़ी पर चढकर हिा खाने गये थे।
वकिाेरी का हृदय इि निान्िुक कझल्पि िन्िान िे विराेह िाे कर ही रहा था, िह औपना िच्चा धन
गँिाकर इि दत्तक पुत्र िे मन भुलिाने में औिमथम थी। तनयति की इि औाकझस्मक विडम्भ्बना ने उिे
औधीर बना ददया। जजि घण्ट़ी के कारण विजय औपने िुखमय िंिार काे खाे बठा औार वकिाेरी ने
(2)
मंगलदेि की पाठिाला में औब दाे विभाग हं-एक लडकाें का, दूिरा लडवकयाें का। गाला लडवकयाें
की शिक्षा का प्रबन्ध करिी। औब िह एक प्रभाििाली गम्भ्भीर युििी ददखलाई पडिी, जजिके चाराें
औाेर पवित्रिा औार ब्रह्मचयम का मण्डल धघरा रहिा! बहुि-िे लाेग जाे पाठिाला में औािे, िे इि
जाेड़ी काे औाियम िे देखिे। पाठिाला के बडे छप्पर के पाि ही गाला की झाेंपड़ी थी, जजिमें एक
चटाई, िीन-चार कपडे , एक पानी का बरिन औार कुछ पुस्िकें थीं। गाला एक पुस्िक मनाेयाेग िे
पढ रही थी। कुछ पन्ने उलटिे हुए उिने िन्िुष्ट हाेकर पुस्िक धर दी। िह िामने की िडक की
औाेर देखने लगी। वफर भी कुछ िमझ में न औाया। उिने बडबडािे हुए कहा, 'पाठ यक्म इिना
औिम्भ्बर्द् ह वक यह मनाेविकाि में िहायक हाेने के बदले , स्ियं भार हाे जायेगा।' िह वफर पुस्िक
पढने लगी-'रानी ने उन पर कृपा ददखािे हुए छाेड ददया औार राजा ने भी रानी की उदारिा पर
हँिकर प्रिन्निा प्रकट की...' राजा औार रानी, इिमें रानी स्त्री औार पुरुर् बनाने का, िंिार का
िहनिील िाझीदार हाेने का िन्देि कहीं नहीं। केिल महत्ता का प्रदिमन, मन पर औनुमचि प्रभाि का
बाेझ! उिने झुँझलाकर पुस्िक पटककर एक तनःश्वाि मलया, उिे बदन का स्मरण हुऔा, 'बाबा'
कहकर एक बार मचहुँक उठी! िह औपनी ही भत्िमना प्रारम्भ्भ कर चुकी थी। िहिा मंगलदेि
मुस्कुरािा हुऔा िामने ददखाई पडा। ममट्ट़ी के दीपक की ला भक-भक करिी हुई जलने लगी।
'क्या करँ, औाश्रम की एक स्त्री पर हत्या का भयानक औमभयाेग था। गुरुदेि ने उिकी िहायिा के
मलए बुलाया था।'
'नहीं गाला! िह हत्या उिने नहीं की थी, िस्िुिः एक दूिरे पुरुर् ने की; पर िह स्त्री उिे बचाना
चाहिी ह।'
'क्याें?'
'िुम न िमझ िके! स्त्री एक पुरुर् काे फाँिी िे बचाना चाहिी ह औार इिका कारण िुम्भ्हारी िमझ
में न औाया-इिना स्पष्ट कारण!'
'स्त्री जजििे प्रेम करिी ह, उिी पर िरबि िार देने काे प्रस्िुि हाे जािी ह, यदद िह भी उिका प्रेमी
हाे िाे स्त्री िय के ड्हिाब िे िदि शििु, कमम में ियस्क औार औपनी िहायिा में तनरीह ह। विधािा
का एेिा ही विधान ह।'
मंगल ने देखा वक औपने कथन में गाला एक ित्य का औनुभि कर रही ह। उिने कहा, 'िुम स्त्री-
मनाेिृत्तत्त काे औच्छी िरह िमझ िकिी हाे; परन्िु िम्भ्भि ह यहाँ भूल कर रही हाे। िब स्त्रस्त्रयाँ एक
ही धािु की नहीं। देखाे, मं जहाँ िक उिके िम्भ्बन्ध में जानिा हँ, िुम्भ्हें िुनािा हँ, िह एक तनश्छल
प्रेम पर विश्वाि रखिी थी औार प्राकृतिक तनयम िे औािश्यक था वक एक युििी वकिी भी युिक
पर विश्वाि करे ; परन्िु िह औभागा युिक उि विश्वाि का पात्र नहीं था। उिकी औत्यन्ि औािश्यक
औार कठाेर घदडयाें में युिक विचमलि हाे उठा। कहना न हाेगा वक उिे युिक ने उिके विश्वाि काे
बुरी िरह ठु कराया। एकावकनी उि औापत्तत्त की कटु िा झेलने के मलए छाेड दी गयी। बेचारी काे एक
िहारा भी ममला; परन्िु यह दूिरा युिक भी उिके िाथ िही करने के मलए प्रस्िुि था, जाे पहले
युिक ने वकया। िह वफर औपना औाश्रय छाेडने के मलये बाध्य हुई। उिने िंघ की छाया में ददन
वबिाना तनश्चिि वकया। एक ददन उिने देखा वक यही दूिरा युिक एक हत्या करके फाँिी पाने की
औािा में हठ कर रहा ह। उिने हटा मलया, औाप िि के पाि बठी रही। पकड़ी गयी, िाे हत्या का
भार औपने सिर ले मलया। यद्वप उिने स्पष्ट स्िीकार नहीं वकया; परन्िु िािन काे िाे एक हत्या के
बदले दूिरी हत्या करनी ही ह। न्याय की यही िमीप ममली, उिी पर औमभयाेग चल रहा ह। मं िाे
िमझिा हँ वक िह हिाि हाेकर जीिन दे रही ह। उिका कारण प्रेम नहीं ह, जिा िुम िमझ रही
हाे।'
गाला ने एक दीघम श्वाि मलया। उिने कहा, 'नारी जाति का तनमामण विधािा की एक झुँझलाहट ह।
मंगल! िंिार-भर के पुरुर् उििे कुछ ले ना चाहिे हं, एक मािा ही िहानुभूति रखिी ह; इिका
कारण ह उिका स्त्री हाेना। हाँ, िाे उिने न्यायालय में औपना क्या ििव्य ददया?'
'औाियम ह, परन्िु मं कहिी हँ वक िह स्त्री औिश्य उि युिक िे प्रेम करिी ह, जजिने हत्या की ह।
जिा िुमने कहा, उििे िाे यही मालू म हाेिा ह वक दूिरा युिक उिका प्रेमपात्र ह, जजिने उिे
ििाना चाहा था।'
'गाला! पर मं कहिा हँ वक िह उििे घृणा करिी थी। एेिा क्याें! मं न कह िकूँगा; पर ह बाि
कुछ एेिी ही।' िहिा रुककर मंगल चुपचाप िाेचने लगा-हाे िकिा ह! औाेह, औिश्य विजय औार
यमुना!-यही िाे मानिा हँ वक हृदय में एक औाँधी रहिी ह; एक हलचल लहराया करिी ह, जजिके
प्रत्येक धक्के में 'बढाे-बढाे!' की घाेर्णा रहिी ह। िह पागलपन िंिार काे िुच्छ लघुकण िमझकर
उिकी औाेर उपेक्षा िे हँिने का उत्िाह देिा ह। िंिार का किमव्य, धमम का िािन केले के पत्ते की
िरह धज्जी-धज्जी उड जािा ह। यही िाे प्रणय ह। नीति की ित्ता ढाेंग मालू म पडिी ह औार विश्वाि
हाेिा ह वक िमस्ि िदाचार उिी का िाधना ह। हाँ, िहीं सिणर्द् ह। औाह, औबाेध मंगल! िूने उिे
पाकर भी न पाया। नहीं-नहीं, िह पिन था, औिश्य माया थी। औन्यथा, विजय की औाेर इिनी प्राण दे
देने िाली िहानुभूति क्याें औाह, पुरुर्-जीिन के कठाेर ित्य! क्या इि जीिन में नारी काे प्रणय-
मददरा के रप में गलकर िू कभी न ममले गा परन्िु स्त्री जल-िदृि काेमल एिं औधधक-िे-औधधक
तनरीह ह। बाधा देने की िामथ्यम नहीं; िब भी उिमें एक धारा ह, एक गति ह, पत्थराें की रुकािट की
उपेक्षा करके किराकर िह चली ही जािी ह। औपनी िस्न्ध खाेज ही ले िी ह, औार िब उिके मलए
गाला मचझन्िि मंगल का मुँह देख रही थी। िह हँि पड़ी। बाेला, 'कहाँ घूम रहे हाे मंगल?'
मंगल चांक उठा। उिने देखा, जजिे खाेजिा था िही कब िे मुझे पुकार रहा ह। िह िुरन्ि बाेला,
'कहीं िाे नहीं, गाला!'
औाज पहला औििर था, गाला ने मंगल काे उिके नाम िे पुकारा। उिमें िरलिा थी, हृदय की
छाया थी। मंगल ने औमभन्निा का औनुभि वकया। हँि पडा।
'िुम कुछ िाेच रहे थे। यही वक स्त्रस्त्रयाँ एेिा प्रेम कर िकिी हं िकम ने कहा हाेगा-नहीं! व्यिहार ने
िमझाया हाेगा, यह िब स्िप्न ह! यही न। पर मं कहिी हँ िब ित्य ह, स्त्री का हृदय...प्रेम का
रं गमंच ह! िुमने िास्त्र पढा ह, वफर भी िुम स्त्रस्त्रयाें के हृदय काे परखने में उिने कुिल नहीं हाे,
क्याेंवक...'
बीच में राेककर मंगल ने पूछा, 'औार िुम किे प्रेम का रहस्य जानिी हाे गाला! िुम भी िाे...'
'स्त्रस्त्रयाें का यह जन्मसिर्द् उत्तराधधकार ह, मंगल! उिे खाेजना, परखना नहीं हाेिा, कहीं िे ले औाना
नहीं हाेिा। िह वबखरा रहिा ह औिािधानी िे धनकुबेर की विभूति के िमान! उिे िम्भ्हालकर
केिल एक औाेर व्यय करना पडिा ह-इिना ही िाे!' हँिकर गाला ने कहा।
'ड्हिाब लगाना पडिा ह, उिे िीखना पडिा ह। िंिार में जिे उिकी महत्त्िाकांक्षा की औार भी
बहुि-िी विभूतियाँ ह,ं ििे ही यह भी एक ह। पस्नद्मनी के िमान जल-मरना स्त्रस्त्रयाँ ही जानिी हं, पुरुर्
केिल उिी जली हुई राख काे उठाकर औलाउद्दीन के िदृि वबखेर देना ही िाे जानिे हं!' कहिे-
कहिे गाला िन गयी थी। मंगल ने देखा िह ऊजमझस्िि िान्दयम!
बाि बदलने के मलए गाला ने पाठ यक्म-िम्भ्बन्धी औपने उपालम्भ्भ कह िुनाये औार पाठिाला के
शिक्षाक्म का मनाेरंजक वििाद णछडा। मंगल उि काननिासिनी के िकमजालाें में बार-बार जान-
गाला ने िन्िाेर् की िाँि ले कर देखा-औाकाि का िुन्दर शििु बठा हुऔा बादलाें की क्ीडा-िली पर
हँि रहा था औार रजनी िीिल हाे चली थी। राेएँ औनुभूति में िुगबुगाने लगे थे। दसक्षण पिन जीिन
का िन्देि ले कर टे करी पर विश्राम करने लगा था। मंगल की पलकंे भारी थीं औार गाला झीम रही
थी। कुछ ही देर में दाेनाें औपने-औपने स्थान पर वबना वकिी िया के, औाडम्भ्बर के िाे गये।
(3)
एक ददन ििेरे की गाड़ी िे िृन्दािन के स्टे िन पर नन्दाे औार घण्ट़ी उिरीं। बाथम स्टे िन के िमीप
ही िडक पर ईिाई-धमम पर व्याख्यान दे रहा था-
'यह देिमझन्दराें की यात्राएँ िुम्भ्हारे मन में क्या भािा लािी हं, पाप की या पुण्य की िुम जब पापाें के
बाेझ िे लदकर, एक मझन्दर की दीिार िे ड्टककर लम्भ्बी िाँि खींचिे हुए िाेचाेगे वक मं इििे छू
जाने पर पवित्र हाे गया, िाे िुम्भ्हारे में वफर िे पाप करने की प्रेरणा बढे गी! यह विश्वाि वक
देिमझन्दर मुझे पाप िे मुि कर देंगे, रम ह।'
िहिा िुनने िालाें में िे मंगल ने कहा, 'ईिाई! िुम जाे कह रहे हाे, यदद िही ठीक ह, िाे इि भाि
के प्रचार का िबिे बडा दागयत्ि िुम लाेगाें पर ह, जाे कहिे हं वक पिात्ताप कराे, िुम पवित्र हाे
जाऔाेगे। भाई, हम लाेग िाे इि िम्भ्बन्ध में ईश्वर काे भी इि झंझट िे दूर रखना चाहिे हं-
िुनने िालाें ने िाली पीट दी। बाथम एक घाेर ितनक की भाँति प्रत्याििमन कर गया, िह भीड में िे
तनकलकर औभी स्टे िन की औाेर चला था वक सिर पर गठरी मलये हुए नन्दाे के पीछे घण्ट़ी जािी
ददखाई पड़ी, िह उत्तेजजि हाेकर लपका, उिने पुकारा, 'घण्ट़ी!'
