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सुरसुंदरी साधना
सुरसुंदरी साधना
सुरसुंदरी साधना
● आते ही उन्हें गुलाब माला पहनाकर उनसे जीवन भर साथ रहने का वचन लें
साधना में 9000 मन्त्र जप का विधान है। 9 दिन में जप पूरा करना होता है। हर दिन 11 माला जप करें।
ऋषि काल में साधक इसी विधान से यक्षिणी को सशरीर प्रकट कर लेते थे।
इसके लिये हर दिन 11 माला जप करके उसका दशांश हवन, तर्पन, मार्जन किया जाता है।
जो साधक खुद हवन, तर्पन, मार्जन नही कर सकते। वे किसी विद्वान से करा लेते हैं।
कोई सक्षम विद्वान उपलब्ध न हो तो संस्थान में संकल्प भेजकर यक्षिणी यज्ञ सम्पन्न करा सकते हैं।
1 – मन्त्र….
5- दीपक… भैस के घी का
इसके लिये बेदाग नीबू को बीच से चीर दें। उसमें थोड़ा कपूर रखकर जला दें। बलि से साधना में रुकावट बनने वाली
आंतरिक और बाहरी नकारात्मक उर्जायें खत्म हो जाती हैं।
कु छ न आता हो तो 5 मिनट ताली बजाएं। इससे स्थूल शरीर ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं को ग्रहण करने लायक बन जाता है।
प्राणायाम में लंबी और गहरी सांस ली जाती है। थोड़ी देर रोकी जाती है। फिर धीरे धीरे छोड़ी जाती है। फिर थोड़ा
रिलैक्स होकर इसे दोहराया जाता है।
इससे सूक्ष्म शरीर ब्रह्मांड से मन्त्र की ऊर्जाओं को ग्रहण करने में सक्षम बनता है।
उत्तर मुख।
इसके लिये रात 10 बजे के बाद कोई समय अधिक उपयुक्त माना जाता है। जिनके पास रात का समय नही वे
सुविधानुसार कोई भी टाइम फिक्स कर लें।
कहें हे देवाधि देव महादेव आपको प्रणाम। आपको साक्षी बनाकर मै यक्षिणी सिद्धि साधना सम्पन्न कर रहा हूँ।
इसकी सफलता हेतु मुझे दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें। आपको धन्यवाद!
शक्तिशाली और देव सुंदरी देवी रातिप्रिये आपको नमन। आप मेरे मन मंदिर में विराजमान हों। मेरे द्वारा किये जा
रहे मन्त्र जप को स्वीकार करें। साकार करें। मेरे लिये सिद्ध होकर सशरीर मुझे अपने सानिध्य का सुख प्रदान करें।
धन, यौवन, आरोग्य, समृद्धि, सुख प्रदान करें। राज सुख प्रदान करें।
आपको धन्यवाद!
आपको मेरा नमन। मेरी भावनाओं से जुड़कर मेरे लिये सिद्ध हो जाएं। मुझे यक्षिणी सिद्धि प्रदान करें।
आपको धन्यवाद!
मन्त्र जप….
उत्तर मुख होकर उपरोक्त विधान पूरा करें। 11 माला मन्त्र जप पूरा करें।
जप पूरा होने के बाद माला रख दें। आंखें बंद कर लें। मन्त्र को मन में जपते हुए देवी का 10 मिनट ध्यान करें। ध्यान
में सोचें कि शक्तिशाली और सुंदर देवी बादलों को चीरती हुई आ रही हैं। उनके आने से बादल गरज रहे हैं। देव संगीत
बज रहा है। सुगन्ध फै ल रही है। घुघरू बज रहे हैं। देवी हंसी गूंज रही है। तेज प्रकाश के साथ वे साधना कक्ष में प्रवेश
कर रही हैं।
ध्यान के दौरान बहुत बार लगेगा कि देवी आ गयी हैं। आसपास टहल रही हैं। मगर आंखे न खोलें।
जब स्पष्ट लगे कि देवी ने पास में बैठकर हाथ अपने हाथ में ले लिया है। तभी आंखें खोलें।
पास रखा गुलाब का हार उनके गले में पहना दें। दूसरा हार वे साधक को पहना देती हैं। फिर पूछती हैं क्या चाहिए?
तब कहें – मुझे मां स्वरूप में आप चाहिये। वचन दें मै जब इच्छा करूँ तब आप मेरे पास आये। मेरी कामनाएं पूरी
करें।
फिर साधक जब कभी इस मन्त्र का 1 माला जप करता है तब देवी उसके समक्ष आती हैं। इच्छा पूरी करती हैं।
यदि 9 दिन पूरे होने के बाद भी देवी सामने न आएं। तो भी निराशा की बात नही।
पहले चरण के पूरा होते ही साधक के जीवन में धन, समृद्धि, प्रतिष्ठा, मान, सम्मान, आरोग्य बढ़ने लगता है। देव
शक्तियों की सहायता मिलने लगती है।
पहली बार में देवी के सामने आने पर इसी विधान से दूसरे चरण को दोहराएं।
ऋषि विधान में अधिकतम 4 चरण पूरे होंते होते देवी को आना ही होता है।
● उन दिनों हर समय सिर्फ देवी के बारे में ही सोचें। सोंचे कि आने पर उनसे क्या क्या बातें करनी हैं। क्या क्या काम
लेने हैं। अपने और दूसरों के भूत, भविष्य, वर्तमान के बारे में क्या क्या जानना है। उनकी सहायता से देश और
समाज के लिये क्या क्या करना है। उनसे दूसरी दुनियाओं के बारे में क्या पता करना है। उनके साथ किस किस लोक
में जाना है।
विद्वान बताते हैं कि देवी साधक को अपने साथ ले जाकर विभिन्न लोकों की सैर कराती हैं।