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1 1२-०२-१९७१-प*ु प-१५-,यौ लोक का घत


दे खो, म<ु नवर@! आज हम तEु हारे समG, पव
ू I कJ भां<त, कुछ मनोहर वेद मNO@ का गुणगान गाते चले जा रहे
थे, हमारे यहाँ <नUय V<त कुछ मनोहर उस वेदवाणी का Vसारण होता है िजस प[वO वेदवाणी का Vसारण होता
है िजस प[वO वेदवाणी म\ उस परम[पता परमाUमा का ]ान और [व]ान माना जाता है । यह जो सवIO जगत है
यह उस परम[पता परमाUमा का एक [व]ान है वह <नUय V<त अपना कायI करता चला जा रहा है ।
आज का हमारा वेद का ऋ[ष dया आ]ा करता चला जा रहा था? मेरे fयारे ऋ[षवर! आज का हमारा वेदमNO
बहुत हh सi
ू म वाjाI Vकट कर रहा था। कल यह उlचारण mकया जा रहा था mक अNतnरG का घत ृ dया माना
जाता है इसके ऊपर हमारा [वचार [व<नमय चल रहा था, नाना ऋ[ष म<ु नय@ का [वचार अथवा उनका
अनस
ु Nधान Vायः होता रहता है था और नाना sटfपtणयां भी दh हu। रहा यह वाdय mक उनके [वचार@ म\ , हमारे
और भी नाना ऋ[षय@ के [वचार@ म\ vभNनता हो सकती है । उनके शxद@ कJ जो रचना है और वाdय@ का जो
सN
ु दर [वyलेषण है वह हमारे vलए Vायः अनक
ु ू ल न हो परNतु उनका [वचार एक महान और सावIभौम हो जाता
है । ऋ[षय@ का [वचार ऐसा होता है जो महान एक अनस
ु Nधान से दरू h हो dय@mक ऋ[ष कहते हh उसको हu जो
अपने जीवन सEबNध ,[वतीय बाहरhय जगत और अNतnरG जगत दोन@ का समवNय करने वाला होता है । दोन@
कJ जो धारा हu उनको एक संगम म\ लाने वाला होता है । संगम का अvभVाय dया होता है ? दे खो, हमारे यहाँ
मन पर ऋ[षय@ ने बहुत बल sदया है mक मन को प[वO बनाया जाए। मन संसार म\ उन वन{प<तय@ का सi
ू म
रस कहलाता है िजसकJ V<त*ठा ,यौ लोक म\ रमण करने वालh होती है । यह जो हमारा मन है यह नाना Vकार
कJ सN
ु दर रचनाय\ रचने वाला है । dय@ रचता है ? इस मन कJ धारा dया है ? मन कJ जो उपलिxध मानी जाती
है और इसकJ जो धारा है वह जो नाना Vकार कJ वन{प<तयां होती हu, नाना जो औष}धयां होती हu, उनका रस
परमाणु बन करके अNतnरG म\ रमण कर जाते हu मानो दे खो, उसम\ उसकJ V<त*ठा हो जाती है उसी को हमारे
यहाँ सावIभौम कहा जाता है dय@mक मन कJ एक ऐसी धारा होती है mक यsद प~
ृ वी म\ नहhं होगा तो Vाण का
और नाना Vकार कJ वन{प<तय@ का उUपादन नहhं होगा। िजस Vकार वसN
ु धरा प~
ृ वी के गभI{थल म\ नाना
Vकार कJ वन{प<तय@ का जNम होता है परNतु वह इसीvलए होता है dय@mक उसम\ एक महानता होती है , उसम\
सावIभौमता होती है और [वभाजन करने कJ इसम\ एक महान शिdत होती है dय@mक Vकृ<त के त•व@ का, Vकृ<त
के परमाणओ
ु ं का मन [वभाजन करता रहता है इसीvलए हमारे यहाँ इस मन को वन{प<तय@ का घत
ृ कहा जाता
हu। वन{प<तय@ को हम <नदानम Vेम कृ<त •दो भागाः हमारे समीप एक वाdय आता रहात है िजस Vकार पशु
जो नाना Vकार कJ वन{प<तय@ को ‚हण करता है मानो िजस मNO म\ वह मNथन mकया जाता है यsद आज
हम बाहरhय औष}धय@ के ,वारा उस घत
ृ को लाना चाह\ तो वह mकस Vकार ला सकते हu। यह हमारे यहाँ
अनस
ु Nधान का [वषय रह जाता है । इसम\ मह[षI वायु म<ु न महाराज, दालƒय और मह[षI सौमम<ु न महाराज
इUयाsद का जो [वचार है उसे मu तE
ु ह\ Vकट करा रहा हूं। आज जब हम नाना Vकार कJ औष}धय@ को एक„Oत
करते हu और एक„Oत करके अ*टकोण य]शाला बनाते हu और अ*टकोण य]शाला बना करके य]शाला का जो
ऊपरh [वभाग होता है उसम\ दे खो, हnरत, yवेत और पीत वणI के उसम\ कJ<तI या अ{वात अप‚ीह होते हu। वह
जो वन{प<तयां हम य]शाला म\ पnरणत करते हu, तपाने के पyचात ् उनकJ धारा बन करके य]शाला म\ जब
उनका अपरात <नदान होता है तो उसी <नदान के कारण, महानता के कारण हमारे यहाँ ऐसा माना जाता है mक
िजसम\ जीवन कJ एक धारा प[वOता म\ पnरणत कJ जाती है dय@mक हमारे यहाँ य]शाला म\ एक महानता का
सदै व sद†दशIन Vायः होता रहता है िजसके ऊपर हमारा केवल महान [वचार होता है उस [वचार के साथ म\
हमारh मौvलक धारा होती है । उस य]शाला म\ उस या‡]क प•
ु ष कJ एक महान धारा म\ पnरणत होने वाला एक
[वचार होता है । जब मानव य]शाला म\ पnरणत होता है तो उसकJ महान धारा एक प[वOता म\ पnरणत हो
जाती है ।
आओ मेरे fयारे ऋ[षवर! आज का हमारा आचायI dया कह रहा है ? हम\ [वचारना dया है ? हम\ य] के घत
ृ को
[वचारना है । िजसके ऊपर मानव को सदै व [वचार [व<नमय करना है । आज मu ऋ[ष म<ु नय@ का [वचार दे ना
चाहता हूं और वह dया mक हम\ मन और Vाण कJ सi
ू मता को जानना है वह जो ,यौ लोक म\ नाना Vकार कJ
वन{प<तय@ का रस है मानो य] के ,वारा हम उसका पात बना सकते हu और पात बना करके मानो सय
ू I कJ
जो नाना mकरण\ हu उनको हम अपने म\ ला सकते हu। dय@mक mकरण@ के ,वारा हh पशु के उस शरhर म\ Vायः
उसका <नदान होता है महानता म\ उसकJ धारा होती है िजसके ऊपर मानव को एक [वचार [व<नमय करना होता
है ।
हमारे यहाँ य] भत
ू ानां घत
ृ ं •ˆ{य भागा आचायI कहता है mक य]शाला से यािजक प•
ु ष जब [वराजमान होता
है तो सय
ू I कJ mकरण@ का mकस Vकार <नदान mकया जाता है ? उसको हम अपने म\ mकस Vकार धारण कर
सकते हu इसके ऊपर हम\ [वचार [व<नमय करना है तो यहाँ वेद का ऋ[ष कहता है , मह[षI भार,वाज ने एक
वाdय म\ कहा है , सम भव Vभे अकृता<न •ˆ{य भागाः mक नाना Vकार कJ सय
ू I कJ mकरण@ से नाना Vकार कJ
mकरण@ का जNम होता है , उन mकरण@ म\ एक महानता कJ धारा होती है उNहhं को लाने के vलए हम सदै व
तUपर रहते हu िजससे हमारा [वचार आचाय‰ कJ Šि*ट म\ महान माना गया है dय@mक उसको हम अपने
मि{त*क कJ य]शाला म\ लाना चाहते हu तो एक महान यौ}गक [वषय बन जाता है । हमारे यहाँ योगाचाय‰ ने
कहा mक ‹Œम योगात Vभा अि{त सV
ु जाः मानो जो ‹Œम [व,या का <नदान करना जानता है dय@mक ‹Œम कJ
[व,या का <नदान मन और Vाण के साथ हh तो होता है । यsद मन और Vाण दोन@ को <नदान नहhं ला सकोगे
तो जीवन महानता का कदा[प भी sद†दशIन नहhं हो सकेगा।
