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Part One
Part One
● किसी दे श िे स ां स्कृतिक मू ल्य एवं परम्पर एँ प्रत्यक्ष- ● दू सिे शब्दों िें ििुष्य िे कलए जो व ां छनीय अर्ाि त्
अप्रत्यक्ष रूप से उस दे श िी भौगोतिक एवं जिव यतवक िंिलिय है वह सांस्कृति क अां ग है ।
दश ओां से प्रभ तवि होती है क्ोंकि इस पृष्ठभू कि िें ही उस ● सं स्कृकत िा एि अर्ि अि:करण की शुद्धि औि
दे श िा स म तजक, आतथि क, र जनीतिक, ध तमि क एवं सहदयि भी है
स ां स्कृतिक ढ ँ च किकिित होता है ।
सांस्कृति की तवशेषि एँ
● इसिे अकतरिक्त उस दे श िे किवाकसयों िा तचांिन, रहन-
सहन, वेश-भूष , ख न-प न, नृत्य, त्योह र एवं ● सं स्कृकत हिािी प्रकृति की अतभव्यद्धि है ।
परम्पर ओां से भी प्रभ तवि होता है । ● यह हिािे स तहत्य िें, ध तमि क िायों िें, मनोरां जन एवं
● औद्योकिि क्ां कत िे बाद कविकसत भौतिक समृ द्धि से आिन्द प्राप्त िििे िे तिीिों िें दे खी जा सिती है ।
उत्पन्न वैज्ञ तनक एवं िकनीतक प्रगति औि सूचन एं व ● भौतिक एवं अभौतिक रूप िें सं स्कृकत म नव जतनि
सांच र िे सभी दे शों िे स ां स्कृतिक मू ल्य को गहरे रूप पय ि वरण से सांबांध िखती है ।
से प्रभ तवि किया है । ● भौकति सं स्कृकत उि कवषयों से जुडी है जो हिािे जीवन के
भौतिक पक्षोां से जु ड व िखती है , जैसे हिािी वे श-भू षा,
अथि खाि-पाि व घिे लू वस्तु एाँ आकद।
● सांस्कृति - किसी सिाज िें किकहत उच्चिम मू ल्य िी ● अभौतिक-सां स्कृति िा सं बंध तवच रोां, आदशो,
चेिन , कजसिे अिुसाि वह सिाज अपिे जीवि िो भ वन ओां औि तवश्व सोां से है ।
ढालता है । ● सांस्कृति एि स्र्ाि से दू सिे स्र्ाि तर्ा एि दे श से दू सिे
o सं स्कृत भाषा िी ध िु 'कृ' (िििा) से बिा है , दे श िें बदििी रहिी है ।
कजसिा अथि है पररष्कृि द्धथथति। ○ इसिा कविास एि थथ नीय, क्षेत्रीय अर्वा र ष्ट्रीय
o अर्ाि त् जब प्रकृि/ कच्चे सांस धन को पररष्कृि सं दभि िें कवद्यिाि ऐतिह तसक प्रतिय पि आधारित
किया जाता है तो वह सांस्कृति कहस्सा बि जाता है । होता है ।
o अंग्रेजी शब्द 'कल्चर' लैकिि भाषा िे 'कल्ट य ○ उद हरण - दे श िे कवकभन्न कहस्सों िें अकभवादि िी
कल्टस' से कलया िया है कजसिा अर्ि है कविकसत या कवकधयों िें, हिािे वस्त्ों िें, खािे िी आदतों िें,
पररष्कृि करन । सािाकजि एवं धाकििि िीकत रिवाजों औि िान्यताओं िें
o सं क्षेप िें किसी वस्तु िो इस हद ति सांस्क ररि और कभन्नता है ।
पररष्कृि करन कि इसिा अांतिम उत्प द हिािी ● सं स्कृकत आां िररक अनुभूति से सम्बि है कजसिें मन औि
प्रशांस औि सम्म न प्राप्त िि सिे। हदय िी पतवत्रि तनतहि है
● इसिें कि , तवज्ञ न, सांगीि, नृ त्य औि म नव जीवन िी
सांस्कृति की अवध रण उच्चिर उपिद्धिय ँ सब्धिकलत है , कजन्हें स ां स्कृतिक
● सं स्कृकत जीवन की तवतध है , जो भोजन हि खाते हैं , जो गतितवतधय ँ िहा जाता है ।
कपडे हि पहिते हैं , जो भ ष हि बोलते हैं औि कजस
भगव न िी हि पूजा ििते हैं , ये सभी सांस्कृति िे पक्ष है ।
सांस्कृति और तवर सि
● अतः एि स म तजक वगि िे सदस्य िे रूप िें म नवोां िी ● पूविवकति यों से हिें जो सांस्कृति तवर सि में किली है , उसे
सभी उपलब्धियााँ सांस्कृति िही जा सिती है , उद हरण सां स्कृकति कविासत या िाष्ट्रीय कविासत, िािव कविासत
िला, सं िीत, साकहत्य, कशल्पिला, धिि, दशिि आकद। आकद िहा जाता है ।
● इस प्रिाि सं स्कृकत, म नव जतनि पय ि वरण से सं बंध ● सांस्कृति बदि सकिी है , लेकिि तवर सि नही ां।
िखती है कजसिें सभी भौतिक और अभौतिक उत्प द
सांस्कृति क महत्व
एक पीढी से दू सरे पीढी िो थथ न ां िररि किये जाते हैं ।
● सं स्कृकत, िािव िे श रीररक तर्ा म नतसक सांस्क रोां क ● सत्य िे िीन श श्वि मू ल्य, सत्य (दशिि औि धिि), सौांदयि
सूचक है अर्ाि त् सं स्कृकत िािव सिाज िे सं स्कािों िा (िला औि वास्तु िला) औि अच्छ ई (िैकतिता औि प्रेि,
पररष्क र औि पररम जि न है जो कि एि सिि प्रतिय है । सकहष्णुता िे िूल्य) सं स्कृकत से जु डे हुए हैं
1
● स मू तहक ज्ञ न वह है जो हिें म नव बन ि है औि इसे ● सभ्यि सं स्कृकत िे म नकीकरण (Standardization)
अांिर औि अांिः पीतढयोां (सं स्कृकत) िे बीच स झ किया िी एि कवशेषता है ।
जा िहा है ○ स ां स्कृतिक य त्र िे द्वािा म नव द्वािा जब एि
उन्नि िकनीकी स्तर तर्ा उच्च आतथिक समृ द्धि िो
सांस्कृतिओां के अध्ययन क महत्व
प्राप्त िि कलया जाता है तो उसे सभ्यता िहा आता
1. व्यद्धि की दृतष्ट् से महत्व - है ।
● किसी भी व्यब्धक्त िे व्यब्धक्तत्व िा किधाि िण ख न- ○ सभ्यता िे अवस्र्ा िें तवचिन (deviation) हो
प न, व्यवह र, वेश-भूष , सोच एवां आदिोां द्वािा सिता है ।
किया जाता है ○ यही िािण है सभ्यि क पिन हो सिता है ,
● सं स्क्रकत व्यब्धक्त िा तनयमन एवां सम जीकरण क सांस्कृतियोां क नही ां
क यि ििती हैं । ■ जैसे - हडप्पा एवं िेसोपोिाकिया िी सभ्यताएाँ
● अत: व्यब्धक्तयों िो समग्रि में ज नने के तिए आकद।
सांस्कृति क अध्ययन अपररह यि होता है ।
2. स म तजक दृतष्ट् से महत्व
सांस्कृति एवां सभ्यि में अांिर
● सं स्कृकत िा कििाि ण िुख्यतः स म तजक प्रय सोां की सभ्यता िें ििुष्य िा भौकति सं स्कृकत िें आचाि, कवचाि िी
दे न है । पक्ष प्रधाि होता है प्रधािता होती हैं
● सं स्कृकतयााँ सम जोां िो जोडने क क यि ििती हैं । सभ्यता िा कविास सं स्कृकत िा कििाि ण लम्बी
इसी िो ध्याि िें िखते हुए अिे ि तीज-त्यौहािों, िेलों, अल्पिाल िें भी सं भव हैं पिम्पिा िे िािण होता हैं
उत्सवों आकद कविास हुआ है सभ्यता िी आधािकशला सं स्कृकत िी जडें िहिी व
● प्रत्येि सिाज अपिी आवश्यकि ओां िे अनुरूप सं स्कृकत हैं पि सभ्यता िें अपरिवति िशील होती हैं
सं स्कृकत िे अिेि ित्वोां जैसे - िला, धिि, दशि ि सु धाि सं भव हैं
कवज्ञाि, आचाि-व्यवहाि, पिं पिा आकद क तनम ि ण सभ्यता शिीि औि ब्राह्म सं स्कृकत आत्मा औि
