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धर्मसंस्थापक

सूत्रधार. …. अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् ।


उदारचरितानां तु वसुधैवकु टु म्बकम् ॥
गुरकु ल भारतवर्ष की गरिमा ,गुरुकु ल जिनकी शिक्ष्याओं ने भारतवर्ष को संपूर्ण विश्व का गुरु बना
दिया ।

गुरुकु ल ज्ञान ,संस्कृ ति ,सभ्यता ,अखंडता, अध्यत्मिकता, एकता ,और धर्म की ध्वजा को सदैव
फहराने वाला एक कु ल परम्परा। अनेक समय पर जब धर्म की हानी होने को थी ।तब गुरुकु ल
ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया ।।।। और प्रचार के साथ साथ युद्ध मै भी अपने त्याग और शौर्य
से धर्म की रक्षा की। जब राजा जन भोग विलास
और किमकर्तव्य विमुड हो गये

तब गुरुकु ल के आचर्यो ने गुरुकु ल के छात्रों को धर्म की रक्षा का भार सौंपा

जो की अपने राष्ट्र के लिए अपने प्राणो की आहुति देने को उद्वित थे ।क्योंकि उनका जन्म उन
माताओं के गर्भ से हुवा था ।जो साक्ष्यात त्याग बलिदान और धर्म की प्रतिमूर्ति थी । जिन्होंने
सिंहो को जन्म दिया था।
दृश्य 1.....गुरुकु ल में आचार्यों और चाणक्य की चर्चा .....
आचार्य 1..... गुरुकु ल की ऐसी अपेक्षा है। की गुरुकु ल का प्रत्येक स्थानीय
शिक्षक अपने छात्रों को यवनों के विरुद्ध संग्राम के लिए प्रवृत्त करे । किसी भी
स्थिति में छात्रों को समर में उतरने से न रोका जाय ।

आचार्य 2..... पर क्या यह उचित होगा कि छात्रों की शिक्षा रोक उन्हें रण में
प्रवृत्त किया जाए ।

आचार्य 1..... जहां शिक्षक होंगे वहां शिक्षा भी होगी । और शिक्षक कहां तक
नहीं पहुंच सकता, आज्ञान के अंधकार को काटने वाले शिक्षक की पहुंचे तो
अंधकार का नाश करने वाले रवि से भी अधिक समर्थ होती है आचार्य । फिर
आप चिंतित क्यों होते हैं।
चाणक्य... और अगर शिक्षा रोकनी पड़े तो उसे रोक दिया जाए । क्योंकि जो
शिक्षा यह नहीं सिखाती की राष्ट्र सर्वोपरि है धर्म सर्वोपरि है। राष्ट्र और धर्म की
रक्षा सर्वोपरि है। उसे रोक देना चाहिए। उतरने दो उन्हें संग्राम में

मैं उन्हें राष्ट्रधर्म का पहला पाठ पढ़ाऊं गा। यदि आप में शक्ति ना हो तो।

चाणक्य... और अगर शिक्षा रोकनी पड़े तो उसे रोक दिया जाए । क्योंकि जो
शिक्षा यह नहीं सिखाती की राष्ट्र सर्वोपरि है धर्म सर्वोपरि है। राष्ट्र और धर्म की
रक्षा सर्वोपरि है। उसे रोक देना चाहिए। उतरने दो उन्हें संग्राम में

मैं उन्हें राष्ट्रधर्म का पहला पाठ पढ़ाऊं गा। यदि आप में शक्ति ना हो तो।

आचार्य 3..... किं तु आचार्य हमें और गंभीरता से विचार कर लेना चाहिए। कि यह


प्रश्न आग से खेलने का है।
चाणक्य... मैं विचार कर चुका हूं विचार आपको करना है। गुरुकु ल छात्रों को
संग्राम में ले जाएगा। और जो कोई उसके मार्ग में आया वह। की जीवित रहेगा
वह उसका साथ देगा। जो जीवित नहीं रहेंगे वही उसका साथ नहीं देंगे।

आचार्य 3..... आचार्य जितना आप सोचते हैं उतना यह कार्य आसान नहीं है।

चाणक्य... अमृत की अपेक्षा रखने वालों को जीवन में विष पान के लिए भी
तैयार रहना पड़ता है आचार्य । और परीक्षा हमारे सामर्थ की है।की क्या आज
हम राष्ट्र के लिए विष पान करने वालों को जन्म दे पायेंगे।