आज VUयेक मानव को संसार म\ य] करना चाsहए। य] कJ V<तभा dया कह रहh है mक आज हम\ नाना Vकार
का अनस
ु Nधान करना है dय@mक यह जो जगत है यह परमाUमा का एक भ•य भवन है , य]शाला है , मानो यहh
तो ‹Œम [व,या [वचारने का एक य] Vभे कृत•यो दे खो, इसको ‹Œम भवन कहा जाता है । इसम\ मानव िजतना
अनसु Nधान कर लेता है , िजतना अपने जीवन का <नदान कर लेता है , िजतना अपने Žदय को {वlछ बना लेता
है िजतनी मन कJ धारा को ऊँचा बना लेता है उतना हh उसकJ मन कJ धारा प[वO बन करके ,यौ लोक@ म\
उनकJ V<त*ठा हो जाती है ऐसा हमारे यहाँ वेद का ऋ[ष कहता है य]ं भत
ू ानां Vभाकृ<त •ˆाः सिNत लोके
आचायI कहते हu, मह[षI भार,वाज ने यह कहा है mक य]मान के Žदय कJ ग<त िजतनी श,
ु धता होगी, िजतनी
महानता उसके ,वारा होगी उतनी हh VUयेक आहु<त अि†न का {व•प माना गया है । हमारे यहाँ कल के
वाdय]ै। म\ उlचारण mकया जा रहा था mक ‹Œम वहृ ाम ् लोकः मानो अि†न को हमारे यहाँ अ•वIयु कहा जाता
है । उ,गाता का अvभVाय केवल अि†न और वायु दोन@ कJ पट
ु हुआ करती है उस समय वायु उ,गाता कहलाता
है और अि†न अ•वIयु कहलाता है , अ•वIयु का dया अvभVाय है ? वह मानो वायु कJ सहकाnरता से हh, वायु के
साथ vमलान से हh अ•वIयु कहलाता है और वह अि†न के साथ म\ vम•ण होने से हh उसको हमारे यहाँ उ,गाता
कहा जाता है dय@mक वायु हh तो समागान गाती है उ,गाता हh तो य]शाला म\ उ,गीत गाता है । य]शाला म\
पnरणत होता हुआ महानता को Vाfत होता रहता है ।
हमारा आज का वाक् dया mक हमारे यहाँ अि†न को हh अि†न Vभा कृOं •ˆ{य भागा असवतो लोकं मम वाचं
Vाणी मानो आUमा को हामरे यहाँ य]माना कहा गया है dय@mक आUमा हh इसका कृत कहलाया गया है आUमा
के साथ हh य]भत
ू {य Vभा dय@mक संसार म\ आUमा के कारण मन Vकृ<त का िजतना परमाणव
ु ाद है , िजतना
अणवु ाद है वह सब आUमा के आ}•त होता हुआ इस शरhर होता हुआ इस शरhर म\ ग<त कर रहा है । यह
मानवीय ग<त इसी के आ}•त हो करके रमण mकया करती है ।
‹Œम कJ चेतना संसार म\ अपना कायI कर रहh है । ‹Œम [व,या हh मानव को ऊँचा बनाती है , रा*‘ को ऊँचा
बनाती है और रा*‘ म\ धमI को ला दे ती है । इसvलए आज हम\ ‹Œम [व,या कJ आवyयकता है । जब VUयेक
मानव धमI<न*ठ और ‹Œम<न*ठ होता है उसी काल म\ उसकJ [वचारधारा म\ एक महानता का sद†दशIन, महानता
कJ उसके Žदय म\ V<ति*ठत हो जाती है िजससे वह महान कहलाता है । मानव कJ जो वाणी होती है उसका
सEबNध अि†न से होता है इसvलए हमारे यहाँ mकसी mकसी ऋ[ष ने अि†न को भी उ,गाता कहा है , वायु को
अ•वIयु कहा परNतु इसका [वचार हम mकसी काल म\ वेद पाठ आयेगा तो Vकट कर\ गे। आज का हमारा यह
वाdय आ]ा नहhं दे रहा है आज तो हम Vभु कJ याचना कर रहे हu mक हे Vभ!ु तू {वयं य] है , तेरh महानता
इन वेद@ म\ पnरणत हो रहh है , वेद कJ जो अनप
ु म धारा है , वेद का जो Vकाश है यहh Vकाश मानव के
अNतःकरण को प[वO बनता है dय@mक वेद कJ जो अनप
ु मता है , ‹Œम [व,या है , महानता है उसम\ उसका एक-
एक शxद पGपात से रsहत है उसी को तो ‹Œम [व,या कहते हu dय@mक परमाUमा •sढ़ नहhं होता इसीvलए वेद
भी •sढ़ नहhं है । इसvलए वेद के अनस
ु ार मानव को अपने जीवन को ऊँचा बनाना चाsहए। जो मानव •sढ़य@ म\
पnरणत हो जाते हu उनके जीवन@ म\ [वनाश हो जाता है , उनका जो संक“प होता है उसकJ धाराओं म\ vभNनता
आ जाती है ।
आज हमारा वेद पाठ dया कह रहा है mक हम परम[पता परमाUमा कJ उपासना करते हुए य]शाला म\ पnरणत
होते हुए अपने [वचार@ का य] करते चले जाएं। नाना Vकार का संक“प हो। संक“प के साथ म\ हमारा एक
संक“प हो, Vाण का हh उसम\ <नदान हो उसके पyचात ् जब हम आहु<त दे ते हu, वह आहु<त ,यौ लो को Vाfत
होती है , दे वता गण उनको Vाfत करते हu और दे वता जब तfृ त होते हu तो रा*‘वाद को dया समाज को प[वO
बनाते चले जाते हu, परNतु परमाणव
ु ाद को ऊँचा बनाते चले जाते हu dय@mक यह िजतना जगत है यह सब
परमाणओ
ु ं कJ हh रचना है । कल मझ
ु े समय vमलेगा तो मu यह उlचारण कर सकंू गा mक ,यौ लोक का जो घत

है उसम\ mकतने सi
ू म परमाणु होते हu और वह परमाणु जब अि†न उ,गाता बन करके और वायु अ•वयुI बन
करके जब उसका शाक“प उनम\ Vदान mकया जाता है तो ,यौ लोक म\ mकतनी महान ग<त होती है । िजतना
मानव का Žास {वlछ और प[वO होता है , ममता से रsहत होता है , •ोध से रsहत होता है , नाना Vकार कJ
[वडEबनाओं से रsहत होता है उतना हh ,यौ लोक को मानव का संकलन Vाfत होता चला जाता है ।
आओ मेरे fयारे ऋ[षवर! आज का हमारा यह वाdय समाfत अब मझ
ु े समय vमलेगा तो शेष चचाIय\ कल Vकट
कर सकंू गा। अब वेद@ का पाठ होगा। इसके पyचात ् हमारh वाjाI समाfत हो जाएगी। (लाGागह
ृ बरनावा म\ sदया
हुआ Vवचन)

2 १३-०२-१९७१-प*ु प-१५-,यौ लोक कJ सम}धएं


दे खो, म<ु नवर@! आज हम तE
ु हारे समG, पव
ू I कJ भां<त, कुछ मनोहर वेद मNO@ का गुणगान गाते चले जा रहे
थे, ये भी तE
ु ह\ Vतीत हो गया होगा, हमने पव
ू I से िजन वेद मNO@ का पठन-पाठन mकया हमारे यहाँ जो पठन-
पाठन का Vायः •म होता है वह सदै व [व}चOता म\ पnरणत माना गया है ।
आज का हमारा वेद पाठ dया कर रहा था इसके ऊपर हम\ [वचार [व<नमय करना है । आज मेरे fयारे महानNद
जी भी दो शxद@ का [ववेचन दे सक\गे। उससे पव
ू I मu कल के अपने उस महान [वषय को लेना चाहता हूं जो
आज हमारे वेद मNO@ ,वार V<तपादन mकया जा रहा था। हमारे यहाँ ऋ[ष म<ु नय@ के दो Vकार माने गएं हu।
कहhं-कहhं तो आचाय‰ ने वायु को उ,गाता माना है परNतु ऋ[षय@ का जो एक [वचार है उसका सिNनधान कर
लेना चाsहए। दोन@ को [वचार करके उसका vमलान कर लेना चाsहए।
तो यहाँ वायु म<ु न महाराज ने और भी नाना आचाय‰ ने अपने शxद@ म\ कहा है mक यsद हम संसार म\ उššवल
{व•प को लेकर चलते हu, महानता पर [वचार [व<नमय करते हu तो हमारे यहाँ वायु और अि†न दोन@ कJ
