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फसलों की मखमली
फसलों की मखमली
लिपट गई हैं जैसे उस हरियाली पर चाँदी की उजली जाली लपेट दी गई हो। कवि तिनकों को हरे तन
वाला बताता है। ऐसे हरे तिनकों में हरियाली इस प्रकार समा गई है जैसे नसों में बहता हुआ खून हो।
फसलों की हरीतिमा से सौवती हुई धरती के ऊपर विशाल आका का कभी न धूमिल पड़ने वाला नीला
आकाश (फलक) मानों नीचे झुककर धरती को छू लेना चाहता है।
गेहूँ और जो में जो नव विकसित बालियाँ हैं, अरहर और सनई की पकी फसलों में फलियों के बीच
हवा से हिलकर बज उठने वाले गोल सुनहरे दाने हैं, फू ली सरसों का पीला रंग ओर उसके फू लों से हवा
में बिखरती तैलीय सुगन्ध है, हरी-हरी धरती से निकलने वाले, नीले फू ल सिर पर सजाए जो तीसी के
छोटे हैं इन सबका एकत्रित सोन्दर्य देखकर मानों धरती रोमांचित हो गई है। पुलक और प्रसन्नता से
भर-सी गई है।
मटर के फू ल और फलियों वाले पोधे ऐसे सुंदर लग रहे हैं जैसे मानों विस्तृत फसल-राशि की सखियाँ
हो। फसलों की मटर रूपी ऐसी राखी रंग-बिरंगे फू लों को लिए खेतों में सड़ी हँस रही है। बीजों की सड़ी
या श्रृंखला को अपने में समेटे मटर की फलियाँ मखमल की मुलायम थेलियों सी मटर के पोधों से
लगी लटक रही हैं। मटर के फू लों पर बैठती-उड़ती रंग-बिरंगी तितलियों जब तक फू ल से दूसरे फू ल
पर जाती हैं तो ऐसा लगले है कि जैसे रंग-बिरंगे फू ल स्वर्ष ही अपने वृंतों से उड़कर दूसरे वृत्तों पर
जाकर बैठ जाते हों।
गाँव की घरती के वल फसलों से सौंदर्य पूर्ण नहीं है, बल्कि बाग-बगीचों में उगे आम की डालियाँ भी जो
अब बोरों से लद सी गई हैं, उसकी शोभा बढ़ा रही हैं। वासंती मौसम आने के कारण ढाक और पीपल
के पुराने पत्ते झड़कर नव किसलयों को विकसित होने का अवसर दे रहे हैं। आस वन की रजत-स्वर्ष
मंजरियों को देखकर कोपल कु क रही है और मतवाली सी हो गई है। कटहल फल आने के कारण
महक उठे हैं और जामुन के पेड़ों पर भी जामुन के गुच्छे मुकु लित होने (निकलने) लगे हैं। जैसे बगीचे
में इन वृक्षों में फल आ गए हैं वैसे ही जंगल में झरबेरी के पेड़ों में झरबेरी के गुच्छे फल लटक रहे
है। आडू नबी और अनार के पेड़ों में फल के पूर्व रेजने वाले फू ल लग गए हैं। इन सबकी तरह ही
सब्जियों जैसे आलू, गोभी, बैंगन और मूली भी अपने विकास को प्राप्त कर रहे हैं।
पीले अमरूद अब लाल पत्तियों वाले हो गए हैं अर्थात् पहले से अधिक मीठे और सुंदर हो गए है। बेर
पक गए हैं और अवली की डालों पर बहुत से फलों के गुच्छे लटक गए हैं। कहीं खेतों में पालक
लहलहा रही है तो कहीं धनिया की भीनी खुशबू फै ल रही है। कहीं लोकी और सेम की लताओं में
लोकी ओर सेम झूल रही हैं तो कहीं मखमल से मुलायम टमाटर हरे से लाल हो गए हैं। मिर्च के
गुच्छों को देखकर कवि की कल्पना उन्हें बीजों से भरी हुई हरी पेली के रूप में प्रस्तुत करती है।
गंगा की रेती जो सूर्य का प्रकाश पड़ने के कारण सतरंगी बनकर चमक रही है, वह बालू के सांपों से
अंकित है। उसके चारों ओर सरपत की घनी झाड़ियाँ और तट पर तरबूजों के खेत बड़े सुंदर लगते हैं।
जल में अपने एक फे र को उठा-उठाकर सिर खुजलाते बगुले ऐसे दिखाई पड़ते हैं जैसे बालों में कं घी
कर रहे हों। गंगा के उस प्रवहमान जल में कहीं, सुरखाब तैर रहे हैं तो कहीं किनारे पर मगरौठी (एक
विशेष चिड़िया) ऊँ घती हुई सी दिखाई पड़ रही है