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सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये हिंदी के सम्पूर्ण नोट्स
सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये हिंदी के सम्पूर्ण नोट्स
आमने–सामने बैठे यि त पर पर बातचीत करते ह अथवा कोई यि त भाषण आिद ारा अपने िवचार कट करता है तो उसे भाषा का मौिखक प कहते ह।
जब यि त िकसी दूर बैठे यि त को प ारा अथवा पु तकॲ एवं प -पि काओं म लेख ारा अपने िवचार कट करता है तब उसे भाषा का िलिखत प कहते ह।
• बोली:
िजस े का आदमी जह रहता है , उस े की अपनी एक बोली होतीहै । वह रहने वाला यि त, अपनी बात दूसरे यि त को उसी बोली म बोलकर कहता है तथा उसी
म सुनता है । जैसे–शेखावाटी (झु झुनू, चु व सीकर) के िनवासी ‘शेखावाटी’ बोली म कहतेहैँ एवं सुनते है ।ँ इसी कार कोटा और बूँदी े के िनवासी ‘हाड़ौती’ म; अलवर
े के िनवासी ‘मेवाती’ म; जयपुर े के िनवासी ‘ढू ँढ़ाड़ी’ म; मेवाड़ के िनवासी ‘मेवाड़ी’ म तथा जोधपुर, बीकानेर और नागौर े के िनवासी ‘मारवाड़ी’ म अपनी बात
दूसरे यि त को बोलकर कहते है ँ तथा दूसरे यि त की बात सुनकर समझते है ।ँ
अतः भाषा का वह प जो एक सीिमत े म बोला जाये, उसे बोली कहते है ।ँ कई बोिलय तथा उनकी समान बात से िमलकर भाषा बनती है । बोली व भाषा का बहत
ु
गहरा स ब ध है ।
भाषा का े ीय प बोली कहलाता है । अथ त् देश के िविभ भागॲ म बोली जाने वाली भाषा बोली कहलाती है और िकसी भी े ीय बोली का िलिखत प म ि थर
सािह य वह की भाषा कहलाता है ।
• याकरण :
मनु य मौिखक एवं िलिखत भाषा म अपने िवचार कट कर सकता है और करता रहा है िक तु इससे भाषा का कोई िनि त एवं शु व प ि थर नहीं हो सकता। भाषा
के शु और थायी प को िनि त करने के िलए िनयमब योजना की आव यकता होती है और उस िनयमब योजना को हम याकरण कहते ह।
• पिरभाषा–
याकरण वह शा है िजसके ारा िकसी भी भाषा के श दॲ और वा यॲ के शु व पॲ एवं शु योगॲ का िवशद ान कराया जाता है ।
• िलिप :
िकसी भी भाषा के िलखने की िविध को ‘िलिप’ कहते ह। िह दी और सं कृत भाषा की िलिप का नाम देवनागरी है । अं ेजी भाषा की िलिप ‘रोमन’, उदू भाषा की िलिप
फारसी, और पंजाबी भाषा की िलिप गु मुखी है ।
देवनागरी िलिप की िन िवशेषताएँ है – ँ
(i) यह बाएँ से दाएँ िलखी जाती है ।
(ii) येक वण की आकृित समान होती है । जैसे– क, य, अ, द आिद।
(iii) उ चारण के अनु प िलखी जाती है अथ त् जैसे बोली जाती है , वैसी िलखी जाती है ।
• सािह य :
ान-रािश का संिचत कोश ही सािह य है । सािह य ही िकसी भी देश, जाित और वग को जीवंत रखने का- उसके अतीत पॲ को दश ने का एकमा सा य होता है ।
यह मानव की अनुभूित के िविभ प ॲ को प करता है और पाठकॲ एवं ोताओं के हृदय म एक अलौिकक अिनवचनीय आनंद की अनुभूित उ प करता है ।
♦♦♦
• सामा य िह दी
♦ होम पे ज
तुित:–
मोद खेदड़
सामा य िह दी
10. वा य श के िलए एक श द
अ छी रचना के िलए आव यक है िक कम से कम श द म िवचार कट िकए जाएँ। भाषा म यह सुिवधा भी होनी चािहए िक व ता या लेखक कम से कम श द म अथ त्
सं पे म बोलकर या िलखकर िवचार अिभ य त कर सके। कम से कम श द म अिधकािधक अथ को कट करने के िलए ‘वा य श या श द–समूह के िलए एक श द’ का
िव तृत ान होना आव यक है । ऐसे श द के योग से वा य–रचना म संि तता, सु दरता तथा गंभीरता आ जाती है ।
कु छ उदाहरण िन िलिखत है –ँ
वा य श या श द–समूह -- श द
• हाथी ह कने का छोटा भाला— अंकुश
• जो कहा न जा सके— अकथनीय
• िजसे मा न िकया जा सके— अ य
• िजस थान पर कोई न जा सके— अग य
• जो कभी बूढ़ा न हो— अजर
• िजसका कोई श ु न हो— अजातश ु
• जो जीता न जा सके— अजेय
• जो िदखाई न पड़े — अदृ य
• िजसके समान कोई न हो— अि तीय
• हृदय की बात जानने वाला— अ तय मी
• पृ वी, ह और तार आिद का थान— अ तिर
• दोपहर बाद का समय— अपरा
• जो सामा य िनयम के िव हो— अपवाद
• िजस पर मुकदमा चल रहा हो/अपराध करने का आरोप हो/अिभयोग लगाया गया हो— अिभयु त
• जो पहले कभी नहीँ हआ ु — अभूतपूव
• फक कर चलाया जाने वाला हिथयार— अ
• िजसकी िगनती न हो सके— अगिणत/अगणनीय
• जो पहले पढ़ा हआ ु न हो— अपिठत
• िजसके आने की ितिथ िनि त न हो— अितिथ
• कमर के नीचे पहने जाने वाला व — अधोव
• िजसके बारे म कोई िन य न हो— अिनि त
• िजसका भाषा ारा वणन असंभव हो— अिनवचनीय
• अ यिधक बढ़ा–चढ़ा कर कही गई बात— अितशयोि त
• सबसे आगे रहने वाला— अ णी
• जो पहले ज मा हो— अ ज
• जो बाद म ज मा हो— अनुज
• जो इंि य ारा न जाना जा सके— अगोचर
• िजसका पता न हो— अ ात
• आगे आने वाला— आगामी
• अ डे से ज म लेने वाला— अ डज
• जो छू ने यो य न हो— अछू त
• जो छु आ न गया हो— अछू ता
• जो अपने थान या ि थित से अलग न िकया जा सके— अ युत
• जो अपनी बात से टले नहीँ— अटल
• िजस पु तक म आठ अ याय ह — अ ा यायी
• आव यकता से अिधक बरसात— अितवृि
• बरसात िब कु ल न होना— अनावृि
• बहत ु कम बरसात होना— अ पवृि
• इंि य की पहँच ु से बाहर— अतीि य/इं यातीत
• सीमा का अनुिचत उ लंघन— अित मण
• जो बीत गया हो— अतीत
• िजसकी गहराई का पता न लग सके— अथाह
• आगे का िवचार न कर सकने वाला— अदूरदश
• जो आज तक से स ब ध रखता है — अ तन
• आदेश जो िनि त अविध तक लागू हो— अ यादेश
• िजस पर िकसी ने अिधकार कर िलया हो— अिधकृत
• वह सूचना जो सरकार की ओर से जारी हो— अिधसूचना
• िवधाियका ारा वीकृत िनयम— अिधिनयम
• अिववािहत मिहला— अनूढ़ा
• वह ी िजसके पित ने दूसरी शादी कर ली हो— अ यूढ़ा
• दूसरे की िववािहत ी— अ योढ़ा
• गु के पास रहकर पढ़ने वाला— अ तेवासी
• पहाड़ के ऊपर की समतल जमीन— अिध यका
• िजसके ह ता र नीचे अंिकत है — ँ अधोह ता रक
• एक भाषा के िवचार को दूसरी भाषा म य त करना— अनुवाद
• िकसी स दाय का समथन करने वाला— अनुयायी
• िकसी ताव का समथन करने की ि या— अनुमोदन
• िजसके माता–िपता न ह — अनाथ
• िजसका ज म िन वण म हआ ु हो— अं यज
• पर परा से चली आई कथा— अनु ुित
• िजसका कोई दूसरा उपाय न हो— अन योपाय
• वह भाई जो अ य माता से उ प हआ ु हो— अ योदर
• पलक को िबना झपकाए— अिनमेष/िनिनमेष
• जो बुल ाया न गया हो— अनाहूत
• जो ढका हआ ु न हो— अनावृत
• जो दोहराया न गया हो— अनावत
• पहले िलखे गए प का मरण— अनु मारक
• पीछे –पीछे चलने वाला/अनुसरण करने वाला— अनुगामी
• महल का वह भाग जह रािनय िनवास करती है — ँ अंतःपुर/रिनवास
• िजसे िकसी बात का पता न हो— अनिभ /अ
• िजसका आदर न िकया गया हो— अनादृत
• िजसका मन कहीँ अ य लगा हो— अ यमन क
• जो धन को यथ ही खच करता हो— अप ययी
• आव यकता से अिधक धन का संचय न करना— अपिर ह
• जो िकसी पर अिभयोग लगाए— अिभयोगी
• जो भोजन रोगी के िलए िनिष है — अप य
• िजस व को पहना न गया हो— अ हत
• न जोता गया खेत— अ हत
• जो िबन म गे िमल जाए— अयािचत
• जो कम बोलता हो— अ पभाषी/िमतभाषी
• आदेश की अवहे ल ना— अव ा
• जो िबना वेतन के काय करता हो— अवैतिनक
• जो यि त िवदेश म रहता हो— अ वासी
• जो सहनशील न हो— असिह णु
• िजसका कभी अ त न हो— अन त
• िजसका दमन न िकया जा सके— अद य
• िजसका पश करना विजत हो— अ पृ य
• िजसका िव ास न िकया जा सके— अिव त
• जो कभी न न होने वाला हो— अन र
• जो रचना अ य भाषा की अनुवाद हो— अनूिदत
• िजसके पास कु छ न हो अथ त् दिर — अिकँचन
• जो कभी मरता न हो— अमर
• जो सुना हआु न हो— अ य
• िजसको भेदा न जा सके— अभे
• जो साधा न जा सके— असा य
• जो चीज इस संसार म न हो— अलौिकक
• जो बा संसार के ान से अनिभ हो— अलोक
• िजसे ल घा न जा सके— अलंघनीय
• िजसकी तुल ना न हो सके— अतुल नीय
• िजसके आिद ( ार भ) का पता न हो— अनािद
• िजसकी सबसे पहले गणना की जाये— अ गण
• सभी जाितय से स ब ध रखने वाला— अ तज तीय
• िजसकी कोई उपमा न हो— अनुपम
• िजसका वणन न हो सके— अवणनीय
• िजसका खंडन न िकया जा सके— अखंडनीय
• िजसे जाना न जा सके— अ ेय
• जो बहत ु गहरा हो— अगाध
• िजसका िचँतन न िकया जा सके— अिचँ य
• िजसको काटा न जा सके— अका य
• िजसको यागा न जा सके— अ या य
• वा तिवक मू य से अिधक िलया जाने वाला मू य— अिधमू य
• अ य से संबध ं न रखने वाला/िकसी एक म ही आ था रखने वाला— अन य
• जो िबना अ तर के घिटत हो— अन तर
• िजसका कोई घर (िनकेत) न हो— अिनकेत
• किन ा (सबसे छोटी) और म यमा के बीच की उँगली— अनािमका
• मूल कथा म आने वाला संग, लघु कथा— अंतःकथा
• िजसका िनवारण न िकया जा सके/िजसे करना आव यक हो— अिनवाय
• िजसका िवरोध न हआ ु हो या न हो सके— अिन /अिवरोधी
• िजसका िकसी म लगाव या ेम हो— अनुर त
• जो अनु ह (कृपा) से यु त हो— अनुगृहीत
• िजस पर आ मण न िकया गया हो— अना त
• िजसका उ र न िदया गया हो— अनु िरत
• अनुकरण करने यो य— अनुकरणीय
• जो कभी न आया हो (भिव य)— अनागत
• जो े गुण से यु त न हो— अनाय
• िजसकी अपे ा हो— अपे ि त
• जो मापा न जा सके— अपिरमेय
• नीचे की ओर लाना या खीँचना— अपकष
• जो सामने न हो— अ य /परो
• िजसकी आशा न की गई हो— अ यािशत
• जो माण से िस न हो सके— अ मेय
• िकसी काम के बार–बार करने के अनुभव वाला— अ य त
• िकसी व तु को ा त करने की तीव इ छा— अभी सा
• जो सािह य कला आिद म रस न ले— अरिसक
• िजसको ा त न िकया जा सके
• जो कम जानता हो— अ प
• जो वध करने यो य न हो— अव य
• जो िविध या कानून के िव हो— अवैध
• जो भला–बुरा न समझता हो अथवा सोच–समझकर काम न करता हो— अिववेकी
• िजसका िवभाजन न िकया जा सके— अिवभा य/अभा य
• िजसका िवभाजन न िकया गया हो— अिवभ त
• िजस पर िवचार न िकया गया हो— अिवचािरत
• जो काय अव य होने वाला हो— अव यंभावी
• िजसको यवहार म न लाया गया हो— अ यवहृत
• जो ी सूय भी नहीँ देख पाती— असूयप या
• न हो सकने वाला काय आिद— अश य
• जो शोक करने यो य नहीँ हो— अशो य
• जो कहने, सुनने, देखने म ल जापूण, िघनौना हो— अ लील
• िजस रोग का इलाज न िकया जा सके— असा य रोग/लाइलाज
• िजससे पार न पाई जा सके— अपार
• बूढ़ा–सा िदखने वाला यि त— अधेड़
• िजसका कोई मू य न हो— अमू य
• जो मृ यु के समीप हो— आस मृ यु
• िकसी बात पर बार–बार जोर देना— आ ह
• वह ी िजसका पित परदेश से लौटा हो— आगतपितका
• िजसकी भुजाएँ घुटन तक ल बी ह — आजानुबाहु
• मृ युपय त— आमरण
• जो अपने ऊपर िनभर हो— आ मिनभर/ वावलंबी
• यथ का दशन— आड बर
• पूरे जीवन तक— आजीवन
• अपनी ह या वयं करना— आ मह या
• अपनी शंसा वयं करने वाला— आ म लाघी
• कोई ऐसी व तु बनाना िजसको पहले कोई न जानता हो— आिव कार
• ई र म िव ास रखने वाला— आि तक
• शी स होने वाला— आशुतोष
• िवदेश से देश म माल मँगाना— आयात
• िसर से प व तक— आपादम तक
• ार भ से लेकर अंत तक— आ ोपा त
• अपनी ह या वयं करने वाला— आ मघाती
• जो अितिथ का स कार करता है — आितथेय/मेजबान
• दूसरे के िहत म अपना जीवन याग देना— आ मो सग
• जो बहत ु ू र यवहार करता हो— आततायी
• िजसका स ब ध आ मा से हो— आ याि मक
• िजस पर हमला िकया गया हो— आ त
• िजसने हमला िकया हो— आ ता
• िजसे सूँघा न जा सके— आ ेय
• िजसकी कोई आशा न की गई हो— आशातीत
• जो कभी िनराश होना न जाने— आशावादी
• िकसी नई चीज की खोज करने वाला— आिव कारक
• जो गुण–दोष का िववेचन करता हो— आलोचक
• जो ज म लेते ही िगर या मर गया हो— आज मपात
• वह किव जो त काल किवता कर सके— आशुकिव
• पिव आचरण वाला— आचारपूत
• लेखक ारा वयं की िलखी गई जीवनी— आ मकथा
• वह चीज िजसकी चाह हो— इि छत
• िक हीँ घटनाओँ का काल म से िकया गया वणन— इितवृ
• इस लोक से संबिं धत— इहलौिकक
• जो इ पर िवजय ा त कर चुका हो— इं जीत
• म –बाप का अकेला लड़का— इकलौता
• जो इि य से परे हो/जो इि य के ारा ात न हो— इि यातीत
• दूसरे की उ ित से जलना— ई य
• उ र और पूव के बीच की िदशा— ईशान/ईशा य
• पवत की िनचली समतल भूिम— उप यका
• दूसरे के खाने से बची व तु— उि छ
• िकसी भी िनयम का पालन नहीँ करने वाला— उ छृ ंखल
ँ उदयाचल
• वह पवत जह से सूय और च मा उिदत होते माने जाते है —
• िजसके ऊपर िकसी का उपकार हो— उपकृत
• ऐसी जमीन जो अ छी उ पादक हो— उवरा
• जो छाती के बल चलता हो (स प आिद)— उरग
• िजसने अपना ऋण पूरा चुका िदया हो— उऋण
• िजसका मन जगत से उचट गया हो— उदासीन
• िजसकी दोन म िन ा हो— उभयिन
• ऊपर की ओर जाने वाला— उ वगामी
• नदी के िनकलने का थान— उ गम
• िकसी व तु के िनम ण म सहायक साधन— उपकरण
• जो उपासना के यो य हो— उपा य
• मरने के बाद स पि का मािलक— उ रािधकारी/वािरस
• सूय दय की लािलमा— उषा
• िजसका ऊपर कथन िकया गया हो— उपयु त
• कु ँए के पास का वह जल कु ंड िजसम पशु पानी पीते है —
ँ उबारा
• छोटी–बड़ी व तुओँ को उठा ले जाने वाला— उठाईिगरा
• िजस भूिम म कु छ भी पै दा न होता हो— ऊसर
• सूय त के समय िदखने वाली लािलमा— ऊषा
• िवचार का ऐसा वाह िजससे कोई िन कष न िनकले— ऊहापोह
• कई जगह से िमलाकर इक ा िकया हआ ु — एकीकृत
• स सािरक व तुओँ को ा त करने की इ छा— एषणा
• वह ि थित जो अंितक िनण यक हो, िनि त— एक ितक
• जो यि त की इ छा पर िनभर हो— ऐि छक
• इंि य को िमत करने वाला— ऐँ जािलक
• लकड़ी या प थर का बना पा िजसम अ कूटा जाता है — ओखली
• स प–िब छू के जहर या भूत– ेत के भय को मं से झाड़ने वाला— ओझा
• जो उपिनषद से संबिं धत हो— औपिनषिदक
• जो मा िश ाचार, यावहािरकता के िलए हो— औपचािरक
• िववािहता प ी से उ प संतान— औरस
• हि डय का ढ चा— कंकाल
• दो यि तय के बीच पर पर होने वाली बातचीत— कथोपकथन
• बतन बेचने वाला— कसेरा
• िजसे अपने मत या िव ास का अिधक आ ह हो— क र
• िजसकी क पना न की जा सके— क पनातीत
• ऐसा अ जो खाने यो य न हो— कद
• हाथी का ब चा— कलभ
• कम म त पर रहने वाला— कमठ
• एक के बाद एक— म
• कान म कही जाने वाली बात— कानाबाती/कानाफूसी
• सरकार का वह अंग जो कानून का पालन करता है — कायपािलका
• शृंगािरक वासनाओँ के ित आकिषत— कामुक
• जो दुःख या भय से पीिड़त हो— कातर
• अपनी गलती वीकार करने वाला— कायल
• दूसरे की ह या करने वाला— काितल
• बा याव था और युवाव था के बीच की अव था— िकशोराव था
• जो बात पूवकाल से लोग म सुनकर चिलत हो— िकँवद ती/जन ुित
• अपने काम के बारे म कु छ िन य न करने वाला— िकँकत यिवमूढ़
• वृ लता आिद से ढका थान— कु
• िजस लड़के का िववाह न हआ ु हो— कु मार
• ऐसी लड़की िजसका िववाह न हआ ु हो— कु मारी
• बुरे काय करने वाला— कु कम
• बुरे माग पर चलने वाला— कु माग
• िजसकी बुि बहत ु तेज हो— कु शा बुि
• जो अ छे कु ल म उ प हआ ु हो— कु लीन
• वह यि त िजसका ान अपने ही थान तक सीिमत हो— कूपमंडूक
• िकए गए उपकार को मानने वाला— कृत
• िकए गए उपकार को न मानने वाला— कृत
• जो धन को अ यिधक कंजूसी से खच करता हो— कृपण
• िजसने संक प कर रखा है — कृतसंक प
• जो के से हटकर दूर जाता हो— के ापसारी
• जो के की ओर उ मुख हो— के ािभसारी/के ािभमुख
• सप के शरीर से िनकली हईु खोली— कचुल ी
• जो मा िकया जा सके— य
• िजसका कु छ ही समय म नाश हो जाए— णभंगुर
• जह धरती और आकाश िमलते हएु िदखाई देते है — ँ ि ितज
• जो भूख िमटाने के िलए बेचैन हो— ुधातुर
• भूख से पीिड़त— ुधात
• वह ी िजसका पित अ य ी के साथ रात को रहकर ातः लौटे — खंिडता
• आकाशीय िपँड का िववेचन करने वाला— खगोलशा ी
• जो यि त अपने हाथ म तलवार िलए रहता है — ख गह त
• नायक का ित ी— खलनायक
• जह से गंगा नदी का उ गम होता है — गंगो ी
• शरीर का यापार करने वाली ी— गिणका
• जो आकाश को छू रहा हो— गगन पश
• पहले से चली आ रही पर परा का अनुपालन करने वाला— गतानुगितक
• हण करने यो य— ा
• गीत गाने वाला/वाली— गायक/गाियका
• गीत रचने वाला— गीतकार
• हर पदाथ को अपनी ओर आकृ करने वाली शि त— गु वाकषण
• जो बात गूढ़ (रह यपूण) हो— गूढ़ोि त
• जीवन का ि तीय आ म— गृह था म
• गाय के खुर से उड़ी धूल — गोधूिल
• जब गाय जंगल से लौटती है ँ और उनके चलने की धूल आसमान म उड़ती है (िदन और राि के बीच का समय)— गोधूिल बेल ा
• गाय के रहने का थान— गौशाला
• घास खोदकर जीवन–िनव ह करने वाला— घिसयारा
• शरीर की हािन करने वाला— घातक
• जो घृणा का पा हो— घृिणत/घृणा पद
• िजसके िसर पर चं कला हो (िशव)— चं चूड़/चं शेखर
• वह कृित िजसम ग और प दोन ह — चंपू
• च के प म घूमती हईु चलने वाली हवा— च वात
• याज का वह कार िजसम मूल याज पर भी याज लगता है — च वृि याज
• िजसके हाथ म च हो— च पािण
• चार भुजाओँ वाला— चतुभुज
• काय करने की इ छा— िच ीष
• लंबे समय तक जीने वाला— िचरंजीवी
• जो िचरकाल से चला आया है — िचरंतन
• जो बहत ु समय तक ठहर सके— िचर थायी
• िचँता (िचँतन) करने यो य बात— िचँतनीय/िचँ य
• िजस पर िच लगाया गया हो— िचि त
• चार पै र वाला— चौपाया/चतु पद
• जो गु त प से िनवास कर रहा हो— छ वासी
• दूसर के केवल दोष को खोजने वाला— िछ ा वेषी
• प थर को गढ़ने वाला औजार— छै नी
• एक थान से दूसरे थान पर चलने वाला— जंगम
• पे ट की अि न— जठराि न
• बारात ठहरने का थान— जनवासा
• जो जल बरसाता हो— जलद
• जो जल से उ प हो— जलज
• वह पहाड़ िजसके मुख से आग िनकले— वालामुखी
• जल म रहने वाला जीव— जलचर
• जनता ारा चलाया जाने वाला तं — जनतं
• उ म बड़ा— ये
• जो चम कारी ि याओँ का दशन करता हो— जादूगर
• िजसने आ मा को जीत िलया हो— िजता मा
• जानने की इ छा रखने वाला— िज ासु
• इि य को वश म करने वाला— िजतेि य
• िकसी के जीवन–भर के काय ँ का िववरण— जीवन–चिर
• जो जीतने के यो य हो— जेय
• जेठ (पित का बड़ा भाई) का पु — जेठ ोत
• ि य ारा अपनी इ जत बचाने के िलए िकया गया सामूिहक अि न- वेश— जौहर
• ान देने वाली— ानदा
• जो ान ा त करने की इ छा रखता हो— ानिपपासु
• बहत ु गहरा तथा बहतु बड़ा ाकृितक जलाशय— झील
• जह िस की ढलाई होती है — टकसाल
• बतन बनाने वाला— ठठे रा
• जनता को सूचना देने हे तु बजाया जाने वाला वा — िढँ ढोरा
• जो िकसी भी गुट म न हो— तट थ/िनगुट
• ह की नीँद— त ा
• जो िकसी काय या िच तन म डू बा हो— त लीन
• ऋिषय के तप करने की भूिम— तपोभूिम
• उसी समय का— त कालीन
• वह राजकीय धन जो िकसान की सहायता हे तु िदया जाता है — तक़ाबी
• िजसम बाण रखे जाते है —ँ तरकश/तूणीर
• जो चोरी–िछपे माल लाता ले जाता हो— त कर
• िकसी को पद छोड़ने के िलए िलखा गया प — यागप
• तक करने वाला यि त— तािकक
• दैिहक, दैिवक और भौितक सुख— ताप य
• तैर कर पार जाने की इ छा— िततीष
• ान म वेश का मागदशक— तीथकर
• वह यि त जो छु टकारा िदलाता है /र ा करता है — ाता
• दुखा त नाटक— ासदी
• भूत, वतमान और भिव य को जानने/देखने वाला— ि काल /ि कालदश
• गंगा, जमुना और सर वती नदी का संगम— ि वेणी
• िजसके तीन आँखे है —ँ ि ने
• वह थान जो दोन भृकुिटओँ के बीच होता है — ि कु टी
• तीन महीने म एक बार— ैमािसक
• जो धरती पर िनवास करता हो— थलचर
• पित और प ी का जोड़ा— दंपती
• दस वष ँ की समयाविध— दशक
• गोद िलया हआ ु पु — द क
• संकुिचत िवचार रखने वाला— दिक़यानूस
• धन जो िववाह के समय पु ी के िपता से ा त हो— दहे ज
• जंगल म फैलने वाली आग— दावानल
• िदन भर का काय म— िदनचय
• िदखने मा को अ छा लगने वाल— िदखावटी
• जो सपना िदन (िदवा) म देखा जाता है — िदवा व
• दो बार ज म लेने वाला ( ा ण, प ी, द त)— ि ज
• िजसने दी ा ली हो— दीि त
• अनुिचत बात के िलए आ ह— दुरा ह
• बुरे भाव से की गई संिध— दुरिभसंिध
• वह काय िजसको करना किठन हो— दु कर
• दो िविभ भाषाएँ जानने वाले यि तय को एक–दूसरे की बात समझाने वाला— दुभािषया
• जो शी ता से चलता हो— तु गामी
• िजसे किठनाई से जाना जा सके— दु य
• िजसको पकड़ने म किठनाई हो— दुरिभ ह/दु ा
• पित के नेह से वंिचत ी— दुभगा
• िजसे किठनता से साधा/िस िकया जा सके— दु सा य
• जो किठनाई से समझ म आता है — दुब ध
• वह माग जो चलने म किठनाई पै दा करता है — दुगम
• िजसम खराब आदत ह — दु यसनी
• िजसको मापना किठन हो— दु पिरमेय
• िजसको जीतना बहत ु किठन हो— दुजय
• वह ब चा जो अभी म के दूध पर िनभर है — दुधमुँहा
• बुरे भा य वाला— दुभ यशाली
• िजसम दया भावना हो— दयालु
• िजसका आचरण बुरा हो— दुराचारी
• दूध पर आधािरत रहने वाला— दु धाहारी
• िजसकी ाि त किठन हो— दुल भ
• िजसका दमन करना किठन हो— दुदमनीय
• आगे की बात सोचने वाला यि त— दूरदश
• देश से ोह करने वाला— देश ोही
• देह से स बि धत— दैिहक
• देव के ारा िकया हआ
ु — दैिवक
• ितिदन होने वाला— दैिनक
• धन से स प — धनी
• जो धनुष को धारण करता हो— धनुधर
• धन की इ छा रखने वाला— धने छु
• गरीब के िलए दान के प म िदया जाने वाला अ –धन आिद— धम दा
• िजसकी धम म िन ा हो— धमिन ा
• िकसी के पास रखी हईु दूसरे की व तु— धरोहर/थाती
• मछली पकड़कर आजीिवका चलाने वाला— धीवर
• जो धीरज रखता हो— धीर
• धुरी को धारण करने वाला अथ त् आधारभूत काय ँ म वीण— धुरध ं र
• अपने थान पर अटल रहने वाला— ुव
• यान करने यो य अथवा ल य— येय
• यान करने वाला— याता/ यानी
• िजसका ज म अभी–अभी हआ ु हो— नवजात
• गाय को दुहते समय बछड़े का गला ब धने की र सी जो गाय के पै र म ब धी जाती है — निव
• जो नया–नया आया है — नवागंतुक
• िजसका उदय हाल ही म हआ ु है — नवोिदत
• जो आकाश म िवचरण करता है — नभचर
• स मान म दी जाने वाली भट— नजराना
• िजस ी का िववाह अभी हआ ु हो— नवोढ़ा
• ई र म िव ास न रखने वाला— नाि तक
• पुराना घाव जो िरसता रहता हो— नासूर
• जो न होने वाला हो— नाशवान/न र
• नरक के यो य— नारकीय
• वह थान या दुकान जह हजामत बनाई जाती है — नािपतशाला
• िकसी से भी न डरने वाला— िनडर/िनभ क
• जो कपट से रिहत है — िन कपट
• जो पढ़ना–िलखना न जानता हो— िनर र
• िजसका कोई अथ न हो— िनरथक
• िजसे कोई इ छा न हो— िन पृह
• रात म िवचरण करने वाला— िनशाचर
• िजसका आकार न हो— िनराकार
• केवल शाक, फल एवं फूल खाने वाला या जो म स न खाता हो— िनरािमष
• िजससे िकसी कार की हािन न हो— िनरापद
• िजसके अवयव न हो— िनरवयव
• िबना भोजन (आहार) के— िनराहार
• जो यह मानता है िक संसार म कु छ भी अ छा होने की आशा नहीँ है — िनराशावादी
• जो उ र न दे सके— िन र
• िजसके कोई दाग/कलंक न हो— िन कलंक
• िजसम कोई कंटक/अड़चन न हो— िन कंटक
• िजसका अपना कोई शु क न हो— िनःशु क
• िजसके संतान न हो— िनःसंतान
• िजसका अपना कोई वाथ न हो— िन वाथ
• यापािरक व तुओँ को िकसी दूसरे देश म भेजने का काय— िनय त
• िजसको देश से िनकाल िदया गया हो— िनव िसत
• िबना िकसी बाधा के— िनब ध
• जो मम व से रिहत हो— िनमम
• िजसकी िकसी से उपमा/तुल ना न दी जा सके— िन पम
• जो िनणय करने वाला हो— िनण यक
• िजसे िकसी चीज की लालसा न हो— िन काम
• िजसम िकसी बात का िववाद न हो— िनिववाद
• जो िन दा करने यो य हो— िन दनीय
• िजसम िकसी कार का िवकार उ प न हो— िनिवकार
• जो ल जा से रिहत हो— िनल ज
• िजसको भय न हो— िनभय
• जो नीित जानता हो— नीित
• रंगमंच पर पद के पीछे का थान— नेप य
• आजीवन चय का वत करने वाला— नैि क
• जो नीित के अनुकूल हो— नैितक
• जो यायशा की बात जानता हो— नैयाियक
• घृत, दु ध, दिध, शहद व श र से बनने वाला पदाथ— पंचामृत
• प पात करने वाला— प पाती
• पदाथ का सबसे छोटा कण— परमाणु
• िजतने की आव यकता हो उतना— पय त
• महीने के दो प म से एक— पखवाड़ा
• नाटक का पद िगरना— पटा ेप/यविनकापतन
• अपनी गलती के िलए िकया हआ ु दुःख— प ाताप
• केवल अपने पित म अनुराग रखने वाली ी— पितवता
• पित को चुनने की इ छा वाली क या— पित वरा
• उपाय/माग बताने वाला— पथ- दशक/मागदशक
• अपने माग से युत/भटका हआ ु — पथ
• अपने पद से हटाया हआ ु — पद युत
• जो भोजन रोगी के िलए उिचत है — प य
• घूमने–िफरने/देश–देशा तर मण करने वाला या ी— पयटक
• केवल दूध पर िनभर रहने वाला— पयोहारी
• दूसर पर िनभर रहने वाला— पराि त/परा यी
• परपु ष से ेम करने वाली ी— परकीया
• पित ारा छोड़ दी गई प ी— पिर यका
• दूसरे का मुँह ताकने वाला— परमुखापे ी
• जो पहनने लायक हो— पिरधेय
• जो मापा जा सके— पिरमेय
• जो सदा बदलता रहे — पिरवतनशील
• जो आँख के सामने न हो— परो /अ य
• दूसरे पर उपकार करने वाला— परोपकारी/परमाथ
• जो पूरी तरह से पक चुका हो/पारंगत हो चुका हो— पिरप व
• पद के अंदर रहने वाली— पद नशीन
• शंसा करने यो य— शंसनीय
• िकसी का त काल उ र दे सकने वाली मित— यु प मित
• िकसी वाद का िवरोध करने वाला— ितवादी
• शरणागत की र ा करने वाला— णतपाल
• वह विन जो कहीँ से टकराकर आए— ित विन
• जो िकसी मत को सव थम चलाता है — वतक
• वह ी िजसके हाल ही म िशशु उ प हआ ु हो— सूता
• वह आकृित जो िकसी शीशे, जल आिद म िदखाई दे— ितिब ब
• हा य रस से पिरपूण नािटका— हसन
• माण ारा िस करने यो य— मेय
• सं या के बाद व राि होने के पूव का समय— दोष/पूवरा
• ान ने से देखने वाला अंधा यि त— ाच ु
• सभा म िवचाराथ तुत बात— ताव
• हाथ से िलखी गई पु तक— पा डु िलिप
• िकसी पिर म के बदले िमलने वाली रािश— पािर िमक
• िजसका वभाव पशुओँ के समान हो— पाशिवक
• महीने के येक प से संबिं धत— पाि क
• िकसी िवषय का पूण ाता— पारंगत
• िजसम से आर–पार देखा जा सकता हो— पारदश
• जो परलोक से संबिं धत हो— पारलौिकक
• माग म खाने के िलए भोजन— पाथेय
• िजसका संबध ं पृ वी से हो— पािथव
• ात इितहास के पूव समय का— ागैितहािसक
• थल का वह भाग िजसके तीन ओर पानी हो— ाय ीप
• िजसको देखकर अ छा लगे— ि यदश
• पीने की इ छा रखने वाला— िपपासु
• बार–बार कही गई बात— पुन ि त
• िजसका पुनः ज म हआ ु हो— पुनज म
• पहले िकया गया कथन— पूव त
• दोपहर से पहले का समय— पूव
• ाचीन इितहास का ाता— पुरात ववे ा
• पीने यो य पदाथ— पे य
• िपता एवं िपताओँ से संबिं धत— पै तृक
• जो स पि िपता से ा त हो— पै तृक स पि
• फटे –पुराने कपड़े पहनने वाला— फटीचर
• केवल फल पर िनव ह करने वाला— फलाहारी
• फल की इ छा रखने वाला— फले छु
• बुरी िक मत वाला— बदिक मत
• बुरे िमजाज (आचरण) वाला— बदिमजाज
• सूय दय से पहले दो घड़ी तक का समय— मुहूत
• जीवन का थम आ म— चय म
• बहत ु िवषय का जानकार— बहु
• िजसने सुनकर अनेक िवषय का ान ा त िकया हो— बहु ुत
• समु म लगने वाली आग— बड़वानल
• जो अनेक प धारण करता हो— बहु िपया
• बहतु से देवताओँ के अि त व म िव ास करने वाला मत— बहदु ेववाद
• काफी अिधक कीमत का— बहम ु ू य
• अनेक भाषाओँ को जानने वाला— बहभ ु ाषािवद्
• रात का भोजन— यालू/राि भोज
• िजस ी के कोई संतान नहीँ हईु हो— ब झ
• खाने का इ छु क— बुबु ु
•
• िकसी भवनािद के खंिडत होने के बाद बचे भाग— भ नावशेष
• भय के कारण बेचैन— भयाकु ल
• भा य पर भरोसा रखने वाला— भा यवादी
• जो भा य का धनी हो— भा यवान
• दीवार पर बने हएु िच — िभि िच
• जो पृ वी के भीतर का ान रखता हो— भूगभवेता
• धरती पर चलने वाला ज तु— भूचर
• जो पहले था या हआ ु — भूतपूव
• धरती को धारण करने वाला पवत— भूधर
• औषिधय का जानकार— भेषज
• ातःकाल गाया जाने वाला राग— भैरवी
• सूय दय के पहले का समय— भोर
• भूगोल से संबिं धत— भौगोिलक
• फूल का रस— मकरंद
• दोपहर का समय— म या
• सद म होने वाली वष — महावट/मावठ
• हाथी को ह कने वाला— महावत
• सुख एवं दुःख म एक समान रहने वाला— मन वी
• िजसकी आँख मगर जैसी हो— मकरा
• िकसी मत का अनुसरण करने वाला— मतानुयायी
• दो प के बीच म पड़कर फैसला कराने वाला— मख ाता/य र क
• जो बहत ु ऊँची अक ा/इ छा रखता हो— मह वाक ी
• िजसकी बुि कमजोर है — म दबुि /मितमा
• िजसकी आ मा महान हो— महा मा
• िकसी चीज के मम का ाता— मम
• म यराि का समय— म यरा
• मन का असीम दुःख— मन ताप
• जह केवल रेत ही रेत हो— म थल
• म स आिद खाने वाला— म साहारी
• माह म होने वाला— मािसक
• माता की ह या करने वाला— मातृहत ं ा
• कम खाने वाला— िमताहारी
• कम खच करने वाला— िमत ययी
• जो अस य बोलता हो— िम यावादी
• िजस ी की आँख मछली के समान ह — मीना ी
• थोड़ा िखला हआ ु फूल— मुकुल
• शुभ काय हे तु िनकाला गया समय— मुहूत
• िदल खोलकर कहना— मु तकंठ
• मु ा का अिधक चलन/ सार— मु ा फीित
• मरणास अव थावाला/शि त के अनुसार— मुमूषु
• मरने की इ छा— मुमूष
• मो की इ छा रखने वाला— मुमु ु
• चुपचाप देखने वाला— मूकदशक
• हिरण के ने जैसी आँख वाली— मृगनयनी
• जो मीठी वाणी बोलता हो— मृदभ ु ाषी
• िजसने मृ यु को जीत िलया हो— मृ युंजय
• कमल की डंडी— मृणाल
• जो रचना िकसी यि त की अपनी वयं की हो एवं नई हो— मौिलक
• जुड़व भाई या बहन— यमल/यमला
• रंगमंच का परदा— यविनका
• शि त के अनुसार करना— यथाशि त
• जैसा चािहए, उिचत हो वैसा— यथोिचत
• जो यं से संबिं धत हो— य ि क
• जब तक जीवन रहे — याव जीवन/जीवनपयत
• घूम–घूमकर जीवन िबताने वाला— यायावर
• समाज को नई िदशा देकर नए युग की शु आत करने वाला— युग वतक
• अपने युग का ान रखने वाला— युग ा
• य – थान पर थािपत िकया जाने वाला खंभा— यूप
• रात को कु छ भी िदखाई नहीँ देने वाला रोग— रतौँधी
• िकसान से भूिम कर लेने वाला सरकारी िवभाग— राज व िवभाग
• रा य ारा आिधकािरक प से कािशत होने वाला प — राजप (गजट)
• िजसके नीचे रेखाएँ लगाई गई ह — रेख िकत
• ेम, आन द, भय आिद से र गटे खड़े होने की दशा— रोम च
• स ता से िजसके र गटे खड़े हो गए ह — रोम िचत
• जो लकड़ी काटकर जीवन िबताता हो— लकड़हारा
• िजसका वंश लु त हो गया हो— लु तवंश
• लोभी वभाव वाला— लु ध/लोभी
• िजसे देखकर र गटे खड़े ह जाएँ— लोमहषक
• वंश पर परा के अनुसार— वंशानुगत
• िजसके हाथ म व हो— व पािण
• बहत ु ही कठोर और बड़ा आघात— व ाघात
• बचपन और यौवन के म य की उ — वयसंिध
• िजसका वणन न िकया जा सके— वणनातीत
• अिधक बोलने वाला— वाचाल
• स तान के ित ेम— वा स य
• मुकदमा दायर करने वाला— वादी
• भाषण देने म चतुर— वा मी
• िजसका वाणी पर पूण अिधकार हो— वाच पित
• सामािजक मानमय दा के िवपरीत काय करने वाला— वामाचारी
• गृह–िनम ण संबधं ी िव ान— वा तुिव ान
• बाहर के तापमान का असर रोकने हे तु की जाने वाली यव था— वातानुकूलन
• वह क या िजसके िववाह करने का वचन दे िदया गया हो— वा दता
• िजसम िवष िमला हआ ु हो— िवषा त
• िजस पर िव ास िकया जा सके— िव त
• िजस िवषय म िनि त मत न हो— िववादा पद
• िजसकी प ी मर चुकी हो— िवधुर
• ी िजसका पित मर गया हो— िवधवा
• सौतेल ी म — िवमाता
• जो दूसरी जाित का हो— िवजातीय
• िजस पर अभी िवचार चल रहा हो— िवचाराधीन
• वह ी जो पढ़ी–िलखी व ानी हो— िवदुषी
• अपना िहत–अिहत सोचने म समथ— िववेकी
• अपनी जगह से अलग िकया हआ ु — िव थािपत
• िजसके अंदर कोई िवकार आ गया हो— िवकृत
• जो अपने धम के िव काय करने वाला हो— िवधम
• जो िविध/कानून के अनुसार सही हो— िविधवत्/वैध
• िकसी िवषय का िवशेष ान रखने वाला— िवशेष
• िवनाश करने वाला— िव वंसक
• िजसके शरीर के भाग म कमी हो— िवकल ग
• िजसे याकरण का पूरा ान हो— वैयाकरण
• सौ वष ँ का समूह— शता दी
• जो शरण म आ गया हो— शरणागत
• शरण की इ छा रखने वाला— शरणाथ
• हाथ म पकड़कर चलाया जाने वाला हिथयार जैसे तलवार— श
• सौ व तुओँ का सं ह— शतक
• जो सौ बात एक साथ याद रख सकता है — शतावधानी
• िजसके मरण मा से ही श ु का नाश हो/श ु का नाश करने वाला— श ु
• िजसका कोई आिद और अंत न हो— शा त
• शाक, फल और फूल खाने वाला— शाकाहारी/िनरािमष
• िजस श द के दो अथ ह — िशल
• िशव का आलय ( थान)— िशवालय
• शुभ चाहने वाला— शुभे छु /शुभाक ी
• अनुसंधान के िलए िदया जाने वाला अनुदान— शोधवृि
• जो सुनने यो य हो— य/ वणीय
• िजसम ा भावना हो— ालु
• पित/प ी का िपता— सुर
• पित/प ी की माता— ू (सास)
• पित/प ी का भाई— शुय (साला)
• िजसके छह कोण ह — ष कोण
• िजसके छह पद ह (भौँरा)— ष पद
• छह–छह माह म होने वाला— ष मािसक
• सोलह वष की अव था वाली ी— षोडशी
• दो निदय के िमलने का थान— संगम
• इि य को वश म रखने वाला— संयमी
• जो समाचार भेजता है — संवाददाता
• एक ही म से उ प भाई/बहन— सहोदर/सहोदरा
• सात सौ दोह का समूह— सतसई
• जो गुण–दोष का िववेचन करता हो— समालोचक
• सब कु छ जानने वाला— सव
• जो समान आयु का हो— समवय क
• जो सभी को समान दृि से देखता हो— समदश
• सािहि यक गुण–दोष की िववेचना करने वाला— समी क
• वह ी िजसका पित जीिवत हो— सधवा
• जो सदा से चला आ रहा हो— सनातन
• अ य लोग के साथ गाया जाने वाला गीत— सहगान
• उसी समय म होने वाला/रहने वाला— समकालीन
• साथ पढ़ने वाला— सहपाठी
• जो दूसर की बात सहन कर सकता हो— सिह णु
• छू त या संसग से फैलने वाला रोग— सं ामक
• जो एक ही जाित के ह — सजातीय
• गीत की धुन बनाने वाला— संगीतकार
• रस पूण— सरस
• साथ काम करने वाला— सहकम
• सबको ि य लगने वाला— सवि य
• सद् आचरण रखने वाला— सदाचारी
• ान देने वाली देवी— सर वती
• जो अपनी प ी के साथ हो— सप ीक
• स य के िलए आ ह— स या ह
• शत ँ के साथ काम करने का समझौता— संिवदा
• जो स य बोलता हो— स यवादी/स यभाषी
• संहार करने वाला/मारने वाला— संहारक
• िजसका चिर अ छा हो— स चिर
• न बहत ु ठ डा न बहतु गम— समशीतो ण
• जो सब कु छ खाता हो— सवभ ी
• सब कु छ पाने वाला— सवल ध
• जो सम त देश / थान से संबिं धत हो— सावभौिमक
• रथ ह कने वाला— सारिथ
• जो पढ़ना–िलखना जानता है — सा र
• स ताह म एक बार होने वाला— सा तािहक
• सभी लोग के िलए— सावजिनक
• आकार से यु त (मूितमान)— साकार
• जो सब जगह िव मान हो— सव यापी
• िजसकी ीवा सुंदर हो— सु ीव
• जो सोया हआु हो— सुषु त
• सधवा रहने की दशा या अव था— सुहाग
• पसीने से उ प जीव (जैसे जूँ आिद)— वेदज
• िकसी सं था या यि त के पचास वष पूरे करने के उपल य म होने वाला उ सव— वण जयंती
• ी के वभाव जैसा— ैण
• गितहीन रहने वाला— थावर
• िजसको िस करने के िलए अ य माण की ज रत न हो— वयंिस / वतः माण
• अपनी ही इ छानुसार पित का वरण करने वाली— वयंवरा
• जो वयं भोजन बनाकर खाता हो— वयंपाकी
• जो अपने ही अधीन हो— वाधीन
• जो अपना ही िहत सोचता हो— वाथ
• सौ व तुओँ का सं ह— सैँकड़ा/शतक
• हमला करने वाला— हमलावर
• सेना का वह भाग जो सबसे आगे हो— हरावल
• हवन से संबिं धत साम ी— हिव
• ऐसा बयान जो शपथ सिहत िदया गया हो— हलफनामा
• दूसरे के काम म दखल देना— ह त ेप
• ऐसा दुःख जो हृदय को चीर डाले— हृदय िवदारक
• हृदय से संबिं धत— हािदक
• िजस पर हँसी आती हो/जो हँसी का पा हो— हा या पद
• िकसी सं था या यि त के साठ वष पूरे होने के उपल य म होने वाला उ सव— हीरक जयंती
• जो बात हृदय म अ छी तरह बैठ गई हो— हृदयंगम
• दूसर का िहत चाहने वाला— िहतैषी
• न टलने वाली घटना/अव यंभावी घटना/भा याधीन— होनहार
• य म आहिु त देने वाला— होमाि न
♦♦♦
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• सामा य िह दी
♦ होम पे ज
तुित:–
मोद खेदड़
सामा य िह दी
मुहावरा एक ऐसा वा य श है , जो रचना म अपना िवशेष अथ कट करता है । रचना म भावगत सौ दय की दृि से मुहावर का िवशेष मह व है । इनके योग से भाषा
सरस, रोचक एवं भावपूण बन जाती है । इनके मूल प म कभी पिरवतन नहीँ होता अथ त् इनम से िकसी भी श द का पय यवाची श द यु त नहीँ िकया जा सकता। ह ,
ि या पद म काल, पु ष, वचन आिद के अनुसार पिरवतन अव य होता है । मुहावरा अपूण वा य होता है । वा य योग करते समय यह वा य का अिभ अंग बन जाता है ।
मुहावरे के योग से वा य म यं याथ उ प होता है । अतः मुहावरे का शाि दक अथ न लेकर उसका भावाथ हण करना चािहए।
मुख मुहावरे व उनका अथ:
• अंग–अंग िखल उठना
– स हो जाना।
• अंग छू ना
– कसम खाना।
• अंग–अंग टू टना
– सारे बदन म दद होना।
• अंग–अंग ढीला होना
– बहत ु थक जाना।
• अंग–अंग मुसकाना
– बहत ु स होना।
• अंग–अंग फूले न समाना
– बहत ु आनंिदत होना।
• अंगड़ाना
– अंगड़ाई लेना, जबरन पहन लेना।
• अंकुश रखना
– िनयं ण रखना।
•अंग लगाना
– िलपटाना।
• अंगारा होना
– ोध म लाल हो जाना।
• अंगारा उगलना
– जली–कटी सुनाना।
•अंगार पर पै र रखना
– जोिखम मोल लेना।
• अँगूठे पर मारना
– परवाह न करना।
• अँगूठ ा िदखाना
– िनराश करना या ितर कारपूवक मना करना।
• अंगूर ख े होना
– ा त न होने पर उस व तु को र ी बताना।
• अंजर–पंजर ढीला होना
– अंग–अंग ढीला होना।
• अंडा फूट जाना
– भेद खुल जाना।
• अंधा बनाना
– ठगना।
• अँधे की लकड़ी/लाठी
– एकमा सहारा।
• अंधे को िचराग िदखाना
– मूख को उपदेश देना।
• अंधाधुंध
– िबना सोचे–िवचारे।
• अंधानुकरण करना
– िबना िवचारे अनुकरण करना।
• अंधरे खाता
– अ यव था।
• अंधरे नगरी
– वह थान जह कोई िनयम यव था न हो।
• अंधे के हाथ बटे र लगना
– िबना यास भारी चीज पा लेना।
• अंध म काना राजा
– अयो य यि तय के बीच कम यो य भी बहत ु यो य होता है ।
• अँधरे े घर का उजाला
– अित सु दर/इकलौती स तान।
• अँधरे े म रखना
– भेद िछपाना।
• अँधरे े मुँह
– पौ फटते।
• अंधरे े–उजाले
– समय–कु समय।
• अकड़ना
– घम ड करना।
• अ ल का दु मन
– मूख।
• अ ल चकराना
– कु छ समझ म न आना।
• अ ल का अंधा होना
– बेअ ल होना।
• अ ल आना
– समझ आना।
• अ ल का कसूर
– बुि दोष।
• अ ल काम न करना
– कु छ समझ न आना।
• अ ल के घोड़े दौड़ाना
– तरह–तरह की क पना करना।
• अ ल के तोते उड़ना
– होश िठकाने न रहना।
• अ ल के बिखए उधेड़ना
– बुि न कर देना।
• अ ल जाती रहना
– घबरा जाना।
• अ ल िठकाने होना
– होश म आना।
• अ ल िठकाने ला देना
– समझा देना।
• अ ल से दूर/बाहर होना
– समझ म न आना।
• अ ल का पूरा
– मूख।
• अ ल पर प थर पड़ना
– बुि से काम न लेना।
• अ ल चरने जाना
– बुि का न होना।
• अ ल का पुतला
– बुि मान।
• अ ल के पीछे लठ िलए िफरना
– मूखता का काम करना।
• अपनी िखचड़ी खुद पकाना
– िमलजुल कर न रहना।
• अपना उ लू सीधा करना
– वाथ िस करना।
• अपना सा मुँह लेकर रहना
– लि जत होना।
• अरमान िनकालना
– मन का गुबार पूरा करना।
• अपने मुँह िमय िम ू बनना
– अपनी बड़ाई आप करना।
• अपने प व पर कु ाड़ी मारना
– जानबूझकर अपना नुकसान करना।
• अपना राग अलापना
– अपनी ही बात पर बल देना।
• अगर–मगर करना
– बहाना करना।
• अटकल िभड़ाना
– उपाय सोचना।
• अपने पै र पर खड़ा होना
– वावलंबी होना।
• अ र से भट न होना
– अनपढ़ होना।
• अटखेिलय करना
– िकलोल करना।
• अडंगा करना
– होते काय म बाधा डालना।
• अड़ पकड़ना
– िजद करना/पनाह म आना।
• अता होना
– िमलना।
• अथाह म पड़ना
– मुि कल म पड़ना।
• अदब करना
– स मान करना।
• अधर म झूल ना
– दुिवधा म रहना।
• अधूरा जाना
– असमय गभपात होना।
• अनसूनी करना
– जानबूझकर उपे ा करना।
• अनी की चोट
– सामने की चोट।
• अपनी–अपनी पड़ना
– सबको अपनी िचँता होना।
• अपनी नीँद सोना
– इ छानुसार काय करना।
• अपना हाथ जग ाथ
– वािधकार होना।
• अर य रोदन
– िन फल िनवेदन।
• अवसर चूकना
– सुयोग का लाभ न उठाना।
• अवसर ताकना
– मौका ढू ँढना।
• आँख का तारा
– बहत ु यारा होना/अित ि य।
• आँख उठाना
– ोध से देखना।
• आँख ब द कर काम करना
– यान न देना।
• आँख चुराना
– िछपना।
• आँख मारना
– इशारा करना।
• आँख तरसना
– देखने के लालाियत होना।
• आँख फेर लेना
– ितकूल होना।
• आँख िबछाना
– ती ा करना।
• आँख सकना
– सुंदर व तु को देखते रहना।
• आँख उठाना
– देखने का साहस करना।
• आँख खुल ना
– होश आना।
• आँख लगना
– नींद आना अथवा यार होना।
• आँखॲ पर परदा पड़ना
– लोभ के कारण स चाई न दीखना।
• आँखॲ म समाना
– िदल म बस जाना।
• आँखे चुराना
– अनदेखा करना।
• आँख चार होना
– आमने–सामने होना/ ेम होना।
• आँख िदखाना
– गु से से देखना।
• आँख फेरना
– बदल जाना, ितकूल होना।
• आँख पथरा जाना
– देखते–देखते थक जाना।
• आँखे िबछाना
– ेम से वागत करना।
• आँख का क टा होना
– बुरा लगना/अि य यि त।
• आँख पर िबठाना
– आदर करना।
• आँख म धूल झ कना
– धोखा देना।
• आँख का पानी ढलना
– िनल ज बन जाना।
• आँख से िगरना
– आदर समा त होना।
• आँख पर परदा पड़ना
– बुि होना।
• आँख म रात कटना
– रात–भर जागते रहना।
• आँच न आने देना
– थोड़ी भी हािन न होने देना।
• आँसू पीकर रह जाना
– भीतर ही भीतर दुःखी होना।
• आकाश के तारे तोड़ना
– अस भव काय करना।
• आकाश–पाताल एक करना
– किठन य करना।
• आग म घी डालना
– ोध और अिधक बढ़ाना।
• आग से खेल ना
– जानबूझकर मुसीबत म फँसना।
• आग पर पानी डालना
– उ ेिजत यि त को शा त करना।
• आटे –दाल का भाव मालूम होना
– किठनाई म पड़ जाना।
• आसमान से बात करना
– ऊँची क पना करना।
• आड़े हाथ लेना
– खरी–खरी सुनाना।
• आसमान िसर पर उठाना
– बहत ु शोर करना।
• आँचल पसारना
– भीख म गना।
• आँधी के आम होना
– बहत ु स ती व तु िमलना।
• आँसू प छना
– धीरज देना।
• आग–पानी का बैर
– वाभािवक श ुता।
• आसमान पर चढ़ना
– बहत ु अिधक अिभमान करना।
• आग–बबूल ा होना
– बहत ु ोध करना।