सहकाnरता और vमलान होने पर वह एक उ,गाता कJ •ेणी उ,गाता कJ कृ<त V<तपाsदता मानी गई है परNतु
जहाँ मu यह [वचारने लगता हूं mक वेद का ऋ[ष dया कहता है इस सEबNध म\ तो वेद का ऋ[ष कहता है , वायु
उ,गाता Vभे आकृ<त सV ु जाः dय@mक वायु को उ,गाता हh माना है । इसम\ नाना Vकार का भेदन माना गया है ।
ऋ[ष कहते हu mक नाvभ केNˆ म\ जब एक Vकार का Vवाहकृत होने लगता है तो उस समय शxद का उदगार
उUपNन होने लगता है तो उस समय शxद उदगार उUपNन होता है dय@mक वाणी का जो {व•प है वह अि†न
माना गया है । dय@mक •यि*ट-समि*ट म\ जब हम पहुंच जाते हu और [वचारने लगते हu तो इस शरhर म\ वाणी है
और लोक म\ अि†न मानी गई है । तो इसvलए अि†न से उlचारण mकए हुए शxद को हh हमारे यहाँ उ,गाता
कहा जाता है तो इसम\ एक vभNनता आ जाती है dय@mक Vाण का सिNनधान जब तक अि†न के साथ नहhं
होगा तो mकसी शxद कJ उUप[j होना असEभव हो जाता है जैसे हमारे इस सi
ू म से [पœड म\ एक ‹ŒमरN•
{थाना माना गया है िजसम\ नाना सi
ू म वाहक नाžड़यां होती हu। एक नाड़ी सय
ू क
I े तु नाम कJ होती है िजसका
सEबNध सय
ू I से होता है । िजस समय उस नाड़ी का च• चलता है तो उसका <नमाIण मेरे fयारे Vभु ने इस
Vकार mकया है mक जब वह अपने {थान से दस
ू रे {थान पर केवल Vाण का संयम करने से, मन का सिNनधान
करने से मन और Vाण दोन@ का vमलान करने से अि†न Vदhfत होती है । वह जो हमारh ‹ŒमरN• वालh अि†न
िजसको हमारे यहाँ ,यौ लोक कहा जाता है जब इन दोन@ का vमलान होता है उस नाना Vकार कJ ‹ŒमरN•
•पी जो य]वेदh है जब उसम\ घत
ृ कJ आहु<त दे ता है तो अि†न Vदhfत हो जाती है । कौन-सी अि†न? वह जो
,यौ लोक कJ अि†न है उसका जो सi
ू म •प जब वह घत
ृ बन करके घत
ृ कJ आहु<त दे ते हu तो उस समय वह
अि†न Vदhfत हो करके वह जो सय
ू I केतु नाम कJ नाड़ी है उसम\ एक ग<त उUपNन होती है । इसी Vकार उसके
साथ म\ एक नाड़ी इस Vकार कJ है िजसका सEबNध •व
ु मœडल से होता है । तो यहाँ आ•tण और •व
ु और
सय
ू I इन तीन@ नाžड़य@ का च• चलता है इस अि†न के ,वारा वह य]वेदh म\ जो यह तीन सम}ध होती हu जब
यह तीन सvमधाएं य‡]क प•
ु ष कJ जाग•क हो जाती हu तो सय
ू I मœडल, आ•tण मœडल और •व
ु मœडल का
रहन-सहन, वहाँ कJ [वचार योगी {वतः जान लेता है ।
आज मu इन वाdय@ को अ}धक गEभीर नहhं बनाना चाहता हूं। केवल वाdय उlचारण करने का अvभVाय यह है
mक उस अि†न कJ आहु<त हम कैसे दे सक\गे िजससे हम इन तीन@ मœडल@ को जान जाएं। दे खो, वह तीन
सvमधा कहलाती है जो मानव के ‹ŒमरN• म\ होती है । हे ‹Œमचारh! हे या‡]क प•
ु ष? यsद तू य] का
अ}धकारh बनना चाहता है और य] के ,वारा तू दस
ू रे लोक@ म\ रमण करना चाहता है और नाना Vकार के
भौ<तक परमाणव
ु ाद को जानना चाहता है तो तझ
ु े मन और Vाण दोन@ को सEबिNधत करके दोन@ को मNथन
करके, जो मन और Vाण का सiू म •प िजसको हमारे यहाँ महातUवे कहा जाता है िजसको Vकृ<त का बहुत हh
सi
ू म {व•प माना गया है जब उसकJ आहु<त दh जाती है । अरे , कौन दे ता है ? वह ‹Œमचारh दे ता है । मह[षI
भार,वाज जैसे ऋ[ष sदया करते हu उस आहु<त को, यहाँ मह[षI भार,वाज जैसे आचायI sदया करते हu, •यास
और सख
ु दे व जैसे म<ु न sदया करते हu िजनका जीवन एक महानता म\ पnरणत माना गया है ।
मu इस सEबNध म\ अ}धक चचाI Vकट नहhं करना चाहता हूं। मuने तE
ु ह\ तीन सvमधाओं कJ [वशेषता Vकट कJ
है । तीन सvमधाय\ यह हu और तीन सvमधाय\ इनके साथ और होती हu। उन सvमधाओं म\ से एक तो इस प~
ृ वी
मœडल कJ होती है , एक सvमधा अNतnरG मœडल कJ होती है और एक सvमधा ,यौ मœडल कJ होती है । यह
तीन सvमधा है िजनको {वान, अनत
ु नी और कृ<त कहते हu इनकJ ‹ŒमरN• म\ जाग•कता होने के कारण तीन@
लोक@ कJ वाjाI जानने वाला या‡]क बन जाता है । यह हमारh आ•यािUमक सvमधाओं का वणIन होता चला जा
रहा है । आ•यािUमक वेjाओं ने कहा है , आsद ऋ[षय@ ने का है mक हम\ इनके ऊपर बहुत अनस
ु Nधान करना है ,
िजससे हमारे जीवन म\ महानता कJ एक ऐसी तरं ग उUपNन हो जाएं िजससे हमारा य], हमारh मानवता, हमारे
‹ŒमरN• म\ [वशाल ग<त उUपNन हो करके हम भी इन लाक@ को Vाfत होते चले जाएं।
वाdय उlचारण करने का हमारा अvभVाय dया है mक आज हम उन चार सvमधाओं को और जानना चाहता हu
िजनकJ हम\ आहु<त दे नी है । वह चार सvमधाय\ यह हu mक चार नाžड़यां इस Vकार कJ हu हमारे ‹ŒमरN• म\
िजनको {वा<त, अभेलनी •ांतनी और रे नकेतु कहते हu। जब हम इनको जान लेते हu तो जहाँ इन नाžड़य@ का
vमलान होता है और vमलान करके चार आहु<त बन करके एक आहु<त हम\ अVेत को Vाfत हो जाती है , दशम
को Vाfत हो जाती है , दशम को Vाfत हो जाती हे और तीन जो सvमधा हu उनका जहाँ दस@ सvमधाओं का
vमलान करके चार सvमधाय\ इनके ऊपर छा जाती हu। छा जाने के पyचात Žदय •पी जो हमारh य]वेदh है
उसम\ उन सvमधाओं कJ आहु<त लगा करके, अि†न बन करके एक महान ग<त होती है , उसम\ जो संसार के
नाना लोक लोकाNतर समाsहत हो जाते हu। उसम\ vशव-पावIती अपना नUृ य करने लगते हu। माता पावIती Vकृ<त
हu और ‹Œम कJ आभा बन करके Žदय •पी य] वेदh म\ जब नUृ य होने लगता है तो वह अि†न Vदhfत हो
करके मन और Vाण कJ जब सi
ू म घत
ृ •पी आहु<त लगती है तो उस समय योगी का Žदय इन सब लोक-
लोकाNतर@ के जानने वाला बन जाता है और वह प•
ु ष ‹ŒमचयI त का पालन करते हुए इस संसार म\
लोक[Vय हो जाता है । ,यौ लोक म\ लोक[Vय हो जाता है और ,यौ लोक म\ जो महान [वशेष आUमाएं ¡मण
करती रहती हu उनसे भी ऊँची {वगI कJ आUमाओं को Vाfत हो जाता है ।
कल मuने यह वाdय Vकट mकया था mक हम सय
ू I कJ mकरण को अपने म\ धारण करना चाहते हu। मेरा
परEपरागत@ से यह [वyवास रहा है dय@mक हमने भी इसके ऊपर कुछ सi ू म अनस
ु Nधान mकया है । यह
अनसु Nधान इस Vकार के होते हu mक बारह-बारह वषI तक नाना Vकार कJ वन{प<तय@ को पान करने से ब,
