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(UGC Care Group I Listed Journal) Vol-10 Issue-5 No. 2 January–December 2020
इं सान िु छ पैसों िे जलए जबना िायष किए लोगों िो तंग िरते रिते िैं। िि िौन-
सी मिबूरी िै कि उन्िें जस्त्रयों िी तरि सि सँिरिर गली-गली भीख मांगने िे
जलए मिबूर िोना पड़ता िै? अतीत से ितषमान ति दुजनया इन्िें िेय दृजि से
देखती िली आ रिी िै । समाि में अतीत पर आधाररत मान्यताएँ, अजधि िैं ये
मान्यताएँ आि भी इं सान िे मन में, एि इं सान िे जलए िी गलत धारणा बनाए
रखी िैं! समाि िी ऐसी दोिरी मानजसिता और व्यििार िे िारण िी किन्नरों
िो नरिीय िीिन िीने िे जलए जििश िोना पड़ रिा िै । इसी िे िलते किन्नर
िगष आि भी समाि में सम्मान िे जलए संघर्षरत िै ।
समाि स्त्री और पुरुर् दो रूपों में बंटा हुआ िै । इसिे अजतररक्त समाि में
तीसरा िगष भी िै । िो न स्त्री िै और न पुरुर् िो समाि िे उपेजक्षत व्यििार िा
जशिार िै । जिनिे िननांग पूरी तरि जििजसत न िो पाये, तो समाि उन्िें
किन्नर नाम से सम्बोजधत िरता िै । शरीर पुरुर् िा िोिर स्िभाि स़्त्त्री िा िो
अथाषत् उनिी भािनाएं िरूरतें सब स्त्री िी। एि बहुत िििनि जस्थजत जिससे
उन्िें अपने िीिन में सामना िरना पड़ता िै । अपनी पििान िी बातें तो दूर
एि सामान्य मनुष्य िी तरि िीिन िीने और समाि में उजित स्थान पाने िे
जलए िीिनपयषन्त संघर्षरत िैं। घृणा और उपेक्षा िा दंश झेलते हुए भी अपने
िेिरे पर झूठी मुस्िान जबखेरना किन्नर िीिन िी जििशता बन िाती िै । िि
जिन्दा तो िै, पर जनरं तर समाि िी उपेक्षा और जतरस्िार सििर धीरे -धीरे
अन्दर से उनिी आत्मा बहुत दुखी िै । 15 अप्रैल 2014 िा कदन खुशी िा कदन
था, भारत िे सिोच्च न्यायालय ने जििड़ों िो तीसरे जलंग िे रूप में िानूनी
मान्यता प्रदान िी । िानून लागू िरने िे साथ-साथ उन्िें उनिे मूल अजधिारों से
उनिा पररिय िराया। िानून िा बन िाना मित्त्िपूणष तो िै, पर उतना िी
मित्त्िपूणष िै समाि िी सोि और मानजसिता में पररितषन िा। िरूरत िै,
समाि िी िड़ता और संिीणषता में सुधार िी जिससे किन्नर िगष िे अजभशप्त
िीिन में सुधार िो सिे । जिस समाि िे जलए किन्नर िगष िमेशा से उपेजक्षत और
उपिास िा जिर्य रिा िो, उनिी मानजसिता में िल्द पररितषन िै से िो सिता
िै? पर ऐसा भी क्यों कि उसे सामान्य इं सान िा अजधिार समाि िो स्िीिार
निीं। बिपन से उसे माँ िी ममता और जपता िा प्यार, मागषदशषन, पररिार,
जशक्षा आकद से दूर ऐसे पाररजस्थजतयों में बेसिारा छोड़ कदया िाता िै । ििां
