उड़ने की राह जब जब देखि तब पत्थर मार कर किसी ने गिरा दिया
मेरे पंखो को हवा पसंद थी
पर हवा का रुख कही और था मैंने जितनी कोशिश की इन्हे फड़फड़ाकर हवा से गले लगने की उसने उतनी ज़ोर से मुझे जमीन पर पटका
मुझे मेरे यार से लगाव था,
मै जितने बार गुनगुनाया गीत उसके लिए जितनी बार पँख फड़फड़ाए उसके लिए उतनी बार उसने मुझसे दूर जाना चाहा शायद उसे मेरे गीत पसंद नहीं आये
मै एक घायल परिंदा हूँ
मेरे शरीर पर जितनी चोट की निशानिया है उससे कई ज्यादा घाव मेरे भीतर है मैंने कभी किसी का बुरा नहीं सोचा मैंने कभी किसी से मुँह नहीं मोडा पर न जाने क्यों, पत्थर सब मुझ पर हीं फे कते है
मै एक घायल परिंदा हूँ
दुनिया ने ऐसा जाल बिछाया मै उससे नहीं बच पाया मेरे पंखो में अटकी सारी डोरिया मुझे कसकर पकडे मुझसे यही कह रही थी की उड़ना तुम्हारी किस्मत में नहीं
मै इस दुनिया से तंग आ गया हूँ
मैंने इसके लिए गाने गाये मैंने इसके लिए ऊँ चा उड़कर सपने दिखाए मैंने इसके लिए अपना सब निछावर कर दिया
मै इस दुनिया से नाराज हूँ
मेरे पँख अब शायद कभी आसमां छू नहीं पाएंगे मेरे बोल अभी कभी सुरीले नहीं होंगे