ु }ध
म\ इनका sद†दशIन होता है । एक समय आचायI ने मझ
ु े <नणIय कराया mक तम
ु इसके ऊपर अनस
ु Nधान करो तो
मझ
ु े परम[पता परमाUमा कJ अनप
ु म कृपा से वह सौभा†य Vाfत हुआ। य] ‹Œमलोको Vभा अि{त सV
ु जा इस
[वषय पर mक िजससे हम सय
ू I कJ mकरण@ को अपने मं◌ा धारण कर सक\ उनम\ mकतने Vकार के परमाणु होते
हu, वायु कJ ग<त mकतनी होती है सय
ू I कJ mकरण@ कJ ग<त mकतनी होती है और mकतने सi
ू म परमाणु का
आगEय होता है । ऋ[ष म<ु नय@ ने यह कहा mक आप इसके ऊपर अनस
ु Nधान dय@ नहhं करते dय@mक इससे
विृ *ट होती है । विृ *ट य] वहh करा सकता है , जो सय
ू I कJ तप{या करता हुआ सय
ू I कJ mकरण@ को शिdत के
,वारा संक“प अपने म\ धारण करके और उन नाना Vकार कJ वन{प<तय@ को जान जाएं। जैसे ‚ी*म ऋतु म\
सय
ू I कJ mकरण\ प~
ृ वी के जल को अपने म\ शोषण कर लेती है , अNतnरG म\ वह परमाणु [वराजमान हो जाते हu,
अNतnरG म\ वह परमाणु [वराजमान हो जाते हu, अNतnरG म\ समˆ
ु का समˆ
ु ओत-Vोत हो जाता है इसी Vकार
उन mकरण@ को जान करके संक“प बना करके और नाना Vकार कJ वन{प<तयां जान करके जो या‡]क य]
करता है यह भौ<तक य] है । उसम\ एक सेनमक
ु एक औषध होती है , एक सेल खœडा होती है , शंखहुलh होती है ,
mकरकल होता है , आभष
ू णी होती है और जा प[वO होती है , जायफल होता हे , जमनकेतु होती है , अyववेगनी
होती है , पीपल कJ दाह दाड़ी होती है , पीपल का पंचांग होता है , वट वG
ृ का पंचांग होता है और यह दे वदास
का पंचांग होता है , मामधो<नय@ का पंचांग होता है , नाना Vकार कJ औष}धयां होती है , उनकJ गणना करने म\
समय लगेगा परNतु इतना समय आ]ा नहhं दे रहा है । मेरे महानNद जी भी अपने वाdय उlचारण करने के
vलए यहाँ VतीGा कर रहे हu। दœडकेतु का एक पंचांग होता है इसी Vकार सेलकेतु एक वG
ृ होता है तो Vायः
पवIत@ म\ Vाfत होता है उसका पंचांग होता है । मानधाता एक वG
ृ होता है उसका पंचांग होता है , गल
ु केतु एक
वG
ृ होता है उसका पंचांग होता है । इस Vकार कJ औष}धयां एक„Oत करके और जो गौ घत
ृ होता है और गौ
घत
ृ को भी सय
ू I कJ mकरण@ म\ तपाया जाता है , तापने के पyचात उसको अि†न म\ तfृ त करके उस घत
ृ के साथ
म\ उस अि†न म\ एक सौमरस बनाया जाता है । वह सौमरस कैसे बनाया जाता है ? उसम\ एक •गणी औषध
होती है और म<ु न अनNत केतु एक औषध होती है , एक आनNदकेतु औषध होती है , इन तीन@ को अि†न म\ तपा
करके पात बनाया जाता है । पात बना करके इसको दे नकेतु कहते हu, गNदाशील भी कहते हu और mकसनानी भी
कहते हu, केसल होती है , क{तरू कान होता है , आभागन होता है , इन नाना Vकार कJ औष}धय@ से पात बनाया
जाता है । उस पात म\ यह [वशेषता होती है mक जो आहु<त इन औष}धय@ को लेकर के कJ जाती है । एक ऋतु
का अNन होता है , ऋतु का जो भी अNन हो। एक ऋतु का फल होता है इन सब कJ एक साम‚ी बना करके
य]मान भी संक“पवादh हो, •ोतागण भी संक“पवादh ह@, ‹Œमण भी ऊँचा हो। वह उस <नदान को अlछ¤ Vकार
जानता हो, कमIकाœड भी उसका एक [वशेष होता है , कमIकाœड कJ प,ध<त यह है mक उसम\ पीपल दाख
अNनेकेतु नाना Vकार कJ वG
ृ @ कJ सvमधा होती हu उनको एक„Oत करके जब हम य] करते हu तो उससे विृ *ट
य] हो जाता है । तो मuने इसका बहुत अनस ु Nधान mकया। मझ
ु े बारह वषI तक <नNˆा नहhं आ सकJ इस
अनस
ु Nधान म\ । जब यह अनस ु Nधान mकया, औष}धय@ को लाया गया, बेटा! एक सेनकेतु औषध होती है , उसका
पंचांग होता है । उसकJ छाल को vलया जाए तो बड़ी {वाsद*ट और यsद गूदे को vलया जाएं तो वह रसना बहुत
Vबल कर दे ती है उसम\ इतनी अि†न होती है , इन Vल शिdत होती है और उसका जो पjा उसको घण
ृ के ,वारा
संघ
ू ने से हh मानो िजŒवा का शोधन समाfत हो जाता है । इसी Vकार उसका जो पंचांग होता है , उसकJ पांच@
व{तए
ु ं ले करके उसको साम‚ी म\ पnरणत mकया जाता है । इसी Vकार उसम\ एक सय
ू I घत
ृ को बनाया जाता है ।
सय
ू I घत
ृ mकसे कहते हu? सय
ू I घत
ृ कहते हu सNमील अनने अNय आभष
ू णां अमत
ृ नेमकेतु •ˆाः वेद का ऋ[ष
कहता है mक मानव को संक“प को Šढ़ बनाना है dय@mक वह जो संक“प है , िजस कायI को कर रहे हो उसम\
<न*ठा संक“प और य]मान चnरOवान और सं{कारवादh होना चाsहए। जब वह य] करे गा तो उसके पyचात
यहाँ विृ *ट य] हो जाता है ।
तो मu य]@ के सEबNध म\ अ}धक [ववेचना दे ना नहhं चाहता हूँ। अब मेरे fयारे महानNद जी अपना एक वाdय
Vकट कर\ गे। आज मu यह उlचारण कर रहा था mक यह जो य]शाला है इस य]शाला म\ हम\ आहु<त दे नी है
और आहु<त दे करके य] को प[वO बनाना है िजससे यह संसार ऊँचा बनता हुआ और इन य] जैसे काय‰ को
जैसा महानNद जी ने कहा है mक इसको पाखœड कहा जाता है तो बेटा! पाखœड उस काल म\ कहा जाता है जब
मानव परमाणव
ु ाद को केवल इस ग<त से न लेकर के और भौ<तकवाद इतना उNनत आVभे अि{त हो जाता है
और ‹ाŒमण वेद पाठ¤ रहते नहhं, बा्रŒमण अनस
ु Nधान वेjा नहhं रहते तो उनके ]ान का अपमान Vायः होता
रहता है dय@mक मझ
ु े {मरण है mक एक समय Vायः मu न†न रहता था अपने काल म\ । वह परु ातन काल था
आज तो मu इस आप[j काल म\ कोई वाdय Vकट करने वाला नहhं परNतु न†न रहता था जब न†न को ले
जाया जाता था कजलh वन@ से तो उस काल म\ जाते, वै]ा<नक भी यह Vyन करते थे mक महाराज! हम\ अमक

घातु का <नणIय कराइये िजससे हम वायय
ु ान बना ले, िजससे हम अ•णा अ{O बना ल\, िजससे जलाशय अ{O@
का <नमाIण हो जाएं िजसको अ•णा{O भी कहते हu, सामनी यNO होता है तो अ†ने अ{O@ को शाNत करने वाला
होता है । आज तो मu इस सEबNध म\ कोई वाdय Vकट करने वाला नहhं। मझ
ु े भी इस अनस
ु Nधान म\ Vायः
सौभा†य Vाfत होता रहा है । आज मu इन वाdय@ को उlचारण करता हुआ दरू चला गया। अब मेरे fयारे
महानNद जी एक वाjाI Vकट कर\ गे जो मu अपने fयारे महानNद जी से केवल एक अमj
ृ म समNवये अि{त
सV
ु जा!