भयभीि घण्ट़ी सिकुड़ी जािी थी। नन्दाे ने डपटकर कहा, 'िू कान ह रे ! क्या िरकारी राज नहीं रहा!
औागे बढा िाे एेिा झापड लगेगा वक िेरा टाेप उड जायेगा।'
दाे-चार मनुष्य औार इकट्ठे हाे गये। बाथम ने कहा, 'माँ जी, यह मेरी वििाड्हिा स्त्री ह, यह ईिाई ह,
औाप नहीं जानिीं।'
नन्दाे िाे घबरा गयी औार लाेगाें के भी कान िुगबुगाये; पर िहिा वफर मंगल बाथम के िामने डट
गया। उिने घण्ट़ी िे पूछा, 'क्या िुम ईिाई-धमम ग्रहण कर चुकी हाे?'
'मं धमम-कमम कुछ नहीं जानिी। मेरा काेई औाश्रय न था, िाे इन्हाेंने मुझे कई ददन खाने काे ददया
था।'
'नहीं, यह मुझे दाे-एक ददन गगरजाघर में ले गये थे, ब्याह-व्याह मं नहीं जानिी।'
'ममस्टर बाथम, िह क्या कहिी ह क्या औाप लाेगाें का ब्याह चचम में तनयमानुिार हाे चुका ह-औाप
प्रमाण दे िकिे ह?ं '
'नहीं, जजि ददन हाेने िाला था, उिी ददन िाे यह भागी। हाँ, यह बपतिस्मा औिश्य ले चुकी ह।'
'औच्छा ममस्टर बाथम! औब औाप एक भर पुरुर् हाेने के कारण इि िरह एक स्त्री काे औपमातनि न
कर िकंे गे। इिके मलए औाप पिात्ताप िाे करें गे ही, चाहे िह प्रकट न हाे। छाेदडए, राह छाेदडए,
जाऔाे देिी!'
पर नन्दाे का िाे पर ही औागे नहीं पडिा था। िह एक बार घण्ट़ी काे देखिी, वफर िडक काे। घण्ट़ी
के पर उिी पृथ्िी में गडे जा रहे थे। दुःख के दाेनाें के औाँिू छलक औाये थे। दूर खडा मंगल भी
यह िब देख रहा था, िह वफर पाि औाया, बाेला, 'औाप लाेग औब यहाँ क्याें खड़ी हं?'
नन्दाे राे पड़ी, बाेली, 'बाबूजी, बहुि ददन पर मेरी बेट़ी ममली भी, िाे बेधरम हाेकर! हाय औब मं क्या
करँ?'
मंगल के मझस्िष्क में िारी बािें दाड गयीं, िह िुरंि बाेल उठा, 'औाप लाेग गाेस्िामीजी के औाश्रम में
चमलए, िहाँ िब प्रबन्ध हाे जायेगा, िडक पर खड़ी रहने िे वफर भीड लग जायेगी। औाइये, मेरे पीछे -
पीछे चली औाइये।' मंगल ने औाज्ञापूणम स्िर में ये िब्द कहे। दाेनाें उिके पीछे -पीछे औाँिू पाेंछिी हुई
चलीं।
मंगल काे गम्भ्भीर दृधष्ट िे देखिे हुए गाेस्िामी जी ने पूछा, 'िुम क्या चाहिे हाे?'
'गुरुदेि! औापकी औाज्ञा का पालन करना चाहिा हँ; िेिा-धमम की जाे दीक्षा औापने मुझे दी ह, उिकी
प्रकाश्य रप िे व्यिहृि करने की मेरी इच्छा ह। देझखये, धमम के नाम पर ड्हन्दू स्त्रस्त्रयाें, िूराें, औछूिाें-
नहीं, िही प्राचीन िब्दाें में कहे जाने िाली पापयाेतनयाें-की क्या दुदमिा हाे रही ह! क्या इन्हीं के मलए
भगिान श्रीकृष्ण ने परागति पाने की व्यिस्था नहीं दी ह क्या िे िब उनकी दया िे िंमचि ही रहें।
'मं औायमिमाज का विराेध करिा था, मेरी धारणा थी वक धामममक िमाज में कुछ भीिरी िुधार कर
देने िे काम चल जायेगा; वकन्िु गुरुदेि! यह औापका शिष्य मंगल औाप ही की शिक्षा िे औाज यह
कहने का िाहि करिा ह वक पररििमन औािश्यक ह; एक ददन मंने औपने ममत्र विजय का इन्हीं
विचाराें के मलए विराेध वकया था; पर नहीं, औब मेरी यही दृढ धारणा हाे गयी ह वक इि जजमर
धामममक िमाज में जाे पवित्र हं, िे पवित्र बने रहे,ं मं उन पतििाें की िेिा करँ, जजन्हें ठाेकरें लग रही
हं, जाे वबलवबला रहे हं।
मंगल की औाँखाें में उत्तेजना के औाँिू थे। उिका गला भर औाया था। िह वफर कहने लगा, 'गुरुदेि!
उन स्त्रस्त्रयाें की दया पर विचार कीजजये, जजन्हें कल ही औाश्रम में औाश्रय ममला ह।'
'मंगल! क्या िुमने भली-भाँति विचार कर मलया औार विचार करने पर भी िुमने यही कायमक्म
तनश्चिि वकया ह?' गम्भ्भीरिा िे कृष्णािरण ने पूछा।
'गुरुदेि! जब कायम करना ही ह िब उिे उमचि रप क्याें ने ददया जाय! देितनरं जन जी िे परामिम
करने पर मंने िाे यही तनष्कर्म तनकाला ह वक भारि िंघ स्थावपि हाेना चाड्हए।'
'परन्िु िुम मेरा िहयाेग उिमें न प्राप्त कर िकाेगे। मुझे इि औाडम्भ्बर में विश्वाि नहीं ह, यह मं
स्पष्ट कह देना चाहिा हँ। मुझे वफर काेई एकान्ि कुड्टया खाेजनी पडे गी।' मुस्कुरािे हुए कृष्णिरण ने
कहा।
'कायम औारम्भ्भ हाे जाने दीजजए। गुरुदेि! िब यदद औाप उिमें औपना तनिामह न देखें, िाे दूिरा विचार
करें । इि कल्याण-धमम के प्रचार में क्या औाप ही विराेधी बतनयेगा! मुझे जजि ददन औापने िेिाधमम
का उपदेि देकर िृन्दािन िे तनिामसिि वकया था, उिी ददन िे मं इिके मलए उपाय खाेज रहा था;
वकन्िु औाज जब िुयाेग उपस्स्थि हुऔा, देितनरं जन जी जिा िहयाेगी ममल गया, िब औाप ही मुझे
पीछे हटने काे कह रहे हं।'
पूणम गम्भ्भीर हँिी के िाथ गाेस्िामीजी कहने लगे, 'िब तनिामिन का बदला मलये वबना िुम किे
मानाेगे मंगल, औच्छी बाि ह, मं िीघ्र प्रतिफल का स्िागि करिा हँ। वकन्िु, मं एक बाि वफर कह
देना चाहिा हँ वक मुझे व्यमिगि पवित्रिा के उद्ाेग में विश्वाि ह, मंने उिी काे िामने रखकर उन्हें
प्रेररि वकया था। मं यह न स्िीकार करँगा वक िह भी मुझे न करना चाड्हए था। वकन्िु, जाे कर
चुका, िह लाटाया नहीं जा िकिा। िाे वफर कराे, जाे िुम लाेगाें की इच्छा!'
तनरं जन ने जब िह िमाचार िुना, िाे उिे औपनी विजय पर प्रिन्निा हुई, दाेनाें उत्िाह िे औागे का
कायमक्म बनाने लगे।
(4)
कृष्णिरण की टे करी ब्रज-भर में कुिूहल औार िनिनी का केन्र बन रही थी। तनरं जन के िहयाेग
िे उिमें निजीिन का िंचार हाेने लगा, कुछ ही ददनाें िे िरला औार लतिका भी उि विश्राम-भिन
में औा गयी थीं। लतिका बडे चाि िे िहाँ उपदेि िुनिी। िरला िाे एक प्रधान मड्हला कायमकत्रीम
थी। उिके हृदय में नयी स्फूतिम थी औार िरीर में नये िाहि का िाहि का िंचार था। िंघ में बड़ी
िजीििा औा चली। इधर यमुना के औमभयाेग में भी हृदय प्रधान भाग ले रहा था, इिमलए बड़ी
चहल-पहल रहिी।
एक ददन िृन्दािन की गमलयाें में िब जगह बडे -बडे विज्ञापन मचपक रहे थे। उन्हें लाेग भय औार
औाियम िे पढने लगे-
भारि िंघ
(जाे वकिी वििेर् कुल में जन्म ले ने के कारण िंिार में िबिे औलग रहकर, तनस्िार महत्ता में फँ िे
हं)
िही
भारि िंघ
भारि िंघ
श्रेणीिाद
धामममक पवित्रिािाद,
भारि िंघ भी
सिर िे लगािेगा।
िृदािन उत्तेजना की उँ गमलयाें पर नाचने लगा। विराेध में औार पक्ष में-देिमझन्दराें, कुंजाे,ं गमलयाें औार
घाटाें पर बािें हाेने लगीं।
धमम
नीति
िमाज
ड्हन्दुऔाें का िमाज-िािन
मनुष्याें ने वकया ह;
स्त्रस्त्रयाें की
इिका कारण ह।
भारि िंघ
िृदािन में एक भयानक हलचल मच गयी। िब लाेग औाजकल भारि िंघ औार यमुना के औमभयाेग
की चचाम में िंलग्न हं। भाेजन करके पहल की औाधी छाेड़ी हुई बाि वफर औारम्भ्भ हाे जािी ह-िही
भारि-िंघ औार यमुना!
