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विधरु प्रसाद अमर रहे ।

दृश्य-१

( भीषण अंधेरा है , मंच के एक हिस्से से कुछ आवाज़ आरही है । रोशनी पड़ते ही एक नवयव
ु क भारी अंग्रेज़ी वेष भष
ू ा
में हाथ में एक सट
ू केस लिए खड़ा है ।)

यवु क - "द ईगल हे स रीच्ड! कोऑर्डिनेट्स आइडेंटिफायेड। एफर्मेटिव। मिशन कंप्लीशन एप्रॉक्स इन 0300। कॉपी।
( ख़द
ु से)
ओके ईगल इट्स टाईम टू किल द प्राईम मिनिस्टर।

दृश्य -२
( प्रधानमंत्री विधरु प्रसाद का घर , दे र रात का समय । घर में खब
ू अंधेरा है ।भीषण सन्नाटे के बीच दे सी वेशभष
ू ा में
एक यव ु क दबे पांव घर को तलाशता हुआ। )

बबलू - " सब सोत मालम


ू हो रहे ... बबलू बेटा जल्दी से काम निपटाओ और भाजो ।(नेपथ्य से आहट आती है )
मरा!मरा!मरा!"

( हड़बड़ाहट में बबलू छिप नहीं पाता और सोफे पर बैठ जाता है । मंच पर ईगल का प्रवेश)

ईगल - (लंबी सांस लेते हुऐ सट


ू केस मेज़ पर रखता है ।) "सिक्योरिटी ब्रीच सक्सेसफुल .. आईएम इन.." ( सोफे पर
बैठने लगता है )

बबलू - "आह"..

ईगल -" कौन है बे? कौन है .. (जल्दी से बत्ती ढूंढकर जलाता है ) अबे ये कार्टून कौन है ?"

बबलू - " भाईसाब इज़्ज़त से बोलिए।"

ईगल - " कार्टून महोदय आप कौन है और इस अनगॉडली आवर में प्रधानमन्त्री के निवास पर क्या कररहे हैं? हे
भगवान ये नेता लोगो का चाल चलन!"

बबलू -" ए... हम कुछ काम से .. हां काम के सिलसिले में आए हैं यहां..।"(घबराते हुए)

ईगल - " खाता खल


ु वाने आया है ?"

बबलू -" अबे धीरे बोल इत्ती सी बात के लिए प्रधानमन्त्री को बल


ु ाएगा क्या? और आप ये वेटर बने इस अन... अन...
अईश्वरीय घंटे में क्या कररहे हैं?"

ईगल - " तू मझ
ु े नहीं पहचानता? तू मझ
ु े नहीं पहचानता? डार्क वेब का सबसे बड़ा कांट्रेक्ट अस्सासिन और यहां
एक मर्डर करने आया हूं।"
बबलू - " पहचान लिए जाओ तो काहे का बड़ा मर्डरर। ( चौकते हुए) हैं!!!??? मर्डर करने आए?
हमको अकेले डर लगरहा था.. आप साथ दे ने आ गए , अरे गले मिलो भईया हम भी मर्डर ही करने आए।"

ईगल - "अबे पार्क है क्या? मर्डर करने आए.. प्रधनमंत्री है दे श का... स्टूडेंट या किसान नहीं की कहीं भी मार काट के
फेक दो तो कोई पछ ू े गा नहीं। तेरे बस में नहीं है तू जा कोई दस
ू रा काम ढूंढ। "

बबलू - " हम क्यों ढूंढें? .. हम कहीं नहीं जायेंगे .. हम तो काम परू ा करके जाएंगे।"

ईगल - "दे ख मर्डर तो मैं ही करूंगा.. तू असिस्ट कर लियो चल .. अब मेरा ज़्यादा मत्था मत घम
ु ा वरना एक करने
आया हूं तेरा मफ़्
ु त में कर जाऊं गा.."
(नेपथ्य से भारी आहट आती है )

विधरु - " चन
ु ाव सर पर हैं आधी नींद वैसे हराम है और गलती से नींद आजाये तो .. कौन है ?"