• आपे से बाहर होना
– अ यिधक ोध से काबू म न रहना।
• आकाश का फूल
– अ ा य व तु।
• आसमान पर उड़ना
– अिभमानी होना।
• आ तीन का स प
– िव ासघाती िम ।
• आकाश चूमना
– बहत ु ऊँचा होना।
• आग लगने पर कु आँ खोदना
– पहले से कोई उपाय न कर रखना।
• आग लगाकर तमाशा देखना
– झगड़ा पै दा करके खुश होना।
• आटे के साथ घुन िपसना
– दोषी के साथ िनद षी की भी हािन होना।
• आधा तीतर आधा बटे र
– बेमेल काम।
• आसमान के तारे तोड़ना
– असंभव काय करना।
• आसमान फट पड़ना
– अचानक आफत आ पड़ना।
• आँचल देना
– दूध िपलाना।
• आँचल म ग ठ ब धना
– अ छी तरह याद कर लेना।
• आँचल फैलाना
– अित िवन ता पूवक ाथना करना।
• आँधी उठना
– हलचल मचना।
• आँसू िगराना
– रोना।
• आँसूओँ से मुँह धोना
– बहत ु रोना।
• आकाश कु सुम
– अनहोनी बात।
• आकाश खुल ना
– बादल हटना।
• आकाश–पाताल का अ तर होना
– बहत ु बड़ा अ तर।
• आग का पुतला
– बहत ु ोधी।
• आग के मोल
– बहत ु महँगा।
• आग लगाना
– झगड़ा कराना।
• आग म कूदना
– वयं को खतरे म डालना।
• आग पर लोटना
– बेचैन होना/ई य करना।
• आग बुझा लेना
– कसर िनकालना।
• आग भी न लगाना
– तु छ समझना।
• आग म झ कना
– अिन म डाल देना।
• आग से पानी होना
– ोधाव था से एकदम शा त हो जाना।
• आगे–पीछे की सोचना
– भावी पिरणाम पर दृि रखना।
• आगे करना
– हािजर करना/अगुआ करना/आड़ लेना।
• आगे–िपछे िफरना
– खुशामद करना।
• आगे होकर िफरना
– आगे बढ़कर वागत करना।
• आज–कल करना
– टालमटोल करना।
• ईँट का जवाब प थर से देना
– िकसी के आरोप का करारा जवाब देना/कड़ाई से पे श आना।
• ईँट से ईँट बजाना
–न – कर देना/िवनाश करना।
• इधर–उधर की लगाना
– चुगली करना।
• इधर–उधर की ह कना
– यथ की ग पे मारना।
• ईद का च द होना
– बहत ु िदन बाद िदखाई देना।
• उँगली उठाना
– ल छन लगाना/दोष िनकालना।
• उँगली पर नचाना
– वश म करना/अपनी इ छानुसार चलाना।
• उँगली पकड़कर पहँच ु ा पकड़ना
– तिनक–सा सहारा पाकर पूरे पर अिधकार जमा लेना/मन की बात ताड़ जाना।
• उ टी गंगा बहाना
– िनयम के िव काय करना।
• उ लू बनाना
– मूख बनाना।
• उ लू सीधा करना
– वाथ िस करना।
• उधेड़बुन म पड़ना
– सोच–िवचार करना।
• उ ीस बीस का अंतर होना
– बहत ु कम अंतर होना।
• उड़ती िचिड़या पहचानना
– िकसी की गु त बात जान लेना।
• उ टी माला फेरना
– बुरा सोचना।
• उ टे उ तरे से मूँडना
– धृ तापूवक ठगना।
• उठा न रखना
– कमी न छोड़ना।
• उ टी प ी पढ़ाना
– और का और कहकर बहकाना।
• एक आँख से देखना
– सबको बराबर समझना।
• एक और एक यारह होना
– मेल म शि त होना।
• एड़ी–चोटी का जोर लगाना
– पूरी शि त लगाकर काय करना।
• एक लाठी से ह कना
– अ छे –बुरे का िवचार िकए िबना समान यवहार करना।
• एक घाट पानी पीना
– एकता और सहनशीलता होना।
• एक ही थैल ी के च े –ब े
– सब एक से, सभी समान प से बुरे यि त।
• एक हाथ से ताली न बजना
– िकसी एक प का दोष न होना।
• एक ही नौका म सवार होना
– एक समान पिरि थित म होना, िकसी भी काय के िलए सभी प की सि यता अिनवाय होती है ।
• एक आँख न भाना
– तिनक भी अ छा न लगना।
• ओँठ चबाना
– ोध कट करना।
• ओखली म िसर देना
– जानबूझकर िवपि म फँसना।
• कंठ का हार होना
– अ यंत ि य होना।
• कंगाली म आटा गीला
– गरीबी म और अिधक हािन होना।
• कंधे से कंधा िमलाना
– पूरा सहयोग करना।
• क चा िच ा खोलना
– भेद खोलना, िछपे हएु दोष बताना।
• क ची गोली खेल ना
– अनुभवी न होना।
• कलेजा टू क टू क होना
– शोक म दुखी होना।
• कटी पतंग होना
– िनराि त होना।
• कलेजा ठ डा होना
– संतोष होना।
• कलई खुल ना
– पोल खुल ना।
• कमर कसना
– तैयार होना/िकसी काय को दृढ़ िन य के साथ करना।
• कठपुतली होना
– दूसरे के इशारे पर चलना।
• कलेजा थामना
– दुःख सहने के िलए कलेजा कड़ा करना।
• कमर टू टना
– कमजोर पड़ जाना/हतो सािहत होना।
• क म पै र लटकना
– मृ यु के समीप होना।
• कढ़ी का सा उबाल
– मामूल ी जोश।
• कड़वे घूँट पीना
– क दायक बात सहन कर जाना।
• कलेजा छलनी होना
– बहतु दुःखी होना।
• कलेजा िनकालकर रख देना
– सब कु छ समिपत कर देना।
• कलेजा फटना
– असहनीय दुःख होना।
• कलेजा मुँह को आना
– याकु ल होना या घबरा जाना।
• कलेजे का टुकड़ा
– अ यिधक ि य होना।
• कलेजे पर प थर रखना
– चुपचाप सहन करना।
• कलेजे पर स प लोटना
– ई य से जलना।
• कसौटी पर कसना
– परखना/परी ा लेना।
• कटे पर नमक िछड़कना
– दुःखी को और दुःखी करना।
• क टे िबछाना
– माग म बाधा उ प करना।
• कागज काले करना
– यथ िलखना।
• काठ का उ लू
– अ यंत मूख।
• कान खड़े होना
– सावधान होना।
• कान पर जूँ न रगना
– असर न होना।
• कान म फूँक मारना
– भािवत करना।
• कान भरना
– चुगली करना।
• कान लगाकर सुनना
– यान से सुनना।
• कान म तेल / ई डालना
– यान न देना।
• काम आना
– यु म मरना।
• काम तमाम करना
– मार देना।
• काया पलट होना
– िब कु ल बदल जाना।
• कािलख पोतना
– बदनाम करना।
• कागज की नाव
– अ थायी/ ण भंगुर।
• कान कतरना
– मात करना/बहत ु चतुर होना।
• कान का क चा
– हर िकसी बात पर िव ास करने वाला।
• कागजी घोड़े दौड़ाना
– केवल िलखा–पढ़ी करते रहना/बहतु प यवहार करना।
• कान म उँगली देना
– कोई आ यकारी बात सुनकर दंग रहना।
• काल के गाल म जाना
– मृ यु–पथ पर बढ़ना।
• िकताब का कीड़ा
– हर समय पढ़ते रहना।
• कीचड़ उछालना
– बदनामी करना/नीचता िदखाना/कलंक लगाना।
• कु एँ म ब स डालना
– बहत ु दूर तक खोज करना।
• कु एँ म भ ग पड़ना
– सब की बुि मारी जाना।
• को ू का बैल
– कड़ी मेहनत करते रहने वाला।
• कौड़ी के मोल िबकना
– अ यिधक स ता होना।
• कौड़ी–कौड़ी पर जान देना
– कंजूस होना।
• खटाई म पड़ना
– टल जाना/काम म कावट आना।
• खाक म िमलना
– न हो जाना।
• खाक म िमलाना
– न कर देना।
• याली पुल ाव बनाना
– कपोल क पनाएँ करना।
• खालाजी का घर
– आसान काम।
• खाक छानना
– बेकार िफरना/दर–दर भटकना।
• िखचड़ी पकाना
– गु त प से ष यं रचना।
• खून का यासा
– भयंकर दु मनी/श ु।
• खून का घूँट पीना
– ोध को अंदर ही अंदर सहना।
• खून सूखना
– डर जाना।
• खून खौलना
– जोश म आना।
• खून–पसीना एक करना
– बहत ु पिर म करना।
• खून सफेद हो जाना
– दया न रह जाना।
• खेत रहना
– मारा जाना।
• गंगा नहाना
– बड़ा काय कर देना।
• गत बनाना
– पीटना।
• गदन उठाना
– िवरोध करना।
• गले का हार
– अ यंत ि य।
• गड़े मुद उखाड़ना
– िपछली बुरी बात याद करना।
• गदन पर सवार होना
– पीछे पड़े रहना।
• गज भर की छाती होना
– साहसी होना।
• ग ठ ब धना
– अ छी तरह याद रखना।
• गाल बजाना
– डीँग मारना।
• गागर म सागर भरना
– थोड़े म बहत ु कु छ कहना।
• गाजर मूल ी समझना
– तु छ समझना।
• िगरिगट की तरह रंग बदलना
– बहत ु ज दी अपनी बात से बदलना।
• गीदड़ भभकी
– िदखावटी धमकी।
• गुड़–गोबर करना
– बना बनाया काय िबगाड़ देना।
• गुल िखलाना
– कोई बखेड़ा खड़ा करना/ऐसा काय करना जो दूसर को उिचत न लगे।
• गुदड़ी म लाल होना
– गरीबी म भी गुणवान होना।
• गूल र का फूल
– दुल भ का यि त या व तु।
• गेहूँ के साथ घुन िपसना
– दोषी के साथ िनद ष पर भी संकट आना।
• गोबर गणेश
– िब कु ल बु /िनरा ू मूख।
• घर फूँककर तमाशा देखना
– अपनी हािन करके मौज उड़ाना।
• घड़ पानी पड़ना
– बहत ु लि जत होना।
• घड़ी म तोला घड़ी म माशा
– अि थर िच वाला यि त।
• घर म गंगा बहाना
– िबना किठनाई के कोई अ छी व तु पास म ही िमल जाना।
• घास खोदना
– यथ समय गँवाना।
• घाट–घाट का पानी पीना
– बहत ु अनुभवी होना।
• घाव पर नमक िछड़कना
– दुःखी को और दुःख देना।
• घी के िदये जलाना
– बहत ु खुिशय मनाना।
• घुटने टे क देना
– हार मान लेना।
• घोड़े बेचकर सोना
– िनि त होना।
• चलती च ी म रोड़ा अटकाना
– काय म बाधा डालना।
• चंडाल चौकड़ी
– िनक मे बदमाश लोग।
• च पा–च पा छान मारना
– हर जगह ढू ँढ लेना।
• च दी का जूता
– घूस का धन।
• च दी का जूता देना
– िर त देना।
• च दी होना
– लाभ ही लाभ होना।
• चादर से बाहर पै र पसारना
– आमदनी से अिधक खच करना।
• चादर तानकर सोना
– िनि ँत होना।
• चार च द लगाना
– शोभा बढ़ाना।
• चार िदन की च दनी
– थोड़े िदन का सुख/अ थायी वैभव।
• िचकना घड़ा
– बेशम।
• िचकना घड़ा होना
– कोई भाव न पड़ना।
• िचराग तले अँधरे ा
– दूसर को उपदेश देने वाले यि त का वयं अ छा आचरण नहीँ करना।
• िचकनी–चुपड़ी बात करना
– मीठी–मीठी बात करके धोखा देना/चापलूसी करना।
• चीँटी के पर िनकलना
– न होने के करीब होना/अिधक घम ड करना।
• चुिटया हाथ म होना
– वश म होना।
• चु लू भर पानी म डू ब मरना
– ल जा का अनुभव करना/शम के मारे मुँह न िदखाना।
• चूना लगाना
– धोखा देना।
• चूिड़य पहनना
– औरत की तरह कायरता िदखाना।
• चेहरे पर हवाईय उड़ना
– घबरा जाना।
• चैन की बंशी बजाना
– सुख से रहना।
• चोटी का पसीना एड़ी तक आना
– कड़ा पिर म करना।
• चोली दामन का साथ
– घिन स ब ध।
• चौदहवीँ का च द
– बहत ु सु दर।
• छ े छु ड़ाना
– बुरी तरह हरा देना।
• छठी का दूध याद आना
– घोर संकट म पड़ना/संकट म िपछले सुख की याद आना।
• छ पर फाड़कर देना
– अचानक लाभ होना/िबना यास के स पि िमलना।
• छाती पर प थर रखना
– चुपचाप दुःख सहन करना।
• छाती पर स प लोटना
– बहत ु ई य करना।
• छाती पर मूँग दलना
– बहत ु परेशान करना/क देना।
• छू म तर होना
– गायब हो जाना।
• छोटे मुँह बड़ी बात करना
– अपनी है िसयत से यादा बात कहना।
• जंगल म मंगल होना
– उजाड़ म चहल–पहल होना।
• जमीन पर पै र न रखना
– अिधक घम ड करना।
• जहर का घूँट पीना
– अस बात सहन कर लेना।
• जलती आग म कूदना
– िवपि म पड़ना।
• जबान पर चढ़ना
– याद आना।
• जबान म लगाम न होना
– बेमतलब बोलते जाना।
• जमीन आसमान एक करना
– सब उपाय कर डालना।
• जमीन आसमान का फक
– बहत ु भारी अंतर।
• जलती आग म तेल डालना
– और भड़काना।
• जहर उगलना
– कड़वी बात करना।
• जान के लाले पड़ना
– ग भीर संकट म पड़ना।
• जान पर खेल ना
– मुसीबत म रहकर काम करना।
• जान हथेल ी पर रखना
– ाण की परवाह न करना।
• जी चुराना
– िकसी काम से दूर भागना।
• जी का जंजाल
– यथ का झंझट।
• जी भर जाना
– हृदय िवत होना।
• जीती म खी िनगलना
– जानबूझकर बेईमानी करना।
• जी पर आ बनना
– मुसीबत म आ फँसना।
• जी चुराना
– काम करने से कतराना।
• जूितय चटकाना/तोड़ना
– मारे–मारे िफरना।
• जूितय /जूते चाटना
– चापलूसी करना।
• जूितय म दाल ब टना
– लड़ाई झगड़ा हो जाना।
• जोड़–तोड़ करना
– उपाय करना।
• झक मारना
– यथ पिर म करना।
• झाडू िफराना
– सब कु छ बब द कर देना।
• झोली भरना
– अपे ा से अिधक देना।
• टका–सा जवाब देना
– दो टू क/ खा उ र देना या मना करना।
• ट ी की ओट म िशकार खेल ना
– िछपकर ष य रचना।
• टका–सा मुँह लेकर रह जाना
– लि जत हो जाना।
• ट ग अड़ाना
– ह त ेप करना।
• ट य–ट य िफस हो जाना
– काम िबगड़ जाना।
• टे ढ़ी उँगली से घी िनकालना
– शि त से काय िस करना।
• टे ढ़ी खीर
– किठन काम।
• टू ट पड़ना
– सहसा आ मण कर देना।
• टोपी उछालना
– अपमान करना।
• ठं डा पड़ना
– ोध शा त होना।
• ठन–ठन गोपाल
– िनधन यि त/खोखला।
• िठकाने आना
– ठीक थान पर आना।
• ठीकरा फोड़ना
– दोष लगाना।
• ठोकर खाना
– हािन उठाना।
• डंका बजाना
– याित होना/ भाव जमाना/घोषणा करना।
• डंके की चोट कहना
– प कहना।
• डकार जाना
– िकसी की चीज को लेकर न देना/माल पचा जाना।
• डोरी ढीली छोड़ना
– िनय ण म ढील देना।
• डोरे डालना
– ेम म फँसाना।
• ढपोरशंख होना
– झूठ ा या ग पी आदमी।
• ढाई िदन की बादशाहत
– थोड़े िदन की मौज–बहार।
• िढँ ढोरा पीटना
– अित चािरत करना/सबको बताना।
• ढोल म पोल होना
– थोथा या सारहीन।
• तलवे चाटना
– खुशामद करना।
• तार–तार होना
– पूरी तरह फट जाना।
• तारे िगनना
– रात को नीँद न आना/ य ता से ती ा करना।
• ितल का ताड़ करना
– बढ़ा चढ़ाकर बात करना।
• िततर–िबतर होना
– िबखर कर भाग जाना।
• तीन का तेरह होना
– अलग–अलग होना।
• तूती बोलना
– खूब भाव होना।
• तेल की कचौिड़य पर गवाही देना
– स ते म काम करना।
• तेल ी का बैल होना
– हर समय काम म लगे रहना।
• तेवर चढ़ाना
– गु सा होना।
• थाह लेना
– पता लगाना।
• थाली का बैगँ न
– लाभ–हािन देखकर प बदलने वाला यि त/िस ा तहीन यि त।
• थूककर चाटना
– बात कहकर बदल जाना।
• दबे प व चलना
– ऐसे चलना िजससे चलने की कोई आहट न हो।
• दमड़ी के िलए चमड़ी उधेड़ना
– मामूल ी सी बात के िलए भारी द ड देना।
• दम तोड़ देना
– मृ यु को ा त होना।
• द त तले उँगली दबाना
– आ य करना/है रान होना।
• द त पीसना
– ोध करना।
• द त पीसकर रहना
– ोध पीकर चुप रहना।
• द त काटी रोटी होना
– घिन िम ता।
• द त उखाड़ना
– कड़ा द ड देना।
• द त ख े करना
– परा त करना/नीचा िदखाना।
• दाई से पे ट िछपाना
– पिरिचत से रह य को िछपाये रखना।
• दाने–दाने को तरसना
– अ यंत गरीब होना।
• दाल म काला होना
– स देहपूण होना/गड़बड़ होना।
• दाल न गलना
– वश नहीँ चलना/सफल न होना।
• दािहना हाथ होना
– अ य त िव ासपा बनना/बहत ु बड़ा सहायक।
• दामन पकड़ना
– सहारा लेना।
• दाना–पानी उठना
– जगह छोड़ना।
• िदन िफरना
– भा य पलटना।
• िदन म तारे िदखाई देना
– घबरा जाना/अजीब हालत होना।
• िदन–रात एक करना
– खूब पिर म करना।
• िदन दूनी रात चौगुनी होना
– बहत ु ज दी–ज दी होना।
• िदमाग आसमान पर चढ़ना
– बहत ु घम ड होना।
• दुम दबाकर भागना
– डर के मारे भागना।
• दूध का दूध और पानी का पानी
– उिचत याय करना।
• दूध का धुल ा/धोया होना
– िनद ष या िन कलंक होना।
• दूध के द त न टू टना
– ान और अनुभव का न होना।
• दो िदन का मेहमान
– ज दी मरने वाला।
• दो नाव पर पै र रखना
– दोन तरफ रहना/एक साथ दो ल य को पाने की चे ा करना।
• दो टू क जवाब देना
– साफ–साफ उ र देना।
• दौड़–धूप करना
– कठोर म करना।
• दृि फेरना
– अ स होना।
• धि जय उड़ाना
–न – करना।
• धरती पर प व न पड़ना
– अिभमान म रहना।
• धूल फ कना
– यथ म भटकना।
• धूप म बाल सफेद करना
– अनुभवहीन होना।
• धूल म िमल जाना
– न हो जाना।
• नकेल हाथ म होना
– वश म होना।
• नमक िमच लगाना
– बात बढ़ा–चढ़ाकर कहना।
• नाक कटना
– बदनामी होना।
• नाक काटना
– अपमािनत करना।
• नाक चोटी काटकर हाथ म देना
– दुदशा करना।
• नाक भौँ चढ़ाना
– घृणा या अस तोष कट करना।
• नाक पर म खी न बैठ ने देना
– बहत ु साफ रहना/अपने पर आँच न आने देना।
• नाक रगड़ना
– दीनता िदखाना।
• नाक रखना
– मान रखना।
• नाक म दम करना
– बहत ु तंग करना।
• नाक का बाल होना
– िकसी के यादा िनकट होना।
• नाक चने चबाना
– बहत ु तंग करना।
• नानी याद आना
– किठनाई म पड़ना/घबरा जाना।
• िन यानव के फेर म पड़ना
– पै सा जोड़ने के च र म पड़ना।
• नीला–पीला होना
– गु से होना।
• नौ दो यारह होना
– भाग जाना।
• नौ िदन चले ढाई कोस
– बहत ु धीमी गित से काय करना।
• पगड़ी उछालना
– बेइ जत करना।
• पगड़ी रखना
– इ जत रखना।
• पसीना–पसीना होना
– बहत ु थक जाना।
• पहाड़ टू ट पड़ना
– भारी िवपि आ जाना।
• प च उँगिलय घी म होना
– सब ओर से लाभ होना।
• प व उखड़ना
– हारकर भाग जाना।
• प व फूँक–फूँक कर रखना
– सावधानी से काय करना।
• पानी-पानी होना
– अ यिधक लि जत होना।
• पानी म आग लगाना
– श ित भंगकर देना।
• पानी फेर देना
– िनराश कर देना।
• पानी भरना
– तु छ लगना।
• पानी पी–पीकर कोसना
– गािलय बकते जाना।
• पानी का मोल होना
– बहत ु स ता।
• पापड़ बेल ना
– बेकार जीवन िबताना।
• पीठ िदखाना
– कायरता का आचरण करना।
• पे ट काटना
– अपने ऊपर थोड़ा खच करना।
• पे ट म चूहे दौड़ना/कूदना
– भूख लगना।
• पे ट ब धकर रहना
– भूखे रहना।
• पे ट म रखना
– बात िछपाकर रखना।
• पे ट म दाढ़ी होना
– िदखने म सीधा, पर तु चालाक होना।
• पै र उखड़ना
– भागने पर िववश होना।
• पै र जमीन पर न िटकना
– स होना, अिभमानी होना।
• पै र तले से जमीन िनकल/िखसक/सरक जाना
– होश उड़ जाना।
• पै र म महदी लगाकर बैठ ना
– कहीँ जा न सकना।
• पौ बारह होना
– खूब लाभ होना।
• ाण हथेल ी पर िलए िफरना
– जीवन की परवाह न करना।
• फट पड़ना
– एकदम गु से म हो जाना।
• फूँक–फूँककर कदम रखना
– सावधानी बरतना।
• फूटी आँख न सुहाना
– अ छा न लगना।
• फूला न समाना
– अ यिधक खुश होना।
• फूलकर कू पा होना
– बहत ु खुश या बहतु नाराज होना।
• बंदर घुड़की/भभकी
– भावहीन धमकी।
• बिखया उधेड़ना
– भेद खोलना।
• बिछया का ताऊ
– मूख।
• ब ा लगना
– कलंक लगना।
• बड़े घर की हवा खाना
– जेल जाना।
• बरस पड़ना
– अित ु होकर ड टना।
• बि लय उछलना
– बहत ु स होना।
• ब ए हाथ का खेल
– बहत ु सरल काम।
• ब छे िखल जाना
– अ यंत स होना।
• बाजार गम होना
– काम–धंधा तेज होना।
• बात का धनी होना
– वचन का प ा होना।
• बाल की खाल िनकालना
– नुकता–चीनी करना/बहत ु तक–िवतक करना।
• बाल ब का न होना/कर सकना
– कु छ भी नुकसान न होना/कर सकना।
• बाल–बाल बचना
– बड़ी किठनाई से बचना।
• बासी कढ़ी म उबाल आना
– समय बीत जाने पर इ छा जागना।
• िब ली के ग ले म घंटी ब धना
– अपने को संकट म डालना।
• बेपदी का लोटा
– ढु लमुल /प बदलने वाला।
• भंडा फोड़ना
– भेद खोल देना।
• भाड़ झ कना
– समय यथ खोना।
• भाड़े का ट ू
– पै से लेकर ही काम करने वाला।
• भीगी िब ली बनना
– सहम जाना।
• भैसँ के आगे बीन बजाना
– मूख आदमी को उपदेश देना।
• म खन लगाना
– चापलूसी करना।
• मि खय मारना
– बेकार रहना।
• मन के ल डू
– मनमोदक/क पना करना।
• माथा ठनकना
– संदेह होना।
• िम ी का माधो
– िब कु ल बु ।ू
• िम ी खराब करना
– बुरा हाल करना।
• िम ी म िमल जाना
– बब द होना।
• मुँहतोड़ जवाब देना
– बदले म करारी चोट करना।
• मुँह की खाना
– हार मानना।
• मुँह म पानी भर आना
– खाने को जी ललचाना।
• मुँह खून लगना
– िर त लेने की आदत पड़ जाना।
• मुँह िछपाना
– लि जत होना।
• मुँह रखना
– मान रखना।
• मुँह पर कािलख पोतना
– कलंक लगाना।
• मुँह उतरना
– उदास होना।
• मुँह ताकना
– दूसरे पर आि त होना।
• मुँह बंद करना
– चुप कर देना।
• मु ी म होना
– वश म होना।
• मु ी गम करना
– िर त देना।
• मोहर लगा देना
– पुि करना।
• मौत िसर पर खेल ना
– मृ यु समीप होना।
• रंग उड़ना
– घबरा जाना।
• रंग म भंग पड़ना
– आन दपूण काय म बाधा पड़ना।
• रंग बदलना
– पिरवतन होना।
• रंगा िसयार होना
– धोखा देने वाला।
• रफूच र होना
– भाग जाना।
• राई का पहाड़ बनाना
– जरा–सी बात को बढ़ा–चढ़ाकर तुत करना।
• र गटे खड़े होना
– डर से रोम िचत होना।
• रोड़ा अटकाना
– बाधा डालना।
• रोम–रोम िखल उठना
– स होना।
• लँगोटी म फाग खेल ना
– गरीबी म आन द लूटना।
• लकीर पीटना
– पुरानी रीित पर चलना।
• लकीर का फकीर होना
– ाचीन पर पराओँ को स ती से मानने वाला।
• लड़ाई मोल लेना
– झगड़ा पै दा करना।
• ल ू होना
– म त होना/मोिहत होना।
• ललाट म िलखा होना
– भा य म बदा होना।
• लहू का घूँट पीना
– अपमान सहन करना।
• लाख का घर राख
– धनी का िनधन हो जाना।
• लाल–पीला होना
– ोिधत होना।
• लुिटया डु बोना
– काम िबगाड़ना।
• लेने के देने पड़ना
– लाभ के थान पर हािन होना।
• लोहा मानना
– िकसी की शि त वीकार करना।
• लोहे के चने चबाना
– किठन काम करना/बहत ु संघष करना।
• िवष उगलना
– ेषपूण बात करना/बुरा–भला कहना।
• शहद लगाकर चाटना
– तु छ व तु को मह व देना।
• िशकार हाथ लगना
– आसामी िमलना।
• शैतान की आँत
– ल बी बात।
• शैतान के कान कतरना
– बहत ु चालाक होना।
• ीगणेश करना
– शु करना।
• स ज बाग िदखाना
– कोरा लोभ देकर बहकाना।
• स प को दूध िपलाना
– दु की र ा करना।
• स प–छछू ंदर की गित होना
– असंमजस या दुिवधा की दशा होना।
• स प सूँघ जाना
– गुप–चुप हो जाना।
• सात घाट का पानी पीना
– िव तृत अनुभव होना।
• िसँदरू चढ़ाना
– लड़की का िववाह होना।
• िस ी–िप ी गुम हो जाना
– होश उड़ जाना।
• िसतारा चमकना
– भा यशाली होना।
• िसर पर कफना ब धना
– बिलदान देने के िलए तैयार होना।
• िसर पर सवार होना
– पीछे पड़ना।
• िसर पर चढ़ना
– मुँह लगना।
• िसर मढ़ना
– िज मे लगाना।
• िसर मुँड़ाते ओले पड़ना
– काम शु होते ही बाधा आना।
• िसर से बला टलना
– मुसीबत से पीछा छु टना।
• िसर आँख पर रखना
– आदर सिहत आ ा मानना।
• िसर पर हाथ होना
– सहारा होना, वरदह त होना।
• िसर पर भूत सवार होना
– धुन लगाना।
• िसर पर मौत खेल ना
– मृ यु समीप होना।
• िसर पर खून सवार होना
– मरने-मारने को तैयार होना।
• िसर–धड़ की बाजी लगाना
– ाणॲ की भी परवाह न करना।
• िसर नीचा करना
– लजा जाना।
• िसर उठाना
– िव ोह करना।
• िसर ओखली म देना
– जान–बूझकर मुसीबत मोल लेना।
• िसर पर चढ़ाना
– अ यिधक मनमानी करने की छू ट देना।
• िसर से पानी गुजरना
– सहनशीलता समा त होना।
• िसर पर प व रखकर भागना
– तेजी से भागना।
• िसर धुनना
– पछताना।
• सीँग काटकर बछड़ म िमलना
– बूढ़े होकर भी ब च जैसा काम करना।
• सूखे धान पर पानी पड़ना
– दशा सुधरना।
• सूय को दीपक िदखाना
– अ य त िस यि त का पिरचय देना।
• सोने की िचिड़या हाथ से िनकलना
– लाभपूण व तु से वंिचत रहना।
• सोने पर सुहागा होना
– अ छी व तु का और अिधक अ छा होना।
• ह ा–ब ा रहना
– आ यचिकत होना/है रान रह जाना।
• हिथयार डाल देना
– हार मान लेना।
• हवाई िकले बनाना
– थोथी क पना करना।
• हथेल ी पर सरस उगना
– कम समय म अिधक काय करना।
• हजामत बनाना
– लूटना/ठगना।
• हथेल ी पर जान िलए िफरना
– मरने की परवाह न करना।
• हवा लगना
– असर पड़ना।
• हवा से बात करना
– बहत ु तेज दौड़ना।
• हवा हो जाना
– गायब हो जाना/भाग जाना।
• हवा पलटना
– समय बदल जाना।
• हवा का ख पहचानना
– अवसर की आव यकता को पहचानना।
• हाथ का मैल
– साधारण चीज।
• हाथ कट जाना
– परवश होना।
• हाथ म करना
– अपने वश म करना।
• हाथ को हाथ न सूझना
– घना अ धकार होना।
• हाथ खाली होना
– पया-पै सा न होना।
• हाथ खींचना
– साथ न देना।
• हाथ पे हाथ धरकर बैठ ना
– िनक मा होना/िबना काय के बैठे रहना।
• हाथॲ के तोते उड़ना
– दुःख से है रान होना/अचानक घबरा जाना।
• हाथॲहाथ
– बहत ु ज दी/त काल।
• हाथ मलते रह जाना
– पछताना।
• हाथ साफ करना
– चुरा लेना/बेईमानी से लेना।
• हाथ–प व मारना
– यास करना।
• हाथ–प व फूलना
– घबरा जाना।
• हाथ डालना
– शु करना।
• हाथ फैलाना
– म गना।
• हाथ धोकर पीछे पड़ना
– बुरी तरह पीछे पड़ना/पीछा न छोड़ना।
• िह दी की िच दी िनकालना
– बात की तह तक पहँच ु ना।
• हु ा–पानी ब द कर देना
– जाित से बाहर कर देना।
• हिु लया िबगाड़ना
– दुगत करना।
♦♦♦
2. लोकोि तय (कहावत)
लोकोि त का अथ है , लोक की उि त अथ त् जन–कथन। लोकोि तय अथवा कहावत लोक–जीवन की िकसी घटना या अ तकथा से जुड़ी रहती है ।ँ इनका ज म
लोक–जीवन म ही होता है । येक लोकोि त समाज म चिलत होने से पूव म अनेक बार लोग के अनुभव की कसौटी पर कसी गई है और सभी लोग के अनुभव उस
लोकोि त के साथ एक से रहे है ,ँ तब वह कथन सवमा य प से हमारे सामने है । लोकोि तय िदखने म छोटी लगती है ,ँ पर तु उनम अिधक भाव रहता है । लोकोि तय के
योग से रचना म भावगत िवशेषता आ जाती है ।
♦♦♦
• सामा य िह दी
♦ होम पे ज
तुित:–
मोद खेदड़
सामा य िह दी
4. पद–िवचार
♦ पद की पिरभाषा –
साथक वण या वण ँ के समूह को श द कहा जाता है । श द सािभ ाय होते है ।ँ जब कोई साथक श द वा य म यु त होता है तब उसे ‘पद’ कहते है ।ँ याकरण के िनयम के
अनुसार िवभि त, वचन, िलँग, काल आिद की यो यता रखने वाला वण ँ का समूह ‘पद’ कहलाता है । जैसे– राम िव ालय जायेगा। यह वा य ‘राम’, ‘िव ालय’ और ‘जायेगा’
तीन पद से बना है ।
♦ पद–भेद :
िह दी म पद के प च भेद या कार माने गये ह –
(1) सं ा (2) सवनाम (3) ि या (4) िवशेषण (5) अ यय।
1. सं ा
‘सं ा’ (सम्+ ा) श द का अथ है ठीक ान कराने वाला। अतः “वह श द जो िकसी थान, व तु, ाणी, यि त, गुण, भाव आिद के नाम का ान कराता है , सं ा
कहलाता है ।”
उदाहरणाथ –
• थान—भारत, िद ली, जयपुर, नगर, ग व, गली, मोह ला।
• व तुए—ँ पंखा, पु तक, मेज, दूध, िमठाई।
• ाणी—गाय, चूहा, िततली, प ी, मछली, िब ली।
• यि त—राम, याम, कृ ण, महे श, सुरेश।
• गुण, अव था या भाव—बचपन, बुढ़ापा, िमठास, सद , सौ दय, अपन व।
♦ सं ा के भेद –
िह दी भाषा म सं ा के मु य प से तीन भेद ही माने गये है —
ँ (1) यि तवाचक सं ा (2) जाितवाचक सं ा (3) भाववाचक सं ा। यवाचक और समूहवाचक सं ा श द
को जाितवाचक सं ा ही माना जाता है ।
1. यि तवाचक सं ा –
िजन सं ा श द से िकसी एक ही यि त, व तु या थान िवशेष का पता चलता है , उन श द को यि तवाचक सं ा कहते है ।ँ जैसे –
• यि तय के नाम—राम, याम, मोहन, कमला, किवता, सुशीला, शबनम आिद।
• िदशाओँ के नाम—उ र, दि ण, पूव, पि म, नैऋ य, आ नेय आिद।
• देश के नाम—भारत, पािक तान, चीन, जापान, नेपाल आिद।
• निदय के नाम—गंगा, यमुना, कृ णा, कावेरी आिद।
• सागर के नाम—अरब सागर, िह द महासागर, लाल सागर आिद।
• पवत के नाम—िहमालय, सतपुड़ा, अरावली, िवं याचल आिद।
• नगर के नाम—अजमेर, आगरा, मथुरा, िद ली, लखनऊ आिद।
• समाचार–प के नाम—राज थान पि का, दैिनक भा कर, दैिनक अ बर, अमर उजाला आिद।
• पु तक के नाम—रामायण, महाभारत, रामचिरतमानस, साकेत, अंधायुग आिद।
• िदन के नाम—सोमवार, मंगलवार, बुधवार आिद।
• महीन के नाम—जनवरी, फरवरी, चै , वैशाख आिद।
• ह–न के नाम—सूय, च मा, पृ वी, शिन, मंगल आिद।
• यौहार के नाम—होली, दीपावली, तीज, ईद, गणगौर आिद
2. जाितवाचक सं ा –
िजन सं ा श द से एक जाित के सभी ािणय या पदाथ ँ अथवा स पूण जाित, वग या समुदाय का बोध होता है , उ ह जाितवाचक सं ा कहते है ।ँ जैसे– मनु य, घोड़ा,
नगर, पवत, कूल, गाय, फूल, पु तक, पशु, प ी, छा , िखलाड़ी, स जी, माता, म ी, पि डत, जुल ाहा, अ यापक, किव, लेखक, जन, बिहन, बेटा, पहाड़, ी, ि य, भु,
वीर, िव ान, चोर, िशशु, ठग, सेना, दल, कु ंज, क ा, भीड़, सोना, दूध, पानी, घी, तेल आिद।
3. भाववाचक सं ा –
िजन सं ा श द से िकसी यि त, व तु और थान के गुण, दोष, भाव, दशा, यापार आिद का बोध होता है , उ ह भाववाचक सं ा कहते है ।ँ जैसे– स य, बचपन, बुढ़ापा,
सफलता, िमठास, िम ता, हिरयाली, मु कु राहट, लघुता, भुता, वीरता, चूक, लड़कपन, जवानी, ठगी, डर आिद।
(3) ि या से भाववाचक सं ा –
खेल ना - खेल
थकना - थकावट
लड़ना - लड़ाई
बहना - बहाव
भूल ना - भूल
हँसना - हँसी
देखना - िदखावा
सुनना - सुनवाई
चुनना - चुनाव
धोना - धुल ाई
पढ़ना - पढ़ाई
कना - कावट
िलखना - िलखाई
जीतना - जीत
जीना - जीवन
सीना - िसलाई
जलना - जलन
सजाना - सजावट
बसना - बसावट
गाना - गान
बैठ ना - बैठ क
िबकना - िब ी
कमाना - कमाई।
(5) अ यय श द से भाववाचक सं ा –
िधक् - िध ार
ऊपर - ऊपरी
दूर - दूरी
चतुर - चातुय
िनकट - िनकटता
मना - मनाही
नीचे - नीचाई
तेज - तेजी
बाहर - बाहरी।
2. सवनाम
♦ पिरभाषा –
सं ा के थान पर आने वाले श द को सवनाम कहते है ।ँ
सवनाम का अिभधाथ है —सबका नाम। जो सबके नाम के थान पर आये, वे सवनाम कहलाते ह। जैसे– मैँ, तुम, आप, यह, वह, हम, उसका, उसकी, वे, या, कु छ, कौन
आिद।
वा य म सं ा की पुन ि त को दूर करने के िलए ही सवनाम का योग िकया जाता है । सवनाम भाषा को सहज, सरल, सु दर एवं संि त बनाते है ।ँ सवनाम के अभाव म
भाषा अटपटी लगती है ।
उदाहरणाथ –
राम कूल गया है । कूल से आते ही राम राम का और िम का काम करेगा। िफर राम और िम खेल गे।
यह वा य िकतना अटपटा, अनगढ़ और असु दर है । अब सवनाम से यु त वा य देिखए–
राम कूल गया है । वह से आते ही वह अपने िम के घर जायेगा। िफर दोन अपना–अपना काम करगे। िफर दोन खेल गे।
♦ सवनाम के भेद –
सवनाम के िन िलिखत छः भेद होते है ँ –
(1) पु षवाचक – मैँ (हम), तुम (तू, आप), वह (यह, आप)
(2) िन यवाचक – यह (िनकटवत ), वह (दूरवत )
(3) अिन यवाचक – कोई ( ािणवाचक), या (अ ािणवाचक)
(4) स ब धवाचक – जो ... सो (वह)
(5) वाचक – कौन ( ािणवाचक), या (अ ािणवाचक)
(6) िनजवाचक – आप ( वयं, खुद)।
1. पु षवाचक सवनाम–
िजस सवनाम का योग व ता (बोलने वाला) या लेखक वयं अपने िलए अथवा ोता या पाठक के िलए या िकसी अ य यि त के िलए करता है , उसे पु षवाचक सवनाम
कहते है ।ँ जैसे– उसने, मुझे, तुम आिद।
2. िन यवाचक सवनाम–
िजन सवनाम श द से िकसी दूरवत या िनकटवत यि तय , ािणय , व तुओँ और घटना– यापार का िनि त बोध होता है , उ ह िन यवाचक सवनाम कहते है ।ँ जैसे–
यह, वह, ये, वे, इ ह ने, उ ह ने आिद।
िनकटवत के िलए ‘यह’ तथा दूरवत के िलए ‘वह’ का योग होता है । इस सवनाम को ‘संकेतवाचक’ या ‘िनदशक सवनाम’ भी कहते है ।ँ
ािणय के िलए ‘कोई’ व ‘िकसी’ तथा पदाथ ँ के िलए ‘कु छ’ का योग िकया जाता है । जैसे–
• रा ते म कु छ खा लेना।
• स भवतः कोई आया है ।
• वह िकसी से भी पूछ लेना।
4. स ब धवाचक सवनाम–
जो सवनाम श द िकसी वा य म यु त सं ा या सवनाम का अ य सं ा या सवनाम के साथ पर पर स ब ध का बोध कराते है ,ँ उ ह स ब धवाचक सवनाम कहते है ।ँ
जैसे– जो, िजनका, उसका आिद।
• जो करता है , वह भरता है ।
• िजसका खाते हो उसी को आँख िदखाते हो।
• जैसा करोगे वैसा भरोगे।
• िजसकी लाठी उसकी भैस ँ ।
• िजसको आपने बुल ाया था, वह आया है ।
5. वाचक सवनाम–
वह सवनाम िजसका योग िकसी यि त, ाणी, व तु, ि या या यापार आिद के स ब ध म करने के िलए िकया जाता है , वाचक सवनाम कहलाता है । जैसे– कौन,
या, कब, य , िकसको, िकसने आिद।
यि त या ाणी के स ब ध म करते समय ‘कौन, िकसे, िकसने’ का योग िकया जाता है , जबिक व तु या ि या– यापार के स ब ध म करते समय ‘ या, कब’
आिद का योग िकया जाता है । जैसे–
• देखो, कौन आया है ?
• यह िगलास िकसने तोड़ा?
• आप खाने म या लगे?
• जयपुर कब जा रहे हो?
6. िनजवाचक सवनाम–
वह सवनाम श द िजनका योग बोलने वाला या िलखने वाला वयं अपने िलए करता है , िनजवाचक सवनाम कहलाता है । जैसे– आप, अपने आप, अपना, वयं, खुद, मैँ,
हम, हमारा आिद।
• हम अपना काय वयं करना चािहए।
• मैँ अपना काम खुद कर लूँगा।
• मैँ वयं आ जाऊँगा।
• हमारा यारा राज थान।
♦ सवनाम श द के पा तर–िनयम :
(1) सवनाम का योग सं ा के थान पर होता है । अतः िकसी भी सवनाम श द का िलँग और वचन उस सं ा के अनु प रहे गा िजसके थान पर उसका योग हआ ु है ।
जैसे–
राम और उसका बेटा आया था।
(2) सवनाम का योग एकवचन और बहवु चन दोन म होता है । जैसे– मैँ (हम), वह (वे), यह (ये), इसका (इनका)।
(3) स ब धकारक के अितिर त अ य िकसी कारक के कारण सवनाम श द का िलँग पिरवतन नहीँ होता। जैसे–
• मैँ पढ़ता हूँ।
मैँ पढ़ती हूँ।
• वह आया।
वह आई।
• तुम कूल जाते हो।
तुम कूल जाती हो।
(4) सवनाम से स बोधन कारक नहीँ होता, य िक िकसी को सवनाम ारा पुकारा नहीँ जाता।
(5) आदर के अथ म एक यि त के िलए भी अ य पु षवाचक सवनाम का योग बहवु चन म होता है । जैसे–
• तुल सीदास महान किव थे, उ ह ने िहँदी सािह य को महान रचनाएँ दान कीँ।
(6) उ म पु ष और म यम पु ष सवनाम के बहवु चन का योग एक यि त के िलए भी होता है । जैसे–
• हम (मैँ) आ रहे है ।ँ
• आप (तू) अव य आना।
• तुम (तू) जा सकते हो।
(7) ‘तू’ सवनाम का योग अ य त िनकटता या आ मीयता कट करने के िलए, अपने से आयु व स ब ध म छोटे यि त के िलए या कभी–कभी ितर कार दशन करने के
िलए एवं ई र के िलए भी िकया जाता है । जैसे–
• म ! तू या कर रही है ?
• अरे नालायक! तू अब तक कह था?
• हे भु! तू मेरी ाथना कब सुनेगा?
(8) मुझ, तुझ, तुम, उस, इन आिद सवनाम म िन याथ के िलए ‘ई’ (◌ी) जोड़ देते है ।ँ जैसे– उस (उसी), तुझ (तुझी), तुम (तु हीँ), इन (इ हीँ)।
(9) मैँ, तुम, आप, वह, यह, कौन आिद सवनाम का िनज–भेद उनके ि या– प से जाना जाता है । जैसे–
• वह पढ़ रहा है ।
• वह पढ़ रही है ।
(10) पु षवाचक सवनाम के साथ ‘को’ लगने पर उनके प म अ तर आ जाता है । जैसे–
• मैँ (को) मुझको या मुझे।
• तू (को) तुझको या तुझे।
• यह (को) इसको या इसे।
• ये (को) इनको या इ ह।
• वह (को) उसको या उसे।
• वे (को) उनको या उ ह।
(11) अिधकार अथवा अिभमान कट करने के िलए आजकल ‘मैँ’ की बजाय ‘हम’ का योग चल पड़ा है , जो याकरण की दृि से अशु है । जैसे–
• िपता के नाते हमारा भी कु छ क य है ।
• श त रिहए, अ यथा हम कड़ा ख अपनाना पड़े गा।
(12) जह ‘मैँ’ की जगह ‘हम’ का योग होने लगा है , वह ‘हम’ के बहवु चन के प म ‘हम लोग’ या ‘हम सब’ का योग चिलत है ।
(13) ‘तुम’ सवनाम के बहवु चन के प म ‘तुम सब’ का चलन हो गया है । जैसे–
• रमेश! तुम यह आओ।
• अरे रमेश, सुरेश, िदनेश! तुम सब यह आओ।
(14) ‘मैँ’, ‘हम’ और ‘तुम’ के साथ ‘का’, ‘के’, ‘की’ की जगह ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ यु त होते है ।ँ जैसे– मेरा, मेरी, मेरे, तु हारा, तु हारे, तु हारी, हमारा, हमारे, हमारी।
(15) सवनाम श द के साथ िवभि त िच िमलाकर िलखे जाने चािहए। जैसे– मुझको, उसने, हमसे आिद।
(16) यिद सवनाम के बाद दो िवभि त िच आते है ँ तो पहला िमलाकर तथा दूसरा अलग रखा जाना चािहए। जैसे– उनके िलए, उन पर से, हमम से, उनके ारा आिद।
(17) यिद सवनाम तथा िवभि त िच के बीच ‘ही’, ‘तक’ आिद कोई िनपात आ जाता है तो िवभि त को अलग िलखा जाएगा। जैसे– आप ही के िलए, उन तक से आिद।
♦ सवनाम के पुन ि त प :
कु छ सवनाम पुनरावृि के साथ योग म आते है ।ँ ऐसे थल पर अथ म िविश ता या िभ ता आ जाती है । जैसे–
• जो—जो–जो आता जाए, उसे िबठाते जाओ।
• कोई—कोई–कोई तो िबना बात भागा चला जा रहा था।
• या—हमारे साथ या– या हआ ु , यह न पूछो।
• कौन—मेल े म कौन–कौन चलेगा?
• िकस—िकस–िकसको भूख लगी है ?
• कु छ—मुझे कु छ–कु छ याद आ रहा है ।
• अपना—अपना–अपना सामान लो और चलते बनो।
• आप—यजमान आप–आप ही खाए जा रहे थे, मेहमान की कहीँ कोई पूछ नहीँ थी।
• वह—िजसे िमठाई न िमली हो, वह–वह क जाओ।
• कह —मैँने तु ह कह –कह नहीँ ढू ँढा।
3. िवशेषण
♦ पिरभाषा –
सं ा या सवनाम की िवशेषता (गुण, दोष, सं या, रंग, आकार– कार आिद) बताने वाले श द को िवशेषण कहते है ।ँ जैसे– मोटा, पतला, कौन आिद।
उदाहरणाथ–
• एक िकलो चीनी लाओ।
• सफेद गाय कम दूध देती है ।
• ब चा होिशयार है ।
• कु छ लोग सो रहे है ।ँ
• मेरी क ा म बीस िव ाथ है ।ँ
उपयु त वा य म एक िकलो, सफेद, कम, होिशयार, कु छ, बीस मशः चीनी, गाय, दूध, ब चे, लोग तथा िव ाथ की िवशेषता बता रहे है ,ँ अतः ये सभी िवशेषण है ।ँ
♦ िवशे य और िवशेषण –
िजस सं ा या सवनाम श द की िवशेषता कट की जाती है , उसे िवशे य और जो िवशेषता–सूचक श द होता है , उसे िवशेषण कहते है ।ँ िवशेषण श द ायः िवशे य से पहले
आता है । जैसे –
• मुझे मीठे यंजन अ छे लगते है ।ँ
• काली िब ली को देखो।
• दो िकलो दूध लाओ।
उपयु त वा य म मशः ‘ यंजन’, ‘िब ली’ और ‘चीनी’ िवशे य तथा ‘मीठे ’ , ‘काली’ और ‘दो िकलो’ श द िवशेषण है ।ँ कभी–कभी िवशेषण श द िवशे य के बाद भी यु त
होते है ।ँ जैसे –
• यह छा बुि मान है ।
• ये फल बहत ु मीठे है ।ँ
• वह यि त यो य है ।
• रमेश ईमानदार है ।
♦ िवशेषण –
जो िवशेषण श द िवशेषण की भी िवशेषता बतलाते है , उ ह िवशेषण कहते है ।ँ
उदाहरणाथ –
• यह लड़का बहत ु अ छा है ।
(‘बहत ु ’ िवशेषण)
• आप बड़े भोले है ।ँ
(‘बड़े ’ िवशेषण)
• मैँ पूण व थ हूँ।
(‘पूण’ िवशेषण)
• मोहनी अ य त सु दरी है ।
(‘अ य त’ िवशेषण)
• घर िब कु ल सुनसान था।
(‘िब कु ल’ िवशेषण)
• आज बहत ु अिधक सद है ।
(‘बहत ु ’ िवशेषण)
यात य – िवशेषण चाहे , ‘उ े य–िवशेषण’ हो, चाहे ‘िवधेय–िवशेषण’, दोन ही ि थितय म उनका प सं ा या सवनाम के अनुसार बदलता है । उदाहरणाथ –
उ े य िवशेषण के प–
• लंबी युवती खेल रही है ।
(िवशेषण और िवशे य दोन ी एकवचन)
• लंबी युवितय खेल रही है ।ँ
( ीिलँग, िवशेषण अपिरवितत रहता है )
• लंबा लड़का जा रहा है ।
(िवशेषण–िवशे य दोन पु ष एकवचन)
• लंबे लड़के जा रहे है ।ँ
(िवशेषण–िवशे य दोन पु ष बहवु चन)
िवधेय िवशेषण के प –
• वह लड़का लंबा है ।
(िवशेषण–िवशे य दोन पु ष एकवचन)
• वे लड़के लंबे है ।ँ
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♦ िवशेषण के भेद :
िवशेषण के प च भेद होते है ँ –
1. गुणवाचक िवशेषण (Adjective of Quality)
2. पिरमाणवाचक िवशेषण (Adjective of Quantity)
3. सं यावाचक िवशेषण (Numerical Adjective)
4. सावनािमक िवशेषण या संकेतवाचक अथवा िनदशवाचक िवशेषण (Demonstrative Adjective)
5. यि तवाचक िवशेषण।
1. गुणवाचक िवशेषण –
सं ा अथवा सवनाम के िकसी भी कार के गुण से स बि धत िवशेषता का बोध कराने वाले श द को गुणवाचक िवशेषण कहते है ।ँ जैसे–
वह मोटा आदमी है ।
उसके कोट का रंग नीला है ।
वह गोरी लड़की है ।
इन वा य म ‘मोटा’, ‘नीला’, ‘गोरी’ श द गुणवाचक िवशेषण है ।ँ
यह ‘गुण’ का अथ केवल अ छी िवशेषताओँ से नहीँ है । यह ‘गुण’ का ता पय है – िकसी भी व तु या यि त की िवशेष ि थित, िवशेष दशा, िवशेष िदशा, रंग, गंध, काल,
थान, आकार, प, वाद, बुराई, अ छाई आिद। अतः जो िवशेषण िकसी सं ा या सवनाम की उपयु त िवशेषताओँ का बोध कराए, उसे गुणवाचक िवशेषण कहते है ।ँ कु छ
चिलत मुख गुणवाचक िवशेषण इस कार है – ँ
• गुणबोधक—अ छा, भला, िश , न , सुशील, िवनीत, दानी, ईमानदार, पिर मी, दयालु, स चा, सरल आिद।
• दोषबोधक—बुरा, खराब, झूठ ा, अिश , उ त, ढीठ, दु िर , कंजूस, कामचोर, पापी, दुरा मा, िनदयी आिद।
• रंगबोधक—काला, पीला, नीला, हरा, लाल, गुल ाबी, सुनहरा, चमकीला, हिरत, र त, जामुनी, बैगँ नी, खाकी, सुमई, बहरु गं ी, सतरंगी, नवरंग आिद।
• कालबोधक—आधुिनक, ाचीन, ताजा, बासी, ागैितहािसक, नवीन, नूतन, िणक, दैिनक, सा तािहक, पाि क, मािसक, वािषक आिद।
• थानबोधक— ामीण, शहरी, भारतीय, देशी, िवदेशी, बनारसी, सी, जापानी, चीनी, नेपाली, बाहरी, अमरोही, लुिधयानवी, जयपुरी, लाहौरी, जालंधरी, इलाहाबादी आिद।
• ग धबोधक—खुशबूदार, सुगि धत, मधुग धी, सौँधी, महक, बदबूदार, दुगि धत, गंधहीन आिद।
• िदशाबोधक—उ री, दि णी, पूव , पि मी, पि मो री, पा ा य, पौव य, ईशानकोणीय, ऊपरी, भीतरी, बाहरी आिद।
• अव थाबोधक—गीला, सूखा, नम, शु क, आ , नमीदार, पनीला, भुना हआ ु , तला हआ ु , जला हआ
ु , पका हआ
ु आिद।
• आयुबोधक—युवा, वृ , बाल, िकशोर, अधेड़, ौढ़, त ण आिद।
• दशाबोधक—रोगी, िनरोगी, व थ, अ व थ, बीमार, ण, भला–चंगा, त दु त, सुधरा हआ ु , िबगड़ा हआु , फटा हआ
ु , नया, पुराना आिद।
• आकारबोधक—छोटा, बड़ा, मोटा, ल बा, िठगना, बौना, गोल, ऊँचा, चौड़ा, ितकोना, चौकोर, ष कोण, अ डाकार, ि भुज, सप कार, गोलाकार, वृ ाकार आिद।
• पशबोधक—कठोर, कोमल, मुल ायम, खुरदरा, मखमली, नम, स त, ठ डा, गम, िचकना, ि न ध आिद।
• वादबोधक—ख ा, मीठा, मधुर, कड़वा, नमकीन, कसैल ा आिद।
2. पिरमाणवाचक िवशेषण –
िजस िवशेषण श द से सं ा अथवा सवनाम की माप–तोल या मा ा संबध ं ी िवशेषता का ान हो, उसे पिरमाणवाचक िवशेषण कहते है ।ँ जैसे– कु छ, थोड़ा, सब आिद।
• मैँ ितिदन चार लीटर दूध लाता हूँ।
• वह बाद म कु छ घी खाता है ।
यह चार लीटर दूध का माप है । कु छ घी का माप है । इन दोन व तुओँ को िगना नहीँ जा सकता, केवल मापा जा सकता है । इसिलए ये पिरमाणवाचक िवशेषण है ।ँ
3. सं यावाचक िवशेषण –
जो िवशेषण िकसी यि त, ाणी अथवा व तु (सं ा या सवनाम) की सं या से स बि धत िवशेषता का बोध कराएँ, उ ह सं यावाचक िवशेषण कहते है ।ँ जैसे– तीसव ,
साढ़े चार, येक, कम, सब आिद।
(ii) मवाचक—
िजस िवशेषण से म का ान हो, उसे मवाचक िवशेषण कहते है ।ँ जैसे– पहला, तीसरा, चौथा, छठा, आठव आिद।
(iv) समुदायवाचक—
िजस िवशेषण से कु छ सं याओँ के इक े समूह अथवा समुदाय का बोध हो, उसे समुदायवाचक िवशेषण कहते है ।ँ जैसे– दोन , तीन , प च , आठ , दस , तीन –के–तीन ,
सभी, सब–के–सब आिद।
(v) समु चयवाचक—
सं ा या सवनाम के िकसी चिलत समु चय को कट करने वाले िवशेषण समु चयवाचक कहलाते है ।ँ जैसे– दजन, यु म, जोड़ा, प चीसी, चालीसा, शतक, सैँकड़ा,
सतसई आिद।
(vi) िभ तावाचक—
जो िवशेषण िभ ता दश ते हएु सं ा या सवनाम (िवशे य) की िवशेषता बतलाते है ,ँ उ ह िभ तावाचक िवशेषण कहते है ।ँ जैसे– येक, हरेक, हर मास, हर वष, एक–एक,
चार–चार आिद।
वा य– योग—
• कु छ ब चे खेल रहे है ।ँ
ु संतरे है ,ँ मेरी म थोड़े ।
• तु हारी थैल ी म बहत
• रैल ी म हजार लोग पहँच ु े।
• गुंड ने सैकड़ दुकान फूँक डाली।
• वह कोई प च सौ िखलाड़ी ह गे।
4. सावनािमक िवशेषण—
जो सवनाम, अपने सावनािमक प म ही सं ा के िवशेषण के प म यु त होते है ँ अथवा जो सवनाम श द सं ा की ओर संकेत करते है ,ँ उ ह सवनािमक िवशेषण या
संकेतवाचक िवशेषण कहते है ।ँ जैसे– ये, वे, कौन, उस आिद।
• यह मेरी पु तक है ।
• कोई यि त गा रहा है ।
• कौन लोग आये थे?
