Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 10

आप से अपेक्षा

दू सरे के छिद्र दे खने से पहले अपने छिद्ररों कर टटरलर। छकसी और की बुराई करने से पहले यह दे ख लर छक हममें तर
करई बुराई नहीों है । यछद हर तर पहले उसे दू र करर। दू सररों की छनोंदा करने में छितना समय दे ते हर उतना समय
अपने आत्मरत्कर्ष में लगाओ। तब स्वयों इससे सहमत हरगे छक परछनोंदा से बढ़ने वाले द्वे र् कर त्याग कर परमानोंद
प्राप्ति की ओर बढ़ रहे हर।

सोंसार कर िीतने की इच्छा करने वाले मनुष्यर ! पहले अपने कर िीतने की चेष्टा करर। यछद तुम ऐसा कर सके तर
एक छदन तुम्हारा छवश्व छविेता बनने का स्वप्न पूरा हरकर रहे गा। तुम अपने छितेंछद्रय रूप से सोंसार के सब प्राछियरों
कर अपने सोंकेत पर चला सकरगे। सोंसार का करई भी िीव तुम्हारा छवररधी नहीों रहे गा।

एक पररचय-

- युगदृछष्टश-पों. श्रीराम शमाष आचायष- अद् भुत व्यप्तित्व, अनरखा कततषत्व *

िन्म 20 छसतम्बर सन् 1911 ग्राम आँ वलखेडा, छिला (आगरा उ० प्र०) छपता-छवद्वान् पों० रूपछकशरर शमाष , माता-
तपप्तस्वछन दानकुँवरर। महामना मालवीय िी ने दीक्षा यज्ञरपवीत सोंस्कार कराया। सन् 1926 छहमालय प्तथित सूक्ष्म
शरीर धारी ऋछर्सत्ता स्वामी सवेश्वरानन्द से मागषदशषन प्राि। अखण्ड दीप की साक्षी में कठरर िप-तप साधना।
अनेक बार दु गषम छहमालय िाकर ऋछर् सत्ता से साक्षात्कार। स्वतोंत्रता सेनानी के रूप में उल्लेखनीय कायष। िेल
में मालवीय िी, स्वरूपा रानी नेहरू आछद का साछिध्य प्राि। कायों की गूोंि छिछटश असेम्बली तक। सरकार ने
ताम्रपत्र भेंट छकया, उनकी स्मतछत में डाक छटकट (सन् 1991) िारी छकया। सन् 2011-2012 में उनकी िन्म
शताब्दी मनाई गयी।

युगऋछर्- भारत की सबसे बडी छवशेर्ता इसकी

ऋछर् परम्परा रही है । 'वसुधैव कुटु म्बकम्' वाली छवश्व सोंस्कतछत इसी की दे न है । अवतार परम्परा के पीिे भी
ऋछर्यरों का तप ही रहा है । उन्रोंने अपनी िीवनी का शीर्षक छदया है 'हमारी वसीयत और छवरासत'। वे स्वयों कर
ऋछर्तोंत्र के अछभि अोंग- अवयव के रूप में ही अनुभूत और व्यि करते रहे हैं । इस युग में लुिप्रायः ऋछर्
परम्परा कर उन्रोंने पुनः गररमामय स्वरूप छदया है ।

छवज्ञिन उन्ें गायत्री महाछवद्या कर युगानुरूप प्रभावी स्वरूप दे ने के नाते 'युग के छवश्वाछमत्र' कहते हैं । सनातन
अध्यात्म छवज्ञान की धारा कर पुनः प्रवाछहत करने के नाते उन्ें 'युग भगीरि' कहा िाता है।