ििता है । व्यवहाि िो दशाि ती हैं आं तरिि व्यवहाि िो दशाि ती
● अत: सम ज िो समझने िे कलए भी सांस्कृति िो हैं
समझन अत्यंत महत्त्वपूणि है ।
3. र ष्ट्रीय दृतष्ट् से महत्व भ रिीय सां स्कृति की तवशेषि एां
● सं स्कृकतयााँ र ष्ट्रीय पहच न िा तनध ि रण ििती हैं ● कििं तिता औि परिवति ि
क्ोंकि इसिा तनम ि ण िाष्ट्र िे तहत आिे वाले ● धििकििपेक्ष दृकष्ट्िोण
तनव तसयोां के स मू तहक योगद न से होता है । ● सावि भौकििता (शां कत, िु िकििपेक्षता, कवश्व बं धुत्व)
● सं स्कृकतयााँ कवकभन्न र ष्ट्रोां को जोडने क भी क यि ● कवकवधता औि एिता
ििता है । ○ दु किया िे सभी प्रिुख धिि यहां हैं
● भाित सकहत कवश्व िें अिेि ऐसे दे श है कजििी ○ भू िोल औि जलवायु
सं स्कृकत िा कवस्ताि िाष्ट्रीय सीिा िे बाहि ति है । ○ कवदे शी प्रभाव (ईिािी, यू िािी, अिब, कब्रकिश)
अतः िाष्ट्रीय दृकष्ट् से भी इसिा महत्व अत्यतधक है । ○ अलि-अलि जाकतयां
○ क्षे त्रीय पिस्पि िेलजोल
सांस्कृति (Culture) एवां सभ्यि (Civilisation)
○ कवचािों िो आत्मसात िििे िी उल्ले खिीय क्षिता
● सं स्कृकत एवं सभ्यता एक दू सरे से सम्बांतधि अवधािणाएं ○ व्यापाि, तीर्ियात्रा, सै न्य अकभयाि
है । ○ भौकतिवादी औि आध्यात्मवादी
● इि दोिों, शब्दों िे अर्ि एवं व्यवहाि िो लेिि तवद्व नोां के
बीच आम र य नही ां है ।
● सांस्कृति, िािव िी कवकभन्न पीकियों द्वािा अकजित एक
म नवीय पूँजी हैं कजसिे तहत धिि, दशिि, कचंति , कवचाि
िला, कवज्ञाि, भाषा साकहत्य, आचाि, व्यवहाि, िीकत-रिवाज,
जीवि-शै ली आकद आते हैं ।
○ सं स्कृकतयों िी जड िें मू ल्य एवां आदशि तनतहि होते
हैं ।
2
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2 वास्तुकला/स्थापत्यकला
CHAPTER
वास्तु कला कला और ववज्ञान है जो भवन और गै र-भवन ○ हुि स्ट न्स और है ट स्ट न्स / कैप स्ट न्स / टॉडपकल/
संरचनाओं के डिजाइन से सं बंडित है । भारत में वास्तु कला फणाकृडत पाषाण -
डसंिु घाटी सभ्यता से शुरू हुई और मंविरों, स्तू पों, शैल्कवति त ■ शैलकडता त गु फाओं से सम्बन्ध लेवकन सरल।
गु फाओं, महलों, वकलों आवि जैसी वववभन्न संरचनाओं का ■ गुंबदाकार ले टराइट ब्लॉक से बना होता है जो एक
डनर्ाा ण हुआ। प्राकृवतक चट्टान में काटे गए भूवमगत गोलाकार गड्ढे
को कवर करता है और इसमें सीढी भी होती हैं ।
पाषाण कालीन/स्थापत्य कला
■ फणाकृवत पाषाण के ऊपर एक है ट स्ट न या
● भारत में पाषाणकालीन र्ानव ं द्वारा डनडर्ा त वास्तु कला
टॉपवपक्कल-एक सर् त्तल स्लैब होता है जो तीन या
का उदाहरण नही ं वमलता।
चार चतु भुिज क्लिनोस्टे वटक वशलाखण्ड पर वटका होता
र्हापाषाण काल है ।
■ एक भूडर्गत गड्ढे को कवर करता है डजसर्ें अंत्येडष्ट्
● महापाषाण काल के ल ग ं द्वारा उनके कडिस्तान ं को
पत्थर से सजाने का उिाहरण वमलता है । कलश और अन्य कि सामग्री होती हैं ।
● िविण भारत में इस प्रकार शव ं को दफनाने की परम्परा ■ क चीन और र्ालाबार िे त्रों में पाया जाता है ।
लौह युग के साथ आरं भ हुई। ○ र्े नडहर -
● महापाषाण कालीन दफन करने के उदाहरण बडी सं ख्या ■ अखं ि स्तंभ जमीन में लंबवत लगाए जाते हैं ।
में वनम्न स्थानों जैसे र्हाराष्ट्र (नागपुर के पास) कनाा टक ■ ऊंचाई में छ टा या डवशाल हो सकते है (16 फीट -
(मास्की), आं ध्र प्रदे श (नागाजुिनकोंडा), तडर्लनािु 3 फीट)।
(आविचन्नालुर) तथा केरल में पाये गये है । ■ सर्ाडि स्थल पर या उसके डनकट स्थाडपत।
■ प्राचीन तडर्ल साडहत्य में नादु कल / पां िुक्कल या
दडिण भारत र्ें र्हापाषाण/वृ हत्पाषाण संस्कृडत
पां डिल के रूप में उल्लेख वकया गया है ।
● एक पूणा ल हयुगीन सं स्कृडत।
○ संरेखण-
● औजारों के वलए पत्थर ं का कर् प्रय ग।
■ र्े नडहर के साथ घवनष्ठ रूप से जुडा हुआ है ।
● िविण भारत में लौह यु ग के बारे में अडिकां श जानकारी
र्हापाषाणकालीन कि ं की खु दाई से प्राप्त होती है । ■ चतुडदा श में उन्मुख खडे पत्थर ं की एक श्ृंखला से
3
■ 3 उपप्रकार: ● कोट के भीतर नगर चौडे र्हापथ ं से डवभि था जो
गता शवािान चतु ष्पथों के रूप में एक िू सरे से वमलते थे और वफर उनसे
प्राकृवतक वमट्टी में खोिे गए गहरे गड्ढों से कर् चौडी रथ्याओं और वीडथय ं र्ें बाँ ट जाते थे और
वमलकर बनता है । समस्त पुर को कई चौक या र्ु हल् ं में बााँ टते थे।
गोलाकार, चौकोर या वतरछा। ● पुरवनमाि ण के आरम्भ में वास्तु-डवद्याचायों ने उसका जैसा
कंकाल के अवशेष और कब् के फनीचर डवन्यास वकया था वह लगभग उसी रूप में एक सहस्त्र
को फशि पर रखा गया है वषों के अन्त तक बना रहा।
चेंगलपट् टु (तवमलनाडु ), वचत्रिु गि और
रास्ते
गु लबगाि (कनाि टक) वजलों में पाए जाते हैं ।
सरक फेगी शवािान ● नगर का र्ु ख्य राजर्ागा 33 फीट चौडा है ।
टे राकोटा/मृणमूवति से बना ताबू त। ● उस पर कई गाडडयााँ एक साथ चल सकती हैं ।
गति शवाधान की तु लना में अवधक व्यापक। ● कर् चौडी सडके 12 फीट से 9 फीट तक हैं । इसके बाि
यह गति शवाधान के समान है , वसवाय इसके 4 फुट तक चौडी गडलयााँ भी हैं ।
वक कंकाल के अवशेष और कब् के ● सडक ं पर ईट डबछाकर उन्हें पक्की करने का ररवाज
फनीचर के प्राथवमक वनिे प को एक नही ं था।
आयताकार टे राकोटा सरकोफैगस में रखा ● केवल बीच में बहने वाली नाडलय ं को ईंट ं से पक्की
गया है । बनाकर ईट ं से ही ढं कते थे।
तवमलनाडु के िविण आरकोट, चेंगलपट् टु
घर
और उत्तरी आरकोट वजलों और कनाि टक
के कोलार वजले , आं ध्र प्रिे श के िविणी घर प्रायः एक सीि र्ें और गडलय ं की ओर बनाए जाते थे।
वजलों में पाए जाते हैं । उनकी र्ाप प्राय: 27 फुट x 29 फुट या बडें घरों की इससे
पाइरीफॉर्ा या कलश शवािान िु गुनी होती थी। उनमें कई कर्रे , रस ईघर, स्नानघर और बीच
कलश, वजसमें अंत्येवि की जाती है , वमट्टी में में आाँ गन होता था और वे दु खण्डे बनाए जाते थे।
खोिे गए गड्ढों में जमा वकए जाते हैं । ● कमरों में फशा पक्के न थे, केवल डर्ट्टी कूटकर कच्चे रखे
गड्ढों को ऊपर तक वमट्टी से भर विया जाता जाते थे।
