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Unit 10 मध्यप्रदेश की जनजातियाँ
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यूलनट -10
मध्यप्रदेश की जनजालि – लवरासि, िोक सस्ं कृलि एवं िोक सालित्य
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यूलनट -10 : मध्यप्रदेश की जनजालि – लवरासि, िोक संस्कृलि एवं िोक सालित्य
▪ मध्यप्रदेश में जनजालियों का कौगोलिक लवस्िार, जनजालियों से सबंं ंलति संवैतालनक प्रावतान
▪ मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजालियााँ, लवशेष लिछड़ी जनजालियां एवं घुमंिू जनजालियााँ, जनजालियों के
कल्याण के लिए योजनाए
▪ मध्यप्रदेश की जनजािीय संस्कृलि – िरंिराएाँ, लवलशष्ट किाएाँ, त्योिार, उत्सव, काषा, बंोिी एवं सालित्य
▪ मध्यप्रदेश की जनजालियों का कारि के स्विंत्रिा आंदोिन में योगदान एवं राज्य के प्रमुख जनजािीय
व्यलित्व
▪ मध्यप्रदेश में जनजािीयो से संबंंलति प्रमुख संस्थान,संग्रिािय, प्रकाशन
▪ मध्यप्रदेश की िोक सस्ं कृलि एवं िोक सालित्य
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जनजालियों का आशय
▪ कारिीय इलििास में आलदवासी समूि का वणनन प्राचीन समय से लमििा िैं । डॉ श्रीनाथ शमान के जनजािीय अध्ययन के
अनुसार – “ कारिीय समाज में प्रागैलििलसक काि से िेकर आज िक आलद समूिों एवं वनवालसयों का उल्िेख प्राप्त िोिा िैं
। वैलदक एवं उत्तरवैलदक काि िथा मिाकाव्य काि में जनजालियों के नाम की उल्िेलखि िैं ।
▪ जनजालि या आलदम जालि अथवा आलदवासी राइब्स शब्द का लिन्दी रूिान्िरण िैं “ अंग्रेजी काषा में राइबं शब्द का अथन
कुटुंबं िैं ।
▪ राजनीलिशास्त्र में अलवकलसि समाज को राइबं कििे िैं ।
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जनजालियों का आशय
▪ कारिीय िररप्रेक्ष्य में जनजालि की अिनी लवलशष्ट ििचान िैं । ये कौगोलिक रूि से लनलिि कू – काग (जंगि, ििाड़, गुफाओ)ं
आलद में लनवास करिी िैं । इनके लिए अिग – अिग व्यलियों ने लवलकन्न तारणा िैं जो लनभिनलिलखि िैं –
• कारिीय समाजशास्त्री इन्िे वंलचि वगन, समूि या समुदाय द्वारा सबंं ोलति करिे िैं ।
• िट्टन ने इन्िे आलदमजालि नाम से संमबंोलति लकया िैं ।
• जी. एस. घूररये ने इन जनजालि या आलदवासी समूि को “लिछड़े लिन्दू “ किा िैं ।
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जनजालतयों की पररभाषा
▪ श्यामाचरण दुबे के अनुसार “ वास्तव में जनजालत, व्यलियों का वह समूह हैं , जो एक लनलित भौगोलिक क्षेत्र में आवास या
लवचरण करता हैं । और जो लकसी आलद पूववज को ही अपना उद्गम मान्यता हो तथा लजसकी एक सामान्य संस्कृलत होती हैं, जो
आज भी आधुलनक सभ्यता के प्रभावों से परें हैं ।
▪ राल्फ लिन्टन के अनुसार “ सरितम रूप में जनजालत एक ऐसा मानव समूह हैं, जो एक लवशेष भूभाग में रहता हैं, तथा लजसमे
सांस्कृलतक समानता, लनरंतर संपकव तथा कुछ लवशेष लहतों के कारण सामुदालयक एकता की भावना होती हैं एवं लजसका जीवन
रीलत ररवाज और व्यवहार के तौर तरीके आलदम अथावत आलदकािीन लवशेषताओ ं से युि रहते हैं ।
▪ अकादमीय स्तर पर भारतीय जनजालतयों की डॉ मजूमदार द्वारा दी गई पररभाषा मान्य हैं लजसके अनुसार “ जनजालत पररवारों
तथा पाररवाररक वगों का एक ऐसा समूह हैं लजसका एक सामान्य नाम हैं , लजसके सदस्य लनलित भूभाग में लनवास करते हैं,
समान भाषा बोिते हैं तथा जो अंतगोत्रीय लववाह नहीं करते भिे ही ऐसा वो पहिे करते रहे हो “
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जनजालतयों की पररभाषा
▪ रवींद्र नाथ मुकजी के अनुसार – “ एक जनजालत वह क्षेत्रीय समूह हैं , जो भूभाग, भाषा, सामालजक लनयम और आलथवक कायव
आलद लवषयों में एक समानता के सत्रू में बधा होता हैं “ ।
उपरोि पररभाषाओ से स्पष्ट हैं लक “ जनजालत एक ऐसा सामालजक समूह हैं, जो एक लनलित क्षेत्र में, एक लनलित भाषा,
लवलशष्ट संस्कृलत और सामालजक संगठन रखता हैं ।
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जनजालतयों का वगीकरण
जे एच हट्टन ने भारत में जनजालतयों में मुख्य रूप से लनमलिलखत तीन प्रजातीय तत्वों का उल्िेख लकया हैं –
1. नीलिटो (Negrito): ये यहााँ की सबसे प्राचीन जनजालत हैं । भारत में इस प्रजालत की कुछ जनजातीय दलक्षण भारत में लनवास
करती हैं । उत्तर – पूवी भारत की नागा जनजालतयों में नीलिटो प्रजालत शालमि हैं ।
लवशेषताएाँ : इनकी त्वचा कािी, नाक – चौड़ी, होंठ – मोटे तथा कद – िंबा होता हैं ।
नोट : अंडमान एवं लनकोबार एवं त्रावनकोर व कोचीन की पहालड़यों में पाई जाती हैं ।
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जनजालतयों का वगीकरण
2. प्रोटो – आस्रेिाइड (Proto – Australoid) : हट्टन के अनुसार इस प्रजालत का शुरू रूप दलक्षण भारत की पहालड़यों एवं जंगिों
में लनवास करने वािी जनजालतयों में देखा जा सकता हैं । मध्यभारत की जनजालतयों में गौड़, बैगा, कोरकू, लबहार में छोटा
नागपूर अञ्चि के आलदवासी जैसे मुंडा, हो, सथ
ं ाि इत्यालद इसी प्रजालत के अंतगवत आती हैं
लवशेषताएाँ : इनकी त्वचा कािी, नाक छपती, माथा सक
ं ीणव, बाि – घुाँघरािे तथा धाँसे हुए और कद छोटा होता हैं ।
नोट : ये मध्य एवं दलक्षण भारत की कबीिाई ं जनजालतयों की प्रजालत हैं ।
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3. माँगोियाड (Mangoloid): इस प्रजालत के सवावलधक स्पष्ट िक्षण ब्रह्मपुत्र के दलक्षणी तट पर लनवास करने वािे नागा,
आलदवासी समूह, तथा कुकी -लचन आलदवासी समूहो में देखे जा सकते हैं ।
लवशेषताएाँ : इनकी त्वचा पीिी, आंखे – छोटी, नाक – धाँसी हुई, बाि- सीधे तथा कद – छोटे होते हैं ।
a. पूरा- मंगोियाड
i. िंबा लसर वािा
ii. चौड़ा लसर वािा (असम और लहमािय क्षेत्र )
b. लतब्बती – मंगोियाड – िेह, िद्दाख
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जनजालतयों की लवशेषताएाँ
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महत्वपूणव आकड़े : याद करने के लिए
1. वतवमान में मध्यप्रदेश में 43 अनुसलू चत जनजालत लनवासरत हैं लजनकी पहिे सख्ं या 46 थी, परंतु कीर, मीना और पारधी को
अनुसलू चत जनजालत की सच ू ी से लविोलपत करने के बाद अब सख्
ं या 43 हैं ।
2. प्राचीन संस्कृत िंथ में आलदवालसयों को वनवासी या अलत्वका भी कहा जाता हैं ।
3. लब्रलटश शासन काि के समय जाजव लियवसन ने आलदवालसयों को पहाड़ी जनजालत से संबोलधत लकया गया हैं ।
4. महात्मा गांधी ने इन्हे लगररजन और जी. एस. घूररये (गोलवंद सदालशव घूररये ) ने इन्हे लपछड़े लहन्दू से सबं ोलधत लकया हैं ।
5. जनजालत समुदाय के लिए प्रथम बार आलदवासी शब्द का प्रयोग ठक्कर बप्पा ने लकया हैं, जनजालतयों के लिए इनके द्वारा लकए
गए कायव व योगदान के करण इन्हे जनजालतयों का लपतृ पुरुष कहा जाता हैं । इन्होंने 1950 में जनजालतयों पर “ राइब्स ऑफ
इलं डया “ नामक पुस्तक की रचना की ।
6. वररयार एिलवन ने जनजालतयों के समूहों की किा एवं सस्ं कृलत उनके जीवन पर आधाररत पुस्तक “ मुररया और उनका घोंटूि
(1947) एवं “द बैगा” (1939) लिखी थी ।
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भारत में जनजाततयों के िर्गीकरण को समझाने के तलए या लकसी समुदाय या जालत को अनुसूलचत जनजालत में
सलममलित करने के लिए चंदा सलमलत ने 1960 ई में पााँच मानक का लनधावरण लकया, जो लनमनलिलखत हैं –
1. भौगोलिक एकाकीपन
2. लवलशष्ट सस्ं कृलत
3. आलदम जालत के िक्षण
4. लपछड़ा पन
5. संकोची स्वभाव
जो भी जातत या समदु ाय इन मानकों को पणू व करे र्गी उन्हीं को अनसु तू ित जनजातत के अतं र्गवत सतममतलत तकया जाएर्गा। इन
मानकों के आधार पर भारत की कुि 461 जनजालतयों में से 424 जनजालत अनुसूलचत जनजालत के अन्तगवत आती हैं ।
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जनजातीय सक
ं े न्द्रण सूचकांक :
राज्य की कुल अनुसतू ित जनजातीय जनसंख्या में से तजले की जनजातीय जनसंख्या के प्रततशत तहस्से को सके न्रण सिू कांक
कहते हैं । तजलेिार संकेन्रण सिू कांक तभडं में 0.04 % से लेकर धार में 7.98% प्रततशत हैं ।
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मध्यप्रदेश की जनजालि – लवरासि, िोक सस्ं कृलि एवं िोक सालित्य
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यूलनट -10 : मध्यप्रदेश की जनजालि – लवरासि, िोक संस्कृलि एवं िोक सालित्य
▪ मध्यप्रदेश में जनजालियों का कौगोलिक लवस्िार, जनजालियों से सबंं ंलति संवैतालनक प्रावतान
▪ मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजालियााँ, लवशेष लिछड़ी जनजालियां एवं घुमंिू जनजालियााँ, जनजालियों के
कल्याण के लिए योजनाए
▪ मध्यप्रदेश की जनजािीय संस्कृलि – िरंिराएाँ, लवलशष्ट किाएाँ, त्योिार, उत्सव, काषा, बंोिी एवं सालित्य
▪ मध्यप्रदेश की जनजालियों का कारि के स्विंत्रिा आंदोिन में योगदान एवं राज्य के प्रमुख जनजािीय
व्यलित्व
▪ मध्यप्रदेश में जनजािीयो से संबंंलति प्रमुख संस्थान,संग्रिािय, प्रकाशन
▪ मध्यप्रदेश की िोक सस्ं कृलि एवं िोक सालित्य
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जनजािीय सक
ं े न्द्रण सूचकांक :
िाज्य की कुि अनुसतू चि जनजािीय जनसंयया में से तजिे की जनजािीय जनसंयया के प्रतिशि तिस्से को सके न्रण सचू कांक
कििे िैं । तजिेवाि संकेन्रण सचू कांक तभें में 0.04 % से िेकि धाि में 7.98% प्रतिशि िैं ।
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मध्यप्रदेश के सभििूणष कू-काग में आिको जनजालियों का लवस्िार देखने को लमििा िैं, लिर की ये जनजालि सवाषलतक रूि से
ििाड़ी और िठारी क्षेत्रों में लनवासरि िैं। िलिम में तार िथा झाबंुआ लजिों में सििुड़ा शंृखिा के िलिमी लिस्सों में कीि जनजालि,
मध्य लिस्सों में गोड़ और कोरकु जनजालि और िूवी लिस्सों में बंैगा और काररया जनजालियों का लनवास स्थान िैं। मध्यकारि के
िठार में सिररया जनजालि, रीवा िन्द्ना के िठार में कोि जनजालि, बंघेिखंड के िठार में बंैगा और िलनका जनजालियों का लनवास
क्षेत्र देखने को लमििा िैं । मध्य में मािवा के िठार में गोड़ और कीि जनजालि का लनवास देखने को लमििा िैं । अंि: उिरोि
लबंन्द्दुओ के आतार िर कि सकिे िैं लक मध्यप्रदेश एक जनजािीय प्रदेश िैं ।
लनभिनलिलखि सारणी के आतार िर िम मध्यप्रदेश के प्रमुख जनजालि, उनकी उिजालि और उनके लनवास क्षेत्र का एक
संलक्षप्त लववरण देख सकिे िैं ।
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मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजालि GENIUS INSTITUTE
जनजालि
क्र. उिसमूि लजिे
का नाम
1 गोड़ प्रधान, अगरिया, ओझा, नगिची, सोल्िास मध्यप्रदेश के सभी तजिों में, नमगदा के दोनों तकनािों, तवध्ं य औि
सिपड़ु ा पवगि शंखिा के ििाई क्षेत्रों में
2 भीि बिे िा, तभिािा, पटेतिया धाि, झाबक ु ,अिीिाजपिु , खें वा बिु िानपिु
3 बैगा तबझवाि, निे तटया, नािि, िाय भैंना, कथ भैना मण्ेिा, तेन्ेोिी, बािाघाट
4 कोिकू मवेतसरूया, नाििा बाबिी, बोदोयन खें वा, बिु िानपिु , िोशगं ाबाद, बैिि ू , त ं दवाड़ा
5 भारिया भतू टया, मईु निाि, पांेों त ं दवाड़ा, जबिपिु , बािाघाट
6 िल्िा िल्बी, बस्िरिया, एवं त्तीसगतिया बािाघाट
7 कोि श्रोतिया, िाथेि िीवा, सिना, शिेोि त ं दवाड़ा
8 मारिया अबझू मारिया, दतं ेभी, भारिया मेटाकोयटूि पन्ना, शिेोि, त ं दवाड़ा
9 सिरिया गनु ा, तशवपिु ी, मिु ै ना, ग्वातियि, तवतदशा, एवं िाजगि
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मध्य प्रदेश की जनजालियों का प्रादेलशक लविरण / Territorial Distribution of Tribes Of Madhya Pradesh
प्रादेलशक लविरण के आतार िर जनजािीय क्षेत्रों को प्रमुखिा से िीन कागों में बंााँटा गया िैं । ये जनजािीय प्रदेश िैं – िूवी
जनजािीय प्रदेश, िलिमी जनजालि प्रदेश एवं दलक्षणी जनजालि प्रदेश । इन प्रदेशो में लनवास करने वािी जनजालियों के
कौगोलिक वािावरण में अंिर िैं इसके साथ साथ संस्कृलि एवं सामालजक स्वरुि में की अंिर देखने को लमििा िैं ।
क्षेत्र जनजालि लजिे
उत्ति-पवू ग एमपी कोि, मतड़या, अगरिया, पतनका, खैिवाि शिेोि, सीधी, जबिपिु , िीवा, सिना
दतक्षणी एमपी गोे भारिया बैगा, मतड़या, ििबा में िा, बािाघाट, तसवनी, त ं दवाड़ा, बैिि ू , िोशगं ाबाद
पतिमी एमपी भीि, तभिािा खें वा, खिगोन, झाबक ु , िििाम, धाि, अिीिाजपिु
मध्य मप्र गोंे, कोिकू बैििू , िोशगं ाबाद, जबिपिु , ििदा, नितसंिपिु , िायसेन
उत्ति-पतिम सिरिया, सौि ग्वातियि, तभें , मिु ै ना, तशवपिु ी, टीकमगि, ििपिु , सागि
एमपी
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1. मािवा क्षेत्र :
a. मध्यप्रदेश का िलिमी लिस्सा, मािवा के िठार और नमषदा घाटी के आस – िास का क्षेत्र
b. कीि, लकिािा जनजालि का प्रमुख लनवास क्षेत्र
2. लनमाड़ क्षेत्र :
