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आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु

विश्वतोऽदब्धासो
अपरितासउद्भिदः

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरितासउद्भिदः।


देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे॥

देवानां भद्रा सुमतिर्ऋ जूयतां देवाना ग्वँग् रातिरभि नो निवर्तताम्।


देवाना ग्वँग् सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तुजीवसे॥

तान् पूर्वया निविदाहूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम्।


अर्यमणं वरुण ग्वँग् सोममश्विना शृणुतंधिष्ण्या युवम्॥

तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमसे हूसहे वयम्।


पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये॥

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्वेवेदाः।


स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः।


अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह॥
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं फश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरै रङ्गैस्तुष्टुवा ग्वँग् सस्तनू भिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥

शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम्।


पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः॥

अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः।


विश्वे देवा अदितिः पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥

द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ग्वँग् शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।


वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ग्वँग् शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥

यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कु रु। शन्नः कु रु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥ सुशान्तिर्भवतु॥वलिताक्षराणि

ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद् भद्रं तन्न आ सुव॥

ॐ गणानां त्वा गणपति ग्वँग् हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ग्वँग् हवामहे निधीनां त्वा निधीपति ग्वँग् हवामहे वसो मम।
आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥

ॐ अम्बे अम्बिके ऽम्बालिके न मा नयति कश्चन।


ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्॥

स्वस्ति-वाचन आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः । देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो
दिवे-दिवे ॥ देवानां भद्रा सुमतिर्ऋ जूयतां देवानां रातिरभि नो नि वर्तताम् । देवानां सख्यमुप सेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तु
जीवसे ॥ तान् पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम् । अर्यमणं वरुणं सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा
मयस्करत् ॥ तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत् पिता द्यौः । तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं
धिष्ण्या युवम् ॥ तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम् । पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः
स्वस्तये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पुषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः । अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसा गमन्निह ॥ भद्रं
कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥ शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा
यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम । पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥ अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स
पिता स पुत्रः । विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम ॥ (ऋक॰१।८९।१-१०)
अनुवादः

कल्याणकारक, न दबनेवाले, पराभूत न होने वाले, उच्चता को पहुँचानेवाले विचार चारों ओर से हमारे पास आयें। प्रगति को न
रोकने वाले, प्रतिदिन सुरक्षा करने वाले देव हमारा सदा संवर्धन करने वाले हों। सरल मार्ग से जाने वाले देवों की
कल्याणकारक सुबुद्धि तथा देवों की उदारता हमें प्राप्त होती रहे। हम देवों की मित्रता प्राप्त करें, देव हमें दीर्घ आयु हमारे दीर्घ
जीवन के लिये दें। उन देवों को प्राचीन मन्त्रों से हम बुलाते हैं। भग, मित्र, अदिति, दक्ष, विश्वास योग्य मरुतों के गण, अर्यमा,
वरुण, सोम, अश्विनीकु मार, भाग्य युक्त सरस्वती हमें सुख दें। वायु उस सुखदायी औषध को हमारे पास बहायें। माता भूमि तथा
पिता द्युलोक उस औषध को हमें दें। सोमरस निकालने वाले सुखकारी पत्थर वह औषध हमें दें। हे बुद्धिमान् अश्विदेवो तुम वह
हमारा भाषण सुनो। स्थावर और जंगम के अधिपति बुद्धि को प्रेरणा देने वाले उस ईश्वर को हम अपनी सुरक्षा के लिये बुलाते
हैं। इससे वह पोषणकर्ता देव हमारे ऐश्वर्य की समृद्धि करने वाला तथा सुरक्षा करने वाला हो, वह अपराजित देव हमारा
कल्याण करे और संरक्षक हो। बहुत यशस्वी इन्द्र हमारा कल्याण करे, सर्वज्ञ पूषा हमारा कल्याण करे। जिसका रथचक्र
अप्रतिहत चलता है, वह तार्क्ष्य हमारा कल्याण करे, बृहस्पति हमारा कल्याण करे। धब्बों वाले घोड़ों से युक्त, भूमि को माता
मानने वाले, शुभ कर्म करने के लिये जाने वाले, युद्धों में पहुँचने वाले, अग्नि के समान तेजस्वी जिह्वावाले, मननशील, सूर्य के
समान तेजस्वी मरुत् रुपी सब देव हमारे यहाँ अपनी सुरक्षा की शक्ति के साथ आयें। हे देवो कानों से हम कल्याणकारक
भाषण सुनें। हे यज्ञ के योग्य देवों आँखों से हम कल्याणकारक वस्तु देखें। स्थिर सुदृढ़ अवयवों से युक्त शरीरों से हम तुम्हारी
स्तुति करते हुए, जितनी हमारी आयु है, वहाँ तक हम देवों का हित ही करें। हे देवो सौ वर्ष तक ही हमारे आयुष्य की मर्यादा है,
उसमें भी हमारे शरीरों का बुढ़ापा तुमने किया है तथा आज जो पुत्र हैं, वे ही आगे पिता होनेवाले हैं, सब देव, पञ्चजन (ब्राह्मण,
क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद), जो बन चुका है और जो बनने वाला है, वह सब अदिति ही है। (अर्थात् यही शाश्चत सत्य है,
जिसके तत्त्वदर्शन से परम कल्याण होता है)

"https://sa.wikiquote.org/w/index.php?
title=आ_नो_भद्राः_क्रतवो_यन्तु_विश्वतोऽदब्धासो_अपरितासउ
द्भिदः&oldid=17906" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्
१५ जून् २०२३ (तमे) दिनाङ् के १९:५६ समये अन्तिमपरिवर्तनं
जातम् •
भिन्नोल्लेखः यावत् न भवेत्, तावत् CC BY-SA 4.0 इत्यत्र
उल्लेखो भवति ।

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