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नातक पाठ्य म
पेपर-4
भारत म राजनीितक ि या
अनु म
पृ.स.ं
इकाई-I : राजनीितक दल और पाट णाली
पाठ-1 : भारत म पाट और पाट िस टम –लेखक : मधसु दू न 01
इकाई-II : िनवाचन एवं िनवाचन ि या
पाठ-1 : िनवाचन ि या, ितिनिध व और मतदान यवहार के सामािजक िनधारक
–लेखक : सिं चत राय; अनवु ादक : ग रमा शमा 10
पाठ-2(क) : चनु ाव आयोग : चनु ाव णाली म कृ ित और काय –लेखक : अभय कुमार, अनवु ादक : रजनी 22
(ख) : चनु ावी सधु ार –लेखक : अभय कुमार, अनवु ादक : रजनी 36
इकाई-III : धम और राजनीित
पाठ-1 : से यनु लरवाद का िवमश –लेखक : कंु वर ांजल िसहं 43
पाठ-2 : सा दाियकता पर िवचार-िवमश –लेखक : कंु वर ांजल िसहं 50
इकाई-IV : जाित और राजनीित
पाठ-1 : राजनीित म जाित और जाित का राजनीितकरण –लेखक : िवशाल कुमार गु ा 57
पाठ-2 : भारत म सकारा मक अनयु ोजन : जाित, वग एवं िलंग क पार प रकता
–लेखक : ि मता अ वाल; अनवु ादक : राम िकशोर 68
इकाई-V : जनजाितयाँ और राजनीित
पाठ-1 : संिवधान क पाँचव और छठी अनसु चू ी तथा जनजाित नीितयाँ एवं योजनाएँ –लेखक : नरे कुमार 82
पाठ-2 : जनजाित / आिदवासी िवकास और िव थापन –लेखक : नरे कुमार 89
इकाई-VI : भारतीय रा य क प रवितत कृित
पाठ-(क) : िवकासा मक और क याणकारी आयाम –लेखक : सट पॉल इि फमेट, अनवु ादक : ग रमा शमा 98
(ख) : उ पीड़क आयाम –लेखक : सट पॉल इि फमेट, अनवु ादक : ग रमा शमा 107

संपादक
डॉ. तपन िब वाल

मु त िश ा िव ालय
िद ली िव विव ालय
5, के वेलरी लेन, िद ली-110007
इकाई-I : राजनीितक दल और पाट णाली
पाठ-1
भारत म पाट और पाट िस टम

वतं ता से पवू पाट णाली का िवकास


राजनीितक दल का उ व और िवकास ससं दीय लोकतं और चनु ाव णाली के साथ िनकटता से सबं ंिधत होता है। अन ट बाकर
ने ि िटश णाली को ‘पािटय क जननी’ माना है और इस कार से उसे दिु नया क सभी संसदीय णाली क जननी भी बताया
है। राजनीितक दल अिधकांश देश और अिधकांश राजनीितक णािलय म पाए जाते ह। पािटयाँ स ावादी या लोकतांि क हो
सकती ह, वे चनु ाव के मा यम से या ांित के मा यम से स ा ा कर सकती ह। 1950 के दशक के उ राध म, दिु नया के 80
ितशत रा य म राजनीितक दल का शासन था।
रजनी कोठारी ारा रखे गए तक के अनसु ार भारत क दलीय णाली एक राजनीितक क से िवकिसत हई है। इस क क
सं थागत अिभ यि 29 िदसबं र, 1885 को बॉ बे म ए ओ मू ारा थािपत भारतीय रा ीय कां ेस थी। यह वही कां ेस थी
िजसने देश म राजनीितक यव था के िलए वदेशी आधार बनाया था। असहयोग आदं ोलन के अचानक वापस ले िलये जाने और
ातं ीय िवधानसभाओ ं म भागीदारी के मु े पर 1922 के गया स के बाद सी आर दास और अ य ारा वराज पाट गिठत िकया
गया था। 1934 म आचाय नारायन और अ य नेताओ ं ारा कां ेस सोशिल ट पाट समहू के गठन ने गाँधी क एक रणनीित का
िवरोध िकया, िजसके प रणाम व प बह-धारा और बह-िवचारधारा के प म कां ेस का िवकास हआ। एम.एन. रॉय ारा भारत
म 1920 म क यिु न ट पाट का गठन िकया गया और इस पाट ने वतं ता आंदोलन म मह वपणू भिू मका नह िनभाई। 1939 म
सभु ाष चं बोस ारा ऑल इिं डया फॉरवड लॉक का िनमाण, कां ेस क अलोकतांि क राजनीित के िखलाफ उनका िवरोध था।
आई.एन.सी. भारत म दलीय णाली के उ व के िलए आधार बन गया। 1906 म सैयद अहमद खान ारा मिु लम लीग का गठन,
पवू वतं ता भारतीय पाट णाली का िह सा रहा।
प रचय
राजनीितक दल राजनीितक शि ा करने के िलए सगं िठत यि य का एक समहू है। 19व शता दी म राजनीितक दल क
उ पि यरू ोप और सयं ु रा य अमे रका म उनके आधिु नक प म हई। एडमडं बाक ने प रभािषत िकया है– “एक राजनीितक दल
यि य का एक िनकाय है जो अपने संयु यास ारा कुछ राजनीितक िस ातं पर रा ीय िहत को बढ़ावा देने के िलए एकजुट
होता है िजसम वे सहमत हए थे”। वतं ता से पहले राजनीितक दल मह वपणू सं थान थे। राजनीितक दल एक ऐसा साधन है,
िजसके मा यम से जनता सरकार से स वाद कर सकती है और िकसी भी देश के शासन म अपना मत रख सकती है। इसिलए हर
राजनीितक दल के पास तीन मख ु घटक होने चािहए– नेता, सि य सद य, अनयु ायी। भारत म एक बहदलीय यव था है जो
दिु नया म अि तीय है। भारतीय राजनीितक णाली म राजनीितक मु से िनपटने के िलए दि णपंथी, म यमाग , वामपंथी, े ीय,
यहाँ तक िक थानीय राजनीितक दल भी िमल सकते ह। जब कां ेस लंबे समय तक स ा म थी, तो यह यगु मॉ रस जोन ारा एक
पाट के भु व के यगु के प म तथा रजनी कोठारी ारा कां ेस णाली के प म देखा गया था।
आज, लोकतं के तहत हम भारत म हर पाँच साल के कायकाल के बाद क ीय और रा य तर पर और थानीय तर पर भी
चनु ाव का योहार मनाते ह, परंतु एक ि थर चनु ावी णाली और लोकतं क यह या ा म उि कास क एक लबं ी ि या से गज़ु री
है; भारतीय राजनीित ने िविभ न चरण को पार कर िलया है और एक ि थर लोकतं बनने क ि थित म पहँच गया है। वतं ता
ाि के प चात् देश म कां ेस णाली का उदय हआ। 1947 से 1967 तक और 1971 से 1977 के साथ-साथ 1980 से 1989
तक, यह णाली भारतीय राजनीित के क म थी, इसके वतं ता के बाद के िवकास म तीन अलग-अलग चरण थे। वतं ता से
पहले यापक रा वादी आदं ोलन के प म काय करने वाली कां ेस ने खदु को रा के मख ु राजनीितक दल म बदल िदया। यही

1
कारण है िक मॉ रस जो स जैसे भारतीय राजनीित के पयवे क ने भारतीय दलीय णाली को “एक पाट भु व” क णाली के
प म विणत िकया, जबिक रजनी कोठारी “वन पाट डोिमनस िस टम” या “द कां ेस िस टम” कहने क सीमा तक गए।
राजनीितक दल िकसी भी लोकतं म एक मख ु भिू मका िनभाते ह, य िक वे सरकार बनाने और लोग के क याण के िलए काम
कर रहे होते ह, भारत म पाट णाली पहली बार 1885 म ए ओ मू ारा भारतीय रा ीय कां ेस के गठन के साथ आई थी,
इसका गठन ेशर कुकर िस ांत के तहत िकया गया था। जहाँ ि िटश को लगा िक भारतीय को कुछ मा यता देने से उ ह
भारतीय ारा कम ांितय का सामना करना पड़ेगा इसिलए कां ेस का गठन िकया गया था, 1947 म औपिनवेिशक शासन के
अंत के बाद लोक सभा के पहले आम चनु ाव 25 अ टूबर, 1951 से 21 फरवरी, 1952 तक आयोिजत िकए गए थे, भारतीय
रा ीय कां ेस को िवजयी बनाते हए, यह कां ेस ारा एक ा क गयी एक भारी जीत थी य िक भारत के वतं ता सं ाम म
कां ेस क मख ु भागीदारी थी और गाँधी कारक भी मह वपणू था, कई अ य क र माई नेता गठन के समय से ही INC का िह सा
थे।
अब यहाँ सबसे बड़ा न यह है िक हम वामपंथी और दि णपंथी दल ारा या समझते ह, अंतर िवचारधारा और ल य का है,
सामा य धारणा म यह है िक दि णपंथी िवकास पर यान कि त करते ह और आ ामक तरीके से एफ.डी.आई. (िवदेशी य
िनवेश) लाते ह, जबिक वामपंथ का यान समाज के गरीब तबके और अ पसं यक वगपर यादा यान देने वाली जड़ पर है। जब
हम क म सरकार के बारे म बात करते ह तो यही मख ु िखलाड़ी ह य िक भारत म एक अध-संघीय सरं चना है, शि का
िवभाजन क और रा य के बीच है, आगे हम िवक ीकरण (73वाँ और 74वाँ संशोधन) देखते ह जो गाँव के साथ-साथ नगर तर
पर भी थानीय सरकार का आधार है। एन.डी.ए. और य.ू पी.ए. गठबंधन क सरकार म मख ु दो उ मीदवार रहे ह। 1990 म
रा ीय और रा य तर के राजनीितक दल म एक अलग तरह क थापना हई िजसे गठबंधन दलीय णाली कहा जाता है जो
2014 के रा ीय चनु ाव म चिलत रही (एन.डी.ए. के सद य जैसे िशवसेना, भाजपा, आर.पी.आई., एल.जे.पी. आिद) ) और
कई रा य तरीय चनु ाव जैसे िक महारा (िशवसेना और भाजपा के बीच गठबंधन), ज म-ू क मीर (पी.डी.पी. और भाजपा के
बीच गठबंधन)। राजनीितक दल भारतीय राजनीित क णाली के साथ लोकतांि क प से िनवािचत और ितिनिध व नह करते
ह। राजनीितक दल भारतीय समाज और े म िविभ न वग का ितिनिध व करते ह और उनके मूल मू य भारत क राजनीित म
एक मख ु भिू मका िनभाते ह।
सिं वधान और राजनीितक दल का काननू ी ावधान
 संिवधान क दसव अनुसचू ी जो संिवधान म बावनव सश ं ोधन अिधिनयम 1985 ारा जोड़ी गयी है वह दल बदल के आधार
पर िकसी यि के ससं द के दोन सदन व रा य क िवधान सभा या िवधान प रषद के सद य होने क अयो यता से संबंिधत
है।
 अनु छे द 29A (1) और (2) ितिनिध व लोक अिधिनयम 1951 के अनसु ार, भारत म कोई भी सगं ठन अथवा यि य का
िनकाय जो खदु को एक राजनीितक दल कहते ह, उ ह एक राजनीितक दल के प म अपने पजं ीकरण के िलए चनु ाव आयोग
को एक आवेदन करने क आव यकता होती है।
 भारत के येक राजनीितक दल को चनु ाव आयोग के पास पजं ीकरण कराना होता है। चनु ाव आयोग चनु ाव के उ े य से
राजनीितक दल को पजं ीकृ त करता है और उ ह उनके दशन के आधार पर रा ीय या रा य दल के प म मा यता दान
करता है।
योग यादव के अनुसार भारतीय दलीय णाली का िवकास
 एकल पाट भु व (1947-67)– कां ेस पाट रा ीय और रा य तर पर हावी थी। इस अविध म क और रा य तर पर
कां ेस का भु व रहा।

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 कां ेस िवरोध णाली (1967-93)– कां ेस रा ीय तर पर सबसे मख ु पाट रही लेिकन रा य तर पर ित पधा का
सामना करना पड़ा। 1967 के बाद कई े ीय या रा य पाट ने भारतीय राजनीित म मह वपणू भिू मका िनभाई। कुछ रा य
जैसे के रल और अ य रा य म रा य पाट ने सरकार बनाई।
 1993 के प चात् बहदलीय णाली– रा ीय तर पर कां ेस का भु व नह रह गया तथा े ीय दल का िवकास हआ।
1989 के बाद े ीय दल ने क म सरकार बनाने म मह वपणू भिू मका िनभाई।
भारतीय पाट णाली के ल ण
• 1990 के बाद कई े ीय दल का उदय हआ तथा उ होने रा ीय और रा य तर पर गिठत सरकार म बहत मह वपणू
भिू मका िनभाई।
• भावी िवप ी दल का उदय।
• कई े ीय और गैर-मा यता ा दल का अि त व।
• भारत म बहदलीय णाली रही है।
• बड़ी सं या म े ीय राजनीितक दल।
• रा ीय और े ीय राजनीितक दल के बीच स ा का बटं वारा, यारहव लोकसभा चनु ाव के बाद से कुछ े ीय दल और
रा ीय दल के बीच क गठबधं न सरकार क म शासन कर रही ह।
• अिधकांश राजनीितक दल म गटु बाजी और समहू मौजूद ह।
• भारत म दलीय राजनीित म यि व पंथ हावी रहा है।
• संघवाद के समिु चत काय का उदय।
एक राजनीितक दल का काय
• एक राजनीितक दल उ मीदवार को खड़ा करके चनु ाव लड़ता है।
• संयु रा य अमे रका जैसे देश म, उ मीदवार का चयन पाट के सद य और समथक ारा िकया जाता है।
• दसू री ओर, भारत जैसे देश म, पाट के शीष नेताओ ं ारा उ मीदवार को चनु ा जाता है।
• हर पाट क अलग-अलग नीितयाँ और काय म ह। मतदाता उनके ारा पसदं क गई नीितय और काय म के अनसु ार
चनु ाव करता है।
• राजनीितक दल जनता क राय को आकार देते ह। दबाव समहू क मदद से दल ने लोग के सामने आने वाली सम याओ ं को
हल करने के िलए आदं ोलन का आर भ िकया।
• राजनीितक दल देश के िलए काननू बनाने म िनणायक भिू मका िनभाते ह। चँिू क अिधकांश सांसद राजनीितक दल के ह,
इसिलए देश के िलए काननू बनाने म एक राजनीितक दल का सीधा कहना है।
• सरकार का गठन- राजनीितक दल सरकार बनाते और चलाते ह। कायकारी िनकाय का गठन स ा प के लोग ारा िकया
जाता है।
• राजनीितक दल लोग को सरकारी तं और सरकार ारा कायाि वत क याणकारी योजनाओ ं तक पहँच दान करते ह। दल
को लोग क ज रत और माँग के ित उ रदायी होना चािहए।
• राजनीितक दल देश और िविश े के लोग के िहत का ितिनिध व करते ह। वे समहू के साथ-साथ यि य का भी
ितिनिध व करते ह।
• िनणय िनमाण एवं पाट काय म म भाग लेने के िलए लोग को जटु ाने के िलए।
• अ य दल क नीितय और काय म का आलोचना मक मू यांकन करना।

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• राजनीितक दल से न के वल यह उ मीद क जाती है िक वह ल य के साथ आगे आय, बि क उनसे यह आशा भी क जाती
है िक वह वयं को बदलती माँग और प रि थितय के साथ सशं ोिधत भी करगे।
े ीय दल एवं सहयोग नीित
समाज के भीतर उपि थत िविवध जातीय, सां कृ ितक, भाषाई, धािमक एवं जाित कारक े ीय दल क उ पि के िलए िज मेदार
ह। भारत म े ीय दल पहचान, रा यवाद और वाय ता पर आधा रत ह। े ीय- नृजातीय च र पर आधा रत े ीय दल म
आं देश म टी.डी.पी., डी.एम.के . (DMK), और तिमलनाडु म ऑल इिं डया अ ना िवड़ मनु े कषगम (AIDMK), असम म
असोम गण प रषद् (AGP) एवं पंजाब म अकाली दल शािमल ह। उदाहरण के िलए अकाली दल के वल िसख का ितिनिध व
करती है और ए.जी.पी. जाित िहदं ू असमी जनता का ितिनिध व करती है। े ीय दल ने कई रा य म सरकार बनाई ं और अपनी
नीितय और काय म को ठोस प देने का यास िकया। कुछ े ीय दल ने िविभ न रा य म सरकार बनाई ंिजनम तिमलनाडु म
DMK और AIADMK शािमल ह; ज मू क मीर म नेशनल कॉ स, आं देश म तेलगु देशम, असम म असमगण प रषद,्
ह रयाणा म आई.एन.एल.डी. (INLD)।
भारतीय समाज के भीतर कई नृजातीय, सां कृ ितक, भाषाई और जाित समहू क उपि थित े ीय दल क उ पि और िवकास
के िलए िज मेदार है। भारत म े ीय दल पहचान, रा य, वाय ता और िवकास जैसे िवषय पर आधा रत ह। वाय ता के
अतं गत रा य को अिधक से अिधक शि याँ देने क मांग शािमल है, जैसे ज म-ू क मीर म नेशनल कॉ स। रा यवाद के तहत
देश के भीतर एक वतं रा य के िलए लड़ाई होती है जैसे तेलगं ाना रा सिमित ने अलग रा य तेलगं ाना क माँग क । पहचान के
अतं गत समहू के सां कृ ितक अिधकार क मा यता के िलए लड़ाई शािमल है जैसे महारा म िशवसेना तथा दिलत क पहचान
के िलए लड़ने वाला दल डी.एम.के . (DMK)। िपछले चार दशक म े ीय राजनीितक दल का िवकास हआ है तथा इनक
सं या एवं शि म िव तार हआ है। े ीय राजनीितक दल क उ पि े ीय आकां ाओ ं को परू ा करने के िलए हई है।
इसके अलावा, िविभ न रा य और े के बारे म बात करते हए, हम े िवशेष पर एकािधकार रखने वाले दल को देख सकते
ह, यह दल एक िवशेष रा य या े म हावी रहते ह तथा रा य िवधानसभाओ ं म सीट एवं शि धारक होते ह, ऐसे दल के कुछ
उदाहरण है—
1. बीजू जनता दल (ओिडशा)–BJD ओिडशा रा य म े ीय िखलाड़ी रहा है, िजसका गठन 1997 म िकया गया था तथा
आज (नवंबर 2019) म बीजू जनता दल से संबंिधत नवीन पटनायक, ओिडशा के मु यमं ी के प म अपने 5व कायकाल
म सेवा कर रहे ह।
2. े ीय राजनीित का एक और मजबतू उदाहरण ज मू क मीर म पी.डी.पी. है; धारा 370 के ख म होने से पवू ज म-ू क मीर म
जे.के .पी.डी.पी. एक मजबतू भिू मका िनभाती रही है।
3. िशवसेना के प म लोकि य महारा नविनमाण सेना महारा रा य म मख
ु े ीय पाट रही है।
4. िशरोमिण अकाली दल का पजं ाब रा य म मजबतू आधार रहा है तथा 1971 के 1977 म एक सबसे बड़ी पाट के प म
उभरी।
िविभ न पाट िस टम
एक पाट णाली
कुछ देश म, के वल एक पाट को सरकार को िनयंि त करने एवं चलाने क अनमु ित है, जैस–े चीन। इ ह वन-पाट िस टम कहा
जाता है। यह लोकतांि क नह माना जाता है य िक एक लोकतांि क णाली को कम से कम दो पािटय को चनु ाव म ित पधा
करने क अनमु ित देनी चािहए और ित पध दल को स ा म आने का उिचत अवसर दान करना चािहए। कां ेस सरकार अपनी
छतरी णाली के िलए िस थी य िक येक धम और े पाट से कई िव ान ारा जुड़ा हआ था। भारत के राजनीितक
प र य म एक लंबे समय तक कां ेस का बोलबाला रहा। रजनी कोठारी, भारतीय दलीय णाली को 'एक दलीय भु व णाली'

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या 'कां ेस णाली' कहते ह। इस वृि म वष 1977 के दौरान प रवतन देखा जा सकता है जब जनता पाट क म स ा म आई
थी। इस चरण को दो दलीय णाली चरण के प म भी देखा जा सकता है, िजसने भारतीय रा ीय कां से के इस िवजय ंख ृ ला
को तोड़ िदया, लेिकन यह लंबे समय तक नह रहा य िक पाट के भीतर आंत रक मु के कारण जनता पाट खदु एक पाट के
प म िवफल रही। इस िवफलता ने कां ेस को अवसर िदया और भारतीय रा ीय कां ेस िफर से स ा म आ गई, लेिकन बाद म
कां ेस पाट भी इिं दरा गाँधी के नेतृ व म आतं रक संघष का िशकार हो गई। कां ेस के बीच फूट थी। भारत म वतं ता के बाद
कां ेस 1967 तक रा ीय और रा य के तर पर भावी रही।
टू-पाट िस टम
कुछ देश म, स ा आमतौर पर दो मु य दल के बीच म ह तांत रत होती रहती है। ऐसी दलीय णाली को टू-पाट िस टम कहा
जाता है। संयु रा य अमे रका और यनू ाइटेड िकंगडम दो दलीय णाली के उदाहरण ह। ि -दलीय णाली एक ऐसी दलीय
णाली है जहाँ दो मखु राजनीितक दल राजनीितक प र य पर हावी ह। ि -दलीय यव था ऐसे रा य म देखने को िमलती है,
जहाँ या तो के वल दो बहत लोकि य राजनीितक दल ह या दो मु य राजनीितक दल ह और साथ ही कई अ य छोटे कम
भावशाली राजनीितक दल भी ह। दोन मु य दल म से येक को समय-समय पर शासन करने का अवसर िमलता है। दो दलीय
णाली वाले रा य म, यएू सए, ि टेन, बेि जयम और आयरलड आते ह, जहाँ दो राजनीितक दल हावी ह। ि दलीय णाली
मतदाताओ ं को एक सरल िवक प तुत करती है।
म टी पाट िस टम
यिद कई पािटयाँ स ा के िलए ित पधा करती ह, और दो से अिधक दल के पास अपने बल पर या दसू र के साथ गठबधं न म
स ा म आने का एक उिचत मौका होता है, तो हम इसे बह-दलीय णाली कहते ह। इस कार भारत म, हमारे पास एक बहदलीय
णाली है। 1996 के आम चनु ाव के बाद, कोई भी पाट एक साधारण बहमत भी सरु ि त नह कर पाई है। म टी-पाट िस टम
प प से बहत अ प है और यह अ सर राजनीितक अि थरता क ओर जाता है। 1989 के बाद भारत म बहदलीय गठबंधन
मॉडल रा ीय तर पर उभरा है। बहदलीय णाली म समान प से लोकि य कई राजनीितक दल ह। एक बहदलीय णाली का
अथ है कई लोकि य राजनीितक दल का अि त व या राजनीितक ि या म तीन या तीन से अिधक राजनीितक दल का होना।
भारत, ि वट्जरलड, जापान, इटली, ांस बहदलीय णाली के उदाहरण ह। कां ेस, भाजपा, CPI, BSP, NCP, BJD, DMK,
SP, और अ य राजनीितक दल ने भारतीय राजनीित म मह वपणू भूिमका िनभाई है। भारत म गठबंधन राजनीित के उ व के िलए
बहदलीय यव था िज मेदार रही है।
िविवध भौगोिलक और सां कृ ितक िचतं ाओ ं के कारण, भारत म बहदलीय णाली का िवकास हआ है। समय के साथ रा ीय
और े ीय राजनीितक दल दिु नया के सबसे बड़े लोकतं के मह वपणू घटक बन गए।
राजनीितक दल क चनु ौितयाँ
• हमने देखा है िक लोकतं के कामकाज के िलए राजनीितक दल िकतने मह वपणू ह। परू ी दिु नया म लोग राजनीितक दल क
िवफलता के ित अपना असतं ोष य करते ह।
• मु य चनु ौती पािटय के भीतर आतं रक लोकतं क कमी है, भारत म शीष पर एक या कुछ नेताओ ं म राजनीितक पाट क
शि म एका ता क वृि है।
• अिधकाश
ं राजनीितक दल अपने कामकाज के िलए खल
ु ी और पारदश ि याओ ं का अ यास नह करते ह।
• मख
ु चुनौती पािटय म पैसे और बल योग क बढ़ती भूिमका के बारे म है, खासकर चनु ाव के दौरान।
• मु य चनु ौती यह है िक बहत बार पािटयाँ मतदाताओ ं को एक साथक िवक प नह देती ह।
• वंशानुगत उ रािधकार कुछ हाथ (िवशेष प से सद य) म शि के सचं य क ओर जाता है िजसका प रणाम अयो य
सद य ारा शि का दु पयोग होता है।

5
भारत म राजनीितक दल
रा ीय दल
रा ीय दल के पास देश यापी यापक आधार संरचना है और वे लोकि य अपील क अवधारणा पर काय करते ह। वतं ता के
प चात् कां ेस देश म अपना भु व थािपत करने वाली पाट के प म उभरी िजसके शासन को कां ेस क यव था या एक
दलीय भु व क सं ा दी। रा ीय दल यादातर बड़े छाते ह िजनके तहत सभी समदु ाय ; सभी िच और िवचारधाराओ ं को एक
जगह िमलती है। हािलया झान से पता चलता है िक जब कोई रा ीय पाट लोक सभा म बहमत हािसल नह करती है तो वे
े ीय दल के साथ गठबंधन करके गठबंधन सरकार बनाती है। लेिकन गठबंधन सरकार को िनणय लेने क ि या म बाधा
डालते देखा जा सकता है। गठबंधन सरकार का गठन रा ीय राजनीित से दरू भारतीय राजनीित म छोटे और अिधक सक
ं ण प से
आधा रत े ीय दल के ित प रवतन को दशाता है।
एक पजं ीकृ त पाट को के वल तभी रा ीय पाट के प म मा यता दी जा सकती है जब वह िन निलिखत म से कोई भी शत परू ी
करती है–
• यिद पाट भारत म कम से कम तीन अलग-अलग रा य से 2% लोकसभा सीट जीतती है।
• पाट को भारत म चार या अिधक रा य म रा य पाट के प म मा यता ा है।
• यिद पाट आम चुनाव म लोक सभा या िवधान सभा क चार सीट के अलावा 4 रा य म 6% वोट हािसल करती है।
• रा ीय पाट का सीिमत रा य म नह बि क पूरे देश म भाव होता है और यह रा ीय िहत से सबं ंिधत होती ह न िक कुछ
े ीय।
• जब एक रा ीय पाट को लोक सभा म बहमत ा होता है तो वह क म सरकार चलाती है और रा ीय मह व के सभी
मह वपणू मामले सचं ािलत करती है।
भारत म िन निलिखत सात रा ीय दल ह–
1. भारतीय रा ीय कां ेस (INC)—इसक थापना 1885 म औपिनवेिशक शासन के दौरान हई थी। INC क िवचारधारा
के मु य अगं सामािजक लोकतं , लोकतािं क समाजवाद, उदारवाद, सामािजक उदारवाद, धमिनरपे ता, गितवाद,
भारतीय रा वाद और नाग रक रा वाद ह। यह पाट एक समय भारतीय राजनीितक प र य पर हावी थी। यह क -वाम
राजनीितक ि थित रखता है। 2004-2014 से इसने सयं ु गितशील गठबधं न के नाम से कई े ीय दल के साथ गठबधं न
िकया।
2. भारतीय क युिन ट पाट (CPI)—यह भारत क सबसे परु ानी क यिु न ट राजनीितक पाट है। 1964 म सी.पी.आई.
(मा सवादी) के गठन के समय यह पाट टूट गई। यह सा यवाद, मा सवादी-लेिननवाद, समाजवाद और धमिनरपे ता क
िवचारधारा के िलए खड़ा है। यह वामपंथी राजनीितक ि थित को बनाए रखता है।
3. भारतीय जनता पाट (भाजपा)—यह कां ेस के साथ-साथ भारत क दो मख ु राजनीितक पािटय म से एक है। यह
दि णपंथी पाट है और वतमान म देश का सबसे बड़ा ितिनिध व रखती है। यह िढ़वाद, एका म मानववाद, िहदं ु व, िहदं ू
रा वाद, सां कृ ितक रा वाद इसक िवचारधारा के मु य िबंदु ह। बीजेपी ने भी एन.डी.ए. नाम का गठबधं न िकया था।
4. भारतीय क युिन ट पाट (मा सवादी) (CPI-M)—यह पाट मा सवादी-लेिननवादी दशन का पालन करती है और
1964 म भारत क क यिु न ट पाट से अलग होने के बाद बनाई गई थी। मा सवादी-लेिननवादी िवचारधारा के अलावा यह
सा यवाद, पँजू ीवाद-िवरोधी और सा ा यवाद-िवरोधी िवचार को दशाता है। यह वामपथं ी राजनीितक ि थित रखता है।
5. बहजन समाज पाट (BSP)—यह पाट धािमक अ पसं यक के साथ-साथ अनसु िू चत जाितय , अनसु िू चत जनजाितय
और अ य िपछड़े वग के बहजन का ितिनिध व करने के िलए बनाई गई थी। यह 1984 म कांशी राम ारा थािपत िकया

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गया था। यह सामािजक समानता, सामािजक याय और वािभमान को दशाता है। इस पाट क राजनीितक ि थित क -वाम
है।
6. रा वादी कां ेस पाट —यह भारत क रा ीय पािटय म से एक है और यह भारतीय रा ीय कां ेस से िवभािजत है। यह
धमिनरपे ता, उदारवाद, गितवाद, नाग रक रा वाद, सामािजक याय और सघं वाद क िवचारधारा के िलए खड़ा है। यह
क -वाम राजनीितक ि थित रखता है।
7. अिखल भारतीय तृणमूल कां ेस (AITC)—2019 के आम चनु ाव के बाद यह लोकसभा म पाँचव सबसे बड़ी पाट के
प म उभरी। इसक थापना ममता बनज ने क थी। यह लोकतांि क समाजवाद, वामपंथी लोकलुभावनवाद और
धमिनरपे ता के िवचार का पालन करता है। इसक राजनीितक ि थित क -वाम होने क है।
भारत म रा य दल या े ीय दल
े ीय दल े ीयता या े ीय गौरव क िवचारधारा का चार करते ह और के वल एक रा य म समथन पाने म स म दल रा य
दल का िह सा होते ह। भारतीय समाज के भीतर कई नृजातीय, सां कृ ितक, भाषाई, धािमक और जाित समहू क उपि थित रा य
दल क उ पि और वृि के िलये बहत िज़ मेदार है और उ ह आमतौर पर े ीय दल कहा जाता है। बड़े रा ीय दल के
आंत रक सघं ष के कारण भी े ीय दल का उदय हआ है। भारत म े ीय दल वाय ता, रा यस ा, पहचान, िवकास जैसे
िवषय पर आधा रत होते ह, जो कभी कभी चनु ावी लाभ के िलए सां कृ ितक िविश ताओ ं का सृजन करते ह। िपछले चार दशक
म े ीय दल क सं या और शि बढ़ी है और इसने भारत को राजनीितक प से अिधक िविवध बना िदया है। े ीय दल उस
े म े ीय िहत क पिू त के िलए अिधक इ छुक होते ह जहाँ वे सि य होते ह, वे उस े के उन िहत क र ा करते ह िज ह
ठीक से संबोिधत नह िकया गया था। वे अ पसं यक क र ा के िलए र थान भरते रहे ह। कई बार े ीय िहत का दावा
करने से िहसं ा और अराजकता होती है। लेिकन े ीय दल भी स ची सघं ीय िवशेषता को सामने लाने के िलए िज मेदार ह और
उ ह ने एकल पाट के भु व के अिधनायकवादी इराद को रोका है। े ीय दल को क सरकार के िकसी भी कदम का िवरोध
करते देखा गया है जो उनके अनसु ार उनके लोग के िहत को नक
ु सान पहँचा रहा था। े ीय दल न के वल अपने े ीय िहत को
बढ़ावा देते ह बि क अपनी सं कृ ित और परंपराओ ं को भी बढ़ावा देते ह। े ीय या बहदलीय णाली के उदय के म म े ीय
राजनीितक दल क शि वोट एवं िनवािचत सद य के मामले म बढ़ी है। रा ीय दल के मत का ितशत िगरावट पर है। 1984
के आम चनु ाव म उनके वोट का िह सा लगभग 78 ितशत था, जो 2009 के आम चनु ाव म घटकर टमाटर 64 ितशत हो
गया। और इसी अविध के दौरान े ीय दल क िह सेदारी 12 ितशत से बढ़कर 31 ितशत हो गई। इसके अलावा ससं द के
िनवािचत सद य म रा ीय राजनीितक दल क िह सेदारी 85 ितशत से घटकर 69 ितशत हो गई है और े ीय दल क
सं या मशः 1984 और 2009 म 12 ितशत से बढ़कर 29 ितशत हो गई है।
कई बार े ीय दल क गितिविधयाँ क क िवकास गितिविधय को रोक देती ह। े ीय दल भी भाषा, सं कृ ित और परंपरा
आिद क तज पर लोग को िवभािजत करते नजर आते ह।
रा य राजनीितक दल के प म मा यता ा के िलए, एक राजनीितक दल को िन निलिखत म से िकसी भी शत को परू ा करना
होगा–
• राजनीितक दल को िवधान सभा क कुल सीट का यनू तम 3% जीतने क आव यकता है।
• लोकसभा म हर 25 सीट के िलए, राजनीितक दल को कम से कम एक सीट जीतनी चािहए। वैकि पक प से, इसे उस
रा य को आबिं टत िकसी भी अश
ं को जीतने क आव यकता है।
• राजनीितक दल को कुल वैध मत का कम से कम 6% जीतना चािहए जो लोक सभा या रा य िवधान सभा क ओर आम
चनु ाव के दौरान मतदान िकया जाता है। इसके अलावा, उस चनु ाव म कम से कम एक लोकसभा सीट और दो िवधान सभा
सीट जीतनी चािहए।

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• उदारीकृ त मानदडं के अनसु ार, यिद कोई राजनीितक पाट रा य के िवधान सभा या रा यसभा के आम चनु ाव म एक सीट
जीतने म िवफल रहती है, तो उसे कुल वैध मत म से 8% या उससे अिधक मत को सरु ि त करने क आव यकता होती है।
हमारे पास भारत म कुछ े ीय पािटयाँ ह–
1. आम आदमी पाट (आप)—इसका गठन “ ाचार के िखलाफ भारत” आंदोलन के प रणाम व प हआ था। यह पाट
वतमान म देश के रा ीय राजधानी पर शासन कर रही है। यह 2012 म थािपत िकया गया था और क -वाम होने क
राजनीितक ि थित के साथ ाचार िवरोधी, भागीदारी लोकतं , लोकलभु ावनवाद, नरम रा वाद के िवचार को बढ़ावा
देता है। िद ली म आम आदमी पाट ने भारतीय राजनीित म बहत मह वपणू भिू मका िनभाई।
2. ए.आई.ए.डी.एम.के.—ऑल इिं डया अ ना िवड़ मनु े कड़गम पाट तिमलनाडु और पांिडचेरी के े क े ीय
राजनीितक पाट है। इसक थापना 1972 म M.G रामचं न ने क थी। तिमलनाडु म AIADMK और DMK ने दि ण
भारतीय रा य म बहत मह वपणू भिू मका िनभाया।
3. AIMIM—द ऑल इिं डया मजिलस-ए-इ ेहाद-उल-मिु लमीन एक इ लामी े ीय पाट है िजसका राजनीितक आधार
तेलंगाना है। इसक थापना 1927 म हई थी और यह इ लाम धम क िवचारधारा रखती है। यह दि णपंथी राजनीितक
ि थित रखती है।
4. AGP—असम म असोम गण प रषद एक रा य राजनीितक पाट है। 1985 के समझौते के बाद इसका गठन िकया गया था।
5. BJD—बीजू जनता दल ओिडशा रा य म एक रा य क राजनीितक पाट है और इसक थापना 1997 म हई थी। यह
सामािजक लोकतं , उदारवाद, धमिनरपे ता और सामािजक याय क िवचारधारा को वीकार करता है।
6. मुक— िवड़ मनु े कड़गम तिमलनाडु और य.ू टी. पदु चु रे ी रा य क एक राजनीितक पाट है। यह िवचारधारा लोकतांि क
समाजवाद, सामािजक लोकतं , धमिनरपे ता, े ीयता और सामािजक याय है।
7. इिं डयन नेशनल लोकदल—इिं डयन नेशनल लोकदल ह रयाणा रा य म सि य एक पाट है और इसक थापना वष
1996 म हई थी। यह सामािजक उदारवाद के िवचार के िलए खड़ा है। राजनीितक ि थित पर यह पाट क क ि थित रखती
है।
( या े ीय दल का उदय राजनीितक ि थरता को िबगाड़ रहा है?)
यह सवाल िक या े ीय दल के उदय से रा ीय दल को एक िमथक के प म खा रज िकया जा सकता है य िक चनु ाव पैटन
म े ीय दल के खड़े होने से शि संतुलन क ि थरता क ओर सक ं े त िकया गया है। एक और िमथक िजसे यहाँ संबोिधत करने
क ज रत है, वह यह है िक े ीय दल े पर शासन कर रहे ह या नह । े ीय दल वच व क दौड़ मे अभी भी बहत पीछे ह
य िक वे िकसी रा य के िकसी े िवशेष म शासन कर सकते ह, लेिकन रा ीय दल अभी भी बहमत ा कर रा य को
िनयिं त करते ह जैस–े कां ेस या भाजपा। शासन के प रवतन के संबंध म एक और िमथक हो सकता है– या े ीय दल ने
शासन को िफर से प रभािषत िकया है? इसका जवाब े ीय दल के सीिमत सं थागतकरण को देखकर िदया जा सकता है, जो
सवाल करते ह िक शासन को बदलने क उनक मता या है। िवदेश नीित पर भाव बढ़ाने वाले े ीय दल के िमथक को भी
यहाँ इिं गत करने क आव यकता है और इसे क क वीकृ ित क आव यकता के कारण सीिमत कहा जा सकता है। े ीय दल
के उ व ने राजनीितक प र य को बदल िदया है, लेिकन इसे यहाँ अितरंिजत नह िकया जाना चािहए। भारत म राजनीितक दल
और दलीय णाली सां कृ ितक िविवधता, जातीय, जाित, समदु ाय और धािमक बहलवाद से भािवत हई है।
े ीय दल रा ीय दल क किमय को इिं गत कर सकते ह या संबंिधत मु के साथ आ सकते ह लेिकन यह नह कहा जा सकता
है िक उ ह ने रा ीय दल क लोकि यता और क र मे को कम कर िदया है। हालाँिक े ीय दल सफलतापवू क उन मु क ओर
संकेत कर रहे ह जो क सरकार पर अपना यान कि त करने म िवफल रहे ह। 1980 के दशक के बाद क और रा य तर पर
सरकार के गठन म े ीय दल बहत मह वपणू भिू मका िनभा रहे ह। े ीय दल ऐसी पािटयाँ ह िजनका भु व मु य प से एक
िनि त रा य म ह और वह के वल उसी रा य के भीतर चनु ाव म भाग लेते ह। तिमलनाडु म दो मु य रा य दल (AIADMK)
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और (DMK) ह। इन दल क उ पि भारत क वतं ता से पहले क है। इस पाट क मु य िवचारधारा तिमल रा ीय गौरव है।
एक अ य रा य पाट अकाली दाल है और इसक मु य पकड़ पंजाब और उ र भारत म है। यह पाट एक रा य पाट है लेिकन
यह एक धम धान पाट है िजसके अनुयायी िसख ह।
िन कष (CONCLUSION)
दलीय णाली एक व थ लोकतािं क ि या के कई कारक म से एक है। यह लोग को सरकार का ितिनिध व करने म स म
बनाता है। भारत म राजनीितक दल ने भारतीय राजनीित म बहत मह वपणू भिू मका िनभाई है। 1952 और 1967 के बीच कां से
पाट क और रा य दोन तर पर भारतीय राजनीित म हावी रही। रा ीय और े ीय दल ने कई तरीक से लोग के िवचार को
आकार िदया है जो चनु ाव के दौरान लोग क भागीदारी के उदय म देखे जा सकते ह। 1980 के बाद कई े ीय दल के उदय ने
एक नाटक य बदलाव के साथ भारतीय राजनीित को बदल िदया और चनु ावी राजनीित को बदल िदया। भारत म एक बह-दलीय
णाली है, िजसे एक अनोखी ि या के प म देखा जाता है और हािलया घटना म जैसे िक मई 2014 म भाजपा ारा पहली
एकल पाट के प म दावा िकया गया था। तीन दशक म लोक सभा म हम देख सकते ह िक रा ीय तर पर कां ेस के भु व के
दशक के बाद 1989-2014 के बीच भारतीय राजनीित गठबंधन क राजनीित थी। गठबंधन राजनीित का आधिु नक यगु बह-
दलीय णाली का िवकास कर चक ु ा है। कां ेस पाट के रा ीय तर पर वच व के दशक के बाद 1989 और 2014 के बीच
भारतीय राजनीित गठबंधन क राजनीित थी। 2014 और 2019 के दो आम चनु ाव म एक ही पाट ने अपने दम पर पणू बहमत
ा िकया। हर राजनीितक दल के पास अपनी दरू ि और िवचारधाराएँ होती ह, िज ह अ सर रा य या े क ज रत और
िचंताओ ं के साथ जोड़ा जाता है। चनु ाव के दौरान लोग उ ह चनु ते ह, वे देश के वैध शासक बन जाते ह। पाट क कुछ
िज मेदा रयाँ होती ह। रा ीय और े ीय दल आम लोग ारा उनके िवचार को सामने रखने के िलए एक मचं बनाने के िलए
िमलकर काम करती ह। राजनीितक दल का मु य उ े य चनु ाव के दौरान अपने वाद को परू ा करना है। राजनीितक दल ने
लोकतािं क देश म बहत मह वपणू भिू मका िनभाई। भारत म दलीय णाली िनरंतर िवकासरत है और यह बदलते समय के साथ
बदल रही है और भागीदारी लोकतं क सफलता क दर को भी बढ़ा रही है। 1980 के दशक के अतं और 1990 के दशक क
शु आत म े ीय दल क वृि ने शि सतं ल ु न को िबगाड़ा नह है, बि क इसके बजाय शि सतं ल
ु न म ि थरता को बढ़ाया है।
चनु ाव आयोग सात रा ीय दल और 52 रा य दल को मा यता देता है। इसके अलावा वतमान म 1900 से अिधक गैर-मा यता
ा राजनीितक दल ह। मह वपणू िवशेषताओ ं म से एक िजसे हम सभी रा ीय दल के मा यम से देख सकते ह, उनक
िवचारधारा के ित ितब ता क कमी है। पािटय ारा सावजिनक बयान म िवचारधारा का उपयोग बयानबाजी से अिधक नह
है। जैसा िक पाथ चटज ने उ लेख िकया है िक भारतीय पाट णाली म हर पाट अिन छा से या खश ु ी से नव उदारवाद क
नीितय का समथन करती है। यहाँ तक िक भारतीय क यिु न ट पाट (मा सवादी) िजसे कई लोग ारा अपनी िवचारधारा से
िचपके रहने के प म माना जाता है, ने भी अपनी कारवाई म पँजू ीवाद क नीितय का समथन िकया है।
सदं भ
1. Chakarbarty, Bidyut, forging power: Coalition politics in India, New Delhi: Oxford University Press,
2006.
2. E. Sridharan, Coalition Strategies and the BJP’s Expansion, 1989-2014.
3. Rajni Kothari, The Congress System in India, Asian survey.
4. Parties and party politics in India, Zoya Hasan, Oxford University Press.
5. Rajni Kothari, Continuity and Change in India’s Party System.
6. E. Sridharan, The Fragmentation of Indian Party System.

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इकाई-II : िनवाचन एवं िनवाचन ि या
पाठ-1
िनवाचन ि या, ितिनिध व और मतदान यवहार के सामािजक िनधारक

सरं चना
तावना
िनवाचन यव था
िनवाचन सहभािगता
ितिनिध एवं ितिनिध व यव था के कार
मतदान यवहार के सामािजक िनधारक
सारांश
तावना
िनवाचन श द को चयन या चयिनत करने के काय के प म प रभािषत िकया जा सकता है। यह एक यि क वतं इ छा क
अिभ यि है जो आमतौर पर मतदान के मा यम से य होती है। (Thomas Davidson 1948: 298) भारत को दिु नया का
सबसे बड़ा लोकतं होने का गौरव ा है और िनवाचन लोकतािं क णाली क एक अिनवाय ि या है। एक सफल लोकतं
वतं इ छा एवं िन प िनवाचन पर आधा रत होता है जब येक वय क नाग रक शासन ि या म य प से सहभागी हो
पता है। एक लोकतािं क सरकार तभी अथपणू िस होती है जब उसके येक नाग रक िनवाचन म सहभागी होते ह। ितिनिध
वय क नाग रक ारा चनु े जाते ह, जो उनक ओर से, िनणय ि या म भाग लेते ह। अतः िनवाचन लोकतं म एक मह वपणू
भिू मका िनवाह करता है।
भारतीय संिवधान सभा ने सजग प से एक लोकतांि क सरकार के व प को अपनाया जहाँ येक नाग रक को िनवाचन
ि या म भाग लेने का अिधकार हो िजससे वह अपने ितिनिध को चयिनत कर सके । आगे चलकर यह िनणय िलया गया िक
भारत को एक लोकतािं क देश के प म एक आविधक िनवाचन के साथ मतदान तं को अपनाना चािहए, िजससे मतदाता को
अपनी ओर से शासन करने के िलए अपने ितिनिध को चयिनत करने का अिधकार िमल सके । भारतीय सिं वधान िनमाताओ ं ने
लोकसभा और रा य क िवधान सभाओ ं म िनवाचन के िलए सावभौिमक वय क मतािधकार को अपना कर एक ािं तकारी
कदम उठाया था। उनका ऐसा िव ास था िक इससे लोग ऐसे ितिनिध का चयन कर सकगे जो उनका ितिनिध व करे गा, उनक
ज रत और आकां ाओ ं का पालन करे गा और उ ह एक उ रदायी और िज मेदार सरकार दान करे गा। उनका मानना था िक यह
िबना िकसी भेदभाव के सभी को सरु ा और सश ु ासन सिु नि त करे गा। (Subhash C Kashyap 2013:257)
भारत म सरकार क संरचना िनवाचन क ि या ारा गिठत क जाती है। रा पित और उपरा पित, संसद के दोन सदन, रा य
और क शािसत देश क िवधानसभाओ ं के सद य, यह सभी िनवाचन क ि या के मा यम से चयिनत होते ह। भारत के
अतं गत वतमान िनवाचन यव था ि टेन क यव था क देन है।
वतं ता के प ात् भारत के अंतगत थम सामा य चनु ाव 1951 म हए थे। यह सावभौिमक वय क मतािधकार पर आधा रत थे।
इन चनु ाव के अतं गत भारतीय रा ीय कां ेस को अिधकतर सभी रा य म िवजय ा हई थी। कां ेस को देश के स पणू मतदान
का 45% ा हआ था। िनवाचन ि या छ बीस भारतीय रा य एवं 401 िनवाचन े म हई थी। िवप म दिलत नेता
बी.आर. अ बेडकर, यामा साद मख ु ज , राम मनोहर लोिहया, आचाय कृ पलानी, आिद सि मिलत थे ।
सरकार ारा िकसी देश के नाग रक को मत देने के अिधकार मतािधकार के प म जाना जाता है। मतािधकार श द अं ेजी भाषा
के Franchise श द का िहदं ी पा तर है जो िक च भाषा के ‘frame’ श द से िलया गया है िजसका अथ वतं होता है। अतः

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franchise का अथ होता है िक कोई यि अपना ितिनिध चयिनत करने के िलए वतं होता है… अिधकांश आधिु नक
लोकतं िव म अब सावभौिमक वय क मतािधकार को यवहार म ला रहे ह। इसका ता पय है िक देश के सभी वय क नाग रक
को जाित, धम, न ल, भाषा, िलंग आिद भेदभाव से परे मतदेने का अिधकार है। भारत के अतं गत सभी अठारह वष के आयु के
नाग रक को मत देने का अिधकार है जब भारतीय संिवधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हआ था तब सभी इ क स वष क आयु
ा लोग को मत देने का अिधकार ा था। 1989 म 61व संिवधान संशोधन ारा इसक आयु को 18 वष कर िदया गया था।
वय क मतािधकार का एक मह वपणू िस ांत ‘एक यि एक मत’ होता है। यह नाग रक क समानता पर आधा रत होता है ।
इसका अथ है एक अमीर आदमी और गरीब आदमी, एक सा र और अनपढ़ यि और एक उ च पद थ या नीच यि सभी
के मत का मू य समान होता है। सावभौिमक वय क मतािधकार के लाभ िन न होते ह–
1) यह राजनीितक समानता पर आधा रत होता है।
2) यह एक स ची लोकतांि क सरकार थािपत करता है य िक यह देश के येक नाग रक को मतदान का अिधकार दान
करता है।
3) यह सरकार को अपनी कारवाई के ित उ रदायी बनाता है। अगर सरकार बनाने वाला राजनीितक दल अ छा काम नह
करता है, तो लोग अगले िनवाचन म उस दल को मत न दे कर बाहर कर सकते ह।
मत डालने का अिधकार हमेशा एक सावभौिमक अिधकार नह था। आरंिभक लोकतं म, के वल कुछ लोग को मत देने क
अनमु ित थी। बीसव शता दी के दसू रे दशक तक कई लोकतािं क णािलय म के वल पु ष को मतािधकार ा थे और वह भी
सपं ि , िश ा और अ य यो यता पर आधा रत थे। थम िव यु के बाद ही अिधकांश पि मी देश ने वय क मतािधकार ततु
िकया था। ि टेन के अतं गत 1918 म सभी पु ष को मतािधकार ा हो गये थे, पर तु मिहलाओ ं को 30 वष क आयु के प ात्
ही मत देने का अिधकार ा हआ था। 1928 म जाकर इस भेदभावपणू नीित का अतं हआ था। ि तीय िव यु क समाि के
बाद ांस ने सावभौिमक मतािधकार क शु आत क । सावभौिमक मतािधकार ा करने वाला यजू ीलड पहला रा बना।
भारतीय सिं वधान के अंतगत िनवाचन से स बि धत ावधान
वतं और िन प चनु ाव सिु नि त करने के िलए भारत का संिवधान िनवाचन हेतु एक पृथक भाग समिपत करता है–
भाग-XV
िनवाचन
अनु छे द 324–िनवाचन के अधी ण, िनदेशन और िनयं ण का िनवाचन आयोग म िनिहत होना।
अनु छे द 325 –धम, मल
ू वंश, जाित या िलंग के आधार पर िकसी यि का िनवाचक नामावली म सि मिलत िकए जाने के िलए
अपा न होना और उसके ारा िकसी िवशेष िनवाचक-नामावली म सि मिलत िकए जाने का दावा न िकया जाना।
अनु छे द 326 –लोकसभा और रा य क िवधान सभाओ ं के िलए िनवाचन का वय क मतािधकार के आधार पर होना।
अनु छे द 327 –िवधान मडं ल के िलए िनवाचन के सबं धं म उपबधं करने क ससं द क शि ।
अनु छे द 328 –िकसी रा य के िवधान मंडल के िलए िनवाचन के सबं ंध म उपबंध करने क उस िवधान मंडल क शि ।
अनु छे द 329 –िनवाचन संबंधी मामल म यायालय के ह त पे का वजन।
अनु छे द 329A –[िनरसन]
(Source – P.M. Bakshi, The Constitution of India, Universal Law Publishing Company, Delhi
भारत म िनवाचन यव था
भारत म िनवाचन य प म तीन तर पर होता है, जैसे िक ससं द/रा ीय, रा य और थानीय िनकाय तर। जैसा िक भारत
रा य के कायकारी मख
ु के प म रा पित का िनवाचन होता है। भारत के रा पित का िनवाचन िनवाचक मडं ल ारा पाँच वष
क िनि त अविध के िलए िकया जाता है, िजसम ससं द और रा य क िवधान सभाओ ं के िनवािचत ितिनिध शािमल होते ह।

11
रा पित के िनवाचन म संघ एवं रा य के िलए समान भार वाली आनपु ाितक ितिनिध व णाली का योग िकया जाता है इस
कारण रा पित का िनवाचन एकल ह तांतरणीय वोट के मा यम से आनपु ाितक ितिनिध व यव था के प म जाना जाता है।
के ीय िवधाियका म संसद शािमल है जो दो सदन म िवभािजत है – लोकसभा एवं रा यसभा। संिवधान के अनसु ार लोकसभा के
सद य क अिधकतम सं या 552 िनि त क गयी है। वतमान समय म लोकसभा के सद य क सं या 545 है िजसम से 543
येक पाँच वष के प ात् साधारण िनवाचन ि या ारा चयिनत होते ह तथा दो सद य को रा पित ारा एं लो-इिं डयन समदु ाय
का ितिनिध व करने के िलए चयिनत िकया जाता है। भारत के संिवधान के अनु छे द-366 (2) म आं ल-भारतीय से ऐसा यि
अिभ ते है िजसका िपता या िपतृ-परंपरा म कोई अ य पु ष जनक यरू ोपीय उ व का है या था, िक तु जो भारत के रा य े म
अिधवासी है और जो ऐसे रा य े म ऐसे माता-िपता से ज मा है या ज मा था जो वहाँ साधारणतया िनवासी रहे ह और के वल
अ थायी योजन के िलए वास नह कर रहे ह। अनु छे द 331 म ावधान िकया गया है िक –अनु छे द 81 म िकसी बात के होते
हए भी, यिद रा पित क यह राय है िक लोकसभा म आं ल-भारतीय समदु ाय का ितिनिध व पया नह है तो वह लोकसभा म
उस समदु ाय के दो सद य का नाम-िनदिशत कर सके गा। लोकसभा एवं रा य िवधान सभा म िनवाचन साधारण बहमत के आधार
पर होता है साधारण बहमत ता पय है िक अिधक से अिधक मत ा करना, अथात् िवजयी उ मीदवार कुल ा मत म से आधे
से यादा मत ा कर भी सकता है या नह । यह णाली पणू बहमत के ठीक िवपरीत है जहाँ िवजयी उ मीदवार कुल मतदान के
आधे से अिधक मत ा करता है।

रा पित का िनवाचन
भारत के रा पित का चनु ाव अ य चनु ाव ारा िकया जाता है। वह एक िनवाचक मडं ल के सद य ारा िनवािचत होकर
िनवािचत होता-
A) ससं द के दोन सदन के िनवािचत सद य
B) रा य क िवधानसभाओ ं के िनवािचत सद य
ससं द के दोन सदन के मनोनीत सद य, रा य क िवधानसभाओ ं के मनोनीत सद य और रा य िवधान प रषद के सद य
रा पित के चनु ाव म भाग नह लेते ह। रा पित का चनु ाव एकल ह तांतरणीय मत के मा यम से आनपु ाितक ितिनिध व क
णाली के अनसु ार होता है और मतदान गु मतदान ारा होता है।
एक िवधायक के वोट का मू य = रा य क जनसं या * 1
रा य िवधानमंडल के कुल िनवािचत सद य 1000
एक िवधायक के वोट का मू य एक रा य से दसू रे रा य म िभ न होता है। एक ओर सभी रा य के बीच एक पता और दसू री
तरफ संसद को सरु ि त करने के िलए अपनाया गया फामला ू इस कार है :
एक सांसद के एक वोट का मू य = सभी रा य के एमएलए के वोट का कुल मू य
संसद के िनवािचत सद य क कुल सं या
अगला कदम कोटा का पता लगाना होता है और यह कुल सद य ारा मतदान िकए गए वोट क कुल सं या को िवभािजत
करके और एक को जोड़कर और एक को भागफल म जोड़कर िकया जाता है। (Number of votes polled/ number of
members to be elected+1) (मतदान िकए गए मत क सं या /चनु े जाने वाले सद य क सं या + 1) + 1
अपना वोट डालते समय िनवाचक को चनु ाव लड़ने वाले उ मीदवार के प म अपनी पसंद का संकेत देना होता है। थम
वरीयता के मत क िगनती पहले क जाती है। यिद कोई भी उ मीदवार कोटे को सरु ि त करता है तो उसे िनवािचत घोिषत
िकया जाता है।
यिद कोई उ मीदवार कोटा को सरु ि त करने म स म नह है, तो िजस उ मीदवार ने सबसे कम वोट हािसल िकए ह, उसे हटा
िदया जाता है और दसू री वरीयता के वोट क िगनती क जाती है और शेष उ मीदवार ारा ा वोट क सं या म जोड़ा
जाता है। यह तब तक जारी रहता है जब तक कोई उ मीदवार कोटा हािसल नह कर लेता।
(Source-http://en.wikipedia.org/wiki/Electoral_College_%28India%29, also see Our Constitution-An Introduction
to India’s Constitution and Constitutional Law by Subhash C Kashyap)

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रा य सभा (रा य क प रषद) के संबंध म, यह एक थायी िनकाय है और इसके एक ितहाई सद य हर 2 साल म सेवािनवृ होते
ह। रा यसभा के सद य को अ य प से रा य िवधानसभाओ ं के िनवािचत सद य ारा छह साल क अविध के िलए एकल
ह तांतरणीय मत णाली के मा यम से चयिनत िकया जाता है। रा य िवधानसभा रा य सरकार के शासन के कत य के िनवहन
के िलए थािपत िनकाय होते ह। कुछ रा य म ि सदनीय िवधानमडं ल ह, िजनम ऊपरी और िनचले दोन सदन ह। िवधान सभा
का चनु ाव उसी ि या म होता है, जैसा लोकसभा चनु ाव म होता है। रा य िनवाचन आयोग ारा थानीय िनकाय यानी ामीण
े क पंचायत और शहरी े म नगर पािलकाओ ं का चनु ाव िकया जाता है।
िनवाचन के कार
1) आम िनवाचन/चनु ाव – एक नई लोकसभा या िवधानसभा का गठन करने के िलए िकए गए िनवाचन को आम
िनवाचन/चनु ाव कहा जाता है।
2) उपचनु ाव – जब लोकसभा या िवधान सभा म िकसी सद य क मृ यु या इ तीफे के कारण कोई पद र हो जाती है, तो
उस पद के िलए िनवाचन होता है, इसे उपचनु ाव/उपिनवाचन के प म जाना जाता है।
3) म याविध चनु ाव – यिद कुछ कारण से, धान मं ी या रा यपाल क सलाह पर रा पित पाँच साल परू ा होने से पहले
लोकसभा या रा य िवधानसभा को भंग कर देते ह और चनु ाव को नई लोकसभा या नई रा य िवधानसभा, आिद का गठन
करने के िलए आयोिजत िकया जाता है तो वहम याविध चनु ाव/िनवाचन के प म जाना जाता है।
भारतीय िनवाचन णाली क उ लेखनीय िवशेषताय इस कार ह :
1) भारत क िनवाचन णाली वय क मतािधकार पर आधा रत है। भारत का येक नाग रक जो 18 वष या उससे अिधक है,
चनु ाव क ि या म भाग लेने के िलए यो य है, हालाँिक यि को संिवधान के तहत या िकसी आधार पर िकसी भी
उपयु संवैधािनक िनकाय ारा अयो य घोिषत नह िकया जाना चािहए।
2) यह भौगोिलक ितिनिध व पर आधा रत है।
3) के वल एक सद य े ीय िनवाचन े होते ह और कोई काया मक या बह िनवाचन े नह होते ह।
4) येक े ीय िनवाचन े म साधारण बहमत के आधार पर एक ितिनिध का चयन िकया जाता है।
भारत का सिं वधान िनवाचन ि या के िलए कुछ िस ातं दान करता है। सिं वधान का अनु छे द 325 येक े ीय िनवाचन
े के िलए एक िनवाचक नामावली िनधा रत करता है। सां दाियक अलगाव या िवशेष ितिनिध व का कोई ावधान नह है।
चनु ाव वय क मतािधकार पर आधा रत है। सावभौिमक वय क मतािधकार का औिच य लोग को शासन क ि या म कहने का
अवसर देने का लोकतािं क िस ातं है। यह सरकार को वा तिवक अथ म लोकतािं क बनाता है।
िनवाचन सहभािगता
वतं ता के प ात् 1952 म सव थम थम आम चनु ाव हए थे, भारतीय रा ीय कां ेस तब रा ीय तर पर भु वशाली दल के
प म उभरी थी। नेह के नेतृ व म भारतीय रा ीय कां ेस को लगातार 1952, 1957 और 1962 के आम चनु ाव म बहमत ा
हआ था। नेह क मृ यु के प ात् 1964 म लाल बहादरु शा ी ारा 1966 तक धानमं ी का कायभार संभाला गया। 1967 का
काल अनेक रा य म गठबंधन क सरकार का उदय का काल रहा, लेिकन क तर पर अब भी कां से का ही भु व था। छठा
आम चनु ाव जनता दल के उदय का काल रहा। रा ीय तर पर मोरारजी देसाई क अ य ता म थम गठबंधन क सरकार का
िनमाण हआ था जो मा 24 माच, 1977 से 15 जुलाई, 1979 के अ पकालतक स ा म रह पाई। वतं ता ाि के कई वष के
प ात् तक संघीय सरकार का नेतृ व भारतीय रा ीय कां ेस (INC) ने िकया है, तथा रा य क राजनीित म कां ेस, भारतीय
जनता पाट (BJP), भारतीय क यिु न ट पाट (मा सवादी) (CPI-M) सिहत कई रा ीय दल का वच व रहा है। 1950 से 1990
म दो अ पकाल के शेष भाग म भारतीय रा ीय कां ेस ही बहमत म रही थी। कां ेस 1977 और 1980 के काल म स ा से बाहर
रही, जब जनता दल ारा चनु ाव जीत िलया गया था। 1989 म, जनता दल के नेतृ व वाले रा ीय मोचा गठबंधन ने वाम मोचा
गठबंधन के साथ चनु ाव जीता, लेिकन के वल दो वष तक स ा म रहने म कामयाब रह पाई। (Singh and Saxena 2003:8)

13
नौव आम चनु ाव ने देश के राजनीितक िवकास म एक बहत बड़े प रवतन को िचि त िकया। य िक वतं ता के बाद पहली बार
ि शंकु संसद का िनमाण हआ था। अगले चार आम चनु ाव के िलए– 1989, 1991, 1996 और 1998 का फै सला अिनि त था।
1991 के चनु ाव म एक भी राजनीितक दल को बहमत नह िमला। भारतीय रा ीय कां ेस ने धानमं ी पी.वी. नरिस हा राव के
नेतृ व म अ पमत क सरकार बनाई और अपना पाँच साल का कायकाल परू ा िकया।
हालाँिक, 1996 से 1998 तक क अविध संघीय सरकार म अिनि तता क अविध थी य िक कई अ पकािलक गठबंधन स ा
संभाल रहे थे। 1996 म भाजपा ने सरकार बनाई और संि अविध के िलए स ा म रही, उसके बाद सयं ु मोचा गठबंधन हआ
िजसने भाजपा और कां ेस दोन को बाहर कर िदया।1996 म अटल िबहारी वाजपेयी भारतीय संसद म बहमत (यानी 272+ सीट)
क कमी के कारण सरकार पर पकड़ नह बना सके । वह िसफ 13 िदन तक स ा म रहे। िजसके प ात् तीसरा मोचा, जो े ीय
दल और गैर-कां ेस और गैर-भाजपा गठबंधन का एक समहू था, िजसे संयु मोचा भी कहा जाता है, ने सरकार बनाई। इस
सरकार का नेतृ व ी एच.डी. देवेगौड़ा कर रहे थे जो 1 जून, 1996 से 21 अ ैल, 1997 तक इस पद पर थे। (Jha 2012:82)
एक ि थर सरकार दान करने और नैप-पोल को रोकने के िलए कां ेस पाट और अ य छोटे दल ने उ ह समथन दान िकया
(Jha 2012:82) संयु मोचा और कां ेस के बीच बढ़ते मतभेद के कारण कां ेस ने बाद म समथन वापस ले िलयालेिकन चनु ाव
से बचने के िलए, कां ेस पाट कुछ शत पर नए नेता के तहत एक और संयु मोचा सरकार का समथन करने के िलए सहमत हई।
संयु मोचा ने इं कुमार गजु राल को अपना नया नेता चनु ा और उ ह ने धानमं ी के प म शपथ ली, लेिकन सरकार म कुछ
आंत रक सम याओ ं के कारण, यह तीसरा मोचा सरकार जारी रखने म िवफल रही।
तेरहव आम चनु ाव (1999) ने बीजेपी के नेतृ व म फै सला िदया, रा ीय जनतांि क गठबंधन, ए.बी. वाजपेयी ने धानमं ी के प
म शपथ ली। हालाँिक 1998 के अंत म, AIADMK ने 13 महीने परु ानी सरकार से अपना समथन वापस ले िलया। सरकार ने
बाद म एक मत से अिव ास ताव को खो िदया। चौदहव आम चनु ाव (2004) म कां ेस गठबंधन ने सबसे अिधक सीट जीत
और उसे वाम मोचा से समथन का आ ासन िमला। पं हव आम चनु ाव (2009) म कां ेस के नेतृ व वाला य.ू पी.ए. सबसे बड़ा
गठबंधन बनकर उभरा।
सोलहव आम चनु ाव (2014) म भारतीय जनता पाट (भाजपा) ने कुल 336 सीट जीत और िवजेता के प म उभर । सभी वोट
म से, बीजेपी ने वयं ही सभी सीट पर 31.0% और 282 (51.9%) जीत दज क । 1984 के भारतीय आम चनु ाव के बाद यह
पहली बार है िक िकसी पाट ने अ य दल के समथन के िबना शासन करने के िलए पया सीट जीती ह। भारतीय रा ीय कां से
के नेतृ व म संयु गितशील गठबंधन ने 58 सीट जीत । (en.wikipedia.org/wiki/Indiangeneralelection,2014)
िनवाचन ि या