आचार्य 2..... आचार्य यवनों से लड़ना खेल नहीं है।

चाणक्य... सामर्थ ही जीवन है और दुर्बलता मृत्यु । यदि राष्ट्र दुर्बल रहा । तो


यह राष्ट्र नहीं रहेगा । अतः इस राष्ट्र को मृत्यु से खेलने भी सीखना होगा। मैं
काल का आवाहन कर चुका हूं। क्या आप मृत्यु से खेलने के लिए उद्धत है।
आचार्य 3..... आचार्य आप विवेक और शांति से काम लीजिए।

चाणक्य... काश यही आपने अलक्षेंद्र से कहा होता ।तो गुरुकु ल आपको सहयोग
देने के लिए आमंत्रित नही करता।

यही कथन आप उनसे कह आइए जिन्होंने युद्ध में अपने स्वजनों को खोया है।

जाइए यही विचार आप उन्हें दे आइए जो यवनों के रक्त से अपने पूर्वजों का


तर्पण करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। जाइए आप आपके सहयोग के बिना भी
गुरुकु ल बहुत कु छ करने में समर्थ है। जिसे जाना है जाए अभी क्षण किं तु
गुरुकु ल धर्म की रक्षा की प्रतिज्ञा कर चुका है।
दृश्य 2
सूत्रधार...सुनीति जैसी मां जिन्होंने अपने 5 वर्ष के बालक को भगवत प्राप्ति हेतु
वन में भेज दिया । पन्नाधाय जैसी मां जिन्होंने राष्ट्र प्रेम के लिए अपने पुत्र के
प्राणों का बलिदान दे दिया ऐसे ही अनेक त्याग और वैराग्य की साक्षात मूर्ति
मूर्तिमान माओ ने इस राष्ट्र के गौरव को गौरवान्वित किया है। इसलिए ऐसी मां
का स्थान सर्वोपरि है।

चाणक्य... मां मुझे आज्ञा दे कि मैं तेरे पुत्र को राष्ट्र की रक्षा के लिए प्रवृत्त
कर सकू ।

यदि तू परिवर्तन के लिए तैयार नहीं है तो कु छ नहीं हो सकता

परिवर्तन का माध्यम तो तू ही हो सकती है ।हम तो मात्र साधन है।

हमारे प्रेरणा तो तू ही है।


मां..... मैं तेरी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं हूं।

चाणक्य... इस देश का भविष्य स्त्री ही निश्चित कर सकती है। यदि तुझ में
समर्थ नहीं है तो तेरी संतानों में कहां से होगा ।यह तुझे चुनौती है।

मां..... खूब सुना है तुम्हारे बारे में बात-बात पर बहका लेते हो तुम ।अपनी
बातो से सबकी बुद्धि धो देते हो।

चाणक्य... क्या मैं तुझे बहका सकता हूं ।

मां..... तुम मुझे नहीं बहका सकता है ।

: चाणक्य... मां में निश्चित कर चुका हूं मैं यवनों के विरुद्ध विद्रोह करूं गा
और युद्ध में जाऊं गा अपनी राष्ट्र की रक्षा के लिए मैं अपना जीवन समर्पित
करूं गा।
मां..... तू चुप कर ।

चाणक्य... तू कहेगी तो सब चुप हो जाएंगे।


पर इतना बता दे की यदि तुझ पर आक्रमण हो तो क्या मैं चुप रहूंगा क्या तेरा
पुत्र चुप रहेगा ।

तो तेरी मेरी मातृभूमि पर आक्रमण होने पर हम चुप क्यों हैं। क्या उसका कोई
मूल्य नहीं।

यदि तूने इसे अपने दूध से बड़ा किया है। तो यह धरती ने भी हमारा पालन
किया है। मर कर तो तू भी मिट्टी ही होगी । पर फिर भी वह मिट्टी हमारी मां
होगी।

क्या तेरा इस मिट्टी से कोई संबंध नहीं है।

जा उनका रुदन चुप करा दे जिन्होंने यवनों के हाथों अपना सब कु छ खोया है।
जा उन यवनों का अट्टहास चुप करा दे।

जाने लगते है।।।।।

मां..... रुक जा ।।।

यहां आ

कौन है रे तू ।जो सीधा मन पर वार करता है।

चाणक्य... यही तो दुख है कि जो प्रसव पीड़ा दिए बिना तेरे घर आए उसे तू


अपना पुत्र नहीं मानती।

मां..... पर मन को तो बहुत दुख दिया है तूने

चाणक्य... कु पूत हू ना ।।
मां ... चुप कर पता नहीं कितनों को कष्ट देगा चल भीतर चल।
आज्ञा दे तो चुकी हू।