है और एक आच्छािन वशला/ कैप्स्स्टोन से ● स्नान की क ठररय ं में पतली ईंटें लगाकर फशि में एकिम
ढक विया जाता है । ऐसी जुडाई करते थे वक एक बूं ि भी पानी न भरने पाये ।
केरल, तवमलनाडु , कनाि टक, आं ध्र प्रिे श ● मोटी िीवारों में नल लगाकर नहाने ि ने का पानी नीचे
और महारािर में पाया जाता है । उतार कर सडक की ओर नावलयों में बहा विया जाता था।
डसंिु घाटी सभ्यता कालीन स्थापत्य कला इससे होने वाली स्वच्छता जोवक हडप्पा संस्कृडत की
डवशेषता थी।
● पुराताक्तिक साक्ष् ं के आिार पर, इस संस्कृडत के
● प्रायः हर अच्छे घर में र्ीठे पानी से भरा हुआ कुआाँ था।
फलने-फूलने की चरर् अवस्था 2100 ई.पू. से 1750
ई.पू. के बीच अनुमावनत है । कुएाँ
● मकानों के वनमाि ण में सामग्री की उत्कृष्ट्ता तथा दु गा,
सभागार ,ं अनाज के ग दार् ,ं कायाशालाओं,
कुएाँ के मुाँह पर कुछ ऊाँची र्ु डेर रहती थी वजसकी ऊपरी
छात्रावास ,ं बाजार ं आवि की र्ौजूदगी तथा आिुडनक कोर पर रस्सी आने-जाने के वनशान अभी तक बने हैं ।
जल डनकास प्रणाली वाले भव्य नगर ं के समान वै ज्ञावनक वास्तु काला की दृवि से र् हनज दड तथा हडप्पा के बडे
ले -आउट िे खकर यह डनष्कषा वनकाला जा सकता है वक अन्नागार भी अद् भुद है । पहले इसे स्नानागार का ही एक
उस काल की संस्कृडत काफी सर्ृ द्ध थी। भाग माना जाता था।
● हिप्पा और र् हनज दड ं नामक द न ं राजिाडनयााँ वकन्तु उत्खनन के पिात यह ज्ञात हुआ है वक ये एक
उत्तम नगरडवन्यास का उदाहरण हैं । वहााँ के वास्तु डवद्या डवशाल अन्नागार के अवशेष है ।
आचायों ने दु गा के रूप में उनका डविान वकया।
स्नानागार के वनकट पडिर् में डवद्यर्ान पक्की ईंट ं के
● उनके पुरडवन्यास में पररखा, प्राकार, वप्र, द्वार,
ववशाल चबू तरे पर र् हनज दड का अन्नागार वनवमित है ,
अट्टालक, र्हापथ, प्रसाद, क ष्ठागार, सभा, वीथी,
वजसकी पूवि से पविम की लम्बाई 150 फीट तथा उत्तर से
जलाशय आवि वास्तु के अनेक स्थल प्राप्त हुए हैं ।
िविण की चौडाई 75 फीट है ।
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र्ंडदर वास्तुकला
● भारत में मंविर वास्तु कला का ववकास
गुप्त युग के दौरान चौथी से पां चवी ं
शताब्दी ईस्वी में हुआ।
● पहले डहं दू र्ं डदर शैल्कडतात गु फाओं से बनाए गए थे, जो
बौद्ध संरचनाओं जैसे स्तू पों से प्रभाडवत थे।
● इस अववध के िौरान, बडे पैमाने पर र्ु ि खडे र्ं डदर ं का
डनर्ाा ण वकया गया।
● दशावतार मंविर (िे वगढ, झां सी) और ईंट र्ं डदर
(वभतरगां व, कानपुर) इस अववध के िौरान बनाए गए मंविरों
के कुछ उिाहरण हैं ।
● भारत में वहं िू मंविरों के स्थापत्य डसद्धां त ं का वणान
डशल्प शास्त्र र्ें वकया गया है वजसमें तीन मुख्य प्रकार के र्ंडदर स्थापत्य र्ें भग्न ज्याडर्डत का प्रय ग
मंविर वास्तु कला का उल्लेख है - नागर शैली, द्रडवड शैली ● एक योजना की ज्याडर्डत एक रे खा से शुरू होती है जो
और वेसर या वमवित शैली। वफर एक क ण बनाती है , वफर डत्रभुज, वगा, वृत्त और इसी
तरह अंततः जडटल रूप ं में पररणत होती है ।
डहंदू र्ंडदर की बुडनयादी संरचना
● इस जवटलता का पररणाम स्व-सर्ानता होता है ।
● गभा गृह - र्ं डदर का हृदयस्थान- मंविर के अंिर मुख्य ● वहं िू मंविर की योजना वास्तुपुरुषर्ं िल से सं बंवधत पुराण ं
िे वता के वलए बनाया गया है । पहले के विनों में, इसका में वडणात डसद्धां त ं का कडाई से पालन करती है ।
एक ही प्रवे श द्वार था वजसमे बाि में कई किों ववकवसत ● मुख्य रूप से द प्रकार के र्ं िल होते हैं , एक चौस
ं ठ वगों
हुए। वाला होता है और िू सरा इक्यासी वगों वाला होता है जहााँ
● र्ं िप- यह र्ं डदर का प्रवेश द्वार है जो बहुत बडा होता है प्रत्येक वगि एक दे वता क सर्डपात होता है ।
वजसमें बडी संख्या में उपासक ं के वलए जगह शावमल है । ● र्ु खर्ं िप, अिार्ंिप और अंत में र्हा र्ं िप से शुरू
कुछ मंविरों में अिार्ंिप (मंविर के बाहर और एक मंडप होकर, र्ू लप्रसाद आता है , जो गभागृह को घे रता है ।
के बीच एक सं क्रमणकालीन िेत्र बनाने वाला प्रवे श द्वार) ● भग्न का भी द आयार् ं और तीन आयार् ं िोनों में र्ं डदर
और र्हार्ं िप (मंविर में मुख्य सभा हॉल जहां भक्त की ऊंचाई पर बहुत प्रभाव पडता है ।
समारोहों और सामूवहक प्राथिना के वलए इकट्ठा होते हैं ) ● फ्रैक्टल स्व-सर्ान पसडलय ं को बनाकर अर्लाका
नामक डवडभन्न आकार ं में कई र्ं िप होते हैं । ये कुछ ही भाग में कार् करता है ।
र्ं डदर ं में र्ौजूद हैं । ● भग्न डसद्धां त "सब के बीच एक, सब एक है " की डहं दू
● डशखर/डवर्ान - यह एक पवा त जैसा डशखर है , जो उत्तर दाशाडनक अविारणा का पूरी तरह से समथिन करता है ।
भारत में एक घु र्ावदार डशखर और दडिण भारत में यह "अराजकता र्ें व्यवस्था" लाता है और इस प्रकार
एक डपराडर्िनुर्ा र्ीनार (वजसे ववमान कहा जाता है ) के "जडटलता र्ें सुंदरता" लाता है ।
आकार में है । गु जरात के र् ढे रा में सूया कंु ि भारतीय मंविरों में भग्न
● वाहन- यह मंविर के र्ु ख्य दे वता का वाहन है वजसे ज्याडर्डत के उपयोग का एक उत्कृष्ट् उिाहरण है ।
गभा गृह से पहले रखा जाता है । र्ं डदर वास्तुकला के चरण
● अर्लक- पत्थर की एक डिस्क जैसी सं रचना जो उत्तर
पहला चरण-
भारतीय शैली के डशखर के शीषा पर क्लस्थत है ।
● चपटी छत वाला चौकोर आकार का मंविर
● कलश- चौडे र्ुं ह वाला बतान या सजावटी बति न-वडजाइन
● उथले स्तंभ पर वनवमित
उत्तर भारतीय र्ं डदर ं र्ें वशखर को सजाते हैं ।
● सं रचना को कर् ऊंचाई के र्ं च पर बनाया गया था
● अंतराल- गभि गृह और मंविर के मुख्य हॉल (मंडप) के बीच
● गभा गृह मंविर के केंद्र र्ें क्लस्थत होता था
एक संक्रर्ण िेत्र
● मंविर का एक ही प्रवेश द्वार
● जगती- बै ठने और प्राथा ना करने के वलए एक ऊंचा र्ं च
● उदाहरण- एमपी के एरण में ववष्णु वराह मंविर, कंकली
और उत्तर भारतीय र्ं डदर ं में आर् है ।
मंविर, वतगवा और मंविर नं। सां ची में 17.
