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Aparna
Aparna
निरुक्ति :-
व्रण गात्र विचण
ू ि
ण े, व्रणयिीनि व्रणः ।
( सु.चच.1/6)
व्रण अर्थात ् गथत्र कथ विचण
ू न
ा , अत: विचण
ू न
ा होने को व्रण कहते है !
परिभाषा :-
िण
ृ ोनि यस्माद् रूढे ऽवप व्रणिस्िु ि िश्यनि।
आदे ह धािणात्तस्माद् व्रण इत्यच्
ु यिे बध
ु ः।
(सु.सू. 21/40)
भेद :-
द्िौ व्रणौ भििः - शािीिः, आगन्िश्ु च ।
(सु.चच. 1/3)
व्रणों के दो भेद होते है :
१.ननज व्रण
२.आगन्तुक व्रण
निज व्रण :-
ियो शािीिः पििवपत्तकफशोणणि सक्न्िपािनिममत्तः ।
(स.ु चच. 1/3)
(च.चच २५/१०)
अपने अपने हे तु से दवु ित हुए िथत,वपत्त, कफ़ दोि बथह्य मथगा में
आश्रित होके रोगी के शर र मे ननज व्रणो को उत्पन्न करते है!
व्रण िस्िु :-
त्िङमांसमसिास्िाय्िक्स्िसक्न्धकोष्ठममाणणीत्यष्टौ व्रणिस्िूनि ।
अत्र सिणव्रणसक्न्ििेशः ।।
(स.ु स.ू 22/3)
➢ त्िक्
➢ मथींस
➢ ससरथ
➢ स्नथयु
➢ सींश्रि
➢ कोष्ठ
➢ ममा
आचथया चरक ने आचथया सि
ु ुत के सींश्रि के स्र्थन पर मेद को व्रण के
स्र्थनों में मथनथ है!
व्रण आकृनि :-
➢ आयत (rectangular)
➢ चतष्ु कोण (square)
➢ गोल (circular)
➢ त्रत्रकोण (triangular)
दष्ु ट व्रण:-
(सू.स.ु २२/७)
➢ िथतज
➢ वपत्तज
➢ कफज
➢ रक्तज
➢ सननपथतज़
➢ आगन्तुज
लक्षण :-
➢ अनतसींित
ृ
➢ अनतविित
ृ
➢ अनतकठीन
➢ अनतमद
ृ ु
➢ उत्सन्न
➢ अिसन्न
➢ अनतसशत
➢ अनतउष्ण
➢ उन्मथगी
➢ पनु तपय
ू थस्त्रथिी
➢ उत्सींगी
अशुद्ध १५ शुद्ध १
(स.ु चच.१/७)
➢ िािज व्रण :-
श्यथि,अरुण,तनु,शीत,रूक्ष,आयथम,भेदन,िेदनथ
➢ वपत्तज व्रण
क्षक्षप्र,वपत्तनीलथभ ,दथह,पथक,रथग
➢ कफज व्रण
स्र्ूल ओष्ठ, कहठन,शुक्ल,शीत,सथींद्र,गुरु
➢ ितिज़ व्रण
रक्तस्रथिी,वपत्त लक्षणों से युक्त
➢ िािवपत्तज व्रण
वपत्त अरूणथभ,िथत वपत्त के स्रथि िथलथ
➢ िािश्लेष्म व्रण
रुक्ष,गुरु,दथरुण,कण्डूयनशील,अल्पस्रथिी
➢ वपत्तश्लेष्म व्रण
गरु
ु ,सदथह,उष्ण
➢ िाििति व्रण
रूक्ष,तनु,तोद
➢ वपत्तिति व्रण
मद
ृ ,ु विसपी,उष्ण
➢ श्लेष्मिति व्रण
गरु
ु ,स्स्र्र,स्स्नग्ि
➢ .िािवपत्तिति व्रण
तोद,दथह,िूमथयथन
➢ िािश्लेष्मिति व्रण
कण्डू,सफूरन,पथण्डुरक्तघण स्रथिी
➢ वपत्तश्लेष्मिति व्रण
दथह,पथक,रथग
➢ िािवपत्तकफ व्रण
त्रत्रविििणा िेदनथ
➢ िािवपत्तकफिति व्रण
ननदाहन,ननमार्न,तोद,पथक,रथग
➢ शुद्ध व्रण
मद
ृ ,ु स्स्नग्ि,श्लक्षण
व्रण स्राि :-
(सु.सू.२२/९)
अचधष्ठाि के अिुसाि :-
४.स्नथयु : स्स्नग्ि
घन
५.अस्स्र् : मज्जथयक्
ु त
स्स्नग्ि
६.सींश्रि : वपस्छिल
अिलम्बी
७.कोष्ठ : रक्त , मूत्र
व्रण स्राि दोषािस
ु ाि:-
त्िचा
• िथत : परुि
• वपत्त : गोमेदक
• रक्त : गोमेदक
• कफ : निनीत
• सस्न्नपथतज : नथररकेलोदक
मांस
• िथत : श्यथि
• वपत्त : गोमत्र
ू
• रक्त : गोमूत्र
• कफ : कथससस
• सस्न्नपथतज : एिथारुक रस
मसिा
• िथत : अिश्यथय
• वपत्त : भसम
• रक्त : भसम
• कफ : मज्जथ