ले जा इसको आज से दो पुत्र है मेरे ।जा राष्ट्र की रक्षा सर्वोपरि है ।इस राष्ट्र


के लिए मेरी भेंट है ।ये पुत्र।

चाणक्य
... धन्य है । तू मां तेरा ये बलिदान
दृश्य 3
सूत्रधार.......राष्ट्र की रक्षा के लिए आचार्य मगध सम्राट धनानंद के
पास सहायता के लिए जाते है ।

चाणक्य....प्रणाम राजन

धनानंद..... किम विस्नु गुप्ता धनम प्राप्तुम आगचतवान

चाणक्य....भारत यवनों के आक्रमण द्वारा पदाक्रांत हो रहा है


महाराज ।भारत की सीमाएं असुरक्षित है। मगध साम्राज्य ही उनकी
सुरक्षा कर सकता है। इसलिए आपसे प्रार्थना करने आया हु की
मगध भारत की सीमाओ की रक्षा का उत्तरदायित्व ले।

धनानंद...तुम तो धनानंद को आज्ञा देने लगे भिक्षुक ।


चाणक्य .... याचना कर रहा हु महाराज इस राष्ट्र की रक्षा के लिए।

धनानंद.... सीमाओं की रक्षा सैनिक किया करते है ।सम्राट नहीं।

जाओ यहां से

धन्नानंद के पास और भी बहुत कार्य है मूर्ख

चाणक्य... मगध सम्राट भारत की मिट्टी चंदन है इसे अपने माथे पर


लगाओगे तो हर भारतीय तुम्हें अपने हृदय का सम्राट बनायेगा

धनानंद..... प्रतिहारियो इस भिक्षुक की सिखा पकड़ कर बाहर फे क


दो।

चाणक्य...प्रतिज्ञा
दृश्य 4
गुरुकु ल का दृश्य

चंद्रगुप्त को गुरुकु ल दिखाना

गुरुकु ल मैं अलग अलग क्रियाकलाप दिखाना

युद्ध कला , शास्त्र अध्यन, यज्ञ, आदि

चाणक्य... वत्स अब तुमको इस गुरुकु ल मैं प्रशक्षिण प्राप्त कर महान लक्ष्य को


प्राप्त करना है।

चंद्रगुप्त.....जो आज्ञा आचार्य


दृश्य 5
चाणक्य.... शिक्षक का सामर्थ शास्त्र होता है।

यदि मार्ग में शस्त्र बाधक हो। और राजमार्ग के कं टक सिर्फ शास्त्र की भाषा
समझते हो। तो शिक्षक उन्हें अपने सामर्थ का परिचय अवश्य दें ।

अन्यथा सामर्थहीन शिक्षक अपने शास्त्र की भी रक्षा नहीं कर पायेगा।

इतिहास साक्षी है कि सत्ता व स्वार्थ की राजनीति ने इस राष्ट्र का अहित ही


किया है। हमें इस राष्ट्र का विचार करना है।

यदि शासन सहयोग दे तो ठीक है।

अन्यथा शिक्षक अपने पूर्वजों के पुण्य और कीर्ति स्मरण कर अपने उत्तरदायित्व


का निर्वाह करने मैं सिद्ध हो। विजय निश्चित है। सप्त सिंधु की संस्कृ ति की
विजय निश्चित है। आवश्यकता मात्र आवाहन की है।
दृश्य 6
सूत्रधार......गुरुकु ल मैं परीक्षण लेने के उपरान्त चंद्रगुप्त एक योग्य आदर्श और
युद्ध कला मैं प्रवीण होकर राष्ट्र रक्षा हेतु मगध सम्राट धनानंद का अंत करने
चल पड़े दोनो के बीच भयानक युद्ध हुआ।

युद्ध का दृश्य

चंद्रगुप्त और धन्नानन्द के बीच

धनानंद की पराजय

चंद्रगुप्त का राजा बनना और

आचार्य चाणक्य की प्रतिज्ञा पूरी करना और अपनी सिखा बाधना


चंद्रगुप्त का गुरुकु ल और गुरु का धन्यवाद वचन...... मैं गुरुकु ल और गुरुकु ल के
आचार्य को धन्यवाद देना चाहता हूं उन्हीं के आशीर्वाद से आज मैं इस योग्य
बना हूं धन्य है वह गुरुकु ल और धन्य है वह आचार्य जो एक तुच्छ बालक को
भी शासक बना दिए।

मुकम करोति वाचालम

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