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First published in English as Harappa: Curse of The Blood River by Tree Shade Books in

2018
First published in Hindi as Harappa: Rakt-Dhara ka Shraap by Tree Shade Books in
2019

Copyright © Vineet Bajpai, 2018


All Rights Reserved

Vineet Bajpai asserts the moral right to be identified as the author of this book.

This is a work of pure fiction. Names, characters, places, institutions and events are either
the product of the author's imagination or are used fictitiously. Any resemblance of any
kind to any actual person living or dead, events and places is entirely coincidental. The
publisher and the author will not be responsible for any action taken by a reader based on
the content of this book. This work does not aim to hurt the sentiment of any religion,
class, sect, region, nationality or gender.

Hindi Translation by Urmila Gupta


Cover Design by Munisha Nanda
ISBN: 9788193642436

Typeset by PrePSol Enterprises Pvt. Ltd.


Printed by Gopsons Papers Ltd., A-2 Sector 64, Noida - 201307, India

This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise be
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TreeShade Books
N-block, Greater Kailash - I,
New Delhi, South Delhi,
Delhi, 110048
यारी मुनीशा के िलए
हड़ पा क शंसा म

डैन ाउन के ही रचना संसार क तरह, लेखक िवनीत बाजपेयी ने एक


दलच प कहानी बुनी है... हज़ार त य का प रचय कराकर, वह उ ह एक
साथ िपरोने म कामयाब हो पाते ह... अतुलनीय... पाठक के िलए न भुलाए
जा सकने वाला अनुभव।
—िह दु तान टाइ स

ब त ही ख़ूबसूरती से िलखा...
—गु देव ी ी रिव शंकर
(आट ऑफ िल वंग)

एक हैरतंगेज कहानी... हड़ पा िनि त प से अगली बा बली बन सकती है।


—माला रामकृ णन
चीफ किम र (सेवा िनवृत), इनकम टै स, मुंबई

कहानी कहने का िवनीत का टाइल और पृ भूिम (पाठक को) डैन ाउन क


याद दलाता है, ले कन िवजन और क पना के मामले म िवनीत उ ह पीछे
छोड़ देते ह।
—ikreatepassions.com

िवनीत ने भारत म फ शन लेखन का तर बढ़ा दया है। बेशक वो भारत के


नए िलटरे री सुपर टार ह।
—भारत जोशी
लेखक, नेिवगे टंग इं िडया

िवनीत... हड़ पा के बारे म एक अलग सच बुनते ह... एक महान कलाकृ ित!


—94.3 एफएम, रे िडयो वन

बाजपेयी आपको एक रह यमयी उ ाटन के िलए तैयार कर देते ह... अपने


बेहतरीन लेखन म उ ह ने हड़ पा को गढ़ा है।
—thebigfatboho.com
हड़ पा... इितहास, पुराण, धम और अपराध का िम ण।
—afaqs.com

संभावना से भरे लेखक िवनीत बाजपेयी का बेहतरीन उप यास। पूरी


सी रज पढ़ने के िलए अभी से बेक़रार ह।
—सं या अ यर
एिडटर-इन-चीफ, जैको पि ल शंग हाउस

हड़ पा के बाद, िवनीत बाजपेयी हर उस भारतीय के िलए रॉक- टार बन गए


ह, जो भारतीय सािह य क इितहास ेणी म बेहतरीन शोध क , ब ढ़या
कताब पढ़ना पसंद करते ह।
—सुमीत ख ा
चीफ एि ज यू टव ऑ फसर, Surgivisor

हड़ पा... डैन ाउन क शैली म, सचाई के ारा छोड़े गए िवराम को फ शन


ारा पूरा कया गया है।
—िमड डे

मैनेजमट पर िलखी िवनीत क िपछली कताब पढ़कर अंदाजा भी नह


लगाया जा सकता था क वो लेखक हड़ पा जैसी कताब भी िलख सकता है।
हड़ पा म कहानी और घटना को इतनी ख़ूबसूरती से बुना गया है, जो पाठक
को त कालीन स यता म ले जाता है। कताब ब त दलच प है और इस पर
एक कामयाब फ म बनाई जा सकती है। हमारी स यता, इितहास और
सं कृ ित को खोजने का यह ब ढ़या यास है।
— तुल गौर
चीफ फाइनिशयल ऑ फसर, TBWA

लेखन चु त, दलच प है और कहानी यार, भाईचारे , नफरत, वासना और


भरोसे के भाव से भरी ई है। लेखक हर चै टर का अंत कसी ऐसे मोड़ पर
करता है क पाठक और पढ़ने को बेक़रार हो उठता है। और सबसे अिधक
मजेदार है वाराणसी का वणन, जहां मेरे जैसे जो घुम ड़ नह गए ह, उनक
जाने क तड़प बढ़ जाती है।
—thereaderscosmos.in

इसक पांडुिलिप पढ़ते ही म जान गया था क हड़ पा एक बड़ी लॉकब टर


सािबत होने वाली थी। और कताब क रलीज के 60 दन बाद ही यह बात
सच हो गई। समकालीन सािह य क एक जबरद त िमसाल।
—िववेक मेरकानी
मैने जंग डायरे टर, Magnon eg+

हड़ पा... इितहास, पुराण और क पना का िम ण है... कहानी म न ले के


िवजुअ स उभरकर आते ह।
—एिशयन एज

फ शन चाहने वाल को हड़ पा ज र पढ़नी चािहए। इसक पेचीदा कहानी


स यता के रह य के ित आपका स मोहन बनाए रखती है। इं िडयन फ शन
के संसार म िवनीत िनि त प से े सं करण ह।
—कृ ण मोहन
सं थापक, नाइन ाएंगल

येक कु छ साल म एक कताब आती है और पूरा प रदृ य ही बदलकर रख


देती है। इं िडयन ि लर लेखन का आंकलन अब हड़ पा पूव और हड़ पा प ात
के संदभ म कया जाएगा।
—व ण बाजपेयी
मैने जंग डायरे टर, जेएम फाइनिशयल

हड़ पा 3700 साल पुराने और आधुिनक करदार को साथ म लाते ए एक


जबरद त ष ं को गढ़ती है—एक ही सािहि यक ि लर म सब मौजूद है।
—टाइ स ऑफ इं िडया

‘हड़ पा’ अतुलनीय रचना है। यह ऐितहािसक और पौरािणक फ शन का


बेहतरीन संयोजन है...
—दीि पटे ल
सं थापक, वडफे मस िलटरे री एज स

हड़ पा कसी नए लेखक क सबसे तेजी से िबकने वाली कताब है, िजसे हमने
िड ी यूट कया... इसने इं ड ी म एक नया क तमान थािपत कया।
—गौरव सभरवाल
सं थापक, uRead.com
आभार

सबसे पहले, म उन करीबी सािथय का आभार करना चा गं ा िज ह ने


हड़ पा को संभव बनाया—वो साथी ह, कताब । जी हां, आपने सही पढ़ा।
‘ कताब’।
हड़ पा जैसी गूढ़ कहानी को कहना साल से मेरे िब तर के पास रखी
अनेक कताब से िमले अभूतपूव ान क वजह से ही संभव हो पाया है। म
उन सभी लेखक का आभार करना चा गं ा, िज ह ने अपनी क पना और
काम के जुनून क वजह से इस दुिनया को और सुंदर बनाया।
हालां क उन सबका अलग-अलग नाम ले पाना ब त मुि कल रहेगा, म
उनम से कु छ का नाम ज र यहां लेना चा गं ा। डायना एल. ऐक का उनक
उ लेखनीय कताब बनारस िसटी ऑफ लाइट के िलए ध यवाद। िविलयम
डैल र पल का उनक सभी अतुलनीय कताब के िलए आभार। रॉबट ई
वोबोदा क कताब अघोर: एट द ले ट है ड ऑफ गॉड। और भी ब त से
बेहतरीन लेखक, िजनक लेखन शैली से बेशक म े रत आ— ेगरी डेिवड
रॉब स, डैन ाउन, अि न सांघी, अ ण शौरी, हो गेर क टन... सभी का
ब त-ब त ध यवाद। उ लेिखत सभी लेखक से सीखा ान हड़ पा म
ित बंिबत आ है। कम से कम म ऐसी उ मीद करता ।ं
िपछले तीन दशक म म ब त से बेहतरीन सं थान से जुड़ा रहा ,ं और म
उनम से हरे क के ित तहे दल से आभार कट करना चाहता ।ं एयर फ़ोस
बाल भारती कू ल, हंसराज कॉलेज, द ली यूनीव सटी, लाल बहादुर शा ी
इं टी ूट ऑफ़ मैनेजमट, GE कै िपटल, Magnon ुप, TBWA, eg+
व डवाइड, ऑमिनकॉम ुप, जैको पि ल शंग हाउस और टेलट ैक। इन
बेहतरीन सं थान म म िजन लोग से िमला, िजनसे िश ा ली और िजनके
साथ काम कया, उ ह ने मेरे िवचार और आ था को एक आकार दया,
वही हड़ पा के लेखन म बौि क धन बना।
कु छ और लोग िज ह ने हड़ पा के िविभ तर पर मेरी मदद क , उनका
भी म यहां आभार करना चाहता ।ं मेरी यारी प ी मनीषा, िज ह ने
इस कताब के िलए आकषक कवर िडजाइन कया। मेरा भाई व ण, िजसने
एिड टंग के समय मदद क । कताब के लब म अपना योगदान देने के िलए
तनुज न दा, डैनी जोसफ, अपूव आय और ि मणी चावला कु मार का आभार।
बेहतरीन टाइ पंग के िलए रा ल कनोिनया का आभार। कताब के हर कदम
पर साथ देने और इसक सफलता म अटू ट िव ास रखने वाले िववेक मेरानी
का ध यवाद। ोड शन ोसेस म मदद के िलए अिमत कु करे जा का आभार।
कताब के चार के िलए आशुतोष नेगी, िनितन नरे श, आयुष गु ा और डैनी
जोसफ (एक बार फर से!) का आभार।
यारे दो त मनीषी संह, गौरव भा टया, शांत िम ा, जॉयदीप कालरा,
नवेद अक ल, सुनील आ जा, िवकास िम ा—तुम सब मेरी ताकत और ेरणा
हो।
कु छ मागदशक के िबना हड़ पा, और मेरे जीवन क अ य उपलि धयां भी
हािसल नह हो सकती थ : मनोज घई, िनिशष झा, नवीन चावला और वीण
पुरी।
मेरे माता-िपता और मेरा प रवार, मेरी दुिनया है, मेरी आ मा का आधार।
मुझे िमले यार के िलए म उनका ऋणी ।ं मेरी जंदगी का काश है मेरी बेटी
वं दता, और यारी भतीिजयां वे दका और अ दित चमकते िसतारे ह।
उि थ ा!
उठो।
िवनीत बाजपेयी
चेतावनी

यह उप यास, क पना और क स पर आधा रत है, िजसे महज मनोरं जन के


दृि कोण से िलखा गया है। य िप िवषय के साथ िविवध धम , इितहास,
सं थान, आ था और िमथक का संदभ दया गया है, ले कन इसका ल य
िसफ कहानी को अिधक समृ और दलच प बनाना था। लेखक सवधम म
िव ास रखता है, और सभी को बराबर मान और स मान देता है। कहानी म
इ तेमाल कए गए कसी ऐितहािसक या पौरािणक त य क पुि का वो
दावा नह करता।
प रचय

2017, नई द ली:
िव ुत शा ी, द ली के एक युवा उ मी को अचानक उसके 108 वष य
परदादा का बुलावा आता है। उसके परदादा अपनी मृ युशै या पर ह। भारत
क ाचीन नगरी, काशी (बनारस) के बुजुग मठाधीश िव ुत को एक
ागैितहािसक अिभशाप के बारे म बताना चाहते ह। ऐसा अिभशाप िजसने
हज़ार साल पहले न िसफ एक स यता को भ म कर दया, बि क उसके स य
को भी िमटा दया।
अब तक ।
बुजुग ा ण ारका शा ी बनारस के िशव मं दर क ज टल भूल-भुलैया के
गु तहखाने क र ा करने वाली ृंखला क अंितम कड़ी ह। वहां कू ट श द म
हाथ से िलखा, 3500 साल पुराना, संरि त संदश े दबा आ था। उस पर
सं कृ त का एक दोहा िलखा था, साथ ही एक भिव यवाणी क शख संवत म
रोिहणी न क कसी खास पू णमा को, उनके ही वंश का कोई ि , जो
अपने पूवज के पाप से अछू ता है, इस काले रह य से पदा उठाएगा। वो
मानवजाित के इितहास के सबसे दागदार कलंक का अंत करे गा।
इसी कारण से िव ुत के परदादा ने उसे बुलाया था।
वो खास समय आ प च ं ा था।
िव ुत को उसक िपछली तीन पी ढ़य ने काशी से दूर रखा था, य क वो
सभी उस ाप को ढो रहे थे। वो ाप और कसी का नह , बि क उसके अपने
पूवज िववा वन पुजारी का था, िजसने 3700 साल पहले अपने लोग , अपनी
स यता के साथ धोखा कया था। उसने दुिनया के पहले िवकिसत नगर,
हड़ पा के िवनाश का ार खोल दया था।
ले कन उससे भी बड़ा अपराध उसने ान क महान नदी के साथ कया
था। उसने उस नदी को र -धारा म बदल दया था।

1700 ईसापूव, हड़ पा:


ान और वै दक जीवन शैली का अनुसरण करने वाला नगर, हड़ पा दुिनया
का सबसे शि शाली रा य है। िववा वन पुजारी को हड़ पा के धान पुजारी
बनाए जाने क घोषणा बस होने ही वाली है—आयवत म इस पद को सबसे
शि शाली पद माना गया है। इस पिव और इि छत पद तक प च ं ने के िलए
उसने आधी सदी तक कड़ा प र म कया।
ले कन कु छ भारी गड़बड़ ई थी।
उसका ित ं ी, जो कभी उसका िम आ करता था, चालाक पंिडत
चं धर और उसक सुंदर स मोहक प ी ने मेसोपोटािमया के तीन लंबे चेहरे
वाले जादूगर , िजनक आंख म पुतिलयां नह थ , के काले जादू का इ तेमाल
कया। उ ह ने िववा वन पुजारी को एक भयानक ष ं म फं साते ए
नयनतारा का ह यारा घोिषत कर दया। सुंदर नतक नयनतारा क पहचान
उसक कोहनी से ऊपर पहनी जाने वाली चूिड़यां थ । ये चूिड़यां वो अपने
शि शाली और भावशाली मेहमान के सामने नृ य करते समय पहनती थी।
सावजिनक यायालय म िववा वन को दंिडत ठहराकर, उसे हड़ पा के मृत
कारावास म डाल दया गया, जहां उसने ितशोध का ण िलया। ये ितशोध
चं धर के िव नह था। उस भयानक ष ं के िव भी नह । ना उस
यायाधीश के िव , िजसने उसे दोषी करार दया और न ही मेसोपोटािमया
के उन काले जादूगर के िव । उसने पूरे हड़ पा से ितशोध लेने क शपथ
ली! उसके मामले क सुनवाई िवशाल ानागार पर ई थी। वहां लोग ने उस
पर थूका और प थर बरसाए, उ ह अपने लोग ने, िजनके िलए उसने अपना
पूरा जीवन सम पत कया था। उसक संपि को क जे म ले िलया गया और
उसके यारे प रवार को जंगल म भटकने के िलए मजबूर कर दया गया। वो
नफरत से िच लाया और उसने वयं अपने र से कारावास क दीवार पर
‘ ितशोध’ िलखा।

पुतगाल, 1578 ईसवी:


पुतगाल के पंचम राजा इमानोएल को वै टकन क तरफ से एक ता कािलक
प िमला। प म उस महान पादरी ने वयं एक ऐसे सच का िज कया था,
िजसके सामने आने से दुिनया हमेशा के िलए बदल जाएगी। भारत के पि मी
तट क रे त म दबे रह य को ढू ंढ़कर, दुिनया से उसका नामोिनशान िमटाना
ज री है। ये रह य एक बार फर से उस खोए ए संप नगर के बारे म है, जो
पौरािणक नदी के कनारे बसा था। एक बार फर से! मानव इितहास का यह
अ याय हमेशा के िलए न हो जाना चािहए। चच के नेतृ व का अि त व ही
इसी पर टका है।
इस अंत के िलए स ाट को तलवार के भारी बल के इ तेमाल क सलाह दी
जाती है। राजा इमानोएल ने भारत के शांत देश गोआ म दो सौ यु पोत का
घातक बेड़ा भेजा। वहां के िनवासी मानव जाित के इस ब मू य रह य से
अनजान थे, जो गोआ क कड़ी सुर ा वाले मं दर के तहखान म दबा आ
था। और वो ये भी नह जानते थे क उनक कहानी उप-महा ीप के र रं िजत
प म दज होने वाली है।
1856 ईसवी, बैरकपुर:
ि टश समाजशा ी और ई ट इं िडया कं पनी का मुलािज़म, वेन एश ूक अपने
व र , कनल माक सडस से आधी रात को िमलने गया। उसने कोई ऐसी खोज
क थी िजसके बारे म तुरंत बात करना ज़ री था। सचाई वा तव म उससे पूरी
उलट थी, जो उससे उसक इं िडया डायरी और कागजात म दज करने को कही
गई थी। वह धरती का सबसे बड़ा झूठ था। आय के हमले के बारे म अब तक
वेन को जो बताया गया था, वो पूरी तरह गलत था। यह उस सं दाय क
न लीय े ता के बारे म था िजसने भारत आकर उपिनवेश बसा िलया था।
वेन को अब ऐसे ोत और ंथ िमल गए थे जो आय क मता के बारे म
अिव सनीय सचाई बयां कर रहे थे। वेन जानता था क यह सच दुिनया के
धम और राजनीित के मूलभूत ोत को ही बदल देगा।
ले कन जब कनल सडर ने वेन को चुप रहने क नसीहत देते ए प रणाम
क चेतावनी दी तो मानो वेन के पैर तले जमीन ही िखसक गई। सडर चाहता
था क वेन आय के बारे म सब भूलकर वही पुराने, झूठे त य को अपनी
डायरी म दज करे । सडर ने कहा क वा तव म इसके पड़ने वाले भाव के बारे
म वेन को कोई अंदाजा नह है, और वो ये भी नह सोच सकता क इसके पीछे
कसका हाथ है। वेन हां म िसर िहलाकर सडर के पास से आ गया, ले कन
उसक अंतरा मा उसे इसक इजाज़त नह दे रही थी। उसने कलक ा यून
म सच छपवाने क कोिशश क ।
वेन का त-िव त शव राइटस िब डंग से े ीएट के सामने एक पेड़ पर
लटका आ था। अखबार ने इसे दो भारतीय िसपािहय क हंसा मक
कायवाही माना था। ले कन सच कु छ और था। अिधक भयानक।
र क यास वाली भिव यवाणी फर से अपना िसर उठाने वाली थी।
तावना

1700 ईसापूव
मील तक फै ले िनजन देश म वो अके ला इं सान था। उस तूफानी और
असामा य प से डरावनी रात के अंधेरे म वो मुि कल से ही कु छ देख पा रहा
था। खासकर उसके बहते र , आंसू और पसीने के साथ इस बेमौसम क
मूसलाधार बरसात ने उसके िलए कु छ भी देख पाना ब त मुि कल बना दया
था। इस याह काली रात म मुंडे िसर और नंगी छाती वाला वो ा ण कसी
उ मादी क तरह अपनी कु हाड़ी से धड़ाधड़ वार कए जा रहा था। वो उन
मोटी रि सय म से एक को काटने क कोिशश कर रहा था, िज ह ने हाल ही
म बने मानव-िन मत, पवत-समान बांध को थामा आ था। हालां क प थर,
ट, धातु और लकड़ी से बने वो िवशाल भारी खंड नदी क धारा मोड़ने के
उ े य से बनाए गए थे, ले कन सच पूछो तो वो उ ंड समु म बड़ी सूनामी को
भी रोक सकते थे। ले कन नदी भी जब अपनी रवानगी पर होती है, तो वो भी
कसी समु से कम नह होती।
मूसलाधार बरसात के बीच वो इं सान वयं से ही कु छ बड़बड़ाए जा रहा
था, मानो उस पर कोई दैवीय शि का भाव हो, और साल क साधना और
वै दक अनुशासन से ा क शि के हर कण को वो इस काय म झ क रहा
था। मोटी र सी पर वो ती ता से हार कए जा रहा था, इसम उसक
उं गिलयां भी बुरी तरह िछल गई थ और उनसे र बह रहा था। जब वो और
सांस नह ले पाया तो अपना िसर पीछे कर आसमान क तरफ देखने लगा।
बा रश क मोटी बूंद उसके चेहरे पर थपेड़े क तरह पड़ रही थ । जब बेरहमी
से िगरते उस पानी ने उसक पलक से क चड़ हटा दी तो लंबी आह भरकर वो
आसमान चीर देने वाली आवाज म िच लाया। शायद यह उसक हाल म
कलं कत ई आ मा क भगवान के सामने अपनी पीड़ा रखने क कोिशश थी।
ले कन वह जानता था क ब त देर हो चुक थी। भगवान भी उसके कृ य से
आतं कत थे और उसे माफ नह करने वाले थे। ना ही कोई और उसे माफ करने
वाला था।
उसने अपनी छोटी कु हाड़ी से वापस से र सी को काटना शु कर दया,
पहले से भी अिधक उ ेजना से। वह जानता था क िपछले एक घंटे से भी
अिधक समय से वो एक संयु गांठ को काटने क कोिशश कर रहा था। वो
रि सयां िवशेष तौर पर तैयार क गई थ , कभी वयं उसी के िनदश पर। वह
जानता था क ऐसी ही हज़ार गाठ के मा यम से, ट, कांसे और प थर से बने
ऐसे 998 तंभ और खड़े थे िज ह ने इस अटू ट िवशाल बांध को सहारा दया
आ था। और क अगर हज़ार आदमी भी दन-रात काम कर तो भी इसे
खोलने म कई स ाह लग जाएंग।े 999 के आंकड़े क ये अ भुत कारीगरी वयं
उसी क सावधान नज़र , अिभयांि क द ता और योितषीय मागदशन के
अनुसार संप ई थी। वह कर या रहा था? या वो पागल हो गया था? वह
जानता था क वह इस िवशाल बांध का कु छ नह िबगाड़ सकता था। ले कन
फर भी वो बेतहाशा अपनी कु हाड़ी से वार कए जा रहा था।
मील तक फै ले इस िनजन म, गरजते बादल के बीच खड़ा यह आदमी,
िववा वन पुजारी, वयं दशक तक एक देवता के प म पूजा जाता रहा था।
कभी हड़ पा का सूरज माना जाने वाला यह आदमी, आज कसी भूत क तरह
दखाई दे रहा था। अपने कृ य के भयानक प रणाम के बारे म सोचकर वह
अ यिधक पीड़ा और पछतावे से गुजर रहा था, वह ऐसा पाप करने जा रहा
था, िजसक भरपाई कभी संभव नह थी। वह रोते ए, बुदबुदाते ए, र सी
काटे ही जा रहा था। और फर उसे वो सुनाई दया।
शु आत हो चुक थी।
शि शाली नदी क असामा य क ं ार, कह दूर से आती ई, ले कन उस
आवाज ने उसके र को जमा दया। कभी पोषण और ेह देने वाली, दया क
ितमान, मातृ व प नदी एक यासी र -धारा क तरह मानो अपने ही ब
को िनगलने के िलए ाकु ल हो उठी थी। ान क उस नदी को उसके अपने
यारे ब ारा ही छला गया था। उसके देवता बेटे, िववा वन पुजारी ने ही
उसको छला था।
कभी सदाचारी और अजय रहे िववा वन पुजारी ने कु हाड़ी को अपने हाथ
से फसल जाने दया और वह गीली जमीन पर थ प क आवाज के साथ िगर
गई। वो जड़ खड़ा आ उसी दशा म देख रहा था, जहां से िवकराल प धरे
ए उसक मां कट होने वाली थी। वो जान गया था। वो जानता था क उसके
हवन कुं ड म पहली आ ित उसी के र क िगरने वाली थी। अचानक, वह
उसके ित सहज हो गया।
उसे वयं म आराम और राहत का अहसास आ। उसे कु छ आस बंधी।
शायद उसक मां उसक जंदगी लेकर बा कय को मा कर दे। वह घुटन के
बल िगर गया, अपनी तरफ से समपण म हाथ को खोलते ए, हथेिलय को
पसारे । बरसात ने उसके तने ए और घायल शरीर को साफ करते ए उसक
दागदार चेतना को भी साफ कर दया। मानो कृ ित िववा वन पुजारी को
उसका अंितम ान करा रही थी।
‘हे मां, मेरे ाण हर लो! म आपके ोध का भागी ।ं और म वयं को
आपके चरण म सम पत कर रहा !ं ’ वह िच लाया और आसमान म चमकती
िबजली ने मानो नाराज होकर उसे तमाचा लगाया। मानो भगवान ने इस िगरे
ए देवता क अज ठु करा दी।
वह फर से िच लाया, और इस बार उसक आवाज िनराशा और सुब कय
के बीच टू टकर रह गई, ‘अपने हताश ब े क िवनती नह सुनोगी मां?! मेरे
ाण ले लो ले कन दूसर को माफ कर दो! उ ह ने ऐसे पाप नह कए ह, जैसे
तु हारे बेटे ने कए ह। मुझे मार दो!!!’
आसमान फर से रौशन आ। कु छ पल के िलए ऐसा लगा मानो दन
िनकल आया हो। खामोश रौशनी िववा वन पुजारी के र , पसीने से सने,
िवि चेहरे पर पड़ी। और फर वही आ। बादल क गरज सूरज फटने के
समान ती ण थी।
भगवान इं कार कर रहे थे!
िववा वन पुजारी को चेहरे पर हवा का तेज झ का महसूस आ और उसने
बांध के दूर कोने से जल के बड़े से पहाड़ को कट होते देखा, उसी दशा म
जहां वो अपने घुटने टकाए बैठा था। जल क वो धारा ऐसी तीत हो रही थी,
मानो कई िसर वाला अजगर अपने िशकार क तरफ बढ़ रहा हो। नदी का
कोलाहल, अभी कु छ पल पहले गरजते बादल से भी तेज था। िववा वन पुजारी
वहां त ध बैठा था, इस अंधेरे म भी वो जल के उस िवशाल पवत क छाया
देख पा रहा था। वो उस सुमे पवत के सामने एक छोटी सी च टी क तरह
महसूस कर रहा था, मातृ व प नदी क आसमान िजतनी ऊंची, सूनामी क
लहर उसे िनगलने से बस कु छ ही पल दूर थी।
िववा वन पुजारी िपछले कु छ दन म अपने माग से भटक गया था। बदले
क अंधी आग म उसने जीवन भर क चमक को गंवा दया था। ले कन वह था
तो िववा वन पुजारी ही। एक देवता! दूसरे िव त योिगय क तरह ही उसने
तुरंत अपनी आ मा को अपनी कु डिलनी म एका कया, अपनी धड़कन को
थामा और अपने न र शरीर को मृ यु के िलए तैयार कया। जल म हमेशा के
िलए समा जाने से पहले उसने अपने मन म, शांित से अंितम ाथना बुदबुदाई।
‘हे मां, उ ह मा कर देना। उ ह मेरे पाप क सजा मत देना। उ ह माफ
कर देना मां!’
पानी क िवनाशकारी लहर ने देवता िववा वन पुजारी को िनगल िलया,
जैसे कोई िवशालकाय हाथी पैर तले मसलकर सूखी टहनी का अि त व ही
ख म कर देता है। भगवान, र रं िजत नदी, काली रात, इं क गजना, िनजन
भूिम का िव तार और बेरहमी से पड़ती बा रश उस महान आदमी के अंत के
मूक सा ी बने। ले कन िववा वन पुजारी क मौत का भाव इस धरती से यूं
ही नह िमटने वाला था। यह तो शु आत थी। वह नफरत, छल, ष ं और
हंसक झड़प म हज़ार साल तक जीिवत रहने वाला था। िसफ आयवत ही
नह , बि क संपूण पृ वी पर ई र के नाम पर चलने वाले र पात म उसका
भय लि त होना था। उसक मौत या इं सानी प भी उसे इस अिभशाप से
मु नह करने वाला था।
नदी ने अपना िनमम वाह जारी रखा। िववा वन पुजारी क अंितम
िवनती के बावजूद, र रं िजत नदी ने उ ह मा नह कया।
शि शाली नगर हड़ पा को सर वती ने उसके येक िनवासी के साथ
हड़प िलया। वहां कु छ नह बचा।
Contents

हड़ पा क शंसा म
आभार
चेतावनी
प रचय
तावना
द ली, 2017: िव ुत
पे रस, 2017: ‘उस कमब त आय-पु को मार डालो।’
बनारस, 2017: काशी: ाचीनतम नगरी
हड़ पा, 1700 ईसापूव: आखरी देवता
बनारस, 2017: रोमी परे रा
बनारस, 2017: ‘ कसी ने तु ह याद नह कया...?’
हड़ पा, 1700 ईसापूव: स ऋिष
बनारस, 2017: मृत ाय ा ण मुिखया
हड़ पा, 1700 ईसापूव: शव-साधना
बनारस, 2017: मानवजाित का सबसे बड़ा अस य – भाग 1
हड़ पा, 1700 ईसापूव: लय
बनारस व ि वटजरलड क वा दय म कह , 2017: ‘उसे मारा नह जा
सकता’
हड़ पा, 1700 ईसापूव: एक मां ऐसा कै से होने दे सकती है?
बनारस, 2017: ‘म आधा इं सान, आधा भगवान ’ं
हड़ पा, 1700 ईसापूव: ट और कांसे का पहाड़
गोवा (16व सदी): अनैितक धमयु
हड़ पा, 1700 ईसापूव: नयनतारा
बनारस, 2017: नैना
हड़ पा, 1700 ईसापूव: इं सान जैसा गुनाह। देवता सा प ाताप।
बनारस, 2017: मानवजाित का सबसे बड़ा अस य—भाग II
हड़ पा, 1700 ईसापूव: ह या
बनारस, 2017: मानवजाित का सबसे बड़ा अस य—भाग III
हड़ पा, 1700 ईसापूव: पागल आदमी और ज़ंदा लाश
बनारस, 2017: ‘तुम और म। यहां और अभी।’
हड़ पा, 1700 ईसापूव: देवता का पतन
बनारस, 2017: ‘हम एक हज़ार साल से लड़ रहे ह।’
हड़ पा, 1700 ईसापूव: मोहन जोदड़ो क राजकु मारी
बनारस, 2017: दािमनी
हड़ पा, 1700 ईसापूव: हड़ पा का पहला राजा
बनारस, 2017: अधािगनी
हड़ पा, 1700 ईसापूव: मृत कारावास
बनारस, 2017: धोखेबाज़!
हड़ पा, 1700 ईसापूव: िव ासघात का ख़ंजर
बनारस, 2017: महान वै दक स यता
हड़ पा, 1700 ईसापूव: ितशोध
बनारस, 2017: अंितम स ऋिष
हड़ पा, 1700 ईसापूव: आधी रात का आ मण
बनारस, 2017: संकट मोचन
हड़ पा, 1700 ईसापूव: मनु
बनारस, 2017: देवता का अ युदय
हड़ पा, 1700 ईसापूव: देवता का वंशज
बनारस, 2017: तांि क क अं येि
हड़ पा, 1700 ईसापूव: भयानक र रं िजत ान
मश:...
लेखक के बारे म
द ली, 2017
िव ुत

फोन क घंटी लगातार बज रही थी। िव ुत और दािमनी गहरी न द म थे और


उठकर फोन सुनने का दम कसी म नह था। सुबह के साढ़े चार बजे थे। फोन
लगातार बज रहा था। दािमनी ने िव ुत को धीरे से िहलाया।
‘िव ुत... उठो ना। तु हारा फोन बज रहा है।’
‘ह म...’ िव ुत बुदबुदाया।
‘अरे , लीज़ उठो ना,’ दािमनी ने आंख बंद कए ए ही उसे झकझोरा।
िव ुत ने बेड क साइड टेबल क तरफ हाथ बढ़ाते ए फोन टटोला।
‘इस टाइम कौन फोन करता है यार?! हे लो...!’ फोन उठाते ही िव ुत
िच लाने वाला था।
अब कमरे म स ाटा था। िव ुत फोन सुनते ए ही िब तर पर बैठ चुका था
और फोन करने वाले ि क बात बड़े यान से सुन रहा था। उसका मजबूत
बदन उसक भ ह क तरह ही तनता दख रहा था।
‘बेबी, सब ठीक है ना?’ दािमनी ने जानना चाहा।
िव ुत ने धीमे से उसक बांह दबा दी, ये इशारा था क उसे इस समय
शांित चािहए। दािमनी िव ुत को ब त अ छी तरह जानती थी। दािमनी ने
आंख खोलकर िव ुत को देखा। िव ुत ने फोन मजबूती से कान के पास सटा
रखा था, उसके दांत भंचे थे और आंख यान क मु ा म बंद थ ।
‘ले कन पुरोिहत जी, आपने मुझे पहले य नह बताया?’ िव ुत ने फोन
पर मौजूद आदमी से कहा। दािमनी को अंदाजा नह था क ये पुरोिहत जी
कौन ह और अचानक िव ुत इतना परे शान य हो गया है। यान से सुनते ए
वो अपनी कोहिनय के बल उठी।
‘उनके पास कतना समय है, पुरोिहत जी?’ िव ुत ने बेचैनी से पूछा। कु छ
पल ककर उसने कहा, ‘शाम तक म वहां प च ं जाऊंगा।’

िव ुत ने फोन रख दया और अपना िसर िब तर के िसरहाने पर टका दया,


उसक नजर छत पर टक थ । उसक मजबूत छाती, बांह और कं ध के साथ
उसक तेजमयी रं गत उसे शाही, ग रमामयी वंशावली का अंश बताती थी।
उसक तेज आंख और तराशे ए नैन-न श पर उसके लंबे, ह के भूरे बाल खूब
फबते थे। िव ुत हर अंश से अपने नाम का ही ोतक तीत होता था—िव ुत
या िबजली! ले कन यक नन उसके ि व म ीक-देवता सी छिव के अलावा
भी कु छ खास था।
दािमनी जानती थी क वो एक रह यमयी और मजबूत इं सान से यार
करती थी, ले कन फर भी उसने कभी इस बारे म उससे कु छ नह कहा, मन ही
मन एक दन उसे िव ुत से शादी क उ मीद थी। वह जानती थी क िव ुत
दूसरे लड़क और आदिमय जैसा नह था, िजनसे वह द ली िव िव ालय के
उ री प रसर के हंसराज कॉलेज म कसी समारोह के दौरान िमली थी। इस
िखली रं गत, मजबूत कदकाठी, गहरी-भूरी आंख (ऐसी िज ह बाइिबल म
िवजेता कहा गया है) और चेहरे के गंभीर भाव (ऐसे जैसे दुिनया का नेतृ व
करने के िलए ही पैदा आ है) वाले आदमी को मन ही मन अपना बनाने के
अलावा भी दािमनी को अहसास था क िव ुत म कु छ असामा य बात तो थी।
और वो था भी असामा य। िव ुत म कमाल के टैलट के साथ ही द ता,
आ याि मकता और मह वकां ा भी थी। वो 34 वष क युवाव था म ही
कामयाब उ मी बन चुका था। वो संगीत था, किव, लेखक, पटर, माशल
आट जानता था, खूब मजे क पाट देता था और वभाव से ही उसम नेतृ व क
मता थी। उसके दो त यार से उसे वीिडयो बुलाते थे। दािमनी को कभी-
कभी उसके दो त को लेकर ही चंता होती थी।
‘बेबी तुम ठीक हो ना?’ उसने एक पल बाद यार से पूछा। ‘ये पुरोिहत जी
कौन ह और तुम आज शाम तक कहां प च ं ने वाले हो?’
‘वाराणसी। या काशी या बनारस... जैसा क लोग इसे पुकारते ह,’ िव ुत
ने जवाब दया, उसक नजर अभी भी छत पर ही टक थ ।
‘बनारस य ? और वो भी यूं अचानक...?’
‘एकदम अचानक नह , दािमनी... ले कन म इस तरह बुलाए जाने क
उ मीद नह कर रहा था। मुझे तो कभी काशी लौटना ही नह था।’
कमरे म स ाटा था। दािमनी िव ुत क रह यमयी और अधूरी सी बात को
अिव ास से सुन रही थी। वो ऐसे तो बात नह करता था। और न ही दािमनी
के अंदर का प कार इस जवाब के इं तजार म स दय तक स से बैठने वाला
था। उसने सजगता से बैठते ए अपने बाल का जूड़ा बना िलया और अपनी
हेयर िपन को दांत के बीच दबा िलया, जैसे क सुंदर और िव त मिहलाएं
करती ह, और नरमी कं तु दृढ़ता से अपने सवाल क झड़ी लगा दी।
‘काशी? तु हारा मतलब बनारस... या वाराणसी... या जो भी कहो! तु ह
वहां य जाना पड़ेगा, बेबी? तुम या उ मीद नह कर रहे थे? और भगवान
के वा ते... तुम य कभी उस जगह पर नह लौटने वाले थे? और लौटने से
तु हारा या मतलब है? तुम वहां गए ही कब? और हमने इस बारे म कभी
बात य नह क ? या तुम मुझे सब बता सकते हो?’ उ सुकता के साथ-साथ
दािमनी क बेचैनी भी अब बढ़ गई थी।
िव ुत ने मुड़कर उसे देखा, मानो फोन बजने के बाद से अब पहली बार
उसे दािमनी क मौजूदगी का आभास आ था।
‘हमने इस बारे म बात नह क य क यह मह वपूण नह था। काशी का
चै टर मेरे िलए बंद हो चुका था। बीते साल म जब भी मने वहां जाने क
कोिशश क , मुझे वहां जाने से रोक दया गया। और अब जब म अतीत के ेत
के िबना जीना सीख गया ,ं तो उ ह ने मुझे बुलावा भेज दया?!’ िव ुत ने
अिव ास से हंसते ए कहा।
इससे पहले क दािमनी इन सुनी ई बात को समझ पाती, िव ुत िब तर
से उठकर अपनी अलमारी के पास चला गया। उसने िसगरे ट का िड बा उठाया
और एक िसगरे ट सुलगा ली। अब दािमनी सच म परे शान हो गई थी। िव ुत ने
आज नौ महीने बाद िसगरे ट को अपने मुंह से लगाया था। और वो समझ गई
थी क ज र कोई गंभीर बात थी। उसक नजर खामोशी से िव ुत को उसके ,
गुड़गांव ि थत आलीशान पटहाउस क बालकनी क तरफ जाता देख रही थ ।
दािमनी भी यह िव ुत के साथ रहती थी। वो भी चुपचाप जाकर, रे लंग के
सामने, िव ुत के पास जाकर खड़ी हो गई। दािमनी ने छोटा और झीना सा
गाउन पहन रखा था, िजसम से उसक दुबली और आकषक फगर दखाई दे
रही थी। दािमनी बदन से भी उतनी ही सुंदर थी, िजतनी वो बुि मान थी।
उसने एक श द नह कहा। िव ुत मानो कसी और ही दुिनया म था। और
जबसे वो िव ुत को जानती थी, आज उसने पहली बार उसे डरा आ देखा
था। उसके डर का कारण वो नह जानती थी।

हंद ू धम म काशी को सबसे पिव नगर माना गया है, जहां पृ वी का संभवतः
सबसे ाचीन धम और जीवन शैली िव मान है। मूल प से इसे काशी और
वाराणसी कहा जाता था, जब क हज़ार साल पहले इसका नाम पहले
बाराणसी और फर पाली सािह य के भाव म बनारस कर दया गया। हंद ू
पौरािणक ंथ म कहा गया है क जब भीषण बाढ़ पूरी दुिनया को तबाह कर
देगी और लय का दन आ प च ं ेगा, तब वयं भगवान िशव अपने ि शूल क
न क पर काशी को उठाकर इसक र ा करगे। 10,000 से अिधक शरद देख
चुका ये नगर, वाराणसी िव के महान रह य के ाता का घर रहा है। यह
नगर ह के भीषणतम पाप का संर क भी है।
नई द ली से वाराणसी क लाईट 90 िमनट क थी। िव ुत दोपहर 3
बजे क लाईट लेने वाला था, ता क शाम 6 बजे तक पुरोिहत जी के पास
प च ं जाए। उसके पास ऐसे वफादार दो त और सहकम थे, जो उसके काम
संभाल सकते थे। वो भी अपने दो त और सहक मय के िलए उतना ही कमठ
था। िव ुत और उसक करीबी टीम एक संयु त व क तरह काम करते थे,
जो ब त कम श द म बयां बात को भी त परता से समझ लेते थे। अिधकतर
चीज नजर के एक बार िमलने या फोन पर दो श द के संदश े से ही पूरी हो
जाती थ । िव ुत का खास दो त बाला, बालकृ णन, उसका सबसे िव त
और शायद इकलौता आदमी था, िजस पर िव ुत आंख मूंदकर भरोसा करता
था। बाला न िसफ कं पनी म िव ुत के बाद दूसरा सुपी रयर था, बि क वो
िव ुत का बे ट ड भी था। आम स वस के अपने छोटे से कायकाल म बाला
एक कमठ ऑ फसर रहा था। बाला ज टल फाईनिशयल मॉडल को भी उसी
सहजता से ै क कर लेता था, िजस सहजता से वो म लयु म अपने िवरोधी
क पसिलयां तोड़ता था। और वो िव ुत को पूजता था। वह िव ुत से यार
करता था।
िव ुत क एक कॉप रे ट िस यो रटी कं पनी थी, जहां वो म टीनेशनल
लाइं स क तकनीक आधा रत जासूसी से सुर ा करता था। िव ुत ने अपनी
कं पनी एक छोटे टाटअप के तौर पर शु क थी, जो अब इं िडया क नामी
िस यो रटी कं पनी म से एक थी। कं पनी क सफलता ने िव ुत को काफ
लोकि य बना दया, और कॉप रे ट इं िडया के ताकतवर वग पर भी उसका
दबदबा छा गया। क ावर राजनेता , िज ह शायद तकनीक जासूसी से
सुर ा क ज रत िबजनेस हाउस से भी अिधक थी, ने भी उसक कं पनी के
उ पाद क ज रत को भांप िलया, और उसक सेवाएं लेने लगे। उनम से
ब त के पीड डायल पर अब िव ुत का ही नंबर था। िव ुत को अपने सोशल
लंच और गाडन पाट म बुलाने म वो गव महसूस करते। ब त कम उ म ही
िव ुत एक भावशाली आदमी बन गया था। ले कन जो लोग उसक वंशावली
जानते थे, पुरोिहत जी जैसे लोग, उनके िलए यह हैरानी क बात नह थी।
िव ुत कोई साधारण इं सान नह था। उसे साधारण होना भी नह था।

कै जुअल े टी-शट और लू ज स म िव ुत अपनी वा तिवक उ से काफ कम


लग रहा था। वो बस एक- दन के िहसाब से कम कपड़े पैक कर रहा था।
दािमनी इस सारे घटना म से काफ परे शान थी, ले कन उसने चेहरे पर दृढ़
और सुंदर मु कान कायम रखी थी। िव ुत बीच-बीच म उसे देखते ए, यार
से मु कु रा देता या शरारत से आंख मार देता। वो उसे सामा य करने क
कोिशश करते ए यह जताना चाहता था मानो कु छ आ ही नह है। जब क
वा तिवकता वो दोन ही जानते थे।
ज दी से सामान पैक करने के बाद, िव ुत कु छ पल के िलए ठठका और
खड़ा होकर िखड़क के बाहर घूरने लगा। अब तक बाला ने उनके घर म
घुसकर, ज से अपने िलए ना रयल पानी का काटन भी िनकाल िलया था।
डाइ नंग चेयर पर बैठकर अब वो खामोशी से अपना क ं पी रहा था। िव ुत
और दािमनी, दोन को ही अपने घर म बाला क मौजूदगी क आदत पड़ चुक
थी, और उ ह उसका आना पसंद भी था। वो उनके प रवार का ही िह सा था।
िव ुत ने बाला को देखा।
‘हाय बाला।’
‘हे वीिडयो।’
‘ या हो रहा है यार? खाना-वाना खाया?’ िव ुत ने पूछा।
‘हां, हां...’ बाला ने अपने दो त को देखे िबना ही जवाब दया। आज के
िलए इतना ही यार काफ था। ले कन िव ुत के िलए इसके काफ मायने थे।
आगे जो आ उसने दािमनी को डरा दया और वो उसक क पना से भी
परे था। िव ुत अपनी टडी क तरफ गया और वहां से महा-पंचांग िनकाल
िलया। दािमनी डर से जम गई और उसका गला सूख गया। िपछली बार िव ुत
ने पंचांग अपनी जंदगी के सबसे भयानक दन पर िनकाला था। उस दन
िव ुत ने अपनी यारी मां को हमेशा के िलए खो दया था! अपने आधुिनक
कपड़ , रहन-सहन, चमचमाती कार, तकनीक कं पनी के बावजूद िव ुत
वै दक योितष का ाता था। वो उसी द ता से लोग क कुं डिलयां पढ़ लेता
था, िजस कु शलता से सॉ टवेयर के को स को खोलता था।

दािमनी ने डर से खुले अपने मुंह को दोन हाथ रखकर ढांपा। िव ुत ने ये देखा


ले कन उसे राहत प च ं ाने क कोई कोिशश नह क । वो एक बार फर से
कसी और ही दुिनया म तीत हो रहा था। उसने पंचांग को डाइ नंग टेबल पर
बाला के सामने फै ला दया, और कोई सं कृ त मं बुदबुदाते ए उस बड़े से
चाट पर झुक गया। उसका पंचांग मा कट म िमलने वाले सामा य पंचांग क
तुलना म अिधक जानकारी समेटे ए था। िहमालय क एक हंद ू मोने ी से
िव ुत का दो त गोपाल हर साल ये मािणक पंचांग उसके िलए भेजता था।
यही तो वा तिवक बात थी। इसका अ ययन, इसक ा या और इसे रखने
का अिधकार िसफ वै दक योितष के मुख पंिडत को ही था। िव ुत उनम से
एक था। और गोपाल िव ुत के उन रह यमयी दो त म से था, िज ह लेकर
दािमनी शंकालु थी।
बाला दािमनी के चेहरे पर परे शानी और आंख म आंसू देख पा रहा था।
उसने अपना हाथ िव ुत के हाथ पर रखा और नरमाई कं तु दृढ़ता से पूछा,
‘तुम या कर रहे हो यार? तु ह अभी इसक या ज रत है?’
िव ुत ने जवाब नह दया। दािमनी से अब और सहा नह जा रहा था। वो
भागकर िव ुत के पास गई और मजबूती से उसक बांह पकड़कर उसे अपनी
तरफ ख चा।
‘तुम या कर रहे हो, बेबी?’ वो िच लाई, वो कभी भी फफककर रो पड़ने
वाली थी।
इस तरह परे शान कए जाने को लेकर एक पल को तो िव ुत के चेहरे पर
झ लाहट दखी, ले कन ज दी ही उसने वयं को शांत कर िलया। उसे अहसास
आ क अब तक उसे दािमनी से खुलकर बात कर लेनी चािहए थी। पुरोिहत
जी के फोन आने के बाद से वो अजीब तरह से बताव कर रहा था, और दािमनी
के ित उसका यार उसे उससे सब कु छ साझा करने क मांग कर रहा था। या
लगभग सबकु छ।
‘यहां आओ बेबी,’ िव ुत ने यार से दािमनी क बांह खीचते ए कहा और
उसे डाइ नंग टेबल के पास पड़े काउच पर िबठाया। ‘म दो िमनट म तु ह वो
बता सकता ,ं जो अभी ज री है, या तु ह सब कु छ समझाने क कोिशश कर
सकता ।ं ले कन सब समझाने के िलए तो शायद दो दन भी कम पड़ जाएंगे,’
उसने कहा।
दािमनी बस यार से िव ुत को देख रही थी, उसक आंख भीगी थ और
सुंदर चेहरे पर कु छ तनाव था, वो अपने आंसू रोकने क भरसक कोिशश कर
रही थी।
‘अगर मने तु ह सब बता भी दया, दािमनी, तो तुम उस पर यक न नह
कर पाओगी। तु ह लगेगा क िव ुत पागल हो गया है। शायद तुम मुझे कसी
साइ कए क के पास भी ले जाना चाहो, अगर पहले ही तुमने मेरे िलए कसी
पागल के डॉ टर से टाइम नह ले िलया हो तो!’ इस गंभीर माहौल को कु छ
ह का बनाने क कोिशश म िव ुत धीमे से हंसा, ले कन कोई फायदा नह
आ। दािमनी अभी भी उसे अिव ास और डर से घूर रही थी।
‘बेबी, बस मुझे बताओ क ये चल या रहा है। तु हारा यार काफ मजबूत
है, और वो ये सब संभाल सकता है,’ दािमनी ने अपनी तरफ से बात संभालते
ए कहा। ‘म अब तक तुम पर दबाव नह डालना चाहती थी, ले कन म तु ह
अ छी तरह जानती ।ं अगर कोई सी रयस बात नह होती तो तुम पंचांग
िनकालते ही नह ।’
िव ुत एक पल के िलए खामोश रहा। फर उसने दािमनी क मुलायम
कला मक उं गिलय को अपने हाथ म िलया और अपने घुटन के बल, फश पर,
सोफे के सामने बैठ गया। उसने अपना िसर झुकाकर, मु कु राते ए उसे देखा,
ये वा तिवक मु कान थी। उसने यार से उसके हाथ को चूमकर कहा,
‘दािमनी, म आधा इं सान और आधा भगवान ।ं ’
पे रस, 2017
‘उस कमब त आय-पु को मार
डालो।’

रे ग मा रअनी क लु थांसा लाईट चा स दे गॉल एयरपोट पर लड ई। उसने


अपनी फ ट लास क िखड़क से झांककर पे रस क बा रश भरी शाम देखी।
वो वहां नजारे देखने नह आया था। वो काम के िसलिसले म वहां आया था।
उ के लगभग पतालीसव साल म चल रहा रे ग एक लंबा और सुसि त
आदमी था। एयरपोट को तेजी से पार करते ए वह गेट नंबर 6 से बाहर आया
और उसके इं तजार म खड़ी लैक म सडीज बज एस 500 म जा बैठा। उसने
ाइवर को दे रवोली के होटल रे िजना म चलने का िनदश दया। पचपन
िमनट क ाइव और एक िवन से चेक-इन के बाद, रे ग पे रस के आलीशान
होटल के अपने ल जरी सुइट म था, जहां से लू यूिजयम दखाई दे रहा था।
रे ग को पैस क कोई चंता नह थी। दुिनया का सबसे अमीर सं थान उसका
खचा उठा रहा था।
भ इटैिलयन सुइट म शॉवर लेने और एक िसगरे ट सुलगा लेने के बाद,
रे ग अपने िनधा रत िडनर के िलए िनकल िलया था। िडनर पर उसे एक आदमी
से िमलना था, जो अपने नाम नह , बि क ओहदे से जाना जाता था—मा के रा
िबआंका। िजसे रे ग दुिनया म सबसे खतरनाक इं सान मानता था। या दूसरा
सबसे खतरनाक। दुिनया का सबसे खतरनाक आदमी वो था, िजसने रे ग को
रोम से पे रस भेजा था। हाथ से िलखे एक प के साथ।

मा के रा िबआंका चालीस साल का आकषक आदमी था, िजसके सुंदर नैन-


न श लगभग लड़क का आभास कराते थे, और आंख तो इतनी तेज महसूस
होती थ मानो लोहे को भी िपघला द। वह महंगे बार म सहज और अके ले बैठा
था। उसक टेबल पर वोदका के साथ इं िडयन ांड क सुलगी ई िसगरे ट रखी
थी। इं िडया से कोई प रिचत िनयिमत प से उसके पसंदीदा भारतीय तंबाकू
क स लाई उस तक प च ं ा देता था। बार म ठीक-ठाक लोग थे, हालां क उसम
मद क अपे ा मिहला क सं या अिधक थी। मा के रा ने रे ग को रे टोरट म
आते देख मु कु राकर उसक तरफ हाथ िहलाया। वो दोन पहली बार एक-
दूसरे से नह िमल रहे थे।
उसने रे ग का अिभवादन गमजोशी से हाथ िमलाकर और मेनू म से सबसे
महंगी वाली डबल वोदका मंगवाकर कया। मा के रा ने रे ग क तरफ अपनी
इं िडयन िसगरे ट का पैकेट भी बढ़ाया। रे ग ने मु कु राते ए उसे िलया और कु छ
िझझक के साथ पूछा, ‘तो आप अभी भी अपने भारतीय ए लॉई के संपक म
ह?’ मा के रा ने रे ग क िसगरे ट जलाई और मु कु राकर जवाब दया, ‘ए लॉई
नह । दो त! म िसफ दो त के साथ काम करता ,ं रे ग। तु ह तो यह पता
होना चािहए।’
रे ग ने हंसते ए हां म िसर िहलाया। वह जानता था क मा के रा का कोई
दो त नह था।

‘तो म तु हारी या मदद कर सकता ?ं ’ मा के रा ने पूछा।


‘आप जानते ह क म कसके िलए काम करता ।ं और आप ये भी जानते ह
क इतने साल से मेरे मािलक और मागदशक को या चीज परे शान कर रही
है।’
मा के रा ने तेजी से िसर िहलाया, यह जताते ए क वो हालात से पूरी
तरह वा कफ था। जब क मा के रा िबलकु ल सहज दखाई दे रहा था, ले कन
रे ग परे शान था क उसके टेटस और वसाय का आदमी यूं पि लक बार म
अके ला कै से बैठा है। रे ग ने उ मीद क थी क मा के रा के साथ तो अमे रक
ेिजडट से भी अिधक गाड ह गे। ले कन उसने अपनी बात जारी रखी।
‘यक नन अब हालात और गंभीर हो गए ह। उ ह ने उसे कबीले के
मु यालय म बुलवा िलया है।’
मा के रा ने िसर िहलाना बंद कर दया और उसक आंख जड़ हो ग । उसके
िजतना बुि मान आदमी भांप सकता था क अब भिव यवाणी सच होने का
समय आ गया था।
‘तो बड़े भाई या चाहते ह?’ कु छ पल ठहरकर मा के रा ने पूछा, वो रे ग के
बॉस को ‘बड़े भाई’ कह रहा था।
रे ग ने शांित से हाथ से िलखा वो प िनकाला, िजसे वो रोम से लेकर आया
था। प सील िलफाफे म था, उसने िलफाफा मा के रा क तरफ बढ़ा दया।
मा के रा ने प खोला और एक सैकंड से भी कम समय म संदश े पढ़कर, प
वापस रे ग को दे दया। एक पल सोचने के बाद, मा के रा ने वोदका का िगलास
उठाया और पूरा िगलास एक घूंट म खाली कर दया। उसने अपनी इं िडयन
िसगरे ट का आखरी कश ख चा और उसे एश े म मसल दया।
कु छ पल कने के बाद मा के रा ने रे ग के बॉस क बात करते ए कहा, ‘बड़े
भाई जानते ह न क ये आसान नह होगा? यह... यह... आदमी यूं ही आसानी
से नह मरने वाला।’
‘हां उ ह पता है,’ रे ग ने जवाब दया। ‘वो जानते ह, य क पहले उ ह ने
अपनी तरफ से कोिशश करके देख ली है। उससे बात नह बनी। अगर ये काम
आसान होता तो वो यूं मुझे आपसे िमलने नह भेजते।’
मा के रा ने रे ग क आंख म घूरने वाली नजर से देखा। कु छ पल बाद वो
मु कु राकर बोला, ‘समझो काम हो गया, रे ग। बड़े भाई को बता देना।’
यह कहकर मा के रा अपनी कु स से उठा और कसी पुराने दो त क तरह
रे ग से हाथ िमलाया। जैसे ही वो चलने के िलए मुड़ा, रे ग और रे टोरट म बैठे
अ य चार मेहमान ने पाया क अचानक सारे लोग अपनी सीट से खड़े होकर
चल दए थे। तब जाकर रे ग को अहसास आ क वहां मौजूद 50 लोग म से
45 मा के रा के िस यो रटी गाड थे। वे सब एक साथ खड़े होकर बार से बाहर
िनकल गए, मा के रा उनके बीच म ही कह गुम हो गया। रे ग जान गया था क
बार म कम से कम 100 िछपी ई ऑटोमै टक बंदक ू भी तैनात रही ह गी, जब
वो और मा के रा बात कर रहे थे। अपने िपछले अनुभव से रे ग जानता था क
मा के रा का हर गाड अपने साथ कम से कम दो हिथयार लेकर चलता है।
रे ग मा के रा से हमेशा भयभीत रहता था। हालां क वो जानता था क
मा के रा यूरोप का सबसे भयानक और रह यमयी मा फया बॉस था, ले कन
इस आदमी म कु छ और था जो रे ग को खटकता था। कु छ भयानक।
रे ग का यान उस मुड़े ए कागज पर आया िजसे मा के रा ने पढ़कर
लौटाया था। उसने उसे उठाया और उस पर अपने शि शाली मागदशक क
जानी-पहचानी राइ टंग देखी।
उस नोट म िलखे चंद श द को पढ़ते ए उसने एक बार भी पलक नह
झपकाई—उस कमब त आय-पु को मार डालो।
बनारस, 2017
काशी: ाचीनतम नगरी

वाराणसी का बाबतपुर ि थत लाल बहादुर शा ी इं टरनेशनल एयरपोट मु य


शहर से 26 कलोमीटर दूर, उ रपि म क ओर पड़ता है। िव ुत लाईट से
उतरा और सीधे जाकर पहले से इं तजार म खड़ी कै ब म बैठ गया, जो उसके
ऑ फस से उसके िलए बुक क गई थी। उसक टीम जानती थी क िव ुत के
िलए समय पैस के िजतना ही क मती है और वो एक िमनट भी टै सी क
तलाश म खराब नह करना चाहेगा। वह एक-एक पल का िहसाब रखता था।
उसे उ मीद थी क उसके िलए कोई फा ट और लासी कै ब बुक क गई होगी।
और सच म कै ब वैसी ही थी। उसे उ मीद थी क ाइवर को पता होगा क
िव ुत को जाना कहां था। और ाइवर को उसक मंिजल पता थी।
िव ुत क ए जी यू टव अिस टट रया अपने काम म परफे ट थी। इससे
भी अिधक वो िव ुत का स मान करती थी, उसे पूजती थी। और उसके समय
क भी क करती थी। और वो उसे चाहती भी थी। िव ुत का ऐसा ही भाव
ब त सी मिहला पर पड़ता था। जैसा क 3,700 साल पहले, कसी दूसरी
धरती पर उसके एक पूवज का था।
सफे द रं ग क बीएमड यू एसयूवी तेजी से एयरपोट से िनकली और ज द
ही शु आती कु छ कलोमीटर भी पार कर िलए। िव ुत ाइवर के बराबर म
ही बैठा था। उसने काली टीशट, नीली ज स के साथ चमचमाते सन लासेस
लगाए ए थे। उसक कलाई म शानदार रोले स घड़ी बंधी थी। कार का
ाइवर जहां कु छ असहज था, वह उ सािहत भी था। उसे कभी िव ुत जैसे
पैसजर को साथ ले जाने का मौका नह िमला था। वो पूरी तरह समझ तो नह
पा रहा था, ले कन उसे अपनी सवारी के आसपास शि शाली ऊजा का
अहसास तो हो रहा था। पारस वयं को और नह रोक पाया।
‘सर, आप द ली से ह?’
‘ह म,’ िव ुत बुदबुदाया, वो तेजी से अपने माटफोन पर िबजनेस ईमेल
के र लाई कर रहा था।
‘सर आप बनारस म छु य के िलए आए ह?’
‘नह ।’
कै ब का ाइवर समझ पा रहा था क उसक सवारी बात करने के मूड म
नह थी। वह वैसे भी कसी पर दबाव नह डालता था। ले कन जाने या बात
थी क वो इस आकषक युवक को अपना प रचय देना चाह रहा था।
‘सर मेरा नाम पारस पांडय
े है।’
िव ुत ने अब मु कु राकर पारस पांडये क तरफ देखा। ताकत और अपनी
ही दुिनयादारी म खोए रहने के बावजूद िव ुत लोग से िमलता ब त अ छी
तरह था। उसे पारस के बातचीत शु करने क कोिशश का अहसास आ, और
िव ुत जैसा इं सान कभी कसी का दल नह तोड़ सकता। अपने संप और
रह यमयी प से शि शाली पेसजेर का यान अपनी तरफ देख पारस ब त
खुश आ।
‘हे लो पारस। मेरा नाम िव ुत है,’ िव ुत ने अपना हाथ पारस क तरफ
बढ़ाते ए कहा, िजसने बड़े जोश और उ साह से उसे थाम िलया। हाथ िमलाते
ए पारस िव ुत को देखकर मु कु राया, ले कन इस हाथ को पकड़ने म उसे
एक स मान का अहसास हो रहा था। ऐसा पहली बार नह था, जब उसे कसी
द भाव को यूं पास से महसूस करने का अवसर िमला था।
‘सर, आप बनारस म कब तक ह?’ पारस ने टू र म िबजनेस म द इं सान
क तरह पूछा।
‘एक दन के िलए।’ िव ुत ने जवाब दया।
‘अरे नह सर... आप बनारस से, भु भोलेनाथ क नगरी से उनक मज के
िबना नह जा सकते,’ पारस ने खुशी से कहा।
ले कन पारस नह जानता था क उसक ऐसे ही कही ई बात िव ुत के
िलए खतरनाक भिव यवाणी बन जाएगी, िव ुत शायद वहां से जीिवत नह
लौटने वाला था।

बनारस क कालोिनय और मौह ले के नाम ब त अजीबो-गरीब ह—नाथी-


इमली, ला रा-बीर, कबीर-चौरा, िव नाथ-गली, बांस-फाटक, धूप-चंडी,
अ सी, गदौिलया, लंका इ या द। ले कन ब त कम लोग जानते ह क हर नाम
का एक खास इितहास और अपनी धरोहर है। उदहारण के िलए, कबीर-चौरा
वहां ि थत है, जहां महान उपदेशक और संत किव कबीर के अनुयाियय ने
उनक मृित म आ म बनवाया है (हालां क यह वयं संत कबीर के िस ांत
के िव था, िज ह ने भ और भगवान के बीच हर सं थान का िवरोध कया
था)। इसी तरह अ सी नाम ाचीन अ सी नदी के नाम पर पड़ा था और यह
य , बिलदान के िलए मुख घाट से भी जुड़ा है। वाराणसी का नाम वयं
आ दकालीन व णा नदी के नाम पर ही पड़ा है। वाराणसी म कु छ भी ह का
या उथला नह है। कु छ भी नह । ह कापन िसफ उन संदह े ी नजर म है जो
इसके मह व को नह जानती ह।
पारस जानता था क िव ुत क मंिजल पूरे वाराणसी का सबसे ताकतवर
और रह यमयी हंद ू आ म, देव-रा स मठ था। वह घबराया आ था क
मेजबान और कोई नह बि क सबसे खतरनाक ा ण पुजारी, ारका शा ी
था, जो इस शि शाली मठ का वामी था। य िप वाराणसी के अिधकांश मठ,
अखाड़े और गु कु ल अपने आप म कु छ रह य दबाए ए ह, ले कन फर भी
ारका शा ी का मठ सबसे अिधक रह यमयी है। और यह आधुिनक, शहरी
युवक मानो सीधे उस अि म वेश करना चाहता था। पारस को अहसास आ
क उसे िव ुत को चेतावनी देनी चािहए।
‘िव ुत सर, आप उस जगह पर य जा रहे ह? वह ब त... आप समझ रहे
ह, ब त डरावनी है,’ पारस ने सलाह दी, ले कन उसक आवाज से वो सलाह
से अिधक चेतावनी लग रही थी। उसने आगे कहा, ‘ ारका शा ी जी एक संत
ह... ले कन वो ब त ही गु सैल ह। आप समझते ह, वो बात-बात पर ाप दे
देते ह? और उनका ाप कभी खाली नह जाता।’
पारस हैरान था य क इतनी गंभीर चेतावनी का उसक सवारी पर कोई
असर दखाई नह दे रहा था। सड़क पर टक िव ुत क नजर ने एक पल को
भी पलक नह झपकाई थ । पारस सोच रहा था क उसके पास बैठा यह ि
या तो बेखौफ था या मूख। या फर कु छ और।

वाराणसी शहर म गुजर-बसर हर कसी के बस क बात नह है। शहर म


अिधकतर आपको बदबू, गंदगी, भीड़भाड़, ै फक, गरीबी और बदसूरत व
िघनौनी चीज देखने को िमल जाएंगी। यहां वो सब है िजसे मानवजाित के
िलए सही नह माना गया है। ले कन फर भी, बेशक यह दुिनया के सबसे
शानदार शहर म िव मान है। इसक बाहरी डरावनी परत के ठीक नीचे,
मानव को ात अब तक के सबसे शांत, अ या म, रह यमयी शि यां और
िस ांत मौजूद ह। देखा जाए तो यह उस ांड क तरह ही है, िजसम हम
रहते ह—िजसक बाहरी परत अंिधयारी और िनदयी है, ले कन अंद नी भाग
शांत और मनोरम है। समय क शु आत से ही ाचीनतम नगरी काशी हमांड
के इसी त व का ितिनिध व कर रही है। ले कन िज ह नेमत ा है, वही
इसका द व प देख पाते ह।

शहर क एक तंग गली म पारस ने कार रोक दी, वो वहां से और आगे नह जा


सकती थी। उसने िव ुत को ारका शा ी मठ के करीब उतार दया, जो यहां
के सबसे बड़े काशी-िव नाथ मं दर के पास ही था। हमेशा ही भीड़भाड़ और
साइ कल- र शा के शोर से भरे रहने के बावजूद इस जगह क पिव ता को
दुिनया भर म वीकार कया गया है। यहां तक क पारस ने भी िनधा रत
जगह पर िव ुत को उतारने के बाद, कोई ाथना बुदबुदाते ए ा से अपना
हाथ माथे को लगाया था। तंग गली से गाड़ी िनकालते ए, पारस अपना िसर
िखड़क से बाहर िनकालते ए िच लाया, ‘िव ुत बाबू, मेरा नंबर है
98456738917... कु छ ज रत हो तो मुझे फोन क िजएगा।’ िव ुत ने
मु कु राकर हां म िसर िहला दया। उसक याददा त ब त तेज थी, िबलकु ल
फोटो ा फक या इस मामले म तो फोनो ा फक मेमोरी थी।
कमर पर छोटा सा िप ठू बैग लटकाए, िव ुत तेजी से उन तंग और गीली
गिलय म चल पड़ा, जो उस रह यमयी और डरावने मठ क ओर जाती थ ।
िव ुत यहां प ीस साल बाद आया था, ले कन उसे हर गली आज भी अ छी
तरह याद थी। कु छ भी नह बदला था। रहायशी मकान के बीच बनी ये
संक ण गिलयां सैकड़ साल पहले बनी थ । लगभग हर दीवार पर ही हंद ू
देवी-देवता क त वीर और िच बने ए थे, िजनके सुंदर रं ग म िनबाध ेम
और भि क अिभ ि हो रही थी। मं दर क अगरबि य के साथ िमली
गदे के फू ल क वही जानी-पहचानी खुशबू वहां फै ली थी। वाराणसी के लगभग
हर घर म एक छोटा सा मं दर था, िजसम रोज पूजा-अचना क जाती थी।
उसी तरह के लोग उसके पास से गुजर रहे थे, देखने म गरीब, ले कन एक खास
क म के संतु । आने-जाने वाल म मानो हर तीसरा आदमी पुजारी था।
िव ुत अपनी मंिजल जानता था, या ये भी कह सकते ह क मंिजल िव ुत को
पहचानती थी! कु छ िमनट चलने के बाद, िव ुत जान गया था क अब वो
अपनी मंिजल के करीब था। जैसे-जैसे वो अपने ल य के करीब प च ं रहा था,
उसक धड़कन बढ़ती जा रही थी। ये कसी डरे या घबराए ए आदमी क
धड़कन नह थी। ये तो खुशी क वो आहट थी, जो काफ समय बाद अपने
प रवार से िमलने पर होती है। और िव ुत जानता था क वो घर लौट रहा था
—उसका वा तिवक घर।
िव ुत प थर के बने, बड़े से धनुषाकार ार के सामने खड़ा था, यह देव-रा स
मठ का वेश ार था। ार पर सुंदर न ाशी म आकषक िडजाइन, आकृ ित व
पैट स उके रे गए थे। एक नजर देखते ही ये आपके होश उड़ा देता था, ले कन
इसक वा तिवक कहानी इस पर बनाई लघु आकृ ितय से झलकती थी। यान
से देखने पर उन आकृ ितय क ताकतवर, डरावनी और अमर कहानी पता
चलती थी। हालां क िव ुत उस ार म कोई डर या ताकत नह देख पा रहा
था। वहां उसके िलए िसफ यार था, एक ेह भरा आ लंगन। वह गेट के एक
छोर के नजदीक गया और उस पर यार से अपनी उं गिलयां फराने लगा, वैसे
ही जैसे लाड़ से ब े अपने यारे बाबा के गाल छेड़ते ह। जब िव ुत इस
दरवाजे से जुड़ी याद और यार म खोया आ था, तभी उसे एक कड़क आवाज
सुनाई दी, ‘इस ार को छू ने क तु हारी िह मत कै से ई?’
िव ुत मुड़ा तो उसे एक प ीस-तीस साल का नौजवान दखाई दया,
मजबूत कद-काठी का, हंद ू संत क तरह भगवा िलबास पहने, गु से म उसक
तरफ बढ़ता आ। उसने उसके माथे पर रोली का ितलक लगा भी देखा। उससे
भी अिधक खतरनाक था, उसके हाथ म पकड़ा आ ि शूल। बांस म धंसा आ,
चमकती टील का पैना ि शूल, िजसके खुले ए तीन िसरे लड़ाई के िलए
एकदम तैयार जान पड़ रहे थे। ले कन िव ुत पर इसका कोई असर दखाई
नह दे रहा था।
‘तुम हो कौन, और या सोचकर तुमने इस पिव तंभ को छू ने क कोिशश
क ?’ उस युवक ने ललकारा। िव ुत ने यान दया क वो अ छे नैन-न श
वाला आकषक इं सान था।
‘तुम इस तंभ और ार के बारे म कतना जानते हो, भाई?’ िव ुत ने एक
नरम मु कान से पूछा।
वो युवक इस अजनबी क गु ताखी और िनडरता से हैरान था। ले कन
िव ुत म उसे एक अपनापन सा महसूस हो रहा था। वो इसक वजह समझ
नह पा रहा था।
‘यह ार 800 साल से भी अिधक पुराना है,’ युवक ने जवाब दया, उसक
आवाज म नाराजगी का पुट अभी कम नह आ था।
‘और...?’ िव ुत ने पूछा।
‘और से तु हारा या मतलब है? यह एक खास क म के प थर से बना है।’
‘और...?’
‘और अगर तुम इसी समय यहां से दफा नह ए तो म अभी तु हारा ये
शहरी थोबड़ा तोड़ दूग ं ा!’ युवक गुराया।
िव ुत ने उस युवक क आंख म देखा, कु छ पल ठहरा और फर पूरे
िव ास से कहा।
‘इस ार का िनमाण वष 1253 म मठाधीश ी भैरव शा ी क कड़ी
िनगरानी म आ था। जो प थर इस सुंदर ार क न ाशी म इ तेमाल ए ह
वो क ौज के महाराज ने उपहार म दए थे, िजनका वजन 1008 टन था। इस
ार के मुख वा तुकार थे पंिडत रमाकांत दीि त, िज ह ने मथुरा के 27
बेहतरीन कारीगर को काम पर लगाया था और लगातार 3 साल तक काम
चलने पर यह मा टरपीस पूरा हो पाया था। वष 1256 म इसे थािपत कया
गया था और इसका मु त वयं काशी-नरे श ने कया था।’
वो युवक बुत बना खड़ा था। ‘कौन हो तुम?’ उसके खुले मुंह से बस इतना
ही िनकल पाया।
‘मेरा नाम िव ुत शा ी है।’
युवक अिव ास से मानो जम गया। िव ुत ने गौर कया क कु छ ही पल
म उसक आंख भर आई थ । इससे पहले क िव ुत कु छ कह पाता, वो युवक
िव ुत के पैर म िगर पड़ा। िव ुत दुिवधा म था, और उस युवक ने ा और
समपण के भाव से उसके पैर पकड़ िलए थे। और इससे पहले क िव ुत झुककर
उसे उठा पाता, वो उठा और दीवान क तरह आ म म अंदर क तरफ भाग
गया।
‘वो आ गए ह! वो आ गए ह! वो आ गए ह!’ मठ क अंद नी गिलय म
गुम होता आ वो युवक खूब तेज आवाज म िच ला रहा था।
वो िव ुत के आने का इं तजार कर रहे थे। स दय से।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
आखरी देवता