उन्िें िई मानजसि, शारीररि, सामाजिि दुभाषिनां और जिल्लतों िा सामना
िरना पड़ता िै । जिन्दगी यि स्िीिार िरने में गुिर िाती िै कि िे किन्नर िैं
और इं सानी भािनां से युक्त समानता िी उम्मीद िरते िैं । अधष-पुरुर् और
अधष-स्त्री िोने िी िश्मम्िश में िीिन भर गाली बनिर समाि द्वारा उपेजक्षत किये
िाते रिते िैं।
पररिार में किन्नर बच्चों िा िन्म अजभशाप बन िाता िै । सदस्य अपने ऐसे
बच्चों िो समाि से जछपाते िैं। क्योंकि पििान प्रिट िोने पर जपता िे पुरुर्त्ि
पर संदि
े िोने लगता िै । पररिार, समाि में सम्मान खोने लगता िै और अपनी
इज्जत िे जलए िे अपने िी किन्नर बच्चों िो त्याग देते िैं। इस तरि उन्िें समाि िी
दुव्यि
ष िार से बिने िे जलए अलग समुदाय में रिने िे जलए बाध्य िोना पड़ता िै ।
अगर पररिार बच्चे िी परिररश िरना िािे तो, िे बच्चे िे स्नेि और परिररश
िरने िे जलए स्ियं समाि से अलग िो िाते िैं । यि इसजलए िी संिीणष
मानजसिता िाली सामाजिि व्यिस्था इन्िें सम्मानिनि िीिन िीने िा
अजधिार निीं देती िै । इसजलए अपने असंिेदनशील व्यििार से इन्िें बजिष्िृ त
िर अलग गांि और अलग समुदाय में रिने िा ददष कदया िाता िै । िबकि
प्रजतजष्ठत िीिन िा ििदार िर प्राणी िै- पशु-पक्षी, स्त्री-पुरुर्, उभयजलंगी-प्राणी
आकद।
भगिंत अनमोल िी जिन्दगी 50-50 उपन्यास किन्नरों िी यथाथषता िो
पाठिों िे सामने रखिर समाि िी सच्चाइयों से पररजित िराता िै । युिा
साजित्यिार अपनी िास्तजिि ििानी िे द्वारा किन्नरों िे दुख ददष िो पाठिों ति
पहुिाने िा प्रयास िरते िैं। लेखि समाि िे उनिे प्रजत व्यििारों से भलीभांजत
पररजित िैं, क्योकि उनिा छोटा भाई किन्नर िै और उनिा पुत्र सूयष भी किन्नर िै
। िब अनमोल जपता बनता िै और सूिना जमलती िै कि- ‘‘आपिे बेटे िा जशशन
अपररपक्व िै और उसिे दोनो टेजस्टिल्स भी निीं िै ।”2 अनमोल इस बात से
पररजित िोने पर कि उसिा बच्चा सामान्य निीं िै । बजल्ि किन्नर िै । उसिे
कदलो कदमाग में भूिाल आ िाता िै । आंखो िे सामने अंधेरा छा िाता िै । सूयाष
िे िन्म िोने पर डॉक्टर िब उसिो धीमी आिाि में ििता िै । आपिा बेटा
िभी बाप निीं बन पायेगा। िि बहुत व्यजथत िो िाता िै । सुनते िी िि
मूिदशषन बन िाता िै । उसिे दीमाग में कफिूल िी बातें घूमने लगती िैं और
डॉक्टर िो टिटिी जनगािों से देखने लगता िै । सोिता िै कि ईश्वर ने उसिे
साथ भद्दा मिाि क्यों किया? अब िि समाि से िै से लड़ेगा क्या िि सेक्स
ििष र बन िायेगा? ऐसे अनेि प्रश्न उसिे सामने खड़े िोने लगते िैं। अनमोल
अपने पररिार िे व्यििार िी जिंता िरने लगता िै कि पररिार से क्या ििेगा?