a. मध्यप्रदेश का दलक्षणी िलिमी लिस्सा, सििुड़ा िवषि शंृखिा का िलिमी एवं मध्य काग
b. कीि, कोरकू, गोंड जनजालि का लनवास क्षेत्र
3. चंबंि क्षेत्र
a. मध्यप्रदेश का उत्तरी लिस्सा, मध्यकारि िठार का क्षेत्र
b. सिररया, खैरवार जनजालि का क्षेत्र
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4. बंुंदेिखंड क्षेत्र
a. मध्यप्रदेश का उत्तरी लिस्सा, बंुंदेिखंड के िठार और के न एवं बंेिवा नदी के मध्य का क्षेत्र
b. कोंदवार, सिररया जनजालि का प्रमुख लनवास क्षेत्र
5. बंघेिखंड क्षेत्र
a. मध्यप्रदेश का उत्तरी – िूवी लिस्सा, रीवा- िन्द्ना का िठार एवं सोन नदी घाटी क्षेत्र
b. कोि, बंैगा, गोंड जनजालि प्रमुखिा से लनवास करिी िैं
6. मिाकौशि क्षेत्र :
a. मध्यप्रदेश का िूवी एवं दलक्षणी – िूवी क्षेत्र,नमषदा नदी घाटी एवं सििुड़ा िवषि शंृखिा के मध्य का क्षेत्र एवं मध्य
सििुड़ा शंृखिा एवं िूवी सििुड़ा शंृखिा का िराई का क्षेत्र, बंघेिखंड के िठार का क्षेत्र
b. बंैगा, गोंड, कररया, कोरकू जनजालि का प्रमुख लनवास क्षेत्र
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1. गोंड जनजालि :
a. मध्यप्रदेश के मध्य और नमषदा नदी घाटी के आसिास क्षेत्र में
इस जनजालि का लनवास क्षेत्र िैं ।
b. यि जनजालि लवंध्याचि िवषि श्रंखिा और सििुड़ा िवषि
शंृखिा के मध्य अवलस्थि क्षेत्रों में सवाषलतक जनसंख्या में
लनवास करिी िैं ।
c. िूवष में लसगं रौिी से िेकर िलिम में बंैिूि िक िथा उत्तर में
सागर से दलक्षण में बंािाघाट िक गोड़ों का लनवास क्षेत्र िैं ।
d. प्रमुख लजिे – बंैिूि, िरदा, िोशंगाबंाद, रायसेन, कोिाि,
सागर, दमोि, िन्द्ना, लडन्द्डोरी, मण्डिा, बंािाघाट, लछंदवाड़ा
e. इनकी सवाषलतक जनसख् ं या लछंदवाड़ा लजिे में 6.2 िाख िैं ।
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2. कीि जनजालि :
a. मध्यप्रदेश के िलिमी लिस्से में लवंध्य श्रेणी और सििुड़ा िवषि शंख ृ िा
के िलिमी लिस्से, नमषदा की लनचिी घाटी िथा मािवा िठार का कुछ
काग आिा िैं ।
b. प्रमुख लजिे : झाबंुआ, अिीराजिुर, बंड़वानी, खरगौन, गुना, रििाम,
खंडवा, इदं ौर, बंुरिानिुर, देवास
c. कीिों की सवाषलतक जनसख् ं या तार लजिे में 12 िाख से अलतक िैं ।
3. बंैगा जनजालि :
a. यि जनजालि मध्यप्रदेश के िूवी लिस्से में बंघेिखंड के िठार और
सििुड़ा श्रेणी के िूवी लिस्से में लनवासरि िैं ।
b. प्रमुख लजिे – मण्डिा, लडन्द्डोरी, बंािाघाट, उमररया, शिडोि,
अनूििुर इत्यालद लजिों
c. मंडिा लजिे में बंैगाओ के अस्सी से ज्यादा गााँव िैं लजन्द्िे बंैगाचक
किा जािा िैं ।
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4. कोरकू जनजालि
a. मध्यप्रदेश में यि जनजालि की जनसख् ं या 4.8% िैं ।
b. अलतकिर कोरकू मध्य सििुड़ा के क्षेत्रों में लनवासरि िैं । इस
िेटी के दलक्षण बंरार के मैदान में बंसे िैं ।
c. प्रमुख लजिे – बंैिूि, खंडवा, बंुरिानिुर, िरदा, िोशंगाबंाद,
देवास, सीिोर
5. कोि जनजालि
a. यि जनजालि नमषदा- सोन – गंगा िथा चंबंि के बंीच के उच्च
प्रदेश में लबंखरी िैं, लकन्द्िु ये मध्यप्रदेश के उत्तर – िूवी लिस्से में
लवंध्य और कै मूर िवषि के आस – िास के क्षेत्र में िै िे िैं ।
b. यि जनजालि स्वयं को रीवा ररयासि का मानिी िैं ।
c. प्रमुख लजिे – रीवा, सीती, सिना, लसगं रौिी, कटनी, शिडोि,
जबंििुर, उमररया, अनुिुिुर, लडन्द्डोरी
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6. सिररया जनजालि
a. सिररया मुख्य रूि से उत्तर – िलिम अञ्चि में मध्यकारि के िठार और
बंेिवा नदी के िराई वािे क्षेत्र में एवं बंुंदेिखंड क्षेत्रों में लनवासरि में िैं ।
b. प्रमुख लजिे – लशविुरी, दलिया, गुना, श्योिुर, लकंड,मुरैना, लवलदशा, रायसेन,
ग्वालियर
c. ग्वालियर संकाग में इसका घनत्व सवाषलतक िैं ।
7. काररया जनजालि
a. काररया मुख्यि: राज्य के लछंदवाड़ा एवं कुछ आबंादी जबंििुर लजिे में िैं ।
b. िािािकोट (लछंदवाड़ा ) मध्यप्रदेश का एक लनचिा क्षेत्र िैं, जो चारों से
ििालड़यों (सििुड़ा िवषि) से लघरा िुआ िैं ।
c. िािािकोट में काररया जनसख् ं या का 90% प्रलिशि िैं ।
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यूलनट -10
मध्यप्रदेश की जनजालि – लवरासि, िोक सस्ं कृलि एवं िोक सालित्य
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यूलनट -10 : मध्यप्रदेश की जनजालि – लवरासि, िोक संस्कृलि एवं िोक सालित्य
▪ मध्यप्रदेश में जनजालियों का कौगोलिक लवस्िार, जनजालियों से सबंं ंलति संवैतालनक प्रावतान
▪ मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजालियााँ, लवशेष लिछड़ी जनजालियां एवं घुमंिू जनजालियााँ, जनजालियों के
कल्याण के लिए योजनाए
▪ मध्यप्रदेश की जनजािीय संस्कृलि – िरंिराएाँ, लवलशष्ट किाएाँ, त्योिार, उत्सव, काषा, बंोिी एवं सालित्य
▪ मध्यप्रदेश की जनजालियों का कारि के स्विंत्रिा आंदोिन में योगदान एवं राज्य के प्रमुख जनजािीय
व्यलित्व
▪ मध्यप्रदेश में जनजािीयो से संबंंलति प्रमुख संस्थान,संग्रिािय, प्रकाशन
▪ मध्यप्रदेश की िोक सस्ं कृलि एवं िोक सालित्य
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िररचय
कारि एक िोक कल्याणकारी राज्य िैं जो सकी िोगों, लवशेष रूि से समाज के कमजोर वगों के कल्याण और
लवकास के लिए वचनबंद्ध िैं । कारिीय संलवतान की प्रस्िावना, राज्य के नीलि लनदेशक लसद्धांिों, मौलिक अलतकारों और
अनुच्छे द 38,39 और 46 से नागररकों के प्रलि राज्य की वचनबंद्धिा की िुलष्ट िोिी िैं । समाज के कमजोर और सामालजक –
आलथिक दृलष्ट से उिेलिि वगों को अलतकारसंिन्न बंनाने के लिए 25 लसिंबंर 1985 को कल्याण मंत्रािय का गठन लकया
गया । 25 मई 1998 को इसका नाम िररवलििि सामालजक न्याय और अलतकाररिा मंत्रािय कर लदया गया । अनुसूलचि
जनजालियों के लवकास के काम की देखरेख जनजािीय मामिों के मंत्रािय द्वारा की जािी िैं लजसका गठन 13 अक्टूबंर
1999 को लकया गया ।
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िााँचवी अनुसूची – अनुसूलचि िेत्र : िााँचवी अनुसूची के अंिगिि अनुसूलचि िेत्र की घोषणा के मानदडं लनभिनलिलखि िैं –
1. जनजािीय जनसख् ं या का बंािुल्य
2. िेत्र का िकि संगि आकार और सघनिा
3. व्यविायि प्रशासलनक सत्ता जैसे लजिा, ब्िॉक या िािुका
4. िड़ोसी िेत्रो की िुिना में िेत्र का आलथिक लिछड़ािन
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“अनुसूलचि जनजालि” कारिीय संलवतान के अंिगिि प्रयोग की गई एक संवैतालनक शब्दाविी िैं । आलदम जनजालियों
को अनुसूलचि करने का प्रथम प्रयास 1931 की जनगणना में लकया गया था । 1935 में के कारि शासन अलतलनयम में इनका
“लिछड़ी जनजालियों के रूि में नामोंल्िेख लमििा िैं । 1936 में लिलटश कारिीय सरकार द्वारा ित्कािीन प्रांिों असम,
लबंिार, उड़ीसा, मद्रास, मुंबंई , मध्यप्रांि और बंरार की कुछ जनजालियों को “लिछड़ी जनजालियों” श्रेणी में रखा गया िैं । डॉ.
घूररये ने इनके लिए अनुसूलचि जनजालि का नाम प्रस्िालवि लकया िैं लजसे कारिीय संलवतान के अनुच्छे द 342 के अंिगिि
स्वीकार कर लिया गया िैं ।
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सलं वतान की प्रस्िावना में लदए गए उद्देश्यों की प्रालि के लिए और समाज के कमजोर वगों लवशेषकर अनुसूलचि
जनजालियााँ के त्वररि लवकास के लिए संलवतान में कुछ सुरिण और संरिात्मक उिाय लकए गए िैं िालक उन्िे मुख्य तारा में
िाया जा सके । सलं वतान के अनुच्छे द 366 (25) में अनुसूलचि जनजालियों के गठन के बंारे में िररकाषा दी गई िैं । इनकी
ििचान और लनतािरण कै से लकया जािा िैं, यि सलं वतान के अनुच्छे द 342 में वलणिि िैं ।
अनुच्छे द 342 : राष्ट्रिलि , लकसी राज्य या संघ राज्य िेत्र के संबंंत में और जिां वि राज्य िैं विााँ उसके राज्यिाि से
िरामशि करने के िश्चाि िोक अलतसूचना द्वारा उन जनजालियों या जनजालि समुदायों अथवा उनके कागों या उनमे यूथो को
लवलनलदष्टि कर सके गा लजन्िे इस सलं वतान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य के सबंं ंत में अनुसलू चि जनजालियााँ समझा जाएगा ।
अनुच्छे द 366 (25) : “अनुसूलचि जनजालियों” से ऐसी जनजालियााँ या जनजालि समुदाय अथवा ऐसी जनजालियों या
जनजालि समुदाय के काग या उनमे के यूथ अलकप्रेि िैं लजन्िे इस संलवतान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छे द 342 के अतीन
अनुसूलचि जनजालियााँ समझा जािा िैं ।
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राज्य के नीलि के लनदेशक ित्व के अंिगिि अनुच्छे द 46 में व्यवस्था िैं लक “ राज्य जनिा के दुबंिि वगों के
लवलशष्टिया अनुसलू चि जनजालियों के लशिा और अथि सबंं ंती लििों की लवशेष सावतानी से अलकवृलद्ध करेगा और
सामालजक अन्याय और सकी प्रकार के शोषण से उनकी सरं िा करेगा ।
अनुच्छे द -14 : राज्य कारि के िेत्र में लकसी व्यलि को लवलत के समझ समिा से या लवलतयों के समान संरिण से
वंलचि निीं करेगा । अथािि कानून के समि समानिा की गारंटी देिा िैं ।
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अनुच्छे द – 15 : अनुसूलचि जालियों और अनुसूलचि जनजालियों के लिए इस समकरण प्रलक्रया के लवलशष्ट प्रयोगो में से एक िैं यि
लनभिन प्रकार से िैं :-
1. राज्य लकसी नागररक के लवरुध्द के वि तमि, मूिवंश, जालि, लिंग , जन्मस्थान या इनमे से लकसी के आतार िर कोई लवकेद निीं
करेगा ।
2. कोई नागररक के वि तमि, मूिवंश, जालि, लिंग, जन्मस्थान या इनमे से लकसी के आतार िर –
a. दुकानों, साविजलनक स्थानों में प्रवेश
b. िूणिि: या कागि: राज्य लनलत से िोलषि या सातारण जनिा के प्रयोग के लिए समलििि कुओ,ं िािाबंों, स्नानघाटों, सड़कों
और साविजलनक समागम के स्थानों के उियोग, के संबंंत में लकसी की लनयोग्यिा, दालयत्व, लनबंितन या शिि के अतीन निीं
िोगा ।
3. इस अनुच्छे द की कोई बंाि राज्य को लियों और बंािकों के लिए कोई लवशेष उिबंंत करने से लनवाररि निीं करेगी ।
4. इस अनुच्छे द की या अनुच्छे द 29 के खंड (2) की कोई बंाि राज्य को सामालजक और शैलिक दृलष्ट से लिछड़े िुए नागररकों के
लकन्िी वगों की उन्नलि के लिए या अनुसूलचि जालियों और अनुसूलचि जनजालियों के लिए कोई लवशेष उिबंत ं करने से लनवाररि
निीं करेगी । अथािि केदकाव को रोकिा िैं और साथ िी सरकार को अनुसूलचि जनजालियों के लिए सीटें आरलिि करने में सिम
बंनािा िैं ।
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अनुच्छे द 16 : रोजगार के अवसर की समानिा को अलनवायि करिा िैं और साथ िी सरकार को अनुसूलचि जनजालियों के
लिए सीटें आरलिि करने की अनुमलि देिा िैं ।
अनुच्छे द 164 काग-6 के अनुसार मध्य प्रदेश, लबंिार िथा उड़ीसा में जनजािीय कल्याग िृथक् मन्त्रािय स्थालिि करने की
व्यवस्था की गई।
सलं वतान के अनुच्छे द 164 के प्रावतान को िूरा करने के लिए मध्य प्रदेश, लबंिार और उड़ीसा मे के न्द्र की संसदीय
सलमलि के नमूने िर राज्य लवतान मण्डिों के सदस्यों की सलमलियााँ गलठि की गई िै ।
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अनुच्छे द 224 िथा िााँचवीं और छठी अनुसूलचयों के अनुसार जनजािीय िेत्रों के प्रशासन एवं लनयन्त्रण एवं लनयन्त्रण के
लिए लवशेष व्यवस्था करने का प्रावतान रखा गया।
अनुच्छे द 224 काग-1 से सभिबंन्ती िााँचवीं अनुसूलचयों के अन्िगिि एक ’जनजािीय सिािकार िररषद्’ की स्थािना की
व्यवस्था की गई। इस िररषद् का कायि आवश्यकिानुसार नई अनुसूलचि जनजालियों की ििचान करना िथा उनके लवकास
को लदशा-लनदेश देना िै। इस िररषद् के िीन-चैथाई सदस्य अनुसूलचि जनजालियों में से चुने िुए राज्य लवतानसकाओ ं के
सदस्यों में से रखने की व्यवस्था की गई।
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िांचवी अनुसच
ू ी अनुच्छे द 244(1) : काग ए : सामान्य
1. व्याख्या: इस अनुसूची में, जबं िक लक संदकि से अन्यथा अिेलिि न िो, अलकव्यलि राज्य में असम, मेघािय, लत्रिुरा और
लमजोरम राज्य शालमि निीं िैं।
2. अनुसूलचि िेत्रों में राज्य की कायिकारी शलि।
इस अनुसूची के प्रावतानों के अतीन, लकसी राज्य की कायिकारी शलि विां के अनुसूलचि िेत्रों िक ैै िी िुई िै।
3. अनुसलू चि िेत्रों के प्रशासन के सबंं ंत में राज्यिाि द्वारा राष्ट्रिलि को ररिोटि।
अनुसूलचि िेत्रों वािे प्रत्येक राज्य का राज्यिाि वालषिक रूि से, या जबं की राष्ट्रिलि द्वारा आवश्यक िो, उस राज्य में
अनुसलू चि िेत्रों के प्रशासन के सबंं ंत में राष्ट्रिलि को एक ररिोटि देगा और सघं की कायिकारी शलि लनदेश देने िक
लवस्िाररि िोगी। उि िेत्रों के प्रशासन के संबंंत में राज्य को।
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िांचवी अनुसच
ू ी अनुच्छे द 244(1) : काग बंी: अनुसलू चि िेत्रों और अनुसलू चि जनजालियों का प्रशासन और लनयंत्रण
4. जनजालि सिािकार िररषद.