(5)
कई ददन हाे गये थे। मंगल नहीं था। औकेले गाला उि पाठिाला का प्रबन्ध कर रही थी। उिका
जीिन उिे तनत्य बल दे रहा था, पर उिे कभी-कभी एेिा प्रिीि हाेिा वक उिने काेई िस्िु खाे दी
ह। इधर एक पंदडिजी उि पाठिाला में पढाने लगे थे। उनका गाँि दूर था; औिः गाला ने कहा,
'पंदडिजी, औाप भी यहाँ रहा करें िाे औधधक िुविधा हाे। राि काे छात्राें काे कष्ट इत्यादद का िमुमचि
प्रबन्ध भी कर ददया जािा औार िूनापन उिना न औखरिा।'
पंदडिजी िाझत्त्िक बुणर्द् के एक औधेड व्यमि थे। उन्हाेंनें स्िीकार कर मलया। एक ददने िे बठे हुए
रामायण की कथा गाला काे िुना रहे थे, गाला ध्यान िे िुन रही थी। राम िनिाि का प्रिंग था।
राि औधधक हाे गयी थी, पंदडिजी ने कथा बन्द कर दी। िब छात्राें ने फूि की चटाई पर पर फलाये
औार पंदडिजी ने भी कम्भ्बल िीधा वकया।
औाज गाला की औाँखाे में नींद न थी। िह चुपचाप नन पिन-विकझम्भ्पि लिा की िरह कभी-कभी
विचार में झीम जािी, वफर चांककर औपनी विचार परम्भ्परा की विशंखल लदडयाें काे िम्भ्हालने
लगिी। उिके िामने औाज रह-रहकर बदन का मचत्र प्रस्फुड्टि हाे उठिा। िह िाेचिी-वपिा की
औाज्ञा मानकर राम िनिािी हुए औार मंने वपिा की क्या िेिा की उलटा उनके िृर्द् जीिन में कठाेर
औाघाि पहुँचाया! औार मंगल वकि माया में पड़ी हँ! बालक पढिे हं, मं पुण्य कर रही हँ; परन्िु क्या
यह ठीक ह? मं एक दुदामन्ि दस्यु औार यिनी की बामलका-ड्हन्दू िमाज मुझे वकि दृधष्ट िे देखेगा
औाेह, मुझे इिकी क्या मचन्िा! िमाज िे मेरा क्या िम्भ्बन्ध! वफर भी मुझे मचन्िा करनी ही पडे गी,
क्याें इिका काेई स्पष्ट उत्तर नही दे िकिी; पर यह मंगल भी एक विलक्षण.. औाहा, बेचारा वकिना
पराेपकारी ह, तिि पर उिकी खाेज करने िाला काेई नहीं। न खाने की िुध, न औपने िरीर की।
िुख क्या ह-िह जिे भूल गया ह औार मं भी किी हँ-वपिाजी काे वकिनी पीडा मंने दी, िे मिाेििे
हाेंगे। मं जानिी हँ, लाेहे िे भी कठाेर मेरे वपिा औपने दुःख के वकिी की िेिा-िहायिा न चाहेंगे।
िब यदद उन्हें ज्िर औा गया हाे िाे उि जंगल के एकान्ि में पडे कराहिे हाेंगे।' '
िचमुच गाला औपने विराेही हृदय पर खीज उठी थी। िह औथाह औन्धकार के िमुर में उभचुभ हाे
रही थी-नाक में, औाँख में, हृदय में जिे औन्धकार भरा जा रहा था। औब उिे तनश्चिि हाे गया वक िह
डू ब गयी। िास्िि में िह विचाराें में थककर िाे गयी।
औभी पूिम में प्रकाि नहीं फला था। गाला की नींद उचट गयी। उिने देखा, काेई बड़ी दाढ़ी औार
मूँछाेंिाला लम्भ्बा-चाडा मनुष्य खडा ह। मचझन्िि रहने िे गाला का मन दुबमल हाे ही रहा था, उि
औाकृति काे देखकर िह िहम गयी। िह मचल्लाना ही चाहिी थी वक उि व्यमि ने कहा, 'गाला, मं हँ
नये!'
'िुम हाे! मं िाे चांक उठी थी, भला िुम इि िमय क्याें औाये?'
'िुम्भ्हारे वपिा कुछ घण्टाें के मलए िंिार में जीविि हं, यदद चाहाे िाे देख िकिी हाे!'
'क्या िच! िाे मं चलिी हँ।' कहकर गाला ने िलाई जलाकर औालाेक वकया। िह एक मचट पर कुछ
मलखकर पंदडिजी के कम्भ्बल के पाि गयी। िे औभी िाे रहे थे; गाला मचट उनके सिरहाने रखकर
नये के पाि गयी, दाेनाें टे करी िे उिरकर िडक पर चलने लगे।
'बदन के घुटने में गाेली लगी थी। राि काे पुमलि ने डाके में माल के िम्भ्बन्ध में उि जंगल की
िलािी ली; पर काेई िस्िु िहाँ न ममली। हाँ, औकेले बदन ने िीरिा िे पुमलि-दल का विराेध वकया,
िब उि पर गाेली चलाई गयी। िह गगर पडा। िृर्द् बदन ने इिकाे औपना किमव्य-पालन िमझा।
पुमलि ने वफर कुछ न पाकर बदन काे उिके भाग्य पर छाेड ददया, यह तनश्चिि था वक िह मर
जायेगा, िब उिे ले जाकर िह क्या करिी।
'गाेली का िब्द िुनकर पाि ही िाेया भालू भूँक उठा, मं भी चांक पडा। देखा वक तनस्िब्ध औँधेरी
रजनी में यह किा िब्द। मं कल्पना िे बदन काे िंकट में िमझने लगा।
'जब िे वििाह-िम्भ्बन्ध काे औस्िीकार वकया, िब िे बदन के यहाँ नहीं जािा था। इधर-उधर उिी
खारी के िट पर पडा रहिा। कभी िंध्या के िमय पुल के पाि जाकर कुछ माँग लािा, उिे खाकर
भालू औार मं िंिुष्ट हाे जािे। क्याेंवक खारी में जल की कमी िाे थी नहीं। औाज िडक पर िंध्या
काे कुछ औिाधारण चहल-पहल देखी; इिमलए बदन के कष्ट की कल्पना कर िका।
'सिंिारपुर के गाँि के लाेग मुझे औाघड िमझिे-क्याेंवक मं कुत्ते के िाथ ही खािा हँ। कम्भ्बल बगल
में दबाये भालू के िाथ म,ं जनिा की औाँखाें का एक औाकर्मक विर्य हाे गया हँ।
'हाँ िाे बदन के िंकट ने मुझकाे उत्तेजजि कर ददया। मं उिके झाेंपडे की औाेर चला। िहाँ जाकर
जब बदन काे घायल कराहिे देखा, िब िाे मं जमकर उिकी िेिा करने लगा। िीन ददन बीि गये,
बदन का ज्िर भीर्ण हाे चला। उिका घाि भी औिाधारण था, गाेली िाे तनकल गयी, पर चाेट गहरी
थी। बदन ने एक ददन भी िुम्भ्हारा नाम न मलया। िंध्या, काे जब मं उिे जल वपला रहा था, मंने
िायु-विकार बदन की औाँखाें में स्पष्ट देखा। उििे धीरे िे पूछा-गाला काे बुलाऊँ बदन ने मुँह फेर
मलया। मं औपना किमव्य िाेचने लगा, वफर तनिय वकया वक औाज िुम्भ्हें बुलाना ही चाड्हए।'
गाला पथ चलिे-चलिे यह कथा िंक्षेप में िुन रही थी; पर कुछ न बाेली। उिे इि िमय केिल
चलना ही िूझिा था।
नये जब गाला काे ले कर पहुँचा, िब बदन की औिस्था औत्यन्ि भयानक हाे चली थी। गाला उिके
पर पकडकर राेने लगी। बदन ने कष्ट िे दाेनाें हाथ उठाये, गाला ने औपने िरीर काे औत्यन्ि हलका
करके बदन के हाथाें में रख ददया। मरणाेन्मुख िृर्द् वपिा ने औपनी कन्या का सिर चूम मलया।
नये उि िमय हट गया था। बदन ने धीरे िे उिके कान में कुछ कहा, गाला ने भी िमझ मलया
वक औब औझन्िम िमय ह। िह डटकर वपिा की खाट के पाि बठ गयी।
गाला ने बदन का िि-दाह वकया। िह बाहर िाे खुलकर राेिी न थी, पर उिके भीिर की ज्िाला
का िाप उिकी औारि औाँखाें में ददखाई देिा था। उिके चाराें औाेर िूना था। उिने नये िे कहा, 'मं
िाे धन का िन्दूक न ले जा िकूँगी, िुम इिे ले लाे।'
नये ने कहा, 'भला मं क्या करँगा गाला। मेरा जीिन िंिार के भीर्ण काेलाहल िे, उत्िि िे औार
उत्िाह िे ऊब गया ह। औब िाे मुझे भीख ममल जािी ह। िुम िाे इिे पाठिाला में पहुँचा िकिी
हाे। मं इिे िहाँ पहुँचा िकिा हँ। वफर िह सिर झुकाकर मन-ही-मन िाेचने लगा-जजिे मं औपना
कह िकिा हँ, जजिे मािा-वपिा िमझिा था, िे ही जब औपने ही नहीं िाे दूिराें की क्या?'
गाला ने देखा, नये के मन में एक िीव्र विराग औार िाणी में व्यंग्य ह। िह चुपचाप ददन भर खारी के
िट पर बठी हुई िाेचिी रही। िहिा उिने घूमकर देखा, नये औपने कुत्ते के िाथ कम्भ्बल पर बठा
ह। उिने पूछा, 'िाे नये! यही िुम्भ्हारी िम्भ्पत्तत्त ह न?'
'हाँ, इििे औच्छा इिका दूिरा उपयाेग हाे ही नहीं िकिा। औार यहाँ िुम्भ्हारा औकेले रहना ठीक
नहीं।' नये ने कहा।
'हाँ पाठिाला भी िूनी ह-मंगलदेि िृन्दािन की एक हत्या में फँ िी हुई यमुना नाम की एक स्त्री के
औमभयाेग की देख-रे ख में गये हं, उन्हें औभी कई ददन लगेंगे।'
बीच में टाेककर नये ने पूछा, 'क्या कहा, यमुना> िह हत्या में फँ िी ह?'
'मं भी हत्यारा हँ गाला, इिी िे पूछिा हँ, फिला वकि ददन हाेगा कब िक मंगलदेि औाएँगे?'
'िाे चलाे, औाज ही िुम्भ्हंे पाठिाला पहुँचा दूँ। औब यहाँ रहना ठीक भी नहीं ह।'
गाला के िामने औन्धकार ने परदा खींच ददया। िब िह घबराकर उठ खड़ी हुई। इिने में कम्भ्बल
औार िन्दूक सिर पर धरे नये िहाँ पहुँचा। गाला ने कहा, 'िुम औा गये।'
(6)
जज के िाथ पाँच जूरी बठे थे। िरकारी िकील ने औपना ििव्य िमाप्त करिे हुए कहा, 'जूरी
िज्जनाें िे मेरी प्राथमना ह वक औपना मि देिे हुए िे इि बाि का ध्यान रखें वक िे लाेग हत्या जिे
एक भीर्ण औपराध पर औपना मि दे रहे हं। स्त्री िाधारणिः मनुष्य की दया काे औपनी औाेर
औाकवर्मि कर िकिी ह, वफर जबवक उिके िाथ उिकी स्त्री जाति की मयामदा का प्रश्न भी लग
जािा हाे। िब यह बडे िाहि का काम ह वक न्याय की पूरी िहायिा हाे। िमाज में हत्या का राेग
बहुि जल्द फल िकिा ह, यदद औपराधी इि...'
