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मैसरू राज्य

1565 ई० में तालीकोटा के यद् ु ध के बाद वें कट द्वितीय के समय में 1612
ई० में मैसरू में वाडियार राजवंश की स्थापना हुई।

यह विजयनगर राज्य का ही एक भाग था।

अट्ठारहवीं शताब्दी के मध्य में मैसरू का राजा चिक्का कृष्णराज था,


परन्तु वास्तविक शक्ति दो मंत्रियों
नंदराज एवं दे वराज के हाथों में थी।

है दरअली नामक एक योग्य व्यक्ति


नंदराज (नन्जराज) की सेना में भर्ती हुआ, जो अपनी योग्यता के बल पर
एक दिन मैसरू राज्य का स्वामी बन बैठा।

है दरअली

है दरअली ने 1761 ई. में मैसरू राज्य की स्थापना की।

इसके पिता फतेह मह


ु म्मद मैसरू में एक किले में सैनिक अधिकारी थे।

इसके यद्
ु ध कौशल से प्रभावित होकर मैसरू के प्रधानमंत्री नंदराज
(नन्जराज) ने 1755 ई० में है दर को डिण्डीगल
ु के किले का फौजदार
नियक्
ु त किया।

फौजदार बनने पर इसने दो कार्य किए।


प्रथम, अपनी निरक्षरता की कमी को परू ा करने के लिए खाण्डेराव नामक
ब्राह्मण को अपना सलाहकार नियक्
ु त किया।

और दसू रा फ्रांसीसियों की सहायता से इसने डिण्डीगल


ु में 1755 ई० में एक
आधनि
ु क शस्त्रागार की स्थापना की।

इसके बाद राजधानी मैसरू से श्रीरं गपट्टम में स्थानान्तरित हो गई।

1759 ई० में मराठों के आक्रमण से मैसरू की सरु क्षा में है दर अली की


अहम भमिू का थी। इसी अवसर पर
नंदराज ने इसे मैसरू का सेनापति नियक्
ु त किया।

राजमाता का समर्थन प्राप्त कर है दर ने नंदराज का अन्त कर दिया और


1761 ई० में स्वयं को मैसरू का शासक घोषित किया।

इसने वेदनरू का नाम बदलकर है दरनगर कर दिया।

उसने अपने ताँबे तथा सोने के सिक्कों पर शिव, पार्वती तथा विष्णु की
मर्ति
ू याँ अंकित कराई थीं।

उसने मैसरू की चामण्


ु डेश्वरी दे वी के मन्दिर के लिए दान किया।

दक्कन में भारतीय ताकतों में है दरअली पहला व्यक्ति था जिसने अंग्रेजों
को पराजित किया।

द्वितीय आंग्ल-मैसरू यद् ु ध के दौरान घायल हो जाने के कारण 1782 ई०


में इसकी मत्ृ यु हो गई।
टीपू सल
ु तान
(1782 से 1799 ई०)

है दर अली की मत्ृ यु के बाद उसका पत्र


ु टीपू सल
ु तान मैसरू का शासक बना।

थामस मनु रो ने उसके लिए कहा था कि "टीप सल


ु तान नई रीति चलाने
वाली अशान्त आत्मा है ।"

टीपू ने 1787 ई० में बादशाह की उपाधि धारण की।

सिक्का ढलाई की नई तकनीक अपनाई व नाप-तौल के आधनि


ु क पैमाने
अपनाए।

जब फ्रांसीसी क्रान्ति के कुछ फ्रांसीसी सैनिकों ने श्रीरं गपट्टम में जैकोबिन


क्लब बनाने का प्रस्ताव किया तो इसने स्वीकार कर स्वयं सदस्य बना
और अपने आप को नागरिक टीपू कहने लगा।

श्रीरं गपट्टम में उसने एक स्वतंत्रता का वक्ष


ृ लगाया।

टीपू सल्
ु तान ने अरब, अफगानिस्तान, फ्रांस, तर्की
ु , कुस्तन
ु तनि
ु या और
मारीशस आदि जगहों पर अपने दत ू भेजे।
उसके दरबार में हिन्दओ
ु ं को भी उच्च पदों पर नियक्
ु त किया गया।

परू निया एवं कृष्णराव इसके दो प्रमख


ु हिन्द ू मंत्री थे।

इसने अपनी सेना में फ्रांसीसी जल सेना के एक लेफ्टीनेंट रिपो को नियक्


ु त
किया था।
टीपू की मत्ृ यु श्रीरं गपट्टम की आखिरी यद्
ु ध यानी चतर्थ
ु आँग्ल-मैसरू
यद्
ु ध के दौरान 1799 ई. में हो गयी।