( हड़बड़ाहट में दोनों इधर उधर छुपने को दौड़ते हैं, बबलू पीछे जाके छिप जाता है पर ईगल बीच में ही खड़ा रह
जाता है ।)

विधरु - (ताड़ते हुए) (संदेह से) अरे तम


ु आगए? मोहन के भतीजे हो ना तम
ु ..बताया था मोहन ने .. वो क्या नाम था
तम्
ु हारा ....बंसी?"

ईगल - "जी, जी बंसी। प्रणाम।"

विधरु - "तम
ु तो कल आने वाले थे . आज अचानक इस समय?"

ईगल - "आपके दर्शन करने को उत्सक


ु था, गाड़ी मिल गई आज की सो सीधा आ गया।"

विधरु - " अच्छा है ...अच्छाहै । और बड़े अजीब मेहमान हो घर में घस


ु आए और अपने आप से गप्पे लड़ाने शरु

करदिए।"

ईगल - "जी वो बस ऐसे ही.."

विधरु - आओ बैठो बैठो... वैसे भी थोड़ी दे र में मोहन भी आता होगा पार्टी अध्यक्ष को लेने गए हैं... एक अर्जेंट
मीटिंग बल
ु ाई है .. अरे खेर ये राजनीति की बातें तमु से क्या कर रहा हूं.. तम
ु तो लेखक हो सनु ा है ?

ईगल - "जी ऐसे थोडा मोड़ा कभी कभी.. मां का आशीर्वाद है ।"

विधरु - "मां! मां तो मर गई...?"

ईगल - "कब? .. मेरा मतलब आशीर्वाद तो जिंदा है मालिक।"

विधरु - "अरे तम्


ु हारी मां की ...दआ
ु लगे तो हम भी चन
ु ाव जीत जाएं.. चलो आओ आज प्रधानमन्त्री के साथ दारू
पियो.. बैठो आओ।"
( दारू की बोतल और गिलास निकाल के लाता है )

ईगल - " जी मैं पीता नहीं हूं।"

विधरु - " हैं!! तम्


ु हारा चाचा तो तम्
ु हारी दारू ही छुड़वाने शहर लाया है ।"

ईगल - "नीट बनाना मालिक।"

विधरु - ( पैग बनाते हुए) "अब कुछ सन


ु ा भी दो अपना लिखा।.. बिना नखरे वरना चाचा से सीधी बात करवाऊं?"

ईगल - "अरे .. मझ
ु े शर्म आती है ।"

विधरु - "वो तम्


ु हारा चाचा तो बोलता है तम
ु बड़े बेशर्म किस्म के हो।"

ईगल - "एक तो मेरा चचा...बहुत मज़ाकिया है ।"

विधरु - " तम
ु कुछ सन
ु ाते हो या तम्
ु हारे चाचा से ही शिकायत करूं?"

ईगल - " थक जाएगा चलते चलते.. कभी तो विश्राम कर,


पीछे वाले आगे आकर जल्दी से काम तमाम कर।"

( विधरु और बबलू साथ साथ वाह वाह करते हैं।)

विधरु - " हैं? तम


ु को आवाज़ सन
ु ाई दी?"

ईगल - " आपको तो एक ही में चढ़ गई मालिक... थोड़ी दे र में तो लड़की की आवाज़ भी सन
ु ाई दे गी।"

( कुछ दे र ख़ामोशी के बाद विधरु भावक ु होने लगता है ।)


विधरु - " बंसी... मैंने बहुत पाप किए हैं.... बहुत से लोग है जो मझ ु े अपना भगवान मानते हैं लेकिन मैं दानव हूं
बंसी। इस कुर्सी पर बैठकर जो ताकत मझ ु े मिलती है .. मैंने कभी उसके साथ न्याय नहीं किया। मझ ु पर रे प केस है ,
भ्रष्टाचार केस है .. मैंने बहुत से चन
ु ावों में वोट खरीदा, जौनपरु के दं गे भड़का कर होने भी दिए... राजनीति ने निजी
जीवन तो खतम ही करदिया। बीवी से सीधे मह ंु बात नहीं की कभी, बेटे को पढ़ने विदे श भेज दिया!(टूटी हुई आवाज़
में ) मझ
ु े भयानक सपने आते हैं। उसकी अदालत में मझ ु े क्या सज़ा मिलेगी?

