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दस सह� सं�ृत नाम

�न�ान� �म�
सुनाम-स�रत्
दस सहस्र संस्कृत नाम
॥ श्रीः ॥
द्वारकादास इ�ण्डक सीरीज़
१२

सुनाम-स�रत्
दस सहस्र संस्कृत नाम

िनत्यानन्द िमश्र
सुनाम-स�रत्—दस सहस्र संस्कृत नाम
ISBN: 978-93-91730-65-9
पृष्ठ: ०८ + ३८४

इस ग्रन्थ का प्रकाशनािधकार प्रकाशक के द्वारा सुरिक्षत है। इस ग्रन्थ के िकसी भी अंश का पुनः िकसी माध्यम
से तैयार होना, सुधार कर आिद िकसी पद्धित से संप्रेषण प्रकाशक तथा कॉपीराइट धारक की पूव� अनुमित के
िबना अवैधािनक होगा।

प्रकाशक
चौखम्भा क्लािसका
गोकुलभवन, के. ३७/१०९, गोपाल म�न्दर लेन, वाराणसी २२१००१ (भारत)
दूरभाष +91 542 2332637, चलभाष +91 97185 94839
वैद्युतपत्र: ichaukhambha@gmail.com

© चौखम्भा क्लािसका, वाराणसी


प्रथम संस्करण: िवक्रम २०८० (सन् २०२३)

LuaLATEX में अक्षर-संयोजन: िनत्यानन्द िमश्र

` ६९५ /=

२ ४ ६ ८ १० ९ ७ ५ ३ १

अन्य प्राि� स्थान


चौखम्भा भारती अकादमी
के. ३७/१०९, गोपाल म�न्दर लेन, वाराणसी २२१००१ (भारत)
दूरभाष: +91 542 2330349

चौखम्भा िवश्वभारती
गोकुलभवन, के. ३७/१०९, गोपाल म�न्दर लेन, वाराणसी २२१००१ (भारत)
दूरभाष: +91 542 2330345

चौखम्भा बुक्स
५, यू.ए. जवाहर नगर (डाकघर के पीछे)
मलकागंज, िदल्ली ११०००७ (भारत)

मुद्रक: श्रीजी िप्रण्टज़�, नाटी इमली, वाराणसी


भारतीय सेना में देश की सेवा में अहिन�श काय�रत
अपूव� और चन्दन को
अनुक्रमिणका
प्रस्तावना १
पाठक को िनद�श २३
संकेताक्षर-सूची २५
१ पुंनामधारा २७
२ स्त्रीनामधारा २०३
प�रिशष्ट (क) नक्षत्र और नामाक्षर ३७९
प�रिशष्ट (ख) रािश और नामाक्षर ३८१
प�रिशष्ट (ग) संख्यान ३८३
प्रस्तावना
संस्कृत में एक सू�क्त है, ज्ञायते िपतृपा�ण्डत्यं नामधारणकारणात्, अथा�त् िपता
(अथवा माता और िपता) का पा�ण्डत्य बालक के नाम रखने के कारण से जाना जाता
है। भारत में नामों का परम महत्त्व सव�िविदत है। संस्कृत नामों का कल्पवृक्ष भी संसार में
अिद्वतीय है। लगभग २,००० धातुओं से अनेक कृदन्त शब्द, इन कृदन्त शब्दों से अनेक
तिद्धतान्त शब्द और सात भेदों एवं पचपन उपभेदों सिहत समासों की अितशय उव�रा-श�क्त
के कारण संस्कृत में नामों की िनिध बहुत सम्भवतः िवश्व की सभी भाषाओं से आढ्यतर
है। अत एव संस्कृत सािहत्य में सैकड़ों सहस्रनामों का होना कोई आश्चय� नहीं है। प्रायः
सभी सहस्रनामों में अनेक ऐसे नाम िमलते हैं जो िकसी अन्य सहस्रनाम में नहीं हैं। कुछ
सहस्रनामों में तो सभी सहस्र अथवा सहस्रािधक नाम एक ही अक्षर से प्रारम्भ होते हैं।
और तो और, एक भगवान् िशव का अयुतनाम भी है िजसमें दस सहस्र नाम हैं। सच में,
संस्कृत नामों का समुद्र अथाह है।
मैंने संवत् २०७५ (सन् २०१८) में सामािजक संचार माध्यमों पर संस्कृत नामों पर
िलखना प्रारम्भ िकया था। िपछले पाँच बरसों में मैंने १५० से अिधक संस्कृत ग्रन्थों से दो
लाख से अिधक संस्कृत नाम इकट्ठे िकए हैं। अब भी मेरा संग्रह पूण�ता से बहुत दूर है। यिद
अनुमान लगाना हो तो मैं कहूँगा संस्कृत ग्रन्थों में पाँच लाख से अिधक नाम उ�ल्लिखत
हैं। यद्यिप यह संख्या मोिनयर-िविलयम्ज़ के सन् १८९९ के संस्कृत-अंग्रेज़ी शब्दकोश
में संकिलत तीन लाख व्याख्याओं और दो लाख शब्दों से कहीं अिधक है, तथािप यह
पुणे �स्थत डेक्कन कॉलेज द्वारा संकल्यमान Encyclopaedic Sanskrit Dictionary की
अनुमािनत शब्दसंख्या बीस लाख से बहुत अल्प है। यिद हम संस्कृत ग्रन्थों में उ�ल्लिखत
नामों के सभी समानाथ� शब्द और उनके िवपरीत िलङ्ग वाले शब्द िमला लें, तो संस्कृत
नामों की संख्या दस लाख से भी कहीं अिधक होगी।
संस्कृत सािहत्य में न केवल मनुष्यों और मनुष्याकार योिनयों—यथा देवों, देिवयों,
गणदेवों (आिदत्यों, िवश्वदेवों, वसुओं, तुिषतों, आभास्वरों, अिनलों अथवा मरुतों,
महारािजकों, साध्यों और रुद्रों) और उपदेवों (िवद्याधरों, अप्सराओं, यक्षों, राक्षसों, गन्धव�,
िकन्नरों, िपशाचों, गुह्यकों, िसद्धों, भूतों, आिद)—के सुन्दर नामों का भंडार है अिपतु िविवध
मनुष्येतर एवं मनुष्येतराकार तत्त्वों यथा नागों, वनों, पव�तों, कूपों, सरोवरों, निदयों, समुद्रों,
देशों, अस्त्र-शस्त्रों, वाद्यों आिद के भी नामों का िवशाल संग्रह है। भगवद्-गीता में कृष्ण
सुनाम-स�रत्
और पाँच पाण्डव भाइयों द्वारा प्रयुक्त शङ्खों के कण�िप्रय नामों का उल्लेख है—पाञ्चजन्य
(कृष्ण), देवदत्त (अजु�न), अनन्तिवजय (युिधिष्ठर), पौण्ड्र (भीम), सुघोष (नकुल) और
मिणपुष्पक (सहदेव)। संस्कृत में संख्याओं के भी नाम हैं। अ�ग्न और बाण शब्दों के
दिसयों पया�यवाची शब्द क्रमशः तीन और पाँच संख्याओं के नाम हैं। एक बड़ी संख्या
को अनेक नामों से अिभिहत िकया जा सकता है। उदाहरणतः वत�मान संवत् २०८० को
नभ-वसु-ख-नेत्र कहा जा सकता है (अङ्कानां वामतो गितः, नभ=०, वसु=८, ख=०,
नेत्र=२)। कुछ संख्या-नामों को काव्य के िविशष्ट छन्दों में भी ढाला जा सकता है।
अिधकांश संस्कृत नाम और िवशेषण अत्यन्त गम्भीर और िवचारपूण� होते हैं। उदाहरण
के िलए पिथकृत् िवशेषण को लें, िजसका अथ� है “पथ बनाने वाला”, अथा�त् प्रवत�क
अथवा अन्वेषक। वैिदक वाङ्मय में बृहस्पित, इन्द्र, सोम, अ�ग्न, वैश्वानर, पूषन् और
ऋिषयों को पिथकृत् कहा गया है। आज भी यह नाम बंगाली प�रवारों में रखा जाता
है। ऋग्वेद की शाकल-संिहता (सूक्त १.१२५ और १.१२६) में दो बार राजा स्वनय का
उल्लेख है। स्वनय का अथ� है “िजसका नय (=नेतृत्व) स्वयं हो”, अथा�त् स्वयं-प्रे�रत
अथवा स्वयं-नीत, जो आप अपना नेता हो। िपछले कुछ बरसों में यह नाम मेरे सुझाव पर
अनेक माता-िपताओं ने अपने पुत्रों को िदया है। बहुधा संस्कृत सािहत्य में प्रितनायक अथवा
खलनायक पात्रों के भी साथ�क और सकारात्मक नाम होते हैं। यथा दुय�धन नाम को लें,
िजसका अथ� है “वह िजससे युद्ध करना दुःखपूण� (=किठन) है”। यद्यिप यह नाम माता-
िपता अपने बालक को नहीं देते (कणा�टक के िवधायक दुय�धन महािलङ्गप्पा ऐहॊळॆ जैसे
कुछ अपवाद अवश्य हैं), तथािप इसका अथ� सकारात्मक है जैसा िवराट-पव� में अजु�न द्वारा
दुय�धन को िदए हुए उलाहने से (गीता प्रेस संस्करण का श्लोक ४.६५.१७) और मनुस्मृित
(श्लोक २.३१) पर मेधाितिथ के मनुभाष्य से स्पष्ट है। पूव��ल्लिखत सैकड़ों सहस्रनामों में
सहस्रों मधुर और गम्भीराथ� नाम हैं। यथा कूम�-पुराण में प्राप्त पाव�ती-सहस्रनाम में एक
नाम है सन्मयी (श्लोक १.११.१३८)। इस नाम का अथ� है “सत् (=सत्य, बल, चेतना,
आिद) से भरी हुई”। मैं ऐसे नामों को सुनाम कहता हूँ। संस्कृत में ‘सुनाम’ यह शब्द
‘सुनामन्’ इस नपुंसक प्राितपिदक की प्रथमा िवभ�क्त का एकवचन रूप है। ‘सुनाम’ का
अथ� है अच्छा नाम।
िविशष्ट स्रोत
संस्कृत नामों के महासागर में कैसे डुबकी लगाई जाए? साधारण संस्कृत कोश इस
काय� में बहुत सहायक नहीं हैं, यतः उनमें केवल नामों का ही नहीं अिपतु सभी धातुओं
और शब्दों का संकलन है। मात्र संस्कृत नामों का संकलन अनेक िविशष्ट सूिचयों, कोशों
और पुस्तकों में है। इनमें से अनेक पूव� में प्रकािशत हो चुके हैं और वत�मान काल में भी
प्रकाश्यमान हैं। इस प�रच्छेद में मैं कुछ उल्लेखनीय प्रकाशनों का िनद�शन करूँगा। इन्हें
संस्कृत नामों की प्रमुख श्रेिणयों के आधार पर वग�कृत िकया गया है। यहाँ िनिद�ष्ट ग्रन्थों

प्रस्तावना
की सूची केवल संकेत मात्र है और पूण� नहीं है।
१. वैिदक नाम
वैिदक ग्रन्थों (संिहताओं, ब्राह्मणों, आरण्यकों और प्रमुख उपिनषदों) में देवताओं,
ऋिषयों और मनुष्यों के सैकड़ों नाम एवं िवशेषण िबखरे पड़े हैं। िविवध वैिदक
अनुक्रमिणयाँ वैिदक नामों के पारम्प�रक स्रोत हैं। ऋग्वेद अनुक्रमणी में लगभग चार
सौ मन्त्रद्रष्टाओं (ऋिषयों) के नाम संगृहीत हैं। इनमें से तीसेक नाम स्त्रीवाची हैं। िभन्न-िभन्न
वैिदक मन्त्रों के ऋिषयों का वैिदक संिहताओं के प्रकािशत संस्करणों में भी िनद�श है।
भुवन वाणी ट्रस्ट, लखनऊ, द्वारा सत्रह खण्डों में प्रकािशत चार वैिदक संिहताओं के िहन्दी
अनुवाद में ऋग्वेद, सामवेद और अथव�वेद के प्रत्येक मन्त्र के ऋिष का नाम-िनद�श है।
व्य�क्तगत वैिदक नामों के िलए एक संिक्षप्त आधुिनक प्रकाशन है समीरण चन्द्र
चक्रवत� कृत Proper Names of Persons in Vedic Literature (रबीन्द्र भारती
िवश्विवद्यालय, २०१३)। अट्ठासी पन्नों की इस लघुकाय पुिस्तका में वैिदक वाङ्मय
में प्राप्त नामों के िवषय में अनेक रोचक तथ्य हैं और अन्त में लगभग ६५० वैिदक
नामों की सूची है। ए॰ए॰ मैकडोनेल और ए॰बी॰ कीथ द्वारा संकिलत Vedic Index of
Names and Subjects (जॉन मरे, १९१२) दो खण्डों और १,५०० पन्नों में प्रकािशत है।
इसमें लगभग ३,८०० वैिदक नामों और िवषयों का संकलन है। अनेक उद्धरणों और
लेखकों के िनजी िववाद्य मतों सिहत यह पुस्तक जनसामान्य की अपेक्षा अनुसन्धाताओं
और िवद्वानों के िलए अिधक उपयोगी है। बृहत्काय होकर भी मैकडोनेल और कीथ का
काय� व्यापक नहीं है। यथा इस पुस्तक में बृहदारण्यक-उपिनषद् में दो बार (मन्त्र २.६.३
और ४.६.३ में) िनिद�ष्ट एकिष� नाम नहीं है। एकिष� सुनाम का अथ� है “मुख्य अथवा
प्रमुख ऋिष”। चक्रवत� की सूची में यह नाम है। िहन्दी पाठकों के िलए वैिदक कोश
नाम से दो पुस्तकें हैं। प्रथम पुस्तक (चौखम्भा कृष्णदास अकादमी, १९६३) के सम्पादक
सूय�कान्त हैं और दूसरी (नाग प्रकाशन, १९९५) के संकलक चन्द्रशेखर उपाध्याय और
अिनल कुमार उपाध्याय हैं। सूय�कान्त ने अपने ग्रन्थ में अनेक वैय�क्तक नामों को िलया
है, वहीं उपाध्याय और उपाध्याय ने नामों की अपेक्षा गुणसूचक िवशेषणों पर अिधक
ध्यान िदया है। उदाहरणतः, प्रथम पुस्तक में पूव�िनिद�ष्ट स्वनय नाम प्राप्त है पर िद्वतीय
पुस्तक में नहीं है। उपाध्याय और उपाध्याय के कोश के प्रयोग में एक किठनाई यह है
शब्दों का क्रम मानक देवनागरी अकारािद क्रम से कुछ िभन्नता िलए हुए है। यह क्रम
सामान्य िहन्दी और संस्कृत कोशों के अभ्यस्त पाठकों के िलए भ्रामक हो सकता है।
२. रामायण और महाभारत में नाम
वैिदक वाङ्मय की ही भाँित हमारे दो इितहास रामायण और महाभारत अनेक सुनामों
के िनधान हैं। मन्मथ नाथ रे कृत An Index to the Proper Names Occurring
in Vālmīki’s Rāmāyaṇa (सम्पूणा�नन्द संस्कृत िवश्विवद्यालय, १९८४) में वाल्मीिक-