मतदाताओं क
नवाचन क घोषणा
जानकार
नामांकन चरण

नामांकन क जांच उ मीदवार क सच


ू ना

या शय क वापसी

चन
ु ाव चार

मतदान

गणना

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लोकतांि क यव था म िनवाचन क भूिमका
चनु ाव/िनवाचन लोकतं क ि या म मील का प थर होता ह। लोकतं म चनु ाव ारा िनभाई जाने वाली भिू मका िन न कार
है–
1. चनु ाव/िनवाचन मतदाताओ ं को एक अवसर दान करता है, तािक स ाधारी दल अपने शासन और नीितय को िनरंतर रख
सके या एक िविश अविध के िलए देश पर शासन करने के िलए िवप ी दल या दल के गठबंधन को शासन करने क
अनमु ित िमल सके ।
2. चनु ावी/िनवाचन ि या क सबसे बड़ी िवशेषता यह है िक यह सरकार को बनाने म येक नाग रक को िज मेदारी का
अहसास िदलाकर उसके यि व को समृ बनाती है।
3. चनु ाव/िनवाचन राजनीितक चेतना म वृि करते ह िजसम अमीर और गरीब, बूढ़े और यवु ा, पु ष और मिहलाएँ सभी मत
डालकर और भागीदारी कर के अपने राजनीितक अिधकार का उपयोग करते ह। चनु ाव वे साधन ह िजनके ारा नाग रक
अपनी आवाज के िलए ितिनिध को वोट देकर राजनीितक ि या म भाग लेते ह।
4. चनु ाव/िनवाचन एक दपण क तरह होते ह जो मतदाताओ ं के मन और आकां ाओ ं को दशाता है। वे साधन ह जो तकसगं त
िदमाग क ि थित का अनमु ान लगाते ह।
5. िनवाचन ारा सरकार के िनणय को शांितपणू प से वैधता ा होती है।
6 चनु ाव/िनवाचन वे साधन ह िजनके ारा सरकार बनाई जाती है, अिधकांश नाग रक क इ छा के अनसु ार और इसिलए
उनक इ छा सरकार को शि और ि थरता दान करती ह। अतः यह लोकतांि क यव था म ांित होने क संभावनाओ ं
को कम करती है।
ितिनिध व और इसके व प
The ितिनिध व श द अं ेजी भाषा के श द Representation का िहदं ी पांतरण जो रोमन भाषा के श द ‘Repraesentare’
से िनिमत हआ है िजसका शाि दक अथ िकसी व तु म पहले से अनपु ि थत या एक अमतू के अवतार क उपि थित म लाना होता
है। रोमन लोग ितिनिध व श द के बारे म परू ी तरह से अनिभ थे, िजसे समकालीन समय म ितिनिध लोकतं के संबंध म
समझा जाता ह। हालाँिक, अं ेजी भाषा म उ श द का उपयोग बहत बाद म शु िकया गया, जब लोग को चच प रषद या
अं ेजी ससं द म भाग लेने के िलए भेजा जाने लगा, तब धीरे-धीरे ितिनिधय के प म सोचा जाने लगा। (Pitkin 1972:3) आम
बोलचाल म ितिनिध व श द का ता पय िकसी यि या समहू ारा समिथत िकसी िच या मु े का ितिनिध व करना है।
(Heywood, 2005:143) अिधकांश आधिु नक रा रा य म बड़ी आबादी है, जो य लोकतं को अ यावहा रक बना रही
है। इसने ितिनिध व क णाली के मह व को बढ़ाया है। उदाहरण के िलए, भारत जैसे िवशाल देश म लोग नीित बनाने के िलए
एक साथ इक ा नह हो सकते ह और िनणय लेने के िलए उ ह अपने ितिनिधय को खड़ा करने क आव यकता होती है जो
उनक ओर से काय करगे। ितिनिध व ने अंततः आधिु नक िदन म िविभ न प ले िलए ह। वे िन न कार के होते ह :
एकल सद य िनवाचन े
इस णाली के तहत चनु ाव के नतीजे मतदान के सापे बहमत के आधार पर िनधा रत िकए जाते ह जो उ मीदवार भले एक वोट
से ही अ य सभी उ मीदवार से आगे होता है िवजयी माना जाता है, जबिक अिधकांश मतदाता उसके प म मतदान नह करते ह।
इसे अ ता ही िवजेता णाली के प म भी जाना जाता है। इस णाली का मख ु दोष यह है िक इसम के वल सापे बहमत को
यान म रखा जाता है। चिंू क अिधकाश
ं ितयोिगता बहकोणीय होती ह, इसिलए कभी-कभी 30 या 40% वोट ा करने वाले
उ मीदवार को िनवािचत घोिषत िकया जाता है, िजसके प रणाम व प मतदाताओ ं का एक बड़ा िह सा ितिनिध व से विं चत
रहता है। इस णाली का एक अ य मख ु ल ण यह है िक िजस पाट को अ पसं यक का वोट िमले, वह बहसं यक सीट
सरु ि त कर सकती है; प रणाम व प अ पसं यक दल वच व नह हो पाता है। हालाँिक, भारत जैसे देश म जहाँ िनर रता या

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है वहाँ एकल सद य िनवाचन े के साथ े ीय ितिनिध व को भारत जैसे देश म सादगी और आसान यवहायता का लाभ
िमलता है।
आनपु ाितक ितिनिध व क णाली (System of Proportional Representation)
एकल सद य िनवाचन े क कमी के समाधान िलए, आनपु ाितक ितिनिध व के िविभ न प का ताव िकया गया है।
आनपु ाितक ितिनिध व णाली के तहत िवधायी िनकाय म सीट क सं या उस दल को ा मत के अनपु ात म होती है।
आनपु ाितक ितिनिध व णाली का अ पसं यक दल ारा अिधक समथन िकया जाता है जो एकल सद य िनवाचन े क
चनु ावी िवकृ ितय से त ह। हालाँिक, यहाँ तक िक इस णाली म भी कई दोष ह, उनम से एक राजनीितक दल का अिधकता
और गठबंधन सरकार का िनमाण है।
यह णाली बहत जिटल और बोिझल है। यह जाित, समदु ाय, धम आिद के आधार पर पारलौिकक वफादारी को बढ़ावा और
मजबतू कर सकता है, यह हमारे राजनीितक दल के िवखंडन को भी ो सािहत कर सकता है। आनपु ाितक ितिनिध व के
िविभ न तरीके ह जैसे :
(एकल ह तांतरणीय वोट) Single transferable vote–इस णाली का उपयोग उ च सदन के मामले म िकया जाता है
जैस–े रा य सभा, रा य िवधान प रषद और रा पित और उपरा पित के कायालय। ितिनिध व क इस णाली का उपयोग
आयरलड और मा टा म िकया जाता है।
इसके अलावा, ऑ ेिलयाई सीनेट के साथ-साथ त मािनया के िनचले सदन म एकल ह तांतरणीय वोट णाली का पालन िकया
जाता है। इस णाली म येक मतदाता के पास एक मत होता है। मतदाता या तो उ मीदवार को अपनी पसंद के अनसु ार वरीयता
देता है उदाहरण के िलए वह अपनी पसंद 1, 2, 3, 4 आिद डाल सकता है या वह अपनी पसंद के राजनीितक दल ारा पहले से
कािशत वरीयता के म के िलए मतकर सकता है। एक िवजयी उ मीदवार को चयिनत होने के िलए कुछ यनू तम मत को
सरु ि त करने क आव यकता होती है, िजसे कोटा (या सीमा) के प म जाना जाता है। पहली वरीयता के मत से कोटा पहँचने
वाले उ मीदवार को िनवािचत घोिषत िकया जाता है। अगर िनवािचत पद र रह जाते ह तब कोटा से परे वोट पाने वाले
उ मीदवार यानी इन उ मीदवार के 'अिधशेष वोट' को मतदाताओ ं क दसू री ाथिमकताओ ं के आधार पर पनु िवत रत िकया जाता
है। इसके प ात् भी पद र रहने पर, अंितम थान पर रहे उ मीदवार को हटा िदया जाता है और उसके वोट को उन वोट पर
अगले थान पर आए उ मीदवार को ह तांत रत कर िदया जाता है। यह ि या तब तक रहती है जब तक सभी पद पर सद य
िनवािचत हो जाते ह।
सच ू ी णाली (List system)–इस णाली म उ मीदवार को उनके राजनीितक दल के लेबल के अनसु ार सिू चय म बाटं ा गया
है। येक पाट अपने चनु े हए उ मीदवार क एक सचू ी तुत करती है जो भरी जाने वाली सीट क सं या के बराबर होती है या
उससे कम भी हो सकती है। हर एक मतदाता को दो भावी वोट िमले ह– एक अपने िनवाचन े के ितिनिध को चनु ने के िलए
और दसू रा पाट सिू चय के बीच चनु ने के िलए। एकल सद य िनवाचन े से य चनु ाव म, जो उ मीदवार (बहमत) को वोट
देते ह, वे िवजेता होते ह। पािटय को वोट क दसू री ेणी (पाट के िलए वोट डाले गए) म उनके ारा हािसल िकए गए वोट क
कुल सं या के अनपु ात म सीट आवंिटत क जाती ह। यह एक जमन मॉडल है। जमनी म िनचले सदन बडुं र टैग के चनु ाव के िलए
इसका अनसु रण िकया जाता है।
दो मतप णाली (Two ballot system)–इस णाली म 50 ितशत से अिधक मत जीतने वाला उ मीदवार िनवािचत
होता है। यिद कोई भी उ मीदवार आव यक मत के ितशत को हािसल नह करता है, तो मतगणना दसू रे दौर म चलती है। दसू रे
दौर म के वल शीष दो उ मीदवार को चनु ाव लड़ने क अनमु ित है। रा पित पद के चनु ाव के िलए ांस, स जैसे देश म दो
मतप णाली का पालन िकया जाता है।

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िनवाचन यवहार के सामािजक िनधारक
मतदान सामिू हक िनणय म यि गत ाथिमकताओ ं को संयोिजत करने का एक साधन है। दसू रे श द म, मतदान एक ऐसी िविध
है िजसके ारा लोग सावजिनक कायालय या सावजिनक मु पर उ मीदवार के िलए अपनी इ छा या अिधमा य अनमु ोदन य
करते ह। मतदान के अिधकार को मतािधकार कहा जाता है।
Richard Rose और Harve Masiavir ारा एक िव तृत अ ययन म मतदान के मु य काय िन न कार से विणत िकए ह :
1. इसम यि य क पसदं के अनसु ार अिधकारी या मख
ु सरकारी नीितयाँ शािमल होती है;
2. यह यि य को कायालय-धारक और उ मीदवार के साथ पार प रक और िनरंतर आदान- दान म भाग लेने क अनमु ित
देता है;
3. यह थािपत सवं ैधािनक शासन के ित िन ा रखने वाले यि य के िवकास या रखरखाव म योगदान देता है;
4. यह मौजूदा संवैधािनक शासन से मतदाता के िवकास म योगदान देता है;
5. इसका यि य के भावना मक िवकासके िलए मह व िनि त है; तथा
6. कुछ यि य के िलए इसका भावना मक मह व हो सकता है; और कुछ यि य के िलए यह कायहीन हो सकता है,
अथात् िकसी भी मह वपणू यि गत भावना मक या राजनीितक प रणाम से रिहत। (Rose, Richard and Harve
Mosiavir, 1966: 314-319)
मतदान का अ ययन मतदाताओ,ं उ मीदवार और राजनीित के छा के िलए अ यिधक मह व का काय है। मतदान के यवहार
के अ ययन को समकालीन राजनीितक अनसु ंधान और िस ातं का एक मह वपणू पहलू माना जाता है।
मतदान यवहार का अ ययन राजनीितक िव ान के े से सह स बि धत है िजसम वै ािनक एवं यवि थत तकनीक ारा
मतदान यवहार का अ ययन िकया जाता है। पर परावादी मु यतः सं थाओ,ं संगठन आिद क ि याओ ं के यवहार का
अ ययन करने म िच रखते थे। बाद म उ ह ने मॉडल, तकनीक, अ य सामािजक और भौितक िव ान से उधार ली गई िविधय
क सहायता से यि य के राजनीितक यवहार का िव ेषण करना शु िकया। मतदान यवहार या चनु ावी यवहार न के वल
राजनीितक यवहार के साथ, बि क राजनीितक भागीदारी के साथ भी जड़ु ा हआ है। लेिकन इस पिं म सोचते समय हम यह नह
भलू ना चािहए िक राजनीितक यवहार या राजनीितक भागीदारी का यापक प से उपयोग िकया जाता है। वा तिवकता म चनु ावी
यवहार राजनीितक यवहार का एक भाग है। राजनीितक भागीदारी म राजनीितक चचा, िनणय लेने म भागीदारी आिद शािमल ह।
अ सर िविभ न राजनीितक णािलय म असं य चनु ावी अ ययन ारा सामािजक-आिथक कारक और मतदान यवहार के
बीच संबंध पर काश डाला गया है। सेठ के अनसु ार (Sheth 1970:147), “अगर हमारे (भारतीय) मतदाताओ ं ने एक िनि त
तर के राजनीितक िवकास को ा िकया है, तो उनके मतदान के िनणय आिदम िवचार क अपे ा राजनीितक िवचार से
अिधक भािवत होने लगगे।” जैसा क Myron Weiner और Rajni Kothari (1965:1) अनभु व करते ह िक “एक ऐसे
िवखंिडत और संकुिचत यव था जो मु यतः भारतीय ामीण समाज क िवशेषता है, वफादारी और िहत के पैटन और गांव या
पड़ोस के तर पर बल होने वाली शि संरचनाएँ अ सर राजनीितक कारवाई के सबसे मह वपणू त व होते ह और िजसे मानव
िव ान के मा यम से अिधक आसानी से अ ययन िकया जा सकता है – जैसे रा ीय सव ण के मा यम से या े अ ययन ारा
भारत म मतदान के यवहार के सामािजक िनधारक प रवार और र तेदारी, जाित, गटु बाजी, सां दाियकता, अिश ा, ाचार
ह।” इसके अलावा, कुछ अ य कारक मौजूद ह जैसे िक उ , िलंग, िश ा, आय और लोग क ामीण-शहरी संरचना मतदान के
यवहार को भािवत करने म मह वपणू भिू मका िनभाती है।
जाित– जाित भारतीय समाज के साथ भारतीय राजनीित म भी मह वपणू भिू मका िनवाह करती है, इसक चनु ाव म भिू मका को
अनदेखा नह िकया जा सकता है। भारत म, कई थान ह जहाँ जाित और संब ता के थानीय पैटन मतदान के यवहार को तय
करते ह। जाित िवशेष से जुड़े लोग जाित से संब ता और थानीय राजनीित के आधार पर चनु ाव लड़ने वाले उ मीदवार का

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समथन या िवरोध करते ह। भारत म यह बहत चिलत है िक लोग उन उ मीदवार को वोट देते ह जो अपनी जाित के होते ह और
कभी-कभी अलग-अलग जाितयाँ गठबंधन बनाने के िलए हाथ भी िमलाती ह। चनु ाव के दौरान, थानीय जाित के नेता समथन
को संगिठत करने और जुटाने म मह वपणू भिू मका िनभाते ह, अनक ु ू ल गठबंधन बनाते ह और मतदाताओ ं को ो साहन देकर
िकसी िवशेष उ मीदवार या राजनीितक दल का समथन करते ह। (Paul brass1965) ऐसे थानीय नेता वोट बक के प म काय
करते ह और अपने े के लोग को िकसी िवशेष उ मीदवार या राजनीितक पाट के प म मतदान करने म मह वपणू भिू मका
िनभाते ह। (Myron Weiner 1967:) ये थानीय नेता िकसी िवशेष उ मीदवार के िलए समथन इक ा करने के िलए सभी साधन
का उपयोग करते ह– इसम भाव, शि और बल आिद सि मिलत होता है।
धम– भारत के अतं गत पथं -िनरपे रा य क थापना करना तथा िकसी भी धम को रा य धम के प म मा यता न देना तथा सभी
को धािमक वतं ता दान करने के बावजदू धम को आम चनु ाव म मतदान यवहार का िनधारक बनने से नह रोका जा सका।
राजनीितक दल और गैर राजनीितक समूह का अि त व एक िवशेष धम से जुड़ा हआ है, उदाहरण के िलए, मिु लम लीग,
अकाली दल, िहदं ू महासभा, िशवसेना आिद। यह मतदान यवहार का िनमाण करने म मह वपणू भिू मका िनवाह करते ह। भारतीय
समाज का धािमक बहलवाद एक मख ु कारक है जो भारतीय राजनीितक यव था को भािवत करता है और राजनीितक दल के
बीच स ा के संघष को बहत भािवत करता है। बहत बार उ मीदवार का चयन िकसी िवशेष िनवाचन े म धािमक बहमत क
उपि थित पर िकया जाता है।
भाषा–भारत एक बहभाषी रा य है। िजसम 22 आिधका रक भाषाएँ और कई सौ अ य भाषाएँ और बोिलयाँ ह। अतः भाषाई
यवहार भी मतदान के कारक के प म भी काय करता है। भाषाई आधार पर रा य का सगं ठन परू ी तरह से भारत म राजनीित के
कारक के प म भाषा के मह व को दशाता है। रा य म इस तरह क सम याएँ ह जैसे िक उस रा य म िकसी िवशेष भाषा क
ि थित या रा य क भाषा क ि थित क गणु व ा से सबं िं धत उदाहरण के िलए, ह रयाणा म पजं ाबी को दसू री आिधका रक भाषा
घोिषत करने क माँग क गई है। पंजाबी चाहते ह िक ह रयाणा म पंजाबी भाषा को उिचत थान िदया जाए (यह 1996 म महससू
िकया गया था)। कनाटक म माँग है िक मा क नड़ भाषाको िव ालय म िनदश का मा यम होना चािहए, लेिकन अ य जातीय
समहू ारा इसका िवरोध िकया जा रहा है। ऐसी सम याएँ लगभग सभी रा य म मौजदू ह य िक लोग का अपनी भाषाओ ं के
साथ भावना मक लगाव होता है, ऐसे म जब भी भाषा से सबं ंिधत कोई मु ा आता है तो वे आसानी से भािवत हो जाते ह। भाषाई
िच हमेशा मतदान यवहार को भािवत करती है।
िनर रता– यापक अिश ा क सम या अ ानता का कारण बनती है और िविभ न लोकतांि क थाओ ं और ि याओ ं क
पया समझ को रोकती है। देश भर म कूल और कॉलेज खोलने सिहत कई िवकासा मक कदम के बावजदू अभी भी अिश ा
एक बड़ी सम या है। अनपढ़ आबादी के साथ वय क मतािधकार पर आधा रत लोकतं लोग क उिचत सेवा नह कर सकता है।
ाचार– ाचार म वृि भारतीय राजनीित के नैितक मू य म िगरावट का मु य कारक है। समु ं ा बोस मानती है िक "भारत के
लोकतं म शि क जीत, ि या वयन और िनरंतरता रखने के तरीक के साथ ाचार क सं कृ ित का गहरा संबंध है।"1
(Sumantra Bose:2002). भारतीय चनु ाव म, धन ने एक मह वपणू थान ा कर िलया है। कई उपाय को अपनाने के
बावजूद, चनु ाव आयोग राजनीितक दल को काननू ी खच के भीतर अिभयान पर अपने खच को रखने के िलए मजबरू करने म
असमथ रहा है। चनु ाव के दौरान चनु ाव चार और मतदाताओ ं को लभु ाने के िलए बड़ी रािश खच क जाती है। लेिकन रटन भरते
समय अिधकांश राजनीितक दल आयोग को झठू े रटन देते ह। पिु लस ारा इन अपराध क रोकथाम या जाचं के िलए गभं ीर
यास िकए गए थे, लेिकन इनम से अिधकांश मामल को सफलतापवू क नह सभं ाला जा सका य िक चनु ाव के बाद पिु लस
अिधकारी राजनीितक दल के िनयं ण म आ जाते ह और प रणाम व प वे वतं प से काय नह कर पाते ह।
सा दाियकता–भारत म सा दाियक राजनीित ने िविभ न धम से सबं िं धत अिधकांश लोग को भारी खनू -खराबा और द:ु ख
पहँचाया है। िवभाजन जैसी द:ु खद सम या भी देश के अंतगत सा दाियकता का अतं नह कर सक । जाित, सजातीयता, े और
धम के आधार पर चनु ावी राजनीित को अपनाने से सां दाियक राजनीित का आर भ शु हो गया था। हालाँिक िनवाचन आयोग
ऐसे सभी दल क सद यता को िनर त कर देता है जो िक धम, जाित या सजातीयता के नाम पर अपने दल का िनमाण करते ह।
इसके बावजूद अपने चनु ाव सार के दौरान दल ारा इन अि मताओ ं का प प से योग िकया जाता है। दल को यह यान
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रहना चािहए िक भारत एक पंथ-िनरपे देश है तथा संिवधान का स मान करना सभी दल का क य होना चािहए। राजनीितक
दल को राजनीितक स ा सभं ालने क अपनी मह वाकां ा को परू ा करने के िलए जाित, सां दाियकता और े ीयता के दोहन से
रोकने के िलए स त काननू होने चािहए। लोग क जाित, सां दाियक, धािमक भावनाओ ं का शोषण करने क वृि रा ीय
एकता और अखंडता को भािवत करती है और सां दाियक स ाव को भी।
धन–भारत म चनु ाव िदन ितिदन खच ले होते जा रहे ह। मतदाताओ ं को लुभाने के िलए उ मीदवार चार सार पर यय, गरीबी
मतदाताओ ं को धन का लालच, तथा अ य प से मत एकि त करने के िलए धन का यय करते ह। इस कारण येक चनु ाव
पवू गामी चनु ाव क अपे ा अिधक खच ला होता है। हर चनु ाव पर इ छुक उ मीदवार और काननू ी प से अनमु त सीमा के बीच
के खच के बीच अंतर बढ़ रहा है। राजनीितक दल और उनके उ मीदवार ारा भारी मा ा म अवैध मा यम से धन एकि त िकया
जाता है। हाल के वष म राजनीितक दल के बीच अपने ित ं ी दल क तल ु ना म अिधक खच करने के िलए अनुभवी
ित पधाएँ हई,ं िज ह ने िकसी भी सीमा से परे खच म बढ़ोतरी क है। इसके अलावा, राजनीितक दल पाट फंड और ा दान
और इसके ारा िकए गए खच के िनयिमत खात का रखरखाव नह कर रहे ह। न ही ऐसे खात का िकसी िनयिमत लेखा परी ा
िनकाय ारा ऑिडट नह िकया जाता है। इस कार यय पर कोई उिचत जाँच नह है।
बाहबल–िहसं ा, चनु ाव पवू धमक , बूथ कै च रंग आिद बाहबल क शि के उदाहरण ह। िबहार, पि मी उ र देश, महारा
आिद रा य म चनु ाव के दौरान बाहबल क शि का उपयोग सामा य है। राजनीित का अपराधीकरण और अपरािधय का
राजनीितकरण चनु ाव म बाहबल क शि के कटीकरण के िलए िज मेदार है। राजनीितक दल चनु ाव जीतने के िलए एवं
अिधकतम वोट एक करने के िलए िहसं ा, बल, धमक के मा यम से मतदाताओ ं के मन म भय पैदा करने के यास करते ह।
यह सभी भारत म मतदान यवहार के िनधारक है। भारत क राजनीितक यव था का िनरंतर लोकतांि क राजनीितक यव था के
ित िवकास ही भारतीय मतदाताओ ं का िश ण कर रहा है। समय के साथ-साथ अि मता आध रत राजनीित का थान िवषय
आध रत राजनीित लेती जा रही है। िनवाचन लोकतांि क सरकार म मह वपणू थान रखते ह। इसके मा यम से लोग अपनी इ छा
तुत करते ह तथा समाज म राजनीितक सगं ठन के सचं ालन म अपनी भिू मका िनवाह कर पाते ह। हालाँिक मतदाता का यवहार
कई कारक से भािवत होता है जैसे िक धम, जाित, समदु ाय, भाषा, पैसा, नीित या िवचारधारा, चनु ाव का उ े य, मतािधकार क
सीमा और बैलेट बॉ स क लड़ाई जीतने के िलए राजनीितक दल और समहू इन चार का उपयोग करते ह। इसिलए, यह
आव यक है िक इन िनधारक के उपयोग से बचा जाना चािहए और चनु ाव बहत वतं और िन प तरीके से आयोिजत िकए
जाने चािहए। यह इस बात पर भी िनभर करता है िक यव था लोग को िवचार, अिभ यि और जड़ु ाव क वतं ता क अनमु ित
देती है या नह । चनु ावी णाली क मा उपि थित राजनीितक यव था को लोकतांि क नह बनाती है। चनु ाव म मतदान के
मा यम से लोग क इ छा य क जाती है और इसिलए, चनु ाव म हेरफे र और धांधली जैसे सभी अलोकतांि क और अनिु चत
साधन से बचने क आव यकता है। ऐसी कोई भी ि या नह क जानी चािहए जो िनवाचन के मा यम से तुत लोग क इ छा
का खंडन करती हो।
सारांश
िनवाचन लोग को अपनी पसंद के अनु प नेता चयिनत करने का अवसर दान करता है तथा यह नेता मतदाताओ ं के आधार पर
िनणय िनमाण करते ह। सभी वय क नाग रक को सावभौिमक वय क मतािधकार के तहत वोट देने का अिधकार िदया गया है।
वय क मतािधकार का एक मह वपणू िस ातं एक यि एक वोट का िनयम है। सावभौिमक वय क मतािधकार राजनीितक
समानता सिु नि त करता है और एक स चे लोकतांि क सरकार क थापना करता है। भारत म चनु ाव हर पाँच साल म वय क
मतािधकार के मा यम से होता है।
आम चनु ाव और म याविध चनु ाव अलग-अलग कार के चनु ाव ह। भारतीय चनु ावी णाली क उ लेखनीय िवशेषताएँ इस
कार ह–
1) भारत क चनु ावी णाली वय क मतािधकार पर आधा रत है।
2) यह भौगोिलक ितिनिध व पर आधा रत है।

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3) के वल एक सद य े ीय िनवाचन े होते ह और कोई काया मक या बहिनवाचन े नह होते ह।
4) येक े ीय िनवाचन े एक साधारण बहमत के मत से एक ितिनिध का चनु ाव करता है।
िनवाचन क मह ा–
1. िनवाचन मतदाताओ ं को अपनी पसदं का दल चयिनत करने का एक अवसर दान करता है।
2. यह येक नाग रक को उ रदािय व का बोध िदलाकर उसके यि व को समृ बनाता है।
3. िनवाचन राजनीितक सजगता म वृि म सहायक होते ह।
4. िनवाचन मतदाताओ ं के यवहार को दिशत करते ह।
5. िनवाचन के मा यम से सरकार अपनी वैधता को शांितपणू तरीके से थािपत करती है।
6. िनवाचन वह साधन ह िजनके ारा बहसं यक नाग रक क इ छा अनसु ार सरकार का िनमाण िकया जाता है, इस कारण
लोकतं अ य राजनीितक णाली क तल ु ना म ािं तकारी प रवतन क ओर कम अ सर होती ह।
आधिु नक रा रा य के अंतगत अिधक जनसं या होने के कारण य लोकतं होना आ यावहा रक होता है इसने ितिनिध व
क णाली के मह व को अिधक िकया है। ितिनिध व के िविभ न प ह– 1) एकल सद य िनवाचन े ; 2) आनपु ाितक
ितिनिध व क णाली; 3) एकल ह तांतरणीय वोट; 4) सचू ी णाली; 5) दो मतप णाली मतदान यवहार म राजनीितक
यवहार और लोग क राजनीितक भागीदारी शािमल है। मतदान यवहार के िविभ न सामािजक िनधारक 1) जाित; 2) धम;
3) भाषा; 4) िनर रता; 5) ाचार; 6) सा दाियकता; 7) धन; 8) बाहबल
स दभ
1) M.P. Singh & Rekha Saxena (2003), India at the Polls - Parliamentary Elections in the Federal
Phase, Orient Longman, New Delhi, 2003
2) M.P. Singh & Rekha Saxena (2011) Indian Politics - Constitutional Foundation and
Institutional Functioning, PHI publishers Delhi, 2011
3) Rev. Thomas Davidson, “Chambers Twentieth Century Dictionary”, Published by W. & R.
Chambers Ltd., UK, 1948
4) Subhash C Kashyap “Our Political System”, National Book Trust, India, 2013
5) Panandikar. VA. Pai and Kashyap, Subhash C. (2001). Political Reforms: Asserting Civic
Sovereignty New Delhi: Konark Publishers
6) Paul Brass(1965), “Fractional Politics in Indian State”, University of California, Berkley
7) Myron Weiner, “ Party building in new nation”, University of Chicago, Chicago,1967
8) Sumatra Bose, “Culture Of Corruption: Democracy And Power In India”,Global Policy
2002,www.Globalpolicy.Org
9) Rajiv Dhawan, “Fraud by Ordinance”,The Hindu, September-6,2003,www.thehindu.com
10) Sharatpradhan “Criminal Tags Dogs32: Uttar Pradesh Candidates”, South Asia Monitor,
June22, 2009, www.southasiamonitor.org

20
11) Brass, Paul R. (1983, 85). Caste, Faction and Party in Indian Politics. Vol. 1 Faction and Party
(1983); Vol 2, Election Studies (1985) New Delhi: Chanakya.
12) Brass, Paul R. (1994). Politics in India Since Independence. Cambridge: Cambridge University
Press.
13) Hasan, Zoya (ed.) (2002). Parties and Party Politics in India. New Delhi: Oxford University
Press.
14) Kashyap, Subhash (1997). Coalition Government and Politics in India. New Delhi: Uppal.
15) Prakash. Chandra (1999). Changing Dimensions of the Communal Politics in India, Delhi

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पाठ-2
(क) चनु ाव आयोग : चनु ाव णाली म कृित और काय

एक लोकतांि क राजनीित क सबसे मह वपणू िवशेषताओ ं म से एक है िनयिमत अतं राल पर चनु ाव होना। चनु ाव लोकतं के
मागसचू क का गठन करते ह। ये ऐसे मा यम ह िजनके मा यम से लोग का उनके राजनीितक प रवेश के ित ि कोण, मू य और
िव वास प रलि त होता है। चनु ाव लोग को सरकार दान करते ह और सरकार को यह अिधकार है िक वे चनु ाव करने वाल पर
शासन कर। इस संबंध म, अ याय भारत म चनु ाव आयोग के ऐितहािसक िवकास और थापना का वणन करता है जो वतं और
िन प चनु ाव कराने के अिधकार के साथ िनिहत है। यह संिवधान और इसके ढाँचे और भारत क आजादी के बाद के वष के
दौरान िवकिसत िकए गए काय और इसक सरं चना के आधार पर चनु ाव आयोग के काय और शि य का िव लेषण करे गा।
अ याय भारत जैसे लोकतांि क देश म चनु ावी सधु ार के सफल काया वयन के िलए िविभ न चनु ावी सधु ार और इसके िविभ न
तरीक क पहचान करता है। अ याय म उन िविभ न चनु ौितय पर भी काश डाला गया है जो चनु ाव आयोग को वतं और
िन प चनु ाव कराने के िलए सामना करना पड़ा है।
मु य श द – राजनीित का अपराधीकरण, मतदाता सचू ी, िनवाचन े का प रसीमन, चनु ावी सधु ार, एक रा एक चनु ाव।
प रचय
भारत को दिु नया का सबसे बड़ा लोकतं होने का गौरव ा है। चनु ाव एक ऐसा उपकरण है जो एक आधिु नक रा य अपने
नाग रक के बीच सावजिनक मामल म भागीदारी और भागीदारी क भावना पैदा करता है। यह लोकि य चुनाव के मा यम से है
िक सरकार के अिधकार को चुनाव के साथ वैधता िमलती है। इसिलए, एक अ छी चनु ावी णाली है, इसिलए, वा तव म यह
ितिनिध सरकार का मलू िस ातं है। जबिक राजनीित, राजनीितक शि से िनपटने क कला और अ यास है, चनु ाव इस तरह क
शि को वैध बनाने क एक ि या है। लोकतं वा तव म के वल इस िव वास पर काय कर सकता है िक चनु ाव वतं और
िन प ह और धांधली और हेरफे र न कर, िक वे लोकि य बनाने के भावी साधन ह जो वा तव म और प म दोन ही ह गे
और ये के वल परंपरा नह ह और गणना1 क जाती है इसम परंपरा क गणना नह होती। के वल अगर चनु ावी शासन, लोकतं क
मलू न व, देश म चिलत कु थाओ ं क पहँच से परे रखी जाए तो चनु ाव क शु ता और वतं ता सिु नि त क जा सकती है।2
भारत के चनु ाव आयोग को “एक जीवतं ितिनिध लोकतं के अतं का साधन” और “भारत म वतं और िन प चनु ाव के प
म जाना जाता है।3” चनु ाव आयोग जैसी सं थाएँ िनवािचत जनादेश के मा यम से गैर-िनवािचत होती ह या गिठत नह क जाती ह,
लेिकन मतदाताओ ं म उन लोग क तल ु ना म अिधक आ मिव वास होता है, िजनके गठन म मतदाता चनु ावी पसदं का आनदं लेते
ह (जहाँ लोग वा तव म मतदाता होते ह) संसद क तरह िवधाियकाएँ भी इसम शािमल है।4 भारत के चनु ाव आयोग को अ सर
एक सं था के प म देखा जाता है जो एक सवं ैधािनक िनकाय दान करने के घटक म िवधानसभा क िशिथलता को दशाती है जो
चनु ाव के सचं ालन पर एक िनरी ण काय करके लोकतं के भीतर आ म-िवनाशकारी वृि य के िखलाफ र ा करेगी।5
चुनाव आयोग : उ पि
ससं दीय और चनु ावी लोकतं का िवचार औपिनवेिशक भारत म क पना करते समय एक मह वपणू योजना थी। हालाँिक, इसे देश
म रा ीय वतं ता आदं ोलन के दौरान जीिवका और मह व ा हआ। वतं ता के बाद, भारतीय सिं वधान के वा तक ु ार ने
चनु ाव के सचं ालन के िलए वतं चनु ावी मशीनरी को सबसे अिधक मह व िदया। यह िविभ न सिमितय क रपोट और
संिवधान सभा म इस मामले पर चचा से प है।
संिवधान सभा क मौिलक अिधकार उप-सिमित ने सवस मित से वीकार िकया िक चनु ाव क वतं ता और िवधायी चनु ाव म
कायपािलका ारा ह त पे से बचने को मौिलक अिधकार माना जाना चािहए।6 सिमित ने हल िकया–

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(1) सावभौिमक वय क मतािधकार को संिवधान ारा दान िकया जाना चािहए।
(2) चनु ाव वतं , गु और आविधक होना चािहए, तथा
(3) चनु ाव का बंधन संघीय काननू के तहत गिठत एक वतं आयोग ारा िकया जाना चािहए
प रणाम व प, इसने मौिलक अिधकार क सचू ी म िन निलिखत खंड को शािमल करने क िसफा रश क ।7 िनवाचन
यायािधकरण क िनयिु सिहत संघ या रा य के िवधानमंडल के सभी चुनाव का अधी ण, िनदशन, और िनयं ण, संघ या
इकाई के िलए िनवाचन आयोग म िनिहत होगा य िक संघ के काननू के अनसु ार मामले सभी म िनयु िकया जा सकता है।
सलाहकार सिमित ने इस खंड क साम ी के साथ सै ांितक प से सहमित य क , लेिकन यह महससू िकया िक “मौिलक
अिधकार क सचू ी म शािमल होने के बजाय, इसे संिवधान के िकसी अ य िह से म जगह िमलनी चािहए”8 संघ संिवधान सिमित
ने सलाहकार के सझु ाव को वीकार कर िलया। सिमित और इसके ारा तैयार संिवधान योजना म चुनाव क मशीनरी के बारे म
इस खंड को शािमल िकया।9
जब इस िवषय पर संिवधान सभा ने खंड के तावक से िवचार िकया, तो मसौदा सिमित के सद य गोपाल वामी अयंगार ने
पाट कर (बॉ बे) चनु ाव आयोग को स पते हए एच.वी. के संशोधन को वीकार कर िलया। के वल संघीय चनु ाव के काय के साथ
और रा यपाल पर एक अलग मशीनरी के मा यम से इकाइय के िवधानसभाओ ं के चनु ाव के बधं न और सचं ालन के िलए
िज मेदारी के साथ इस कार मसौदा संिवधान के अनु छे द 289 के मा यम से मसौदा सिमित ांतीय चुनाव के सघं ीय के सचं ालन
के िलए अलग आयोग के िलए दान क गई।10 संिवधान सभा म अनु छे द पर िफर से शु चचा म ा प सिमित के अ य
बी.आर. अ बेडकर ने िन निलिखत अनु छे द के साथ ा ट संिवधान के अनु छे द 289 को ित थािपत करते हए एक सश ं ोधन
िकया।
इस सिं वधान के तहत िनवािचत होने के िलए िनवाचक नामाविलय का िनदशन और िनयं ण, ससं द के िलए और येक रा य के
िवधानमंडल और रा पित और उपरा पित के कायालय के चनु ाव का सचं ालन, चनु ाव क िनयिु सिहत संसद और रा य के
िवधानसभाओ ं के चनु ाव के सबं ंध म या उससे उ प न होने वाले सदं हे और िववाद के िनणय के िलए यायािधकरण भारत के एक
आयोग के सिं वधान म िनिहत ह गे।
“नए अनु छे द” म उ ह ने “एक िनवाचन आयोग के हाथ म िनवाचन मशीनरी को क ीकृ त करने का ताव िकया, जो िक चनु ाव
आयोग क देखरे ख, िनदशन और िनयं ण म कायरत े ीय आयु ारा सहायता दान करने के िलए” और रा यपाल रा य के
िनयं ण म नह है।11
उ ह ने समझाया, िनवाचन शासन का क ीयकरण “ ांतीय सरकार ारा लोग के साथ िकए जा रहे अ याय को रोकने के िलए
िकया गया था, यह न लीय, भाषाई और सां कृ ितक प से ांत से सबं ंिधत लोग के अलावा था।” अ बेडकर ने कहा।
मौिलक अिधकार सिमित इस नतीजे पर पहँची िक अ पसं यक के बारे म या चनु ाव से सबं िं धत कोई गारंटी नह दी जा सकती
है यिद चनु ाव िदन क कायका रणी के हाथ म छोड़ िदए गए ह । कई लोग ने महससू िकया िक यिद कायकारी अिधकारी के
त वावधान म चनु ाव हए और यिद कायकारी ािधकरण के पास स ा है, तो उसके पास एक िवशेष उ मीदवार के िलए समथन
ा करने क व तु के साथ अिधका रय को एक े से दसू रे े म थानांत रत करना होगा। कायालय म या िदन के समय पाट
के साथ एक पसदं ीदा, जो िनि त प से उन सभी के िलए वतं चनु ाव होगा जो हम चाहते थे। इसिलए यह सवस मित से
मौिलक अिधकार सिमित के सद य ारा हल िकया गया था िक चनु ाव क शु ता के िलए सबसे बड़ी सरु ा, चनु ाव म िन प ता
के िलए, कायकारी ािधकरण के हाथ से इस मामले को दरू करना और इसे कुछ वतं ािधकरण को स पना था।12
पाट कर सिहत संिवधान सभा के एक वग ने मलू धारा 289 के ितधारण के िलए जोरदार अपील क ।13 पाट कर ने महससू िकया
िक संशोिधत खंड ांत म लोग के ित अिव वास दिशत करता है, रा यपाल ारा रा पित से सबसे छोटे थानीय ािधकारी
के िलए नािमत िकया जाता है और चनु ाव के बंधन के अिधकार से वंिचत करने के िलए ांत से दरू हो जाएगा। यह “ ातं ीय

23
वाय ता के अिं तम अवशेष” को छीन लेगा। ऐसा ही िवचार असम के कुलधर चालीहा ने य िकया। अनु छे द 289 का
संशोिधत सं करण, हालाँिक, िवप ी िवरोध के बावजूद िकया गया था।
चनु ाव से सबं िं धत सिं वधान के ासिं गक ावधान को पढ़ने से पता चलता है िक इस तरह के चनु ाव ािधकरण और रा य
िवधानसभाओ ं के िलए वतं ि थित सिु नि त करने के िलए सिं वधान के िनमाताओ ं ने ससं द और रा य िवधानसभाओ ं को
िविभ न चनु ावी मामल के संबंध म काननू बनाने क शि दान क है। अनु छे द 327 और 328 ‘इस संिवधान के ावधान के
अधीन’, िजसम सिं वधान के अनु छे द 324 के ावधान भी शािमल ह।14
एक वतं चनु ाव आयोग बड़े पैमाने पर अंतर का म पैदा करने के िलए सभी तर पर लोग के ितिनिधय के िन प और
वतं चनु ाव सिु नि त करे गा। वतं ता के बाद भारत म चनु ाव का संचालन चनु ाव आयोग क िज मेदारी बन गया। यह 1950 म
था िक भारत के चनु ाव आयोग को एक संवैधािनक िनकाय के प म थािपत िकया गया था और इसे सभी रा ीय और रा य-
तरीय चनु ाव के अधी ण, िनदशन और िनयं ण का काय स पा गया था। अनु छे द 324, डॉ. अ बेडकर ने तक िदया, “चनु ाव
आयोग को एक एकल आयोग के हाथ म क ीकृ त करने का ताव, े ीय आयु ारा सहायता दान करना, चनु ाव आयोग
क देखरे ख, िदशा और िनयं ण म काम करना, न िक िनयं ण के तहत रा य के रा यपाल के प म पहले क प रक पना क गई
थी।15
रचना, कायकाल और सेवा क शत
चनु ाव आयोग क संरचना के बारे म, मसौदा सिमित के सम दो अलग-अलग ताव थे। (क) या तो चार या पाँच सद य का
थायी िनकाय होना चािहए या (ख) िशखर चनु ावी गितिविध के समय गिठत तदथ िनकाय। मसौदा सिमित ने एक म यम
पाठ्य म (संिवधान सभा वाद 1949 905) को आगे बढ़ाया। इसने मु य प से मु य िनवाचन आयु के पद पर एक यि को
िनयु करने का फै सला िकया, िजसने उपचनु ाव के आयोजन और सचं ालन के िलए थायी नािभक का गठन िकया और
समयपवू िवघटन के मामले म िवधानसभाओ ं के िलए आम चुनाव क यव था क और िनवाचक नामावली तैयार करने क
यव था क । सभं ािवत आम चनु ाव। मु य चनु ाव आयु क सरं चना को बड़े सु ढ़ीकरण ारा सवं िधत िकया जाना था, िजसे
े ीय आयु क िनयिु सिहत सघं और रा य के िवधानसभाओ ं के आम चनु ाव के समय अ य काय से चनु ावी कत य के
िलए अपनाया जा सकता था।
सवं ैधािनक ावधान
भारत का सिं वधान, भारत का चनु ाव आयोग को एक थायी और वतं िनकाय, दान करता है, और इसम सभी रा य के संसद
और येक रा य के िवधानमडं ल के चनु ाव के िलए मतदाता सचू ी तैयार करने का िनदश, िनयं ण िनिहत है। रा पित और उप-
रा पित के कायालय के चनु ाव (अनु छे द 324) भी इसम शािमल है।
चनु ाव आयोग म मु य चनु ाव आयु और इतनी सं या म चनु ाव आयु होते ह, यिद कोई हो, तो रा पित समय-समय पर तय
कर सकते ह। मु य चनु ाव आयु भारत के चनु ाव आयोग के पदानु म के शीष पर खड़ा है। इन सभी आयु को रा पित ारा
िकसी भी काननू के ावधान के अधीन िनयु िकया जाता है अनु छे द 324 (2)।
इस सिं वधान के तहत िनवािचत होने के िलए िनवाचक नामाविलय का िनदशन और िनयं ण, ससं द के िलए और येक रा य के
िवधानमडं ल और रा पित और उपरा पित के कायालय के चनु ाव का सचं ालन, चनु ाव क िनयिु सिहत ससं द और रा य के
िवधानसभाओ ं के चनु ाव के सबं धं म या उससे उ प न होने वाले सदं ेह और िववाद के िनणय के िलए यायािधकरण को एक
आयोग म िनिहत िकया जाएगा।
आयोग म रा पित ारा िनयु िकए जाने वाले एक या एक से अिधक सद य हो सकते ह, अथात् कायकारी। मु य चनु ाव
आयु को ि थित से हटाने के तरीके म संवैधािनक सरं ण ा है, िजसके िलए ससं दीय महािभयोग क आव यकता है
‘अनु छे द 324(5)। चनु ाव को सचं ािलत करने के िलए आयोग के अलावा, संिवधान या काननू िकसी अ य थायी ढाँचे के िलए

24
ावधान नह करता है। रा य और िजला तर पर शासिनक अिधका रय को चनु ाव देखने के िलए अित र भार स पा जाता
है। उनम से कुछ आम चनु ाव क अविध के दौरान चुनाव आयोग म अ थायी प से ितिनयु ह।16
जब कोई अ य चनु ाव आयु िनयु िकया जाता है तो मु य चनु ाव आयु चनु ाव आयोग के अ य के प म काय करे गा।
येक रा य के िवधान सभा के िलए आम लोग के िलए और येक रा य के िवधान प रषद के िलए येक आम चनु ाव से
पहले और उसके बाद होने वाले पहले आम चनु ाव से पहले और उसके बाद रा पित, रा पित भी परामश के साथ िनयिु कर
सकते ह चनु ाव आयोग ऐसे े ीय आयु के प म वह लॉज (1) ारा आयोग को दान िकए गए काय के दशन म चनु ाव
आयोग क सहायता करने के िलए आव यक समझ सकता है।17
संसद ारा बनाए गए िकसी भी काननू के ावधान के अधीन, चनु ाव आयु और े ीय आयु क सेवा और कायकाल क
शत ऐसी ह गी जैसे रा पित शासन ारा िनधा रत हो सकते ह।
चनु ाव आयोग को िवधाियका या कायपािलका के िकसी भय के िबना वतं और िन प प से काय करने म स म करने के
िलए िनि त कायकाल का आनंद लेना चािहए। सिं वधान के वा तुकार ने इस ल य को सरु ि त करने के िलए जानबूझकर सरु ा
दान क । भारत का सिं वधान प प से यह कहता है िक मु य चुनाव आयु को अपने कायालय से ’सव च यायालय के
यायाधीश के प म’ और इस तरह के आधार पर हटाया जा सकता है, दसू रे श द म, मु य चनु ाव आयु को उनके कायालय
से हटाया जा सकता है। रा पित का आदेश ’उस सदन क कुल सद यता के बहमत से संसद के येक सदन ारा एक संबोधन के
बाद और उस सदन के दो-ितहाई से कम सद य के बहमत ारा उपि थत और मतदान तुत िकया गया है।’ िस दु यवहार या
अ मता के आधार पर इस तरह के िन कासन के िलए उसी स म अ य हो सकती है।18
हालाँिक, “दु यवहार” और “ मता” श द सिं वधान म अप रभािषत रह गए ह। ये श द अमे रक सिं वधान से उधार िलए गए ह,
जहाँ दो श द क या या करने का अिं तम अिधकार कां ेस के पास है। भारत म भी दु यवहार या अ मता का गठन ससं द ारा
तय क गई ि या के अनसु ार िकया जाना है।19
सव च यायालय या उ च यायालय के यायाधीश क तरह मु य चनु ाव आयु को हटाने क िविध, िन संदेह, जिटल और
किठन है, लेिकन उनका कायकाल यायाधीश से िभ न है।20
सव च यायालय के एक यायाधीश क िनि त आय,ु यानी पसठ वष पणू होने तक पद होता है, जबिक मु य चनु ाव आयु का
कायकाल वैधािनक िनयम के तहत रा पित ारा िनधा रत िनयम पर िनभर करता है। उ ह िकसी भी समय के िलए िनयु िकया
जा सकता है। उनका कायकाल बढ़ाया भी जा सकता है। यह वा तव म दो पूव मु य चनु ाव आयु , सकु ु मार सेन और के .वी.के .
संदु रम, दोन ने आठ साल (लगभग) के िलए पद संभाला, हालाँिक शु म दोन को के वल पाँच साल क अविध के िलए िनयु
िकया गया था।21
मु य चनु ाव आयु क िसफा रश को छोड़कर िकसी भी अ य चनु ाव आयु या एक े ीय आयु को पद से नह हटाया
जाएगा। मु य चनु ाव आयु और अ य चनु ाव आयु को हटाने क िविध म यह अतं र बाद क िनयिु क अ थायी कृ ित
ारा आव यक था।22 इस ावधान के ारा, अ य चनु ाव आयु और े ीय आयु क ि थित को एक अधीन थ तर पर भी
रखा गया था, न क मु य चनु ाव आयु के प म समान या सम वय के आधार पर।
मु य चनु ाव आयु और अ य चनु ाव आयु क सेवा क वेतन और अ य शत रा पित ारा वैधािनक िनयम के अधीन
िनधा रत क जानी ह और संवैधािनक गारंटी है िक “उनक िनयिु के बाद मु य चुनाव आयु क सेवा क शत उनके नक
ु सान
23
के िलए िभ न नह ह गी”।
इस सरु ा को छोड़कर, संिवधान म इस संबंध म कोई ावधान नह िकया गया है और न ही संसद ने अभी तक िकसी भी काननू
को िविनयिमत िकया है। यह इस सबं ंध म मु य चुनाव आयु का पद दो मह वपणू मामल म सव च यायालय के यायाधीश
से अलग है। (क) सव च यायालय के यायाधीश के कायालय का वेतन और भ ा सिं वधान ारा िनधा रत िकया गया है
जबिक मु य चनु ाव आयु को रा पित ारा िनधा रत िकया गया है, और (ख) सव च यायालय के यायाधीश के वेतन और

25
भ े भारत के समेिकत कोष पर आरोिपत करने के िलए अिधकृ त ह, जबिक मु य चुनाव आयु ऐसा नह ह यह अिधकार िदया
गया।24
नतीजतन, मु य चनु ाव आयु क सेवा का वेतन और अ य शत रा पित ारा येक मामले म अलग-अलग िनधा रत क जाती
ह–
चुनाव आयोग के काय और शि याँ
भारत िनवाचन आयोग को संिवधान के तहत स पे गए िविवध कत य का पालन करना है जो इस कार ह–
िनवाचन े का सीमांकन
चनु ाव क ि या को सिु वधाजनक बनाने के िलए एक देश को कई िनवाचन े म िवभािजत िकया जाना है। िनवाचन े के
प रसीमन का काय आमतौर पर प रसीमन आयोग ारा िकया जाता है। लेिकन 1951 म पहले आम चनु ाव के िलए ससं दीय और
िवधानसभा े का प रसीमन करने क शि रा पित को दान क गई। रा पित के प रसीमन आदेश को चनु ाव आयोग क
सलाह पर जारी िकया जाना था, िजसम ससं द के अ य और संबिं धत िवधान सभा के अ य ारा िनधा रत संसदीय सलाहकार
सिमितय से परामश िकया गया था िजससे प रसीमन ताव ा हए। भारतीय संिवधान प रसीमन के िलए कुछ आधार देता है,
लेिकन संसद को िनणय लेने के िलए वा तिवक यावहा रक िववरण को छोड़ देता है।25
िनवाचन भूिमका
िनवाचन आयोग का दसू रा मह वपणू लेिकन थकाऊ काय यो य मतदाताओ ं क सचू ी तैयार करना है। िन निलिखत आँकड़ा
चनु ाव आयोग ारा तैयार िकए गए मतदाता सचू ी के आँकड़ को दिशत करता है।
NON RESIDENT SERVICE ELECTOR,
S. Name of State / UT GENERAL ELECTOR, 2017 INDIANS, 2017 2017

No. Third Third


Grand
Total

Men Women Gender TOTAL Men Women Gender Total Men Women Total

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14

ANDHRA
1 PRADESH 17162603 17409676 3146 34575425 11 4 0 15 42267 11053 53320 34628760

ARUNACHAL
2 PRADESH 383804 389054 0 772858 0 0 0 0 2095 678 2773 775631

3 ASSAM 10627005 10004509 377 20631891 0 0 0 0 38001 9809 47810 20679701

4 BIHAR 36346421 32070788 2119 68419328 9 1 0 10 70737 33947 104684 68524022

5 CHHATTISGARH 9112766 8958481 721 18071968 1 1 0 2 7791 2056 9847 18081817

6 GOA 545531 562930 0 1108461 24 11 0 35 271 549 820 1109316

7 GUJARAT 22265012 20325250 553 42590815 8 6 0 14 28605 7042 35647 42626476

8 HARYANA 9027549 7792344 0 16819893 14 2 0 16 73032 33221 106253 16926162

HIMACHAL
9 PRADESH 2458878 2352868 6 4811752 2 2 0 4 67459 18785 86244 4898000

JAMMU &
10 KASHMIR 3904982 3548312 45 7453339 0 0 0 0 52836 14243 67079 7520418

11 JHARKHAND 11256003 10202201 123 21458327 3 0 0 3 3546 1319 4865 21463195

26
12 KARNATAKA 24837243 24045264 4404 48886911 0 0 0 0 37044 12101 49145 48936056

13 KERALA 12202869 13085516 6 25288391 21874 1682 0 23556 63883 25865 89748 25401695

MADHYA
14 PRADESH 26195768 23772022 1135 49968925 2 3 0 5 26482 9055 35537 50004467

15 MAHARASHTHRA 43940543 39542999 1645 83485187 19 12 0 31 101628 40791 142419 83627637

16 MANIPUR 925431 968312 0 1893743 0 0 0 0 8907 3074 11981 1905724

17 MEGHALAYA 850667 868802 0 1719469 0 1 0 1 1432 600 2032 1721502

18 MIZORAM 362181 377795 0 739976 0 0 0 0 4869 1062 5931 745907

19 NAGALAND 577793 560422 0 1138215 0 0 0 0 7223 1900 9123 1147338

20 ODISHA 15946303 14890584 2146 30839033 0 0 0 0 34280 15237 49517 30888550

21 PUNJAB 10502868 9375422 415 19878705 240 124 0 364 115924 34623 150547 20029616

22 RAJASTHAN 23117744 20855740 45 43973529 5 1 0 6 88988 35567 124555 44098090

23 SIKKIM 200220 188836 0 389056 1 0 0 1 1146 92 1238 390295

24 TAMIL NADU * 29344124 29910531 5038 59259693 35 13 0 48 44916 13513 58429 59318170

25 TELANGANA # 14472054 13840715 2351 28315120 3 1 0 4 10030 2039 12069 28327193

26 TRIPURA 1275694 1230212 0 2505906 0 0 0 0 3646 1350 4996 2510902

27 UTTARAKHAND 3923492 3572029 151 7495672 0 0 0 0 66552 30772 97324 7592996

28 UTTAR PRADESH 76809778 64436122 7272 141253172 1 0 0 1 108701 40173 148874 141402047

29 WEST BENGAL 34592448 32443796 1017 67037261 11 10 0 21 113342 39586 152928 67190210

30 A & N ISLANDS 146524 131464 0 277988 0 0 0 0 104 46 150 278138

31 CHANDIGARH 305892 266194 13 572099 7 4 0 11 1790 1205 2995 575105

32 DAMAN & DIU 58698 57861 0 116559 8 17 0 25 5 3 8 116592

33 D & N HAVELI 122184 105399 0 227583 0 0 0 0 12 8 20 227603

34 NCT OF DELHI 7463731 6005703 829 13470263 27 10 0 37 3845 1826 5671 13475971

35 LAKSHADWEEP 25372 24904 0 50276 0 0 0 0 145 0 145 50421

36 PUDUCHERRY 446353 494860 80 941293 122 15 0 137 295 58 353 941783

TOTAL 451736528 414667917 33637 866438082 22427 1920 0 24347 1231829 443248 1675077 868137506

77**99Figure-1
Source: Election Commission of India http://eci.nic.in/eci_main/eroll_epic/ERDATA2017.pdf

राजनीितक दल का पज
ं ीकरण और तीक का आवटं न
पाट णाली संसदीय लोकतं क एक अिनवाय िवशेषता है। हालाँिक, भारत के संिवधान म राजनीितक दल के िलए कोई
य संदभ नह है। जन ितिनिध व अिधिनयम 1951 क धारा 29ए म आवेदन पर राजनीितक दल के चनु ाव आयोग के साथ
पजं ीकरण का ावधान है। पजं ीकरण के िलए आवेदन म पाट के पदािधका रय के नाम, पाट क सद यता क सं या, ापन या
िनयम और िविनयम (या सिं वधान) के बीच अतं र शािमल करना होता है। आयोग को ऐसे कॉल करने के िलए अिधकृ त िकया
गया है िजसे ऐसे अ य िववरण के िलए कॉल करने के िलए अिधकृ त िकया गया है, य िक यह िफट हो सकता है।26
आयोग एक पाट को पंजीकृ त करता है, िजसके सद य के प म कम से कम 100 पंजीकृ त इले टर ह और शासन खच को
कवर करने के िलए 10,000 पये का मामल ू ी सं करण शु क भी ले रहा है, जो उ ह अपने पंजीकरण के बाद पािटय के साथ
27
प ाचार पर लेना होगा। यह सिु नि त करने के िलए िक पंजीकृ त राजनीितक दल अपने आतं रक कामकाज म लोकतं का
अ यास करते ह, आयोग को उ ह अपने गठन के अनसु ार िनयिमत प से संगठना मक चनु ाव कराने क आव यकता होती है।
चनु ाव आयोग ारा राजनीितक दल के पंजीकरण को कारगर बनाने के िलए िकए गए उपाय के भावी प रणाम सामने आए ह।
इनसे शासिनक मशीनरी के िसरदद के साथ-साथ मतदाताओ ं क उलझन भी कम हई है।27
पंजीकरण के मामले म आयोग का िनणय अिं तम होगा। समान अिधिनयम क धारा 170 के तहत, िकसी भी िनणय क वैधता पर
सवाल उठाने के िलए िसिवल अदालत का अिधकार े विजत है। चनु ाव िनयम 1961 का आचरण, जन ितिनिध व
अिधिनयम 1951 के तहत जारी िकया गया, चनु ाव आयोग को िनयम 5 के तहत तीक को िनिद करने और िनिद करने के
िलए दान करता है। झारखंड चनु ाव िच (आर ण और आवंटन) आदेश 1968, चनु ाव ारा सश ं ोिधत के प म। सिं वधान के
28
अनु छे द 324 के तहत शि य के योग म आयोग।
मु य चनु ाव आयु पूरी तरह से अपने अिधकार के भीतर है िक वे राजनीितक और राजनीितक दल को अनश ु ािसत करने क
कोिशश करने के िलए बहत ज री पहल कर, इससे पहले िक वे पजं ीकृ त और मा यता ा दल के प म चनु ाव क लोकतांि क
ि या म भाग लेने क अनमु ित दे सक। चनु ाव आयोग के पास िकसी पाट को मा यता देने और अपमािनत करने क शि भी है।
मु य चनु ाव आयु टी.एन. शेषन ने घोषणा क िक कोई भी पाट जो अपने घोिषत सवं ैधािनक ढाँचे और थाओ ं क पिु नह
करती है, को समा कर िदया जाएगा।29