ईगल - " मालिक पहले उस की अदालत तक पहुंच तो जाओ।"

विधरु - " मोहन के भतीजे का नाम पप्पू है , और वो तीन दिन पहले ही यहां आ गया था, अभी अपने चाचा के साथ
पार्टी ऑफिस ही है .. मिलवाऊंगा तम्
ु हें .. अच्छा लड़का है ।"

(बबलू घबरा कर पीछे से बत्ती बन्द कर दे ता है । मंच पर भीषण अंधेरा और अजीब आवाज़ें।)
-"खोल बत्ती जल्दी खोल"
( फिर रोशनी होती है , सोफे पे प्रधानमंत्री की लाश पड़ी है । बबलू और ईगल दोनों ही भौचक्के होकर लाश को दे खते
हैं।)

ईगल - (घबराते हुए) "त.ू . तू तो पक्का खिलाड़ी निकला... मार दिया। मार दिया !"

बबलू - " अच्छा खद


ु मार कर नाम मझ
ु पे डाल दे ... मैंने कुछ नहीं किया।"

ईगल - " मैं किसी और का क्रेडिट नहीं ले सकता.. मेरे उसलू नहीं ये। (पलि
ु स के सायरन की आवाज़ आती है ) गए!
पार्टी की अर्जेंट मीटिंग .. पलि
ु स , नेता लोग सब आने वाले हैं!"

बबलू - " एक पैग मैं भी मारल?


ू बहुत डर लग रहा है ।"

ईगल - " चप
ु चाप इनको उठा और छुपा।"

बबलू - "हां दे श का प्रधान मंत्री गायब है किसी का ध्यान थोड़ी जायेगा।"

ईगल - " जल्दी।"


( दोनो लाश को उठाकर नेपथ्य में ले जाते हैं और वहीं छिप जाते हैं ।)

दृश्य-३

( पलि
ु स कमिश्नर, मोहन, पप्पू , पार्टी अध्यक्ष मौसीन हुसन
ै और न्यज़
ू एडिटर इन चीफ़ अभिलाष दिवेदी प्रवेश
करते हैं।)

हुसन
ै - "यहां तो पार्टी हो रही है ।"

मोहन - "माफी साहब मैं साफ करवाता हूं, अरे ! पप्पू ये साफ़ कर ज़रा मैं विधरु साहब को उठा कर लाता हूं।"

हुसन
ै - " लगता हैं आपके विधरु साहब ने बांटने वाली दारू ही खोल ली... एक वोट खा गए पार्टी का... वैसे भी
ओपिनियन पोल में साफ हार बता रहे हैं।"

कमिश्नर - "शभ
ु शभ
ु बोलो हुज़रू । आप तो डरा रहे हो। आपका हाथ सर से गया तो बहुत सी फाइलें खोल दें गे
अपोजिशन वाले।"

हुसन
ै - " गलत क्या करें गे? हमने भी तो परु े ५ साल उनका टै टूया दबाए रखा...२ दिन है .. नतीजा बदल सकते हो
तो बदलो।"

पप्पू - ( साफ करते हुए) "मीडिया वाले बोल रहें हैं, इस बार सही को चन
ु ना है , इस बार शिक्षा और नीति पर वोट
होगा।"

हुसन
ै - (हस्ते हुए) " तम
ु हमारे वाले चैनल दे खा करो .. क्यों अभिलाष?"
अभिलाष - " अरे मालिक! और हां कमिश्नर साहब.. चन
ु ाव कभी भी सही गलत के बीच नहीं होता, चन
ु ाव हमेशा
गलत और उस समय लगने वाले कम गलत के बीच होता है ।"

हुसन
ै -" वाह ख़ब
ू ! और अगर शिक्षा और नीति पर वोट मिलते तो हम भी बेचते।"

(पप्पू दस
ू री ओर गिलास और बोतल रखने जाता है । एकदम से पसीने से लत पत मोहन प्रवेश करते हैं।)

मोहन - " विधरु जी ! विधरु जी ... परु ा बंगला छान मारा कहीं नहीं मिले!"