सुनाम-स�रत्
रामायण के ६७० व्य�क्तवाचक नामों का संकलन है। यद्यिप यह काय� उत्कृष्ट है, पर इसकी
एक महती न्यूनता है इसकी अपूण�ता। नामों की सूची अप्रत्यािशत रूप से यूपाक्ष पर ही
समाप्त हो जाती है। एक पादिटप्पणी में कहा गया है अनुक्रमणी यहीं तक है और अपूण� है।
रामायण के लगभग एक-ितहाई नाम इस कृित में नहीं है। यह अनुमान मोिनयर-िविलयम्ज़
कोश में शेष आद्यक्षरों (‘र’, ‘ल’, ‘व’, ‘श’, ‘ष’, ‘स’ और ‘ह’) से प्रारम्भ होने वाले
शब्दों की सापेक्ष संख्या और रामकुमार राय कृत वाल्मीिक-रामायण-कोशः (चौखम्भा
संस्कृत ऑिफ़स, १९६५) में प्रत्येक आद्यक्षर से प्रारम्भ होनेवाले शब्दों की संख्या पर
आधा�रत है। िहन्दी में िलिखत राय के कोश में रामायण के १,०५० पात्रों के नामों का
संग्रह है। इसके तीन बहूपयोगी प�रिशष्टों में रामायण में प्राप्त ६१ पशुओं और पिक्षयों,
१०८ पेड़-पौधों और १२७ शस्त्रों के नाम हैं।
महाभारत का आकार रामायण से चार गुना है। अतः स्वाभािवक है महाभारत में नामों
की संख्या रामायण से कहीं अिधक है। कईं कोशों में महाभारत में प्राप्त नामों का संकलन
है। इनमें अग्रगण्य है सोरेन सोरेनसेन का प्रशस्त काय� An Index to the Names in the
Mahābhārata (मोतीलाल बनारसीदास, १९०४)। इस कोश में महाभारत के लगभग
१२,५०० पात्रों और नामों पर िवस्तृत जानकारी है। िहन्दी पाठकों के िलए महाभारतकी
नामानुक्रमिणका (गीता प्रेस, १९६१) और रामकुमार राय का महाभारत-कोशः (चौखम्भा
संस्कृत िसरीज़ ऑिफ़स, १९६४) बहुमूल्य साधन हैं। मैकडोनेल और कीथ के काय� की
भाँित सोरेनसेन और राय के कोशों में अनेक उद्धरणों और श्लोक-संख्याओं सिहत िवस्तृत
प्रिविष्टयाँ हैं जो िवद्वानों और शोधकों के िलए अत्यन्त उपयोगी हैं, पर महाभारत से नाम
खोजने को इच्छुक सामान्य पाठकों के िलए इन कोशों की उपयोिगता अल्प है। गीता प्रेस
का कोश अपेक्षाकृत छोटा है। ये सभी कोश अपने आप में महान् हैं, पर व्यापक नहीं हैं।
इनमें से िकसी में लक्ष्मी देवी का िविधत्सा (“[कुछ] करने को इच्छुक”) नाम संकिलत
नहीं है। यह नाम लक्ष्मी देवी ने स्वयं महाभारत में बताया है (गीता प्रेस संस्करण में श्लोक
१२.२२५.७)।
रामायण, महाभारत और ह�रवंश में प्राप्त नामों पर एक अद्भुत और अप्रितम पुस्तक है
िशवसागर ित्रपाठी कृत रामायण एवं महाभारत का शा�ब्दक िववेचन (देवनागर प्रकाशन,
१९८६)। लेखक ने इन तीन ग्रन्थों के १४७ नामों की व्युत्पित्तयों, िनव�चनों और भाषाई
मूलों को प्रस्तुत करके उनका िवश्लेषण िकया है। उनके प�रिशष्ट में इन तीन ग्रन्थों से
६०० और नामों के िनव�चन िदए गए हैं। यद्यिप इस पुस्तक में उ�ल्लिखत नामों की संख्या
पूव�िनिद�ष्ट पुस्तकों की तुलना में अल्प है, पर िवद्वत्तल्लज लेखक के िचन्तन की गहराई
अच�म्भत कर देनेवाली है।


प्रस्तावना
३. पौरािणक नाम
पुराण संस्कृत नामों के प्रचुरतम भंडारों में से एक हैं। पुराण सनातन धम� में भी हैं
और जैन धम� में भी। यहाँ मैं सनातन पुराणों (िजन्हें आगे केवल पुराण कहा जाएगा) की
चचा� करूँगा और पीछे जैन पुराणों की। कुल िमलाकर पौरािणक वाङ्मय का आकार
महाभारत का तीन से चार गुना है। हम ऐसा मान सकते हैं पुराणों में प्राप्त सभी नामों
की सूची महाभारत के नामों की सूची से कहीं अिधक लम्बी होगी। पुराणों के नामों का
संकलन करनेवाले कईं िविशष्ट कोश हैं।
रामचन्द्र दीिक्षतर द्वारा संकिलत The Purana Index (मद्रास िवश्विवद्यालय,
१९५१–१९५५) के तीन खण्डों की १७,५०० प्रिविष्टयों में ११,७०० पौरािणक नाम संकिलत
हैं। अठारह पुराणों और अठारह उपपुराणों में से केवल पाँच पुराणों (भागवत, ब्रह्माण्ड,
मत्स्य, वायु और िवष्णु) के नामों का इस कोश में संकलन है। बहुत खेद का िवषय
है दीिक्षतर के इस काय� में अनेक गम्भीर त्रुिटयाँ हैं जो कोशकार की प्रार�म्भक संस्कृत
से अनिभज्ञता का भेद खोल देती हैं। कुछ भयानक भूलें इस प्रकार हैं। िद्वतीय खण्ड के
४०९वें पृष्ठ पर दीिक्षतर प्रितम नाम देते हैं और इसकी व्याख्या में इसे िद्वतीय सावण� मनु
के पुत्र का नाम बताकर ब्रह्माण्ड पुराण (४.१.७०) का उद्धरण देते हैं। ब्रह्माण्ड पुराण
के सन्दिभ�त श्लोक में नाम प्रितम नहीं अिपतु अप्रितम है, जैसा संस्कृत में स�न्ध के
िनयमों के िकसी भी जानकार के िलए सुग्राह्य होगा। इसी खण्ड के ४७३वें पृष्ठ पर दीिक्षतर
बहव नाम का उल्लेख (आिवष्कार कहना उिचत होगा) करते हैं और इसे भागवत पुराण
(१२.१.२६) का उद्धरण देते हुए चकोर का पुत्र बताते हैं। भागवत पुराण के सन्दिभ�त
श्लोक में बहुवचन प्रयोग बहवः द्वारा अनेक बहुओं की चचा� है। इस प्रकार नाम बहु है,
बहव नहीं। तृतीय खण्ड के ४०६वें पृष्ठ पर दीिक्षतर साम्भवी नाम देते हैं और उद्धरण
ब्रह्माण्ड पुराण (४.१३.२६) का देते हैं। शुद्ध नाम साम्भवी नहीं अिपतु शाम्भवी है। ये
कुछ त्रुिटयाँ केवल िनदश�न मात्र हैं। पाठकों से अनुरोध है दीिक्षतर द्वारा उ�ल्लिखत नामों
पर आँख मूँदकर भरोसा न करें और सन्दभ� को पुराणों के पाठ से िमलाकर ही आश्वस्त
हों।
पौरािणक कोशों में सम्भवतः सव�श्रेष्ठ है वॆट्टं मािण द्वारा संकिलत The Purāṇic
Encyclopaedia (मोतीलाल बनारसीदास, १९७५)। यह महनीय कृित मूलतः मलयालम
में पाँच खण्डों में प्रकािशत हुई थी। मािण एक सच्चे सरस्वती-पुत्र थे। उन्होंने ग्यारह लम्बे
वष� िबताकर और बीस सहस्र रुपये (आज, सन् २०२३ में, बीस लाख रुपयों के समान)
लुटाकर यह काय� पूरा िकया था। उन्होंने यह संकलन सन् १९५५ में प्रारम्भ िकया था
और मलयालम में पाँचवाँ और अ�न्तम खण्ड सन् १९६६ में प्रकािशत िकया था। िफर
इस कृित का पाँच िवद्वानों की एक सिमित ने अंग्रेज़ी में अनुवाद िकया था। इस अंग्रेज़ी
अनुवाद में इितहासों (रामायण और महाभारत) तथा पुराणों से लगभग ८,८०० नामों का

सुनाम-स�रत्
संकलन है। कुछ सन्दभ� आनन्द-रामायण और कम्ब-रामायण से भी िदए गए हैं। इस
कृित का िवद्वज्जगत् में तो सम्मान है ही, साथ ही यह सामान्य पाठकों के िलए भी बहुत
उपयोगी है, कारण यह है मािण संकिलत पात्रों का िवस्तृत िववरण देते हैं।
िहन्दी पाठकों के िलए पौरािणक नाम ढूँढने हेतु राणाप्रसाद शमा� का पौरािणक कोश
(ज्ञानमण्डल िलिमटेड, १९७१) एक उत्कृष्ट कुंजी है। The Purāṇic Encyclopaedia की
भाँित इसमें पुराणों के साथ-साथ रामायण और महाभारत के भी नाम संगृहीत हैं। प�रिशष्टों
में कोशकार ने अप�रिचत भौगोिलक नामों तथा िविशष्ट बौद्ध और जैन नामों एवं कुछ
वंश-वृक्षों को भी दशा�या है।
पूव��ल्लिखत िशवसागर ित्रपाठी द्वारा संकिलत इितहास-पुराण िनव�चन कोश (देवनागर
प्रकाशन, १९८८) में इितहास और पुराण ग्रन्थों से १,११२ नामों के िनव�चन संगृहीत हैं।
यद्यिप इसका नाम िहन्दी में है, पर यह पुस्तक पूण�तः संस्कृत में है। यह ग्रन्थ संस्कृत
के छात्रों और िवद्वानों के िलए तो अत्यन्त उपयोगी है, पर अन्य पाठकों के िलए बहुत
लाभदायक नहीं है।
िहन्दी में एक अन्य उल्लेखनीय काय� है पुराण िवषय अनुक्रमिणका। राधा गुप्त, सुमन
अग्रवाल और िविपन कुमार द्वारा संकिलत इस कोश में रामायण, महाभारत, ह�रवंश और
पुराणों के साथ-साथ कथास�रत्सागर, लक्ष्मीनारायण-संिहता सदृश अनेक परवत� कृितयों
से ८,३०० नामों और िवषयों का संग्रह है।
अन्ततः, वेदों, इितहासों, स्मृितयों, पुराणों, सूत्रों और बौद्ध एवं जैन ग्रन्थों से अनेक
नामों के संकलन वाली एक अनूठी कृित है भारतवष�य प्राचीन च�रत्रकोश (भारतीय
च�रत्रकोश मण्डल, १९६४)। इसका संकलन महामहोपाध्याय िसद्धेश्वर शास्त्री िचत्राव
के नेतृत्व में एक िवद्वानों के दल ने िकया था। बारह सौ से अिधक पृष्ठों वाला यह
िहन्दी कोश इसी प्रकाशक द्वारा १९३२ में प्रकािशत मूल मराठी पुस्तक भारतवष�य प्राचीन
च�रत्रकोश का प�रविध�त िहन्दी अनुवाद है। िचत्राव जी की प्रस्तावना के अनुसार १९६४
के िहन्दी संस्करण में मूल मराठी संस्करण से ५५० पृष्ठ अिधक थे। यह कृित अतुल्य
िनष्ठा और उत्कृष्ट िवद्वत्ता का प�रणाम है। इसमें लगभग ८,००० संस्कृत नामों का संकलन
है। अनेक वैिदक नामों के समावेश के कारण यह कृित The Purāṇic Encyclopaedia
जैसी अन्य िवद्वत्तापूण� कृितयों से िविशष्ट है।
४. व्याकरण ग्रन्थों में नाम
व्य�क्तगत संस्कृत नामों की एक और िवशाल िनिध है अष्टाध्यायी, महाभाष्य, कािशका
आिद व्याकरण ग्रन्थ। कुछ ऐसे संस्कृत नाम जो ऐितहािसक काल में रखे जाते थे पर
आज प्रयुक्त नहीं होते केवल व्याकरण ग्रन्थों में िमलते हैं। व्याकरण ग्रन्थों में नामों के
प्यार से बुलाने वाले रूप और लघु रूप भी िमलते हैं। एक उदाहरण है वायुदत्त, िजसका
अथ� है “वायु [देवता] द्वारा िदया हुआ”। प्राचीन भारत में नामकरण की प�र�स्थित आज

