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ददन ांक: 22 फरवरी 2024

भ षण की स्वतांत्रत पर न्य दयक स्पष्टत


स्त्रोत- द दहन्दू एवां पीआईबी।
स म न्य अध्ययन – भ रतीय सांदवध न एवां र जव्यवस्थ , व क एवां अदभव्यक्ति क मौदिक अदधक र ,
न्य दयक समीक्ष , भ रत में र जद्रोह , दे शद्रोह की अवध रण , दे श की श सन व्यवस्थ क उतरद दयत्व।

खबरोां में क्ोां ?

 हाल ही में 31 जनवरी 2024 को कुणाल कामरा के केस के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायमूर्तट गौतम पर्े ल
द्वारा र्दए गए एक न्यार्यक र्नणटय ने सोशल मीर्िया पर स्वतंत्र भाषण के अर्धकार को लेकर संवैधार्नक
बुर्नयादी र्सद्ां तों को महत्वपूणटता को लेकर बहस छे ड़ दी है ।
 बॉम्बे हाई कोर्ट के र्नणटय ने इस मामले में स्वतंत्र भाषण के अर्धकारों को संवैधार्नक दृर्िकोण से मान्यता दी है ।
 इसमें यह कहा जा रहा है र्क स्वतंत्र भाषण के महत्वपूणट अर्धकारों की सुरक्षा एक सुरक्षा कवच के रूप में
न्यार्यक समीक्षा के तकट को मान्यता दे ता है । उन्ोंने संवैधार्नक र्सद्ां तों के अर्भसरण और स्वतंत्र भाषण के
महत्वपूणट अर्धकारों के प्रर्त रािर की संवेदनाओं की प्रर्तर्नर्धत्व र्कया है ।
 यह र्नणटय बहुसंख्यक सभाओं और अदम्य शक्ति की ज्यादर्तयों के क्तिलाफ एक सुरक्षा कवच के रूप में
न्यार्यक समीक्षा के तकट को मान्य करता है ।
 बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायमूर्तट गौतम पर्े ल द्वारा र्दए गए इस न्यार्यक र्नणटय आईर्ी र्नयम 2021 के संशोर्धत
र्नयम 3(1)(B)(v) के आधार पर र्कया गया है , र्जसमें एक व्यापक रूप से मनमाना और अन्यायपूणट माना जाने
वाला र्वधान शार्मल है । इससे स्पि होता है र्क न्यार्यक र्नणटय में स्वतंत्र भाषण के महत्वपूणट अर्धकारों की रक्षा
के प्रर्त न्यार्यक समीक्षा के द्वारा र्कए जा रहे तकट को मान्यता दी गई है ।
 इस र्नणटय में यह भी कहा गया है र्क अनुच्छेद 19(2), (6) में प्रावधार्नत प्रर्तबंधों के अलावा स्वतंत्रता की
छे ड़छाड़ नहीं की जानी चार्हए और संर्वधान के क्तिलाफ राज्य के अर्तक्रमण के क्तिलाफ स्पि रक्षा की जानी
चार्हए। यह र्नणटय स्वतंत्र भाषण के महत्वपूणट अर्धकारों की प्रमुिता को पुनरावृर्ि करता है और इसे
संवैधार्नक दृर्िकोण से सुरर्क्षत करने का प्रयास करता है ।
 न्यायाधीश ने अर्भव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्याक्तख्यत करते हुए, अनुच्छेद 19(2) और (6) के अनुसार उर्चत
प्रर्तबंधों को छोड़कर स्वतंत्रता की पूणट रक्षा की आवश्यकता को आवश्यक बताया है । इसमें उन्ोंने यह भी
कहा है र्क राज्य द्वारा व्यक्ति की इस स्वतंत्रता से छीनने का कोई कारगर और धाराप्रवाह प्रर्तबंध नहीं होना
चार्हए।
 इस र्नणटय से यह स्पि होता है र्क न्यायाधीश ने सोशल मीर्िया पर भाषण के साथ छे ड़छाड़ या प्रर्तबंध की
अनुमर्त दे ने का समथटन र्कया है , जब तक र्क इसमें आपर्िजनक और अनैर्तक सामग्री शार्मल नहीं है । इसमें
र्वर्धवत और न्यार्यक दृर्िकोण से सोशल मीर्िया पर भाषण की स्वतंत्रता की महत्वपूणट रक्षा हो रही है ।