जज ने ििव्य िमाप्त करके का िंकेि वकया। िरकारी िकील ने केिल-'औच्छा िाे औाप लाेग िान्ि
हृदय िे औपराध के गुरुत्ि काे देखकर न्याय करने में िहायिा दीजजए।' कहकर ििव्य िमाप्त
वकया।
जज ने जूररयाें काे िम्भ्बाेधन करके कहा, 'िज्जनाे, यह एक हत्या का औमभयाेग ह, जजिमें निाब नाम
का मनुष्य िृंदािन के िमीप यमुना के वकनारे मारा गया। इिमें िाे िंदेह नहीं वक िह मारा गया-
डाॉक्टर कहिा ह वक गला घाेंटने औार सिर फाेडने िे उिकी मृत्यु हुई। गिाह कहिे हं-जब हम
लाेगाें ने देखा िाे यह यमुना उि मृि व्यमि पर झुकी हुई थी; पर यह काेई नहीं कहिा वक मंने
उिे मारिे हुए देखा। यमुना कहिी ह वक स्त्री की मयामदा नष्ट करने जाकर निाब मारा गया; पर
िरकारी िकील का कहना वबल्कुल तनरथमक ह वक उिने मारना स्िीकार वकया ह। यमुना के िाक्याें
जूरी लाेग एक कमरे में जा बठे । यमुना तनभीमक हाेकर जज का मुँह देख रही थी। न्यायालय में
दिमक बहुि थे। उि भीड में मंगल, तनरं जन इत्यादद भी थे। िहिा द्वार पर हलचल हुई, काेई भीिर
घुिना चाहिा था, रसक्षयाें ने िाझन्ि की घाेर्णा की। जूरी लाेग औाये।
दाे ने कहा, 'हम लाेग यमुना काे हत्या का औपराधी िमझिे हं; पर दण्ड इिे कम ददया जाय।' जज
ने मुस्करा ददया।
औन्य िीन िज्जनाें ने कहा, 'प्रमाण औमभयाेग के मलए पयामप्त नहीं हं।' औभी िे पूरी कहने नहीं पाये थे
वक एक लम्भ्बा, चाडा, दाड़ी-मूँछ िाला युिक, कम्भ्बल बगल में दबाये, वकिने ही काे धक्का देिा जज
की कुरिी की बगल िाली झखडकी िे कब घुि औाया, यह वकिी ने नहीं देखा। िह िरकारी िकील
के पाि औाकर बाेला, 'म हँ हत्यारा! मुझकाे फाँिी दाे। यह स्त्री तनरपराध ह।'
जज ने चपरासियाें की औाेर देखा। पेिकार ने कहा, 'पागलाें काे भी िुम नहीं राेकिे! ऊँघिे रहिे हाे
क्या
इिी गडबड़ी में बाकी िीन जूरी िज्जनाें ने औपना ििव्य पूरा वकया, 'हम लाेग यमुना काे तनरपराध
िमझिे हं।'
उधर िह पागल भीड में िे तनकला जा रहा था। उिका कुत्ता भांककर हल्ला मचा रहा था। इिी
बीच में जज ने कहा, 'हम िीन जूररयाें िे िहमि हाेिे हुए यमुना काे छाेड देिे हं।'
एक हलचल मच गयी। मंगल औार तनरं जन-जाे औब िक दुश्चिन्िा औार स्नेह िे कमरे िे बाहर थे-
यमुना के िमीप औाये। िह राेने लगी। उिने मंगल िे कहा, 'मं नहीं चल िकिी।' मंगल मन-ही-मन
कट गया। तनरं जन उिे िान्ििा देकर औाश्रम िक ले औाया
एक िकील िाहब कहने लगे, 'क्याें जी, मंने िाे िमझा था वक पागलपन भी एक ददल्लगी ह; यह िाे
प्राणाें िे भी झखलिाड ह।'
पाठकाें काे कुिूहल हाेगा वक बाथम न औदालि में उपस्स्थि हाेकर क्याें नहीं इि हत्या पर प्रकाि
डाला। परन्िु िह नहीं चाहिा था वक उि हत्या के औििर पर उिका रहना िथा उि घटना िे
उिका िम्भ्पकम िब लाेग जान लें । उिका हृदय घण्ट़ी के भाग जाने िे औार भी लत्तज्जि हाे गया था।
औब िह औपने काे इि िम्भ्बन्ध में बदनाम हाेने िे बचाना चाहिा था। िह प्रचारक बन गया था।
इधर औाश्रम में लतिका, िरला, घण्ट़ी औार नन्दाे के िाथ यमुना भी रहने लगी, पर यमुना औधधकिर
कृष्णिरण की िेिा में रहिी। उिकी ददनचयाम बड़ी तनयममि थी। िह चाची िे भी नहीं बाेलिी औार
तनरं जन उिके पाि ही औाने में िंकुमचि हाेिा। भंडारीजी का िाे िाहि ही उिका िामना करने का
न हुऔा।
पाठक औाियम करें गे वक घटना-िूत्र िथा िम्भ्बन्ध में इिने िमीप के मनुष्य एक हाेकर भी चुपचाप
किे रहे
लतिका औार घण्ट़ी का मनाेमामलन्य न रहा, क्याेंवक औब बाथम िे दाेनाें का काेई िम्भ्बन्ध न रहा।
नन्दाे चाची ने यमुना के िाथ उपकार भी वकया था औार औन्याय भी। यमुना के हृदय में मंगल के
व्यिहार की इिनी िीव्रिा थी वक उिके िामने औार वकिी के औत्याचार प्रस्फुड्टि हाे नहीं पािे। िह
औपने दुःख-िुख में वकिी काे िाझीदार बनाने की चेष्टा न करिी, तनंरजन िाेचिा-मं बरागी हँ। मेरे
िरीर िे िम्भ्बन्ध रखने िाले प्रत्येक परमाणुऔाें काे मेरे दुष्कमम के िाप िे दग्ध हाेना विधािा का
औमाेध विधान ह, यदद मं कुछ भी कहिी हँ, िाे मेरा दठकाना नहीं, इिमलए जाे हुऔा, िाे हुऔा, औब
इिमें चुप रह जाना ही औच्छा ह। मंगल औार यमुना औाप ही औपना रहस्य खाेलें, मुझे क्या पड़ी ह।
इिी िरह िे तनरं जन, नन्दाे औार मंगल का मान भय यमुना के औदृश्य औन्धकार का िृजन कर रहा
था। मंगल का िािमजतनक उत्िाह यमुना के िामने औपराधी हाे रहा था। िह औपने मन काे िांत्िना
देिा वक इिमें मेरा क्या औन्याय ह-जब उपयुि औििर पर मंने औपना औपराध स्िीकार करना
चाहा, िभी िाे यमुना ने मुझे िजजमि वकया िथा औपना औार मेरा पथ मभन्न-मभन्न कर ददया। इिके
हृदय में विजय के प्रति इिनी िहानुभूति वक उिके मलए फाँिी पर चढना स्िीकार! यमुना िे औब
'नहीं मािा, िेिक काे विश्राम कहाँ औभी िाे औाप लाेगाें के िंघ-प्रिेि का उत्िि जब िक िमाप्त
नहीं हाे जािा, हमकाे छुट्ट़ी कहाँ।' िरला के हृदय में स्नेह का िंचार देखकर मंगल का हृदय भी
स्नस्नग्ध हाे चला, उिकाे बहुि ददनाें पर इिने िहानुभूतििूचक िब्द पुरस्कार में ममले थे।
मंगल इधर लगािार कई ददन धूप में पररश्रम करिा रहा। औाज उिकी औाँखें लाल हाे रही थीं।
दालान में पड़ी चाकी पर जाकर ले ट रहा। ज्िर का औािंक उिके ऊपर छा गया था। िह औपने
मन में िाेच रहा था वक बहुि ददन हुए बीमार पडे -काम करके राेगी हाे जाना भी एक विश्राम ह,
चलाे कुछ ददन छुट्ट़ी ही िही। वफर िह िाेचिा वक मुझे बीमार हाेने की औािश्यकिा नहीं; एक घूँट
पानी िक काे काेई नहीं पूछेगा। न भाई, यह िुख दूर रहे। पर उिके औस्िीकार करने िे क्या िुख
न औािे उिे ज्िर औा ही गया, िह एक काेने में पडा रहा।
तनरं जन उत्िि की ियारी में व्यस्ि था। मंगल के राेगी हाे जाने िे िबका छक्का छूट गया।
कृष्णिरण जी ने कहा, 'िब िक िंघ के लाेगाें के उपदेि के मलए मं राम-कथा कहँगा औार
ििमिाधारण के मलए प्रदिमन िाे जब मंगल स्िस्थ हाेगा, वकया जायेगा।'
बहुि-िे लाेग बाहर िे भी औा गये थे। िंघ में बड़ी चहल-पहल थी; पर मंगल ज्िर में औचेि रहिा।
केिल िरला उिे देखिी थी। औाज िीिरा ददन था, ज्िर में िीव्र दाह था, औधधक िेदना िे सिर में
पीडा थी; लतिका ने कुछ िमय के मलए छुट्ट़ी देकर िरला काे स्नान करने के मलए भेज ददया था।
िबेरे की धूप जंगले के भीिर जा रही थी। उिके प्रकाि में मंगल की रिपूणम औाँखें भीर्ण लाली
िे चमक उठिीं। मंगल ने कहा, 'गाला! लडवकयाें की पढाई पर...'
लतिका पाि बठी थी। उिने िमझ मलया वक ज्िर की भीर्णिा में मंगल प्रलाप कर रहा ह। िह
घबरा उठी। िरला इिने में स्नान करके औा चुकी थी। लतिका ने प्रलाप की िूचना दी। िरला उिे
िहीं रहने के मलए कहकर गाेस्िामीजी के पाि गयी। उिने कहा, 'महाराज! मंगल का ज्िर भयानक
हाे गया ह। िह गाला का नाम ले कर चांक उठिा ह।'
गाेस्िामीजी कुछ मचझन्िि हुए। कुछ विचारकर उन्हाेंने कहा, 'िरला, घबराने की काेई बाि नहीं, मंगल
िीघ्र औच्छा हाे जायेगा। मं गाला काे बुलिािा हँ।'
गाला औार िरला कमर किकर मंगल की िेिा करने लगीं। िद् ने देखकर कहा, 'औभी पाँच ददन
में यह ज्िर उिरे गा। बीच में िािधानी की औािश्यकिा ह। कुछ मचन्िा नहीं।' यमुना िुन रही थी, िह
कुछ तनश्चिन्ि हुई।
इधर िंघ में बहुि-िे बाहरी मनुष्य भी औा गये थे। उन लाेगाें के मलए गाेस्िामीजी राम-कथा कहने
लगे थे।
औाज मंगल के ज्िर का िेग औत्यन्ि भयानक था। गाला पाि बठी हुई मंगल के मुख पर पिीने
की बूँदाें काे कपडे िे पाेंछ रही थी। बार-बार प्याि िे मंगल का मुँह िूखिा था। िद्जी ने कहा
था, 'औाज की राि बीि जाने पर यह तनिय ही औच्छा हाे जायेगा। गाला की औाँखाें में बेबिी औार
तनरािा नाच रही थी। िरला ने दूर िे यह िब देखा। औभी राि औारम्भ्भ हुई थी। औन्धकार ने िंघ
में लगे हुए वििाल िृक्षाें पर औपना दुगम बना मलया था। िरला का मन व्यमथि हाे उठा। िह धीरे -
धीरे एक बार कृष्ण की प्रतिमा के िम्भ्मुख औायी। उिने प्राथमना की। िही िरला, जजिने एक ददन
कहा था-भगिान् के दुःख दान काे औाँचल पिारकर लूँ गी-औाज मंगल की प्राणमभक्षा के मलए औाँचल
पिारने लगी। यह िंगाल का गिम था, जजिके पाि कुछ बचा ही नहीं। िह वकिकी रक्षा चाहिी!
िरला के पाि िब क्या था, जाे िह भगिान् के दुःख दान िे ड्हचकिी। हिाि जीिन िाे िाहसिक
बन ही जािा ह; परन्िु औाज उिे कथा िुनकर विश्वाि हाे गया वक विपत्तत्त में भगिान् िहायिा के
मलए औििार ले िे ह,ं औािे हं भारिीयाें के उर्द्ार के मलए। औाह, मानि-हृदय की स्नेह-दुबमलिा वकिना
महत्त्ि रखिी ह। यही िाे उिके यांतत्रक जीिन की एेिी िमि ह। प्रतिमा तनिल रही, िब भी उिका
हृदय औािापूणम था। िह खाेजने लगी-काेई मनुष्य ममलिा, काेई देििा औमृि-पात्र मेरे हाथाें में रख
जािा। मंगल! मंगल! कहिी हुई िह औाश्रम के बाहर तनकल पड़ी। उिे विश्वाि था वक काेई दिी
िहायिा मुझे औचानक औिश्य ममल जायेगी!
यदद मंगल जी उठिा िाे गाला वकिना प्रिन्न हाेिी-यही बडबडािी हुई यमुना के िट की औाेर बढने
लगी। औन्धकार में पथ ददखाई न देिा; पर िह चली जा रही थी।
िरला कहने लगी, 'हे यमुना मािा! मंगल का कल्याण कराे औार उिे जीविि करके गाला काे भी
प्राणदान दाे! मािा, औाज की राि बड़ी भयानक ह-दुहाई भगिान की।'
िह बठा हुऔा कम्भ्बल िाला विचमलि हाे उठा। उिने बडे गम्भ्भीर स्िर में पूछा, 'क्या मंगलदेि रुग्ण
हं?'
प्रामथमनी औार व्याकुल िरला ने कहा, 'हाँ महाराज, यह वकिी का बच्चा ह, उिके स्नेह का धन ह, उिी
की कल्याण-कामना कर रही हँ।'
'औार िुम्भ्हारा नाम िरला ह। िुम ईिाई के घर पहले रहिी थीं न?' धीरे स्िर िे प्रश्न हुऔा।
उि व्यमि ने टटाेलकर काेई िस्िु तनकालकर िरला की औाेर फंे क दी। िरला ने देखा, िह एक
यंत्र ह। उिने कहा, 'बड़ी दया महाराज! िाे इिे ले जाकर बाँध दूँगी न
िह वफर कुछ न बाेला, जिे िमाधध लग गयी हाे, िरला ने औधधक छे डना उमचि न िमझा। मन-ही-
मन नमस्कार करिी हुई प्रिन्निा िे औाश्रम की औाेर लाट पड़ी।
िह औपनी काेठरी में औाकर उि यंत्र के धागे काे वपराेकर मंगल के प्रकाेष्ठ के पाि गयी। उिने
िुना, काेई कह रहा ह, 'बहन गाला, िुम थक गयी हाेगी, लाऔाे मं कुछ िहायिा कर दूँ।'
उत्तर ममला, 'नहीं यमुना बड्हन! मं िाे औभी बठी हुई हँ, वफर औािश्यकिा हाेगी िाे बुलाऊँगी।'
िह स्त्री लाटकर तनकल गयी। िरला भीिर घुिी। उिने िह यंत्र मंगल के गले में बाँध ददया औार
मन-ही-मन भगिान िे प्राथमना की। िहीं बठी रही। दाेनाें ने राि भर बडे यत्न िे िेिा की।
जब कथा िमाप्त करके िब लाेगाें के चले जाने पर गाेस्िामीजी उठकर मंगलदेि के पाि औाये, िब
गाला बठी पंखा झल रही थी। उन्हें देखकर िह िंकाेच िे उठ खड़ी हुई। गाेस्िामीजी ने कहा, 'िेिा
िबिे कदठन व्रि ह देवि! िुम औपना काम कराे। हाँ मंगल! िुम औब औच्छे हाे न!'