युग व्यास के रूप में उन्रोंने 4 वेद, 108 उपछनर्द् , प्रज्ञा पुराि-प्रज्ञरपछनर्द् , र्ड् दशषन आछद के सछहत छवछवध
आर्षग्रोंिरों कर युगानुरूप बरधगम्य बनाया।
तप साधना की छवछशष्टता तिा धमष तोंत्र एवों राितोंत्र में सोंतुलन छबठाने के छलए आचायष िी कर 'युग वछशष्ठ' की
सोंज्ञा दी गई। यज्ञछवज्ञान कर सवोपयरगी बनाने के नाते उन्ें 'युग याज्ञवल्क्य' भी कहा िाता है ।

* उन्रोंने बुद्ध परम्परा के 'धमषचक्र प्रवतषन' के अनुरूप धमषतोंत्र से लरक छशक्षि एवों प्रव्रज्या की नयी छवधा प्रदान
की।

* शोंकराचायष परम्परा के अन्तगषत शोंकराचायष पीठरों की तरह गायत्री शप्तिपीठरों की थिापना करके िन- िन में
आध्याप्तत्मक चेतना िगाने का तोंत्र छवकछसत छकया।

* परशुराम परम्परा के अन्तगषत ज्ञान कुठार से मप्तिष्रों में घुसी भ्राप्तन्तयरों का उच्छे दन के सज्ञान की थिापना हे तु
छवचार क्राप्तन्त अछभयान चलाया।

* इसी प्रकार चरक परम्परा के वनौर्छध छवज्ञान, चैतन्य परम्परा के अन्तगषत सोंगीत से िन भावना का शरधन िैसे
अनेक ऋछर् परम्परा के प्रयरगरों कर पुनिीवन प्रदान छकया।

*।

1. आदशष सद् गतहथि- एक ऐसे आदशष सद् गतहथि का िीवन उन्रोंने छिया, छिसमें िाह्मि िीवन एवों ऋछर्कमष का
िीवन्त स्वरूप झलकता रहा। बाल्यकाल में घर से छनष्ासन का खतरा मरल लेकर, ररगी अिूत वतद्धा की सेवा,
केवल चडढी बछनयान पहने भागकर स्वतोंत्रता सोंग्राम में भागीदरी, बच्रों की पाठशाला उद्यरगशाला आछद
चलाना।

2. तपस्वी साधक करई व्यप्ति िीवन भर केवल तप साधना में छनरत रहकर छितनी तप शप्ति अछिषत कर
सकता है , उससे अछधक तपशप्ति का अिषन और सदु पयरग छकया

3. 3. प्रखर छवद्वान - िर िीवन भर केवल ज्ञान साधना में लगे रहे , उनके समकक्ष ज्ञानािषन छकया। लरग उन्ें
चलता छिरता छवश्वकरर् कहते रहे ।

4. अनरखे लेखक- िीवन भर केवल लेखन का उद्यरग करने वालरों से भी अछधक मात्रा में उच्िरीय साछहत्य का
लेखन छकया।

5. आध्याप्तत्मक सोंगठक- पीररों पैगम्बररों में धमष अध्यात्म के प्रवाह के शरधन एवों छविार के क्रम में युगऋछर् द्वारा
युग छनमाष ि यरिनान्तगषत गायत्री पररवार का सोंगठन उससे भी छवराट बना है ।

भारत वर्ष कभी िगद् गुरु िा, यहाँ की सोंस्कतछत एवों आध्याप्तत्मक धारा िर हमारे ऋछर्यरों, मुछनयरों द्वारा प्रछतपाछदत
एवों अनुप्राछित िी, का ज्ञान कराने तिा दे व सोंस्कतछत कर पुनिीछवत करने हे तु छवचार क्राों छत अछभयान प्रारम्भ
छकया। आचायष िी की वािी एवों लेखनी में िर ओिस तेिस वचषस झलकता िा, उससे हर व्यप्ति प्रभाछवत हुये
छबना नहीों रहता उनका हरकर बन िाता िा।