5
दू सरा चरण- 1. र्ंडदर ं की नागर शैली
● पूवा चरण की ही डवशेषताएं
● उत्तर भारत में डहर्ालय से डवध्य के र्ध्य
● र्ं च / वेदी और अवधक ऊंची
नागर मंविर वमलते है
● उदाहरण- नचना कुठार का पावि ती मंविर
● नागर मंविरों का डनर्ाा ण ऊचे चबू तरे या
तीसरा चरण-
अडिष्ठान या जगती पर वकया जाता है ।
● सपाट छतों के स्थान पर डशखर (घुमाविार टॉवर) का
● इन मंविरो का गभागृह वगाा कार होता है
उद्भव हुआ।
● गभा गृह के उपर बनी आकृडत डशखर रे खा या आया
● "नागर शैली" र्ं डदर डनर्ाा ण को मंविर वनमाि ण के तीसरे
डशखर कहलाती है ।
चरण की सफलता कहा जाता है।
● वशखर को गभि गृह से उपर की तरफ वक्राकार ढं ग से
● पंचायतन शैली का आरम्भ
बनाया गया है । तथा इसकी ऊचाई बढती जाती है ।
उदहारण: िे वगढ का िशावतार मंविर, ऐहोल का िु गाि
● इसके वलए गभागृह से चार तरफ प्रिेपण आकृडत
मंविर
वनकाले जाते है ।
चौथा चरण-
● तीसरे चरण की सभी डवशेषताओं को इस चरण में आगे
बढाया गया।
● केवल र्ु ख्य र्ं डदर आकार में अवधक आयताकार हो
गया।
● उदाहरण: महारािर ते र मंविर
पां चवा चरण
● बाहर की ओर उथले आयात्कार डकनार ं वाले वृत्ताकार
र्ं डदर ं का वनमाि ण
● पहले के चरण ं की सभी डवशेषताएं जारी रही
उदाहरण:राजगीर का मवनयार मठ
● वशखर के सवोच्च भाग पर आर्लक (चक्राकार सं स्चना
र्ंडदर वास्तुकला की शैडलयााँ या गवतका पररचायक) एव कलश बना होता है ।
● गभि गृह के चार ं तरफ अंतराल होता है वजसका प्रयोग
प्रदडिणा पथ के रूप में वकया जाता है ।
● बडे नागर मंविरों में गभि गृह के सामने अन्य सहायक
संरचनाएाँ जैसे- महामण्डप, मण्डप, मधमप, नृ त्यगं डप
आवि वने होते है ।
● कुछ स्थानों पर नागर मंविर पंचायतन शैली र्ें बने होते है
वजसके तहत केद्र में एक डवशाल र्ं डदर तथा चार क न ं
पर सहायक दे वी दे वताओ के र्ं डदर बनाए जाते हैं ।
● नागर मंविरों के बाहरी भाग ं में आले (ताखा) काटकर
अनेक प्रकार की र्ू डताय ं से इन्हें सजाया जाता है । इन
मूवति यों में अनेक दे वी दे वताओं, लोकववषयों से सं बंवधत
जैसे नाग अप्सरा, डर्थुन, नृत्य सं गीत आवि आम स्त्री
पुरुष की र्ू डताया बनी होती है । वजन्हें उत्तर प्रदे श के
उदभव एवं डवकास (100 BC - 1700 / 1800 AD)
िे वगढ, कंिररया र्हादे व, खजुराह ,ं भुवनेश्वर आवि
नागर मोयोत्तर काल (100 ईसा पूवि - 300 ईसवी) → मंविरों में िे खा जा सकता है ।
शैली गु प्तकाल (319-550 ईसवी) → पूविमध्यकाल ● डशखर ं की आकृडत के आिार पर नागर मंविरों को
(700-1200 ईसवी) वगीकृत वकया जा सकता है -
द्रडवण पल्लव (7 -9वी सिी) → चोल (9-13वी सिी) ○ लै डटना/ रे खाप्रसाद
शैली → ववजयनगर (14-16 वी सिी) → नायक ■ इसका वगाि कार आधार होता है ।
(14-18वी सिी) ■ यह सबसे सरल और सबसे सार्ान्य प्रकार है ।
बे सर पवशमी चालुक्य (7 -9 वी सिी) → रािरकट ■ ज्यादातर गभा गृह के डलए इस्तेर्ाल वकया
शैली (10-12वी सिी) → होयसल (13-14 सिी) जाता है ।
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○ फर्साना ● एक बडी क्तखडडकय ं वाला चल मागि (प्रदडिणा-पथ)।
■ इसका एक व्यापक आिार होता है । ● मंविरों की नक्काशी मुख्य रूप से डहं दू दे वताओं और
■ लैवटना की तु लना में ऊंचाई र्ें कर् । पौराडणक कथाओं के संबंि में है ।
■ ज्यािातर र्ं िप के डलए उपय ग वकया जाता है । ● स्थापत्य शैली भी डहंदू परं पराओं के अनुसार है । इनकी
○ वल्भी डवडभन्न कारक ं द्वारा पुडष्ट् वक जा सकती है ।
■ इसका एक आयताकार आिार है ● वहं िू मंविर के वनमाि ण की एक प्रर्ु ख डवशेषता यह है वक
■ छत जो एक गुंबददार प्रक ष्ट् का वनमाि ण करती र्ं डदर का र्ु ख सूयोदय की विशा की ओर होना चावहए।
है । ● इसके अलावा, इनकी नक्काशी वहं िू धमि में जीवन के चार
■ अिा ग लाकार छत के रूप में जाना जाता है । लक्ष् ं अथाि त, धमि, काम, अथि , मोि को िशाि ती है ।
● कुछ प्रर्ु ख उदारण ● र्ू डताय ं और कार्ु क डचत्र ं का समूह दै डनक जीवन के
○ िशावतार मंविर - िे वगढ (UP)- ववष्णु दृश् ं को प्रडतडनडिि करता है ।
○ कंिररया महािे व - खजुराहो (MP)- वशव
○ लक्ष्मण मंविर - खजुराहों 'ववष्णु
○ वलंगराज मंविर - भु वनेश्वर -वशव
○ अरसावली मंविर – आं द्रप्रिे श - सू यि
नागर शैली के अं तगा त 3 उपशै डलयााँ :
A. ओडिशा शैली
● मंविर शुद्ध नागर शैली का प्रडतडनडिि करते हैं ।
● ओवडशा में कडलं ग साम्राज्य के समय में नागर शैली के
अन्तगि त ही ओवडशा मंविर स्थापत्य शैली का ववकास हुआ,
वजसमें अनेक डवशेषताएाँ िे खने को वमलती हैं , जैसे-
C. स लं की शैली
○ मंविर की बाहरी दीवार ं पर बारीक नक्काशी की ● गुजरात और राजस्थान में वनवमित
जाती थी जबवक भीतरी दीवारें डबना वकसी ● इसके तहत डहन्दू र्ं डदर ं के साथ-साथ जैन र्ं डदर ं का भी
नक्काशी के खाली छोड िी जाती थी।ं डनर्ाा ण हुआ।
○ र्ं डदर की छत क ल हे के गािा र ं से सहारा विया ● अद्धा -ग लाकार पीठ और ‘र्ंि वार’ गुजरात उपशैली
जाता था। की पहचान ववशेषता हैं ।
○ डशखर - रे खा-दे उल जो िै वतज आकार में होने के ● वह अद्धा -ग लाकार सं रचना वजसकी वजह से छत-वशखर
बाि शीषि पर एकिम से अन्दर की तरफ मुडे थे। अलग-अलग विखता है , उसे र्ं ि वार कहते हैं ।
○ ये मंविर द्रववड शैली के समान ही परक टे से डघरे थे। ● उदाहरण: माउं ट आबू का आविनाथ मंविर, ते जपाल
○ र्ं डदर के र्ं िप को जगर् हन कहा जाता था। मंविर, पावलताना के सै कडों मंविर, सोमनाथ मंविर, मोढे रा
का सू यि मंविर आवि इस शैली के प्रमुख उिाहरण हैं ।
● माउं ट आबू पर बने कई मंविरों में संगर्रर्र के द र्ं डदर
हैं - डदलवाडा का जैन मंविर तथा तेजपाल र्ं डदर
(अबुि िवगरी के बगल में)।
● कुंभररया के पाश्वानाथ र्ं डदर में भी राजस्थान के र्करान
से उपलब्ध काले और सपेि संगर्रर्र का इस्ते माल
वकया गया है ।
● माउं ट आबू के र्ं डदर ं का डनर्ाा ण सोलंकी शासक भीर्
डसंह प्रथर् के मंत्री दं िनायक डवर्ल ने करवाया था, इसी
कारण इसे ववमलबसाही मंविर भी कहते हैं ।
B. खजुराह शैली ● सोमनाथ मंविर को सोलंकी शासकों की िे न न मानकर
● र्ं डदर ं में एक गभागृह गुजार-प्रडतहार ं की दे न माना जाता है ।
● एक छ टा आं तररक-कि (अंतराल), एक अनुप्रस्थ भाग 2. र्ंडदर ं की द्रडवि शैली
(र्हार्ण्डप)