(1) अनसु तू चि क्षेत्रों वािे प्रत्येक िाज्य में औि, यतद िाष्ट्रपति ऐसा तनदेश देिे हैं, िो तकसी ऐसे िाज्य में भी, जहां अनसु तू चि जनजातियां
हैं, िेतकन अनसु तू चि क्षेत्र नहीं हैं, एक जनजाति सिाहकाि परिषद की स्थापना की जाएगी, तजसमें बीस से अतिक सदस्य नहीं होंगे।
जैसा तक संभव हो, िाज्य की तविान सभा में िीन-चौथाई अनसु तू चि जनजातियों के प्रतितनति होंगे:
बशिे तक यतद िाज्य की तविान सभा में अनसु तू चि जनजातियों के प्रतितनतियों की संयया सीटों की संयया से कम हो जनजाति
सिाहकाि परिषद ऐसे प्रतितनतियों से भिी जाएगी, शेष सीटें उन जनजातियों के अन्य सदस्यों द्वािा भिी जाएंगी।
(2) जनजाति सिाहकाि परिषद का यह कितव्य होगा तक वह िाज्य में अनसु तू चि जनजातियों के कल्याण औि उन्नति से संबतं िि ऐसे
मामिों पि सिाह दे जो िाज्यपाि द्वािा उन्हें तनतदतष्ट तकए जाए।ं
(3) िाज्यपाि, जैसा भी मामिा हो, तनिातरिि या तवतनयतमि किने वािे तनयम बना सकिा है,
a) परिषद के सदस्यों की सयं या, उनकी तनयतु ि का ििीका औि परिषद के अध्यक्ष औि उसके अतिकारियों औि सेवकों की
तनयतु ि;
b) इसकी बैठकों का संचािन औि सामान्य िौि पि इसकी प्रतिया;
c) औि अन्य सभी प्रासंतगक मामिे।
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िांचवी अनुसच
ू ी अनुच्छे द 244(1) : काग बंी: अनुसलू चि िेत्रों और अनुसलू चि जनजालियों का प्रशासन और लनयंत्रण
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िांचवी अनुसच
ू ी अनुच्छे द 244(1) : काग बंी: अनुसलू चि िेत्रों और अनुसलू चि जनजालियों का प्रशासन और लनयंत्रण
(ए) ऐसे क्षेत्र में अनसु तू चि जनजातियों के सदस्यों द्वािा या उनके बीच भतू म के हस्िांििण को प्रतिबंतिि या प्रतिबंतिि किना;
(बी) ऐसे क्षेत्र में अनसु तू चि जनजातियों के सदस्यों को भतू म के कवंटन को तवतनयतमि किना;
(सी) ऐसे क्षेत्र में अनसु तू चि जनजातियों के सदस्यों को िन उिाि देने वािे व्यतियों द्वािा साहूकाि के रूप में व्यवसाय चिाने को
तवतनयतमि किना।
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िांचवी अनुसच
ू ी अनुच्छे द 244(1) : काग सी: अनुसलू चि िेत्र
(1) इस संतविान में, अनसु तू चि क्षेत्र अतभव्यति का अथत ऐसे क्षेत्रों से है तजन्हें िाष्ट्रपति कदेश1 द्वािा अनसु तू चि क्षेत्र घोतषि कि
सकिे हैं।
(2) िाष्ट्रपति तकसी भी समय कदेश द्वािा
(ए) यह तनदेश देगा तक अनसु तू चि क्षेत्र का पिू ा या कोई तनतदतष्ट भाग अनसु तू चि क्षेत्र या ऐसे क्षेत्र का एक तहस्सा नहीं िहेगा;
(एए) तकसी िाज्य के िाज्यपाि से पिामशत के बाद तकसी िाज्य में तकसी अनसु तू चि क्षेत्र का क्षेत्रफि बढा सकिा है;
(बी) तकसी भी अनसु तू चि क्षेत्र में परिवितन, िेतकन के वि सीमाओ ं के सिु ाि के माध्यम से;
(सी) तकसी िाज्य की सीमाओ ं में तकसी भी परिवितन पि या संघ में प्रवेश पि या तकसी नए िाज्य की स्थापना पि, तकसी ऐसे क्षेत्र को
अनसु तू चि क्षेत्र घोतषि किें जो पहिे तकसी िाज्य में शातमि नहीं था, या उसका तहस्सा नहीं था;
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अनुच्छे द 275 : जो अनुसूलचि जनजालियों के कल्याण और अनुसूलचि िेत्रों के प्रशासन को बंढ़ावा देने के लिए कारि के
समेलकि कोष से अनुदान प्रदान करिा िैं ।
अनुच्छे द 330 िथा 332 के द्वारा सस
ं द िथा राज्य लवतान मण्डिों में 25 जनवरी 2000 िक अनुसूलचि जनजालियों के लिए
स्थान सुरलिि रखने की व्यवस्था की गई िै।
नोट :
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अनुच्छे द 338 में राष्ट्रिलि के द्वारा अनुसूलचि जनजालियों के लवकास के लिए एक लवशेष अलतकारी की लनयुलि का प्रावतान
रखा गया िै। इसका कायि जनजालियों के कल्याग के लिए व्याविाररक सुझाव देना िोगा।
अनुच्छे द 338 (क) : राष्ट्रीय अनुसलू चि जनजालि आयोग (नोट : सलं वतान के (89th संलवतान सस
ं ोतन )अलतलनयम 2003
तारा 3 (19 ैरवरी 2004 ) से अंि: स्थालिि)
अनुच्छे द 339 के द्वारा राष्ट्रिलि ककी की अनुसूलचि जनजालियों के प्रशासन िथा कल्याण सभिबंन्ती ररिोटि की मांग कर
सकिे िै । इसके अलिररि के न्द्र सरकार को अनुसूलचि जनजालियों के प्रशासन और कल्याण कायो के लिए राज्यों को
लवशेष लनदेश देने का की अलतकार लदया गया िै।
अनुच्छे द 365 काग-4 के द्वारा यि प्रावतान लकया गया िै लक साविजलनक सेवाओ ं के लिए प्रत्यालशयों का चुनाव करिे समय
अनुसूलचि जनजालियों के लििों का लवशेष ध्यान रखा जाएगा। इसी प्रावतान की कावना के अनुसार के न्द्र सरकार की खुिी
प्रलियोलगिा के द्वारा िोने वािी लनयुलियों में अनुसूलचि जनजालियों के लिए 7.5 प्रलिशि स्थान सुरलिि रखे जािे िै।
लवलकन्न राज्य सरकारों ने अिने राज्य में अनुसूलचि जनजालियों की जनसख्ं या के प्रलिशि को देखिे िुए नौकररयों में उनके
लिए स्थान आरलिि लकए िै।
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‘संलवतान (िैसठवााँ संशोतन) अलतलनयम, 1990’ के द्वारा संलवतान के अनुच्छे द 338 में जनजालियों के लिए लवशेष
अलतकारी की लनयुलि के स्थान िर एक “राष्ट्रीय अनुसूलचि जनजािीय आयोग’’ बंनाने का प्रावतान लकया गया। इस
आयोग को ऐसे सकी अलतकार लदए गए िै लजनकी सिायिा से जनजालियों के सामालजक व आलथिक लवकास के लिए
आवश्यक योजनाएाँ िैयार की जा सकें िथा लवलकन्न राज्यों को आवश्यक सिाि दी जा सकें । सवं ैतालनक प्रावतानों के
अनुरूि अनुसूलचि जनजालियों के कल्याण के लिए संसद की एक स्थायी सलमलि की स्थािना की गई िै।
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अनुसलू चि जनजालि के सवं ैतालनक प्रावतान : एक नजर में GENIUS INSTITUTE
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सामालजक अलतकार
• अनुच्छे द 23 बंंतुआ मजदूरी को समाि करने से सभिबंंलति िै और िथा मानव िस्करी और जबंरन श्रम को प्रलिबंंलति
करिा िै। इस प्रावतान का उल्िंघन दडं नीय अिरात िै।
• अनुच्छे द 24 बंाि श्रम को प्रलिबंंलति करिा िै, 14 वषि से कम आयु के बंच्चों को कारखानों, खदानों या खिरनाक
गलिलवलतयों में काम करने से प्रलिबंंलति करिा िै।
शैलिक और सांस्कृलिक अलतकार
• अनुच्छे द 15(4) अनुसूलचि जनजालियों की शैलिक उन्नलि के लिए लवशेष प्रावतानों को सुलनलश्चि करिा िै।
• अनुच्छे द 46 राज्य को अनुसूलचि जालि और अनुसूलचि जनजालि के शैलिक और आलथिक लििों को बंढ़ावा देने और उन्िें
सामालजक अन्याय एवं सकी प्रकार के शोषण से संरलिि करने का लनदेश देिा िै।
• अनुच्छे द 350 लवलशष्ट काषाओ,ं लिलियों या संस्कृलियों के संरिण के अलतकारों का प्रावतान करिा िै।
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यूलनट -10
मध्यप्रदेश की जनजालि – लवरासि, िोक सस्ं कृलि एवं िोक सालित्य
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यूलनट -10 : मध्यप्रदेश की जनजालि – लवरासि, िोक संस्कृलि एवं िोक सालित्य
▪ मध्यप्रदेश में जनजालियों का कौगोलिक लवस्िार, जनजालियों से सबंं ंलति संवैतालनक प्रावतान
▪ मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजालियााँ, लवशेष लिछड़ी जनजालियां एवं घुमंिू जनजालियााँ, जनजालियों के
कल्याण के लिए योजनाए
▪ मध्यप्रदेश की जनजािीय संस्कृलि – िरंिराएाँ, लवलशष्ट किाएाँ, त्योिार, उत्सव, काषा, बंोिी एवं सालित्य
▪ मध्यप्रदेश की जनजालियों का कारि के स्विंत्रिा आंदोिन में योगदान एवं राज्य के प्रमुख जनजािीय
व्यलित्व
▪ मध्यप्रदेश में जनजािीयो से संबंंलति प्रमुख संस्थान,संग्रिािय, प्रकाशन
▪ मध्यप्रदेश की िोक सस्ं कृलि एवं िोक सालित्य
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िररचय:
• कीि प्रोटो- आस्रे िायड प्रजालि की द्रवीलडयन जनजालि िैं ।
• कीि नाम द्रलवड़ काषा िररवार के अंिगगि कन्नड के “ बंीि “ शब्द से लिया गया िैं, लजसका अथग िोिा िैं तनुष ।
संस्कृि काषा के लकल्ि और िलमि शब्द लबंल्िुवर से उत्िलि की की जानकारी कुछ ग्रंथों से प्राप्त िोिी िैं और सकी शब्द
का अथग िैं तनुष ।
• इस जनजालि समुदाय के िोगों द्वारा तनुष तारण लकया जािा िैं, और ये सरि स्वकाव के िरंिु तनुष कौशि में अत्यंि
लनिुण िोिे िैं, इसलिए इन्िे कीि नाम से सबंं ोलति लकया जािा िैं ।
• इस समुदाय के िोग मूि रूि से लशकारी और योद्धा प्रवृलि के िोिे िैं, लजसके उदािरण िल्दी घाटी का युद्ध और अंग्रेजों
के लवरुद्ध िुए स्विंत्रिा सग्रं ाम में इनकी कूलमका से ििा चििा िैं ।
• इस समुदाय के िोग अिनी व्युत्िलि मिादेव अथागि शंकर जी से मानिे िैं ।
• इनकी काषा अज्ञाि िैं िरंिु किा जािा िैं लक ये इडं ो आयगन िररवार की काषा का प्रयोग करिे िैं । इनकी बंोिी में
संस्कृि, राजस्थानी,मराठी, गुजरािी के शब्दों का सलभिमश्रण देखने को लमििा िैं ।
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िौरालणक कथा
• िुराणो के अनुसार कीि जनजालि की उत्िलि कगवान लशव के िुत्र लनषाद द्वारा मानी जािी िैं । कथा के अनुसार एक बंार
जबं कगवान लशव ध्यान मुद्रा में बंैठे िुए थे लनषाद ने अिने लििा लशव के लप्रय बंैि नंदी को मार लदया था िबं दडं स्वरूि
कगवान लशव ने उन्िे िवगिीय क्षेत्र में लनवागलसि कर लदया था विााँ उनके वंशज कीि कििाएं ।
• रामायण मिाकाव्य के रचलयिा ऋलष वाल्मीलक कीि के िुत्र थे िथा उनका मूि नाम वालिया था ।
• मिाकारि में मिाकाव्य में वलणगि गुरुकि एकिव्य की कीि जनजालि थे ।
• रामायण मिाकाव्य में की शबंरी नामक मलििा का वणगन लमििा िैं लजसने श्री राम को वनवासस के दौरान जूठे बंेर
लखिाए थे उस शबंरी का संबंंत की कीि जनजालि से िी था । इस जनजालि की किगव्यलनष्ठा, प्रेम, लनश्छि व्यविार के
उदािरण प्रलसद्ध िैं।
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सांख्यकीय आकडे :
• विगमान में मध्यप्रदेश में कीि सबंसे बंड़ी जनजालि िैं ।
• मध्यप्रदेश में वषग 2011 की जनगणना के अनुसार कीि जनसंख्या 59.9 िाख िैं । यि जनसंख्या
कुि अनुसलू चि जनजालि जनसख् ं या की एक लििाई से अलतक िगकग 39.1 % िैं ।
• मध्यप्रदेश में कीि जनजालि का संकेन्द्रण सवागलतक िलिमी लजिे में िैं ।
• कीिों की सवागलतक जनसख् ं या तार लजिे में 12 िाख से अलतक िैं ।
• कीि जनजालि में िलिमी मध्यप्रदेश के अंिगगि अिीराजिुर लजिा सबंसे कम साक्षर वाि लजिा िैं
काषा :
• कीि जनजालि के िोग कीिी काषा के प्रयोग करिे िैं, लजसमे लिन्दी, राजस्थानी,
गुजरािी, लनमाड़ी एवं आलदवासी काषाओ का उियोग करिे िैं।
• मध्यप्रदेश के तार, रििाम और झाबंुआ लजिों में प्रयुि कीिी िर मािवी का प्रकाव िैं ।
• खरगौन लजिे में रिने वािे कीि अिनी काषा में लनमाड़ी उियोग करिे िैं ।
• अिनी काषा या बंोिी को उन्िोंने अकी की गौरविूणग ढंग से सिेज कर रखा िैं ।