िववा वन पुजारी ने संधु के पिव और िनमल जल म ान कया। संधु


महानदी सर वती क उपनदी है, जो हड़ पा के सामने से बहती थी। हड़ पा
इस जीवन और ान देने वाली ताकतवर नदी को पूजता था। िवशाल
महानगर के िनवासी िजतना नदी को पूजते थे, उतना ही उसे यार भी करते
थे, और वो लोग यार से इसे सारा मां पुकारते थे।
हड़ पा और उसके पास व दूर क स यताएं, जैसे मोहन जोदड़ो और लोथल
भी सर वती पर िनभर करती थ । नदी उ ह पीने का पानी, संचाई,
आवागमन, मछली और औषिध के साथ ही दु मन क चढ़ाई से भी बचाती
थी। इसके पिव कनार पर कई पावन काय संप कए जाते थे। सर वती
हड़ पा समाज क आ मा थी।
परस िववा वन पुजारी क जंदगी का सबसे बड़ा दन सािबत होने वाला
था। पचपन साल का वो आदमी देखने म पतीस साल से एक भी दन बड़ा नह
दखाई देता था। गौर वण क उसक वचा असामा य तेज से चमकती थी और
उसका चौड़ा माथा भावशाली राजवंश का तीक था। अपने अनेक नेक काय
क वजह से हड़ पा का सूय कहलाने वाला आदमी नरम दल था, और आनंद से
अिधकार भरे अपने जीवन को जी रहा था। उसका शरीर कसी कु शल
िखलाड़ी क तरह चु त था और उसक कसी ई मांसपेशी उसके शानदार
अंगव के नीचे से चमक रही थी। िववा वन पुजारी िसफ ाचीन ंथ , मं
और ोक का ही ाता नह था, बि क वह वयं वेद के रचियता म से भी
एक था। वेद सािह य, िव ान और अ या म का सवािधक समकालीन काय है।
ऐसा माना जाता था क उसे वयं आ दम ऋिष का आशीवाद ा था, वो
ऋिष िज ह िशव और शि के साथ म सृि का रचियता माना जाता था।
िववा वन पुजारी इं सान नह था। वो एक द प था। वो धरती पर ज म
लेने वाला आखरी देवता था।
या तब ऐसा माना जाता था।

अपने शानदार अ ययन क म चं धर बेचैनी से च र लगा रहा था। य िप


वो वयं इस घटना म से खुश नह था, ले कन इस समय उसक वा तिवक
चंता कु छ और थी। खर बुि मान चं धर अ या म और िव ान का े
ाता था। हड़ पा समाज म चं धर दूसरा सबसे भावशाली ि माना
जाता था। वह रा य का मु य कोषा य था। वह पुरोिहती प रषद का
कायकारी मुिखया भी था। इससे भी अिधक मह वपूण, वह हड़ पा क दु ध-
संपदा के संर क , ‘गोपालक ’ का भी मुख था। िजसके भी हाथ म इसका
िनयं ण होता था, उसी के हाथ म हड़ पा का मु य िनयं ण समझा जाता था।
और फर भी रा य का दूसरा सबसे भावशाली ि इस समय ई या से
त था। उसे हड़ पा के पहले सबसे भावशाली इं सान से जलन हो रही थी।
उसे अपने परम िम से जलन हो रही थी, वयं अपने बहनोई से ई या हो रही
थी।
चं धर को और कसी से नह वयं ताकतवर िववा वन पुजारी से जलन
हो रही थी।
ले कन अभी चं धर क वा तिवक परे शानी कु छ और थी। उसक
वा तिवक परे शानी इस समय उसक प ी, ि य वदा थी। ि य वदा का
शाि दक अथ मधुर भाषी होता है, ले कन बद क मती से उसम ऐसा कोई गुण
नह था। वो उसक जंदगी का सबसे बड़ा जंजाल थी। नरम दल और दयालु
चं धर के िवपरीत ि य वदा हर चीज और हर इं सान से नफरत करती थी।
चं धर को डर था क उसके मन का ये मैलापन धीरे -धीरे उसे ऐसे दै य म
बदल रहा था, िजसे कभी हड़ पा ने नह देखा था। वो उससे नफरत करता था।
ले कन फर भी, दल ही दल म वो उसे पागल क तरह चाहता भी था। वो
उसके िबना जी नह सकता था।
ि य वदा ने अ ययन क म वेश कया, जहां चं धर बावल क तरह
च र काट रहा था। चं धर को ि य वदा के सुंदर और मु कु राते चेहरे के पीछे
उसक उफान मारती नफरत दखाई दे रही थी।
‘बधाई हो पंिडत चं धर,’ उसने खुशी से कहा, और फर नािगन क तरह
फु फकारी, ‘तुम फर से हार गए, मूख!’
िववा वन पिव संधु-सर वती घाट क सी ढ़यां चढ़कर, इं तजार म खड़े
रा य-र क के पास आया। उ ह ने चमकते सूरज के तीक वाली पताका को
उसके स मान म ऊंचा उठा िलया था। हर प रि थित म िववा वन पुजारी क
सुर ा करना उनका कत था। ले कन अपने कत से अिधक, िववा वन
पुजारी के नजदीक रहना उनके िलए आशीवाद समान था। आिखरकार
िववा वन हड़ पा स यता क सबसे अमू य िनिध था।
आयवत के दस िभ कबील को ऐितहािसक शांित संिध के तहत एक करने
वाले िववा वन पुजारी ने हड़ पा के िलए अतुलनीय योगदान दए थे।
िववा वन ही वो था जो हड़ पा म पहले पांच हज़ार अ लेकर आया था, और
हड़ पा क सेना को िव क सबसे शि शाली फौज म बदल दया था। ऐसा
उसने दूर पि म से आए ताकतवर हमलावर, सुरा को हराने के ठीक बाद
कया था। दूर देश से आया वो हमलावर अपनी ही अलग भाषा म बात करता
था। दूर तक फै ले सा ा य म िववा वन क पूजा क जाती थी, और लोग
जानते थे क वो कोई सामा य इं सान नह था। कोई भी न र इं सान वो सब
नह कर सकता था, जो िववा वन पुजारी ने कर दखाया था। वो वा तव म
एक देवता—आधा इं सान, आधा भगवान—था।
िववा वन आज फु ि लत था। उसे हड़ पा का मु य पुजारी चुना गया था
और उ प रषद, द स ऋिष से आशीवाद ा कर, वो अगली सुबह
वा तव म रा य का स ाट बन जाने वाला था। ‘स ाट’ ताकतवर लोकतं ,
हड़ पा म कोई अिधक वजन वाली उपािध नह थी, िजसे िववा वन पुजारी
और पंिडत चं धर ने बड़ी मेहनत से गढ़ा था, अिपतु वहां का िनयं ण मु य
पुजारी के हाथ म था।
हालां क हर कोई इस समारोह से इतना खुश नह था।
ि य वदा तो िबलकु ल नह ।

िववा वन पुजारी अपने िवशाल, फर भी साधारण घर म घुसा। हड़ पा के क


म बना आ वो िवशालकाय ढांचा था, िजसक मह ा नगर म िनसंदह े
िववा वन पुजारी के ही समान थी। ले कन फर भी देखने म यह एक सौ य
कु टीर क भांित ही लगता था—उस प रवार क शरण थली, जो गहन तप या
करते ए ई र और उसके अनुयाियय क सेवा म लगा था।
घर म घुसते ही िववा वन क मनोहर और सम पत प ी, संजना ने उसका
अिभवादन कया। सभी संजना से ेह करते और उसे पूजते थे, इसका कारण
िसफ िववा वन पुजारी क प ी होना ही नह था, बि क संजना के अपने
ि व, समाज सेवा और वेद के उसके असीम ान क वजह से भी।
संजना ने िववा वन के िलए सुबह का भोज परोसा, तब तक उनका बेटा
मनु भी भोज के िलए आ गया। मनु का नाम वेद म व णत थम मानव के
नाम पर रखा गया था। मनु बाईस वष य सुदशन और अ छी कद-काठी का
युवा था। उसे अपने िपता पर ब त गव था, और उसके िपता को उस पर।
‘तो मनु, अथववेद का अ ययन कै सा चल रहा है?’ िववा वन ने के ले के प े
पर से, उं गिलय से खीर खाते ए नरमी से पूछा। ‘तुम जानते हो ना क ये
सबसे मह वपूण िव ान है, जो तं -मं के अ यास और अलौ कक संसार के
ान म काम आता है?’
‘जी िपताजी, म इस पर ब त यान दे रहा ,ं इसम मेरी गहन िच भी
है,’ मनु ने जवाब दया। ‘हालां क इसम आ मा-जगत के कु छ डरावने त व भी
ह, जो मुझे आप ही से सीखने ह गे,’ मनु ने कु छ िवनोद करते ए कहा। वो
अ छी तरह जानता था क युवा िश ु के िलए काला-िव ान सीखने क
मनाही होती है। ले कन उसे अपने िपता, महान िववा वन पुजारी से प रहास
करने म मजा आता था।
‘तु ह मेरी तरफ से एक कड़क चपत क ज रत है। कतने दन से तु ह
खुराक नह िमली है?’ िववा वन ने भी हंसते ए पूछा। वह जानता था क
उसका बेटा मजे ले रहा था। दोन खुलकर हंसे और िववा वन ने मनु के मुंडे
ए िसर को यार से सहलाया। वह मनु और संजना को अपनी जंदगी से भी
अिधक चाहता था।
मनु के सामने बैठी संजना, बार-बार अपने बेटे के के ले के प े म खीर, आलू
क स जी और पूरी परोस रही थी। िववा वन और मनु के बीच सूय और
काश का सा र ता देखना उसक जंदगी का सबसे बड़ा सुख था। िववा वन
पुजारी का प रवार यार, भरोसे, सादगी और घिन ता का उदाहरण था।
मानो वयं सारा मां और ई र ने इस सुंदर प रवार क रचना क हो। संजना
रोज कई घंट तक इस आशीवाद के िलए भगवान का आभार करती।
ले कन भगवान संजना को िनराश करने वाले थे। बुरी तरह से।

एक काली शि ने इस ताकतवर, फर भी सौ य, पावन प रवार के िव


अपना मन स काय शु कर दया था। दूर जंगल म िछपी एक गुफा एक
बेरहम काले जादू क गवाह बनने वाली थी। मेसोपोटािमया के तीन अंध-
मायावी पागल क तरह हंसते ए, इं सानी र म नहाकर उस खूंखार कृ य के
िलए तैयार हो गए थे। उनके मं क क ं ार जंगल म गूंज रही थी, िजसने उस
िनजन देश के हर पशु, प ी, वन पित और क ट को मार दया था। उन तीन
को वहां बुलवाया गया था, और उ ह ने काली ताकत और हंसक, असंतु
आ मा क सारी फौज को करो-या-मरो अिभयान के िलए इक ा कर िलया
था।
उस देवता को िमटा पाना इतना आसान नह होने वाला था।
बनारस, 2017
रोमी परे रा

उस रे लवे कोच म तपती गम और िचपिचपाहट थी। दुबला-पतला, च मे


वाला युवा ेन के सैकंड लास कं पाटमट म इधर से उधर ध े खा रहा था। वो
इतना नाजुक दखाई दे रहा था क गमाहट भरे उस िड बे म हर कोई ही उसे
ध कया रहा था। प िडचेरी से बनारस प च ं ने के िलए वो पहले ही कई ेन
बदल चुका था। देखने म रोमी ऐसा लग रहा था मानो सीधे इं िडया के मश र
इं जीिनय रं ग कॉलेज के हॉ टल से िनकलकर आ रहा था। वह म रयल सा था,
मोटा काला े म का च मा चढ़ाए, िबखरे बाल, गोरा रं ग और मासूम दखने
वाला चेहरा।
रोमी का ि व एक असुरि त, द बू लड़के का था। वो कसी का भी
सामना नह कर सका था, उसने मुंबई पुिलस से सेवािनवृत अपने बेरहम िपता
के अ याचार के िव भी कभी आवाज नह उठाई थी। परे शानी म बीते
बचपन म उसे लगभग रोज ही अपने शराबी और हंसक िपता से िपटना पड़ता
था। इस वजह से वह एक नरम ले कन ज टल युवा म त दील हो चुका था। वो
कसी भी चीज और कसी भी इं सान से डर जाता था। अपनी कमजोर और
मीठी आवाज म कु छ भी बोलने से पहले वो हकलाता था।
जब रोमी तेरह साल का था, तब उसके िपता क मृ यु एक अजीब सी घरे लू
दुघटना म हो गई थी। रोमी क मां उसके ज म के महज दो साल बाद ही उसे
और अपने आधे पागल पित को छोड़कर चली गई थी। जम दार प रवार से
होने के नाते, रोमी को िपता क मृ यु के बाद अपने िपता क काफ संपि
िमली थी। शराबी और पितत िपता का याकम करते ए रोमी क आंख से
एक भी आंसू नह िनकला था। उसके दूर के र तेदार ने इसका कारण गहरे
आघात को माना था।
रोमी ने अपने इं जीिनय रं ग बैच म सबसे अिधक नंबर ा कए थे। कू ल
म या फर इं जीिनय रं ग कॉलेज म उसका कोई दो त नह था। सारी लास
उसका मजाक बनाया करती थी। यहां तक क ि या भी सबके साथ उस पर
हंसती थी। ि या भी। भाषा पर रोमी क अ छी पकड़ थी और जब लास के
सबसे आकषक और लोकि य लड़के , रा ल ने आ मह या क तो लास के
बाक छा ने रोमी से ही उसक ांजिल िलखने क िवनती क । रोमी ने
ब ढ़या सा नोट िलखकर ि या के ग स हॉ टल म के बाहर छोड़ दया। बाक
छा ने रोमी के इस काम क तारीफ क , य क ि या रा ल क गल ड थी।
इसके बावजूद भी उन लोग ने उसका मजाक उड़ाना बंद नह कया।
ले कन वो इस बात का अंदाजा नह लगा पाए क रोमी के िपता और ि या
के बॉय ड, दोन क मौत रह यमयी हालात म ई थी। बेरहमी से।

जब ेन वाराणसी के बड़े से टेशन पर क तो रोमी ेन से बाहर िनकलने क


कोिशश करने लगा। उसका दुबला और डरा आ बदन दबते-दबते, रा ते म
सबसे माफ मांगते ए कं पाटमट के दरवाजे तक जाने क कोिशश कर रहा
था। िनकलते ए उसका पैर एक िवशालकाय काले आदमी के पैर पर पड़ गया।
गु से म आ उस आदमी ने गािलयां देते ए रोमी के मुंह पर तमाचा मार दया।
रोमी के मासूम चेहरे से उसका काले े म वाला च मा, तकरीबन िगरने ही
वाला था।
‘सॉरी सर,’ रोमी ने लगभग रोते ए कहा और अपना च मा ठीक करने क
कोिशश करने लगा। बगनी कमीज पहने आदमी, िवजेता के आ मिव ास से
फुं फकारा। आसपास मौजूद लोग ने ऐसे मुंह फे र िलया मानो कु छ आ ही
नह ।
वाराणसी टेशन के लेटफाम नंबर 3 पर रोमी को लगभग ध े मारकर
उतारा गया। वो बड़ी मुि कल से संतुलन बना पाया, और अपने बैकपैक को
पीठ पर संभाला। रोते ए रोमी ने वयं को शांत कया, अपनी आंख प छ
और अिनि त कदम से लेटफाम से बाहर क तरफ चल दया। देखने म
उसक हालत ब त खराब लग रही थी। हर कोई जानता था क रोमी पूरी
तरह से हारा आ इं सान था, िजसम न कोई ताकत थी, न ितभा।
जैसे ही ेन आगे बढ़ी, तो उस काले आदमी क बगनी कमीज उसी के र
म तर हो रही थी। भीड़भाड़ म कसी शाितर ह यारे ने उसका गला रत कर
वहां महज एक सटीमीटर का घाव छोड़ दया था। ले कन वो घाव इं सान को
धीमी और ददनाक मौत देने के िलए काफ था।
हर कोई जानता था क रोमी पूरी तरह से हारा आ इं सान था, िजसम न
कोई ताकत थी, न ितभा।
िसवाय इसके क वो दुिनया के सबसे शाितर और बेरहम काितल म से एक
था।
और मा के रा िबआंका, या इटली के सफ़े द मुखौटे ने इसे भांप िलया था।
बनारस, 2017
‘ कसी ने तु ह याद नह कया...?’

िव ुत के सामने रखी गमा-गरम ख ता कचौिड़यां और रसभरी जलेिबय को


देख वयं को रोक पाना मुि कल था। उ ह मश र बसंत महल हलवाई से
मंगवाया गया था। िव ुत के िपछले कु छ घंटे मठ म बीते उसके बचपन क
खुशनुमा यादगार थे।
युवक के िच लाने से पुरोिहत जी हड़बड़ाहट म मठ के गेट से बाहर िनकले
थे। िव ुत क पहली झलक देखते ही उनका स छू ट गया। उ ह ने िव ुत को
देखा और वो ब क तरह सुबक उठे , जैसे बरस पुराने यार से िमल रहे ह ।
और य नह ? िव ुत उनके िलए बेटे क तरह ही था। अपने िपता का तके य
को खो देने के बाद िव ुत क जंदगी म िपता समान कोई था, तो वो पुरोिहत
जी ही थे।
कसकर गले लगाने और यार बरसाने के बाद; िगले-िशकवे और ये सािबत
करने क कौन दूसरे से अिधक यार करता है, के बाद पुरोिहत जी ने िव ुत को
देव-रा स मठ के पिव एकांत क म बुलाया। हालां क इस जगह कसी को
भी जाने क आ ा नह थी, ले कन पुरोिहत जी के मन म इसे लेकर कोई संदह े
नह था। वैसे भी िव ुत इस वंश का मािलक और सवसवा था, और इस मठ
क आ याि मक ताकत ने ही उसे यहां अपनी जगह लेने के िलए बुलवाया था।

और फर खान-पान से इसक शु आत ई। जैसे मां अपने दूर से आए ब े पर


लाड़ लुटाती है, वैसे ही पुरोिहत जी और उनके अनुयाियय ने िव ुत के दुलार
म खाने क मेज को वा द ंजन से भर दया। वाराणसी वैसे भी खाने के
शौक न के िलए ज त है और िव ुत के िलए शहर का चु नंदा शाकाहारी
खाना परोसा गया था।
इसक शु आत कचौिड़य से ई—ख ता गोल-गोल कचौिड़यां, िजनम
दाल और मसाले भरे ए थे। इसके वाद को कसी भी श द से बयां नह कया
जा सकता। इसके बाद बारी आई सबके यारे समोसे क । समोसा मैदे क परत
म आलू और मसाले भरकर ितकोनी शेप म बनाकर तला जाता है। इसका
वाद भी गजब का है। फर बनारस क मश र टमाटर-चाप आई, तले टमाटर,
आलू, काली िमच, याज और भारत के बेहतरीन मसाल क गाढ़ी िडश। ये
डीप ाई नह बि क कम तेल म ाई क जाती है। ले कन ब त ही वा द ।
िव ुत को हर ंजन को दो-दो बार िखलाया गया। और फर बारी आई
बनारस क मश र िमठाई क ।
बनारस क दूध से बनी िमठाइय पर पूरा महाका रचा जा सकता है।
एिशया म शायद कलक ा (अब कोलकाता) ही दूसरा ऐसा शहर होगा, जो
बनारसी िमठाइय क िविवधता और िविश ता क बराबरी कर सकता हो।
िमठाइय का अनुभवी और चाहने वाला बनारसी िमठाई को देखकर या
सूंघकर पहचान सकता था। िव ुत के िलए खास ल ग-लता लाई गई... ल ग के
लेवर क मावे से तैयार क गई िमठाई। और फर जलेबी और खीर-कदम—
िजसे चीनी म भीगे पनीर के ऊपर मावे क परत चढ़ाकर तैयार कया जाता
है।
िव ुत पूरी तरह फट इं सान था, जो ग मय म रोज मील दूर तक तैराक
और स दय म अपने ेडिमल पर ही लगभग मैराथन िजतना दौड़ िलया करता
था। वह हर सुबह गहन ाणायाम का भी अ यास करता था। उसका फटनेस
लेवल इतना हाई था क बनारस का तेल या िमठाई उसे हरा नह सकते थे।
ले कन फर भी इतना वा द खाना खाकर िव ुत चलने क हालत म नह
रहा था! उसने जी भरकर खाया, खासकर खाने के साथ परोसे गए यार क
खाितर।
वो बनारस को उसी तरह जी रहा था, िजस तरह तीन दशक पहले जीता
था।

िव ुत अपने बचपन के ब त से दो त से दोबारा िमला। भयानक सा ि शूल


उठाए जो युवा खड़ा था, वो कोई और नह बि क पुरोिहत जी का बेटा सोनू
था। अब तक उस पर भी पूरी तरह िव ुत का जादू चल चुका था और वो खुशी
से बार-बार िव ुत के गले लगे जा रहा था। जब भी सोनू मासूिमयत से ऐसा
करता, तब िव ुत बस यार से हंस देता। वहां बलवंत भी था, िजसे िव ुत
बचपन म मजाक से ‘इं सानी मशीन’ कहा करता था। वो देखने म िवशालकाय
था, लड़ाई के िलए हमेशा तैयार रहने वाला ि य। वो कभी मु कु राता नह
था। हंसी या है, वो जानता भी नह था। इं सान क खुशी जैसे िवचार से वो
अनजान था। ले कन वो एक संर क था। और भारत क ाचीन माशल आट,
कला रपय टू म मा टर। इस ाचीन कला का सं थापक वयं मुिन-यो ा
परशुराम को माना गया है।
उसके बाद िव ुत गोवधन दादा से िमला—आयुव दक वै , िज ह आंख से
कम दखाई देता था। वो जरा भी नह बदले थे, बस उनके बाल कु छ अिधक
सफे द हो गए थे। फर िव ुत अपने नसरी के दो त बीजी से िमला, जो अब
कू ल म मा टर था। वो सब बड़े ेह और लाड़ से िमले।
और फर उसने सुंदर नैना को देखा।
नैना क बादामी-भूरी आंख और उसक मग र, मगर आ मीय तुित को
देख, िव ुत पल भर को ठगा सा रह गया। वो बेबाक से उसक तरफ आई,
और िबना उस पर से नजर हटाए, िवन ता से नम ते म झुक । सामा य
प रि थितय म तो िव ुत ने गले लगाकर उसका वागत कया होता। ले कन
यह मठ था। और िव ुत यहां दशक बाद आया था। वह यहां के कायद पर
चलना चाहता था, भले ही नैना उसक बचपन क दो त थी।
नैना वैसी िबलकु ल भी नह लग रही थी, जैसी िव ुत ने उ मीद क थी।
बनारस जैसे पारं प रक शहर क लड़क , खासकर तब जब उसका पालन-
पोषण ढ़वादी ा ण प रवार म आ था, नैना म एक मोहक आकषण था।
उसक सांवली रं गत म एक चमक थी, और उसके नैन-न श म दैवीय गुण।
उसक आंख बड़ी और तेज थ । भरे -भरे ह ठ, छोटी पर तीखी नाक और गहरे
भूरे बाल, जो िनचले छोर पर वाभािवक प से घुंघराले थे। उसके कपड़े
सामा य थे, पूरी तरह से ढंके ए... ले कन फर भी एक रह यमयी कामुकता
िलए। कं तु इन सबसे अिधक नैना के असामा य आ मिव ास ने िव ुत का
यान आक षत कया। उसके हाव-भाव कु छ ऐसे थे मानो वो वहां मौजूद हर
इं सान और चीज क वािमनी हो।
‘नम ते िव ुत,’ नैना ने अपनी हथेिलय को जोड़ते ए कहा, उसक आंख
म चमक थी।
‘नम ते नैना,’ िव ुत ने खुलकर मु कु राते ए कहा।
‘तो द ली क कॉप रे ट जगत क ह ती ने हम नाचीज से िमलने का समय
कै से िनकाल िलया?’
ठहाका मारकर हंसते ए िव ुत ने कहा, ‘वैसे, लग तो यूं रहा है क यहां
कसी ने मुझे याद ही नह कया।’
नैना ने अपना िसर एक तरफ झुकाया और शरारत से बनावटी मु कान देते
ए कहा, ‘पूरा िव ास है ना िव ुत? कसी ने तु ह याद नह कया?’
अचानक पुरोिहत जी ने िव ुत को बुला िलया।
नैना धीरे से मुड़ी, उसक नजर कु छ पल िव ुत पर ही टक रह ।

जब िव ुत अभी संप ई खाितरदारी का िज करने लगा तो पुरोिहत जी


अपनी हंसी रोक नह पाए।
‘मुझे अपना हाजमा और भी दु त करना होगा, पुरोिहत जी,’ िव ुत ने
अपने कसे ए पेट पर हाथ फे रते ए कहा।
‘कोई बात नह । गोवधन के पास यक नन तु हारे िलए कु छ होगा,’
पुरोिहत जी ने हंसते ए ही जवाब दया।
फर धीरे -धीरे पुरोिहत जी गंभीर हो गए। अपने अंगव से अपना चेहरा
प छते ए, मानो अपनी ही उदासी िमटा रहे ह , उ ह ने कहा, ‘िव ुत, तु ह
अपने आप को तैयार करना होगा।’
‘ कस बात के िलए पुरोिहत जी?’
पुरोिहत जी ने ह क हैरानगी से िव ुत को देखा।
‘अपनी मी टंग के िलए, िव ुत।’
‘कौन सी मी टंग, पुरोिहत जी?’ िव ुत ने सपाट पूछा।
वयं को शांत करने के िलए पुरोिहत जी एक पल को ठहरे । वो कु छ परे शान
दखाई दे रहे थे। कु छ देर ठहरकर उ ह ने कहा, ‘ ारका शा ी जी के साथ
तु हारी मी टंग के िलए, िव ुत। अपने परदादा के साथ मुलाकात के िलए।’
िव ुत हमेशा से जानता था क ारका शा ी से िमलना कसी सामा य
बुजुग का अपने परपोते से िमलना नह था। ले कन फर भी उसने पूछ िलया,
‘मुझे कस तरह क तैयारी क ज रत है, पुरोिहत जी?’
‘तु ह एक य करना होगा और पूरी रात द मं का 1008 बार उ ारण
करना होगा।’
िव ुत च का। ‘ले कन पुरोिहत जी, म िनयिमत प से यान लगाता ,ं
समथ तांि क ,ं ाणायाम का अ यास करता ं और बचपन म जो आठ
िसि यां आपने मुझे िसखाई थ , उनम भी अब म मा टर हो गया ।ं फर मुझे
कै से य क ज रत?’ िव ुत ने कु छ उ ेजना और कु छ अहंकार से कहा,
िव ुत को पहले ऐसा कभी महसूस नह आ था।
पुरोिहत जी क ोिधत नजर िव ुत क नजर पर टक थ । वो अब अपने
गु से पर काबू नह रख पा रहे थे। अचानक ही वो अपने वभाव के िवपरीत
भड़क गए, ‘तुम जानते भी हो तुम कससे िमलने वाले हो, अहंकारी मूख?!
आज धरती पर ारका शा ी ही सबसे शि शाली आ मा ह। भले ही वो अभी
अपनी मृ यु शै या पर ह , ले कन फर भी तुम उनका तेज सहन नह कर
पाओगे!’ अब तक पुरोिहत जी तेज आवाज म िच ला रहे थे।
वहां कु छ पल खामोशी रही। िव ुत जानता था क उसने सीमा पार कर दी
थी। शांत और गंभीर पुरोिहत जी यूं अपना संतुलन नह खोते, जब तक क
हालात काबू से बाहर ना ह ।
वयं को वापस से शांत करते ए पुरोिहत जी ने नम लहजे म कहा, ‘म
जानता ं क तुम कौन हो, िव ुत। म जानता ं क तु हारी िनयित म भी
अपने महान पूवज िववा वन पुजारी क तरह देवता बनना िलखा है। ले कन
बेटा एक पल के िलए भी मत भूलो— ारका शा ी एक इं सान, योगी, देवता
और रा स का अ भुत संयोग ह। उनके तेज के आगे कोई नह टक सकता।’
पुरोिहत जी ने िव ुत के कं धे पर ेह भरा हाथ रखा और अपनी बात जारी
क , ‘उनके ोध से कोई नह बच सकता, िव ुत। तुम भी नह ।’
वहां कु छ पल खामोशी रही। िव ुत ने पुरोिहत जी को देखा और
आिखरकार उनक बात समझते ए, सहमित म िसर िहलाया। दन भर क
थकान उतारने और खास मुलाकात के िलए वयं को तैयार करने के िलए,
िव ुत ने हाथ जोड़कर पुरोिहत जी से िवदा ली। उसने उनके हर िनदश का
पालन करने का िनणय िलया। अपनी यो यता पर पूरा भरोसा और िव ास
होने के बावजूद वो जानता था क मृत ाय मठाधीश का सामना करने के िलए
उसे मुख आ याि मक शि क शरण लेनी होगी।
मठ म अपने ाटर क तरफ बढ़ते ए िव ुत के पेट म एक खलबली सी हो
रही थी। इस पूरे वाकये के दौरान, यहां तक क पुरोिहत जी से ई अभी गहन
और गमागम चचा के दौरान, ारका शा ी से िमलने के दबाव के बावजूद भी
कु छ ऐसा था जो लगातार उसका यान भटकाए जा रहा था।
बि क देखा जाए तो वो कु छ नह , बि क ‘कोई’ था।
नैना।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
स ऋिष

िववा वन पुजारी अपने मजबूत सफे द घोड़े से उतरा। उसके िव सनीय


अंगर क और वह वयं छह घंटे का सफर तय करके सात मुिनय या स ऋिष
क इस भ शरण थली पर प च ं े थे। वयं देवता होने के बावजूद, िववा वन
पुजारी स ऋिषय का सामना करने से पहले कु छ घबराया आ था। चं वष
शु होने से पहले यह आखरी दन था, इसके बाद स ऋिष पूरे चं वष के
िलए द समािध म चले जाने वाले थे।
शि शाली स ऋिष कोई साधारण मुिन नह थे। कोई नह जानता था क
वो कहां से या कब इस धरती पर आए थे। उनके अि त व का ल य भी कसी
को नह पता था। उनक असीिमत शि य का ोत भी कसी को नह पता
था। बस सब जानते थे क उनके िनयं ण म सब था—वन, जीव, आकाश,
न दयां और यहां तक क ई र भी। िसफ एक ही चीज थी, जो स ऋिषय के
भी बस म नह थी, और वो थी इं सान क अबाध आकां ा।
असीिमत शि य के बावजूद भी, मुिन हड़ पा और उसके िनवािसय के
िलए ब त ेही और मददगार थे। ऐसा कहा जाता था क उनम से कसी एक
के भी दशन मा से हज़ार ज म के कम का ऋण उतर जाता था। उनक
द दृ ी से भयानक बीमारी भी सही हो जाती थी। उनक अनवरत तप या
हड़ पा क फसल , मवेशी धन और िनवािसय को सुर ा दान करती। ले कन
इससे भी बढ़कर, स ऋिष सर वती नदी के ि य पु थे। वो उ ह चाहती थी।
उनक बात सुनती थी। वो ही उसके सब कु छ थे।

हड़ पा के पूव म बफ से ढंके ऊंचे पहाड़ ही स ऋिष का िनवास थान थे।


िववा वन पुजारी अपने आसपास क हर चीज म उनक उपि थित को महसूस
कर सकता था। वो पेड़ म थे, लहलहाती उपनदी म थे, पैर के नीचे मौजूद
प थर म थे, हवा म और ऊंची चो टय म भी वही समाए थे। माना जाता था
क आ द ऋिष धरती से जाने से पहले, अिभभावक के प म स ऋिषय को
पीछे छोड़ गए थे। स ऋिष आम इं सान नह थे। वो देवता भी नह थे। वो
असाधारण मनु य थे, िज ह वयं उस िवधाता ने अपनी शि यां दान क
थ । वयं म ई र क अनुभूित िलए वो धरती पर उस सृि िनमाता क
आखरी वा तिवक उपि थित थे।
िववा वन पुजारी अपने हाथ को जोड़, घुटन के बल िगर गया। वो
स ऋिषय को यार करता था और स ऋिष उसे। कोमलता से मु कु राते ए
और पूरे स मान से उसने उन द आ मा का आ वान कया, ‘ओ महान
मुिनयो; ओ हड़ पा के संर क; ओ वेद के र क; इस दास के बड़े ाता; ओ
स ऋिष... अपने दशन से हम पर उपकार करो।’
ऊंची चो टय से िघरी, सुंदर वादी क मनोहर हवा मानो वयं िववा वन
पुजारी का चेहरा सहला रही थी। मानो उसके आ वान क ित या व प
कृ ित वयं उनका संदशे प चं ा रही हो। और फर िववा वन ने वो सुना जो
वो मुिनय से ई हर मुलाकात म सुनता था। उसने वन , पवत , धारा, पि य
और हवा को एक सुर म, ांड का सबसे शि शाली वर गुनगुनाते सुना—
ॐ।
मुिनय के आगमन का यह संकेत था।

िववा वन पुजारी ने एक घुटने पर बैठकर, िसर झुकाकर, हाथ को स मान म


जोड़ िलया और एक के बाद एक स ऋिष अपने िनवास थान से िनकलने
लगे। वे चलकर नह आ रहे थे। वो अचानक से कट भी नह ए थे। वो पवत
और वन के ही भाग जान पड़ रहे थे। वे बहती धारा क तली म पड़े प थर से
िनकलते जान पड़ रहे थे। वो कसी पेड़ से इं सान पी शाखा म िनकल रहे थे।
हरे -नीले पहाड़ म िछपी कसी गुफा के मुहाने म उ ह ने आकार िलया। कोई
नह कह सकता था क स ऋिष वयं ई र थे या इस सब म-माया म द ।
‘हड़ पा के सूय, उठो, ओ महान देवता, उठो,’ उनम से एक ऋिष ने ममता
भरी िवन आवाज म कहा। नमी भरी आंख से िववा वन ने ऊपर देखा।
स ऋिषय क एक झलक सैकड़ साल के यान से भी अिधक शांित दायक
थी। िववा वन पुजारी पहली बार मुिनय से नह िमल रहा था, और इसके
िलए वो अपनी क मत को िजतना भी आभार देता वो कम था। ले कन महान
मुिनय के ित उसके यार म जरा भी फक नह आया था।
‘ओ महान मुिन, ओ ािणय के पालक, ओ स ऋिष... आपका िवन दास
पूरे स मान और ेह से आपका अिभवादन करता है,’ िववा वन पुजारी ने
कहा, उसके सभी अंगर क स मोहन और अिव ास म खड़े थे। उनम जो नया
था, वो पहली बार स ऋिषय को देख रहा था। वे जानते थे हड़ पा म ये
अवसर िमलना कसी तीथ से कम नह था। स ऋिषय के दशन होना ब त
क मत क बात थी। इससे भ मां सर वती क कृ पा के और करीब आ जाता
था—माना जाता था क ये सात मुिन मां सर वती के ही द पु थे।
‘कहो देवता, यहां कै से आना आ?’ एक मुिन ने पूछा।
‘आपके दशन और आशीवाद क तड़प ही यहां ख च लाई, मुिनवर,’
िववा वन ने जवाब दया, वह अब ब क तरह मु कु रा रहा था। मुिनय के
साि य म उसे अनुपम शांित और संतुि महसूस हो रही थी। मुिनय क
आ याि मक शि मील तक के माहौल को दी कर, हर सजीव ाणी के
जीवन को ऊजा दान करती थी। उनके स मुख जाने का मतलब होता था क
वयं शि क से ऊजा हण करना। िववा वन पुजारी हर लहर को हण कर
रहा था, जो दखाई तो नह दे रही थी, ले कन िजसका भाव अमृत था। वो
इससे प रिचत था।
‘कल आपके अनुयायी को हड़ पा के मु य पुजारी का कत स पा जाएगा।
मां सर वती के कनारे होने वाले आयोजन को अपनी उपि थित से ध य
क िजएगा मुिनवर,’ िववा वन ने कहा।
सात पुजारी एक साथ मु कु राए, और फर एक लय म बोलने लगे मानो
एक ही ि व म से सात आवाज आ रही ह , ‘तु हारे िलए हमारा ेह
असीिमत है, ओ देवता। ले कन कभी मां सर वती, हमारी द मां के नाम का
इ तेमाल मत करना, जब तक क ब त ज री न हो।’
ये श द सुनकर िववा वन पुजारी हैरान रह गया। उसने कभी भी िबना
येय के सारा मां के नाम का इ तेमाल नह कया था। ले कन पता नह कै से
स ऋिष मां के ित कु छ अिधक ही भावुक हो रहे थे। महान मुिनय का सब
कु छ अित था—उनका ेम, उनका ेह, उनका धैय, उनक ताकत और उनका
ोध भी।
िववा वन ने कसी भी कार क बहस म समय बबाद नह कया क
उसक बात को गलत समझा गया था, बि क वह तुरंत ही नदी के कनारे पड़े
प थर पर सा ांग लेट स ऋिषय से माफ मांगने लगा।
‘मुझे मा कर मुिनवर। मेरा मतलब सारा मां का नाम लेना नह था।’ एक
पल ठहरकर िववा वन ने अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘य िप उ ह ने मुझे ज म
नह दया है, ले कन मने वयं को हमेशा उनका पु ही माना है।’
मुिन हंसे और उनके साथ पूरा ांड मु कु रा दया। प ी चहचहाते ए
उड़ने लगे। नदी कलकल करती बहने लगी। सारे फू ल मानो एक साथ िखल
आए, और िववा वन पुजारी के अंगर क के घोड़े भी मानो एक सुर से
िहनिहनाते ए झूमने लगे।
‘िववा वन पुजारी, तुम यक नन उन सबम े हो,’ उनम से एक मुिन ने
हंसते ए कहा।
िववा वन पुजारी ने अपना िसर उठाया, इतनी उदार मा पर आभार
जताते ए, हालां क वो अभी भी सोच रहा था उसने या गलत कहा था।
‘अिभषेक के समय तु ह य प से हमारी या मां सर वती के जल क
ज रत नह है, िववा वन,’ मुिन ने कहा। ‘तु ह जानकर स ता होगी क
स ऋिष भाइय ने िनणय िलया है क अबसे तु हारी गणना भी हम भाइय म
ही होगी।’
िववा वन पुजारी को अपने कान पर भरोसा नह हो पाया। चेहरे पर
उड़ती धूल के बीच वो सकते म खड़ा रहा।
‘ओ शि शाली देवता, इस पर हैरान मत हो। तुमने ये थान अपनी मेहनत
से कमाया है और तु हारे साथ हमारा नाम जुड़ना हमारे िलए भी गव क बात
है... अब से हमेशा के िलए। ज द ही स ऋिष "अ ऋिष" के नाम से जाने
जाएंगे।’
मु कु राते ए सात ऋिषय ने झुककर अपना दािहना हाथ कलकल करती
धारा क तरफ बढ़ाकर उसम से जल िलया। जल उठाकर उ ह ने अपना हाथ
कं धे क सीध म सामने कया और आंख बंद करके एक सुर म मं ो ारण कया:
‘ओ महान िववा वन पुजारी, हम तु ह अपना भाई घोिषत करते ह,’ दाढ़ी
वाले मुिनय ने कोमलता से मु कु राते ए कहा। ‘अब से तु ह हमम ही िगना
जाएगा। हमारी ानी और ेही मां, सर वती मां अबसे तु हारी मां भी
कहलाएंगी।’
िववा वन पुजारी को अपने कान पर भरोसा नह आ। समपण के आंसु
म भीगकर वो द मुिनय के पैर म जा िगरा, मुिनय के ित उसके स मान
को नापा नह जा सकता था। वो इस भरोसे पर ही भावुक था क एक बार
अपनी दुिनयावी कत को िनभाने के बाद वो अ ऋिष बन जाएगा। कोई
भी इं सान या वयं भगवान भी इससे अिधक क कामना नह कर सकते थे।
बनारस, 2017
मृत ाय ा ण मुिखया

अनजान लोग को देव-रा स मठ बाहर से कसी भुतहा ाचीन कले क तरह


ही नजर आता था। इसका िवशाल आंगन चार तरफ से याह बरामद और
दानव जैसी िवशाल ितमा से िघरा आ था। प थर क तराशी ई एक
आदमी क ितमा, िजसका िसर र के यासे शेर क तरह था, वह भगवान
िव णु के नरिस हा अवतार का तीक थी। एक खौफनाक और िवशाल ितमा
बाज प ी क थी, िजसका शरीर बिल इं सान का था, वो ताकतवर ग ड़ का
ोतक था। वहां साल से तैयार कए ए अनेक ग े थे, जो तांि क या
क वजह से काले पड़ गए थे। भगवा और काले कपड़े पहने संतरी, हाथ म
तलवार, ि शूल और पुरानी एनफ ड रायफल िलए हर कोने म खड़े थे। धुआं,
काली दीवार, बंजर अहाता, डरावने मं ो ार, नकारा मक शि यां और
गु साए चेहरे —इस पूरे े को रा स खंड कहा जाता था।
जो मठ को अपना घर या अपनी आ याि मक िश ा का क मानते थे,
उनके िलए यह एक नरम और आ मीय पनाह थी। चुने ए युवक-युवितयां ही
मठ के अंद नी भाग, देव खंड म वेश कर सकते थे। मठ का यह भाग इसके
बाहरी भाग से िबलकु ल ही उलट था। इसम सुंदर बगीचे, फू ल क या रयां,
कमल के तालाब और द य के िलए हवन कुं ड बने थे। यहां क हवा म
गुलाब और गदे क खुशबू तैरती थी और हमेशा ही कु छ पुजारी पिव अि के
िगद कु छ खास अनु ान करते दख जाते थे। िभ कोन म मुंड़े िसर वाले
आकषक युवा एक सुर म द मं का उ ार कया करते। पूरा भाग ही वेद
के पिव मं और पौरािणक दोह से गूंजता रहता। देव खंड वा तव म पूरी
दुिनया का सबसे आ याि मक थल था।
मठ के बाहरी और अंद नी भाग ऐसे कसी लापरवाही वश नह बने थे।
यह ारका शा ी और उनके शि शाली पूवज क सतक योजना का प रणाम
था, उनक इसी सोच पर तो मठ क थापना क गई थी। जब क दुिनया को
लगता था क यह मठ आ याि मक ान और काले जादू का क था, ले कन इस
शि शाली आ म क थापना का कारण कु छ और ही था। इसे आ याि मक
छावनी के प म बनाया गया था, एक अभेद कला, िजसम हर बाहरी
आ मण सहने क मता थी। इसक थापना एक वंश क र ा करने के िलए
क गई थी। िववा वन पुजारी के वंश क ।
ब त कम लोग ये जानते ह क वयं वाराणसी या काशी सात पिव घेर
के संक पर बसी है। हर घेरा शि शाली देवता के एक समूह का
ितिनिध व करता था। मुख घेरा गणेश का था, और मं दर और पु य थल
से भरा था। सामा य आगंतुक या तीथया ी के िलए ये 56 मं दर महज पूजा
और द ता के क थे। हर साल लाख तीथया ी काशी आते ह और नंगे पैर
इन मं दर क प र मा करते ह। िसफ काशी के कु छ रह यमयी पुजारी और
योगी ही जानते ह क ये सात घेरे हज़ार साल पुराने ह, और काली शि य के
िवरोध म खड़ी सबसे बड़ी ताकत ह।
उस घेरे के म य म ही ाचीन नगरी काशी बसी है। काशी के म य म,
िव नाथ मं दर के नजदीक ही देव-रा स मठ बना था। मठ का क , िवशाल
बगीच से िघरा था और उसक चार दशा म भगवान िशव क बड़ी सी
ितमाएं थ , उ ह के बीच म ारका शा ी का क था। वा तु और
योितषीय कोण से तैयार कया गया यह क दुिनया क सबसे सुरि त जगह
थी। और यह दुिनया के सबसे शि शाली तांि क और सबसे गंभीर योगी का
घर था।

जैसे ही िव ुत ने दीय क रौशनी से विलत, ारका शा ी के िवशाल क


म वेश कया, उसे ऐसी शि का आभास आ, जो पहले कभी नह आ था।
उसे उस क म सैकड़ या शायद हज़ार अलौ कक शि य क मौजूदगी का
अहसास आ, जहां ारका शा ी बड़े से िब तर पर कोई आधे दजन त कय
के सहारे लेटे ए थे।
डमा टर अपनी उ िजतने ही वृ दखाई दे रहे थे, ले कन उनके
झुर दार चेहरे पर उभरता तेज कसी युवा का आभास दे रहा था। उनके मोटे,
बफ से सफे द बाल पीछे को पड़े थे और उनक लंबी-तगड़ी कद काठी उ ह
अमे रका के कसी रे ड इं िडयन यो ा क तरह दखा रही थी। उनके माथे पर
लंबा सा लाल ितलक लगा था, और उ ह ने शु ा क कई मालाएं धारण
क ई थ ( ा को वयं भगवान या िशव का अ ु माना गया है)।
उ ह ने सफे द कपड़े पहने थे, और उनक उं गिलयां लगातार माला फे र रही थ ।
कु ल िमलाकर वो िबलकु ल ि य ई र लग रहे थे।
हालां क उस बड़े से कमरे म पूरी खामोशी थी, ले कन फर भी िव ुत को
उस अदृ य -रा स क ह क सी फुं कार सुनाई दे रही थी। यह जगह
सामा य या जरा भी लौ कक नह थी। िव ुत जड़ खड़ा सोच रहा था क
उसके परदादा एक सं यासी थे, देवता थे, रा स थे या उन सबका भयावह
संयोजन।
‘िव ुत, या तु ह अथववेद कं ठ थ है?’ महान ारका शा ी ने पूछा,
उनक भारी आवाज कमरे म कसी अजगर के समान गरज रही थी।
‘जी बाबा... अथववेद, यजुवद, सामवेद और ऋ वेद... मुझे चार वेद
कं ठ थ ह,’ िव ुत ने िबना कोई गव दखाए कहा। हालां क िव ुत ने कभी
अपने परदादा से कसी तरह के यार क उ मीद नह क थी, ले कन कह न
कह उसे इस बात क तकलीफ ज र थी क उसके इकलौते बचे ‘अपने’ और
उसके बीच कोई ेह संबंध नह था।
‘ह म...’ ारका शा ी ने सहमित जताई। उनका ‘ह म’ कसी डीजल
इं जन क घरघराहट सा लगा। ‘तुम यहां य आए हो?’
‘बाबा, पुरोिहत जी ने मुझे बताया क आपक तिबयत सही नह है।’
‘अब वो पुरोिहत तय करे गा क वयं ारका शा ी क तिबयत सही है या
नह ?’ बुजुग गु से से गुराए और बदले म उ ह खांसी का जोर का धसका लगा।
िव ुत चंता म उनक तरफ बढ़ा। ‘पीछे खड़े रहो!’ हांफते ए वो िच लाए।
िव ुत घबराकर अपनी जगह जड़ हो गया।
‘मेरी बात सुनो, लड़के ,’ ारका शा ी ने अपनी बात जारी क । ‘अब जब
तुम आ ही गए हो, तो म समझता ं क यह सही समय है। अब मेरे जाने के
बाद, वो तु हारे पीछे पड़ जाएंगे।’ ारका शा ी क आवाज उनके वभाव से
िवपरीत कांप रही थी। इसम वो भाव िछपे थे िजसे इतने साल म कोई महसूस
नह कर पाया था। उसम एक क म का डर था।
िव ुत को अपने माथे और कनपटी पर पसीने क ठं डी बूंद महसूस । उसे
ह का सा अंदाजा था, िजसका अभी उसके परदादा ने िज कया। और अगर
डमा टर के श द म जरा भी सचाई ई, तो िव ुत के िलए, मठ के िलए,
उसक यारी दािमनी के िलए और पूरी मानव जाित के िलए कु छ भी पहले
जैसा नह रहने वाला था। इसका मतलब था क एक ब त पुरानी
भिव यवाणी िजसे भुला दया गया था, अब वो वापस से अपना िसर उठाने
वाली था। ई र के नाम पर यु । देवता और दानव के बीच यु ।
और जैसा क मठ म हर कोई मानता था, और रोम के ऑडर को भी यक न
था—िव ुत ही वो आखरी देवता था।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
शव-साधना

वो डरावना दृ य था।
खोखली आंख वाले मेसोपोटािमया के तीन जादूगर अंधेरी गुफा के अंदर
बैठे थे, िजसम काश के नाम पर िसफ कोने म लगी एक जलती ई मशाल
थी, जो फड़फड़ा रही थी। उनके अंग मुड़े ए थे और आंख के खाली घेरे बुराई
का अंतहीन घेरा तीत हो रहे थे। उनके जबड़े लटके ए थे और वो कसी दूसरे
जगत के िघनौने ाणी लग रहे थे।
बासी इं सानी र क दुगध, जो उ ह ने िववा वन पुजारी पर काला जादू
करने के दौरान वयं पर डाला था, अब गुफा के अंदर सांस तक लेना मुि कल
कर रही थी। ले कन उनक िज ी माल कन अपनी जगह से िहलने को तैयार
नह थी। एक सुंदर और राजसी प रवार क मिहला होने के बावजूद वो उन
तीन शैतान से भी अिधक भयानक लग रही थी। वो हंसक ोध से धधक रही
थी।
‘ या आ पि म के शि शाली जादूगर ?’ वो स त आवाज म
फु सफु साई।
उसके सम पत अंगर क, लाल चोगा पहने तीन जादूगर को घेरे खड़े थे,
उनके हाथ म नंगी तलवार थ , जो गुफा के धीमे काश म चमकते ए
चेतावनी दे रही थ । अपनी शि शाली माल कन के एक इशारे पर वो िबना
पलक झपकाए, उन तीन जादूगर के िसर धड़ से अलग कर देने को तैयार थे।
गुफा म मौजूद रौशनी का एकमा ोत, प थर क दीवार पर उनक
दै याकार परछा बना रहा था। तीन अंधे जादूगर कु छ परािजत से हो जड़
बैठे थे।
‘ या... आ...?’ मिहला ने फर से पूछा।
‘ज आआआआअरररग ग ह ह... ऊऊऊउररर ग ह...
बबबबररर- ग ह...’ तीन शैतान एक सुर म गुराने लगे, उनक आवाज
उनक नह मालूम पड़ रही थी। उनक उं गिलय के लंबे और गंदे नाखून अब
उ ह के चेहरे और गदन क खाल न च रहे थे। वो तीन यक नन कु छ ोिधत
आ मा के क जे म थे।
उनम से एक ने डरावनी सी आवाज म कहा, आवाज कसी बुजुग क , ब त
दूर से आती सुनाई पड़ रही थी। इतनी डरावनी आवाज कभी उस शाही
मिहला और उसके अंगर क ने नह सुनी थी।
‘शव... श व व व...’ जादूगर के खुले ए मुंह से उस भयानक आवाज
ने कहा, उसका मुंह कसी पागल इं सान क तरह िबगड़ रहा था।
शव। भयानक जादूगर के अंदर आई आ मा कसी इं सानी लाश क मांग कर
रही थी।

देवता अपरािजत था। गुन, शा और अप नाम के तीन काले जादूगर ने


िववा वन पुजारी पर एक शि शाली तं -मं करने क कोिशश क थी। तं -
मं क वो िविध पूरी दुिनया म सबसे भयावह मानी जाती थी और अिधकांश
लोग मानते थे क इसका प रणाम घातक होता था। इसम लि त इं सान क
आ मा को चुराकर, उसक जगह कसी दूसरी दुिनया से आई अंसतु आ मा
को डाल दया जाता था। आम इं सान के िलए इसका मतलब जंदगी का अंत
था। ले कन िववा वन पुजारी कोई आम न र ाणी नह था।
वो तं अब उ टा पड़ गया था। देवता क आ मा खास प से िवकिसत
और पु य से यु थी, कोई भी बुरी आ मा उस पर कािबज नह हो सकती
थी। दशक तक कए गए यान, तप या और अथववेद के ान ने िववा वन
पुजारी को अजय बना दया था। यहां तक क िववा वन को पता चले िबना
ही, उसक ताकतवर आ मा ने हमले को असफल कर दया था। बुरी आ माएं
अब और अिधक ोिधत हो गई थ , और उ ह ने तीन जादूगर के शरीर पर
क जा कर िलया। और अब वो बदला लेना चाहती थ ।
शव-साधना सभी या म सबसे अिधक भयानक और घृिणत थी। इसका
मतलब था कसी ताजी लाश म सबसे बुरी आ मा का वेश। आधे तांि क तो
इसका अ यास करते समय ही मर जाते ह। हड़ पा के ंथ म भी शव-साधना
िनषेध थी य क यह कृ ित के िनयम के िव थी।
शव-साधना एक मरे ए शरीर म जीवन लाती थी।
एक अवैध जीवन।

‘वो नृ यांगना कौन है जो अपनी तुित के दौरान उन खास चूिड़य को


पहनती है?’ उस सुंदर ले कन रा सी मिहला ने पूछा। उसके कसी र क ने
जवाब नह दया, हालां क वो सभी जानते थे क वो कसका िज कर रही
थी।
‘तुमने सुना नह , मने या पूछा?’ उसने फर से कहा, ‘रं गा!’ इस बार
उसने अपने िनजी अंगर क के धान क तरफ भ ह चढ़ाकर पूछा।
‘अपने सेवक को माफ कर, वािमनी... ले कन म नह जानता आप कसका
िज कर रही ह।’
वो हंसी। और वो इतनी सुंदर लग रही थी क वयं भगवान भी वािहश
करते क उसक आ मा को उसके चेहरे क सुंदरता का कोई तो अंश िमला
होता।
‘सच म? या ये वही कु ितया नह है, िजसके पैर म हड़ पा का हर मद
िबछ जाना चाहता है?’ गु से और अिधकार से अपना िसर एक तरफ झुकाते
ए वो िच लाई। ‘जवाब दो!’ वो दहाड़ी।
‘नयनतारा, वािमनी... उसका नाम नयनतारा है,’ रं गा ने ज दी से जवाब
दया। पूरे हड़ पा म उसक छिव एक खूंखार सैिनक क थी, ले कन अपनी
माल कन के सामने वो भीगी िब ली से अिधक कु छ नह था।
वो फर से हंसी। फर उसके चेहरे पर प थर के सामान कठोर भाव हो
आए। वो नफरत और ई या से भर उठी।
‘उसे इ तेमाल करो। इन कु को उस जवान लड़क क लाश लाकर दो।
फर नयनतारा क आ मा को जकड़ लो। वो ही अके ली ऐसी मिहला है जो उस
आदशवादी िववा वन पुजारी का च र कर सकती है।’
इसे सुनकर गुन दु शैतान क तरह िखलिखलाया। शा कसी िछपी खुशी
से म त हो गया। अप ने तो कसी भयानक मं का उ ारण भी शु कर दया
था। वो कसी डरावने सपने से भी अिधक भयानक दख रहे थे।
रं गा और उसके आदमी डर से जकड़ गए, ले कन उनक वािमनी उस ठं डी
गुफा से बाहर िनकल चुक थी। पंिडत चं धर क प ी उसक तरह सच का
साथ देने वाल म से नह थी। ि य वदा का र कसी शैतान कोबरा से
बेहतर नह था।
बनारस, 2017
मानवजाित का सबसे बड़ा अस य –
भाग 1

‘हड़ पा?!’ अपने परदादा के िब तर पर बैठे िव ुत ने हैरानी से कहा।


ारका शा ी के क म आए उसे लगभग छह घंटे हो चुके थे, इस बीच
िसफ एक बार आ म का िच क सक, गोवधन ही उनके क म आया था। ये
िव ुत क जंदगी के सबसे मुि कल और उ कृ छह घंटे थे। अब वह जान गया
था क य पुजारी जी ने इस मुलाकात से पहले उसे कु छ यान इ या द लगाने
को कहा था। िव ुत का िसर इतना भारी हो चला था क कसी भी पल आग
के गोले के समान फटकर िबखर जाने वाला था।
छह घंट तक ारका शा ी शि शाली िववा वन पुजारी, चं धर,
नयनतारा, ि य वदा, मनु, संजना, सोमद , सर वती नदी, स ऋिष और
हड़ पा क बेरहम ले कन रोमांचक कहानी का एक भाग पूरे िववरण से सुना
चुके थे। उ ह ने हड़ पा नगर, उसक सं कृ ित और पूजनीय सर वती नदी के
कनारे पर महान सनातन धम क उ पि का वणन कया। िव ुत के िलए यह
मान पाना मुि कल हो रहा था क वो कोई स ी कहानी सुन रहा था, जो
हज़ार साल पहले हड़ पा म घ टत ई थी। हड़ पा के बारे म तो िसफ उसने
कू ल क इितहास क कताब म पढ़ा था।
िव ुत को समझ नह आ रहा था क वो या ित या दे। अगर उसके
परदादा क जगह कसी और ने उससे यह कहा होता तो िव ुत ने अभी तक
इस सबको कसी कहानीकार क क पना मान, हंसकर उड़ा दया होता।
ले कन ये तो वयं ारका शा ी थे जो यह डरावनी और रोमांचक कहानी
सुना रहे थे। और ारका शा ी कोई कहानीकार नह थे।
‘ले कन बाबा, बचपन से हम पढ़ाया गया क हड़ पा और मोहन जोदड़ो
ागैितहािसक नगर थे, जो शायद वेद और पुराण से भी ाचीन थे।’
ारका शा ी ने अपनी नजर िव ुत के चेहरे पर टकाई, ले कन उसे
अपनी बात जारी रखने का आ ासन दया।
‘मतलब, माफ करना बाबा, ले कन ये तो उसका िबलकु ल िवपरीत है जो
अब तक पूरी दुिनया म संधु घाटी स यता के बारे म थािपत, सा रत और
पढ़ाया गया है। मतलब देिखए, आपने बताया क कै से िववा वन पुजारी
हड़ पा क फौज म 5000 घोड़े लेकर आए थे। हालां क यह माना जाता है क
हड़ पा म घोड़ का अि त व ही नह था। और क घोड़े तो महान आय के
साथ आए थे।’
िव ुत डमा टर के सामने भ च ा सा बैठा था। ारका शा ी ं य से
मु कु रा दए।
‘अपने इ तेमाल कए श द पर यान दो िव ुत, जो तुमने हड़ पा, िजसे
तुम या कहते हो, संधु घाटी स यता के बारे म बताने के िलए इ तेमाल
कया। यान है तुमने या कहा था— थािपत, सा रत, पढ़ाया और वो...
या था... ओह हां, माना जाता।’ आगे बोलने से पहले ारका शा ी एक पल
को के । ‘अब मुझे बताओ ब ,े इसे कसने थािपत कया? कसने इसका
सार कया? इसे पढ़ाया य गया? य तु ह और करोड़ दूसरे लोग को डेढ़
सदी तक मानवजाित क सबसे झूठी कहानी से मूख बनाया गया?!’
‘ले कन बाबा, आप कै से कह सकते ह क संधु घाटी स यता...’
‘बस, ब त हो गया!’ िव ुत क बात बीच म काटते ए बुजुग िच लाए।
‘ये नकली श द, संधु घाटी स यता का इ तेमाल बंद करो!’
ारका शा ी को एक बार फर से खांसी का जबरद त दौरा पड़ गया।
ले कन इससे भी वो िव ुत पर िच लाने से नह के ।
‘तु ह अभी तक कु छ समझ नह आया, मूख लड़के ? हड़ पा का संधु या
उसक घाटी से कु छ लेना देना नह है!’
वो एक पल को ये देखने के िलए के क िव ुत उनक बात को समझ भी
पा रहा है या नह , और फर थकान क वजह से धीमे से फु सफु साए।
हड़ पा सर वती स यता थी, िव ुत!'