● ववकास - कृष्णा नदी से कन्याकुर्ारी के
● अवतररक्त सभागृह (अधि मंडप)
बीच वति मान तवमलनाडु , केरल, वनचला
● एक र्ं िप या बीच का भाग
आं ध्र प्रिे श आवि के मध्य हुआ है ।
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● द्रववड मंविरों मे ऊचा चबू तरा नही ं होता है । यह र्ं डदर ● मवहषासु रमविि नी, वगरर गोवधि न पैनल, गजलक्ष्मी और
िरातल के डनचले डहस्से से बनना प्रारं भ होता है । अनातसायनम कुछ शानदार र्ूडतायां हैं वजनका सं रिण
● द्रववड मंविरों का गभागृह वगाा कार एवं इसके उपर का वकया गया है ।
डशखर डपराडर्िाकार होता है जो तल्ले के ऊपर तल्ला ● पल्लव वास्तु कला शैलकृत र्ं डदर ं से ले कर शैल डनडर्ा त
घटते क्रम में मे बना होता है । र्ं डदर ं तक के सं क्रमण को िशाि ती है ।
● इसके ऊचे उठते भाग को डवर्ान कहा जाता है , डशखर के
(i) र्हें द्र सर्ू ह या र्हें द्रवर्ा न शैली
सवोच्च भाग पर स्तूडपका नामक सं रचना बनी होती है ।
● गभि गृह के चार ओर अन्तराल बना होता है वजतका ● यह सबसे प्रारं डभक शै ली थी वजसे मंडप कहा जाता है
प्रय ग दडिणा पथ के वलए वकया जाता है । ● इसके तहत पहािी क सार्ने की तरफ से काटकर
● गभा गृह के सामने बहुसंख्यक स्तंभ ं पर वटका वपछले भाग में सािारण कि (गभि गृह) एवं बरार्दा का
र्हार्ण्डप बना होता है । साथ ही अन्य सहायक रचनाए डनर्ाा ण वकया गया
जैसे-अवधमंडप एवं निीमण्डप आवि बने होते है । ● गभा गृह के प्रवे श द्वार पर द्वारपाल ं की र्ू डताया तया
● द्रडवण र्ं डदर चारदीवारी के भीतर बने होते है । र्ं डदर अनेक स्तम्भ बनाए गए।
प्रां गण में तालाब बना होता है । प्रां गण के भीतर सहायक ● उसके तहत कई र्ं िप ं का डनर्ाा ण वकया गया वजसमें
र्ं डदर (िे वी-िे वता एवं राजा रावनयों) के भी बने होते है । डत्रर्ू डता र्ं िप, पंच पांिव र्ं िप (पल्लवरम) तथा र्हे न्द्र
● द्रववण मंविरों का प्रवेश द्वार काफी भव्य एवं डवशाल डवष्णु र्ं िप आवि मुख्य है ।
होता है । वजसे ग पुरर् कहा जाता है ।
(ii) नरडसंहवर्ा न प्रथर् / र्ार्ल् शैली (र्ण्डप + रथ) /
● मंविरों के बाहरी भागो पर र्ण्डप से लेकर डशखर तक
नरडसंह सर्ू ह
दे वी-दे वताओं की र्ूडताय ं एवं ल क डवषय ं से सम्बं वधत
● यह भी शैलकृत र्ं डदर ं की शै ली है ।
र्ू डताय ं का अरभूत डशल्पां कन वकया जाता है । र्ंडदर-
वृ हिे श्वर एवं वमनािी मंविर । ● इसके तहत र्न्डप के साथ रथ ं का डनर्ाा ण वकया गया।
● र्ण्डप
नागर एवं द्रडवण शैली के र्ं डदर ं र्ें अन्तर ○ कनेरी मंडप
नागर शैली द्रडवड शैली ○ आविवराह मंडप
रे खीय डशखर होता है डपराडर्िाकार डशखर ○ पंचपां डव मण्डप
वशखर के सवोच्च होता है ● प्रर्ु ख डवशेषताएाँ
भाग पर आर्लक सवोच्च भाग पर ○ उस काल में रथ ं का डनर्ाा ण पहाडी क ऊपर से
तथा कलश जैसी स्तूडपका वनी होती है नीचे की तरफ काटकर वकया गया है ।
सं रचना होती है ऊचा चबू तरा ○ ये रथ ं के अनु करण र्े बने है ।
सामान्यतः ऊचा आवश्क नही ं होता है , ○ इन पर ब द्ध चैत्य एवं डवहार ं का भी प्रभाव है ।
चबू तरा बना होता है । मंविर सामान्यतः धरातल ○ सभी रथ एक सर्ान नही ं है बक्लल्क ये कई मंवजलों
चारविवारी तथा प्रां गण से ही बनने प्रारम्भ हो में बने हुए है
के भीतर तालाब जाते है । ○ रथों के सवोच्च भाग पर स्तूडपका बनी होती है ।
डनर्ाा ण आवश्क चारडदवारी का डनर्ाा ण ○ सभी रथ र्ं डदर र्हाबलीपुरर् में बने हैं ।
नही ं है । तथा प्रां गन र्ें तलाब ○ इनकी सं ख्या सात है इन्हें सप्त पैग िा भी कहते है ।
भव्य प्रवे श द्वार यहां की मुख्य ववशेषता है
1. यु वधष्ठीर रथ (सबसे बडा)
सामान्यतः नही बने भव्य प्रवे शद्वार होते है
2. भीमरथ
होते है । वजसमे ग पुरर् यहााँ की
3. अजुिन रख
o वास्तु शास्त्र की ववशेष परम्परा है ।
भाषा में इन्हें o इन्हें वास्तुशास्त्र र्ें
4. नकुल/ सहिे व रथ
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(iii) नरडसंह वर्ा न डद्वतीय / राजडसंह शैली ○ जैसे तंज र के वृहदे श्वर र्ं डदर की ऊचाई 190 वफट
● इस काल में पल्लवों ने शैलकृत तकनीकी का पररत्याग है , इसमे कुल 13 तल्ले बने है ।
कर विया । ○ डशखर के सवोच्च भाग पर 34 टन वजन का एक
● यहााँ से संरचनात्मक र्ं डदर बनाये जाने लगे । डवशालकाय स्तूडपका बनी है ।
● वजनका डनर्ाा ण खु ले िरातल पर ईटों एवं पत्थरो पर ○ चोल मंविर वास्तु के साथ-साथ र्ू डताकला एवं
वकया गया। डचत्रकला के उत्तर् उदाहरण है ।
● राजवसं ह शैली की सं रचनात्मक मंविरों की डवशेषताएं वनम्न ○ मंविरो के बाहरी भागों पर दीवार ,ं स्तंभ ं आवि पर
है रामायण, महाभारत तथा पौरावणक कथाओं के अनेक
○ वगाि कार गभि गृह िे वी िे वताओं की खूबसू रत एवं कलात्मक प्रडतर्ाए
○ गभि गृह के उपर वपरावमडाकार वशखर बनायीं गयी।
○ सवोच्च भाग पर स्तू वपका ○ डिहदे श्वर जैसे मंविर में िे वी-िे वताओं के पौराडणक
○ गभि गृ ह के चारो तरफ अन्तराल कथा के डचत्र िीवारों पर बने है ।
○ सामने की तरफ मंडपों का वनमाि ण ○ चोल मंविरों की डवशालता, भव्यता एवं साज सज्जा
○ मंविरो के चारो तरफ चहारविवारी एवं प्रवे श द्वार पर इतनी आकवषित करती है वक फर्ग्ुि सन ने कहा है वक
गोपुरम का वनमाि ण “चोलों ने िै त्यों की तरह सोचा तथा जोंहरीयों की तरह
○ इसके तहत महाबवलपुरम काशोर मंविर (वशव),कां ची पूरा वकया।"
का कैलाशनाथ मंविर एवं बै कुण्ठपेरुमाल मंविर
C. नायक शैली के र्ं डदर
(iv) नंदीवर्ा न शैली ● 1565 में डवजयनगर साम्राज्य का पतन हुआ
● राजवसं ह शैली की भााँ वत यह भी र्ं डदर ं की संरचनात्मक ● स्थानीय सार्न्त ं का उदय हुआ वजन्हें नायक कहा गया
शैली है । ● मंविरों की द्रडवि शैली को सवोच्च स्तर प्रिान वकया।
● वजसकी डवशेषताएं राजडसंह शै ली की भां डत है । ● बहुसंख्यक र्ं डदर ं का डनर्ाा ण कराया गया
● इसके तहत कां ची का र्ु िेश्वर र्ं डदर तथा गुिीर्ं गलर् ● डवशेषताएं
का परशु रार्े श्वर र्ं डदर आवि आते है । ○ सभी द्रडवि डवशेषताएाँ जैसे, वगाि कार गभि गृह,
वपरावमडाकार वशखर, स्तू वपका अन्तराल, बहुसं ख्यक
B. च ल र्ं डदर (9-13 वी सदी)
कि/मंडप
● पल्व क पराडजत कर सत्ता में आए।
○ नायकों के तहत भारी संख्या र्ें ग पुरर्् का डनर्ाा ण
● चोलो ने पल्लवों द्वारा प्रारम्भ द्रडवण शैली को जारी रखा