भ रत में व क एवां अदभव्यक्ति की स्वतांत्रत और न्य दयक स्पष्टत :


न गररक के आिोचन करने क अदधक र :
 भारत में प्रत्येक भारतीय को सरकार की और सरकार की तत्कालीन असंवैधार्नक नीर्तयों की आलोचना करने
का अर्धकार है , और इसे राजद्रोह के रूप में पररभार्षत नहीं र्कया जा सकता है । यह नागररकों को अपने मत
और र्वचारों को स्वतंत्रता से व्यि करने का मौका दे ता है । यह अर्धकार ही लोकतंत्र की मौर्लक भूर्म है और
यह भारत में सामार्जक बदलाव के र्लए भी आवश्यक है ।
भ रत में र जद्रोह की पररभ ष :
 प्रत्येक भारतीय को नागररक के रूप में सरकार की और सरकार की तत्कालीन नीर्तयों का आलोचना करने का
अर्धकार है और इस प्रकार की आलोचना को राजद्रोह के रूप में पररभार्षत नहीं र्कया जा सकता है । आलोचना
को राजद्रोह के रूप में पररभार्षत करने की क्तथथर्त में भारत का लोकतंत्र एक पुर्लस राज्य के रूप में बदल
जाएगा।

दे शद्रोह (SEDITION) :

 भारत में भारतीय संर्वधान द्वारा दे शद्रोह और दे शद्रोह से संबंर्धत कानूनों को स्पिता से पररभार्षत करना
आवश्यक है , तार्क भारत के र्कसी भी नागररक द्वारा इसका दु रुपयोग नहीं हो और भारत के नागररकों को
भारतीय संर्वधान द्वारा प्रदत मूल अर्धकारों की रक्षा हो सके।
 भारतीय दं ि संर्हता की धारा 124 (A) में दे श की एकता और अिंिता को व्यापक हार्न पहुुँ चाने के प्रयास को
दे शद्रोह के रूप में पररभार्षत र्कया गया है । दे शद्रोह के अंतगटत र्नम्नर्लक्तित गर्तर्वर्धयाुँ शार्मल हैं –
1. सरक र दवरोधी गदतदवदध और उसक समथथन।
2. दे श के सांदवध न को नीच ददख ने क प्रय स।
3. कोई ऐस प्रत्यक्ष य अप्रत्यक्ष, दिक्तखत य मौक्तखक कृत्य दजससे स म दजक स्तर पर दे श की व्यवस्थ के
प्रदत असांतोष उत्पन्न हो।

व क एवां अदभव्यक्ति की स्वतांत्रत (FREEDOM OF SPEECH AND EXPRESSION) :