• वह मकान अ छा है ।
• इन छा को पु तक दो।
उपयु त वा य म ‘यह’, ‘कोई’, ‘कौन’, ‘वह’ और ‘इन’ श द मशः ‘पु तक’, ‘ यि त’, ‘लोग’, ‘मकान’ और ‘छा ’ की ओर संकेत करते है ँ अथवा उनकी िवशेषता
कट करते है ।ँ अतः ये सावनािमक या संकेतवाचक िवशेषण है ।ँ
5. यि तवाचक िवशेषण–
यि तवाचक सं ा से बनन वाले िवशेषण को यि तवाचक िवशेषण कहते है ।ँ जैसे– क मीरी, जापानी, भारतीय, नेपाली आिद।
• हम राज थानी है ।ँ
• मैँ भारतीय नागिरक हूँ।
• रमेश धनवान (धनी) आदमी है ।
• नागौरी बैल अ छे होते है ।ँ ऊपर िलखे वा य म ‘राज थान’ से ‘राज थानी’, ‘भारत’ से ‘भारतीय’, ‘धन’ से ‘धनवान (धनी)’ और ‘नागौर’ से ‘नागौरी’ िवशेषण बने है ।ँ
राज थान, भारत, धन और नागौर यि तवाचक सं ाएँ है ।ँ
♦ िवशेषण की तुल ना :
िवशेषण म तुल ना मक ि थय आती है ।ँ य िप िह दी म िवशेषताओँ की तुल ना मक कमी या अिधकता कट करने के िलए अलग से अपने श द नहीँ है ।ँ जो भी
तुल ना मक श द है ,ँ वे सं कृत या उदू के है ।ँ िह दी म तुल ना मक िवशेषता कट करने के िलए ‘से कम’, ‘से अिधक’, ‘सबसे बढ़कर’, ‘सव िधक यून’ आिद िवशेषण का
योग िकया जाता है ।
(2) उ राव था –
जह दो यि तय या व तुओँ म तुल ना की जाये और उनम से िकसी एक को अिधक या कम बतलाया जाये, वह उ राव था होती है । जैसे – सु दरतर, े तर,
अिधकतर, लघु र आिद।
• अ ण राजीव से अ छा है ।
• वह तु हारी अपे ा समझदार है ।
• आकार म रामायण से महाभारत वृह र है ।
• मोिहनी, उवशी की तुल ना म पवती है ।
यान देने यो य है िक उ राव था म दो िवशे य होते है ।ँ उनम तुल ना कट करने के िलए से बढ़कर, से घटकर, से कम, की अपे ा, की तुल ना म, के मुकाबले, से अिधक
आिद वाचक का योग होता है ।
(3) उ माव था –
जब दो या दो से अिधक यि तय या व तुओँ की तुल ना म िकसी एक को सबसे अिधक े अथवा कम बतलाया जाये तब वह िवशेषण की उ माव था होती है । जैसे–
सु दरतम, े तम, अिधकतम, लघु म आिद। इसम सबसे बढ़कर, सव िधक, सबसे कम, सभी म आिद श द यु त होते है ।ँ जैसे –
• माला, सबसे चतुर लड़की है ।
• िहमालय सव िधक ऊँचा पवत है ।
• राज थान म माउ ट आबू सव िधक ठ डा थान है ।
♦ तुल नाबोधक यय –
िह दी म अपने तुल ना मक यय नहीँ है ।ँ अतः सं कृत श द के साथ सं कृत के यय ‘तर’ और ‘तम’ यु त होते है ँ तथा उदू श द के साथ उदू के यय ‘तर’ तथा
‘तरीन’ यु त होते है ।ँ जैसे–
मूल ाव था उ राव था उ माव था
अिधक अिधकतर अिधकतम
उ कृ उ कृ तर उ कृ तम
उ च उ चतर उ चतम
कु िटल कु िटलतर कु िटलतम
गु गु तर गु तम
दृढ़ दृढ़तर दृढ़तम
दीघ दीघतर दीघतम
िनकट िनकटतर िनकटतम
िनकृ िनकृ तर िनकृ तम
िन िन तर िन तम
यून यूनतर यूनतम
महान मह र मह म
मधुर मधुरतर मधुरतम
मृद ु मृदत
ु र मृदत
ु म
लघु लघु र लघु म
वृहत वृह र वृह म
े े तर े तम
सुंदर सुंदरतर सुंदरतम
समीप समीपतर समीपतम
उदू–फारसी के तुल ना मक यय–
अ छा बेहतर बेहतरीन
कम कमतर कमतरीन
बद बदतर बदतरीन
♦ िवशेषण श द के प तर :
िवशेषण श द म तीन कारण से ँ िलँग, वचन और कारक के कारण। कु छ आकार त िवशेषण म िलँग और वचन संबध
पा तर होते है — ं ी पिरवतन िवशे य के अनुसार
होता है । जैसे –
• काला कौआ, काली गाय, काले घोड़े ।
• छोट ब चा, छोटी ब ची, छोटे ब चे।
• मैल ा कपड़ा, मैल ी चादर, मैल े बतन।
िवभि त से यु त िवशे य और संबोधन कारक के साथ आकार त िवशेषण म ‘आ’ का ‘ए’ हो जाता है । जैसे –
• लंबे लड़क को पीछे िबठाओ।
(लंबा का लंबे)
• काले घोड़ को दौड़ाओ।
(काला का काले)
• पीले कपड़े पहन लो।
(पीला का पीले)
• ऐ छोटे ब चे, बैठ जाओ।
(छोटा का छोटे )
• बुरे लोग से दूर ही रहना चािहए।
(बुरा का बुरे)
आकार त िवशेषण के अितिर त अ य िवशेषण यथावत् रहते है ।ँ उनका प–पिरवतन नहीँ होता। जैसे –
• कीमती हार, कीमती गुिड़या, कीमती कपड़े ।
• मािसक पि का, मािसक पि काएँ, मािसक चंदे।
• ऐितहािसक इमारत, ऐितहािसक इमारत।
• यो य लड़का, यो य लड़के, यो य लड़की।
• रोगी ब चे, रोगी ी, रोगी यि त।
♦ िवशेषण की रचना :
िह दी म मूल प म िवशेषण श द बहतु कम है ।ँ कु छ मूल िवशेषण है –
ँ बुरा, अ छा, ल बा, बड़ा आिद। अिधक श िवशेषण सं ा, सवनाम, ि या या अ यय श द से उ प
हएु है ।ँ इसी कारण उ ह यु प िवशेषण कहा जाता है । यु प िवशेषण का िनम ण सं ा, सवनाम, ि या तथा अ यय म उपसग और यय लगाने से होता है ।
2. यय से िवशेषण रचना–
• इितहास+इक = ऐितहािसक
• समाज+इक = सामािजक
• रंग+इला = रंगीला
• ान+वती = ानवती
• मद+अक = मादक
• बुि +मान = बुि मान
• सुख+द = सुखद
• बल+शाली = बलशाली
• चाय+वाला = चायवाला।
4. सं ा श द से यु प िवशेषण–
अिधक श िवशेषण सं ा श द से यु प होते है ।ँ जैसे–
सं ा श द — िवशेषण
• जयपुर—जयपुरी
• लखनऊ—लखनवी
• अलीगढ़—अलीगढ़ी
• आदर—आदरणीय
• नमक—नमकीन
• नगर—नागिरक
• ाम— ामीण
• शहर—शहरी
• अंक—अंिकत
• िदन—दैिनक
• गाना—गायक
• खेद—िख
• पु प—पुि पत
• फल—फिलत
• चाचा—चचेरा
• दूध—दुधा
• नाव—नािवक।
5. सवनाम से यु प िवशेषण–
• जो—जैसा
• यह—ऐसा
• वह—वैसा
• अहं—अहंकार
• तुम—तुम–सा
• आप—आप–सा
• उस—उस–सा
• मैँ—मुझ–सा।
6. ि या से यु प िवशेषण–
• भागना—भगोड़ा
• भूल ना—भुल ड़
• पठ् —पिठत
• हँसना—हँसोड़
• चलना—चालू
• िदखाना—िदखावटी।
7. अ यय से यु प िवशेषण–
• बाहर—बाहरी
• भीतर—भीतरी
• आगे—अगला
• पीछे —िपछला
• ऊपर—ऊपरी
• नीचे—िनचला।
4. ि या
♦ पिरभाषा–
िजन श द से िकसी कम (काय) के होने या करने अथवा िकसी ि या म होने का बोध हो, उन श द को ि या कहते है ।ँ जैसे–
• राम खाना खाता है ।
• रेखा खेल रही है ।
• वह ब बई गया।
• नदी बह रही थी।
• मोिहनी गाती है ।
• पु तक मेज पर है ।
• गम हो रही है ।
उपयु त वा य म ‘खाता है ’ , ‘खेल रही है ’, ‘गया’, ‘बह रही थी’, ‘गाती है ’, ‘पर है ’ , ‘हो रही है ’ ि या बोधक श द है ।ँ
ि या वा य का अिनवाय अंग है । िबना ि या के वा य–रचना संभव नहीँ है । ि या के िबना वा य श हो सकता है , वा य नहीँ। कई बार ि या य प म नहीँ, बि क
परो प म िव मान रहती है । जैसे–
• बहतु सुंदर।
• िद ली।
• अव य।
• रोटी।
इन अपूण वा य म ि याएँ िछपी हईु है ।ँ ‘बहत
ु सु दर’ का अथ– यह बहत
ु सु दर है अथवा यह बहत ु सु दर हआु है । या यह बहतु सु दर िकया है ।
‘अव य’ का अथ है – अव य जाऊँगा/आऊँगा/खाऊँगा/गया था/जाता हूँ आिद।
‘िद ली’ का ता पय है – िद ली गया था/जाऊँगा आिद। ‘रोटी’ का आशय है – रोटी खाई थी/रोटी खाएँगे आिद।
♦ ि या का िनम ण–
ि या का िनम ण धातु से होता है । ‘धातु’ वह मूल श द है , िजससे ि या पद का गठन होता होता है । जैसे– िलखना—िलख धातु, ना यय। पढ़ना—पठ् धातु, ना यय।
♦ ि या के सामा य प–
मूल धातु म ‘ना’ यय लगाकर यु त िकए जाने वाले प को ि या का सामा य प कहा जाता है । जैसे– पढ़+ना = पढ़ना, िलख+ना = िलखना, खेल +ना = खेल ना,
पी+ना = पीना, चल+ना = चलना, खा+ना = खाना आिद।
♦ धातु –
ि या के मूल व प को धातु कहते है ।ँ जैसे– आ, जा, खा, पी, पढ़, िलख, चल, हँस, गा, सो, सक, खेल , देख, सुन, बैठ आिद।
ये िविभ ि याओँ के मूल प है ।ँ इसिलए इ ह ि यामूल भी कहते है ।ँ इनसे अनेक ि याएँ बनती है ।ँ जैसे– िलख से िलखा, िलखता, िलखते, िलखती, िलखूँ, िलखूँगा,
िलखगे, िलखी थी आिद।
♦ धातु के प –
धातु के िन िलिखत प च भेद है –
ँ
1. सामा य धातु – मूल धातु म ‘ना’ यय लगाकर बनाए गए प ‘सामा य धातु’ कहलाते है ।ँ जैसे– सोना, पढ़ना, आना, जाना, िलखना, तैरना आिद। इ ह सरल धातु भी कहा
जाता है ।
2. यु प धातु – जो धातु सामा य धातु म यय लगाकर अथवा अ य िकसी कार बनाई जाती है , उ ह यु प धातु कहते है ।ँ जैसे–
सामा य धातु— यु प धातु
पीना—िपलाना, िपलवाना
देना—िदलाना, िदलवाना
रोना— लाना, लवाना
सोना—सुल ाना, सुल वाना
उठना—उठाना, उठवाना
कटना—काटना, कटाना, कटवाना
उड़ना—उड़ाना, उड़वाना।
3. नामधातु – सं ा, सवनाम और िवशेषण श द म यय लगाकर जो धातु यु प होती है ,ँ उ ह नाम धातु कहते है ।ँ ायः नाम धातुओँ म ‘अ’ यय का योग होता है । जैसे–
• सं ा श द से—लालच–ललचाना, शम–शम ना, हाथ–हिथयाना, बात–बितयाना, लात–लितयाना, िफ म–िफ माना।
• िवशेषण श द से—िचकना–िचकनाना, गम–गरमाना, लँगड़ा–लँगड़ाना, दुहरा–दुहराना।
• सवनाम श द से—आप–अपनाना।
4. सि म धातु – सं ा, िवशेषण और ि या–िवशेषण श द के प ात् ‘करना’ या ‘होना’ ि या–पद लगाकर बनने वाले धातु प ‘सि म धातु’ कहलाते है ।ँ जैसे–
काम करना, काम होना, उ म करना, उ म होना, धीरे करना, धीरे होना आिद।
कु छ अ य सहायक ि या–पद से बनने वाले सि म धातु–
• करना—नाम करना, छे द करना, ह या करना।
• होना—नाम होना, छे द होना, ह या होना।
• खाना—मार खाना, िर त खाना, हवा खाना।
• देना—दशन देना, क देना, ध यवाद देना।
• आना—काम आना, पसंद आना, नजर आना।
• जाना—भाग जाना, खा जाना, पी जाना, सो जाना।
• मारना—च र मारना, डीँग मारना, झप ा मारना।
5. अनुकरणा मक धातु – विनय के अनुकरण पर बनाई जाने वाली धातुए ँ अनुकरणा मक कहलाती है ।ँ जैसे–
िभनिभन–िभनिभनाना, िहनिहन–िहनिहनाना, खटखट–खटखटाना, टनटन–टनटनाना, झनझन–झनझनाना।
♦ ि या के भेद –
अथ के आधार ि या के मु यतः दो भेद होते है –
ँ 1. सकमक ि या, 2. अकमक ि या।
1. सकमक ि या –
िजस ि या के यापार (काय) का फल क को छोड़कर कम पर पड़ता है , वह सकमक ि या कहलाती है । इन ि याओँ म कम अव य होता है । जैसे–
• मोहन ने खाना खाया।
• सीता ने प पढ़ा।
इन दोन वा य म ‘खाया’ और ‘िलखा’ श द का फल मोहन और सीता पर न पड़कर ‘खाना’ और ‘प ’ पर पड़ रहा है । अतः ये दोन सकमक ि याएँ है ।ँ अ य उदाहरण–
• अनुराग ने फल खरीदे।
• राम ने रावण को मारा।
• ब चे सीिरयल देख रहे है ।ँ
• बािलका िनब ध िलख रही है ।
• डॉ टर बीमारी दूर करता है ।
कु छ वा य म ‘कम’ उपि थत नहीँ होता, पर तु कम की आव यकता बनी रहती है । ऐसी ि या भी सकमक कहलाती है । जैसे–
• राम पढ़ता है ।
• सुधा खेल रही है ।
इन वा य म राम ‘ या’ पढ़ रहा है और सुधा ‘ या’ खेल रही है —ये आव यकताएँ बनी हईु है ।ँ इसिलए कम के न होने पर भी ये सकमक ि याएँ है ।ँ
♦सकमक ि या के भेद –
सकमक ि या के दो भेद होते है –
ँ पूण सकमक और अपूण सकमक ि या।
(1) पूण सकमक ि याएँ–
जो ि याएँ कम के साथ जुड़कर पूरा अथ दान करती है ,ँ पूण सकमक कहलाती है ।ँ इस ि या के भी दो भेद होते है –
ँ
(अ) पूण एककमक ि याएँ–
जो ि या एक कम के साथ जुड़कर पूरा अथ दान करती है ,ँ वह पूण एककमक ि या कहलाती है । एक ही कम होने के कारण इसे ‘एक कमक’ तथा पूण अथ दान
करने म स म होने के कारण ‘पूण’ कहा जाता है । जैसे–
• वा मीिक ने रामायण िलखी।
• राजू ने टी.वी. खरीदा।
• मैँने िफ म देखी।
♦ मु य कम और गौण कम–
ायः मु य कम–
1. ि या के समीप रहता है ।
2. िवभि त रिहत होता है ।
3. अ ािणवाचक होता है ।
गौण कम ायः–
1. ि या से अपे ाकृत दूर रहता है ।
2. िवभि त सिहत होता है ।
3. ािणवाचक होता है ।
2.अकमक ि याएँ–
िजन ि याओँ म कोई कम नहीँ होता और उनके यापार (काय) का फल क पर ही पड़ता है , वे ‘अकमक ि याएँ’ कहलाती है ।ँ जैसे–
• मोहन खेल ता है ।
• ब दर आया।
इन वा य म ‘खेल ता है ’ और ‘आया’ ि या श द का फल क मोहन और ब दर पर पड़ रहा है , िकसी कम पर नहीँ। अतः ये दोन अकमक ि याएँ है ।ँ
जो नाम अथ त् सं ा, सवनाम या िवशेषण श द धातु की तरह यु त होते है ,ँ वे नामधातु कहलाते है ।ँ नाम धातु म यय लगाकर जो ि या बनती है , उसे नामधातु ि या कहते
है ।ँ जैसे–
नाम धातु ि या का िनम ण चार कार से होता है –
(i) सं ा श द से—लाज से लजाना, हाथ से हिथयाना।
(ii) िवशेषण श द से—मोटा से मुटाना, नरम से नरमाना।
(iii) सवनाम श द से—अपना से अपनाना।
(iv) अनुकरणवाची श द से—िहनिहन से िहनिहनाना, बड़बड़ से बड़बड़ाना।
ेरणाथक ि या दो कार से बनती है —(1) अकमक ि या से (2) सकमक ि या से। अकमक ि या ेरणाथक ि या बनने पर सकमक ि या हो जाती है ।
ँ (1) थम ेरणाथक (2) ि तीय ेरणाथक।
ेरणाथक ि या की दो ेिणय है —
ि या के वा य
♦ पिरभाषा–
ि या के िजस प से यह बोध होता है िक वा य म ि या ारा िकए गए िवधान का धान िवषय क है , कम है अथवा भाव है , उसे वा य कहते है ।ँ
♦ वा य के भेद :
वा य के िन िलिखत तीन भेद होते है –
ँ
(1) कतृवा य–
ि या के िजस प से वा य के उ े य का बोध हो, उसे कतृवा य कहते है ।ँ इसम क धान होता है तथा ि या के िलँग, वचन और पु ष क के अनु प होते है ।ँ
क ही वा य का के िब दु होता है ।
जैसे—रमा िलखती है । इस वा य म रमा एकवचन, ीिलँग और अ य पु ष है तथा उसकी ि या ‘िलखती’ भी एकवचन, ीिलँग और अ य पु ष है । अतः यह
कतृवा य है ।
(2) कमवा य–
ि या के िजस प से वा य का उ े य ‘कम धान हो’ उसे कमवा य कहते है ।ँ इसम ि या का के िब दु क न होकर ‘कम’ होता है और िलँग, वचन भी कम के
अनुसार होते है ।ँ
जैसे—उप यास मेरे ारा िलखा गया। इस वा य म ‘िलखा गया’ ि या म ‘कम’ की धानता होने से ि या के इस प म कमवा य है ।
(3) भाववा य–
ि या के िजस प से वा य का उ े य केवल भाव ही जाना जाए, उसे भाववा य कहते है ।ँ भाववा य म ि या सदा अकमक, एकवचन पुि लँग तथा अ य पु ष म योग की
जाती है । ऐसे वा य म ि या न तो क के अनुसार होती है और न कम के अनुसार। इसम ि या के भाव की धानता रहती है । जैसे–
अब मुझसे िलखा नहीँ जाता। इस वा य म ‘िलखा नहीँ जाता’ ि या का भाव मुख होने से भाव वा य है ।
♦ वा य की पहचान :
• कतृवा य—
- क िबना िवभि त के होता है । अथवा
- क के साथ ‘ने’ िवभि त होती है ।
• कमवा य—
- क के साथ ‘से’ या ‘के ारा’ िवभि त होती है ।
- मु य ि या सकमक होती है और उसके साथ ‘जाना’ ि या का िलँग, वचन कालानुसार प जुड़ा होता है ।
- ‘जाना’ के उपयु त प से पहले ि या सामा य भूतकाल म होती है ।
• भाववा य—
- क के साथ ‘से’ या ‘के ारा’ कारक िच होता है ।
- ि या अकमक होती है ।
- ि या सदा एकवचन पुि लँग म होती है ।
♦ वा य का योग :
िह दी म अिधकतर कमवा य का ही योग होता है । िजन पिरि थितय म कमवा य और भाववा य का योग होता है , वे इस कार है –
ँ
◊ कमवा य के योग– थल –
• अिधकार, गव या दप जताने के िलए–
(1) कल अपराधी को पे श िकया जाए।
(2) शु ा को दंड िदया जाए।
(3) यह खाना हमसे नहीँ खाया जाता।
(4) इस मामले की पूरी ज च की जाए।
• जब वा य म क को कट करने की आव यकता न हो या क अ ात हो–
(1) पया पानी की तरह बहाया जा रहा है ।
(2) यह िकसी की बात नहीँ सुनी जाती।
(3) प भेज िदया गया है ।
(4) गाना गाया गया होगा।
(5) गो ी म किवता पढ़ी जाएगी।
• जब क कोई सभा, समाज या सरकार हो–
(1) वा य योजनाओँ पर सरकार ारा ितवष िनध िरत धन खच जाता है ।
(2) आय समाज ारा कई अंतज तीय िववाह कराए जाते है ।ँ
(3) ि केट िखलािड़य का चयन ि केट कं ोल बोड ारा िकया जाता है ।
• कानून या काय लय की भाषा म–
(1) होली की छु ी होगी।
(2) तीन माह का अिजत अवकाश वीकृत िकया जाता है ।
(3) काय–कु शलता के िलए कमचािरय को सरकार ारा पुर कृत िकया जाएगा।
(4) िबना आ ा के वेश करने वाल को दंिडत िकया जाएगा।
(5) आपके ाथना–प को िन िलिखत कारण से र कर िदया गया है ।
◊ भाववा य के योग– थल–
• िववशता, असमथता य त करने के िलए या िनषेधाथ म–
(1) यह तो खड़ा भी नहीँ हआ ु जाता।
(2) आज मुझसे बैठ ा भी नहीँ जा रहा है ।
(3) यह खाना कैसे खाया जाएगा?
• अनुमित या आ ा ा त करने के िलए–
(1) अब थोड़ी देर आराम िकया जाए।
(2) अब चला जाए।
(3) चिलए, अब थोड़ा सो िलया जाए।
♦ वा य पिरवतन :
1. कतृवा य से कमवा य बनाना :
♦ कतृवा य के क को करण कारक बना िदया जाता है अथ त् क को उसकी िवभि त (यिद लगी है तो) हटाकर ‘से’, ‘ ारा’ या ‘के ारा’ िवभि त लगा दी जाती है । जैसे–
• कतृवा य—संगीता प िलखती है ।
• कमवा य—संगीता से प िलखा जाता है ।
• कतृवा य—संगीता ने प िलखा।
• कमवा य—संगीता ारा प िलखा गया।
• कतृवा य—संगीता प िलखेगी।
• कमवा य—संगीता के ारा प िलखा जाएगा।
♦ कम के साथ यिद िवभि त लगी हो तो उसे हटा िदया जाता है । जैसे–
• कतृवा य—म ने पु को सुल ा िदया।
• कमवा य—म के ारा पु को सुल ा िदया गया।
• कतृवा य—सुशीला पु तक को पढ़े गी।
• कमवा य—सुशीला के ारा पु तक पढ़ी जाएगी।
5. अ यय
♦ पिरभाषा–
िजन श द के प म िलंग, वचन, ि या, कारक आिद के कारण कोई िवकार पै दा नहीँ है , उ ह अ यय श द कहते है ।ँ
अ यय का शाि दक अथ होता है – जो यय नहीँ होता है । अथ त् ये अिवकारी होते है ।ँ ये श द जह भी यु त होते है ,ँ वह एक ही प म रहते है ।ँ जैसे– अ दर, बाहर,
अनुसार, अधीन, इसिलए, य िप, तथािप, पर तु आिद।
♦ अ यय के भेद–
अ यय या अिवकारी श द को सुिवधा, व प और यव था की दृि से चार भाग म ब टा गया है –
1. ि या–िवशेषण
2. समु चय बोधक
3. स ब ध बोधक
4. िव मय बोधक अ यय।
1. ि या–िवशेषण अ यय–
ि या की िवशेषता कट करने वाले श द ि या–िवशेषण अ यय कहलाते है ।ँ जैसे—‘अिधक तेज दौड़ना’ म दौड़ने की िवशेषता ि या िवशेषण श द ‘तेज’ बतला रहा है
पर तु ‘अिधक’ ि या िवशेषण श द की िवशेषता बतला रहा है । अ य उदाहरण—
• वह ितिदन पढ़ता है ।
• कु छ खा लो।
• मोहन सु दर िलखता है ।
• घोड़ा तेज दौड़ता है ।
इन वा य म ितिदन, कु छ, सु दर व तेज श द ि या की िवशेषता कट कर रहे है ।ँ अतः ये श द ि या–िवशेषण अ यय है ।ँ
♦ ि या–िवशेषण की रचना :
मूल ि या िवशेषण के अितिर त यय, समास आिद के योग से भी कु छ ि या–िवशेषण श द की रचना होती है , िज ह यौिगक ि या–िवशेषण कहा जाता है । ये िन
कार है –
ँ
1. सं ा से— ेमपूवक, कु शलतापूवक, िदन–भर, रात–तक, सवेरे, सायं आिद।
2. सवनाम से—यह , वह , अब, जब, िजससे, इसिलए, िजस पर, य , य , जैसे–वैसे, जह –वह आिद।
3. िवशेषण से—धीरे, चुपके, इतने म, ऐसे, वैसे, कैसे, जैसे, पहले, दूसरे, ायः, बहध
ु ा आिद।
4. ि या से—चलते–चलते, उठते–बैठ ते, खाते–पीते, सोते–जागते, जाते–जाते, करते हएु , लौटते हएु आिद।
5. श द की पुन ि त से—हाथ –हाथ, रात –रात, बीच –बीच, घर–घर, साफ–साफ, कभी–कभी, ण– ण, पल–पल, धड़ाधड़ आिद।
6. िवलोम श द के योग से—रात–िदन, स झ–सवेरे, देश–िवदेश, उ टा–सीधा, छोटा–बड़ा आिद।
7. तः याना—सामा यतः, व तुतः, साधारणतः, येन केन कारेण (जैसे–तैसे) आिद।
8. िबना यया त के—कभी–कभी सं ा, सवनाम, िवशेषण आिद िबना िकसी यय के, ि या–िवशेषण के प म यु त होते है ।ँ जैसे–
(1) सं ा –
• तू िसर पढ़े गा।
• तुम खाक करोगे।
(2) सवनाम –
• यह या हआ ु ?
• तूने यह या िकया?
(3) िवशेषण –
• अ छा हआ ु ।
• घोड़ा अ छा चलता है ।
(4) पूवकािलक ि या –
• सुनकर चला गया।
• देखकर चकरा गया।
इस कार के वा य ि या–िवशेषण के प म यु त िकए जाते है ।ँ
(9) परसग जोड़कर—कु छ ि या–िवशेषण के साथ की, के, को, से, पर आिद िवभि तय भी लगती है ँ और इनके योग से भी ि या–िवशेषण की रचना होती है । जैसे–
• कह से आ रहे हो।
• यह से य जा रहे हो।
• कब से तु हारी राह देख रहा हूँ।
• गु जी से न ता से बोलो।
• आगे से ऐसा मत करना।
• रात को देर तक मत पढ़ना।
परसग ँ की सहायता से बने ये वा य ि या–िवशेषण का काय कर रहे है ।ँ
10. पदब ध—पूरे वा य श ि या–िवशेषण के प म यु त होते है ।ँ जैसे–
• सवेरे से शाम तक।
• तन–मन–धन से।
• जी–जान से।
• पहाड़ की तलहटी म।
• आपके आदेशानुसार। आिद पदब ध ि या–िवशेषण है ।ँ
(3) भेदबोधक–
जो योजक श द एक वा य, वा य श या श द से िभ ता का ान कराते है ँ उ हे भेदबोधक कहते है ।ँ जैसे– पर तु, य िप, तथािप, चाहे , तो भी।
• वह नालायक है िफर भी पास हो जाता है ।
• य िप तुम बुि मान हो तथािप कम अंक लाते हो।
• तुम पढ़ने म होिशयार हो पर तु रोज नहीँ आते।
उ त वा य म ‘िफर भी’, ‘य िप’, ‘तथािप’ और ‘पर तु’ श द वा य म िभ ता का ान करा रहे है ।ँ
(2) पिरणामदशक–
इसके ारा िमला हआु वा य िकसी पिरणाम की ओर संकेत करता है । जैसे–
• चुप हो जाओ नहीँ तो द ड िमलेगा।
• नौकर ने चोरी की थी इसिलए उसे िनकाल िदया।
• मेरा कहना मानो अ यथा बाद म पछताओगे।
उ त वा य म ‘नहीँ तो’, ‘इसिलए’, ‘अ यथा’ श द पिरणाम दशक का काय कर रहे है ।ँ
(3)संकेतबोधक–
जह दो वा य के आर भ म संयोजक ारा अगले स ब ध बोधक (योजक) का संकेत पाया जाए, वह संकेत बोधक होता है । वा य म अ यय ायः जोड़े म ही यु त िकए
जाते है ।ँ जैसे–
• य िप वह बहत ु पढ़ा िलखा है तथािप िर ती होने के कारण उसका स मान नहीँ है ।
• यिद तुम ग व जाओ तो वह सबसे मेरा राम–राम कहना।
• चाहे कोई िकतना धनी हो, तो भी चिर के िबना स मान नहीँ पाता।
उ त वा य से प है िक य िप के साथ तथािप, यिद के साथ तो, चाहे के साथ तो भी, जब के साथ जब तक, से के साथ तक, भले के साथ पर तु आिद का वा य म
योग होता है तो उ त संकेतबोधक अ यय कहलाएंगे।
(4) व पबोधक–
िजस श द का योग पहले आए श द, वा य श या वा य का भाव प करने के िलए यु त िकया जाए, तो वह समु चय बोधक का व प बोधक नामक अ यय भेद
कहलाता है । जैसे–
• तु हारे हाथ फूल जैसे है ँ अथ त् कोमल है ।ँ
• वह अिहँसावादी यानी ग धीजी का पुजारी है ।
• राम इतना अ छा है मानो सचमुच राम है ।
इन वा य म यानी, अथ त्, मानो व प बोधक अ यय है ।ँ
(III) व प बोधक–
(अथ त्, यािन, मानो आिद।)
ये अ यय पहले के उपवा य या वा य श के अथ को अिधक प करने वाले होते है ।ँ जैसे–
• मैँ अिहँसावादी यािन ग धी का समथक हूँ।
• तु हारे हाथ फूल जैसे अथ त् कोमल है ।ँ
(IV) उ े य बोधक–
(तािक, िजससे, िक, इसिलए आिद।)
ये अ यय आि त उपवा य से पूव आकर मु य वा य का उ े य प करते है ।ँ जैसे–
• मैँने सुबह पढ़ाई पूरी कर ली तािक शाम को खेल सकूँ।
• मैँ भागा िजससे गाड़ी पकड़ सकूँ।
3. स ब ध बोधक अ यय–
जो अ यय सं ा या सवनाम के बाद आते है ँ एवं उनका स ब ध वा य के दूसरे श द या पद के साथ बताते है ,ँ उ ह स ब ध बोधक अ यय कहते है ।ँ जैसे– ओर, अपे ा,
तु य, वा ते, िवशेष, पलटे , ऐसा, जैसे, िलए, मारे, करके आिद स ब धवाचक अ यय है ।ँ
उदाहरण–
• खुशी के मारे वह पागल हो गया।
• बालक च द की ओर देख रहा था।
• मेरे घर के सामने मि दर है ।
• छत के ऊपर मोर नाच रहा है ।
• मेरे कारण तु ह परेशानी हईु ।
उ त वा य म मारे, ओर, सामने, ऊपर, कारण श द स ब ध बोधक अ यय का काय कर रहे है ।ँ इनके अितिर त िन िलिखत स ब ध बोधक श द और उनके योग
य है –
ँ
श द — योग
• नाईँ—पढ़े –िलखे की नाईँ (तरह)।
• रहे —दो घड़ी िदन रहे चल देना।
• नीचे—पे ड़ के नीचे खाट पर सो जाना।
• तले—गरीब आकाश तले रात गुजारते है ।ँ
• पास—ग व के पास टे शन है ।
• िनकट—शहर के िनकट के लोग ायः स प होते है ।ँ
• िनिम —हम सब तो िनिम मा है ।ँ
• आगे—मेरे घर के आगे बस– टे ड है ।
• पीछे —हमारे घर के पीछे बगीचा है ।
• पहले—वष से पहले छत ठीक कर लो।
• ारा—मेरे ारा कु छ गलत न हो जाए।
• समान— ान के समान और कोई पिव व तु नहीँ है ।
• समीप—तालाब के समीप मत जाना।
• तक—हम दो िदन तक भटकते रहे ।
• ितकूल— कृित ितकूल चले तो िवनाश हो जाएगा।
• िव —मेरे िव वह आवाज नहीँ उठा सकता।
• म य—आतंकवाद को लेकर भारत और पािक तान के म य मन मुटाव चल रहा है ।
• िवषय—मुझे उसके िवषय म कु छ नहीँ मालूम।
• बाहर—घर के बाहर बहत ु बड़ा चौक है ।
• परे—शि त से परे यि त को कु छ नहीँ करना चािहए।
• समेत—भाइय के समेत मैँ भी वहीँ था।
• तु य—वह मानव नहीँ देवता–तु य है ।
• सदृश—वह खुशी के मारे कमल के सदृश िखल उठा।
♦ स ब ध बोधक अ यय के भेद–
स ब धबोधक अ यय के भ डार को भाषा की सुिवधा हे तु चौदह भेद म इस कार प करगे–
1. कालवाचक – आगे, पीछे , पहले, बाद, पूव, प ात्, उपरा त आिद।
2. थानवाचक – पास, दूर, तरफ, ित, ऊपर, नीचे, तले, म य, बाहर ही, भीतर, अ दर, सामने, िनकट, यह , वह , नजदीक आिद।
3. साधनवाचक – हाथ, ारा, ह ते, िव , जिरये, मारफत, सहारे आिद।
4. िदशावाचक – सामने, ओर, पार, तरफ, आर–पार, ित, आस–पास आिद।
5. िवरोधसूचक – ितकूल, उलटे , िवपरीत, िखलाफ आिद।
6. हे तु (कारण) वाचक – कारण, हे तु, िलए, िनिम , वा ते, खाितर आिद।
7. यितरेकवाचक – अितिर त, अलावा, सिहत, िसवाय आिद।
8. सहसूचक – साथ, संग, समेत, पूवक, अधीन, वश आिद।
9. पाथ य सूचक – दूर, पृथ , परे, हटकर आिद।
10. तुल नावाचक – की अपे ा, की बजाय, विन पत आिद।
11. सं हवाचक – मा , भर, पय त, तक आिद।
12. सा यवाचक – सदृश, बराबर, ऐसा, जैसा, अनुसार, समान, तु य, नाईँ, अनु प, तरह आिद।
13. िविनमयवाचक – एवज, पलटे , के बदले, की जगह आिद।
14. िवषयकवाचक – भरोसे, लेखे, नाम, िवषय, बाबत आिद।
4. िव मयािदबोधक अ यय–
वे अ यय श द जो बोलने वाले या िलखने वाले के िव मय, हष, शोक, ल जा, लािन, खेद आिद मनोभाव को कट करते है ,ँ िव मयािदबोधक अ यय कहलाते है ।ँ जैसे–
अहो, हे , छी, वाह, िध ार आिद।
♦ िनपात :
वे सहायक पद जो वा याथ म नवीन अथ या चम कार उ प कर देते है ,ँ िनपात कहलाते है ।ँ जैसे– ही, तक, तो, भी, सा, जी, मत, यह, या आिद िनपात है ।ँ
िनपात सहायक श द होते हएु भी वा य का अंग नहीँ है ।ँ इनका कोई भी िलँग या वचन नहीँ होता। िनपात का काय श द–समूह को बल दान करना है ।
♦ िनपात के भेद–
1. वीकारा मक—ह , जी, जी ह ।
2. नकारा मक—जी नहीँ, नहीँ।
3. िनषेधा मक—मत।
4. बोधक— या।
5. िव मया मक—काश।
6. तुल ना मक—सा।
7. अवधारणा मक—ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन।
8. आदरा मक—जी।
पद–पिरचय
♦ पद–पिरचय :
वा य म यु त साथक श द को ‘पद’ कहते है ।ँ वा य म यु त येक पद के व प, कार या भेद का िव लेषण करना अथवा पिरचय देना ही ‘पद–पिरचय’ कहलाता
है ।
अं ेजी म इसे (Parsing) कहते है ।ँ पद–पिरचय को पदा वय, पद– या या, पद–िनदश, पद छे द, श द िन पण या श दबोध आिद भी कहा जाता है ।
वा य म सं ा, सवनाम, िवशेषण, ि या तथा अ यय श द यु त होते है ।ँ पद–पिरचय म यह बताया जाता है िक वा य म श द िवशेष का योग के अनुसार या थान है ?
यिद यह िवकारी (सं ा, सवनाम, िवशेषण और ि या) है तो उसके िलँग, पु ष, कारक, वचन आिद या है ँ और उसके साथ वा य म आये अ य श द का या स ब ध है ? यिद
वह श द अिवकारी (ि या–िवशेषण, स ब धबोधक, समु चय बोधक, िव मयािदबोधक) है तो िकस अथ म उसका योग हआ ु है और वह अ यय के िकस भेद के अ तगत आता
है और वा य म अ य श द से उसका या स ब ध है ? इस कार पद–पिरचय म वा य म युि त के अनुसार श द की भेदोपभेद सिहत या या करनी पड़ती है ।
उदाहरण–
1. सं ा का पद पिरचय–
इसम सं ा का कार ( यि तवाचक, जाितवाचक एवं भाववाचक), िलंग, वचन, कारक (क , कम आिद) तथा वा य के ि या आिद श द से स ब ध बताया जाता है ।
जैसे–
• बचपन म बालक म चंचलता होती है ।
पद–पिरचय–
(1) बचपन—भाववाचक सं ा, पुि लँग, एकवचन, अिधकरण कारक, ‘होती है ’ ि या का आधार।
(2) बालक —जाितवाचक सं ा, पुि लँग, एकवचन, अिधकरण कारक, ‘होती है ’ ि या का आधार।
(3) चंचलता—भाववाचक सं ा, ीिलँग, एकवचन, क कारक, ‘होती है ’ ि या का क ।
2. सवनाम का पद–पिरचय–
इसम सवनाम का भेद, वचन, िलँग, कारक, पु ष और अ य श द से स ब ध बताया जाता है । जैसे–
• वह कौन थी, िजससे तुम अभी–अभी बात कर रहे थे।
पद–पिरचय–
(1) वह—पु षवाचक सवनाम, अ यपु ष, ीिलँग, एकवचन, क कारक, ‘बात कर रहे थे’ ि या का क ।
(2) कौन— वाचक सवनाम, ीिलँग, एकवचन, अिधकरण कारक, ‘वह’ का अिधकरण।
(3) िजससे—स ब ध वाचक सवनाम, ीिलँग, एकवचन, कमकारक, ि या ‘बात कर रहे थे’ का कम।
(4) तुम—पु षवाचक सवनाम, म यमपु ष, पुि लँग, एकवचन, क कारक, ‘बात कर रहे थे’ ि या का क ।
3. िवशेषण का पद–पिरचय–
इसम िवशेषण के भेद, िलँग, वचन, िवशेषण की अव था, िवशे य का िन पण ये बात बताई जाती है ।ँ जैसे–
• जोधपुरी साड़ी खरीदनी चािहए।
पद–पिरचय–
(1) जोधपुरी— यि तवाचक िवशेषण, ीिलँग, एकवचन, साड़ी का िवशेषण।
4. ि या का पद–पिरचय–
ि या के पदा वय म ि या के भेद (सकमक और अकमक), काल (वतमान काल, भूतकाल, भिव य काल), पु ष, िलँग, वा य (क ृवा य, कमवा य, भाववा य), ि या का
क आिद से स ब ध बताया जाता है । जैसे–
• सुरे ने कहा– “मैँ पु तक पढ़ूँगा। तुम भी अपना पाठ पढ़कर सुनाओ।”
पद–पिरचय–
(1) कहा—सकमक ि या, सामा य भूतकाल, अ यपु ष, पुि लँग, एकवचन, क ृवा य, ‘पढ़ूँगा’ ि या का क सुरे है और कम है – मैँ पु तक पढ़ूँगा।
(2) पढ़ूँगा—सकमक ि या, सामा य भिव यत काल, उ म पु ष, पुि लँग, एकवचन, क ृवा य, ‘पढ़ूँगा’ ि या का क ‘मै’ँ और कम है – ‘पु तक’ ।
(3) पढ़कर—सकमक पूवकािलक ि या, कम है – ‘पाठ’।
(4) सुनाओ—सकमक ेरणाथक ि या, म यम पु ष, बहवु चन, क ृवा य, इसका क है – ‘तुम’।
5. अ यय का पद–पिरचय–
इसम अ यय (ि या–िवशेषण) का कार और ि या से स ब ध बताया जाता है । जैसे–
• तुम यह कब आये।
पद–पिरचय–
(1) यह — थानवाचक ि यािवशेषण अ यय ‘आये’ ि या की िवशेषता बताता है ।
(2) कब—कालबोधक ि यािवशेषण अ यय ‘आये’ ि या की िवशेषता बतलाता है ।
• मैँ आज काम नहीँ क ँ गा।
पद–पिरचय–
(1) आज—कालवाचक ि या िवशेषण, िवशे य ि या ‘क ँ गा’।
(2) नहीँ—रीितवाचक ि यािवशेषण, िवशे य ि या ‘क ँ गा’।
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9. श द– ान
1. पय यवाची श द
जो श द अथ की दृि से समान होते है ,ँ वे पय यवाची श द कहलाते है ।ँ िह दी भाषा म यु त होने वाले सभी श द अपना वतं अथ रखते है ँ तथा कोई भी श द पूरी
तरह से दूसरे श द का पय य नहीँ होता, िफर भी कु छ समानताओँ के आधार पर इ ह पय यवाची मान िलया जाता है । पर तु मरणीय बात यह है िक अथ म समानता होते हएु भी
पय यवाची श द योग म सवथा एक–दूसरे का थान नहीँ ले सकते। जैसे– मृता माओँ के तपण के िलए जल श द का योग उपयु त है , पानी का नहीँ।
येक पय यवाची श द का वा य योग के अनुसार ही उिचत अथ बैठ ता है । अतः भावानुसार इन श द का योग करना चािहए। पय यवाची श द ग या प सािह य को
पुन ि त दोष से िसत होने से बचाते है ।ँ
मह वपूण पय यवाची श द–
• अंधकार — तम, ितिमर, अँधरे ा, अँिधयारा, व त, तिम , तमस।
• अंधा — ने हीन, च ुहीन, िववेकशू य, दृि हीन।
• अहंकार — दप, द भ, अिभमान, घम ड, गव, मद।
• अितिथ — मेहमान, पाहन ु ा, आगंतुक, अ यागत, बटाऊ।
• अि न — आग, अनल, पावक, वि , वाला, कृशानु, वै ानर, धनंजय, दहन, सवभ ी, जातवेद, हत ु ाशन, ह यवान, वलन, िशखा, वैस दर, रोिहता , कृपीटयोिन, तनूनपात,
शोिच केनश, उषबुध, आ याश, वृहदभानु, वायुसख, िच भानु, िवभावस्, शुिच, अि प त।
• अकाल — सूखा, दुिभ , भुखमरी, कमी, काळ (राज थानी)।
• अ यापक — गु , आचाय, िश क, व ता, उपा याय।
• अमृत — सुधा, पीयूष, अिमय, सोम, सुरभोग, जीवनोदक, अमी, मधु, िद य पदाथ।
• अनुपम — अनूप, अपूव, अतुल , अनोखा, अ त, ु अन य, अि तीय, बेजोड़, बेिमसाल, अनूठ ा, िनराला, अभूतपूव, िवल ण।
• असुर — दै य, दानव, रा स, िनशाचर, रजनीचर, दनुज, राि चर, जातुधान, तमीचर, मायावी, सुरािर, िनि र, मनुजाद।
• अचल — अटल, अिडग, अिवचल, ि थर, दृढ़।
• अनाथ — यतीम, नाथहीन, बेसहारा, दीन, िनराि त।
• अपमान — अनादर, बेइ जती, अवमानना, िनरादर, ितर कार।
• अिभजात — सं ा त, कु लीन, े , यो य।
• अिभ ाय — आशय, ता पय, मतलब, अथ, मंशा, या या, भा य, टीकािप पणी।
• अर य — जंगल, अटवी, िविपन, कानन, वन, का तार, दावा, गहन, बीहड़, िवटप।
• अजेय — अद य, अपराजेय, अपरािजत, अिजत।
• अ य — पर, िभ , पृथ क, और, दूसरा, अलग।
• अनुचर — भृ य, िकँकर, दास, पिरचारक, सेवक।
• अनार — शुकि य, रामबीज, दािड़म।
• अजुन — पाथ, धनंजय, स यसाची, गा डीवधारी।
• अ र — हरफ, , अ आिद वण, अिवनाशी।
• अनाज — अ , धा य, खा ा , श य, ग ला।
• अिधकार — हक, वािम व, व व, क जा, आिधप य।
• अनुमान — अंदाज, तखमीना, अटकल, कयास।
• अनुमित — इजाजत, आ ा, अनु ा, मंजूरी, वीकृित।
• अ सरा — देव गना, सुर गना, देवक या, सुखिनता, अ णि या।
• अवनित — अपकष, ास, िगराव, उतार।
• अशु — दूिषत, अपिव , मिलन, गंदा, गलत।
• अ त — ओझल, गायब, िछपना, ितरोिहत।
• आँख — ने , नयन, च ु, दृग, लोचन, अि , नजर, दृि , िवलोचन।
• आँसू — अ ु, नयनजल, ने नीर, नै ज, दृगजल, दृग बु।
• आँधी — तूफान, च वात, झंझावत, बवंडर।
• आँगन — अंगना, गण, बाखर, बगर, अिजर, बाड़ा।
• आकाश — नभ, अंबर, योम, गगन, अनंत, शू य, तारापथ, अ तिर , दु कर, आसमान, महानील, ौ, शू यरव, िदव, अ , सुख यन्, ि यत, िवहायस, नाक, स ु ्।
• आम — आ , रसाल, सहकार, अमृतफल, अ बु, सौरभ, मादक।
• आन द — आमोद, मोद, स ता, हष, उ लास, आ ाद, मोद, मुद, खुशी, मजा, सुख, चैन, िवहार।
• आन — ण, ित ा, हठ, शपथ, घोषणा, मय दा।
• आभूषण — जेवर, गहना, भूषण, आभरण, मंडन, अलंकार।
• आ मा — चैत य, िवभु, जीव, सव , सव या त, देव, चेतनत व, अ तःकरण।
• आ ा — आदेश, िनदेश, हु म।
• आयु — उ , वय, अव था, जीवनकाल।
• आदश — मानक, ितमान, नमूना, ित प।
• आिद — थम, आरि भक, पहला, अथ।
• आपि — िवपि , आपदा, संकट, मुसीबत।
• आ य — अवलंब, सहारा, आधार, य, आसरा।
• आ म — कु टी, िवहार, मठ, संघ, अखाड़ा।
• आचरण — यवहार, चाल–चलन, बरताव।
• आयु मान — िचरायु, दीघ यु, िचरंजीव।
• इ — महे , देवराज, देवेश, सुरपित, शिचपित, वासव, पुर दर, सुरे , सुरेश, देवे , मघवा, श , पुरहूत, देवपित, उवशीनाथ, सुनासीर, व ी, वृ हा, नाकपित,
सल ा ।
• इ छा — अिभलाषा, आक ा, कामना, चाह, ई सा, मनोरथ, ईहा, पृहा, उ कंठा, लालसा, व छा, िल सा, काम, चाव।
• ई र — परमा मा, भु, ईश, जगदीश, भगवान, परमे र, जगदी र, िवधाता, दीनब धु, जग ाथ, हिर, राम, िव भर।
• ई य — जलन, डाह, ेष, खार, र क, कु ढ़न।
• ईनाम — उपहार, पुर कार, पािरतोिषक, ब शीश।
• ईमानदारी — सदाशयता, िन कपटता, दयानतदारी।
• उपहास — मजाक, िख ली, पिरहास, मखौल, हास, हस , हँसी, लास।
• उपवन — बाग, बगीचा, उ ान, वािटका, फु लवारी, गुल शन।
• उ म — े , उ कृ , वर, कृ , बेहतरीन, अ छा।
• उ थान — उ कष, आरोह, चढ़ाव, उ मण, उ ित, गित, उ यन।
• उदाहरण — दृ त, िमसाल, नजीर, नमूना।
• उपकार — भलाई, नेकी, िहतसाधन, क याण, मदद, परोपकार।
• उ सव — समारोह, पव, यौहार, जलसा, ज ।
• उदय — कट होना, आरोहण, चढ़ना।
• उदास — दुखी, रंजीदा, िवर त, अनमना, अ यमन क।
• उ े य — ल य, येय, हे तु, योजन।
• उ म — साहस, उ ोग, पिर म, यवसाय, धंधा, काय, यापार, कम, ि या।
• उपमा — तुल ना, िमलान, सादृ य, समानता।
• उदर — पे ट, कु , जठर।
• ऊँट — उ , मलेक, म यान, ल बो , महा ीव।
• एका त — सूना, िनजन, जनशू य।
• ऐ य — वैभव, स प ता, समृि , भु व, ठाठ–बाट।
• ओझल — गायब, लु त, अदृ य, अंतध न, ितरोभूत।
• ओस — तुषार, िहमकण, शबनम, िहमिबँद।ु
• ओ — अधर, रद छद, लब, िकनारा, होठ, ओँठ ।
• कमल — निलन, अरिव द, उ पल, राजीव, प , पंकज, नीरज, सरोज, जलज, जलजात, वािरज, शतदल, अ बुज, पु डिरक, अ ज, सरिसज, इंदीवर, ता रस, कंज,
वनज, अ भोज, सह दल, पु कर, कु वलय, प ह, सरसी ह, कोकनद।
• क पवृ — देवदा , सुरत , म दार, पािरजात, क प मु , देववृ , सुर मु , क पत ।
• कबूतर — कपोत, हारीत, परेवा, पारावत, र तलोचन।
• कण — अंगराज, सूतपु , सूयपु , राधेय, कौ तेय।
• क णा — दया, साद, अनु ह, अनुकंपा, कृपा, मेहरबानी।
• कज — ऋण, उधार, देनदारी, देयता।
• कलंक — ल छन, दोष, दाग, तोहमत, ध बा, कािलख पोतना।
• कमर — किट, ोिण, लंक, म य ग।
• क तूरी — मृगनािभ, मृगमद, मदलता।
• किव — क पक, सृ ा, का यकार, रचनाकार।
• कलश — घट, घड़ा, गागर, गगरी, मटका, घिटका, कु ंभ, कु ट।
• कपड़ा — व , चीर, वसन, अंबर, पट, कपट, दुकूल, पिरधान।
• क — दुःख, दद, पीड़ा, मुसीबत, यथा, किठनाई, यािध, कलेश, िवषाद, संताप, वेदना, यातना, यं णा, पीर, भीर, संकट, शोक, ेद, ोम, उ पीड़न।
• कामदेव — काम, अनंग, मदन, मनोज, म मथ, क दप, मर, रितपित, पु पध वी, मयन, मीनकेतु, पंचशर, मकर वज, मनिसज, पु पशायक, पंचबाण, मनोभव, कु सुमायुध,
मार, सारंग, दपक, श बरािर।
• कान — कण, वण, वणेि य, ोत, ुितपुट, ुितपटल।
• काि त — चमक, आभा, भा, सुषमा, िु त।
• िकरण — रि म, कर, मरीिच, मयूख, अंशु, दीिधित, वसु, योित, दीि त।
• िकताब — पोथी, थ, पु तक, गुटका।
• िकनारा — तट, तीर, कूल, पुिलन, पयंत, बेल ातट।
• कु बेर — य राज, धनािधप, धनद, धनपित।
• कु ा — ान, शुनक, गंडक, कूकर, जन।
• ू र — िन ु र, िनम ही, बबर, नृशंस, िनदयी।
• कृ ण — याम, क है या, वासुदेव, मोहन, राधा वामी, नंदलाल, मुरलीधर, बनवारी, माधव, मधुसूदन, िगिरधर, गोपाल, गोपीव लभ, िव ंभर, नटवर, िगरधारी, चतुभुज,
नारायण, जनादन, पु षो म, अ युत, ग ड़ वज, कैटमािर, घन याम, च पािण, प नाभ, राधापित, मुकु द, गोिव द, केशव।
• कृत — आभारी, उपकृत, अनुगृहीत, कृताथ, ऋणी।
• कृषक — िकसान, हलवाहा, भूिमसुत, खेितहर, कृिषजीवी, हलधर, अ दाता, भूिमपु ।
• ोध — गु सा, रीस, अमष, रोष, शेष, कोप, कोह, ितघात।
• केला — कदली, भानुफल, रंभा, गजवसा, कु ंजरासरा, मोचा।
• केश — बाल, िशरो ह, कच, कु ंतल, प म, िचकु र, अलक।
• कोयल — िपक, कलकंठ, कोिकला, यामा, काकपाली, बसंतदूत, सािरका, कु हिु कनी, वनि या, सारंग, कलापी, कोिकल, परभृत।
• कौआ — काक, वायस, िपशुन, करटक, काग।
• मा — माफी, सहनशीलता, सिह णुता।
• खंभा — यूप, तंभ, खंभ, तूप।
• खल — अधम, दु , दुजन, धूत, कु िटल, नीच, पामर, िपशुन, िनकृ , शठ।
• िखड़की — गवा , झरोखा, बारी, वातायन, दरीचा।
• गंगा — देवनदी, मंदािकनी, भगीरथी, िव णुपदी, देवपगा, ुवनंदा, सुरसिरता, देवनदी, जा वी, ि पथगा, देवगंगा, सुरापगा, िवपथगा, वग पगा, आपगा, सुरधनी, िववुधनदी,
िववुधा, पु यतीया, नदी री, भी मसू।
• गणेश — िवनायक, गजानन, गौरीनंदन, गणपित, गणनायक, शंकरसुवन, ल बोदर, महाकाय, एकद त, गजवदन, मूषकवाहन, व तु ड, िव नाशक, धू केतु, गणा य ,
गणराज, भालच , पावतीनंदन, िसि सदन।
• ग ड़ — वैनतेय, खगकेतु, हिरवाहन, खगेश, पि राज, उरगिरपु।
• गधा — गदहा, खर, गदभ, रासभ, वेशर, च ीवान, वैशाखन दन।
• गला — क ठ, ीवा, िशरोधरा।
• गाय — गौ, गऊ, गैया, धेनु, सुरभी, गौरी, पयि वनी, दौ धी, दा, ऋिषिभ, सुरिभव छा, माहे यी।
• ी म — घाम, िनदाघ, ताप, ऊ मा, गम , उ ण।
• गीदड़ — शृगाल, िसयार, जंबूक।
• गुल ाब — शतप , पाटल, वृ पु प, थलकमल।
• गु — िश क, अ यापक, आचाय, अवबोधक।
• घर — गृह, सदन, गेह, भवन, धाम, िनकेतन, िनवास, आलय, आवास, िनलय, मंिदर, मकान, आगार, िनकेत, अयन, आयतन, शाला, ओक, सौध, केत।
• घृत — घी, नवनीत, अमृत, आ य, ह य, सिप।
• घोड़ा — घोटक, अ , तुरगं , हय, वािज, सै धव, तुरगं म, बाजी, वाह, तरंग, रिवपु ।
• घोड़ी — अि नी, वामी, सू, सूका।
• चंदन — मलय, मंग य, गंधराज।
• च मा — च द, िहम शु, इंद,ु िवधु, तारापित, च , शिश, िहमकर, राकेश, रजनीश, िनशानाथ, सोम, मयंक, सारंग, सुधाकर, कलािनिध, सुध शु, िनशाकर, शश क,
राकापित, मृग क, औषधीश, ि जराज, रजनीपित, यनाथ, िव िवलोचन, राके दु, चि काका त, दिधसुत, िहयभानु, िहयवान, िहयकर, मरीिचमाली, याकर, न ेश।
• चतुर — कु शल, वीण, िनपुण, यो य, पटु, नागर, होिशयार, द , चालाक।
• चरण — पद, पग, प व, पै र, प व।
• च दनी — चि का, कौमुदी, यो ना, च मरीिच, उिजयारी, अमला, जु हाई।
• च दी — रजत, पक, पा, रौ य, कलधौत, जात प।
• चोर — धनक, रजनीचर, त कर, मौषक, कु ंिभल।
• छल — कपट, छ , धोखा, याज, वंचना, वंचना, ठगी।
• िछपकली — गोिधका, िवषतूिलका, मािण य।
• जंगल — िविपन, कानन, वन, अर य, गहन, क तार, बीहड़, िवटप।।
• जल — नीर, सिलल, उदक, अ बु, तोय, जीवन, वािर, पय, मेघपु प, पानी, वन जीवम, पु कर, सारंग, रस, पात, ीर, धनरस, वसु, अ भ, श बर, अमृत, पानीय, अप।
• ज म — उ व, उ पित, आिवभ व, पै दाइश।
• जहर — िवष, गरल, हलाहल, कालकूट, गर।
• जवान — युवा, युवक, त ण, िकशोर।
• जीभ — िज ा, रसना, रस ा, रिसका।
• जीव — ाणी, ाण, चैत य, जान।
• झरना — पात, िनझर, उ स, ोता।
• झूठ — अस य, िम या, मृषा, अनृत।
• झ पड़ी — कु ंज, कु िटया, पणकु टी।
• तलवार — अिस, च हास, ख ग, कृपाण, करवाल, खंग।
• तरकस — तूणीर, िनषंग।
• वचा — चम, चमड़ी, खाल, चाम।
• तालाब — सरोवर, जलाशय, सर, पु कर, पोखरा, जलवान, सरसी, तड़ाग, प ाकर, हृद, कासार, प वल, पु पकरण, सरस, सरक, सर वत, स , सारंग।
• तारा — उडु , नखत, न , तारक, तािरका, ऋ , िसतारा।
• तोता — शुक, कीर, सुआ, व तु ड, दािड़मि य।
• थोड़ा — कम, जरा, व प, तिनक, यून, अ प, िकँिचत, मामूल ी।
• दपण — शीशा, आरसी, आईना, मुकुर।
• दल — समूह, झु ड, झल, िनकर, गण, तोम, वृ द, पुंज।
• दिर — गरीब, िवप , धनहीन, िनधन, कंगाल।
• द त — द त, रद, दशन, रदन, ि ज, मुख ुर।
• िदन — वासर, वासक, िदवस, िदवा, अ , आ , अिह, अहः, वार।
• दुःख — पीड़ा, लेश, वेदना, यातना, खेद, क , यथा, शोक, य णा, स ताप, संकट, ेद, ोभ, िवषाद, उ पीड़न, पीर, लेश।
• दुग — चंिडका, भवानी, कु मारी, क याणी, महागौरी, कािलका, िशवा, चामु डा, च डी, सुभ ा, कामा ी, काली, अ बा, शेरावाली, वाला, गौरी।
• दूध — ीर, पय, दु ध, गोरस, सरस।
• देवता — सुर, अजर, अमर, देव, िववुध, गोव ण, िनजर, वसु, आिद य, लेख, वृ दारक, अजय, सुमना, अम य, ि दश, ऋभु, सुपव , िदिदवेश, ि वौकस, आिदतेय।
• देश — वतन, थान, मु क, े , झझरीक।
• िद य — अलौिकक, लोको र, लोकातीत।
• ौपदी — कृ णा, प चाली, या सेनी।
• धन — अथ, िव , स पि , य, स पदा, दौलत, मु ा, ल मी, ी।
• धनुष — कोद ड, चाप, शरासन, कमान, धनु, िविशखासन।
• वजा — वज, िनशान, केतु, पताका, झ डा, वैजय ती।
• विन — आवाज, वर, श द, नाद, रव।
• धरती — पृ वी, उिव, वसु धरा, अचला, मा, कु , भू, ोणी, िवपुल ा, जगती, पुिहम, धरा, धरणी, रसा, मही, वसुमित, मेिदनी, ग री, धा ी, ि ित, भूिम, अन ता, अविन,
तृणधरी, धिर , र गभ ।
• नर — यि त, जन, मनु य, मनुज, आदमी, पु ष, मानव, का य, सौ य, नृ।
• नदी — िन गा, कूलकंषा, सिरता, सिर, धुिन, आपगा, सिरत, नोचगा, तिटनी, वािहनी, शकरी, िनझिरणी, फूलंकषा, जलमाला, नद, तरंिगणी, रजवती, ोति वनी,
