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मैसूर
मैसूर
1565 ई० में तालीकोटा के यद् ु ध के बाद वें कट द्वितीय के समय में 1612
ई० में मैसरू में वाडियार राजवंश की स्थापना हुई।
है दरअली
इसके यद्
ु ध कौशल से प्रभावित होकर मैसरू के प्रधानमंत्री नंदराज
(नन्जराज) ने 1755 ई० में है दर को डिण्डीगल
ु के किले का फौजदार
नियक्
ु त किया।
उसने अपने ताँबे तथा सोने के सिक्कों पर शिव, पार्वती तथा विष्णु की
मर्ति
ू याँ अंकित कराई थीं।
दक्कन में भारतीय ताकतों में है दरअली पहला व्यक्ति था जिसने अंग्रेजों
को पराजित किया।
टीपू सल्
ु तान ने अरब, अफगानिस्तान, फ्रांस, तर्की
ु , कुस्तन
ु तनि
ु या और
मारीशस आदि जगहों पर अपने दत ू भेजे।
उसके दरबार में हिन्दओ
ु ं को भी उच्च पदों पर नियक्
ु त किया गया।
टीपू सल्
ु तान को शेर-ए-मैसरू कहा जाता था।
टीपू सल्
ु तान के राजसी झंडे पर शेर की तस्वीर होती थी।
आंग्ल-मैसरू यद्
ु ध
मैसरू का सल्
ु तान - है दरअली
इस यद्
ु ध ने अंग्रेजों की अजेयता को भी समाप्त कर दिया।
पोर्टोनोवा के यद्
ु ध में है दरअली पराजित हुआ और घायल हो गया। 7
दिसम्बर, 1782 ई० को है दर की मत्ृ यु हो गई।
है दर के पत्र
ु टीपू ने संघर्ष जारी रखा। टीपू ने अंग्रेजों से मंगलौर की सन्धि
कर ली।
टीपू सल्
ु तान ने 29 दिसम्बर, 1789 ई० को त्रावणकोर पर आक्रमण कर
दिया।
इस सन्धि के अनस
ु ार टीपू को अपने दे श का लगभग आधा भाग अंग्रेजों
तथा उनके साथियों को दे ना पड़ा।
टीपू को 3 करोड़ रुपये यद् ु ध-क्षति के रूप में भी दे ने पड़े। तरु न्त धनराशि
न दे ने पर टीपू के दो पत्र
ु कार्नवालिस के पास बन्धक के रूप में रखे गया।
चतर्थ
ु आंग्ल-मैसरू यद्
ु ध
(1799 ई०)
चतर्थ
ु आंग्ल-मैसरू यद् ु ध की सफलता के बाद गवर्नर-जनरल वेल्जली ने
दम्भ भरे शब्दों में कहा कि "अब परू ब का राज्य हमारे कदमों में है ।"