 अर्भव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom Of Expression) भारत के संर्वधान के अनुच्छेद 19 के तहत भारत के
नागररकों को र्लक्तित और मौक्तिक रूप से अपना मत प्रकर् करने हे तु अर्भव्यक्ति की स्वतंत्रता के अर्धकार
प्रदात र्कया गया है ।
 भारत में अर्भयक्ति की स्वतंत्रता का अर्धकार र्नरपेक्ष नहीं है । इस पर युक्तियुि र्नबंधन भी लागू होता हैं ।
भारत की एकता, अिंिता एवं संप्रभुता पर ितरे की क्तथथर्त में , वैदेर्शक संबंधों पर प्रर्तकूल प्रभाव की क्तथथर्त में ,
न्यायालय की अवमानना की क्तथथर्त में इस अर्धकार को बार्धत र्कया जा सकता है ।
 भारत के सभी नागररकों को र्वचार करने , भाषण दे ने और अपने व अन्य व्यक्तियों के र्वचारों के प्रचार की
स्वतंत्रता प्राप्त है । प्रेस/ पत्रकाररता भी र्वचारों के प्रचार का एक साधन ही है , इसर्लए भारतीय संर्वधान के
अनुच्छेद 19 में प्रेस की स्वतंत्रता भी सक्तिर्लत है ।
 इसका उपयोग दे श की एकता और सामररक समृक्तद् के र्हत का र्वकास करने में होना चार्हए
दे श य सम ज में नव च र और दजज्ञ स को प्रोत्स दहत करन :
 भारतीय संर्वधान के अनुसार भारतीय समाज में नवाचार और र्जज्ञासा को प्रोत्सार्हत करना चार्हए, क्ोंर्क इनसे
ही समाज का र्वकास होता है ।
 समाज की प्रगर्त का आधार उस समाज में उपक्तथथर्त नवाचार की प्रवृर्ि होती है । समाज में नवाचार और
र्जज्ञासा में ह्रास इसकी जड़ता को प्रर्तर्बंर्बत करता है । र्जज्ञासा के अभाव में समाज का र्वकास रुक जाता है
और वह तात्कार्लक अन्य समाजों से पीछे रह जाता है ।

असांतोष क अदधक र :
 र्कसी भी लोकतां र्त्रक व्यवथथा वाले दे श या राज्य में उनके नागररकों को प्रदत असंतोष का अर्धकार एक स्वथथ
और पररपक्व लोकतंत्र के र्लए महत्त्वपूणट है , इससे भारतीय समाज में अनेकानेक सुधार हो सकता है ।
 संर्वधान में स्पि रूप से नहीं र्लिे गए अर्धकार जैसे- र्वचार की स्वतंत्रता का अर्धकार (The Right Of
Freedom Of Opinion), अंतरात्मा की स्वतंत्रता का अर्धकार (Freedom Of Conscience) और असंतोष का
अर्धकार (Right To Dissent) को स्वस्थ्य और पररपक्व लोकतंत्र में महत्त्वपूणट थथान र्मलना चार्हए। इस प्रकार
की व्यवथथाओं के बाद ही लोकतंत्र में लोगों की सहभार्गता बढ़े गी।
 बदलते समय के साथ न चलने की क्तथथर्त एक र्दन भयावह रूप ले लेती है और इस प्रकार का असंतोष र्वध्वंसक
होता है र्जससे समाज को व्यापक और दीर्टकार्लक हार्न उठानी पड़ती है ।
अदधक रोां क प्रवतथन :
 भारतीय संर्वधान में स्पिता से नहीं भी र्लिे गए अर्धकारों को भी थथान र्मलना चार्हए, जैसे- र्वचार की
स्वतंत्रता, अंतरात्मा की स्वतंत्रता और असंतोष का अर्धकार।

समय नुकूि स म दजक दनयमोां में पररवतथन :


 भारतीय समाज में प्रगर्त के र्लए तय र्कए गए र्नयमों में बदलते समय के साथ पररवतटन की आवश्यकता है ,
तार्क भारतीय समाज नए र्वचारों का स्वीकृर्त कर सके और भारत की शासन व्यवथथा और अर्धक पररपक्व
और लोकतां र्त्रक बन सके।
 प्रत्येक समाज के कुछ थथार्पत र्नयम होते हैं । समय के साथ इन र्नयमों में पररवतटन आवश्यक है । अगर समाज
इन र्नयमों की जड़ता में बंधा रहता है तो इससे समाज का र्वकास रुक जाता है ।
 समाज में नए र्वचारों का जन्म तात्कार्लक समाज के स्वीकृत मानदं िों से असहमर्त के आधार पर ही होता है ।
यर्द प्रत्येक व्यक्ति पुराने र्नयमों और र्वचारों का ही अनुसरण करे गा तो समाज में नवाचारों का अभाव उत्पन्न हो
जाएगा, उदाहरण के र्लये नये र्वचारों और धार्मटक प्रथाओं का र्वकास तभी हुआ है जब पुरानी प्रथाओं से
असहमर्त व्यि की गई।
स म दजक असांतोष :