प्रस्तावना
से िभन्न थी। माता-िपता अपने बालक को िकसी देवता का नाम जस-का-तस नहीं देते थे
अिपतु देवता के नाम के पीछे दत्त अथवा रात (अथा�त् “िदया हुआ”) वा गुप्त (अथा�त्
“रिक्षत”) लगाते थे। देवदत्त, ब्रह्मदत्त, िशवदत्त आिद नाम संस्कृत ग्रन्थों में बहुत
सामान्य हैं और कईं पुराणों में पाए जाते हैं। इसके िवपरीत वायुदत्त नाम मुझे िकसी वेद,
इितहास अथवा पुराण में अद्याविध नहीं िमला है। व्याकरण ग्रन्थों ने इस नाम को सहेज
कर रखा हुआ है। कभी यह नाम भारत में चलता होगा और कालान्तर में यह हमारी
सांस्कृितक स्मृित से ओझल हो गया। पतञ्जिल अपने महाभाष्य में दो बार (अष्टाध्यायी
सूत्र ४.२.१०४ और ५.३.८ पर भाष्य में) इस नाम का उल्लेख करते हैं और इसका प्यार
से पुकारने वाला रूप वायुदत्तक और लघु रूप वायुक भी देते हैं। इससे पतञ्जिल के
समय में लघुनामों का अिस्तत्व प्रमािणत होता है। अष्टाध्यायी सूत्र ४.१.१२३ पर कािशका
वृित्त में भी शुभ्रािदगण में वायुदत्त नाम पिठत है। ऐसे अनेक िवरल नाम कािशका वृित्त में
पिठत िविवध गणसूिचयों में िमलते हैं। व्याकरण ग्रन्थों में प्राप्त वैय�क्तक नामों का कोई
व्यापक संकलन मेरे संज्ञान में नहीं है।
व्याकरण ग्रन्थों में अनेक ऐसे सदथ� शब्द िमलते हैं िजनका नामों के रूप में प्रयोग हो
सकता है। दो उदाहरण हैं प्रिजत् (िजसका अथ� है “अच्छे से जीतनेवाला”) और प्रिवत्
(िजसका अथ� है “अच्छे से जाननेवाला”)। ये दोनों शब्द अष्टाध्यायी सूत्र ३.२.६० पर
कािशका वृित्त में उद्धृत हैं। जहाँ प्रिजत् शब्द प्रमुख कोशों में केवल बॉटिलंक और रॉथ
(१८५५), बॉटिलंक (१८७९) एवं मोिनयर-िविलयम्ज़ (१८९९) कोशों में प्राप्त है, वहीं
प्रिवत् शब्द िकसी भी प्रमुख संस्कृत कोश में नहीं िमलता।
५. जैन नाम
अब हम जैन नामों की िविशष्ट पुस्तकों की चचा� करते हैं। िहन्दी पुस्तक जैन पुराण कोश
(जैन िवद्या संस्थान, १९९३) में पाँच जैन पुराणों (महा-पुराण, पद्म-पुराण, ह�रवंश-पुराण,
पाण्डव-पुराण और वीर-वद्ध�मान-च�रत) से लगभग ८,००० वैय�क्तक एवं भौगोिलक नामों
का संकलन है। महती सूक्ष्मेिक्षका से संकिलत यह पुस्तक अत्यन्त िवश्वसनीय है और
इसमें ढूँढने पर भी स्यात् त्रुिटयाँ न िमलें। जैन नामों का एक अन्य िवशाल संकलन है
मोहनलाल मेहता और ऋषभ चन्द्र द्वारा सम्पािदत Prakrit Proper Names (लालभाई
दलपतभाई भारतिवद्या संस्थान, १९७०)। दो खण्डों में प्रकािशत इस कोश में श्वेताम्बर
जैनों के प्रामािणक प्राकृत ग्रन्थों से लगभग ८,००० प्राकृत नाम संगृहीत हैं। कोशकार नामों
के संस्कृत रूप भी देते हैं, अतः यह कोश संस्कृत नाम कोशों की श्रेिण में भी आता है।
इस कोश में हमें अनेक प्राकृत सुनाम िमलते हैं, िजनके संस्कृत रूप नामों के रूप में
प्रयुक्त िकए जा सकते हैं। एक उदाहरण है प्राकृत नाम अ�ग्गसेन (संस्कृत अ�ग्नसेन,
“िजसकी सेना अ�ग्न के समान [तेजोमयी] है”), जो जैन प्राकृत ग्रन्थों के अनुसार एक
तीथ�कर का नाम है। आज यह नाम इतना िवरल है इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया

सुनाम-स�रत्
जा सकता है यत् संिहत (LinkedIn) पर आज ग्यारह करोड़ से अिधक लोग भारत से
हैं और पंचानबे करोड़ से अिधक िवश्व भर से, पर अ�ग्नसेन नाम से केवल एक व्य�क्त
है (यह सज्जन जैन है)।
६. संस्कृत नामों के अन्य स्रोत
िविभन्न िवधाओं के अथाह संस्कृत सािहत्य में अनिगनत अन्य नाम पाए जाते हैं। यथा,
भरत मुिन के नाट्यशास्त्र में भरत के एक सौ पुत्रों (सम्भवतः ये पुत्र के समान िप्रय िशष्य
थे) के नाम िमलते हैं। बहुत सारे अन्य नाम िविशष्ट िवद्याक्षेत्रों में प्रणीत संस्कृत कृितयों
और उनकी टीकाओं में िमलते हैं। कािलदास सरीखे सािहत्यकारों के काव्यों और नाटकों
में कुछ ऐसे नाम िमलते हैं जो अन्यत्र कहीं नहीं िमलते। कुछ व्यङ्ग्यात्मक और हास्यास्पद
नाम पञ्चतन्त्र, िहतोपदेश और हास्याण�व जैसे अनेक प्रहसनों में प्राप्त होते हैं। यह सूची
अन्तहीन है।
७. नामस्तोत्र और नामाविलयाँ
िन�श्चत रूप से संस्कृत नामों की िवशालतम िनिध िविवध नामस्तोत्र और नामाविलयाँ
हैं। इनमें अनेक शतनाम (एक सौ नामों का संग्रह), अष्टोत्तरशतनाम (एक सौ आठ नामों
का संग्रह) और सहस्रनाम (एक सहस्र नामों का संग्रह) स�म्मिलत हैं। कईं ऐसे नामस्तोत्र
महाभारत और पुराणों में प्राप्त हैं। अनेक अन्य नामस्तोत्र तन्त्र ग्रन्थों में िमलते हैं और कुछ
िपछले सौ बरसों में भी प्रणीत हुए हैं, यथा वािसष्ठ गणपित मुिन द्वारा प्रणीत इन्द्र-सहस्रनाम
और मेरे गुरुदेव (जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचाय�) द्वारा प्रणीत गो-सहस्रनाम। नामस्तोत्रों की
संख्या इतनी बड़ी है इन स्तोत्रों में प्राप्त सभी नामों की सूची बनाना असम्भव-सा है। दो
सौ पन्द्रह सहस्रनाम और एक सौ अठहत्तर अष्टोत्तरशतनाम तो केवल संस्कृत डॉक्यूमेंट्स
के जालकेन्द्र पर यूिनकोड में उपलब्ध हैं। केवल इन्हीं नामस्तोत्रों में दो लाख तीस सहस्र
से अिधक नाम िवद्यमान हैं। यह संख्या पूव�िनिद�ष्ट िविशष्ट कोशों में प्राप्त नामों से दस गुना
से भी अिधक है। पुनरावृत्त नामों को हटाकर भी न्यूनाितन्यून एक लाख नाम केवल इन
नामस्तोत्रों में िमल जाएँगे।
अिधकांश नामस्तोत्र सनातन देवताओं के हैं, पर कुछ जैन सहस्रनाम भी हैं। यथा,
अह�न्नामसहस्र-समुच्चय (आचाय� हेमचन्द्र), अनेक िजन-सहस्रनाम (आचाय� िजनसेन,
उपाध्याय िवनयिवजय, प�ण्डत आशाधर, भट्टारक सकलकीित�), पाश्व�नाथ-सहस्रनाम
(कल्याणसागर सूरी) और िसद्ध-सहस्रनाम। बहुत-सी पुस्तकों में नामस्तोत्रों के संकलन
हैं। बहुधा ये पुस्तकें माता-िपताओं के िलए नाम खोजने हेतु सरलतम साधन हैं। गीता प्रेस
से प्रकािशत सहस्रनाम-स्तोत्र-संग्रह (कोड संख्या १५९४) में बाईस सहस्रनाम और छह
अष्टोत्तरशतनाम हैं, िजनमें कुल िमलाकर २२,८४३ नाम हैं (कुछ सहस्रनामों में एक सहस्र
से अिधक नाम हैं)। इसके सदृश एक अन्य प्रकाशन है शतनाम-स्तोत्र-संग्रह (कोड संख्या
१८५०), जो अपेक्षाकृत बहुत छोटा है। इसमें इकतालीस अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र हैं और