आध्याप्तत्मक छचोंतन अछनवायष

िर लरग आध्याप्तत्मक छचोंतन से छवमुख हरकर केवल लरकरपकारी कायष में लगे रहते हैं , वे अपनी ही सिलता पर
अिवा सद् गुिरों पर मरछहत हर िाते हैं । वे अपने आपकर लरक सेवक के रूप में दे खने लगते हैं । ऐसी अवथिा में
वे आशा करते हैं छक सब लरग उनके कायों की प्रशोंसा करें , उनका कहा मानें। उनका बढ़ा हुआ अछभमान उन्ें
अनेक लरगरों का शत्रु बना दे ता है । इससे उनकी लरक सेवा उन्ें वािछवक लरक सेवक न बनाकर लरक
छवनाशএটি का रूप धारि कर लेती है ।

आध्याप्तत्मक छचोंतन के छबना मनुष्य में छवनीत भाव नहीों आता और न उसमें अपने आपकर सुधारने की क्षमता रह
िाती है । वह भूलरों पर भूल करता चला िाता है और इस प्रकार अपने िीवन कर छवकल बना दे ता है ।

अोंतरात्मा का सहारा पकडर

यछद तुम शाों छत, सामर्थ्ष और शप्ति चाहते हर तर अपनी अोंतरात्मा का सहारा पकडर। तुम सारे सोंसार कर धरखा
दे सकते हर छकोंतु अपनी आत्मा कर कौन धरखा दे सका है ? यछद प्रत्येक कायष में आप अोंतरात्मा की सम्मछत प्राि
कर छलया करें गे तर छववेक पि नष्ट न हरगा। दु छनयाँ भर का छवररध करने पर भी यछद आप अपनी अोंतरात्मा का
पालन कर सके तर करई आपकर सिलता प्राि करने से नहीों ररक सकता।

िब करई मनुष्य अपने आपकर अछद्वतीय व्यप्ति समझने लगता है और अपने आपकर चररत्र में सबसे श्रेष्ठ मानने
लगता है , तब उसका आध्याप्तत्मक पतन हरता है ।

िीवन कर यज्ञमय बनाओ

मन में सबके छलए सद्भावनाएँ रखना, सोंयमपूिष सच्ररत्रता के साि समय व्यतीत करना, दू सररों की भलाई बन
सके उसके छलए प्रयत्नशील रहना, वािी कर केवल सत्प्रयरिनरों के छलए ही बरलना, न्यायपूिष कमाई पर ही गुिारा
करना, भगवान का स्मरि करते रहना, अपने कतषव्य पि पर आरूढ़ रहना, अनुकूल-प्रछतकूल पररप्तथिछतयरों में
छवचछलत न हरना-यही छनयम हैं छिनका पालन करने से िीवन यज्ञमय बन िाता है। मनुष्य िीवन कर सिल बना
लेना ही सच्ी दू रदछशषता और बुप्तद्धमत्ता है ।

िब तक हम में अहों कार की भावना रहे गी तब तक त्याग की भावना का उदय हरना कछठन है ।

हँ सते रहर, मुस्कुराते रहर


उठर ! िागर ! रुकर मत !!! िब तक की लक्ष्य न प्राि न हर िाए। करई दू सरा हमारे प्रछत बुराई करे या छनोंदा
करे , उद्वे गिनक बात कहे तर उसकर सहन करने और उसे उत्तर न दे ने से वैर आगे नहीों बढ़ता। अपने ही मन में
कह लेना चाछहए छक इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन। िर अपने कतषव्य कायष में िुटा रहता है और दू सररों के
अवगुिरों की खरि में नहीों रहता उसे आों तररक प्रसिता रहती है ।

िीवन में उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं ।

हँ सते रहर, मुस्कुराते रहर।

ऐसा मुख छकस काम का िर हँसे नहीों, मुस्कराए नहीों।

िर व्यप्ति अपनी मानछसक शप्ति प्तथिर रखना चाहते हैं । उनकर दू सररों की आलरचनाओों से छचढ़ना नहीों चाछहए।