दीपक जल गया। औाज औभी िक िरला नहीं औायी। गाला काे बठे हुए बहुि विलम्भ्ब हुऔा। मंगल
ने कहा, 'जाऔाे गाला, िंध्या हुई; हाथ-मुँह िाे धाे लाे, िुम्भ्हारे इि औथक पररश्रम िे मं किे उर्द्ार
पाऊँगा।'
गाला लत्तज्जि हुई। इिने िम्भ्रान्ि मनुष्य औार स्त्रस्त्रयाें के बीच औाकर कानन-िासिनी ने लज्जा िीख ली
थी। िह औपने स्त्रीत्ि का औनुभि कर रही थी। उिके मुख पर विजय की मुस्कराहट थी। उिने
कहा, 'औभी माँ जी नहीं औायीं, उन्हें बुला लाऊँ!' कहकर िरला काे खाेजने के मलए िह चली।
िरला मालसिरी के नीचे बठी िाेच रही थी-जजन्हें लाेग भगिान कहिे हं, उन्हें भी मािा की गाेद िे
तनिामसिि हाेना पडिा ह, दिरथ ने िाे औपना औपराध िमझकर प्राण-त्याग ददया; परन्िु कािल्या
कठाेर हाेकर जीिी रही-जीिी रही श्रीराम का मुख देखने के मलए, क्या मेरा ददन भी लाटे गा क्या मं
इिी िे औब िक प्राण न दे िकी!
मंगल के गले के नीचे िह यंत्र गड रहा था। उिने िवकया िे खींचकर उिे बाहर वकया। मंगल ने
देखा वक िह उिी का पुराना यंत्र ह। िह औाियम िे पिीने-पिीने हाे गया। दीप के औालाेक में उिे
िरला ने उत्कण्ठा िे पूछा, 'िुम्भ्हारा यंत्र किा ह बेटा! यह िाे मं एक िाधू िे लायी हँ।'
मंगल ने िरल औाँखाें िे उिकी औाेर देखकर कहा, 'माँ जी, यह मेरा ही यंत्र ह, मं इिे बाल्यकाल में
पहना करिा था। जब यह खाे गया, िभी िे दुःख पा रहा हँ। औाियम ह, इिने ददनाें पर यह औापकाे
किे ममल गया?'
िरला के धयम का बाँध टू ट पडा। उिने यंत्र काे हाथ में ले कर देखा-िही तत्रकाेण यंत्र। िह मचल्ला
उठी, 'मेरे खाेये हुए तनधध! मेरे लाल! यह ददन देखना वकि पुण्य का फल ह मेरे भगिान!'
मंगल िाे औाियम चवकि था। िब िाहि बटाेरकर उिने कहा, 'िाे क्या िचमुच िुम्भ्हीं मेरी माँ हाे।'
िरला ने गाला के सिर पर हाथ फेरिे हुए कहा, 'बेट़ी! िेरे भाग्य िे औाज मुझे मेरा खाेया हुऔा धन
ममल गया!'
मंगल एक औानन्दप्रद कुिूहल िे पुलवकि हाे उठा। उिने िरला के पर पकडकर कहा, 'मुझे िुमने
क्याें छाेड ददया था माँ
उिकी भािनाऔाें की िीमा न थी। कभी िह जीिन-भर के ड्हिाब काे बराबर हुऔा िमझिा, कभी
उिे भान हाेिा वक औाज के िंिार में मेरा जीिन प्रारम्भ्भ हुऔा ह।
िरला ने कहा, 'मं वकिनी औािा में थी, यह िुम क्या जानाेगे। िुमने िाे औपनी मािा के जीविि रहने
की कल्पना भी न की हाेगी। पर भगिान की दया पर मेरा विश्वाि था औार उिने मेरी लाज रख
ली।'
(7)
औालाेक-प्रामथमनी औपने कुट़ीर में दीपक बुझाकर बठी रही। उिे औािा थी वक िािायन औार द्वाराें िे
राशि-राशि प्रभाि का धिल औानन्द उिके प्रकाेष्ठ में भर जायेगा; पर जब िमय औाया, वकरणें फूट़ी,
िब उिने औपने िािायनाे,ं झराेखे औार द्वाराें काे रुर्द् कर ददया। औाँखें भी बन्द कर लीं। औालाेक
कहाँ िे औाये। िह चुपचाप पड़ी थी। उिके जीिन की औनन्ि रजनी उिके चाराें औाेर धघरी थी।
लतिका ने जाकर द्वार खटखटाया। उर्द्ार की औािा में औाज िंघ भर में उत्िाह था। यमुना हँिने
की चेष्टा करिी हुई बाहर औायी। लतिका ने कहा, 'चलाेगी बहन यमुना, स्नान करने
दाेनाें औाश्रम िे बाहर हुइों । चलिे-चलिे लतिका ने कहा, 'बड्हन, िरला का ददन भगिान ने जिे
लाटाया, ििे िबका लाटे । औहा, पचीिाें बरि पर वकिका लडका लाटकर गाेद में औाया ह।'
'िरला के धयम का फल ह बहन। परन्िु िबका ददन लाटे , एेिी िाे भगिान की रचना नहीं देखी
जािी। बहुि का ददन कभी न लाटने के मलए चला जािा ह। वििेर्कर स्त्रस्त्रयाें का मेरी रानी। जब मं
स्त्रस्त्रयाें के ऊपर दया ददखाने का उत्िाह पुरुर्ाें में देखिी हँ, िाे जिे कट जािी हँ। एेिा जान पडिा
ह वक िह िब काेलाहल, स्त्री-जाति की लज्जा की मेघमाला ह, उनकी औिहाय पररस्स्थति का व्यंग्य-
उपहाि ह।' यमुना ने कहा।
लतिका ने औाियम िे औाँखें बड़ी करिे हुए कहा, 'िच कहिी हाे बहन! जहाँ स्ििन्त्रिा नहीं ह, िहाँ
पराधीनिा का औान्दाेलन ह; औार जहाँ ये िब माने हुए तनयम हं, िहाँ कान िी औच्छी दिा ह। यह
झूठ ह वक वकिी वििेर् िमाज में स्त्रस्त्रयाें काे कुछ वििेर् िुविधा ह। हाय-हाय, पुरुर् यह नहीं जानिे
वक स्नेहमयी रमणी िुविधा नहीं चाहिी, िह हृदय चाहिी ह; पर मन इिना मभन्न उपकरणाें िे बना
हुऔा ह वक िमझािे पर ही िंिार के स्त्री-पुरुर्ाें का व्यिहार चलिा हुऔा ददखाई देिा ह। इिका
िमाधान करने के मलए काेई तनयम या िंस्कृति औिमथम ह।'
यमुना ने कहा, 'काेई िमाज औार धमम स्त्रस्त्रयाें का नहीं बहन! िब पुरुर्ाें के हं। िब हृदय काे कुचलने
िाले क्ूर हं। वफर भी िमझिी हँ वक स्त्रस्त्रयाें का एक धमम ह, िह ह औाघाि िहने की क्षमिा रखना।
दुदमि के विधान ने उनके मलए यही पूणमिा बना दी ह। यह उनकी रचना ह।'
दूर पर नन्दाे औार घण्ट़ी जािी हुई ददखाई पड़ीं। लतिका, यमुना के िाथ दाेनाें के पाि जा पहुँची।
स्नान करिे हुए घण्ट़ी औार लतिका एकत्र हाे गयीं, औार उिी िरह चाची औार यमुना का एक जुटाि
हुऔा। यह औाकझस्मक था। घण्ट़ी ने औंजमल में जल ले कर लतिका िे कहा, 'बहन! मं औपराधधनी हँ,
मुझे क्षमा कराेगी?'
लतिका ने कहा, 'बहन! हम लाेगाें का औपराध स्ियं दूर चला गया ह। यह िाे मं जान गयी हँ वक
इिमें िुम्भ्हारा काेई दाेर् नहीं ह। हम दाेनाें एक ही स्थान पर पहुँचने िाली थीं; पर िम्भ्भििः थककर
दाेनाें ही लाट औायीं। काेई पहुँच जािा, िाे द्वेर् की िम्भ्भािना थी, एेिा ही िाे िंिार का तनयम ह;
पर औब िाे हम दाेनाें एक-दूिरे काे िमझा िकिी हं, िन्िाेर् कर िकिी हं।'
घण्ट़ी ने कहा, 'दूिरा उपाय नहीं ह बहन। िाे िुम मुझे क्षमा कर दाे। औाज िे मुझे बहन कहकर
बुलाऔाेगी न।'
लतिका ने कहा, 'नारी-हृदय गल-गलकर औाँखाें की राह िे उिकी औंजमल के यमुना-जल में ममल
रहा ह।' िह औपने काे राेक न िकी, लतिका औार घण्ट़ी गले िे लगकर राेने लगीं। लतिका ने कहा,
'औाज िे दुख मे,ं िुख में हम लाेग कभी िाथ न छाेडें गी बहन! िंिार में गला बाँधकर जीिन
वबिाऊँगी, यमुना िाक्षी ह।'
दूर यमुना औार नन्दाे चाची ने इि दृश्य काे देखा। नन्दाे का मन न जाने वकन भािाें िे भर गया।
मानाे जन्म-भर की कठाेरिा िीव्र भाप लगने िे बरफ के िमान गलने लगी हाे। उिने यमुना िे राेिे
हुए कहा, 'यमुना, नहीं-नहीं, बेट़ी िारा! मुझे भी क्षमा कर दे। मंने जीिन भर बहुि िी बािें बुरी की
हं; पर जाे कठाेरिा िेरे िाथ हुई ह, िह नरक की औाग िे भी िीव्रदाह उत्पन्न कर रही ह। बेट़ी! मं
'नहीं चाची। औब िह ददन चाहे लाट औाये, पर िह हृदय कहाँ िे औािेगा। मंगल काे दुःख पहुँचाकर
औाघाि दे िकूँगी, औपने मलए िुख कहाँ िे लाऊँगी। चाची। िुम मेरे दुःखाें की िाक्षी हाे, मंने केिल
एक औपराध वकया ह-िह यही वक प्रेम करिे िमय िाक्षी काे इकट्ठा नहीं करा मलया था; पर वकया
प्रेम। चाची यदद उिका यही पुरस्कार ह, िाे मं उिे स्िीकार करिी हँ।' यमुना ने कहा।
'पुरुर् वकिना बडा ढाेंगी ह बेट़ी। िह हृदय के विरुर्द् ही िाे जीभ िे कहिा ह औाियम ह, उिे ित्य
कहकर मचल्लािा ह।' उत्तेजजि चाची ने कहा।
'पर मं एक उत्कट औपराध की औमभयुि हँ चाची। औाह, मेरा पन्रह ददन का बच्चा। मं वकिनी तनदमयी
हँ। मं उिी का िाे फल भाेग रही हँ। मुझे वकिी दूिरे ने ठाेकर लगाई औार मंने दूिरे काे
ठु कराया। हाय! िंिार औपराध करके इिना औपराध नहीं करिा, जजिना यह दूिराें काे उपदेि देकर
करिा ह। जाे मंगल ने मुझिे वकया, िही िाे हृदय के टु कडे िे, औपने िे कर चुकी हँ। मंने िाेचा
था वक फाँिी पर चढकर उिका प्रायश्चित्त कर िँकूगी, पर डू बकर बची-फाँिी िे बची। हाय रे कठाेर
नारी-जीिन!! न जाने मेरे लाल काे क्या हुऔा?'