पš
ू य महानNद जीः- ओ३म ् यमा रथम ् आभा मानम ् तनःु ।
मेरे पšू यपाद गु•दे व! ऋ[ष मœडल! और भˆ समाज! आज मझ ु े परम[पता परमाUमा कJ अनप
ु म कृपा से मेरे
गु•दे व ने अपना दाशI<नक [वषय समाfत करके मझु े अम“
ू य समय Vदान mकया है । इस सEबNध म\ कोई
अ}धक चचाI Vकट नहhं करना चाहता dय@mक सय
ू I के समG एक जग
ु नू का Vकाश मu दे ने लगंू तो कोई शोभा
नहhं दे ता। मेरा [वषय अपने पš
ू यपाद ग•
ु दे व से vभNन रहा करता है , य]शाना बनानी है और य]शाला म\ मझ
ु े
[वराजमान हो करके अनस
ु Nधान करना है । इस Vकार का जो अनस
ु Nधान होता है वह वा{तव म\ [व}चO होता है
परNतु ,यौ लोक कJ समीघा ,यौ लोक का घत
ृ और सय
ू I मœडल और भी नाना लोक-लोकाNतर@ को भी जानना
है ।
आज मu अपनी एक वाjाI Vकट कर रहा हूं mक संसार [व]ान के यग
ु म\ जी रहा है । [व]ान कहते mकसे हu?
इसके ऊपर [वचारना है । [व]ान नाना Vकार के परमाणव
ु ाद को जानना, यNO बनाना, चNˆमœडल म\ जाना और
भी नाना लोक@ कJ क“पना करना यह वा{तव म\ [व]ान तो है परNतु जहाँ मन और Vाण का <नदान कर sदया
जाता है और <नदान करके दोन@ का जब vमलाना करके वह जो मेरे पš
ू यपाद गु•दे व ने अभी-अभी नाना Vकार
कJ नाžड़य@ का वणIन mकया है , च•@ का वणIन mकया है जब वह ‚िNथयां खल
ु जाती हu तो मानव का यह
[व]ान उसे अNतगIत ऐसे आ जाता है जैसे गऊ के ,वारा बछड़ा आ जाता है । आज मu [व]ान कJ चचाI Vकट
करने नहhं जा रहा हं । आज मu चNˆमœडल कJ वाjाI Vकट करने नहhं जा रहा हूं। आज म\ कोई मंगल कJ भी
•या¥या करने नहhं आया।
आज मu Vायः Šि*टपात करता रहता हूं mक मंगल का वै]ा<नक िजतना अनस ु Nधान कर रहा है , बह
ृ {प<त का
मानव िजतना अनसु Nधान कर रहा है । मu इसकJ भी [वशेषता करने नहhं आया हूं dय@mक हमारे यहाँ एक दस
ू रे
लोक-लोकाNतर@ कJ उड़ान Vायः होती रहती है और यह जो उड़ान है यह महान और प[वO भी हो सकती है
परNतु यह [वनाश का कारण बना करती है । परNतु एक या‡]क प•
ु ष के अNतगIत दोन@ Vकार का [व]ान होता
है । एक मानव कJ रGा करने वाला और एक मानव को न*ट करने वाला, समाज को न*ट करने वाला। समाज
कJ रGा कौन करता है ? समाज कJ रGा वह करता है िजसके ,वारा महान सक
ु ृ त महानता है । आज जब मu
क“पना करता हूं mक आध<ु नक जगत म\ mकतना [व}चO बन गया है mकतना अ[व}चOता म\ पnरणत हो गया है ।
आज का मानव वेद के [वषय म\ नहhं [वचारता। नाना Vकार के उन [वषय@ को [वचारने लगता है िजन [वषय@
का Vकाश आया और चला गया। mकतने नाना Vकार के सEVदाय हu और वेद के ऊपर अ•ययन नहhं है , उनका
[वचार भी नहhं है और आज परमाUमा के ,वारा मd
ु त होना चाहते हu। मिु dत कJ क“पना करना चाहते हu। नाना
Vकार के सEVदाय@ म\ अपने मन कJ धारा को ले जा करके के Vाण का सिNनधान न ले करके केवल वह ऐसे
GेO म\ चले जाते हu िजससे मानव हस वैsदक परEपरा का [वनाश करता रहता है और वैsदकता का अपमान
होता रहता है ।
मu यह Šि*टपात करता हूं mक वेद का अपमान कौन करता है ? वेद का अपमान वह Vाणी करता है जो Vाणी
•sढ़वाद म\ पnरणत हो जाता है और अपने मि{त*क म\ [वचार [व<नमय नहhं करता है । वह Vकाशक का Vायः
[वरोधी होता है । वह मह
ु Eमद का मानने वाला हो, दयानNद का मानने वाला dय@ न हो वह ईसा को मानने
वाला dय@ न हो, नाना Vकार के आचाय‰ और ऋ[ष म<ु नय@ को मानने वाला dय@ न हो िजसकJ •sढ़ बन जाती
है वह अपनी मानवता का हनन कर दे ता है , धमI कJ परEपरा को न*ट कर दे ता है । इसी Vकार हमारे यहाँ
िजतना पठन-पाठन mकया जाता है उस पठन-पाठन के आधार पर हम\ [वचार-[व<नमय करना है mक हम अपनी
मानवता को कहाँ ले जाना चाहते हu। परNतु मेरा तो एक हh वाdय रहता है mक •sढ़वाद को Uयाग दे ना चाsहए
और अनस
ु Nधान वेjा बनना चाsहए। वेद का Vकाश कJ छOछाया म\ मानव को आ जाना चाsहए िजसम\ पGपात
नहhं है िजसको हमारे यहाँ ईyवर कJ वाणी कहा जाता है । य] म\ जब [वराजमान होते हu तो य]मान को
चाsहए mक अपनी •sढ़य@ को Uयाग दे , •ोध को •sढ़ को, ,वेष कJ •sढ़ को। अपनी महान वाणी और मि{त*क
को सNतल
ु न म\ करके जब य] करता है घण
ृ ा और मनसा पाप को Uयाग करके यह जो मन सा पाप है यह
मानव के जीवन का [वनाश कर दे ता है िजस मानव को मानसा पाप हो जाता है उस का जो सक
ु ृ त है वह ऐसे
हनन हो जाता है जैसे सांयकाल को सय
ू I कJ mकरण\ हनन कर जाती हu। उसके जीवन म\ Vकाश नहhं रहता।
मनसा पापी Vाणी कौन होता है ? मनसा पापी Vाणी के Žदय म\ घण
ृ ा उUपNन हो करके उसकJ मानवता का
हनन हो जाता है । मेरे पš
ू यपाद गु•दे व का एक मत
ृ लोक म\ शरhर माना गया है , मu उसको Šि*टपात करता
रहता हूं परNतु उनकJ mकसी-mकसी काल म\ भयंकर •ोध कJ माO उUपNन होती है तो यह भय होने लगता है
mक इनकJ mकसी काल म\ मUृ यु न हो जाएं परNतु जब मu वह Šि*टपात करता रहता हूं तो एक [वचार वह आता
है mक मानव को उसका कमI उसे mकस पnरि{थ<त को पnरणत कर दे ता है । मu तो अपने पš
ू यपाद गु• से सi
ू म
वाjाIओं कJ mकसी काल म\ Vेरणा दे ता हूं। उन से मu Vyन हh करता हूं इNह@ने इस विृ *ट य] के vलए बहुत
अनसु Nधान mकया। इNह@ने लगभग ३२ वषI तक ऐसी महान कठोर तप{या कJ mक िजसम\ <नˆा भी नहhं आ