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उिजालियााँ :
कीि जनजालि की प्रमुख उिजालियााँ कीिी, लकिािा, बंरेिा, िटे लिया, राठ, रलथयास, बंैगास, उमड़ी, िुजारों,
मदवी, कोटवार, िड़वी िैं ।
1. लकिािा : -
a) सबंसे बंड़ी उिजालि
b) क्षलत्रय िुरुष एवं कीि स्त्री से उत्िन्न कीि व्यलि
c) स्वयं को मिाराणा प्रिाि का वंशज मानिे िैं ।
2. उमड़ी :-
a) गुना, शाजािुर, लजिों में लनवास करने वािे कीि
b) इस्िाम तमग को मानने वािे कीि
c) सबंसे दयनीय लस्थलि
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7. उजलिया कीि :
a) ये मूि रूि से क्षलत्रय िोिे िैं
b) सामालजक / मुगि आक्रमण के समय जंगिों में कीि जनजालि के प्रमुख व्यलि
चिे गए एवं मूि कीिो से संबंंत स्थालिि कर लिया
अटक - तकसी एक ही पवू वज से उत्पन्न गोत्र
a) मािवा में लनवासरि कीि
गमेिी – भीिों के गााँव का मतु खया
8. िंगोट कीि : िािवी – ऊंची पहाड़ी में िहने वािे भीि
a) वनों में लनवासरि कीि वागड़ी- मैदानों में रिने वािे कीि
b) इनके रीलि- ररवाज आज की िुराने िैं । बंोिावा – मागगदशगन करने वािा व्यलि
c) इनमे वतुमूल्य का प्रचिन िाया जािा िैं । कोिा – कीि जनजालि में झाड – फूाँक करने वािा व्यलि
d) मूिि: लनमाड में लनवासरि कगि – तालमगक सस्ं कार सिं न्न करवाने वािा व्यलि
िाखररया – जबं कोई कीि लकसी सैलनक के घोड़े को मार
देिा िैं िो उस कीि को िाखररया किा जािा िैं
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शारीररक लवशेषिाएाँ :
यि प्रोटो – आस्रे िायड प्रजालि के सदस्य िैं ।
• इनका कद मध्यम, शरीर सांविा एवं कािा िोिा िैं ।
• चेिरा चौड़ा और िंबंा िथा बंाि कािे एवं घुाँघरािे िोिे िैं ।
• नथुने बंड़े िथा बंदन गठीिा िोिा िैं ।
वस्त्राकूषण :
• कीि आलथगक रूि से लनतगन िोने के कारण बंिुि कम वस्त्र तारण करिे िैं ।
• कीि लसर िर िाि, िरे नीिे रंग के साफे, रंग लबंरंगी कमीज और तोिी ििनिे िैं ।
• कीिी लस्त्रया चोिी, काचिी, घाघरा और िुगड़ा ओढनी ििनिी िैं ।
• कीिी लस्त्रयााँ सस
ं ार की सवाग लतक गिनालप्रय लस्त्रयााँ िोिी िैं । इनमे बंिुता कथीर
(चांदी और कांसे से लनलमगि आकूषण ) नामक गिने का प्रचिन सवागलतक िैं ।
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रिन – सिन :
• इनका रिन सिन बंिुि सादा िोिा िैं । ये स्वाविभिबंी और िररश्रमी िोिी िैं । इन्िे
सभिमान िूवगक जीवन जीना िसदं िैं ।
• ढ्यूल्यो (खाटिी): घरों में खाट िर लबंछाने के लिए उियोग िोने वािी गोदड़ी ।
• कनगी : ओढ़ने के लिए बंांस से बंनी िुई कोठी
• ओड़ई : बंाजार से समान के लिए बंांस से बंनी िुई किात्मक झोिा
• मुिािदा : िानी के बंिगन रखने के लिए िकड़ी का माच ।
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वेशकूषा
ठे िाड़ा – भीि जनजाति के िोगों द्वािा पहने जाने वािी िंग िोिी
िोत्या – तसि पि पहना जाने वािा सफे द साफा
लिररया - तववाह के अवसि पि दल्ु हन द्वािा पहना जाने वािा पीिे िंग का िहगं ा
लसंदूरी – िाि िंग की साड़ी
खोयिु – कमि पि बांिे जाने वािा िंगोटा
कच्छाबंु – मतहिाओ के घटु ने िक का घाघिा
फािू – कमि का अाँगोच्छा
अंगरूठी – तियों की चोिी
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खान – पान :
• मकई, ज्वार, बंाजरा, गेंिू, चना, कोदरया आलद अनाजों का उियोग अिने खाने के रूि में करिे िैं ।
• राबंड़ी कीिों का मुख्य कोजन िैं ।
• मद्यिान कीिों में सामालजक व तालमगक आवश्यकिा िैं । मिुआ से बंनी शराबं (मलदरा) व िाड़ी का
सेवन करना इनको लप्रय िैं ।
• िाड़ी का सेवन कीि लदन – कर कििे िैं । िाड़ के वृक्ष अिीराजिुर में बंिुिायि से लमििे िैं ।
• कीि जनजालि के समाजों में सामालजक एवं तालमगक व्यवस्था को सच ं ालिि करने के
लिए गांव का िटे ि, िुजारा, कोटवार, िड़वी व बंड़वा गांव के प्रमुख एवं सामालजक रूि
से प्रलिलष्ठि व्यलि िोिे िैं।
• यि प्रलिलष्ठि व्यलि गांव में त्यौिार, िवग, लववाि आलद अिने अनुसार सच ं ालिि करिे िै।
बंीमारी या मिामारी आने िर यि िूरे गांव वािे लमिकर बंीमारी कगाने के लिए जादू-
टोना बंड़वा के द्वारा झाड़-फूंक के साथ िूरे गांव एवं गांव देव में िूजा करके कोिड़ा
लनकािकर गांव की सीमा के बंािर फेंककर बंीमारी दूर करने का प्रयास करिे िै।
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• गांव का िुजारा के द्वारा सांस्कृलिक गलिलवलतयां सच ं ालिि करने का कायग लकया जािा िैं।
• गांव में सच ू ना देने का कायग कोटवार एवं िड़वी के द्वारा लकया जािा िै। िटे ि,
िुजारा,कोटवार, िड़वी के िद वंशानुगि िोिे िै।
• गांव का वयोवृध्द व्यलि डाििा (बंुजुगग) िोिा िै, लजससे सकी अिने आयोजनों के समय या
लवलकन्न अवसरों िर मागगदशगन प्राप्त करिे िैं। इन प्रलिलष्ठि व्यलि एवं गांव के डाििा (बंुजुगग)
के द्वारा गांव की समस्या एवं लवलकन्न प्रकार के झगड़ों , िड़की काग जाने िर लनिटारा
करना आलद में ये न्यायािालिका का काम करिे िैं।
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• कीि जनजालि चार वगों में बंटी िुई िैं – भीि, तभिािा (बिे िा), पटतिया एवं िाठ
• सवेक्षण में भीिों के 71 गोत्र बिाए गए हैं ।
• गोत्रों के बािे में कई तकवंदतिया हैं । पिंिु तजस जानवि, पक्ष, नदी औि वक्ष
ृ के द्वािा इनकी िक्षा की जािी हैं ।
कमिौि पि उसी के नाम पि अपना गोत्र िखिे हैं ।
▪ सन्ं यान गोत्र : तबल्िी के पजू क
▪ लनगवाल्या – तनगवाल्या मछिी न खाने वािे
▪ लसगं ालड़या - बैिों के पजू क
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• िड़वी :
➢ िटेि का सिायक िोिा िैं ।
➢ िटेि के अनुिलस्थि रिने िर की सकी कायग िड़वी िी करिा िैं ।
➢ िड़वी को की िटेि के समान सभिमान प्राप्त िैं ।
➢ िगान वसि ू ी का कायग िड़वी करिा िैं ।
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• डाििा :
➢ गांव के वयोवृद्ध व्यलि को सभिमालनि िैं ।
➢ िवग, त्योिार या लववाि के अवसर िर जालि कोज के आयोजन िर कंडार गृि का सारा कायग डािि के लनदेश िर िोिा िैं।
• िुजारा :
➢ िुजारे का कायग िवग – त्योिार, शादी – ब्याि के अवसर िर िूजा – िाठ सभििन्न कराना िैं ।
➢ यि िद वंश िरंिरा अनुसार िैं ।
➢ िुजारा गााँव तालमगक स्थिों की सरु क्षा करिा िैं और उन्िे व्यवलस्थि रखिा िैं ।
➢ िुजारे की ित्नी की िुजाररन कििािी िैं ।
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• बंड़वा :
➢ इन िर देवी देविाओ ं का कार आिा िैं ।
➢ यि जड़ी बंूलटयों का प्रयोग िथा कूि प्रेि कगाने का कायग करिा िैं ।
➢ गााँव के डॉक्टर के रूि में बंड़वा को मान्यिा प्राप्त िैं ।
• कोटवार
➢ गााँव का चौकीदार या िरकारा िोिा िैं ।
➢ यि गााँव का सदं ेशवािक िोिा िैं ।
➢ जोबंट में यि िररजन व झाबंुआ में यि िद कीि के िास िोिा िैं ।
• वारिी :
➢ सामूलिक जालि कोज के अवसर िर लविरण की सारी व्यवस्था वारिी की िोिी िैं ।
➢ वंशानुगि िद
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आलथगक जीवन:-
• कीि जनजालि में कृलष मुख्य व्यवसाय के साथ वनोिज संग्रि, िशुिािन एवं मजदूरी करके अिना आलथगक
उिजगन के सातन िैं।
• कीि िोग मिुआ की शराबं और िाड़ी बंेचकर की ये िोग तन कमािे िै (लवशेषकर अिीराजिुर लजिें में)।
• िलिमी मध्य प्रदेश में अनुिजाऊ जमीन और िरभििरागि ढंग से खेिी करने का िरीका िोने के कारण की इनकी
वालषगक आय बंिुि कम िोिी िैं।
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• कीि जनजालि में नगरीकरण, आतुलनकीकरण एवं औद्योलगकीकरण के कारण कीि िोगों के जंगि से प्राप्त िोने वािी
आय लछनने से की कीि जनजालि के िोगों में आलथगक लगरावट का कारण िै।
• आलथगक आतार के रूि में कृलष कीिों का प्रमुख स्त्रोि िैं । कृलष – कृि उिजो में मक्का, ज्वार, बंाजरा, उड़द, मूंग आलद
प्रमुख िैं । मक्का एवं ज्वार अलतक िैदा िोिी िैं ।
• कनगी : कीिों के घरों में अनाज रखने के लिए बंांस से बंनी िुई कोठरी ।
• नोट : बंांस प्राकृलिक रूि से फाइटोंके लमकि, एटं ी ऑक्सीडेंट और एटं ी बंेक्टे ररअि िैं । फाइटोंके लमकल्स का जीणग
रोगों जैसे गलठया, हृदय सबंं ंती रोग, कैं सर, मतुमेि आलद को कम करने बंड़ा योगदान िैं ।
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सांस्कृतिक विशेषिाएँ :
वनवासी सस्ं कृलि की अिनी लवलशष्ट िरंिराएाँ रिी िैं । संस्कार औिचाररक मात्र निीं बंलल्क उनके जीवन की
वास्िलवकिा के तरािि िर सिी में जीवन की वास्िलवकिा के तरािि िर सिी मायने में जीने की किा िैं । कीिो में व्यलि
लवशेष अथागि व्यलि के सुख एवं स्विंत्रिा का बंिुि मित्व िैं एवं उनका सामालजक िाना – बंाना बंेिद मजबंूि िैं ।
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वििाह :
➢ लववाि के लिए िड़का िक्ष से िड़की िक्ष वािों के यिााँ प्रस्िाव रखने के लिए एक ऐसा व्यलि चुना जािा िैं जो दोनों
िररवारों से िररलचि िो । मध्यस्थिा कराने वािे व्यलि को कााँजगलढ़या किा जािा िैं ।
➢ कीिो में घर जवाई ं रखने की प्रथा िैं , घर जवाई ं मािा – लििा की सेवा करिा िैं । बंाद में मािा – लििा दोनों को लववाि
कर देिे िैं । लववाि के बंाद की दामाद को िड़की के घर ससरु ाि में िी रिना िड़िा िैं ।
➢ कीिो में मान्यिानुसार दो – िीन ित्नी रखने की प्रथा िैं ।
➢ कीिो में लवतवा लववाि का प्रचिन िैं इसे निारा या िुनलवगवाि कििे िैं ।
➢ कुि 7 प्रकार की लववाि की प्रथायें िैं
➢ सााँवा का अनाज जबं कन्या िक्ष के यिााँ िे जाया जािा िैं । इसे साउंग
करना कििे िैं िथा िे जाने वािे को सााँवन््या कििे िैं । िथा सााँवा का
अनाज रखने वािे स्थान सााँवन््या मंडि कििे िैं ।
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दािा प्रथा :
▪ कीिो में दिेज प्रथा निीं िोिी बतल्क इसके उिट दािा होिा हैं, जो िड़की वािों को तदया जािा हैं । इसमे गाय, बैि, भैंस ,
कनज औि कुछ तनतिि रुपये होिे हैं । दापा की सीमा समाज में िय नहीं हैं अिं : इसकी सीमा तकसी भी हद िक बढ़ सकिी हैं,
रुपये की मांग कतथवक परितस्थति पि तनभवि होिी हैं ।
▪ तववाह संस्काि में वतू मूल्य (दािा) चक
ु ाना अतनवायव हैं ।
▪ दािा के प्रकार
• नगद रकम – दािा
• मवेशी – खांडा कूटा
• अनाज – सााँवा
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o िल्दी िीठी : दोनों िक्ष के ग्राम िुजारी, रानी काजि मािा के देवरे िर लववाि का लनमंत्रण देने जािे िैं, इसमे िड़की को
चूलड़या ििनािे िैं ।
o बंाना लबंठाना : वर – वतू को नए वस्त्र ििनािे िैं इस अवसर में लस्त्रया बंाना गीि गािी िैं ।
o मंडि : काकड़ वृक्ष का खंबंा लजसके चारों ओर खंबं गाढ़ िार मंडि छािे िैं ।