प्रस्तावना
दो अित�रक्त स्तोत्र हैं िजनमें कुल िमलाकर ४,४६८ नाम हैं। इन दो पुस्तकों में २७,०००
से अिधक नाम हैं। सहस्रनामों और शतनामों वाले अनेक अन्य प्रकाशन हैं। उनमें से मैं
केवल िशवनाममञ्जरी (श्री महापे�रयावाल ट्रस्ट, २००५) का यहाँ उल्लेख करूँगा। इस
पुस्तक में एक साम्बसदािशवायुतनामाविल है िजसमें वेदों, इितहासों, पुराणों और अनेक
अन्य स्रोतों से िशव/रुद्र के १०,००० नामों का संकलन है। इस संकलन में सभी १०,०००
नाम चतुथ� िवभ�क्त रूप में िदए गए हैं और नामों के मूल (प्राितपिदक) रूप को जानने
के िलए संस्कृत व्याकरण का मौिलक ज्ञान आवश्यक है।
८. ऐितहािसक नाम
अन्ततः, ऐितहािसक राजाओं, रािनयों और अन्य व्य�क्तयों के नाम भी संस्कृत नामों
के स्रोत हैं। कईं ऐसे नाम संस्कृत वाङ्मय में दुल�भ हैं। उदाहरणाथ� परान्तक (“परम
अन्तक/संहारक” अथवा “शत्रुओं का संहारक”) नाम को लीिजए। मध्यकाल में कईं
पाण्ड्य और चोल राजाओं का नाम था परान्तक। मेरे संग्रह में यह नाम केवल एक संस्कृत
ग्रन्थ में है—महाभागवत पुराण के िशव-सहस्रनाम (श्लोक ६७.५५) में। जहाँ थाईदेश
के राजा विजरावुध (วชิ ราวุธ, १८८१–१९२५) के नाम का संस्कृत मूल वज्रायुध
(“वह िजसका आयुध वज्र है”) महाभारत में िमलता है, वहीं राजा विजरालङ्करण
(วชิราลงกรณ, १९५२–) के नाम का संस्कृत मूल वज्रालङ्करण (“वह िजसका
अलङ्करण अथवा भूषण वज्र है”) मेरे संग्रह में िकसी भी संस्कृत ग्रन्थ में नहीं है। तेज
राम शमा� द्वारा िलिखत Personal and Geographical Names in the Gupta
inscriptions (कन्सेप्ट प�ब्लिशंग हाउज़, १९७८) में गुप्त िशलालेखों में िवद्यमान लगभग
५०० पुरालेखीय नामों का संकलन है, पर इसमें केवल गुप्त िशलालेखों में प्राप्त नाम हैं।
मेरी जानकारी में पूव�क्त नामकोशों जैसा कोई बृहदाकार ग्रन्थ नहीं है िजसमें पुरालेखीय
प्रमाणों में िवद्यमान ऐितहािसक लोगों के संस्कृत नामों का कोई व्यापक संग्रह हो।
उपयुक्त सुनाम ढूँढने में चुनौितयाँ
यिद िकसी सामान्य पाठक के पास पूव�क्त िविशष्ट कोश हों तब भी उसे अपनी संतान
अथवा व्यवसाय के िलए नाम ढूँढने में कईं किठनाइयों का सामना करना पड़ता है। वेदों,
इितहासों और पुराणों के िविशष्ट कोशों में अनेक िवस्तृत वण�न, उद्धरण और सन्दभ� होते
हैं। पाठक को अगले नाम तक पहुँचने के िलए अनेक पिङ्�याँ और कभी-कभी तो पन्ने
भी छोड़ने पड़ते हैं।
इन िविशष्ट कोशों के प्रयोग में एक अन्य चुनौती यह है इनमें प्रितनायक अथवा खल/दुष्ट
पात्रों के भी अनेक नाम रहते हैं। नाम ढूँढने वाले पाठक को स्यात् ही रावण, ताटका,
दुय�धन, जरासन्ध, कंस, पूतना, आिद नाम भाएँगे। ये िविशष्ट कोश प्रमुखतः िवद्वानों
और शोधकता�ओं के िलए ज्ञानकोशों के समान अनुसन्धान के साधन हैं, माता-िपताओं
और व्यवसािययों के िलए नामों के स्रोत नहीं, अतः इनमें ऐसे सभी नामों का संकलन है।
२ सु.स. ९
सुनाम-स�रत्
नामस्तोत्र पुस्तकों के अित�रक्त अन्य पूव�क्त िविशष्ट स्रोतों और पुस्तकों के साथ
एक बड़ी समस्या यह है इनमें संगृहीत नाम अिधकांशतः पुंिलङ्ग अथवा पुरुषवाची हैं।
उदाहरण के िलए ऋग्वेद की अनुक्रमणी में लगभग ४०० नाम हैं िजनमें से केवल ३०
स्त्रीवाची नाम हैं। यद्यिप मेरे पास सूक्ष्म आँकड़े तो नहीं है, पर मेरा अनुमान है संस्कृत
ग्रन्थों में पुरुषवाची नामों की संख्या स्त्रीवाची नामों की संख्या की दुगुनी अथवा ितगुनी है।
यह अपेिक्षत भी है, कारण वेदों, इितहासों, पुराणों अथवा अन्य संस्कृत सािहत्य में पुरुष
पात्र स्त्री पात्रों से कहीं अिधक हैं। अतः इन स्रोतों से समान मात्रा में पुंिलङ्ग और स्त्रीिलङ्ग
नाम पाने के िलए हमें अनेक पुंिलङ्ग नामों को स्त्रीिलङ्ग में और अनेक स्त्रीिलङ्ग नामों का
पुिं लङ्ग में प�रवित�त करना पड़ता है। कुछ अपवादों में िकसी पुंिलङ्ग नाम का स्त्रीिलङ्ग
रूप अथवा िकसी स्त्रीिलङ्ग नाम का पुंिलङ्ग रूप नहीं होता। तथािप अिधकांश नामों के
िलए यह प�रवत�न सम्भव है, और इस प्रिक्रया से हमें अनेक ऐसे नए नाम िमलते हैं जो
संस्कृत सािहत्य में नहीं िमलते। उदाहरणाथ� पूव�क्त नाम स्वनय (“आत्म-प्रे�रत”) को ही
लें। जब मैंने सन् २०१९ में इस नाम के बारे में सामािजक संचार माध्यमों पर िलखा था,
तब इसके स्त्रीिलङ्ग रूप स्वनया का भी उल्लेख िकया था। स्त्रीवाची स्वनया नाम आज
तक मुझे िकसी संस्कृत ग्रन्थ में नहीं िमला है। तथािप, स्वनय इस नाम से केवल िलङ्ग में
िभन्न स्वनया नाम के उपयोग में कोई रुकावट नहीं है। पुरुषवाची और स्त्रीवाची नामों की
बात हो तो गीता प्रेस द्वारा प्रकािशत दो नामस्तोत्र पुस्तकें सुचारु ढंग से संतुिलत हैं। साथ
ही, इनमें संकिलत अिधकांश देवी-देवताओं के नाम सदथ�क हैं। सहस्रनाम-स्तोत्र-संग्रह
में पुरुष देवताओं (देवों) के ग्यारह सहस्रनाम हैं और इतने ही सहस्रनाम स्त्री देवताओं
(देिवयों) के भी हैं। शतनाम-स्तोत्र-संग्रह में इक्कीस अष्टोत्तरशतनाम पुंिलङ्ग देवताओं के
हैं, इतने ही अष्टोत्तरशतनाम स्त्रीिलङ्ग देवताओं के हैं और एक अनूठा अष्टोत्तरशतनाम
अध�नारीश्वर का है िजसमें बारी-बारी से पुरुषवाची और स्त्रीवाची नाम आते हैं।
यह सुिवधा होते हुए भी नामस्तोत्र और नामाविलयों से नाम ढूँढने में भी कईं चुनौितयाँ
हैं। प्रथमतः नामों को पहचानने और उनके उिचत रूप को जानने के िलए संस्कृत का
मौिलक ज्ञान आवश्यक है। इसका कारण है मूल नामस्तोत्र श्लोकों में नामों की एक-दूसरे
से स�न्ध हुई होती है और वहीं नामाविलयों में प्रायः नामों के प्राितपिदक रूप नहीं अिपतु
चतुथ्य�न्त रूप िदए होते हैं। दूसरी चुनौती यह है इन नामस्तोत्रों में कुछ नाम कदथ� होते हैं,
कुछ बहुवचन में होते हैं और कुछ िवपरीत िलङ्ग के होते हैं। इस कारण से नामस्तोत्रों से
भी ध्यान से नाम चुनने पड़ते हैं। नामस्तोत्रों और नामाविलयों में बहुत से नाम, िवशेषतः
वे नाम जो िवरल आद्यक्षरों से प्रारम्भ होते हैं (इस िवषय में आगामी प�रच्छेद नक्षत्र, रािश
और नाम में और जानकारी है), ऐसे होते हैं जो प्राकृितक नहीं अिपतु कृित्रम लगते हैं।
अन्ततः, नामस्तोत्रों में बहुत से नाम लम्बे-लम्बे समास होते हैं। यथा, ब्रह्माण्ड-पुराण में
प्राप्त लिलता-सहस्रनाम में ३२४ (लगभग एक-ितहाई) नाम ऐसे हैं िजनमें आठ अथवा
१०
प्रस्तावना
आठ से अिधक अक्षर हैं। इन ३२४ नामों में से बहत्तर नाम सोलह-सोलह अक्षरों वाले
हैं, यथा देविष�गणसंघातस्तूयमानात्मवैभवा (नाम संख्या ६४)। इसके िवपरीत पूव�क्त
िविशष्ट कोशों में मेरे अनुमान से लगभग ९५ प्रितशत नाम पाँच अथवा पाँच से अल्प
अक्षरों वाले हैं। नामस्तोत्रों और नामाविलयों में प्राप्त लम्बे नामों को ठीक-ठीक छोटे भागों
में िवभक्त करना पड़ता है िजससे उनमें से एक अथवा एकािधक भागों का नाम के रूप
में प्रयोग हो सके। बहुधा इस प्रिक्रया के िलए न केवल संस्कृत का उन्नत ज्ञान आवश्यक
होता है अिपतु नाम के अथ� और सन्दभ� की भी जानकारी आवश्यक होती है। इसके कुछ
उदाहरण अगले प�रच्छेद में हैं।
दीघ� संस्कृत नामों से लघु नाम बनाने के उदाहरण
(१) महाभारत के अनुशासन-पव� में प्राप्त िवष्णुसहस्रनाम में एक नाम है ओजस्तेजो-
द्युितधर (गीता प्रेस संस्करण में श्लोक संख्या १३.१४९.४३, नाम संख्या २७५), िजसका
अथ� है “ओजस्, तेजस् और द्युित को धरनेवाला”। द्वन्द्वान्ते श्रूयमाणं पदं प्रत्येकमिभ-
सम्बध्यते प�रभाषा के अनुसार इस बड़े नाम को िवभक्त करके ओजोधर (“ओजस् को
धरनेवाला”), तेजोधर (“तेजस् को धरनेवाला”) और द्युितधर (“द्युित को धरनेवाला”)
ये तीन छोटे नाम िमलते हैं जो िवष्णु के नाम भी हैं और िजनका बालकों के िलए प्रयोग
भी हो सकता है। आज ये तीनों नाम िवरलाितिवरल अथवा अप्रयुक्त हैं। संभवतः इसका
कारण हैं इनका स्वतन्त्र उल्लेख प्रायः कोशों में नहीं है। ओजोधर शब्द पन्द्रह प्रमुख
प्राचीन और आधुिनक संस्कृत कोशों में संगृहीत नहीं है। यही �स्थित तेजोधर शब्द की
है। द्युितधर नाम अनुशासन-पव� में प्राप्त िवष्णुसहस्रनाम में अन्यत्र भी प्राप्त है (गीता प्रेस
संस्करण में श्लोक संख्या १३.१४९.९४, नाम संख्या ७५८), संभवतः इस कारण से यह
शब्द मोिनयर-िविलयम्ज़ के कोश और वाचस्पत्य कोश में संगृहीत है। मोिनयर-िविलयम्ज़
के कोश में इसका एकमात्र अथ� “name of a poet” (“एक किव का नाम”) िदया है।
वाचस्पत्य कोश में िवष्णु अथ� अवश्य िदया है।
(२) स्कन्द-पुराण में प्राप्त िवष्णुसहस्रनाम में एक नाम है ऋग्यजुःसामाथव�श (श्लोक
संख्या ५.१.६३.१२६, नाम संख्या ४३४), िजसका अथ� है “ऋग्वेद, यजुव�द, सामवेद और
अथव�वेद के ईश्वर”)। यह नौ अक्षरों का नाम स्यात् ही कोई रखना चाहेगा, पर उपयु�क्त
प�रभाषा से हमें ऋगीश (“ऋग्वेद के ईश्वर”), यजुरीश (“यजुव�द के ईश्वर”), सामेश
(“सामवेद के ईश्वर”) और अथव�श (“अथव�वेद के ईश्वर”) ये चार छोटे नाम िमलते
हैं जो िवष्णु के नाम भी हैं और िजनका बालकों के िलए प्रयोग भी हो सकता है। इनमें
से सामेश को छोड़कर अन्य तीनों नाम िवरलाितिवरल हैं। पन्द्रह प्रमुख प्राचीन और
आधुिनक संस्कृत कोशों में ऋगीश, यजुरीश, सामेश और अथव�श शब्द प्राप्त नहीं हैं।
संभवतः इसी कारण से इन चार में से तीन नाम िवरलाितिवरल हैं।
(३) ब्रह्माण्ड-पुराण में प्राप्त लिलतासहस्रनाम में एक नाम है ह�रब्रह्मेन्द्रसेिवता
११
सुनाम-स�रत्
(नाम संख्या २९७), िजसका अथ� है “ह�र/िवष्णु, ब्रह्मा और इन्द्र द्वारा सेिवत”। यह
अष्टाक्षर नाम तो लोग रखने से रहे, पर उपयुक्� त प�रभाषा से हमें ह�रसेिवता (“िवष्णु द्वारा
सेिवत”), ब्रह्मसेिवता (“ब्रह्मा द्वारा सेिवत”) और इन्द्रसेिवता (“इन्द्र द्वारा सेिवत”) ये
तीन पञ्चाक्षर नाम िमलते हैं जो लिलता के नाम भी हैं और िजनका कन्याओं के िलए
प्रयोग भी हो सकता है। ये तीनों नाम िवरलाितिवरल हैं। यद्यिप आजकल तीन-चार अक्षरों
से लम्बे नामों का प्रचलन नहीं है, तथािप कभी-कभार पाँच अक्षरों वाले नाम सुनने में आ
जाते हैं।
(४) इसी लिलतासहस्रनाम में एक नाम है देविष�गणसंघातस्तूयमानात्मवैभवा (नाम
संख्या ६४), िजसका अथ� है “देवगणों और ऋिषगणों के िवशाल समुदाय के द्वारा िजसका
आत्मवैभव स्तुित पाता है”। यद्यिप इस नाम से छोटे प्रयोज्य नाम बनाना किठन है, तथािप
स्तूयमाना, देवस्तुता, ऋिषस्तुता, गणस्तुता, संघातस्तुता आिद नाम बनाए तो जा ही
सकते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है सहस्रनामों में और अन्यत्र भी प्राप्त दीघ� समास वाले अप्रयोज्य
नामों से प्रयोग के िलए सरल छोटे-छोटे नाम बनाने का काय� आज तक व्यापक रूप से
हुआ ही नहीं है। एक लाख संस्कृत नामों वाले सुनाम-सागर कोश में यह काय� करने का
मेरा िवचार है।
नक्षत्र, रािश और नाम
सहस्रा�ब्दयों से भारत में नक्षत्र पर आधा�रत नाम प्रचिलत हैं। नक्षत्र-नामों सिहत प्राचीन
भारतीय नामों के एक संिक्षप्त प�रचय के िलए पाठक मेरी पुस्तक सुनाम (Sunāma:
Beautiful Sanskrit Names, ब्लूम्ज़बरी, २०२०) की प्रस्तावना पढ़ सकते हैं। प्राचीन
काल में नक्षत्र-नाम प्रायः नक्षत्र के नाम पर (अथवा नक्षत्र के देवता के नाम पर) आधा�रत
होते थे। नक्षत्र के नाम से व्युत्पन्न कुछ नामों के उदाहरण हैं चैत्र (“िचत्रा से सम्बद्ध”,
िचत्रा नक्षत्र में जन्मे बालक के िलए), रोिहण अथवा रौिहण (“रोिहणी से सम्बद्ध”,
रोिहणी नक्षत्र में जन्मे बालक के िलए) और ितष्यरिक्षता (“ितष्य=पुष्य द्वारा रिक्षत”,
पुष्य नक्षत्र में जन्मी बािलका के िलए)। ितष्यरिक्षता राजा अशोक की पटरानी का नाम था।
नक्षत्र-नाम का एक प्रिसद्ध उदाहरण महाभारत में (गीता प्रेस संस्करण में श्लोक संख्या
४.४३.१६) अजु�न का नाम फाल्गुन है, कारण अजु�न का जन्म उत्तरा फल्गुनी नक्षत्र में
हुआ था।
आज प्रचिलत नक्षत्र-चरणों से सम्बद्ध िविशष्ट आद्यक्षरों की पद्धित (प�रिशष्ट क देखें)
से पूव�क्त उदाहरण बहुत िभन्न हैं। आज की इस प्रचिलत पद्धित को बहुधा अवकहडाचक्र
कहा जाता है। Indian Numismatics (ओ�रएंट लॉंगमैन, १९८१) में दामोदर धमा�नन्द
कोसम्बी इसे अवकहड-चक्र कहते हैं और बताते हैं उन्हें इसके िलए पन्द्रहवीं शताब्दी
के रामचन्द्र सोमयाजी अथवा वाजपेयी के समरसार से पुराना कोई स्रोत नहीं िमला।
१२
प्रस्तावना
Personal and Geographical Names in the Gupta inscriptions में तेज राम शमा�
भी कहते हैं प्रत्येक नक्षत्र-चरण के िलए िविशष्ट अक्षरों का िवधान कुछ मध्यकालीन
ज्योितष ग्रन्थों में प्राप्त होता है।
मुझे गृह्यसूत्रों जैसे िकसी प्राचीन ग्रन्थ में नक्षत्र-चरणों और नाम के आद्यक्षरों का