हुसन
ै - " अरे तो घबराओ मत .. परसों चन
ु ाव हैं नींद नहीं आती होगी.. कहीं सक
ु ू न ढूंढ रहे होंगे।"

पप्पू - " अरे ढूंढ लिया सक


ु ू न! ( बिलकते हुए) चचा ओ चचा! विधरु जी तो सक
ु ू न ढूंढ ने परलोक चले गए।" ( दहाड़ते
हुए)

मोहन - "क्या बकवास कर रहा है नसपीटे !"

पप्पू - " सच कह रहा हूं मैं सफाई कर रहा था तो वहां पर में कुछ लगा दे खा तो ...."

कमिश्नर - " रुको बताओ कहां.. अह मोहन जी भाभी जी को मायके से बल ु ा लीजिए और बोलिए जल्द से जल्द
आजाए, नाइटी में हो तो वही पहने अजाए। .. हां तम
ु चलो बताओ.. हुसन
ै साहब चलिए।"

दृश्य -४
( दसू री ओर से बबलू और ईगल प्रवेश करते हैं)

ईगल - "निकलने की कही जगह नहीं है हर तरफ़ पलि


ु स है ... हम... हम..फस गए हैं ।"

बबलू - " हम? हम? मैं तो कार्टून हूं न.. वैसे भी मैं सरकारी गवाह बन जाऊंगा ....।"

ईगल - "तझ
ु े पता भी है जिसे तन
ू े मारा है वो प्रधानमंत्री है ? "

बबलू -" मैंने मारा ही नहीं... तन


ू े मारा है डार्क वेब।"

ईगल - " चप
ु हो जा अनपढ़ .. मैं इंजीनियर हूं मझ
ु े कुछ सोचने दे ।"

बबलू - " आया कुछ दिमाग में ?"

ईगल - " हां! ...( चीखकर) खन


ू ी!खन
ू ी!खन
ू ी! "

बबलू - " ए भाई!... अच्छा हां हां हां .. खन


ू ी!खन
ू ी! खन
ू ी!

( बाकी सब भागते हुए आते हैं।)


कमिश्नर - " मादरचोद ... ए दोनों हाथ खड़े करो । चल साले चल। (रे डियो पर) कोड रे ड! कोड रे ड! फोरें सिक टीम
बलु ाओ और फोर्स और बलु ाओ। २ पाकिस्तानी या कश्मीरी हैं ...। कोड रे ड आई रिपीट।"
( हुसन
ै और अभिलाष पीछे खड़े हो लगातार फोन पर लगे है ।)

ईगल - "साहब मैंने कुछ नहीं किया.... मैं तो ये मंत्री जी के कातिल को पकड़वा रहा था। मैं तो मोहन जी का भतीजा
हूं .. बंसी।"

पप्पू - " अबे बावला हो गया है क्या? साहब ( पास जाकर सघ


ंू ता है ) पी रखी है ।"

कमिश्नर - (थप्पड़ जड़ता है ) भोसडीके! ये है मोहन जी का भतीजा।"

बबल-ू "हां मालम


ू है साहब .. इसकी मां मरी हुई है , ये लेखक है और दारू की लत है ।"

पप्प-ू " मेरी मां ज़िंदा है ! मैं लेखक नहीं हूं, एक्टर हूं और ३ दिन से दारू को हाथ नहीं लगाया.. आपकी कसम चाचा
जी।"

हुसन
ै - "बस ! कमिश्नर साहब दोनों की स्टे टमें ट लो और लेजाओ मेरी नज़रों के सामने से... वरना मैं ही दोनों की
खाल उधेड़ दं ग
ू ा।"

अभिलाष - " सिर आप शांत होजाएं। मश्कि


ु ल घड़ी है हम सब को हौसले से काम लेना होगा। और सिर ये परू ी भसड
मैं चाहता हुं अगर बस हमारा ही चैनल कवर करे तो सही रहे गी।"

(अभिलाष हुसन
ै को सोफे पर बिठाता है )

कमिश्नर - (ईगल से) "हां क्यों मारा?"

