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टोबा टेक सिंह
टोबा टेक सिंह
टोबा टेक सिंह
,टोरीलाइन
इस कहानी म* +वासन क- पीड़ा को 1वषय बनाया गया है। दे श 1वभाजन के बाद जहां हर चीज़ का आदान-+दान हो रहा था
वहD क़ैदFयG और पागलG को भी JथानाKतMरत करने क- योजना बनाई गई। फ़ज़लदFन पागल को Pसफ़Q इस बात से सरोकार है
1क उसे उसक- जगह 'टोबा टे क UसVह' से जुदा न 1कया जाये। वो जगह चाहे 1हKXJतान म* हो या पा1कJतान म*। जब उसे
जबरन वहां से 1नकालने क- कोPशश क- जाती है तो वह एक ऐसी जगह जम कर खड़ा हो जाता है जो न 1हKXJतान का 1हJसा
है और न पा1कJतान का और उसी जगह पर एक ऊँची चीख़ के साथ _धे मुँह 1गर कर मर जाता है।
मालूम नहD ये बात माक़ूल थी या ग़ैरमाक़ूल, बहरहाल दा1नशमंदG के फ़ैसले के मुता1बक़ इधर
उधर ऊंची सतह क- कांj*स* bk और 1बलआlख़र एक fदन पागलG के तबादले के Pलए मुक़रQर
हो गया। अmछF तरह छानबीन क- गई। वो मुसलमान पागल oजनके लवा1हक़-न aहVदोJतान ही
म* थे, वहD रहने fदए गए थे। जो बाक़- थे, उनको सरहद पर रवाना कर fदया गया।
यहां पा1कJतान म* चूँ1क क़रीब-क़रीब तमाम aहVh-Pसख जा चुके थे इसीPलए 1कसी को रखने
रखाने का सवाल ही न पैदा bआ। oजतने aहVh-Pसख पागल थे सबके सब पुPलस क- 1हफ़ाज़त
म* बॉडQर पर पbंचा fदए गए।
उधर का मालूम नहD, ले1कन इधर लाहौर के पागलखाने म* जब इस तबादले क- ख़बर पbंची
तो बड़ी fदलचJप चेsमगोईयां होने लगD। एक मुसलमान पागल जो बारह बरस से हर रोज़
:
बाक़ायदगी के साथ 'ज़मDदार' पढ़ता था, उससे जब उसके एक दोJत ने पूछा, “मौलबी साब!
ये पा1कJतान uया होता है?” तो उसने बड़े ग़ौर-ओ-1फ़w के बाद जवाब fदया, “aहVदोJतान म*
एक ऐसी जगह है जहां उJतरे बनते हg।” ये जवाब सुन कर उसका दोJत मुतमइन हो गया।
इसी तरह एक Pसख पागल ने एक hसरे Pसख पागल से पूछ, “सरदार जी हम* aहVदोJतान uयG
भेजा जा रहा है... हम* तो वहां क- बोली नहD आती।”
hसरा मुJकुराया, “मुझे तो aहVदोJतोड़G क- बोली आती है... aहVदोJतानी बड़े शैतानी,
अकड़-अकड़ 1फरते हg।”
बा'ज़ पागल ऐसे भी थे जो पागल नहD थे। उनम* अuसMरयत ऐसे क़ा1तलG क- थी oजनके
Mर{तेदारG ने अफ़सरG को दे fदला कर, पागलखाने |भजवा fदया था 1क फांसी के फंदे से बच
जाएं। ये कुछ कुछ समझते थे 1क aहVदोJतान uयG त}सीम bआ है और ये पा1कJतान uया है।
ले1कन सही वा1क़यात से वो भी बेख़बर थे।
अdबारG से कुछ पता नहD चलता था और पहरेदार Pसपाही अनपढ़ और जा1हल थे। उनक-
गु~तुग•
ू से भी वो कोई नतीजा बरामद नहD कर सकते थे। उनको Pसफ़Q इतना मालूम था 1क
एक आदमी मोहÄमद अली oजÅा है oजसको क़ाइद-ए-आज़म कहते हg। उसने मुसलमानG के
Pलए एक अला1हदा मुÇक बनाया है oजसका नाम पा1कJतान है... ये कहाँ है, उसका
महल-ए-वक़ूअ uया है, उसके मुतअÉÇलक़ वो कुछ नहD जानते थे।
यही वजह है 1क पागलख़ाने म* वो सब पागल oजनका fदमाग़ पूरी तरह माऊफ़ नहD bआ था,
इस मुख़समे म* 1गर~तार थे 1क वो पा1कJतान म* हg या aहVदोJतान म*... अगर aहVदोJतान म* हg
तो पा1कJतान कहाँ है!