पाती थी। न†न रहते थे, औष}धय@ पर [वचार करते रहते थे, औष}ध आ करके रा„O काल म\ इनसे वाjाI Vकट
करती थीं dय@mक औष}धय@ का जो सEबNध है वह मन से होता है और Vाण से होता है । जहाँ मन और Vाण
दोन@ का [वषय आपस म\ vमलान होने लगता है उस समय मानव से आकर के औष}धयां यह उlचारण करती
हu mक मu इस गुण कJ हूं dय@mक मन और Vाण कJ रचना के आधार पर नाना Vकार कJ वन{प<तय@ कJ रचना
Vायः होती रहती है । इसके पyचात जब यह वाdय मेरे मि{त*क म\ आता है तो मu यह [वचारता रहता हूं mक
पš
ू यपाद गु•दे व का mकतना महान तप है , mकतना इनका अनस
ु Nधान रहा है । पO
ु *े ठ¤ य] म\ जो जो औष}धयां
यह लाए, कहाँ-कहाँ से एक„Oत कJ। बारह वषI पO
ु *े ठ¤ य] कJ औष}धय@ को एक„Oत करने म\ अनस
ु Nधान करने
म\ , उनका <नदान करने म\ लगे, राOी sदवस mकसी काल म\ <नˆा नहhं आती थी मu अपने पš
ू यपाद गु•दे व से
mकसी काल म\ VाथIना क•ंगा mक यह मझ
ु े <नणIय कराय\ परNतु इस सEबNध म\ मu mकसी काल म\ बड़ा }चिNतत
होता रहता हूं। वा{तव म\ }चNता तो नहhं dय@mक मानव का जो कमI है उसके अनस
ु ार मानव का एक [वलGण
कमI चलता रहता है ।
केवल यह वाdय और उlचारण करना चाहता हूं mक संसार म\ मानवता का <नमाIण होना बहुत अ<नवायI है और
मानवता का <नमाIण उस काल म\ होगा जब ‹ाŒमण ऊँचे Uयागी प•
ु ष ह@गे। िजतना Uयाग होगा, िजतना
‹ाŒमणUव होगा उतना रा*‘ और समाज दोन@ ऊँचे बन\गे dय@mक रा*‘ म\ , समाज म\ दोन@ को ऊँचा बनाने वाला
‹ाŒमण कहलाता है । वह कौन-सा ‹ाŒमण है ? वह जो अपने म\ अनस
ु Nधानवेjा है । तप हh से तप{वी बन जाता
है । जो संसार का लोक[Vय Vाण बन जाता है वहh तो ‹ाŒमण कहलाता है । ‹ाŒमण कहते उसे हu जो
अनस
ु Nधानवेjा होता है , जो महान होता है । िजसकJ प[वOता ,यौ लोक और अNतnरG और प~
ृ वी म\ Vाfत होती
है । मझ
ु े {मरण है mक उनके पास राजा महाराजा आते, रा*‘ के <नमाIण कJ चचाI करते। एक समय मेरे
पš
ू यपाद गु•दे व के समीप महाराजा अyवप<त जी आए dय@mक उNह\ अपने šये*ठ पO
ु को राšय अ[पIत करना
था। वह चरण@ म\ ओत-Vोत होकर के बोले mक हे Vभ!ु मu यह चाहता हू mक आपके ,वारा मेरे रा*‘ का <नमाIण
हो और मझु े कोई वाjाI Vकट कराए mक मu उसका <नमाIण mकस Vकार क•ं। तब कहा गया mक मझ ु े बड़ी
VसNनता है mक तम
ु वानV{थ और सNयास को Vाfत हो रहे हो। यह तो तE
ु हारा सौभा†य है परNतु पO
ु को
सय
ु ो†य बनाओ। राजा के दो कायI होने चाsहए। एक तो उसके ,वारा vम~या नहhं होनी चाsहए। कोई वाjाI ऐसी
होती है जो श,
ु ध Vतीत होती है परNतु उनके गभI म\ भी vम~या होता है । इसvलए वह वाjाI भी नहhं होनी
चाsहए। दस
ू रे राजा को अपनी दस@ इिNˆय@ पर संयम करना चाsहए। दस इिNˆयो का संयमी जो प•
ु ष होता है
वह रा*‘ का नायक बन जाता है रा*‘ को प[वO बना दे ता है । इसके पyचात राजा को यह [वचारना है mक
िजतनी मेरे रा*‘ म\ प„ु Oयां हu, माता हu, इसके शंग
ृ ार कJ मझ
ु े रGा करनी है , रा*‘ म\ सदाचार होना चाsहए। इस
Vकार का संक“पब,ध जो राजा होता है अपनी पUनी को छोड़कर रा*‘ म\ िजतनी माताएं और प„ु Oयां होती हu
वह उसके vलए Uयाšय मानी गई है । इस Vकार का गुण राजा म\ होना चाsहए। यsद यह गुण राजा म\ नहhं है
तो मेरे पš
ू य गु•दे व ने कहा mक राजा को राजा नहhं बनाना dय@mक राजा बनाओगे तो वहाँ ‹Œम हUया हो
जाएगी।
‹Œम हUया mकसे कहते हu mक यहाँ ब,
ु }धमान ‹ाŒमण@ का अपमान होने लगेगा। ब,
ु }धमान@ का अपमान mकस
काल म\ होता है जब राजा सदाचारh नहhं होता। जहाँ राजा को यहh ]ान नहhं mक dया वाdय हम\ Vकट करना
है dया नहhं करना है , mकतना vम~या उlचारण करना है mकस से करना है जब तक यहh ]ान नहhं तो उस
राजा को मत चन
ु ो। उसे चन
ु ोगे तो संसार न*ट ¡*ट हो जाएगा। आध<ु नक रा*‘ के सEबNध कJ चचाI मu Vायः
करता रहता हूं। यह ऋ[ष म<ु नय@ कJ भvू म रहh है या]व“dय ‹Œमवेjा कJ भvू म रहh है , इस भvू म कJ चचाI मu
यsद करने लगंू तो पš
ू यपाद गु•दे व आyचयI कर\ गे। हमारा यह <नyचय है mक आज राजाओं म\ इस Vकार कJ
•ां<तयां dय@ हu, अि†नकाœड हो रहे हu, इनका मल
ू कारण यह है mक मख
ू ‰ को चन
ु ा हुआ राजा मख
ू I होता है
dय@mक जो साधारण Vजा होती है उसे यो†य और अयो†य का ]ान नहhं होता। •sढ़वाद आ जाता है उस
•sढ़वाद से चन
ु ा हुआ जो Vाणी होता है वह तो मखू I हh बनेगा। Vजा को कोई आनिNदत नहhं कर सकता।
उसका मलू कारण यह है mक राजा को ‹ाŒमण चन ु ा करते हu, ब,ु }धमान चन
ु ा करते हu।
तो उस समय महाराजा अyवप<त ने पš
ू यपाद गु•दे व से कहा Vभ!ु ? आप उसके अNतःकरण को Šि*टपात
कJिजए वह कैसा है । समा}ध*ट हो करके राजाओं का मि{त*क आयव
ु ¦द कJ Šि*ट से मि{त*क का <नदान, Žदय
का <नदान, इिNˆय@ का <नदान करने के पyचात हमारे यहाँ राजा-महाराजा बनाया जाता है और ऐसा राजा जो
यो}गय@ के ,वारा, ‹ाŒमण@ के ,वारा चन
ु ा जाता है वह Vजा को सख
ु ी बना दे ता है और {वयं सख
ु ी बन जाता
है । आध<ु नक काल म\ तो यह भयंकर अि†न का Vभाव होने जा रहा है , मझ
ु े तो यह Šि*टपात आ रहा है mक
संसार के एक {थान पर रdत कJ धाराय\ आने वालh हu और अि†न Vदhfत होने वालh है । यह ऐसा dय@ है ? न
छाOबल प[वO, न रा*‘वादh हh प[वO हu। कारण यह है mक जो नायक होता है उसका Žदय ‹ŒमUव से पका