िच -2 : राजनीितक दल ने तीन लोकसभा चनु ाव म पजं ीकरण और भाग िलया।


ोत : भारत का चनु ाव आयोग :
http://eci.nic.in/eci_main1/current/Electoral_Statistics_Pocket_Book2016_06102016.pdf
नामांकन प क जाँच
चनु ाव आयोग का एक अ य काय उ मीदवार के नामांकन प क जाँच करना है।
ये कागजात वीकार िकए जाते ह अगर ऑडर म पाए जाते ह लेिकन अ यथा अ वीकार कर िदए जाते ह।
यह कत य रटिनग अिधकारी ारा िकया जाता है, िज ह ने सभी उ मीदवार को नामांकन प क औपचा रक जाँच के िलए
ितिथ, समय और थान क सचू ना दी।
द कंड ट ऑफ द पोल
एक और शानदार काम जो चनु ाव आयोग को करना है वह परू े भारत म मतदान का सचं ालन करना है। एक संसदीय या िवधानसभा
े म, चनु ाव अिधकारी चनु ाव आयोग क पवू वीकृ ित के साथ मतदान आयोिजत करने के िलए उपयु यव था करना है।
आयोग प रि थितय क मजबरू ी के तहत परू े िनवाचन े के िलए िफर से मतदान का आदेश दे सकता है। अनु छे द 324 चनु ाव
आयोग पर आव यक अिधकार देता है िक चनु ाव को कराने के िलए स ा सिहत चनु ाव े म मतदान का समथन कर य िक
गंडु ागद और मतगणना के समय काननू और यव था के टूटने के कारण एक ताजा मतदान होता है।
28
चुनाव िव पोषण
भारतीय िनवाचन काननू , लोक ितिनिध व अिधिनयम, 1951 क धारा 77 के तहत, सभी उ मीदवार को चनु ाव के सबं ंध म
िकए गए सभी खच के सही खाते का खल ु ासा करना चािहए और वे िदन के बीच खात को जमा करने के िलए बा य ह िजसे वे
चनु ाव के िलए और प रणाम क घोषणा के िदन के िलए नामांिकत िकया गया है। इसके अलावा, अिधिनयम, 1951 क धारा 77
(6) के तहत िनधा रत समय-सीमा के भीतर चनु ावी खच का लेखा-जोखा तुत करने म िवफलता के कारण ससं द या रा य
िवधानमडं ल के िलए सद यता क अयो यता हो सकती है, जो भारत के रा पित ारा माँग क जाती है। चनु ाव आयोग क राय म
चनु ाव आयोग को यह अिधकार है िक वह िकसी उ मीदवार को अयो य घोिषत कर सकता है यिद वह सतं ु है िक वह िनधा रत
समय सीमा के भीतर और अिधिनयम ारा अपेि त तरीके से िकए गए खच का लेखा-जोखा ततु करने म िवफल रहा है।
िस कंवरलाल गु ा बनाम अमरनाथ चावला (1975 (3) एससीसी 646) मामले म सु ीम कोट ने िवचार य िकया िक
िकसी राजनीितक दल ारा िकए गए खच को उ मीदवार के चनु ाव खच म शािमल िकया जाना चािहए।
एक अ य मामले म कॉमन कॉज, कोट ने माना िक चनु ाव क अखडं ता लोकतांि क सरकार के िलए मौिलक थी और चुनाव
आयोग उ मीदवार को उनके ारा और एक राजनीितक पाट ारा िकए गए खच के बारे म पछू सकता है। तदनसु ार, यायालय ने
कहा िक चुनाव ि या पर िनवाचन आयोग क शि य म राजनीितक पाट के उ मीदवार या िकसी यि के िनकाय के िकसी
अ य संघ ारा या चनु ाव के दौरान िकसी यि ारा िकए गए सभी खच क जाँच शािमल है।30
आदश आचार सिं हता
राजनैितक दल ारा सारण या सारण के िलए रा य के वािम व वाले इले ॉिनक मीिडया के उपयोग के प म चनु ाव आयोग
ने हाल के िदन म कई पहल क है : जाँच करना, राजनीित का अपराधीकरण, चनु ावी पहचान कार के साथ दान करना,
राजनीितक दल के पंजीकरण क ि या को सु यवि थत करना और उनक आव यकता िनयिमत संगठना मक चनु ाव कराने के
िलए, चनु ाव के दौरान ितयोिगय को एक तरीय खेल मैदान दान करने के िलए आदश आचार संिहता के कड़ाई से अनपु ालन
के इसी तरह के िविभ न कार के उपाय िदए गये ह।31
भारत िनवाचन आयोग को वतं और िन प चनु ाव का सरं क माना जाता है। हर चनु ाव म, चनु ाव आयोग वतं और िन प
तरीके से चनु ाव कराने के िलए राजनीितक दल और उ मीदवार के िलए एक आदश आचार संिहता जारी करता है। 1971 म
आयोिजत पाँचव आम चुनाव के समय आयोग ने अपना पहला कोड प रचािलत िकया। तब से, इस संिहता को समय-समय पर
संशोिधत िकया गया।
चनु ाव आचार सिं हता इस िदशा-िनदश देती है िक चनु ाव के दौरान राजनीितक दल और उ मीदवार को खदु को कै से सचं ािलत
करना चािहए। सिं हता के तहत एक ावधान िकया गया था िक जब से आयोग ारा चनु ाव क घोषणा क जाती है, तब तक मं ी
और अ य अिधकारी िकसी भी िव ीय अनदु ान क घोषणा नह कर सकते ह, िकसी भी कार क योजनाओ ं क आधारिशला
रख सकते ह, सड़क के िनमाण का वादा कर सकते ह, कोई भी काय कर सकते ह सरकार और सावजिनक उप म म िनयिु याँ
जो मतदाताओ ं को स ा प के प म भािवत करने का भाव डाल सकती ह। राजनीितक दल ारा आचार सिं हता को
वीकार िकए जाने के बावजदू इसके उ लघं न के मामले बढ़ रहे ह। यह एक सामा य िशकायत है िक चनु ाव के समय स ा म रहने
वाली पाट अपने उ मीदवार क चनु ावी सभं ावनाओ ं को आगे बढ़ाने के िलए आिधका रक मशीनरी का दु पयोग करती है।
आिधका रक मशीनरी का दु पयोग अलग-अलग प लेता है, जैसे िक सरकारी खजाने क क मत पर िव ापन का मु ा, चनु ाव
के दौरान आिधका रक जन मीिडया का दु पयोग, राजनीितक समाचार के आिं शक कवरे ज और उनक उपलि धय के बारे म
चार के िलए, िवमान से सरकारी प रवहन का दु पयोग इ यािद। हेलीकॉ टर, वाहन। चनु ाव लड़ने वाले दल और उ मीदवार के
िलए एक आदश आचार संिहता फरवरी 1960 के िवधानसभा चनु ाव से पहले के रल म इ तेमाल क गई थी और 1968 म रा य
िवधानसभा चनु ाव क पवू सं या पर रा ीय तर पर सा रत क गई थी। गो वामी सिमित क रपोट ने इसे 1990 के जन सश ं ोधन
िवधेयक म शािमल करके इसे िवधायी आधार देने क कोिशश क , हालाँिक, िबल ढह गया। त कालीन मु य चनु ाव आयु

29
टी.एन. शेषन ने चनु ावी कदाचार के िखलाफ अपने धमयु म हिथयार के प म आचरण के मॉडल का उपयोग चनु ाव के थिगत
होने और प रणाम को र करने के खतरे से िकया।32
2002 के पजं ाब िवधानसभा चनु ाव के दौरान, कां ेस ने मु यमं ी काश िसहं बादल और उनके बेटे के िखलाफ एक आ ामक
िव ापन अिभयान शु िकया था, िजसम उन पर ाचार और पजं ाब के िहत को रोकने का आरोप लगाया गया था। अकाली
दल ने कां ेस नेताओ ं के िखलाफ समान प से आ ामक िव ापन के अपने सेट के साथ वापसी क ।33
इसी तरह, चनु ाव आयोग ने 2007 के गजु रात िवधानसभा चनु ाव म चनु ाव चार के दौरान िववादा पद िट पणी करके आदश
आचार संिहता के उ लंघन के िलए नर मोदी और सोिनया गांधी को भी िज मेदार ठहराया। चनु ाव आयोग ने दोन नेताओ ं ारा
इसके उ लंघन पर कड़ी नाराजगी य क और उ मीद क िक भिव य म दोन सिं हता के ावधान का पालन करगे।
उ मीदवार ारा याशाओ ं का खुलासा
पीपु स र ेजटेशन अमडमट ए ट 2002 ने एक आदेश जारी िकया िक येक उ मीदवार को अपने आपरािधक पवू ज क
जानकारी के बारे म एक हलफनामा तुत करना होगा। यिद वह िकसी लंिबत मामले म दो वष या उससे अिधक के कारावास के
साथ िकसी दडं नीय अपराध का आरोपी है, िजसम स म यायालय क अदालत ारा एक आरोप लगाया गया है या एक वष या
अिधक से अिधक कारावास क सजा सनु ाई जाती है, तो यह संपि (दोन ) वयं और उन पि नय और आि त के चल और
अचल) और लोकसभा, रा यसभा और रा य िवधानसभाओ ं के चुनाव के िलए उनके नामांकन प दािखल करने के समय
यो यता को बताते है। भारत िनवाचन आयोग का हमेशा से यह मत रहा है िक राजनीितक दल को अिनवाय प से अपने खात
को बनाए रखने और आयोग ारा िनिद एजिसय ारा उनका ऑिडट करवाना चािहए।
राजनीितक दल ारा िनिधय के सं ह के मामले म पारदिशता क एक मजबतू आव यकता है और उन तरीक के बारे म भी है
िजनके ारा उन िनिधय का यय िकया जाता है। इसिलए, राजनीितक दल को आम जनता और सभी संबंिधत क जानकारी
और जाँच के िलए, उनके खात को सालाना कािशत करना आव यक है, िजसके उ े य से ऐसे खात का रखरखाव और उनक
सटीकता सिु नि त करने के िलए उनका ऑिडट करना पूव-आव यकता है। इसिलए, आयोग ताव क वीकृ ित क ढ़ता से
अनशु ंसा करता है और इस िवषय पर अपने पहले के िवचार को दोहराता है।
चनु ाव आयोग एक राजनीितक पाट ारा उ मीदवार के चनु ाव खच म शािमल िकए जाने वाले चनु ाव खच पर सीिलंग के योजन
के प म है। वा तव म, आयोग स र के दशक के बाद से इस तरह के सधु ार के िलए जोर दे रहा है। भारत के सव च यायालय ने
भी इस सबं धं म मौजदू ा ावधान क अपया ता पर िट पणी क है। धन क भिू मका िनि त प से चनु ाव लड़ने और राजनीितक
दल के उ मीदवार के बीच चनु ाव ि या म खेल के तर को परे शान करती है। यह सिु नि त करने क बहत आव यकता है िक
ं ु श नह लगाया गया है।34
चनु ाव म और चनु ाव के मैदान म धन शि क भिू मका पर अक
आयोग ने महससू िकया िक सिं वधान के अनु छे द 324 म यह ावधान िकया जाना चािहए िक (क) मु य चनु ाव आयु के साथ
अिधकतम दो चुनाव आयु ह ; और (बी) िनयिु का तरीका और िनयिु के बाद सवं ैधािनक संर ण, मु य चनु ाव आयु
और अ य चनु ाव आयु के िलए समान होना चािहए। चनु ाव आयोग ने दोहराया और लोकसभा क तज पर एक वतं
सिचवालय बनाने क आव यकता पर शी कारवाई का आ ह िकया और आयोग के खच को भारत के समेिकत कोष म
‘आरोिपत’ िकया जाना चािहए।
राजनीित का अपराधीकरण
सम या से िनपटने के िलए ससं द म िवचार करने और काननू बनाने के िलए राजनीित का अपराधीकरण सबसे ज री मु म से एक
है। चनु ाव आयोग ने आयोग के साथ राजनीितक दल ारा घोषणाओ ं के द तावेज सिहत कई चरण का सझु ाव िदया िक वे
उ मीदवार को मैदान म नह उतारगे और अपरािधय के प म दोषी पाए गए लोग को िटकट नह दगे, भले ही िकसी भी चनु ाव
म सं ेय अपराध के िलए पाँच साल से कम अविध के िलए कै द हो। आयोग को स म करने का एक और सझु ाव यह था िक
चनु ाव, उ ह सनु ने का अवसर देने के बाद राजनीितक दल को मा यता देने और डी-रिज टर करने के िलए शि याँ दी जाएँ, जो

30
ऐसे को े म दोिषयाँ पाए गए थे, िज ह संसद या िवधानसभा के उ मीदवार के प म पाँच साल या उससे अिधक क कै द हई
थी। आयोग ने महससू िकया िक नामांकन फॉम म यह जानकारी होनी चािहए िक या उ मीदवार को कभी जेल म डाला गया था
और उसक अविध, यि य के िखलाफ आपरािधक मामले लंिबत थे, और यिद यि को िकसी अपराध के िलए चाजशीट
िकया गया था। िकसी भी यि को िकसी भी जानकारी क गलत जानकारी या दमन करने क ि थित म, न के वल चनु ाव अलग
से िनधा रत िकया जाना चािहए, बि क इसे र भी िकया जाना चािहए और यि को 5 साल तक के कारावास या जमु ाना या
दोन से दिं डत िकया जाना चािहए।35
राजनीित के अपराधीकरण पर अकं ु श लगाने के िलए, 28 अग त, 1997 को चनु ाव आयोग ने एक आदेश पा रत िकया, िजसम
दोषी यि य को ितबंिधत कर िदया गया, भले ही चनु ाव लड़ने से उ च यायालय म अपील लंिबत थी। चनु ाव आयोग ने
महससू िकया िक हालाँिक जन ितिनिध व काननू , 1951 क धारा 8 म ावधान है िक कोई भी दोषी छह साल के िलए ससं द
और िवधानसभाओ ं के चनु ाव लड़ने से अयो य हो जाएगा, िजनक जमानत पर या अपील के साथ उ ह चनु ाव लड़ने क अनमु ित
दी जा रही थी। आयोग ने पु षो म कौिशक बनाम िव ा चरण शु ला के स, सिचं नाथ ि पाठी बनाम डूडनाथ के स और
िहमाचल देश उ च यायालय म इलाहाबाद उ च यायालय के (म य देश उ च यायालय) के संिवधान और िनणय के
अनु छे द 324 का उ लेख िकया था। जन ितिनिध व अिधिनयम क धारा 8 पर िव म आनंद बनाम राके श िसहं करण का
उललेख भी िकया गया है। इसने रा य , क शािसत देश और मु य िनवाचन अिधका रय को िनदश िदया था िक
जन ितिनिध व काननू क धारा 8 के तहत अ यिथय क अयो यता दोषी ठहराए जाने क तारीख से शु होगी, भले ही वह
यि जमानत से बाहर हो। िनवाचन आयोग ने रटिनग अिधका रय से कहा था िक वे अ यिथय से शपथप ा कर, िजसम
उ लेख िकया गया हो िक या उ ह सजा क ितिथ, अपराध क कृ ित, लगाए गए दडं और कारावास क अविध के अलावा
िनधा रत प पर है।36
आयोग ने अपराधीकरण के खतरे को रोकने क अपनी इ छा को जारी रखते हए चुनाव काननू म सरकार ारा यापक बदलाव
करने क िसफा रश क , िजसम कहा गया िक छह महीने से अिधक क सजा वाले यि को छह साल क अविध के िलए चनु ाव
लड़ने से वंिचत िकया जाना चािहए। इसने आगे सझु ाव िदया िक अिधिनयम क धारा 8(1), 8 (2) और 8 (3) के ारा यह काननू
क अदालत ारा दोषी ठहराए गए यि के िलए अिनवाय होगा और छह महीने या उससे अिधक के कारावास क सजा होगी।
एक कुल छह साल क सजा के साथ सजा क अविध के िलए चनु ाव लड़ने से वंिचत िकया जाएगा।37
पाट के भीतर लोकतं
16 अ टूबर, 1994 को जनता दल तीक मामले म अपना आदेश सनु ाते हए, मु य चनु ाव आयु , टी.एन. शेषन ने राजनीितक
दल को चेतावनी दी िक यिद वे अपने सिं वधान के अनसु ार संगठना मक चनु ाव कराने म िवफल रहे, तो चनु ाव िच (आर ण
और आवंटन) आदेश के अनुसार आव यक कारवाई शु क जाएगी। िजससे उनके वैध लोकतांि क दल क ि थित खतरे म
पड़ सकती है।
रणनीितक मतदाता िश ा और चुनावी भागीदारी ( वीप)
सव म थाओ ं का नवाचार चनु ाव शासन म अ म बंधन का सचं ालन करने क वृि का िह सा है, घटक म से एक
( वीप) है जो मतदाता िश ा काय म है। इसे 2008 म झारखंड म शु िकया गया था और ईसीआई ने इस पहल को िशि त
मतदाताओ ं म से एक करार िदया। ईसीआई ने माना िक चुनाव ि या के बारे म वोट के बीच ान क खाई को पाटना उनक
िज मेदारी थी और चनु ावी ि या के बारे म वे वा तव म जानते ह।38
चुनाव आयोग और उसके सधु ार
1972 म, चनु ावी काननू के सधु ार पर संयु ससं दीय सिमित ने सझु ाव िदया िक मु य चनु ाव आयु को संिवधान के अनु छे द
324 ारा अनमु ित के अनसु ार अ य चुनाव आयु क िनयिु का समथन िकया जाना चािहए।39

31
नाग रक के लोकतं के िलए िनयु चनु ावी सधु ार 1975 क तारकंु डे सिमित ने एक बह-सद यीय िनकाय का सझु ाव िदया और
ताव िदया िक के वल रा पितय के हाथ म होने के बजाय आयु का चयन, एक सिमित के हाथ म होना चािहए, िजसम
धानमं ी शािमल ह लोकसभा म िवप के नेता और मु य यायाधीश हो। 1990 म चनु ाव सधु ार पर सवदलीय गो वामी
सिमित ारा इसी तरह का एक ताव रखा गया था। मु य चुनाव आयु पेरी शा ी ने 1980 के दशक के उ राध म िवचार के
यो य मु े पर िवचार िकया, लेिकन अ टूबर 1989 म राजीव गांधी सरकार ारा उकसाए गए दो अित र आयु के अचानक
नामांकन के िलए तैयार नह थे। इसे प रवतन को कमजोर करने के यास के प म देखा गया। चनु ाव आयोग क वतं ता,
लोकसभा चनु ाव (एस.एस. धनोआ और वी.एस. िसगाल) क भाग-दौड़ को वी.पी. िसहं क आने वाली सरकार ने हटा िदया।
बह सद यीय आयोग ( साद 1995) का गठन करने के िलए सरकार अपने अिधकार े म थी। ख ड (6) अनु छे द 324 म कहा
गया है, “जब रा पित या रा य के रा यपाल चनु ाव आयोग से अनरु ोध करते ह तो वे चनु ाव आयोग या एक े ीय आयु को
उपल ध कराएगं ,े जो काय पर िदए गए काय के िनवहन के िलए आव यक हो सकता है।”40
मु य चनु ाव आयु के भाव को कम करने के िलए एक िनधा रत यास 1993 म एक बहस म यादा था, जब एक रा पित
अ यादेश ने तीन सद यीय आयोग का पनु गठन िकया। मु य चनु ाव आयु के साथ बैठने के िलए दो नए चनु ाव आयु एम.एस.
िगल और जी.वी.जी. कृ णमिू त को िनयु िकया गया।
सव च यायालय का िनणय टी.एन. शेषन ने बह-सद यीय चनु ाव आयोग के गठन पर बह तीि त िववाद को अतं तः बंद कर
िदया, रा पित पद के अ यादेश को बह-सद यीय चनु ाव आयोग के प म मा य घोिषत िकया। चनु ाव आयोग क भिू मका और
उनक राय के मह व पर टी.एन. शेषन म सव च यायालय क िट पिणयाँ उ लेखनीय ह। पहली बार टी.एन. शेषन मामले ने
सु ीम कोट को अनु छे द 324 के मह व और पीप स ए ट, 1951 के ितिनिध व पर अिधक यान कि त करने का अवसर
दान िकया। इसने वतं होने क आव यकता को समझाने के िलए अदालत को एक उवर आधार भी दान िकया। भारतीय
िनवाचन ि या म वतं और िन प चनु ाव सिु नि त करने के िलए चनु ाव आयोग, उ च कद और अखंडता वाले यि य के
साथ काम करता है।
टी.एन. शेषन मामले म सव च यायालय ने कहा िक अनु छे द 324 क योजना यह है िक मु य िनवाचन आयु कहे जाने वाले
थायी िनकाय के साथ िनवाचन आयोग को थायी िनकाय कहा जाएगा। चनु ाव आयु इसिलए एकल सद यीय िनकाय या बह-
सद यीय िनकाय हो सकता है यिद रा पित एक या अिधक चनु ाव आयु क िनयिु के िलए आव यक मानते ह। सु ीम कोट
ने अपनी राय म सही कहा िक मु य चनु ाव आयु को चनु ाव आयु से बेहतर दजा ा नह है। लेिकन, अनु छे द 324 एक
थायी िनकाय क अ य ता करता है िजसका मु य थायी आयु होता है। इसिलए, अपनी वतं ता को बनाए रखने और
सरु ि त रखने के िलए, उसे अलग तरह से यवहार करना पड़ता था य िक CEC के िबना चनु ाव आयोग नह हो सकता। अ य
चनु ाव आयु के साथ ऐसा नह है। वे थायी प से अवलंबी नह ह। सीईसी क सेवा शत सव च यायालय के यायाधीश के
समान ह, अथात् (i) वे ावधान िज ह वह कायालय से सव च यायालय के यायाधीश के प म और जैसे आधार पर हटाए
जा सकते ह, (ii) उनक शत िनयिु के बाद सेवा उसके नुकसान के िलए िविवध नह होगी।
सीईसी के य-चनु ाव आयोग क ि थित पर, अदालत ने िन कष िनकाला िक सीईसी चनु ाव आयु से बेहतर ि थित का आनदं
नह देता है। हालाँिक यह सीईसी के मामले म है िक उसक िनयिु के बाद अनु छे द के खडं (5) के िलए पहला ावधान, जहाँ
चनु ाव आयु के िलए इस तरह के सरं ण को बढ़ाया नह गया है, लेिकन अ यादेश के आधार पर सीईसी और ई.सी.एस ारा,
वेतन आिद के मामले म एक सममू य पर रखा जाता है, बेशक, सीईसी के िबना चनु ाव आयोग नह हो सकता। यह चनु ाव
आयु के मामले म नह है, लेिकन यह सीईसी पर एक उ च दजा देने के िलए संकेत नह है। टी.एन. शेषन क अदालत ने प
प से कहा िक िकसी भी बेहतर ि थित को सीईसी से स मािनत नह िकया गया है और यह िक सशं ोिधत अ यादेश अिधिनयम म
41
ई.सी.एस. के साथ बराबर यवहार नह िकया गया है (मैकिमलन 2015)।
चनु ाव आयोग को बह सद यीय बनाने का िनणय सरकार ारा मु य चनु ाव आयोग ारा हाल ही म िलए गए कुछ िववादा पद
फै सल के म ने जर िकया गया था, िजसने अग त, 1993 म चनु ाव आयोग और सरकार के बीच एक गंभीर टकराव पैदा कर िदया

32
था। मु य चनु ाव किम नर ने रा यसभा और रा य िवधान प रषद के िलए कुछ उपचनु ाव और ि वािषक चुनाव थिगत कर िदए
ह, जब तक िक आयोग क िवशेष शि य और िवशेषािधकार के बारे म कुछ “अनसल ु झे” िववाद नह ह, जो क ीय पुिलस
बल क तैनाती के बारे म सरकार को ‘ य ’ करने के िलए ह।
यह िनणय सव च यायालय क िनिहत पीठ के साथ िकया गया था िजसने 1991 म कहा था िक चनु ाव आयोग जैसी सं था को
मह वपणू काय स पे जाते ह और उ ह िन पािदत करने के िलए अन य और अिनयिं त शि य से लैस िकया जाता है, यह
आव यक और वांछनीय दोन है िक शि याँ उन पर अमल करने के िलए यह आव यक और वांछनीय दोन है िक शि य का
योग एक यि ारा नह िकया जाता है, लेिकन बिु मान यि वह (एस.एस. धनोआ बनाम यिू नयन ऑफ इिं डया AIR
1991 SC 1745) हो सकता है।
िन कष
चनु ाव वह अतं िवरोध है िजसके मा यम से एक आधिु नक रा य अपने नाग रक के बीच सावजिनक मामल म भागीदारी और
भागीदारी क भावना पैदा करता है। वष से, चनु ाव आयोग ने लोकतं को मजबतू करने और चनु ाव क िन प ता को बढ़ाने के
िलए कई शसं नीय चनु ावी सधु ार िकए ह। ये सधु ार काफ पया और सराहनीय ह। िन सदं ेह, चनु ाव आयोग, चनु ाव आयोग के
त वावधान म, वतं और िन प तरीके से चुनाव कराने के िलए ेय का हकदार है। वोट जीतने के िलए, राजनीितक दल
बेईमानी और आचरण का सहारा लेते ह। इस तरह क िवकृ ितयाँ असामािजक त व को चनु ावी मैदान म उतरने के िलए
ो सािहत करती ह। सम या काननू क कमी नह है, बि क उनके स त काया वयन क कमी है। इन अनिु चत वृि य पर महु र
लगाने के िलए, चनु ाव आयोग के हाथ को मजबूत करने और इसे और अिधक काननू ी और सं थागत अिधकार देने क
आव यकता है। चनु ाव आयोग का उ लंघन करने वाले राजनीित को दिं डत करने के िलए चुनाव आयोग को शि याँ स पी
जानी चािहए।
मु य तक का सारांश
 वतं ता के बाद मलू िवचार भारत म वतं और िन प चनु ाव कराने के िलए एक वतं आयोग बनाने का था।
िनवाचन यायािधकरण क िनयिु सिहत सघं या रा य के िवधानमंडल के िलए सभी चनु ाव का अधी ण, िनदशन और
िनयं ण, संघ या इकाई के िलए िनवाचन आयोग म िनिहत होगा, य िक संघ के काननू के अनसु ार सभी मामल म इस
मामले क िनयिु क जा सकती है।
 िनवाचन आयोग के मख ु काय और शि याँ िनवाचन े को तैयार करना, िनवाचक नामाविलय को तैयार करना,
राजनीितक दल का पंजीकरण और तीक का आवंटन करना है। इसके अलावा यह नामांकन प क जाँच, आदश
आचार संिहता और अंत म मतदान के संचालन को लागू करता है।

ं -सच
ू ी
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33. Kumar, B.Venkatesh (2002). Critical Issues in Electoral Reforms. The Indian Journal of
Political Science , (63)1 .pp.73-88.
34. ibid
35. ibid
36. Singh Kumar Ujjawal and Anupama Roy, (2018). Regulating the Electoral Domain: The
Election Commission of India, Indian Journal of Public Administration, 64(3), pp.518-530.
37. Ali, Rehena (2001). The Working of the Election Commission of India. New Delhi: Jnanada
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38. Ali, Rehena (2001). The Working of the Election Commission of India. New Delhi: Jnanada
Prakrashan.
39. ibid
40. Mc Millan, Alistair (2015). The Election Commission. In: Niraja Gopal Jayal eds., The
Oxford Companion to Politics in India, New Delhi: Oxford University Press, pp. 98-116.
41. ibid

35
(ख) चुनावी सधु ार
20व शता दी के अंितम दशक के दौरान, हमारी चनु ाव णाली म िविभ न सीमाओ ं को पार करने के िलए िविभ न सिमितय का
गठन िकया गया था। चनु ावी सधु ार हालाँिक एक सतत ि या है, लेिकन इस िदशा म अब तक िकए गए यास पया नह ह।
य िप राजनीित के अपराधीकरण क जाँच करने के िलए हाल के कुछ उपाय, धन क नाजायज भिू मका और गैर-गंभीर
उ मीदवार क भागीदारी का खतरा शंसनीय है, िफर भी कुछ और साथक चुनावी सधु ार क आव यकता है। या िकया जाना
चािहए इस पर कई रपोट और िसफा रश दी गई ह। कुछ मह वपणू उदाहरण ह इं जीत गु ा क रपोट, िदनेश गो वानी क रपोट,
भारत के िविध आयोग क 170 रपोट चनु ावी सधु ार पर, भारत म चनु ाव सधु ार क चनु ाव आयोग क रपोट इ यािद शािमल है।
हालाँिक उ लेखनीय त य यह है िक इन मसा य रपोट क िसफा रश म से लगभग कोई भी सही तरीके से लागू नह क गई है।
सबसे पहले, 1971 म चनु ाव सधु ार के िलए इस तरह क मख ु िचतं ा का िवषय था जब संशोधन के िलए चनु ाव काननू पर एक
संयु ससं दीय सिमित को लोकसभा म अपनाए गए ताव और मशः 22, जून और 25 जून, 1975 को रा यसभा ारा िनयु
िकया गया था।1 जग नाथ राव क अ य ता म सिमित ने 1972 म रपोट तुत क । यह रपोट दो भाग म थी, िजसम पहले म
जन ितिनिध व काननू , 1950 और 1951 म संशोधन क िसफा रश शािमल क थ , जबिक भाग-II मतदाता आय,ु िनवाचन
णाली जैसे मामल से िनपटा था, आिद सधु ार कुछ िवकृ ित को दरू करने म मददगार हो सकते थे लेिकन िकसी पर भी अमल नह
िकया जा सकता था।
1974 म, जय काश नारायण ने िसटीज स फॉर डेमो े सी (सीएफडी) के अ य के प म यायमिू त वी.एम. के अ य ता के
तहत एक सिमित क थापना क । तारकंु डे ने चनु ावी सधु ार के िलए एक योजना पर अ ययन और रपोट करने के िलए धन के
उपयोग, आिधका रक मशीनरी का दु पयोग, लोकि य वोट के बीच असमानता और चनु ाव क वतमान णाली के तहत सीट
क सं या, दोष जैसे िविभ न कार के यवहार का मक ु ाबला करने के िलए मौजदू ा काननू और शासन, आिद म सिमित ने
2
9 फरवरी, 1975 को अपनी रपोट ततु क । इसक मह वपणू िसफा रश चनु ाव आयोग के पनु गठन क थ और चनु ाव खच के
बारे म सभी राजनीितक दल को काननू ारा सही आय और िववरण देने के िलए आव यक होना चािहए। यय और येक
िनवाचन े म एक चनु ाव एजट म उ मीदवार क सभं ावनाओ ं के िलए य या अ य प से खच क गई सभी रािश और
चनु ाव म काले धन के उपयोग पर अंकुश लगाया जाना चािहए को शािमल िकया गया था।
1977 के चनु ाव के बाद जनता सरकार का गठन हआ। उस वष पहली बार, रा ीय और रा य राजनीितक दल को रा य
िवधानसभा चनु ाव के दौरान चनु ाव का यापक संदश
े रे िडयो और टेलीिवजन पर िदए गए थे। चनु ावी सधु ार के ताव पर िवचार
करने के िलए एक कै िबनेट उप-सिमित ारा लाए गए िवकृ ितय को दरू करने के िलए संिवधान (च तीसवाँ संशोधन) अिधिनयम
पा रत करना था। सिमित क अ य ता त कालीन क ीय गृह मं ी चरण िसंह ने क थी, उसी समय त कालीन मु य चनु ाव
आयु एस.एल. शकधर ने चनु ाव खच से लेकर बथू क जा करने तक के िविभ न मु पर मह वपणू सुझाव िदए। मतदान क
आयु 21 से घटाकर 18 वष करने का समझौता भी िकया गया। लेिकन जनता पाट क सरकार को कोई भी चनु ावी सधु ार शु
करने से पहले पद से इ तीफा देना पड़ा।
चनु ाव आयोग ारा प रकि पत चुनाव सधु ार का एक लंबा इितहास रहा है, शु म आयोग ने चुनाव काननू और ि या म
संशोधन और चनु ाव सधु ार के िलए अपनी िसफा रश का इ तेमाल िकया था, हालाँिक आम चनु ाव पर इसक रपोट येक
आम चनु ाव के परू ा होने के बाद सामने आती थी। यह यान रखना िदलच प है िक 1970 तक चनु ाव कानून के मल
ू ावधान म
3
कोई बड़ा या मह वपणू बदलाव तािवत नह िकया गया था। 1977 म पहली बार, आयोग ारा पवू म क गई सभी िसफा रश
क समी ा क गई और चुनाव सधु ार पर आयोग क समेिकत अनश ु ंसा क गई, िजसम ताजा और गैर-कायाि वत दोन िसफा रश
शािमल थ , िज ह 22 अ टूबर, 1977 को भारत सरकार को भेज िदया गया था। 1980 म इन िसफा रश क समय-समय पर
समी ा क गई और नए ताव पवू म जोड़े गए और भारत सरकार को भेजे गए।

36
मु य िसफा रश म जो संशोधन के साथ या िबना दोहराए गए थे : “संिवधान के ासिं गक ावधान और चनु ाव िनिध के िनमाण
के िलए उपयु संशोधन ारा दलबदल और नए संिवधान के प रसीमन का ितबंध और आयोग को भी िवनाश के मामले म नए
िसरे से मतदान के आदेश देने का अिधकार होना चािहए। मतदान क , मतपेिटय , मतदान क पर जोर-जबरद ती और
ित पण क यापकता और परू े ससं दीय े या एक ससं दीय िनवाचन े के एक िवधानसभा े म यावतन के िलए
आयोग को सश बनाने के िलए कानून म सशं ोधन िकया जाना चािहए।”
1983 म हेगड़े सरकार कनाटक म स ा म आई और चनु ावी सधु ार के िलए कुछ सझु ाव सामने रखे। इसने चनु ाव आयोग को
भारत-क , रा य और थानीय म सभी ािधकरण के िलए अिनवाय िदशा-िनदश जारी करने के िलए वैधािनक शि य के साथ
िनवेश करने का सझु ाव िदया था, चाहे वह िकसी यि क िशकायत पर या उसके पयवे क क रपोट पर हो जो वैधािनक
अिधकार से होना चािहए, मु य चनु ाव आयोग को आगे क िनयिु के िलए पा नह होना चािहए। लोकसभा और रा य
िवधानसभा को चनु ाव क अिधसचू ना जारी करने के तुरंत बाद, क या रा य सरकार, जैसा भी मामला हो, इ तीफा दे देना चािहए
और नई सरकार बनने तक एक कायवाहक सरकार के प म काय करना चािहए। रा ीय दल के ितिनिधय क एक सिमित का
गठन िबना देरी िकए चनु ावी सधु ार के िलए एक योजना तैयार करने के िलए िकया जाना चािहए, िजसम उन िबदं ओ
ु ं को शािमल
िकया जाए िजन पर पहले से ही आम सहमित है। साथ ही, योजना को तैयार करने के बाद, सिमित को चनु ाव काननू म बदलाव
पर िवचार करना चािहए, िजसम चनु ाव क रा य िनिध क शु आत भी शािमल है।4
धानमं ी ी वी.पी. िसहं के तहत रा ीय मोचा सरकार ारा चनु ाव सधु ार पर सिमित गिठत क गई थी। िसहं ने 1990 म, ससं द
म राजनीितक दल के ितिनिधय के साथ चनु ावी सधु ार के िविभ न पहलओ ु ं पर चचा क । ससं द के सद य और िवशेष क
तलु ना और त कालीन काननू मं ी क अ य ता म सपं न हई थी। िदनेश गो वामी, सिमित ने अपनी रपोट तेरह अ याय म एक
सौ आठ िसफा रश ततु क ।5 अिधकाश ं मह वपणू िसफा रश इस कार ह◌ः भारत का चनु ाव आयोग एक बह-सद यीय
िनकाय होना चािहए, और मु य िनवाचन अिधका रय को के वल चनु ाव का काम स पा जाना चािहए न िक िकसी अ य कार के
काम और िनवाचन े के आधार पर एक नया प रसीमन क 1981 म जनगणना क गई। िजसम फोटो, पहचान प , लागू िकया
जाना चािहए। एक यि को दो से अिधक िनवाचन े से चनु ाव लड़ने क अनमु ित नह दी जानी चािहए। उ ह वैधािनक
समथन आिद के िलए एक आदश आचार संिहता थािपत करनी चािहए, लेिकन इस सिमित क िसफा रश को लागू नह िकया
गया।
वोहरा सिमित क थापना जल ु ाई, 1993 म मािफया सगं ठन क गितिविधय और राजनेताओ ं और नौकरशाह के साथ उनक
बढ़ती साँठ-गाँठ के बारे म सभी सचू ना एजिसय का जायजा लेने और उनके िखलाफ मामल को आगे बढ़ाने के िलए क गई थी।
सिमित का नेतृ व त कालीन सघं के सिचव एन.एन. वोहरा ने िकया। रपोट के अनसु ार मािफया का शु काय व तुतः एक
समानातं र सरकार चला रहा है, रा य तं को अ ासिं गकता म डाल रहा है। सिमित ने मािफया संगठन और नौकरशाह क
गितिविधय के बारे म खिु फया एजिसय के साथ उपल ध जानकारी एक करने और उनके िखलाफ मामल को आगे बढ़ाने के
िलए एक मॉडल एजसी के िनमाण क िसफा रश क । सिमित ने आपरािधक िगरोह , पिु लस, नौकरशाही और राजनेताओ ं के बीच
साँठ-गाँठ क पहचान क थी जो देश यापी घटना बन गई थी। एक यि को दो से अिधक िनवाचन े से चनु ाव लड़ने क
अनमु ित नह दी जानी चािहए। वैधािनक समथन आिद के िलए एक आदश आचार सिं हता थािपत करनी चािहए, लेिकन इस
सिमित क िसफा रश को लागू नह िकया गया।
इं जीत गु ा सिमित ने 1999 म रपोट पेश क , िजसम चनु ाव के दौरान पािटय को रा य िनिध देने क िसफा रश क गई थ । यह
आयोग ारा मा यता ा दल के उ मीदवार के िलए उपल ध होना चािहए। यह सहायता साम ी के प म होनी चािहए न िक
नकदी म। इस उ े य के िलए अलग रा य कोष (600 करोड़) बनाया जाना चािहए। चनु ाव को अपराधी के भाव से मु िकया
जाना चािहए और धन और मांसपेिशय क शि का उपयोग िकया जाना चािहए। ितबंध दीवार लेखन और बैनर के दशन पर
लगाया जाना चािहए। Rs.10,000/- ऊपर के सभी दान को चेक या ा ट के प म वीकार िकया जाना चािहए और दाताओ ं के
नाम का खल ु ासा िकया जाना चािहए। राजनीितक दल को चनु ाव आयोग के िलए हर आम चनु ाव के बाद अपनी आय और यय
क वापसी दज करनी चािहए।

37
भारत के िविध आयोग ने अपनी 170व रपोट म चनु ावी सधु ार से सबं ंिधत कई ताव पेश िकए, जो लागू करने लायक ह।
संिवधान क दसव अनुसचू ी म सशं ोधन के िलए असवं ैधािनक चक
ू और ‘िवभाजन’ क आड़ म िविध आयोग के सझु ाव का
सबसे अिधक वागत है। आयोग ने सझु ाव िदया िक िकसी उ मीदवार के पाट म चनु े जाने के बाद, वह सदन के िवघटन या
उसक सद यता समा होने तक रहेगा और ‘िवभाजन’ और ‘िवलय’ क अवधारणाओ ं को छोड़ देना चािहए। यिद एक या एक से
अिधक सद य एक पाट छोड़ने और दसू रे म शािमल होने का िनणय लेते ह, तो उ ह सदन क अपनी सद यता से इ तीफा दे देना
चािहए, और िकसी अ य पाट के िटकट पर नए जनादेश क तलाश करनी चािहए।6
इतनी सारी सिमितय और रपोट के बावजदू , चनु ाव सधु ार पर िचतं ा अभी भी मु य प से जारी है, य िक चुनाव णाली म
कुछ ि या मक बदलाव लाने के अलावा, इन सिमितय के अिधकांश सझु ाव को सरकार ारा लागू नह िकया गया है। हाल के
िदन म लाए गए सधु ार ने चनु ाव चार के िदन क सं या तीन से दो स ाह तक घटा दी है, लोकसभा चनु ाव लड़ने के िलए
चनु ावी खच क सीमा को बढ़ाकर 15 लाख पये और िवधानसभा चनु ाव के िलए 6 लाख पये कर िदया है, लोकसभा चुनाव
लड़ने के िलए 10,000 पये और िवधानसभा चनु ाव लड़ने के िलए सामा य उ मीदवार के मामले म 5,000 पये के िलए सरु ा
जमा होना चािहए।
अनसु िू चत जाित (एससी) या अनसु िू चत जनजाित (एसटी) ेणी के उ मीदवार के िलए, लोकसभा चनु ाव लड़ने के िलए 5,000
पये और िवधान सभा चनु ाव लड़ने के िलए 2,500 पये क सरु ा जमा तय क गई है। सश ं ोिधत िनयम के तहत, एक समय म
दो से अिधक िनवाचन े के िलए चनु ाव लड़ने पर एक उ मीदवार पर ितबधं लगाया गया है। नए चनु ाव काननू के तहत,
चनु ाव के वल एक पाट उ मीदवार क मृ यु पर ितवाद िकया जा सकता है, न िक एक वतं उ मीदवार क मृ यु के मामले म।
सशं ोिधत िनयम के अनसु ार, ायल कोट ारा दोषी करार िदया गया यि अयो यता को आकिषत करता है और यहाँ तक िक
जो लोग सजा के िखलाफ अपनी अपील क पडसी के दौरान जमानत पर रहा होते ह, उ ह चनु ाव लड़ने के िलए अयो य ठहराया
जाता है। इन सभी सधु ार को संसद के अिधिनयिमितय ारा भाव म िदया गया है।7
जुलाई, 2013 म माननीय सव च यायालय ने फै सला िदया िक गंभीर अपराध के िलए दोषी पाए गए सांसद और रा य
िवधायक को दो साल या उससे अिधक क जेल क अविध के िलए चनु ाव लड़ने से रोक िदया जाएगा। अदालत ने पीपु स ए ट
के ितिनिध व क धारा 8 को संरिचत िकया, िजसने ससं द और िवधानसभाओ ं के सजाया ता सद य को पद पर बने रहने क
अनमु ित दी, जबिक उनक अपील अ सर अदालत के मा यम से अिनि त काल के िलए रहती थी। लगभग सभी राजनैितक
दल के समथन से समिथत सरकार ने सु ीम कोट के इस फै सले को पलटने के िलए संसद म एक िवधेयक पेश िकया था और िफर
उस दु चार अ यादेश को पा रत कर िदया जो अब वापस आ गया है।8
माननीय सु ीम कोट (भारतीय याियक णाली म शीष अदालत) ारा िदए गए ऐितहािसक फै सले के बाद भारत म इले ॉिनक
वोिटंग मशीन म NOTA (उपरो म से कोई नह ) क शु आत क गई थी। इस तरह के संयम के दौरान गोपनीयता बनाए रखते
हए वोट नह देने के नाग रक के अिधकार को बनाए रखने और मा यता दान करता है। लोकतं क स ची भावना नाग रक के
अिधकार म है िक वे अपने ितिनिधय को समय-समय पर चनु सक। हालाँिक, एक ही समय म यह सिु नि त िकया जाना चािहए
िक नाग रक को सबसे खराब से सबसे अ छा चनु ने के िलए मजबरू नह िकया जाता है (जो, दभु ा य से मामला अिधक बार नह
है)। यह वही है जो नोटा हािसल करना चाहता है।9
हाल ही म चुनाव आयोग को चनु ौती
भारत म चनु ाव का बंधन समय के चरण के साथ लगातार िवकिसत हो रहा है। येक उ मीदवार के िलए अलग-अलग
मतपेिटय से लेकर ईवीएम (इले ॉिनक वोिटंग मशीन) तक का लबं ा सफर रहा है।10 इसने परू ी पारदिशता, द ता और मानवीय
िववेक को हटाकर चनु ाव ि या म ांित ला दी है। चनु ाव आयोग ने िन प तरीके से चनु ाव को अंजाम देने के िलए कई
चनु ौितय का सामना िकया। चुनाव ि या के दौरान आने वाली चनु ौितय म भारत क भगू ोल और जनसांि यक क िविवधता
वा तव म प रलि त होती है। कुछ चनु ौितयाँ ह : जनसं या म वृि , ईवीएम म िन पादन, एक रा एक चनु ाव, आदश आचार
संिहता, पहला-पो ट-िस टम।

38
जनसं या म वृि और मतदान क क सं या म वृि 2009 और 2014 के आम चनु ाव के बीच लगभग 10 करोड़ (100
िमिलयन) मतदाताओ ं क वृि हई है। इसका मतलब है िक अिधक मतदान क क आव यकता है। देश भर म लगभग
100,000 हजार मतदान क जोड़े गए थे। इसका अथ चनु ाव मशीनरी और सरु ाकिमय के आकार म वृि भी हई है जो चनु ाव
आयोग के िलए बड़ी चनु ौती है। इसके अलावा, सहायक मतदान क बनाने क भी आव यकता है जहाँ िकसी िवशेष मतदान क
म िनवाचक क सं या अिधक है।11
आदश आचार संिहता भारत म राजनीितक दल क आम सहमित से िवकिसत हई और लोकतं के कारण उनके िलए एक
िवल ण मह वपणू योगदान है। चनु ाव आयोग िकसी भी चनु ाव काय म क घोषणा करने के िदन से ही इसे लागू करता है।
MCC का कोई वैधािनक समथन नह है और इसके कई ावधान कानूनी प से लागू नह ह। लेिकन कठोर वा तिवकता यह है
िक राजनीितक दल कभी भी आचार संिहता का पालन नह करते ह। िवधेय काननू क कमी नह है, लेिकन िकसी भी स त
िन पादन क इ छा रखते ह। इस अिव वसनीय झुकाव को ख म करने के िलए, चनु ाव आयोग के हाथ को मजबतू करने और इसे
अिधक आिधका रक प से अिधकृ त और सं थागत शि य को देने क आव यकता है।12
फ ट-पा ट-द-पो ट-िस टम इन कई िवसगं ितय के मल ू कारण म से एक चुनाव क ि या म सरं चना मक दोष है और यह
चनु ाव आयोग के िलए एक बड़ी चनु ौती है। हमारे देश म इस ि या का पालन पहले िकया गया है। चनु ाव का आदश िस ातं
िनयम बहमत िनयम िस ातं है, जो भी पाट को 50% से अिधक वोट ा होता है, वह मतदान म िवजयी होता है। लेिकन हमारे
देश म ि िं सपल का अनसु रण िकया जाता है, यानी फ ट-पा ट-पो ट-िस टम अतािकक जमीन पर आधा रत है। चँिू क, इस िस ातं
के अनसु ार कोई यि चनु ाव जीत सकता है, भले ही मािजन 100 वोट से कम हो और िजस पाट को िसफ 30% िमले – 35%
वोट चनु ाव म िवजयी होने के िलए िगना जाएगा। इसिलए वह बहमत का िवक प नह हो सकता। इसिलए रा ीय चनु ाव आयोग
ने इस यव था को दो चरण के चनु ाव के साथ बदलने का ताव िदया। यिद िकसी उ मीदवार को 50% से अिधक बहमत नह
िमलता है, तो दसू रे दौर म शीष दो उ मीदवार शािमल ह गे और जो 51% से अिधक ा करे गा उसे िनवािचत माना जाएगा।13
हािलया चनु ौती ईवीएम क भावशीलता को सािबत करने से संबिं धत है। मतदान के दौरान इसम छे ड़छाड़ क जा सकती है और
दसू रा यह िक छे ड़छाड़ हो सकती है जबिक मशीन को चनु ाव आयोग क िहरासत म रखा जाता है। लेिकन चनु ाव आयोग ने प
प से कहा है िक ईवीएम को सचू ना म बदलने के बजाय छे ड़छाड़ करने पर आ म िवनाश के िलए तैयार िकया जाता है।14
तदनसु ार, हाल क चनु ौती जो बहस म है, श द ‘वन नेशन वन इले शन’ िजसे भारतीय चनु ाव च को इस तरह से प रभािषत
करने के प म प रभािषत िकया गया है िक लोकसभा और रा य िवधानसभाओ ं के चनु ाव एक साथ िसं नाइज िकए जाते ह। ऐसे
म, एक मतदाता आमतौर पर एक ही िदन और एक ही समय पर लोकसभा और रा य िवधानसभा के सद य के चनु ाव के िलए
अपना वोट डाल सकता है। आगे प करने के िलए, एक साथ चनु ाव का मतलब यह नह है िक लोकसभा और रा य
िवधानसभाओ ं के िलए देश भर म मतदान एक ही िदन होने चािहए। यह चरणब तरीके से आयोिजत िकया जा सकता है य िक
मौजूदा िवधानसभा म मतदाताओ ं को रा य िवधानसभा और लोकसभा दोन के िलए एक ही िदन म उपल ध कराए गए अ यास
के अनुसार होता है।15 यिद भिव य म ससं द और रा य िवधानसभाओ ं के िलए एक साथ चनु ाव होते ह, तो िवकास का अगला
चरण मशः सभी शहरी थानीय िनकाय और ामीण थानीय िनकाय के िलए रा य चनु ाव आयोग ारा एक साथ चनु ाव
करना होगा। यह ितयोिगय क उ च सं या और बहत उ च मतदान ितशत को देखते हए बहत जिटल होगा। चनु ाव आयोग
को यिद इसे लागू िकया जाता है तो िस टम के पेशेवर और िवप से िनपटना पड़ता है।16
िन कष
सधु ार काफ पया और सराहनीय ह। िन संदेह, चनु ाव आयोग, चनु ाव आयोग के त वावधान म, वतं और िन प तरीके से
चनु ाव कराने के िलए ेय का हकदार है। वोट जीतने के िलए, राजनीितक दल बेईमानी और आचरण का सहारा लेते ह। इस
तरह क िवकृ ितयाँ असामािजक त व को चनु ावी मैदान म उतरने के िलए ो सािहत करती ह। सम या समा करने म काननू क
कमी नह है, बि क उनके स त काया वयन क कमी है। इन अनिु चत वृि य पर महु र लगाने के िलए, चनु ाव आयोग के हाथ

39
को मजबतू करने और इसे और अिधक काननू ी और सं थागत अिधकार देने क आव यकता है। चनु ाव आयोग का उ लंघन करने
वाले राजनीित को दिं डत करने के िलए चनु ाव आयोग को शि याँ स पी जानी चािहए।
मु य तक का सारांश

 वतं ता के बाद मल
ू िवचार भारत म वतं और िन प चनु ाव कराने के िलए एक वतं आयोग को बनाने का था।
िनवाचन यायािधकरण क िनयिु सिहत संघ या रा य के िवधानमंडल के िलए सभी चनु ाव का अधी ण, िनदशन
और िनयं ण, संघ या इकाई के िलए िनवाचन आयोग म िनिहत होगा, य िक सभी मामल म इस मामले क िनयिु
क जा सकती है, यह सघं के काननू के अनसु ार होगा।
 िनवाचन आयोग के मख ु काय और शि याँ िनवाचन े को तैयार करना, िनवाचक नामाविलय को तैयार करना,
राजनीितक दल का पंजीकरण और तीक का आवंटन करना है। इसके अलावा यह नामांकन प क जाँच, आदश
आचार संिहता और अंत म मतदान के संचालन को लागू करता है।
 चनु ावी सधु ार पर तारकंु डे सिमित क तरह चनु ाव आयोग के कामकाज म सधु ार के िलए कई सधु ार शु िकए गए थे।
इसने एक बह-सद यीय िनकाय का सझु ाव िदया और तािवत िकया िक आयु का चयन अके ले रा पितय के
हाथ म न हो। सु ीम कोट ने बह-सद यीय चनु ाव आयोग के गठन पर बह तीि त िववाद को आिखरकार रा पित पद
के अ यादेश को बह-सद यीय चनु ाव आयोग के प म मा य घोिषत करके बदं कर िदया।
 चनु ाव सधु ार को शु करने के िलए कई सिमितयाँ बनाई जाती ह जैसे इं जीत गु ा रपोट, िदनेश गोसवानी क रपोट,
भारत के िविध आयोग क 170 रपोट और चनु ावी सधु ार पर भारत क चनु ाव आयोग क रपोट।
 हाल के िदन म लाए गए सधु ार म चनु ाव चार के िदन क सं या म तीन से दो स ाह तक क कमी है, लोकसभा
चनु ाव लड़ने के िलए चनु ाव खच क सीमा को बढ़ाते हए, नाग रक के अिधकार को बनाए रखते हए वोट नह डालने
का अिधकार जैसे नोटा के समावेश के साथ ऐसी संयम के दौरान गोपनीयता को बनाए रखना है।
 चनु ाव आयोग ने चनु ाव को िन प तरीके से िन पािदत करने के िलए बहत सारी चुनौितय का सामना िकया। कुछ
चनु ौितयाँ ह : जनसं या म वृि , ईवीएम, वन नेशन वन इले शन, मॉडल कोड ऑफ कंड ट और फ ट-पा ट-इन-
पो ट-िस टम।
मु य श द
श द ‘प रसीमन’ का शाि दक अथ िकसी देश या ातं म िवधायी िनकाय वाले े ीय िनवाचन े क सीमा या सीमाओ ं को
तय करने क ि या या ि या है। प रसीमन अ यास करने का मु य उ े य चनु ावी िनवाचन े क सरं चना और सरं चना को
यिु संगत बनाना है।
मतदान का यवहार मतदान के आँकड़ क जाँच, रकॉड और चनु ावी पा रय और झल ू क गणना तक ही सीिमत नह है। इसम
यि गत मनोवै ािनक ि याओ ं (धारणा, भावना और ेरणा) और राजनीितक कारवाई के साथ-साथ सं थागत पैटन, जैसे
सचं ार ि या और चनु ाव पर उनके भाव के सबं धं म िव लेषण शािमल है।
राजनीित के अपराधीकरण का मतलब है िक अपराधी राजनीित म वेश करते ह और चनु ाव लड़ते ह और यहाँ तक िक संसद
और रा य िवधानसभा के िलए िनवािचत होते ह। यह मु य प से अपरािधय और कुछ राजनीित के बीच साँठ-गाँठ के कारण
होता है। अपरािधय को अपनी आपरािधक गितिविधय को जारी रखने के िलए सावजिनक कायालय पर क जा करने वाले
राजनेताओ ं के संर ण क आव यकता होती है और राजनेताओ ं को धन और मांसपेिशय क शि क आव यकता होती है जो
अपराधी राजनीित को चनु ाव जीतने के िलए दे सकते ह। समय के साथ, साँठ-गाँठ ने अपरािधय को चनु ाव लड़ने के िलए े रत
िकया।

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चनु ावी सुधार एक यापक श द है जो अ य बात के अलावा, जनता क इ छाओ ं और अपे ाओ ं के िलए चनु ावी ि याओ ं क
जवाबदेही को बेहतर बनाता है। हालाँिक, सभी चनु ावी प रवतन को चनु ावी सधु ार नह माना जा सकता है। चनु ावी प रवतन को
के वल सुधार के प म संदिभत िकया जा सकता है यिद इसका ाथिमक ल य चनु ावी ि याओ ं म सधु ार करना है, उदाहरण के
िलए, िन प ता बढ़ाना, समावेिशता, पारदिशता, अखंडता या सटीकता को बढ़ावा देना।
(आदश आचार संिहता) MCC राजनीितक दल और चनु ाव लड़ने वाले उ मीदवार दोन के िनदश का एक सेट है। एमसीसी
चनु ाव के दौरान सामा य आचरण, चनु ाव चार, बैठक आिद के िदशािनदश और िनदश का एक समहू है। जब तक चनु ाव क
परू ी ि या परू ी नह हो जाती, तब तक एमसीसी लागू है
समी ा न
1. चनु ाव आयोग क सेवा सरं चना क शत या है?
2. चनु ाव आयोग के काय और शि याँ या ह?
3. बदलते राजनीितक प र य के साथ चनु ाव आयोग के काय क बदलती भिू मका क या या कर?
4. लोकतािं क शासन यव था म चनु ाव आयोग क या भिू मका थी?
5. मौिलक अिधकार के सबं ंध म चनु ाव आयोग ने िकस हद तक गारंटी दी है?
6. राजनीितक दल के पजं ीकरण और तीक के आवटं न म चनु ाव आयोग क या भिू मका है?
7. चनु ाव आयोग ने पाट चनु ाव िच ह िववाद को कै से सल
ु झाया?
8. या आपको लगता है िक चनु ाव आयोग ने भारतीय लोकतं को मजबतू िकया है?
9. राजनीित के अपराधीकरण को रोकने म चनु ाव आयोग िकस हद तक सफल रहा है?
10. चनु ाव आयोग ने अपने नाग रक के बीच सावजिनक मामल म भागीदारी और भागीदारी क भावना कै से पैदा क ?
ं -सच
थ ू ी
1. Hegde, Ramakrishna (1987), Electoral Reforms: Lack of Political Will, Kamataka
State Janata Party, Banglore,
2. Tara Kunde Committee Report on Electoral Reform (1975), New Delhi.
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7. Kumar Sanjay (2002), Reforming Indian Electoral Process. Economic and Political
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8. Reddy, K Eswara (2014), Electoral Reforms in India - Issues and Recent Reform.
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9. ibid

41
10. Jain Bhatnagar Anita, (2018). State Election Commission: Unravelled, Indian Journal
of Public Administration, 64 (3): pp-531-542.
11. Meenu (2015), Challenges Before Election Commission of India, 3(12).
12. Shruti, Sia (2016), Election Reforms in India and Challenges before the Election
Commission H:\New folder\Election Reforms in India and Challenges before the
Election Commission.html
13. ibid
14. Thakur , Meenal (2017), Election Commission says EVM challenge to begin from 3
June
15. https://www.livemint.com/Politics/6ZUrvUi6wmIRjzoXeECCUL/Election-
Commission-to-announce-schedule-for-its-EVM-challe.html
16. Debroy, Bibek and Kishore Desai (2014) Analysis Of Simultaneous Elections : The
“What”, “Why” And “How” http://niti.gov.in/writereaddata/files/document_
publication/Note%20on%20Simultaneous%20Elections.pdf
17. Jain Bhatnagar Anita, (2018). State Election Commission: Unravelled, Indian Journal
of Public Administration, 64 (3): pp-531-542.