अपनी शप्ति भर कायष करर

तुम्हें यह सीखना हरगा छक इस सोंसार में कुि कछठनाइयाँ हैं िर तुम्हें सहन करनी हैं । वे पूवष कमों के िलस्वरूप
तुम्हें अिेय प्रतीत हरती हैं । िहाँ कहीों भी कायष में घबराहट िकावट और छनराशाएँ हैं , वहाँ अत्यन्त प्रबल शप्ति
भी है । अपना कायष कर चुकने पर एक ओर खडे हरओ। कमष के िल कर समय की धारा में प्रवाछहत हर िाने दर।

अपनी शप्ति भर कायष करर और तब अपना आत्मसमपषि करर। छकन्ीों भी घटनाओों में हतरत्साछहत न हरओ।
तुम्हारा अपने ही कमों पर अछधकार हर सकता है , दू सररों के कमों पर नहीों। आलरचना न करर, आशा न करर, भय
न करर, सब अच्छा ही हरगा। अनुभव आता है और िाता है । प्तखि न हरओ। तुम दृढ़ छभछत्त पर खडे हुए हर।

मागषदशषन के छलए अपनी ही ओर दे खर

साक्षात्कार सम्पि पुरुर् न तर दू सररों कर दरर् लगाता है और न अपने कर अछधक शप्तिमान विुओों से
आच्छाछदत हरने के कारि प्तथिछतयरों की अवहे लना करता है ।

अहों कार से उतना ही सावधान रहर छितना एक पागल कुत्ते से। िैसे तुम छवर् या छवर्धर सपष कर नहीों िूते, उसी
प्रकार छसप्तद्धयरों से अलग रहर और उन लरगरों से भी िर इनका प्रछतवाद करते हैं । अपने मन और हृदय की सोंपूिष
छक्रयाओों कर ईश्वर की ओर सोंचाररत करर।

दू सररों का छवश्वास तुम्हें अछधकाछधक असहाय और दु ः खी बनाएगा। मागषदशषन के छलए अपनी ही ओर दे खर, दू सररों
की ओर नहीों। तुम्हारी सत्यता तुम्हें दृढ़ बनाएगी। तुम्हारी दृढ़ता तुम्हें लक्ष्य तक ले िाएगीl

अपने आपकी समालरचना करर


िर कुि हर, हरने दर। तुम्हारे बारे में िर कहा िाए, उसे कहने दर। तुम्हें ये सब बातें मतगततष्णा के िल के समान
असार लगनी चाछहए। यछद तुमने सोंसार का सच्ा त्याग छकया है तर इन बातरों से तुम्हें कैसे कष्ट पहुँ च सकता है ?
अपने आपकी समालरचना में कुि भी कसर मत रखना तभी वािछवक उिछत हरगी।

प्रत्येक क्षि और अवसर का लाभ उठाओ। मागष लोंबा है । समय वेग से छनकला िा रहा है । अपने सम्पूिष
आत्मबल के साि कायष में लग िाओ, लक्ष्य तक पहुँ चरगे।

छकसी बात के छलए भी अपने कर क्षुब्ध न करर। मनुष्य में नहीों, ईश्वर में छवश्वास करर। वह तुम्हें रािा छदखाएगा
और सन्मागष सुझाएगा।

नम्रता, सरलता, साधुता, सछहष्णुता

सछहष्णुता का अभ्यास करर। अपने उत्तरादाछयत्व कर समझर। छकसी के दरर्रों कर दे खने और उन पर टीका-
छटप्पिी करने के पहले अपने बडे -बडे दरर्रों का अन्वेर्ि करर। यछद अपनी वािी का छनयोंत्रि नहीों कर सकते तर
उसे दू सररों के प्रछतकूल नहीों बप्ति अपने प्रछतकूल उपदे श करने दर।

सबसे पहले अपने घर कर छनयछमत बनाओ क्रोंछक छबना आचरि के आत्मानुभव नहीों हर सकता। नम्रता,
सरलता, साधुता, सछहष्णुता ये सब आत्मानुभव के प्रधान अोंग है ।