और उसे उचाइय पर पहुचाया – कराया गया
● चोलो के काल में अत्यंत भव्य एवं डवशाल र्ं डदर बने । ○ मंविरों की साज सज्जा एवं अलं करण काफी
● मंविरों के साथ अत्यंत कलात्मक एवं खू बसूरत र्ू डताय ं खूबसू रत है । वजसका प्रमुख उदारण रामेश्वरम् का
का डनर्ाा ण हुआ तथा कुछ की डदवार ं पर डचत्रण भी गवलयारा है ।
वकया गया। ○ ऐसा लगता है वक यहााँ आते आते द्रडवड वास्तुकला ने
● च ल र्ं डदर ं की डवशेषताएं अपना सवोच्च स्तर पाप्त कर वलया हो।
○ वगाा कार गभा गृह, घटते क्रम में डपराडर्िाकार ○ नायक मंविर स्थापत्य र्ू डता एवं डचत्रकला के अद् भुद
डशखर। संगर् है ।
○ सवोच्च भाग पर स्तूडपका, गभि गृ ह के चारो ओर ○ बाहरी विवारो पर ग पुरर् के बाहरी भाग स्तंभ ं
अन्तराल, गभि गृह के सामने र्हार्ं िप, अिार्ंिप आवि पर अत्यन्त कलात्मक ढं ग से अनेक दे वी-
तथा नदी र्ं िप जैसी संरचनाओं का डनर्ाा ण हुआ है दे वताओं की र्ू डताया बनायी गयी है ,
○ चारदीवारी प्रां गण में तालाब एवं सहायक मंविर, ○ र्दु रै के र्ीनािी र्ं डदर में अत्यंत खू बसूरत डचत्रण
िे वी-िे वता एवं राजारानी के मंविर। भी वकया गया है ।
○ िो द भव्य ग पुरर् का वनमाि ण हुआ है
3. बेसर शैली के र्ंडदर
○ प्रर्ु ख र्ं डदर में नतमलई मंविर, तं जौर का वृ हिे श्वर,
गगईकोडचोलपुरम का मंविर, एरावते श्वर एवं ● बे सर र्ं डदर ं का डनर्ाा ण मुख्यतः डवंध्य
कपहरे श्वर मंविर आवि मुख्य मंविर है पवातर्ाला से कृष्णा घाटी के बीच
● च ल र्ं डदर ं के डवशेष लिण – (वति मान महारािर एवं कनाि टक) हुआ।
○ चोल मंविरों का डनर्ाा ण ग्रेनाईट के बडे -बडे पत्थर ं ● वे सर मंविरों का डवकास र्ु ख्यतः 7 वी
से वकया गया है , ये अपनी भव्यता एवं डवशालता के से 13वी ं सदी के बीच पविमी चालु क्य ,ं राष्ट्रकूट तथा
वलए जाने जाते है । ह यसल शासकों के द्वारा कराया गया।
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● वे सर शैली र्ौडलक शैली नही ं है बक्लल्क यह नागर एवं ● बादार्ी गुफा र्ं डदर बािामी में क्लस्थत हैं ।
द्रडवण शैली का डर्श्ण है । ○ लाल बलु आ पत्थर से बनी इन गु फाओं में तीन
● बे सर र्ं डदर ं की िरातल योजना एवं आकार द्रडवण िाह्मणवादी और एक जैन (पाश्वि नाथ) और एक
र्ं डदर जैसे होते है । इसका डशखर ढ लाकार या प्राकृवतक बौद्ध गु फा है ।
पीपानुमा होता है । गभा गृह, र्ण्डप एवं सवोच्च भाग पर ○ मुख्य रूप से बािामी के गु फा मंविरों में डवष्णु की
स्तूडपका आवि द्रववण मंविरों जैसे बने होते है । उत्कृष्ट् र्ू डतायां हैं ।
● लेवकन अलं करण एवं सजावट नागर र्ं डदर ं जैसा होता ● बािामी के चालुक्यों का सबसे बडा र्ं डदर पत्तदकल में
है । डवरुपाि र्ं डदर है , वजसके पररसर में 30 उप र्ं डदर और
एक बडा नािी र्ं िपर् है ।
● आवधकां श वेसर र्डदर ं का गभागृह वगाा कार होता है ।
○ यह मंविर यूनेस्क का डवश्व िर हर स्थल है ।
लेवकन उसके अपवाद भी वमलते है जैसे होयसल शासकों
के तहत बने र्ं डदर का गभा गृह बहुक णीय या तारा पत्तदकल र्ं डदर पररसर - यू नेस्क डवश्व िर हर स्थल
आकृडत में बना होता है ● मंविर पररसर में 10 र्ं डदर हैं - उनमें से चार नागर शैली के
● बे सर शैली के र्ं डदर हैं और बाकी छह द्रडवड शैली की ववशे षताएं विखाते हैं ।
○ चालुक्यों द्वारा र्ु ख्यतः तीन केंद्र पर बहुसंख्यक ● पट्टाडकल में डवरुपाि र्ं डदर, यहां का सबसे बडा
र्डदर ं का वनमाि ण वकया गया मंविर है । इसके पररसर में 30 उप र्ं डदर और एक बडा
■ एहोल नािी र्ं िपर् है ।
■ बािामी ○ यह डशव र्ं डदर ं का सबसे पहला उदाहरण था,
वजसमें मंविर के सामने एक नंदी र्ं िप है ।
■ पिाक्कल
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○ मंविर में पौराडणक कथाओं के ववषयों के अनेक E. र्ं डदर वास्तुकला के पाल और सेन स्कूल
खू बसूरत प्रडतर्ार् ं का डनर्ाा ण वकया गया है । ● बं गाल िे त्र में वास्तु कला की शैली ।
○ रावण द्वारा कैलाश पवात उठाने, ववष्णु के नरडसंह ● यह पाल वं श और से न वं श के संरिण में 8 वी ं और 12 वी ं
अवतार, डशव-पावाती डववाह, वशव का वैभव रूप, शताब्दी मध्य की अववध में ववकवसत हुआ।
वशव का तां िव नृत्य, आवि अद् भूत है । ● पाल वं श लोग मुख्य रूप से र्हायान परं परा के बौद्ध
○ यहा अनेक िर्ा डनरपेि र्ू डता यााँ भी बनी है । पहाडी शासक थे, लेवकन बहुत सडहष्णु थे और द न ं िर्ों का
को काटकर हाडथय ं के झुण्ड की र्ू डता यां बनी है संरिण करते थे।
जो काफी कलात्मक है । ● पाल राजाओं ने बहुत से डवहार, चैत्य और स्तूप बनवाए।
○ एलोरा की वास्तुगत एवं डशल्पगत डवशेषताओं को ● से न वं श के लोग डहं दू थे और उन्होंने डहं दू दे वताओं के
िे खकर कहा जा सकता है वक यह भारत मे ववकसीत र्ं डदर ं का डनर्ाा ण वकया और बौद्ध स्थापत्य भी बनाए
शैलकृत वास्तुकला का सवोत्कृष्ट् उदाहरण है रखा।
इसके पूवि चैत्य ,डवहार एवं र्ंडदर भी पहाडी को ● इस प्रकार वास्तु कला ने द न ं िर्ों का प्रभाव िशाि या है ।
काटकर बनाये गए थे | ● डवशेषताएं :
○ इमारतों में एक घुर्ावदार या ढलान वाली छत थी,
C. ह यसल र्ं डदर जैसे बां स की झोपवडयों में होती है ।
● रािरकूटों के बाि िक्कन मे ह यसल शासक ं का ○ यह लोकवप्रय रूप से बं गला छत के रूप में जाना
आगर्न हुआ। इसके द्वारा भी अनेक र्ं डदर ं का डनर्ाा ण जाता है और बाि में मुगल वास्तुकार ं द्वारा
कराया गया। अपनाया गया था।
● होयसल मंविर भी बे सर शैली के र्ं डदर है । इनकी कुछ ○ जली ं हुई ईंट और डर्ट्टी वजसे टे राक टा ईंट ं के रूप
डवशेषताएं भी है ।जैसे में जाना जाता है प्रर्ु ख डनर्ाा ण सार्ग्री थी।
○ यहां के मंविरों का गभागृह ताराकृडतक/ बहुक णीय ○ इस िे त्र के मंविरों का डशखर लं बा ग लाकार था,
रूप में बना है । वजस पर ओडिशा के स्कूल के सर्ान एक बडा
○ द -द गभागृह भी बने है । अर्ालक रखा गया था।
● होयसलेश्वर मंविर (हे लववड कनाि टक )। ○ इस िे त्र की मूवतियों में पत्थर के साथ-साथ िातु का
● चेन्नाकेश्वर मंविर (वे ल्लूर कनाि टक) उपय ग वकया गया था।
● पिाक्कल एवं मैसूर के मंविर ○ पत्थर इनका प्रर्ु ख घटक था। यहााँ की मूवति यााँ
अत्यडिक चर्कदार थी, जो वक इसे अवद्वतीय बनाता है ।
D. डवजयनगर र्ं डदर (14 -16 वी शताब्दी)
○ उदाहरण: बराकर में वसद्धे श्वर महािे व मंविर,
