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BIRLA PUBLIC SCHOOL GANGANAGAR

(A UNIT OF BIRLA EDUCATION TRUST PILANI)


CBSE AFFILIATION NO. 1730974
Session 2024

पाठ – 6 रै दास के पद

1. यह ाँ रै द स के दो पद लिए गए हैं। पहिे पद ‘प्रभु जी, तु म चंदन हम प नी’ में कलि अपने आर ध्य को य द करते
हुए उनसे अपनी तुिन करत है।
2. पहिे पद में कलि ने भगि न् की तुिन चंदन, ब दि, च ाँ द, मोती, दीपक से और भक्त की तु िन प नी, मोर,
चकोर, ध ग , ब ती से की है।
3. उसक प्रभु ब हर कहीं लकसी मं लदर य मस्जिद में नहीं लिर जत अर् ात कलि कहत है लक उनके आर ध्य प्रभु
लकसी मं लदर य मस्जिद में नहीं रहत बस्जि कलि क प्रभु अपने अंतस में सद लिद्यम न रहत है।
यही नहीं, कलि क आर ध्य प्रभु हर ह ि में, हर क ि में उससे श्रेष्ठ और सिागुण संपन्न है। इसीलिए तो कलि
को उन जैस बनने की प्रेरण लमिती है।
4. दू सरे पद में भगि न की अप र उद रत , कृप और उनके समदर्शी स्वभ ि क िणान है। रै द स कहते हैं लक
भगि न ने न मदे ि, कबीर, लििोचन, सधन और सैनु जैसे लनम्न कुि के भक्तों को भी सहज-भ ि से अपन य है
और उन्हें िोक में सम्म ननीय स्र् न लदय है। कहने क त त्पया यह है लक भगि न् ने कभी लकसी के स र् कोई
भेद-भ ि नहीं लकय । दू सरे पद में कलि ने भगि न को गरीबों और दीन-दु ुःस्जियों पर दय करने ि ि कह है।
रै द स ने अपने स्व मी को ‘गुसईआ’ (गोस ई) और ‘गरीब लनि जु’ (गरीबों क उद्ध र करने ि ि ) पुक र है।

पद ों की व्याख्या

1. इस पद में कलि ने भक्त की उस अिस्र् क िणान लकय है जब भक्त पर अपने आर ध्य


की भस्जक्त क रं ग पूरी तरह से चढ़ ज त है कलि के कहने क अलभप्र य है लक एक ब र
जब भगि न की भस्जक्त क रं ग भक्त पर चढ़ ज त है तो भक्त को भगि न् की भस्जक्त से
दू र करन असंभि हो ज त है ।
कलि भगि न् से कहत है लक हे प्रभु! यलद तुम चंदन हो तो तुम्ह र भक्त प नी है । कलि
कहत है लक लजस प्रक र चंदन की सुगंध प नी के बूाँद-बूाँद में सम ज ती है उसी प्रक र
प्रभु की भस्जक्त भक्त के अंग-अंग में सम ज ती है । कलि भगि न् से कहत है लक हे प्रभु!
यलद तुम ब दि हो तो तुम्ह र भक्त लकसी मोर के सम न है जो ब दि को दे िते ही न चने
िगत है । कलि भगि न् से कहत है लक हे प्रभु यलद तुम च ाँ द हो तो तुम्ह र भक्त उस
चकोर पक्षी की तरह है जो लबन अपनी पिकों को झपक ए च ाँ द को दे ित रहत है ।
कलि भगि न् से कहत है लक हे प्रभु यलद तुम दीपक हो तो तुम्ह र भक्त उसकी बत्ती की
तरह है जो लदन र त रोर्शनी दे ती रहती है । कलि भगि न् से कहत है लक हे प्रभु! यलद तुम
मोती हो तो तुम्ह र भक्त उस ध गे के सम न है लजसमें मोलतय ाँ लपरोई ज ती हैं ।
उसक असर ऐस होत है जैसे सोने में सुह ग ड ि गय हो अर् ा त उसकी सुंदरत और
भी लनिर ज ती है । कलि रै द स अपने आर ध्य के प्रलत अपनी भस्जक्त को दर्श ा ते हुए कहते
हैं लक हे मेरे प्रभु! यलद तुम स्व मी हो तो मैं आपक भक्त आपक द स य लन नौकर हाँ ।
2. इस पद में कलि भगि न की मलहम क बि न कर रहे हैं । कलि कहते हैं लक हे ! मेरे
स्व मी तुझ लबन मेर कौन है अर् ा त कलि अपने आर ध्य को ही अपन सबकुछ म नते हैं ।

1
कलि भगि न की मलहम क बि न करते हुए कहते हैं लक भगि न गरीबों और दीन-
दु ुःस्जियों पर दय करने ि िे हैं , उनके म र्े पर सज हुआ मुकुट उनकी र्शोभ को बड
रह है । कलि कहते हैं लक भगि न में इतनी र्शस्जक्त है लक िे कुछ भी कर सकते हैं और
उनके लबन कुछ भी संभि नहीं है । कहने क त त्पया यह है लक भगि न् की इच्छ के
लबन दु लनय में कोई भी क या संभि नहीं है । कलि कहते हैं लक भगि न के छूने से अछूत
मनुष्ों क भी कल्य ण हो ज त है क्ोंलक भगि न अपने प्रत प से लकसी नीच ज लत के
मनुष् को भी ऊाँच बन सकते हैं अर् ा त भगि न् मनुष्ों के द्व र लकए गए कमों को
दे िते हैं न लक लकसी मनुष् की ज लत को। कलि उद हरण दे ते हुए कहते हैं लक लजस
भगि न ने न मदे ि, कबीर, लििोचन, सधन और सैनु जैसे संतों क उद्ध र लकय र् िही
ब की िोगों क भी उद्ध र करें गे। कलि कहते हैं लक हे !सज्जन व्यस्जक्तयों तुम सब सुनो,
उस हरर के द्व र इस संस र में सब कुछ संभि है ।

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