दू सरे तुम्हारे साि क्ा करते हैं , इसकी छचोंता न करर। आत्मरिछत में तत्पर रहर। यछद यह तर्थ् समझ छलया तर
एक बडे रहस्य कर पा छलया।

अन्तः करि के धन कर ढू ँ ढर

तुम्हें अपने मन कर सदा कायष में लगाए रखना हरगा। इसे बेकार न रहने दर। िीवन कर गम्भीरता के साि
छबताओ। तुम्हारे सामने आत्मरिछत का महान कायष है और पास में समय िरडा है । यछद अपने कर असावधानी के
साि भटकने दरगे तर तुम्हें शरक करना हरगा और इससे भी बुरी प्तथिछत कर प्राि हरगे।

धैयष और आशा रखर तर शीघ्र ही िीवन की समि प्तथिछत का सामना करने की यरग्यता तुममें आ िाएगी। अपने
बल पर खडे हरओ। यछद आवश्यक हर तर समि सोंसार कर चुनौती दे दर। पररिाम में तुम्हारी हाछन नहीों हर
सकती। तुम केवल सबसे महान से सोंतुष्ट रहर। दू सरे भौछतक धन की खरि करते हैं और तुम अन्तः करि के धन
कर ढू ँ ढ़र।

अकेला चलर
महान व्यप्ति सदै व अकेले चले हैं और इस अकेलेपन के कारि ही दू र तक चले हैं । अकेले व्यप्तियरों ने अपने
सहारे ही सोंसार के महानतम कायष सम्पि छकए हैं । उन्ें एकमात्र अपनी ही प्रेरिा प्राि हुई है । वे अपने ही
आों तररक सुख से सदै व प्रिुप्तल्लत रहे हैं । दू सरे से दु ः ख छमटाने की उन्रोंने कभी आशा नहीों रखी। छनि वतछत्तयरों में
ही उन्रोंने सहारा दे खा।

अकेलापन िीवन का परम सत्य है । छकन्तु अकेलेपन से घबराया, िी तरडना, कतषव्यपि से हतरत्साछहत या
छनराश हरना सबसे बडा पाप है । अकेलापन आपके छनिी आों तररक प्रदे श में छिपी हुई महान शप्तियरों कर
छवकछसत करने का साधन है । अपने ऊपर आछश्रत रहने से आप अपनी उच्तम शप्तियरों कर खरि छनकालते हैं ।

दू सररों पर छनभषर न रहर

छिस छदन तुम्हें अपने हाि-पैर और छदल पर भररसा हर िावेगा, उसी छदन तुम्हारी अन्तरात्मा कहे गी छक बाधाओों
कर कुचल कर तू अकेला चल, अकेला।

छिन व्यप्तियरों पर तुमने आशा के छवशाल महल बना रखे हैं वे कल्पना के व्यरम में छवहार करने के समान हैं ।
अप्तथिर, सारहीन, खरखले हैं । अपनी आशा कर दू सररों में सोंप्तिष्ट कर दे ना स्वयों अपनी मौछलकता का ह्रास कर
अपने साहस कर पोंगु कर दे ना है । िर व्यप्ति दू सररों की सहायता पर िीवन यात्रा करता है , वह शीघ्र अकेला रह
िाता है ।

दू सररों कर अपने िीवन का सोंचालक बना दे ना ऐसा ही है िैसा अपनी नौका कर ऐसे प्रवाह में डाल दे ना छिसके
अोंत का आपकर करई ज्ञान नहीों।

असिलताओों का कारि

हम दू सररों कर बरवस अपनी तरह छवश्वास, मत, स्वभाव एवों छनयमरों के अनुसार कायष करने और िीवन व्यतीत
करने के छलए बाध्य करते हैं । दू सररों कर बरबस सुधार डालने, अपने छवचार या दृछष्टकरि कर िबरदिी िरपने से
न सुधार हरता है , न आपका ही मन प्रसि हरता है ।