o ििरावणी : मामा के द्वारा अिने कांजा या कांजी के घर के समस्ि िोगों के लिए किड़े िाए जािे िैं ।
o बंाराि : बंाराि में स्त्री और िुरुष दोनों सलभिमलिि िोिे िैं और रास्िे में मााँदि, फेफरया, व िाविी की तुन में मतुर गायन
िोिा िैं । मटक में मलदरा िे जायी जािी िैं लजसे छांक कििे िैं ।
o िुगड़ा – िाड़ी : कीिो में िुगड़ा – िाड़ी जैसी प्रथा की प्रचलिि िैं संबंंत िय िोने िर िड़के वािे िड़की के लिए
वस्त्र िे जािे िैं साथ में ररश्िेदार व लस्त्रया की जािी िैं । िड़का िड़की का गठ जोड़ कर घर िे आिे िैं ।
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➢ कागोररया लववाि : िोिी के एक सप्ताि िूवग से कागोररया िाि प्रारंक िोिे िैं, इस मेिे में कुवारें युवक और युवलिया सज
तज कर आिे िैं । यलद लकसी युवक को कोई युविी िसंद आ जाए िो वि युविी के गाि िर गुिाि मि देिा िैं प्रत्युिर
में अगर युविी युवक को गुिाि िगािी िैं िो माना जािा िैं लक दोनों युवा प्रेमी जीवन साथी बंन जाने के इच्छुक िैं ।
गुिाि िगािे समय दोनों की सिमलि िोना आवश्यक िैं । िंचायि के लनणगयानुसार दोनों िक्षों की सिमलि से
िड़के वािा िड़की के लििा को लनलिि तनरालश गाय – बंैि देिा िैं । इसे झगड़ा देना कििे िैं ।
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संबंंत लवच्छे द : कीिो में संबंंत लवच्छे द अत्यंि सरि िैं िरंिु ठोस कारण िोना जरूरी िैं प्रथा लनभिन िैं-
❖ लिनका िोड़ना
❖ ििों को चीरना
❖ िलि द्वारा िगड़ी फाड़ना
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प्रमुख नृत्य : जनजालियों के नृत्यों का उद्गम तालमगकिा में से िुआ िैं । सकी प्रकार के नृत्य सामूलिक िोिे िैं । कीिो की
इदं ििूजा नृत्य आलदमानवो की शलि िूजा का एक उदािरण िैं । कीिी जीवन को नृत्य, संगीि में सवागलतक प्रकालवि लकया
िैं । जबं कोमि िय के साथ, वाद्यों के िाि िर गीिों का गायन िोिा िैं ।
• कागोररया नत्ृ य :
o कागोररया मेिे में िोने वािे नृत्य को कागोररया नृत्य कििे िैं ।
• डोलिया नृत्य :
o कागोररया मेिे में लकया जािा िैं
o युवक – युवलियााँ आमने – सामने खड़े िोकर लवलकन्न प्रकार से अंग सच ं ािन करिे िुए ककी आगे बंढ़िे – ककी
िीछे िटिे िैं । ककी दायीं – बंायीं ओर झुककर झूमिे िुए नाचिे िैं ।
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• गिर नृत्य :
o िोिी के अवसर िर िोिा िैं ।
o नत्ृ य की मुख्य लवशेषिा यि िैं लक नत्ृ य में स्त्री – िुरुष और जोगी बंनिा िैं ।
o युवकों के िाथ फलियााँ, िट्ठ, िीर – कमान और जोगी के िाथ में मूसि रििा िैं ।
o ढोि, बंीना और कुंडी नृत्य के प्रमुख वाद्य िैं ।
• डोिो :
o यि मनौिी वािा तालमगक उत्सव िैं ।
o कीि युवक – युवलियााँ रात्री में डोिो िेकर घर – घर जाकर नृत्य करिे िैं ।
o डोिो मटकी िोिी िैं यि चारों िरफ से लछलद्रि िोिी िैं । इसके अंदर दीिक जिाकर अिने लसर िर तारण करिी िैं ।
o ्यारस से दीिाविी अमावस िक यि नृत्य लकया जािा िैं ।
o आलखरी लदन डोिो को देव स्थान िर छोड़िे िैं ।
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• गरबंी :
o दीवािी िर गरबंी नृत्य करिे िैं
o जो श्रावण मास और नवरालत्र में बंड़वा द्वारा लकया जािा िैं ।
• वीरवाल्या नृत्य
o यि तालमगक नृत्य िैं ।
o श्रावण माि और नवरालत्र में बंड़वा द्वारा लकया जािा िैं ।
o गायक ढााँक और कामड़ी के स्वरों िर िंबंी – िंबंी तालमगक गाथाएाँ गािा िैं ।
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वाद्य यंत्र
1. कुण्डी : यह तमट्टी की बनी होिी हैं । इसके ऊपि बकिे या घोिपड़ का चमड़ा चढ़ाकि चमड़े की
िस्सी से इसे कसा जािा हैं ।
2. कामड़ी : बांस की चीपों पि तनतमवि कामड़ी ढाक का सहयोगी वाद्य यंत्र हैं ।
3. फेफरया : शहनाई को भीिी भाषा में फे फरिया कहिे हैं ।
4. बंााँसरु ी : भीिी व्यतक्त बााँसिु ी को पाविी औि िोहिी िथा झाबंुआ में बंाििी कििे िैं ।
5. अिगोझा : वाहिी जैसा होिा हैं बस इसमे जीभ होिी हैं इसे होंठों पि खड़ा िख कि बजािे हैं ।
6. कें दाररया : यह फाँू क वाद्य यंत्र हैं, जो बांस की चीप से बनाया जािा हैं ।
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लववाि नृत्य : कीिो द्वारा लववाि के अवसर िर कई सारे नृत्य लकये जािे िैं :
1. िुरुष डांग सािा नृत्य : घर से बंाराि रवाना िोने के बंाद रास्िे में लवश्राम स्थि िर स्त्री – िुरुष अिग अिग समूिों में
नत्ृ य करिे िैं।
2. िि मार सािा नत्ृ य : यि नत्ृ य वतू िक्ष की लस्त्रयों द्वारा बंाराि की आगवानी िर लकया जािा िैं ।
3. फरकणी सािा नृत्य : जबं वर – वतू िक्ष एक दूसरे से लमिन केंट में गोि – गोि घूमिे िैं व एक दूसरे को काटिे िैं ।
4. िख्यो नृत्य : ि्न के बंाद वर – वतु िक्ष की लस्त्रयााँ सामूलिक रूि से एक दूसरे के गिे में िाथ डािकर एक दूसरे को
लचढ़ािी िुई िख्यो नत्ृ य करिी िैं ।
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5. घोर नाच : आमने – सामने खड़े िोकर लचटकोरा िाथ में िेकर लस्त्रयााँ द्वारा लकया जाने वािा नत्ृ य िैं ।
6. िोिरी नृत्य : यि नृत्य घोर नाच के िी समान िैं लकन्िु एक अंिर िैं । घोर नाच िंलि में लकया जािा िैं । यि नृत्य अद्धगवृि
में लकया जािा िैं ।
7. अाँलटया नाच : शादी में िुरुषों द्वारा िाथ में छोटे – छोटे डडं े िेकर गोिघेरो में घाि – प्रलिघाि करिे िुए जोड़ी में नाचिे –
नाचिे वि
ृ बंना िेने वािे नत्ृ य अंलटयााँ नाच कििे िैं ।
8. इसके अिावा जोिरा नृत्य दूल्िे के मामा द्वारा िथा बंाराि वािसी िर मुड़ा नृत्य लकया जािा िैं ।
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प्रमुख िवग :
• कागोररया िवग :
o िोिी के एक सप्ताि िूवग फागुन मास के अंलिम सप्ताि में आयोलजि िोिा िैं।
o यि एक सरस िोक िवग या प्रणय िवग िैं।
o मध्यप्रदेश के िााँच लजिों में 176 स्थानों में मनाया जािा िैं – झाबंुआ, अिीराजिुर, खरगौन, तार, बंड़वानी।
o कागोररया मेिा बंाििुरा को सवगश्रेष्ठ माना जािा िैं ।
o कीि युवक, युवलियों के लिए चयन और चुनौिी िथा नई फसि की दृलष्ट से यि उमंग और उल्िास का प्रिीक िैं।
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o कागोररया िवग काँगोर देव के नाम िथा काँगोर गोत्रीय कीिो द्वारा आरंक लकये जाने के कारण इसे कागोररया किा गया
िैं ।
o इस त्योिार का प्रारंक झाबंुआ लजिे के दािोद के िास से िुआ था, िथा कीि कगुररया कीि कििाएाँ ।
o इसे मध्यप्रदेश का राजकीय िवग घोलषि लकया गया िैं ।
o कागोररया िवग िीन कागों में मनाया जािा िैं –
❑ लििवराया िाट : यि िाट कागोररया िवग के साि लदन िूवग अिग अिग स्थानों िर अिग – अिग लदन
िगिा िैं । यिााँ से कीि जनजालि के िोग कागोररया के लिए आवश्यक सामग्री का सग्रं िण करिे िैं ।
❑ कागोररया : िोिी के एक सप्ताि िििे यि िाट प्रारंक िोिा िैं, जो कागोररया लववाि के लिए जाना जािा िैं ।
❑ उजालड़या : िोिी के लदन कागोररया िाट के समाप्त िोने के लदन िी उजलड़या िाटो की शुरुआि िो जािी िैं
जो एक सप्ताि िक चििे िैं । इस अवलत में िाट बंाजार सुने रििे िैं ।
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िोिी:
• यि कीिो का मिािवग िैं ।
• गााँव के िटे ि, िड़वी अन्य िोग लमि – बंैठ कर यि लनणगय िेिे िैं लक िोिी का त्योिार कबं मनाया जाना चालिए ।
• सेमुि या बंांस का डंडा की रोिा जािा िैं िथा उस डंडे की िूजा की जािी िैं वषग में लजस कीि िररवार में लकसी की मृत्यु
िो जािी िैं िो सकी विााँ बंैठने जािे िैं इस प्रथा को रखड़ा उखाड़ना कििे िैं ।
गि उत्सव :
• झाबंुआ के आस – िास कीि ग्रामों में गि करने की प्रथा िैं ।
• यि कीि जनजालि का सबंसे बंड़ा मनौिी िवग िैं ।
• यि िोिी के दूसरे लदन मनाया जािा िैं ।
• गि, नरलसंि कगवान का स्वरूि िैं, और कीि गि देविा को अिना लििृ देव मानिे िैं ।
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गढ़ उत्सव:
• कीि जनजालि के व्यलि िोिी के बंारिवे – िेरिवे लदन गढ़ का आयोजन करिे िैं ।
• यि लवजय का प्रिीक उत्सव िैं । जो राजाओ के समय से आयोलजि िोिा आ रिा िैं ।
• इस त्योिार में एक ऊंचा खंका िोिा िैं जो िेि के कारण अत्यंि लचकना िोिा िैं, इस िर कीिी युवक चढ़ने का प्रयास
करिे िैं और कीिी युवलियााँ उन्िे चढ़ने से रोकिी िैं उन िर बंेंि से प्रिार करिी िैं
ढोंडी:
• यि वषाग के आव्िान से संबंंलति इद्रं देव को प्रसन्न करने के लिए कीि युवक – युवलियों का उत्सव िैं ।
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जािर :
• प्रत्येक कीिी गााँव में नवाई के िूवग जािर उत्सव मनाया जािा िैं ।
• जािर दो बंार मनाया जािा िैं , बंुवाई के बंाद मक्का के िौते कुछ बंड़े िो (नादर जािर ) कििािे िैं । िथा दूसरी बंार िबं
जबं मक्का में दाने आ जािे िैं (नवाई जािर) ।
• इसमे िड़वी या िटे ि चंदा मांगकर सामूलिक रूि से अिने घर में यि आयोजन करिे िैं िथा बंड़वा को कार आिा िैं ।
नवई :
• नवई नए अनाज के प्रथम उियोग का त्योिार िैं ।
• इस लदन कीि जनजालि तारण देव के िास कौटुंलबंक देवी देविाओ ं और खत्रीजो के नाम से ििाश के ििों िर अिग –
अिग कोज सामग्री रखकर कुमकुम, अक्षि, घी – दूत से िूजन करिे िैं ।
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लदवासा
• िावस ऋिु के प्रारंक िोिे िी कीि श्रावण मास की अमावस्या को इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए लदवासा मनािे िैं ।
इन्द्र देव को बंाबंा देव की कििे िैं ।
नवणी:
• नवणी या नवरात्रा कीिो का तालमगक – आनुष्ठालनक िवग िैं । इसमे वे अिनी कुि देवी की िूजा करिे िैं ।
इदं ि:
• कीिो के लकसी कायग के लनलवगघ्न िूणग िोने िर मान्यिा िेने का आम ररवाज िैं । कीिो की सबंसे बंड़ी मान्यिा इदं ि िैं ।
इदं ि आयोलजि करने वािा व्यलि सगे सबंं ंलतयों के लिए कोज का आयोजन करिा िैं ।
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तालमगक लवशेषिाएाँ :
• ये बंिुदेववादी एवं प्रकृलि िूजक िैं ।
• इनके तमग िर लिन्दू तमग के संिकग में प्रकाव िैं ।
• लिन्दू प्रकाव से ये कीम, लशव, राम, कृष्ट्ण आलद देविाओ ं की िूजा करिे िैं ।
• कीिों के सबंसे बंड़े देविा मिादेव िैं । गमेिी : कीिो के गााँव का मुलखया
• कीि तनुष को की अिना आराध्य मानिे िैं । गमेिी कििािा िैं । इसकी जगि
आजकि सरिंच ने िी िैं
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प्रमुख मान्यिाएाँ
• बंड़वा : कीि जनजालि में िांलत्रक कायग करने वािा । कूि – प्रेि संबंंती बंाता को इनके द्वारा िाबंीज बंांत के दूर लकया
