Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 5

४.

नेता जी का चश्मा
(स्वयं प्रकाश)

1) हालदार साहब कहाँ, कब और क्यों जाते हैं?


उत्तर: हालदार साहब हर पन्द्रहवें दिन कम्पनी के काम से उस कस्बे में जाते थे, जहाँ नेता जी की
प्रतिमा लगी हुई थी।

2)कस्बे का वर्णन कीजिए।


उत्तर:कस्बा बहुत ही छोटा था। वहीं पर एक लड़कों का स्कू ल था। एक लड़कियों का स्कू ल था। एक
सीमेन्ट का छोटा-सा कारखाना था। दो ओपन एयर सिनेमा घर और एक नगर पालिका थी। मुख्य
बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा थी।

3)नगर पालिका उस कस्बे में क्या-क्या काम करवाती थी?


उत्तर :नगरपालिका उस कस्बे में निर्माण और सौन्दरीकरण हेतु अनेक काम करती थी। कभी कोई
सड़क पक्की करवा दी। कभी कु छ पेशाब घर बनवा दिया। कभी कबूतरों की छतरी बनवा दी तो कभी
कवि सम्मेलन करवा दिये। इसी नगर पालिका के किसी अधिकारी ने शहर के मुख्य चौराहे पर नेताजी
की प्रतिमा लगवा दिया था।

4) नेताजी की प्रतिमा के निर्माण के बारे में लेखक का क्या विचार था?


उत्तर: लेखक का व्यक्तिगत अनुमान था कि शायद अच्छे मूर्तिकार की जानकारी न हुई हो या मूर्ति की
लागत उपलब्ध बजट से अधिक रही हो। अधिक बजट बढ़वाने के चक्कर में समय अधिक बर्बाद हुआ
हो। इसी में शासन की समय सीमा समाप्त होने को आ गई हो। इसीलिए स्थानीय कलाकार को यह
मौका देने का निर्णय लिया गया हो। इसीलिए इस कस्बे के एकमात्र हाईस्कू ल के इकलौते ड्राइंग मास्टर
मोतीलाल जी को यह काम सौंप दिया गया। जिन्होंने महीने भर में यह मूर्ति बनाकर दे दिया।

5) मूर्ति का वर्णन करो।


उत्तर:मूर्ति नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की थी। यह संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन
तक कोई दो फु ट ऊं ची। नेताजी सुन्दर लग रहे थे। फौजी वर्दी में थे। मूर्ति को देखते ही 'दिल्ली चलो',
'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा' आदि नारा याद आ जाते थे। यह एक सफल और सराहनीय
प्रयास था। कमी थी तो सिर्फ आंखों में चश्मा नहीं था।

6)हालदार साहब ने चश्में के बारे में क्या-क्या देखा था?


उत्तर: हालदार साहब उसी कस्बे में एक पान की दुकान पर पान खाने के लिए रुका करते थे। पहली बार
जब उन्होंने देखा तो मूर्ति संगमरमर की थी लेकिन चश्मा सही सही पहनाया गया था। दूसरी बार जब
उन्होंने देखा तो अन्तर दिखाई दिया। पहले मोटे फ्रे मवाला चौकोर चश्मा था। अब तार के फ्रे मवाला गोल
चश्मा था। इस प्रकार दो साल तक हालदार साहब काम के सिलसिले में जाते रहे और नेताजी की मूर्ति
में बदलते हुए चश्मों को देखते रहे। कभी गोल चश्मा होता तो कभी चौकोर, कभी लाल, कभी -कभी
धूप का चश्मा, कभी बड़े काँचों वाला गोगो चश्मा होता था। अंत में जब उन्होंने देखा तो नेताजी की
आँखों पर सरकं डे से बना हुआ चश्मा था।

7)चश्मा कौन पहनाता था? अंत में सरकं डे का चश्मा किसने पहनाया था?
उत्तर:उस कस्बे में पानवाले के अनुसार चश्मा नेताजी को कै प्टन चश्मावाला पहनाता था। उसे नेताजी
की बगैर चश्मेवाली वाली मूर्ति बुरी लगती थी बल्कि आहत करती थी। जैसे चश्में के बिना नेताजी को
असुविधा हो रही थी। इसीलिए वह कै प्टन अपनी छोटी सी दुकान पर उपलब्ध गिने-चुने फे मों में से एक
नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देते थे। लेकिन जब कोई ग्राहक आता था और उसे फ्रे म की जरूरत होती
तो वह इसे निकालकर दूसरा लगा देता था। जब कै प्टन चश्मावाला मर गया तो शायद किसी बच्चे ने
सरपत का छोटा सा चश्मा बनाकर लगा दिया।

8)कै प्टन चश्मेवाले का वर्णन कीजिए।


उत्तर: कै प्टन चश्मावाला एक फे रीवाला था। वह बेहद बुदा मरियल सा लँगड़ा आदमी था। सिर पर गाँधी
टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बॉस
पर टॅगे बहुत से चश्मे लिए गली में से निकला था। वह गली-गली में घूमकर चश्मा बेचता था।

9)हालदार साहब की आँखें क्यों भर आयीं?