Pसपा1हयG ने उसे नीचे उतरने को कहा तो वो और ऊपर चढ़ गया। डराया धमकाया गया तो
उसने कहा, “मg aहVदोJतान म* रहना चाहता äँ न पा1कJतान म*... मg इस दरdत पर ही रäँगा।”
बड़ी मुã{कलG के बाद जब उसका दौरा सदQ पड़ा तो वो नीचे उतरा और अपने aहVh-Pसख
दोJतG से गले sमल sमल कर रोने लगा। इस ख़याल से उसका fदल भर आया था 1क वो उसे
छोड़ कर aहVदोJतान चले जाåगे।
यूरो1पयन वाडQ म* åगलो इंsडयन पागल थे। उनको जब मालूम bआ 1क aहVदोJतान को आज़ाद
कर के अंëेज़ चले गए हg तो उनको बbत सदमा bआ। वो छु पछु प कर घंटG आपस म* इस
अहम मसले पर गु~तुगू करते रहते 1क पागलख़ाने म* अब उनक- हैPसयत 1कस 1क़Jम क-
होगी। यूरो1पयन वाडQ रहेगा या उड़ा fदया जाएगा। íेकफाJट sमला करेगा या नहD। uया उKह*
डबल रोटF के बजाय çलडी इंsडयन चपाती तो ज़हर मार नहD करना पड़ेगी।
एक Pसख था oजसको पागलखाने म* दाlख़ल bए पंèह बरस हो चुके थे। हर व}त उसक-
ज़बान से ये अजीब-ओ-ग़रीब अÇफ़ाज़ सुनने म* आते थे, “ओपड़ दF गुड़ गुड़ दF अनैuस दF बे
ìयाना दF मंग दF दाल उफ़ दF लालटै न।” दे खता था रात को। पहरेदारG का ये कहना था 1क
पंèह बरस के तवील असÑ म* वो एक लहज़े के Pलए भी नहD सोया। लेटा भी नहD था।
अलबîा कभी कभी 1कसी दFवार के साथ टे क लगा लेता था।
हर व}त खड़ा रहने से उसके पांव सूज गए थे। aपVडPलयां भी फूल गई थD, मगर उस oजJमानी
तकलीफ़ के बावजूद लेट कर आराम नहD करता था। aहVदोJतान, पा1कJतान और पागलG के
तबादले के मुतअÉÇलक़ जब कभी पागलखाने म* गु~तुगू होती थी वो ग़ौर से सुनता था। कोई
उससे पूछता था 1क उसका uया ख़याल है तो वो बड़ी संजीदगी से जवाब दे ता, “ओपड़ दF
गुड़ गुड़ दF अनैuस दF बे ìयाना दF मंग दF वाल ऑफ़ दF पा1कJतान गवQनमgट।”
ले1कन बाद म* “ऑफ़ दF पा1कJतान गवQनमgट“ क- जगह “ऑफ़ दF टोबा टे क UसVह गवQनमgट” ने
ले ली और उसने hसरे पागलG से पूछना शुé 1कया 1क टोबाटे क UसVह कहाँ है, जहां का वो
रहने वाला है। ले1कन 1कसी को भी मालूम नहD था 1क वो पा1कJतान म* है या aहVदोJतान म*।
जो बताने क- कोPशश करते थे, ख़ुद इस उलझाव म* 1गर~तार हो जाते थे 1क Pसयालकोट
पहले aहVदोJतान म* होता था पर अब सुना है 1क पा1कJतान म* है।
उस Pसख पागल के केस sछदरे हो कर बbत मुdतसर रह गए थे। चूँ1क बbत कम नहाता था,
इसPलए दाढ़F और सर के बाल आपस म* जम गए थे, oजसके बाइस उसक- शuल बड़ी
भयानक हो गई थी। मगर आदमी बेज़रर था। पंèह बरसG म* उसने कभी 1कसी से झगड़ा
फ़साद नहD 1कया था। पागलखाने के जो पुराने मुलाoज़म थे, वो उसके मुतअÉÇलक़ जानते थे