 भारत में सामार्जक असंतोष को समाधान के रूप में दे िना चार्हए और राजनीर्तक व्यवथथाओं में लोगों के
र्वचारों को समर्थटत करना चार्हए।
 भारत के बड़े क्षेत्रों में फैले सामार्जक असंतोष कहीं न कहीं इन राजनीर्तक व्यवथथाओं में उनके र्वचारों के
प्रर्तभाग का अभाव है । भारत जैसे सामार्सक संस्कृर्त वाले दे श में सभी नागररकों जैसे आक्तिक, नाक्तिक और
आध्याक्तत्मक को अर्भव्यक्ति का अर्धकार है । इनके र्वचारों को सुनना लोकतंत्र का परम कतटव्य है , इनके र्वचारों
में से समाज के र्लए अप्रासंर्गक र्वचारों को र्नकाल दे ना दे श की शासन व्यवथथा का उतरदार्यत्व है ।

ध दमथक स्वतांत्रत क अदधक र :


 भारतीय समाज में सभी वगों, धमों, और र्वचारधाराओं को समार्हत करना चार्हए, तार्क सभी नागररक अपने
र्वचारों को स्वतंत्रता से व्यि कर सकें और समृक्तद् में सहभागी बन सकें।
 भारत में सभी नागररकों को धार्मटक स्वतंत्रता का अर्धकार है , और इनके र्वचारों को सुनना और समर्थटत करना
भारतीय लोकतां र्त्रक व्यवथथा को और अर्धक पररपक्व करना, सभी के र्लए समावेर्शक बनाना और
समानतामूलक बनाना ही है ।

दनष्कषथ / सम ध न की र ह :