जािा िैं । शारीररक बंीमाररयों का इिाज कीि कीि लवलकन्न प्रकार की जड़ी बंूलटयों से स्वयं िी करिे िैं िरंिु असाध्य
िोने िर बंड़वा के िास जािे िैं ।
• कीि जनजालि टोनों टोटकों िर लवशेष रूि से मित्व देिी िैं । उदािरण के लिए बंच्चो के जन्म िर नवजाि लशशु और
मािा के नीचे एक िीर रखा जािा िैं ।
• समय िर बंाररश न िोने िर बंाबंादेव को गोबंर की छाि दी जािी िैं ।
• कीि जनजालि के व्यलि ऐसा मानिे थे लक यलद श्रावण मास में कृलष प्रारंक के समय कोयि या मोर की आवाज सनु िें
िो फसि बंिुि अच्छी िोगी ।
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• गिदेव
➢ कगवान नरलसंि के रूि िूजा जािा िैं ।
➢ इन्िे िलल्दया देव के नाम से की जाना जािा िैं लजनकी स्थािना झाबंुआ शिर में िीन स्थान, तार लजिे के
के सवी ग्राम में की गई िैं ।
➢ मनोवांलछि मनौिी के लिए सवागलतक िूजे जािे िैं ।
• ग्रि देव :
➢ इन्िे लगरसीरी या थंबंोिा देव की सज्ञं ा दी जािी िैं ।
➢ गृिदेव में खत्रीजो (िूवगजों ) का वास िोिा िैं ।
➢ वाह्य बंाताओ से बंचने के लिए कीिी जनजालि के िोग घर में प्रमुख स्िभिक के िास गृिदेव की स्थािना करिे िैं ।
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• कीिट बंाबंा :
➢ कीिट बंाबंा कीिो के प्रमुख देविा िैं ।
➢ ये मनुष्ट्यों और िशुओ ं से सिग की रक्षा करिे िैं ।
➢ बंड़वानी लजिे में कीिट देविोक का लनमाग ण लकया गया िैं ।
• सिं लसंगाजी देव :
➢ संि लसंगाजी देव के स्थान िर प्रलिवषग शरद िूलणगमा के अवसर िर मेिा िगिा िैं ।
➢ कीि – लकिािा िोग शरद िूलणगमा को कविी िुनव के नाम से िुकारिे िैं ।
➢ सध्ं या के बंाद रात्री के आठ बंजे िक अिने िाने घरों िर लसगं ाजी मिराज की िूजा करिे िैं ।
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• प्रमुख देलवयााँ
➢ सावन मािा और मालिया बंाबंा देव कृलष और वन उिजो की रक्षा करिे िैं, इनकी स्थािना खेिों में की जािी िैं ।
➢ िोवण मािा दैलनक व प्राकृलिक प्रकोिों से रक्षा करिी िैं, इसलिए कीि वषग में एक बंार गााँव की सीमा िर एकलत्रि
िोकर िोवण मािा की आरातना करिे िैं ।
➢ रकािी व शीििा मािा शारीररक लवकार और बंीमाररयों की रोकथाम करिी िैं ।
➢ रानी काजि कीि जनजालि की प्रमुख मािा िैं ।
➢ खोलड़याि मािा को अिंग लवकिांग अिनी मनोकामना िूणग िोने के लिए मानिे िैं, झाबंुआ शिर में इनका लवशाि
मंलदर िैं ।
➢ चोरण मािा की वंदना चोरी, डकै िी में सफििा के लिए की जािी िैं । सफििा लमिने िर बंकरे एवं मुगे की बंिी
दी जािी िैं ।
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प्रमुख किा :
गुदना :
किा मानव सस्ं कृलि का एक आवश्यक काग िैं । स्वयं को सजाना एवं सवारना की एक किा का िी एक अंग िैं ,
मनुष्ट्य के हृदय में सौन्दयग और शंृगार के प्रलि एक स्वाकालवक आकषगण और प्रेम िोिा िैं फिि : उसमे सौन्दयग रचना और
सौन्दयग वृलद्ध की स्वाकालवक प्रवृलियााँ िैं ।
स्थाई शंृगार का मुख्य अंग िैं गुदना । गुदना िी एक मात्र ऐसा शंृगार िैं जो व्यलि को बंाल्यकाि से मृत्यु िक लनरंिर
सजा – साँवरा रखिा िैं ।
गोदना शरीर िर की जाने वािी अलमट रेखाकंन किा िैं । गोदना और दागना प्रारलभिकक मानव के लवकास की कलड़या
किी जा सकिी िैं । यि प्रथा आज की कई आदम समूिों में देखी जा सकिी िैं । गुदना शरीर के सौन्दयगिरक अिंकरण िैं,
इसीलिए कीिी मलििाये गोदना गुड़वाने में गवग अनुकव करिी िैं । कीिी बंोिी में गोदना को गुदावणे कििे िैं ।
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2. आभिबंा मोर: चिुकगुज आकार का लचन्ि शरीर के लकसी की वांलछि अंग िर कीिी लस्त्रयााँ गुदवािी िैं । मयूर की आकृलि
लवशेष आकषगण के साथ उके री जािी िैं। मयूर मदोंन्मििा का प्रिीक िैं । अंि : कीिी मलििाये अिने िावण्य को
िुकावना बंनाने के लिए इस आकृलि को मांग, छािी, िाथ – िैर में गुदवािी िैं ।
3. कट्टावरी : इस प्रलक्रया में दो लचत्र उके रे जािे िैं । एक कोणाकार एवं दूसरा उिटे चिुथाांश वृिों द्वारा बंनाया जािा िैं ।
लवलवत रेखाओ और लबंन्दुओ द्वारा यि गोदना कीिांगनाओ द्वारा शरीर के वांलछि अंग में उके रा जािा िैं ।
4. लछिारा : यि आकृलि प्राय: िाथों िर गोदी जािी िैं । लछिारा दोिरी रेखाओ वािे दो मुखािेक्षी कोणो से बंनिा िैं ।
इसमे वि
ृ का की उियोग लकया जािा िैं । गोदने की आकृलियों में यि प्रकाश िुंज और नक्षत्र रलश्मयों का प्रिीक िैं ।
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लकलि लचत्र :
कीिी जनजालि मांगलिक अवसरों को अलतक समतुर एवं आनंदमय बंनाने के लिए घर की दीवाि िर गाय, बंैि,
सिग आम्र वृक्ष शेर और लशकार करने के िलथयार का अिंकरण करिे िैं लजन्िे गोिरेज किा जािा िैं ।
लिथौरा लकलिलचत्र :
• जोबंट एवं अिीराजिुर के कीिी क्षेत्र में नंवई िवग के एक लदन िूवग घर के अंदर की लकलि िर लिथौरा बंनाए जािे िैं ।
• लिथौरा आलदवासी मन की कल्िनाओ ं और कावनाओ का दिगण िोिा िैं । इसमे चााँद – सरू ज, िाथी – घोड़ा, कुिा –
लबंल्िी, गाय – बंछड़ा, बंकरा, िोिा, लबंना लसर का मानव, िलनिाररन, बंावड़ी, बंड़ का िेड़, लशकार मारकर िाने का
दृश्य, िाड़ के वक्ष ृ िर एक इस
ं ान िाड़ी लनकििा िुआ, रानी काजि (देवी), इत्यालद आड़ुवासी जीवन से जुड़ी िगकग िर
वस्िु बंनािे िैं ।
• लिथौरा बंनाने वािे को िलखन्द्रा कििे िैं, यि शुद्ध िोकर एक िी लदन में लिथौरा बंनािा िैं ।
• िररवार का मुलखया िलखंन्द्रा को अिनी सामर्थयागनुसार किड़े, आनज व तनरालश केंट करिा िैं ।
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• कीि जनजालि लिथौरा को देविा सदृश्य मानिे िैं इसलिए लिथौरा की मानिा की िेिे िैं ।
• लिथौरा बंन जाने के बंाद रालत्र में गायन िोिा िैं । िुजारा घर मुलखया से लिथौरा का लवलतवि िूजन करवािा िैं। बंकरे या
मुगे की बंलि दी जािी िैं । आमंलत्रि सकी िोगों को दारू व कोजन करवाया जािा िैं ।
• काकरा के श्री प्रेमा फत्या, कीिी क्षेत्र में लिथौरा बंनाने के लिये अलद्विीय व ख्यालि प्राप्त िलखन्द्रा िैं ।
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गाििा :
• जबं लकसी कीि स्त्री या िुरुष की दुघगटना या लकसी शौयग प्रदशगन के व्यि मृत्यु िो जािी िैं िो मृत्यु के ििाि मृि व्यलि
की स्मृलि में ित्थर के लशल्ि के गाड़े जािे िैं लजसे गािा या गाििा कििे िैं ।
• इनमे मृि व्यलि की िस्वीर लचत्र के माध्यम से उकरेने की प्रथा रिी िैं, किीं किीं स्त्री के लिए कािे ित्थर िर लजसे आंगड़
कििे िैं । और िुरुष के लिए सफेद ित्थर का गािा बंनवाकर गाड़िे िैं लजसे चौकिी कििे िैं ।
• बंाग के श्री मोिन लसंि ढोिी गािा बंनाने के लिए कीि क्षेत्र के ख्यालि प्राप्त किाकार िैं ।
• गािि िर सयू ग, चंद्र एवं अश्व के लचत्र अवश्य उके रे जािे िैं ।
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ििमा प्रथा :
• लकसी के घर की बंुवाई ं – कटाई सातनों के अकाव में रुक गई िो िो िूरा गााँव सियोग के लिए खड़ा िो जािा िैं, फसि
की बंुवाई,ं लनंदाई और कटाई के समय कीि िररवार एक दूसरे को सियोग करिे िैं लजसे ििमा कििे िैं ।
• ििमा एक सामूलिक श्रम की िारंिररक संस्था िैं इस िरंिरा के द्वारा िी कीि ियाग वरण यालन जंगि, जि आलद का
सरं क्षण करिे िैं ।
• इसी के ििि वि साथ में लमिकर िेड़ िगािे िैं एवं जि इकट्ठा करने के लिए छोटे – छोटे िािाबं खोदिे िैं ।
• इस प्रथा के के माध्यम से जनकागीदारी द्वरा सामालजक आवश्यकिाओ ं को िूरा करने के लिए करिे िैं ।
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यू्नट -10
मध्यप्रदेश ी जनजा्ि – ्वरासि, लो सस्ं ृ ्ि एवं लो सा्ित्य
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िररचय :
• 2011 ी जनगणना े अनुसार यि कारि ी सबंसे बंड़ी और मध्यप्रदेश ी दूसरी सबंसे बंड़ी जनजा्ि समूि िैं ।
• यि सबंसे अ्त प्रकावशाली जनजा्ि िैं ।
• गोंड जनजा्ि प्र ृ ्ि ी ोख में या गााँव सड़ से दूर जंगलों में ्नवास रना िसंद रिी िैं । ये प्र ृ ्ि प्रेमी िोिे िैं ।
प्रा ृ ्ि जीवन िी इन ा आदशश िोिा िैं ।
• गोंड शब्द िेलगु शब्द ोंड से बंना िैं ्जस ा अथश ििाड़ िोिा िैं अथाशि ििाड़ी क्षेत्र में ्नवासरि िोने े ारण ये गोंड
िलाये ।
• ये द्र्व्ड़यन समूि े प्रोटो – आस्रे लायड जा्ि वगश से संबंं्ति िैं ।
• यि जनजा्ि संस् ृ ्ि सभििन्न एवं प्रकावशील जनजा्ि िैं ।
• गोड़ द्र्वड सस्ं ृ ्ि ा प्रमुख अंग िैं ।
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उत्ि्ि :
गोंड जनजा्ियों ो उत्ि्ि से संबंं्ति ोई ए्ििा्स अ्कलेख प्राप्त निीं िैं । े वल उत्ि्ि संबंं्ति अने
तारणाएाँ व ्मथ प्रच्लि िैं । गोंड शब्द ी व्युत्ि्ि (द्र्वड़) काषा े ोंड अथाशि ोण्ड िवशि े ्नवासी गोंड िलाये।
ए अन्य तारणा यि िैं ् गोंड शब्द ी उत्ि्ि “गोढ़ शब्द से िुई, ्बंिार एवं ि्िम बंंगाल ा क्षेत्र गोढ़ िलािा िैं,
संकवि: यिााँ े ्नवासी गोंड े नाम से प्र्सद्ध िुए ।
ए ्मथ े अनुसार – ए िुभिबंे (लौ ी से ्न्मशि िात्र ) से दो मनुष्य प्र ट िुए ्जनमे से ििला बंैगा िुआ और दूसरा
गोंड । बंैगा टाँ्गया ( ु ल्िाड़ी) ले र जंगल ाटने चला गया और गोंड ने नगर बंसा ्लया ।
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सांख्य ीय आ डे :
• यि मध्यप्रदेश ी दूसरी सबंसे बंड़ी जनजा्ि िैं ।
• वषश 2011 ी जनसख् ं या े अनुसार गोंड जनजा्ि 50.93 लाख िैं । यि मध्यप्रदेश ी ु ल जनजािीय जनसख्
ं या ा
ए ्ििाई ्िस्सा िैं ।
• इन ी सवाश्त जनसख् ं या मध्यप्रदेश े ्छंदवाड़ा ्जले में िैं, ु ल 6.2 लाख गोड़ ्नवास रिे िैं ।
• यि मध्यप्रदेश े द्क्षणी क्षेत्रों में बंिुलिा से िाई जािी िैं ।
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काषा :
• इन ी मुख्य काषा गोंडी िैं, गोंड जनजा्ि ्जस बंोली काषा ा प्रयोग सवाश ्त रूि से और दै्न जीवन में रिे िैं
उसे गोंडी काषा ििे िैं ।
• गोंडी द्र्वड िररवार ी मध्यविी वगश ी काषा िैं ।
• ्छंदवाड़ा, ्सवनी, बंैिूल, िोशंगाबंाद, िूवश ्नमाड, और बंालाघाट े गोंड शुद्ध गोंडी बंोलिे िैं ।
• मण्डला ्जले ी गोंडी शि प्र्िशि रूि से छत्तीसगढ़ी ा प्रकाव देखने ो ्मलिा िैं ।
• शिडोल और रीवा ्जले में गोंडी में बंघेली ा अत्य्त प्रकाव देखने ो ्मलिा िैं ।
• इस े अलावा ये डोरली, िल्बंी िथा किरी काषा की बंोलिे िैं ।
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कौगो्ल ्विरण
एवं ्नवास क्षेत्र
• मध्यप्रदेश े उत्तरी काग ो छोड़ र बंैिूल, िोशंगाबंाद, ्छंदवाड़ा, बंालाघाट, शिडोल, मण्डला, सागर, दमोि, सिना,
खंडवा बंुरिानिुर, सीिोर रायसेन और नर्सिं िुर ्जलों में गोंड जनजा्ि े लोग रििे िैं।
• मध्यप्रदेश े मध्य और नमशदा नदी घाटी े आसिास क्षेत्र में इस जनजा्ि ा ्नवास क्षेत्र िैं ।