हुआ नहhं है , वह ‹ाŒमण आचाण‰ से तपा हुआ नहhं है , उसका <नमाIण यsद ब,
ु }धमान@ के ,वारा होगा तो यह
रा*‘ प[वO बनता चला जाएगा। इस समाज को Šि*टपात करते हुए मझ ु े बहुत समय हो गया है । जो दसू रे को
न*ट करके राजा बनने कJ चे*टा करता है वह मेरh प„ु Oय@ के शंग
ृ ार को हनन करता है और जो मख ू ‰ का चन ु ा
हुआ राजा होता है उसके ,वारा <नयम और अ<नयम कुछ नहhं होते इस Vकार अVेत होता है तभी तो रा*‘ म\
रdत भरh •ािNत लाता है । रdत भरh •ािNत का मल
ू कारण dया है mक िजतनी आUमहUया कJ जाएगी।
आUमहUया mकसे कहते हu? िजतना समाज के [वचार@ को हनन mकया जाएगा, उNह\ उनका अ}धकार Vाfत नहhं
होगा उतना हh अि†न का Vभाव चलता रहे गा। एक समय वह आयेगा mक वह जो शाNत होने वाले [वचार हu
िजनको दमन करने कJ चे*टा कJ गई वह [वचार एक समय अि†न बन करके मानव के समीप आ करके रdत
भरh •ािNत का मल
ू कारण बन जाता है । यह मनो[व]ा<नक vस,धाNत है , संसार के नाना उदाहरण मेरे समीप
आते रहते हu। महाभारत के काल म\ जब पाœडु पO
ु @! के [वचार@ का दमन हुआ तो उनके [वचार भयंकर अि†न
ले करके समीप आ गएं िजससे संसार का [वनाश हो गया। इसी Vकार जब रावण के आतताई [वचार ऋ[ष
म<ु नय@ को अपमा<नत करते रहे । तो मह[षI भार,वाज ने भगवान राम को कहा mक हे राम!? िजतना मेरे ,वारा
श{O हu इससे राजा रावण के आतताई रा*‘ को तझ
ु े त*ु ट करना है । मह[षI भार,वाज ने भगवान राम को अपने
अ{O@ श{O@ को Vदान mकया और रावण का पnरवार न*ट हो गया। पातालपरु h से लेकर sहमालय तक उNहhं का
रा*‘ •याfत रहता था, एक सi
ू म सी अयो•या परु h रह गई थी। मह[षI भार,वाज ने नारायणतक को चNˆमा कJ
याOा कराने का Vयास mकया और उनके [व¡ाता कुEभकरण को ऊँचा वै]ा<नक बनाया। कुEभकरण ६ मास तक
अ{O@-श{O@ कJ [व,या Vदान करते रहते थे। और ६ मास तक अ]ातवास म\ रहते थे। वह sहमालय कJ कंˆाओं
म\ अपनी [व]ानशाला म\ अ{O@-श{O@ का <नमाIण mकया करते थे। आध<ु नक काल का Vाणी कहता है mक वह ६
मास तक <नˆा म\ रहते थे और ६ मास तक जाग•क रहते थे। वह महान था उसका [व]ान भी महान था।
हे मेरh fयारh माता! तू अपने गभI से ऊँची संतान को जNम दे । यsद तू ऊँची सNतान को जNम नहhं दे सकेगी
तो तेरा शंग
ृ ार न*ट होता रहे गा। मेरे पš
ू यपाद ग•
ु दे व! मu आपको <नणIय कराना चाहता हूं जब संसार म\ माता
कौश“या होती है तो राम जैसी पन
ु ीत आUमा अNतnरG म\ से आ जाती हu और जब माता Vाणकेतु होती हu,
माता {नेहलता होती हu तो {नेहलता के गभI से दयानNद जैसी आUमाओं का जNम होता है । इसी Vकार महाUमा
शंकाराचायI का •<न रानी के गभI से जNम होता है । यह संसार तब तक ऊँचा बनता है जब मेरh माता सच
ु nरO
होती है , प<त ता होती है । हे मेरh माता! जब तेरे गभI से उUपNन हुआ बालक हh यsद तेरh हh जा<तयता को
mकसी कJ पO
ु ी के ऊपर कुŠि*ट करता है तो यह दोष mकसका? यह मेरh माता का हh दोष है dय@mक माता ने
अपने गभI{थल म\ सN
ु दर <नमाIण नहhं mकया। माता भी दtु खत रहती है । इसका मल
ू कारण यह mक अपने
गभI{थल को ऊँचा बनाना, महान बनाना प[वO बनाना यह मेरh fयारh माता का प[वO कjI•य होता है ।
मेरh fयारh माता को मन और Vाण को सच
ु ा• •प म\ सN
ु दर बनाता है , परNतु गभI म\ जब परमाUमा <नमाIण
करता है कौन-कौन से माह म\ कौन-कौन-सी नाžड़य@ का <नमाIण होता है । पš
ू यपाद गु•दे व का यह [वषय रहा
mकरता है मu इस सEबNध म\ अ}धक चचाI नहhं करना चाहता dय@mक मu वै,य नहhं हूं। आज का मानव कहता है
mक यह सब पाखœड है । पाखœड को वह जानते नहhं कjI•य न करके वह कjI•यहhन हh तो पाखंड कJ माOा को
उUपNन करता है । मu समय अ}धक नहhं लेना चाहता हूं। वाdय उlचारण करने का अvभVाय यह है mक मानव
का <नमाIण हो और य] होने चाsहएं। आज का रा*‘ तो य] को भी पाखंड कह रहा है । आज कहता है mक
संसार म\ तो Vाtणय@ के vलए अNन नहhं Vाfत होता और यह य] होते हu। अरे मख
ू I समाज! यह तू dया
उlचारण कर रहा है । आज तE
ु ह\ इसका ]ान नहhं हो पा रहा है dय@mक वेद का ]ान Uयाग करके मानव ऐसी
वाjाI Vकट कर रहा राजा के रा*‘ का <नमाIण केवल य] के ,वारा होता है । य] करना उसका कjI•य होता है
िजससे Vजा म\ सख
ु आए, आनNद आए, प[वOता आ जाए dय@mक जो राजा िजस कायI को करता है Vजा उस
कायI को करती है , Vजा उसका अनस
ु रण करती है , प[वO बन जाती है । इसvलए राजा को वह कायI करना
चाsहए dय@mक संसार म\ यहh तो होता है िजसको हम ऊँचा {वीकार कर लेते हu उसके अनक
ु ू ल चलने कJ चे*टा
हमारे मि{त*क म\ होती है िजसको जानने के पyचात मानव का मि{त*क प[वO बन जाता है । संसार को ऊँचा
बनाना, ऊँची सNतान को जNम दे ना, रा*‘ का <नमाIण करना, मख
ू ‰ का चन
ु ा हुआ राजा मख
ू I होता है जहाँ रdत
भरh •ािNत का Vभाव इसvलए होता है dय@mक ‹ाŒमण ब,
ु }धमान@ के ,वारा रा*‘ का चन
ु ाव नहhं होता।
मu अपने पš
ू यपाद गु•दे व से यह वाdय उlचारण करने वाला था महाराजा अyवप<त के पO
ु के अNतःकरण को
यौ}गकता से Šि*टपात करके अyवप<त को कहा mक हे अyवप<त! अभी तम
ु एक वषI तक रा*‘ पालन और करो
एक वषI म\ यह सय
ु ो†य बन ◌ायोगा। उस समय ऐसा हh हुआ। एक वषI तक अyवप<त ने और रा*‘ का पालन
mकया उसके पyचात पO
