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द्युलोक
द्युलोक
ृ
दे खो, म<ु नवर@! आज हम तEु हारे समG, पव
ू I कJ भां<त, कुछ मनोहर वेद मNO@ का गुणगान गाते चले जा रहे
थे, हमारे यहाँ <नUय V<त कुछ मनोहर उस वेदवाणी का Vसारण होता है िजस प[वO वेदवाणी का Vसारण होता
है िजस प[वO वेदवाणी म\ उस परम[पता परमाUमा का ]ान और [व]ान माना जाता है । यह जो सवIO जगत है
यह उस परम[पता परमाUमा का एक [व]ान है वह <नUय V<त अपना कायI करता चला जा रहा है ।
आज का हमारा वेद का ऋ[ष dया आ]ा करता चला जा रहा था? मेरे fयारे ऋ[षवर! आज का हमारा वेदमNO
बहुत हh सi
ू म वाjाI Vकट कर रहा था। कल यह उlचारण mकया जा रहा था mक अNतnरG का घत ृ dया माना
जाता है इसके ऊपर हमारा [वचार [व<नमय चल रहा था, नाना ऋ[ष म<ु नय@ का [वचार अथवा उनका
अनस
ु Nधान Vायः होता रहता है था और नाना sटfपtणयां भी दh हu। रहा यह वाdय mक उनके [वचार@ म\ , हमारे
और भी नाना ऋ[षय@ के [वचार@ म\ vभNनता हो सकती है । उनके शxद@ कJ जो रचना है और वाdय@ का जो
सN
ु दर [वyलेषण है वह हमारे vलए Vायः अनक
ु ू ल न हो परNतु उनका [वचार एक महान और सावIभौम हो जाता
है । ऋ[षय@ का [वचार ऐसा होता है जो महान एक अनस
ु Nधान से दरू h हो dय@mक ऋ[ष कहते हh उसको हu जो
अपने जीवन सEबNध ,[वतीय बाहरhय जगत और अNतnरG जगत दोन@ का समवNय करने वाला होता है । दोन@
कJ जो धारा हu उनको एक संगम म\ लाने वाला होता है । संगम का अvभVाय dया होता है ? दे खो, हमारे यहाँ
मन पर ऋ[षय@ ने बहुत बल sदया है mक मन को प[वO बनाया जाए। मन संसार म\ उन वन{प<तय@ का सi
ू म
रस कहलाता है िजसकJ V<त*ठा ,यौ लोक म\ रमण करने वालh होती है । यह जो हमारा मन है यह नाना Vकार
कJ सN
ु दर रचनाय\ रचने वाला है । dय@ रचता है ? इस मन कJ धारा dया है ? मन कJ जो उपलिxध मानी जाती
है और इसकJ जो धारा है वह जो नाना Vकार कJ वन{प<तयां होती हu, नाना जो औष}धयां होती हu, उनका रस
परमाणु बन करके अNतnरG म\ रमण कर जाते हu मानो दे खो, उसम\ उसकJ V<त*ठा हो जाती है उसी को हमारे
यहाँ सावIभौम कहा जाता है dय@mक मन कJ एक ऐसी धारा होती है mक यsद प~
ृ वी म\ नहhं होगा तो Vाण का
और नाना Vकार कJ वन{प<तय@ का उUपादन नहhं होगा। िजस Vकार वसN
ु धरा प~
ृ वी के गभI{थल म\ नाना
Vकार कJ वन{प<तय@ का जNम होता है परNतु वह इसीvलए होता है dय@mक उसम\ एक महानता होती है , उसम\
सावIभौमता होती है और [वभाजन करने कJ इसम\ एक महान शिdत होती है dय@mक Vकृ<त के त•व@ का, Vकृ<त
के परमाणओ
ु ं का मन [वभाजन करता रहता है इसीvलए हमारे यहाँ इस मन को वन{प<तय@ का घत
