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बंदिनी फिल्म 1963 की एक हिंदी ड्रामा फिल्म है जिसका निर्देशन और निर्माण बिमल राय ने किया है इसमें
नत ू न ,अशोक कुमार ,और धर्मेंद्र ने अभिनय किया है फिल्म में हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट
रही एक महिला कैदी कल्याणी की कहानी बताई है । जो सभी पीड़ित ,निस्वार्थ ,बलिदानी और मजबत ू ,फिर भी
कमजोर भारतीय महिला है , या फिल्म जरासंध (चारु चंद्र चक्रवर्ती) के बंगाली उपन्यास तामसी पर आधारित
है जो एक पर्व
ू जेल अधीक्षक था जिसने अपने करियर का अधिकांश समय उत्तरी बंगाल में जेलर के रूप में
बिताया और अपने अनभ ु वों के कई काल्पनिक संस्करण लिखें फिल्म के सामाजिक एवं सांस्कृतिक मद् ु दों का
विशेष महत्व है इस फिल्म में दिखाया गया कि भारतीय समाज में बंदिनी के प्यार को उसके सामाजिक एवं
सांस्कृतिक परिवेश के लिए एक चन ु ौती माना जाता है फिल्म में उसका संघर्ष और समाज द्वारा उसे धकेलना
की कोशिश को प्रकट किया गया है फिल्म की कहानी जेल में रह रहे 1934 ई महिलाओं के जीवन को दर्शाती है
यहां दिखाया गया कि महिला कैदियों का जीवन जेल में कैसा होता है महिला कैदियों के प्रति समाज का कैसा
रवैया है सभी बातें इसमें अच्छी तरह से प्रदर्शित किया गया है । साथी ही तीस के दशक में प्रेम के प्रति समाज
का कैसा रवैया है उसको भी यहां दर्शाता है फिल्म के एक प्रसंग नायक और नायिका की एक संवाद में नायक
द्वारा महिलाओं का समाज में बराबरी का हक ना हो होने कि बात पर नायिका का विरोध भी दिखाया गया है ।
यहां समाज में प्रेम के प्रति कैसा रवैया उसे भी प्रस्तत
ु किया गया है । और इसके कारण समाज प्रेमियों
खासकर महिलाओं परिवार को तंग करना,समाज से बहिष्कृत करना आदि जैसे समाज की सोच को भी
दिखाया गया है इस फिल्म के माध्यम से भारतीय सिनेमा ने ऐसे मद् ु दे को उठाने का साहस दिखाया है जो
समाज में अभी तक आधिकारिक नहीं थे बंदिनी ने समाज में महिलाओं के स्थान और प्रेम के मद् ु दों को भी
गहरा प्रभाव डाला है यह एक ऐसी कहानी है जो आज भी समझ में महिलाओं के प्रति उनकी समझदारी और
सम्मान की आवश्यकता को उजागर करती हैं।