अब ारका शा ी का अपने ई , भगवान िशव क िन य आराधना का समय


था। जब से बाबा से बात शु ई थी, िव ुत अपनी ही कु स से िचपक कर रह
गया था। वह अब हैरान, परे शान और उ ेिजत था। उसके परदादा ने उसे
हड़ पा क शु आत क कहानी सुनाई थी, और कु छ संधु घाटी स यता के बारे
म भी िजसे लु होती सर वती नदी के कनारे आबाद कया गया था। ले कन
अभी भी िव ुत नह समझ पा रहा था क इस सबका उससे या फर उसके
परदादा से या संबंध। वह और जानना चाहता था... वह सबकु छ जानना
चाहता था! ले कन उसे क से बाहर िनकलना था य क ारका शा ी के
िव त कमचारी कमरे म उ ह उनके िन य अनु ान के िलए तैयार करने आ
चुके थे।
िव ुत कमरे से बाहर आकर फै ले ए बगीचे म चलने लगा। उसे एक
िसगरे ट क जोरदार तलब लगी थी। उसका िसर घूम रहा था और िनकोटीन
ही इस समय उसे ि थर रख सकता था। उसे कह से िसगरे ट तलाशनी थी।
उसके पास अभी एक घंटे का समय था, तो उसने मठ से बाहर िनकलने का
िनणय िलया। वह देव-खंड से िनकलकर मठ के बाहरी भाग म आ गया। उसने
रा ते म पुरोिहत जी और नैना को देख िसर िहलाकर अिभवादन कया। ‘घाट
तक होकर आता ,ं पुरोिहत जी,’ वो बस इतना ही कह पाया।
पुरोिहत जी समझते थे क िव ुत को कु छ समय अके ले छोड़ने क ज रत
होगी। उसे अपने िलए समय चािहए था, जो कु छ उसने सुना था, उसे पचाने के
िलए, य क यह तो अभी शु आत थी, अभी उसे और हंसक और िववा दत
कहानी सुननी थी।
अब दोपहर हो चली थी और िव ुत ने पिव गंगा के सबसे नजदीक घाट
तक प च ं ने के िलए र शा लेने का िनणय िलया। पूजनीय नदी के घाट भी
दुिनया के कसी अजूबे से कम नह थे। अगर दुिनया म कोई जगह ऐसी थी
जहां इतने िविवध लोग को एक साथ देखा जा सकता था, तो वो काशी म
गंगा के घाट ही थे। यहां हर वग, उ , जाित के लोग आते थे।
नदी कनारे का यह िव तार, अक पनीय िवरासत और समृि के साथ
अनेक िवभाग म बंट गया था, िजनके नाम भी अपने म इितहास समाए ए
थे। हंदी या सं कृ त से अनजान लोग के िलए इन नाम का उ ारण भी सहज
नह था, ले कन ये नाम एक खास दौर के सा ी थे। दशा मेध घाट का
अनुवाद ‘बिल के दस घोड़ का तट’ है। तुलसी घाट का नाम कालजयी किव
और महाका रामच रतमानस के रचियता के नाम पर पड़ा।
रामच रतमानस म भु राम क महाकथा को आम इं सान के िलए व णत
कया गया, य क इससे पहले यह ि ल सं कृ त म उपल ध थी, और तुलसी
ने इसे लोग क बोली म रचा।
मिणक णका घाट शायद दुिनया क सबसे रह या मक और उदास जगह
म से एक है। यह घाट हंद ु का सबसे त मशान घाट है। ऐसा माना
जाता है क वहां दस हज़ार साल से भी अिधक समय से िचताएं जलाई जाती
रही ह। इन साल म शायद एक भी पल ऐसा नह गुजरा होगा, जब
मिणक णका घाट पर कसी इं सान क लाश अि के हवाले न क गई हो। ऐसा
कहा जाता है क भु िव णु के कान क बाली से एक र इस खास जगह पर
िगरा था, िजसने इस जगह को दूसरी दुिनया म जाने के िलए एक माग व प
बना दया।
िव ुत दशा मेध घाट के पास, भीड़ भरी जगह पर र शे से उतर गया।
उसने र शे वाले को सौ पए का नोट दया, इस सफर के िलए यह चौगुनी
रकम थी। फर उसने पास ही लगी छोटी दुकान म से एक से िसगरे ट का पैकेट
खरीद िलया और सी ढ़यां उतरते ए घाट के चौड़े लेटफॉम पर आ गया। वहां
आने वाले लाख याि य और तीथयाि य क तरह उसने भी गंगा मैया क
पूजा क । थानीय लोग यार से गंगा नदी को गंगा मैया के नाम से ही पुकारते
ह। भारतीय और उनक न दय के बीच एक खास ेह भरा र ता रहा है।
ब त गहरा और अवणनीय बंधन।
सी ढ़य पर बैठा िव ुत गंगा नदी के अभूतपूव वाह को देखने लगा। वह
नजारा अ भुत था। िव ुत के जाने के बाद से लगभग कु छ नह बदला था, बस
घाट पहले से अिधक साफ और वि थत था। वो फर से अपनी पुरानी याद
को जी रहा था, दशक पुरानी, बचपन क मीठी सी याद। उसने इं सानी आ था
और िन ववाद समपण देखा था। वहां बुजुग मिहलाएं आती ह, इतनी वृ क
आप उनके होने क क पना तक नह कर पाओ, कांपते पैर से सी ढ़यां उतरते
ए, िसफ एक बार अपनी उं गिलय से जल छू कर, अपने माथे पर लगाने के
िलए। यहां अपने नवजात िशशु को उठाए मांएं भी आती ह, ता क मां गंगा
का आशीवाद अपने िशशु को दलवा सक। यहां शोकाकु ल जन भी आते ह,
िजससे गंगा म ान कर अपने ि यजन को अंितम िवदा दे सक। घाट पर आने
वाले येक ि के चेहरे पर पूण समपण का भाव होता है। गंगा सच म
अमृत है, जो लोग को असीिमत आशीवाद दे, अनेक ज म के िलए उनका
शुि करण करती है।
जैसे ही िव ुत ने अपने ह ठ के बीच िसगरे ट लगाई, उसे अहसास आ क
उसके पास िसगरे ट जलाने के िलए तो कु छ था ही नह । इससे पहले क वो
सोच पाता क उसे या करना था, िस वर लाइटर िलए एक हाथ उसके सामने
आया। िव ुत ने देखा एक पतला सा, आकषक नौजवान उसे देखकर मु कु रा
रहा था। िव ुत ने िसगरे ट जलाई और उस नौजवान ने अपना महंगा लाइटर
वापस से अपनी ज स क पॉके ट म डाल िलया।
‘आपको मेरे यहां बैठने पर ऐतराज तो नह होगा?’ स य दखने वाले
युवक ने न ता से पूछा।
‘िबलकु ल नह ,’ िव ुत ने खुले दल से जवाब दया।
िव ुत के पास बैठते ए, उस युवक ने अपने िलए भी एक िसगरे ट सुलगा
ली। वो वहां कु छ पल िबना कोई बात कए बैठे रहे, बस गंगा के वाह को
देखते ए। िव ुत ने यान दया क उसके करीब बैठा लड़का लगभग उसी क
उ का था, दखने म वो हंसमुख और कु छ ब े सा था। ऐसा लग रहा था जैसे
कसी ने हैरी पॉटर को लेकर, उसक मासूिमयत बरकरार रखते ए, उसे बड़ा
कर दया हो।
एक िसगरे ट ख म कर िव ुत ने दूसरी िनकाल ली। उसे ह का होने क
ज रत थी। उसके साथी ने तुरंत अपना लाइटर िनकाला और िव ुत क दूसरी
िसगरे ट भी सुलगा दी। वो फर से लाइटर अपनी जेब म रखने वाला था,
ले कन तभी उसने उसे िव ुत के हाथ म पकड़ा दया।
‘िजस तरह तुम कश लगा रहे हो, उससे लगता है, इसक ज रत तु ह
अिधक पड़ने वाली है,’ िवन अजनबी ने हंसते ए कहा।
िव ुत ने भी ठहाका लगा दया। वो भी साथ बैठे इस शम ले ले कन
होिशयार लड़के से भािवत था। दशा मेध घाट क सुहानी हवा जब उनके
चेहरे और बाल को सहलाने लगी, तब िव ुत ने सामने हाथ बढ़ाकर अपना
प रचय दया, ‘हाय, मेरा नाम िव ुत है। तुमसे िमलकर अ छा लगा।’
उस आकषक युवक ने िव ुत का आगे बढ़ा आ हाथ पकड़ िलया, और
मु कु राकर जवाब दया। ‘हाय, मेरा नाम रोमी है। रोमी परे रा।’
हड़ पा, 1700 ईसापूव
लय

‘उसे अपने सबसे तेज धतूरे, नशीली बू टय और धान क शराब से मदहोश


कर देना,’ ि य वदा ने आकषक ले कन अब स मोिहत हो चुक नयनतारा से
कहा। ‘ले कन इस सबसे अिधक, उसे अपने बदन का दीवाना बना दो।’
मनमोहक ले कन अब ाण रिहत गुिड़या बन चुक नयनतारा ने सहमित म
िसर िहलाया। वो अपने बस म नह थी। सच म। हज़ार साल बाद उसक इस
हालत को ि क जो े िनया नाम क बीमारी के प म जाना जाएगा।
ले कन 1700 ईसापूव म, हड़ पा स यता के िव तार म नयनतारा और कु छ
नह , बि क गुन, शा और पा के ारा क गई शव-साधना का प रणाम थी।
नयनतारा के शरीर पर ोिधत डा कनी, बुरी आ मा ने क जा कर िलया था।
ऐसी आ मा िजसे हराया नह जा सकता था।

वो भयानक या हड़ पा के बाहर एक िनजन पड़े मशान म शु ई। शा,


अप और गुन, तीन मायावी जादूगर ने शव-साधना क तैयारी शु कर दी
थी। शहर के मशान से ि य वदा के अंगर क मुख ने ताजी लाश लाकर दे
दी थी। लाश एक जवान, गोरी और सुंदर मिहला क थी, उसक उ कोई तीस
के करीब रही होगी।
हड़ पा नगर प चं ने के िलए मेसोपोटािमया के तीन जादूगर सात महीने
लंबा सफर तय करके आए थे। नगर क शि शाली मिहला म से एक,
ि य वदा ने उ ह आमंि त कया था। उसने उ ह बुलाया था य क काली
शि य म उनके जैसा मािहर और कोई नह था। ि य वदा जानती थी क
हड़ पा या उसके आसपास के इलाके का कोई भी श स महान िववा वन
पुजारी पर हमला करने क िह मत नह करे गा। उसे दूर थ और अनजान
देश से ही आदमी बुलाने थे।
उसने या क अि के आगे आकषक लाश को न ाव था म िलटा दया।
अप िम ी के घड़े से इं सानी र उं डेलता आ वहां घेरा बनाने लगा। गुन ने
एक ताकतवर कपाल (इं सानी खोपड़ी) रखा, िजसम चढ़ाने के िलए शराब
रखी जानी थी। फर उ ह ने पांच िभ कार के जानवर का क ा मांस िम ी
के बतन म कर, उसे पूव-िनधा रत थान पर रखा। रं गमंच सज चुका था।
मं ो ार शु हो गया। इस भयानक या का ल य मशान-तारा, दाह-
सं करण क देवी, को खुश करना था। ले कन वो भयावह कं तु उदार देवी ऐसे
कप टय के आ वान का जवाब नह देती। उसका आशीवाद िसफ स े
तांि क को ही िमलता था। ले कन राि के उस खास हर म होने वाले
मं ो ार ने ब त सी डा कन और अतृ आ मा को आक षत करना शु
कर दया। उनम से एक शि शाली डा कनी ने उस सुंदर लाश म समाने का
िनणय िलया।

लाश म पहली हरकत देखते ही गुन, अप और शा ने एक-दूसरे को उ माद से


देखा और फर भयावह आवाज म मं जपना शु कर दया। डा कनी शरीर म
घुसने क कोिशश करते ए, कृ ित के िनयम के िव जाने का संघष कर रही
थी। एक लाश म वेश करने के बाद ही वो एक जीिवत इं सान म बदल सकती
थी, यहां उसे नयनतारा बनना था।
युवती का बेजान शरीर अब दंडवत क अव था म, कराहते ए उठने क
कोिशश कर रहा था। शा ने उसक गदन को मजबूती से पकड़, एक इं सानी
अि थ से उस पर वार करते ए, उसक कमर को जमीन से टकाने क कोिशश
क । दानवीय उ ारण चालू था। डा कनी अब धीरे -धीरे , ले कन िनि त प
से उस मृत शरीर म उतर रही थी।
जादूगर जानते थे क अब वो नयनतारा क आ मा को चुराकर, उसके
थान पर डा कनी को िनयु करने के काफ करीब आ गए थे। शव-साधना
अब बस पूरी होने ही वाली थी।
तीन शैतान को यक न था क अब वो िनि त प से हड़ पा के मु य
पुजारी के पद पर िनयु ह गे, और इस दुिनया के सबसे ताकतवर इं सान बन
जाएंगे। आिखरकार इसी का तो उनसे वादा कया गया था।
यहां तक क ये अंधेरे के पुजारी भी ि य वदा के दल क कािलख को नह
नाप पाए थे।

हड़ पा क रमणीय, आकषक नृ यांगना, नयनतारा मर चुक थी। ले कन


उसका शरीर अभी भी जीिवत था।
शव-साधना का पहला िशकार, पीिड़त क आ मा अब अपने ठकाने प च ं
गई थी। हालां क नयनतारा बुरी आ मा नह थी, ले कन साल के संघष,
लौ कक भूख और अपनी चेतना से बे खी क बदौलत वो अंदर से कमजोर हो
चुक थी। िजसके फल व प डा कनी ने आसानी से उसे हटाकर उसके शरीर
को अपने क जे म ले िलया। स दय तक हड़ पा और काशी के कु छ िनवासी
नयनतारा म आए इस बदलाव का कारण धतूरे क अित र ता समझते रहे थे।
कोई भी नह जानता था क हक कत म या आ था।
नयनतारा अब पहले से भी अिधक कामुक अंदाज म सजने-संवरने लगी थी।
िजस डा कनी ने उसके शरीर पर क जा कया था, वो दुिनयादारी क ऐसी
चाल को खूब समझती थी, और उसने आ मा के जगत को भी अ छे से देख
रखा था। वह जानती थी क कतनी छोटी और अ पकािलक व तु के िलए
इं सान भटक जाता था। नयनतारा के नौकर भी उसके इस नए और कामुक प
को देख हैरान थे। उसक सेिवकाएं अ सर उससे मजाक कया करत क जब
उसके नए प से मिहला क नजर नह हटती, तो हड़ पा के धनी और
भावशाली मद क तो या ही हालत हो जाती होगी!
नयनतारा जानती थी क उसे िसफ एक को अपने प जाल म फं साना था।
उसने िववा वन पुजारी के िलए एक जाल तैयार कर िलया था। उसे यौन
उ पीड़न के एक मामले म याय चािहए था, जो कभी आ ही नह था। उसने
नगर के यायाधीश के पास अपनी िशकायत दज कराई क मनु पुजारी नाम के
एक युवक ने उससे छेड़छाड़ करने क कोिशश क है। उसके वफादार सेवक
उ घटना के च मदीद बनने को तैयार थे और ज द ही यह अफवाह सारे
नगर म फै ला दी गई। हड़ पा के कानून म मिहला को दी गई सुर ा के
अनुसार, ऐसे आरोप को अनदेखा नह कया जा सकता था। डा कनी जानती
थी क िववा वन पुजारी क कौन सी नस दबानी थी। वह उसक कमजोर कड़ी
जानती थी।

संजना को अपनी आंख पर भरोसा नह आ, जब उसने नगर यायालय का


समन पढ़ा। िववा वन पुजारी उसके सामने ही बैठा था, उसक आंख बंद थ
और उं गिलयां जाप क माला फे र रही थ । मनु उसी कमरे के कोने म खड़ा था।
वो परे शान, हैरान पर बेशक नेक लग रहा था। वह जानता था क ये कोई
गलतफहमी है।
‘अब हम या करगे, िववा वन?’ संजना ने बेचैनी से पूछा। जो शांित उसे
अपने पित के चेहरे पर दखाई दे रही थी वो उसक घबराहट और चंता को
और बढ़ा रही थी। अपने बेटे का शांत ि व भी उसे परे शान कर रहा था।
या ये नह जानते क हड़ पा म यायालय के समन का मतलब जन सुनवाई
होता है?!
िववा वन पुजारी ने अपनी आंख खोल और अपने बेटे क तरफ मुड़ा।
‘मनु, ये पूछने के िलए म मा चाहता ।ं म जानता ं क ऐसा सवाल तक
पूछना तु हारे िलए अ याय होगा। ले कन म औिच य क खाितर यह पूछ रहा
,ं ’ उसने बात आगे बढ़ाई। ‘ या तुम देवी नयनतारा के घर गए थे?’
मनु ि थर खड़ा अपने ि य िपता क बात सुन रहा था। उसने उनक बात
पूरी होने दी। उस समय तक युवा मनु या उसके ानी िपता तक नह जानते थे
क एक दन मनु न िसफ आयवत का बि क सम त मानवजाित का भा य
बदल देगा।
‘नह , िपताजी।’
‘ध यवाद पु । और एक बार फर से ऐसा सवाल पूछने के िलए म श मदा
।ं ’
‘आप िसफ अपना कत िनभा रहे थे िपता जी। और आपसे मुझे ऐसी ही
उ मीद है,’ मनु ने िव ास और िवनीत भाव से जवाब दया।
िववा वन पुजारी मु कु राया। वह अपने आसन से खड़ा आ और कु छ कदम
आगे बढ़कर अपने पु को सीने से लगा िलया। जब िपता-पु ेह बंधन म
जकड़े ए थे, तब संजना को उ ह देख कु छ राहत महसूस ई। ले कन अभी भी
वो अपने पित और पु क तरह उतनी शांत नह हो पाई थी। उसे िसफ हड़ पा
क जन अदालत म होने वाली बेरहम सुनवाइय क याद आ रही थी।
अगर इस महानगर क कोई अस य बात थी तो वो थी आपरािधक मामल
म होने वाली जन सुनवाई। वेद के अनुसार स यता और शान से जीने वाले
हड़ पा समाज म मुकदमा और कै द दोन ही या म स यता को भुला
दया गया था। इन चीज को लेकर संजना हमेशा संशय म रही थी। और अब
यह डर वयं उसके दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया था।
‘ठीक है, तो अब आप दोन या करने वाले हो?’ संजना ने पूछा। वो अभी
भी परे शान दख रही थी।
संजना के चेहरे को देख िववा वन और मनु दोन िखलिखला पड़े। वो िनडर
थे। उनके िव ास का कारण उनका साफ च र और हड़ पा क ईमानदार
याय णाली था। वा तव म िववा वन पुजारी और पंिडत चं धर ही इस
महानगर के संर क म से थे, िज ह ने इस याियक ढांचे को व प दया था।
हालां क, कभी-कभी जब कोई वयं पूरी तरह त वीर म डू बा हो, तो वो उसके
याह भाव को नह देख पाता। संजना उस डर को देख पा रही थी, िजसे
िववा वन और मनु लापरवाही से अनदेखा कर रहे थे।
‘म कल सुबह जाकर नयनतारा से िमलूंगा,’ िववा वन पुजारी ने
लापरवाही से कहा और उस समन को पास क मेज पर रख दया।
इससे पहले क िववा वन अपनी बात पूरी कर पाता, धरती िहली। हड़ पा
नगर, उसके सभी घर, येक मं दर और उनम रहने वाला हर इं सान इस
झटके के साथ िहले। बादल क तेज गजना ई और मनु ने छलांग लगाकर
अपनी मां को पास के खंभे से टकराने से बचाया। सर वती नदी का िव तार
इस हलचल का सा ी था। हड़ पा ने इतना बड़ा झटका पहले कभी नह देखा
था।
या भगवान अपने आखरी देवता को उसके िलए िनणय के िव
चेतावनी दे रहे थे? या वो िववा वन को ेत छाया के बस म आई नयनतारा
से िमलने के दु प रणाम के ित आगाह कर रहे थे? धरती का यह कं पन और
बादल क बहरा कर देने वाली गरज क तुलना मानवजाित क कसी चीज से
नह क जा सकती थी, या काली डा कनी अपने ल य म कामयाब होने वाली
थी।
और उस समय तक कोई नह जानता था, वयं िववा वन पुजारी और
चं धर भी नह क धरती क लेट म इस भारी प रवतन क वजह से
सर वती नदी म अब तक क सबसे बड़ी सूनामी आने वाली थी।
सारे अपशकु न एक साथ हो रहे थे। ऐसा लग रहा था क भगवान धरती को
इसके भयानक और कभी न ख म होने वाले दु व के िलए तैयार कर रहे थे।
लय क भिव यवाणी शायद सच होने ही वाली थी।
बनारस व ि वटजरलड क वा दय म कह , 2017
‘उसे मारा नह जा सकता’

ारका शा ी पहले से तरोताजा लग रहे थे। ले कन ये साफ था क बीमारी


धीरे -धीरे , ले कन िनि त तौर पर उ ह खाए जा रही थी। वो थके ए शरीर
और ऊजा से फु ि लत आ मा का अजीब संयोजन थे। ले कन इस सबसे
बढ़कर, उनक तेज आंख थ , जो हर चीज का बारीक से मुआयना करती थ ।
उनक आंख असामा य प से तेज थ ।
कु छ देर घाट पर बैठने के बाद िव ुत वापस आ गया था। वो फर से अपने
परदादा के क म घुसने ही वाला था क उसके फोन क घंटी बजी।
‘हां, रया,’ िव ुत ने कहा। उसक ए जी यू टव अिस टट का फोन था।
‘िव ुत, आप कहां ह? दािमनी कब से आपसे बात करने क कोिशश कर
रही ह। मुझे यक न है क उ ह ने कई बार आपका नंबर लगाने क कोिशश क
होगी।’
‘िशट,’ िव ुत च का। ‘वो तो मुझे मार ही डालेगी।’
रया स से िव ुत के अगले आदेश का इं तजार करने लगी। वो अनंत तक
िव ुत का इं तजार कर सकती थी। हालां क उसे उस तरफ से कोई आवाज नह
आ रही थी, पर फर भी िव ुत के ग कोलोन क गंध वो महसूस कर सकती
थी। वो उसक खुरदुरी दाढ़ी के बाल भी िगन सकती थी। वह जानती थी क
िव ुत को कै पेिचनो से अिधक अपनी अमे रकानो पसंद थी, और
कला रपया टू के बाद यू िज सू उसक पसंदीदा माशल-आट थी। वो जानती
थी उसे या खाना पसंद है, या पहनना पसंद है, ना ते म अंडे कस तरह
पसंद ह और कौन सी बात उसे हंसा सकती है। रया िव ुत के बारे म सबकु छ
जानती थी। और उसे इस बात से नफरत थी क िव ुत उसके बारे म कु छ भी
नह जानता था। ले कन वो गलत थी। िव ुत भी उसके बारे म ब त कु छ
जानता था। ले कन सबकु छ नह ।
‘उसे बोलना म अभी कसी ज री इं सान के साथ ं और होते ही उसे
फोन क ं गा।’ उसने जोड़ा, ‘उसे बोलना क म ठीक ,ं और सबकु छ सही है।’
‘आप कसके साथ ह, िव ुत?’ रया ने पूछा।
इससे िव ुत थोड़ा च का। जो जानकारी वयं िव ुत उसे नह दे रहा था,
वो जानना रया का अिधकार नह था। और वह ये बात अ छी तरह जानती
थी।
‘तुम उसे नह जानती हो रया, थ स,’ कहकर िव ुत ने फोन काट दया।
वो य जानना चाहती थी क म कसके साथ था?
ले कन िव ुत ने ज दी ही इस याल को झटक दया, उसे अभी और बड़े
मसल से िनबटना था।

मा के रा िबआंका को ऐसे श द सुनने क आदत नह थी। फर भी उसने अपना


संतुलन बनाए रखा।
‘तुम ऐसा कै से कह सकते हो? वो आिखरकार एक इं सान ही तो है,’ अपने
एडवांस सेटेलाईट फोन के ज रए मा के रा ने कहा। वो ि वस आ स म कह
अपने ऑपरे शनल बेस म था।
‘यही तो... पॉइं ट है... मा के रा। वो िसफ इं सान... नह है,’ दूसरी तरफ से
एक िवन , हकलाती ई आवाज ने कहा। रोमी अपने मािलक को अपडेट दे
रहा था।
‘आज म उसके पास ही बैठा था। वो कु छ... अलग है। उसे मारा नह जा
सकता। उसम से एक अनजान एनज िनकलती है जो कसी भी दु मन को प त
कर देती है।’
‘ या तुम कह रहे हो क उसने तु ह प त कर दया, रोमी?’
‘नह , मा के रा।’
दोन तरफ कु छ पल खामोशी रही।
‘याद रखो क तुम कौन हो, रोमी,’ मा के रा ने चु पी तोड़ी। ‘पे रस क उस
पी डंग टनल म अपने शानदार काम को याद करो। वो 1997 का समय था।
और तुम तब... महज 16 साल के ही थे न?’
‘हां मा के रा,’ रोमी ने जवाब दया। उस ोजे ट को लेकर उसक अ छी
याद नह थ । उस सौ य मिहला का चेहरा दुिनया म सबसे सुंदर था और उसे
मरना नह चािहए था। ले कन उसके पास कोई िवक प नह था। उसे अपना
काम पूरा करना था।
‘इ तांबुल, पे रस, द ली, दमा कस को याद करो... कोई तु ह रोक नह
सकता। तुम ऑडर के सबसे क मती र हो।’
रोमी का मुंह उतर गया। मा के रा ने जो कहा, वो उसे पसंद नह आया था।
‘मा के रा, मने आपको पहले भी बताया है क म आपके ऑडर क संपि
नह ,ं ’ रोमी ने अपने वभाव से िवपरीत खाई से कहा। ‘म अपनी मज का
मािलक ं और म वही काम अपने हाथ म लेता ं िजस पर मुझे भरोसा होता
है।’
उसने आगे कहा, ‘ये मौके क बात है क कई ए रया म मेरी और ऑडर क
सोच एक जैसी है।’
‘हां िबलकु ल रोमी,’ मा के रा ने तुरंत जवाब दया। ‘मेरा बस ये मतलब था
क जब भी ज रत आती है, तुम ऑडर को सबसे अिधक उपयोगी लगते हो।’
‘हां, मा के रा।’ रोमी वापस से िवन हो गया था। ‘और म बस यह कहना
चाह रहा था क िव ुत मेरे दूसरे ोजे स से अलग है। वो बहादुर है, िनडर
है... और...’
‘और...?’
‘एक खास शि है, जो उसके पास जाने पर मने महसूस क ,’ रोमी ने
कहा। ‘आप भी मानोगे क मेरी साल क सफलता संभव हो पाई य क मेरे
पास एक खास शि है क म अपने ोजे ट क मौत देख लेता ।ं मुझे उनक
मौत साफ दखाई दे जाती है।’
‘हां, तु हारे पास यह अनोखी शि है, रोमी।’
‘िब कु ल। ले कन म िव ुत का अंत नह देख पाया मा के रा। कु छ है जो
उसक र ा कर रहा है।’
इस बार खामोशी कु छ अिधक देर पसरी रही। मा के रा ने कभी अपने
मजबूत िहटमैन को यूं संदह े म नह देखा था। उसे अहसास आ क इससे पहले
कभी उसने रोमी से इतनी देर तक बात नह क थी। पहली बार मा के रा को
कु छ ऐसा महसूस हो रहा था, जो उसने पहले कभी महसूस नह कया था।
रोमी क ताकत जवाब दे रही थी।
‘उसे तुमसे कोई नह बचा सकता, रोमी,’ मा के रा ने सामा य होते ए
अपने सेट-फोन पर कहा। ‘तुम एक कलाकार हो। िव ुत बस दूसरे सामा य
लोग क तरह ही है।’
‘मुझ पर भरोसा करने के िलए ध यवाद, मा के रा। तुम ब त दयालु हो।’
‘अब वो करो, जो तु ह करना है रोमी। म अपनी खास यूिनट भेजता ।ं म
जानता ं क तु ह उनक ज रत नह पड़ेगी, ले कन म बस बैकअप के िलए
भेज रहा ।ं उस चंड नगरी से िव ुत ज़ंदा वापस नह िनकलना चािहए।’
‘वो नह िनकलेगा, मा के रा।’
रोमी और मा के रा िबआंका, दोन जानते थे क िव ुत कोई सामा य
इं सान नह था।

िव ुत अपने बाबा के क म घुसा और बुजुग के इशारे का इं तजार करने लगा।


ारका शा ी वापस से बड़े-बड़े त कय के सहारे अपने िब तर पर लेट चुके
थे। उनक आंख बंद थ , मानो वो गहरे यान म ह । स से इं तजार करते ए
िव ुत अपने परदादा को यार से देखने लगा। दशक बाद उसे अपने बाबा के
साथ कु छ समय िबताने का मौका िमला था। डर और चंता का शु आती दौर
बीत चुका था और अब ारका शा ी क मजबूत उपि थित म िव ुत यार
और ममता महसूस कर रहा था।
कु छ िमनट बाद मठाधीश ने अपनी आंख खोल द और िव ुत को पास
आकर बैठने का इशारा कया। िव ुत बेस ी से इं तजार कर रहा था क ारका
शा ी उसके पूवज क दलच प और रोमांचक कहानी का अगला िह सा
सुनाएं। उसने जो सुना था, उससे वो अब तक सदमे म था।
िव ुत अपने परदादा के पैर छू ने के िलए आगे बढ़ा, ब त से हंद ू प रवार
म आज भी स मान के िलए पैर छू ने का ये रवाज होता है। अपने से बड़ के पैर
छू ना उनके ित आदर और समपण का तीक होता है। बदले म पैर छू ने वाले
को खूब सारे आशीवाद िमलते ह।
िव ुत ने झुककर अपनी उं गिलयां ारका शा ी के बाएं पैर को छु आ ।
जैसे ही उसक उं गिलय ने ारका शा ी क झुर दार वचा को छु आ, बुजुग ने
तुरंत एक झटके से िव ुत को देखा। इससे पहले क िव ुत पूछ पाता क या
आ था, ारका शा ी के चेहरे के भाव ने कसी बड़े खतरे का ऐलान कर
दया!
बुजुग ने िव ुत क कलाई अपनी मजबूत पकड़ म ली और उस पर एक ही
साथ ब त से सवाल क झड़ी लगा दी।
‘तुम अभी कहां गए थे, िव ुत? मुझे सच-सच बताओ! तुम कससे िमले थे?
या कसी अजनबी ने तु ह छु आ था? या कसी ने तु ह कु छ दया था? तुम
कससे िमले थे ब ?े जवाब दो!’ अब तक ारका शा ी डर और गु से से कांप
रहे थे।
‘मुझसे कोई गलती ई है तो माफ कर बाबा,’ िव ुत ने अिनि तता से
कहा। ‘म... म बस दशा मेध घाट तक गया था। बस... ताजी हवा खाने के
िलए। म तो कसी से भी नह िमला।’
‘हां, तुम िमले हो मूख। और कसी अजनबी का दया कोई सामान भी तुम
इस मठ क सुर ा म लेकर आ गए हो।’
ारका शा ी क लेजर जैसी तेज नजर अब सीधे िव ुत को देख रही थ ,
ले कन लग ऐसा रहा था जैसे वो उसके पार कु छ और देखने क कोिशश कर
रही थ । मानो वो िव ुत के बीते समय को पढ़ने क कोिशश कर रहे ह ।
इस सबसे िव ुत पूरी तरह हैरान था। और तभी अचानक उसे वो ि लप-
टॉप लाइटर याद आया जो उस आकषक युवक ने उसे दया था। उसके बारे म
बताने से पहले िव ुत एक पल िझझका क इससे उसके परदादा को पता चल
जाएगा क वो िसगरे ट पीता था, ले कन तुरंत ही िव ुत को समझ आया क ये
मसला उससे अिधक गंभीर था। उसने धीरे से अपनी जेब से लाइटर िनकाला।
‘घाट पर एक अजनबी ने मुझे ये दया था, बाबा।’
कु छ पल के िलए ारका शा ी जम गए। और फर मानो एकदम भूचाल
आ गया।
डमा टर अपने िब तर के कनारे लटक मोटी सी र सी को तेजी से
ख चने लगे। र सी खंचने से उनके क के बाहर, ऊपर क तरफ लगा घंटा
जोर से बजने लगा। ये मठाधीश क तरफ से अपने सािथय को मदद क पुकार
थी। कु छ ही पल म ारका शा ी के क का ार झटके से खुल गया, और
बलवंत उसम तूफान क तरह घुस आया। उसने अपने दोन हाथ म दो छोटी
तलवार पकड़ी ई थ , और उसक पीठ पर एक शॉटगन लटक थी। उसक
बे ट म सैकड़ राउं ड के कारतूस लगे थे। पुजारी जी और सोनू भी दौड़ते ए
क म प च ं गए थे। सोनू के पास उसका ि शूल तैयार था। िव ुत को
िखड़ कय के बाहर भी यो ा-संत आ म को घेरे तैयार खड़े दखाई दे रहे थे।
उन सबके हाथ म तलवार और आधुिनक हिथयार तैयार थे। देव-रा स मठ
वाकई म कु छ पल म यु के िलए पूरी तरह तैयार हो गया था।
‘ या आ, गु देव?’ पुरोिहत जी ने मठाधीश को गु देव संबोिधत करते
ए पूछा। बलवंत अपनी आंख से क के हर कोने का िनरी ण कर रहा था
और कसी भी पल संभािवत िशकार पर चीते क तरह लपकने को तैयार था।
अब तक ारका शा ी के चेहरे पर चंता क लक र उभर आई थ , ले कन
अभी भी उनका चेहरा कठोर था। उनक आंख गु से से लाल थ ।
‘वो यहां आ गए ह, पुरोिहत,’ डमा टर ने कहा। ‘खेल शु हो चुका है।’
हड़ पा, 1700 ईसापूव
एक मां ऐसा कै से होने दे सकती है?

‘पांच गांव रातोरात जल म समा गए, वामी,’ हड़ पा के मु य नाग रक


अिभयंता ने कहा।
धरती के कं पन ने शि शाली नगर के नाग रक और उसके नेता क न द
उड़ा दी थी। र को जमा देने वाली वो क ं ार और धरती का यूं िहलना इससे
पहले न तो कभी सुना गया था, न कभी महसूस कया गया था। ना ही कसी
ाचीन ंथ या िव ान के पाठ म इतनी भयानक चीज का िज कभी आया
था। और साधना के गूढ़ महीने के चलते ऐसे समय म स ऋिषय से भी संपक
नह कया जा सकता था। उनक उपि थित को खासतौर पर याद कया जा
रहा था, य क धरती के िहलने के साथ ही कु छ और भी अजीब घटा था।
य द शय का दावा था क उ ह ने हमेशा शांत रहने वाली सर वती क
पहाड़ से भी ऊंची लहर को देखा था, जो कनारे के कई गांव को एक ही झटके
म अपने साथ बहाकर ले गई थी। सर वती के जल क ऐसी हंसक क ं ार का
तो कभी पहले कह कोई िज नह आ था। मां नदी ने हड़ पा के लाख लोग
को जंदगी दान क थी। वो अपने ही ब का नुकसान नह कर सकती थी।
देर रात को ही एक सभा बुलाई गई थी। नगर का हर खास ि उसम
मौजूद था। इस सभा क अ य ता िववा वन पुजारी और उनके साथ, दािहनी
ओर बैठा पंिडत चं धर कर रहा था। िववा वन और चं धर क जोड़ी हड़ पा
क सबसे स म, समथ और िव त जोड़ी थी। वो एक-दूसरे के जीजा-साले
भी थे। िववा वन क प ी, संजना चं धर क छोटी बहन थी। ले कन इससे भी
अिधक मह वपूण िववा वन और चं धर क घिन िम ता थी। उन दोन ने
पहले भी साथ िमलकर अनेक बार हड़ पा को बड़े-बड़े खतर से बचाया था,
और नगर को इसक वतमान शान तक लेकर आए थे। और अब तो िववा वन
पुजारी के नगर का मु य पुजारी िनयु होने म छतीस घंटे से भी कम समय
रह गया था। इससे वो नगर के सबसे ताकतवर ि बन जाने वाले थे।
‘ कतने लोग ने उस ऊंची लहर को देखा था?’ िववा वन पुजारी ने जानना
चाहा।
‘ वामी, चूं क यह सब पलक झपकते ही आ था, और वो भी सूया त के
घंट बाद, तो बस थोड़े से ही या ी बचे थे, जो अपनी लंबी या ा से वापस
लौट रहे थे। उनका कारवां नदी कनारे से कु छ मील दूर था, जब उ ह ने आधे
चांद क रौशनी म उस िवशाल लहर को देखा था।’
‘तुमने कहा, कु छ मील...?’ चं धर ने अिव ास से पूछा।
‘जी वामी। ापा रय ने बताया क लहर पवत से भी ऊंची थी और
उसक परछा ने आसमान को भी ढंक िलया था। दो सौ से अिधक मद, औरत
और ब े ख म हो गए। वो तो जानते भी नह थे क कौन उ ह ख म करने आ
रहा था।’
अिभयंता के कु छ पल कने पर कमरे म मौत का सा स ाटा पसर गया।
‘ वामी, गांव इस तरह बह गए मानो वो प ट से नह , बि क सूखे
ितनक से बने थे,’ उसने आगे कहा। ‘उस इलाके के लोग अब मां नदी को दूसरे
नाम से पुकारने लगे ह। वो उसे र -धारा कह रहे ह।’
मु य अिभयंता क आखरी पंि ने सबक रीढ़ म िसहरन पैदा कर दी।
खाली नजर से सब एक-दूसरे को देख रहे थे। वहां बैठे ए सभी गणमा य
ि जानते थे क सर वती नदी म दुिनया क कसी भी अ य नदी के
मुकाबले अिधक पानी था। हालां क नदी मां स दय से उनक परव रश करती
रही थी, ले कन कसी भी बुि मान ि को उसके वाह का अंदाजा नह
था। अगर नदी क लहर वाकई म, ापा रय के बताए अनुसार पवत से भी
ऊंची थी, तो यह ब त बुरी खबर थी।

अिभयंता ारा सूनामी क खबर दए ए चार घंटे गुजर गए थे। जब क एक-


दो पुजा रय ने इस घटना को स दय म एक बार घ टत होने वाला म माना
था, ले कन अिधकांश ने उनके िवरोध म मत दया था। ब त से अपशकु न
लि त होने लगे थे। वादी के असीिमत िव तार म हवा अ ाकृ ितक बल से और
अनपेि त दशा म बह रही थी। वासी प ी भूकंप से घंट पहले वहां से उड़
गए थे, जब क ये उनके जाने का मौसम नह था। पालतू और बोझा ढोने वाले
पशु भी असहज और डरे ए दखाई दे रहे थे। उनक बेबस आंख से आंसू बह
रहे थे। आसमान लाल और बगनी रं ग के भारी बादल से िघरा था, ऐसा पहले
तो कभी हड़ पा वािसय ने नह देखा था। इन अशुभ तीक ने ानीजन को
आगाह कर दया था क बुरा समय अभी शु ही आ था। क उ ह इससे भी
बड़ी दुघटना के िलए तैयार रहना चािहए।
सभाक क बड़ी दीवार पर भौगोिलक और योितषीय न शे फै ला दए
गए। पांच गांव के मृत िनवािसय के अंितम सं कार और बचे ए लोग के
िलए राहत दल के िनदश देकर, िववा वन पुजारी वयं नगर-आयोजक और
अिभयंता के साथ चचा म लग गया। वो जानना चाहता था क उनके पास
बचाव के या िवक प बचे ह। दूसरी तरफ पंिडत चं धर पंचांग और योितष
के दूसरे खाके देखने लगा, ये जानने के िलए क अचानक िघर आए इन काले
बादल क वजह या थी। हड़ पा म इं सान बचाव और आगे बढ़ने क नीित
पर काम करता था। ले कन दैवीय दखल को भी कभी नजरअंदाज नह कया
गया था।
‘ भु, हमारे नगर पृ वी के अंदर होने वाली हलचल से सुरि त रह सकते
ह,’ हड़ पा के सुिव यात अिभयंता और देवता के करीबी िम , सोमद ने
कहा। वह िववा वन पुजारी के सवाल क झड़ी का जवाब दे रहा था।
‘हमारी इमारत उ -गुणव ा क प ट से बनी ह और कसी भी
इमारत क ऊंचाई तीन मंिजल से अिधक नह है। धरती के िहलने पर भी इनम
से एक भी इमारत नह िगरे गी।’
‘यह सुनकर बड़ी राहत िमली, सोमद । या तु ह यक न है क बड़े-बड़े
अनाज गोदाम और तांबे गलन क कायशालाएं इस असामा य तूफान को
झेल पाएंगी?’ देवता ने पूछा।
‘अनाज गोदाम सुरि त रहगे। तांबा इकाइय का काम कु छ समय के िलए
रोक देना चािहए, य क हम वयं नह जानते ह क हम कसका सामना
करने वाले ह,’ सोमद ने जवाब दया।
‘हो जाएगा।’ िववा वन पुजारी ने तांबे और कां य का काम संभालने वाले
पुजा रय क तरफ िसर िहलाया। पुजारी तुरंत िसर झुकाकर िनदश पालन के
िलए िनकल गए।
‘ठीक है, अब सारा मां क तरफ चलते ह,’ िववा वन पुजारी ने कहा, नदी
िव तार के दूसरे न शे क तरफ देखते ए। वो अभी भी नदी को स मान से मां
कह रहा था। हालां क अंदर से वो उससे नाराज था। हड़ पा के दो सौ
नाग रक क जंदगी सोते-सोते चली गई। ऐसा कै सा हो सकता था? एक मां
ऐसा कै से होने दे सकती थी??
वह यह देखकर हैरान था क अिभयंता के पास कहने को कु छ नह था।
वो खामोशी से नजर झुकाए खड़े थे। देवता ने न शे से नजर उठाकर उनके
चेहर को पढ़ने क कोिशश क ।
‘ या आ, सोमद ? तुम और तु हारा े दल यहां हम सुझाव देने के
िलए खड़े ह क कै से हम अपने लाख नाग रक क जंदगी बचा सकते ह। म
यहां आपक खामोशी सुनने के िलए नह खड़ा !ं ’ देवता ने स ती से कहा।
‘हम मा कर भु, ले कन हम सच म नह जानते ह क सर वती के
तूफानी हार को रोकने के िलए या कया जा सकता है। हमने अपनी सारी
यो यता को परख िलया। अगर च मदीद ापा रय क बात का यक न कया
जाए तो, ऐसी लहर के सामने हम कु छ नह कर सकते ह। पवत िजतनी बड़ी
लहर का वेग गिणत के आधुिनक आंकड़ से भी नह आंका जा सकता है।’
िववा वन पुजारी को अपने कान पर भरोसा नह आ। उसे भरोसा था
क उसके अिभयंता ज र कोई समाधान तुत करगे, भले ही वो कतना ही
ज टल य न हो। ले कन यहां तो वो बस हाथ झाड़कर खड़े थे।
‘तो तुम या कह रहे हो, सोमद ? हम बस बैठकर अपने लोग और अपने
घर के बहने का इं तजार करना चािहए?!’ िववा वन पुजारी ने गु से से,
लगभग िच लाते ए पूछा।
इससे पहले क सोमद कु छ जवाब दे पता, पूरा क धातु के कसी बतन
िगरने क आवाज से गूंजा। सब मुड़कर आवाज क दशा म देखने लगे, तो
पाया क पंिडत चं धर से तांबे क बड़ी सी दवात छू टकर जमीन पर िगर गई
थी। वो अपनी जगह ि थर खड़े योितषीय न शे को घूर रहा था।
‘चं धर...’ िववा वन ने अपनी जगह से िहले िबना पूछा।
उसके िम ने कोई जवाब नह दया।
‘ या आ, िम ?’ देवता ने फर से पूछा। चं धर न तो अपनी जगह से
िहला, ना ही कोई जवाब दया। वो स मोिहत सा हो पंचांग को घूर रहा था।
िववा वन पुजारी उसके पास गया, उसके कं धे पकड़कर, उसे अपनी तरफ
मोड़ा। जो उसने देखा उससे वो सकते म था। पंिडत चं धर भयभीत था।
उसका चेहरा डर से सफे द पड़ गया था और वो पलक भी नह झपका रहा था।
देवता ने अपने साहसी िम को कभी ऐसी हालत म नह देखा था, यु म मौत
से सामना होने पर भी नह । पंिडत चं धर भी वयं देवता के समान िनडर
और नेक था।
िववा वन ने धीरे से अपने िम को िहलाया और शांत आवाज म कहा।
‘ या आ, चं धर? तुमने पंचांग म या देखा िम ?’
चं धर ने धीरे से मुड़कर देवता को देखा। उसक आंख डर और आतंक से
फै ली ई थ । उसने अपना एक कांपता हाथ उठाकर िववा वन का कं धा
मजबूती से पकड़ िलया। वो सीधे अपने दो त क आंख म देख रहा था।
‘िववा वन... अंत आ गया है।’

िववा वन पुजारी ने अपने घबराए ए िम को नरम मु कान के साथ सहज


करने क कोिशश क । ‘कु छ ख म नह हो रहा है, चं धर। हम साथ म इसका
सामना करगे, वैसे ही जैसे अब तक करते आए ह,’ उसने भरोसा दलाते ए
कहा।
चं धर क ठनता से मु कु राया। अब तक क म मौजूद हर इं सान क नजर
उसी पर टक थी और वहां पूरी खामोशी थी। चं धर ने धीरे से वयं को
संभाला। एक-दो पल बाद अपना गला साफ करते ए, उसने उं गिलय से
अपने आंसू प छे। फर उसने िववा वन पुजारी क तरफ मुड़कर, सबको सुनाने
के िलए तेज आवाज म कहा।
‘प ी कभी गलत सािबत नह ई है। पंचांग इतने िनमम कभी नह ए।
मने जो अभी पढ़ा उस पर म भरोसा नह कर पा रहा।’
हर कोई चंता और यान से उसक बात सुन रहा था। पंचांग और प ी को
वो लोग ब त मह व देते थे। और उनक गणना और पंिडत चं धर क
भिव यवाणी कभी गलत सािबत नह ई थी। एक बार भी उनक गणना
गलत नह गई थी।
बुरी खबर सुनाने म चं धर अब और देर नह करना चाहता था। उसने
साफ श द म कहा।
‘सभागण , चं के एक और च र के साथ हड़ पा का पतन हो जाएगा।
हमेशा-हमेशा के िलए।’
बनारस, 2017
‘म आधा इं सान, आधा भगवान ं’

‘बात या है, पुरोिहत जी?’ िव ुत ने जानना चाहा।


पुरोिहत जी ने मठ के िच क सक और रसायनशा ी, गोवधन को देखा।
‘ वलनशील पारा,’ गोवधन ने कहा।
हालां क िव ुत एक साइबर िस यो रटी कं पनी चलाता था, तो वो इससे
पूरी तरह वा कफ था। ले कन वो खामोश रहा।
‘इसका इ तेमाल हड ेनेड और रगड़ने वाले दूसरे िव फोटक म होता है।’
उन तीन ने एक-दूसरे को अिनि त नजर से देखा।
गोवधन ने बात जारी रखी।
‘वो तु हारी जान लेने क कोिशश कर रहे ह, िव ुत।’

ारका शा ी के अलाम क वजह से मठ हर तरह क सुर ा के िलए तैयार हो


गया था। आिखरकार इस दन क तैयारी वो लोग सैकड़ साल से कर रहे थे।
जो ‘चीज’ िव ुत ने कसी अजनबी से घाट पर ली थी, उसे हर कार के
सुर ा मानदंड से गुजरना था। गोवधन और उनक टीम ने सावधानी से उस
ि लप-टॉप लाइटर को खोलकर उसके कं टट का वै ािनक दृि कोण से अ ययन
कया। दूसरी तरफ, पुजारी जी और उनक टीम ाचीन साधना के मा यम से
धातु-परी ा म लग गए, इसम धातु पर कसी बुरे साये क जांच क जाती थी।
रा स सं दाय आ प च ं ा था। और वो िव ुत को मारना चाहते थे... कसी
भी क मत पर।

‘िव ुत तुमने इसका तीन या चार बार और इ तेमाल कया होता तो पारा
तु हारे चेहरे पर ही फट जाता,’ गोवधन ने देव-रा स मठ के सभागार म
घोषणा क ।
महान ारका शा ी सभा के अ य थे। उनक हालत म सुधार नह आ
था, ले कन उ ह ने हॉि पटल जाने से मना कर दया था। उनक भारी और
मुि कल से आती-जाती सांस क आवाज पूरे हॉल म सुनाई दे रही थ । उनक
उं गिलय ने कपड़े म बंधी बू टय का बंडल पकड़ा आ था, िजससे मठाधीश
बीच-बीच म सांस ले पा रहे थे। बंडल म आयुव दक त व का िम ण था, जो
दद कम करने और लंबी आयु दान करने के िलए जाने जाते थे।
गोवधन ने हॉल के एक ओर, वाईट बोड पर िस पल ले कन प रे खािच
बनाया। इसम ि लप-टॉप लाइटर क अंद नी मशीन दखाई गई थी।
‘पारा रगड़ के ित ब त वलनशील होता है। यह िसगरे ट लाइटर
मेकैिन स के िस ांत पर काम करता है—दो धातु के बीच तेज रगड़ से गम
उ प होती है।’
अब तक हर कोई दु मन क आसान ले कन घातक चाल को समझ गया
था। फर भी गोवधन ने अंितम संदश े सुनाया।
‘इस िडवाइस म इतना पारा है क यह ाइ वंग हेलमेट पहने ए ि
तक का िसर उड़ा सकता है।’

हॉल म स ाटा था। बलवंत खड़ा आ था, ले कन उसक आंख गु से से लाल


थ । अपनी तेज नजर से वो मानो जमीन म सूराख करने क कोिशश कर रहा
था। अपने मन म वो जानता था क धरती पर होने वाले देव-दानव यु के
बीच वह अहम् भूिमका िनभाने वाला है।
सोनू भारी सांस ले रहा था, उसके चेहरे और शरीर के हावभाव पर गु सा
हावी था। अपने ि शूल के आधार से वो नरमी से ले कन लगातार जमीन पर
वार कर रहा था, मानो आमने-सामने क लड़ाई के िलए तैयार हो रहा हो।
पुरोिहत जी शांत और आंकलन क गहन अव था म थे। उनक आंख यान
मु ा म बैठे योगी के समान लग रही थ । अपने भ चे ए दांत और फड़कती
कनपटी से यु के समय रणनीित तैयार करने क भूिमका म नजर आ रहे थे।
नैना, जो मठ म मिहला शि का ितिनिध व और नेतृ व करती थी, ब त
परे शान दखाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था, मानो वो कसी भी पल रो पड़ने
वाली थी। इतनी कोमलता उसके च र से मेल नह खा रही थी। वो तो वयं
को बलवंत क तरह ताकतवर दखाने म यक न करती थी। शायद वो उतनी
ताकतवर थी भी। ले कन यहां सवाल िव ुत क जंदगी का था।
ारका शा ी ब त थके ए और बीमार थे, और उनका न र शरीर अब
आजाद होने क िवनती कर रहा था। सदी क तीन चौथाई तक वो मठ क
सारी लौ कक और अलौ कक लड़ाइय का नेतृ व करते रहे थे। ले कन अब
उनका तीि त उ रािधकारी आ प च ं ा था, जंदगी क सबसे बड़ी लड़ाई म
उन सबका नेतृ व करने के िलए। उ ह ने अपने परपोते से तेज और कड़क
आवाज म कहा।
‘िव ुत!’ डमा टर क आवाज पूरे हॉल म गूंज गई।
िव ुत ने खड़े होकर अपने बाबा के स मान म हाथ जोड़े।
‘उि थ ा!’ दोन हाथ अपने कं धो से ऊपर ले जाते ए मठाधीश गरजे।
उ ह ने जो बात सं कृ त म कही, उसका मतलब था:
‘उठो।’
वो अपने परपोते को अपनी पुकार का जवाब देने के िलए कह रहे थे।
वो िव ुत म िछपे देवता को सामने आने पर िववश कर रहे थे।

िव ुत हंद ू संत और पुजा रय क नेक और ताकतवर सभा के सामने खड़ा


था। उनक आंख और चेहर पर वो आशा और उ मीद देख सकता था। वयं
के ित उनके अव णत और शायद अनुपयु समपण को वो महसूस कर सकता
था। पूरी जंदगी िजस जवाब को ढू ंढ़ता आया था, वो उसे अभी, यहां िमल
गया था।
‘मेरी रग म मेरे महान पूवज िववा वन पुजारी का र दौड़ रहा है,’
िव ुत ने अपनी बात शु क । ‘आपका िव ुत महान यो ा-संत का तके य
शा ी और द मां पूजा का पु है। मुझे ताकतवर ारका शा ी का
परपोता बनने का सौभा य ा आ। मेरी आ मा को सैकड़ , शायद हज़ार
वष तक आप सबका, और मेरे येक पूवज का और इस मठ के बुजुग का
आशीवाद िमला है। हालां क अभी भी म इस देव-रा स मठ क थापना क
ाचीन कहानी नह जानता ,ं पर म आपसे वादा करता .ं ..’
सभा म बैठे सभी पु ष और मिहला क नजर िव ुत पर टक थ , और
उस द ा मा के मुंह से िनकले हर श द को वो यान से सुन रहे थे। उनक
आंख क नमी ने उ ह भरोसा दला दया था क उ ह िव ुत के ि व के
िगद एक तेज मंडल भी दखाई दे रहा था। वो देख सकते थे क िव ुत ही
िमथक य िववा वन पुजारी के वंश का वा तिवक िचराग था। ये पूरी तरह
प था क िव ुत ही वो उ ारक था, िजसका वो इं तजार कर रहे थे। वे अब
जान गए थे क ये ही वो आखरी देवता था।
िव ुत ने भावुक, बुलंद ले कन िवन लहजे म अपनी बात जारी रखी।
‘म उस इं सान को सजा दूग ं ा, िजसने मुझे मारने क कोिशश क । और मुझे
या मेरे इस महान सं थान के कसी भी ि को नुकसान प च ं ाने क कोिशश
तक करने वाले इं सान को म रोक दूग ं ा। मेरे शुभ- चंतको, अब म एक चीज तो
िनि त प से जानता ।ं ’
ोता पूरे यान से सुन रहे थे। ारका शा ी हर श द ऐसे सुन रहे थे,
मानो वो उनक घायल आ मा पर ठं डा लेप हो। वह देख सकते थे क उनका
परपोता प रप हो चुका था। वो देख सकते थे क िव ुत ने अपने होने का
मतलब समझ िलया था। अब वह अपनी आ मा को यह न र शरीर और
अपनी िज मेदा रयां छोड़ने क आ ा दे सकते थे।
िव ुत ने अपनी अंितम बात कही।
‘आदरणीय गण, म जानता — ं म आधा-इं सान, आधा-भगवान ।ं ’
हड़ पा, 1700 ईसापूव
ट और कांसे का पहाड़

सूखे मेव और के सर दूध के अ प िवराम के बाद पुरोिहत प रषद फर से शु


हो गई थी। उनम से हरे क को पंिडत चं धर ारा क गई भिव यवाणी को
समझना था। वो सभी वयं समथ योितषी थे, और इस िवराम का इ तेमाल
उ ह ने भिव यवाणी क पुि और पुनपुि म कया था। भिव यवाणी
िबलकु ल सही थी। ह क दशा ब त याह थी, इतनी क कोई क पना भी
नह कर सकता था। ऐसे संसग के अवसर ब त कम होते ह, ले कन अब
वा तव म ऐसा हो रहा था। वै दक योितषी के अनुसार, यह लय का समय
था। कोई ऐसा तरीका नह था, िजससे पांच हज़ार साल पुरानी स यता,
हड़ पा तीस दन से अिधक अि त व म रह पाती।
‘हम समय रहते नगर को छोड़कर भाग जाना चािहए,’ एक अिभयंता ने
कहा। सभा म उपि थत ब त से लोग ने उसके श द से सहमित जताई।
हड़ पा के ब त से मा य ि क के म य म रखी गई लंबी सी लकड़ी क
मेज के चार ओर बैठे थे। कु छ लोग दो और तीन के समूह म भी खड़े थे। वहां
क बैठने क व था रोम क रा यसभा से अिधक िभ नह दखाई दे रही
थी।
‘हम पूव क दशा म जा सकते ह। घोड़े, बैलगाड़ी और हािथय के ज रए
हम मिहला , ब और असमथ लोग को ले जाएंग,े जब क बाक सब पैदल
चलगे,’ एक प रषद सद य ने सुझाव दया।
हां! हां... पूरे क से सहमित क आवाज आने लग ।
‘ये सफर सूय दय के साथ ही शु करना होगा। हम मृत कारावास के
कै दय को यह छोड़ जाएंगे,’ दूसरे ने कहा। ‘उनके पाप को इस लय म धुल
जाने दो।’
‘हां... हां... चिलए अपने प रवारवाल को बता द और ज री सामान
समेट ल,’ गमन के प म ब त से सुझाव आने लगे। पूरा क आवाज के शोर
से भर उठा। इतने शोर म कही गई बात कसी के भी प ले नह पड़ रही थ ।
धाआअ !!
एक तेज और झ ाटेदार आवाज ने सबको च का दया। सबने देखा क
िववा वन पुजारी मेज के बीचोबीच गढ़ी, अपनी चमकती कृ पाण पर झुका
खड़ा था, उसके हाथ म अभी भी उसका नीले रं ग का मूठ पकड़ा आ था।
उसका बिल शरीर उसके खड़े होने क जगह से, तलवार गढ़ने तक खंचा
आ था। क म मौजूद हर ि को चीरती उसक आंख म घृणा साफ
दखाई दे रही थी।

‘आप सबको हो या गया है?!’ देवता पूरे अिधकार से िच लाया।


‘हम ताकतवर हड़ पावासी ह! हम पूरे आयवत के शासक ह! हम वेद के
रचियता, अ के वाहक और आधुिनक धातु-िवधा के सं थापक ह। या हम
यूं कायर क तरह भाग जाना चािहए, य क हमारे सामने मुि कल समय
खड़ा है?’ िववा वन पुजारी ने गरजते ए कहा। उसक शि शाली आवाज
उस िवशाल क म गूंज रही थी।
कसी म भी अके ले देवता क बात का जवाब देने क िह मत नह थी।
िववा वन पुजारी अपने सािथय को सहमत करने से अिधक धमका ही पा रहा
था। उसने तुरंत ही अपनी कृ पाण वापस ख च ली और उसे चमड़े क यान म
वापस रख िलया। वो सीधा खड़ा आ और उसने धीमी ले कन मजबूत आवाज
म कहा।
‘हमने अपनी स यता को इतनी कड़ी मेहनत से बनाया है क हमारे वंशज
भी इसका यक न नह कर पाएंगे। हमम से हर कसी ने इस महान रा के िलए
न िसफ अपना र बहाया है, बि क ब त से बिलदान भी दए ह। या
इितहास कभी यक न कर पाएगा क हमने धरती फाड़कर तांबे और कांसे जैसी
धातु िनकाल ली थी? या वो हम इस धरती का सबसे आधुिनक नगर बसाने
का ेय दगे? या कसी को याद भी रह पाएगा क हम हड़ पा वािसय ने
धरती से पानी ख चकर िनकाल िलया था? और या हम इस शान को छोड़कर
चूह क तरह भाग जाना चािहए य क एक नदी ने हम चुनौती दी है??’
क म स ाटा था। प रषद के सद य, पुजारी, अिभयंता और सेना अ य ,
सब यान से सुन रहे थे। िववा वन पुजारी ने अपनी बात आगे कही।
‘हम सब साथ म दुिनया क सबसे बड़ी ताकत ह। हमारे पास सैिनक,
अिभयंता, योितषी, धातु-िव ानी, िच क सक, रसायन बनाने वाले,
वा तुकार इ या द सब ह। साथ िमलकर हम या नह कर सकते? शायद यह
परी ा क घड़ी है। शायद ई र चाहते ह क हम उ ह दखाएं क कै से हम
उनके आशीवाद के यो य ह!’
‘भगवान या चाहते ह, यह पंचांग और न से प है िववा वन,’ एक
उ पुजारी ने कहा। ‘मेरे िम , मेरे अगुआ, ये बात आप मुझसे अिधक बेहतर
जानते ह... तार का यह संयोजन टाला नह जा सकता। ये चीख-चीखकर मृ यु
और तबाही क गवाही दे रहा है।’
‘हालात जो ह, सो ह मेरे दो त, ले कन मुझे यक न है क हम इस तबाही से
बच सकते ह। या इसका सामना कर सकते ह! हमारे लोग क दृढ़ इ छा एक
साथ िमलकर इतने आ मण का सामना कर सकती है, िजतना इस पूरे
हंदकु ु श के बस का नह है।’
िववा वन पुजारी ने एक बार फर से पूरे क म नजर दौड़ा । झुके ए
कं धे और अिनि त नजर देखकर उसे िनराशा ई। उसे ऐसा लगा मानो वो
अजनिबय के बीच खड़ा था। उसने कभी भी हड़ पा के समथ और दमदार
नेता म ऐसी कायरता और भगौड़ापन नह देखा था। या यही वो लोग ह,
िज ह वो धरती पर सबसे े मान रहा था? या यही वो लोग ह, िजसे उसने
अपने यारे नगर का अगुआ और संर क िनयु कया था?

‘ या तु हारे पास कोई योजना है, िववा वन?’


िववा वन पुजारी ने खुशी से मुड़कर अपने िम और साथी चं धर को
देखा। वो संतु था क कम से कम चं धर ने बहस म भाग तो िलया। अब उसे
कु छ राहत िमली थी।
‘ या तु हारे पास कोई योजना है?’ सभा के म य म आने के िलए रा ता
बनाते ए चं धर ने वापस से अपनी बात दोहराई।
‘हां, मेरे पास है चं धर,’ देवता ने जवाब दया। ‘जब तक मेरे पास इन
मा य गण का समथन है।’
चं धर मु कु राया। उसक मु कान अपने देवता िम के िलए कु छ ऐसा कह
रही थी ‘तुम िज ी दीवाने!’ ले कन उसने मुंह से कु छ नह कहा।
‘महान देवता, बताओ हम तु हारे मन म या है। अतीत म भी तुमने
अनेक बार हम बचाया है। तुम हड़ पा के सूय हो। तु हारे सटीक अनुमान पर
संदहे करने का न तो हमारे पास कोई कारण है, न ही हम उतने समथ ह,’
चं धर ने स मान से िसर झुकाते ए, पूरे अिधकार से कहा। हर श द उसके
िलए मायने रखता था। वो वहां मौजूद हर श स को याद दलाना चाहता था
क वो कससे बात कर रहे थे। िववा वन पुजारी ने अनिगनत बार हार के पंज
से असंभव जीत को ख च िलया था। चं धर उन लोग को देवता का यह
उपकार भूलने नह देना चाहता था।
‘ध यवाद, पंिडत चं धर—मेरे िम और यो य साथी,’ िववा वन ने भी
उतनी ही औपचा रकता से कहा। ‘मेरे पास योजना है। शु म यह अजीब
लगेगा, ले कन म आप सबसे वादा करता ं क म इसे कारगर बनाऊंगा।’

‘ले कन यह िववेकहीनता है िववा वन!’ चं धर ने कहा। क म मौजूद दूसरे


लोग को भी िववा वन पुजारी क योजना क वा तिवकता पर संदह े था, और
पूरा क असहमित और िच लाने क आवाज से भर गया।
‘सुनने म यह िववेकहीन लग रहा है, चं , ले कन हमारे पास एकमा यही
िवक प बचा है। और मुझे बताओ क हमारे अिभयंता और वा तुकार, िज ह ने
इतने आिलशान नगर और आधुिनक ढांचे बनाए ह, वो ये य नह बना
सकते?’
चं धर नह जानता था क या कहे। एक तरफ तो वो िववा वन के
ताव को समझने क कोिशश कर रहा था। दूसरी तरफ वो क म मौजूद
लोग के िबगड़ते मुंह और कटा को भी देख पा रहा था। फर भी उसने अपनी
बात जारी रखी।
‘तो मुझे फर से बताओ, वा तव म तुम बनाना या चाहते हो?’ उसने
पूछा।
‘महानुभाव , नदी य और कै से अपना रा ता बदलती है?’ िववा वन ने
सभा म मौजूद सभी लोग से सवाल कया। ‘महान पवत या िवशाल च ान ही
नदी को अपनी दशा बदलने के िलए मजबूर करती है। इससे भी बढ़कर, जब
कसी धारा के पानी को एक बतन म भरकर संरि त कया जा सकता है, तो
नदी के जल के िलए िवशाल कुं ड य नह बनाया जा सकता। िव ान तो दोन
म ही एक है। बस उसका मापक िभ है।’
असहमित का शोर क म और भी बढ़ गया।
‘आज तुम कह रहे हो क जल का वाह रोक दोगे। कल तुम कहोगे क तुम
धातु को हवा म उड़ा दोगे!’ एक व र अिभयंता अपना चेहरा िछपाते ए
जोर से िच लाया। सामने आकर वो देवता का सामना नह करना चाहता था।
‘अगर नदी का वाह बदला जा सकता है, तो शायद एक दन हवा को
साधते ए कसी गांव को रौशन भी कया जा सकता होगा!’ दूसरी आवाज
आई। इसके बाद लोग मुंह दबाकर हंसने लगे।
िववा वन पुजारी पर इसका कोई असर नह पड़ा। वह जानता था क वह
हड़ पा को बचा सकता था, अपने सहक मय के इस नए कायरपन और ं य
पर यान दए िबना। हालां क उसने यान दया था क क म कु छ नए
अिभयंता और सेना अ य भी मौजूद थे। उसने ये भी यान दया था क
उसके पुराने प रिचत म से कु छ के हावभाव म अजीब सी बदतमीजी थी, जो
वो पहले कभी उसके सामने नह दखा सकते थे। ले कन उसने इस सब पर
यान नह देने का फै सला िलया। उसके सामने करने के िलए पहाड़ समान
काम था। सच म। उनक बदतमीजी का जवाब वो बाद म दे देगा। िवचार म
प ता और ाथिमकता ने ही उसे देवता बनाया था।

‘हम ट और कांसे का पहाड़ बनाएंगे, और सर वती नदी क दशा बदल


दगे!’ िववा वन पुजारी ने अपनी बात ख म क ।
क म हैरानगी भरी खामोशी थी। चं धर और सोमद , दोन ही
तािवत योजना क कामना और सादगी पर मु ध थे। हालां क तब वो भी
नह जानते थे क देवता ने नदी के पहले बांध क परे खा तैयार कर दी थी।
‘काम पूरा करने के िलए मुझे एक हज़ार घोड़े, दो सौ हाथी, चार हज़ार
आदमी और कांस,े ट, लकड़ी, तांबे और र सी क उपल ध सारी आपू त
चािहए। इस प रयोजना का नेतृ व म वयं क ं गा और तब तक म नदी के
कनारे ही र ग ं ा। अगर सारा मां फर से अपने ब को िनगलने का फै सला
लगी, तो उनक वेदी पर पहली आ ित मेरी ही चढ़ेगी।’ देवता आधे-अधूरे
काम म यक न नह करता था। ले कन पल भर के िलए वो वयं भी भूल गया
था क ांड हमेशा आपक बात सुन रहा होता है।
क म बुदबुदाहट थी। जो योजना िववा वन पुजारी ने तािवत क थी,
उसे अ वीकार करना मुि कल था। ले कन इसे वीकार कर लागू करना भी
उतना ही मुि कल था।
कु छ पल के सोच-िवचार के बाद पंिडत चं धर अपने आसन से खड़ा हो
गया। शांित क िवनती म उसने अपने दोन हाथ उठाए। कु छ पल मनुहार
करने के बाद उसने सबको खामोश रहने का आदेश दया। हड़ पा का स य
और समथ नेतृ व आज अपने च र के िवपरीत उ ड तरीके से वहार कर
रहा था। इसम कु छ तो गड़बड़ थी।
‘मेरे िम और भाइय ,’ चं धर ने कहा, ‘देवता िववा वन पुजारी ने हम
एक नह , बि क अनेक बार मुि कल से बचाया है। या हम भूल गए ह क
उ ह ने यु के परमे र सुरा क सेना को हराया था और हड़ पा म पहली बार
पांच हज़ार अ को लेकर आए थे? या हम भूल गए ह क उ ह ने वयं
काली शि य का सामना करते ए, अथववेद का सह-लेखन कया था, जब
हमम से कोई भी काले जादू का सामना नह कर पा रहा था? मुझे अ छी तरह
याद है जब काशी के घाट पर वो सुरा के बारह तलवारधा रय से अके ले लड़े थे
और उ ह अके ले ही प त कर दया था। उ ह ने मेरी जंदगी भी बचाई...’
िववा वन पुजारी के योगदान और उपलि ध याद करते ए चं धर कु छ
पल के िलए भावुक हो गया। उसने अपना मुंह नीचे करके अपने भर आए
आंसु को रोका। फर उसने िसर उठाकर पूरे िव ास और अिधकार से ऐलान
कया।
‘अगर देवता कहते ह क हम पवत बनाएंग,े तो हम बनाएंग!े अगर वो
कहते ह क हम मां नदी क दशा बदल सकते ह, तो हम कर सकते ह! भाइय
और िम , हम ट और कांसे का पवत बनाएंगे!’