ृ कहा जाता
हu। वन{प<तय@ को हम <नदानम Vेम कृ<त •दो भागाः हमारे समीप एक वाdय आता रहात है िजस Vकार पशु
जो नाना Vकार कJ वन{प<तय@ को ‚हण करता है मानो िजस मNO म\ वह मNथन mकया जाता है यsद आज
हम बाहरhय औष}धय@ के ,वारा उस घत
ृ को लाना चाह\ तो वह mकस Vकार ला सकते हu। यह हमारे यहाँ
अनस
ु Nधान का [वषय रह जाता है । इसम\ मह[षI वायु म<ु न महाराज, दालƒय और मह[षI सौमम<ु न महाराज
इUयाsद का जो [वचार है उसे मu तE
ु ह\ Vकट करा रहा हूं। आज जब हम नाना Vकार कJ औष}धय@ को एक„Oत
करते हu और एक„Oत करके अ*टकोण य]शाला बनाते हu और अ*टकोण य]शाला बना करके य]शाला का जो
ऊपरh [वभाग होता है उसम\ दे खो, हnरत, yवेत और पीत वणI के उसम\ कJ<तI या अ{वात अप‚ीह होते हu। वह
जो वन{प<तयां हम य]शाला म\ पnरणत करते हu, तपाने के पyचात ् उनकJ धारा बन करके य]शाला म\ जब
उनका अपरात <नदान होता है तो उसी <नदान के कारण, महानता के कारण हमारे यहाँ ऐसा माना जाता है mक
िजसम\ जीवन कJ एक धारा प[वOता म\ पnरणत कJ जाती है dय@mक हमारे यहाँ य]शाला म\ एक महानता का
सदै व sद†दशIन Vायः होता रहता है िजसके ऊपर हमारा केवल महान [वचार होता है उस [वचार के साथ म\
हमारh मौvलक धारा होती है । उस य]शाला म\ उस या‡]क प•
ु ष कJ एक महान धारा म\ पnरणत होने वाला एक
[वचार होता है । जब मानव य]शाला म\ पnरणत होता है तो उसकJ महान धारा एक प[वOता म\ पnरणत हो
जाती है ।
आओ मेरे fयारे ऋ[षवर! आज का हमारा आचायI dया कह रहा है ? हम\ [वचारना dया है ? हम\ य] के घत
ृ को
[वचारना है । िजसके ऊपर मानव को सदै व [वचार [व<नमय करना है । आज मu ऋ[ष म<ु नय@ का [वचार दे ना
चाहता हूं और वह dया mक हम\ मन और Vाण कJ सi
ू मता को जानना है वह जो ,यौ लोक म\ नाना Vकार कJ
वन{प<तय@ का रस है मानो य] के ,वारा हम उसका पात बना सकते हu और पात बना करके मानो सय
ू I कJ
जो नाना mकरण\ हu उनको हम अपने म\ ला सकते हu। dय@mक mकरण@ के ,वारा हh पशु के उस शरhर म\ Vायः
उसका <नदान होता है महानता म\ उसकJ धारा होती है िजसके ऊपर मानव को एक [वचार [व<नमय करना होता
है ।
हमारे यहाँ य] भत
ू ानां घत
ृ ं •ˆ{य भागा आचायI कहता है mक य]शाला से यािजक प•
ु ष जब [वराजमान होता
है तो सय
ू I कJ mकरण@ का mकस Vकार <नदान mकया जाता है ? उसको हम अपने म\ mकस Vकार धारण कर
सकते हu इसके ऊपर हम\ [वचार [व<नमय करना है तो यहाँ वेद का ऋ[ष कहता है , मह[षI भार,वाज ने एक
वाdय म\ कहा है , सम भव Vभे अकृता<न •ˆ{य भागाः mक नाना Vकार कJ सय
ू I कJ mकरण@ से नाना Vकार कJ
