Hindi Holiday Homework - 3

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अविकारी व उसके भेद

जो शब्द लिंग, वचन, कारक, पुरूष और काल के कारण नहीं बदलते, वे अव्यय या अविकारी
शब्द कहलाते हैं। अविकारी शब्द के चार भेद हैं:

1) क्रिया वि षणशे
षण- वे शब्द जो क्रिया की वि षता
को शे प्रकट करते हैं, जैसे:
 जब ,जहां, जैसे, जितना, आज, कल, अब, आदि ।
क्रिया वि षण
के शे चार भेद हैं:

 कालवाचक- जिससे क्रिया के करने या होने के समय का बोध हो, जैसे:

 आपको अभी जाना चाहिए।


 परसों मंगलवार हैं।
 स्थान वाचक- क्रिया के होने या करने के स्थान का बोध हो, जैसे:

 आयुष वहां बैठा हुआ है।


 बच्चे ऊपर खेलते हैं।

 परिमाणवाचक- जिन शब्दों से क्रिया के परिमाण या मात्रा से सम्बन्धित विशेषता का पता चलता है, जैसे:

 वह दूध बहुत पीता है।


 वह थोड़ा ही चल सकी।

 रीतिवाचक- जिससे क्रिया के होने या करने के ढ़ग का पता चलता हो, जैसे:

 सहसा बम फट गया।
 निचिय
पूर्वक
श्चि करूँगा।

2) सम्बन्धबोधक- जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम का वाक्यों का दूसरे शब्दों के साथ सम्बन्ध बताते हैं, जैसे:
 के ऊपर, के बजाय, की अपेक्षा, आदि।
 जल के बिना जीवन संभव नहीं है।
3) समुच्चयबोधक- जो अविकारी शब्द दो शब्दों, दो वाक्यों अथवा दो वाक्य खण्डों को जोड़ते हैं, जैसे:
 क्योंकि, ताकि, या, अथवा, चाहे आदि।
समुच्चयबोधक के दो भेद हैं:
 समानाधिकरण- वह शब्द जो स्थिति या जाती वाले दो या दो से अधिक शब्दों,
वाक्यों या उपवाक्यों को जोड़ने का काम करते हैं, जैसे:

 और, तथा, आदि।

 व्यधिकरण समुच्चयबोधक- वह शब्दजो किसी मुख्य अंश को गौण अंश से जोड़ने का


काम करते हैं, जैसे:

 कि, यदि/तो, जो, आदि।

 विस्मयादि बोधक- जिन अविकारी शब्दों से हर्ष, शोक, आचर्य


घृणाश्च , दुख, पीड़ा आदि का
कट हो, जैसे:
भाव प्र

 !, अतिसुंदर!, उफ!, हाय!, धिक्कार!, आदि।


वाह!, अरे
 अहा! यह बहुत अच्छाहुआ।

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