● ववजयनगर साम्राज्य की स्थापना, हररहर और बु क्का
ववष्णुपुर के आसपास के मंविर आवि।
द्वारा 1336 में की
● डवशेषताएं भारत र्ें सूया र्ंडदर
○ वगाा कार गभागृह, डपराडर्िाकार डशखर एवं सवोच्च सू यि मंविर सू यि िे व सू यि को समवपित हैं । िे श में कई सूयि मंविर
भाग पर स्तूडपका हैं ।
○ गभि गृह के चारो तरफ अन्तराल
1. क णाका सू या र्ं डदर
○ ववजयनगर के मंविरो में गभा गृह के सार्ने अने क
र्ं िप ं का डनर्ाा ण वकया गया। जैसे र्हार्ं िप, ● कोणाकि सू यि मंविर पूवी ओडिशा के पडवत्र शहर पुरी के
कल्याणर्ं िप, यज्ञर्ं िप (यहा बवल िी जाती थी) पास क्लस्थत है ।
अर्न र्ं डदर (सहायक मंविर) आवि। ● इसका डनर्ाा ण राजा नरडसंहदे व प्रथर् द्वारा 13वीं
○ ववजयनगर के र्ं डदर अत्यन्त खू बसुरत एवं साज शताब्दी (1238-1264 ई.) में वकया गया था। यह गं ग वं श
सज्जा यु ि है । के वै भव, स्थापत्य, मज़बू ती और क्लस्थरता के साथ-साथ
○ मंविरों के बाहरी भागों में स्तभों आवि पर अत्यंत ऐडतहाडसक पररवेश का प्रडतडनडिि करता है ।
बारीक एवं खू बसूरत डशल्प बनाए गए हैं । वजसमे ● पूवी गं ग राजवं श को रूडि गंग या प्राच्य गंग के नाम से
उडते हुए अश्व, कर्लपुष्प आवि के वशल्प काफी भी जाना जाता है ।
अनोखे है ● मध्यकालीन यु ग में यह डवशाल भारतीय शाही राजवं श
○ ववजयनगर के मंविरो का ग पुरर्् पल्व ं एव च ल ं था वजसने कवलंग से 5वी ं शताब्दी की शुरुआत से 15वी ं
से भी भव्य है । शताब्दी की शुरुआत तक शासन वकया था।
○ प्रर्ु ख र्ं डदर में नल्लौर का ववष्णु मंविर, हम्पी के ● पूवी गं ग राजवं श बनने की शु रुआत तब हुई जब इं द्रवर्ाा
मंविर, ववट्ठल स्वामी मंविर, हजारा, ववरूपाि आवि प्रथर् ने डवष्णु कंु डिन राजा क हराया।
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● मंविर को एक डवशाल रथ के आकार र्ें बनाया गया है । 4. दडिणाका र्ं डदर, गया (डबहार)
● यह सूया भगवान क सर्डपात है । ● वारं गल के राजा प्रतापरुद ने 13वी ं शताब्दी में बनवाया
● कोणाकि मंविर न केवल अपनी स्थापत्य की भव्यता के वलये था।
बक्लल्क र्ू डताकला काया की गहनता और प्रवीणता के वलये ● सूया भगवान की र्ू ती के वलए इस्ते माल वकया जाने वाला
भी जाना जाता है । पत्थर ग्रे नाइट से बना है
● यह कडलं ग वास्तुकला की उपलक्लि का सवोच्च डबंदु है ● िे वता फारसी प शाक जैसे जूते और एक जैकेट पहने हुए
जो अनुग्रह, खु शी और जीवन की लय को िशाि ता है । हैं ।
● 1984 में यूनेस्क द्वारा डवश्व िर हर स्थल ।
5. सूयानारायण स्वार्ी र्ं डदर, अरासवल्ी (आं ध्र प्रदे श) -
● कोणाकि सू यि मंविर के िोनों ओर 12 पडहय ं की द
पंक्तियााँ हैं । ● यह कवलंग राजवं श के शासक राजा दे वेंद्र वर्ाा द्वारा
● सात घ ड ं को सप्ताह के सात ं डदन ं का प्रतीक माना डनडर्ा त 7वी ं शताब्दी ईस्वी का सूयि मंविर है ।
जाता है । ● डनर्ाा ण इस तरह से वकया जाता है वक सूयि की वकरणें
● समुद्री यात्रा करने वाले लोग एक समय में इसे 'ब्लै क र्ाचा और डसतंबर के दौरान शुरुआती घं ट ं (सू योिय के
पग िा' कहते थे, क्योंवक ऐसा माना जाता था वक यह समय) में (गभि गु डी में) र्ू डता के पैर ं पर पडती हैं ।
जहाज ं को डकनारे की ओर आकडषा त करता है और ● ववमान गोपुरम के अंिर की मूवति यों को एक ही काले
उनको नष्ट् कर िे ता है । पत्थर से उकेरा गया है ।
● क णाका ‘सू या पंथ’ के प्रसार के इवतहास की अर्ू ल्य 6. सूयानार क डवल, कुम्बक णर् (तडर्लनािु )-
कडी है , वजसका उदय 8वी ं शताब्दी के िौरान कश्मीर में
● यह मंविर तवमलनाडु के नवग्रह र्ं डदर ं र्ें से एक माना
हुआ, अंततः पूवी भारत के तट ं पर पहुाँ च गया।
जाता है ।
2. र् ढे रा सूया र्ं डदर, गुजरात ● 11वी ं शताब्दी में कुल त्तुं ग च लदे व (एडी 1060-1118) के
● सोलंकी राजवं श के भीर् प्रथर् के शासनकाल के दौरान शासनकाल के िौरान वनवमित; ववजयनगर काल में और
1026-27 ईसवी के बीच वनवमित। दु सरे पररवता न वकये गये ।
● यह र्ं डदर पुष्पावती नदी के तट पर क्तस्थत है । 7. िाह्मण्य दे व र्ं डदर, उन्नाव (र्ध्य प्रदे श)
● सवर् र्ीटर का आयताकार कंु ि (टैं क) शायद भारत
● दडतया के राजा द्वारा प्रागैवतहावसक काल में डनडर्ा त।
का सबसे भव्य र्ं डदर तालाब है ।
● मंविर में इक्कीस डत्रक ण की नक्काशी है , जो सू यि के
● तालाब के अंिर की सीवढयों के बीच 108 लघु र्ं डदर
21 चरण ं का प्रडतडनडिि करती है ।
बनाए गए हैं ।
● मंविर के नीचे पहूज नदी बहती है ।
● मंविरों के हॉल और स्तंभ ं क बडे पैर्ाने पर उकेरा
गया है । ● पहूज नदी के पानी में पाया जाने वाला सल्फर ति चर्ा
एक ववशाल सजावटी र्े हराबदार सभा र्ं िप (ववधानसभा र ग ं के उपचार र्ें सहायक होता है ।
हॉल) में आगंतुक ं का स्वागत करता है , जो सभी तरफ से
पहाडडय ं र्ें र्ंडदर की वास्तुकला
सु लभ है , जैसा वक उस समय पविमी और मध्य भारतीय
मंविरों में प्रथा थी। ● कुर्ाऊं, गढवाल, डहर्ाचल और कश्मीर की पहाडडय ं
में; वास्तु कला का एक अनूठा रूप ववकवसत हुआ।
3. र्ातंि सूया र्ं डदर, कश्मीर
● कश्मीर गां धार िे त्रों (तिवशला, पेशावर, आवि) के करीब
● ककोट राजवंश द्वारा वनवमित, होने के कारण 5 वी ं शताब्दी ईसवी तक गां िार शैली से
● सू यि मंविर का वनमाि ण 8 वी ं शताब्दी ईस्वी में ककोट काफी प्रभाडवत था।
राजवं श के तीसरे शासक लडलताडदत्य र्ु िापीि द्वारा ● गां धार प्रभाव गुप्त और उत्तर-गुप्त परं पराओं के साथ
वकया गया था।
डर्डश्त हो गया जो इसमें सारनाथ, र्थुरा और यहां तक
● मातं ड का संस्कृत में अथा होता है सू यि।
वक गुजरात और बं गाल के केंद्रों से लाए गए थे।
● सं रचना का वनमाि ण चूना पत्थर से वकया गया है , और पूरे
● ब्ाह्मण पंवडत और बौद्ध वभिु अक्सर पहावडयों की यात्रा
पररसर को अनंतनाग के पास एक पठार के ऊपर
करते थे, वजसके पररणामस्वरूप पहावडयों में डहं दू और
बनाया गया है ।
बौद्ध िोनों परं पराओं का र्े ल होता था।
● भारत सरकार ने खंडहर हो चुके र्ं डदर पररसर क
● पहावडयों की वास्तु कला में पक्की छत ं वाली लकडी की
पयाटक ं के डलए खोल विया है
इर्ारत ं की ववशेषता थी।
इस स्थल को राष्ट्रीय, ऐडतहाडसक और स्थापत्य र्हि
का माना जाता है और इसवलए यह भारतीय पुरातत्व ● कुछ पहाडी िे त्रों में हमें र्ु ख्य गभागृह और डशखर वमलते