‘वो हो जाएगा, वािमनी। जैसे ही देवता नृ यांगना के िनजी क से बाहर


िनकलेगा, वो अपने िब तर पर धराशायी हो जाएगी। और हां, के सर दूध के
सारे बतन म शा, गुन और अप के ारा दी गई बूटी िमला दी थी। हां, प रषद
के सभी सद य, अिभयंता और अ य उससे भािवत हो गए ह।’
काम क अब तक क उ ित के बारे रं गा अपनी माल कन ि य वदा को,
उसके गु क म खड़ा होकर बता रहा था। वह खड़ी ई सब सुन रही थी,
जब क आसमान पर छाए ए बगनी और लाल बदल उसके मुंह पर भयानक
परछा उ प कर रहे थे। आम प से देखने वाले के िलए रं गा कसी जीण-
शीण मं दर म देवी क पूजा करने आया था। ले कन कोई नह जानता था क
ि य वदा क काली आ मा दूसरी तरफ खड़ी होकर सब सुन रही थी।
जैसे ही रं गा जाने को आ, उसक शैतान माल कन ने अपना आखरी आदेश
सुनाया।
‘रं गा यान रहे, आज जो पुजा रय और अिभयंता के साथ आ है, वो
कल से हड़ पा के हर िनवासी के साथ हो जाना चािहए। नगर के हर कु एं,
तालाब और झरने म शा, गुन व अप ारा दया नशीला पदाथ िमला दो!’
‘जी, वािमनी,’ रं गा ने जवाब दया। वह सोच रहा था क उसक
माल कन नगर क सामा य जनता से वा तव म चाहती या थी। उसे ये
जानने के िलए लंबा इं तजार नह करना पड़ा।
‘दो दन म, हड़ पा ज़ंदा लाश और पागल लोग का नगर बन जाना
चािहए!’ ि य वदा गुराई।
गोवा (16व सदी)
अनैितक धमयु

बेतहाशा हांफते और कांपते ए वो आदमी ऐसे भाग रहा था, जैसे कोई अपनी
मौत से बचने के िलए भागता हो। या कोई ऐसा इं सान िजसने अपने ल य के
िलए अपनी जान देने क ठान रखी हो। उस काली और तूफानी रात म
वा मी क के पास, क कण के तटीय े के , बोपदेव गांव (जहां वो पला-बढ़ा
था) क तंग गिलय म भागने के ये दोन ही कारण मौजूद थे।
वह दो िनदयी पुतगाली ह यार , तोवा और अगोि त हो से बचते ए
भाग रहा था, जो उस मन स रात म गांव क झोपिड़य के बीच से उसका
पीछा कर रहे थे। काला चोगा पहने, हाथ म फरसे जैसी कु हाड़ी पकड़े ये दोन
काितल सा ात यमराज से भी अिधक भयानक थे। चमक ली धातु का,
धारदार दांत वाला उनका यह हिथयार अपने बद क मत िशकार के गले,
खोपड़ी और चेहरे को फाड़ डालने म कभी भी नाकामयाब नह रहा था। गहरी
रं गत वाले गोवा वासी के ित उनके दल म बेपनाह नफरत भरी थी, और
िपछले कु छ महीन म तोवा और अगोि त हो अपने काम क वजह से
वयं शैतान का दजा हािसल कर चुके थे। ले कन बात इतनी ही नह थी।
वा मी क के पास एक 3,300 साल पुराना क मती खजाना था, जो कसी भी
क मत पर पुतगािलय के हाथ नह पड़ना चािहए था। भले ही वो क मत आज
रात वा मी क क ददनाक मौत ही य न हो। या फर पूरे बोपदेव और इसके
800 िनवािसय के जलकर खाक हो जाना ही य न हो।

इसक शु आत गोवा के तट पर बड़े-बड़े जंगी-जहाज के आगमन से ई थी।


16व सदी म ये यूरोप के त कालीन शि शाली राजवंश क फौज थी। ये
िवशाल समु ी सेना और कसी के िलए नह , बि क पुतगाल के पांचव राजा
इमानोएल के िलए लड़ती थी। और इमानोएल वयं ऑडर, रोम म बैठे बड़े
भाई के िलए काम करता था।
शु आती हमले ह के और िछपे ए थे। पुतगाली जहाज म, गोवा के शांत
तट पर पाद रय और ‘संत ’ को भेजा गया, और फर िसपािहय को। गोवा
के लोग इन पाद रय ारा बंिधत धा मक िमलन और ाथना सभा को
देखकर चकरा गए, जब क कु छ ही दूरी पर बड़ी और अधीर फौज लड़ने के
िलए तैयार खड़ी थी। वहां एक गोरे ई र के यार क बात हो रही थ , जब क
कु छ ही दूरी पर पुतगाली सैिनक र क यासी तलवार चमकाते ए खड़े थे।
वहां एक ई र के ऊपर दूसरे ई र क े ता के उपदेश दए जा रहे थे, जब क
शांित से रहने वाले सादगी पसंद लोग के िलए यह याल ही अनजाना था।
वो तो अपने भगवान के साथ खुश थे।
इस जबरन थोपे गए यार के बीच, वे धीरे -धीरे ले कन प प से समझ
गए क ये पादरी और िमशनरी गोवा के येक धा मक सं थान और इमारत
क त परता से तलाशी ले रहे थे। वो इन जगह पर िसफ घूमने ही नह जाते
थे, बि क वहां कई दन और कभी-कभी तो ह ते तक िशिवर बनाकर टक
जाते। कसी म भी आपि करने क िह मत नह थी। कोई भी कनारे पर डेरा
डाले हिथयार से यु जहाज क अनदेखी नह कर सकता था।
एक चीज प थी। ये पादरी, ये संत, और सफे द कपड़े पहने ये आदमी...
सब कसी चीज क तलाश कर रहे थे।
कोई ऐसी चीज जो उ ह हर हाल म चािहए थी। कसी भी क मत पर।

वा मी क एक नु ड़ से मुड़ा और सीधे तोवा क चमकती कु हाड़ी का


िशकार बन गया। धार ने वा मी क के सीने को चीर दया था, िजसम से तुरंत
र का फ वारा फट पड़ा। बहादुर गोवा वासी दलदली िम ी पर िगरा, अब
उसके सीने से गाढ़ा लाल मु प से बह रहा था। पुतगाली काितल आगे
बढ़ा और अपनी कु हाड़ी उठाकर आखरी वार करने को तैयार आ। वो
वा मी क के दो टु कड़े करने वाला था।
उस काली रात म बरसात अब हंसक प से बरस रही थी। वा मी क इस
बद दमाग आदमी को हमले के िलए तैयार देख पा रहा था। पल भर के िलए
तोवा पर चमकती िबजली क रौशनी पड़ी, उसके कु हाड़ी के दांत शैतान
के पंज क तरह नुक ले दख रहे थे। वो मौत से भी अिधक भयावह लग रहा
था।
वा मी क वयं को यूं ख म होने नह दे सकता था। उसे अपनी जान क
परवाह नह थी। ले कन उसके वा कट म रखा आ प दुिनया के सारे खजाने
से अिधक बेशक मती था। वह मानवजाित क आखरी उ मीद था। यहां तक
क पुतगाल का बेिहसाब नरसंहार भी उस हंसक िनयित के सामने कु छ नह
था, जो मानवजाित के नसीब म बदा था। वो प ही आखरी उ मीद था। उसी
म वो राज था जो इस पृ वी को बचा सकता था।
मौत का सामना करते ए, जब वो पीछे क तरफ रग रहा था, तब उसने
अपनी बची-खुची जान को समेटा। उसके हाथ म एक प थर आया, और उसने
तुरंत उसे उठाकर तोवा पर हमला कया। प थर सही िनशाने पर लगा।
एक मरते आदमी का पूरा दम िलए, उस प थर ने पुतगाली का मुंह कु चल
दया। टू टे ए जबड़े के साथ शैतान तोवा धाड़ से जमीन पर िगरा। वो मर
चुका था।
वा मी क हांफते ए खड़ा आ, उसे अहसास था क अगोि त हो कसी भी
पल वहां प च ं ता होगा। वह यह भी जानता था क उसका अंत नजदीक था।
गहरे घाव से अिधक मा ा म बह चुका र अब उसके होश उड़ा रहा था। उसे
वो प सुरि त हाथ म प च ं ाना ही था, और गोवा म एक ही इं सान था, िजस
पर वो भरोसा कर सकता था। उसे वो प उस अके ले हंद ू पुजारी तक
प च ं ाना था, जो इस पुतगाली अिभयान क राह का रोड़ा बन सकता था।
उसे यह प माकडेय शा ी के दरवाजे तक प च ं ाना ही था।

दरवाजे पर तेजी से खटखट हो रही थी। बादल क गरज भी दूसरी सभी


आवाज को दबा रही थी, फर भी दरवाजे पर हथोड़े समान होती द तक ने
माकडेय शा ी को न द से बेरहमी से उठा दया था। वो तेजी से दरवाजा
खोलने बढ़ा, और अपने ि य िम वा मी क को ल लुहान पाया। वो मर रहा
था।
माकडेय अपने गोवा के िम को अपने कं ध पर उठा अपनी छोटी से
झ पड़ी म ले गया। अपने िम का घाव जांचने के िलए उसने लालटेन जलाई।
जो उसने देखा, उससे वो सकते म रह गया। वा मी क का धड़, कं धे से लेकर
कमर तक पूरा चीर दया गया था। उसके िम के पास बस अब कु छ ही सांस
का समय बचा था।
‘वो उसे तोड़ने वाले ह, माकडेय! वो हमारे िशव मं दर को तोड़ने वाले
ह...’ वा मी क ने कहा, तभी उसे र भरी खांसी का धसका लगा।
‘कोई बात नह । तुम आराम करो। इस बारे म सुबह बात करगे।’ माकडेय
शा ी ने अपने िम से झूठ कहा। वह जानता था क वो अगली सुबह नह
देखने वाला था।
‘मुझे बेवकू फ मत बनाओ, माकडेय। हम दोन जानते ह क मेरे पास अिधक
समय नह है।’
माकडेय शा ी गोवा म हंद ू साधु के छोटे से सं दाय का अगुआ था।
कहा जाता था क उसके पूवज घोड़ से हज़ार मील दूर का सफर करके यहां
प चं े थे। वो यहां शायद कसी बाढ़ या लय से बचकर आए थे। ऐसा माना
जाता था क वो कसी महान रह य क र ा कर रहे थे। वो अपने साथ म
ब त सा धन लेकर आए थे, िजसे उ ह ने ब त से नेक काय म खच कया।
उनके सं दाय ने िशव और िव णु के ब त से िवशाल मं दर बनाए थे, और
उनके आसपास जनक याण के सं थान भी थािपत कए थे। ज द ही इस
िवराट तटीय इलाके के लोग इस सं दाय का दल से स मान करने लगे। उनके
रह य का याल धीरे -धीरे समय क रे त म दब गया। अनेक पी ढ़यां गुजर
और गोवा के लोग ने माकडेय शा ी के वंश को अपना ही बना िलया।

‘ये उनके हाथ पड़ने ही वाला था माकडेय, तभी मने चाबी लेकर, मोहर तोड़
दी, और इसे बाहर िनकाल िलया,’ वा मी क ने समझाया।
‘तुम ब त साहसी हो मेरे िम । तु हारा नाम एक दन अमर हो जाएगा,’
माकडेय ने शांित से जवाब दया, उसने अपनी बांह म अपने मरते ए िम
को यार से भर रखा था।
‘वो तु ह... मेरे... वा कट म िमलेगा, माकडेय...’ वा मी क ने आगे कहा,
वो अब और दद नह सह पा रहा था। उसका घायल शरीर दद से छटपटा रहा
था।
माकडेय खामोशी से रो रहा था। वो अपने िम को ऐसे दद म नह देख पा
रहा था, खासकर तब, जब वो जानता था क उसका िम मानवजाित के भले
के िलए अपने ाण का बिलदान दे रहा था।
वा मी क अब कु छ और नह बोल सका। वो सांस नह ले पा रहा था।
उसक दुिनया अंधकारमय होने लगी थी। अपना न र शरीर छोड़ने से पहले,
उसने र म डू बा अपना हाथ बढ़ाया और माकडेय शा ी के चेहरे को छु आ,
उसके माथे से ठोड़ी तक र लगाते ए। वा मी क ने अब अपने अंितम श द
कहे।
‘वे अब एक भारी-भरकम ढांचा बनाने वाले ह... हमारे मं दर क जगह
पर, माकडेय... और उसे पिव नाम से पुकारने वाले ह। ये खून-खराबा उस
गोरे गड़ रए के नाम पर कया जा रहा है, जो उनके ित अपने यार और
बिलदान क बात करता था।’
वा मी क अब सुबक रहा था... िजतना उसे शारी रक दद हो रहा था,
उतनी ही ये तकलीफ क इं सान कस क हैवान बन रहा है।
‘हम बचा लो, माकडेय। हम बचा लो। आज रात यह जगह छोड़कर िनकल
जाओ। अभी िनकल जाओ। पूव क तरफ जाओ मेरे िम , जावा और सुमा ा के
नजदीक देश म। ये प अपने साथ ले जाओ।’
माकडेय नह जानता था क या कहे। पूरे हालात भावुक कर देने वाले थे।
एक तरफ तो उस प को बचाने से अिधक कु छ ज री नह था। दूसरी तरफ
उसे कु छ नह पता था क कहां जाना था।
‘हां, वा मी क, म क ं गा, मेरे भाई। म पूरी कोिशश क ं गा। ले कन म पूरी
तरह िनि त नह ।ं तु ह कै से लगा क म इस नरसंहार से मानवजाित को
बचा सकता ?ं ’
‘ य क... य क... माकडेय...’ वा मी क हांफा और माकडेय क बांह म
बेदम िगरने से पहले अपना िसर उठाकर, उसके कान म कु छ कहने क कोिशश
क।
उसके गुजर जाने के लंबे समय बाद भी, उसके आखरी श द माकडेय के
कान म गूंजते रहे।
‘माकडेय... तुम आधे इं सान, आधे भगवान हो।’

ये मुकाबला बराबरी का नह था।


अगोि त हो ने अपने कं ध से जांघ तक, लगभग अभे कवच पहन रखा
था। उसके दोन हाथ म दो ताकतवर तलवार थ , िज ह वह अपने पंख क
तरह लहरा रहा था। ीक धातु का टोप उसने अपने िसर क सुर ा के िलए
लगाया आ था। उसके कमरबंद म कई तेज कृ पाण झूल रहे थे। और इन सबसे
बढ़कर, उसके लोहे के दांत जो इं सानी मांस के भूखे थे।
दूसरी तरफ माकडेय शा ी िनह था खड़ा था और उसका धड़ िनव था।
वो खड़ा आ अपने दु मन को देख रहा था, अंतहीन बरसात ने उसके बिल
शरीर को िभगो दया था, और उसके ल य को भी साफ कर दया था। वह
बदले क आग म जल रहा था। वा मी क क लाश अभी भी माकडेय क
झ पड़ी म पड़ी, अपने अंितम सं कार का इं तजार कर रही थी।
अगोि त हो ने माकडेय पर गु साए सांड क तरह हमला कया, अपनी
भारी तलवार को तेजी से घुमाते ए। माकडेय शा ी िबना डरे अपनी जगह
पर खड़ा रहा। इससे पहले क अगोि त हो क तलवार अपने िशकार पर
िगरती, माकडेय उसके हमले से बचने के िलए कसी मािहर कलाकार क
तरह, एक झटके से अपनी जगह से िहला। कला रपया टू के िनयिमत अ यास
से सधी अपनी मु ी का एक कड़क वार उस पुतगाली सांड क पसिलय पर
कया। माकडेय क उं गिलय म घातक बाघ के नाखून थे। जैसे ही उसने
अगोि त हो को िगराया, उसने उसके ऊपर िगरकर उसका सीना फाड़ दया,
उसक अंतिड़यां बाहर िनकालते ए।
ये मुकाबला बराबरी का था ही नह ।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
नयनतारा

िस और आदरणीय िववा वन पुजारी और मनु क जोड़ी, नयनतारा के


संप और शाही महल के शानदार ती ा गृह म गव और सािधकार खड़ी थी।
सौ सैिनक क सुर ा म, वो अपने बिल घोड़ पर उसके आंगन तक आए थे।
िववा वन पुजारी के दमाग म िपछली रात ई प रषद सभा क बात
अभी तक गूंज रही थ , खासकर लय को लेकर क गई चं धर क
भिव यवाणी। देवता के ब त जोर देने और समझाने-बुझाने के बाद,
आिखरकार सर वती नदी क दशा बदलने या उसक दानवीय लहर को
रोकने के िलए प थर, लकड़ी और कांसे के मानविन मत पवत पी ढांचे को
बनाने क बात मान ली गई थी। िववा वन पुजारी क बाक बची रात हड़ पा
के वा तुकार, सेना य और प रषद के सद य को आगे का काम समझाने म
बीती थी। अिभयंता और वै दक अंक शा म जबरद त पकड़ होने क वजह से
देवता ने अपने मह वाकां ी तािवत योजना का पहला ा प तैयार कर
िलया था। योजना का ा प उ ह ने सोमद और उसके अिभयंता के दल के
पास छोड़ दया था, िजससे आगे का काम चालू होने से पहले वे उसे समझ
सक। िववा वन क योजना थी क नयनतारा के साथ इस फालतू के मसले को
िनबटाकर वो ज दी से ज दी हड़ पा को बचाने के अपने उ े य पर लौट
जाएगा।
देवता मन ही मन, इस भ ती ा गृह क शान देखकर च कत था।
चमकदार फश इतना िचकना था मानो धातु का प रमा जत आईना ही लगा
दया गया हो। तंभ पर बेहद ही आकषक और न ाशीदार र जड़े ए थे।
क के कोन म लंबी-लंबी, कामुक ितमाएं रखी ई थ , िज ह यहां वेश
करते ए िववा वन पुजारी ने देखा था। महल क हवा ताजे फू ल और अनोखी
बू टय क गंध से यु थी। बड़े से क के म य म ऊंचे-ऊंचे फ वार क
ृंखला लगी थी, िजनम ऊंचाई से िगरने पर पानी सघन हो जा रहा था। उ
ेणी के वादन समूह उपकरण से कणि य संगीत उ प कर रहे थे, जो वहां के
माहौल को और जीवंत बना रहा था।
ले कन इस िनवास थान से अिधक इसक द और अतुलनीय ठाठ वाली
माल कन ने देवता को च कत कया। आकषक नयनतारा ने बड़ी शान से क
म वेश कया, उसके जादू म एक पल को तो वयं देवता भी ठगा सा रह गया।
िववा वन पुजारी अपनी आंख पर भरोसा नह कर पा रहा था। नयनतारा
वग से उतरी अ सरा से कु छ कम नह लग रही थी। उसक हर चीज ब त
तस ली से गढ़ी गई थी। उसके भूरे बाल उसक तराशी ई गदन पर एक ढीले
से जूड़े म बंधे ए थे। उसक गौरवण वचा यूं चमक रही थी, मानो वो अभी
गुलाब, के सर और दूध म नहाकर आई हो। उसके भरे ए ह ठ म एक
वाभािवक उभार था, जो देखने वाल को खुद-ब-खुद उसक ओर आक षत
कर लेता था। उसक बड़ी-बड़ी आंख मानो अमृत का याला थ और लंबी
पलक उसक खूबसूरती पर नजर का काला टीका लगा रही थ ।
मनु तुरंत भांप गया क उसका यहां इस क म मौजूद होना ठीक नह है,
खासकर तब जब नयनतारा अपनी पूरी शोखी से वहां मौजूद थी। उसने
झुककर िववा वन और नयनतारा को हाथ जोड़े और तुरंत क से बाहर
िनकल गया। इस बीच, नयनतारा क नजर एक पल के िलए भी िववा वन
पुजारी से नह हटी थ ।
िववा वन ने यान दया क नयनतारा उसके सामने िनल कामुकता से
खड़ी थी, अपना छरहरा और चूड़ी वाला हाथ, अपने िनतंब पर टकाए। उसने
एक सफे द और कु छ अिधक ही बारीक कपड़ा लपेटा आ था, िजसम उसका
तराशा आ बदन बमुि कल ही िछप पा रहा था। वो व उसके बाएं कं धे से
घूमता आ, उसक जांघ के ऊपरी भाग तक आ रहा था, िजसम से उसके
चमकदार लाल रं ग के अंद नी व साफ झलक रहे थे। उसका बाक सारा
बदन, दािहने कं धे से लेकर हंसली और फर भरे ए तन, पतली कमर और
टांग... सब िबना व के न थे। िववा वन ने मन ही मन उसके अिव सनीय
आकषण और स दय को सराहा, ले कन उसम कोई लालसा नह थी। देवता का
अपनी भावना पर पूरी तरह से िनयं ण था।

‘यह ती ा क आपके यो य नह है, सूय, मेरे वामी,’ नयनतारा ने कहा।


‘कृ पया इन चरणकमल को मेरे िनजी क म लाकर उसे ध य बनाएं,’ उसने
नजाकत से कहा।
िववा वन पुजारी को यह िवनती अनुिचत लगी। ले कन वो तिनक भी नह
िहचका।
‘जैसी आपक इ छा हो देवी,’ उसने जवाब दया।
‘अपनी सेिवका को नयनतारा पुका रए। या नयन जैसे क मेरे संर क
यार से मुझे पुकारते ह।’
‘ठीक है, नयनतारा। या अब हम यायालय के उस समन के बारे म बात
कर सकते ह, जो मेरे पु मनु को भेजा गया? इसम ज र कोई गलतफहमी ई
है।’
‘आपक सेिवका तो गलितय क गठरी है, वामी,’ नयनतारा खूबसूरती से
िखलिखलाई।
िववा वन क आंख म देखते ए वो अपने िनजी क म जाने के िलए मुड़
गई, ये उसके िलए पीछे आने का संकेत था। िववा वन पुजारी ने उसक बात
मानी। उसके मन म कोई डर नह था। वयं अपना भी नह ।

नयनतारा का शयनक कसी भी तरह यौन ड़ा क ज त से कम नह


था। वहां क हवा ताजे फू ल , कपूर और धूप से सुगंिधत थी। िवशाल सफे द
और फरोजी पद ने उस क क िभ िखड़ कय और रौशनदान से आने
वाले सूय के काश को रे शमी बना दया था। दुलभ और अप र कृ त फ टक से
जिड़त िवशाल झूमर क के बीचोबीच लगा था, जो सुगंिधत म दरा के
अलंकृत झरने के समान लग रहा था। बड़े से क के एक कोने म धातु के पीले
रं ग के ढांचे म बैठने के िलए बड़ी-बड़ी ग यां लगी थ , िजन पर गहरे नीले रं ग
के गावत कये रखे थे। क के दूसरे कोने म आलीशान, गोलाकार िब तर था,
िजस पर गहरे काले रं ग क रे शमी चादर िबछी थी।
‘कृ पया मेरे छोटे से यार भरे घ सले म पधा रए, महान देवता,’ नयनतारा
भारी आवाज म फु सफु साई और जैसे ही िववा वन पुजारी ने क म वेश
कया, नयनतारा ने अंदर क तरफ से दरवाजा बंद कर िलया। अब उसके
नशीले नयन म शरारत झलक रही थी।
िववा वन दृढ़ खड़ा था, उसने उसके ि य च र पर कोई ित या न देने
का िनणय िलया।
‘वो समन य भेजा गया, नयनतारा?’ उसने पूछा, इस बार कठोरता से।
क संगीतमय हंसी से भर गया, ऐसी खनक िववा वन पुजारी ने कभी
नह सुनी थी। नयनतारा क हंसी ऐसी सुनाई पड़ रही थी मानो हज़ार
अलौ कक वीणा ने एक सुर म अपने तार छेड़ दए ह ।
वह अब िववा वन पुजारी के करीब आई और िनल ता से उसके कु छ
अिधक ही समीप आकर खड़ी हो गई, उसका बदन िववा वन के बिल शरीर
को लगभग रगड़ रहा था, और उसके उभरे ए ह ठ उसक ठोड़ी को सहलाने
के करीब थे। वो सीधे उसक आंख म देख रही थी। िववा वन पुजारी अब
उसके भ चेहरे को नजदीक से देख पा रहा था और अब नयनतारा के बदन
क गंध उसक नाक म समा रही थी। उसे मानना पड़ा क यह एक ती नशा
था, और उसे वयं को संभाले रखने के िलए सामा य से अिधक मेहनत करनी
पड़ रही थी। आिखरकार, वो आधा-इं सान भी तो था।
‘ या मेरे वामी उस समन के िबना अपनी इस सेिवका को अपने इतना
करीब आने का अवसर देते?’ उसक सुगंिधत ास अब िववा वन पुजारी के
चेहरे पर पड़ रही थी।
िववा वन पुजारी ोिधत आपि से पीछे हटा और इस युवा मोिहनी क
िह मत से च कत रह गया। इससे पहले क वो कु छ कह पाता, नयनतारा ने
एक ही झटके म अपना सफे द व उतार दया, और अब वो चमकदार जमीन
पर पड़ा था। एक अ य त कदम से, वो बेबाक से उसक तरफ बढ़ी और
अपनी बाह िववा वन पुजारी के िगद डालते ए और अपने होठ को तड़प से
उसके होठ से सटा दया।
बनारस, 2017
नैना

यह एक नई और घिन दो ती थी। िव ुत देव-रा स मठ के श ागार के


बीचोबीच बैठा था। मठ के बेसमट म यह एक अंिधयारा कमरा था, आ म के
ब त से गु कमर म से एक। िव ुत लगातार िसगरे ट िपए जा रहा था। उसे
अब कसी क परवाह नह थी। वो बस घाट पर िमले उस मासूम चेहरे वाले
लड़के के बारे म सोच रहा था। और वो कै से उससे िहसाब चुकता करने वाला
था।
वो लोग घेरा बनाकर बैठे थे और सभी हिथयार, तरतीब से बीच म रखे
ए थे। यह एक तरह क ेजटेशन थी, िजसका िनरी ण िवराट यो ा बलवंत
कर रहा था। गोदाम म पुरानी एनफ ड बो ट-ए शन गन के साथ ही कु छ नई
िवनचे टर रायफल भी रखी थ । वहां बेिमसाल शॉटगन, िप टल और
रवॉ वर भी थ , जो को ट, बेरेटा और वे ले कॉट जैसी े कं पिनय से ली
गई थ । और फर वहां ले स भी थे—जो कला रपया टू िवजेता का े
हिथयार माने जाते थे।
िव ुत अपने सामने रखे हिथयार और कारतूस के जखीरे को देखकर हैरान
था। मठ वाकई म छोटे तर के यु से िनबटने के िलए पूरी तरह तैयार था।
‘हमारे पास लाशिनकोव और चाइनीज ेने स य नह ह, बलवंत
दादा?’ िव ुत ने मजाक म पूछा।
‘ य क हम आतंकवादी नह ह, िव ुत,’ बलवंत ने सपाट जवाब दया।
‘हम संर क ह, िव वंसक नह ।’
उसने आगे बताया, ‘यहां जो भी हिथयार आप देख रहे ह वो वैध ोत से
खरीदे गए ह, उनका सरकारी लाइसस है और उनके खरीदार अिधकतर
रटायड ि टश अिधकारी या भारत सरकार के कमचारी ह। मठ के इन दो त
को भरोसा था क इन अिधकार का इ तेमाल सुर ा म ही कया जाएगा,
अपराध म नह ।’
िव ुत मठ के यु मुख म िज मेदारी और नेक का यह भाव देखकर
भािवत था। हालां क उसके मन म कु छ और सवाल भी घुमड़ रहे थे।
‘ले कन दादा, मठ म आपको इतने हिथयार क या ज रत है? हम
कससे लड़ाई क तैयारी कर रहे ह?’
बलवंत ने उ सुक नजर से िव ुत क आंख म देखते ए िसर िहलाया। वह
नह जानता क बात कहां से शु कर।
‘इस मठ का अि त व सैकड़ साल पुराना है िव ुत। इसने सु तान से लेकर
काितल , हमलावर से लेकर सा ा यवा दय के हमले को झेला है, और
समयानुसार हम उनके साथ खड़े भी रहे ह। जब येक ईमारत, घर, मं दर,
यहां तक क महान काशी िव नाथ का मं दर भी उन हंसक हमल म ढह गए
थे, तब भी मठ अपना अि त व बरकरार रख पाया। स दय से कोई दो सौ
यो ा-साधु ने हज़ार सैिनक क अपनी सेना को बचाए रखा।’
अब हर कोई बलवंत क बात यान से सुन रहा था, मानो अचानक ही उ ह
अहसास आ था क देव-रा स मठ 1,600 वष से भी अिधक ाचीन था।
‘हमने लड़ाइयां भी लड़ी ह, जो इितहास तक म दज नह ह। ये बंदक ू और
तलवार बाहरी ष ं के सामने हमारी अंितम सुर ा पंि है। और हम ये भी
नह जानते ह क वो ष ं कस तर पर रचा जा रहा है। आपने देखा न
िव ुत, हम इस सबम अके ले ह।’
‘कै सा ष ं , दादा? और अके ले होने से आपका या मतलब है?’ बलवंत
के आखरी वा य से हैरान हो िव ुत ने पूछा।
‘ये बात आपको आपके बाबा बताएंग,े िव ुत। वो ही अ छी तरह जानते ह
क कै से आपको इस अक पनीय सचाई के बारे म बताएं।’
िव ुत ने हां म िसर िहलाया। वो भी महान ारका शा ी के साथ अगली
मुलाकात का बेस ी से इं तजार कर रहा था। उसे ब त कु छ जानना था। ऐसा
लग रहा था, मानो काफ कु छ दांव पर लगा था।

घेरे म बलवंत िव ुत के बा ओर बैठा था। फर उसके पास सोनू, जो शा ी


और पुजारी वंश के ित सम पत था। नैना िव ुत के दािहनी ओर थी, उसका
कं धा िव ुत के कं धे से सटा आ था। वहां गोवधन भी था, इस समूह म सबसे
अिधक प रप । इन सबम नया और बाहरी ि था बाला, िव ुत का
िव सनीय िम । वो उस सुबह ही महज चार घंटे के नो टस पर द ली से
लाईट लेकर आया था।
‘तो लान या है, िविडयो?’ बाला ने िव ुत को देखते ए पूछा।
ुप के दूसरे लोग बाला और िव ुत क घिन दो ती से हैरान थे। ज द ही
सभी ने मान िलया था क वो दोन ब त ही करीबी िम थे।
‘म उस बा टड को ढू ंढ़कर, मार डालूंगा,’ िव ुत ने वॉ टर पीपीके
ऑटोमे टक िप टल को जांचते ए कहा।
‘ओह... ओह... यक नन हम उसे ढू ंढ़ लगे, िव स और उससे बदला भी ले
लगे। ले कन उसे मारने से या मतलब है, यार?’ बाला ने कहा। ‘हम अब
1700 ईसापूव म नह रह रहे ह, यार।’
िव ुत ह के से मु कु राया। ‘हां-हां... म जानता ,ं बाला। तुम जानते हो ना
क मेरा या मतलब है।’
‘िबलकु ल हम मारगे,’ बलवंत ने उसके बीच दखल देते ए कहा। वो एक
ही साथ नाराज और हैरान था क दु मन को मारने या न मारने को लेकर
चचा क ही य जा रही है। जहां तक वो जानता था, दु मन से िनबटने का
एक ही तरीका था।
बाला ने अब अपने पास बैठे यो ा से दखने वाले ि को गौर से देखा।
उसके दोन कं ध पर दो छोटी तलवार रखी थ । वो िखलिखलाकर हंस दया,
उसे यक न नह हो रहा था क ये अजीब सा दखने वाला आदमी कानून को
मानने को तैयार ही नह था।
‘बल वंदर सर... खून करना गैर कानूनी है,’ बाला ने कु छ मजाक से, ले कन
इस अंदाज से कहा क इस आ द-मानव को बुरा न लगे। ले कन वो इसम पूरी
तरह असफल रहा।
बलवंत अपना नाम गलत िलए जाने क वजह से बाला पर फुं फकारने ही
वाला था, क सोनू ने दखल देते ए इस भूतपूव िमिल ीमैन क गलती
सुधारने क कोिशश क , ‘बाला भाई, बल वंदर नह ... हमारे कमांडर-इन-
चीफ का नाम बलवंत है।’
‘बलवंत... बल वंदर.. एक ही बात है ना... य सर?’ बाला ने बलवंत क
तरफ आंख मारते ए उसे िचढ़ाया।
सभी हंस पड़े, और िव ुत ने बलवंत के घुटने पर हाथ रखकर उसे शांत
करने क कोिशश क । नैना ने हंसते ए, एक पल को अपना िसर िव ुत के कं धे
पर टका दया। हंसते-हंसते उसका चेहरा लाल हो गया था। बलवंत को पहले
से ही बाला पसंद नह था। जब क दूसरी तरफ बाला उस आदमी को और
अ छे से जानना चाहता था, जो िव ुत के िलए जान लेने को तैयार था।

िव ुत ने मठ क कटीन से एक कप चाय ली और छत पर चला गया। उसने


िसगरे ट जलाई और दालचीनी क खुशबू वाली चाय का एक घूंट भरा। ाचीन
वाराणसी क धूल-धूस रत और हलचल भरी नगरी उसके सामने फै ली ई थी,
आड़ी-टेढ़ी गिलय म बने, आपस म जुड़े ए छोटे-छोटे घर और मं दर। जैसे ही
उसने अपनी मालबोरो िसगरे ट से लंबा कश िलया कसी ने उसके ह ठ से
िसगरे ट िनकाल ली। उसने मुड़कर देखा तो पाया आकषक नैना उसके साथ
खड़ी उसक िसगरे ट से कश ले रही थी। सु ा मारते ए ही उसने शरारत से
िव ुत को देखकर आंख मारी। िव ुत ने िवरोध म उसे घुड़क दी। ले कन मन
ही मन वो उसे देखकर खुश था। ठीक उसी पल उसे दािमनी क याद आई।
उसने तुरंत ही उस चुंबक य आकषण को झटक दया, जो वो नैना क तरफ
महसूस कर रहा था।
नैना ने अपने ह ठ से िसगरे ट िनकाली, उसक ह के रं ग क िलपि टक क
छाप िसगरे ट के ठूं ठ पर थी। िबना परिमशन के , बेिझझक ही उसने िसगरे ट
वापस से िव ुत के ह ठ से लगा दी। उसने िसगरे ट वह छोड़ी नह । उसने
िव ुत को भी नह देखा। अपनी उं गिलय म ही िसगरे ट पकड़े वो उ मीद कर
रही थी क िव ुत ऐसे ही कश ख चे। ये एक अजीब ले कन भावशाली
तरीका था, िजससे दो बात साफ होती थ । पहला, क िव ुत के साथ वो
शारी रक प से िबलकु ल सहज है। और दूसरा, क उसे उसक परिमशन क
कोई ज रत नह है।
‘म नह जानता था नैना क तुम मोक करती हो,’ िव ुत ने उसक
उं गिलय म पकड़ी ई िसगरे ट से लंबा कश लेते ए कहा।
‘तुम मेरे बारे म जानते ही या हो, िव ुत?’ उसने तुरंत अपनी भ ह
उठाकर जवाब दया। वो बेहद आकषक नजर आ रही थी। और नाराज भी।
उसके सवाल से श मदा हो, िव ुत बस हंसकर रह गया। वो सही कह रही
थी। उसने कभी उससे संपक करने क कोिशश नह क थी, जब क बचपन म
वो बे ट ड आ करते थे। िव ुत को महसूस आ क वो अब तक क देखी
लड़ कय म सबसे अिधक यारी थी। छत पर चलती हवा क वजह से उसके
बाल क एक लट, उसके सुंदर चेहरे को सहला रही थी। हर समय उसक
आंख म एक नमी महसूस होती थी, उसके हंसते समय भी। इससे उसम एक
खास कोमलता महसूस होती थी। िव ुत जानता था क नैना ने बचपन म ही
अपने माता-िपता को खो दया था, और वो एक बेहतरीन छा और माशल
आट म मािहर रही थी। ले कन अभी, यहां इस पल म वो बस एक सुंदर लड़क
थी, िजसक वो िजतनी भी तारीफ करता, कम थी।
‘नह सच म, िव ुत, तुमने मेरे साथ ऐसा य कया? मने तु ह शायद सौ
प िलखे ह गे, िजनम से तुमने एक का भी जवाब नह दया। मने साल
तु हारा इं तजार कया। तुम एक फोन भी नह कर सकते थे? कोई छोटा सा
संदशे नह भेज सकते थे?’ नैना िव ुत क आंख म िशकायती नजर से देख
रही थी।
‘ह म, पर मुझे दोष मत दो, नैना। तुम तो जानती ही हो क द ली क
लड़ कयां कतनी फै शनेबल होती ह। और तुम... तुम थोड़ी मोटी भी थ , अगर
म सच क ं तो?!’ िव ुत ने शरारत से नैना क टांग ख चते ए कहा। वैसे भी
वो नह जानता था क और या जवाब देता।
‘तुम, तुम कतने ठरक हो...!’ नैना ने नकली गु सा दखाते ए कहा और
िवरोध म िव ुत क मजबूत बांह म ह का सा पंच लगा दया। इस सबम
उसका हरा, नरम दुप ा, उसके कं धे से फसल गया, ले कन उसने परवाह नह
क । उसने यान भी नह दया। ले कन िव ुत ने यान दया। िबना दुप े के
नैना और भी अिधक यारी लग रही थी। उसक झूलती बािलयां उसके चेहरे के
नारी-सुलभ आकषण को और बढ़ा रही थ , और उसक पतली तराशी ई
गदन से वो सीधे कसी कहानी से िनकली नाियका नजर आ रही थी। हालां क
वो भी िव ुत क तरह अपनी उ के तीसरे दशक क शु आत म थी, ले कन
उसका आकषण, उसक खूबसूरती से उसक उ उ ीस साल से जरा भी बड़ी
नह लग रही थी।
िव ुत अब खुलकर हंसते ए, नैना क म ती भरी मु े बाजी से बचने के
िलए छत पर इधर-उधर भाग रहा था। नैना भी भागते-भागते उसका पीछा
कर रही थी, वैसे ही जैसे वो लोग बचपन म कया करते थे। बस इस समय
उनके बीच एक यार भरा आकषण था, बावजूद इसके क िव ुत बार-बार
इससे बचने के असफल यास कर रहा था।
‘ओके , बस अब ब त हो गया!’ िव ुत ने कहा, वो लोग अभी भी हंस रहे थे
और हांफ रहे थे।
वो दोन भागते-भागते क गए थे, और अपने घुटन पर हाथ रखे सांस लेने
क कोिशश कर रहे थे।
‘ठीक है, तो कहो क तु ह इसका अफसोस है!’ नैना ने हांफते ए मांग क ,
इस समय वो और अिधक आकषक लग रही थी। इतना भागने से उसका चेहरा
पूरी तरह लाल हो चुका था। वह िव ुत के साथ हंस तो रही थी, ले कन कु छ
भावुक भी हो गई थी। ये सब उसके िलए कोई खेल नह था।
‘हां, हां... आई एम सॉरी! मुझे अफसोस है, नैनू...’ िव ुत ने समपण म
अपने हाथ जोड़ते ए कहा। उसे अहसास नह आ क उसने उसे नैनू कह
दया था—वो नाम िजससे वो यार से उसे बचपन म पुकारा करता था।
नैना त ध हो गई। यह नाम उसके िलए इतना खास था क फर कभी
उसने इसका िज कसी से नह कया था। यह नाम अके लेपन म भी उसके
साथ होता था। वयं को आईने म देख बात करते ए भी वो इसी नाम का
योग करती थी। उसने अपना िसर टेढ़ा करके िव ुत क आंख म देखा मानो
उससे यार क मनुहार कर रही हो।
‘और कहो क तुम दोबारा मुझे अके ला छोड़कर नह जाओगे?’ उसने धीमे
से फु सफु साया, उसक हंसी अब धीमे से उसक िवनती बन गई थी, वो एक ही
समय पर मु कु रा भी रही थी और रो भी रही थी।
िव ुत कु छ पल के िलए सु हो गया। एक तरफ तो वो इस लड़क को
बांह म भरकर खूब यार देना चाहता था। ले कन दूसरी तरफ जानता था क
उसका यार कसी और का हो चुका था। दािमनी ही उसक जंदगी का यार
थी।
कु छ पल ठहरकर उसने कहा, ‘नैना... यारी नैना... म तु हारी ब त
परवाह करता...’
‘श ह...’ नैना ने अचानक अपनी नम और पतली उं गली िव ुत के ह ठ
पर रख दी।
‘नैना नह , िव ुत। मुझे उसी नाम से पुकारो जो तुमने अभी िलया था,’
उसके नजदीक सरककर, उसने उसके कान म फु सफु साते ए कहा। वो
सवािलया नजर से उसे देख रही थी, उसका गाल िव ुत के गाल को सहला
रहा था, और उसके ह के से खुले मुंह ने एक पल को िव ुत के ह ठ को छु आ।
िव ुत उसक कोमल और सुगंिधत सांस को अपने चेहरे पर महसूस कर
सकता था। वह देख सकता था उसक नाजुक आंख कसी भी पल भावना म
बहने को तैयार थ ।
इससे पहले क वो कु छ भी कह पाता, नैना ने बेबाक से आगे बढ़कर,
अपनी बाह िव ुत के गले म डाल, अपने यासे ह ठ को िव ुत के ह ठ से
सटा दया।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
इं सान जैसा गुनाह। देवता सा
प ाताप।

िववा वन पुजारी अपने घोड़े को सरपट दौड़ा रहा था। वह नाराज था, वयं से
भी और हालात से भी। जंदगी म पहली बार उसने कसी मिहला पर हाथ
उठाया था, और वो इस िघनौने काम के िलए वयं को माफ करने को तैयार
नह था। आवेश म आकर वो पल भर को अपनी ही ताकत भूल गया था। देवता
के हाथ का झापड़ नाजुक नयनतारा के िलए काफ भारी था। दद से िच लाकर
वो जमीन पर जा िगरी थी, उसके िनचले ह ठ से काफ र बह रहा था।
िववा वन के साथ ही उसका ितभाशाली पु , मनु भी घोड़ा दौड़ा रहा
था। अपने यात िपता के िलए वो जरा परे शान था। नयनतारा के महल के
सेवक और िववा वन के अनेक अंगर क के साथ मनु ने भी अपने िपता को
नयनतारा के क से ोध म बाहर आता देखा था। इससे पल भर पहले ही
ती ा क और नयनतारा के महल के वेश ार पर जोर के थ पड़ और फर
उसके बाद चीख क आवाज सुनाई दी थी। उसक आवाज से लग रहा था क
वो काफ दद म थी। िववा वन पुजारी ती ा क से बाहर आ, अपने घोड़े
पर सवार हो, िबना कसी से कु छ बोले वहां से िनकल गया। उसका पु और
सैिनक भी चुपचाप उसके पीछे चल दए। उन सभी ने िववा वन पुजारी के
झक सफद व पर र के दाग देखे थे।

‘देवता िसफ स ऋिष को जवाब देते ह, और कसी को नह ,’ मनु ने स ती से


लाल लबादे वाले सैिनक को कहा। वो अपनी आवाज म आवेश महसूस कर
सकता था, ले कन मनु यूं ोधपूण बताव करने वाल म से नह था। िजस
अवणनीय अपमान का सामना उसे और उसके प रवार को करना पड़ रहा था,
उसके बावजूद भी उसने अपना संयम बनाए रखा था।
‘ वामी, म तो बस पुजारी प रषद के आदेश का तु छ सा सेवक ।ं म यहां
िसफ अपना कत िनभाने आया ,ं ’ सैिनक- मुख ने स मान से अपना िसर
झुकाते ए कहा। वह जानता था क वह िति त जमीन पर खड़ा था,
परा मी िववा वन पुजारी के िनवास थान पर। ले कन उस पर भी उस
नशीली बूटी का जादू हो गया था, िजसे मनु ने नई िमली ताकत का घमंड
माना था। उसके अ यिधक स मानपूण बताव म कु छ तो गड़बड़ थी।
घटना का म आगे इतनी तेजी से बढ़ा क पूजनीय पुजारी प रवार कु छ
समझ ही नह पाया। िववा वन पुजारी और मनु के घर प च ं ने के कु छ ही पल
बाद, हड़ पा के सश िसपािहय क भारी टु कड़ी उनके दरवाजे पर आ प च ं ी
थी। िसपािहय क पगड़ी क लाल पताका हवा म लहरा रही थी। कु छ घंट
पहले तक िजसके बारे म सोचा भी नह जा सकता था वो अब वा तिवक प
म घ टत हो रहा था। समय कतनी तेजी से पलटता है क बुलंद क मत भी
पल भर म धरती पर रगती नजर आती है। िसपाही आयवत के सबसे
शि शाली और पूजनीय आदमी के नाम का िगर तारी अनु ा-प लेकर आए
थे। उ ह कसी और को नह , बि क वयं देवता को िगर तार करके लाने का
आदेश िमला था!

िववा वन पुजारी तभी अपने िन यकम के यान पर बैठा था, क संजना को


ह के से अपना गला खंखार कर उसक शांित म िव डालना पड़ा। तुरंत ही
िववा वन ने आंख खोल द , उसे अप रिचत इं सानी चंता का अहसास हो गया
था। िववाह के तीस वष के बंधन म, संजना ने कभी उसके यान म िव नह
डाला था। वो अ छी तरह जानती थी क देवता क अवणनीय शि य का
ोत उनका िनयिमत प से कया जाने वाला वै दक यान और अ यास ही
है। इससे उसे साधारण न र ािणय क अपे ा चुर ान, असीिमत ताकत
और आ याि मक े ता ा होती थी। और इससे भी अिधक यह उसक
आ मा को गहरे ेम और न ता से भर देता था। वो महान स ऋिष का
एकमा चयिनत और य अनुयायी था। वा तव म कई साल से हड़ पा
और यहां तक क पड़ोसी रा य मोहन जोदड़ो म भी कई लोग वही मानते थे,
िजसका वादा स ऋिष ने िववा वन से िपछली सुबह कया था— क एक दन
िववा वन पुजारी परा मी सात मुिनय क पंि म शािमल होगा। और वो
सब मां सर वती क आठ संतान—अ ऋिष के प म दुिनया को अपना
आशीवाद दगे।
ले कन वैसा होना नह था। िनयित ने अपने गभ म या िछपाया है, ये कोई
नह जान सकता।
उनम से एक होने क बजाय, चं मा के एक च म यह देवता वयं
स ऋिषय का अि त व िमटा देने वाला था। उ ह पावन मुिनय को, िज ह
वो हड़ पा का संर क और अपना द मागदशक मानता था, उ ह ही वो
धरती से हटा देने वाला था।
डर और हंसा का जो दौर अभी हड़ पा जीने वाला था, वैसा मानवजाित ने
कभी नह देखा था, ले कन अब से वो बार-बार इसक सा ी बनने वाली थी।
हर बार आदमी कसी एक शैतान क अ ा य चाह को पूरा करने के िलए
मासूम का र बहाने वाला था। हर दौर लाख लोग क चीख को सुनेगा,
िसफ एक के ‘अहम्’ क यास को पूरा करने के िलए। और इसक शु आत
ज द ही होने वाली थी। पहला तब जब एक दूर ीप के रा स-राजा को ख म
करने के िलए वयं ई र को अवतार प म आना पड़ेगा; फर एक महायु
क शु आत सगे चचेरे भाइय म होगी और पूरी पीढ़ी के र के बाद िवजय
हािसल होगी; फर काले लेग क महामारी इस धरती पर िवनाश करने के
िलए आएगी; फर धरती के क म गौरवण गड़ रए के अनुयाियय और
मोह मद के सेवक म जंग िछड़ेगी; और फर चार साल के यु म सम त
दुिनया क आ ित चढ़ जाएगी; फर िव -यु क समाि धरती पर सूरज के
फटने के साथ होगी। और फर कभी इसका अंत नह होगा। इस र पात का
कोई अंत नह होगा।
इस सबक शु आत महान देवता िववा वन पुजारी के पतन के साथ होगी।
उसे धरती के सबसे िघनौने अपराध के िलए चुना जाएगा, या िनयित ने उसे
ज रया मा बनाया था, ये तो सा ात वयं अनंत भी नह जानता था। ांड
उसके स से अिधक कड़ी परी ा लेने वाला था। और वो इसम असफल हो
जाने वाला था। वो अपना भयानक ाप न िसफ अपने श ु , न िसफ हड़ पा,
बि क उसके रा ते म आने वाली हर चीज को देने वाला था—िजसम पवत म
रहने वाले सात मुिन भी शािमल थे। ले कन ोध सबसे भयानक जहर है।
बदला लेने क अपनी अंधी भावना म जो बात वह पूरी तरह भूल गया था, वो
थी क स ऋिषय के िव कया गया कोई भी काम— वयं ई र से जंग का
ऐलान था!
ले कन फर, सबसे काली बुराई और सबसे उजली अ छाई एक ही दय म
िछपी होती है। उसे दबाए रखना या उभारना िसफ उसी ाणी पर िनभर
करता है। मानो उसे िनयित ने महान सात मुिनय के िवनाश के िलए चुना था,
और कोई नह बि क िववा वन पुजारी ही स ऋिषय को अमर बनाने वाला
था। वह उ ह समय के अंत तक आसमान म चमकते तार के प म बदलने
वाला था।
यह देवता इं सान जैसा पाप करने वाला था। और उसका ायि त ई र
क तरह।
बनारस, 2017
मानवजाित का सबसे बड़ा अस य—
भाग II

िव ुत एक बार फर से ारका शा ी के साथ बैठकर खुश था। उस बात को


चौबीस घंटे से अिधक का समय बीत गया था जब डमा टर को िव ुत क
पॉके ट म कसी अनजानी व तु का अहसास आ था, और परदादा और परपोते
के बीच क मुलाकात बीच म क गई थी। इस बीच काफ कु छ घट चुका था,
बलवंत के साथ, बाला के साथ... और नैना के साथ।
‘सच को न तो कभी झूठ क तरह बेचा जाता है और न उसका वैसे चार
कया जाता है, िव ुत। सच वो होता है जो कह गहराई म दबा होता है,’
ारका शा ी ने अपनी बात शु क ।
'म जानता ं तु हारे िलए वो सब भुला पाना आसान नह होगा, जो एक
िस टम के तहत तु हारे आधुिनक कू ल और कताब ने तु हारे दमाग म भरा
है। उन कताब क साम ी यूरोपीय या पि मी भाव से त रही है। तो
इससे पहले क हम आगे बढ़, हड़ पा के उ रगामी इितहास और खोज के बारे
म इन ज री सवाल पर िवचार कर ल—
'हड़ पा स यता कब अि त व म थी और कब इसक खोज क गई?
' कसने इसक खोज क ?
'इसे मूल प से या पुकारा जाता था?
'इसक औपचा रक प से खोज क घोषणा के अनेक दशक पहले वहां
या आ था?
‘और सबसे अिधक ज री, उसके बाद वहां या आ?’
िव ुत यान से सब सुन रहा था। अपने बीमार परदादा के मुंह से तेजी से
िनकले इन सवाल को सुनकर वो खुश था। िव ुत को अभी उनसे काफ कु छ
सीखना था, ले कन वो जानता था क समय ब त तेजी से भाग रहा था।
‘बाबा, म इस े म िव ान नह ।ं ले कन म जानता ं क एक ि टश
अिधकारी ने वष 1921 म हड़ पा साईट क खोज क थी। शायद उसका नाम
सर जॉन बट माशल था। अगले कु छ साल म दूसरे थल जैसे मोहन जोदड़ो
क भी खोज क गई... शायद 1931 तक, अगर म गलत नह ं तो।’
ारका शा ी इितहास के इस भुला दए गए अ याय के बारे म िव ुत के
आधारभूत ान से भािवत थे। इस पर ह के से हंस दए।
‘ या आ, बाबा? या मने कु छ गलत कहा?’ िव ुत ने जानना चाहा।
‘नह नह ... तुमने िबलकु ल सही कहा है,’ ारका शा ी ने जवाब दया।
‘अब मुझे बताओ क तुम और या जानते हो, या मुझे कहना चािहए, तु ह
और या पढ़ाया गया है, तु हारी उस संधु घाटी स यता के बारे म? मुझे सब
कु छ बताओ।’
िव ुत को कु छ श मदगी ई। खूब पढ़ाकू होने के बावजूद, वह हड़ पा के
बारे म अिधक कु छ नह जानता था, कम से कम उतना तो नह क इस िव ान
बुजुग से इस पर लंबी चचा कर सके । उसने खूब जोर लगाकर अपनी याद से
वो सब िनकाला जो अब तक पढ़ा था।
‘जैसा क मने बताया, बाबा, म इस िवषय का िव ान नह ।ं ले कन जो
कु छ म जानता ,ं उसके आधार पर आपको कु छ बताने क कोिशश क ं गा।’
‘शु हो जाओ,’ ारका शा ी ने अपने च र से िवपरीत धैय दखाते ए
कहा।
‘हड़ पा वो स यता थी, िजसका िव तार संधु घाटी स यता म माना गया
है, िजसका क बड़ा िह सा अब पा क तान म है। 2600 से 1700 ईसापूव के
दौरान यह स यता अपने चरम पर थी और इसे कां य युग भी माना गया।
हड़ पा और मोहन जोदड़ो खुदाई म िमली ई जगह म सबसे अिधक
लोकि य , हालां क 1000 से अिधक ऐसे थल खुदाई म ा कए जा चुके
ह। उस युग के कु छ अ य उपिनवेश म धोलावीरा और राखीगढ़ी का नाम
िलया जा सकता है, ये दोन आधुिनक भारत म ह।’
ारका शा ी मु कु रा रहे थे। वो हमेशा से जानते थे क िव ुत बड़े और
बेरहम शहर का कोई सामा य लड़का नह था। ले कन अब वो अपने परपोते
क सराहना कर रहे थे क उसे गैर-पारं प रक और अ िस हड़ पा के बारे म
भी कतना कु छ पता था, जब क वो वयं नई द ली म सूचना तकनीक का
िबजनेस कर रहा था।
‘तुम मेरी उ मीद से अिधक जानते हो, िव ुत। अब थोड़ा और जोर डालो
और मुझे बताओ क हड़ पा के बारे म और या है जो तुम जानते हो। उसक
स यता और उसके लोग के बारे म तु ह या पता है? और उसके अंत के बारे
म तुम या जानते हो?’

एक घंटा गुजर चुका था। संधु घाटी स यता के बारे म िव ुत ने अपना पूरा
ान खाली कर दया था। एनसीईआरटी क कताब से उसने इस बारे म जो
भी पढ़ा था, सब कु छ वो बता चुका था। इतने साल म हड़ पा के लोग ,
िवड़ इ या द के बारे म अखबार या पि का म पढ़े गए लेख क जानकारी
भी उसने उड़ेल दी थी।
उसने महान ारका शा ी को बताया क हड़ पा म अ छी तरह से िन मत
इमारत थ , बेहतरीन िनकासी णाली थी और वो लाल रं ग क प ट का
इ तेमाल करते थे। उसने उन मुहर और िम ी के बतन के बारे म भी बताया
िजसे भारत के पुरात वीय िवभाग ने हािसल कया था। उसने बताया क कै से
िम और मेसोपोटािमया के ही साथ हड़ पा भी मानवीय स यता क सबसे
पुरानी बि तय म से एक था। और आिखर म, इस िवषय पर अपने ान से
मु ध होते ए उसने ारका शा ी को बताया क हालां क तब तक तांबे और
कांसे का इ तेमाल तो होने लगा था, ले कन लोहे के इ तेमाल के कोई माण
उपल ध नह थे।
‘म इतना ही जानता ,ं बाबा। दरअसल म वयं नह जानता था क मुझे
इस बारे म इतना पता था!’ िव ुत ने दल से हंसते ए कहा। ारका शा ी
भी उसके साथ हंस।े िव ुत को यक न नह आ रहा था क उसने भयानक
मठाधीश को आिखरकार हंसा दया था। यहां इस पल म, देव-रा स मठ के
क म बने इस िवशाल क म, िव ुत और कु छ नह बस एक छोटा सा ब ा
था, जो अपने दादा के साथ खेल रहा था।
इससे पहले क ारका शा ी अपना गला साफ करके , आगे क बात कर
पाते, िव ुत ने उ ह बीच म टोका।
‘और हां, एक और चीज बाबा... उ ह खुदाई म कु छ मू तयां भी ा ।
उन सबम सबसे अिधक लोकि य थी एक नृ यांगना क मू त, िजसने अपनी
पूरी बांह म चूिड़यां पहन रखी थ , और एक मू त थी एक-आंख के दाढ़ी वाले
पुजारी-राजा क । दूसरे वाले क मू त आज भी कराची के यूिजयम म रखी
है।’
िव ुत वयं से ब त खुश था। वो तो बस उठकर अपने परदादा के हाथ पर
ताली मारने वाला था। ले कन इससे पहले क वो अपने इस ान के सागर म
तैर पाता, उसने देखा क इन मू तय के िज से डमा टर कु छ परे शान हो
गए थे। ऐसा लगा मानो हंसी का वो ल हा भाप क तरह उड़ गया।
‘ या आ, बाबा?’ िव ुत ने जानना चाहा। ‘मने या कहा?’
ारका शा ी कु छ पल खामोश रहे। वो िव ुत को अजीब कोमलता और
कौतुहल के भाव से देख रहे थे।
‘वो मू तयां यूं ही संयोगवश पुराताि वक को नह िमल गई थ , िव ुत,’
मठाधीश ने गंभीरता से कहा। ‘उ ह खोज के िलए ही रखा गया था।’
िव ुत अपने परदादा क बात को समझ नह पा रहा था। ले कन वो शांत
रहा। वो ारका शा ी क बात म दखल नह डालने वाला था। वो समझ पा
रहा था क अभी कसी बड़े राज से पदा उठने वाला था।
‘िजन मू तय का तुमने िज कया है वो उन दो िवशेष च र क ह,
िज ह ने मानवजाित क प रणित को बदलकर रख दया, िव ुत।’
िव ुत अब पूरी तरह चौकस था। वह अपने दल क धड़कन को सुन सकता
था। वो बुजुग के कहे हर श द को पूरे यान से सुन रहा था।
ारका शा ी ने गहरी सांस ली। और एक नाम बोला, िजसे िव ुत ने
पहले कभी नह सुना था। ले कन उसे सुनकर िव ुत क रीढ़ म िसहरन पैदा
हो गई। कसी तरह से वो नाम के पीछे िछपी मिहला को जानता था— कसी
अलग धरती पर, शायद कसी दूसरे समय म।
‘नयनतारा।’
कमरे म पूरी तरह स ाटा था। अपने ही ठं डे पसीने म िव ुत तर हो गया।
ये सब कु छ अवा तिवक लग रहा था।
‘नयनतारा कौन है? और... और...’ िव ुत वयं को ये पूछने से रोक नह
पा रहा था, ‘और वो दाढ़ी वाला पुजारी-राजा कौन था, बाबा?’
ारका शा ी ने िव ुत को हैरान नजर से देखा। उ ह ने उसे पास आने का
संकेत दया। िव ुत ने तुरंत आ ा का पालन कया और बाबा के िब तर के
कनारे आकर बैठ गया। जैसे ही उसके बाबा ने उसका हाथ अपने हाथ म िलया
िव ुत क आंख भर आ ।
‘मुझे बताओ, बाबा... वो ित त, दाढ़ी वाला आदमी कौन था?’ िव ुत
ने तुरंत जानना चाहा।
ारका शा ी ने िव ुत को िज ासा से देखते ए पूछा, ‘तुम सच म नह
जानते, िव ुत?’
िव ुत को कु छ समझ नह आ रहा था।
डमा टर ने फर अपना बायां हाथ उठाकर अपने परपोते के कं धे पर
रखा। जो भी वो कहने वाले थे, उससे िव ुत क जंदगी हमेशा के िलए बदल
जाने वाली थी।
‘वो तुम हो, िव ुत। वो दाढ़ी वाला पुजारी-राजा, िजसक बा आंख पर
दाग है... तुम ही हो।’
हड़ पा, 1700 ईसापूव
ह या

िववा वन पुजारी संजना क तरफ मुड़ा, तो पाया क उसक सुंदर और


तेजमयी प ी चंता से कांप रही थी। नयनतारा के महल से परे शान होकर
वापस आने पर, िववा वन ने यान और अ यास के मा यम से वयं को शांत
करने का िनणय िलया था। यान म खोने के पल म ही उसने कांसे और तांबे के
हज़ार हिथयार के आपस म रगड़ने और घर के आसपास आते अनेक घोड़
क टाप सुनी। िववा वन ऐसी यु ि थित का अ य त नह था। और अपनी
यारी प ी के चेहरे पर ऐसे डर के भाव भी वो सहन नह कर सकता था। वह
जानता था क कु छ अशुभ होने वाला था। ले कन चाहे जो भी हो जाए, वो
ऐसी धृ ता को माफ नह कर सकता था, जो उसके पिव घर म आकर, उसके
प रवार को यूं आहत करने का साहस कर सके ।
इस चढ़ाई से हैरान और ोिधत, िववा वन पुजारी अपने यान क से
बाहर िनकलकर, अपने आडंबरहीन ले कन िवशाल कु टीर के वेश ार क
ओर बढ़ा। महान देवता को वैसे समा य तौर पर ोिधत नह देखा जाता था।
अपने वै दक अ यास क वजह से उसने उन िवनाशकारी भाव पर िवजय पा
ली थी, िज ह सामा य मनु य म आम समझा जाता था। ले कन िपछले चौबीस
घंट क घटनाएं असामा य थ और उ ह ने ताकतवर िववा वन पुजारी को
भी िहला कर रख दया था।
जैसे ही वो उन बद क मत आ ामक से िमलने के िलए िनकला, उसके
िनजी र क ने अपने धनुष-बाण के साथ देवता के घर के िखड़ कय , दरवाज ,
बरामदे और छत से अपनी ि थित संभाल ली थी। उन नौ र क का चयन और
पालन-पोषण पुजारी प रवार ने अपने ब क तरह ही कया था। उ ह
िश ण कसी और ने नह , बि क वयं िववा वन पुजारी ने मनु के साथ ही
दया था, अपनी खास तलवारबाजी और कवच से दांव-पच िसखाते ए—यह
एक खास तरह क माशल आट थी, िजसे कोई सैकड़ साल पहले पूजनीय
यो ा-मुिन परशुराम ने सा रत कया था। ये नौ कसी िवशाल सेना के
स मुख भी इस घर क र ा करने के िलए पया थे। अपने हिथयार के साथ
वो तैयार खड़े थे, बस अपने वामी से आदेश के इं तजार म।
ार से कु छ कदम क दूरी पर, उसके असाधारण प से मनोहर और दुजय
पु , मनु ने िववा वन पुजारी का रा ता रोका। अपने महान िपता के स मान
म आदर से झुकते ए मनु मु कु रा रहा था। घर के दो खर यो ा उसके साथ
खड़े थे।
िववा वन ने यान दया क उसका पु मनु, जो अब तक ा ण संत का
साधारण और िवन जीवन जीते ए आया था, आज अपनी कमर पर एक
लंबी-चमकती ई तलवार लगाए ए था। उसके साथी भी यु के िलए तैयार
हिथयार उठाए ए थे। ले कन िजस बात ने देवता को भािवत कया, वो थी
मनु ने इतनी तेजी से नई तकनीक और िश पका रता को अपनाया था। उसने
मनु क उं गिलय के नाखून पर लगे बाघ-नख भी देखे, ये बाघ के ही पंजे थे,
िजसका आिव कार मोहन जोदड़ो और राखीगढ़ी के मु य रसायन िनमाता
ने कया था। बाघ-नख िपघले तांबे और संरि त नाखून क ती धातु का
िम ण था। म लयु म बाघ-नख एक घातक हिथयार सािबत होते थे।

‘मां सच म अिधक ही परे शान हो जाती ह... उ ह आपक ाथना म यूं दखल
नह देना चािहए था िपताजी,’ मनु ने कहा। ‘ये सब म संभाल लेता।’ िपता
और पु उनके दरवाजे पर खड़े मोचाबंद िसपािहय से कु छ ही कदम क दूरी
पर थे। हिथयार , तलवार और भाले क संयु गजना के साथ घोड़ क
िहनिहनाहट अब ब त तेज सुनाई पड़ रही थी। िपता और पु महसूस कर
सकते थे क िसपािहय ने अब तक उनके घर को चार तरफ से घेर िलया था।
मनु क उपि थित ने िववा वन पुजारी को एक अजीब और अतुलनीय
िव ास दया। शायद हर िपता अपने बढ़ते ब क उपि थित म ऐसा ही
महसूस करता हो, ले कन िववा वन अब तक इस भाव को नह जानता था।
पर वो हमेशा से एक बात के िलए िन ंत था क मनु एक असाधारण युवक
था। मन ही मन िववा वन पुजारी को मालूम था क उसका ि य और शानदार
पु का चयन इितहास म कसी बड़े काय को करने के िलए कया गया था।
‘म उनसे बात करता ,ं िपताजी,’ मनु ने दरवाजे के पास प च
ं ते ए कहा।
िववा वन पुजारी क झलक मा से ही उन िसपािहय क रीढ़ म िसहरन
उठ आई थी, जो उसके िवशाल ार के ठीक सामने खड़े थे। उनम से कसी क
भी िह मत नह थी क हड़ पा के सूय क आंख म सीधे देख सक। िववा वन
पुजारी का कद उगते सूय के समान था और हड़ पा क हर अ छाई का वो
ितिनिध व करता था। ये िसपाही जो देवता को ई र के समान ही पूजते थे,
अब वयं को िमले आदेश से गहन दुिवधा म थे। ई र को पकड़ने का साहस
कौन कर सकता था?
सीधे अपने यान क से िनकले, िववा वन पुजारी अपने घर के बाहर,
बरामदे म पूण ग रमा से खड़ा था। न -धड़ िलए ा ण का सुग ठत शरीर
सभी का यान आक षत कर रहा था। अपना म तक ऊंचा कए वह ती
नजर से मौजूद िसपािहय का िनरी ण कर रहा था। मनु और उसके दोन
साथी, देवता के साथ खड़े थे। िसपाही सैकड़ क सं या म होने के बावजूद भी
जानते थे क वो इस छोटी ले कन जबरद त स म टु कड़ी का यु म सामना
नह कर पाएंगे। मनु और उसके साथी अपनी वीरता और द ता के िलए
िव यात थे। ले कन असली खतरा तो वयं देवता था। कसी भी िवषम
प रि थित म, िववा वन पुजारी को परािजत नह कया जा सकता था।
‘इस गु ताख कायवाही का नेतृ व कौन कर रहा है? सामने उपि थत हो!’
मनु ने दल के नेता को सामने आने के िलए ललकारते ए कहा।
कसी ने कोई जवाब नह दया, और िसपाही एक-दूसरे को देखने लगे। मनु
ने फर से पूछा, इस समय अपनी आवाज और बुलंद करके ता क सभी को
सुनाई दे सके ।
‘इस दु साहसी मंडली का नायक कौन है? कसम इतनी िह मत है जो
देवता के घर पर िसपािहय के साथ चढ़ाई कर सके ?’
एक पल बाद, एक भीमकाय और दै य सा दखने वाला सेना य , हड़ पा
सेना क लाल लबादे वाली वद पहने, िसपािहय के बीच से जगह बनाते ए,
िववा वन और मनु के सामने आ खड़ा आ। वह घमंड से उन लोग को देख
रहा था, आिखर वह इस टु कड़ी का मुख था। िपता और पु हड़ पा के सबसे
बदनाम, और बेरहम सेना य को अपनी तरफ आता देख सचेत हो गए।
ये वही सं द ध कमांडर था िजसे िववा वन पुजारी ने एक साल पहले
बला कार और राज ोह के मामले म कठोर कारावास क सजा सुनाई थी,
ले कन उसे पंिडत चं धर क प ी ि य वदा क य िवनती पर छोड़ना
पड़ा था। मोहन जोदड़ो क राजकु मारी क िवनती ठु कराना मुि कल था। तभी
से सेना य क िनयुि ि य वदा के िनजी अंगर क के प म हो गई थी।
वो दु रं गा था।

ऐसा कै से हो सकता है? पुजारी प रषद उसके नाम का िगर तारी समन कै से
जारी कर सकती थी? िववा वन पुजारी सकते म था। उनम से हरे क का चयन
वयं देवता ने कया था, और उ ह ने हर अवसर पर उसके ित वफादारी क
शपथ ली थी। ले कन िववा वन पुजारी इतना बुि मान तो था क वो दुिनया
क रीत समझ पाता। वो जानता था क खुश क मती और दो त एक साथ ही
आते ह, और एक ही साथ चले जाते ह।
रं गा ने िववा वन पुजारी के सामने एक िलिखत प तुत कया और कहा
क उसे कल सुबह पुजारी प रषद के स मुख उपि थत होना था। प रषद दोन
ितिनिधय के साथ ही हड़ पा क याय णाली के सुपुद थी। इसे दोन
महानगर के साथ ही उनके आसपास के नगर और गांव म भी सबसे
शि शाली सं थान के प म थािपत कया गया था। वो िसफ मु य पुजारी
को ही जवाबदेह थे, वही पद िजसके िलए पहले से ही िववा वन पुजारी का
चयन कर िलया गया था। िजस सुबह को देवता को औपचा रक प से मु य
पुजारी बनाने के अनु ान हेतु चुना गया था, उसी सुबह को वह यायाधीश के
स मुख एक अिभयु के प म तुत होने वाला था! िनयित ने तो अपनी
दशा रे िग तान म रे त के टील से भी अिधक तेजी से बदल ली थी।
एक तरफ तो, िववा वन को यक न ही नह हो रहा था क ऐसा भी कु छ हो
सकता था और उसे लग रहा था क यह कोई बड़ी गलती थी। दूसरी तरफ
अपने आसपास खड़े मोचाबंद सैिनक को देखकर सचेत था, िज ह ने उसे,
उसके प रवार और उसके घर को क जे म ले िलया था। वो सब एक प
योजना के तहत काम कर रहे थे।
मनु अपने िपता को इस अपमान से गुजरते देख ोध से जल रहा था। वो
उस समन, या ज रत पड़ी तो उसे लाने वाले को ही चीर देने के ल य से रं गा
क तरफ बढ़ा। जैसे ही वो आगे आ, िववा वन पुजारी ने उसे रोक दया।
िववा वन ने अपने पु क तरफ मुड़कर उसे शांत रहने का संकेत दया।
‘म तु हारे साथ चलूंगा, रं गा। ले कन इससे पहले, या म जान सकता ं
क मेरे िव या आरोप लगाए ह,’ िववा वन पुजारी ने कहा।
‘ह या का,’ रं गा ने जवाब दया।
बनारस, 2017
मानवजाित का सबसे बड़ा अस य—
भाग III

‘जैसी क उ मीद थी, तुमने हड़ पा के बारे म मानक, सं थागत और िलखी ई


जानकारी ही दी है,’ ारका शा ी ने आहार क देवी, अ पूणा के स मान म
छोटी से ाथना बुदबुदाते ए कहा। बुजुग ने आगे कहना शु कया, ‘तुमने
मुझे वो ही बताया है जो तु ह और करोड़ दूसरे लोग को सालोसाल पढ़ाया
जाता रहा है।’
कई घंट क गहन चचा के बाद, वे अब साथ म खाना खाने बैठे थे।
ताकतवर ारका शा ी के साथ खाना खाने का अवसर िमलना एक दुलभ
सौभा य था। कसी भी दूसरे काम क ही तरह, मठाधीश भोजन हण करने
का काय भी पूरे िविध-िवधान से करते थे। ाचीन आयुव दक ंथ म िलखे हर
िनयम का वह पालन करते थे, और खाना अपनी उं गिलय से ही खाते थे।
िव दुत कु छ िव मय क ि थित म था। एक तरफ तो वो अपने परदादा के
साथ भोजन करने के अवसर को अमू य मृितय म दज कर लेना चाहता था,
और दूसरी तरफ अभी भी ारका शा ी क बताई अिव सनीय कहानी को
समझने क कोिशश कर रहा था। नयनतारा कौन थी? कोई िमथक य करदार
कै से हज़ार साल तक जीिवत रह सकता था? डमा टर क इस बात का या
मतलब था, जब उ ह ने हड़ पा के उस पुजारी-राजा को वयं िव ुत बताया
था? अपनी महानता, मिहमा और उपलि धय के बावजूद भी या आिखरकार
बुजुग का मानिसक संतुलन िबगड़ चुका था?
‘म पागल नह ,ं िव ुत,’ ारका शा ी ने कहा, मानो उ ह ने िव ुत का
दमाग पढ़ िलया हो। शायद वो दमाग पढ़ सकते थे।
‘म जानता ं क तुम सोच रहे होगे म एक मूख बुजुग ,ं जो ऐसी
कहािनय पर यक न करने लगा ।ं ले कन तुम जानते हो, जब म तु हारी उ
का था और मने पहली बार ाचीन अिभशाप के बारे म सुना था, तब म भी
ऐसा ही सोचा करता था।’
अब यह एक और नई बात थी। पहले ही िव ुत नए-नए राज सुनकर सकते
म था और अब यह कोई अिभशाप क बात आ गई थी। ये सब चल या रहा
था?! बचपन से ही वो जानता था क वो देवता था। उसक मां हमेशा ही और
हर चीज म बेहतर दशन करने पर, गव से फू लकर, अ सर अपने बेटे से यह
कहा करती थी। उसके िपता, महान का तके य शा ी ने उसे आधुिनक यान,
वै दक िव ान, यु और खास िसि यां िसखाई थ । उसे काशी के उस खास
काले रह य क भी जानकारी थी। ले कन अिभशाप?