mकरण@ का जNम होता है , उन mकरण@ म\ एक महानता कJ धारा होती है उNहhं को लाने के vलए हम सदै व
तUपर रहते हu िजससे हमारा [वचार आचाय‰ कJ Šि*ट म\ महान माना गया है dय@mक उसको हम अपने
मि{त*क कJ य]शाला म\ लाना चाहते हu तो एक महान यौ}गक [वषय बन जाता है । हमारे यहाँ योगाचाय‰ ने
कहा mक ‹Œम योगात Vभा अि{त सV
ु जाः मानो जो ‹Œम [व,या का <नदान करना जानता है dय@mक ‹Œम कJ
[व,या का <नदान मन और Vाण के साथ हh तो होता है । यsद मन और Vाण दोन@ को <नदान नहhं ला सकोगे
तो जीवन महानता का कदा[प भी sद†दशIन नहhं हो सकेगा।
आज VUयेक मानव को संसार म\ य] करना चाsहए। य] कJ V<तभा dया कह रहh है mक आज हम\ नाना Vकार
का अनस
ु Nधान करना है dय@mक यह जो जगत है यह परमाUमा का एक भ•य भवन है , य]शाला है , मानो यहh
तो ‹Œम [व,या [वचारने का एक य] Vभे कृत•यो दे खो, इसको ‹Œम भवन कहा जाता है । इसम\ मानव िजतना
अनसु Nधान कर लेता है , िजतना अपने जीवन का <नदान कर लेता है , िजतना अपने Žदय को {वlछ बना लेता
है िजतनी मन कJ धारा को ऊँचा बना लेता है उतना हh उसकJ मन कJ धारा प[वO बन करके ,यौ लोक@ म\
उनकJ V<त*ठा हो जाती है ऐसा हमारे यहाँ वेद का ऋ[ष कहता है य]ं भत
ू ानां Vभाकृ<त •ˆाः सिNत लोके
आचायI कहते हu, मह[षI भार,वाज ने यह कहा है mक य]मान के Žदय कJ ग<त िजतनी श,
ु धता होगी, िजतनी
महानता उसके ,वारा होगी उतनी हh VUयेक आहु<त अि†न का {व•प माना गया है । हमारे यहाँ कल के
वाdय]ै। म\ उlचारण mकया जा रहा था mक ‹Œम वहृ ाम ् लोकः मानो अि†न को हमारे यहाँ अ•वIयु कहा जाता
है । उ,गाता का अvभVाय केवल अि†न और वायु दोन@ कJ पट
ु हुआ करती है उस समय वायु उ,गाता कहलाता
है और अि†न अ•वIयु कहलाता है , अ•वIयु का dया अvभVाय है ? वह मानो वायु कJ सहकाnरता से हh, वायु के
साथ vमलान से हh अ•वIयु कहलाता है और वह अि†न के साथ म\ vम•ण होने से हh उसको हमारे यहाँ उ,गाता
कहा जाता है dय@mक वायु हh तो समागान गाती है उ,गाता हh तो य]शाला म\ उ,गीत गाता है । य]शाला म\
पnरणत होता हुआ महानता को Vाfत होता रहता है ।
हमारा आज का वाक् dया mक हमारे यहाँ अि†न को हh अि†न Vभा कृOं •ˆ{य भागा असवतो लोकं मम वाचं
Vाणी मानो आUमा को हामरे यहाँ य]माना कहा गया है dय@mक आUमा हh इसका कृत कहलाया गया है आUमा
के साथ हh य]भत
ू {य Vभा dय@mक संसार म\ आUमा के कारण मन Vकृ<त का िजतना परमाणव
ु ाद है , िजतना
अणवु ाद है वह सब आUमा के आ}•त होता हुआ इस शरhर होता हुआ इस शरhर म\ ग<त कर रहा है । यह
मानवीय ग<त इसी के आ}•त हो करके रमण mकया करती है ।
‹Œम कJ चेतना संसार म\ अपना कायI कर रहh है । ‹Œम [व,या हh मानव को ऊँचा बनाती है , रा*‘ को ऊँचा