यमुना, नहीं-औब उिे िारा कहना चाड्हए-राे रही थी। उिकी औाँखाें में जजिनी करुण कामलमा थी,
उिनी कामलन्दी में कहाँ!
चाची ने उिकी औश्रुधारा पाेंछिे हुए कहा, 'बेट़ी! िुम्भ्हारा लाल जीविि ह, िुखी ह!'
'िच िारा! िह कािी के एक धनी श्रीचन्र औार वकिाेरी बह का दत्तक पुत्र ह; मंने उिे िहाँ ददया
ह। क्या इिके मलए िुम मुझे इिके मलए क्षमा कराेगी बेट़ी?'
चाची ने उिे िान्त्िना दी। इधर घण्ट़ी औार लतिका भी पाि औा रही थीं। िारा ने धीरे िे कहा, 'मेरी
विनिी ह, औभी इि बाि काे वकिी िे न कहना-यह मेरा 'गुप्त धन' ह।'
चाराें के मुख पर प्रिन्निा थी। चाराें औाेर हृदय हल्का था। िब स्नान करके दूिरी बािें करिी हुई
औाश्रम लाट़ीं। लतिका ने कहा, 'औपनी िंपत्तत्त िंघ काे देिी हँ। िह स्त्रस्त्रयाें की स्ियंिेविका की
पाठिाला चलािे। मं उिकी पहली छात्रा हाेऊँगी। औार िुम घण्ट़ी?'
घण्ट़ी ने कहा, 'मं भी। बहन, स्त्रस्त्रयाें काे स्ियं घर-घर जाकर औपनी दुझखया बहनाें की िेिा करनी
चाड्हए। पुरुर् उन्हें उिनी ही शिक्षा औार ज्ञान देना चाहिे हं, जजिना उनके स्िाथम में बाधक न हाे।
घराें के भीिर औन्धकार ह, धमम के नाम पर ढाेंग की पूजा ह औार िील िथा औाचार के नाम पर
रड्ढयाँ हं। बहनें औत्याचार के परदे में णछपायी गयी हं; उनकी िेिा करँगी। धात्री, उपदेशिका, धमम-
प्रचाररका, िहचाररणी बनकर उनकी िेिा करँगी।'
िब प्रिन्न मन िे औाश्रम में पहुँच गयीं। तनयि ददन औा गया, औाज उत्िि का विराट् औायाेजन ह।
िंघ के प्रांगण में वििान िना ह। चाराें औाेर प्रकाि ह। बहुि िे दिमकाें की भीड ह।
गाेस्िामी जी, तनरं जन औार मंगलदेि िंघ की प्रतिमा के िामने बठे हं। एक औाेर घण्ट़ी, लतिका,
गाला औार िरला भी बठी हं। गाेस्िामी जी ने िान्ि िाणी में औाज के उत्िि का उद्देश्य िमझाया
औार कहा, 'भारि, िंघ के िंगठन पर औाप लाेग देितनंरजन जी का व्याख्यान दत्तमचत्त हाेकर िुनें।'
'प्रत्येक िमय में िम्भ्पत्तत्त-औधधकार औार विद्ा के मभन्न देिाें में जाति, िणम औार ऊँच-नीच की िृधष्ट
की। जब औाप लाेग इिे ईश्वरकृि विभाग िमझने लगिे हं, िब यह भूल जािे हं वक इिमें ईश्वर
का उिना िम्भ्बन्ध नहीं, जजिना उिकी विभूतियाें का। कुछ ददनाें िक उन विभूतियाें का औधधकारी
बने रहने पर मनुष्य के िंिार भी ििे ही बन जािे हं, िह प्रमत्त हाे जािा ह। प्राकृतिक ईश्वरीय
'भारििर्म औाज िणाेों औार जातियाें के बन्धन में जकडकर कष्ट पा रहा ह औार दूिराें काे कष्ट दे रहा
ह। यद्वप औन्य देिाें में भी इि प्रकार के िमूह बन गये हं; परन्िु यहाँ इिका भीर्ण रप ह। यह
महत्त्ि का िंस्कार औधधक ददनाें िक प्रभुत्ि भाेगकर खाेखला हाे गया ह। दूिराें की उन्नति िे उिे
डाह हाेने लगा ह। िमाज औपना महत्त्ि धारण करने की क्षमिा िाे खाे चुका ह, परन्िु व्यमियाें का
उन्नति का दल बनकर िामूड्हक रप िे विराेध करने लगा ह। प्रत्येक व्यमि औपनी छूँ छी महत्ता पर
इिरािा हुऔा दूिरे का नीचा-औपने िे छाेटा-िमझिा ह, जजििे िामाजजक विर्मिा का विर्मय
प्रभाि फल रहा ह।
'उि िणम-भेद के भयानक िंघर्म का यह इतिहाि जानकर भी तनत्य उिका पाठ करके भी भला
हमारा देि कुछ िमझिा ह नहीं, यह देि िमझेगा भी नहीं। िज्जनाे! िणम-भेद, िामाजजक जीिन का
वक्यात्मक विभाग ह। यह जनिा के कल्याण के मलए बना; परन्िु द्वेर् की िृधष्ट मे,ं दम्भ्भ का ममथ्या
गिम उत्पन्न करने में िह औधधक िहायक हुऔा ह। जजि कल्याण-बुणर्द् िे इिका औारम्भ्भ हुऔा, िह न
रहा, गुण कमामनुिार िणाेों की स्स्थति में नष्ट हाेकर औामभजात्य के औमभमान में पररणि हाे गयी, उिके
व्यमिगि परीक्षात्मक तनिामचन के मलए, िणाेों के िुर्द् िगीमकरण के मलए ििममान जातििाद काे
ममटाना हाेगा-बल, विद्ा औार विभि की एेिी िम्भ्पत्तत्त वकि हाड-मांि के पुिले के भीिर ज्िालामुखी
िी धधक उठे गी, काेई नहीं जानिा। इिमलए िे व्यथम के वििाद हटाकर, उि ददव्य िंस्कृति-औायम
मानि िंस्कृति-की िेिा में लगना चाड्हए। भगिान का स्मरण करके नारीजाति पर औत्याचार करने
िे विरि हाे िबरी के िदृि औछूि न िमझाे। ििमभूिड्हिरि हाेकार भगिान् के मलए ििमस्ि िमपमण
कराे, तनभमय रहाे।
'भगिान् की विभूतियाें काे िमाज ने बाँट मलया ह, परन्िु जब मं स्िामथमयाें काे भगिान् पर भी औपना
औधधकार जमाये देखिा हँ, िब मुझे हँिी औािी ह। औार भी हँिी औािी ह-जब उि औधधकार की
घाेर्णा करके दूिराें काे िे छाेटा, नीच औार पतिि ठहरािे हं। बह-पररचाररणी जाबाला के पुत्र
ित्यकाम काे कुलपति ने ब्राह्मण स्िीकार वकया था; वकन्िु उत्पत्तत्त पिन औार दुबमलिाऔाें के व्यग्ंय िे
'िंिार मं जजिनी हलचल ह, औान्दाेलन हं, िे िब मानििा की पुकार हं। जननी औपने झगडालू
कुटु म्भ्ब में मेल कराने के मलए बुला रही ह। उिके मलए हमें प्रस्िुि हाेना ह। हम औलग न खडे
रहेंगे। यह िमाराेह उिी का िमारम्भ्भ ह। इिमलए हमारे औान्दाेलन व्यच्छे दक न हाें।
'एक बार वफर स्मरण करना चाड्हए वक लाेक एक ह, ठीक उिी प्रकार जिे श्रीकृष्ण ने कहा-
औमभिि च भूिेर् मभिकममि च स्स्थि'-यह विभि हाेना कमम के मलए ह, चक्प्रििमन काे तनयममि
रखने के मलए ह। िमाज िेिा यज्ञ काे प्रगतििील करने के मलए ह। जीिन व्यथम न करने के मलए,
पाप की औायु, स्िाथम का बाेझ न उठाने के मलए हमें िमाज के रचनात्मक कायम में भीिरी िुधार
लाना चाड्हए। यह ठीक ह वक िुधार का काम प्रतिकूल स्स्थति में प्रारम्भ्भ में हाेिा ह। िुधार िान्दयम
का िाधन ह। िभ्यिा िान्दयम की जजज्ञािा ह। िारीररक औार औालं काररक िान्दयम प्राथममक ह, चरम
िान्दयम मानसिक िुधार का ह। मानसिक िुधाराें में िामूड्हक भाि कायम करिे हं। इिके मलए श्रम-
विभाग ह। हम औपने किमव्य काे देखिे हुए िमाज की उन्नति करें , परन्िु िंघर्म काे बचािे हुए। हम
उन्नति करिे-करिे भातिक एेश्वयम के ट़ीले बन जायँ। हाँ, हमारी उन्नति फल-फूल बेचने िाले िृक्षाें की-
िी हाे, जजनमें छाया ममलें , विश्राम ममले , िाझन्ि ममले ।
'मंने पहले कहा ह वक िमाज-िुधार भी हाे औार िंघर्म िे बचना भी चाड्हए। बहुि िे लाेगाें का यह
विचार ह वक िुधार औार उन्नति में िंघर्म औतनिायम ह; परन्िु िंघर्म िे बचने का उपाय ह, िह ह-
औात्म-तनरीक्षण। िमाज के कामाें में औतििाद िे बचाने के मलए यह उपयाेगी हाे िकिा ह। जहाँ
िमाज का िािन कठाेरिा िे चलिा ह, िहाँ द्वेर् औार द्वन्द्व भी चलिा ह। िािन की उपयाेगगिा हम
'दुबमलिा कहाँ िे औािी ह? लाेकापिाद िे भयभीि हाेकर स्िभाि काे पाप कहकर मान ले ना एक
प्राचीन रड्ढ ह। िमाज काे िुरसक्षि रखने के मलए उििे िंगठन में स्िाभाविक मनाेिृत्तत्तयाें की ित्ता
स्िीकार करनी हाेगी। िबके मलए एक पथ देना हाेगा। िमस्ि प्राकृतिक औाकांक्षाऔाें की पूतिम औापके
औादिम में हाेनी चाड्हए। केिल रास्िा बन्द ह-कह देने िे काम नहीं चले गा। लाेकापिाद िंिार का
एक भय ह, एक महान् औत्याचार ह। औाप लाेग जानिे हाेंगे वक श्रीरामचन्र ने भी लाेकापिाद के
िामने सिर झुका मलया। 'लाेकापिादी बलिाल्येन त्यिाड्ह ममथली' औार इिे पूिम काल के लाेग
मयामदा कहिे ह,ं उनका मयामदा पुरुर्ाेत्तम नाम पडा। िह धमम की मयामदा न थी, िस्िुिः िमाज-िािन
की मयामदा थी, जजिे िम्राट ने स्िीकार वकया औार औत्याचार िहन वकया; परन्िु वििेकदृधष्ट िे
विचारने पर देि, काल औार िमाज की िंकीणम पररधधयाें में पले हुए ििमिाधारण तनयम-भंग औपराध
या पाप कहकर न गगने जाये,ं क्याेंवक प्रत्येक तनयम औपने पूिमििीम तनयम के बाधक हाेिे हं। या
उनकी औपूणमिा काे पूणम करने के मलए बनिे ही रहिे हं। िीिा-तनिामिन एक इतिहाि विश्रुि महान्
िामाजजक औत्याचार ह, औार एेिा औत्याचार औपनी दुबमल िंगगनी स्त्रस्त्रयाें पर प्रत्येक जाति के पुरुर्ाें
ने वकया ह। वकिी-वकिी िमाज में िाे पाप के मूल में स्त्री का भी उल्ले ख ह औार पुरुर् तनष्पाप ह।
यह रांि मनाेिृत्तत्त औनेक िामाजजक व्यिस्थाऔाें के भीिर काम कर रही ह, रामायण भी केिल
राक्षि-िध का इतिहाि नहीं ह, वकन्िु नारी-तनयामिन का िजीि इतिहाि मलखकर िाल्मीवक ने स्त्रस्त्रयाें
के औधधकार की घाेर्णा की ह। रामायण में िमाज के दाे दृधष्टकाेण हं-तनन्दक औार िाल्मीवक के।
दाेनाें तनधमन थे, एक बडा भारी उपकार कर िकिा था औार दूिरा एक पीदडि औायम ललना की िेिा
कर िकिा था। कहना न हाेगा वक उि युर्द् में कान विजयी हुऔा। िच्चे िपस्िी ब्राह्मण िाल्मीवक
की विभूति िंिार में औाज भी महान् ह। औाज भी उि तनन्दक काे गाली ममलिी ह। परन्िु देझखये
िाे, औािश्यकिा पडने पर हम-औाप औार तनन्दकाें िे ऊँचे हाे िकिे हं औाज भी िाे िमाज ििे
लाेगाें िे भरा पडा ह-जाे स्ियं ममलन रहने पर भी दूिराें की स्िच्छिा काे औपनी जीविका का
िाधन बनाये हुए हं।
'हम लाेगाें काे औपना हृदय-द्वार औार कायमक्षेत्र विस्िृि करना चाड्हए, मानि िंस्कृति के प्रचार के
मलए हम उत्तरदायी हं। विक्माददत्य, िमुरगुप्त औार हर्मिधमन का रि हम ह िंिार भारि के िंदेि
की औािा में ह, हम उन्हें देने के उपयुि बनें-यही मेरी प्राथमना ह।'
औानन्द की करिल ध्ितन हुई। मंगलदेि बठा। गाेस्िामी जी ने उठकर कहा, 'औाज औाप लाेगाें काे
एक औार हर्म-िमाचार िुनाऊँगा। िुनाऊँगा ही नहीं, औाप लाेग उि औानन्द के िाक्षी हाेंगे। मेरे
शिष्य मंगलदेि का ब्रह्मचयम की िमातप्त करके गृहस्थाश्रम में प्रिेि करने का िुभ मुहिम भी औाज ही
का ह। यह कानन-िासिनी गूजर बामलका गाला औपने ित्िाहि औार दान िे िीकरी में एक
बामलका-विद्ालय चला रही ह। इिमें मंगलदेि औार गाला दाेनाें का हाथ ह। मं इन दाेनाें पवित्र
हाथाें काे एक बंधन में बाँधिा हँ, जजिमें िझम्भ्ममलि िमि िे ये लाेग मानि-िेिा में औग्रिर हाें औार
यह पररणय िमाज के मलए औादिम हाे!'
