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रुद्रयामल उत्तर तंत्र योग साधना
रुद्रयामल उत्तर तंत्र योग साधना
रुद्रयामल उत्तर तंत्र योग साधना
द्धिश्लेषणात्मक अध्ययन”
कद्धिकु लगुरु कासलदास सं स्कृ त द्धिश्वद्धिद्यालय,रामटे क योग द्धिज्ञान तथा समग्र स्वास्थ्य
द्धिभाग के अंतगगत द्धिद्यािाररसध उपासध हेतु प्रस्तुत
(सं सिप्त सं शोधन रूपरेखा)
शोध सारांश
सं शोधक
योगेन्द्र कु मार
मागगदशगक
डॉ. मधुसूदन पेन्ना,
प्राध्यापक, भारतीय दशगन द्धिभाग
अनुक्रमांक द्धिषय
१. प्रस्तािना
२. पूिग सं शोधन
३. द्धिषय की आिश्यकता
४. उद्दे श्य
५. प्राक्कल्पना
६. सं शोधन द्धिसध
८. अध्याय द्धिभाग
पररिार के रूप में स्वीकार करने की दृद्धष्ट् भारतीय पररिेश से द्धमली। मानि समाज
को शारीररक रूप से स्वस्थ, मानससक रूप से सजग और अध्यासत्मक रूप से तृप्त करने
का कायग भारतीय मनीद्धषयों की ज्ञान दीिा ने द्धकया। इससे अनेक सम्प्रदायो का जन्म
और द्धनगम से जाना जाता है द्धनगम में िैद्धदक परम्पराए द्धनद्धहत है इसके अंतगगत कमग,
ज्ञान तथा उपासना और िैद्धदक ससधान्तो को बताया है तथा आगम तन्त्र, द्धक्रयाओं
द्धक्रया द्धनद्धहत है इसमें सृद्धष्ट्, स्थस्थद्धत, प्रलय, दे िताचगन, सिगसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म,
के द्धिषय उपलब्ध है तं त्र शास्त्र की मुख्य तीन रूप द्धिकससत हुए इनमे िैष्णि, शैि
और शाक्त आगम मुख्य है। तं त्र के चार पाद द्धिभाग होते है ज्ञान, योग, चयाग और
द्धक्रया इनके माध्यम से द्धिषयों को प्रद्धतपाद्धदत द्धकया जाता है। तं त्र के द्धिषय में िसणगत
िामदेि, अघोर, तत्पुरुष, ईशान इनके मुखो से द्धनद्धमगत है आगम शास्त्र या तं त्र उन्हें
कहा जाता है सजसमे पािगती सशि भगिान से प्रश्न कर रही है और सशि पािगती के
प्राद्धप्त है। तं त्र में आगम के बाद यामल और डामर तं त्रों का िणगन द्धमलता है यामल
भी आगम तं त्र की तरह िातागलाप पर आधाररत है। आगम मे मुख्य सशि पािगती
साद्धहत्य के प्रमुख ग्रन्थ रुद्रयामल उत्तर तं त्र में सशि और शद्धक्त के सं िाद का रूप
द्धनद्धहत है इसमें योग साधना, कुं डसलनी, मन्त्र साधना द्धिसध और ससद्धियों का िणगन
पूिग सं शोधन
सं स्कृ त शोध पद्धत्रका में प्रकासशत शोध पत्र के अनुसार रूद्रयामल उत्तर तं त्र में ५३
योग आसनों1 के बारे में बताया गया है इस शोध पत्र में पुरातन ग्रंथो में िसणगत योग
आसनों का द्धिस्तृत अध्ययन द्धकया गया है। सम्बस्थित ग्रन्थ पर एक पुस्तक उपलब्ध
हुई है। “रुद्रयामल उत्तर तं त्र धमग और दशगन”2 यह एक शोध कायग पर प्रकासशत की
तं त्र शास्त्र के अनेक ग्रंथ उपलब्ध है सजनके अंतगगत अनेक साधनाओं और ससद्धियों
का िणगन द्धमलता है इनमे मं त्र साधना, देि उपासना, सृष्ट्ी उत्पद्धत, कुं डसलनी साधना,
द्धनयम द्धिचार और मं त्र ससद्धियों का ज्ञान द्धनद्धहत है इन सभी द्धिषयों पर शोध की दृद्धष्ट्
से बहुत कम कायग हुआ है। पूिग प्राप्त शोध कायो में तं त्र साद्धहत्य का यौद्धगक दृद्धष्ट् से
अिलोकन न के बराबर है लेद्धकन तं त्र के ग्रंथों में योग सम्बिी अनेक द्धिचार दे खने
को द्धमलते है। उन्ही यौद्धगक पिों को स्थाद्धपत करने हेतु तं त्र साद्धहत्य पर शोधकायग
की आिश्यकता है।
रुद्रयामल उत्तर तं त्र में िसणगत यौद्धगक द्धिषय षट्चक्र, योग आसन,
कुं डसलनी जाग्रद्धत उपाय बहुत महत्वपूणग है इस सलए रुद्रयामल उत्तर तं त्र पर शोध
कायग से योग सम्बिी नूतन द्धिषय प्रकट होंगे इससे योग साधना के प्रायोद्धगक पि
को बल द्धमलेगा।
उद्दे श्य
• रुद्रयामल उत्तर तं त्र में िसणगत नये यौद्धगक द्धिषयों की जानकारी प्राप्त होगी।
• रुद्रयामल उत्तर तं त्र में िसणगत द्धिषयों का अन्य शास्त्रों से सम्बि प्रकट होगा।
• रुद्रयामल उत्तर तं त्र में िसणगत ससद्धियों के ज्ञान का साधको को लाभ होगा।
सं शोधन द्धिसध
सिग प्रथम सं पूणग ग्रंथ का सकल अध्ययन द्धकया जायेगा। इस शोध प्रबं ध में
तं त्र शास्त्र के द्धिपुल ग्रन्थ उपलब्ध है इन ग्रंथो में यामल तं त्र का द्धिशेष स्थान है
अध्याय है इसमें शोध करने हेतु व्याद्धप्त द्धदखाई देती है। इस सलए प्रमुख तं त्र ग्रंथो
में िसणगत योग द्धिचारो के स्वरूप का अध्ययन एिं रूद्रयामल तं त्र में िसणगत यौद्धगक
प्रस्तािना
उपसं हार
पररसशष्ट्
प्रथम अध्याय:- आगम और तं त्र
स्वरूप, तं त्र शास्त्र का महत्व, तं त्र शास्त्र में िसणगत द्धिषयों का प्रद्धतपादन,
यामल तं त्र ग्रंथो का पररचय, रुद्रयामल उत्तर तं त्र पररचय महत्व और द्धिषयों
का सं सिप्त प्रद्धतपादन
उत्तर तं त्र में िसणगत योग द्धिषयों का द्धििेचन तथा प्रायोद्धगक स्वरूप
प्रमुख तं त्र ग्रंथो में यौद्धगक स्वरूप, तं त्र के प्रमुख ग्रंथो का महत्व, तं त्र ग्रंथो
योद्धगयों का पररचय
सं दभग ग्रन्थ सूची
सं शोधक मागगदशगक
योगेन्द्र कु मार डॉ. मधुसूदन पेन्ना,
प्राध्यापक, भारतीय दशगन द्धिभाग