1क टोबाटे क UसVह म* उसक- कई ज़मीन* थD। अmछा खाता-पीता ज़मDदार था 1क अचानक
fदमाग़ उलट गया।
उसके Mर{तेदार लोहे क- मोटF-मोटF ज़ंजीरG म* उसे बांध कर लाए और पागलखाने म* दाlख़ल
करा गए।
उसका नाम 1बशन UसVह था मगर उसे टोबाटे क UसVह कहते थे। उसको ये क़तअन मालूम नहD
था 1क fदन कौन सा है, महीना कौन सा है या 1कतने साल बीत चुके हg। ले1कन हर महीने
जब उसके अ'ज़ीज़-ओ-अका़Mरब उससे sमलने के Pलए आते थे तो उसे अपने आप पता चल
जाता था। चुनांचे वो दफ़अदार से कहता 1क उसक- मुलाक़ात आ रही है।
उस fदन वो अmछF तरह नहाता, बदन पर ख़ूब साबुन sघसता और सर म* तेल लगा कर कंघा
करता, अपने कपड़े जो वो कभी इJतेमाल नहD करता था, 1नकलवा के पहनता और यूं सज
कर sमलने वालG के पास जाता। वो उससे कुछ पूछते तो वो ख़ामोश रहता या कभी कभार
“ऊपर दF गुड़ गुड़ दF अनैuस दF बे ìयाना दF मंग दF वाल ऑफ़ दF लालटै न” कह दे ता।
पा1कJतान और aहVदोJतान का 1क़Jसा शुé bआ तो उसने hसरे पागलG से पूछना शुé 1कया
:
1क टोबाटे क UसVह कहाँ है। जब इãòमनानबdश जवाब न sमला तो उसक- कुरेद fदन-ब-fदन
बढ़ती गई। अब मुलाक़ात भी नहD आती थी। पहले तो उसे अपने आप पता चल जाता था 1क
sमलने वाले आ रहे हg, पर अब जैसे उसके fदल क- आवाज़ भी बंद हो गई थी जो उसे उनक-
आमद क- ख़बर दे fदया करती थी।
उसक- बड़ी dवा1हश थी 1क वो लोग आएं जो उससे हमददô का इज़हार करते थे और उसके
Pलए फल, sमठाईयां और कपड़े लाते थे। वो अगर उनसे पूछता 1क टोबाटे क UसVह कहाँ है, तो
वो उसे यक़-नन बता दे ते 1क पा1कJतान म* है या aहVदोJतान म* uयG1क उसका ख़याल था 1क
वो टोबाटे क UसVह ही से आते हg, जहां उसक- ज़मीन* हg।
उसका शायद ये मतलब था 1क तुम मुसलमान के ख़ुदा हो... PसखG के ख़ुदा होते तो ज़éर
मेरी सुनते।
तबादले से कुछ fदन पहले टोबाटे क UसVह का एक मुसलमान जो उसका दोJत था, मुलाक़ात के
Pलए आया। पहले वो कभी नहD आया था। जब 1बशन UसVह ने उसे दे खा तो एक तरफ़ हट
गया और वापस जाने लगा, मगर Pसपा1हयG ने उसे रोका, “ये तुम से sमलने आया है... तुÄहारा
दोJत फ़ज़लदFन है।”
वो कुछ कहते कहते õक गया। 1बशन UसVह कुछ याद करने लगा, “बेटF éप कौर!”
फ़ज़लदFन ने õक õक कर कहा, “हाँ... वो... वो भी ठúक ठाक है... उनके साथ ही चली गई।”
1बशन UसVह ख़ामोश रहा। फ़ज़लदFन ने कहना शुé 1कया, उKहGने मुझसे कहा था 1क तुÄहारी
ख़ैर ख़ैMरयत पूछता रäं... अब मgने सुना है 1क तुम aहVदोJतान जा रहे हो... भाई बलबीर UसVह
और भाई वधावा UसVह से मेरा सलाम कहना... और बहन अमृत कौर से भी...