पररिार िे साथ-साथ समाि भी उसिे साथ बुरा बताषि िरे गा । िि इनिा
सामना किस तरि िरे गा? अनमोल िो अन्दर िी अन्दर ये बातें खाई िा रिी
थीं। यि पीड़ा पिले भी उसिे िीिन में आ िुिी थीं। क्योंकि िि अपने किन्नर
भाई िर्ाष िी दयनीय पाररजस्थजतयों से पररजित था। िन्म से अनमाले अपने
भाई िो रोते जससिते घर, पररिार और समाि में प्रताजड़त और अपमाजनत देख
‘अनमोल यि दृढ़ जनिय िरता िै कि िि अपने बेटे िो अधूरी जिन्दगी निीं,
बजल्ि भरपूर जिन्दगी िीने िे जलए िर तरि से सक्षम बनायेगा।’ अनमोल िी
यि मनोगत दशा बहुत मार्मषि िै । यि िैिाररि द्वन्द्व उसिे स्ियं िे पररिार से
उतना निीं िै, जितना समाि िे अपमानों िा भय सता रिा िै । पररिार से
ज्यादा समाि िी व्यजक्त िे िीिन िो प्रभाजित िरता िै । समाि िी स्त्री, पुरुर्
और तीसरे िेंडर िे साथ भेद-भाि पूणष व्यििार तय िरता िै ।
माँ और बच्चे िा ररश्मता अनोखा िोता िै । िर माँ अपने बच्चे िो स्नेि और
प्यार िरती िै । उसिे सामने उसिी सन्तान िी सबसे खूबसूरत िोती िै । लेकिन
सन्तानों िे व्यजक्तत्ि पर मात्र माता-जपता िा िी प्रभाि निीं िोता िै बजल्ि
बािरी िारिों िा गिन प्रभाि पड़ता िै । ऐसे िी एि माँ िी ममता और बािरी
िातािरण िे प्रभाि िा द्वन्द्व कदखाई पड़ता िै । इस उपन्यास में िर्ाष िी माँ ऐसे
िी जिर्म पाररजस्थजतयों से गुिर रिी िै । अपने पुत्र िे िन्म पर िन्मोत्सि
मनाना िािती िै किं तु, िर्ाष िे जपतािी िो यि जबल्िु ल पसंद निीं िै । क्योंकि,
उनिो डर िै कि अगर यि सब समाि िो पता िल गया कि उनिा पुत्र जििड़ा
िै, तो समाि उसिा मिाि बनायेगा- ‘‘आि िे बाद न्यौता िा नाम न ले
जलयो। तुम किसिे खाजतर न्यौता देना िािती िो? िो िु छ सालों बाद िमारी
प्रिट िोता - “िोनो बात नािी, तुम ििी रिो। बकढ़या पढ़ो जलखो नौिरी िरो।
यिां िी जिन्दगी बहुत अच्छी निीं िै ।”11 यि उपन्यास िीिनभर संघर्षरत उन
इं सानों िा दस्तािेि िै, जिनिे प्रजत समाि िी दोिरी मानजसिता कदखाई पड़ती
िै । ििां एि तरफ मुख्यधारा िा समाि पुत्र िन्म पर इन किन्नरों िी दुआएँ
और बलाएँ लेता िै । ििीं दूसरी तरफ यिी समाि उन्िें अपमाजनत, उपेजक्षत
और सामाजिि गजतजिजधयों से बजिष्िृ त मानता िै ।
लेखि िर्ाष िे माध्यम से किन्नर िगष िी समस्यां और िरटलतां िो
उनिी िंसी में जछपे ददष िो बड़ी संिेदना िे साथ पाठि िे सामने रखने िा
प्रयास िरता िै । उनिी ऐसी पीड़ां िो, िो िीिनपयषन्त िलते रिती िैं, ठीि
िर्ाष िे िीिन िी तरि िै । जिसे लेखि अपने उपन्यास िे िररए मुख्य समाि िे
सामने लाने िा प्रयास िरता िै । उपन्यास िा मार्मषि पक्ष िै, िब िर्र्षता िी
डायरी जमलती िै, जिसमें िर एि शब्द में िर्ाष िी जििशता, बेिैनी तथा उसिी
भािनां िा उतार िढ़ाि जलखा जमलता िै । ऐसे बच्चों िे िन्म लेते िी यि बात
परे शान िरती िै कि िि स्त्रीजलंग या पुजल्लंग िा प्रयोग िरें । अतीत िो झांििर
देख,ें तो समाि किन्नर िगष िे प्रजत असंिेदनशील िै । यि ििानी मानिीय
संिेदनां और मूल्यों पर प्रश्न उठाती िै । िर्ाष िो बिपन से जपता िे संबल िे
स्थान पर दुव्यि