ईगल - "अरे मैंने नहीं मारा... मझ


ु े बहुत पैसे मिले थे इनका ख़न
ू करने के एक अजनबी से .. कौन क्या नहीं
पता..बस पैसे भिजवाए ... लेकिन मेरे मारने से पहले ये अपना काम कर चक ु ा था।"

कमिश्नर - ( बबलू से) "अभी मह


ंु खोल ले... तम
ु दोनो ने क्या किया है और क्या हश्र होने वाला है तम्
ु हारा तम
ु सोच
नहीं सकते। क्यों मारा?"

बबलू - " मारा नहीं साहब.. मारने आया था .. मैं भक्त था विधरु साहब का ... और उस दिन जब जौनपरु में दं गा
हुआ तो नेता जी विदे श जाने के लिए अपने कपड़े सिलवा रहे थे। मेरे सारे घरवालों को ज़िंदा जलाया... उस दिन
शायद मेरा बाप बच जाता... पर हस्पताल इतना दरू था की रास्ते में ही मेरे बाप की उम्मीद टूट गई। अंतिम क्रिया
सही से होगई... क्योंकि क्या है न मन्दिर बस १० कदम की दरू ी पर था।"

अभिलाष - " ही इज अ साइको! ... घर पे २ मौत होगइ तो प्रधनमंत्री मार दिया! तेरे जैसे सब बदला लेने लगे तो
इतने तो नेता नहीं दे श में ।अगर इतनी आग थी तो कानन
ू लड़ाई लड़ता ना... और

बबलू - (काटते हुए) "कानन


ू भी तो आप ही हो।"
हुसनै - " ये कम्यन
ू सिट है .. इसके मह ंु मत लगो। इन गटर छापों ने क्या किया है इन्हें अभी होश नहीं। जवानी का
गनु ाह इस पीढ़ी को क्रांति लगता है । ले जाओ ये साइको और ईगल को.. जो भी करो बस ज़िंदा रखना इन्हें । बाकी
बतादं ग
ू ा मैं। "

कमिश्नर - " सर। "


( तीनों प्रस्थान करते हैं।)

मोहन - " मालिक बहुत दिन से परे शान थे, कोई बात अंदर से खा रही थी, पर बात किस्से करते... ये कुर्सी उनका
सब सख
ु चैन खा चक ु ी थी। उस दे वता समान आदमी का खन ू कोई कैसे कर सकता है ।"

हुसन
ै - मोहन जी संभालो अपने आप को .. हमारे विधरु का सपना हमें परु ा करना है । पप्पू इनके साथ जाओ ..भाभी
जी भी आती होंगी । सबके साथ रहो । अगली सब
ु ह बहुत भारी होने वाली है ।

( दोनों प्रस्थान करते हैं)

हुसन
ै - " कल की प्रेस कांफ्रेंस में मोहन जी को भी बल
ु ाना। "

अभिलाष -" ये दोनों की कहनी नहीं दिखाएंगे पर... उल्टा बवाल भी होसकता है ।"

हुसनै - " सबको सवाल करना है ..सबको... अरे इतनी ही घिन्न है राजनीति से तो आओ कूद कर इसे साफ करदो।
नहीं वो तो नहीं होगा। कितना काबिल ईमानदार बच्चा है जो कहता है मैं नेता बनग
ंू ा। .. हम जेईई करलेंगे ..
यपू ीएससी करलेंगे.. कैट करलेंगे .. लेकिन इन सब को जो चलाएगा वो लॉटरी से निकाल लेंगे।"(मस्ु काते हुए)

अभिलाष - " हां कमाल है सर.. सबसे ज़रूरी पद के लिए तो कोई एलिजिबिलिटी क्राइटे रिया ही नहीं"

हुसनै - " इसी लिए तो इन दोनों जैसे कीड़े पनप पड़ते हैं.. क्योंकि सवाल तो हम पछ ू ु ं गे । चटि
ु ये।
अच्छा सन ु ो जो भी प्रोग्राम चलाओ बड़ा बड़ा लिखना ' विधरु प्रसाद अमर रहे '। और हर जगह हर कोने में विधरु के
बैनर पार्टी चिन्ह के साथ होने चाहिए। मैं इसी से बात करलग ंू ा, ये प्रचार नहीं श्रद्धांजलि होगी.. और चनु ाव नहीं
रुकेगा। जाओ।