शैवािलनी।
• नकु ल — नेवला, महादेव, वंशरिहत, युिधि र का भाई।
• नया — नूतन, नव, नवीन, न य।
• न र — नाशवान, णी, णभंगुर, िणक।
• नारद — िष, देविष, ापु ।
• नारी — मिहला, विनता, ललना, रमणी, ी, कािमनी, औरत, अबला, ितय, भामा, का या, सो या, भािमनी, अंगना, कल , त णी, ि या, मदा, भाि नी, बारा, त वंगी।
• नाश — िवनाश, वंस, य, तबाही, संहार, न ।
• नाव — नौका, तरणी, जलयान, तरी, ड गी, पोत, पतंग, नैया।
• िनँदा — बुराई, अपयश, बदनामी, चुगली।
• िनयित — ार ध, भा य, होनी, भावी, दै य, होनहार।
• िनमल — व छ, शु , साफ, उ वल, पिव , पावन।
• नौकर — अनुचर, सेवक, िकँकर, चाकर, भृ य, पिरचारक, दास।
• पंिडत — िव ान, कोिवद, सुधी, मनीषी, बुध, ा , धीर, िवच ण।
• पहाड़ — पवत, अचल, िगिर, नग, भूधर, महीधर, शैल , अि , मे , धराधर, नाग, गो , िशखरी, तुंग।
• प ी — ि ज, शकु िन, पतंग, अंडज, शकु त, िचिड़या, िवहंगम, िवहग, खग, नभचर, खेचर, पंछी, पखे , पिर दा।
• पवन — अिनल, वात, वायु, बयार, समीर, हवा, म त, मा त, भंजन।
• पित — भत , व लभ, वामी, बालम, अिधपित, भरतार, अिधईश, का त, नाथ, आयपु , वर, ाणाधार, ाणेश, ाणि य।
• प ी — भाय , दारा, सहधिमणी, वधु, गृिहणी, बहू, कलम, ाणि या, ाणव लभा, ितय, वामा, वाम गीि या, अ िगनी, गृिहणी, कल , का ता, अंगना।
• पथ — राह, रा ता, माग, बाट, पंथ ।
• पराग — रज, पु परज, केशर, कु सुमरज।
• प ा — पण, प लव, दल, िकसलय, प ।
• काश — रोशनी, आलोक, उजाला, भा, दीि त, छिव, योित, चमक, िवकास।
• प थर — पाषाण, िशला, पाहन, तर, उपल।
• ातः — भात, सुबह, अ णोदय, उषाकाल, अहमुख, सवेरा।
• पान — ता बूल , नागरबेल , मुखमंडन, मुखभूषण।
• पाला — िहम, तुषार, नीहार, ालेय।
• पाप — अघ, पातक, दु कृ य, अधम, अनाचार, अपकम, जु म, अनीत।
• पावती — िगिरजा, शैल जा, उमा, भवानी, िशवा, िशवानी, दुग , अि बका, ाणी, का याियनी, गौरी, शंकरी, अपण , िगिरतनया, आय , मैनादुल ारी।
• ेम — यार, ीित, अनुराग, राग, हे त, नेह, णय।
• िपता — जनक, तात, िपतृ, बाप, सवी, िपतु, पालक, ब पा।
• पु — बेटा, आ मज, सुत, व स, तनुज, तनय, नंदन, लाल, लड़का, पूत, सुवन।
• पु ी — बेटी, आ मजा, तनुजा, सुता, तनया, दुिहता, नि दनी, लड़की।
• पे ड़ — िवटप, मु , त , वृ , पादप, ख, शारणी, भू ह, शाखी।
• यास — िपपासा, तृषा, तृ णा, ितषा, ितष, िपष।
• स — खुश, हिषत, सादपूण, आनि दत।
• फूल — कु सुम, सुमन, पु प, मंजरी, सून, फलिपता, पुहपु , लत त, सूमन।
• बलराम — हलधर, मूसली, रेवतीरमण, हली।
• बसंत — ऋतुराज, माधव, कु सुमाकर, मधुऋतु, मधुमास, मधु।
• बिहन — सहोदरा, भिगनी, सहगिभणी, बा धवी।
• ा — अज, िविध, िवधाता, सृ ा, जापित, चतुरानन, चतुमुख, नािभज, सदान द, िवरंिच, आ मभू, वयंभू, प योिन, िहर यगभ, लोकेश, सृ ा, अ जयोिन, कमलासन,
िगरापित, रजोमूित, हंसवाहन, धाता।
• ब दर — वानर, मकट, शाखामृग, हिर, लंगूर, किप, कीश।
• बफ — तुषार, िहम, तुिहन, नीहार।
• ा ण — ि ज, िव , अ ज मा।
• याह — शादी, िववाह, पिरणय, पािण हण।
• बाघ — या , शादूल, िच क, चीता।
• बाज — येन, शशिदन, कपोतािर।
• बाण — तीर, शायक, िशलीमुख, नाराच, शर, िविशख, कलाप, आशुग।
• बालू — रेत, बालुका, सैकत।
• बादल — पयोद, वािरद, जलद, नीरद, तोयद, अ बुद, मेघ, पयोधर, जलधर, अ द, बलाहक, क द, अ , घन, पज य, वािरवाह, तिड़ वान, सारंग, जीयूत, घुख।
• बालक — िशशु, ब चा, शावक।
• िबजली — श पा, शत दा, ािदनी, ऐरावती, णि या, तिड़त, सौदािमनी, िव तु , चंचला, चपला, दािमनी, िब जु, िबजुरी, अशिन, ण भा।
• िब ली — माज री, िवलास, िवड़ाल।
• बुि — मित, मेधा, धी, मनीषा, ा, अ ल, िववेक।
• बैल — वृषभ, वृष, ऋषभ, नंदी, िशखी।
• भय — ास, डर, आतंक, भीित।
• भैसँ — मिहषी, कासरी, सैिरभी, लुल ापा।
• ाता — भाई, बा धव, सगभ , सहोदर, भातृ, तात, ब धु।
• भा य — ललाट, तकदीर, भाग, अंक, भाल, िक मत।
• भालू — रीछ, जंबू, ऋ य।
• िभखारी — िभ ुक, याचक, मँगता, मँगन, िभ ोपजीवी।
• भौँरा — मधुप, मर, अिल, मधुकर, षटपद, भृंग, चंचरीक, िशलीमुख, िमिलँद, मािर द, मधुल ोभी, मकर द, ि रेफ, मधुवत, मधुिसँह।
• म खन — नवनीत, लौनी, माखन, दिधसार।
• मछली — मकर, शफरी, मीन, म य, झख, पाठीन, झष।
• मिदरा — दा , शराब, सुरा, म , मधु, वा णी, काद बरी, माधव, हाला।
• म स — आिमष, गो त, पलल, िपिशत।
• माता — म , जननी, अ बा, धा ी, सू, अि बका, सूता, सिवनी, सिव ी, मैया, मात, अ मा, ज मदाियनी।
• िम — संगी, साथी, सहचर, दो त, सखा, सुहृद, मीत, िमतवा, यार।
• मुख — मुँह, चेहरा, वदन, आनन।
• मुिन — साधु, महा मा, संत, बैरागी, तापस, तप वी, सं यासी।
• मुग — कु ुट, ता चूड़, उपाकर, अ णिशखा।
• मूख — मूढ़, अ , अ ानी, वािलश।
• मढक — मंडूक, दादुर, वष भू, शातुर, दुदर, म डू क।
• मैना — सािरका, िच लोचना, कहहि या, मधुरालय, सारी।
• मोती — मु ता, मौि तक, सीपज, शिश भा।
• मोर — मयूर, केकी, िशखी, विह, कलाधर, कलापी, कलकंठ, नीलकंठ, सारंग, भुजगं भुक्, िशखाबल, च की, मेघान दी, िशख डी, ि ितपित, अिधपित।
• मृ यु — मौत, िनधन, देहा त, ाणा त, मरना, िनऋित, वगवास।
• मो — मुि त, िनव ण, कैव य, अपवग, अमृतपद।
• यमराज — यम, धमराज, हिर, जीवनपित, सूयपु ।
• यमुना — कृ णा, कािलँदी, सूयजा, तरिणजा, तनूजा, अकजा, रिवतनया, जमुना, यामा।
• यु — रण, सं ाम, समर, लड़ाई, िव ह, आहव, सं य, संयुग, संगर।
• युवती — िकशोरी, त णी, यामा।
• र त — खून, लहू, िधर, लोिहत, शोिणत।
• राम — रघुपित, सीतापित, रघुवर, राघव, दशरथनंदन, दशरथसुत, रघुकुलमिण, िसयावर, जानकीव लभ, रघुकुलितलक।
• रावण — दशानन, लंकापित, लंकेश, दशकंध, दशासन।
• राजा — नृप, महीप, नरेश, भूप, नरे , भूपित, नृपित, अिहपित, महीपित, भूपाल, राव, अविनपित, महीश, पािथव, मिहपाल, अवनीश, ोणीव, ि ितपित, अिधपित।
• राधा — वृषभानुजा, जरानी, कृ णि या, रािधका।
• राि — रात, रजनी, िनशा, पा, वामा, रैन, यािमनी, शबरी, यामा, ि भामा, िवभावरी, तमी, णदा, तिमसा, राका, सारंग।
• रोगी — बीमार, अ व थ, ण, यािध त, रोग त।
• ल मी — कमला, प ा, रमा, हिरि या, ी, इि दरा, प ासना, प ानना, लोकमाता, ारोदा, ीरोदतनया, समु जा, भागवी, िव णुव लभा, िस धुजा, िव णुि या, चपला,
िस धुसुता।
• ल मण — लखन, सौिम , रामानुज, लषन, शेषावतार, मेघनादािर।
• लता — वेिल, व लरी, वी ध, बेल ।
• लहर — तरंग, ऊिम, वीिच।
• लोहा — अयस, लौह, सार।
• वष — साल, बरस, अ द, व सर।
• वष — बरसात, पावस, बािरश, वषण, बरखा।
• व ण — अ बुपित, सागरेश, चेता, समु ेश, पाशी।
• वा स य — नेह, लाड यार, ममता, लालन, िशशु– ेम।
• िवधवा — पितहीना, अनाथा, र ड।
• िव णु — नारायण, केशव, उपे , माधव, अ युत, ग ड़ वज, हिर, च पािण, दामोदर, रमेश, मुरारी, जनादन, िव भर, मुकु द, ऋिषकेश, ल मीपित, िवधु, िव प,
जलशायी, सारंगािण, बनमाली, पीता बर, चतुभुज, अधो ज, पु षो म, ीपित, वासुदेव, मधुसूदन, मधुिरपु, प नाभ, पुराणपु ष, दै यािर, सनातन, शेषशायी।
• िवयोग — िबछोह, िवरह, जुदाई, िव लंब।
• वीय — शु , बीज, जीवन।
• श द — विन, रव, नाद, िननाद, वर।
• श ु — िरपु, बैरी, िवप ी, अिर, अराित, दु मन, िवरोधी, ेषी, अिम ।
• शरीर — देह, तन, काया, कलेवर, वपु, गात, िव ह, तनु, घट, बदन, अवयव, अंगी, गित, काय।
• शहद — मधु, मकरंद, पु परस, पु पासव।
• श ु — िरपुसूदन, श ुहन, श ुह ता।
• ेत — शु , वल, सफेद, शु ल, वल , अमल, दी त, उ वल, िसत।
• िशकार — आखेट, मृगया, अहे र।
• िशकारी — बहे िलया, अहे री, याध, लु धक।
• िश — स य, सुशील, सुसं कृत, िवनीत।
• िशव — , नीलकंठ, अि नकेतु, श भु, श भू, ईश, च शेखर, शूल ी, महे री, शव, शव, भूतेश, िपनाकी, उ , कपद , ीकंठ, िशितकंठ, वामदेव, िव पा , िवलोचन,
कृशानुरेत, सव , धूजिट, उमापित, पंचानन, ऋतु वंसी, मरहर, मदनािर, अिहबू य, महानट, गौरीपित, कापािलक, िदग बर, गुड़ाकेश, च ापीड़, मशाने र, वृष क,
अंगीरागु , अंतक, अंडधर, अंबरीश, अकंप, अ तवीय, अ माली, अघोर, अचले र, अजातािर, अ ेय, अतीि य, अि , अनघ, अिन , अनेकलोचन, अपािनिध, अिभराम,
अभी , अभदन, अमृते र, अमोघ, अिरदम, अिर नेिम, अध र, अधनारी र, अहत, अ मूित, अि थमाली, आ ेय, आशुतोष, इंदभ ु ेखर, इकंग, ईशान, ई र,
ु ूषण, इंदश
उ म वेष, उमाक त, उमानाथ, उमेश, उमापित, उरगभूषण, ऊ वरेता, ऋतु वज, एकनयन, एकपाद, एकिलंग, एका , कपालपािण, कमंडलुधर, कलाधर, क पवृ , कामिरपु,
कामािर, कामे र, कालकंठ, कालभैरव, काशीनाथ, कृि वासा, केदारनाथ, कैलाशनाथ, तु वसी, माचार, गंगाधर, गणनाथ, गणे र, गरलधर, िगिरजापित, िगरीश, गोनद,
चं े र, चं मौिल, चीरवासा, जगदीश, जटाधर, जटाशंकर, जमदि न, योितमय, तर वी, तारके र, तीवानंद, ि च ु, ि धामा, ि पुरािर, ि यंबक, ि लोकेश, यंबक, द ािर,
नंिदके र, नंदी र, नटराज, नटे र, नागभूषण, िनरंजन, नीलकंठ, नीरज, परमे र, पूण र, िपनाकपािण, िपंगला , पुरदं र, पशुपितनाथ, थमे र, भाकर, लयंकर,
भोलेनाथ, बैजनाथ, भगाली, भ , भ मशायी, भालचं , भुवनेश, भूतनाथ, भूतमहे र, भोलानाथ, मंगलेश, महाक त, महाकाल, महादेव, महा , महाणव, महािलंग, महे श, महे र,
मृ युंजय, यजंत, योगे र, लोिहता , िवधेश, िव नाथ, िव े र, िवषकंठ, िवषपायी, वृषकेतु, वै नाथ, शश क, शेखर, शिशधर, शारंगपािण, िशवशंभु, सतीश, सवलोके र,
सव र, सह भुज, स ब, सारंग, िस नाथ, िस ी र, सुदशन, सुरषभ, सुरेश, सोम, सृ वा, हर-हर महादेव, हिरशर, िहर य, हत ु ।
• शेषनाग — अहीश, धरणीधर, सह ासन, फणीश।
• षडयं — कु च , दुरिभसंिध, अिभसंिध, सािजश, जाल।
• सं या — सायंकाल, गोधूिल, िनशारंभ, िदन त, िदवावसान, िपतृ सू, दोष, सायम्।
• संसार — जग, जगत्, भव, िव , जगती, दुिनया, लोक, संसृित।
• समु — जलिध, िसँधु, सागर, र ाकर, उदिध, नदीश, पारावार, वािरिध, पयोिध, अणव, नीरिनिध, तोयिध, वनिनिध, वारीश, कंपित।
• वग — सुरलोक, देवलोक, परमधाम, ि िदव, दयुल ोक, बैकु ठ, गोलोक, परलोक, नाक, ौ, इ लोक, िदव।
• सर वती — भाषा, वाणी, वागी री, इला, िवधा ी, भारती, शारदा, वीणाधािरणी, वाक्, िगरा, वीणापािण, वा देवी, वीणावािदनी, ा ी, वाचा, िगरा, वागीश, महा ेता, ी, ई री,
सं ये री।
• सखी — सहे ल ी, सजनी, आली, सैर ी।
• तन — उरोज, थन, कु च, व ोज, पयोधर।
• वामी — ईश, पित, नाथ, स ई, अिधप, भु।
• स प — सप, नाग, अिह, याल, भुजगं , िवषधर, उरग, प ग, फणी, च ु ुवा, सनो सुक, पवनासन, फणधर।
• िसँह — केसरी, शेर, महावीर, हिर, मृगपित, वनराज, शादूल, नाहर, सारंग, मृगराज, मृगे , पंचमुख, हय , प चा य, पारी , ेतिपंगल, क ठीरख, पंचिशख, भीमिव म,
केशी, मृगािर, क याद, नखी, िव ा त, दी तिपँगल, पु डिरक, पंचानन।
• सीता — जानकी, भूिमजा, वैदेही, रामि या, अयोिनज, जनकसुता, जनकदुल ारी, िसया।
• सुग ध — खुशबू, सुरिभ, सौरभ, सुवास, तपण, सुगि ध, मदगंध, सुवास, महक।
• सु दर — िचर, चा , सुहावन, सौ य, मोहक, रमणीय, लिलत, िच ाकषक, ललाम, कमनीय, र य, किलत, मंजुल , मनोज, मनभावन।
• सु दरता — लाव य, सौ यता, रमणीयता, शोभा, ी, कमनीयता, चा ता, िचरता, छिव, क ित, र यता, सौ दय, छटा, सुषमा।
• सूय — रिव, सूरज, िदनकर, भाकर, आिद य, िदनेश, भा कर, िदवाकर, मात ड, अंशुमाली, िदननाथ, अक, तमिर, भूषण, तरिण, पतंग, िम , भानू, सिवता, छायानाथ,
मरीची, िदवसािधप, िवव वान, िवभावसु, अ बर, मिण, खग, गभाि तमान, िहर यगभ, न मािधपित, सूर, वीरोचन, पूषण, अयमा, च ब धु, कमलब धु, हिर, स ता , ादशा मा,
ऊ मरि म, असुर, िवकतन, गृहपित, सह शु, प ा , तेजोरािश, महातेज, तिम हा, जग च ु, ोतन, ख ोत, सारंग, िम ।
• सेना — कटक, सै यदल, फौज, वािहनी।
• सोना — हाटक, कनक, सुवण, कंचन, हे म, कु दन, िहर य, वण, चामीकर, तामरस।
• हंस — मराल, च ं ग, सूय, आ मा, मानसौक, कलकंठ, िमतप , कार डव।
• हनुमान — कपीश, अंजिनपु , पवनसुत, मा ितनंदन, मा त, बजरंगबली, महावीर।
• हिरण — मृग, कु रंग, चमरी, सारंग, कृ णसार, तृनजीवी।
• हाथ — कर, ह त, पािण, बाह,ु भुजा, भुज।
• हाथी — गज, ह ती, ि प, वारण, वसु दर, करी, कु जर, दंती, कु भी, िवतु डा, मतंग, नाग, ि रद, िस धुर, गय द, कलभ, सारंग, मतगंज, मातंग, हिर, व द ती, शु डाल।
• िहमालय — िहमिगरी, िहमाचल, िगिरराज, पवतराज, नगेश, नगािधराज, िहमवान, िहमाि , शैल राट।
• हृदय — छाती, व , व थल, िहय, उर, सीना।
• ुिट — गलती, कसर, कमी, भूल , संशय, अंगहीनता, ित ा–भंग।
2. िवलोम श द
जो श द पर पर िवपरीत या िवरोधी अथ कट करते है ,ँ उ ह िवलोम श द या िवपरीताथक अथवा ितलोम श द कहते है ।ँ िवलोम श द के िलए िन िलिखत बात यान म
रखनी चािहए –
(1) श द िजस तर का हो, उसका िवलोम भी उसी तर का होना अित आव यक है । यिद श द त सम है तो िवलोम भी त सम होगा, जैसे – हि त - हि तनी। यिद श द
त व है तो िवलोम भी त व होगा, जैसे – हाथी - हिथनी।
(2) सं ा का िवपरीताथ श द सं ा तथा िवशेषण के िलए िवशेषण श द ही िवलोम होगा। जैसे – अिधक - यून। अिधक का िवलोम ‘कम’ नहीँ होगा य िक ‘कम’ श द
उदू का है । कम का िवलोम यादा होगा।
♦ मह वपूण िवलोम श द :
श द – िवलोम श द
• अंत – आिद
• अंश – पूण
• अंतमुखी – बिहमुखी
• अंतरंग – बिहरंग
• अित – अ प
• अपना – पराया
• अपरािजत – परािजत
• अव चीन – ाचीन
• अकाल – सुकाल
• अिभ – अनिभ
• अन त – अ त, सा त
• अ – िव
• अिधमू यन – अवमू यन
• अपराधी – िनरपराधी
• अथ ( ार भ) – इित (समाि त)
• अकमक – सकमक
• अमृत – िवष
• अथाह – िछछला
• अवर – वर
• अवतल – उ ल
• अितिथ – आितथेय
• अितवृि – अनावृि
• अधोगित – ऊ वगित
• अघोष – सघोष
• अिभयु त – अिभयोगी
•अ –प
• अ यिधक – व प
• अनुकूल – ितकूल
• अनुराग – िवराग
• अनुर त – िवर त
• अनु प – ित प
• अनाहूत – आहूत
• अ ज – अनुज
• अधम – उ म
• अपे ा – उपे ा
• अ प – बहु
• अ पायु – िचरायु/दीघ यु
• अविन – अंबर
• असीम – ससीम
• अनुनािसक – िनरानुनािसक
• अिनवाय – ऐि छक/वैकि पक
• अधुनातन – पुरातन
• अ ीकरण – िनर ीकरण
• आिद – अंत
• आिवभ व – ितरोभाव
• आरोह – अवरोह
• आगमन – िनगमन
• आि तक – नाि तक
• आ ह – दुरा ह
• आधुिनक – ाचीन
• आिवभूत – ितरोभूत/ितरोिहत
• आवतक – अनावतक
• आगामी – िवगत
• आ ा – अव ा
• आ – शु क
• आल य – उ म
• आकाश – पाताल
• आचार – अनाचार
• आ मिनभर – परजीवी
• आ – अं य
• आ याि मक – स सािरक
• आन द – शोक
• आ ाद – िवषाद
• आ यंतर – बा
• आकु ंचन – सारण
• आ ान – िवसजन
• आलोचना – शंसा
• आकषण – िवकषण
• आिमष – िनरािमष
• आस त – अनास त
• आशीव द – अिभशाप
• आशा – िनराशा
• आर – पार
• आवृ – अनावृ
• आ था – अना था
• आयात – िनय त
• आदान – दान
• आया – गया
• आय – यय
• आि त – अनाि त
• इहलोक – परलोक
• इ – अिन
• इ छा – अिन छा
• ई र – अनी र
• उ थान – पतन
• उ त – िवनीत
• उपि थत – अनुपि थत
• उ कृ – िनकृ
• उपकार – अपकार
• उ कष – अपकष
• उ मीलन (िखलना) – िनमीलन
• उ ित – अवनित
• उ ाटन – समापन
• उ मूल न – थापन/रोपण
• उ मुख – िवमुख
• उपमान – उपमेय
• उवर – ऊसर/अनुवर
• उ पित – िवनाश
• उ रायण – दि णायण
• उ रा – पूव
• उदयाचल – अ ताचल
• उपमेय – अनुपमेय
• उपचार – अपचार
• उषा – सं या
• उ वास – िनः ास
• उ वल – धूिमल
• उ ीण – अनु ीण
• उपािजत – अनुपािजत
• उ लास – िवषाद
• उपसग – यय
• उदार – अनुदार
• उ व – अवसान
• उपजाऊ – अनुपजाऊ
• उ व – अधर
• उधार – नकद
• उ पादक – अनु पादक
• उपयोग – अनुपयोग/दुपयोग
• ऊपर – नीचे
• ऊँच – नीच
• ऋत – अनृत
• ऋण – उऋण
• ऋणी – धनी
• ऋजु – व
• एक – अनेक
• एडी – चोटी
• एकता – अनेकता
• एका त – अनेका त
• एकाकी – सम
• एकाथक – अनेकाथक
• एकािधकार – सव िधकार
• ऐिहक – पारलौिकक
• ऐ य – अने य
• ऐ य – अनै य
• औज वी – िन तेज
• औिच य – अनौिच य
• औदाय – अनौदाय
• उप यका (पहाड़ के नीचे की समतल भूिम) – अिध यका (पहाड़ के ऊपर की समतल भूिम)
• कटु – मधुर
• कदाचार – सदाचार
• कापु ष – पु षाथ
• किन – विर / ये
• कठोर – मुल ायम
• य – िव य
• क याण – अक याण
• कायर – वीर
• कडु वा – मीठा
• कपूत – सपूत
• कपटी – िन कपट
• कमजोर – बलवान
• कमी – वृि , बेशी
• ककश – मधुर
• कलंिकत – िन कलंक
• कि पत – यथाथ
• कलुिषत – िन कलंक
• कसूरवार – बेकसूर
• कटुभाषी – मृदभु ाषी
• काला – गोरा
• कु लदीप – कु ल गार
• कु मारी – िववािहता
• ोध – शाि त
• कोलाहल – नीरवता
• कम य – अकम य
• करणीय – अकरणीय
• काय – अकाय
• कु पथ – सुपथ
• कु गित – सुगित
• कु माग – सुमाग
• कु मित – सुमित
• कु प – सु प
• कृि म – नैसिगक
• कृ ण – शु ल
• कु लटा – पितवता
• कृपा – कोप
• कृश – पु / थूल
• ि या – िति या
• कीित – अपकीित
• कु यात – िव यात
• कृपण – उदार
• कृत – कृत
• कु िटल – सरल
• कोमल – कठोर
• ु ण–अ ु ण
• ु – िवराट
• खंडन – मंडन
• खरा – खोटा
• खगोल – भूगोल
• खीझना – रीझना
• खुशी – गम
• खुशिक मत – बदिक मत
• खुशबू – बदबू
• खेद – स ता
• गणतं – राजतं
• गंभीर – वाचाल/चंचल, चपल
• गरल – सुधा
• गिरमा – लिघमा
• गहरा – उथला
• गृह थ – सं यासी
• ाम – नगर
• ा – अ ा / या य
• गु त – कट
• गु – लघु
• गोचर – अगोचर
• गौरव – लाघव
• गौण – मु य
• गुण – अवगुण/दोष
• गम – सद
• गमन – आगमन
• घना – िछतरा
• घात – ितघात
• घृणा – ेम
• चंचल – ि थर
• चपल – गंभीर
• चर – अचर
• चतुर – मूख
• चढ़ाव – उतार
• िचँितत – िनि ँत
• िचर – ि थर
• चेतन – अचेतन/जड़
• चेतना – मू छ
• छली – िन छल
• छाया – धूप
• जंगम – थावर
• जय – पराजय
• ज म – मृ यु
• जागरण – सषुि त/िन ा
• जा त – सुषु त
• जिटल – सरल
• जल – थल
• जीत – हार
• जीिवत – मृत
• जीव – जड़
• योित – तम
• जीण – अजीण
• ये – लघु
• ात – अ ात
• ान – अ ान
• ेय – अ ेय
• झूँठ – स च
• झूठ ा – स चा
• झ पड़ी – महल
• ठोस – व/तरल
• ढ़ाल – चढ़ाई
• तट थ – प पाती
• तर – शु क
• त ण – वृ
• त त – शीतल
• य त – गृहीत
• या य – ा
• तामिसक – साि वक
• तारीफ – बुराई
• ितिमर – काश
• तीव – मंद/म थर
• तु छ – महान
• तृ णा – िवतृ णा
• तृषा – तृि त
• याग – भोग
• ती ण – सरल
• थाह – अथाह
• थोक – खुदरा
• थोड़ा – बहत ु
• दिर – धनी
• दया – ू रता
• दि ण – उ र
• दाता – गृहीता, कृपण
• िदन – रात
• िदवा – राि
• दीघ – लघु
• दीघकाय – लघुकाय
• दुग ध – सुग ध
• दृ य – अदृ य
• दुराचार – सदाचार
• दुजन – स जन
• दु पयोग – सदुपयोग
• दुराचारी – सदाचारी
• दु कर – सुकर
• दु ा य – सु ा य
• तु – मंथ र
• दूर – पास
• देव – दानव
• देनदार – लेनदार
• देशभ त – देश ोही
• ेष – स ावना
• ैत – अ ैत
• िद य – अिद य
• – िन
• दुरा मा – महा मा
• दुःख – सुख
• दुगम – सुगम
• धम – अधम
• वंस – िनम ण
• वल – याम
• धरा – गगन
• धना मक – ऋणा मक
• धीर – अधीर
• धीरज – उतावलापन
• धृ – िवन
• धूप – छ व
• नया – पुराना
• न र – शा त
• यून – अिधक
• नगर – ाम
• नवीन – ाचीन
• नत – उ त
• नराधम – नरपुंगव
• न – अन
• नमकहराम – नमकहलाल
• िनभ क – भी
• िन े य – सो े य
• िनमल – मिलन
• िनिष – िविहत
• िनबल – सबल
• िनल ज – सल ज
• िनरथक – साथक
• िनगुण – सगुण
• िनराधार – साधार
• िनराकार – साकार
• िनँ – वं
• िनि य – सि य
• िन दा – तुित
• िनरपे – सापे
• िन ल – चंचल
• िन वाथ – वाथ
• नीरस – सरस
• नूतन – पुरातन
• नेकी – बदी
• नैितक – अनैितक
• िन काम – सकाम
• नर – नारी
• िनर र – सा र
• पिठत – अपिठत
• परमाथ – वाथ
• पि डत – मूख
• परतं – वतं
• पिव – अपिव
• पराधीन – वाधीन
• परकीय – वकीय
• पहले – पीछे
• धान – गौण
• शंसा – िन दा
• वृि – िनवृि
• ाकृितक – अ ाकृितक
• य – परो /अ य
• पिरतोष – दंड
• पा ा य – पौव य/पौर य
• सारण – संकुचन
• पदो त – पदावनत
• पाप – पु य
• पावन – अपावन
• पा – अपा
• पे य – अपे य
• पु ष – ी
• पूण – अपूण
• पा य – अपा य
• पद थ – अपद थ
• प – िवप
• प लवन – सं ेपण
• पिर म – िव ाम
• लय – सृि
• –उ र
• गित – अवनित
• थम – अंितम
• वेश – िनकास
• तीची – ाची
• फु ल – लान
• साद – िवषाद
• – मूढ़
• ारंिभक – अंितम
• पािथव – अपािथव
• पालक – घालक/संहारक
• पापी – िन पाप
• ीित – ेष
• पुर कृत – दंिडत
• पुरोगामी – प गामी
• पु – ीण
• पूिणमा – अमाव या
• पूववत – परवत
• ेम – घृणा
• ेषक – ापक
• पै ना – भौथरा
• ो सािहत – हतो सािहत
• फूल – क टा
• बिह कार – वीकार
• ब – मु त
• बंधन – मुि त/मो
• बिढ़या – घिटया
• बलवान – कमजोर
• बंजर – उवर
• बिल – दुबल
• बसंत – पतझड़
• बहादुर – डरपोक
• बबर – स य
• बाढ़ – सूखा
• बा – आंतिरक
• भ – अभ
• भलाई – बुराई
• भारी – ह का
• भूत – भिव य
• भोगी – योगी
• ा त – िन ा त
• भला – बुरा
• भौितक – आ याि मक
• भेद – अभेद
• भे – अभे
• मम व – पर व
• म न – दुखी/ऊपर
• मंगल – अमंगल
• मसृण –
• मनुज – दनुज
• ममता – िन ु रता
• महीन – मोटा
• मत – िवमत
• मित – कु मित
• मनु यता – पशुता
• मान – अपमान
• िम – श ु
• िमत यय – अप यय
• िमलन – िबछोह
• िम या – स य
• मुनाफा – घाटा
• मु य – गौण
• मूढ़ – ानी
• मूक – वाचाल
• मेहमान – मेज़बान
• मौिखक – िलिखत
• मौन – मुखर, वाचाल
• मानवीय – अमानवीय
• मू यवान – मू यहीन
• यश – अपयश
• युगल – एकल
• यु – श ित
• योग – िवयोग
• यौवन – वाध य
• रत – िवरत
•र ण–भ ण
•र क–भ क
• र – बहाल
• रचना मक – वंसा मक
• रसीला – नीरस
• रित – िवरित
• राग – ेष, िवराग
• राजा – रंक
• िर त – पूण
• रीता – भरा
• िच – अ िच
• ण– व थ
• दन – हा य
• लिलत – कु प
• लघु – िवशाल/गु /दीघ
• लाभ – हािन
• िल त – िनिल त
• िलिखत – अिलिखत
• लु त – य त
• लुभावना – िघनौना
• लोक – परलोक
• लोभ – याग
• लौिकक – अलौिकक
• व – सरल
• व ता – ोता
• वर – वधू
• वफादार – बेवफा
• वरदान – अिभशाप
• यि त – समाज
• यि तगत – सामूिहक/समि गत
• यि – समि
• यिभचारी – सदाचारी
• यथ – अ यथ
• व य – पालतु
• वादी – ितवादी
• वािकफ – नावािकफ
• यव था – अ यव था
• िवधवा – सधवा
• िवभव – पराभव
• िव लेषण – सं लेषण
• िवपदा – स पदा
• िविध – िनषेध
• िव तार – सं ेप
• िवकल – अिवकल
• िव – अिव
• िवजयी – परा त
• िवनीत – उ त
• िवपित – स पि
• िवशेष/िविश – साधारण
• िवराट – ु
• िव तृत – संि त
• िवरह – िमलन
• िवक प – संक प
• िव ान – मूख
• िववािदत – िनिववाद
• िवजेता – िविजत
• िवयोग – संयोग
• िवदाई – वागत
• िवपुल – अ प
• िवलास – तप या
• वेदना – आन द
• वैमन य – सौमन य
• वैतिनक – अवैतिनक
• शकु न – अपशकु न
• लील – अ लील
• श ुता – िम ता
• शयन – जागरण
• शमदार – बेशम
• शहरी – देहाती
• लाघा – िनँदा
• ेत – याम
• शायद – अव य
• शासक – शािसत
• शालीन – धृ
• शा त – अशा त
• िशव – अिशव
• शीत – उ ण
• शीष – तल
• िश – अिश
• ीगणेश – इित ी
• शुभ – अशुभ
• शूरता – भी ता
• शृंखिलत – िवशृंखिलत
• शोहरत – बदनामी
• शोक – हष
• शोषक – पोषक
• समथ – असमथ
• सूम – उदार
• सुबोध – दुब ध
• स देह – िव ास
• सौभा य – दुभ य
• स प ता – िवप ता
• सि ध – िव ह
• स भोग – िव ल भ
• समास – यास
• थूल – सू म
•स म–अ म
• सजीव – िनज व
• स या ह – दुरा ह
• स य – अस य
• संघठन – िवघटन
• सजल – िनजल
• स य – अस य
• संतोष – असंतोष
• सफलता – असफलता
• संकीण – िव तृत/िव तीण
• सं यासी – गृह थ
• संयु त – िवयु त
• सं या – ातः
• सदाशय – दुराशय
• स कार – ितर कार
• समूल – िनमूल
• सहज – किठन
• सम – िवषम
• सचे – िन े
• सघन – िवरल
• मरण – िव मरण
• मृत – िव मृत
• वदेश – परदेश/िवदेश
• साध य – वैध य
• साहचय – पृथ रण
• सार – िन सार
• िसत – अिसत
• सुपु – कु पु
• सुख त – दुख त
• सुरीला – बेसुरा
• सृजन – संहार
• हरा – सूखा
• हष – िवषाद
• हृ व – दीघ
• ास – वृि
• िहँसा – अिहँसा
• िहत – अिहत
• हे य – ेय
• होनी – अनहोनी
• िणक – शा त।
3. यु म–श द
ु कम िभ ता होती है , पर तु अथ की दृि से वे िब कु ल िभ होते है ।ँ ऐसे श द को यु म–श द
येक भाषा म कई श द ऐसे होते है ,ँ िजनके उ चारण और वतनी म बहत
कहते है ।ँ इस कार के श द–यु म के ान के अभाव म अथ का अनथ हो सकता है अतः उ चारण और लेखन म इनका ान अिनवाय है ।
♦ मह वपूण यु म–श द :
• अंगार – अंगारे
अगार – आगे
• अंचल – साड़ी का छोर
अंचला – साधुओँ का एक व
• अंिचत – गूंथ ा हआ
ु , पूिजत
अिचत् – जड़, चेतन रिहत
• अंिजत – काजलयु त
अिजत – जो जीता न गया हो
• अंजन – काजल
अजन – अज मा, िनजन
• अंतर – फक
अतर – इ
• अंगद – बािलपु , बाजूब द
अगद – नीरोग
• अनल – आग
अिनल – हवा
• अचल – पवत
अचला – पृ वी
• अचर – न चलने वाला
अिचर – शी , नवीन
• अथक – जो न थकता हो
अकथ – अकथनीय
• अनािद – िजसका आर भ नहीँ है
अ ािद – अ वगैरह
• अिभिहत – कहा हआ ु
अिविहत – अनुिचत
• अप य – संतान
अप य – िनिष भोजन
• अथ – धन
अ – आधा
• अिन – बुरा
अिन – िन ा रिहत
• अनु – पीछे
अणु – छोटा कण
• अिवराम – लगातार
अिभराम – सु दर
• अचन – पूजा
अजन – सं ह
• अंस – क धा
अंश – िह सा
• अवल ब – सहारा
अिवल ब – शी
• अिव – मूख
अिभ – िव ान
• अ त – समाि त
अ य – अि तम
• अजर – जवान, देवता
अिजर – आँगन, बाड़ा
• अिभनय – अनुकरण
अिभनव – नया
• अपर – दूसरा
अवर – नीचे का
• अपहार – अपहरण
उपहार – भट
• अ ज – कमल
अ द – वष
• अभ – भेद का अभाव
अभे – जो तोड़ा न जा सके
• अमल – िबना मैल
अ ल – तेजाब
• अमूल – िबना जड़ का
अमू य – अनमोल
• अवयव – अंग
अ यय – अिवकारी श द
• अवरोध – कावट
अिवरोध – िबना िवरोध के
• अशोच – शोक रिहत
अशौच – अशु
• अिल – भौँरा
आली – सखी
• अ बुज – कमल
अ बुद – बादल
• अशीलता – दुराचरण
अिसलता – तलवार
• अनूिदत – अनुवाद िकया हआु
अनु त – तैयार न होना
• अवदान – योगदान
अवधान – यान देना
• अ ब – आ वृ
अ भ – जल
• अघ – मू य
अ य – पूजा
• अिर – श ु
अरी – संबोधन ( ी.)
• अचार – आम आिद का अचार
आचार – आचरण
• अगम – पहँच ु से बाहर
आगम – उ पि शा
• अतल – तल रिहत
अतुल – िबना तुल ना के
आतुल – अनुभव
• अपमान – िनरादर
उपमान – िजससे समानता
• अपे ा – तुल ना म
उपे ा – ितर कार
• अग – न जलने वाला
आग – अि न
• अगत – बुरी गित
आगत – आया हआ ु
• अगर – यिद, एक वृ
आगर – समूह
• अगला – आगे का
अगला – िसटकनी – रोपने की कील
• अज म – िजसका ज म न हो
आज म – जीवन भर
• अजय – जो न जीता जाये
अजया – भ ग, बकरी
• अत – त तुहीन, िनयं ण रिहत
अत – आल य रिहत
• अ – धुरी
अि – आँख
• अविध – िनयत समय
अवधी – एक बोली
• अग – ि थर
अघ – पाप
• अवन – नीचे उतारना
अविन – धरती
• अस त – असमथ
आस त – मोिहत
• अजु – सरल
र जु – र सी
• अभय – भय रिहत
उभय – दोन
• अयु त – अनुिचत
आयु त – कमी र
• अनुसार – अनु प
अनु वार – ( ◌ं /◌ँ )
• अ त – डू ब जाना
अ तु – अ छा, खैर
• अपकार – बुराई करना
उपकार – भलाई करना
• अ – अनाज
अ य – दूसरा
• अिसत – काला
अिशत – खाया हआ ु
• अंक – गोद
अंग – देह का भाग
• अ – घोड़ा
अ म – प थर
• अपचार – अपराध
उपचार – इलाज
• अ याय – गैर-इंसाफी
अ या य – दूसरे-दूसरे
• अवसान – अंत
आसान – सरल
• आकर – खजाना
आकार – बनावट
• आभरण – गहना
आवरण – ढकना
• आिद – ार भ
आदी – अ य त, आदत
• आसन – िबछौना
आस – समीप
• आिध – मानिसक क
आधी – आधा का ीिलँग
• आ – दुःख
आ – गीला
आ – एक न
• आपात – पतन
आपाद – चरण से
• आभार – अहसान
अभार – भार से रिहत
• आभाष – भूिमका
आभास – झलक
• आयत – िवशाल, एक चतुभुज
आयात – िवदेशी माल मंगाना
• आ – गीला
आ ा – अदरक – एक न
• आलय – घर
अलेय – िजसका लय न हआ ु हो
• आहिु त – बिल, हवन की चीज
आहूित – बुल ाना
• आयास – य
आवास – िनवास
• आवृि – दोहराना
आवृत – िघरा हआु
• इतर – दूसरा
इ – पु पसार
• इित – समाि त
ईित – दैव आपि
• इ दरा – इं की प ी
इि दरा – ल मी
• उर – हृदय
उ – बड़ा, िव तृत
• उबारना – बचाना
उभारना – ऊँचा उठाना
• उ त – उद ड
उ त – तैयार
• उ पल – कमल
उपल – प थर
• उ ोत – काश
उ ोग – उपाय
• उतर – नीचे आना
उ र – जवाब
• उ रण – वा य का वैसा ही कथन
उदाहरण – िमसाल
• उधार – देय रािश
उ ार – ऊपर उठाना
• उन – वे का िवकार
ऊन – भेड़ आिद के बाल
• ऋत – स य
ऋतु – मौसम
• ओर – तरफ
और – दूसरा, तथा
• कंथा – गुदड़ी
कथा – कहानी
क था – एक पे ड़ की छाल
• कच – बाल
कु च – तन
कूच – थान
• कटक – सेना
कंटक – क टा
• किटब – तैयार
किटब ध – कमर का एक आभूषण
• किल – किलयुग
कली – क पल
• किर – हाथी
कीर – तोता
• किलत – सु दर, यु त
कीिलत – कील जड़ा
• किपश – मटमैल ा रंग
कपीश – हनुमान, सु ीव
• कंज – कमल
कु ंज – लता, म डप
• म – िसलिसला
कम – काय
• कल – मशीन
काल – समय
• कंकाल – अि थिपँजर
कंगाल – िनधन
• करकट – कचरा
ककट – केकड़ा
• करोड़ – 100 लाख
ोड़ – गोद
• कड़ी – कठोर
कढ़ी – दही-बेसन का साग
• कड़ाई – कठोरता
कढ़ाई – काठने की ि या
• कटौती – कमी करना
कठौती – का का पा
• कलुष – पाप
कु िलश – व
कलश – मटका
• क त – पित
ल त – थका हआ ु
• कान – वणेि य
कािन – मय दा
• काि त – चमक
ाि त – स पूण पिरवतन
• िकिट – सुअर
कीट – कीड़ा
किट – कमर
• कु ंडल – एक गहना
कु ंतल – िसर के बाल
• कु ल – वंश, योग
कूल – िकनारा
• कु ट – घर, िकला
कूट – पवत
• कु जन – दुजन
कूजन – पि यॲ का कलरव
• कूर – कायर
ू र – िनदयी
• केत – घर
केतु – पताका, वजा
• केसर – िसँह की गदन के बाल
केशर – एक सुगि धत पु प
• कोर – िकनारा
कौर – ास
• कोस – दूर की माप
कोश – खजाना
• कोशल – अयो या का देश
कौशल – िनपुणता
• कृत – िकया हआ ु
ीत – खरीदा हआु
• कृित – रचना
कृती – रचनाकार, चतुर
• कृपण – कंजूस
कृपाण – तलवार
• कृिम – कीट
कृिष – खेती
• ित – नुकसान
ि ित – पृ वी
• मा – पृ वी
मा – माफ करना
• खर – गधा
खुर – पशु के खुर
• खाद – उवरक
खा – खाने यो य व तु
• ग ा – कलाई
ग ा–ग र
• गड़ना – चुभना
गढ़ना – बनाना
• गदहा – वै
गधा – गदभ
• गण – समूह
ग य – िगने जाने यो य
• गत – बीता हआ ु
गित – चाल
• गाड़ी – यान
गाढ़ी – गहरी
• गुँथ ना – माला िपरोना
गुँदना – आटा सानना
• गुर – उपाय
गु – िश क, भारी
• गुटका – छोटी पु तक
गुिटका – गोली
• गृह – घर
ह – सूय के चार ओर घूमने वाले िपँड
• ंथ – पु तक
ंिथ – ग ठ
• गव – घम ड
गभ – आ तिरक भाग
• घन – बादल
घना – गाढ़ा
• घट – घड़ा
घाट – नदी का तट
• चम – चमड़ा
चरम – अि तम
• चरण – पै र
चारण – एक जाित
• च वाक – चकवा प ी
च वात – बवंडर
• चतु पद – चौपाया
चतु पथ – चौराहा
• िचत – िसर के बाल
िच – मन
• िचता – दाह सं कार के िलए लकिड़य
िचँता – िफ
• िचर – अिधक काल
चीर – व
चीड़ – एक वृ
• छत – मकान की छत
छा – बड़ा छाता
त – घाव
• जर – बुढ़ापा
जरा – पृ वी, थोड़ा
• जगत् – संसार
जगत – कु एँ का चौँतरा
• जघन – ज घ
जघ य – नीच
• जलद – बादल
जलज – कमल
• जरठ – अित वृ
जठर – पे ट
• जलना – बलना
झलना – हवा करना
• जलाना – विलत करना
िजलाना – जीवनदान देना
• जवान – युवक
जबान – जीभ
• जाम – याला
याम – हर
• जामन – दूध जमाने का दही
जामुन – एक फल
• डीठ – दृि
ढीठ – िज ी
• ढलाई – ढालने की ि या
िढलाई – िशिथलता
• तरंग – लहर
तुरगं – घोड़ा
• तक – दलील, बहस
त – छाछ
• त त – गरम
तृ त – संतु
• तरिण – सूय
तरणी – नाव
त णी – युवती
तरनी – खोमचा रखने का डम की श ल का पा
• तम – अंधकार
तोम – समूह
• तन – शरीर
तनु – पतली
• तड़ाक – शी
तड़ाग – तालाब
• तर – गीला
त – पे ड़
• तिर – नौका
तरी – गीलापन
• थन – तन
थल – रेिग तान
• दंश – डंक
दश – दस
• दशा – अव था
िदशा – ओर
• दमन – दबाना, िन ह
दामन – पहाड़ के नीचे का भाग
• य – धन
व – पतला
• द ध – जला हआ ु
दु ध – दूध
• दारा – ी
ारा – मा यम
• िदन – िदवस
दीन – गरीब
• िदवा – िदन
दीवा – िदया
• ि प – हाथी
ीप – टापू
दीप – दीया
• दूत – संदेशवाहक
त
ू – जुआ
• देव – देवता
दैव – भा य
• दोष – अवगुण
ैष – वैर
• दोषी – अपराधी
दोषा – राि
• धन – पया-पै सा
ध य – पु यवान
• धरा – पृ वी
धारा – वाह
• धिन – गृिहणी
धनी – धनवान
धणी – वामी
• नकल – अनुकरण, ितिलिप
नकु ल – नेवला
• नद – बड़ी नदी
नाद – विन
• नग – पवत
नाग – सप, हाथी
• नत – झुका हआ ु
नट – खेल -तमाशे िदखाने वाली एक जाित
• नम – गीला
न – िवनीत
• न – मगरम छ
नक – नरक
• नावक – छोटा बाण
नािवक – केवट
• नारी – ी
नाड़ी – न ज
• िनगम – सं था
िनगम – िनकास
• िनधन – मृ यु
िनधन – गरीब
• िनजर – देवता
िनझर – झरना
• िनम ण – रचना
िनव ण – मो
• िनहत – मरा हआ ु
िनिहत – िछपा हआ ु
• िनयत – िनि त
िनयित – सोच, भा य
• िन ल – अचल
िन छल – छल रिहत
• िनमं ण – यौता
िनयं ण – बंधन
• नीर – पानी
नीड़ – घ सला
• नीरद – बादल
नीरिध – समु
• नीरज – कमल
नीरव – िनःश द, सुनसान
• नीम – एक पे ड़
नीँव – मकान की जड़
• नेक – अ छा
नेकु – तिनक
• पिरषद – सभा
पिरषद् – सभासद
• भाव – असर
पराभव – हार
• हार – चोट करना
पिरहार – समाधान करना
• प ष – कठोर
पु ष – मनु य, नर
• कृत – पदाथ
कृित – वभाव
• पज य – बादल
परजन – श ु, अ य यि त
• दीप – दीपक
तीप – उ टा
• णय – ेम
णत – झुका हआ ु
• साद – कृपा
ासाद – महल
• कार – तरीका
ाकार – परकोटा
• वाह – बहाव
भाव – मह व
• था – पर परा
पृथ ा – कु ती
• णीत – रिचत
पिरणीत – िववािहत
• पवन – हवा
पावन – पिव
• पिरणाम – नतीजा
पिरमाण – मा ा
• माण – सबूत, नाप
णाम – नम कार
• तीहार – ारपाल
याहार – वापस चलना
• पानी – जल
पािण – हाथ
• पावस – वष
पायस – खीर
• पिरिमत – अ प
पिरिमित – सीमा
• पिरि छद – वेशभूषा
पिर छे द – अ याय
• ेिषत – भेजा हआ ु
ोिषत – वासी
• पाश – फ दा
पास – समीप
• पु कर – जलाशय
पु कल – बहत ु
• पालतु – पाला हआ ु
पलातु – पालने यो य
• पथ – रा ता
प य – रोगी का भोजन
• कृत – नैसिगक
ाकृत – सामा य भाषा
• प – त ता
पट – कपड़ा
• पतन – िगरावट
प न – क बा, नगर
• पित – घरवाला
प ी – िह सा, पे ड़ की प ी
• पद – ओहदा
प – का य
• पिरवतन – बदलाव
वतन – उकसाव
• बल – जबरद त
वर – सबसे बड़ा
• ा त – िमला
पय त – काफी
• फण – स प का फन
फन – कला
• बिल – भट
बली – बलवान
• बहन – भिगनी
वहन – ढोना
• बहु – बहत ु
बहू – पु वधु
• बलाक – बगुल ा
बलाहक – बादल
• याल – सप
यालू – राि का भोजन
• बाड़ – ओट
बाढ़ – अितजल वाह
• बुरा – खराब
बूरा – क ची चीनी
• बेर – एक फल
बैर – श ुता
• भट – यो ा
भ – पंिडत
• भवन – मकान, घर
भुवन – संसार, लोक
• भाग – िह सा
भा य – तकदीर
• भाल – म तक
भालू – रीँछ
• िभि – दीवार
भीित – डर
• मत – राय
मित – बुि
• मिण – र
मणी – स प की मणी
मण – तोल का एक माप (1 मण = 40 िकलो)
• मद – अिभमान
म – शराब
• मनुज – मानव
मनोज – कामदेव
• मरीिच – िकरण
मरीची – सूय
• मि डत – सुशोिभत
मुि डत – मुंडा हआ ु
• म दर – एक पवत
मि दर पूजा थल
• म दी – धीमी
म डी – हाट
• मिलन – मैल ा
लान – मुरझाया हआ ु
• मातृ – माता
मा – केवल
• िम ी – धूल
िम ी – चु बन
• िम – िमला हआ ु
िम – देश का नाम
• मु त – छोड़ा गया
भु त – भोगा हआ ु
• मुकुर – दपण
मुकुट – ताज
• मूल – जड़, मु य
मू य – कीमत
• मेघ – बादल
मेध – य
• मोर – मयूर प ी
मौर – मुकुट
• युि त – उपाय, तरकीब
उि त – कथन
• योग – मन का ठहराव
यो य – लायक
• रिव – सूय
रव – शोर
• राज – शासन
राजा – शासक
• रीित – पर परा
रीता – खाली
• ल – लाख
ल य – उ े य, िनशाना
• लगन – चाव, उ साह
ल न – शुभ मुहूत
• लिलत – सुंदर
लिलता – गोपी
• लोभ – लालच
लोम – रोम
• वत – उपवास
वृ – घेरा
वृ द – समूह
• वसन – व
यसन – बुरी आदत
बसन – बसना
• वन – जंगल
व य – जंगली
• व तु – चीज
वा तु – मकान
• वदन – मुख
बदन – देह
• वण – रंग
वण – घाव
• वरण – चुनाव
व ण – एक देवता
• यंग – िवकल ग
यं य – कटा
• यंजन – पकवान
यजन – पंखा
िवजन – एका त
• याध – िशकारी
यािध – रोग
• वात – वायु
बात – बातचीत
• वाम – टे ढ़ा
वामा – ी
• वािरद – बादल
वािरिध – समु
• िवष – जहर
िवस – कमलनाल
िव – दुिनया
• िविध – ढं ग, ा
िवधु – च मा
• िववरण – वृता त
िववण – िवकृत रंग
• िवदुर – पि डत
िवधुर – िजसकी प ी मर गई हो
• शंकर – िशव
संकर – िमि त
• शर – बाण
सर – तालाब
• शकल – टुकड़ा
सकल – स पूण
• शम – शाि त
सम – समान
• श – हिथयार
शा – धम थ
• श त – शािपत
स त – सात
• शशधर – च मा
शिशधर – शंकर
• शकृत – िव ा
सकृत – एक बार
• शाला – थान
साला – प ी का भाई
• शा त – चुप
सा त – अ त सिहत
• िशत – सफेद
शीत – ठ ड
• िशरा – नाड़ी
िसरा – छोर
• शुभ – मंगल द
शु – उ वल
• शुक – तोता
शु – शि त, दै य, गु
• शूर – वीर
सूर – सूय
शूल – क टा
• शु क – फीस
श क – छाल
शु ल – सफेद
• शूिच – पिव
शिच – इ की प ी
• शोक – िवयोग, दुःख
शौक – चाव, लगन
• शौय – वीरता
सौर, सौय – सूय स ब धी
• जन – कु ा
वजन – अपने आदमी
• ेद – पसीना
ेत – सफेद
• वण – सुनना
ामण – जैन िभ ु
• ा – िपतर का ा
ा – पू य भाव
• षि – साठ
ष ी – छठी
• संग – साथ
संघ – समूह
• संदेह – शक
सदेह – शरीर के साथ
• सखी – सहे ल ी
साखी – दोहा
सुखी – सुख वाला
• सग – अ याय
वग – देवलोक
• स जा – सजावट
सजा – अलंकृत, द ड
• सती – सा वी
शती – सौ साल
• सहसा – अचानक
साहस – िह मत
• सवथा – सब कार से
सवदा – हमेशा
• संवत् – देशी वष
स मत – सलाह के अनुकूल
• सिमित – सभा
स मित – सलाह
स मित – अ छी बुि
• स स – ास, ाण
सास – पित या प ी की म
• िसर – शीश
िसरा – छोर
• िसता – श र
सीता – राम की प ी
• सुत – बेटा
सूत – सारथी, ई का धागा
• सुगंध – खुशबू
सौगंध – कसम, ित ा
• सुिध – होश
सुधी – बुि मान
• सूिच – सुई
सूची – सारणी
• वपच – ा ण
पच – चा डाल
• ोत – वाह
ो – कान
• हरण – ले जाना
हिरण – मृग
• हिर – िव णु
हरी – हरे रंग की
• ह त – हाथ
हि त – हाथी
• हल – यंजन
हल – समाधान
• हट – परे हो
हठ – िज
• ास – कमी
हास – हँसी
• द – तालाब
हृ द ् – हृ द य
• िहतू – उपकारी
हे तु – कारण
• िहम – बफ
हे म – वण
• िहय – हृदय
हय – घोड़ा
• मा – पृ वी
मा – माफ करना
• ेय – जानने यो य
गेय – गाने यो य
4. एकाथक श द
ु से श द ऐसे है ,ँ िजनका अथ देखने और सुनने म एक–सा लगता है , पर तु वे समानाथ नहीँ होते है ।ँ यान से देखने पर पता चलता है िक उनम कु छ अ तर भी है ।
बहत
इनके योग म भूल न हो इसके िलए इनकी अथ–िभ ता को जानना आव यक है ।
5. अनेकाथक श द
♦ अनेकाथक श द –
ु से श द ऐसे है ,ँ िजनके एक से अिधक अथ होते है ।ँ ऐसे श द का अथ िभ –िभ
‘अनेकाथक’ श द का अिभ ाय है , िकसी श द के एक से अिधक अथ होना। बहत योग
के आधार पर या संगानुसार ही प होता है । भाषा सौ व की दृि से इनका बड़ा मह व है ।
♦ मुख अनेकाथक श द :
• अंक – सं या के अंक, नाटक के अंक, गोद, अ याय, पिर छे द, िच , भा य, थान, पि का का नंबर।
• अंग – शरीर, शरीर का कोई अवयव, अंश, शाखा।
• अंचल – िसरा, देश, साड़ी का प लू।
• अंत – िसरा, समाि त, मृ यु, भेद, रह य।
• अंबर – आकाश, व , बादल, िवशेष सुगि धत व जो जलाया जाता है ।
• अ र – न न होने वाला, अ, आ आिद वण, ई र, िशव, मो , , धम, गगन, स य, जीव।
• अक – सूय, आक का पौधा, औषिधय का रस, काढ़ा, इ , फिटक, शराब।
• अकाल – दुिभ , अभाव, असमय।
• अज – ा, बकरा, िशव, मेष रािश, िजसका ज म न हो (ई र)।
• अथ – धन, ऐ य, योजन, कारण, मतलब, अिभ ा, हे तु (िलए)।
• अ – धुरी, आँख, सूय, सप, रथ, म डल, ान, पिहया, कील।
• अजीत – अजेय, िव णु, िशव, बु , एक िवषैल ा मूषक, जैिनय के दूसरे तीथकर।
• अितिथ – मेहमान, साधु, या ी, अपिरिचत यि त, अि न।
• अधर – िनराधार, शू य, िनचला ओ , वग, पाताल, म य, नीचा, पृ वी व आकाश के बीच का भाग।
• अ य – िवभाग का मुिखया, सभापित, इंचाज।
• अपवाद – िनँदा, कलंक, िनयम के बाहर।
• अपे ा – तुल ना म, आशा, आव यकता, इ छा।
• अमृत – जल, दूध, पारा, वण, सुधा, मुि त, मृ युरिहत।
• अ ण – लाल, सूय, सूय का सारथी, िसँदरू , सोना।
• अ णा – ऊषा, मजीठ, धुँधली, अितिवषा, इ , वा णी।
• अन त – सीमारिहत, ा, िव णु, िशव, शेषनाग, ल मण, बलराम, ब ह का आभूषण, आकाश, अ तहीन।
• अ – आगे का, े , िसरा, पहले।
• अ ज – शंख, कपूर, कमल, च मा, प , जल म उ प ।
• अमल – मलरिहत, काय वयन, नशा-पानी।
• अव था – उ , दशा, ि थित।
• आकर – खान, कोष, ोत।
• अशोक – शोकरिहत, एक वृ , स ाट अशोक।
• आराम – बगीचा, िव ाम, सुिवधा, राहत, रोग का दूर होना।
• आदश – यो य, नमूना, उदाहरण।
• आम – सामा य, एक फल, मामूल ी, सवसाधारण।
• आ मा – बुि , जीवा मा, , देह, पु , वायु।
• आली – सखी, पंि त, रेखा।
• आतुर – िवकल, रोगी, उ सुक, अश त।
• इ दु – च मा, कपूर।
• ई र – भु, समथ, वामी, धिनक।
• उ – ू र, भयानक, क दायक, तीव।
• उ र – जवाब, एक िदशा, बदला, प ाताप।
• उ सग – याग, दान, समाि त।
• उ पात – शरारत, दंगा, हो-ह ला।
• उपचार – उपाय, सेवा, इलाज, िनदान।
• ऋण – कज, दािय व, उपकार, घटाना, एकता, घटाने का बूटी वाला प ा।
• कंटक – क टा, िव , कीलक।
• कंचन – सोना, क च, िनमल, धन-दौलत।
• कनक – वण, धतूरा, गेहूँ, वृ , पलाश (टे सू)।
• क या – कु मारी लड़की, पु ी, एक रािश।
• कला – अंश, एक िवषय, कु शलता, शोभा, तेज, युि त, गुण, याज, चातुय, च द का सोलहव अंश।
• कर – िकरण, हाथ, सूँड, काय देश, टै स।
• कल – मशीन, आराम, सुख, पुज , मधुर विन, शाि त, बीता हआ ु िदन, आने वाला िदन।
• क – क ख, कमरा, कछौटा, सूखी घास, सूय की क ा।
• क – वामी, करने वाला, बनाने वाला, थ िनम ता, ई र, पहला कारक, पिरवार का मुिखया।
• कलम – लेखनी, कूँची, पे ड़-पौध की हरी लकड़ी, कनपटी के बाल।
• किल – कलड, दुःख, पाप, चार युग म चौथा युग।
• किशपु – चटाई, िबछौना, तिकया, अ , व , शंख।
• काल – समय, मृ यु, यमराज, अकाल, मुहूत, अवसर, िशव, युग।
• काम – काय, नौकरी, िसलाई आिद धंधा, वासना, कामदेव, मतलब, कृित।
• िकनारा – तट, िसरा, पा , हािशया।
• कु ल – वंश, जोड़, जाित, घर, गो , सारा।
• कु शल – चतुर, सुखी, िनपुण, सुरि त।
हमारी Latest Daily Current Affairs Hindi व
English में नीचे दी गई Link से पढें !