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इकाई-III : धम और राजनीित
पाठ-1
से युलरवाद का िवमश

 प रचय
 से यल
ु रवाद : सै ािं तक बहस
 भारतीय सिं वधान तथा से यल
ु र रा य
 आलोचना मक िन कष
प रचय
राजनीितक कायवाही मु य प से जीवन के बेहतर िवकास तथा दैिनक िकया ि या िति या करता रहता है। िजसम रा य से
लेकर यि गत जीवन के पहलू शािमल होते ह। जो एक बेहतर िवक प क ासिं गकता क तलाश करती है। िजसम धमिनरपे ता
या से यल
ु रवाद इस ि या का मह वपणू िवषय है। िजसका मु य िवमश रा य व धम म पृथक्कता रखा जाये या यह रा य के
ह त ेप का भी प रणाम बनाया जा सके ? साथ ही अ पसं यक सं कृ ित तथा अिधकार को िकस कार रा य और नीितय से
सामंज य बनाया जाय िजससे बहस यक के साथ संतुलन बना रहे।
से युलरवाद : सै ांितक प
से यलु रवाद के सै ािं तक प म नीरा चंढोक का िव लेषण थम होगा जो भारतीय से यल ु रवाद क मल ू प रभाषा से तथा गाँधी
के िवचार से भी जड़ु ा हआ है िजसका अिभ ाय है िक भारत म से यल ु रवाद सवधम-स भाव के प म थािपत है। िजसम सभी
धम को स मान प से स मान और अवसर दान िकया जाय। जबिक नेह के अनुसार से यल ु रवाद धमिनरपे ता के प म
समझा गया है। िजसका अिभ ाय है िक रा य िकसी भी धम को वीकार नह करे गा। रा य का कोई अपना िविश धम नह होगा।
इन दोन िवचारो म एक कार का अंतिवरोध भी रहता है। भारत क धमिनरपे ता ने दोन के िमि त व प को वीकार िकया।
िजसके अनसु ार रा य सवधम-स भाव के साथ अपने को धमिनरपे भी बनाये रखता है। (चंढोक : 2010) हालाँिक चंढोक अपने
अ य लेख म समाज का सेकुलरीकरण पर अपना िवचार रखती है। जो एक ऐसी ि या है जो आधिु नकता के इितहास तथा
आधिु नकरण के िसलिसले से जड़ु ी होती है। िजसका िनरा चंढोक समाजशा ीय िव लेषण दो आधार पर ततु करती है। एक
तरफ यि गत तािककता के आधार पर धम के म य सामंज य, दसू री तरफ रा य के ारा िकसी भी धम को वैधािनक वाय ा
नह दान िकया जायेगा। (चंढोक : 1999) इसक ंसिगकता इस बात से है क भारत म िविवधता और सां कृ ितक बहलतावाद
को भारतीय समाज क मख ु िवशेषता मना जाता है, िजसके िलए हर कार क िवशेषता को सरु ि त रखना भी भारतीय रा य क
िज मेदारी बनती है।
इसी म म राजीव भागव ने धमिनरपे ता को तीन आधार पर प रभािषत िकया है। एक उ चय िवशे य से यल ु रवाद (hyper
substantive secularism), दसू रा अ ा ि या मक से यल ु रवाद (ultra procedural secualrism), तीसरा संदभयु
से यल
ु रवाद (contextual secularism)। म से उ चय िवशे य से यल ु रवाद के ारा धम और रा य के बीच पृथ कता दान
िकया जाता है। इस पृथ कता क मा यता िवशेष मू य पर आधा रत होती है। िजसम वाय ा, िवकास, तक के आधार पर दान
िकया जाता है। दसू रा अ ा से यल
ु रवाद रा य के प से पृथ कता दान करता है। यह पृथ कता नौकरशाही और तकनीक
तं के नाम दान क जाती है। तीसरा संदभयु से यल ु रवाद जो सैधांितक दरू ी के िस ा त पर आधा रत है। भागव भारत म इसी
से यलु रवाद को मानते ह। जो धम का समावेश\बिह कार और रा य के जड़ु ाव\उदासीनता के सवाल पर लचीला ि कोण
अपनाता है। धम से इसका जुड़ाव तथा उदासीनता परू ी तरह से इस बात पर िनभर करती है िक इससे वतं ता तथा समानता के
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मू य को बढ़ावा िमले या इनक उपे ा होती हो। मल ू प से से यलु रवाद का यह िवचार है िक वह धम म ह त ेप कर सकता है
या िफर यह इस बात पर तय होता है िक िकये गये ह त पे से वतं ता और समानता के मू य को बढ़ावा िमलता है या नह ।
य िक संदभयु से यल ु रवाद इस बात क मा यता देता है क यि गत अिधकार और समहू अिधकार के बीच टकराव न हो,
समानता और वतं ता के बीच टकराव तथा वतं ता और बुिनयादी ज रत के सतं ुलन होने के बीच टकराव को िकसी सामा य
या अमतू िस ातं क मदद से हमेशा सल ु झाया जा सकता है। इ ह सल ु झाने का तरीका यह है क हर मामले पर अलग से यान
िदया जाये और ितयोगी दाव के बीच एक अ छा संतुलन कायम िकया जाय। ये हो सकता है क इससे जो िन कष िनकले उससे
कोई दावेदार परू ी तरह से संतु न हो लेिकन काफ हद तक दोन को सहमत िकया जा सकता है। इस आधार पर से यल ु रवाद का
औिच य न के वल स दाय के बीच एकजटु ता को बनाये रखने के िलए बि क जनता के साधारण जीवन क सरु ा के िलए भी
रखा गया है। राजीव भागव यह भी प करते ह िक भारत का से यल ु रवाद राजनीित से धम के अलगाव का मतलब रा य क
सं थाओ ं से धम का परू ा तरह बिह कार नह होता। दोन के बीच कुछ संपक रह सकता है। साथ ही वे आपसी फासले भी कायम
कर सकते ह। होना तो यह चािहए िक धम और राजनीित न तो आपस म परू ी तरह गथु े रह और न ही परू ी तरह पृथक् हो पाये।
भागव इसी ि थित को उसल ू ी फासला कहते ह। लेिकन इस फासला को बराबर दरू ी का िस ातं भी नह समझ लेना चािहए।
य िक बराबर दरू ी के िस ातं के तरह रा य ारा ह त पे या ह त ेप न करने का फै सला इस आकलन पर िनभर करता है िक
धािमक वतं ता और नाग रक क समता को बढ़ावा देने का मकसद िकससे हल होगा। (भागव;1989) यहाँ यह मह वपणू हो
जाता है िक भारत म से यल ु रवाद का आयाम या है।
इस न पर डोना ड ि मथ क बहचिचत पु तक “इिं डया एज ए से यल ु र टेट” अिधक ासिं गक है। ि मथ का मानना है िक
से यलु र रा य क अपनी समझ रा य, धम और यि के बीच अंतसबंध पर आधा रत होता है। इसके कई पहलू ह उनका पहला
संबंध यि और धम के बीच होता है िजसम रा य कह नह आता। यानी इसके तहत यि रा य के िकसी दबाव के िबना
िविभ न धम क दावेदारी का आकलन करने के िलए वतं है। उनके पास अपने ज म या चनु े हए धम म इ छानसु ार संशोधन
करने या ठुकराने का अिधकार होना चािहए। ि मथ का दसू रा संबंध यि और रा य के बीच िनधा रत करते ह िजसम धम का
कोई थान नह होता। इस तज पर रा य को यि का आकलन उनके धम क अनपु ि थित म करना चािहए। यहाँ यह मह वपणू है
िक यि के अिधकार और उसके कत य, उसके धािमक िव वास से भािवत नह होना चािहए। इसका आशय यह है िक
सावजिनक थान पर िनयिु या कराधान िकसी यि के धम का िवचार करके नह होना चािहए। तीसरा संबंध रा य और
िविभ न धम के बीच मानते ह, जो पहले दोन संबंध का वजूद इस तीसरे संबंध पर िनभर करता है। (ि मथ 1963) लेिकन
भारतीय से यल ु रवाद के सदं भ म ि मथ का मानना है क भारतीय रा य और धम इन दोन म पृथ कता म असफल रहा है।
(चढं ोक : 2010)
इस सै ांितक बहस के म म किवराज का मानना है िक से यल ु रवाद को संरचना मक प से दो आधार पर समझा जा सकता है।
एक तरफ आज़ादी के पहले से यल ु रवाद क बहस दसू री तरफ आज़ादी के बाद से यल ु रवाद क बहस, किवराज मानते ह िक
आज़ादी के पहले से यलु रवाद क बहस यादा वीकार थी। य िक उसका िवमश भारतीय भाषा म हआ करता था। हालाँिक
उपिनवेशवाद के संघष म यह िवमश दो भाषा ने ले िलया है एक तरफ िहदं ी दसू री तरफ इिं लश, िजसके प रणाम व प आज़ादी
के बाद लगातार भारतीय भाषा को नजरंदाज िकया गया है। जो आज भारत के िविवधता को अपने अनभु व म तुत करने म
असफल महससू करने लगी है।
से यल ु रवाद के सै ािं तक िवमश को आगे बढ़ाते हए पाथ चटज के िवचार को उद् िहत िकया जाये जो भारतीय से यल
ु रवाद के
मौिलक मू य सिह णतु ा पर आधा रत है। िजसम सिह णतु ा को तीन आधार पर प रभािषत िकया है। सही मायने म भारतीय
से यल ु रवाद का मौिलक मू य सिह णतु ा ही है। एक तरफ समझौता तथा संिवदा के आधार पर दसू रा प रणाम के आधार पर,
तीसरा यि य के ित आदर के आधार पर। समझौता का ता पय यह ही िक सामािजक समझौते के िबना पर समाज म रहने का
करार लोग को पहले से अपने धम का अंदाजा नह होता है। इसिलए इ ह पर पर सिह णतु ा पर सहमती बनानी पड़ती है। वह
दसू रा प रणाम आधा रत तक का मानना है क सिह णतु ा को अपनाना असिह णु होने से अिधक कारगर है। तीसरा आधार जो
यि य को आधार बनाने का आ ह करता है, वह नैितक तक महु यै ा करता है। पर तु या भारतीय मामलात इस प रभाषा के

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नज रये रखे जा सकते ह? इस िसलिसले म पाथ चटज ने बहत रोचक दलील ततु क है। िजसम इ ह ने रे मंड िविलय स क
िव यात रचना क वड्स पर िट पणी करते हए विटन ि कनर के िवचार को काश म लाते ह। िजसम ि कनर का मानना था िक
िकसी भी अवधारणा को नया अथ उस समय नह िमलता जब उसे नयी प रि थितय पर लागू करने वाले तक कामयाब होते ह यह
भी होता है िक उन तक क नाकामी के कारण ही वह अवधारणा नयी प रि थित म नये अथ पाती है। इसी तज पर भारत म
से यल
ु रवाद के नये अथ पर िवचार करते समय हम से यल ु रवाद के समथक के दाव को परखना चािहए िक भारतीय रा य और
समाज म इसे आम मा यता िमल गयी है। इसी ि या म भारतीय से यल ु रवाद एक नये प म सामने आता है। िजसम
से यलु रवाद का मलू पि मी मानक अथ न के वल जैसा का तैसा बना रहता बि क उसक सफलता म भारतीय कामयाबी का
योग भी जड़ु जाता है। दरअसल से यल ु रवाद के नये भारतीय अथ को का योग जैसे ही हम इसे लागू करते ह तो यह
ता कािलक प रि थितय से मेल िमलाप करने म असफल रह जाती है िजससे से यल ु रवाद भारतीय समाज के सामने अ वीकार
हो जाता है (पाथ चटज : 2005)। चटज का यह िव लेषण इस बात से भी है िक िजस पि म ने से यल ु रवाद जैसे अवधारणा को
ज म िदया उसक ऐितहािसक प रि थितयाँ भारतीय प रपे य से िब कुल जुदा थ । य िक इितहास म कोई भी ऐसी तारीख नह
दज क गयी है जहाँ यह आइने के तरह देखने को िमले िक रा य और धम जैसी अलग-अलग स थाओ ं म िकसी भी कार का
यु हआ हो। इस आधार पर हम से यल ु रवाद के भारतीयकृ त आवधारणा क िशना त आज भी िचतं नशील है। य क वतं
भारत म जब से से यल ु रवाद का थान िबदं ु सिु नि त िकया गया है तब से सम याओ ं क फे रिह त सामने आयी है। चाहे समान
नाग रक काननू का मामला हो, या मिहलाओ ं को मिं दर म शु और अशु का मामला हो, मि जद के टूटने या मिं दर के बनने का
मामला हो। मसलन दिु नया के जो भी उदाहरण मौजदू है वो िसफ़ पृथ कता क दीवार के िहसाब से उ र चाहते ह। िजस पर पाथ
चटज का मानना है िक भारतीय से यल ु रवाद िवशु भारतीय अवधारणा मक दिु नया से िनकलता है वह दरअसल एक
आधारहीन िक म का िवचारधारा मक दावा करता है िजसे यायोिचत नह ठहराया जा सकता है।
इसी म म आशीष नंदी ने अपने एक लेख “िद पॉिलिट स ऑफ़ सेकुल र म एंड िद रकवरी ऑफ़ रलीजस टॉलरे स” म धम को
दो आधार पर प रभािषत िकया है। एक तरफ धम िवचारधारा के प म, दसू री तरफ धम आ था के िलए। नंदी के िनगाह म धम
आ था के प म धम एक जीवन शैली है और यावहा रक प से बहलतावादी और सिह णु सरं चना क तरह सामने आता है।
वही ँ िवचारधारा के प म धम आमतौर पर राजनीितक और आिथक िहत यानी गैर धािमक ल य के िलए संघष करने के िलए
आबादी के िह स क िशना त और प रगणना करता है। यह फक करने के बाद नंदी एक मह वपणू बात क पिु और करते ह िक
से यल ु रवाद क राजनीित आधिु नक रा य के िनमाण क उन ि याओ ं का ही अंग है जो धम को िवचारधारा के प म थािपत
करती है नदं ी अपने इस परू े लेख म यह नतीजा िनकालते ह िक आधिु नक कृ त से यल ु रवाद पर िनभर रहने के बजाय हम नाग रक
के िविभ न आ थ म िनिहत सिह णतु ा के दशन, तीकवाद और धमशा का अनसु धं ान करना चािहए। हम यह भी उ मीद करना
चािहए क दि ण एिशया क रा य णाली दैिनक जीवन म िह दवु ाद, इ लाम, ईसाइयत, बौ वाद और िसखमत धािमक
सिह णतु ा का पाठ सीख सके गी (नदं ी; 1990)। हालाँिक नदं ी के अ य लेख “एटं ी सेकुल र ट मैिनफे टो” म भारतीय से यल ु रवाद
क आलोचना ततु करते ह। िजसम नदं ी भारतीय से यल ु रवाद क सरं चना मक अवधारणा का िवरोध करते ह िजसम नदं ी
से यल ु रवाद के दोहरे िवभाजन को देखते ह। एक तरफ तो धम को राजनीित से अलग रखने वाला होता है जो पि मीकृ त
आधिु नकतावादी िक म का है, दसू री तरफ धम का िवरोध न करके यरू ोपीय के ि त क रता पर आधा रत है। नदं ी ने अपने घोषणा
प म यह दावा िकया है िक भारतीय से यल ु रवाद दसू रे प को गोड िकया है। िजसका तक यह है िक आज़ादी के बाद राजनीित
गोलबदं ी का दायरा शहर तक ही सीिमत था इसिलए से यल ु रवाद क ि या कामयाबी से चल रही थी लेिकन जैसे जैसे
लोकतांि क सहभािगता का िनमाण हआ से यल ु र क सीमा साफ होने लगी इसके प रणाम व प धम क बरु ाइयाँ राजनीित म
ाचार तथा िहसं ा को सीिमत नह कर पाई। इस आधार पर से यल ु रवाद क रपंथी राजनीित को ज म िदया। (नदं ी : 2002)
नंदी के इस लेख क सबसे बड़ी िति या ि लोक नाथ मदन ने अपने लेख “secualrism इन इट्स लेस” म ततु िकया है।
(1998 : मदन) य िक मदन को धम और समाजशा पर िवशेष महारत हािसल थी। इस लेख म सामा यतः मदन से यल ु रवाद
क सीमा का िववरण तुत करते ह। िजसम इस बात से यादा सचेत िदखते ह िक हमने से यल ु रवाद या सेकुलरीकरण को
अपनाने तथा इसे अपना कर इसके मतलब को िकस कार नाकाम कर िदया? य िक मदन यह मानते ह िक दि ण एिशया म धम
एक कार क पर परा म िनिहत रहा है (चढं ोक : 2010)। इसिलए से यल
ु रवाद भारतीय समाज के िलए असहज सा बना हआ है।
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िजसके संदभ म मदन ने मु यत: तीन और अलग-अलग तक तुत िकये ह। पहला जीवन के साझा िस ातं के प म
से यलु रवाद दि ण एिशया के िलए अस भव सािबत होता है; दसू रा, रा य ारा कायवाही के आधार पर यह अ यावा रक हो
जाता है; तीसरा, यह भिव य के िलए भी कोई कारगर िवक प ततु करने म असफल है। हालाँिक मदन का यह तक इसिलए भी
आव यक है िक से यल ु रवाद धािमक और सांसा रक म फक करने म असफल है। भारत क ि थित यह है िक यहाँ सां कृ ितक
हालात उ च-नीच वाले ह। इस आधार पर धािमकता और से यल ु रवाद इनके अलग-अलग दायर म वैधता हािसल नह कर
सकता। इसिलए ोटे टेट ईसाइयत और ानोदय से ज मी यह से यल ु रवाद क अवधारणा भारतीय म पनप पा रही नही ह (भागव
: 1998)। मदन ने अपने लेख म “से यल ु े र म एंड इट्स लेस” म यह भी मा यता पेश क है िक दि ण एिशया के मौजदू ा हालात
म से यलु रवाद के आधार पर कोई साझा मू य या उसल ू हािसल नह िकया जा सकता। यहाँ तक क रा य के ारा अपनाई गयी
गितिविधय का यवहार भी अ यावहा रक हो जाता है। इसके पीछे मदन का तक यह है िक दि ण एिशया यादातर आबादी
िकसी न िकसी धम म सि य होती है या अनयु ायी क तरह देखते ह। आगे मदान यह कहते ह िक सरकार चलाने के आधार के
प म इसक अ यावहा रकता के दो कारण हो सकते ह– पहला बौ धम और इ लाम सरकारी धम या सरकार ारा रि त धम
घोिषत कर िदये ह। दसू रा धािमक तट थता या सभी धम से समान दरू ी रखना भी बहत मिु कल है। दरअसल से यल ु रवाद थोड़े से
ही लोग का भारत म सपना है। वे लोग समाज को अपने गिठत अवधारणा म समाज को ढालने का यास करते ह। इसका एक
उदाहरण मदान, नेह के पु तक “िड कवरी आफ इिं डया” का बहस पेश करते ह। िजसम नेह का याल यह था िक अलौिकक
शि य ारा सब कुछ िनयिं त होने का िव वास सामािजक धरातल पर गैर-िज मेदाराना माहौल को तैयार करे गा। आधा रत
िचतं न और खोजबीन क जगह भावनाएँ और भावक ु ता भावी हो जाती है (नेह 1996; पृ ठ सं या 543)। नेह अपनी इस
पु तक म बेिहचक यह वीकार करते ह िक धम उ ह आकिषत नह करता। य िक धम क बिु नयाद म जीवन को लेकर या जीवन
क सम याओ ं को सल ु झाने का कोई बेहतर ा प नह है, िनि त प से िव ान से इसक तल ु ना नह क जा सकती (नेह
1996; पृ ठ 32)। मदान क इस सम त चचा से यह िन कष िनकलता है िक से यल ु रवाद को भारतीय रा य ने मजबूत आधार
दान नह िकया। यह भी उिचत है िक भारतीय रा य आव यक प से अपने आपको से यल ु र रा य घोिषत िकया है लेिकन
भारतीय समाज का बहत बड़ा िह सा धम के रीित- रवाज पर फै सले लेता है। (मदान; 1989)
हालाँिक अिकल िबल ामी का मानना है िक भारतीय कां ेस यह नह कह पाई िक से यल
ु रवाद से उसका मतलब या है, ना ही
नेह जो से यल
ु रवाद क प रभाषा बना रहे थे, उसम भी प ता का आभाव था।
इन सब बहस से हटकर अम य सेन भारतीय धमिनरपे ता के 6 मतभेद को सामने रखते ह—1. अनाि त वावादी आलोचना;
2. प पातवादी आलोचना; 3. सामदु ाियक पहचान को रा ीयता पर वरीयता क आलोचना; 4. मिु लम समदु ायवादी
आलोचना; 5. आधिु नकता िवरोधी आलोचना; 6. सां कृ ितक िवषमता आधा रत आलोचना; थम आलोचना म अम य सेन ने
धमिनरपे ता के अि त व पर यान के ि त िकया है, िजसम उनका मानना है िक भारतीय से यल ु रवाद पा ा य िचंतन पर अपनी
छाप छोड़ने म असफल रही है य िक िवदेशी संवाददाता और प कार भारत म धम से यल ु रवाद को देख नह पाते वह यही तुलना
करते रह जाते ह िक िह दू भारत, मिु लम पािक तानI इसके बीच ही से यल
ु रवाद क मल ु बहस पीछे रह जाती है। यहाँ मलू प से
अम य सेन ने दो बात पर िवशेष यान िदया है। एक तो यह भारत के से यल ु रवादी यह दावा करते ह िक िह दओ
ु ं को मसु लमान
से यादा अिधकार िदए गये। यह तक भारतीय से यल ु रवाद को अ छी तरह पालन करने का आ ह भी करता है। लेिकन इनके
बीच खास बात यह है क यह से यल ु रवाद के व प को नकारता नह है। दसू री अि त ववादी आलोचना का मानना है िक
भारतीय से यल ु रवाद के सही व प का िनधारण नह हो पाया है। य िक यह भी पाया गया है िक भारत ने िजस से यल ु रवाद को
सवधम-स भाव के प म प रभािषत िकया है उसम “स भाव” के अथ को ही समझने क आव कता है। जहाँ राजनीितक और
वैधािनक तर पर सभी धम के बीच स भाव का िवचार वीकृ त हो जाने पर भी उस स भाव के िविश व प के िनधारण का
न और उस स भािवत के भाव े के िनधारण का न तो बच ही जाता है। यह तो चनु ने क भी सम या है; जैसे
धमिनरपे ता काननू को ल। जहाँ समभाव के दो व प प ह; एक तरफ तो काननू को सभी धम पर समान प से लागू िकया
जाये या िफर दसू रा व प िकसी भी धम पर लागू नह िकया जाये। अब इससे यिद सरकार के धािमक मामल म भूिमका का
अंदाजा लगाया जाये तो बात िनकल कर सामने आयगी। पहला मत सरकार ारा िकसी िवशेष धम का प न लेने का प रचायक
है दसू रा धािमक मामल म अलग रहने का प रचायक है। भारत जैसे देश म िकसी भी धम मानना अिधिनयम को िकसी भी आयाम
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म सवसहमित देना मिु कल है। दसू री प पाती आलोचना इस आलोचना का मल ू दावा है िक भारत के संिवधान, राजनीित और
काननू पर परा म से यल ु रवाद के आड बर म अ पसं यक मिु लम समदु ाय के ित प पात क नीित चल रही है। इन आलोचक
का मानना है िक यह मिु लम समदु ाय को िवशेष तरजी देता है। इस आलोचना के मा यम से अम य सेन से यल ु रवाद के मू य
समानता पर ही भारत के बीच मतभेद को रखते ह। िजसम डॉ. अ बेडकर के एक वा य का उदाहरण तुत करते ह िक भारतीय
संिवधान सभा ने तथा िनमाता ने मलू भतु काननू िजसम दीवानी फौजदारी काननू को सबके िलए बराबर प से लागू करने क बात
उठी थी िजसे अ बेडकर भारतीय एकता के िलए ज री मानते थे। अंततः जो संिवधान बना उसम इस कार क समानता का
समावेश नह हो पाया। इसम यह नह है िक भारतीय संिवधान सभी लोग के िलए समान नाग रकता काननू के लागू होने के िलए
सदैव यास करता रहा। लेिकन यह मामला यायालय भी बहत मौके पर कोिशश करता रहा है। लेिकन राजनीितक दल ने इसे
वोट क राजनीित का आधार बनाकर एक कार क राजनीित को ज म दे िदया है। िजसे प पातीय राजनीित भी खा जाती है। इस
मामले के िलए आव यक यह है िक िविभ न धािमक समुदाय क वाय ा िविभ न भारतीय समदु ाय के बीच समता क उस
िवचार पर भी दया रखी जाये जो नाग रक का गैर-धािमक सां दाियक वग करण करने का आधार बना सकते ह। तीसरी
आलोचना को ारंभ करने से पवू सेन क उस कथन क ासिं गकता आव यक है क भारत क रचना पृथक् पहचान का
सि मिलत प है। यह आ पे इन दोन क तल ु ना म अिधक बौि कतापणू है। इसम िकसी यि क एक पहचान राजनीितक प
से वरीयतापणू दी जाती है। िजसम िह द,ू मिु लम या इसाई के प म एक यि क पहचान शािमल है। इस अवधारणा के दो
पहलू ह जो असतं ोष पैदा करते ह। िजसम एक प यह दावा करता है िक भारत म िह दओ ु ं को बहमत है, उसी कारण भारत म
िह दओु ं का बल बहमत है िजसके प रणाम व प भारत क रा ीय पहचान का कोई न कोई व प िह दू है। दसू रा प रा वाद
क कसौटी का है जो एक सम प ताकता सव यापी पहचान पर ही आ ह चाहता है। हालाँिक यह यानपवू क समझना होगा िक
भारत का प र य सलाद क त तरी के समान है। इस सदं भ म भारतीय वतं ता आ दोलन के नेता के धािमक और से यल ु र
प र य को याद करना आव यक हो जाता है। जैसा िक पािक तान का समथन करने वाले तथा ि रा क अवधारणा को तुत
करने वाले िज ना यिद पािक तान को इ लाम क एक पहचान के प म देखते थे, लेिकन उ ह धम परायण मसु लमान कहना
मिु कल है, य िक भारत म भी मौलाना आज़ाद जैसे ितिनिध थे जो धमिन मसु लमान थे। इसी कार यामा साद मख़ ु ज के
जीवन म भी िह दू धम को लेकर यि गत िन ा थी। लेिकन राजनीितक गोलबंदी ने धम और राजनीित म एक ऐसा अजीब तरह
का िहसं ा मक संबंध थािपत िकया है िक रा ीयता को रा रा य क अवधारणा म समेिकत करने क भल ू कर जाते ह। इसी
कारण से िविभ न धािमक समदु ाय व अ य सामािजक िवभाजन म राजनीितक एकता दान करने म सम या आने लगती है (सेन;
2005)। िजससे से यल ु रवाद अपने परू े िव वास को हािसल करने म असफल रह जाता है। चौथी आलोचना म सेन का मानना है
क मिु लम समहू के ित एक कार का अलगाव और इस अलगाव को इितहास का सहारा लेकर उ ह िह दू के िखलाफ
समझना इितहास का गलत योग है। य िक अकबर जैसे राजाओ ं ने अपने शासन काल म सभी धम को या सभी कार के समहू
से जड़ु ी सम य , या उनक गित पर बहस का चालन बहत पहले से ही ारंभ िकया था। तब शायद से यल ु र जैसी अवधारणा
नह थी लेिकन इसके मू य म सबसे पहले शािमल होने वाली सिह णतु ा अव य शािमल थी। (2005; सेन) लेिकन भारत म
वीकार क गयी से यल ु रवाद क अवधारणा ने इसे कभी भी अपने िव लेषण का आधार नह बनाया। यहाँ सेन एक इितहासकार
क भाँित अपने िवचार को रखते ह िजसम उनका मानना है क हम से यल ु रवाद के उस प से बचना होगा िजसम मसु लमान और
िह दू के बीच दोषारोपण का अतीत ख चा गया है। यहाँ सेन यह कहते ह िक भारत क से यल ु रवाद का तालुकात इस बात से नह
हो सकता िक मसु लमान ने या िकया? और या नह िकया, उन मसु लमान शासक के दोष को आज के 140 िमिलयन
मसु लमान पर नह आरोिपत कर सकते। यह नह सिदय पवू िकसी मसु लमान राजा क हरकत के आधार पर आज के भारत के
मसु लमान क राजनीित िन ा पर न नह उठाया जा सकता। पाँचव आलोचना म से यल ु रवाद क आधिु नक िवरोधी आलोचना
पर गौर िकया जायेगा। यहाँ सेन आशीष नंदी के कथन का सहारा लेते हए अपने िव लेषण का ारंभ करते ह, जहाँ नंदी का मानना
है िक भारत जैस-े जैसे आधिु नक हो रहा है वैस-े वैसे सां दाियक िहसं ा भी अिधक हो रही है। नंदी क अवधारणा के मल ू तंभ
स दाय िनरपे ता से ही आधिु नकता के िव लेषण से अपना काम चला लेना चाहगे। नंदी ने अपने तक को बहत सश
अिभ यि दी है; स दाय िनरपे ता क िवचारधारा को वीकार करना वच ववाद का नया तकाधार है जो िवचारधारा को नयी
अफ म के प म तुत करता है। हालाँिक सेन नदं ी क इस अवधारणा से सहमत नह है उनका मानना है क हम आधिु नकता क

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आलोचना नह करनी चािहए बि क यह कोिशश करनी होगी िक आधिु नकता िकस कार से भारत म से यल ु रवाद से सामंज य
बैठा सकती है। अतं म सेन ने सां कृ ितक आधा रत आलोचना को पेश िकया है, िजसम यह िदखने क िवशेष कोिशश करते ह िक
भारत िकस कार अपनी िविवधता के आलावा भी से यल ु रवाद का बेहतर िवक प बन सकता है। िजसम वह पािक तान तथा
ि टेन का उदाहरण भी ततु करते ह। जहाँ उनका मानना है िक पािक तान जैसे देश म इ लाम के िखलाफ बोलना अपराध माना
जाता है, ि टेन म भी इसाई के िखलाफ बोलना अपराध मना जाता है। लेिकन भारत का प र य अलग है, यहाँ िकसी भी धम के
िखलाफ या िकसी भी धम से असतं ोष रखा जा सकता है (सेन; 2005)।
भारतीय सिं वधान तथा से युलर रा य
इस शीषक का िव लेषण भारतीय सिं वधान के इस मह वपणू संसोधन से ार भ करते ह जो 1976 म 42 संशोधन नाम से जाना
जाता है। संिवधान क तावना म धमिनरपे या पंथिनरपे को जोड़कर एक नये प से से यल ु र रा य क घोषणा क गई। इसके
पहले भी भारत के संिवधान म अंिकत अनु छे द से यह मािणत होता रहा है िक भारत एक से यल ु र रा य है। िजसका अिभ ाय
यह है िक रा य िकसी धम को थािपत नह करता है, तथा रा य के ारा िदए जाने वाली हकदारी के सदं भ म धम के नाम पर
िकसी भी तरह का भेदभाव नह िकया जाएगा, िश ा जगत म भी िकसी तरह का भेदभाव नह िकया जायेगा। िबना िकसी भेदभाव
के धािमक आज़ादी। भारतीय संिवधान ारा िजस रा य का िनमाण िकया गया है उसम से यल ु र रा य क िवशेषता िव मान है।
जहाँ आिटकल 25, 27, 28 धािमक वतं ता क गारंटी देते है।
इसी म म 14,15(1),29(2)स समान नाग रकता क गारंटी देते ह। अनछु े द 14 का मानना है क धम मल ू वंश जाित, िलंग या
ज म थान के आधार पर िवभेद का ितषेध करे , अनछु े द (29) यह घोषणा करता है िक िकसी भी नाग रक को रा य ारा
संचािलत सं थान म िसफ धम, न ल आिद के आधार पर नामांकन देने से इक ं ार नह िकया जा सकता।
हालाँिक राजीव भागव भारतीय से यल ु रवाद तथा भारतीय सिं वधान के इस अनछु े द क कुछ िवशेषता को ततु करते ह। िजसम
भारतीय से यल ु रवाद यि य क धािमक और गैर-धािमक वतं ता और समानता से जड़ु ा हआ है। दसू रा यह सामदु ाियक
अिधकार को भी वीकार करता है। य िक इस से यल ु रवाद का ज म ऐसे समाज म हआ है जो बह-धािमक है। इसिलए यह धम
के भीतर भु व के साथ-साथ धम के बीच भु व पर दया देता है। इसके िलए भारतीय सिं वधान म सक ं पना मक पेस मौजदू है।
तीसरा सै ािं तक दरू ी के िवचार के ित वचनब है जो एक प ीय बिह कार, पार प रक बिह कार और कठोर तट थता समान दरू ी
से परू ी तरह अलग िवचार है। (राजीव भागव; 2011)
आलोचना मक िन कष
इन सम त िव लेषण से यह आव यक है िक से यल ु रवाद को समझने के िलए दोषारोपण तथा पि मी पर परा पर आधा रत
अवधारणा के माग को नजर अदं ाज करते हए यह आव यक है िक भारतीय समाज िकस कार के से यल ु रवाद मॉडल को
अपनाने के िलए तैयार है। जैसा िक जावेद आलम का मानना है िक पार प रक समाज िजस मू य या िववाद का िजस आधार पर
िनपटारा करता है वह आधिु नक म पणू नह है। इसिलए नवीन णाली क ज रत पड़ेगी, िजसम समानता और लोकतांि क
से यल
ु र क आव यकता पणू हो सके ।
िवचार-िवमश
 या भारत एक से यल
ु र रा य है?
 भारतीय से यल
ु रवाद को लेकर सै ांितक िवमश या है?
 भारतीय से यलु रवाद तथा आधिु नकता के बीच िकस कार का स बधं है?
 संवैधािनक से यलु रवाद क िवशेषता या है, यह िकस कार से पि म से िभ न है?
 या भारत म ‘धम एक आ था से यादा िवचार बन गया है’ या आप इस कथन से सहमत ह, आलोचना मक िव लेषण
कर?

48
सदं भ-सच
ू ी
 Chandhok, Neera. (2010). Secularism in Nirja Gopal Jayal and Bhanu Mehta (ed) the companion
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 Bhargva, Rajeev. (2005). Indian secularism in promise of secular democracy in India. New Delhi:
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पाठ-2
सा दाियकता पर िवचार-िवमश

 तावना
 उपिनवेशवाद और सा दाियकता
 सा दाियकता, िवचारधारा तथा समदु ायवाद : सै ाि तक बहस
 सा पदाियकता और भारतीय लोकतं
 िन कष
 न सचू ी
 स दभ-सचू ी
तावना
भारतीय राजनीित म धम और राजनीित के संबधं को िव लेिषत करने वाली दो िवचारधारा ह जो भारतीय राजनीित म एक मख ु
िवमश के तौर पर िनरंतरता भी रखती है। िजसम थम, पंथिनरपे या से यल ु रवाद दसू री सा दाियकता, जहाँ पंथिनरपे ता
प रभािषत तौर पर धम और राजनीित म पृथ कता क दीवार प रभािषत करती है। हालाँिक भारत म इस अवधारणा को पूणतः नह
अपनाया गया है। भारत क पंथिनरपे ता ‘सवधम-स भाव’ के प म वीकार क गयी है। वह दसू री िवचारधारा धम और
राजनीित को िमलाने क पैरोकारी करती है। िजसका यावहा रक प यह है क लोकतांि क राजनीितक ि या क उपे ा करके
जब रा य ौ ोिगक िवकास और बंधक य शैली के दम पर रा िनमाण बनाने क कोिशश करता है तो उसके के म
बहलतावाद क उपे ा और सम पीकरण का आ ह िनकलता है। िजसका प रणाम यह होता है िक रा य िविवधता को खबू ी
मानने के बजाय उसे कमजोरी समझने लगता है। िजससे बहसं यकवाद जैसी अवधारणा ज म लेती है, जो सा दाियक आधा रत
राजनीित को परवान चढ़ा देती है। ये तमाम प रघटनाएँ एक कार क आशंका पैदा करती ह जो लोकतं , धमिनरपे ता तथा
पंथिनरपे ता के दावे करने वाले ‘रा य’ पर एक बार पनु ः िवचार करने के िलए े रत करती है। तुत इस लेख म इन प रघटनाओ ं
का िव लेषण तीन भाग म मल ू प से िकया जायेगा। थम भाग म सा दाियक तथा भारतीय राजनीित म इसके उभार तथा
आधिु नक ऐितहािसक कारक िकस कार से इस अवधारणा के ित उ रदायी रहे ह? दसू रे भाग म सै ांितक बहस के मा यम से
उस त य क िशना त क जायेगी, सा दाियक भारतीय राजनीित के िलए ासिं गक तथा अ ासिं गक माहौल को तय करती है?
तीसरे और अिं तम भाग म सा दाियकता िकस कार से भारतीय राजनीित के ित चनु ौतीपणू माहौल को इ तयार करती है।
उपिनवेशवाद तथा सा दाियकता
अं ेज के भारत म आने और धीरे -धीरे अपनी वच वता को बनाना तथा अपनी सरकार को कायम करने के िलए भारत क
िविवधता को िभ नता म प रवितत करना आव यक समझा। हालाँिक इसे पहले जब अं ेजी सरकार क भु वशीलता म धीमापन
था, उस समय िह दू और मसु लमान म कुल िमलाकर कोई आपसी कड़वाहट या वैर-भाव नह था। य िप दोन धम म ऐसी कुछ
वृितयाँ थ , जो एक दसू रे के िलए सिह णतु ा पर आधा रत थ । वह समाज का िवभाजन वग के आधार पर था। धनी थे, गरीब थे,
िशि त थे और अनपढ़ थे शासक थे, जा थी। इन दोन गटु म िह दू थे मसु लमान थे। मगु लकाल म भी ऐसा ही था। जैसा िक
1857 के िव ोह म िह दू और मुसलमान ने एकजुटता के साथ िवदेशी सरकार से यु िकया। िजसे आज िह द-ू मिु लम एकता के
प म याद िकया जाता है। (च ा : 1972)

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िफर भी रा ीय आ दोलन के ज म के बाद अं ेजी ि कोण म प रवतन आया। यह प रवतन एक कार क शासन यव था को
थािपत करने क राजनीित से े रत था। िजसम अं ेजी शासन क मल ू सम या यह थी िक रा ीय आ दोलन के चार और सार
के साथ एक खतरा पैदा हआ िक यिद जनता सगं िठत होगी तो सा ा य के सामने एक भयंकर सम या उपि थत हो जायेगी।
िजसके प रणाम म इस संगिठत जनता को बहत िदन तक गल ु ामी क जंजीर म जकड़ा नह जा सकता। इसके एवज म दमन और
िनयं ण के स त कदम के अित र , अं ेज ने कोिशश क िक अगर सभं व हो तो रा ीयता के वार को पूरे तौर पर सख ु ा िदया
जाये। रणनीितक तौर पर यह िनणय िलया िक जनता को असगं िठत िकया जाय, उ ह आपस म समझने और ित पधा करने, इस
ित पधा म एक समदु ाय के ित दसू रे समदु ाय के बीच षे क भावना का िनमाण हो सके । तथा िविभ न धम के नाम पर लोग
को बांटने और भारतीय राजनीित म सा दाियक वृि य को ो साहन देने का िनणय िकया। उ ह ने मसु लमान अ पसं यक का
प वीकार होने का दावा भी ततु करने लगे, साथ ही जम दार भ-ू वािमय और म यवग को अपने प म लाने क कोिशश
ार भ क । अदालत म िह दी के थान पर उदू लाने के आदं ोलन म मदद देकर उ ह ने उ र देश और िबहार के िह दू मसु लमान
के बीच सामािजक और सा दाियक कड़वाहट को ज म िदया। इसका प रणाम यह हआ िक भारतीय समाज ख ड-ख ड बटं ने
लगा, िजसम जाित, धम, पहचान मल ू प से शािमल थी, दसू री तरफ अं ेजी हकूमत और मजबतू होती है। (च ा :1972)
य िप इसका प रणाम यह हआ िक वा तिवक सम याओ ं को सा दाियक सम याओ ं के प म पेश करने लगे। सा दाियक
चार के भाव म आकर लोग अपने शोषण अ याचार और पीड़ा के वा तिवक ोत को पहचानने म असमथ हो जाते ह और
उनके एक छ सा दाियक कारक क क पना कर लेते ह। (च ा : 1990) यह वा तिवकता भारतीय उपिनवेशवादी इितहास क
ासिं गकता म स दायवाद क भिू मका को दशाता है। जैसे पवू बंगाल और मलाबार म का तकार और जम दार तथा पंजाब म
िकसान -देनदार और यापा रय , साहकार के संघष को िह दू मसु लमान सघं ष के प म िचि त िकया गया। इस सघं ष को
सा दाियक बना िदया गया।
ऐितहािसक प से िविपन च ा का यह न अित आव यक हो जाता है िक वे कौन से तरीके थे, िजनके ज रये ि िटश हकूमत ने
भारत म सा दाियकता को पाला-पोसा? यह न वतमान म भी अपनी ासिं गकता को बनाये हए है बस इसक श दावली म
यिद थोड़ा प रवतन कर िदया जाय िक ऐसी या ऐितहािसक खािमयाँ ह िक भारत म आज भी सा दाियक दगं ा राजनीित का
मु य उ पाद बना हआ है? िविपन च ा ने अपने न के छः कारक बताये ह। थम, कारक (उपिनवेशवाद) िह दओ ु ,ं मसु लमान
और िसख को लगातार ऐसे अलग-अलग समदु ाय का दजा िदया, िजनक सामािजक राजनीितक पहचान म कुछ भी साझा नह
था। बताया गया िक भारत न तो एक रा है, न ही रा के प म उसका िवकास हआ है, न ही वह िविभ न जाितय का समु चय
है। बि क उसका गठन तो धम के आधार पर हआ है, िजनके िहत आपस म टकराते ह। दसू रा कारक सा दाियकतावािदय को
सरकारी सरं ण और रयासत दी गई। िजसम उ च वग िवशेष प से शािमल था। तीसरा कारक, सा दाियक प , यि य और
आंदोलन के ित असाधरण सिह णतु ा िदखाई गयी। चौथा कारक, सा दाियक माँग को तुरंत वीकार कर िलया जाता था और
इस तरह सां दाियक संगठन को राजनीितक मजबूती दी जाती थी तथा लोग पर उनक पकड़ बनी रहती थी। उदाहरण के िलए
1885 से 1905 तक कां ेस अपनी एक भी माँग मंजरू नह करा सक जबिक मिु लम लीग ने 1906 म वायसराय के समझ अपनी
सा दाियक माँगे रखी। उ ह सामा य मान िलया जाता था। इसी तरफ 1923 म अं ेजी ने िजसे ‘क यनू ल अवाड’ कहा जाता है
उसके मा यम से उसक तमाम मु य माँगे मंजरू कर ली। पाँचवाँ कारक ि िटश सरकार सा दाियक सगं ठन और नेताओ ं को
उनके तथाकिथत समदु ाय के मािणक व ा के प म त काल वीकार कर लेती थी, जबिक रा वादी नेताओ ं को एक छोटे से
वग या िविश वग का ितिनिध माना जाता था। अतः मसु लमान को सरकार के ित वफादार रहना चािहए। सैयद के अनसु ार
भारत एक रा नह । उनके अनसु ार कां ेस एक िह दू सं था है, िजसके उ े य ‘मसु लमान िहत के िव ’ है। (च ा : 1990)
इन सभी चचा क लक र म एक लक र और भी सामने आती है िक भारत म सा दाियकता के िवकास का मु य कारण यहाँ कई
धम का सम त अि त व था। लेिकन िविपन च ा, आिद य मख ु ज तथा मृदल
ु ा मुखज तथा सचु ते ा महाजन ने इसे अवा तिवक
करार िदया है। इनका मानना है िक भारत म सा दाियकता के िवकास म धम क कोई खास भिू मका नह थी। धम को प रभािषत
करते हए इन इितहासकार का मानना है िक धम के दो प है, एक प म िन ा है, वह प ित िजनके अनसु ार यि अपने जीवन
का संचालन करता है, दसू रा धम पर आधा रत सामािजक राजनीितक पहचान क िवचारधारा यानी सां दाियकता, दसू रे श द म

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कहा जाय तो धम सां दाियकता का कारण नह बनता, लेिकन सभी तरह के सा दाियकतावादी धािमक मतभेद का इ तेमाल
करते ह। (च ा : 1990)
सा दाियकता, िवचारधारा तथा समुदायवाद
भारत म सा दाियकता के िव से यल ु रवाद क अवधारणा को पेश िकया गया। लेिकन इसका ता पय िब कुल भी नह है िक
िकसी धम िवशेष म आ था रखना स दायवाद को बढ़ावा देना है। भारतीय सिं वधान के अनसु ार, धम के चार- सार तथा उससे
संबंिधत सं थाय खोलने का अिधकार देता है, वही सिं वधान हम दसू र के भी अिधकार , कत य के ित आदर करना भी बताता
है। इस तरह क ि या तब तक सा दाियक नह होती जब तक िक इ ह िहसं क तथा क रता के साये म न ढाला जाय। इस
आधार पर यह भी सवाल मह वपणू हो जाता है िक सा दाियकता का आशय या है और इस िवचारधारा का त व या है?
जैसा िक िविपन च ा इसके आशय तथा त व को तीन चरण म िचि हत करते ह। िजसम पहले चरण म सां दाियकता का पहला
चरण इस िव वास का है िक एक ही धम मानने वाल के सांसा रक िहत–यानी राजनीितक, आिथक, सामािजक और सां कृ ितक
िहत भी एक जैसे होते ह। सा दाियक िवचारधारा के उदय का पहला आधार है। इसी आधार पर धम पर आधा रत सामािजक-
राजनीितक समदु ाय क अवधारणा का ज म होता है। सां दाियकता का दसू रा त व यह िव वास है िक भारत जैसे बहभाषी समाज
म एक धम के अनयु ाियय के सांसा रक िहत म िभ नता होती है। इन सांसा रक िहत म सामािजक, सां कृ ितक, आिथक और
राजनीितक िहत शािमल होते ह जो अ य िकसी भी धम के अनयु ाियय के सांसा रक िहत से िभ न ह। सा दाियक के दसू रे चरण
को िविपन च ा उदार सा दाियकता/नरमपंथी सा दाियकता कहते ह। जहाँ वह इस बात को प करते ह िक उदार
सा दाियकतावादी भी मल ू तः सा दाियक राजनीित ही कर रहे थे। िफर भी उनक आ था उदारवादी, लोकतांि क, मानवतावादी
और रा ीयवादी मू य म भी थी। जो इस बात को भी वीकार करते थे िक भारत का िनमाण ऐसे िविभ न धमाधा रत समुदाय से
हआ है। िजसके अपने-अपने और अलग-अलग िहत ह। िजसम टकराव क भी यदा-कदा नौबत बनती है, लेिकन इसके सतं ल ु न
क भरपरू गुंजाइस इस त य से होती है िक सामा य रा ीय िहत से इनका सतं ुलन बनाया जा सकता है। िजसके उदाहरण व प
1925 के पवू िह दू महासभा मसु िलम लीग, अली बंधु तथा 1922 के बाद महु मद अली िज ना, मदनमोहन मालवीय, लाजपत
और एन.सी. के लकर इसी उदारवादी सां दाियक ढाँचे के तहत काम करते थे। (च ा : 1990)
सां दाियकता के तीसरे तथा अिं तम चरण म िविपन च ा ने इसके उस पहलू को दशाया िजसने भारतीय इितहास म िवभाजन तथा
अलगाववादी वृि य को ज म िदया। िजसे च ा उ -सा दाियकता क सं ा देते ह। यानी ऐसी सा दाियकता िजसके तौर
तरीके फाँसीवादी ह। िजसका परू ा जायका ही िहसं क था। इस कार क सा दाियकता ने इस बात क घोषणा का काम करना
ार भ िकया िक मसु लमान तथा उसक सं कृ ित तथा िह दू तथा उसक सं कृ ित के अि त व पर खतरा है। इस कार क वृि य
ने एक अलगाववादी राजनीित को ज म िदया िजसम रा को ही धम के नाम पर देखा जाने लगा िजसक भाषा, कम और
आचरण म भय, घृणा तथा यु क बोिलयाँ शािमल थ । िजसम धम एक आ था के थान पर िवचारधारा का प हण करने
लगा। (च ा : 1990)
इस बहस म धम, िवचार या आ था पर वतं भारत क अपनायी गयी से यल ु रवाद क नीितय पर भी गहरा ं है। यह
से यलु रवाद भारत क इसी सा दाियकता को समा करने तथा इसके िवपरीत अपनाया गया है। लेिकन भारत म इस अवधारणा
का अपना एक िह सा अिधक िववािदत प रि थितय म भी रहता है। िजसम एक तरफ से यल ु रवाद बताता है िक अ पसं यक
तथा बहसं यक के बीच िकस कार और िकस हद तक सामंज य रखा जाय। इस न के उ र क जिटलता को जावेद आलम
रा ीय आ दोलन के प र य म देखते ह। िजसम उनका मानना है िक भारतीय रा ीय आदं ोलन कभी यह आिखरी तौर से तय नह
कर पायी िक सेकुलर से उसका मतलब या है। कां ेस के अिधवेशन के समय सामदु ाियक एसोिसएशन को भी अपने जलसे करने
िदये जाते थे, हालाँिक उ ह अिधवेशन थल का इ तेमाल करने क इजाजत नह दी जाती थी। (आलम : 2005)
िजसका प रणाम यह िनकलता है िक हम से यल ु रवाद क धारा म सा दाियक बहाव को देखने लगते ह। िजसका एक रोचक
संग नदं ी पेश करते है। िजसम साधारणतः आधिु नकता के आयाम म से यल
ु र को एक िहंसा का ितिब ब मान कर चलते ह। जो
िविपन च ा के तीसरे सा दाियक त य क ऐितहािसक पृ भिू म पर खड़ा हआ नजर आता है। हम यह मान सकते ह िक यहाँ नदं ी

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एक इितहासकार क भिू मका म है। ऐसा इितहासकार जो वतमान म आधिु नकता का इितहास िलख रहे ह । जहाँ वह आगे कहते ह
िक जब से यल ु र आधिु नकतावादी अपनी पराजय को जीत म बदलने के िलए धािमक और जातीय िहसं ा का खेल खेलता है। वह
क रपंथी क तरह अपने समदु ाय अथवा धम के िहत का साधन करने क कोिशश नह कर रहा होता है। वह तो एक राजनीित
क भाँित बहसं यक िनि य धमावलंिबय को राजनीित और चनु ावी समथन के िलए गोलबंद करने के िलए इसं ानी ज बात का
लाभ उठा रहा होता है। राजनीित म आधिु नक संचार यव था और सं थाओ ं क भूिमका जैस-े जैसे बढ़ती है वैस-े वैसे परू ी से यल
ु र
और वै ािनक तरीके से धािमक या जातीय िहसं ा सगं िठत करने क मता और लोभन क इस राजनीित म वृि होती चली
जाती है। (नंदी : 1998)
आज का भारत इसी घटना म से गजु र रहा है, पहले के दगं म क रपंथी क संगिठत कायवाही और हर प ारा लगाया जाने
वाले राजनीित फायदे नक ु सान का दायरा मह वपणू था, लेिकन तर उसका बहत छोटा था। लेिकन हाल के वष म सगं ठन के
आयाम बहत बढ़ गये। अ सी के दशक म हई िभंवडी, िद ली, अहमदाबाद क सा दाियक िहसं ा परू ी तरह िनयोिजत थी। यह
प रघटनाएँ ‘धम के सं थागत राजनीितकरण’ को दशाती ह। हालाँिक इस अवधारणा क शु आत उपिनवेशवादी स ा के
दरिमयान ही हई है। जब भारत म से यल ु रवाद ने समाज के बीच म एक खास अथ बनाया था, जहाँ लोग म धािमक सिह णतु ा
सकारा मक प रवेश म रहती थी। लेिकन ि िटश राज ने इसे ‘फूट डालो राज करो’ क नीितय से उलझाया। इसका प रणाम यह
हआ िक समदु ाय को एक दसू रे के िखलाफ खड़ा कर िदया। उ ह िविभ न-िविभ न मु पर लामबंद िकया जो एक समदु ाय से दसू रे
समदु ाय के िवपरीत थे। उसम िवरोध और िहसं ा जैसी वृि याँ शािमल थ । इस शु आती दौर को जावेद आलम धम के सं थागत
राजनीितकरण क शु आत मानते है। (आलम : 2010)
य िप स दायवादी के इस सै ाि तक बहस म एक अ तर समदु ायवाद तथा स दायवाद के बीच आव यक है। िजसम यह न
भी आव यक प से उठता है िक या भारत के राजनीित म से यल ु रवाद क प रभाषा क पदावली म स दाय तथा समहू दोन
को िमला िदया गया है सव थम इसक प रभाषा से ार भ करते ह स दायवाद भारत के स दभ म मल ू तः िह द,ू मसु लमान,
िस ख और ईसाई के प म योग िकया जाता है। चँिू क धम का बिु नयादी आधार पर पर सिह णतु ा के मू य से स प न होता है,
इसिलए स दाय के साथ राजनीित का योग होने पर धािमकता के व प अिभ यि को बदलने का यास करती है। लेिकन
धम क इस पदावली का योग जब िकसी खास तरह के राजनीितक मकसद को ा करने क कोिशश करने लगता है, उसके
िलए धम के अनयु ाियय क गोलबंदी करने के िलए वह दसू रे िकसी धम के ित घृणा का चार करने लगती है, इस तरह धम के
नाम पर कुछ अपने कुछ पराये घोिषत कर िदये जाते ह। तब उस ि थित म स दायवाद एक िहसं क तथा नकारा मक प धारण
कर लेती है। यहाँ हम यह भी यान रखना चािहए िक भारत म सदैव ऐसी ि थित नह रही है। इितहास से लेकर वतमान तक इस
कार के कई उदाहरण िव मान ह। इसिलए स दायवाद को िसफ क रता के िनगाह से नह देखना चािहए।
इसी म म समदु ायवाद समाज म सामा य िहत को उ म जीवन क एक ताि वक सक ं पना के प म माना जाता है जो समदु ाय
के जीवनशैली को प रभािषत करती है। यहाँ सामा य िहत खदु को लोग क वरीयताओ ं के ितमान म समायोिजत नह करता है।
बि क उन वरीयताओ ं का मू यांकन िकया जाता है। जैसा िक डेिवड िमलर ने नैितक समदु ाय क अवधारणा ततु क है। िजसके
अतं गत यह मानते ह िक समदु ाय का िनमाण तथा उसके सद य का एक दसू रे के ित एक िवशेष कार का नैितक दािय व होता
है। इसके स दभ म उदारवादी याय समदु ाय क भावना क माँग करते ह, अथात् इस भावना क माँग करते ह िक नाग रक को यह
मानना चािहए िक वे एक देश म एक दसू रे से जड़ु े ह। उ ह सामिू हक प से खदु को शािसत करना चािहए, एक दसू रे के ित एक
जटु ता महससू करना चािहए। (िकमिलका : 2000)
हालाँिक भारतीय सदं भ म समदु ायवाद तथा स दायवाद के अंतर के प म राजीव भागव का संग अिधक मह वपणू तथा रोचक
है। िजसका िव लेषण वह राजनीितक िस ा त के दायरे म रहकर िकया है। वह धािमक समदु ाय का उदाहरण लेते ह। य िक भागव
मानते ह िक वतमान म इससे ही यादा ं उ प न हए ह। मान लीिजए िक हम िहदं ू समदु ाय से जड़ु े ह और अपने आपको िह दू
कहते ह। कई िह दू चीज के िलए आप गव का अनभु व भी करते ह। इस संदभ म हम मदन मोहन मालवीय का उदाहरण ले सकते
ह। वे समदु ायवादी मॉडल के अंतगत ही आते ह। इस मॉडल म यह बात भी शािमल है िक यिद आप कोई ऐसा काम करते ह
िजससे िहदं ू समदु ाय के नाम और ित ा को ध का लगता है और इस पर शिमदा भी होते ह तो यह िफरकापर ती

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(सा दाियकता) का ल ण नह है। हाँ, दसू रे धािमक समदु ाय के ित वैम यस रखना, अपनी धािमक अि मता को अ य समदु ाय
क धािमक अि मता से नीचा िदखाना सा दाियक राजनीित का ल ण है। जहाँ अतं म राजीव भागव का मानना है िक
से यल
ु रवाद को धम-िवरोधी के प म ततु करके समदु ायवादी के बीच के फक को ख म कर िदया है, हर समदु ायवादी त व को
भी सा दाियक खाने म डाल िदया है। (भागव : 2015)
सा दाियकता और भारतीय लोकतं
सम त ऐितहािसक और सै ाि तक चचा के दरिमयान भारतीय रा ीय आ दोलन तथा वतं भारत के त वीर के िनमाण के िलए
आव यक प से यह शािमल रहा होगा िक इस िविवधता को िकस कार एकता के बंधन म बांधकर ऐसे लोकतं का िनमाण
िकया जाय जो बंधु व, अवसर क समानता, वतं ता के मू य को समािहत करे । भारतीय संिवधान के सफलतम योग म ऐसा ही
हआ। जहाँ धािमक आजादी को मौिलक अिधकार म शािमल िकया गया है। िजसम इस बात का यान रखा गया है िक िविवधता
को एकजटु ता के आधार पर वीकार िकया जाय िक उसे सम िपत िकया जाय। भारतीय सिं वधान समय प रि थितय को देखते
हए भारतीय धमिनरपे ता को मजबतू करने का भी काम करता है। जैसा िक 42वाँ संिवधान संशोधन के मा यम से तावना म
पंथ िनरपे ता योग करके कई कार के न को खा रज िकया गया है, जो भारतीय सेकुलर रा य के ऊपर लगा करते थे।
य िप यह भी नह पणू तः कहा जा सकता सा दाियकता के िव अपनाई गयी से यल ु रवाद क िवचारधारा धम को आ था के
थान पर िवचारधारा के प म यादा ो सािहत करता है। य िक अकसर यह देखा जा रहा है िक सा दाियक दगं ा एक कार से
राजनीित क उ पादकता बन गया है। ( ास : 2003)
हालाँिक रजनी कोठारी लोकतं के चनु ावी आयाम तथा बढ़ते तकनीक शाही के सदं भ म सा दाियकता का िव लेषण करते ह।
िजसम यह अंिकत करते ह िक रा य के तकनीक शाही व प और रा के सां दाियक व प का यह मेल-जोल बनकर उभरा है
िजसम मल ू सवाल कोठारी ने यह उठाया है िक या चनु ाव आधा रत लोकतं उ रा वादी भावनाओ ं को बढ़ावा देता है? या
वह सा दाियकता को बढ़ावा देता है? ऐसा लगता है िक चनु ावी मजबू रयाँ लोकतं पर हावी होती जा रही ह। ऐसे लोकतं म
लोग क हैिसयत िसफ वोटर क होती है और ऐसे वोटर क िगनती-भर क जाती है या उ ह एक खास प म झक ु ने के िलए
मजबरू कर िदया जाता है। कहने का ता पय है िक उनक भिू मका बहत सीिमत हो जाती है। चनु ाव क इस ि या म इसका मु य
उ े य है उसके बहमत को येन के न कारे ण अपने प म लाना। यानी लोकतं बहसं यवादी बन जाता है और समाज म बढ़ते
वु ीकरण के माहौल म यह बहसं यकवादी बहसं यक और अ पसं यक के बीच झडप का प ले लेता है। सा दाियकता क
राजनीित इसी बहसं यवाद क उपज तीत होती है। (कोठारी : 1998)
लोकतं क ऐसी िवकृ ित समझ का जब तक जोरदार िवरोध नह िकया जाता, तब राजनीित को सा दाियकता के गत म जाने से
नह बचाया जा सकता इस बात पर जोर देने क ज रत है िक चनु ावी लोकतं आंिशक लोकतं है। चनु ावी लोकतं के भीतर
घोर िति यावादी त व भी िजंदा रह सकते ह। इसके उलट स चा लोकतं जन संगठन क यापक बिु नयाद पर िटका होता है। ये
जन सगं ठन अमे रक राजनीित पर के वल दबाव समहू के प म ही नह काम कर पाये, बि क हर तर पर खासकर जमीनी तर पर
काम करने वाले संगठन होते ह। लेिकन भारत म चनु ावी ित ि दता ने सा दाियकता को इस कार तुल दी िक जनसमहू क
भिू मका को सीिमत कर िदया है। (कोठारी : 1991)
इस बुिनयादी लोकतांि क ढाँचे म नयी जान डालने के िलए भािवत तबक को लगातार कोिशश करनी होगी, अथात खदु
अ पसं यक को इसके िलए यास करना होगा। न िसफ धािमक अ पसं यक को बि क सामािजक प से तमाम अ पसं यक
समहू को भी इसके िलए काम करना होगा। दिलत , आिदवासी, ऐितहािसक प से उ पीिड़त िपछड़े समदु ाय से लेकर
जंगलवासी और वासी सभी सामािजक प से अ पसं यक समदु ाय है। ये जमावड़ा रंग-िबरंगा लग सकता है, लेिकन ये सभी
उस आिथक और सामािजक ि या के ज रये हािशए पर धके ले जा रहे ह जो अपने वभाव म तकनीक शाही है। इस चचा से
एक खास बात यह िनकलकर आती है िक एक यि धम के आधार पर हम उसे रा ीय वरीयता देने लगते ह। जैसा िक अम य
सेन ने इस रा ीय वरीयता के न का तीखा अवलोकन िकया है। िजसम अम य सेन वतमान राजनीितक प र य को देखते हए
यह मानते ह िक धम तथा धम म आ था का मामला के वल सामािजक यवहार का मामला नह रह गया। बि क यह राजनीितक

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मामले म आ था का मामला है। जहाँ एक यि को एक िह द,ू मसु लमान, िसख या ईसाई के प म “पहचान” को राजनीित ि
से उसके भारतीय होने पर वरीयता दी जाती है। िजसके दो प ह— थम प यह आ ह करता है िक भारत म िह दओ
ु ं का बल
बहमत है और इसी कारण भारत क रा ीय पहचान मु यतः िह दू पहचान का ही कोई न कोई व प है। दसू रा रा वाद क
कसौटी पर ही अपना आ ह तैयार करने लगता है, जो सलाद क भरी लेट म समरसता को देखने के अलावा वह कुठाली म
समरसता देखने का यास करता है। (सेन : 1998)
अम य सेन तथा कोठारी के िव लेषण म दो बात सामने आती है—एक तरफ अम य सेन सा दाियकता के आयाम म
एक पीकरण क ि या को इसका कारण मानते—िजसम वह इस त य का भी आ ह करते ह िक धािमक पहचान के मह व को
उसक राजनीितक स दभशीलता से अलग व प म समझना होगा। (सेन : 1998) हालाँिक भारत के कई आम चनु ाव म इस
ि या को िहसं क तथा सफल प म अपनाया गया है। िजसम रा य एक िहसं क िकरदार के प म नजर आने लगता है। दसू री
तरफ कोठारी सा दाियकता को मल ू भतू मु े गरीबी िवके ीकरण, वग य संघष, रोजगार जैसे मु से भटकाने वाला कारक मानते
ह। इन मु से भटकाव ही सा दाियकता को मजबतू ी दान करती है। इस आधार पर सा दाियक राजनीित का बढ़ावा लोकतं
के बुिनयादी ढाँचे को कमजोर होने के साथ जुड़ा है।
इन िव लेषण के म म यह बात भी प है िक भारत म सा दाियक दल के उभार ने इसे और मजबतू ी दी है जो अपने याशी
का चनु ाव, स दाय आधा रत वु ीकरण के आधार पर करते ह जो चनु ाव के समय स दाय िवशेष के वोट को अपनी ओर
आकिषत कर। साथ ही धािमक दबाव गटु के ारा अपने िहत क पिू त के िलए शासन क नीितय को भािवत करते है। अनेक
बार पथं / स दायवाद के नाम पर पृथक् रा य क माँग भी क जाती है। जैसे नागालै ड म पृथक् रा य क माँग ईसाई धम के
अनसु ार क गयी, अकाली दल ारा मा टर तारा िसहं के नेतृ व म पवू पजं ाब म पृथक् िस ख ा त क माँग पथं के आधार पर
क गई। िजससे लोकतं अपने बिु नयादी वसल ू से िवचिलत हो जाती है। हालाँिक रजनी कोठारी अपनी पु तक म मल
ू िच ता यही
उठाते ह िजसे मो रस जो स ने संक ण राजनीित के ारा सक
ं ण िहत को बढ़ावा देने का कारण बताया है। इन चचाओ ं का मु य
संकेत स दायवाद को अिधक ताकतवर बनाकर भारतीय लोकतं तथा समकालीन भारत के सामने एक चनु ौती के प म देखा
जाता है। सु ीम कोट के पवू यायाधीश कुलदीप िसहं कहते ह िक भारत म धम िनरपे ता को समा थ सा दाियकता म बदल
िदया गया है। (दैिनक जागरण : 2011)
य िप भारतीय राजनीित तथा लोकतं म कई ऐसे मोड़ आये िजसम सा दाियक राजनीित एक सफल भिू मका म रही है। जैसे
1979 म तिमलनाडु म दिलत को जबरद ती मुसलमान बनाना तथा उ ह िकसी खास राजनीित के तहत भािवत करना,
स दायवाद को बढ़ावा देता है। जैसा िक सलमान र दी का मानना है िक भारत म तथा हमारे इस याह होते ससं ार म मज़हब एक
ज़हर बन गया है। िसफ धमातरण का मामला नह बि क भारत ने कई दगं को देखा है जैस—े 1984 म हए िसख दगं े तथा 1985 म
शाह बानो का के स, हाल ही म हए मजु फरनगर का दगं ा िज ह ने भारतीय धम िनरपे ता को नवीन ढगं से सोचने पर मजबरू
िकया।
िन कष
पंथ िनरपे ता के ठीक िवपरीत स दायवाद एक ऐसी िवचारधारा है जो यह मानती है िक समाज धािमक स दाय म बटं ा हआ है
िजसके िलए पि डत जवाहर लाल नेह हमेशा से सचेत रहे, 1936 म िलखा—“यह बात कभी नह भल ू नी चािहए िक भारत म
सा दाियकता एक परवत घटना है, िजसका ज म हमारे आँख के सामने हआ है।” (च ा : 1990) इस चनु ौती का समाधान
लोकतािं क िवकास और सामािजक समरसता म देखने क आव यकता है जो भारत क परंपरा से भी जुड़ा हआ है।
अ यास के िलए न
1. भारत म सा दाियकता लोकतं के सम िकस कार चनु ौती है?
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2. भारत म सा दाियकता के उदय म ऐितहािसक प रपे य क भिू मका का िव लेषण क िजए।
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3. सा दायवाद के सै ाि तक िवमश पर िनबंध िलख?
…………………………………………………………………………………………………………
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स दभ-सच
ू ी
 Pantham, (2004). ‘Understanding Indian Secularism: Learning from its recent crities’: in R. Vova
and S. Palshikar (ed.) Indian Democracy, New Delhi: SAGE
 Chandoke, (2010). ‘Secularim’ in P. Mehta and M. Jayal (ed.) The Oxford Campanion to politics in
India, New Delhi: Oxford University Press.
 Kothari, Rajani (1998). Communalism in Indian Politics, New Delhi: Rainbow Publication
 Sen, Amartya (1998). ‘Secularism and its Discontents’, in R. Bhargava (ed.) Secularism and its
critics. New Delhi: OUP.
 Nandy, A. (1998) An anti-secularist manifesto, in Ashis, Nandy (ed.) The Romance of the state and
fate of dissent in the tropics, New Delhi: OUP
 Brass, Paul (2003). ‘Explaining communal violence’ in the production of hindu-muslim violence in
contemporary India. New Delhi: OUP.
 Choudhary, Sunil (2001). Communalism and secularism in Indian politics: Study of BJP, New
Delhi: Rawat Publication.
 च ा (1990), ‘सा दाियकता का उदय और िवकास’ म िविपन च ा, मृदल ु ा मख
ु ज , आिद य मख
ु ज और अ य (स पा.)
भारत का वतं ता संघष, नई िद ली : िह दी मा यम काया वयन िनदेशालय, िद ली िव विव ालय।

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इकाई-IV : जाित और राजनीित
पाठ-1
राजनीित म जाित और जाित का राजनीितकरण

सारांश
भारतीय राजनीितक के अ ययन हेतु हम सव थम भारत म शि -संरचना को समझना अित आव यक है िजसम
सामािजक ढाँचा िजसके अतं गत जाित, वग, िपतृस ा मक आिद समि लत है। ये सभी भारत क परंपराओ ं के व प म लंबे समय
से िवरासत म िमले ह। अतः हमारे समाज क इन सरं चनाओ ं को समझना हमारे िलए अित आव यक हो जाता है िक कै से िविभ न
िव ान ारा इसक या या िभ न-िभ न कालखंड म िभ न-िभ न प क जाती रही है और यह सामािजक-आिथक-राजनीितक
प रवेश के बदलते प र य के साथ कै से काय कर रहा है।
हम प रवितत भारतीय राजनीित को समझने के िलए इन िस ांत के साथ संबंध म उभरती हई राजनीित को समझना अित
आव यक है। इस अ याय म हम भारत म जाित और उसके राजनीित के साथ संबंध के संदभ म स ा संरचना का िव े षण करगे
और यह भी समझने क कोिशश करगे िक िकस कार जाित क राजनीित भारत म शासन/स ा और राजनीित का एक मह वपणू
अिव छे िदत अगं रहा है।
उेय

 भारत म िवशेष प से जाित के संदभ म स ा-संरचना को जानना।


 सामािजक ि कोण म जाित संरचना के बारे म अ ययन करना।
 राजनीितक सदं भ म जाित क सरं चना के साथ आ मसात करना।
 जाित संगठन भारतीय लोकतं को कै से दिशत करता है, यह कै से उभर रहा है तथा इसने कै से भारतीय समाज के िनचले
िह से को भी भािवत िकया है।
 िपछड़ी जाित के िलए संवैधािनक सरु ा उपाय को जानना और;
 हम यह भी जानगे िक, भारत क राजनीितक सरं चना म िकस कार जाित का आिवभाव हआ है और भारतीय समाज पर
इसका या भाव पड़ा है।
भूिमका
भारत सरकार अिधिनयम, 1935 से पहले अनुसिू चत जाित को िड े ड लासेस के प म वग कृ त िकया गया था। इस
सामािजक समहू को भारतीय समाज म मानव िवकास के मामले म सबसे गरीब, कमजोर और सबसे अधीन थ लोग के समूह म
वग कृ त िकया गया है। भारत के पाँच रा य - उ र देश, पि म बगं ाल, िबहार, तिमलनाडु और आं देश म अनसु िू चत जाित
क आधी से भी अिधक आबादी कि त ह। आिथक और सामािजक बिह कार क ऐितहािसक ि या और जाित पर आधा रत
भेदभाव इस समहू के िपछड़ेपन और दयनीय ि थित के िलए उ रदायी है।
‘अनसु चू ी’ सिं वधान के िलए एक अनसु चू ी को सदं िभत करता है तथा अनसु िू चत जाित ऐसी जाितय , जनजाितय अथवा
समहू या जनजाितय के समहू इसके अतं गत आते ह िज ह संिवधान के योजन के िलए भारतीय संिवधान के अनु छे द 341 के
अधीन माना गया है। भारत सरकार अिधिनयम, 1935 म इन अनसु िू चत जाित जनसं या का िनधारण िन न, विं चत, िवशेष प से
सामािजक आिथक आधार पर िनधा रत करने पर िवचार करता है िक वे :-