यछद हम अमुक व्यप्ति कर दबाएँ रखेंगे तर अवश्य पररक्ष रूप से हमारी उिछत हर िायेगी। अमुक व्यप्ति हमारी
उिछत में बाधक है । अमुक हमारी चुगली करता है , दरर् छनकालता है , मानहाछन करता है । अतः हमें अपनी
उिछत न दे खकर पहले अपने प्रछतपक्षी कर ररके रखना चाछहए ऐसा सरचना और दू सररों कर अपनी असिलताओों
का कारि मानना, भ्रममूलक है ।

प्रेम एक महान शप्ति

प्रेम ही एक ऐसी महान शप्ति है िर प्रत्येक छदशा में िीवन कर आगे बढ़ाने में सहायक हरती है । छबना प्रेम के
छकसी के छवचाररों में पररवतषन नहीों लाया िा सकता। छवचार तकष-छवतकष की सतछष्ट नहीों हैं । छवचारिा तिा छवश्वास
बहुकाल के सत्सोंग से बनते हैं । अछधक समय की सोंगछत का ही पररिाम प्रेम है । इसछलए छवचार धारिा अिवा
छवश्वास, प्रेम का छवर्य है ।

यछद हम दू सररों पर छविय प्राि करके उनकर अपनी छवचारधारा में बहाना चाहते हैं , उनके दृछष्टकरि कर
बदलकर अपनी बात मनवाना चाहते हैं , तर प्रेम का सहारा लेना चाछहए। तकष और बुप्तद्ध हमें आगे नहीों बढ़ा
सकते है । छवश्वास रप्तखए छक आपकी प्रेम और सहानुभूछतपूिष सभी बातरों कर सुनने के छलए दु छनयाँ छववश हरगी]

दु ः खद स्मतछतयरों कर भूलर

िब मन में पुरानी दु ः खद स्मतछतयाँ सिग हरों तर उन्ें भुला दे ने में ही श्रेष्ठता है । अछप्रय बातरों कर भुलाना आवश्यक
है । भुलाना उतना ही िरूरी है छितना अच्छी बात का स्मरि करना। यछद तुम शरीर से, मन से और आचरि से
स्वथि हरना चाहते हर तर अस्वथिता की सारी बातें भूल िाओ।

माना छक छकसी 'अपने' ने ही तुम्हें चरट पहुँ चाई है , तुम्हारा छदल दु खाया है , तर क्ा तुम उसे लेकर मानछसक
उधेडबुन में लगे रहरगे। अरे भाई ! उन कष्टकारक अछप्रय प्रसोंगरों कर भुला दर, उधर ध्यान न दे कर अच्छे शुभ
कमों में मन कर केन्द्रीभूत कर दर।

हाररए न छह

छचोंता से मुप्ति पाने का सवोत्तम उपाय दु ः खरों कर भूलना ही है

सुख-दु ः खरों के ऊपर स्वाछमत्व तुम सुख, दु ः ख की अधीनता िरड उनके

ऊपर अपना स्वाछमत्व थिापन करर और उसमें िर कुि उत्तम छमले उसे लेकर अपने िीवन कर छनत्य नया
रसयुि बनाओ। िीवन कर उित करना ही मनुष्य का कतषव्य है इसछलए तुम भी िर उछचत समझर सर

प्रछतकूलताओों से डररगे नहीों और अनुकूलता ही कर सवषस्व मान कर न बैठे रहरगे तर सब कुि कर सकरगे। िर
छमले उसी से छशक्षा ग्रहि कर िीवन कर उच् बनाओ। यह िीवन ज्यरों-ज्यरों उच् बनेगा त्यरों-त्यरों आि िर तुम्हें
प्रछतकूल प्रतीत हरता है वह सब अनुकूल दीखने लगेगा और अनुकूलता आ िाने पर दु ः ख मात्र की छनवतछत्त हर
िावेगी।