Hindi
English
6. पशु–पि यॲ की बोिलय
पशु/प ी — बोली
• ऊँट – बलबलाना
• कोयल – कूकना
• गाय – रँभाना
• िचिड़या – चहचहाना
• भस – डकराना (रँभाना)
• बकरी – िमिमयाना
• मोर – कु हकना
• घोड़ा – िहनिहनाना
• तोता – ट-ट करना
• हाथी – िचँघाड़ना
• कौआ – क व-क व करना
• स प – फु फकारना
• शेर – दहाड़ना
• सारस – - करना
• िटटहरी – टीं-टीं करना
• कु ा – भॱकना
• म खी – िभनिभनाना।
♦♦♦
« पीछे जाय | आगे पढ »
• सामा य िह दी
♦ होम पे ज
तुित:–
मोद खेदड़
सामा य िह दी
8. श द–संरचना
श द–संरचना का आशय नये श द का िनम ण, श द की बनावट और श द–गठन से है । िह दी म दो कार के श द होते है —
ँ ढ और यौिगक। श द रचना की दृि से
केवल यौिगक श दॲ का अ ययन िकया जाता है । यौिगक श द म ही उपसग और यय का योग करके नये श द की रचना होती है ।
(1) यु पि प ित –
इस प ित म मूल श द म उपसग और यय जोड़कर नये श द की रचना की जाती है । जैसे—‘िलख्’ मूल धातु म ‘अक’ यय लगाने से ‘लेखक’ श द और ‘सु’ उपसग
लगाने से ‘सुल ेख’ श द बनता है । इसी कार ‘हार’ श द म ‘सम्’ उपसग लगाने से ‘संहार’ और ‘ई’ यय लगाने से ‘संहारी’ श द बनता है ।
उपसग व यय दोन एक साथ योग करके भी नया श द बनता है । जैसे— ाक्+इितहास+इक = ागैितहािसक। िह दी म इस प ित से हजार श द की रचना होती है ।
श द म संिध करने से भी इसी कार श द–रचना होती है । जैसे—िव ा+आलय = िव ालय, ित+उपकार = युपकार, मनः+हर = मनोहर आिद।
(3) श दावृि प ित –
कभी–कभी श द की आवृि करने या वा तिवक या कि पत विन का अनुकरण करने से भी नये श द बनते है ।ँ जैसे—रात रात, हाथ हाथ, िदन िदन, खटखट,
फटाफट, गड़गड़ाहट, सरसराहट आिद।
(4) वण-िवपयय प ित –
वण ँ या अ र का उलट–फेर योग करने से भी नये श द बन जाते है ।ँ जैसे—जानवर से िजनावर, अँगुल ी से उँगली, पागल से पगला आिद।
उपसग
जो श द श िकसी मूल श द के पहले जुड़कर उसके अथ म पिरवतन या िवशेषता उ प कर देते है ,ँ उन श द श को उपसग कहते है ।ँ जैसे –
‘हार’ एक श द है । इस श द के पहले यिद 'सम्, िव, ', उपसग जोड़ दये जाय, तो– सम्+हार = संहार, िव+हार = िवहार, +हार = हार तथा उप+हार = उपहार श द
बनगे। यह उपसग जुड़कर बने सभी श द का अथ ‘हार’ श द से िभ है ।
उपसग ँ का अपना वतं अथ नहीँ होता, मूल श द के साथ जुड़कर ये नया अथ देते है ।ँ इनका वतं योग नहीँ होता। जब िकसी मूल श द के साथ कोई उपसग
जुड़ता है तो उनम सि ध के िनयम भी लागू होते है ।ँ सं कृत उपसग ँ का अथ कहीँ–कहीँ नहीँ भी िनकलता है । जैसे – ‘आर भ’ का अथ है – शु आत। इसम ‘ ’ उपसग जोड़ने
पर नया श द ‘ ार भ’ बनता है िजसका अथ भी ‘शु आत’ ही िनकलता है ।
♦ िवशेष—
यह ज री नहीँ है िक एक श द के साथ एक ही उपसग जुड़े। कभी–कभी एक श द के साथ एक से अिधक उपसग जुड़ सकते है ।ँ जैसे–
• सम्+आ+लोचन = समालोचन।
• सु+आ+गत = वागत।
• ित+उप+कार = युपकार।
• सु+ + थान = सु थान।
• सत्+आ+चार = सदाचार।
• अन्+आ+गत = अनागत।
• अन्+आ+चार = अनाचार।
• अ+परा+जय = अपराजय।
♦ उपसग के भेद –
िह दी भाषा म चार कार के उपसग यु त होते है —ँ
(1) सं कृत के उपसग,
(2) देशी अथ त् िह दी के उपसग,
(3) िवदेशी अथ त् उदू, अं ेजी, फारसी आिद भाषाओँ के उपसग,
(4) अ यय श द, जो उपसग की तरह यु त होते है ।ँ
1. सं कृत के उपसग
सं कृत म कु ल बाईस उपसग होते है । वे उपसग त सम श द के साथ िह दी म यु त होते है । इसिलए इ ह सं कृत के उपसग कहते है ।ँ यथा—
उपसग – अथ – उदाहरण
1. अित – अिधक, ऊपर – अ य त, अितिर त, अितवृि , अ यिधक, अितशय, अित मण, अितशी , अ याचार, अ युि त, अ याव यक, अ य प, अितसार, अतीव।
2. अिध – धान, े – अिधकार, अिधपित, अिधिनयम, अ य , अिधकरण, अ ययन, अिधगम, अिधकृत, अिधनायक, अिधभार, अिधशेष, अ यादेश, अधी ण, अ यापक,
अिध हण, अ याय।
3. अनु – पीछे , म – अनुचर, अनुसार, अनु ह, अनुकूल, अनुकरण, अनु प, अनुशासन, अनुरोध, अनुमान, अनुज, अनुब ध, अनु ान, अनूिदत, अनु ास, अ वेषण,
अनुराग, अनुभव, अनुदार, अनुिदन, अि वित, अनु ा, अनुवतन, अ वय, अनुभार, अ वी ा, अ वी ण, अि व , अ वे क, अ वेषक।
4. अप – बुरा, अभाव – अपयश, अपकार, अप यय, अपहरण, अपमान, अपवाद, अपश द, अपकीित, अपवतन, अपिश , अपवजन, अपे ा, अपकषण, अपघटन, अपवाह,
अप ंश।
5. अव – नीचे, हीन, बुरा – अवगुण, अवतार, अवनित, अव , अवधारणा, अवशेष, अवसान, अवकाश, अवमू यन, अवसाद, अवधान, अवलोकन, अवसर, अवचेतना,
अवाि त, अवगत, अव ा, अव था, अवमानना।
6. अिभ – सामने, पास – अिभमान, अिभमुख, अिभमत, अिभनय, अिभनव, अिभवादन, अिभयोग, अिभम यु, अिभ ान, अिभयु त, अिभषेक, अिभनेता, अिभराम, अिभवृि ,
अिभलाषा, अिभकरण, अभी , अ यास, अ य तर, अ युदय, अ यागत, अिभशाप।
7. आ – तक, सिहत – आज म, आमरण, आगमन, आ मण, आहार, आयात, आतप, आजीवन, आदान, आसार, आकषण, आलेख, आभार, आधार, आगार, आ य, आगत,
आकर।
8. उत् – ऊँचा, े – उ साह, उ क ठा, उ थान, उ म, उ प , उ पि , उ पीड़न, उ कृ , उ ार, उ वल, उ ोग, उ लेख।
9. उप – पास, गौण, सहायक – उपवन, उपदेश, उपम ी, उपकार, उपनाम, उपनयन, उपि थित, उप यास, उपचार, उपयोग, उप ग, उपम यु, उपरा पित, उपकृत, उपहार,
उपसंहार, उपल य, उपहास, उपकु लपित, उपयु त, उपायु त, उपख ड, उप म, उप ह।
10. दुर ् – बुरा, किठन, िवपरीत – दुजन, दुदशा, दुल भ, दुराचार, दुराशा, दुरा ह, दुभ य, दुय धन, दुगम, दुबल, दुगित, दुव सा, दुिभ , दुगुण।
11. दुस् – बुरा, किठन – दु साहस, दु काय, दु िर , दु कर, दुि ता, दु शासन, दु कम, दु सा य, दु तर, दुः पश।
12. िन – रिहत, िवशेष, अिधकता – िनगम, िनपुण, िनवारण, िनडर, िनवास, िनदान, िनरोध, िनयम, िनब ध, िनम न, िनकास, िनिहत, िनह था, िनिध, िनवेश, य त,
िनलंबन, िनक मा, िनवृ , िनकाय, िनधन।
13. िनर् – िनषेध, िवपरीत, बड़ा, बाहर – िनल ज, िनभय, िनणय, िनद ष, िनरपराध, िनराकार, िनराहार, िनधन, नीरोग, िनराशा, िनिव , िनद ष, िनगुण, िनरिभमान, िनव ह,
िनजन, िनय त, िनदयी, िनमल, िनभ क, िनरी क, िनम ता, िनव चन, िनिवरोध, िनरथक, िनर त, िनिनमेष, िनभय, िनरंजन, िन पम।
14. िनस् – रिहत, अ छी तरह से, बड़ा – िन ल, िन य, िन सार, िन स देह, िन छल, िन काम, िन संकोच, िन वाथ, िन तारण, िन कपट, िन कासन।
15. परा – पीछे , ितर कार, िवपरीत – पराजय, पराभव, परा म, परामश, पराधीन, परावतन, परा त, पराका ा।
16. पिर – पूण, पास, चार ओर – पिरणाम, पिरवतन, पिर म, पिर मा, पिरवार, पिरपूण, पिरमाजन, पिरमाप, पिरसर, पिरिध, पिरणित, पिरप व, पिरचय , पिरचच ,
पिरक पना, पिर मण, पय वरण, पयवे ण, परी ा, पिरणय, पिर ह, पयटन, पिरचय।
17. ित – येक, उ टा – ितिदन, ितिनिध, ितप , य , ितकूल, ित ण, ितमास, ितरोध, ितिलिप, ितमान, ित ाम, ित ा, यावतन, ितमा, ित ा,
ितभा, ती ा।
18. – अिधक, आगे, उ कृ – थम, बल, हार, भाव, कार, दान, योग, चार, ि या, वाह, पंच, गित, दशन, लय, माण, िस , यात, थान, ेषण,
मेय, वेश, लाप, विलत, मोद, काश, दीप।
19. िव – िवशेष, अभाव, िभ – िवयोग, िवभाग, िवनाश, िव ान, िवजय, िवदेश, याकु ल, िवकृत, िवकट, िवप , िवचार, िवशेष, िवराम, िवकल, िवमल, िवरोध, िवकास,
िववृ , िवमान, याकरण, िव यात, िवलोम, िववाद, िववाह।
20. सम् – स पूण, उ म, अ छी तरह – संसार, स मान, संतोष, संयोग, संक प, संचय, संगम, संगित, स बोधन, समी ा, संहार, संवाद, स मित, समाचार, समुिचत, समथ,
स देह, संिवधान, संचालन, समपण, सं ेप, संशय, स पक, संसद, संयम, स ब ध, संकीण, सम ।
21. अिप – िन य, और भी – अिपतु, अिपधान, अिपिहत, अिपब , अिपवृ ।
22. सु – अ छा, अिधक, सरल – सुल ेख, सुयश, सुपु , सुयोग, सुग ध, सुगित, सुबोध, सुपु , सुक या, सुफल, सुकाल, सुकम, सुगम, सुकर, सुिदन, सुल भ, सुमन,
सुशील, सुिवचार, सुमं , सुनार, वागत, सुदरू , सुदढ़ृ , सुनैना, सुर ा, सुमित, सुभाष, सुरेखा, सुनीता, सुल णा, सुपारी, सुचा , सुपु ी।
2. िह दी के उपसग
उपसग – अथ – उदाहरण
• अ – रिहत, िनषेध – अचेतन, अजान, अथाह, असा य, अका य, अटल, अलग, अछू त, अभागा, अमर, अ ान, अमोल, अम य, अधम, अकाल, अतुल , अतल, अ िच,
अवैतिनक, अ त, अजीण, अप य, अिचर, अजर, अनाम, अज मा, अकारण, अिहत, अहत ।
• अन – अभाव, िनषेध – अनपढ़, अनजान, अनबन, अनमोल, अनमेल , अनिहत, अनसुनी, अनकही, अनहोनी, अनदेखी, अनमना, अनखाया, अनचाहा, अनसुना।
• अध – आधा – अधपका, अधमरा, अधजला, अधिखला, अधकचरा।
• आप – वयं – आपबीती, आपकाज, आपकही, आपदेखी, आपसुनी, आपकर, आपिनिध।
• उ – उच ा, उजड़ना, उछलना, उखाड़ना, उभार।
• उन – एक कम – उ ीस, उनतीस, उनचालीस, उनचास, उनसठ, उनह र, उनासी।
• औ – हीन, िनषेध – औगुण, औसर, औघड़, औघट, औरस।
• क – बुरा – कपूत, कलंक, कठोर, कसूर, कमर, कमाल, कपास, कगार, कजरा, कमरा, कजली, कचरा।
• का – बुरा – कायर, कापु ष, काजल, कातर, काितल, कातना, कायम, कािफ़र।
• कु – बुरा, हीन – कु प, कु पु , कु कम, कु यात, कु माग, कु पथ, कु गित, कु मित, कु कृ य, कु िवचार, कु पा , कु संग, कु संगित, कु योग, कु माता, कु चाल, कु च , कु रीित,
कु ब ध।
• चौ – चार – चौराहा, चौपाल, चौपड़, चौमासा, चौपाया, चौरंगा, चौसर, चौपाई, चौमुखा, चौकोर, चौगुना, चौबीस, चौखट, चौतरफा।
• ित – तीन – ितराहा, ितकोना, ितरंगा, ितपाई, ितमाही, ितगुनी, ितकड़ी।
• दु – दो, बुरा – दुमुँहा, दुबला, दुरगं ा, दुल ती, दुनाली, दुराहा, दुकाल, दुभािषया, दुशाला, दुल ार, दुधा , दुपिहया।
• नाना – िविवध – नाना कार, नाना प, नानाजाित।
• िन – अभाव – िनक मा, िनह था, िनठ ला, िनडर, िनवास, िनदान।
• पच – प च – पचरंगा, पचमेल , पचकूटा।
• पर – दूसरा – परकाज, परदेश, परकोटा, परिहत, परदेसी, परजीवी, परपु ष, परिनँदा, पराधीन, परोपकार।
• बहु – यादा – बहम ु ू य, बहवु चन, बहम ु त, बहध ु ा, बहभ
ु ुज, बहु ीिह।
• िबन – िबना – िबनखाया, िबन याहा, िबनबोया, िबनचाहा, िबनजाना, िबनदेखा, िबनबुल ाया, िबनसोचा।
• भर – पूरा – भरपे ट, भरपूर, भरकम, भरसक, भरतार, भरमार, भरपाई।
• स – सिहत – सपूत, सफल, सबल, सजग, सचेत, सकाम, सस मान, स ेम, सरस, सघन, सजीव, सजग, सकु शल।
• सम – समान – समतल, समदश , समक , समकोण, समबाह,ु समरस, समकालीन, समवत , समिमत।
3. िवदेशी उपसग
िह दी म िवदेशी भाषाओँ के उपसग भी यु त होते है ।ँ िवशेष प से उदू, फारसी और अं ेजी के कई उपसग अपनाये जाते है ।ँ इनम से कितपय इस कार है —
ँ
(क) उदू–फारसी के उपसग –
• अल – िनि त – अलगरज, अलिवदा, अलब ा, अलहदा, अलबेल ा, अलम त।
• कम – थोड़ा, हीन – कमब त, कमजोर, कमिसन, कमकीमत, कमअ ल, कमखच।
• खुश – स , अ छा – खुशबू, खुशिदल, खुशिमजाज, खुशनुमा, खुशहाल, खुशनसीब, खुशिक मत, खुशखबरी।
• गैर – िनषेध, रिहत – गैरहािजर, गैरकानूनी, गैरकौम, गैरमद, गैरसरकारी, गैरवािजब, गैरिज मेदार।
• दर – म – दरअसल, दरकार, दरिमयान, दरबदर, दरहकीकत, दरबार, दरखा त, दरिकनार, दरग़ुजर।
• ना – नहीँ – नालायक, नापसंद, नामुमिकन, नाकाम, नाबािलग, नाराज, नादान, नाचीज, नागवार, नाखुश, नासमझ, नापाक, नाइंसाफ।
• बा – अनुसार, साथ – बामौका, बाकायदा, बाइ जत, बामुल ायजा, बाअदब, बादल, बादाम।
• बद – बुरा – बदनाम, बदमाश, बदचलन, बदहजमी, बदबू, बदतमीज, बदहवास, बदसूरत, बदइंतजाम, बदिक मत, बदरंग, बदहाल।
• बे – िबना, रिहत – बेईमान, बेचारा, बेअ ल, बेिहसाब, बेिमसाल, बेहाल, बेवकूफ, बेदाग, बेकसूर, बेपरवाह, बेकार, बेकाम, बेघर, बेवफा, बेदद, बेसमझ, बेवजह, बेचैन,
बेशुमार, बेहोश, बेइ जत, बेरहम, बेसहारा, बेरोजगार, बेव त, बेकरार, बेअसर।
• ला – परे, िबना – लापरवाह, लाचार, लावािरस, लापता, लाजवाब, लाइलाज।
• सर – मु य – सरकार, सरदार, सरपंच, सरहद, सरनाम, सरफरोश।
• हम – साथ, समान – हमदद , हमराज, हमदम, हमवतन, हमराह, हमदद, हमउ , हमसफर, हमश ल, हमजोली, हमराही, हमपे शा।
• हर – येक – हरिदन, हरएक, हरसाल, हरदम, हररोज, हरबात, हरचीज, हरबार, हरव त, हरघड़ी, हरहाल, हरकोई, हरतरफ।
• ब – सिहत – बखूबी, बतौर, बशतँ, बतज, बकौल, बदौलत, बमुि कल, बद तूर, बगैर, बनाम।
• िबला – िबना – िबलाकसूर, िबलावजह।
• बेश – अ यिधक – बेशकीमती, बेशकीमत।
• नेक – भला – नेकराह, नेकिदल, नेकनाम।
• ऐन – ठीक – ठीक – ऐनव त, ऐनजगह, ऐनमौके।
(ख) अं ेजी के उपसग –
• सब – छोटा – सब रिज ार, सब इ सपे टर, सब कमेटी, सब जज।
• है ड – मुख – है डमा टर, है डऑिफस, है डक टे िबल।
• ए स – मु त – ए स ेस, ए स ि ँिसपल, ए स कमी र, ए स टू डे ट।
• हाफ – आधा – हाफिटकट, हाफरेट, हाफकमीज, हाफपे ट।
• को – सिहत – को-ऑपरेिटव, को-ऑपरेशन, को- टार।
• िड टी – थानाप ितिनिध – िड टी िमिन टर, िड टी मैनेजर, िड टी कले टर, िड टी रिज ार।
• वाइस – उप – वाइस ि ँिसपल, वाइस च सलर, वाइस ेसीडट।
• जनरल – सामा य – जनरल मैनेजर, जनरल इ योरस।
• चीफ – मु य – चीफ िमिन टर, चीफ से े टरी।
4. उपसग की तरह यु त अ यय
उपयु त उपसग ँ के अितिर त िह दी म सं कृत के कु छ अ यय, िवशेषण और श द श भी उपसग ँ की तरह यु त होते है ।ँ जैसे –
• अ – िनषेध – अ ाकृितक, अकृि म, अधम, अनाथ, अपूण, अभाव, अमू य।
• अधः – नीचे – अधःपतन, अधोगित, अधोमुख।
• अन् – िनषेध – अन त, अनािद, अनागत, अनथ।
• अ तर्/अ तः – भीतर – अ तःकरण, अ तः ा तीय, अ तगत, अ तरा मा, अ तध न, अ तदशा, अ तय मी, अंतिर , अ तमन, अ त न, अ तदशीय, अ त , अ तर ीय।
• अमा – अमाव या, अमा य।
• अलम् – बहत ु , काफी – अलंकरण, अलंकृत, अलंकार।
• आ म – वयं – आ मकथा, आ मघात, आ मबल, आ मानुभूित, आ मह या, आ मज, आ म लाघा, आ मसमपण, आ मो सग, आ म ान, आ मसात्, आ मिव ास।
• आिवर्/आिवः – कट – आिवभ व, आिवभूत।
• आिवष्/आिवः – आिव कार, आिव कृत।
• इित – अ त, ऐसा – इित ी, इितहास, इ यािद, इितवृ , इितवात ।
• िचर – बहत ु – िचरकाल, िचर तन, िचरायु, िचरंजीव, िचर थायी, िचरपिरिचत, िचर तीि त, िचर मरणीय, िचरिन ा।
• तत् – उस समय – त लीन, त मय, ति त, तदन तर, त काल, त ण, त प ात्, त सम, त कालीन, तदुपरा त, त पर।
• ितरस्/ितरः – हीन, बुरा – ितर कार, ितर कृत, ितरोभाव, ितरोिहत, ितरोधान।
• ाक् – पहले – ा थन, ा लन, ागैितहािसक, ा वैिदक, ा तन, ा ृत।
• न – अभाव – नकु ल, नपुंसक, नाि तक, नग।
• ातः – सुबह – ातःकाल, ातःव दना, ातः मरणीय।
• ादुर ् – कट – ादुभ व, ादुभूत।
• पुनर्/पुनः – िफर – पुनज म, पुनरागमन, पुन दय, पुनिववाह, पुनिमलन, पुनिवचार, पुन ार, पुनव स, पुनमू य कन, पुनरी ण, पुन थान, पुनिनम ण।
• पुरा – ाचीन – पुरातन, पुरात व, पुरापथ, पुराण, पुरावशेष, पुराचीन।
• पुरः – पुरोिहत, पुरोधा, पुरोगामी।
• पुरस् – आगे – पुर कार, पुर रण, पुर कृत।
• पूव – पहले – पूवज, पूव ह, पूव , पूव , पूव नुमान, पूविनि त, पूव िभमुखी, पूव पे ा, पूव त।
• बिहर्/बिहः – बाहर – बिहरागत, बिहज त, बिहभ व, बिहरंग, बिह , बिहमुखी, बिहगमन।
• बिहस्/बिहः – बाहर – बिह कार, बिह कृत।
• स – सिहत – सजल, सप ीक, सहष, सपिरवार, सादर, सकु शल, सिहत, सो े य।
• सत् – स मान – स कम, स कार, स गित, स जन, स धम, स संग, स काय, स चिर ।
• व – अपना – वनाम, वजाित, वशासन, वािभमान, वतं , वदेश, वरा य, वाधीन, वधम, वभाव, वाथ, विहत, वजन, वे छा।
• वयं – अपने आप – वयंभू, वयंवर, वयंसेवक, वयंपािण, वयंिस ।
• सह – साथ – सहा यायी, सहपाठी, सहकम , सहोदर, सहयोगी, सहचर, सहयोग, सहकार, सहया ी, सहानुभूित।
♦♦♦
यय
जो श द श िकसी मूल श द के पीछे या अ त म जुड़कर नवीन श द का िनम ण करके पहले श द के अथ म पिरवतन या िवशेषता उ प कर देते है ,ँ उ ह यय कहते है ।ँ
कभी–कभी यय लगाने पर भी श द के अथ म कोई पिरवतन नहीँ होता है । जैसे— बाल–बालक, मृद–ु मृदल
ु ।
यय लगने पर श द एवं श द श म संिध नहीँ होती बि क श द के अि तम वण म िमलने वाले यय के वर की मा ा लग जाती है , यंजन होने पर वह यथावत रहता है ।
जैसे— लोहा+आर = लुहार, नाटक+कार = नाटककार।
श द–रचना म यय कहीँ पर अपूण ि या, कहीँ पर स ब धवाचक और कहीँ पर भाववाचक के िलये यु त होते है ।ँ जैसे— मानव+ईय = मानवीय। लघु+ता = लघुता।
बूढ़ा+आपा = बुढ़ापा।
1. सं कृत के यय
सं कृत याकरण म श द और मूल धातुओँ से जो यय जुड़ते है ,ँ वे यय दो कार के होते है ँ –
1. कृद त यय –
जो यय मूल धातुओँ अथ त् ि या पद के मूल व प के अ त म जुड़कर नये श द का िनम ण करते है ,ँ उ ह कृद त या कृत् यय कहते है ।ँ धातु या ि या के अ त म
जुड़ने से बनने वाले श द सं ा या िवशेषण होते है ।ँ कृद त यय के िन िलिखत तीन भेद होते है ँ –
(1) क ृवाचक कृद त – वे यय जो कत वाचक श द बनाते है ,ँ क ृवाचक कृद त कहलाते है ।ँ जैसे –
यय – श द– प
• तृ (ता) – क , नेता, ाता, िपता, कृत, दाता, याता, ाता।
• अक – पाठक, लेखक, पालक, िवचारक, गायक।
(2) िवशेषणवाचक कृद त – जो यय ि यापद से िवशेषण श द की रचना करते है ,ँ िवशेषणवाचक यय कहलाते है ।ँ जैसे –
• त – आगत, िवगत, िव ुत, कृत।
• त य – कत य, ग त य, यात य।
• य – नृ य, पू य, तु य, खा ।
• अनीय – पठनीय, पूजनीय, मरणीय, उ लेखनीय, शोचनीय।
(3) भाववाचक कृद त – वे यय जो ि या से भाववाचक सं ा का िनम ण करते है ,ँ भाववाचक कृद त कहलाते है ।ँ जैसे –
• अन – लेखन, पठन, हवन, गमन।
• ित – गित, मित, रित।
• अ – जय, लाभ, लेख, िवचार।
2. ति त यय –
जो यय ि या पद (धातुओँ) के अितिर त मूल सं ा, सवनाम या िवशेषण श द के अ त म जुड़कर नया श द बनाते है ,ँ उ ह ति त यय कहते है ।ँ जैसे— गु , मनु य,
चतुर, किव श द म मशः व, ता, तर, ता यय जोड़ने पर गु व, मनु यता, चतुरतर, किवता श द बनते है ।ँ
ति त यय के छः भेद है ँ –
(1) भाववाचक ति त यय – भाववाचक दि त से भाव कट होता है । इसम यय लगने पर कहीँ–कहीँ पर आिद– वर की वृि हो जाती है । जैसे –
यय — श द– प
• अव – लाघव, गौरव, पाटव।
• व – मह व, गु व, लघु व।
• ता – लघुता, गु ता, मनु यता, समता, किवता।
• इमा – मिहमा, गिरमा, लिघमा, लािलमा।
• य – प िड य, धैय, चातुय, माधुय, सौ दय।
(2) स ब धवाचक ति त यय – स ब धवाचक ति त यय से स ब ध का बोध होता है । इसम भी कहीँ–कहीँ पर आिद– वर की वृि हो जाती है । जैसे –
• अ – शैव, वै णव, तैल , पािथव।
• इक – लौिकक, धािमक, वािषक, ऐितहािसक।
• इत – पीिड़त, चिलत, दुःिखत, मोिहत।
• इम – विणम, अि तम, रि तम।
• इल – जिटल, फेिनल, बोिझल, पंिकल।
• ईय – भारतीय, ा तीय, नाटकीय, भवदीय।
• य – ा य, का य, हा य, भ य।
(3) अप यवाचक ति त यय – इनसे अप य अथ त् स तान या वंश म उ प हएु यि त का बोध होता है । अप यवाचक ति त यय म भी कहीँ–कहीँ पर आिद– वर की
वृि हो जाती है । जैसे –
• अ – पाथ, पा डव, माधव, राघव, भागव।
• इ – दाशरिथ, मा ित, सौिम ।
• य – गाल य, पौल य, शा य, गा य।
• एय – वा णय, कौ तेय, ग गेय, राधेय।
(4) पूणतावाचक ति त यय – इसम सं या की पूणता का बोध होता है । जैसे –
• म – थम, पंचम, स तम, नवम, दशम।
• थ/ठ – चतुथ , ष ।
• तीय – ि तीय, तृतीय।
(5) तारत यवाचक ति त यय – दो या दो से अिधक व तुओँ म े ता बतलाने के िलए तारत यवाचक ति त यय लगता है । जैसे –
• तर – अिधकतर, गु तर, लघुतर।
• तम – सु दरतम, अिधकतम, लघुतम।
• ईय – गरीय, वरीय, लघीय।
• इ – गिर , विर , किन ।
(6) गुणवाचक ति त यय – गुणवाचक ति त यय से सं ा श द गुणवाची बन जाते है ।ँ जैसे –
• वान् – धनवान्, िव ान्, बलवान्।
• मान् – बुि मान्, शि तमान्, गितमान्, आयु मान्।
• य – पा ा य, पौव य, दि णा य।
• आलु – कृपालु, दयालु, शंकालु।
• ई – िव ाथ , ोधी, धनी, लोभी, गुणी।
2. िह दी के यय
सं कृत की तरह ही िह दी के भी अनेक यय यु त होते है ।ँ ये यय य िप कृद त और ति त की तरह जुड़ते है ,ँ पर तु मूल श द िह दी के त व या देशज होते है ।ँ
िह दी के सभी यय क िन वग ँ म सि मिलत िकया जाता है —
(1) क ृवाचक – िजनसे िकसी काय के करने वाले का बोध होता है , वे क ृवाचक यय कहलाते है ।ँ जैसे –
यय — श द– प
• आर – सुनार, लोहार, चमार, कु हार।
• ओरा – चटोरा, खदोरा, नदोरा।
• इया – दुिखया, सुिखया, रिसया, गडिरया।
• इयल – मिरयल, सिड़यल, दिढ़यल।
• एरा – सपे रा, लुटेरा, कसेरा, लखेरा।
• वाला – घरवाला, त गेवाला, झाड़ूवाला, मोटरवाला।
• वैया (ऐया) – गवैया, नचैया, रखवैया, िखवैया।
• हारा – लकड़हारा, पिनहारा।
• हार – राखनहार, चाखनहार।
• अ ड़ – भुल ड़, घुम ड़, िपय ड़।
• आकू – लड़ाकू।
• आड़ी – िखलाड़ी।
• ओड़ा – भगोड़ा।
(2) भाववाचक – िजनसे िकसी भाव का बोध होता है , भाववाचक यय कहलाते है ।ँ जैसे –
• आ – यासा, भूखा, खा, लेखा।
• आई – िमठाई, रंगाई, िसलाई, भलाई।
• आका – धमाका, धड़ाका, भड़ाका।
• आपा – मुटापा, बुढ़ापा, र डापा।
• आहट – िचकनाहट, कड़वाहट, घबड़ाहट, गरमाहट।
• आस – िमठास, खटास, भड़ास।
• ई – गम , सद , मजदूरी, पहाड़ी, गरीबी, खेती।
• पन – लड़कपन, बचपन, गँवारपन।
(3) स ब धवाचक – िजनसे स ब ध का भाव य त होता है , वे स ब धवाचक यय कहलाते है ।ँ जैसे –
• आई – बहनोई, ननदोई, रसोई।
• आड़ी – िखलाड़ी, पहाड़ी, अनाड़ी।
• एरा – चचेरा, ममेरा, मौसेरा, फु फेरा।
• एड़ी – भँगेड़ी, गँजड़ े ी, नशेड़ी।
• आरी – लुहारी, सुनारी, मिनहारी।
• आल – निनहाल, ससुराल।
(4) लघुतावाचक – िजनसे लघुता या यूनता का बोध होता है , वे लघुतावाचक यय कहलाते है ।ँ जैसे –
• ई – र सी, कटोरी, टोकरी, ढोलकी।
• इया – खिटया, लुिटया, चुिटया, िडिबया, पुिड़या।
• ड़ा – मुखड़ा, दुखड़ा, चमड़ा।
• ड़ी – टुकड़ी, पगड़ी, बछड़ी।
• ओला – खटोला, मझोला, सँपोला।
(5) गणनावाचक यय – िजनसे गणनावाचक सं या का बोध है , वे गणनावाचक यय कहलाते है ।ँ जैसे –
• था – चौथा।
• रा – दूसरा, तीसरा।
• ला – पहला।
• व – प चव , दसव , सातव ।
• हरा – इकहरा, दुहरा, ितहरा।
(6) सादृ यवाचक यय – िजनसे सादृ य या समता का बोध होता है , उ ह सादृ यवाचक यय कहते है ।ँ जैसे –
• सा – मुझ–सा, तुझ–सा, नीला–सा, च द–सा, गुल ाब–सा।
• हरा – दुहरा, ितहरा, चौहरा।
• हला – सुनहला, पहला।
(7) गुणवाचक यय – िजनसे िकसी गुण का बोध होता है , वे गुणवाचक यय कहलाते है ।ँ जैसे –
• आ – मीठा, ठं डा, यासा, भूखा, यारा।
• ईला – लचीला, गँठ ीला, सजीला, रंगीला, चमकीला, रसीला।
• ऐला – मटमैल ा, कषैल ा, िवषैल ा।
• आऊ – बटाऊ, पंिडताऊ, नामधराऊ, खटाऊ।
• व त – कलाव त, कु लव त, दयाव त।
• ता – मूखता, लघुता, कठोरता, मृदत ु ा।
(8) थानवाचक – िजनसे थान का बोध होता है , वे थानवाचक यय कहलाते है ।ँ जैसे –
• ई – पंजाबी, गुजराती, मराठी, अजमेरी, बीकानेरी, बनारसी, जयपुरी।
• इया – अमृतसिरया, भोजपुिरया, जयपुिरया, जािलमपुिरया।
• आना – हिरयाना, राजपूताना, तेल ंगाना।
• वी – हिरयाणवी, देहलवी।
3. िवदेशी यय
िह दी म उदू के ऐसे यय यु त होते है ,ँ जो मूल प से अरबी और फारसी भाषा से अपनाये गये है ।ँ जैसे –
• आबाद – अहमदाबाद, इलाहाबाद।
• खाना – दवाखाना, छापाखाना।
• गर – जादूगर, बाजीगर, शोरगर।
• ईचा – बगीचा, गलीचा।
• ची – खजानची, मशालची, तोपची।
• दार – मालदार, दूकानदार, जमीँदार।
• दान – कलमदान, पीकदान, पायदान।
• वान – कोचवान, बागवान।
• बाज – नशेबाज, दगाबाज।
• म द – अ लम द, भरोसेम द।
• नाक – ददनाक, शमनाक।
• गीर – राहगीर, जह गीर।
• गी – दीवानगी, ताजगी।
• गार – यादगार, रोजगार।
♦♦♦
सि ध
संिध का अथ है – िमलना। दो वण ँ या अ र के पर पर मेल से उ प िवकार को 'संिध' कहते है ।ँ जैसे– िव ा+आलय = िव ालय। यह िव ा श द का ‘आ’ वण और
आलय श द के ‘आ’ वण म संिध होकर ‘आ’ बना है ।
संिध–िव छे द: संिध श द को अलग–अलग करके संिध से पहले की ि थित म लाना ही संिध िव छे द कहलाता है । संिध का िव छे द करने पर उन वण ँ का वा तिवक प
कट हो जाता है । जैसे– िहमालय = िहम+आलय।
पर पर िमलने वाले वण वर, यंजन और िवसग होते है ,ँ अतः इनके आधार पर ही संिध तीन कार की होती है – (1) वर संिध, (2) यंजन संिध, (3) िवसग संिध।
1. वर संिध
जह दो वर का पर पर मेल हो, उसे वर संिध कहते है ।ँ दो वर का पर पर मेल सं कृत याकरण के अनुसार ायः प च कार से होता है –
(1) अ वग = अ, आ
(2) इ वग = इ, ई
(3) उ वग = उ, ऊ
(4) ए वग = ए, ऐ
(5) ओ वग = ओ, औ।
इ हीँ वर–वग ँ के आधार पर वर–संिध के प च कार होते है –
ँ
1.दीघ संिध– जब दो समान वर या सवण िमल जाते है ,ँ चाहे वे व ह या दीघ, या एक व हो और दूसरा दीघ, तो उनके थान पर एक दीघ वर हो जाता है , इसी को
सवण दीघ वर संिध कहते है ।ँ जैसे–
अ/आ+अ/आ = आ
दै य+अिर = दै यािर
राम+अवतार = रामावतार
देह+अंत = देह त
अ +अविध = अ ाविध
उ म+अंग = उ म ग
सूय+अ त = सूय त
कु श+आसन = कु शासन
धम+आ मा = धम मा
परम+आ मा = परमा मा
कदा+अिप = कदािप
दी ा+अंत = दी त
वष +अंत = वष ँत
गदा+आघात = गदाघात
आ मा+ आनंद = आ मानंद
ज म+अ ध = ज मा ध
ा+आलु = ालु
सभा+अ या = सभा य
पु ष+अथ = पु षाथ
िहम+आलय = िहमालय
परम+अथ = परमाथ
व+अथ = वाथ
व+अधीन = वाधीन
पर+अधीन = पराधीन
श +अ = श ा
परम+अणु = परमाणु
वेद+अ त = वेदा त
अिधक+अंश = अिधक श
गव+गवा = गवा
सुषु त+अव था = सुषु ताव था
अभय+अर य = अभयार य
िव ा+आलय = िव ालय
दया+आन द = दयान द
दा+आन द = ान द
महा+आशय = महाशय
वात +आलाप = वात लाप
माया+ आचरण = मायाचरण
महा+अमा य = महामा य
ा ा+अिर = ा ािर
मू य+अंकन = मू य कन
भय+आनक = भयानक
मु त+अवली = मु तावली
दीप+अवली = दीपावली
+अवली = ावली
कृपा+आक ी = कृपाक ी
िव मय+आिद = िव मयािद
स य+आ ह = स या ह
ाण+आयाम = ाणायाम
शुभ+आरंभ = शुभारंभ
मरण+आस = मरणास
शरण+आगत = शरणागत
नील+आकाश = नीलाकाश
भाव+आिव = भावािव
सव+अंगीण = सव गीण
अं य+अ री = अं या री
रेखा+अंश = रेख श
िव ा+अथ = िव ाथ
रेखा+अंिकत = रेख िकत
परी ा+अथ = परी ाथ
सीमा+अंिकत = सीम िकत
माया+अधीन = मायाधीन
परा+अ त = परा त
िनशा+अंत = िनश त
गीत+अंजिल = गीत जिल
+अथ = ाथ
+अंगन = गण
काम+अयनी = कामायनी
धान+अ यापक = धाना यापक
िवभाग+अ य = िवभागा य
िशव+आलय = िशवालय
पु तक+आलय = पु तकालय
चर+अचर = चराचर
इ/ई+इ/ई = ई
रिव+इ = रवी
मुिन+इ = मुनी
किव+इ = कवी
िगिर+इ = िगरी
अिभ+इ = अभी
शिच+इ = शची
यित+इ = यती
पृ वी+ई र = पृ वी र
ी+ईश = ीश
नदी+ईश = नदीश
रजनी+ईश = रजनीश
मही+ईश = महीश
नारी+ई र = नारी र
िगिर+ईश = िगरीश
हिर+ईश = हरीश
किव+ईश = कवीश
किप+ईश = कपीश
मुिन+ई र = मुनी र
ित+ई ा = ती ा
अिभ+ई सा = अभी सा
मही+इ = मही
नारी+इ छा = नारी छा
नारी+इ = नारी
नदी+इ = नदी
सती+ईश = सतीश
पिर+ई ा = परी ा
अिध+ई क = अधी क
िव+ई ण = वी ण
फण+इ = फणी
ित+इत = तीत
पिर+ईि त = परीि त
पिर+ई क = परी क
उ/ऊ+उ/ऊ = ऊ
भानु+उदय = भानूदय
लघु+ऊिम = लघूिम
गु +उपदेश = गु पदेश
िसँधु+ऊिम = िसँधूिम
सु+उि त = सूि त
लघु+उ र = लघू र
मंजु+उषा = मंजूषा
साधु+उपदेश = साधूपदेश
लघु+उ म = लघू म
भू+ऊ व = भू व
वधू+उिम = वधूिम
वधू+उ सव = वधू सव
भू+उपिर = भूपिर
वधू+उि त = वधूि त
अनु+उिदत = अनूिदत
सरयू+ऊिम = सरयूिम
ऋ/ॠ+ऋ/ॠ = ॠ
मातृ+ऋण = मात्ॠण
िपतृ+ऋण = िपत्ॠण
ातृ+ऋण = ात्ॠण
2. गुण संिध–
अ या आ के बाद यिद व इ, उ, ऋ अथवा दीघ ई, ऊ, ॠ वर ह , तो उनम संिध होकर मशः ए, ओ, अर् हो जाता है , इसे गुण संिध कहते है ।ँ जैसे–
अ/आ+इ/ई = ए
भारत+इ = भारते
देव+इ = देवे
नर+इ = नरे
सुर+इ = सुरे
वीर+इ = वीरे
व+इ छा = वे छा
न+इित = नेित
अं य+इि = अं येि
महा+इ = महे
रमा+इ = रमे
राजा+इ = राजे
यथा+इ = यथे
रसना+इि य = रसनेि य
सुधा+इ दु = सुधे दु
सोम+ईश = सोमेश
महा+ईश = महे श
नर+ईश = नरेश
रमा+ईश = रमेश
परम+ई र = परमे र
राजा+ईश = राजेश
गण+ईश = गणेश
राका+ईश = राकेश
अंक+ई ण = अंके ण
लंका+ईश = लंकेश
महा+ई र = महे र
+ई क = े क
उप+ई ा = उपे ा
अ/आ+उ/ऊ = ओ
सूय+उदय = सूय दय
पूव+उदय = पूव दय
पर+उपकार = परोपकार
लोक+उि त = लोकोि त
वीर+उिचत = वीरोिचत
आ +उपा त = आ ोपा त
नव+ऊढ़ा = नवोढ़ा
समु +ऊिम = समु ोिम
जल+ऊिम = जलोिम
महा+उ सव = महो सव
महा+उदिध = महोदिध
गंगा+उदक = गंगोदक
यथा+उिचत = यथोिचत
कथा+उपकथन = कथोपकथन
वातं य+उ र = वातं यो र
गंगा+ऊिम = गंगोिम
महा+ऊिम = महोिम
आ म+उ सग = आ मो सग
महा+उदय = महोदय
क णा+उ पादक = क णो पादक
िव ा+उपाजन = िव ोपाजन
+ऊढ़ = ौढ़
अ +िहनी = अ ौिहनी
अ/आ+ऋ = अर्
+ऋिष = िष
देव+ऋिष = देविष
महा+ऋिष = महिष
महा+ऋि = महि
राज+ऋिष = राजिष
स त+ऋिष = स तिष
सदा+ऋतु = सदतु
िशिशर+ऋतु = िशिशरतु
महा+ऋण = महण
3. वृि संिध–
अ या आ के बाद यिद ए, ऐ ह तो इनके थान पर ‘ऐ’ तथा अ, आ के बाद ओ, औ ह तो इनके थान पर ‘औ’ हो जाता है । ‘ऐ’ तथा ‘औ’ वर ‘वृि वर’ कहलाते है ँ अतः
इस संिध को वृि संिध कहते है ।ँ जैसे–
अ/आ+ए/ऐ = ऐ
एक+एक = एकैक
मत+ऐ य = मतै य
सदा+एव = सदैव
व+ऐि छक = वैि छक
लोक+एषणा = लोकैषणा
महा+ऐ य = महै य
पु +ऐषणा = पु ैषणा
वसुधा+ऐव = वसुधवै
तथा+एव = तथैव
महा+ऐ जािलक = महै जािलक
िहत+एषी = िहतैषी
िव +एषणा = िव ैषणा
अ/आ+ओ/औ = औ
वन+ओषध = वनौषध
परम+ओज = परमौज
महा+औघ = महौघ
महा+औदाय = महौदाय
परम+औदाय = परमौदाय
जल+ओध = जलौध
महा+औषिध = महौषिध
+औ ोिगकी = ौ ोिगकी
दंत+ओ = दंतो (अपवाद)
4. यण संिध–
जब हृ व इ, उ, ऋ या दीघ ई, ऊ, ॠ के बाद कोई असमान वर आये, तो इ, ई के थान पर ‘य्’ तथा उ, ऊ के थान पर ‘व्’ और ऋ, ॠ के थान पर ‘र्’ हो जाता है ।
इसे यण् संिध कहते है ।ँ
यह यह यात य है िक इ/ई या उ/ऊ वर तो 'य्' या 'व्' म बदल जाते है ँ िकँतु िजस यंजन के ये वर लगे होते है ,ँ वह संिध होने पर वर–रिहत हो जाता है । जैसे–
अिभ+अथ = अ याथ , तनु+अंगी = त वंगी। यह अ यथ म ‘य्’ के पहले 'भ्' तथा त वंगी म ‘व्’ के पहले 'न्' वर–रिहत है ।ँ ायः य्, व्, र् से पहले वर–रिहत यंजन का
होना यण् संिध की पहचान है । जैसे–
इ/ई+अ = य
यिद+अिप = य िप
पिर+अटन = पयटन
िन+अ त = य त
िव+अ त = य त
िव+अय = यय
िव+अ = य
पिर+अंक = पयक
पिर+अवे क = पयवे क
िव+अि = यि
िव+अंजन = यंजन
िव+अवहार = यवहार
िव+अिभचार = यिभचार
िव+अि त = यि त
िव+अव था = यव था
िव+अवसाय = यवसाय
ित+अय = यय
नदी+अपण = न पण
अिभ+अथ = अ यथ
पिर+अंत = पयत
अिभ+उदय = अ युदय
देवी+अपण = दे यपण
ित+अपण = यपण
ित+अ = य
िव+अं य = यं य
इ/ई+आ = या
िव+आ त = या त
अिध+आय = अ याय
इित+आिद = इ यािद
पिर+आवरण = पय वरण
अिभ+आगत = अ यागत
िव+आस = यास
िव+आयाम = यायाम
अिध+आदेश = अ यादेश
िव+आ यान = या यान
ित+आशी = याशी
अिध+आपक = अ यापक
िव+आकु ल = याकु ल
अिध+आ म = अ या म
ित+आवतन = यावतन
ित+आिशत = यािशत
ित+आभूित = याभूित
ित+आरोपण = यारोपण
िव+आवृ = यावृ
िव+आिध = यािध
िव+आहत = याहत
ित+आहार = याहार
अिभ+आस = अ यास
सखी+आगमन = स यागमन
मही+आधार = म ाधार
इ/ई+उ/ऊ = यु/यू
पिर+उषण = पयुषण
नारी+उिचत = नायुिचत
उपिर+उ त = उपयु त
ी+उपयोगी = युपयोगी
अिभ+उदय = अ युदय
अित+उि त = अ युि त
ित+उ र = यु र
अिभ+उ थान = अ यु थान
आिद+उप त = आ पु त
अित+उ म = अ यु म
ी+उिचत = युिचत
ित+उ प = यु प
ित+उपकार = युपकार
िव+उ पि = यु पि
िव+उपदेश = युपदेश
िन+ऊन = यून
ित+ऊह = यूह
िव+ऊह = यूह
अिभ+ऊह = अ यूह
इ/ई+ए/ओ/औ = ये/यो/यौ
ित+एक = येक
िव+ओम = योम
वाणी+औिच य = वा यौिच य
उ/ऊ+अ/आ = व/वा
तनु+अंगी = त वंगी
अनु+अय = अ वय
मधु+अिर = म विर
सु+अ प = व प
समनु+अय = सम वय
सु+अि त = वि त
परमाणु+अ = परमा व
सु+आगत = वागत
साधु+आचार = सा वाचार
गु +आदेश = गुव देश
मधु+आचाय = म वाचाय
वधू+आगमन = व वागमन
ऋतु+आगमन = ऋ वागमन
सु+आभास = वाभास
सु+आगम = वागम
उ/ऊ+इ/ई/ए = िव/वी/वे
अनु+इित = अि वित
धातु+इक = धाि वक
अनु+इ = अि व
पू+इ = पिव
अनु+ई ा = अ वी ा
अनु+ई ण = अ वी ण
तनु+ई = त वी
धातु+ईय = धा वीय
अनु+एषण = अ वेषण
अनु+एषक = अ वेषक
अनु+ए क = अ वे क
ऋ+अ/आ/इ/उ = र/रा/िर/
मातृ+अथ = मा थ
िपतृ+अनुमित = िप नुमित
मातृ+आन द = मा ान द
िपतृ+आ ा = िप ा ा
मातृ+आ ा = मा ा ा
िपतृ+आदेश = िप ादेश
मातृ+आदेश = मा ादेश
मातृ+इ छा = माि छा
िपतृ+इ छा = िपि छा
मातृ+उपदेश = मा ुपदेश
िपतृ+उपदेश = िप ुपदेश
5. अयािद संिध–
ए, ऐ, ओ, औ के बाद यिद कोई असमान वर हो, तो ‘ए’ का ‘अय्’, ‘ऐ’ का ‘आय्’, ‘ओ’ का ‘अव्’ तथा ‘औ’ का ‘आव्’ हो जाता है । इसे अयािद संिध कहते है ।ँ जैसे–
ए/ऐ+अ/इ = अय/आय/आिय
ने+अन = नयन
शे+अन = शयन
चे+अन = चयन
संचे+अ = संचय
चै+अ = चाय
गै+अक = गायक
गै+अन् = गायन
नै+अक = नायक
दै+अक = दायक
शै+अर = शायर
िवधै+अक = िवधायक
िवनै+अक = िवनायक
नै+इका = नाियका
गै+इका = गाियका
दै+इनी = दाियनी
िवधै+इका = िवधाियका
ओ/औ+अ = अव/आव
भो+अन् = भवन
पो+अन् = पवन
भो+अित = भवित
हो+अन् = हवन
पौ+अन् = पावन
धौ+अक = धावक
पौ+अक = पावक
शौ+अक = शावक
भौ+अ = भाव
ौ+अन = ावण
रौ+अन = रावण
ौ+अ = ाव
तौ+अ = ताव
गव+अ = गवा (अपवाद)
ओ/औ+इ/ई/उ = अिव/अवी/आवु
रो+इ = रिव
भो+इ य = भिव य
गौ+ईश = गवीश
नौ+इक = नािवक
भौ+इित = भािवत
तौ+इत = तािवत
भौ+उक = भावुक
2. यंजन संिध
यंजन के साथ वर या यंजन के मेल को यंजन संिध कहते है ।ँ यंजन संिध म एक वर और एक यंजन या दोन वण यंजन होते है ।ँ इसके अनेक भेद होते है ।ँ यंजन
संिध के मुख िनयम इस कार है –ँ
1. यिद िकसी वग के थम वण के बाद कोई वर, िकसी भी वग का तीसरा या चौथा वण या य, र, ल, व, ह म से कोई वण आये तो थम वण के थान पर उसी वग का
तीसरा वण हो जाता है । जैसे–
'क्' का 'ग्' होना
िदक्+अ बर = िदग बर
िदक्+दशन = िद दशन
वाक्+जाल = वा जाल
वाक्+ईश = वागीश
िदक्+अंत = िदगंत
िदक्+गज = िद गज
ऋक्+वेद = ऋ वेद
दृक्+अंचल = दृगंचल
वाक्+ई री = वागी री
ाक्+ऐितहािसक = ागैितहािसक
िदक्+गयंद = िद गयंद
वाक्+जड़ता = वा जड़ता
स यक्+ ान = स य ान
वाक्+दान = वा दान
िदक्+ म = िद म
वाक्+द ा = वा द ा
िदक्+वधू = िद वधू
िदक्+ह ती = िद ह ती
वाक्+ यापार = वा यापार
वाक्+हिर = वा हिर
‘च्’ का ‘ज्’
अच्+अ त = अज त
अच्+आिद = अजािद
िणच्+अंत = िणजंत
‘ट्’ का ‘ड् ’
षट्+आनन = षडानन
षट्+दशन = ष दशन
षट्+िरपु = षि पु
षट्+अ र = षड र
षट्+अिभ = षडिभ
षट्+गुण = ष गुण
षट्+भुजा = ष भुजा
षट्+यं = ष यं
षट्+रस = ष स
षट्+राग = ष ाग
‘त्’ का ‘द्’
सत्+िवचार = सि चार
जगत्+अ बा = जगद बा
सत्+धम = स म
तत्+भव = त व
तत्+भव = त व
उत्+घाटन = उ ाटन
सत्+आशय = सदाशय
जगत्+आ मा = जगदा मा
सत्+आचार = सदाचार
जगत्+ईश = जगदीश
तत्+अनुसार = तदनुसार
तत्+ प = त पू
सत्+उपयोग = सदुपयोग
भगवत्+गीता = भगव गीता
सत्+गित = स गित
उत्+गम = उ गम
उत्+आहरण = उदाहरण
इस िनयम का अपवाद भी है जो इस कार है –
त्+ड/ढ = त् के थान पर ड्
त्+ज/झ = त् के थान पर ज्
त्+ल् = त् के थान पर ल्
जैसे–
उत्+डयन = उ डयन
सत्+जन = स जन
उत्+लंघन = उ लंघन
उत्+लेख = उ लेख
तत्+ज य = त ज य
उत्+ वल = उ वल
िवपत्+जाल = िवप जाल
उत्+लास = उ लास
तत्+लीन = त लीन
जगत्+जननी = जग जननी
2.यिद िकसी वग के थम या तृतीय वण के बाद िकसी वग का पंचम वण (ङ, ञ, ण, न, म) हो तो पहला या तीसरा वण भी प चव वण हो जाता है । जैसे–
थम/तृतीय वण+पंचम वण = पंचम वण
वाक्+मय = वा मय
िदक्+नाग = िद नाग
सत्+नारी = स ारी
जगत्+नाथ = जग ाथ
सत्+माग = स माग
िचत्+मय = िच मय
सत्+मित = स मित
उत्+नायक = उ ायक
उत्+मूल न = उ मूल न
अप्+मय = अ मय
सत्+मान = स मान
उत्+माद = उ माद
उत्+नत = उ त
वाक्+िनपुण = वाि नपुण
जगत्+माता = जग माता
उत्+म = उ म
उत्+मेष = उ मेष
तत्+नाम = त ाम
उत्+नयन = उ यन
षट्+मुख = ष मुख
उत्+मुख = उ मुख
ीमत्+नारायण = ीम ारायण
षट्+मूित = ष मूित
उत्+मोचन = उ मोचन
भवत्+िन = भवि
तत्+मय = त मय
षट्+मास = ष मास
सत्+िनयम = सि यम
िदक्+नाथ = िद नाथ
वृहत्+माला = वृह माला
वृहत्+नला = वृह ला
3. ‘त्’ या ‘द्’ के बाद च या छ हो तो ‘त्/द्’ के थान पर ‘च्’, ‘ज्’ या ‘झ’ हो तो ‘ज्’, ‘ट्’ या ‘ठ् ’ हो तो ‘ट्’, ‘ड् ’ या ‘ढ’ हो तो ‘ड् ’ और ‘ल’ हो तो ‘ल्’ हो जाता है । जैसे–
त्+च/छ = च/ छ
सत्+छा = स छा
सत्+चिर = स चिर
समुत्+चय = समु चय
उत्+चिरत = उ चिरत
सत्+िचत = सि चत
जगत्+छाया = जग छाया
उत्+छे द = उ छे द
उत्+चाटन = उ चाटन
उत्+चारण = उ चारण
शरत्+च = शर च
उत्+िछन = उि छन
सत्+िचदान द = सि चदान द
उत्+छादन = उ छादन
त्/द्+ज्/झ् = ज/ झ
सत्+जन = स जन
तत्+ज य = त ज य
उत्+ वल = उ वल
जगत्+जननी = जग जननी
त्+ट/ठ = /
तत्+टीका = त ीका
वृहत्+टीका = वृह ीका
त्+ड/ढ = ड/ ढ
उत्+डयन = उ डयन
जलत्+डम = जल डम
भवत्+डम = भव डम
महत्+ढाल = मह ढाल
त्+ल = ल
उत्+लेख = उ लेख
उत्+लास = उ लास
तत्+लीन = त लीन
उत्+लंघन = उ लंघन
4. यिद ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘ह’ आये तो उनके थान पर ‘ ’ हो जाता है । जैसे–
उत्+हार = उ ार
तत्+िहत = ति त
उत्+हरण = उ रण
उत्+हत = उ त
पत्+हित = प ित
पत्+हिर = प िर
उपयु त संिधय का दूसरा प इस कार चिलत है –
उद्+हार = उ ार
तद्+िहत = ति त
उद्+हरण = उ रण
उद्+हत = उ त
पद्+हित = प ित
ये संिधय दोन कार से मा य है ।ँ
5. यिद ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘श्’ हो तो ‘त् या द्’ का ‘च्’ और ‘श्’ का ‘ ’ हो जाता है । जैसे–
त्/द्+श् = छ
उत्+ ास = उ वास
तत्+िशव = ति छव
उत्+िश = उि छ
मृद+
् शकिटक = मृ छकिटक
सत्+शा = स छा
तत्+शंकर = त छंकर
उत्+शृंखल = उ छृ ंखल
8. यिद ‘म्’ के बाद ‘क्’ से ‘भ्’ तक का कोई भी पश यंजन हो तो ‘म्’ का अनु वार हो जाता है , या उसी वग का प चव अनुनािसक वण बन जाता है । जैसे–
म्+कोई यंजन = म् के थान पर अनु वार (◌ं ) या उसी वग का पंचम वण
सम्+चार = संचार/स चार
सम्+क प = संक प/स प
सम्+ या = सं या/स या
सम्+भव = संभव/स भव
सम्+पूण = संपूण/स पूण
सम्+जीवनी = संजीवनी
सम्+तोष = संतोष/स तोष
िकम्+कर = िकँकर/िक र
सम्+ब ध = संब ध/स ब ध
सम्+िध = संिध/सि ध
सम्+गित = संगित/स ित
सम्+चय = संचय/स चय
परम्+तु = पर तु/परंतु
दम्+ड = द ड/दंड
िदवम्+गत = िदवंगत
अलम्+कार = अलंकार
शुभम्+कर = शुभक ं र
सम्+कलन = संकलन
सम्+घनन = संघनन
पम्+चम् = पंचम
सम्+तु = संतु /स तु
सम्+िद ध = संिद ध/सि द ध
अम्+ड = अ ड/अंड
सम्+तित = संतित
सम्+ ेप = सं ेप
अम्+क = अंक/अ
हृदयम्+गम = हृदयंगम
सम्+गठन = संगठन/स ठन
सम्+जय = संजय
सम्+ ा = सं ा
सम्+ ित = सं ाि त
सम्+देश = संदेश/स देश
सम्+िचत = संिचत/सि चत
िकम्+तु = िकँतु/िक तु
वसुम्+धर = वसु धरा/वसुंधरा
सम्+भाषण = संभाषण
तीथम्+कर = तीथकर
सम्+कर = संकर
सम्+घटन = संघटन
िकम्+िचत = िकँिचत
धनम्+जय = धनंजय/धन य
सम्+देह = स देह/संदेह
सम्+ यासी = सं यासी
सम्+िनकट = सि कट
10. यिद ‘म्’ के बाद य, र, ल, व, श, ष, स, ह म से कोई वण आये तो ‘म्’ के थान पर अनु वार (◌ं ) हो जाता है । जैसे–
म्+य, र, ल, व, श, ष, स, ह = अनु वार (◌ं )
सम्+योग = संयोग
सम्+वाद = संवाद
सम्+हार = संहार
सम्+ल न = संल न
सम्+र ण = संर ण
सम्+शय = संशय
िकम्+वा = िकँवा
सम्+िवधान = संिवधान
सम्+शोधन = संशोधन
सम्+र ा = संर ा
सम्+सार = संसार
सम्+र क = संर क
सम्+यु त = संयु त
सम्+ मरण = सं मरण
वयम्+वर = वयंवर
सम्+िहत = संिहता
14. यिद ‘ऋ’ और ‘द्’ के बाद ‘म’ आये तो ‘द्’ का ‘ण्’ बन जाता है । जैसे–
ऋद्+म = म
मृद+
् मय = मृ मय
मृद+् मूित = मृ मूित
15. यिद इ, ऋ, र, ष के बाद वर, कवग, पवग, अनु वार, य, व, ह म से िकसी वण के बाद ‘न’ आ जाये तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है । जैसे–
(i) इ/ऋ/र/ष+ न= न के थान पर ण
(ii) इ/ऋ/र/ष+ वर/क वग/प वग/अनु वार/य, व, ह+न = न के थान पर ण
+मान = माण
भर+न = भरण
नार+अयन = नारायण
पिर+मान = पिरमाण
पिर+नाम = पिरणाम
+यान = याण
तर+न = तरण
शोष्+अन् = शोषण
पिर+नत = पिरणत
पोष्+अन् = पोषण
िवष्+नु = िव णु
राम+अयन = रामायण
भूष्+अन = भूषण
ऋ+न = ऋण
मर+न = मरण
पुरा+न = पुराण
हर+न = हरण
तृष्+ना = तृ णा
तृ+न = तृण
+न = ण
16. यिद सम् के बाद कृत, कृित, करण, कार आिद म से कोई श द आये तो म् का अनु वार बन जाता है एवं स् का आगमन हो जाता है । जैसे–
सम्+कृत = सं कृत
सम्+कृित = सं कृित
सम्+करण = सं करण
सम्+कार = सं कार
17. यिद पिर के बाद कृत, कार, कृित, करण आिद म से कोई श द आये तो संिध म ‘पिर’ के बाद ‘ष्’ का आगम हो जाता है । जैसे–
