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ऐमोनियम कार्वोनिकम (4॥70ाएया (एशरए 5 णांसाफ) ८७

(६) इस ओषधि के अन्य लक्षण--

ठ. सत्री-असग करते समय दमे का दौर पडना इसका विलक्षग-लक्षण है।

म मेरु-दण्ड के प्रदाह (5 फपशों वर्माद्वाणा) से जो लोग


रोग-प्रस्त हैं उनकी स्नायविक-खासी (!पशए० 7 ५ ००एष्टॉ)), डकार आदि
में इस से लाम होता है। यह स्तायु-प्रघान दवा है ।

४। अगुली, बाह आदि किसी एक अगर का सुन्तपना ।

ए दूसरो के बीच में जाने से रोगी परेशान हो जाता है ।

(७) शक्ति--२ या ३ शक्तियो का वार-वार प्रयोग किया जा सकता


है। सायकारू इस औषधि को नही देना चाहिये, इससे रोग बढ सकता
है। यह व्हेल मछली से निकलता है और नोसोड (]४०५०१०) है।

ऐमोनियम कार्बोनिकम

(52/90]जाश/ ९७२ 80 स८टए५)

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व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग

(१) स्थूल-काय स्त्रियां जिन्हें ऐमोनिया कार्व


सूधने को आदत पड जाती है
(२) दमेवाल्ा इवास-कष्ट, शीत-प्रघान रोगी
दमे के कष्ट मे भी ठंडी हवा चाहता है
(३) कफ के कारण इवास-कष्ट
(४) इन्फलुएनजा के वाद की बचो खांसी
(५) ऐमोनिया कार्व के स्राव तीखे और लगने
वाले होते हैं
(६) रज काल मे जननागों की भीतरी दुखन
(७) मासिक धर्म जल्दी, बहुत अधिक खून,
काला खून तथा खून के थक्‍के होना
(८) रजोधमं होने से पहले दिन हुँज़े के -से वस्त
(९) प्रात काछ ३ बजे रोग का बढ़ना
(१० लूंके सिस तथा ऐसोनिया कार्य का संबंध

॥09#-प्रपरछू 5
प्रकृ ति
लक्षणों मे कमी (छेशा60
*दबाने से रोग मे कमी
>पेट पर लेटने से कमो
+पीड़ा-प्रस्त अंग की तरफ
लेटने से रोग मे कमी

लक्षणों मे वृद्धि (०४०)


+ठंड, नमी या बदली यालि
दिन रोग का बढ़ना

*खुली हवा से रोग बढ़ना

#तीन चार बजे प्रात: बदना


*रजोघर्म के दिनों में बढ़ना
अस्नान से रोग का बढ़ना
*सोने के वाद रोग बढ़ना

(१) स्थूल-काल स्त्रिया जिन्हें ऐमोनिया कार्ब सूंधे की आदत पड

जातो है---एलोपैथ उन रोगियो को जिन्हें हृदय के रोग के कारण श्वास-कष्ट


प्रतीत-होता है, सूघने के लिये ऋ्र ड ऐसोनिया कार्ब दिया करते हैं। प्राय स्त्रिया
ऐसोलिया कार्य की बोतल पास रखती हैं और श्वास-कष्ट मे इसे सघा करती हैं ।

८८ होम्योपथिक औषधियो का सजीव-चित्रण

अत्यन्त कमजोरी, कठिन श्वास, ऐसा लगता है कि हृदय काम नही करेगा । रोगी
हृदय की घड़कन से विस्तर पर लेटा रहता है और ज़रा-भी हिछने-जुलने मे उसे
सांस छेने मे कष्ट होता है। असल में उसे और-कु छ नही, के वल कमजोरी होती
है, किसी दवा से लाम होता प्रतीत नही होता । औषधियो की प्रतिक्रिया होती नही
दीख पडती । ऐसे रोगियो को प्राय आसतम करने को कहा जाता है | डा० के न्ट
ने ऐसी एक रोगिणी का ज़िक्र किया है जो कमी एक विद्येषज्ञ के पास, कमी
दूसरे विशेषज्ञ के पास ठक्करें खाती रही । उसे शक्तिकृ त ऐमोनिया कार्द को
एक मात्रा ने ही स्वस्थ कर दिया ।

डा० गुएरेन्सी लिखते हैं कि यह औषधि उन स्त्रियो के लिये बहुत उपयोगी


है जो कफ़ प्रकृ ति की होती हैं, स्यूछ-काय, कमज़ोर, ज़रा-सी देर में वेहोश हो जाने-
वाली, जिन्हें अपने को सचेत रखने के लिये ऐमोनिया कार्बे, कम्फर, कस्तूरी
सूघनी पडती है या अलकोहल लेना पडता है।

(२) व्मेबाला श्वास-कष्ट (/80॥790 0980769) , शीत-प्रघान


रोगी दसे के कष्ट से भी 5ंडी हवा चाहता है--इस रोगी के दमे का विलक्षण
(?८०णाक् ) लक्षण यह है कि अगर कमरा गर्म हो तो मी इस शीत-
प्रधान रोगी का श्वास-कष्ट बढ जाता है, मालूम होता है गला घुट जायगा, मानो
हवा के अभाव में रोगी मर जायगा वह शान्ति के लिये ठडी हवा में जाता है ।
घ्यान रखने की वात यह है कि गर्म हवा मे इवास-कष्ट बढ जाता है, परन्तु रोगी
अपनी प्रकृ ति से, शारीरिक अनुमूति से तो ठड से डरता है, परन्तु दमे में गर्मी से
डरता है। शरीर की शिकायतें, सिर-ददें तो ठड से कष्ट पाते हैं, परन्तु
श्वांस-कष्ट में रोगी ठडी हवा से अपने को अच्छा अनुमव करता है ।