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 िहदं ू सामािजक संरचना म िन न थान पर रहते ह।
 सरकारी सेवाओ ं म अपया ितिनिध व ह।
 यापार, वािण य तथा औ ोिगक े म अपया प म ितिनिध व करते ह।
 शेष समदु ाय से सामािजक और शारी रक प से बिह कृ त और पीिड़त ह।
 स पणू समदु ाय के बीच शैि क िवकास का आभाव।
जाित क शि सरं चना: एक सामािजक प र े य
जाित का नामकरण पतु गाली श द ‘का टा’ से िलया गया है िजसका अथ है ‘न ल’ अथवा ‘वंश’ या भारतीय संदभ म
जाित के नाम से जाना जाता है, जो ज म से सबं ंिधत है। सरं चनावादी जाित को एक बदं ेणी समहू के प म प रभािषत करते ह
और सां कृ ितक प ित इसे मू य , िव ास और आचरण का समहू मानती ह।
के टकर (KETKAR)- एक सामािजक समहू के प म एक जाित, िजसक दो िवशेषताएँ ह:-
1. सबसे पहले, सद यता उन लोग तक ही सीिमत है िज ह ने उसी समहू म ज म िलया हो अथात वश ं ानगु त सद यता;
2. दूसरे, सद य पर एक ढ सामािजक िनयम के ारा अपने समहू के बहार िववाह करने पर िनयं ण लगा िदया जाता है।
सी.एच.कोलेई (C.H. COOLEY) – ‘जब एक वग पणू तया वश ं ानु म पर आधा रत होता है, तब हम उसे एक जाित
कहते ह’।
अतः जाित एक सामािजक तरीकरण के प म है िजसका सबं ंध ेणीब समाज क पदानु िमत णाली म आनु ािनक
प रि थित से जुडा है, जो शु ता एवं अशु ता क अवधारणा पर आधा रत है। पांडुिलिप के अनसु ार, ा ण ि य, वै य और
शु से ऊपरी थान पर कािबज है तथा अ पृ य लोग शू से भी िन न थान पर खड़े ह। शू और अ पृ य के साथ िविभ न
िनश ताओ ं एवं िन न अ मताओ ं के साथ िन निलिखत प म भेदभाव िकया गया।
1. सावजिनक सिु वधाओ ं अथात सड़क , कुओ,ं अदालत , डाकघर , कूल तक पहँच से वंिचत रखना।
2. मंिदर तक पहँच या उ च वग को अशु करने के िलए उनक उपि थित पर ितबंध।
3. वेद के अ ययन क अनमु ित नह है और शु यि नह बन सकते ह।
4. स मानजनक और लाभदायक यवसाय से बाहर रखा गया है इसिलए मेहनती तथा तु छ यवसाय करने के िलए ितबंिधत
ह।
5. रहायशी और आवासीय अलगाव के कारण गाँव से बाहर रहना।
6. सिु वधाओ ं और िवलािसता क व तुओ ं का उपयोग करने से विं चत करना तथा दु हन को ले जाने के िलए घोड़े या साइिकल,
छाता, सोने-चाँदी के गहने और पालक पर सवारी करने के अिधकार से विं चत कर िदया गया।
7. सेवाओ ं तक पहँच का ितबधं ।
8. अलग बतन का उपयोग अिनवाय आव यकता थी।
9. उ च जाित के िनवास क िनधा रत दरू ी से भीतर आदं ोलन या घमू ने-िफरने क अनमु ित नह थी।
10. उ च जाितय क उपि थित म सबं ोधन, भाषा, बैठने और खड़े होने म स मान क अिनवायता।
भारतीय ‘पारंप रक’ समाज के एक तीक के प म जाित एक ‘बंद- णाली’ का ितिनिध व करती है, िजसम पीढ़ी-दर-
पीढ़ी एक समान यवसाय का िवक प चनु ा जाता है, जो आधिु नक पि मी औ ोिगक समाज के सामािजक तरीकरण क
‘खलु ी- णाली’ के िवपरीत प म है, जहाँ यि अपनी मताओ ं के अनसु ार अपना यवसाय चनु सकते ह और समाज के
पदानु म णाली म आगे बढ़ सकते ह। जाित यव था म ऐसी गितशीलता असंभव थी। यह वग णाली से अलग है। वग जहाँ
यवसाय और औ ोिगक करण के धमिनरपे ीकरण क ि या के साथ उभरा है वही जाित पारंपा रक है।
गैर-दिलत : वे कौन ह

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गैर दिलत समुदाय के बारे म दो धारणाएँ मु यतः िस है:-
पहला, गैर-दिलत वह है जो ि ज-ज म (दो बार पैदा हए) ह; ा ण, ि य, वै य और शू
दूसरा, न लीय प से अलग और ऐितहािसक प से बाहरी लोग-आय। े ड रक मै स मल ू र (1823-1900), ारा
ितपािदत इस आय िस ातं ने शू , अ पृ य और आिदवािसय को मूल-िनवािसय के प म माना। मल ू र ने इनको भारत के
मल
ू िनवासी और ि ज को बाहरी लोग के प म माना।
जाित पर अंबेडकर
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने जाित यव था क कठोरता को देखा य िक यह समाज म िवरासत म िमली ेणीब
असमानता पर आधा रत है जो िक िकसी भी कार के िववाद से परे एक बिु नयादी िस ातं के प म समाज म अतं िनिहत है। ये
चार वग न के वल िभ न है बि क पदानु िमत सामािजक णाली म भी असमान प से ि थत है तथा िमक परु कार िवतरण के
आधार के प म समान काय या समान मता को मा यता नह देते ह। यह िनधा रत ेणीब यवसाय पर थािपत या आधा रत
है जो एक पीढ़ी से दसू री पीढ़ी तक िवरासत म िमली है। िहदं ू सामािजक यव था म िविभ न वग के लोग के बीच अंतभ ज और
अंतिववाह पर ितबंध लगाने से िहदं ू समाज म लोग क पर पर ि या को ही बंद कर िदया गया है। उनका कहना है िक िहदं ू
समाज यव था यि के थान पर समाज क इकाई के प म वण अथवा वग पर आधा रत है। जहाँ यि गत यो यता के िलए
कोई गंजु ाइश नह है और यि गत याय पर कोई िवचार नह है। वे समाज के वण आधा रत िवभाजन क िनंदा करते ह य िक
वह वतं लोकतांि क सामािजक यव था के तीन तंभ- वतं ता, समानता और बंधु व कायम रखने म िवफल रहा है। उनके
अनसु ार अलगाव क इस भावना का सवािधक यापक अिभ यि यह है िक जाितय को उप जाितय म िवभािजत िकया गया है।
तो ऐसी भावनाओ ं पर आधा रत सामािजक समदु ाय कै सा हो सकता ह? उ ह ने ‘िह दू सामािजक यव था’ को ‘समानतावादी
वभाव’ के ितकूल माना जो प रि थितय , सं थान और जीवन शैली क समानता को िवकिसत करने क अनमु ित नह देता है।
इस यव था म ‘काय करने क वतं ता’ का आभाव है। य िक सभी यि य का यवसाय तथा तर उनके ज म के आधार पर
िकसी प रवार िवशेष म िनयत होता है। उनका मत था क िह दू उस काननू म िव ास करते ह िजनके ारा लोग को शािसत िकया
जाना है, वह पहले से वेद म िव मान है एवं िकसी भी मनु य को वतमान िनयम म प रवतन करने क शि या अिधकार नह है।
अ बेडकर के अनसु ार ‘िकसी समाज का यह उपखंड अ यतं वाभािवक है। िक तु इन उपखडं ो या िवभाजन के बारे म
अ वाभािवक या अ ा ितक बात यह है क वे वग णाली के खल ु -े ार के व प या च र को खो चक ु े है और जाित नामक व-
संलगन इकाईयाँ बन गए ह। अब सवाल यह उठता है क या उ ह िववश होकर अपने दरवाजे बंद करने या अ तिववाही बनने के
िलये िववश होना पड़ा अथवा वह अपनी इ छा से दरवाजे बदं कर चक ु े थे? इसके िलए, अ बेडकर ने उ र िदया क कुछ लोग ने
अपने ार बदं कर िदए ह, तथा अ य ने पाया क यह उनके िखलाफ बदं है। इसम एक मनोिव ािनक या या है और दसू रा
यं वादी है, लेिकन वे परू क है।
अबं ेडकर ने इस सदं भ म गैबरील टैरेड (GABRIELTARDE) के नकल/अनक ु रण के िनयम को उ तृ करते ह
‘अनक ु रण उ च से िन न तर म वािहत होता है। अनक ु रण क ती ता अलग-अलग दरू ी के अनपु ात म िभ न है....और दरू ी को
यहाँ समाजशा ीय अथ के सदं भ म समझा जाता है। जाित और उसके म िवभाजन या यवसाय के तरीकरण क आलोचना
करते हए अबं ेडकर का मत था िक जाित यव था रोजगार के पनु मू यांकन क अनमु ित नह देती है तथा इसिलए जाित यव था
देश म बेरोजगारी क बहत बड़ी वजह बन जाती है। यह ‘भिव यवाणी क हठधिमता’ पर आधा रत है दसू रे श द म यह ार ध या
पणू िनयित के िस ातं पर आधा रत है।
इसके अलावा, अंबेडकर समाजवािदय क बुि मता पर सवाल उठाते ह और सझु ाव देते ह िक ‘धम, सामािजक ि थित
और संपि सभी शि के ोत ह और सामािजक यव था म सधु ार लाए िबना कोई आिथक प रवतन नह लाया जा सकता।
उ ह ने समाजवािदय को यह भी आगाह िकया है िक सवहारा वग या गरीब वग एक सजातीय ेणी का गठन नह करते ह। वा तव
म, उ ह न के वल उनक आिथक ि थित पर बि क जाित और पंथ के आधार पर िवभािजत या वग कृ त िकया जाता है। इसिलए, वे
उन लोग के िखलाफ खुद को एकजटु नह कर पाते जो उनका शोषण करते ह। िह दू धम म मब पदा म म समुदाय जाित

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यव था के िखलाफ एक आम मोच को गिठत करना असभं व बनाता है। जाितयाँ, उ च और िन न तर क सं भतु ा क एक
ेणीब णाली का िनमाण करती ह, जो जीवन के साथ उनके तर को िवरासत म िमला है और उ ह जाित के सामा य िवघटन
क आशंका है। उ ह इस बात का भय है िक यिद यह िवघटन हो जाएगा, तो उनम से कुछ दसू र क अपे ा अिधक ित ा और
शि खो दगे इसिलए िह दओ ु ं को संगिठत करना सभं व नह है।
वह अपनी पु तक ‘जाित के उ मल ू न’ (1936) म इस मत को य करते है क जाित एक धारणा है; यह मन क एक
अव था है। जाित था का िवनाश या उ मल ू न करने के िलए जाित क पिव ता और िद यता पर आ मण करना आव यक है।
दसू रे श द म िजस धािमक भावना पर जाितभेद आधा रत है, जब तक उसको न नह िकया जाता, तब तक इसको िमटाना संभव
नह है। अत: उ ह ने संवैधािनक ढंग से राजनीितक काननू बनाने क आव यकता पर बल िदया तािक जाित था को समा करने
के िलए तथा िनचले तर के लोग को अिधकार सपं न बनाने के िलए उ ह सश बनाया जा सके ।
दिलत सशि करण के िलए सवं ैधािनक ि कोण
अनसु िू चत जाितय के उ थान के ित सरकार का ि कोण और ह त ेप मु य प से िन निलिखत दो िवचार पर
आधा रत है:-
 सबसे पहले, िपछड़ी जाितय क विं चतता को दरू करना जो ऐितहािसक बिह करण के कारण िपछड़ी जाितय को
िवरासत म िमली है और उ ह सभं वत: समाज म अ य लोग के बराबर लाना;
 दूसरा, देश के सामािजक, आिथक और राजनीितक ि या म उनक भावी भागीदारी को ो सािहत करके उ ह
समाज म बिह करण और भेदभाव के िव सरु ा दान करना।
इन उ े य क ाि के िलए सरकारी सं थान को दो तरफा रणनीित बनाने क आव यकता होती है।
 भेदभाव-िवरोधी या सरु ा मक उपाय;
 देश क िनणय लेने क ि या म उनक भागीदारी के मा यम से िवकास और सशि करण उपाय।
इसिलए इन कमजोर जाितय का शैि क िवकास सरकार के िलए मह वपणू े है य िक इन समदु ाय म कम सा रता
दर है; ाथिमक, मा यिमक और उ च शैि क तर पर उ च ॉपआउट दर, िन न गणु व ापणू िश ा तथा अ यािधक भेदभाव
पणू बिह करणीय थाओ ं का अि त व, जो सशि करण म उनक भागीदारी के ित बाधक है। इसिलए, सरकार िन निलिखत
बात पर जोर देती है:-

 गणु ा मक प से बेहतर शैि क अवसरं चना िवशेषकर उन े म जहाँ मु यतः इन िपछड़ी जाितय का िनवास है;
 शैि क सं थान म आर ण णाली का काया वयन सिु नि त करना;
 थानीय, े ीय, रा ीय और अतं ररा ीय तर पर छा वृि और फै लोिशप के सदं भ म िव ीय सहायता दान करना;
 इन कमजोर सामािजक समहू को उनक गणु ा मक मता बनाने के िलए कोिचगं क सिु वधाएँ दान करना;
 छा एवं छा ाओ ं के िलए िवशेष छा ावास उपल ध कराना;
 िवशेष प से लड़क /मिहला िश ा को सिु नि त करने और मह व देकर इन सवं ेदनशील सामािजक समहू के समान
अवसर को बढ़ावा देना।
भारतीय सिं वधान के अनु छे द 46 म िनिहत नीित-िनदशक त व के काया वयन क सिु वधा के िलए भारतीय सिं वधान म
सरं ण दान िकया गया है:-
‘रा य जनता के कमजोर वग िवशेषकर अनसु िू चत जाितय और अनसु िू चत जनजाितय के शैि क और आिथक िहत
को िवशेष सावधानी के साथ बढ़ावा देगा और उ ह सभी सामािजक अ याय और सभी कार के शोषण से बचाएगा।’

60
इस योजन के िलए अनसु िू चत जाितय से संबंिधत िविभ न ावधान जैसे भाग-3 (मल ू अिधकार)
भाग-4 (रा य के नीित-िनदशक त व), भाग-6, 14, 16 एवं 19 (अनसु िू चत जाित के क याण के िलए मिं य क िनयिु ) म
अंतिनिहत है। भारत का सिं वधान गारंटी देता है:-
अनु छे द 14- काननू के सम समानता।
अनु छे द 15(2)-धम, जाित, वंश, िलंग, ज म थान के आधार पर िकसी को भी दक ु ान , सावजािनक भोजनालय ,
होटल , सावजिनक मनोरंजन के थल , कुओ,ं तलाब , नान घाट , सड़क और सावजिनक थान का उपयोग करने से नह रोका
जायेगा िजसका परू ा यय सरकार ारा उठाया जाता है या जो जनसाधारण के उपयोग के िलए ह।
अनु छे द 15(4)-सामािजक एवं शैि णक प से िपछड़े वग और अनसु िू चत जाित के उ थान के िलए कोई उपाय िकया
जा सकता है।
अनु छे द 16(4)- रा य को यह अिधकार दान करता है िक वह िपछड़े वग के नाग रक के प म िनयिु य या पद म
आर ण के ावधान कर सके ।
अनु छे द 17-‘अ पृ यता’ का उ मल ू न करता है और उसका िकसी भी प म आचरण का िनषेध करता है।
अनु छे द 46- समाज के कमजोर वग के शैि क और आिथक िहत को िवशेष सावधानी के साथ बढ़ावा देना और उ ह
सामािजक अ याय और सभी कार के शोषण से बचाने का आ ासन िदया गया है।
अनु छे द 330-अनसु िू चत जाित के िलए लोकतािं क सं थाओ ं म सीट का आर ण; और अनु छे द-335- सेवाओ ं म
सीट का आर ण/सकारा मक भेदभाव का उपाय है।
अनु छे द 340-रा य को सामािजक तथा शैि क प से िपछड़े वग क दशाओ ं म अ वेषण के िलए आयोग िनयु करने
का अिधकार देता है; तथा
अनु छे द 341(2)- जाितय को एसी के प म समझा जाना िनिद कर।
सरकारी सेवाओ,ं रा य संचािलत और रा य समिथत “शै िणक सं थान ” और िविभ न लोकतांि क राजनीितक िनकाय
म आर ण नीित एक मह वपणू भिू मका िनभाती है; तथा यह भेदभाव िवरोधी या सरु ा मक उपाय का िह सा है। इसका उ े य
सावजिनक े के साथ-साथ िविभ न राजनीितक लोकतांि क िनकाय और सं थान म िपछड़ी जाितय क अनपु ाितक
भागीदारी सिु नि त करना है।
ऐितहािसक प से िव मान भेदभाव और अपवजन /बिह कार के चलन के कारण िपछड़ी जाितय क इस अनपु ाितक
भागीदारी को सकारा मक भेदभाव या सकारा मक कायवाही के िबना सिु नि त नह िकया जा सकता था। इसिलए आर ण नीित
का अथ है वंिचत समहू को िन निलिखत ावधान ारा सामािजक याय सिु नि त करना।
 सावजिनक रोजगार / सेवाओ ं के िलए सरु ा उपाय;
 सरकारी िश ण सं थान म वेश के सबं ंध म ावधान;
 राजनीितक िनकाय और सं थान म क तथा रा य के िवधाियका म सीट के आर ण से संबंिधत ावधान।
भारत के िवकास म जाित, आधिु नकता और लोकतांि क राजनीित: एक राजनीितक प र े य
जाित एक मह वपणू चर/त व है; भारतीय राजनीितक ि या के कामकाज म चनु ाव के प रणाम का िनधारण; दबाव
समहू के प म काय करना और भारतीय रा य और थानीय, े ीय, अतं ररा ीय तर के शासन एजडे म भाव और
राजनीितक दल , उनके नेतृ व और काय म क सरं चना म।
माक गैलटर (MARC GALANTER) ने ‘ ित पधा मक समानताएँ: भारत म काननू और िपछड़ा वग’ (1984) म
वणन िकया है िक वतं भारत के नेताओ ं ने न के वल ‘परंपरागत’ सं था के िव नैितक ि थित के कारण जाित यव था के

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अपगं भाव को मा यता दी बि क सिदय तक भारतीय जनता के अधीन थ वग पर जाित यव था के अपंग भाव को भी
पहचाना और इसिलए उसे एक स ची लोकतं तथा यि गत नाग रकता के िनमाण पर इसके भाव को मा यता दी।
इस कार, भारतीय सिं वधान ने “समान आधार पर लोकतािं क राजनीित के खेल म भाग लेने के िलए वंिचत लोग के
समदु ाय को सश बनाने के िलए काननू ी और सं थागत उपाय सिु नि त िकये।”
जी. एस. घू रये (G. S. GHURYE) ने “जाित था के ल ण” (1991) म िह दू जाित णाली क मु य प से छह
िवशेषताओ ं को िचि हत िकया है:-
 समाज का खंड िवभाजन
 पदानु म
 खान-पान तथा सामािजक आदान- दान पर ितबंध
 नाग रक एवं धािमक अपा ता और िविभ न वग के िवशेषािधकार
 यवसाय के अ ितबंिधत िवक प का अभाव
 िववाह पर ितबंध।
इस कार, जाित एक एका मक णाली है।
एल. ड्युमन (L.DUMON) ने, ‘कै से पदानु म: जाित यव था और उसके भाव’ (1998) म िह दू समाज म ित ा
और शि के बीच िविश संबंध का वणन िकया है। पि मी के िवपरीत, जहाँ शि और पद- ित ा आमतौर पर एक साथ
मौजूद होती है; जाित- था म इन दोन के बीच मतभेद हैl जो जाित-समाज म ितिबंिबत होता है, समािजक यव था क न व
स ा से े “पद या ित ा का है।” दसू रे श द म “पद म शि शािमल है।”
जाित समहू म एक वैचा रक एकता और सां कृ ितक आम सहमित है। ‘सं कृ ितकरण’ के बारे म एम.एन. ीिनवास बताते
ह, जो एक ऐसी ि या है िजससे एक िन न िह दू जनजातीय या अ य जाितय के लोग उसके रीित- रवाज , कमकांड ,
िवचारधारा और जीवन-प ित म बार-बार उ च एवं सामा यत: ि ज जाित के अनु प अपने ही िदशा म प रवतन लाते ह। अतः
अब वे जाित सोपान म उ चतर पद के अिधकारी होने का दावा करते ह। यह आधिु नक भारतीय वछिव म प रलि त होता है,
जहाँ, ‘भारतीय अतीत अप रवतनीय’ ‘परंपरा’ के प म िनिमत है और इसके भिव य क क पना िवकासवादी योजना म
आधिु नकरण के नाम पर अनक ु रण के मॉडल के प म क जाती है। ऐसा माना जाता है िक भारत क एक िवकासवादी सक
ं पना
म, औ ोिगक करण, शहरीकरण और आधिु नक करण क उभरती हई ि याओ ं के साथ जाित का लोप हो जाएगा।
यि गत पसदं के आधार पर सामािजक तरीकरण क एक ‘खल ु ी- णाली’ के साथ जाित, समाज के पारंप रक
तथाकिथत सक ं ण ढाँच को पणू प से बदलने के बजाय, शासन के नए तरीके और आधिु नक ौ ोिगक के बढ़ते योग के
साथ, कुछ हद तक कम से कम इसके सरं चना मक तक को कमजोर करते हए, जाित को मजबतू बनाया जा सकता है।
जी.एस. घू रये ने (G.S.GHURYE) ‘भारत म जाित और न ल’ (1932) पर िट पणी करते ह िक इस प रवतन क
कृ ित गैर- ा ण आंदोलन के उदय के साथ दि णी ातं म अनुभव क गई थी; और तक देते ह िक इस कार के समदु ाय ारा
पदानु म पर हए इस आ मण का अथ जाित का अंत नह है। वा तव म इन लामबंदीयो ने एक नई तरह क सामिू हक भावना
उ प न क है-‘जातीय एकता क भावना’ या दसू रे श द म यह एक ‘जातीय देशभि ’ है।
एम.एन. ीिनवास ने ‘आधिु नक भारत म जाित और अ य िनब ध ’ (1962) म ‘आधिु नक ौ ोिगक के प रणाम और
भारत म ितिनिध ववादी राजनीित’ के बारे म बात क है, जो भारत म औपिनवेिशक शासक ारा प रवितत िकए गए थे। उ ह ने
कहा क जाित आधिु नक करण क ि या म लु होने क बजाय िै तज समेकन कर रही है। आधिु नक ौ ोिगक के भाव के
संदभ म, उ ह ने िलखा है िक, ‘मु ण, िनयिमत डाक-सेवा, थानीय समाचार प तथा पु तक , टेली ाफ, रे लवे और बस क
शु आत के मा यम से िविभ न े म रहने वाले जाित के ितिनिधय के मा यम से िविभ न े म रहने वाले जाित के
ितिनिधय को उनक साझा सम याओ ं और िहत क चचा करने म सहायता िमली है। पि मी िश ा ने वतं ता और समानता

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जैसे नए राजनीितक मू य को ज म िदया। िशि त नेताओ ं ने जाित संदिभत पि काओ ं क शु आत क और जाित से स बंिधत
स मेलन का आयोजन िकया। जाित को यवि थत करने के िलए और गरीब सद य क मदद के िलए धन एकि त िकया गया।
जाितगत छा ावास, ह पताल, सहकारी सिमितयाँ आिद शहरी सामािजक जीवन क एक सामा य िवशेषता बन गई। सामा यत:
यह िव ासपवू क कहा जा सकता है िक िपछले सौ वष म जाित क एकजटु ता म बहत वृि हई है।”
इसी कार, ि िटश ारा राजनीित म िकए गए ितिनिध व के संदभ म जाित के ैितज/सम तरीय के समेकन/ एक ीकरण
म मदद िमली। अं ेज ने िपछड़ी जाितय को थानीय वशासन िनकाय , वरीयताओ ं और रयायत म कुछ हद तक शि दी। इन
अवसर का लाभ लेने के िलए तथा नए अवसर को दान करने के िलए जाित समहू ने बड़े घटक बनाने अथवा बड़ी सं थाओ ं के
संगठन के िलए एक दसू रे के साथ गठबंधन म वेश िकया। हालांिक, इस ‘जाित क ैितक एकजुटता का मतलब राजनीितक-
आिथक धरातल पर िविभ न जाितय म ित पधा भी है और इससे अंतरजाित क ऊ वाधर एकता’ कमजोर हो गई।
लुईसड्यमू ट (LOUISDUMONT) (1998) ने भी ीिनवास का अनसु रण िकया था और तक िदया िक आिथक और
राजनीितक प रवतन क ि या के साथ जाित का अि त व समा नह हआ था, जबिक उनके तक को बदलकर ‘सरं चना’ से
‘पदाथ’ (स सटस) के प म प रवितत कर िदया गया, िजसे ‘स सटिशयिल म ऑफ़ का ट’ भी कहा जाता है, िजसका अथ है
ढाँचागत िव वाह िजसम पर पर िनभरता पर जोर है; से एक ऐसे िव क ओर प रवितत है जो िक आ मिनभर तथा िजसम एक
दसू रे के साथ पया ित पधा है और जाित एक ‘सामिू हक यि ’ के प म, एक ‘पदाथ’ के प म कट होती है।
जाित-सघं
लायड डो फ और ससु ेन डो फ (LLOYD RUDOLPH and SUSANNE RUDOLPH) ‘लोकताि क
भारत म जाित संघ क घटना का अ ययन करते ह और इसे भारत जैसे पारंप रक समाज म आधिु नकता के एजट के प म देखते
ह। जाित संघ एक दबाव समहू के प म काम करते ह और जाित समुदाय क अ सामािजक गितशीलता म मह वपणू भिू मका
िनभाते ह।
रजनी कोठारी ने ‘भारतीय राजनीित म जाित’ (1970) म इस िस िवचारधारा के िव तक िदया िक ‘लोकतांि क
राजनीित से जाित जैसे पारंप रक सं थान को पुनज िवत करने और उनक वैधता को पनु ः थािपत करने म मदद कर रही है।’
इसक बजाय, यह िवघटनकारी वृित पैदा कर सकता है, और ‘भारतीय राजनीित के लोकतांि क और धमिनरपे ढांचे को भंग
कर सकता है। उनके श द म, ‘जाित क राजनीित और अंतरि या का प रणाम आमतौर पर बताए गए तरीक के िवपरीत होते ह।
हालांिक, यह राजनीित नह है जो जाितगत हो जाती है; यह जाित है िजसका राजनीितकरण हो जाता है। ऐसा इसीिलए है य िक
ित पधा मक राजनीित ने जाित को अपने अराजनीितक सदं भ से बाहर ला िदया है और उसे एक नई ित ा दान क है िक अब
तक जो जाित था समा हो गई है और जाित सघं न हो गया है, उसे जाित पहचान के आधार पर काट-छांट कर अलग कर िदया
है और उसने जाित संघ का गठन कर िलया है, िकंतु गैर-जातीय काय को अिध हण कर िलया है तथा सगं ठन को और अिधक
लचीला कर िदया गया है। नए सद य तथा जाितय के नेताओ ं को भी िजनके साथ संघ शु िकया उनके अलावा भी वीकार
करने लगे ह।
नए े म िव तार करते हए वैि छक सगं ठन , िहत समहू तथा राजनीितक पािटय के साथ एक समान उ े य ा करते
ह। इस कार समय के साथ-साथ इन सघं ने एक प राजनीितक समहू का प धारण कर िलया है।
घन याम शाह का भी ऐसा ही मत है िक हालािं क, ‘लंबे समय से जाित सघं ने ित पधा मक राजनीित तथा सहभािगता
को बढ़ावा िदया, ो साहन िदया। इससे ातं ीय सकं णता व थानीयता को भी बढ़ावा िमला। आन ड (ARNOLD) ने तक
िदया है िक लोकतांि क राजनीित म इस िवचलन के बावजदू भी, जाित सघं ने उन े म लोकतांि क राजनीित क सं कृ ित के
सार म मह वपणू भिू मका िनभाई जो अब तक परंपरा से सचं ािलत थी। जाित सगं ठन, सामािजक और राजनीितक मचं को एक
साथ जोड़ने वाला सामािजक सहायक के प म काय करता है। समािजक संगठन के आधार के प म ‘जाित का उपयोग करके
पारंप रक समाज के मू य को समेटते हए; नए उ े य यानी िश ा और थानीय राजनीितक शि का भी प रचय दे रहा है।

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घन याम शाह ने दि ण भारत म जाित संघ का िव ेषण िकया, जहाँ इन सघं के नेता पारंप रक जाित के अिधका रय से नह
आए, बि क अपने परंपरागत कै रयर म अपने आप को अिधक ढ़ता के साथ पि मी िशि त, वक ल, शहरी यवसायी,
सेवािनवृ सरकारी कमचा रय के वग से थािपत करने के िलए आए।
वतं ता के बाद क अविध के दौरान भारतीय रा य ारा क गई दो सबसे मह वपणू िवकासा मक पहल ने भारत म
जाितगत ढाँचे के सदं भ म भारत म शि सरं चना को प रवितत कर िदया है; िवशेषकर:-

 भिू म सधु ार अिधिनयम, जो भिू म के खेतीहर िकसान को मािलकाना हक ह तांत रत करके गैर-खेती करने वाले
िबचौिलय क पकड़ को कमजोर करने के िलए बनाया गया।
 ामीण सामािजक प रवतन, जैसे सामदु ाियक िवकास काय म, पंचायती राज और ह रत ािं त; इससे सीधे तौर पर
गांव के अमीर और शि शाली लोग को मदद िमली, जो थानीय और े ीय राजनीित पर अपने िनयं ण को और
मजबतू करने के िलए यादातर थानीय मख ु जाितय के समहू से सबं ंिधत थे।
इसीिलए जब सावभौिमक वय क मतािधकार के िस ांत पर आधा रत चनु ावी राजनीित ने उ ह नए अवसर क पेशकश
क गई, तो थानीय तर पर म यम तर के मख ु जाित समहू आसानी से खदु का राजनीितकरण करने म स म हो सके । 1980
और 1990 के दशक ने जाितगत राजनीितक संबंध को ‘िवचारधारा क राजनीित’ से ‘ ितिनिध व क राजनीित’ म त दील कर
िदया। (योग यादव और सहु ास प कर)
िव के भ-ू राजनीितक बदलाव जैसे-सोिवयत सघं का पतन, शीत यु का अतं , सचं ार म नई ो ोिगक का उपयोग
करना; िजसने वैि क पँजू ी के नए चरण के आर भ को वै ीकरण के प म देखा िजससे अथ यव था ही नह , बि क सं कृ ित
और राजनीित भी भािवत हई और नेटविकग के िलए नई सभं ावनाओ ं का नेतृ व िकया। इसिलए बड़े पैमाने पर सामािजक
कायवाही सभं व थी। यह वह दौर था जब पयावरण, मानवािधकार, लिगक अिधकार जैसे नए राजनीितक सवाल दिु नया भर म
एक साथ उभरे थे; और सबसे मह वपणू बात यह थी िक इन नए आदं ोलन ने बढ़ते हए ो ोिगक य क मदद से रा ीय सीमाओ ं
म नेटविकग के कारण एक नई तरह क वैधता एवं शि पाई। उदाहरण के िलए बाँध िनमाण के िवरोध नमदा बचाओ आदं ोलन ने
आतं रक जनमत और वैि क िव ीय एजिसय को जटु ाने म काफ मा ा म ऊजा का िनवेश िकया। इस कार, जैसा िक जोधका
(JODHKA) का मानना है िक ‘ये नए सामािजक आदं ोलन भारत म औपिनवेिशक रा य ारा चा रत िकए गए िवकासा मक
एजडे के ान पर सवाल उठाते ह तथा उदारीकरण क नीितय क शु आत और आिथक े से रा य का हटाना तथा सामािजक
प रवतन और िवकास के नेह वादी ढाँचे से धीरे -धीरे मोहभगं महससू करते ह।’
जैसा िक सदु ी किवराज (SUDIPTA KAVIRAJ) ने नए सदं भ म कहा है िक इन नए सामािजक आदं ोलन के
कारण, जाित तथा राजनीित के , िवशेष प से दिलत समहू ारा, पहचान क राजनीित क भाषा म रचा गया। इस कार,
अनसु िू चत जाितय या अछूत जाितय क पहचान एक िनिमत, आधिु नक पहचान है, जो नए नेतृ व से े रत होकर दिलत समुदाय
म पैदा हई और उ ह ने समानता और लोकतांि क ितिनिध व क भाषा का योग िकया। वष से सरकारी नौक रय और
शै िणक सं थान म आर ण नीित के कारण दिलत म यम वग क सं या म वृि हई है और इसीिलए काय थल पर या समाज
म बड़े पैमाने पर उनको अपने समदु ाय के भेदभाव के िखलाफ अपने अनभु व को य करने म आसानी हई, इससे उ ह वयं को
िविभ न सघं के प म सगं िठत होने म मदद िमली। इ. जेिलयोट (E. ZELLIOT) ने ‘अछूत से दिलत: अबं ेडकर आदं ोलन पर
िनबंध’ (2001) म कहा िक ‘यह वह अविध थी जब अंबेडकर को दिलत पहचान के सावभौिमक तीक और उनक आकां ाओ ं
के तीक के प म िफर खोजा गया था।
एस. शाह ‘भारत म जाित तथा लोकतांि क राजनीित’ (2002) म इसका समथन करते ह क , ‘राजनीितक उ िमय के नए
वग जैसे िक कांशीराम और मायावती पवू अछूत समदु ाय के बीच से उभरे ह, िज ह ने दिलत पहचान के िवचार का इ तेमाल
िकया और अनसु िू चत जाित समदु ाय को िवकास के साथ ग रमा जैसे मु पर एक संयु लॉक के प म वयं को सगं िठत
िकया। इन सभी प रवतन को ‘वैचा रक एवं सामािजक प रवेश म िवकास’ कहा गया। लोकतांि क राजनीितक ि या म िनरंतर
भागीदारी ने ‘ ामीण अथ यव था’ के ऊपरी े को आगे क गितशीलता के िलए शहर क ओर देखने के िलए े रत िकया है

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और समाज के िनचले े म उन लोग के िलए आ मलाभ क भावना भी दी है। हालांिक, यह तक िदया जाता है िक यह
“ ामीण समाज लोकत ीकरण के िलए नेतृ व नह करता था य िक जाित के संदभ म, ामीण शि भिू म- वामी क मख ु
जाित के चार ओर घमू ती थी; और वग के सदं भ म, अमीर भू वामी और धन उधार देने वाले ामीण अथ यव था को िनयंि त
करते थे। ामीण भारत म, पंचायत भी मखु समहू के भाव और शि का एक अखाड़ा बन गई।
यहाँ एक सवाल यह उठता है िक हम िकस जाित और राजनीित क बात कर रहे ह? य िक, ‘ वाय दिलत राजनीित के
उदय और कुछ संदभ म तथा देश के कुछ े म उनके सशि करण के साथ, स ा और भु व के बारे म वा तिवकताएँ गायब
नह हई है। य िप, जाित म वैचा रक प से स ाहांत (weekend ideologically) होता है और अ पृ यता के परु ाने प एक
तरफ घटते जा रहे ह; थानीय प से मख ु जाित ारा दिलत पर िकए गए अ याचार अिनयंि त रहे।
उ र भारत म िपछड़ी जाित क राजनीित म िगरावट
उ र भारत म िपछड़ी जाित क राजनीित ने 1980 और 1990 म ि तीय जातांि क उ थान के प रणाम व प एक
मह वपणू प रवतन िकया। जैसा िक योग यादव ने राजनीितक उ िमय के बारे म बात क है जैसे कांशीराम और राम मनोहर
लोिहया के वल आिं शक प से िपछड़ी जाित का सम पता हािसल करने म स म थे य िक िपछड़ी जाित क राजनीित ने अ य
हािशए समहू यानी सबा टन वग के साथ ‘जाित-राजनीित’ को ‘वग राजनीित’ से िव थािपत करने के िलए एक नई िदशा ली,
िजसम आिथक त व अथवा घटना, सामािजक एवं राजनीितक के ऊपर मख ु ता से उभरती है। यह दशाता है िक
‘अि मता/पहचान सक ं ट ’ से जाित समहू को अब कोई खतरा नह है, बि क उ ह ने अपनी ‘जाित क अि मता’ के बारे म िफर
से िव ास करना, सगं िठत करना सीख िलया है। वा तव म, वे अपने जाित आधा रत राजनीितक दल से िनराश ह, िज ह ने उनक
आिथक सम या को हल िकए िबना ही अपनी अि मता को पजं ीकृ त िकया है। िजसने नए सामािजक गठबधं न को समावेशी
राजनीित के मा यम से पनु गिठत करना आव यक कर िदया है।
उ र भारतीय रा य म िपछड़े आदं ोलन के पतन के सबसे मह वपणू कारण म से एक िपछड़ी जाित के कुलीन आधा रत
नेतृ व का उदय हो सकता है और यह एक जन-आधा रत उ आंदोलन बनने म िवफल रहा है। ए.के . वमा ने कहा है िक उ र
भारतीय रा य म यान अतं रजातीय शोषण से हटकर भीतरी जाित भेद पर िदया जा रहा है, य िक भारत म जाित संबंध
तुलना मक जातीय े ता एवं हीनता, जाित पदसोपान के आधार पर संचािलत िकए जाते ह, जहां येक जाित संघषपणू सबं ंध म
है। वमा ने कहा िक पि मी उदारवादी समाज, िवचारधारा आधा रत राजनीितक ितयोिगताओ ं पर जोर देते ह। जहाँ राजनीितक
यानी िवचारधारा के आधार पर ही लामबदं ी संभव है, जबिक भारत ने पि मी उदारवादी लोकतांि क मॉडल को समाज पर
आधा रत अपनी िविवधता के िलए वीकार िकया, जो िविवधता, बहसं कृ ितवाद तथा िवजाितयाँ म समृ है; िजसका अथ है
हमारे पास जाित, धम, भाषा, जातीयता आिद जैसे मखु कारक थे। लेिकन हमारे पास िवचारधाराएँ भी थी और आजादी के समय
हम भावी राजनीितक लामबंदी के साधन के प म इन कारक म से िकसी का भी उपयोग कर सकते थे। हालांिक हमने
राजनीितक (िवचारधारा) से अिधक समािजक (जाित) का िवक प चनु ा। ऐसा य है? वमा तक देते ह िक ऐितहािसक कारण क
वजह से वतं ता सं ाम क अविध के दौरान सभी समािजक सं दाय, भारतीय रा ीय कां ेस के इं धनुष समािजक छाते के दायरे
म उमड़ आए तथा आम राजनीितक अिभिव यास ा िकया। अतः यह वैचा रक सम पता थी।
िन कष
जाित संबंध के कटु-आलोचना मक च र के बावजूद, इसम िभ न सरं चनाएँ और े ीय िविश ताएँ थी। उनम वैचा रक
प से भी पणू समानता नह थी। राजनीितक ि या म भागीदारी का मतलब हर िकसी के िलए समान नह है तथा आिखरकार
इसीिलए जाित एक एका मक इकाई या एक ही थैितक म नह है। सदु ी किवराज ने तक िदया है िक ऐितहािसक शिमदगी
के साथ ढहने के बजाए जाित समहू ने वा तव म ससं दीय राजनीित क माँग के अनु प अपने को ढाल िलया और इस कार
उसने जाित था के पदानु म के थान पर ‘जाितय का जनतं ’ बनाया।
इसिलए, हम कह सकते ह िक जाितशि -सरं चना म भारत का मल
ू ितिनिध व करती है, और यह के वल एक सं था नह
है जो सामािजक तरीकरण क सरं चना क िवशेषता है। वा तव म, जाित एक सं था एवं एक िवचारधारा दोन के प म ि थत है।

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जब हम इसको सं थागत प म देखते ह तो जाित सामािजक-आिथक यव था म सामािजक समहू को उनके दज और हैिसयत से
यवि थत करने के िलए एक ढाँचा दान करती है। दसु री ओर, जब इसे एक िवचारधारा के प म देखा जाता है, तो जाित उन
मू य और िवचार क णाली है जो सामािजक असमानता क मौजदू ा सरं चनाओ ं म को वैध और बिलत करती है। हालांिक,
जाित क बदलती वा तिवकताओ ं ने जाित और लोकतांि क राजनीितक ि याओ ं के बीच गितशील सबं ंध के िलए कई
संभावनाएँ खोली है। इस कार, 1960 के दशक तक राजनीितक वै ािनक ने जाित और राजनीित के बारे म एक अलग तरीके से
बात करना शु कर िदया। लोकतांि क राजनीित के िमक सं थाकरण ने जाितगत समीकरण को तथाकिथत धािमक प से
‘शु उ च जाितय ’ से ‘म यम तर क मख ु जाितय ’ म बदल िदया है और इस कार शि संरचना के भेदभाव क ि या
को तािवत िकया है।
सदं भ सच
ू ी
1) THORAT, S –“Dalits in India: Search for a Common Destiny” (2009)
2) “The Oxford Companion to politics in India” edited by NIRJA GOPAL JAYAL and
PRATAP BHANU MEHTA
3) AMBEDKAR, B. R. – “Annihilation of caste” (1936)
4) KOTHARI, RAJNI- “Caste in Indian Politics” (1970)
5) SRINIVAS,M.N- “Caste in Modern India and Other Essays” (1962)
6) VERMA, A.K –“Decline of Backward Caste Politics in Northern India: From Caste-Politics
to Class”
7) KAVIRAJ, SUDIPTA – “Democracy and Social Inequality” in Francine R. Frankel, Zoya
Hassan, Rajeev Bhargava and Balveer Arora (eds), Transforming India: Social and political
Dynamics of Democracy. New Delhi : Oxford University Press
8) JODHKA, SURINDER S. – “Caste and Democracy: Assertion and Identity among the Dalits
of Rural Punjab”, Sociology Bulletin, (2017)
9) CHIKKALA, K.K. – “Socio-economic Impact of Tobacco Cultivation on Dalit Agriculture
Laborers: A Case Study from Andhra Pradesh, India” Journal of Developing Societies”
(2015)
10) BETEILLE, A.- “The Scheduled Castes: An Inter-regional Perspective”, Journal of Indian
School of Political Economy, XII (3-4)
11) http://www.dalitstudies.org.in/

12) http://www.egyankosh.ac.in/handle/123456789/1

13) http://ww25.democracy-asia.org/

14) https://inflibnet.ac.in/

इस अ याय के कुछ मह वपूण


1. भारत म िवशेष प से जाित के संदभ म शि क सरं चना का वणन कर?
2. जाित को सामािजक प र े य के साथ-साथ राजनीितक प र े य म कै से संरि त िकया जाता है?

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3. िन निलिखत पर सिं िट पणी िलिखए:
 जाितय के िलए सवं ैधािनक सरु ा उपाय
 जाित पर रजनी कोठारी
 जाित व राजनीित के बीच सबं ंध
 उ र भारत म जाित-राजनीित से लेकर वग-राजनीित तक
4. भारत के राजनीितक सरं चना म जाित का उदय कै से हआ और समाज म जाित पर इसके या भाव पड़े?
5. भारत म जाित-सघं कै से जाित क राजनीित को दशाता है? इसने िकस हद तक िन न तर पर जातीय समदु ाय को सश
िकया है?
6. अबं ेडकर ने अपनी पु तक ‘जाित का उ मल
ू न’ म या िलखा है, इस पर िट पणी क िजए?

67
पाठ-2
भारत म सकारा मक अनयु ोजन : जाित, वग एवं िलगं क पार प रकता










 bl v/;k; dk mís'; Hkkjr esa ldkjkRed vuq;kstu uhfr ds dk;kZUo;u dks le>uk gSA
 Hkkjrh; fo"k; ,d vuks[kk fo"k; çLrqr djrk gS tgk¡ oafpr lewg ds chp oafpr ekuk tkrk
gSA
 tkfr] oxZ ,oa fyax ds çfrPNsnu dks le>us ds }kjk bl ?kVuk dk irk yxk;k tkrk gSA
 vU; fiNM+k oxZ ¼vks-ch-lh-½ ,oa nfyr efgykvksa ds fy, vkj{k.k dks D;ksa c<+k;k x;k] bl ij
fo'ks"k /;ku fn;k tk,xkA
ldkjkRed vuq;kstu vlekurk dks de djus dh çfØ;k gS tks lekt esa dqN fo'ks"k igpkuksa dk
ifj.kke gSA nqfu;k Hkj ds yksdrkaf=d ns'kksa us mu lewgksa ds fy, dqN çdkj ds ldkjkRed
vuq;kstu dk;ZØe dks viuk;k gS tks lekurk esa lajpukRed gksus ds dkj.k lh<+h ds fupys Hkkx
ij gSaA Hkkjr esa ,slh ,d igpku tkfr gS ftlus bl vlekurk dks nwj djus ds fy, dqN dne
mBkus ds fy, ?kVd fuekZrkvksa dks rS;kj fd;k FkkA nqfu;k Hkj esa etcwrh ds lkFk ,oa le; ds
lkFk] efgykvksa ds fy, ldkjkRed vuq;kstu dk;ZØe Hkh ykxw fd;k x;k Fkk D;ksafd os thou ds
lHkh {ks=ksa esa v–'; ns[ks x, FksA bl v/;k; dk mís'; Hkkjr esa ldkjkRed vuq;kstu ds vH;kl
dks le>uk gSA ijarq igys ;g le>us dh dksf'k'k dh tk;sxh fd tkfr D;k gS\ fQj ge ns[ksaxs fd
tkfrxr vlekurk dks nwj djus ds fy, laoS/kkfud vuq;kstu dk;ZØe rFkk laoS/kkfud çko/kkuksa dks
dSls lfEefyr fd;k x;kA blds i'pkr~ Hkkjr esa tkfr ij fo'ks"k /;ku nsus ds lkFk ldkjkRed

68
vuq;kstu dk;ZØe ij ppkZ djsaxsA var esa vafre [kaM esa tkfr vkSj fyax ds chp varjfojks/k ij
fo'ks"k /;ku nsus okyh efgykvksa ds fy, ldkjkRed vuq;kstu dk;ZØe ij ppkZ dh tk,xhA

¼1932½ us Hkkjr esa tkfr O;oLFkk ij ppkZ djrs gq, tkfr O;oLFkk dh dqN fo'ks"krkvksa
dks js[kkafdr djus dk ç;kl fd;k tks bl çdkj gSa&
¼d½ inkuqØe
¼[k½ varj&Hkkstu ij çfrca/k
¼x½ varjtkrh; fookg ij çfrca/k
¼?k½ fu;a=.k dh Lora=rk ij çfrca/k
¼³½ lekt dk [kaM foHkktu
¼1936½ us th-,l- ?kq;sZ dh fo'ks"krkvksa ls lgefr O;ä djrs gq, bl rF;
dks Hkh crk;k fd tkfr O;oLFkk ,drk dks [kRe djrh gS vkSj jk"Vª ds fuekZ.k dks jksdrh gSA u,
Lora= Hkkjrh; jk"Vª esa ?kqliSB djus ds fy, tkfr O;oLFkk ds [krjs dks jksdus ds fy,] MkW- vacsMdj
us Hkkjrh; lafo/kku ds vuqPNsn 15 dks Li"V :i ls rS;kj fd;k Fkk] tks tkfr] /keZ] tkfr] fyax
vkfn ds vk/kkj ij fdlh Hkh çdkj ds HksnHkko dks jksdrk gS vkSj bls fQj ls ykxw fd;k x;k FkkA
vuqPNsn 38 esa dgk x;k gS fd yksxksa dk dY;k.k /keZ] tkfr oxZ vkfn dh ijokg fd, fcuk fd;k
tk,xkA bl izdkj ds vxzsflo dkuwu cukus ds ckotwn] Hkkjrh; lafo/kku ds fuekZrkvksa us ns[kk fd
tkfr Lo;a dk;kdYi dj jgh FkhA ,slk blfy, Fkk D;ksafd ,d rjQ jktusrkvksa }kjk tkfr O;oLFkk
dk bLrseky fd;k tkrk Fkk vkSj nwljh rjQ lekt esa bls fofHkUu rjhdksa ls ykxw fd;k tkrk FkkA
cukZMZ dksgu us Hkkjr esa tkfr O;oLFkk ds bfrgkl dk irk yxkrs gq, ml tkfr O;oLFkk ds vk/kkj
ij lekt dks foHkkftr djus ds fy, tkfr vkSj /keZ ds vk/kkj ij tux.kuk ds bLrseky dh fczfV'k
uhfr dh vksj b'kkjk fd;k tks rc çpfyr ugha FkkA Lora= Hkkjr esa tkfr O;oLFkk dh ç—fr dk
v/;;u djrs gq, ¼1956½ us ^laL—frdj.k* dh çfØ;k dks crk;k] tgk¡ fupyh
tkfr mruh gh vuq"Bku djrh gS] ftruh mPp tkfr djrh gSA ;g mudh fLFkfr ds mRFkku ds fy,
fd;k tkrk gS vkSj bls fçaV ehfM;k] çfrfuf/k laL—fr vkSj vaxzsth f'k{kk ds rhljs mi;ksx esa ppkZ ds
ek/;e ls c<+kok fn;k tkrk gSA ¼1973½ dk dguk gS fd jktuhfr esa tkfrokn vc
tkfr ds jktuhfrdj.k ls de ugha gSA ;g ,d ,slh ç.kkyh gS ftlesa tkfr vkSj jktuhfr nksuksa dh
rkdrksa dks ,d&nwljs ds lehi yk;k tkrk gSA lkoZtfud xfrfof/k ds vk;kstu dk fof'k"V mís';
ckrphr dh ç—fr vkSj tkfr O;oLFkk ds varj laxBu ds ek/;e ls gSA jtuh dksBkjh us rhu rjg
ls jktuhfr esa tkfr laxBu dk bLrseky fd;k gSA lcls igys /keZfujis{k igyw ds ek/;e ls tks
,aMksxSeh ds vyxko fl)kar ij vk/kkfjr gSA ;g çnw"k.k vkSj 'kq)rk ds fl)kar ij dke djrk gSA
xqVfujis{krk] tkfrxr njkjsa] lajs[k.k vkSj çfr:i.k ds iSVuZ us fujarj lkekftd xfr'khyrk dks
tUe fn;k gSA bl /keZfujis{k ço`fÙk dks nks rjg ls ns[kk tkrk gS igyk ljdkjh igyw ds ek/;e ls
vkSj nwljk jktuhfrd igyw ds ek/;e lsA /keZfujis{k igyw f'k{kk vkSj {ks=h; fHkUurk ds ek/;e ls
gSA czkã.kksa us vaxzsth f'k{kk ij çfrfØ;k nh fd erkf/kdkj dk /khek foLrkj FkkA pw¡fd czkã.k
'kfä'kkyh ugha Fks] blfy, tkfrxr varj&tkrh; laca/kksa us jktuhfrd HkrhZ dh ,d fujarj lajpuk
çnku dh\ u, /kkfeZd laçnk;ksa ds çlkj us lÙkk esa ços'k ds fy, vuqØe ds fofHkUu e‚My cuk,A

69
{ks=h; la;e ds ek/;e ls rksM+uk vkSj O;kolkf;d cyksa dks pkSM+k djukA nwljh ckr ;g gS fd tkfr
O;oLFkk }kjk ,dh—r –f"Vdks.k etcwr gqvkA bl O;kid oQknkjh esa çpfyr HksnHkko ds ek/;e ls
lajfpr fd;k tkrk gS vkSj blesa oSpkfjd vk/kkj dks O;kid djds yksdrkaf=d jktuhfr dh
çfrLi/khZ 'kSyh 'kkfey gSA blesa foHkktu vkSj igpku ç.kkyh 'kkfey gS ftlesa usr`Ro dks LFkkuh;
jk; ds fy, fpark djus ds fy, etcwj fd;k x;k FkkA blesa u dsoy forj.kkRed vkSj ijLij
fojks/kh igyw 'kkfey gSa] cfYd lewg fØ;k,¡ vkSj lkeatL; Hkh gSaA ;g lay;u vkSj ,d=hdj.k vkSj
fo[kaMu vkSj foHkktu ds ek/;e ls gksrk gSA tkfr vkSj vk/kqfud laLFkkuksa ds chp vkfFkZd ykHk ds
forj.k ds chp ckrphr ls tkfr psruk vkSj /kkj.kk,¡ curh gSaA vHkko dh Hkkouk us vkjksgh tkfr dks
tUe fn;kA lÙkk ds f}i{kh; la?k"kZ us mu ek¡xksa dks dM+k dj fn;k ftlus lalk/kuksa dh miyC/krk
ls vf/kd ykHk dh ek¡xksa dks tUe fn;kA iqjkuh igpkuksa ds detksj gksus us jktuhfrd ewY;ksa ds
fuekZ.k ds fy, txg cukbZ vkSj u, cnykoksa dks tUe fn;kA psruk rhljk igyw gS tks mnkj f'k{kk]
laj{k.k vkSj /khjs&/khjs erkf/kdkj ds foLrkj ds ek/;e ls laL—rdj.k] if'pehdj.k vkSj /keZfujis{krk
çfØ;kvksa dk ifj.kke gSA /keZfujis{k Hkkxhnkjh us u, –f"Vdks.kksa dks c<+kok fn;k gS vkSj u, iqjLdkjksa
dh is'kd'k dh gSA blus tkfrxr vkSj lkaçnkf;d laca/kksa dks mtkxj fd;k gSA ,d tkfr ds lkFk
?kfu"B igpku nwljh tkfr dks vyx&Fkyx dj nsrh gSA lHkh çeq[k leqnk;ksa dks 'kkfey djds gh
jktuhfrd nyksa dks fLFkjrk feyrh gSA tkfr ds jktuhfrdj.k ls çfrLi/khZ jktuhfr dk lapkyu
gksrk gSA blus tkfr dks vius jktuhfrd lanHkZ ls ckgj fudkyk gS vkSj tkfr O;oLFkk dks u;k
ntkZ fn;k gSA ogk¡ çeq[k vfHktkr oxZ mHkjrk gS tgk¡ fofHkUu lewg vke –f"Vdks.k lk>k djrs gSaA
tkfr] tkfr ds lnL;ksa ds xBu] tkfr laLFkkvksa ds fuekZ.k vkSj tkfr egkla?k ds :i esa ubZ laxfr
ysrh gSA
tkfr vkSj jktuhfr ds chp ckrphr dk ,d lh/kk ifj.kke #MksYQ vkSj #MksYQ ¼1987½ }kjk
js[kkafdr fd;k x;k gS] ftUgksaus 1960 ds n'kd esa gfjr Økafr ds ykxw gksus ds ckn cSyxkM+h
iw¡thoknh ds mn; ds ckjs esa ppkZ dh FkhA ;s lewg fuEu tkfr ds Fks tks çeq[krk ls mBs vkSj
Hkkjrh; jktuhfr esa [kqn dks 'kkfey fd;kA blus eaMy vk;ksx dh LFkkiuk dh ftlus varr% vU;
fiNM+s oxks± dk fuekZ.k fd;k tks rRdkyhu fuEu tkfr lewg Fks vkSj ftUgksaus Hkkjrh; jktuhfr dks
ubZ fn'kk nhA bls ¼2003½ }kjk js[kkafdr fd;k x;k Fkk] tc mUgksaus mÙkj
Hkkjrh; jkT;ksa esa vU; fiNM+k oxZ ds mn; dks Hkkjr dh ekSu Økafr ds :i esa ns[kk FkkA

tcfd vuqlwfpr tkfr vkSj tutkfr;ksa ds fy, vkj{k.k dh uhfr Hkkjrh; lafo/kku ds le; ykxw dh
xbZ Fkh] bls vU; fiNM+k oxZ rd ugha c<+k;k x;kA ;g ml le; mHkjrh gqbZ lÙkk dh jktuhfr ds
dkj.k Fkk tks mUgsa oafpr lewg ds :i esa ns[kus esa foQy jgkA vkj{k.k dh uhfr dks bl Js.kh ds
fy, lekurk dks laLFkkxr :i nsus ds ctk; jktuhfrd ykHk çkIr djus ds fy, c<+k;k x;k FkkA
tkfr lajpuk ds çfr frjLdkj fn[kkrs gq,] usg: dks ^vU; fiNM+s oxks±* dh Js.kh esa yk;k x;k]
gkyk¡fd lafo/kku esa ^^oxks±** dh ifjHkk"kk ij pqIih FkhA dsoy vuqPNsn 340 esa] jk"Vªifr ds ikl]
lkekftd] 'kS{kf.kd :i ls fiNM+s oxks± dh igpku djus ds fy, vk;ksx *fu;qä djus dh 'kfä;k¡
FkhaA bl Js.kh dks dSls ifjHkkf"kr fd;k tk,] bl ij dksbZ ços'k fcanq ugha gksus ls ;g ,d cM+h cgl
dk dkj.k cu x;k gS vkSj ^^tkfr;ksa** dks ^^oxZ** ds :i esa ekU;rk nsus esa lekIr gks x;k gSA

70
vkSj ds chp 'kCnkFkZ lekurk bu nks 'kCnksa ds vFkZ ds fo#) gSA vU; fiNM+s oxks± dks
vkj{k.k nsus ds dkj.kksa esa ls ,d ;g Fkk fd ;g vuqlwfpr tkfr;ksa vkSj tkfr ds fganqvksa ds chp
,d rhoz varj ds ctk; oxhZ—r vlekurk esa ifjyf{kr gksrk FkkA
var–Zf"V dks igys fiNM+s oxZ vk;ksx ds vuqHko ds ek/;e ls çkIr fd;k tkrk gS ftlus lkekftd
fiNM+siu dk U;k; djus ds fy, pkj eq[; ekunaMksa dk bLrseky fd;k Fkk tks fuEu ntsZ ds Fks]
f'k{kk dh deh] ukxfjd lsokvksa vkSj vU; ljdkjh {ks=ksa esa çfrfuf/kRo ds rgr ¼ 2003%
549½A ;g fuEu tkfr ls lacaf/kr FkkA ifj.kkeLo:i igys fiNM+s oxZ vk;ksx us 2399 dh flQkfj'k
dh] ftls vks-ch-lh- tkfr dgk x;k] ftlus 1931 dh tux.kuk ds vuqlkj iwjh vkcknh dk 32
izfr'kr fgLlk cuk;kA ;|fi] Hkkjr dks vk/kqfud cukus dh –f"V ls] fiNM+s oxZ vk;ksx ds igys
vkosnu dks NksM+ fn;k tk,A le; dh jktuhfrd etcwfj;k¡ bl loky dks fQj ls lkeus ys vkb±A
,slk blfy, Fkk D;ksafd oxZ ds çfr usg: dh vf/kekuh uhfr us tkfr dh Hkkjrh; okLrfodrk dks
utjvankt dj fn;k FkkA blds vykok vU; fiNM+k oxZ vkj{k.k uhfr xSj&dkaxzsl 'kkflr jkT;ksa esa
ykxw dh tk jgh FkhA turk ikVhZ ds lÙkk esa vkus ds ckn eaMy vk;ksx uke ls nwljk fiNM+k oxZ
vk;ksx xfBr fd;k x;kA bl vk;ksx dh flQkfj'k ds ckn] vf/kekU; mipkj dh uhfr dks vU;
lkekftd vkSj 'kS{kf.kd :i ls fiNM+s oxks± rd c<+k;k x;kA gkyk¡fd ;g ,d vklku dke ugha Fkk
D;ksafd vU; fiNM+k oxZ dks ifjHkkf"kr djuk eqf'dy FkkA fiNM+siu dks dSls ekik tkuk pkfg,\ bl
lwph esa fdls 'kkfey fd;k tkuk pkfg,\ bldh p;u çfØ;k esa tkfr dh Hkwfedk D;k gksxh\ ;g
ekeyk vuqlwfpr tkfr vkSj tutkfr;ksa ds fy, igys ls ekStwn uhfr ds leku dSls gksxk\ vk;ksx
ds lkeus lcls cM+h pqukSrh ;g Fkh fd fiNM+siu dks dSls ekik tk,\ D;k ;g 'kh"kZ dh rqyuk esa
vuqHko fd, x, lkis{k vHkko ij vk/kkfjr gksuk pkfg, ;k D;k ;g vkSlr vHkko lwpdkad ij
vk/kkfjr gksuk pkfg,] ftlls bls vuqlwfpr tkfr vkSj tutkfr;ksa ls Åij tk ldsA ¼xYkUVj 308½
tc eaMy vk;ksx fiNM+siu ds laca/k esa tkfr dk p;u djrk gS rks tkfr vkSj oxZ ds varj&laçnk;
çeq[krk ls lkeus vkrs gSaA ;g tkfr dks lkekftd bdkb;ksa ds :i esa ns[kdj fd;k tkrk gS]
ftldk fiNM+kiu ekik tk,xk vkSj ;g tkfr dks ekius okyh NM+ ds :i esa mi;ksx djus dk
çLrko j[krk gSA ;g X;kjg ekunaMksa ds vk/kkj ij tfVy ç.kkyh }kjk fd;k tkrk gS] ysfdu bUgsa
fuEu fLFkfr ¼in] 'kkjhfjd Je vkSj Je cy esa efgyk Hkkxhnkjh esa ekuk tkrk gS½ ds ikjaifjd
mik;ksa ij cy nsus ds fy, Hkkfjr fd;k tkrk gSA ;g le> Hkkjr esa xjhch dh lkekftd le> ls
çsj.kk ysrh gSA vkerkSj ij xjhch dks lewg dh ?kVukvksa ds :i esa ns[kk tkrk gS tks vleku fLFkfr
ç.kkyh ls mith mudh lkekftd fiNM+siu dk ifj.kke gSA ,slk blfy, fd;k x;k D;ksafd Hkkjr esa
tkfr O;oLFkk us fupyh tkfr dks Kku] jktuhfrd 'kfä vkSj vFkZO;oLFkk rd igq¡p ls oafpr dj
fn;k FkkA vk/kqfudhdj.k esa rsth ls çxfr ds dkj.k ;g vlekurk c<+ xbZ] ftldk ykHk mPp
tkfr dks feykA ¼ 2000 % 257½ tkfr dh dksbZ Li"V Js.khc) lwph ugha gksus ds dkj.k leL;k
vkSj c<+ tkrh gSA eaMy vk;ksx us 3743 tkfr;ksa dh igpku dh FkhA bl ekeys esa loky mBrk gS
fd D;k tkfr dks vkfFkZd ijh{k.k esa feyk;k tk ldrk gS\ ¼ 309½A ;g ,d leL;k gS
D;ksafd ljdkj ds ikl mu O;fä;ksa dh vk; dh fLFkfr dks js[kkafdr djus dh lhfer {kerk gS tks
bl uhfr dks [krjs esa Mkyrh gSaA ;g Hkh vk'kadk Fkh fd vkj{k.k ds çeq[k ykHkksa esa fiNM+s leqnk;ksa
ds ch vfxze oxZ gksaxs] ftlls bl uhfr dks [krjk gksxkA tc eaMy vk;ksx us layer Øheh ys;j
*dh vo/kkj.kk esa yk;k] rks ;g uhfr fiNM+s oxks± ds lkekftd :i ls mUur oxks± rd ugha igq¡phA

