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November 2021 Question Paper 01
November 2021 Question Paper 01
November 2021 Question Paper 01
* 6 5 2 6 6 2 7 5 6 9 *
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KI 206274/2
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2
लोक-कथा की विधा बहुत परु ानी और लोकवरिय है । लोक-कथाओं के नाना रूप हैं। सोते समय बच्चों की ज़िद
पर उनके मनोरं जन के ललए सन ु ाई जाने िाली लोक-कथाएँ एक रिकार की हैं तो तीज-तययौहार पर सनु ी-सन
ु ाई
जाने िाली दस ू रे रिकार की। कुछ लोक-कथाएँ ‘एक था राजा और एक थी रानी’ की शैली में शरू ु होती हैं तो
कुछ जंगल में ‘एक शेर’ या ‘एक भाल’ू था से। राजा-रानी की कहाननयाँ भी जनसाधारण के द:ु ख-सख ु के इद्द -
गगद्द ही ्चलती हैं, उनमें भी विपदा के बादल गहराते हैं और विपदा ्चाहे ज़जतनी लमबी हो उसका अंत होता
है । सख
ु के पल आते हैं और कहानी का अंत, ‘जैसे उनके ददन फिरे िैसे सबके फिरें ’, से होता है । विपवति में
डूबते-उबरते मन को ऐसी लोक-कथाएँ मनोरं जन और आशा के साथ एक नैनतक संदेश रिदान करती हैं।
ऐसी ही एक कहानी उस अकेली ग्चड़िया की है ज़जसका दाना ्चककी के खंट ू े में अटक गया और उसे पाने के
ललए शांनत और धैय्द के साथ उसने लंबी कोलशश की। उसके सामने जीिन-मरण का रिशन था। उसने फकसी
तरह से तो एक दाना जट ु ाया था, जब ्चककी में उसे दलने गई तो दाना ्चककी के खंट ू े में अटका रह गया।
अब कया खाए, कया पीए और कया लेकर परदे स जाए! िह बढ़ई के पास गई, और बढ़ई से खंट ू ा ्चीरने को
कहा ताफक दाना बाहर ननकल जाए। बढ़ई ने मना कर ददया तो राजा के पास गई, ‘राजा, राजा बढ़ई को दं ड
दो!’ राजा ने उसकी बात अनसन ु ी कर दी तो रानी से राजा को छोिने की दरखिासत कर डाली। रानी ने मना
फकया तो साँप के पास पँहु्ची – ‘रानी को डँसो’, साँप ने मना फकया तो लाठी से गह ु ार लगाई – ‘साँप को मारो।’
लाठी ने मना फकया तो आग से कहा, ‘लाठी को जला दो।’ आग के मना करने पर सागर से लमननत की, ‘आग
को बझ ु ा दो।’ सागर ने मना फकया तो हाथी से कहा, ‘सागर को सँड ू में भर कर पी जाओ।’ हाथी ने मना फकया
तो ्चींटी से कहा, ‘हाथी की सँडू में घस
ु कर उसे काट-काट कर बेदम कर दो।’
्चींटी ने ग्चड़िया की गि
ु ाररश सन
ु ली और हाथी को काटने दयौिी तो हाथी गगिगगिाया, ‘हमकू काटो-िाटो मनत
कोई, हम सागर सोखब लेइ।’ हाथी सागर को सोखने ्चला तो सागर गगिगगिाया। इस तरह सागर आग को
बझु ाने पर, आग लाठी को जलाने पर, लाठी साँप को मारने पर, साँप रानी को डँसने पर, रानी राजा को छोिने
पर, राजा बढ़ई को दं ड़डत करने पर और अंत में बढ़ई खंट
ू ा ्चीरने पर राजी हुआ। यह ग्चड़िया के सतत रियतन
की जीत थी।
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[पूणाांक 8]