बरछलए कम, कररए अछधक

'हमारी करई सुनता नहीों, कहते कहते िक गए पर सुनने वाले करई सुनते नहीों अिाष त् उन पर कुि असर ही नहीों
हरता'- मेरी राय में इसमें सुनने वाले से अछधक दरर् कहने वाले का है । कहने वाले करना नहीों िानते। वे अपनी
ओर दे खें। आत्म-छनरीक्षि कायष की शून्यता की साक्षी दे दे गा। वचन की सिलता का सारा दाररमदार
कमषशीलता में है । आप चाहे बरलें नहीों, िरडा ही बरलें पर कायष में िुट िाइए। आप िरडे ही छदनरों में दे खेंगे छक
लरग छबना कहे आपकी ओर प्तखोंचे आ रहे हैं । अतः कछहए कम, कररए अछधक। क्रोंछक बरलने का प्रभाव तर
क्षछिक हरगा और कायष का प्रभाव थिाई हरता है।

पौरुर् की पुकार

साहस ने हमें पुकारा है । समय ने, युग ने, कतषव्य ने, उत्तरदाछयत्व ने, छववेक ने, पौरुर् ने हमें पुकारा है । यह
पुकार अनसुनी न की िा सकेगी। आत्म-छनमाषि के छलए, नव-छनमाष ि के छलए हम काँ टरों से भरे रािरों का स्वागत
करें गे और आगे बढ़ें गे। लरग क्ा कहते हैं और क्ा करते हैं , इसकी छचोंता कौन करे ? अपनी आत्मा ही
मागषदशषन के छलए पयाष ि है । लरग अँधेरे में भटकते हैं , भटकते रहें । हम अपने छववेक के प्रकाश का अवलोंबन
कर स्वतः ही आगे बढ़ें गे। कौन छवररध करता है , कौन समिषन ? इसकी गिना कौन करे ? अपनी अोंतरात्मा,
अपना साहस अपने साि है और हम वही करें गे, िर करना अपने िैसे सिग व्यप्तियरों के छलए उछचत और
उपयुि है ।

पुरुर्ािष की शप्ति

सुधारवादी तत्त्रों की प्तथिछत और भी उपहासास्पद है । धमष, अध्यात्म, समाि एवों रािनीछतक क्षेत्ररों में सुधार एवों
उत्थान के नारे िरर-शरर से लगाए िाते है । पर उन क्षेत्ररों में िर हर रहा है , िर लरग कर रहे हैं , उसमें किनी और
करनी के बीच िमीन-आसमान िैसा अोंतर दे खा िा सकता है । ऐसी दशा में उज्ज्वल भछवष्य की आशा धूछमल
ही हरती चली िा रही है ।

क्ा हम सब ऐसे ही समय की प्रतीक्षा में, ऐसे ही हाि पर हाि रखकर बैठे रहें ? अपने कर असहाय, असमिष
अनुभव करते रहें और प्तथिछत बदलने के छलए छकसी दू सरे पर आशा लगाए बैठे रहें । मानवी पुरुर्ािष कहता है ,
ऐसा नहीों हरना चाछहए।

आप भटकना मत

लरभरों के झरोंके, मरहरों के झरोंके, नामवरी के झरोंके, यश के झरोंके, दबाव के झरोंके ऐसे हैं छक आदमी कर लोंबी राह
पर चलने के छलए मिबूर कर दे ते हैं और कहाँ से कहाँ घसीट ले िाते हैं । हमकर भी घसीट ले गए हरते। ये
सामान्य आदछमयरों कर घसीट ले िाते हैं । बहुत से व्यप्तियरों में िर छसद्धान्तवाद की राह पर चले इन्ीों के कारि
भटक कर कहाँ से कहाँ िा पहुँ चे।