71
jktuhfrd {ks= esa vkj{k.k dh Hkwfedk dk vkdyu djus ds {ks= esa egÙoiw.kZ ;ksxnku esa ls ,d
¼2003½ gSA og jktuhfrd çfØ;k esa u, lewgksa dks ^^ewd Økafr** ds :i esa
'kkfey djus dks dgrs gSa] D;ksafd Hkkjr esa mPp tkfr ds dqyhu oxZ ls ysdj fuEu inLFk lewgksa
rd jktuhfrd lÙkk dk gLrkarj.k gqvk gS] vks-ch-lh- fuokZfpr çfrfuf/k;ksa dk vuqikr 1984 esa 11
izfr'krls 25 izfr'kr gks x;k tcfd 1996 esa mPp tkfr ds fuokZfpr vf/kdkjh 47 izfr'kr ls 35
izfr'kr rd fxj x,A ¼ 2003 % 310½ ;|fi] og bl ckr dks cuk, j[krk gS fd vM+pusa
lkQ vkSj Li"V gSa& ¼d½ lo.kks± dh lÙkk ds inksa ij etcwr idM+ gSA ¼[k½ fuEu tkfr dh jktuhfr
ds mn; esa vlekurk jgh gSA mnkgj.k ds fy,] ;wih vkSj fcgkj tSls jkT;ksa esa ;g jktLFkku dh
rqyuk esa vf/kd lQy jgk gSA ¼x½ mudk rdZ gS fd mnkjhdj.k us mPp tkfr ds fy, u, jkLrs
vkSj volj [kksys] vkSj ljdkjh ukSdfj;ksa esa deh vkbZ] ftlus lPps vFkks± esa vkfFkZd vkSj lkekftd
lekos'k dh xqatkb'k dks dkQh gn rd de dj fn;k gSA ¼?k½ fupyh tkfr;ksa esa o`f) jSf[kd ;k
vifjorZuh; ugha gS D;ksafd tkfr nyksa ;k O;fä;ksa ds chp dksbZ Li"V ,drk ugha gSA mUgksaus ik;k
fd vks-ch-lh- vkSj ,l-lh- vDlj la?k"kZ esa gksrs gSa] ijLij fojks/kh oxZ ds fgrksa ds dkj.k] Li"V :i
ls ;wih esa vkSj ds chp lÙkk ds la?k"kZ esa
ifjyf{kr gksrs gSaA

vnkyrksa us ;g fu/kkZfjr djus esa Hkh egÙoiw.kZ Hkwfedk fuHkkbZ gS fd D;k tkfr dks fo'ys"k.kkRed
mís';ksa ds fy, ,oa vkj{k.k uhfr;ksa ds y{; r; djus esa oxZ ds :i esa iz;ksx fd;k tk ldrk gSA
lcls igys] dbZ ekeyksa esa] vnkyrksa us vks-ch-lh- dh tkfr vk/kkfjr ifjHkk"kk dk leFkZu fd;k gSA
¼1968½ esa loksZPp U;k;ky; us dgk fd
** 'kCn ^^ Z** dk mi;ksx ;gka cgqr foLrkj ls fd;k x;k gS] ftldk
vFkZ gS lkekU; fo'ks"krkvksa okys dbZ O;fä vkSj blfy, ,d lkFk lewgh—rA fo"k; esa
vnkyr us fdlh Hkh tkfr dks fiNM+k oxZ ekuus ds fy, fof'k"V 'krs± j[kha] tSls& vxj ekeyk iwjh
rjg ls lkekftd vkSj 'kS{kf.kd :i ls fiNM+k gSA gkyk¡fd] vka/kz çns'k cuke ;w-,l-oh- ckykjke
ekeys ¼1972½ esa] dh loksZPp U;k;ky; dh [kaMihB us dgk fd ,d tkfr ^^
** gks ldrh gS] tks lkekftd vkSj 'kS{kf.kd :i ls lkekU; vkSlr ls Åij ^^dqN O;fä;ksa** dh
mifLFkfr ds ckotwn gSA ;g r; djus esa fd D;k tkfr fiNM+siu dh vlyh ijh{kk gks ldrh gS]
vkSj eSlwj jkT; ¼1962½ esa vnkyr us rdZ fn;k fd ;|fi tkfr ^^,dek=**
ekunaM ugha gks ldrh gS] ysfdu ;g fiNM+siu dk fu/kkZj.k djus esa çklafxd ekunaM ;k dkjd gSA
dqN le; ds fy, bl fu.kZ; us vkj{k.k dh uhfr ds ek/;e ls vks-ch-lh- ds dY;k.k dks c<+kok nsus
ds fy, O;fäxr jkT; ds mik;ksa dks myV fn;k D;ksafd ogk¡ dsoy tkfr dkjd dks ifjHkkf"kr fd;k
x;k FkkA cgjgky] fooknkLin [kaM mUgsa fn, x, vkj{k.k ds çfr'kr ij Fkk tks fd 50 izfr'kr ds
chp FkkA ;|fi U;k;ky;ksa us bl ckr ls dHkh vLohd`r ugha fd;k fd oxks± dk fiNM+kiu fiNM+h
tkfr dk xBu ugha dj ldrkA U;k;ky;ksa us D;k ijke'kZ fn;k fd vks-ch-lh- ds okLrfod y{;
lewgksa dh lwph rd igq¡pus dh uhfr dks fu;fer :i ls la'kksf/kr fd;k tkuk pkfg,A blus vks-ch-
lh- Js.kh ds Hkhrj mi&oxhZdj.k ds fy, Hkh vuqefr nh gS ftlls ;g lqfuf'pr fd;k tk lds fd

72
dqyhu oxZ ykHk dks fu;af=r ugha djrs gSa vkSj uhfr ds lkFk layXu gSa] vkSj yf{kr lewg lfØ; :i
ls Øheh ys;j *oxhZdj.k dk ykHk mBkrs gSaA ,u-,e- Fk‚el ekeys esa] U;k;ky; us vks-ch-lh- ds chp
Øheh ys;j ds egÙo dks etcwj fd;k] ftlls mu O;fä;ksa dks ftudh ikfjokfjd vk; ,d lger
lhek ls Åij gks xbZ] mUgsa vkj{k.k uhfr ds ykHk ls NwV nh tk,xhA v'kksd dqekj Bkdqj us
U;k;ky; esa dgk fd ,l-lh- vkSj ,l-Vh- ds fy, vkj{k.k dbZ dkjdksa ij vk/kkfjr Fkk] vkSj u
dsoy oxZ ;k vkfFkZd fLFkfr ds lanHkZ esa] eykbZnkj ijr dh vo/kkj.kk mu ij ykxw ugha dh tk
ldrh FkhA blh rjg] vnkyrsa ekurh Fkha fd vYila[;d laLFkkuksa vkSj ß ;k
rduhdh inksa ds fy, vkj{k.k ykxw ugha gksxkA
bl çdkj ge ns[krs gSa fd vkj{k.k uhfr esa eaMy vk;ksx ds dk;kZUo;u us fQj ls jktuhfrd {ks=
esa ços'k dj fy;k gSA baæk lsguh cuke Hkkjr la?k ekeys esa bldh iqf"V dh xbZ Fkh tc loksZPp
U;k;ky; ds U;k;k/kh'kksa us ?kks"k.kk dh Fkh fd ^,d tkfr vkSj Hkkjr esa ,d lkekftd oxZ esa vDlj
gks ldrh gS*A blus 1991 esa dsoy vkfFkZd ekunaMksa ds vk/kkj ij vkj{k.k dks ykxw djus ds fy,
dkaxzsl dh ljdkj dh igyksa ij ls inkZ mBk;kA ¼ 2003 % 311½

efgykvksa dh jktuhfrd Hkkxhnkjh fo'o Hkj esa ,d mcky Hkjk fopkj&foe'kZ jgk gSA leku
jktuhfrd vf/kdkjksa dh ek¡x çopu ds dsaæ esa Fkh ftlds dkj.k mUuhloha 'krkCnh ds nkSjku if'pe
esa ukjhoknh vkanksyuksa dk mn; gqvkA jktuhfrd {ks= ls efgykvksa ds cfg"dkj dks lgh Bgjkus ds
fy, ,sfrgkfld :i ls] fofHkUu çdkj ds rdZ fodflr fd, x, FksA ekU;rkvksa esa ls ,d ç—fr
cuke laL—fr ¼ ] 2005 % 63&64½ ds ckjs esa Fkh] tks lekt esa viuh çk—frd Hkwfedk ds vk/kkj
ij efgykvksa dks futh {ks= esa lhfer djus ds vkSfpR; dks vkdf"kZr djrh FkhA ,d lkoZtfud
xfrfof/k gksus ds ukrs jktuhfr dks iq#"kksa dk fo'ks"kkf/kdkj ekuk tkrk FkkA pw¡fd iq#"kksa us lSfudksa
vkSj Jfedksa ds :i esa lkoZtfud {ks= dk fu;a=.k vftZr fd;k] tcfd efgykvksa dh Hkwfedk ekrkvksa
vkSj f'k{kdksa ds :i esa futh rd gh lhfer Fkh] ukxfjdrk nsus ds rdZ esa ySafxd vlekurk dks
vrafuZfgr fd;k x;k FkkA ¼isVeSu] 1988 % 241½ bldk ifj.kke ;g gqvk fd Hkys gh mUgsa ernku
vkfn ds ekeys esa leku jktuhfrd vf/kdkj çkIr gq,] ysfdu ;g mUgsa çfrfuf/k laLFkkuksa esa vius
fy, txg cukus esa enn ugha dj ldkA ;|fi çfØ;kRed lekurk lqfuf'pr dh xbZ Fkh] ;g
yksdrkaf=d ukxfjdrk ds ewy :iksa esa vuqokn ugha dj ldkA ;g fo/kkulHkkvksa esa efgykvksa dh
frjNh mifLFkfr dks n'kkZrk FkkA bl çLrko us bl ckr ij cgl dh fd jktuhfr esa efgykvksa dh
mifLFkfr dSls lqfuf'pr dh tk, tks çHkkoh uhfr;ksa esa vuqokn dj ldsa] ftlds ifj.kkeLo:i dksVk
dh ek¡x gks ldrh gSA ukjhoknh la?k"kks± ds Hkhrj] blus ^^fopkj/kkjk dh jktuhfr** ls ^^mifLFkfr dh
jktuhfr** dh çxfr dk ladsr fn;kA ,suh fQfyIl us vius fo}rkiw.kZ dk;Z esa jktuhfr dh
mifLFkfr dk rdZ fn;k fd dj jgk FkkA
fQfyIl us dgk fd yksdrkaf=d çopu dk orZeku :i cfg"dj.k ds mu :iksa ls ugha tqM+k gS tks
lekt esa dbZ lewgksa dk lkeuk dj jgs Fks] mnkgj.k ds fy,] jktuhfr esa efgykvksa dk cfg"dkjA
vuqHkokRed egkekjh foKku ds rdZ ds vk/kkj ij] mUgksaus dgk fd bu oxks± ds vuqHko muds thou
dh nqfu;k dks çHkkfor djrs gSa vkSj muds fgrksa dk laKku ysus ds fy,] çfrfuf/k fudk;ksa esa mudh
mifLFkfr vfuok;Z FkhA ;g rdZ fn;k x;k Fkk fd uhfr;ksa ds fopkj&foe'kZ ds le; ,sls lewgksa dk

73
çfrfuf/kRo ugha gksus ij fdlh Hkh lewg ds fy, rS;kj dh xbZ uhfr;k¡ çklafxd ugha gks ldrh gSa
¼fQfyIl 1995 % 4½
us ^^ ** vkSj ^^ ** ds la;kstu dh odkyr dh]
vkSj bl rjg ds mijksä nkoksa ds tokc esa efgyk çfrfuf/k;ksa dh vko';drk ds fy, pkj eq[;
dkj.k fn,A igyk eqík ^^ ** ds ckjs esa Fkk] ftlds varxZr iwoZ esa 'kkfey fd, x, lewgksa
dk çfrfuf/kRo fd;k tk ldrk gS vkSj blfy, mUgsa lPps vFkks± esa leku ekuk tkrk gSA
ds vuqlkj] ;g çrhdkRed çfrfuf/kRo egÙoiw.kZ Fkk] D;ksafd ifj.kkeksa esa bl rjg ds lekos'k dks
lqfuf'pr fd;k tk ldrk FkkA nwljk rdZ ;g Fkk fd dk;Zlwph rS;kj djus ,oa ekStwnk ekunaMksa dks
cnyus ds fy, iwoZorhZ cfg"—r lewgksa dh t:jr Fkh rkfd ;g lqfuf'pr fd;k tk lds fd ftlls
muds fgrksa dks 'kkfey fd;k tk ldsA rhljk rdZ uhfr fuekZ.k esa ^^ ** ds egÙo ds ckjs esa
FkkA ;fn efgyk fo"k;ksa dh mis{kk dh xbZ] rks ,d efgyk çfrfuf/k bl rjg ds fopkjksa ds fy,
vf/kd çHkkoh :i ls okn&fookn dj ldrh gSA blds vykok] efgyk eqíksa ls lacfa /kr uhfr;ksa ij
okn&fookn ds nkSjku] ,d efgyk çfrfuf/k] ,d lewg ds lnL; ds :i esa vius vuqHkoksa vkSj fgrksa
ds vk/kkj ij] fo"k;ksa ij ,d lPph rLohj lkeus ykus ds fy, csgrj fLFkfr esa gksxhA vafre rdZ
çfrfuf/k fudk;ksa esa igys ls ekStwn fo"kerkvksa dks rksM+us dh vko';drk ds ckjs esa gSA ds
vuqlkj] ;g dsoy lkoZtfud {ks= esa iwoZ esa vioftZr lewgksa ds vkØked çoäkvksa dh ekStwnxh }kjk
lqfuf'pr fd;k tk ldrk Fkk] tks 'kfDr inkuqØe ¼ 1995 % 6½ ds vk/kkj ij çfrfuf/kRo ds
ekStwnk iSVuZ dks pqukSrh nsus esa l{ke FksA
us fofHkUu lewgksa ds chp varj ds fopkj ds vk/kkj ij efgykvksa ds fy, dksVk
dk leFkZu fd;kA ;ax ds vuqlkj] yksdrkaf=d turk dks çHkkoh ekU;rk vkSj lewgksa dh fof'k"V
vkoktksa vkSj –f"Vdks.kksa dk çfrfuf/kRo djuk pkfg, tks mRihfM+r ;k oafpr gSaA ^^;fn efgyk,¡
jktuhfrd 'kfä rd igq¡p çkIr djrh gSa] rks os jktuhfr vkSj uhfr;ksa dk fodYi pqusaxh tks
lkekftd vkSj ySafxd lekurk] 'kkafr vkSj lrr fodkl dks c<+kok nsrh gSa**A ¼ 1990 % 184½ bl
çdkj] pqus gq, fudk;ksa esa efgykvksa ds mPp vuqikr dks lqfuf'pr djus ds dksVk ;k vU; rjhds bu
laLFkkuksa dks cny ldrs gSAa
dksVk ds fy, ,suh fQfyIl dk rdZ çk—frd ifjfLFkfr;ksa ls iSnk gq, erHksnksa ds dkj.k efgykvksa
dks ,d fo'ks"k Js.kh ls lacaf/kr ekurk gSA nwljh vksj vkbfjl eSfj;u ;ax efgykvksa ds fy, dksVk
;k fdlh vU; lewg ds ckjs esa ppkZ djrk gS tks ^^
** ds vuqHkoksa ds ckjs esa rdks± ds vk/kkj ij mRihM+u dk lkeuk djrk gSA
¼;ax 1988% 42½ blfy, dksVk ij mldh fLFkfr lkaL—frd igyqvksa ij vf/kd vk/kkfjr gSA tcfd
fQfyIl vkSj ;ax nksuksa vyx&vyx dkj.kksa ls dksVk ek¡xrs gSa] mudh /kkj.kk efgykvksa dks ltkrh;
Js.kh ds :i esa izLrqr djus dh dksf'k'k djrh gSA
;g ,d Js.kh ds :i esa efgykvksa dh ,d lkoZHkkSfed /kkj.kk dh /kkj.kk gS ftlus
nksuksa ds fy, xaHkhj vkykspuk dks vkeaf=r fd;k gSA ;g rdZ fn;k
tkrk gS fd ;g çrhr gksrk gS fd efgyk,¡ dkykrhr fo"k; gSa tks dsoy ,d 'kCn ^^
** ls ,dtqV gSaA ;g Hkh ladsr nsrk gS fd lHkh efgyk,¡ ,d gh rjg ds mRihM+u dk
lkeuk djrh gSaA vkykspdksa us efgykvksa ds mRihM+u dks le>us dh bl le:irk ij loky mBk;k

74
gSA vyx&vyx /keks± ds ukjhoknh vkykspd&
us fuEufyf[kr ç'u mBk, gSa& ¼d½ varj&Mksesu ds varj dk mn~Hko dSls gksrk gS&varj ds Mkseus ds
vksojySi vkSj foLFkkiu&jk"Vª] lkeqnkf;d fgr ds O;fäijd vkSj lkewfgd vuqHko vFkok lkaL—frd
ewY;ksa ij ckrphr dh tkrh gSA dSls fo"k;ksa dk xBu ^^chp&chp esa**vFkok vf/kdrk esa] varj ds
fgLlksa dk ;ksx ¼vkerkSj ij tkfr@oxZ@fyax] vkfn ds :i esa½ gksrk gS\ leqnk;ksa ds çfrLi/khZ nkoksa
esa çfrfuf/kRo ;k l'kfädj.k dh j.kuhfr dSls cukbZ tkrh gS\ vHkko vkSj HksnHkko ds lk>k bfrgkl
ds ckotwn] ewY;ksa] vFkks± vkSj çkFkfedrkvksa dk vknku&çnku ges'kk lg;ksxh vkSj laokniw.kZ ugha gks
ldrk gS] ysfdu xgu :i ls fojks/kkHkklh] la?k"kZi.w kZ vkSj ;gk¡ rd fd vlaxr gks ldrk gS\ bu
fparkvksa dks fyax dh lkoZHkkSfed /kkj.kk }kjk vfrØe.k ugha fd;k tkrk gSA ;|fi] ukxfjdrk dh
vo/kkj.kk esa varj vkSj çfrfuf/kRo ds lokyksa dh ijokg fd, fcuk] jktuhfrd {ks= esa efgykvksa ds
fy, dksVk dh vko';drk ds ckjs esa vke lgefr cu xbZ gSA ;g mRihM+u dks pqukSrh nsus vkSj
lekt esa efgykvksa ds fo"k;ksa ds ckjs esa psruk c<+kus ds fy, lcls vPNk miyC/k lk/ku ds :i esa
ekU;rk çkIr gSA
vU; lacfa /kr ç'u tks çopu esa mBrk gS og egÙoiw.kZ –'; ifjorZu ykus ds fy, vko';d vkj{k.k
ds vuqikr ds ckjs esa FkkA bldk vFkZ jktuhfrd çfrfuf/kRo esa ^^egÙoiw.kZ tu** dh mifLFkfr Fkk
tks efgykvksa dks xq.kkRed efgyk vuqdwy fo/kku ykus ds fy, vko';d FkkA vfHkO;fä egÙoiw.kZ
æO;eku ijek.kq HkkSfrdh ls mitk gS vkSj ,d fuf'pr ek=k dks lanfHkZr djrk gS ftls vifjorZuh;
J`a[kyk çfrfØ;k vkjEHk djus dh vko';drk gksrh gS tks ,d çfØ;k dks cny ldrh gSA vkerkSj
ij eksM+ ds :i esa mfYyf[kr çfr'kr 30 izfr'kr gSA ;s la[;k jkslcsFk e‚l duVsj vkSj Mgy:Q
ds 'kks/kksa ls dkQh gn rd çkIr gqbZ Fkh] ftUgksaus dksVk ç.kkyh ds çHkkoh çn'kZu ds fy, vko';d
egÙoiw.kZ la[;k ij dke fd;k FkkA ¼ 1977 % 965½ yhuk okaxjuM us bl fu"d"kZ ds lkFk
o.kZukRed vkSj ewy çfrfuf/kRo nksuksa ij v/;;u ls fd, x, dqN vuqHkotU; ifj.kkeksa dks la{ksi esa
çLrqr djus dk ç;kl fd;k] ;|fi efgykvksa ds çfrfuf/kRo ds vuqHkotU; ifj.kke fefJr Fks]
ysfdu ^^efgyk jktusrkvksa us efgykvksa ds fgrksa dh fLFkfr dks etcwr djus esa ;ksxnku
fn;k**A¼ 2000 % 67½

if'pe esa jktuhfrd Js.kh ds :i esa efgykvksa dk fuekZ.k HksnHkkoiw.kZ jktuhfrd {ks= ds fo#)
ukjhoknh la?k"kZ ds dkj.k FkkA ;g dkQh gn rd bl /kkj.kk ij vk/kkfjr Fkk fd ftl vk/kkj ij
efgykvksa dks ukxfjdrk çnku dh xbZ Fkh og fyax FkkA gkyk¡fd] Hkkjr esa efgykvksa ds fy,
jktuhfrd vf/kdkjksa ds ekeys esa] iq#"k&efgyk nq'euh xk;c FkhA ;g mifuos'kokn ds dkj.k Fkk
vkSj blds ifj.kkeLo:i jk"Vªoknh çfrfØ;k gqbZ ftlds ifj.kkeLo:i Hkkjr esa iq#"kksa vkSj efgykvksa
ds chp varj laca/k cu x;kA ;g if'pe esa ç—fr cuke laL—fr dh cgl ds ctk; laL—fr cuke
jktuhfr ds chp çfrLi/kkZ ls iSnk gqvk FkkA ¼ ½ blds ifj.kkeLo:i Hkkjr esa fyax
laca/kksa esa deh vkbZA dqekj t;o/kZu us mÙkj vkSifuosf'kd lektksa esa ukjhokn dh ç—fr ij ppkZ
djrs gq, ukjhokn dks lekurk dh [kkst esa ,d vkanksyu ds :i esa ifjHkkf"kr fd;kA muds vuqlkj
;g ¼d½ jk"Vªh; Lora=rk ds xBu vkSj lesdu ds dkj.k mRiUu gqvk] ftlus Lora=rk laxzke ds
nkSjku lkezkT;okn fojks/kh vkanksyuksa dks xfr nh vkSj ¼[k½ ^^ ** dks

75
vk/kqfud cukus ds ç;klksa esa iwoZ&iw¡thoknh /keZ vkSj lkearh lajpukvksa dk iqufoZokgA ¼
½
Hkkjr esa ;g Lora=rk laxzke esa efgykvksa dh Hkwfedk dh jk"Vªoknh iqu% dYiuk ds ek/;e ls gqvkA
blus Hkkjrh; ukjhokn dks if'peh led{kksa ds lkFk yxkrkj tqM+us ds fy, çsfjr fd;kA Hkkjr esa
fczfV'kksa ds ^^lH;rk fe'ku** ¼ ½ ds dbZ mís';ksa esa ls ,d Hkkjr esa
efgykvksa dh fLFkfr ds ckjs esa o.kZukRed vkdyu ds vk/kkj ij] tsEl fey tSls bfrgkldkjksa us
if'peh vkSj Hkkjrh; efgykvksa ds chp vko';d varjksa dks js[kkafdr fd;k tSls lekt esa dn vkSj
fLFkfr] blfy, efgykvksa ds vuqdwy fo/kkuksa dks vf/kfu;fer fd;k x;k Fkk tks efgykvksa ds HkkX;
dks vkdkj nsus esa laL—fr vkSj /keZ ds çHkqRo dks pqukSrh nsrk FkkA jk"Vªokfn;ksa dks viuh Lo;a dh
fLFkfr vkSj lkekftd&/kkfeZd lq/kkj vkanksyuksa ds ckjs esa vkRefujh{k.k djus dh tYnh Fkh] tSls fd
czã lekt us Hkkjrh; lekt esa efgykvksa dh jk"Vªoknh iqu% dYiuk ds fy, LFkku vkSj lalk/ku
rS;kj fd,] tks varr% ijaijk vkSj vk/kqfudrk ds ,d uje feJ.k dh rjg ifjyf{kr gksrs FksA
vkSifuosf'kd lanHkZ ,oa Hkkjrh; lekt ls fudyh çfrfØ;kvksa us iwoZorhZ iSjkxzkQksa esa ppkZ dh ftlls
Hkkjrh; efgykvksa dks if'peh ukjhokfn;ksa }kjk dh xbZ ekaxksa ds ckjs esa lansg gqvkA jktuhfr us
laLÑfr dks Hkkjrh; ukjhoknh ds fy, vyx cuk;kA ifjokj] leqnk;] tkfr ,oa /keZ vkfn ds fy,
efgykvksa ds ^^laca/kijd vkRe** us ubZ fo"k;oLrq dk fuekZ.k fd;k] ftls if'peh ukjhoknh lkfgR; ls
ugha le>k tk ldrk FkkA tSlk fd os vius iq#"k led{kksa ds lkFk rsth ls igpkus tk jgs Fks]
Hkkjr esa efgykvksa ds vkanksyu ds usrkvksa us fdlh Hkh fo'ks"k mipkj ls budkj dj fn;k D;ksafd os
,sfrgkfld vU;k; ls ihfM+r ugha FksA ;g çkphu Hkkjrh; laL—fr dh foHksnd O;k[;k ls Hkh tqM+k
gqvk Fkk tgk¡ efgykvksa dks ^^'käh** ;k ^^dkyh** ds :i esa ljkgk x;k FkkA blfy, ml le; dh
efgyk vkanksyuksa us vius fy, vyx dksVk ds ctk; lkoZHkkSfed erkf/kdkj dh ek¡x dhA lafo/kku
vkSj blds viukus ds nkSjku Hkh ;gh joS;k ns[kk x;k gSA okLro esa] lekurk ds fy, efgykvksa ds
la?k"kZ us vius y{; dks rqjar çkIr dj fy;k Fkk] tc lkoZHkkSfed o;Ld erkf/kdkj ykxw fd;k x;k
FkkA ;g Hkkjrh; jkT; dh efgykvksa ds çfr O;ogkj ds lkFk&lkFk Lora=rk ds ckn efgykvksa ds
vkanksyu ds yqIr gksus dk vuqeku yxk;k tk ldrk gSA
dk çdk'ku 1974 esa gqvk] ftlus Hkkjr esa fQj ls efgykvksa ds vkanksyu dks xfr nhA
blds lkFk gh] tkfr O;oLFkk vkSj vU; çdkj ds çlkj us fyax mRihM+u ds dbZ vk;keksa ij ppkZ
dh] ftlus Hkkjr esa efgykvksa ds vkanksyu ds ckjs esa loky mBk;k FkkA blh
le;] efgykvksa ds vkanksyu ds bl Hkkjrh;&lÙkk dks nf{k.kiaFkh efgyk lewgksa dh çfrxkeh rkdrksa
ls vyx djus dh vko';drk FkhA dêjiaFkh rkdrksa us lqIr çfrxkeh çFkkvksa tSls lrh ¼muds ifr
dh fprk ij fo/kokvksa dks tykuk½ dks thou dk ,d u;k iêk fn;k] tgk¡ ls
laL—fr dks [krjk FkkA lkaçnkf;d foHkktu dks HkM+dkus ds fy, rkfudk ljdkj
ds dkeksa esa bl rjg ds eqíksa ij ppkZ dh tkrh gS] tks gesa bl ^^ukjhokn ds f[kykQ psrkouh nsrs gSa]
tks viuh vlEc) :f<+oknh etcwfj;ksa ds dkj.k efgykvksa ds O;kid vf/kdkjksa esa dqN Hkh ;ksxnku
ns ldrs gSa**A

76
tgk¡ efgykvksa dk vkanksyu O;fä dh lkoZHkkSfed /kkj.kk dks pqukSrh nsdj viuh vyx igpku cukus
dk ç;kl dj jgk Fkk] ogha Hkkjr esa nfyr ukjhoknh u, loky mBk jgs FksA nfyr efgykvksa dks
vDlj xjhcksa esa lcls xjhc ds :i esa tkuk tkrk Fkk] tks T;knkrj oafpr ifjfLFkfr;ksa esa jgrh gSaA
nfyr efgykvksa }kjk vuqHko dh tkus okyh fgalk vkSj mRihM+u dh ç—fr tfVy vkSj dbZ xquk
vf/kd gSA ifj.kkeLo:i ^^tkfr ,oa fyax**ds okn&fookn us nfyr ukjhokfn;ksa ds ,d egÙoiw.kZ
LFkku ij vfrØe.k dj fy;k] tks efgyk dh Js.kh dks ^^lkoZHkkSfed** ugha ekurs gSaA blfy, mudk
rdZ gS fd nfyr efgykvksa vkSj mPp tkfr dh efgykvksa ls vyx rjg ls ckr djus dh t:jr
gSA vacsMdj ;k vartkZrh; fookg dh vuqifLFkfr dh vksj ladsr djrs gq,] MkW- vEcsMdj us rdZ
fn;k fd ;g tkfr O;oLFkk dk lkj Fks] vkSj bls dsoy efgykvksa dh dkewdrk dks fu;af=r djds
j[kk tk ldrk gSA blds ifj.kkeLo:i mPp tkfr ds czkã.kksa ds fy, ;kSou iwoZ
fookg dh flQkfj'k dh xbZ FkhA fya<y vkSj tks'kh dk rdZ gS fd czkã.koknh lkekftd O;oLFkk esa]
tkfr vk/kkfjr vkSj Je ds ;kSu foHkktu bl rjg ls tqM+s gq, gSa fd futh {ks= ds ckgj mRiknd
çfØ;k ls ml tkfr dh efgykvksa dks okil ysus ls igys tkfr dh fLFkfr esa mUu;u gksrk gSA
lkekftd Je esa Hkkx ysus ds dkj.k fupyh tkfr dh efgykvksa dh
dkeqdrk dh igq¡p ds ckjs esa bl rjg dk laca/k vuqeku ij vk/kkfjr gSA ;g cnys esa fuEu tkfr ds
iq#"kksa dh foQyrk esa mudh efgykvksa dh dkeqdrk dks fu;af=r djus ds fy, fLFkr gS vkSj bls
mudh fu"i{krk ds vkSfpR; ds :i esa js[kkafdr djrk gSA bl çdkj fyax fopkj/kkjk fir`lÙkk dks
cfYd tkfr ds laxBu dks oS/k cukrh gSA 'kfeZyk jsxs ds vuqlkj] mPp tkfr vkSj nfyr efgykvksa
ds chp ,d f}vk/kkjh dk fuekZ.k fd;k tkrk gS vkSj bls /keZxzaFkksa ds ek/;e ls oS/k cuk;k tkrk gS]
ftlesa iwoZ /kehZ ¼ ½ efgyk vkSj vU; pfj=ghu efgyk,¡ gksrh gSaA bl çfØ;k esa ^^
** vkSj ^^ ** nfyr efgyk ds 'kkL=h; cfg"dkj dk dkj.k cukA ¼jsxs]
1995 % 42&44½
dUuchju ,oa dUuchju bafxr djrs gSa fd nfyrksa ds f[kykQ gkfy;k tkfr vk/kkfjr fgalk f'k{kk
vkSj jktuhfrd l'kähdj.k vkSj ikjaifjd fLFkfr vkSj tkfr dh vLoh—fr ds ek/;e ls thou ds
fofHkUu {ks=ksa esa nfyrksa dh c<+rh /kkj.kk ds f[kykQ mPp tkfr dh ukjktxh dk ifj.kke gSA
2131&2132½ bu tkfrxr Vdjkoksa esa] lkekU; :i ls efgyk,¡ vkSj fo'ks"k :i ls nfyr efgyk,¡
tkfr vkSj fyax ds baVjQsl dk [kkfe;ktk mBkrh gSaA nfyr ukjhokfn;ksa dk rdZ gS fd ns'k esa
çpfyr lkekftd ifjfLFkfr;k¡ fofHkUu efgykvksa ds fy, fofHkUu çdkj dh fodykaxrk mRiUu djrh
gSaA mPp tkfr dh efgykvksa dks muds oxZ dh ç—fr ds dkj.k ckgj dke djus ds fy, etcwj ugha
fd;k tkrk gS] ysfdu nfyr efgykvksa dks vius ifjokj ds vfLrRo ds fy, ckgj dke djus ds
fy, etcwj fd;k tkrk gS] ftlls muds Je] xfr'khyrk vkSj dkewdrk ij dM+s fu;a=.k dh deh
gksrh gS vkSj bl rjg mUgsa v'kq) ;k vHkko dk lkeuk djuk iM+rk gSA lnkpkj esa bl çdkj ,d
nfyr efgykvksa ds 'kjhj dks bl eqM+ rdZ }kjk miyC/k djk;k tkrk gS vkSj bu efgykvksa ds
cykRdkj ds cgqer ds ekeyksa esa Hkh t?kU; ;kSu geys ds çfr laosnu'khy gksus dk çfriknu djrk
gS] mudk pfj= lafnX/k gks tkrk gSA bl çdkj tc mPp tkfr dh efgyk,¡ O;ofLFkr ikfjokfjd

77
fgalk dk vuqHko djrh gSa] rks nfyr efgykvksa dks ?kjsyw fgalk ds nkSjku vkSj Åij] Åijh tkfr dh
rkdrksa ls cykRdkj] ;kSu mRihM+u ds lkewfgd [krjs dk lkeuk djuk iM+rk gSA Hkkjrh; efgykvksa
ds lanHkZ esa fo"k; ;k fo"k;&gqM dk fuekZ.k nksuksa dh e/;LFkrk ls fd;k x;k Fkk& ¼d½ vkSifuosf'kd
vkanksyu vkSj jk"Vªoknh vkanksyu ds :i esa bl ij çfrfØ;k ¼[k½ tkfr ds vk/kkj ij efgyk
vkanksyu ds Hkhrj fofHkUu vkoktksa dk fuekZ.kA bu erHksnksa us bu lewgksa ds fy, dksVk ds nkoksa dk
irk yxkus esa enn dh] tSlk fd if'pe ds varj dks Li"V fd;k x;k Fkk] mlh rjg Hkkjrh;
efgykvksa dh dksVk dh ek¡x if'pe dh rqyuk esa vyx FkhA ,d vksj bu çfØ;kvksa ds ifj.kkeLo:i
efgykvksa ds fy, dksVk ds fy, vkoktsa fuf"Ø; gks jgh Fkha vkSj nwljh vksj tc ;g mBh rks blus
nfyr efgykvksa dh fof'k"V vkoktksa dks igpku fy;kA

vkSifuosf'kd eqBHksM+ us Hkkjrh; efgykvksa ds fy, vk/kqfudrk dh /kkj.kk dks çHkkfor fd;kA bl
e/;LFkrk dkjd ds ifj.kkeLo:i] efgykvksa us ^^ ** dh NViVkgV ds lkFk vk/kqfudrk
dks viuk;k& ,d ftlesa jk"Vªoknh rkdrksa us if'pe ls lkaL—frd@vk/;kfRed {ks= esa viuh Js"Brk
fn[kkus dh dksf'k'k dh ftlds ifj.kkeLo:i os efgykvksa ds vf/kdkjksa ds pSafi;u cu x,A blus
efgykvksa dh f'k{kk dh fparkvksa dks Hkh vkxs c<+k;k] fcuk dbZ vM+puksa ds ftlus if'pe ds foijhr
dksVk dh ek¡x ds fy, fLFkfr;k¡ ugha cukb± vkSj lkFk gh f'kf{kr efgykvksa us Hkh vius fy, oksV nsus
ds vf/kdkj dh ek¡x 'kq: dj nhA gkyk¡fd] ernku dk mudk vf/kdkj lkoZHkkSfed o;Ld erkf/kdkj
dh ek¡x ds lkFk FkkA blfy, Hkkjr esa efgykvksa ds vkanksyu dk mís'; ifjorZudkjh jktuhfr Hkh
Fkk] tks ukjhoknh ifj;kstuk ds fy, dsaæh; Fkk] gkyk¡fd] ;g Lopkfyr :i ls ,d ,dh—r ukjhoknh
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78
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81
इकाई-V : जनजाितयाँ और राजनीित
पाठ-1
सिं वधान क पाँचव और छठी अनस
ु च
ू ी तथा जनजाित नीितयाँ एवं योजनाएँ
 प रचय
 संिवधान क पाँचव और छठी अनसु चू ी एक ऐितहािसक परे खा
 पाँचव और छठी अनसु चू ी के मु य सवं ैधािनक ावधान
 पंचशील िस ातं और ‘ ाईबाल सब लान’ तथा जनजाितय के िलए योजनाएँ
 पेसा काननू आिदवासी नीितयाँ अथवा योजनाएँ
 अनसु िू चत जनजाित और अ य परंपरागत वन िनवासी (वन अिधकार क मा यता) अिधिनयम, 2006
 जनजाित वशासन एवं िवकास पर ‘बालच मंगु क े र’ कमेटी क रपोट
 िन कष
सिं वधान क पाँचव और छठी अनस
ु च
ू ी तथा जनजाित नीितयाँ एवं योजनाएँ
भारतीय संिवधान क पाँचव और छठी अनसु चू ी म जनजाित1 वशासन और सरु ा के िवशेष ावधान िकए गए है। इन
अनसु िू चय का वणन अनु छे द 244 म है, इसम बताया गया है िक इन े का सचं ालन सामा य काननू ारा नह होगा। अगर
देखा जाए तो यह ि या औपिनवेिशक समय से ही चली आ रही है। उदाहरण के प म आिदवासी े का संचालन िवशेष
काननू ‘सेहडू ड िडि ट ए ट’ 1874 के ारा होता था। इसके बाद इन े को सरु ा दान करने के िलए बिह कृ त और
आिं शक प से बिह कृ त े म िवभािजत िकया गया था। ‘भारत शासन अिधिनयम 1935’ के तहत इन दोन े को य
प से रा य के गवनर के अधीन लाया गया। सिं वधान क पाँचव और छठी अनसु चू ी क परे खा भी इसी ावधान से िनिमत
क गई है, इस अनसु िू चय म मश: गैर उ र पवू के नौ जनजाित रा य (आ देश, छ ीसगढ़, गजु रात, िहमाचल देश,
झारख ड, म य देश, महारा , उड़ीसा और राज थान) और उ र पवू रा य (मेघालय, असम, ि परु ा और िमजोरम) शािमल ह।
इन अनुसिू चय के तहत वतं भारत म जनजाितय के िलए बहत सी नीितयाँ और योजनाएँ बनाई गई ह। परंतु योजनाएँ बनाते
समय संिवधान िनमाताओ ं के सामने मु य न यह था िक इनक सं कृ ित और परंपरा को बनाए रखते हए इ ह िवकास और
वशासन क मु यधारा म िकस कार सि मिलत िकया जाए। इसके िलए िवशेष प से तीन कार के िवचार चिलत थे जैस–े
(1) इ ह अलग रखना (Isolation) (2) समावेश करना (Assimilation) और एक करण (Integration), भारत के थम
धानमं ी पंिडत जवाहर लाल नेह ने इनके िवकास के िलए एक करण क प ित को मह वपणू माना और 1954 म इस संदभ म
पंचशील का िस ातं िदया। (Nehru; 1955:1-8) इसके बाद 1972 के दौरान ‘ ाईबल सब लान’ लागू िकया। इस योजना क
िवशेषता यह थी िक जहाँ पाँचव और छठी अनसु चू ी म जनजाितय को सरु ा दान क गई थी वही ाईबल सब लान के ारा
इ ह िवकास के साथ जोड़ने का यास िकया गया। इसके प चात् 1996 म जनजाितय को वशासन और वाय ा दान करने के
िलए ‘पंचायत पर (अनसु िू चत े िव तार अिधिनयम) काननू (पेसा), लागू िकया गया। इससे पवू जनजाित े का संचालन
पाँचव अनसु चू ी ारा होता था। इसम बहत से ावधान ह जो जनजाितय के वशासन के िलए अिनवाय ह। वही 2006 म
‘वनवासी अिधिनयम काननू ’ के ारा इ ह इनक भिू म और जगं ल पर मािलकाना हक दान िकया गया है। इन नीितय के
अलावा जनजाितय के िलए कई ऐसे सवं ैधािनक और काननू ी ावधान ह जो इ ह सरु ा दान कर िवकास क मु यधारा के साथ
जोड़ने के िलए मह वपणू ह िजनका िव तार पणू वणन इस लेख म आगे िकया गया है।

1
भारतीय संिवधान म आिदवासी े को पाँचव और छठी अनुसूची के ारा दो भागो म िवभािजत है, छठी अनुसूची म उ र पूव के आिदवासी और पाँचव अनसु चू ी म गैर उ र पूव के आिदवािसय
को शािमल िकया गया है।

82
संिवधान क छठी अनसु चू ी िजसके अंतगत उ र पवू क जनजाित आती ह। इसम ‘ वाय िजला प रषद’ के प म थानीय तर
पर कानून बनाने और लागू करने क शि दान क गई ह, िजस कारण यहाँ के आिदवासी अिधक गितशील ह। यह लेख कई
भाग म िवभािजत ह, सबसे पहले इसम सिं वधान क पाँचव और छठी अनसु चू ी का ऐितहािसक िवकास, और िकस कार के
संवैधािनक ावधान ह इसे बताया है। इसके प चात् जनजाित िवकास के िलए जो योजनाएँ और नीितयाँ समय-समय पर लागू क
गई ह इन पर काश डाला गया है। और अंत म यह देखने का यास िकया गया है िक या पाँचव और छठी अनसु चू ी के ारा
जनजाितय को सरु ा ा हो पा रही है और इन अनसु िू चय क आिदवासी िवकास म या भिू मका रही है।
सिं वधान क पाँचव और छठी अनुसच
ू ी – एक ऐितहािसक परेखा
आिदवासी े 1935 म इसे दो े (बिह कृ त और आंिशक प से बिह कृ त) म वग कृ त िकया गया, िजसका शासन अलग
अनसु चू ी के ारा िकया जाना था। वत भारत के संिवधान म इस े को पाँचव और छठी अनसु चू ी के अतं गत शािमल िकया
गया है। आिदवासी े के इस िवभाजन क अपनी एक ऐितहािसक ि या रही जो 1935 तक आते परू ी हई, करीब इसी ि या
को वत भारत के संिवधान म भी लागू िकया गया है। इसिलए पाँचव अनसु चू ी के िवकास क ऐितहािसक पृ भिू म को जानने
क आव यकता है।
भारत म ि िटश शासन के िव तार क सबसे बड़ी चनु ौती आिदवासी समदु ाय के दास व के प म सामने आई। औपिनवेिशक
शासन ने आिदवासी े का बड़ी तेजी से अित मण िकया था। िजस कारणवश यह िवदेशी शासन के अिधप य का सामना
करने के िलए परू ी तरह तैयार नह थे। लेिकन उभरते औपिनवेिशक शासन के िलए भी यह स भव नह था िक वह अपना िव तार
िकए िबना इन े म अपना भाव थािपत कर पाए। इसके िलए औपिनवेिशक सरकार ने इ ह काननू ी दायरे म लाने का यास
िकया। लेिकन आिदवासी लोग के िलए काननू ी यव था या सीमा का कोई खास अथ नह था, इसिलए इ होन अ य यि य का
ह त ेप कभी वीकार नह िकया। शासन ने इस प रि थित को िनि त प देने के िलए इन े को ‘नॉन रे गल ु ेशन’ या ‘गैर
िनयिं त’ े म त दील करने का िनणय िलया। लेिकन जैसे ही सरकार ने आिदवासी े म अपने सहयोगी (इसम वे लोग
शािमल थे जो आिदवासी और शासन के बीच दभु ािषए क भूिमका िनभाते थे और िजन पर आिदवासी समुदाय अिधक िव वास
करते थे) बनाए और इ ह अ य प से अपने शासन के अधीन कर िलया। जैसे ही सरकार ने कुछ मु य े पर अपना
िनय ण थािपत िकया इसके तरु त बाद आिदवासी े के ब धन को दो भाग (गैर िनयतं ि त े और आंिशक प से
िनय ण े ) म िवभािजत कर िदया। गैर िनयतं ि त अिधिनयम क घोषणा 1796 म ‘राजमेहल हील के पह रआस आ दोलन’ के
फल व प हई और छोटा नागपरु नॉन रे गल ु ेशन अिधिनयम क घोषणा 1833 म ‘कॉल िव ोह’ के दमन के प रणाम व प हई।
2
(Sharma,2000: 28)
इसके अलावा एक और अलग काननू 1839 म िडि ट ए ट ऑफ ‘गजं म’ ए ड ‘िवशाखापटनम’ पास िकया गया, इसके बाद
1874 म सामा य सहडू ड ए ट पास करके दो सहडू ड क घोषणा क गई। इस े को 1919 के अिधिनयम म स पणू बिह कृ त
े और प रवितत बिह करण े का नाम िदया गया। भारत शासन अिधनयम 1919 के बाद कई ांत ने अपने काननू इस सदं भ
म पास िकए, जैसे ‘िवलेज़ पंचायत ए ट इन म ास’, बॉ बे और से फ गोवरमट ए ट इन बंगाल आिद। इन काननू को थानीय
तर पर वशासन दान करने क ि या के प म प रभािषत िकया गया था। भारतीय आिदवासी े का शासिनक पहलू का
िव लेषण साईमन कमीशन ने 1928 क अपनी रपोट म भी िकया था। कमीशन ने यह सझु ाव िदया था िक इन े (आिदवासी
े ) का दो भाग (बिह कृ त े और आिं शक प से बिह कृ त े ) म िवभाजन कर िदया जाए। साईमन कमीशन क इस
िसफा रश को 1935 के भारत शासन अिधिनयम के ारा लागू कर (Bijoy, 2012: 9) सीमा वत े आसाम, ल ि प पंजाब
(अब िहमाचल का े ) आिद को बिह कृ त े के अतं गत रखा गया, वही दसू री और म ास ोिवि सस, बॉ बे, बंगाल यनू ाईिटड
से टर ोिवि सस और उड़ीसा को आंिशक प से बिह कृ त े म रखा गया। इस ि या को वतं भारत के संिवधान म कुछ
बदलाव के साथ अपना िलया गया। इस कार पाँचव और छठी अनसु चू ी का अपना एक ल बा इितहास रहा है। लेख के अगले
भाग म इन अनुसिू चय के संवैधािनक ावधान का वणन िकया गया है।

2
इसी कार का समान कोयास िव ोह दि ण म गो रला यु के प म 1803 और 1862 म भी सामने आया िजसे िनदयता पूवक दबा िदया गया। देखे (Sharma ,2000:28)

83
पाँचव और छठी अनुसच
ू ी के मु य सवं ैधािनक ावधान
संिवधान के मौिलक अिधकार म िपछड़े वग के लोग क सरु ा के िवशेष ावधान िकए गए है, संिवधान के बहत से ऐसे
अनु छे द है जो जनजाित समदु ाय के साथ जड़ु े है। संिवधान म रा य के गवनर के पास इन अनसु िू चत े के शासन और िनयं ण
क यापक शि है। पाँचव अनसु चू ी के पेरा ाफ 5(1) म बताया गया है िक रा य के गवनर का यह अिधकार है िक वह सघं और
रा य सरकार के ारा बने काननू इन े म समान प से लागू होने से रोक सकता है, या िफर सझु ाव दे सकता है िक कुछ िनि त
सधु ार के बाद ही इन काननू को लागू िकया जाए। (भारत का सिं वधान, 2011) इसी कार पेरा ाफ 4 म ावधान है िक
अनसु िू चत े के शासन क वािषक रपोट और जब कभी रा पित इसे ज री समझे इनके सम ततु करनी होगी। इसके
अलावा इन अनसु िू चत े म शांित और वशासन का मु य दािय व भी रा य के गवनर को स पा गया है। (Sharma, 2000)
गवनर क इस शि पर के वल दो बधं न है (1) कोई भी िविनयम बनाने से पवू गवनर ‘आिदवासी सलाहकार प रषद’ से िवचार
िवमश करे गा। (2) सभी िविनयम को लागू करने से पवू रा पित क अनमु ित के िलए भेजा जाएगा। (Kurup, 2014: 7-8)
लेिकन इन मु य ावधान के होते हए भी आिदवािसय के अिधकर का अित मण हो रहा है। वत भारत म िकसी भी रा य
के गवनर ने क और रा य सरकार के काननू को इन अनसु िू चत े म लागू होने से रोका नह है, और न ही इन काननू को सधु ार
के िलए लौटाया है।
संिवधान के मलू अिधकार म प प से बताया गया है िक रा य िकसी नाग रक के िव धम, मल ू वंश, जाित, िलंग, भाषा,
ज म थान आिद के नाम पर भेदभाव नह करे गा (अनु छे द,15), साधारण लोग के ारा आिदवासी समदु ाय क भिू म ा करने
पर ितब ध है (अनु छे द,19(5)), इसके साथ इन लोग क भाषा, सं कृ ित को भी सरु ा दान क गई है (अनु छे द, 29), इसके
अलावा सिं वधान म सरकारी नौकरी म आर ण (अनु छे द,14(4)) और आिदवािसयो के िलए र नौक रय क िनयिु से
संबि धत (अनु छे द,16(4)) ह। और संिवधान के नीित िनदशक िस ांत म कमजोर तबके के लोग िजसम आिदवासी भी शािमल
है, के शै िणक और आिथक िहत को बढ़ावा देने क बात कही गई है (अनु छे द, 46)।
इनके अलावा और कई मु य ावधान है जो आिदवासी समदु ाय के साथ जड़ु े ह। अनु छे द (342) म जनजाित समदु ाय क
मा यता क बात कही गई है, अनु छे द (330) लोक सभा और अनु छे द (332) म िवधानसभा के अ दर जनजाितय के आर ण
का ावधान है। अनु छे द 338(1) म प िकया गया है िक जनजाितय के िलए एक रा ीय आयोग होगा, और अनु छे द 339
इस बात को प करता है िक रा पित रा य के अनुसिू चत े के शासन के िलए और अनसु िू चत जनजाितय के क याण के
बारे म ितवेदन देने के िलए आयोग क िनयिु िकसी भी समय आदेश ारा कर सके गा। (भारतीय संिवधान, 2011)
छठी अनसु चू ी के अतं गत आने वाली जनजाित अ य रा य क तल ु ना म अिधक गितशील ह। सिं वधान म इ ह ‘ वाय िजला
प रषद’ और ‘ वाय े ीय प रषद’ के प म या अिधकार िदए गए ह। (Kurup; 2014: 8) सिं वधान के अनु छे द 244 (2)
म छठी अनसु चू ी का वणन िकया गया है। िजसम असम, मेघालय, िमज़ोरम और ि परु ा रा य के आिदवािस शािमल ह। इस
अनसु चू ी के भाग 2(1) के अनसु ार येक वाय िजले म एक ‘ वाय िजला प रषद’ होगी िजनके सद य क अिधकतम
सं या 30 हो सकती है, िजनम से अिधकतम चार सद य क िनयुि रा यपाल और अ य सद य का िनवाचन वय क
मतािधकार के ारा होगा।3 इस अनसु चू ी के अंतगत रा यपाल ‘िजला प रषद’ और े ीय प रषद के संदभ म प रषद अथवा
आिदवासी सगं ठन के साथ िवचार िवमश कर काननू बना सकता है।4 िजसम कई थानीय िवषय शािमल ह, उदाहरण के तौर पर
गाँव और क बे के िलए शासिनक नीित बनाना, इनके अिधकार े म आने वाले जंगल का सचं ालन करना, और कुछ हद तक
प रषद को याियक काननू के बारे म शि भी दान क गई ह। (Kurup; 2014: 8) अथात् रा य कायपािलका के ािधकार के
साथ छठी अनसु चू ी के जनजाित े वाय िजले के प म शािसत िकए जाएँगे। छठी अनसु चू ी के भाग 3 म बताया गया है िक
थानीय तर पर कुछ याियक और िवधायी शि याँ वाय प रषद को दान क गई ह। उदाहरण व प आरि त े से िभ न
वन का बंध, िववाह और सामािजक रीित- रवाज इ यािद। (बस;ु 2013: 332-333) परंतु यह यान देना आव यक है िक इन
3
https://www.mea.gov.in/Images/pdf1/S6.pdf, 2019/10/8
4
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प रषद ारा बनाए गए काननू तब तक िन भावी रहगे जब तक रा यपाल अनमु ित दान न करे । लेख के अगले भाग म पचं शील
िस ांत और ाईबल सब लान का वणन िकया गया है।
पंचशील िस ांत, ‘ ाईबाल सब लान’ तथा जनजाितय के िलए अ य ावधान
जनजाितय के सामािजक-आिथक िवकास और सशि करण के िलए संिवधान म कई अनु छे द ह परंतु इन ावधान को सही
कार से लागू करने क कोई खास रा ीय नीित नह ह। इस सदं भ म भारत के थम धानमं ी पंिडत जवाहर लाल नेह का
पंचशील िस ांत अित मह वपणू ह िजसम उ ह न जनजाित शासन के िलए पाँच िस ातं िदए थे, जो इस कार है–
(1) जनजाितय को उनक ितभा के अनुसार िवकास क अनमु ित िमलनी चािहए। (2) जनजाित के भिू म और जंगल के
अिधकार का स मान करना चािहए। (3) जनजाित समहू को िबना िकसी बाहरी ह त पे के शासिनक िवकास का उ रदािय व
वयं उठाना चािहए। (4) िबना सां कृ ितक सं थाओ ं को हािन पहँचाए जनजाित िवकास का य न करना चािहए। (5) जनजाित
िवकास उनके अनु प होना चािहए ना िक इसे पैस के खच करने के प म देखा जाए। बाद म भारतीय सरकार ने अपनी
आिदवािसय क िवकास नीितय म इन िस ांत को मह व िदया।
ाईबल सब- लान क अवधारणा क सरकार ारा इसिलए शु क गई थी तािक रा य िक जनजाित को िवकास क मु यधारा
के साथ जोड़ा जा सके । अथात् जनजाित और अ य लोग के बीच बढ़ती असमानता को कम कर इ ह िश ा, वा य, आय,
शोषण से मिु और अवसर क समानता दान कर िविभ न े म बढ़ावा दान िकया जा सके । ाईबल सब- लान क िवशेषता
यह थी िक इसे ‘पाँचव पंच वष य योजना’ (1974-1979) के साथ शु कर करीब स ह रा य और दो क शािसत देश म
बड़े तर पर लागू करने के प चात् बाद क कई सरकारी योजनाओ ं म भी इस पर बल िदया गया।
अनुसिू चत जाित और अनस
ु िू चत जनजाित अ याचार िनवारण अिधिनयम(1989) और पेसा काननू एवं आिदवासी
नीितयाँ तथा योजनाएँ
जनजाितय को अ याचार से बचाने के िलए 1989 म त कालीन धानमं ी राजीव गाँधी क सरकार ने अनुसिू चत जाित और
अनसु िू चत जनजाित अ याचार िनवारण अिधिनयम काननू लागू िकया था। इस काननू क िवशेषता यह है िक यिद कोई उ च
जाित का यि इन समुदाय के िलए अस य भाषा का उपयोग करता है, या कोई काय करने के िलए बा य करता है तो िबना
िकसी गवाह क आव यकता के इनके िखलाफ कायवाही क जा सकती है। इन समदु ाय क िशकायत सनु ने के िलए अनसु िू चत
जाित और अनसु िू चत जनजाित आयोग का गठन भी िकया गया है। इसके अित र इ ह िश ण सं थान म बढ़ावा देने के िलए
िविभ न कार क छा वृि और सहायता भी दान क जा रही है।
आिदवासी े म थानीय वशासन से सबं ि धत दलीप िसहं भू रया क अ य ता म जून 1994 म 22 सद य क एक कमेटी
गिठत क गई। कमेटी ने अपनी रपोट कुछ मु य सझु ाव के साथ जनवरी 1995 म सरकार को स पी। िजसम 73व और 74व
सवं ैधािनक सश
ं ोधन का िव तार जनजाित इलाक म करने क िसफ़ा रश क थी। सरकार ने इस कमेटी क िसफा रश के आधार पर
पच
ं ायत पर (अनसु िू चत े िव तार अिधिनयम) काननू 1996 (पेसा), पाँचव अनसु चू ी े म लागू कर िदया। इस कमेटी क
मु य िसफ़ा रश इस कार थी।
एक, आिदवासी े क येक ब ती (हैमलेट) को ाम सभा के प म मा यता िमलनी चािहए, चाहे उसक सं या िकतनी भी
हो। (चौबे, 2013: 157) दसू रा, कानून का ा ट इस कार तैयार करना चािहए, िजससे छठी अनसु चू ी के समान पाँचव अनसु चू ी
म भी िजला प रषद का िनमाण हो सके । (Ratho, 2007: 7) तीसरा, आिदवासी सलाहकार प रषद को पाँचव अनसु चू ी म रा य
तर पर एक भावी सगं ठन के िलए िवचार-िवमश करने वाली सं था के प म काय करना चािहए, और साथ ही इस सं था क
बैठक क अ य ता रा य के मु यमं ी ारा होनी चािहए। (वही : 7) चौथा, आिदवासी े म पहले से चले आ रहे पार प रक
रीित- रवाज और मू य का आधिु नक यव था के साथ सम वय थािपत करके उ ह स मान दान करना चािहए। (चौबे, 2013:
157) पाँचवाँ, जनजाित अथवा अनसु िू चत े म काम करने वाली सं थाओ ं को यहाँ के लोग से सबं ि धत सम याएँ (भिू म क
सम या, जंगल के अित मण क सम या, िव थापन आिद) के समाधान के िलए िवशेष अिधकार िमलने चािहए। छठा, ाम
सभा को वह सब अिधकार िमलने चािहए जो थानीय सम याओ ं से संबि धत है जैस–े जल, जंगल, जमीन और इसे गरीबी
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उ मलू न काय म म भी भागीदार बनाना चािहए। (Ratho, 2007: 8) सातवाँ, जनजाित व अनसु िू चत े म अगर आिदवासी
समदु ाय बहसं यक प म रहते ह तो पंचायत का अ य और उपा य जनजाित समुदाय से होने चािहए। (वही : 8) आठवाँ,
आिदवासी े म पचं ायत को वशासन का ल य ा करने के िलए अिधक भावी और सहभागी भिू मका िनभाने क शि
िमलनी चािहए5। नौवाँ, थानीय े के िवकास के िलए धन खच करने का अिधकार ाम सभा को िमलना चािहए। दसवाँ,
आिदवासी े म ाम सभा क अनमु ित के िबना िकसी कार का भिू म अिध हण नह होना चािहए। यारहवाँ, इस े म
पंचायत को पैसा अनु छे द 243(H), 243(1), 275(1) के अंतगत िमलना चािहए। (भारत का सिं वधान, 2011)
इस कार भू रया कमेटी क िसफ़ा रश को वीकार करते हए 24 िदस बर, 1996 म रा पित ने अनसु िू चत े के िलए पचं ायत
के नए काननू (पेसा) को अनमु ित दान कर दी। इसके साथ ही पचं ायत के बारे म संिवधान के भाग IX म दी गई यव था कुछ
मह वपणू फे रबदल के साथ अनुसिू चत े म लागू हो गई। पर तु यहाँ इस बात पर यान देने क आव यकता है िक भू रया कमेटी
ने अपनी दो रपोट दी थी, एक पाँचव अनसु चू ी के अंतगत आने वाले ािमण े के िलए, दसू री नगर पािलकाओ ं म मंिु शपा टी
क थापना के िलए। लेिकन नगर पािलकाओ ं म अभी तक इस ावधान को लागू नह िकया गया है। वैसे तो सिं वधान के बनने के
प चात् से ही आिदवासी समाज के सदं भ म के और रा य सरकार के सामा य काननू आिदवासी े पर समान प से लागू
होते गए, लेिकन पेसा काननू के बाद भी आिदवासी समदु ाय को बहत सी सम याओ ं का सामना भी करना पड़ रहा है।
अनस
ु िू चत जनजाित और अ य परंपरागत वन िनवासी (वन अिधकार क मा यता) अिधिनयम, 2006
जनजाितय को वन और भिू म पर काननू ी मािलकाना हक दान करने के िलए 2006 म वनवासी अिधिनयम काननू लाया गया।
रामच गहु ा का मानना है िक आजादी से पहले जगं ल का उपयोग औपिनवेिशक सा ा य के साम रक िहत क पिू त के िलए
िकया जाता था, वही वत ता के प चात् इनका उपयोग वािण यकरण क आव यकता तथा औ ोिगक बुजवु ा वग के िहत को
साधने के िलए िकया जा रहा है। वन िनवासी अिधिनयम 2006 से पवू भारत म वन का सचं ालन दो (भारत शासन अिधिनयन
1927’ और ‘वन सरु ा काननू 1972) क़ानून ारा होता था। वन िनवासी अिधिनयम से पवू के काननू से यह इसिलए अलग है
य िक यह वनवासी और आिदवािसय को उनक भूिम पर मािलकाना हक दान करता है। तािक वनवािसय के साथ
औपिनवेिशक और उ र-औपिनवेिशक समय म जो भेदभाव हआ है उसे ख म िकया जा सके । इस अिधिनयम म बताया गया है
िक ज मू क मीर को छोड़कर यह स पणू भारत पर लागू होगा। अिधिनयम क धारा 2(ग) के अनसु ार वन म रहने वाली जनजाित
से अिभ ाय है िक जो ाथिमक प से वन म िनवास कर रहे ह और अपनी जीिवका के िलए वन अथवा वन क भिू म पर िनभर
है तथा इसम अनसु िू चत जनजाित और चरागाही समदु ाय भी आते ह। 6 इस काननू क धारा 2(c) के तहत वनवािसय को मा यता
दान करने के िलए तीन कानूनी शत रखी गई ह। एक उस े म जनजाित के प म मा यता िमली होनी चािहए, जहाँ वह अपने
अिधकार का दावा कर रहे ह। दसू रा वनवािसय के पास 2005 से पवू ाथिमक प से वन म रहने का आवास माण-प होना
चािहए। तीसरा जो वनवासी अपने जीवन यापन के िलए परू ी तरह वन पर िनभर ह आिद।7 इसके अलावा इसम आिदम जनजातीय
समहू और ऐसे समदु ाय िज ह अभी तक कृ िष काय का ान नह है, को आवास का अिधकार िदया गया है। इसम वह जनजाित
भी शािमल है िज ह सामदु ाियक वन संसाधन को संरि त, पनु ज िवत या बंिधत करने का अिधकार है, िजसक वे सतत उपयोग
के िलए परंपरागत प से र ा और सरं ण कर रहे ह।
अत इस अिधिनयम क मु य िवशेषता यह है िक धारा 3(ए) के अनसु ार वनवािसय को यि गत और सामूिहक प से जंगल म
जीिवका का अिधकार िदया गया है। इसम उन वनवािसय के मािलकाना हक का ावधान िकया गया है जो कई पीढ़ी से अपनी
आजीिवका के िलए जंगल अथवा वन पर िनभर थे। इसके अलावा इस अिधिनयम म वनवािसय को इनके अतं गत आने वाले
जंगल का संर ण या बंध करने का अिधकार भी िदया गया िजसे वह पारंप रक प से करते आ रहे ह।

5
भू रया किमटी क रपोट िव तार से जानने के िलए देख।े (Mathew,2013: 36-37-38, Ratho,2007: 6-7-8-9-10)
6
https://tribal.nic.in/FRA/data/FRAActHindi.pdf,17/10/2019
7
https://tribal.nic.in/FRA/data/FRAActHindi.pdf,17/10/2019

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परंतु इस अिधिनयम क कुछ कारण से आलोचना भी हई ह। उदाहरण के तौर पर पयावरण सरं ण पर काम करने वाले कई
यि य का मानना था िक प े िमलने से जंगल को नक
ु सान होगा, कुछ िवशेष का यह मानना था िक इस अिधिनयम म प े देने
क ि या इतनी जिटल है िक कई लोग के दावे खा रज हो जाएँगे। यि गत दाव पर तो प े िमल भी सकता था, लेिकन
सामिू हक उपयोग क ज़मीन वाले दाव पर बहत ही कम प े िदए गए। परंतु इसके उपरांत भी यह समझा जा सकता है िक
वनवािसय को मािलकाना हक देने म इस अिधिनयम क मु य भूिमका रही है।
जनजाित वशासन एवं िवकास पर ‘बालच मगुं े कर’ कमेटी क रपोट
संिवधान क पाँचव और छठी अनसु चू ी तथा पेसा काननू और अ य िवकास योजनाओ ं के बाद भी आिदवासी वग अपने
अिधकार से वंिचत है। आिदवािसय से सबं ि धत िवकास सम याओ ं के हल के िलए सरकार ने 2009 म ‘बालच मगंु ेकर
कमेटी’ क थापना क । (Bijoy, 2012: 12) इस कमेटी ने आिदवासी िवकास के िलए कई सझु ाव िदए, िजनम मु य प
शािमल है। एक, थानीय तर पर इस कार का शासन थािपत िकया जाए िजसम आिदवािसय के जीवन से सबं ि धत सभी मु य
काय का अिधकार ाम सभा को ा हो सके । दसू रा, ाम सभा के काय का सम वय रा य के नीित िनदशक िस ातं के सदं भ म
करना चािहए, तािक अनु छे द 40 के अनसु ार ये थानीय सं थाएँ ‘ ामीण गणतं ’ के प म अपनी पहचान िवकिसत कर सके ।
(Singh, 2013: 41-42) तीसरा, पेसा काननू को वशासन के प म इस कार बढ़ावा िदया जाए तािक आिदवासी वग इसके
ारा ‘हमारे गाँव म हमारा राज’ क ि या अनभु व करे । चौथा, कमेटी ने यह सझु ाव भी िदया िक म य देश रा य क तरह अ य
रा य क सरकार को भी भिू म कर म संशोधन करने, इसके िलए काननू बनाने और लघु ससं ाधन के बंधन क शि ाम सभा
को स पनी चािहए। पाँचवाँ, अनसु िू चत े म िनजी िवकास के िलए भिू म क ाि और ाकृ ितक ससं ाधन पर िनय ण परू ी तरह
से पेसा काननू के ावधान का उ लंघन है। लेिकन अभी तक परू ी तरहा से इस कमेटी के रपोट पर अमल नह िकया गया है।
िन कष
जनजाितय को प करने के िलए कोई सामा य प रभाषा नह है। इ ह शासिनक ि कोण से ही वग कृ त िकया गया है। परंतु
संिवधान म आिदवासी वशासन और वाय ा को रा ीय ल य मानते हए इ ह राजनीितक पािटय के िहत से उ च थान िदया
गया है। तािक यह समूह राजनीितक पािटय क राजनीित का िशकार न बन जाए। संिवधान सभा म रा पित ने जनजाितय के
संदभ म बोलते हआ कहा था िक हमारे ऊपर यह सबसे बड़ा कलंक है िक आबादी का एक बड़ा भाग दयनीय अव था म जी रहा
है। म संसद से यह आशा करता हँ िक वह सीधे-साधे आिदवािसय का सशि करण कर देश के ऊपर से यह कलंक िमटाए,
िजससे सामा य लोग के समान यह समदु ाय भी देश का मु य िह सा बन सके । इसिलए इनके िलए संिवधान क पाँचव और छठी
अनसु चू ी म िवशेष ावधान के अलावा समय-समय पर कई काननू बनाए गए ह। जैसे पचं शील िस ांत, ाईबल सब लान,
वाय िजला प रषद, पेसा काननू और वनवासी अिधिनयम काननू आिद। जहाँ उ र पवू रा य के िलए ‘ वाय िजला प रषद’
का ावधान है वह अ य े क जनजाित के वशासन और वाय ा के िलए मह वपणू यास 1996 के दौरान उस समय देखने
म िमला, जब के ीय सरकार ने 73 और 74वे सवं ैधािनक सशं ोधन का िव तार पाँचव अनसु चू ी े म पेसा काननू लागू िकया।
इन काननू क िवशेषता यह थी िक इन अनसु िू चय के ावधान को बनाए रखते हए जनजाितय को वह सब अिधकार देने का
यास िकया गया है जो उनके पर परागत जीवन के साथ जड़ु े हए ह। लेिकन अभी उन ल य को ा नह िकया जा सका है,
िजसके िलए इन काननू क थापना क गई थी। परंतु सब एक राय म इस िवचार से सहमत ह िक जनजाितय क गित के िबना
स पणू रा के िवकास का सपना परू ा नह िकया जा सकता।
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पाठ-2
जनजाित / आिदवासी िवकास और िव थापन