• सस्न्नपथत्ज : कथींस्जक प्रसथद
स्िायु
• िथत : दश्रिमस्तु
• वपत्त : शींख
• रक्त : शींख
• कफ : वपष्ट
• सस्न्नपथतज : आरूकोदक
अक्स्ि
• िथत : क्षथरोदक
• वपत्त : किथयोदक
• रक्त : किथयोदक
• कफ : नतल
• सननपथतज : वप्रयींगफ
ु ल
संचध
• िथत : मथींसिथिन
• वपत्त : मथस्विक
• रक्त : मथस्विक
• कफ : नथररकेलोदक
• सस्न्नपथतज : यकृत
कोष्ठ
• िथत : पुलकोदक
• वपत्त : तैल
• रक्त : तैल
• कफ : िरथहिसथ
• सस्न्नपथतज : मुदग यूि
व्रण गंध :-
(सु.सू.२८/९-११)
• २प्रकथर :-
➢ प्रथकृनतक गींि
➢ अप्रथकृनतक गींि
प्राकृनिक गंध :-
• िथत से कटु गींि
• वपत्त से तीक्ष्णगींि
• कफ से आमगन्ि
• रक्त से लोहगींि
• सथननपथत से समश्रित गींि
अप्राकृनिक गंध
मरणोमुख रोगी के व्रणो से मद्य, अगुरु , घत
ृ , चमेल के
पुष्प,कमल, चींदन,चींपथ इनके समथन गींि तर्थ हदव्य गींि आती है !
व्रण िेदिा (स.ु सू.२२/११)
१.िािज िेदिा :
• तोदन
• भेदन
• तथड़न
• िे दन
• मींर्न
२.वपत्तज िेदिा :
• ओि
• चोि
• पररदथह
• िम
ू थयनथनन
३.कफज िेदिा :
• कण्डू
• गरु
ु त्ि
• सुप्तत्िम
• उपदे ह
४.ितिज िेदिा :
• वपत्त के सथमथन
५.सनिपािज िेदिा:
• समश्रित लक्षण
व्रण का िणण :-
(सु.सू.२२/१२)
िथत के द्िथरथ दवु ित व्रण भस्म, कपोत, अस्स्र् के समथन िणा िथलथ,
अरुण और कृष्ण होतथ है
समश्रित लक्षण
व्रणो की साध्यिा-असाध्यिा:-
(सु.सू२३)
सुख साध्य :
• िय:स्र्
• दृढ़ शर र िथले
• प्रथणशस्क्त िथले
• सथस्त्िक परु
ु िों िथले
कृच्छ साध्य :
• कुष्ठ रोगी
• वििों से व्यथप्त
• शोि रोगी
• मिुमेह से पीडड़त
• िद्
ृ ि रोगी
• कृश रोगी
• अल्प प्रथणशस्क्त
यातय
• अिपथहटकथ
• ननरुद्ि प्रकश
• उरू: क्षत
• विसपा
• ससक्तथ मेह
• त्िग दोि
• उदर रोग
• शकारथमेह
असाध्य
• अणुमुखथ
• दरू दशानथ
• प्रसेककनो
• सशर: कींठस्र्थ:
शुद्ध व्रण :-
क्जह्िािलाभो मद
ृ ःु क्स्िग्धः श्लक्ष्णो विगििेदिः सव्ु यिक्स्ििो
नििास्त्राश्चेनि शुद्धो व्रण इनि।
(सु.चच. 1/7)
• जो व्रण िथत , वपत्त और कफ से रहहत हो !
• स्जसके ओष्ठ श्यथि िणा के हों !
• स्जसमें वपड़कथयें यथ मथींसथकुर !
• िेदनथ तर्थ स्रथि से रहहत हों !
िोहहि व्रण :-
रूढित्र्मािमग्रक्न्िमशूिमरुजं व्रणम ्।
त्ितसिणं समिलं सम्यग्रूढं विनिहदणशेि ्।।
(सु. स.ू 23/20)
• जो व्रण भर गयथ हों
• स्जसमें ग्रींश्रर् न हो
• शोर् न हो
• िेदनथ से रहहत
दोषप्रकोपाद् व्यायामादमभघािादजीणणिः ।
कुयाणि ् क्रोधाद्भयाद्िाऽवप व्रणो रूढोऽवप दीयणिे ।।
(सु. स.ू 23/21)
• िथत,वपत्त और कफ दोिों के प्रकोप से
• व्यथयथमसे
• असभघथत से
• अजीणा से
• क्रोि से
व्रण का चचककत्सा मसद्धांि
• िथतजन्य : सींिैि,त्रत्रित
ृ
• वपत्तजन्य : त्रत्रित
ृ ,हररद्रथ
• कफजन्य : नतल,दीं ती
उपद्रि
ज्ििानिसािौ मच्
ू छाण च हहतकाच्छहदणििोचकः ।
श्िासकासाविपाकाश्च िष्ृ णा च व्रणणिस्य िु ।।
(सु. चच. 1/139)