पिर+कार = पिर कार
पिर+कृत = पिर कृत
पिर+करण = पिर करण
पिर+कृित = पिर कृित
3. िवसग संिध
जह िवसग (:) के बाद वर या यंजन आने पर िवसग का लोप हो जाता है या िवसग के थान पर कोई नया वण आ जाता है , वह िवसग संिध होती है ।
2. यिद िवसग से पहले और बाद म ‘अ’ हो, तो पहला ‘अ’ और िवसग िमलकर ‘ओऽ’ या ‘ओ’ हो जाता है तथा बाद के ‘अ’ का लोप हो जाता है । जैसे–
अः+अ = ओऽ/ओ
यशः+अथ = यशोऽथ /यशोथ
मनः+अनुकूल = मनोऽनुकूल/मनोनुकूल
थमः+अ याय = थमोऽ याय/ थमो याय
मनः+अिभराम = मनोऽिभराम/मनोिभराम
परः+अ = परो
3. यिद िवसग से पहले ‘अ’ या ‘आ’ से िभ कोई वर तथा बाद म कोई वर, िकसी वग का तीसरा, चौथा, प चव वण या य, र, ल, व म से कोई वण हो तो िवसग का ‘र्’ हो
जाता है । जैसे–
अ, आ से िभ वर+वग का तीसरा, चौथा, प चव वण/य, र, ल, व, ह = (:) का ‘र्’
दुः+बल = दुबल
पुनः+आगमन = पुनरागमन
आशीः+वाद = आशीव द
िनः+मल = िनमल
दुः+गुण = दुगुण
आयुः+वेद = आयुवद
बिहः+रंग = बिहरंग
दुः+उपयोग = दु पयोग
िनः+बल = िनबल
बिहः+मुख = बिहमुख
दुः+ग = दुग
ादुः+भाव = ादुभ व
िनः+आशा = िनराशा
िनः+अथक = िनरथक
िनः+यात = िनय त
दुः+आशा = दुराशा
िनः+उ साह = िन साह
आिवः+भाव = आिवभ व
आशीः+वचन = आशीवचन
िनः+आहार = िनराहार
िनः+आधार = िनराधार
िनः+भय = िनभय
िनः+आिमष = िनरािमष
िनः+िव = िनिव
धनुः+धर = धनुधर
4. यिद िवसग के बाद ‘र’ हो तो िवसग का लोप हो जाता है और िवसग से पहले का वर दीघ हो जाता है । जैसे–
हृ व वर(:)+र = (:) का लोप व पूव का वर दीघ
िनः+रोग = नीरोग
िनः+रज = नीरज
िनः+रस = नीरस
िनः+रव = नीरव
5. यिद िवसग के बाद ‘च’ या ‘छ’ हो तो िवसग का ‘श्’, ‘ट’ या ‘ठ’ हो तो ‘ष्’ तथा ‘त’, ‘थ’, ‘क’, ‘स्’ हो तो ‘स्’ हो जाता है । जैसे–
िवसग (:)+च/छ = श्
िनः+चय = िन य
िनः+िच त = िनि त
दुः+चिर = दु िर
हियः+च = हिर
पुरः+चरण = पुर रण
तपः+चय = तप य
कः+िचत् = कि त्
मनः+िचिक सा = मनि िक सा
िनः+चल = िन ल
िनः+छल = िन छल
दुः+च = दु
पुनः+चय = पुन य
अः+चय = आ य
िवसग(:)+ट/ठ = ष्
धनुः+टंकार = धनु ंकार
िनः+ठु र = िन ु र
िवसग(:)+त/थ = स्
मनः+ताप = मन ताप
दुः+तर = दु तर
िनः+तेज = िन तेज
िनः+तार = िन तार
नमः+ते = नम ते
अः/आः+क = स्
भाः+कर = भा कर
पुरः+कृत = पुर कृत
नमः+कार = नम कार
ितरः+कार = ितर कार
6. यिद िवसग से पहले ‘इ’ या ‘उ’ हो और बाद म क, ख, प, फ हो तो िवसग का ‘ष्’ हो जाता है । जैसे–
इः/उः+क/ख/प/फ = ष्
िनः+कपट = िन कपट
दुः+कम = दु कम
िनः+काम = िन काम
दुः+कर = दु कर
बिहः+कृत = बिह कृत
चतुः+कोण = चतु कोण
िनः+ भ = िन भ
िनः+फल = िन फल
िनः+पाप = िन पाप
दुः+ कृित = दु कृित
दुः+पिरणाम = दु पिरणाम
चतुः+पद = चतु पद
7. यिद िवसग के बाद श, ष, स हो तो िवसग य के य रह जाते है ँ या िवसग का व प बाद वाले वण जैसा हो जाता है । जैसे–
िवसग+श/ष/स = (:) या श/ ष/ स
िनः+शु क = िनःशु क/िन शु क
दुः+शासन = दुःशासन/दु शासन
यशः+शरीर = यशःशरीर/य शरीर
िनः+स देह = िनःस देह/िन स देह
िनः+स तान = िनःस तान/िन स तान
िनः+संकोच = िनःसंकोच/िन संकोच
दुः+साहस = दुःसाहस/दु साहस
दुः+सह = दुःसह/दु सह
9. यिद ‘अ’ के बाद िवसग हो और उसके बाद ‘अ’ से िभ कोई वर हो तो िवसग का लोप हो जाता है और पास आये वर म संिध नहीँ होती है । जैसे–
अः+अ से िभ वर = िवसग का लोप
अतः+एव = अत एव
पयः+ओदन = पय ओदन
रजः+उ गम = रज उ गम
यशः+इ छा = यश इ छा
िह दी भाषा की अ य संिधय
िह दी की कु छ िवशेष सि धय भी है ।ँ इनम वर का दीघ का हृ व होना और हृ व का दीघ हो जाना, वर का आगम या लोप हो जाना आिद मु य है ।ँ इसम यंजन का
पिरवतन ायः अ य प होता है । उपसग या यय से भी इस तरह की संिधय हो जाती है ।ँ ये अ य संिधय िन कार है – ँ
1. हृ वीकरण–
(क) आिद हृ व– इसम संिध के कारण पहला दीघ वर हृ व हो जाता है । जैसे –
घोड़ा+सवार = घुड़सवार
घोड़ा+चढ़ी = घुड़चढ़ी
दूध+मुँहा = दुधमुँहा
कान+कटा = कनकटा
काठ+फोड़ा = कठफोड़ा
काठ+पुतली = कठपुतली
मोटा+पा = मुटापा
छोटा+भैया = छु टभैया
लोटा+इया = लुिटया
मूँछ+कटा = मुँछकटा
आधा+िखला = अधिखला
काला+मुँहा = कलमुँहा
ठाकु र+आइन = ठकु राइन
लकड़ी+हारा = लकड़हारा
(ख) उभयपद हृ व– दोन पद के दीघ वर हृ व हो जाता है । जैसे –
एक+साठ = इकसठ
काट+खाना = कटखाना
पानी+घाट = पनघट
ऊँचा+नीचा = ऊँचनीच
लेना+देना = लेनदेन
2. दीघ करण–
इसम संिध के कारण हृ व वर दीघ हो जाता है और पद का कोई अंश लु त भी हो जाता है । जैसे–
दीन+नाथ = दीनानाथ
ताल+िमलाना = तालमेल
मूसल+धार = मूसलाधार
आना+जाना = आवाजाही
यवहार+इक = यावहािरक
उ र+खंड = उ राखंड
िलखना+पढ़ना = िलखापढ़ी
िहलना+िमलना = हे ल मेल
िमलना+जुल ना = मेल जोल
योग+इक = ायोिगक
व थ+य = वा य
वेद+इक = वैिदक
नीित+इक = नैितक
योग+इक = यौिगक
भूत+इक = भौितक
कु ंती+एय = कौँतेय
वसुदेव+अ = वासुदेव
िदित+य = दै य
देव+इक = दैिवक
सुंदर+य = सौँदय
पृथ क+य = पाथ य
3. वरलोप–
इसम संिध के कारण कोई वर लु त हो जाता है । जैसे–
बकरा+ईद = बकरीद।
4. यंजन लोप–
इसम कोई यंजन सि ध के कारण लु त हो जाता है ।
(क) ‘स’ या ‘ह’ के बाद ‘ ’ होने पर ‘ ’ का लोप हो जाता है । जैसे–
इस+ही = इसी
उस+ही = उसी
यह+ही = यही
वह+ही = वही
(ख) ‘ह ’ के बाद ‘ह’ होने पर ‘ह ’ का लोप हो जाता है तथा बने हएु श द के अ त म अनु वार लगता है । जैसे–
यह +ही = यहीँ
वह +ही = वहीँ
कह +ही = कहीँ
(ग) ‘ब’ के बाद ‘ ’ होने पर ‘ब’ का ‘भ’ हो जाता है और ‘ ’ का लोप हो जाता है । जैसे–
अब+ही = अभी
तब+ही = तभी
कब+ही = कभी
सब+ही = सभी
5. आगम संिध–
इसम सि ध के कारण कोई नया वण बीच म आ जुड़ता है । जैसे–
खा+आ = खाया
रो+आ = रोया
ले+आ = िलया
पी+ए = पीिजए
ले+ए = लीिजए
आ+ए = आइए।
कु छ िविश संिधय के उदाहरण:
नव+राि = नवरा
ािणन्+िव ान = ािणिव ान
शिशन्+ भा = शिश भा
अ +ऊिहनी = अ ौिहणी
सुहृद+अ = सौहाद
अहन्+िनश = अहिनश
+भू = भु
अप+अंग = अपंग/अप ग
अिध+ थान = अिध ान
मनस्+ईष = मनीष
+ऊढ़ = ौढ़
उपिनषद्+मीम सा = उपिनष मीम सा
गंगा+एय = ग गेय
राजन्+ितलक = राजितलक
दाियन्+ व = दािय व
िव +िम = िव ािम
मात+अ ड = मात ड
िदवा+राि = िदवारा
कु ल+अटा = कु लटा
पतत्+अंजिल = पतंजिल
योिगन्+ई र = योगी र
अहन्+मुख = अहमुख
सीम+अंत = सीमंत/सीम त
♦♦♦
समास
‘समास’ श द का शाि दक अथ है – संि त करना। सम्+आस् = ‘सम्’ का अथ है – अ छी तरह पास एवं ‘आस्’ का अथ है – बैठ ना या िमलना। अथ त् दो श द को पास–
पास िमलाना।
‘जब पर पर स ब ध रखने वाले दो या दो से अिधक श द के बीच की िवभि त हटाकर, उ ह िमलाकर जब एक नया वत श द बनाया जाता है , तब इस मेल को
समास कहते है ।ँ ’
सम त पद के श द (िमले हएु श द ) को अलग–अलग करने की ि या को 'समास–िव ह' कहते है ।ँ जैसे– यथाशि त = शि त के अनुसार।
िह दी म समास ायः नए श द–िनम ण हे तु योग म िलए जाते है ।ँ भाषा म संि तता, उ कृ ता, तीवता व गंभीरता लाने के िलए भी समास उपयोगी है ।ँ समास करण
सं कृत सािह य म अित ाचीन तीत होता है । ीम गव गीता म भगवान ीकृ ण ने भी कहा है —“मैँ समास म समास म हूँ।”
िजस ख ड या पद पर अथ का मु य बल पड़ता है , उसे धान पद कहते है ।ँ िजस पद पर अथ का बल नहीँ पड़ता, उसे गौण पद कहते है ।ँ इस आधार पर (सं कृत की
दृि से) समास के चार भेद माने गए है –
ँ
1. िजस समास म पूव पद धान होता है , वह—‘अ ययीभाव समास’।
2. िजस समास म उ र पद धान होता है , वह—‘त पु ष समास’।
3. िजस समास म दोन पद धान ह , वह—‘ समास’ तथा
4. िजस समास म दोन पद म से कोई धान न हो, वह—‘बहु ीिह समास’।
1. अ ययीभाव समास–
िजस सम त पद म पहला पद अ यय होता है , अथ त् अ यय पद के साथ दूसरे पद, जो सं ा या कु छ भी हो सकता है , का समास िकया जाता है , उसे अ ययीभाव समास
कहते है ।ँ थम पद के साथ िमल जाने पर सम त पद ही अ यय बन जाता है । इन सम त पद का योग ि यािवशेषण के समान होता है ।
अ यय श द वे है ँ िजन पर काल, वचन, पु ष, िलँग आिद का कोई भाव नहीँ पड़ता अथ त् प पिरवतन नहीँ होता। ये श द जह भी यु त िकये जाते है ,ँ वह उसी प
म ही रहगे। जैसे– यथा, ित, आ, हर, बे, िन आिद।
2. त पु ष समास–
िजस समास म दूसरा पद अथ की दृि से धान हो, उसे त पु ष समास कहते है ।ँ इस समास म पहला पद सं ा अथवा िवशेषण होता है इसिलए वह दूसरे पद िवशे य
पर िनभर करता है , अथ त् दूसरा पद धान होता है । त पु ष समास का िलँग–वचन अंितम पद के अनुसार ही होता है । जैसे– जलधारा का िव ह है – जल की धारा। ‘जल की
धारा बह रही है ’ इस वा य म ‘बह रही है ’ का स ब ध धारा से है जल से नहीँ। धारा के कारण ‘बह रही’ ि या ीिलँग म है । यह बाद वाले श द ‘धारा’ की धानता है अतः यह
त पु ष समास है ।
त पु ष समास म थम पद के साथ क और स बोधन कारक को छोड़कर अ य कारक िच (िवभि तय ) का ायः लोप हो जाता है । अतः पहले पद म िजस कारक
या िवभि त का लोप होता है , उसी कारक या िवभि त के नाम से इस समास का नामकरण होता है । जैसे – ि तीया या कमकारक त पु ष = वग ा त – वग को ा त।
कारक िच इस कार है ँ –
.सं. कारक का नाम िच
1— कत – ने
2— कम – को
3— करण – से (के ारा)
4— स दान – के िलए
5— अपादान – से (पृथ क भाव म)
6— स ब ध – का, की, के, रा, री, रे
7— अिधकरण – म, पर, ऊपर
8— स बोधन – हे ! , अरे! ओ!
चूँिक त पु ष समास म कत और संबोधन कारक–िच का लोप नहीँ होता अतः इसम इन दोन के उदाहरण नहीँ है ।ँ अ य कारक िच के आधार पर त पु ष समास के
भेद इस कार है ँ –
(1) कम त पु ष –
सम त पद िव ह
ह तगत – हाथ को गत
जाितगत – जाित को गया हआ ु
मुँहतोड़ – मुँह को तोड़ने वाला
दुःखहर – दुःख को हरने वाला
यश ा त – यश को ा त
पद ा त – पद को ा त
ामगत – ाम को गत
वग ा त – वग को ा त
देशगत – देश को गत
आशातीत – आशा को अतीत(से परे)
िचड़ीमार – िचड़ी को मारने वाला
कठफोड़वा – का को फोड़ने वाला
िदलतोड़ – िदल को तोड़ने वाला
जीतोड़ – जी को तोड़ने वाला
जीभर – जी को भरकर
लाभ द – लाभ को दान करने वाला
शरणागत – शरण को आया हआ ु
रोजगारो मुख – रोजगार को उ मुख
सव – सव को जानने वाला
गगनचु बी – गगन को चूमने वाला
परलोकगमन – परलोक को गमन
िच चोर – िच को चोरने वाला
याित ा त – याित को ा त
िदनकर – िदन को करने वाला
िजतेि य – इंि य को जीतने वाला
च धर – च को धारण करने वाला
धरणीधर – धरणी (पृ वी) को धारण करने वाला
िगिरधर – िगिर को धारण करने वाला
हलधर – हल को धारण करने वाला
मरणातुर – मरने को आतुर
कालातीत – काल को अतीत (परे) करके
वय ा त – वय (उ ) को ा त
(ख) करण त पु ष –
तुल सीकृत – तुल सी ारा कृत
अकालपीिड़त – अकाल से पीिड़त
मसा य – म से सा य
क सा य – क से सा य
ई रद – ई र ारा िदया गया
र जिड़त – र से जिड़त
ह तिलिखत – ह त से िलिखत
अनुभव ज य – अनुभव से ज य
रेख िकत – रेखा से अंिकत
गु द – गु ारा द
सूरकृत – सूर ारा कृत
दया – दया से आ
मुँहम गा – मुँह से म गा
मदम – मद (नशे) से म
रोगातुर – रोग से आतुर
भुखमरा – भूख से मरा हआ ु
कपड़छान – कपड़े से छाना हआ ु
वयंिस – वयं से िस
शोकाकु ल – शोक से आकु ल
मेघा छ – मेघ से आ छ
अ ुपूण – अ ु से पूण
वचनब – वचन से ब
वा यु – वाक् (वाणी) से यु
ुधातुर – ुधा से आतुर
श यिचिक सा – श य (चीर-फाड़) से िचिक सा
आँख देखा – आँख से देखा
(ग) स दान त पु ष –
देशभि त – देश के िलए भि त
गु दि णा – गु के िलए दि णा
भूतबिल – भूत के िलए बिल
ौढ़ िश ा – ौढ़ के िलए िश ा
य शाला – य के िलए शाला
शपथप – शपथ के िलए प
नानागार – नान के िलए आगार
कृ णापण – कृ ण के िलए अपण
यु भूिम – यु के िलए भूिम
बिलपशु – बिल के िलए पशु
पाठशाला – पाठ के िलए शाला
रसोईघर – रसोई के िलए घर
हथकड़ी – हाथ के िलए कड़ी
िव ालय – िव ा के िलए आलय
िव ामंिदर – िव ा के िलए मंिदर
डाक गाड़ी – डाक के िलए गाड़ी
सभाभवन – सभा के िलए भवन
आवेदन प – आवेदन के िलए प
हवन साम ी – हवन के िलए साम ी
कारागृह – कैिदय के िलए गृह
परी ा भवन – परी ा के िलए भवन
स या ह – स य के िलए आ ह
छा ावास – छा के िलए आवास
युववाणी – युवाओँ के िलए वाणी
समाचार प – समाचार के िलए प
वाचनालय – वाचन के िलए आलय
िचिक सालय – िचिक सा के िलए आलय
बंदीगृह – बंदी के िलए गृह
(घ) अपादान त पु ष –
रोगमु त – रोग से मु त
लोकभय – लोक से भय
राज ोह – राज से ोह
जलिर त – जल से िर त
नरकभय – नरक से भय
देशिन कासन – देश से िन कासन
दोषमु त – दोष से मु त
बंधनमु त – बंधन से मु त
जाित – जाित से
कत य युत – कत य से युत
पदमु त – पद से मु त
ज म ध – ज म से अंधा
देशिनकाला – देश से िनकाला
कामचोर – काम से जी चुराने वाला
ज मरोगी – ज म से रोगी
भयभीत – भय से भीत
पद युत – पद से युत
धमिवमुख – धम से िवमुख
पदा ा त – पद से आ ा त
कत यिवमुख – कत य से िवमुख
पथ – पथ से
सेवामु त – सेवा से मु त
गुण रिहत – गुण से रिहत
बुि हीन – बुि से हीन
धनहीन – धन से हीन
भा यहीन – भा य से हीन
(ङ) स ब ध त पु ष –
देवदास – देव का दास
लखपित – लाख का पित (मािलक)
करोड़पित – करोड़ का पित
रा पित – रा का पित
सूय दय – सूय का उदय
राजपु – राजा का पु
जग ाथ – जगत् का नाथ
मंि पिरषद् – मंि य की पिरषद्
राजभाषा – रा य की (शासन) भाषा
रा भाषा – रा की भाषा
जमीँदार – जमीन का दार (मािलक)
भूकंप – भू का क पन
रामचिरत – राम का चिरत
दुःखसागर – दुःख का सागर
राज ासाद – राजा का ासाद
गंगाजल – गंगा का जल
जीवनसाथी – जीवन का साथी
देवमूित – देव की मूित
सेनापित – सेना का पित
संगानुकूल – संग के अनुकूल
भारतवासी – भारत का वासी
पराधीन – पर के अधीन
वाधीन – व ( वयं) के अधीन
मधुम खी – मधु की म खी
भारतर – भारत का र
राजकु मार – राजा का कु मार
राजकु मारी – राजा की कु मारी
दशरथ सुत – दशरथ का सुत
थावली – थ की अवली
दीपावली – दीप की अवली (कतार)
गीत जिल – गीत की अंजिल
किवतावली – किवता की अवली
पदावली – पद की अवली
कम धीन – कम के अधीन
लोकनायक – लोक का नायक
र तदान – र त का दान
स ावसान – स का अवसान
रा का िपता
अ मेध – अ का मेध
माखनचोर – माखन का चोर
न दलाल – न द का लाल
दीनानाथ – दीन का नाथ
दीनब धु – दीन (गरीब ) का ब धु
कमयोग – कम का योग
ामवासी – ाम का वासी
दयासागर – दया का सागर
अ श – अ का अंश
देशा तर – देश का अ तर
तुल ादान – तुल ा का दान
क यादान – क या का दान
गोदान – गौ (गाय) का दान
ामो थान – ाम का उ थान
वीर क या – वीर की क या
पु वधू – पु की वधू
धरतीपु – धरती का पु
वनवासी – वन का वासी
भूतबंगला – भूत का बंगला
राजिसंहासन – राजा का िसँहासन
(च) अिधकरण त पु ष –
ामवास – ाम म वास
आपबीती – आप पर बीती
शोकम न – शोक म म न
जलम न – जल म म न
आ मिनभर – आ म पर िनभर
तीथ टन – तीथ ँ म अटन ( मण)
नर े – नर म े
गृह वेश – गृह म वेश
घुड़सवार – घोड़े पर सवार
वा पटु – वाक् म पटु
धमरत – धम म रत
धम ँध – धम म अंधा
लोककेि त – लोक पर केि त
का यिनपुण – का य म िनपुण
रणवीर – रण म वीर
रणधीर – रण म धीर
रणजीत – रण म जीतने वाला
रणकौशल – रण म कौशल
आ मिव ास – आ मा पर िव ास
वनवास – वन म वास
लोकि य – लोक म ि य
नीितिनपुण – नीित म िनपुण
यानम न – यान म म न
िसरदद – िसर म दद
देशाटन – देश म अटन
किवपुंगव – किवय म पुंगव ( े )
पु षो म – पु ष म उ म
रसगु ला – रस म डू बा हआु गु ला
दहीबड़ा – दही म डू बा हआ
ु बड़ा
रेल गाड़ी – रेल (पटरी) पर चलने वाली गाड़ी
मुिन े – मुिनय म े
नरो म – नर म उ म
वा वीर – वाक् म वीर
पवतारोहण – पवत पर आरोहण (चढ़ना)
कमिन – कम म िन
युिधि र – यु म ि थर रहने वाला
सव म – सव म उ म
कायकु शल – काय म कु शल
दानवीर – दान म वीर
कमवीर – कम म वीर
किवराज – किवय म राजा
स ा ढ़ – स ा पर आ ढ़
शरणागत – शरण म आया हआ ु
गजा ढ़ – गज पर आ ढ़
♦ त पु ष समास के उपभेद –
उपयु त भेद के अलावा त पु ष समास के दो उपभेद होते है ँ –
(i) अलुक् त पु ष – इसम समास करने पर पूवपद की िवभि त का लोप नहीँ होता है । जैसे—
युिधि र—युि (यु म) + ि थर = ये पा डव
मनिसज—मनिस (मन म) + ज (उ प ) = कामदेव
खेचर—खे (आकाश) + चर (िवचरने वाला) = प ी
(ii) नञ् त पु ष – इस समास म ि तीय पद धान होता है िक तु थम पद सं कृत के नकारा मक अथ को देने वाले ‘अ’ और ‘अन्’ उपसग से यु त होता है । इसम िनषेध
अथ म ‘न’ के थान पर यिद बाद म यंजन वण हो तो ‘अ’ तथा बाद म वर हो तो ‘न’ के थान पर ‘अन्’ हो जाता है । जैसे –
अनाथ – न (अ) नाथ
अ याय – न (अ) याय
अनाचार – न (अन्) आचार
अनादर – न (अन्) आदर
अज मा – न ज म लेने वाला
अमर – न मरने वाला
अिडग – न िडगने वाला
अशो य – नहीँ है शोचनीय जो
अनिभ – न अिभ
अकम – िबना कम के
अनादर – आदर से रिहत
अधम – धम से रिहत
अनदेखा – न देखा हआ ु
अचल – न चल
अछू त – न छू त
अिन छु क – न इ छु क
अनाि त – न आि त
अगोचर – न गोचर
अनावृत – न आवृत
नालायक – नहीँ है लायक जो
अन त – न अ त
अनािद – न आिद
असंभव – न संभव
अभाव – न भाव
अलौिकक – न लौिकक
अनपढ़ – न पढ़ा हआ ु
िनिववाद – िबना िववाद के
3. समास –
िजस सम त पद म दोन अथवा सभी पद धान ह तथा उनके बीच म समु चयबोधक–‘और, या, अथवा, आिद’ का लोप हो गया हो, तो वह समास होता है । जैसे –
अ जल – अ और जल
देश–िवदेश – देश और िवदेश
राम–ल मण – राम और ल मण
रात–िदन – रात और िदन
ख ामीठा – ख ा और मीठा
जला–भुना – जला और भुना
माता–िपता – माता और िपता
दूधरोटी – दूध और रोटी
पढ़ा–िलखा – पढ़ा और िलखा
हिर–हर – हिर और हर
राधाकृ ण – राधा और कृ ण
राधे याम – राधे और याम
सीताराम – सीता और राम
गौरीशंकर – गौरी और शंकर
अड़सठ – आठ और साठ
प चीस – प च और बीस
छा –छा ाएँ – छा और छा ाएँ
क द–मूल –फल – क द और मूल और फल
गु –िश य – गु और िश य
राग– ेष – राग या ेष
एक–दो – एक या दो
दस–बारह – दस या बारह
लाख–दो–लाख – लाख या दो लाख
पल–दो–पल – पल या दो पल
आर–पार – आर या पार
पाप–पु य – पाप या पु य
उ टा–सीधा – उ टा या सीधा
कत याकत य – कत य अथवा अकत य
सुख–दुख – सुख अथवा दुख
जीवन–मरण – जीवन अथवा मरण
धम धम – धम अथवा अधम
लाभ–हािन – लाभ अथवा हािन
यश–अपयश – यश अथवा अपयश
हाथ–प व – हाथ, प व आिद
नोन–तेल – नोन, तेल आिद
पया–पै सा – पया, पै सा आिद
आहार–िन ा – आहार, िन ा आिद
जलवायु – जल, वायु आिद
कपड़े –ल े – कपड़े , ल े आिद
बहू–बेटी – बहू, बेटी आिद
पाला–पोसा – पाला, पोसा आिद
साग–पात – साग, पात आिद
काम–काज – काम, काज आिद
खेत–खिलहान – खेत, खिलहान आिद
लूट–मार – लूट, मार आिद
पे ड़–पौधे – पे ड़, पौधे आिद
भला–बुरा – भला, बुरा आिद
दाल–रोटी – दाल, रोटी आिद
ऊँच–नीच – ऊँच, नीच आिद
धन–दौलत – धन, दौलत आिद
आगा–पीछा – आगा, पीछा आिद
चाय–पानी – चाय, पानी आिद
भूल –चूक – भूल , चूक आिद
फल–फूल – फल, फूल आिद
खरी–खोटी – खरी, खोटी आिद
6. ि गु समास –
िजस सम त पद म पूव पद सं यावाचक हो और पूरा पद समाहार (समूह) या समुदाय का बोध कराए उसे ि गु समास कहते है ।ँ सं कृत याकरण के अनुसार इसे
कमधारय का ही एक भेद माना जाता है । इसम पूव पद सं यावाचक िवशेषण तथा उ र पद सं ा होता है । वयं 'ि गु' म भी ि गु समास है । जैसे –
एकिलंग – एक ही िलँग
दोराहा – दो राह का समाहार
ितराहा – तीन राह का समाहार
चौराहा – चार राह का समाहार
पंचत व – प च त व का समूह
शता दी – शत (सौ) अ द (वष ँ) का समूह
पंचवटी – प च वट (वृ ) का समूह
नवर – नौ र का समाहार
ि फला – तीन फल का समाहार
ि भुवन – तीन भुवन का समाहार
ि लोक – तीन लोक का समाहार
ि शूल – तीन शूल का समाहार
ि वेणी – तीन वेिणय का संगम
ि वेदी – तीन वेद का ाता
ि वेदी – दो वेद का ाता
चतुवदी – चार वेद का ाता
ितबारा – तीन है ँ िजसके ार
स ताह – सात िदन का समूह
चव ी – चार आन का समाहार
अठवारा – आठव िदन को लगने वाला बाजार
पंचामृत – प च अमृत का समाहार
ि लोकी – तीन लोक का
सतसई – सात सई (सौ) (पद ) का समूह
एक की – एक अंक है िजसका
एकतरफा – एक है जो तरफ
इकलौता – एक है जो
चतुवग – चार है ँ जो वग
चतुभुज – चार भुजाओँ वाली आकृित
ि भुज – तीन भुजाओँ वाली आकृित
प सेरी – प च सेर वाला बाट
ि गु – दो गाय का समाहार
चौपड़ – चार फड़ का समूह
ष कोण – छः कोण वाली बंद आकृित
दुपिहया – दो पिहय वाला
ि मूित – तीन मूितय का समूह
दशा दी – दस वष ँ का समूह
पंचतं – प च तं का समूह
नवरा – नौ रात का समूह
स तिष – सात ऋिषय का समूह
दुनाली – दो नाल वाली
चौपाया – चार पाय (पै र ) वाला
ष पद – छः पै र वाला
चौमासा – चार मास का समाहार
इकतीस – एक व तीस का समूह
स तिस धु – सात िस धुओँ का समूह
ि काल – तीन काल का समाहार
अ धातु – आठ धातुओँ का समूह
संिध व समास
असमानता –
1. संिध म दो विनय या वण ँ का योग है जबिक समास म दो श द या पद का मेल होता है ।
2. संिध म वनी िवकार आव यक है जबिक समास म विन िवकार तभी होता है जब सामािसक पद म संिध की ि थित हो अ यथा नहीँ।
समानता –
1. दोन ही नवीन श द–सृजन म सहायक है ।ँ
2. दोन ही श द को संि त करने म सहायक है ।ँ
3. दोन ही कम श द म अिधक भाव कट करने की ‘समास–शैल ी–िनम ण’ म सहायक है ।ँ
♦♦♦
• सामा य िह दी
♦ होम पे ज
तुित:–
मोद खेदड़
सामा य िह दी
3. श द–िवचार
♦ श द:
योग–यो य, एकाथ–बोधक तथा पर पर अि वत वण ँ के समूह को श द कहते है ।ँ दूसरे श द म एक या अनेक वण ँ के मेल से िनिमत वतं एवं साथक विन ही श द
कहलाती है । जैसे – एक वण से िनिमत श द—न (नहीं) व (और), अनेक वण ं से िनिमत श द—कु ा, शेर, कमल, नयन, ासाद, सव यापी, परमा मा, बालक, कागज, कलम
आिद।
मनु य सामािजक ाणी है तथा वह समाज म भाषा के मा यम से पर पर िवचार–िविनमय करता है । इस ि या म जो वा य यु त है ,ँ उनम साथक श द का योग करता
है । श द िकसी भाषा के ाण है ।ँ िबना श द के भाषा की क पना करना असंभव है । श द भाषा की एक वतं एवं साथक इकाई है , जो एक िनि त अथ का बोध कराती है ।
♦ श द–भेद:
िह दी भाषा, िवकास की दीघ पर परा और अनेक भाषाओँ के स पक का पिरणाम है । फलतः िह दी श दावली का वग करण अनेक आधार पर िकया जाता है , जो इस कार
है –
♦ िवकास ( ोत) के आधार पर श द–भेद:
येक भाषा का िवकास िनर तर चलने वाली ि या है , िजसम भाषा के नये–नये श द का िनम ण होता रहता है । िह दी भाषा म िवकास के आधार पर श द को छः वग ँ म
िवभािजत िकया जाता है –
(1) त सम् श द –
िह दी भाषा का उ व सं कृत से माना जाता है ; इस कारण िह दी म सं कृत के कु छ श द मूल प के समान यु त होते है ँ और इनके सहयोग से अनेक श द का िनम ण
िकया जाता है ।
जो श द सं कृत से िह दी म िबना पिरवतन िकये अपना िलये जाते है ,ँ उ ह त सम् श द कहते है ।ँ ‘तत्’ का आशय ‘उसके’ और ‘सम्’ का आशय ‘समान’ है । इस कार जो
श द सं कृत के समान होते है ँ या जो श द िबना िवकृत हएु सं कृत से य के य िह दी भाषा म आ गये है ,ँ वे त सम् श द होते है ।ँ जैसे – भानु, ाण, कम, अि न, कोिट, ह त,
म तक, यौवन, शृंगार, ान, वायु, अ ु, ीवा, दीपक आिद।
(2) त व श द –
जो श द सं कृत से उ प या िवकिसत हएु है ँ या सं कृत से िवकृत होकर िह दी म यु त िकये जाते है ,ँ उ ह त व श द कहते है ।ँ इस वग म वे श द आते है ँ जो सं कृत
भाषा से पािल, ाकृत, एवं अप ंश के मा यम से अपना पूरा माग तय करके आये है ।ँ जैसे – काम, आग, कबूतर, हाथ, स प, म , भाई, घी, दूध, भैस
ँ , खाट, थाली, सुई, पानी,
थन, चून, आँसू, गदन, आँवला, गम आिद।
♦ त सम — त व
अंक – आँक
अंगर क – अँगरखा
अंगुिल – अँगुल ी
अ र – अ छर
अ त – अ छत
अ य तृतीया – आखातीज
अंगु – अँगूठ ा
अि – आँख
अकाय – अकाज
अिखल – आखा
अि न – आग
अग य – अगम
अ वत – अगाड़ी
अ ान – अजान
अ ानी – अनजाना
अ ािलका – अटारी
अमाव या – अमावस
अ – आठ
अ ादश – अठारह
अ – आज
अ – आधा
अनाय – अनाड़ी
अ ा – अनाज
अ धकार – अँधरे ा
अक – आक
अमृत – अिमय
अमू य – अमोल
अ य – अनत
अ ु – आँसू
अ बा – अ मा
अि लका – इमली
अशीित – अ सी
आखेट – अहे र
आ – आम
आमलक – आँवला
आ चूण – अमचूर
आभीर – अहीर
आदेश – आयुस
आल य – आलस
आ य – आसरा
आ य – अजरज
आि न – आसोज
आिशष् – असीस
इ ु – ईख
इि का – ईँट
उ च – ऊँचा
उ वल – उजला
उ साह – उछाह
उ तन – उबटन
उपाल भ – उलाहना
उपा याय – ओझा
उलूक – उ लू
उलूखल – ओखली
ऊ ण – उमस
ऋ – रीछ
ओ – ओँठ
ॐ – ओम
कंकण – कंगन
कंटक – क टा
ि य–ख ी
ार – खार
े – खेत
ीर – खीर
ित – छित
ण – िछन
ीण – छीन
क छप – कछु आ
क जल – काजल
कदली – केला
कपूर – कपूर
कृपा – िकरपा
क री – कैँची
कण – कान
कृषक – िकसान
कत य – करतब
कटु – कडु आ
कतन – कतरन
क लोल – कलोल
लेश – कलेश
कम – काम
कृ ण – का हा
कपिदका – कौड़ी
कपोत – कबूतर
काक – कौआ
काय – कारज, काज
काितक – काितक
कास – ख सी
का – काठ
िकँिचत – कु छ
िकरण – िकरन
कु ुर – कु ा
कु ि – कोख
कु पु – कपूत
कु ंभकार – कु हार
कु मार – कु ँअर
कु – कोढ़
कूप – कु ँआ
कोिकला – कोयल
कोण – कोना
कोि का – कोठी
खिन – खान
खटवा – खट
गंभीर – गहरा
गदभ – गधा
गत – ग ढा
ंिथ – ग ठ
गृ – िग
गृह – घर
गिभणी – गािभन
हण – गहन
गहन – घना
गा – गात
गायक – गवैया
ाहक – गाहक
ाम – ग व
ामीण – गँवार
गुहा – गुफा
ग दुक – गद
गोधूम – गेहूँ
गोपालक – वाला
गोमय – गोबर
गो वामी – गुसाईँ
गौ – गाय
गौ – गोत
गौर – गोरा
घंिटका – घंटी
घट – घड़ा
घृणा – िघन
घृत – घी
चंचु – च च
चं – च द
चुंबन – चूमना
चंि का – च दनी
च – चाक
च वाहक – चकवा
चतुथ – चौथा
चतुदश – चौदह
चतु कोण – चौकोर
चतु पद – चौपाया
चतुिवश – चौबीस
चम – चाम, चमड़ी
चवण – चबाना
िच ण – िचकना
िच क – चीता
िच कार – िचतेरा
चूण – चून
चै – चैत
चौर – चोर
छ – छाता
छाया – छ ह
िछ – छे द
जंघा – ज घ
ज म – जनम
योित – जोत
जव – जौ
जामाता – जँवाई
ये – जेठ
िज ा – जीभ
जीण – झीना
झरण – झरना
तुंद – त द
तुंल – तंदलु
त त – तपन
तप वी – तपसी
विरत – तुरत ं
य – तीन
योदश – तेरह
तृण – ितनका
ता – त बा
ितलक – टीका
ती ण – तीखा
तीथ – तीरथ
तैल – तेल
दंत – द त
दंतधावन – दातुन
द –द छ
दि ण – दािहना
दिध – दही
द ु – दाद
दृि – दीिठ
ादश – बारह
ि तीय – दूजा
ि पट – दुप ा
ि वेदी – दुबे
ि हरी – दुपहरी
िदश तर – िदशावर
दीप – दीया
दीप लाका – दीयासलाई
दीपावली – िदवाली
दुःख – दुख
दु ध – दूध
दुबल – दुबला
दूव – दूब
देव – दई
ौ – दो
धम – धरम
ध ूर – धतूरा
धन े ी – ध ासेठ
धिर ी – धरती
धा य – धान
धुर ् – धुर
धूिल – धूल
धू – धुँआ
धैय – धीरज
न – नखत
न न – नंगा
नकु ल – नेवला
न य – नया
न तृ – नाती
नृ य – नाच
नयन – नैन
नव – नौ
नािपत – नाई
नािरकेल – नािरयल
नािसका – नाक
िन ा – नीँद
िन ब – नीम
िनव ह – िनबाह
िन ु र – िनठु र
नौका – नाव
पंि त – पंगत
पंचम – प च
पंचदश – प ह
प व – पका
प वा – पकवान
प – पंख
पथ – पंथ
प –प ा
प ी – पंछी
पि का – पाटी
पपट – पापड़
पर ः – परस
परशु – फरसा
पवन – पौन
परी ा – परख
पयक – पलंग
प ाताप – पछतावा
कट – गट
तर – प थर
हर – पहर
हरी – पहरेदार
ित छाया – परछ ई
पृ – पीठ
पाद – पै र
पानीय – पानी
पाषाण – पाहन
िपतृ – िपतर
ि य – िपय
िपपासा – यास
िपपीिलका – िचँटी
पीत – पीला
पु छ – पूँछ
पु – पूत
पु कर – पोखर
पूण – पूरा
पूिणमा – पूनम
पूव – पूरब
पौ – पोता
पौष – पौ
फा गुन – फागुन
फु ल – फु का
बंध – ब ध
बं या – ब झ
बकर – बकरा
बिधर – बहर
बिलवध – बैल
बालुका – बालू
बुभुि त – भूखा
भ त – भगत
भिगनी – बहन
भ – भला
भ लुक – भालू
मर – भौँरा
भ म – भि म
भािगनेय – भानजा
ाता – भाई
ातृजाया – भौजाई
ातृजा – भतीजी
भा पद – भादो
िभ ुक – िभखारी
िभ ा – भीख
ू – भौँहे, भौँ
मकर – मगर
मि का – म खी
मकटी – मकड़ी
मिणकार – मिनहार
मनीिचका – िमच
मयूर – मोर
मल – मैल
मशक – म छर
मशकहरी – मसहरी
माग – मारग
मातुल – मामा
मास – महीना
िम – मीत
िम ा – िमठाई/िम ान
मुख – मुँह
मुषल – मूसल
मू – पे शाब
मृ यु – मौत
मृतघट – मरघट
मृि का – िम ी
मेघ – मेह
मौि तक – मोती
यं -मं – जंतर-मंतर
य – जग
य ोपवीत – जनेऊ
यजमान – जजमान
यित – जती
यम – जम
यमुना – जमुना
यश – जस
यशोदा – जशोदा
यव – जौ
युि त – जुगत
युवा – जवान
यूथ – ज था
योग – जोग
योगी – जोगी
यौवन – जोबन
र ा – राखी
र जु – र सी
राजपु – राजपूत
रा ी – रानी
राि – रात
रािश – रास
िर त – रीता
दन – रोना
– ठा
ल – लाख
ल ण – ल खन/ल छन
ल मण – लखन
ल जा – लाज
लवंग – लौँग
लवण – नौन/लूण
लवणता – लुनाई
लेपन – लीपना
लोमशा – लोमड़ी
लौह – लोहा
लौहकार – लुहार
वंश – ब स
वंशी – ब सुरी
व – बगुल ा
व ग – बजरंग
वट – बड़
वण – वरन
विणक – बिनया
व स – बछड़ा/बेटा
वधू – बहू
वरया ा – बारात
या – बाघ
वाणी – बैन
वानर – बंदर
वात क – बैगँ न
वा प – भाप
िवँश – बीस
िवकार – िबगाड़
िववाह – याह
िव ा – बीँट
वीणा – बीना
वीरविणनी – बीरबानी
वृ – बु ढा
वृि क – िब छू
म ु – मूँछ
मशान – मसान
याली – साली
यामल – स वला
सुर – ससुर
ू – सास
ास – स स
शकट – छकड़ा
शत – सौ
श या – सेज
शकरा – श र
ावण – सावन
शाक – साग
शाप – ाप
शृंग – सीँग
िशिशँपा – सरस
िश ा – सीख
शुक – सुआ
शु ड – सूँड
शु क – सूखा
शूकर – सुअर
शू य – सूना
शृंगार – िसँगार
े ी – सेठ
संिध – सध
स य – सच
स त – सात
स तशती – सतसई
सप – स प
सप ी – सौत
ससप – सरस
कंध – कंधा
तन – थन
त भ – ख भा
वजन – सजन/साजन
व – सपना
वण – सोना
वणकार – सुनार
सरोवर – सरवर
सा ी – साखी
सू – सूत
सूय – सूरज
सौभा य – सुहाग
हंडी – ह ड़ी
ह – हाट
हष – हरख
हिरत – हरा
हिर ा – ह दी
हि तनी – हिथनी
ह त – हाथ
हि त – हाथी
हृदय – िहय
हा य – हँसी
िहँदोला – िहँडोला
होिलका – होली
(3) अ त सम् श द –
‘अ त सम्’ वे श द होते है ,ँ जो सं कृत श द से यु प या िवकिसत होकर सीधे ही िह दी भाषा म आ गये है ।ँ इ ह म यकालीन भारतीय आय भाषा पिरवार म सि मिलत
होने का सौभा य ा त नहीँ हआु , फलतः इनके प म इतना पिरवतन नहीँ आया, िजतना त व श द के प म आया। उधर इनका प वैसा भी नहीँ रह पाया जैसे त सम् श द
का रहा, इसिलए इ ह न त सम् कहा जाता है और न त व, इ ह ‘अ त सम्’ की सं ा दी गई है । इनकी सं या अिधक नहीँ है । जैसे –
अिगन, असमान, आँगन, आखर, कारज, िकिरपा, िकशुन, िकसन, चंदर, चूरन, तन, तोल, बरस, भूख, मउर, लगन, लासा, िलछमन, िलछमी, व छ, समान।
यादातर देशी और देशज, इन दोन श द म अ तर नहीँ िकया जाता है । पर दोन शु एक–दूसरे के पय य नहीँ है ।ँ इनके अ तर को समझ लेना आव यक है । ‘देशी’ श द
का योग सं कृत काल से चला आ रहा है । िजनका अथ है , वे श द िज ह सं कृत याकरण के िनयम से िस नहीँ िकया जा सके। कु छ आिदवािसय की भाषा के जो आय ँ के
आगमन के समय भारत म िनवास करते थे। इनम से आि क जैसे कबीले तो आय ँ के आगमन से आ े िलया एवं इ डोनेिशया की ओर चले गये। कु छ काल कविलत हो गये
और कु छ आय ँ म घुल –िमल गये। भाषा म इनका अ तिम ण सं कृत काल से ही ार भ हो गया था। पािल, ाकृत और अप ंश भाषाओँ म तो इनकी पय त बहल ु ता पाई जाती
है । इसिलए हे मच को ‘देशी’ नाम माला कोष म िलखना पड़ा। दूसरी ओर ‘देशज’ श द उ ह कहा जाना चािहए, िजनका िनम ण िविभ भाषा–भाषी लोग ने अपनी
आव यकतानुसार अनुकरण के आधार पर अथवा अ य कार से कर िलया है । इनको इस आधार पर एक वग म रखा गया है िक दोन की ही यु पि संिध ध है । िकसी भी
ात देशीय या िवदेशीय भाषा के आधार पर इ ह यु प नहीँ िकया जा सकता है ।
♦ देशज श द :
िचिड़या, डाब, ढोलक, ओढ़ना, बाल, खाल, छोटा, घघरी, पाग, पट, झाड़ी, ज टी, बेटी, तरकारी, आला, भ पू, चीलगाड़ी, फटफिटया, ट–ट, च–च, प –प , म–म, टप–टप,
झर–झर, कल–कल, धड़ा–धड़, झल–मल, झप–झप, अ टा, तदुआ, ठु मरी, फु नगी, िखचड़ी, िबयाना, ठे ठ , गाड़ी, थैल ा, खटखटाना, ढू ँढना, मूँगा, ख पा, झु गी, लुिटया,
चुिटया, खिटया, लोटा, सरपट, खर टा, च द, चुटकी, लौकी, ठठे रा, पटाखा, खुरपी, कटोरा, केला, बाजरा, ताला, लुंगी, जूता, बिछया, मेल –जोल, सटकना, िडिबया, पे ट,
कलाई, भ दू, िचकना, खाट, लड़का, छोरा, दाल, रोटी, कपड़ा, भा डा, ल े, छकड़ा, िखड़की, झाड़ू, झोला, पगड़ी, पड़ोसी, खचाखच, कोड़ी, िभ डी, कपास, परवल, सरस ,
क च, इडली, डोसा, उटपट ग, खटपट, चाट, चु की, साग, लूण, िमच, पे ड़, ध बा, कब डी, झगड़ा आिद।
(5) िवदेशी श द –
िवदेशी भाषाओँ से आये त सम् एवं त व श द इस वग म रखे जाते है । दूसरे ‘िवदेशी’ या िवदेश श द का अथ भारतीय आय पिरवार से िम भाषाएँ िलया जाना चािहए,
य िक िह दी म िवड़ पिरवार की भाषाओँ के श द भी िमलते है ,ँ िक तु िवड़ भाषाओँ को िवदेशी भाषा नहीँ कहा जा सकता है । इसिलए िवदेशी भाषा का ‘देश से बाहर की
भाषा’ अथ लेने से अ यि त दोष आ जाएगा। िह दी भाषा अपने उ व से लेकर आज तक अनेक भाषाओँ के स पक म आयी िजनम से मुख है — ँ अरबी, फारसी, तुक , अं ेजी,
पुतगाली व च।
♦ अरबी श द :
गरीब, मािलक, कैदी, औरत, िर त, कलम, अमीर, औलाद, िदमाग, तर ी, तरफ, तिकया, जािलम, जलसा, जनाब, जुल ूस, खबर, कायदा, शराब, हमला, हािकम, हक,
िहसाब, मतलब, कसरत, कसर, कसूर, उ , ईमानदार, इलाज, इमारत, ईनाम, आदत, आिखर, मशहूर, मौलवी, मुहावरा, मदद, फायदा, नशा, तमीज, तिबयत, तबला, तबादला,
तमाम, दावत, आम, फकीर, अजब, अजीब, अखबार, असर, अ ला, िक मत, खत, िज , तजुरबा, दुिनया, बहस, मुकदमा, वकील, हमला, अहमक, ईमान, िक त, ख म,
जवाब, तादाद, िदन, दुकान, दलाल, बाज, फैसला, मामूल ी, मालूम, मुि सफ, मजमून, वहम, लायक, वारीस, हािशया, हाल, हािजर, अदा, आसार, आदमी, औसत, कीमत, कु स ,
िज म, तमाशा, तारीफ, तकदीर, तकाजा, तमाम, एहसान, िक सा, िकला, िखदमत, दािखल, दौलत, बाकी, मु क, यतीम, ल ज, िलहाज, हौसला, हवालात, मौसम, मौका,
कदम, इजलास, नकल, नहर, मुसािफर, क , इ जत, इमारत, कमाल, याल, खराब, तारीख, दुआ, द तर, दवा, मु ई, दवाखाना, मौलवी, ताज, मशाल, शेख, इरादा, इशारा,
तहसील, हलवाई, नकद, अदालत, लगान, वािलद, खुिफया, कु रान, अरबी, मीनार, खजाना, ऐनक, खत आिद।
♦ फारसी श द :
जबर, जोर, जीन, जहर, जंग, माशा, राह, पलंग, दीवार, जान, च मा, गोला, िकनारा, आफत, आवारा, कमरबंद, ग ला, िचराग, जागीर, ताजा, नापस द, मादा, रोगन, रंग,
बेरहम, नाव, तन वाह, जादू, चादर, गुम, िकशिमश, आमदनी, आराम, अदा, कु ती, खूब, खुराक, गो त, गुल , ताक, तीर, तेज, दवा, िदल, िदलेर, बेहूदा, बहरा, बेवा, मरहम,
मुग , मीन, आतीशबाजी, आब , आबदार, अफसोस, कमीना, खुश, खरगोश, खामोश, गुल ाब, गुल ुब द, चाशनी, चेहरा, चूँिक, चरखा, तरकश, जोश, िजगर, जुम ना, दंगल,
दरबार, दुकान, देहात, पै माना, मोच , मु त, पे शा, पारा, मलीदा, पुल , मजा, पलक, मुद , मलाई, पै दावार, द तूर, शादी, वािपस, वन , हजार, ह ता, सौदागर, सूद, सरकार,
सरदार, ल कर, िसतार, सुख, लगाम, लेिकन, िसतारा, चापलूसी, ग दगी, बफ, बीमार, नमूना, नमक, जमीँदार, अनार, बाग, िज दगी, जनाना, कारखाना, त त, बाजार,
रोशनदान, िचलम, हु ा, अम द, गवाह, जलेबी, िकसिमस, कारीगर, पद , कबूतर, चुगलखोर, िशकार, चापलूसी, चालाक, याला, माल, आन, आब , आमदनी, अंजाम,
अंजुमन, अ दाज, अगर, अगरचे, अगल, बगल, आफत, आवाज, आईना, िकनारा, गद, गीला, िगरह, नेहरा, तीन, नाजुक, नापाक, पाजी, परहे ज, याद, बेरहम, तबाह, आजमाइश,
ज दी आिद।
♦ अं ेजी श द :
डा टर, टे ल ीफोन, टै स, टे बल, अफसर, कमेटी, एजे ट, कमीशन, नस, क पाउंडर, कालेज, जेल , हो डर, बॉ स, गैस, चेयरमैन, अपील, िटिकट, कोट, िगलास, िसनेमा,
न बर, पै ि सल, रबर, रिज टर, ेस, समन, िथयटर, िड ी, बोतल, मील, कै टन, पै न, फाउ टे न, ाइवर, िडि ट, िड टी, यूशन, काउि सल, ि केट, वाटर, क पनी,
एजे सी, इयिरँग, इ टर, इंच, मीिटँग, केम, पाउडर, पै ोल, पासल, लेट, पाट , िदस बर, थम मीटर, ऑिफस, ामा, क, कैले डर, आंटी, बैग, होमवक, मिज े ट, पो टमैन,
कमेटी, कूपन, डबल, क पनी, ओवरकोट, कमीशन, फोटो, इं पे टर, राशन, गाड, रेल , लाइन, िरकाड, सूटकेस, हाईकोट, मशीन, डायरी, िमनट, रेिडयो, कूल, हॉ टल,
सकस, टे शन, फु टबॉल, टॉफी, लेटफाम, टाइप, पाउडर, पास, नोिटस आिद।
♦ तुक श द :
लफंगा, िचक, चेचक, लाश, कु क , मुगल, कु ली, कैँची, बहादुर, क जाक, बेगम, काबू, तलाश, कालीन, तोप, तमगा, आगा, उदू, चमना, जािजम, चुगुल , सुराग, सौगात,
उजबक, चकमक, बावच , मुचलका, गलीचा, चमचा, बुल बुल , दरोगा, चाकू, बा द, अरमान आिद।
♦ पुतगाली श द :
तौिलया, ितजोरी, चाबी, गमला, कारतूस, आलिपन, अचार, कमीज, कॉफी, त बाकू, साबुन, फीता, िकरानी, बा टी, आलमारी, अ ानास, अलकतरा, काजू, म तुल , िप तौल,
नीलाम, गोदाम, िकरच, कमरा, कन तर, संतरा, पीपा, िम ी, िब कु ट, परात, बोतल, काज, पपीता, मेज, आलू आिद।
♦ सीसी श द :
पुिलस, क यू, अं ेज, इंजन, कारतूस, कूपन, इंिजिनयर, रे तर , िफरंगी, चाइज, स आिद।
♦ यूनानी श द :
टे ल ीफोन, डे टा, एटम, टे ल ी ाफ आिद।
♦ डच श द :
तु प, बम।
♦ चीनी श द :
चाय, लीची, तूफान आिद।
♦ ित बती श द :
ड डी।
♦ ीक श द :
दाम, सुरगं आिद।
♦ जापानी श द :
िर शा, झ पान आिद।
(6) संकर श द –
संकर श द वे श द होते है ,ँ जो दो िम भाषाओँ के श द से िमलकर सामािजक श द के प म िनिमत होते है ।ँ ये श द भी िह दी म यु त होते है ।ँ जैसे –
• रेल गाड़ी (अं ेजी+िह दी),
• बमवष (अं ेजी+सं कृत),
• नमूनाथ (फारसी+सं कृत),
• सजा ा त (फारसी+सं कृत),
• रेल या ा (अं ेजी+सं कृत),
• िजलाधीश (अरबी+सं कृत),
• जेब खच (पुतगाली+फारसी),
• रामदीन (सं कृत+फारसी),
• रामगुल ाम (सं कृत+फारसी),
• है ड मुनीम (अं ेजी+िह दी),
• शादी याह (फारसी+िह दी),
• ितमाही (िह दी+फारसी) ।
♦ यु पि के आधार पर श द–भेद :
यु पि (बनावट) एवं रचना के आधार पर श द के तीन भेद िकये गये है ँ – (1) ढ़ (2) यौिगक (3) योग ढ़।
(1) ढ़ :
िजन श द के ख ड िकये जाने पर उनके ख ड का कोई अथ न िनकले, उन श द को ‘ ढ़’ श द कहते है ।ँ दूसरे श द म, िजन श द के साथक ख ड नहीँ िकये जा
सक वे ढ़ श द कहलाते है ।ँ जैसे – ‘पानी’ एक साथक श द है , इसके ख ड करने पर ‘पा’ और ‘नी’ का कोई संगत अथ नहीँ िनकलता है । इसी कार रात, िदन, काम, नाम
आिद श द के ख ड िकये जाएँ तो ‘रा’, ‘त’, ‘िद’, ‘न’, ‘का’, ‘म’, ‘ना’, ‘म’ आिद िनरथक विनय ही शेष रहगी। इनका अलग–अलग कोई अथ नहीँ है । इसी तरह रोना,
खाना, पीना, पान, पै र, हाथ, िसर, कल, चल, घर, कु स , मेज, रोटी, िकताब, घास, पशु, देश, ल बा, छोटा, मोटा, नमक, पल, पे ड़, तीर इ यािद ढ़ श द है ।ँ
(2) यौिगक :
यौिगक श द वे होते है ,ँ जो दो या अिधक श द के योग से बनते है ँ और उनके ख ड करने पर उन ख ड के वही अथ रहते है ँ जो अथ वे यौिगक होने पर देते है ।ँ यथा –
पाठशाला, महादेव, योगशाला, नानागृह, देवालय, िव ालय, घुड़सवार, अनुशासन, दुजन, स जन आिद श द यौिगक है ।ँ यिद इनके ख ड िकये जाएँ जैसे – ‘घुड़सवार’ म
‘घोड़ा’ व ‘सवार’ दोन ख ड का अथ है । अतः ये यौिगक श द है ।ँ
यौिगक श द का िनम ण मूल श द या धातु म कोई श द श, उपसग, यय अथवा दूसरे श द िमलाकर संिध या समास की ि या से िकया जाता है ।
उदाहरणाथ :–
- ‘िव ालय’ श द ‘िव ा’ और ‘आलय’ श द की संिध से बना है तथा इसके दोन ख ड का पूरा अथ िनकलता है ।
- ‘परोपकार’ श द ‘पर’ व ‘उपकार’ श द की संिध से बना है ।
- ‘सुयश’ श द म ‘सु’ उपसग जुड़ा है ।
- ‘ने हीन’ श द म ‘ने ’ म ‘हीन’ यय जुड़ा है ।
- ‘ य ’ श द का िनम ण ‘अ ’ म ‘ ित’ उपसग के जुड़ने से हआ ु है । यह दोन ख ड ‘ ित’ तथा ‘अ ’ का पूरा–पूरा अथ है ।
♦ कु छ यौिगक श द है :ँ
आगमन, संयोग, पयवे ण, रा पित, गृहमं ी, धानमं ी, न ता, अ याय, पाठशाला, अजायबघर, रसोईघर, स जीमंडी, पानवाला, मृगराज, अनपढ़, बैल गाड़ी, जलद,
जलज, देवदूत, मानवता, अमानवीय, धािमक, नमकीन, गैरकानूनी, घुड़साल, आकषण, स देहा पद, हा या पद, कौ तेय, राधेय, दा प य, िटकाऊ, भागव, चतुराई, अनु प,
अभाव, पूव पे ा, पराजय, अ वेषण, सु दरता, हरीितमा, का यायन, अिधपित, िनषेध, अ युि त, स माननीय, आकार, िभ ुक, दयालु, बहनोई, ननदोई, अप ंश, उ वल,
युपकार, िछड़काव, रंगीला, रा ीय, टकराहट, कु ितया, परमान द, मनोहर, तपोबल, कमभूिम, मनोनयन, महाराजा।
(3) योग ढ़ :
जब िकसी यौिगक श द से िकसी ढ़ अथवा िवशेष अथ का बोध होता है अथवा जो श द यौिगक सं ा के समान लगे िक तु िजन श द के मेल से वह बना है उनके अथ