• यि जनजा्ि ्वंध्याचल िवशि श्रंखला और सििुड़ा िवशि शंृखला े मध्य अव्स्थि क्षेत्रों में सवाश ्त जनसंख्या में
्नवास रिी िैं ।
• िूवश में ्सगं रौली से ले र ि्िम में बंैिूल ि िथा उत्तर में सागर से द्क्षण में बंालाघाट ि गोंडो ा ्नवास क्षेत्र िैं ।
• प्रमुख ्जले – बंैिूल, िरदा, िोशंगाबंाद, रायसेन, कोिाल, सागर, दमोि, िन्ना, ्डन्डोरी, मण्डला, बंालाघाट, ्छंदवाड़ा
• इन ी सवाश्त जनसंख्या ्छंदवाड़ा ्जले में 6.2 लाख िैं ।
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उिजा्ियााँ :
• मध्यप्रदेश शासन ी अनुसूची में गोंड ी 50 से अ्त उिशाखाए बंिाई गई िैं ।
• प्रमुख उिजा्ियााँ : आरख, अगररया, बंड़ी माररया, ोइला कूिा, बंायसन, खैरवार, िरतान इत्या्द
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श्रम वििाजन के
ओझा : पंरिताई एिं तांत्रिक विया करने िाला िगय
आधार पर
विभिन्न आधारों
पर वििाजन
सेल्हास : बढ़ई का कायय करने िाले गोंि
Note:-
• मुररया या माररया – गोंडो ी अत्यंि ्िछड़ी जनजा्ि िैं ।
• अबंूझम्ड़या : गोंडो ी उिजा्ि िैं, ्जस ा अथश िैं अज्ञान जंगली । इन ा ्नवास क्षेत्र अबंूझमाड़ा क्षेत्र (्छंदवाड़ा,
बंैिूल, ्सवनी एवं मण्डला ) िैं ।
शारीरर ्वशेषिाएाँ :
विाकूषण :
• ये म विों ा प्रयोग रिे िैं ।
• िुरुष घुटनों ि तोिी, मीज, बंंडी एवं ्सर िर िगड़ी बंांतिे िैं ।
• िुरुष ं ते िर ्बंछौना एवं ्सर िर मुरैठा बंांतिे िैं ।
• ्िया ांछदार तोिी, ब्लॉउज ििनिी िैं ।
• ्िया आकूषण एवं गुदना ्प्रय िोिी िैं । इन े िरंिरागि आकूषणों में जुररया, िलेम,
ढार, झर ा , टर ी, बंारी, ्ट ु सी इत्या्द गुदना गोदने ा ायश
गोताररन द्वारा ् या जािा िैं
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रिन – सिन :
• स्वकाव से गोंड िुरुष ु छ लजीले, सुस्ि ् न्िु सहृदय, सच्चे और ्वश्वसनीय िोिे िैं ।
• जीवन े िरािी उन ा दृ्ष्ट ोण मस्िी ा िोिा िैं और वे आरामप्रद और झंझटों से मुि जीवन िसदं रिे िैं ।
• गोंड सदैव अकावों में जीना जानिे िैं । ये सामान्य रूि से मश िर ्वश्वास रिे िैं ।
• गोंड शास े रूि में एवभिबं कू्म सभििन्न िोने े ारण अिेक्षा ृ ि अन्य आ्दवा्सयों से अ्त सभ्य और
सुसंस् ृ ि िैं, मध्यप्रदेश ा ए्ििा्स नाम िी गोंडवाना िैं ।
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खान – िान :
• गोंड शा ािारी और मााँसािारी दोनों प्र ार े िोिे िैं ।
• इन्िे मोटे आनाज व ं दमूल खाना व मोटे आनाज से बंना िेय िदाथश िेज अत्य्त ्प्रय िोिा िैं ।
• मिुआ गोंडो ा प्रमाउख कोजन िैं, इसे वो देव अन्न ि र सबंं ो्ति रिे िैं ।
• गोदो ा मुख्य आिार ोइई या ोंदो ा काि िोिा िैं ,
नाश्िा ो लऊ और शाम े
कोजन ो ्बंयारी ििे िैं ।
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सामा्ज एवं
आ्थश ्वशेषिाएाँ :
सामा्ज सगं ठन:-
• गोंड समाज ्ििृ सत्तात्म समाज िैं ।
• गोंडो ो ्वश्वास िैं ् “ बंीज खेिी से अ्त मित्विूणश िैं, िुरुष बंीज िैं और नारी खेिी िैं ।
• िुरुष िररवार ा मु्खया िोिा िैं, िरंिु सयानी म्िलाओ से िर ायश में सलाि ली जािी िैं ।
• गोंडो में सयं ुि िररवार बंिुि म देखने ो ्मलिे िैं ।
• घर में मु्खया और वृद्ध लोगों ी बंाि सकी मानिे िैं ।
• गोंडो में िदाश प्रथा निीं िैं इस ा ारण ्ियों ा ायश क्षेत्र घर े कीिर की निीं, घर े बंािर की िोिा िैं । गोंड ्िया
सच्चे अथों में ि्ि ी सिचरी िोिी िैं ।
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मु द्दम :
• यि गााँव ा मु्खया या गो्टया िोिा िैं ।
• मु द्दम सर ार ो लगान वसूल र देिा िैं ।
• इन ी ्नयु्ियााँ िरंिरागि रूि से या वंशानुगि रूि से िोिी िैं ।
ोटवार :
• मु द्दम ी सिायिा े ्लए सर ार िर गााँव में ोटवार ्नयुि रिी िैं ।
• सर ारी सच ू नाओ,ं अ्त ाररयों ी गााँव में रिने – खाने ी व्यवस्था, गो्टया े सियोग से ोटवार रिा िैं । जन्म
मरण ा ्िसाबं रखिा िैं ।
• गोंड आिसी ्शष्टाचार ो की निीं कूलिे िैं । बंड़ों ो िायसरी ि र अ्कवादन रिे िैं ।
• संबंं्तयों िथा ररश्िेदारों ो िलागों, सामान्य लोगों ो जयराम ्ज और सलाम से जुिार रिे िैं । अ्त आदर े
्लए चरण स्िशश या गले ्मलिे िैं ।
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• देवगुड़ी े आतार िर गोंडो े बंासठ गोत्र िैं – टे ाम, नेिाम, आयाम, े राम, ाररआम, ्संिराम। सररयाम, ्शवराम,
मरवी, ्झ राम, मर ाम, इत्या्द।
• राज गोंडो े अठारि गोत्र अलग िैं, सबं ो दूताकाई ु र ििे िैं । रि सबंं ंत िोने े रण इनमे िरस्िर ्ववाि निीं
िोिा िैं।
आ्थश जीवन:-
• गोंडो ा आ्थश आतार सामान्यि: बंिुि मजोर िोिा िैं । राजगोंड सभििन्न िोिे िैं ।
• गोंडो े जी्व ा े सातन म और िरंिरागि िोिे िैं । खेिी िी इन ी जी्व ा ा प्रमुख सातन िैं ।
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ृ ्ष
• सामान्यि: गोंड अिने खेिों में दो प्र ार ी फसल लेिा िैं िि
्सयारी
▪ तान ोदो, ु ट ी, ्िलिन, रम्िला, चावल, मक् ा, ्िली आ्द
उन्िारी
▪ गेंिू, चना, राई, मसरू , अलसी इत्या्द
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• आ्त ांश गोंडो े िास कू्म और बंैल न िोने े ारण वे िरवािी खेिी रिे िैं । कू्म मा्ल
ा जश सदैव चढ़िा रििा िैं । इस िरि िरवािी िीढ़ी दर िीढ़ी िरवािी चलिी रििी िैं ।
• सामान्य गोंड ऋणग्रस्ि िैं । मिाजन और सभििन्न ् सान िर िरि से शोषण रिे िैं ।
• गोंडो ी आमदनी ा दूसरा जररया वनोिज ो इ ट्ठा रना और बंेचना िैं ।
▪ चार वृक्ष से ्चरौंजी इ ट्ठा रना म्िलाओ ं ा ्प्रय ायश िैं ।
▪ मिुआाँ बंीनना, लाख बंीनना, बंीड़ी ित्ता, मोिलाइन ा ित्ता, जलाऊ
ल ड़ी इ ट्ठी ार बंेचना गोंडो ा प्रमुख ायश िैं ।
▪ ृ ्ष स्वरूि
▪ बंारी : मूल रूि से ृ ्ष
▪ िेंडा : ििाड़ी क्षेत्र में ृ ्ष
▪ ्दप्िा – मैदानी क्षेत्रों में ृ ्ष
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• बंांस ी वस्िुए,ाँ ित्तल, दोना बंना र और शिद इ ट्ठा ार गोंड िैसे ाम लेिे िैं ।
• गोंडो े जीवन में ्श ार ा बंड़ा मित्व था और उन ी जी्व ा ा बंड़ा सातन था,
िरंिु संर्क्षि वन िोने े ारण ्श ार अबं ्बंल् ु ल म िो गया िैं ।
्नष् षश : गोंड बंारिों मिीने आमदनी म और खचश अ्त िोने से अकाव में जीिे िैं, ्फर की ु छ प्र्िशि ्शक्षा प्रसार से
ई गोंड िररवारों ने अिनी आ्थश ्स्थ्ि िर िूरा ध्यान ्दया िैं, और उसमे सुतार ् या िैं ।
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सांस् ृ ्ि ्वशेषिाएाँ :
्ववाि : आ्दवा्सयों में ्ववाि े वल वंशवृ्द्ध े ्लए निीं रचाये जािे िैं, बं्ल् ्ववाि, आ्दम प्रेम, िरस्िर
सियोग और सिज आ षशण ी अ्कव्य्ि िोिे िैं । आ्दवा्सयों में म्िलाओ ं ा स्थान े वल घर े कीिर िी निीं िैं, वे
घर े बंािर की िुरुषों े ं ते से ं ते ्मला र जीवन िथा जी्व ोंिाजशन ा िर ायश रिी िैं। वे सच्चे अथश में िुरुष ी
अताां्गनी िोिी िैं।
• गोंडो में समगोत्री ्ववाि निीं िोिे िैं ।
• द्दिाल एवं न्निाल िररवारों में ्ववाि रना गोंड अिना नै्ि अ्त ार मानिे िैं, इसे दूत लौटावा
्ववाि ििे िैं ।
• गोंडो में लड़ े – लड़ ी े चुनाव में रंग एवं सौन्दयश ी अिेक्षा िररश्रम, ायश – ु शलिा और शारीरर
िुष्टिा देखी जािी िैं ।
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▪ िठौनी ्ववाि : लड़ ी ी बंाराि लड़ े े यिााँ जािी िैं । लड़ े े मंडि िर काँवरे (फेरे) िोिी िैं । लड़ ी
अिने दूल्िे ो ्वदा रा े अिने घर लािी िैं । यि ्ववाि प्रथा अबं विशमान िररवेश में देखने ो निीं ्मलिी
िैं ।
▪ चढ़ ्ववाि : दूल्िा बंाराि ले र दुल्िन े घर जािा िैं, दुल्िन े मंडि में काँवरे िोिी िैं । लड़ ा दुल्िन ो
्वदा र े अिने घर लािा िैं ।
▪ लमसना ्ववाि : यि ए प्र ार से सेवा ्ववाि िैं, वतू े मािा ्ििा ी सेवा र े प्रसन्न रना । और
मािा–्ििा े प्रसन्न िोने े बंाद न्या ा ्ववाि वर से रना ।
प्रमुख नृत्य एवं गीि : लो नृत्यों ो गोंड समाज स्वयं ी प्रेरणा से ्बंना संगीि, लय- िाल े सीखे िुए स्वयं िी
नाचिा िैं । आ्दवा्सयों े नृत्यों में स्थानीय ्वशेषिाओ ं े साथ ्व्कन्निा ्मलिी िैं, िर सकी स्थानों में जो ए रूििा िैं,
वि िैं समऊि में नृत्य रना । यि नृत्य क्रीडा आ्दवा्सयों ने प्र ृ ्ि से सीखी िैं ।
गोड़ो े ई िारंिरर नृत्य िैं, इनमे प्रमुख िैं -
करमा नृत्य एिं गीत :
• रमा मश ी प्रेरणा देने वाला नत्ृ य िैं । ग्रामवा्सयों में श्रम ा मित्व िैं, श्रम ो िी ये मश देविा े रूि में
मानिे िैं ।
• मध्यप्रदेश े िूवी में मश – िूजा ा उत्सव मनाया जािा िैं ।
• लो – नृत्यों ा राजा
• 2016 – ्गनीज बंु में शा्मल िोने वाला देश ा ििला नत्ृ य
• रमा नृत्य े दौरान यि गीि गाए जािे िैं, यि चार प्र ार े िोिे िैं –
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❖ रमा ठाढ़ा
❖ रमा लि ी
❖ रमा लंगड़ा
❖ रमा रा्गनी
सैला नृत्य :
िड़ौनी नृत्य :
वबरहा गीत :
• बंाराि जबं दूल्िे े घर से चलिी िैं िो रक्षिे में दोिों े रूि में ्बंरिा गए जािे िैं ।
• ्वरिा ा सबंं ंत ्वरि से िैं ।
• िी – िुरुष बंाराि में चले वाले इन गीिों ो िोड़ा – िोड़ी से गािे िैं ।
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सुआ नृत्य :
• जबं तान ी फसल ि र खेिों में लिरािी िैं, उस समय सुआ नृत्य ा उत्सव मनाया जािा िैं ।
• यि उत्सव मध्यप्रदेश े िूवी क्षेत्रों में मनाया जािा िैं ।
• सआ
ु या्न िोिे ो संबंो्ति र े गीिों िर िाली दे र यि नृत्य ् या जािा िैं ।
िीिानी एिं रीना नृत्य
• दीवाली े अवसर िर ् या जािा िैं ।
ििररया गीत :
• बंाराि े लोगों द्वारा रास्िे में ददररया गीिों ा गायन ् या जािा िैं ।
• यि ए वीर रस िूणश गीि िैं ।
• इसमे सेखी और बंड़ाई ी जािी िैं ।
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नहिोरा गीत :
• लड़ े ो बंाराि े ्लए िैयार रिे समय यि गीि गाया जािा िैं ।
झूमा झूमर गीत
• प्रेम गीि
• ्प्रयिमा अिने प्रीिम ी याद में यि गीि गािी िैं ।
सेताम गीत :
• इन गीिों े माध्यम से प्रीिम अिनी ्प्रयिमा िर प्रेम स्वरूि व्यंग गािा िैं ।
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प्रमुख िवश : आ्दम सभ्यिा और संस् ृ ्ि े प्रिी आ्दवासी आ्द ाल से अिने िवश – त्योिार मनािे आए िैं,
इन त्योिारों में आ्दवा्सयों ी ्वचारतारा उन े आ्थश एवं सामा्ज जीवन ी ्वशेष झल ्मलिी िैं । संस् ार
और िरंभििराओ ा दशशन िोिा िैं, श्रद्धा और ्नष्ठा ा योग ्मलिा िैं । गोंड समाज में साि िवश – त्योिार आ्दम िरंिरा े
अनुसार मनािे चले आ रिे िैं – ्बंदरी, बं बंंती, िर्ढली, नवाखानी, जवारा, मड़ई एवं छे रिा ।