कोई सम्बन्ध नहीं िमला है, यद्यिप इन ग्रन्थों में नक्षत्र-नामों की चचा� है और नामकरण
से सम्बद्ध अनेक िनद�श हैं। सच तो यह है अनेक गृह्यसूत्रों में कहा गया है जातक का
नाम एक घोष व्यञ्जन से प्रारम्भ होना चािहए, और अवकहडाचक्र में तो अनेक अघोष
व्यञ्जन हैं। पतञ्जिल के महाभाष्य में उस समय में प्रचिलत नामकरण के िनयमों का
वण�न है, पर नक्षत्र-चरणों से नाम के आद्यक्षरों का कोई सम्बन्ध विण�त नहीं है। िविभन्न
ज्योितष ग्रन्थों के अनुसार अजु�न के जन्म-नक्षत्र उत्तरा फल्गुनी के िलए नामाक्षर हैं ‘टे’,
‘टो’, ‘पा’ और ‘पी’, वहीं अजु�न के नक्षत्र-नाम फाल्गुन का आद्यक्षर ‘फा’ पूवा�षाढा
नक्षत्र के िलए िविहत है। अजु�न के नक्षत्र-नाम का आज प्रचिलत नक्षत्र-चरणों से सम्बद्ध
नामाक्षर से प्रारम्भ नहीं होना अिपतु नक्षत्र के ही नाम पर आधा�रत होना इस तथ्य का
प्रमाण है वत�मान नक्षत्र-चरणों और नामाक्षरों का प्रचलन महाभारत के समय नहीं था और
बहुत पीछे, बहुत सम्भवतः मध्यकाल में, प्रारम्भ हुआ।
इसके अित�रक्त अवकहडाचक्र भाषा की दृिष्ट से असंगत है। ‘अ’, ‘इ’, ‘उ’, ‘ऋ’
और ‘ऌ’ इन पाँच ह्रस्व स्वरों से कुल िमलाकर संस्कृत के लगभग १३ प्रितशत शब्द
प्रारम्भ होते हैं (संस्कृत शब्दों के आद्यक्षरों के आवृित्त िवतरण के िलए प�रिशष्ट ग देखें)।
वृहदवकहडाचक्र सदृश ग्रन्थों में प्राप्त अवकहडाचक्र में इन ह्रस्व स्वरों का स्थान ही नहीं
है। संस्कृत में ‘श’ एक बहुप्रयुक्त व्यञ्जन है और इससे संस्कृत के लगभग ५ प्रितशत
शब्द प्रारम्भ होते हैं। यह व्यञ्जन भी अवकहडाचक्र में नहीं है। एक सौ बारह में से सत्रह
नक्षत्र-चरणों के िलए अवकहडाचक्र के नामाक्षर ‘ङ’, ‘झ’, ‘ञ’, ‘ट’, ‘ठ’, ‘ड’, ‘ढ’,
‘ण’ और ‘थ’ से प्रारम्भ होते हैं। इन नौ व्यञ्जनों से कुल िमलाकर संस्कृत के मात्र ०.२५
प्रितशत शब्द प्रारम्भ होते हैं। वेदों, इितहासों अथवा पुराणों में इन व्यञ्जनों से प्रारम्भ
होने वाले नाम न के समान हैं। इन व्यञ्जनों से जो कुछ नाम हैं भी वे नामस्तोत्र और
नामाविलयों में िमलते हैं और यहाँ भी इन्हें वण�माला के सभी अक्षरों को आद्यक्षर बनाने
के एकमात्र उद्देश्य से रखा जाता है। आश्लेषा नक्षत्र के िलए नामाक्षर हैं ‘डी’, ‘डू’, ‘डे’
और ‘डो’, िजनसे संस्कृत के मात्र ०.१ प्रितशत शब्द प्रारम्भ होते हैं। जो भी माता-िपता
मुझसे आश्लेषा नक्षत्र के िलए अच्छे नाम ढूँढने के िलए आते हैं, वे बहुत िनराश होते हैं
जब मैं उन्हें बताता हूँ इन मूध�न्य ध्विनयों से संस्कृत में अच्छा तो दूर कोई प्रयोज्य नाम
भी नहीं है। कुछ उदारमना और सद्बुिद्ध ज्योितषी िनयमों में िढलाई करके नाम के आद्यक्षर
के िलए ‘ङ’, ‘ञ’ और ‘ण’ के स्थान पर क्रमशः ‘ग’, ‘ज’ और ‘ड’ के प्रयोग की छूट
देते हैं। पर प�ण्डत सीताराम शमा� जैसे रूिढवादी ऐसे ज्योितिषयों को भ्रान्त बताकर डंके
१३
सुनाम-स�रत्
की चोट पर कहते हैं इन नक्षत्र-चरणों के िलए नाम ‘ङ’, ‘ञ’ और ‘ण’ से ही प्रारम्भ
होने चािहए, भले ही वे ऐसे नामों का एक भी उदाहरण न दे पाएँ।
यद्यिप प्राचीन और मध्य भारत में िवद्वानों और वैयाकरणों के पास आज के संगणन
साधन नहीं थे, तथािप उन्हें कौनसे अक्षर शब्दों और नामों के प्रारम्भ में सामान्य हैं और
कौनसे िवरल हैं इसका अच्छा ज्ञान रहा ही होगा। ‘स’, ‘प’ अथवा ‘व’ से सहस्रों संस्कृत
शब्द और नाम हैं और ‘थ’, ‘ठ’ अथवा ‘ढ’ से बहुत ही थोड़े, यह जानने के िलए संस्कृत
के िकसी िवद्वान् को सां�ख्यकी के ज्ञान की आवश्यकता नहीं। प्रश्न तब यह उठता है
कौन िववेकशील संस्कृतज्ञ आद्यक्षरों को नक्षत्र-चरणों में इस अिववेक से बाँटेगा िजससे
कुछ नक्षत्र-चरणों के िलए तो सहस्रों नाम िमलें और अनेक अन्य नक्षत्र-चरणों के िलए
अत्यन्त अल्प? िकसी वैयाकरण ने ऐसी असंगत पद्धित कभी न बनाई होती।
पुणे के िनवासी नारायण प्रसाद बहुभाषािवद् हैं और बहुमुखी प्रितभा के धनी हैं। वे
व्याकरण और ज्योितष सिहत अनेक िवद्याओं में पारंगत हैं। उन्होंने अवकहडाचक्र पर
कुछ और गम्भीर प्रश्न खड़े िकए हैं। वे पूछते हैं दो ध्विनयों को अन्त में क्यों रखा गया
है, ह्रस्व स्वरों को क्यों प्रायः छोड़-सा ही िदया गया है, िनयिमत क्रम के बीच में कुछ
िविचत्र अक्षर क्यों रखे गए हैं, िविशष्ट व्यञ्जनों से कुछ अक्षरों के अनुक्रम को क्यों बीच
से प्रारम्भ िकया गया है अथवा बीच में ही रोक िदया गया है, आिद। इन प्रश्नों के कोई
उत्तर नहीं हैं।
रािशयों के िलए आज प्रयुक्त नामाक्षर प्रायः नक्षत्र-चरणों के अवकहडाचक्र से मेल
खाते हैं। िवद्वानों का ऐसा मानना है प्राचीन भारतीयों को रािशयों का प�रचय यूनािनयों
से िमला था। यह मान्यता ठीक जान पड़ती है। वैिदक ग्रन्थों में नक्षत्रों का वण�न है पर
रािशयों का नहीं। गृह्यसूत्र सदृश अनेक अन्य प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में और मध्यकाल
में ऋग्वेद की शाकल संिहता पर िलिखत सायणाचाय� के भाष्य में भी नक्षत्र-नाम का
वण�न है, रािश-नाम का नहीं। मकर रािश को छोड़कर अन्य सभी रािशयों के संस्कृत नामों
के वही अथ� हैं जो पाश्चात्त्य जगत् में रािशयों (zodiac signs) के नामों के हैं। नक्षत्र
प्राचीनतर िसद्धान्त है, अतः रािशयों के नामाक्षरों (प�रिशष्ट ख देखें) का चलन नक्षत्र-चरणों
के नामाक्षरों के चलन के पश्चात् हुआ होगा। रािश-नामाक्षरों का प्रचलन नक्षत्र-नामाक्षरों
के पहले आया हो अथवा पीछे, रािश के अनुसार नामों के आद्यक्षर भी उतने ही असंगत
हैं िजतने नक्षत्र-चरणों के अनुसार आद्यक्षर हैं। मेष रािश के िलए ज्योितष की अनेक
पुस्तकों में ‘अ’, ‘ल’ और ‘इ’ आद्यक्षर िदए गए हैं, िजनसे िमलाकर संस्कृत में लगभग
११ प्रितशत शब्द प्रारम्भ होते हैं। अतः मेष रािश के िलए सहस्रों नामों का िवकल्प है।
वहीं कक� रािश के िलए ‘ह’ और ‘ड’ आद्यक्षर िदए गए हैं, िजनसे िमलाकर संस्कृत में
दो प्रितशत शब्द भी प्रारम्भ नहीं होते। अतः कक� रािश के िलए नाम अपेक्षाकृत बहुत
थोड़े हैं।
१४
प्रस्तावना
यह पूरी मनमानी पद्धित एक अथवा एकािधक ऐसे ज्योितिषयों की बनाई हुई लगती
है िजन्हें संस्कृत शब्दों और नामों के आद्यक्षरों के बारे में अिधक ज्ञान न था। ज्योितिषयों
के भाषाज्ञान पर कईं बार प्रश्न उठ चुके हैं। संस्कृत में हास्यरस से ओतप्रोत एक सुभािषत
भी है िजसमें ज्योितिषयों को नटों, िवटों, गायकों और वैद्यों के समकक्ष रखकर कहा
गया है—वैयाकरणिकरातादपशब्दमृगाः क्व या�न्त संत्रस्ताः, ज्योितन�टिवटगायक-
िभषगाननगह्वरािण यिद न स्युः, अथा�त् “यिद ज्योितिषयों, नटों, िवटों, गायकों और
वैद्यों के मुख रूपी गुफाएँ न हों तो वैयाकरण रूपी िकरात से डरे हुए अपशब्द रूपी मृग
कहाँ जाएँ?”
यद्यिप इनका मूल भाषा की दृिष्ट से िनमू�ल ही है, तथािप नक्षत्र-चरणों और रािशयों
पर आधा�रत नामाक्षरों का चलन बहुत है। पूण�ता के उद्देश्य से मैंने प�रिशष्ट क और ख
में नक्षत्र और रािश के अक्षरों की तािलकाएँ दीं हैं।
सव�श्रेष्ठ िविध
संस्कृत-नाम-परामश� एक ज्ञानिवधा भी है और एक कलािवधा भी। इसके िलए संस्कृत
ग्रन्थों और संस्कृत व्याकरण के ज्ञान के अित�रक्त पुराने नामों के पया�य अथवा समतुल्य
शब्द सोचने के िलए अथवा िवद्यमान शब्दों और नामों से सव�था नए तथा नाम के रूप
में प्रयोज्य शब्द बनाने के िलए सज�नात्मकता की भी आवश्यकता होती है। अतः एक
सामान्य व्य�क्त के िलए संस्कृत नाम चुनने की श्रेष्ठ िविध है िकसी ऐसे बड़े-बूढ़े, िवद्वान्,
आचाय� अथवा गुरु से परामश� लें जो संस्कृत अथवा उनकी मातृभाषा में प्रवीण हो और
सािहत्य अथवा सनातन, बौद्ध और/वा जैन ग्रन्थों का अच्छा ज्ञान रखता हो। िपछले चार
बरसों में मैंने बालकों और व्यवसायों के नामों के िलए १,३०० से अिधक बार माता-िपताओं
और व्यवसािययों को परामश� िदया है। प्रत्येक परामश� मेरे िलए एक ज्ञानवध�क अनुभव
रहा है और इन सभी परामश� ने सुनाम पुस्तक शृङ्खला के संकलन में योगदान िदया है।
माता-िपताओं अथवा व्यवसािययों के मनोवा�ञ्छत नाम ढूँढने की बात आए तो कोई
भी पुस्तक, कोश, जालकेन्द्र, अनुप्रयोग (मोबाइल ऐप) अथवा कृित्रम बुिद्ध वाता�यन्त्र
(ए॰आई॰ चैटबॉट) मानव बुिद्ध के आस-पास भी नहीं है। इसका एक उदाहरण प्रस्तुत है।
कुछ मास पहले मैं बेंगलूरु की एक दम्पती की उनकी नवजात बािलका का नाम चुनने
में सहायता कर रहा था। उन्हें एक प्रामािणक और साथ�क संस्कृत नाम तो चािहए ही था,
साथ ही उनकी इच्छा थी बािलका के नाम में िपता के नाम प्रमोद, माता के नाम श्रावन्ती
और िपतामही के नाम सन्ध्या का भी यथासम्भव समावेश हो। लगभग एक घण्टे तक
बहुत सोच-िवचार और संवादात्मक नामान्वेषण के पश्चात् मुझे उनकी पुत्री के िलए उत्तम
नाम िमला—प्रवन्द्या (“प्रकृष्ट रूप से वन्दनीय”)। माता-िपता की सभी इच्छाओं की पूित�
करनेवाला यह नाम मानो िकसी देवता का वरदान था। इस नाम में िपता के नाम प्रमोद से
‘प्र’ अवयव की ध्विन, माता के नाम श्रावन्ती से ‘वन्’ अवयव की ध्विन और दादी के
१५
सुनाम-स�रत्
नाम सन्ध्या के ‘ध्या’ अवयव से िमलती-जुलती ‘द्या’ की ध्विन थी। स्त्रीिलङ्ग प्रवन्द्या
और पुंिलङ्ग एवं नपुंसकिलङ्ग प्रवन्द्य शब्द िकसी भी प्रमुख संस्कृत कोश में संकिलत नहीं
हैं। तथािप यह शब्द व्याकरण की दृिष्ट से साधु है। इसके अित�रक्त प्रवन्द्या देवीपुराण
(महाभागवत) में प्राप्त लिलता-सहस्रनाम के एक नाम ब्रह्मोपेन्द्रप्रवन्द्या (“ब्रह्मा और
िवष्णु के िलए प्रकृष्ट रूप से वन्दनीय”) का अ�न्तम भाग है (श्लोक २३.११०)।
सुनाम पुस्तक शृङ्खला
संस्कृत नामों पर सामान्य पाठकों के िलए िवद्वानों द्वारा िलिखत पुस्तकें बहुत ही थोड़ी
हैं और संस्कृत से अनिभज्ञ लेखकों द्वारा िलिखत पुस्तकों में अनेक त्रुिटयाँ हैं। मेनका
गाँधी की दो पुस्तकों—The Penguin Book of Hindu Names for Boys और The
Penguin Book of Hindu Names for Girls—में अनेक त्रुिटयाँ हैं। इनमें से कुछ मैंने
अपनी िपछली पुस्तक सुनाम की प्रस्तावना में बताईं हैं। िवजय कुमार द्वारा िहन्दू नामों
पर जो बहुतेरी पुस्तकें हैं उनमें इतनी त्रुिटयाँ हैं उनकी चचा� करना समय व्यथ� करना है।
बहुिशिक्षत दम्पती रमेश डोगरा और ऊिम�ला डोगरा द्वारा संकिलत Thought Provoking
Hindu Names में भी बहुत सारी भयानक त्रुिटयाँ हैं िजनमें अनेक तो एक ही पन्ने पर
हैं। यथा, पृष्ठ २२० पर पहला नाम रोमन िलिप और देवनागरी िलिप दोनों में अशुद्ध और
असंगत रूप से Surachirta और सुरिचत्र छापा है। नाम के अथ� “worshipped by
celestials” (=देवों द्वारा पूिजत) से पता चलता है यह नाम रोमन िलिप में Surārchita
अथवा Surārcita एवं देवनागरी में सुरािच�त होना चािहए। इसी पन्ने पर दूसरा नाम भी
रोमन और देवनागरी दोनों में अशुद्ध रूप से क्रमशः Surādhās और सुराधास िदया
गया है। शुद्ध नाम रोमन में Surādhas और देवनागरी में सुराधस् है। इसी पृष्ठ पर तीसरा
नाम भी अशुद्ध छपा है और एक नपुंसकिलङ्ग शब्द को स्त्रीवाची नाम बताया गया है।
दूसरे पन्नों पर ऐसी अनेक त्रुिटयाँ िमलेंगीं। िहन्दी पुस्तक शब्देश्वरी: देवी-देवताओं के नामों
का समान्तर कोश अच्छा प्रकाशन प्रतीत होता है पर दुलभ� है। सामान्य पाठकों के िलए
संस्कृत नामों पर प्रामािणक पुस्तकों के अभाव के कारण और अन्तजा�ल पर संस्कृत नामों
के िवषय में उलटी-पुलटी जानकारी के कारण ही मैंने सुनाम पुस्तक-शृङ्खला के लेखन
का मन बनाया था।
जैसा पहले कह चुका हूँ, सुनाम पुस्तकों की शृङ्खला में यह दूसरी पुस्तक है। पहली
पुस्तक थी सुनाम, िजसका उत्साहवध�क स्वागत हुआ है और िजसके छह पुनमु�द्रण हो चुके
हैं। सुनाम के छपने के तुरन्त पीछे मेरा एक लाख संस्कृत नामों से सम्पन्न सुनाम-सागर
(“सुन्दर नामों का समुद्र”) िलखने का िवचार था। तीन बरस बीतने पर भी यह भागीरथ
उपक्रम प्रारम्भ नहीं हुआ है। प्रारम्भ होने पर भी इसे पूरा करने में अनेक वष� लगेंगें,
जैसे वॆट्टं मािण को The Purāṇic Encyclopaedia के संकलन में ग्यारह वष� लगे थे।
इस बीच मुझे िनयिमत रूप से पाठकों से सुनाम का एक प�रविध�त संस्करण िलखने के
१६
प्रस्तावना
अनुरोध आते रहे हैं। इन अनुरोधों को स्वीकारते हुए मैंने दस सहस्र नामों वाली इस पुस्तक
सुनाम-स�रत् (“सुन्दर नामों की नदी”) को िलखने का िनण�य िलया। यह लगभग तीन
सहस्र नामों वाली सुनाम से तीन गुना से भी अिधक बड़ी है। सुनाम-स�रत् में संकिलत
दस सहस्र नामों में से एक सहस्र नाम सुनाम में थे और शेष नाम नए हैं।