टीपू सल्
ु तान को शेर-ए-मैसरू कहा जाता था।

टीपू सल्
ु तान के राजसी झंडे पर शेर की तस्वीर होती थी।

आंग्ल-मैसरू यद्
ु ध

कुल चार आंग्ल-मैसरू यद्


ु ध हुए। इनमें प्रथम को छोड़कर शेष में अंग्रेजों
की विजय हुई।

प्रथम आंग्ल-मैसरू यद्


ु ध
(1767 ई० से 1769 ई०)

मैसरू का सल्
ु तान - है दरअली

बंगाल का गवर्नर - लार्ड वारे लस्ट

अंग्रेजी सेना नेतत्ृ व- "सर जनरल स्मिथ

है दर अली ने मराठो और निजाम को अपने साथ मिला लिया और अंग्रेजों


को पराजित कर दिया।
मद्रास की सन्धि (अप्रैल,1769 ई०) – मद्रास की सन्धि है दर अली और
अंग्रेजों के बीच हुई।
इस सन्धि में कैदियों की अदला-बदली तथा विजित स्थानों के आपसी
बदलाव की व्यवस्था थी।

इस यद्
ु ध ने अंग्रेजों की अजेयता को भी समाप्त कर दिया।

द्वितीय आंग्ल-मैसरू यद्


ु ध
(1780 ई० से 1784 ई०)

मैसरू का शासक - है दर अली और टीपू सल्


ु तान।

बंगाल का गवर्नर - वारे न हे स्टिग्स

कारण - मद्रास की संधि का अंग्रेजो के द्वारा उल्लंघन।

है दर ने निजाम व मराठों को मिला के त्रिगट


ु बना लिया था।

पोर्टोनोवा के यद्
ु ध में है दरअली पराजित हुआ और घायल हो गया। 7
दिसम्बर, 1782 ई० को है दर की मत्ृ यु हो गई।

है दर के पत्र
ु टीपू ने संघर्ष जारी रखा। टीपू ने अंग्रेजों से मंगलौर की सन्धि
कर ली।

मंगलौर की सन्धि (1784 ई०)


यह सन्धि अंग्रेजों की तरफ से गवर्नर लार्ड मैकार्टनी और टीपू के बीच
मार्च, 1784 ई० में हुई।

वारे न हे स्टिग्स ने सन्धि की शर्तों को बिल्कुल भी पसन्द नहीं किया तथा


क्रोध में चिल्ला पड़ा "यह लार्ड मैकार्टनी कैसा आदमी है ! मैं अभी भी
विश्वास करता हूँ कि वह सन्धि के बावजद ू कर्नाटक को खो डालेगा।

ततृ ीय आंग्ल-मैसरू यद्


ु ध
(1790 ई० से 1792 ई०)

मैसरू का शासक - टीपू सल्


ु तान

बंगाल का गवर्नर - लार्ड कार्नवालिस

टीपू सल्
ु तान ने 29 दिसम्बर, 1789 ई० को त्रावणकोर पर आक्रमण कर
दिया।

अतः टीपू के आक्रमण के कारण कार्नवालिस उससे रुष्ट हो गया। 1790


ई० में कार्नवालिस ने स्वयं सेना की बागडोर सम्भाली और श्रीरं गपट्टम
की ओर बढ़ा। अतः, टीपू ने श्रीरं गपट्टम की सन्धि कर ली।

श्रीरं गपट्टम की सन्धि (1792 ई०)

इस सन्धि के अनस
ु ार टीपू को अपने दे श का लगभग आधा भाग अंग्रेजों
तथा उनके साथियों को दे ना पड़ा।
टीपू को 3 करोड़ रुपये यद् ु ध-क्षति के रूप में भी दे ने पड़े। तरु न्त धनराशि
न दे ने पर टीपू के दो पत्र
ु कार्नवालिस के पास बन्धक के रूप में रखे गया।

कार्नवालिस ने इस सन्धि पर टिप्पणी की "हमने अपने मित्रों को अधिक


मजबत ू बनाए बिना ही अपने शत्रु को फलदायक रूप से लंगड़ा कर दिया
है ।"

चतर्थ
ु आंग्ल-मैसरू यद्
ु ध
(1799 ई०)

मैसरू का शासक- टीपू सल्


ु तान

बंगाल का गवर्नर - लार्ड वेल्जली

1799 ई० में लार्ड वेल्जली ने टीप के पास सहायक सन्धि का प्रस्ताव


भेजा। टीपू ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

अब अंग्रेजों ने श्रीरं गपट्टम को घेर लिया। टीपू सल्


ु तान दर्ग
ु -द्वार पर
लड़ता हुआ मारा गया।

उसके परिवार के सदस्यों को वेल्लोर में कैद कर दिया गया।

चतर्थ
ु आंग्ल-मैसरू यद् ु ध की सफलता के बाद गवर्नर-जनरल वेल्जली ने
दम्भ भरे शब्दों में कहा कि "अब परू ब का राज्य हमारे कदमों में है ।"

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