‘स्ू क
्व यांत त्रिपयाठी ‘न्नरयालया’’ के बयारे में छपे इस लेख को ध्या्न से पिें । प्रश्न 7 से 15 कया उत्तर दे ्ने के ललए उ्नके
्नीचे ढ़दए गए अ्नच ु छे दों (A से D) में से सही अ्नच ु छे द च्न
ु कर उसके सयाम्ने के कोषठक में सही कया न्नशया्न
लगयाएँ। अ्नच ु छे दों को एक से अधिक बयार च्न ु या िया सकतया है ।
A दहंदी के छायािादी युग के कवियों में सूयक्द ांत त्रिपाठी ‘ननराला’ कई दृज़्टयों से बहुत महतिपूण्द हैं। उनकी
लशक्ा बंगला भाषा में हुई थी और रिारं भ में िे बंगला में ही कविता ललखते थे। वििाह के बाद पतनी की
रिेरणा से िे दहंदी में र्चना करने लगे। उनका वयज़कतति अनतशय विद्ोही और कांनतकारी ततिों से ननलम्दत
हुआ था। जीिन की कदठन पररज़सथनतयों और पाररिाररक द:ु खों के अनुभि से उनके वयज़कतति में विषाद
और कभी हार न मानने के दृढ़ संकलप का अदभुत सज़ममश्रण था जो उनकी कविताओं में एक विशेष
रिभाि पैदा करता है । वयज़कतति की ये विशेषताएँ उनकी कविताओं में छं द, भाषा-शैली और भाि संबंधी
निीन रियोग के रूप में रिसतुत होने के साथ छायािाद युग की कविता को पररभावषत भी करती हैं।
B ‘ननराला’ के सिालभमानी सिभाि के कारण लोगों के मन में यह धारणा जमी हुई थी फक िे अपने आगे
फकसी को भी नहीं गगनते। बात फकसी हद तक ठीक भी थी। अपने मन के भाि िे फकसी के साथ बाँटने
के बजाय उनहें कविता के रूप में अलभवयकत करते थे। कविता ललखने के पहले िे मन ही मन सो्चते
रहते थे। अपने हृदय के उदगारों में तललीन होकर उनहें ्चुप्चाप छं द, ताल, लय और शबदों में बाँधने
में लगे रहते थे। जब तक कविता पूरी तरह से आकार नहीं ले लेती, अपने ननकटतम लमरि या संबंगधयों
से भी उसकी ्च्चा्द तक नहीं करते थे। इसललए ददन-रात उनके साथ रहने िालों को उनके मन में ्चलने
िाली सज ृ न रिफकया का अनुमान तक नहीं होता था। लोग उनकी ऊपरी बातों से इतने आकवष्दत होते थे
फक उनके भीतर नछपे कवि की छवि से ननतांत अनलभज्ञ रहते थे। ननराला के लमरि, डॉ रामविलास शमा्द
ने उनके दोहरे वयज़कतति का वििरण दे ते हुए ललखा, ‘एक ददन अटठािन नंबर, नाररयल िाली गली,
लखनऊ के मकान में कुछ घंटे नी्चे के कमरे में त्बताने के बाद, हाथ में एक कागि ललए िे ऊपर आए,
तब मैं उनहीं के साथ रहता था, दो छं द पढ़ कर सुनाए और बोले, ‘तुलसीदास’ पूरा कर ददया है । ये उनकी
रिलसदध कविता, ‘तुलसीदास’ के छं द थे। इसके पहले उनहोंने आभास तक नहीं ददया था फक उनका मन
तुलसीदास के साथ ग्चरिकूट में घूम रहा है ।’
C ननराला की बहुत सी कविताएँ आसानी से समझ में नहीं आतीं। िासति में िे कविता ललखने में बहुत
पररश्रम करते थे, हर पंज़कत और हर शबद के संगीत और उनकी वयंजना का धयान रखते थे। केिल
कविता ही नहीं, कभी-कभी परि ललखते हुए भी िे भाषा के गठन का इसी तरह धयान रखते थे। उनके घर