मठ का येक ि , खासकर पुरोिहत जी, डमा टर क सेहत म जबरद त


सुधार देखकर च कत थे। महज तीन दन पहले ही तो उनक हालत कोमा म
प चं ने जैसी थी, वो बमुि कल ही कु छ बोल पा रहे थे और िब तर से उठ पाना
तो िबलकु ल ही बंद हो चला था। और यहां, वो खाना खाने के िलए बैठे ए थे,
और अपने परपोते से लगातार बात कए जा रहे थे। िव ास कर पाना मुि कल
था क अपने ि यजन क उपि थित से कोई इतनी तेजी से और इतनी अ छी
तरह ठीक हो सकता है। महान ारका शा ी जैसी आ याि मक आ मा भी
यार क ताकत से मुकाबला नह कर सकती थी।
खाना वा द भी था और सेहत द भी। खाना प ल पर परोसा गया था।
आयुवद के अनुसार, इ ह म भोजन करना सेहत के नज रए से बेहतर रहता है।
इन हरी प ल के साथ म पानी पीने के िलए िम ी का, तपाया आ कु हड़
दया जाता था, जो पुरवा कहलाता था। पानी से भीगने पर उनम से काशी क
िम ी क स धी गंध आती थी।
िव ुत क प ल पर परोसा गया हर ंजन ताजा पकाया आ था।
बासमती चावल सुगंिधत और फू ला आ था। टमाटर क बनी तरी तो मुंह म
पानी ले आने लायक थी। फर पालक और पनीर था, साथ तड़का लगी ई
पीली दाल। प ल के एक कोने पर ताजा दही रखा गया था, िजसम कटा याज
और हरा धिनया डाला गया था। सूखे प के बने एक कटोरे म कालीिमच क
वा द तरी दी गई थी। यह शाकाहारी भोजन था, जो ई र के िलए े था।
चावल ही उनका मु य आहार था, य िप अब उसे ि तीय मान िलया गया
था। यही महान आय का मु य आहार था। खाने म पहला थान पूरी ने ले
िलया था। उसका वाद दैवीय था। अपने सारे अनुशासन और तप के बावजूद,
ा ण पुजा रय और संत म इसके ित कमजोरी पाई जाती थी। ारका
शा ी और िव ुत भी इसके अपवाद नह थे।
मठाधीश ने अपनी पूरी से एक बड़ा सा कौर तोड़ा, उसे पालक-पनीर क
गाढ़ी तरी म डु बाया, और फर वो कौर अपने हाथ से िव ुत को िखलाया।
रसोइया, पुजारी जी, गोवधन, नैना और वहां मौजूद हर श स उस िवकट
मठाधीश के यूं ेह- दशन से त ध रह गया। दूसरी तरफ िव ुत इसके हर
पल का आनंद ले रहा था। जहां तक उसे याद था, वो हमेशा अपने परदादा के
यार से वंिचत रहा था।
िव ुत के देव-रा स मठ प च ं ने से पहले तक, कोई क पना भी नह कर
सकता था क ारका शा ी यूं संवेदनशील इं सान रहे ह गे। ले कन वो तो सच
म संवेदनशील थे। सबसे भयानक तांि क, सबसे िनमम वंश-नेता, इस सौर
णाली क सबसे ताकतवर आ मा—अपने परपोते को अपने हाथ से खाना
िखलाते समय भाव-िव वल हो रही थी।
प था, वो अभी भी... आधे-इं सान थे।

वो ारका शा ी के िनजी क म वापस आ गए थे। लंच ेक कई मायन म


एक नेमत रहा था। डमा टर ने अपने लंबे अरसे से िबछड़े युवा परपोते के
साथ गुजारे पल म, भावना मक सहजता का अनुभव कया। दूसरी तरफ,
िव ुत को भी हाल ही म सुने गए िमथ और आ यान को समझने का कु छ
समय िमल पाया। उसे सच म समझ नह आ रहा था क कस बात का यक न
करे और कसे नकार दे। ये दमाग से परे क बात थी, अवै ािनक, अजीब।
ारका शा ी िव ुत के मन क दुिवधा और अिव ास समझ सकते थे।
उ ह ने अपने इस युवा और आकषक वंशज को कु छ समय देने का िनणय
िलया। अपनी उं गिलय म माला फराते ए उ ह ने कई पल इं तजार कया।
‘मुझे बताओ, िव ुत, या तु ह सच म लगता है क हड़ पा म घोड़े नह
थे?’ ारका शा ी ने अपनी बात शु क । ‘या क यूरोप क कोई े न ल
हज़ार मील का सफर तय करके पूव क धरती पर उस िवशाल पशु को लेकर
प चं ी थी?’
िव ुत बैठकर सुन रहा था। उसके परदादा के मुंह से िनकली हर नई बात
उसके िलए रह य के नए िपटारे खोल रही थी।
‘और क हड़ पा का हर िनवासी गहरी- वचा का, अस य, आ दवासी था
जो पि म से आई कसी गोरी सेना के हाथ मुि का इं तजार कर रहा था?’
ारका शा ी ने पूछा।
कमरे म स ाटा था। वो बुजुग जो भी अजीब सवाल पूछे जा रहे थे, िव ुत
उनके जवाब म हां कहना चाहता था। ले कन वो जानता था क उसके परदादा
ये सवाल बस ऐसे ही पूछताछ के िलए नह पूछ रहे ह। इनके पीछे कोई गहरी
बात िछपी है।
‘बाबा, वो कहते थे क हड़ पा के लोग संधु घाटी ांत म तब तक रहे, जब
तक क घोड़ पर सवार, गोरे रं ग और नीली आंख वाले पि मी हमलावर ने
उ ह यहां से बेदखल नह कर दया। उसे े न ल माना गया िजनक पैनी
नाक थी और उनके नैन-न श आधुिनक यूरोिपयन से िमलते थे।’
ारका शा ी यान से सुन रहे थे, हालां क उनक आंख धीरे -धीरे जलने
लगी थ ।
‘ऐसा माना जाता था क ये यूरोप के आय क चढ़ाई थी जो खेती के िलए
जमीन और पानी क तलाश म आए थे और उ ह ने िवड़ को वं या से परे ,
दि ण क तरफ वािसत कर दया।’
‘तो इसके िलए ज र कोई बड़ा यु आ होगा?’ ारका शा ी ने पूछा।
‘तु हारी उस संधु घाटी स यता म 50 लाख लोग से अिधक क जनसं या
मानी गई थी। इतनी तादाद म लोग को िबना कसी भयानक यु के परािजत
नह कया जा सकता ना?’
‘ह म, शायद, बाबा...’ िव ुत ने अिनि तता से जवाब दया।
‘हड़ पा िनवासी जो ापार म िवशेष ता क नई उं चाइय तक प च ं े थे,
िज ह ने वजन और माप म सटीक दु ती दखाई थी, िज ह ने जल बंधन के
िलए हाई ौिलक तकनीक का इ तेमाल कया था, िज ह ने शहर का िनमाण
वै ािनक पुराताि वक प ित और आंकड़ से कया था, जो तांबा िपघलाने का
कारखाना लगा सकते थे और िवशालकाय ढांचे खड़े कर सकते थे, उनके पास
कोई सै य शि नह होगी या? या वो इतना सब छोड़कर ऐसे ही भाग
जाने वाले थे?’
िव ुत ने सहमित म िसर िहलाया।
‘तुम जानते हो ना क खुदाई से पता चला था क हड़ पा के नगर म
सुर ा के िलए िवशाल चार दीवारी का िनमाण कया गया था, िजससे कसी
भी फौज का अंदर घुस पाना लगभग असंभव था? या तु ह सच म लगता है
क 50 लाख लोग क िवशाल स यता, िजनके इतने अ याधुिनक नगर थे और
जो सब काम म समथ थे वो यूं ही हमलावर को देखकर भाग खड़े हो सकते
थे? यक नन वो ऐसा नह करते। तो अगर इन लोग को वा तव म ही सै य
यु म परािजत कया गया था, तो वो यु यक नन ब त बड़े तर का रहा
होगा और उन नगर पर क जा करने के िलए ब त सा नरसंहार भी आ
होगा।’
‘आप सही कह रहे ह, बाबा।’
‘हालां क वहां क घेराबंदी ागैितहािसक सेना के िलए लगभग असंभव ही
होती, य क हड़ पा के सभी मुख नगर न िसफ िवशाल दीवार से सुरि त
थे, बि क उनक शानदार जल-आपू त णाली और िवशाल अनाज गोदाम
क वजह से भी। कोई भी फौज जो उन नगर को घेरती, उसे वहां के
िनवािसय को भूखा मारने से पहले महीन इं तजार करना होता। तो पल भर
के िलए हम मान लेते ह क हमलावर ने शहर म वेश सै य दम पर ही कया।
तो उस मामले म खुदाईकता को यु म इ तेमाल होने वाले भारी हिथयार
के साथ ही त-िव त मानव शरीर भी िमलने चािहए थे। अगर प ट
हज़ार साल तक बची रह सकती ह, तो धातु से बने हिथयार और मानव
अि थयां य नह ?’
िव ुत ब त यान से सुन रहा था।
‘ले कन ऐसी कोई भी चीज नह िमली िव ुत। िसवाय कु छ टू टे ए कांसे
के तीर के , पुरात व िवभाग को यु या संघष का कोई भी िनशान खुदाई क
कसी भी जगह नह िमला,’ ारका शा ी ने कहा।
ये सब िव ुत के िलए काफ तकपूण और िश ा द था। उसने महसूस
कया क वो कभी इसक गहराई म गया ही नह क आय ने हड़ पा के लोग
को वा तव म वहां से कै से हटाया होगा। उसने बस उसे ही सच मान िलया,
य क वो कताब म िलखा था।
‘साफ है, जब कोई हिथयार या संघष का कोई िनशान नह िमला तो कोई
यु आ ही नह था। और अगर कोई जंग नह ई थी, तो कोई आ मण भी
नह आ था!’ बुजुग ने गिणत के ोफे सर क तरह कोई ज टल योरी
सुलझाते ए कहा।
िव ुत ने फर वो सवाल पूछा जो मठाधीश उससे पुछवाना चाहते थे।
उसने वो सवाल पूछा, िजसका वा तिवक जवाब, सैकड़ साल से चलाए गए,
झूठे सार म, इितहास के प म कह गुम हो गया था। और िजस जवाब के
बाद ये दुिनया हमेशा के िलए बदल जाने वाली थी।
ारका शा ी जानते थे क हड़ पा क कहानी के उन दबे ए प म,
मानवजाित का सबसे बड़ा झूठ िछपा था।
‘ले कन बाबा, अगर कोई आ मण ही नह आ था, तो आय कौन थे?’
हड़ पा, 1700 ईसापूव
पागल आदमी और ज़ंदा लाश

‘ये सब बकवास है!’ िववा वन पुजारी ने कहा। वो पुजारी प रषद के सामने


खड़ा था, उस बड़े से यायालय क के हर िनकास ार पर सैकड़ सैिनक खड़े
थे।
िपछले दन अपने घर क भारी मोचाबंदी के बाद भी, िववा वन पुजारी
को िव ास था क जब वो प रषद के सामने नयनतारा से ई अपनी मुलाकात
के बारे म बताएगा तो वयं पर लगे बेकार आरोप को पल भर म खा रज
करवा देगा। अगली सुबह वो पूरे जोश से यायालय के सामने उपि थत आ
था। फर भी उसका दल उदास था क ये सब ठीक उसी पल म हो रहा था जब
उसे जीवन का सबसे बड़ा स मान िमलने वाला था। अब हड़ पा के मु य
पुजारी क बजाय वो आपरािधक सुनवाई म अिभयु के तौर पर तुत आ
था।
‘आपको मेरे साथ इस लहजे म बात नह करनी चािहए, प रषद सद य,’
िववा वन पुजारी ने चेतावनी दी। वो प रषद या फर कसी को भी अपने
स मान क धि यां उड़ाने क इजाजत नह दे सकता था।
‘हां, म नयनतारा के घर गया था। और वो इसिलए क मेरे पु मनु के
िव एक झूठा आरोप प आया था। म जानता ं क यह कोई भारी गलती
थी और म इस मामले को सुलझाने के िलए उसके भवन म गया था।’
‘और मामले के िनपटान के साथ, ओ देवता आपने तो उस लोकि य
नृ यांगना को ही िनबटा दया?’ एक प रषद सद य ने चतुराई से ट पणी क ।
िववा वन पुजारी ने स ती से उस सद य क आंख म घूरा, वो कल तक
देवता क मौजूदगी म जोर से छ क तक मारने का साहस नह रखता था। आज
वो िववा वन पुजारी के सामने खड़े होकर ऐसा सवाल पूछने क धृ ता कर
रहा था। दरअसल हर इं सान अलग तरह से बताव कर रहा था। िववा वन ने
आज सुबह ज दी कु छ खाया था, िजससे उसे अपनी तिबयत कु छ िबगड़ती सी
महसूस ई। उसने उस बेचैनी को आज क सुनवाई को लेकर होने वाली
हलचल माना। रा ते म उसने देखा क उसके ब त से प रिचत उसे अनजान
नजर से देख रहे थे। यायालय क तरफ बढ़ते ए उसने गिलय म कई लोग
को लड़ते ए देखा, वो रा ते म, दुकान के बाहर और यहां तक क रहायशी
आंगन म भी खड़े हो एक-दूसरे पर िच ला रहे थे। यह सब स य और वै दक
जीवनशैली का अनुसरण करने वाली नगरी, हड़ पा म सामा य नह था।
ले कन आज हर कोई बेचैन और ोिधत नजर आ रहा था। उसक यारी नगरी
को ये या हो गया था?
प रषद के सद य भी आज सुबह िमले नाग रक से िभ नह दखाई दे रहे
थे। वो भड़के ए थे और गु से व बदतमीजी से बात कर रहे थे। उनक चाल म
घमंड था, अस य प से ठहाके लगा रहे थे और चालू कायवाही के बीच नकल
उतार रहे थे, हड़ पा के शालीन और ितभाशाली प रषद सद य कभी ऐसे
बताव नह करते थे। यह नगरी, इसक सं कृ ित और इसके लोग वेद और
सनातन धम के िनयम का पालन करने वाले थे। ले कन आज हड़ पा के ेही
और शांिति य लोग वयं जैसे ही नह लग रहे थे। आज वो जरा पगलाए से
नजर आ रहे थे। और बीतते हर पल के साथ उनक हालत और दयनीय होती
जा रही थी।
‘देिखए प रषद सद य, रं गा ने जब तक कल मेरे घर आकर नह बताया, म
जानता भी नह था क नयनतारा क ह या हो गई है,’ देवता ने कहा। ‘ई र
उसक आ मा को शांित दे और आ याि मक जीवन के उसके सफर म उसे अ छे
ज म ही िमल।’
आकषक नृ यांगना क आ मा के िलए ाथना करते समय, देवता को अपना
ोध बढ़ता आ महसूस आ। उसके अंदर सामने आसन पर बैठे सद य क
तरफ भागकर जाकर, उनका िसर धड़ से अलग कर देने अजीब सी इ छा ई।
वो जानता था क वो यह आसानी से कर सकता था। उसने तो उनको मारते
ए वयं क क पना भी कर ली। ले कन वो देवता था। पल भर म ही उसे
अहसास हो गया था क यह पागलपन भरा िवचार था और उसने तुरंत ही इस
याल को झटक दया। िववा वन पुजारी ने महसूस कया क यह उसके िलए
काफ असामा य बात थी। उसे या हो रहा था?
िववा वन को अहसास था क कु छ तो गलत था, हालां क वो अचेत प से
उस भाव से लड़ रहा था जो उसे अ ाकृ ितक प से ोिधत बना रहा था। वो
एक देवता था और अपने शरीर, मन, भाव और आ मा पर उसका पूरा िनयं ण
था। ले कन हड़ पा के दूसरे मनु य ऐसे नह थे। कुं और तालाब का दूिषत
जल उ ह पागल बना रहा था। मेसोपोटािमया के दै य गुन, अप व शा के आगे
उ ह ने घुटने टेक दए थे।
धीरे -धीरे वो लोग िवि जानवर क नगरी बनते जा रहे थे।

सुनवाई को अब दो घंटे से अिधक समय बीत चुका था। िववा वन पुजारी को


अब जाकर पता चल पाया था क सुंदर नयनतारा क मृत देह उसके सेवक
को, उसके िनजी क म, कस अव था म िमली थी। उसके बड़े से िब तर पर
र के तालाब म वो डू बी ई थी। तांबे का मोटा सा भाला उसके सीने के
आरपार हो चुका था। सही मायन म कसी ने भाले के मा यम से ही उसे
िब तर के लकड़ी के िसरहाने से ब ध दया था। असीम शारी रक बल और
अपार िनदयता से ही ऐसे कृ त को अंजाम दया जा सकता था। उसका सुंदर
चेहरा दद और संघष से िवकृ त हो चुका था, और उसक आंख ऊपर को चढ़ी
ई थ । डा कनी नयनतारा का शरीर छोड़ गई थी। वो अब उसके कसी काम
का नह था।
‘ओ देवता, आप जानते ह ना क उसके क से बाहर आते ए आपके सफे द
व पर उसके र के ध बे लगे थे?’ एक प रषद सद य ने पूछा।
‘और आपके वहां से िनकलने से पल भर पहले ही उसके भवन के सेवक ने
उसक दद भरी चीख सुनी थी!’ दूसरा सद य िच लाया।
िववा वन पुजारी ने अपना गु सा रोकने के िलए अपने दांत भ चे और आंख
बंद कर ल , वो अब पूरी तरह से ोध से उबल रहा था। हालां क जवाब उसने
िनयंि त आवाज म ही दया।
‘मने उसे िसफ एक थ पड़ मारा था। म मानता ं क उसके जैसी नाजुक
मिहला के िलए वो काफ स त था। वो जमीन पर िगर पड़ी थी, और उसके
िनचले ह ठ से र िनकलने लगा था। मुझे तुरंत ही अपने कए पर अफसोस
आ और मने उसे अपना व र प छने के िलए दया। इसीिलए उस पर
दाग थे।’
‘और या म पूछ सकता ं क महान देवता ने एक लाचार मिहला पर हाथ
उठाने का िनणय कै से िलया?’ एक और आधे पागल हो चुके पुजारी ने पूछा।
िववा वन पुजारी को उसक आवाज म ं य अ छा नह लगा।
‘उसने मेरे सामने अपने व उतारने क धृ ता क थी,’ िववा वन पुजारी
ने जवाब दया।
‘और...?’ त त पर बैठे एक आदमी ने दूसरे लोग क तरफ आंख मारते ए
पूछा। वो यायाधीश अब िववा वन पुजारी को ठरक लोग के समूह से अिधक
कु छ नह लग रहे थे। उसे अब सच म चंता होने लगी थी।
‘और उसने मेरे साथ शारी रक संबंध बनाने क कोिशश क ,’ िववा वन ने
जवाब दया।
‘तो ीमान उसका ईनाम तो यार से दया जाना चािहए था, न क थ पड़
से। नयनतारा हड़ पा का सबसे लजीज ंजन थी!’ एक प रषद सद य ने
चीखते ए कहा, और क के हर कोने से अ ील ठहाक क आवाज आने
लगी। िववा वन पुजारी को अपनी आंख और कान पर यक न नह हो रहा
था। हड़ पा का एक भी इं सान कसी मृत ि के बारे म ऐसी अस मानजनक
ट पणी नह कर सकता था। और ये पुजारी तो दुिनया क सबसे संत आ मा
म से एक थे। ये सब सुरा क मता ध और उ ड सेना जैसे य बताव कर रहे
थे?
िववा वन पुजारी ने िनणय िलया क उसे ज द से ज द इस यायालय से
बाहर िनकलना होगा। उसे बाहर जाकर वयं पता लगाना होगा क सबके
साथ आिखर आ या था। उसे भरोसा हो गया था क इस सबके पीछे कसी
काली और पापी शि का हाथ था। इससे पहले क ब त देर हो जाए, देवता
को वयं उस बुराई क जड़ तक जाना होगा। उसने यायालय क सुनवाई
ज दी से िनबटाने का फै सला िलया।
बनारस, 2017
‘तुम और म। यहां और अभी।’

‘हम इस रोमी परे रा को ढू ंढ़ना होगा,’ सोनू ने कहा। ‘ले कन ये कै से होगा?


वाराणसी एक बड़ा शहर है और हम कोई आईिडया नह है क खोज कहां से
शु कर।’
िव ुत ने बलवंत, बाला और सोनू के साथ िमलकर तय कया था क इस
रोमी नाम के श स को ढू ंढ़कर उससे िहसाब चुकता करना होगा। महान
ारका शा ी क आ ा और आशीवाद से अब वो ाचीन नगर म तलाश
अिभयान शु करने क योजना बना रहे थे। उनक योजना आसान थी। मठ
क गु चर सेना तुरंत ही काम पर लग जाएगी। हज़ार साल क सतक
योजना और संगठन क वजह से इस सेना के पास हज़ार खबरी थे। इस टु कड़ी
के जमीनी िसपािहय म छोटे दुकानदार और र शेवाल से लेकर, रे टोरट के
वेटर और गिलय के शरारती ब े भी शािमल थे। यह िन वग य,
िविवधतापूण ले कन भावशाली नेटवक काशी क हर गली, हर घाट, हर
मोटल और हर गु मशान घाट क थाह लाता था। इस सेना ने मठ के 1600
वष तक अि त व म बने रहने म मह वपूण योगदान िनभाया था, और अनेक
र रं िजत लड़ाइय म इसके िनवािसय ने इस पिव सं थान को बचाने के
िलए लड़ाई लड़ी थी। जासूस क उस सेना को मासूम से दखने वाले, आकषक
लड़के क तलाश थी, जो गोल े म का च मा लगाता था। वो शहर के च पे-
च पे पर नजर डालकर, उसे बाहर िनकाल ला सकते थे।
दूसरी तरफ, िव ुत और उसक संग ठत नई टीम ने, िबना हिथयार के ,
घाट इ या द पर घूमकर िशकार के सामने चारा डालने का लान बनाया।
अगर रोमी यहां िव ुत को मारने आया था, तो वो ऐसे लालच से बच नह
पाएगा।
या तो वो रोमी को उसके िबल से िनकाल लगे, या वो उसे खुली जंग के
मैदान म ख च लाएंग।े

‘िबलकु ल नह , नैना!’ िव ुत ने स ती से कहा। ‘तुम हमारे साथ िशकार पर


नह चल सकती हो। यह आदमी एक ोफे शनल है। और हो सकता है वो
अके ला न हो।’
‘और तु हारी परिमशन कौन मांग रहा है?’ नैना ने बेबाक से जवाब दया।
‘तुम भले ही इन सबके ब तीि त उ ारक और देवता हो, ले कन मेरे िलए
तुम िसफ िव ुत हो, ठीक है?’
छत पर कया गया वो चुंबन कु छ पल अिधक लंबा ख च गया था। और
िव ुत भी िबना जाने उस जुनूनी पल म शािमल हो ही चला था, ले कन तभी
उसे वा तिवकता का अहसास आ और उसने उसे धीरे से हटा दया। वो
दािमनी को धोखा दे रहा था, और वो ऐसा नह होने दे सकता था। वो बस
नैना क तरफ मु कु रा दया, और उसके गाल पर ह के से थपथपाते ए वहां से
चला गया। उन दोन म से कसी ने भी उस बारे म बात नह क थी, ले कन वो
दोन ही जानते थे क उ ह ज द ही बात करनी होगी।
‘देखो नैना, मूख मत बनो। बाहर औरत के िलए कोई जगह नह है।’
‘ या...? तुमने अभी या कहा...?’ नैना गु से से िच लाई, उसके चेहरे पर
िनराशा साफ दखाई दे रही थी। ‘मने कभी सोचा भी नह था िव ुत क तुम
इतने द कयानूसी होगे!’
िव ुत वैसा नह था। वह मिहला क शंसा और स मान करता था।
ऐसा वा य बोलने पर वो श मदा था और वयं को बेवकू फ महसूस कर रहा
था।
‘मुझे माफ कर दो नैना। मेरा वो मतलब नह था। म बस तु ह तकलीफ से
बचाना चाहता था।’
‘मुझसे मुकाबला करो, िव ुत। चलो हमारी आमने-सामने क लड़ाई हो
जाए। कोई रं ज न रहे,’ नैना ने शांित से कहा। ‘मुझे लगता है क तुम भूल गए
हो देव-रा स मठ म लड़ कय को भी उतनी ही स त े नंग दी जाती है,
िजतना क लड़क को, और यहां स दय से मिहलाएं भी कं धे से कं धा िमलाकर
लड़ती रही ह।’
िव ुत उस बात के िलए पहले ही वयं को कोस रहा था। उसे मठ क
मिहला क वीरता और बिलदान क अनेक कहािनयां याद थ । फर चाहे
वो दुिनया से परे क चीज से मुकाबला हो या हिथयार उठाकर सेना का
सामना करना हो, मठ क मिहला ने कभी इस पर ककर नह सोचा था।
और हंद ू जीवन शैली क भी यही सचाई थी—एक महान धम जहां हम देवी
को ममतामयी प म पूजते ह तो उनके िवकराल प क भी आराधना करते
ह।
‘इसे छोड़ो ना नैना,’ चेहरे पर अफसोस के भाव िलए िव ुत बस इतना ही
कह पाया। अब तक दूसरे लोग भी उनके आसपास जमा होने लगे थे, िजनम
सोनू, बाला, पुरोिहत जी, बलवंत और मठ क कु छ दूसरी मिहलाएं भी थ ।
‘नह सच म, िम टर शा ी। म आपको एक युगल मुकाबले का चैलज देती
।ं यहां और अभी। तुम और म।’
अब िव ुत को कु छ हंसी आने लगी। यक नन नैना नह जानती थी क वो
कौन था। हालां क िव ुत ने तुरंत ही यान दया था क आज नैना अपने
सामा य, पारं प रक भारतीय कपड़ म नह थी। उसने एक काली, टाईट
पो स टी-शट पहनी ई थी, िजसका गोल गला गहरा था, और आम क
ब त सी जेब वाली पट और ै कं ग बूट पहन रखे थे। बाल का एक टाइट जूड़ा
बनाया आ था और एक चौड़ी बे ट लगा रखी थी। इन कपड़ म वो जबरद त
आकषक लग रही थी। िव ुत को लगा क वो बॉ ड फ म क नाियका क
तरह ही सुंदर और घातक नजर आ रही थी।
‘नैना म यहां कसी भी दूसरे से अिधक कला रपय टू जानता ।ं और म यू
िज सू और ाव मागा का भी अ यास करता ।ं तु हारी जानकारी के िलए
बता दूं क मने कुं ग फु म लैक बे ट क सबसे ऊंची िड ी क बे ट भी हािसल
क ई है। बाला, इसे बताओ यार...’ िव ुत ने अपने दो त से हंसकर कहा, जो
अब उनक मीठी न क-झ क म मजे ले रहा था।
नैना अपनी िज पर अड़ी खड़ी थी। उसने अपनी उं गली पहले िव ुत क
तरफ उठाई और फर जमीन क तरफ। ‘तुम और म। यहां और अभी,’ उसने
दोहराया।
बलवंत, सोनू, पुजारी जी और गोवधन भी मजे ले रहे थे। वे जानते थे क
नैना दमदार यो ा थी, ले कन वो ये भी जानते थे क उसका और िव ुत का
कोई मुकाबला नह था। उ ह ने कभी िव ुत क फाइट नह देखी थी। ना ही
उसे े नंग करते देखा था। कसी तरह उ ह िव ुत क यो यता पर िव ास
था। वो बस जानते थे। जब क सम शा ी वंशज म द ता का अंश था,
ले कन 1700 ईसापूव म िववा वन और 2017 म िव ुत वा तव म देवता थे।
‘ठीक है, देखो ये करते ह। तुम यहां बाला से मुकाबला करो। अगर तुमने
उसे हरा दया तो, हम दोन आपस म मुकाबला करगे। अगर तुम नह जीत
पा तो तु ह मेरे साथ मुकाबले का मौका नह िमलेगा,’ िव ुत ने ताव
रखा, अब तक उसक हंसी छू ट पड़ी थी।
िव ुत के ऐसे मजाक उड़ाने से नैना और अिधक नाराज हो गई थी।
‘ या बकवास है, िव ुत...’ बाला ने िवरोध कया। ‘ या हम इस बचपने
को बंद कर दूसरी ज री चीज क बात कर सकते ह?’
नैना और िव ुत अभी भी एक-दूसरे को घूर रहे थे। िव ुत शंसा से। नैना
गु से से।
‘आओ, बाला,’ नैना ने कहा, उसक नजर अभी भी िव ुत पर टक
थ।
‘ये सरासर बकवास है,’ गु से से हवा म अपने हाथ फकते ए, ए स-
िमिल ी मैन ने कहा। ‘म यहां से जा रहा ।ं ’
वो िनकलने के िलए मुड़ा। पल भर म ही उसे लगा मानो शता दी ए स ेस
उसक कमर पर से गुजर गई हो। नैना ने उसे एक जोर क कक मारी थी और
वो लड़ने के िलए पूरी तरह तैयार थी। बाला ने मुड़कर उसे देखा, तो उसे लड़ने
क मु ा म पाया, एक पैर हवा म, थोड़ा झुक ई, िजससे पल भर से पहले ही
दूसरी जोरदार कक जमा सके । उसने हाथ क मु ी बनाई ई थी। वो बाला
को यूं िनकलने नह देने वाली थी।

बाला दद से दोहरा हो रहा था।


‘वाह... मने कभी कसी मिहला को इतनी जोर का वार करते नह देखा,’
उसने कहा। ‘ य , मने तो कसी आदमी के वार म भी इतना बल नह देखा!’
बाला ने अपनी कमर सहलाते ए कहा, वो अपने गु से को कम करने क
कोिशश कर रहा था।
‘तो फर मुझसे लड़ो,’ नैना का अब पूरा यान सामने तुत मुकाबले पर
था।
‘देखो म यह नह कर सकता, नैना,’ बाला ने कहा। जो हो रहा था वो उस
पर यक न नह कर पा रहा था। और दद भी उसे धीरे -धीरे गु सा दला रहा
था।
‘म तु ह मारती र ग ं ी बाला, जब तक तुम पलटवार नह करोगे,’ नैना ने
कहा। वो इस मौके को हाथ से नह जाने देने वाली थी। उसे ब त तकलीफ
प चं ी थी। उसके िव ुत ने उस पर शक कया था।
बाला ने िव ुत को देखा, उसने हां म िसर िहलाया और हाथ से नैना के
साथ सहज रहने का इशारा कया।
बाला ने अपनी वेट शट उतार फक । दशक म मौजूद कु छ युवा लड़ कयां,
टी-शट म िछपे उसके कसे ए बदन को देख मोिहत हो गई थ । अपने हाथ के
पीछे से उसने माथे पर उबर आई पसीने क बूंद को प छा, और कक-बॉ सर
का पोज बनाया।
नैना ने फर से वार कया, इस बार दोगुने वेग से। उसका पैर बाला क
बांह पर आकर का, िजसे बाला ने जबरद त कक से अपना चेहरा बचाने के
िलए उठाया था। अचानक बाला ने अपना हाथ खोलकर उसका पैर पकड़
िलया। वो एक िशि त फाइटर था और उसके बाजु म ब त ताकत थी। वो
नैना का पैर मोड़कर, उसे जमीन पर िगराने वाला था। जैसे ही उसने उसका
पैर मोड़ा, नैना ने इसे अपने प म इ तेमाल करते ए अपने दूसरे पैर से तुरंत
बाला के िसर पर ए रयल कक लगाई। हमले से वो लगभग लड़खड़ा कर रह
गया।
अब यह लड़ाई दो ताना नह रही थी।
िव ुत ने बीच म दखल देने क कोिशश क ले कन बाला ने उसे साइड कर
दया। नाक से बहते खून के साथ, बाला अपने हाथ-पैर को हवा म फक, ज दी
से कक-बॉ संग के पोज म आ गया। इस बार वो पूरी तरह से तैयार था।
नैना बाला के चेहरे पर पंच मारने के िलए आगे बढ़ी। बाला घूमकर उसके
मु े से बचा, और पलटवार के िलए अपनी कोहनी उसके कं धे पर मारी। वार
तेज था। नैना करीब दो फु ट उछलकर घास के मैदान पर जा िगरी। बाला क
ताकत कोई मजाक नह थी।
वो दोन वापस से यो ा के पोज म आए और एक घेरे म घूमने लगे, जैसे
ागैितहािसक काल म, पेशेवर लड़ाके कया करते थे, वार का ब ढ़या मौका
तलाशने के िलए। अब तक यह बराबरी क लड़ाई रही थी। मठ के सद य
‘नैना! नैना!’ के नाम का शोर मचा रहे थे। वो उनम से एक थी, उनक अपनी
िनडर यो ा।
जैसे ही नैना और बाला एक दूसरे पर शेर क तरह झपटने के िलए आगे
बढ़े, िव ुत ने आगे आकर नैना क बांह पकड़ ली। उसका दूसरा हाथ बाला के
मजबूत सीने पर था।
‘बस, ब त हो गया!’ िव ुत िच लाया।

कु छ पल गुजर गए थे, और दोन ही तरफ के यो ा ने वयं को शांत कर


िलया था।
बाला ने नैना को आंख मारी। वो भी उसे देखकर मु कु राई।
‘तुम टाइगर हो यार, नैना,’ बाला ने खुशी से हाथ जोड़ते ए कहा, वो
अपने कािबल ितयोगी को स मान दे रहा था।
‘तुम भी कु छ कम नह हो, बाला। मेरी ए रयल ि लप- कक से कोई नह
वापस आ पाता है,’ नैना ने बाला को उसके िसर पर कए जोरदार वार क
याद दलाते ए कहा।
िव ुत अपनी बांह मोड़े, शांित से खड़ा था, उसने जो अभी देखा उससे वो
जरा हैरान था। पुरोिहत जी मु कु रा रहे थे क िव ुत को नैना क माशल आट
क द ता के बारे म पता चला था। बलवंत अपनी िश या पर गव महसूस कर
रहा था क उसने इस िशि त, िमिल ी के बंदे को खून का वाद चखा दया
था।
‘अभी भी मेरे घायल होने क चंता है, वीटी?’ नैना ने िव ुत क तरफ
मुड़ते ए पूछा। उसने मासूिमयत से अपने ह ठ को बाहर िनकाल रखा था
और उसे िचढ़ाने के िलए पलक ज दी-ज दी झपका रही थी।
‘िबलकु ल नह ! तुम हमारे साथ आ सकती हो। तु ह हमारे साथ आने का
पूरा हक है, दुगा!’ िव ुत ने उसक शंसा म मु कु राते ए कहा।
उसने नैना को दुगा कहा था, मिहषासुर रा स का दमन करने वाली देवी।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
देवता का पतन

‘ य क नयनतारा अपने शरीर म थी ही नह ! वो डा कनी थी। नयनतारा क


सांस से म उसके अंदर एक ब त ताकतवर और खास प से बुरी आ मा को
महसूस कर सकता था,’ िववा वन पुजारी ने समझाया।
अब तक यायाधीश अपनी कु लीनता से काफ दूर जा चुके थे। वो गु से से
खंखार रहे थे, मेज को पीट रहे थे, और दूिषत पेय के असर से िच लाते ए,
एक-दूसरे को गािलयां दे रहे थे। यायालय के िसपाही जो हमेशा पूरे
अनुशासन और िनयम म रहते थे, वो भी आपस म बात करते ए एक-दूसरे
को ध कया रहे थे, जैसे सड़क पर चलते ए शराबी ह ।
अचानक, इस सारी हलचल के बीच, िववा वन पुजारी का यान कु छ ऐसी
चीज पर गया क एक पल को उनका दल धड़कना भूल गया। फै सले क
पुि तका! प रषद का एक सद य राजादेश क उस पिव पुि तका म पागल
क तरह कु छ िलखे जा रहा था। यह हड़ पा के कानून क पुि तका थी। इस
पिव पु तक म दज कसी भी फै सले का सात दन म पूरा कया जाना ज री
था। इस कानून को वयं िववा वन पुजारी ने पा रत कया था। इस िलखे ए
पाठ को कानून म बदलने के िलए बस एक मुहर क आव यकता थी। एक-स ग
वाले बैल क मुहर।
‘उस सद य को रोको!’ िववा वन िच लाया। वह ये देखकर डर गया था
क सुनवाई पूरी होने से पहले ही फै सला िलखा जा रहा था। इस बात क
कसी को परवाह ही नह थी।
‘उस पुि तका म िलखना बंद करो, मूख!’ िववा वन पुजारी फर से
िच लाया। कोई जवाब नह । िवि सा सद य और भी तेजी से उसम कु छ
िलख रहा था, उसका मुंह पीड़ा के सुख से िबगड़ रहा था, और उसक पलक
तक नह झपक रही थ ।
बस अब ब त हो गया था। िववा वन पुजारी ने इस सारे पागलपन को
ख म करने का िनणय िलया। वह यायाधीश के त त क ओर बढ़ा और फर
दौड़ने लगा। वो प रषद के ऊंचे मंच पर छलांग लगाकर पुि तका वहां से ख च
लेने वाला था, इससे पहले क उस पर कु छ िलखा जाता। एक के बाद एक,
लगभग दस सैिनक ने उसका रा ता रोकने क कोिशश क । िववा वन पुजारी
उन सबको आसानी से कु चल सकता था, ले कन अपने आसपास के इस
पागलपन के बावजूद, वो आिखरकार थे तो उसके अपने लोग ही। वो उ ह
नुकसान नह प च ं ा सकता था। देवता हिथयार के हर वार से बचते ए आगे
बढ़ रहा था। उसक गित िबलकु ल सपन क सी थी, उसका लचकदार शरीर
उन पर पलटवार कए िबना, हर वार से बचते ए चल रहा था। पुजारी
प रषद, जो सामा य प रि थितय म ऐसी दजन क ठनाइय का सामना कर
सकती थी, अब िसफ बैठकर पुतले क तरह िववा वन पुजारी को घूर रही थी।
देवता उ ह चोट नह प च ं ाने वाला था। वो बस उनके पास से वो पुि तका
लेकर आने वाला था।
जैसे ही वो आखरी छलांग लगाने वाला था, उसने अपनी आंख के कोने से
कु छ देखा। संजना! नशे म धु एक सैिनक उसक यारी और भ प ी को
यायालय म ख च लाया था, सैिनक उसके बाल पकड़कर उसे ख च रहा था।
अब ब त हो चुका था।

देवता क आंख अब ोध से जलने लगी थ , उनम इतना ताप था क सुमे


पवत तक िपघला सकती थ । वो मुड़ा और उस पापी सैिनक क तरफ भागा।
संजना िववा वन पुजारी का गु र थी, उसक आ मा थी, उसका वचन थी...
उसका पूरा संसार थी। देवता इस बार माफ नह करने वाला था।
जहां उसक प ी उस िनदयी और िवि सैिनक से अपने बाल छु ड़वाने के
िलए संघष कर रही थी, उस दरवाजे क तरफ बढ़ते ए िववा वन पुजारी ने
एक खड़े ए सैिनक क तलवार िनकाल ली। और एक ही वार से उसने उस
िसपाही का धड़ चीर दया, िजसने सोचा था क देवता क प ी का अपमान
करने के बाद वो यूं ही बच जाएगा। िगरते ए िसपाही के खुले मांस से र का
फ वारा फू ट पड़ा। संजना डर से कांप रही थी और िववा वन पुजारी क बांह
म ढह गई। इससे पहले क देवता उससे सां वना का एक भी श द कह पाता,
उसे अपने िसर पर जोरदार हार महसूस आ। वो दद असहनीय था और पूरी
दुिनया िववा वन पुजारी क आंख के सामने घूमने लगी। चेतना खोकर जमीन
पर िगरने से पहले उसने उस कायर क झलक देख ली, िजसने बुज दल क
तरह यूं पीछे से वार कया था।
रं गा।
देवता को अपना िसर दो िह स म फटता महसूस आ। उसके िसर म इतना
तेज दद था क उससे वयं ई र भी असमथ हो सकते थे। िववा वन पुजारी
को आदिमय के िखलिखलाने क और िसपािहय के िच लाने क आवाज आ
रही थ । वह उठना चाहता था। इस धीमे और दद भरे धुंधलके म अचानक से
उसे संजना क याद आई और फर वो सारा भयानक अ याय, जो उसने बेहोश
होने से पहले देखा था। एक पल को उसने चाहा क काश वो कोई भयानक
सपना होता। ले कन वो सपना नह था। वो भयानक अ याय वा तव म घ टत
हो रहा था।
ब त तेज दद से झूझते ए वो अपनी यारी प ी को देखने के िलए अपनी
आंख खोलने क कोिशश करने लगा। उसे अहसास आ क उसके हाथ आजाद
नह थे। उसे अपनी कलाई म तेज दद का अहसास आ। उसके हाथ उसके पीछे
बंधे थे। जूट क सामा य र सी से नह , िजससे आम तौर पर कै दय को बांधा
जाता था। उसे बंधक बनाने वाल ने तांबे क किड़य का इ तेमाल कया था,
जो यु म जंगली जानवर को बांधने के काम आती थ । वे जानते थे क वो
सामा य र सी हड़ पा के सूय को थामे रखने के िलए पया नह होगी। जब
देवता ने धीरे -धीरे अपनी आंख खोल तो उसने दजन आदिमय को अपनी
ओर देखते ए पाया। गुंबदाकार छत से उसे पता चल रहा था क वो अभी तक
यायालय म ही था।
‘संजना...’ उसने दद से कहा और तभी उसे धसका लग गया। उसका गला
सूख गया था। वो महसूस कर सकता था क वो घंट तक बेहोश रहा था। उसे
िसफ ब त से आदिमय के हंसने क आवाज ही आ पा रही थी। उसे इस समय
अपने शूरवीर बेटे मनु क ब त याद आ रही थी। वो उन सबको अके ले ही
परािजत कर सकता था।
‘संजना...’ वो फर से िच लाया। फर से हंसी क आवाज सुनाई द ।
‘संजना...’ वह अपने टू टे शरीर से िजतनी जान लगा सकता था, सब
लगाकर िच लाया। ले कन वहां कु छ था तो िसफ ठहाके ।
अब उस पितत देवता क आंख से आंसू बह िनकले। उसे यक न नह हो पा
रहा था क मा अड़तालीस घंट म उसक क मत इतनी बुरी तरह पलट गई
थी। हड़ पा का सबसे पूजनीय देवता होने से अब वो इन जािहल के हाथ क
कठपुतली बना आ था। उसने हमेशा से क मत के ऊपर पु षाथ को वरीयता
दी थी। ले कन यहां क मत ने दखा दया था क उससे बलवान और कोई
नह था?
फर उसे गदन के िपछली तरफ से ख चने का अहसास आ। एक बेहद
मजबूत और दै याकार हाथ उसे जमीन से यूं उठा रहा था जैसे िशकारी ताजे
मारे ए खरगोश को उठाता है। दद से झूझते ए, जैसे िववा वन ने वापस से
होश संभालने क कोिशश क , तो उसे रं गा का चेहरा दोबारा से नजर आया।
मन ही मन िववा वन पुजारी अपने ई र क सौगंध ले चुका था। रं गा क मौत
देखे िबना वो मरने वाला नह था। और अगर कसी कारण से वो इसम
नाकामयाब रहा, तो उसका पु मनु उसक शपथ पूरी करे गा।

‘मृत कारावास!’ बेसुध से पुजारी ने खुशी से कहा।


उसक घोषणा का खूब तािलय से वागत कया गया। यायालय म
उपि थत येक प रषद सद य, येक सेना य , येक िसपाही और येक
नाग रक इस हंसक दृ य का आनंद ले रहा था। िववा वन पुजारी यायालय
के बीच म खड़ा था— त ध, हाथ पीछे क तरफ बंधे ए, उसका र बह रहा
था और उसे जोर क यास लगी थी। वह जानता था क अब बहस क कोई
जगह नह थी। यह शैतान क मह फल थी।
मृत कारावास क कै द कसी इं सान के िलए उसक क पना से भी अिधक
भयावह थी। वह र , दद, अधीनता, भूख से मरने और यातना सहने क सड़ी
ई, ठं डी और अंिधयारी कोठरी थी। तहखाने म बनी इस कोठरी को खास
ल य से तैयार कया गया था। िवकिसत और शांित ि य हड़ पा समाज म
ब त ही कम अपराध होते थे। वगिवहीन, आ याि मक और पढ़े िलखे इन
लोग के पास अपराध क तरफ झुकने क शायद ही कोई वजह थी। हालां क
सकारा मक सामािजक णाली, जो अपराध रोकने म मदद करती थी, क ही
तरह वहां क दंड व था भी पूरी तरह स य थी। मृत कारावास एक ही
चीज के िलए बना था। िनवारण।
हड़ पा समाज समानता म यक न करता था—सभी के िलए धन, हर
नाग रक के िलए अवसर, हरे क के िलए िश ा और िनधन के िलए भी घर।
हालां क ये स य िनयम कै द म लागू नह होते थे। मौत का तहखाना िसफ कै द
क सजा नह थी। वो पूरी तरह से िनवासन था। उ ह ही उस तहखाने म भेजा
जाता था, िजसे हड़ पा के समाज से पूरी तरह िमटाना हो। यहां तक क वहां
के कै दय को वा य या िच क सा क सुिवधा भी मुहय ै ा नह कराई जाती
थी। यह हड़ पा क अपने तरह क मौत क सजा थी। िज ह मृत कारावास म
भेजा जाता था, वो कभी लौटकर नह आते थे।
‘इस िववा वन पुजारी का अपराध सािबत हो गया है... और इसे मृत
कारावास म डाल दया जाए।’ एक प रषद सद य ने ितर कार से कहा, और
अपने कु हड़ से फू ल क म दरा का बड़ा सा घूंट िलया। उसके मुंह से आधा
शरबत िनकलकर उसके सूती व पर िगर रहा था।
क म मौजूद दूसरे लोग को ये ब त ही दलच प लगा और उ ह ने भी
अपने कु हड़ उठाकर उसक नकल क ।
अब तक िववा वन पुजारी समझ गया था क इन बहके ए लोग से बहस
करने म कु छ नह रखा था। उसे यक न था क उसके साथी कसी गहरे नशे के
भाव म थे। उसे इसका पता लगाना ही होगा। उसे इसका इलाज ढू ंढ़ना ही
होगा। और अगर पूरा शहर ही पागल हो चला था, तो कु छ तो ऐसी चीज
होगी, जो उन सबने हण क होगी। खाना? नह हो सकता था। भोजन क
आपू त अनेक ोत से होती थी और उसका तर ब त ापक था। मांस?
नह , आधे पुजारी तो शाकाहारी थे। हवा? उसम जहर कै से िमलाया जा सकता
था? जल? नह । सभी नहर तो कड़ी सुर ा म थ ।
सभी कु छ तो असंभव दखाई दे रहा था। िववा वन पुजारी ने उस याल
को झटक दया।
या हड़ पा के लोग हमेशा से ऐसे थे? या वो अब तक उसके िलए
नरम दल उसक स ा और ओहदे क वजह से ही थे?
इससे पहले क वह कसी िनणय पर प च ं पाता, लगातार बहते र और
यास ने देवता पर अपना असर दखाया। वो एक बार फर से बेहोश होकर
जमीन पर िगर चुका था।
बनारस, 2017
‘हम एक हज़ार साल से लड़ रहे ह।’

‘ ाि नाबाद?’ िव ुत च का। ‘ या आप सच कह रहे ह?’


उसे तुरंत ही अपनी बात के आखरी वा य पर पछतावा आ। उसे वयं को
याद दलाना पड़ा क वो ताकतवर मठाधीश से बात कर रहा था। उसने अपने
सवाल को कु छ िवन श द म पूछा।
‘बाबा, आप कह रहे ह हड़ पा क साइट का वा तिवक नाम ाि नाबाद
था?’
‘हां पु । इसका मतलब होगा ा ण क नगरी।’
िव ुत एकदम हैरान दखाई दे रहा था। वो नह जानता था क इस
जानकारी का या मतलब था। ारका शा ी अपने परपोते के चेहरे पर
दुिवधा के िनशान देख सकते थे। अब समय आ गया था क िव ुत को पूरी
सचाई बताई जाए।
‘तो फर ि टश अिधका रय ने उसका नाम ाि नाबाद क जगह
हड़ पा य रखा, जब क थानीय लोग तो उसे इसी नाम से जानते थे, या
कोई बता सकता है,’ डमा टर ने समझाया। ‘तुमने ये भी बताया क सर जॉन
बट माशल ने उस जगह क खोज 1921 म क थी। यही सबसे िस और
सा रत िस ांत है। ले कन या तुम जानते हो वा तव म हड़ पा क खोज
लगभग माशल क खोज से आठ दशक पहले चा स मैसन नाम के एक दूसरे
अं ेज ने क थी? उसने इसका वणन अपनी कताब नैरे टव ऑफ वे रयस जन
इन बलूिच तान, अफगािन तान एंड द पंजाब म कया था। तो साफ है, 1842
म ई ट इं िडया कं पनी, और ि टश ताज, हड़ पा के अवशेष क खोज कर
चुका था। तो उ ह ने आठ दशक बाद, 1922 म उसक खुदाई का काम य
शु कराया? लगभग एक शता दी तक वो कर या रहे थे?’

अपने परदादा क बात म िव ुत पूरी तरह डू ब गया था। कू ल और कॉलेज


म संधु घाटी स यता के बारे म पढ़ते ए उसे जरा भी अहसास नह आ था
क उस ाचीन स यता का भारत के इितहास म इतना मह व था।
‘ये भी पूरा सच नह है, िव ुत। एक और अं ेज अफसर उस ागैितहािसक
थल पर चा स मैसन के बाद और सर जॉन बट माशल से पहले प च ं ा था।
उस ि टश अिधकारी का नाम जनरल एले जडर क नंघम था, जो अपने दो
इं जीिनयर जॉन ूनटन और िविलयम ूनटन के साथ 1856 म वहां प च ं ा था।
यह 1857 के सैिनक िव ोह से एक साल पहले क बात थी, उस सं ाम को
ब त से भारतीय वतं ता सं ाम क पहली लड़ाई भी कहते ह। सोचो उस
अं ेज ने वहां या कया था,’ ारका शा ी ने हैरानी के भाव से िव ुत को
देखते ए पूछा।
‘ या, बाबा?’ िव ुत ने पूछा।
‘ई ट इं िडया कं पनी और ि टश सा ा य के िशि त, स य और संसाधन
से यु ऑ फसर से तुम दुिनया क सबसे ाचीन धरोहर पर जाकर या करने
क उ मीद करते हो?’
‘म उ मीद करता ं क वो धरोहर को संरि त करे गा, सावधानी और
सतकता से खुदाई करवाएगा और मानवीय धरोहर को आगे क पी ढ़य के
िलए उपहार व प संजोएगा,’ िव ुत ने सहजता से जवाब दया।
‘िबलकु ल। ले कन अगर म क ं क उसने इनम से कोई भी काम नह कया?
अगर म तु ह बताऊं क चा स मैसन क खोज के चौदह साल बाद, जनरल
क नंघम और दोन ूनटन भाइय ने ाि नाबाद के पूरे नगर को जलाकर
खाक कर दया था और उसक प ट को िनकालकर उससे रे लवे लाइन
िबछा दी?’ डमा टर ने िव ुत को देखते ए पूछा।
‘आप या कह रहे ह, बाबा? यह अिव सनीय है!’ िव ुत च का।
‘हां मेरे ब ।े मानव इितहास के एक सम अ याय को िमटा डालने का
इससे बेहतर तरीका और या हो सकता था? ाि नाबाद क ाचीन नगरी,
हड़ पा स यता क खोज का थम नगर था। हड़ पा और मोहन जोदड़ो का
सबसे वैभवपूण नगर... कराची और लाहौर क रे लवे लाइन के नीचे िबछा
पड़ा है!’
‘ कसी ने इस पर आपि य नह जताई? इस बारे म कभी खुलकर बात य
नह क गई?’ च कत िव ुत ने पूछा। ‘और उससे भी मह वपूण, ि टश
ऑ फसर ने दुिनया क धरोहर को न ही य कया? उ ह ऐसा करके या
िमलने वाला था?’
िव ुत को कोई अंदाजा नह था क पुरात व िवभाग क िजस खोज को
बस एक इितहास मान िलया गया था, उसके पीछे स दय का काला ष ं
काम कर रहा था।
‘ ाि नाबाद को तबाह करने से उ ह या िमला, यह पूछने से बेहतर है, ये
पूछना क अगर वो तबाह नह आ होता तो उनका या नुकसान हो होता,’
बूढ़े मठाधीश ने कहा।
‘इस पर िवचार करो िव ुत, हमारे ब त से ाचीन ंथ म ऋिषय और
मुिनय को सर वती नदी के कनारे पिव अनु ान और कठोर साधना करते
ए व णत कया गया है, उसी मु य नदी क सहायक नदी संधु कहलाई।
वै दक कृ ित के ब त से सा ा य उसी ताकतवर नदी के कनारे फले-फू ले थे।
ले कन हमारी इितहास क कसी भी कताब म यह दज नह है। मानता ं क
सर वती नदी धरती के पटल से लु हो चुक है। ले कन इसे कताब और
लेखन से य लु कया गया? दुिनयाभर म ाचीन अवशेष , मारक और
िवरासत को सामने लाने के िलए करोड़ डॉलर खच कए जा रहे ह। तो फर
सर वती को ही य इितहास के कू ड़ेदान म फक दया गया?’ ारका शा ी ने
कहा। ‘ या ये िसफ संयोग है?’
एक पल कने के बाद ारका शा ी ने कहा, ‘जो ताकत हड़ पा के पीछे
का सच दबाना चाहती है, वही दुिनया क याददा त से सर वती का
नामोिनशान िमटा देना चाहती है।’
‘बस एक तकपूण नज रए से अपनी बात रख रहा ,ं बाबा, ले कन या
इसक वजह ये हो सकती है क सर वती के अि त व का कोई वा तिवक
वै ािनक माण नह िमलता है?’ िव ुत ने सीधे तरीके से अपनी बात रखी।
हालां क पल-पल उसका कौतुहल बढ़ता जा रहा था, ले कन एक पल के िलए
भी वो वािजब वजह को नजरं दाज नह करना चाहता था।
‘ये पूरी तरह सच नह है िव ुत। जाने-माने लेखक माइकल डैिननो ने
2010 म िलखी अपनी कताब, द लॉ ट रवर जो सूखी नदी घ गर-हकरा पर
िलखी थी, वो वा तव म सर वती नदी ही थी, और हड़ पा स यता और सम
कां य युग भी सर वती नदी पर ही िनभर था। अभी हाल ही म, ह रयाणा
सरकार ने मु तफाबाद तहसील के यमुनानगर िडि ट का नाम सर वती
नगर कया है, जहां भू-वै ािनक और पुराताि वक ने भूतल म धारा बहने का
संकेत दया है, िजसे िमथक य नदी सर वती ही माना गया है।’
‘ये तो कमाल क बात है, बाबा। बस कोई सोच सकता है क ये सारी
कोिशश अब ही य क जा रही ह। लगभग दो स दय से हम या कर रहे
थे?!’ िव ुत ने सवाल कया।
ारका शा ी हंस।े िव ुत भी ं य और उदासी से हंसा।
‘दो स दयां नह , िव ुत। हम एक हज़ार साल से भी अिधक समय से लड़
रहे ह,’ डमा टर ने जवाब दया।

कु छ और घंटे गुजर गए थे और ारका शा ी ने िववा वन पुजारी, स ऋिष,


ि य वदा और मनु क कहानी के कई अनजाने पहलू और हड़ पा के रह य के
बारे म कु छ और बात िव ुत को बता दी थ । उनम से हरे क एक िनि त
प रणाम क ओर इशारा कर रही थी। कोई ब त ही भावशाली और
ताकतवर ताकत ाचीन स यता के मह वपूण राज को िछपाने क कोिशश कर
रही थी। आिखरकार, डमा टर ने िव ुत को 1856 के ाि नाबाद के रह य
के बारे म बता दया था।
मठाधीश के दरवाजे पर द तक ई। ‘ह म...’ ारका शा ी ने अंदर आने
क आ ा दी। सोनू िझझकते ए अंदर आया, महान मठाधीश क उपि थित म
वो कु छ घबराया आ था। ले कन उसके चेहरे पर एक शरारती मु कान भी
थी, िजसे वो िछपाने क असफल कोिशश कर रहा था।
सोनू हाथ जोड़कर डमा टर के स मान म झुका। फर वो शरारत से
िव ुत क तरफ मुड़ा और बोला, ‘िव ुत दादा, आपसे कोई िमलने आया है।’
िव ुत ने यान दया क सोनू का चेहरा लाल आ जा रहा था, और वो अपनी
हंसी िछपाने क भरसक कोिशश कर रहा था।
‘िमलने आया है...? कोई मुझसे िमलने कै से आ सकता है? बाला के अलावा
तो और कोई जानता भी नह है क म यहां ,ं ’ िव ुत ने जवाब दया। वो
महान डमा टर के साथ गहरी चचा म त था और इस समय उसे बीच म
रोकना नह चाहता था। अभी ब त कु छ जानना बाक रह गया था। िववा वन
पुजारी और हड़ पा के आखरी दन क ददभरी और दलच प कहानी अभी
आधी रह गई थी। िव ुत यह भी नह जानता था क वो उस कहानी से कै से
जुड़ा आ था। आय के हमले का रह य भी पूरी तरह नह खुला था। सर वती
स यता का नाम संधु घाटी स यता य पड़ा और ि टश ऑ फसर ने इसे
दबाने के िलए ष ं य रचा। ले कन सबसे अिधक िव ुत हड़ पा के उस
पुजारी राजा क मू त के बारे म जानना चाहता था, िजसे उसके परदादा ने
उसक मू त बताया था। इस समय िव ुत कसी भी मेहमान से िमलने नह जा
सकता था।
‘कौन आया है सोनू?’ िव ुत ने कु छ िचढ़ते ए पूछा।
सोनू के कु छ कहने से पहले ारका शा ी ने अपना हाथ िव ुत के कं धे पर
रखा और यार भरी मु कान से कहा, ‘जाओ िव ुत। एक मह वपूण मेहमान
है।’ महान मठाधीश देव-रा स मठ म आने वाली हर ऊजा को महसूस कर
सकते थे।
‘जैसी आपक आ ा बाबा। ले कन म ज दी ही आपके पास आऊंगा,’
िव ुत ने कहकर अपने बाबा के पैर छु ए। बुजुग ने उसे आशीवाद दया,
आशीवाद म इस ह क कसी भी दूसरी चीज से अिधक शि होती है।

‘कौन आया है, सोनू?’ िव ुत ने फर से पूछा। वह हैरान था क सोनू उसका


नाम तक बताने म शरमा रहा था। अपने शरमाते ए युवा दो त के साथ,
िव ुत डमा टर के क से बाहर िनकला और मठ के बाहरी भाग म ि थत
रसे शन ए रया क तरफ बढ़ा। ले कन उसे पूरा रा ता पार नह करना पड़ा।
उसका मेहमान आ म के बगीच के बीच के गिलयारे म खड़ा था। और एक
लंबे सफर के बाद भी, दािमनी ब त सुंदर नजर आ रही थी।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
मोहन जोदड़ो क राजकु मारी

‘ले कन म राजा बनना ही नह चाहता, पापी और मिहला! पिव मुहर


चुराने क िह मत तुमने क कै से?’ पंिडत चं धर िच लाया, जब क ि य वदा
क से बाहर िनकल गई। ोध और भावना मक हार से वो कांप रहा था। उसे
इसक आदत पड़ चुक थी।
चं धर एक े आ मा था। शायद इस पृ वी पर आई सबसे े आ मा
म से एक। वह पुजारी था, यो ा था, संत था, राजनियक था, िव ान,
सेना य , वा तुकार और महान योितषी था। उसने अनेक यु लड़कर ब त
से शि शाली दु मन को परा त कया था। उसने नगर क योजना बनाई थी
और महानगर को थािपत कया था। वह हड़ पा के संिवधान का सह-लेखक
था और वेद क रचना म भी अपना योगदान दया था। देवता िववा वन
पुजारी के बाद, वो आयवत का सबसे पूजनीय इं सान था। येक इं सान चं धर
को यार करता था। हर कोई उसे स मान देता था।
िसवाय उसक प ी के । ि य वदा उसे कसी दास से बेहतर नह मानती
थी। महावीर और ितभाशाली चं धर, िजसका पूरे संसार पर दबदबा था
और िजससे पूरी दुिनया भािवत थी, अपने घर म कसी डरी ई कठपुतली
क तरह था। ई र ने मिहला को एक खास शि दी है, िजसम संसार को
बदल देने का मा ा होता है। वो बदलाव भले के िलए है या बुरे के िलए, ये उस
मिहला पर िनभर है, िजसका दबदबा चलता है। एक मिहला ही है जो पूरे
ांड क जनक है। और अ सर र रं िजत लड़ाइय के पीछे भी कसी मिहला
का ही हाथ होता है। पु ष बस मिहला क इ छा का ज रया है।

चं धर नह जानता था क या कया जाए। उसक प ी ने उसे सब बता


दया था, और उसके आतंक से वो जड़ हो गया था। गुन, अप व शा क शव-
साधना, नयनतारा पर डा कनी का क जा, झूठा समन, नयनतारा क िनमम
ह या, मेसोपोटािमया का रसायन और हड़ पा के जल ोत को दूिषत करना।
चं धर को अपने कान पर भरोसा नह आ। वो यक न नह कर पा रहा था
क अपनी सोच और काय म कोई इं सान इतना िगर सकता था। वो वयं को
पापी मान रहा था और उसका दल कसी भी पल फटने को तैयार था। और
जब उसे अपनी बहन संजना का याल आया, तो वो घुटन के बल ढह गया,
और सुबक-सुबक कर रोने लगा।
पित-प ी का वैवािहक जीवन सम या भरा ही रहा था। चं धर बड़े दल
वाला, ितभाशाली और समथ आदमी था। ले कन वो ि य वदा से ब त यार
करता था और उसके सामने उसक सारी बुि और नेक नीयत कह लु हो
जाती थी। ि य वदा अिव सनीय प से आकषक मिहला थी, िजसका
पालन-पोषण मोहन जोदड़ो क राजकु मारी के प म, शाही अंदाज म आ
था। जब क हड़ पा और उसके िम नगर म कोई राजा नह आ करता था,
ले कन मोहन जोदड़ो के मु य पुजारी क बेटी सम आयवत म राजकु मारी के
प म जानी जाती थी। एक राजकु मारी क ही तरह वो बताव करती थी। वो
उ मीद करती थी क दूसरे भी उसे राजकु मारी मानकर ही चल। सबसे ददनाक
बात चं धर को शादी के कु छ महीन बाद पता चली थी क पूजनीय मु य
पुजारी क बेटी होने के बावजूद ि य वदा क आ मा नािगन क तरह
जहरीली थी। और जब उसे कसी तरह क िनजी तंगी का अहसास होता तो
वह काली आ मा अपना िवकराल प धारण कर लेती थी। नफरत, ई या और
लालच का वो जीता-जागता पुतला थी। इससे भी अिधक, अंदर से वो पूरी
तरह हंसक और िनदयी इं सान थी। वयं कभी नाममा का भी दद बदा त
नह करने वाली ि य वदा दूसर को अमानवीय दद और अपमान देने से पहले
एक बार भी नह सोचती थी। और फर भी चं धर भावना मक प से उसके
क जे म रहता था।
िववा वन पुजारी का उदय अ सर पित-प ी के बीच िववाद का कारण
बनता था। चं धर जानता था क िववा वन पुजारी एक असाधारण आ मा,
एक देवता था, जब क वो वयं एक न र इं सान ही तो था। ि य वदा ने वो
सब चीज नह देखी थ , जो चं धर ने देखी थ । उसने िववा वन पुजारी को
यु के मैदान म लड़ते ए देखा था और िबना कसी द अंश के कोई उस
तरह यु लड़ ही नह सकता था। देवता ने पि म के सैकड़ सश िसपािहय
को अके ले परािजत कया था। बड़े िवकराल पशु और ताकतवर घोड़ पर
सवार यो ा को वो अपने एक मु े से जमीन क धूल चटा देता था। वो
मील दूरी तक अपने िशकार पर तीर से िनशाना लगा सकता था। अपनी
कृ पाण के एक वार से वो बलूत के मोटे तने को काट देता था। ले कन धरती पर
मौजूद कसी भी दूसरे इं सान से शारी रक बल म े होने के बावजूद भी
देवता क असीम आ याि मक शि ने चं धर को उसका सम पत िम और
अनुयायी बना दया था।
हालां क हड़ पा के सभी िनवासी और खासकर पुजारी वै दक यान और
लोकाचार के गुणी अ यासकता थे, ले कन उनम से कोई िववा वन पुजारी के
आ याि मक ान क बराबरी नह कर सकता था। यह माना जाता था क
देवता आ द ऋिषय का ही वंशज था, जो सृि िनमाण के समय उपि थत थे।
और िववा वन हर तरह से इस पद के लायक था। वो सम आठ िसि य का
िव याता था। इस उपलि ध के साथ उस पर अि , भूख, यास, चोट, रसायन,
बीमारी, आकषण और झाड़-फूं क का कोई असर नह होता था। देवता िस
तांि क था जो अपनी कला का योग समाज और इं सान क भलाई के िलए
कया करता था। वह तार क सटीक गणना कर अतीत और भिव य म झांक
सकता था। यह उसक तप या और उसके दल क नेक ही थी, िजसने उसे
स ऋिषय का भी चहेता बना दया था।
इस सबके बाद, चं धर को यह बेतुक बात लगती थी क ि य वदा उसे
िववा वन पुजारी से ित ं दता करने के िलए उकसाती थी। वो महानगर क
थम मिहला बनने क अपनी मह वाकां ा के आगे अंधी हो चुक थी। वो
समझती य नह थी? एक इं सान भगवान से कै से मुकाबला कर सकता था?
और वो जानता था क इं सान के प म भी िववा वन पुजारी उससे बेहतर
इं सान था। कह अिधक बेहतर।

ि य वदा अपने िनजी क म दूध और गुलाबजल से ान कर रही थी।


िववा वन पुजारी के प रवार क दुदशा, नयनतारा क िनमम ह या, हड़ पा के
हज़ार पु ष , मिहला और ब के पागलपन से मोहन जोदड़ो क
राजकु मारी को कोई फक नह पड़ा था। शान से नहाते ए वो अपनी पसंदीदा
गंधव धुन गुनगुना रही थी, जब क आधा दजन सेिवकाएं उसक सेवा म लगी
थ।
चं धर िबना कसी घोषणा के क म घुस आया था। उसक आंख ोध से
जल रही थ और सांस फू ल गई थी। सेिवकाएं तुरंत ही अपने वामी और
वािमनी को एकांत देने के िलए, िसर झुकाकर ानगृह से बाहर िनकल ग ।
‘ये या पंिडत चं धर? अपनी यारी प ी को न देखने के िलए आपको यूं
भागकर ानगृह म चले आना शोभा नह देता!’ ि य वदा ने अपनी छाितय
को अपनी हथेिलय से ढंकने का नाटक करते ए उसे िचढ़ाया। अपने पित के
चेहरे के ोध को वो पूरी तरह अनदेखा कर रही थी। वो पूरी तरह से
कामो ेजक थी, और अपनी सुंदरता और कामुकता को औजार क तरह
इ तेमाल करना जानती थी।
‘म ऐसा नह होने दूग ं ा। म अभी आसपास के े से िच क सक ,
आयुवदाचाय और रसायन शाि य को इक ा करने जा रहा ।ं हम पहले
जल का उपचार करगे और फर इसके भाव म आए ए लोग का।’
ि य वदा शांित से अपने पित क बात सुन रही थी। ऐसी गीदड़भभ कय
का वो पहले भी सामना कर चुक थी। हां ये जरा अिधक चुनौतीपूण थी,
ले कन वो जानती थी अंत म वही होगा, जो वो चाहती थी।
‘साथ ही म, प रषद क एक आपातकालीन सभा बुलाऊंगा, और मेरे िम
िववा वन पुजारी के िव लगे हर आरोप को िनर त कर दूग
ं ा। उ ह जो भी
सजा देनी है, वो म भुगतने को तैयार ।ं म ही उस सजा के लायक ।ं दु
मिहला तूने मुझे कह मुंह दखाने लायक नह छोड़ा! या तूझे जरा भी डर
नह है क ई र तेरे सारे कम का िहसाब रख रहा है?’
ि य वदा धीरे से उठी और म यक या क सी नजाकत से गुलाब-दूध से
बाहर िनकली। पूरी तरह न , उसक भीगी वचा सुगंिधत से महक रही
थी, उसने करीब आकर चं धर क गदन और कं ध को कोमलता से चूमा। वो
उसके कान म फु सफु साई, ‘ वामी, या वग अभी यह नह है?’ उसके हाथ
धीरे -धीरे अपने पित के िनचले व तक प चं गए थे। चं धर ने उसक कलाई
पकड़कर मोड़ी और तुरंत ही उसे जमीन पर ध ा दे दया।
ओह, तो इससे बात नह बनी, ि य वदा ने सोचा।
बनारस, 2017
दािमनी

िव ुत को यक न नह हो रहा था क वो दािमनी को देव-रा स मठ म देख


रहा था! अपनी टाइट लू ज स म दबाए ए सफे द, लीवलेस टॉप म वो ब त
ही सुंदर लग रही थी। उसक कॉटन क चैक शट उसक कमर पर बंधी ई थी।
उसने काला च मा लगाया आ था, कान म बड़ी, गोल बािलयां और रे शमी
भूरे बाल को िसर पर जूड़े के प म बांधा आ था। इस साधारण वेशभूषा म
भी दािमनी असाधारण प से आकषक नजर आ रही थी।
िव ुत तुरंत समझ गया क सोनू य यूं शमाए जा रहा था। दािमनी के
कपड़े मठ के पारं प रक प रधान क अपे ा थोड़े बंदास थे। ले कन उसे इसक
परवाह नह थी। वो तो उसे वहां देखकर खुश था।
िव ुत को अपनी तरफ आता देख दािमनी खुशी से उछलने लगी। उसने
अपना िप ठू बैग िगराया और अपने जोशीले बॉय ड क तरफ दौड़ पड़ी।
मठवासी दािमनी को िव ुत क बांह म छलांग लगाता देख खुशी और शम से
लाल हो रहे थे। दािमनी क बाह और पैर िव ुत के िगद िलपटे ए थे। वो
दोन ही खुशी से हंस रहे थे। युवा सोनू वहां मं मु ध सा खड़ा, उस यारे जोड़े
को देख रहा था। अपने दल म कह वो भी अपने िलए दािमनी जैसी ही
गल ड चाहता था। वो भी या लाइफ होगी न! उसने तुरंत ही अपने दल म
घर करते उस याल को झटका। दािमनी देवता क जीवन संिगनी थी, और
इसिलए वो उसके िलए पूजनीय थी।
‘हाय बेबीईईइ...’ दािमनी उमंग भरी आवाज म लगभग िव ुत के कान के
पद फाड़ते ए िच लाई। िव ुत भी खूब खुशी से हंस रहा था और उसने दो
बार उसके गाल को चूमा। हालां क वो दोन दो ही दन बाद िमल रहे थे,
ले कन फर भी एक-दूसरे क बाह म आकर उ ह ब त राहत महसूस ई थी।

‘पर कै से... तु ह इस जगह का पता कै से चला दािमनी? तु ह कै से पता चला क


म यहां ?ं ’ दािमनी को सातव आसमान से कु छ उतारते ए िव ुत ने यार से
पूछा। वह मठवािसय क हंसी और कानाफू सी को महसूस कर पा रहा था।
‘तुम तो जानते ही हो न बेबी क म कतनी जुगाड़बाज .ं .. आिखरकार म
एक प कार !ं ’ दािमनी ने नाटक य प से अपने हाथ के नाखून पर फूं क
मारते ए कहा। ितभाशाली और चालाक दािमनी क बौि कता और
दीवानगी का मुकाबला िसफ एक ही इं सान कर सकता था। और वो इं सान
िव ुत था।
‘नह सच म, कै से दािमनी? बाला तो प ा मुझसे पूछे िबना तु ह नह
बताएगा,’ िव ुत ने फर से पूछा, वो अभी भी इस पर सोच रहा था।
‘ओह छोड़ो भी यार... इतना भी मत सोचो ना। मने रया को फोन कया
था... उसने मुझे बताया क तुम वाराणसी म हो।’
‘अरे , ले कन रया भी इस जगह के बारे म कु छ नह जानती है,’ िव ुत ने
कहा।
‘हां ले कन वो उस कै ब कं पनी को जानती है, िजसने तु ह टै सी भेजी थी।
और कै ब कं पनी को पता था क कौन सा ाइवर उस दन तु हारी ूटी पर
था। संपल!’ दािमनी ने जवाब दया, वयं से खुश होते ए।
‘पारस पांडय े !’ एयरपोट से लेकर आने वाले उस दलच प श स को याद
करते ए िव ुत ने ेह से कहा।
अब तक सोनू ने दािमनी का बैग उठा िलया था। जब वह बैग अपने कं धे पर
टांग रहा था, दािमनी ने यान दया क वो युवक कतना शरमा रहा था। वो
उसके चेहरे पर ईमानदारी भी देख सकती थी। उसने उसक थोड़ी टांग ख चने
क सोची।
‘ओह माय गॉड, तु हारे आ म म तो ब त ही सुंदर नौजवान ह, िव ुत,’
उसने सोनू क तरफ तारीफ भरी नजर से देखते ए कहा। सोनू मुड़कर
दािमनी क तरफ नह देख पाया, ले कन उसका दल खुशी से उछल रहा था।
‘ द ली क लड़ कयां तो उससे िमलकर पागल ही हो जाएंगी,’ दािमनी ने आगे
कहा। कठोर और दलेर सोनू, िजसने मठ के ार पर िव ुत तक को ललकार
दया था, अब भीगी िब ली बना आ था। वो िबलकु ल जमीन म धंस जाना
चाहता था, मानो उसके घुटन म दम ही नह रहा था।
‘बस-बस ब त है, दािमनी,’ िव ुत ने हंसते ए दखल दया। ‘सोनू तो
जहां भी जाता है, वह लड़ कय को दीवाना बना देता है,’ उसने अपने शम ले
दो त पर हाथ रखते ए कहा। दािमनी ने लाड़ से सोनू के गाल ख चे। उसने
अपने खुशिमजाज और ेही वहार से ना िसफ सोनू का बि क वहां जुट आए
ब त से लोग का दल जीत िलया था।
या शायद हर कसी का। नैना अपने कमरे क िखड़क पर खड़ी थी, जो हो
रहा था उसे देख, उसक आंख जल रही थ ।
दािमनी एक नेक आ मा थी। बद क मती से उसक पिव ता और अ छाई
काशी म उस पल िव मान िव प और काली शि य क तुलना म कु छ नह
थी।

