Professional Documents
Culture Documents
Kali-Hridaya - (Maha Kautuhal) - V3-To Share
Kali-Hridaya - (Maha Kautuhal) - V3-To Share
अथ हृदयालदन्यासः। = अथ हृदय-आलद-न्यासः।
ॐ क्राां हृदयाय नमः। ॐ क्रीं लशरसे स्वाहा ।
ॐ क्रूां लशखाय ै वर्ट्। ॐ क्रैं कवचाय हां।
ॐ क्रौं न ेत्र-त्रयाय वौर्ट्। ॐ क्रः अस्त्राय फट्॥
इलत हृदयालदन्यासः॥
अथ ध्यानम्।
ॐ ध्यायेत्-कािीं महामायाां लत्रन ेत्राां बह-रूलिणीम्।
चतर्भु ज
षु ाां ििलजह्ाां िूण-ष चन्द्र-लनर्भाननाम्*॥१॥ *=लनर्भ-आननाम्
नीिोत्पि-दि-प्रख्याां शत्र-ु सङ्घ-लवदालरणीम्।
नर-मण्ु डां तथा खड्गां कमिां वरदां तथा ॥२॥
लबभ्राणाां रत-वदनाां दांष्ट्रािीं घोर-रूलिणीम्।
अट्टाट्टहास*-लनरताां सवषदा च लदगम्बराम्॥३॥ *=अट्ट-आट्टहास
ु
शवासन-लिताां देवीं मण्ड-मािा-लवर्भू
लर्ताम्।
इलत ध्यात्वा महादेवीं ततस्त*ु हृदयां िठे त्॥४॥ *= ततस्-त ु = ततःत ु
(* माता का पजू ा, मन्त्र जप, कवच आदि चाहें तो कर लें )
॥ मूि स्तोत्र ॥
ॐ कालिका घोर-रूिाढया सवषकाम-फिप्रदा ।
ु देवी शत्र-ु नाशां करोत ु मे ॥५॥
सवषदवे -स्तता
ह्रींह्रीं स्वरूलिणी श्रेष्ठा लत्रर् ु िोके र् ु दुिषर्भा ।
तव स्नेहान्-मया ख्यातां न देय ां यस्य कस्यलचत्॥६॥
अथ ध्यानां प्रवक्ष्यालम लनशामय िरालिके ।
ु ो र्भलवष्यलत ॥७॥
यस्य लवज्ञान-मात्रेण जीवन्-मत
नागयज्ञोिवीताञ्च चन्द्रार्द्षकृतशेखराम्। ** ध्यान-२ है.
*= नाग-यज्ञोिवीताां-च चन्द्रार्द्ष-कृ त-शेखराम्।
जटाजूटाञ्च* सलञ्चन्त्य महाकाि-समीिगाम्॥८॥ *=जटाजूटाम्च
Daxina Kali-Hridaya #e2Learn By VRakesh
Page 3 of 13
े ाग्रमानसः।
रजस्विार्भगां दृष्ट्वा िठे दक *? वाम मागष
* = रजस्विा-र्भगां दृष्ट््वा िठे द-एकाग्र-मानसः।
् *? वाम मागष
िर्भते िरमां िानां, देवी-िोके वरानन े ॥३१॥
महा दुःखे महारोगे महा-सङ्कट-के लदन े ।
महार्भये महाघोरे िठे त-स्तोत्रां महोत्तमम्*। *महोत्-तमम्= महा-उत्तमम्
ु सत्यां, गोिायेन्मातृजारवत्॥३२॥
सत्यां सत्यां िनः
ु सत्यां, गोिायेन्-मातृ-जारवत्॥३२॥
*= सत्यां सत्यां िनः
॥ श्रीकालिकाहृदयम्॥ *print
॥ महाकौतूहि दलिणाकािी हृदय स्तोत्रम्, कािीरहस्ये ॥
ु नमः। श्री उमा-महेश्वराभ्ाां नमः।
ॐ गणेशाय नमः। ॐ श्री गरुवे
अथ श्रीकािीहृदय प्रारम्भः।
श्रीमहाकाि उवाच ।
महाकौतूहिस्तोत्रां हृदयाख्यां महोत्तमम्।
शृण ु लप्रये महागोप्यां दलिणायाः सगोलितम
ु ्॥१॥
अवाच्यमलि वक्ष्यालम तव प्रीत्या प्रकालशतम्।