उत्तर: हालदार साहब देश में देश भक्तों की हालत को देखकर द्रवित हुए। देश की आजादी पर कु र्बानी
देनेवालों की पूजा करने के बजाए हम लोग उन पर हँस रहे हैं। उनका मजाक उड़ा रहे हैं। स्वयं बिकने
के लिए तैयार हैं लेकिन जो देश की अस्मिता के लिए नहीं बिका उन पर हम हँस रहे हैं। चश्मे की
व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं। हम इतने स्वार्थी और अहंकार में खो गये हैं कि नेताजी की आँखों पर
सरकं डे का चश्मा लगाया गया है। हम उस पर हंस रहे हैं। हमें प्रायश्चित भी नहीं हो रहा है। हमारा यह
कार्य देशप्रेमियों में निराशा का भाव पैदा करेगा। इसलिए देशवासियों को भी अपना कर्तव्य निभाना
चाहिए। प्रबुद्ध और बुद्धिजीवी वर्ग में देशभक्ति का अभाव, बच्चों में देशभक्ति का भाव दिखाई देना,
कै प्टन को पागल कह कर संबोधित करना आदि ऐसी बाते है, हालदार साहब को द्रवित कर देती है।

उद्देश्यः
'नेता जी का चश्मा' कहानी हमारे अन्दर देशभक्ति की भावना को जागृत करती है। यह कहानी हमें
बताती है कि देश इसमें रहने वाले सभी नागरिकों से बनता है। अतः देशभक्ति की भावना सभी लोगों में
होनी चाहिए। कहानी का मुख्य उद्देश्य यह बताना है कि देशभक्ति का जुनून रखने वाले लोगों का हमें
उपहास नहीं करना चाहिए। बल्कि उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए। नेताजी का चश्मा कहानी
कै प्टन चश्मेवाले के माध्यम से देश के उन करोड़ों गुमनाम नागरिकों के योगदान की ओर संके त करती है
जिसने स्वतन्त्रता सेनानियों के सम्मान को तथा उनके प्रति श्रद्धा को जीवित रखा है। अंत में यह कहानी
बच्चों द्वारा सरकं डे से बने चश्मे को नेता जी की मूर्ति को पहनाकर उनकी देशभक्ति का परिचय देती है।

शीर्षक की सार्थकताः
'नेताजी का चश्मा' शीर्षक जिज्ञासा से भरा हुआ है। शीर्षक पढ़ते ही हम सोचने लगते हैं कि कौन से
नेताजी का चश्मा है? नेता जी सुभाषचन्द्र बोस का अथवा आज के किसी प्रसिद्ध नेता का? हम पाठ
पढ़ने के लिए उत्सुक हो जाते हैं। पूरे पाठ का कलेवर ही नेता जी के चश्मे से परिपूर्ण है। चौराहे पर नेता
जी की मूर्ति का लगना उसमें चश्में का न होना, कै प्टन द्वारा चश्मा लगाना, यदाकदा लगे चश्मे की बिक्री
के बाद नया चश्मा लगाना, कै प्टन
की मृत्यु के बाद बच्चों द्वारा सरकं डे से बना चश्मा लगाकर नेता जी की मूर्ति को पहनाना एक ऐसी
देशभक्ति का प्रतीक है। जिससे हालदार साहब भावुक हो उठते हैं। कहानी का यह शीर्षक सार्थक,
उद्देश्यपूर्ण भी है। हमारे मन में देशभक्ति तथा स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों के प्रति आदर के भाव
जागृत करने सक्षम है।

चरित्र-चित्रण
हालदार साहब:
हालदार साहब स्वयं एक देशभक्त थे और सच्चे देश भक्तों का आदर करते थे ।ड्रॉइंग मास्टर मोतीलाल
जी के द्वारा बनाई गई नेता जी की संगमरमर की मूर्ति की सराहना करते हैं। उनके अनुसार छोटे से छोटा
और बड़े से बड़ा आदमी, स्त्री, बच्चा सभी अपने-अपने तरीके से देश के उत्थान के लिए योगदान दे
सकते हैं और असल में इस देश का उत्थान होगा भी तभी ही। वे पानवाले द्वारा कै प्टन का मजाक
उड़ाने पर अप्रसन्न होते हैं और कहते हैं कि हम देशभक्तों का आदर नहीं करते और स्वयं किसी छोटे से
लालच में देश और देशवासियों के हित के लिए तत्पर हो जाते हैं। उनकी सोच में देश के लिए पीड़ा है।
बच्चों द्वारा सरकं डे से बना चश्मा देखकर भावुक हो उठते हैं, उनकी आँखें भर आती है और मूर्ति के
ठीक सामने जाकर अटेंशन में खड़े होकर मूर्ति के प्रति आदर का भाव प्रकट करते हैं।

पानवाला:
पानवाला एक काला, मोटा, खुशमिज़ाज व्यक्ति है। किसी के अच्छे काम का मूल्यांकन करने की
योग्यता उसमें नहीं है। यह सामान्य विचारों वाला आदमी है।