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1. ्बंदरी: ्बंदरी ा शुद्ध रूि बंदरी या बंादल िै। इस ा अथश बंादल िूजा िै। ्बंदरी िूजा में बंादल े साथ तरिी और
अन्य ी की िूजा ी जािी िै। ्बंदरी िूजा ज्येष्ठ मास ी ् सी की ्ि्थ में ी जा स िी िै। ्बंदरी िूजा में
िूरा गाव शा्मल िोिा िै। सूयोदय से ििले स्नान र े ए लोटा िानी ले र ठा ु र देव े स्थान िर जाया
जािा िै। सफेद मुगों ी अछि चड़ा र न्ल दी जािी िै। िथा ए ्त्रि िुये अनाज ो समस्ि लोगो में बंांटा
जािा िै। ्जसे वे अिने बंीज े साथ ्मला र बंो देिे िैं। और अच्छी फसल ी ामना रिे िै। इसमें ठा ु र
देव ी िूजा ी जािी िै।
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2. नवाखानी : गोंडो में नवाखानी फसल और ्ििृ िूजा ा त्यौिार िै। नवाखानी ा त्यौिार प्रत्ये िररवार में व्य्िगि
रूि से मनाया जािा िै। काद्र मास े शुक्ल िक्ष ी ् सी की ्ि्थ ो अिनी सु्वतानुसार यि िवश मनाया
जािा िै। जनजा्ि ने ्ििृ-िूजा ा सभिबंन्त आने बंाली नई फसल े साथ जोड़ ्दया िै।
3. जवारा : ए ता्मश िवश िै। यि वषश में दो बंार मनाया जािा िै। ए आ्श्वन (क्वार) े मिीने में दूसरा चैत्र मे मिीने
में, जवारा दोनो माि ी शुक्ल ए ल ्ि्थ से नवमी ि जवारा ा त्यौिार मनाया जािा िै। जवारा इस
जनजा्ि ी श्ि िूजा िै। जवारा उत्सव नौ ्दन चलिा िै। प्रथम ्दन जवारे बंोये बंािे िै। िथा नौ ्दन ि
व्रि रखा जािा िै। बंस्िर ्जले े गोंडों े द्वारा चैत्र े मिीने में चै त्र उत्सव नाम प्र्सद्ध नृत्य ् या जािा
िै। यि फसल टाई े बंाद देवी अन्निूणाश ो ििले से िैयार फसल े ्लए तन्यवाद देने और अगली
फसल े ्लए उन ा आशीवाशद मांगने े ्लए ् या जािा िै। िुरुष और म्िलाएं ए वृत्त में, अतश-वृत्त में
या ि्ियों में नृत्य रिे िैं; सकी निश ए दूसरे ी मर ि ट लेिे िैं।
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4. मड़ई : मड़ई दीिावली ी प्र्ििदा से ा्िश िू्णशमा ि िन्द्रि ्दन बंड़ी तूमताम से मनायी जािी िै। मड़ई ए
ता्मश उत्सव िै। मड़ई अबं मेलो े रूि में ्व ्सि िो गई िै। मड़ई शब्द ी उत्ित्ती िड़वा से िुई िै।
्जस ा अथश िोिा िै। "मण्डि" इसमें दौगुन व गंगाइन देवी ा ्ववाि रचाया जािा िै।
5. बं बंन्ती: आषाढ़ मारा ी िू्णशमा यानी गुरु िू्णशमा ो मनाया जािा िै। बंैगा िलाश े िौतो ी जड़ो से रेशे
्न ाल र उन्िें िल्दी में रंग देना िै। मंत्र बंोलिे िुये तर े प्रत्ये गोंड युव ी लाई में वे रेशे बंांत देिा
िै। घर और खेि में इन रेशो ो गाडिा िै। दरअसल यि प्र ृ ्त्त जन्य रक्षाबंंतन िै। इस े िीछे ए प्राचीन
मान्यिा िै। ् ्लंगादेव ने अ्नन िरीक्षा े ्लये नागा बंैगा से यि तागा बंंतवाया था। ्जसने आग से
्लंगादेद ी रक्षा ीी िबं से गोड, बंैगा से यि रेशा बंंतवािे आ रिे िै।
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6. िर्दली: श्रावण मास ी अमावस्या ो िर्दली ा िवश मनाया जािा िै। यि उत्सव खरीफ फसल ी बंोनी े
समािन ा त्यौिार िै। बंेलों ो िलो से ढील देने ारण िर्दली नाम िड़ा। इस ्दन बंैलो ी िूजा ी
जािी िै।
7. छे रिा: यि उत्सव िौष मास ी िू्णशमा ो मनाया जािा िै। यि बंच्चों ो त्यौिार िै। इस ्दन बंच्चे टोली बंना र
्न लिे िै। वे घर - घर जािे िैं। सबं े िाथ में बंांस ी ए उड़ी िोिी िै। और ॉते ( ं घे) में ए झोली। वे
आंगन में खड़े िो र छड़ी ी नों से जमीन ु रेदिे िै। और "छे र ्छत्ता छे रिा, छे र ्छत्ता छे रिा" ी रट
लगािे िै।
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8. दीवाली: दीवाली उत्सव क्वार मास ी अमावस्या से प्रारभिक िो र ा्िश िू्णशमा ि िन्द्रि ्दन मनाया जािा िै।
अमावस्या े ्दन राि में मंत्र ्सद्ध रिे िै। औष्तयों ो जगािे िै। िथा अगले ्दन गोवतशन ी िूजा ी
जािी िै। अमावस्या ी रा्त्र में गोंड बंाल ों में ढराश देने ी प्रथा िै। इस प्रथा में खरगोश ी लेंडी ो
दा्िनी लाई िर रख र जलािे िै।
9. मेघनाद: फाल्गुन मिीने े ििले िक्ष में मेघनाथ त्यौिार गोड आ्दवा्सयों द्वारा मनाया जािा िै। मेघनाथ गोंडो े
सवोच्च देविा िैं। इस े अन्य नाम खंडेरा, खट्टा िै।
10. लारू ाज: लास् ाज गोड आ्दवा्सयसो द्वारा नारायण देव े सभिमान में मनाया जाने वाला त्यौिार िैं। यि िवश सुआर
े ्ववाि ा प्रिी माना जािा िै। इस उत्सव में सुअर ी बं्ल दी जािी िै।
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धाभमिक विशेषताएँ :
• आ्दम समूि में ् सी तमश ी अवतारणा निीं िाई जािी िैं, आ्दवासी आ्स्ि िोिे िैं ।
• ये बंिुदेववाद ो मानिे िैं, ये प्र ृ ्ि ी अिार श्ि े िूज िोिे िैं, ये चााँद और सूरज, बंादल, ्बंजली, वषश, अ्नन
े प्र्ि िूजा ा काव रखिा िैं ।
• गोंडो े ई देवी – देविा िैं, ्जन्िे वे अटूट आस्था े साथ िूजिे िैं ।
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बड़ा िेि :
ठाकुर िेि :
नारायण िेि
• इन ा स्थान घर ी दिलीज में िोिा िैं , यि घर िर आने वाली सकी प्र ार ी दैवीय बंाताओ ं जैसे कूि – प्रेि ,
बंीमारी इत्या्द से रो िे िैं ।
• नारायण देव ी िूजा घर ी दिलीज िर िोम, तूि, अगरबंत्ती और नाररयल से ी जािी िैं ।
घमसेन िेि :
• घमसेन देव ा वैरा बंड़े देव े िास रििा िै। उस िर ए खभिबंा गड़ा रििा िै। ओर ध्वजा फिरािी िै।
• घमसेन देव े चैरा िर मनौिी े जवारे बंोये जािे िै।
• ए बंार वषश में सामू्ि िूजा ी जािी िै।
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नागेश्वर िेि :
खैरमाई :
• खैरमाई ग्राम ी सीमा रक्ष देवी इन ा स्थान अ्त िर मिुआ वक्ष ृ े नीचे िै।
• इन े अ्िररि बंजाररन देवी (वन देवी), रािमाई अंतेरी माई, शीिला माई (ममिामयी मािा), शारदा माई िै। बंूढ़ी माई
(बंड़ी चेच ), छोटी मािा ो गोड सलाई ििे िै। िैजा और प्लेग बंीमाररयों ो मरिीमािा नाम ्दया गया िै।
मलेररया ो िल ी िाई या दत्त ी माई ििे िै।
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गोंड अिने जीवन में कय, बंीमाररयों े ारण और दैवीय आिदाओ ं से बंचने े ्लए ई देवी-देविाओ ं ी
उिासना रिा िै। जरा सा की कय िुआ ् गोंड उसे देव ी िरि िूजा रने लगिा िै। अिरानी, मिारानी, इन्द्रानी, ्बंन्द्रानी,
रासाढारनी, अंगारमािी, लोिाझारिी दे्वयााँ िार और मार दे्वयााँ िैं। ं ाली देवी, डो री दायी, अघोरी िूजा ी
दे्वयााँ िैं। कैरों देव रक्ष िैं। गोंड वंश े ु ल देविा की उिने िी िूज्य िोिे िैं ्जिने अन्य देव। िुरबंनीमािा, दूल्िा देव,
बंघेश्वर देव, आजा-िुरखा, सरू ज देव, जल देविा, अ्नन देविा, तरिी मािा, गौमािा, सरई े वक्ष ृ में बंड़े देव ा वास मानिे
िैं। दूल्िा देव रसोई ा देविा िै और क्रोती स्वकाव सरु जा देव रुिावीर आ्द ई देविाओ ं ी ल्िना जीवन में रििी िै।
बंुन्देला देव युद्ध ा देविा िै। ु ल ्मला र गोंड जीवन कय ा जीवन िैं ।
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धाभमिक मान्यताएँ :
गोंड समाज टोने-टोट े , जादू, झाड़-फूं में ज्यादा ्वश्वास रिे िैं। गकशविी म्िला ो वक्ष
ृ ी जड़ ्दखाने से
प्रसव जल्दी िो जािा िै। ्वतवा िी ो ् सी की जल जीव े साथ उल्टे फेरे ्फरवाये जािे िैं। बंीमाररयों में झाड़-फूं ा
सिारा लेिे िैं। िागल िोने या अ्त बंीमार रिने ो गोंड जादू ा नाम देिे िैं। मूठ मारना ए मार ्क्रया िै।
गोंड सिज रूि से अंत्वश्वासी िैं। अंत्वश्वास ी जड़ें मानव जीवन में बंिुि गिराई ि िैं और आज े
प्रग्िशील युग में की यि ् सी न ् सी रूि में मानव मन िर छायी िुई िैं। आ्दवासी जीवन ो ्नरािद बंनाने े ्लए
अंत्वश्वासों ो मानिा िै।
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आ्दवासी समाज ी अंत्वश्वासी िरभििराओ ं ने िीं- िीं आ्दम संस् ृ ्ि ा रूि ग्रिण र ्लया िै। अंत्वश्वास
मुख्यिः िााँच रूिों में आ्दवासी समाज में ्दखाई देिे िैं- यथा
• श ु न-अिश ु न,
• जादू-टोना,
• झाड़-फूाँ ,
• मंत्र-िंत्र और
• टोट ा।
इन अंत्वश्वासों े ारण की- की मानवीय िा्न ो की नजरअंदाज ् या जािा िै।
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प्रमुख कला :
नोहिोरा
• गोंड े ्मट्टी से िरारंिरर एवं लात्म रूि से ्न्मशि सुदरं घर, जो ग्रामीण आ्दम वास्िु ला े सवशश्रेष्ठ
उदािरण िोिे िैं, विी ये गोंडी ्चत्र ला े प्रारंिरर उत्स िोिे िैं ।
• घरों ी दीवार बंनािे समय गोंड म्िलायें ्मट्टी ी उकरी रेखाओ ं से ्व्कन्न अलं रण ा ्नमाशण रिी िैं ्जन्िे
नोिडोरा से संबंो्ति ् या जािा िैं ।
• यि गोंडी ्चत्र ला ा मूल प्रस्थान ्चन्ि िैं ।
• यिी से गोंडी ्चत्र ला ा प्रादुकाशव िुआ िैं ।
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गोंि त्रचिकला :
• गोंडजन अिने घरों ी दीवारों ो सजाने े ्लए देशज ्मट्टी ा प्रयोग र े दीवालों िर ्च्ड़यों, घोड़ों, िा्थयों,
मयूरों, बंैलों, और मनुष्यों ी आ ृ ्ि उ े रिे िैं ।
• दीवालों े ् नारे ् नारे दीवाल ी िि से ऊंची ऊंची ििली ्डजाइन ्न ाल र उसे गेरू, जली या नीले रंग से
रंग देिे िैं ।
• दीवालों िर ्त्रकुजा ार या वृत्ता ार ्मट्टी ी उकरी रेखाएाँ, आ ृ ्ियों े मध्य रंग करना, देवी देविाओ ं े ्चत्र,
गोंडजनों े आ्दम स्मृ्ि ्चन्ि ो उ े रना, िी- िी फूल ित्ती अलं ृ ि रिे िैं । सामू्ि रूि से इन्िे िी गोंड
्चत्र ला िा जािा िैं ।
• विशमान िररवेश में गोंड ्चत्र ला जो दीवालों िर सी्मि थी उसे अबं ै नवास िर उ े रा जाने लगा िैं ।
• प्रमुख ला ार : स्व जनगढ़ ्संि श्याम, नमशदा प्रसाद िे ाम, आनंद ्संि श्याम, लाबंाई, व्यं ट ्संि श्याम,
कज्जु, मोिन इत्या्द
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गुिना :
• आ्दवा्सयों में शरीर में गुदाने ी प्रथा सबंसे अ्त िैं, इन ी यि तारणा ् िी ा सच्चा जेवर या आकूषण ये गोदना
िोिा िैं जो मरिे समय की इन े साथ जािा िैं और देविा इन्िे देख र प्रसन्न िोिे िैं ।
• गोंड बंांि, िाथ, िोंिचा, गले, छािी, मस्ि , िैर आ्द शरीर े ्व्कन्न अंगों िर छ: - साि वषश से गुदवाना शुरू र् देिे िैं ।
म्िलाओ ं े गुदनों में ई रुिा ारों ा समावेश िोिा िैं, ये शरीर े ्व्कन्न अंगों िर अलग – अलग िरि े िरंिरागि
गुदने िोिे िैं जो शरीर े ्न्िि स्थान े ्लए ्नताशररि िोिे िैं, और इन्िे उन्िी स्थानों में गुदवाना िोिा िैं ।
• गोंड और बंैगा जनजा्ि में गुदना गोदने ा ायश बंादी जा्ि ी म्िलाये रिी िैं ्जन्िे बंद्नन िा जािा िैं, इन ा इन
जा्ियों में बंिुि बंड़ा सभिमान िोिा िैं । गुदना गोदवाने े ्लए इन्िे आमं्त्रि ् या जािा िैं । और उ्चि मूल्य और ्बंदागी
दे र सभिमा्नि ् या जािा िैं ।
• बंैिूल में सबंसे ििले कृ ु टी िर अद्धश चंद्रा ार आ ृ ्ि गुदवाई जािी िैं।
• मण्डला में सबंसे ििले िोिन्चा गुदवािे िैं ।
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