“भाई बलबीर से कहना फ़ज़लदFन राज़ी ख़ुशी है... दो भूरी भgस* जो वो छोड़ गए थे, उनम* से
एक ने कùा fदया है और hसरी के कùF bई थी पर वो छः fदन क- हो के मर गई... और मेरे
लायक़ जो lख़दमत हो कहना, मg हर व}त तैयार äँ... और ये तुÄहारे Pलए थोड़े से मरGडे लाया
äँ।”
1बशन UसVह बड़बड़ाता bआ चला गया, “ओपड़ दF गुड़ गुड़ दF अनैuस दF बे ìयाना दF मंग दF
दाल ऑफ़ पा1कJतान åड aहVदोJतान आफ़ दF Xरफ़टे मुँह।”
तबादले क- तैयाMरयां मुकÄमल हो चुक- थD। इधर से उधर और उधर से इधर आने वाले
पागलG क- फ़हMरJत* पbंच गई थD और तबादले का fदन भी मुक़रQर हो चुका था।
सdत सüदVयां थD, जब लाहौर के पागलखाने से aहVh-Pसख पागलG से भरी bई लाMरयां पुPलस
के मुहा1फ़ज़ दJते के साथ रवाना bk। मुतअÉÇलक़ा अफ़सर भी हमराह थे। वाघा के बॉडQर पर
:
तरफ़ैन के सुपMरKटे KडेKट एक hसरे से sमले और इ†çतदाई कारQवाई ख़òम होने के बाद तबादला
शुé हो गया जो रात भर जारी रहा।
पागलG को लाMरयG से 1नकालना और उनको hसरे अफ़सरG के हवाले करना बड़ा कfठन काम
था। बा'ज़ तो बाहर 1नकलते ही नहD थे। जो 1नकलने पर रज़ामंद bए थे, उनको सँभालना
मुã{कल हो जाता था uयG1क इधर-उधर भाग उठते थे, जो नंगे थे, उनको कपड़े पहनाए जाते
वो फाड़ कर अपने तन से जुदा कर दे ते। कोई गाPलयां बक रहा है। कोई गा रहा है। आपस
म* लड़ झगड़ रहे हg। रो रहे हg, 1बलक रहे हg। कान पड़ी आवाज़ सुनाई नहD दे ती थी... पागल
औरतG का शोर-ओ-गोगा अलग था और सदô इतनी कड़ाके क- थी 1क दाँत से दाँत बज रहे
थे।
ये सुन कर 1बशन UसVह उछल कर एक तरफ़ हटा और दौड़ कर अपने बाक़--मांदा साPथयG के
पास पbंच गया।
पा1कJतानी Pसपा1हयG ने उसे पकड़ Pलया और hसरी तरफ़ ले जाने लगे, मगर उसने चलने से
इनकार कर fदय,: “टोबाटे क UसVह यहां है...” और ज़ोर ज़ोर से sचÇलाने लगा, “ओपड़ दF गुड़
गुड़ दF अनैuस दF बे ìयाना दF मंग दF दाल ऑफ़ टोबाटे क UसVह åड पा1कJतान।”
उसे बbत समझाया गया 1क दे खो अब टोबाटे क UसVह aहVदोJतान म* चला गया है... अगर नहD
:
गया तो उसे फ़ौरन वहां भेज fदया जाएगा, मगर वो न माना। जब उसको ज़बरदJती hसरी
तरफ़ ले जाने क- कोPशश क- गई तो वो दरsमयान म* एक जगह इस अंदाज़ म* अपनी सूजी
bई टांगG पर खड़ा हो गया जैसे अब उसे कोई ताक़त वहां से नहD 1हला सकेगी।
आदमी चूँ1क बेज़रर था इसPलए उससे मज़ीद ज़बरदJती न क- गई। उसको वहD खड़ा रहने
fदया गया और तबादले का बाक़- काम होता रहा।
°ोत:
Fasane Manto Ke (Pg. 87-94)
प्रकाशक: 1कताबी X1नया, fदÇली
प्रकाशन वषर्: 2007
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