में रिाय: अधललखे पोसटकाड्द दे खने को लमलते थे। उनका यही रहसय था, थोिा सा ललखा, कोई शबद पसंद
नहीं आया, तो फिर से शुरू फकया। अपनी बात कहने के ललए सही शबद की तलाश और उसे उपलबध होने
की खुशी संसकृत के महाकवियों का समरण कराती है जो अपनी कविता में साथ्दक शबद ललखने की खुशी
की तुलना पुरि-जनम के आनंद से करते थे।
D कविताएँ पढ़ने और सन ु ाने में उनहें बिा आनंद आता था। सैंकिों कविताएँ, अपनी ही नहीं दस
ू रों की भी,
उनहें कंठसथ थीं। सन ु ाते समय िे विहिल हो जाते थे, गला भर आता था और उनका विशाल आकार हिा
में पतिे की तरह काँप उठता था। कविता सन ु ाते समय िे अपनी आँखों और सिर से उसकी ज़जतनी अचछी
वयाखया कर दे ते थे, उतनी अचछी वयाखया कोई आलो्चक भी नहीं कर सकता था। शेकसवपयर के एक
सॉनेट को लेकर िे अंग्ेिी के कई अधयापकों को परे शान कर ्चक ु े थे। इसी तरह काललदास के ‘मेघदत ू ’
के कुछ छं दों को लेकर उनहोंने संसकृत के कुछ आ्चाययों की परीक्ा ले डाली थी। ननराला का घर सादहतय
रिेलमयों के ललए तीथ्दसथान था। रिलसदध सादहतयकारों से लेकर विदयागथ्दयों तक के ललए उनके दिार सदा
खल ु े रहते थे। हालाँफक कविता को लेकर ननराला और रिलसदध कवि सलु मरिानंदन पंत के बी्च मतभेद थे,
पर जब भी पंत लखनऊ आते थे, उनके यहाँ अिशय आते थे। दोनों के सरस िाता्दलाप को सन ु कर यह
अनम ु ान तक नहीं फकया जा सकता था फक िे एक-दस ू रे के आलो्चक थे।
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्नीचे ढ़दए गए ्वकतव्ों (7–15) को पढ़िए तथया कोषठक में सही कया न्नशया्न लगया कर बतयाइए कक कौ्न सया
अ्नुचछे द (A–D) ककस ्वकतव् से समबंधित है ।
A B C D
7 ‘ननराला’ के निदीक रहने िाले भी उनके मन में ्चलने िाली र्चना-रिफकया से अनलभज्ञ रहते थे।
A B C D [1]
A B C D [1]
A B C D [1]
A B C D [1]
A B C D [1]
A B C D [1]
A B C D [1]
A B C D [1]
15 जीिन के कदठन संघष्द ने उनके भीतर सादहतय में निीन रियोग करने का साहस भरा था।
A B C D [1]
[पूणाांक 9]
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सालभर बि्द से आचछाददत पथ ु में बहुत कम रिाणी जीवित रह पाते हैं, फकंतु दो पैरों पर
ृ िी के दक्क्णी ध्ि
डगमगाकर ्चलने िाले पैंज़्िन के ललए यह अनक ु ू ल आिास है । पैंज़्िन उिनशील पि
ू ज
्द ों के िंशज हैं। सभी
पक्क्यों के पंख होते हैं, ज़जनका उपयोग िे उिने के ललए करते हैं। पर पैंज़्िन अपने पंखों से उिने की क्मता
खोकर उनका रियोग बदल कर तैराक बन गए। उनकी हडड़डयाँ भारी हो गईं ज़जससे उनहें पानी में डुबकी लगाने
में सहायता लमली और ्चपपू जैसे हाथ उनहें तैराकी में मादहर बनाते हैं। िे 25 मील रिनत घंटे की रफ़तार से
1650 िुट से भी अगधक गहरे पानी में तैरते हैं। धरती पर िे अपने डगमगाते कदमों से ्चलते हैं, पर उनका
80 रिनतशत समय पानी में वयतीत होता है ।
