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आँजणा जाट - विकिपीडिया
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आँजणा चौधरी
आर्जुनाय, चौधरी, आँजणा जाट,
आँजणा पटेल
अंजना की कु लदेवी
वर्ण क्षत्रिय, कृ षक
कू लदेवी श्री माँ अर्बुदा, माउंट
आबू(राजस्थान)
देश भारत
वासित राज्य गुजरात, राजस्थान,
मध्यप्रदेश
इतिहास
वह जाट राजा वीरभद्र के पुत्र अतीसुर भद्र के पुत्र
अंजना जटा शंकर के वंशज हैं।।।
मुहनोत नैन्सी ने मेड़ता शहर में बड़ी संख्या में गांवों में
"अंजना जाट" के अस्तित्व की सूचना दी। १८९१ की
जनगणना में, यह बताया गया है कि उन्होंने अपनी
जाति-शीर्षक या नामकरण अपने पैतृक गाँव से
लिया। यह कथन समूह के साक्ष्य की व्याख्या करता
है। यह जाट नागौर अनुमान लगाता है कि इस गांव
का नाम उनकी जाति के नाम पर लिया गया था।
कबीले की सूची
गुजरात में निवास करने वाले जाट समुदाय को
आँजणा जाट या आँजणा चौधारी कहा जाता है।
गुजरात के चौधरियों को आँजणा के नाम से भी जाना
जाता है। गुजरात के कई चौधरियों के गोत्र उत्तर
भारत के जाटों के समान हैं।[5]
अन्य इतिहास
चौधरी आँजणा समाज के इतिहास पर कोई
शिलालेख नहीं है। चौधरी समाज का यह इतिहास
भाट की किताबों और पीढ़ियों से चली आ रही
कहानियों और इसकी स्वीकृ ति देने वाली अन्य
किताबों की जानकारी के आधार पर लिखा गया है।
देवेंद्र पटेल द्वारा लिखित महाजाती की संदर्भ पुस्तक
भी इस इतिहास का प्रमाण देती है। परशुराम स्वयं
ब्राह्मण और ऋषि थे। महाभारत में यह भी उल्लेख है
कि परशुराम ने पितामह भीष्म और कर्ण को
धनुर्विद्या सिखाई थी। परशुराम ने इस पृथ्वी को
इक्कीस बार निक्षत्रिय (क्षत्रिय विहीन) बनाया। जब
उन्होंने अंततः पृथ्वी पर देखा, तो सहस्त्रार्जुन नामक
एक क्षत्रिय राजा और उनके 100 पुत्र जीवित थे।
परशुराम ने वहाँ पहुँच कर उसके 100 पुत्रों में से 92
को मार डाला। अन्य आठ बेटे युद्ध के मैदान से भाग
गए और आबू पर 'मा अर्बुदा' के मंदिर के पीछे छिप
गए। परशुराम वहां एक फ़रशी लेकर आए और उन्हें
मारने की तैयार हुए। आठों घबरा गए और बचाने के
लिए मा अर्बुदा से प्रार्थना की "हे मैया हमे बचाओ।"
'माँ अर्बुदा' प्रकट हुई और परशुराम से निवेदन किया,
अरे ऋषिराज ये आठों अजनबी है। और उन्होंने मेरे
सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। इसलिए मैं उन्हें
मरने नहीं दूंगी। ” परशुराम ने कहा कि आठ में से
भविष्य में अस्सी हजार होंगे और वह मेरे खिलाफ युद्ध
छेड़ेंगे? मा अर्बुदा ने उत्तर दिया, "मैं आपको विश्वास
दिलाता हूं कि ये आठ अब अपने हाथों में हथियार नहीं
रखेंगे, आज से ये कृ षि कार्य करेंगे और पृथ्वी के पुत्र
बन के रहेंगे।"' परशुराम का क्रोध शांत हुआ। जब वे
वापस गए, तो वो आठो बाहर आए, माँ के सामने
अपने हाथ जोड़ कर खड़े हुए, और कहा, 'मा आज से
तुम हमारी माँ हो। अब हमें रास्ता दिखाओ। ' मा ने
कहा तुम अजनबी हो। आप यहाँँ कृ षि काम करो।
आज से लोग आपको आँजणा के रूप में पहचानेंगे।
"आगे बढ़, आँजणा तेरा छोड़ू न साथ तनिक। बड़े मन
से बाँटना तेरे घर धी दूध रहे अधिक।" आँजणा ने
भारत के विभिन्न राज्यों में रहने लगे। खेती और
पशुपालन के व्यवसाय के साथ भारत के राज्यों में
फै ल गए। जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल,
राजस्थान और गुजरात। आज, आँजणा भारत के
लगभग नौ राज्यों में रहते हैं और उन सभी ने मिलकर
अखिल आँजणा महासभा का गठन किया। इसका
मुख्य कार्यालय राजस्थान के आबू में है। उन्होंने
देहरादून के पास एक बड़ा शिक्षण संस्थान भी स्थापित
किया है।[7] कु छ आंजना जाट लोग अपने को हिंदू
देवता हनुमान की माता अंजना से संबंधित मानते हैं[8]
यह सभी देखें
जाट लोग
पाटीदार
कु र्मी
अग्रिम पठन
Agnihotri, Ajay Kumar (1985). गोहद के
जाटों का इतिहास (1505–1947) (Gohad ke
Jaton ka Itihas (1505–1947)) [History
of the Jats of Gohad (1505–1947)].
राजनैतिक एवं सांस्कृ तिक अध्ययन (Political
and Cultural Studies). New Delhi: Nav
Sahitya Bhawan. पपृ॰ 63–71.
संदर्भ
1. Prof. B.L. Bhadani (AMU) : "The Role
of Jats in the Economic
Development of Marwar", The Jats,
Vol.I, Originals, 2004, p.67
2. Mahaveer Singh Verma: Jat Veer
Smarika 1992 – “Jat Samaj
Ahmedabad”
6. B. K. Lavania; D. K. Samanta; S. K.
Mandal; N. N. Vyas, संपा॰ (1992–
1993). "Popular Prakashan". People
of India. XXXVIII Part Two:
Rajasthan. Calcutta: Anthropological
Survey of India and Oxford University
Press. पृ॰ 484.