सुनाम पुस्तक की ही भाँित इस पुस्तक में भी दुष्कृती मनुष्यों अथवा मनुष्येतरों के नाम
नहीं हैं। अतः रावण, इन्द्रिजत् जैसे नाम इस पुस्तक में पाठक को नहीं िमलेंगें। इसके
अपवाद वे नाम हैं जो दुष्कृती और सुकृती दोनों प्रकार के मनुष्यों अथवा मनुष्येतरों के हैं।
इसका एक उदाहरण है बक। यह नाम सनातन ग्रन्थों में अनेक दुष्कृती और सुकृती पात्रों
का है। केवल महाभारत में बक भीम द्वारा मारे गए एक राक्षस का नाम है, यक्ष अथवा
बगुले के रूप में युिधिष्ठर से प्रश्न करनेवाले धम� का नाम है, दाल्भ्य पैतृक नाम वाले एक
ऋिष का नाम है, इन्द्र से संवाद करनेवाले एक मुिन का नाम है और एक जनपद का भी
नाम है। यतः इस नाम से अनेक सुकृती पात्र हैं, मैंने इस नाम को इस पुस्तक में िलया है।
इसी प्रकार ित्रनेत्र यह िशव का भी नाम है और मिहषासुर के एक मन्त्री का भी नाम है।
एक खल पात्र का नाम होने पर भी यतः यह िशव का नाम है, अतः इसे इस पुस्तक में
िलया गया है। सुनाम और सुनाम-स�रत् दोनों में िदए गए सन्दभ� इस बात की पुिष्ट करते
हैं यत् पुस्तकों में संकिलत नाम मूल ग्रन्थों में सकारात्मक रूप से प्रयुक्त हुए हैं।
सुनाम के कुछ पाठकों के िचन्ताओं के िनवारण के िलए, नामों को ढूँढने की सरलता
के िलए और इस पुस्तक का मूल्य अत्यिधक न रखने के िलए सुनाम की तुलना में इस
पुस्तक में कुछ प�रवत�न िकए हैं। इन िदनों माता-िपता बहुधा अपने बालक-बािलका के
िलए दो अथवा तीन अक्षरों के लघु नाम ही चाहते हैं। इस पुस्तक के सभी दस सहस्र नाम
एक, दो अथवा तीन अक्षरों के हैं। इसके िवपरीत सुनाम पुस्तक में लगभग ३५ प्रितशत
नाम चार अथवा चार से अिधक अक्षरों के थे। यह ध्यातव्य है संस्कृत ग्रन्थों में सवा�िधक
नाम चार अक्षरों के हैं। तेज�स्वन् अथवा तेजस्वी जैसे बहुत से पुंिलङ्ग नाम तीन अक्षरों के
हैं पर उनके तेज�स्वनी जैसे स्त्रीिलङ्ग रूप चार अक्षरों के। इस असन्तुलन से और संस्कृत
ग्रन्थों में उ�ल्लिखत नामों के लैिङ्गक असन्तुलन से जिनत स्त्रीवाची नामों के अभाव की
पूित� के िलए िलए मैंने १,००३ पुंिलङ्ग नामों के स्त्रीिलङ्ग रूपान्तरण िकए हैं। वहीं दूसरी
ओर मैंने मात्र ७३ स्त्रीिलङ्ग नामों के पुंिलङ्ग रूपान्तरण िकए हैं। यद्यिप गृह्यसूत्रों में अनेक
अन्य िनद�शों और प्रितषेधों सिहत कन्याओं को िवषम अक्षरों के नाम और पुत्रों को सम
अक्षरों के नाम देने का िवधान है, तथािप इन िनद�शों की बहुधा अवहेलना होती ही थी, जैसा
तेज राम शमा� Personal and Geographical Names in the Gupta Inscriptions के
पूव�वाक् में कहते हैं। वेदों, रामायण, महाभारत और पुराणों में प्राप्त अनेक नामों की भाँित
इस पुस्तक के भी बहुत सारे नाम गृह्यसूत्रों के िनद�शों के अनुसार नहीं हैं। साथ ही, इस
पुस्तक में अनेक ऐसे भी नाम हैं जो गृह्यसूत्रों के िनद�शों के अनुसार हैं और सूत्र परम्परा
१७
सुनाम-स�रत्
का पालन करने को इच्छुक माता-िपता उनका प्रयोग कर सकते हैं।
इस पुस्तक में एक दूसरा प�रवत�न यह है कन्याओं के िलए स्त्रीिलङ्ग नाम और पुत्रों
के िलए पुंिलङ्ग नाम दो अलग-अलग भागों में िदए गए हैं। ऐसा करने से एक िलङ्गिवशेष
के नाम खोजने में पाठक को सुिवधा होगी। सुनाम पुस्तक में पुंिलङ्ग और स्त्रीिलङ्ग नाम
एक साथ िदए गए थे। कुछ प्रिविष्टयों में पुंिलङ्ग नाम देकर उनका स्त्रीिलङ्ग रूप अन्त में
िदया गया था और कुछ अन्य में स्त्रीिलङ्ग नाम देकर उनका पुंिलङ्ग रूप अन्त में िदया
गया था। कुछ पाठकों ने कहा था इससे उन्हें केवल कन्यानाम अथवा केवल पुत्रनाम
ढूँढने में किठनाई हुई थी।
एक अन्य प�रवत�न इस पुस्तक में यह है पुंिलङ्ग और स्त्रीिलङ्ग नामों की संख्या न
केवल पुस्तक के स्तर पर समान हैं (५,००० पुंिलङ्ग नाम और ५,००० स्त्रीिलङ्ग नाम),
अिपतु प्रत्येक अक्षर से प्रारम्भ होने वाले पुंिलङ्ग और स्त्रीिलङ्ग नामों की संख्या भी समान
है। यथा, इस पुस्तक में ‘स’ अक्षर से प्रारम्भ होने वाले ६४१ पुंिलङ्ग नाम हैं और ६४१
ही स्त्रीिलङ्ग नाम भी हैं। इसकी तुलना में सुनाम पुस्तक में ४९ प्रितशत नाम स्त्रीवाची
थे और ५१ प्रितशत पुरुषवाची। पुस्तक में वण�माला के िभन्न-िभन्न अक्षरों से प्रारम्भ होने
वाले नामों की संख्या का आवृित्त िवतरण १८९९ के मोिनयर-िविलयम्ज़ संस्कृत-अंग्रेज़ी
कोश की प्रिविष्टयों के आद्यक्षर के आवृित्त िवतरण के लगभग समान है। यह प�रिशष्ट ग
में दशा�या गया है।
सुनाम पुस्तक में नामों के मूल ग्रन्थ/कृित का यथावत् िनद�श था। इस पुस्तक में मूल
ग्रन्थ/कृित का पूरा िनद�श देने के स्थान पर सरल संकेताक्षरों से मूल ग्रन्थ/कृित की श्रेिण
बताई गई है, यथा वैिदक वाङ्मय के िलए वे, रामायण के िलए रा, महाभारत के िलए
म, पुराणों के िलए पु, जैन पुराणों के िलए जैप,ु नामस्तोत्रों के िलए ना, आिद। यद्यिप मेरी
इच्छा तो नामों के साथ-साथ मूलग्रन्थ के भाग, अध्याय और श्लोक अथवा गद्य संख्या
सिहत पूरे उद्धरण देने की थी, पर २१,००० सन्दभ� के िलए ऐसा करने से इस पुस्तक की
पृष्ठ-संख्या के साथ-साथ इसका मूल्य भी बहुत बढ़ जाता।
सुनाम पुस्तक में नामों के अथ� भी िदए गए थे, पर इस पुस्तक में कुछ नामों के
अित�रक्त (िवशेषतः उन नामों के अित�रक्त िजनके िलए कोई उद्धरण नहीं हैं) नामों के
अथ� नहीं िदए गए हैं। यह पुस्तक की पृष्ठ-संख्या और मूल्य को सीिमत रखने हेतु और
सहस्रों नामों को शीघ्रता से पढ़ पाने की सुिवधा हेतु िकया गया है। अथ� के िबना भी
यह पुस्तक लगभग ३८४ पृष्ठ लम्बी है। अथ� के साथ इसके लगभग ५०० पृष्ठ हो जाते,
कारण अनेक नाम ऐसे हैं िजनके अथ� एक अथवा दो शब्दों में नहीं िदए जा सकते। यह
भी ध्यातव्य है पूव�चिच�त िविशष्ट कोशों में और अिधकांश नामस्तोत्र पुस्तकों में भी नामों
के अथ� नहीं िदए रहते। बहुत बड़ी संख्या में नामों को एक ही पुस्तक में समा लेने के
िलए मुझे इस पुस्तक में अथ� का त्याग करण पड़ा है। नामों के अथ� संस्कृत कोशों से
१८
प्रस्तावना
अथवा संस्कृत के प�ण्डतों से जाने जा सकते हैं। नामों के अनेक अथ� को जानने के िलए
सव�श्रेष्ठ स्रोत हैं नामस्तोत्रों पर संस्कृत टीकाएँ।
अथ� में अमृत है
अनेक संस्कृत नामों के अथ� इतने गहरे हैं उन्हें इस पुस्तक सरीखे कोशों में समेटना
ही असम्भव है। बहुधा एक शब्द का अथ� एक वैय�क्तक नाम के सन्दभ� में कुछ और
होता है और अन्य सन्दभ� में कुछ और ही होता है। इसका एक उदाहरण है अनय, जो
महाभारत के अनुशासनपव� में प्राप्त िवष्णु-सहस्रनाम में श्रीिवष्णु का ४००वाँ नाम है (गीता
प्रेस संस्करण में श्लोक १३.१४९.५६)। अनय शब्द के संस्कृत में सामान्यतः बुरे अथ� हैं।
आप्टे संस्कृत-िहन्दी कोश के अनुसार इस शब्द के अथ� हैं (१) “दुव्य�वस्था, दुराचरण,
अन्याय, अनीित” (२) “दुन�ित, दुराचार, कुमाग�” (३) “िवपित्त, दुःख” (४) “दुभा�ग्य,
बुरी िकस्मत” (५) “जूआ खेलना”। आप्टे संस्कृत-अंग्रेज़ी कोश में एक अथ� और िदया
है (६) “छल, धोखाधड़ी”। आप्टे और अन्य अनेक कोशकारों द्वारा िदए गए सारे अथ�
बुरे हैं। परन्तु ये कदथ� िवष्णु के नाम अनय से नहीं जोड़े जा सकते। िवष्णु के नाम के
रूप में अनय को बहुव्रीिह समास मानकर “िजसका कोई [अन्य] नेता नहीं है”, अथा�त्
जो सबका नेता है, ऐसा अथ� समझना होगा। आिद शङ्कराचाय� के नाम से प्राप्त टीका में
इस नाम को समझाते हुए कहा गया है िजसका कोई नेता नहीं है वह ‘अनय’ है (नास्य
नेता िवद्यत इत्यनयः)। इसका भाव है वह जो दूसरों का नेता अथवा िनद�शक है पर
िजसका कोई नेता अथवा िनद�शक नहीं है। अपने पद्यमय भाष्य में पराशर भट्ट कहते हैं
िवष्णु ‘अनय’ हैं यतः उन्हें कोई शत्रु उठा नहीं सकता (असुहृिद्भन�यो यस्य नास्तीत्यनय
उच्यते)। यहाँ रामायण में रावण का लक्ष्मण के शरीर को न उठा पाने की ओर संकेत है।
वे इस नाम का ‘अन्’ + ‘अय’ िवग्रह करके एक अन्य अथ� देते हैं। ‘अय’ का अथ� है
गित, और पराशर भट्ट के अनुसार ‘अनय’ नाम का अथ� है वे िजनके अित�रक्त लोकों
की कोई गित नहीं है (अथवा जगतामस्मादयो नान्यस्ततोऽनयः)। सत्यसन्ध यितराज
अपने भाष्य में ‘अनय’ शब्द के दो अथ� देते हैं। वे पहले कहते हैं ‘अनय’ का अथ� है वह
जो अपनी ही उत्तमता के कारण [स्वयं] नेता है पर िजसका कोई नेता नहीं है (नयतीित
स्वस्यैवोत्तमत्वादन्य�स्मन्न िवद्यते नयो यस्य सः। वे दूसरे अथ� के िलए नाम का ‘अन’
+ ‘य’ िवग्रह करते हैं, िजसमें ‘अन’ का अथ� है वायु (प्राण) अथवा पृथ्वी और ‘य’
अवयव √‘या’ धातु = “जाना, प्राप्त करना” के प्रेरणाथ�क रूप से उत्पन्न है। यितराज
समझाते हैं जो दूसरों को वायु अथवा पृथ्वी प्राप्त कराता है (सम्भवतः जन्म की ओर
संकेत है) वह ‘अनय’ है (अनं वायुं भुवं प्रापयतीित प्राञ्चः)। यितराज का तात्पय�
है िवष्णु ही जीवों को साँस लेने और जीने की श�क्त देते हैं। बलदेव िवद्याभूषण अपने
भाष्य में कहते हैं ‘अय’ का अथ� है शुभावह िविध और िजनके अित�रक्त कोई शुभावह
िविध नहीं है वे ‘अनय’ हैं (नास्त्ययः शुभावहो िविधरन्यो यदपेक्षयेत्यनयः)। अन्ततः,
१९
सुनाम-स�रत्
सत्यदेव वािसष्ठ के भाष्य में भी दो अथ� िदए गए हैं। पहले अथ� में कहा गया है िवष्णु
सभी आत्माओं को अलग-अलग रूपों अथवा शरीरों में ले जाते हैं पर वे स्वयं �स्थर रहते
हैं और िकसी के द्वारा उनका नेतृत्व नहीं होता, अतः उनका नाम ‘अनय’ है। दूसरे अथ�
में अनय नाम का ‘अन्’ + ‘अय’ िवग्रह िदखाकर कहा गया है √‘इ’ = “जाना” धातु से
उत्पन्न ‘अय’ शब्द का अथ� है “वह जो गितमान् है” और ‘अनय’ का अथ� है “वह जो
गितरिहत है”, अथा�त् व्यापक और कूटस्थ होने के कारण गित, रूप और िक्रया से हीन है
(न एतीत्यनयः, गितरूपिक्रयारिहतो व्यापकत्वात्कूटस्थत्वाच्च)। ये सब केवल एक
नाम के अथ� हैं। ऐसा अमृत दस सहस्र नामों के िलए एक पुस्तक में कैसे परोसा जा
सकता है?
धन्यवाद-ज्ञापन
इस पुस्तक में सहस्रों नाम तो हैं ही, इस पुस्तक के लेखन में योगदान देनेवाले लोगों
की संख्या भी सहस्रों में है। िपछले चार वष� में माता-िपताओं और व्यवसािययों को १,३००
से अिधक नाम-िवषयक परामश� देते हुए मैंने बहुत कुछ सीखा है। सुनामों के महासागर में
और गहराई से उतरने का अवसर देने के िलए मैं उन सबका कृतज्ञ हूँ। मेरे सभी लेखन
काय� में मेरे माता-िपता और मेरे दोनों बालक चट्टान की भाँित मेरे साथ खड़े रहे हैं। मैं
आजीवन उनका ऋणी हूँ। इस पुस्तक में संकिलत नामों के अनुसन्धान के िलए योगायतन
समूह के डॉ० राजेन्द्र प्रताप िसंह जी ने सौजन्यवश अपने १०,००० पुस्तकों वाले िनजी
पुस्तकालय से भारतवष�य प्राचीन च�रत्रकोश की एक प्रित मुझे उधार दी। उनके इस
उपकार के िलए मैं उन्हें हृदय से धन्यवाद देता हूँ। श्रीमान् सुधीर कुडुचकर के नेतृत्व में
थ्री डॉट िडज़ाइन्ज़ के दल ने केवल एक िदन में पुस्तक के आवरण की कईं रूपरेखाएँ
बनाईं। उनमें से एक रूपरेखा को सामािजक संचार माध्यमों पर जनमत से चुना गया।
यही रूपरेखा सुधीर भाई की भी मनचाही रूपरेखा थी। इस उत्तम काय� के िलए सुधीर भाई
और थ्री डॉट िडज़ाइन्ज़ के सारे दल के प्रित और आवरण के चुनाव के िलए अपने मत
और िवचार देने वाले सभी सामािजक संचार प्रयोक्ताओं के प्रित उनके बहुमूल्य योगदान
के िलए मैं आभार व्यक्त करता हूँ। इस पुस्तक के अंग्रेज़ी संस्करण पर काय� करते समय
एक िदन टेिनस खेलते हुए मैं िगर पड़ा और मेरे दो आगे के दाँत तिनक िवस्थािपत हो
गए। डॉ० किवता कामराज की सुदक्ष िचिकत्सा से मेरा स्वास्थ्य लाभ हुआ। डॉ० किवता
के प्रित अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के िलए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मेरे गुरुदेव द्वारा
प्रणीत गोसहस्रनामस्तोत्र मुझे सदैव आश्चय�चिकत करता है और इस सहस्रनाम से भी
प्रकृत पुस्तक में अनेक नाम िलए गए हैं। इस अद्भुत कृित से मेरा प�रचय कराने के िलए
और मेरी लेखन यात्रा में मुझे सदैव प्रोत्सािहत करते रहने के िलए मैं गुरुदेव का अधमण�
हूँ। इस पुस्तक की संकल्पना से लेकर इसके छपने तक िशवानी अित्र ने अनेक प्रकार
से इसके प्रकाशन में अपना योगदान िदया है। उनके इस उपकार का प्रत्युपकार करने में
२०
प्रस्तावना
मैं अक्षम हूँ। अंग्रेज़ी संस्करण के पश्चात् िहन्दी संस्करण को भी अपने िवश्विवख्यात
प्रकाशन संस्थान चौखम्भा क्लािसका से छापने के िलए मैं श्रेयस् गुप्त के द्वारा उपकृत
हूँ। अन्ततः मैं अपने सभी पाठकों का ऋणी हूँ िजन्होंने मुझे िनत और िलखने के िलए
उत्सािहत िकया है। उनके और उनके समथ�न के िबना मैं कुछ नहीं हूँ।