 जनजाित / आिदवासी एक समझ


 िवकास और जनजाित / आिदवासी
 अतं रा ीय काननू म जनजाित िवकास और वशासन का बोध
 आिदवािसय के लु होते पर परागत अिधकार
 जनजाित िवकास और िवक ीकरण नीित
 जनजाित और िव थापन क सम याएँ तथा भाव
 आिदवासी वशासन एवं िवकास पर ‘बालच मंगु ेकर’ कमेटी क रपोट
जनजाित / आिदवासी िवकास और िव थापन
िवकास और िव थापन दोन अलग-अलग अवधारणाएँ ह लेिकन एक दसू रे से जुड़े हए ह। जब िवकास क बात होती है तो इसे
अ सर आिथक िवकास के संदभ म मह व िदया जाता है। भारत ने भी आजादी के बाद आिथक िवकास के िलए पचं वष य योजना
के मा यम से बाँध, खनन, उ ोग, कारखाने इ यािद को अिधक मह व िदया। लेिकन यहाँ पर िवचार करने यो य बात यह है िक
िकस कार के लोग को यान म रखकर िवकास क इन अवधारणाओ ं को बढ़ावा िदया गया। समाज म कुछ इस कार के वग भी
है िजनक िवकास क अवधारणा सामा य लोग से अलग है। वतमान समय म चिलत असतं ुिलत िवकास का भाव आिदवासी
अथवा जनजाितय पर अिधक पड़ने के कारण यह कई कार क सम याओ ं का सामना कर रहे ह जैसे िव थापन, भिू म और
जगं ल से इनक दरू ी, िवकास का इनक पर पराओ ं पर नकारा मक भाव आिद। आिदवासी इन कार क सम याओ ं का सामना
करने पर मा अपनी भिू म और जगं ल से ही अलग नह होते बि क उ ह अपनी परंपरा, सं कृ ित और मू य से भी समझौता करना
पड़ता है िजनके साथ वह हजार वष से जड़ु े हए ह। यह लेख कई िह स म िवभािजत है। सबसे पहले इसम जनजाितय को
िविभ न ि कोण से समझने का यास िकया है। इसके प चात् जनजाित के िलए िवकास का या अथ है इसे बताया है। अगले
भाग म अतं रा ीय काननू म जनजाित िवकास के िलए कौन से ावधान ह, और जनजाितय के परंपरागत अिधकार लु होने क
ि या को समझा है। और अतं के भाग म िवके ीकरण और जनजाित के िव थापन क सम या बताई गई है।
जनजाित / आिदवासी एक समझ
भारत म जनजाित अथवा आिदवािसय क प रभाषा को लेकर एक राय नह है। यहाँ पर अनुसिू चत जनजाित श द का योग
अिधकतर शासन म उन वग के िलए िकया जाता है जो ऐितहािसक प से सामािजक, आिथक और सां कृ ितक प से िपछड़े
हए ह। लेिकन िवचारक ने इस पर अपने िविभ न िवचार िदए ह। जैसे घयु इ ह ाचीन देशवासी अथवा िपछड़े िह दू के प म
प रभािषत करते ह। लेिकन वज िनयस खाखा घयु के इस िवचार से परू ी तरह असहमत ह िक भारतीय जनजाितय को िह दू माना
जा सकता है। इनका मानना है िक जनजाितय क िह दू धम के साथ कुछ समानता हो सकती है लेिकन कुछ बात म इनके िवचार
अमे रका और अ का जनजाितय से भी िमलते ह। इस आधार पर इ ह परू ी तरह िह दू समदु ाय क सं ा नह दी जा सकती।
इसका एक अ य कारण यह भी है िक जनजाितय ने बहत से िह दू धम के मा यताओ ं और रीित- रवाज को अपना कर इस पर
िव वास तो कट िकया है लेिकन िह दू धम के परु ोिहत (धमा य ) क धािमक और सां कृ ितक सव चता को कभी परू ी तरह
वीकार नह िकया। ि िटश शासन के आगमन से पहले आिदवासी समदु ाय क सामािजक संरचना धािमक वैधता के ेणीकरण
पर आधा रत नह थी, बि क यह समदु ाय समाज से अलग एकांत म अपना जीवन यतीत करता था।

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आं े बेट ली भारतीय संदभ म बताते ह िक जनजाित एक ऐसा समहू है जो ल बे समय से समाज के अ य समदु ाय से अलग
एकांत म अपना जीवन यतीत करते आ रहे ह। य िक इन जनजाित समुदाय का सामािजक, सां कृ ितक रहन-सहन का तरीका
सामा य लोग से अलग है। िजस कारण यह समहू अपने जीवन म बाहर के लोग का ह त पे वीकार नह करते ह।
बी.डी. शमा के अनसु ार भारत म जनजाित समदु ाय उन लोग को कहा जा सकता है, जो एक सामा य सामािजक संरचना म वयं
के यवसाय के ारा अपनी जीिवका चलाकर अ य समदु ाय से बहत सीिमत मा ा म स बंध थािपत करके एकांत म अपना जीवन
यतीत करते ह तािक वह वयं के सामािजक िनयम के ारा शािसत हो सके । लेिकन इसके साथ बी.डी. शमा का यह भी मानना
है िक यह एक आदश आिदवासी समदु ाय क प रभाषा है। वतमान समय म इनक प रि थितय म तेजी से बदलाव आ रहा है,
कोई एक समदु ाय इन सब िवशेषताओ ं को पूरा नह करता। लेिकन अिधकतर इन िवशेषताओ ं के आधार पर ही भारत म
आिदवासी समदु ाय को जनजाित के प म मा यता दी गई है।
भारतीय आिदवािसय के संदभ म सबसे अिधक वीकाय प रभाषा देने का ेय डी.एन. मजूमदार को जाता है। इनके अनसु ार
आिदवासी प रवार अथवा पा रवा रक वग का ऐसा समहू है जो एक िनि त भ-ू भाग म वश ं ानगु त अथवा सजातीय आधार पर
सगं िठत होकर अपने कुल म समान भाषा का िवकास करके िववाह, रीित- रवाज व पर परा आिद मू य के ारा सचं ािलत होकर
अपनी वयं क यव था का िवकास करके अपना सामा य जीवन जीते ह। अत: भारतीय जनजाितय के सदं भ म कोई एक
सामा य ि कोण नह है। इसिलए ो. हैमडं ोफ इस नए े के अ ययन को प करते हए कहते ह िक आिदवािसय के
ऐितहािसक अ ययन से िविभ न प रणाम उभर कर समाने आ रहे ह िज ह िकसी खास समाज के िवशेष सदं भ म ही सही कार से
समझा जा सकता है।
भारतीय सिं वधान म भी जनजाित श द को प रभािषत नह िकया गया है। सिं वधान म अनसु िू चत जनजाित को एक ऐसा
आिदवासी समदु ाय और समहू के भाग के प म बताया गया है जो अनु छे द 342(1) म अनसु िू चत जनजाित के अतं गत आता है।
इस (अनु छे द 342(2)) के अनसु ार रा पित रा य के रा यपाल से िवचार-िवमश के बाद िकसी खास आिदवासी अथवा
आिदवासी समहू को सावजिनक अिधसचू ना के ारा अनसु िू चत जनजाित म शािमल कर सकता है, और इस जनजाित क सचू ी म
के वल संसद ारा ही संशोधन िकया जा सकता है। अथात् अनसु िू चत े एक ऐसा े है िजसे रा पित अपनी अिधघोषणा के
ारा अनसु िू चत े घोिषत कर।
िवकास और जनजाित / आिदवासी
जनजाित िवकास इनके वशासन के साथ जड़ु ा हआ है िजसे ‘हमारे गाँव म हमारा राज’ के सदं भ म समझा जा सकता है।
आिदवासी िवकास अथवा वशासन क कोई सामा य प रभाषा नह है, यिद इसे एक वा य म बताया जाए तो इसका अथ है िक
जनजाितय को सीिमत सं भतु ा के ारा सामािजक और सां कृ ितक अिधकार दान करना जो एक कार से इनके िवकास और
वशासन के साथ जुड़ा हआ है। यहाँ पर िवकास का अथ शि और अिधकार का थानीय सं थाओ ं क ओर ह तांतरण के
संदभ म भी समझा जा सकता है। भारत म अिधकतर जनजाित समदु ाय सामा य लोग से अलग अपने सामािजक, आिथक और
सां कृ ितक अिधकार के अंतगत िनि त वशासन क माँग कर रहे ह। यह वग लंबे समय से पर पराओ ं और रीित- रवाज के ारा
जंगल, भिू म और अ य संसाधन का उपयोग करते आ रहे ह। इसिलए इन वग के िलए आव यक है िक इ ह इनक सं कृ ित और
मा यताओ ं के अनुसार िवकास का अिधकार िमले। अम य सेन ने िवकास को मु य प से वा तिवक वतं ता के िव तार क
ि या के प म बताया है। िजसका समाज के सभी वग को लाभ िमलना चािहए । वह पाँच कार क वतं ताओ ं का भी वणन
करते ह जो िवकास क ि या के साथ जुड़ी है।
(1) राजनीितक वत ता
(2) आिथक सिु वधाएँ
(3) सामािजक अवसर
(4) पारदिशता क गारंटी
(5) और संर णा मक सरु ा।

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इसके अलावा थानीय वशासन अथवा िवकास को मु यत: तीन प म भी समझा जा सकता है– (1) राजनीितक वशासन,
(2) िव ीय वाय ा, (3) शासिनक वशासन। जहाँ थानीय तर पर राजनीितक वशासन क सम या का हल िनचले तर पर
कुछ िनि त राजनीितक शि और िनणय लेने का अिधकार दान करके परू ा िकया जा सकता है, तािक यहाँ क सं थाएँ वत
होकर अपने िनणय वयं ले सके वह िव ीय वशासन के ल य को हम संसाधन का िवतरण िनचले तर तक करके परू ा कर
सकते ह। इसके िलए ज री है िक थानीय तर क सं थाओ ं को पणू आिथक अिधकार िदए जाएँ, और शासिनक वशासन के
अंतगत िनणय-िनमाण और िनणय लेने के अिधकार क शि का उ रदािय व थानीय सरकार को स पा जाए, तािक इन
सं थाओ ं को नौकरशाहीकरण से बचाया जा सके ।
भारतीय सिं वधान िनमाता भी जनजाितय के वशासन और िवकास के िवचार से अ ान नह थे। इसिलए सिं वधान म जनजाित
समदु ाय के पार प रक मू य को रा ीय ल य मानकर इसे राजनीितक दल क राजनीित से उ च थान िदया है। रा ीय ल य के
अंतगत आिदवासी इलाक म शाि त और वशासन क थापना के िलए िवशेष ावधान िकए गए ह। जहाँ छटी अनसु चू ी के ारा
उ र पवू इलाक के आिदवािसय को ‘ वाय िजला प रषद’ क थापना कर और पाँचव अनसु चू ी म पंचायत पर (अनसु िू चत
िव तार े ) अिधिनयम (पेसा काननू ) के ारा वशासन देने का यास िकया गया है।
इतना ही नह जनजाितय को वशासन देने का समथन अतं रा ीय काननू म भी िकया गया है, ‘अतं रा ीय मजदरू सगं ठन’ ने
अपनी सिं ध के िनयम 169 म आिदवािसय क भिू म और ससं ाधन पर इनके अिधकार और िनयं ण का समथन िकया है। इस
अिधकार को 1957 क सिं ध के िनयम 107 के थान पर लागू िकया है8। जनजाित समदु ाय को वशासन के मा यम से उ ह जल,
जगं ल और जमीन पर पार प रक अिधकार देने के िवशेष यास िकए गए ह। परंतु यह िवचार भी बहत हद तक सही है िक
जनजाित िवकास और वशासन का उ े य जमीनी तर से बहत दरू है। और यही कारण है िक इन वग के अिधकार लगातार लु
होते जा रहे ह जो वतमान म िवकास क असमान वत को प करता है। लेख के अगले भाग म अतं रा ीय काननू म जनजाित
िवकास और वशासन के बोध का वणन िकया गया है।
अंतरा ीय कानून म जनजाित िवकास और वशासन का बोध
भारत एक लोकताि क देश है जो अतं रा ीय काननू और िनयम म िव वास रखता है। भारत ने मल ू िनवािसय क अवधारणा
अतं रा ीय सं थाओ ं (अतं रा ीय मजदरू सगं ठन (आई.एल.ओ.), िव व बक और सयं ु रा ) से अलग होते हई भी
आिदवािसय के सदं भ म इन सं थाओ ं ारा िदया गया वशासन और िवकास के िवचार का समथन िकया है। भारत अतं रा ीय
मजदरू सगं ठन (आई.एल.ओ.) के 1989 के समझौते (िनयम 169) म अतं रा ीय तर पर आिदवासी िवकास और वशासन का
समथक रहा है। आई.एल.ओ. के इस समझौते को िनयम 107 िजसे 1957 म लागू िकया गया था, इसके थान पर आिदवािसय
को और अिधक सामािजक, सां कृ ितक और भिू म पर उनके अिधकार को मजबतू ी देने के िलए 1989 म िनयम 169 पास िकया
गया जो इन वग को और अिधक वशासन का समथन करता है। भारत ने मल ू िनवािसय के इन दोन समझौत (107 और 169)
का समथन िकया है लेिकन इन पर अपने ह ता र नह िकए ह, भारत का मानना िक हमारे देश म जनजाित िवकास के िलए पया
ावधान है। जैसे थम धानमं ी जवाहरलाल नेह ने 1955 म आिदवासी िवकास के सदं भ म अपने पंचशील िस ा त को प
करते हआ कहा था िक जनजाितय का िवकास के वल रा य आधा रत नीितय ारा ही स भव है। भारत ने अपने िवचार को
कायम रखते हए 1989 के समझौते को भारत म लागू करने से मना कर िदया। लेिकन भारत ने अपने सवं धै ािनक और घरे लू काननू
के आधार पर इनके िवकास का समथन िकया है जैसे सिं वधान क पाँचव और छठी अनसु चू ी और पेसा काननू इ यािद जनजाित
िवकास के िलए मह वपणू है। बाद म भारत ने अपने इस ि कोण म कुछ नरमी लाते हए 2007 म सयं ु रा के ‘मल ू िनवािसय
के अिधकार क घोषणा’ के प म मत िदया था। यह घोषणा मु य प से आिदवासी वाय ा के साथ जड़ु ी है, िजसम इ ह
आंत रक वाय ा देने का समथन िकया है। इस कार भारत ने अतं रा ीय काननू म आिदवासी वशासन और वाय ा का
8
भारत ने 1989 म ‘अंतरा ीय लेबर ओगनाइजेशन’ क संिध के िनयम 169 का समथन िकया है, इस संिध को 1957 के आिदवािसय से संबि धत समझौते के
िनयम 107 के थान पर लागू िकया गया है। लेिकन इस पर ह ता र नह िकए ह, इस पर भारत का प है उसने अपने सिं वधान और काननू म आिदवासी वग को
पया अिधकार िदए हए ह इसिलए इस संिध का काननू ी िह सा बनना अिनवाय नह है। अतं रा ीय लेबर ओगनाइजेशन के ावधान और इस पर भारत के ि कोण
का वणन अ याय एक म िव तारपवू क िकया गया है।

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समथन िकया है, लेिकन इसका काननू ी भाग बनने से इक
ं ार कर िदया है। य िक भारत का मानना है हमारे सिं वधान म ारा
आिदवासी वशासन और वाय ा के िलए पया ावधान िकए ह।
आिदवािसय के लु होते पर परागत अिधकार
आिदवासी वशासन और वाय ा के िवकास म इनके बीच कई कार क मु य सम याएँ िव मान ह, जैसे इनक भिू म से
बेदखल करके बाहरी लोग के ारा इनका शोषण, िवकास क धीमी ि या, खनन के िलए इनके जंगल का अित मण,
िव थापन क सम या इ यािद कारण से आिदवासी िवकास और वशासन का िवचार अभी बहत दरू है। आिदवासी जनक याण
के िलए बहत से काय म ज र बनाए गए ह लेिकन यह बहत कम मा ा म ही सफल हो पाए ह। इसका मु य कारण है िक
आिदवासी वशासन को मा यता न दान करके इ ह िवक ीकरण ि या के तहत अिधकार देने का यास िकया जा रहा है। यह
ि या अभी तक इन वग को पर परागत अिधकार िदलाने म सफल नह हो पाई है।
सिं वधान म भी आिदवासी समाज के सरं ण के िलए रा य को िवशेष दािय व स पा गया है। इस दािय व को परू ा करने के िलए
िवशेष यव था क गई है। इसम सरं ण के िलए काननू और िनयम बनाना, िवभाग का गठन करना व अिधका रय क िनयिु
शािमल है। इस यव था के कारगर सािबत न होने के कारण आिदवासी समाज का अपने प रवेश और ससं ाधन पर से अिधकार
छीनता जा रहा है।
भारत म जंगल के काननू को तीन वग म िवभािजत िकया जा सकता है। एक, आरि त वन ( रवज फॉरे ट) दसू रा, सरु ि त वन
( ोटेि टड फॉरे ट) तीसरा, ामीण वन (िव लज फॉरे ट)।9 यहाँ पर ामीण वन म उन जगं ल को शािमल िकया गया था िजसके
अंतगत ामीणवासी इनका इ तेमाल अपने जीवन िनवाह के िलए कर सकते ह। लेिकन िजन वन से बड़ी मा ा म संसाधन ा
होते ह उ ह सरकार ने अपने अधीन रखा है। यह अिधकार भी के वल सरकार के पास है िक वह िकस कार के जगं ल को कौन सी
सचू ी म रख। अ य सम याएँ जो आिदवािसय के साथ जुड़ी ह िक उ ह उनक भिू म पर मौिलक अिधकार क तुलना म के वल
काननू ी मा यता दी गई है, रा य इनक भिू म को के वल काननू ी ि या के ारा मआ
ु वजा देकर आसानी से ा कर सकता है।
इसिलए रा य अपने तर पर काननू बनाकर ही इनके भिू म के अिधकार क सरु ा का दािय व परू ा कर रहा है। अभी तक
सावजिनक उ े य के िलए आिदवासी समदु ाय क भिू म ा करने म कोई बड़ा ितब ध नह लगाया गया है। सरकार के इस
काननू ी अिधकार को मा यता औपिनवेिशक समय से चले आ रहे भिू म अिध हण काननू 1894 से िमली हई है। और 1996 म
पेसा काननू पाँचव अनसु चू ी के अतं गत लाया गया, इस काननू क धारा 4(1) म भी आिदवासी लोग क भिू म को सावजिनक
िहत के िलए काननू ी ि या के ारा आसानी से ा िकया जा सकता है।
वतमान समय के भिू म अिध हण िबल म इसी कार के ावधान को बनाए रखा गया था, िजसम सावजिनक िहत के नाम पर
आिदवासी समदु ाय क भिू म ा करने के िलए ाम सभा क अनमु ित लेना अिनवाय नह है। इस कार पाँचव अनसु चू ी और
पेसा काननू के होते हए भी आिदवािसय के उनके संसाधन पर से अिधकार समा हो रहे ह। आिदवासी अिधकार का अित मण
न के वल आिदवासी समदु ाय के अि त व के िलए बड़ा सक ं ट खड़ा कर रहा है, बि क यह मानवीय सव च यायालय के िनणय
का भी अपमान है जो उ ह ने 1997 म ‘समथा के स’ के िनणय म िदया था िक आिदवािसय क भिू म का ह तांतरण गैर
आिदवासी समदु ाय को नह िकया जाएगा। लेिकन पाँचव अनसु चू ी, पेसा काननू और सव च अदालत के आदेश को अनदेखा
कर आिदवािसय के अिधकार का लगातार हनन हो रहा है। अपने पार प रक मू य व अिधकार क र ा के िलए आिदवासी
संघष व आ दोलन का सहारा ले रहे ह।

9
यहाँ पर वन काननू और पेसा अिधिनयम के बीच िवरोधाभास नजर आता है य िक एक ओर तो सरकार ने पेसा काननू के ारा लघु वन उ पाद पर ाम सभा का
अिधकार थािपत िकया है। वह दसू री ओर सरकार को यह अिधकार है िक वह जंगल को िकस वग (आरि त वन, संरि त वन और ामीण वन) म िवत रत कर।
अथात् सरकार ने अपने िहत के आधार पर जंगल का िवभाजन िकया है, सरकार के इस ख को मु य बल इस बात से िमल रहा है क आिदवािसय का उनक भिू म
पर के वल काननू ी अिधकार है न िक मौिलक अिधकार िजस कारण सरकार और िनजी क पिनयाँ बाजार मू य पर इनक भिू म ा कर सकती है। भिू म का मआ
ु वजा
देकर उनके आिथक िहत को तो परू ा िकया जा सकता है लेिकन इनके पर परागत सामािजक, सां कृ ितक मू य को परू ी तरह अनदेखा कर िदया जाता है। देख
(Kurup, 2014)

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जनजाित िवकास और िवक ीकरण नीित
जनजाित थानीय शासन तभी सफलतापवू क काय कर सकता है जब उसे िवक ीकरण क ि या म काय करने क वत ता
िमले। भारतीय संिवधान के अनु छे द 1 म भारत को संघवादी रा य के बदले ‘रा य का संघ’ कहा गया है10। (भारत का संिवधान,
2011) िवक ीकरण क तल ु ना म क ीयकरण के अिधक ावधान ह। इसिलए सघं के िनमाण म िनचले (बॉटम-अप) तर क
तुलना म चोटी (टॉप-डाऊन)11 क सं थाओ ं से ा अिधकार प ित को अपनाया गया है। िनचले तर क सं थाओ ं ( थानीय
शासन) को शि याँ (जैसे काननू बनाने, कर से ा रािश क ाि और खच करने क शि ) और अिधकार के िलए के और
रा य सरकार पर िनभर रहना पड़ता है। ेि वल ऑि टन ने इस ि या को कड़े श द म ातं ीय वाय ा क पर परागत सरु ा के
नाम से स बोिधत िकया है। िवक ीकरण भी इस टॉप-डाऊन ि या का प रणाम है, िजसके अतं गत मु य प से चार कार क
िवशेषता आती है।
(1) के सरकार ारा रा य को िदया गया अिधकार (डेवोलुसन)।
(2) ितिनिध व म डल को क य का ह तातं रण (डेिलगेसन)।
(3) अिधकार का िवतरण या िव-जमाव (िड-को स ेसन) और।
(4) शि य व अिधकार का िकसी और के िलए यागना (डाइवे टमट)।12
भारत म भी जनजाित वशासन के िलए िवक ीकरण शासन क नीित अपनाई गई है जो पर परागत प से शासन, सरकार और
िव ीय शि के टॉप–डाऊन यव था के साथ जड़ु ी है। इसिलए िवक ीकरण का िस ा त जनजाित िवकास और वशासन के
िलए परू ी तरह से उपयोगी नह है। इसके ारा शासन के पाँच के हो गए ह जैसे के सरकार, रा य सरकार, िजला पचं ायत,
म डल पंचायत और ाम सभा। इनके अलावा अ य नौकरशाह व अिधकारी ह जो थानीय सं थाओ ं को आदेश देने क शि
रखते ह।
अत: आिदवासी िवकास और वशासन के िलए ज री है िक सरकार को मल ू राजनीितक, शासिनक, और िव ीय संरचना का
िवकास कर आिदवासी वग को िचि हत कर बॉटम-अप प ित को बढ़वा िदया जाए। इसके अलावा वशासन के ारा राजनीितक
यव था म जनजाितय का ितिनिध व और उनके मू य के अंतगत िनणय लेने क शि का िवकास स भव हो सके गा।
लेिकन िवके ीकरण ि या का प रणाम यह हो रहा है िक जनजाित समदु ाय सरलता से सरकार (िवधायका, कायपािलका और
यायपािलका) का िह सा बन गए ह, इससे जनजाितय क िवकास और वशासन क ि या सरकार क सं थाओ ं के बीच
िवभािजत हो गई। अथात् जनजाित थानीय काय सरकार क सं थाओ ं के िनयं ण म आने के करण इसका जनजाितय पर
नकारा मक भाव पड़ रहा है। उदाहरण के तौर पर जनजाितय क पर परागत प रषद जो अब पचं ायती राज यव था के ारा
सरकार और रा य चनु ाव ि या का िवषय बन गई है, वाय होकर अपने िनणय लेने म स म नह रही। उड़ीसा रा य म
‘लंिजया सोरास’ एक जनजाित वग है यह अपने यहाँ चनु ाव (पेसा काननू के तहत पंचायत चनु ाव) कराने म असमथ है। इसी कार
म य देश म ‘संथाल’ जनजाित वग का मानना है िक उनके क याण और िवकास म पंचायत चनु ाव क कोई भिू मका नह है।

10
भारतीय संिवधान क सन 1976 क तावना को छोड़कर संिवधान म कह भी संघवाद का वणन नह िकया गया है। य िक रा य क तल ु ना म के सरकार के
पास अिधक शि ।
11
टॉप-डाऊन ि या का अथ काननू , शि , अिधकार व िनयम का उ च तर (के से रा य सरकार अथवा थानीय सं थाओ ं क ओर ह तांतरण है) से िनचले
तर क सं थाओ ं क ओर ह तांतरण के संदभ म समझा जा सकता है। जबिक बॉटम-अप प ित म िनचले तर क सं थाएँ उ च तर क शि य पर अिधक िनभर
नह रहती।
12
एक, के सरकार ारा रा य को िदया गया अिधकार (डेवोलुसन) इसम दी गई शि व अिधकार पर के सरकार का पणू िनयं ण होता है। दसू रा, ितिनिध व
म डल को क य का ह तांतरण (डेिलगेसन) इसके तहत िनणय-िनमाण क दी गई शि को के सरकार के ारा प रभािषत िकया जाता है। तीसरा, अिधकार का
िवतरण या िवजमाव (िड-को स ेसन) यह शासिनक शि य के िवतरण के साथ जुड़ा है। चौथा, शि य व अिधकार को िकसी और के िलए यागना
(डाइवे टमट), इसम सरकार अपने उ रदािय व को गैर सरकारी सं थाओ ं को स प देती है िजसम िनजीकरण भी शािमल है। देख (Olsen, 2007, Kurup,
2014: 19-20)
93
‘घ ड’ और ‘भील’ आिदवािसय का भी यह मत है िक पचं ायत यव था ने उनक पर परागत प रषद क मह वपणू भिू मका समा
कर दी है। अत: के ीकरण वृि को िवक ीकरण के नाम पर आगे बढ़ाने का प रणाम यह हआ िक जनजाित बहल जनसं या
रा य (झारखंड, छ ीसगढ़) म यह समदु ाय अपने पर परागत अिधकार क माँग के िलए पथलगढ़ी आंदोलन चला रहे ह। यिद
आिदवािसय को सही म िवकास और वशासन दान करना है तो यह अिनवाय है िक उ ह उनक पर परा, मू य और सं कृ ित के
अनसु ार जीने का अिधकार िमले।
जनजाित और िव थापन क सम याएँ तथा भाव
आज िवकास क ि या म आिथक िवकास को यादा मह व िदए जाने के कारण जनजाित पर सबसे अिधक नकारा मक भाव
पड़ा है। भारत म जनजाित आ दोलन और सघं ष का इितहास बहत परु ाना है। इ ह ने औपिनवेिशक शासन के दौरान ही अपने
अिधकार क सरु ा के िलए शासन के िखलाफ संघष शु कर िदया था िजनम मु य प से शािमल है 1855 का सथं ाल िव ोह,
1832 का कोल िव ोह, 19व सदी के अंत का ‘िबरसा मंडु ा’ आ दोलन आिद। इन लोग क भिू म और जंगल इनके पार प रक
जीवन के साथ जड़ु े हए थे, जब औपिनवेिशक सरकार ने इनक भिू म और जंगल का अित मण शु िकया तो सरकार के िव
इ ह ने आ दोलन शु कर िदया। इन आ दोलन को दबाने के िलए सरकार ने 1911 म ‘ि िमनल ाईबस ए ट’ बनाया। इस ए ट
के ारा िकसी भी जनजाित वग को अपराधी सचू ी म डाला जा सकता था। वत ता के पहले और बाद म कई जनजाितय ने
वाय ा ा ऐसे रा य या िजले बनाने क माँग को लेकर आ दोलन िकए िजनम वे अपने काय क वयं देखभाल कर सके । इन
समहू को लगता था िक िवदेशी शासक और बाहरी लोग उनक सं कृ ित और परंपरा न करने का यास कर रहे ह।
वत ता के बाद भारत म छोटे-बड़े बाँध को िमलाकर करीब 3500 से यादा बाँध का िनमाण हआ है। जैसे नमदा बाँध, रहदं
बाँध, हीराकंु ड बाँध, सरदार सरोवर बाँध और नागाजनु बाँध इ यािद। बड़ी मा ा म इन बाँध के िनमाण के कारण करोड़ लोग का
िव थापन हआ है िजसम बड़ी सं या आिदवासी समदु ाय क है। गाँव और प रवार के पनु वास क संपणू यव था िकए िबना ही
िव थापन क ि या को जारी रखा गया। इसके िवरोध म मेधा पाटकर, बी.डी. शमा जैसे सामािजक कायकताओ ं ने इनके
अिधकार के िलए आंदोलन भी चलाए तािक िन न वग य समदु ाय को इनका हक ा हो सके ।
छ ीसगढ़ क ग ड जनजाित ने 1950 के दशक म जनजाितय के िलए एक पृथक् रा य के िनमाण क माँग रखी। छोटा नागपरु क
जनजाितयाँ 1983 से पृथक् रा य क माँग इसिलए कर रही है तािक वे ‘िडकू’ क शोषणकारी िनितय से अपनी सरु ा कर सके ।
एक और मु य आ दोलन िजसे नमदा बचाओ आ दोलन के नाम से जाना जाता है, यह आ दोलन बाँध िनमाण के िवरोध म शु
िकया गया था, इस बाँध से बड़ी मा ा म आिदवासी िव थािपत हए ह। इसिलए इन समदु ाय ने उिचत मआ
ु वजे और पनु वास नीित
क माँग क है। इ ह ने िवकास के मु े को उठाकर कहा िक ऐसा िवकास िकस काम का जो लोग को उनके ाकृ ितक ससं ाधन से
विं चत करे । भारत म िचपको आ दोलन, जो जगं ल के ससं ाधन को लेकर िकए गया था इसे रामच गहु ा और माधव गड़िगल ने
‘जनजाित आ दोलन’ का नाम िदया है। बािव कर ने म य देश क जनजाितय का अ ययन कर कृ ित के साथ उनके स ब ध
और रा य ारा वितत िवकास के साथ उनके सघं ष को उजागर िकया है।
वतमान समय म माओवादी आ दोलन भारत के नौ रा य म फै ला है, इन नौ रा य म से छ: रा य संिवधान क पाँचव अनसु चू ी13
के अंतगत आते ह। इन रा य म आिदवािसय क बड़ी सं या िनवास करती है, जो माओवादी आ दोलन के मा यम से बलपवू क
वाय ा ा त करने का यास कर रहे ह। ये सब आ दोलन मु य प से िवकास क असमान नीित के प रणाम ह, िजस कारणवश
यह अपने अिधकार क माँग व सरु ा के िलए िहंसक रा त को अपना रहे ह। इन आ दोलन के दबाव फल व प सरकार ने
1996 म पाँचव अनसु चू ी के अतं गत पेसा काननू पास िकया था। यिद देखा जाए तो पेसा काननू भी आ दोलन क देन है, इसके
िलए जनजाित समदु ाय और इनके अिधकार के ित लड़ाई लड़ने वाले सि य बिु जीिवय ने कड़ा सघं ष िकया है। िजस कारण
िपछले कुछ दशक म आिदवािसय के ित समाज के ि कोण म कुछ बदलाव आया है। इनके ित औपिनवेिशक समय क जो
अवधारणा बनी है इसे आज के लोकताि क मू य के साथ बदलने क आव यकता है। इस औपिनवेिशक सोच को बदलने म

13
वह रा य जो पाँचव अनसु ूची के अंतगत आते ह और माओवादी आ दोलन से भािवत है इन रा य म शािमल है आ देश, छ ीसगढ़, झारखंड, म य देश,
महारा और उड़ीसा। इन रा य क करीब 63 ितशत आिदवासी जनसं या माओवादी आ दोलन से भािवत है। देख (Bijoy,2012: 38)

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जनजाितय के ‘भारत जन आ दोलन’ ने रा ीय तर पर वशासन और िवकास के िलए सरकार को इनके (आिदवािसय ) हक म
संवैधािनक काननू बनाने के िलए बा य िकया। सरकार ने 1996 म पाँचव अनुसचू ी के इलाक म पचं ायत िव तार अनुसिू चत
अिधिनयम काननू लागू कर िदया। लेिकन पेसा काननू के बाद भी सन् 2000 म बने दो बहल आिदवासी रा य झारखंड और
छ ीसगढ़ दोन ही जनजाित आ दोलन के प रणाम ह। इसके बावजदू भी जनजाितय को बाँध, भिू म अिध हण, जनक याण
योजनाओ ं के नाम पर िव थाना क सम या का सामना करना पड़ रहा है।
जनजाित े म बड़ी मा ा म देशी और िवदेशी कंपिनय को खनन का अिधकार िदया जा रहा है। जैसा िक वतमान समय म
अिधकतर देखने म आ रहा है िक जनक याण के नाम पर इनक भिू म का अिध हण कर िलया जाता है और बाद म इसी भिू म को
िकसी िनजी कंपनी को ह तांत रत कर िदया जाता है। इसके िलए न उिचत मआ ु वजा िदया जाता और ना ही िव थापन क उिचत
यव था क जाती है। जनजाित िहत के िलए ज री है िक भिू म अिध हण काननू को रा ीय सरु ा और जन-क याण क सीमा म
लाया जाए।
िवकास का मा आिथक पहलू नह है, जनजाितय के िलए इसका सां कृ ितक मह व भी है। औ ोिगक िवकास से आिथक
ि या को तो बढ़ाया जा सकता है परंतु इससे कुछ समदु ाय के मू य पीछे छूट जाते ह। जनजाितय के िलए सां कृ ितक िवकास
आिथक िवकास से अित मह वपणू है। के वल आिथक िवकास पर बल देने के प रणाम व प इनके पारंप रक सां कृ ितक बधं न
समा होने लगते ह, जो जगं ल इनके िलए गृह थान थे बाद म कंपनी के िलए खनन थान बन जाते ह। अथात् पारंप रक जीवन
शैली क सारी मा यताएँ समा होने लगती ह।
पारंप रक प से जनजाित समदु ाय जगं ल पर िनभर रहा है। जनजाित और जगं ल दोन घिन ता से आपस म जड़ु े हए ह। देश क
कुल जनसं या का अनसु िू चत जनजाित करीब 8.6% है। लेिकन िवकास प रयोजनाओ ं के कारण िव थािपत होने वाले लोग म
अनसु िू चत जनजाित क सं या 40 ितशत है। 2014 म कािशत रपोट ‘ऑफ द हाई लेवल कमेटी ऑन सो यो इकॉनॉिमक,
है थ एंड एजकु े शनल टेटस ऑफ ाइ ल क यिु नटीज ऑफ इिं डया’ म बताया गया है िक 25 ितशत जनजाित अपने जीवन म
िवकास-प रयोजनाओ ं के कारण कम-से-कम एक बार िव थापन से पीिड़त है।
जनजाितय का उनके संसाधन पर से अिधकार समा होने पर यह प रणाम उभरकर आ रहा है िक आिदवासी वग अपनी भिू म
और संसाधन क सरु ा तथा शोषण से मिु के िलए सरकार और िनजी कंपिनय पर हमला कर रहे ह। साथ ही वह कई
आ दोलन भी चला रखे ह जैस,े पि म बगं ाल के कमतापरु म आंदोलन ारा आिदवासी अलग वाय रा य क माँग कर रहे ह,
उड़ीसा म आिदवासी िनजी क पिनय के ारा िकए जा रहे खनन का िवरोध िकया जा रहा है। यह सब िवकास क गमु राह करने
वाली नीित, सरकार और नौकरशाही म इ छा शि क कमी, जनजाितय क राजनीितक अ ानता और वै वीकरण क ि या
के फल व प हो रहा है। इस कार यहाँ पर खामी पाँचव अनसु चू ी या पेसा काननू म नह , बि क इ ह सही कार से लागू न करने
के कारण यह ावधान कारगर सािबत नह हो पा रहे ह। अत: थानीय िवकास और वशासन के ारा ही जनजाितय और रा य
के बीच बेहतर स बंध थािपत हो सकता है। य िक जनजाित अपने जीवन म य प सरकार या बाहरी यि य का ह त पे
वीकार नह करते। अ याय के अगले िह से म यह जानने का यास िकया गया है िक आिदवािसय के िलए िवक ीकरण क
तुलना म वशासन य मह वपणू है।
आिदवासी वशासन एवं िवकास पर ‘बालच मगुं े कर’ कमेटी क रपोट
संिवधान क पाँचव और छठी अनसु चू ी तथा पेसा काननू और अ य िवकास योजनाओ ं के बाद भी आिदवासी वग अपने
अिधकार से वंिचत है। आिदवािसय से सबं ि धत िवकास सम याओ ं के हल के िलए सरकार ने 2009 म ‘बालच मगंु ेकर
कमेटी’ क थापना क । इस कमेटी ने आिदवासी िवकास के िलए कई सझु ाव िदए, िजनम मु य प शािमल है।
एक, थानीय तर पर इस कार का शासन थािपत िकया जाए िजसम आिदवािसय के जीवन से सबं ि धत सभी मु य काय का
अिधकार ाम सभा को ा हो सके । दसू रा, ाम सभा के काय का सम वय रा य के नीित िनदशक िस ातं के सदं भ म करना
चािहए, तािक अनु छे द 40 के अनसु ार ये थानीय सं थाएँ ‘ ामीण गणत ’ के प म अपनी पहचान िवकिसत कर सके । तीसरा,
पेसा काननू को वशासन के प म इस कार बढ़ावा िदया जाए तािक आिदवासी वग इसके ारा ‘हमारे गाँव म हमारा राज’ क

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ि या अनभु व करे । चौथा, कमेटी ने यह सझु ाव भी िदया िक म य देश रा य क तरह अ य रा य क सरकार को भी भिू म कर म
संशोधन करने, इसके िलए काननू बनाने और लघु संसाधन के बंधन क शि ाम सभा को स पनी चािहए। पाँचवाँ, अनसु िू चत
े म िनजी िवकास के िलए भिू म क ाि और ाकृ ितक ससं ाधन पर िनय ण परू ी तरह से पेसा कानून के ावधान का
उ लंघन है।
भारत म आिदवासी समदु ाय क सं या िकसी अ य देश के अनपु ात म कह यादा है, इन जनजाित समदु ाय को मु य धारा म लाए
िबना देश का स पणू िवकास स भव नह । लेिकन सम या तब उ प न होती है िक आिदवासी िवकास और वशासन के ल य को
ा करने के िलए कौन सा तरीका अपनाया जाए। जो इनके सामािजक, आिथक, सां कृ ितक मू य को भािवत िकए िबना इ ह
मु य धारा म शािमल कर सके । परंतु यह बात प है िक हम िवकास को मा आिथक पहलू म न देखकर इसे सां कृ ितक और
मानवीय मू य म समझने क आव यकता है। और इसके िलए ज री है िवकास का लाभ समाज के सबसे कमजोर वग को
अिधक िमलना चािहए।
सदं भ सच
ू ी
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History’ Manohar Publication, New Delhi.
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Prakashan.

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इकाई-VI : भारतीय रा य क प रवितत कृित
पाठ-1
(क) िवकासा मक और क याणकारी आयाम

तुत अ याय के अंतगत भारतीय रा य के सा ा यवादी शि य से आिवभाव तथा उपिनवेशी िवरासत के साथ रा य क
िनरंतरता और अिनरंतरता क ि या का िव तृत प से अ ययन िकया गया है। हम इस अ याय म यह जानने का यास करगे
िक िकस कार से भारत को एक स भु रा य के प म चनु ौितय का सामना करना पड़ा। हालाँिक आधिु नक भारतीय रा य ने
पि म के पद िच ह का ही अनसु रण िकया, पर तु िफर भी वह अपने आप म िभ न रहा इसिलए आव यकता है िक भारतीय रा य
के िवकासा मक आयाम को पृथक् समझ एवं उिचत िव लेषण ारा समझा जाए। ततु अ याय म रा य के िवकासा मक और
क याणकारी आयाम क राजनीितक िवकास आयाम से तुलना क गयी है। भारत एक समाजवादी, लोकतांि क रा य के प म
सदैव रा य और उसके नाग रक के िवकास हेतु क याणकारी नीितय पर कि त रहा। 1947 से 1991 तक राजनीितक और
आिथक पहलू को एक दल आिधप य एवं िनयोिजत अथ यव था, जहाँ रा य िवकासा मक और क याणकारी आयाम के
अंतगत ह त पे कर सकता था, के ि कोण से अ ययन िकया जाएगा। िकस कार से िवकासा मक रा य क असफलता ने
रा य को सरं चना मक सधु ार क ओर अ सर िकया तथा इस सब के म य बाज़ार का आिवभाव होना भी एक मु य िब दु रहेगा।
1991 के पशचात् ् िव लेषण का अ य भाग वै वीकरण के आिवभाव के साथ सरं चना मक सधु ार क ओर रा य के बढ़ते कदम
का अ ययन करे गा। इ क सव सदी म भी रा य नव उदारवादी िव व म एक मु यकता के प म रहा, िजसे राजनीितक
अथ यव था के िवकासा मक पहलू से अ ययन करने का यास िकया जाएगा। हम देखने का यास करगे क िकस कार से
रा य ारा आतंक और राज ोह क उपि थित म रा य तं के अतं गत सरु ा सबं धं ी चनु ौितय का सामना करने म भी मह वपणू
भिू मका िनभाई गयी। रा य के िविभ न सं थागत और िवधाियक भाग ारा आतं रक सरु ा स ब धी िवषय को समाधािनत करने
हेतु िलए गये कदम को उ पीड़न आयाम के अतं गत अ ययन िकया जाएगा।
सरं चना
 तावना
 भारत का िवकासा मक आयाम
 भारत क राजनीितक अथ यव था
 उ र–उदारवाद और भारतीय राजनीितक अथ यव था के सरं चना मक प रवतन
 भारत एक क याणकारी रा य के प म और चनु ौितयाँ
 इ क सव सदी म भारत
 मह वपणू न
 अिधगम अनवु तन
 स दभ सच ू ी
तावना
उपिनवेशी शासन के अतं एवं लगभग दो सौ वष क पराधीनता के प चात् भारत क नव वतं रा के प म राजनीितक,
आिथक और सामािजक ि थित धिू मल एवं व त हो गयी थी। हमारे वतं ता सैनािनय तथा नेताओ ं को आतं रक एवं बा दोन
तर पर कठनाइय का सामना करना पड़ रहा था। िवभाजन एक ऐसा कारक है िजसने हमारे नेताओ ं को देश के िवकास एवं समृि
हेतु शांित के मह व को मानने के िलए िववश कर िदया था। वृहद सम याओ ं ने चार ओर से भारत को घेर रखा था। इन सब के
बावजूद हमारे नेता देश के िलए एक सिं वधान िनिमत करने म सफल हए िजसने नव यवु ा रा के नाग रक को आशा दान करने
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का काय िकया। भारत के थम धानमं ी ी जवाहरलाल नेह सोिवयत आधा रत िनयोिजत अथ यव था से भािवत थे िजसम
क ारा िवकासा मक ि या को िनदिशत एवं के ि त िकया जाता था। हमारे संिवधान ारा हम एक संसदीय यव था आधा रत
सरकार दान क गयी। हमारे ारा लोकताि क समाजवादी नीितय का संघवादी संरचना के अतं गत अनपु ालन िकया गया िजसम
रा य ारा भारत क राजनीितक अथ यव था को आकार दान करने म मह वपणू भूिमका िनभाई जाती है। प रवितत सरकार ने
भी देश क नीितय को भािवत िकया जैसे नेह वादी ितमान पर आधा रत अथ यव था, इिं दरा गाँधी के राजनीितक प र े य म
अिवभाव से रा य ारा िवकासा मक ि या म एक अ य पथ का अनपु ालन िकया गया । 1976 के 42व संिवधान सश ं ोधन ारा
हमारे संिवधान क तावना के अतं गत समाजवादी, पंथिनरपे और ब धु व श द को सि मिलत िकया गया। हमारे संिवधान का
भाग चार रा य के नीित िनदशक िस ा त को उ लेिखत करता है जनता पाट के आगमन म पवू गामी सरकार क अनेक नीितय
को समा िकया गया। इिं दरा गाँधी पनु ः गरीबी हटाओ क नीित के साथ शि म आई, जहाँ उनके ारा असमानता और
सामािजक याय को सरकार के ह त पे ारा लाने का यास िकया गया। िनधनता उ मल ू न तथा रोजगार संवधन के िलए अनेक
योजनाएँ लायी गयी। इिं दरा गाँधी का काल राजनीितक असतं ुलन तथा आिथक मदं ी का रहा था। भारत क अथ यव था म
सरं चना मक सधु ार लाने हेतु आई.एम.एफ. तथा अ य िवकिसत देश को इस सक ं ट से िनवारण के िलए आगे आना पड़ा। भारत
को अथ यव था म सधु ार लाने के िलए अनेक मह वपणू मापदडं को अपनाना पड़ा। िजसके तहत राजनीितक अथ यव था के
अतं गत उदारवाद, िनजीकरण और वै वीकरण का आगमन हआ भारत क अथ यव था बाज़ार आधा रत सधु ार के तहत धीरे -
धीरे सतं िु लत हई। अतं रा ीय कारक ारा भी भारत क राजनीितक अथ यव था क रणनीित म मह वपणू योगदान दान िकया
जा रहा था। इन सभी प रघटनाओ ं म शीत यु का उ व तथा भारत क गटु िनरपे नीित क भी अहम भिू मका म रही। सोिवयत
सघं के िवघटन तथा सयं ु -रा अमे रका के आिधप य ने भी भारत क नीितय को भािवत िकया। हमारे पड़ोसी देश चीन,
पािक तान, ीलंका और बां लादेश आिद ने भी भारत क नीितय को प रवितत िकया। िजसम 1962 म चीन तथा म 1965
पािक तान के साथ यु सि मिलत है, बां लादेश के िनमाण ि या म भारत क अि म भिू मका रही, िजस कारण पनु : 1971
पािक तान के साथ यु हआ तथा परमाणु ऊजा मता के न पर भी हमारे पड़ोिसय ारा हम नई चनु ौितयाँ दी गई ं ।
अंतरा ीय, रा ीय एवं बहप ीय संगठन क उपि थित ने भी कुछ नीितय को िनरंतर भािवत िकया। इसका मख ु उदाहरण
िव व यापार सगं ठन के अतं गत अमे रका से सौर ऊजा जैसे िवषय पर भारत को हार का सामना करना माना जा सकता है। जो
इस बात का प रचायक है िक अब भारत क अथ यव था और राजनीित मा थानीय सं थाओ ं से िनधा रत नह हो रही थी,
लेिकन तब भी िवकासा मक ि या म तकनीक गित और मानव संसाधन म उ कृ ता क मदद से रा य सदैव क म रहा ।
भारत का िवकासा मक आयाम
उ र उपिनवेशी रा य म भारत क या ा िविभ न े म िवकास से आर भ हई। िजसम कृ िष और औ ोिगक करण भी सि मिलत
थे। यह नेह का नेतृ व था िजसने भारत के वृि एवं िवकास को एक नई िदशा क ओर अ सर िकया। इस िवषय म कोई संदहे
नह था िक जनसं या का एक बड़ा भाग य प से कृ िष म सिं ल था। इसके िलए भिू म सधु ार मानक को भी लाया गया,
हालाँिक यह चार रा य (ज म-ू क मीर, के रल, पि म बंगाल तथा ि परु ा) म ही सफल हो सका। भारत के अंतगत िनयोजन क
ि या कां ेस पाट क वतं ता पूव क राजनीितक सचेतना से सह-स बि धत रही। कां ेस कायकारणी सिमित ने अग त 1937
म भारत के अतं गत औ ोिगक िवकास के िलए संक प पा रत कर िदया था। नेह तथा सभु ाष च बोस जैसे दो िद गज वामपंथी
नेताओ ं ारा अपने आपसी मतभेद को परे रखकर औ ोिगक िवकास के न को “स पणू भारत औ ोिगक योजना” के मा यम
से हल करने का यास िकया। रा ीय योजना सिमित म नेह ने अ य का कायभार सभं ाला इसक मह वपणू िब दू िन न रहे–
1. इसके ारा भारत क नीितय का िनधारण तब भी िकया जाता था जब भारत उपिनवेशी स ा के अधीन था तथा ांतीय
कां ेस सरकार क यह नीितयाँ रा -रा य के िनमाण के िलए एक िवचार के पंजु का िनमाण कर रही थी ।
2. रा य के िलए नीित िनमाण ि या म योजना तकनीक मू यांकन तथा वै ािनकता पर आधा रत थी।
3. कां ेस के उभरते हए रा य नेतृ व क सम या का समाधान करने के िलए िवशेष सिमित क राय मह वपणू थी ।
हालाँिक अिधकतर िव ान िवकास के िलए औ ोिगकरण के प म थे पर तु गाँधी जी का रा य के ीयकरण तथा मशीनीकरण
को आधिु नक स यता को अिभशाप मानाने के िवचार का भी स मान िकया गया य िक उस समय उपिनवेशी शासन के िव

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जन आ दोलन के नेतृ व के िलए गाँधी जी क आव यकता थी । 1940 तक रा वािदय का तक था िक उ नित एवं िवकास करने
हेतु सव थम िवदेशी शासन को हटाने क आव यकता है। य िक यह भारत के िवकास म सबसे बड़ा अवरोधक है। इस प रणाम
व प वराज को वृि एवं िवकास के िलए आव यक शत माना जाने लगा। 1947 से 1969 तक भारत क राजनीित “कां ेस
यव था” के प म प रभािषत क जाती है। कां ेस पाट ारा क एवं रा य दोन तर पर शासन िकया जा रहा था। यह वह
काल भी था जब िवकासा मक रा य अथ यव था िनयोजन तथा वृि को य प से िनदिशत कर रहा था। यह अपने ह त पे
ारा उ र औपिनवेिशक रा य को वैधता दान करने का काय कर रहा था। भारत ारा िमि त अथ यव था के ढाँचे म सोिवयत
ितमान आधा रत िनयोजन ि या का चयन िकया गया। औ ोिगक वृि को िनधनता उ मल ू न तथा क याण के िलए क ीय
कारक के प म देखा जा रहा था। 1962 तथा 1965 म हए यु तथा िनधनता तर ने भारत के अंतगत औ ोिगक वृि को एक
बड़ा झटका िदया। सरकार को पए क क मत भी कम करनी पड़ गयी थी। वतं भारत के पशचात ् ् 1969 के चनु ाव कां ेस दल
के सम सबसे बड़ी चनु ौती थे य िक थम बार 9 रा य म गैर कां से ी सरकार का िनमाण हआ था। 1971 के साधारण चनु ाव
म इिं दरा गाँधी के नेतृ व म कां ेस पाट ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ पुनः वापस आई। कां ेस क सरं चना नेह काल क
‘कां ेस यव था’ से िभ न थी और रा य लोग के तर को सधु ारने म मह वपणू कता बन गया था। इस समय पर सरकारी े म
भी िनरंतर गित बढ़ रही थी तथा शहरी म यम वग और कामकाजी वग का बड़ा भाग सरकारी े पर िनभर होता जा रहा था।
1960 म आए खा सक ं ट के साथ सरकार ारा िसचं ाई, बीज, खाद आिद व तओ ु ं पर अनदु ान देकर अपने ह त ेप म वृि क
जा रही थी। इसे ह रत ािं त के नाम से जाना गया, िजसके तहत पजं ाब, ह रयाणा तथा पि मी उ र देश के े को लाभ ा
हआ था। इिं दरा गाँधी के अतं गत कां ेस पाट कि त एवं अिधक ताकतवर हो गई थी। नेह क िवकासा मक िवचारधारा का
थान क ीय सरकार के ारा समिथत समाजवादी रा य ने ले िलया था। जनसं या के कुछ िवशेष वग जैसे अनसु िू चत जाित,
अनसु िू चत जनजाित, कामकाजी वग, मिहलाओ ं और अ पसं यक के िलए क याणकारी अनदु ान को लागू िकया जाने लगा था।
ह रत ािं त क सफलता के बावजदू समाज के कुछ वग आिथक किठनाइय का सामना कर रहे थे। िजसने सपं णू देश म तनाव क
ि थित उ प न कर दी थी तथा िजसका समाधान करने के िलए इिं दरा गाँधी सरकार को िवशेष काननू का योग करना पड़ा जैसे
आंत रक सरु ा अिधिनयम और क ीय सरु ा बल। आपातकाल क घोषणा इिं दरा गाँधी जी के िलए एक नकारा मक िनणय
िस हआ तथा वह जनता पाट ारा साधारण चनु ाव म हार गई हालाँिक जनता पाट का कायकाल अ पकालीन ही रहा।
मा सवादी िचंतक णब बधन (1984) ारा पँजू ीवादी, धनी कृ षक और नौकरशाही इन तीन मख ु वग को राजनीितक प रवेश म
एक दसू रे के ित ित पधा मक एवं गठबंधनीय प से अिं कत िकया गया। अिचन िवनायक (1990) भी गठबंधन के ितमान को
दिशत करते ह िजसम वह कृ षक, नौकरशाही गठबंधन क मह ा पर बल देते ह जो ामीण मतदाता को लामबंद करने क मता
भी रखते थे। अतुल कोहली (1991) 1980 म रा य क कहानी को इस कार ततु करते ह िक िविभ न सामािजक समूह ारा
लागू त कालीन चनु ावी दवाब को आ मसमपण कर के लोकतांि क रा य सं थाओ ं का य होने िदया गया, िजसने रा य क
शासन शीलता के िलए चार ओर से संकट खड़ा कर िदया था। 1984 म इिं दरा गाँधी जी क मृ यु के प चात् राजीव गाँधी ारा
कां ेस पाट का नेतृ व संभाला गया, पर तु यह भी अ पकािलक ही था। 1989 से भारतीय राजनीित म गठबंधन क सरकार का
यगु आर भ हो गया था। रा ीय सयं ु मोचा क सरकार का िनमाण हआ, पर तु यह भी राजनीितक सहमित के अभाव म यादा
ल बी दरू ी तय नह कर पाई। 1991 म पी.वी. नरिस हा राव ारा अ पमत के साथ सरकार का िनमाण िकया गया तथा उस काल
म ही संरचना मक आिथक सधु ार िकए गये। च वत कहते ह िक आरि भक काल म भारत म िनयोजन क ि या ततु क
गयी जहाँ “व तु के ि त उपागम” पर एक आम सहमित का िनमाण था तथा िवकास का के ीय यान संचय पर रखा जाना था ।
च वत यह भी कहते ह िक िजस िविश स दभ म िनयोजन हो रहा था ऐसे म सचं य को वैधीकरण के साथ सामंज य थािपत
करना था सचं य तथा वैधीकरण भारत म योजना के दो मह वपणू उ े य थे।
भारत क राजनीितक अथ यव था
राजनीितक अथ यव था म आिथक नीितय के म य संबंध को रा य के राजनीितक ढाँचे के अतं गत अ ययन िकया जाता है।
आिथक नीितयाँ और आिथक िवकास परु जोर प से राजनीितक लोकतं क उपि थित से भािवत होता है। 21व शता दी के
आगमन से हम एक नए युग म वेश कर चुके ह। िजसम बाजार अथ यव था, राजनीितक लोकतं जैसे श द मा पवू यरू ोप तक
ही नह सीिमत रहे, वरन् लैिटन अमे रका, अ का एवं एिशया के िवकिसत देश म भी भािवत प से योग म आने लगे ह।
100
राजनीितक अथ यव था के िवकास के पीछे िनयोिजत अथ यव था एवं बाजार े म रा य के ह त पे म कमी को मु य कारक
माना जा सकता है। भारतीय अथ यव था क शु आती चरण म ऐसा माना जाता था िक उपिनवेशी शासन ने भारतीय यव था को
िशिथल कर िदया है। इस कारण यापार उदारीकरण का िवरोध िकया गया तथा वयं को घरे लू उ पाद तक ही सीिमत कर िलया
गया, िजससे लघु उ ोग का सरं ण िकया जा सके । ऐसा माना जाने लगा िक लघु एवं नवीन उ ोग के िवकास एवं तकनीक
सलु भता हेतु रा य का ह त ेप अिनवाय है। इस कारणवश तकनीक सहायता तथा िवदेशी उ ोग से संर ण को सरकार के
उ रदािय व के प म देखा जाने लगा। नेह शु आती तर से ही िनयोजन के समथक थे अतः उनके ारा शि शाली योजना
आयोग एवं रा य ह त पे को ो सािहत िकया गया। 1991 से 1956 के दौरान लागू थम पचं वष य योजना के अंतगत कृ िष
उ पादन म उ कृ सफलता ा हो रही थी। इस आधार पर ि तीय पचं वष य योजना म औ ोिगक े को अिधक मह ा दी गई।
वह कृ िष िव एक करण 34.6% से 17.5 % तक घट गया था, िजसका भाव उ पादन म कमी के प म िदख रहा था।
मु ा फ ित, 1962 म चीन के साथ यु , 1965 म पािक तान से यु , नेह एवं शा ी जी क मृ यु इन सभी घटनाओ ं के कारण
भारत िविभ न िदशाओ ं से सम याओ ं का सामना कर रहा था। अमे रका के पि लक काननू 480 ो ाम के तहत भारत अमे रका
से खा साम ी आयात करने लगा आई.एम.एफ. क बा यकारी शत को मजं रू ी देने के प चात् भारत के बचाव म आई.एम.एफ.
ने भी अपना सहयोग दान िकया। इन शत के तहत भारत को अपने पए क क मत कम करनी पड़ी, आयात को उदार बनाना
पड़ा तथा सरकारी े म कमी के साथ िवदेशी िनवेश म वृि करने के िलए िववश होना पड़ा था। िव व बक क सलाह एवं पए
क क मत म िगरावट करने के प चात् भारत ारा कृ िष े को ो सािहत िकया गया। भारत ारा मैि सको से उ च कोिट के गेहँ
उ पादन के बीज का िनयात िकया गया, जो काफ तर तक सफल भी हआ। ह रत ािं त के आरंभ से एवं अमे रका ारा
तकनीक एवं िव ीय अनदु ान से भारत ारा कृ िष े के उ पादन के अतं गत वृि क गई। खा सम या का समाधान करना
सरकार के िलए काफ तर तक लाभदायक िस हआ परंतु इसका लाभ समाज के सभी वग को ा नह हो सका। पजं ाब,
ह रयाणा, पि मी उ र देश के धनी कृ षक को ही इससे अिधक लाभ ा हआ। ह रत ांित के अंतगत गेहँ क फसल को अ य
फसल से अिधक मह ा िदए जाने के कारण धान क खेती करने वाले देश के अ य े को ह रत ांित से तब भी लाभ ा नह
हो सका। ह रत ांित के अलावा इिं दरा गाँधी ारा कुछ े जैसे टील, तांबा, बक,बीमा, गेहँ यापार आिद का रा ीयकरण कर
िदया गया था। आिथक तर पर सरकार ारा इन सभी कदम के बावजूद देश म उ च तरीय िनधनता एवं इिं दरा गाँधी का िनरंकुश
शासन या था। राजनीितक िवरोध म वृि एवं जय काश नारायण ारा कुछ रा य म सरकार के ित िकया जा रहा आदं ोलन
सरकार क राजनीितक एवं आिथक नीितय के ि या वयन म अवरोधक का काय करने लगे थे। अथ यव था म रा य ारा उ च
तरीय ह त पे के साथ लोग के म य बढ़ते राजनीितक आ ोश ने 1975 से 77 के आपातकाल के प चात् इिं दरा गाँधी सरकार
को स ा से हटाने का काय िकया। वह दसू री ओर एक बार िफर धीमी वृि के साथ मानव िवकास के खराब दशन ने नीित
िनमाताओ ं को पनु ः िवचार करने के िलए िववश कर िदया था। एिशयाई अथ यव थाओ ं का िनजी यव था के साथ क गयी पहल
सफल िस हई थी। दि ण को रया, ताइवान, िसगं ापरु जैसे देश ारा इस काल म आिथक वृि अनभु व क गई। 1960 से 1980
तक नेताओ ं ारा धीरे -धीरे और अ सर चपु के से समाजवादी बयानबाजी के बावजूद िनजी े क आिथक गितिविधय को जारी
रखा गया था तथा भारतीय उ ोगपितय का अिधकांश भाग िनयं ण क यव था म ही उलझ कर रह गया था। जहाँ उ पादन
आयात और िनयात के िलए लाइसस और अनमु ोदन क आव यकता होती थी। 1961 और 1974 के दौरान पँजू ीवादी औ ोिगक
वािषक िवकास दर 4.5% होने के कारण उ पादन के िनणय के िमक अवमू यन म एक मह वपणू उदारीकरण के उपाय को
शािमल िकया गया था और 1975 से 1990 के बीच यह वािषक 5.9% थी। लाइसस एवं सरकार से अनमु ोदन ा करने क
नीितयाँ औ ोिगकरण क िदशा म िवकास करने क अपे ा ाचार से त थी। राजीव गाँधी ारा अपने धानमं ी पद के
कायकाल म सरकार का औ ोिगक गितिविधय पर िनयं ण कम िकया गया तथा तकनीक उ थान हेतु अनेक कदम उठाए गए।
30 उ ोग तथा 12 औषधीय व तओ ु ं को उनके कायकाल म लाइसस के े से बाहर िकया गया। वी.पी. िसहं के कायकाल के
दौरान िवकिसत े म 250 िमिलयन पए के िनवेश तक लाइसस क आव यकता को हटा िदया गया था। भारत म अनेक
िवरोध के बावजदू भारतीय सरकार के साथ जापान क सजु क ू कंपनी का समझौता हआ, टेलीफोन े को 1980 से िनयं ण से
मु िकया जाने लगा जन संचार मं ालय के अंतगत एक पृथक् दरू संचार िवभाग क थापना क गई। 1980 तक सचू ना
ौ ोिगक को लाभ ा होने लग गया था। इस काल म अं ेजी िश ा तथा इजं ीिनय रंग कॉलेज म वृि होने लगी और िन न