ष िार जमलता िै । उसे अिसास कदलाया िाता िै कि िि सबसे
अलग िै । िि इस अिे लेपन और उपेजक्षत व्यििार से त्रस्त िोिर पररिार छोड़
देता िै और जििड़ा समुदाय में शाजमल िो िाता िै । समुदाय में शाजमल िोने पर
भी जिन्दगी िे उतार िढ़ाि में डू बते उतरते अंत में स्ियं िी इिलीला समाप्त िर
लेती िै ।
किन्नर िगष सकदयों से अपने पििान िे जलए संघर्षरत िै । आि उनिे प्रजत
लोगों िी धारणा में पररितषन िो रिे िैं। इस उपन्यास में किन्नर समाि िे प्रजत
संिेदनशील िगष िी बदलती मानजसिता िा पररिय भी जमलता िै । यि सूयाष
और िर्ाष िे िीिन िी तुलना से देखा िा सिता िै । सूयाष औ िर्ाष दोनों िी
किन्नर िैं, सूयाष जशक्षा प्राप्त िर समाि में अपनी खुद िी पििान बनाने िी
िोजशश िरता िै । इस िोजशश में जपतािी िा पूणष मागषदशषन ि सबल सियोग
प्राप्त िै, जिससे िि िामयाब िोता िै । परं तु िर्ाष िी जस्थजत ठीि जिपरीत िै ।
िि बिपन से अिे लेपन और िीनभािना से ग्रस्त िै । िि पररिार से जिस्थाजपत
िोने िो मिबूर िो िाता िै । िि किन्नर समाि में शाजमल िोने िे जलए जििश
िो िाता िै । ििाँ उसे िर समय पररिार िी आिश्मयिता मिसूस िोती िै ।
बहुत कदनों बाद भी प्रजतजष्ठत समाि उसिो समझने िी िोजशश भी निीं िरता
िै । िि बार-बार जिजन्तत िो िाता िै कि उसिी गलती क्या िै? यिी कि एि
अंग अजििजसत िै । बस इतनी सी! शायद इस तथािजथत समाि में सारा फसाद
जसफष इसी अंग िो लेिर िोते िै । लड़ाई-झगड़ा, प्रेम, मारपीट, मान-अपमान,
बलात्िार आकद सब इसी ििि से िैं। दोनों पात्रों िे माध्यम से लेखि ने अपनी
िथा िो मार्मषि बनाया िै । उनिी इस िु शलता िे जिर्य में समीक्षि जलखते िैं
कि- “िर्ाष िे िीिन िे िु रूपतां िे समान्तर एि िथा अनमोल, उसिी पिी
आजशिा उसिी प्रेजमिा अनाया और पुत्र किन्नर सूयाष िी िलती रिती िै । बड़े
िरीने से, लेखि ने मानजसि िु रूपता बनाम शारीररि िु रूपता िी
समानान्तरता गढ़ा िै ।”12
िर्ाष िे सामने भजिष्य िा अंधिार मडराता िै । स्िू ल से लेिर घर-बािर
िर िोई मिाि उड़ाता िै । गािे-बगािे लोग उसे जििड़ा ििने से निीं िूिते िैं।
खेलने िू दने में पढ़ते िक्त और यिां ति कि स्िू ल िा फामष भरते िक्त एि अलग
िी िॉलम िोता िै । पुरुर् मजिला या अन्य। िर िक्त यि एिसास कदलाया िाता
िै कि ये समाि से अलग िैं। समाि से जतरस्िृ त और बजिष्िृ त िैं। इसिा
उदािरण िर्ाष िै । िो िीिन िी त्रासदी से िूझते हुए किन्नर समाि में शाजमल
िोिर जिन्दगी िीने िी िददोििद िरती िै- ‘‘और िि िर्ाष से िर्र्षता बन
िाती िै।” शायद ये उसिी पििान बनाने िी पिली सीढ़ी थी।
‘‘िर्ाष से िर्र्षता बनना मेरे जलए मिबूरी और िरूरतें दोनों थीं। िर्ाष िी िाया
में छटपटािट िोती थी मगर िोई निीं था िो उसे समझ सिता। पररिार िाले
भी निीं। अम्मा िाििर भी िु छ निीं िर सिती थी। िु छ भी निीं। आजखर इस
उिापोि से जनिलिर अन्ततः िर्र्षता िे अजस्तत्ि में मैं आ िी गई।”13
जलए आधा अधूरा निीं बजल्ि पूरी तरि से सफल िै । यि उपन्यास ‘िम बदलेगें,
िग बदलेगा’ िी यथाथषता िो प्रिट िरने में पूणषता सफल िै ।