अन्येभ्ः कुरु गोप्यां च सत्यां सत्यां च शैिजे ॥२॥
श्रीदेव्यवु ाच ।
ु े समत्प
कलिन् यग ु न्नां के न स्तोत्रां कृ तां िरा
ु ।
तत्सवं कथ्यताां शम्भो दयालनधे महेश्वर ॥३॥
श्रीमहाकाि उवाच ।
ु प्रजाितेः शीर्षच्छेदनां कृ तवानहम्।
िरा
ब्रह्महत्याकृ तैः िाि ैर्भैरवत्वां ममागतम्॥४॥
ब्रह्महत्यालवनाशाय कृ तां स्तोत्रां मया लप्रये ।
कृ त्यालवनाशकां स्तोत्रां ब्रह्महत्यािहारकम्॥५॥
लवलनयोगः ॐ अस्य श्रीदलिणकाल्या हृदयस्तोत्रमन्त्रस्य
श्रीमहाकाि ऋलर्ः। उलिक्छन्दः। श्रीदलिणकालिका देवता ।
क्रीं बीजां । ह्रीं शलतः। नमः कीिकां । सवषत्र सवषदा जिे लवलनयोगः॥
अथ हृदयालदन्यासः।
ॐ क्राां हृदयाय नमः। ॐ क्रीं लशरसे स्वाहा। ॐ क्रूां लशखाय ै वर्ट्।
ॐ क्रैं कवचाय हां। ॐ क्रौं न ेत्रत्रयाय वौर्ट्। ॐ क्रःअस्त्राय फट्॥
इलत हृदयालदन्यासः॥
अथ ध्यानम्।
ॐ ध्यायेत्कािीं महामायाां लत्रन ेत्राां बहरूलिणीम्।
चतर्भु ज
षु ाां ििलजह्ाां िूणच
ष न्द्रलनर्भाननाम्॥१॥
ु ङ्घलवदालरणीम्।
नीिोत्पिदिप्रख्याां शत्रस
नरमण्ु डां तथा खड्गां कमिां वरदां तथा ॥२॥
लबभ्राणाां रतवदनाां दांष्ट्रािीं घोररूलिणीम्।
अट्टाट्टहासलनरताां सवषदा च लदगम्बराम्॥३॥
शवासनलिताां देवीं मण्ु डमािालवर्भूलर्ताम्।
इलत ध्यात्वा महादेवीं ततस्त ु हृदयां िठे त्॥४॥
॥ मूि स्तोत्र ॥
ॐ कालिका घोररूिाढया सवषकामफिप्रदा ।
सवषदवे स्ततु ा देवी शत्रनु ाशां करोत ु मे ॥५॥
ह्रींह्रींस्वरूलिणी श्रेष्ठा लत्रर् ु िोके र् ु दुिषर्भा ।
तव स्नेहान्मया ख्यातां न देय ां यस्य कस्यलचत्॥६॥
अथ ध्यानां प्रवक्ष्यालम लनशामय िरालिके ।
ु ो र्भलवष्यलत ॥७॥
यस्य लवज्ञानमात्रेण जीवन्मत
नागयज्ञोिवीताञ्च चन्द्रार्द्षकृतशेखराम्। **ध्यान-२ है
जटाजूटाञ्च सलञ्चन्त्य महाकािसमीिगाम्॥८॥
एवां न्यासादयः सवे ये प्रकुवषलि मानवाः।
ु
प्राप्नवलि च ते मोिां सत्यां सत्यां वरानन े ॥९॥
यन्त्रां शृण ु िरां देव्याः सवाषथ षलसलर्द्दायकम्।
गोप्यां गोप्यतरां गोप्यां, गोप्यां गोप्यतरां महत्॥१०॥
ु
लत्रकोणां िञ्चकां चाष्टकमिां र्भूिरालितम्। ** यन्त्र के बारे में
मण्ु डिङ्क्तिं च ज्वािाां च कािीयन्त्रां सलसलर्द्दम
ु ्॥११॥
मन्त्रां त ु िूवक
ष लथतां धारयस्व सदा लप्रये ।
देव्या दलिणकाल्यास्त ु नाममािाां लनशामय ॥१२॥
कािी दलिणकािी च कृ िरूिा िरालिका ।
मण्ु डमािा लवशािािी सृलष्टसांहारकालरका ॥१३ ॥
लिलतरूिा महामाया योगलनद्रा र्भगालिका ।
र्भगसर्िःिानरता र्भगोद्योता र्भगाङ्गजा ॥१४ ॥
आद्या सदा नवा घोरा महातेजाः करालिका ।