(३) कफ के कारण इयास-कष्ट--इस औषधि में कफ के लक्षण वहुत


पाये जाते हैं। छाती मे और श्वास-प्रणालियो मे फफ खडकता है । इसी कफ
के अटकने के कारण सास लेने मे मारीपत अनुभव होता है । छाती मे इतना
कफ भर जाता है कि निकलूता ही नही । क्षय-रोग की अन्तिम अवस्था मे जब
फे फडे कफ से भर जाते हैं, यह औषधि कष्ट को कु छ कम कर देती है । छाती मे
कफ मर जाना स्टेनस की तरह का इसमे भी होता है। रोगी इतना कमज़ोर होता
है कि जोर से खास ही नहीं सकता, एन्टिट टाई को तरह कक बाहर निकाल हो
नही सकता । रोगी ठड सहन नही कर सकता, ठडी हवा मे घमना नहीं चाहता ।

(४) इन्फलुएनजा के बाद बच रहनेवाली खासी--डा ० यूनान ने लिखा


है कि उन्हें इन्फलएनज़ा हो गया और उसके वाद जो बची हुई खासी थी वह किसी
दवा से ठीक नही हुई। साधारणत ब्रायोनिया से उसे ठीक हो जाना चाहिये
था, परन्तु वह भी काम नहीं करता था । कई रात उन्होंने वेचेनी से काटी ।
उमके बाद उन्होंने ऐमोनिया कार्द २०० की एक मात्रा ली जिससे सव रोग एकदम

ऐमोनियम कार्बोनिकम (6ैगग्रातणगराणा) (8 ४०ालाय). ८९

शान्त हो गया । वे लिखते हैं कि इस अनुभव के बाद इन्फलुएनज़ा से बची हुई


खासी में वे सदा इस औषधि का प्रयोग करते रहे और उन्हें सदा सफलता मिली ।

(५) ऐमोनिया कार्ब के स्राव तीखे और रूगनेवाले होते हैं--ऐसोनिया


कार्य के सव प्रकार के स्राव तीखे होते हैं, लगनेवाले, खाल को छील देनेवाले ।
नाक से जो पानी बहता है उस से होठ छिल जाते हैं, मुख का सेलाइवा होठ को बीच
में से काट डालता है, होठो के दोनो सिरे छिल जाते हैं, कटे-से हो जाते हैं । रोगी
होठो की त्वचा को छीलता रहता है, वे सूखे रहते हैं, छिलके दार । आख के पानी
से आखें जलती रहती हैं, मानो छिल रही हो । पाखाना भी त्वचा को लगता है ।
स्त्री के गुह्याग भी दुखने लगते हैं, मानो पक रहे हो । यह भी वहा के ज्नाव के
लगने के कारण होता है। रूगनेवाला प्रदर दु ख देता है । अगर शरीर पर कोई
घाव हो जाता है तो उसमे से भी लूगनेवाला स्राव बहता है। यह लगना, त्वचा
को छील देना (8 २० 07 क्वा0ा ) इस औषधि के स्नावो की विशेषता है।

(६) रज काल में जननागो की आम्यन्तरिक दुखन (500 ९ 8$ )---


स्त्री का सपूर्ण आम्यन्तरिक जननाग दुखने लगता है, ऐसे लगता है जैसे जननागो
के भीतर गहरी दुखन है । यह दुखन बहुत गहरी होती है । इस दुखन का अभि-
प्राय सिर्फ स्पर्श-असहिष्णुता ही नही है, बिना स्पर्श के भी आन्तरिक-स्नावो से दुसन
बनी रहती है । रज काल मे यह आम्यन्तरिक दुखन बढ जाती है। जबतक रजो-
धर्म होता रहता है तबतक भीतर के जननाग दुखते रहते हैं ।

(७) मासिक-घर्म जल्दी, बहुत अधिक खून, काला खून, खून के यबके --
यह तो हम लिख ही चुके हैं कि इस औषधि में लगनेवाला प्रदर, जननागो की दुखन,
लगानेवाले स्राव से जननागो की सूजन हो जाती है, साथ-साथ ही मासिक-घर्मं
बहुत जल्दी हो जाता है, समय से पहले, बहुत अधिक खून जाता है, खून का रग
काला होता है, खून के थक्‍्के -के -थक्के जाते हैं, और रुघधिर की विशेषता यह है कि
वह जमता नही, तरल ही रहता है ।

(८) रजोधमं होने से पहले दिन हैज्े की तरह के दस्त--इसका विशेष


लक्षण यह है कि रजोधर्म होने से पहले दिन हैज़े के -से दस्त आते हैं, ऋतु-
जाव के दिनो मे भी दस्त बने रहते हैं। साइलीशिया में ऋतु-ल्लाव से पहले
और ऋतु-स्लाव के दिनो मे कब्ज रहती है।

(९) प्रात काल ३ बजे रोग का बढना--वृद्ध-पुरुषो मे प्रात काल ३


व्जे खासी आती है, ज़ोर की खासी, खासते-खासते पसीना आ जाता है, साथ ही
देम घुटता है ।

(१०) लूुके सिस तथा शेसोनिया कार्ब का सबध--लंके सिस का प्रमाव


बाई तरफ है, ऐमोनिया कार्ब का दाईं तरफ । इस मेद के होने पर भी इन दोनों
ओऔषधियो का आपस मे सबघ है । वह सबंध क्या है ? (क) दोनो औषधियो

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