आप भटकना मत। आपकर िब कभी भटकन आए तर आप अपने उस छदन की, उस समय की मनः प्तथिछत कर
याद कर लेना, िबछक आपके भीतर से श्रद्धा का एक अोंकुर उगा िा। उसी बात कर याद रखना छक पररश्रम
करने के प्रछत िर हमारी उमोंग और तरों ग हरनी चाछहए, उसमें कमी तर नहीों आ रही।

लगन और श्रम का महत्व

लगन आदमी के अोंदर हर तर सौ गुना काम करा लेती है । इतना काम करा लेती है छक हमारे काम कर दे खकर
आपकर आश्चयष हरगा। इतना साछहत्य छलखने से लेकर इतना बडा सोंगठन खडा करने तक और इतनी बडी
क्राप्तन्त करने से लेकर के इतने आश्रम बनाने तक िर काम शुरू छकए हैं , वे कैसे हर गए ? यह लगन और श्रम है ।
यछद हमने श्रम से िी चुराया हरता तर उसी तरीके से घछटया आदमी हरकर के रह िाते िैसे छक अपना पेट
पालना ही छिनके छलए मुप्तिल हर िाता है । चररी से, ठगी से, चालाकी से िहाँ कहीों भी छमलता पेट भरने के
छलए, कपडे पहनने के छलए और अपना मौि-शौक पूरा करने के छलए पैसा इकट्ठा करते रहते, पर हमारा यह
बडा काम सम्भव न हर पाता।

छचोंतन और चररत्र का समन्वय

अपने दरर् दू सररों पर िरपने से कुि काम न चलेगा। हमारी शारीररक एवों मानछसक दु बषलताओों के छलए दू सरे
उत्तरदायी नहीों वरन् हम स्वयों ही हैं । दू सरे व्यप्तियरों, पररप्तथिछतयरों एवों प्रारब्ध भरगरों का भी प्रभाव हरता है । पर
तीन चौिाई िीवन तर हमारे आि के दृछष्टकरि एवों कतषव्य का ही प्रछतिल हरता है । अपने कर सुधारने का काम
हाि में लेकर हम अपनी शारीररक और मानछसक परे शाछनयरों कर आसानी से हल कर सकते हैं ।

प्रभाव उनका नहीों पडता िर बकवास तर बहुत करते हैं पर स्वयों उस ढाँ चे में ढलते नहीों। छिन्रोंने छचोंतन और
चररत्र का समन्वय अपने िीवन क्रम में छकया है , उनकी सेवा साधना सदा िलती-िूलती रहती है ।

आत्मशप्ति पर छवश्वास रखर

से िु टकारा नहीों हर सकता िब तक छक अपने पुराने सडे -गले छवचाररों कर बदल न डालर। िब तक यह छवश्वास
न हर िाए छक तुम अपने अनुकूल चाहे िैसी अवथिा छनमाषि कर सकते हर तब तक तुम्हारे पैर उिछत की ओर
बढ़ नहीों सकते। अगर आगे भी न सँभलरगे तर हर सकता है छक छदव्य तेि छकसी छदन छबलकुल ही क्षीि हर िाए।
यछद तुम अपनी वतषमान अछप्रय अवथिा से िु टकारा पाना चाहते हर तर अपनी मानछसक छनबषलता कर दू र
भगाओ। अपने अोंदर आत्मछवश्वास िागतत करर।

क्ा करें , पररप्तथिछतयाँ हमारे अनुकूल नहीों हैं ,


करई हमारी सहायता नहीों करता, करई मौका
नहीों छमलता आछद छशकायतें छनरिषक हैं । अपने
दरर्रों कर दू सररों पर िरपने के छलए इस प्रकार
की बातें अपनी छदल िमाई के छलए कही िाती
हैं । लरग कभी प्रारब्ध कर मानते हैं , कभी दे वी-
दे वताओों के सामने नाक रगडते हैं । इस
सबका कारि है अपने ऊपर छवश्वास का न
हरना

You might also like