का बोध न कराकर, िकसी दूसरे ही िवशेष अथ का बोध कराये तो उसे योग ढ़ कहते है ।ँ जैसे –
‘जलज’ का शाि दक अथ होता है ‘जल से उ प हआ ु ’। जल म कई चीज व जीव जैसे – मछली, मढ़क, ज क, िसँघाड़ा आिद उ प होते है ,ँ पर तु ‘जलज’ अपने शाि दक
अथ की जगह एक अ य या िवशेष अथ म ‘कमल’ के िलए ही यु त होता है । अतः यह योग ढ़ है ।
‘पंकज’ शाि दक अथ है ‘कीचड़ म उ प (पंक = कीचड़ तथा ज = उ प )’। कीचड़ म घास व अ य व तुए ँ भी उ प होती है ँ िक तु ‘पंकज’ अपने िवशेष अथ म
‘कमल’ के िलए ही यु त होता है । इसी कार ‘नीरद’ का शाि दक अथ है ‘जल देने वाला (नीर = जल, द = देने वाला)’ जो कोई भी यि त, नदी या अ य कोई भी ोत हो
सकता है , पर तु ‘नीरद’ श द केवल बादल के िलए ही यु त करते है ।ँ इसी तरह ‘पीता बर’ का अथ है पीला अ बर (व ) धारण करने वाला जो कोई भी हो सकता है ,
िक तु ‘पीता बर’ श द अपने ढ़ अथ म ‘ ीकृ ण’ के िलए ही यु त है ।
♦ कु छ योग ढ़ श द :
योग ढ़ — िविश अथ
कपी र – हनुमान
रितक त – कामदेव
मनोज – कामदेव
िव ािम – एक ऋिष
व पािण – इ
घन याम – ीकृ ण
ल बोदर – गणेशजी
नीलकंठ – शंकर
चतुरानन – ा
ि ने – शंकर
ि वेणी – तीथराज याग
चतुभुज – ा
दुव सा – एक ऋिष
शूल पािण – शंकर
िदग बर – शंकर
वीणापािण – सर वती
षडानन – काितकेय
दशानन – रावण
प ासना – ल मी
प ासन – ा
पंचानन – िशव
सह ा – इ
व तु ड – गणेशजी
मुरािर – ीकृ ण
च धर – िव णु
िगिरधर – कृ ण
कलकंठ – कोयल
हलधर – बलराम
षटपद – भौँरा
वीणावािदनी – सर वती
♦ अथ के आधार पर श द–भेद:
अथ के आधार पर श द दो कार के होते ह–
1. साथक श द –
िजन श द का पूरा–पूरा अथ समझ म आये, उ ह साथक श द कहते है ।ँ जैसे – कमल, गाय, प ी, रोटी, पानी आिद।
2. िनरथक श द –
िजन श द का कोई अथ नहीँ िनकलता, उ ह िनरथक श द कहते है ।ँ जैसे – लतफ, ङणमा, वाय, वंडा आिद।
कभी–कभी एक साथक श द के साथ एक िनरथक श द का योग िकया जाता है , जैसे – चाय–वाय, गाय–वाय, रोटी–वोटी, पे न–वेन, पु तक–वु तक, डंडा–वंडा,
पानी–वानी आिद। इन श द म आये हएु दूसरे अकेले श द का कोई अथ नहीँ िनकलता। जैसे– गाय के साथ वाय और पे न के साथ वेन आिद। गाय और पे न, श द का अथ पूण
प से समझ म आता है जबिक वाय और वेन श द का अथ समझ म नहीँ आता। यिद वाय, और वेन को यह से हटा िदया जाये तो भी श द के अथ पर कोई असर नहीँ पड़े गा
पर तु ये श द पहले श द के साथ िमलकर एक िविश अथ देते है ,ँ जो अकेले गाय और पे न नहीँ है । जैसे – गाय-वाय का अथ, दूध देने वाले पशु से है और पे न-वेन का अथ,
िलखने के साधन से है ।
(2) अिवकारी श द–
अिवकारी श द वे श द है ँ िजनका प िलँग, वचन, काल, िवभि त, पु ष के कारण पिरवितत नहीँ होता। ये श द जह भी यु त होते है ,ँ वह एक ही प म रहते है ।ँ ये
श द अ ययीभाव समास के उदाहरण कहलाते है ।ँ जैसे – िक तु, पर तु, अ दर, बाहर, अधीन, इसिलए, य िप, तथािप, कल, परस , बहत
ु , शाबास आिद। अिवकारी श द के
भी चार कार है –
ँ
(1) ि या–िवशेषण
(2) समु चय बोधक
(3) स ब ध बोधक
(4) िव मयािदबोधक।
2. ल क श द–
वा याथ का बोध हो जाने पर जब िकसी श द का सादृ य से इतर, मु याथ से स ब कोई अ य अथ हण िकया जाता है , तब उस श द को ल क और अथ को ल याथ
कहा जाता है । जैसे– कोई कहता है िक राम गधा है तो वा य म यु त ‘गधा’ श द के मु याथ चार पै र वाला, ल बे कान वाला, भारवाही पशु िवशेष के िलए होता है , जबिक
‘राम’ श द का योग एक मनु य िवशेष के िलए हआ ु है । अतः राम श द के अथ के साथ ‘गधा’ श द के अथ की संगित नहीँ बैठ रही है । फलतः मु याथ बोध हो जाने से ‘गधा’
श द का अथ ‘मूखता’ से िलया गया है , जो मु याथ के साथ गुणावगुणी भाव से स बि धत है । अतः यह पर ‘गधा’ श द ल क एवं ‘मूख’ ल याथ है ।
3. यंजक श द–
िकसी श द के मु याथ बोध होने पर ल याथ अथवा मु याथ के प ात् िकसी चम कारपूण अथ को हण िकया जाता है , तब उस श द की यंजक सं ा होती है । इस
कार यंजक श द दो कार से यं याथ का बोध कराता है – (1) ल याथ के प ात् (2) मु याथ के प ात्। थम का उदाहरण– ‘गंगा म घर है ।’ वा य म ‘गंगा’ श द ल क
और यंजक दोन कार है । पहले ‘गंगा’ श द का सादृ येतर समीप, सामी य भाव स ब ध से ‘गंगा का तट’ अथ ल याथ हआ ु । त प ात् ‘शीतल एवं वा यवधक थल’
चम कारपूण अथ यं याथ होने से ‘गंगा’ श द यंजक हो गया। ि तीय वग का उदाहरण–‘सूय त हो गया है ।’ वा य का मु याथ के साथ–साथ भोजन पकाने का समय हो
गया। पढ़ना ब द करने का समय हो गया है और मण का समय हो गया आिद अनेक अथ ँ की ाि त होती है । यह पर वे अथ िबना मु याथ बोध के ही ा त हो रहे है ।ँ अतः
यह पर ‘सूय त’ श द दूसरे कार का यंजक श द है ।
♦ श द– प:
श द भाषा की वतं इकाइय है ।ँ पर तु इन वतं श द को एक–एक करके एक साथ रखने से साथक वा य नहीँ बनते। श द को वा य म योग करने से पहले
उनको ‘पद’ बनाया जाता है । पद बनाने हे तु वतं श द म यय, उपसग आिद जोड़े जाते है ।ँ जैसे– राम बाण रावण मारा, म श द को यथावत् एक साथ रखा गया है परंतु यह
साथक वा य नहीँ है । यिद इन श द म हम यय, िवभि त जोड़ द तो वा य बनेगा—राम ने बाण से रावण को मारा। श द म परसग, यय आिद जोड़ने से ‘पद’ बनता है । इस
कार ‘पद’ श द का वह प है िजसे श द म यय व िवभि तय लगाकर वा य म यु त होने यो य बनाया जाता है । अथ त् श द के वा य म यु त होने वाले िविभ प ही
‘पद’ कहे जाते है ।ँ पद को ही श द– प कहा जाता है । सं ेप म भाषा के लघु म साथक ख ड को श द– प कहते है ।ँ
ँ (1) सं प (2) िपम। कार एवं योग की दृि से एक ही श द के अनेक श द– प बनाये जा सकते है ,ँ जैसे– लड़का, श द से लड़का,
श द– प दो कार के होते है –
लड़के, लड़क आिद तथा पढ़ना श द म यय लगाकर पढ़ना (शू य यय), पढ़, पढ़, पढ़ो, पढ़ा, पिढ़ये आिद अनेक श द– प बनाये जा सकते है ।ँ श द– प बनाने की यह
ि या ‘श द– प िनम ण’ कहलाती है । इसे ‘श द साधन’ या ‘ यु पादन’ भी कहते है ।ँ जब भी श द को वा य म योग करते है ,ँ उनम कोई न कोई यय अव य जोड़ा जाता
है । कई बार शू य यय जोड़कर भी वा य बनाया जाता है । जैसे– ‘लड़का’ म शू य यय जोड़कर वा य बनाया– लड़का िव ालय जाता है ।
श द– प िनम ण ि या ारा नये श द का िनम ण नहीँ होता बि क ये तो उसी मूल श द के िविभ प होते है ,ँ जो वा य म अलग–अलग याकरिणक काय करते है ।ँ
श द–शि तय
♦ श द–शि त –
बुि का वह यापार या ि या िजसके ारा िकसी श द का िन याथक ान होता है , अथ त् अमुक श द का िनि त अथ यह है —इस तरह का थायी ान िजस श द–
यापार से मानस म सं कार प म समािव होता है , उसे श द–शि त कहते है ।ँ
वा य म सदा साथक श द का योग होता है । वा य म यु त येक श द का योग के अनुसार अथ बतलाने वाली वृि को उसकी शि त अथ त् श द–शि त या श द–
वृि कहते है ।ँ
1. अिभधा शि त –
िजस शि त के ारा श द के सा ात् संकेितत अथ का बोध होता है , उसे अिभधा कहते है ।ँ सा ात् संकेितत अथ को श द का मु याथ माना जाता है । अतएव श द के मु य
अथ का बोध कराने के कारण यह मु या, आ ा या थमा श द–शि त भी कहलाती है ।
जब याकरण– ान, उपमान, श द–कोश, यवहार– योग तथा िव त यि त माता–िपता व गु जन आिद के ारा बताया जाता है िक अमुक श द का अमुक अथ है ,
अथवा इस श द का इस अथ म योग िकया जाता है , तो उस ि या को ‘संकेितत अथ’ कहते है ।ँ ार भ म उ त ान–िविधय से अवबोध होने पर संकेितत श दाथ का
मानस म थायी सं कार बन जाता है । अतः जब–जब कोई श द उसके सामने आता है तो तुर त ही उसका अथ मानस म य त या उपि थत हो जाता है । उसे ही मु याथ,
वा याथ या अिभधेयाथ कहते है ।ँ जैसे–
(क) राम पु तक पढ़ता है ।
(ख) िकसान खेत पर हल चलाता है ।
(ग) बालक ितिदन िव ालय जाता है ।
अिभधा शि त ारा िजन श द का अथ–बोध होता है , उ ह ‘वाचक’ कहा जाता है । इससे अनेकाथवाची श द के अथ का िनणय िकया जाता है । वाचक श द तीन कार के
होते है ँ –
(i) ढ—िजन श द का िव लेषण या यु पि स भव न हो तथा िजनका अथबोध समुदाय–शि त ारा हो, वे ढ कहलाते है ।ँ
(ii) यौिगक—जो श द कृित और यय के योग से िनिमत ह और उनका िव लेषण स भव हो तथा उनका अथबोध कृित– यय की शि त से हो, वे यौिगक कहलाते है ।ँ
(iii) योग ढ—िजन श द की संरचना यौिगक श द के समान होती है तथा अथबोध ढ को समान होता है , उ ह योग ढ कहते है ।ँ ता पय यह है िक जो श द कृित एवं
यय के योग से िनिमत ह , लेिकन अथबोध कृित एवं यय की शि त ारा न होकर समुदाय–शि त ारा हो, वे योग ढ कहलाते है ।ँ जैसे– ‘जलज’ श द जल+ज अथ त्
‘जल म उ प होने वाला’ इस कार यु प होता है । यिद इसे यौिगक माना जाये, तो इससे उन सभी व तुओँ का बोध होगा, जो जल म उ प होते है ;ँ जैसे– सीपी, घ घा,
मढक, शैवाल आिद। लेिकन ‘जलज’ श द केवल ‘कमल’ का बोध कराता है और वह अथबोध की दृि से ढ है । ऐसे श द योग ढ कहलाते है ।ँ
‘लाल घोड़ा सरपट दौड़ रहा था।’ इस वा य म घोड़े के दौड़ने का अथ सहज म कट हो रहा है ।
उ त उदाहरण म गाय और घोड़ा जाितवाचक सं ा है ,ँ पर तु उनका आकार िभ है । ‘चरना’ और ‘दौड़ना’ ि याएँ है ।ँ घोड़े के िलए ‘लाल’ िवशेषण यु त हआ
ु है । इस
कार अिभधा शि त से श द के धान अथ अथ त् वा याथ का ही हण होता है ।
2. ल णा शि त –
वा य म मु याथ का बाध होने पर िढ़ अथवा योजन के कारण िजस शि त ारा मु याथ से स बि धत अ य अथ या ल याथ हण िकया जाता है , उसे ल णा शि त
कहा जाता है । ल णा श द– यापार सा ात् संकेितत न होकर आरोिपत यापार है ।
उदाहरण—“रामदीन तो गाय है , उसे मत सताओ।” इस वा य म अिभधा से गाय का अथ चौपाया पशु होता है , पर तु रामदीन चौपाया पशु नहीँ हो सकता। उस दशा म
‘गाय’ का मु य अथ बािधत या छोड़ा जाता है तब उसी मु य अथ के सहयोग से गाय के वभाव (गुण) के अनु प “रामदीन अतीव भोला और सरल वभाव वाला है ”—यह
अथ हण िकया जाता है । इस तरह ल णा से मु याथ बािधत होता है और उससे स बि धत अ य अथ—ल याथ या ला िणक अथ िलया जाता है । इसे आरोिपत अथ भी
कहते है । इसी कार अ य उदाहरण है ँ –
• वह लड़का शेर है ।
• यह लड़की तो गाय है ।
• राज थान वीर है ।
• रमेश का घर मु य सड़क पर ही है ।
• लाल पगड़ी जा रही है ।
उपयु त वा य म लड़के को शेर कहने से ‘शेर’ का अथ साहसी या वीर िलया गया है । अतएव उस पर शेर का आरोप िकया गया है । लड़की को गाय कहने से ‘गाय’ का
अथ सीधी–सरल है । ‘राज थान’ कोई आदमी नहीँ है जो वीर हो, अतः राज थान का ल याथ राज थान–िनवासी जन है । रमेश का घर मु य सड़क अथ त् सड़क के म य
म नहीँ हो सकता, अतः मु य सड़क के िकनारे पर—उससे अ य त िनकट अथ के िलये ऐसा कहा गया है । ‘लाल पगड़ी’ वयं तो नहीँ जा सकती, य िक वह अचेतन है ,
इसिलए लाल पगड़ी को पहनने वाला यि त अथ त् पुिलस वाला जा रहा है । ये सभी अथ ल णा शि त से ही िलये गये है ।ँ
िकसी भी श द से ल णा ारा लि त अथ या तो िढ़ के कारण िनकलता है या िकसी योजन के कारण। अतः ल णा के मु य दो भेद होते है —
ँ
(1) िढ़ ल णा –
जह िढ़ या रचनाकार की पर परा के अनुसार मु य अथ छोड़कर कोई दूसरा अथ िलया जाता है , अथ त् मु य अथ म बाधा उपि थत होने पर ल याथ िलया जाता है ,
वह पर िढ़ ल णा मानी जाती है । जैसे—“किलंग साहसी है ।” इस वा य म ‘किलँग’ एक भूभाग या देश का नाम होने से उसका मु याथ बािधत हो रहा है , य िक देश
अचेतन होने से साहसी नहीँ हो सकता। इसिलए ल णा से यह ‘किलँग देश के िनवासी’ अथ िलया जाता है । इसी कार कु शल, लाव य, वीण आिद श द भी िढ़ ल णा से
अथ कट करते है ।ँ
(2) योजनवती ल णा –
मु याथ के बािधत होने पर िकसी योजन के ारा अथ हण होने पर योजनवती ल णा होती है । जैसे—“गंगा पर ब ती है ।” गंगा की धारा पर ब ती नहीँ ठहर सकती,
इसिलए मु याथ का बाध होने पर उसके सहयोग से ल याथ बनता है —“गंगा तट पर ब ती है ।” इसका योजन गंगा–तट को अितशय िनकट, शीतल और पिव बतलाना है ।
“चौपड़ पर फूलमाली बैठे है ।ँ ” वा य म, चौपड़ के म य म फ वारा या दूब आिद की सजावट होती है , उस जगह पर फूलमाली नहीँ बैठ सकते, अतः समीप के स ब ध से
चौपड़ के पास की जमीन या फु टपाथ पर फूलमाली बैठे है ,ँ यह अथ योजनवती ल णा से िनकलता है ।
िव ान ने ल णा के—उपादान ल णा, ल णल णा, शु ा, गौणी, सारोपा, सा यवसाना आिद िविवध भेदोपभेद माने है ।ँ आचाय म मट ने इसके मुख छः भेद माने है ,ँ
जबिक िव नाथ ने ‘सािह यदपण’ म इसके अ सी भेद बताये है ।ँ
3. यंजना शि त –
जब वा य का सामा य या अमु य अथ अिभधा और ल णा श द–शि त से नहीँ िनकलता है , तब उसका कोई िविश अथ या चम कारी यं याथ िजस शि त से य त
होता है , उसे यंजना शि त कहते है ।ँ
यंजना के उदाहरण—
(1) तू ही स च ि जराज है , तेरी कला मान।
तो पर िसव िकरपा किर जा यौ सकल जहान॥
तुत दोहे म कोई च मा को स बोिधत करके कह रहा है —“हे च मा! तू ही स चा ि जराज है , तेरी ही कला साथक है । सारा संसार जानता है िक िशवजी ने तेरे ऊपर
कृपा की है ।”
यह पर ि जराज, कला और िशव म ि ल ाथ लगाने पर िभ अथ की तीित होती है , अथ त् िशवाजी ने भूषण की किवता पर स होकर उ ह दान िदया। यह यह
यं याथ भी िनकल आता है ।
(6) िकसी चोर को ड टते हएु थानेदार ने कहा िक तो तुम ध ा सेठ हो?
इस वा य म चोर को ड टने के िलए थानेदार ने उसका उपहास करते हएु यह कहा है । चोर ध ा सेठ कह से हो सकता है ?
यंजना शि त के ारा िनकलने वाले अथ को तीयमानाथ, ग याथ, अ याथ, यं याथ एवं व यथ भी कहते है ।ँ यं याथ को य त करने वाला श द ‘ यंजक’ कहलाता है ।
अिभधा और ल णा केवल अथ बतलाकर श त हो जाती है ,ँ पर तु यंजना का य–रचना के मूल व प को अथवा उसके उ े य को य त करती है । यंजना के आधार पर ही
िकसी का य को उ म, म यम और अधम माना जाता है । इस कार िवशेष अथ िनकालने वाली यंजना अि तम श द–शि त मानी जाती है ।
♦ यंजना के भेद –
यंजना श द और अथ दोन म रहती है , इस कारण इसके दो मुख भेद है —
ँ शा दी यंजना और आथ यंजना।
(1) शा दी यंजना –
जह यंजना शि त से य त हआ ु यं याथ िकसी िवशेष श द के योग पर आि त रहता है , वह शा दी यंजना होती है । अनेकाथवाची श द के योग म शा दी यंजना
होती है , लेिकन इसम श दाथ िनयि त रहता है । जैसे –
िचरजीवौ जोरी जुरै, य न सनेह ग भीर।
को घिट ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर॥
इस प श म आये ‘वृषभानुजा’ और ‘हलधर’ श द के अनेक अथ है ,ँ पर तु यह पर अथ िनयि त होकर मशः ‘राधा’ और ‘कृ ण’ अथ िलया गया है ।
(2) आथ यंजना –
जह यंजना शि त से य त हआ ु यं याथ केवल अथ पर ही आि त रहता है , वह आथ यंजना होती है । जैसे –
सूय अ त होने वाला है ।
इसम अिभधा से केवल ‘सूय त होना’ मु य अथ िनकलता है , जबिक व ता, ोता या करण आिद के आधार पर इसके ये िभ –िभ यं याथ िनकलते है —
ँ गाय दुहने
का समय हो गया। दीपक जलाने का समय हो गया। अब घर चलना चािहए। काय लय का समय समा त हो गया। िम से िमलने का समय आ गया, इ यािद। इसी कार—
‘बाल मराल िक म दर लेही।’
इसका मु याथ है —छोटा हंस म दराचल को कैसे उठा सकता है ? जबिक धनुष–य के करण के अनुसार इसका यं याथ होता है — या नवयुवक ीराम भारी िशव–
ु है ।
धनुष को नहीँ उठा सकते? इसम काकु से यं याथ िनकला है और यह अथ के सहारे य त हआ
♦♦♦
• सामा य िह दी
♦ होम पे ज
तुित:–
मोद खेदड़
सामा य िह दी
2. वण–िवचार
िह दी भाषा म वण वह मूल विन है , िजसका िवभाजन नहीँ हो सकता। भाषा की विनय को िलखने हे तु उनके िलए कु छ िलिप–िच है ।ँ विनय के इ हीँ िलिप–िच को
‘वण’ कहा जाता है । वण भािषक विनय के िलिखत प होते है ।ँ िह दी म इ हीँ वण ँ को ‘अ र’ भी कहते है ।ँ इस कार विनय का स बंध जह भाषा के उ चारण प से
होता है , वहीँ वण ँ का स ब ध लेखन प से। िह दी भाषा म स पूण वण ँ के समूह को ‘वणमाला’ कहते है ।ँ िह दी वणमाला मे 44 वण है ँ िजसम 11 वर एवं 33 यंजन है ।ँ
♦ वर : वर वे वण है ँ िजनका उ चारण करते समय वायु िबना िकसी अवरोध या कावट के मुख से बाहर िनकलती है । वर 11 है –
ँ अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ,
औ।
य िप ‘ऋ’ को िलिखत प म वर माना जाता है िक तु आजकल िह दी म इसका उ चारण ‘िर’ के समान होता है । इसिलए ‘ऋ’ को वर की ेणी म सि मिलत नहीँ
िकया गया है ।
अं ेजी के भाव से ‘ऑ’ विन का िह दी म समावेश हो चुका है । यह िह दी के ‘आ’ तथा ‘ओ’ के बीच की विन है ।
• वर की मा ाएँ–
यंजन का उ चारण हमेशा वर के साथ िमलाकर िकया जाता है । इसीिलए वणमाला म उनको य त करने के िलए मा ा–िच की यव था की गई है । िह दी–वणमाला
म ‘अ’ से ‘औ’ तक कु ल यारह वर है ।ँ इनम ‘अ’ को छोड़कर शेष सभी वर के िलए मा ा–िच बनाए गए है ।ँ ये मा ाएँ िन िलिखत है –
ँ
वर–(मा ा)–उदाहरण
अ – (×) – क्+अ= क
आ – (◌ा) – क्+आ= का
इ – (ि◌) – क्+इ= िक
ई – (◌ी) – क्+ई= की
उ – (◌ु ) – क्+उ= कु
ऊ – (◌ू ) – क्+ऊ= कू
ऋ – (◌ृ ) – क्+ऋ= कृ
ए – (◌े ) – क्+ए= के
ऐ – (◌ै ) – क्+ऐ= कै
ओ – (◌ो) – क्+ओ= को
औ – (◌ौ) – क्+औ= कौ
िह दी वणमाला म ‘अ’ वर के िलए कोई मा ा–िच नहीँ होता य िक हर यंजन के उ चारण म ‘अ’ शािमल रहता है । ‘क’, ‘च’, ‘ट’ वण ँ का अथ है – ‘क्+अ=क’,
‘च्+अ=च’ तथा ‘ट्+अ=ट’। लेिकन जब यंजन को िबना ‘अ’ के िलखने की आव यकता होती है तब िह दी म इसकी अलग यव था है , जैसे–
• नीचे से गोलाई िलए वण ँ के नीचे हलंत लगा िदया जाता है –
ट् – अ ारह, द् – ग ा, ड् – अ डा।
• खड़ी पाई वाले वण ँ की खड़ी पाई हटा दी जाती है –
च – स चा, ब – िड बा, ल – िद ली।
• क्, फ् जैसे वण ँ म ‘हक
ु ’ हटा िदया जाता है –
क् – म ा, फ् – हफ़्ता।
• ‘र्’ के प को पिरवितत कर वण के ऊपर लगा िदया जाता है – क र् म=कम।
• अितिर त िच :–
उपयु त वण–िच के अलावा कु छ अ य विनय के िलए भी िह दी म अितिर त वण–िच का योग िकया जाता है । ये वण और विनय इस कार है –
ँ
अनु वार (◌ं ) – अंडा, सं या
अनुनािसक (◌ँ ) – आँख, च द
िवसग ( : ) – ातः, अतः
हल त (◌् ) – िच ी, जगत्
ड़, ढ़ ( . ) – लड़का, बूढ़ा।
इन वण िच म से ‘अनु वार’ तथा ‘िवसग’ को तो पर परागत वणमाला म ‘अं’ तथा ‘अः’ के प म िदखाया जाता रहा है । ‘हलंत’ को वणमाला म नहीँ िदखाया जाता
य िक यह वतं वण नहीँ है , केवल यंजन म वर–अभाव िदखाता है ।
उपयु त वण िच म अनु वार तो यंजन तथा वर दोन के साथ लगता है । िवसग तथा अनुनािसकता चूँिक वर के गुण है ँ अतः इनके िच केवल वर के साथ लगाए
जाते है ।ँ अनुनािसकता (◌ँ ) का िच ‘आ’ तथा िबना मा ा वाले वर के ऊपर लगाया जाता है और अ य मा ा वाले वर के ऊपर अनुनािसकता को िब दु से ही दश या जाता
है , जैसे–
1. ‘आ’ तथा िबना मा ा वाले वर– क च, आँख, ढ चा, म , च द, उँगली, बहएु ँ आिद।
2. मा ा वाले वर– िसँचाई, कचुए, ग द, म आिद।
3. िह दी म ातः, अतः आिद त सम श द म िवसग लगता है ।
अनुनािसक तथा अनु वार मूल तः यंजन है ।ँ इनके योग से कहीँ–कहीँ अथ भेद हो ही जाता है । जैसे–
हँस – हँसना, हंस – एक प ी।
अनु वार का अथ है सदा वर का अनुसरण करने वाला। ‘अ’ अनु वार का ही हृ व प अनुनािसक ‘अँ’ है । त सम् श द म अनु वार लगता है तथा उनके त व प म
च िब दु लगता है । जैसे– दंत से द त।
िह दी म अनु वार एक नािस य यंजन है , िजसे (◌ं ) से िलखा जाता है । ायः इसे वर या यंजन के ऊपर लगाया जाता है । जैसे– अंक, अंगद, गंदा, पंकज, गंगा आिद।
इस विन का अपना कोई िनि त व प नहीँ होता। उ चारण इसके आगे आने वाले यंजन से भािवत होता है । जैसे– ‘न्’ के प म– गंगा, ‘म्’ के प म– संवाद।
अनुनािसकता वर का गुण है । वर का उ चारण करते समय वायु को केवल मुख से ही बाहर िनकाला जाता है । जब वायु को मुख के साथ–साथ नाक से भी बाहर
िनकाला जाए तो सभी वर अनुनािसक हो जाते है ।ँ अनुनािसकता का िच िह दी म (◌ं ) है , िक तु लेखन म कु छ वर पर च िब दु तथा कु छ पर िब दु लगाया जाता है ,
िजसके िन िनयम वीकार िकए गये है –
ँ
(अ) िजन वर अथवा उनकी मा ाओँ का कोई भी भाग यिद िशरोरेखा से बाहर नहीँ िनकलता है तो अनुनािसकता के िलए ‘च िब दु’ लगाया जाना चािहए। जैसे– कु आँ, ग व,
च द, स स, पूँछ, सूँघना आिद।
(ब) िजन वर अथवा उनकी मा ाओँ का कोई भी भाग िशरोरेखा के ऊपर िनकलता है तो वह अनुनािसकता को भी िब दु से ही िलखना चािहए। जैसे– गद, सौँफ, च च,
क पल आिद।
आजकल िह दी म सभी कार के वर पर अनुनािसकता के िलए िब दु ही लगाया जाना चािहए, पर तु वतनी के अनुसार जह अनुनािसकता के च िब दु से िलखने की
बात कही गई है , वह उसे च िब दु से ही िलखा जाना चािहए।
♦ यंजन :
िह दी भाषा म िजन विनय (वण ँ) का उ चारण करते हएु हमारी ास–वायु मुँह के िकसी भाग (तालु, ओ , द त, व स आिद) से टकराकर बाहर आती है , उ ह यंजन
कहते है ।ँ उदाहरणाथ– ‘क’ के उ चारण के समय क ठ म वायु का अवरोध होता है तथा ‘प’ के उ चारण म होठ के पास वायु का अवरोध होता है । अतः यंजन वे वण
( विनय ) है ,ँ िजनके उ चारण म मुँह म वायु के वाह म अवरोध ( कावट) उ प है ।
िह दी वणमाला म मूल तः 33 यंजन है ।ँ चार यंजन अरबी–फारसी के भाव से आए है ।ँ यंजन िन िलिखत है ँ –
क ख ग घ ङ (क–वग)
च छ ज झ ञ (च–वग)
ट ठ ड ढ ण (ट–वग)
त थ द ध न (त–वग)
प फ ब भ म (प–वग)
यरलव
शषह
• यंजन के भेद :
1. य और उ चारण थान के आधार पर यंजन के कार–
(i) पश यंजन – ये प चीस है – ँ
क वग – क, ख, ग, घ, ङ।
च वग – च, छ, ज, झ, ञ।
ट वग – ट, ठ, ड, ढ, ण।
त वग – त, थ, द, ध, न।
प वग – प, फ, ब, भ, म।
(ii) अंतः थ यंजन – ये चार है – ँ
य, र, ल, व।
(iii) ऊ म यंजन – ये चार है –
ँ
श, ष, स, ह।
(iv) लुंिठत यंजन – र।
(v) पाि क यंजन – ल।
(vi) अ य संघष – ख़, ग़, ज़, फ।
(vii) उि त यंजन – ड़ और ढ़।
ये दोन विनय िह दी म 'ड' और 'ढ' विनय से िवकिसत हईु है ।ँ िह दी म इनके अलावा ह, ह, (न, म, ल महा ाण प) भी नविवकिसत विनय है ।ँ इ ह न, म, ल के
साथ 'ह' िमलाकर िलखते है ।ँ
(viii) अनुनािसक यंजन – येक वग का प चवा वण–ङ् , ञ्, ण्, न्, म्। इनके थान पर अनु वार (◌ं ) व च िब दु (◌ँ ) का योग िकया जा सकता है ।
(ix) संयु त यंजन – दो िभ यंजन के मेल से बने यंजन, जो इस कार है – ँ
= क्+ष – क ा, र ा आिद।
= त्+र – या ा, िम आिद।
= ज्+ञ – य , ान, आ ा आिद।
= श्+र – ी, ीमती, िमक आिद।
शृ = श+ऋ – शृंगार आिद।
= द्+य – िव ालय आिद।
त = क्+त – र त, भ त आिद।
= त्+त – वृ , उ र आिद।
= द्+द – र , भ ा आिद।
= द्+ध – बु , िस आिद।
= द्+व – ार, ि ज आिद।
= प्+र – मोद।
= न्+न – अ , स आिद।
• यंजन गु छ – जब दो या दो से अिधक यंजन एक साथ एक ास के झटके म बोले जाते है ,ँ तो उसको यंजन गु छ कहते है ।ँ
जैसे– टे शन, मारक, नान, तुित, प , फूित, कंध, याम, व , लेश, यारह, य िक, यारी, वारी, लािन आिद।
• िवसग (:) – िवसग का उ चारण ‘ ’ के समान होता है । जैसे– मनःि थित (मन ि थित), अतः (अत )। िवसग का योग केवल उ हीँ सं कृत श द म होता है , जो उसी
प म चिलत है ।ँ जैसे– ायः, संभवतः। सं कृत के 'दुःख' श द को िह दी म 'दुख' िलखा जाना वीकार कर िलया गया है ।
• बलाघात – श द बोलते समय अ र िवशेष तथा वा य बोलते समय श द िवशेष पर जो बल पड़ता है , उसे बलाघात कहते है ।ँ बलाघात दो कार का होता है –(1) श द
बलाघात (2) वा य बलाघात।
(1) श द बलाघात – येक श द का उ चारण करते समय िकसी एक अ र पर अिधक बल िदया जाता है । जैसे–िगरा म ‘रा’ पर। िह दी भाषा म िकसी भी अ र पर यिद बल
िदया जाए तो इससे अथ भेद नहीँ होता तथा अथ अपने मूल प जैसा बना रहता है ।
(2) वा य बलाघात – िह दी म वा य बलाघात साथक है । एक ही वा य म श द िवशेष पर बल देने से अथ म पिरवतन आ जाता है । िजस श द पर बल िदया जाता है वह श द
िवशेषण श द के समान दूसर का िनवारण करता है । जैसे– 'कु सुम ने बाजार से आकर खाना खाया।'
उपयु त वा य म िजस श द पर भी जोर िदया जाएगा, उसी कार का अथ िनकलेगा। जैसे– ‘कु सुम’ श द पर जोर देते ही अथ िनकलता है िक कु सुम ने ही बाजार से
आकर खाना खाया। 'बाजार' पर जोर देने से अथ िनकलता है िक कु सुम ने बाजार से ही वापस आकर खाना खाया। इसी कार येक श द पर बल देने से उसका अलग अथ
िनकल आता है । श द िवशेष के बलाघात से वा य के अथ म पिरवतन आ जाता है । श द बलाघात का थान िनि त है िक तु वा य बलाघात का थान व ता पर िनभर करता
है , वह अपनी िजस बात पर बल देना चाहता है , उसे उसी प म तुत कर सकता है ।
• अनुतान – भाषा के बोलने म जो आरोह–अवरोह (उतार–चढ़ाव) होता है , वही अनुतान कहलाता है । िह दी म सुर बदलने से वा य का अथ बदल जाता है ।
• संगम – एक ही श द की दो विनय के बीच उ चारण म िकए जाने वाले िणक िवराम को संगम कहते है ।ँ संगम की ि थित से बलाघात म भी अ तर आ जाता है । दो िभ
थान पर संगम से दो िभ अथ सामने आते है ।ँ जैसे–
मनका = माला का मोती,
मन–का = मन से संबिं धत भाव।
जलसा = उ सव,
जल–सा = पानी के समान।
• ुितमूल क (य/व) – कु छ श द म य, व मूल श द की संरचना म नहीँ होते, केवल सुनाई देते है ।ँ जह य, व का योग िवक प से होता है , वह न िकया जाए अथ त् नई–नयी,
गए–गये आिद प म से केवल वर वाले प को मानक माना जाए। इसी कार िजन श द मे ‘य’ ही मूल विन हो वह ‘य’ का योग िकया जाना चािहए न िक ‘ वर’ का।
जैसे– पये, थायी, अ ययीभाव।
• हाइफन (–) – भाषा म प लेखन हे तु हाइफ़न का योग िकया जाता है । हाइफ़न का योग िन ि थितय म होता है –
1. समास म पद के बीच हाइफ़न अव य लगाया जाए।
जैसे–िदन–रात, सुख–दुःख, राजा–रानी, आना–जाना, देख–भाल आिद।
2. ‘सा’ के पहले हाइफ़न अव य लगाना चािहए। जैसे–
कोयल–सी मीठी बोली।
तुम–सा नहीँ देखा।
च द–सा मुखड़ा आिद।
• दो–दो प वाले श द :
िह दी के कु छ श द ऐसे है ,ँ िजनके दो–दो प चिलत है ।ँ िव ान ने दोन ही प को मा यता दान कर दी है । जैसे–
गरमी-गम , बरफ-बफ, गरदन-गदन, भरती-भत , सरदी-सद , कु रसी-कु स , फु रसत-फु सत, बरतन-बतन, बरताव-बत व, मरजी-मज आिद।
• हल् िच (◌् ) – सं कृत से आए त सम् श द को उसी प म िलखना चािहए, जैसे वे श द सं कृत म िलखे जाते है ,ँ िक तु आजकल िह दी म िलखते समय उनका हल्
िच लु त हो गया है । जैसे–भगवान, महान, जगत, ीमान आिद।
• विन पिरवतन – सं कृत मूल क श द की वतनी को य का य हण करना चािहए। जैसे– हीत, दिशनी, दृ य, आिद योग अशु है ।ँ इनके शु ँ गृहीत,
प है –
दशनी, य आिद।
• पूवकािलक यय ‘कर’ – पूवकािलक यय ‘कर’ सदैव ि या के साथ िमलाकर ही िलखा जाना चािहए। जैसे– खा–पीकर, नहा–धोकर, मर–मरकर, जा–जाकर, पढ़कर,
िलखकर, रो–रोकर आिद।
• वण ँ के मानक प – अ, ऋ, ख, छ, झ, ण, ध, भ, , श, । वण ँ के मानक प का ही योग करना चािहए। लेखन म िशरोरेखा का योग अव य करना चािहए।
• िह दी श द–कोश म श द का म –
िह दी श द–कोश म श द का म िविभ वण ँ के िन म के अनुसार है –
अं, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, क, , ख, ग, घ, च, छ, ज, , झ, ट, ठ, ड, ढ, त, , थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह ।
इस कार श द–कोश म सव थम ‘अं’ या ‘अँ’ से ारंभ होने वाले श द होते है ँ और अ त म ‘ह’ से ारंभ होने वाले श द। येक श द से ारंभ होने वाले श द भी हजार की
सं या म होते है ,ँ अतः श द–कोश म उनका म–िव यास िविभ वर की मा ाओँ के अ म म होता है –
◌ं ◌ँ ◌ा ि◌ ◌ी ◌ु ◌ू ◌ृ ◌े ◌ै ◌ो ◌ौ ।
• उदाहरण –
1. आधा वण उस वण की ‘औ’ की मा ा के बाद आता है । जैसे– कटौती के बाद क र, करौ के बाद कक, कसौ के बाद क त, कौ तु के बाद य, य के बाद ं ... ...
ल... व आिद।
2. ‘◌ृ ’ की मा ा ‘ऊ’ की मा ा वाले वण के बाद आती है । जैसे– कूक, कूल के बाद कृत।
3. ‘ ’ वण आधे ‘क्’ के बाद आता है । जैसे– ि वँटल के बाद ण।
4. ‘ ’ अ र ‘जौ’ के अंितम श द के बाद आता है । जैसे– जौहरी के बाद ात।
5. ‘ ’ अ र ‘ यौ’ के बाद आयेगा। जैसे– यौहार के बाद य।
6. ‘ ’ अ र ‘ यो’ के बाद आयेगा य िक =श्*र है तथा ‘र’ श द–कोश म ‘य’ के बाद आता है ।
7. ‘ ’ अ र ‘दौ’ के बाद आता है । जैसे– दौिह ी के बाद िु त।
8. अ र ‘रौ’ के बाद आता है । जैसे– सरौता के बाद सकस एवं करौना के बाद कक।
9. अ र िकसी भी यंजन के ‘य’ के साथ संयु त अ र के अंितम श द के बाद आता है । जैसे– योसार के बाद कट, यारह के बाद ंथ , ौ के बाद व एवं यौरा के बाद
श।
इस कार येक वण के सव थम अनु वार (◌ं ) या च िब दु (◌ँ ) वाले श द आते है ँ िफर उनका म मशः अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ की मा ा के
अनुसार होता है । ‘औ’ की मा ा के बाद आधे अ र से ारंभ होने वाले श द िदये होते है ।ँ उदाहरणाथ– ‘क’ से ारंभ होने वाले श द का म िन कार रहे गा–
कं, क, क , िकँ, िक, कीँ, कु ं, कु , कूं, कू, कृं, क, के, कैँ, कै, क , को, कौँ, कौ, क् (आधा क) – या, ं द, म आिद।
येक श द म थम अ र के बाद आने वाले ि तीय, तृतीय आिद अ र का म भी उपयु त कार से ही होगा।
♦♦♦
• सामा य िह दी
♦ होम पे ज
तुित:–
मोद खेदड़
सामा य िह दी
5. वा य–िवचार
♦ वा य–
साथक पद (श द ) के उस समूह को वा य कहते है ,ँ िजसके ारा एक अथ या एक पूण भाव की अिभ यि त होती है । वा य साथक श द का यवि थत प है । िशि त
की वा य–रचना याकरण के िनयम से अनुशािसत होती है ।
वा य एक या एक से अिधक श द का भी हो सकता है । भाषा की इकाई वा य है । छोटा बालक चाहे वह एक श द ही बोलता हो, उसका अथ िनकलता है , तो वह वा य है ।
वा य–रचना म यु त साथक पद के समूह म पर पर यो यता, आक ा और आसि त या िनकटता का होना ज री है , तभी वह साथक पद–समूह वा य कहलाता है ।
♦ वा य की पिरभाषाएँ–
• आचाय िव नाथ—“वा य यात् यो यताक ासि िधः यु तः पदो चयः।” अथ त्—“िजस वा य म यो यता और आक ा के त व िव मान हो वह पद समु चय वा य
कहलाता है ।”
• पतंजिल—“पूण अथ की तीित कराने वाले श द–समूह को वा य कहते है ।ँ ”
• ो॰ देवे नाथ शम —“भाषा की यूनतम पूण साथक इकाई वा य है ।”
• काल एफ सुंडन—“वा य बोली का एक अंश है अथ त् ोता के सम अिभ ेत को, जो स य है , तुत िकया जाता है ।”
♦ वा य के त व–
िवचार की अिभ यि त का मा यम भाषा है । वा य म अिभ यि त का त व होना आव यक है । वा य म विन तथा िलिप उसके बा प है ,ँ शरीर है ।ँ अथ उसके ाण है ।ँ
शरीर व ाण की तरह वा य म अथ त व, विन त व होना चािहए। वा य म श द का उिचत म होना चािहए। इस कार वा य–िव यास म िन त व का समावेश आव यक
है –
(1) साथकता–
वा य म सदैव साथक श द का ही योग होना चािहए। िनरथक श द तभी आते है ,ँ जब वे वा य म कु छ अथपूण ि थित म होते है ,ँ जैसे– बक–बक, अपने आप म िनरथक
श द है ।ँ जब ये श द िकसी वाचक के साथ यु त िकए जाएँ, जैसे– ‘ या बक–बक लगा रखी है ?’ तो इन श द म साथकता आ जाती है ।
(2) यो यता–
वा य के श द (पद ) का संग के अनुकूल भाव–बोध अथ त् अथ ान कराने की मता ही ‘यो यता’ कहलाती है । वा य म वाक् मय दा अथवा जीवन के अनुभव के
िव कोई बात नहीँ कही जानी चािहए। यिद वा य म य त अथ म असंगित होगी, तो वा य अपूण कहा जाएगा। जैसे–
1. माली आग से उ ान सीँचता है ।
2. हाथी को र सी से ब धा है ।
उ त वा य म पहले वा य म यो यता का अभाव है य िक आग का काय जलाना है , उसम सीँचने की यो यता नहीँ होती। दूसरे वा य म हाथी को र सी से ब धने की बात
भी अनुिचत है य िक वह लोहे की जंजीर से ब धा जाता है । अतः दोन वा य म भाव या अथ की असंगित है । अतः ये वा य नहीँ है ।ँ
(3) आक ा–
आक ा का अथ है – ोता की िज ासा। वा य के श द एक दूसरे पर आि त रहते है ।ँ इसिलए वा य के िकसी भाव को पूण प से समझने के िलए एक श द को सुनकर
अ य श द को सुनने की उ क ठा सहज उ प होती है । इसे ही आक ा कहा जाता है । जैसे– भूखे ब चे से माता कु छ श द ‘ह बेटा’ कह दे, तो ब चा अगला श द– ‘दूध लाती
हूँ’ सुनने को लालाियत रहे गा, जब तक माता से ‘दूध लाती हूँ’ वा य को पूरा न सुन ले। यही आक ा है , इसके िबना वा य पूण नहीँ होता।
(5) पद म–
वा य म योग करने के िलए श द का सही याकरणानुसार यथा म योग करना आव यक है । पद म के अभाव म कु छ का कु छ अथ िनकल जाता है और इस कार
िवचार का सही स ेषण नहीँ हो पाता। जैसे– ‘खरगोश को काटकर गाजर िखलाओ।’ वा य म पद म का दोष होने से अथ का अनथ हो रहा है । अतः इसे– ‘खरगोश को
गाजर काटकर िखलाओ’ िलखने से सही अथ बोध होगा।
(6) अ वय–
अ वय श द का अथ है – मेल । वा य म ि या के साथ िलँग, वचन, कारक, पु ष, काल आिद का अनुकरणा मक व याकरणा मक मेल होना आव यक है । जैसे– मछिलय
पानी म तैर रही है ।ँ यह ‘मछिलय ’ (क पद) थम म पर है तथा ‘तैर रही है ’ँ अि तम म पर और ‘पानी म’ ( थानवाचक ि यािवशेषण) म यम म पर है । अतः उिचत
अ वय के कारण यह वा य पूण साथक िस हआ ु ।
♦ वा य के सािह य स ब धी गुण–
(1) प ता
(2) समथता
(3) ुितमधुरता
(4) लचीलापन
(5) िवषय का ान।
♦ वा य के अंग–
वा य–िव यास करते समय िजन श द का योग िकया जाता है , वे मु य प से दो भाग म िवभ त रहते है ,ँ इसिलए वा य के दो अंग या घटक माने जाते है – ँ (1) उ े य
और (2) िवधेय।
(1) उ े य–
वा य म िजस यि त या व तु के स ब ध म कु छ कहा जाता है , उसे उ े य कहते है ।ँ अतः काम के करने वाले (क ) को उ े य कहते है ।ँ उ े य ायः सं ा, सवनाम या
िवशेषण श द होते है ,ँ कहीँ पर ि याथक श द भी उ े य अंश बन जाता है । जैसे–
(1) रमेश ग व जाएगा।
(2) अिभमानी का सव आदर नहीँ होता।
(3) घूमना वा य के िलए अ छा रहता है ।
थम वा य म, ग व जाने का काय ‘रमेश’ कर रहा है । अतः रमेश उ े य है । ि तीय वा य म, अिभमानी का आदर न होना विणत है , इसम ‘अिभमानी’ िवशेषण–पद उ े य
है । तृतीय वा य म, ‘घूमना’ ि याथक श द है , जो िक वा य म उ े य अंश की तरह यु त है ।
उ े य का िव तारक–
वा य म उ े य अथ त् क के साथ जो श द उसके िवशेषण प म यु त होते है ,ँ वे उ े य के िव तारक या पूरक कहलाते है ।ँ जैसे– लोभी यि त दुःखी रहता है । इस
वा य म ‘लोभी’ श द ‘ यि त’ का िवशेषण है , इसिलए यह क अथ त् ‘ यि त’ का पूरक–पद है ।
इस कार उ े य के अ तगत क और क का िव तार दोन आते है ।ँ उ े य िव तारक म िन कार के श द हो सकते है – ँ
(1) सं ा या सवनाम (स ब ध कारक के प म)। जैसे– रमेश की घड़ी चोरी चली गई, वा य म ‘रमेश की’।
(2) सावनािमक िवशेषण। जैसे– वह बालक चला गया, वा य म ‘वह’।
(3) िवशेष! जैसे– अ छा लड़का यारा लगता है , वा य म ‘अ छा’।
(4) कृद त (स ब ध कारक के प म)। जैसे– मेरा िलखा हआ ु प कह है ?, वा य म ‘िलखा हआ
ु ’।
(5) कृद त का िवशेषण। जैसे– अिधक खेल ना अ छा नहीँ होता, वा य म ‘अिधक’।
(6) समानािधकरण श द (समानाथ ) का अथ प करने वाला श द। जैसे– गोपाल का भाई स यपाल पास हो गया, वा य म ‘गोपाल का भाई’।
(2) िवधेय–
वा य म उ े य के स ब ध म जो कु छ कहा जाता है , उसे िवधेय कहते है ।ँ वा य म ि या और उसका पूरक िवधेय होता है । जैसे–
(1) आदमी जा रहा था।
(2) वह पढ़ते–पढ़ते सो गया।
(3) गीता िलखती है ।
इन वा य म ‘जा रहा था’, ‘सो गया’ और ‘िलखती है ’ िवधेय अंश है ,ँ इनसे उ े य के काय का ान होता है ।
िवधेय का िव तारक–
वा य म ि या की िवशेषता बताने वाले पद को िवधेय का िव तारक कहते है ।ँ कभी–कभी ि या के िव तारक के साथ कु छ पूरक–पद भी आते है ,ँ जो िक क कारक
को छोड़कर अ य िवभि तय के होते है ।ँ उनको भी िवधेय के पूरक एवं िव तारक भाग म रखा जाता है । जैसे–
• ‘पु तक मेज के ऊपर रखी है ।’
इस वा य म ‘रखी है ’ िवधेय है तथा ‘मेज के ऊपर’ िवधेय का पूरक या िव तारक है ।
िवधेय–िव तारक म िन कार के श द हो सकते है – ँ
(1) ि या िवशेषण। जैसे– मुरली कल चला गया, वा य म ‘कल’।
(2) सं ा अथवा सवनाम (करण, अपादाना या अिधकरण कारक के प म)। जैसे– मैँ कलम से िलख रहा हूँ, वा य म ‘कलम से’ ।
(3) कृद त। जैसे– दौड़ता हआ ु गया, वा य म ‘दौड़ता हआ ु ’।
(4) अकमक ि या का पूरक श द। जैसे– वह फल खराब हो गया, वा य म ‘खराब’।
(5) सकमक ि या का कम। जैसे– साधना ने पु तक पढ़ ली, वा य म ‘पु तक’।
(6) सकमक ि या के कम का पूरक। जैसे– राम ने सु ीव को िम बनाया, वा य म ‘िम ’।
(7) स दान कारक। जैसे– मैँ सरोज के िलए िमठाई लाया, वा य म ‘सरोज के िलए’।
♦ वा य और उपवा य–
वा य उस श द–समूह को कहते है ँ िजसम क और ि या दोन होते है ।ँ जैसे– मोहन खेल ता है । इसम मोहन क और खेल ता है – ि या है । इस वा य से पूरा अथ–
बोध होता है । अतः यह एक वा य है ।
कभी–कभी एक वा य म अनेक वा य होते है ।ँ इसम एक वा य तो धान वा य होता है और शेष उपवा य। जैसे–
मोहन ने कहा िक मैँ खेल ूँगा।
इसम ‘मोहन ने कहा’ धान वा य है और ‘िक मैँ खेल ूँगा’ उपवा य। उपवा य, वा य का भाग होता है , िजसका अपना अथ होता है और िजसम उ े य और िवधेय भी होते
है ।ँ
उपवा य के आर भ म अिधकतर िक, िजससे, तािक, जो, िजतना, य – य , चूँिक, य िक, यिद, य िप, जब, जह , इ यािद होते है ।ँ
♦ वा य के भेद :
वा य के भेद िन िकत तीन आधार पर िकए जाते है –
ँ
1. रचना के आधार, पर
2. अथ के आधार पर,
3. ि या के आधार पर।
2. िम वा य–
िजस वा य म मु य उ े य और मु य िवधेय के अलाव एक या अिधक समािपका ि याएँ ह , उसे िम वा य कहते है ।ँ िम वा य की रचना एक से अिधक ऐसे साधारण
वा य से होती है , िजनम एक धान तथा अ य वा य गौण (आि त) ह । इस तरह िमि त वा य म एक मु य उपवा य और उस मु य उपवा य के आि त एक अथवा एक से
अिधक उपवा य है ।ँ जैसे–
• वह कौन–सा मनु य है िजसने महा तापी राजा भोज का नाम न सुना हो।
इस वा य म ‘वह कौन–सा मनु य है ’ मु य वा य है और शेष सहायक वा य य िक वह मु य वा य पर आि त है । अ य उदाहरण–
• मािलक ने कहा िक कल छु ी रहे गी।
• मोहन लाल, जो याम गली म रहता है , मेरा िम है ।
• ऊँट ही एक ऐसा पशु है जो कई िदन तक यासा रह सकता है ।
• यह वही भारत देश है िजसे पहले सोने की िचिड़या कहा जाता था।
समानािधकरण उपवा य–
जो उपवा य धान उपवा य या आि त उपवा य के समान अिधकरण वाला हो, अथ त् एक पूण वा य म दो उपवा य ह और दोन ही धान ह , उसे समानािधकरण
उपवा य कहते है ।ँ इन उपवा य म संयोजक अ यय श द का योग होता है । जैसे–
• रामदीन िनधन है , िक तु है पिर मी।
• बुरी संगित मत करो, वरना बाद म पछताओगे।
3. संयु त वा य–
िजस वा य म एक से अिधक साधारण या िम वा य ह और वे िकसी संयोजक अ यय (िक तु, पर तु, बि क, और, अथवा, तथा, आिद) ारा जुड़े ह , तो ऐसे वा य को
संयु त वा य कहते है ।ँ जैसे–
• राम पढ़ रहा था पर तु रमेश सो रहा था।
• शीला खेल ने गई और रीता नहीँ गई।
• समय बहत ु खराब है इसिलए सावधान रहना चािहए।
इन वा य म ‘पर तु’, ‘और’ व ‘इसिलए’ अ यय पद के ारा दोन साधारण वा य को जोड़ा गया है । यिद ऐसे वा य म से इन योजक अ यय श द को हटा िदया जाए तो
येक वा य म दो–दो वतं वा य बनते है ।ँ इसी कारण इ ह संयु त या जुड़े हएु वा य कहते है ।ँ
• अथ के आधार पर वा य के भेद–
अथ के आधार पर वा य के िन िलिखत आठ भेद होते है –
ँ
1. िविधवाचक–
िजन वा य म ि या के करने या होने का सामा य कथन हो और ऐसे वा य म िकसी काम के होने या िकसी के अि त व का बोध होता हो, उ ह िविधवाचक या
िवधानवाचक वा य कहते है ।ँ जैसे–
• सूय गम देता है ।
• िह दी हमारी रा भाषा है ।
• भारत हमारा देश है ।
• वह बालक है ।
• िहमालय भारत के उ र िदशा म ि थत है ।
उ त वा य म सूय का गम देना, िह दी का रा भाषा होना आिद काय हो रहे है ँ और िकसी के (देश तथा बालक) होने का बोध हो रहा है । अतः ये िविधवाचक वा य है ।ँ
2. िनषेधवाचक–
िजन वा य म काय के िनषेध (न होने) का बोध होता हो, उ ह िनषेधवाचक वा य अथवा नकारा मक वा य कहते है ।ँ जैसे–
• मैँ वह नहीँ जाऊँगा।
• वे यह काय नहीँ जानते है ।ँ
• बस ती नहीँ नाचेगी।
• आज िह दी अ यापक ने क ा नहीँ ली।
उ त सभी वा य म ि या स प नहीँ होने के कारण ये िनषेधवाचक वा य है ।ँ
3. आ ावाचक–
िजन वा य से आदेश या आ ा या अनुमित का बोध हो, उ ह आ ावाचक वा य कहते है ।ँ जैसे–
• तुम वह जाओ।
• यह पाठ तुम पढ़ो।
• अपना–अपना काम करो।
• आप चुप रिहए।
• मैँ घर जाऊँ।
• तुम पानी लाओ।
4. वाचक–
िजन वा य म कोई िकया जाये या िकसी से कोई बात पूछी जाये, उ ह वाचक वा य कहते है ।ँ जैसे–
• तु हारा या नाम है ?