जैसे ही िव ुत और सोनू, दािमनी को मठ के गे ट ाटर क तरफ लेकर बढ़े,


तो रा ते म पुरोिहत जी ने उनका अिभवादन कया। िव ुत ने दािमनी क
तरफ बुदबुदाया ‘पुरोिहत जी’, िजससे वो जान सके क यह स मानीय ि
कौन थे। िव ुत ने तुरंत झुककर पुरोिहत जी के पैर छु ए और उनका आशीवाद
ा कया। दािमनी को महसूस आ क यह उसक तरफ इशारा था तो वो भी
इसके िलए बढ़ी।
‘नह ... नह ... लीज बेटा, लड़ कयां कसी के पैर नह छू त ,’ पुरोिहत जी
ने कहा, दािमनी को ेह ले कन दृढ़ता से रोकते ए।
‘ले कन ऐसा य पुरोिहत जी? अगर िव ुत आपके पैर छू कर, आपसे
आशीवाद ले सकता ह, तो मुझे ये मौका य नह िमलना चािहए?’ दािमनी ने
मु कु राते ए नरमी और स मान से पूछा। सोनू और पुरोिहत जी दोन शहर
क इस होिशयार लड़क से भािवत थे, जो उनक परं परा क हर बारीक
चीज अपनाने को तैयार थी।
‘मेरा आशीवाद तो हमेशा तु हारे साथ है बेटा। ले कन सनातन और हंद ू
धम म, मिहलाएं वयं देवी का ितिनिध व करती ह। और देवी कसी के
सामने झुकती नह है। हम उसके सामने झुकते ह,’ वृ पुजारी ने कहा।
‘कुं आरी क याएं कसी के पैर नह छू त , अपने पेर स के भी नह , ये तो म
जानता था पुरोिहत जी,’ िव ुत ने कहा। ‘ले कन फर िववािहत ि यां य
अपन से बड़ के पैर छू ती ह?’
‘पहली बात तो िव ुत, इस पर कसी भी तरह अ यादेश तो है नह । हंद ू
धम ि िवशेष क वतं इ छा को पोिषत करता है। पैर छू ना एक तीक
है। यह बड़ के ित ेह और स मान दशाता है। वैसे ही जैसे पि म म हाथ
को चूमना स मानजनक माना गया है। अगर एक मिहला अपने से बड़ के पैर
छू ना चाहती है, तो यह उसक पसंद है। अगर वो इस परं परा का िनवाह नह
करना चाहती, तो भी यह उसी क पसंद का मामला है। यह उदारता और
पसंद का िवक प ही तो हमारे ाचीन धम को खास बनाता है ना िव ुत?’
पुरोिहत जी ने गव से मु कु राते ए कहा।
‘िबलकु ल पुरोिहत जी,’ दािमनी ने न ता से कहा। ‘ले कन फर िववािहत
और अिववािहत मिहला के बीच फक य ? िववािहत मिहला को य अपने
से बड़ क पैर छू ने क सलाह दी जाती है और अिववािहत को य नह ?’
पुरोिहत जी मु कु राए और दािमनी के िसर पर हाथ रखते ए आशीवाद
दया। ‘ य क शादी के साथ िज मेदारी और साझेदारी आती है, ब े। शादी
के बाद मिहलाएं अपने जीवनसाथी के साथ इस परं परा को अपनाने के िलए
आजाद ह, वैसे ही जैसे वो दोन दूसरे कत साथ म िनभाते ह। ले कन फर
भी, इसक कोई िववशता नह है। जैसा क मने कहा, हमारा धम मिहला
को पु ष क अपे ा अिधक ऊंचा थान देता है।’
‘आप ऐसा कै से कह सकते ह, पुरोिहत जी? या परं परा के नाम पर
मिहला का शोषण नह होता है?’ दािमनी ने पूछा। वो कसी ऐसे ि को
पा उ सािहत थी, िजससे बेिझझक अपने संदह े पर बात कर सकती थी। िव ुत
भी इस बातचीत का मजा ले रहा था। वा तव म उसने इसी ल य से इसे शु
कया था। दािमनी दल से एक सम पत हंद ू थी, ले कन कु छ तथाकिथत
परं परा पर उसका अपना स त नज रया और आपि थी। उन संदह े पर
बात करने के िलए उसे पुरोिहत जी से बेहतर कोई दूसरा इं सान नह िमल
सकता था।

पुरोिहत जी ने दािमनी को बगीचे म अपने पास बच पर बैठने के िलए बुलाया।


सोनू दािमनी का बैग लेकर गे ट ाटर क ओर बढ़ गया था, िजससे उसके
ठहरने का इं तजाम कराया जा सके । िव ुत वह खड़े होकर पुरोिहत जी और
दािमनी क बात सुन रहा था, जो बच पर बैठे ेह और ईमानदारी से बितया
रहे थे।
‘धम एक सबसे बड़ा शुि करण होता है बेटा, ले कन गंदगी साफ करते-
करते अ सर वह वयं भी गंदा हो जाता है,’ पुरोिहत जी ने कहा। ‘मुझे बताओ
—अगर तुम झक सफे द, मलमल के कपड़े से गंदे बतन को साफ करोगे, तो
थोड़े समय म उस कपड़े का या हाल हो जाएगा?’
‘वो कपड़ा गंदा हो जाएगा, पुरोिहत जी,’ दािमनी ने जवाब दया।
‘िबलकु ल। यही धम का मामला है। अपने मूल प म यह पिव और बेदाग
है, ले कन साल, दशक और स दयां बीतने पर, अपने राजीनीितक और आ थक
लाभ के िलए इसक तोड़-मरोड़ कर ा या तुत करने वाल क वजह से
यह तार-तार हो जाता है। हंद ू धम म मिहला का शोषण एक बेतुक िवकृ ित
है। इसे समझो, हम भौितक या आ याि मक जीवन म कु छ भी पाने के िलए
देवी को पूजते ह, न क देव को। धन के िलए मां ल मी क पूजा क जाती है।
वीरता के िलए मां काली। पोषण मां अ पूणा से और ान मां सर वती से।
िनत ित दन भी क याण और साहस के िलए मशः मां शीतला और मां दुगा
क आराधना क जाती है!’
दािमनी ब त यान से सुन रही थी। जो पुरोिहत जी बता रहे थे उसके बारे
म वो काफ जानती थी, ले कन पुरोिहत जी का दृढ़ िन य और समपण
ु टरिहत था। वो घंट तक उनसे इस िवषय पर बात कर सकती थी। पुरोिहत
जी भी अब पूरी लय म आ चुके थे। वो चाहते थे क दािमनी हर बारीक को
अ छे से समझ ले।
‘इतना ही नह दािमनी। या तुमने कोई और धम ऐसा देखा है िजसम
ई र अपनी अधािगनी के िबना अधूरा हो? शायद नह । ये सनातन धम ही है
जहां हम भगवान राम को उनक प ी, मां सीता के साथ पूजते ह। हम कृ ण
क राधा के िबना और िशव क पावती के िबना कभी आराधना नह करते। तो
कोई भी समझदार ि कै से यह कह सकता है क हंद ू धम का मिहला के
ित असीिमत स मान और यार के अलावा भी कोई अि त व है?’
दािमनी हैरान थी क पुरोिहत जी ने कतनी सफाई से हंद ू धम के सांचे म
घुली-िमली समानता को उसके सामने तुत कया है। िजन देवता और
देिवय का िज अभी उ ह ने कया था, उनके बारे म वो पहले भी जानती थी,
ले कन कभी उसने इस नज रए और समझ से उ ह नह जाना था। मन ही मन
उसने दूसरे धम पर भी दमाग दौड़ाया, और महसूस कया क उन सभी म
पु ष ई र का ही आिधप य था! िसफ हंद ू धम ही उनसे िभ था।
‘और ये मत भूलो दािमनी क हंद ू धम न िसफ मिहला को समानता
देता है, बि क मिहला के साथ खड़े होना और उनक सुर ा करने का
दािय व पु ष को भी देता है। भगवान िशव ने दुिनया का िवनाश करने वाला
तांडव अपनी ि य प ी सती के बिलदान के बाद ही शु कया था। भगवान
राम ने रा स राजा रावण के िव यु का िबगुल अपनी ि य प ी सीता को
छु ड़ाने के िलए ही बजाया था। दािमनी बेटा, हमारे धम के मूल म शि
व पा एक देवी को ही माना गया है।’
दािमनी इससे भािवत थी। उसे अहसास आ क अब तक वह मीिडया क
गढ़ी कहािनय और आसपास सा रत त य को ही सच मानती आई थी। वो
िबना धम क गहराई म जाए ही, अनजाने म उस पर दोष लगा रही थी। जो
कु छ पुरोिहत जी ने बताया वो उसे जानती थी, ले कन उसने कभी इसे यूं नह
समझा था, जैसे अभी पुरोिहत जी ने समझाया। वो अभी तक यूं ही सहजता से
इस धम को नकारती आ रही थी, जब क आ था के नाम पर होने वाले
आ मण, बलपूवक धम प रवतन और र पात से अलग यही सबसे पिव
माग था।
‘ हंद-ू धम का ज म हज़ार साल पूव आ था, बेटा, जब अ य कसी धम का
कोई अि त व नह था। दरअसल जब एक गंभीर जीवन शैली ने ापक तर
पर सभी को आ मसात कया तो उसे हंद ू धम कहा गया। हमने कभी कसी
दूसरे से ितयोिगता नह क । हमने कभी दूर देश म सफर करके लोग का
धम-प रवतन करने क कोिशश नह क । हम कभी तलवार िनकालकर लोग
को अपना धम मानने के िलए बा य नह करना पड़ा। य क हमारे िलए ना
कोई हमारा भगवान है और ना तु हारा। हमारे िलए सभी भगवान हमारे
भगवान ह—सवशि मान एक है। और हम अभी भी, लगभग दस हज़ार साल
बाद भी अि त व म ह,’ पुरोिहत जी ने सौ य मु कान के साथ कहा। इस िवषय
म उनक गहन दलच पी थी।
यहां दुिनया के सबसे ाचीन नगर और देव-रा स मठ के क म, दािमनी
ने वो पहलू देखा था, जो उसने पहले कभी नह देखा था। सनातन धम या हंद ू
धम कोई िनणय नह सुनाता, कोई फरमान जारी नह करता, कसी को नह
बताता क या पहन या कब पूजा कर। ये कु छ मु ी भर धम के ठे केदार के कड़े
िनयम से नह चलता। यह जंदगी के िनखरने क शैली है। हरे क का अपना
िवकास।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
हड़ पा का पहला राजा

चं धर अपने िनवास से िनकलने के िलए तैयार हो रहा था। वो प र कृ त तांबे


के आईने के सामने खड़ा अपनी कमरपेटी म अपनी तलवार रख रहा था। यह
बुरा समय था। वह नह जानता था क आगे उसके साथ या कसी और के साथ
या होने वाला था। वो अपने कसी भी अंगर क पर भरोसा नह कर सकता
था। वो सभी ज़ंदा लाश के समान बताव कर रहे थे। हड़ पा के दूिषत जल से
िसफ ि य वदा, उसक िव सनीय सेिवकाएं, रं गा और उसके चु नंदा
िसपाही ही भािवत नह ए थे। और यक नन पंिडत चं धर, िजसे उसक
प ी ने दूिषत पानी पीने से बचाया था, अपनी सािजश के एक भाग क तरह
ही। वह चाहती थी क वो अपने होशो-हवास म रहकर यह सब देखे।
जैसे ही चं धर क से िनकलने को आ, ि य वदा उसके क म घुसी। अब
उसका रं ग बदला आ था, मिलन और िश ।
‘मने जो कया, उसम गलत या था, चं ?’ उसने मासूिमयत से पूछा।
चं धर को अपने सुने पर यक न नह आ। उसने अिव ास के साथ अपनी
प ी को देखा। ‘तु ह सच म लगता है, ि य वदा क जो तुमने कया उसम कु छ
गलत नह था?’
‘ठीक है म मानती ं क उसम एक औरत क जान चली गई। ले कन या
एक महान सा ा य बनाने म बिलदान क ज रत नह पड़ती, वो सा ा य
िजसका नेतृ व आप अपने कु शल हाथ से करोगे?’ उसने जवाब दया।
‘हड़ पा कोई सा ा य नह है, ि य वदा!’ चं धर िच लाया।
‘ले कन ज द ही वो होगा चं । या आपको नह लगता? आप हड़ पा के
पहले राजा बनोगे!’ ि य वदा अपने पित के पास आई और अपनी
मह वाकां ी नजर से उसे देखा। ‘और म आपक रानी! इस समृ े पर
हम शासन करगे। और हमारे बाद हमारे ब ,े और फर उनके ब .े ..’
‘हमारा कोई ब ा नह है, ि य वदा!’ चं धर ने तेज आवाज म टोका।
कमरे म स ाटा छा गया।
ि य वदा का चेहरा पीला पड़ गया, मानो सांप सूंघ गया हो।
‘उठो और सचाई को कबूल करो। हमारे कोई औलाद नह है और हम
अपनी क मत को वीकारना होगा!’ चं धर ने कु छ ेह से कहा, अपनी प ी
के सबसे गहरे घाव के ित सजग होते ए।
ि य वदा अब नफरत से कांप रही थी, उसक आंख जहर के आंसु से भर
आ ।
चं धर ने उसे थामने क कोिशश क , ले कन उसने उसे धके ल दया। वह
देख सकता था क उसक प ी दोबारा से नािगन बन गई थी। जब भी उसे
उसक सूनी कोख के बारे म याद दलाया जाता, वह सामा य से भी अिधक
दानवीय बन जाती थी।

‘म उसके बेटे को मार दूगं ी!’ ि य वदा पागल क तरह िच लाई। ‘वो नीच
संजना समझती है क उसके पास पु है तो वो ही महारानी बन सकती है?! म
उन दोन को मार दूगं ी!’
चं धर जानता था क उससे बड़ी गलती हो गई थी। उसने ब त ही खराब
समय पर अपनी प ी के अंदर के शैतान को जगा दया था। अब उसके िलए
अपनी नफरत और ोध दबा पाना आसान नह होगा।
‘ि य वदा तुम मेरी बहन और भांजे के बारे म बात कर रही हो। जरा
संभलकर।’
ि य वदा चं धर पर झपटी और उसके चेहरे और सीने को अपने लंबे
नाखून से न चने लगी। ‘तु ह भी म महारानी बनने लायक नह लगती ,ं
य क म तु ह उ रािधकारी नह दे पाई ं ना, है ना, पंिडत चं धर??’
‘यह सच नह है, ि य वदा। तुम जानती हो क म तु ह दुिनया म कसी
भी चीज से अिधक यार करता ,ं ’ चं धर ने कहा।
‘तो फर जो म कहती ,ं करो। याय पुि तका पर अपनी मुहर लगाओ और
उस देवता को पागल कु े क तरह मरने दो!’ ि य वदा ने दीवान क तरह
जोर डाला।
‘तुम जानती हो क म ऐसा नह कर सकता। िववा वन पुजारी िनद ष है।
वह महान आदमी है। वह मेरा िम है और मेरी बहन का पित। और तुम ये कै से
भूल सकती हो क उसने मेरी जंदगी बचाई थी! म तु हारे सामने आज उसी
क दी जंदगी क बदौलत खड़ा ।ं ’
ि य वदा ने अपना िसर पीछे झटका और सनक क तरह हंसने लगी,
उसका िसर कभी इधर तो कभी उधर डोल रहा था। अचानक वह क गई और
अपने पित पर गुराई, ‘तुम िबलकु ल मूख हो, बूढ़े पागल! उस देवता ने तु हारी
जंदगी इसिलए बचाई थी ता क सारी जंदगी तुम उस क गुलामी करते
रहो।’
‘मार डालो उसे,’ वो बोलती रही, ऐसे जैसे कोई सुन रहा हो। ‘उस देवता
को मार डालो। उसके सुंदर बेटे को भी मार दो। उसक प ी को भी मार दो।
मुझे इस सा ा य क रानी बना दो।’ उसके िवि भाव ऐसे थे मानो उसने
अभी-अभी ये योजना बनाई हो और पहली बार कसी को सुना रही हो।
चं धर क से बाहर िनकल गया था। वह जानता था क अभी उसक प ी
कसी भी तरह क बात सुनने क हालत म नह थी। िजतना वो उसक िनदयी
योजना से ोिधत था उतना ही उसे उसक तकलीफ का भी अहसास था।
उसने उसे लंबे समय तक एक ब े के िलए तरसता आ देखा था। उसे बेऔलाद
देखना चं धर के जीवन क सबसे बड़ी तकलीफ थी। इस गहन दुख को भुलाने
के िलए, उसने ि य वदा को कई दूसरे मामल म छू ट दे रखी थी। ले कन कभी-
कभी वह समझ नह पाता था क उसे कहां िनयं ण लगा देना चािहए था।
जैसे ही वो अपने घोड़े पर बैठने को आ, उसके महल से एक सेिवका
भागती ई बाहर आई।
‘ वामी, ज दी से अंदर चिलए!’ घबराहट म वो बस इतना ही कह पाई।
‘शांत हो जाओ और मुझे बताओ क आ या है!’ चं धर ने कहा।
‘देवी ि य वदा... वो... वो...’
इससे पहले क वो अपनी बात पूरी कर पाती, चं धर अपने िनजी क क
ओर दौड़ा। वह जानता था क या आ होगा। ऐसा पहली बार नह था।
जैसे ही वो शयनक म घुसा, उसने देखा क ि य वदा िखड़क के कनारे
बैठी थी। उसके बाल खुले ए थे, उसके शरीर का ऊपरी व जमीन पर िगरा
पड़ा था, आंख का काजल पलक से फै ल गया था और आंसू गाल पर लुढ़के
ए थे। उसक कलाई कटी थी और वो अपने ही र के ढेर म बैठी थी।
‘ि य, ये तुमने या कया?’ चं धर िच लाया, और अपना अंगव
फाड़कर अपनी प ी क कटी ई कलाई को बांधकर, र रोकने क कोिशश
करने लगा।
‘प ी मत बांधो, पंिडत चं धर,’ ि य वदा ने धीरे से कहा। ‘म फर से उ ह
काट दूग ं ी। अगर मेरे ब ा नह हो सकता, और म अपने पित को राजा बनते
नह देख सकती... तो म जीकर या क ं गी?’
चं धर ने उसक आंसू भरी आंख को और बहते र के साथ उसक
मुरझाती रं गत को देखा। वह जानता था क अगर इस समय वो ि य वदा का
र रोकने म कामयाब भी हो गया, तो ि य वदा दोबारा से ऐसा करे गी। वो
िज ी थी, और यह उसके िव उसका आखरी हिथयार था। अब उसके पास
कोई िवक प नह था।
‘तु ह चयन करना ही होगा, चं ,’ ि य वदा ने फ क सी मु कान से कहा।
‘वो या म?’
चं धर ने धीरे से अपना िसर अपनी यारी प ी क गोद म रख दया।
उसके र म भीगते ए वो बार उसके हाथ को चूम रहा था। उसक आंख म
दद और लाचारी के आंसू थे।
‘तुम, ि य वदा... म तु ह ही चुनूंगा।’
बनारस, 2017
अधािगनी

िव ुत और दािमनी मठ के ही पास एक स ते ले कन साफ ित बती फू ड जॉइं ट


म बैठे थे। वाराणसी भारत का लोकि य पयटन थल है। यह आ याि मक
शांित क तलाश म आए देशी-िवदेशी लोग के िलए तो वग है ही, साथ ही
खाने-पीने के शौक न क भी पसंदीदा जगह म से एक है। धरती पर ऐसा
कोई ंजन नह है जो इस रह यमयी शहर म नह िमलता हो।
देवता को हाल ही म ए भयंकर जानलेवा हमले क वजह से आ म से
बाहर नह जाने क सलाह दी गई थी। हमला करने वाले ने वयं का नाम
रोमी परे रा बताया था।
ले कन िव ुत को बाहर िनकलने क ज रत थी, भले ही वो घंटे, दो-घंटे के
िलए य न हो। रोमी के िव पूरी तैयारी से हमला करने से पहले, िव ुत
दािमनी को सब बता देना चाहता था। अपने अनोखे अतीत, वतमान और
भिव य के बारे म उसे सारी सचाई बतानी थी। उसका भिव य आिखरकार,
उनका भिव य जो बनने वाला था।

उ ह ने ठं डी िबयर का घूंट भरा। दािमनी क इ छा के िव , िव ुत फर से


मोक कर रहा था। सोनू, जो उनसे दो टेबल दूर बाला के साथ बैठा था, वो भी
अपने सामने िबयर का दूसरा िगलास रखे बैठा था। उसने चुपके से बाला को
बताया था क उसने कभी शराब नह पी थी, और थोड़ी सी पीना चाहता था।
सादगी पसंद यो ा-संत होने के साथ ही सोनू युवा भी था, जो जंदगी म थोड़ी
म ती भी करना चाहता था। खूब-पीने वाला, ले कन पूरी तरह से संयिमत,
ए स-आम मैन बाला, खुशी-खुशी उसका साथ दे रहा था। थोड़ी-थोड़ी देर म
िव ुत मु कु राकर सोनू क टेबल क तरफ देख लेता और उसक तरफ आंख
मारकर उसे पीने क इजाजत दे देता। वो खुश था क उसका आ म का दो त
कम से कम एक िनयम तो तोड़ रहा था! वह यह भी जानता था क बाला के
साथ वो सुरि त था। उसका पुराना दो त सोनू को िलिमट से पार नह जाने
देगा। हालां क सोनू अपने इस नए शौक का पूरा मजा ले रहा था, ले कन फर
भी उसे अपनी िज मेदारी का पूरा अहसास था। हर िमनट दो िमनट म उसक
उं गिलयां अपनी बे ट म लगी को ट .380 म टंग को चैक कर रही थ ।
सोनू के अलावा, वहां आ म के चार और यो ा वहां िव ुत और दािमनी
क सुर ा के िलए आए ए थे। ले कन वो ये नह जानते थे क अगर सच म
कोई दु मन िव ुत पर हमला करने क िह मत करे गा, तो उसके सामने वो
जरा भी टक नह पाएंगे। वयं देवता के िव आने वाली मुि कल को रोक
पाना उनके िलए सहज नह होना था।

‘ये मोमोज ठं डे हो रहे ह, वीटी,’ िव ुत ने कहा। ‘ये तु हारी पसंद के ह, और


ये जगह ित बती खाने के िलए फे मस है।’
दािमनी बैठी ई िव ुत को घूर रही थी। उसे यक न नह हो रहा था क
िव ुत अब िचकन मोमोज क बात कर रहा था, अभी तक इतनी लंबी और
अजीब कहानी सुनाने के बाद! वो अभी क उसक बात सुन ही नह रही थी।
या तो उसका बॉय ड पागल हो गया था या सच म कु छ भयानक घ टत होने
वाला था। ये िववा वन पुजारी कौन था? उसका नाम इतना प रिचत सा य
लग रहा था? इस रह यमयी नाम को सुनने भर से उसे रोना य आ रहा था?
चं धर का नाम भी उसे परे शान कर रहा था। जनरल एले जडर क नंघम कौन
था? ि टश ूनटन भाई कौन थे िज ह ने ाि नाबाद को बबाद कया? और
उस जगह का नाम ाि नाबाद था ही य ? या ई ट इं िडया कं पनी और
ि टश ताज सच म नह जानते थे क एक ागैितहािसक नगर के अवशेष
जलाकर, उसके सामान को रे लवे लाइन बनाने के िलए इ तेमाल कया जा
रहा था? और इससे भी खराब, जो भी महान ारका शा ी ने िव ुत को
पुजारी-राजा के पुतले के बारे म बताया, उससे उनका या मतलब था?
दािमनी हमेशा से जानती थी क उसके असाधारण बॉय ड म कु छ तो
रह यमयी बात थी। ले कन उसे ये नह पता था क बात इतनी ज टल और
अक पनीय होगी।
‘म इस सब पर भरोसा नह कर सकती...’ दािमनी ने लंबी खामोशी के
बाद कहा। ‘इससे पहले क म और कु छ पूछूं, मुझे यह बताओ— या तु हारे
परदादा सच म ऐसे इं सान ह जो जादू कर सकते ह, आ मा को बुला सकते ह
और झाड़-फूं क सही कर सक?’
िव ुत ने थक मु कान से जवाब दया। ‘हम सब वो कर सकते ह, बेबी।’
दािमनी हैरान थी। उसके बॉय ड ने अभी या कहा था? और ये श द
बोलते ए उसक लापरवाही तो कमाल थी।
‘सॉरी... या तुमने कहा हम सब? मेरा मतलब... या तुम भी इसका
िह सा हो, बेबी?’ दािमनी ने पूछा। वो जादू, भूत, आ मा और दूसरी दुिनया
क बात करते समय िव ुत क सहजता से हैरान थी। उसने अपने सामने रखी
िबयर उठाकर उसका ांड चैक कया, यह जानने के िलए क कह िव ुत को
नशा तो नह हो गया था। उसका आकषक और सामािजक प से लोकि य
बॉय ड, जो अपनी िडिजटल िस यो रटी कं पनी चलाता था, अब रह यमयी
साधक क तरह बात कर रहा था।

िव ुत ने िबयर का चौथा कै न उठाया और एक ही लंबे घूंट म उसे लगभग


आधा पी गया। उसके सामने बैठी दािमनी, िव ुत के यूं पीने और मोक करने
से परे शान थी। ले कन उसने उसे पीने दया। वह जानती थी क साहसपूण
बताव के बावजूद वो अंदर ही अंदर उस सब से जूझ रहा था, जो उसने िपछले
दो दन म सुना था। और मन ही मन, उसके अंदर क शरारती लड़क को यह
पसंद भी था। पीने के बाद िव ुत कमाल का दीवाना हो जाता था। वो नह
जानती थी क वो सच म देवता था या नह । ले कन थोड़ा पी लेने के बाद,
िव ुत क उं गिलय म जादू आ जाता था। उसे अहसास आ क वो अपनी ही
सोच पर मु कु रा रही थी। उसने अभी के िलए उस याल को झटक दया, ये
जानते ए क वो जादुई उं गिलयां हमेशा के िलए उसी क होने वाली थ ।
अपने सपन क दुिनया से बाहर आ, दािमनी ने महसूस कया क वा तव
म काफ कु छ दांव पर लगा था।
‘तो िव ुत, ूनटन भाइय ने ाि नाबाद को सच म य न कया था?’
दािमनी ने पूछा।
‘ब त आसान है दािमनी। वो ाचीन वै दक स यता के माण िमटाने क
कोिशश कर रहे थे,’ िव ुत ने जवाब दया। ‘आ दम नगर क ट का
इ तेमाल रे लवे लाइन के िनमाण म कर, वो सुिनि त करना चाहते थे क कोई
दोबारा उनक खोज न कर पाए। तु ह कु छ समझ नह आया दािमनी? वो
कसी चीज क तलाश कर रहे थे! और जब उ ह वो नह िमली, तो उ ह ने तय
कया क कोई और भी उसे ढू ंढ़ नह पाए।’
‘वाह...!’ दािमनी ने हांफते ए कहा। ‘ये सब... ब त... ब त... पेचीदा है।’
‘सच को िसरे से िमटाने क उनक योजना का यह तो पहला कदम था।
या तुम जानती हो क जनरल एले जडर क नंघम, जो जॉन ूनटन और
िविलयम ूनटन के लाहौर-कराची रे लवे लाइन बनाते समय वहां उपि थत
था, को बाद म अं ेज ने स मािनत कया और उसे उ र भारत के पुरात व
िवभाग का डायरे टर जनरल बना दया गया?’
‘ या? मतलब एक ऑ फसर जो एक िवरासत क िनमम तबाही का गवाह
था, उसे वा तव म ऐसी िवरासत का इं चाज ही बना दया गया?!’
‘तुम कै से जानती हो क वो बस गवाह था, दािमनी? हम कै से जान सकते ह
क उसे गवाही का नह बि क 1856 म ाि नाबाद को अनदेखा करने का
ईनाम दया गया हो?’ िव ुत ने जवाब दया।
दािमनी का मुंह हैरानी से खुला रह गया था।
‘हड़ पा के नगर, इसके भी लगभग आधी सदी बाद तक दबे रहे। दो
पी ढ़यां बदलने के बाद ाि नाबाद का नाम भुला दया गया। और एक नए
नाम के साथ, एक नया चार 1921 म शु कया गया।’
‘ले कन बेबी, वो सच या था, िजसे वो दबाने क कोिशश कर रहे थे?’
दािमनी ने पूछा।
िव ुत मु कु राया। ‘तु ह अभी तक समझ नह आया, दािमनी?’ उसने
पूछा।
उसक असाधारण प से बुि मान गल ड ने ना म िसर िहलाया।
‘उपमहा ीप पर अपने सा ा याई चढ़ाई को वैध दखाने के िलए, अं ेज
को यह सािबत करना था क भारतीय िन जाित के थे—सांवले, अध-
कबायली लोग, िज ह पि म से आए े जाित के गोरे रं ग और नीली आंख
वाले हमलावर ने परा त कर दया। यह एक बेहतरीन मनोवै ािनक जंग थी
िजसने भारतीय मनोिव ान म घर कर िलया। और उ ह ने मान िलया क
पि म के गोरे हमसे द और े ह।’
‘म पूरी तरह से समझ नह पा रही ,ं िव ुत,’ दािमनी ने कहा, जो अब
िव ुत के कहे हर श द को समझने क पूरी कोिशश कर रही थी।
‘तु ह या लगता है क कै से कु छ हज़ार ि टश ऑ फसर और िसपािहय ने
सौ लाख क आबादी वाले उपमहा ीप पर क जा कर िलया? या तु ह लगता
है क यह िसफ सै य दम पर हो सकता था?’ िव ुत ने पूछा।
‘सै य बल, े आ थक बल, आधुिनक हिथयार, अनुशािसत नौकरशाही...’
दािमनी ने ज दी-ज दी जोड़ा।
‘हां दािमनी, उनके पास ये कु छ फायदे थे। ले कन इनम से कोई भी िनि त
प से खेल का ख नह बदल सकता था। उनका सबसे स म हिथयार कु छ
और था। यह मनोवै ािनक प से शासन करना था। वो भारत क िसफ
जमीन, संपि और राजनीित पर ही क जा करना नह चाहते थे। उ ह ने
भारतीय दमाग को अपना गुलाम बनाया।’

‘"कु और भारितय का अंदर आना मना है" जैसे साइनबोड ि टश लब


और ऑ फसर मेस के सामने खूब लगाए गए थे, यहां तक क बीसव सदी के
आिखर तक भी। तु ह या लगता है दािमनी, इससे वो या जताना चाहते थे?
या वो सच म ऐसे बोड के ज रए कु को बाहर रखने क कोिशश कर रहे
थे? या यह भारतीय मन पर धीमा और िनयिमत हमला था?’ िव ुत ने पूछा।
दािमनी पूरे मन से सुन रही थी, उसक उं गिलयां बे यानी म उसके सुंदर
बाल क लट से खेल रही थ ।
‘अं ेज जानते थे क वो िसफ बंदकू के दम पर तीस करोड़ लोग को गुलाम
बनाकर नह रख सकते थे। यह करने का िसफ एक ही तरीका था, और उसके
िलए सभी लोग के मन को गुलाम बनाना ज री था। और इसक िविधवत
शु आत ाि नाबाद क बबादी से ई। ले कन िसफ इतना ही नह था,
दािमनी। यह ष ं अं ेज के भारत पर राज से और अिधक गहरा था।’
िव ुत अब गहरे िवचार म खोया आ, अपनी उं गिलय म पकड़ी ई
जली िसगरे ट को देख रहा था। उसने एक कश भी नह िलया था, जबसे
िसगरे ट जलाई थी। दािमनी घबराहट से ठं डी ई जा रही थी। उसे जानना था
क िव ुत इस सबसे कै से जुड़ा था।
‘ष ं से तु हारा या मतलब है, िव ुत? लीज ठीक से समझाओ,’
दािमनी ने पूछा।
‘इस सबक शु आत पं ह सौ साल पहले ई थी, इ तांबुल के एक ाचीन
शहर म। वहां एक धम के अनुयाियय ने तय कया क वो पूरी दुिनया पर
शासन करगे... हमेशा के िलए।’
आगे बोलने से पहले िव ुत कु छ पल के िलए का। वो अब मानो एक
दूसरी दुिनया म प च
ं गया था, मानो कसी और ही समय म प च ं गया था।
‘यह सब कु छ ऐसे ही हो रहा है जैसी मरते ए स ऋिषय ने भिव यवाणी
क थी,’ उसने कहा।

िव ुत ने अपनी िबयर से एक घूंट भरा। जैसे ही उसने अपना िगलास वापस


टेबल पर रखा, उसने यान दया क दािमनी गहरे सदमे म थी। वो तुरंत
समझ गया क आज के िलए उसने काफ सुन िलया था।
‘चलो, चलते ह, हम काफ देर हो रही है,’ उसने दािमनी से कहा, एक
ित बती वेटर को िबल लाने का इशारा करते ए। उसने सोनू और बाला को
भी चलने का संकेत दया।
‘नह ...’ दािमनी ने िवरोध कया। ‘िव ुत, तुम अभी अपनी बात कै से ख म
कर सकते हो!’
‘हां हां... तु ह सब पता चल जाएगा, दािमनी,’ िव ुत ने जवाब दया,
‘ले कन आगे क बात तुम बाबा से सुनोगी तो अ छा रहेगा।’
‘बाबा? तु हारा मतलब महान ारका शा ी जी...?’ दािमनी ने पूछा, वो
मठाधीश के महान ि व के भाव म थी।
‘हां, दािमनी,’ िव ुत ने मु कु राते ए जवाब दया।
‘नह ... नह ... उनसे िमलने म मुझे डर लग रहा है, यार। और तुम... उ ह
या कहकर मुझसे िमलवाओगे?’ दािमनी ने हैरानी से आंख फै लाते ए पूछा,
मन ही मन वो खुश थी क िव ुत उसे अपने प रवार के एकमा सद य से
िमलवाने ले जा रहा था।
‘उ ह ने वयं तुमसे िमलने को कहा है। उ ह ने मुझसे कहा क अपनी
अधािगनी को लेकर आना,’ िव ुत ने दािमनी क आंख म गहरे देखते ए,
यार से मु कु राकर कहा।
दािमनी क आंख भर आ और एक पल बाद उसने िव ुत का हाथ अपने
हाथ म लेकर कहा, ‘आई लव यू, िव ुत।’
‘म भी तुमसे ब त यार करता ,ं दािमनी।’
वो वहां बैठे थे, एक-दूसरे का हाथ पकड़े ए, एक-दूसरे म खोए ए।
कु छ पल उसी आनंद म गुजरे । तभी रे टोरट के एक वेटर ने आकर उनके
एकांत को भंग कया। वो टेबल पर िबल का फो डर रखकर चला गया। िव ुत
और दािमनी जोर से हंस दए।
‘चलो चलते ह, देर हो रही है,’ िव ुत ने कहते ए फो डर म दो हज़ार
पए का नोट रख दया। तभी कु छ उसक आंख को खटका। फो डर म
रे टोरट के खाने और पीने का िबल नह था। उसम टायिलश राय टंग म हाथ
से िलखा आ एक नोट था।
कल शाम 7 बजे, गंगा आरती।
तु हारा अपना,
रोमी
हड़ पा, 1700 ईसापूव
मृत कारावास

एक िघनौनी दुगध से िववा वन पुजारी क आंख खुली। जैसे ही उसने अपनी


आंख खोल , तो वहां जलती इकलौती मशाल क धुंधली रौशनी म उसे काले
प थर क कठोर दीवार ही दखाई पड़ी। उसके िसर क चोट अभी ताजी थी
और अपनी नंगी कमर के नीचे उसे ठं डी, गीली जमीन महसूस ई। उसने उठने
क कोिशश क । हवा क दुगध असहनीय थी।
जैसे ही वह उठकर बैठा, और अपने आसपास का जायजा िलया, तो उसे
समझ नह आ रहा था क वो कहां था। अपने गले म उसे ब त से कांटे चुभते
महसूस हो रहे थे। उसने शायद कई दन से पानी क एक बूंद तक नह पी थी।
उसने मुड़कर देखा तो लकड़ी के मोटे से दरवाजे को बंद पाया, जो इस जगह
क घुटन को और बढ़ा रहा था। उसके कान म उसी का सूखा र भरा आ
था, ले कन फर भी वो दूर से आती लोग क तािड़त चीख सुन पा रहा था।
उस जगह क नारक य गंध से उसे उबकाई आ रही थी।
धीरे -धीरे देवता क चेतना और याद वापस आने लगी। उसे अहसास आ
क उसके हाथ नीचे गीली और दलदली जमीन पर रखे थे। उसने एक हाथ
उठाकर देखा तो पाया क उसक हथेली बदबूदार, भूरी क चड़ से भरी ई थी।
लोग के िच लाने और रोने क आवाज लगातार कोठरी क मोटी और मजबूत
दीवार से आ रही थ । िववा वन पुजारी को अहसास आ क उसक हथेली
भी उसी गंध से भरी थी, जो वहां क हवा म थी, बस हथेली से तेज गंध आ
रही थी।
देवता ने अपना िसर िहलाकर आसपास क जगह को समझने क कोिशश
क । बदबूदार हवा उसे और अ व थ कर रही थी। अपनी चेतना आने पर उसने
पहचाना क वो गंध इं सानी पसीने, मल, र और सड़े ए मांस क थी। इस
अहसास के साथ ही उसे तुरंत िमतली आई। उलटी म िसफ र ही बाहर
िनकल पाया। उसने पूरे दो दन से कु छ खाया-िपया नह था। उसने यान
दया क िजस जमीन पर वो बैठा था उस पर र और इं सानी मल बह रहा
था। अचानक ही उसने भांप िलया क वो कहां था। ले कन उसका दल अभी
भी यह मानने को तैयार नह था। उसने पागल क तरह वहां से उठकर, मोटा
दरवाजा खोलने क कोिशश क । उस पर ताला लगा था। उस अंिधयारी
कोठरी म रौशनी का एकमा ोत दीवार पर लगी इकलौती मशाल थी।
िववा वन पुजारी ने उठकर देखा क उसक कोठरी आकार म एक चारपाई से
भी छोटी थी। हवा मौत और अवसाद क गंध से भारी थी, और कै दय के
कराहने और रोने क आवाज बंद ही नह हो रही थ ।
िववा वन पुजारी मुि कल से सांस ले पा रहा था। वह अब कोठरी क नमी
भरी ठं डक म कांप रहा था और नीची छत क वजह से वो अपना िसर झुकाए
िबना खड़ा भी नह हो सकता था। िघनौनी गंध, काली दीवार, खौफनाक
अंधेरा, भयानक चीख... सब देवता को बता रही थ क वो कहां था।
िववा वन पुजारी इसके िलए तैयार नह था। अपनी सारी ताकत, साहस
और आ याि मक शि य के बावजूद, देवता यह मानने को तैयार ही नह था
क वो धरती के सबसे िघनौने कारावास म था। क वो मृत कारावास म था!

मृत कारावास क हालत और वहां क पीड़ा देखकर सोमद को अपनी आंख


पर भरोसा नह आ। ि य वदा और उसके सहायक रं गा क जानकारी के
िबना, मु य अिभयंता उस दूिषत जल से बच िनकला था। जब रं गा और उसके
आदमी हड़ पा के मुख जल ोत म रसायन िमलाए जाने क रात पहरे दारी
पर थे, तब सोमद सर वती नदी के कनार का िनरी ण करने के िलए नगर
से बाहर गया आ था। सोमद और उसके कु छ आदमी जब वापस नगर म
आए तो वो उसे पहचान ही नह पा रहे थे। वो नगर पूरी तरह से िवि
आदिमय क नगरी म बदल चुका था।
उसने अिव ास और िनराशा से शि शाली िववा वन पुजारी क सुनवाई
क बात सुनी। हड़ पा के कसी भी दूसरे समझदार ि क ही तरह,
सोमद को यक न था क देवता को फं साया गया था। उसने सही कदम उठाने
का फै सला िलया। ले कन पहले, उसे देवता से िमलकर जानना था क आिखर
माजरा या था।
मृत कारावास म कसी को भी िमलने जाने क इजाजत नह थी। यहां तक
क मशान म भी लोग अपने जा चुके ि यजन से िमलने जा सकते थे। ले कन
इस कारावास म नह । यह कारावास एक ऐसा काला ग ा था, जहां से कोई
वापसी नह थी। एक ऐसा नक, जहां जाने वाले के िलए कोई उ मीद नह
बचती।
सोमद एक मेहनती आदमी था। मु य अिभयंता होने से उसके पास काफ
संपि भी थी। और पागलपन क वतमान अव था म, जेल म तैनात कसी भी
अिधकारी को र त देकर अंदर जा पाना मुि कल नह था। चाहे जो भी
करना पड़ता, ले कन सोमद जानता था क उसका देवता से िमलना ज री
था। अगर इस िवि महानगर के िलए कोई उ मीद शेष थी, तो वो
िववा वन पुजारी ही था।
हड़ पा म वापस आए ए उसे सोलह घंटे बीत चुके थे, और अब सोमद मृत
कारावास क सी ढ़यां उतर रहा था। उसने उस कारावास के सबसे
भावशाली कै दी से छोटी सी मुलाकात का बंदोब त कर िलया था।
देवता क कोठरी पर प च ं ने तक सोमद तीन बार उलटी कर चुका था।
कारावास क हवा इतनी खराब थी क एक इं सान उसक क पना तक नह
कर सकता था। उलटी करते समय वो रो भी रहा था। वो झक सफे द कपड़े
पहनने वाले, तेजमयी, द और ेहमयी िववा वन पुजारी को वहां देखने क
क पना तक नह कर पा रहा था। उसे ये भी अहसास आ क पैसा और ताकत
आ जाने पर इं सान कभी-कभी बद क मत क भयानक सचाई से मुंह मोड़
लेता है। इस कारावास जैसी जगह क संरचना भी तो एक इं सान ने ही क थी,
जहां कसी को उसक आखरी सांस तक मरने के िलए भेज दया जाता था। वो
सोच रहा था क एक आदमी को कै से ये हक दया जा सकता था क वो सामने
वाले को यूं िनमम हालात म मरने के िलए छोड़ दे।
जब नशे म धु पहरे दार ने िववा वन पुजारी क कोठरी का दरवाजा
झटके से खोला, तो सोमद को वही नजर आया िजसक उ मीद थी।
कारावास क उस दयनीय, अमानवीय हालात म भी, देवता पालथी मारे बैठ,
गहन यान म गुम था। सोमद तुरंत शि शाली िववा वन पुजारी, हड़ पा के
र क के पैर म िगर पड़ा।
‘सोमद ... मेरे िम ... सोमद ...’ देवता ने कहते ए सोमद का हाथ
अपने हाथ म ले िलया, और रोते ए अपने िम क उं गिलय पर अपना माथा
टका दया। वो बता नह सकता था क अपने िम का चेहरा देखकर उसे
कतनी राहत महसूस हो रही थी। िपछले दो दन म िववा वन पुजारी भूल
चुका था क िम कहते कसे ह। सभी आदमी, िज ह वो अपना िम समझता
था उसे और उसके प रवार को ज रत के समय म छोड़ चुके थे। अिभयंता भी
भावुक हो रहा था। वो देवता, जो हर अवसर पर शानदार कपड़ म सुशोिभत
रहता था, िजससे चंदन क महक आती थी, आज यहां इस सड़ी ई कोठरी म
ल लुहान, घायल और धोखा खाए बैठा था।
‘ये सब या हो गया, वामी?’ सोमद ने अपने और अपने मािलक के आंसू
प छते ए कहा। ‘हम ज द ही कु छ कदम उठाना होगा।’
‘हां हम करगे, सोमद ... हम करगे,’ देवता ने जवाब दया। ‘ले कन कु छ
और बात करने से पहले, मुझे बताओ मेरी संजना कहां है। मेरा पु मनु कहां
है!’
‘वो सुरि त ह, ओ देवता... अभी के िलए तो,’ सोमद ने जवाब दया।
‘संजना को मनु और उनके शानदार नवर ने यायालय म घुसकर बचा
िलया था। वो अब सुरि त ह, और िछपे ए ह। वो आपको भी िनकाल ले
जाना चाहते थे, ले कन तब तक यायालय म भारी सेना प च ं गई। वो आप
तक नह प च ं सके ।’
िववा वन पुजारी ने राहत क सांस ली। अगर उसक प ी और बेटा
सुरि त ह तो वो हज़ार मौत मरने को तैयार था।
िवलंब के कु छ पल बाद, िववा वन पुजारी ने फर से कहा। इस बार उसक
आवाज म उ मीद थी। देवता अब पलटवार के िलए तैयार था!
‘तो सोमद , अब कै से काम करना है?’ िववा वन ने पूछा।
‘ वामी, मने सुना है क मनु मृत कारावास पर हमले क तैयारी कर रहा
है। ले कन ओ शि शाली देवता, उसके पास कोई मौका नह है। वो दस लोग
इस नरक क सुर ा करने वाले तीन सौ िशि त यो ा का मुकाबला नह
कर पाएंगे।’
िववा वन पुजारी ने एक थक ई मु कान दी। उसे सोमद के दए त य
पर भरोसा नह था। वयं मनु और उसके प रवार के नौ र एक ही सांस म
अपने धनुष से चालीस तीर चला सकते थे। उनम से येक एक साथ बीस-
बीस तलवारबाज को संभाल सकता था। अगर वो दस एक साथ कारावास पर
हमला करगे तो उनक जीत क उ मीद क आधी संभावना थी।
हालां क अपने ि य मनु और उसके शानदार सािथय के साथ िववा वन
अब कोई दांव नह खेलना चाहता था। वैसे भी अभी आने वाले दन म उसे
और उसके प रवार को कई लड़ाइय का सामना करना था। अगर इस
कारावास से बचने का कोई और आसान तरीका था, तो िववा वन पुजारी उसे
ही अपनाना चाहता।
बनारस, 2017
धोखेबाज़!

ित बती रे टोरट के शराबी मािलक को कु छ नह पता था क वो नोट िव ुत


तक कै से प च ं ा, या कौन वो नोट यहां िगराकर गया। गंदी टोिपय और एक
जैसी वद म वो सारे वेटर एक जैसे ही जान पड़ रहे थे। उनम से कसी को भी
कु छ पता नह था, बाला क जैकेट से दखते रवॉ वर क मूठ क धमक के
बावजूद भी उ ह कु छ नह पता था। उनम से कसी म भी भयावह देव-रा स
मठ से आने वाले मेहमान से उलझने क िह मत नह थी। रोमी या तो उस
रे टोरट से िबना कसी क नजर म आए िनकल गया था, या वह ब त ही
प च ं ी ई चीज था।
िव ुत ने सोनू और उसके दो सािथय को दािमनी को सुरि त मठ म
प च ं ा देने को कहा। दािमनी ने िवरोध करना चाहा, ले कन कोई फायदा नह
होना था। िव ुत उसे ऐसी जगह रहने क इजाजत नह दे सकता था, जहां वो
एक ए सपट ह यारे क नजर म हो। सोनू और उसक टीम, हाथ म बंदक ू
लहराते ए, दािमनी को अपनी सुर ा घेरे म लेकर आ म क तरफ बढ़े।
घड़ी रात के साढ़े नौ बजा रही थी और पूरी तरह अंधेरा हो चुका था।
हालां क खुले बाजार क गली के दोन कनार पर बने छोटे-छोटे रे टोरट क
सीट हज़ार टू र ट से भरी पड़ी थ और पूरी मा कट म काफ चहल-पहल
थी। इन रे टोरट म जापानी सूशी से लेकर मसाला डोसा तक सब कु छ
िमलता था, और यहां हर देश के , हर उ के और हर आ था के लोग िमल जाते
थे। तो इन सबके बीच अपने भयानक हमलावर को ढू ंढ़ना मतलब घास के ढेर
म सूई ढू ंढ़ने के बराबर था। और साफ था, वो अभी भी उ ह को देख रहा
होगा। यह ह यारा तो मठ क गु चर सेना से भी अिधक होिशयार िनकला।
वो िव ुत क क पना से भी अिधक खतरनाक था... और उससे एक कदम आगे
था।

मठ म, िव ुत ने दािमनी को गुडनाईट कस कया। मठ के िनयम और


संिहता के चलते, वो एक ही कमरे म रात नह िबता सकते थे। ले कन
िव ुत िन ंत था क दािमनी अभी सबसे सुरि त जगह पर थी। कोई भी, वो
असाधारण ह यारा भी देव-रा स मठ क सुर ा म सध नह लगा सकता था।
‘अब या, िव ुत?’ दािमनी ने पूछा, िव ुत उसे उसके साफ-सुथरे गे ट
म म छोड़कर जा रहा था।
‘उस आदमी ने मुझे कल गंगा आरती म िमलने के िलए बुलाया है। म उसके
िनमं ण को ना कै से कर सकता ,ं खासकर तब जब उसने हमारी पहली
मुलाकात पर मुझे तोहफा भी दया था?’ िव ुत ने गु से से उबलते ए जवाब
दया। आज रात रोमी ने उसके करीब आकर गलती कर दी थी, वो भी तब जब
वो दािमनी के साथ था। और इस गलती को िव ुत माफ नह करने वाला था।
‘ले कन उसने तु ह गंगा आरती म य बुलाया है, िव ुत? इसम ऐसी
खास बात या है?’
‘गंगा आरती हर शाम दशा मेध घाट पर 6:45 पर होती है... उसी जगह
पर म पहली बार रोमी से िमला था। बस फक यह है क उस द आरती के
समय, जब अनेक दीये गंगा नदी के कनारे जलाए जाते ह, तब वहां भारी
भीड़ होती है। एकदम इं सानी समु क तरह लोग वहां उमड़ आते ह। गंगा
आरती एक अलौ कक अनुभव है, जहां भगवान िशव, मां गंगा, सूय और अि
क आराधना क जाती है। इस पिव अनु ान का िह सा बनने के िलए ब त
दूर-दूर से लोग घाट पर आते ह।’
िव ुत कु छ पल का और फर बोला, ‘दूसरे श द म कल घाट पर उस
समय बीस हज़ार लोग ह गे।’

सारे यो ा एक साथ जुटे थे। बलवंत ब त गु से म था, उसक सांस फू ल रही


थ , उसके भारी कं धे कसी िवशाल मूसली क तरह मशीनी ढंग से उठ िगर रहे
थे। िव ुत को मठ से बाहर जाने देने के िलए वो वयं से नाराज था। वहां
बाला था, िजसे अब उस जघ य ह यारे क खौफनाक शि य का पूरा अहसास
हो गया था। सोनू ने अपना मुंह धो िलया था और कई सारे बनारसी पान चबा
चुका था। सोनू मठ के कसी बड़े को यह पता नह चलने दे सकता था क वो
शाम को िबयर पी रहा था। वहां गोवधन और पुरोिहत जी भी थे। िव ुत भी
वहां आ प च ं ा था।
‘वो गु चर सेना को कै से नह िमला?’ बलवंत ने गु से से कहा। वह ाचीन
गु चर नेटवक का नेता था और उनक असफलता को अपनी नाकामयाबी
मान रहा था। ‘हमारी नजर हर मोटल, गे टहाउस, रे टोरट और हर दुकान
पर थी। तीन सौ से अिधक र शावाले और दो सौ ऑटो ाइवर हमारे नेटवक
का िह सा ह। हमारी नजर तो मशान और तांि क आ म पर भी रहती है!
वो बदमाश कसी भी तरह से हमारी मु ी से बाहर नह िनकल सकता था।
इतनी िशि त सेना के आगे एक आदमी क या िबसात?’
बलवंत सही कह रहा था। जो कु छ िव ुत ने बताया था, उससे साफ था क
रोमी बनारस का नह था। उसक भाषा, कपड़े और उसका वहार... हर
चीज से पता चल रहा था क वो वहां बाहरी था। कै से कोई एक आदमी, और
वो भी जो इस शहर म नया हो, वो देव-रा स मठ के िवशाल नेटवक से बच
सकता था?
‘जब तक क...’ बाला ने बुदबुदाया।
‘जब तक क या, बाला?’ िव ुत ने पूछा।
‘जब तक क वो बनारस म अके ला न हो, िव ुत। हमने ऐसा सोच भी य
िलया क वो अके ला भेिड़या है? शायद वो अके ला नह है। शायद उसके पीछे
भी कोई ऐसा संगठन हो, िजसक वाराणसी म मजबूत जड़ ह । अगर अब हम
उससे िमलने जा रहे ह तो, हम हर संभावना को यान म रखना होगा।’
बाला क बात वहां मौजूद हरे क ि क समझ म आ गई, और सबसे
अिधक िव ुत के । पल भर म ही िव ुत जान गया था क बाला सच कह रहा
था। वो इतना मूख कै से हो सकता था?
‘वह अके ला नह है,’ िव ुत ने कहा। उसके वा य म शक क कोई गुंजाइश
नह थी।
‘अभी कसी िनणय पर नह प च ं ते ह, िविडयो...’ बाला ने कहा, ले कन
तभी िव ुत ने उसे बीच म रोक दया।
‘वह अके ला नह है!’ िव ुत ने दोहराया, इस बार कु छ स ती से। उसके
हाथ उसक कमर पर थे और वो अपना िसर िहलाते ए, जमीन को घूर रहा
था। ‘हमने ब त मूखता क ...’ वो बड़बड़ाया और फर जोर से हंसने लगा।
‘ओह गॉड... हम कतने मूख थे!’ िव ुत िच लाया और फर से अपना
िनयं ण खो हंसने लगा। बाक लोग ने एक-दूसरे को देखा, उ ह कु छ अंदाजा
नह था क िव ुत कस बात पर हंस रहा था।
‘भगवान के िलए, िविडयो... या तुम हम बताओगे क तुम या सोच रहे
हो?’ िव ुत को हंसता देख बाला ने पूछा।
‘आई एम सॉरी... मुझे माफ करना... बस मुझे भरोसा नह हो रहा क
हमने इसे पहले य नह सोचा,’ िव ुत ने कहा। अब वह धीरे -धीरे गंभीर हो
रहा था।
‘ या नह सोचा, दादा?’ सोनू ने पूछा।
‘एकदम संपल है, सोनू। रोमी आज मुझसे िमला, या मुझे कहना चािहए
क रोमी आज मेरे करीब था, जब क आज क हमारी योजना तो बस तुरंत
बनाई गई थी। उसे कै से पता चला क म वहां जाने वाला था?’ िव ुत ने
समझाया।
बलवंत, बाला, गोवधन और पुरोिहत जी आखरी देवता के श द सुनकर
जड़ रह गए। इतनी सामा य सी बात पर उनका यान कै से नह गया था?
सोनू अभी भी थोड़ी दुिवधा म था। ‘आपका या मतलब है, िव ुत दादा?’
उसने पूछा। ‘हो सकता है मठ के वेश ार के पास कसी जगह पर रोमी
आपका इं तजार कर रहा हो, और उसने वहां से आपका पीछा कया हो।’
‘तुम सही कह रहे हो, सोनू। ले कन तु हारी योरी म दो सम याएं ह।
पहली बात तो, जैसा क हम सभी जानते ह, सश यो ा-संत का बड़ा सा
दल दन-रात आ म क सुर ा करता है। तो यह संभव ही नह है क कोई
ि तीन दन तक आ म के आसपास कसी भी जगह पर डेरा डालकर बैठा
रहे और पकड़ा न जाए। दूसरी बात, दोन बार जब भी वो मुझसे िमला, पूरी
तैयारी से िमला। पहली बार उसके पास ब ढ़या सी िडवाइस थी, जो कभी भी
फट सकती थी। और दूसरी बार भी अ छी तरह हमारी आंख म धूल झ क या
रे टोरट टाफ म से कसी को पटा िलया। तो तु हारी कही बात सच हो सकती
है, ले कन उस पर यक न करना मुि कल होगा।’
सोनू समझ गया था क िव ुत या कह रहा था। उसने उसके िवचार को
जुबान दी, ‘तो रोमी जानता था क आप कब और कहां जाने वाले हो!’
‘हां,’ बलवंत गुराया, उसक आंख जल रही थ । ‘हम लोग म कोई ग ार
है।’

िव ुत अब अपने कमरे म वापस जा रहा था। वो सद रात थी और मठ का


अंद नी भाग सुंदर बगीच , झरन और म म रौशनी म ब त ही आकषक
लग रहा था। एक लंबे और त दन के बाद, िव ुत कु छ घंटे अपने नम
िब तर म आराम करना चाहता था। वह जानता था क न द आनी तो मुि कल
होगी, य क अगला दन खतरा िलए जो आ रहा था। खतरा रोमी के िलए
था।
‘हे!’
िव ुत मुड़ा तो नैना को बरामदे म एक तंभ के पास खड़ा पाया।
‘ओह हाय, नैना। तुम इस समय यहां या कर रही हो? आधी रात बीत
चुक है,’ िव ुत ने कहा।
नैना ने कु छ नह कहा। वो बस िव ुत को घूर रही थी। देवता ने यान
दया क उसने सफे द रं ग क चु त सलवार-कमीज पहनी ई थी, और िखले
नारं गी रं ग का दुप ा। उसके रे शमी बाल, फे शनेबल पंजाबी चोटी म गुंथे ए
थे। एक छोटी सी बंदी उसके सुंदर माथे पर दमक रही थी और उसक बड़ी-
बड़ी आंख पर हमेशा क तरह म कारा लगा आ था। आकषक बािलयां
उसक खूबसूरती म चार चांद लगा रही थ ।
‘ या...?’ िव ुत ने मजाक म उससे पूछा, वो चुपचाप उसके साथ घास पर
चल रहा था। ‘तुम बस ऐसे ही घूरने वाली हो?’
‘नह । मुझे नह लगता क अब म ये भी कर सकती ,ं है ना िव ुत?’ उसने
िशकायती मु कान से पूछा। उसका मु कु राता चेहरा उसके दद को िछपा रहा
था। िव ुत जानता था क वो या कहना चाह रही थी। पर उसने उसक बात
को अनसुना करने क कोिशश क । वो और कर भी या सकता था?
‘ओह छोड़ो भी, नैना। चलो मेरे साथ,’ उसने कहते ए उसका हाथ अपने
हाथ म िलया, और धीमे से उसे अपने साथ चलने के िलए ख चा। वो धीरे -धीरे
िव ुत के कमरे क तरफ बढ़ने लगे। हंसमुख और बड़बड़ करने वाली नैना आज
असामा य प से शांत थी।
‘कोई बात तु ह परे शान कर रही है, नैना?’ िव ुत ने पूछा। वह जानता था
क वो हमेशा के िलए इस टॉिपक से भाग नह सकता था। और बचपन क
दो त के प म नैना उसके काफ करीब थी।
‘ य ? मुझे कसी बात से य परे शान होना चािहए, महान देवता?’ नैना
ने जवाब दया, यह जताते ए क उसे िव ुत क बात समझ ही नह आई थी।
‘नह , िबलकु ल नह । बस तुम हमेशा क तरह बात नह कर रह ना,’
उसने उसे देखते ए कहा। नैना ने कोई जवाब नह दया। उसक नजर सामने
के रा ते पर ही थ , हाथ दुप े के अंदर िछपे ए, वहां ठं ड अिधक थी। अगर
दािमनी के आ जाने से उनके बीच यूं तनाव नह आ गया होता, तो यह मौका
उनक रोमां टक मुलाकात के िलए परफे ट रहता।

िव ुत का कमरा ारका शा ी के क के नजदीक ही बना गे ट म था। नैना


और वो अब उसके कमरे के दरवाजे के सामने खड़े थे। िव ुत का यान न
चाहते ए भी इस चांदनी रात म नैना क बेिमसाल खूबसूरती पर जा रहा
था।
‘गुडनाईट, नैना,’ उसने कहा, ‘और मेरे साथ यहां तक आने के िलए
ध यवाद।’
‘कोई बात नह , िव ुत। गुडनाईट।’
नैना मुड़ी और अपने ाटर क तरफ जाने लगी। िव ुत का मन कया क
उसे रोककर चूम ले। यक नन, वो था तो आधा इं सान ही।
जैसे ही वो मुड़कर अपने कमरे का दरवाजा खोलने को आ, उसने नैना को
अपना नाम पुकारते सुना।
‘िव ुत...?’
देवता ने मुड़कर देखा क नैना कु छ कदम क दूरी पर खड़ी थी।
‘हां, नैना?’
‘तु ह पता है... तु ह कम से कम मेरे एक प का तो जवाब भेजना चािहए
था। तु ह मुझे दािमनी के बारे म बताना चािहए था। वैसे वो ब त सुंदर है!’
उसने कहा, उसक आवाज कांप रही थी, आंख गीली थ ... य िप उसके चेहरे
पर अभी भी मु कान थी।
िव ुत नह जानता था क या जवाब दे। नैना वग क कसी अ सरा से
भी अिधक आकषक लग रही थी। एक पल को उसे लगा क वो उसे बांह म
उठा बेपनाह मोह बत देना चाहता था। कोई नेक आदमी भी ऐसे सम पत
यार और अतु य सौ दय के आगे झुक सकता था। ले कन फर, िव ुत िसफ
इं सान नह था। वो धरती का आखरी देवता था। उस लालसा से संघष करते
ए उसने दािमनी क त वीर अपने मन म बसा ली। कु छ कमजोर पल के बाद
वो वापस से डट गया था। फर भी वो नैना को सहज करना चाहता था। अपनी
सबसे अ छी दो त को वो सच म यार करता था।
‘नैना... यारी नैना...’ उसने अपना िसर एक तरफ झुकाते ए नरमी से
कहा।
‘अगर तुमने मुझे जवाब भेज दया होता... तो म 26 साल, 9 महीने और
18 दन तक तु हारा इं तजार नह करती, िव ुत,’ नैना ने कहा और िव ुत
को नजर भर देखकर जाने के िलए मुड़ गई।

िव ुत के मन म आज रात ब त सी बात थ । नैना क जाती परछा पर वो


मु कु राया और अपने कमरे म घुस गया। उसके पीछे जाकर एक भावुक
बातचीत करना अभी उसके बस म नह था, हालां क उसे उसके िलए ब त
बुरा महसूस हो रहा था। ले कन इस हालात से अलग अभी कु छ और बात उसे
परे शान कर रही थी। उसे पूरा यक न नह था, ले कन उसे महसूस आ क
उसने नैना को अपने दुप े के नीचे कोई इले ॉिनक िडवाइस पकड़े देखा था।
वो सेलफोन तो नह था। वा तव म वह कोई सामा य िडवाइस नह थी, जो
अिधकतर लोग के पास हो। िव ुत एक तकनीक कं पनी चलाता था और
िडिजटल व टेलीकॉम िस यो रटी ही उनका मु य काम था। वो उस चीज को
जानता था।
िव ुत बता सकता था क जो िडवाइस नैना ने अपने दुप े के नीचे िछपाई
ई थी, वो एडवांस इरीिडयम 9555 सेटेलाइट फोन था।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
िव ासघात का ख़ंजर

‘इस सबम चं धर कहां है? वो मुझे बचाने य नह आया?’ िववा वन पुजारी


ने पूछा। ‘वो यायालय म भी नह था।’
सोमद खामोश था। िववा वन पुजारी ने उसे उ मीद से देखा। अगर कोई
उसे इस दलदल से बाहर िनकाल सकता था, तो वो उसका साथी, उसका
साला, उसका िम ... चं धर था। देवता को पूरा यक न था क पंिडत चं धर
उसे बचाने के िलए कसी भी ताकत से िभड़ जाएगा, फर वो चाहे इस दुिनया
क शि हो या दूसरी दुिनया क ।
मु य अिभयंता अभी भी खामोश था। िववा वन पुजारी बेचैन हो रहा था,
वो ज दी से पलटवार क अपनी योजना बनाना चाहता था।
एक पल िझझकने के बाद उसने अपना गंदा हाथ सोमद के कं धे पर रखा
और दोबारा कहा, ‘मेरा भरोसा करो सोमद , चं धर को इस ष ं कारी को
सामने लाने म अिधक समय नह लगेगा। हालां क इसम वो नीच रं गा शािमल
है, ले कन इतनी जघ य सािजश रचने का ना तो उसके पास दमाग है ना
यो यता। इसके पीछे ज र कोई काली और स म ताकत है।’
िववा वन पुजारी अपने िम सोमद को सुबकता देख च कत रह गया।
या उसके ि य िम चं धर को कु छ हो गया थ◌ा?
‘बात करो सोमद ! या आ है? या उ ह ने चं धर को भी पकड़ िलया
है??’
मु य अिभयंता ने नजर उठा , और वापस से साहस जुटाया। ‘नह वामी,
पंिडत चं धर पूरी तरह ठीक ह।’
‘तो तुमने उससे संपक य नह कया? म जानता ं क तुम स म और
जुगाड़ू हो सोमद , ले कन चं इसम ब त मददगार सािबत होगा। वह पुजारी
प रषद और सेना, दोन का िनयं ण अपने हाथ म ले सकता है।’
‘उ ह ने पहले ही प रषद और सेना का पूण िनयं ण अपने हाथ म ले िलया
है, वामी,’ सोमद ने खाई से जवाब दया।
िववा वन पुजारी नह जानता था क आगे या कहे। सोमद के छोटे से
जवाब और उसके सबसे िव सनीय िम और साझेदार, चं धर क मदद से
इं कार पर वो सकते म था।
‘देखो सोमद , मुझे नह लगता क तुम बात समझ पा रहे हो। पंिडत
चं धर मेरे भाई के समान है, और मुझे व मेरे प रवार को बचाने के िलए वो
अपनी आखरी सांस तक लड़ेगा...’
सोमद अब और नह सुन सका। ‘बस करो, महान देवता!’ िववा वन
पुजारी क बात को बीच म काटते ए वो िच लाया।
िववा वन देख सकता था क सोमद हांफ रहा था, और वो नाराज और
हताश दखाई पड़ रहा था।
एक पल कने के बाद सोमद आगे झुका और अपने दोन हाथ देवता के
र से सने कं ध पर रखे। िववा वन पुजारी क आंख म देखते ए उसने
नरमाई से कहा।
‘आप सच म नह जानते, देवता?’ उसने िवन ता से पूछा, वो अपने भाव
नह िछपा पा रहा था। एक बार फर से उसके आंसू बह िनकले।
िववा वन पुजारी को अब कसी भयानक आपदा का अंदश े ा आ। अगर
चं धर ज़ंदा था और उसने प रषद और सेना को अपने िनयं ण म ले िलया
था, तो सोमद क जगह वो यहां य नह आया?
‘मुझे बताओ तुम या जानते हो, दो त,’ देवता ने घबराते ए पूछा।
सोमद ने धीरे से हां म िसर िहलाया और कहा, ‘आपको या लगता है
सेना को आपके िव आदेश कसने दया, वामी?’
िववा वन पुजारी खाली नजर से उसे देख रहा था, उसने कभी एक पल के
िलए भी उसक क पना नह क थी, जो वो अभी सुनने वाला था।
‘और आपको या लगता है सम पुजारी प रषद को आपके और आपके
प रवार के िव ऐसा पितत आदेश देने का म कसने दया था?’
‘कौन, सोमद ?! पहेिलयां बुझाना बंद करो और सीधे-सीधे बताओ!’
िववा वन पुजारी ने जोर दया।
सोमद ने कोिशश क ले कन तभी दीवार के पार से आती ममभेदी चीख
को सुन च क गया। कोई अपनी सहनशि से अिधक पीड़ा झेल गया था।
िववा वन पुजारी और सोमद ने उस पीिड़त आ मा के िलए एक
उपचारक मं का उ ारण कया।
‘अपना दय मजबूत कर लीिजए वामी, अब म उस श स का नाम लेने
जा रहा ,ं िजसने आपक मृत कारावास क सजा पर पिव मुहर लगाकर
पुि क ,’ सोमद ने कहा।
उसे नाम लेने क ज रत नह पड़ी। हड़ पा म के वल दो ही इं सान थे जो
यायालय से पास ए फै सल पर मुहर लगाकर अनुमो दत करने का अिधकार
रखते थे, िजससे क सात दन के अंदर उस फै सले को अमल म लाया जाए।
उनम से एक श स तो मृत कारावास क गहन गुफा म बंद था। वो वयं
िववा वन पुजारी था। दूसरा आदमी इस देवता का िव सनीय िम था। वो
आदमी िजसक जंदगी देवता ने बचाई थी। हड़ पा का र , िजसक बहन से
देवता ने िववाह कया था।
‘चं धर!’ देवता अिव ास से िच लाया। ‘ऐसा नह हो सकता। तुम मुझसे
झूठ बोल रहे हो, पितत ि !’ वो सोमद पर दहाड़ा। ‘तुम भी इस पितत
ष ं का िह सा हो। चले जाओ यहां से!’
सोमद को बुरा नह लगा। उसे देवता से ऐसी ित या क उ मीद थी।
और फर भी वो जानता था क उसे पूरा सच बताना ही होगा, भले ही वो
कतना ही भयानक य न हो।
‘चं धर ने ही आपको मृत कारावास म भेजा है। चं धर ने ही आपके पु
और संजना को कै द करने के िलए समन जारी कया था। चं धर ने नगर
प रषद को आपक सारी संपि , भूिम और जायदाद हड़पने के िलए भािवत
कया। आपके घर के सेवक को भी आपके अपराध म साझेदार मानते ए,
मौत क सजा सुना दी गई है।’
िववा वन पुजारी अंधेरी कोठरी म जड़ बैठा था। धोखे का एक सुलगता
आ तीर उसक आ मा म जा धंसा था। िव ासघात का ख़ंजर उसके अि त व
को ही तार-तार कर गया था। वह बेजान लाश से अिधक कु छ नह लग रहा
था। उसके चेहरे पर कोई रं ग नह था, आंख म कोई हलचल नह थी। देवता
जो इस उ म भी कसी युवक क तरह जोशीला लगता था, अब ब त वृ
जान पड़ रहा था।

