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धर्मसंस्थापक
धर्मसंस्थापक
गुरुकु ल ज्ञान ,संस्कृ ति ,सभ्यता ,अखंडता, अध्यत्मिकता, एकता ,और धर्म की ध्वजा को सदैव
फहराने वाला एक कु ल परम्परा। अनेक समय पर जब धर्म की हानी होने को थी ।तब गुरुकु ल
ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया ।।।। और प्रचार के साथ साथ युद्ध मै भी अपने त्याग और शौर्य
से धर्म की रक्षा की। जब राजा जन भोग विलास
और किमकर्तव्य विमुड हो गये
जो की अपने राष्ट्र के लिए अपने प्राणो की आहुति देने को उद्वित थे ।क्योंकि उनका जन्म उन
माताओं के गर्भ से हुवा था ।जो साक्ष्यात त्याग बलिदान और धर्म की प्रतिमूर्ति थी । जिन्होंने
सिंहो को जन्म दिया था।
दृश्य 1.....गुरुकु ल में आचार्यों और चाणक्य की चर्चा .....
आचार्य 1..... गुरुकु ल की ऐसी अपेक्षा है। की गुरुकु ल का प्रत्येक स्थानीय
शिक्षक अपने छात्रों को यवनों के विरुद्ध संग्राम के लिए प्रवृत्त करे । किसी भी
स्थिति में छात्रों को समर में उतरने से न रोका जाय ।
आचार्य 2..... पर क्या यह उचित होगा कि छात्रों की शिक्षा रोक उन्हें रण में
प्रवृत्त किया जाए ।
आचार्य 1..... जहां शिक्षक होंगे वहां शिक्षा भी होगी । और शिक्षक कहां तक
नहीं पहुंच सकता, आज्ञान के अंधकार को काटने वाले शिक्षक की पहुंचे तो
अंधकार का नाश करने वाले रवि से भी अधिक समर्थ होती है आचार्य । फिर
आप चिंतित क्यों होते हैं।
चाणक्य... और अगर शिक्षा रोकनी पड़े तो उसे रोक दिया जाए । क्योंकि जो
शिक्षा यह नहीं सिखाती की राष्ट्र सर्वोपरि है धर्म सर्वोपरि है। राष्ट्र और धर्म की
रक्षा सर्वोपरि है। उसे रोक देना चाहिए। उतरने दो उन्हें संग्राम में
मैं उन्हें राष्ट्रधर्म का पहला पाठ पढ़ाऊं गा। यदि आप में शक्ति ना हो तो।
चाणक्य... और अगर शिक्षा रोकनी पड़े तो उसे रोक दिया जाए । क्योंकि जो
शिक्षा यह नहीं सिखाती की राष्ट्र सर्वोपरि है धर्म सर्वोपरि है। राष्ट्र और धर्म की
रक्षा सर्वोपरि है। उसे रोक देना चाहिए। उतरने दो उन्हें संग्राम में
मैं उन्हें राष्ट्रधर्म का पहला पाठ पढ़ाऊं गा। यदि आप में शक्ति ना हो तो।
आचार्य 3..... आचार्य जितना आप सोचते हैं उतना यह कार्य आसान नहीं है।
चाणक्य... अमृत की अपेक्षा रखने वालों को जीवन में विष पान के लिए भी
तैयार रहना पड़ता है आचार्य । और परीक्षा हमारे सामर्थ की है।की क्या आज
हम राष्ट्र के लिए विष पान करने वालों को जन्म दे पायेंगे।
चाणक्य... काश यही आपने अलक्षेंद्र से कहा होता ।तो गुरुकु ल आपको सहयोग
देने के लिए आमंत्रित नही करता।
यही कथन आप उनसे कह आइए जिन्होंने युद्ध में अपने स्वजनों को खोया है।
चाणक्य... मां मुझे आज्ञा दे कि मैं तेरे पुत्र को राष्ट्र की रक्षा के लिए प्रवृत्त
कर सकू ।
चाणक्य... इस देश का भविष्य स्त्री ही निश्चित कर सकती है। यदि तुझ में
समर्थ नहीं है तो तेरी संतानों में कहां से होगा ।यह तुझे चुनौती है।
मां..... खूब सुना है तुम्हारे बारे में बात-बात पर बहका लेते हो तुम ।अपनी
बातो से सबकी बुद्धि धो देते हो।
: चाणक्य... मां में निश्चित कर चुका हूं मैं यवनों के विरुद्ध विद्रोह करूं गा
और युद्ध में जाऊं गा अपनी राष्ट्र की रक्षा के लिए मैं अपना जीवन समर्पित
करूं गा।
मां..... तू चुप कर ।
तो तेरी मेरी मातृभूमि पर आक्रमण होने पर हम चुप क्यों हैं। क्या उसका कोई
मूल्य नहीं।
यदि तूने इसे अपने दूध से बड़ा किया है। तो यह धरती ने भी हमारा पालन
किया है। मर कर तो तू भी मिट्टी ही होगी । पर फिर भी वह मिट्टी हमारी मां
होगी।
जा उनका रुदन चुप करा दे जिन्होंने यवनों के हाथों अपना सब कु छ खोया है।
जा उन यवनों का अट्टहास चुप करा दे।
यहां आ
चाणक्य... कु पूत हू ना ।।
मां ... चुप कर पता नहीं कितनों को कष्ट देगा चल भीतर चल।
आज्ञा दे तो चुकी हू।
चाणक्य
... धन्य है । तू मां तेरा ये बलिदान
दृश्य 3
सूत्रधार.......राष्ट्र की रक्षा के लिए आचार्य मगध सम्राट धनानंद के
पास सहायता के लिए जाते है ।
चाणक्य....प्रणाम राजन
जाओ यहां से
चाणक्य...प्रतिज्ञा
दृश्य 4
गुरुकु ल का दृश्य
यदि मार्ग में शस्त्र बाधक हो। और राजमार्ग के कं टक सिर्फ शास्त्र की भाषा
समझते हो। तो शिक्षक उन्हें अपने सामर्थ का परिचय अवश्य दें ।
युद्ध का दृश्य
धनानंद की पराजय