काेलाहल मच गया, िब लाेग गाला काे देखने के मलए उत्िुक हुए। िलज्जा गाला गाेस्िामी जी के
िंकेि िे उठकर िामने औायी। कृष्णिरण ने प्रतिमा िे दाे माला ले कर दाेनाें काे पहना दीं।
गाला औार मंगलदेि ने चांककर देखा, 'पर उि भीड में कहने िाला न ददखाई पडा।'
भीड के पीछे कम्भ्बल औाढे , एक घनी दाढ़ी-मूँछ िाले युिक का कन्धा पकडकर िारा ने कहा, 'विजय
बाबू! औाप क्या प्राण देंगे। हड्टये यहाँ िे, औभी यह घटना टटकी ह।'
'नये, नहीं,' विजय ने घूमकर कहा, 'यमुना! प्राण िाे बच ही गया; पर यह मनुष्य...' िारा ने बाि
काटकर कहा, 'बडा ढाेंगी ह, पाखण्ड़ी ह, यही न कहना चाहिे हं औाप! हाेने दीजजए, औाप िंिार-भर
के ठे केदार नहीं, चमलए।'
(9)
मनुष्य दूिरे काे धाेखा दे िकिा ह, क्याेंवक उििे िम्भ्बन्ध कुछ ही िमय के मलए हाेिा ह; पर औपने
िे, तनत्य िहचर िे, जाे घर का िब काेना जानिा ह कब िक णछपेगा वकिाेरी मचर-राेगगणी हुई। एक
ददन उिे एक पत्र ममला। िह खाट पर पड़ी हुई औपने रखे हाथाें िे उिे खाेलकर पढने लगी-
'वकिाेरी,
िंिार इिना कठाेर ह वक िह क्षमा करना नहीं जानिा औार उिका िबिे बडा दंड ह 'औात्म दिमन!'
औपनी दुबमलिा जब औपराधी की स्मृति बनकर डं क मारिी ह, िब उिे वकिना उत्पीडामय हाेना
पडिा ह। उिे िुम्भ्हें क्या िमझाऊँ, मेरा औनुमान ह वक िुम भी उिे भाेगकर जान िकी हाे।
मनुष्य के पाि िकाेों के िमथमन का औस्त्र ह; पर कठाेर ित्य औलग खडा उिकी विद्वत्तापूणम मूखमिा
पर मुस्करा देिा ह। यह हँिी िूल-िी भयानक, ज्िाला िे भी औधधक झुलिाने िाली हाेिी ह।
मेरा इतिहाि...मं मलखना नहीं चाहिा। जीिन की कान-िी घटना प्रधान ह औार बाकी िब पीछे -
पीछे चलने िाली औनुचरी ह बुणर्द् बराबर उिे चेिना की लम्भ्बी पंमि में पहचानने में औिमथम ह।
कान जानिा ह वक ईश्वर काे खाेजिे-खाेजिे कब वपिाच ममल जािा ह।
जगि् की एक जड्टल िमस्या ह-स्त्री पुरुर् का स्नस्नग्ध ममलन, यदद िुम औार श्रीचन्र एक मन-प्राण
हाेकर तनभा िकिे वकन्िु यह औिम्भ्भि था। इिके मलए िमाज ने मभन्न-मभन्न िमय औार देिाें में
औनेक प्रकार की परीक्षाएँ कीं, वकन्िु िह िफल न हाे िका। रुमच मानि-प्रकृति, इिनी विमभन्न ह वक
ििा युग्म-ममलन विरला हाेिा ह। मेरा विश्वाि ह वक कदावप न िफल हाेगा। स्ििन्त्र चुनाि,
वकिाेरी! इिना िाे तनस्िन्देह ह वक मं िुमकाे वपिाच ममला, िुम्भ्हारे औानन्दमय जीिन काे नष्ट कर
देने िाला, भारििर्म का एक िाधु नामधारी हाे-यह वकिनी लज्जा की बाि ह। मेरे पाि िास्त्राें का िकम
था, मंने औपने कामाें का िमथमन वकया; पर िुम थीं औिहाय औबला! औाह, मंने क्या वकया?
औार िबिे भयानक बाि िाे यह ह वक मं िाे औपने विचाराें में पवित्र था। पवित्र हाेने के मलए मेरे
पाि एक सिर्द्ान्ि था। मं िमझिा था वक धमम िे, ईश्वर िे केिल हृदय का िम्भ्बन्ध ह; कुछ क्षणाें
िक उिकी मानसिक उपािना कर ले ने िे िह ममल जािा ह। इझन्रयाें िे, िािनाऔाें िे उनका काेई
िम्भ्बन्ध नहीं; परन्िु हृदय िाे इन्हीं िंिेदनाऔाें िे िुिंगदठि ह। वकिाेरी, िुम भी मेरे ही पथ पर
चलिी रही हाे; पर राेगी िरीर में स्िस्थ हृदय कहाँ िे औािेगा काली करिूिाें िे भगिान् का उज्ज्वल
रप कान देख िकेगा?
िुमकाे स्मरण हाेगा वक मंने एक ददन यमुना नाम की दािी काे िुम्भ्हारे यहाँ देिगृह में जाने के मलए
राेक ददया था, उिे वबना जाने-िमझे औपराधधनी मानकर! िाह रे दम्भ्भ!
मं िाेचिा हँ वक औपराध करने में भी मं उिना पतिि नहीं था, जजिना दूिराें काे वबना जाने-िमझे
छाेटा, नीच, औपराधी मान ले ने में। पुण्य का िकडाें मन का धािु-तनमममि घण्टा बजाकर जाे लाेग
औपनी औाेर िंिार का ध्यान औाकवर्मि कर िकिे हं, िे यह नहीं जानिे वक बहुि िमीप औपने हृदय
िक िह भीर्ण िब्द नहीं पहुँचिा।
वकिाेरी! मंने खाेजकर देखा वक मंने जजिकाे िबिे बडा औपराधी िमझा था, िही िबिे औधधक
पवित्र ह। िही यमुना-िुम्भ्हारी दािी! िुम जानिी हाेगी वक िुम्भ्हारे औन्न िे पलने के कारण, विजय के
मलए फाँिी पर चढने जा रही थी, औार मं-जजिे विजय का ममत्ि था, दूर-दूर खडा धन-िहायिा
करना चाहिा था।
भगिान् ने यमुना काे भी बचाया, यद्वप विजय का पिा नहीं। हाँ, एक बाि औार िुनाेगी, मं औाज
इिे स्पष्ट कर देना चाहिा हँ। हरद्वार िाली विधिा रामा काे िुम न भूली हाेगी, िह िारा (यमुना)
उिी के गभम िे उत्पन्न हुई ह। मंने उिकी िहायिा करनी चाही औार लगा वक तनकट भविष्य में
मंने भगिान् की औाेर िे मुँह माेडकर ममट्ट़ी के झखलाने में मन लगाया था। िे ही मेरी औाेर देखकर,
मुस्कुरािे हुए त्याग का पररचय देकर चले गये औार मं कुछ टु कडाें काे, चीथडाें काे िम्भ्हालने-
िुलझाने में व्यस्ि बठा रहा।
वकिाेरी! िुना ह वक िब छीन ले िे हं भगिान् मनुष्य िे, ठीक उिी प्रकार जिे वपिा झखलिाड़ी
लडके के हाथ िे झखलाना! जजििे िह पढने-मलखने में मन लगाये। मं औब यही िमझिा हँ वक
यह परमवपिा का मेरी औाेर िंकेि ह।
हाे या न हाे, पर मं जानिा हँ वक उिमें क्षमा की क्षमिा ह, मेरे हृदय की प्याि-औाेफ! वकिनी
भीर्ण ह-िह औनन्ि िृष्णा! िंिार के वकिने ही कीचडाें पर लहराने िाली जल की पिली िहाें में
िूकराें की िरह लाेट चुकी ह! पर लाेहार की िपाई हुई छुरी जिे िान रखने के मलए बुझाई जािी
हाे, ििे ही मेरी प्याि बुझकर भी िीखी हाेिी गयी।
जाे लाेग पुनजमन्म मानिे ह,ं जाे लाेग भगिान् काे मानिे हं, िे पाप कर िकिे हं? नहीं, पर मं देखिा
हँ वक इन पर लम्भ्बी-चाड़ी बािें करने िाले भी इििे मुि नहीं। मं वकिने जन्म लूँ गा इि प्याि के
मलए, मं नहीं कह िकिा। न भी ले ना पडा, नहीं जानिा! पर मं विश्वाि करने लगा हँ वक भगिान् में
क्षमा की क्षमिा ह।
वकिाेरी! न्याय औार दण्ड देने का ढकाेिला िाे मनुष्य भी कर िकिा ह; पर क्षमा में भगिान् की
िमि ह। उिकी ित्ता ह, महत्ता ह, िम्भ्भि ह वक इिीमलए िबिे क्षमा के मलए यह महाप्रलय करिा
हाे।
िाे वकिाेरी! उिी महाप्रलय की औािा में मं भी वकिी तनजमन काेने में जािा हँ, बि-बि!'