• तुम पढ़ने कब जाओगे?
• वे कह गए है ?
ँ
• या तुम मेरे साथ गाओगे?
5. िव मयबोधक–
िजन वा य म आ य, हष, शोक, घृणा आिद के भाव य त ह , उ ह िव मयबोधक वा य कहते है ।ँ जैसे–
• अरे! इतनी ल बी रेल गाड़ी!
• ओह! बड़ा जु म हआु !
• िछः! िकतना ग दा दृ य!
• शाबाश! बहतु अ छे !
उ त वा य म आ य (अरे), दुःख (ओह), घृणा (िछः), हष (शाबाश) आिद भाव य त िकए गए है ँ अतः ये िव मयबोधक वा य है ।ँ
6. संदेह बोधक–
िजन वा य म काय के होने म स देह अथवा स भावना का बोध हो, उ ह संदेह वाचक वा य कहते है ।ँ जैसे–
• स भवतः वह सुधर जाय।
• शायद मैँ कल बाहर जाऊँ।
• आज वष हो सकती है ।
• शायद वह मान जाए।
उ त वा य म काय के होने म अिनि तता य त हो रही है अतः ये संदेह वाचक वा य है ।ँ
7. इ छावाचक–
िजन वा य म व ता की िकसी इ छा, आशा या आशीव द का बोध होता है , उ ह इ छावाचक वा य कहते है ।ँ जैसे–
• भगवान तु ह दीघ यु करे।
• नववष मंगलमय हो।
• ई र करे, सब कु शल लौट।
• दूध नहाओ, पूत फलो।
• क याण हो।
इन वा य म व ता ई र से दीघ यु, नववष के मंगलमय, सबकी सकु शल वापसी और पशुधन व पु धन की कामना व आशीष दे रहा है अतः ये इ छावाचक वा य है ।ँ
8. संकेत वाचक–
िजन वा य से एक ि या के दूसरी ि या पर िनभर होने का बोध हो, उ ह संकेत वाचक या हे तुवाचक वा य कहते है ।ँ जैसे–
• वष होती तो फसल अ छी होती।
• आप आते तो इतनी परेशानी नहीँ होती।
• जो पढ़े गा वह उ ीण होगा।
• यिद छु ि य हईु ँ तो हम क मीर अव य जाएँगे।
इन वा य म कारण व शत का बोध हआ ु है इसिलए ऐसे सभी वा य संकेत वाचक वा य कहलाते है ।ँ
• ि या के आधार पर वा य के भेद–
ि या के आधार पर वा य तीन कार के होते है –
ँ
(1) कतृ धान वा य (कतृवा य)–
ऐसे वा य म ि या क के िलँग, वचन और पु ष के अनुसार होती है । जैसे–
• बालक पु तक पढ़ता है ।
• ब चे खेल रहे है ।ँ
वा य–िव लेषण
♦ वा य–िव लेषण–
रचना या संगठन की दृि से जो तीन कार (सरल, िम व संयु त) के वा य माने जाते है ,ँ उनका िव लेषण या भेद आिद का िनदश करना वा य–िव लेषण कहलाता है ।
वा य–िव लेषण म वा य के अंग को अलग–अलग िकया जाता है । वा य–िव लेषण को वा य–िव ह, वा य–पृथ रण या वा य–िव छे द भी कहते है ।ँ
♦ िम वा य का िव लेषण–
िम वा य के िव लेषण म िन िकत बात दी जाती है –
ँ
(1) उपवा य।
(2) उपवा य के भेद।
(3) जोड़ने वाला श द (संयोजक अ यय)।
(4) येक उपवा य का साधारण वा य की भ ित िव लेषण।
उदाहरण–
• तुम इस पु तक को जह चाहो वह रखो।
(क) तुम इस पु तक को वह रखो— धान वा य।
(ख) जह (तुम) चाहो—ि या िवशेषण उपवा य।
(ग) धान उपवा य ‘(क)’ के थानवाचक ि या िवशेषण ‘वह ’ का समानािधकरण।
(घ) पूरा वा य िम वा य है ।
• जो पिर म करेगा वह अव य पास होगा।
(क) वह अव य पास होगा— धान उपवा य।
(ख) जो पिर म करेगा—िवशेषण उपवा य।
(ग) धान उपवा य (क) के वह सवनाम का िवशेषण।
(घ) थानवाचक ि या िवशेषण ‘वह’ का समानािधकरण।
(ङ) पूरा वा य िम वा य है ।
♦ संयु त वा य का िव लेषण–
संयु त वा य के िव लेषण म िन िलिखत बात आती है –
ँ
(1) धान उपवा य।
(2) समानािधकरण उपवा य।
(3) जोड़ने वाला श द (संयोजक अ यय)।
(4) येक वा य का साधारण वा य की भ ित िव लेषण।
उदाहरण–
• मुरारी चतुर है और गोपाल मूख है ।
(क) मुरारी चतुर है — धान उपवा य।
(ख) गोपाल मूख है —समानािधकरण उपवा य जोड़ने वाला श द। और पूरा वा य संयु त वा य है ।
• रमेश घर चला गया अथवा बाजार।
(क) रमेश घर चला गया— धान उपवा य।
(ख) (रमेश) बाजार (चला गया)—समानािधकरण उपवा य, जोड़ने वाला श द ‘अथवा’।
(ग) पूरा वा य संयु त वा य है ।
पदब ध
♦ पदब ध-
वा य म जब एक से अिधक पद िमलकर एक याकरिणक इकाई का काम करते है ँ तब उस बंधी हईु इकाई को पदब ध कहते है ।ँ जैसे–
• प चवीँ क ा म पढ़ने वाला छा राकेश बहत ु बुि मान है ।
• िह दी पढ़ाने वाले गु जी ने मुझे एक अित सु दर और उपयोगी पु तक दी।
• िकसी यि त या समाज का उ थान अनुशासन पर िनभर है ।
उ त वा य म नेवी रंग के अंश पदब ध का काय कर रहे है ।ँ पदब ध म िवकारी और अिवकारी दोन कार के श द हो सकते है ँ और वे िमलकर याकरिणक इकाई पदब ध
का काय करते है ।ँ
♦ पदब ध के भेद–
पदब ध के आठ भेद है –
ँ
1. सं ा पदब ध–
जब कोई पद समूह वा य म सं ा का काम देता है तो उसे सं ा पदब ध कहते है ।ँ जैसे–
• (पास के मकान म रहने वाला आदमी) मेरा पिरिचत है ।
• (यह पे ड़ तो िकसी बड़े और तेज धार वाले कु ाड़े से) कट सकता है ।
• (देश के िलए मर िमटने वाला यि त स चा देशभ त) होता है ।
उ त वा य म को क म बंद वा य श सं ा पदब द है ।ँ
2. सवनाम पदब ध–
वा य म सवनाम का काय करने वाले पदब ध को सवनाम पदब ध कहते है ।ँ जैसे–
• (भा य का मारा मैँ) कह आ पहँच
ु ा।
• (चोट खाए हएु तुम) भला या खेल ोगे।
• (है यह ऐसा कोई!) जो स प को पकड़ ले।
• (हम सबको धोखा देने वाला तू ,) आज वयं धोखा खा गया।
उ त वा य म को क वाले वा य श सवनाम पदब ध है ।ँ
3. ि या पदब ध–
एक से अिधक ि या पद से बनने वाले ि या प को ि या पदब ध कहते है ।ँ जैसे–
• कहा जा सकता है ।
• जाता रहता था।
• िनकलता जा रहा है ।
• लौटकर कहने लगा।
ये सभी वा य ि या पदब ध है ।ँ
4. िवशेषण पदब ध–
जब कोई पद समूह िकसी सं ा, सवनाम की िवशेषता बताए तो उसे िवशेषण पदब ध कहते है ।ँ जैसे–
• शेर के समान बलवान (आदमी)।
• जोर–जोर से िच लाने वाले (तुम)।
• सु दर और व छ लेख िलखने वाला (छा )।
• स ता खरीदा हआ ु (सामान)।
• इस गली म सबसे बड़ा (घर)।
ये पद समूह सं ा व सवनाम की िवशेषता कट कर रहे है ँ अतः िवशेषण पदब ध है ।ँ
5. ि या–िवशेषण पदब ध–
वह वा य श या पद समूह जो ि या–िवशेषण का काय करे उसे ि या–िवशेषण पदब ध कहते है ।ँ जैसे–
• घर से लौटकर (जाऊँगा)।
• पहले से बहतु धीरे (चलने लगा)।
• जमीन पर लोटते हएु (बोला)।
• खुल े आँगन म (बैठ ो)।
• बड़ी सावधानी से (उठाओ)।
इन वा य म सभी पदब ध ि या–िवशेषण का काय कर रहे है ।ँ ये को क म दिशत ि या की िवशेषता बता रहे है ।ँ
6. स ब ध बोधक पदब ध–
जो श द वा य म दो पदब ध के बीच स ब ध थािपत कराव, उन श द को स ब ध बोधक पदब ध कहते है ।ँ जैसे– बदले, बजाय, पलटे , समान, यो य, सरीखा, ऊपर,
भीतर, पीछे से, बाहर की ओर आिद श द वा य म स ब ध बोधक पदब द कहे जाते है ।ँ यथा–
• राम की ओर।
• छत के ऊपर।
• कृ ण के समान आिद।
8. िव मयािदबोधक पदब ध–
िकसी वा य म ‘हष’, ‘शोक’, ‘आ य’, ‘ल जा’, ‘ लािन’ आिद मनोभाव को य त करने वाले श द िव मयािदबोधक पदब ध कहलाते है ।ँ जैसे–
• अहा! आज तो िमठाईय बन रही है ।ँ
• ह ! मैँ भी तो सही कहता हूँ।
• ऐ! तुम फ ट आ गए।
• िछः िछः! िफर पकड़ा गया।
उ त वा य म ‘अहा’, ‘ह ’, ‘ऐ’ तथा ‘िछः िछः’ िव मयािदबोधक पदब ध है ।ँ
पद म
♦ पद म–
सरल वा य म वा य के िविभ अंग यथा– क , कम, पूरक, ि या िवशेषण आिद सामा य प से िजस म म आते है ,ँ उस म को ‘पद म’ कहते है ।ँ
पद म सभी भाषाओँ म एक–सा नहीँ होता। िह दी म क –कम–ि या का म है तो अं ेजी म क –ि या–कम का म है । वा तव म वा य म पद के उिचत थान पर
होने से ही सही अथ की ाि त होती है । पद म म थोड़ा–सा पिरवतन हो जाने पर अथ का अनथ होने की संभावना बनी रहती है ।
♦ पद म के िनयम–
वा य म पद म का सबसे साधारण िनयम है िक पहले क या उ े य, िफर कम या पूरक और अंत म ि या आती है , जैसे– बालक पु तक पढ़ता है ।
िह दी म पद म के कु छ मुख िनयम इस कार है –ँ
• कत के बाद ि या आती है ।
जैसे–
- राम सोता है ।
- मैँ खेल ता हूँ।
• कत और ि या के बीच कम आता है ।
जैसे–
- अिनल आम खाता है ।
- सीमा कूल जाती है ।
• ि कमक ि याओँ म गौण कम पहले और मु य कम बाद म आता है ।
जैसे–
- सोहन ने याम को िकताब दी।
- मैँने अपने िम को प िलखा।
- िपताजी मेरे िलए साइिकल लाए।
• कत और ि या के बीच पूरक आता है ।
जैसे–
- कु शाल िव ाथ है ।
- राजवीर डॉ टर है ।
• िवशेषण सं ा के पूव आता है ।
जैसे–
- गीता ने नीली साड़ी पहनी है ।
- गोिव द होिशयार लड़का है ।
- गोिव द होिशयार लड़का है ।
• ि या–िवशेषण ि या से पहले आता है ।
जैसे–
- घोड़ा तेज दौड़ता है ।
- हाथी धीरे–धीरे चलता है ।
• िनषेधा मक ि या–िवशेषण ि या से पहले आता है ।
जैसे–
- मैँ आज कूल नहीँ जाऊँगा।
- तु ह धू पान नहीँ करना चािहए।
• वाचक सवनाम जब िवशेषण के प म यु त होता है तो पहले आता है ।
जैसे–
- यह िकतने लोग है ? ँ
- यह कैसी िकताब है ?
• वाचक सवनाम या ि या–िवशेषण ि या से पहले आते है ।ँ
जैसे–
- वह कौन है ?
- वह कह जा रहा है ?
- तु हारा ऑिफस कह है ?
• यिद उ र ‘ह ’ या ‘नहीँ’ म अपे ि त हो तो ‘ या’ मु यतः ार भ म और कभी–कभी अंत म लगता है ।
जैसे–
- या मनोहर कॉलेज गया था?
- मनोहर कॉलेज गया था या?
• संबोधन वा य के ार भ म आता है ।
जैसे–
- अरे कमल! इधर आओ।
- हे भु! मेरी र ा करो।
• पूवकािलक प ‘कर’ ि या के बाद जुड़ता है ।
जैसे–
- हाथ धोकर भोजन करो।
- खाना खाकर जाना।
• समानािधकरण श द मु य श द के बाद आता है और बाद के श द म िवभि त का योग होता है ।
जैसे–
- याम, तेरा भाई बाहर खड़ा है ।
- भवानी, लुहार को बुल ाओ।
• वाचक अ यय ‘न’ बहध ु ा वा य के अंत म आता है ।
जैसे–
- आप वह चलगे न?।
- तुम मेरे ज मिदन की पाट म आओगे न?
• संबध ं वाचक िवशेषण जैसे– जह , तह , जब तक, जैसे, तैसे आिद सामा यतः वा य के अंत म आते है ।ँ
जैसे–
- जब मैँ कहूँ तब तुम चले जाना।
- जह तेरी इ छा हो वह जा।
• िनषेधा मक अ यय– न, नहीँ, मत आिद बहध ु ा ि या के पहले आते है ।ँ
जैसे–
- मैँ नहीँ जाऊँगा।
- तुम मत डरो।
• कत का िव तार क से पहले तथा ि या का िव तार क के बाद आता है ।
जैसे–
- वृ ा ी को देखते–देखते होश आ गया।
• यिद एक वा य म अनेक िवशेषण योग िकए गये ह तो सबसे पहले संकेत वाचक िवशेषण, िफर सं या वाचक या पिरमाण वाचक और अंत म गुणवाचक िवशेषण आता है ।
जैसे–
- मैँने ये दो पुराने पलंग बेचे है ।ँ
• क और कम के म य म करण कारक आता है ।
जैसे–
- माता यार से अपने पु को भोजन कराती है ।
• अिधकरण कारक ायः वा य के बीच म आता है ।
जैसे–
- खाने की मेज पर रेिडयो रखा है ।
• आ ह य त करने वाला ‘न’ वा य के अंत म आता है ।
जैसे–
- कृपया मेरी बात मान लो न।
•तो, भी, भर, ही आिद श द उन पद के पूव यु त होते है ,ँ िजन पर अिधक बल देना होता है ।
जैसे–
- मु यमं ी भी आयगे।
- तुम भी हमारे साथ चलो न।
• समु चय बोधक अ यय िजन श द को जोड़ते है ,ँ उनके बीच म आते है ।ँ
जैसे–
- ह एवं उप ह सूय के चार ओर घूमते है ।ँ
- हम उ ह सुख दगे, य िक उ ह ने हमारे िलए बड़ा तप िकया है ।
• िव मयािदबोधक ायः वा य के ारंभ म आते है ।ँ
जैसे–
- अरे! यह या हआ ु ?
- हे ई र! यह या हो गया?
- िम ! तुम इतने समय कह थे?
िवराम–िच
िवराम श द का अथ है ठहराव या क जाना। एक यि त अपनी बात कहने के िलए, उसे समझाने के िलए, िकसी कथन पर बल देने के िलए, आ य आिद भाव की
अिभ यि त के िलए कहीँ कम, कहीँ अिधक समय के िलए ठहरता है । भाषा के िलिखत प म उ त ठहरने के थान पर जो िनि त संकेत िच लगाये जाते है ,ँ उ ह िवराम–
िच कहते है ।ँ
वा य म िवराम–िच के योग से भाषा म प ता और सु दरता आती है तथा भाव समझने म सुिवधा होती है । यिद िवराम–िच का यथा थान उिचत योग न िकया
जाये तो अथ का अनथ हो जाता है । जैसे–
• रोको, मत जाने दो।
• रोको मत, जाने दो।
इस कार िवराम–िच से अथ एवं भाव म पिरवतन होता है । िलिखत भाषा की तरह किथत भाषा म भी िवराम–िच मह वपूण होते है ।ँ
♦ मह वपूण िवराम–िच –
1. अ प िवराम — ( , )
2. अ िवराम — ( ; )
3. पूण िवराम — ( । )
4. वाचक िच — ( ? )
5. िव मयसूचक िच — ( ! )
6. अवतरण या उ रण िच :
(i) इकहरा — ( ‘ ’ )
(ii) दुहरा — ( “ ” )
7. योजक िच — ( - )
8. को क िच — ( ) { } [ ]
9. िववरण िच — ( :– )
10. लोप िच — ( ...... )
11. िव मरण िच — ( ^ )
12. सं ेप िच — ( . )
13. िनदश िच — ( – )
14. तु यतासूचक िच — ( = )
15. संकेत िच — ( * )
16. समाि त सूचक िच — ( – : –)
♦ िवराम–िच का योग–
1. अ प िवराम ( , ) :
अ प िवराम का अथ है , थोड़ी देर कना ठहरना। अं ेजी म इसे ‘कोमा’ कहते है ।ँ इसके योग की िन ि थितय है –
ँ
(1) वा य म जब दो या दो से अिधक समान पद पद श अथवा वा य म संयोजक अ यय ‘और’ की संभावना हो, वह अ प िवराम का योग होता है । जैसे–
• पद म—अजुन, भीम, सहदेव और कृ ण ने भवन म वेश िकया।
• वा य म—राम रोज कूल जाता है , पढ़ता है और वापस घर चला जाता है ।
• उठकर, नानकर और खाना खाकर मोहन शहर गया।
यह अ प िवराम ारा पाथ य को दश या गया है ।
2. अ िवराम ( ; )–
अं ेजी म इसे ‘सेमी कॉलन’ कहते है ।ँ अ िवराम का योग ायः िवक पा मक प म ही होता है ।
(1) जब अ प िवराम से अिधक तथा पूण िवराम से कम ठहरना पड़े तो अ िवराम का योग होता है । जैसे–
• अब खूब पिर म करो; परी ा सि कट है ।
• िश क ने मुझसे कहा; तुम पढ़ते नहीँ हो।
• िश ा के े म छा ाएँ बढ़ती गईँ; छा िपछड़ते गए।
(3) उन पूरे वा य के बीच म जो िवक प के अि तम समु चय बोधक ारा जोड़े जाते है ।ँ जैसे–
• राम आया; उसने उसका वागत िकया; उसके ठहरने की यव था की और उसे िखलाकर चला गया।
(6) िम तथा संयु त वा य म िवपरीत अथ कट करने या िवरोधपूण कथन कट करने वाले उपवा य के बीच म।
3. पूण िवराम ( । )–
पूण िवराम का अथ है पूरी तरह से िवराम लेना, अथ त् जब वा य पूणतः अपना अथ प कर देता है तो पूण िवराम का योग होता है या िजस िच के योग करने से
वा य के पूण हो जाने का ान होता है , उसे पूण िवराम कहते है ।ँ अं ेजी म इसे ‘फु ल टॉप’ कहते है ।ँ िह दी म इसका योग सबसे अिधक होता है । पूण िवराम का योग िन
दशाओँ म होता है –
(1) साधारण, िम या संयु त वा य की समाि त पर। जैसे–
• उसने कहा था।
• राम कूल जाता है ।
• याग म गंगा–यमुना का संगम है ।
• यिद राहल
ु पढ़ता, तो अव य उ ीण होता।
4. वाचक िच ( ? )–
वाचक िच का योग सूचक वा य के अ त म पूण िवराम के थान पर िकया जाता है । इसका योग िन ि थितय म िकया जाता है –
(1) जह िलिखत या मौिखक पूछे जाएँ।
(2) जह ि थित िनि त न हो।
(3) यं योि तय के िलए। जैसे–
• आप या कर रहे हो?
• कल आप कह थे?
• आप शायद यू. पी. के रहने वाले हो?
• जह ाचार है , वह ईमानदारी कैसे रहे गी?
• इतने छा कैसे आ पाएँगे?
• िववाह म अिनल, शानू एवं िवनोद आए; पर तुम य नहीँ आये?
5. िव मयािदबोधक िच ( ! )–
जब वा य म हष, िवषाद, िव मय, घृणा, आ य, क णा, भय आिद भाव य त िकए जाय तो वह इस िच (!) का योग िकया जाता है । इसके अलावा आदर सूचक श द ,
पद और वा य के अ त म भी इसका योग िकया जाता है । जैसे–
(1) हष सूचक–
• वाह! खूब खेल े।
• शाबाश! तुमने ग व का नाम रोशन कर िदया।
(2) क णा सूचक–
• हे ई र! सबका भला करो।
• हे भु! मेरी र ा करो
(3) घृणा सूचक–
• िछः! िकतनी गंदी बात कर रहा है ।
• दु को िध ार है !
(4) िवषाद सूचक–
• हाय राम! यह या हो गया।
(5) िव मय सूचक–
• सुनो! रमेश पास हो गया।
• है !ँ या कह रहे हो?
6. उ रण या अवतरण िच –
जब िकसी कथन को य का य उ तृ िकया जाता है तो उस कथन के दोन ओर इसका योग िकया जाता है , इसिलए इसे अवतरण िच या उ रण िच कहते है ।ँ इस
िच के दो प होते है – ँ
(i) इकहरा उ रण ( ‘ ’ )–
जब िकसी किव का उपनाम, पु तक का नाम, प –पि का का नाम, लेख या किवता का शीषक आिद का उ लेख करना हो तो इकहरे उ रण िच का योग होता है ।
जैसे–
• रामधारीिसँह ‘िदनकर’ ओज के किव है ।ँ
• ‘िनराला’ िह दी के िस महाकिव है ।ँ
• ‘भारत–भारती’ एक िस का य रचना है ।
• ‘रामचिरत मानस’ के रचियता तुल सीदास है ।ँ
• ‘राज थान पि का’ एक मुख समाचार–प है ।
• ‘िवजडन’ पि का को ि केट का बाइिबल कहा जाता है ।
• ठीक ही कहा है , ‘उ टा चोर कोतवाल को ड टे ’।
(ii) दुहरा उ रण ( “ ” )–
जब िकसी यि त या िव ान तथा पु तक के अवतरण या वा य को य का य उ तृ िकया जाए, तो वह दुहरे उ रण िच का योग िकया जाता है । जैसे–
• महावीर जी ने कहा, “अिहँसा परमोधम।”
• “ वतं ता मेरा ज मिस अिधकार है ।”—ितलक।
• “तुम मुझे खून दो, मैँ तु ह आजादी दूँगा।”—सुभाषच बोस।
7. योजक िच (-)–
अं ेजी म यु त हाइफन (-) को िह दी म योजक िच कहते है ।ँ इसे समास िच भी कहते है ।ँ िह दी म अिधकतर इस िच (-) के थान पर डे श (–) का योग चिलत
है । यह िच सामा यतः दो पद को जोड़ता है और दोन को िमलाकर एक सम त पद बनाता है लेिकन दोन का वतं अि त व बना रहता है । इसका योग िन ि थितय म
होता है –
(1) दो श द को जोड़ने के िलए तथा एवं त पु ष समास म। जैसे–
• सुख-दुःख, माता-िपता, ेम-सागर।
(2) पुन त श द के बीच म। जैसे–
• धीरे-धीरे, डाल-डाल, पात-पात।
(3) तुल ना वाचक सा, सी, से के पहले लगता है । जैसे–
• तुम-सा, भरत-सा भाई, यशोदा-सी माता।
(4) श द म िलखी जाने वाली सं याओँ के बीच। जैसे–
• एक-ितहाई, एक-चौथाई आिद।
8. को क िच ( )–
िकसी की बात को और प करने के िलए इसका योग िकया जाता है । को क म िलखा गया श द ायः िवशेषण होता है । इस िच का योग–
(1) वा य म यु त िकसी पद का अथ प करने हे तु। जैसे–
• धमराज (युिधि र) प डव के अ ज थे।
• डॉ. राजे साद (भारत के थम रा पित) बेहद सादगी पस द थे।
(2) नाटक या एक की म पा के अिभनय के भाव को कट करने के िलए। जैसे–
• राम – (हँसते हएु ) अ छा जाइए।
• नल – (िख होकर) और मेरे दुभ य ! तूने दमयंती को मेरे साथ ब धकर उसे भी जीवन-भर क िदया।
9. िववरण िच (:–)–
इसे अं ेजी म ‘कॉलन एंड डे श’ कहते है ।ँ िकसी कही हईु बात को प करने के िलए या उसका िववरण तुत करने के िलए वा य के अंत म इसका योग होता है ।
जैसे–
• पु षाथ चार है :ँ – धम, अथ, काम और मो ।
• ि या के दो भेद है :ँ – सकमक और अकमक।
कारक िच
♦ कारक–िच –
सं ा या सवनाम के िजस प से उसका वा य के अ य श द , िवशेषकर ि या से स ब ध ात हो, उसे कारक कहते है ।ँ कारक को सूिचत करने के िलए सं ा या
सवनाम के साथ जो िच लगाये जाते है ,ँ उ ह िवभि तय कहते है ँ और िवभि त के िच ही कारक–िच या परसग है ।ँ
कारक िच ‘न’, ‘को’, ‘म’, ‘पर’, ‘के िलए’ आिद को परसग कहते है ।ँ परसग अं ेजी श द Postposition का िह दी समतु य है । सामा यः एकवचन और बहवु चन दोन
म एक ही परसग का उपयोग होता है । वचन का भाव परसग पर नहीँ पड़ता है िक तु स ब ध कारक परसग इसका अपवाद है ।
िवशेष– कत से अिधकरण तक िवभि त िच (परसग) श दॲ के अंत म लगाए जाते ह, िक तु संबोधन कारक के िच – हे , अरे, आिद ायः श द से पूव लगाए जाते ह।
♦ कारक के योग :
1. क कारक–
क का अथ है , करने वाला। अतः वे श द जो ि या के करने वाले या होने वाले का बोध कराते है ,ँ उ ह क कारक कहते है ।ँ सामा यतः इसका िच ‘ने’ होता है । इस
‘ने’ िच का वतमानकाल और भिव यकाल म योग नहीं होता है । इसका सकमक धातुओं के साथ भूतकाल म योग होता है ।
(1) काय करने वाले के िलए कत कारक का योग होता है । जैसे–
• राम ने पाठ पढ़ा।
• याम ने खाना खाया।
• राजू ने साइिकल खरीदी।
• अिनल ने दरवाजा खोला।
सकमक ि या के सामा यतः आस , पूण और संिद ध भूतकाल के कतृवा य म ‘ने’ परसग का योग होता है ।
भूतकाल म अकमक ि या के कत के साथ ‘ने’ परसग (िवभि त िच ) नहीं लगता है । जैसे– वह हँसा।
वतमानकाल व भिव यतकाल की सकमक ि या के कत के साथ ‘ने’ परसग का योग नहीं होता है । जैसे– वह फल खाता है । वह फल खाएगा।
(3) होना, पड़ता, चािहए ि याओँ के साथ ‘को’ का योग होता है । जैसे–
• राम को पढ़ना चािहए।
• सबको सहना पड़ता है ।
(4) लाना, भूल ना, बोलना के भूतकािलक प के साथ और िजन ि याओँ के साथ जाना, चुकना, लगना, सकना लगते है ,ँ वह ‘ने’ का लोप हो जाता है । जैसे–
• राम फल लाया।
• मोहन जा सका।
(5) कमवा य और भाववा य म ‘ने’ के थान पर ‘से’ का योग होता है । जैसे–
• रावण राम से मारा गया।
• रोगी से चला नहीँ जाता।
• सीता से पु तक पढ़ी गई।
2. कम कारक–
सं ा या सवनाम के िजस प पर क ारा की गई ि या का फल पड़ता है अथ त् िजस श द प पर ि या का भाव पड़ता है , उसे कत कारक कहते है ।ँ इसका
कारक–िच ‘को’ है । जैसे– मोहन ने स प को मारा। इस वा य म ‘मारने’ की ि या का फल स प पर पड़ा है । अतः स प कम कारक है । इसके साथ परसग ‘को’ लगा है ।
• अब याम को बुल ालो।
• िवजेता बालक को ही पुर कार िमलेगा।
• कु सुम ने सीमा को नृ य िसखाया।
• गु बालक को पु तक देता है ।
3. करण कारक–
सं ा के िजस प से ि या के साधन का बोध हो अथ त् िजस साधन से ि या की जाये उसे करण कारक कहते है ।ँ इसके िवभि त िच ‘से’ , ‘के ारा’ है ।ँ जैसे–
1. अजुन ने जय थ को बाण से मारा।
2.बालक गद से खेल रहे है ।
पहले वा य म कत अजुन ने मारने का काय ‘बाण’ से िकया। अतः ‘बाण से’ करण कारक है । दूसरे वा य म कत बालक खेल ने का काय ‘गद से’ कर रहे ह। अतः ‘गद
से’ करण कारक है ।
अ य उदाहरण–
• राम ने बाण से बाली को मारा।
• मैँ सदा े न ारा या ा करता हूँ।
• ाचाय ने यह आदेश चपरासी के ारा िभजवाया है ।
• मैँ रोजाना कार से काय लय जाता हूँ।
4. स दान कारक–
सं दान का अथ है , देना। कत ारा िजसके िलए कु छ काय िकया जाए अथवा िजसे कु छ िदया जाए उसका बोध कराने वाले सं ा के प को सं दान कारक कहते ह।
इसके िवभि त िच ‘के िलए’ ‘को’ ह। जैसे–
• वा य के िलए सूय को नम कार करो।
• गु जी को फल दो।
• बालक के िलए दूध चािहए।
• गौरव को पु तक दो।
5. अपादान कारक–
सं ा के िजस प से एक व तु का दूसरी व तु से अलग या पृथ क् अथवा उ प होने का भाव य त हो, उसे अपादान कारक कहते है ।ँ इसका िवभि त–िच ‘से’ है ।
(8) र ा के अथ म। जैसे–
• उसे िगरने से बचाओ।
6. स ब ध कारक–
सं ा के िजस प से िकसी व तु का दूसरी व तु से स ब ध कट हो उसे स ब ध कारक कहते है ।ँ इसका योग व व, अपादान, करण, स ब ध, आधार आिद अथ ँ को
कट करने के िलए होता है । स ब ध कारक के िवभि त–िच (परसग) का, के, की, रा, रे, री तथा ना, ने, नी है ।ँ जैसे–
• राम का भाई मेरे घर है ।
• अपनी बात पर भरोसा रखो।
• ल मण राम का भाई है ।
• यही मेरा घर है ।
• इन कपड़ का रंग अ यंत चटकीला है ।
• शानू की पे ि सल मेरे पास है ।
• गीितका के कागजात कहीँ िगर गए है ।ँ
स ब ध कारक के परसग सं ा श द के िलँग और वचन के अनुसार बदल जाते है ।ँ जैसे–
• रामू का भाई।
• रामू की बहन।
• रामू के पापा।
7. अिधकरण कारक–
सं ा या सवनाम के िजस प से ि या के आधार या काल का बोध होता है उसे अिधकरण कारक कहते ह। इसका योग समय, थान, दूरी, कारण, तुल ना, मू य आिद
आधार सूचक भाव के िलए भी होता है । इसके िवभि त–िच ‘म’, ‘पर’ ह। जैसे–
• थैल े म फल है ।ँ
• ब च छत पर मत खेल ो।
• मेज पर फूलदान है ।
• मेरा भाई काय लय म है ।
• पु तक पर उसका पता िलखा है ।
• मैँ िदन म सोता हूँ।
• प च मील की दूरी।
8. स बोधन कारक–
सं ा के िजस प से िकसी को पुकारने, बुल ाने या सचेत करने का बोध हो, उसे स बोधन कारक कहते है ।ँ स बोधन कारक का कोई िवभि त–िच (परसग) नहीँ होता
है , िक तु उसे कट करने के िलए सं ा से पूव ायः िव मयािदबोधक अ यय जोड़ देते है ।ँ जैसे–
• अरे भाई! इधर आना।
• अजी! सुनते हो।
• ब चो! यह शोर मत करो।
• हे भगवान! हमारी र ा करो।
• हे परमा मा! मुझे शि त दो।
इस कारक म ‘हे ’ , ‘ओ’, ‘अरे’ आिद श द का योग सं ा के पूव िकया जाता है अतः इ ह परसग ँ की ेणी म नहीँ रखा जा सकता।
काल–िवचार
♦ काल–
ि या के िजस प से काय स प होने का समय (काल) जाना जाये, उसे काल कहते है ।ँ जैसे–
1. सुिम ा ने प िलखा।
2. सुिम ा प िलखती है ।
3. सुिम ा प िलखेगी।
ऊपर िलखे तीन वा य म ‘िलखना’ ि या आई है । पहले वा य म ‘िलखा’ ि या बीते हएु समय का ान कराती है । दूसरे वा य म ‘िलखती है ’ ि या वतमान समय का
बोध कराती है और तीसरे वा य म ‘िलखेगी’ ि या आगे आने वाले समय का ान करा रही है ।
♦ काल के भेद–
काल के तीन भेद होते है –
ँ
1. भूतकाल
2. वतमान काल
3. भिव यत् काल।
1. भूतकाल–
ि या के िजस प से बीते हएु समय (अतीत) म काय संप होने का बोध हो उसे भूतकाल कहते है ।ँ
जैसे–
• राम ने पु तक पढ़ी।
• राम पु तक पढ़ रहा था।
• राम पु तक पढ़ चुका था।
• राम ने पु तक पढ़ ली होगी।
ऊपर िलखे चार वा य म ‘पढ़ना’ ि या आई है और चार वा य म इस ि या के अलग–अलग प है ।ँ चार वा य को पढ़ने से मालूम होता है िक ‘पढ़ना’ ि या का समय
भूतकाल म समा त हो गया।
2. आस भूत–
ि या के िजस प से अभी–अभी िनकट भूतकाल म ि या का होना कट हो, वह आस भूत होता है । जैसे–
(1) ब चा आया है ।
(2) याम ने प िलखा है ।
(3) कमल गया है ।
3. अपूण भूत–
ि या के िजस प से काय का होना बीते समय म कट हो, पर पूरा होना कट न हो वह अपूण भूत होता है । जैसे–
(1) ब चा आ रहा था।
(2) याम प िलख रहा था।
(3) कमल जा रहा था।
4. पूण भूत–
ि या के िजस प से यह ात हो िक काय समा त हएु बहत
ु समय बीत चुका है उसे पूण भूत कहते ह। जैसे–
(1) याम ने प िलखा था।
(2) ब चा आया था।
(3) कमल गया था।
5. संिद ध भूत–
ि या के िजस प से भूतकाल का बोध तो हो िक तु काय के होने म संदेह हो वह संिद ध भूत होता है । जैसे–
(1) ब चा आया होगा।
(2) याम ने प िलखा होगा।
(3) कमल गया होगा।
6. हे तुहेतुमद भूत–
ि या के िजस प से बीते समय म एक ि या के होने पर दूसरी ि या का होना आि त हो अथवा एक ि या के न होने पर दूसरी ि या का न होना आि त हो वह
हे तुहेतुमद भूत होता है । जैसे–
(1) यिद याम ने प िलखा होता तो म अव य आता।
(2) यिद वष होती तो फसल अ छी होती।
2. वतमान काल–
ि या के िजस प से काय के वतमान समय म होने का ान हो, उसे वतमान काल कहते है ।ँ
जैसे–
• क णा गीत गाती है ।
• क णा गीत गा रही है ।
• क णा गीत गाती होगी।
• क णा गीत गा चुकी होगी।
ऊपर िलखे सभी वा य म ‘गाना’ ि या वतमान समय म हो रही है ।
2. अपूण वतमान–
ु है वह अपूण वतमान होता है । जैसे–
ि या के िजस प से यह बोध हो िक काय अभी चल ही रहा है , समा त नहीं हआ
(1) ब चा रो रहा है ।
(2) याम प िलख रहा है ।
(3) कमल आ रहा है ।
3. संिद ध वतमान–
ि या के िजस प से वतमान म काय के होने म संदेह का बोध हो वह संिद ध वतमान होता है । जैसे–
(1) अब ब चा रोता होगा।
(2) याम इस समय प िलखता होगा।
—:०:—
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• सामा य िह दी
♦ होम पे ज
तुित:–
मोद खेदड़
सामा य िह दी
• सवनाम के साथ दो िवभि त िच होने पर पहला िवभि त िच सवनाम म िमलाकर िलखा जाएगा एवं दूसरा अलग िलखा जाएगा, जैसे–
आपके िलए, उसके िलए, इनम से, आपम से, हमम से आिद।
सवनाम और उसकी िवभि त के बीच ‘ही’ अथवा ‘तक’ आिद अ यय ह तो िवभि त सवनाम से अलग िलखी जायेगी, जैसे–
आप ही के िलए, आप तक को, मुझ तक को, उस ही के िलए।
• संयु त ि याओँ म सभी अंगभूत ि याओँ को अलग–अलग िलखा जाना चािहए, जैसे– जाया करता है , पढ़ा करता है , जा सकते हो, खा सकते हो, आिद।
• पूवकािलक यय ‘कर’ को ि या से िमलाकर िलखा जाता है , जैसे– सोकर, उठकर, गाकर, धोकर, िमलाकर, अपनाकर, खाकर, पीकर, आिद।
• समास म पद के बीच योजन िच (–) हाइफन लगाया जाना चािहए, जैसे– माता–िपता, राधा–कृ ण, िशव–पावती, बाप–बेटा, रात–िदन आिद।
• ‘तक’, ‘साथ’ आिद अ यय को पृथ क िलखा जाना चािहए, जैसे– मेरे साथ, हमारे साथ, यह तक, अब तक आिद।
• ‘जैसा’ तथा ‘सा’ आिद सा य वाचक के पहले योजक िच (–) का योग िकया जाना चािहए। जैसे– चाकू–सा, तीखा–सा, आप–सा, यारा–सा, क है या–सा आिद।
• जब वणमाला के िकसी वग के पंचम अ र के बाद उसी वग के थम चार वण ँ म से कोई वण हो तो पंचम वण के थान पर अनु वार (◌ं ) का योग होना चािहए। जैसे–
कंकर, गंगा, चंचल, ठं ड, नंदन, संप , अंत, संपादक आिद। परंतु जब नािस य यंजन (वग का पंचम वण) उसी वग के थम चार वण ँ के अलावा अ य िकसी वण के पहले
आता है तो उसके साथ उस पंचम वण का आधा प ही िलखा जाना चािहए। जैसे– प ा, स ाट, पु य, अ य, स माग, र य, ज म, अ वय, अ वेषण, ग ा, िन , स मान आिद
पर तु घ टा, ठ डा, िह दी आिद िलखना अशु है ।
• अ, ऊ एवं आ मा ा वाले वण ँ के साथ अनुनािसक िच (◌ँ ) को इसी च िब दु (◌ँ ) के प म िलखा जाना चािहए, जैसे– आँख, हँस, ज च, क च, अँगना, स स, ढ चा,
त त, दाय , बाय , ऊँट, हूँ, जूँ आिद। पर तु अ य मा ाओँ के साथ अनुनािसक िच को अनु वार (◌ं ) के प म िलखा जाता है , जैसे– मैँने, नहीँ, ढचा, खीँचना, दाय, बाय,
िसँचाई, ईँट आिद।
• सं कृत मूल के त सम श द की वतनी म सं कृत वाला प ही रखा जाना चािहए, पर तु कु छ श द के नीचे हल त (◌् ) लगाने का चलन िह दी म समा त हो चुका है ।
अतः उनके नीचे हल त न लगाया जाये, जैसे– महान, जगत, िव ान आिद। पर तु संिध या छ द को समझाने हे तु नीचे हल त लगाया जाएगा।
• अँ ेजी से िह दी म आये िजन श द म आधे ‘ओ’ (आ एवं ओ के बीच की विन ‘ऑ’) की विन का योग होता है , उनके ऊपर अ च िब दु लगानी चािहए, जैसे– बॉल,
कॉलेज, डॉ टर, कॉफी, हॉल, हॉि पटल आिद।
• सं कृत भाषा के ऐसे श द , िजनके आगे िवसग ( : ) लगता है , यिद िह दी म वे त सम प म यु त िकये जाएँ तो उनम िवसग लगाना चािहए, जैसे– दुःख, वा तः, फलतः,
ातः, अतः, मूल तः, ायः आिद। पर तु दुखद, अतएव आिद म िवसग का लोप हो गया है ।
• िवसग के प ात् श, ष, या स आये तो या तो िवसग को यथावत िलखा जाता है या उसके थान पर अगला वण अपना प हण कर लेता है । जैसे–
- दुः + शासन = दुःशासन या दु शासन
- िनः + स देह = िनःस देह या िन स देह ।
• उ चारण दोष: कई े व भाषाओँ म, स–श, व–ब, न–ण आिद वण ँ म अथभेद नहीँ िकया जाता तथा इनके थान पर एक ही वण स, ब या न बोला जाता है जबिक िह दी म
इन वण ँ की अलग–अलग अथ–भेदक विनय है ।ँ अतः उ चारण दोष के कारण इनके लेखन म अशुि हो जाती है । जैसे–
अशु शु
कोिसस – कोिशश
सीदा – सीधा
सबी – सभी
सोर – शोर
अराम – आराम
पाणी – पानी
बबाल – बवाल
पाठसाला – पाठशाला
शब – शव
िनपुन – िनपुण
ान – ाण
बचन – वचन
यवहार – यवहार
रामायन – रामायण
गुन – गुण
• जह ‘श’ एवं ‘स’ एक साथ यु त होते है ँ वह ‘श’ पहले आयेगा एवं ‘स’ उसके बाद। जैसे– शासन, शंसा, नृशंस, शासक ।
इसी कार ‘श’ एवं ‘ष’ एक साथ आने पर पहले ‘श’ आयेगा िफर ‘ष’, जैसे– शोषण, शीषक, िवशेष, शेष, वेशभूषा, िवशेषण आिद।
• ‘स्’ के थान पर पूरा ‘स’ िलखने पर या ‘स’ के पहले िकसी अ र का मेल करने पर अशुि हो जाती है , जैसे– इ ी (शु होगा– ी), अ नान (शु होगा– नान),
परसपर अशु है जबिक शु है पर पर।
• अ र रचना की जानकारी का अभाव : देवनागरी िलिप म संयु त यंजन म दो यंजन िमलाकर िलखे जाते है ,ँ पर तु इनके िलखने म ुिट हो जाती है , जैसे–
अशु शु
आश वाद – आशीव द
िनमाण – िनम ण
पुन थापना – पुन थ पना
बहधु ा ‘र्’ के योग म अशुि होती है । जब ‘र्’ (रेफ़) िकसी अ र के ऊपर लगा हो तो वह उस अ र से पहले पढ़ा जाएगा। यिद हम सही उ चारण करगे तो अशुि का ान
हो जाता है । आशीव द म ‘र्’ , ‘वा’ से पहले बोला जायेगा– आशीर् वाद। इसी कार िनम ण म ‘र्’ का उ चारण ‘मा’ से पहले होता है , अतः ‘र्’ मा के ऊपर आयेगा।
• िजन श द म यंजन के साथ वर, ‘र्’ एवं आनुनािसक का मेल हो उनम उस अ र को िलखने की िविध है –
अ र वर र् अनु वार (◌ं )।
जैसे– त् ए र् अनु वार=शतँ
म् ओ र् अनु वार=कम ँ।
इसी कार और , धम ँ, परा म आिद को िलखा जाता है ।
• कोई, भाई, िमठाई, कई, ताई आिद श द को कोयी, भायी, िमठायी, तायी आिद िलखना अशु है । इसी कार अनुयायी, थायी, वाजपे यी श द को अनयाई, थाई, वाजपे ई
आिद प म िलखना भी अशु होता है ।
• सम् उपसग के बाद य, र, ल, व, श, स, ह आिद विन हो तो ‘म्’ को हमेशा अनु वार (◌ं ) के प म िलखते है ,ँ जैसे– संयम, संवाद, संल न, संसग, संहार, संरचना,
संर ण आिद। इ ह स शय, स हार, स वाद, स चना, स ल न, स ण आिद प म िलखना सदैव अशु होता है ।
• आनुनािसक श द म यिद ‘अ’ या ‘आ’ या ‘ऊ’ की मा ा वाले वण ँ म आनुनािसक विन (◌ँ ) आती है तो उसे हमेशा (◌ँ ) के प म ही िलखा जाना चािहए। जैसे– द त, पूँछ,
ऊँट, हूँ, प च, ह , च द, हँसी, ढ चा आिद पर तु जब वण के साथ अ य मा ा हो तो (◌ँ ) के थान पर अनु वार (◌ं ) का योग िकया जाता है , जैसे– फक, नहीँ, खीँचना,
ग द आिद।
• ‘ष’ वण केवल षट् (छह) से बने कु छ श द , यथा– ष कोण, षड़यं आिद के ारंभ म ही आता है । अ य श द के शु म ‘श’ िलखा जाता है । जैसे– शोषण, शासन, शेषनाग
आिद।
• संयु ता र म ‘ट्’ वग से पूव म हमेशा ‘ष्’ का योग िकया जाता है , चाहे मूल श द ‘श’ से बना हो, जैसे– सृि , ष , न , क , अ , ओ , कृ ण, िव णु आिद।
• ‘ श’ का योग सामा यतः न शा, िर शा, न श आिद श द म ही िकया जाता है , शेष सभी श द म ‘ ’ का योग िकया जाता है । जैसे– र ा, क ा, मता, स म, िश ा, द
आिद।
• ‘ ’ विन के उ चारण हे तु ‘ य’ िलिखत प म िन श द म ही यु त होता है – यारह, यो य, अयो य, भा य, रोग से बने श द जैसे–आरो य आिद म। इनके अलावा अ य
श द म ‘ ’ का योग करना सही होता है , जैसे– ान, अ ात, य , िवशेष , िव ान, वै ािनक आिद।
• िह दी भाषा सीखने के चार मु य सोपान है ँ – सुनना, बोलना, पढ़ना व िलखना। िह दी भाषा की िलिप देवनागरी है िजसकी धान िवशेषता है िक जैसे बोली जाती है वैसे ही
िलखी जाती है । अतः श द को िलखने से पहले उसकी वर– विन को समझकर िलखना समीचीन होगा। यिद ‘ए’ की विन आ रही है तो उसकी मा ा का योग कर। यिद
‘उ’ की विन आ रही है तो ‘उ’ की मा ा का योग कर।
1. भाषा (अ र या मा ा) स ब धी अशुि य :
अशु — शु
बृिटश – ि िटश
गुण – ि गुण
िरषी – ऋिष
बृ ा – ा
ब ध – बँध
पै ि क – पै तृक
जा ती – जागृित
ीय – ि य
ि – सृि
अती – अित
तै यार – तैयार
आव यकीय – आव यक
उपरो त – उपयु त
ोत – ोत
जाइये – जाइए
लाइये – लाइए
िलये – िलए
अनुगृह – अनु ह
अकाश – आकाश
असीस – आिशष
देिहक – दैिहक
किवयि – कविय ी
ि – दृि
घिन – घिन
यवहािरक – यावहािरक
रा ी – राि
ा ती – ाि त
सामथ – साम य
एकि त – एक
ईष – ई य
पु य – पु य
कृत ी – कृत
बिनता – विनता
िनिर ण – िनरी ण
पती – पित
आ – आकृ
सािमल – शािमल
मि त क – मि त क
िनसार – िनःसार
स मान – स मान
िह दु – िह दू
गु – गु
दा त – द त
चिहए – चािहए
थक – पृथ क्
पिर ा – परी ा
षोडषी – षोडशी
परीवार – पिरवार
परीचय – पिरचय
सौ दयता – सौ दय
अ ानता – अ ान
गरीमा – गिरमा
समाधी – समािध
बूड़ा – बूढ़ा
ऐ यता – ए य,एकता
पू यनीय – पूजनीय
पि – प ी
अतीशय – अितशय
संसािरक – स सािरक
शताि द – शता दी
िनरोग – नीरोग
दुकान – दूकान
द पित – द पती
अ तचतना – अ त ेतना
2. िलंग स ब धी अशुि य :
िह दी म िलँग स ब धी अशुि य ायः िदखाई देती है ।ँ इस दृि से िन बात का यान रखना चािहए—
(1) िवशेषण श द का िलँग सदैव िवशे य के समान होता है ।
(2) िदन , महीन , ह , पहाड़ , आिद के नाम पुि लंग म यु त होते है ,ँ िक तु ितिथय , भाषाओँ और निदय के नाम ीिलँग म योग िकये जाते है ।ँ
(3) ािणवाचक श द का िलँग अथ के अनुसार तथा अ ािणवाचक श द का िलँग यवहार के अनुसार होता है ।
(4) अनेक त सम श द िह दी म ीिलँग म यु त होते है ।ँ
- उदाहरण—
• दही बड़ी अ छी है । (बड़ा अ छा)
• आपने बड़ी अनु ह की। (बड़ा, िकया)
• मेरा कमीज उतार लाओ। (मेरी)
• लड़के और लड़िकय िच ला रहे है ।ँ (रही)
• कटोरे म दही जम गई। (गया)
• मेरा ससुराल जयपुर म है । (मेरी)
• महादेवी िवदुषी किव है ।ँ (कविय ी)
• आ मा अमर होता है । (होती)
• उसने एक हाथी जाती हईु देखी। (जाता हआ ु देखा)
• मन की मैल काटती है । (का, काटता)
• हाथी का सूंड केले के समान होता है । (की, होती)
• सीताजी वन को गए। (गयीँ)
• िव ान ी (िवदुषी ी)
• गुणवान मिहला (गुणवती मिहला)
• माघ की महीना (माघ का महीना)
• मूितमान् क णा (मूितमयी क णा)
• आग का लपट (आग की लपट)
• मेरा शपथ (मेरी शपथ)
• गंगा का धारा (गंगा की धारा)
• च मा की म डल (च मा का म डल)।
3.समास स ब धी अशुि य :
दो या दो से अिधक पद का समास करने पर यय का उिचत योग न करने से जो श द बनता है , उसम कभी–कभी अशुि रह जाती है । जैसे –
अशु — शु
िदवाराि – िदवारा
िनरपराधी – िनरपराध
ऋषीजन – ऋिषजन
णीमा – ािणमा
वामीभ त – वािमभ त
िपताभि त – िपतृभि त
महाराजा – महाराज
ाताजन – ातृजन
दुराव था – दुरव था
वामीिहत – वािमिहत
नवरा ा – नवरा
4.संिध स ब धी अशुि य :
अशु — शु
उपरो त – उपयु त
सदोपदेश – सदुपदेश
वयवृ – वयोवृ
सदेव – सदैव
अ यािधक – अ यिधक
स मुख – स मुख
उधृत – उ तृ
मनहर – मनोहर
अधतल – अध तल
आश वाद – आशीव द
दुराव था – दुरव था
6. यय–उपसग स ब धी अशुि य :
अशु — शु
सौ दयता – सौ दय
लाघवता – लाघव
गौरवता – गौरव
चातुयता – चातुय
ऐ यता – ऐ य
साम यता – साम य
सौज यता – सौज य
औदायता – औदाय
मनु य वता – मनु य व
अिभ – अभी
बेिफजूल – िफजूल
िमठासता – िमठास
अ ानता – अ ान
भूगौिलक – भौगोिलक
इितहािसक – ऐितहािसक
िनरस – नीरस
7. वचन स ब धी अशुि य :
(1) िह दी म बहत ँ ह ता र, ाण, दशन, आँसू, होश आिद।
ु –से श द का योग सदैव बहवु चन म होता है , ऐसे श द है —
(2) वा य म ‘या’ , ‘अथवा’ का योग करने पर ि या एकवचन होती है । लेिकन ‘और’ , ‘एवं’ , ‘तथा’ का योग करने पर ि या बहवु चन होती है ।
(3) आदरसूचक श द का योग सदैव बहवु चन म होता है ।
उदाहरणाथ—
1. दो चादर खरीद लाया। (चादर)
2. एक चटाइय िबछा दो। (चटाई)
3. मेरा ाण संकट म है । (मेरे, है )ँ
4. आज मैँने महा मा का दशन िकया। (के, िकये)
5. आज मेरा मामा आये। (मेरे)
6. फूल की माला गूँथ ो। (फूल )
7. यह ह ता र िकसका है ? (ये, िकसके, है )ँ
8. िवनोद, रमेश और रहीम पढ़ रहा है । (रहे है )ँ
अ य उदाहरण—
अशु — शु
ीय – ि य
माताय – माताओँ
नािरओँ – नािरय
अनेक – अनेक
बहतु – बहत ु
मुिनओँ – मुिनय
सब – सब
िव ाथ य – िव ािथय
ब धुए ँ – ब धुओँ
दाद – दादाओँ
सभीओँ – सभी
नदीओँ – निदय
8. कारक स ब धी अशुि य :
अ. – राम घर नहीँ है ।
शु. – राम घर पर नहीँ है ।
अ. – अपने घर साफ रखो।
शु. – अपने घर को साफ रखो।
अ. – उसको काम को करने दो।
शु. – उसे काम करने दो।
अ. – आठ बजने को प ह िमनट है ।ँ
शु. – आठ बजने म प ह िमनट है ।ँ
अ. – मुझे अपने काम को करना है ।
शु. – मुझे अपना काम करना है ।
अ. – यह बहत ु से लोग रहते है ।ँ
शु. – यह बहत ु लोग रहते है ।ँ
9.श द– म स ब धी अशुि य :
अ. – वह पु तक है पढ़ता।
शु. – वह पु तक पढ़ता है ।
अ. – आजाद हआ ु था यह देश सन् 1947 म।
शु. – यह देश सन् 1947 म आजाद हआ ु था।
अ. – ‘पृ वीराज रासो’ रचना च वरदाई की है ।
शु. – च वरदाई की रचना ‘पृ वीराज रासो’ है ।
• सामा य िह दी
♦ होम पे ज
तुित:–
मोद खेदड़
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