ु को Šि*टपात mकया गया। वह इस यो†य बन गया mक उसको रा*‘ दे कर के वह ऋ[ष
म<ु नय@ के पास जा पहुंचे। अरे , उन राजाओं का Vजा पर mकतना Vभाव होता था उनका Uयाग Šि*टपात करके
Vजा भी Uयागी होती थी। जब राजा Uयागी होता है तो Vजा भी Uयागी होती है । जब राजा वन कJ याOा करता
है , पवIत@ को चला जाता है , तप{या गायOणी छNद@ म\ अ[पIत हो जाता है । उसका आदर करने वाला समाज
होता है , उसके पO
ु का भी आदर होता है और Vजा उनका अनक
ु रण करती है vशGा दh हमारे यहाँ यव
ु ा
vशGालय म\ vशGा दे ते हu। गह
ृ णी म\ मन लगा हुआ है , एक {थान म\ ‹Œमचाnरय@ को जा हh है । अरे , तE
ु हारे
Žदय म\ जो सi
ू म मोह कJ ममता वशीभत
ू हो जाती है तो ‹Œमचारh भी उसी Vकार के बनते हu। जब vशGालय@
म\ वानV{थी vशGा दे ता है , ‹Œमचारh को अपने जीवन के अनभ
ु व दे ता है तो ‹Œमचाnरय@ का जीवन प[वO
बनता चला जाता है । जब मu अपने सi
ू म शरhर ,वारा संसार का ¡मण करता हूं तो मu vशGालय@ कJ वतIमान
वाjाI ऐसी Šि*टपात कर रहा हूं mक संसार का बनेगा dया? छाOबल इसvलए समाfत होता चला जा रहा है
dय@mक उसका कjI•य न*ट हो गया है , dय@mक अनभ
ु वी •यिdत इनको vशGा नहhं दे ता। नई वधू उनके घर@ म\
पnरणत हu और जब वह vशGालय@ म\ vशGा दे ने जाते हu तो उनका मन कामना म\ पnरणत हो रहा है । जब Vाण
म\ ग<त है और Vाण के जो परमाणु हu वहh तो [व,यालय म\ पnरणत ह@गे। ‹Œमचाnरय@ का मि{त*क उसी
[व,या से बनेगा। इसvलए vशGालय@ म\ छाOबल अपने कjI•य का पालन नहhं कर सकता। यह उसी sदशा को
चलेगा िजस sदशा म\ गु• कJ Vथा होती है । एक जा<तय सं{कार होते हu। माता <नमाIण करने वालh है परNतु
माताओं के ऊपर भी वह जो vशGालय@ म\ ‹Œमचारh ने vशGा ‚हण कJ है वहh तो प<त बन करके गह
ृ @ म\
आता है उसका जीवन भी तो उसी Vकार का बना है । ऐसा संसार का वातावरण जब मu Šि*टपात करता हूं तो
मझ
ु े आyचयI होता है mक इस समाज का dया बन गया। जहाँ एक {थान म\ ऋ[ष म<ु न रहते थे, परु ोsहत vशGा
Vदान करते थे। dया बन गया इस रा*‘ का? मझ
ु े बड़ा आyचयI आता है । वाdय उlचारण करने का अvभVाय
यह है mक समाज उस काल म\ प[वO बनेगा जब यहाँ रा*‘वाद कJ V<तभा सN
ु दर होगी। महान होगी, प[वOता
म\ पnरणत होगी। आज का हमारा वाdय अब समाfत। अब मu अपने पš
ू यपाद ग•
ु दे व से आ]ा पाऊंगा। कोई
कटु शxद उlचारण हो गया हो तो मu Gमा पाऊंगा।
पš
ू यपाद गु¨दे वः- हा{य.....धNय हो! मेरे fयारे ऋ[षवर! आज मेरे fयारे महानNद जी ने एक [वचार sदया परNतु
वह जो [वचार है वह एक [वडEबना भरा [वचार है और समाज के <नमाIण का [वचार है । मानव को यह
[वचारना है mक हम\ अपने समाज को उसी Vकार का बनाना है और राजा के रा*‘ म\ ऊँचे-ऊँचे योग {थान होने
चाsहए िजनका रा*‘ के ˆ•य के खान-पान कJ •यव{था होनी चाsहए और िजतने योगी ह@गे उतना हh मानव का
सध
ु ार होगा, प[वOता म\ पnरणत हो जाएंगे। यह आज का वाक् अब हमारा समाfत होने जा रहा है । मेरे fयारे
महानNद जी ने बहुत शxद उlचारण mकए। बहुत हh सN
ु दर [ववेचना कJ है । कहhं-कहhं कटु शxद भी हुए हu
परNतु आज का यह वाdय समाfत। अब वेद का पाठ होगा।
पš
ू य महानNद जीः- Vकृ<त भी पण
ू I है , Vकृ<त के „बना संसार नहhं हमारा शरhर भी नहhं और ‹Œम भी पण
ू I है
परNतु Vकृ<त के आँगन म\ जाने म\ हhनता dय@ मानी जाती है ?
पš
ू यपरद गु¨दे व जीः- जैसे हमारे शरhर म\ अहं कार है , रसना है , िजतनी ]ानेिNˆयां हu, कमI इिNˆयां हu इनसे
सi
ू म मन है जो इNह\ <नयNOण म\ V{तत
ु करता है इस मन से सi
ू म ब,
ु }ध है और ब,
ु }ध से सi
ू म
अNतःकरण है िजसे हम }चj भी कहते है और }चj से सi
ू म वह आिUमक šयो<त है और िजतनी यह पांच
]ानेिNˆयां और पांच कमI इिNˆयां हu यह सब Vकृ<त का {व•प है Vकृ<त म\ यह मन और ब,
ु }ध यह }चj भी
आ जाता है । यह सब Vकृ<त के आवेश@ से आता है और जब हम इस पर <नयNOण करने लगते हu ओर यह
िजतना Vकृ<त का सi
ू म •प है यह हमम\ समाsहत हो जाता है । उसके पyचात हम अिNतम šयो<त पर जाते हu।
आUमा Vक<त से सi ू म है और परमाUमा आUमा से भी सi
ू म है । Vकृ<त जड़ है और परमाUमा आUमा से भी
सi
ू म है । Vकृ<त जड़ है और परमाUमा चैतNय है और उनके मा•यम म\ यह आUमा है । सबसे सiू म गुण Vकृ<त
म\ है और उसके पyचात जीव म\ है और सबसे अ}धक गुण परमाUमा म\ है । जो जैसे गुण@ वाले के ,ववारे
सUसंग करता है वैसे गण
ु उसम\ ओत-Vोत हो जाते है जैसे कोई मन*ु य दरु ाचारh का सUसंग करता है तो उसम\
दरु ाचारh के अंकुर [वराजमान हो जाते है इसी Vकार Vकृ<त सi
ू म गुण@ वालh होने के नाते और जीव उससे
अ}धक गुण@ वाला होने के नाते यsद वह जीव अपनी उNन<त चाहता है तो अ}धक गुण वाले से उसका सEपकI
होना चाsहए और जब वह Vकृ<त के आँगन म\ आ जाता है , Vकृ<त का सUसंग करता है तो उस समय उसके
,वारा हhनता हh आती चलh जाती है और वह हhनता को Vाfत करता रहता है । उसे ‹Œम के आँगन मे जाने से
महान आनNद Vाfत होता है । Vकृ<त सत है , जीव सत}चj है वह आनNद के vलए इlछुक रहता है और आनNद
परमाUमा मे vमलता है और Vकृ<त म\ आनNद नहhं है । इसvलए Vकृ<त का जो सEपकI है वह इतना लाभदायक
नहhं होता। (लाGागह
ृ बरनावा पर sदया हुआ Vवचन)

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