प्रेतवाहा लसलर्द्िक्ष्मीरलनरुर्द्ा सरस्वती ॥१५॥
एतालन नाममाल्यालन ये िठलि लदन े लदन े ।
तेर्ाां दासस्य दासोऽहां सत्यां सत्यां महेश्वलर ॥१६॥
ॐ कािीं कािहराां देवी कङ्कािबीजरूलिणीम्।
कािरूिाां किातीताां कालिकाां दलिणाां र्भजे ॥१७॥
कुण्डगोिलप्रयाां देवीं स्वयम्भूकुसमे
ु रताम्।
रलतलप्रयाां महारौद्रीं कालिकाां प्रणमाम्यहम्॥१८॥
दूतीलप्रयाां महादूतीं दूतीयोगेश्वरीं िराम्।
दूतीयोगोद्भवरताां दूतीरूिाां नमाम्यहम्॥१९॥
क्रींमन्त्रेण जिां जप्त्वा सप्तधा सेचनने * त ु । *? सेचन े च
सवे रोगा लवनश्यलि नात्र कायाष लवचारणा ॥२०॥
क्रींस्वाहािैमहष ामन्त्र ैश्चन्दनां साधयेत्ततः।
लतिकां लक्रयते प्राज्ञ ैिोको वश्यो र्भवेत्सदा ॥२१॥
क्रीं हां ह्रीं मन्त्रजप्त ैश्च ह्यितैः सप्तलर्भः लप्रये ।
महार्भयलवनाशश्च जायते नात्र सांशयः॥२२॥
क्रीं ह्रीं ह्रां स्वाहा मन्त्रेण श्मशानाङ्क्तिं च मन्त्रयेत्।
ष र्भु लष वष्यलत ॥२३॥
शत्रोगृहष े प्रलतलिप्त्वा शत्रोमृत्य
ु सांशोध्य सप्तधा ।
ह्रां ह्रीं क्रीं च ैव उच्चाटे िष्पां
लरिूणाां च ैव चोच्चाटां नयत्येव न सांशयः॥२४॥
आकर्षण े च क्रीं क्रीं क्रीं जप्त्वाऽितान् प्रलतलििेत्।
सहस्रयोजनिा च शीघ्रमागच्छलत लप्रये ॥२५॥
क्रीं क्रीं क्रीं ह्रां ह्रां ह्रीं ह्रीं च कज्जिां शोलधतां तथा ।
लतिके न जगन्मोहः सप्तधा मन्त्रमाचरेत्॥२६॥
॥ फिश्रलु तः ॥
हृदयां िरमेशालन सवषिािहरां िरम्।
ु
अश्वमेधालदयज्ञानाां कोलटकोलटगणोत्तरम्॥२७॥
ु फिम्।
कन्यादानालददानानाां कोलटकोलटगणां
दूतीयागालदयागानाां कोलटकोलटफिां िृतम्॥२८॥
ु िृतम्।
गङ्गालदसवषतीथाषनाां फिां कोलटगणां
एकधा िाठमात्रेण सत्यां सत्यां मयोलदतम्॥२९॥
कौमारीस्वेष्टरूिेण िूजाां कृ त्वा लवधानतः।
ु ः स उच्यते ॥३०॥
िठे त्स्तोत्रां महेशालन जीवन्मत
े ाग्रमानसः।
रजस्विार्भगां दृष्ट्वा िठे दक *? वाम मागष
िर्भते िरमां िानां, देवीिोके वरानन े ॥३१॥
महादुःखे महारोगे महासङ्कटके लदन े ।
महार्भये महाघोरे िठे तस्तोत्रां महोत्तमम्।
ु सत्यां गोिायेन्मातृजारवत्॥३२॥
सत्यां सत्यां िनः
मानदिक-पजू न
इिमे पञ्च-महाभतू ों (पथ्ृ वी, जल, अदनन, वाय,ु आकाश) के बीजाक्षरों
"ल,ं वं, रं, य,ं ह"ं इत्यादि का प्रयोग करते हैं, और मानदिक रूप िे पजू ा करते हैं ।
( नोट: िाथ में माता िदक्षणा काली का कोई एक कवच अवश्य ही करें ,
अगर यह न हो िके तो िशमहादवद्या कवच, कामाख्या कवच,
भैरव कवच या दशव कवच, कोई भी एक कवच का पाठ अवश्य ही करें )