िनत्यानन्द िमश्र
मुम्बई, गणेशचतुथ�, िवक्रम २०८०

२१
पाठक को िनद�श
प्रचिलत नामकरण पद्धित के अनुसार नक्षत्रों और रािशयों से सम्बद्ध नामों के आद्यक्षरों
की सूची के िलए पृष्ठ-संख्या ३७९ और ३८१ पर क्रमशः प�रिशष्ट (क) और (ख) देखें।
मैं पाठक को पृष्ठ-संख्या १२ से प्रारम्भ होनेवाले नक्षत्र, रािश और नाम प�रच्छेद को भी
पढ़ने का परामश� देता हूँ।
यद्यिप आजकल भारत में कहीं भी नाम के पञ्जीकरण में प्रायः अंग्रेज़ी वत�नी का
प्रयोग होता है, तथािप इस पुस्तक में नाम केवल देवनागरी में िदए गए हैं और उनकी
अंग्रेज़ी वत�नी नहीं दी गई है। चुने हुए नाम की अंग्रेज़ी वत�नी पाठक के िववेक पर छोड़
दी गई है।
सुनाम-स�रत् (“सुनामों की नदी”) नामक इस पुस्तक के दो भाग हैं—पुंनामधारा
(“पुंिलङ्ग नामों की धारा”) और स्त्रीनामधारा (“स्त्रीिलङ्ग नामों की धारा”)। पहले भाग
में पुत्रों के िलए उपयुक्त नाम हैं और दूसरे भाग में कन्याओं के िलए उपयुक्त नाम हैं।
दोनों धाराओं में नाम ‘अ’ से प्रारम्भ होनेवाले और ‘ह’ से अन्त होनेवाले देवनागरी
के अकारािद क्रम से रखे गए हैं। प्रत्येक पृष्ठ की शीिष�का (header) में उस पृष्ठ पर
मुिद्रत प्रथम और अ�न्तम नाम िदखाए गए हैं।
िजन संस्कृत नामों के प्राितपिदक रूप अजन्त (स्वर में अन्त होनेवाले) हैं, मैंने उनका
प्राितपिदक रूप िदया है, प्रथमा िवभ�क्त रूप नहीं। यथा, इस पुस्तक में ह�र और लक्ष्मी
नाम हैं, ह�रः और लक्ष्मीः नहीं। इसके अपवाद वे नाम हैं िजनके प्राितपिदक ऋकारान्त
हैं। ऐसे नामों के िलए प्रथमा िवभ�क्त रूप िदया गया है, प्राितपिदक रूप नहीं। यथा, इस
पुस्तक में िवधाता नाम है, िवधातृ नहीं।
िजन संस्कृत नामों के प्राितपिदक रूप हलन्त (व्यञ्जन में अन्त होनेवाले) हैं, यिद
उनका प्रथमा िवभ�क्त रूप िवसग� में अन्त होता है तो मैंने उनका प्राितपिदक रूप िदया
है। यथा, इस पुस्तक में सुतपस् नाम है, सुतपाः नहीं। इनसे अन्य नामों के िलए (िजनके
प्रथमा िवभ�क्त रूप के अन्त में िवसग� नहीं आता) मैंने उनके प्रथमा िवभ�क्त एकवचन
रूप अथवा प्राितपिदक रूप अथवा दोनों रूप िदए हैं।
इस िविध के फलस्वरूप इस पुस्तक के अिधकांश नाम पाठकों के िलए प�रिचत-से
हैं और उनके अन्त में िवसग� नहीं है। िवसग� का उच्चारण बहुधा अशुद्ध होता है और इससे
नाम के वास्तिवक रूप को लेकर श्रोताओं में भ्रा�न्त भी हो सकती है।
सुनाम-स�रत्
िकसी नाम की प्रिविष्ट में िदए उद्धरण/उद्धरणों को समझने के िलए पृष्ठ-संख्या २५
पर दी गई संकेताक्षर-सूची देखें।
िजन नामों के िलए कोई उद्धरण नहीं हैं, उन्हें छोड़कर अन्य नामों के अथ� इस पुस्तक
में नहीं िदए गए हैं। जहाँ भी नामों के अथ� िदए गए हैं, वहाँ अथ� को दोहरे उद्धरण-िचह्नों
के बीच रखा गया है। नामों के अथ� जानने के िलए पाठक मानक संस्कृत कोशों का
प्रयोग कर सकते हैं। ध्यान रहे संस्कृत कोशों में इस पुस्तक के सभी नाम संकिलत नहीं
हैं और जो हैं भी उनके सभी अथ� िदए हों यह आवश्यक नहीं है। अिधक जानकारी के
िलए पाठक पृष्ठ-संख्या १९ से अथ� में अमृत है प�रच्छेद को पढ़ सकते हैं।

२४
संकेताक्षर-सूची
आरा आनन्द रामायण
ऐ ऐितहािसक व्य�क्त
को कोश (अमरकोष, वाचस्पत्य, आप्टे, आिद)
जै जैन ग्रन्थ
जैअ जैिमनीय अश्वमेधपव�
जैपु जैन पुराण
ना नामस्तोत्र (सहस्रनाम, आिद)
नाशा नाट्यशास्त्र
पु सनातन पुराण (ह�रवंश सिहत)
प्रा प्राितशाख्य
बौ बौद्ध ग्रन्थ
म महाभारत
योवा योगवािसष्ठ
रा रामायण
राज राजतरिङ्गणी
वे वैिदक वाङ्मय (संिहता, ब्राह्मण, आरण्यक, मुख्य उपिनषद्,
अनुक्रमिणयाँ, आिद)
व्या व्याकरण ग्रन्थ
सा सािहत्य ग्रन्थ (काव्य, नाटक, आिद)
सू सूत्र ग्रन्थ (श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र)

३ सु.स.
भाग १

पुंनामधारा

अंश ▶ अ�ग्न (वे); एक आिदत्य (पु); एक ऋिष (पु); एक देव (पु)
अंशक ▶ गणेश (ना)
अंशु ▶ अनेक पुरुषों और देवों का नाम (वे, पु); िशव (ना); सूय� (ना)
अंशुमान् ▶ अनेक पुरुषों और देवों का नाम (म, पु); अध�नारीश्वर (ना); िवष्णु (ना);
सूय� (ना); स्कन्द (ना)
अंशुल ▶ चाणक्य (को)
अकर ▶ िशव (ना)
अकता� ▶ काल (ना); िजन (ना)
अकल ▶ दत्तात्रेय (ना); लक्ष्मण (ना); िशव (ना)
अकल्प ▶ इन्द्र (वे)
अकाम ▶ कृष्ण (ना); पाश्व�नाथ (ना)
अकाय ▶ काल (ना); राम (ना); िशव (ना); हनुमान् (ना)
अकार ▶ कृष्ण (म); अघोर (ना); िवष्णु (ना); िशव (ना)
अकुण्ठ ▶ िशव (ना)
अकुल ▶ काल (ना); िशव (को)
अकूल ▶ दत्तात्रेय (ना)
अकृत ▶ दत्तात्रेय (ना); िशव (ना)
अकृष्ट ▶ ऋिषयों का एक वग� (म)
अकोप ▶ दशरथ के एक मन्त्री (रा); पाश्व�नाथ (ना)
अक्र ▶ अ�ग्न (वे)
अक्रम ▶ कृष्ण (ना)
अिक्रय ▶ एक राजा (पु); िजन (ना); िशव (ना)
अक्रूर ▶ एक नाग (पु); एक यादव (पु); कृष्ण (ना); नृिसंह (ना); िवष्णु (ना)
अक्रोध ▶ कृष्ण (ना)
अक्रोश ▶ एक राजा (म)
अक्लेद्य ▶ बलराम (ना); िशव (ना)
अक्ष ▶ स्कन्द का एक योद्धा (म); कृष्ण का एक पुत्र (पु); िशव (ना); गरुड (को)
अक्षक ▶ एक वृक्ष का नाम (को)
अक्षघ्न ▶ हनुमान् (ना)
अक्षज ▶ िवष्णु (पु)
अक्षत ▶ िशव (ना)
सुकान्त सुनाम-स�रत् सुचक्र
सुकान्त ▶ कईं पुरुषों का नाम (जैपु)
सुकाम ▶ काल (ना)
सुकाल ▶ िपतृदेवों का एक वग� (पु)
सुकीित� ▶ ऋिष सुकीित� काक्षीवत (वे); बलराम (ना); राम (ना); िशव (ना)
सुकृत ▶ इन्द्र (वे); पृथु का एक पुत्र (पु); कृष्ण (ना); दत्तात्रेय (ना); िवष्णु (ना)
सुकृितन्/सुकृती ▶ िजन (ना); पाश्व�नाथ (ना); लक्ष्मण (ना)
सुकृत्य ▶ एक पुरुष का नाम (व्या)
सुकृष ▶ एक ऋिष (पु)
सुकेत ▶ एक आिदत्य (को)
सुकेतु ▶ अनेक पुरुषों का नाम (पु)
सुकेश ▶ कृष्ण (ना); नृिसंह (ना); बटुकभैरव (ना); लक्ष्मण (ना); िशव (ना)
सुकेिशन्/सुकेशी ▶ आचाय� सुकेिशन् भारद्वाज (वे)
सुक्रतु ▶ अ�ग्न (वे); इन्द्र (वे); एक राजा (म)
सुक्षत्र ▶ इन्द्र (वे); एक राजा (म, पु)
सुख ▶ कृष्ण (ना); गणेश (ना); िवष्णु (ना); हनुमान् (ना)
सुखद ▶ अघोर (ना); िजन (ना); राम (ना); िवष्णु (ना); सूय� (ना); स्कन्द (ना)
सुिखन्/सुखी ▶ कृष्ण (ना); गणेश (ना); दत्तात्रेय (ना); नटेश (ना); राम (ना); िवष्णु
(ना); िशव (ना); सूय� (ना); स्कन्द (ना); हनुमान् (ना)
सुगण ▶ एक राजपुत्र (को)
सुगत ▶ िजन (ना); िशव (ना)
सुगित ▶ एक राजा (पु); िजन (ना); सूय� (ना)
सुगन्ध ▶ एक यक्ष (पु); बटुकभैरव (ना)
सुगम ▶ काल (ना); राम (ना)
सुगम्य ▶ इन्द्र (वे)
सुगुण ▶ कृष्ण (ना); िशव (ना)
सुगुप्त ▶ िजन (ना)
सुग्रह ▶ अघोर (ना)
सुग्रीव ▶ एक वानर (रा); अनेक पुरुषों का नाम (पु); बलराम (ना); िवष्णु (ना); िशव
(ना); स्कन्द (ना)
सुघोर ▶ नृिसंह (ना); िशव (ना)
सुघोष ▶ नकुल का शङ्ख (म); िजन (ना); राम (ना); िवष्णु (ना); िशव (ना); एक बुद्ध
(को)
सुचक्र ▶ स्कन्द का एक योद्धा (म)
१८६
होम्य १. पुंनामधारा ह्लादन
होम्य ▶ िशव (ना)
ह्रद ▶ प्रह्लाद का एक भाई (पु)
ह्राद ▶ प्रह्लाद का एक भाई (पु)
ह्रीधर ▶ बलराम (ना)
ह्रीमय ▶ काल (ना)
ह्रीमान् ▶ िशव (ना)
ह्लाद ▶ प्रह्लाद का एक भाई (पु)
ह्लादन ▶ िशव (ना)