िववा वन पुजारी अब अपने घुटन म मुंह िछपाए, जोर-जोर से रो रहा था।


िपछले कु छ घंट म वो ब त आंसू बहा चुका था और अब उसक आंख भी
सूखती जान पड़ रही थ । ले कन फर भी उसक सुब कयां कने का नाम नह
ले रही थ । देवता असाधारण प से मजबूत इं सान था। वह उतनी ईमानदारी
से रो रहा था, िजतनी सचाई से उसने यार कया था।
िववा वन पुजारी क मुि कल अभी ख म नह ई थ । सोमद ने अंितम
स य बताने के िलए वयं को तैयार कया।
‘अभी और भी बाक है, देवता। ऐसे दय िवदारक समाचार सुनाने के
िलए मुझे मा कर,’ सोमद ने वयं भी लगभग रोते ए कहा। िववा वन
पुजारी न तो िहला, ना ही कोई ित या दी, हालां क उसक भारी सुब कयां
अब थम गई थ ।
अिभयंता ने अपनी बात आगे बढ़ाई।
‘मनु, देवी संजना और आपके नौ यो ा को पकड़कर, मार डालने के
िलए भारी बल भेजा गया है। चं धर ने प रषद के मा यम से वयं को हड़ पा
का पहला स ाट और अपनी प ी ि य वदा को महारानी घोिषत करवा दया
है। हमारे यारे नगर म, िजसे आपने इतनी मेहनत से खड़ा कया, वो लोकतं
क समाि कर सा ा य क थापना कर रहा है।’
सोमद देवता से हंसक ित या क उ मीद कर रहा था, ले कन उसने
कोई जवाब नह दया। देवता िबना कु छ कहे, अपना चेहरा घुटन म िछपाए,
उसी मु ा म बैठा रहा।
‘एक और बात है, वामी,’ सोमद ने आगे बताया। ‘चं धर ने िवशेष
िनदश दया है क कल सुबह आपको जनता के स मुख पेश कया जाए। उसने
कहा है क इससे एक िमसाल कायम होगी।’
वह जानता था क देवता हर बात सुन रहा था। उसने वो आखरी खबर भी
सुनाई, िजसे वो अब तक दबाए बैठा था।
‘कल सुबह महान ानागार म हड़ पा क जनता के िलए िवशाल दावत
और जुलूस का आयोजन कया गया है। जैसा क आप जानते ह क हमारा
ानागार मोहन जोदड़ो के ानागार से बीस गुणा बड़ा है। वो रातोरात उस
जगह को पं ह हज़ार से अिधक दशक के बैठने के िलए तैयार करवा रहा है।’
िववा वन पुजारी ने अभी भी कोई जवाब नह दया।
सोमद ने अपना िसर पीछे झटककर अफसोस क आह िनकाली। उसका
िसर घूम रहा था, वो यक न नह कर पा रहा था क उसका खुशहाल और
समृ हड़ पा कु छ ही घंट और दन म एक डरावने सपने म कै से बदल गया।
कु छ पल बाद उसने साहस बटोरा और वो बोला, जो कोई क पना भी नह कर
सकता था। वो धीरे से आगे झुका, देवता के चेहरे के नजदीक, और हर श द
एक जघ य पाप क तरह उसके मुंह से िनकला।
‘कल सुबह वो आपको िनमम ताड़ना देने वाले ह, मेरे वामी। और
हड़ पा इसका सा ी बनेगा।’
बनारस, 2017
महान वै दक स यता

दािमनी महान मठाधीश, ताकतवर ारका शा ी से होने वाली संभािवत


मी टंग को लेकर ब त नवस थी। इस मामले म उसके िलए सम या दोगुनी
थी। एक तरफ तो, दुिनया के सबसे ताकतवर और रह यमयी संत व तांि क से
िमलने के याल से ही वो बेचैन थी। दूसरी तरफ, वो बुजुग उसके ससुराल प
क तरफ से एकमा सद य थे। तो दािमनी ब त परे शान थी क उनसे िमलने
जाते समय वो या पहने, या कहे और या न कहे।
हालां क, िव ुत और दािमनी दोन ही जानते थे क आज कोई सामा य
दन नह होने वाला था। रोमी परे रा के साथ देवता क शाम को होने वाली
मुलाकात का याल उनके मन म हर दूसरे पल आ रहा था। दािमनी िव ुत क
सुर ा को लेकर भी ब त परे शान थी। दूसरी तरफ िव ुत जानना चाहता था
क रोमी उसे मारना य चाहता था। इस ह या के पीछे िछपे संगठन या
सं थान का वो पता लगाना चाहता था। उसे उ मीद थी क आज सुबह अपने
परदादा से िमलकर वो उस रह य का कु छ तो पता लगा ही लेगा।
आ म म िमलते कसी रानी जैसे स मान से दािमनी ब त खुश थी।
वाराणसी क लाईट म आते समय वो क पना कर रही थी क मठ कोई
अंिधयारी और दम घ टू सी कै द होगा, जहां वही पुरानी र म दोहराई जाती
ह गी, और उबाऊ से लोग ह गे। ले कन यहां उससे िवपरीत हालात पाकर वो
ब त जोश म थी। य िप बाहर से वेश करने पर मठ वैसे ही भयानक और
कले- प म लगता था, ले कन इसके अंदर का जीवन और लोग सकारा मकता
िलए ए थे। सुबह दािमनी क आंख द मं के उ ारण से खुली थी और
मं क ऐसी गहनता और जुनून उसने कभी पहले नह देखा था। उसे एक कप
हबल टी दी गई, बेहतरीन िम ण से तैयार क गई। इससे उसे ऐसी ऊजा और
फू त िमली, जो उसने पहले कभी महसूस नह क थी। फर खुली छत पर
िविवध िनदश के साथ योग कराया गया।
फर दािमनी के िलए गम ना ता परोसा गया, जो मानो खास तौर से
स ा ी के िलए ही तैयार कया गया हो। ताजे फल का सलाद और े श योगट
के साथ िसफ आलू परांठा और पोहा मटर ही नह , बि क बेक कए ए बी स
और कॉन ले स भी। देव-रा स मठ, इसके िश क, इसके अनुशासन और
इ ा चर कसी भी मायने म पि मी शै िणक थापना से कम नह था।
बस इसका अ या म, रण-कौशल और रह यमयी साधना इस ाचीन सं थान
को और खास बना देते थे।

जब वो ारका शा ी के िवशाल क क ओर बढ़ रहे थे, तो िव ुत को रह-


रहकर हंसी आ रही थी। दािमनी ने बनारसी साड़ी पहनने क कोिशश क थी,
जो उसे उसी सुबह पुरोिहत जी क प ी ने स ेह उपहार म दी थी। दािमनी
िजतने शान और वैभव से मठाधीश क कु टीर क तरफ बढ़ रही थी, उतना ही
बार-बार लड़खड़ा रही थी, और बार-बार वो भारी साड़ी कभी कह से तो
कभी कह से फसल जाती। जब आिखरकार वो पूरी तरह, सही सलामत बुजुग
के ार तक प च ं गई, तो उसने चैन क सांस ली।
स य का ण आ प च ं ा था। उसे अब उस म ययुगीन के से दखते कॉटेज म
वेश करना था। और उस श स से िमलना था िजसे उसके बॉय ड ने धरती
का सबसे ताकतवर इं सान माना था।
‘ओके , िव ुत बेबी... तुम तैयार हो न?’ दािमनी ने गहरी सांस लेते ए,
बेचैनी से पूछा। िव ुत ने मासूिमयत से िसर िहलाया, वो बड़ी मुि कल से
अपनी हंसी रोक पा रहा था। वो जानता था क दािमनी बेवजह घबरा रही
थी। वह जानता था क उसके बाबा ि कालदश थे, जो भूत, वतमान और
भिव य म देख सकते थे। वह जानता था क डमा टर पल भर म दािमनी के
सुंदर दल को देख लगे। जो बात िव ुत नह जानता था, वो यह थी क
शि शाली ारका शा ी पहले से ही दािमनी को जानते थे।
वो दािमनी के बारे म िव ुत से भी अिधक जानते थे।

देवता ने अपने परदादा के दरवाजे पर द तक दी और वही जानी-पहचानी


‘ह म...’ सुनी। िव ुत ने दािमनी को अपने पीछे आने का संकेत दया।
जैसे ही दािमनी ने दुिनया क सबसे ताकतवर आ मा के िवशाल क म
वेश कया, उसे आभास आ क क म डमा टर के अलावा कसी और का
भी अहसास था। वो उस अलौ कक शि क फुं कार भी सुन सकती थी। उसे
लग रहा था क वहां ारका शा ी, िव ुत और उसके अलावा भी कोई मौजूद
था। उसने उस याल को झटकने क कोिशश क । वो अपने ससुराल वाल से
िमल रही थी!
ारका शा ी वैसे ही दजन त कय और मसनद के सहारे अपने बड़े से
िब तर पर लेटे ए थे। उस असाधारण इं सान क एक झलक देखते ही दािमनी
स मोिहत सी हो गई। उनके खुले ए सफे द बाल, चेहरे पर यु लड़ने के
िनशान और शाही ि व ने दािमनी को सु सा कर दया। उनक उं गिलयां
यं वत सी अपनी माला के मनक को फे र रही थ ।
‘ णाम, बाबा,’ िव ुत ने कहा। णाम भारतीय सं कृ ित का सबसे िवन
और आदरणीय अिभवादन था।
‘यश वी भव...’ डमा टर ने जवाब दया। मठाधीश आशीवाद म अपने
परपोते के यश क कामना कर रहे थे।
‘बाबा, मेरे साथ दािमनी आई ह,’ िव ुत ने कु छ शमाते ए कहा। ‘मुझे
लगता है, आपने इ ह मठ म वेश करते ही जान िलया था।’
दािमनी ने इसे फर से अपना संकेत समझा। इस बार वो सही थी।
‘ णाम बाबा,’ दािमनी ने आदर म अपने हाथ जोड़ते ए, िवन आवाज
म कहा।
ारका शा ी ने अपनी आंख खोलकर दािमनी को देखा। पल भर म ही
उनक नजर क स ती ेह और अपनेपन म बदल गई। फर उ ह ने वो कहा,
िजसक िव ुत और दािमनी ने क पना भी नह क थी।
महान मठाधीश मु कु राए और अपनी यार भरी आवाज म िसफ ये दो
श द कहे।
‘ वागतम, संजना।’

र जिड़त हार शानदार प से चमक रहा था। दािमनी भ च रह गई थी


जब महान ारका शा ी ने िव ुत को उनक महोगनी अलमारी खोलकर,
र जिड़त चंदन का ब सा िनकालने को कहा। वो दािमनी के िलए उपहार था।
उसके अंदर रखा हीरे जड़ा सोने का हार, सबसे महंगा आभूषण था, िजसे
दािमनी अपनी नजर से देख रही थी। वो कसी ाचीन महारानी के िलए
तैयार कया गया, एं टक खजाना लग रहा था।
‘बाबा... िव ुत... म इतना महंगा उपहार कै से ले सकती .ं ..’ दािमनी ने
िझझकते ए कहा, उसने िव ुत क तरफ मागदशन के िलए देखा। िव ुत ने
मु कु राकर उसे लेने का इशारा कया। ये डमा टर का आशीवाद था।
‘म खुश ं क तुम दोन यहां एक साथ आए हो,’ कु छ पल क खामोशी के
बाद डमा टर ने कहा। ‘इससे पहले क हम कसी और चीज के बारे म बात
कर, मुझे बताओ िव ुत, या तुम उस काितल से उसक तय क ई जगह पर
जाकर िमलने को तैयार हो? वो पूरी तैयारी से आएगा।’
पुरोिहत जी ने डमा टर को िपछली शाम के बारे म बता दया था।
ारका शा ी सचेत थे ले कन अिधक चंितत नह । वो जानते थे क उनका
परपोता कोई साधारण मनु य नह है। वो जानते थे क िजस पल िव ुत ने
वाराणसी म कदम रखा था, उसी पल से इस अंितम मुकाबले क उ टी िगनती
शु हो गई थी। दानव और देवता के बीच संघष; बुराई और अ छाई क जंग;
रोमी और िव ुत का मुकाबला। इसक भिव यवाणी साढ़े तीन हज़ार साल
पहले क जा चुक थी। समय आ गया था। और डमा टर जानते थे क रोमी
के साथ जंग तो एक शु आत थी।
‘हां, बाबा। म उससे जाकर िमलूंगा और हमेशा के िलए सब सही कर दूग
ं ा।
गंगा आरती के पावन अवसर पर। हम बुराई का सवनाश कर दगे,’ िव ुत ने
जवाब दया।
ारका शा ी गव से मु कु राए और अपना हाथ उठाकर िव ुत को
आशीवाद दया।

‘ले कन बाबा, िव ुत... और भी ब त से सवाल ह िजनका जवाब अभी तक


नह िमला है,’ दािमनी ने नरमी से कहा। ‘हालां क म समझ सकती ं क
ाि नाबाद के सच को िछपाने के पीछे ई ट इं िडया कं पनी का येय यह था
क वो थानीय लोग पर मनोवै ािनक े ता का लाभ लेना चाहती थी,
ले कन म यह नह समझ पा रही क ाि नाबाद को बबाद करने या हड़ पा
या संधु घाटी स यता को कमजोर करने से यह कै से हािसल होने वाला था।’
ारका शा ी िव ुत क तरफ मुड़,े ‘इस सवाल का जवाब तुम य नह
देते, िव ुत?’
‘जैसा क कल शाम म तु ह बता रहा था, दािमनी, कसी पर भी पूण
शासन से पहले सामने वाले का शासक के ित पूण समपण ज री है। और यह
तभी संभव हो सकता था, जब एक पूरी पीढ़ी यह मानकर चले क उ शासक
हमसे नैितक, ऐितहािसक और सां कृ ितक मायन म कह अिधक े है।’
िव ुत एक पल यह देखने के िलए का क दािमनी उसक बात समझ भी
पा रही थी या नह । उसे समझ आ रहा था।
‘तो ये उनक रणनीित का अहम िह सा था क अतीत का एक बीज बोया
जाए, िजससे उनक पि मी िवरासत क े ता का पता चले। इससे उ ह ये
सा रत करने म खासी मदद िमली क भारतीय हमेशा से, और हड़ पा
स यता के समय से भी हीन ही थे, वो तो पि म से आए हमलावर ने यहां
आकर िवकास और समृि उ प क । हालां क उनके सा ा य क सारी
योजना धरी क धरी रह जाती, अगर वो लोग िज ह वो गुलाम बनाने क
कोिशश कर रहे थे, जान पाते क वा तव म वो ही थे िज ह ने बड़ी-बड़ी
स यता , नगर और ापार का िनमाण कया। उनके त कालीन शासक तो
उस समय तंबु म रहा करते थे और अपना बदन जानवर क खाल से
िछपाते थे!’
‘और हड़ पा यही सािबत करती! वो भारितय को उनके सुनहरे अतीत क
याद दला देती। वो उ ह बता देती क वो उ ह के पूवज थे िज ह ने दुिनया के
सामने स यता क िमसाल पेश क !’ दािमनी ने इस पहेली को समझते ए
जोश से कहा।
ारका शा ी ने हां म िसर िहलाया। ‘अभी और भी बात है, बेटा। या तुम
जानती हो क खुदाई के समय ब त से हवन-कुं ड भी वहां से िमले थे? हड़ पा
वासी िजस भगवान को पूजते थे, वो वा तव म पशुपित और शि थे, िजनका
दूसरा नाम भु िशव और मां दुगा है? तुमने कतनी बार पढ़ा क हड़ पा क
अनेक साइट से जो मुहर और िम ी के बतन बरामद ए उन पर योगी क
त वीर बनी ई थी?’
‘सच क ं तो, बाबा, मने इस बारे म कु छ नह पढ़ा है,’ दािमनी ने जवाब
दया। ‘वा तव म, ब त ही कम लोग इसक िडटेल जानते ह गे।’
‘दािमनी, हवन-कुं ड का मु य प से इ तेमाल वै दक अनु ान के तहत ही
होता है। आज भी भारत और नेपाल के हंद ू पशुपित और शि क आराधना
करते ह। अगर हड़ पा म भी योग का अि त व था, तो इसका मतलब या है?’
ारका शा ी ने उ साह से पूछा।
‘इसका मतलब है हड़ पा स यता कु छ और नह बि क सर वती के कनारे
बसी वै दक नगरी ही थी...’ दािमनी ने मानो सच को बाहर िनकालते ए
कहा।
ारका शा ी और िव ुत, दोन खुश थे क आिखरकार दािमनी को
हड़ पा का सच समझ तो आया। या कम से कम सच का कु छ अंश ही सही।
‘तो तुम समझ दािमनी, ाि नाबाद को मलबे म बदलकर, आधी सदी
तक आगे क खुदाई को अनदेखा कर, आधे सच का सार कर और हड़ पा
स यता क उपलि धय और शान के त य को दबाया जाना सब एक िवशेष
योजना का िह सा था, िजससे इितहास के कु छ प को हमेशा के िलए िमटा
दया जाए। खैबर पास से होकर आते ए गोरे घुड़सवार एक ऐसी त वीर थी,
िजसे धीरे -धीरे उप-महा ीप के मन म बसा दया गया। हड़ पा भारत को
उसक ाचीन शान से जुदा करने क एकदम सटीक पृ भूिम थी। भारतीय
कभी जान ही नह पाएंगे क वो ही थे िज ह ने दुिनया को स य होना
िसखाया!’
दािमनी ने हामी म िसर िहलाया। उसने कभी सपने म भी क पना नह क
थी क हड़ पा के उन आधे-अधूरे अवशेष के साथ इतना बड़ा ष ं जुड़ा हो
सकता था। उनके सामने चाय आ चुक थी और वो तीन कु छ पल के िलए
खामोश हो गए। दािमनी को यह सच पचाने के िलए कु छ समय चािहए था।
अचानक दािमनी ारका शा ी क तरफ मुड़ी और ता कािलकता से
जानना चाहा, ‘ले कन फर बाबा, वो आय हमलावर कौन थे?’
ारका शा ी ने मु कु राते ए िव ुत को देखा।
‘ यारी दािमनी,’ िव ुत ने उसक तरफ झुकते ए कहा।
‘कोई आय हमलावर थे ही नह ।’
हड़ पा, 1700 ईसापूव
ितशोध

कई पल तक देवता न िहला, ना ही मुंह से कोई श द बोला। सोमद ने उसे


वो भयानक सच पचाने का समय दया, जो भगवान ने उसे देखने पर मजबूर
कया था। अिभयंता परे शान हो रहा था क मृत कारावास क उसक समय
सीमा अब ख म होने वाली थी। जैसे ही उसने देवता को सहानुभूित देने के
िलए अपना दो ताना हाथ आगे बढ़ाया, िववा वन पुजारी ने अपना मुंह घुटन
म ही िछपाए ए पूछा।
‘वो पवत... ट और कांसे के पवत का या आ, िजसे सर वती क धारा
मोड़ने के िलए बनाया जाना था?’
‘चं धर उस प रयोजना पर ब त तेजी से काम करवा रहा है। आपक
योजना के मुतािबक, कु छ ही घंट म उसने ट और कांसे के उस पवत पर काम
करवाने के िलए और अिभयंता को जमा कर िलया। वहां भारी मा ा म
काम चल रहा है और हज़ार पु ष, मिहलाएं और बोझा ढोने वाले पशु जुटे
ए ह।’
िववा वन पुजारी ने अचानक ऊपर देखा। उसे देख एक पल को मु य
अिभयंता क धड़कन थम गई।
देवता हड़ पा के रसायन के असर म बावले ए िनवािसय से भी अिधक
िवि नजर आ रहा था। कोठरी के अंधेरे म, मशाल क िझलिमलाती रौशनी
म सोमद बस िववा वन पुजारी क नाग क तरह जलती लाल आंख को देख
पाया। उसी शरीर, उ ह नैन-न श और उसी चेहरे म वो कोई दूसरा इं सान
था। सोमद समझ नह पा रहा था क वयं िववा वन पुजारी क आ मा ने
अपना काला प धारण कर िलया था या फर उसने कसी दूसरी दुिनया क
काली शि को अपने पर बुला िलया था। ले कन िनि त प से िववा वन
पुजारी अपने बस म नह था।

‘ऊररररआआआअ ग हह!’ दानवीय देवता इतनी जोर से और भयावह


आवाज म कराहाया क कु छ पल के िलए मृत कारावास म उपि थत अ य
लोग क कराहना भी बंद हो गई। उस कै द म मौजूद कै दी समझ पा रहे थे क
कसी क ताड़ना उनके सम दुख से भी अिधक गहरी थी। िववा वन पुजारी
का दद उसके दल और आ मा को चीरकर बाहर िनकल रहा था, और अब वो
कै दी भी उनके बीच मौजूद इस अनजान पीिड़त के िलए तड़प रहे थे।
‘आआआरररर ग ह... आआआरररर ग ह...
आआआरररर ग ह’ िववा वन पुजारी िच ला रहा था, उसक आंख
चढ़ गई थ , उसक बाह उसके बदन को चीर बाहर िनकल जाना चाहती थ ,
उसक मु यां स त भंची ई थ , मानो उस पर वयं शैतान ने क जा कर
िलया हो। सोमद डर से कांप उठा जब देवता ने मुड़कर अपना िसर कोठरी
क दीवार पर पटकना शु कर दया। अिभयंता ने आगे छलांग लगाकर उसे
पकड़कर, पीछे ख चने क कोिशश क । ले कन उसने देर कर दी थी। दीवार
पहले ही देवता के र से रं ग चुक थी, और उसक आंख और चेहरा वयं
अपने ही र से तर हो रहा था।
सोमद ने देवता को पकड़ा और बड़ी मुि कल से उसे गंदी जमीन पर
बैठाया। अपने िम , और अभी हाल तक हड़ पा के सबसे ताकतवर इं सान को
पकड़ते ए वो कांप गया। िववा वन पुजारी क वचा बफ सी ठं डी पड़ गई थी
और वो अंदर ही अंदर कोई मं बुदबुदा रहा था, मानो वो सोमरस के नशे म
हो। अिभयंता कसी को मदद के िलए पुकारने क सोच ही रहा था। वो देवता
और उसक द ता का स मान करता था, ले कन या अब इस मौके पर
िववा वन पुजारी अपना संतुलन खो बैठा था?
‘म पूरी तरह होश म ,ं सोमद ,’ देवता ने फु सफु साते ए कहा, मानो वह
सोमद का दमाग पढ़ पा रहा था। शायद वो दमाग पढ़ सकता था। ‘ या म
एक पल के िलए तु हारी कृ पाण ले सकता ?ं ’
‘हम... हम आपको ानागार वाली िज लत से बचा लगे, भु,’ सोमद ने
कहा। ‘भले ही इसके िलए हम अपने र क आखरी बूंद तक य न लड़ना
पड़े।’
‘ या म एक पल के िलए तु हारी कृ पाण ले सकता ,ं सोमद ?’ िववा वन
पुजारी ने जोर दया, मानो उसने अपने अिभयंता िम के अभी कहे श द सुने
ही नह थे।
‘ओ महान देवता, अपनी प ी और अपने बेटे क चंता न कर। वो उतने ही
पूजनीय ह, िजतने आप। हम उ ह कोई नुकसान प च ं ने नह दगे,’ सोमद ने
देवता के सामने बैठ, उसके मुख को अपने अंगव से प छते ए कहा।
‘ या म तु हारी कृ पाण ले सकता ,ं सोमद ?’ िववा वन पुजारी ने
दोहराया।
वो कु छ सुनने को तैयार ही नह था।
सोमद ने मयान से अपनी चमकती तलवार िनकाली, एक घुटने पर
झुककर, अपने दोन हाथ म तलवार लेकर, देवता को पेश क , मानो वो
भगवान को कु छ सम पत कर रहा हो। ले कन वो भगवान से कम भी तो नह
था।
‘आप या कर रहे ह, भु?’ अिभयंता ने िच लाकर कहा।
िववा वन पुजारी ने अपनी दा कलाई चीर दी और र का एक फ वारा
सा फू ट गया। सोमद िजतना सदमे म था, उतनी ही उसे देवता क चंता थी।
वैसे भी िपछले एक दन म देवता का िजतना र बह चुका था, वो घातक था।
‘ चंता मत करो, सोमद ,’ देवता ने कहा। ‘तु ह याद नह है क मुझ पर
आग, भूख, यास, चोट, रसायन, बीमारी, आकषण या जादू-टोने का असर
नह हो सकता।’
‘ले कन, वामी...’
‘अब तु ह चलना चािहए,’ देवता ने उसे बीच म टोका। ‘कल सुबह के िलए
धनुधर और घुड़सवार को तैयार रखना। जब वो मुझे ानागार से यहां वापस
लाएंगे तो उ ह बीच म भेजना। बाक म संभाल लूंगा।’
सोमद को देवता के आदेश का पालन करना था। ले कन वो अपनी तरफ
देवता क पीठ देख डर गया था, देवता तुरंत पीछे मुड़कर अपनी कलाई के र
से, प थर क दीवार पर कु छ िलख रहा था। य िप दीवार पर िलखते समय
िववा वन पुजारी शांत और ि थर नजर आ रहा था, ले कन सोमद ने यान
दया क देवता के हाथ कांप रहे थे।
‘पहरे दार!’
िबना पीछे मुड़,े िववा वन पुजारी ने कै दखाने के र क को बुलाया। कु छ ही
पल म उ ह कारावास के र क क सी ढ़यां उतरने क आवाज सुनाई दी।
दरवाजे के झटके से खुलने के पल भर पहले, िववा वन पुजारी ने सोमद क
तरफ ह का सा मुंह घुमाया और कहा, ‘याद रखना िम , कल वापसी म।
धनुधर और घुड़सवार को तैयार रखना। हम इितहास का सबसे बड़ा बचाव
अिभयान शु करगे।’ उसने मु कु राने क कोिशश क ।
िझलिमलाती रौशनी म, सोमद िववा वन पुजारी के चेहरे का एक पहलू
देख पा रहा था। देखने म वो भयानक था। वो चेहरा जो कभी ेम, ान और
अ छाई से दमकता था, अभी पसीने, र , दद और नफरत से भरा था।
होिशयार अिभयंता भांप गया था क सम आयवत अब ज द ही भयानक यु
क भट चढ़ने वाला था। देवता को िमटाना यूं आसान नह होने वाला था।

जैसे ही सोमद जाने लगा और नशे म धु पहरे दार ने लकड़ी के भारी


दरवाजे को बंद करने के िलए पटका, अिभयंता ने यान दया क दीवार पर
र से कु छ िलखा आ था। वो एक ही श द था। दरवाजा बंद होने से पल भर
पहले सोमद ने िववा वन पुजारी क कोठरी म, िपछली दीवार पर िलखे उस
श द क एक झलक देख ली थी।
देवता क कोठरी क दीवार, उसी के र से रं गी थी, और वो एक श द था
– ितशोध।
बदला!
बनारस, 2017
अंितम स ऋिष

‘आय श द सं कृ त से आया है, िजसका सामा य अथ है कु लीन जन। ाचीन


समय म सम उ र भारत को आयवत कहा जाता था, मतलब कु लीन जन
क भूिम। इसका मतलब कसी खास सं दाय क भूिम नह था,’ ारका शा ी
ने प कया।
‘तो तुम कह सकती हो क जो लोग आयवत या ाचीन उ र भारत के मूल
िनवासी थे, उ ह आय कहा गया। उ ह ने बड़े-बड़े नगर, बंदरगाह बनाए, धातु
क खोज क और ापार कया। ले कन पि म से आए पैनी नाक और नीली
आंख वाले घुड़सवार क कहानी क पना क देन थी... एक झूठ को इतना
सा रत कया गया क वो सच बन गया,’ िव ुत ने जोड़ा।
दािमनी ने िवचार करते ए िसर िहलाया। वो अभी भी दुिवधा म थी,
ले कन हड़ पा के िछपे ए राज को जानकार खुश थी।
‘यह आ यजनक है। पता है िव ुत, हम पर हमारे देश का, हमारे साथी
भारतीय का भार है। हम यह बात सभी तक प च ं ानी चािहए!’ दािमनी ने
खुशी और उमंग से भरते ए कहा। वो िव ुत और डमा टर को ब त उ मीद
भरी नजर से देख रही थी।
िव ुत और ारका शा ी ने एक-दूसरे को देखा। ‘यह इतना आसान नह
है, दािमनी,’ िव ुत ने कहा। ‘तुमने जो आज जाना और जो मने कल बाबा से
सुना था वो तो महज एक छोटा सा सच है। वो ष ं िसफ ई ट इं िडया कं पनी
और भारतीय पराधीनता तक ही सीिमत नह है। यह इससे ब त गहरा और
भयावह है। इससे पूरी दुिनया, सम मानवजाित जुड़ी है।’

‘हमारा वंश शािपत है,’ शि शाली ारका शा ी ने कहा।


िव ुत और दािमनी के िलए यह ीितकर नह था। ऐसा लग रहा था मानो
वो कसी ि लर फ म का िह सा ह । बस ये कहानी कसी पद पर नह
जंदगी म चल रही थी, और वो दोन ये जानते थे।
‘िव ुत तु ह दािमनी को वो सब बताना चािहए जो हमारे पूवज , देवता
िववा वन पुजारी के बारे म तुम अब तक जानते हो,’ ारका शा ी ने कहा।
‘ले कन इस मोड़ पर तुम दोन का ये जानना ज री है क स ऋिष का
अिभशाप या था।’
दोन ोता अपना मुंह खोले डमा टर क बात सुन रहे थे।
‘िववा वन पुजारी, पंिडत चं धर, ि य वदा, संजना, सारा मां, मनु और
हड़ पा के पतन क पूरी कहानी सुनाने म मुझे अभी कु छ और दन लगगे। म
तु ह सर वती नदी क लयकारी बाढ़ के तुरंत बाद ई घटनाएं भी बताऊंगा,
और कै से उन घटना ने हमेशा के िलए मानवजाित क िनयित बदल दी।
ले कन आज हमारे पास उतना समय नह है। श ु हम पर ब त करीब से दांव
लगाए बैठा है,’ ारका शा ी ने कहा। िव ुत और दािमनी को लगा क वो
आज रोमी के साथ होने वाली मुठभेड़ क बात कर रहे थे, िजसम अब कु छ ही
घंटे बाक रह गए थे।
ारका शा ी ने अभी जो कु छ कहा, उसम से दािमनी का यान संजना
नाम ने ख चा। यही नाम लेकर डमा टर ने उसका वागत भी कया था, जब
उसने उनके क म वेश कया था। उसने उसे तब बुजुग क ढलती उ का
असर माना था। ले कन अभी उ ह ने दोबारा वही नाम िलया था, और वो भी
एक िनमम कहानी के िसलिसले म।
जब क दािमनी उसी नाम म उलझी ई थी, िव ुत का दमाग िबजली क
सी तेजी से भाग रहा था। वो दो और दो को साथ रख रहा था। उसके दमाग म
िबजली क तरह क ध गया था क उसके परदादा ने दािमनी को संजना के प
म िसफ एक ही वजह से संबोिधत कया था। देव-रा स मठ का वंशज और
आखरी देवता, िव ुत ने सब साफ-साफ समझ िलया था। वह यह भी जान
गया था क य ारका शा ी ने हड़ पा के दाढ़ी वाले पुजारी-राजा को
िव ुत बताया था।
अपने परपोते का गंभीर चेहरा देखते ए मठाधीश पूरी तरह शांत थे। वह
जानते थे क िव ुत जान गया था। डमा टर ने भगव ीता से यह दोहा पढ़ा।
।। वासांिस जीणािन यथा िवहाय
नवािन गृ ाित नरोऽपरािण।
तथा शरीरािण िवहाय जीणा
य यािन संयाित नवािन देही।।

िव त ु ने िबना दािमनी को देखे, उसके िलए इसका अनुवाद कया—


‘मनु य जैसे पुराने कपड़ को छोड़कर दूसरे नए कपड़े धारण कर लेता है
ऐसे ही आ मा पुराने शरीर को छोड़कर दूसरे नए शरीर म चली जाती है।’
दािमनी नह समझ पा रही थी क वहां या हो रहा था। ले कन िव ुत
पूरी तरह से समझ गया था।
पुनज म, उसने सोचा।
िव ुत ने धीमे से अपने परदादा क तरफ ना म िसर िहलाया, वो तुरंत समझ
गए क िव ुत या कहने क कोिशश कर रहा था। दािमनी अभी सब कु छ के
िलए तैयार नह थी। क वो तीन पहले भी िमल चुके थे, स दय पहले, कह
दूर, हंसक पृ भूिम म, ये सब वो एक साथ संभाल नह पाएगी।
‘बाबा, लीज हम स ऋिष के अिभशाप और इस सारे ष ं के बारे म
बताइए,’ िव ुत ने कहा। ‘हम बताइए क कां ट टनोपल म या आ था।’
अपने द वंश और सम मानवजाित के बारे म जानने को इ छु क होते ए
भी िव ुत ने संजना और दािमनी से उसके संबंध के िवषय को अभी के िलए
दबाना ही ठीक समझा। वो उसे एक दन ज र बताएगा। ले कन आज नह ।
इससे पहले क मठाधीश कु छ जवाब दे पाते, दरवाजे पर द तक ई।
बलवंत था। डमा टर के स मान म उसने हाथ जोड़कर, िसर झुकाया।
‘ या आ, बलवंत?’ ारका शा ी ने पूछा।
‘गु देव, दखल देने के िलए मा चाहता ं ले कन दोपहर गुजर रही है।
िव ुत को अब मेरे साथ आकर शाम के मुकाबले क तैयारी देखनी चािहए।
कु छ ही घंटे रह गए ह। इस मुि कल को ह के म नह लेना चािहए,’ बलवंत ने
जवाब दया, उसके हाथ अभी भी जुड़े ए थे। वो ारका शा ी को भगवान
क तरह पूजता था। और अब जब वो ह यारा, रोमी वाराणसी म था, तो
बलवंत इसे अपनी लड़ाई मानकर चल रहा था। स दय से उसके पूवज ने
शा ी वंश क र ा क थी। वो उन सबका िसर नह झुकने देने वाला था।
‘ध यवाद, बलवंत दादा। लीज हम थोड़ा समय और दे दीिजए। बाबा बस
राज से पदा उठाने ही वाले ह, िजससे हम इस रोमी के बारे म और कु छ पता
चल सकता है,’ ारका शा ी के बजाय िव ुत ने जवाब दया। अब वो अपने
परदादा के और अिधक करीब आ गया था, और उनसे थोड़ी-ब त छू ट ले लेता
था।
‘ले कन, िव ुत...’
‘बस एक घंटा और दादा, फर हम तैया रयां शु कर दगे,’ िव ुत ने जोर
दया।
‘जैसा आप कह, िव ुत। ले कन िसफ एक घंटा।’
बलवंत मठाधीश को िसर झुकाकर चला गया।

‘312 ईसवी म रोम के राजा कां टटाइन ने ईसाई धम अपना िलया था। कहा
नह जा सकता क वो धम क लोकि यता थी क िजसने उसे अपनी तरफ
आने को ो सािहत कया, या फर वो राजा का ि व था क िजससे धम
क दूर-दूर तक चचा होने लगी। ले कन एक बात िनि त थी; कां टटाइन ने
ईसाइयत के िलए वही कया, जो महान अशोक ने बौ धम के िलए कया था।
उसने पुजारी श द के पीछे राजा क शि खड़ी कर दी,’ डमा टर ने बताया।
‘ये सब वैसे ही हो रहा था, जैसे क अिभशाप म कहा गया था।’
दािमनी और िव ुत, ारका शा ी क बात से हैरान थे, जो वो रोम के
राजा, ईसाइयत के सार और उन घटना के बारे म बता रहे थे िजनका
हड़ पा से कोई संबंध नह था!
या ऐसा िसफ वो मानते थे।
‘वैसे भी, कां टटाइन के समय तक सब िनयंि त रहा, ले कन फर 445
ईसव म स ाट वल टिनयन के शासन ने औपचा रक प से सा ा य का एक
धम घोिषत कर दया। ये राजनीितक पतरे , छल और प रणाम व प ई र के
नाम पर होने वाला खून-खराबा उसी अिभशाप क तरह मानवजाित का
सफाया कर रहा था।’
िव ुत और दािमनी सु थे। उ ह कु छ समझ नह आ रहा था क ारका
शा ी कां टटाइन और वल टिनयन के बारे म य बता रहे थे, जब क उनक
चंता और सवाल तो हड़ पा और उस संभािवत काितल के बारे म थे।
‘म जानता ं क तु हारे सवाल और चंताएं हड़ पा और उस काितल के
बारे म ह, जो हम पर नजर रखे ए है,’ ारका शा ी ने कहा, मानो वो उनका
मन पढ़ रहे थे। शायद वो सच म उनका मन पढ़ रहे थे। ‘ले कन जो म तु ह
बता रहा ं वो भी उस बड़े रह य का ही िह सा है, िजसने स दय से अपनी
ताकत और नफरत फै ला रखी है।’
‘आप अपनी बात पूरी क िजए, बाबा,’ िव ुत ने कहा। वह मठाधीश के
साथ ज दबाजी नह करना चाहता था।
‘ई ट इं िडया कं पनी के अिधका रय ारा हड़ पा के सच और शान को दबा
देना तो उस बड़ी बीमारी क तुलना म ब त छोटा है—वो बीमारी जो एक
बार फर से िनरं कुश हो अबाध खून-खराबा करे गी, िसफ कसी एक क दूसरे
पर राजनीितक े ता बनाए रखने के िलए। और इस बीमारी का ईसाइयत से
कु छ लेना-देना नह है, वो तो शांित और ेम का एक महान धम है। वह जीसस
का धम है, ई र का नेक और यारा बेटा, िजसने िसवाय यार के और कु छ
बात नह क । यहां म इं सान के याह ाचार क बात कर रहा ,ं कसी एक
धम क नह । बदमाश का कोई एक धम नह होता है। वो हर धम म पनपते
ह, हर जाित म। अगर ईसाइयत म ू सयु के दौरान धम के नाम पर जंग
िछड़ी थी, तो अब ऐसा कसी दूसरे धम म हो रहा है। कल कसी और धम म
होगा। इन काितल क भूख एक धम से दूसरे धम म फै लेगी—और हर कोई
अपने सािथय क मौत पर भगवान के नाम क दुहाई देगा। ये आदमी अपने
मतलब से धम और भगवान क ा याएं करगे और अिव सनीय कृ य को
अंजाम दगे। और यही वो िनयित थी, िजसका अिभशाप स ऋिष ने
मानवजाित को दया था।’
िव ुत और दािमनी के मुंह सूख गए, जब उ ह ने ारका शा ी से सुने इस नए
रह य को पचाने क कोिशश क । वा तव म दािमनी को तो अपना िसर फटता
आ महसूस होने लगा, और वो तुरंत मठाधीश के उस िवशाल क से भाग
जाना चाहती थी।
ारका शा ी समझ सकते थे क उनके यारे ब े अब सूचना के भार से
दबे जा रहे थे। ले कन उनके पास अिधक िवक प नह थे। िव ुत ही वो
चयिनत र क था और उसे ये बोझ उठाना ही था।
‘ यारे िव ुत और दािमनी, अब हम इस बारे म बाक बात कल करगे।
अभी के िलए बस एक और चीज है, जो म तु ह बताना चाहता ।ं ’
‘बताइए, बाबा,’ िव ुत ने कहा। वो कई दन तक लगातार इस कमरे म
बैठे रह सकता था। ले कन वो जानता था क इन नए-नए राज के बीच
दािमनी दबी जा रही होगी। उसे दािमनी को यहां से बाहर िनकालना होगा।
‘वा तव म दो अिभशाप थे, िव ुत,’ डमा टर ने आगे कहा, ‘दो मरते ए
ऋिषय का एक-एक। वो पांचव और छठे स ऋिष थे। एक ने पुजारी के
वंशज को अिभशाप दया था और एक ने मानवजाित को, जैसा क मने पहले
भी बताया,’ डमा टर ने कहा।
अब तो सब िव ुत के भी िसर पर से िनकल रहा था। स ऋिष कौन थे? वो
मर य रहे थे? उ ह ने ऐसे अिभशाप य दए? और सब आपस म कै से जुड़ा
था?
दरवाजे पर दोबारा द तक ई। इस बार जरा लंबी और ता कािलक।
ारका शा ी क आ ा से बलवंत ने क म फर से वेश कया। अब वह
नाराज था।
‘िव ुत अब हम चलना होगा... अभी,’ बलवंत ने कहा। वो अब कसी तरह
क देरी के मूड म नह था। एक जंग उनका इं तजार कर रही थी। और यु
मुख िबना तैयारी के नह जाना चाहता था।

दािमनी ने ारका शा ी के सामने िसर झुकाया, वो उसे िपतृ ेह से देख रहे


थे। उन दोन क ही आंख नम थ । िव ुत बेचैन था, उसे अभी और जानना था।
उसने एक आखरी सवाल उछालने का िनणय िलया।
‘बाबा, बाक क कहानी अब म वापसी पर सुनूंगा। अभी के िलए बस मेरा
एक ही सवाल है—रोमी परे रा कौन है और वो मुझे मारना य चाहता है?’
ारका शा ी ने िसर िहलाकर, जवाब दया, ‘याद रखो िव ुत, एक ब त
काली शि इसके पीछे काम कर रही है, जो कसी भी तरह इस अिभशाप को
ख म होने देना नह चाहती। खून-खराबा और पागलपन इनक काली और
िघनौनी सोच के अनु प ह। इन रा स से लड़ते ए हम स दय से हर जगह
उस राज क र ा कर रहे ह, हड़ पा से काशी, फर गोवा, कलक ा, द ली,
रोम, वै टकन, सी रया और उसके भी आगे। स ा के िलए लालची इस शि ने
सारे लोिभय को अपने साथ िमला िलया है और वो अपने नए ऑडर क
थापना म भगवान के नाम का इ तेमाल करना चाहते ह।’
िव ुत खामोशी से सुन रहा था।
‘उ ह ने ही उसे भेजा है,’ बूढ़े मठाधीश ने कहा। ‘रोमी परे रा उन रा स
क सेना का बस यादा है, तु ह तो पूरी सेना का अंत करना है, िव ुत।’

उ ह ने बुजुग के पैर छु ए और कमरे से बाहर िनकल गए। दािमनी के मन म


िमले-जुले भाव थे। एक तरफ तो उसके मन म िव ुत के परदादा से िमलने और
उनका यार पाने क खुशी थी, तो दूसरी तरफ वो उसे लेकर डरी ई थी, जो
उसने अभी-अभी सुना था। रोमी परे रा का नाम उसे पागल कए जा रहा था।
िव ुत उसक जंदगी था और उसका खोना वो बदा त नह कर सकती थी।
िव ुत दािमनी क बेचैनी महसूस कर सकता था, उसने अपनी बांह
दािमनी के कं धे पर रखी। ‘म तु ह कल सारनाथ लेकर चलूंगा, दािमनी,’ उसने
मु कु राते ए कहा। ‘म तु ह वो जगह दखाऊंगा जहां बु ने अपना पहला
उपदेश दया था।’
दािमनी क और अपनी जंदगी क तरफ मुड़ी। ‘तुम जानते हो ना िव ुत,
म तु हारे िबना नह जी सकती। मुझसे वादा करो क तुम खुद को कु छ नह
होने दोगे,’ उसने ज दी से कहा, उसक आंख भरी ई थ ।
िव ुत ने अपने हाथ उसके गाल पर रखे, और यार से उसक आंख म
देखते ए कहा, ‘म वादा करता ,ं दािमनी। मुझे कोई नुकसान नह होगा। तुम
मत भूलो, म आधा-इं सान, आधा-भगवान ।ं ’

दािमनी वापस अपने कमरे म चली गई थी और बलवंत मठ क श शाला म


यो ा को बुलाने के िलए गया। िव ुत एक पल चुराकर वापस से ारका
शा ी के क क ओर भागा।
डमा टर इं तजार कर ही रहे थे, वो अपनी जगह से जरा भी नह िहले थे।
‘ णाम, बाबा। माफ चाहता ं क म िबना बताए यूं चला आया, ले कन
मुझे लगा क आप मुझसे कु छ कहना चाहते थे।’
‘हां, िव ुत,’ डमा टर ने गंभीरता से कहा। ‘और वो बात है, आज कोई
तु ह धोखा देने वाला है, मेरे ब ।े ’

‘म तु हारे आसपास एक और काली आ मा को महसूस कर रहा ,ं ’ ारका


शा ी ने बताया। ‘रोमी अके ला नह है।’
िव ुत ने अपने दांत भ चे। उसे अनायास ही नैना के हाथ के उस सेटेलाईट
फोन क याद आई। वो कससे बात कर रही थी? हालां क वो डमा टर से इस
बारे म कु छ नह कहना चाहता था। नैना का पालन-पोषण बचपन से ही देव-
रा स मठ म आ था, और वो ारका शा ी के िलए प रवार क तरह ही थी।
‘म यान रखूंगा, बाबा। जब तक आपका आशीवाद मेरे साथ है, मुझे कोई
नुकसान नह प च ं ा सकता,’ िव ुत ने कहा।
उसने फर से अपने परदादा के पैर छु ए और जाने क आ ा ली। जैसे ही वो
दरवाजे के पास प चं ा, उसने बाबा से एक आखरी सवाल पूछा।
‘बाबा, म अब समझ गया ं उस दन आपने उस पुजारी-राजा क मू त को
मेरी मू त य बताया था। यक नन मूल प से वह मू त िववा वन पुजारी क
ही थी। तीन हज़ार सात सौ साल बाद उस महान देवता क आ मा ने मेरे,
आपके िव ुत के प म ज म िलया है। ऐसा ही दािमनी के साथ भी आ है। वो
पावन संजना का पुनज म है। म देख सकता ं क कस तरह से हज़ार साल
से कम का ऋण और बंधन जुड़ा आ है। और म खुशनसीब ं क मुझे इसके
िलए चुना गया।’
ारका शा ी अपने आंसू रोककर, अपने परपोते पर मु कु राए। उ ह ने
पूरी जंदगी काले मं दर के राज क र ा करने के िलए संघष कया, और
लगभग तीन दशक से िव ुत का इं तजार कया क वो आकर अपनी जगह
संभाल ले। वो दन आज आिखर आ गया था।
‘ले कन बाबा, अगर म िववा वन पुजारी ं और दािमनी संजना, तो आप
कौन ह?’ आंख म चमक िलए िव ुत ने पूछा।
ारका शा ी मु कु राए। एक पल बाद उ ह ने जवाब दया।
‘म अंितम स ऋिष ।ं ’
हड़ पा, 1700 ईसापूव
आधी रात का आ मण

‘हम आज रात ही कारावास पर हमला करना चािहए!’ मनु ने कहा, जो उस


रात उनके िशिवर के म य म जली अि म कं कड़ फक रहा था। वो लोग हड़ पा
नगर के ार से बीस मील क दूरी पर थे। सूय के तीक वाली पताका, जो
िववा वन पुजारी का ितिनिध व करती थी, अि के म म काश म
फड़फड़ाती दख रही थी।
मृत कारावास से वापस आकर, सोमद और उसके भरोसे के आदिमय ने
मनु, संजना और उनके मु ी भर सािथय के ठकाने का पता लगा िलया था।
अिभयंता के अपने िव त साथी, मनु, उसके नौ साथी और वयं अिभयंता को
िमलाकर, वो लोग छ ीस यो ा थे। वैसे तो वो िववा वन पुजारी से अगली
सुबह बचाने का वादा करके आया था, ले कन सोमद िनि त नह था क
सब कै से हो पाएगा। हड़ पा के िसपाही, पुजारी और सब लोग अब तो पहले से
भी अिधक उ ेिजत हो चुके थे। शाकाहारी लोग घोड़ को काटकर, क ा मांस
खा रहे थे। माताएं वयं अपने ब को सोमरस का नशा करा रही थ । मं दर
म जुआ और वे यावृित चल रही थी। अनाज गोदाम लूट िलए गए थे और
हवन-कुं ड को अशु कर दया गया था। ले कन इससे भी बदतर था क द
दु ध के प म पोषण देने वाली गाय, िज ह हड़ पा म पूजा जाता था, उ ह भी
वहां काटा जा रहा था। सोमद और मनु, दोन को भरोसा था क अब इस
महानगर का अंत नजदीक ही था।

‘मूख मत बनो, मनु,’ सोमद ने धम-िपता के अिधकार से डांटा। वो उस लड़के


क बहादुरी क शंसा करता था, ले कन अभी उसक जान जोिखम म नह
डाल सकता था। वो उसी शाम मनु के द िपता से िमलकर आया था और जो
पीड़ा और अधोगित उसने देखी थी, उसका वो वणन भी नह कर सकता था।
उसने संजना और मनु क सुर ा का वचन िलया था, भले इसके िलए उसे
अपने ाण क आ ित ही य न देनी पड़े। वैसे भी कतने लोग को यूं जीते-
जागते ई र क सेवा करने का मौका िमलता होगा?
‘हम उ ह िनकाल सकते ह, काका,’ मनु ने जवाब दया। ‘कारावास पर
तीन सौ पहरे दार िनयु ह। वो सब नशे म ह। रात के अंधेरे म होने वाले हमले
म उनके पास बचने के अिधक अवसर नह ह गे। हमारे हाथ म ब त कम समय
बचा है काका। हम हमले क आ ा दीिजए!’ मनु ने जोर दया।
सोमद अपनी तांबे क लंबी तलवार को प थर पर िघसकर धार देने क
कोिशश कर रहा था। उसने ककर, धार जांची और फर उसे बाद के िलए
उठाकर रख दया। उसम अभी और काम क ज रत थी।
‘कारावास क सुर ा उससे अिधक अभे है, िजतनी दखाई देती है। म
मानता ं क िसपाही उस चीज के नशे म ह, िजसने पूरे नगर को िवि बना
रखा है, ले कन आज शाम मने उ ह करीब से देखा। नशे म धु उन िसपािहय
क जानवर के समान उ ेजना ने उ ह और खतरनाक बना दया है। भले ही
आज रात वो कु छ ढीले तीत ह , ले कन उनम कसी तरह के डर या दद का
अहसास नह है। तुम ऐसे दल को नह हरा सकते मनु। वो अभी इं सान नह ह।
वो सब अब रा स बन चुके ह।’
‘ले कन, काका...’ मनु ने िवरोध करने क कोिशश क ।
‘बस, मनु,’ मिहला क एक कड़क कं तु िश आवाज सुनाई दी। िशिवर के
कोने से संजना बोल रही थी। उसने पूरी बात सुनी थी और अपने पित के
भरोसेमंद िम क सलाह पर अमल करने का िनणय िलया था। सोमद ने ही
उसे आखरी बार उसके पित का हाल-चाल सुनाया था। कसी और चीज से
अिधक उसके िलए वो मह वपूण था।
‘अगर सोमद भैया को लगता है क हम कल हमला करना चािहए, तो
हम उनक सूझ पर चलना चािहए,’ संजना ने कहा।
संजना क कही बात को देवता क बात क ही तरह मह वपूण समझा
जाता था, और कभी-कभी तो देवता क बात से भी अिधक मह वपूण। उसका
दल सोने का था। बद क मती से, उसक शु ता और नेक का उस समय
हड़ पा म जागृत काली ताकत से कोई मुकाबला नह था।

मनु हाथ म चावल क प ल िलए बैठा था। वो ब त थका आ था और िपछले


बीस घंट से घोड़े पर सवार हो सफर ही कर रहा था। अगली सुबह जंग के
िलए तैयार होने से पहले उसे इस भोजन और कु छ देर आराम करने क
आव यकता थी। उसे अपने ि य िपता को हड़ पा के शैतान िसपािहय के पंज
से छु ड़ाना था।
ताजा पके चावल का एक िनवाला मुंह म डाल, मनु अि के िगद, सोमद
के पास बैठे सैिनक को देख मासूिमयत से मु कु राया। िसपाही भी वापस से
मु कु राया, वो खुश था क वयं देवता के वंशज ने उसका अिभवादन कया।
इससे पहले क मनु उससे अपनी आंख हटा पाता, एक घातक तीर उस
मु कु राते िसपाही के दािहनी ओर से उसके िसर म जा धंसा। तभी पल भर म
वहां धातु के बाण क वषा होने लगी। रं गा अपने चार सौ पागल यो ा के
साथ वहां आ प च ं ा था और वहां शैतानी तांडव होने लगा। मनु और सोमद
के िशिवर को चार तरफ से उन सैिनक ने घेर िलया था।
जब तक सोमद के आदमी परा त हो रहे थे, मनु और उसके नौ साथी,
िशिवर के म य म यु क अपनी संरचना ले चुके थे। उनक पीठ एक-दूसरे क
ओर थी, और उ ह ने सामने से ढाल और धनुष को तैयार रखा था। उन दस
लोग का मुंह दस दशा म था, िजनके बारे म वै दक ंथ म बताया गया
था।
उनम से पांच लड़ कयां सामने वाल पर तीर से हार कर रही थ , जब क
पांच लड़के अपनी ढाल से उनक तरफ आते हर भाले और तीर को रोक रहे
थे। पांच धनुधर म से येक एक समय पर चार-चार तीर छोड़ रहा था, जो
सभी अपने िनशाने पर लग रहे थे। वो दस यो ा एक ही शरीर जान पड़ रहे
थे, उनका रण-कौशल े था। जबरद त पलटवार म रं गा के आदमी दजन के
भाव से िगर रहे थे। इससे सोमद और उसके आदिमय को भी यु म अपनी
उपयु जगह लेने का मौका िमल गया।
मनु और सोमद जानते थे क धनुष बाण क यह लड़ाई ज द ही, श ु के
साथ आमने-सामने क लड़ाई म बदल जाएगी। इतने आदमी मरने पर भी रं गा
के आदमी हर दशा से उ ह घेरते ए आगे बढ़ते आ रहे थे, अब भी वो सं या
म एक के मुकाबले दस थे।

मनु घेरे से बाहर िनकलकर प थर के उस झुंड क ओर बढ़ा, जहां उसक मां


िछपी ई थी। आसपास िगरते तीर और भाल से बचते ए, उसने उस कोने
म छलांग लगाई, जहां संजना दुबक बैठी थी।
‘म सही .ं .. म सही .ं .. वहां जाओ और लड़ो,’ संजना ने मनु को
उकसाया, जब वो उसके पास आया।
‘म आपको यहां छोड़कर नह जा सकता, मां,’ मनु ने जवाब दया। ‘म
आपको कु छ नह होने दूगं ा!’
‘हम सभी घायल हो जाएंगे, मनु, अगर आज तुमने अपनी वीरता नह
दखाई। याद रखो, पु , तुम कौन हो! अपने िव यात िपता को याद रखो पु !’
संजना ने जोर दया, गव से मु कु राकर, सीधे अपने बेटे क आंख म देखते ए।
‘ले कन वो सं या म ब त अिधक ह, मां। हम शायद उ ह हरा नह पाएंग!े ’
मनु ने तक दया।
‘ या हमारे पास कोई िवक प है, पु ?’ संजना ने शांित से पूछा। उसने
आगे झुककर अपने पु म माथे को चूमा। ‘अब जाओ। और वो करो जो तु हारा
कत है। यह मेरा आदेश है।’
‘म वही क ं गा, मां, जो आपने कहा। मेरी चंता मत करना और यह
रहना। म आपके पास वापस आऊंगा मां, ये मेरा वचन है... म वापस आऊंगा,’
मनु ने कहकर अपनी तलवार ख च ली, और वापस जाकर यु म शािमल हो
गया।
उसने अपनी मां से एक वादा कया था। ऐसा वादा िजसे पूरा करने के िलए
वो रा ते म आने वाली कसी भी मुि कल से िभड़ जाता।
बनारस, 2017
संकट मोचन

मोटर साइ कल दहाड़ी। िव ुत सोनू के साथ िपछली सीट पर बैठा था। नैना
बाला के पीछे बैठी थी। यो ा बलवंत अपनी बाइक पर अके ला था। वो पांच
देव-रा स मठ से शाम के लगभग 6 बजे, अपनी ताकतवर एनफ ड बुलेट पर
िनकले थे। मठ के आठ बेहतरीन यो ा एक घंटे पहले ही घाट के िलए िनकल
चुके थे।
गु चर सेना िपछले अड़तालीस घंट से स य थी, ले कन उ ह रोमी का
कोई सुराग नह िमल पाया था। हालां क उ ह ने कु छ असामा य ज र भांप
िलया था। लगभग पं ह िवदेिशय ने, सभी अ छी कद-काठी के , सै य गठन
और असामा य प से भारी बैग के साथ, शहर के सात अलग-अलग होटल म
चैक-इन कया था। कोई भी सामा य िनरी क इन भारी-भरकम टू र ट को
भांप नह सकता था, य क वो सभी शहर म अलग-अलग समय पर और
अलग तरह के होटल म ठहरे थे—िजनम स ते लॉज से लेकर आलीशान
फाइव टार होटल तक शािमल थे। ले कन गु चर सेना भी कसी मायने म
साधारण नह थी। उ ह ने न िसफ इन असामा य मेहमान को देख िलया था,
बि क मठ म इनके बारे म सूचना भी प च ं ा दी थी क वो सब अलग-अलग
वाहन के िवक प लेकर होटल से िनकल चुके थे। वो अलग-अलग सफर कर
रहे थे, ले कन उन सबक मंिजल एक थी—दशा मेध घाट।
जैसे ही समूह मठ के ार से िनकला, पुरोिहत जी ने यान दया क उनके
गु ारका शा ी िव ुत को नदी के कनारे भेजते समय िन ंत थे। अपने
परपोते क सुर ा के िलए कु छ चंता के साथ ही, उ ह अपने वंशज पर पूरा
भरोसा था। उ ह ने दो शाम पहले, िव ुत को बोलते ए सुना था। ारका
शा ी इं सान क कािबिलयत पहचानने क अटू ट शि रखते थे। शैतान को
िव ुत का एक बाल भी बांका करने के िलए असाधारण प से यो य होना
होगा।

पुरोिहत जी के िनदश पर, वो समूह संकट मोचन के मं दर पर माथा टेकने के


िलए का। संकट को हरने वाले हनुमान बाबा का वो मं दर, अ सी घाट के
िबलकु ल नजदीक था। ऐसा माना जाता था क उसक थापना महान किव-
संत तुलसीदास ने क थी, जहां उ ह ने अपने ई र के सा ात दशन कए थे।
ई र के सवशि मान व प, िजनक मू त अमे रका के भूतपूव रा पित,
बराक ओबामा भी हमेशा अपने साथ रखते ह, यह मं दर उ ह सवशि शाली
हनुमान बाबा का था।
िव ुत एक चमकदार के सरी रं ग क अजीब सी आकृ ित वाली, भु हनुमान
क ितमा के सामने खड़ा था। द मं दर का आंगन भ से भरा आ था।
मश र बेसन का ल डू हनुमान बाबा का ि य साद था। वहां हर जाित, वग
और लंग के लोग ा से आए थे। वहां म यवग य गृहिणयां िन वग य
भ के साथ चल रही थ । आलीशान गािड़य से उतरी, तड़क-भड़क पसंद
युवा लड़ कयां भी द ांग और िनराि त के साथ कं धे से कं धा िमलाकर चल
रही थ । न बे साल के वृ कशोर के साथ मं दर क सी ढ़यां चढ़ रहे थे। वहां
उस मं दर प रसर म न कोई अमीर था और ना ही कोई गरीब। कोई ब त
सुंदर नह था, कोई बदसूरत नह । संकट मोचन सभी से यार करते ह। वहां
हर कोई कु छ मांगने आया था।
मं दर म एक तरफ तो हनुमान क मुड़ी ई ले कन ीितकर ितमा लगी
ई थी, तो दूसरी तरफ भगवान राम क आकषक ितमा, जो इस धरती पर
करोड़ हंद ु के इ ह। िव ुत हनुमान क ितमा के सामने स मोिहत सा
खड़ा था। कु छ था जो उसे महान देवता क ओर ख च रहा था। सैकड़ , हज़ार
लोग से िघरे खड़े िव ुत को अचानक ही अपने म एक अ भुत ऊजा का संचार
महसूस आ। वह हनुमान के सामने िबना िहले खड़ा आ था, ले कन हर भ
मानो उसके अंद नी काश को और बढ़ा रहा था। वो एक अलौ कक अनुभव
था। कई पल तक िव ुत उस ऊजा को आ मसात करता रहा, और फर
हनुमान के सामने पूण समपण हेतु अपने घुटन के बल िगर पड़ा। भगवान
िव ुत से बात कर रहे थे, या आखरी देवता को ऐसा महसूस हो रहा था।

िव ुत अब राम दरबार के स मुख उपि थत आ, भगवान राम, उनक ि य


प ी सीता, लाड़ले भाई ल मण, भरत और श ु और चरण म परम भ
हनुमान। जो लोग भगवान राम के ित सम पत नह ह, उनके िलए इसके
अिधक मायने नह ह। ले कन राम के करोड़ भ के िलए यह राम दरबार
अ छाई, ेम और आशा का तीक है।
िव ुत ने राम-दरबार क चौखट पर माथा टकाया। उसने कु छ नह मांगा।
वो कभी नह मांगता था। वो जानता था क भगवान हर कदम पर उसे देख रहे
ह। उसने बस अपने मन म यही ाथना क , ‘मेरी मदद करना राम। मुझे वही
वीरता और िश ता देना जो आपने रा स रावण के दमन पर दुिनया को
िसखाई थी।’
िव ुत अपनी आंख खोलकर खड़ा आ, और तब उसका यान उस पुराने
मं दर के पुजारी पर गया, जो भगवा व पहने हैरानी से उसे देख रहा था।
िव ुत पुजारी क तरफ मुड़ा और हाथ जोड़कर णाम कया। पुजारी ने
अपना दािहना हाथ उठाकर िव ुत को आशीवाद दया और एक ही श द
कहा।
‘उि थ ा!’
उठो।

योजना आसान थी। िव ुत घाट से कु छ सौ मीटर पहले ुप से अलग हो


जाएगा। वो नदी कनारे घूमेगा, मोक करे गा, अपने मोबाइल पर बात करते
ए रोमी का इं तजार करे गा। इस पूरे समय उसक यो ा टीम उस पर नजर
रखेगी, उनम से हरे क उससे कु छ पल के फासले पर होगा। अगर रोमी िव ुत
को देख रहा होगा, तो वो िव ुत के पास आएगा।
िव ुत सच म नह चाहता था क सोनू, नैना, बाला, बलवंत और उनके
साथी उसके साथ आएं। वो उनम से कसी को भी यूं नुकसान प च ं ने नह देना
चाहता था, और वो रोमी का सामना अके ले ही कर सकता था। ले कन इस
सुझाव को उसके सािथय ने तुरंत ही ठु करा दया, और अब वो अपने देवता के
साथ जंग के मैदान म थे।
दशा मेध घाट क िवशाल सी ढ़य पर खड़ा िव ुत आसपास जमा होती
भीड़ को देख रहा था, तभी उसने बाला को फोन लगाया। बाला उससे महज
बीस कदम क दूरी पर था, ले कन वो समझ सकता था क िव ुत दूर से ही
कु छ बात करना चाह रहा होगा।
‘हां, िविडयो?’ बाला ने जवाब दया।
‘एक बात कहनी थी, बाला,’ िव ुत ने कहा। ‘म जानता ,ं ये सुनने म
अजीब लगेगा, ले कन नैना पर नजर रखना, ठीक है?’
एक पल को बाला हैरान रह गया। ‘ या? नैना? तुम मुझसे मजाक कर रहे
हो न!’
‘जैसा मने कहा करो, बाला,’ िव ुत ने फोन काटने से पहले िवनती क ।
घाट पर लोग क सं या तेजी से बढ़ रही थी और सारी लाइ स जल चुक
थ । घाट के ऊपर फू ल बेचने वाल , गदे के फू ल क माला, दीये, िमठाइयां
और अगरब ी बेचने वाल क दुकान एक पंि म सजी थ । युवा और बुजुग
पुजा रय का दल गंगा आरती क तैयारी म त था। यारी गंगा नदी म
लाइट का ित बंब यूं लग रहा था मानो काला आईना िझलिमला रहा हो, जो
जमीन पर खड़े और नदी म नौका िवहार करते लोग का मन मोह रहा था।
लोग आरती का आनंद घाट पर खड़े होकर भी लेते थे और नदी म नाव म
बैठकर भी। वो जगह रं ग और शोरगुल का का नवल लग रही थी।
और वहां घाट पर उतरते-चढ़ते सैकड़ लोग के बीच, िव ुत को वो
आकषक, ब सा चेहरा नजर आया।
रोमी दूरी पर खड़ा, िव ुत को देख मु कु रा रहा था।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
मनु

सोमद सही कह रहा था। हड़ पा के नशे म धु िसपाही वा तव म भय और


दद से मु थे। उनम से कई िसपाही अनेक तीर लग जाने के बावजूद भी ज़ंदा
लाश क तरह यु कए जा रहे थे। सोमद और मनु को एक बात तो समझ
आ गई थी—ये रा स अब सुधर नह सकते थे। मनु को एक-एक िसपाही को
मारना ही होगा। ले कन कै से? वो सं या म ब त अिधक थे।
सं ाम चंड हो चला था, छोटी टु कड़ी ने िवप ी के काफ सैिनक को मार
िगराया था। अब ू रता क सारी हद पार क जा रही थ । तलवार गला काट
रही थ , कृ पाण चेहरे फाड़ रही थ , आंख बाहर लटक रही थ और कलेजे चीरे
जा रहे थे।
ज द ही आसमान पर छाये काले और बगनी बादल घनघोर गजना के साथ
बरसने लगे और आधी रात का वो हमला अब भारी बरसात और तेज हवा
से िततर-िबतर होने लगा। इस सब हलचल म लड़ते ए मनु ने अचानक कु छ
दूरी पर, श ु के पं ह-बीस िसपािहय से िघरे ए अके ले सोमद को देखा।
अपने िपता के अंितम, वा तिवक िम को मनु सकु शल देखना चाहता था।
रा ते म आने वाले िवरोिधय को चीरता आ मनु सोमद क तरफ बढ़ा।
जोर से िच लाते ए वह सोमद को घेरे खड़े सैिनक पर झपटा। पल भर म
उसने सारे िसपािहय का यान अपनी ओर आक षत कर िलया और िबजली
क सी तेजी से अपनी तलवार घुमाने लगा। जब मनु पंि से खड़े अपने दु मन
का संहार कर रहा था, तो र क धारा फट पड़ी, ऐसा लग रहा था मानो
भेड़ के झुंड म शेर िशकार के िलए घुस आया हो।
‘बस, ब त हो गया!’ कोई जोर से िच लाया। रं गा खड़ा होकर मनु को घूर
रहा था।
‘ओ देवता क संतान, अपनी बराबरी वाले से मुकाबला कर!’ रं गा ने जोर
से चुनौती दी, िजससे हर कोई सुन सके । उसने एक भारी भाला पकड़ा आ
था, िजसके दोन छोर पर नुक ला मुंह बना था। इस हिथयार को वो बड़े सधे
हाथ से अपने कं ध के िगद घुमा रहा था। लगभग सात हाथ ऊंचा और सुदरू
पूव के एक-स ग वाले गडे के िजतना चौड़ा, रं गा र के यासे दै य के समान
लग रहा था।
‘म तेरा ही इं तजार कर रहा था, ोही सेना य !’ मनु ने उसे ललकारते
ए कहा। ‘मने सुना क तूने यायालय म शि शाली िववा वन पुजारी पर,
कायर क तरह पीछे से वार कया। आज तेरे फै सले का दन है, रं गा!’
अब तक रं गा और मनु नजदीक आ गए थे, सावधानी से चलते ए, उस
भयंकर लड़ाई के िलए तैयार होते ए। उन दोन के िलए वो जंदगी और मौत
क जंग होने वाली थी।

सारी जंग थम गई और दोन तरफ के यो ा बेरहम दै य रं गा और युवा योगी


मनु के बीच होने वाले भीषण सं ाम को देखने के िलए जुट आए। दु सेना य
और ि य वदा के यादे ने अपने हिथयार के प म दो मुंह वाले भाले को उठा
रखा था। दूसरी तरफ मनु ने दो भारी छोटी-तलवार उठा रखी थ , िज ह वो
ितनके के भांित हवा म लहरा रहा था। दोन यो ा अब एक घेरे म घूम रहे थे,
दूसरे पर छलांग लगाने के उिचत अवसर क तलाश म। तेज बा रश के बीच
लगातार िबजली कड़क रही थी।
रं गा ने पहली चाल चली। मनु को चकमा देने के िलए वो एक तरफ झुका,
ले कन तभी अचानक दूसरी तरफ से मनु पर अपने भाले का जोरदार वार
कया। युवा संत ने तेजी से अपने शरीर को घुमाया और भाले के वार से पूरी
तरह बच िनकला। उसी पल उसने रं गा क कमर, उसक बाजु से ठीक नीचे,
चीर दी। सेना य दद से िबलिबलाता आ रह गया। मुकाबला शु होने के
कु छ ही पल म मनु ने उस दै य पर अपनी े ता सािबत कर दी थी। अब उसे
अपने पाप क क मत चुकानी थी। मनु इस आदमी ारा अपने देवता िपता
पर ए िनमम हमले क त वीर अपने मन से नह िनकाल पा रहा था, और वो
उसे तड़पा-तड़पाकर मारने वाला था।
रं गा ने फर से हमला कया, इस बार अपने घातक भाले को गोल-गोल
घुमाते ए। मनु उस आगे बढ़ते ए दै य क तरफ दौड़ा और उसके पास
प च ं ने से ठीक पहले दलदली जमीन पर घुटन के बल बैठ, रपटते ए रं गा के
पास प च ं ा और उसक जांघ म गहरा घाव कर दया। वो बदमाश दद से
िच ला उठा। अपने घुटने के बल िगरते ए, रं गा ने अपने काले दल म मान
िलया क उसने युवा यो ा-पुजारी क ताकत को कम आंक िलया था।
अब मनु क बारी थी। गरजते बादल और तेज बा रश के बीच, वो दोन
हाथ म तलवार िलए, रं गा क छाती चीरने के िलए आगे बढ़ा। िवशाल
सेना य अब पूरी तरह से प त था। उसक छाती से र का फ वारा फू ट
पड़ा था।
मनु अब रं गा के िगद यूं च र लगा रहा था जैसे चील अपने िशकार पर
अंितम बार झपटने से पहले उसके आसपास उड़कर अपना अिधकार घोिषत
करती है। वो चाह रहा था क उसके माता-िपता इस नजारे को देख पाते। वो
चाह रहा था क वो देखते क कै से उसने इस अयो य श ु का िवनाश कर दया
था। कु छ पल कने के बाद, मनु ने अंितम हार करने का िनणय िलया। वो
आगे बढ़ा और रं गा क लाल पगड़ी ख च ली। उसने उस दु के बाल पकड़े,
और उसे पीछे क तरफ ख चने लगा। मनु आसपास के लोग के सामने अपनी
शान का दशन कर रहा था। वो चाहता था क हर कोई इसे देखे। वो ऐसे
प रवार से आता था, िजसने हंसा को छोड़कर यार को अपनाया था। ले कन
अब वो समय नह था। रं गा ने धरती के आखरी देवता के ित अपराध कया
था। और मनु उसे माफ नह करने वाला था।
जैसे ही मनु उस जानवर का गला काटने वाला था, रं गा ने अपने दोन हाथ
उठाकर, उससे माफ क भीख मांगी।

घायल सेना य के मुंह पर बा रश क बूंद िगर रही थ । हालां क रं गा


बमुि कल ही अपनी आंख खुली रख पा रहा था, मनु देख सकता था क वो
आंख भी दया क भीख मांग रही थ ।
‘दया!’ कभी गरजने वाला रं गा अब र रयाया। वह डर से कांप रहा था।
‘दया, शि शाली मनु पुजारी!’ उसने दोहराया।
मनु को उसे माफ करने क कोई इ छा नह थी। वो उस आदमी को सजा
देने को उ सुक था, िजसने उसके िपता िववा वन पुजारी पर हमला कया था
और उ ह मृत कारावास म भेजने का ष ं रचा था। उसने दया क अपील
ठु कराने का फै सला कया और रं गा के गले पर अपनी तलवार क धार रखने ही
वाला था।
‘दया, देवता िववा वन पुजारी के पु ! िनह थे पर वार करके अपने नेक
िपता का नाम कलं कत मत करो,’ उसने और िगड़िगड़ाते ए कहा।
अपने िपता का नाम सुनकर मनु च का। या उसके िपता एक िनह थे और
परािजत आदमी को मारते, भले ही उसका जो भी अपराध रहा हो?
नह ।
मनु ने सोमद को देखा। मु य अिभयंता भी ऊंचे आदश और नेक नीयत
वाला इं सान था। उसने िसर िहलाकर मनु का समथन कया। एक मह वाकां ी
मिहला क वासना क भट चढ़ने से पहले, पूरा हड़ पा समाज इसी आदश पर
आधा रत था। यार, क णा और मा हड़ पा िनवािसय का आधार थे।
मनु ने सेना य के बाल छोड़ दए। उसने वयं को सीधा कया, अपना
िसर पीछे झटककर बा रश क बूंद को अपने चेहरे पर पड़ने दया। वो देख
सकता था क अभी भी हड़ पा के सैिनक नफरत और पागलपन से गुरा रहे थे,
ले कन उसने अपनी तलवार गीली जमीन पर िगरा दी। िवि दल से अपनी
उदारता पर सराहना क उ मीद करते ए मनु सोमद क तरफ चलने लगा।
वो अपनी मां को साथ लेकर इस ताजे बने मशान घाट से िनकल जाना
चाहता था। वो सोमद के काफ करीब था और अपने िपता के िम को अपनी
उदारता पर मु कु राते ए देख सकता था। हालां क, जैसे ही वो कु छ कदम और
सोमद के करीब आया, उसने देखा क अिभयंता के चेहरे के भाव अब
भयानक डर म बदल गए थे। एक पल से भी कम के समय म सोमद बस मनु
को देख अपनी एक उं गली उठा पाया। ले कन देवता का पु कोई सामा य
यो ा नह था। इतने कम समय म भी मनु ने भांप िलया था क सोमद उसे
नह देख रहा था। उसक नजर उसके पीछे कसी पर टक थ ।
अपने दोन पैर पूरे फै लाते ए, मनु ने अपना कद आधे से भी कम कर
िलया। ले कन तब तक देर हो चुक थी। अपने मोटे चाकू से रं गा ने उसक
कमर पर गहरा घाव कर दया था। मनु दद से तड़प उठा। उसने अपने पैर पर
खड़े होने क कोिशश क इससे पहले क वो दै य हमलावर फर से वार कर
सके । रं गा अब नए पागलपन से आगे बढ़ रहा था।
उस पागल आदमी के वार से बचने के िलए मनु सधे कदम से एक तरफ
हटा। और कला रपया टू के एक अ य त वार से उसने अपनी मु ी को पंज के
आकार म बना, ि य वदा के कु े के पेट म वार कया। मनु क उं गिलय म
बाघ के घातक पंजे थे, जो एक दन उसके यो य उ रािधकारी को िमलने वाले
थे। पल भर म उसने रं गा क अंतिड़यां बाहर िनकाल द , साथ ही उसका दल
और आंत भी।
वो मुकाबला बराबरी का नह था।

हड़ पा के उ मादी िसपाही अब अपने ू र नेता के बगैर िबखरे ए जान पड़


रहे थे। अब जब क कोई उनके उ माद या खून क यास को नह बढ़ा रहा था,
वो शायद धीरे -धीरे शांत पड़ने वाले थे। मनु और सोमद के साथ उपि थत
मु ी भर यो ा खुशी से झूम उठे । मनु ने एक यो ा और सं यासी से अपेि त
हर यो यता का दशन कया था—वीरता, द ता, िनडरता, धैय, ले कन इस
सबसे भी बढ़कर... क णा।
ले कन खुशी िणक होती है। जब मनु, सोमद और उनके सािथय को
लगा क खतरा टल गया था, तभी उ ह दूरी से हड़ पा फौज का डरावना, यु
िबगुल सुनाई दया। वो सुन सकते थे क भारी सं या म सैिनक उनक ओर बढ़े
आ रहे थे। रं गा और उसके सािथय क मदद के िलए तैयार टु कड़ी आ प च ं ी
थी। उ ह ने एक-दूसरे से नजर िमला । वो प ीस यो ा हड़ पा सेना के
हज़ार सैिनक का मुकाबला कै से कर सकते थे?
इससे पहले क मनु उनक संभािवत ित या के बारे म सोच पाता, उसने
तारा को अपना नाम पुकारते सुना। तारा उसके नौ बेिमसाल यो ा म से
एक थी, और अपने साहसी और संतुिलत वहार के िवपरीत डर से कांप रही
थी। मनु ने उसे देखा, तो उसका भी र जम गया। तारा प थर के उसी झुंड के
पास थी, जहां संजना ने शरण ली थी।
इस हंसक लड़ाई म मनु अपना वचन भूल गया था!
बनारस, 2017
देवता का अ युदय

जैसे ही वह रोमी के पीछे जाने वाला था, िव ुत ने एक र जमा देने वाली


चीख सुनी। वो यु घोष था। अब भीड़ से खचाखच भरे घाट पर िव ुत
बलवंत और सोनू को अपनी तलवार बाहर िनकाले, भीड़ क तरफ भागता देख
रहा था। उ ह ने यक नन कु छ देखा था। वो रोमी का पीछा करे या उनक मदद
को जाए, इसी उधेड़बुन म जब वो दोबारा रोमी को देखने के िलए मुड़ा तो वो
जा चुका था।
अपनी टीम के भागने क दशा म दौड़ते ए, उसे वो दखाई दे गया
िजसक वजह से उसक टीम हरकत म आई थी। काले कपड़े पहने, भयानक से
दखने वाला आदिमय का एक ुप सीधा िव ुत क तरफ बढ़ रहा था। पल
भर म देवता ने जान िलया क यह वही टीम थी, िजसके बारे म गु चर सेना ने
चेतावनी दी थी। साफ था, ये आदमी कोई साधारण गली के फाइटर नह थे।
उनक कद काठी अ छी थी, वे िशि त और अनुशािसत थे, और एक कमांडो
संरचना म उसक तरफ बढ़ रहे थे। उनक एक ही झलक से िव ुत ने उ ह
पकड़ िलया था, वो िमिल ी क भूतपूव सैिनक थे, शायद ईरान, स से—कहां
से, ये नह कहा जा सकता था। ले कन एक बात तो प थी—उसने अपने
दु मन को ह के म ले िलया था। अब िव ुत देख सकता था क वो वा तव म
या थे। कराए के सैिनक!