अभिलाष - जी।

दृश्य -५
(सोफे पर हुसन
ै बैठा कुछ कागज़ात पढ़ रहा है , भोर होने वाली है । )
( कमिश्नर का प्रवेष)

कमिश्नर - "सर! फोरें सिक रिपोर्ट आगायी हैं।"

हुसन
ै - "हम्म"
कमिश्नर - " इट वास अ सस
ु ाइड!"

हुसन
ै - " या खद
ु ा! रहम कर। ठीक है इंस्पेक्टर तम
ु जाओ।"

कमिश्नर - " छोटा मह


ंु बड़ी बात...एक बात खटक रही है ।"

हुसन
ै - "बोलो"

कमिश्नर - " वो दोनों जोकर से पछ ू ताछ चल रही थी... जब आपने मझु े उन दोनों को यहां से लेजाने को कहा तो
आपने वो दसू रे वाले का कोड ने म यजू किया जो उस वक्त तक उसने किसी को नहीं बताया था। "

हुसनै - " ये फोरें सिक रिपोर्ट बाहर नहीं जानी चाहिए। बैठ जाओ।
बावला होगाया था तम् ु हारा प्रधान मंत्री .... 'मझ
ु े डर लगता है , सपने आते हैं', जनाब की कुर्सी तो जा ही रही थी ,
अकल भी साथ साथ। पार्टी भी डूबी ही थी समझो।
राजनीती में तमु लौट तो नहीं सकते, मैं जानता हूं की होते हैं जो ईमानदारी का पाठ पढ़ते हैं पर हर एक ईमानदार
के ऊपर एक बेईमान है जो उसे काम नहीं करने दे ता और जो सबसे ऊपर हो उसके नीचे सब बेईमान।
ये वो रणभमिू है जहां शत्रु को गले भी लगाना पड़ेगा है और मित्र को शत्रु भी बनाना पड़ेगा। "

कमिश्नर - " ईश्वर प्रधनमंत्री की आत्मा को शांति दे । "

हुसन
ै - " तम
ु एक छुट्टी लेलो अब...घम
ू आओ कहीं परिवार के साथ . कश्मीर घम
ू आओ।"

कमिश्नर - " कश्मीर नहीं साहब, मेरा लड़का यट


ु ू बर है और वहां तो नेट ही नहीं हैं। फॉरे न घम
ू ने का मन था।"

हुसन
ै - " हो आओ। और तम्
ु हारा प्रोमोशन लेटर चन
ु ाव के बाद मिल जायेगा तम्
ु हें ।"

कमिश्नर -" जीत सकते हैं क्या?"

( हुसन
ै मस्
ु कुराता है )
( अन्धकार)

दृश्य -६

( मंच के बीचों बीच हुसन


ै खड़ा है उसके बगल में तिरं गे में लिपटा एक बक्सा और बड़ी सी तस्वीर विधरु की)

हुसनै -" मैं मोसीन हुसन ै ये शपथ लेता हुं की परू ी निष्ठा से भारत की सेवा करूंगा और तन मन धन से समर्पित
रहूंगा। जिस तरह स्वर्गवासी श्री विधरु प्रसाद जी ने एक सच्चे दे शभक्त होने का परिणाम अपने कर्मों से उसी प्रकार
मैं भी उनके दिखाए मार्ग पर चलग ंू ा। उनकी निर्मम हत्या के षडयंत्र के लिए दोनों यव
ु कों को फांसी होगी और उस
षडयंत्र में मिले सभी पाकिस्तानी से भी हिसाब लिया जाएगा।
दे श का प्रधान मंत्री होने के नाते मैं दे श को अश्वासन दिलाता हूं की एक बार फ़िर दे श ने सही गलत में सही चनु ा।
विधरु प्रसाद अमर रहे । जय हिंद।
(अन्धकार)

(समाप्त)

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