१४ सु.स. २०१
भाग २

स्त्रीनामधारा

अंशाख्या ▶ हािकनी (ना)
अंिशका ▶ अंशक का स्त्रीिलङ्ग
अंिशनी ▶ सङ्कटा (ना)
अंशुका ▶ यमुना (ना)
अंशुला ▶ अंशुल का स्त्रीिलङ्ग
अःस्था ▶ हािकनी (ना)
अकत्र� ▶ अकता� का स्त्रीिलङ्ग
अकला ▶ पाव�ती (ना); राधा (ना)
अकल्पा ▶ सीता (ना)
अकष्टा ▶ सङ्कटा (ना)
अकान्ता ▶ राधा (ना); लिलता (ना)
अकामा ▶ यमुना (ना); राधा (ना); सीता (ना)
अकाम्या ▶ गोमाता (ना)
अकाया ▶ सीता (ना)
अकारा ▶ अन्नपूणा� (ना); भवानी (ना)
अकाया� ▶ पाव�ती (ना); लिलता (ना)
अकाला ▶ राधा (ना)
अकुण्ठा ▶ अकुण्ठ का स्त्रीिलङ्ग
अकुला ▶ लिलता (ना); पाव�ती (को)
अकृता ▶ अकृत का स्त्रीिलङ्ग
अकृष्टा ▶ अकृष्ट का स्त्रीिलङ्ग
अकोपा ▶ सीता (ना)
अक्ता ▶ सरस्वती (ना)
अक्रमा ▶ अक्रम का स्त्रीिलङ्ग
अक्रा ▶ अक्र का स्त्रीिलङ्ग
अिक्रया ▶ यमुना (ना)
अक्रूरा ▶ भवानी (ना)
अक्रोधा ▶ अक्रोध का स्त्रीिलङ्ग
अक्रोशा ▶ अक्रोश का स्त्रीिलङ्ग
अक्लमा ▶ गोमाता (ना)
अक्लेद्या ▶ अक्लेद्य का स्त्रीिलङ्ग
ह्रािदनी सुनाम-स�रत् ह्लािदनी
ह्रािदनी ▶ एक नदी (पु)
ह्री ▶ दक्ष की एक पुत्री (पु); स्वायम्भुव मनु की एक पुत्री (पु); गोमाता (ना); लक्ष्मी
(ना)
ह्रीङ्कारी ▶ अन्नपूणा� (ना); गायत्री (ना); श्यामला (ना)। ह्रीङ्कारबीजरूपा = भवानी
(ना)
ह्रीधरा ▶ ह्रीधर का स्त्रीिलङ्ग
ह्रीमती ▶ गायत्री (ना); लिलता (ना); श्यामला (ना)
ह्रीमयी ▶ ह्रीमय का स्त्रीिलङ्ग
ह्रीला ▶ राधा (ना)
ह्लािदनी ▶ काली (ना); लक्ष्मी (ना); लिलता (ना); सीता (ना); एक नदी (को)

३७८
प�रिशष्ट (क) नक्षत्र और नामाक्षर
िविभन्न ज्योितष ग्रन्थों में नक्षत्र चरणों के िलए नाम के आद्यक्षरों में कुछ अन्तर हैं।
कहीं-कहीं एक ज्योितष ग्रन्थ में िकसी नक्षत्र चरण के िलए एक दीघ� नामाक्षर प्राप्त होता
है तो िकसी अन्य ज्योितष ग्रन्थ में उसी नक्षत्र चरण के िलए तदनुसार लघु नामाक्षर। यथा,
अितबृहदवकहडाचक्रम् (कन्हैयालाल व्रजभूषणदास गुप्त, १९३१) में कृित्तका नक्षत्र के
प्रथम चरण के िलए लघु अक्षर ‘अ’ िदया गया है, तो वहीं वृहदवकहडाचक्रम् (प्रकाशक
अज्ञात) में इसी चरण के िलए दीघ� अक्षर ‘आ’ िदया गया है। अधोिलिखत तािलका
वृहदवकहडाचक्रम् से है और केवल सन्दभ� के िलए दी गई है।
चरण/पाद
नक्षत्र
१ २ ३ ४
अ�श्वनी चू चे चो ला
भरणी ली लू ले लो
कृित्तका आ ई ऊ ए
रोिहणी ओ वा वी वू
मृगिशरस् वे वो का की
आद्रा� कू घ ङ छ
पुनव�सु के को हा ही
पुष्य हू हे हो डा
आश्लेषा डी डू डे डो
मघा मा मी मू मे
पूव�फल्गुनी मो टा टी टू
उत्तरफल्गुनी टे टो पा पी
हस्ता पू ष णा ठा
िचत्रा पे पो रा री
सुनाम-स�रत्

चरण/पाद
नक्षत्र
१ २ ३ ४
स्वाित रू रे रो ता
िवशाखा ती तू ते तो
अनुराधा ना नी नू ने
ज्येष्ठा नो या यी यू
मूल ये यो भा भी
पूवा�षाढा भु धा फ ढ
उत्तराषाढा भे भो जा जी
अिभिजत् जू जे जो ष
श्रवणा खी खू खे खो
धिनष्ठा गा गी गू गे
शतिभषा गो सा सी सू
पूव�भाद्रपदा से सो दा दी
उत्तरभाद्रपदा दू थ झ ञ
रेवती दे दो चा ची

३८०
प�रिशष्ट (ख) रािश और नामाक्षर
प्रायः रािशयों के िलए नाम के आद्यक्षर के पश्चात् िकसी मात्रा का अनुबन्ध नहीं होता
है। उदाहरणतः, र अथवा त से प्रारम्भ होने वाला कोई भी नाम तुला रािश का नाम माना
जाता है। अधोिलिखत तािलका ज्योितष फलदीिपका (डायमंड पॉकेट बुक्स, २००५) से
है और केवल सन्दभ� के िलए दी गई है।
रािश नाम का प्रथम अक्षर
मेष अलइ
वृषभ बवउ
िमथुन क छ घ क्ष
कक� हड
िसंह मट
कन्या पठण
तुला रत
वृ�श्चक नय
धनुस् धफदभ
मकर खज
कुम्भ ग श ष स ज्ञ
मीन दचझथ
प�रिशष्ट (ग) संख्यान
इस पुस्तक में ठीक १०,००० नाम हैं िजनमें ५,००० पुंिलङ्ग नाम और ५,००० स्त्रीिलङ्ग
नाम हैं। प्रत्येक अक्षर से प्रारम्भ होने वाले नामों की संख्या मोिनयर िविलयम्ज़ के १८९९
के संस्कृत-िहन्दी कोश की लगभग तीन लाख प्रिविष्टयों के आद्यक्षर के आवृित्त िवतरण
(frequency distribution) के अनुसार है, जैसा अधोदत्त तािलका में िदखाया गया
है। इस िवश्लेषण के िलए प्रयुक्त मोिनयर िविलयम्ज़ कोश का अङ्कीकृत संस्करण
(digitised edition) कोलोन िवश्विवद्यालय (Universität zu Köln) के जालकेन्द्र
पर उपलब्ध है। इस संस्करण पर ३० जून २०१४ का िदनाङ्क अिङ्कत है। तािलका के
अ�न्तम स्तम्भ में तत्तत् आद्यक्षर से प्रारम्भ होने वाले पुंिलङ्ग और स्त्रीिलङ्ग नामों की
संख्या िदखाई गई है। उदाहरणाथ�, अ अक्षर से इस पुस्तक में ४४७ पुंिलङ्ग नाम और
४४७ स्त्रीिलङ्ग नाम िदए गए हैं।
प्रार�म्भक मो॰िव॰ कोश प्रितशत ५,००० सुनाम-स�रत्
अक्षर में प्रिविष्टयाँ प्रिविष्टयाँ से गुिणत में नाम
अ २५,८२६ ८.९८०% ४४९.० ४४७
आ ७,२०१ २.५०४% १२५.२ १२५
इ १,३९३ ०.४८४% २४.२ २४
ई ३४७ ०.१२१% ६.० ७
उ ८,६७८ ३.०१७% १५०.९ १५०
ऊ ५७७ ०.२०१% १०.० ११
ऋ ७८८ ०.२७४% १३.७ १४
ॠ १४ ०.००५% ०.२ २
ऌ ६ ०.००२% ०.१ २
ॡ ८ ०.००३% ०.१ २
ए १,३२१ ०.४५९% २३.० २३
ऐ ३१५ ०.११०% ५.५ ६
ओ २४७ ०.०८६% ४.३ ५
औ ५८९ ०.२०५% १०.२ ११
क २०,५४८ ७.१४५% ३५७.२ ३५६
ख १,५६३ ०.५४३% २७.२ २७
सुनाम-स�रत्
प्रार�म्भक मो॰िव॰ कोश प्रितशत ५,००० सुनाम-स�रत्
अक्षर में प्रिविष्टयाँ प्रिविष्टयाँ से गुिणत में नाम
ग ७,५५१ २.६२५% १३१.३ १३१
घ १,१०१ ०.३८३% १९.१ २०
ङ ७ ०.००२% ०.१ २
च ५,४५० १.८९५% ९४.७ ९४
छ ८३० ०.२८९% १४.४ १५
ज ५,०८६ १.७६८% ८८.४ ८८
झ २१४ ०.०७४% ३.७ ४
ञ ७ ०.००२% ०.१ २
ट १६८ ०.०५८% २.९ ३
ठ २४ ०.००८% ०.४ २
ड १८७ ०.०६५% ३.३ ४
ढ ५२ ०.०१८% ०.९ २
ण १२ ०.००४% ०.२ २
त ८,१९० २.८४८% १४२.४ १४२
थ ३१ ०.०११% ०.५ २
द १०,९१० ३.७९३% १८९.७ १८८
ध ३,५९९ १.२५१% ६२.६ ६२
न ११,७८४ ४.०९७% २०४.९ २०३
प ३१,११६ १०.८१९% ५४१.० ५३९
फ ७६५ ०.२६६% १३.३ १४
ब ५,६३५ १.९५९% ९८.० ९७
भ ६,७७९ २.३५७% ११७.९ ११७
म १६,२५३ ५.६५१% २८२.६ २८१
य ४,४७२ १.५५५% ७७.७ ७७
र ७,७५७ २.६९७% १३४.९ १३४
ल ३,९९० १.३८७% ६९.४ ६९
व २८,५०७ ९.९१२% ४९५.६ ४९४
श १४,६९७ ५.११०% २५५.५ २५४
ष ८३१ ०.२८९% १४.४ १५
स ३६,९७२ १२.८५५% ६४२.८ ६४१
ह ५,२०६ १.८१०% ९०.५ ९०
कुल २८७,६०४ १००.०००% ५,००० ५,०००

३८४
सं�ृत नाम� का सागर अथाह है। सनातन, बौद्ध और जैन वा�य म� लाख�
सं�ृत नाम उपल� ह�। सुनाम-स�रत् (“अ�े नाम� क� नदी”) म� दस सह� लघु
(एक, दो अथवा तीन अक्षर� वाले) सं�ृत नाम� का सं�ह है। ये दस सह� नाम
लगभग १५० सं�ृत ��� से संगृहीत लेखक के दो लाख से अ�धक सं�ृत
नाम� वाले �नजी सं�ह से चुने गए ह�। आज जब अ�ज�ल पर च�ँओर सं�ृत
नाम� पर �म�ा जानकारी ही �मलती है, यह पु�क अपने बालक अथवा
�वसाय के �लए एक लघु सं�ृत नाम ढू ँढने वाले माता-�पताओं और
�वसा�यय� के �लए एक सुलभ साधन है।

मु�ई के �नवासी �न�ान� �म� भारतीय �ब� सं�ान


ब�गलू� से �ातको�र �शक्षा �ा� ह� और �व�ीय क्षे� म�
कायर्रत ह�। वे �ारह पु�क� के लेखक और नाम�वत् ह�।
�पछले चार वष� म� वे माता-�पताओं और �वसा�यय�
को सं�ृत नाम� पर १,३०० से अ�धक परामशर् दे चुके ह�।
‘Sunāma: Beautiful Sanskrit Names’ (2020)
सं�ृत नाम� पर उनक� �थम पु�क थी। ��ुत पु�क
उनक� सं�ृत नाम� पर ��तीय पु�क ‘Sunāma-Sarit: Ten Thousand
Sanskrit Names’ का �ह�ी सं�रण है।

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