पैंज़्िन की 17-20 रिजानतयाँ हैं ज़जनमें से 47 इं्च लंबा और सबसे बिा, ऐमपरर पैंज़्िन दक्क्णी ध्ुि में रहता
है । यह केिल एक लमथक है फक सभी पैंज़्िन ठं डे रिदे शों में ही रहते हैं। गहरे नीले रं ग की पीठ और सफ़ेद िक्
िाला, 13 इं्च लंबा, सबसे छोटा कोरोरा पैंज़्िन नयूिीलैंड के तटीय रिदे शों, तसमाननया, दक्क्ण ऑसट्े ललया,
और दक्क्ण अफ्ीका में पाया जाता है । गैलापगोस पैंज़्िन की एकमारि ऐसी रिजानत है जो भूमधय रे खा के उतिर
में वि्चरण करती है । पैंज़्िन एक सामाज़जक रिाणी है जो एक बसती या कॉलोनी बना कर समूह में रहता है ।
पैंज़्िन का मुखय भोजन मछली और झींगा हैं ज़जनका लशकार िह पानी में गोता लगाकर करता है । िह पानी
के भीतर 20 लमनट तक रह सकता है और समुद् का ख़ारा पानी पीता है । मँह ु के भीतर दाँत न होने के कारण
लशकार पकिने और खाने के ललए अपनी ्चों्च का इसतेमाल करता है ।
लगभग पाँ्च साल की उम्र में मादा पैंज़्िन रिजनन के ललए तैयार हो जाती है । अगधकतर रिजानतयाँ िसंत
और ग्ी्म ऋतु में रिजनन करती हैं। आमतयौर पर नर पैंज़्िन अपनी जोिी ्चुनने के बाद घोंसले के ललए एक
अचछी जगह खोज लेता है । ऐमपरर पैंज़्िन के बारे में यह कहा जाता है फक जब िह एक बार अपने ललए मादा
पैंज़्िन ्चुन लेता है तो आजीिन उसी के साथ रहता है । कदाग्चत इसी कारण से सथायी रिेम को ‘पैंज़्िन लि’
कहते हैं! मादा ऐमपरर पैंज़्िन केिल एक अंडा दे ती है , उसके अलािा अनय सभी रिजानतयाँ एक समय में दो
अंडे दे ती हैं। मादा ऐमपरर पैंज़्िन बालू के टीले या ्चटटानों के बी्च अंडा दे कर कई सपताह के ललए भोजन
की तलाश में ननकल जाती है और नर त्बना खाए-पीए घोंसले में अंडे को अपने पैरों के बी्च रख कर सेता है ।
अंडे को 40 ददनों तक सेने के बाद ्चूिे बाहर ननकलने के ललए तैयार होते हैं। िे अपनी ्चों्च की मदद से अंडा
तोिकर बाहर आते हैं। मादा पैंज़्िन तब िावपस लयौट कर उनकी दे खभाल शुरू करती है । नर और मादा दोनों
लमलकर ्चूिे को अपनी ्चों्च से खाना खखलाते हैं।
जनम के समय पैंज़्िन के ्चूिे का ििन लगभग 35 ग्ाम और शरीर पर कोमल रोएँ होते हैं। आठ सपताह
के भीतर उनका ििन तीन गुणा हो जाता है । जब तक ्चूिों के शरीर पर जल-अिरोधक पंख विकलसत नहीं
होते, नर और मादा उनकी दे खभाल करते हैं। पंख आ जाने पर िे आतमननभ्दर होकर पानी की ददशा में ्चले
जाते हैं। िे गले के सिर से परसपर संिाद करते हैं। ्चूिों की आिाि से मादा उनहें पह्चान लेती है ।
पैंज़्िन के विषय में कहा जाता है फक धरती पर उनका कोई शरिु नहीं होने के कारण उनके अज़सतति को कोई
ख़तरा नहीं। लेफकन जलिाय-ु पररित्दन के कारण अब उन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वपछले पाँ्च दशकों
से िैज्ञाननकों का एक दल हिाई और उपग्ह तसिीरों से पैंज़्िन की घटती हुई संखया का अधययन कर रहा