बनाती है और रा*‘ म\ धमI को ला दे ती है । इसvलए आज हम\ ‹Œम [व,या कJ आवyयकता है । जब VUयेक
मानव धमI<न*ठ और ‹Œम<न*ठ होता है उसी काल म\ उसकJ [वचारधारा म\ एक महानता का sद†दशIन, महानता
कJ उसके Žदय म\ V<ति*ठत हो जाती है िजससे वह महान कहलाता है । मानव कJ जो वाणी होती है उसका
सEबNध अि†न से होता है इसvलए हमारे यहाँ mकसी mकसी ऋ[ष ने अि†न को भी उ,गाता कहा है , वायु को
अ•वIयु कहा परNतु इसका [वचार हम mकसी काल म\ वेद पाठ आयेगा तो Vकट कर\ गे। आज का हमारा यह
वाdय आ]ा नहhं दे रहा है आज तो हम Vभु कJ याचना कर रहे हu mक हे Vभ!ु तू {वयं य] है , तेरh महानता
इन वेद@ म\ पnरणत हो रहh है , वेद कJ जो अनप
ु म धारा है , वेद का जो Vकाश है यहh Vकाश मानव के
अNतःकरण को प[वO बनता है dय@mक वेद कJ जो अनप
ु मता है , ‹Œम [व,या है , महानता है उसम\ उसका एक-
एक शxद पGपात से रsहत है उसी को तो ‹Œम [व,या कहते हu dय@mक परमाUमा •sढ़ नहhं होता इसीvलए वेद
भी •sढ़ नहhं है । इसvलए वेद के अनस
ु ार मानव को अपने जीवन को ऊँचा बनाना चाsहए। जो मानव •sढ़य@ म\
पnरणत हो जाते हu उनके जीवन@ म\ [वनाश हो जाता है , उनका जो संक“प होता है उसकJ धाराओं म\ vभNनता
आ जाती है ।
आज हमारा वेद पाठ dया कह रहा है mक हम परम[पता परमाUमा कJ उपासना करते हुए य]शाला म\ पnरणत
होते हुए अपने [वचार@ का य] करते चले जाएं। नाना Vकार का संक“प हो। संक“प के साथ म\ हमारा एक
संक“प हो, Vाण का हh उसम\ <नदान हो उसके पyचात ् जब हम आहु<त दे ते हu, वह आहु<त ,यौ लो को Vाfत
होती है , दे वता गण उनको Vाfत करते हu और दे वता जब तfृ त होते हu तो रा*‘वाद को dया समाज को प[वO
बनाते चले जाते हu, परNतु परमाणव
ु ाद को ऊँचा बनाते चले जाते हu dय@mक यह िजतना जगत है यह सब
परमाणओ
ु ं कJ हh रचना है । कल मझ
ु े समय vमलेगा तो मu यह उlचारण कर सकंू गा mक ,यौ लोक का जो घत
ृ
है उसम\ mकतने सi
ू म परमाणु होते हu और वह परमाणु जब अि†न उ,गाता बन करके और वायु अ•वयुI बन
करके जब उसका शाक“प उनम\ Vदान mकया जाता है तो ,यौ लोक म\ mकतनी महान ग<त होती है । िजतना
मानव का Žास {वlछ और प[वO होता है , ममता से रsहत होता है , •ोध से रsहत होता है , नाना Vकार कJ
[वडEबनाओं से रsहत होता है उतना हh ,यौ लोक को मानव का संकलन Vाfत होता चला जाता है ।
आओ मेरे fयारे ऋ[षवर! आज का हमारा यह वाdय समाfत अब मझ
ु े समय vमलेगा तो शेष चचाIय\ कल Vकट
कर सकंू गा। अब वेद@ का पाठ होगा। इसके पyचात ् हमारh वाjाI समाfत हो जाएगी। (लाGागह
ृ बरनावा म\ sदया
हुआ Vवचन)