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आय क उपल धता ने सचू ना ौ ोिगक को िनवेश करने के िलए ो सािहत िकया। कं यटू र तथा सॉ टवेयर के आयात म आई
सलु भता ने भी इस े म वृि को बढ़ावा िदया। 1980 म वािषक कृ िष वृि दर 3.4% थी, जो वतं भारत के इितहास म अब
तक क उ च दर दज क गई थी। कृ षक पास सश सगं ठन थे, िजनके साथ लामबदं ीकरण कर वह जनता पाट के शासनकाल म
क मत एवं अनदु ान संबंधी माँग पर दबाव बनाने लग गए थे। मह िसंह िटकै त, शरद जोशी तथा एम.डी. नंजंडु वामी जैसे नेताओ ं
ने ामीण कृ िष े म िपछड़ेपन के िवकास हेतु सरकार पर िनरंतर दबाव बनाए रखा था । 1970 और 1980 के नए राजनीितक
प र य म ना के वल कां ेस पाट के पतन और िवप के उ व को अवलोिकत िकया जा सकता है बि क यह भारतीय
राजनीितक अथ यव था के िलए वह काल रहा था, जब एक िवकासा मक रा य असफल तथा हआ िजससे वह 1991 के
आिथक सधु ार क तरफ अ सर हआ।
उ र–उदारवाद और भारतीय राजनीितक अथ यव था के सरं चना मक प रवतन
भारतीय अथ यव था म प रवतन क शु आत को 1980 के दशक से ही आलोिकत िकया जा सकता है। हालाँिक 1991 से
यवि थत प म संरचना मक प रवतन का आरंभ हो गया था । घरे लू िनयामक यव था म प रवतन भारत क वैि क कूटनीित
के अनसु रण व प हो रहा था। भारत क अथ यव था म उदारवाद के आगमन ने भारत क वृि दर को भािवत िकया। भारत
क अथ यव था के िविभ न े म प रवतन–तकनीक प रवतन, आय रणनीित म प रवतन, इन सभी ने भारत क आिथक
मता को प रवितत कर िदया था। रा य वतं ता के प चात् क िव वंसकारी सामािजक आिथक सं कृ ित को प रवितत करने म
क ीय भिू मका िनवाह करने लगा था। सधु ार के प चात् भारत क आिथक शि िविभ न तर पर वृि करने लगी थी। इस
परंपरागत ि कोण के बावजदू िक रा य िनजी गितिविधय म अवरोधक हो सकता है, यह चनु ौती ली गई िजसके अंतगत अनेक
संरचना मक प रवतन एवं सधु ार िकए गए। 1991 तक के सधु ार म भारत के कॉप रे ट े , ित पधा एवं आिथक ि थित म सधु ार
अवलोिकत होने लगे थे । यह सरं चना मक सधु ार तब हो रहे थे जब कां ेस पाट असरु ि त बहमत म थी। लोकतं को तब एक
यापार के ि त वातावरण म थान करने म अनेक किठनाइय का सामना करना पड़ रहा था। जब कोई भी दल गठबधं न सरकार
के काल म पणू बहमत ा करने म असफल हो रहा था। भारत क आिथक प रवतन क या ा िनरंकुश शासन म होने वाले
आिथक सधु ार से भी िभ न थी। 1991 म भारतीय अथ यव था क ि थित सक ं ट त थी, िजस कारण उस काल म
आए.एम.एफ. (IMF) तथा भारतीय अथ यव था के म य से सहि या का अ ययन करना आव यक हो जाता है। 1970 से
1980 तक भारत क अथ यव था सतं ोषकारी नह थी िक व तु िविनमय एवं यापार को साथ- साथ िकया जा सके । सरकार भी
भारत के अतं गत उ म क ि थितय म सधु ार के िलए यास करने हेतु कम स म थी। िव ीय असतं ल ु न तथा अथ यव था के
िन नतर दशन ने भारतीय अथ यव था को सरं चना मक सधु ार क ओर अ सर िकया। 1980 क प रि थितय ने ही
वा तिवकता म 1991 के सधु ार के िलए पृ भिू म का िनमाण कर िदया था। अतल ु कोहली इस सदं भ म तक देते ह िक इिं दरा गाँधी
सरकार तथा राजीव गाँधी सरकार म आिथक नीितयाँ कारोबार क िदशा झक ु हई थी। 1980 तक भी य िवदेशी िनवेश भारत
क अथ यव था क ाथिमकता नह थी। हालाँिक कुछ कदम उठाए गए परंतु उससे कुछ अिभजात वग को ही लाभ ा हो
सका। कारोबार और यापार काय णाली अिधिनयम म उ िमय को के िमकल और सीमट उ ोग जैसे मु य े म फै लाव के
िलए ो सािहत िकया गया, तो वह दसू री ओर िनधन जनसं या ामीण े से शहरी े क ओर वासन कर रही थी। अथ-
यव था क वृि से संबंिधत सम याएँ इसके चरम िबंदु पर पहँचने लगी थी । 1980 म कृ िष यव था म िदए गए अनदु ान िजससे
आिथक वृि क ओर अ सर तो हए थे, पर उसने दसू री ओर भारतीय अथ यव था को िव सक ं ट क ओर अ सर कर िदया था।
1980 तक भारत अपनी यापार संबंधी काय णािलय के िलए काफ तर तक सरं णा मक था। िवदेश म भारतीय कौशल एवं
नवीन िचतं न को ो सािहत िकया जा रहा था। वह भारत के अंतगत भारतीय लाइसस कोटा राज के तहत िन न दशन कर रहे थे।
भारतीय उ ोग प रसघं वाद (Confederation of Indian Industry) के सचं ालन के अतं गत उ ोग समदु ाय ारा अथ यव था
म बधं न तथा बाजार म अवसर क किमय को हतो सािहत िकया जाने लगा। ामीण िपछड़े वग को आर ण दान करना,
वी.पी. िसहं के नेतृ व क रा ीय मोचा सरकार क यह पहल कृ षक के सदं भ म तु ीकरण के प म देखी जाने लगी थी। 1991
क शु आत तक भारत का िव ीय घाटा सकल घरे लू उ पाद के 9% तक आ गया था तथा देश के पास मा दो स ाह के िलए
आयात का शेष रह गया था, िजससे अतं रा ीय तर पर भारतीय अथ यव था क साख भी धिू मल हो रही थी । ऐसे म नरिस हा

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राव सरकार ारा अथ यव था को गित दान करने के िलए भारतीय यापार े को उदार बनाया गया तथा उ ोग नीितय म
प रवतन लाया गया। लाइसस कोटा राज का अंत िकया गया। इन सभी मह वपणू प रवतन ने भारतीय अथ यव था म य
िवदेश िनवेश के िलए माग दिशत िकया गया। शु क दर म कमी से भारतीय यापा रय ारा िकया गया िनयात 1991 से 1999
के म य दगु ना हो गया था। िवदेशी कंपिनय के आगमन से नौक रय के नए अवसर यवु ाओ ं के सम तुत हए। िवदेशी तकनीक
सहायता से लघु उ ोग को वैि क तर क तकनीक एवं संरचना मक सिु वधाओ ं क ाि हो सक । औ ोिगकरण ने लोग के
म य राजनीितक जाग कता का भी काय िकया इससे भारत के अतं गत राजनीितक लामबंदीकरण क भी शु आत होने लगी।
अिधकरण ने शहरीकरण एवं आधिु नकरण को बढ़ावा िदया। भारतीय यापार सधु ार के अंतगत यापार संर ण म धीरे -धीरे कमी
क गयी तथा िनयात के ो साहन के िलए काफ वृि क गयी थी । भारत का औसत भा रत सामा य टै रफ 1991-92 से 1995-
96 के काय काल म 81.4% 32.9% तक भारी मा ा म नीचे आया। 1994 म पए क प रवतनीयता ारा यापार को बढ़ावा देने
क सिु वधा भी दी गयी थी । हालाँिक आिथक तर पर सधु ार हो रहे थे, पर तु समावेशी वृि और संसाधन के िवतरण म तब भी
अनेक चनु ौितयाँ थ ।
भारत क आिथक सम याओ ं ने िव व के सबसे बड़े लोकताि क देश को आिथक सधु ार क ओर अ सर कर िदया था । बढ़ते
राजकोषीय घाटे से िनपटने के िलए आिथक नीित को ित थािपत करने म आयात क अ मता ने भारत को खाड़ी सक
ं ट के समय
भगु तान सक
ं ट क सम या के सम ला िदया था, िजसने यापार और िनजी िनवेश को ो सािहत िकया था । 1991 के प चात्
भारत क आिथक वृि म ती वृि दज क गयी । 2003-2004 से 2005-2006 म भारत क GDP 7.5% और 8.5% के
म य थी । यहाँ तक क उ ोग े क वृि दर भी 6% वािषक दर पर ि थर हो गयी थी । सेवा े के िवकास ने भारत क
अथ यव था को िवकास क ओर अ सर िकया।
भारत एक क याणकारी रा य के प म और चनु ौितयाँ
क याणकारी रा य हमारे वतं ता सैनािनय का अभतू पवू वपन था तथा वह सक ं पना थी िजसे वतं भारत के संिवधान के
मा यम से साकार िकया गया। क याणकारी रा य क अवधारणा पर कुछ दशना मक काय है िजसम टी.एच. माशल क
‘सामािजक नाग रकता’ क अवधारणा मह वपणू है। िजसम वह आिथक क याण एवं सरु ा का अिधकार, सामािजक धरोहर म
िह सेदारी और समाज म या स य नाग रक के मापदडं के अनु प जीवन यतीत करने के अिधकार को सि मिलत करते ह।
जयाल के अनुसार भारत म क याणकारी रा य क अवधारणा धमाथ, परोपकार और पैतृकवाद पर आध रत है जो पि म के
“अिधकार” क अवधारणा से िभ न है। भारत म क याणकारी मापदडं को अिधकार के प म मािपत नह िकया जा सकता है।
यह उस आव यकता के प म प रभािषत िकया जा सकता है जो िक समाज के वंिचत लोग पर आधा रत होता हो। क याणकारी
रा य सरकार का वह व प होता है, जहाँ रा य नाग रक के आिथक एवं सामािजक क याण के संर ण एवं ो साहन म
मह वपणू भिू मका िनवाह करता है। एक क याणकारी रा य अवसर क समानता एवं संसाधन के समान िवतरण पर आधा रत
होता है। यह सरकार के उस उ रदािय व पर के ि त होता है, जहाँ सरकार यह अपे ा क जाती है िक वह समाज के िन न तर के
लोग का उ थान करे गा। अतः इस यव था म नाग रक के क याण का उ रदािय व रा य पर होता है। भारत वतं ता से पूव एक
क याणकारी रा य नह था ि िटश शासन लोग के संर ण एवं क याण से सरोकार नह रखती थी। वह अपनी येक नीित
ि िटश सरकार के िहत को यान म रखकर िनधा रत करती थी। जब भारत को उपिनवेशी स ा से वतं ता ा हई तब उसके
सम अनेक सम या एवं चनु ौितयाँ थ । सामािजक एवं आिथक असमानता या थी, आिथक प से भारत क ि थित दयनीय
थी। सामािजक प म भी भारत के सम अनेक सम याएँ थ । सामािजक तर पर असमानता थी और सभी िन न वग के सद य
जैसे मिहलाएँ, दिलत, अनसु िू चत जनजाित और ब चे जीवन के आधारभतू ससं ाधन से भी विं चत थे। हमारे सिं वधान िनमाता इन
सभी सम या के ित सजग थे इसिलए हमारे सिं वधान िनमाताओ ं ारा सिु नि त िकया गया िक भारत एक क याणकारी रा य
होगा जैसा िक हम जानते भी है िक हमारे सिं वधान क तावना म भारत एक “सं भ,ु समाजवादी, पथं िनरपे , लोकताि क
गणरा य” के प म प रभािषत िकया गया है। िजसके अनसु ार सिं वधान के अतं गत ऐसे ावधान है िजसके तहत भारतीय के
आिथक और सामािजक क याण के िलए कदम उठाए जा सकते ह। इन िवषय के अतं गत दो िवशेष ावधान ततु िकए गये है

103
थम मौिलक अिधकार है िजनके अवधान पर यायालय म चनु ौती दी जा सकती है और दसू रा रा य के नीित िनदशक िस ांत जो
रा य को भारत के नाग रक के जीवन तर म सधु ार लाने के िलए नीित करने के िलए िनदिशत करता है।
नाग रक के क याण हेतु रा य ारा कुछ मह वपणू कदम िलए गये : एक कृ त बाल िवकास सेवा, ब च क देखभाल और सरु ा
के िलए सेवा, कामकाजी और बीमार मिहलाओ ं के बालक के िलए िशशसु दन, पोषण काय म, यिू नसेफ (UNICEF) काय म।
16.15 िमिलयन अस म लोग के िलए िविभ न काय म चलाए गए जैसे अस म लोग के िलए काय म, ाथिमक तर पर
रोग क पहचान तथा इलाज, 14 वष तक के ब च के िलए िनःशु क िश ा। मिहलाओ ं के िलए भी िविभ न काय म लागू िकये
गये िजसके अतं गत भारत सरकार ारा 1976 म मिहलाओ ं क ि थित के िलए रा ीय सिमित का गठन िकया गया। कामकाजी
मिहलाओ ं के िलए छा ावास का िनमाण, वय क मिहलाओ ं के िलए सा रता काय म, मिहलाओ ं के पनु वासन के िलए िश ण
पाठ्य म, यावसाियक िश ण काय म आिद। भारतीय सरकार ारा सामािजक सम याओ ं के समाधान हेतु अनेक काय म
लागू िकये गये जैसे कारावास क याण योजना, अनैितक त करी पर िनयं ण, भीख माँगने पर रोकथाम, नशीली व तुओ ं के योग
पर िनयं ण। सरकार ारा अनसु िू चत जाित/ जनजाित और िपछड़े वग के िलए भी अनेक काय म ततु िकए गए। सिं वधान के
अंतगत भी इन सभी वग के सरं ण के िलए भी ावधान उ लेिखत है पचं वष य योजना के अतं गत अनेक काय म लागू िकए
गये है जैसे आय संवधन काय म, IAY आिद। अ पसं यक के क याण के िलए अनेक सामािजक सेवाओ ं क थापना क
गय जैसे 1994 म अ पसं यक िव एवं िवकास कॉप रे शन क थापना क गयी । अ पसं यक के िलए 15-सू ीय काय म म
ामीण वा य सेवा लागू क गयी । बड़ी सं या म वा य सेवक एवं िचिक सक ामीण वा य के पर भेजे गये थे । वृहद्
तर पर गणु ा मक एवं मा ा मक प से आवास एवं शहरी िवकास े म प रवतन िकए गये िजसम सभी के िलए आवास, ाम
िबजली तथा अ य ामीण सरं चना मक मापदंड सि मिलत थे । एक कृ त ामीण िवकास काय म म िनधन प रवार को आिथक
एवं कौशल (TRYSEM) मदद दान क गयी। भारतीय सरकार ारा क याण के िलए अनेक काय म जैस–े बेटी बचाओ,ं सव
िश ा अिभयान, MNREGA, PHU, PDS, टीकाकरण, गैस सि सडी आिद नीितय का ि या वयन िकया गया। हालाँिक
सरकार िनि त सफलता नह ा कर सक पर तु भारतीय रा य के लोग के क याण म यह सभी नीितयाँ लाभकारी िस हई।
अनेक क याणकारी काय म के लागू करने के प चात् भी वा य, िश ा पर यय आने दि ण एिशया के देश क जी.डी.पी.
के अनपु ात म कम ही रहा है। 2019 तक भी िश ा यय बजट के 5% भाग तक नह पहँच पाया है।
क याणकारी नीितय को लागू करने म अनेक सम याएँ आज भी है भारत जैसे िविवधता वाले देश म अि थर गठबंधन, े ीय
दल, WTO क सद यता आिद अनेक चुनौितय खड़ी कर देती है। िकसी एक भाग को अनदु ान देना अ य भाग म तनाव ले आता
है िजसका वतमान उदाहरण ह रयाणा म जाट आ दोलन, गजु रात म पाटीदार तथा महरा म मराठा के प म देखा जा सकता है।
इ क सव सदी म भारत
1947 म उपिनवेशी स ा से वतं के प चात् भारत क आिथक और राजनीितक पृ भिू म 21व सदी के भारत से िबलकुल पृथक्
थी। 2020 तक भारत य शि के मापदडं के आधार पर िव व क चौथी बड़ी अथ यव था के प म उभरने क राह पर है।
िवकासा मक आयाम ारा भी िविभ न पथ को अपनाया जा रहा है। आधारभतू आव यकता के थान पर कौशल म क
उपल धता, मानव स पदा िवकास म जन सचं ार तकनीक क भूिमका, कौशल िवकास आिद क ओर यान प रवितत हो गया है।
मेक इन इिं डया, कौशल भारत जैसी अनेक योजनाएँ लाभ के े को िवकिसत कर पाने म सफल हो सके गी, अगर सरकार जन
सांि यक लाभांश को 21व के भारत क वृि का लाभ लेने म उपयोग कर सके गी। कौशल और तकनीक सहयोग के िबना यह
नीितयाँ कम लाभदायक िस ह गी। मानव ससं ाधन उ कृ राजनीितक वातावरण से प रपणू होना चािहए जो नाग रक के िलए
रोजगार सवं धन कर सके । अमे रका और चीन के म य उभरते तनाव के कारण म य एिशया म उभरती सरं णा मक एवं राजनीितक
असतं लु न के झान अवलोिकत िकए जा सकते ह अमे रका के के ीय सचू ना आयोग के अनसु ार भारत के िलए िन निलिखत
चनु ौितयाँ सम खड़ी ह” :……… भारत के िलए अनेक चनु ौितयाँ ह, िज ह पणू प से िचि हत करना शेष है िजसम िनधनता,
ाचार, िहसं ा, मिहलाओ ं के ित भेदभाव, शि जनन और िवतरण यव था क अस मता, बौि क सपं दा अिधकार के

104
ि या वयन म अ भावहीनता, नाग रक याियक िवषय म गितरोध, प रवहन तथा कृ िष आधारभतू अवसरंचना म अपया
ि थित, गैर कृ िष े म सीिमत अवसर, खच ले अनदु ान, अपया िश ा ससं ाधन तथा बढ़ता शहरी वासन।
इस समय भारत िवकासा मक प रवतन के शीष पर है नीितय का चयन भिव य क िवकास या ा का िनधारण करगी। नीितय के
िनधारण म सबसे बड़ी चनु ौती उिचत पथ एवं सं थागत सरं चना के चयन से स बि धत है िजससे भारत को सतं िु लत और समावेशी
भिव य क ओर अ सर िकया जा सकता है । उिचत पथ के चयन के िलए भारत क राजनीित म मह वपणू िवषय पर वाता करने
क आव यकता होगी जैसे शहरी एवं ामीण जनसं या, कृ िष े म बढ़ता संकट आिद मह वपणू सम याएँ ह अ य चुनौती
सं थागत है, भारत को इसके िलए एक नए सं थागत सरं चना का िनमाण करना होगा जो प रवितत आव यकता के अनु प हो
तथा साथ ही रा य क मता को संतुिलत कर सके । तािक आम जीवन से स बि धत आधारभतू आव यकता जैसे वा य एवं
िश ा क पिू त क जा सके । भारत एक ऐसे प रवतनीय काल म है, जहाँ जन िवमश-िवचार के आधार पर िवभािजत है यह
िवभाजन सतं ुिलत नीितय के चयन म कठनाई उ प न करता है िजस कारण अ प अविध एवं असंतिु लत नीितय के चयन को
अिधक मह ा दी जाने लग गयी है ।
मह वपूण न :
1. वणन कर से कार से उ र – उपिनवेशी काल म भारत एक िवकासा मक रा य के प म उभरा है और 1991 से पवू
िवकासा मक पहलू पर एक यि क या भिू मका थी ?
2. योजना काल के दौरान राजनीितक अथ यव था क िववेचना क िजए ।
3. 1991 म भारत म हए आिथक सधु ार के िलए कोण से कारण रह? 1991 के प चात् क भारत क अथ यव था का
िववरण कर ।
4. समाजवाद या है ? भारत को एक क याणकारी रा य के प म सिं प म विणत कर ।
या भारत 21व सदी म भी एक िवकासा मक और क याणकारी रा य है? िववेचना कर ।
अिधगम अनुवतन
अ याय के अतं म छा िन निलिखत िवषय क समझ रख पाएँगे :
 िकस कार से भारत म रा य ने िवकास म एक मह वपणू तं के प म भिू मका िनवाह क ।
 1991से पवू भारत क राजनीितक अथ यव था और पवू र सधु ार ।
 भारत ारा क याणकारी मापदडं के िलए अपनाई गयी समाजवादी नीितयाँ ।
 िकस कार ि िटश शासन के प चात् राजनीितक िवकास को सि मिलत िकया गया ।
 1991 म भारत आिथक सरं चना मक सधु ार क ओर अ सर हआ ।
स दभ सच
ू ी
1. P. Chatterjee (2011), The State, in N G Jayal and P Mehta (eds) The Oxford Companion to
Politics in India, OUP, New Delhi. pp. 3-14.
2. R. Kothari (1983). ‘The Crisis of the Modern State and the Decline of Democracy’ in in
3. N.G. Jayal (ed.), Democracy in India, New Delhi, Oxford University Press. Pp. 2001 (sixth
impression 2012). pp.101-127.
4. N.G. Jayal (2001), ‘The State and Democracy in India or What Happened to Welfare,
Secularism, and Development’

105
5. In N.G. Jayal (ed.), Democracy in India, New Delhi, Oxford University Press. Pp. 2001 (sixth
impression 2012). Pp.193-224.
6. S. Kaviraj (2010), The Trajectories of the Indian State. New Delhi: Oxford University Press.
7. Zoya Hasan (ed) (2000), Politics and the State in India, New Delhi: Sage.
8. T. Byres, (1994) ‘Introduction: Development Planning and the Interventionist State Versus
Liberalization and the Neo-Liberal State: India, 1989-1996’in T. Byres(ed.)
9. Development Planning and Liberalization in India, New Delhi: Oxford University Press, 1994,
pp.1-35.

106
(ख) उ पीड़क आयाम

सरं चना
 तावना
 रा य तथा गैर रा यकता
 उ र–पवू भारत म राज ोह क सम या, ज म-ू क मीर म रा य ायोिजत आतंकवाद और न सलवाद
आ दोलन
 गैर रा यकताओ ं को िनयिं त करने के िलए िविभ न अिधिनयम एवं ावधान
 िन कष
 मह वपण ू न
 अिधगम अनवु तन
 स दभ सच ू ी

तावना
उ पीड़न एक जिटल अवधारणा है जो अपने अंतगत अ य को शि से िनयंि त एवं भािवत करने क गितिविधय को समािहत
करती है। यह अतं र यि क एवं सं थागत दोन सदं भ म घिटत हो सकती है। यह “िकसी गितिविध को करने व चयन करने के
िलए िववश” करने के प म प रभािषत क जा सकता है। यह रा य क एक मह वपणू िवशेषता होती है उ पीड़न के अनेक व प
हो सकते ह जैस–े अ य को िकसी गितिविध करने से रोकना या यि गत प से िकसी को भािवत करना। लुइस ि सबग
उ पीड़न शि को बड़े प श द म प रभािषत करते हए कहते ह िक यह आिधप य के जनन को सिु नि त करता है तथा रा य
क स ा के िव चनु ौितय के दमन करने का काय करता है।
यह समय के साथ ऐसी प रि थितय का िनमाण करता है िक यावहा रक प म रा य तथा उसक वैधता का अनसु रण िकया
जाता है। 1947 म भारत को जब वतं ता ा हई तब उ पीड़न ारा सश ु ासन क अवधारणा के आधार पर मू य एवं िस ांत
का अनपु ालन िकया गया जो अपने आप म एक किठन काय था। जब देश 1957 म दसू रे आम चनु ाव क ओर अ सर हो रहा था
तब भारतीय राजनीित पर िट पणी क गयी िक “ वतं ता के थािय व के िलए सभी िवपरीत प रि थितयाँ िवप म खड़ी
है…..हालाँिक यह न भी था िक या भारत रा य अपना थािय व बनाए रखेगा “ वा तिवकता म इस चनु ौती पर खरा उतरना
अपने आप म जिटल काय था। उस समय रा य के अतं गत सामािजक तनाव म वृि थी, अथ यव था क गित धीमी थी तथा
लोकताि क सं थाओ ं को सामािजक-आिथक िवकास से स बि धत सम याओ ं के समाधान म अवरोधक कता के प म देखा
जा रहा था। िजस कारण यह सं थाएँ अपना लोकताि क अि त व खोती जा रही थी और समाज म िहसं ा के िनवारण म अस म
िस हो रहे थी।
तुत अ याय के अतं गत यह अ ययन करने का यास िकया गया है िक िकस कार से इन सम याओ ं का समाधान करने हेतु
भारतीय रा य ने अपनी उ पीड़न शि का िव तृतीकरण िकया गया िजसस अिनयंि त त व को िनयंि त िकया जा सके ।
उ पीड़न शि िहत आधा रत प रणाम को ा करने के िलए दसू र को भािवत करने क मता है और यह िविभ न कार के
उपकरण जैसे उ पीड़न और भगु तान या अननु य के मा यम से उपयोग िकया जाता है। साधारणतया उ पीड़न मता को सै य
मता एवं ससं ाधन के साथ सह स बि धत करके अ ययन िकया जाता है पर तु यह एक सक ं ु िचत व प है जैसा िक थॉमस
शैिलगं भी तक देते ह िक खतरे और वाद, उ पीड़न एवं मआ
ु वजे के म य अतं र इस बात पर िनभर करता है िक आधार रे खा कहाँ
ि थत है। अतः उ पीड़न शि सबं धं के स दभ पर आधा रत होती है। पर परागत मा सवादी िस ातं म उ पीड़न एवं बल को
107
मु यतः शासक वग के आिधप य का मु य त व माना जाता है। मा सवादी िच तक ा सी ारा इस िस ांत को आगे िव तृत
करते हए अिधरचना को दो भाग म िवभािजत िकया गया है ऐसी सं थाएँ, जो बहत ही यादा आ ामक थ और जो नह थ । जो
मलू प से सरकार, पिु लस, सश बल और काननू ी णाली जैसे सावजिनक सं थान थे, उ ह रा य या राजनीितक समाज के प
म माना जाता था और गैर-आ ामक के अंतगत चच, कूल, ेड यिू नयन, राजनीितक दल, सां कृ ितक संघ, लब, प रवार, गैर
सरकारी संगठन इ यािद को सि मिलत िकया जाता था। िजसे उ ह ने नाग रक समाज के प म माना। ऐसे कई े ह जहाँ रा य
शासनादेश लागू करने और अनपु ालन लागू करने क शि रखता है। सरु ा और काननू और यव था प उदाहरण ह, तथा
कराधान, और कुछ कार क िनयामक शि , जैसे िक खा सरु ा मानक का िनधारण, इस ेणी के अंतगत आते ह। समय के
साथ, यह उन ि थितय को िनमाण म मदद करता है जो काननू और उनक वैधता के िलए वैि छक आ ाका रता क अनमु ित
देते ह। उ पीड़न वैधता को कम भी करती है। िनरंतर असहमित को दबाने, सामािजक सघं ष को हल करने और काननू और
यव था बनाए रखने के िलए उ पीड़न का योग रा य क वैधता का रण कर सकता है। उ पीड़न के योग के सबं ंध म रा य
कभी-कभी िवरोधाभासी ि थित म खड़ा होता है उ पीड़न अनपु ालन सिु नि त तो करता है लेिकन एक ही समय म, इसके उपयोग
क आवृि रा य क वैधता कम कर सकती है। आधिु नक रा य अपनी िनरंतरता और िविनयमन सिु नि त करने के िलए उ पीड़न
शि का योग करता है।
रा य तथा गैर रा यकता
ऐसे िविभ न सगं ठन ह जो यि और समहू दोन के िलए िभ न कार से ि थितय को हल करते ह। हालाँिक भारत को 1947 म
ही ि िटश उपिनवेश से वतं ता ा हो गयी थी, पर तु िफर भी इसके िविभ न संगठना मक संरचना म उपिनवेशी िवरासत क
छाप अवलोिकत क जा सकती है। ाकृ ितक प से िविभ नताओ ं जैसे सं कृ ित, धम, भाषा, जाित आिद के साथ िनयं ण
थािपत करना रा य के िलए एक सरल काय नह था। रा य ारा अपने अिधकार े म शांित यव था थािपत करने के िलए
अनेक मापदड़ं को योग म लाया गया। इस कार उ पीड़न शि सं भु रा य के वैध तं के प म सि मिलत हो गई। भारत के
अतं गत वैधािनक सं थाओ ं जैस–े पिु लस, सेना, यायालय आिद को ि िटश काल म ही सं थागत प दान हो गया था।
आधिु नक भारत रा य के अतं गत वतमान काल म भी ि िटश उपिनवेशी िवरासत क छाप देखी जा सकती है जैसे आई.पी.सी.
िजसको 1860 म भारतीय काननू आयोग ारा सं थागत िकया गया था, िजसका उ े य भारत को साधारण दडं सिं हता दान
करना था। आई.पी.सी. क धारा 124 जो राज ोह से स बि धत है इसका मख ु उदाहरण है। रा य ारा नाग रक के वैध एवं
अवैध दोन कार क गितिविधय का दमन करने के िलए िविभ न रचना तं का योग िकया जाता है। वतं ता के प चात् भी
नाग रक पर िनयं ण रखने के िलए अनेक अिधिनयम को िनमाण िकया गया। देश क िविभ न सं कृ ित एवं आशाओ ं को देखते
हए उ पीड़क बल का योग िकया जाता है। वतं ता के प चात् ही रा य के सम े ीय आकांशा, भाषीय िवषय, भारत-
पािक तान के म य िवभाजन, भख ु मरी, बां लादेशी अवैध वासी जैसी अनेक सम याएँ थ । िजसके िनयं ण के िलए रा य को
बल का योग ही करना पड़ा। कुछ ऐसे िवषय भी थे, जहाँ रा य ारा ि थित का समाधान करने के िलए चरम कदम िलए गए।
रा य बल समय के साथ िववादा पद मामल म भी उलझ गए और यहाँ तक िक कुछ तर पर फज मठु भेड़ करने के िलए भी
अ सर हए। यहाँ तक क राजनीितक दल भी इस तरह के अवैध एवं अलोकतांि क यवहार म िल पाए जाते ह जो सं थाओ ं
और राजनेताओ ं के म य क साँठ-गाँठ को दिशत करता है। िवशेषकर चनु ावी वातावरण म राजनेता रा य रचनातं को अपने
लाभ हेतु योग म लाते ह।
अरिव द वमा ारा िगर तारी, खोज, ज ती तथा िनवारक िनरोध क शि य से स बि धत रा य बल क काय णाली को सामने
लाया गया है– वह पाते ह िक आई.पी.सी. क कुछ धाराएँ रा य बल क पृ भिू म के आधार पर तािकक नह है। यह रा य पिु लस
को नाग रक को िनयिं त करने के िलए आव यकता से अिधक शि दान कर देता है, नाग रक अपराधी िस होने से पवू ही
रा य पिु लस के ती यवहार एवं कभी-कभी दडं का िशकार हो जाता है। मा सदं ेह के आधार पर एक िनद ष यि को स पणू
जीवन रा य के अ याचार का सामना करना पड़ जाता है। इसका सबसे मख ु उदाहरण आई.पी.सी. क धारा 124A िजसके
अतं गत िनद ष नाग रक एवं छा देश- ोही िस हो जाते ह। यह बाधा बनकर अनेक सामािजक कायकताओ ं को आपरािधक
मामल म सिं ल कर लेता है। लोकताि क िस ातं एवं मू य रा य के बल के सम अथहीन हो जाते ह जब काननू ही अ प

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प म हो। कभी-कभी िविभ न प रि थतय म रा य बल ारा मानव अिधकार का भी हनन िकया जाता है इसिलए कई बार यह
आव यक हो जाता है िक प रवितत समय के साथ काननू को पनु प रभािषत िकया जाए। तकनीक एवं जन संचार मा यम म
गित के साथ आव यक हो गया िक रा य के काननू को या सां कृ ितक िवकास एवं तकनीक उ नित के स दभ म िनिमत
िकया जाए। रा य कभी-कभी आई.पी.सी. का योग िविभ न वग पर उस तर तक करने म शािमल हो जाता है, जहाँ राजनीितक
दल ित ं ी को कमजोर करने क कोिशश करते ह। चनु ाव के दौरान अनेक राजनीितक दल जो स ा म होते ह अपने िवप को
हराने के िलए रा य बल का योग करते ह।
भारतीय रा य क कृ ित लोकतं एवं आिधप य के तक के म य क ित पधा से आकार ा करती है। एक ओर जहाँ लोकतं
के ित तक एक उ रदायी, लोकि य सरकार के िलए ार खोलता है, िजसके तहत असमान समाज म समानता एवं सश ु ासन क
आशा ा होती है। यह वतं ता आ दोलन एवं असमानता के संघष से िनकला मा एक आदश नह है, यह सावभौिमक
वय क मतािधकार, अ ितबंिधत राजनीितक ित पधा एवं िन प चनु ाव जैसे िविभ न वचन म समािहत है। एक सजग नाग रक,
वतं मीिडया तथा एक उ कृ राजनीितक ित पधा के िलए आव यक होता है िक लोकताि क राजनीितक रचनातं का
िनमाण िकया जाए। िजस से शासक के म य नाग रक क आशाओ ं के अनु प काय करने क इ छा शि का िनमाण िकया जा
सके । अगर चनु ाव के दौरान सरकार अपने वाद पणू करने म असफल होती है तो यह नाग रक असंतोष म प रवितत हो सकता है।
एक ऐसा समाज जहाँ अिधकतर मतदाता िनधन होते ह, वहाँ लोकताि क राजनीित से यह आशा क जाती है िक वह रा य शि
को िनधन के िलए ससं ाधन के िवतरण एवं सेवाओ ं हेतु िनदिशत कर। इस अथ म लोकतं आधा रत तक प रवतनकारी त व का
अतं हण करता है। भारतीय स दभ म, प रवतन का िवचार लोकतं क सं थान और यवहार दोन म बहत अिधक सचेत प से
बनाया गया था। एक रा य जो समाजवाद पर आधा रत होता है तथा जब वह उस प पर असफल हो जाता है तो वह आदं ोलन
क ओर अ सर हो जाता है जैसे अ ना हज़ारे आ दोलन ।
इ क सव शता दी के थम भाग म रा ीय सरु ा का वातावरण राजनीितक उ पीड़न के प म प रभािषत िकया जा सकता है।
रा य के िव गैर रा य िनगम के िविभ न प पर राजनीितक िट पणी क बहतायत के बावजदू उस सािह य क कमी रही जो
उ पीड़न के तं और मा यम के बीच अतं र प कर सके । अिधकतर गैर रा य आ दोलन जो रा य का घेराव करते ह उ ह उनक
रणनीितय से नह वरन कायनीितय से इिं गत िकया जा सकता है। अलगाववादी आतंकवाद और सामािजक आंदोलन को
मु यतः उनके राजनीितक उ े य के थान पर उनके ारा रा य को भािवत करने वाले तरीक से प रभािषत िकया जा सकता है।
सभी गैर रा यकता राजनीितक सहयोग नह चाहते ह, इसिलए िविभ न समहू कार के सभी उदाहरण पर िवचार नह जाता है यह
उपागम रा य के ि त राजनीितक उ पीड़न को भी पृथक् कर देता है, यह गैर रा यकताओ ं को ही िव लेषण क ाथिमक इकाई
मानता है। यह अ ययन राजनीितक उ पीड़न के सामा य िस ातं को योग म लाता है िजसका उ े य आतंकवादी समहू ,
अलगाववादी तथा सामािजक आ दोलन ारा े रत रणनीितय को प रवितत करना होता है। यह गैर रा यकताओ ं के रणनीितक
उ े य को उनके काय और उ े य से पृथक् करता है। जो अ सर गैर रा यकताओ ं के कार तथा लेबल के म य अतं र करने के
िलए उपयोग म लाया जाता है। यह आतक ं वाद, उ वाद और ितवाद, और सामािजक आदं ोलन के िवषय से सै ािं तक
ि कोण के तुलना मक िव लेषण के िलए भी अनमु ित देता है। िविभ न अ ययन म यह पाया गया िक िविभ न िवषय के गैर
रा यकताओ ं के राजनीितक उ पीड़न क सरं चना के प रभािषकरण म अित या ा क मह वपणू मा है। आतंकवाद और ित
आतंकवाद अ ययन म सामिू हक दडं एवं सहनशीलता लागत पर अिधक यान िदया जाता है, वह अलगाववादी अ ययन
कताओ ं म म य वैधता को लेकर तनाव पर के ि त होता है। तथा सामािजक आदं ोलन िस ातं राजनीितक उ े य , सामािजक
संपदा एवं रा य के िव एक तं को भािवत करने से संबंिधत होता है येक िवषय के अतं गत उ पीड़न के िलए एक िवशेष
श दावली है, जो अिधकतर उ पीड़न के साधन से स बि धत है। दि ण को रयाई लोकतांि क प रवितत रा य का एक ऐसा
उदाहरण हो सकता है जो बलपवू क शि का उपयोग कर रहा है। 1987 म सं थागत लोकतं ीकरण के बाद से, यह परंपरागत प
से ात है िक सरकारी ािधकरण समावेशी या िनजी िहसं ा के थान पर काननू या पिु लस बल के मा यम से अपनी शि का योग
कर रही है। दसू रे श द म, 1987 का लोकतं समथक आंदोलन लोकतांि क समेकन क िदशा म एक कदम रहा था। हालाँिक,
दि ण को रया म काननू क प ता के बावजदू रा य के उ पीड़न को िनरंतर बढ़ाया गया। इसका सव म उदाहरण दि ण को रया

109
म ‘The Law on Assembly and Demonstration’ संशोधन रहा, िजसने नाग रक को सरकारी कारवाई के िव सामिू हक
कारवाई करने का अिधकार दान िकया।
उ र–पूव भारत म राज ोह क सम या, ज मू -क मीर म रा य ायोिजत आतंकवाद और न सलवाद आ दोलन
पवू र भारत क मीर के बाद देश म सबसे अि थर और उ वाद भािवत जगह है। यह भारत का सबसे पवू भाग है। यह े आठ
रा य – मेघालय, मिणपरु , असम, िमजोरम, ि परु ा, अ णाचल देश, नागालड और िसि कम से बना है। वा तव म इस े म
बढ़ते उ वाद के कारण इसे भारत के मु य भाग से जोड़ना खतरे क ि थित को वृहद करता है। िविभ न उ वादी समहू ारा
भारतीय संिवधान के ावधान के अंतगत अिधक वाय ता क माँग क जाती है। इस कार के उ वादी आंदोलन क शु आत
भारत म 1947 के प चात् से ही आरंभ हो गई थी। एक समय पर पवू र भारत म 120 से अिधक उ वादी समहू या थे। गत
वष म भारतीय सरकार को इस े म थािय व ा करने म सफलता हािसल हई है। इसके िलए आपसी समझौते से लेकर सै य
कायवािहयाँ तक क गई ह। िफर भी यह े भारत का एक वलतं भाग है। एक समय पर पवू र रा य म उ वादी समहू ारा
अपनी शु आती चरण म अिवकास, कुशासन एवं क सरकार क अनदेखी के आधार पर समथन ा िकया गया था, िजसक
गत वष म कमी अनभु व क गई है। लेिकन इस बात को अनदेखा नह िकया जा सकता िक आज भी पवू र रा य म गैर सरकारी
उ वादी सरकार के िहत के िव गितिविधय को करने म सफल हो जाते ह। अलगाववादी गितिविधय क रोकथाम के िलए
सेना रा य पिु लस बल अधसैिनक बल का अिधक योग िकया जाता है। एक सश सेना क उपि थित ही रा य म उ वादी
गितिविधय क वा तिवकता को तुत कर देता है। क सरकार अपनी नीित के तहत रा य ारा िकए गए सरु ा संबंधी खच
क आपूित करती है। इसके ारा उ वािदय से िनपटने के िलए रा य पिु लस बल को आधिु नकृ त करने का काय भी िकया जाने
लगा है। आ चयजनक ि थित यह है िक पवू र रा य म 10000 लोग पर पुिलस का अनपु ात रा ीय तर के अनपु ात से भी
अिधक है। िमजोरम के अतं गत M.N.F क गितिविधय को िनयंि त करने के िलए सेना को हवाई हमले भी करने पर जाते ह।
िजस कारण आम नाग रक के म य िव थापन क सम या बनी रहती है। इसी कार क सैिनक कायवाही नागालड म भी नाग रक
मृ यु दर एवं िव थापन का मु य कारण है। 1990 के आरंभ म असम म य.ू एल. एफ.ए उ वािदय के िव ऑपरेशन राइनो तथा
ऑपरे शन बजरंग का आरंभ िकया गया। िजसने य.ू एल.एफ.ए. क गितिविधय को रा य से बाहर होने के िलए िववश कर िदया
था, लेिकन ऐसी सफलता अ य रा य म ा नह हो सक । मिणपरु जैसे रा य म उ वादी समहू आज भी अपने े म काननू का
अनपु ालन करवाते ह। ज मू क मीर के प चात् मिणपरु सबसे िहसं ा मक रा य है। आज भी मिणपरु एवं पवू र रा य रा ीय
नेताओ ं क नीित िनमाण के काय े से बाहर है। उदाहरण व प भारत-बां लादेश क 4,095 िकलोमीटर क सीमाओ ं को बदं
करने क गितिविध का काय, जहाँ से अनेक वािसय एवं उ वािदय को रोका जा सकता है, के काय क गित मदं ही रही है।
सरकार क सै य कायवाही का सफलता तर अिधक नह है। ऐसे म िवकासा मक प क अनदेखी इन े को मु यधारा से
जोड़ने म अवरोधक िस होती है। रा ीय एवं अतं ररा ीय मीिडया ारा भी इन े को मख ु ता नह दी जाती है। े के िवकास
के िलए भारत सरकार ारा बनाए गए एक अलग मं ालय ारा उपलि धयाँ यनू तम ह। 9 जून, 2015 को, भारत ने घोषणा क िक
उसने NSCN-K से संबंिधत िव ोिहय के िखलाफ सीमा पार से अिभयान चलाया था। भारत के अनसु ार, ऑपरे शन यांमार म
हआ था और यह मिणपरु के चंदल े िजले म डोगरा रेिजमट के हमले के जवाब म था। सटीक खिु फया सचू नाओ ं के आधार पर,
भारतीय वायु सेना और 21 PARA (SF) ने भारत- यांमार सीमा पार के दो िमिलटट िशिवर को न कर िदया, िजसम
NSCN(K) और KYKL शािमल थे। यह ऑपरे शन यांमार े के अंदर नागालड और मिणपरु सीमा के साथ दो थान पर
िकए गए थे। एक थान मिणपरु म उख ल के पास है। सेना ने नागा उ वािदय के दो पारगमन िशिवर पर हमला िकया।
आतंकवादी यि य और सपं ि को लि त करता है िजसे आमतौर पर यु के काननू के तहत सरं ि त माना जाता है। अलगाव
और ित अलगाववाद का िविभ न तर पर अ ययन करना चािहये। एक तरफ, क रपथं ी इ लामी त व ारा उ वाद क रे क
शि के प म आतंक, भारत के सबसे उ री रा य म िनरंतर जारी है। दसू री ओर, ऐसे िवषय को अ ययन करने से पता चलता है
िक भारत ने बहत अनभु व के बाद एक भावी िति या णाली िवकिसत क है। ज मू और क मीर म उ वाद भारतीय शासन
के िव िव ोह है क मीर े के दि णी भाग का एक े , जो 1947 से ही भारत और पािक तान के म य िववाद का िवषय
रहा है। ज मू और क मीर, अलगाववादी मह वाकां ाओ ं का एक जनन थल है, िजसे 1989 के बाद से िव ोह ारा िमटा िदया

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गया था। य िप ारंिभक असहमित क जड़ भारतीय शासन और लोकतं क िवफलता क म थी, लेिकन पािक तान ने भी
िवकिसत उ वाद को उ िे जत करने म मह वपणू भिू मका िनभाई। क मीर के कुछ िव ोही समहू पणू वतं ता का समथन करते ह,
जबिक अ य पािक तान म वेश चाहते ह। अिधक प प म कहे तो, उ वाद क जड़ थानीय वाय ता पर िववाद से संबंिधत
ह। 1970 के दशक के अंत तक क मीर म लोकतांि क िवकास सीिमत था और 1988 तक भारत सरकार ारा दान िकए गए
कई लोकतांि क सधु ार को पलट िदया गया था तथा असतं ोष य करने के िलए अिहसं क मा यम भी सीिमत थे िजसने भारत से
िहसं क अलगाव का समथन करने वाले िव ोिहय के समथन म वृि को ो सािहत िकया । जुलाई 1988 म, भारत सरकार पर
दशन और हमल क एक ंख ृ ला ने क मीर म उ वाद क शु आत क , जो 1990 के दशक के दौरान भारत म सबसे मह वपणू
आंत रक सरु ा का िवषय बन गया था ।
पािक तान सदैव अलगाववादी आंदोलन को अपना “नैितक और कूटनीितक” समथन देने का दावा करता है। पािक तान के
आईएसआई पर भारत और अंतरा ीय समदु ाय ारा ज मू और क मीर म हिथयार क आपिू त करने और मजु ािहदीन को
िशि त करने का आरोप लगाया गया है। 2015 म, पािक तान के पवू रा पित परवेज मुशरफ ने वीकार िकया िक पािक तान ने
1990 के दशक म िव ोही समहू का समथन और िश ण िदया था। भारत ने क मीर म अपने “सीमा पार आतंकवाद” को समा
करने के िलए पािक तान को बार-बार चेतावनी दी है । क रपंथी इ लामी िवचार वाले नए उ वादी समहू िफर भी उभर रहे है और
आदं ोलन के वैचा रक जोर को इ लामी रंग म प रवितत करते ह। यह आंिशक प से बड़ी सं या म इ लािमक “िजहादी”
सेनािनय (मजु ािहदीन) के कारण हआ था, जो 1980 के दशक म सोिवयत-अफगान यु के अंत के बाद क मीर घाटी म वेश
कर चुके थे। उ वािदय और भारतीय सेनाओ ं के बीच संघष म बड़ी सं या म लोग हताहत हए ह। िविभ न सश समहू ारा
लि त िकए जाने के प रणाम व प कई नाग रक भी मारे गए ह।
भारत म न सलवादी आदं ोलन का उ व पि म बगं ाल के एक छोटे से गाँव न सलबाड़ी से हआ है और इस तरह, इस आदं ोलन
ने अपना नाम हािसल कर िलया। 1967 के दशक म भारतीय क यिु न ट पाट (मा सवादी) के सद य के एक छोटे से समहू चा
मजुमदार, कानु सानयाल और जगं ल सथं ाल के नेतृ व म बड़े भू वािमय के िखलाफ एक सश संघष शु करने और जबरन
उनक भिू म को छीनने और भिू महीन के बीच िफर से िवत रत करने का फै सला िकया गया। सश सघं ष के िलए कानु सानयाल
ने जंगल संथाल से समथन क पहली आवाज ा क , जो उस समय िसलीगुड़ी िकसान सभा के अ य थे। 18 जून, 1967 को,
उ ह ने सश संघष को समथन देने का आ ान िकया और इस तरह भारत म एक िहसं क दौर शु हआ जो आज भी कई लोग
के जीवन पर अपना भाव डालता है। रा य सरकार और क सरकार क ारंिभक िति या यह थी क यह “कानून और
यव था” क सम या है और उनका मानना था िक यह िव ोह अ पकािलक होगा जो थोड़े समय म बल से कुचल िदया जा
सकता है। सरकार इस ि थित को समझने म परू ी तरह से िवफल रही और यह 13 जून, 1967, को त कालीन गृह मं ी Y.B.
Chavan ारा लोकसभा म िदए गए वा यांश से प हआ, जहाँ उ ह ने कहा िक यह काननू िवहीनता का मामला है और इसे
थानीय पिु लस बल ारा समािहत एवं कुचल देना चािहए। बाद म पवू धानमं ी मनमोहन िसहं ने चेतावनी दी, “न सलवाद
हमारी आंत रक सरु ा के िलए सबसे बड़ा खतरा है।” अतः 40 वष से आंदोलन के अि त व का ेय सरकार को जाना चािहए,
जो आंदोलन को बनाए रखने वाले कारण और ि थितय को संबोिधत करने म असामा य प से िवफल रही है। मु य सम या
न सल आंदोलन के कारण के बारे म भारतीय रा य क धारणा म रही है। सरकार ने न सिलय का सामना करने के िलए एवं
वयं को सश बनाने के िलए कई काननू बनाए ह। पि म बंगाल सरकार ने िव ोह को दबाने के िलए पि म बंगाल (िहसं ा मक
गितिविधय पर रोक) अिधिनयम 1970 लागू िकया। न सल आंदोलन का सामना करने के िलए िवशेष प से अब तक कोई
िवशेष रा ीय अिधिनयम नह बनाया गया है, लेिकन न सल िहसं ा पर अंकुश लगाने के िलए और अ सर न सिलय के प म
महु र लगाकर सहानभु िू त को लि त करने के िलए िविभ न ‘आतंकवाद िवरोधी’ कृ य का योग िकया गया है। हालाँिक, सरकार
के सभी यास के बावजूद, न सल आंदोलन ने अपना आधार बनाना जारी रखा है य िक ामीण गरीब और उ पीिड़क को यह
अपनी िवचारधारा के साथ संबंिधत कर के रखता ह। दसू रे श द म, इसक थापना, िवचारधारा, सार और िनवाह सामािजक-
आिथक कारक म गहराई से िनिहत है। सरकार ारा न सलवाद क सम या का समाधान करने हेतु गृह मं ी और कुछ
मु यमंि य क अ य ता म ‘एक सश मं ी समहू ’ का गठन िकया है। 2004 म गैर-काननू ी गितिविधयाँ रोकथाम अिधिनयम
(UAPA), 1967 के तहत सरकार ने भारतीय क यिु न ट पाट (मा सवादी-लेिननवादी) - पीपु स वार और उसके सभी सबं
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व प और माओवादी क यिु न ट सटर (MCC) और उसके सभी सगं ठन पर ितबंध लगा िदया था। सरकार ने एक टा क फोस
का भी गठन िकया है िजसम न सल भािवत े के नोडल अिधकारी शािमल ह गे और आईबी, एसएसबी और सीआरपीएफ
के अिधकारी शािमल ह गे। एक सम वय क भी है जो 1998 म क ीय गृह मं ी क अ य ता म न सल भािवत े के मु य
सिचव और डीजीपी के साथ न सल गितिविधय को िनयंि त करने के िलए उठाए गए कदम के सम वय के िलए थािपत िकया
गया था। सरकार ने वामपंथी उ वाद से सामना करने के िलए एक प योजना बनाई है। इसने न सलवाद क सम या को हल
करने के िलए दोतरफा रणनीित तैयार क है।
गैर रा यकताओ ं को िनयिं त करने के िलए िविभ न अिधिनयम एवं ावधान
भारतीय दंड सिं हता क धारा 124A म राज ोह के िलए दडं िदया जाता है। भारतीय दडं संिहता 1860 म औपिनवेिशक शासन के
तहत अिधिनयिमत क गई थी। धारा 124A संिहता के अ याय VI का िह सा है जो रा य के िखलाफ अपराध से संबंिधत है।
अ याय VI म 121 से 130 तक के खंड शािमल ह, िजसम धारा 121A और 124A को 1870 म पेश िकया गया था। भारत म
त कालीन ि िटश सरकार को डर था िक भारतीय उपमहा ीप पर मिु लम चारक सरकार के िखलाफ यु छे ड़ दगे। स पणू
ि िटश राज म, इस खंड का योग लोकमा य ितलक और महा मा गाँधी सिहत वतं ता आंदोलन के प म कायकताओ ं को
दबाने के िलए िकया गया था, दोन को ही इस ख ड के अंतगत दोषी पाया गया और कै द हई। इस खडं क वतं भारत म भी
आलोचना हई, य िक यह भाषण और अिभ यि क वतं ता के अिधकार म बाधक बनने का काय करता है । भारत म
अिधकारी आज धारा 124A का योग असहमित के दमन के िलए कर रहे ह। धारा 124A िकसी को भी अपराधी बनाता है, जो
“श द के मा यम से, या तो िलिखत या बोला जाता है, या सक ं े त ारा, या य ितिनिध व ारा, या अ यथा, घृणा या
अवमानना, या उ ेजना लाने या सरकार के ित अ भाव को उ िे जत करने का यास करता है”, यहाँ अ यव था/ अ भाव श द
का अथ है– “वैमन य और दु मनी क सभी भावनाओ”ं के प म िलया गया है । राज ोह कानून का दु पयोग भारत म िकसी एक
राजनीितक दल के िलए िविश प से योग नह होता है। वतं ता के बाद से, कई लेखक , कायकताओ ं और काटूिन ट को
देश भर म सरकार ारा वैध आलोचना के जवाब म देश ोह के आरोप म सि मिलत िकया है। 1962 म के दार नाथ िसहं बनाम
िबहार रा य के मामले म, भारत के सव च यायालय ने, 124ए क सवं ैधािनक वैधता को बरकरार रखते हए, फै सला सनु ाया िक
िकसी यि पर मक ु दमा चलाया जा सकता है यिद वे "िहसं ा या िहसं ा करने के इरादे के िलए उकसाता ह या सावजिनक
अ यव था पैदा करता ह या “सावजिनक शािं त” को भंग करने का काय करता है । िपछले वष के आर भ म, देश ोह क वैधता
का िनधारण करने के अपने तीसरे यास म, भारतीय िविध आयोग ने देखा िक िकसी भी लोकतं म असहमित आव यक है,
काननू वतन एजिसय को देश ोह काननू का उपयोग िववेकपणू तरीके से करना चािहए । इसके अित र , यह भी माना गया िक
सु ीम कोट के िलए राज ोह काननू के ावधान क या या करना आव यक है । रपोट म यह भी कहा गया है िक यनू ाइटेड
िकंगडम ने लगभग एक दशक पहले ही देश ोह पर अपने वयं के काननू को समा कर िदया था। हालाँिक भारतीय िविध आयोग
क शि याँ के वल सझु ाव और िसफा रश दान करने तक सीिमत ह इसिलए भारत क संसद, सरकार का काननू बनाने वाली
सं था, और यायपािलका, मानवािधकार के संर क आिद को इस ावधान के औिच य पर िफर से िवचार करना चािहए। सरकार
के िखलाफ असतं ोष के िलए परु ातन काननू के अंधाधंधु उपयोग के साथ, कई लोग ने भाषण और अिभ यि क वतं ता के
मौिलक अिधकार पर इस तरह के मनमाने ितबंध के िखलाफ आवाज उठाई है, जो भारत के सिं वधान के तहत दी गई है। भारत
म स ा ढ़ दल के रकॉड को देखते हए यह प सामने आता है िक आलोचना के ित असिह णतु ा क देश म एक वृि िदख रही
है, िजसम अिधका रय ने अ यव था और रा -िवरोधी भावनाओ ं क आड़ म वतं अिभ यि के दमन पर जोर िदया है।
2015 म, सचू ना ौ ोिगक अिधिनयम 2000 क धारा 66ए, िजसने ऑनलाइन भाषण को “घोर आपि जनक”, मानकर
अपराधीकरण क ेणी म िकया गया, पर तु ऐसे श द क अ प ता के कारण बाद म इसे असवं ैधािनक करार िदया गया था।
भारत के सव च यायालय ने माना िक भाषण पर कोई भी ितबधं के वल भारत के सिं वधान क धारा 19 (2) के तहत उिचत
माना जा सकता है। बाद म राज ोह काननू क प प रभाषा के आभाव म है तथा ि या मक सरु ा उपाय क कमी के साथ,
सव च यायालय ने िफर से तक िदया है िक राज ोह वाले श द या काय से सावजिनक यव था को खतरा हो सकता है या
िहसं ा भड़क सकती है, इसिलए वतं अिभ यि पर एक उिचत ितबधं होना चािहए है। समय के साथ देश ोह काननू म

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संशोधन करने या अतीत के इस अवशेष को िनर त करने क माँग बढ़ रही है। हालाँिक, सव थम यह सिु नि त करने के िलए
णालीगत खािमय को पहले से ही दरू करने क त काल आव यकता है तािक िक इन काननू का दु पयोग न हो तथा भारत म
वतं अिभ यि का वतं प से योग िकया जा सके ।
सश बल िवशेष शि अिधिनयम 1958 म अिधिनयिमत िकया गया था जो आज भी कई उ र-पवू रा य और ज म-ू क मीर
म नाग रक के कई िवरोध के बावजदू लागू है। 1974 म COFEPOSA, 1971 म MISA और रा ीय सरु ा अिधिनयम
1980 आिद जो रा य के िखलाफ यु छे ड़ते िव ोिहय और अ य गैरकाननू ी गितिविधय को दबाने के िलए अिधिनयम का ही
भाग है । सोलहवाँ संशोधन अिधिनयम 1963 के तहत रा य को मौिलक अिधकार -19 (1) (ए), (बी), (सी) आिद को भारत क
सं भतु ा और अखंडता के िहत के आधार पर 'सीिमत सीमा' के संबंध म काननू बनाने का अिधकार ा है । 1967 म, अनलॉफुल
एि टिवटीज (ि वशन) ए ट (UAPA) पा रत िकया गया था, िजसने क ीय कायकारी को उन लोग के िखलाफ मक ु दमा चलाने
के िलए अ सर िकया, जो िकसी भी अलगाववादी गितिविधय जैसे श द या संकेत के मा यम से गैरकाननू ी गितिविधय और
संगठन म शािमल थे। UAPA के अलावा कई अ य काननू ह जो िविभ न रा य म लागू िकए जा रहे ह जैसे िक MCOCA,
AFSPA और CSPAS। एक अ य उ लेखनीय अिधिनयम आतंकवादी और िवघटनकारी गितिविधयाँ (रोकथाम) अिधिनयम
(TADA) था जो 1985 म पंजाब म खािल तान आदं ोलन क पृ भिू म म लागू िकया गया था। 1995 तक TADA परू े भारत म
लागू िकया गया था। 2002 म, आतंकवाद िनरोधक अिधिनयम (POTA) तब सामने आया जब िव व यापार क पर
आतंकवादी हमला हआ और भारत क ससं द पर हमला हआ।
िन कष
य िप उ पीड़न शि नाग रक वतं ता के िलए कभी-कभी सक ं ट क ि थित उ प न कर देती है, परंतु िफर भी सि नकट संकट के
समय यह लाभकारी िस होती है। अनेक आतंक समूह एवं अलगाववादी आंदोलन भारत के सदं भ म देखे जा सकते ह ऐसे म
रा य का उ रदािय व बन जाता है िक वह अपने अिधकार े म िनवािसत लोग को इन सक ं ट से सरु ा दान कर। शि सदैव
अनपु ालन पर आधा रत होती है। परंतु यह रा य क वैधता को भी कम कर सकती है। जैसे माता-िपता को कभी-कभी ब च क
गलितय को सधु ारने के िलए उ ह दंड भी देना पड़ जाता है। इस ही कार उ पीड़न भी संकट क ि थित म लाभ द िस होता है,
जब सक ं ट का तर ऊँचा हो जाता है। रा य कई बार िहसं ा एवं शि का योग उन नाग रक पर भी करता है जो काननू क
अवमानना करते ह परंतु आतंकवाद के िलए योग म लाया गया तं उस मापदडं से अलग होना चािहए जो िकसी नाग रक के
काननू उ लंघन क ि थित म योग म लाया जाता है। उ पीड़न शि हालाँिक शंसनीय है, परंतु कुछ प रि थितय म यह
अनपु योगी भी होती है। काल ड्यवू ाच यवहार क “ वाय ाियकता” क ओर इिं गत करते हए कहते ह िक खतर का ता पय
लोग से है यहाँ तक िक सबसे ती और िव वसनीय खतरे भी लोग को सीखने से नह रोक सकते ह ना ही वह सामािजक
ांितय से क सकते ह। सबं िं धत कारक आव यकता और यवहार के िलए ेरणा है जो खतरे को ितबंिधत करने के िलए योग
िकए जाते ह। अगर िव तृत प म कहे तो यि छ क रोकने म असहाय हो सकता है य िक एक यि म छ क रोकने का
साम य न हो। एक यि को दमनकारी शि से रोकना किठन हो सकता है य िक आ म िनणय क शि का तर भय से
अिधक होता है। थम ि थित म मानव िनयं ण से परे था वह दसू री ि थित म मानव ारा वयं अनपु ालन का उ लंघन िकया
गया। आइजनहाट के श द म हर बंदक ू जो बनती है, हर यु पोत जो ेिपत िकया जाता है हर पे ा जो छोड़ा जाता, अतं
प म वह चोरी है, उनसे जो भूखे ह जो सद म है तथा जो िनव ह।
उ पीड़न शि ारा भारी मा ा म सामािजक आिथक राजनीितक एवं संरचना मक िवनाश होता है। जब यि रा य क शि के
अंतगत अनपु ालन करने के िलए िववश होते ह, तब भी वा तिवक इ छा िनयं ण से मु होती है। जब रा य क उपेि त होगा, तो
लोग उस अवसर को पा कर आ ामकता क ओर अ सर ह गे।
भारत एक लोकतािं क रा है जहाँ लोग कुछ वतं ता और अिधकार का आनदं लेते ह, के वल वतं ता और अिधकार के
योग के िलए रा य का ह त ेप अनिु चत है जबिक सवं ैधािनक ावधान के कुछ ऐसे भाग ह िज ह समाज म प रवतन और
सां कृ ितक उ नित के अनु प सश
ं ोधन क आव यकता है। लोकतं , जो सहमित पर आधा रत है वहाँ रा य के नेताओ ं को बल

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के उपयोग म िववेकपणू होना चािहए, अ यथा रा य क ि थरता को नक
ु सान हो सकता है। नाग रक वतं ता के अ यास को
सीिमत करने के िलए रा य साधन का बार-बार उपयोग उ च यायालय और सव च यायालय जैसे कानून सं थान ारा िकया
जाना चािहए। भारत म, जब याय पाने के िलए िवधायी और कायकारी अथ समा हो जाएँग,े तब भी हमारे पास लोग क
िशकायत पर अंितम श द रखने के िलए एक काननू ी सं थान है।
मह वपूण न :
1. वणन कर िक िकस कार से रा य न सल आ दोलन के सबं ंध म गैर-रा यकताओ ं पर अंकुश लगाने के िलए अपने तं
का उपयोग करता है ।
2. पवू र भारत और ज मू क मीर म उ वाद सम या को िनयिं त करने के िलए सरकार ारा उठाए गये िविभ न उपाय
पर चचा कर ।
3. नाग रक के अिनयिं त यवहार को हतो सािहत करने के िलए िविभ न अिधिनयम एवं संवैधािनक काननू पर सं ेप म
चचा कर ।
4. आई. पी .सी क धारा 124A के स दभ म चचा कर िक िकस कार से ि िटश उपिनवेशी शासन ने आधिु नक भारतीय
रा य क काय णाली को भािवत िकया है ।
अिधगम अनवु तन
अ याय के अतं म छा िन निलिखत िवषय क समझ रख पाएँग–े
 रा य एवं गैर रा यकताओ ं म िवभेद ।
 उ पीड़न के स दभ म रा य क कृ ित ।
 नाग रक के अिनयंि त यवहार का दमन करने के िविभ न तं ।
 आतंकवाद एवं राज ोह के िव संवैधािनक और वैधािनक मापदडं ।
 राज ोह कानून एवं सरकार ारा इसका योग।
 न सलवादी आ दोलन
 उ र-पवू भारत म राज ोह क सम या, ज म-ू क मीर म आतंकवाद
स दभ सच
ू ी
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