 अर्भव्यक्ति की स्वतंत्रता एक समृक्तद् और स्वतंत्र दृर्िकोण का सूत्र है जो र्कसी समाज में न्यार्यक स्पिता के
साथ जुड़ा होता है । इसका मतलब है र्क लोगों को उनके र्वचारों, भावनाओं, और अर्भव्यक्तियों को स्वतंत्रता से
व्यि करने का अर्धकार है और समाज में न्यार्यक संरचना इस स्वतंत्रता को सहारा दे ने के र्लए होनी चार्हए।
 भारतीय संर्वधान में अर्भव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुर्नर्ित करने के र्लए महत्वपूणट उपधाराएं हैं । धारा 19(1)(a)
में स्पि रूप से उक्तिक्तित है र्क “प्रत्येक न गररक को उसके दवच र को स्वतांत्रत से व्यि करने क
अदधक र है” यह एक महत्वपूणट मानदं ि है जो सुर्नर्ित करता है र्क समृक्तद् और न्याय की बुर्नयाद अर्भव्यक्ति
की स्वतंत्रता पर आधाररत है ।
 न्यार्यक स्पिता भारत में एक महत्वपूणट भूर्मका र्नभाती है , क्ोंर्क यह सुर्नर्ित करती है र्क अर्भव्यक्ति की
स्वतंत्रता का अर्धकार र्बना र्कसी आपर्ि या आपर्ियों के साथ बना रहता है । न्यार्यक स्पिता एक ऐसी क्तथथर्त
को दशाट ती है र्जसमें अर्भव्यक्ति का स्वतंत्रता से योगदान समाज के र्लए महत्वपूणट होता है और इसे स्वतंत्रता से
र्बना र्कसी भय या प्रर्तबंध के व्यि र्कया जा सकता है ।
 समाज में न्यार्यक स्पिता का होना अर्भव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुर्नर्ित करने में मदद करता है । न्यार्यक
संरचना को इस प्रकार तैयार र्कया जाना चार्हए र्क र्कसी भी व्यक्ति को उसके र्वचारों और अर्भव्यक्तियों को
स्वतंत्रता से बयान करने का अर्धकार है , यर्द वह र्कसी को नुकसान नहीं पहुं चा रहा है और सामार्जक सुरक्षा या
न्याय की प्रर्क्रया को ठे स पहुं चाने की कोई कोई भी संभावना नहीं है ।
 न्यार्यक स्पिता एक सुरर्क्षत दे श /राज्य या सुरर्क्षत समाज की नींव होती है जो अर्भव्यक्ति की स्वतंत्रता को
सही र्दशा में प्रर्तबद् करता है । यह सुर्नर्ित करता है र्क कोई भी प्रर्तबंध या आपर्ि के र्बना लोग अपने
र्वचारों और र्वचारों को साझा कर सकते हैं और समृक्तद् की र्दशा में बढ़ सकते हैं ।
 सामार्जक समृक्तद् और न्यार्यक स्पिता का साथ दे ने से अर्भव्यक्ति की स्वतंत्रता में सुरक्षा बनी रहती है और
लोग साहसपूवटक अपने र्वचारों को रि सकते हैं , र्जससे समृक्तद् और समरसता का आदान-प्रदान होता है । इस
प्रकार, अर्भव्यक्ति की स्वतंत्रता पर न्यार्यक स्पिता समृक्तद् और न्याय के साथ एक सुर्शर्क्षत और सजीव समाज
की रचना करती है ।
इन प्रमुि र्बंदुओं के माध्यम से , भारतीय समाज को सुधारने , उसे लोकतां र्त्रक और र्वकर्सत करने के र्लए सशि
और संरर्चत कदम उठाना चार्हए।

प्र रां दभक परीक्ष के दिए अभ्य स प्रश्न :


Q.1. भ रत में भ षण की स्वतांत्रत पर न्य दयक स्पष्टत के सांदभथ में दनम्नदिक्तखत कथनोां पर दवच र कीदजए।
1. भारतीय दं ि संर्हता की धारा 124 (A) में दे श की एकता और अिंिता को व्यापक हार्न पहुुँ चाने के प्रयास को
दे शद्रोह के रूप में पररभार्षत र्कया गया है ।
2. भारत में अर्भयक्ति की स्वतंत्रता का अर्धकार र्नरपेक्ष नहीं है क्ोंर्क इस पर युक्तियुि र्नबंधन भी लागू होता
है ।
3. भारत में सरकार की आलोचना को राजद्रोह के रूप में पररभार्षत र्कया गया है , क्ोंर्क ऐसी क्तथथर्त में भारत का
लोकतंत्र एक पुर्लस राज्य के रूप में बदल जाएगा।
4. अर्भव्यक्ति की स्वतंत्रता पर न्यार्यक स्पिता समृक्तद् और न्याय के साथ एक अर्शर्क्षत और र्नजीव समाज की
रचना करती है ।
उपरोि कथन / कथनोां में से कौन स कथन सही है ?
(A) केवल 1, 2 और 3
(B) केवल 2 और 4
(C ) केवल 1 और 3
(D) केवल 1 और 2
उत्तर – (D)

मुख्य परीक्ष के दिए अभ्य स प्रश्न :


Q.1. भ रत में दे शद्रोह/ र जद्रोह के मुख्य प्र वध नोां को रे ख ांदकत करते हुए, यह चच थ करें दक भ रत में भ षण
की स्वतांत्रत पर न्य दयक स्पष्टत के सांदभथ में स्वतांत्र भ रत में दे शद्रोह की वतथम न प्र सांदगकत कैसे है ?

Akhilesh kumar shrivastav

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