Lachesis The Homeo

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डा० कोनस्टेंटाइन हेरिग

के (१८००-१८८० )
सोने के बाद जब वह उठता है, तो भयकर सिर-दर्द, हृदय की घडकन, मायूसी

से अपने को घिरा पाता है, नख से शिख तक उसे निराशा-ही-निराशा घर

पकडती है। उसका झरीर कष्ट से आक्रान्त हो जाता है, उसे जीवन में कही
उजाला दिखाई नही देता । जीवन अन्वकारमय, मेघाच्छन्त, कप्टो से भरा
प्रतीत होता है, और पागरूपन के विचार मन पर आक्रमण करने लगते हैं।
खासी, दर्द, दमा, अकडन--कोई भी रोग हो, सोने के वाद वढ जाता है।

लेके सिस--साप का विष, (.80॥655) ४०९६

ले के सिस दक्षिणी अमरीका के एक साप का विष है। इसकी परीक्षा डा०


कौनस्टेंटाइन हेरिंग ने की थी। वे जीवित सापो को हाथ से पकड लेते थे। वे
मरते-मरते बचे। साप के विप से वे वेहोश हो गये और डिलीरियम की नीद
में अनाप-सनाप बकते रहे । जब वे ठीक हुए, तो उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा
कि बेहोशी मे वे क्या करते रहे, क्या बोलते रहे | वह संव लिख लिया गया।
इस औपधधि का स्वस्थ-व्यक्ति पर यह सबसे पहला परीक्षण--औपधि-सिद्धि!
(श०शा8 ह)--था। इस औषधि के लिये होम्योप॑थी ड० हेरिंग की चिर-
ऋणी रहेगी ।
नींद मे, और नींद टू टने पर तो रोग वढता ही है, रोगी जब सोने छू गता
है, सोते ही कमी-कमी दम घुटता-सा है, दिल घडकता है, और रोगी विस्तर से
उछलकर उठ खडा होता है। सोना शुरु करते ही रोग भी शुरु होने छगता है,
अगर रोगी सो जाय, तो नींद के साथ रोग भीतर-हो-मीतर बढता जाता है,
भौर सोकर उठने के वाद रोगी के सब कष्ट उग्र रूप घारण कर प्रकट हो जाते
हैं। रोगी सोने से हो डरने लगता है।
कई ऐसी शिकायतें पाई जाती है जिनका कोई डॉक्टर निदान नही कर
पाता । ऐसी शिकायतों मे रोगी को कह दिया जाता है--तुम्हारी शिकायत सिफे
नवंस है'-और बेचारा रोगी समझने रूगता है कि उसका रोग असाध्य है।
होम्योपैथी मे इस प्रकार के निदान की कोई आवश्यकता नही, चिकित्सक को
के वल लक्षणों से मतरूव होता है, रोग के नाम से नही | ऐसी हालत मे प्राय
रोग का नाम घड लेना इलाज मे सहायक होने के स्थान मे वाधक हो जाता है।
डढा० जे० टी० ड्यू 'मन्ध छी होम्योपैथिक रिव्यू” के ४६ वें खड मे लिखते हैं कि
एक ४३ वर्ष का विवाहित व्यक्ति उनके पास इलाज कराने आया। उसे कई
साल से गले का रोग था, वह द्रव पदार्थ निगल नही सकता था, ठोस पदार्थ
के निगलने मे तो उसे बेहद कष्ट होता था । उसका अद्भुत-लक्षण यह था कि
रात को सोते समय वह चौंक कर जाग उठता था, कभी-कभी विस्तर छोड देता
था क्योंकि उसे गला घुटता हुआ अनुभव होता था। यह अनुभव मध्य-रात्रि
तक होता था, उसके बाद नहीं | सोते समय नींद में कष्ट के लक्षण पर उसे
लंके सिस दिया गया और सालो का रोग जो 'नर्वेस! के नाम से चलता चला
आ रहा था, ठीक हो गया । जैसा हम अभी देखेंगे, गले का घुटना भी इस
ओऔपधि का एक व्यापक-लक्षण है। उक्त रोगी मे सोते समय रोग का बढना---
गछे का घुटना--इन दोनो लक्षणों के मि

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