पत्र पढकर वकिाेरी ने रख ददया। उिके दुबमल श्वाि उत्तेजजि हाे उठे , िह फूट-फूटकर राेने लगी।
गरमी के ददन थे। दि ही बजे पिन में िाप हाे चला था। श्रीचन्र ने औाकर कहा, पंखा खींचने के
मलए दािी ममल गयी ह, यहीं रहेगी, केिल खाना-कपडा ले गी।
पीछे खड़ी दाे करुण औाँखें घूँघट में झाँक रही थीं।
श्रीचन्र चले गये। दािी औायी, पाि औाकर वकिाेरी की खाट पकडकर बठ गयी। वकिाेरी ने औाँिू
पाेंछिे हुए उिकी औाेर देखा-यमुना िारा थी।
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बरिाि के प्रारस्म्भ्भक ददन थे। िंध्या हाेने में विलं ब था। दिाश्वमेध घाट िाली चुंगी-चाकी िे िटा
हुऔा जाे पीपल का िृक्ष ह, उिके नीचे वकिने ही मनुष्य कहलाने िाले प्राणणयाें का दठकाना ह।
पुण्य-स्नान करने िाली बुड्ढयाें की बाँि की डाली में िे तनकलकर चार-चार चािल िबाें के फटे
औाँचल में पड जािे ह,ं उनिे वकिनाें के विकृि औंग की पुधष्ट हाेिी ह। कािी में बडे -बडे औनाथालय,
बडे -बडे औन्नित्र हं औार उनके िंचालक स्िगम में जाने िाली औाकाि-कुिुमाें की िीढ़ी की कल्पना
छािी फुलाकर करिे हं; पर इन्हें िाे झुकी हुई कमर, झुररम याें िे भरे हाथाें िाली रामनामी औाेढे हुए
औन्नपूणाम की प्रतिमाएँ ही दाे दाने दे देिी हं।
दाे माेट़ी इों टाें पर खपडा रखकर इन्हीं दानाें काे भूनिी हुई, कूडे की इों धन िे वकिनी क्षुधा-ज्िालाएँ
तनिृत्त हाेिी हं। यह एक दिमनीय दृश्य ह। िामने नाई औपने टाट वबछाकर बाल बनाने में लगे ह,ं िे
पीपल की जड िे ड्टके हुए देििा के परमभि हं, स्नान करके औपनी कमाई के फल-फूल उन्हीं पर
चढािे हं। िे नग्न-भग्न देििा, भूखे-प्यािे जीविि देििा, क्या पूजा के औधधकारी नहीं उन्हीं में फटे
कम्भ्बल पर इों ट का िवकया लगाये विजय भी पडा ह। औब उिके पहचाने जाने की ितनक भी
िंभािना नहीं। छािी िक हड्डियाें का ढाँचा औार वपंडमलयाें पर िूजन की मचकनाई, बालाें के घनेपन
में बड़ी-बड़ी औाँखें औार उन्हें बाँधे हुए एक चीथडा, इन िबाें ने ममलकर विजय काे-'नये' काे-णछपा
मलया था। िह ऊपर लटकिी हुए पीपल की पत्तत्तयाें का ड्हलना देख रहा था। िह चुप था। दूिरे
औपने िायंकाल के भाेजन के मलए व्यग्र थे।
औँधेरा हाे चला, रातत्र औायी, वकिनाें के विभि-विकाि पर चाँदनी िानने औार वकिनाें के औन्धकार में
औपनी व्यंग्य की हँिी णछडकने! विजय तनष्चेष्ट था। उिका भालू उिके पाि घूमकर औाया, उिने
दुलार वकया। विजय के मुँह पर हँिी औायी, उिने धीरे िे हाथ उठाकर उिके सिर पर रख पूछा,
'भालू ! िुम्भ्हंे कुछ खाने काे ममला?' भालू ने जँभाई ले कर जीभ िे औपना मुँह पाेंछा, वफर बगल में िाे
रहा। दाेनाें ममत्र तनिेष्ट िाेने का औमभनय करने लगे।
एक भारी गठरी मलए दूिरा मभखमंगा औाकर उिी जगह िाेये हुए विजय काे घूरने लगा। औन्धकार
में उिकी िीव्रिा देखी न गयी; पर िह बाेल उठा, 'क्याें बे बदमाि! मेरी जगह िूने लम्भ्बी िानी ह
मारँ डण्डे िे, िेरी खाेपड़ी फूट जाय!'
भालू लाट पडा औार नया मभखमंगा एक बार चांक उठा, 'कान ह रे ?' कहिा िहाँ िे झखिक गया।
विजय वफर तनश्चिन्ि हाे गया। उिे नींद औाने लगी। पराें में िूजन थी, पीडा थी, औनाहार िे िह
दुबमल था।
एक घण्टा बीिा न हाेगा वक एक स्त्री औायी, उिने कहा, 'भाई!' 'बहन!' कहकर विजय उठ बठा। उि
स्त्री ने कुछ राेड्टयाँ उिके हाथ पर रख दीं। विजय खाने लगा। स्त्री ने कहा, 'मेरी नाकरी लग गयी
भाई! औब िुम भूखे न रहाेगे।'
'श्रीचन्र के यहाँ।'
विजय के हाथ िे राेट़ी गगर पड़ी। उिने कहा, 'िुमने औाज मेरे िाथ बडा औन्याय वकया बहन!'
'क्षमा कराे भाई! िुम्भ्हारी माँ मरण-िेज पर ह, िुम उन्हें एक बार देखाेगे?'
विजय चुप था। उिके िामने ब्रह्मांड घूमने लगा। उिने कहा, 'माँ मरण-िेज पर! देखूँगा यमुना परन्िु
िुमने...!'
'मं दुबमल हँ भाई! नारी-हृदय दुबमल ह, मं औपने काे राेक न िकी। मुझे नाकरी दूिरी जगह ममल
िकिी थी; पर िुम न जानिे हाेगे वक श्रीचन्र का दत्तक पुत्र माेहन का मेरी काेख िे जन्म हुऔा ह।'
'क्या?'
ट़ीन के पात्र में जल पीकर विजय उठ खडा हुऔा। दाेनाें चले । वकिनी ही गमलयाँ पार कर विजय
औार यमुना श्रीचन्र के घर पहुँचे। खुले दालान में वकिाेरी मलटाई गयी थी। दान के िामान वबखरे
थे। श्रीचन्र माेहन काे ले कर दूिरे कमराें में जािे हुए बाेले, 'यमुना! देखाे, इिे भी कुछ ददला दाे।
मेरा मचत्त घबरा रहा ह, माेहन काे ले कर इधर हँ; बुला ले ना।'
औार दाे-िीन दासियाँ थीं। यमुना ने उन्हें हटने का िंकेि वकया। उन िबने िमझा-काेई महात्मा
औािीिामद देने औाया ह, िे हट गयीं। विजय वकिाेरी के पराें के पाि बठ गया। यमुना ने उिके
कानाें में कहा, 'भया औाये हं।'
वकिाेरी ने औाँखें खाेल दीं। विजय ने पराें पर सिर रख ददया। वकिाेरी के औंग िब ड्हलिे न थे।
िह कुछ बाेलना चाहिी थी; पर औाँखाें िे औाँिू बहने लगे। विजय ने औपने ममलन हाथाें िे उन्हें
पाेंछा। एक बार वकिाेरी ने उिे देखा, औाँखाें ने औधधक बल देकर देखा; पर िे औाँखें खुली रह गयीं।
विजय वफर पराें पर सिर रखकर उठ खडा हुऔा। उिने मन-ही-मन कहा-मेरे इि दुःखमय िरीर काे
जन्म देने िाली दुझखया जननी! िुमिे उऋण नहीं हाे िकिा!
इि घटना काे बहुि ददन बीि गये। विजय िहीं पडा रहिा था। यमुना तनत्य उिे राेट़ी दे जािी, िह
तनविमकार भाि िे उिे ग्रहण करिा।
एक ददन प्रभाि में जब उर्ा की लाली गंगा के िक्ष पर झखलने लगी थी, विजय ने औाँखें खाेलीं।
धीरे िे औपने पाि िे एक पत्र तनकालकर िह पढने लगा-'िह विजय के िमान ही उच्छं खल ह।...
औपने दाेनाें पर िुम हँिाेगी। वकन्िु िे चाहे मेरे न हाें, िब भी मुझे एेिी िंका हाे रही ह वक िारा
(िुम्भ्हारी यमुना) की मािा रामा िे मेरा औिध िम्भ्बन्ध औपने काे औलग नहीं रख िकिा।'
पढिे-पढिे विजय की औाँखाें में औाँिू औा गये। उिने पत्र फाडकर टु कडे -टु कडे कर डाला। िब भी
न ममटा, उज्ज्वल औक्षराें िे िूयम की वकरणाें में औाकाि-पट पर िह भयानक ित्य चमकने लगा।
उिकी धडकन बढ गयी, िह तिलममलाकर देखने लगा। औझन्िम िाँि में काेई औाँिू बहाने िाला न
था, िह देखकर उिे प्रिन्निा हुई। उिने मन-ही-मन कहा-इि औझन्िम घड़ी में हे भगिान्! मं िुमकाे
औाठ बजे भारि-िंघ का प्रदिमन तनकलने िाला था। दिाश्वमेध घाट पर उिका प्रचार हाेगा। िब
जगह बड़ी भीड ह। औागे स्त्रस्त्रयाें का दल था, जाे बडा ही करुण िंगीि गािा जा रहा था, पीछे कुछ
स्ियंिेवियाें की श्रेणी थी। स्त्रस्त्रयाें के औागे घण्ट़ी औार लतिका थीं। जहाँ िे दिाश्वमेध के दाे मागम
औलग हुए ह,ं िहाँ औाकर िे लाेग औलग-औलग हाेकर प्रचार करने लगे। घण्ट़ी उि मभखमंगाें िाले
पीपल के पाि खड़ी हाेकर बाेल रही थी। उिके मुख पर िाझन्ि थी, िाणी में स्नस्नग्धिा थी। िह कह
रही थी, 'िंिार काे इिनी औािश्यकिा वकिी औन्य िस्िु की नहीं, जजिनी िेिा की। देखाे-वकिने
औनाथ यहाँ औन्न, िस्त्र विहीन, वबना वकिी औार्धध-उपचार के मर रहे हं। हे पुण्यामथमयाे! इन्हें ना भूलाे,
भगिान औमभनय करके इिमें पडे हं, िह िुम्भ्हारी परीक्षा ले रहे हं। इिने ईश्वर के मंददर नष्ट हाे रहे
हं धामममकाे। औब भी चेिाे!'
िहिा उिकी िाणी बंद हाे गयी। उिने स्स्थर दृधष्ट िे एक पडे हुए कंगले काे देखा, िह बाेल उठी,
'देखाे िह बेचारा औनाहार-िे मर गया-िा मालू म पडिा ह। इिका िंस्कार...'
'हाे जायेगा। हाे जायेगा। औाप इिकी मचन्िा न कीजजये, औपनी औमृििाणी बरिाइये।' जनिा में
काेलाहल हाेने चला; वकन्िु िह औागे बढ़ी; भीड भी उधर ही जाने लगी। पीपल के पाि िन्नाटा हाे
चला।
माेहन औपनी धाय के िंग मेला देखने औाया था। िह मान-मझन्दर िाली गली के काेने पर खडा था।
उिने धाय िे कहा, 'दाई, मुझे िहाँ ले चलकर मेला ददखाऔाे, चलाे, मेरी औच्छी दाई।'
यमुना ने कहा, 'मेरे लाल! बड़ी भीड ह, िहाँ क्या ह जाे देखाेगे?'
'िब िुम पाजी लडके बन जाऔाेगे, जाे देखेगा िही कहेगा वक यह लडका औपनी दाई काे पीटिा ह।'
चुम्भ्बन ले कर यमुना ने हँििे हुए कहा।
िह दाड़ी हुई विजय के पाि गयी। उिने खडे हाेकर उिे देखा, वफर पाि बठकर देखा। दाेनाें
औाँखाे िे औाँिू की धारा बह चली।
यमुना दूर खडे श्रीचन्र के पाि औायी। बाेली, 'बाबूजी, मेरे िेिन में िे काट ले ना, इिी िमय दीजजये,
मं जन्म-भर यह ऋण भरँगी।'
'मेरा एक भाई था, यहीं भीख माँगिा था बाबू। औाज मरा पडा ह, उिका िंस्कार िाे करा दूँ।'
िह राे रही थी। माेहन ने कहा, 'दाई राेिी ह बाबूजी, औार िुम दि ठाे रुपये नहीं देिे।'
श्रीचन्र ने दि का नाेट तनकालकर ददया। यमुना प्रिन्निा िे बाेली, 'मेरी भी औायु ले कर जजयाे मेरे
लाल।'
िह िि के पाि चल पड़ी; परन्िु उि िंस्कार के मलए कुछ लाेग भी चाड्हए, िे कहाँ िे औािें। यमुना
मुँह वफराकर चुपचाप खड़ी थी। घण्ट़ी चाराें औार देखिी हुई वफर िहीं औायी। उिके िाथ चार
स्ियंिेिक थे।
'हाँ।' कहकर घण्ट़ी ने देखा वक एक स्त्री घूँघट काढे , दि रुपये का नाेट स्ियंिेिक के हाथ में दे रही
ह।
घण्ट़ी ने कहा, 'दान ह पुण्यभागगनी का-ले लाे, जाकर इििे िामान लाकर मृिक िंस्कार करिा दाे।'
'मनुष्य के ड्हिाब-वकिाब में काम ही िाे बाकी पडे ममलिे हं।' कहकर घण्ट़ी िाेचने लगी। वफर उि
िि की दीन-दिा मंगल काे िंकेि िे ददखलायी।
मंगल ने देखा एक स्त्री पाि ही ममलन ििन में बठी ह। उिका घूँघट औाँिुऔाें िे भींग गया ह औार
तनराश्रय पडा ह एक कंकाल!
कंकाल - जयशक
ं र प्रसाद