है । जलिाय-ु पररित्दन के द्ु रिभाि से दक्क्णी ध्ि
ु की बि्द वपघलने से ऐसे हजारों ्चि
ू ों की एक परू ी बसती,
जो जल-अिरोधक पंख न होने के कारण पानी में तैरने में असमथ्द थी, डूब कर न्ट हो गई। 1980 में विशि
की सबसे अगधक संखया िाले ऐमपरर पैंज़्िन की संखया बहुत तेिी से घटी है और अभी भी घटती जा रही
है । यदद जलिायु पररित्दन की रोकथाम नहीं की गई और तापमान इसी तरह से बढ़ता गया तो इस शताबदी
के अंत तक दक्क्णी ध्ि ु में पैंज़्िन की 70 रिनतशत आबादी समापत हो जाने की आशंका है । इसललए जीि
िैज्ञाननक इस उिानहीन पक्ी की गणना संकटापनन रिजानत के अंतग्दत करिाने की ्चे्टा में हैं।
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‘उड़या्नही्न पक्ी – पैंज््व्न’ आलेख के आियार पर ्नीचे ढ़दए गए प्रत्ेक शीर्वक (16-19) के अंतग्वत संक्क्पत ्नोट
ललखें।
16 पैंज़्िन की विशेषताएँ
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17 रिजानतयाँ और आिास
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8 • ........................................................................................................................... [2]
18 भोजन और रिजनन
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[पूणाांक 9]
अभ्यास 4 में आप आलेख और अप्ने ्नोटस के आियार पर ‘उड़या्नही्न पक्ी – पैंज््व्न’ शीर्वक लेख कया सयारयांश
ललखेंगे।
अभ्यास 4: प्रश्न 20
अभ्यास 3 के आलेख ‘उिानहीन पक्ी – पैंज़्िन’ में पैंज़्िन के जीिन-्चक, अननज़श्चत भवि्य और संरक्ण के
उपाय का िण्दन है ।
अभ्यास 3 के आलेख और अपने बनाए नोटस के आधार पर उसका सारांश ललखें। आपका सारांश 100 शबदों से
अगधक नहीं होना ्चादहए।
आपको अंत्व्वसतु के ललए अगधकतम 4 अंक और सटीक और संक्क्पत भयारया-शैली के ललए अगधकतम 6 अंक ददए
जाएंगे।
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अभ्यास 5: प्रश्न 21
आपने एक कहानी पढ़ी जो आपको बहुत पसंद आई। कहानी के लेखक को एक ई-मेल ललखें। आपके ई-मेल में
ननमनललखखत बातें सज़ममललत होनी ्चादहए:
आपकया ई-मेल लगभग 120 शबदों में हो्नया चयाढ़हए। आपको पता ललखने की आिशयकता ्नहीं है ।
आपको 3 अंक अंति्दसतु के ललए और 5 अंक सटीक भाषा और शैली के ललए ददए जाएंगे।
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अभ्यास 6: प्रश्न 22
आप कहाँ तक इस मत से सहमत हैं? अपने वि्चारों को समझाते हुए सकूल पत्रिका के ललए अपना लेख लगभग
200 शबदों में ललज़खए। आपका लेख विषय की जानकारी पर केज़नद्त होना ्चादहए।
ऊपर दी गई ढ़टपपखण्याँ आपके लेख्न के ललए ढ़दशया प्रदया्न कर सकती हैं। इ्नके मयाध्म से आप अप्ने
व्वचयारों को व्वसतयार दीजिए।
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