सवे िण के अंतगि त आता है । हैं जो रे खा-प्रसाद या लै डटना शैली में बने होते हैं , जबवक
र्ं िप काष्ठ वास्तुकला के पुराने रूप का है ।
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● वास्तु कला की दृवि से कश्मीर का काकोट काल सबसे ○ सबसे बडा बौद्ध र्ं डदर इं डोनेवशया के बोरोबु िुर में
र्हिपूणा है । पाया जाता है वजसका डनर्ाा ण 8वी ं शताब्दी ईस्वी में
● 8वी ं और 9वी ं शताब्दी के िौरान बना पंिरेथन र्ं डदर एक हुआ था।
तालाब के बीच में बने चबू तरे पर बना है । ● चंपा वास्तुकला-
● लिणा दे वी र्ं डदर में र्डहषासुरर्डदा नी और नरडसम्हा ○ मंविर वास्तुकला की यह शैली छठी और स लहवी ं
की छववयां उत्तर-गुप्त परं परा के प्रभाव झलकाती हैं । शताब्दी ईस्वी के बीच ववयतनाम के कुछ वहस्सों में
● कुर्ाऊं में, अल्मोडा में जागे श्वर और डपथौरागढ के पास ववकवसत हुई।
चंपावत जैसे मंविर इस िे त्र में नागर वास्तुकला के ○ मंविरों के डनर्ाा ण र्ें लाल ईंट ं का प्रय ग वकया
उिाहरण हैं । जाता था।
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स्तूप ं के प्रकार
र्ु ख्यतः चार प्रकार
1. शारीररक स्तूप- बु द्ध या वकसी सं त के शारीररक अवशेषों
पर बना।
2. पररभ डगक स्तूप-: सं तों ,आचायो द्वारा उपभोग की गयी
वस्तु ओं पर बना।
3. उद्दे श् र्ूलक स्तूप: बोद्ध धमि के प्रचार के उििे श् से बना।
4. पूजाथाक स्तूप - पूजा के उद्दे श् से बना।
स्तूप ं का दशान
2. डपपराहवा स्तूप
● स्तू पों के वनमाि ण के पीछे दाशाडनक अविारणा का प्रभाव ● उत्तर प्रदे श में मौजूि यह सबसे पुराना स्तू प है ।
था। ● गणवररया के डनकटवती टीले पर प्राचीन आवासीय
● ऋग्वे द र्ें ऊाँची उठती हुई अडभव्यक्तिय ं (जैसे- सू यि की, पररसर ं और र्ं डदर ं की ख ज हुई थी
आवग्न की ज्वाला , फैले वृ ि ) को स्तूप कहा गया है । इसी ● डपपराहवा-गंवररया को शाक्य साम्राज्य की राजधानी
प्रकार ब द्ध परम्परा में स्तूप को आनद का प्रतीक कडपलवस्तु भी माना जाता है , जहां वसद्धाथि गौतम ने अपने
माना गया है । इसके डवडभन्न अंग, अनेक दाशाडनक जीवन के पहले 29 वषि वबताए थे ।
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6. नागाजुा नक ि
ं ा स्तूप चैत्य
● स्थल पर गौतर्ीपुत्र डवजया सातकणी का एक ● ये बौद्ध डभिुओ ं द्वारा उपय ग वकए जाने वाले पूजा स्थल
डशलाले ख भी खोजा गया है , और यह सावबत करता है वक हैं ।
इस समय तक इस िेत्र र्ें बौद्ध िर्ा फैल गया था। ● इसकी पूजा की एक वस्तु है वजसे 'स्तूप' कहा जाता है
● अर्रावती शैली के प्रभाव को िे खा जा सकता है । ● हीनयान काल (पहले बौद्ध धमि) में प्रतीकात्मक पूजा की
7. भरहुत स्तूप जाती थी, इसवलए बु द्ध और सं बंडित दे वताओं की कोई
● यह र्ध्य प्रदे श के सतना वजले में है । इसका डनर्ाा ण भी मूवति स्तू प पर नही ं उकेरी गयी है ।
● र्हायान (बाि में बौद्ध धमि) में , सं बंवधत दे वताओं और
र्ु ख्यतः अश क के द्वारा कराया गया
जातक कहाडनय ं को उकेरा और डचडत्रत वकया गया है ।
● शुंग के संरिण र्ें इसका और ववकास हुआ।
स्तू प पर डवडभन्न र्ु द्रा र्ें बु द्ध को भी उकेरा गया है । वे
● भरहुत के स्तू प का सम्पूणा ढां चा प्राप्त नही ं हुआ है ।
आम तौर पर आकार र्ें चतुभुाज होते हैं ।
○ केवल पूवी त रण द्वार एवं वै विका का भाग जनरल
कवनघम ने प्राप्त वकया था र्ौया गुफाएं (तीसरी ईसा पूवा- पहली ईसवी )
○ इसकी वे विका पर स्तूप की र्ू ल आकृडत बनी है
● डवशेषताएं
वजसके आधार पर यह माना जाता है वक यह
○ अत्यवधक पॉवलश की गई आं तररक सतह।
घटां आकृडत था
○ सजावटी प्रवे श द्वार
गुफा वास्तुकला 1. बराबर और नागाजुा नी गु फाएाँ
● गु फा वास्तु कला को अक्सर शैलकृत ● बराबर और नागाजुिनी की गु फाएं जुडवा पहाडडय ं पर
वास्तुकला कहा जाता है । बनी है
● भारतीय शैलकृत वास्तुकला गु फाओं में ● बराबर की गु फाएं ग्रेनाइट क काटकर बनाई गई है ।
िे खी जाने वाली वास्तु कला के मुख्य रूपों में से एक है । ● यह गु फाएं मौयि काल के सम्राट अश क और दशरथ र्ौया
● यह ठ स प्राकृडतक चट्टान को तराश कर एक संरचना से संबंडित है ।
बनाने का अभ्यास है । ● बराबर की गु फाओं का उपय ग आजीडवका संप्रदाय
● मूवति यों के साथ-साथ कुछ गुफाएं डचत्रकारी के वलए द्वारा वकया गया जो जैन धमि से सं बंवधत बताया जाता है
प्रडसद्ध हैं जैसे अजं ता की गु फाएं । ● बौद्ध और जैन िर्ा का डहं दू िर्ा से अटू ट लगाव के
● प्राचीनतर् गुफाएाँ प्राकृडतक गु फाएाँ थी ं वजनका उपयोग कारण इन गु फाओं में डहं दू दे वी दे वताओं की र्ू डतायां भी
लोग वववभन्न प्रयोजनों के वलए करते थे जैसे वक तीथि और
पाई जाती है ।
आिय।
● आकषा क प्रडतर्ध्डन प्रभाव भी बराबर की गु फाओं में
● भारतीय शैलकृत वास्तुकला ज्यािातर िाडर्ा क प्रकृडत की है ।
महसू स वकया जा सकता है ।
● भारत में 1,500 से अडिक शै लकृत सं रचनाएं हैं ।
● बराबर पहावडयों की प्रडसद्ध 4 गुफाएं हैं
● र्ौया काल के िौरान शैलकृत गुफा वास्तुकला का उदय
○ लोमस ऋवष गु फा
हुआ।
○ सु िामा गु फा
● इनका डनर्ाा ण ठोस प्राकृडतक चट्टान को तराश कर
○ कणि चौपर
वकया गया था।
○ ववश्व झोपडी
● सबसे पुराने गु फा र्ं डदर ं में भाजा गु फाएं , काले की
बराबर की गुफाएं
गु फाएाँ , बे डसा गु फाएं , कन्हे री गु फाएं और अजंता गु फाएं
स्थान जाहानाबाि वजला, वबहार
शावमल हैं ।
डनदे शां क 25.005°N 85.063°E
डवहार डनर्ाा ण वषा 322-185 ई. पू.
● गु फाओं का वनमाि ण जैन और बौद्ध डभिुओ ं के डनवास उपनार् बराबर, सतघरवा, सतघरवााँ
के डलए वकया गया था। 2. उदयडगरर और खं िडगरी गु फाएं , ओडिशा
● ववहारों की योजना में एक बरार्दा, एक हॉल और हॉल
● इन गु फाओं को भु वनेश्वर के पास पहली-दू सरी शताब्दी
की दीवार ं के चार ं ओर कि शावमल हैं ।
ईसा पूवि में कवलंग नरे श खारवेल के शासन में बनाया गया
● प्रारं वभक ववहार गु फाओं में से कई आं तररक सजावटी
था।
रूपां कन ं जैसे चैत्य मेहराब और गु फा के िरवाजों पर
● र्ानव डनडर्ा त और प्राकृडतक गुफाएाँ हैं जो सं भवतः जै न
वेडदका डिजाइन उकेरी गई हैं ।
वभिु ओं के वनवास के वलये बनाई गई थी।ं
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