मूर्तिकार :
मोतीलाल स्कू ल के डॉइंग मास्टर हैं, जिन्होंने बड़ी सफाई से सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति निश्चित समय में
बनाई। मूर्ति के चेहरे पर वास्तविक भाव लाने में वे सफल हुए, तथा मूर्ति को फ़ौजी वर्दी में दिखाया।
एक मूर्तिकार न होते हुए भी उनका यह सफल और सराहनीय प्रयास था।

कै प्टनः
कै प्टन एक बूढ़ा चश्मे बेचने वाला व्यक्ति है। वह अच्छी सोच रखने वाला देशभक्त है। अपाहिज होते हुए
भी वह परिश्रम करके अपना जीवन निर्वाह करता है। नेता जी की प्रतिमा में जो कमी रह गई है, वह उसे
सहन नहीं कर सकता तथा अपनी ओर से पूरी करने का प्रयत्न करता है।

प्रारूप प्रश्न और उत्तर


“पान वाले के खुद के मुँह में पान ठू सा हुआ था। वह एक काला मोटा और खुशमिजाज़ आदमी
था। हालदार साहब का प्रश्न सुनकर वह आँखों ही आँखों में ही हंसा। उसकी तोंद थिरकी। पीछे
घूमकर उसने दुकान के नीचे पान थूका और अपनी लाल-काली बत्तीसी दिखाकर बोला, कै प्टन
चश्मेवाला करता है। "

प्रश्न (क). पानवाला कौन था? वह किससे व क्यों बात कर रहा था?
उत्तर : पानवाले की कस्बे के चौराहे पर पान की दुकान थी। वह हालदार साहब से बात कर रहा था।
हालदार साहब कस्बे से गुजरते समय चौराहे पर रुककर पान खाया करते थे और चौराहे पर लगी नेता
सुभाषचन्द्र की मूर्ति को देखा करते थे।
वह नेताजी की मूर्ति पर लगे चश्मे के प्रति जिज्ञासु रहते थे। जब भी वे वहाँ आकर मूर्ति को निहारते तो
अक्सर उस मूर्ति का चश्मा बदल जाया करता था। उस चश्मे को कौन बदल दिया कर है, इस बात का
रहस्य वह पानवाले से पूछ रहे थे।

प्रश्न (ख) पानवाले के व्यक्तित्व के बारे में लिखिए।


उत्तर.पानवाले कस्बे के चौराहे पर पान की दुकान लगाता था। वह एक काला, मोटा व हँसोड़ प्रकृ ति
वाला व्यक्ति था। जब वह हँसता था तो उसकी तोंद ऊपर-नीचे होती रहती थी, जिसको देखकर ऐसा
लगता था मानो उसकी तोंद थिरक रही हो।

प्रश्न (ग) हालदार को किस बात पर आश्चर्य हुआ?


उत्तर.हालदार कस्बे से गुजरते समय हर बार चौराहे पर लगी नेता जी की मूर्ति को अवश्य निहारते थे।
और अक्सर ही संगमरमर की नेता जी की मूर्ति का चश्मा बदला हुआ होता था। उन्हें इस बात का
आश्चर्य होता था कि मूर्ति पर लगा चश्मा, हर बार कै से बदल जाता है ?
प्रश्न (घ). नेताजी सुभाषचन्द्र की मूर्ति किसने बनाई थी और उस मूर्ति पर चश्मा क्यों नहीं था ? उत्तर:
नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य
चौराहे पर नेता जी सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति लगाने का निश्चय किया। उन्हें देश के अच्छे कलाकारों के
बारे में जानकारी नहीं थी और बजट और समय भी कम रहा होगा। इसलिए एक स्थानीय कलाकार को
मूर्ति बनाने का काम दे दिया। उन्होंने इकलौते हाईस्कू ल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी से मूर्ति
बनाने का अनुरोध किया। उन्होंने महीने भर में ही मूर्ति बनाने का विश्वास दिलाया। मूर्ति सुन्दर बनी थी
पर जल्दबाजी में वे चश्मा ही बनाना भूल गए थे या पारदर्शी चश्मा बनाने में असफल रहे होंगे।

अतिरिक्त प्रश्नः
प्रश्न १. हालदार साहब को उस कस्बे से क्यों गुजरना पड़ता था? प्रश्न २. कस्बे की क्या-क्या विशेषताएँ
थीं?
प्रश्न ३. कस्बे की नगरपालिका क्या-क्या काम करवाया करती थी?”
प्रश्न ४. नगर पालिका ने सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति बनाने का काम किसे सौंपा और क्यों?
प्रश्न ५. नेताजी की मूर्ति की क्या-क्या विशेषताएँ थीं?
प्रश्न ६. 'इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था' इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।
प्रश्न ७. मूर्तिकार ने नेताजी की मूर्ति के लिए चश्मा क्यों नहीं बनाया? हालदार साहब के मन में इस संबंध
में क्या-क्या विचार आए?
प्रश्न ८. सुभाषचंद्र बोस का परिचय दीजिए।?

You might also like