िव ुत को अचानक सोनू क चंता ई। जब क बलवंत एक पारं गत यो ा था,


ले कन ये कराए के सैिनक सोनू के बस क बात नह थे। िव ुत भीड़ म से
तेजी से जगह बनाते ए उन आदिमय क तरफ बढ़ने लगा। उसे उनके पास
सोनू या मठ म से कसी और के घायल होने से पहले प च
ं ना था। बाला को
उनक तरफ बढ़ता देख उसे राहत महसूस ई। अगर उसके अलावा कोई था,
जो इन िशि त फाइटस से मुकाबला कर सकता था, तो वो बाला और
बलवंत ही थे। और पीछे जो उसने मठ म देखा था, उसके िहसाब से शायद
नैना।
पृ भूिम म गंगा आरती शु हो चुक थी, िजसम तलवार और आपस म
िभड़ने का शोर दब गया। दोन ही प के लोग जानते थे क गोिलय क
आवाज से बेवजह का यान आक षत होगा, और कम से कम अभी के िलए तो
वो तलवार , कृ पाण और िमिल ी म इ तेमाल होने वाले चाकु से ही काम
चला रहे थे। ब त से पंिडत के संयु मं ो ारण, मंजीरे और शंख के नाद से
पूरा घाट गूंज रहा था। दशा मेध घाट पर उस समय हज़ार ालु जमा थे,
जो अपने हाथ जोड़े और आंख बंद कए भि म सराबोर थे। पुजा रय के
हाथ म पकड़े िवशाल दीय का ित बंब पिव नदी म दखाई दे रहा था।
ऐसा लग रहा था मानो सम घाट, पिव नदी, हज़ार तीथया ी और
पुजा रय के मं सब साथ िमलकर उस रात बुराई का िवनाश करने पर तुले
थे।
वो पं ह थे। उनक तरफ भागते ए ही िव ुत ने अपने दु मन क िगनती
कर ली थी। सोनू एक ह यारे क पसिलय के पास घाव देने म सफल हो गया
था और बलवंत ने दूसरे को िनशाना बना िलया था। अब तक नैना भी एक ही
साथ दो ह यार से िभड़ चुक थी, और यो ा-राजकु मारी क तरह उनका
मुकाबला कर रही थी। वो कसक तरफ थी? िव ुत अब िबजली क सी तेजी
से भीड़ को चीरते ए आगे बढ़ रहा था और उसने ठीक उन ह यार के बीच म
छलांग लगा दी, दो ह यार के गले पकड़ते ए। उसने यान दया क ह यार
के भारी चाकू क वजह से मठ के दो यो ा बुरी तरह घायल हो चुके थे, और
सोनू के मुंह पर िप टल का मूठ ब त तेजी से पड़ा था, िजससे उसका िनचला
ह ठ कट गया था। बाला भी लड़ाई क जगह तक प च ं गया था।
‘बाला... हमारे फाइटस और सोनू को यहां से दूर ले जाओ,’ िव ुत ने
िनदश दए, वो धीरे -धीरे पं ह म से बारह बचे ह यार से िघर रहा था।
‘हम आपक तरफ से लड़गे, िव ुत,’ बलवंत ने कड़ा िवरोध करते ए
कहा। वो िबलकु ल खुले सांड क तरह उ ेिजत था, जो अके ले ही पूरी फौज से
लड़ने के िलए तैयार था। बलवंत िव ुत को अके ले नह जाने देने वाला था।
काले कपड़ म ये आदमी उसके अब तक के दु मन से अिधक द थे, और वो
भी सं या म अिधक थे। िव ुत अके ले उनका मुकाबला नह कर पाएगा।
‘जैसा मने कहा है, करो!’ िव ुत ने आदेश दया। उसक आवाज म
अचानक से मठाधीश का अिधकार आ गया था। वो उनसे िवनती नह कर रहा
था। शा ी र के वंशज के तौर पर, वो अपनी कमान संभाल रहा था।

बाला सोनू और दोन घायल यो ा को साइड म ले गया। बलवंत और नैना


अपने घायल सािथय के पास खड़े थे, िव ुत और बारह खतरनाक दु मन के
बीच होने वाले मुकाबले का सा ी बनने के िलए। हालात कसी भी तरह
िव ुत के प म नह थे।
हर तरफ से ह यार से िघरे होने पर, िव ुत पूरी तरह सजग था, ऐसा लग
रहा था मानो वो खुली आंख से मेिडटेशन कर रहा था। उन बारह ए स-
कमांडो ने छोटी तलवार और िमिल ी के घातक चाकू बाहर िनकाल िलए थे।
िव ुत के पास कोई हिथयार नह था। बारह आदमी कसी तरह क उ ेजना
या ज दबाजी नह दखा रहे थे। वो िशि त िसपाही क खी दृढ़ता से
उसके िगद च र लगा रहे थे।
उनम से एक अपनी तलवार के साथ िव ुत के करीब बढ़ा। िव ुत ने हवा
म उछलते ए अपने हमलावर के जबड़े पर जोरदार कक लगाई। वार इतना
जोरदार था क ह यारा तुरंत कराहते ए जमीन पर ढह गया। एक पल के
िलए बचे ए दु मन सु हो गए। उ ह ने कभी अपने साथी को यूं आसानी से
काबू म आते नह देखा था। उनम से दो और िव ुत पर हमले के िलए बढ़े, इस
बार एक साथ, एक ही समय म अपने िशकार पर दो िभ दशा से झपटते
ए। एक सधे ए पलटवार म िव ुत ने अपने हमलावर म से एक क हमला
करने वाली बांह पकड़ी, झटके से मोड़ी और अपनी कोहनी के एक ह के वार से
उसक बांह के दो टु कड़े कर दए। इस दौरान दूसरे हमलावर क टांग के बीच
एक जोरदार कक से, उसके फे फड़ से आखरी सांस बाहर आ गई थी। काले
कपड़े वाले लोग क टीम के तीन सद य अब जमीन पर पड़े, दद से िबलिबला
रहे थे। अभी लड़ाई शु ए आधा िमनट ही गुजरा था। अनेक भयंकर
लड़ाइय और कड़े मुकाबले झेल चुके ह यार के सामने अभी तक िव ुत जैसा
कोई यो ा नह आया था।
उसक टीम भी इस मुकाबले को खुले मुंह से देख रही थी। कु छ पल म ही
िव ुत ने बारह लोग के खतरनाक दल म से तीन दु मन का सफाया कर
दया था। बलवंत इस एक-तरफा मुकाबले को देखकर खुश था। नैना का दल
ए स ेस ेन से भी अिधक तेज गित से धड़क रहा था। एक तरफ तो उसे
िव ुत क चंता थी, दूसरी तरफ वो उसक बहादुरी के ित आक षत थी।
सोनू तो उ साह से लगभग उछल रहा था। मठ के यो ा भी उमंग से भरे ए
थे। तीथया ी और ालु भी अब धीरे -धीरे वहां जमा होने लगे थे। िव ुत
जानता था क उसे आसपास पुिलस या शासन क ज रत नह थी। उसे ये
सब ज दी ख म करना होगा।
जब वो कला रपया टू क मु ा म जमीन पर फसला, तो िव ुत ने अपने
लंबे भूरे बाल क छोटी सी पोिनटेल बना ली। वो अपने बाएं घुटने पर नीचे
झुका, उसका दािहना पैर उसक साइड म सीधा था। और तभी उसने लैक
टीम पर तदुए क तरह छलांग लगाई, और तेज गित से मारी गई उसक कक
सामने वाले के िलए घातक सािबत ई। बलवंत और नैना ने तुरंत यान दया
क वैसे तो िव ुत ने शु आत कला रपया टू क मु ा से क थी, ले कन फर
उसने इसम जापानी यू िज सू और इजराइल के ाव मागा का भी संयोजन
कर िलया था। िजस माशल आट का नमूना अभी िव ुत पेश कर रहा था उसे न
तो कसी ने सुना था, न उसके बारे म सोचा ही जा सकता था। वो बेहतरीन
तकनीक से लड़ रहा था, िजसे कसी भी तरह मात नह दी जा सकती थी।
सीने पर चाकू के ह के वार के अलावा, िव ुत को न तो कोई चोट लगी थी,
ना ही कोई हार। लैक टीम के िलए तो मानो लय ही आ गई थी। जब
िव ुत अपने आसपास कठपुतली क तरह िबखरे ह यार क कराह सुन रहा
था, तभी एक ह यारा उठा और उसने अपनी बेरे ा 92 िप टल िनकाली।
इससे पहले क वो गर ख च पाता, बलवंत ने बैल क तरह उसक पसिलयां
तोड़ द । लड़ाई तीन िमनट से भी कम समय म ख म हो गई थी। देवता क
े ता य थी। उसने यु - मुख क समय पर क गई मदद के िलए िसर
िहलाकर आभार कट कया। िव ुत ने सांस ली और धीरे से अपने बाल को
खोला। अपने बाल म उं गिलयां फराते ए उसने आकाश क ओर देखा और
एक छोटी से ाथना बुदबुदाई। फर उसने बाला क तरफ, घायल ह यार के
िलए, ए बुलस बुलाने का इशारा कया। िसफ िव ुत का ही दल था जो अपने
दु मन के भले क सोच सकता था। नदी से रात क तेज हवा आ रही थी और
मं ो ारण और शंखनाद अपनी प रणित पर प च ं रहे थे।
देव-रा स मठ के सद य जब आज इस असाधारण इं सान, महावीर यो ा
और उस शानदार नेता क बहादुरी के सा ी बने थे, जो अभी अपने िगरे ए
श ु के बीच खड़ा था, वो तो उसक उपि थित मा से मोिहत थे।
दशा मेध घाट क सुनहरी रौशनी म िव ुत का चमकता चेहरा, चांद क
रौशनी म, हवा से उड़ते उसके बाल, बार-बार सबको एक ही बात याद दला
रहे थे।
बेशक िव ुत वही र क था, िजसका इं तजार वो लोग स दय से कर रहे
थे।
वो ही आखरी देवता था।

बलवंत िव ुत क तरफ दौड़ा आया और खुशी से उसे बाह म उठा िलया।


िव ुत भी िखलिखलाकर हंस रहा था, उसके सीने से िनकला र अब उसक
चैक शट पर उभर आया था। सोनू अपनी जगह पर ही लेटा आ ताली बजा
रहा था, उसके कटे ह ठ से काफ र बह रहा था। नैना दौड़कर िव ुत के सीने
से लग गई। उसे कोई ित या नह िमली। िव ुत बलवंत क तरफ देख रहा
था। इससे कोई फक नह पड़ता था। नैना इसी बात से खुश थी क िव ुत ठीक
था।
‘हम अभी सचेत रहना होगा बलवंत दादा, और िजतना ज दी हो सके इस
जगह से िनकल जाना होगा। चिलए िनचले घाट पर चलते ह, इन घायल
ह यार से दूर,’ िव ुत ने बलवंत से कहा। ‘रोमी अभी भी वहां है। और वो
कायर सामने से हमला नह करे गा।’
‘हां,’ बलवंत ने सहमती जताई, ‘हां हम चलना चािहए। सोनू और दूसरे
घायल यो ा को वापस मठ म भेज देते ह।’
‘यह सही...’
इससे पहले क िव ुत अपनी बात पूरी कर पाता, उ ह ने एक तेज चीख
सुनी। उ ह ने मुड़कर देखा नैना सोनू के ऊपर झुक ई थी, जो अपने ही र
के गरारे कर रहा था। भीड़ के शोरगुल म एक शाितर काितल ने उसके गले पर
एक सटीमीटर लंबा घाव छोड़ दया था। ले कन वो घाव इं सान को दद भरी,
धीमी मौत देने के िलए काफ था।
बलवंत और िव ुत संघष करते ए सोनू क तरफ दौड़े। उस युवक को यूं
दद म तड़पता देख वो सु हो गए, वो सांस तक नह ले पा रहा था। वो लोग
पुरोिहत जी का सामना कै से करगे? नैना तेजी से सुबक रही थी, उसक आंख
आतंक से फै ली ई थ । बस अब ब त हो गया था। िव ुत इससे अिधक वयं
को नह रोक सकता था। उसने नैना के बाल पकड़कर गु से से ख च दए।
देवता ने जंदगी म कभी कसी औरत पर हाथ नह उठाया था। ले कन फर
कभी उसका सामना नैना जैसे काितल से भी तो नह आ था। उसके परदादा
ने उसे कसी के धोखे के बारे म सचेत कया था। उसे प ा यक न था क नैना
ही उसे धोखा दे रही थी। उसने पूरे मठ को धोखा दया था।
‘तुमने ऐसा य कया, नैना?’ िव ुत फु फकारा, वो अपने आप म था ही
नह ।
‘तुम या कर रहे हो, िव ुत?’ नैना ने िवरोध कया। ‘तुम पागल हो गए
हो? सोनू मेरे भाई जैसा है!’
बलवंत समझ गया था क िव ुत या कह रहा था। ‘नह िव ुत, नैना
कभी हम धोखा नह देगी। वो हमम से ही एक है, ताकतवर देवता!’ उसने
कहा, और नरमी से नैना को िव ुत क पकड़ से छु ड़वाने क कोिशश क ।
‘आप कु छ नह जानते ह, बलवंत दादा! ये दािमनी से नफरत करती है। ये
हम नुकसान प च ं ाना चाहती है। अगर ये हमारे दु मन के िलए काम नह कर
रही थी, तो उस दन आधी रात को इसके पास सेटेलाइट फोन या कर रहा
था? यही है जो दु मन को हमारी हर योजना क खबर दे रही थी!’ िव ुत ने
जवाब दया, उसका चेहरा गु से और नफरत से भरा आ था।
अब तक नैना ने संघष करना बंद कर दया था। उसने बस िव ुत का हाथ
पकड़ा आ था, उसक पकड़ को ढीला कर, अपने बाल के दद को कम करने के
िलए। वो लाचारगी भरी नजर से िव ुत को घूर रही थी और उसका दल
बेतरह टू ट चुका था।
‘पागल मत बनो, िव ुत। मने उसे इरीिडयम 9555 फोन दया था। इसी
तरह से हम काले मं दर के र क एक दूसरे के संपक म रहते ह!’ बलवंत
िच लाया।
बलवंत के श द िबलकु ल िनशाने पर लगे थे। िव ुत को अचानक गहरा
पछतावा आ और उसने नैना के रे शमी भूरे बाल को अपने हाथ से जाने
दया। वो िबलकु ल नह िहली। कु छ था जो हमेशा के िलए खो गया था।
िव ुत को अहसास आ क उसने ब त बड़ी गलती कर दी थी। ‘मुझे माफ
कर दो नैना...’ उसने कहना शु कया, ले कन तभी एक जोर क आवाज
आई।
तुरंत ही िव ुत को अपने बाएं कं धे म एक जोरदार लहर महसूस ई। उसने
मुड़कर कु छ फ ट क दूरी पर, एक वेबले कॉट रवॉ वर से धुआं िनकलते
देखा।
उसके सबसे िव त िम बाला ने िव ुत पर पॉइं ट लक रज से गोली
चलाई थी।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
देवता का वंशज

मनु वो देखकर जड़ रह गया जो तारा उसे दखाने क कोिशश कर रही थी।


उसका मुंह खुला रह गया, वो सांस लेने क कोिशश करने लगा और पूरी तरह
पसीने म तर हो गया। वो उस दद को भूल चुका था जो उसक कमर म तलवार
का घाव लगने से हो रहा था। यह वो भयानक दन था, जो उसने पैदा होने के
बाद से पहली बार देखा था।
संजना उसके सामने लेटी थी, उसक छाती म तांबे का तीर गहरा धंसा
आ था। उसके कपड़े और वचा र म लथपथ होने के बावजूद, वो िबलकु ल
शांत और ि थर नजर आ रही थी। देवता िववा वन पुजारी क प ी उसक
द ता का आधार थी। उसक कांपती उं गिलयां मनु क तरफ इशारा कर रही
थ । उसक आंख रो रही थ , ले कन उनम यार भरा था। अभी भी, उसके
चेहरे पर मधुर मु कान बनी ई थी।
‘मां...!’ दलदली जमीन पर अपनी मरती मां को थामने के िलए मनु
लपका।
‘मां मुझे माफ कर दो... मुझे माफ कर दो... मां मुझे माफ कर दो..’ मनु ने
सुबकते ए कहा, उसने अपनी मां को यूं बांह म भर िलया था, मानो इससे वो
उसक देह यागती आ मा को रोक सकता हो।
संजना अपने लगभग बेजान हो चुके हाथ से अपने बेटे का गाल सहला रही
थी। ‘मेरा समय पूरा हो चुका है, पु । ले कन म यह देह इस संतुि से याग
रही ं क मुझे इस धरती के सबसे महान आदमी क प ी और दुिनया के सबसे
अ छे पु क मां बनने का अवसर ा आ। इितहास कभी मुझे भुला नह
सके गा।’ अपनी बात पूरी करते-करते उसे र भरी खांसी ई।
‘नह मां... हम यह जगह अभी छोड़ दगे और म तु ह आयुवदाचाय के पास
लेकर चलूंगा। तुम ठीक हो जाओगी मां। तुम मुझे छोड़कर नह जा सकत ,
मां!’ अब तक घायल और ल लुहान मनु जोर-जोर से रोने लगा था। ‘म
िपताजी को या मुंह दखाऊंगा, मां? म उ ह या बताऊंगा? म तु हारे िबना
नह जी सकता मां...’ मनु पूरी तरह टू ट चुका था। ब त से ब े अपनी मां को
ब त यार करते ह ले कन मनु मानता था क संजना के ित उसका यार
असीिमत था। उसक मां ही उसका अि त व थी। उसक मां ही उसका ई र
थी।
‘याद रखना, मेरे ब .े .. तुम धरती के आखरी देवता का वंश हो। तु हारा
ज म एक बड़े ल य के िलए आ है। उसे पूरा करो। चाहे जो हो जाए... अपनी
िनयित तलाशो।’ अपने आखरी श द बोलते ए संजना क दुिनया अंधकारमय
होने लगी।
‘अपने िपता से कहना, मेरे िववा वन से कहना... म उ ह दूसरी दुिनया म
िमलूंगी।’
वो अपने पु क बांह म ढह गई।
मनु क जंदगी क रौशनी हमेशा के िलए अंधेरे म बदल गई।

‘अब तु ह िनकलना चािहए, मनु!’ तारा िच लाई। वो और नवर के दो और


यो ा मनु और संजना को, िशिवर पर बरसते तीर के वार से बचाने के िलए,
तीन बड़ी ढाल के पीछे िछपाने क कोिशश कर रहे थे। ले कन अब साफ हो
चुका था। कसी भी समय वो हड़ पा के द रं द के हाथ पड़ जाने वाले थे।
मनु ने िहलने से मना कर दया। वो प थर के बुत क तरह बैठा था, अपनी
मृत मां का िसर अपनी गोद म रखे ए।
तारा और इं तजार नह कर सकती थी। वो जानती थी क देवता के वंश को
बचाए रखने का एकमा रा ता था इस भयावह जगह से मनु को िनकाल
देना। उसने ढाल के अंदर िसर िछपाया और मनु को झकझोरा।
‘उठो, ओ देवता पु ! आज तुम मर नह सकते!’
मनु धीरे से उसक तरफ मुड़ा। वो गहरे सदमे म था। उसने उससे वादा
कया था क वो उसके िलए वापस आएगा। उसक मां ने ज र इं तजार कया
होगा। । उसने उससे वादा कया था! मनु कभी वयं को माफ नह करने वाला
था। दरअसल, अगर आज उसका िसर धड़ से अलग हो जाए, तो उसे कोई दुख
नह होगा। उसक मां के िबना यह दुिनया रहने के लायक नह थी।
तारा ने मनु को वापस से होश म लाने क कोिशश क । जैसे ही वह आगे को
झुक , एक तीर ढाल से पार होते ए तारा के कं धे म जा धंसा। वो दद से
िच लाई और मनु के सामने जमीन पर िगर पड़ी। तारा के िगरने और दद से
तड़पने का दृ य मनु को उसक मृत मां के सदमे से बाहर लाने के िलए ज री
था।
‘भागो, मनु... भागो जब तक वयं को बचा सको...’ तारा ने उठकर अपना
तीर ख चने क कोिशश करते ए जोर दया। ‘तुम देवता के इकलौते पु हो
मनु। तु हारा बचना मानवजाित के िलए ब त ज री है।’
इससे पहले क मनु कु छ जवाब दे पाता, सोमद भी भागकर इस जुगाड़ू
शरण तक आया। वो थकान और घबराहट से हांफ रहा था।
‘तु ह अभी िनकलना होगा, मनु!’ उसने देवता के पु को अपने पु के
समान ही आदेश दया। ‘हम उ ह अिधक देर तक रोक पाने म कामयाब नह
हो पाएंगे।’
मनु अपने दो त को इस यु के मैदान म अके ले छोड़कर नह जाने वाला
था, जो िनि त प से उनके िलए मशान बनने वाला था। उसने यार से
अपनी मां का िसर जमीन पर रखा। आंसू उसक आंख से बह रहे थे, उसने
झुककर अपनी मां के गाल को चूमा। फर उसने धीरे से उठकर, तलवार उठा
ली।
‘काका, म आप सबको यहां छोड़कर नह जाऊंगा,’ उसने कहा, ‘हम साथ
म लड़गे और साथ ही मरगे।’

‘ले कन तु हारे िपता का या, मनु? या तुम उ ह उस भूितया कै द म यूं ही


सड़ने दोगे?’ सोमद ने गु से से पूछा। ‘और या तु ह समझ आ रहा है, अगर
तुम आज रात यह मर गए तो, ये रा स तु हारी मां का अंितम सं कार भी
नह होने दगे। ये तुम पर उसका ऋण है, मनु... तुम पर तु हारे अिभभावक
का ऋण है!’
मनु को समझ नह आ रहा था क या करे , ले कन अपने जीिवत िपता
और मृत मां के ित उसका कत दूसरी कसी भी चीज से बढ़कर था।
हड़ पा के िसपाही अब सोमद के बचे ए आदिमय से लड़ रहे थे, उनक
गित को बस मनु के यो ा के बाण से कु छ देर के िलए कम कया जा सकता
था। ले कन यह पया नह होने वाला था। पल भर म ही सोमद , मनु, तारा
और उनके बचे ए सािथय को हड़ पा क बेरहम सेना का वयं सामना करना
होगा।
‘जाओ, मनु! अपनी मां को अपने साथ ले जाओ। पूव क तरफ जाओ और
काले मं दर क तलाश करो। तु ह वहां ज र मदद िमल जाएगी,’ हड़ पा के
िवि सैिनक क तलवार के तेज वार से बचते ए सोमद ने कहा।
तारा ने मनु के िलए घोड़ा तैयार कर दया, और दो सािथय ने संजना क
मृत देह को स मान और कोमलता से उठा िलया।
मनु ने अपने सम पत सािथय को देखा और घोड़े पर सवार होने से पहले
अपने आखरी श द कहे, ‘ यारे सािथयो, म वापस आऊंगा। और इस बार म
अपना वादा नह तोडू ग ं ा। ले कन इससे पहले क म जाऊं, म तु हारा िम और
देवता पु होने के नाते, या एक आखरी आदेश तु ह दे सकता ?ं ’
सािथय ने एक साथ सहमती म िसर िहलाया। ‘ओ शूरवीर मनु, वो आदेश
या है?’ सोमद ने पूछा।
मनु ने वयं के आंसू रोके । फर उसने सेना अ य क तरह िच लाकर
कहा, मानो अपनी टु कड़ी को आदेश दे रहा हो। उसक आवाज भावना से
भारी हो रही थी, ‘म तुमम से हरे क को आदेश देता ं क इस लड़ाई से जीिवत
िनकलना। आज रात, म तुम सब को जीिवत रहने का आदेश देता !ं ’
उसके यो ा क आंख भर आ , उ ह ने अपने दांत भ चकर फर से हां म
िसर िहलाया। फर उ ह ने यु म अपनी जगह संभाल ली। मनु के श द ने
उ ह इस यु म वयं को बचाए रखने क एक नई ऊजा दी थी।

जैसे ही मनु ने घोड़े पर सवार होकर, अपनी यारी मां के शरीर को अपनी गोद
म रखा, सोमद ने उसे आखरी िनदश दए, ‘अगर इस दुिनया म कोई जगह
तु ह बचा सकती है, तो वो काला मं दर ही है मनु। अगर हम आज रात और
कल के बचाव अिभयान म बच जाते ह, तो हम परस रात तु ह स ऋिष के
पवत पर िमलगे...आशा है क उस समय देवता भी हमारे साथ ह गे!’
‘हां काका, और आपक हर मदद के िलए ब त-ब त ध यवाद,’ मनु ने
अपना घोड़ा दु मन से िवपरीत दशा म दौड़ाने से पहले कहा।
ले कन उस रात कु छ भी देवता के उस भले प रवार के प म नह था। मनु
का घोड़ा अभी अिधक दूर नह गया था क हड़ पा के िवि सेना य ने उसे
देख िलया।
‘वो जा रहा िववा वन पुजारी का बेटा!’ वह िच लाया। मनु क तरफ
इशारा करके अपने दल को हमले का आदेश देते ए, ‘धनुधर... उसे धराशायी
कर दो!’
सोमद , तारा और बचे ए यो ा हड़ पा के धनुधर क ओर बढ़े। उ ह
उनको बाण चलाने से रोकना था। ले कन वो धनुधर ब त दूर थे। यहां तक क
तारा ने गु साई नािगन क तरह उन पर छलांग भी लगाई, ले कन देर हो चुक
थी। बाण क बड़ी सं या धनुष से िनकल पड़ी थी।
और उनम से तीन िनशाने पर भी लगे थे।

घायल तारा और सोमद ने जो आखरी चीज देखी, वो थी मनु बरसाती रात


म, अपनी मां का मृत शरीर अपनी गोद म रखे जा रहा था। तीन तीर उसक
कमर और गदन म धंसे थे, और तलवार से लगे घाव से तेजी से र बह रहा
था। तारा क आंख भर आई थ । कोई भी आदमी ऐसे घातक वार से बच नह
सकता था। सोमद ने दुख से आंख बंद क और आखरी देवता के वंशज को
िवदाई दी।
‘यह िववा वन पुजारी के वंश का अंत था। इस धरती पर दोबारा कोई
देवता ज म नह लेगा,’ सोमद ने वयं से कहा।
वह गलत था।
बनारस, 2017
तांि क क अं येि

इससे पहले क वो दूसरी बार गर दबा पाता, नैना ने बाला पर छलांग


लगाई और उसका बैलस िबगाड़ दया। चमकती ई वेबले कॉट रवॉ वर
बाला के हाथ से िगर गई। अब मुकाबला एक ऐसे आदमी, िजसने देवता को
धोखा दया था, और उस मिहला के बीच था, िजसने जंदगी भर देवता को
चाहा था। और इस बार ये मुकाबला कने नह वाला था। अब लड़ाई आर-
पार क थी।
बलवंत ने िव ुत को अपनी बाह म थामा, वो अचानक यूं हालात िबगड़ने
से सकते म था। देवता का ब त र बह चुका था, गोली उसके कं धे म गहरी
धंसी थी। देव-रा स मठ के यो ा मुख को अब सोनू और ारका शा ी के
परपोते, दोन क जान बचानी थी। उसे आखरी देवता क जान कसी भी
क मत पर बचानी होगी। उसे उ ह ज दी से हॉि पटल ले जाना होगा। उसे
नैना क चंता नह थी। उसने ही उसे े नंग दी थी। वो जानता था क यह
बाला का अंत था, वो आदमी िजसने सोचा था क वो देवता को धोखा देकर यूं
ही िनकल जाएगा।

िव ुत ब त तकलीफ म था, र बह जाने क वजह से लगभग बेहोशी क


कगार पर था। उसक तकलीफ शारी रक से अिधक मानिसक थी। अपने सबसे
भरोसे के आदमी के हाथ गोली खाना उसके िलए ब त बड़ा सदमा था। अब
वो अ छी तरह समझ गया था। उस दोपहर उसके परदादा उसे कस बुरी
आ मा के बारे म चेतावनी दे रहे थे। वो नैना कै से हो सकती थी? नैना अपने
ज म से ही मठ म रहती थी। अगर वो धोखेबाज़ होती, तो महान ारका
शा ी को यह बात साल पहले ही पता चल चुक होती। उ ह अभी ही य
कसी बुरी शि का अहसास होता? वो बुरी आ मा बाला था!
वो बुराई िजसके मठ म आगमन का अहसास मठाधीश को आ था, वो
बुराई तो बालाकृ णन के दल म थी। ऑडर ारा भेजा गया एकमा िसपाही
रोमी ही नह था।
‘िव ुत, मुझे आपको और सोनू को तुरंत गोवधन के पास ले जाना होगा,’
बलवंत ने कहा, जब वो और मठ के अ य यो ा सोनू को उठा रहे थे। िव ुत ने
उससे अपना घाव बांधने का इशारा कया। ‘नह िव ुत,’ बलवंत ने िवरोध
कया, ‘आपको डॉ टर से िमलना ही होगा। आपको गोली लगी है, भगवान के
िलए!’

बाला ने अपनी कोर ॉय पट के नीचे से, बाएं पैर क जुराब म िछपा एक मूंठ
वाला चाकू िनकाला। उसने उसे अपनी दािहनी मु ी क तजनी और म यमा के
बीच रखा। अब इस हाथ से होने वाला हर हार घातक सािबत होगा। नैना
इससे जरा भी नह िहचक और सामने से आ उस पर वार कया। वो बाला के
िगद च र काटने लगी और उसके जबड़े पर जबरद त मु ा मारा। बाला ने
अपनी मु ी म पकड़े घातक लेड से उस पर वार कया, ले कन नैना उससे
सकु शल बच गई। अब तक नैना ने उसक रीढ़ पर अपनी कोहनी से वार कर,
उसे धूल चटा दी। बाला के िलए खराब शु आत ई थी, ले कन भूतपूव यो ा
यूं आसानी से हार नह मानने वाला था।
बाला अपने हाथ के सहारे उठा और िबजली क सी तेजी से नैना के दािहने
पैर म, घुटने से ठीक ऊपर वार कया। मूंठ वाले चाकू से लगा वो गहरा कट
था, और इससे आकषक और खतरनाक नैना का हमले के िलए सबसे पसंदीदा
अंग घायल हो गया। बाला ने फर नैना क पसिलय म अपने शि शाली िसर
से वार कया और वो पीछे क तरफ उड़ते ए घाट क प जमीन पर िगरी।
बस तभी जब बाला को लगा क वो बस आगे बढ़कर नैना को ख म कर देगा,
नैना अपनी दोन टांग हवा म उछालकर, एक िजमना ट क तरह पीछे क
तरफ पलटकर खड़ी हो गई। उसी वाह म उसने बाला के गले के नीचे एक
जोरदार मु ा मारा। वो भयानक वार था। बाला सांस नह ले पा रहा था और
उसने दद क वजह से अपना गला पकड़ िलया। उसी झटके म नैना ने बाला क
ठोड़ी पर एक घातक वार कया, िजससे उसका िसर झटके से पीछे आ और
वो घुटन के बल ढह गया। जंग ख म हो चुक थी।
ले कन देव-रा स मठ क यो ा-राजकु मारी का गु सा अभी शांत नह
आ था। वो घायल शेरनी क तरह गु साई ई थी। नैना ने एक तरफ हटते
ए अपनी घायल टांग म बाला क गदन डैथ-लॉक क तरह फं सा दी। वो
उसक गदन तोड़ने वाली थी।
‘ब त हो गया, नैना!’ िव ुत िच लाया।
नैना ने नह सुना। बाला क गदन पर उसक पकड़ मजबूत होती जा रही
थी और बाला क आंख उछलकर बाहर िगरने को तैयार थ ।
िव ुत नैना क तरफ दौड़ा और उसक बांह पकड़कर ख चा। ‘नह नैना,
हम काितल नह ह। वैसे भी, रोमी का िहसाब चुकता करने के बाद मुझे अपने
इस िव त िम से कु छ सवाल पूछने ह,’ कहते ए िव ुत ने उस धोखेबाज़
को देखा, जो कभी उसका िव सनीय िम आ करता था।
नैना ने अपनी पकड़ जरा ढीली क ।
‘इसे मठ म ले जाइए, बलवंत दादा,’ िव ुत ने िनदश दए। नैना ने अपनी
टांग उसक गदन से हटाई और बाला के कं धे पर पैर से मारकर उसे जमीन पर
िगरा दया। िव ुत अपने एक घुटने पर झुका और बाला के फू टे चेहरे को देखा।
अिव ास से अपने िसर को िहलाते ए िव ुत ने बाला से वो सवाल पूछा, जो
उसे अंदर ही अंदर से खाए जा रहा था, ‘ य बाला?’ िव ुत ने पूछा। ‘हम तो
भाइय क तरह थे। य ?’
‘ य क यार और जंग म सब जायज है, िव ुत,’ बाला ने जवाब दया,
उसके मुंह से र टपक रहा था ले कन आंख म नफरत भरी थी। ‘तु ह कोई
अंदाजा नह है... जंग तो अभी शु ही ई है। व ड का नया ऑडर यहां है, ओ
देवता, और तुम भी उसे रोक नह सकते!’

िव ुत अब घाट पर अके ला था, जहां भीड़ धीरे -धीरे छंट गई थी। प कार और
जांचकता उस जगह प च ं गए थे जहां लैक टीम के मबर पड़े ए संघष कर
रहे थे, हालां क िव ुत और उसके साथी तब तक वहां से हट चुके थे। पुिलस
और शहर क ए बुलस घायल को लेकर जा चुक थी और िव ुत को सुनकर
राहत िमली थी क सोनू क हालत ि थर थी। देवता ने जोर दया था क मठ
का हरे क यो ा आ म क सुर ा के िलए िनकल जाए। बाला को सवाल-
जवाब के िलए ले जाया जा चुका था। उसे मठ क िहरासत म रखा जाना
ज री था। अभी के िलए वो उन लोग तक प च ं ने क आखरी कड़ी था,
िज ह ने उस पर यूं य और अ य हमले कराए थे।
कराए के सैिनक का सामने से कया गया भीषण हमला अपने आप म
काफ गंभीर था, ले कन फर भी उसक तुलना बाला के प म िछपे ए खतरे
से नह क जा सकती थी। इससे पता चल रहा था क दु मन कस तरह िव ुत
के काम, घर और जंदगी म दखल दए ए था। इतने बड़े धोखे से वो अंदर तक
िहल चुका था, और उसे समझ नह आ रहा था क कस पर भरोसा करे , कस
पर नह । बाला कब से उसके िव काम कर रहा था? या उसे जानबूझकर
उसके ऑडर ने ही िव ुत के पास भेजा था? या वो लोग इतने साल से उसके
काम पर नजर रखे ए थे? और अगर हां, तो उ ह ने पहले ही उसे मारने क
कोिशश य नह क ?िव ुत समझ चुका था, जैसा क उसे ारका शा ी ने
भी बताया था, क उनके िवरोध म ब त शि शाली ताकत काम कर रही थी।
इस मानिसक क मकश और हताशा के समय म भी, िव ुत क आंख इधर-
उधर दौड़कर, दशा मेध घाट के हर कोने को छान रही थ । वह जानता था
क रोमी उसे देख रहा होगा, और िव ुत उस ह यारे क कहानी ख म कए
िबना आज उस घाट को छोड़कर नह जाने वाला था।
उनक नजर िमल । ऐसा लग रहा था मानो िशकारी और िशकार दोन
एक-दूसरे को ढू ंढ़ रहे थे, बस अभी उनक भूिमका अ प थी। िशकारी कौन था
और िशकार कौन? एक पुराने मं दर के कोने से रोमी सब देख रहा था, वह बड़े
आराम से अपने हाथ अपनी ज स क पॉके ट म डाले खड़ा था। बस इस बार
उसके चेहरे पर मु कान नह थी।
ब जैसी मासूम उसक आंख अब डर और गु से से दमक रही थ ।

िव ुत घाट के वीरान पड़े कोने क तरफ भागा, जहां रोमी पुराने मं दर के


तंभ के पीछे िछपा आ था। एक बार फर से, ह यारा गायब हो चुका था।
िव ुत ने भाग-भागकर मं दर के चार कोने छान मारे ले कन रोमी कह भी
नजर नह आया। घाट के इस कोने म बाक जगह से अिधक अंधेरा था। गंगा
अब महज बीस फू ट दूर थी। दूरी पर, मिणक णका घाट पर िनरं तर जलती
िचता क अि नजर आ रही थी, जो अहसास करा रही थी क इं सानी
जंदगी कतनी ण-भंगुर थी। नदी कनारे तांि क और अघो रय के कई
समूह बैठे ए साधना कर रहे थे। धीमी और उतार-चढ़ाव भरी आवाज म
उनका मं ो ारण वहां के माहौल को रह यमयी और भयावह बना रहा था।
िव ुत ने पूरे े को छान मारने का िनणय िलया। वह जानता था क
रोमी उसे ही देख रहा होगा और उसे िछपकर वार करने वाले ह यारे से कसी
कार के गव या बहादुरी क उ मीद नह थी। हर गुजरते पल के साथ देवता
के घाव उसे कमजोर बना रहे थे, जब वो पिव नदी के सामानांतर पुराने
मं दर म भाग-दौड़ कर रहा था। अब वो दशा मेध घाट पीछे छोड़ चुका था,
और गंगा के पास बने कले क दीवार के साथ-साथ चल रहा था, वहां पीले
ब ब क म म रौशनी थी।
‘हैलो, िव ुत,’ कले क अंधेरी दीवार के कोने से एक आवाज आई। वहां
रोमी था।
जैसे ही िव ुत ने ह यारे क परछा देखी और वो उसक तरफ बढ़ा, तभी
दो चंगा रय ने उसका वागत कया।
एक मंझे ए िखलाड़ी क तरह, रोमी ने िव ुत पर वा थेर पीपीके
रवॉ वर से दो गोिलयां चलाई थ , गोिलय क आवाज को दबाने के िलए
उसने रवॉ वर पर साइलसर लगाया आ था।

ले कन फर भी देवता को आगे बढ़ता देख, रोमी डर गया। िव ुत के तेजी से


हट जाने क वजह से एक गोली से वो बच गया था। ले कन दूसरी गोली सीधे
िनशाने पर प च ं ते ए उसक पसिलय म जाकर लगी थी। उस रात उसे ये
दूसरी गोली लगी थी, सीने पर लगे चाकू के एक वार के अलावा। इतने घाव
और र का अिधक बह जाना देवता के िलए भी घातक हो सकता था, जो इस
समय कसी तरह वयं को खड़े रख पाने का संघष कर रहा था।
इससे पहले क रोमी और गोली चला पाता, िव ुत ने अपना िसर उस
मािहर ले कन कमजोर ह यारे के िसर म मारा। िव फोट, डेटोनेटर, कराए के
सैिनक , घुसपै ठय और साइलसर वाली िप टल के िबना रोमी एक डरपोक,
िछछोरे बदमाश के अलावा कु छ नह था। िव ुत ने उसके चेहरे पर इतना तेज
मु ा मारा क रोमी के गाल पर एक गहरा कट लगा और उसका च मा काले
अंधेरे म कह उड़ गया। देवता ने फर अपना ताकतवर मु ा ह यारे के पेट म
मारा, िजससे वो तुरंत ही र क उ टी करने लगा। यह एकतरफा सजा थी
और िव ुत उस पर कोई दया नह दखाने वाला था।
‘ को!’ रोमी िच लाया। ‘ को, लीज िव ुत... लीज...’ उसने िवनती
क।
िव ुत परे शान था, वो कसी भी पल बेहोश हो सकता था। रोमी के ारा
चलाई ई आखरी गोली ने उसके पेट को चीर दया था, और वहां से ब त र
बह रहा था। देवता एक पल को उस िनमम ह यारे क बात सुनने को का क
वो या कहना चाहता था।
‘मुझे मारने से आपका या भला होगा, ओ महान देवता?’ रोमी
िगड़िगड़ाया, उसके हाथ दया म जुड़े ए थे। ‘म तु ह वो सब बता सकता ं जो
तुम जानना चाहते हो।’
िव ुत सुन रहा था, अपने दाएं हाथ क मजबूत पकड़ म उसने रोमी का
कॉलर िलया आ था।
‘म ब त कमजोर ,ं िव ुत। मुझे हीमो फिलया है... मेरा... मेरा खून...
बहना बंद नह होगा। लीज मुझे मत मारना,’ रोमी ने भीख मांगी। िव ुत को
अपने कान पर भरोसा नह हो रहा था। यह स त और िनमम ह यारा भीगे
िप ले क तरह िगड़िगड़ाकर भीख मांग रहा था। रोमी का मुंह उसके अपने
र म भीगा आ था, और वो बार-बार खांसते ए भी र उगल रहा था।
िव ुत का मु ा इस नाजुक ह यारे के िलए कु छ अिधक ही तेज था।
िव ुत ने अपनी पकड़ ढीली कर दी। वो वयं बेचैन हो रहा था और ज द
से ज द गोवधन तक प च ं ना चाहता था। िबना तुरंत मेिडकल हे प के , देवता
जानता था क वो अिधक देर ज़ंदा नह रह पाएगा।
‘थक यू, थक यू, िव ुत...’ रोमी बुदबुदाया, जो उसी ब े क तरह सुबक
रहा था, िजसे ए जाम म फे ल हो जाने पर उसके िपता ने पीटा हो। उसे देखकर
ब त दया आ रही थी। िव ुत को भी उस बदमाश पर तरस आ गया।
जैसे ही िव ुत ने रोमी को कु छ समय देकर, थोड़ी सांस लेने क कोिशश क
तो मािहर ह यारे ने जंगली िब ली क सी तेजी से पलटी खाई। इससे पहले क
थका और घायल िव ुत कोई ित या दे पाता, रोमी ने न जाने कहां से वही
सजरी वाला लेड िनकाल िलया और िबजली क सी तेजी से िव ुत के गले क
तरफ बढ़ा। ले कन इस बार िशकार ेन का मोटा आदमी या युवा सोनू नह
था। इस बार सामने देवता था। िव ुत ने भी िबजली क सी गित से हमला
रोका, वो लेड िव ुत के गले से बाल बराबर क दूरी पर था। रोमी के चेहरे के
भाव बदल चुके थे। वो योरी चढ़ा रहा था और उसके नैन न श यूं िबगड़ रहे
थे मानो उस पर कसी बुरी आ मा का साया पड़ गया हो। यह उसका असली
चेहरा था। िव ुत ने रोमी क कलाई जोर से मोड़ दी, िजससे उसका लेड िगर
गया और उसका शरीर दद से दोहरा हो गया।
‘यह सोनू के िलए,’ अपने दांत भ चकर, पकड़ को मजबूत करते ए िव ुत
फु सफु साया। अपने खुले हाथ से िव ुत ने रोमी क मुड़ी ई बांह पर जोर से
वार कया और उसका कं धा तोड़ दया। रोमी का हाथ टू ट गया था और वो दद
से िच लाता आ घाट क सी ढ़य पर िगर पड़ा।

कॉलर से पकड़कर, िव ुत अब तड़पते ए रोमी को वापस से दशा मेध घाट


क तरफ ख च रहा था। वो इस बेरहम और बेशरम ह यारे को मारना चाहता
था, ले कन उसने कु छ और करने का फै सला कया। अ छाई और बुराई म
हमेशा एक अंतर होता है। हमेशा। इसी बात ने दुिनया को एक कर रखा है।
‘ या... ओ महान देवता, तुम मेरे साथ या करने वाले हो?’ रोमी ने
लड़खड़ाती आवाज म पूछा। िव ुत ने जवाब नह दया।
‘ या तुम जानते हो क मा के रा िबआंका तु ह य मारना चाहता है,
िव ुत?’ ह यारे ने ताव दया। ‘ य क तु ह पं ह सौ साल पहले दफन ए
राज को सामने लाने का कोई हक नह है!’
रोमी को ख चते ए, िव ुत चलता रहा। उसने कोई जवाब नह दया,
ले कन वो यान से उसक बात सुन रहा था।
‘ या तुम जानते हो क तीन दशक के बाद तुम यहां बनारस म य आए
हो? उ ह ने तु ह साल पहले य नह मारा? य क अब से यारह दन बाद
एक ाचीन भिव यवाणी सच हो जाएगी, ओ महान देवता— ह का ऐसा
संयोजन, िजसका इं तजार 1700 ईसापूव से कया जा रहा था। तु ह एक खास
कारण से ज़ंदा रखा गया है, िव ुत, और तु ह वो कारण पता तक नह है!’
रोमी ने हंसने क कोिशश करते ए कहा। गु से से उसने कराहते ए र
थूका।
‘मने आज तु ह लड़ते ए देखा। तुम सच म वही देवता हो, िजसका उ ह
इं तजार था। ले कन तुम भी उनसे नह लड़ सकते हो, ओ शि शाली देवता।
उनक ताकत और प च ं तु हारी क पना से परे है। ऑडर इस दुिनया को बदल
देगा। तुम उ ह नह रोक सकते!’ दद से बेसुध होते ए रोमी ने कहा।
िव ुत को कना पड़ा। उसके ज म से उठता दद अब उसक बदा त के
बाहर था। उसने अपना मोबाइल बाहर िनकाला और बलवंत का नंबर
िमलाया। यु - मुख को िव ुत क आवाज सुनकर चैन िमला। िव ुत ने
बलवंत से िवनती क क उसे उस घाट से आकर ले जाए, जहां अघोरी तांि क
अपनी साधना कर रहे थे। वह जगह बस कु छ ही कदम दूर थी और िव ुत
अपने कै दी को लेकर वह प च ं ने वाला था।
‘वो तु हारे िलए आ रहे ह, िव ुत। वो लैक टपल के िलए आ रहे ह,’ रोमी
फु सफु साया।
िव ुत ने फर से रोमी को तांि क के घाट क तरफ ख चना शु कया।
उसे अचानक महसूस आ क रोमी अजीब तरह से ठने लगा था। उसका
बदन बुरी तरह से अकड़ रहा था और वो बेचैनी से छटपटा रहा था। िव ुत ने
मुड़कर देखा क रोमी के मुंह से पीले झाग िनकल रहे थे। उसक आंख पूरी
तरह पलट गई थ ।
यह रोमी का अंत था। उसने पोटेिशयम सायनाईट का एक कै सूल खाकर
उस तांि क घाट पर अपनी बुरी आ मा को आजाद कर दया था। यह ह यारे
का अंितम सं कार था।

िव ुत घाट क सीढ़ी पर बैठ गया, रोमी का मुड़ा आ शरीर उससे कु छ ही


फासले पर पड़ा था। दो अघोरी इसम ब त दलच पी ले रहे थे। बलवंत ने
फर से फोन कया था, िव ुत को भरोसा दलाने के िलए क वो कु छ ही पल
म वहां प च
ं रहे थे, और उनके पास मेिडकल सुिवधा भी थी।
रात अब पहले से भी अिधक गहरा गई थी और घाट पर रौशनी, नाव,
दुकान सब कम रह गई थ । गदे के फू ल और साधना के समय जलाई गई
धूपब ी क गंध से यु हवा िव ुत के चेहरे और बाल को सहला रही थी।
गंगा ाचीन घाट को चूमते ए ब त यार से अपने पिव रा ते पर बह रही
थी। आज रात गंगा आरती ने वा तव म देवता को बुराई के िव िवजयी होने
का आशीवाद दया था।
िव ुत रात और गंगा को देख रहा था, और हवा उसके मन को सहला रही
थी। उसे कोई अंदाजा नह था क यू व ड ऑडर या था और उसका अशुभ
ल य या था। ना ही वो मा के रा िबआंका को जानता था, िजसका िज रोमी
ने कया था। ये काले मं दर का राज या था? उसका मन उससे कह रहा था
क अभी आने वाले दन म उसे कई और मुि कल लड़ाइय का सामना करना
था। ले कन एक बात का तो देवता को िव ास था। भले ही बुराई कतनी भी
ताकतवर या स म य न हो, पर वो सच क शि और अ छाई क े ता से
नह जीत सकती थी।
आिखरकार काशी भगवान िशव क अपनी नगरी जो थी।
हड़ पा, 1700 ईसापूव
भयानक र रं िजत ान

कारावास के दस भीमकाय सुर ाक मय ने िववा वन पुजारी को हड़ पा के


िवशाल ानागार क स त जमीन पर घसीटा, वो उसे हड़ पा के मृत
कारावास से ख चते ए यहां लाए थे। हड़ पा के ानागार क प रक पना
नगर योजना के समय ही क गई थी। मोहन जोदड़ो भी वहां का एक
शि शाली े और चं धर से िववाह से पूव ि य वदा का गृह नगर होने के
बावजूद हड़ पा का ानागार सम आयवत का सबसे मह वपूण संयोजन
थल था। मोहन जोदड़ो के ानागार से यह आकार म बीस गुना बड़ा था।
बस आज उस सुंदर और दु ि य वदा ने इस जन संयोजन थल को यातना
े म बदल दया था। और पूरे हड़ पा को उसका सा ी बनने के िलए
िनमंि त कया गया था।
आखरी देवता अब पसीने, र और आंसू क मोटी परत म भीगा आ था।
उसने ऐसी िनदयता क कभी क पना तक नह क थी। िववा वन लगातार
भीख मांग रहा था, िवनती कर रहा था और आम ि य के पास से गुजरते
ए भी अपने हाथ जोड़े ए था। अपनी यारी संजना और मनु क सुर ा के
िलए वो कु छ भी कर सकता था। लकड़ी का एक मोटा लठ उसे अपने वजन तले
दबाए जा रहा था, और उसके कमरतोड़ भार को ख चने के िलए उस पर कोड़े
भी बरसाए जा रहे थे। जब उसे लगभग दजन भर लोहे क मोटी किड़य और
रि सय से ख चा जा रहा था, तो ये कोड़े उसे िसर से लेकर पैर तक ऐसे जकड़
डालते जैसे सैकड़ अजगर उस पर िलपट गए ह । ले कन फर भी कसी ने मुंह
नह खोला। िववा वन पुजारी अपनी पीड़ा म अके ला नह था। वो हड़ पा
िनवािसय के परपीड़क मनोरं जन का साधन बना आ था।
घंट क यातना, प थरबाजी, थूक फकने और गािलय के बाद िववा वन
पुजारी को अपने लाचारगी भरे हालात का अंदाजा हो रहा था। लात के एक
के बाद एक हार और खूब प थर खाने के बाद उसक मनोि थित तेजी से
बदलते ए अिव ास से हताशा, फर िवनती और फर दानवीय नफरत तक
प चं गई थी। िववा वन ने भीख मांगना बंद कर दया। उसके जुड़े ए हाथ
धीरे -धीरे खुल गए और उसने उन हाथ से कांटेदार र सी को पकड़ िलया।
उसने अपनी घायल एिड़य को जमीन म गढ़ाना शु कया और दस
िवशालकाय सुर ाक मय के िव जोर लगाया, जो अब तक उसे मृत
जानवर के समान यहां से वहां ख च रहे थे।
िववा वन पुजारी अब उन सबको अपनी तरफ ख चने लगा। और उनके
पैर तले क जमीन िनकलने लगी, उनक प ी वाली पादुका सूखी िम ी पर
रगड़ रही थी। अचानक, वो पूरा अखाड़ा भौचक रह गया।
देवता ने आिखरकार ितरोध कया।
दस र क उस आदमी क ताकत देखकर हैरान थे, िजसे अभी कु छ ही घंट
पहले वो आसानी से खदेड़ रहे थे। िववा वन पुजारी बीस घोड़ क सी ताकत
से उन किड़य और रि सय को ख च रहा था। र क ने भी दोगुनी ताकत
लगाई और अपने बचाव म दूसरे िसपािहय को भी बुला िलया। कु छ नए
वेशक ने भी र सी ख चने म मदद क , जब क कई लोग एक साथ चाबुक
और छड़ी से िववा वन के घुटन पर तड़ातड़ वार करने लगे। हालां क इससे
कोई फक नह पड़ा। अब तक गंभीर प से चो टल और सांस रिहत पुजारी
िव ोह के चरम पर था। अब वह सौ घोड़ का बल लगा रहा था। उसे रोका
नह जा सकता था।
आिखरकार एक र क क लाठी चाक़ू के समान पीछे से उसके िसर पर
पड़ी, और उसने उसके पहले से ही ल लुहान िसर को दो फांक कर दया।
िववा वन पुजारी दद से तड़पकर िगरा। फर वो उस पर भेिड़य के समान टू ट
पड़े और उस पर ला ठय और लात क बरसात कर दी।

चं धर वयं को और नह रोक सका। वह जानता था क वो इस सूय के नीचे


होने वाले सबसे जघ य अपराध म से एक का भागीदार बना था। वह जानता
था क इस भयानक पाप के िलए ई र उसे कभी माफ नह करे गा। ले कन
फर भी, अब वो इसे और नह चलने दे सकता था। ि य वदा को देखे िबना,
चं धर प रषद िवभाग से िनकलकर अपने सबसे ि य िम और अजीज जीजा
क तरफ दौड़ पड़ा। उसने छलांग लगाकर देवता के शरीर को अपने बदन से
ढंक िलया, बरसती ला ठय और चाबुक से बेखबर। िवि िसपािहय ने जब
हड़ पा के पहले राजा को अपनी ला ठय के नीचे पड़ा देखा तो तुरंत हार
करना बंद कर दया।
िववा वन पुजारी बेजान लग रहा था। चं धर अपने आंसू नह रोक पा रहा
था। उसने अपने िम का ल लुहान िसर अपनी गोद म रखा और सुबकते ए
कु छ अंितम श द मरते ए देवता के कान म डाले।
‘मुझे माफ कर दो, िववा वन...’
चं धर ने अपने व के भीतर से चमड़े क एक छोटी सी थैली िनकाली।
उसम औषिध यु िसरका था। उसने थैली क गांठ खोलकर वो थैली देवता के
ह ठ से लगाई। ‘इसे पी लो, िववा वन,’ चं धर फु सफु साया। ‘आज के इस
अिभश दन म म तु हारी यही मदद कर सकता ।ं इस िसरके को पी लो और
फर सब ख म हो जाएगा। तु ह बचाने के िलए मेरे आदमी पालक म
आयुव दक कृ िमज और लोबान लेकर तैयार खड़े ह। इस जगह के पास ही िछपी
ई एक गुफा म तु हारा फर से उदय होगा, देवता।’
िववा वन पुजारी ने अचानक अपनी आंख खोल द , कसी भूत त इं सान
क तरह। वो साफ नह बोल पा रहा था य क उसके मुंह म उसके टू टे दात
क वजह से ह ी, र और मवाद भरा आ था। ले कन आंसू और दद से भरी
उसक आंख कसी सप क तरह जहरीली थ ।
‘चले जाओ, पंिडत चं धर। अपने ि य जन और इस भूितया नगर से िवदा
लेने का म तु ह आखरी मौका दे रहा .ं ..’
अगर आयवत म कोई था जो िववा वन पुजारी क वा तिवक ताकत
जानता था, तो वो चं धर ही था। उसने कभी िववा वन क आंख म ऐसा
पागलपन नह देखा था, और जान गया था क हड़ पा के लोग का अंत अब
नजदीक था। वो िह मत कर बस इतना ही कह पाया, ‘ऐसा मत करना,
िववा वन। मुझे सजा दो। ि य वदा को सजा दो। ले कन बा कय को छोड़
दो।’
िववा वन पुजारी ने चं धर क िवनती पर कोई यान नह दया। उसने
उठने क कोिशश क , और उसके चेहरे और गदन पर और वार ए। वो अपने
गले क ह ी टू टने क आवाज सुन सकता था। और फर एक कम ने अपने
भाले से उसक पसिलय पर वार कया। िववा वन पुजारी दद से िच लाया,
ले कन अब उसके शरीर से और र ने िनकलने से मना कर दया था। जो
िनकला वो बस सर वती नदी के आंसू थे... गाढ़े और रं गहीन। दद ब त बढ़
गया था। िववा वन फर भी उठा। समय आ गया था। चं धर ने िच लाकर
र क को िनदयता बंद करने का आदेश दया। फर वहां पूरी तरह स ाटा छा
गया।

देवता ने वयं को कड़े संघष से उठाया, उसके आसपास क िम ी उसके रसते


र से लाल हो चली थी। इससे पहले क वो पूरी तरह खड़ा हो पाता, उसके
शरीर ने कांपना शु कर दया। िववा वन पुजारी के िवि क तरह हंसने
पर वहां मौजूद दशक भी िव ास नह कर पा रहे थे। वह खड़ा आ और पूरे
ानागार प रसर पर नजर दौड़ा , और एक पल को उसक नजर ि य वदा
क नजर से िमल । लकड़ी का भारी लठ अभी भी उसके कं ध से बंधा था, और
उसक बांह दोन ओर फै ली ई थ , उसने िच लाते ए घोषणा क —
‘सभी लोग मेरी बात सुनो! पािपय क नगरी म दूर तलक मेरी बात
प चं ाई जाए! म, िववा वन पुजारी, सूय, हड़ पा के तुम नीच िनवािसय से
अपना भयंकर बदला लेने वापस आऊंगा। मने अपना पूरा जीवन इस नगर क
सेवा को सम पत कया। और आज तुमने एक सड़े ए जानवर क तरह मुझ
पर प थर बरसाए!’
िववा वन को अब तेज और अिनयंि त सुब कयां आने लग । उसे यक न
नह हो रहा था क यह सब उसके साथ आ था। जब उसने अपने आखरी श द
कहे, एक तेज प थर उसक बा आंख म आकर लगा, िजससे भारी मा ा म
गाढ़ा, गहरा-लाल र बह िनकला।
‘आआआरर ग ह...’ िववा वन फर से िच लाया, तेज दद से रोते ए
वो बस िगर ही जाने वाला था। िसफ संजना और मनु का याल ही उसे इतनी
भयंकर यातना के बाद भी जीिवत रखे ए था। और पूरा बदन टू ट जाने के बाद
भी अपनी जंदगी पर देवता का पूरी तरह से िनयं ण था।
दस हज़ार लोग एक साथ खुशी से िच लाने लगे। उस र रं िजत सुबह म
नेक और ईमानदार हड़ पावािसय का यह नया और िघनौना प देखने को
िमला था। िनजी प से शांत और पिव नाग रक आज हंसक वृित पेश कर
रहे थे। उन सभी म िछपा आ जानवर, ई या, रा स अपना िघनौना िसर उठा
रहा था, और वो सब एक साथ हड़ पा के इितहास क सबसे अमानवीय
यातना के सा ी बन रहे थे।
देवता के बदन पर बंधी रि सयां जब उसे ख चकर प रसर क धूल भरी
जमीन पर िगरा रही थ , तो िववा वन पुजारी अपना सारा दम लगाकर एक
आखरी चेतावनी देने के िलए उठा।
‘मेरे श द को याद रखना, बेरहम हड़ पावािसयो! मेरा बदला भी इतना
ही कठोर और िनमम होगा, िजतना आज तुम सबक संयु चेतना। तुम म से
कोई ेहमयी मां आज मुझे बचाने नह आई। कसी बेटे ने मेरे बचाव म अपने
हाथ नह उठाए। कोई दयालु भाई मेरी मदद को आगे नह आया। एक ब े तक
ने मेरी हालत पर आंसू नह बहाए। तो फर ऐसा ही सही। ऐसा ही होने दो!
हड़ पा का हर बेटा, हर मां और हर ब ा उसी तरह दुख झेलेगा, जैसा दुख
आज मेरी ि य प ी और बेटे ने उठाया है। तुम सब ऐसे ही बेरहमी से तबाह हो
जाओगे, तुम सर वती क नकारा संतान हो, स ऋिषय क िघनौनी जाित!’
िववा वन पुजारी अब लकड़ी के लठ के भार के िव खड़ा आ, र सी
और कड़ी के हर उस बंधन के िवपरीत िजसने उसे िसर से पैर तक बांध रखा
था। उसक आंख से अभी भी र और मांस का िम ण िनकल रहा था, उसके
धड़ पर मांस के अित र सब दखाई दे रहा था, वह अपने सीने के बहते र
से तर था और वो अपने ही पसीने और र क क चड़ म सना था। दस र क
से िवपरीत दशा म उसने अपनी बांह फै ला और उसक मांसपेिशयां इतनी
फू ल रही थ , मानो फट जाएंगी। उसके सीने क मांसपेिशयां लोहे के तार क
तरह खंचकर मानो उसके सारे शारी रक और मानिसक ताकत के ोत को
दखा रही थ । एक आदमी जो कभी अपने आभायु और ई रीय छिव के
िलए पहचाना जाता था, आज शैतान से भी अिधक िघनौना नजर आ रहा था।
उसने ऊपर आसमान क तरफ देखकर, हड़ पा वाल को अपना आखरी संदश े
दया—

'पहले से ही मृत लोग सुनो। मुद क सभा, मेरी बात सुनो। मूख सुन लो।

म आधा-इं सान, आधा भगवान !ं '


मश:...
मश:...

लय
भीषण बाढ़

सभी मुख टोस और ऑनलाइन लेटफाम पर उपल ध।


लेखक के बारे म

िवनीत युवा उ मी ह। महज 22 साल क उ म ही उ ह ने छोटे तर पर


अपनी क पनी Magnon क शु आत क । आज Magnon उपमहा ीप क
सबसे बड़ी िडिजटल एजिसय म से एक है, और फो यून 500 ओमिनकोम ुप
का िह सा है।
आप िव क टॉप-10 एडवटाइ जंग एजसी TBWA का नेतृ व इसके
भारत के CEO के प म करते ह। आप देश क म टीनेशनल एडवरटाइ जंग
नेटवक क पनी के सबसे युवा सीईओ ह।
आपने उ िमता और कॉप रे ट द ता म अनेक अवाड हािसल कये, िजनम
आं े योर ऑफ़ द ईयर 2016 भी शािमल है। आपको अभी हाल म इं िडया'स
िडिजटल इकोिस टम के 100 सबसे भावशाली ि य म भी शािमल कया
गया।
िवनीत क दूसरी क पनी टेलट ेक इं िडया म मीिडया, मनोरं जन और
ए टव इं ड ी के िलए ितभा क पहचान करती है। यह इस े का तेजी
से बढ़ता आ हाय रं ग और नेटव कग लेटफाम है।
वह बंधन और ेरक िवषय पर तीन बे टसे लंग कताब िलख चुके ह—
िब ड ॉम े च, द ीट टू द हाईवे और द 30 सम थंग सीईओ।
तैराक और गे मंग उनका जूनून है और िगटार बजाना और रोड- प पर
िनकल जाना उनका शौक। आप 39 साल के ह।

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