अगर आप हृिय स्तोर का पाठ करते हैं तो, उि िेवी या िेवता का एक कवच
अवश्य ही पाठ करें । गरुु िे परामशश लेना भी अदत आवश्यक होता है ।
हृिय स्तोर का कभी भी गलत उपयोग नहीं करना चादहये,
इिके दवपरीत पररणाम भी शीघ्र होते है ।
* ध्यान रखें ।
दकिी भी पजू ा, पाठ मन्त्र-जप इत्यादि में, कोई भी एक कवच पाठ अवश्य करना चादहये ।
कवच का पाठ हमेशा ज्यािा िरु दक्षत होता है, तथा कवच िे भी िािक के िारे -कायश दिद्ध होते है ।
दकिी भी तादन्त्रक पजू ा-पाठ, मन्त्र-जप आदि में उि िेवता िे िंबदन्त्ित कवच का पाठ अवश्य ही
करना चादहये । कवच के दबना कोई भी मन्त्र की दिदद्ध नहीं होती है ।
कवच का पाठ िािक को िरु क्षा प्रिान करता है, िाथ-िाथ िेवता की दवशेष कृ पा प्राप्त करने में भी
िहायक होता है । प्रायः िभी तन्त्र ग्रन्त्थों में कहा गया है, की कवच के पाठ के दबना, कोदट-२ मन्त्र
जप में भी दिदद्ध नहीं दमलती है । कहीं-२ यह भी कहा गया है की, कवच के दबना मन्त्र-जप िे हादन
भी हो िकती है । अतः कवच पाठ करना ही चादहये ।
पर इनिे िंबदन्त्ित प्रयोग, बहुत िोच-दवचार के करना चादहये ।
*** In my All Videos ***
श्लोक के अन्त्त में बहुत िे शब्िों का अथश दलख दिया जाता है ।
कुछ शब्ि उच्चारण करने में िदु विा हो इदिदलये और "िरल" कर के दलखे जाते हैं ।
कहीं-कहीं "?" Hint करने के दलये दिया जाता है ।
कहीं-कहीं "?" पाठान्त्तर वाले शब्ि के दलये भी दिया जाता है ।
बहुत िारे शब्ि िरल करने िे स्पष्ट दिखते हैं, ज्यािा िमझ में भी
आता है । िेवी-िेवता के प्रदत हमारी भदि और श्रद्धा में वृदद्ध करता है ।
Notes : Some word has been -
- Split using "-" to improve readability.
- Repeated using (*/- ) to make easy to Read and Compare at same place.
॥ एक आवश्यक िचू ना ॥
इि माध्यम िे िी गयी जानकारी का मख्ु य उद्देश्य दिफश उनलोगों तक िेवी-िेवताओ ं के स्तोर,
कवच आदि का ज्ञान िरल शब्िों में िेना-पहुचुँ ाना है, जो इिको जानने-िीखने के इच्छुक है ।
यह दिफश िेखने-िनु ने-पढ़ने-और-िीखने के उद्देश्य िे बनाई गयी है ।
वेि - शास्त्र, ग्रथं ों और अन्त्य पस्ु तकों मे दिया हुआ बहुमल्ू य ज्ञान िेखने-पढ़ने-िनु ने-िमझने-
जानने और िंजो कर िरु दक्षत रखने योनय है । पर इि जानकारी का गलत तरीके िे उपयोग,
या प्रयोग आपका नुकिान कर िकता है । अतः िाविान रहें । इििे होने वाले
दकिी भी तरह की लाभ-हादन के दलये हम दजम्मेवार नही होंगे । (िन्त्यवाि )